shri guru ram das ji sakhi - 041a

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Spiritual


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Page 1: Shri Guru Ram Das Ji Sakhi - 041a
Page 2: Shri Guru Ram Das Ji Sakhi - 041a

दुनीचंद क्षत्री जो कि पट्टी नगर में रहता था उस ी पांच बेटि�यां थी| सबसे छो�ी प्रभु पर भरोसा रने वाली थी| ए टिदन दुनीचंद न ेअपनी बेटि�यों से पूछा कि आप कि स ा टिदया हुआ खाती व पहनती हो| रजनी े किबना सबने यही हा कि किपताजी हम आप ा टिदया ही खाती व पहनती हैं| पर रजनी न े हा, किपताजी! मुझे भी और सब ो देने वाला ही परमात्मा है| दुनीचंद ने हा मैं देखता हँू कि तेरा परमात्मा तुझे ैसे देता है| ुछ टिदन रु र दुनीचंद न ेरजनी ा किववाह ुष्ट पिपंगले े साथ र टिदया|

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रजनी ने परमात्मा ा हु म मान र और पकित ो परमेश्वर समझ र ए �ो रे में डाल र सिसर पर उठा सिलया और माँग र अपने और पकित ा पे� पालने लगी| इस तरह मांगती हुई गुरु े च आगई और दुःख भंजन बेरी े नीचे च्चे सरोवर े पास अपने पकित ा �ो रा रख र लंगर लेन ेचली गई| पिपंगले ने देखा उस सरोवर में ौए नहा र सफेद हो गए हैं| यह चमत् ार देख र पिपंगला भी अपन े�ो रे से किन ल र रींग-रींग र पानी में चला गया और ले� गया|

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अच्छी तरह ले�न े े बाद उस ा शरीर सुन्दर और आरोग हो गया| वह उठ र �ो रे े पास बैठ गया|

इतनी देर में उस ी पत्नी भी आ गई| उसने उस पुरुष से अपने पकित े बार ेमें पूछा जिजसे वह वहाँ छोड़ र गई थी| उस पुरुष ने हा कि मैं ही तुम्हारा पकित हँू जिजसे तुम यहाँ छोड़ र गई थी| उसने सारी बात अपनी पत्नी ो बताई कि कि स तरह ौए नहा र सफेद हो गए और मैंने भी ौए े देख र ऐसा ही कि या और आरोग हो गया|

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परन्तु रजनी ो उस ी बात पर य ीन ना हुआ और वह दोनों ही गुरु रामदास जी े पास चले गए| गुरु जी ने पिपंगले कि बात सुन र हा - येही तेरा पकित है तुम भ्रम मत रो| यह तुम्हारे किवश्वास, पकितव्रता और तीथN यात्रा ी शसिO ा ही परिरणाम है कि वह आरोग हो गया है| गुरु साकिहब े वचनों पर य ीन र े वह दोनों पकित-पत्नी सेव ो े साथ मिमल र सेवा रन ेलगे| तभी उसे अपने किपता कि बात याद आई कि वह किपता ो ठी ही हती थी कि परमात्मा ही सब ुछ देने और रन ेवाला है|

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इंसान े हाथ ुछ नहीं है| अपने सतगुरु ी ऐसी मेहर देख र दोनों न ेअपना जीवन गुरु ो अपNण र टिदया|

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