traita dvaita advaita aur ekatva ke siddhanta s d satvalekar

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0 9 सस 4 (> 4 (ॐ) ०९८ ५49 ९। 4 ११ £ 4 > ^ }< वदिक वयाखयान माला - चोदा वयादयान तरत, टत,अदत ओर एकतवक सिदधानत ---- ददो टक शरीपाद दामोदर सातवदधकर अधयकच- सवाधयाय-मणडट, साहिवयवाचसपति, गीताटकार खाधयाय ~मडल, पारडी (जि. रत ) मलय छः आन

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Page 1: Traita Dvaita Advaita Aur Ekatva Ke Siddhanta S D Satvalekar

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सस 4 (> 4 (ॐ)

०९८ त

५49 ९। 4 ११

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वदिक वयाखयान माला - चोदा वयादयान

तरत, टत, अदत ओर

एकतवक सिदधानत ---- ददो

टक

शरीपाद दामोदर सातवदधकर

अधयकच- सवाधयाय-मणडट, साहिवयवाचसपति, गीताटकार

खाधयाय ~मडल, पारडी (जि. रत )

मलय छः आन

न ध

यत

Page 2: Traita Dvaita Advaita Aur Ekatva Ke Siddhanta S D Satvalekar

चदिह वयाखयान माला

१४ वो वयाखयात ॐ

रत, दत, उदधत ओर एकतरक सिदधानत

बहत समयक पव रथात‌ अनक शताबदियोस “दवत, अदधत, विशिदवत, शदधदित ?' य वाद भारतवषम परचित रह द। इनम ,ञत भौर पकतव "वदो वाद‌ शपर नोर भिर र। “ अदरत, विहकिषदवत नोर यदधादवत ” य तीन वाद‌ भदरतवादक अनदर समिङतिहो सकत ह । यदयपि हनम परसपर थोडा भददह, तथापिय तीनो भदरतका दी परतिपादन करत ह । शरी ककराचायन दरतक। परतिवादन करया, शरी रामानजाचायन विशिषटदरित माना, शौर शरी वलठभाचायन शदधादरत सवीकार ह । इनम परसपर मनतभयकी भिननता तोही, पर इन तीनोका

सिदधानत भदरत र, इसम वदह नही । य अपन खिदधानतको ^“ दरत ' मानत ह, ‹ एकतव ` नही मानत ।

इस रातागदीम ' चत भौर "एकतव" य दो वाद‌ जनताक ख।मन भागय ई | दवतवाद तो माधवसपरदायका ही

वाद ह 1 इनक अनयायी भी कननड भादि परानतो बहत

ह। शरी मधवाचाय शदध दवितवादीय। मकति भी जीव

विधणरप तो बनता द, परत विषणस-परमशवरस सद परथक‌ रहता ह, यह इनका सिदधानत ह । इनकी दमतिस

सब परकारक शदरतवादी या एकतववादी नरकगामी ह भौर शदरतवादिरयोी समतिस सब दवतवादी नरकगामी ह !!॥

एकतववादी अदवत तरमिलित हो सकत द भौर तरतवादी

दत करीमिखिवि हो सकत ह । ~€ षटपदाथवादी, पञचपरदाधदादी, चतरविशति पदाथ.

वादी, तथा रस भनक पदाथवादी दवत वा तरतम समाविषट हो सकत ह । इस तरह ‹ एकपद‌ाथवादो ' मौर ' अनक पदाथवादी ` रष दो दी भद इन सब होतह! अच इनका विचार इस रख करना ह,

भ ' ठकसव, अ ५ = = एकतव, अदत, दत भर त? वाद परसपर

रिभिननद, वाय कवर दषटिबिनदकही मद‌ ट इसका

विचार इस रख करना ह । परायः सभी पाठक कहग, छि इनम मनतवय मद‌ सपषट दिखाह दता ह, अतः इनम

मनतवयङी भिननता वा नही, इसका विचार करनी भी

कोद लावरयकता नही । पाटरछोका यह मतदहस विदित

ट । पाठकोका दखा मत होन पर भीहम यह लख उनक

सरामन रषवना चाहत ह । पाठक इतका विचार कर ।

भिननताकी सपिकषता छिपी समय भिननता वसतगत होती ह। जघा मनषय,

पश, पकषी, वकष भादिकी भिननता ह । यह वसतगत भिननता

ह । दरी भिननता सापकषभिननता ह । एक तङगण परथम कषाम पठता ह, दघरा ७ वीम पढत। ह लोर तीसरा १४ वीम पढता ह । सातवीका तसण परथम ककषावाटस आधिक

कानी ह, भोर चोदवीवारस कम जञानी ह। एक दी मनषय

इशच तर€ अपकषाङत छोटा या बरडा कदा जाता ह । वसततः

वह मधयम सथानस रहनवाका मनषय जसा वषादहीह, परत भपकषाक कारण छोटाया बडाः कहा जाताह यह‌ भपकषाङत मद ह, यद वसतगत भद नही ह इस

सापकषमदका सवरप धयानम भा सकता ह ।

इस टखका विचारणीय परकष यहीदहककि*जत, दवत, अदधत › म वसतगत भद ह, या सरावकषताक कारण मदकी

परतीति होतीह।

वद‌, उपनिषद‌ भोर गीताम इस विषयक सबध किस तरहका परतिपादन किया ह, इसका विचार इस रख करना

ह । परथम शरीमदधगवदवीताक वचनोङा विचार करग, पशचात‌ उपनिषदो वचरनोका भोर भनत वदक मरषा विचार करग--

एकचवका परतिपादन शरीमिदधगवरदवातारत एकल बोधक वचन यदह ह-

वासदवः सव । भ० गी० ७।१९

Page 3: Traita Dvaita Advaita Aur Ekatva Ke Siddhanta S D Satvalekar

(२

‹ यह सब वासदवका रप ह । ' यह सब विशच विषणका

खप ह । यह निःखनदह एकतवका परतिपादन करनवाला वचन ह | घब दवतका परतिपादन करनवाङा वचन दखिव-

दरतका परतिपादन दवाविमो परषो रोक कषरशचाकशचर पव च । कषरः सरवाणि भतानि कटसथोऽकषर उचयत ॥

भ० गी० १५।१&

“ इस रोकम- इस वविशवम कषर भोर भकचरयदो परष ।यजो सब भतहव सब कषरह ओर कटसथ परष लकषि

इसक परयाय यहा दत र जो शाखोम परति ह-- कषर छाकषर

जड चतन

परकति परष

कषतर कषतरजञ शारीर शचरीरी

शदतन चतन

इस तरहक नाम भन सथारनोपर घागय।य षद‌ रता वणन करत ह । यदि दवतका दी सिदधानत गीताका

माना जाय, तो तरतका वचन भी दइ गीता दविय-

उततमः परषसतवनय परमातमतयदषत ।

यो लखाकचयमाविडईय वभदयवयय डशवरः ॥१७॥

यसमात‌ कचरमतीतोऽह अकषरादपि चोततमः,

अतोऽसमि लोक वद च परथितः परषोततमः ॥१८॥ अभण० गी० १५

४८ इन कषर-अकषरोस भिनन एक तीषरा उततम एरष ह,

चिसकछो वयय परमासमा कत हजो ईशवर इन तीनो

लोको यापकछर सबका धारण पोषण करता ह । जिसस

यह कषरख शरषट भोर भकषरस उतम ह, इसययि इसको

लोकत ओर वदम परषोततम कत ह । ”

दस तरद‌ इस गीता (१) एकतवाद‌ ह, (२) दतवाद‌

ह ओर (३) तरतवाद‌ भी दह । एक दी परथम य तीनो वाद‌,

करि तरह सगत हो सकत ह १ एसा खोग पचत ह |

यहा शका होती ह कि गीताक सिदधानतायसार परष

एक ह,दोहवा तीन द १ स वचरनोको दखकर कट कहत

ह कि गीतास परसपर विरदध वचन रह, भथवा इस गीताम

3 4 नप 9 ^ अत, दत, अदत ओर पकतवक सिदधानत

पीठस परकषप हभाह। गीताम या किसी मरथम परकषप दखा कहना, धथवा परसपर विरोध ह एसा शकदम क दना, अयोगय ह) शिसी एक दषटिबिनदस जो सकषगत परतीत हागा, दही दलरी दटीस परकषिपत या लसगत भी परतीत होगा । इयसय हम यह उचितदह कि हम ङस

दषटिबिनदस य वाकय रवि गर ह, सह एकसवकी परीकषा = ०, न ~ ^~ ४०३ > भ कर भोर ठखकक दषटिबिनदको जाननका यन परथम कर !

(= | = 99 ध

उपनिषदोम एकवववाद‌ | + श ५1 (~ ८८ 3 -0¢ $ शरामदधगवदवातारम जस तरह “ वासदवः सव ^ कहा

इस तरद यहा दवठका परतिपादन सपषटट। ह, वस ही वाकय उपानषदमि भीरह। शत एकतवरी तिदधता परथम करक दखनी चाहिय भोर इन वचनोका भाव समकष

नका यतन करना चाहिय । दखिय य वचन--

आकार पवद‌ सरव । छ उ० २।२३।४ गायतरी वा इद सरव । छा० ३।१२।१ सव खलय इद बरहम । छा. ३।१४।१ पराणावा इद‌ सव भत । छा. ३।१५।४

अहमव इद‌ सव । छा. ५।२।६; ७।२५1१

पतदासमयभिद सव । छा. ६।९।४ स एव दद सव । छा. ७।२५।१ आतमा वा इद सव । छ. ७।२५२ स दद सव भवति। चर. उ, १।४।१०

दद सव यदयमातमा । बर. २।४।६; ४।५।७; च. उ.५

इद‌ अशवत, इद‌ बहय, इद सवम‌ ) चर. २।५।१

पतत‌ बरहम, एतत‌ सय । ब. ५।३।१ आमितीद सरव । त. ड. १।८।१

वरहम खल इद वाव सव । मणडक १; न. प. २।२; ७।१; न. उ. १

सवमोडार एव । सणड० १ सरव दयतदहय । मणड २ सरव दययमातमा । न. उ. ७ बहमवद सव सचचिद‌ ननदरप । न, उ. ५ बरहम वा इद सव । न. उ. ७ सदधीद सरव, चिदधीद सव । न. उ. ७ आतमा हीद सव सदव । न, खकषमः परषः सव । शिरस‌ उ०३

नारायण पवद‌ सरव । नरा उ. २

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+ ,

दरत आर एकतव

इन उपनिषदोक वचनोम कटाह किजो भोकार, गायतरी,

पराण, भह, सः, मातमा, बरहय, सत‌, सकषमः परषः, नारा

यणः आदि नामोस बताया जातादह बह यह दरयमान सपण

विशव हीह । य वचन सपषट नोर यहा छदहक चयि कोह सथान नही ह । भव इन चचरनोकः साथ वदक वदन दखिय-

परष एवद सव यदधत यचच भवयम‌! ऋ.१०।९०।२ परष पवद‌ सखव यदधत यच भववयम‌ । यन. ३१।२

णव यज. ३५।२, साम ६१९; लथव १९1 ६1४ त. भा. ३।१२।

सरवाणि भतानि आमा एव अभत‌ ; तनन को मोहः कः शोक एकतवमनपदयतः।

वा० य, ४०।७; ईश उ. ७

जो भतकालम हो चका था, जो वततमान कारम ह भार जो भविषय कालम होगा वह सव परष भथवा भातमादही ह ।

य सच चचन ˆ एकतव › वादकी सिदधि करनवाररह। जञो भी कठ यद ह वह सच हशवरकादरपदह। जो गीताक

"“ वासदवः सव "' (७१९) हस वचनका भाव ह वही इन उपनिषदरचरनोका भोर हन वद मनरोका भाव ह। रम तरो ˆ एकसव अनपदयतः ` रएकषवका दशन कराया ह |

(> [९

अदरत अरर पकतव

भदतवाद‌ भोर एकतववाद य दो पद‌ पथक‌ अथ बतान-

वाल ह । भदरतशा रथ दो नही रषा ह। जौर (एकषव'

का भ " निःतदद शक ` एला ह । भदरवादी (मायाःको मानत द 1 एकवववादी मायाको नही मानत | इसलिय एकतवाद‌ परथक‌ ह आर भदतवाद‌ पथक‌ ह | वदमतरोम "^ तनन को मोदः कः शोक एकतवमनपदयतः । ” (वा. य. ४०।७, काणव ४०।७; दशच ७) एकतव पद‌ ह, परत शषदधतपद नहीह | पाठक दस भदको समकष भोर एकतव तथा अदरतको एक ही न समञच |

गीताम ' वासदव; सरव ' (७।१९) कषा ह वशादी वद भी ‹ परषः सव ' ( ऋ. १०।९०।२ ) कदा ह । तथा गीताम-

अननतरप, पिशवरप । गी. ११।१६

सव, सवः । गी. ११।४. %

(२६)

! कनननतरपी, विशवरपी इर ह, भतणव वह सवह; भरथात‌ विशवरप भोर सवका थ शक होट । विशवरप, अनतखथ, सवखपय सवर पद एकी भाव बतातह। दखिय-

तवार... शवरप उपदवय । ऋ. १।१३।१० विशवरप बहनतम‌ । चः. १।३५।४ विशवरपो अमरतानि तसथौ 1 च. ३।३८।४;

वा. य, ३३।२२

ववनवरषवः पषाष पषजाः ऋ. ३।५५।१९

छषभा वविशवरपः । ऋ. ३।५६।३

विशवरप बहसपात । ऋः. ३।६२।६ तवषटा सविता विशवरपः 1 इ. १०।१०।५ इनदरो मायाभिः पररपः । क. ६।४७।१८ पररप उगरः ( दशानः ) । ऋ. २।३३।९ पररप ( अभि )। ऋ, ५।८।१ जयोतिरसि विशवरप । वा. य, ५।३५ तवार इनदर पररप । वा. य. २८।९ बरहम पररप वि तिषठ । अधव ९।१५।१९

दस तरह वदमनरोम विशवरपी (ववषटा) कषप लरषटा श भ र ईशवर, पोषणकरता परमशवर, ८ बहसपतिः) जञानी दशवर, दर, उयोतीरप धथवा बरहम ह रता कदा ह। जो विशवरपी

^^ ७ [+ | € दोगा, वदी सवरपी होगा गोर उतीको ‹ सरव: बथव। ~ 9 & (0 विशव › कहा जा सकता ह। इष रीतिस यह रपरो

जाताहषकिजो पद‌ वदक मतरोमिहव दी पद उपनिषदो च न [* ^ ०७ पर भ

हञओरवही पद उसी अथ गीतलयिह। इष कारण जो उपपतति बदमननकी रग सकती ह वदी उपनिषद‌ भौर गीताक वचनोङी भी खग सकती दह । भतः इस गीता भय वचरनाको परकषिषठ या असगत कदनदी भ।(वरयकता नही ह । वदम मी वसदी भरथक मतर भौर पद‌ ह इस- खयि यदि सगि खगगी तो वदमतर-उपनिषद‌-गीताकी इषटीदी चगगीभ।रन छगनी दोगीतो कसीकी भी नही लगगी । परत वदमतरोकी शकषगति, या बदमतरोम

परकषप शादि कटनक लिय कोद तयार नदी होगा । इसय जिस पदधतिस वदमतरोकी सगति लगगी उकती पदधति

उपनिषद‌ भोर गीताकर वचनोरी भी पगति ङग सङगी ।

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(४.

यहातक वदमतरोय जहा “ एकवववाद णह व मतर हमन

दख ¦ भव दवत भोर तरतवादङ वदमतर हम दखत ई --

ञतवादक मच दरा सपणा सयजा सखाया समान दकष परि- घस जति) तयोरनयः पिपपल सखरादचयनशच- चननयो अभिचाकशीति ॥ ` ऋ. १।१६४।२०} भथव

९।९।२०; निर ० १४।३०

“ दो पकषा साथ रहनवर मिचर एक दही बकषपर पास

पास बट ह! उनम एक मीठाफर खाता ह भोर दसरा फर न खाता हभा चमकता रहता ह ।

इष भतरम ““दो पकषी जीव भौर ईशवर भोरयदो

पली धरकतिरप वकषपर वट ह *› एसा यहा कहा ह । यहा तीन पदाथ क ह । इसलयि यहा तरतवाद सपषट दीखता ह । पकषी चतन दह भौर दरचर करनवार ह, तः य “ सपण › ( पकषी ) निःसदह जीव भौर दशवर ह भौरय

चदन भौर सतत परयतनशीर ह । वकष चर वसतका

वाचक ह, अरथात‌. यद वकष भरकतिका वाचक ह । इल तरद परकति, जीव भौर ईशचरका बोध इस तरस दोताद। इष कारण हस मतरको तरतमतका बोधक मान सकत ई ।

इसी मतरम चतन पकषी (सपण) ह आर अचर जड कषका वणन भी ह । इस कारण जड चतन, कषर अकषर, परकरति परष इस दरनदरका बोधक होनक कारण यह दरतबोघक

मतर दषा मी कह सकत!

एक दी सकतम व वणन वदोमि द, इसकर एक दो उद‌

हरण धब दखिय-- ५ कछ.9 ® >$

एक ही सकतम तीनो वाद‌ ददावासय दद सव । वा. यज. ४०।१; इशा० १

“ इशवर इस सब विशवम वयापता ह। ' यहा “ ईन ' एक पदाथ ह भौर "इद" वाचक ' विशच" दसरा पद ह। यद

वणन निःसह दतकरा वरणन ह । इसी सकतम भौर दखिय-

यसत सरवाणि मतानि आतमनि एव अनपदयति। सव भतय चातमान तता न विजगपसत ॥

वा० य० ४०६; दशच ह

जो सब भत भावमा नोर आततमाको सब मरतो क ५, 1 ट

दखता ह । ` इसम ' आतमा भोर मत! यदो पदाथ मान

१ = = (१

चत, दत, दवत आर पकतव र

को सिदधानत

नस यह मतर दरतका परतिपादन करता ह। तथा ' भारता, स जीवारमा-परमारमाका बोध होता, इस कारण यही मतर तरतमतका मी परतिपादन करता ह रखा कह सकत ह । भव इसी सकतम एकतववादका परतिपादन दखिय -

यसमिन‌ सवाणि भतानि आतमा एव अभत‌ विजानतः । ततन को मोहः कः शोक एकतव- मनपदरयतः॥ ठका. य. ७; इशा० ७ ‹ जिस विजञानी परषको सब भत नासमादीहो गय,

उष एकतवका ददन करनवारक लयि शोक भौर मोऽ कस पराठहोग १: भरथात‌ वह (एकतव भनपरयततः ) एकतव दन करनवाला कोक मोदस दर दोगा। या ˆ सब भत मातमा दीहो गय ` यह वाकय यह सतर निःसदह वरहमहि ' इष भथका दही बोधक दह।

सरवाणि भतानि आतमा एव अभरत‌ । इद‌ सव खद बरहम एव ॥ न दोनो वाकयोका माव एक हीह भौरय दोनो

एकतववादका परतिपादन करत ह। यजरदक चालाषव

सधयायक हीय तीनो मनर। एकदी इस घातमसतसम दरत, तरव भौर एकसवक! परतिपादन ह । जस गीतारम य तीनो

वाद वस दही इस ईश उपनिषदम भयव यजरवदक ४० व धयायदन- जातमसकतम य तीनो वाद‌ ह । इनस यह

षिदध होता हङकिशसी विशषरदषटिबिनदस दी इन वचनोका विचार करना चाहिय । भव भोर एक सकत दखिय-

परष एव इद सव यद भत यच मभय । । चट. १०।९०।२

' पसपर दी यह सब हजो भतकाल थाभोर जो

भविषपम दोगा, ' भोर जो वतमान कारमह। तीनो

कारपमि जो ह बह परष, परमशवर दाह | यह एकतववादका

मतर ह । यद "परष शबद "परकतिपरष ` मस पसप अरथात‌ कवट चतन ामाका वाचङ मानन यह मतर एकवव-

वादका परतिपादन करता ह दषा सिदध होगा। पात " परष, पदका छथ ( परि शत ) परङतिम वयापनवाखा दषा मान- नस यदह ' परष ' परद ही ^परकति-परषर ' का वाचर होता

ह भरथाव‌ यद "पष" पद‌ ही दरतका अथवा तरतका परति पादक हदो जाता ह) परष जीव ओर टशवरका समानतया बोध करता दह । इसस दरत तथा तरता गोध यह मतर

करताह। इती सकतम भोर दखिप-

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एकम तीन ओर तीनाका फक

सहसरशीरषा परषः सहसराकषः सह सपात‌ ।

अष‌. १०।९०।१

“ हजारो आख, दजारो बाह, हजारो सिर नौर हजारो पावो वारा यह परष ह । › यहा हजारो धाणियोक रारीर

परमातमाक तथा जीवातमक शरीर ह रहा वणन ह । यहा जीवोकी नत सतता वणन की ह, भोर इन सबका भनतमव परमदवरॐ विदवशरीरम दनस यह सच ससार परमडवरका

खप ह, यद एकतववाद‌ भी हभा, भोर भनतत जीवारमाॐ शरीर मी हए ओर एक परमारमा भोर जड सषटीको निरमाण करनवारी जड परकति यह दवत भोर चत मी इसी सकत परतिपादित हका । तथा-

तरिपादधव उदत‌ परषः. पादोऽसयहाभवत‌ पनः ।

¢ इस परषक तीन भाग ऊपर मर सवखपम द भोर इसका एक शच यहा वारवार विशवरप बनता ह।' य सब वणन सपषट ह भौर इस तरह एकतवचाद‌, दरतवाद भौर तरतवाद‌ वदक एक दी सकतमह । इसलिय य वचन विशष टटिविनदस दी दखन चाददिय ।

ऋ. १०।९०४

' पक सत‌ › (ऋ० १।१६४।४६) इस मतस एकतववाद‌ ह ओर इत मतर दवत तथा तरतवाद‌ भी दह । जो शिशवरप

दवताका वणन करनवार भतर ह व एकतववादक ही मतर

ह, परत जिस मतर ‹ परष ' दवता ह, वह ‹ परि वकषति इति परषः ` इस वयतपततिस “ परि भोर उसम वसतनवाङा ' एस दो पदारथा बोध करता ह। इसङिय परष दवता

वाल मतर दरतवादङ बोधक ह । भसत इष तरह ‹ एकतव, रत शोर तरत › का गोध करनवाङ वदवचन ञख ह दख

ही उपनिषदोम भौर वस ही गीताम मी समानतया ह ।

गीता, उपनिषद‌ भोर वदमतर इन तीनो सथानो ‹ एकतव, (> न ( ॐ | (० क, हि क छ, दत ओर तरतवाद' फ वचन मिरजर ह । इसलिय गीतस दी परसपर विरदध वचन, या परषिकच बचन दह,

एसा कोद नही कह सकत । यदि गीतक वचनोको हमन

¦ परसपर विरदध धधवा परकषिषठ › कदा तो वसा दी उपनि. षदो ओर वदमतरोको मी कहना पडगा । पर रषा वद मतरोको कहना दःसखाहस ह । इसययि इस विषयम अधिक खोज करनी चाहिय ।

(५)

इसत विषयम शवताशवतर उपनिषद एकवचन बडा मनन

करन योगय ह वह भव ददिय-

तीनाका विनदन लाजञो दावजावीशानीशावजादयका मोकत- भोभयाथयकता। अननतशचोतमा किशवरपो हयकरता रय यदा विनदत बरहममतत‌ ॥ श. ४।९

एक कतानी ईशवर दह भोर दसरा अकतानो जीव ह) य

दोनो भजनमा ह, इनम एक इश ह शौर दसरा अनीक भरथात‌ असमथ दह । इनक भतिरिकत एक भोर अजनमा परकति ह दह मोकता जीरवोकर भोग भोगनक चि नाना

पदारथ दती ह ) एक विशवरप भननत भातमा अकरता ह।

य ततीन पदा जतर एकतर मिकत ह तब उसको बरहय कदत

ह । यहाजो का ह वह नीच कोषटकम दत ।

त+भतत लजा-+विशवसरप घारमा

दश-+अनीश परकतिपरष

इश+जीव अननत~+-सानत

विशवरप परमातमा,धदप परमाणवारा जीवातमा, घोर भोगय

परकति य तीन पदारथ इस मतर कद ह । य तीनो पदा “ य यद‌ विनदत, एतत‌ बय " जब मिक जात रह,

एक रपम मिरत ह, उस विनदनको बरहम कहत ह । तथा

ओर दखिय-

भोकता भोगय पररितार च मतवा सव परोकत चिविध बरहममतत‌ ॥ ^“ भोकता जीव, भोगय. परकति ओर पररक इशवर इन

तीनोका मनन करक यह तरिविध बरहय ह रखा कहत ह । ”

शच १।१२

यदह तीनोका विनदन किख तरह होता ह। विनदनका

भश ‹ जञानसत बदधिस या मननस जानना या समञचना [^ नो [44 < [44 ह । कीनोका थक‌ भान भीहीता ह ओर तीनोॐ एकसवक।

भी भान होता ह | यह विनदनकयाह, कषा होतार किस तरह भनभवम भाता ह इसका मनन करना चाहिय । इसका विचार इस तरह किया जाता ह ।

9 > क@ = ०.9

एकम तीन आर तीनीका एक (8 ष‌ ९ प

यह एक सपकष दरनका शाशवत नियम ह कि एक

तीन भाव होत ह ओर कानो भागो मिरकर एकक

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सपण दोन षो जात ह । किसीका सपण दशन करना हो तो उसको तीनो भावम ही दखना चाहिय ।

किली मञषयका ददन करनादहो तो सामनस भौर पीछस

एस दोनो भोरस उसका दहन करना लावदयक ह। पर

जिस समथ सामनस ददन किया जाता ह उस समय सक पषटभागका दशन नदी होता। तथा जिस समय पषठ भागका दशन होता ह उस समय उसक सामनक

भागका दशचन नदी होता । भरथात‌ मनषय वसतक भाघ भागक) ही एक समय दशचन कर सकता ह। इससिय

उसका पण दकञन करनाहोतो एक दही समय उस दोना भागोकी कतपना एक सथानपर करनी चाहिय । (१)

यह इसका सामनवारा भाग ह, ( २ ) यह इलका पीठका भागह, (३) दोनो भाग मिलकर यह सपण परष हा ह । य तीनो कटपनाषट पथक‌ ह, पर इन तीनो भावोका साकषातकार मनषय करता ह, तब उसको सल धसतका चान होता ह । वसत एक ह पर उसकय तीन भाव ह| थरी तीनो एकका नार एकम तीनो मावोका दरौन करना ह । टल किय चिना सपण वसतका दकन ही नही होता ।

भोर क उदाहरण दखिय । रपयकी एक र राजाका चितर ह, उसी रपयकी दसरी भोर वरपततीका चितर द। एक ही रपयकय दो भाव सय । परकष ह । पर सपण

रपय य दोनो भववोका विदन ह ह यह मी उतना कषी सतय द । इन तीनो वोम रपयका जो दशन होता ह वह सपण रपयका दन ह । मनभय जिशच रपयका निलय दशचन करत ह, बह रपय. भाघ भागका ही दन ह । मनपयकी आख एक दी समय सपण सपयका दकन करन भकमथ ह । दषटी ददयक-लाघ भागका दही दकषन करती ह। दिवय दही सपण वसतका दशन कर सकती ह नो दीनो मावोका दन ह वही सल ओर कपण दशषन ह ।

ओर एक उदाहरण यहा विचारा रत ह। एक शदछरका वतासा ह । सम वजन ह, वदी जड भाव ह, इस जड भावक टकड ी सकत ह । बतासक दो चार दस वीह या सधिक इकड होति ह । यही बतासका कषर भाव द । हरएक मनपय इष कषर भावका दकशन करता ह । इसी कषर भावय

वयापक मीठस द । माठापन दह । कषर भावका भनभव, इसक वजनका या जडमावका भनभव हाथ करता ह।

(~ 4 > स. (१ 9 (र बरत, दत, अदभत अर पकतवक सदधानत

पर उसषक साथ रह मीटापतका अनभव जिहधा करती ह भौर कती ह कि इसम मीठास भोतपरोत भरी ह । बतात जितन चाददिय उतन टकड करो, उन सवम मीडास भटट ह । यह मीडास अकषर भाव र। पाठकोको धन माव भौर उसम वयापनवाखा मटपनका भाव रख दोनो भाव बता-

सम द, इसा पता ग सकता ह । हरएक मनषय यदह जान सकता ह । परय दोनो भाव बतासम चिनदन होकर मिल रहत ह । अरथात‌ एक जड भाव, दसरा मीरासका

भाव भोर तीसरा जिसम य दोनो भाव मिर ह वह बताघा ह। यदी तीन भावो वसत एकसवका माव र भौर वसतक एकतवम तीना मावोकी सतता ह। बतासम रहनवाङा वजन बतानवाङा ददय घन भाव, दखर। मीटाघतका नदय भाव भोर इन दोना भारवोका विनदन जहा हआ ह बह पण

बतासक1 तीसरा माव ह | यदी तीनोका एक भाव डद भोर

एकम तान भाव | तीन मावोको पथक‌ दखना यह सव

साधारणदषटी दह गोर तीनो मावोक विनदनको एक रप

दखना यदह दिषयदषटी ह। पथगभावोका दशन छाघारण दषटीस होताह भोर परथगभारवोरम एकववका दशथन दितय

दषटीस हाता ह ।

विशवम जडमभाव ह, जिका धरकति कहत ह । इस जड मावर जडता, घनता, वजन तथा सथरता भादि माव ह |

इसको भकति, मदततव, भहकार, पञच सथरभत भादि

कहत ह । इसक टकड होत ह, इस कारण इसको “ कषर '

कहत ह । दसरा भाव इसी ह जिसको भकषर भाव कहत

ह, हसो आतमा जीवातमा लादि नाम दत द । जडक विभाग होत ह, वस इसक इकड नही होत । यद चतन, सफात दनवाङा, जञान मरण करनवाखा कञानसरपी ह। इनको कषर परष शोर भकषर परष कहत ह । इनका वणन नीता दखा किया ह-

दवाविमो परषो लोक कषरथाकषर एव च । करः सरवाणि भतान कटसथोऽकषर उचयत ॥ १६ ॥ उततमः परषसतवनयः परमातमवयदाहतः । यो छोकचयमाविडय वि भवयवयय इशवरः ॥ १७ ॥ यसमात‌ कचरमतीतोऽदह अकषरादपि चोततमः । अतोऽसमि ढोक वद‌ च परथितः परषोततमः॥ १८ ॥

म० गी. १५।१६-१८

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। ४ वरषका अथ

९ = [4

य शोक इसी ठखङ परारभ दविप प। अब पनः यहा दिय दह कयोकि इनक कछ विदषिष शबद‌ ह जो बड महतचवक

ह, जिन मननत ' तनोत एक भोर एकम तीन ` यह कट सरकषा जा सकता ह ) इन शछोकोका कथन रता ह-

‹ कषर भोर भकषरय दो परष ह रोक ह । कषर सब

भत द भोर कटसथ भामा अकषर ह 1 उततम परष -परमामा इनस भिनन र जो भवयय दशवर तीनो रोरछोमि सयापकर

उनका धारण करता ह, यह ईदवर कषर परष परषठ ह भार

अकषरत भी उततम ह इसखयि रोक नोर वद इत परषोततम कहा गया ह ।

परषका अथ यद “कषर परष, अकषर परष भोर उततम परषः

दस तीन परष कद ह । यहा तीनोको परष षटी कषा ह भतः परष पदका भथ दखनकी यहा भावङयकता ह ।

परि वसति, परि शत

दसी इस परष इबदकी भयतपततिया द । जो परिम रहता दह, जो परिम खोता ह, जो परिम वयापताह वह परष ह । यद ^ उततम परष › परमासमा, परमशवर, पर- बरहमह दह सव विशवत गयापक ट इससयि विङवरपी परि वयापनक कारण परष कका गया यह ठीक हीह) दरा * अकषर परष ' यद जीव नातमा ह, यह जीव शरीरम भयापता ह । इकतरियि इषको भी पष कढाजा लकता ह ) परनत यहा कवर जीव शरीरम वयापनदादी भाव नही ह परत जीव भादस सवनर वयापक होनस इसको यहा अकषर परष षहा ह 1 गीत ' निद : खव -

गतः सथाणः (गी. २।२४) यह आतसमा-ञचरीरधारी भावमा निलय कौर सवगत दह रता कदा द । यह जीवभावकी सवगतता सवतर जीवभाव सथिति होनक कारणः मानी गयी ह । जीवातमा तो भपन कषरीरम भयापता ह । वसा परयक जीवक शारीरस जीव वयापता ह इस कारण भी यह वयापक ह । अष कषर परष जो सव मरतोक रषोस विइवम जड करक परतिदध ह, पञचमदाभत सषटीक जड

खषटीक रपस परसिदध ह, बह किस परिम वयापनक कारण ! परष › कराता ह ? यह परशन या विकष महतवका ह । जवितमा जीव कञरीरम भोर परमातमा विशवरपी शरीरम

(७)

वयापक ह, पर जड शरीर किस वयापक द ? जनिष कारण इस जडको भी परष › कदा ह । जड-चतन, छर -अकषर, परकतिपरष य परसपरक साच परसपर वयापक रह, घरथात‌ य परसपर मिल जल ह, यह भाव यहा ह। इस तरह परसपरक साथ मिल जर होनस दोनोङी परसपर वयापकता

ह, इसीखियि यहा "अकषर परष -जीव।रमाछो जसा परष कहा ह, उसी तरह कषर परष-पराकतिक हारीरको भी परष कदा ह । जहा शरीर ह वहा जीव भोर जहा जीवह वहा शरीर ह । इषका थ य परसपर वयापक ह भतव य परष ह ।

वसततः परकति वयापय ह ओर आतमा वयापक ह । इस करण भमाको ही परष कहना चादिय । परत यहा परङति-

को भी परष कहादह। हतका दत यह कि भासमा भौर भरकति मिली जली ह । इससयि इनको परसपर वथापक क सकत ह । जषठ तरह शो चडम मिहटी ओर जर परसपर भिर जर रहत ह भतः परसपर समिधरित द रषा कदा जाता ह, उसी तरह परकतिरपी मिम अपतमाका जक मिला ह । इन दोरनोका छीचड बना जिसस सतर सषटी बनीह । इस तरय दोनो परसपरक साथ मिल ह, अतः इनको परष कदह। ह ।

या एक जड भाव ह जिषषछो कषर परष कदा ह, जिसक इकड दत ह । जिसस -दषरा भअशचर परष जो भतममाव ह । एक कषरमाव भौर दपरा अतमभाव ह। य दोनो भाव जहा मिर ह वह परमातमभाव ह । यद

पण परष ह, परषोततम ह । इसम दोनो भाव समित नस यह परषोततम द भोर दोनोस शरषठ ह | कवल कषर परष यह परषोततम शरषठ द, हषक। कारण यहद कि

इसम जीवातममाव मिखा द { इती तरद भकषर परपत भी यह उततम दत कारण यदीहकियह पहषोतत जीञ- भाव भोर जडभावकछो अपन अनदर षमिलित करक रहता ह ।

दाय शरीरस पण कषरार घरषटठ ह भौर बाय शरीर भी उततम ह, कयोकि दयि भोर बाय शरीर इसत भिर ह।

दोनोका सषमीखन एक एकको भवकचस नरषट दहोन। साभा.

विक ह । इसी तरह कषर परष, भौर भशचर परप य दोनो

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(८)

परषोततमम मिल जर दोनक कारण इनमस परसयककी कषास परषोततम षरषटद यह तो खयकिदधदहीद

इस विदवम सथानसथानसन ' तीनस एक भौर एकम तीन › इस तरह रह ह । तीना भागाका पथक‌ पथक‌ दशन

करना यह सामानय रषटीदह आर तीनाक अनदर एकलवका

दशन करना यह दिवयचटीह।

जो भजनको ¡हषयटषटी दी वह यही ह । इसस भनक- तवम एकतवका दशचन होता ह। जर भौर मिदय दो

पदारथ द, परत कीचडम दोनो एकरप होत ह । पति, पतनी परथक‌ ह, परत ऊटव कदनसख उनका मीरन एकतव हो जाता ह | वराहमण, कषतरिय, वदय परथक‌ द पर भाय कद- नस टन तीन एकसव दीखन खगत ह । राजा भौर परजा

पथक‌ रत द, परत राट कदनख उसम दोनो भा जात द। यह तो गयावदारिक मदोमि अभद दशन ह । परत कषर- भकषर-परषाततमम तो इसस भी एकरपता ह जो इसस

पव बतासक उदाहरणस बततायी द । बताता एक वसत ह, उसका एक भाव वजनद‌।र तथा इकड दोनवाला ह भौर दसरा भाव मीखासका ह, य दोनो भाव बतासस एकरप हो जातदह।

1.4

इसी तरह कषर भाव भोर भकषर भाव य दोनो परषोततम भावम एकरप दो जात द । सपण विदवङप एक दी बतासा द, इसम एककषरमाल द भोर दसरा जीवमातरद ।य दाना एथक‌ अनमवम भति द, परत परमसममावस य एकतर

मिक जत द। कषर-भकषर, जड-चतन, परकरति-परष य

भद‌ सलपनःम अनभव सवियि जात द । परतय भद‌ वसतगतः

नह ह । परमातमा, १२बरहय, परमरवर एक भदवितीय वसत

ह, इसका एक भाव कषर परकति ह भौर दसरा भाव अकषर आतमादह।

| र

जाव मवि

यहा जीवभाव कयाद इस विषयम पाटकोक मनम सदह हो सकता ह । गीताम कडा द--

= # - अ, र

मभव अललो जीवलोक जीवभतः सनातनः ।

° दरवरका सनातन अश जीवलोक जीव बना ह।' यहा जीवको इदवरका धश बताया द । अरथात‌ नजञभाव

गाता १५।७

= (~ ४ (१ + नत, दवत, अदत आर पकतवकर {सदधानत

जवि द, पणसाव परमदवर ह । तचवदषटीस भश ओर भशी @ अ ~ ५ [+ ज,

एक दीद । वदम मीरसादहीकदाद -

असतसय पतराः । च‌. १०।१३।१

` अगरतक-गमर ईदवरक पतर › य जीव द । पिता परमा. तमा ह जर उकषक पतर य जीच दह ।

वव पितासि नः॥ अः. १।३१।१० आधसय चित‌ परमलिरचयसर पिता । ऋ. १।६१।१४ आदिः पिता परमतिः.--मतयाना । ऋ. १।३१।१६ अदितिरमाता स पिता ख पतरः त. १।८९।१३;

भथ. ७।६।१

योम पिता जनिता । क. १।१६४।३३ सखा पिता पिरतम: पितणा । ऋ. ४।१७]१७ हवयवाडभचिरजरः पिता नः । ऋ. ५।४।२ पिता माता मधवचा: सहसताः ऋ. ५।४३।२ तव जाता तरण चलो भः पिता माता सदमिन‌ मायषाणाम‌ । ऋ. ६।१।५ न हि तवदनयनमघवन‌ न आपय वसयो असति पिता न ॥ ऋ. ७।३२।१९; भथ. २०।८२।२ पिताच तननो महान‌ यजजा। ऋ. ७।५२।३ तव हिनः पिता वसो तव माता शतकरतो वभ विथ। वा.य. १७।२७ ऋ. ८।९८।११ भथ. २०।१०८।२

विशवसय राजा...पिता मतीना । ऋ. ९।७६।४

पिता दवाना जनिता विभवसः क. ९।८६।१० तवशठा द‌वभिजनभिः पिता वचः । क. १०।६४।१० ऋषपिहोता नयसीदत‌ पितानः। ऋ. १०।८१।१ यो नः पिताजनिता यो विधाता धामानि वद‌ सवनानि विशवा । यो दवाना नामधा पक पवत सत परञ भवना यनतयनया ॥ क. १०।८२।२ यजञो मनः परमतिनः पित। हि क । ऋ. १०।१००।५ अजा नो विदपतिः पिता । ऋ, १०।१३५।१ उत बात पितासि न उत भआातोतनः सखा॥

च० १०।१८६।२

खनः पिता जनिता ख उत बनधः । अथ० २।१।३ त परजापतिशच परमचरी च पिताच पितामहशच;

भथ ० १५।५।२

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| जीव भाव

इन मतरोम परमशवरो हमारा फिता काह ! यहा हन मतरोम, परमशवरको, पिता, माता, बनध, जनिता ( जनक )

सखा, बदधिदावा ( परमतिः}, परषठ पिता ( पिततमः) का ह। पव सथानम ^अगरतसय पतराः (ऋ. १०।१३।३१) म शमर परमशवरक य सव पतर ह दषा कदा धा। उसीका

सपषटीकरण य मतर कर रह ओर य कह रहद कि वद

परमशवर इम सबका मातापिता दह । पितता पतरका सतर

' अश-भशी ? भावका ही सर रहता ह । पिताक सपण जरीरका ससव पतरक शरीरम भररपस आतादह। यदि

परमशवर हम सवका पिता द भर उस परमविताक हम कत पतरद, तो यह निनषदह सल ह कि उसका अशच हमार भनदर भवयमव ह । इलीययि गीताम हा ह कि^मरा अश यहा जोव हभाद। ' (गी. १५।७) परमशवरम ३३

दषताय सर वाय जल अषि द, मनभयञ ददम भी उनही दवतारभोक भ द । इशच तरह जितन तसव ददवरम द उतन जीवक दहम द । इख रीतिस यह पिता पतरका सबध ह । पिताका अश वीरयरपस पतरम भाता भौर वही यहा दारीर रपस विसतारित होता ह।

भश ओर धशी एक जातीक होत द । वस दी परमशवर भोर जीव भासमततवकी दटिस सजातीय द । घापमा कदनस परमइवर तथा जीवकछा बोघ होता ह । परकरविको अवमाका

दारीर माना दह । इतस तरह भरकति+ [जौव+परमातमा ] य तीन होनपर मी एक होत ह, विदवनञरीरी परमदवर ह यद परतिपादन इसस .पव कियादही ह । परमदवरक विईव-

शरीरका वणन वदाम तथा अनयतर भी बहत दह, उसस कछ वणन भव यहा दलिव-

अशभनिभरधा चकषषी सयचनदरौ दिशः शरोत काग‌ चिवताशच वदाः । वायः पराणो इदय विदव असथ पदधथा परथिवी हयष सव मतानतरातमा ॥

मणडक २।१।४

इनदरादयो वाहव आहरता करणो दि दाः रो - मञरषय शबदः । नासतयदसरौ परमसय नास घराणोऽसय गनधो मखमिरिदधः॥

शरी ° भागवतत २।१

' कसि मख, सरयचनदर य नतरद, दिशा कानद, वाय पराण द, भनठरिकञ हदय ह, पथिबी पाव ह यद वभतोक

(९)

अनतरासमाङा विरवरप शरीर ह । ' यद वणन सणडक उप- निषद शौर शरीमदधागवतम द । वदक मनरोम भी रलादी वरणन ह -

यसय चयसिशदवा अग सरव समाहिताः ॥१३॥

यसय जयािरादवा अग गाजा विभजिर ॥२७॥

यसय सयशचशचशचनदरमाशच पनणवः । अशच यशचकर आसय तसम जयषठाय हमण नसः ॥३३॥

अथव १०।७

‹ जिस परमातमाक अग-शरीरस-ततीस दव रहत । जि परमातमाक शरीरम ततीस दव सरीरक वयव बनकर

रह ह । जिसका एक धाख सय ह भौर दसरा भाख चनदरमा हभा ह, भचि जिसका सख बना ह, उस रपठ बरहमकर लिय मरा परणामदह। ' इस तरह परमशवर दरीरका वणन

वदमतरो, उपनिषदरचनो नोर धनय बरधोम ह । अरथात‌ सरव पराकतिक विशव उका शरीर ह । जता मनषय नामा ओर

शरीर मकर होता ह, वला ही परमशवर परमातमा भार विशच मिलकर होतरा ट । यदह विशव उशकरा शरीर ह भोर लब जीव उष परतरशचरक विशचदहम रदनवार भणजजीव ह| इस वणनस ' परकति+जीव~+-परमामा ' मिरकर एक वसत

होती ह । तीन होत इए एक भोर एक होत इष तीन ह । इसीलयि गीला, उपनिषदो तथा वदमतरोत कई वचन एकसव बोधक, क वचन दत बोधक.भोर कट वचन तरतबोधक होत ह । किसी भी वचनषो परकषिपत या विरद

माननदधी जषरत नहदीह। यह तो दषटबिनदक कारण भिननता दीखती ह, वसततः तीनो परकारक बचन तीन दषटि

दिनदरबोस दीह ।

जहा एकतवदनननका वरणन ह वह तीना भावो एक

रपभ विनदनका वमन ह, जहा दवता वणन ह वह परति-

परषका विभिनन वणन ह भौर जा तरतका दरणन ह वहा वह भरकरति-जीव -इशचरकफ विभिनन मावाका वणन ह ।

एक बरहयक दो रप एखा सपषट वणन बहदारणयक उपनिषद ह-

दव वाव बरहमणो रप मत चवामत च, मसय च अशवतच' यदतनमत यदनयत‌ वायचानतारदषचि।

श उ० २।३।२

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( ६०)

° एक वरहम दो रप, एर मत रप ओर दसरा भभ ह, एक मलयह जोर दसरा अमर ह। वाय भर अनतरिकष खप जो ह वद अमत ह, ओर पथवी आप रप

जो ह वद मत ह । ` यह सथर सकषम सब जो ट वद

सबकछा सब चका ही खपदह। जो बरहय ह वदी जासमा,

परमावभा, परमदवर र । इसका माव परवोकत रीतिस

समञचना चाहिय ।

परमडइवरफ विदवरारीरकछी कलपना भालकारक दी कयो

न हो, पर वद. वद-उपनिषद‌-गीता-पराणोम एक जसी

ह । इसलिय वह एक दटिबिनद ह पखा मानना यकत

यकत ह ।

वसततः दखा जाय तो रकरति, जीव, परमदवर य तीन

पथक‌ तीन पाचनो रख जानवल पदा नदी ह । इनका समिशरण दी जहा दखो वदा ह! किसी सथानपर भी कवल

परकति, कवल जीव तथा कवर परमशवर मिडगा दी नही ।

इनकी विभिननता कटपनास ही जानी जाती द । सवतर जो भन मवस भाता ह वह इन तीनोका मिशरणडही ह। वही तीनोका विदन, या मिशरण वहयनामस वणन कधिया

गया ह । जिस तरद भिदधी, जर भौर भअचिदया मिशरण कोचड

नामस कहा जाता ह, जिस कीचडस दट बनकर उन ईटोस छोट मोट मदिर बनाय जतिरह। इत कीचडम भिहीदह, जक ह ओर अभि मी द । अभि होनक कारण कीचडका खप दिखाई दता ह । उसक नदर जर होन कारण वद जर मिदटीक परमाणरोको इकट। पकड रखत ह, ओर मिदही घन~या जड दह दी । इस तरह तीनोका यद मिशरण,

या यह कीचड, बड बड मदिर बनाता ह, वसा दी परकति-

जीवन-दशवरका यह मिशरण जिसका नाम बय ह विशवक विविध सप बना दता ह} यहा ^ जीव ` क सथानपर हमन “ जीवन पद‌ रखा ह। यदह जीवन दही परकतिक

परमाणमोकषो एकतरित करता ह घोर परमातमा सबका

धारण रता ह ।

मसत | इस तरह तीनम एक ह लौर एकस सीन । इसययि दम कह सकत ह, एक दषटीस तरतवाद मी सल ह, दखरी इषटि दवतवाद‌ भी सल ह भौर तीसरी दषटिस एक- वववाद‌ भी सय ह, इसीको कद भदरतवाद‌ भी कत ह ।

वत, दत, अदधत, भर एकतवक {सदध।नत

इसीखियि एक ही परथम इन तीनो वादक वचन मिरतरह।

जहा जिस दषट जो वचन भाय। ह वहा वह उसी दषटीस

दखना चादय । रता दखनस इन वचरनोमि परसपर विरोध दीखगा नही भोर कषसय वसत तवका सारमजसय ही दीखगा ।

जिल वचनकी जो दषटी होगी, वह वचन उसी दषटीस

ठीक परतीत होगा । भिनन दटीस वही वचन सदोष दिखाई

दगा । क लोग य वचन गीता भोर उपनिषदो दखकर

एकदम इनम परकषप ह, य परसपर विरद ह रषा बोरत ह, इतना दी नदी परत व वचन वहात हग दन चाहिय,

दखा भी बोङत ह । परत जघन व रोग वद मतरोभ वस दी वचन दखत ह, तब व उन मतर अरथोको बदल दनका यतन करत ह । पर यह सब वासतव दषटिकोण न समदमनका

फर ह, यद सब स गति रगानक भकतानका फल ह । हस.

चखयि पाठको यदह टषटिकोण समञचनषठा यशन करना

चाहिय । एकवार यह समञचम भागया, तो वह भखा नही जायगा ओर वचनोका सगति लगाना सकर होगा ।

रवीचातानाका सवरप

दषटिकोण न समञचनक कारण बड बड रोरगोनि किस

तरह खीचाततानी की ह यह सकषपस यहा बतात ह) इश उपनिषद वमति भौर अकषभतिका भाव “ समाज भोर वयकति ह, वह शरीमान‌ शकराचायजीन छिया नही । दसरा दौ भथ किया, पर वह ततीय भतर गा नही,

हससि ˆ भतर अकारलोपो दरषएवयः ' रसा किला। भरथात‌ सभतिक सथानपर ° असभति * ओर भसभतिक सथानपर ' सभति ' ठना चाहिय । दखा ङख । वद तरक

पदोकी तोड मरोड करनकी जिसपर आवदयकता होती ह

वह मत दी लयाञय दोता द । इषटिबिनदका धयान न करनति नको रसा करना पडा ।

उपनिषदो ' तवमसि " यदह महावाकय (छा. ६।८।७)

द । इसक पद ' तत‌^+तव+आलि' यद ह । पर शरी मधवाचाथजी इदध दत माननवार ठदहर । इनको ‹ वह बरहम

त ह? यह घरथ पतद‌ नदी था। इसखियि शनदोन ˆ तचव-

मसि ` भरथात‌ / त तसव ह ' एसा भनथ किया । भयाकरणस ° तत‌+-सव+अति ` य भी पद होति ह भोर “ तव भलि ' य भी दहत डः | पर परवापर भथकी सगतिस ' तत‌+तव+

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खीचातानीका खरप 6.

भसि ` भरथात‌ ' वह बरहमत द !यदही पद ठीक । पर सथान डीक दीखत ह भौर सब विरोध मिट जाता ह तथा क ( £ (२) 4

य पद‌ शरा मधवाचाय माननकछो तषार नदही।

जपन मतकतो उपनिषरदोक वशचचनपर रछादना यह द, अतः यह डक नदी । वासतविक एसा करनकी भी भावरयकता

नही ह । कयोकि किस तरह एकतव ह भौर किष तरह दवत

ह यह समकचनत दखा करनकी शावशयकता परतीत नही होती । भौर एक उदाहरण दविय -

परष पवद सव यदभत यचच भयम‌ । चर० १०।९०; वाय. ३१

^ परष दी यह सबद, जो भतकारम था भौर जो भविषय कारम होगा › यह वाकय ठो एकसव परतिपादक

सपषटह। परजोदरती भोरतरती ह उनको यह एकवववाद‌ पसद नही । इसखयि व इस वाकया भथ इस तरह बदर दत 1 (जो मतकारम था भार जो भविषयकाररम होगा वह सब ( परषः करोति ) परष ही बनाता द ।

करनकी करियाका अधयाहार करक य रोग इस वदवचनका

भथ बदरदत ह । भर जो वचन सपट रीतिख एकतव-

वादका परतिपादन करता ह, उसीको दवतवादका परतिपादक बना डारत ह । पर रखा करनकी कोई भावरयकता नही

द ¦ एकतवका यह एक दषटिकोण ह । भथववदम कदा द-

एक यदङ‌ अकणोत‌ सहसरधा । अथव० १०।७।९

` अपना एक अग उसन सहसरधा विभकत किया, `

जिससञ यद सव विशव बना ह। तथा-

पाद।ऽसय इह अभवत‌ पनः । “ इसका एक अश यहा वारवार उपपनन होता ह।'

अरथात‌ यह भद सहसरधा विभकत होकर इ विशचकी नाना

मरतिया बनती ह । यी बात भनय रीतिस वद‌ वचन सपषट करत ह

इनदरो मायाभिः पररप इयत । च° 4 “ शर अपनी भननत शकतियो स भननतसप बनता ह | `

य सब वचन ह जो बतात ह कि वदभतरोमि एकलवववाद ह इससयि एकतव परतिपादक मतरोको तोड मरोडकर बदर दनकी भावइयकता नदी ह । कवल जिघर दशटिकोणस वह

वचन लिखा ह बह उसी दशटिकोणस समञनकी भावरय-

कता ह । वह दटिकोण धयानम रखनप सब वचन यथा.

नर० १०।९०|४

सव वचनोकी सयोगय सगति रग जाती ह ।

एकतववादको माननवार परकरति-परष-परमशवरका

सरवतर विदन दखत ह भौर उसस सव सषटा बनी ह रसा

मानत ह । एकतववादक सब वचरनोदठा माव यदी ह। जगत किसी भी सथानपर कवल परकति नही ह, कवल परष नही ह भोर कवर परमशरर भी नही द । मिषजल य तीनो माव सरवतर ह, ओर मिरजञर रपम य सवतर ओर पतद‌ रहत ह । इन तीनो भावोका समीखन भथवा

सविदन सरवतर ह नोर यही एकमानर सरवतर ह अतः यदी एक वसत ह । इसीदया नाम एकव दकषन हः |

तको मोहः कः शोकः एकतवमदपरयतः। ' इस एकसवका ददरीन करनवारको शोक ओर मोह छिस

तरह हो सकत । › इस एकववक दशचनत मनभय शोक माहक पर दोता ह 1 वह षदा जानदम रहता द। इस

एकतवको माननवार एकतववादी हसर एक वसतक तीना

भावोको मानत दही । इसक इत एक वसतम तीन भाव खदा ही रहत ह । भरथात‌ यह एकतववाद‌ तरतका विरोधी

नदी ह । भावातमक तरत ह भौर वसतरप एकव ह ।

वा. ध. ७०; इशच ५

जो षवनन जड- चतन, परकतिपरष, कषर -धकषर, कषतर

कषितरजञका दशन करत दव दितवादी दह । य परषम जीव

तथा हशवरका भद‌ धडा-भजञी रप द रा मानत ह भौर जड कनोर चतन इन दो तवोको मानत ह । इनक दवत जीव ओर शिवका भावातमक भद‌ रदनक कारण इनम मी तरत दह, तथा परकतिको परषकी शकति माननक कारण शाकत- मानस शकति परथक‌ न रहनक कारण इस वाद भो एखः.

वादकी सलरक रहती ह । भधनारी नटशवरका रपक इनका

मत बतनिवाटा दह । नर-हरका भलकार भी इनका दही ह । इन दरतवगदियोन इस रपचस तरत भौर एकतवकी

उयवशथा भपनम उततम रीतित की दह।

तरत परकति, जीव ओर रशवरका भकतितव ह भौर यह

परकष सबको दीखतादी र, इस कारण इसका विरोध

परयशच वयवहारम ठो कोट करता दी नही ।

इस तरह रीन वादोकी वयवसथा द भौर य तीनो वाद 92 परथक‌ परथक‌ टषटिविनदभोस भपन भपन सथानम सल ह।

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(१२)

पाठक इस तरद इष तरत, दवत, शदरत आर एकतववादको रमसच भोर वदादि वचरनोका योगय तातपय धयानम ल भौर वयथ बढाय कगडो दर रह ।

एकसवव। दम भी मावातमक तीन पदाथ द, दतम भी सातमास दोनो भातमाओका कननतभावि होनत वान पदाथि तीन भाव द भोर वरतम भी तीनो भावोम तीनोका अनभव ह। इस कारण किसी भी मतका सवीकार करनत “ जडभाव, जीवभाव भौर रिवभाव '' इन तीनो भावोको मानना ही पडता द । इसखियि भावातमक तीन पदाथोकरा याग किसी

भी मतम नहीह। तो मी सीन दाशिखदोस जञान दिया जाता द, इसलिय किसी घमय एकसवका दकषन होता द, किसी समय दवत भौर तरतका होता ह। वह बताना दी

चाहिय । वह तचवकञानक मरथोम वताया ह! इसवयि दशि-

बिनद भदक कारण एक वसतम भी तीन भाव दौीखत द भोर तीन भावो मी एक वसत दीखतो ह! अतः तीनो परकारक वणन विभिनन दषटिबिनदभोष टीक द, न

परसपर विरद ह भोर नादी इनम को वचन परकचिकच द। यह इस तरद जानना दिषय ह। यह न जाननस

वचनोकी सगति ईक तरह नही रग सकती ।

५” ५” अ

इसययि पाठको पराथनादककिव इस दिगयदषटिो परापत कर भोर घमरथोक वचनोकी उकतम सवगति रगाकर उन वचरनोति सलयजञान पराकच करनका यतन कर । सलयततान

ही सवका तारण कर सकता ह ।

भाजक यगक ाचाय महरि खामी दयाननद सरखतीजी ४ ध द (र क) © णय 1

आय समाजक परवतकदह। य चतमतक सरमथक र रता

हव मानत ह । विशषतः सब भायमाजी अपन भापको

‹ तवाद कदत ह, पर भारयसमाजम परवश करनक दशच नियमो जो पहिला ही नियम ह वह‌ ` एकतकववादी

ही ह । दिय यह नियम एला ह- ५५ क [

आरयसमाजका पहिला नियम “ सव सतयघरिदया आर जो पदाभर विदयास

जान जात ह, उन सवका आदि म परमशवर ह इसम सपषट कहा ह कि सब सलयविदया अरधात‌ ' वदादि

3) „न [9९ [२ ~, [च

शाद * भोर विदयास सम जानवार रकतति-जीव-हशवर'

य पटराथ, इन सबा भादि मर एकमातर परमशवर ह, अरथात‌ परमशवर चदरपी सल शचाख परकट हए ओर इस

| ९ प, 4

अत, दत, अदत आर गकतवक [सदधसत

सल वियास समशच जानदाल परकरतति जीव दशवरय सब

पदाथ भी परकट हए ह । इन सबका भादि मर एक मातर

परमशवर ह । यह वदिक एकतवाद‌ ही ह, इस तरद तरतवादी महच दयानद‌ सरसवतीजी अपन

नियमो एकचव सिदधानतको दशति द । धरककति परमशवरकी

शकति ह भौर जीव भश ह रखा माननस एक ही परमशवरका असतिख रहता ट । परकति-जीव-दशवरय तीन भाव ह,

पर परधोततम एकदी ह। यह जो हमन पत सथान लिखा ह कि “ एकम तीनोका विनदन” भोर ““ तीरननोम एकडी

सतता ” यह जो मानतहव री इष नियमको इस तरद

रिख कत ह । हसत चत पकषका तरवथा विनाश नदी होता ओर एकव पकषका मी सरवथा नभाव नही होता । परत य दोनो पशच अपन अपन टदटिबिनदस यथासथान विदयमान

रहत ही ह । यह‌ सषञचा दटिकोण ह यही वद‌-उपनिषद‌-

गीताम लिदधानतरपस का ह ।

इसी कारण महरषिक दसताकषरीस यदह नियम इस तरह

लिखा गयाह। थह महसवपण दटी ह जओर इसको ठीक तरह समशचनस तरत भोर एकतव वादका सामजसय उततम रीतिस समञच आ सकता ह ) तरत भोर एकतव य वाद‌

एक ही वसतक। वणन कर रद ह, परत दटिबिद विभिनन ह । सवकषतताका यदी सिदधानत ह ।

अब हम कछ भनय उदधरण इनदीक मरथोस दत दह ।

पच महायनन विधि (स. १९३२) ““ इषम कोह शका कर छि ईशवरन कि वसतस जगतको

रचाद? उसका उततर यद द कि भभीदधात‌ तपसः )

ईशचरन भपनी अननत सामधथस सबर जगतको रचादह।

वदानत धवानत निवारण (ख. १९३२ ) इशठी परकार पषठ ५ पर छखिादह कि (नहय वा इदमि-

तफदि ) सधक आदिम एक सव शकतिमान हय ही वतमान था । सो भपन आतमाको ( भ बरहमासमीति तदव- दित ) सखवरपछा विसमरण उषको नदी होता । उस परभा-

तमाकर सामय दी सनन जगत‌ उतपनन हवा ह । पषट १६ पर लिखि ह फ ^“ ह परमशवर अपन

ससामय तथ! ननत पराकरमस भमि, जल, सवग, तथा

दिव भरथात‌ भमिस टकर सय पयनत सव जगत‌को चनाया ह । रकषण, वारण तथा परखय मी नापही करत ह । (ऋ. १।४।१३।१२ )

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ठक

वद विरदध भतरखलडन (स. १९३२ )

शताबदी कषसकरण पषठ ७९१ पर खिखिा ह कि ^“ सब

परकारक सामथय निराकार परमव निलय दी विदयमान ह, उसस दी साकार जगत‌की उतपतति होती ह। जद परमाण तततिरीय उपनिषद‌ -- तसमादरा एतसमादातमनः भाकाशससममत :, भाकाशादवायः, वायोरभचिः, अचचरापः, भद‌भयः पथिवी, पथिवया ोषधयः, लोषधिभयो भनम‌, शजञादरतः, रतसः परषः, स चा एष परपरो भननरसमयः' भरथात‌.उसकी इस आातमास घाकाजञ, भाकाशस वाय,

वायस भनि, भनिस जर, जलस पथवी, पथवरीस नोषधि,

शोषधिस भनन, जननस वीय, वीयस शरीर उतपनन होता ह, सो यहा यह शरीर भनन रसमय कहाता ह।

उपदशशच मजरी ८ स° १९२४६ ) पषट १४ पर लिखि ह कि ^“ इशवर परम परपर तन।तन

बहम सब पदारथोका बीज दह" ।

परषठ २० पर जखिाट कि "आखिर जीव ओर निरजीव पदाथ हशचरन अपनी सामथयस निरमाण कियिदह। ”

परषठ १२४ पर छलिादह कि ^“ इदवर-सामथय ही, जगत‌ उतपततिकी सामगरी ह भर उसका सामथय ही

जगत‌का उपादान कारण ह । यद सामथय परगट हवा तभी सषटि हद भोर इरवरम इसका लय होनस परखय होता ह ।?

इसस सपषटतः सिदध ह कि महरषिक इन वयसपरानोतभी उनक ठकयचादी होनकी पण रपस पष होती ट ।

इन उदधरणोक शबदपरयोग परवोकत मतकादही परतिपादन

करत ह । धसत । इत विषय मतमदक सखयि सथानदो

सकता ह यह हम जानत ह} किषी विदधानको यह अमानय

हभातो भी कोद हज नदीह।

एक & सत‌ ह । इनदर मितर वरणमचिमाहरथो दिषयःस स- पणा गरतमान‌ । एक सत‌ विपरा वहधा वद‌- नति अशच यम मातरिशवानमादः ॥8३॥

च. १।१६४

(एक सत‌ )एक दही सत‌ हगदो या तीन या इनस भाधक सत‌ बसतए नही । कवर एक ही भदवितीय सत‌

ह । इती अदवितीय एक मातर सत‌का वणन ( विपराः बहधा

सत‌ ह (१३)

वदनति ) कञानी रोग अनक परकारस करत द, अनक नामोस इसी एकका वणन करत ह । व जञानी इसी एक अदवितीय सतत‌को भनन, यम, मातरिशवा, इनदर, मिनन, वरण,

दिवय, सपण, गरतमान‌ कहत ह ।

स तरह “एक सत‌ ' ह यह‌ घोषणा वद‌ करता ह । उसी एक सतम भभचक गण दखकर तानी लोग उसीको भनि बोरत ह, उसीम वायक गण दखकर उसीको वाय या मातरिशवा कहत ह, उसम परमदवयक भाव दखकर उतीको इनद कत ह । उकतम मितरताङा भाव दखकर उसको भितर कहत । इस तरह. विरम जो दवताए दिखाई दती दव इसी एक सत रप द, रखा अनभव करक तानी रोग अनक नामोस उकष एक सत‌का वणन करत ह । भशचि वाय जकक जो वरणनद, व सब वरणन उसी एक

सतक ही वणन द कयोकि भनक रपो वदी एक सत‌ विरव रप खडा ह ।

दस मतरका धथ कड रोग एषा करत ह छि भसि मादि नामस उसी एक सत‌ अरथात‌ परमासमाःया परनरहयका वणन दोता ह । परत यह सल नदी द। वह परमातमा, परबरहम या सत‌ अभनिभादि रपो परकट होता ह, इसलियि भसनिका वणन उसीका वणन होता द) इसी तरह ज उसका! खप ह इसलि जकक वणनस उका वरणन होवाह। इसी तरह भनयानय दवताओक वणनका माव समहयना योगय ह । इसीरिय वद‌ कहता ह-

तदवाचिसतदादिलयसतदवायसतद चनदरमाः । तदव शकत तदरहय ता आपः स परजापतिः॥

च।. य. ३२।१ ( तत‌ एव भभचिः ) वह बरहयही भचधिदह भथा ( भिः

तत‌ एव ) नि निःषदह वह बरहमह, ङिवा( भिः एव तत‌) भि ठी वह वहयह। इसी तरह, वही बध, वही वाय ह, वदी चनदरमा द, वदी शकत ह, वी ( बहम) तान ह, वदी ज ह, वदी परजापति ह।

जथात‌ पथवी, लाप , तज, वाय, आकाश, सथ, चनदर, नकषतर, बशच, परसतर, पाषाण, पवत, नदिया भादि सर उसी परवयक रप द, यद सपण विदव दी परबरहमका रप ह । विषण सदहलनामक परारभम दी कटा ह कि-

“^ विशव विषणः

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{ १६ )

विशव दही विषण, विशच दी विषणका सरप दह 1 भरथात‌

विशवक सवर पदाथ विषण शरीरक भवयवरह।

वदोम सय उसक आखदह, वाय उसका पराण, भि उसका सख ह, परथिवी उसक पाव दह, दिशञाद‌ उसक कान

ह, इत परकारका वरणन जाताह।

यसय सयशचशचशचनदमाशच पनणवः। आभच यशचकर आसय तसम जयषठाय बरहमण नमः ॥

अथव

य मनन परमातमाक विशवरपी ददकषा दी वणन कर रह

ह । सरय चनदर अभि भादि दवतए उकतक शरीरक अवयव

ड । इसस ' सत‌ एक ह उलीका वणन अभनि जल वाय आदिक वरणनस होता हः इस मतरा सपषटीकरण वददरारा द हमा । इका सल कथ वद‌ मतरोदरारा इस तरह

परकर हक । -

एक ही सत‌ द जो !परकति-जीव-शिव ` इन तीन

खपोमि परकट होरहाह यह जो तरत जोर एकवका

विचार चल रदा ह, वद इस रीतिस वदमतरोौरा सपषट दो

रहा ह । सवय वद दही पना माव अनक मरो दवारा

परकट कर रहा द । शरी मदहषि शवामी दयाननदजी सरसवती

यद सब जानत य इससयि उनहोन पिर नियम ‹ सवका

भादि मर परमशवर ह ' यह एकतववादका परतिपादन किया

ह भौर उसक तीनो रपोका ^ शरकतति-जीव-शिव `का

वरणन तरतवाद सवीकार करक कियादह । इस तरह तरतम

एकतव ह भौर एकसवम तरत ह यद वदिक दटिह। यदी

हरएक ज।नीको सवीकार करन योगय ह ।

करिरणताट तीन दव

जयः कदिन ऋतथा एवि चकषत सतरतसर

वपत एक एषाम‌ । विशवमको अभिचषर रची.

भिःधाजरकसय दरश न रपम‌ ॥ चट. १।१६४।४४

( कशलिनः तरयः ) बालवार अथवा किरणवाल तीन दव

ह । व ( ऋतथा विचकषत ) ऋतक भनसार दखत ह जथव।

दिखाई दत द । ( सवससर ) वषम ( एषा एकः; वपत )

इनयस एक बीज बोता ह । करतक भनार बीज बोलता

ह । ( शचीभिः 3) भपनी शकतियो स इनमस ( एकः ) एक

६ [१ ४, क

रत, दत, अदधत, ओर एकतवक सिदधानत

( विशव भभिच ) विशवको दखता द । भौर ( एकसय धराजिः दद ) एकी गतितो दीखती ह । परर ( खपन)

उपसतका रप दिखाई नही दता ।

यहा किरणो तीन दवोशा वणन ह। य तीनो

किररणोवाल दव ह, य परकाञचमान ई । पकठिको “' दवी

परति '' कदा जाता ह । अरथात‌ यह परकति चमकनवाली ह, तजसविनी ह, किररणोवाली ह । दसरा जीवातमा ह वह आतमा होनस दी परकादामान ह भरथात‌ किरणोवाला ह ।

परमातमा तो सबका परकाकचकदरदही ' अरथात‌ य तीनो

( कशिनः ) किरणोव दह । ' कशिन‌ › शबद बाखवाङा इस भय परयकत होता ह 1 छिरण ही बाल कद जति ह ।

इ नमस एक ( ऋतथा विकषत ) तक भनषार काय करता ह एसा दीखता ह । घब खषटाभरम ऋतक भनसार फरपर भाति द, गना फक दोना भौर मरना यह दरएक क सयि ऋतङ भनखार हो सहाट। सषटय (जायत)

जनमना, ( असि ) दोना, ( वधत ) बढना, ( विपरिणमत ) परिणाम दोना, ( अपकषीयत ) कषीण होना भौर ( विनरयतति ) नाश होनाय छः कत दिखाई दत द । हरएक पद‌।थक

साथयर ह । हरषएक पदारथ हन छः ऋतरभोमिस गजर रहा ह । भरथात‌ यहा चरतभोक भवसार काय हो रहादह।

८ एषा एकः वपत ) इनमत एक बीज बोता द जितक बीजस सषटी होती ट भौर बरढती ह। बीज दनवाला पिता कटकाता ह 1 जो पिता होतादह वही बरीज दता ह, वीरय सिचन करता ह भोर माता उसका धारण करती ह मोर परजाकी उननति करती ह ¦

यही (एकः शचीभिः विशच भभमिचषट ) एक अपनी छकतियोस सपण विशवका निरीकषण करता ह । भपन किर- णोस सबको परकाशित करता ह। / शची ' महाशकति ह। उसक पास अनत महती शाकतिया ह । उन राकतियोस वह विशवको जकतिमान करता ह । सवशन उसकी शकतियो का सचार दो रहा ह । भिम तजस शकति, वायम जीवनीय शाकत,

भनन पराणधारण शकति इस वरह सनक शाकतया वह

परदान करता ह भौर विशवका पारन पोषण भोर सवधन करता ह |

इसकी ( धराजिः ) गति दीखती ह। का कयादो

रहा ह यह दीखता ह। भारि जकता द, जर बहता द,

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किरणवाटल तीन दव

वाय जीवन दत ह इस तरद सरवतर गतिहो रहीदह।

वह गति इसीकी शकतिस दो रही ह । यद गति दौीखरही

ह, परत यह परमातमा खय (नरप) अरप ह, इसका रप नही ह । परत इस भषपका यही विशच रप द कयोकि इसकी शाकतिस दी यद परकतिशारी हो रा द, दसीक जीवनसत यह जीवित रहा ह । यह शपनी शकतियोस भभचि

रप, जखरप, वायरप होकर या खडा द । इनदरो मायाभिः पररप शयत । चरद “ इनदर परभ भपनी महती शकतिरयोत भननतरप होकर

चदता ह । , यहा “माया ' पद‌ शकतिक। वाचकद। शौर यदी परय ' पर-रपः › बहरपी होकर विशवम घम रदा । धरपका यह विशवरप ह । यही एक होता इभा बह हआ ह।

इस मतरम “ तीन दवह भोरव दिरणोविद ” एसा

कहा द भौर यद दव भषपनी शकतिरयोस ( पर-खपः) बहत

रप धारण करता ह एसा भीकहाद। इष रीतिस “ एकक तीन भोर तीनो एक › ह यह बात

विदध होती ह । यह वदकी परिभाषा द) यह जानकर दही

वदका जञान समञचना चादहिय।

इस रीतिस ' परकति-जीव~परमशवर ' य तीन भाव

बिरकर नदी ह दषा कोई नदी कहता । परत जिस तरद

ˆ बतात ` म " जडतता+-मीढास ' य दोनो भाव रहत ह

भोर भिखजर रहत ह, तथा इन दोनो पण बतासरा

भी साथ पराथ विदयमान रहता ह । वस ही ' जडमाव-+

चततनभाव › य दोनो भाव सवतर मिचजर रह द ओर उन दोनो ‹ हिव ' भाववयाप रहाह। तीरनोका कीचड

सवतर ह । यह समकषना चाहिय ।

यहा हमन ‹ परकति-जीव-दशवर › का कीचड ठसा

शबद‌ परयोग किया ह । कीचड इाबद‌ योगय नहीभौर उच

भावदशक भी नही ह । परत दखरा शबद‌ सञचता नही ह । शीचडरम ‹ मिदी+-जर-+-भरधि य तीन पदाथ रहत

ह । पर सखनपर जर दरदहो घकतादह। रसी परथकता

' परकति-जीव -हशवर ' क विनदनम नही ह । ˆ विनदन '

शबद अचछा ह। मिशरक दर ‹ दरा+मीटापत ' इन

दोरनोका विनदन हभादह, कीचड नदी । विनदनम दोना

रदत ह, पर एक रप होकर रहत ह । भिशरीका दखा हाधरम लनस हाथको उसक वजन ( जडभाव ) का पता

(१५)

लगता ह । जिदधाको उसको मीटासका जञान होता ह,

नवरको उका खप दीखता ह। तीन हदियोन तीन

भावोका शकलतितव दखा, अतः य तीनो माव पथक‌ दह।

पर ˆ मिशरी ' वसत एकी ट । मिशरीङी दषटीपत “ एक

सत‌ › ह, परल हाथ ^ जडतव › कहता ह, नतर / रगरप'

कहता ह भौर जिहवा मीटास कहती ह । य अनभव पथक‌

ह, पर एक दी वसतक, एक ही सतर य तीनो माव ह|

इस तरह यहा समकषना चाहिय । ततीन भारवोसि एक

ही वसतका साकषातकार होता दह,

पण विरव ˆ जड+जीवन+शिव › य तीरनो भाव मिर

जर ह । ददधारी जीव मर गया, तो उक शरीरस मखय

भविषटाता जीव चरा जाता ह, परत उस शत दहक

भरलयक अण भन जीव रहत ह । व सबर उ दहक

सडनपर छोट जीवो खपोव परकट होत द । भरथात‌ शत

दम भी करोडो सकषम जीव होत । इसी तरह जिसको

निरजीव लकडी या सवरणादि धात कत ह, पर कीडा

ङकडी खात। ह, सवरणादि धात मनषय सवन करता द ।

य निजीव दीखनवार पदाथ सजीव शरीरङ सजाव विभाग

बन जाति द । इस तरह विचार करनपर माम होगा कि

जीव भाव सरवतर ललोर खद‌ रहता ह । एक भविषठाता जीव

चला जाता ह, परत वा वरड षणजीव रहत ह । हिव

भाव तो सरवतर ह । इन तीनोका विनदन होता ह, मख

मिराप होता ह उषा नाम ° बरहम" ह। दखिय--

सव खद इद बरहय । नह नानासति किचन ।

, यद‌ सब बरहम ह, यहा नाना पदाथ नदी ह। ` यदह

सब वणन तीरन विनदनका ह । इस विनदनका सरल तसव

न समननख दववादवतक वादविवराद उतपनन दष द,

, जिनकी कोह आवयकता "नदी ह । निल रीतिस यह

परतिपादन किया ह, उस तरह पाठक समञचनका" परयतन

करग तो पाठकोक मन छिपी चरहद. इख एकतव, दत

दौर तरत विषय वरिव।द‌ उषपनन दी नही होगा। वद

उवनिपद आदि परथोक वचनोक सब वचन ठीक रीतिष

समञच ला जायग भौर सब वचनोकी उततम, सगति रग

जनति शदध जषान पराकच दोनका घाननद‌ मी पराकठ दोगा।

यदी घाननद‌ पराघठ करनक छियि मनषया जनम ह ।

----- वक 9 छर

Page 17: Traita Dvaita Advaita Aur Ekatva Ke Siddhanta S D Satvalekar

चन

१ एकव, णदवत, दवत, तरतका भाकञय कयाद!

२ कितन पदाथ नाना दशनोन मन? (५ । [क (स क भय

३ भिननता भोर एकता किक तरद सापकष होती द! | प €, ॥ अ भ,

४ वसतगत भद‌ आर भावगत भदकाखवखपकयाद {

«५ एक ही परथ एकचव भोर भअनकसवका वणन कया भ

भाताह

६ गीताम एकसव भोर भनकतव वबतानवार वचन कोनस द?

७ उपनिषदो एकतव ओर भनकतव द शनिवार कछ

वचन दी तो बताहय | ® कन, ८ कयाय परसपर विरोधीदहया इनका कषगति किसी

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तरह खग सकती ह

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९ भटदरत व एकतवम कया भद! (| न

१० तरतका सवखपकयाह! ॥ > [क परी अ

११ ईशवरको भननतरप जिनम कटा हव तीन चार

वचन लिखिय ।

१२ दो सपण कोन भौर व का रहतद!

१३ परष ही यदह सब विशवह रखा बतानवाला मतर

बताइय ।

१४ दो भज भोर एक अजा कोनसी ३!

१५ भोकता भोगय भौर ररक कोन ह?

१६ "एकरम तीन भोर तीनो एक › वह किल तरह

तभवह

१७ जड, चतन भौर भानदय तीन गण किक?

कयाय गण एक दही वसतकहो सकत ह!

१८ " परष › पदका अथ कयारह

१९ जीव भावकयाहि ? जीवक गण कौनस द?

२० परमशवर पिता, माता, भिनन, भाद दि ट इ

भावको बतानवा मनन कौनस ह !

२१ सव भतानतरासमाका वणन दीजिय ।

२२ मत बरहम भोर अमत बहम कौनतादह!

२३ दशवरको बहरप, पररप, सवरप, अनतरप, विशव

रप कयो कहा ह ! भरपका खप कसा द !

२४ भाय समाजका पहिला नियम कयादह ? वह कया

एकतवका परतिपादन करता द वा तरतका परतिपादन

करतादट?

२५ ईशवर भपन सामथयस सषटीकी रचना की द इसका

लाशयकयाहट

२६ / एक सत‌ ' काथकयाहि!

२७ एकक बह कस बन !

२८ तीन दव किरणोव कस ह भौर व कया करत!

२९ कया यह विशव परमशवरक शरीर ह !?

३० अशषरीरीका शरीर कषा दोता ह !

------- भ | (क य

ऋष मि ॐ कक कष