shri guru har rai sahib ji sakhi - 078a

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Page 1: Shri Guru Har Rai Sahib Ji Sakhi - 078a
Page 2: Shri Guru Har Rai Sahib Ji Sakhi - 078a

भाई भगतु गुरु घर का सेवक था| जब गुरु हरिर राय जी गुरु गद्दी पर बैठे तो कुछ समय बाद भगतु जी न ेप्राथ!ना की किक महाराज! सेवा के किबना मनुष्य की आयु बेकार है इसलि(ए मुझे कोई सेवा दो| गुरु जी हँस कर कहने (गे किक अब आप बहुत वृद्ध हो गए हो| अपन ेमनोरंजन के लि(ए कोई चरखा (ाओ|

भगतु कहन े(गे महाराज! जैसे आपकी इच्छा है वैसे सेवा बक्शो| परन्तु मुझे सेवा जरूर दो| गुरु जी प्रसन्न होकर कहन े(गे तुम गुरु के (ंगर के लि(ए खेती कराओ|

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Page 3: Shri Guru Har Rai Sahib Ji Sakhi - 078a

गुरु की आज्ञा आते ही भगतु जी न ेकम!चारी और बै( तैयार करवाकर धरती जो जोता और बीज डा( दिदया और संभा( करनी शुरू कर दी|

एक दिदन खेत में काम करने वा(े वा(ों ने कहा,भाई जी! रोटी हमें घी के साथ अच्छी तरह से दो| हम और भी अधिधक उत्साह से काम करेंग|े भाई जी ने जब उनकी बात सुनी तो इधर उधर देखने (गे| उधार स ेएक फेरी वा(ा जा रहा था जिजसके पास नमक,धिमच!,गुड़,घी इत्यादिद था|

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Page 4: Shri Guru Har Rai Sahib Ji Sakhi - 078a

उसको बु(ाकर भाई जी कहन े(गे इनको रोटी के साथ जिजतना घी चाकिहए उतना दे दो| इस घी का मूल्य हमसे क( (े (ेना| तब फेरी वा(े ने काम करने वा(ो को अपनी कुपी में से एक एक प(ी घी दे दिदया| फेरी वा(े ने घर जाकर घी वा(ी कुपी जिजसमे थोड़ा सा घी बचा था, खूंटी पर टांग दिदया| सुबह उठकर जब कुप्पी को तो(कर देखने (गा किक श्रधिमकों को किकतना घी खिख(ाया है| जिजसके पैसे भगतु से (ेने हैं| उसने जैसे ही कुप्पी को देखा व घी से (बा (ब भरी हुई थी|

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Page 5: Shri Guru Har Rai Sahib Ji Sakhi - 078a

यह कौतक देखकर फेरी वा(ा भगतु जी के पास गया और उनके पैरों में माथा टेका और कहने (गा किक मुझे अपना लिसख बनाओ| भाई भगतु न ेजब उसकी श्रद्धा देखी तो व उस ेगुरु दरबार पर (े गया| भाई भगतु को देखकर गुरु जी कहने (गे परोपकारी भगतु किकसको साथ (ायेहो? भाई भगतु न ेसारी बात बताई और यह भी कहा किक यह आपका लिसख बनना चाहता है|

गुरु जी फेरी वा(े से पूछन े(गे किक आपका क्या नाम है और क्या करते हो| उसने कहा महाराज! मेरा नाम संगत है मैं फेरी (गाने का काम करता हँू| 4 of 5 Contd…

Page 6: Shri Guru Har Rai Sahib Ji Sakhi - 078a

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गुरु जी ने वचन किकया किक त ूफेरी करता हुआ हमारी शरण में आया है इसलि(ए आज से तेरा नाम फेरु है| गुरु जी ने उसको अपना चरणामृत देकर लिसख बना लि(या और वचन किकया फेरी का काम छोडकर सकितनाम का लिसमरन किकया और देग च(ाया करो तुम्हें कभी कमी नहीं आएगी| इस प्रकार फेरु जी ने गुरु जी का वचन मानकर अपना ध्यान सकितनाम की याद में (गा दिदया और तन मन से देग की कार च(ाने (ग गए|