shri guru gobind singh sahib ji sakhi - 105a

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Page 1: Shri Guru Gobind Singh Sahib Ji Sakhi - 105a
Page 2: Shri Guru Gobind Singh Sahib Ji Sakhi - 105a

िसिक्खो ने पांच प्रकार की िसिक्खी का उल्लेख सुिनकर श्री गुर गोबिबिंद िसिह जी सेि प्राथनर्थना िक महाराज! हमे पाहुल व अमृत का उल्लेख बिंताओ| गुर जी ने फरमाया िक भाई! तंत-मन्त आदिद कायर्थ िक िसििद के िलए प्रिसिद है,परन्तु वािहगुर-मन्त जोब चारो वणो कोब एक करने वाला है,इसिसेि सिभी िसिद होब जाते है| लोबह ेका शस (खंडा), जल तथना िमष्ठान सेि तैयार िकया हुआद अमृत एक बिंड़ा तन्र्त है, जोब सी व पुरष कोब बिंलवान बिंना देता है|

श्री गुर नानक दवे जी सेि लेकर अबिं तक गरु घर मे चरण पाहुल की मयार्थदा थनी| िजसिसेि िसिक्ख की गुर चरणो मे बिंहुत प्रीित होबती है|

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चरण धोकर उसके ऊपर गुर मन्त पड़कर िसक्ख को िपला दनेा व भजन करने का उपदशे दनेा, इस िविध से केवल मन्त के बल से सतो गणुी चरणामृत बनता है|

परन्तु जल तथा िमष्ठान लोहे के बाटे मे डाल कर उसमे लोहे का खंडा घुमा कर अमृत तैयार िकया जाता है| यह तंत है, िजसमे िबजली की तरह ऐसी शिक पैदा होती है, जो अमृत पान करने वाले के अदंर वीर रस व धमर की दढृ़ता भर दतेी है, इस अमृत को तैयार करते समय जो जो गरुबाणी का पाठ एक मन होकर िसह करते है, वह मन्त है| गुरिसख को जो पाँच ककार धारण कराये जाते है, वह यंत है|

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इन तीनो तंत, मन्त व यंत के इकठ मे एक िगुतगुणी बलवान शक्तिगुक पैदा हो जाती है| इस िगुलए खंडे का अमृत चरणामृत से कई प्रकार से बढकर शक्तिगुक रखता है|

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