shri guru ram das ji - sakhi 073

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Page 1: Shri Guru Ram Das Ji - Sakhi 073
Page 2: Shri Guru Ram Das Ji - Sakhi 073

एक दि�न सत्संग �ीवान की समाप्ति�� के पश्चा� सिसक्ख इकटे्ठ होकर गुरु जी के पास आए| वे कहने लग ेकिक महाराज! हमारा जन्म किकस प्रकार सफल हो सक�ा है, कोई उप�ेश �ें| गुरु जी न ेकहा - यदि� कोई अपनी अप्तिन्�म समय गकि� चाह�ा है �ो उसे अपन ेअहम भाव को त्याग करके �न-मन से संग� की सेवा करनी चाकिहए| कलयुग में सत्य का संग व सेवा का अधि2क महत्व है| जप करन,े �प करने व अन्य किकसी नेम 2म3 का समय नहीं है| सबकी सेवा करना ही उत्तम कम3 है|

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सेवा के किबना भसि7 सम्भव नहीं| भसि7 के किबना ज्ञान हासिसल नहीं हो सक�ा|

इससिलए सेवा सभी शुभ काय: का मूल है| अपनी शसि7 अनुसार (यथाशसि7) भोजन �ैयार करके संग� को खिखलाना, जल सेवा, पंखा फेरना, सिसक्खी संग� के किवश्राम के सिलए सुन्�र मन्दिन्�र बनाना व किबना किकसी हंकए के सेवा करना ही सबसे उत्तम है| श्रद्धापूव3क व पे्रम सकिह� की सेवा ही मानव-मात्र के सिलए कल्याणकारी है|

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गुरु के सिसक्खों की सेवा करन ेसे सब फल प्रा�� हो�े है| ये सिसक्ख सं� हँस के समान हो�े है| गुरु जी का यह उप�ेश सुनकर सिसक्खों ने गुरु जी को नमस्कार की व सेवा करने जुट गए| अब उन्हें सेवा का सही भाव समझ आ चुका था|

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