shri guru nanak dev ji sakhi - 005a

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Spiritual


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Page 1: Shri Guru Nanak Dev Ji Sakhi - 005a
Page 2: Shri Guru Nanak Dev Ji Sakhi - 005a

जब गुर जी पूरब िदिशा िक तरफ बनारस जा रहे थे तो रास्त ेमे मरदिाने न ेकहा महाराज! आप मुझे जंगल पहाडो मे ही घुमाए जा रहे हो, मुझ ेबहुत भूख लगी है| अगर कुछ खान ेको िमल जाये तो कुछ खाकर चलने के लायक हो जाऊंगा| उस समय गुर जी रीठे के वकृ के नीचे आराम कर रहे थे| आप न ेवृक के ऊपर दिखेा और मरदिाने स ेकहने लगे, अगर तुम्हे भूख लगी है तो रीठे िक टहनी को िहलाकर रीठे गेरकर खा लो|

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Page 3: Shri Guru Nanak Dev Ji Sakhi - 005a

मरदाने न ेगुर जी के हुक्म का पालन िकया| उसन ेटहनी को िहलाया व रीठो को नीचे िगरा िदया| जब मरदाने न ेरीठे खाए तो वो छुहारे िक तरह मीठे थे| उसने पेट भरकर रीठे खाए| इस वृक के रीठे आज भी मीठे है जो नानक मत ेजाने वाले प्रिेमयो को प्रसाद के रूप मे िदए जाते है|

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Page 4: Shri Guru Nanak Dev Ji Sakhi - 005a

मीठा रीठा नानक मत ेस े45 मील दरू है|

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