shri guru ram das ji sakhi - 038a

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Spiritual


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Page 1: Shri Guru Ram Das Ji Sakhi - 038a
Page 2: Shri Guru Ram Das Ji Sakhi - 038a

श्री गुरु रामदास जी प्रभु प्यार में सदैव मगन रहते| अनेकों ही सिसख आप जी से नामदान लेकर गुरु-२ जपते थे|गुरु सिसखी किक ऐसी रीकित देख कर एक इर्शाा'ल ुतपस्वी आपके पास आया| गुरु जी ने उस ेसत्कार देकर अपने पास कि+ठाया और पूछा! आओ तपस्वी जी किकस तरह आए हो? तपस्वी ने कहा मैंने सारे धम4 के भक्तों को देखा है, तीथ4 किक यात्रा करते हुए भी +हुत लोग देखे हैं परन्तु आपके सिसखो जैसा मैंने कोई अभिभमानी नहीं देखा| क्योंकिक यह ओर किकसी मत के साधु सन्त को नहीं मानते और ना ही यह वेद र्शाास्त्रों की रु्शाभ रीकित को ग्रहण करते हैं| आपके सिसख तो केवल आपको और आपकी +ाणी को ही मानत ेहैं और पूजा भी करते हैं| इस प्रकार वेद +ाणी का त्याग करके इनका उद्धार किकस तरह होगा?

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गुरु जी ने पूछा तपस्वी जी! तीथ' स्नान व वेद +ाणी के पाठ का क्या फल होता है? तपस्वी ने कहा इनका फल +हुत +ड़ा है| तीथ' स्नान से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्तिन्तम समय स्वग' की प्रान्तिप्त होती है| अगर +ात करे वेदों की तो वेदों के पाठ से आत्मज्ञान की प्रान्तिप्त होती है| गुरु जी ने कहा तपस्वी जी! हमारे सिसख संगतो की सेवा करके जो सुख प्राप्त करते हैं वह आपको भी प्राप्त नहीं होता| आपने मूल तत्व की पहचान नहीं की और अपनी सारी आयु तीथ' स्नान और वेद पाठ के झूठे अहंकार में लगा दी| यह अहंकार गुरु के मिमलने से ही दूर होता है| तपस्वी ने आगे से किफर कहा ज+ तीथ' स्नान की मकिहमा को स+ ऋकिM मुकिनयों ने उत्तम माना है और आप इसको तुच्छ और साधु संगत की मकिहमा को +ड़ा किकस तरह कहते हो?

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इस प्रथाए गुरु रामदास जी ने इस र्शाब्द का उच्चारण किकया:

मलारू महला ४||

गंगा जमुना गोदावरी सरसुती ते करकिह उदमु धुरिर साधु की ताई ||

किकलकिवख मैलु भरे परे हमरै किवसिच हमरी मैलु साधू की धूरिर गवाई ||१||

तीरसिथ अठसठिठ मजनु नाई ||

सकित संगकित की धूरिर परी उकिW नेत्री सभ दुरमकित मैलु गवाई ||१|| रहाउ ||

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जा हरनवी तपै भागीरसिथ आणी केदारु थाकिपओ महसाई ||

कांसी क्रीसनु चरावत ्गाऊ मिमसिल हरिर जन सोभा पाई||२||

जिजतने तीरथ देवी थापे सभिभ किततने लोचकिह धूरिर साधू की ताई||

हरिर का संतु मिमलै गुर साधू ल ैकितसकी धूरिर मुखिख लाई ||३||

जिजतनी सृसठि` तुमरी मेरे सुआमी सभ किततनी लोचै धूरिर साधू को ताई||

नानक सिललाठि` होवै जिजसु सिलखिखआ साधू धूरिर दे पारिर लंघाई ||४||२||

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इस र्शाब्द के भाव समझकर तपस्वी ने कहा मेरा सौभाग्य है जो मैंने आपके वचन सुन ेहैं मेरा भ्रम दूर हो गया है| इसके उपरांत गुरु जी के वचनों पर श्रद्धा धारण करके तपस्वी ने सिसखी धारण कर ली और सदा सत्संग करता रहा|

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