shri guru hargobind sahib ji passing away - 068a

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Page 1: Shri Guru Hargobind Sahib Ji Passing Away - 068a
Page 2: Shri Guru Hargobind Sahib Ji Passing Away - 068a

बाबक रबाबी और मलिक जाती के परोक लि�धार जाने के कुछ �मय बाद गुरु हरिर गोबिबंद जी ने अपने शरीर त्यागने का �मय नजदीक अनुभव करके श्री हरिर राये जी को गुरुगद्दी का विवचार कर लिया|इ� मक�द �े आपने दूर - नजदीक �भी लि�खों को करतारपुर पहुँचने के लिए पत्र लिखे|

गुरु हरिरगोबिबंद जी ने अपना अवंितम �मय नजदीक पाकर श्री हरिर राय जी को गद्दी देने का विवचार विकया|

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वे श्री हरिर राय जी �े कहन ेगे विक तुम गुरु घर की रीवित के अन�ुार विपछी रात जागकर शौच स्नान करके आत्मज्ञान को धारण करके भलि7 माग8 को ग्रहण करना| शोक को त्याग देना व धयै8 रखना| लि�खों को उपदेश देना और उनका जीवन �फ करना| बाबा जी के ऐ�े वचन �ुनकर श्री हरिर राय जी कहन ेगे महाराज! देश के तुक8 हमारे शतु्र है, उनके पा� हकूमत है, उनके �ाथ कै�ा व्यवहार करना चाविहए? गुरु जी कहने गे विक तुम चिचंता ना करो, जो तुम्हारे ऊपर चढ़कर आएगा, वह कोहरे के बाद विक तरह उड़ जायेगा| तुम्ह ेकोई भी हाविन नहीं पहुँचायेगा|

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यह बात �ुनकर श्री हरिर राय जी ने गुरु जी के चरणों में माथा टेका और शांवित प्राप्त की|

गुरु जी ने अपने अन्तिMतम �मय के लिए एक कमरा तैयार कराया और उ�का नाम पातापुरी रखा| इ�के पश्चात अपनी दोनों मविहाओं माता मरवाही और माता नानकी जी और तीनों पुत्रों श्री �ूरज म जी, श्री अणी राय जी और श्री तेग बहादर जी और पोत्र श्री हरिर राय जी को म�ंदो व लि�क्ख �ेवकों को अपने पा� विबठाकर वचन विकया विक अब हमारी स्वग8 लि�धारने की तैयारी ह|ै यह कोई नई बात नहीं है| �ं�ार का प्रवाह नदी की तरह चता रहता है|

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यहाँ �ब कुछ नाशवान और अस्थिSर है| प्रभु का हुकम मानना और उ�पर चना चविहए| यही जरूरी है|

सि�क्खों और परिरवार को आज्ञा:

इ�के पश्चात गुरु जी ने भाई भाने को आज्ञा की विक तुमने अपने पुत्र को श्री हरिर राय जी की �ेवा में रहने देना| जोध राय को कहा विक तुम अपने घर कांगड़ चे जाना और �वितनाम का स्मरण करके �ुख भोगना और गुरु का ंगर जारी रखना|

बीबी वीरो को धैय8 दिदया और कहा विक तेरी �ंतान बड़ा यश पायेगी| तुम्हें �ारे �ुखो की प्रान्तिप्त होगी|

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विबधीचंद के पुत्र ाचंद को कहा, तुमने अपने घर �ुर चि�ंह चे जाना| और विफर जब गुरु घर को जरुरत होगी, तन मन के �ाथ हाजिजर होकर �ेवा करनी|

इ� तरह बाबा �ुMदर और परमानMद को भी अपने घर गोइंदवा भेज दिदया| विफर माता नानकी की तरफ देखकर कहा विक तुम अपने पुत्र श्री तेग बहादर को ेकर अपने मायके बकाे चे जाओ|

श्री �ूरज म जी को कहा विक तुम पानी इच्छा के अनु�ार श्री हरिर राय जी के पा� अथवा यहाँ तुम्हें �ुख प्रतीत हो विनवा� कर ेना| तेरा वंश बहुत बडे़गा| श्री अणी राय जी को आपने कुछ नहीं कहा क्योंविक उनका ध्यान ब्रह्म ज्ञान में दिटका हुआ था|

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�ंगत के प्रतित वचन:

�ंगत और म�ंदो आप ने �ंबोधिधत करके वचन विकया विक आज �े श्री हरिर राय जी को हमारा ही स्वरूप जानना और मानना| जो इनके विवरुद्ध चेगा,उ�का ोक व परोक विबगडे़गा| वह यहाँ वहाँ दुःख पायेगा| वाणी पड़नी, �वितनाम का स्मरण करना और शोक विक�ी न ेनहीं करना होगा| हम अपने विनज धाम स्वग8 को जा रहे हैं|

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इ� तरह �ब को धैय8 और आदेश देकर गुरु जी ने पाता पुरी नाम के कमरे में घी का दीया जाकर कुश और नरम विबछौना करवाया और �ारी �ंगत को धैय8 व �ांत्वना देकर भाई जोध राय और भाई भाने को कहा तुम इ� कमरे का �ात दिदन पहरा रखना और �ातवें दिदन इ�का दरवाजा श्री हरिर राय जी �े खुवाना|

पहे कोई विनकट आकर विवघ्न ना डाे|

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यह वचन करके आपजी ने कमरे के अंदर जाकर दरवाजा बMद कर लिया और कुश के आ�न पर �माधिध गाकर बैठ गए| �ंगत बाहर बैठकर अखंड कीत8न करन ेगी|

�ातवें दिदन �वा पहर दिदन चढे़ श्री हरिर राय जी ने अरदा� करके दरवाजा खोा और गुरु जी के मृत शरीर को स्नान कराकर और नवीन वस्त्र पहना कर एक �ुMदर विवमान में रखकर चMदन व घी लिचता के पा� े गए और लिचता में रखकर �ंस्कार कर दिदया|

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इ�के पश्चात �बने �तुज नदी में स्नान विकया और डेरे आकर कड़ाह प्र�ाद की देघ तैयार करके बाँटी|

इ� तरह श्री गुरु हरिर गोबिबंद जी चेत्र �ुधिध पंचमी �ंवत 1701 विवक्रमी को ज्योवित ज्योत �माए|