shri guru angad dev ji - sakhi 059

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Page 1: Shri Guru Angad Dev Ji - Sakhi 059
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एक क्षत्रि� पे्रमा जि�से कोहड़ था, उसकी कोई देखभाल करने वाला नहीं था| गुरु �ी की मत्रिहमा सुनकर गोइंदवाल आ गया| वह गुरु �ी के त्रिनवास स्थान से कुछ दूर बैठ कर "मैं गया कछोटा लभा �ी" मैं गया कछोटा लभा की रट लगाने लगा| सिसक्खों ने गुरु �ी को �ाकर क्षत्रि� पे्रमा की बात कह सुनाई| गुरु �ी ने कहा - �ो कुछ वह कहता है उस का भाव यही है की मेरा शरीर रूपी कपड़ा �ो कुष्ट रोग से चला गया था, अब मुझे मिमल गया है| गुरु �ी ने सिसक्खों को आज्ञा दी त्रिक इस कुष्ट व्यसि< को हमारे स्नान त्रिकए गडे्ड में स्नान करवा कर नए म�ीठ रंग के कपडे़ में लपेट कर पास लाओ| गुरु �ी ने उसके पास आते ही उसका मुंह कपडे़ से बाहर त्रिनकाल दिदया व अपनी कृपा दृमिष्ट से उसे देख कर आरोग्य कर दिदया| उसका शरीर स्वस्थ हो गया| गुरु �ी ने उसका नाम मुरारी रख दिदया|

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गुरु �ी ने कहा हम उस गुर सिसक्ख पर प्रसन्न होंगे �ो अपनी कन्या का त्रिववाह इस व्यसि< से करेगा| तब गुरु �ी की बात सुनकर शीहै उपल क्षत्रि� ने अपनी मथो नामक पु�ी का त्रिववाह उस क्षत्रि� से कर दिदया| साथ-साथ गुरु �ी ने यह वचन त्रिकया त्रिक �ो पुरुष मथो मुरारी का नाम लेगा उसके सब कायH सिसद्ध होंगे| इस वरदान से मथो की माता प्रसन्न हो गई| इस प्रकार मुरारी को सत्यनाम स्मरण का उपदेश देकर उसका लोक-परलोक संवार दिदया|