shri guru arjan dev ji sakhi - 050a

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Page 1: Shri Guru Arjan Dev Ji Sakhi - 050a
Page 2: Shri Guru Arjan Dev Ji Sakhi - 050a

श्री गुरु अर्जन देव र्जी के दरबार में दो डूम सत्ता और बलवंड कीर्तन करर्ते थे| एक दिदन डूमो ने गुरु र्जी से आर्थिथ#क सहायर्ता माँगी किक उनकी उनकी बहन का किववाह है| गुरु र्जी कहने लगे सुबह कीर्तन की र्जो भेंट आएगी वह सारी रख लेना| ईश्वर की कृपा से उस दिदन बहुर्त कम भेंट आई| जिर्जसको लेने से डूमों ने इंकार कर दिदया| वे गुस्से में भर गए व गुरु दरबार पर कीर्तन करना ही छोड़ दिदया| गुरु र्जी ने सिसखों को उनके पास भेर्जा किक गुरु दरबार पर आकर कि9र से कीर्तन करना शुरू करें|

पर उन दोनों ने आन ेसे इंकार कर दिदया| गुरु र्जी कहने लगे किक लगर्ता है किक उन्हें अहंकार हो गया है| अब हमारा कोई भी गुरु सिसक्ख इनको मुहँ ना लगाये| र्जो इनकी सिस9ारिरश करेगा उसका मुँह का करके गधों पर किबठाकर पेश किकया र्जायेगा|

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कुछ समय बाद र्जब वे भूख से दुखी हो गए|वे सिसखों से कहने लगे किक हमें मा9 कार दें|| परन्र्तु किकसे ने कोई बार्त ना मानी|,वे र्तंग होकर लाहौर भाई लधा र्जी के पास आए| उन्होंने सारी बार्त गुरु र्जी को बर्ताई किक आप ही हम पर दया करके गुरु र्जी से क्षमा दिदला दें|

उनकी बार्त सुनकर लधा र्जी को र्तरस आ गया| उन पर र्तरस खाकर व गुरु र्जी क आज्ञा का पालन करे हुए अपना मुँह काला कर सिलया|गधे पर चढ़ कर उनके साथ गुरु र्जी के पास आए| गुरु र्जी के पास आकर उन्होंने प्राथना किक महारार्ज! इनको क्षमा कर दो| ये बहुर्त दुखी है| आप से क्षमा मांगर्ते है|

उनकी बार्त सुनकर गुरु र्जी कहने लगे किक जिर्जस मुख से इन्होंने गुरु घर किक किनन्दा किक है,उसी मुख से गुरु घर किक स्र्तुकिर्त करेंगे|

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र्तभी इन्ह ेक्षमा किकया र्जाएगा|ऐसी बार्त सुनकर सते्त व बलवंड ने गुरु र्जी के सामने खड़े होकर राग रामकली में एक वार के द्वारा पाँचो गुरु साकिहबान किक शलाघा गयी| यह सुनकर गुरु र्जी प्रसन्न हो गए|उन्हें कीर्तन करने किक भी आज्ञा गुरु र्जी द्वारा दे दी गई|

श्री गुरु गं्रथ साकिहब र्जी के पन्ना ८६६ पर यह "रामकली की वार राइ बलवंड र्तथा सते्त डूमिम आखी||" के नाम से दर्ज है|