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videhaिवदेह थम मैिथली पािक्षक ई पि का 01 मई 2008 (वषर्1 मास 5 अंक 9) http://www.videha.co.in/
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िवदेह 01 मई 2008 वष र् 1 मास 5 अकं 9
महत् पणू र् सचूना:(1) िव तृ किव . रामजी चौधरी (1878-1952)पर शोध-लेख िवदेहक पिहल अकँमे ई- कािशत भेल छल।तकर बाद हनुकर पु ी दगुा र्न
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चौधरी, ाम- पुर,थाना-अधंरा-ठाढ़◌ी, िजला-मधबुनी किवजीक अ कािशत पा िुलिप िवदेह काया र्लयकँे डाकस ँिवदेहमे काशनाथ र् पठओलि अिछ। ई गोट-पचासेक प िवदेहमे नवम अकंस ँधारावािहक पे ँई- कािशत भ' रहल अिछ।
महत् पणू र् सचूना:(2) 'िवदेह' ारा कएल गेल शोधक आधार पर मैिथली-अं जी आऽ अं जी-मैिथली श कोश (सपंादक गजे ठाकुर आऽ नागे कुमार झा) कािशत करबाओल जा' रहल अिछ। काशकक, काशन ितिथक, पु क- ाि क िविधक आऽ पोथीक म ू क सचूना एिह प ृ पर शी देल जायत।
महत् पणू र् सचूना:(3) 'िवदेह' ारा धारावािहक पे ई- कािशत कएल जा' रहल गजे ठाकुरक 'सह बाढ़िन'(उप ास), 'ग -गु '(कथा स ं ह) , 'भालसिर' (प स ं ह), 'बालाना ंकृते', 'एका ी स ं ह', 'महाभारत' 'ब ु चिरत' (महाका )आऽ 'या ा व ृ ातं' िवदेहमे सपंणू र् ई- काशनक बाद ि टं फ◌ॉम र्मे कािशत होएत। काशकक, काशन ितिथक, पु क- ाि क िविधक आऽ पोथीक म ू क सचूना एिह प ृ पर शी देल जायत।
'िवदेह' 01 मई 2008 (वष र् 1 मास 5 अकं 9) एिह अकंमे अिछ:-
1. एं ी: मा िवश ी उदय नारायण िसहं 'निचकेता'
मैिथली सािह क सु िस योगधमीर् नाटककार ी निचकेताजीक टटका नाटक, जे िवगत 25 वष र्क मौनभंगक प ात् पाठकक स खु तु भ' रहल अिछ। सव र् थम िवदेहमे एकरा धारावािहक पे ँई- कािशत कएल जा रहल अिछ। पढ़◌ ूनाटकक थम क ोलक दोसर खेप।
2. शोध लेख: मायान िम क इितहास बोध (आगा)ँ
3. उप ास सह बाढ़िन (आगा)ँ
4. महाका महाभारत (आगा)ँ 5. कथा(पसीधक काटँ)
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6. प अ. िव तृ किव . रामजी चौधरी,
आ. ी गगंेश गुजंन, इ. ोित झा चौधरी
आ' ई. गजे ठाकुर
7. स ं तृ िशक्षा(आगा)ँ
8. िमिथला कला(आगा)ँ
9.पाबिन ( जानकी नवमी पर िवशेष)- नतून झा
10. सगंीत िशक्षा 11. बालाना ंकृते- दानवीर दधीची(नाटक)
12. प ी बधं (आगा)ँ प ी-स ं ाहक ी िव ानदं झा प ीकार ( िस मोहनजी )
13. स ं तृ िमिथला 14.मैिथली भाषापाक 15. रचना लेखन (आगा)ँ
16. पोथी समीक्षा पोसपुत (कथा-स ं ह)-सतंोष कुमार िम - िमिथलाक्षरमे कािशत
थम 21म सदीक मैिथली पोथी।
17. VI DEHA FOR NON RESI DENT MAI THI LS
a VI DEHA MI THI LA TI RBHUKTI TI RHUT ..
b.VI DEHA FOR NRMs POEM
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िवदेह (िदनाकं 01 मई, 2008)
सपंादकीय
वष र्: 1 मास: 5 अकं:9
मा वर,
िवदेहक नव अकं (अकं 9 िदनाकं 01 मई 2008) ई पिब्लश भ’ रहल अिछ। एिह हेतु ल◌ॉग ऑन क ht t p wwwvi deha co i n:// . . . |
अहाकँँे सिूचत करैत हष र् भ’ रहल अिछ, जे ‘िवदेह’ थम मैिथली पािक्षक ई पि का केर 9 टा अकं ht t p wwwvi deha co i n:// . . . / पर ई- कािशत भ’ चकुल अिछ। इटंर ट पर ई- कािशत करबाक उ े छल एकटा एहन फ◌ॉरम केर ापना जािहमे लेखक आ’ पाठकक बीच एकटा एहन मा म होए जे कतहसु ँचौबीसो घटंा आ’ सातो िदन उपल होए। जािहमे काशनक िनयिमतता होए आ’ जािहस ँिवतरण केर सम ा आ’ भौगोिलक दरूीक अतं भ’ जाय। फेर सचूना- ौ ोिगकीक मे ािंतक फल प एकटा नव पाठक आ’ लेखक व क हेतु, पुरान पाठक आ’ लेखकक सगं, फ◌ॉरम दान कएनाइ सेहो एकर उ े छ्ल। एिह हेतु द ूटा काज भेल। नव अकंक सगं पुरान अकं सेहो देल जा रहल अिछ। पुरान अकं pdf पमे डाउनलोड कएल जा सकैत अिछ आ’ जतए इटंर टक ीड कम छैक वा इटंर ट महग छैक ओतह ु ाहक ब कम समयमे ‘िवदेह’ केर पुरान अकंक फाइल डाउनलोड कए अपन कं टुरमे सुरिक्षत रािख सकैत छिथ आ’ अपना सुिवधा सारे एकरा पढ़ि◌ सकैत छिथ। एकर अितिर सपंकर् खोज भंमे िवदेह आ' आन-आन िमिथला आ' मैिथलीस ँसबंिंधत साइटमे सच र् हेतु सच र् इिंजन िवकिसत कए राखल गेल अिछ। ओिह प ृ पर िमिथला आ' मैिथलीस ँसबंिंधत समाचारक िलकं िवकिसत कए सेहो राखल गेल अिछ। सपंकर्-खोज प ृ पर िमिथला आ' मैिथलीस ँसबंिंधत साइटक सकंलनकँे आर दढ़ृ कएल गेल अिछ। िवदेहक सभ प ृ कँे 10 िलिपमे देखल जा' सकैत अिछ आ' तािह
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हेित सभ प ृ पर िलकं देल गेल अिछ। भाषा मैिथिलये रहत मुदा आन भाषा-भाषी मैिथलीक आनदं अपन िलिपमे पिढ कए लए सकैत छिथ।
निचकेताजी अपन 25 सालक चु ी तोड़ि◌ एं ी: मा िवश नाटक मैिथलीक पाठकक समक्ष िवदेह ई-पि काक मा मस ँ पह ुँचा रहल छिथ। धारावािहक पँे ई नाटक िवदेहमे पिछला अकंस ँई- कािशत भ’ रहल अिछ।
13 मई कँे एिह बेर जानकी नवमी अिछ। एिह अवसर पर एिहस ँसबंिंधत िनबधं देल जा' रहल अिछ।एिह िनबधंक लेिखका छिथ ीमित नतून झा। ोित झा चौधरीक प मैिथली आ' अं जीमे सेहो एिह अकंमे देल जा' रहल अिछ।एिह िवशेष अवसर पर लहेिरयासराय, दरभंगामे मैिथली पु दीपक सामािजक उप ास सेहो िरलीज भ' रहल छि ।
ी गगंेश गुजंन जीक किवता पाठकक समक्ष अिछ। एिह किवताक शीष र्क निह आयल छल, से शीष र्क हम दए देलह ुँ , जे हमरा बझुायल, (िकछु नमगर शीष र्क भ' गेल अिछ), कारण गगंेशजीक ई-मेल बाउ क' रहल छलि ।बालाना ं कृतेमे दानवीर दधीचीक वैिदक प तु कएल गेल अिछ, अतंमे स ू धारस ँईहो कहबएलह ुँ जे कोना बादमे तथाकिथत पिंडत लोकिन ओिह कथाक बटंाधार कए देलि ।
ी सतंोष कुमार िम जीक मैिथली कथा स ं ह पोसपुत कािशत भेल अिछ, जे देवनागरीक सगं ितरहतुामे सेहो अिछ (एके पोथीमे)। एिह पोथीक समीक्षा सेहो कएल गेल अिछ।
िमिथलाक र भंकँे नाम आ' वष र्स ँजतय तक सभंव भ' सकल िवभूिषत कएल गेल अिछ। एकर पिरव र्नक हेतु सुझाव आमिं त अिछ। िमिथला र मे बैक ाउ ड सगंीत सेहो अिछ, आ' ई अिछ िव वक थम राष् भिक् गीत (शु यजवुे र्द अ ाय 22, म ं 22) जकरा िमिथलामे दवूा र्क्षत आशीश म ं सेहो कहल जाइत अिछ, एकर अथ र् बालाना ंकृते भंमे अिभनव पमे देल गेल अिछ, आ' ि िफथक देल अथ र्स ँएकर िभ ता देखाओल गेल अिछ। मु प ृ क बैक ाउ ड सगंीत िव ापितक बड़ सुख सार तँ अिछयेपिह स।ँ
'िवदेह' ई पि काक चार सच र् इिंजन ारा, गगूल आ' याहू पु ारा, वडर् स आ' ब्ल◌ॉग ◌ॉटमे देलगेल ब्ल◌ॉग ारा, फेसबकु, आउटलकू, माय से, ओरकुट आ'
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िच ाजगतक मा मस ँकएल गेल। मुदा जखन डाटा देखलह ुँ तँ आधस ँबेशी पाठक सोझे ht t p wwwvi deha co i n:// . . . पता टाइप कए एिह ई-पि काकँे पढ़लि ।
अप क रचना आ’ िति याक तीक्षामे। विर रचनाकार अपन रचना ह िलिखत पमे सेहो नीचा ँिलखल पता पर पठा सकैत छिथ।
गजे ठाकुर 01 मई 2008
389,प◌ॉकेट-सी, से र-ए, बस कंुज,नव देहली-110070.
फै :011-41771725
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(c)2008. सवा र्िधकार लेखकाधीन आ’ जतय लेखकक नाम निह अिछ ततय सपंादकाधीन।
िवदेह (पािक्षक) सपंादक- गजे ठाकुर। एतय कािशत रचना सभक क◌ॉपीराइट लेखक लोकिनक लगमे रहति , मा एकर थम काशनक/आका र्इवक अिधकार एिह ई पि काकँे छैक। रचनाकार अपन मौिलक आ’ अ कािशत रचना (जकर मौिलकताक सपंणू र् उ रदािय लेखक गणक म छि ) ggaj endr a yahoo co i n@ . . आिक ggaj endr a vi deha co i n@ . . कँे मेल अटैचमे क पमे ँ doc docx. , . आ’ t xt. फ◌ॉमे र्टमे पठा सकैत छिथ। रचनाक सगं रचनाकार अपन सिंक्ष पिरचय आ’ अपन नै कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अतंमे टाइप रहय, जे ई रचना मौिलक अिछ, आ’ पिहल काशनक हेतु िवदेह (पािक्षक) ई पि काकँे देल जा रहल अिछ। मेल ा होयबाक बाद यथासभंव शी ( सात िदनक
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भीतर) एकर काशनक अकंक सचूना देल जायत। एिह ई पि काकँे ीमित ल ी ठाकुर ारा मासक 1 आ’ 15 ितिथकँे ई कािशत कएल जाइत अिछ।
1. नाटक
ी उदय नारायण िसहं ‘निचकेता’ ज -1951 ई. कलक ामे।1966 मे 15 वष र्क उ मे पिहल का स ं ह ‘कवयो वदि ’ | 1971 ‘अमतृ पु ाः’(किवता सकंलन) आ’ ‘नायकक नाम जीवन’(नाटक)| 1974 मे ‘एक छल राजा’/’नाटकक लेल’(नाटक)। 1976-77 ‘ ाव र्न’/ ’रामलीला’(नाटक)। 1978मे जनक आ’ अ एकाकंी। 1981 ‘अ रण’(किवता-सकंलन)। 1988 ‘ि यवंदा’ (नािटका)। 1997-‘रवी नाथक बाल-सािह ’(अ वाद)। 1998 ‘अ कृित’- आध ुिनक मैिथली किवताक बगंलामे अ वाद, सगंिह बगंलामे दटूा किवता सकंलन। 1999 ‘अ ु ओ पिरहास’। 2002 ‘खाम खेयाली’। 2006मे ‘म मपु ष एकवचन’(किवता स ं ह। भाषा-िवज्ञानक मे दसटा पोथी आ’ द ूसयस ँबेशी शोध-प कािशत। 14 टा पी.एह.डी. आ’ 29 टा एम.िफल. शोध-कम र्क िदशा िनदेर्श। बड़◌ौदा, सरूत, िद ी आ’ हैदराबाद िव.िव.मे अ ापन। स ं ित िनदेशक, के ीय भारतीय भाषा स ं ान, मैसरू।
एं ी : मा िवश
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(चािर-अकंीय मैिथली नाटक)
नाटककार उदय नारायण िसहं ‘निचकेता’ िनदेशक, कंे ीय भारतीय भाषा स ं ान, मैसरू
(मैिथली सािह क सु िस योगधमीर् नाटककार ी निचकेताजीक टटका नाटक, जे िवगत 25 वष र्क मौन भंगक प ात् पाठकक स खु तु भ’ रहल अिछ।)
थम क ोलक दोसर भाग जारी....िवदेहक एिह नवम अकं 01 मई 2008 मे।
एं ी : मा िवश
थम क ोल (पिछला अकंस ँआगँा)
[चोर-उच ा-प◌ॉिकट-मार ताली दैत अिछ, सुिन कए चौकंैत िभख-मगंनी आ मी-युगल िब िकछु बझुनिह ताली बजाब’ लागैत अिछ।]
चोर : ई त’ नीक फकरा बिन गेल यौ!
प◌ॉिकट-मार : ए र त र-राज त’ ओ र किव-राज!
बाजारी : (खौझंैत’) िकयै ? कोन गुण छह तोहर, जकर
बखान करै अयलह एत’?
प◌ॉिकट-मार : (इिंगत करैत आ हँसतै) हाथक सफाई... अपन
जेब मे त’ देख ू, िकछुओ बाकी अिछ वा निञ...
बाजारी : [बाजारी तुरतं अपन जेब टटोलैत छिथ – त’ हाथ
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प◌ॉिकटक भूर दे बाहर आिब जाइत छिन। आ य र्
चिकत भ’ कए मँुह स ँमा िव यक आभास होइत छिन।] जा !
[बीमा बाबकँूे आब रहल निञ गेलिन। ओ ठह ा पाड◌ि़◌
कए हँस’ लगलाह, हनुकर देखा–देखी कैक गोटे बाजारी िदिस हाथ स ँइशारा करैत हँिस रहल छलाह।]
चोर : [हाथ उठा कए सबकँे थ बाक इशारा करैत] हँिस त’
रहल छी खबू !
उच ा : ई बात त’ जे म रजं खबू भेल हैतिन।
प◌ॉिकट-मार : मुदा अपन-अपन प◌ॉिकट मे त’ हाथ ध’ कए देख ू!
[िभखमगंनी आ मी-युगल कँे छोड◌ि़◌ सब ो प◌ॉिकट टेब’ लागैत’ छिथ आ बैगक भीतर तािक-झािँक कए देख’ लागैत छिथ त’ पता चलैत छिन जे सभक पाइ, आ निह त’ बटआु गायब भ’ गेल छिन। हनुका सबकँे ई बात बिुझते देरी चोर, उच ा, प◌ॉिकट-मार आ िभख-मगंनी हँस’ लागैत छिथ। बाकी सब गोटे हतबिु भए टकुुर- टकुुर तािकते रिह जाइत छिथ]
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िभखमगंनी : नगंटाक कोन डर चोर की उच ा ?
जे रिह तकै छी लागै अिछ ध ा !
ध ा खा कए नाचब त’ नाचू !
खेल खेल हािर कए बाचँब त’ बाचूँ !
[चोर-उच ा–प◌ॉिकट-मार, समवेत र मे जेना धनु गािब रहल होिथ]
नगंटाक कोन डर चोर िक उच ा !
आिँखएक साम पलटल छ ा !
िभख-मगंनी : खेल–खेल हािर कए सबटा फ ा !
समवेत- र : नगंटाक कोन डर चोर िक उच ा ?
[कहैत चा गोटे गोल-गोल घरु’ लागै छिथ आ नािच नािच कए कहै छिथ।]
सब गोटे : आब जायब, तब जायब, कत’ ओ क ा ?
प◌ॉिकट मे हाथ दी त’ सब िकछु ल ा !
नगंटाक कोन डर चोर िक उच ा !
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बीमा-बाब ू : (ची ार करैत) हे थ ’ ! बदं कर’ ई तमाशा...
चोर : (जेना बीमा-बाबकू चा िदिस सपना मे भािस रहल
होिथ एहन भंिगमा मे) तमाशा निञ... हताशा....!
उच ा : (तािहना चलैत) हताशा निञ... िनराशा !
प◌ॉिकट-मार : [प◌ॉिकट स ँछह-सातटा बटआु बाहर क’ कए देखा –
देखा कए] हताशा आ िनराशा, मा तमाशा...
ल’ लैह बाब ूछह आना, हरेक बटआु छह आना!
[कहैत एक–एकटा बटआु ब◌ॉल जका ँतकर मािलकक
िदिस फंेकैत छिथ आ हनुका लोकिन मे तकरा
सबटाकँे बटौर’ लेल हड◌ब़ड◌◌़ी मिच जाइत छिन। एिह
मौकाक फायदा उठबैत चोर–उच ा-प◌ॉिकटमार
आ िभख-मगंनी कतारक सब स ँआगा ँजा’ कए ठाढ
भ’ जाइत छिथ।]
रदद्ी-बला : [जकर को कसान निह भेल छल-ओ मा म ी क’ रहल छल आ घटनास ँभरपरू आन ल’ रहल छल।] हे बाब–ू भैया लोकिन ! एकर आन निञ अिछ को जे “भूलल-भटकल कहनुा क’ कए घ ुिर आयल अिछ हमर बटआु”। [कहैत द ू
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डेग बढा’ कए नािचओ लैत’ छिथ।] ई जे बझुै छी जे अहाकँ धन अहीं कँे घ ुिर आयल... से सबटा फूिस िथक !
बीमा-बाब ू : (आ य र् होइत) आयँ ? से की ?
बाजारी : (गरा स ँगरा िमला कए) सबटा फूिस ?
भ - ि 1 : की कहै छी ?
भ - ि 2 : मा बटआु त’ भेटल, मुदा भीतर ढन–ढन !
रदद्ी-बला : से हम कत’ कहलह ुँ ? बटओु अहीं क आ पाइयो
छैहे! मुदा एखन बटआुक को काज रहत’ आ
पाइयेक!
बीमा-बाब ू : मा ?
रदद्ी-बला : मा निञ बझुिलयैक ? औ बाब ू! आयल छी सब
गोटे यमालय... ठाढ◌ ़छी ब दरब ाक साम ...
कतार स.ँ.. एक–दोसरा स ँजिूझ रहल छी जे के
पिहल ठाम मे रहत आ के रहत तकर बाद...?
तखन ई पाइ आ बटआुक कोन काज ?
भ - ि 1 : स ेत’! भीतर गेलह ुँ तखन त’ ई पाइ को काज
मे निह लागत !
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बाजारी : आयँ ?
भ - ि 2 : निह बिुझिलयैक ? दोसर देस मे जाइ छी त’ थोड◌◌़ े
चलैत छैक अपन पैया ? (आन लोग स ँ
सहमितक अपेक्षा मे-) छै िक निञ ?
रमणी-मोहन : (जेना दीघ र् मौनता के तोड◌◌़तै पिहल बेिर िकछु ढंग
केर बात बािज रहल छिथ एहन भंिगमा मे... एिह
स ँपिह ओ कखनह ु मी-युगलक लग जाय
िमका कँे िपयासल नजिर द’ रहल छलाह त’
कखनह ुिभख-मगंिनये लग आिब आिँख स ँतकर
शरीर कँे जेना पीिब रहल छलाह...) अपन िमका
जखन अनकर िबयाहल प ी बिन जाइत छिथ
तखन तकरा स ँकोन लाभ ? (कहैत दीघ र्- ास
ाग करैत छिथ।)
बीमा-बाब ू : (डाटँैत) हे...अहा ँचु रहू! क’ रहल छी बात
पैयाक, आ ई कहै छिथ प दय...!
रमणी-मोहन : हाय! हम त’ कहै छलह ुँ पा दय! (िभख-मगंनी
रमणी-मोहन लग सटल चिल आबै छैक।)
िभख-मगंनी : हाय! के िथकी पा ?
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रमणी-मोहन : “कािन-कािन व ािम प ािन रमणी च... !
बाजारी : मा ?
रमणी-मोहन : एकर अथ र् अ क गभंीर होइत छैक... अहा ँसन
बाजारी निह बझूत!
िभख-मगंनी : [ला करैत] हमरा बझुाउ !
[तावत िभख-मगंनीक भंिगमा देिख क -क िबह ुँसतै’ प◌ॉिकट–मार लग आिब जाइत अिछ।]
िभख-मगंनी : [कपट ोधे]ँ हँस ै िकयै छंे ? हे... (कोरा स ँपुतलाकँे
प◌ॉिकट-मारकँे थ बैत) हे पकड◌◌़ ूत’ एकरा... (कहैत
रमणी-मोहन लग जा कए) औ मोहन जी! अहा ँकी
कहलह ुँ , एखनह ुधिर भीतर मे एकटा छटपटी
मचल यै’! रमणी-धमनी कोन बात’ कहलह ुँ ?
रमणी-मोहन : धरू मखू र्! हम त’ करै छलह ुँ शकु लाक ग ,
म ोदरीक था... तो ँकी बझुबे ँ?
िभख-मगंनी : सबटा था केर गप बझुै छी हम... भीख मािंग-
मािंग खाइ छी, तकर मा ई थोड◌◌़,े जे हमर शरीर
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अिछ आ को था... ?
रमणी-मोहन : धत्ु तोरी ! अपन था–तथा छोड◌,़ आ भीतर की
छैक, तािह दय सोच ! (कहैत बदं दरब ा िदिस
देखबैत छिथ-)
प◌ॉिकट-मार : (अवाक् भ’ कए दरब ा िदिस देखैत) भीतर ? की
छइ भीतरमे... ?
रमणी-मोहन : (न ृ क भंिगमा करैत ताल ठोिक- ठोिक कए) भीतर?
“धा–िधन–िध ा... भरल तम ा !
तेरे-केरे-िधन-ता... आब निञ िच ा !”
िभख-मगंनी : (आ य र् भए) मा ? की छैक ई ?
रमणी-मोहन : (गव र् स)ँ ‘की’ निञ... ‘की’ निञ... ‘के’ बोल !
बोल- भीतर ‘के’ छिथ ? के, के छिथ?
प◌ॉिकट-मार : के, के छिथ?
रमणी-मोहन : एक बेिर अिह ारकँे पार कयले ँत’ भीतर भेटती
एक स ँएक सुर–नारी,उव र्शी–मेनका–र ा... (बाजैत- बाजैत जेना मँुहमे पािन आिब जाइत छिन--)
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िभख-मगंनी : ईः! रभंा...मेनका... ! (मँुह दसूतै) मँुह-झरकी
सब... ब र खसौ सबटा पर!
रमणी-मोहन : (हँसतै) कोना खसतैक ब र ? ब त’ छिन देवराज
इ लग ! आ अ रा त’ सबटा छिथ हनुकिह
न ृ ागंना।
[िभख-मगंनीक िति या देिख कैक गोटे हँस’ लगैत छिथ]
प◌ॉिकट-मार : हे....एकटा बात हम किह दैत छी – ई निह बझू ूजे
दरब ा खोिलतिह आनदंे आनदं !
बाजारी : तखन ?
बीमा-बाब ू : अहू ठाम छै अशािंत, तोड◌-़फोड◌,़ बाढ◌़ि◌ आ सखूार ?
आ िक चा िदिस छइ हिरयर, अकासस ँझहरैत
खशुी केर लहर आ मािटस ँउगलैत सोना ?
प◌ॉिकट-मार : िकएक ? जँ अशािंत, तोड◌-़फोड◌ ़होइत त’ नीक... की
बझूै छी, ए ह ुअहा ँजीवन–बीमा चलाब’ चाहै छी की ?
चोर : (एतबा काल उच ा स ँफसुुर-फसुुर क’ रहल
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छल आ ओ िह, दरब ा लग ठाढ◌ ़छल– एिह
बात पर हँसतै आगा ँआिब जाइत अिछ) मे
जीवन-बीमा ? वाह ! ई त’ ब नीक ग !
प◌ॉिकट-मार : देवराज इ ं क ब .. बोल ूकतेक बोली लगबै छी?
उच ा : प ह करोड◌!़
चोर : सोलह!
प◌ॉिकट-मार : साढे-बाईस!
बीमा-बाब ू : प ीस करोड◌!़
रमणी-मोहन : हे हौ! तो ँसब बताह भेलह ? क राजा केर ब ,
तकर बीमा हेतैक एक सय करोड◌ ़ स ँ कम मे ? [कतह ु स ँ एकटा लूक जोगाड◌ ़ क’ कए तािह पर चट दय ठाढ◌ ़भ’ कए-]
प◌ॉिकट-मार : बोल,ू बोल ूभाई-सब ! सौ करोड◌ ़!
बीमा-बाब ू : सौ करोड◌ ़एक !
चोर : सौ करोड◌ ़द ू–
रमणी-मोहन : एक सौ दस !
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िभख-मगंनी : सवा सौ करोड◌ ़!
चोर : डेढ◌स़ौ करोड◌.़..
िभख-मगंनी : पचपन –
चोर : सािठ –
िभख-मगंनी : एकसिठ –
[दनूकू आिँख–मँुह पर ‘टेनशन’ क छाप भ’ जाइत छैक। ]
चोर : (खौझंैत) एक सौ न .ै..
[एतेक बड◌क़ा बोली पर िभख-मगंनी चपु भ’ जाइत अिछ।]
प◌ॉिकट-मार : त’ भाई-सब ! आब अिंतम घड◌◌़ी आिब गेल अिछ –
190 एक, 190 द,ू 190...
[ठह ा पाड◌ि़◌ कए हँस’ लगलाह बाजारी, दनू ूभ ि आ रद ्दी-बला-]
प◌ॉिकट-मार : की भेल ?
चोर : हँ ीक मतलब ?
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बाजारी : (हँसतैे कहैत छिथ) हौ बाब ू! एहन मजेदार मोल-
नीलामी हम कतह ुनिञ देख छी !
भ - ि 1 : एकटा चोर...
भ - ि 2 : त’ दोसर िभख-मगंनी...
बाजारी : आ चलबै बला प◌ॉिकट-मार...
[कहैत तीन ूगोटे हँस’ लागै छिथ]
बीमा-बाब ू : त’ एिह मे कोन अचरज?
भ - ि 1 : आ कोन चीजक बीमाक मोल लािग रहल अिछ–
त’ ब केर !
भ - ि 2 : ब र खसौ एहन नीलामी पर !
बाजारी : (गीत गाब’ लागै’ छिथ)
चोर िसखाबय बीमा–मिहमा,
प◌ॉिकट-मारो करै बयान !
मार उच ा झाड◌ि़◌ लेलक अिछ,
पाट कपाट त’ जय िसयाराम !
दनु ूभ - ि : (ए िह सगंे) जय िसयाराम !
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[पिहल खेप मे तीन ूगोटे नाच’-गाब’ लागै छिथ। तकर बाद धीरे-धीरे बीमा बाब ूआ रदद्ी-बला सेहो सगं दैत छिथ।]
बाजारी : कौआ बजबै हंसक बाजा
भ - ि 1 : हंस गबै अिछ मोरक गीत
भ - ि 2 : गीत की गाओत ? छल बदनाम !
बाजारी : नाट-िवराटल जय िसयाराम !
समवेत : मार उच ा झाड◌ि़◌ लेलक अिछ।
पाट-कपाटक जय िसयाराम !
[तावत् नचैत नदंी- ं गीक वेश होइत छैक। दनुकू न ृ छलिन शास् ीय तथा मँुहमे बोलो तबलेक-]
नदंी : घर-घर–घरणी
ं गी : मर-झर जरनी
नदंी : डाहक छाहँ मे
ं गी : ाह िवशेष
नदंी : कपटक छट-फट
ं गी : बगलक दल-दल
नदंी : हलुिक-दलुिक कए
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ं गी : भेल अवशेष !
दनु ूगोटे : [ए िह सगं गबैत-नचैत त आिर स ँचह ुँ िदिस
लड◌◌़तै, अगिणत मुदा अद ृ यो ाक गर काटैत- ]
चाम-चिकत छी, भान- िमत छी
बेिर-बेिर बदनाम कूिपत छी
गड◌-़गड◌ ़िनगड◌ ़ई हर-पव र्त पर
तीन लोक चह ुँ धाम किथत छी
कपटक छट-फट ि कट िवकट कट
नट जट लट-कय अट-पट सशंय
नर-जर देहक बात िनशेष !
डाहक छाहँ मे ाह िवशेष !
[जखन गीत-नाद आ न ृ समा भ’ जाइत अिछ तखन नदंी एकटा टूल पर ठाढ◌ ़भ’ कए सब कँे सबंोिधत कर’ लागै छिथ।]
नदंी : [सभक दिृ -आकष र्ण करैत]
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सुन ूसुन ूसभटा भाइ-बहीन! नीक जका ँसुिन िलय’ आ जँ िकछु िजज्ञासा हो त’ सेहो पिूछ िलय’ [सब गोटे गोल भ’ कए ठाढ◌ ़भ’ जाइत छिथ।]
ं गी : हम सब जे िकछु कहब से अिह लेल कहब
ज री अिछ, जे आब दरब ा खोिलतिह ओिह पार जैबाक मौका भेटत सबकँे। मुदा ई जानब ज री अिछ जे ओिह पार अहा ँलेल की अिछ तीक्षा करैत! (बाजैत सभक िदिस देिख लैत छिथ।) अहा ँसब ज छी ,की छैक ओिह पार?
चोर : !
प◌ॉिकट-मार : नरक!
िभख-मगंनी : अकास!
रदद्ी-बला : पाताल!
नदंी : ो परूापरूी ठीके बाजल... आ ो गलते
बात कहल !
ं गी : ई सबटा छैक ओिह पार– ए िह ठाम, ए िह
ान पर...
नदंी : आब ई त’ अहा ँसभक अपन-अपन कृतकम र्क फल
भेटबाक बात िथक... ककरा भागमे की अिछ...
बाजारी : (टोकैत) से के कहत ?
नदंी : महाकाल!
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ं गी : ककरह ुभेटत ढेर रास काज त’ ककरह ुलेल रहत
कतेको धा र्...! ो समय बीताओत न ृ -गीत,
का -कलाक सङे, आ ो एिह सबस ँदरू
रहत गभंीर शोध मे लागल !
नदंी : ककरह ुलेल रहत पु –श ा...त’ ककरह ु
एखनह ुँ चलबाक अिछ काटँ पर दय... !
बीमा-बाब ू : से कोना?
नदंी : देख ू! ई त’ अपन-अपन भा जे एत’ अहा-ँलोकिनमे
बहतु क ेगोटे एहन छी जे सपंणू र् उमिर
जीबाक बाद तखन एत’ हािजर भेल छी। ो बजार स ँघरुैत काल गाड◌◌़ी तर कुचलल गेल छी (बाजारी हाथ उठबैत आ कहैत “हम...हम...” ) त’ ो चोिर करै काल पकड◌◌़ा गेलह ुँ आ गाम-घरक लोग पीिट-पीिट कए पठा देलक एत’! (चोर ई सगंक आरभं होइतिह ससिर कए पड◌य़बाक चे ा क’ रहल छल त’ ओकरा द-ूतीन गोटे पकड◌ि़◌ कए “हे ई िथक ...इयैह... !” आिद बजलाह) ो अितिर ता आ काजक टेनशन मे अ भेल छलह ुँ (दनु ूभ ि मा हाथ उठबैत छिथ जेना लूी छा सब कक्षामे हािजरी लगबैत अिछ), त’ ो रेलक
पटरी पर अपन अिंतम क्षण मे आिब पह ुँचल छलह ुँ (रदद्ी बला आ िभख-मगंनी बाजल “जेना िक हम!” अथवा “हमरो त’ सहै भेल छल”। कतेको कारण भ’ सकैत छल।
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[बाजैत बाजैत चािरटा मतृ सिैनक मुइलो पर िविच जका ँमाच र् करैत करैत मचं पर आिब जाइत छिथ।]
बीमा-बाब ू : (चा गोटे कँे देखबैत) आ ई सब ?
नदंी : समय स ँपिहनिह, को को सीमामे....
घसुपैठीक हाथे ँनिह त’ लड◌◌़ाई केर मैदानमे... !
मतृ सिैनक : (समवेत रे)ँ लड◌◌़ाईक मैदानमे... !
बीमा-बाब ू : बझुलह ुँ ! मुदा...
नदंी : मुदा ई निह बझुलह ुँ जे बीमाक काजकँे छोड◌ि़◌ कए
अहा ँएत’ िकएक आयल छी?
बीमा-बाब ू : हम सब त’ सिदखन नव-नव माकेर्टक खोजमे
कतह ुपह ुँ िचये जाइ छी, एतह ुतिहना बझू.ू.. !
ं गी : बझुलह ुँ निह...आब एतेक रास बीमा कंपनी आिब
गेल अिछ जे ई बेचारे...
[तावत् नदंी- ं गीक चा कात जमा भेल भीड◌ ़ओिह पार पाछा ँिदिस स ँ एकटा खलबली जका ँ मिच गेल। पता चलल दनु ू मी आपस मे झगड◌◌़ा क’ रहल छल। रा ा बनाओल गेल त’ ओ दनु ूसाम आिब गेल।]
नदंी : (जेना म ता क’ रहल छिथ) की बात िथक ?
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हमरो सब कँे त’ बझू’ िदयह!
िमका : देख ू ... जखन दनु ूगोटेक पिरवार िब लु मान’
लेल तैयार निञ छल हमरा दनुकू सबंधं तखन...
मी : तखन िमिल कए िवचार कै छलह ुँ जे सगंिहसगं
जान द’ देब...
िमका : सहै भेल, मुदा….
नदंी : मुदा ?
िमका : मुदा आब ई किह रहल छिथ...िहनका घ ुिर जैबाक
छिन...
मी : हँ...हम चाहै छी एक बेर आर जीबाक यास करी।
मुदा ई निह घरु’ चाहै छिथ।
िमका : हँ, हम निञ चाहै छी जे ध ुिर जाइ... !
रमणी-मोहन : (अगुआ कए िमका लग आिब कए) निञ जाय
चाहै छिथ त’ रह िदयौक ... हम त’ छीहे ! (कहैत
आर आगा ँबढ◌ब़ाक यास करैत’ छिथ।)
ं गी : धत् ! (रमणी-मोहन कँे ितर ार करैत) अहा ँहँटू
त’... ! आ चपु रहू !
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नदंी : मुदा ई त’ अहा ँदनु ूगोटे हमरा दनु ूकँे धम र्-सकंट
मे पह ुँचा देलह ुँ।
ं गी : आ घरुबे िकयै’ करब ?
मी : एक बेर आर यास करी, जँ हमर दनुकू िववाहक
लेल ओ लोकिन राजी भ’ जािथ।
ं गी : ओ– ई बात ?
नदंी : त’ एकर िनदान त’ सहजँे क’ सकै छी हम सब?
िमका : से कोना ?
ं गी : िकछुओ निह...बस, छोट-छीन- ‘ऐि डंेटे’ करबा
िदय आ ल’ आन ूदनु ूजोड◌◌़ी माय-बाप कँे
एतिह...यमालय मे...
मी : निह-निह !
िमका : से कोना भ’ सकै छइ ?
मी : हम सब निञ चाहब जे हमरा सभक लेल हनुको
लोकिनक ाण हरल जाइन।
नदंी : तखन त’ एकिह टा उपाय भ’ सकैत अिछ।
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मी- िमका : (ए िह सगंे)ँ की ? कोन उपाय ?
ं गी : इयैह...जे अहा ँदनुकू िववाह...
नदंी : एतिह क’ देल जाय...
[सब स भ’ जाइत छिथ – तः सभक दिु ा दरू भ’ जाइत छिन। िमका लजा’ जाइत छिथ, मी सेहो स , मुदा क क शिंकत सेहो-]
ं गी : खाली इयैह सोच’ पड◌त़’ जे क ादान के करत...?
बाजारी : (आगा ँबढ◌़ि◌ कए) आ हम त’ छी ! (कहैत
िमकाक माथ पर हाथ रखैत छिथ; हेक
आभास– िमका झ ुिक कए हनुक पैर धबूैत
छिथ।)
ं गी : बस आब दरकार खाली ढोल-िपपही आ बाजा–
गाजा... !
नदंी : सेहो भ’ जेतैक... !
[दनु ूहाथ स ँतीन बेर ताली दैत छिथ। एकटा कतार स ँढोल–िपपही-बाजा बजौिनहार सब आबैत छिथ आ बाजा-बजब’ लागै
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छिथ। सबटा पा हनुके सभक पाछा-ँपाछा ँ एकटा पिं मे चलैत-नाचैत, आन करैत बाहर चिल जाइत छिथ।]
[मचं पर रिह जाइत छैक मा बदं िवशाल - ार ! ◌ॉट-लाईट दरब ा पर पड◌◌़तै अिछ आ अ ार भ’ कए थम क ोलक समाि क घोषणा करैत अिछ।]
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( मश:)
( मश:)
2.शोध लेख
मायान िम क इितहास बोध (आगँा)
थम ंशलै पु ी च/ म ं पु / /पुरोिहत/ आ' स् ी-धन केर सदंभर्मे
ी मायाना िम क ज सहरसा िजलाक ब िनया गाममे 17 अग 1934 ई.कँे भेलि । मैिथलीमे एम.ए. कएलाक बाद िकछु िदन ई आकाशवानी पटनाक चौपाल स ँसबं रहलाह । तकरा बाद सहरसा क◌ॉलेजमे मैिथलीक ा ाता आ’ िवभागा क्ष रहलाह। पिह मायान जी किवता िलखलि ,पछाित जा कय िहनक ितभा आलोचना क िनबधं, उप ास आ’ कथामे सेहो कट भेलि । भा लोटा, आिग मोम आ’ पाथर आओर च -िब -ु िहनकर कथा स ं ह सभ छि । िबहाड़ि◌ पात पाथर , म ं -पु ,खोता आ’ िचडै आ’ सयूा र् िहनकर उप ास सभ अिछ॥ िदशातंर िहनकर किवता स ं ह अिछ। एकर अितिर सो की ा माटी के लोग, थम ंशलै पु ी च,म ं पु , पुरोिहत आ’ स् ी-धन िहनकर िह ीक कृित अिछ। म ं पु िह ी आ’
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मैिथली दनु ूभाषामे कािशत भेल आ’ एकर मैिथली स ं रणक हेतु िहनका सािह अकादमी पुर ारस ँस ािनत कएल गेलि । ी मायान िम बोध स ानस ँसेहो पुर तृ छिथ। पिह मायान जी कोमल पदावलीक रचना करैत छलाह , पाछा ँजा’ कय योगवादी किवता सभ सेहो रचलि ।
थम ंशलै पु ी च/ म ं पु / /पुरोिहत/ आ' स् ी-धन केर सदंभर्मे
मायान िम जी सािह कारक दिृ कोण रिखतिथ आ’ पा ा इितहासकारक ग◌ॉिसपस ँबिचतिथ तँ आय र् आ मणक िस ातंकँे नकािर सिकतिथ। सर तीक धार ऋगवेदक सभ मडंलमे अपन िवशाल आ’ आ ादकारी पक सगं िव मान अिछ। िस ुआिक सर ती नदी घाटीक स ता तखन खतम आिक ासक ि ितमे आएल जखन सर ती सुखा गेलीह। अथव र्वेदमे सेहो सर ती जलमय छिथ। ऋगवेदमे जल- लयक को चच र् निह अिछ, आ’ अथव र्वेदमे तािह िदिश सकंेत अिछ। भरतवासी जखन पि म िदिश गेलाह, तखन अपना सगं जल- लयक िख ा अपना सगं ले गेलाह। जल- लयक बाद भरतवासी सार त देशस ँ पबू िदिश कु -पाचंालक िष र् देश िदिश आिब गेलाह।
सर ती रिहतिथ तँ बात िकछु आर होइत, मुदा सुखायल सर ती एकटा िवभाजन रेखा बिन गेलीह, आय र्-आ मणकारी िस ातंवादी लोकिनकँे ओिह सुखायल सर तीकँे लघँनाइ असभंव भ’ गेल।
िस ुिलिपक िववेचन सेहो िबना ा ीक सहायताक सभंव निह भ’ सकल अिछ।
ि िफथक ऋगवेदक अ वादक पादिट णीमे पिहल बेर ई आशकंा क् कएल गेल जे आय र् आ मणकारी पि मो रस ँ आिब कए मलू िनवासीक द ु तोड़लि । द ु मे रहिनहार बेशी स रहिथ। 1947 मे ीलर ई िस ातं ल’ कए अएलाह जे िवभािजत पािक ान स ताक के छल आ’ आय र् आ मणकारी िवदेशी छलाह। एकटा भारतीय
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िव ान राम साद चदं तािहस ँपिह ई किह दे रहिथ, जे एिह नगर सभक िनवासी ऋगवेदक पिण छलाह। मुदा माश र्ल 1931 ई मे ई नव गप कह छलाह जे आय र्क भारतमे वेश 2000 ई.पवू र् भेल छल, आ’ तावत हड़ ा आ’ मोहनजोदड़◌ोक िवनाश भ’ चकुल छल। 1934 मे ग◌ॉडर्न चाइल्ड कहलिन जे आय र् आ मणकारी सभंवतः भ’ सकैत छिथ। 1938 मे मक◌ॉय मोहनजोदाड़◌ोक आ मणकँे नकारलि , िकछु अि प ड़क आधार पर एकरा िस कएनाय सभंव निह। डे 1964 मे एकटा िनब िलखलि ‘द िमिथकल मसेकर ऑफ मोहंजोदाड़◌ो’ आ’ आ मणक दतंकथाक उपहास कएलि ।तकर बाद ीलर 1966 मे िकछु पाछँा हटलाह, मुदा मक◌ॉयक कबायलीक बदलामे सभटा आ मणक िज ेदारी बाहरा आय र्गण माथ पर पटिक देलि । आब ओ’ कहए लगलाह जे आय र् आ मणकँे िस निह कएल जा’ सकैत अिछ, मुदा जौ ँई सभंव निह अिछ, तँ असभंव सेहो निह अिछ। आुट र् िपग◌ॉट 1962 तक ीलरक सगं ई दरुा ह करैत रहलाह। िपग◌ॉट आय र्कँे िमत ीस ँआएल कहलि । न◌ॉम र्न ाउनकँे सेहो पजंाब देशक शेष भारतक सगं सा ं िृतक सबंधंक सबंधंमे शकंा रहलि । स ं तृ आ’ िवड़ भाषाक अमेिरकी िवशेषज्ञ एमे िलखलि जे िस ुघाटी कख शेष भारतस ँतेना भ’ कए सा ं िृतक पस ँजड़ुल निह छल। जे आय र् ओतय अएलाह सेहो ईरानी स तास ँबेशी लग छलाह।
मुदा प◌ॉिजर्टर 1922 मे भरत सािहि क पर रास ँ िस कएलि जे भारत पर आय र्क आ मणक को माण निह अिछ। ओ’ िस कएलि , जे भारतस ँआय र् पि म िदिश गेलाह आ’ तकर सािहि क माण उपल अिछ। लैगंडन सेहो कहलि जे आय र् भारतक ाचीनतम िनवासी छलाह आ’ आय र्भाषा आ’ िलिपक योग करैत छलाह। ि जेट आ’ रेम ऑलिचन आ’ कौलीन रेन ीव आिद िव ान ाचीन भारतक पवूा र् ह िव षेण कए छिथ।
िमत ी शासक िम , व ण, इ आ’ नास क उपासक छलाह। िह ी रा मे सेहो वैिदक देवता लोकिनक पजूा होइत छल।आल ाइट आ’ लैबंिडन सेहो द ूहजार
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साल पिह दिक्षण-पि म एिशयामे इडंो आय र् भाषा बाजल जाइत छल आ’ स ं ासोचक श सेहो भारतीय छल।
ई लोकिन भारतीय छलाह आ’ ऋगवेदक रचनाक बाद भारतस ँ बाहर गेल छलाह। बहवुचन स् ीिलगं प ऋगवेदक देवगणक िविश प अ उपल निह अिछ। इडंो योरोिपयन देवतं मे भारतीय देवीगणक िवरलता पवू र्व ीर् भारतीय मा स ा क व् ाक बादक योरोपीय परव ीर् िप स ा क व ाक पिरचायक अिछ।
आब आऊ सुमेरक जल लय पर, जेिक 3100 ई.प.ू मे मानल जाइत अिछ। भारतीय किल सवंत 3102 ई.प.ू मानल जाइत अिछ। अतः एिह ितिथस ँ पवू र् ऋगवेदक पणू र् रचना भ’ गेल छल।
(अ वतर्ते)
3.उप ास
सह बाढ़िन -गजे ठाकुर
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“काका यौ, हम निह लगेिलअि कबकबाउछ”। ई गप कहैत हमर आिँखमे र आिब गेल छल। बनाइकँे िकछु गोटे छौड़◌ा सभ दलान पर सुतलमे कबकबाउछ लगा’ दे छलि । कलम िदिशस ँखेला-कुदा कए सभ आिब रहल छल। महारक कातमे कबकबाउछक पात तोड़लक, आ’ एकर पातकँे चमड़◌ा पर रगड़लास ँहोयबला पऋणाम पर चचा र् होमय लागल। ो अपन चमड़◌ा पर लगेबाक हेतु तैयार निह छल से दलान पर बनाइकँे सुतल देिख हनुके देह पर पात रगड़ि◌ देलकि । पाछासँ ँहम अबैत छलह ुँ आ’ सभ छौड़◌ातँ िनप ा भए गेल, बनाइक नजिर हमरा पर पड़लि । से ओ’ काकाकँे किह देलिख । काका हमर को गप निह सुनलि आ’ दस बेर कान पकड़ि◌ कए उ ा-बैसी करबाक सजा भेटल। सगंिह साझँमे सगंी सभक सगं खेलेबाक बदला काका आ’ हनुक भजार सभक सगं खेत पथारक िदिश घमूबाक िनण र्य भेल जािहस ँहमर बदम ी कम होय।
बाढ़ि◌क समय छल।नाओ पर बािढक द ृ आ’ िस ीक िशकार। बादमे तँ एकर िशकार पर सरकार ितबधं लगा’ देलक। मुदा मोन हमर टागँल रहल गाम परक कि त खेल सभक िदिश, जे हमर सभक सगंी सभ खेलाइत होयताह। ई छल पिहल िदन।
दोसर िदन बे पहर धिर हम एिह ाशामे छलह ुँ , जे आइ फेरस ँकाकाक सगं जाए पड़त। ओना सगंी सभकँे हम ई भास निह होमय देिलयैक जे हम एको र ी िचि त छी, आ’ नाओ आ’ िस ीक िख ा सभ त यतास ँसु त रहलाह। मुदा हमर मुखाकृित देिख कए काका पुछलि , जे आइ हमरा सभक सगं जएबाक मोन निह अिछ? तँ हम निञ निह किह सकिलयि । मुदा फेर अपनाकँे स ारैत कहिलयि , जे मोन तँ गामे पर लगैत अिछ। तखन काकाकँे व्दया लािग गेलि , आ’ एिह ितब क सगं की हम बदम ी निह करब हमरा गाम पर रहबाक छूिट भेिट गेल।
गाममे डेढ़ साल धिर रहलह ुँ , आ’ जखन बाबजूीक ासंफर पटना भ’ गेलि , तखन बड़का भैयाक सगंे पहलेजाघाट आ’ महे ूघाट द’ कए पटना आिब गेलह ुँ। ओतय
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लू सभमे वेश परीक्षा होइत छल आ’ बाबजूी भायकँे छठास ँसतमाक हेतु आ’ हमरा पचँमास ँ छठा आ’ सतमा दनु ू व क हेतु वेश परीक्षामे बैसओलि । आ’ तकरा बाद हमरा बझुायल जे िकएक हमरा बाबजूी पचमेमे छठाक िवज्ञान आ’ गिणत पढ़ि◌ लेबाक हेतु कह छलाह। वेश परीक्षामेमे ईएह दनु ू िवषय पछूल जाइत छल।
अ ु हमरा छठा आ’ सतमा दनु ू व क हेतु आ’ भाएकँे सतमाक हेतु चयन िजला लूमे भए गेल। फेर शहरक सरकारीयो लूमे स छलैक। से दनु ूगोटे
बाबजूीक सगं दोकान गेलह ुँ आ’ स िसयाओल गेल, द-ूद ूटा हाफ पैटं आ’ एक-एकटा अगंा। लूक पिहलुके िदन मािर होइत-होइत बचल। एकटा चौड़◌ा हमरा देहाती कहल तँ से तँ हमरा को खराप निह लागल। ओिह उ मे देहाती श हमरा नीके लगैत छल, मुदा आइ सोचैत छी तँ ओ’ ई श ं ा क पे ँकह छल। फेर जखन ओ’ देखलक जे ई तँ निह खौझँायल तखन बगंाली-बगंाली कहनाइ शु कएलक। हम दनु ूभाइ पातर दबुर आ’ शु -शा िच न-चनुमुन लगैत छलह ुँ , तािहओ ारे ओ’ हमरा सभकँे बगंाली बिुझ रहल छल। हम ई ं निह सुिन सकलह ुँ , आ’ ओकरा िदिश मार-मार कए छुटलह ुँ। भाइ बीच-बचाओ कएलक।
(अ वतर्ते)
4.महाका
महाभारत –गजे ठाकुर(आगँा) ------
2.सभा पव र्
सतंोष भेलि पा व-जनकँे ई सुिन,
कथा धतृराष् क घरुलाह इ पुिन।
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दयुो र्धन दःुिखत म ं णा कएल शकुिनस,ँ
सगं दःुशासन कण र्क म ं णा फेर जआुक,
िवनाशक हि नापुरक छल बेर खराप।
एिह बेरक िनयम राखल हारत जे से करत,
बारह वष र्क वनवास आऽ एक वष र् अज्ञातवास।
धतृराष् दतू पठाओल हि नापुर फेर।
युिधि र घरुलाह भायक सगं बेर-अबेर,
सुनाओल गेल श र् सभ रोकल एक बेर।
मुदा भा राजक आगा ँककर अिछ चलल,
निह मानल कएल युिधि र भा क खेल।
चिल फेर पासा दयुो र्धनक,वैह खेरहा,
फंेिक गोटी िजताओल शकुिन ओकरा।
हािर हारल रा , पाओल छल बनबास,
युिधि रक भा चािल कुचािलक जीत,
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रा क िनण र्य जआुक गोटीक सगंीत,
की होएत से निञ जािन सु अकास।
३. वन पव र्
धम र्राज सभ हािर,
चलल फेर वैह पथ,
धम र्क आ’ शाि क,
छोड़ि◌ सभ िबसािर।
माता कु ी छिल व ृ ा भेिल कहल,
कहल धम र्राज निञ जाऽ सकब अहा,ँ
िवदरु काक केर घर जा’ रहब,
जाएब कम र् भोगए हम सभ।
ौपदीक पाचूँ पु आ’ पु अिभम कु,
सुभ ा जएतीह अपन हर ारकापुर।
धौ क पुरिहत सगं ौपदी आऽ चा भाए,
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काटब हम सगं तेरह वष र्क वनवास जाय।
नगरवासी सुिन गमनक ई समाचार,
कएलि दरु-्दरु दयुो र्धनक अ ाचार।
जाएब हमह ुँ सभ सगं,धम र्राज आइ,
धम र्राज घरुाओल सभकँे बझुाए जाए।
सभ घ ुिर गेल मुदा,निह घरुल ा ण जन,
पुरिहत कहलि उपासना सयू र्क एिह क्षण।
वैह दैत छिथ अ -फल सम आय र्,
उपासनाक उपरा गट भेलाह सयू र्।
देलि अक्षय पा निह कम होयत अ ,
ौपदी सभ ा णकँे आऽ पा वकँे खोआबिथ,
फेर खािथ, सभ अघािथ, निञ होए खतम,
जखन निञ होए खतम पा स ँखा ा ।
युिधि र पह ुँ िच सर ती धारक कात,
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का क वनमे कएलि िनवास।
एिह बीच सु त पा व- शसंा मँुहस ँिवदरुक,
धतृराष् िनकािल हटाओल िवदरुकँे दरबार-म ।
ओहो आिब लगलाह रहए का कवनमे,
पुिन पठाओल धतृराष् ओतए सजंयकँे।
पा व-जनक बझुओला उ र िवदरु,
धतृराष् सगँ गेलाह पुिन दरबार घ ुिर।
ऋिष-मुिनक स गंस ँलैत िशक्षा आऽदीक्षा,
सु त छलाह कथा सिरता नल दमय ीक,
अगस् क,ऋिष ृगं,अ ाव क,लोपामु ाक।
कृ आिब बझुाओल ास अएलाह,
ास कहल यु क हेतु क तै ारी,
िब इ क अमोघ िशवक पाशुप ाह,
कोना लड़ब सगं भी ोण महारथी।
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(अ वतर्ते)
5. कथा
9. पसीधक काटँ
मीत भाइक िख ा की कहब। गामस ँिनकललिथ करी करबाक हेतु मुदा यावत लाल काकाक लग रहलाह तावत क त-क त हनुका अक क’ देलिख ।
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मीत भाइ गाममे रहिथ तँ पसीधक काटँक रस पोखड़ि◌मे द’ कए पोखिरक सभटा माछँ मािर देिथ।
एक बेर पुबाड़ि◌ टोलक को ब ाक मोन खराप भेलैक तँ िहनका स ँ अएलि पुछबाक हेतु जे कोन दबाइ िदयैक। मीत भाइ पसीधक काटँक रस िपयाबय कहलिख । फेर महँीस चरेबाक हेतु डीह िदिश चिल गेलाह। एक गोट दोसर महँीसबार गाम परस ँअबैत देखा’ पड़लि तँ पुछलिख जे हौ बाउ, पुबाड़ि◌ टोल िदिश स ँको क ारोहटो सुिन पड़ल छल अबैत काल? बझु।ू ओ’ तँ धन रहल जे मरीजक बापकँे र ामे ो भँेिट गेलैक आ’ पिूछ देलकैक, निह तँ अपन ब ास ँहाथ धोबय जा’ रहल छल।
फेर मीत भाइ कंठी ल’ लेलि , मुदा घरमे सभ ो माछँ खबू खाइत छलि । एक बेर भोरे- भोर खेत िदिश कोदािर आ’ िछ ा लए िबदा भेलाह मीत भाइ। ब ु ा-बा ी होइत छल, मुदा आड़ि◌कँे तड़पैत एकटा पैघ रोहकँुे देिख कए कोदािर चला देलि आ’ रोह ुद ूकु ी भ’ गेल। दनु ूट्कड़◌ीकँे माथ पर उठा कए िवदा भेलाह मीत भाइ गाम िदिश। तकरा देिख गोनर भाय गाम पर जाइत काल बाबा दोगही लग ठमिक कए ठाढ़ भए गेलाह, मोनमे ई सोचैत जे वै व जीस ँरोह ुकोना कए
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लए ली। आ’ ‘बाबा दोगही’ मीत भाइक टोलकँे गौआँ सभ तािह हेतु कहैत छल, जे ो ब ो जे ओिह टोलमे जनमैत छ्ल से सबंधंमे गौआँ सभक बाबा होइत छल।
“यौ मीत भाइ। ई की कएलह ुँ। वै व भ’ कए माछ उघैत छी”।
”यौ माछा खायब छोड़ िछयैक। मारनाइ तँ निञ ”।
अपन सनक मँुह लए गोनर भाइ िवदा भए गेलाह।
से एक िदन गोनर झा टेलीफोन डायरी देिख रहल छलाह, तँ हनुका देिख मीत भाइ पुछलिख , “की देिख रहल छी”।
गोनर झा कहलिख जे “टेलीफोन नबंर सभ िलिख कए रख छी, तािहमे स ँएकटा नबंर तािक रहल छी”।
“ आ’ जौ ँबाहरमे र ामे कतह ुपुिलस पिूछ देत जे ई की रख छी तखन”।
“ ऐ ँयौ से की कहैत छी। टेलीफोन नबंर सभ सेहो लोक निह राखय”।
”से तँ ठीक मुदा एतेक नबंर िकएक रख छी पुछला पर जौ ँजबाब निह देब तँ आतंकी बिुझ जेलमे निह धए देत”।
”से कोना धए देत। एख हम एिह डायरीकँे टकुड़◌ी-टकुड़◌ी क’ कए फंेिक दैत िछयैक”।
आ’ से किह गोनर भाइ ओिह डायरीकँे पाड़-फूड़ि◌ कए फंेिक देलिख ।
एक िदन मीत भाए भोरे-भोर पोखड़ि◌ िदिश जाइत रहिथ तँ जग ाथ भेटलिख , गोबड़ काढ़ि◌ रहल छलाह। कहलिख ,” यौ मीत भाइ, अहँू सभकँे भोरे-भोर गोबड़ काढ़य पड़◌तै अिछ ?”
मीत भाइ देखलि जे हनुकर किनयो ठाढ़ि◌ छलिख से एखन िकछु कहबि तँ लाज होएति , से िब िकछु कह आग ू बढ़ि◌ गेलाह। जखन घरुलाह तँ एका
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पािब जग ाथकँे पुछलिख , “भाइ, पिह िबयाहमे पाइ देबय पड़◌तै छलैक, से अहाकँँे सेहो लागल होयत। तािह ारे उमिरगरमे िबयाह भेल”।
”हँ से तँ पाइ लागले छल”।
”मुदा हमरा सभकँे पाइ निह देबय पड़ल छल आ’ तािह ारे गोबरो निह काढ़य पड़◌तै अिछ, कारण किनया ँओतेक दलुा निह अिछ”।
एक बेर ब ा बाबकू ओिहठाम गेलाह मीत भाइ। ओ’ पैघ लोक आ’ तँे ब कँजसू। पिह तँ सद र्मे गुरस ँहोएबला लाभक चच र् कएलि , जे ई ठेही हँटबैत अिछ आ’ फेर गरूक चाह पीबाक आ ह। मुदा मीत भाए किह देलिख जे गुरक चाह तँ हनुको ब नीक लगैत छि , मुदा प का ँजे पुरी जग ाथजी गेल छलाह से को एकटा फल छोड़बाक छलि से कुिसयार छोड़ि◌ देलि , आ’ तकरेस ँ तँ गुर ब त छैक। ओिह समयमे चकु रक पातर रिसयन चीनी अबैत छल, से ब ा बाबकँूे तकर चाह िपआबय पड़लि ।
िकछु िदन पिह ब ा बाब ूएिह गपक चच र् कए छलाह जे ओ’ जोमनी छोड़◌् छलाह तीथ र् ानमे आ’ तै ँजोम खाइत छलाह। हरजे की एिहमे। मीत भाइ खबू जबाब देलि ऐ बेर एिह बातक। अिधक फलम ्डबूाडबूी।
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मीत भाइक बेटा भािग गेलि । पुछला पर कोढ़ फािट जाइत छलि ।
“यौ, लाल काका िबयाह तँ करा’ देलि , मुदा तखन ई कहा ँकहलि जे िबयाहक बाद बेटो होइत छैक”।
आब मीत भाइ बेटाकँे ताकए लेल आ’ अपना लेल करी सेहो िद ीक र ा धेलि ।
मुदा एिह बेर तँ मीत भाइ फेरमे पड़ि◌ गेलाह। जख दरभंगास ँ न आग ूबढ़ल तँ सर ती मदं पड़ए लगलि । क क न आग ूबढ़ल तँ एकटा बढ़ू◌ी आिब गेलीह, मीत भाइकँे बचहो देखलि तँ कहए लगलीह
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“बौआ क क सीट निञ छोड़ि◌ देब”।
तँ मीत भाइ जबाब देलिख ,
“मा।ँ ई बौआ निह। बौआक तीन टा बौआ”।
आ’ बढ़ू◌ी फेर सीट छोड़बाक लेल निह कहलिख ।
मीत भाइ मुगलसराय पह ुँचैत पह ुँचैत िशिथल भए गेलाह। तख पुिलस आयल बोगीमे आ’ मीत भाइक झोड़◌ा-झपटा सभ देखए लगलि । तािहमे िकछु निह भेटलैक ओकरा सभकँे। हँ खेसारी सागक िबड़ि◌या बना कए किनया ँ स सक हेतु दे रहिथ लाल काकीक हेतु। मुदा पुिलसबा सभ लोिक लेलकि ।
”ई की छी”।
”ई तँ सरकार, छी खेसारीक िबड़ि◌या”।
”अ ा, बेकूफ बझुैत छी हमरा। मोहन िसहं बताऊ तँ ई की छी”।
” गाजा छैक सरकार। गजेरी बझुाइत अिछ ई”।
”आब कहू यौ सवारी। हम तँ मोहन िसहंकँे निह कहिलयैक, जे ई गाजा छी। मुदा जँे तँ ई छी गाजा, तँे मोहन िसहं से कहलक”।
”सरकार िछयैक तँ ई िबड़ि◌या, हमर किनया ँस स ब लक अिछ लाल काकीक..........”
” ल’ चल ूएकरा जेलमे सभटा किह देत”। मोहन िसहं कड़कल।
मीत भाइक आिँखस ँ दहो-बहो र बहय लगलि । मुदा िसपाही छल बझु क। पुछलक
“कतेक पाइ अिछ सगँमे”।
िद ीमे शेनस ँलालकाकाक घर धिर द ूबस बदिल कए जाए पड़◌तै छैक। से सभ िहसाब लगा’ कए बीस टाका छोड़ि◌ कए पुिलसबा सभटा ल’ लेलकि । हँ खेसारीक िबड़ि◌या धिर छोड़ि◌ देलकि ।
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