shri guru hargobind sahib ji sakhi - 060a

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Spiritual


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Page 1: Shri Guru Hargobind Sahib Ji Sakhi - 060a
Page 2: Shri Guru Hargobind Sahib Ji Sakhi - 060a

एक दि�न गुरु हरि�गोबि�ं� जी के पास माई �ेसा जी जो किक पट्टी की �हने वाली थी| गुरु जी से आक� प्राथ"ना क�ने लगी किक महा�ाज! मे�े घ� कोई संतान नहीं है| आप किक�पा क�के मुझे पुत्र का व��ान �ो| गुरु जी ने अंतर्ध्या,ा"न होक� �ेखा औ� कहा किक माई ते�े भाग में पुत्र नहीं है| माई किन�ाश होक� �ैठ गई|

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Page 3: Shri Guru Hargobind Sahib Ji Sakhi - 060a

भाई गु��ास जी ने माई से किन�ाशा का का�ण पूछा| उसने सा�ी �ात भाई गु��ास जी को �ताई किक किकस त�ह गुरु जी ने उसे कहा है किक उसके भाग्, में पुत्र नहीं है| भाई गु��ास जी ने उसे �ो�ा�ा से गुरु जी को प्राथ"ना क�ने को कहा| अग� गुरु जी वही उत्त� �ेंगे तो आप उन्हें कहना किक महा�ाज! ,हाँ वहा ँआप ही लिलखन ेवाले हैं| अग� पहले नहीं लिलखा, तो अ� ,हाँ ही लिलख �ो| आप समथ" हैं|

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Page 4: Shri Guru Hargobind Sahib Ji Sakhi - 060a

दूस�े दि�न गुरु जी घोडे़ प� सवा� होक� लिशका� के लिलए जाने लग|े जल्�ी से माई ने आगे हो क� गुरु जी से कहा किक महा�ाज! किक�पा क�के मुझे एक पुत्र का व��ान �क्श क� मे�ी आशा पू�ी क�ो| गुरु जी ने किA� वही उत्त� दि�,ा किक माई ते�े भाग्, में पुत्र नहीं लिलखा| माई ने कलम �वात गुरु जी के आगे �खक� कहा किक सच्चे पा�शाह! अग� आपने वहा ँनहीं लिलखा तो ,हा ँलिलख �ो| ,हाँ वहाँ आप ही भाग्, किवधाता हो|

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Page 5: Shri Guru Hargobind Sahib Ji Sakhi - 060a

माई की ,ह ,ुलिD की �ात सुनक� गुरु जी हँस पडे़ औ� कहा माई ते�े घ� पुत्र होगा| माई ने कलम �वात गुरु जी के आगे क� �ी औ� कहा महा�ाज! ,ह वचन मे�े हाथ प� लिलख �ो ताकिक मे�े मन को शाकंित हो| गुरु जी ने कलाम पकड़क� जैसे ही माई के �ा,े हाथ प� लिलखने लगे तो नीच ेसे घोडे़ के पाँव किहलने से एक की जगह सात अंक लिलखा ग,ा|

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Page 6: Shri Guru Hargobind Sahib Ji Sakhi - 060a

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गुरु जी ने हँस क� कहा माई तुम एक लेने आई थी प�न्तु स्वाभाकिवक ही सात लिलखे गए हैं| अ� तुम्हा�े घ� सात पुत्र ही होंगे| माई �ेसो गुरु जी की उपमा क�ती हुई खुशी खुशी अपने घ� आ गई|