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NCERT Solutions for Class 12 Hindi Core – जजजजजजज जजजजजज जज जजजज – जजजजजजज जजजजजजजज जज जजज जजजज November 18, 2017 by Fazal Leave a Comment NCERT Solutions for Class 12 Hindi Core – जजजजजजज जजजजजज जज जजजज – जजजजजजज जजजजजजजज जज जजज जजजज जजजजजज जजजजजजज जजजजजज (जजजजजज, जज ००, जजजजजज जज जजजजजजज) जजजजजजज जज जजजजजजज जजजजजजजज जज जजजजजजज जज जजजजजज जजजजजज (जजजजजजज ) जजजजजज जजजजजज (जजजजजजज) जजजजजज जजज जजजज जज जजज जजजजज जजजज जजजजज जजजजज जजजजजज जजजजजज जजजजजज जज जजजजजजजजजजजज जज जजज जजजजजज-जजजज जजजजजज जजजजजजजज जजजजज जजजजजजजज जजo जजo जजजजज जज जजजजजजज जजज जजजजजज जज जजजजजजजज जजजजजज जज जजजज जज जजजज जजजजजजज जजजजजजज जजजजजजजजजजजजजजजजज जजजजजजजजजज जज जजजजजजजजजज जजज जजजजजजज जजजजजजजजजज जजजजज जजज जजजजज जजज-जजज जजजजजजज जजजजजज जज जजजज जजजज जज जजज-जजज जजजजज जजजजजजज जजजजजजज जजजजजजजज जज जजज जजजज जज जजज-जजज जजजजज जजजजजजजज जज जजजज-जजजजजजजजज जजज जजजजज जज जजज जजजज जज, जजजज जजजजजज जज जजज जजज जजजजज जज जजज जजज जज जजजजज जजजजजज जजज -जजज जजज, जजजजज जजजज जजजजजजज जज जजज-जजजज जजजजजजज जजजजजजजज जज जजज जजजज जज जजज - जजजजजजजजजजज जजजजज जजजज जजजजज जज जज जजजजजजजज जज जजजज जज जजज जजजजज, जजजजज जज जजजजजजजज जजजजजज- जजजजजजजज जज जजजजजजज जज जजजजज जज जज जजजजज जजज जजज जजजज जज

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NCERT Solutions for Class 12 Hindi Core – जनसंचार माध्यम और लेखन – वि�भि�न्न माध्यमों के लिलए लेखनNovember 18, 2017 by Fazal Leave a Comment

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Core – जनसंचार माध्यम और लेखन – वि�भि�न्न माध्यमों के लिलए लेखन

प्रमुख जनसंचार माध्यम (प्रिप्रंट, टी०�ी०, रेवि!यो और इंटरनेट)जनसंचार के वि�भि�न्न माध्यमों की खूवि�याँ और कमिमयाँ।

प्रिप्रंट (मुद्रि%त ) माध्यमप्रि ंट (मुद्रि%त) माध्यम में लेखन के लिलए ध्यान रखने योग्य �ातें।

रेवि!योरेवि*यो समाचार की संरचना।रेवि*यो के लिलए समाचार-लेखन सं�ंधी �ुविनयादी �ातें।

टेलीवि�जनटीo �ीo ख�रों के वि�भि�न्न चरण।

रेवि!यो और टेलीवि�जन समाचार की �ाषा और शैली इंटरनेट

इंटरनेट पत्रकारिरता।इंटरनेट पत्रकारिरता का इवितहास।�ारत में इंटरनेट पत्रकारिरता।

प्रि+ंदी नेट संसार

अलग-अलग जनसंचार माध्यम और उनके लेखन के अलग-अलग तरीकेवि�भि�न्न जनसंचार माध्यमों के लिलए लेखन के अलग-अलग तरीके हैं। अख�ार और पत्र-पवित्रकाओं में लिलखने की अलग शैली है, ज�विक रेवि*यो और टेलीवि�जन के लिलए लिलखना एक अलग कला है। चँूविक माध्यम अलग-अलग हैं, इसलिलए उनकी जरूरतें �ी अलग-अलग हैं। वि�भि�न्न माध्यमों के लिलए लेखन के अलग-अलग तरीकों को समझना �हुत जरूरी है। इन माध्यमों के लेखन के लिलए �ोलने, लिलखने के अवितरिरक्त पाठकों- श्रोताओं और दशBकों की जरूरत को �ी ध्यान में रखा जाता है।

प्रमुख जनसंचार प्रमुख माध्यमजनसंचार के मुख माध्यम हैं-

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हम विनयमिमत रूप से अख�ार पढ़ते हैं। इसके अला�ा मनोरंजन या समाचार जानने के लिलए टी०�ी० �ी देखते और रेवि*यो �ी सुनते हैं। सं�� है विक हम क�ी-क�ार इंटरनेट पर �ी समाचार पढ़ते, सुनते या देखते हैं। हमने गौर विकया है विक जनसंचार के इन स�ी मुख माध्यमों में, समाचारों के लेखन और स्तुवित में अंतर है। क�ी ध्यान से विकसी शाम या रात को टी०�ी० और रेवि*यो पर लिसर्फ़B समाचार सुनें और इंटरनेट पर जाकर उन्हीं समाचारों को विJर से पढ़ें। अगले द्रिदन सु�ह अख�ार ध्यान से पढ़ने पर ज्ञात होता है विक इन स�ी माध्यमों में पढे़, सुने या देखे गए समाचारों की लेखन-शैली, �ाषा और स्तुवित में आपको र्फ़कB नजर आता है।

विनश्चय ही, इन स�ी माध्यमों में समाचारों की लेखन-शैली, �ाषा और स्तुवित में हमें कई अंतर देखने को मिमलते हैं। स�से सहज और आसानी से नजर आने �ाला अंतर तो यही द्रिदखाई देता है विक

अख�ार पढ़ने के लिलए है। रेवि*यो सुनने के लिलए है। टी०�ी० देखने के लिलए है। इंटरनेट पर पढ़ने, सुनने और देखने, तीनों की ही सुवि�धा है।

जनसंचार के वि�भि�न्न माध्यमों के �ीच र्फ़कB समझने के लिलए स�ी माध्यमों के लेखन की �ारीविकयों को समझना जरूरी है। लेविकन इन माध्यमों के �ीच के र्फ़कB को आप त�ी समझ सकते हैं ज� आप हर माध्यम की वि�शेषताओं, उसकी खूवि�यों और खामिमयों से परिरलिचत हों। हर माध्यम की अपनी कुछ खूवि�याँ हैं तो कुछ खामिमयाँ �ी। ख�र लिलखते समय हमें इनका पूरा ध्यान रखना पड़ता है और इन माध्यमों की जरूरत को समझना पड़ता है।

जनसंचार के वि�भि�न्न माध्यमों की खूवि1याँ और कमिमयाँ

जनसंचार के वि�भि�न्न माध्यमों से हमारा रोज, कम या ज्यादा, �ास्ता पड़ता है। अगर हमसे पूछा जाए विक आप इन स�ी माध्यमों में से स�से अमिधक विकसे पसंद करते हैं और क्यों, तो हमारा ज�ा� होगा क्या होगा? शायद हम थोड़ा सोच में पड़ जाए।ँ हमारा उत्तर चाहे जो हो, इतना तो तय है विक इस स�ाल का कोई एक विनभिश्चत ज�ा� नहीं है। सं�� है हमें टी०�ी० ज्यादा पसंद हो और हमारे दोस्त को रेवि*यो।

हमारा दोस्त रेवि*यो अपने पढ़ने के कमरे में Jुरसत में या कुछ और काम करते हुए सुनता हो। इसी तरह हमारे विकसी और साथी को पढ़ना पसंद हो और उसके Jुरसत के क्षण अख�ार तथा पवित्रकाओं के साथ गुजरते हों ज�विक हमारा कोई अन्य दोस्त इंटरनेट पर चौटिटंग करते या कुछ और पढ़ते/देखते हुए उसी से लिचपके रहना पसंद करता हो।

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हम या हमारे अन्य दोस्त अलग-अलग जनसंचार माध्यमों को इसलिलए अमिधक पसंद करते हैं क्योंविक उनकी वि�शेषताए ँया खूवि�याँ, हमारी और हमारे अन्य दोस्तों के मिमजाज, रुलिचयों, जरूरतों और पहुँच के अनुकूल हैं। स्पष्ट है विक हम स� अपनी-अपनी रुलिचयों, जरूरतों और स्��ा�ों के मुतावि�क माध्यम चुनते और उनका इस्तेमाल करते हैं। इसका अथB यह �ी है विक हर माध्यम की अपनी कुछ वि�शेषताए ँया खूवि�याँ हैं, तो कुछ कमिमयाँ �ी हैं, जिजनके कारण कोई माध्यम-वि�शेष विकसी को अमिधक पसंद आता है तो विकसी को कम।

इससे हमें यह नहीं समझना चाविहए विक जनसंचार का कोई एक माध्यम स�से अच्छा या �ेहतर है या कोई एक विकसी दूसरे से कमतर है। स�की अपनी कुछ खूवि�याँ और कमिमयाँ हैं। जैसे इं%धनुष की छटा अलग-अलग रंगों के एक साथ आने से �नती है, �ैसे ही जनसंचार के वि�भि�न्न माध्यमों की असली शलिक्त उनके परस्पर पूरक होने में है। जनसंचार के वि�भि�न्न माध्यमों के �ीच र्फ़कB चाहे जिजतना हो लेविकन �े आपस में वितद�ंद�ी नहीं �ल्कि_क एक-दूसरे के पूरक और सहयोगी हैं।

इससे हमें यह ज्ञात होता है विक

1. अख�ार में समाचार पढ़ने और रुककर उस पर सोचने में एक अलग तरह की संतुमिष्ट मिमलती है, ज�विक टी०�ी० पर घटनाओं की तस�ीरें देखकर उसकी जी�तता का एहसास होता है। इस तरह का रोमांच अख�ार या इंटरनेट पर नहीं मिमल सकता।

2. रेवि*यो पर ख�रें सुनते हुए हम जिजतना उन्मुक्त होते हैं, उतना विकसी और माध्यम से सं�� नहीं है।3. इंटरनेट अंतरविaयात्मकता (इंटरएक्टिक्टवि�टी) और सूचनाओं के वि�शाल �ं*ार का अद्भतु माध्यम है, �स

एक �टन द�ाते ही हम सूचनाओं के अथाह संसार में पहुँच जाते हैं। जिजस विकसी �ी वि�षय पर हम जानना चाहते हैं, इंटरनेट के जरिरये �हाँ पहुँच सकते हैं।

ये स�ी माध्यम हमारी अलग-अलग जरूरतों को पूरा करते हैं और इन स�ी की हमारे दैविनक जी�न में कुछ-न-कुछ उपयोविगता है। यही कारण है विक अलग-अलग माध्यम होने के �ा�जूद इनमें से कोई समाप्त नहीं हुआ, �ल्कि_क इन स�ी माध्यमों का लगातार वि�स्तार और वि�कास हो रहा है।अ� हम इन स�ी माध्यमों की अलग-अलग खूवि�यों और कमिमयों को जानने का यास करते हैं।

1. प्रिप्रंट ( मुद्रि%त ) माध्यम

प्रि ंट यानी मुद्रि%त माध्यम जनसंचार के आधुविनक माध्यमों में स�से पुराना है। असल में आधुविनक युग की शुरुआत ही मु%ण यानी छपाई के आवि�ष्कार से हुई। हालाँविक मु%ण की शुरुआत चीन से हुई, लेविकन आज हम जिजस छापेखाने को देखते हैं, उसके आवि�ष्कार का श्रेय जमBनी के गुटेन�गB को जाता है। छापाखाना यानी ेस के आवि�ष्कार ने दुविनया की तस�ीर �दल दी।

यूरोप में पुनजाBगरण ‘रेनेसाँ’ की शुरुआत में छापेखाने की अह �ूमिमका थी। �ारत में पहला छापाखाना सन 1556 में गो�ा में खुला। इसे मिमशनरिरयों ने धमB- चार की पुस्तकें छापने के लिलए खोला था। त� से अ� तक मु%ण तकनीक में कार्फ़ी �दला� आया है और मुद्रि%त माध्यमों का व्यापक वि�स्तार हुआ है।

प्रिप्रंट (मुद्रि%त) माध्यमों की वि�शेषताएँप्रि ंट माध्यमों के �गB में अख�ारों, पवित्रकाओं, पुस्तकों आद्रिद को शामिमल विकया जाता है। हमारे दैविनक जी�न में इनका वि�शेष महत्� है। प्रि ंट माध्यमों की वि�शेषताए ँविनम्नलिलखिखत हैं-

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1. प्रि ंट माध्यमों के छपे शब्दों में स्थामियत्� होता है।2. हम उन्हें अपनी रुलिच और इच्छा के अनुसार धीरे-धीरे पढ़ सकते हैं।3. पढ़ते-पढ़ते कहीं �ी रुककर सोच-वि�चार कर सकते हैं।4. इन्हें �ार-�ार पढ़ा जा सकता है।5. इसे पढ़ने की शुरुआत विकसी �ी पृष्ठ से की जा सकती है।6. इन्हें लं�े समय तक सुरभिक्षत रखकर संद�B की �ाँवित युक्त विकया जा सकता है।7. यह लिलखिखत �ाषा का वि�स्तार है, जिजसमें लिलखिखत �ाषा की स�ी वि�शेषताए ँविनविहत हैं।

लिलखिखत और मौखिखक �ाषा में स�से �ड़ा अंतर यह है विक लिलखिखत �ाषा अनुशासन की माँग करती है। �ोलने में एक स्�त:सू्फतBता होती है लेविकन लिलखने में �ाषा, व्याकरण, �तBनी और शब्दों के उपयुक्त इस्तेमाल का ध्यान रखना पड़ता है। इसके अला�ा उसे एक चलिलत �ाषा में लिलखना पड़ता है ताविक उसे अमिधक-से-अमिधक लोग समझ पाए।ँ

मुद्रि%त माध्यमों की अन्य वि�शेषता यह है विक यह चिचंतन, वि�चार और वि�शे्लषण का माध्यम है। इस माध्यम से आप गं�ीर और गूढ़ �ातें लिलख सकते हैं क्योंविक पाठक के पास न लिसर्फ़B उसे पढ़ने, समझने और सोचने का समय होता है �ल्कि_क उसकी योग्यता �ी होती है। असल में, मुद्रि%त माध्यमों का पाठक �ही हो सकता है जो साक्षर हो और जिजसने औपचारिरक या अनौपचारिरक लिशक्षा के जरिरये एक वि�शेष स्तर की योग्यता �ी हालिसल की हो।

प्रिप्रंट (मुद्रि%त) माध्यमों की सीमाए ँया कमिमयाँ

मुद्रि%त माध्यमों की कमिमयाँ विनम्नलिलखिखत हैं-

1. विनरक्षरों के लिलए मुद्रि%त माध्यम विकसी काम के नहीं हैं।2. मुद्रि%त माध्यमों के लिलए लेखन करने �ालों को अपने पाठकों के �ाषा-ज्ञान के साथ-साथ उनके शैभिक्षक

ज्ञान और योग्यता का वि�शेष ध्यान रखना पड़ता है।3. पाठकों की रुलिचयों और जरूरतों का �ी पूरा ध्यान रखना पड़ता है।4. ये रेवि*यो, टी०�ी० या इंटरनेट की तरह तुरंत घटी घटनाओं को संचालिलत नहीं कर सकते। ये एक विनभिश्चत

अ�मिध पर कालिशत होते हैं। जैसे अख�ार 24 घंटे में एक �ार या साप्ताविहक पवित्रका सप्ताह में एक �ार कालिशत होती है।

5. अख�ार या पवित्रका में समाचारों या रिरपोटB को काशन के लिलए स्�ीकार करने की एक विनभिश्चत समय-सीमा होती है इसलिलए मुद्रि%त माध्यमों के लेखकों और पत्रकारों को काशन की समय-सीमा का पूरा ध्यान रखना पड़ता है।

प्रिप्रंट (मुद्रि%त) माध्यम में लेखन के लिलए ध्यान रखने योग्य 1ातें

1. मुद्रि%त माध्यमों में लेखक को जगह (से्पस) का �ी पूरा ध्यान रखना चाविहए। जैसे विकसी अख�ार या पवित्रका के संपादक ने अगर 250 शब्दों में रिरपोटB या र्फ़ीचर लिलखने को कहा है तो उस शब्द-सीमा का ध्यान रखना पडे़गा। इसकी �जह यह है विक अख�ार या पवित्रका में असीमिमत जगह नहीं होती।

2. मुद्रि%त माध्यम के लेखक या पत्रकार को इस �ात का �ी ध्यान रखना पड़ता है विक छपने से पहले आलेख में मौजूद स�ी गलवितयों और अशुद्धयों को दूर कर द्रिदया जाए क्योंविक एक �ार काशन के �ाद

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�ह गलती या अशुद्ध �हीं लिचपक जाएगी। उसे सुधारने के लिलए अख�ार या पवित्रका के अगले अंक का इंतजार करना पडे़गा।

3. �ाषा सरल, सहज तथा �ोधगम्य होनी चाविहए।4. शैली रोचक होनी चाविहए।5. वि�चारों में �ाहमयता ए�ं तारतम्यता होनी चाविहए।

प्रिप्रंट (मुद्रि%त) माध्यम के कुछ उदा+रण

नेपोलिलयन 1ोनापाट9 का ज+ाज़ ऑस्टे्रलिलया में मिमला

कॅन�रा, एजेंसी। नेपोलिलयन �ोनापाटB का जहाज ऑस्टे्रलिलया में मिमला है। इस जहाज का इस्तेमाल उन्होंने अपने विन�ाBसन के दौरान फ्रांस में दु�ारा �ेश करने के लिलए विकया था। ऑस्टे्रलिलयाई विर्फ़_मकार और टूटे जहाज के खोजकताB �ेन aॉप का दा�ा है विक उत्तरी क्�ीन्सलैं* से दूर गहरे पानी में ‘स्�ीफ़्टस्योर’ जहाज मिमला।

aॉप ने केप याकB ायद्वीप जाने के लिलए लॉकहाटB रिर�र से दूर मगरमच्छ से �रे पानी में तैराकी का खतरा मोल लिलया। �े आश्वस्त होना चाहते थे विक जिजसकी तलाश �े �ष| से कर रहे थे, �ह �ही जहाज है या नहीं। aॉप �ो_ट मिमट्टी के �तBन और कंकड़ों को देखकर इस नतीजे पर पहँुचे विक �ह स्�ीफ़्टस्योर ही है। जहाज �षB 1815 का है, ज� नेपोलिलयन इटली से दूर अ_�ा द्वीप में विन�ाBसन में रह रहे थे। �े 337 टन �ाले इस जहाज के जरिरये द्वीप से �ागे थे � अपने देश को दु�ारा हालिसल करने के लिलए जहाज का नाम स्�ीफ़्टस्योर रख द्रिदया।

इसके �ाद उन्होंने लुई 18 �ें को हराया � उन्हें विन�ाBसन में जाने को मज�ूर विकया। वि~टेन ने �ॉटरलू की लड़ाई जीतने के ७�ाद पुरस्कारस्�रूप जहाज कब्जे में लिलया � नाम �दलकर इसका इस्तेमाल इग्लैं*-ऑस्टे्रलिलया जलमागB में करने लगा।

फजत? द्रिदल्ली भिशक्षा 1ो!9 का खेल

नई द्रिद_ली, वि�शेष स�ाददाता। द्रिद_ली सरकार के पू�B कानून मंत्री जिजतें% चिसंह तोमर असली कॉलेज की र्फ़ज� वि*ग्री मामले में Jैं से हैं। मगर द्रिद_ली में तो पूरा �ो*B ही र्फ़ज� चल रहा है। इससे वि�ना परीक्षा 10 �ीं और 12 �ीं कक्षा पास कराने का खेल होता है। द्रिद_ली लिशक्षा विनदेशालय इस पर कारB�ाई की तैयारी में है।

‘द्रिद_ली उच्चतर माध्यमिमक लिशक्षा परिरषद’ और ‘उच्चतर माध्यमिमक लिशक्षा परिरषद द्रिद_ली’ नाम से चल रहे र्फ़जीं �ो*ों की �े�साइट delhiboard.org � www.bhse.co.in पर दा�ा विकया गया है विक �े �ारतीय लिशक्षा अमिधविनयम के तहत �ो*B परीक्षा द्रिदलाते हैं। एक संस्था ने अपनी �े�साइट पर गृह मंत्रालय के एक �रिरष्ठ अमिधकारी का पत्र लगाया है।

इस �ो*B से यू०पी० के स्कूल से परीक्षा देने �ाले छात्र अमृत (�दला नाम) ने �ताया विक उससे र्फ़ॉमB �र�ाते समय �ताया गया विक यह �ो*B सी०�ी०एस०ई० की तरह है। इस �ो*B से मान्यता- ाप्त स्कूल का दा�ा है विक इसे द्रिद_ली सरकार चलाती है। (इस र्फ़ज� �ो*B की साइट पर द्रिदए ई-मेल पते पर स�ाल पूछे गए तो कोई वितविaया नहीं मिमली।

देश में 14 नए मेवि!कल कॉलेजों को +री झं!ी

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नई द्रिद_ली, वि�शेष स�ाददाता। कें %ीय स्�ास्थ्य मंत्रालय ने एमसीआई की लिसर्फ़ारिरश पर देश में 14 मेवि*कल कॉलेजों की स्थापना की हरी झं*ी दे दी है। इससे इस �ार एम�ी�ीएस की 1900 सीटें �ढ़ जाएगँी। इसके अला�ा छह कॉलेजों को पहली �ार सीटें �ढ़ाने की अनुमवित दी गई है। इससे 290 एम�ी�ीएस सीटें �ढे़गी।

कें %ीय स्�ास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, जिजन 14 नए कॉलेजों को मंजूरी दी गई है, उनमें से तीन कॉलेज उत्तर देश के हैं। इनमें से सहारनपुर में शेख-उल-प्रिहंद मौलाना हसन मेवि*कल कॉलेज इसी सत्र से शुरू होगा। पहले साल इसमें एम�ी�ीएस की 100 सीटें होंगी। यह सरकारी कॉलेज होगा। दो अन्य कॉलेज विनजी होंगे।

सीतापुर में प्रिहंद इंस्टीट्यूट ऑर्फ़ मेवि*कल साइंसेज में 150 सीटें और �ाराणसी में हेरिरटेज इंस्टीट्यूट ऑर्फ़ मेवि*कल साइंसेज में 150 सीटें होंगी। यूपी में इससे (एम�ी�ीएस में 400 सीटें �ढ़ी हैं। (16 जून, 2015 प्रिहंदुस्तान से सा�ार)/

2. रेवि!यो

रेवि*यो श्रव्य माध्यम है। इसमें स� कुछ ध्�विन, स्�र और शब्दों का खेल है। इन स� �जहों से रेवि*यो को श्रोताओं से संचालिलत माध्यम माना जाता है। रेवि*यो पत्रकारों को अपने श्रोताओं का पूरा ध्यान रखना चाविहए। इसकी �जह यह है विक अख�ार के पाठकों को यह सुवि�धा उपलब्ध रहती है विक �े अपनी पसंद और इच्छा से क�ी �ी और कहीं से �ी पढ़ सकते हैं। अगर विकसी समाचार/लेख या र्फ़ीचर को पढ़ते हुए कोई �ात समझ में नहीं आई तो पाठक उसे विJर से पढ़ सकता है या शब्दकोश में उसका अथB देख सकता है या विकसी से पूछ सकता है, लेविकन रेवि*यो के श्रोता को यह सुवि�धा उपलब्ध नहीं होती।

�ह अख�ार की तरह रेवि*यो समाचार �ुलेद्रिटन को क�ी �ी और कहीं से �ी नहीं सुन सकता। उसे �ुलेद्रिटन के सारण समय का इंतजार करना होगा और विJर शुरू से लेकर अंत तक �ारी-�ारी से एक के �ाद दूसरा समाचार सुनना होगा। इस �ीच, �ह इधर-उधर नहीं आ-जा सकता और न ही उसके पास विकसी गूढ़ शब्द या �ाक्यांश के आने पर शब्दकोश का सहारा लेने का समय होता है। अगर �ह शब्दकोश में अथB ढँूढ़ने लगेगा तो �ुलेद्रिटन आगे विनकल जाएगा।

इस तरह स्पष्ट है विक-

1. रेवि*यो में अख�ार की तरह पीछे लौटकर सुनने की सुवि�धा नहीं है।2. अगर रेवि*यो �ुलेद्रिटन में कुछ �ी भ्रामक या अरुलिचकर है, तो सं�� है विक श्रोता तुरंत स्टेशन �ंद कर दे।3. दरअसल, रेवि*यो मूलत: एकरेखीय (लीविनयर) माध्यम है और रेवि*यो समाचार �ुलेद्रिटन का स्�रूप, ढाँचा

और शैली इस आधार पर ही तय होती है।4. रेवि*यो की तरह टेलीवि�जन �ी एकरेखीय माध्यम है, लेविकन �हाँ शब्दों और ध्�विनयों की तुलना में

दृश्यों/तस्�ीरों का महत्� स�ाBमिधक होता है। टी०�ी० में शब्द दृश्यों के अनुसार और उनके सहयोगी के रूप में चलते हैं। लेविकन रेवि*यो में शब्द और आ�ाज ही स� कुछ हैं।

रेवि!यो समाचार की संरचनारेवि*यो के लिलए समाचार-लेखन अख�ारों से कई मामलों में भि�न्न है। चूँविक दोनों माध्यमों की कृवित अलग-अलग है, इसलिलए समाचार-लेखन करते हुए उसका ध्यान जरूर रखा जाना चाविहए।

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रेवि*यो समाचार की संरचना अख�ारों या टी०�ी० की तरह उलटा विपरामिम* (इं�टें* विपरामिम*) शैली पर आधारिरत होती है। चाहे आप विकसी �ी माध्यम के लिलए समाचार लिलख रहे हों, समाचार-लेखन की स�से चलिलत, �ा�ी और लोकवि य शैली उलटा विपरामिमड़ शैली ही है। स�ी तरह के जनसंचार माध्यमों में स�से अमिधक यानी 90 वितशत ख�रें या स्टोरीज़ इसी शैली में लिलखी जाती हैं।

समाचार-लेखन की उलटा विपरामिम!-शैलीउलटा विपरामिम* शैली में समाचार के स�से महत्�पूणB तथ्य को स�से पहले लिलखा जाता है और उसके �ाद घटते हुए महत्त्�aम में अन्य तथ्यों या सूचनाओं को लिलखा या �ताया जाता है। इस शैली में विकसी घटना/वि�चार/समस्या का ब्यौरा कालानुaम की �जाय स�से महत्�पूणB तथ्य या सूचना से शुरू होता है। तात्पयB यह है विक इस शैली में कहानी की तरह क्लाइमेक्स अंत में नहीं, �ल्कि_क ख�र के वि�लकुल शुरू में आ जाता है। उलटा विपरामिम* शैली में कोई विनष्कषB नहीं होता।

इस शैली में समाचार को तीन �ागों में �ाँट द्रिदया जाता है-

1. इंट्रो-समाचार के इंट्रो या ली* को प्रिहंदी में ‘मुखड़ा’ �ी कहते हैं। इसमें ख�र के मूल तत्� को शुरू की दो-तीन पंलिक्तयों में �ताया जाता है। यह ख�र का स�से अह विहस्सा होता है।

2. �ॉ*ी-इस �ाग में समाचार के वि�स्तृत ब्यौरे को घटते हुए महत्त्�aम में लिलखा जाता है।3. समापन-इस शैली में अलग से समापन जैसी कोई चीज नहीं होती। इसमें ासंविगक तथ्य और सूचनाए ँ

दी जा सकती हैं। अकड़ने समाया औ जहक कमा क देतेहुएआखी कुठलों या पैमाJक ह�ाक समाचरसमाप्त कर द्रिदया जाता है।

रेवि!यो समाचार के इंट्रो के उदा+रण

उत्तर देश के उन्ना� जिजले में एक �स दुघBटना में आज �ीस लोगों की मौत हो गई। मृतकों में पाँच मविहलाए ँऔर तीन �च्चे शामिमल हैं।

महाराष्ट्र में �ाढ़ का संकट गहराता जा रहा है। राज्य में �ाढ़ से मरने �ालों की संख्या �ढ़कर चार सौ पैंसठ हो गई है।

रेवि!यो के लिलए समाचार-लेखन सं1ंधी 1ुविनयादी 1ातेंरेवि*यो के लिलए समाचार-कॉपी तैयार करते हुए कुछ �ुविनयादी �ातों का ध्यान रखना �हुत जरूरी है।

(क) साफ़-सुथरी और टाइप्! कॉपी-रेवि*यो समाचार कानों के लिलए यानी सुनने के लिलए होते हैं, इसलिलए उनके लेखन में इसका ध्यान रखना जरूरी हो जाता है। लेविकन एक महत्�पूणB तथ्य नहीं �ूलना चाविहए विक सुने जाने से पहले समाचार-�ाचक या �ालिचका उसे पढ़ते हैं और त� �ह श्रोताओं तक पहुँचता है। इसलिलए समाचार-कॉपी ऐसे तैयार की जानी चाविहए विक उसे पढ़ने में �ाचक/�ालिचका को कोई द्रिदक्कत न हो। अगर समाचार-कॉपी टाइप्* और सार्फ़-सुथरी नहीं है तो उसे पढ़ने के दौरान �ाचक/�ालिचका के अटकने या गलत पढ़ने का खतरा रहता है और इससे श्रोताओं का ध्यान �ँटता है या �े भ्रमिमत हो जाते हैं। इससे �चने के लिलए-

1. सारण के लिलए तैयार की जा रही समाचार-कॉपी को कंप्यूटर पर द्रिट्रपल से्पस में टाइप विकया जाना चाविहए।

2. कॉपी के दोनों ओर पयाBप्त हालिशया छोड़ा जाना चाविहए।3. एक लाइन में अमिधकतम 12-13 शब्द होने चाविहए।

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4. पंलिक्त के आखिखर में कोई शब्द वि��ाजिजत नहीं होना चाविहए।5. पृष्ठ के आखिखर में कोई लाइन अधूरी नहीं होनी चाविहए।6. समाचार-कॉपी में ऐसे जद्रिटल और उच्चारण में कद्रिठन शब्द, संभिक्षप्ताक्षर (ए~ीवि�येशन्स), अंक आद्रिद

नहीं लिलखने चाविहए, जिजन्हें पढ़ने में ज�ान लड़खड़ाने लगे।

रेवि*यो समाचार लेखन में अंक कैसे लिलखें?इसमें अंकों को लिलखने के मामले में खास सा�धानी रखनी चाविहए; जैसे-

1. एक से दस तक के अंकों को शब्दों में और 11 से 999 तक अंकों में लिलखा जाना चाविहए।2. 2837550 लिलखने की �जाय ‘अट्ठाइस लाख सैंतीस हजार पाँच सौ पचास’ लिलखा जाना चाविहए

अन्यथा �ाचक/�ालिचका को पढ़ने में �हुत मुल्किश्कल होगी।3. अख�ारों में % और $ जैसे संकेत-लिचहनों से काम चल जाता है, लेविकन रेवि*यो में यह पूरी तरह �र्जिजंत

है। अत: इन्हें ‘ वितशत’ और ‘*ॉलर’ लिलखा जाना चाविहए। जहाँ �ी सं�� और उपयुक्त हो, दशमल� को उसके नजदीकी पूणाBक में लिलखना �ेहतर होता है। इसी तरह 2837550 रुपये को रेवि*यो में, लग�ग अट्ठाइस लाख रुपये, लिलखना श्रोताओं को समझाने के लिलहाज से �ेहतर है।

4. वि�त्तीय संख्याओं को उनके नजदीकी पूणाBक में लिलखना चाविहए।5. खेलों के स्कोर को उसी तरह लिलखना चाविहए। सलिचन तेंदुलकर ने अगर 98 रन �नाए हैं तो उसे ‘लग�ग

सौ रन” नहीं लिलख सकते।6. मु%ा-स्फीवित के आँकडे़ नजदीकी पूणाBक में नहीं, �ल्कि_क दशमल� में ही लिलखे जाने चाविहए।7. �ैसे रेवि*यो समाचार में आँकड़ों और संख्याओं का अत्यमिधक इस्तेमाल नहीं करना चाविहए क्योंविक

श्रोताओं के लिलए उन्हें समझ पाना कार्फ़ी कद्रिठन होता है।8. रेवि*यो समाचार क�ी �ी संख्या से नहीं शुरू होना चाविहए। इसी तरह वितलिथयों को उसी तरह लिलखना

चाविहए जैसे हम �ोलचाल में इस्तेमाल करते हैं-‘ 15 अगस्त उन्नीस सौ पचासी’ न विक ‘अगस्त 15, 1985’।

(ख) !े!लाइन, संद�9 और संभिक्षप्ताक्षर का प्रयोग-रेवि*यो में अख�ारों की तरह *े*लाइन अलग से नहीं, �ल्कि_क समाचार से ही गंुथी होती है। अख�ार द्रिदन में एक �ार और �ह �ी सु�ह (और कहीं शाम) छपकर आता है ज�विक रेवि*यो पर चौ�ीसो घंटे समाचार चलते रहते हैं। श्रोता के लिलए समय का फे्रम हमेशा ‘आज’ होता है। इसलिलए समाचार में आज, आज सु�ह, आज दोपहर, आज शाम, आज तड़के आद्रिद का इस्तेमाल विकया जाता है।

इसी तरह ‘.�ैठक कल होगी’ या ‘.कल हुई �ैठक में..’ का योग विकया जाता है। इसी सप्ताह, अगले सप्ताह, विपछले सप्ताह, इस महीने, अगले महीने, विपछले महीने, इस साल, अगले साल, अगले �ुध�ार या विपछले शुa�ार का इस्तेमाल करना चाविहए।

संभिक्षप्ताक्षरों के इस्तेमाल में कार्फ़ी सा�धानी �रतनी चाविहए। �ेहतर तो यही होगा विक उनके योग से �चा जाए और अगर जरूरी हो तो समाचार के शुरू में पहले उसे पूरा द्रिदया जाए, विJर संभिक्षप्ताक्षर का योग विकया जाए।

3. टेलीवि�जन

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टेलीवि�जन में दृश्यों की महत्ता स�से ज्यादा है। यह कहने की जरूरत नहीं विक टेलीवि�जन देखने और सुनने का माध्यम है और इसके लिलए समाचार या आलेख (स्क्रिस्aप्ट) लिलखते समय इस �ात पर खास ध्यान रखने की जरूरत पड़ती है-

1. हमारे शब्द परदे पर द्रिदखने �ाले दृश्य के अनुकूल हों।2. टेलीवि�जन लेखन प्रि ंट और रेवि*यो दोनों ही माध्यमों से कार्फ़ी अलग है। इसमें कम-से-कम शब्दों में

ज्यादा-से-ज्यादा ख�र �ताने की कला का इस्तेमाल होता है।3. टी०�ी० के लिलए ख�र लिलखने की �ुविनयादी शतB दृश्य के साथ लेखन है। दृश्य यानी कैमरे से लिलए गए

शॉट्स, जिजनके आधार पर ख�र �ुनी जाती है। अगर शॉट्स आसमान के हैं तो हम आसमान की ही �ात लिलखेंगे, समंदर की नहीं। अगर कहीं आग लगी हुई है तो हम उसी का जिजa करेंगे, पानी का नहीं।

द्रिद_ली की विकसी इमारत में आग लगने की ख�र लिलखनी है। अख�ार में आमतौर पर इस ख�र का इंट्रो कुछ इस तरह का �न सकता है-द्रिद_ली के लाजपत नगर की एक दुकान में आज शाम आग लगने से दो लोग घायल हो गए और लाखों रुपये की सपवित जलकर राख हो गई। यह आग शॉट सर्किकंट की �जह से लगी।

लेविकन टी०�ी० में इस ख�र की शुरुआत कुछ अलग होगी। दरअसल टेलीवि�ज़न पर ख�र दो तरह से पेश की जाती है। इसका शुरुआती विहस्सा, जिजसमें मुख्य ख�र होती है, �गैर दृश्य के न्यूज़ री*र या एकंर पढ़ता है। दूसरा विहस्सा �ह होता है, जहाँ से परदे पर एकंर की जगह ख�र से सं�ंमिधत दृश्य द्रिदखाए जाते हैं। इसलिलए टेलीवि�जन पर ख�र दो विहस्सों में �ँटी होती है। अगर ख�रों के स्तुवितकरण के तरीकों पर �ात करें तो इसके �ी कई तकनीकी पहलू हैं।

द्रिद_ली में आग की ख�र को टी०�ी० में पेश करने के लिलए ारंभि�क सूचना के �ाद हम इसे इस तरह लिलख सकते हैं-आग की ये लपटें स�से पहले शाम चार �जे द्रिदखीं, विJर तेजी से Jैल गई…….।

टी०�ी० ख1रों के वि�भि�न्न चरण

विकसी �ी टी०�ी० चैनल पर ख�र देने का मूल आधार �ही होता है जो प्रि ंट या रेवि*यो पत्रकारिरता के क्षेत्र में चलिलत है, यानी स�से पहले सूचना देना। टी०�ी० में �ी ये सूचनाए ँकई चरणों से होकर दशBकों के पास पहुँचती हैं। ये चरण हैं-

1. फ़्लैश या ~ेप्रिकंग न्यूज2. ड्राई एकंर3. र्फ़ोन-इन4. एकंर-वि�जुअल5. एकंर-�ाइट6. लाइ�।7. एकंर-पैकेज

अ1 +म इनके 1ारे में जानते +ैं

1. फ़्लैश या बे्रप्रिकंग न्यूज-स�से पहले कोई �ड़ी ख�र फ़्लैश या ~ेप्रिकंग न्यूज के रूप में तत्काल दशBकों तक पहुँचाई जाती है। इसमें कम-से-कम शब्दों में महज सूचना दी जाती है।

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2. ड्राई एकंर-इसमें एकंर ख�र के �ारे में दशBकों को सीधे-सीधे �ताता है विक कहाँ, क्या, क� और कैसे हुआ। ज� तक ख�र के दृश्य नहीं आते त� तक एकंर दशBकों को रिरपोटBर से मिमली जानकारिरयों के आधार पर सूचनाए ँपहँुचाता है।

3. फोन-इन-इसके �ाद ख�र का वि�स्तार होता है और एकंर रिरपोटBर से र्फ़ोन पर �ात करके सूचनाए ँदशBकों तक पहँुचाता है। इसमें रिरपोटBर घटना �ाली जगह पर मौजूद होता है और �हाँ से उसे जिजतनी ज्यादा-से-ज्यादा जानकारिरयाँ मिमलती हैं, �ह दशBकों को �ताता है।

4. एकंर-वि�जुअल-ज� घटना के दृश्य या वि�जुअल मिमल जाते हैं, त� उन दृश्यों के आधार पर ख�र लिलखी जाती है, जो एकंर पढ़ता है। इस ख�र की शुरुआत �ी ारंभि�क सूचना से होती है और �ाद में कुछ �ाक्यों पर ाप्त दृश्य द्रिदखाए जाते हैं।

5. एकंर-1ाइट-�ाइट यानी कथन। टेलीवि�जन पत्रकारिरता में �ाइट का कार्फ़ी महत्� है। टेलीवि�जन में विकसी �ी ख�र को पुष्ट करने के लिलए इससे सं�ंमिधत �ाइट द्रिदखाई जाती है। विकसी घटना की सूचना देने और उसके दृश्य द्रिदखाने के साथ ही उस घटना के �ारे में त्यक्षदर्शिशयंों या सं�ंमिधत व्यलिक्तयों का कथन द्रिदखा और सुनाकर ख�र को ामाभिणकता दान की जाती है।

6. लाइ�-लाइ� यानी विकसी ख�र का घटनास्थल से सीधा सारण। स�ी टी०�ी० चैनल कोलिशश करते हैं विक विकसी �ड़ी घटना के दृश्य तत्काल दशBकों तक सीधे पहुँचाए जा सकें । इसके लिलए मौके पर मौजूद रिरपोटBर और कैमरामैन ओ०�ी० �ैन के जरिरये घटना के �ारे में सीधे दशBकों को द्रिदखाते और �ताते हैं।

7. एकंर-पैकेज-एकंर-पैकेज विकसी �ी ख�र को संपूणBता के साथ पेश करने का एक जरिरया है। इसमें सं�ंमिधत घटना के दृश्य, उससे जुडे़ लोगों की �ाइट, ग्राविर्फ़क के जरिरये जरूरी सूचनाए ँआद्रिद होती हैं। टेलीवि�जन लेखन इन तमाम रूपों को ध्यान में रखकर विकया जाता है। जहाँ जैसी जरूरत होती है, �हाँ �ैसे �ाक्यों का इस्तेमाल होता है। शब्द का काम दृश्य को आगे ले जाना है ताविक �ह दूसरे दृश्यों से जुड़ सके, उसमें विनविहत अथB को सामने लाए, ताविक ख�र के सारे आशय खुल सकें ।

अकसर टी०�ी० पर ख�र लिलखने की एक चलिलत शैली द्रिदखाई पड़ती है। पहला �ाक्य दृश्य के �णBन से शुरू होता है; जैसे-द्रिद_ली के रामलीला मैदान में हो रही यह स�ा ……। या विJर-झील में छलांग लगाते �च्चे……।

इस चलिलत शैली में आसानी यह है विक वि�ना विकसी क_पनाशीलता के टी०�ी० रिरपोर्टिटंग का �ुविनयादी अनुशासन, यानी दृश्य पर लेखन विन� जाता है, लेविकन कोई क_पनाशील रिरपोटBर इन्हीं दृश्यों को अपने शब्दों से ज्यादा �डे़ मायने दे सकता है। जैसे-द्रिद_ली के रामलीला मैदान में हो रही इस स�ा में लोग लाए नहीं, गए हैं, अपनी मज� से आए हैं। या विJर झील में छलांग लगाते �च्चों के शॉट्स के साथ लिलखा जा सकता है-इन द्रिदनों तेज गरमी से विनजात पाने का एक तरीका यह �ी है ……।

ध्�विनयाँ-टी०�ी० लिसर्फ़B दृश्य और शब्द नहीं होता, �ीच में होती हैं- ध्�विनयाँ। टी०�ी० में दृश्य और शब्द यानी वि�जुअल और �ॉयस ओ�र (�ीओ) के साथ दो तरह की आ�ाजें और होती हैं। एक तो �े कथन या �ाइट जो ख�र �नाने के लिलए इस्तेमाल विकए जाते हैं और �े ाकृवितक आ�ाजें जो दृश्य के साथ-साथ चली आती हैं—यानी लिचविड़यों का चहचहाना या विJर गाविड़यों के गुजरने की आ�ाजें या विJर विकसी कारखाने में विकसी मशीन के चलने की ध्�विन।

टी०�ी० के लिलए ख�र लिलखते हुए इन दोनों तरह की आ�ाजों का ध्यान रखना जरूरी है। पहली तरह की आ�ाज़ यानी कथन या �ाइट का तो खैर ध्यान रखा ही जाता है। अकसर टी०�ी० की ख�र �ाइट्स के आस-पास ही �ुनी जाती है। लेविकन यह काम पयाBप्त सा�धानी से विकया जाना चाविहए। कथनों से ख�र तो �नती ही है, टी०�ी० के लिलए उसका र्फ़ॉमB �ी �नता है। �ाइट लिसर्फ़B विकसी का �यान मात्र नहीं होते, जिजन्हें ख�र के �ीच उसकी पुमिष्ट�र के लिलए *ाल द्रिदया जाता है। �ह दो �ॉयस ओ�र या दृश्यों का अंतराल �रने के लिलए पुल का �ी काम करता है।

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लेविकन टी०�ी० में लिसर्फ़B �ाइट या �ॉयस ओ�र ही नहीं होते, और �ी ध्�विनयाँ होती हैं। उन ध्�विनयों से �ी ख�र �नती है। इसलिलए विकसी ख�र का �ॉयस ओ�र लिलखते हुए, उसमें शॉट्स के मुतावि�क ध्�विनयों के लिलए गंुजाइश छोड़ देनी चाविहए। टी०�ी० में ऐसी ध्�विनयों को नेट या नेट साउं* यानी ाकृवितक आ�ाजें कहते हैं-यानी �े आ�ाजें जो शूट करते समय खुद-�-खुद चली आती हैं। जैसे रिरपोटBर विकसी आंदोलन की ख�र ला रहा हो, जिजसमें खू� नारे लगे हों। �ह अगर लिसर्फ़B इतना �ताकर विनकल जाता है विक उसमें कई नारे लगे और उसके �ाद विकसी नेता की �ाइट का इस्तेमाल कर लेता है तो यह अच्छी ख�र का नमूना नहीं कहलाएगा। उसे नारे लगते हुए आंदोलनकारिरयों को �ी द्रिदखाना होगा और इसकी गुंजाइश अपने �ीओ में छोड़नी चाविहए।

रेवि!यो और टेलीवि�जन समाचार की �ाषा तथा शैलीरेवि*यो और टी०�ी० आम आदमी के माध्यम हैं। �ारत जैसे वि�कासशील देश में उसके श्रोताओं और दशBकों में पढे़-लिलखे लोगों से विनरक्षर तक और मध्यम �गB से लेकर विकसान-मजदूर तक स�ी होते हैं। इन स�ी लोगों की सूचना की जरूरतें पूरी करना ही रेवि*यो और टी०�ी० का उदे्दश्य है। जाविहर है विक लोगों तक पहुँचने का माध्यम �ाषा है और इसलिलए �ाषा ऐसी होनी चाविहए विक �ह स�ी की समझ में आसानी से आ सके, लेविकन साथ ही �ाषा के स्तर और उसकी गरिरमा के साथ कोई समझौता �ी न करना पडे़।

रेवि!यो और टेलीवि�ज़न के समाचारों में आपसी 1ोलचाल की सरल �ाषा का प्रयोग करना चावि+ए। इसके लिलए-

1. �ाक्य छोटे, सीधे और स्पष्ट लिलखे जाए।ँ2. ज� �ी कोई ख�र लिलखनी हो तो पहले उसकी मुख �ातों को ठीक से समझ लेना चाविहए।3. हम विकतनी सरल, सं ेषणीय और �ा�ी �ाषा लिलख रहे हैं, यह जाँचने का एक �ेहतर तरीका यह है

विक हम समाचार लिलखने के �ाद उसे �ोल-�ोलकर पढ़ लें।4. �ाषा �ाहमयी होनी चाविहए।

सा�धाविनयाँरेवि*यो और टी०�ी० समाचार में �ाषा और शैली के स्तर पर कार्फ़ी सा�धानी �रतनी पड़ती है-

1. ऐसे कई शब्द हैं, जिजनका अख�ारों में ध*_ले से इस्तेमाल होता है लेविकन रेवि*यो और टी०�ी० में उनके योग से �चा जाता है। जैसे-विनम्नलिलखिखत, उपयुक्त, अधोहस्ताक्षरिरत और aमाक आद्रिद शब्दों का योग इन माध्यमों में वि�लकुल मना है। इसी तरह ‘ द्वारा ‘शब्द के इस्तेमाल से �ी �चने की कोलिशश की जाती है क्योंविक इसका योग कई �ार �हुत भ्रामक अथB देने लगता है; जैसे-‘पुलिलस द�ारा चोरी करते हुए दो व्यलिक्तयों को पकड़ लिलया गया।’ इसकी �जाय ‘पुलिलस ने दो व्यलिक्तयों को चोरी करते हुए पकड़ लिलया।’ ज्यादा स्पष्ट है।

2. तथा, ए�, अथ�ा, �, प्रिकंतु, परतु, यथा आद्रिद शब्दों के योग से �चना चाविहए और उनकी जगह और, या, लेविकन आद्रिद शब्दों का इस्तेमाल करना चाविहए।

3. सार्फ़-सुथरी और सरल �ाषा लिलखने के लिलए गैरजरूरी वि�शेषणों, सामालिसक और तत्सम शब्दों, अवितरंजिजत उपमाओं आद्रिद से �चना चाविहए। इनसे �ाषा कई �ार �ोजिझल होने लगती है।

4. मुहा�रों के इस्तेमाल से �ाषा आकषBक और �ा�ी �नती है, इसलिलए उनका योग होना चाविहए। लेविकन मुहा�रों का इस्तेमाल स्�ा�ावि�क रूप से और जहाँ जरूरी हो, �हीं होना चाविहए अन्यथा �े �ाषा के स्�ा�ावि�क �ाह को �ामिधत करते हैं।

5. �ाक्य छोटे-छोटे हों। एक �ाक्य में एक ही �ात कहनी चाविहए।6. �ाक्यों में तारतम्य ऐसा हो विक कुछ टूटता या छूटता हुआ न लगे।

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7. शब्द चलिलत हों और उनका उच्चारण सहजता से विकया जा सके। aय-वि�aय की जगह खरीदारी-वि�aी, स्थानांतरण की जगह त�ादला और पंलिक्त की जगह कतार टी०�ी० में सहज माने जाते हैं।

4. इंटरनेट

इंटरनेट को इंटरनेट पत्रकारिरता, ऑनलाइन पत्रकारिरता, साइ�र पत्रकारिरता या �े� पत्रकारिरता जैसे वि�भि�न्न नामों से जाना जाता है। नई पीढ़ी के लिलए अ� यह एक आदत-सी �नती जा रही है। जो लोग इंटरनेट के अभ्यस्त हैं या जिजन्हें चौ�ीसो घंटे इंटरनेट की सुवि�धा उपलब्ध है, उन्हें अ� कागज पर छपे हुए अख�ार उतने ताजे और मन�ा�न नहीं लगते। उन्हें हर घंटे-दो घंटे में खुद को अप*ेट करने की लत लगती जा रही है।

�ारत में कंप्यूटर साक्षरता की दर �हुत तेजी से �ढ़ रही है। पसBनल कंप्यूटर इस्तेमाल करने �ालों की संख्या में �ी लगातार इजार्फ़ा हो रहा है। हर साल करी� 50-55 र्फ़ीसदी की रफ़्तार से इंटरनेट कनेक्शनों की संख्या �ढ़ रही है। इसकी �जह यह है विक इटरनेट पर आप एक ही झटके में झुमरीतलैया से लेकर होनोलूलू तक की ख�रें पढ़ सकते हैं। दुविनया�र की चचाBओं-परिरचचाBओं में शरीक हो सकते हैं और अख�ारों की पुरानी र्फ़ाइलें खंगाल सकते हैं।

इंटरनेट एक टूल +ी न+ीं और �ी 1हुत कुछ +ै-इंटरनेट लिसर्फ़B एक टूल यानी औजार है, जिजसे आप सूचना, मनोरंजन, ज्ञान और व्यलिक्तगत तथा सा�Bजविनक सं�ादों के आदान- दान के लिलए इस्तेमाल कर सकते हैं। लेविकन इंटरनेट जहाँ सूचनाओं के आदान- दान का �ेहतरीन औजार है, �हीं �ह अश्लीलता, दुष् चार और गंदगी Jैलाने का �ी जरिरया है। इंटरनेट पर पत्रकारिरता के �ी दो रूप हैं।

पहला तो इंटरनेट का एक माध्यम या औजार के तौर पर इस्तेमाल, यानी ख�रों के सं ेषण के लिलए इंटरनेट का उपयोग। दूसरा, रिरपोटBर अपनी ख�र को एक जगह से दूसरी जगह तक ईमेल के जरिरये �ेजने और समाचारों के संकलन, ख�रों के सत्यापन तथा पुमिष्टकरण में �ी इसका इस्तेमाल करता है। रिरसचB या शोध का काम तो इंटरनेट ने �ेहद आसान कर द्रिदया है।

टेलीवि�जन या अन्य समाचार माध्यमों में ख�रों के �ैकग्राउं*र तैयार करने या विकसी ख�र की पृष्ठ�ूमिम तत्काल जानने के लिलए जहाँ पहले ढेर सारी अख�ारी कतरनों की र्फ़ाइलों को ढँूढ़ना पड़ता था, �हीं आज चंद मिमनटों में इंटरनेट वि�श्वव्यापी संजाल के �ीतर से कोई �ी �ैकग्राउं*र या पृष्ठ�ूमिम खोजी जा सकती है। एक जमाना था ज� टेलीप्रि ंटर पर एक मिमनट में 80 शब्द एक जगह से दूसरी जगह �ेजे जा सकते थे, आज क्टिस्थवित यह है विक एक सेकें * में 56 विकलो�ाइट यानी लग�ग 70 हजार शब्द �ेजे जा सकते हैं।

इंटरनेट पत्रकारिरताइंटरनेट पर अख�ारों का काशन या ख�रों का आदान- दान ही �ास्त� में इंटरनेट पत्रकारिरता है। इंटरनेट पर विकसी �ी रूप में ख�रों, लेखों, चचाB-परिरचचाBओं, �हसों, र्फ़ीचर, झलविकयों, *ायरिरयों के जरिरये अपने समय की धड़कनों को महसूस करने और दजB करने का काम करते हैं तो �ही इंटरनेट पत्रकारिरता है। आज तमाम मुख अख�ार पूरे-के-पूरे इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। कई काशन-समूहों ने और कई विनजी कंपविनयों ने खुद को इंटरनेट पत्रकारिरता से जोड़ लिलया है। चँूविक यह एक अलग माध्यम है, इसलिलए इस पर पत्रकारिरता का तरीका �ी थोड़ा-सा अलग है।

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इंटरनेट पत्रकारिरता का इवित+ासवि�श्व स्तर पर इंटरनेट पत्रकारिरता के स्�रूप और वि�कास का पहला दौर था 1982 से 1992 तक, ज�विक चला 1993 से 2001 तक। तीसरे दौर की इंटरनेट पत्रकारिरता 2002 से अ� तक की है। पहले चरण में इंटरनेट खुद योग के धरातल पर था, इसलिलए �डे़ काशन-समूह यह देख रहे थे विक कैसे अख�ारों की सुपर इन्Jॉम�शन-हाई�े पर दजB हो। त� एओएल यानी अमेरिरका ऑनलाइन जैसी कुछ चर्शिचंत कंपविनयाँ सामने आई। लेविकन कुल मिमलाकर योगों का दौर था।

सच्चे अथ| में इंटरनेट पत्रकारिरता की शुरुआत 1983 से 2002 के �ीच हुई। इस दौर में तकनीक स्तर पर �ी इंटरनेट का ज�रदस्त वि�कास हुआ। नई �े� �ाषा एचटीएमएल (हाइपर टेक्स्ट माक्र्*अप लैंग्�ेज) आई, इंटरनेट ईमेल आया, इंटरनेट एक्सप्लोरर और नेटस्केप नाम के ~ाउजर (�ह औजार जिजसके जरिरये वि�श्वव्यापी जाल में गोते लगाए जा सकते हैं) आए। इन्होंने इंटरनेट को और �ी सुवि�धासंपन्न और तेज-रफ़्तार �ाला �ना द्रिदया। इस दौर में लग�ग स�ी �डे़ अख�ार और टेलीवि�जन समूह वि�श्वजाल में आए।

‘न्यूयॉकB टाइम्स’, ‘�ाचिशंगटन पोस्ट’, ‘सीएनएन’, ‘�ी�ीसी’ सविहत तमाम �डे़ घरानों ने अपने काशनों, सारणों के इंटरनेट संस्करण विनकाले। दुविनया�र में इस �ीच इंटरनेट का कार्फ़ी वि�स्तार हुआ। न्यू मीवि*या के नाम पर *ॉटकॉम कंपविनयों का उर्फ़ान आया, पर उतनी ही तेजी के साथ इसका �ुल�ुला Jूटा �ी। सन 1996 से 2002 के �ीच अकेले अमेरिरका में ही पाँच लाख लोगों को *ॉटकॉम की नौकरिरयों से हाथ धोना पड़ा। वि�षय सामग्री और पयाBप्त आर्शिथकं आधार के अ�ा� में ज्यादातर *ॉटकॉम कंपविनयाँ �ंद हो गई।

लेविकन यह �ी सही है विक �डे़ काशन-समूहों ने इस दौर में �ी खुद को विकसी तरह जमाए रखा। चँूविक जनसंचार के क्षेत्र में सविaय लोग यह जानते थे विक और चाहे जो हो, सूचनाओं के आदान- दान के माध्यम के तौर पर इंटरनेट का कोई ज�ा� नहीं। इसलिलए इसकी ासंविगकता हमेशा �नी रहेगी। इसलिलए कहा जा रहा है विक इंटरनेट पत्रकारिरता का 2002 से शुरू हुआ तीसरा दौर सचे्च अथों में द्रिटकाऊ हो सकता हैं।

�ारत में इंटरनेट पत्रकारिरता�ारत में इंटरनेट पत्रकारिरता का अ�ी दूसरा दौर चल रहा है। �ारत के लिलए पहला दौर 1993 से शुरू माना जा सकता है, ज�विक दूसरा दौर सन 2003 से शुरू हुआ है। पहले दौर में हमारे यहाँ �ी योग हुए। *ॉटकॉम का तूJान आया और �ुल�ुले की तरह Jूट गया। अंतत: �ही द्रिटके रह पाए जो मीवि*या उद्योग में पहले से ही द्रिटके हुए थे। आज पत्रकारिरता की दृमिष्ट से ‘टाइम्स ऑर्फ़ इंवि*या’, ‘प्रिहंदुस्तान टाइम्स’, ‘इंवि*यन एक्स ेस’, ‘प्रिहंदू’, ‘द्रिट्रब्यून’, ‘स्टेट्समैन’, ‘पॉयविनयर’, ‘एन*ी टी०�ी०’, ‘आई�ीएन’, ‘जी न्यूज़’, ‘आजतक’ और ‘आउटलुक ‘ की साइटें ही �ेहतर हैं। ‘इंवि*या टु*े” जैसी कुछ साइटें �ुगतान के �ाद ही देखी जा सकती हैं।

जो साइटें विनयमिमत अप*ेट होती हैं, उनमें ‘प्रिहंदू’, ‘टाइम्स ऑर्फ़ इंवि*या’, ‘आउटलुक’, ‘इंवि*यन एक्स ेस’, ‘एन*ी टी०�ी० ‘, ‘आजतक’ और ‘जी न्यूज़’ मुख हैं। लेविकन �ारत में सच्चे अथ| में यद्रिद कोई �े� पत्रकारिरता कर रहा है तो �ह ‘रीवि*र्फ़ *ॉटकॉम’, ‘इंवि*याइंJोलाइन’ � ‘सीJी’ जैसी कुछ ही साइटें हैं। रीवि*र्फ़ को �ारत की पहली साइट कहा जा सकता है जो कुछ गं�ीरता के साथ इंटरनेट पत्रकारिरता कर रही है। �े� साइट पर वि�शुद्ध पत्रकारिरता शुरू करने का शे्रय ‘तहलका *ॉटकॉम’ को जाता है।

प्रि+ंदी नेट संसारप्रिहंदी में नेट पत्रकारिरता ‘�े� दुविनया’ के साथ शुरू हुई। इंदौर के ‘नई दुविनया समूह’ से शुरू हुआ यह पोटBल प्रिहंदी का संपूणB पोटBल है। इसके साथ ही प्रिहंदी के अख�ारों ने �ी वि�श्वजाल में अपनी उपक्टिस्थवित दजB करानी शुरू की। ‘जागरण’, ‘अमर उजाला’, ‘नई दुविनया’, ‘प्रिहंदुस्तान’, ‘�ास्कर’, ‘राजस्थान पवित्रका’, ‘न��ारत टाइम्स’, ‘ �ात

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ख�र’ � ‘राष्ट्रीय सहारा’ के �े� संस्करण शुरू हुए। ‘ �ासाक्षी’ नाम से शुरू हुआ अख�ार, प्रि ंट रूप में न होकर लिसर्फ़B इंटरनेट पर ही उपलब्ध है। आज पत्रकारिरता के लिलहाज से प्रिहंदी की स�Bशे्रष्ठ साइट �ी�ीसी की है। यही एक साइट है, जो इंटरनेट के मानदं*ों के विहसा� से चल रही है। �े� दुविनया ने शुरू में काJी आशाए ँजगाई थीं, लेविकन धीरे-धीरे स्टार्फ़ और साइट की अप*ेटिटंग में कटौती की जाने लगी, जिजससे पत्रकारिरता की �ह ताजगी जाती रही जो शुरू में नजर आती थी।

प्रिहंदी �े�जगत का एक अच्छा पहलू यह �ी है विक इसमें कई साविहत्यित्यक पवित्रकाए ँचल रही हैं। अनु�ूवित, अभि�व्यलिक्त, प्रिहंदी नेस्ट, सराय आद्रिद अच्छा काम कर रहे हैं। कुल मिमलाकर प्रिहंदी की �े� पत्रकारिरता अ�ी अपने शैश� काल में ही है। स�से �ड़ी समस्या प्रिहंदी के र्फ़ौंट की है। अ�ी �ी हमारे पास कोई एक ‘की-�ो*B’ नहीं है। *ायनमिमक र्फ़ौंट की अनुपलब्धता के कारण प्रिहंदी की ज्यादातर साइटें खुलती ही नहीं हैं। इसके लिलए ‘की-�ो*B’ का मानकीकरण करना चाविहए।

पाठ्यपुस्तक से +ल प्रश्न

प्रश्न 1:नीचे द्रिदए गए श्नों के उत्तर के लिलए चार-चार वि�क_प द्रिदए गए हैं। सटीक वि�क_प पर (✓) का विनशान लगाइए :(क) इंटरनेट पत्रकारिरता आजकल 1हुत लोकविप्रय +ै क्योंविक

1. इससे दृश्य ए�ं प्रि ंट दोनों माध्यमों का ला� मिमलता है।2. इससे ख�रें �हुत तीव्र गवित से पहुँचाई जाती हैं।3. इससे ख�रों की पुमिष्ट तत्काल होती है।4. इससे न के�ल ख�रों का सं ेषण, पुमिष्ट, सत्यापन ही होता है �ल्कि_क ख�रों के �ैकग्राउं*र तैयार करने में

तत्काल सहायता मिमलती है।

उत्तर –4. इससे न के�ल ख�रों का सं ेषण, पुमिष्ट, सत्यापन ही होता है �ल्कि_क ख�रों के �ैकग्राउं*र तैयार करने में तत्काल सहायता मिमलती है।

(ख) टी०�ी० पर प्रसारिरत ख1रों में स1से म+त्�पूण9 +ै-

1. वि�जुअल2. नेट3. �ाइट4. उपयुBक्त स�ी

उत्तर –4. उपयुBक्त स�ी।

(ग) रेवि!यो समाचार की �ाषा ऐसी +ो-

1. जिजसमें आम �ोलचाल के शब्दों का योग हो।2. जो समाचार�ाचक आसानी से पढ़ सके।

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3. जिजसमें आम �ोलचाल की �ाषा के साथ-साथ सटीक मुहा�रों का इस्तेमाल हो।4. जिजसमें सामालिसक और तत्सम शब्दों की �हुलता हो।

उत्तर –2. जो समाचार�ाचक आसानी से पढ़ सके।

प्रश्न 2:वि�भि�न्न जनसंचार माध्यमों-प्रि ंट, रेवि*यो, टेलीवि�जन, इंटरनेट-से जुड़ी पाँच-पाँच खूवि�यों और खामिमयों को लिलखते हुए एक तालिलका तैयार करें।उत्तर –

माध्यम खूवि1याँ (वि�शेषताए)ँ खामिमयाँ (कमिमयों)

प्रिप्रंट   1. छपाई के कारण शब्दों में स्थामियत्�ा।   1. विनरक्षरों के लिलए अनुपयोगी।

  2. रुलिच ए�ं इच्छानुसार समय मिमलने पर

पढना।  2. घटना की तात्कालिलक जानकारी न मिमल पाना।

  3. संद�B की त्तरह योगा।   3. से्पस का ध्यान रखना होता है।

  4. पढ़ते समय सोचने-समझने के लिलए अपनी

सुवि�धानुसार आजादी

  4. छपी हुई तु्रद्रिटयों का विनराकरण नहीं।

 

  5. इसकी �ाषा अनुशासनपूणB होती है।  5. लेखक पाठक के शैभिक्षक ज्ञान के अंतगBत ही लिलख

सकता है।

रेवि!यों   1. कहीं �ी सुना जा सकता है।   1. समाचारों पर वि�चार करते हुए रुक-रुककर नहीं

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सुना जा सकता।

  2. शब्दों का माध्यम है।   2. एकरेखीय माध्यम है।

  3. उलटा विपरामिम* शैली में समाचार।   3. समाचार के समय का इंतजार करना पड़ता है।

  4. साक्षर-विनरक्षर स�ी के लिलए समान से

उपयोगी।  4. कम आकषBका।

  5. रेवि*यों श्रोताओं रने संचालिलत माध्यम मना

जाता है।

  5. श्रोताओ को �ाँधकर रखना सारण कताBओं के

लिलए कद्रिठन होता है।

टेलीवि�जन   1. देखने ए�ं सुनने का माध्यम।   1. घटनाआ¥ aो �ढ़।-चढाकर द्रिदखाना।

  2. सजी� सारणा।   2. वि�ज्ञापनों को अमिधकता।

  3. ~ेप्रिकंग न्यूज को व्य�स्था।   3. विनष्पक्षता संद्रिदग्ध।

  4. आकषBक माध्यम।   4. अत्यमिधक �ाजारोन्मुखा।

  5. कम-रने-कम शब्दों में अमिधकतम ख�रें

पहुँचाने में समथाB।  5. मानक ए�ं लिशष्ट �ाया का अ�ा�।

इंटरनेट   1. हर समय समाचार ए�ं सूचनाए ँउपलब्ध।   1. अश्लीलता Jैलाने �ाला।

  2. अत्यंत तीव्र गवित �ाला माध्यम।   2. दुष् चार का साधना।

  3. ज्ञान ए�ं मनोरंजन का अदृ�ुत खजाना।   3. महँगा साधना।

  4. समूचा अख�ार इंटरनेट पर।   4. श्रामक ख�रों का �रमार।

  5. साविहत्यक पत्रकारिरता हेतु उलिचत मंच।   5. प्रिहंदी के विकसी मानक Jैं ट का अ�ा�।

प्रश्न 3:इंटरनेट पत्रकारिरता सूचनाओं को तत्काल उपलब्ध कराता है, परंतु इसके साथ ही उसके कुछ दुष्परिरणाम �ी हैं। उदाहरण सविहत स्पष्ट कीजिजए।उत्तर –जिजस तरह से हर लिसक्के के दो पहलू होते हैं, उसी कार इंटरनेट के �ी दो पक्ष हैं। इसके द्वारा अथाBत इंटरनेट पत्रकारिरता से हमें सूचनाए ँतत्काल उपलब्ध हो जाती हैं परंतु इसका दूसरा पक्ष उतना उजला नहीं है। इसके अनेक दुष्परिरणाम �ी हैं, जैसे-

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1. यह समाज में अश्लीलता और गंदगी Jैलाने का साधन है।2. इसके कारण यु�ा अनैवितक काय| की ओर आकृष्ट हुए हैं।3. यह दुष् चार का साधन है।4. यह अत्यंत महँगा साधन है।

प्रश्न 4:श्रोताओं या पाठकों को �ाँधकर रखने की दृमिष्ट से प्रि ंट माध्यम, रेवि*यो और टी०�ी० में से स�से सशक्त माध्यम कौन है? पक्ष-वि�पक्ष में तकB दें।उत्तर –श्रोताओं या पाठकों को �ाँधकर रखने की दृमिष्ट से प्रि ंट माध्यम, रेवि*यो और टी०�ी० में से स�से सात माध्या है-टी०�ी०।

इसके पक्ष में स्तुत तकB विनम्नलिलखिखत हैं-

1. टी०�ी० पर समाचार सुनाई देने के अला�ा द्रिदखाई �ी देते हैं, जिजससे यह दशBकों को �ाँधे रखता है।2. सलिचत्र सारण से समाचार अमिधक तथ्यपरक और ामाभिणक �न जाते हैं।3. इससे साक्षर-विनरक्षर दोनों ही तरह के दशBक ला�ात्यिन्�त होते हैं।4. कम समय में अमिधक समाचार द्रिदखाए जा सकते हैं।5. समाचारों को अलग-अलग रुलिचकर ढंग से दशाBया जाता है।

वि�पक्ष में प्रस्तुत तक9 -

1. टी०�ी० समाचार सुनने और देखने का महँगा साधन है।2. दूर-दराज और दुगBम स्थानों पर अ�ी इसकी पहँुच नहीं है।3. समाचार सुनने के लिलए विनभिश्चत समय का इंतजार करना पड़ता है।4. इच्छानुसार रुककर सोच-वि�चार करते हुए अगले समाचार को नहीं सुना जा सकता।

प्रश्न 5:नीचे द्रिदए गए लिचत्रों को ध्यान से देखें और इनके आधार पर टी०�ी० के लिलए तीन अथBपूणB संभिक्षप्त स्क्रिस्aप्ट लिलखें।

उत्तर –

1. यह स्थान JुसBत के दो पल वि�ताने लायक है। यह ाकृवितक सौंदयB ए�ं शांवित से �रपूर है। पहाड़ की ऊँची-ऊँची चोद्रिटयाँ मानो आसमान को छू लेना चाहती हैं। आसमान नीले दपBण जैसा है। नीचे वि�स्तृत झील में व्यलिक्त को एक �ड़ी-सी ना� चलाने का आनंद उठाते हुए देखा जा सकता है। खिखले कमल से

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झील का सौंदयB �ढ़ गया है, पर मनुष्य ने लिलर्फ़ारे्फ़, खाली वि*ब्�े जैसे अपलिशष्ट पदाथB झील में Jें ककर इसके सौंदयB पर धब्�ा लगाने में कसर नहीं छोड़ी है।

2. गम� आई नहीं विक जलसंकट �ढ़ा और पानी की कमी का रोना शुरू। हम यह क्यों नहीं सोचते विक पानी की ��ाBदी में �ी तो मनुष्य का ही हाथ है। लोग नलों को खुला छोड़ देते हैं और �हते पानी को रोकने में कोई रुलिच नहीं लेते। �हते नलों को �ंद करना अपनी शान में कमी समझते हैं। पानी की इस ��ाBदी को रोका जाना चाविहए। यह ��ाBद होता पानी विकसी को जी�न दे सकता है। �ढ़ते जलसंकट को कम करने के लिलए सरकार के साथ-साथ लोगों को �ी आगे आना होगा और मिमल-जुलकर जलसंकट का हल खोजते हुए उस पर अमल करना होगा।

3. आज के �च्चे कल के नागरिरक हैं। इन्हीं पर देश का �वि�ष्य द्रिटका है। पर इन �च्चों का क्या दोष, जिजनकी कमर �स्ते के �ोझ से टूटी जा रही है। �स्ते का �जन उनके �जन से �ारी हो गया है। कमर सीधी करके चलना �ी कद्रिठन हो गया है। आज �च्चों की लिशक्षा और उनके �स्ते का �ोझ कम करने के लिलए समय-समय पर सेमीनार आयोजिजत विकए जाते हैं, पर क्टिस्थवित �ही ढाक के तीन पात �ाली ही है। वितयोविगता का समय होने की �ात कहकर पुस्तकों की संख्या �ढ़ा दी जाती है। �च्चों के लिलए उनका यह विनणBय विकतना �ारी पड़ता है, इसकी चिचंता विकसी को नहीं है। पता नहीं हमारे देश के लिशक्षावि�दों को �च्चों के स्�ास्थ्य का ध्यान क� आएगा?

अन्य +ल प्रश्न

अवित लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1: मुख जनसंचार माध्यम कौन-से हैं?उत्तर –जनसंचार के मुख माध्यम हैं-समाचार-पत्र, पवित्रकाए,ँ विर्फ़_म, टेलीवि�जन, रेवि*यो, टेलीJोन, इंटरनेट, पुस्तकें आद्रिद।

प्रश्न 2:प्रि ंट माध्यम से आप क्या समझते हैं?उत्तर –संचार के जो साधन प्रि ंट अथाBत छपे रूप में लोगों तक सूचनाए ँपहुँचाते हैं, उन्हें प्रि ंट (मुद्रि%त) माध्यम कहा जाता है।

प्रश्न 3:प्रि ंट माध्यम के दो मुख साधन कौन-कौन-से हैं?उत्तर –प्रि ंट माध्यम के दो मुख साधन है-

1. समाचार-पत्र,2. पत्र-पवित्रकाए।ँ

प्रश्न 4:प्रि ंट मीवि*या (माध्यम) का महत्� हमेशा क्यों �ना रहेगा?

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उत्तर –�ाणी, वि�चारों, सूचनाओं, समाचारों आद्रिद को लिलखिखत रूप में रिरकॉ*B करने का आरंभि�क साधन होने के कारण प्रि ंट मीविड़या का महत्त्� हमेशा �ना रहेगा।

प्रश्न 5:पत्रकारिरता विकसे कहते हैं?उत्तर –प्रि ंट (मुद्रि%त), रेवि*यो, टेलीवि�जन या इंटरनेट विकसी �ी माध्यम से ख�रों के संचार को पत्रकारिरता कहते हैं।

प्रश्न 6:�ारत में अख�ारी पत्रकारिरता की शुरुआत क� और कहाँ से हुई?उत्तर –�ारत में अख�ारी पत्रकारिरता की शुरुआत सन 1780 में जेम्स ऑगस्ट विहकी के ‘�ंगाल गजट’ से हुई जो कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) से विनकला था।

प्रश्न 7:प्रिहंदी का पहला साप्ताविहक पत्र कौन-सा था? इसके संपादक कौन थे?उत्तर –प्रिहंदी का पहला साप्ताविहक ‘उदत मातB*’ था, जिजसके संपादक पं० जुगल विकशोर शुक्ल थे।

प्रश्न 8:स्�तंत्रता- ात्यिप्त से पू�B पत्रकारिरता एक मिमशन थी, कैसे?उत्तर –स्�तंत्रता- ात्यिप्त से पू�B पत्रकारिरता का एक ही लक्ष्य था-स्�तंत्रता की ात्यिप्त। इस कार पत्रकारिरता एक मिमशन थी।

प्रश्न 9:स्�तंत्रता- ात्यिप्त के �ाद पत्रकारिरता में विकस कार का �दला� आया?उत्तर –स्�तंत्रता- ात्यिप्त के �ाद शुरू के दो दशकों तक पत्रकारिरता राष्ट्र-विनमाBण के वित वित�द्ध थी, पर �ाद में उसका चरिरत्र व्या�सामियक ( ोJेशनल) होने लगा।

प्रश्न 10:�ारत में पहला छापाखाना क� और कहाँ खुला?उत्तर –�ारत में पहला छापाखाना 1556 ई० में गो�ा में खुला।

प्रश्न 11:विकन्हीं दो समाचार एजेंलिसयों के नाम लिलखिखए।उत्तर –

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1. पी० टी०आई०2. यू०एन०आई०।

प्रश्न 12:ड्राई एकंर विकसे कहते हैं?उत्तर –ज� एकंर ख�र के �ारे में सीधे-सीधे �ताता है विक कहाँ, क्या, क� और कैसे हुआ तथा ज� तक ख�र के दृश्य नहीं आते एकंर, दशBकों को रिरपोटBर से मिमली जानकारिरयों के आधार पर सूचनाए ँपहँुचाता है, उसे ‘ड्राई एकंर’ कहते हैं।

प्रश्न 13:Jोन-इन का आशय समझाइए। या Jोन-इन क्या है?उत्तर –Jोन-इन �े सूचनाए ँया समाचार होते हैं, जिजन्हें एकंर रिरपोटBर से Jोन पर �ातें करके दशBकों तक पहुँचाता है। इसमें

रिरपोटBर घटना �ाली जगह पर मौजूद होता है।

प्रश्न 14:एकंर-�ाइट विकसे कहते हैं?उत्तर –एकंर-�ाइट का अथB है-कथन। टेलीवि�जन में विकसी ख�र को पुष्ट करने के लिलए इससे सं�ंमिधत �ाइट द्रिदखाई जाती है। विकसी घटना के �ारे में त्यक्षदर्शिशयंों या सं�ंमिधत व्यलिक्तयों का कथन द्रिदखाकर और सुनाकर समाचारों को ामाभिणकता दान करने के लिलए इसका योग विकया जाता है।

प्रश्न 15:एकंर-पैकेज विकसे कहते हैं?उत्तर –पैकेज विकसी �ी ख�र को संपूणBता से पेश करने का साधन होता है। इसमें सं�ंमिधत घटना के दृश्य, लोगों की �ाइट, ग्राविJक से जुड़ी सूचनाए ँआद्रिद होती हैं।

प्रश्न 16:रेवि*यो पर सारण के लिलए तैयार की जाने �ाली समाचार कॉपी की वि�शेषताए ँलिलखिखए।उत्तर –रेवि*यो पर सारण के लिलए तैयार की जाने �ाली समाचार कॉपी में एक पंलिक्त में अमिधकतम 12-13 शब्द होने चाविहए। �ाक्यों में जद्रिटल, उच्चारण में कद्रिठन शब्द, संभिक्षप्ताक्षर का योग नहीं करना चाविहए। एक से दस तक के अंकों को शब्दों में तथा 11 से 999 तक को अंकों में लिलखा जाना चाविहए।

प्रश्न 17:प्रि ंट मीवि*या के ला� कौन-कौन-से हैं?उत्तर –

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1. प्रि ंट मीवि*या को धीरे-धीरे, दु�ारा या मजी के अनुसार पढ़ा जा सकता है।2. विकसी �ी पृष्ठ या समाचार को पहले या �ाद में पढ़ा जा सकता है।3. इन्हें सुरभिक्षत रखकर संद�B की तरह इस्तेमाल विकया जा सकता है।

प्रश्न 18:*े* लाइन विकसे कहते है?उत्तर –सविपत्र-विपत्रकओं में समार या रिरपाटB कश हेतुज सायसीमा विनवितक जता है,उसे “*े* लाइन’ कहते हैं।

प्रश्न 19:प्रि ंट माध्यम के लेखकों को विकन-विकन �ातों का ध्यान रखना चाविहए?उत्तर –प्रि ंट माध्यम के लेखकों को (i) समय-सीमा (*े* लाइन), (ii) शब्द-सीमा तथा (iii) अशुद्धयों का ध्यान रखना चाविहए।

प्रश्न 20:मुद्रि%त (प्रि ंट) माध्यम की सीमा (कमजोरिरयों) का उ_लेख कीजिजए।उत्तर –प्रि ंट माध्यम विनरक्षरों के लिलए �ेकार की �स्तु है। इसके अला�ा �े विकसी घटना को ख�र एक विनभिश्चत समय �ाद ही है सकते हैं।

प्रश्न 21:एनकोप्रि*ंग से आप क्या समझते हैं?उत्तर –संदेश को �ेजने के लिलए शब्दों, संकेतों या ध्�विन-लिचहनों का उपयोग विकया जाता है। �ाषा �ी एक कार का कूट-लिचहन या को* है। अत: ाप्तकताB को समझाने योग्य कूटों में संदेश �ाँधना ‘कूटीकरण’ या ‘एनकोप्रि*ंग’ कहलाता है।

प्रश्न 22:~ेप्रिकंग न्यूज का क्या आशय है?उत्तर –~ेप्रिकंग न्यूज का दूसरा नाम फ़्लैश �ी है। इसके अंतगBत अत्यंत महत्�पूणB या �डे़ समाचार को कम-से-कम शब्दों में दशBकों तक तत्काल पहुँचाया जाता है, जैसेनेपाल में आया �ीषण �ूकंप। दो रेलगाविड़यों में टक्कर, दस मरे, सैकड़ों घायल।

प्रश्न 23:पत्रकारीय लेखन में स�ाBमिधक महत्� विकस �ात का है?उत्तर –पत्रकारीय लेखन में स�ाBमिधक महत्� समसाममियक घटनाओं की जानकारी शीघ्र देने का है।

प्रश्न 24:अख�ार अन्य माध्यमों से अमिधक लोकवि य क्यों है? एक मुख्य कारण लिलखिखए।

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उत्तर –अख�ार अन्य माध्यमों से अमिधक लोकवि य इसलिलए है, क्योंविक छपा हुआ होने के कारण इसमें स्थामियत्� है। इसे अपनी इच्छनसार कहीं �ी, क�ी �ी पढ़ा जा सकता है।

स्�यं करें

1. प्रि ंट माध्यम से आप क्या समझते हैं?2. �ारत में पहला छापाखाना कहाँ खुला था?3. मुद्रि%त माध्यम अपनी विकन वि�शेषताओं के कारण दूसरे माध्यमों से अलग हैं?4. मुद्रि%त माध्यमों के लेखन में विकन �ातों का ध्यान रखना चाविहए?5. *े* लाइन विकसे कहते हैं?6. Jोन-इन विकसे कहते हैं?7. एकंर-�ाइट से आप क्या समझते हैं?8. इंटरनेट की लोकवि यता का कारण क्या है?9. �ारत में छपने �ाला पहला अख�ार कौन-सा था? �ह क� और कहाँ कालिशत हुआ?10. फ़्लैश या ~ेप्रिकंग न्यूज विकसे कहा जाता है?

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