vipreet maha pratyangira strotam

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1 विपरीत यिरा-विधानम् एिम् विपरीत यंगिरा तोम् भाषा टीकोपेतम् ।।सपादक।। भििवत चरणारविद मधुप डाजिदीश नारायण नायक ''सनाඃ''

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परम्परा से प्राप्त इस दुर्लभ ग्रंथ का शुद्ध रूप से कम्प्युटरीकृत कर के प्रकाशित किया जा रहा है।इस ग्रंथ केशब्दों का अर्थ अति गूढ‌ है,इसकी विमर्शिका शीघ्र ही लोकार्पित की जयेगी। प्रस्तोता:- भगवतिचरणारविंद मधुप डा.जगदीश नारायण नायक -सनाढ्यemail: [email protected] : +919793616689

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Page 1: vipreet Maha Pratyangira Strotam

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विपरीत परतयङगिरा-विधानम

एिम

विपरीत परतयगिरा सतोतरम

भाषा टीकोपतम ।।समपादक।।

भििवत चरणारविनद मधप

डा.जिदीश नारायण नायक ''सनाढय''

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।। शरी िणशाय नमः ।।

धयानम

खि कपाल डमरम वतरशल समबिभरतीम चनरकलाितसा ।

वपिोरधिवकशोऽससत भीमदषटरा भयाद विभतय मम भरकाली ।।

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खडग ,कपाल, डमर तथा वतरशल को धारण करन िाली दिी भरकाली, जजनक मसतक म चरकला सशोभभत ह, जजनक कश पील

एिम ऊपर को उठ हए ह तथा जजनक दाात िड भयङकर एिम अससत

िणव क ह, हमारा कलयाण कर।

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विपरीत परतयङगिरा - सतोतर विधानम

(मातका समपवटतम) विगनयोि: ---

ॐ असय शरी विपरीत-परतयङगिरा मतरसय भरि ऋवष: अनषठप छद:शरी विपरीत परतयङगिरा दिता ममाऽभीषठ ससधयथव जप पाठ च विगनयोि:।

दावहन हाथ म जल लकर, 'ॐ असय विपरीत परतयङगिरा मतरसय' स 'जप पाठ विगनयोि:' तक मतर को पढ कर हाथ का जल भभम या वकसी पातर म छोड।अथिाा किल मतर का पाठ कर

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।।करनयास:।। "ॐ ऐ अिषठाभयाम नम: ।" स दोनो अिठ का सपषव कर। " ॐ ही तजवनी भयाम नम:।" स तजवनी अिली का सपषव कर।

"ॐ शरी मधयमा मभयम नम:।" स मधयमा अिली का सपषव कर।

" ॐ परतयङगिर अनाभमकाभयाम नम:।" स अनाभमका अिली का सपषव कर।

" ॐ मा रकष रकष कगनवषठकाभयाम नम:।" स कगनवषठका अिली का सपषव कर।

" ॐ मम शतरन भञजय भञजय करतलकरपषठाभयाम नम:।" स दोनो हाथो की हथललयो एिम उनक पषठ भािो का सपषव कर।

।।हदयाङगद नयास: ।।

" ॐ ऐ हदयाय नम:।" स हदय का सपषव कर।

" ॐ ही भशरस सवाहा ।" स ससर का सपषव कर।

" ॐ शरी भशखाय िषट ।" स भशखा का सपषव कर।

" ॐ परतयङगिर किचाय हम ।" स दोनो हाथो की भजाओ का सपषव कर।

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" ॐ मा रकष रकष नतरतरयाय िौषट ।" स दोनो नतरो का सपषव कर ।

" ॐ मम शतरन मञजय भञजय असराय फट ।" को पढकर दावहन हाथ की तजवनी और मधयमा अिली स िााय हाथ स ताली िजा दि ।

।।ङगदगिनध:।।

" ॐ भभवि:सव:" इवत ङगदगिनध: मतर पढ कर सभी ङगदशाओ म चटकी िजाय ।

।।जप मतर:।।

।। ॐ ऐ ही शरी परतयङगिर मा रकष रकष मम शतरन भञजय भञजय फ हा फट सवाहा ।। अषठोततरशत चाऽसय जप चि परकीवतवतम । ऋवषसत भरिो नाम छदोऽनषठप परकीवतवतम ।।1।। दिता दभशका रकता नाम परतयङगिरवत च । पिविीज: षडिागन कलपयत साधकोततम: । सिवहषठोपचारशच धयायत परतयङगिराम शभाम ।।2।।

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।।धयानम।।

खडग कपाल डमरम वतरशल समबिभरती चनरकलाितसा ।

वपिोरधिवकशोऽससत - भीमदषटरा भयाद विभतय मम भरकाली ।।3।।

एिम धयातवा जपनमनतरमकविशवतिासरान । शतरणाम नाशन हयततपरकाशोऽयम सगनशचय: ।।4।। अषटबयामधवरातर त शरतकाल महागनभश । आररगधताचतशरीकाली ततकषणामतसभिदा नणाम।।5।। सिौवपचारसमपनन िसर रतन फलाङगदभभ: । पषपशच कषणिणवशच साधयत काललकाम िराम ।।6।। िषावदरधिवमज मष मद िाऽथ यथाविगध । ददयात पि महशागन ! ततशच जपमाचरत ।।7।। एकाहात ससभिदा काली सतय सतय न सशय: । मलमतरण रातरौ च होम कयावत समावहत: ।।8।। मरीच लाजा लिण: साषवपमावरण भित । महािनपद चि न भय विदयत कवलचत ।।9।।

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परतवपणड समादाय िोलक कारयत तत: । मधय नामाङगङकत कतवा शतररपाशच पततलीम ।।10।। जीि ततर विधायि लचतागनौ जहयाततत: । ततराऽयतजप कयावत वतररातर मारण ररपो: ।।11।। महाजिाला भिततसय तपततामरशलाकया । िददवार परददयाचच सपताहान मारण ररपो: ।।12।। परतयङगिरा मया परोकता पङगठता पाङगठत: नर: । ललखखतवा च कर कणठ िाहौ भशरसस धारयत । मचयत सिवपापभयो नाऽलपमतय: कथञचन ।।13।। गरहा ऋकषासतथा ससहा भता यकषाशच राकषसा: । तसय पीडा न किवजि ङगदवि भवयिररकषिा: ।।14।। चतषपदष दिवष िनषपिनष च । शमशान दिवम घोर सङगराम शतरसङकट ।।15।।

।।भाषा टीका।। (ॐ ऐ ही शरी परतयङगिर मा रकष रकष मम शतरन भजय भजय फ हा फट सवाहा) यह भििती परतयङगिरा का जप मतर ह। इस मतर का 108 िार जप कर। इसक भरि ऋवष ह छद अनषटप तथा दिता दभशका, रकता, और परतयङगिरा दिी ह।(1) साधक को चावहए वक पिोवकत िीज यकत षडिनयास क साथ जप कर तथा

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परसननलचतत एि यथोलचत सामगरी स परतयङगिरा दिी का धयान कर ।(2) खडग, कपाल, डमर तथा वतरशल को धारण करन िाली दिी भरकाली, जजसक मसतक म चनरकला सशोभभत ह, जजनक कश पील एिम ऊपर को उठ हए ह तथा जजनक दाात िड भयङकर एिम अससत िणव क ह, हमारा कलयाण कर।(3) इस परकार धयान करक इककीस ङगदनो तक " ॐ ऐ ही शरी परतयङगिर मा रकष रकष मम शतरन भञजय भञजय फ ह फट सवाहा " इस मतर का 108 िार जप कर । शतर नाश क ललय यह मतर गनभशचत रप स ससभिपरद कहा िया ह ।(4) शारदीय निरातर की महागनशा सबिमनधत अषटमी को आधवरावतर म शरी महाकाली की आराधना करन स साधक को ततकषण ससभि परापत होती ह ।(5) साधक को चावहए वक, समसत पजन-सामगरी सवहत िसर,रतन और फल आङगद तथा कौिाठोठी क कषण िणव पषप स शरषठ शरी महाकाली का पजन कर ।(6) इस परकार एक िषव तक जप करन क पशचात भड एिम िकरी क िचच की यथा विगध िलल परदान कर । उसक िाद पन: जप कर।(7) इस परकार करन स शरी महाकाली एक ङगदन म ही गन:सनदह ससि हो जाती ह। रावतर म अतयत सािधान लचतत स मल मतर स हिन कर ।(8) काली भमचव, लािा, नमक और सरसो स हिन करन स शतर गनशचय ही मतय को परापत होता ह, और साधक को घनघोर जिल म भी वकसी परकार का भय नही रहता, अथावत िह गनभवय रहता ह।(9) जजसपर मारण करना हो, उसक गनभमतत परत वपणड स िोलक यतर िना कर तथा

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उसम शतर का पतला िनाकर, उसक मधय म शतर का नाम ललख तथा पराणपरवतषठा कर लचता की अलगन म उस हिन कर ।(10) तीन ङगदन तक मल मतर स दस हजार जप करन स शतर का मारण होता ह, तथा उस शतर को इस िात का जञान होता ह वक, मझ कोई तपत तामर शलाका स छद कर रहा ह, और मर शरीर स भयकर जिाला उतपनन हो रही ह । इसी परकार उस पतल क िदा म सात ङगदनो तक जप करन स शतर का मारण होता ह। (11-12) इस परतयङगिरा मतर को भोजपतर पर ललख कर कलाई, कणठ, भजा अथिाा मसतक पर धारण कर । जजसस साधक समसत पापो स मकत होता ह, तथा कभी भी अलप मतय का गरास नही िनता ह।(13) इसको धारण करन स समसत गरह, रीछ, ससह, भत, यकष, राकषस और आकाश, पथिी तथा अतररकष म विचरण करन िाल समसत िण उस वकसी परकार की पीडा नही पहाचा सकत।(14) िह चतषपाद, वकला, िन, उपिन, भयकर शमशान तथा घोर यि एिम शतरओ स गघर जान पर भी कभी द:खी नही होता।(15) माला मतर गनमनित ह ।।

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।। माला मतर: ।।

।। ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ क क क मा सा खा चा ला कषा ॐ ही ही ॐ ॐ ही िा धा मा सा रकषा कर । ॐ ही ही ॐ स: ह ॐ कषौ िा ला धा मा सा रकषा कर । ॐ ॐ ह प रकषा कर ।

ॐ नमो विपरीतपरतयङगिराय विदयाराभजञ तरलोकयिशकरर तवषट-पवषट-करर सिवपीडापहाररलण सिावपननाभशगन सिवमिलमािलय भशि सिावथवसागधगन मोङगदगन सिवशासराणाम भङगदगन कषोभभणी तथा परमनतर-तनतर-यनतर-विष-चणव-सिव- परयोिादीननषा गनिवतवगयतवा यतकत तनमऽसत कललपावतनी सिववहसा मा कारयवत अनमोदयवत मनसा िाचा कमवणा य दिाऽसर-राकषसामसतयवगयोगनसिववहसका विरपक किवजि मम मनतर- तनतर- यनतर- विष- चणव- सिव- परयोिादीनातमहसतन यः करोवत कररषयवत कारगयषयवत तान सिावनयषा गनितवगयतवा पातय कारय मसतक सवाहा ।।

।।शरी भरि तनतर भरिी सबिाद विपरीत परतयङगिरा विधानम सतया: सि मम

कामा: । ।।ॐ ततसत शरी दवयापवणमसत ।।

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।। विपरीत परतयङगिरा सतोतरम ।। महशवर उिाच

शरण दवि ! महाविदया सिव ससभि परदागयकाम ।

यसय विजञानमातरण शतरििाव लय िता: ।।1।।

विपरीतमहाकाली सिवभतभयङकरी ।

यसया: परसिमातरण कमपत च जिततरयम ।।2।।

न च शाजिपरद: कोऽवप परमशो न चि वह ।

दिता: परलय याजि वक पनमावनिादय:।।3।।

पठनाद धारणाददवि ! सवषठ सहारको भित ।

अभभचाराङगदका: सिाव या या साधयतमा विया ।।4।।

ससभिविदया महाकाली यतरिह च मोदत ।

सपतलकष महाविदया िोवपता परमशवरर ।।5।।

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महाकाली मवहदवि ! शङकरशरषठदिता: ।

यसया: परसादमातरण परबरहम महशवर: ।।6।।

कभततमाङगद-विषघनीशा परलयाङगद गनिभततवका ।।7।।

तवदङगिदशवनादि कमपमानो महशवर ।

यसय गनगरहमातरण पलथिी परलय िता ।।8।।

दशविदया यदा जञाता दशदवारसमालशरता ।

पराचीदवार भिनशी दभकषण काललका तथा ।।9।।

नाकषतरी पभशचम च उततर भरिी तथा ।

ऐशानयाम सततम दवि ! परचणडचमणडका तथा ।।10।।

आगनययाम ििला दिी नऋतय मतगिनी ।

धमािती च िायवय अध ऊरधिव च सनदरी ।।11।।

सममख षोडशी दिी जागरत सवपन सवरवपणी ।

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िामभाि च दिशी महावतरपरसनदरी ।।12।।

अशरपण दिभश सिावदवय: परवतवषठता: ।

महापरतयङगिरा चि परतयङगिरा तथोङगदता ।।13।।

महाविषणयवदा जञाता भिनानाम महशवरर ।

कताव पाता च सहताव सतय सतय िदाभम त ।।14।।

भभकत मभकतपरदा दवि ! महाकाली सगनभशचतम ।

िदशासर परिपता सा ननदसया दितरवप ।।15।।

अनिकोवटसयावभा सिवजिभयकरी ।

धयानजञानविहीना सा िदािामतिवषवणी ।।16।।

सिवमतरमयी काली गनिमाऽिमकाररणी ।

गनिमाऽिमकारी सा महापरलयकाररणी ।।17।।

यसयाऽिधमवलिा च सा ििा परमोङगदता ।

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महाकाली निऽनसथा विपरीता महोदया ।।18।।

विपरीता परतयङगिरा ततर काली परवतवषठता ।

साधकसमरणमातरण शतरणा गनिमाऽिमा ।।19।।

नाश जगम: नशी जगम: सतय सतय िङगदभम त ।

परबरहम महादिी पजनरीशवरो भित ।।20।।

भशिकोवटसमो योिी विषणकोवटसम: मसथर: ।

सिवरारागधता सा ि भभकत - मभकतपरदागयनी ।।21।।

िरमनतरशत जपतवा शवतसषवपमारयत ।।22।।

।।ॐ ह सफारय सफारय मारय मारय शतरििावन नाशय नाशय सवाहा ।। (विशाकषरी मतर:)

आतमरकषा शतरनाश सा करोवत च ततकषणात ।

ऋवषनयासाङगदकम कतवा सषवपमावरणम चरत ।।23।।

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।।भाषा टीका।।

शरी महशवर भििान शकर न, माता पािवती स कहा -

ह दवि, समपणव ससभियो को परदान करन िाली महाविदया क सतोतर को सन, जजसक जानन मातर स ही शतरओ का विनाश हो जाता ह ।।1।।

विपरीत महाकाली समपणव परलणयो को भय उतपनन करन िाली ह । इनक समरण मातर स ही तीनो लोक काापन लित ह ।।2।।

परमशवर आङगद कोई भी दि उस शाि नही कर सकत । उसक समकष दिताङगद भी विनषट हो जात ह; वफर मनषयो की कया सामथयव ह ? ।।3।।

मनषय महाविदया-महाकाली क इस सतोतर को पढन स सवषट क सहार करन म समथव हो जाता ह । अभभचाराङगद (मारण मोहन उचचाटनाङगद) सभी वियाय इस सतोतर क समरण मातर स ही नषट हो जात ह ।।4।।

ससभिविदया महाकाली जहाापर आननद पिवक विहार करती ह, िहाा सात लाख महाविदया िपत रप स गनिास करती ह ।।5।।

ह महाकालल! ह महादवि! आप शकर की शरषठ दिता ह, आप की परसननता मातर

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स ही सदाभशि परबरहम ह िय ।।6।।

यह महाकाली कभततमाङगद विषो का विनाश करन म समथव ह,तथा परलयाङगद को भी रोकन म सकषम ह ।।7।।

भििान महशवर तो आप क चरण दशवन मातर स ही परकममपत हो जात ह; जजनक िोध मातर स ही परलय को परापत होन लिती ह ।।8।।

दवियाा इस महाकाली क दस दवार पर रहन िाली दशविदया क नाम स परखयात ह ।परि दवार पर भिनशी दभकषण दवार पर काललका नाम की दिी रहती ह ।।9।।

पभशचम दवार पर नाकषतरी उततर दवार पर भरिी तथा ईशान कोण पर परचणड चमणडका दिी रहती ह ।।10।।

इस महाकाली क आगनय कोण म ििला दिी नऋत कोण म मातङगिनी िायवय कोण म धमािती दिी ऊपर तथा नीच सनदरी नामक दवियो का गनिास ह ।।11।।

जागरत सवपन तथा सषवपत सवरप िाली षोडशी दिी सममख म तथा िाम भाि म वतरपर सनदरी का गनिास ह ।।12।।

महाकाली क अशरप स य विदयाय परवतवषठत (पजजत) ह ।यह महाकाली महापरतयङगिरा तथा परतयङगिरा नाम स विखयात ह ।।13।।

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यह भििती महाविषण रप स लोको का शरजन पालन तथा सहार करती ह। म यह सतय सतय कहता हा ।।14।।

यह महाकाली भभकत तथा मभकत को दनिाली ह । िद शासरो की रकषा करन िाली ह, तथा दिताओ को आनद दन िाली ह ।।15।।

अननतकोवट सयो क समान तजसवी ह । समपणव परालणयो को भय उतपनन करन िाली ह । धयान तथा जञान क विना भी िदािाऽमत की िषाव करन िाली ह ।।16।।

यह महा काली सभी मनतरो का सवरप ह तथा गनिम (िद) आिम (ततर शासर) को परकट करन िाली ह ।।17।।

जजसक अि क सवद मातर स ििा परिावहत ह तथा जो पिवत राज पर विदयमान पािवती क रप म विपरीत परतयङगिरा काली कही जाती ह । साधक क समरण मातर स ही शतरओ क गनिम तथा आिम नषट हो जात ह, म यह सतय सतय कहता हा । महादिी क पजन स मनषय सिव समथव होकर परबरहम रप हो जाता ह ।।18-19-20।।

कोवट भशि क समान योिी तथा कोवट विषण क समान मसथर हो जाता ह । आराधना स परसनन होकर ि भोि तथा मोकष परदान करन िाली ह । िर मतर का सौ

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िार जप करक शवत सषवप लाना चावहए ।।21-22।।

' ॐ ह सफारय सफारय मारय मारय शतरििावन नाशय नाशय सवाहा ' यह विसाकषरी मतर ह । इसक जप स भििती महाकाली उसी कषण साधक की रकषा तथा शतरओ का नाश करती ह । यङगद मारण करना हो ,तो ऋषयाङगदनयास कर शवत सषवप (सरसो) का परयोि करना चावहए ।।23।।

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।।विपरीत महापरतयङगिरा माला मतर:।।

(मावतरका समपवटतम)

विगनयोि:-ॐ असय शरी महाविपरीत परमतिरासतोतर मनतरसय

महाकालभरि ऋवषमसरषटपछनद: शरी महाविपरीतपरतयङगिरा दिता, ह िीजम ही शभकत:, की कीलकम, मम सिावथव ससधयथव जप

विगनयोि: ।

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(मावतरका मतर:)

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ अा आा इा ई उा ऊा ऋा ॠ ला ॡा एा ऐ ओ औ अा अः का खा िा घा ङा चा छा जा झा ञा टा ठा डा ढा णा ता था दा धा ना पा फा िा भा मा या रा िा शा षा सा हा ला कषा ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ विपरीत परबरहममहापरतयङगिर ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ अा आा इा ई उा ऊा ऋा ॠ ला ॡा एा ऐ ओ

औ अा अः का खा िा घा ङा चा छा जा झा ञा टा ठा डा ढा णा ता था दा धा ना पा फा िा भा मा या रा िा शा षा सा हा ला कषा मम सपररिारसय

सिवभय: सिवत: सिवदा रकषा कर कर मरण भयापन

पापनय वतरजिता पररपविततायमव सपररिारकाय दवह दवह

दापय दापय साधकतव परभतव च सतत दवह दवह विशवरप धन

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पतरान दवह दवह मा सपररिारकसय मा पशयतत दवहन: सिववहसका: परलय याि मम सपररिारकसय शतरणा िलिभिहागन कर कर तान स सहायान सवषटदितान सहारय सहारय सवाचारमपनयाऽपनय बरहमासरादीगन वयथी कर ह ह स स ठ: ठ: फट फट ॐ ।

।।माला मतर:।।

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ नमो विपरीत परतयङगिराय सहसरानककायवलोचनाय कोवट विदयभिहवाय महावयावपनय सहाररपाय जनमशाजिकाररणय मम सपररिारकसय भावि

भत भिचछतर दारापतयान सहारय सहारय महापरभाि दशवय

दशवय वहलल वहलल वकलल वकलल भमलल भमलल लचलल लचलल भरर

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भरर विदयभिहव जिल जिल परजिल परजिल रधिशय रधिशय

पररधिशय पररधिशय गरासय गरासय वपि वपि नाशय नाशय

तरासय तरासय वितरासय वितरासय मारय मारय विमारय

विमारय भरामय भरामय विभरामय विभरामय रािय रािय

विरािय विरािय ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ अा आा इा ई

उा ऊा ऋा ॠ ला ॡा एा ऐ ओ औ अा अः का खा िा घा ङा चा छा जा झा ञा टा ठा डा ढा णा ता था दा धा ना पा फा िा भा मा या रा िा शा षा सा हा ला कष हा फट सवाहा ।

हा हा हा हा हा ही ही ही ही ही की की की की की ॐ ॐ ॐ

ॐ ॐ विपरीतपरतयङगिर हा ला ही ला की ला फट फट सवाहा ।

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हा ला ही की ॐ विपरीतपरतयङगिर मम सपररिारकसय

यािचछतरन दिता वपत वपशाच नाि िरण वकननर विदयाधर

िनधिव यकष राकषस लोकपालान गरह भत नर लोकान समनतरान सौषधान सायधान स सहायान पाणौ लछमनद लछमनद

भभमनद गनकिय गनकिय छदय छदय उचचाटय उचचाटय मारय

मारय तषा साहङकाराङगदधमावन कीलय कीलय घातय घातय

नाशय नाशय विपरीतपरतयङगिर स सतकाररणी ॐ ॐ जा ॐ

ॐ जा ॐ ॐ जा ॐ ॐ जा ॐ ॐ जा ॐ ठ: ॐ ठ: ॐ ठ: ॐ ठ: ॐ ठ: मम सपररिारकसय शतरणा सिाव: विदया: सतमभय सतमभय नाशय नाशय हसतौ सतमभय सतमभय मख सतमभय सतमभय नाशय नाशय नतरालण सतमभय सतमभय नतरालण

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सतमभय सतमभय नाशय नाशय दिान सतमभय सतमभय नाशय

नाशय जजहवा सतमभय सतमभय नाशय नाशय पादौ सतमभय

सतमभय नाशय नाशय िहय सतमभय सतमभय नाशय नाशय

सकटबिानाम सतमभय सतमभय नाशय नाशय सथानम सतमभय

सतमभय नाशय नाशय सा पराणान कीलय कीलय नाशय नाशय

ह ह ह ह ह ह ह ही ही ही ही ही ही ही ही की की की की की की की ऐ ऐ ऐ ऐ ऐ ऐ ऐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ फट फट

सवाहा ।मम सपररिारकसय सिवतो रकषा कर कर फट फट

सवाहा

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( ही ही ही ही ही ) ऐ ह ही की ह सो विपरीतपरतयङगिर ! मम सपररिारकसय भतभविषय - चछतरणामचचाटन कर कर

ह ह फट सवाहा ।

ही ही ही ही ही ि ि ि ि ि ल ल ल ल ल र र र र र य य य य य ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ नमो विपरीतपरतयङगिर दषट

चाणडाललनी वतरशल िजराङकश शभकत शल धन: शर

पाशधाररलण शतररगधर चमव मदोमासाऽमसथमिाशि महन

िसा िाक पराण मसतक हतवाङगदभभकषणी परबरहम भशि जिालादागयनी माललनी शतरचचाटन मारण कषोभन सतमभन

मोहन रािण जमभण भरामण रौरण सिापन यनतर मनतर

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तनतराियावि परशचरण भतशभि पजाफल परम गनिावण

हारणकाररणी कपालखटवाि परशधाररलण मम सपररिारकसय

भतभविषयचछतरन सहायान सिाहनान हन हन रण रण दह

दह दम दम धम धम पच पच मथ मथ लङघय लङघय खादय

खादय चिवय चिवय वयथय वयथय जिरय जिरय मकान कर

कर जञान हर हर ह ह फट सवाहा ।

ही ही ही ही ही ही ही ह ह ह ह ह ह ह की की की की की की की ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ विपरीतपरतयङगिर

ही ही ही ही ही ही ही ह ह ह ह ह ह ह की की की की की की की ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ फट फट सवाहा ।

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मम सपररिारकसय कतमनतर यनतर तनतर हिन कतौषध

विषचणव शसरादयभभचार सिोवपरिाङगदकम यन कत काररत

करत कररषयवत िा तान सिावन हन हन सफारय सफारय

सिवतो रकषा कर कर ह ह फट फट सवाहा ।

ह ह ह ह ह ह ह ही ही ही ही ही ही ही की की की की की की काली ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ फट फट सवाहा ।

ॐ ह ही की ॐ अ विपरीत परतयङगिर मम सपररिारकसय

शतरि: किवजि कररषयजि शतरशच कारयामास कारयजि

कारगयषयजि याऽनया कतयाि: साध तासता विपरीता कर

कर नाशय नाशय मारय मारय शमशानसथान कर कर

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कतयाङगदका विया भावि भत भिचछतरणा याितकतयाङगदकाम विया विपरीता कर कर तान डावकनीमख हारय हारय

भीषय भीषय तरासय तरासय परम शमन रपण हन हन

धमाविमचछनन गनिावण हर हर तषाम इषटदिानाम शासय शासय

कषोभय कषोभय पराणाङगद मनोिदधयऽहङकार कषततषणा कषवण लयन

आिािमन मरणाङगदक नाशय नाशय ह ह ही ही की की ॐॐ

फट सवाहा ।

कषा ला हा सा षा शा िा ला रा या मा भा िा फा पा ना धा दा था ता णा ढा डा ठा टा ञा झा जा छा चा ङा घा िा खा का अः अा औ ओ ऐ एा ॡा ला ॠा ऋा ऊा उा ई इा आा अा ह ह ह ह ह ह ह ही ही ही ही ही ही

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ही की की की की की की की ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

विपरीतपरतयङगिर ह ह ह ह ह ह ह ही ही ही ही ही ही ही की की की की की की की की ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ फट

सवाहा ।

कष ल ह स ष श ि ल र य म भ ि फ प न ध द थ त ण ढ ड ठ ट ञ झ ज छ च ङ घ ि ख क अः अ औ ऐ ए ॡ ल ॠ

ऋा ऊ उ ई इ आ अ ह ह ह ह ह ह ह ही ही ही ही ही ही ही की की की की की की की की ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ फट

सवाहा ।

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अः अ औ ऐ ए ॡ ल ॠ ऋ ऊ उ ई इ आ अ ङ घ ि ख कञ झ ज छ च ण ढ ड ठ ट न ध द थ त म भ ि फ प कष ल

ह स ष श ि ल र य ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ सपररिारकसय

सथान शतरणा कतयान सिावन विपरीतान कर कर तषा तनतर

मनतर तनतराचवन शमशानारोहण भभमसथापन भसम परकषपण

परशचरण होमाभभषकाङगदकान कतयान दरी कर कर ह विपरीतपतयङगिर मा सपररिारकम सिवत: सिवभयो रकष रकष हा ही फट सवाहा ।

अ आ इ ई उ ऊ ऋ ॠ ल ॡ ए ऐ ओ औ अ अः क ख ि घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ि भ म य

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र ल ि श ष स ह ल कष ॐ की ही शरी ॐ की ही शरी ॐ की ही शरी ॐ की ही शरी ॐ की ही शरी ॐ ह ही की ॐ

विपरीतपरतयङगिर हा ही की ॐ फट सवाहा ।

ॐ की ही शरी ॐ की ही शरी ॐ की ही शरी ॐ की ही शरी ॐ की ही शरी अ आ इ ई उ ऊ ऋ ॠ ल ॡ ए ऐ ओ औ अ अः क ख ि घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ

ि भ म य र ल ि श ष स ह ल कष विपरीतपरतयङगिर मम

सपररिारकसय शतरणा विपरीतविया नाशय नाशय तरवट कर

कर तषाऽभभषदिताङगद विनाश कर कर ससभिम अपनय

अपनय विपरीतपरतयगिर शतरमरदददवगन भयकरर नाना

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कतयामरदददवगन जिाललगन महाघोरतर वतरभिन भयकरर शतरणा मम सपररिारकसय चकष:शरोतरालण पदौ सिवत: सिवभय: सिवदा रकषा कर कर सवाहा ।

शरी ही ऐ ॐ िसनधर मम सपररिारकसय सथान रकष रकष

ह फट सवाहा ।शरी ही ऐ ॐ महालममम मम सपररिारकसय

पादौ रकष रकष ह फट सवाहा ।शरी ही ऐ ॐ चमणडक मम

सपररिारकसय जङघ रकष रकष ह फट सवाहा ।शरी ही ऐ ॐ

चामणड मम सपररिारकसय िहय रकष रकष हा फट सवाहा ।

शरी ही ऐ ॐ इनरालण मम सपररिारकसय नाभभ रकष रकष

हा फट सवाहा ।शरी ही ऐ ॐ नारससवह मम सपररिारकसय

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िाह रकष रकष हा फट सवाहा । शरी ही ऐ ॐ िारावह मम

सपररिारकसय हदय रकष रकष हा फट सवाहा ।शरी ही ऐ ॐ

िषणवि मम सपररिारकसय कणठ रकष रकष हा फट सवाहा ।शरी ही ऐ ॐ कौमारर मम सपररिारकसय िकतर रकष रकष हा फट

सवाहा ।शरी ही ऐ ॐमाहशवरर मम सपररविरकसय नतर रकष रकष

हाफट सवाहा ।शरी ही ऐ ॐ बरहमालण मम सपररिारकसय भशरो रकष रकष हा फट सवाहा ।शरी ही ऐ ॐ लछर सिविातरालण रकष रकष

हा फट सवाहा ।

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(मावतरका मतर:)

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ अा आा इा ई उा ऊा ऋा ॠ ला ॡा एा ऐ ओ औ अा अः का खा िा घा ङा चा छा जा झा ञा टा ठा डा ढा णा ता था दा धा ना पा फा िा भा मा या रा िा शा षा सा हा ला कषा ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

ॐ विपरीत परबरहममहापरतयङगिर ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ अा आा इा ई उा ऊा ऋा ॠ ला ॡा एा ऐ ओ औ अा अः का खा िा घा ङा चा छा जा झा ञा टा ठा डा ढा णा ता था दा धा ना पा फा िा भा मा या रा िा शा षा सा हा ला कषा मम सपररिारकसय सिवभय: सिवत: सिवदा रकषा कर कर

मरण भयापन पापनय वतरजिता पररपविततायमव सपररिारकाय

दवह दवह दापय दापय साधकतव परभतव च सतत दवह दवह विशवरप धन पतरान दवह दवह मा सपररिारकसय मा पशयतत दवहन:

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सिववहसका: परलय याि मम सपररिारकसय शतरणा िलिभिहागन कर कर तान स सहायान सवषटदितान सहारय सहारय

सवाचारमपनयाऽपनय बरहमासरादीगन वयथीव कर ह ह स स ठ: ठ: फठ फट ॐ । सतावपनी सहाररणी रौरी च भराभमणी तथा ।

जममभणी राविणी चि कषोभभणी मोवहनी तत: ।।24।

सतममभनी चाऽशरपासता: शतरपकष गनयोजजता: ।

परररता: साधकनरण दषटशतरपरमङगदवका ।।25।।

1- सतावपनी 2- सहाररणी 3- रौरी 4- भराभमणी 5- जममभणी 6- राविणी 7- कषोभभणी 8- मोवहनी 9- सतममभनी , यह नि महाविदयाय साधक की पररणा स शतरपकष म अश रप स गनयोजजत होन पर , समसत दषट शतरओ का सहार करती ह ।।24-25।।

य गनमन ललखखत नि महाविदयाओ क मतर ह ।

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ॐ सतावपनी स स मम सपररिारकसय शतरन रौरय रौरय

हा फट सवाहा ।

ॐ सहाररलण स स मम सपररिारकसय शतरन सहारय

सहारय हा फट सवाहा ।

ॐ रौवर स स मम सपररिारकसय शतरन रौरय रौरय हा फट सवाहा ।

ॐ भराभमलण स स मम सपररिारकसय शतरन भरामय

भरामय हा फट सवाहा ।

ॐ जममभलण स स मम सपररिारकसय शतरन जमभय

जमभय हा फट सवाहा ।

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ॐ राविलण स स मम सपररिारकसय शतरन रािय

रािय हा फट सवाहा ।

ॐ कषोभभणी स स मम सपररिारकसय शतरन कषोभय

कषोभय हा फट सवाहा ।

ॐ मोवहनी स स मम सपररिारकसय शतरन मोहय

मोहय हा फट सवाहा ।

ॐ सतममभनी स स मम सपररिारकसय शतरन सतमभय

सतमभय हा फट सवाहा ।

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।। फलशरवत:।। िणोवत य इमा विदया शरणोवत च सदाऽवप ताम ।

याितकतयाङगद शतरणा ततकषणादि नशयवत ।।1।।

मारण शतरििावणा रकषणाय चातमनम परम ।

आयिवभियवशोिभिसतजोिभिसतथि च ।।2।।

किर इि वितताढय: सिवसौखयमिापनयात ।

िायिादीनामपशम विषमजिर नाशनम ।।3।।

परविततहरा सा ि परपराणहरा तथा ।

परकषोभाङगदककरा तथा समपतकरा शभा ।।4।।

समवतमातरण दिभश ! शतरििा लय िता: ।

इद सतयभमदम सतयम दलवभा दितरवप ।।5।।

शठाय परभशषयाय न परकाशया कदाचन ।

पतराय भभकतयकताय सवभशषयाय तपमसवन ।

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परदातवया महाविदया चातमििवपरदा यत: ।।6।।

विनाधयानविवनाजापविवनापजा विधानत: ।

विना षोढा विना जञानमोवकषससभि: परजायत ।।7।।

परनारीहरा विदया पररपहरा तथा ।

िायचनरसतमभनकरा मथनाननदसयता ।।8।।

वतरसनधयमकसनधयम िा य: पठत भभकतत: सदा ।

सतयम िदाभम दिभश मम कोवटसमो भित ।।9।।

िोधादि िणा: सिव लय यासयजि गनभशचतम ।

वक पनमावनिा दवि ! भतपरतादयो मता: ।।10।।

विपरीता समा विदया न भता न भविषयवत ।

पठनाि परबरहम विदया सभासकरा तथा ।

मावतरकामपवटतम दवि! दसधा परजपत सधी: ।।11।।

िदाङगदपवटका दवि ! मातकाऽनिरवपणी ।

तथा वह पवटताम विदयाम परजपत साधकोततम:।।12।

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मातका मतर:-

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ अा आा इा ई उा ऊा ऋा ॠ ला ॡा एा ऐ ओ औ अा अः का खा िा घा ङा चा छा जा झा ञा टा ठा डा ढा णा ता था दा धा ना पा फा िा भा मा या रा िा शा षा सा हा ला कषा ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ विपरीत परबरहममहापरतयङगिर ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ अा आा इा ई उा ऊा ऋा ॠ ला ॡा एा ऐ ओ औ अा अः का खा िा घा ङा चा छा जा झा ञा टा ठा डा ढा णा ता था दा धा ना पा फा िा भा मा या रा िा शा षा सा हा ला कषा मम सपररिारकसय सिवभय: सिवत: सिवदा रकषा कर कर मरण भयापन पापनय वतरजिता पररपविततायमव सपररिारकाय दवह दवह दापय दापय साधकतव परभतव च सतत दवह दवह विशवरप धन पतरान दवह दवह मा सपररिारकसय मा पशयतत दवहन: सिववहसका: परलय याि मम सपररिारकसय शतरणा िलिभिहागन कर कर तान स सहायान सवषटदितान सहारय सहारय सवाचारमपनयाऽपनय बरहमासरादीगन वयथीव कर ह ह स स ठ: ठ: फठ फट ॐ ।

मनोजजतवा जपललोकम भोिम रोिम तथा यजत ।

दीनताबहीनतालितवा काभमगनभमनिावणपिवतम।।13।।

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।। फल शरवत ।।

जो लोि इस महाविदया को सदि िरण तथाशरिण करत ह, उसी समय स उनक शतरओ क समसत परयतन गनषफल हो जात ह ।।1।।

यह सतोतर या मनतर शतरओ को मारन िाला ह,तथा साधक की रकषा करता ह । साधक की आय यश तथा तज की िभि करता ह ।।2।।

इस मतर तथा सतोतर का जप करन विला किर क समान धनिान हो कर समसत सखो को वपरपत करता ह । इस मतर क जप स िाय रोि तथा विषम जिर नाश हो जाता ह ।।3।।

यह सतोतर शतरओ क धन तथा पराण का अपहरण करन िाला ह , तथा शतरओ क अि:करण म कषोभ पदा कर साधक को समपभतत परदान करता ह ।।4।।

ह दिभश ! इस सतोतर क समरण मातर स ही शतर ििव नषट हो जात ह , यह सतय ह, यह सतय ह । यह सतोतर दिताऔ को भी दलवभ ह।।5।।

शठ (मखव ) तथा दसर स दीकषा लन िाल भशषय को यह विदया नही दनी चावहए ।यह विदया किल अपन पतर तथा भभकत स यकत अपन भशसय और तपसवी को ही दनी चावहए, कयो वक, इस विदया को आतम ििव म ही दन का विधान ह ।।6।।

यह विदया धयान जप पजा सिा तथा जञान क विना ही मोकष ससभि को दन िाली ह ।।7।।

यह विदया शतरििव क नारी तथा रप का अपहरण करन िाली ह, तथा िाय सयव एिम चनरमा की िवत को सतममभत करन िाली ह, और मथन क समान आनद दन िाली ह ।।8।।

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जो लोि तीनो सनधया म अथिाा एक सनधया म भभकतपिवक इस सतोतर का पाठ करत ह, ह दिभश ! म सतय कहता हा वक, ि लोि मझस करोणो िना अगधक ह ।।9।।

उस मनषय क िोध मातर स मर िण नषट हो जात ह । वफर मनषयो की िात ही कया ? और भत परताङगद तो मतपराय ही ह ।।10।।

इस विपरीत परतयङगिरा महाविदया क समान आज तक न कोई विदया हयी ह न भविषय म होिी । सयव क समान तजशवशवनी इस महाविदया क पाठ मातर स ही मषय परबरहम क समान समथव हो जाता ह ।।11।।

भििान शकर पािवती जी स कहत ह वक, ह दवि ! मातका स समपवटत कर इस महाविदया का साधक को दस िार पाठ करना चावहए । ह अनि रवपणी मातक ! तम िदाङगद स समपवटत हो ।इस परकार साधक को समपवटत कर परतयङगिरा सतोतर का पाठ करना चावहए ।।12।।

साधक को अपन मन को िश म कर तथा दीनता एिम हीनता का पररतयाि कर भोि रोि काभमनी तथा मोकष को भििती क गनभमतत अपवण कर इस सतोतर का पाठ एिम जप करना चावहए ।।13।।

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।। काली कपवर सतोतरम ।।

कपवर मधयमानतय सवरपर रवहतम सवनदमािाभकषयकततम, िीज त मातरतत वतरपरहरिध वतरषकत य जपजि। तषा िदयागन पदयागन च मखकहरादललसनतयििाच:, सवचछनदबधयािधाराधर रलचरलचर सिवससभिितानाम ।।1।। ईशान: सनद िाम शरिण पररितो िीजमनयनमहभश, दवनद त मनदचता यङगद जपवत जनो िारमक कङगदलचत। जजहवा िाचामधीश धनदमवप लचर मोहयननबिजाकषी-

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िनद चनराधवचड परभिवत स महाघोररािाितस ।।2।। ईशो िशवानरसथ: शशधर विलसदवामनतरण यकतम , िीज त दवनदमनयद वििललत लचकर काललक य जपजि । दवषटार त गनहजि वतरभिनमससत िशयभाि नयजि , सककदवनदवासरधारा दवयधरिदन दभकषणकाललकवत ।।3।। ऊरधि िाम कपाण करतलकमल लछननमणड तथाऽधव:, सवय भीत िर च वतरजनदधहर दभकषण काललक च । जपतवतननामिण ति मनविभिम भाियिसतदथवम, तषामषटौकरसथा: परकवटतिदन ससियसयबिकसय ।।4।। ििावदय िविससथ विधरवत लललत तततरय कचवयगम , लिादवनद च पशचात सभमतमखख तदधषठ दवय योजगयतवा । मातयव िा जपजि समरहरमखखल भािय त सवरप , त लममीलासयलीला कमलदश: कामरपा भिजि ।।5।। परतयक िा दवय िा तरयमवप च पर िीजमतयि िहय, तवननामना योजगयतवा सकलमवप सदा भाियिो जपजि । तषा नतरारविनद विहरवत कमला िकतर शभराशविबि , िागदिीङगदवयमणड सरिवतशयलसतकणठपीनसतनाढय ।।6।।

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ितासना िाह पारकरकतकाञची पररलसन , गनतबिा ङगदगिसरा वतरभिनविधातरी वतरनयनाम । शमशानसथ तलप शिहङगद महाकालसरत परसकता , तवा धयायन जनगन ! जडचता अवप कवि: ।।7।। भशिाभभघोवराभभ: शि गनिह मणडामसथ गनकर: , पर सङकीणावया परकवटतलचताया हरिधम । परविषठा सतषटामपरर सरत नाऽवत यिती, सदा तवा धयायजि कवलचदवप न तषा पररभि:।।8।। िदामसत वक िा जनगन ियमचचजवडगधयो, न धाता नापीशो हरररवप न त िभतत परमम । तथाऽवप तवदभभकतमवखरयवत चाऽसमाकमससत , तवदतत कषिवयो न च खल पशरोष: समलचत: ।।9।। समतादापीन सतन जघन धि यौिन िती- रतासकतो नकत यङगद जपवत भकतसति मनम । वििासासतवा धयायन िललतलचकरसतसय िशिा: , समसता ससिौिा भवि लचरतर जीिवत कवि: ।।10।। सम: सवसथीभतो जपवत विपरीतोऽवप स सदा ,

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विलचनतय तवा धयायननवतशय महाकालसरताम । तदा तसय कषोणीतलविहरमाणसय विदष: , करामभोज िशया: समरहरिध ससभिगनिहा: ।।11।। परसत ससार जनगन जिवत पालयवत िा, समसत भकषतयाङगद परलयसमय सहरवत च । अतसतव धाताऽवप वतरभिनपवत: शरीपवतरवप , महशोऽवप पराय: सकलमवप वक सतौभम भितीम ।।12।। अनक सिि भिदगधकिीिावणगनिहा , विमढासत मात: ! वकमऽवप न वह जानवत परमम । समाराधयामादया हरर हर विरञचयाङगद वििध: , परपननोऽमसम सवर रवतरसमहाननदगनरताम ।।13।। धररतरी कीलाल शलचरवप समीरऽवप ििनम, तवमका कलयाणी गिररशरमणी कालल सकलम । सतवत: का त मातगनवजकरणया मामिवतकम, परसनना तवः भया भिमन न भयानमम जन: ।।14।। शमशानसथ: सवसथो िललतलचकरो ङगदकपटधर: , सहसर तवकावणा गनजिललत िीयवण कसमम ।

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जपसतवतपरतयक मनमवप ति धयानगनरतो ।।15।। िह सममाजवनया पररिललतिीय वह लचकर , समल मधयाि वितरवत लचताया कजङगदन । समचचाय परमणा मनमवप सकतकालल सतत , िजारढो यावत भकषवतपररिढ: सतकवििर: ।।16।। सवपषपराकीण कसमधनषो ममनदरमहो, परो धयायन धयायन जपवत यङगद भकतसति मनम । स िनधिवशरणीपवतरवप कवितवामतनदी, नदीन: पयवि परमपदलीन: परभिवत ।।17।। वतरपञचार पीठ शिभशिहङगद समरिदना , महाकालनोचचमदनरस लािणय गनरताम । समासकतो नकत सवयमवप रताननदगनरतो, जनो योधयायतवामवप जनगन स सयात समहर: ।।18।। सलोमामसथ सवर पललमवप माजावरमससत , पर चोषटर मष नर मवहषयोशछािमवप िा । िलल त पजायामवप वितरता मतयवमसता , सता ससभि: सिाव परवतपदमपिाव परभिवत ।।19।।

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िशी रकष मनतर परजपवत हविषयाशनरतो, ङगदिा: मातयवषमचरण यिल धयान गनरत: । पर नकत नगनो गनधिनविनोदन च मन, जनो लकष सबयकसमरहरसमानः भकषवततल ।।20।। इद सततर मातसति मनसमिारणजप- सवरपाखय पादाबिज - यिलपजाविगधयतम । गनशाधव िा पजासमयिगध िा यसत पठवत, परलापसतसयाऽवप परसरवत कवितवामतरस: ।।21।। करिाकषीिनद तमनसरवत परमयरलम, िशसतसय कषोणीपवतरवप किरपारवतगनगध: । ररप: कारािार कलयवत च ततकललकलया, लचर जीिनमकत: स भिवत सभकतः परवतजनः ।।22।। ।। शरी महावकलविरलचतम काली कपवरसतोतरम सतया:सि मम कामाः।।

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।। अथ शरी काली परतयङगिरा ।। शरी दवयिाचः

कथयशान ! सिवगय ! यतोऽहम ति िललभा ।

या परोकता तवया नाथ ! ससि विदया परा दश ।।

तासा परतयङगिराखय त किच चकशः परम ।।

शरी भशि उिाच:

शरण वपरय ! परिकषाभम िहयाद िहयतर परम ।

विनाजञान न ससदधयजिमतरा: कोवटवियामनिता।।

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परतयि रकषण करी तन परतयङगिरा मता ।

काली परतयङगिरा िकषय शरणषिािवहतानघ ।।

शरी दवयिाच:

परभो ! परतयङागिरा विदया सिव विदयोततमासमता ।

अभभचाराङगद दोषाणा नाभशनी ससभि दागयनी ।

महय तत कथयसवादय करणा यङगद त मगय ।।

शरी भशि उिाच:

साध साध महादवि ! तव वह ससार मोलचनी ।

शरणषि सख लचततन िकषय दवि ! समासत: ।।

दवि ! परतयङगिरा विदया सिव गरह गनिाररणी ।

मरदददवनी सिव दषटाना सिव पाप पारमोलचनी ।।

सरी िाल परभीतीना च जिना वहत काररणी ।

सौभागय जननी दवि िल पवषट करी सदा ।।

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विगनयोि:

ॐ ॐ ॐ असय शरी परतयङगिरा मनतरसय शरी अगिरा ऋवष: अनषटप छदः शरी परतयङगिरा दिता ह िीजम ही शभकतः िी कीलकम ममाभीषट ससिय पाठ विगनयोिः ।

अि नयास शरी अगिरा ऋषय नमः भशरसस ।

अनषटप छदसनमः मख ।

शरी परतयङगिरा दिताय नमः हङगद ।

ह िीजाय नमः िहय ।

ही शकतय नमः पादयोः ।

िी कीलकाय नमः सिावि ।

ममाभीषट ससियय पाठ विगनयोिाय नमः

अजलौ ।

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।। धयानम ।। भजशचतभभवधवत तीकषण िाण

धनिवराभीशच शिागि यगमा ।

रकताबिरा रकत तनमसरनतरा

परतयङगिरवत परणत पनात ।।

।। शरी काली परतयङगिरा परारमभः ।। ॐ नमः सहसर सयवकषणाय शरीकणठानाङगद रपाय परषाय पर हताय ऐ महा सखाय वयावपन महशवराय जित सवषट काररण ईशानाय सिव वयावपन महाघोरावतघोराय ॐ ॐ ॐ परभाि दशवय दशवय ।

ॐ ॐ ॐ वहलल वहलल ॐ ॐ ॐ विदयभिहव िनध िनध मथ मथ परमथ परमथ विरधिसय विरधिसय गरस गरस वपि वपि नाशय नाशय तरासय तरासय

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विदारय विदारय मम शतरन खावह खावह मारय मारय मा सपररिार रकषरकष करर कमभसतगन सिोवपरिभयः । ॐ महा मघौघ राभश सबितवक विदयदत कपङगदवगन ङगदवय कनकामभोरहविकच माला धाररलण परमशवरर वपरय ! लछमनद लछमनद विरािय विरािय दवि ! वपशाच नािासर िरड वकननर विदयाधर िनधिव यकष राकषस लोकपालागन सतमभय सतमभय कीलय कीलय घातय घातय विशवमवतव महातजस ॐ ह सः मम शतरणा विदया सतमभय सतमभय ॐ ह सः मम शतरणा मख सतमभय सतमभय ॐ ह सः मम शतरणा हसतौ सतमभय सतमभय ॐ ह सः मम शतरणा पादौ सतमभय सतमभय ॐ ह सः मम शतरणा िहाित कठबि मखागन सतमभय सतमभय सथान कीलय कीलय गराम कीलय कीलय मणडल कीलय कीलय दश कीलय कीलय सिव ससभि महाभाि ! धारकसय सपररिारसय शाजि कर कर फट सवाहा , ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ अ अ अ अ अ ह ह ह ह ह ख ख ख ख ख फट सवाहा । जय परतयङगिर ! धारकसय सपररविरसय मम रकषा कर कर ॐ ह सः जय जय सवाहा ।

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ॐ ऐ ही शरी बरहाभमलण ! भशरो रकष रकष ह सवाहा ।ॐ ऐ ही शरी कौमारर ! मम िकतर रकष रकष ह सवाहा ।ॐ ऐ ही शरी िषणिी ! मम कणठ रकष रकष ह सवाहा ।ॐ ऐ ही शरी नारससवह ! ममोदर रकष रकष ह सवाहा ।

ॐ ऐ ही शरी इनरालण ! मम नाभभ रकष रकष ह सवाहा ।ॐ ऐ ही शरी चामणड ! मम िहय रकष रकष ह सवाहा ।

ॐ नमो भििवत उमचछषट चाणडाललगन वतरशल िजराङकशधर मास भभकषलण खटवाि कपाल िजरासस गधररलण ! दह दह धम धम सिव दषटान गरस गरस ॐ ऐ ही शरी फठ सवाहा ।

ॐ दषटराकरालल मम मनतर तनतर िनदादीन विष शसराभभचारकभयो रकष रकष सवाहा ।

सतममभनीमोवहनी चि कषोभभणीराविणी तथा।

जममभणीतराससनीरौरी तथा सहाररलणवत च।।

शकतयः िम योिन शतर पकष गनयोजजता: ।

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धाररताः साधकनरण सिव शतर गनिाररणी ।। ॐ सतममभनी ! स स मम शतरन सतमभय सतमभय सवाहा ।ॐ मोवहनी ! स स मम शतरन मोहय मोहय सवाहा ।। ॐ कषोभभणी ! स स मम शतरनकषोभय कषोभय सवाहा । ॐ राविलण स स मम शतरन रािय रािय सवाहा ।।ॐ जममभलण ! स स मम शतरन जमभय जमभय सवाहा । ॐ तराससगन ! स स मम शतरन तरासय तरासय सवाहा ।।

ॐ रौवर ! स स मम शतरन रौरय रौरय सवाहा ।ॐ सहाररलण ! स स मम शतरन सहारय सहारय सवाहा ।।

।। फल शरवत: ।।

य इमा धारयत विदया वतर सनधय िावप यः पठत ।

सोऽवप वयथाितशचि हनयाचछतरन न ससयः।।

सिवतो रकषतो दवि ! भयष च विपभततष ।

महा भयष सिवष न भय विदयत कवलचत ।।

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विदयानामततमा विदया िालचता धाररता पनः ।

ललखखतवा च कर कणठ िाहो भशरसस धारयत।।

स मचयत महा घोरमवतय तलयदरासद ।

दषट गरह वयाल चौर रकषो यकष िणासतथा ।।

पीडा न तसय किवनावत य चानय पीडका गरहा ।

हरर चनदन भमशरण िोरोचन ककमन च ।।

ललखखतवा भजव पतर त धारणीया सदा नभभ: ।

पषप धप विलचतरशच िलयपहार िनदन: ।।

पजगयतवा यथा नयाय वतर लोहनि िषठयत ।

धारयद य इमा मनतरी ललखखतवा ररप नाभशनीम।।

विलय याजि ररपिः परतयङगिरा विधारलणत ।

य य सपशवत हसतन य य खादवत जजहवया ।।

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अमततव भित तसय मतयनावमसत कदाचन ।

वतरपर त मया दगधभमम मनतर विजानता ।।

गनजजवतासत सरा: सिव दिविवदयाधराङगदभभ: ।

ङगदवयमवनतर पदिवहय: सखोपाय: सरभकषत: ।।

पठद रकषा विधानन मनतरराज परकीवतवतः ।

िाता दमनक चि रोचनम ककम तथा ।।

अरषकर विषाविषट ससिाथ मालती तथा ।

एतद रवय िण भर ! िोलमधय गनधापयत ।।

ससकत धारयनमनतरी साधको बरहमवित सदा ।

अगिरासय मगन परोकतशछनदोनषटपदाहत: ।।

दिता च सवय काली काबयष विगनयोजयत ।।

।।ॐ ततसत शरी अगिरा ऋवष कत शरी काली परतयङगिरा सतया:सि मम कामा: ।।

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।।शरी काललकाषटकम ।। िलद रकतमणाडािली कणठमाला

महाघोररािा सदषटरा कराला ।

वििसरा शमशानालया मकतकशी

महाकालकामाकलाकाललकयम ।।1।।

भज िामयगम भशरोऽसी दधाना

िर दकष यगमऽभय ि तथि ।

समधयाऽवप तिसतनाभार नमरा

लसरकतसककदवया समसमतासया।।2।।

शिदवनदवकणावितसा सकशी

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लसतपरतपालण परयकतककाञची ।

शिाकार मञचागधरढा भशिाभभ

शचतङगदवकष शबदायमानाऽभभरज ।।3।।

विरञचयाङगददिासरयसत िणासरीन

समाराधय काली ! परधाना िभि: ।

अनाङगद सराङगद मखाङगद भिाङगद

सवरप तवदीय न विनदजि दिाः ।।4।।

जिनमोहनीय त िागिाङगदनीय

सहतपोवषणी शतरसहारणीय ।

िचःसातमभगनय वकमचचाटनीय

सवरप तवदीय न विनदजि दिाः ।।5।।

इय सविवदातरी पनः कलपिलली

मनोजासतकामान यथाथ परकयावत ।

कथा त कताथाव भििीवत गनताय

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सवरप तवदीय न विनदजि दिाः ।।6।।

सरापानमतत ! सभकतानरकत

लसतपतलचतत ! सदविभविसत ।

जप धयान पजा सधाधौतपका ।

सवरप तवदीय न विनदजि दिाः ।।7।।

लचदानदकद हसनमनदमनद

शरचचनरकोवट परभापञज विबिम ।

मनीना किीना हङगद दयोतमानम

सवरप तवदीय न विनदजि दिाः।।8।।

महामघकाली सरकताऽवप शभरा

कदालचद विलचतराकवतयोविमाया ।

न िाला न ििा न कामातराऽवप

सवरप तवदीय न विनदजि दिाः ।।9।।

कषमसवापराध महािपतभाि

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मया लोकमधय परकाशीकत यत ।

ति धयानपतन चापलयभािात

सवरप तवदीय न विनदजि दिाः।।10।।

यङगद धयानयकतः पठत यो मनषय

सतदा सिवलोक विशालो भिचच

िह चाऽषटससभिमवत चावप मभकतः

सवरप तवदीय न विनदजि दिाः ।।11।।

( शरीमदआदय शकराचायव विरलचतम शरी काललकाषटकम ) सतयाःसि मम कामाः