shri guru ram das ji sakhi - 039a

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Page 1: Shri Guru Ram Das Ji Sakhi - 039a
Page 2: Shri Guru Ram Das Ji Sakhi - 039a

भाई हि�न्दाल गुरु घर में बड़ी श्रधा के साथ आता मांडने की सेवा करता था| अचानक �ी गुरूजी लंगर में आए| उस समय भाई हि�न्दाल जी आटा मांडने की सेवा कर र�ें थे| उन्�ोंने जैसे �ी गुरु रामदास जी को देखा तो शीघ्र �ी उठकर आटे से भरे हुए �ाथो को अपनी पीठ के पीछे कर दिदया| ऐसा करते हुआ उन्�ोंने अपना शीश गुरु के चरणों पर रख दिदया| गुरु जी उसके माथा टेकने के इस रूप को देखकर बहुत �ी प्रसन्न हुए और वरदान हिनमिमत एक अंगोछा दिदया|

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जब भाई ने अंगोछा लेकर अपन ेसिसर पर रखा तो उसको तीनों लोकों की सोझी प्राप्त �ो गई और व� रिरद्धीयों-सिसद्धिद्धयो को �ासिसल कर गया|

उसकी पे्रमा भसिB पर खुश �ोकर गुरूजी न ेवचन हिकया हिक अब तुम घर जाकर नाम जपना और औरों को जपा कर सिसखी मागC को और आगे बढ़ाना| गुरु जी का वचन मानकर भाई हि�न्दाल अपन ेगाँव जंहिडयाला चला गया| स्वंय नाम जपता और औरों को कराता हुआ परमगहित को प्राप्त �ो गया|

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इस प्रकार गुरु के दिदये हुए वरदान के कारण उस इलाके के लोग भाई हि�न्दाल को गुरु मानकर पूजन ेलग|े ऐसा केवल गुरु के वरदान के कारण �ी संभव �ो पाया|

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