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EDITOR EDITOR EDITOR EDITOR - - - - PUBLISHER : SNEH THAKORE ( PUBLISHER : SNEH THAKORE ( PUBLISHER : SNEH THAKORE ( PUBLISHER : SNEH THAKORE ( LIMKA BOOK RECORD HOLDER) LIMKA BOOK RECORD HOLDER) LIMKA BOOK RECORD HOLDER) LIMKA BOOK RECORD HOLDER) VASUDHA VASUDHA VASUDHA VASUDHA A CANADIAN PUBLICATI A CANADIAN PUBLICATI A CANADIAN PUBLICATI A CANADIAN PUBLICATI ON ON ON ON Year 12, Issue 47 Year 12, Issue 47 Year 12, Issue 47 Year 12, Issue 47 July July July July-Sept., 2015 Sept., 2015 Sept., 2015 Sept., 2015 kEneDa se p/kaixt saihiTyk pi5ka kEneDa se p/kaixt saihiTyk pi5ka kEneDa se p/kaixt saihiTyk pi5ka kEneDa se p/kaixt saihiTyk pi5ka vsu2a vsu2a vsu2a vsu2a s.padn v p/kaxn s.padn v p/kaxn s.padn v p/kaxn s.padn v p/kaxn Sneh #akur Sneh #akur Sneh #akur Sneh #akur ilMka buk irka ilMka buk irka ilMka buk irka ilMka buk irka$ $ $ $ DR hoLDr DR hoLDr DR hoLDr DR hoLDr v8R ÉÊ - A.k ÌÏ, jula{-istMbr ÊÈÉÍ

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Page 1: Year 12, Issue 47Year 12, Issue 47 vsu2avsu2a · राथत § में आ वबछ §ग . ... श्रराम की अन ¡कम्पा स § ह हाल ह में

EDITOR

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Year 12 Issue 47Year 12 Issue 47Year 12 Issue 47Year 12 Issue 47

JulyJulyJulyJuly----Sept 2015Sept 2015Sept 2015Sept 2015

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म और त दो तो नहम और त दो तो नहम और त दो तो नहम और त दो तो नह पी डॉपी डॉपी डॉपी डॉ याम सह शिशयाम सह शिशयाम सह शिशयाम सह शिश

मर दश तरा चपा-चपा मरा शरीर ह

तरा जल मरा मन ह तरी वाय मरी आमा ह इन सबस िमलकर ही त बनता ह मर दश

म और त दो तो नह ह शरीर आमा मन एक ही ाणी क

थल या सम अग ह म इ(ह) बटन नह दगा म इ(ह) लटन नह दगा म इ(ह) िमटन नह दगा

12 47 2015 1

सपादकीय २

कषण आ गया ह डॉ नरनदर कोहली ४

मरली कस अधर धर महाकवि गलाब खडलिाल १५

भारत और भारतीयता का अरथ परो गिरीशवर वमशर १६

भकप का सदश डॉ एमएल गपता ldquoआददतय १९

ि दोनो डॉ सषम बदी २१

पासपोरथ अमरीकन मरो ओम गपता ३१

शरीमदभगिदगीता

राजधमथ का विशवगरर यतीरनार चतिदी ३२

आकाकषा शकतला बहादर ३४

वहनददी क भगीरर

महामना प मदन मोहन मालिीय डॉ नीलम शमाथ ३५

कषमा सनह ठाकर ३९

म और त दो तो नही पदमशरी डॉ शयाम ससह शवश १ अ

16 Revlis Crescent Toronto Ontario M1V-1E9 Canada TEL 416-291-9534

Annual subscription$2500

By Mail Canada amp USA$3500 Other Countries$4000

Website httpwwwVasudha1webscom

e-mail snehthakorerogerscom

12 47 2015 2

सपादकीय

राषटरपवत भिन क सभागार म भारत क राषटरपवत माननीय शरी परणि मखजी की उपवथरवत म

वगन-चन वनमवित वयवियो क साविधय म इरधनष दवारा परथतत सफ़ीआना कविाली सनन क आनद का

सौभागय डॉ आरपी ससह क सौजनदय स परापत हआ ठाकर साहब और म डॉ आरपी ससह जी की

सदाशयता क आभारी ह

भारत क परधान मिी माननीय शरी नरनदर मोदी जी न रोराणरो कनडा म अपना ििवय वहनददी

पजाबी और गजराती क सबोधनो स आरभ कर भारतीय मल की जनता का हदय जीत वलया अपना

भाषण वहनददी म दकर अपन दश की भाषा की महतता का परदशथन दकया थिभाषा को गौरिावनदित कर

कहन िाल और सनन िाल दोनो ही इस ददशा म गरवित हए

पस की महतता हर समय-काल म रही ह इस यग-काल म भी ह जीिन को सविधाजनक

सचार रप स चलान क वलए पसा आिशयक ह ितथमान भी इसस अछता नही ह दोनो ही दशो क

परधान मिी अपनी आरवरक सपिता को दविगत रख उसम कस और बढ़ोततरी की जा सकती ह इस

विषय पर अपन िाताथलाप को क दरत करत रह भारत क पास ऐसा कया ह वजस परापत कर कनडा

लाभावनदित हो सक और कनडा क पास दन क वलए ऐसा कया ह वजसस भारत लाभावनदित हो सक ऐसी

आरवरक सपिता क आदान-परदान क मददो पर वजसस दोनो दश लाभावनदित हो सक ज़ोर रहा दोनो

दशो की बहलता का पारथपररक फायदा उठाना लकषय रहा दोनो दशो क आतम-सममान को सरवकषत

रखत हए करय-विकरय की अरथ-वयिथरा को समावहत करन क दाि-पच म दोनो सफल रह कनडा क

परधान मिी माननीय शरी थरीिन हापथर जी माननीय शरी मोदी जी की कनडा यािा म हरदम उनक सार

रह मिीपणथ भाि स हरदम सग-सग रहना इस तथय का परमाण ह आखो न जो सपन दख ि ददखाय ह

उनकी परमावणकता भविषय वनधाथररत करगा

यह हमारा सौभागय ह दक शरी राम परसाद विपाठी जी शरी विकास सनी जी एि शरी दीपक

चोपड़ा जी क सौजनदय स माननीय शरी लालकषण आडिाणी जी क सार जो मधमय समय बीता उसक

वलए हम दोनो ही सबक आभारी ह आडिाणी जी न वजस आवतथय सतकार की भािना विनमरता और

परम क सार लगभग डढ़-पौन दो घर का समय हमार सार वबताया िह आजनदम हम उनक परवत एक

आदर-भाि क सि म बाध गया ह आडिाणी जी की विदवतता म घली शालीनता मन मोहन िाली ह

इस सौहारथ पणथ अिथरा म समय दकस अबाध गवत स बहता चला गया इसका भान तो आज तक न हो

पाया शरी आडिाणी जी दवारा ददए गए उपहार हमारी अमलय वनवध ह जहा एक ओर उनक घर की

बठक की पटरगस बरबस ही आपकी दवि आकरवषत करती ह कया जीित वचिण ह िही दसरी ओर

अपनी लाइबररी की पिथत शरखलाओ की एक पसनदरग दवारा उनदहोन जीिन का एक महामनदि मर हारो म

रमा ददया - पहाड़ जसी बाधाओ को हरदम पीछ धकल कर रखो अपन सामन न आन दो िाथति म

सही ह परगवत क पर पर कदम रकन क वलए नही ह बाधाओ को हरात हए आग बढ़न क वलए ह एक

पग उठगा तो ही तो दसरा पग उसक सार जड़गा और जब पग-दर-पग बढ़ग तो मवज़ल तो ख़द-ब-ख़द

राथत म आ वबछगी

अपनी लाइबररी म जहा उनदहोन कछ अमलय वचिो स मरा पररचय कराया िही एक विरल

दलथभ पथतक स अिगत कराया - अगरजी-ससधी शबदकोश वजसम ससधी भाषा दिनागरी म वलखी री

आडिाणी जी न अपनी पिी परवतभा स भी हमारा पररचय कराया परवतभा जी अपन

नामथिरप ही परवतभाशाली ह उनका वयविति कई कलाओ स समपि ह यदयवप दक उस समय ि

12 47 2015 3

वयथत री पर उन वयथत कषणो स भी समय वनकाल उनदहोन हमार सार कछ समय वबताया इस हत धनदयिाद क

शबद कम ह हदय स आशीिाथद दती ह दक ि अपन नाम को और भी उजागर कर

भारतीय साथकवतक सबध पररषद क अधयकष परो लोकश चर जी क अमलय समय क वलए आभारी ह

कई विषयो पर विचार-विमशथ हआ उनक उपयोगी विचारो स अिगत हई

शरीमती सनीवत शमाथ डीएस वहनददी एि डॉ नीना मलहोिा जएस वहनददी स वहनददी विषयक विदशो म

वहनददी वशकषण मानकीकरण शबदकोश विशव वहनददी सममलन आदद अनक विषयो पर गभीर विचार-विमशथ हआ

इस उपयोगी िाताथ हत दोनो की आभारी ह

सावहतय अकादमी क अधयकष डॉ विशवनार परसाद वतिारी जी स सावहतय पर िाताथलाप हआ उनक

दवारा परदतत ह-मान की आभारी ह

जिाहर लाल नहर विशवविदयालय क डॉ राजश पासिान न दो ददिसीय सत गर रविदास जी पर

अतरविषयक अतराथषटरीय सगोषठी का भवय आयोजन दकया विवशि अवतवर क रप म आमवित करन क वलए

धनदयिाद एि आभार

उदथ अरबी फारसी यवनिरवसरी लखनऊ क परो अशरफ़ी न दो ददिसीय रोल ऑफ सफ़ीज़ इन परमोशन

ऑफ सोशल हारमोनी विषय पर एक भवय आयोजन दकया सममावनत अवतवर हत धनदयिाद एि आभार

शरी अवनल जोशी जो ददलली म वहनददी क परचार-परसार म सलगन एक जान-मान वयविति ह तबादला

होकर फ़ीजी जा रह र उनक सममान समारोह म सवममवलत करन हत आभार

शरी दिनदर वमततल डॉ राम शरण गौड़ डॉ ददनश वमशर डॉ नताशा अरोरा न अतराथषटरीय मवहला

ददिस की पिथ सधया पर सममावनत दकया धनदयिाद एि आभार

सभी शभचछको की शभकामनाओ स वयविगत रप स यह िषथ मा सरथिती की असीम अनकपा लकर

मर वलए आया ह मा सरथिती न बहत कछ मरी झोली म डाला ह

शभचछको की शभकामनाओ स वलमका बक ऑफ ररकॉडथ म मरा नाम परिासी सावहतयकार एि

पिकार - सपादक-परकाशक िसधा - दोनो ही रपो म दज़थ हआ ह वलमका रीम को धनदयिाद आभार

फरिरी म सावहतय अकादमी म पर न मर उपनदयास ककयी चतना-वशखा को अवखल भारतीय

िीरससह दि परथकार स परथकत दकया ह सावहतय अकादमी सावहतय अकादमी क वनदशक डॉ विभिन नार

शकल सथकवत पररषद की आभारी ह भवय अलकरण समारोह हत धनदयिाद

२ माचथ को जय शकर परसाद सभागार म अिध रतन अिाडथ २०१५ वमला ह सगम क सभी

पदावधकाररयो क परवत धनदयिाद एि आभार

जहा यएन समबदध सथराओ दवारा इररनशनल िीमन एकसलनदस अिाडथ २०१४ वपछल िषथ वमला

रा िही इस िषथ एक और यएन समबदध परवतवषठत ररसचथ फाउडशन इररनशनल दवारा इररनशनल िीमन

सममान का सौभागय परापत हआ ह ररसचथ फाउडशन इररनशनल तरा इरर रोमा कलचरल यवनिरवसरी क

ततिािधान म पीजी वडपलोमा इन सोशल िकथ की विभागाधयकष तरा रोमा यवनिरवसरी की रवजथरार डॉ ऋचा

ससह दवारा आयोवजत भवय समारोह म मचासीन रोमा यवनिरवसरी क कलावधपवत पदमशरी डॉ शयाम ससह शवश

माउर एिरथर पररम मवहला विजता पदमशरी सतोष यादि एि डॉ सतोष खिा तरा वशकषा भिन क गणमानदय

अवतवरयो और भविषय क कणथधार मधािी छाि-छािाओ की उपवथरवत म यह सममान परदान दकया गया

शरी राम की कपा और आदरणीय एि वपरय अममा मा मातशवरी दिी क आशीिाथद स इस िषथ मरा नया उपनदयास

लोक-नायक राम भी परकावशत हो गया ह आशा ह दक इस भी पहल की ही तरह आपकी सदभािनाए परापत होगी

शरी अवनल िमाथ जी परकाशक क सार-सार वहतषी शभाकाकषी पाररिाररक सदथय क रप म ह आभार आशीिाथद

शरीराम की अनकमपा स ही हाल ही म मझ क रीय वहनददी सथरान आगरा दवारा परथकत होन की सचना

दी गई ह यह सममान मझ भारत क माननीय राषटरपवत क कर-कमलो दवारा राषटरपवत भिन म परदान दकया जाएगा

सभी की शभचछाओ को समर हए उनक परवत आभार परगर करत हए सभी क परवत मगल कामनाओ सवहत

जय शरी राम ससनह सनह ठाकर

12 47 2015 4

कषण आ गया ह डॉ नरनदर कोहली

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12 47 2015 15

मरली कस अधर धर

महाकवि गलाब खडलिाल

मरली कस अधर धर

सर तो िदािन म छर कस तान भर

जो मरली सबक मन बसती

वजसस री तब सधा बरसती

आज िही नावगन-सी डसती छत वजस डर

वजसको लत ही अब कर म

पीड़ा होती ह अनदतर म

कस दफर उसकी धन पर म जग को मगध कर

इसको तभी धर अधरो पर

जब सग-सग हो राधा का थिर

जब यह मरली सना-सनाकर उसका मान हर

मरली कस अधर धर

12 47 2015 16

भारत और भारतीयता का अरथ

परो गिरीशवर ममशर कलपवत महातमा गाधी वहनददी विशवविदयालय

आजकल क चरवचत सरोकारो म भारत और भारतीयता क सिाल परछन न और परत यकष दोनो ही रपो

म खासी चचाथ का विषय बन चक ह और कई बड़ बवदधजीिी इस पर बहस म वशरकत कर रह ह दसरी

ओर ऐसो की भी कमी नही ह जो इस बमतलब का मददा मानत ह इसका पररदश य आज जररल और

बदला हआ ह दश क थ िति होन क पहल और थ िति होन क ततकाल बाद और अब लगभग सात

दशक की पररपक िता क करीब पहचत-पहचत इस लकर आज बहतर यह मान कर इस तरह की चचाथ

स तरथ र हो चल ह दक यह तो कोई सारथक परश न ही नही ह कछ इस िवशवक या भमडलीकत हो रह

आज क समय की जररतो क अनसार समझना चाहत ह कछ इस किल थ रानीय दवि स ही दखना

चाहत ह कछ इस सभ यता और सथ कवत क विमशथ स जोड़ कर दखत ह जो भी हो अतरराष रीयता क

सार परयासो क बािजद आज भी राज य या नशन थ रर की अिधारणा वनणाथयक महत ि रखती ह और

वनकर भविष य म सीमाविहीन दश जसी कोई अिधारणा आकार लती नजर नही आती आज का सत य यही ह दक दशो की सीमाए बाधा (का अवधक) और सपकथ (का कम) का काम

कर रही ह दश की सीमाओ की रकषा सबक सामन एक बड़ी चनौती ह दश और राष र किल कोरी

भौगोवलक अिधारणाए नही होती उन इकाइयो की रचना क सार एक समाज या समदाय विशष की

आशा-आकाकषा भी जड़ी होती ह दश की अिधारणा एक थ िप न को समरवपत रहती ह आज क तमाम

राष रो क सार उनक सार जड़ी लबी सघषथ-गारा आसानी स दखी जा सकती ह जो दसर समाजो और

समदायो की सामराज यिादी आकाकषाओ क परवतरोध को दशाथती ह शविसपनद न और आरवरक रप स परबल

दशो की दादावगरी उनकी सतता और शवि का जलिा अभी भी बरकरार ह कहन का तात पयथ यह दक

दश की इकाई अभी भी राजनवतक सामावजक आरवरक सामररक और सास कवतक रप स महत िपणथ

बनी हई ह और उस नकारा नही जा सकता

आज बौवदधक किायद म भारत समत सब कछ करथ रड मान जान का फशन-सा चल पड़ा ह

पर उसस दर करोड़ो (भारतीय) जनो क तन-मन म भारत जीवित ह आम आदमी वजनस दश आकार

लता ह िह भारत की एक सामावजक थ मवत भी रखता ह उसक वलए दश थ रानबोधक ह और भारत

एक भाि भी ह भारतीय होन का मतलब ह भारतभवम म रहन की जीिन-व यिथ रा म शावमल होना

भारत कह या इवडया यह मलतः एक भौगोवलक थ रान और उसकी पररवध को रखादकत करता ह इस

भभाग को जब दवीप आयाथितथ भारतिषथ और सहदथतान क नाम स भी जानत ह वहमालय और

सागर इसकी सीमाए बनात ह शथ यश यामला क दश गान और जनगणमन क राष रीय गान म जीित

भारत माता को वजस रप म थ मरण दकया गया ह िह भौगोवलक अिधारणा ही नही उसकी सीमा म

रहन िाल बासशदो की सामावजक-साथ कवतक अवथमता पर बल दती ह वजसका एक भािात मक रप भी

ह भारत एक सामावजक शरणी भी ह जो समाज दवारा रवचत और थ िीकत ह यह उस सामावजक

आकाकषा का परतीक भी ह जो एक आदशथ वथरवत की ददशा म जान क वलए परररत करती ह आधवनक

यग म एक थ िति जनति क रप म एक राज य की थ रापना हई और सहमवत स एक सविधान बना और

12 47 2015 17

सामावजक आकाकषा को एक मतथ रप वमला हमन उसम आिश यकतानसार बदलाि भी दकया ह इस

इकाई क सदथ य क रप म हमारी एक भारतीय पहचान ह

स मरणीय ह दक एक समदाय या सामावजक इकाई की वभनद नता या अलग सतता थ रावपत करना

वयािहाररक दवि स भी आिश यक ह ऐसा करना समाज को अदर स बाधता ह एकजर करता ह और

अनद य (िसी ही) इकाइयो स फकथ करता ह िधावनक रप स नशन या राष र एक काननी इकाई भी ह

और उसक सदथ य िध नागररक होत ह वजसकी थ िीकवत अनद य राष र भी करत ह और पासपोरथ िीसा

आदद की व यिथ रा स आिागमन को वनयवित करत ह नागररक क रप म िधावनक सामावजक और

साथ कवतक अवधकार क सार कतथव य और दावयत ि म भी भागीदारी होती ह समाज की वनयवत ह दक

जावत भाषा बोली कषि भोजन िथ ि रीवत-ररिाज धमथ आदद की विशषताए आ जाती ह इनक

सार समाज का भािात मक लगाि होता ह और उसक सदथ य थ िय को उसी आधार पर पररभावषत भी

करन लगत ह चदक इन विशषताओ का सचार पारथ पररक सबध और जीिन क विविध व यापारो स

गहरा ररश ता होता ह इसवलए य उस समाज की पाररभावषक विशषताए बन जाती ह

भारत दश हमार समकष एक सभ यता और मल य दविसपनद न सामावजक इकाई क रप म

उपवथरत होता ह इसकी समझ कई रपो म वमलती ह वनकर इवतहास म झाक तो पाएग दक इसक

कई रप ह एक छोर पर सहद उपलवबध को बलपिथक रखन िाल वतलक अरसिद सािरकर और

विवपन चर पाल जस ह दसरी और गोखल रानाड गाधी और रगोर सरीख आध यावतमक विचार को

मानन िाल ह जो सभी परभािो को आत मसात करन को तयार ह य सवहष णता आत मवनयिण आदद क

सार एक तरह की बहलता को ठीक मानत ह तीसरी ओर आधवनक दविसपनद न नौरोजी और पवडत

नहर जस लोग ह जो भारत को एक विकवसत सभ यता तो मानत ह पर यह भी महसस करत ह दक

उसका हरास भी हआ और उसम बहत कछ आधवनक जीिन दवि क विपरीत हआ जो आज उपयोगी

नही ह उनक वहसाब स एक बहलतािादी आधवनक नजररया जो विजञानसम मत हो उपयक त ठहरता ह

आज हर भारतीय की एक बहआयामी पहचान बनती ह िह सहद बगाली मवथलम गजराती

कश मीरी वबहारी बराहमण ओबीसी जन ईसाई आदद िाली एक सार कई तरह की पहचान रखता ह

य वभनद न वभनद न पहचान अक सर एक दसर की विरोधी न होकर परक होती ह साथ कवतक रप स ि

गहरी पठी ह और उनक सार लोगो का गहरा सािथजवनक लगाि भी ह िथ ततः हर भारतीय की

पहचान (आइडरररी) की अलग व यिस रा ह कोई एक यनीफामथ पमाना नही ह जो यह तय कर दक कई

पहचानो म स कौन सबस ऊपर नबर िन पर ह यह एक बड़ा तरल या फलइड मामला ह आज

पजा-पाठ सगीत और थ िाथ थ य लाभ क अनक क र भारत भर म फल हए ह जहा आन जान स सहद

ईसाई वसख और मसलमान दकसी को भी परहज नही होता कई पहचान क सार रहना अथ पष रता तो

पदा करता ह पर शायद दसरो क वलए िथ ततः हर भारतीय कई (उप) सथ कवतयो म जीता ह और य

सब वमलकर उसकी पहचान बनाती ह इस अरथ म हर भारतीय शायद बहसाथ कवतक ह और उसकी

पहचान बहआयामी

दश की छवि दशिावसयो क आत मगौरि का माध यम होती ह आज क भारत का अग होना उस

वबलाग करना हमको आरवरक परगवत की ओर अगरसर एक दश एक आरवरक पािर क सार जड़न का

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एहसास दता ह दसरी ओर भरष राचार अवशकषा अव यिथ रा सामावजक करीवतयो और भदभाि क

कारण मन म रकान उदासीनता और असहायता की भािना भी आती ह इस सबक बािजद एक

भारतीय का बोध जरर ह जो पजाबी मराठी या गजराती होन अलग जावत िगथ और समदाय का

सदथ य होन पर भी सबको भारतीय बनाता ह कभी-कभी विविधता म एकता िाल नहर जी का

भारत अपररभाषय या अव याख यय लगता ह भारत को एक विथ तत साथ कवतक इकाई क रप म दखन

पर कछ विचार उभरत ह जो भारतीय होन क अरथ को थ पष र करन म सहायक होत ह इनम परमख ह

धमथ कमथ पनजथनद म को दकसी न दकसी रप म थ िीकारना सामावजक इकाई - पररिार जावत समदाय

क थ तर पर अपन अवथतत ि को महसस करना सक स वििाह और अनद य व यवियो क परवत खास दविकोण

को अपनाना बहलता का थ िीकार और खल कछ-कछ असगरठत दकथ म की आत म या सल फ की

अिधारणा का थ िीकार और दकसी न दकसी रप म दकसी बड़ी जञात-अजञात सतता स जड़ाि की

अवभलाषा और पररिश परकवत और सवि क सार साझदारी तरा परथ पर अनपरकता का भाि

समकालीन विमशथ म राज य और राष र की अिधारणा क अरथ बहत कछ इस पर वनभथर करत ह

दक कौन दकस दविकोण और परयोजन स इन पर गौर कर रहा ह अक सर इनद ह अतीत ितथमान और

भविष य स जोड़ कर दखा जाता ह और लोग अपन चन िचाररक आदशथ स रग कर ही इस पर विचार

करत ह इन शब दो और इनस जड़ अरथ थ रान और समय क सार-सार बदलत रह ह जो थ िाभाविक ह

भारत दश क बार म सोचन की एक बड़ी मवशकल यह ह दक हमारी अपनी पररभाषा क पमान हमार

अपन न होकर दकसी और क ददए हए ह ि हमार बौवदधक मानस म इतन गहर पठ चक ह दक अब हम

अपन पमान क बार म भरोसा ही नही कर पा रह ह और खद को पररभावषत करन का अवधकार ही

खोत जा रह ह आरवरक और तकनीकी परगवत क पसराि की दवनया म आज हमारा आतम-सशय इतना

गहराता जा रहा ह दक भारत और भारतीयता की बात करना परानी और ददकयानस और इसवलए

अपरासवगक मानी जान लगी ह अगर इसकी बात करनी भी ह तो उसकी सनद कही और स जरानी

होगी आज अपनी पहचान क वलए हम पविमी दशो म विदवानो क दवारा परमाण और गिाही चाहत ह

आज भारत की साथ कवतक विविधता को सपनद नता और समवदध क ोत क रप म समझन समझान की

जररत ह वजसका उपयोग समाज क विकास म दकया जाय इसक वलए भारत को भारत क नजररए स

दखना होगा वबना इस भय क दक भारतीय होना दकसी कषमा याचना की अपकषा करता ह थ िदशी और

सराज जस विचार अभी भी परासवगक ह समरथ और थ िािलबी होन क वलए आत म थ िीकार और सतत

पररष कार आिश यक ह

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भकप का सदश

डॉ एमएल गपता ldquoआददतय

धरती हर ददन डोल रही ह कपन की बोली बोल रही ह

विनाश कर आकरोश स बदल कय भगोल रही ह

कय धरती न भकरी तानी कय वहमालय म आिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

जो ससाधन र पोषण क उनका शोषण कर डाला

ओजोन का जो किच रा उसका भी भदन कर डाला

बरहमी स कार हमन िसधरा क िन-कश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

सागर क तीरो को छीला पठार और पिथत को लीला

नददया बनी नाल और नाली नही ददखता जल वनमथल-नीला

चतािनी द रहा ह मौसम बदला भमडल का पररिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

विजञान की सीढ़ी चढ़ विनाश का सामान बनाया

परमाण सयि द रह यातना विकीरण का खतरा मडराया

रवडएशन स आतदकत ह दवनया क सब दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

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कोई अण कोई परमाण कोई हाईडरोजन बम ल ऐठा ह

वबछी हई बारद धरा म मानि बमो क ढर पर बठा ह

हआ परमाण यदध तो वमर जाएग दकतन दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

भकषक बनकर मानि इक दज पर चोर कर रहा

परीकषण की खावतर दकतन भीषण बम विथफोर कर रहा

परकवत का सतलन वबगड़ा तो हम बन जाएग अिशष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

कदरत कहर बरपा सकती ह कभी भी आफत आ सकती ह

धरा की जरा सी भी हरकत दकतना कोहराम मचा सकती ह

धरा न जरा करिर बदली तो कछ भी न रहगा शष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

पयाथिरण क आघात पर अब तो रोक लगानी होगी

सागर पिथत धरती क सग बद करनी मनमानी होगी

धरती को जो मा मानोग सब वमर जाएग कलश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

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ि दोनो

डॉ सषम बदी

छत स फशथ तक क लब शीशो स जड़ी उस बड़ी-सी बठक म खब सारी ददन की रौशनी भरी हई

री फशथ पर वबछी सफद चादरो पर सफद िसतर पहन ढर सार लोग उस रौशनी का ही वहथसा लग रह

र कमर म घसत ही तारक को लगा जस उस शवतता म घल मौत क सदथपन और जड़ता न अचानक

उसक भीतर को जकड़ वलया ह बीचोबीच फलो की माला चढ़ी एक बड़ी-सी रवत की तथिीर री

वजसका धप दीप और गीता क शलोको स अवभषक दकया जा रहा रा रवत अब तथिीर भर री तारक

की थतबध पवनयायी आख वनथसहाय-सी रजत को खोजन लगी

रजत सारा िि लोगो स वघरा ही रहा रा उसकी मा उसक बचच और दसर ररशतदार कोई न

कोई उसक आसपास रा ही उन दोनो की आख एक दसर स दो एक बार वमली पर रजत अपन स

बाहर नही आ पाया रा तारक न दकसी तरह अपनी शोकभािना वयि कर दी री न भी वयि करता

तो कया रजत को तो खद भी अहसास होगा उसकी अतभाथिना का एक िही तो ह इस भीड़ म जो

जानता ह दक िह कयो यहा ह बाकी तो तारक दकसी स पररवचत ही नही वसिाय कछक रवत क

कलीगज क एक दो कलीगज स ही उसकी बात हई रवत क बार म ि उस पररिार का वमि मानकर

बात कर रह र य पररिार का वमि तो िह रा ही पर इसस अलग या ऊपर भी कछ रा यह शायद

रजत क अलािा और कोई नही जानता रा जबदक रजत भी परा कहा जानता ह खास तौर स िह सब

कछ जो तारक महसस करता रहा ह या जो कछ तारक और रवत क बीच म रहा या अभी भी वजसका

बहत कछ बचा रा

य तारक न बहत बार सोचा दक अब रवत नही रही तो उसक यहा जान का कोई फायदा नही

उसकी तकलीफ बढ़गी ही दफर लगा दक नही उस रजत स वमलन जाना होगा रजत भी तो उसका

दोथत ह य रवत उन दोनो क बीच न होती तो ि शायद बहत गहर दोथत हो सकत र दफर भी िह खद

को कई तरह स रजत क करीब महसस करता रा और रजत भी बहत मामलो म उसी स सलाह करक

चलता रा उस पर भरोसा करता रा जो दक उसक मन क दोथती क भाि को ही जताती री चदक

तारक की विशषता ददल क रोगो म री िह रवत क हारथअरक क बाद स उसस अकसर रवत क बार म

सलाह लता यहा तक दक रवत स भी कोई वशकायत होती तो तारक स ही कहता दखो न इसका

कोलथराल इतना हाई चल रहा ह और मडम चीज मीर सभी कछ खाती ह अभी रथतरा ल चलो परा

का परा थरक गरक जायगी कस कर यह तो खद को नकसान पहचान स बाज नही आतीrdquo और तारक

तब ररका दता कसी डाकरर हो तम रवत मरीजो को उपदश दती रहती हो और खदhellipदफर उसन

खद ही एक विशषण गढ़ा रा रवत क वलए lsquoनानकपलायरrsquo यानी दक जो कछ भी कहा जायगा उसका

विरोध ही करगी रवत और दकसी िजह स नही बवलक विरोध करन क वलए विरोध

तब रवत और भी तिर चढ़ाकर बोलती rdquoरजत तो पहल ही मर पीछ पड़ा रहता ह अब तम

भी इसी स वमल गय हो िाह जी िाह दोथत दकसक हो तम मर या रजत कrdquo

तारक तब चप रह जाता रा रजत भी कछ नही कहता एक वपरय अवपरय सतय

शायद रवत भी इसीवलए कहती री दक तारक तब लाजिाब हो जायगा कयोदक रवत जानती ह दक जो

िह तारक क वलए ह िह और कोई नही हो सकता और रजत को भी इसका अदाज ह इसी स रजत न

शर म चाह दकतना विरोह दकया हो दकतना लड़ाई झगड़ाhellip दफर धीर-धीर मान वलया रा इस ररशत

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को रवत क वलए ही अगीकार कर वलया रा तारक को भी रवत न ही उस बतलाया रा जब रजत न

उस बाहो म भरकर कहा रा rdquoइतना पयार करता ह तमह दक यह भी थिीकारन क वलए राजी हrdquo

एक हक-सी उठी री तारक क भीतरhellip वजस इतना पयार वमला होhellip इतनाhellip िह इस तरह स

उन दोनो की वजनददगी को ही सना करक रखसत हो ली तारक क मन म गथसा भी आयाhellip शायद

अपनी सहत का धयान रखती तो कछ और जी जाती उन दोनो स ही तो चार-पाच साल छोरी री िह

जी भी सकती री पर अबhellip और तारक न लबी सास भरी

रवत की एक कलीग बता रही री rdquoपरसो तो काम पर आयी हई री रवत म सोच भी नही

सकती री दक इतना भारी थरोक हो सकता ह दक एक ही लपर म ल जायhellip मझ तो विशवास ही नही

होताrdquo तारक को भी विशवास नही होता रा उसी ददन सबह रवत न उसस फोन पर बात की री और

उसस मजाक दकया रा rdquoमर जनदमददन पर आओगrdquo

दरअसल सारा झगड़ा कछ साल पहल रवत क जनदमददन को लकर ही शर हआ रा िनाथ शायद

रजत को उन दोनो क बीच बढ़त ररशत की तवनक खबर न लगती रवत न उस बतलाया रा दक उसक

जनदमददन पर िह और रजत आमतौर पर शाम को बाहर दकसी बदढ़या स फर च रथतरा म खाना खान

जात ह तब तारक न कहा रा rdquoठीक ह तो लच तम मर सार लनाrdquo

रवत मान गयी री उसन उसी ददन रवत क शहर पहचन क वलए फलाईर भी बक करिा ली

री पर जब ठीक जनदमददन आनिाला रा तो रवत न उस बतलाया रा दक रजत को ठीक नही लग रहा

मरा तमहार सार लच पर जाना िह पछ रहा रा दक इतना इमपॉरर कस हो गया यह आदमी दक

तमको उस जनदमददन पर जरर वमलना ह

rdquoतमन कया कहाrdquo तारक वजजञास हो उठा रा

rdquoयही दक तमको दकसी काम स शहर म होना रा इसवलए लच पर वमलन की बात की इस पर

उसन कहा दक अगल ददन वमल लो जनदमददन िाला ददन तो उसी क वलए हhellip कोई और कयोrdquo

दफर िह बोली rdquoइसी पर उस शक हो रहा ह दक यह कोई आम दोथत नहीhelliprdquo

तारक न जोड़ ददया रा rdquoपरमी हrdquo

rdquoहा यही शक हो रहा ह उसrdquo

rdquoतो ह या नहीhelliprdquo

rdquoशायद होhellip यही मसीबत हrdquo

तारक न कहा रा rdquoअब तो ररकर ली हई ह म तो आऊगा ही तम वमल सको तो वमलना िनाथ

न वमलना चाह पाच वमनर क वलए या कॉफी क वलए भी आ जाओगी तो मर वलए िही काफी होगा

तमहार जनदमददन पर तमह दख भर लrdquo

rdquoतम भी कमाल क रोमाररक होhellip पर सच कह तो म भी तमस वमलना चाहती ह उस ददनhellip

कछ न कछ तो जगाड़ना पड़गाrdquo

rdquoमर वलए तमहारा जनदमददन मरी वजनददगी का बहत अहम ददन हhellip समझीrdquo

एयरपोरथ पहच कर तारक न फोन दकया रा रवत बोली री rdquoरजत कह रहा ह तम हम वडनर

पर जॉयन कर लोrdquo

तारक बहत हरान हआ रा पर रवत न फोन रजत को पकड़ा ददया रा तारक एकदम सकर म

पड़ गया रा उसन खद को बचान की कोवशश की rdquoसॉरी म तो यहा आया रा तो सोचा रवत स वमल

लगा पर इस तरह आप लोगो क परोगराम मhelliprdquo

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रजत न जोर दकर कहा रा rdquoनही भाई बहत तारीफ सन रहा ह बीिी स जरा हम भी तो

वमल आपस आप चाह तो घर पर आ जाईए या दफर सीध रथतरा पर वमलगrdquo

rdquoपर आप लोगो का तो वडनर पर सार जान का कायथकरम रा नrdquo

rdquoआप लच पर फरी ह तो लच पर वमल लत ह य मझ तो वडनर ही पसद ह जसा आप कहrdquo

रजत वबलकल दोथताना ढग स बात कर रहा रा एक पल को उसकी रोन म कछ तनाि तारक

को महसस हआ रा पर अगल ही पल आिाज दफर सहज हो गयी री तारक मान गया पर रकसी लकर

पहल होरल म सामान छोड़ा और इस दौरान खद को मानवसक तौर पर तयार भी करता रहा दक कस

पश आना ह अपन रकीब स दखा जाय तो ररशता रकीब का ही रा बाकी ि दकतन भी सभय या

समझदार इसानो की तरह एक-दसर स बताथि कर आवखर ि तीनो सममावनत पश क र तारक हारथ

थपशवलथर रा तो रजत अगरजी सावहतय का परोफसर और रवत सायकायररथर इसानी मन की

कमजोररयो को समझना मनोरोगो का इलाज करना रवत की विशषता तो री ही पर इसानी आकषथण

एक दसर क परवत सखचाि या ऐस ररशतो को समझन की सथकवत तो कही तीनो म ही री

रजत इस बात को खब समझता रा दक दकसी भी औरत क वलए दकसी दसर परष क परवत

सखचाि हो जाना बहत सहज रा िही एक पवत और पतनी स परम करन िाल क रप म िह रवत क इस

वयिहार स ईषयाल भी हो उठता रा एक सभय इसान क नात िह ईषया को दबा कर तारक क परवत भी

वमिित वयिहार करना चाहता रा पर िही उस रवत क वयिहार स कि पहचता रा दक िह उसक

अलािा भी दकसी दसर परष को चाह सकती ह वजसस उसक मन म आकरोश और वितषणा का भाि

उठता कभी िह अपन को उदार बना कर यह कहना चाहता दक रवत अगर दकसी दसर को चाहती ह

तो बशक उसको भी कयो न पाय सार ही जब करोध होता तो एक तरह स जस िह रवत को सजा दन क

वलए कह डालता rdquoतम जाओ दोनो सार रहोrdquo पर जो पीड़ा िह उसम सह रहा होता िह रवत और

तारक दोनो क वलए ही असहय होती

रवत न कहा रा rdquoकया तारक और म दोथत नही हो सकत और इतन दोथत हhellip एक िह वयवि

वजसस बात करक मझ खशी वमलती ह िह दोथत कयो नही बन सकता वसफथ इसवलए दक उसक मन म

तीखी भािना ह मर वलएhellip या शरीरो का आकषथण भी हhelliprdquo

रजत तब तकथ स सारी बात को समझन समझान की कोवशश करता हा करत-करत कह दता

rdquoऔरत आदमी म दोथती हो ही नही सकती कयोदक जहा शरीरो का आकषथण हो िहा दोथती जसा

वनषकपर भाि कस पनप सकता हrdquo तब रवत दोथती का एक और पकष पश करती rdquoतमहार कहन का

मतलब तो िही ददकयानसी बात हई दक शरीर पाप का मल ह जबदक तम खद ही यह पहल कह चक

हो दक शरीरो का मसला हल हो जाय तो औरत मदथ बहत खबसरत दोथत हो सकत हhellip शरीर को

अहवमयत दी कयो जाय शरीर वमल जान स उनका दोथती म बाधा बनन का मसला खतम हो जाता हrdquo

रजत रवत की बात मान भी जाता रा पर रवत दफर तारक को यह भी बताती री rdquoिन कार

रक वहम फॉर गरारड कल को िह अपना कोई नया तकथ द दगाrdquo

शायद इसी स तारक भी अचानक वहममत हारन लगा रा कस सामना करगा िह रजत का य

िह रजत स एकाध बार पहल वमल चका रा पर तब उसको यह अदाजा नही रा दक रवत और उसक

बीच कछ रा जबदक तारक तब भी कछ आतमसजग-सा हो रहा रा पर कछ वमनरो की मलाकात को

सभाल लना कोई बड़ी बात नही री और य भी रजत उस भला आदमी लगा रा यह भी सोचा रा दक

अगर रवत उन दोनो क बीच न होती तो यह वयवि उसका दोथत हो सकता रा य रवत क होन क

बािजद अतत ि दोथत बन ही पर इस दोथती का तानाबाना िसा न रा जस खावलस दोथती का होता

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ह इसम रवत क रश बन हए र जो एक और ही रगत वलए र और िह रगत तारक को बहत पयारी री

उस दोथती स जयादा

तारक न होरल पहच कर फोन कर ददया रा दक वडनर पर वमलना ही ठीक रहगा और िह

अपना काम इस दौरान कर लगा रजत आसानी स यह बात मान गया और कहा दक िह सडरकस पर

पहल घर पर आ जाय उसक बाद रथतरा खाना खान चल जायग

शाम को जब िह चलन लगा तो फोन बजा रा दसरी ओर रवत री हलो कहत ही रवत न

कहा rdquoसनो तम मत आना मर घर म बहत रशन चल रही हrdquo इसस पहल दक िह कछ कहता रवत न

फोन वडसकनकर कर ददया

रात को कोई फलाईर नही जाती री िनाथ िह उसी िि शहर छोड़ क चला जाता

आध घर बाद ही घरी दफर बजी रवत पछ रही री दक आ रह हो तारक बौखला गया दक आवखर हो

कया रहा ह कया यह रवत क मन की उलझन ह या दक रजत कीhellip या दोनो कीhellip या रवत वसफथ रजत

की उलझन को वयि कर रही री बोली री rdquoजलदी आ जाओ हम लोग इतजार कर रह हrdquo

िह पहचा तो रवत न अकल ही उसका थिागत दकया रा िह जानता रा दक दोनो बचच कालजो

म ह पर रजत काफी दर तक बठक म नही आया तो तारक हरान हआ रवत बोली rdquoिह नहा रहा हrdquo

दफर मथकरा कर जोड़ा rdquoशायद हम दोनो को कछ िि दना चाहता हrdquo

तारक तब कछ निथस हआ रा उस आग बढ़कर रवत को चमन का हौसला नही हआ उस लगा

दक रवत भी सहज नही री जस दक आम तौर पर होती ह पर उसन कछ कहा नही िह खद भी तो

सहज नही हो पा रहा रा जस लड़की क बाप क घर म शादी का परथताि लकर जा रहा हो कछ कछ

इसी तरह का महसस हो रहा रा िही डर कर परचा करना रा दक इमतहान म फल न हो जाय

रजत न कमर म आत ही बड़ तपाक स हलो दकया कछ औपचाररक-सी बात की दफर उसस

सडरक पछा और दकचन म बफथ िगरह का इतजाम करन क वलए दफर स गायब हो गया तारक को लगा

दक सहज होन की बहत कोवशश क बािजद रजत बहत असहज ह

ववहथकी का घर लत हए तारक न ही रजत स उसक काम क बार म पछना शर दकया बात

कही जा नही रही री तभी रवत एक नई दकताब की चचाथ करन लगी वजसका ररवय सबह क अखबार म

छपा रा तारक न हिाई जहाज म ही उसक बार म पढ़ा रा दफर तो बातचीत खब गरमागरम होन

लगी रजत न दवकषण एवशयाई अगरजी लखको क बार म अपन विचार झाड़न शर कर ददय यहा तक

दक रवत न अचानक घड़ी दखी तो पता चला दक रथतरा की ररजिशन का िि हो चका रा रजत न

रथतरा को फोन दकया दक कछ वमनर लर पहचग और तारक को बोला दक जलदी स सडरक खतम कर ल

या गाड़ी म ही ल चल दोनो न दो तीन सडरक चढ़ा रख र मौज-सी भी आयी हई री रजत ही कार

चला रहा रा और तारक पीछ िाली सीर पर बठा रा अचानक रजत कछ नश और कछ अपनी धन म

बोला rdquoतो तम मरी बीिी स पयार करत होrdquo

तारक भौचक-सा हो गया य ही बठा रहा जस रजत की बात को सना न हो या िह गभीरता

स लन लायक न हो रजत न अपनी बात को सिाल बनाकर दबारा पश दकया rdquoकयो तारक मरी बीिी

स पयार करत हो या नहीrdquo

तारक न कहा rdquoहाrdquo और चप कर गया उस लग रहा रा िह जो भी जिाब दगा खतर स खाली नही

पर यह जिाब सच रा तो सच बोल कर ही मार खायी जाय उस दकसी लड़की क वपता स हार मागन

नही जाना पड़ा रा आज यह भी सही

rdquoतम भी पयार करत हो िह भी करती ह तो तम दोनो सार कयो नही रहतrdquo

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तारक बोल पड़ा रा rdquoयह इतना आसान नहीrdquo

रजत इस पर आकरमण करता-सा बोला rdquoकमाल ह पयार भी करत ह और वजममिारी भी नही

वनभाना चाहतrdquo तारक को महसस हो रहा रा दक रजत कह तो कछ रहा ह और पहचाना कछ और

चाहता ह दफर भी िह जिाब तो उसी बात का द सकता रा जो दक पछी जा रही री यह कह कर

उस नाराज भी नही करना चाहता रा दक रजत वसफथ अपन भीतर क आकरोश आतक और आग को

आिाज द रहा रा बोला rdquoयह बात नही म आज भी रवत क सार वजनददगी शर करन को तयार ह

जहा तक म जानता ह रवत अपन शहर को छोड़ कर और कही नही जायगी न िह तमको छोड़न को

तयार होगी जहा तक म रवत को जानता हhelliprdquo

रवत चपचाप अपन पर अकश लगाय दोनो की बात सन रही री न तो िह रजत क पकष म

कछ बोलना चाहती री न तारक क पकष म ही बोल सकती री दफर भी दोनो क बीच तारतमय वबठाय

रखन की वजममिारी भी उसी की री और िह समझ नही पा रही री दक दकस तरह इस बातचीत को

सीमाय लाघन स बचाया जाय ऊपर स उस डर लग रहा रा दक आिश म रजत कही रककर न मार द

रथतरा बहत दर रा भी नही बात पर चरम पर चल रही री दक रथतरा आ गया रवत न रोका rdquoरजत

पारककग ढढ़ो रथतरा आ गयाrdquo रथतरा क सार ही पारककग गराज म गाड़ी छोड़ कर तीनो अदर चल गय

िरर न उनको मज पर वबठाया और सडरक क वलए पछा तरा मनदय लाकर ददय तीनो क तीनो उस मज

पर इस तरह खामोश और भर बठ र दक मनदय म वसर डबोना एक राहत बन गया रा तीनो न अपन-

अपन आडथर ददय पर बात कछ बन नही रही री हर कोई कछ भी कहन म जयादा ही सतकथ हो रहा रा

अचानक रवत बोली rdquoरजत तमको इतनी जयादा तकलीफ री तो तमन मना कयो नही कर

ददया म तो तारक को कह चकी री दक आज सार खाना नही होगा तमही न जोर ददया दक जरर

बलाओ अब इस तरह कयो बताथि कर रह होrdquo

रजत और भड़क गया rdquoम तो वसफथ यह कह रहा ह दक तम लोग एक-दसर को पयार करत हो

तो म कया कर रहा ह यहा तम जाओ एक दसर क सार रहोrdquo

दोनो की आिाज ऊची हो रही री और दसरी मजो पर बठ लोगो की वनगाह इस ओर उठ आयी री

तारक न धीर स सझाया रा rdquoमर खयाल स हम य बात यहा नही करनी चावहएrdquo सहसा रवत

न होश म आत कहा rdquoहा इतन बदढ़या रथतरा म खाना खान आय ह कछ खान पर भी तो धयान दhellip

दफर आज मरा जनदमददन ह आई िार र हि ए गड मीलrdquo

दफर भी खान पर तीनो म स दकसी का धयान नही लग सका तीनो औपचाररक-सी बात म लग

गय र तारक न ही शहर क निीनतम रथतराओ क बार म ताजा पढ़ी समीकषा का वजकर छड़ ददया रा

रजत न कार स जब उस होरल छोड़ा तो तारक न उपर कमर म आकर सडरक लन क वलए कहा

पर जसा दक िह अपकषा कर रहा रा रजत न दर होन का बहाना बना छटटी माग ली री रवत तब भी

कछ नही बोली री शायद उस डर रा दक उसका कछ भी कहना रजत क वलए घाि पर नमक वछड़कन

जसा होगा या उसकी कोई भी बात का गलत मतलब वनकाल कर रजत भड़क सकता रा य दर हो भी

चकी री

पर तारक यह भी जानता रा दक रवत एक नबर की वजददी री जो उस चावहए रा चावहए ही

रा उस रोका नही जा सकता रा िह ऊपर स मान जायगी पर भीतर स कभी माफ नही करगी

शायद इसी स रजत भी वबगड़ी हई लाड़ली बरी की तरह रवत की हर चाह या माग को विरोध करक

भी अतत मान जाता रा

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लौर आन क दो चार ददन बाद ही उसक फोन पर रवत न सदश छोड़ा रा rdquoतमहारा आना ठीक

नही हआ सॉरी तमह बलाकर भी वमल नही पायी अब लगता ह कभी नही वमलगी लर अस थरॉप

ददस वहयर पलीज मझस सपकथ मत करनाrdquo

तारक बहत ददन परशान घमता रहा रा पर रवत को फोन भी नही दकया उसन मना जो कर

डाला रा उस फोन करत हए तारक को लगता दक िह खद को उस पर लाद रहा ह और यह वथरवत

उस कभी गिारा नही री हर ददन दकसी जिालामखी-सा लाि स लदा हआ गजरता अदर ही अदर

सब तप रहा रा

महीन भर बाद रवत न फोन दकया रा rdquoगथसा हो न मझस तमस माफी भी नही माग सकीrdquo

उसकी तो कोई जररत नहीrdquo

दफर भी सोचा रा तमस कभी बात नही करगी इसी स तमको सपकथ करन स मना दकया

रा रजत को भी यही मालम ह दक तमस ररशता तोड़ ददया ह पर अब मझी स बात दकय वबना रहा

नही जा रहाrdquo

रजत को मालम ह मझस बात कर रही होrdquo

िह बहद गथसा ह तमसhellip जस दक सारा दोष तमहारा होhellip दक तमन उसकी बीिी को फसा वलयाrdquo

ि इसी तरह जब मौका लगता बात कर लत तारक क ददल ददमाग पर रवत ही छायी रहती

िह ऐस ही पलो क दौरान जीता जब दोनो क बीच कछ सपकथ होता बाकी क पल उन पलो क इतजार

म गजरत

इस बीच रवत को ददल का दौरा पड़ा रा घबराकर तारक को फोन कर डाला रा रजत न

तारक आया तो रजत उस अपनी गाड़ी म सार अथपताल ल आता जाता रहा दोनो म एक दोथती का

नाता तभी बना रा दवनया जहान की बात रजत न उस घर पर ही ठहराया रा तारक तीन ददन बाद

चला गया रा िावपस पर दोनो की फोन पर बात हो जाती रवत अथपताल स िावपस आ गयी री

धीर-धीर िह सामानदय होकर िावपस अपना काम सभालन लगी

रवत का जनदमददन दफर स आनिाला रा रवत न उस कहा रा rdquoरजत अपन आप ही बोल रहा ह

दक तम आ जाओ इस बार मरा जनदमददन मनान बोलो आओगrdquo

तारक परानी बात याद करक घबरा गया रा rdquoनही दफर स उसक भीतर सब घमड़न लगगाhellip

सबको तकलीफ होगीrdquo

यह सच भी रा रजत कभी तो उसक परवत बहत वमिित हो जाता िही अचानक गथसा ईषयाथ

उभर आत और िह अकसर बरखी ददखाता अचानक तारक को ऐसा महसस हआ जस रवत उसस खद

यह सब कह रही हो पल भर को िह भल ही गया दक रवत क ही अतयवि कमथ म िह शावमल हआ ह

और दरअसल उसक यहा आन की एक िजह यह भी ह दक िह रवत को वलख अपन खत िावपस ल

जाना चाहता ह उस डर ह दक कही ि खत रजत क हार न पड़ जाय

तारक रवत क सार काम करन िाली इस मवहला डॉ लोपज स पहल वमला हआ रा इस भीड़

म एक िही जान-पहचान की री तारक का मन हआ उसस पछ दक कया िह रवत की दराज म उसक

कागजात पर नजर मार सकता ह तारक को अदाज रा दक उसक खत िह दफतर की मज की दराज म

रखती री पर िह जानता रा दक ऐसा करना ममदकन रा नही आवखर तारक को कस हक पहचता रा

रवत की दराज खलिान का िह तो एक पररिार क वमि की हवसयत स िहा रा रजत ही कह सकता

रा दखा जाय तो ि लोग खद भी रजत स ही कहग दक रवत का सामान िह ल जाय तब तो रजत की

आख जरर उन पर पड़गी तब शायद उसको बरा लगगा दक रवत क सार तारक का एक अपना ररशता

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रा उन तीनो की आपसी दोथती क बाहरhellip रजत को बतहाशा चोर लगगी अब जबदक िह रवत स

जिाबतलबी भी नही कर सकता रवत अब कोई सफाई नही पश कर पायगी तारक क हक म कछ भी

नही कह सकगी दकसी तकथ स रजत को लाजिाब नही कर पायगी नही िह ऐसा नही कर सकता न

यह रवत क परवत सही होगा न रजत क परवत उस दकसी न दकसी तरह स खत पान ह

राथत म आत हए हिाई जहाज म तारक जब लगातार रवत क सार की अपनी वजनददगी क

गजर पल दहरा रहा रा बार-बार उस धयान आता दक जब स रवत को ददल का दौरा हआ रा िह

उसस कहना चाहता रा दक उसक खत विनि कर द एक बार उसन बात उठायी तो रवत बोली rdquoकयो

तमहार खत मर दफतर की दराज म सफ पड़ हrdquo

शायद िह वबना कह यह भी समझ गयी री दक तारक का इशारा दकस ओर ह तभी बोली

दखो जब तक म वजनददा ह म उनको फाड़ कर न तो फ क सकती ह न जला सकती ह एक बार मर गयी

तो कया फकथ पड़ता ह दक कोई कया करगा उनक सार तमको तो दफकर होनी नही चावहए अब तो ि

मरी अमानत हrdquo यह बातचीत दो एक महीन पहल की ही होगी तारक न सोचा रा बात कभी दफर

उठायगा पर उसस पहल हीhellip

तारक को भी तब यह अदाज नही रा दक रवत क अलािा रजत स भी उसका नाता रा रवत क

जान क बाद िह खद को रजत क बहत करीब महसस कर रहा रा और उस लगा दक उसक खत रजत

को उसस दफर दर धकल सकत र पर िह दकसी तरह भी रजत को खोना नही चाहगाhellip रजत जस स

रवत का ही एक वहथसा राhellipउसन दखा लोगो स वघरा रजत का चहरा बहद वनचड़ा हआ रिहीन और

सखा-सा लग रहा रा रात भर सोया नही होगा इसवलए आखो क नीच कालापन उतर आया रा आख

काफी अदर को धसी हई री तारक को लगा दक िह शायद रजत स बहतर हालत म ह दफर उस रशक

भी हआ रजत अपन गम का खला इजहार कर सकता हhellip तारक को यह सविधा नही री िह दकसी

उजड़ आवशक क रप म इस महदफल इस मौत का शोक करन िालो की महदफल मhellip अपना असली

चहराhellip अपना आवशक का चहराhellip नही ददखा सकता रा अचानक उसकी आख भर आयी अपन खोन

की वशददत क अहसास स

रवत क िाकय उसक कान म सरसरान लग जबस उस ददल का दौरा पड़ा रा िह जीिन की

कषणभगरता या इसान क नाचीज होन क अवथततििादी दशथन को बहत बघारन लग गयी री शायद

अपन जान का अहसास उस कही बहत गहर उदास कर जाता रा पर िही िह उस जान को एक

अिशयभािी अकारय सतय की तरह थिीकार करक उसस समझौता भी करन लग गयी री एक ददन

उसन हडसन नदी क दसर वसर स मनहरन की ओर दखत हए कहा रा rdquoदखो तो इन छोर-छोर वडबबो

म दकतन लाखो लोग रहत ह दकतन छोर ह हम लोग इतनी तग जमीन पर दकतनी बड़ी तादाद म

समा जात ह एकदम हजारो की सखया म सार-सार जड़ कीड़ो की तरह दफर भी अपन आप को

दकतना बड़ा मानत ह राजनीवत धमथ और नवतकता की तवखतया वचपका कर दकतना बड़ा होन का

भलािा दत रहत ह खद कोrdquo

रजत को रवत की इसान को नाचीज करार दन िाली बातो स हमशा बहत वचढ़ छरती री

बोला रा rdquoधमथ नवतकता जीिन क सतय ह इनको तम भलािा दन िाली चीज कस कह सकती हो

इसान इसीवलए तो बाकी जीिो स अलग ह दक िह सोच सकता हrdquo

rdquoऔर सोच क धरातल पर हर चीज को गलत या सही सावबत कर सकता ह नवतकता को गढ़

सकता ह या परा सतयानाश कर सकता हhellip ठीक ह मझ तो उसम कोई नकसान नहीrdquo

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हा नकसान दकसी का ह तो मरा ही रजत न कहा तो तारक झर स बोल पड़ा रा rdquoनकसान

तो तब होता जो म उस भगा क ल जाताrdquo

रजत न सजीदगी स कहा rdquoअब इसका ददल बर गया हhellip तो आधी सपवतत तो लर ही गयी न

तम भगा ल जाओ तो भी फकथ नही पड़गा यह आधािाला वहथसा तब भी यही रहगाrdquo

सचमच रजत का यह विशवास सही रा रवत और उसक ररशत की शरआत क ददनो म भािना

क परिाह म बहता तारक रवत क सार एक नयी वजनददगी क दकिाड़ खोलन की बात सोच पाया रा पर

जलद ही उस अहसास हो गया रा दक रवत कही बहत गहर जड़ी री रजत क सार दक िह कभी उस

ररशत को तोड़गी नही य रजत भी शर क ददनो म भीतर स वहल गया रा यह झरका दक रवत रजत

को छोड़ दकसी और को मन म ला सकती ह उस बहत दर जा फ क आया रा दफर रवत न खोय विशवास

को िापस लौरा ददया रजत अपन आध नकसान क सार धीर-धीर शायद समझौता करना सीख गया रा

तारक को लगा दक िह आध क सार समझौता करना सीख गया रा दफर तारक को लगा दक

िह आध क सार समझौता नही रा रजत क भीतर कही पर का भरोसा भी रा जस दक रवत को वसफथ

एक बदलाि चावहए रा जो तारक रा िनाथ िह परी रजत की ही री कयोदक मौका आन पर रजत

अपना परा हक जतान स चकता नही रा हमशा यही मानता रा दक पहला हक उसी का ह तारक

हमशा बाद म आयगा जस दक पर भर लन पर बचा हआ भोजन दकसी को भी ददया जा सकता हhellip

कछ ऐसा रख

पर रवत बचा हआ भोजन नही रीhellip दकसी तरह स भी उवचछि या अिवशि नही जो उसन

रवत म पाया रा िह पहल वजनददगी म कभी नही वमला रा रवत न उसकी पहचान करायी री

पररपणथता स रवत को जानना ही जस उस सपणथता को छना रा शायद रजत न भी रवत म ऐसा कछ

पाया रा जो आम औरतो स अलग रा रवत शादी क इतन बरस बाद भी उस अपन म उलझाय री और

िह उसस मि नही होना चाहता रा रवत म बाहरी खबसरती क बािजद वयवि क ददमाग को भी

उलझाय रखन का जो गण रा उसस सच म जो भी पास आता और सखचता जाता रवत म भरपर

पयार लन की चाह री तो भरपर दन की कषमता भी इसी स अभी भी उसस जी तो नही भरा रा रजत

का शायद िह ऐसी औरत री जो हमशा वनत निीन होती रहhellip सौदयथ की एक पररभाषा यह भी तो

दी गई ह दक जो वनत नतन होता रह िही सौदयथ ह रवत भी कभी परानी नही पड़ती रोज कछ नया

होता ह उसक पासhellip कोई नया खयालhellip कोई नई सझhellip कोई नई उकसान उलझान िाली बातhellip

शायद इस ददमागी सौदयथ कहना होगाhellip जो कछ भी उसम राhellip बस खीचता रा अपनी ओरhellip मोहता

राhellip शायद कया पर उगली धरना उस पररवध म बाधन की भोडी कोवशश होती

कछ दवदव उठता तो रवत रजत क ही हक म बोलती री रजत क वहतो को सरवकषत कर लन क

बाद ही िह तारक को उसका हक दती तारक को खीझ भी होती दक रजत उसक जीिन म चदक पहल

आ गया रा इसीवलए हर चीज म ही पहला हक उसी का बनता ह पर उसन रवत स अपनी यह

मनवथरवत कभी जावहर नही होन दी री वपछल साल िलनदराईन ड पर ऐसा ही तो हआ रा दरअसल

दोनो को अदाज नही रा दक उस िीक ड पर िलनदराईन ड पड़ता रा तारक को दकसी काम स रवत क

शहर आना रा और दोनो न वमलन का कायथकरम बना डाला रा रजत स रवत की बात हई होगी तो

उसन भनकर कहा रा rdquoतो िह तमहारा िलनदराईन ह जो उस ददन आ रहा हrdquo रवत क कहन पर दक उस

तो याद भी नही रा िह बोला रा rdquoम नही मान सकता दक तारक न य ही आन का बनाया ह इस

िीक ड परrdquo रवत न तारक स सारी बात बतलायी तो उसन सोचा रा िह खद फोन पर रजत स कहगा

दक उस सचमच याद नही रा पर दफर बात बढ़ान न दन क वलए चप रह गया रा और जान का

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परोगराम भी थरवगत कर डाला रा तब उस दो बात तकलीफ दती रही री एक तो यह दक रजत हमशा

उसक सामन परारवमकता ल जायगा दसरी यह कड़िी सचचाई दक रवत कभी भी उसकी जावहरी वजनददगी

का वहथसा नही बन सकती री उसकी कमर म हार डाल कर िह कभी दकसी स यह नही कह सकता

रा रवत मरी हrdquo तब उस बहद रशक होता रजत स कया रजत को सचमच अहसास ह दक रवत तारक

क वलए कया ह दक िह उसकी वजनददगी का कनदर उसकी वजनददगी का अरथ बन चकी ह यह कोई हलका-

फलका ठरकपन नही उसकी वजनददगी का रशा-रशा गर गया ह रवत स शबद म अरथ की तरह समायी ह

रवत उसक अवथतति म इस गरन म िह खद ही घरता रहगा हमशा

अब रवत नही ह तो िह घरन और भी कस रही ह उस कया अब िह रजत स कह पायगा

अचानक उसका मन हआ दक रजत स कह द rdquoतमको मालम ह दक मझ सचमच पता नही रा दक उस

ददन िलनदराईन ड रा िनाथ ऐसी जरथत न करताrdquo दक िह जानता हhellip अचछी तरह समझता ह अपनी

और उसकी ररीररी की पररवधयो को दक रजद शायद कभी जान न पायगा पर उसन हमशा एक दोथत

की तरह रजत का रजत की जररतो का खयाल रखा हhellip वसफथ ऊपर-ऊपर स सामावजक उपचार की

तरह नही भीतर स दकसी ददली ररशत सhellip दफर िह ररशता चाह रवत क जररय स ही बना हो

हो सकता ह रजत यह सब महसस करता हो या न भी करता हो पर उसक चहर पर भी वमिता

का थिागतमय भाि हमशा ददखा ह तारक को वसिा उन कषणो क जब दक सचमच उन दोनो क बीच

lsquoररररोररयलrsquo झगड़ हए तब भी ि शायद इसानी आचार या परथपर सदभाि की सीमाओ को कभी

लाघ नही पर दफर भी तारक का रवत क सार का ररशता ऐसा नही दक रजत क सार वजस बार सक

रवत उसकी हथती का अवभि वहथसा ह िह कोई और कस हो सकता ह रजत रवत नही हो सकता

चाह उसक दकतन ही करीब रहा हो उस दकसी न दकसी तरह स अपन खत पान ही ह लदकन कस

और यही तारक बार-बार उलझ जाता ह अपनी यह परशानी िह दकसी क सार बार नही सकता

रजत स तो कतई नही खत अगर सचमच रजत क हार पड़ गय तो

लदकन रवत न यह भी तो कहा रा दक अगर िह नही रही तो कया फकथ पड़ता ह पर रजत

सचमच खत पढ़ ल तोhellip शायद उसकी पीड़ा पर तब करोध और घणा का कोई विकराल भत हािी हो

सकता हhellip हो सकता ह दक खत पढ़कर रजत रवत को खद स वछरक द लदकन उसस कया तब शायद

रवत और भी तारक क करीब आ जाय और भी उसकी अपनी हो जाय वसफथ उसी की समची एक रात

पहल उस ऐसा ही कछ सपना आया रा रवत की मौत की खबर क बाद यही उसका याद रह जानिाला

सपना रा िह रवत की अतयवि म गया ह और एक अधरा-सा बठकनमा कमरा हhellip कमर म कछ

कागज वबखर पड़ हhellip िह एक कागज उठाता हhellip िह उसी का रवत को वलखा खत हhellip और कई लोग

उसक आसपास ह और िह सोचन लगता ह दक कही इन लोगो न भी तो उनदह नही पढ़ाhellip तभी रजत

का चहरा उसकी ओर बढ़ता ह और िह कागज वछपान की तरकीब सोचन लगता हhellip इसी उधड़बन म

उसकी आख खल गयी री तो वजथम पसीन म नहाया हआ रा

एक रजत ही यहा उसक सबस करीब हhellip और रजत ही उस अजनबी-सा लगन लगा ह अब

तक उसका रवत का सदभथ रा अचानक उस सदभथ स करकर न होन जसा हो रहा ह तारक को अजीब-

सी मानवसक दरी और भयकर अकलापन-सा महसस हआ िह यहा आया ही कयो रा रवत की

नामौजदगी म दकतना बमानी ह उसका यहा होना रजत को भी दकतना दफजल-सा लग रहा होगा

उसका यहा उपवथरत होना वजन लोगो स वघरा ह ि तो सचमच उसक अपन हhellip तारक तो दर स भी

अपना नहीhellip मत स तारक का जो भी नाता रहा होhellip उसक दकसी दसर स तो नही रा उसक कॉलज

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कामो स लौर बचच भी तारक को पहचानत नही र तारक न ही उनकी शकलो और वयिहार स अदाज

लगाया रा और हॉलि म लगी तथिीरो स उनदह पहचान पाया रा

तारक क पास रजत स कहन को कछ नही रा उसका कछ भी कहना रजत को खल सकता रा

उलर तारक को लगन लगा दक रजत शायद सोच रहा हो दक अब कयो जखमो को याद ददलान आ गय

हो कछ भी हो तारक न उस पीड़ा तो पहचायी ही री कया अब उसका कछ भी करना रजत क कि को

कम कर सकता रा उसन वनगाहो स ही अपना दख बयान कर ददया जो शायद रजत न थिीकार भी

वलया राhellip शायद एक औपचाररकता की तरह जस िह दसर बहत स जमा लोगो की शोकावभवयविया

थिीकार रहा राhellip उसस कछ अलग नही शायद तारक का िहा होना ही रजत को खल रहा हो पर

िि की नाजकी की िजह स िह कछ कहना न चाह रहा हो तारक एकदम परशान-सा उठ खड़ा हआ

कछ लोग रजत क गल लग रह र शायद उसस विदा लकर जा रह र तारक न सोचा िह अब

कहगा दक रवत क पास कछ उसक जररी कागजात र अगर रजत उस कागजो िाली जगह पर ल चल

तो िह खद ही दख लगा तारक यि की गवत स रजत की ओर बढ़ा रजत जस दकसी को दख कर भी

दख नही रहा रा उसकी आख दकसी शनदय पर ररकी री तारक को लगा उन लोगो क वघराि म

वजसम उसक अपन अजीज दोथत और ररशतदार र रजत न उस कोई विशष लकष नही दकया तारक क

भीतर अजीब सनापन-सा आ वघरा लगा जस रवत रजत म कही नही री वसफथ भरम-सा हआ रा उस

उसक िहा होन का जस दक उसक रवत क नात स िहा होन म ही कोई भारी असगवत री उस लगा

िहा बठ अजनबी स लोग उस घर रह र उसक िहा होन पर परशनवचनदह लगा रह र पता नही दकतन

ही अजनवबयो स वघर गया रा तारक यहा तक दक रवत की उस तथिीर म भी उस रवत नजर नही आ

रही री िह भी कोई अजनबी छाया री यह दवनया उसकी नही री अगर िह रवत की दवनया रही

भी हो तो वजस रवत को िह जानता रा उस रवत क वलए भी यह दवनया अनवथतति री विसगत री

उसन रजत को बहत सभलत सभलत गल स लगान की औपचाररकता की उस लगा जस िह

दकसी अजनबी को गल लगा रहा रा रवत वजतन उसक अपन पास री उतन और कही नही दकसी क

पास नही दरअसल रवत और कही नही री उसक भीतर रीhellip बस उस रवत को िही अपन भीतर ही

कही सजोय रखना रा भीतर ही खोजना रा भीतर ही तसलली करनी री दकसी और स बार नही

सकता रा रवत को रजत क दोनो कधो को हलक स दबाकर उसन धीर स कहा rdquoरक कयरrdquo और मड़ा

तो वबना पीछ दख बाहर वनकल गया

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पासपोरथ अमरीकन मरो

ओम गपता

पासपोरथ अमरीकन मरो पर रगत सहदथतानी

आज सनाऊ तमको पयार अपनी रामकहानी

छोड़ो भारत मन भयया डॉलर दख-दख ललचायो

चार-पकोड़ी जब भी दख मोह म पानी भर आयो

दीिाली पर दीप जलाउ होली पर खल रग

मौको जब मझको लगतो पीतो म भी भग

कसो होगी सरकार हमारी मोक हरदम सचता

जब भी दश पड़ सकर म कपा करो हनमनदता

पज म अब भी राम-कषण जातो मददर रोज

गपशप यारो स करतो फोकर म वमलतो भोज

योगी-बाबा आए दश स जब दन मझको जञान

आख मद क ना कछ जान करतो उनको सममान

हमबगथर अब भी नही भातो भाती मझ कचोड़ी

जसो जब भी मौका आयो रोपी िसी ओढ़ी

जाऊ दश को जब म अपन खाऊ लडड और इमरती

कहतो खद को सहदथतानी अमरीका मरी अब धरती

कहन को बहत ह भयया रोड़ को समझो काफी

बरा-भला लगा जो तमको माग नतमथतक माफी

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शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

आकाकषा ह

वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

फर च अनिाद कर इस lsquoभोगिाद स पीवड़त पविम की आतमा को अतयवधक शावत दन िालाrsquo कहा

12 47 2015 33

ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

की सीमाओ क पर मनषय कया अनभि कर सकता ह उसकी एक झलक भी ददखा दता ह उसी

औपवनषदीय जञान को महरवष िदवयास न सामानदय जनो क वलए ldquoपविि गीताrdquo म सवकषपत रप म परथतत

दकया ह िदवयास की महानता ही ह जो दक 11 उपवनषदो क जञान को एक पथतक म बाध सक और

मानिता को एक आसान यवि स परमातम जञान का दशथन करा सक ldquoपविि गीताrdquo महाभारत क

भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

ह भगिद गीता वहनदद धमथ क पविितम गरनदरो म स एक ह जो इसानो की चौहददी की सीमा रखा पर

भगिान क शरी मख दवारा इसान स कही गयी सरहदो पर चहरो की थकररनी का लखा-जोखा ह यह

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पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

12 47 2015 35

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Sneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStke Anmol haSy 9` Uuml na3k-sgh Yacute jIvn ke rg Uuml kaVy-sgh Yacute ddeR-jubagt Uuml nJ_m v g_j_l sgh Yacute Aaj ka pu=8 Uuml khanI-sgh Yacute jIvn-ini2 Uuml kaVy-sgh Yacute AaTm-gujn Uuml AayaiTmk-daxRink gIt Yacute has-pirhas Uuml haSy kivta0gt Yacute j_J_bato ka islisla Uuml kaVy-sgh Yacute The Galaxy Within UumlA collection of English poemsYacute AnuwUityagt Uuml kaVy-sgh Yacute kaVy-vlti3 Uuml skln 0v spadn Yacute pUrb-piXcm Uuml AapvasI sMbiN2t Aaleq sgh Yacute bO7ar Uuml skln 0v spadn Yacute kaVy hIrk Uuml skln 0v spadn Yacute sjIvnI Uuml SvaS$y sMbN2I leq Yacute ]pin8d dxRn Uuml AyaiTmk Yacute

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Page 2: Year 12, Issue 47Year 12, Issue 47 vsu2avsu2a · राथत § में आ वबछ §ग . ... श्रराम की अन ¡कम्पा स § ह हाल ह में

म और त दो तो नहम और त दो तो नहम और त दो तो नहम और त दो तो नह पी डॉपी डॉपी डॉपी डॉ याम सह शिशयाम सह शिशयाम सह शिशयाम सह शिश

मर दश तरा चपा-चपा मरा शरीर ह

तरा जल मरा मन ह तरी वाय मरी आमा ह इन सबस िमलकर ही त बनता ह मर दश

म और त दो तो नह ह शरीर आमा मन एक ही ाणी क

थल या सम अग ह म इ(ह) बटन नह दगा म इ(ह) लटन नह दगा म इ(ह) िमटन नह दगा

12 47 2015 1

सपादकीय २

कषण आ गया ह डॉ नरनदर कोहली ४

मरली कस अधर धर महाकवि गलाब खडलिाल १५

भारत और भारतीयता का अरथ परो गिरीशवर वमशर १६

भकप का सदश डॉ एमएल गपता ldquoआददतय १९

ि दोनो डॉ सषम बदी २१

पासपोरथ अमरीकन मरो ओम गपता ३१

शरीमदभगिदगीता

राजधमथ का विशवगरर यतीरनार चतिदी ३२

आकाकषा शकतला बहादर ३४

वहनददी क भगीरर

महामना प मदन मोहन मालिीय डॉ नीलम शमाथ ३५

कषमा सनह ठाकर ३९

म और त दो तो नही पदमशरी डॉ शयाम ससह शवश १ अ

16 Revlis Crescent Toronto Ontario M1V-1E9 Canada TEL 416-291-9534

Annual subscription$2500

By Mail Canada amp USA$3500 Other Countries$4000

Website httpwwwVasudha1webscom

e-mail snehthakorerogerscom

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सपादकीय

राषटरपवत भिन क सभागार म भारत क राषटरपवत माननीय शरी परणि मखजी की उपवथरवत म

वगन-चन वनमवित वयवियो क साविधय म इरधनष दवारा परथतत सफ़ीआना कविाली सनन क आनद का

सौभागय डॉ आरपी ससह क सौजनदय स परापत हआ ठाकर साहब और म डॉ आरपी ससह जी की

सदाशयता क आभारी ह

भारत क परधान मिी माननीय शरी नरनदर मोदी जी न रोराणरो कनडा म अपना ििवय वहनददी

पजाबी और गजराती क सबोधनो स आरभ कर भारतीय मल की जनता का हदय जीत वलया अपना

भाषण वहनददी म दकर अपन दश की भाषा की महतता का परदशथन दकया थिभाषा को गौरिावनदित कर

कहन िाल और सनन िाल दोनो ही इस ददशा म गरवित हए

पस की महतता हर समय-काल म रही ह इस यग-काल म भी ह जीिन को सविधाजनक

सचार रप स चलान क वलए पसा आिशयक ह ितथमान भी इसस अछता नही ह दोनो ही दशो क

परधान मिी अपनी आरवरक सपिता को दविगत रख उसम कस और बढ़ोततरी की जा सकती ह इस

विषय पर अपन िाताथलाप को क दरत करत रह भारत क पास ऐसा कया ह वजस परापत कर कनडा

लाभावनदित हो सक और कनडा क पास दन क वलए ऐसा कया ह वजसस भारत लाभावनदित हो सक ऐसी

आरवरक सपिता क आदान-परदान क मददो पर वजसस दोनो दश लाभावनदित हो सक ज़ोर रहा दोनो

दशो की बहलता का पारथपररक फायदा उठाना लकषय रहा दोनो दशो क आतम-सममान को सरवकषत

रखत हए करय-विकरय की अरथ-वयिथरा को समावहत करन क दाि-पच म दोनो सफल रह कनडा क

परधान मिी माननीय शरी थरीिन हापथर जी माननीय शरी मोदी जी की कनडा यािा म हरदम उनक सार

रह मिीपणथ भाि स हरदम सग-सग रहना इस तथय का परमाण ह आखो न जो सपन दख ि ददखाय ह

उनकी परमावणकता भविषय वनधाथररत करगा

यह हमारा सौभागय ह दक शरी राम परसाद विपाठी जी शरी विकास सनी जी एि शरी दीपक

चोपड़ा जी क सौजनदय स माननीय शरी लालकषण आडिाणी जी क सार जो मधमय समय बीता उसक

वलए हम दोनो ही सबक आभारी ह आडिाणी जी न वजस आवतथय सतकार की भािना विनमरता और

परम क सार लगभग डढ़-पौन दो घर का समय हमार सार वबताया िह आजनदम हम उनक परवत एक

आदर-भाि क सि म बाध गया ह आडिाणी जी की विदवतता म घली शालीनता मन मोहन िाली ह

इस सौहारथ पणथ अिथरा म समय दकस अबाध गवत स बहता चला गया इसका भान तो आज तक न हो

पाया शरी आडिाणी जी दवारा ददए गए उपहार हमारी अमलय वनवध ह जहा एक ओर उनक घर की

बठक की पटरगस बरबस ही आपकी दवि आकरवषत करती ह कया जीित वचिण ह िही दसरी ओर

अपनी लाइबररी की पिथत शरखलाओ की एक पसनदरग दवारा उनदहोन जीिन का एक महामनदि मर हारो म

रमा ददया - पहाड़ जसी बाधाओ को हरदम पीछ धकल कर रखो अपन सामन न आन दो िाथति म

सही ह परगवत क पर पर कदम रकन क वलए नही ह बाधाओ को हरात हए आग बढ़न क वलए ह एक

पग उठगा तो ही तो दसरा पग उसक सार जड़गा और जब पग-दर-पग बढ़ग तो मवज़ल तो ख़द-ब-ख़द

राथत म आ वबछगी

अपनी लाइबररी म जहा उनदहोन कछ अमलय वचिो स मरा पररचय कराया िही एक विरल

दलथभ पथतक स अिगत कराया - अगरजी-ससधी शबदकोश वजसम ससधी भाषा दिनागरी म वलखी री

आडिाणी जी न अपनी पिी परवतभा स भी हमारा पररचय कराया परवतभा जी अपन

नामथिरप ही परवतभाशाली ह उनका वयविति कई कलाओ स समपि ह यदयवप दक उस समय ि

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वयथत री पर उन वयथत कषणो स भी समय वनकाल उनदहोन हमार सार कछ समय वबताया इस हत धनदयिाद क

शबद कम ह हदय स आशीिाथद दती ह दक ि अपन नाम को और भी उजागर कर

भारतीय साथकवतक सबध पररषद क अधयकष परो लोकश चर जी क अमलय समय क वलए आभारी ह

कई विषयो पर विचार-विमशथ हआ उनक उपयोगी विचारो स अिगत हई

शरीमती सनीवत शमाथ डीएस वहनददी एि डॉ नीना मलहोिा जएस वहनददी स वहनददी विषयक विदशो म

वहनददी वशकषण मानकीकरण शबदकोश विशव वहनददी सममलन आदद अनक विषयो पर गभीर विचार-विमशथ हआ

इस उपयोगी िाताथ हत दोनो की आभारी ह

सावहतय अकादमी क अधयकष डॉ विशवनार परसाद वतिारी जी स सावहतय पर िाताथलाप हआ उनक

दवारा परदतत ह-मान की आभारी ह

जिाहर लाल नहर विशवविदयालय क डॉ राजश पासिान न दो ददिसीय सत गर रविदास जी पर

अतरविषयक अतराथषटरीय सगोषठी का भवय आयोजन दकया विवशि अवतवर क रप म आमवित करन क वलए

धनदयिाद एि आभार

उदथ अरबी फारसी यवनिरवसरी लखनऊ क परो अशरफ़ी न दो ददिसीय रोल ऑफ सफ़ीज़ इन परमोशन

ऑफ सोशल हारमोनी विषय पर एक भवय आयोजन दकया सममावनत अवतवर हत धनदयिाद एि आभार

शरी अवनल जोशी जो ददलली म वहनददी क परचार-परसार म सलगन एक जान-मान वयविति ह तबादला

होकर फ़ीजी जा रह र उनक सममान समारोह म सवममवलत करन हत आभार

शरी दिनदर वमततल डॉ राम शरण गौड़ डॉ ददनश वमशर डॉ नताशा अरोरा न अतराथषटरीय मवहला

ददिस की पिथ सधया पर सममावनत दकया धनदयिाद एि आभार

सभी शभचछको की शभकामनाओ स वयविगत रप स यह िषथ मा सरथिती की असीम अनकपा लकर

मर वलए आया ह मा सरथिती न बहत कछ मरी झोली म डाला ह

शभचछको की शभकामनाओ स वलमका बक ऑफ ररकॉडथ म मरा नाम परिासी सावहतयकार एि

पिकार - सपादक-परकाशक िसधा - दोनो ही रपो म दज़थ हआ ह वलमका रीम को धनदयिाद आभार

फरिरी म सावहतय अकादमी म पर न मर उपनदयास ककयी चतना-वशखा को अवखल भारतीय

िीरससह दि परथकार स परथकत दकया ह सावहतय अकादमी सावहतय अकादमी क वनदशक डॉ विभिन नार

शकल सथकवत पररषद की आभारी ह भवय अलकरण समारोह हत धनदयिाद

२ माचथ को जय शकर परसाद सभागार म अिध रतन अिाडथ २०१५ वमला ह सगम क सभी

पदावधकाररयो क परवत धनदयिाद एि आभार

जहा यएन समबदध सथराओ दवारा इररनशनल िीमन एकसलनदस अिाडथ २०१४ वपछल िषथ वमला

रा िही इस िषथ एक और यएन समबदध परवतवषठत ररसचथ फाउडशन इररनशनल दवारा इररनशनल िीमन

सममान का सौभागय परापत हआ ह ररसचथ फाउडशन इररनशनल तरा इरर रोमा कलचरल यवनिरवसरी क

ततिािधान म पीजी वडपलोमा इन सोशल िकथ की विभागाधयकष तरा रोमा यवनिरवसरी की रवजथरार डॉ ऋचा

ससह दवारा आयोवजत भवय समारोह म मचासीन रोमा यवनिरवसरी क कलावधपवत पदमशरी डॉ शयाम ससह शवश

माउर एिरथर पररम मवहला विजता पदमशरी सतोष यादि एि डॉ सतोष खिा तरा वशकषा भिन क गणमानदय

अवतवरयो और भविषय क कणथधार मधािी छाि-छािाओ की उपवथरवत म यह सममान परदान दकया गया

शरी राम की कपा और आदरणीय एि वपरय अममा मा मातशवरी दिी क आशीिाथद स इस िषथ मरा नया उपनदयास

लोक-नायक राम भी परकावशत हो गया ह आशा ह दक इस भी पहल की ही तरह आपकी सदभािनाए परापत होगी

शरी अवनल िमाथ जी परकाशक क सार-सार वहतषी शभाकाकषी पाररिाररक सदथय क रप म ह आभार आशीिाथद

शरीराम की अनकमपा स ही हाल ही म मझ क रीय वहनददी सथरान आगरा दवारा परथकत होन की सचना

दी गई ह यह सममान मझ भारत क माननीय राषटरपवत क कर-कमलो दवारा राषटरपवत भिन म परदान दकया जाएगा

सभी की शभचछाओ को समर हए उनक परवत आभार परगर करत हए सभी क परवत मगल कामनाओ सवहत

जय शरी राम ससनह सनह ठाकर

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कषण आ गया ह डॉ नरनदर कोहली

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मरली कस अधर धर

महाकवि गलाब खडलिाल

मरली कस अधर धर

सर तो िदािन म छर कस तान भर

जो मरली सबक मन बसती

वजसस री तब सधा बरसती

आज िही नावगन-सी डसती छत वजस डर

वजसको लत ही अब कर म

पीड़ा होती ह अनदतर म

कस दफर उसकी धन पर म जग को मगध कर

इसको तभी धर अधरो पर

जब सग-सग हो राधा का थिर

जब यह मरली सना-सनाकर उसका मान हर

मरली कस अधर धर

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भारत और भारतीयता का अरथ

परो गिरीशवर ममशर कलपवत महातमा गाधी वहनददी विशवविदयालय

आजकल क चरवचत सरोकारो म भारत और भारतीयता क सिाल परछन न और परत यकष दोनो ही रपो

म खासी चचाथ का विषय बन चक ह और कई बड़ बवदधजीिी इस पर बहस म वशरकत कर रह ह दसरी

ओर ऐसो की भी कमी नही ह जो इस बमतलब का मददा मानत ह इसका पररदश य आज जररल और

बदला हआ ह दश क थ िति होन क पहल और थ िति होन क ततकाल बाद और अब लगभग सात

दशक की पररपक िता क करीब पहचत-पहचत इस लकर आज बहतर यह मान कर इस तरह की चचाथ

स तरथ र हो चल ह दक यह तो कोई सारथक परश न ही नही ह कछ इस िवशवक या भमडलीकत हो रह

आज क समय की जररतो क अनसार समझना चाहत ह कछ इस किल थ रानीय दवि स ही दखना

चाहत ह कछ इस सभ यता और सथ कवत क विमशथ स जोड़ कर दखत ह जो भी हो अतरराष रीयता क

सार परयासो क बािजद आज भी राज य या नशन थ रर की अिधारणा वनणाथयक महत ि रखती ह और

वनकर भविष य म सीमाविहीन दश जसी कोई अिधारणा आकार लती नजर नही आती आज का सत य यही ह दक दशो की सीमाए बाधा (का अवधक) और सपकथ (का कम) का काम

कर रही ह दश की सीमाओ की रकषा सबक सामन एक बड़ी चनौती ह दश और राष र किल कोरी

भौगोवलक अिधारणाए नही होती उन इकाइयो की रचना क सार एक समाज या समदाय विशष की

आशा-आकाकषा भी जड़ी होती ह दश की अिधारणा एक थ िप न को समरवपत रहती ह आज क तमाम

राष रो क सार उनक सार जड़ी लबी सघषथ-गारा आसानी स दखी जा सकती ह जो दसर समाजो और

समदायो की सामराज यिादी आकाकषाओ क परवतरोध को दशाथती ह शविसपनद न और आरवरक रप स परबल

दशो की दादावगरी उनकी सतता और शवि का जलिा अभी भी बरकरार ह कहन का तात पयथ यह दक

दश की इकाई अभी भी राजनवतक सामावजक आरवरक सामररक और सास कवतक रप स महत िपणथ

बनी हई ह और उस नकारा नही जा सकता

आज बौवदधक किायद म भारत समत सब कछ करथ रड मान जान का फशन-सा चल पड़ा ह

पर उसस दर करोड़ो (भारतीय) जनो क तन-मन म भारत जीवित ह आम आदमी वजनस दश आकार

लता ह िह भारत की एक सामावजक थ मवत भी रखता ह उसक वलए दश थ रानबोधक ह और भारत

एक भाि भी ह भारतीय होन का मतलब ह भारतभवम म रहन की जीिन-व यिथ रा म शावमल होना

भारत कह या इवडया यह मलतः एक भौगोवलक थ रान और उसकी पररवध को रखादकत करता ह इस

भभाग को जब दवीप आयाथितथ भारतिषथ और सहदथतान क नाम स भी जानत ह वहमालय और

सागर इसकी सीमाए बनात ह शथ यश यामला क दश गान और जनगणमन क राष रीय गान म जीित

भारत माता को वजस रप म थ मरण दकया गया ह िह भौगोवलक अिधारणा ही नही उसकी सीमा म

रहन िाल बासशदो की सामावजक-साथ कवतक अवथमता पर बल दती ह वजसका एक भािात मक रप भी

ह भारत एक सामावजक शरणी भी ह जो समाज दवारा रवचत और थ िीकत ह यह उस सामावजक

आकाकषा का परतीक भी ह जो एक आदशथ वथरवत की ददशा म जान क वलए परररत करती ह आधवनक

यग म एक थ िति जनति क रप म एक राज य की थ रापना हई और सहमवत स एक सविधान बना और

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सामावजक आकाकषा को एक मतथ रप वमला हमन उसम आिश यकतानसार बदलाि भी दकया ह इस

इकाई क सदथ य क रप म हमारी एक भारतीय पहचान ह

स मरणीय ह दक एक समदाय या सामावजक इकाई की वभनद नता या अलग सतता थ रावपत करना

वयािहाररक दवि स भी आिश यक ह ऐसा करना समाज को अदर स बाधता ह एकजर करता ह और

अनद य (िसी ही) इकाइयो स फकथ करता ह िधावनक रप स नशन या राष र एक काननी इकाई भी ह

और उसक सदथ य िध नागररक होत ह वजसकी थ िीकवत अनद य राष र भी करत ह और पासपोरथ िीसा

आदद की व यिथ रा स आिागमन को वनयवित करत ह नागररक क रप म िधावनक सामावजक और

साथ कवतक अवधकार क सार कतथव य और दावयत ि म भी भागीदारी होती ह समाज की वनयवत ह दक

जावत भाषा बोली कषि भोजन िथ ि रीवत-ररिाज धमथ आदद की विशषताए आ जाती ह इनक

सार समाज का भािात मक लगाि होता ह और उसक सदथ य थ िय को उसी आधार पर पररभावषत भी

करन लगत ह चदक इन विशषताओ का सचार पारथ पररक सबध और जीिन क विविध व यापारो स

गहरा ररश ता होता ह इसवलए य उस समाज की पाररभावषक विशषताए बन जाती ह

भारत दश हमार समकष एक सभ यता और मल य दविसपनद न सामावजक इकाई क रप म

उपवथरत होता ह इसकी समझ कई रपो म वमलती ह वनकर इवतहास म झाक तो पाएग दक इसक

कई रप ह एक छोर पर सहद उपलवबध को बलपिथक रखन िाल वतलक अरसिद सािरकर और

विवपन चर पाल जस ह दसरी और गोखल रानाड गाधी और रगोर सरीख आध यावतमक विचार को

मानन िाल ह जो सभी परभािो को आत मसात करन को तयार ह य सवहष णता आत मवनयिण आदद क

सार एक तरह की बहलता को ठीक मानत ह तीसरी ओर आधवनक दविसपनद न नौरोजी और पवडत

नहर जस लोग ह जो भारत को एक विकवसत सभ यता तो मानत ह पर यह भी महसस करत ह दक

उसका हरास भी हआ और उसम बहत कछ आधवनक जीिन दवि क विपरीत हआ जो आज उपयोगी

नही ह उनक वहसाब स एक बहलतािादी आधवनक नजररया जो विजञानसम मत हो उपयक त ठहरता ह

आज हर भारतीय की एक बहआयामी पहचान बनती ह िह सहद बगाली मवथलम गजराती

कश मीरी वबहारी बराहमण ओबीसी जन ईसाई आदद िाली एक सार कई तरह की पहचान रखता ह

य वभनद न वभनद न पहचान अक सर एक दसर की विरोधी न होकर परक होती ह साथ कवतक रप स ि

गहरी पठी ह और उनक सार लोगो का गहरा सािथजवनक लगाि भी ह िथ ततः हर भारतीय की

पहचान (आइडरररी) की अलग व यिस रा ह कोई एक यनीफामथ पमाना नही ह जो यह तय कर दक कई

पहचानो म स कौन सबस ऊपर नबर िन पर ह यह एक बड़ा तरल या फलइड मामला ह आज

पजा-पाठ सगीत और थ िाथ थ य लाभ क अनक क र भारत भर म फल हए ह जहा आन जान स सहद

ईसाई वसख और मसलमान दकसी को भी परहज नही होता कई पहचान क सार रहना अथ पष रता तो

पदा करता ह पर शायद दसरो क वलए िथ ततः हर भारतीय कई (उप) सथ कवतयो म जीता ह और य

सब वमलकर उसकी पहचान बनाती ह इस अरथ म हर भारतीय शायद बहसाथ कवतक ह और उसकी

पहचान बहआयामी

दश की छवि दशिावसयो क आत मगौरि का माध यम होती ह आज क भारत का अग होना उस

वबलाग करना हमको आरवरक परगवत की ओर अगरसर एक दश एक आरवरक पािर क सार जड़न का

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एहसास दता ह दसरी ओर भरष राचार अवशकषा अव यिथ रा सामावजक करीवतयो और भदभाि क

कारण मन म रकान उदासीनता और असहायता की भािना भी आती ह इस सबक बािजद एक

भारतीय का बोध जरर ह जो पजाबी मराठी या गजराती होन अलग जावत िगथ और समदाय का

सदथ य होन पर भी सबको भारतीय बनाता ह कभी-कभी विविधता म एकता िाल नहर जी का

भारत अपररभाषय या अव याख यय लगता ह भारत को एक विथ तत साथ कवतक इकाई क रप म दखन

पर कछ विचार उभरत ह जो भारतीय होन क अरथ को थ पष र करन म सहायक होत ह इनम परमख ह

धमथ कमथ पनजथनद म को दकसी न दकसी रप म थ िीकारना सामावजक इकाई - पररिार जावत समदाय

क थ तर पर अपन अवथतत ि को महसस करना सक स वििाह और अनद य व यवियो क परवत खास दविकोण

को अपनाना बहलता का थ िीकार और खल कछ-कछ असगरठत दकथ म की आत म या सल फ की

अिधारणा का थ िीकार और दकसी न दकसी रप म दकसी बड़ी जञात-अजञात सतता स जड़ाि की

अवभलाषा और पररिश परकवत और सवि क सार साझदारी तरा परथ पर अनपरकता का भाि

समकालीन विमशथ म राज य और राष र की अिधारणा क अरथ बहत कछ इस पर वनभथर करत ह

दक कौन दकस दविकोण और परयोजन स इन पर गौर कर रहा ह अक सर इनद ह अतीत ितथमान और

भविष य स जोड़ कर दखा जाता ह और लोग अपन चन िचाररक आदशथ स रग कर ही इस पर विचार

करत ह इन शब दो और इनस जड़ अरथ थ रान और समय क सार-सार बदलत रह ह जो थ िाभाविक ह

भारत दश क बार म सोचन की एक बड़ी मवशकल यह ह दक हमारी अपनी पररभाषा क पमान हमार

अपन न होकर दकसी और क ददए हए ह ि हमार बौवदधक मानस म इतन गहर पठ चक ह दक अब हम

अपन पमान क बार म भरोसा ही नही कर पा रह ह और खद को पररभावषत करन का अवधकार ही

खोत जा रह ह आरवरक और तकनीकी परगवत क पसराि की दवनया म आज हमारा आतम-सशय इतना

गहराता जा रहा ह दक भारत और भारतीयता की बात करना परानी और ददकयानस और इसवलए

अपरासवगक मानी जान लगी ह अगर इसकी बात करनी भी ह तो उसकी सनद कही और स जरानी

होगी आज अपनी पहचान क वलए हम पविमी दशो म विदवानो क दवारा परमाण और गिाही चाहत ह

आज भारत की साथ कवतक विविधता को सपनद नता और समवदध क ोत क रप म समझन समझान की

जररत ह वजसका उपयोग समाज क विकास म दकया जाय इसक वलए भारत को भारत क नजररए स

दखना होगा वबना इस भय क दक भारतीय होना दकसी कषमा याचना की अपकषा करता ह थ िदशी और

सराज जस विचार अभी भी परासवगक ह समरथ और थ िािलबी होन क वलए आत म थ िीकार और सतत

पररष कार आिश यक ह

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भकप का सदश

डॉ एमएल गपता ldquoआददतय

धरती हर ददन डोल रही ह कपन की बोली बोल रही ह

विनाश कर आकरोश स बदल कय भगोल रही ह

कय धरती न भकरी तानी कय वहमालय म आिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

जो ससाधन र पोषण क उनका शोषण कर डाला

ओजोन का जो किच रा उसका भी भदन कर डाला

बरहमी स कार हमन िसधरा क िन-कश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

सागर क तीरो को छीला पठार और पिथत को लीला

नददया बनी नाल और नाली नही ददखता जल वनमथल-नीला

चतािनी द रहा ह मौसम बदला भमडल का पररिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

विजञान की सीढ़ी चढ़ विनाश का सामान बनाया

परमाण सयि द रह यातना विकीरण का खतरा मडराया

रवडएशन स आतदकत ह दवनया क सब दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

12 47 2015 20

कोई अण कोई परमाण कोई हाईडरोजन बम ल ऐठा ह

वबछी हई बारद धरा म मानि बमो क ढर पर बठा ह

हआ परमाण यदध तो वमर जाएग दकतन दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

भकषक बनकर मानि इक दज पर चोर कर रहा

परीकषण की खावतर दकतन भीषण बम विथफोर कर रहा

परकवत का सतलन वबगड़ा तो हम बन जाएग अिशष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

कदरत कहर बरपा सकती ह कभी भी आफत आ सकती ह

धरा की जरा सी भी हरकत दकतना कोहराम मचा सकती ह

धरा न जरा करिर बदली तो कछ भी न रहगा शष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

पयाथिरण क आघात पर अब तो रोक लगानी होगी

सागर पिथत धरती क सग बद करनी मनमानी होगी

धरती को जो मा मानोग सब वमर जाएग कलश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

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ि दोनो

डॉ सषम बदी

छत स फशथ तक क लब शीशो स जड़ी उस बड़ी-सी बठक म खब सारी ददन की रौशनी भरी हई

री फशथ पर वबछी सफद चादरो पर सफद िसतर पहन ढर सार लोग उस रौशनी का ही वहथसा लग रह

र कमर म घसत ही तारक को लगा जस उस शवतता म घल मौत क सदथपन और जड़ता न अचानक

उसक भीतर को जकड़ वलया ह बीचोबीच फलो की माला चढ़ी एक बड़ी-सी रवत की तथिीर री

वजसका धप दीप और गीता क शलोको स अवभषक दकया जा रहा रा रवत अब तथिीर भर री तारक

की थतबध पवनयायी आख वनथसहाय-सी रजत को खोजन लगी

रजत सारा िि लोगो स वघरा ही रहा रा उसकी मा उसक बचच और दसर ररशतदार कोई न

कोई उसक आसपास रा ही उन दोनो की आख एक दसर स दो एक बार वमली पर रजत अपन स

बाहर नही आ पाया रा तारक न दकसी तरह अपनी शोकभािना वयि कर दी री न भी वयि करता

तो कया रजत को तो खद भी अहसास होगा उसकी अतभाथिना का एक िही तो ह इस भीड़ म जो

जानता ह दक िह कयो यहा ह बाकी तो तारक दकसी स पररवचत ही नही वसिाय कछक रवत क

कलीगज क एक दो कलीगज स ही उसकी बात हई रवत क बार म ि उस पररिार का वमि मानकर

बात कर रह र य पररिार का वमि तो िह रा ही पर इसस अलग या ऊपर भी कछ रा यह शायद

रजत क अलािा और कोई नही जानता रा जबदक रजत भी परा कहा जानता ह खास तौर स िह सब

कछ जो तारक महसस करता रहा ह या जो कछ तारक और रवत क बीच म रहा या अभी भी वजसका

बहत कछ बचा रा

य तारक न बहत बार सोचा दक अब रवत नही रही तो उसक यहा जान का कोई फायदा नही

उसकी तकलीफ बढ़गी ही दफर लगा दक नही उस रजत स वमलन जाना होगा रजत भी तो उसका

दोथत ह य रवत उन दोनो क बीच न होती तो ि शायद बहत गहर दोथत हो सकत र दफर भी िह खद

को कई तरह स रजत क करीब महसस करता रा और रजत भी बहत मामलो म उसी स सलाह करक

चलता रा उस पर भरोसा करता रा जो दक उसक मन क दोथती क भाि को ही जताती री चदक

तारक की विशषता ददल क रोगो म री िह रवत क हारथअरक क बाद स उसस अकसर रवत क बार म

सलाह लता यहा तक दक रवत स भी कोई वशकायत होती तो तारक स ही कहता दखो न इसका

कोलथराल इतना हाई चल रहा ह और मडम चीज मीर सभी कछ खाती ह अभी रथतरा ल चलो परा

का परा थरक गरक जायगी कस कर यह तो खद को नकसान पहचान स बाज नही आतीrdquo और तारक

तब ररका दता कसी डाकरर हो तम रवत मरीजो को उपदश दती रहती हो और खदhellipदफर उसन

खद ही एक विशषण गढ़ा रा रवत क वलए lsquoनानकपलायरrsquo यानी दक जो कछ भी कहा जायगा उसका

विरोध ही करगी रवत और दकसी िजह स नही बवलक विरोध करन क वलए विरोध

तब रवत और भी तिर चढ़ाकर बोलती rdquoरजत तो पहल ही मर पीछ पड़ा रहता ह अब तम

भी इसी स वमल गय हो िाह जी िाह दोथत दकसक हो तम मर या रजत कrdquo

तारक तब चप रह जाता रा रजत भी कछ नही कहता एक वपरय अवपरय सतय

शायद रवत भी इसीवलए कहती री दक तारक तब लाजिाब हो जायगा कयोदक रवत जानती ह दक जो

िह तारक क वलए ह िह और कोई नही हो सकता और रजत को भी इसका अदाज ह इसी स रजत न

शर म चाह दकतना विरोह दकया हो दकतना लड़ाई झगड़ाhellip दफर धीर-धीर मान वलया रा इस ररशत

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को रवत क वलए ही अगीकार कर वलया रा तारक को भी रवत न ही उस बतलाया रा जब रजत न

उस बाहो म भरकर कहा रा rdquoइतना पयार करता ह तमह दक यह भी थिीकारन क वलए राजी हrdquo

एक हक-सी उठी री तारक क भीतरhellip वजस इतना पयार वमला होhellip इतनाhellip िह इस तरह स

उन दोनो की वजनददगी को ही सना करक रखसत हो ली तारक क मन म गथसा भी आयाhellip शायद

अपनी सहत का धयान रखती तो कछ और जी जाती उन दोनो स ही तो चार-पाच साल छोरी री िह

जी भी सकती री पर अबhellip और तारक न लबी सास भरी

रवत की एक कलीग बता रही री rdquoपरसो तो काम पर आयी हई री रवत म सोच भी नही

सकती री दक इतना भारी थरोक हो सकता ह दक एक ही लपर म ल जायhellip मझ तो विशवास ही नही

होताrdquo तारक को भी विशवास नही होता रा उसी ददन सबह रवत न उसस फोन पर बात की री और

उसस मजाक दकया रा rdquoमर जनदमददन पर आओगrdquo

दरअसल सारा झगड़ा कछ साल पहल रवत क जनदमददन को लकर ही शर हआ रा िनाथ शायद

रजत को उन दोनो क बीच बढ़त ररशत की तवनक खबर न लगती रवत न उस बतलाया रा दक उसक

जनदमददन पर िह और रजत आमतौर पर शाम को बाहर दकसी बदढ़या स फर च रथतरा म खाना खान

जात ह तब तारक न कहा रा rdquoठीक ह तो लच तम मर सार लनाrdquo

रवत मान गयी री उसन उसी ददन रवत क शहर पहचन क वलए फलाईर भी बक करिा ली

री पर जब ठीक जनदमददन आनिाला रा तो रवत न उस बतलाया रा दक रजत को ठीक नही लग रहा

मरा तमहार सार लच पर जाना िह पछ रहा रा दक इतना इमपॉरर कस हो गया यह आदमी दक

तमको उस जनदमददन पर जरर वमलना ह

rdquoतमन कया कहाrdquo तारक वजजञास हो उठा रा

rdquoयही दक तमको दकसी काम स शहर म होना रा इसवलए लच पर वमलन की बात की इस पर

उसन कहा दक अगल ददन वमल लो जनदमददन िाला ददन तो उसी क वलए हhellip कोई और कयोrdquo

दफर िह बोली rdquoइसी पर उस शक हो रहा ह दक यह कोई आम दोथत नहीhelliprdquo

तारक न जोड़ ददया रा rdquoपरमी हrdquo

rdquoहा यही शक हो रहा ह उसrdquo

rdquoतो ह या नहीhelliprdquo

rdquoशायद होhellip यही मसीबत हrdquo

तारक न कहा रा rdquoअब तो ररकर ली हई ह म तो आऊगा ही तम वमल सको तो वमलना िनाथ

न वमलना चाह पाच वमनर क वलए या कॉफी क वलए भी आ जाओगी तो मर वलए िही काफी होगा

तमहार जनदमददन पर तमह दख भर लrdquo

rdquoतम भी कमाल क रोमाररक होhellip पर सच कह तो म भी तमस वमलना चाहती ह उस ददनhellip

कछ न कछ तो जगाड़ना पड़गाrdquo

rdquoमर वलए तमहारा जनदमददन मरी वजनददगी का बहत अहम ददन हhellip समझीrdquo

एयरपोरथ पहच कर तारक न फोन दकया रा रवत बोली री rdquoरजत कह रहा ह तम हम वडनर

पर जॉयन कर लोrdquo

तारक बहत हरान हआ रा पर रवत न फोन रजत को पकड़ा ददया रा तारक एकदम सकर म

पड़ गया रा उसन खद को बचान की कोवशश की rdquoसॉरी म तो यहा आया रा तो सोचा रवत स वमल

लगा पर इस तरह आप लोगो क परोगराम मhelliprdquo

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रजत न जोर दकर कहा रा rdquoनही भाई बहत तारीफ सन रहा ह बीिी स जरा हम भी तो

वमल आपस आप चाह तो घर पर आ जाईए या दफर सीध रथतरा पर वमलगrdquo

rdquoपर आप लोगो का तो वडनर पर सार जान का कायथकरम रा नrdquo

rdquoआप लच पर फरी ह तो लच पर वमल लत ह य मझ तो वडनर ही पसद ह जसा आप कहrdquo

रजत वबलकल दोथताना ढग स बात कर रहा रा एक पल को उसकी रोन म कछ तनाि तारक

को महसस हआ रा पर अगल ही पल आिाज दफर सहज हो गयी री तारक मान गया पर रकसी लकर

पहल होरल म सामान छोड़ा और इस दौरान खद को मानवसक तौर पर तयार भी करता रहा दक कस

पश आना ह अपन रकीब स दखा जाय तो ररशता रकीब का ही रा बाकी ि दकतन भी सभय या

समझदार इसानो की तरह एक-दसर स बताथि कर आवखर ि तीनो सममावनत पश क र तारक हारथ

थपशवलथर रा तो रजत अगरजी सावहतय का परोफसर और रवत सायकायररथर इसानी मन की

कमजोररयो को समझना मनोरोगो का इलाज करना रवत की विशषता तो री ही पर इसानी आकषथण

एक दसर क परवत सखचाि या ऐस ररशतो को समझन की सथकवत तो कही तीनो म ही री

रजत इस बात को खब समझता रा दक दकसी भी औरत क वलए दकसी दसर परष क परवत

सखचाि हो जाना बहत सहज रा िही एक पवत और पतनी स परम करन िाल क रप म िह रवत क इस

वयिहार स ईषयाल भी हो उठता रा एक सभय इसान क नात िह ईषया को दबा कर तारक क परवत भी

वमिित वयिहार करना चाहता रा पर िही उस रवत क वयिहार स कि पहचता रा दक िह उसक

अलािा भी दकसी दसर परष को चाह सकती ह वजसस उसक मन म आकरोश और वितषणा का भाि

उठता कभी िह अपन को उदार बना कर यह कहना चाहता दक रवत अगर दकसी दसर को चाहती ह

तो बशक उसको भी कयो न पाय सार ही जब करोध होता तो एक तरह स जस िह रवत को सजा दन क

वलए कह डालता rdquoतम जाओ दोनो सार रहोrdquo पर जो पीड़ा िह उसम सह रहा होता िह रवत और

तारक दोनो क वलए ही असहय होती

रवत न कहा रा rdquoकया तारक और म दोथत नही हो सकत और इतन दोथत हhellip एक िह वयवि

वजसस बात करक मझ खशी वमलती ह िह दोथत कयो नही बन सकता वसफथ इसवलए दक उसक मन म

तीखी भािना ह मर वलएhellip या शरीरो का आकषथण भी हhelliprdquo

रजत तब तकथ स सारी बात को समझन समझान की कोवशश करता हा करत-करत कह दता

rdquoऔरत आदमी म दोथती हो ही नही सकती कयोदक जहा शरीरो का आकषथण हो िहा दोथती जसा

वनषकपर भाि कस पनप सकता हrdquo तब रवत दोथती का एक और पकष पश करती rdquoतमहार कहन का

मतलब तो िही ददकयानसी बात हई दक शरीर पाप का मल ह जबदक तम खद ही यह पहल कह चक

हो दक शरीरो का मसला हल हो जाय तो औरत मदथ बहत खबसरत दोथत हो सकत हhellip शरीर को

अहवमयत दी कयो जाय शरीर वमल जान स उनका दोथती म बाधा बनन का मसला खतम हो जाता हrdquo

रजत रवत की बात मान भी जाता रा पर रवत दफर तारक को यह भी बताती री rdquoिन कार

रक वहम फॉर गरारड कल को िह अपना कोई नया तकथ द दगाrdquo

शायद इसी स तारक भी अचानक वहममत हारन लगा रा कस सामना करगा िह रजत का य

िह रजत स एकाध बार पहल वमल चका रा पर तब उसको यह अदाजा नही रा दक रवत और उसक

बीच कछ रा जबदक तारक तब भी कछ आतमसजग-सा हो रहा रा पर कछ वमनरो की मलाकात को

सभाल लना कोई बड़ी बात नही री और य भी रजत उस भला आदमी लगा रा यह भी सोचा रा दक

अगर रवत उन दोनो क बीच न होती तो यह वयवि उसका दोथत हो सकता रा य रवत क होन क

बािजद अतत ि दोथत बन ही पर इस दोथती का तानाबाना िसा न रा जस खावलस दोथती का होता

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ह इसम रवत क रश बन हए र जो एक और ही रगत वलए र और िह रगत तारक को बहत पयारी री

उस दोथती स जयादा

तारक न होरल पहच कर फोन कर ददया रा दक वडनर पर वमलना ही ठीक रहगा और िह

अपना काम इस दौरान कर लगा रजत आसानी स यह बात मान गया और कहा दक िह सडरकस पर

पहल घर पर आ जाय उसक बाद रथतरा खाना खान चल जायग

शाम को जब िह चलन लगा तो फोन बजा रा दसरी ओर रवत री हलो कहत ही रवत न

कहा rdquoसनो तम मत आना मर घर म बहत रशन चल रही हrdquo इसस पहल दक िह कछ कहता रवत न

फोन वडसकनकर कर ददया

रात को कोई फलाईर नही जाती री िनाथ िह उसी िि शहर छोड़ क चला जाता

आध घर बाद ही घरी दफर बजी रवत पछ रही री दक आ रह हो तारक बौखला गया दक आवखर हो

कया रहा ह कया यह रवत क मन की उलझन ह या दक रजत कीhellip या दोनो कीhellip या रवत वसफथ रजत

की उलझन को वयि कर रही री बोली री rdquoजलदी आ जाओ हम लोग इतजार कर रह हrdquo

िह पहचा तो रवत न अकल ही उसका थिागत दकया रा िह जानता रा दक दोनो बचच कालजो

म ह पर रजत काफी दर तक बठक म नही आया तो तारक हरान हआ रवत बोली rdquoिह नहा रहा हrdquo

दफर मथकरा कर जोड़ा rdquoशायद हम दोनो को कछ िि दना चाहता हrdquo

तारक तब कछ निथस हआ रा उस आग बढ़कर रवत को चमन का हौसला नही हआ उस लगा

दक रवत भी सहज नही री जस दक आम तौर पर होती ह पर उसन कछ कहा नही िह खद भी तो

सहज नही हो पा रहा रा जस लड़की क बाप क घर म शादी का परथताि लकर जा रहा हो कछ कछ

इसी तरह का महसस हो रहा रा िही डर कर परचा करना रा दक इमतहान म फल न हो जाय

रजत न कमर म आत ही बड़ तपाक स हलो दकया कछ औपचाररक-सी बात की दफर उसस

सडरक पछा और दकचन म बफथ िगरह का इतजाम करन क वलए दफर स गायब हो गया तारक को लगा

दक सहज होन की बहत कोवशश क बािजद रजत बहत असहज ह

ववहथकी का घर लत हए तारक न ही रजत स उसक काम क बार म पछना शर दकया बात

कही जा नही रही री तभी रवत एक नई दकताब की चचाथ करन लगी वजसका ररवय सबह क अखबार म

छपा रा तारक न हिाई जहाज म ही उसक बार म पढ़ा रा दफर तो बातचीत खब गरमागरम होन

लगी रजत न दवकषण एवशयाई अगरजी लखको क बार म अपन विचार झाड़न शर कर ददय यहा तक

दक रवत न अचानक घड़ी दखी तो पता चला दक रथतरा की ररजिशन का िि हो चका रा रजत न

रथतरा को फोन दकया दक कछ वमनर लर पहचग और तारक को बोला दक जलदी स सडरक खतम कर ल

या गाड़ी म ही ल चल दोनो न दो तीन सडरक चढ़ा रख र मौज-सी भी आयी हई री रजत ही कार

चला रहा रा और तारक पीछ िाली सीर पर बठा रा अचानक रजत कछ नश और कछ अपनी धन म

बोला rdquoतो तम मरी बीिी स पयार करत होrdquo

तारक भौचक-सा हो गया य ही बठा रहा जस रजत की बात को सना न हो या िह गभीरता

स लन लायक न हो रजत न अपनी बात को सिाल बनाकर दबारा पश दकया rdquoकयो तारक मरी बीिी

स पयार करत हो या नहीrdquo

तारक न कहा rdquoहाrdquo और चप कर गया उस लग रहा रा िह जो भी जिाब दगा खतर स खाली नही

पर यह जिाब सच रा तो सच बोल कर ही मार खायी जाय उस दकसी लड़की क वपता स हार मागन

नही जाना पड़ा रा आज यह भी सही

rdquoतम भी पयार करत हो िह भी करती ह तो तम दोनो सार कयो नही रहतrdquo

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तारक बोल पड़ा रा rdquoयह इतना आसान नहीrdquo

रजत इस पर आकरमण करता-सा बोला rdquoकमाल ह पयार भी करत ह और वजममिारी भी नही

वनभाना चाहतrdquo तारक को महसस हो रहा रा दक रजत कह तो कछ रहा ह और पहचाना कछ और

चाहता ह दफर भी िह जिाब तो उसी बात का द सकता रा जो दक पछी जा रही री यह कह कर

उस नाराज भी नही करना चाहता रा दक रजत वसफथ अपन भीतर क आकरोश आतक और आग को

आिाज द रहा रा बोला rdquoयह बात नही म आज भी रवत क सार वजनददगी शर करन को तयार ह

जहा तक म जानता ह रवत अपन शहर को छोड़ कर और कही नही जायगी न िह तमको छोड़न को

तयार होगी जहा तक म रवत को जानता हhelliprdquo

रवत चपचाप अपन पर अकश लगाय दोनो की बात सन रही री न तो िह रजत क पकष म

कछ बोलना चाहती री न तारक क पकष म ही बोल सकती री दफर भी दोनो क बीच तारतमय वबठाय

रखन की वजममिारी भी उसी की री और िह समझ नही पा रही री दक दकस तरह इस बातचीत को

सीमाय लाघन स बचाया जाय ऊपर स उस डर लग रहा रा दक आिश म रजत कही रककर न मार द

रथतरा बहत दर रा भी नही बात पर चरम पर चल रही री दक रथतरा आ गया रवत न रोका rdquoरजत

पारककग ढढ़ो रथतरा आ गयाrdquo रथतरा क सार ही पारककग गराज म गाड़ी छोड़ कर तीनो अदर चल गय

िरर न उनको मज पर वबठाया और सडरक क वलए पछा तरा मनदय लाकर ददय तीनो क तीनो उस मज

पर इस तरह खामोश और भर बठ र दक मनदय म वसर डबोना एक राहत बन गया रा तीनो न अपन-

अपन आडथर ददय पर बात कछ बन नही रही री हर कोई कछ भी कहन म जयादा ही सतकथ हो रहा रा

अचानक रवत बोली rdquoरजत तमको इतनी जयादा तकलीफ री तो तमन मना कयो नही कर

ददया म तो तारक को कह चकी री दक आज सार खाना नही होगा तमही न जोर ददया दक जरर

बलाओ अब इस तरह कयो बताथि कर रह होrdquo

रजत और भड़क गया rdquoम तो वसफथ यह कह रहा ह दक तम लोग एक-दसर को पयार करत हो

तो म कया कर रहा ह यहा तम जाओ एक दसर क सार रहोrdquo

दोनो की आिाज ऊची हो रही री और दसरी मजो पर बठ लोगो की वनगाह इस ओर उठ आयी री

तारक न धीर स सझाया रा rdquoमर खयाल स हम य बात यहा नही करनी चावहएrdquo सहसा रवत

न होश म आत कहा rdquoहा इतन बदढ़या रथतरा म खाना खान आय ह कछ खान पर भी तो धयान दhellip

दफर आज मरा जनदमददन ह आई िार र हि ए गड मीलrdquo

दफर भी खान पर तीनो म स दकसी का धयान नही लग सका तीनो औपचाररक-सी बात म लग

गय र तारक न ही शहर क निीनतम रथतराओ क बार म ताजा पढ़ी समीकषा का वजकर छड़ ददया रा

रजत न कार स जब उस होरल छोड़ा तो तारक न उपर कमर म आकर सडरक लन क वलए कहा

पर जसा दक िह अपकषा कर रहा रा रजत न दर होन का बहाना बना छटटी माग ली री रवत तब भी

कछ नही बोली री शायद उस डर रा दक उसका कछ भी कहना रजत क वलए घाि पर नमक वछड़कन

जसा होगा या उसकी कोई भी बात का गलत मतलब वनकाल कर रजत भड़क सकता रा य दर हो भी

चकी री

पर तारक यह भी जानता रा दक रवत एक नबर की वजददी री जो उस चावहए रा चावहए ही

रा उस रोका नही जा सकता रा िह ऊपर स मान जायगी पर भीतर स कभी माफ नही करगी

शायद इसी स रजत भी वबगड़ी हई लाड़ली बरी की तरह रवत की हर चाह या माग को विरोध करक

भी अतत मान जाता रा

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लौर आन क दो चार ददन बाद ही उसक फोन पर रवत न सदश छोड़ा रा rdquoतमहारा आना ठीक

नही हआ सॉरी तमह बलाकर भी वमल नही पायी अब लगता ह कभी नही वमलगी लर अस थरॉप

ददस वहयर पलीज मझस सपकथ मत करनाrdquo

तारक बहत ददन परशान घमता रहा रा पर रवत को फोन भी नही दकया उसन मना जो कर

डाला रा उस फोन करत हए तारक को लगता दक िह खद को उस पर लाद रहा ह और यह वथरवत

उस कभी गिारा नही री हर ददन दकसी जिालामखी-सा लाि स लदा हआ गजरता अदर ही अदर

सब तप रहा रा

महीन भर बाद रवत न फोन दकया रा rdquoगथसा हो न मझस तमस माफी भी नही माग सकीrdquo

उसकी तो कोई जररत नहीrdquo

दफर भी सोचा रा तमस कभी बात नही करगी इसी स तमको सपकथ करन स मना दकया

रा रजत को भी यही मालम ह दक तमस ररशता तोड़ ददया ह पर अब मझी स बात दकय वबना रहा

नही जा रहाrdquo

रजत को मालम ह मझस बात कर रही होrdquo

िह बहद गथसा ह तमसhellip जस दक सारा दोष तमहारा होhellip दक तमन उसकी बीिी को फसा वलयाrdquo

ि इसी तरह जब मौका लगता बात कर लत तारक क ददल ददमाग पर रवत ही छायी रहती

िह ऐस ही पलो क दौरान जीता जब दोनो क बीच कछ सपकथ होता बाकी क पल उन पलो क इतजार

म गजरत

इस बीच रवत को ददल का दौरा पड़ा रा घबराकर तारक को फोन कर डाला रा रजत न

तारक आया तो रजत उस अपनी गाड़ी म सार अथपताल ल आता जाता रहा दोनो म एक दोथती का

नाता तभी बना रा दवनया जहान की बात रजत न उस घर पर ही ठहराया रा तारक तीन ददन बाद

चला गया रा िावपस पर दोनो की फोन पर बात हो जाती रवत अथपताल स िावपस आ गयी री

धीर-धीर िह सामानदय होकर िावपस अपना काम सभालन लगी

रवत का जनदमददन दफर स आनिाला रा रवत न उस कहा रा rdquoरजत अपन आप ही बोल रहा ह

दक तम आ जाओ इस बार मरा जनदमददन मनान बोलो आओगrdquo

तारक परानी बात याद करक घबरा गया रा rdquoनही दफर स उसक भीतर सब घमड़न लगगाhellip

सबको तकलीफ होगीrdquo

यह सच भी रा रजत कभी तो उसक परवत बहत वमिित हो जाता िही अचानक गथसा ईषयाथ

उभर आत और िह अकसर बरखी ददखाता अचानक तारक को ऐसा महसस हआ जस रवत उसस खद

यह सब कह रही हो पल भर को िह भल ही गया दक रवत क ही अतयवि कमथ म िह शावमल हआ ह

और दरअसल उसक यहा आन की एक िजह यह भी ह दक िह रवत को वलख अपन खत िावपस ल

जाना चाहता ह उस डर ह दक कही ि खत रजत क हार न पड़ जाय

तारक रवत क सार काम करन िाली इस मवहला डॉ लोपज स पहल वमला हआ रा इस भीड़

म एक िही जान-पहचान की री तारक का मन हआ उसस पछ दक कया िह रवत की दराज म उसक

कागजात पर नजर मार सकता ह तारक को अदाज रा दक उसक खत िह दफतर की मज की दराज म

रखती री पर िह जानता रा दक ऐसा करना ममदकन रा नही आवखर तारक को कस हक पहचता रा

रवत की दराज खलिान का िह तो एक पररिार क वमि की हवसयत स िहा रा रजत ही कह सकता

रा दखा जाय तो ि लोग खद भी रजत स ही कहग दक रवत का सामान िह ल जाय तब तो रजत की

आख जरर उन पर पड़गी तब शायद उसको बरा लगगा दक रवत क सार तारक का एक अपना ररशता

12 47 2015 27

रा उन तीनो की आपसी दोथती क बाहरhellip रजत को बतहाशा चोर लगगी अब जबदक िह रवत स

जिाबतलबी भी नही कर सकता रवत अब कोई सफाई नही पश कर पायगी तारक क हक म कछ भी

नही कह सकगी दकसी तकथ स रजत को लाजिाब नही कर पायगी नही िह ऐसा नही कर सकता न

यह रवत क परवत सही होगा न रजत क परवत उस दकसी न दकसी तरह स खत पान ह

राथत म आत हए हिाई जहाज म तारक जब लगातार रवत क सार की अपनी वजनददगी क

गजर पल दहरा रहा रा बार-बार उस धयान आता दक जब स रवत को ददल का दौरा हआ रा िह

उसस कहना चाहता रा दक उसक खत विनि कर द एक बार उसन बात उठायी तो रवत बोली rdquoकयो

तमहार खत मर दफतर की दराज म सफ पड़ हrdquo

शायद िह वबना कह यह भी समझ गयी री दक तारक का इशारा दकस ओर ह तभी बोली

दखो जब तक म वजनददा ह म उनको फाड़ कर न तो फ क सकती ह न जला सकती ह एक बार मर गयी

तो कया फकथ पड़ता ह दक कोई कया करगा उनक सार तमको तो दफकर होनी नही चावहए अब तो ि

मरी अमानत हrdquo यह बातचीत दो एक महीन पहल की ही होगी तारक न सोचा रा बात कभी दफर

उठायगा पर उसस पहल हीhellip

तारक को भी तब यह अदाज नही रा दक रवत क अलािा रजत स भी उसका नाता रा रवत क

जान क बाद िह खद को रजत क बहत करीब महसस कर रहा रा और उस लगा दक उसक खत रजत

को उसस दफर दर धकल सकत र पर िह दकसी तरह भी रजत को खोना नही चाहगाhellip रजत जस स

रवत का ही एक वहथसा राhellipउसन दखा लोगो स वघरा रजत का चहरा बहद वनचड़ा हआ रिहीन और

सखा-सा लग रहा रा रात भर सोया नही होगा इसवलए आखो क नीच कालापन उतर आया रा आख

काफी अदर को धसी हई री तारक को लगा दक िह शायद रजत स बहतर हालत म ह दफर उस रशक

भी हआ रजत अपन गम का खला इजहार कर सकता हhellip तारक को यह सविधा नही री िह दकसी

उजड़ आवशक क रप म इस महदफल इस मौत का शोक करन िालो की महदफल मhellip अपना असली

चहराhellip अपना आवशक का चहराhellip नही ददखा सकता रा अचानक उसकी आख भर आयी अपन खोन

की वशददत क अहसास स

रवत क िाकय उसक कान म सरसरान लग जबस उस ददल का दौरा पड़ा रा िह जीिन की

कषणभगरता या इसान क नाचीज होन क अवथततििादी दशथन को बहत बघारन लग गयी री शायद

अपन जान का अहसास उस कही बहत गहर उदास कर जाता रा पर िही िह उस जान को एक

अिशयभािी अकारय सतय की तरह थिीकार करक उसस समझौता भी करन लग गयी री एक ददन

उसन हडसन नदी क दसर वसर स मनहरन की ओर दखत हए कहा रा rdquoदखो तो इन छोर-छोर वडबबो

म दकतन लाखो लोग रहत ह दकतन छोर ह हम लोग इतनी तग जमीन पर दकतनी बड़ी तादाद म

समा जात ह एकदम हजारो की सखया म सार-सार जड़ कीड़ो की तरह दफर भी अपन आप को

दकतना बड़ा मानत ह राजनीवत धमथ और नवतकता की तवखतया वचपका कर दकतना बड़ा होन का

भलािा दत रहत ह खद कोrdquo

रजत को रवत की इसान को नाचीज करार दन िाली बातो स हमशा बहत वचढ़ छरती री

बोला रा rdquoधमथ नवतकता जीिन क सतय ह इनको तम भलािा दन िाली चीज कस कह सकती हो

इसान इसीवलए तो बाकी जीिो स अलग ह दक िह सोच सकता हrdquo

rdquoऔर सोच क धरातल पर हर चीज को गलत या सही सावबत कर सकता ह नवतकता को गढ़

सकता ह या परा सतयानाश कर सकता हhellip ठीक ह मझ तो उसम कोई नकसान नहीrdquo

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हा नकसान दकसी का ह तो मरा ही रजत न कहा तो तारक झर स बोल पड़ा रा rdquoनकसान

तो तब होता जो म उस भगा क ल जाताrdquo

रजत न सजीदगी स कहा rdquoअब इसका ददल बर गया हhellip तो आधी सपवतत तो लर ही गयी न

तम भगा ल जाओ तो भी फकथ नही पड़गा यह आधािाला वहथसा तब भी यही रहगाrdquo

सचमच रजत का यह विशवास सही रा रवत और उसक ररशत की शरआत क ददनो म भािना

क परिाह म बहता तारक रवत क सार एक नयी वजनददगी क दकिाड़ खोलन की बात सोच पाया रा पर

जलद ही उस अहसास हो गया रा दक रवत कही बहत गहर जड़ी री रजत क सार दक िह कभी उस

ररशत को तोड़गी नही य रजत भी शर क ददनो म भीतर स वहल गया रा यह झरका दक रवत रजत

को छोड़ दकसी और को मन म ला सकती ह उस बहत दर जा फ क आया रा दफर रवत न खोय विशवास

को िापस लौरा ददया रजत अपन आध नकसान क सार धीर-धीर शायद समझौता करना सीख गया रा

तारक को लगा दक िह आध क सार समझौता करना सीख गया रा दफर तारक को लगा दक

िह आध क सार समझौता नही रा रजत क भीतर कही पर का भरोसा भी रा जस दक रवत को वसफथ

एक बदलाि चावहए रा जो तारक रा िनाथ िह परी रजत की ही री कयोदक मौका आन पर रजत

अपना परा हक जतान स चकता नही रा हमशा यही मानता रा दक पहला हक उसी का ह तारक

हमशा बाद म आयगा जस दक पर भर लन पर बचा हआ भोजन दकसी को भी ददया जा सकता हhellip

कछ ऐसा रख

पर रवत बचा हआ भोजन नही रीhellip दकसी तरह स भी उवचछि या अिवशि नही जो उसन

रवत म पाया रा िह पहल वजनददगी म कभी नही वमला रा रवत न उसकी पहचान करायी री

पररपणथता स रवत को जानना ही जस उस सपणथता को छना रा शायद रजत न भी रवत म ऐसा कछ

पाया रा जो आम औरतो स अलग रा रवत शादी क इतन बरस बाद भी उस अपन म उलझाय री और

िह उसस मि नही होना चाहता रा रवत म बाहरी खबसरती क बािजद वयवि क ददमाग को भी

उलझाय रखन का जो गण रा उसस सच म जो भी पास आता और सखचता जाता रवत म भरपर

पयार लन की चाह री तो भरपर दन की कषमता भी इसी स अभी भी उसस जी तो नही भरा रा रजत

का शायद िह ऐसी औरत री जो हमशा वनत निीन होती रहhellip सौदयथ की एक पररभाषा यह भी तो

दी गई ह दक जो वनत नतन होता रह िही सौदयथ ह रवत भी कभी परानी नही पड़ती रोज कछ नया

होता ह उसक पासhellip कोई नया खयालhellip कोई नई सझhellip कोई नई उकसान उलझान िाली बातhellip

शायद इस ददमागी सौदयथ कहना होगाhellip जो कछ भी उसम राhellip बस खीचता रा अपनी ओरhellip मोहता

राhellip शायद कया पर उगली धरना उस पररवध म बाधन की भोडी कोवशश होती

कछ दवदव उठता तो रवत रजत क ही हक म बोलती री रजत क वहतो को सरवकषत कर लन क

बाद ही िह तारक को उसका हक दती तारक को खीझ भी होती दक रजत उसक जीिन म चदक पहल

आ गया रा इसीवलए हर चीज म ही पहला हक उसी का बनता ह पर उसन रवत स अपनी यह

मनवथरवत कभी जावहर नही होन दी री वपछल साल िलनदराईन ड पर ऐसा ही तो हआ रा दरअसल

दोनो को अदाज नही रा दक उस िीक ड पर िलनदराईन ड पड़ता रा तारक को दकसी काम स रवत क

शहर आना रा और दोनो न वमलन का कायथकरम बना डाला रा रजत स रवत की बात हई होगी तो

उसन भनकर कहा रा rdquoतो िह तमहारा िलनदराईन ह जो उस ददन आ रहा हrdquo रवत क कहन पर दक उस

तो याद भी नही रा िह बोला रा rdquoम नही मान सकता दक तारक न य ही आन का बनाया ह इस

िीक ड परrdquo रवत न तारक स सारी बात बतलायी तो उसन सोचा रा िह खद फोन पर रजत स कहगा

दक उस सचमच याद नही रा पर दफर बात बढ़ान न दन क वलए चप रह गया रा और जान का

12 47 2015 29

परोगराम भी थरवगत कर डाला रा तब उस दो बात तकलीफ दती रही री एक तो यह दक रजत हमशा

उसक सामन परारवमकता ल जायगा दसरी यह कड़िी सचचाई दक रवत कभी भी उसकी जावहरी वजनददगी

का वहथसा नही बन सकती री उसकी कमर म हार डाल कर िह कभी दकसी स यह नही कह सकता

रा रवत मरी हrdquo तब उस बहद रशक होता रजत स कया रजत को सचमच अहसास ह दक रवत तारक

क वलए कया ह दक िह उसकी वजनददगी का कनदर उसकी वजनददगी का अरथ बन चकी ह यह कोई हलका-

फलका ठरकपन नही उसकी वजनददगी का रशा-रशा गर गया ह रवत स शबद म अरथ की तरह समायी ह

रवत उसक अवथतति म इस गरन म िह खद ही घरता रहगा हमशा

अब रवत नही ह तो िह घरन और भी कस रही ह उस कया अब िह रजत स कह पायगा

अचानक उसका मन हआ दक रजत स कह द rdquoतमको मालम ह दक मझ सचमच पता नही रा दक उस

ददन िलनदराईन ड रा िनाथ ऐसी जरथत न करताrdquo दक िह जानता हhellip अचछी तरह समझता ह अपनी

और उसकी ररीररी की पररवधयो को दक रजद शायद कभी जान न पायगा पर उसन हमशा एक दोथत

की तरह रजत का रजत की जररतो का खयाल रखा हhellip वसफथ ऊपर-ऊपर स सामावजक उपचार की

तरह नही भीतर स दकसी ददली ररशत सhellip दफर िह ररशता चाह रवत क जररय स ही बना हो

हो सकता ह रजत यह सब महसस करता हो या न भी करता हो पर उसक चहर पर भी वमिता

का थिागतमय भाि हमशा ददखा ह तारक को वसिा उन कषणो क जब दक सचमच उन दोनो क बीच

lsquoररररोररयलrsquo झगड़ हए तब भी ि शायद इसानी आचार या परथपर सदभाि की सीमाओ को कभी

लाघ नही पर दफर भी तारक का रवत क सार का ररशता ऐसा नही दक रजत क सार वजस बार सक

रवत उसकी हथती का अवभि वहथसा ह िह कोई और कस हो सकता ह रजत रवत नही हो सकता

चाह उसक दकतन ही करीब रहा हो उस दकसी न दकसी तरह स अपन खत पान ही ह लदकन कस

और यही तारक बार-बार उलझ जाता ह अपनी यह परशानी िह दकसी क सार बार नही सकता

रजत स तो कतई नही खत अगर सचमच रजत क हार पड़ गय तो

लदकन रवत न यह भी तो कहा रा दक अगर िह नही रही तो कया फकथ पड़ता ह पर रजत

सचमच खत पढ़ ल तोhellip शायद उसकी पीड़ा पर तब करोध और घणा का कोई विकराल भत हािी हो

सकता हhellip हो सकता ह दक खत पढ़कर रजत रवत को खद स वछरक द लदकन उसस कया तब शायद

रवत और भी तारक क करीब आ जाय और भी उसकी अपनी हो जाय वसफथ उसी की समची एक रात

पहल उस ऐसा ही कछ सपना आया रा रवत की मौत की खबर क बाद यही उसका याद रह जानिाला

सपना रा िह रवत की अतयवि म गया ह और एक अधरा-सा बठकनमा कमरा हhellip कमर म कछ

कागज वबखर पड़ हhellip िह एक कागज उठाता हhellip िह उसी का रवत को वलखा खत हhellip और कई लोग

उसक आसपास ह और िह सोचन लगता ह दक कही इन लोगो न भी तो उनदह नही पढ़ाhellip तभी रजत

का चहरा उसकी ओर बढ़ता ह और िह कागज वछपान की तरकीब सोचन लगता हhellip इसी उधड़बन म

उसकी आख खल गयी री तो वजथम पसीन म नहाया हआ रा

एक रजत ही यहा उसक सबस करीब हhellip और रजत ही उस अजनबी-सा लगन लगा ह अब

तक उसका रवत का सदभथ रा अचानक उस सदभथ स करकर न होन जसा हो रहा ह तारक को अजीब-

सी मानवसक दरी और भयकर अकलापन-सा महसस हआ िह यहा आया ही कयो रा रवत की

नामौजदगी म दकतना बमानी ह उसका यहा होना रजत को भी दकतना दफजल-सा लग रहा होगा

उसका यहा उपवथरत होना वजन लोगो स वघरा ह ि तो सचमच उसक अपन हhellip तारक तो दर स भी

अपना नहीhellip मत स तारक का जो भी नाता रहा होhellip उसक दकसी दसर स तो नही रा उसक कॉलज

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कामो स लौर बचच भी तारक को पहचानत नही र तारक न ही उनकी शकलो और वयिहार स अदाज

लगाया रा और हॉलि म लगी तथिीरो स उनदह पहचान पाया रा

तारक क पास रजत स कहन को कछ नही रा उसका कछ भी कहना रजत को खल सकता रा

उलर तारक को लगन लगा दक रजत शायद सोच रहा हो दक अब कयो जखमो को याद ददलान आ गय

हो कछ भी हो तारक न उस पीड़ा तो पहचायी ही री कया अब उसका कछ भी करना रजत क कि को

कम कर सकता रा उसन वनगाहो स ही अपना दख बयान कर ददया जो शायद रजत न थिीकार भी

वलया राhellip शायद एक औपचाररकता की तरह जस िह दसर बहत स जमा लोगो की शोकावभवयविया

थिीकार रहा राhellip उसस कछ अलग नही शायद तारक का िहा होना ही रजत को खल रहा हो पर

िि की नाजकी की िजह स िह कछ कहना न चाह रहा हो तारक एकदम परशान-सा उठ खड़ा हआ

कछ लोग रजत क गल लग रह र शायद उसस विदा लकर जा रह र तारक न सोचा िह अब

कहगा दक रवत क पास कछ उसक जररी कागजात र अगर रजत उस कागजो िाली जगह पर ल चल

तो िह खद ही दख लगा तारक यि की गवत स रजत की ओर बढ़ा रजत जस दकसी को दख कर भी

दख नही रहा रा उसकी आख दकसी शनदय पर ररकी री तारक को लगा उन लोगो क वघराि म

वजसम उसक अपन अजीज दोथत और ररशतदार र रजत न उस कोई विशष लकष नही दकया तारक क

भीतर अजीब सनापन-सा आ वघरा लगा जस रवत रजत म कही नही री वसफथ भरम-सा हआ रा उस

उसक िहा होन का जस दक उसक रवत क नात स िहा होन म ही कोई भारी असगवत री उस लगा

िहा बठ अजनबी स लोग उस घर रह र उसक िहा होन पर परशनवचनदह लगा रह र पता नही दकतन

ही अजनवबयो स वघर गया रा तारक यहा तक दक रवत की उस तथिीर म भी उस रवत नजर नही आ

रही री िह भी कोई अजनबी छाया री यह दवनया उसकी नही री अगर िह रवत की दवनया रही

भी हो तो वजस रवत को िह जानता रा उस रवत क वलए भी यह दवनया अनवथतति री विसगत री

उसन रजत को बहत सभलत सभलत गल स लगान की औपचाररकता की उस लगा जस िह

दकसी अजनबी को गल लगा रहा रा रवत वजतन उसक अपन पास री उतन और कही नही दकसी क

पास नही दरअसल रवत और कही नही री उसक भीतर रीhellip बस उस रवत को िही अपन भीतर ही

कही सजोय रखना रा भीतर ही खोजना रा भीतर ही तसलली करनी री दकसी और स बार नही

सकता रा रवत को रजत क दोनो कधो को हलक स दबाकर उसन धीर स कहा rdquoरक कयरrdquo और मड़ा

तो वबना पीछ दख बाहर वनकल गया

12 47 2015 31

पासपोरथ अमरीकन मरो

ओम गपता

पासपोरथ अमरीकन मरो पर रगत सहदथतानी

आज सनाऊ तमको पयार अपनी रामकहानी

छोड़ो भारत मन भयया डॉलर दख-दख ललचायो

चार-पकोड़ी जब भी दख मोह म पानी भर आयो

दीिाली पर दीप जलाउ होली पर खल रग

मौको जब मझको लगतो पीतो म भी भग

कसो होगी सरकार हमारी मोक हरदम सचता

जब भी दश पड़ सकर म कपा करो हनमनदता

पज म अब भी राम-कषण जातो मददर रोज

गपशप यारो स करतो फोकर म वमलतो भोज

योगी-बाबा आए दश स जब दन मझको जञान

आख मद क ना कछ जान करतो उनको सममान

हमबगथर अब भी नही भातो भाती मझ कचोड़ी

जसो जब भी मौका आयो रोपी िसी ओढ़ी

जाऊ दश को जब म अपन खाऊ लडड और इमरती

कहतो खद को सहदथतानी अमरीका मरी अब धरती

कहन को बहत ह भयया रोड़ को समझो काफी

बरा-भला लगा जो तमको माग नतमथतक माफी

12 47 2015 32

शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

आकाकषा ह

वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

फर च अनिाद कर इस lsquoभोगिाद स पीवड़त पविम की आतमा को अतयवधक शावत दन िालाrsquo कहा

12 47 2015 33

ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

की सीमाओ क पर मनषय कया अनभि कर सकता ह उसकी एक झलक भी ददखा दता ह उसी

औपवनषदीय जञान को महरवष िदवयास न सामानदय जनो क वलए ldquoपविि गीताrdquo म सवकषपत रप म परथतत

दकया ह िदवयास की महानता ही ह जो दक 11 उपवनषदो क जञान को एक पथतक म बाध सक और

मानिता को एक आसान यवि स परमातम जञान का दशथन करा सक ldquoपविि गीताrdquo महाभारत क

भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

ह भगिद गीता वहनदद धमथ क पविितम गरनदरो म स एक ह जो इसानो की चौहददी की सीमा रखा पर

भगिान क शरी मख दवारा इसान स कही गयी सरहदो पर चहरो की थकररनी का लखा-जोखा ह यह

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पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

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Sneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStke Anmol haSy 9` Uuml na3k-sgh Yacute jIvn ke rg Uuml kaVy-sgh Yacute ddeR-jubagt Uuml nJ_m v g_j_l sgh Yacute Aaj ka pu=8 Uuml khanI-sgh Yacute jIvn-ini2 Uuml kaVy-sgh Yacute AaTm-gujn Uuml AayaiTmk-daxRink gIt Yacute has-pirhas Uuml haSy kivta0gt Yacute j_J_bato ka islisla Uuml kaVy-sgh Yacute The Galaxy Within UumlA collection of English poemsYacute AnuwUityagt Uuml kaVy-sgh Yacute kaVy-vlti3 Uuml skln 0v spadn Yacute pUrb-piXcm Uuml AapvasI sMbiN2t Aaleq sgh Yacute bO7ar Uuml skln 0v spadn Yacute kaVy hIrk Uuml skln 0v spadn Yacute sjIvnI Uuml SvaS$y sMbN2I leq Yacute ]pin8d dxRn Uuml AyaiTmk Yacute

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England

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Page 3: Year 12, Issue 47Year 12, Issue 47 vsu2avsu2a · राथत § में आ वबछ §ग . ... श्रराम की अन ¡कम्पा स § ह हाल ह में

12 47 2015 1

सपादकीय २

कषण आ गया ह डॉ नरनदर कोहली ४

मरली कस अधर धर महाकवि गलाब खडलिाल १५

भारत और भारतीयता का अरथ परो गिरीशवर वमशर १६

भकप का सदश डॉ एमएल गपता ldquoआददतय १९

ि दोनो डॉ सषम बदी २१

पासपोरथ अमरीकन मरो ओम गपता ३१

शरीमदभगिदगीता

राजधमथ का विशवगरर यतीरनार चतिदी ३२

आकाकषा शकतला बहादर ३४

वहनददी क भगीरर

महामना प मदन मोहन मालिीय डॉ नीलम शमाथ ३५

कषमा सनह ठाकर ३९

म और त दो तो नही पदमशरी डॉ शयाम ससह शवश १ अ

16 Revlis Crescent Toronto Ontario M1V-1E9 Canada TEL 416-291-9534

Annual subscription$2500

By Mail Canada amp USA$3500 Other Countries$4000

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e-mail snehthakorerogerscom

12 47 2015 2

सपादकीय

राषटरपवत भिन क सभागार म भारत क राषटरपवत माननीय शरी परणि मखजी की उपवथरवत म

वगन-चन वनमवित वयवियो क साविधय म इरधनष दवारा परथतत सफ़ीआना कविाली सनन क आनद का

सौभागय डॉ आरपी ससह क सौजनदय स परापत हआ ठाकर साहब और म डॉ आरपी ससह जी की

सदाशयता क आभारी ह

भारत क परधान मिी माननीय शरी नरनदर मोदी जी न रोराणरो कनडा म अपना ििवय वहनददी

पजाबी और गजराती क सबोधनो स आरभ कर भारतीय मल की जनता का हदय जीत वलया अपना

भाषण वहनददी म दकर अपन दश की भाषा की महतता का परदशथन दकया थिभाषा को गौरिावनदित कर

कहन िाल और सनन िाल दोनो ही इस ददशा म गरवित हए

पस की महतता हर समय-काल म रही ह इस यग-काल म भी ह जीिन को सविधाजनक

सचार रप स चलान क वलए पसा आिशयक ह ितथमान भी इसस अछता नही ह दोनो ही दशो क

परधान मिी अपनी आरवरक सपिता को दविगत रख उसम कस और बढ़ोततरी की जा सकती ह इस

विषय पर अपन िाताथलाप को क दरत करत रह भारत क पास ऐसा कया ह वजस परापत कर कनडा

लाभावनदित हो सक और कनडा क पास दन क वलए ऐसा कया ह वजसस भारत लाभावनदित हो सक ऐसी

आरवरक सपिता क आदान-परदान क मददो पर वजसस दोनो दश लाभावनदित हो सक ज़ोर रहा दोनो

दशो की बहलता का पारथपररक फायदा उठाना लकषय रहा दोनो दशो क आतम-सममान को सरवकषत

रखत हए करय-विकरय की अरथ-वयिथरा को समावहत करन क दाि-पच म दोनो सफल रह कनडा क

परधान मिी माननीय शरी थरीिन हापथर जी माननीय शरी मोदी जी की कनडा यािा म हरदम उनक सार

रह मिीपणथ भाि स हरदम सग-सग रहना इस तथय का परमाण ह आखो न जो सपन दख ि ददखाय ह

उनकी परमावणकता भविषय वनधाथररत करगा

यह हमारा सौभागय ह दक शरी राम परसाद विपाठी जी शरी विकास सनी जी एि शरी दीपक

चोपड़ा जी क सौजनदय स माननीय शरी लालकषण आडिाणी जी क सार जो मधमय समय बीता उसक

वलए हम दोनो ही सबक आभारी ह आडिाणी जी न वजस आवतथय सतकार की भािना विनमरता और

परम क सार लगभग डढ़-पौन दो घर का समय हमार सार वबताया िह आजनदम हम उनक परवत एक

आदर-भाि क सि म बाध गया ह आडिाणी जी की विदवतता म घली शालीनता मन मोहन िाली ह

इस सौहारथ पणथ अिथरा म समय दकस अबाध गवत स बहता चला गया इसका भान तो आज तक न हो

पाया शरी आडिाणी जी दवारा ददए गए उपहार हमारी अमलय वनवध ह जहा एक ओर उनक घर की

बठक की पटरगस बरबस ही आपकी दवि आकरवषत करती ह कया जीित वचिण ह िही दसरी ओर

अपनी लाइबररी की पिथत शरखलाओ की एक पसनदरग दवारा उनदहोन जीिन का एक महामनदि मर हारो म

रमा ददया - पहाड़ जसी बाधाओ को हरदम पीछ धकल कर रखो अपन सामन न आन दो िाथति म

सही ह परगवत क पर पर कदम रकन क वलए नही ह बाधाओ को हरात हए आग बढ़न क वलए ह एक

पग उठगा तो ही तो दसरा पग उसक सार जड़गा और जब पग-दर-पग बढ़ग तो मवज़ल तो ख़द-ब-ख़द

राथत म आ वबछगी

अपनी लाइबररी म जहा उनदहोन कछ अमलय वचिो स मरा पररचय कराया िही एक विरल

दलथभ पथतक स अिगत कराया - अगरजी-ससधी शबदकोश वजसम ससधी भाषा दिनागरी म वलखी री

आडिाणी जी न अपनी पिी परवतभा स भी हमारा पररचय कराया परवतभा जी अपन

नामथिरप ही परवतभाशाली ह उनका वयविति कई कलाओ स समपि ह यदयवप दक उस समय ि

12 47 2015 3

वयथत री पर उन वयथत कषणो स भी समय वनकाल उनदहोन हमार सार कछ समय वबताया इस हत धनदयिाद क

शबद कम ह हदय स आशीिाथद दती ह दक ि अपन नाम को और भी उजागर कर

भारतीय साथकवतक सबध पररषद क अधयकष परो लोकश चर जी क अमलय समय क वलए आभारी ह

कई विषयो पर विचार-विमशथ हआ उनक उपयोगी विचारो स अिगत हई

शरीमती सनीवत शमाथ डीएस वहनददी एि डॉ नीना मलहोिा जएस वहनददी स वहनददी विषयक विदशो म

वहनददी वशकषण मानकीकरण शबदकोश विशव वहनददी सममलन आदद अनक विषयो पर गभीर विचार-विमशथ हआ

इस उपयोगी िाताथ हत दोनो की आभारी ह

सावहतय अकादमी क अधयकष डॉ विशवनार परसाद वतिारी जी स सावहतय पर िाताथलाप हआ उनक

दवारा परदतत ह-मान की आभारी ह

जिाहर लाल नहर विशवविदयालय क डॉ राजश पासिान न दो ददिसीय सत गर रविदास जी पर

अतरविषयक अतराथषटरीय सगोषठी का भवय आयोजन दकया विवशि अवतवर क रप म आमवित करन क वलए

धनदयिाद एि आभार

उदथ अरबी फारसी यवनिरवसरी लखनऊ क परो अशरफ़ी न दो ददिसीय रोल ऑफ सफ़ीज़ इन परमोशन

ऑफ सोशल हारमोनी विषय पर एक भवय आयोजन दकया सममावनत अवतवर हत धनदयिाद एि आभार

शरी अवनल जोशी जो ददलली म वहनददी क परचार-परसार म सलगन एक जान-मान वयविति ह तबादला

होकर फ़ीजी जा रह र उनक सममान समारोह म सवममवलत करन हत आभार

शरी दिनदर वमततल डॉ राम शरण गौड़ डॉ ददनश वमशर डॉ नताशा अरोरा न अतराथषटरीय मवहला

ददिस की पिथ सधया पर सममावनत दकया धनदयिाद एि आभार

सभी शभचछको की शभकामनाओ स वयविगत रप स यह िषथ मा सरथिती की असीम अनकपा लकर

मर वलए आया ह मा सरथिती न बहत कछ मरी झोली म डाला ह

शभचछको की शभकामनाओ स वलमका बक ऑफ ररकॉडथ म मरा नाम परिासी सावहतयकार एि

पिकार - सपादक-परकाशक िसधा - दोनो ही रपो म दज़थ हआ ह वलमका रीम को धनदयिाद आभार

फरिरी म सावहतय अकादमी म पर न मर उपनदयास ककयी चतना-वशखा को अवखल भारतीय

िीरससह दि परथकार स परथकत दकया ह सावहतय अकादमी सावहतय अकादमी क वनदशक डॉ विभिन नार

शकल सथकवत पररषद की आभारी ह भवय अलकरण समारोह हत धनदयिाद

२ माचथ को जय शकर परसाद सभागार म अिध रतन अिाडथ २०१५ वमला ह सगम क सभी

पदावधकाररयो क परवत धनदयिाद एि आभार

जहा यएन समबदध सथराओ दवारा इररनशनल िीमन एकसलनदस अिाडथ २०१४ वपछल िषथ वमला

रा िही इस िषथ एक और यएन समबदध परवतवषठत ररसचथ फाउडशन इररनशनल दवारा इररनशनल िीमन

सममान का सौभागय परापत हआ ह ररसचथ फाउडशन इररनशनल तरा इरर रोमा कलचरल यवनिरवसरी क

ततिािधान म पीजी वडपलोमा इन सोशल िकथ की विभागाधयकष तरा रोमा यवनिरवसरी की रवजथरार डॉ ऋचा

ससह दवारा आयोवजत भवय समारोह म मचासीन रोमा यवनिरवसरी क कलावधपवत पदमशरी डॉ शयाम ससह शवश

माउर एिरथर पररम मवहला विजता पदमशरी सतोष यादि एि डॉ सतोष खिा तरा वशकषा भिन क गणमानदय

अवतवरयो और भविषय क कणथधार मधािी छाि-छािाओ की उपवथरवत म यह सममान परदान दकया गया

शरी राम की कपा और आदरणीय एि वपरय अममा मा मातशवरी दिी क आशीिाथद स इस िषथ मरा नया उपनदयास

लोक-नायक राम भी परकावशत हो गया ह आशा ह दक इस भी पहल की ही तरह आपकी सदभािनाए परापत होगी

शरी अवनल िमाथ जी परकाशक क सार-सार वहतषी शभाकाकषी पाररिाररक सदथय क रप म ह आभार आशीिाथद

शरीराम की अनकमपा स ही हाल ही म मझ क रीय वहनददी सथरान आगरा दवारा परथकत होन की सचना

दी गई ह यह सममान मझ भारत क माननीय राषटरपवत क कर-कमलो दवारा राषटरपवत भिन म परदान दकया जाएगा

सभी की शभचछाओ को समर हए उनक परवत आभार परगर करत हए सभी क परवत मगल कामनाओ सवहत

जय शरी राम ससनह सनह ठाकर

12 47 2015 4

कषण आ गया ह डॉ नरनदर कोहली

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मरली कस अधर धर

महाकवि गलाब खडलिाल

मरली कस अधर धर

सर तो िदािन म छर कस तान भर

जो मरली सबक मन बसती

वजसस री तब सधा बरसती

आज िही नावगन-सी डसती छत वजस डर

वजसको लत ही अब कर म

पीड़ा होती ह अनदतर म

कस दफर उसकी धन पर म जग को मगध कर

इसको तभी धर अधरो पर

जब सग-सग हो राधा का थिर

जब यह मरली सना-सनाकर उसका मान हर

मरली कस अधर धर

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भारत और भारतीयता का अरथ

परो गिरीशवर ममशर कलपवत महातमा गाधी वहनददी विशवविदयालय

आजकल क चरवचत सरोकारो म भारत और भारतीयता क सिाल परछन न और परत यकष दोनो ही रपो

म खासी चचाथ का विषय बन चक ह और कई बड़ बवदधजीिी इस पर बहस म वशरकत कर रह ह दसरी

ओर ऐसो की भी कमी नही ह जो इस बमतलब का मददा मानत ह इसका पररदश य आज जररल और

बदला हआ ह दश क थ िति होन क पहल और थ िति होन क ततकाल बाद और अब लगभग सात

दशक की पररपक िता क करीब पहचत-पहचत इस लकर आज बहतर यह मान कर इस तरह की चचाथ

स तरथ र हो चल ह दक यह तो कोई सारथक परश न ही नही ह कछ इस िवशवक या भमडलीकत हो रह

आज क समय की जररतो क अनसार समझना चाहत ह कछ इस किल थ रानीय दवि स ही दखना

चाहत ह कछ इस सभ यता और सथ कवत क विमशथ स जोड़ कर दखत ह जो भी हो अतरराष रीयता क

सार परयासो क बािजद आज भी राज य या नशन थ रर की अिधारणा वनणाथयक महत ि रखती ह और

वनकर भविष य म सीमाविहीन दश जसी कोई अिधारणा आकार लती नजर नही आती आज का सत य यही ह दक दशो की सीमाए बाधा (का अवधक) और सपकथ (का कम) का काम

कर रही ह दश की सीमाओ की रकषा सबक सामन एक बड़ी चनौती ह दश और राष र किल कोरी

भौगोवलक अिधारणाए नही होती उन इकाइयो की रचना क सार एक समाज या समदाय विशष की

आशा-आकाकषा भी जड़ी होती ह दश की अिधारणा एक थ िप न को समरवपत रहती ह आज क तमाम

राष रो क सार उनक सार जड़ी लबी सघषथ-गारा आसानी स दखी जा सकती ह जो दसर समाजो और

समदायो की सामराज यिादी आकाकषाओ क परवतरोध को दशाथती ह शविसपनद न और आरवरक रप स परबल

दशो की दादावगरी उनकी सतता और शवि का जलिा अभी भी बरकरार ह कहन का तात पयथ यह दक

दश की इकाई अभी भी राजनवतक सामावजक आरवरक सामररक और सास कवतक रप स महत िपणथ

बनी हई ह और उस नकारा नही जा सकता

आज बौवदधक किायद म भारत समत सब कछ करथ रड मान जान का फशन-सा चल पड़ा ह

पर उसस दर करोड़ो (भारतीय) जनो क तन-मन म भारत जीवित ह आम आदमी वजनस दश आकार

लता ह िह भारत की एक सामावजक थ मवत भी रखता ह उसक वलए दश थ रानबोधक ह और भारत

एक भाि भी ह भारतीय होन का मतलब ह भारतभवम म रहन की जीिन-व यिथ रा म शावमल होना

भारत कह या इवडया यह मलतः एक भौगोवलक थ रान और उसकी पररवध को रखादकत करता ह इस

भभाग को जब दवीप आयाथितथ भारतिषथ और सहदथतान क नाम स भी जानत ह वहमालय और

सागर इसकी सीमाए बनात ह शथ यश यामला क दश गान और जनगणमन क राष रीय गान म जीित

भारत माता को वजस रप म थ मरण दकया गया ह िह भौगोवलक अिधारणा ही नही उसकी सीमा म

रहन िाल बासशदो की सामावजक-साथ कवतक अवथमता पर बल दती ह वजसका एक भािात मक रप भी

ह भारत एक सामावजक शरणी भी ह जो समाज दवारा रवचत और थ िीकत ह यह उस सामावजक

आकाकषा का परतीक भी ह जो एक आदशथ वथरवत की ददशा म जान क वलए परररत करती ह आधवनक

यग म एक थ िति जनति क रप म एक राज य की थ रापना हई और सहमवत स एक सविधान बना और

12 47 2015 17

सामावजक आकाकषा को एक मतथ रप वमला हमन उसम आिश यकतानसार बदलाि भी दकया ह इस

इकाई क सदथ य क रप म हमारी एक भारतीय पहचान ह

स मरणीय ह दक एक समदाय या सामावजक इकाई की वभनद नता या अलग सतता थ रावपत करना

वयािहाररक दवि स भी आिश यक ह ऐसा करना समाज को अदर स बाधता ह एकजर करता ह और

अनद य (िसी ही) इकाइयो स फकथ करता ह िधावनक रप स नशन या राष र एक काननी इकाई भी ह

और उसक सदथ य िध नागररक होत ह वजसकी थ िीकवत अनद य राष र भी करत ह और पासपोरथ िीसा

आदद की व यिथ रा स आिागमन को वनयवित करत ह नागररक क रप म िधावनक सामावजक और

साथ कवतक अवधकार क सार कतथव य और दावयत ि म भी भागीदारी होती ह समाज की वनयवत ह दक

जावत भाषा बोली कषि भोजन िथ ि रीवत-ररिाज धमथ आदद की विशषताए आ जाती ह इनक

सार समाज का भािात मक लगाि होता ह और उसक सदथ य थ िय को उसी आधार पर पररभावषत भी

करन लगत ह चदक इन विशषताओ का सचार पारथ पररक सबध और जीिन क विविध व यापारो स

गहरा ररश ता होता ह इसवलए य उस समाज की पाररभावषक विशषताए बन जाती ह

भारत दश हमार समकष एक सभ यता और मल य दविसपनद न सामावजक इकाई क रप म

उपवथरत होता ह इसकी समझ कई रपो म वमलती ह वनकर इवतहास म झाक तो पाएग दक इसक

कई रप ह एक छोर पर सहद उपलवबध को बलपिथक रखन िाल वतलक अरसिद सािरकर और

विवपन चर पाल जस ह दसरी और गोखल रानाड गाधी और रगोर सरीख आध यावतमक विचार को

मानन िाल ह जो सभी परभािो को आत मसात करन को तयार ह य सवहष णता आत मवनयिण आदद क

सार एक तरह की बहलता को ठीक मानत ह तीसरी ओर आधवनक दविसपनद न नौरोजी और पवडत

नहर जस लोग ह जो भारत को एक विकवसत सभ यता तो मानत ह पर यह भी महसस करत ह दक

उसका हरास भी हआ और उसम बहत कछ आधवनक जीिन दवि क विपरीत हआ जो आज उपयोगी

नही ह उनक वहसाब स एक बहलतािादी आधवनक नजररया जो विजञानसम मत हो उपयक त ठहरता ह

आज हर भारतीय की एक बहआयामी पहचान बनती ह िह सहद बगाली मवथलम गजराती

कश मीरी वबहारी बराहमण ओबीसी जन ईसाई आदद िाली एक सार कई तरह की पहचान रखता ह

य वभनद न वभनद न पहचान अक सर एक दसर की विरोधी न होकर परक होती ह साथ कवतक रप स ि

गहरी पठी ह और उनक सार लोगो का गहरा सािथजवनक लगाि भी ह िथ ततः हर भारतीय की

पहचान (आइडरररी) की अलग व यिस रा ह कोई एक यनीफामथ पमाना नही ह जो यह तय कर दक कई

पहचानो म स कौन सबस ऊपर नबर िन पर ह यह एक बड़ा तरल या फलइड मामला ह आज

पजा-पाठ सगीत और थ िाथ थ य लाभ क अनक क र भारत भर म फल हए ह जहा आन जान स सहद

ईसाई वसख और मसलमान दकसी को भी परहज नही होता कई पहचान क सार रहना अथ पष रता तो

पदा करता ह पर शायद दसरो क वलए िथ ततः हर भारतीय कई (उप) सथ कवतयो म जीता ह और य

सब वमलकर उसकी पहचान बनाती ह इस अरथ म हर भारतीय शायद बहसाथ कवतक ह और उसकी

पहचान बहआयामी

दश की छवि दशिावसयो क आत मगौरि का माध यम होती ह आज क भारत का अग होना उस

वबलाग करना हमको आरवरक परगवत की ओर अगरसर एक दश एक आरवरक पािर क सार जड़न का

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एहसास दता ह दसरी ओर भरष राचार अवशकषा अव यिथ रा सामावजक करीवतयो और भदभाि क

कारण मन म रकान उदासीनता और असहायता की भािना भी आती ह इस सबक बािजद एक

भारतीय का बोध जरर ह जो पजाबी मराठी या गजराती होन अलग जावत िगथ और समदाय का

सदथ य होन पर भी सबको भारतीय बनाता ह कभी-कभी विविधता म एकता िाल नहर जी का

भारत अपररभाषय या अव याख यय लगता ह भारत को एक विथ तत साथ कवतक इकाई क रप म दखन

पर कछ विचार उभरत ह जो भारतीय होन क अरथ को थ पष र करन म सहायक होत ह इनम परमख ह

धमथ कमथ पनजथनद म को दकसी न दकसी रप म थ िीकारना सामावजक इकाई - पररिार जावत समदाय

क थ तर पर अपन अवथतत ि को महसस करना सक स वििाह और अनद य व यवियो क परवत खास दविकोण

को अपनाना बहलता का थ िीकार और खल कछ-कछ असगरठत दकथ म की आत म या सल फ की

अिधारणा का थ िीकार और दकसी न दकसी रप म दकसी बड़ी जञात-अजञात सतता स जड़ाि की

अवभलाषा और पररिश परकवत और सवि क सार साझदारी तरा परथ पर अनपरकता का भाि

समकालीन विमशथ म राज य और राष र की अिधारणा क अरथ बहत कछ इस पर वनभथर करत ह

दक कौन दकस दविकोण और परयोजन स इन पर गौर कर रहा ह अक सर इनद ह अतीत ितथमान और

भविष य स जोड़ कर दखा जाता ह और लोग अपन चन िचाररक आदशथ स रग कर ही इस पर विचार

करत ह इन शब दो और इनस जड़ अरथ थ रान और समय क सार-सार बदलत रह ह जो थ िाभाविक ह

भारत दश क बार म सोचन की एक बड़ी मवशकल यह ह दक हमारी अपनी पररभाषा क पमान हमार

अपन न होकर दकसी और क ददए हए ह ि हमार बौवदधक मानस म इतन गहर पठ चक ह दक अब हम

अपन पमान क बार म भरोसा ही नही कर पा रह ह और खद को पररभावषत करन का अवधकार ही

खोत जा रह ह आरवरक और तकनीकी परगवत क पसराि की दवनया म आज हमारा आतम-सशय इतना

गहराता जा रहा ह दक भारत और भारतीयता की बात करना परानी और ददकयानस और इसवलए

अपरासवगक मानी जान लगी ह अगर इसकी बात करनी भी ह तो उसकी सनद कही और स जरानी

होगी आज अपनी पहचान क वलए हम पविमी दशो म विदवानो क दवारा परमाण और गिाही चाहत ह

आज भारत की साथ कवतक विविधता को सपनद नता और समवदध क ोत क रप म समझन समझान की

जररत ह वजसका उपयोग समाज क विकास म दकया जाय इसक वलए भारत को भारत क नजररए स

दखना होगा वबना इस भय क दक भारतीय होना दकसी कषमा याचना की अपकषा करता ह थ िदशी और

सराज जस विचार अभी भी परासवगक ह समरथ और थ िािलबी होन क वलए आत म थ िीकार और सतत

पररष कार आिश यक ह

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भकप का सदश

डॉ एमएल गपता ldquoआददतय

धरती हर ददन डोल रही ह कपन की बोली बोल रही ह

विनाश कर आकरोश स बदल कय भगोल रही ह

कय धरती न भकरी तानी कय वहमालय म आिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

जो ससाधन र पोषण क उनका शोषण कर डाला

ओजोन का जो किच रा उसका भी भदन कर डाला

बरहमी स कार हमन िसधरा क िन-कश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

सागर क तीरो को छीला पठार और पिथत को लीला

नददया बनी नाल और नाली नही ददखता जल वनमथल-नीला

चतािनी द रहा ह मौसम बदला भमडल का पररिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

विजञान की सीढ़ी चढ़ विनाश का सामान बनाया

परमाण सयि द रह यातना विकीरण का खतरा मडराया

रवडएशन स आतदकत ह दवनया क सब दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

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कोई अण कोई परमाण कोई हाईडरोजन बम ल ऐठा ह

वबछी हई बारद धरा म मानि बमो क ढर पर बठा ह

हआ परमाण यदध तो वमर जाएग दकतन दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

भकषक बनकर मानि इक दज पर चोर कर रहा

परीकषण की खावतर दकतन भीषण बम विथफोर कर रहा

परकवत का सतलन वबगड़ा तो हम बन जाएग अिशष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

कदरत कहर बरपा सकती ह कभी भी आफत आ सकती ह

धरा की जरा सी भी हरकत दकतना कोहराम मचा सकती ह

धरा न जरा करिर बदली तो कछ भी न रहगा शष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

पयाथिरण क आघात पर अब तो रोक लगानी होगी

सागर पिथत धरती क सग बद करनी मनमानी होगी

धरती को जो मा मानोग सब वमर जाएग कलश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

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ि दोनो

डॉ सषम बदी

छत स फशथ तक क लब शीशो स जड़ी उस बड़ी-सी बठक म खब सारी ददन की रौशनी भरी हई

री फशथ पर वबछी सफद चादरो पर सफद िसतर पहन ढर सार लोग उस रौशनी का ही वहथसा लग रह

र कमर म घसत ही तारक को लगा जस उस शवतता म घल मौत क सदथपन और जड़ता न अचानक

उसक भीतर को जकड़ वलया ह बीचोबीच फलो की माला चढ़ी एक बड़ी-सी रवत की तथिीर री

वजसका धप दीप और गीता क शलोको स अवभषक दकया जा रहा रा रवत अब तथिीर भर री तारक

की थतबध पवनयायी आख वनथसहाय-सी रजत को खोजन लगी

रजत सारा िि लोगो स वघरा ही रहा रा उसकी मा उसक बचच और दसर ररशतदार कोई न

कोई उसक आसपास रा ही उन दोनो की आख एक दसर स दो एक बार वमली पर रजत अपन स

बाहर नही आ पाया रा तारक न दकसी तरह अपनी शोकभािना वयि कर दी री न भी वयि करता

तो कया रजत को तो खद भी अहसास होगा उसकी अतभाथिना का एक िही तो ह इस भीड़ म जो

जानता ह दक िह कयो यहा ह बाकी तो तारक दकसी स पररवचत ही नही वसिाय कछक रवत क

कलीगज क एक दो कलीगज स ही उसकी बात हई रवत क बार म ि उस पररिार का वमि मानकर

बात कर रह र य पररिार का वमि तो िह रा ही पर इसस अलग या ऊपर भी कछ रा यह शायद

रजत क अलािा और कोई नही जानता रा जबदक रजत भी परा कहा जानता ह खास तौर स िह सब

कछ जो तारक महसस करता रहा ह या जो कछ तारक और रवत क बीच म रहा या अभी भी वजसका

बहत कछ बचा रा

य तारक न बहत बार सोचा दक अब रवत नही रही तो उसक यहा जान का कोई फायदा नही

उसकी तकलीफ बढ़गी ही दफर लगा दक नही उस रजत स वमलन जाना होगा रजत भी तो उसका

दोथत ह य रवत उन दोनो क बीच न होती तो ि शायद बहत गहर दोथत हो सकत र दफर भी िह खद

को कई तरह स रजत क करीब महसस करता रा और रजत भी बहत मामलो म उसी स सलाह करक

चलता रा उस पर भरोसा करता रा जो दक उसक मन क दोथती क भाि को ही जताती री चदक

तारक की विशषता ददल क रोगो म री िह रवत क हारथअरक क बाद स उसस अकसर रवत क बार म

सलाह लता यहा तक दक रवत स भी कोई वशकायत होती तो तारक स ही कहता दखो न इसका

कोलथराल इतना हाई चल रहा ह और मडम चीज मीर सभी कछ खाती ह अभी रथतरा ल चलो परा

का परा थरक गरक जायगी कस कर यह तो खद को नकसान पहचान स बाज नही आतीrdquo और तारक

तब ररका दता कसी डाकरर हो तम रवत मरीजो को उपदश दती रहती हो और खदhellipदफर उसन

खद ही एक विशषण गढ़ा रा रवत क वलए lsquoनानकपलायरrsquo यानी दक जो कछ भी कहा जायगा उसका

विरोध ही करगी रवत और दकसी िजह स नही बवलक विरोध करन क वलए विरोध

तब रवत और भी तिर चढ़ाकर बोलती rdquoरजत तो पहल ही मर पीछ पड़ा रहता ह अब तम

भी इसी स वमल गय हो िाह जी िाह दोथत दकसक हो तम मर या रजत कrdquo

तारक तब चप रह जाता रा रजत भी कछ नही कहता एक वपरय अवपरय सतय

शायद रवत भी इसीवलए कहती री दक तारक तब लाजिाब हो जायगा कयोदक रवत जानती ह दक जो

िह तारक क वलए ह िह और कोई नही हो सकता और रजत को भी इसका अदाज ह इसी स रजत न

शर म चाह दकतना विरोह दकया हो दकतना लड़ाई झगड़ाhellip दफर धीर-धीर मान वलया रा इस ररशत

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को रवत क वलए ही अगीकार कर वलया रा तारक को भी रवत न ही उस बतलाया रा जब रजत न

उस बाहो म भरकर कहा रा rdquoइतना पयार करता ह तमह दक यह भी थिीकारन क वलए राजी हrdquo

एक हक-सी उठी री तारक क भीतरhellip वजस इतना पयार वमला होhellip इतनाhellip िह इस तरह स

उन दोनो की वजनददगी को ही सना करक रखसत हो ली तारक क मन म गथसा भी आयाhellip शायद

अपनी सहत का धयान रखती तो कछ और जी जाती उन दोनो स ही तो चार-पाच साल छोरी री िह

जी भी सकती री पर अबhellip और तारक न लबी सास भरी

रवत की एक कलीग बता रही री rdquoपरसो तो काम पर आयी हई री रवत म सोच भी नही

सकती री दक इतना भारी थरोक हो सकता ह दक एक ही लपर म ल जायhellip मझ तो विशवास ही नही

होताrdquo तारक को भी विशवास नही होता रा उसी ददन सबह रवत न उसस फोन पर बात की री और

उसस मजाक दकया रा rdquoमर जनदमददन पर आओगrdquo

दरअसल सारा झगड़ा कछ साल पहल रवत क जनदमददन को लकर ही शर हआ रा िनाथ शायद

रजत को उन दोनो क बीच बढ़त ररशत की तवनक खबर न लगती रवत न उस बतलाया रा दक उसक

जनदमददन पर िह और रजत आमतौर पर शाम को बाहर दकसी बदढ़या स फर च रथतरा म खाना खान

जात ह तब तारक न कहा रा rdquoठीक ह तो लच तम मर सार लनाrdquo

रवत मान गयी री उसन उसी ददन रवत क शहर पहचन क वलए फलाईर भी बक करिा ली

री पर जब ठीक जनदमददन आनिाला रा तो रवत न उस बतलाया रा दक रजत को ठीक नही लग रहा

मरा तमहार सार लच पर जाना िह पछ रहा रा दक इतना इमपॉरर कस हो गया यह आदमी दक

तमको उस जनदमददन पर जरर वमलना ह

rdquoतमन कया कहाrdquo तारक वजजञास हो उठा रा

rdquoयही दक तमको दकसी काम स शहर म होना रा इसवलए लच पर वमलन की बात की इस पर

उसन कहा दक अगल ददन वमल लो जनदमददन िाला ददन तो उसी क वलए हhellip कोई और कयोrdquo

दफर िह बोली rdquoइसी पर उस शक हो रहा ह दक यह कोई आम दोथत नहीhelliprdquo

तारक न जोड़ ददया रा rdquoपरमी हrdquo

rdquoहा यही शक हो रहा ह उसrdquo

rdquoतो ह या नहीhelliprdquo

rdquoशायद होhellip यही मसीबत हrdquo

तारक न कहा रा rdquoअब तो ररकर ली हई ह म तो आऊगा ही तम वमल सको तो वमलना िनाथ

न वमलना चाह पाच वमनर क वलए या कॉफी क वलए भी आ जाओगी तो मर वलए िही काफी होगा

तमहार जनदमददन पर तमह दख भर लrdquo

rdquoतम भी कमाल क रोमाररक होhellip पर सच कह तो म भी तमस वमलना चाहती ह उस ददनhellip

कछ न कछ तो जगाड़ना पड़गाrdquo

rdquoमर वलए तमहारा जनदमददन मरी वजनददगी का बहत अहम ददन हhellip समझीrdquo

एयरपोरथ पहच कर तारक न फोन दकया रा रवत बोली री rdquoरजत कह रहा ह तम हम वडनर

पर जॉयन कर लोrdquo

तारक बहत हरान हआ रा पर रवत न फोन रजत को पकड़ा ददया रा तारक एकदम सकर म

पड़ गया रा उसन खद को बचान की कोवशश की rdquoसॉरी म तो यहा आया रा तो सोचा रवत स वमल

लगा पर इस तरह आप लोगो क परोगराम मhelliprdquo

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रजत न जोर दकर कहा रा rdquoनही भाई बहत तारीफ सन रहा ह बीिी स जरा हम भी तो

वमल आपस आप चाह तो घर पर आ जाईए या दफर सीध रथतरा पर वमलगrdquo

rdquoपर आप लोगो का तो वडनर पर सार जान का कायथकरम रा नrdquo

rdquoआप लच पर फरी ह तो लच पर वमल लत ह य मझ तो वडनर ही पसद ह जसा आप कहrdquo

रजत वबलकल दोथताना ढग स बात कर रहा रा एक पल को उसकी रोन म कछ तनाि तारक

को महसस हआ रा पर अगल ही पल आिाज दफर सहज हो गयी री तारक मान गया पर रकसी लकर

पहल होरल म सामान छोड़ा और इस दौरान खद को मानवसक तौर पर तयार भी करता रहा दक कस

पश आना ह अपन रकीब स दखा जाय तो ररशता रकीब का ही रा बाकी ि दकतन भी सभय या

समझदार इसानो की तरह एक-दसर स बताथि कर आवखर ि तीनो सममावनत पश क र तारक हारथ

थपशवलथर रा तो रजत अगरजी सावहतय का परोफसर और रवत सायकायररथर इसानी मन की

कमजोररयो को समझना मनोरोगो का इलाज करना रवत की विशषता तो री ही पर इसानी आकषथण

एक दसर क परवत सखचाि या ऐस ररशतो को समझन की सथकवत तो कही तीनो म ही री

रजत इस बात को खब समझता रा दक दकसी भी औरत क वलए दकसी दसर परष क परवत

सखचाि हो जाना बहत सहज रा िही एक पवत और पतनी स परम करन िाल क रप म िह रवत क इस

वयिहार स ईषयाल भी हो उठता रा एक सभय इसान क नात िह ईषया को दबा कर तारक क परवत भी

वमिित वयिहार करना चाहता रा पर िही उस रवत क वयिहार स कि पहचता रा दक िह उसक

अलािा भी दकसी दसर परष को चाह सकती ह वजसस उसक मन म आकरोश और वितषणा का भाि

उठता कभी िह अपन को उदार बना कर यह कहना चाहता दक रवत अगर दकसी दसर को चाहती ह

तो बशक उसको भी कयो न पाय सार ही जब करोध होता तो एक तरह स जस िह रवत को सजा दन क

वलए कह डालता rdquoतम जाओ दोनो सार रहोrdquo पर जो पीड़ा िह उसम सह रहा होता िह रवत और

तारक दोनो क वलए ही असहय होती

रवत न कहा रा rdquoकया तारक और म दोथत नही हो सकत और इतन दोथत हhellip एक िह वयवि

वजसस बात करक मझ खशी वमलती ह िह दोथत कयो नही बन सकता वसफथ इसवलए दक उसक मन म

तीखी भािना ह मर वलएhellip या शरीरो का आकषथण भी हhelliprdquo

रजत तब तकथ स सारी बात को समझन समझान की कोवशश करता हा करत-करत कह दता

rdquoऔरत आदमी म दोथती हो ही नही सकती कयोदक जहा शरीरो का आकषथण हो िहा दोथती जसा

वनषकपर भाि कस पनप सकता हrdquo तब रवत दोथती का एक और पकष पश करती rdquoतमहार कहन का

मतलब तो िही ददकयानसी बात हई दक शरीर पाप का मल ह जबदक तम खद ही यह पहल कह चक

हो दक शरीरो का मसला हल हो जाय तो औरत मदथ बहत खबसरत दोथत हो सकत हhellip शरीर को

अहवमयत दी कयो जाय शरीर वमल जान स उनका दोथती म बाधा बनन का मसला खतम हो जाता हrdquo

रजत रवत की बात मान भी जाता रा पर रवत दफर तारक को यह भी बताती री rdquoिन कार

रक वहम फॉर गरारड कल को िह अपना कोई नया तकथ द दगाrdquo

शायद इसी स तारक भी अचानक वहममत हारन लगा रा कस सामना करगा िह रजत का य

िह रजत स एकाध बार पहल वमल चका रा पर तब उसको यह अदाजा नही रा दक रवत और उसक

बीच कछ रा जबदक तारक तब भी कछ आतमसजग-सा हो रहा रा पर कछ वमनरो की मलाकात को

सभाल लना कोई बड़ी बात नही री और य भी रजत उस भला आदमी लगा रा यह भी सोचा रा दक

अगर रवत उन दोनो क बीच न होती तो यह वयवि उसका दोथत हो सकता रा य रवत क होन क

बािजद अतत ि दोथत बन ही पर इस दोथती का तानाबाना िसा न रा जस खावलस दोथती का होता

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ह इसम रवत क रश बन हए र जो एक और ही रगत वलए र और िह रगत तारक को बहत पयारी री

उस दोथती स जयादा

तारक न होरल पहच कर फोन कर ददया रा दक वडनर पर वमलना ही ठीक रहगा और िह

अपना काम इस दौरान कर लगा रजत आसानी स यह बात मान गया और कहा दक िह सडरकस पर

पहल घर पर आ जाय उसक बाद रथतरा खाना खान चल जायग

शाम को जब िह चलन लगा तो फोन बजा रा दसरी ओर रवत री हलो कहत ही रवत न

कहा rdquoसनो तम मत आना मर घर म बहत रशन चल रही हrdquo इसस पहल दक िह कछ कहता रवत न

फोन वडसकनकर कर ददया

रात को कोई फलाईर नही जाती री िनाथ िह उसी िि शहर छोड़ क चला जाता

आध घर बाद ही घरी दफर बजी रवत पछ रही री दक आ रह हो तारक बौखला गया दक आवखर हो

कया रहा ह कया यह रवत क मन की उलझन ह या दक रजत कीhellip या दोनो कीhellip या रवत वसफथ रजत

की उलझन को वयि कर रही री बोली री rdquoजलदी आ जाओ हम लोग इतजार कर रह हrdquo

िह पहचा तो रवत न अकल ही उसका थिागत दकया रा िह जानता रा दक दोनो बचच कालजो

म ह पर रजत काफी दर तक बठक म नही आया तो तारक हरान हआ रवत बोली rdquoिह नहा रहा हrdquo

दफर मथकरा कर जोड़ा rdquoशायद हम दोनो को कछ िि दना चाहता हrdquo

तारक तब कछ निथस हआ रा उस आग बढ़कर रवत को चमन का हौसला नही हआ उस लगा

दक रवत भी सहज नही री जस दक आम तौर पर होती ह पर उसन कछ कहा नही िह खद भी तो

सहज नही हो पा रहा रा जस लड़की क बाप क घर म शादी का परथताि लकर जा रहा हो कछ कछ

इसी तरह का महसस हो रहा रा िही डर कर परचा करना रा दक इमतहान म फल न हो जाय

रजत न कमर म आत ही बड़ तपाक स हलो दकया कछ औपचाररक-सी बात की दफर उसस

सडरक पछा और दकचन म बफथ िगरह का इतजाम करन क वलए दफर स गायब हो गया तारक को लगा

दक सहज होन की बहत कोवशश क बािजद रजत बहत असहज ह

ववहथकी का घर लत हए तारक न ही रजत स उसक काम क बार म पछना शर दकया बात

कही जा नही रही री तभी रवत एक नई दकताब की चचाथ करन लगी वजसका ररवय सबह क अखबार म

छपा रा तारक न हिाई जहाज म ही उसक बार म पढ़ा रा दफर तो बातचीत खब गरमागरम होन

लगी रजत न दवकषण एवशयाई अगरजी लखको क बार म अपन विचार झाड़न शर कर ददय यहा तक

दक रवत न अचानक घड़ी दखी तो पता चला दक रथतरा की ररजिशन का िि हो चका रा रजत न

रथतरा को फोन दकया दक कछ वमनर लर पहचग और तारक को बोला दक जलदी स सडरक खतम कर ल

या गाड़ी म ही ल चल दोनो न दो तीन सडरक चढ़ा रख र मौज-सी भी आयी हई री रजत ही कार

चला रहा रा और तारक पीछ िाली सीर पर बठा रा अचानक रजत कछ नश और कछ अपनी धन म

बोला rdquoतो तम मरी बीिी स पयार करत होrdquo

तारक भौचक-सा हो गया य ही बठा रहा जस रजत की बात को सना न हो या िह गभीरता

स लन लायक न हो रजत न अपनी बात को सिाल बनाकर दबारा पश दकया rdquoकयो तारक मरी बीिी

स पयार करत हो या नहीrdquo

तारक न कहा rdquoहाrdquo और चप कर गया उस लग रहा रा िह जो भी जिाब दगा खतर स खाली नही

पर यह जिाब सच रा तो सच बोल कर ही मार खायी जाय उस दकसी लड़की क वपता स हार मागन

नही जाना पड़ा रा आज यह भी सही

rdquoतम भी पयार करत हो िह भी करती ह तो तम दोनो सार कयो नही रहतrdquo

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तारक बोल पड़ा रा rdquoयह इतना आसान नहीrdquo

रजत इस पर आकरमण करता-सा बोला rdquoकमाल ह पयार भी करत ह और वजममिारी भी नही

वनभाना चाहतrdquo तारक को महसस हो रहा रा दक रजत कह तो कछ रहा ह और पहचाना कछ और

चाहता ह दफर भी िह जिाब तो उसी बात का द सकता रा जो दक पछी जा रही री यह कह कर

उस नाराज भी नही करना चाहता रा दक रजत वसफथ अपन भीतर क आकरोश आतक और आग को

आिाज द रहा रा बोला rdquoयह बात नही म आज भी रवत क सार वजनददगी शर करन को तयार ह

जहा तक म जानता ह रवत अपन शहर को छोड़ कर और कही नही जायगी न िह तमको छोड़न को

तयार होगी जहा तक म रवत को जानता हhelliprdquo

रवत चपचाप अपन पर अकश लगाय दोनो की बात सन रही री न तो िह रजत क पकष म

कछ बोलना चाहती री न तारक क पकष म ही बोल सकती री दफर भी दोनो क बीच तारतमय वबठाय

रखन की वजममिारी भी उसी की री और िह समझ नही पा रही री दक दकस तरह इस बातचीत को

सीमाय लाघन स बचाया जाय ऊपर स उस डर लग रहा रा दक आिश म रजत कही रककर न मार द

रथतरा बहत दर रा भी नही बात पर चरम पर चल रही री दक रथतरा आ गया रवत न रोका rdquoरजत

पारककग ढढ़ो रथतरा आ गयाrdquo रथतरा क सार ही पारककग गराज म गाड़ी छोड़ कर तीनो अदर चल गय

िरर न उनको मज पर वबठाया और सडरक क वलए पछा तरा मनदय लाकर ददय तीनो क तीनो उस मज

पर इस तरह खामोश और भर बठ र दक मनदय म वसर डबोना एक राहत बन गया रा तीनो न अपन-

अपन आडथर ददय पर बात कछ बन नही रही री हर कोई कछ भी कहन म जयादा ही सतकथ हो रहा रा

अचानक रवत बोली rdquoरजत तमको इतनी जयादा तकलीफ री तो तमन मना कयो नही कर

ददया म तो तारक को कह चकी री दक आज सार खाना नही होगा तमही न जोर ददया दक जरर

बलाओ अब इस तरह कयो बताथि कर रह होrdquo

रजत और भड़क गया rdquoम तो वसफथ यह कह रहा ह दक तम लोग एक-दसर को पयार करत हो

तो म कया कर रहा ह यहा तम जाओ एक दसर क सार रहोrdquo

दोनो की आिाज ऊची हो रही री और दसरी मजो पर बठ लोगो की वनगाह इस ओर उठ आयी री

तारक न धीर स सझाया रा rdquoमर खयाल स हम य बात यहा नही करनी चावहएrdquo सहसा रवत

न होश म आत कहा rdquoहा इतन बदढ़या रथतरा म खाना खान आय ह कछ खान पर भी तो धयान दhellip

दफर आज मरा जनदमददन ह आई िार र हि ए गड मीलrdquo

दफर भी खान पर तीनो म स दकसी का धयान नही लग सका तीनो औपचाररक-सी बात म लग

गय र तारक न ही शहर क निीनतम रथतराओ क बार म ताजा पढ़ी समीकषा का वजकर छड़ ददया रा

रजत न कार स जब उस होरल छोड़ा तो तारक न उपर कमर म आकर सडरक लन क वलए कहा

पर जसा दक िह अपकषा कर रहा रा रजत न दर होन का बहाना बना छटटी माग ली री रवत तब भी

कछ नही बोली री शायद उस डर रा दक उसका कछ भी कहना रजत क वलए घाि पर नमक वछड़कन

जसा होगा या उसकी कोई भी बात का गलत मतलब वनकाल कर रजत भड़क सकता रा य दर हो भी

चकी री

पर तारक यह भी जानता रा दक रवत एक नबर की वजददी री जो उस चावहए रा चावहए ही

रा उस रोका नही जा सकता रा िह ऊपर स मान जायगी पर भीतर स कभी माफ नही करगी

शायद इसी स रजत भी वबगड़ी हई लाड़ली बरी की तरह रवत की हर चाह या माग को विरोध करक

भी अतत मान जाता रा

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लौर आन क दो चार ददन बाद ही उसक फोन पर रवत न सदश छोड़ा रा rdquoतमहारा आना ठीक

नही हआ सॉरी तमह बलाकर भी वमल नही पायी अब लगता ह कभी नही वमलगी लर अस थरॉप

ददस वहयर पलीज मझस सपकथ मत करनाrdquo

तारक बहत ददन परशान घमता रहा रा पर रवत को फोन भी नही दकया उसन मना जो कर

डाला रा उस फोन करत हए तारक को लगता दक िह खद को उस पर लाद रहा ह और यह वथरवत

उस कभी गिारा नही री हर ददन दकसी जिालामखी-सा लाि स लदा हआ गजरता अदर ही अदर

सब तप रहा रा

महीन भर बाद रवत न फोन दकया रा rdquoगथसा हो न मझस तमस माफी भी नही माग सकीrdquo

उसकी तो कोई जररत नहीrdquo

दफर भी सोचा रा तमस कभी बात नही करगी इसी स तमको सपकथ करन स मना दकया

रा रजत को भी यही मालम ह दक तमस ररशता तोड़ ददया ह पर अब मझी स बात दकय वबना रहा

नही जा रहाrdquo

रजत को मालम ह मझस बात कर रही होrdquo

िह बहद गथसा ह तमसhellip जस दक सारा दोष तमहारा होhellip दक तमन उसकी बीिी को फसा वलयाrdquo

ि इसी तरह जब मौका लगता बात कर लत तारक क ददल ददमाग पर रवत ही छायी रहती

िह ऐस ही पलो क दौरान जीता जब दोनो क बीच कछ सपकथ होता बाकी क पल उन पलो क इतजार

म गजरत

इस बीच रवत को ददल का दौरा पड़ा रा घबराकर तारक को फोन कर डाला रा रजत न

तारक आया तो रजत उस अपनी गाड़ी म सार अथपताल ल आता जाता रहा दोनो म एक दोथती का

नाता तभी बना रा दवनया जहान की बात रजत न उस घर पर ही ठहराया रा तारक तीन ददन बाद

चला गया रा िावपस पर दोनो की फोन पर बात हो जाती रवत अथपताल स िावपस आ गयी री

धीर-धीर िह सामानदय होकर िावपस अपना काम सभालन लगी

रवत का जनदमददन दफर स आनिाला रा रवत न उस कहा रा rdquoरजत अपन आप ही बोल रहा ह

दक तम आ जाओ इस बार मरा जनदमददन मनान बोलो आओगrdquo

तारक परानी बात याद करक घबरा गया रा rdquoनही दफर स उसक भीतर सब घमड़न लगगाhellip

सबको तकलीफ होगीrdquo

यह सच भी रा रजत कभी तो उसक परवत बहत वमिित हो जाता िही अचानक गथसा ईषयाथ

उभर आत और िह अकसर बरखी ददखाता अचानक तारक को ऐसा महसस हआ जस रवत उसस खद

यह सब कह रही हो पल भर को िह भल ही गया दक रवत क ही अतयवि कमथ म िह शावमल हआ ह

और दरअसल उसक यहा आन की एक िजह यह भी ह दक िह रवत को वलख अपन खत िावपस ल

जाना चाहता ह उस डर ह दक कही ि खत रजत क हार न पड़ जाय

तारक रवत क सार काम करन िाली इस मवहला डॉ लोपज स पहल वमला हआ रा इस भीड़

म एक िही जान-पहचान की री तारक का मन हआ उसस पछ दक कया िह रवत की दराज म उसक

कागजात पर नजर मार सकता ह तारक को अदाज रा दक उसक खत िह दफतर की मज की दराज म

रखती री पर िह जानता रा दक ऐसा करना ममदकन रा नही आवखर तारक को कस हक पहचता रा

रवत की दराज खलिान का िह तो एक पररिार क वमि की हवसयत स िहा रा रजत ही कह सकता

रा दखा जाय तो ि लोग खद भी रजत स ही कहग दक रवत का सामान िह ल जाय तब तो रजत की

आख जरर उन पर पड़गी तब शायद उसको बरा लगगा दक रवत क सार तारक का एक अपना ररशता

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रा उन तीनो की आपसी दोथती क बाहरhellip रजत को बतहाशा चोर लगगी अब जबदक िह रवत स

जिाबतलबी भी नही कर सकता रवत अब कोई सफाई नही पश कर पायगी तारक क हक म कछ भी

नही कह सकगी दकसी तकथ स रजत को लाजिाब नही कर पायगी नही िह ऐसा नही कर सकता न

यह रवत क परवत सही होगा न रजत क परवत उस दकसी न दकसी तरह स खत पान ह

राथत म आत हए हिाई जहाज म तारक जब लगातार रवत क सार की अपनी वजनददगी क

गजर पल दहरा रहा रा बार-बार उस धयान आता दक जब स रवत को ददल का दौरा हआ रा िह

उसस कहना चाहता रा दक उसक खत विनि कर द एक बार उसन बात उठायी तो रवत बोली rdquoकयो

तमहार खत मर दफतर की दराज म सफ पड़ हrdquo

शायद िह वबना कह यह भी समझ गयी री दक तारक का इशारा दकस ओर ह तभी बोली

दखो जब तक म वजनददा ह म उनको फाड़ कर न तो फ क सकती ह न जला सकती ह एक बार मर गयी

तो कया फकथ पड़ता ह दक कोई कया करगा उनक सार तमको तो दफकर होनी नही चावहए अब तो ि

मरी अमानत हrdquo यह बातचीत दो एक महीन पहल की ही होगी तारक न सोचा रा बात कभी दफर

उठायगा पर उसस पहल हीhellip

तारक को भी तब यह अदाज नही रा दक रवत क अलािा रजत स भी उसका नाता रा रवत क

जान क बाद िह खद को रजत क बहत करीब महसस कर रहा रा और उस लगा दक उसक खत रजत

को उसस दफर दर धकल सकत र पर िह दकसी तरह भी रजत को खोना नही चाहगाhellip रजत जस स

रवत का ही एक वहथसा राhellipउसन दखा लोगो स वघरा रजत का चहरा बहद वनचड़ा हआ रिहीन और

सखा-सा लग रहा रा रात भर सोया नही होगा इसवलए आखो क नीच कालापन उतर आया रा आख

काफी अदर को धसी हई री तारक को लगा दक िह शायद रजत स बहतर हालत म ह दफर उस रशक

भी हआ रजत अपन गम का खला इजहार कर सकता हhellip तारक को यह सविधा नही री िह दकसी

उजड़ आवशक क रप म इस महदफल इस मौत का शोक करन िालो की महदफल मhellip अपना असली

चहराhellip अपना आवशक का चहराhellip नही ददखा सकता रा अचानक उसकी आख भर आयी अपन खोन

की वशददत क अहसास स

रवत क िाकय उसक कान म सरसरान लग जबस उस ददल का दौरा पड़ा रा िह जीिन की

कषणभगरता या इसान क नाचीज होन क अवथततििादी दशथन को बहत बघारन लग गयी री शायद

अपन जान का अहसास उस कही बहत गहर उदास कर जाता रा पर िही िह उस जान को एक

अिशयभािी अकारय सतय की तरह थिीकार करक उसस समझौता भी करन लग गयी री एक ददन

उसन हडसन नदी क दसर वसर स मनहरन की ओर दखत हए कहा रा rdquoदखो तो इन छोर-छोर वडबबो

म दकतन लाखो लोग रहत ह दकतन छोर ह हम लोग इतनी तग जमीन पर दकतनी बड़ी तादाद म

समा जात ह एकदम हजारो की सखया म सार-सार जड़ कीड़ो की तरह दफर भी अपन आप को

दकतना बड़ा मानत ह राजनीवत धमथ और नवतकता की तवखतया वचपका कर दकतना बड़ा होन का

भलािा दत रहत ह खद कोrdquo

रजत को रवत की इसान को नाचीज करार दन िाली बातो स हमशा बहत वचढ़ छरती री

बोला रा rdquoधमथ नवतकता जीिन क सतय ह इनको तम भलािा दन िाली चीज कस कह सकती हो

इसान इसीवलए तो बाकी जीिो स अलग ह दक िह सोच सकता हrdquo

rdquoऔर सोच क धरातल पर हर चीज को गलत या सही सावबत कर सकता ह नवतकता को गढ़

सकता ह या परा सतयानाश कर सकता हhellip ठीक ह मझ तो उसम कोई नकसान नहीrdquo

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हा नकसान दकसी का ह तो मरा ही रजत न कहा तो तारक झर स बोल पड़ा रा rdquoनकसान

तो तब होता जो म उस भगा क ल जाताrdquo

रजत न सजीदगी स कहा rdquoअब इसका ददल बर गया हhellip तो आधी सपवतत तो लर ही गयी न

तम भगा ल जाओ तो भी फकथ नही पड़गा यह आधािाला वहथसा तब भी यही रहगाrdquo

सचमच रजत का यह विशवास सही रा रवत और उसक ररशत की शरआत क ददनो म भािना

क परिाह म बहता तारक रवत क सार एक नयी वजनददगी क दकिाड़ खोलन की बात सोच पाया रा पर

जलद ही उस अहसास हो गया रा दक रवत कही बहत गहर जड़ी री रजत क सार दक िह कभी उस

ररशत को तोड़गी नही य रजत भी शर क ददनो म भीतर स वहल गया रा यह झरका दक रवत रजत

को छोड़ दकसी और को मन म ला सकती ह उस बहत दर जा फ क आया रा दफर रवत न खोय विशवास

को िापस लौरा ददया रजत अपन आध नकसान क सार धीर-धीर शायद समझौता करना सीख गया रा

तारक को लगा दक िह आध क सार समझौता करना सीख गया रा दफर तारक को लगा दक

िह आध क सार समझौता नही रा रजत क भीतर कही पर का भरोसा भी रा जस दक रवत को वसफथ

एक बदलाि चावहए रा जो तारक रा िनाथ िह परी रजत की ही री कयोदक मौका आन पर रजत

अपना परा हक जतान स चकता नही रा हमशा यही मानता रा दक पहला हक उसी का ह तारक

हमशा बाद म आयगा जस दक पर भर लन पर बचा हआ भोजन दकसी को भी ददया जा सकता हhellip

कछ ऐसा रख

पर रवत बचा हआ भोजन नही रीhellip दकसी तरह स भी उवचछि या अिवशि नही जो उसन

रवत म पाया रा िह पहल वजनददगी म कभी नही वमला रा रवत न उसकी पहचान करायी री

पररपणथता स रवत को जानना ही जस उस सपणथता को छना रा शायद रजत न भी रवत म ऐसा कछ

पाया रा जो आम औरतो स अलग रा रवत शादी क इतन बरस बाद भी उस अपन म उलझाय री और

िह उसस मि नही होना चाहता रा रवत म बाहरी खबसरती क बािजद वयवि क ददमाग को भी

उलझाय रखन का जो गण रा उसस सच म जो भी पास आता और सखचता जाता रवत म भरपर

पयार लन की चाह री तो भरपर दन की कषमता भी इसी स अभी भी उसस जी तो नही भरा रा रजत

का शायद िह ऐसी औरत री जो हमशा वनत निीन होती रहhellip सौदयथ की एक पररभाषा यह भी तो

दी गई ह दक जो वनत नतन होता रह िही सौदयथ ह रवत भी कभी परानी नही पड़ती रोज कछ नया

होता ह उसक पासhellip कोई नया खयालhellip कोई नई सझhellip कोई नई उकसान उलझान िाली बातhellip

शायद इस ददमागी सौदयथ कहना होगाhellip जो कछ भी उसम राhellip बस खीचता रा अपनी ओरhellip मोहता

राhellip शायद कया पर उगली धरना उस पररवध म बाधन की भोडी कोवशश होती

कछ दवदव उठता तो रवत रजत क ही हक म बोलती री रजत क वहतो को सरवकषत कर लन क

बाद ही िह तारक को उसका हक दती तारक को खीझ भी होती दक रजत उसक जीिन म चदक पहल

आ गया रा इसीवलए हर चीज म ही पहला हक उसी का बनता ह पर उसन रवत स अपनी यह

मनवथरवत कभी जावहर नही होन दी री वपछल साल िलनदराईन ड पर ऐसा ही तो हआ रा दरअसल

दोनो को अदाज नही रा दक उस िीक ड पर िलनदराईन ड पड़ता रा तारक को दकसी काम स रवत क

शहर आना रा और दोनो न वमलन का कायथकरम बना डाला रा रजत स रवत की बात हई होगी तो

उसन भनकर कहा रा rdquoतो िह तमहारा िलनदराईन ह जो उस ददन आ रहा हrdquo रवत क कहन पर दक उस

तो याद भी नही रा िह बोला रा rdquoम नही मान सकता दक तारक न य ही आन का बनाया ह इस

िीक ड परrdquo रवत न तारक स सारी बात बतलायी तो उसन सोचा रा िह खद फोन पर रजत स कहगा

दक उस सचमच याद नही रा पर दफर बात बढ़ान न दन क वलए चप रह गया रा और जान का

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परोगराम भी थरवगत कर डाला रा तब उस दो बात तकलीफ दती रही री एक तो यह दक रजत हमशा

उसक सामन परारवमकता ल जायगा दसरी यह कड़िी सचचाई दक रवत कभी भी उसकी जावहरी वजनददगी

का वहथसा नही बन सकती री उसकी कमर म हार डाल कर िह कभी दकसी स यह नही कह सकता

रा रवत मरी हrdquo तब उस बहद रशक होता रजत स कया रजत को सचमच अहसास ह दक रवत तारक

क वलए कया ह दक िह उसकी वजनददगी का कनदर उसकी वजनददगी का अरथ बन चकी ह यह कोई हलका-

फलका ठरकपन नही उसकी वजनददगी का रशा-रशा गर गया ह रवत स शबद म अरथ की तरह समायी ह

रवत उसक अवथतति म इस गरन म िह खद ही घरता रहगा हमशा

अब रवत नही ह तो िह घरन और भी कस रही ह उस कया अब िह रजत स कह पायगा

अचानक उसका मन हआ दक रजत स कह द rdquoतमको मालम ह दक मझ सचमच पता नही रा दक उस

ददन िलनदराईन ड रा िनाथ ऐसी जरथत न करताrdquo दक िह जानता हhellip अचछी तरह समझता ह अपनी

और उसकी ररीररी की पररवधयो को दक रजद शायद कभी जान न पायगा पर उसन हमशा एक दोथत

की तरह रजत का रजत की जररतो का खयाल रखा हhellip वसफथ ऊपर-ऊपर स सामावजक उपचार की

तरह नही भीतर स दकसी ददली ररशत सhellip दफर िह ररशता चाह रवत क जररय स ही बना हो

हो सकता ह रजत यह सब महसस करता हो या न भी करता हो पर उसक चहर पर भी वमिता

का थिागतमय भाि हमशा ददखा ह तारक को वसिा उन कषणो क जब दक सचमच उन दोनो क बीच

lsquoररररोररयलrsquo झगड़ हए तब भी ि शायद इसानी आचार या परथपर सदभाि की सीमाओ को कभी

लाघ नही पर दफर भी तारक का रवत क सार का ररशता ऐसा नही दक रजत क सार वजस बार सक

रवत उसकी हथती का अवभि वहथसा ह िह कोई और कस हो सकता ह रजत रवत नही हो सकता

चाह उसक दकतन ही करीब रहा हो उस दकसी न दकसी तरह स अपन खत पान ही ह लदकन कस

और यही तारक बार-बार उलझ जाता ह अपनी यह परशानी िह दकसी क सार बार नही सकता

रजत स तो कतई नही खत अगर सचमच रजत क हार पड़ गय तो

लदकन रवत न यह भी तो कहा रा दक अगर िह नही रही तो कया फकथ पड़ता ह पर रजत

सचमच खत पढ़ ल तोhellip शायद उसकी पीड़ा पर तब करोध और घणा का कोई विकराल भत हािी हो

सकता हhellip हो सकता ह दक खत पढ़कर रजत रवत को खद स वछरक द लदकन उसस कया तब शायद

रवत और भी तारक क करीब आ जाय और भी उसकी अपनी हो जाय वसफथ उसी की समची एक रात

पहल उस ऐसा ही कछ सपना आया रा रवत की मौत की खबर क बाद यही उसका याद रह जानिाला

सपना रा िह रवत की अतयवि म गया ह और एक अधरा-सा बठकनमा कमरा हhellip कमर म कछ

कागज वबखर पड़ हhellip िह एक कागज उठाता हhellip िह उसी का रवत को वलखा खत हhellip और कई लोग

उसक आसपास ह और िह सोचन लगता ह दक कही इन लोगो न भी तो उनदह नही पढ़ाhellip तभी रजत

का चहरा उसकी ओर बढ़ता ह और िह कागज वछपान की तरकीब सोचन लगता हhellip इसी उधड़बन म

उसकी आख खल गयी री तो वजथम पसीन म नहाया हआ रा

एक रजत ही यहा उसक सबस करीब हhellip और रजत ही उस अजनबी-सा लगन लगा ह अब

तक उसका रवत का सदभथ रा अचानक उस सदभथ स करकर न होन जसा हो रहा ह तारक को अजीब-

सी मानवसक दरी और भयकर अकलापन-सा महसस हआ िह यहा आया ही कयो रा रवत की

नामौजदगी म दकतना बमानी ह उसका यहा होना रजत को भी दकतना दफजल-सा लग रहा होगा

उसका यहा उपवथरत होना वजन लोगो स वघरा ह ि तो सचमच उसक अपन हhellip तारक तो दर स भी

अपना नहीhellip मत स तारक का जो भी नाता रहा होhellip उसक दकसी दसर स तो नही रा उसक कॉलज

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कामो स लौर बचच भी तारक को पहचानत नही र तारक न ही उनकी शकलो और वयिहार स अदाज

लगाया रा और हॉलि म लगी तथिीरो स उनदह पहचान पाया रा

तारक क पास रजत स कहन को कछ नही रा उसका कछ भी कहना रजत को खल सकता रा

उलर तारक को लगन लगा दक रजत शायद सोच रहा हो दक अब कयो जखमो को याद ददलान आ गय

हो कछ भी हो तारक न उस पीड़ा तो पहचायी ही री कया अब उसका कछ भी करना रजत क कि को

कम कर सकता रा उसन वनगाहो स ही अपना दख बयान कर ददया जो शायद रजत न थिीकार भी

वलया राhellip शायद एक औपचाररकता की तरह जस िह दसर बहत स जमा लोगो की शोकावभवयविया

थिीकार रहा राhellip उसस कछ अलग नही शायद तारक का िहा होना ही रजत को खल रहा हो पर

िि की नाजकी की िजह स िह कछ कहना न चाह रहा हो तारक एकदम परशान-सा उठ खड़ा हआ

कछ लोग रजत क गल लग रह र शायद उसस विदा लकर जा रह र तारक न सोचा िह अब

कहगा दक रवत क पास कछ उसक जररी कागजात र अगर रजत उस कागजो िाली जगह पर ल चल

तो िह खद ही दख लगा तारक यि की गवत स रजत की ओर बढ़ा रजत जस दकसी को दख कर भी

दख नही रहा रा उसकी आख दकसी शनदय पर ररकी री तारक को लगा उन लोगो क वघराि म

वजसम उसक अपन अजीज दोथत और ररशतदार र रजत न उस कोई विशष लकष नही दकया तारक क

भीतर अजीब सनापन-सा आ वघरा लगा जस रवत रजत म कही नही री वसफथ भरम-सा हआ रा उस

उसक िहा होन का जस दक उसक रवत क नात स िहा होन म ही कोई भारी असगवत री उस लगा

िहा बठ अजनबी स लोग उस घर रह र उसक िहा होन पर परशनवचनदह लगा रह र पता नही दकतन

ही अजनवबयो स वघर गया रा तारक यहा तक दक रवत की उस तथिीर म भी उस रवत नजर नही आ

रही री िह भी कोई अजनबी छाया री यह दवनया उसकी नही री अगर िह रवत की दवनया रही

भी हो तो वजस रवत को िह जानता रा उस रवत क वलए भी यह दवनया अनवथतति री विसगत री

उसन रजत को बहत सभलत सभलत गल स लगान की औपचाररकता की उस लगा जस िह

दकसी अजनबी को गल लगा रहा रा रवत वजतन उसक अपन पास री उतन और कही नही दकसी क

पास नही दरअसल रवत और कही नही री उसक भीतर रीhellip बस उस रवत को िही अपन भीतर ही

कही सजोय रखना रा भीतर ही खोजना रा भीतर ही तसलली करनी री दकसी और स बार नही

सकता रा रवत को रजत क दोनो कधो को हलक स दबाकर उसन धीर स कहा rdquoरक कयरrdquo और मड़ा

तो वबना पीछ दख बाहर वनकल गया

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पासपोरथ अमरीकन मरो

ओम गपता

पासपोरथ अमरीकन मरो पर रगत सहदथतानी

आज सनाऊ तमको पयार अपनी रामकहानी

छोड़ो भारत मन भयया डॉलर दख-दख ललचायो

चार-पकोड़ी जब भी दख मोह म पानी भर आयो

दीिाली पर दीप जलाउ होली पर खल रग

मौको जब मझको लगतो पीतो म भी भग

कसो होगी सरकार हमारी मोक हरदम सचता

जब भी दश पड़ सकर म कपा करो हनमनदता

पज म अब भी राम-कषण जातो मददर रोज

गपशप यारो स करतो फोकर म वमलतो भोज

योगी-बाबा आए दश स जब दन मझको जञान

आख मद क ना कछ जान करतो उनको सममान

हमबगथर अब भी नही भातो भाती मझ कचोड़ी

जसो जब भी मौका आयो रोपी िसी ओढ़ी

जाऊ दश को जब म अपन खाऊ लडड और इमरती

कहतो खद को सहदथतानी अमरीका मरी अब धरती

कहन को बहत ह भयया रोड़ को समझो काफी

बरा-भला लगा जो तमको माग नतमथतक माफी

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शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

आकाकषा ह

वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

फर च अनिाद कर इस lsquoभोगिाद स पीवड़त पविम की आतमा को अतयवधक शावत दन िालाrsquo कहा

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ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

की सीमाओ क पर मनषय कया अनभि कर सकता ह उसकी एक झलक भी ददखा दता ह उसी

औपवनषदीय जञान को महरवष िदवयास न सामानदय जनो क वलए ldquoपविि गीताrdquo म सवकषपत रप म परथतत

दकया ह िदवयास की महानता ही ह जो दक 11 उपवनषदो क जञान को एक पथतक म बाध सक और

मानिता को एक आसान यवि स परमातम जञान का दशथन करा सक ldquoपविि गीताrdquo महाभारत क

भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

ह भगिद गीता वहनदद धमथ क पविितम गरनदरो म स एक ह जो इसानो की चौहददी की सीमा रखा पर

भगिान क शरी मख दवारा इसान स कही गयी सरहदो पर चहरो की थकररनी का लखा-जोखा ह यह

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पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

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सपादकीय

राषटरपवत भिन क सभागार म भारत क राषटरपवत माननीय शरी परणि मखजी की उपवथरवत म

वगन-चन वनमवित वयवियो क साविधय म इरधनष दवारा परथतत सफ़ीआना कविाली सनन क आनद का

सौभागय डॉ आरपी ससह क सौजनदय स परापत हआ ठाकर साहब और म डॉ आरपी ससह जी की

सदाशयता क आभारी ह

भारत क परधान मिी माननीय शरी नरनदर मोदी जी न रोराणरो कनडा म अपना ििवय वहनददी

पजाबी और गजराती क सबोधनो स आरभ कर भारतीय मल की जनता का हदय जीत वलया अपना

भाषण वहनददी म दकर अपन दश की भाषा की महतता का परदशथन दकया थिभाषा को गौरिावनदित कर

कहन िाल और सनन िाल दोनो ही इस ददशा म गरवित हए

पस की महतता हर समय-काल म रही ह इस यग-काल म भी ह जीिन को सविधाजनक

सचार रप स चलान क वलए पसा आिशयक ह ितथमान भी इसस अछता नही ह दोनो ही दशो क

परधान मिी अपनी आरवरक सपिता को दविगत रख उसम कस और बढ़ोततरी की जा सकती ह इस

विषय पर अपन िाताथलाप को क दरत करत रह भारत क पास ऐसा कया ह वजस परापत कर कनडा

लाभावनदित हो सक और कनडा क पास दन क वलए ऐसा कया ह वजसस भारत लाभावनदित हो सक ऐसी

आरवरक सपिता क आदान-परदान क मददो पर वजसस दोनो दश लाभावनदित हो सक ज़ोर रहा दोनो

दशो की बहलता का पारथपररक फायदा उठाना लकषय रहा दोनो दशो क आतम-सममान को सरवकषत

रखत हए करय-विकरय की अरथ-वयिथरा को समावहत करन क दाि-पच म दोनो सफल रह कनडा क

परधान मिी माननीय शरी थरीिन हापथर जी माननीय शरी मोदी जी की कनडा यािा म हरदम उनक सार

रह मिीपणथ भाि स हरदम सग-सग रहना इस तथय का परमाण ह आखो न जो सपन दख ि ददखाय ह

उनकी परमावणकता भविषय वनधाथररत करगा

यह हमारा सौभागय ह दक शरी राम परसाद विपाठी जी शरी विकास सनी जी एि शरी दीपक

चोपड़ा जी क सौजनदय स माननीय शरी लालकषण आडिाणी जी क सार जो मधमय समय बीता उसक

वलए हम दोनो ही सबक आभारी ह आडिाणी जी न वजस आवतथय सतकार की भािना विनमरता और

परम क सार लगभग डढ़-पौन दो घर का समय हमार सार वबताया िह आजनदम हम उनक परवत एक

आदर-भाि क सि म बाध गया ह आडिाणी जी की विदवतता म घली शालीनता मन मोहन िाली ह

इस सौहारथ पणथ अिथरा म समय दकस अबाध गवत स बहता चला गया इसका भान तो आज तक न हो

पाया शरी आडिाणी जी दवारा ददए गए उपहार हमारी अमलय वनवध ह जहा एक ओर उनक घर की

बठक की पटरगस बरबस ही आपकी दवि आकरवषत करती ह कया जीित वचिण ह िही दसरी ओर

अपनी लाइबररी की पिथत शरखलाओ की एक पसनदरग दवारा उनदहोन जीिन का एक महामनदि मर हारो म

रमा ददया - पहाड़ जसी बाधाओ को हरदम पीछ धकल कर रखो अपन सामन न आन दो िाथति म

सही ह परगवत क पर पर कदम रकन क वलए नही ह बाधाओ को हरात हए आग बढ़न क वलए ह एक

पग उठगा तो ही तो दसरा पग उसक सार जड़गा और जब पग-दर-पग बढ़ग तो मवज़ल तो ख़द-ब-ख़द

राथत म आ वबछगी

अपनी लाइबररी म जहा उनदहोन कछ अमलय वचिो स मरा पररचय कराया िही एक विरल

दलथभ पथतक स अिगत कराया - अगरजी-ससधी शबदकोश वजसम ससधी भाषा दिनागरी म वलखी री

आडिाणी जी न अपनी पिी परवतभा स भी हमारा पररचय कराया परवतभा जी अपन

नामथिरप ही परवतभाशाली ह उनका वयविति कई कलाओ स समपि ह यदयवप दक उस समय ि

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वयथत री पर उन वयथत कषणो स भी समय वनकाल उनदहोन हमार सार कछ समय वबताया इस हत धनदयिाद क

शबद कम ह हदय स आशीिाथद दती ह दक ि अपन नाम को और भी उजागर कर

भारतीय साथकवतक सबध पररषद क अधयकष परो लोकश चर जी क अमलय समय क वलए आभारी ह

कई विषयो पर विचार-विमशथ हआ उनक उपयोगी विचारो स अिगत हई

शरीमती सनीवत शमाथ डीएस वहनददी एि डॉ नीना मलहोिा जएस वहनददी स वहनददी विषयक विदशो म

वहनददी वशकषण मानकीकरण शबदकोश विशव वहनददी सममलन आदद अनक विषयो पर गभीर विचार-विमशथ हआ

इस उपयोगी िाताथ हत दोनो की आभारी ह

सावहतय अकादमी क अधयकष डॉ विशवनार परसाद वतिारी जी स सावहतय पर िाताथलाप हआ उनक

दवारा परदतत ह-मान की आभारी ह

जिाहर लाल नहर विशवविदयालय क डॉ राजश पासिान न दो ददिसीय सत गर रविदास जी पर

अतरविषयक अतराथषटरीय सगोषठी का भवय आयोजन दकया विवशि अवतवर क रप म आमवित करन क वलए

धनदयिाद एि आभार

उदथ अरबी फारसी यवनिरवसरी लखनऊ क परो अशरफ़ी न दो ददिसीय रोल ऑफ सफ़ीज़ इन परमोशन

ऑफ सोशल हारमोनी विषय पर एक भवय आयोजन दकया सममावनत अवतवर हत धनदयिाद एि आभार

शरी अवनल जोशी जो ददलली म वहनददी क परचार-परसार म सलगन एक जान-मान वयविति ह तबादला

होकर फ़ीजी जा रह र उनक सममान समारोह म सवममवलत करन हत आभार

शरी दिनदर वमततल डॉ राम शरण गौड़ डॉ ददनश वमशर डॉ नताशा अरोरा न अतराथषटरीय मवहला

ददिस की पिथ सधया पर सममावनत दकया धनदयिाद एि आभार

सभी शभचछको की शभकामनाओ स वयविगत रप स यह िषथ मा सरथिती की असीम अनकपा लकर

मर वलए आया ह मा सरथिती न बहत कछ मरी झोली म डाला ह

शभचछको की शभकामनाओ स वलमका बक ऑफ ररकॉडथ म मरा नाम परिासी सावहतयकार एि

पिकार - सपादक-परकाशक िसधा - दोनो ही रपो म दज़थ हआ ह वलमका रीम को धनदयिाद आभार

फरिरी म सावहतय अकादमी म पर न मर उपनदयास ककयी चतना-वशखा को अवखल भारतीय

िीरससह दि परथकार स परथकत दकया ह सावहतय अकादमी सावहतय अकादमी क वनदशक डॉ विभिन नार

शकल सथकवत पररषद की आभारी ह भवय अलकरण समारोह हत धनदयिाद

२ माचथ को जय शकर परसाद सभागार म अिध रतन अिाडथ २०१५ वमला ह सगम क सभी

पदावधकाररयो क परवत धनदयिाद एि आभार

जहा यएन समबदध सथराओ दवारा इररनशनल िीमन एकसलनदस अिाडथ २०१४ वपछल िषथ वमला

रा िही इस िषथ एक और यएन समबदध परवतवषठत ररसचथ फाउडशन इररनशनल दवारा इररनशनल िीमन

सममान का सौभागय परापत हआ ह ररसचथ फाउडशन इररनशनल तरा इरर रोमा कलचरल यवनिरवसरी क

ततिािधान म पीजी वडपलोमा इन सोशल िकथ की विभागाधयकष तरा रोमा यवनिरवसरी की रवजथरार डॉ ऋचा

ससह दवारा आयोवजत भवय समारोह म मचासीन रोमा यवनिरवसरी क कलावधपवत पदमशरी डॉ शयाम ससह शवश

माउर एिरथर पररम मवहला विजता पदमशरी सतोष यादि एि डॉ सतोष खिा तरा वशकषा भिन क गणमानदय

अवतवरयो और भविषय क कणथधार मधािी छाि-छािाओ की उपवथरवत म यह सममान परदान दकया गया

शरी राम की कपा और आदरणीय एि वपरय अममा मा मातशवरी दिी क आशीिाथद स इस िषथ मरा नया उपनदयास

लोक-नायक राम भी परकावशत हो गया ह आशा ह दक इस भी पहल की ही तरह आपकी सदभािनाए परापत होगी

शरी अवनल िमाथ जी परकाशक क सार-सार वहतषी शभाकाकषी पाररिाररक सदथय क रप म ह आभार आशीिाथद

शरीराम की अनकमपा स ही हाल ही म मझ क रीय वहनददी सथरान आगरा दवारा परथकत होन की सचना

दी गई ह यह सममान मझ भारत क माननीय राषटरपवत क कर-कमलो दवारा राषटरपवत भिन म परदान दकया जाएगा

सभी की शभचछाओ को समर हए उनक परवत आभार परगर करत हए सभी क परवत मगल कामनाओ सवहत

जय शरी राम ससनह सनह ठाकर

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कषण आ गया ह डॉ नरनदर कोहली

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मरली कस अधर धर

महाकवि गलाब खडलिाल

मरली कस अधर धर

सर तो िदािन म छर कस तान भर

जो मरली सबक मन बसती

वजसस री तब सधा बरसती

आज िही नावगन-सी डसती छत वजस डर

वजसको लत ही अब कर म

पीड़ा होती ह अनदतर म

कस दफर उसकी धन पर म जग को मगध कर

इसको तभी धर अधरो पर

जब सग-सग हो राधा का थिर

जब यह मरली सना-सनाकर उसका मान हर

मरली कस अधर धर

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भारत और भारतीयता का अरथ

परो गिरीशवर ममशर कलपवत महातमा गाधी वहनददी विशवविदयालय

आजकल क चरवचत सरोकारो म भारत और भारतीयता क सिाल परछन न और परत यकष दोनो ही रपो

म खासी चचाथ का विषय बन चक ह और कई बड़ बवदधजीिी इस पर बहस म वशरकत कर रह ह दसरी

ओर ऐसो की भी कमी नही ह जो इस बमतलब का मददा मानत ह इसका पररदश य आज जररल और

बदला हआ ह दश क थ िति होन क पहल और थ िति होन क ततकाल बाद और अब लगभग सात

दशक की पररपक िता क करीब पहचत-पहचत इस लकर आज बहतर यह मान कर इस तरह की चचाथ

स तरथ र हो चल ह दक यह तो कोई सारथक परश न ही नही ह कछ इस िवशवक या भमडलीकत हो रह

आज क समय की जररतो क अनसार समझना चाहत ह कछ इस किल थ रानीय दवि स ही दखना

चाहत ह कछ इस सभ यता और सथ कवत क विमशथ स जोड़ कर दखत ह जो भी हो अतरराष रीयता क

सार परयासो क बािजद आज भी राज य या नशन थ रर की अिधारणा वनणाथयक महत ि रखती ह और

वनकर भविष य म सीमाविहीन दश जसी कोई अिधारणा आकार लती नजर नही आती आज का सत य यही ह दक दशो की सीमाए बाधा (का अवधक) और सपकथ (का कम) का काम

कर रही ह दश की सीमाओ की रकषा सबक सामन एक बड़ी चनौती ह दश और राष र किल कोरी

भौगोवलक अिधारणाए नही होती उन इकाइयो की रचना क सार एक समाज या समदाय विशष की

आशा-आकाकषा भी जड़ी होती ह दश की अिधारणा एक थ िप न को समरवपत रहती ह आज क तमाम

राष रो क सार उनक सार जड़ी लबी सघषथ-गारा आसानी स दखी जा सकती ह जो दसर समाजो और

समदायो की सामराज यिादी आकाकषाओ क परवतरोध को दशाथती ह शविसपनद न और आरवरक रप स परबल

दशो की दादावगरी उनकी सतता और शवि का जलिा अभी भी बरकरार ह कहन का तात पयथ यह दक

दश की इकाई अभी भी राजनवतक सामावजक आरवरक सामररक और सास कवतक रप स महत िपणथ

बनी हई ह और उस नकारा नही जा सकता

आज बौवदधक किायद म भारत समत सब कछ करथ रड मान जान का फशन-सा चल पड़ा ह

पर उसस दर करोड़ो (भारतीय) जनो क तन-मन म भारत जीवित ह आम आदमी वजनस दश आकार

लता ह िह भारत की एक सामावजक थ मवत भी रखता ह उसक वलए दश थ रानबोधक ह और भारत

एक भाि भी ह भारतीय होन का मतलब ह भारतभवम म रहन की जीिन-व यिथ रा म शावमल होना

भारत कह या इवडया यह मलतः एक भौगोवलक थ रान और उसकी पररवध को रखादकत करता ह इस

भभाग को जब दवीप आयाथितथ भारतिषथ और सहदथतान क नाम स भी जानत ह वहमालय और

सागर इसकी सीमाए बनात ह शथ यश यामला क दश गान और जनगणमन क राष रीय गान म जीित

भारत माता को वजस रप म थ मरण दकया गया ह िह भौगोवलक अिधारणा ही नही उसकी सीमा म

रहन िाल बासशदो की सामावजक-साथ कवतक अवथमता पर बल दती ह वजसका एक भािात मक रप भी

ह भारत एक सामावजक शरणी भी ह जो समाज दवारा रवचत और थ िीकत ह यह उस सामावजक

आकाकषा का परतीक भी ह जो एक आदशथ वथरवत की ददशा म जान क वलए परररत करती ह आधवनक

यग म एक थ िति जनति क रप म एक राज य की थ रापना हई और सहमवत स एक सविधान बना और

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सामावजक आकाकषा को एक मतथ रप वमला हमन उसम आिश यकतानसार बदलाि भी दकया ह इस

इकाई क सदथ य क रप म हमारी एक भारतीय पहचान ह

स मरणीय ह दक एक समदाय या सामावजक इकाई की वभनद नता या अलग सतता थ रावपत करना

वयािहाररक दवि स भी आिश यक ह ऐसा करना समाज को अदर स बाधता ह एकजर करता ह और

अनद य (िसी ही) इकाइयो स फकथ करता ह िधावनक रप स नशन या राष र एक काननी इकाई भी ह

और उसक सदथ य िध नागररक होत ह वजसकी थ िीकवत अनद य राष र भी करत ह और पासपोरथ िीसा

आदद की व यिथ रा स आिागमन को वनयवित करत ह नागररक क रप म िधावनक सामावजक और

साथ कवतक अवधकार क सार कतथव य और दावयत ि म भी भागीदारी होती ह समाज की वनयवत ह दक

जावत भाषा बोली कषि भोजन िथ ि रीवत-ररिाज धमथ आदद की विशषताए आ जाती ह इनक

सार समाज का भािात मक लगाि होता ह और उसक सदथ य थ िय को उसी आधार पर पररभावषत भी

करन लगत ह चदक इन विशषताओ का सचार पारथ पररक सबध और जीिन क विविध व यापारो स

गहरा ररश ता होता ह इसवलए य उस समाज की पाररभावषक विशषताए बन जाती ह

भारत दश हमार समकष एक सभ यता और मल य दविसपनद न सामावजक इकाई क रप म

उपवथरत होता ह इसकी समझ कई रपो म वमलती ह वनकर इवतहास म झाक तो पाएग दक इसक

कई रप ह एक छोर पर सहद उपलवबध को बलपिथक रखन िाल वतलक अरसिद सािरकर और

विवपन चर पाल जस ह दसरी और गोखल रानाड गाधी और रगोर सरीख आध यावतमक विचार को

मानन िाल ह जो सभी परभािो को आत मसात करन को तयार ह य सवहष णता आत मवनयिण आदद क

सार एक तरह की बहलता को ठीक मानत ह तीसरी ओर आधवनक दविसपनद न नौरोजी और पवडत

नहर जस लोग ह जो भारत को एक विकवसत सभ यता तो मानत ह पर यह भी महसस करत ह दक

उसका हरास भी हआ और उसम बहत कछ आधवनक जीिन दवि क विपरीत हआ जो आज उपयोगी

नही ह उनक वहसाब स एक बहलतािादी आधवनक नजररया जो विजञानसम मत हो उपयक त ठहरता ह

आज हर भारतीय की एक बहआयामी पहचान बनती ह िह सहद बगाली मवथलम गजराती

कश मीरी वबहारी बराहमण ओबीसी जन ईसाई आदद िाली एक सार कई तरह की पहचान रखता ह

य वभनद न वभनद न पहचान अक सर एक दसर की विरोधी न होकर परक होती ह साथ कवतक रप स ि

गहरी पठी ह और उनक सार लोगो का गहरा सािथजवनक लगाि भी ह िथ ततः हर भारतीय की

पहचान (आइडरररी) की अलग व यिस रा ह कोई एक यनीफामथ पमाना नही ह जो यह तय कर दक कई

पहचानो म स कौन सबस ऊपर नबर िन पर ह यह एक बड़ा तरल या फलइड मामला ह आज

पजा-पाठ सगीत और थ िाथ थ य लाभ क अनक क र भारत भर म फल हए ह जहा आन जान स सहद

ईसाई वसख और मसलमान दकसी को भी परहज नही होता कई पहचान क सार रहना अथ पष रता तो

पदा करता ह पर शायद दसरो क वलए िथ ततः हर भारतीय कई (उप) सथ कवतयो म जीता ह और य

सब वमलकर उसकी पहचान बनाती ह इस अरथ म हर भारतीय शायद बहसाथ कवतक ह और उसकी

पहचान बहआयामी

दश की छवि दशिावसयो क आत मगौरि का माध यम होती ह आज क भारत का अग होना उस

वबलाग करना हमको आरवरक परगवत की ओर अगरसर एक दश एक आरवरक पािर क सार जड़न का

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एहसास दता ह दसरी ओर भरष राचार अवशकषा अव यिथ रा सामावजक करीवतयो और भदभाि क

कारण मन म रकान उदासीनता और असहायता की भािना भी आती ह इस सबक बािजद एक

भारतीय का बोध जरर ह जो पजाबी मराठी या गजराती होन अलग जावत िगथ और समदाय का

सदथ य होन पर भी सबको भारतीय बनाता ह कभी-कभी विविधता म एकता िाल नहर जी का

भारत अपररभाषय या अव याख यय लगता ह भारत को एक विथ तत साथ कवतक इकाई क रप म दखन

पर कछ विचार उभरत ह जो भारतीय होन क अरथ को थ पष र करन म सहायक होत ह इनम परमख ह

धमथ कमथ पनजथनद म को दकसी न दकसी रप म थ िीकारना सामावजक इकाई - पररिार जावत समदाय

क थ तर पर अपन अवथतत ि को महसस करना सक स वििाह और अनद य व यवियो क परवत खास दविकोण

को अपनाना बहलता का थ िीकार और खल कछ-कछ असगरठत दकथ म की आत म या सल फ की

अिधारणा का थ िीकार और दकसी न दकसी रप म दकसी बड़ी जञात-अजञात सतता स जड़ाि की

अवभलाषा और पररिश परकवत और सवि क सार साझदारी तरा परथ पर अनपरकता का भाि

समकालीन विमशथ म राज य और राष र की अिधारणा क अरथ बहत कछ इस पर वनभथर करत ह

दक कौन दकस दविकोण और परयोजन स इन पर गौर कर रहा ह अक सर इनद ह अतीत ितथमान और

भविष य स जोड़ कर दखा जाता ह और लोग अपन चन िचाररक आदशथ स रग कर ही इस पर विचार

करत ह इन शब दो और इनस जड़ अरथ थ रान और समय क सार-सार बदलत रह ह जो थ िाभाविक ह

भारत दश क बार म सोचन की एक बड़ी मवशकल यह ह दक हमारी अपनी पररभाषा क पमान हमार

अपन न होकर दकसी और क ददए हए ह ि हमार बौवदधक मानस म इतन गहर पठ चक ह दक अब हम

अपन पमान क बार म भरोसा ही नही कर पा रह ह और खद को पररभावषत करन का अवधकार ही

खोत जा रह ह आरवरक और तकनीकी परगवत क पसराि की दवनया म आज हमारा आतम-सशय इतना

गहराता जा रहा ह दक भारत और भारतीयता की बात करना परानी और ददकयानस और इसवलए

अपरासवगक मानी जान लगी ह अगर इसकी बात करनी भी ह तो उसकी सनद कही और स जरानी

होगी आज अपनी पहचान क वलए हम पविमी दशो म विदवानो क दवारा परमाण और गिाही चाहत ह

आज भारत की साथ कवतक विविधता को सपनद नता और समवदध क ोत क रप म समझन समझान की

जररत ह वजसका उपयोग समाज क विकास म दकया जाय इसक वलए भारत को भारत क नजररए स

दखना होगा वबना इस भय क दक भारतीय होना दकसी कषमा याचना की अपकषा करता ह थ िदशी और

सराज जस विचार अभी भी परासवगक ह समरथ और थ िािलबी होन क वलए आत म थ िीकार और सतत

पररष कार आिश यक ह

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भकप का सदश

डॉ एमएल गपता ldquoआददतय

धरती हर ददन डोल रही ह कपन की बोली बोल रही ह

विनाश कर आकरोश स बदल कय भगोल रही ह

कय धरती न भकरी तानी कय वहमालय म आिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

जो ससाधन र पोषण क उनका शोषण कर डाला

ओजोन का जो किच रा उसका भी भदन कर डाला

बरहमी स कार हमन िसधरा क िन-कश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

सागर क तीरो को छीला पठार और पिथत को लीला

नददया बनी नाल और नाली नही ददखता जल वनमथल-नीला

चतािनी द रहा ह मौसम बदला भमडल का पररिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

विजञान की सीढ़ी चढ़ विनाश का सामान बनाया

परमाण सयि द रह यातना विकीरण का खतरा मडराया

रवडएशन स आतदकत ह दवनया क सब दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

12 47 2015 20

कोई अण कोई परमाण कोई हाईडरोजन बम ल ऐठा ह

वबछी हई बारद धरा म मानि बमो क ढर पर बठा ह

हआ परमाण यदध तो वमर जाएग दकतन दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

भकषक बनकर मानि इक दज पर चोर कर रहा

परीकषण की खावतर दकतन भीषण बम विथफोर कर रहा

परकवत का सतलन वबगड़ा तो हम बन जाएग अिशष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

कदरत कहर बरपा सकती ह कभी भी आफत आ सकती ह

धरा की जरा सी भी हरकत दकतना कोहराम मचा सकती ह

धरा न जरा करिर बदली तो कछ भी न रहगा शष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

पयाथिरण क आघात पर अब तो रोक लगानी होगी

सागर पिथत धरती क सग बद करनी मनमानी होगी

धरती को जो मा मानोग सब वमर जाएग कलश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

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ि दोनो

डॉ सषम बदी

छत स फशथ तक क लब शीशो स जड़ी उस बड़ी-सी बठक म खब सारी ददन की रौशनी भरी हई

री फशथ पर वबछी सफद चादरो पर सफद िसतर पहन ढर सार लोग उस रौशनी का ही वहथसा लग रह

र कमर म घसत ही तारक को लगा जस उस शवतता म घल मौत क सदथपन और जड़ता न अचानक

उसक भीतर को जकड़ वलया ह बीचोबीच फलो की माला चढ़ी एक बड़ी-सी रवत की तथिीर री

वजसका धप दीप और गीता क शलोको स अवभषक दकया जा रहा रा रवत अब तथिीर भर री तारक

की थतबध पवनयायी आख वनथसहाय-सी रजत को खोजन लगी

रजत सारा िि लोगो स वघरा ही रहा रा उसकी मा उसक बचच और दसर ररशतदार कोई न

कोई उसक आसपास रा ही उन दोनो की आख एक दसर स दो एक बार वमली पर रजत अपन स

बाहर नही आ पाया रा तारक न दकसी तरह अपनी शोकभािना वयि कर दी री न भी वयि करता

तो कया रजत को तो खद भी अहसास होगा उसकी अतभाथिना का एक िही तो ह इस भीड़ म जो

जानता ह दक िह कयो यहा ह बाकी तो तारक दकसी स पररवचत ही नही वसिाय कछक रवत क

कलीगज क एक दो कलीगज स ही उसकी बात हई रवत क बार म ि उस पररिार का वमि मानकर

बात कर रह र य पररिार का वमि तो िह रा ही पर इसस अलग या ऊपर भी कछ रा यह शायद

रजत क अलािा और कोई नही जानता रा जबदक रजत भी परा कहा जानता ह खास तौर स िह सब

कछ जो तारक महसस करता रहा ह या जो कछ तारक और रवत क बीच म रहा या अभी भी वजसका

बहत कछ बचा रा

य तारक न बहत बार सोचा दक अब रवत नही रही तो उसक यहा जान का कोई फायदा नही

उसकी तकलीफ बढ़गी ही दफर लगा दक नही उस रजत स वमलन जाना होगा रजत भी तो उसका

दोथत ह य रवत उन दोनो क बीच न होती तो ि शायद बहत गहर दोथत हो सकत र दफर भी िह खद

को कई तरह स रजत क करीब महसस करता रा और रजत भी बहत मामलो म उसी स सलाह करक

चलता रा उस पर भरोसा करता रा जो दक उसक मन क दोथती क भाि को ही जताती री चदक

तारक की विशषता ददल क रोगो म री िह रवत क हारथअरक क बाद स उसस अकसर रवत क बार म

सलाह लता यहा तक दक रवत स भी कोई वशकायत होती तो तारक स ही कहता दखो न इसका

कोलथराल इतना हाई चल रहा ह और मडम चीज मीर सभी कछ खाती ह अभी रथतरा ल चलो परा

का परा थरक गरक जायगी कस कर यह तो खद को नकसान पहचान स बाज नही आतीrdquo और तारक

तब ररका दता कसी डाकरर हो तम रवत मरीजो को उपदश दती रहती हो और खदhellipदफर उसन

खद ही एक विशषण गढ़ा रा रवत क वलए lsquoनानकपलायरrsquo यानी दक जो कछ भी कहा जायगा उसका

विरोध ही करगी रवत और दकसी िजह स नही बवलक विरोध करन क वलए विरोध

तब रवत और भी तिर चढ़ाकर बोलती rdquoरजत तो पहल ही मर पीछ पड़ा रहता ह अब तम

भी इसी स वमल गय हो िाह जी िाह दोथत दकसक हो तम मर या रजत कrdquo

तारक तब चप रह जाता रा रजत भी कछ नही कहता एक वपरय अवपरय सतय

शायद रवत भी इसीवलए कहती री दक तारक तब लाजिाब हो जायगा कयोदक रवत जानती ह दक जो

िह तारक क वलए ह िह और कोई नही हो सकता और रजत को भी इसका अदाज ह इसी स रजत न

शर म चाह दकतना विरोह दकया हो दकतना लड़ाई झगड़ाhellip दफर धीर-धीर मान वलया रा इस ररशत

12 47 2015 22

को रवत क वलए ही अगीकार कर वलया रा तारक को भी रवत न ही उस बतलाया रा जब रजत न

उस बाहो म भरकर कहा रा rdquoइतना पयार करता ह तमह दक यह भी थिीकारन क वलए राजी हrdquo

एक हक-सी उठी री तारक क भीतरhellip वजस इतना पयार वमला होhellip इतनाhellip िह इस तरह स

उन दोनो की वजनददगी को ही सना करक रखसत हो ली तारक क मन म गथसा भी आयाhellip शायद

अपनी सहत का धयान रखती तो कछ और जी जाती उन दोनो स ही तो चार-पाच साल छोरी री िह

जी भी सकती री पर अबhellip और तारक न लबी सास भरी

रवत की एक कलीग बता रही री rdquoपरसो तो काम पर आयी हई री रवत म सोच भी नही

सकती री दक इतना भारी थरोक हो सकता ह दक एक ही लपर म ल जायhellip मझ तो विशवास ही नही

होताrdquo तारक को भी विशवास नही होता रा उसी ददन सबह रवत न उसस फोन पर बात की री और

उसस मजाक दकया रा rdquoमर जनदमददन पर आओगrdquo

दरअसल सारा झगड़ा कछ साल पहल रवत क जनदमददन को लकर ही शर हआ रा िनाथ शायद

रजत को उन दोनो क बीच बढ़त ररशत की तवनक खबर न लगती रवत न उस बतलाया रा दक उसक

जनदमददन पर िह और रजत आमतौर पर शाम को बाहर दकसी बदढ़या स फर च रथतरा म खाना खान

जात ह तब तारक न कहा रा rdquoठीक ह तो लच तम मर सार लनाrdquo

रवत मान गयी री उसन उसी ददन रवत क शहर पहचन क वलए फलाईर भी बक करिा ली

री पर जब ठीक जनदमददन आनिाला रा तो रवत न उस बतलाया रा दक रजत को ठीक नही लग रहा

मरा तमहार सार लच पर जाना िह पछ रहा रा दक इतना इमपॉरर कस हो गया यह आदमी दक

तमको उस जनदमददन पर जरर वमलना ह

rdquoतमन कया कहाrdquo तारक वजजञास हो उठा रा

rdquoयही दक तमको दकसी काम स शहर म होना रा इसवलए लच पर वमलन की बात की इस पर

उसन कहा दक अगल ददन वमल लो जनदमददन िाला ददन तो उसी क वलए हhellip कोई और कयोrdquo

दफर िह बोली rdquoइसी पर उस शक हो रहा ह दक यह कोई आम दोथत नहीhelliprdquo

तारक न जोड़ ददया रा rdquoपरमी हrdquo

rdquoहा यही शक हो रहा ह उसrdquo

rdquoतो ह या नहीhelliprdquo

rdquoशायद होhellip यही मसीबत हrdquo

तारक न कहा रा rdquoअब तो ररकर ली हई ह म तो आऊगा ही तम वमल सको तो वमलना िनाथ

न वमलना चाह पाच वमनर क वलए या कॉफी क वलए भी आ जाओगी तो मर वलए िही काफी होगा

तमहार जनदमददन पर तमह दख भर लrdquo

rdquoतम भी कमाल क रोमाररक होhellip पर सच कह तो म भी तमस वमलना चाहती ह उस ददनhellip

कछ न कछ तो जगाड़ना पड़गाrdquo

rdquoमर वलए तमहारा जनदमददन मरी वजनददगी का बहत अहम ददन हhellip समझीrdquo

एयरपोरथ पहच कर तारक न फोन दकया रा रवत बोली री rdquoरजत कह रहा ह तम हम वडनर

पर जॉयन कर लोrdquo

तारक बहत हरान हआ रा पर रवत न फोन रजत को पकड़ा ददया रा तारक एकदम सकर म

पड़ गया रा उसन खद को बचान की कोवशश की rdquoसॉरी म तो यहा आया रा तो सोचा रवत स वमल

लगा पर इस तरह आप लोगो क परोगराम मhelliprdquo

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रजत न जोर दकर कहा रा rdquoनही भाई बहत तारीफ सन रहा ह बीिी स जरा हम भी तो

वमल आपस आप चाह तो घर पर आ जाईए या दफर सीध रथतरा पर वमलगrdquo

rdquoपर आप लोगो का तो वडनर पर सार जान का कायथकरम रा नrdquo

rdquoआप लच पर फरी ह तो लच पर वमल लत ह य मझ तो वडनर ही पसद ह जसा आप कहrdquo

रजत वबलकल दोथताना ढग स बात कर रहा रा एक पल को उसकी रोन म कछ तनाि तारक

को महसस हआ रा पर अगल ही पल आिाज दफर सहज हो गयी री तारक मान गया पर रकसी लकर

पहल होरल म सामान छोड़ा और इस दौरान खद को मानवसक तौर पर तयार भी करता रहा दक कस

पश आना ह अपन रकीब स दखा जाय तो ररशता रकीब का ही रा बाकी ि दकतन भी सभय या

समझदार इसानो की तरह एक-दसर स बताथि कर आवखर ि तीनो सममावनत पश क र तारक हारथ

थपशवलथर रा तो रजत अगरजी सावहतय का परोफसर और रवत सायकायररथर इसानी मन की

कमजोररयो को समझना मनोरोगो का इलाज करना रवत की विशषता तो री ही पर इसानी आकषथण

एक दसर क परवत सखचाि या ऐस ररशतो को समझन की सथकवत तो कही तीनो म ही री

रजत इस बात को खब समझता रा दक दकसी भी औरत क वलए दकसी दसर परष क परवत

सखचाि हो जाना बहत सहज रा िही एक पवत और पतनी स परम करन िाल क रप म िह रवत क इस

वयिहार स ईषयाल भी हो उठता रा एक सभय इसान क नात िह ईषया को दबा कर तारक क परवत भी

वमिित वयिहार करना चाहता रा पर िही उस रवत क वयिहार स कि पहचता रा दक िह उसक

अलािा भी दकसी दसर परष को चाह सकती ह वजसस उसक मन म आकरोश और वितषणा का भाि

उठता कभी िह अपन को उदार बना कर यह कहना चाहता दक रवत अगर दकसी दसर को चाहती ह

तो बशक उसको भी कयो न पाय सार ही जब करोध होता तो एक तरह स जस िह रवत को सजा दन क

वलए कह डालता rdquoतम जाओ दोनो सार रहोrdquo पर जो पीड़ा िह उसम सह रहा होता िह रवत और

तारक दोनो क वलए ही असहय होती

रवत न कहा रा rdquoकया तारक और म दोथत नही हो सकत और इतन दोथत हhellip एक िह वयवि

वजसस बात करक मझ खशी वमलती ह िह दोथत कयो नही बन सकता वसफथ इसवलए दक उसक मन म

तीखी भािना ह मर वलएhellip या शरीरो का आकषथण भी हhelliprdquo

रजत तब तकथ स सारी बात को समझन समझान की कोवशश करता हा करत-करत कह दता

rdquoऔरत आदमी म दोथती हो ही नही सकती कयोदक जहा शरीरो का आकषथण हो िहा दोथती जसा

वनषकपर भाि कस पनप सकता हrdquo तब रवत दोथती का एक और पकष पश करती rdquoतमहार कहन का

मतलब तो िही ददकयानसी बात हई दक शरीर पाप का मल ह जबदक तम खद ही यह पहल कह चक

हो दक शरीरो का मसला हल हो जाय तो औरत मदथ बहत खबसरत दोथत हो सकत हhellip शरीर को

अहवमयत दी कयो जाय शरीर वमल जान स उनका दोथती म बाधा बनन का मसला खतम हो जाता हrdquo

रजत रवत की बात मान भी जाता रा पर रवत दफर तारक को यह भी बताती री rdquoिन कार

रक वहम फॉर गरारड कल को िह अपना कोई नया तकथ द दगाrdquo

शायद इसी स तारक भी अचानक वहममत हारन लगा रा कस सामना करगा िह रजत का य

िह रजत स एकाध बार पहल वमल चका रा पर तब उसको यह अदाजा नही रा दक रवत और उसक

बीच कछ रा जबदक तारक तब भी कछ आतमसजग-सा हो रहा रा पर कछ वमनरो की मलाकात को

सभाल लना कोई बड़ी बात नही री और य भी रजत उस भला आदमी लगा रा यह भी सोचा रा दक

अगर रवत उन दोनो क बीच न होती तो यह वयवि उसका दोथत हो सकता रा य रवत क होन क

बािजद अतत ि दोथत बन ही पर इस दोथती का तानाबाना िसा न रा जस खावलस दोथती का होता

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ह इसम रवत क रश बन हए र जो एक और ही रगत वलए र और िह रगत तारक को बहत पयारी री

उस दोथती स जयादा

तारक न होरल पहच कर फोन कर ददया रा दक वडनर पर वमलना ही ठीक रहगा और िह

अपना काम इस दौरान कर लगा रजत आसानी स यह बात मान गया और कहा दक िह सडरकस पर

पहल घर पर आ जाय उसक बाद रथतरा खाना खान चल जायग

शाम को जब िह चलन लगा तो फोन बजा रा दसरी ओर रवत री हलो कहत ही रवत न

कहा rdquoसनो तम मत आना मर घर म बहत रशन चल रही हrdquo इसस पहल दक िह कछ कहता रवत न

फोन वडसकनकर कर ददया

रात को कोई फलाईर नही जाती री िनाथ िह उसी िि शहर छोड़ क चला जाता

आध घर बाद ही घरी दफर बजी रवत पछ रही री दक आ रह हो तारक बौखला गया दक आवखर हो

कया रहा ह कया यह रवत क मन की उलझन ह या दक रजत कीhellip या दोनो कीhellip या रवत वसफथ रजत

की उलझन को वयि कर रही री बोली री rdquoजलदी आ जाओ हम लोग इतजार कर रह हrdquo

िह पहचा तो रवत न अकल ही उसका थिागत दकया रा िह जानता रा दक दोनो बचच कालजो

म ह पर रजत काफी दर तक बठक म नही आया तो तारक हरान हआ रवत बोली rdquoिह नहा रहा हrdquo

दफर मथकरा कर जोड़ा rdquoशायद हम दोनो को कछ िि दना चाहता हrdquo

तारक तब कछ निथस हआ रा उस आग बढ़कर रवत को चमन का हौसला नही हआ उस लगा

दक रवत भी सहज नही री जस दक आम तौर पर होती ह पर उसन कछ कहा नही िह खद भी तो

सहज नही हो पा रहा रा जस लड़की क बाप क घर म शादी का परथताि लकर जा रहा हो कछ कछ

इसी तरह का महसस हो रहा रा िही डर कर परचा करना रा दक इमतहान म फल न हो जाय

रजत न कमर म आत ही बड़ तपाक स हलो दकया कछ औपचाररक-सी बात की दफर उसस

सडरक पछा और दकचन म बफथ िगरह का इतजाम करन क वलए दफर स गायब हो गया तारक को लगा

दक सहज होन की बहत कोवशश क बािजद रजत बहत असहज ह

ववहथकी का घर लत हए तारक न ही रजत स उसक काम क बार म पछना शर दकया बात

कही जा नही रही री तभी रवत एक नई दकताब की चचाथ करन लगी वजसका ररवय सबह क अखबार म

छपा रा तारक न हिाई जहाज म ही उसक बार म पढ़ा रा दफर तो बातचीत खब गरमागरम होन

लगी रजत न दवकषण एवशयाई अगरजी लखको क बार म अपन विचार झाड़न शर कर ददय यहा तक

दक रवत न अचानक घड़ी दखी तो पता चला दक रथतरा की ररजिशन का िि हो चका रा रजत न

रथतरा को फोन दकया दक कछ वमनर लर पहचग और तारक को बोला दक जलदी स सडरक खतम कर ल

या गाड़ी म ही ल चल दोनो न दो तीन सडरक चढ़ा रख र मौज-सी भी आयी हई री रजत ही कार

चला रहा रा और तारक पीछ िाली सीर पर बठा रा अचानक रजत कछ नश और कछ अपनी धन म

बोला rdquoतो तम मरी बीिी स पयार करत होrdquo

तारक भौचक-सा हो गया य ही बठा रहा जस रजत की बात को सना न हो या िह गभीरता

स लन लायक न हो रजत न अपनी बात को सिाल बनाकर दबारा पश दकया rdquoकयो तारक मरी बीिी

स पयार करत हो या नहीrdquo

तारक न कहा rdquoहाrdquo और चप कर गया उस लग रहा रा िह जो भी जिाब दगा खतर स खाली नही

पर यह जिाब सच रा तो सच बोल कर ही मार खायी जाय उस दकसी लड़की क वपता स हार मागन

नही जाना पड़ा रा आज यह भी सही

rdquoतम भी पयार करत हो िह भी करती ह तो तम दोनो सार कयो नही रहतrdquo

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तारक बोल पड़ा रा rdquoयह इतना आसान नहीrdquo

रजत इस पर आकरमण करता-सा बोला rdquoकमाल ह पयार भी करत ह और वजममिारी भी नही

वनभाना चाहतrdquo तारक को महसस हो रहा रा दक रजत कह तो कछ रहा ह और पहचाना कछ और

चाहता ह दफर भी िह जिाब तो उसी बात का द सकता रा जो दक पछी जा रही री यह कह कर

उस नाराज भी नही करना चाहता रा दक रजत वसफथ अपन भीतर क आकरोश आतक और आग को

आिाज द रहा रा बोला rdquoयह बात नही म आज भी रवत क सार वजनददगी शर करन को तयार ह

जहा तक म जानता ह रवत अपन शहर को छोड़ कर और कही नही जायगी न िह तमको छोड़न को

तयार होगी जहा तक म रवत को जानता हhelliprdquo

रवत चपचाप अपन पर अकश लगाय दोनो की बात सन रही री न तो िह रजत क पकष म

कछ बोलना चाहती री न तारक क पकष म ही बोल सकती री दफर भी दोनो क बीच तारतमय वबठाय

रखन की वजममिारी भी उसी की री और िह समझ नही पा रही री दक दकस तरह इस बातचीत को

सीमाय लाघन स बचाया जाय ऊपर स उस डर लग रहा रा दक आिश म रजत कही रककर न मार द

रथतरा बहत दर रा भी नही बात पर चरम पर चल रही री दक रथतरा आ गया रवत न रोका rdquoरजत

पारककग ढढ़ो रथतरा आ गयाrdquo रथतरा क सार ही पारककग गराज म गाड़ी छोड़ कर तीनो अदर चल गय

िरर न उनको मज पर वबठाया और सडरक क वलए पछा तरा मनदय लाकर ददय तीनो क तीनो उस मज

पर इस तरह खामोश और भर बठ र दक मनदय म वसर डबोना एक राहत बन गया रा तीनो न अपन-

अपन आडथर ददय पर बात कछ बन नही रही री हर कोई कछ भी कहन म जयादा ही सतकथ हो रहा रा

अचानक रवत बोली rdquoरजत तमको इतनी जयादा तकलीफ री तो तमन मना कयो नही कर

ददया म तो तारक को कह चकी री दक आज सार खाना नही होगा तमही न जोर ददया दक जरर

बलाओ अब इस तरह कयो बताथि कर रह होrdquo

रजत और भड़क गया rdquoम तो वसफथ यह कह रहा ह दक तम लोग एक-दसर को पयार करत हो

तो म कया कर रहा ह यहा तम जाओ एक दसर क सार रहोrdquo

दोनो की आिाज ऊची हो रही री और दसरी मजो पर बठ लोगो की वनगाह इस ओर उठ आयी री

तारक न धीर स सझाया रा rdquoमर खयाल स हम य बात यहा नही करनी चावहएrdquo सहसा रवत

न होश म आत कहा rdquoहा इतन बदढ़या रथतरा म खाना खान आय ह कछ खान पर भी तो धयान दhellip

दफर आज मरा जनदमददन ह आई िार र हि ए गड मीलrdquo

दफर भी खान पर तीनो म स दकसी का धयान नही लग सका तीनो औपचाररक-सी बात म लग

गय र तारक न ही शहर क निीनतम रथतराओ क बार म ताजा पढ़ी समीकषा का वजकर छड़ ददया रा

रजत न कार स जब उस होरल छोड़ा तो तारक न उपर कमर म आकर सडरक लन क वलए कहा

पर जसा दक िह अपकषा कर रहा रा रजत न दर होन का बहाना बना छटटी माग ली री रवत तब भी

कछ नही बोली री शायद उस डर रा दक उसका कछ भी कहना रजत क वलए घाि पर नमक वछड़कन

जसा होगा या उसकी कोई भी बात का गलत मतलब वनकाल कर रजत भड़क सकता रा य दर हो भी

चकी री

पर तारक यह भी जानता रा दक रवत एक नबर की वजददी री जो उस चावहए रा चावहए ही

रा उस रोका नही जा सकता रा िह ऊपर स मान जायगी पर भीतर स कभी माफ नही करगी

शायद इसी स रजत भी वबगड़ी हई लाड़ली बरी की तरह रवत की हर चाह या माग को विरोध करक

भी अतत मान जाता रा

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लौर आन क दो चार ददन बाद ही उसक फोन पर रवत न सदश छोड़ा रा rdquoतमहारा आना ठीक

नही हआ सॉरी तमह बलाकर भी वमल नही पायी अब लगता ह कभी नही वमलगी लर अस थरॉप

ददस वहयर पलीज मझस सपकथ मत करनाrdquo

तारक बहत ददन परशान घमता रहा रा पर रवत को फोन भी नही दकया उसन मना जो कर

डाला रा उस फोन करत हए तारक को लगता दक िह खद को उस पर लाद रहा ह और यह वथरवत

उस कभी गिारा नही री हर ददन दकसी जिालामखी-सा लाि स लदा हआ गजरता अदर ही अदर

सब तप रहा रा

महीन भर बाद रवत न फोन दकया रा rdquoगथसा हो न मझस तमस माफी भी नही माग सकीrdquo

उसकी तो कोई जररत नहीrdquo

दफर भी सोचा रा तमस कभी बात नही करगी इसी स तमको सपकथ करन स मना दकया

रा रजत को भी यही मालम ह दक तमस ररशता तोड़ ददया ह पर अब मझी स बात दकय वबना रहा

नही जा रहाrdquo

रजत को मालम ह मझस बात कर रही होrdquo

िह बहद गथसा ह तमसhellip जस दक सारा दोष तमहारा होhellip दक तमन उसकी बीिी को फसा वलयाrdquo

ि इसी तरह जब मौका लगता बात कर लत तारक क ददल ददमाग पर रवत ही छायी रहती

िह ऐस ही पलो क दौरान जीता जब दोनो क बीच कछ सपकथ होता बाकी क पल उन पलो क इतजार

म गजरत

इस बीच रवत को ददल का दौरा पड़ा रा घबराकर तारक को फोन कर डाला रा रजत न

तारक आया तो रजत उस अपनी गाड़ी म सार अथपताल ल आता जाता रहा दोनो म एक दोथती का

नाता तभी बना रा दवनया जहान की बात रजत न उस घर पर ही ठहराया रा तारक तीन ददन बाद

चला गया रा िावपस पर दोनो की फोन पर बात हो जाती रवत अथपताल स िावपस आ गयी री

धीर-धीर िह सामानदय होकर िावपस अपना काम सभालन लगी

रवत का जनदमददन दफर स आनिाला रा रवत न उस कहा रा rdquoरजत अपन आप ही बोल रहा ह

दक तम आ जाओ इस बार मरा जनदमददन मनान बोलो आओगrdquo

तारक परानी बात याद करक घबरा गया रा rdquoनही दफर स उसक भीतर सब घमड़न लगगाhellip

सबको तकलीफ होगीrdquo

यह सच भी रा रजत कभी तो उसक परवत बहत वमिित हो जाता िही अचानक गथसा ईषयाथ

उभर आत और िह अकसर बरखी ददखाता अचानक तारक को ऐसा महसस हआ जस रवत उसस खद

यह सब कह रही हो पल भर को िह भल ही गया दक रवत क ही अतयवि कमथ म िह शावमल हआ ह

और दरअसल उसक यहा आन की एक िजह यह भी ह दक िह रवत को वलख अपन खत िावपस ल

जाना चाहता ह उस डर ह दक कही ि खत रजत क हार न पड़ जाय

तारक रवत क सार काम करन िाली इस मवहला डॉ लोपज स पहल वमला हआ रा इस भीड़

म एक िही जान-पहचान की री तारक का मन हआ उसस पछ दक कया िह रवत की दराज म उसक

कागजात पर नजर मार सकता ह तारक को अदाज रा दक उसक खत िह दफतर की मज की दराज म

रखती री पर िह जानता रा दक ऐसा करना ममदकन रा नही आवखर तारक को कस हक पहचता रा

रवत की दराज खलिान का िह तो एक पररिार क वमि की हवसयत स िहा रा रजत ही कह सकता

रा दखा जाय तो ि लोग खद भी रजत स ही कहग दक रवत का सामान िह ल जाय तब तो रजत की

आख जरर उन पर पड़गी तब शायद उसको बरा लगगा दक रवत क सार तारक का एक अपना ररशता

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रा उन तीनो की आपसी दोथती क बाहरhellip रजत को बतहाशा चोर लगगी अब जबदक िह रवत स

जिाबतलबी भी नही कर सकता रवत अब कोई सफाई नही पश कर पायगी तारक क हक म कछ भी

नही कह सकगी दकसी तकथ स रजत को लाजिाब नही कर पायगी नही िह ऐसा नही कर सकता न

यह रवत क परवत सही होगा न रजत क परवत उस दकसी न दकसी तरह स खत पान ह

राथत म आत हए हिाई जहाज म तारक जब लगातार रवत क सार की अपनी वजनददगी क

गजर पल दहरा रहा रा बार-बार उस धयान आता दक जब स रवत को ददल का दौरा हआ रा िह

उसस कहना चाहता रा दक उसक खत विनि कर द एक बार उसन बात उठायी तो रवत बोली rdquoकयो

तमहार खत मर दफतर की दराज म सफ पड़ हrdquo

शायद िह वबना कह यह भी समझ गयी री दक तारक का इशारा दकस ओर ह तभी बोली

दखो जब तक म वजनददा ह म उनको फाड़ कर न तो फ क सकती ह न जला सकती ह एक बार मर गयी

तो कया फकथ पड़ता ह दक कोई कया करगा उनक सार तमको तो दफकर होनी नही चावहए अब तो ि

मरी अमानत हrdquo यह बातचीत दो एक महीन पहल की ही होगी तारक न सोचा रा बात कभी दफर

उठायगा पर उसस पहल हीhellip

तारक को भी तब यह अदाज नही रा दक रवत क अलािा रजत स भी उसका नाता रा रवत क

जान क बाद िह खद को रजत क बहत करीब महसस कर रहा रा और उस लगा दक उसक खत रजत

को उसस दफर दर धकल सकत र पर िह दकसी तरह भी रजत को खोना नही चाहगाhellip रजत जस स

रवत का ही एक वहथसा राhellipउसन दखा लोगो स वघरा रजत का चहरा बहद वनचड़ा हआ रिहीन और

सखा-सा लग रहा रा रात भर सोया नही होगा इसवलए आखो क नीच कालापन उतर आया रा आख

काफी अदर को धसी हई री तारक को लगा दक िह शायद रजत स बहतर हालत म ह दफर उस रशक

भी हआ रजत अपन गम का खला इजहार कर सकता हhellip तारक को यह सविधा नही री िह दकसी

उजड़ आवशक क रप म इस महदफल इस मौत का शोक करन िालो की महदफल मhellip अपना असली

चहराhellip अपना आवशक का चहराhellip नही ददखा सकता रा अचानक उसकी आख भर आयी अपन खोन

की वशददत क अहसास स

रवत क िाकय उसक कान म सरसरान लग जबस उस ददल का दौरा पड़ा रा िह जीिन की

कषणभगरता या इसान क नाचीज होन क अवथततििादी दशथन को बहत बघारन लग गयी री शायद

अपन जान का अहसास उस कही बहत गहर उदास कर जाता रा पर िही िह उस जान को एक

अिशयभािी अकारय सतय की तरह थिीकार करक उसस समझौता भी करन लग गयी री एक ददन

उसन हडसन नदी क दसर वसर स मनहरन की ओर दखत हए कहा रा rdquoदखो तो इन छोर-छोर वडबबो

म दकतन लाखो लोग रहत ह दकतन छोर ह हम लोग इतनी तग जमीन पर दकतनी बड़ी तादाद म

समा जात ह एकदम हजारो की सखया म सार-सार जड़ कीड़ो की तरह दफर भी अपन आप को

दकतना बड़ा मानत ह राजनीवत धमथ और नवतकता की तवखतया वचपका कर दकतना बड़ा होन का

भलािा दत रहत ह खद कोrdquo

रजत को रवत की इसान को नाचीज करार दन िाली बातो स हमशा बहत वचढ़ छरती री

बोला रा rdquoधमथ नवतकता जीिन क सतय ह इनको तम भलािा दन िाली चीज कस कह सकती हो

इसान इसीवलए तो बाकी जीिो स अलग ह दक िह सोच सकता हrdquo

rdquoऔर सोच क धरातल पर हर चीज को गलत या सही सावबत कर सकता ह नवतकता को गढ़

सकता ह या परा सतयानाश कर सकता हhellip ठीक ह मझ तो उसम कोई नकसान नहीrdquo

12 47 2015 28

हा नकसान दकसी का ह तो मरा ही रजत न कहा तो तारक झर स बोल पड़ा रा rdquoनकसान

तो तब होता जो म उस भगा क ल जाताrdquo

रजत न सजीदगी स कहा rdquoअब इसका ददल बर गया हhellip तो आधी सपवतत तो लर ही गयी न

तम भगा ल जाओ तो भी फकथ नही पड़गा यह आधािाला वहथसा तब भी यही रहगाrdquo

सचमच रजत का यह विशवास सही रा रवत और उसक ररशत की शरआत क ददनो म भािना

क परिाह म बहता तारक रवत क सार एक नयी वजनददगी क दकिाड़ खोलन की बात सोच पाया रा पर

जलद ही उस अहसास हो गया रा दक रवत कही बहत गहर जड़ी री रजत क सार दक िह कभी उस

ररशत को तोड़गी नही य रजत भी शर क ददनो म भीतर स वहल गया रा यह झरका दक रवत रजत

को छोड़ दकसी और को मन म ला सकती ह उस बहत दर जा फ क आया रा दफर रवत न खोय विशवास

को िापस लौरा ददया रजत अपन आध नकसान क सार धीर-धीर शायद समझौता करना सीख गया रा

तारक को लगा दक िह आध क सार समझौता करना सीख गया रा दफर तारक को लगा दक

िह आध क सार समझौता नही रा रजत क भीतर कही पर का भरोसा भी रा जस दक रवत को वसफथ

एक बदलाि चावहए रा जो तारक रा िनाथ िह परी रजत की ही री कयोदक मौका आन पर रजत

अपना परा हक जतान स चकता नही रा हमशा यही मानता रा दक पहला हक उसी का ह तारक

हमशा बाद म आयगा जस दक पर भर लन पर बचा हआ भोजन दकसी को भी ददया जा सकता हhellip

कछ ऐसा रख

पर रवत बचा हआ भोजन नही रीhellip दकसी तरह स भी उवचछि या अिवशि नही जो उसन

रवत म पाया रा िह पहल वजनददगी म कभी नही वमला रा रवत न उसकी पहचान करायी री

पररपणथता स रवत को जानना ही जस उस सपणथता को छना रा शायद रजत न भी रवत म ऐसा कछ

पाया रा जो आम औरतो स अलग रा रवत शादी क इतन बरस बाद भी उस अपन म उलझाय री और

िह उसस मि नही होना चाहता रा रवत म बाहरी खबसरती क बािजद वयवि क ददमाग को भी

उलझाय रखन का जो गण रा उसस सच म जो भी पास आता और सखचता जाता रवत म भरपर

पयार लन की चाह री तो भरपर दन की कषमता भी इसी स अभी भी उसस जी तो नही भरा रा रजत

का शायद िह ऐसी औरत री जो हमशा वनत निीन होती रहhellip सौदयथ की एक पररभाषा यह भी तो

दी गई ह दक जो वनत नतन होता रह िही सौदयथ ह रवत भी कभी परानी नही पड़ती रोज कछ नया

होता ह उसक पासhellip कोई नया खयालhellip कोई नई सझhellip कोई नई उकसान उलझान िाली बातhellip

शायद इस ददमागी सौदयथ कहना होगाhellip जो कछ भी उसम राhellip बस खीचता रा अपनी ओरhellip मोहता

राhellip शायद कया पर उगली धरना उस पररवध म बाधन की भोडी कोवशश होती

कछ दवदव उठता तो रवत रजत क ही हक म बोलती री रजत क वहतो को सरवकषत कर लन क

बाद ही िह तारक को उसका हक दती तारक को खीझ भी होती दक रजत उसक जीिन म चदक पहल

आ गया रा इसीवलए हर चीज म ही पहला हक उसी का बनता ह पर उसन रवत स अपनी यह

मनवथरवत कभी जावहर नही होन दी री वपछल साल िलनदराईन ड पर ऐसा ही तो हआ रा दरअसल

दोनो को अदाज नही रा दक उस िीक ड पर िलनदराईन ड पड़ता रा तारक को दकसी काम स रवत क

शहर आना रा और दोनो न वमलन का कायथकरम बना डाला रा रजत स रवत की बात हई होगी तो

उसन भनकर कहा रा rdquoतो िह तमहारा िलनदराईन ह जो उस ददन आ रहा हrdquo रवत क कहन पर दक उस

तो याद भी नही रा िह बोला रा rdquoम नही मान सकता दक तारक न य ही आन का बनाया ह इस

िीक ड परrdquo रवत न तारक स सारी बात बतलायी तो उसन सोचा रा िह खद फोन पर रजत स कहगा

दक उस सचमच याद नही रा पर दफर बात बढ़ान न दन क वलए चप रह गया रा और जान का

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परोगराम भी थरवगत कर डाला रा तब उस दो बात तकलीफ दती रही री एक तो यह दक रजत हमशा

उसक सामन परारवमकता ल जायगा दसरी यह कड़िी सचचाई दक रवत कभी भी उसकी जावहरी वजनददगी

का वहथसा नही बन सकती री उसकी कमर म हार डाल कर िह कभी दकसी स यह नही कह सकता

रा रवत मरी हrdquo तब उस बहद रशक होता रजत स कया रजत को सचमच अहसास ह दक रवत तारक

क वलए कया ह दक िह उसकी वजनददगी का कनदर उसकी वजनददगी का अरथ बन चकी ह यह कोई हलका-

फलका ठरकपन नही उसकी वजनददगी का रशा-रशा गर गया ह रवत स शबद म अरथ की तरह समायी ह

रवत उसक अवथतति म इस गरन म िह खद ही घरता रहगा हमशा

अब रवत नही ह तो िह घरन और भी कस रही ह उस कया अब िह रजत स कह पायगा

अचानक उसका मन हआ दक रजत स कह द rdquoतमको मालम ह दक मझ सचमच पता नही रा दक उस

ददन िलनदराईन ड रा िनाथ ऐसी जरथत न करताrdquo दक िह जानता हhellip अचछी तरह समझता ह अपनी

और उसकी ररीररी की पररवधयो को दक रजद शायद कभी जान न पायगा पर उसन हमशा एक दोथत

की तरह रजत का रजत की जररतो का खयाल रखा हhellip वसफथ ऊपर-ऊपर स सामावजक उपचार की

तरह नही भीतर स दकसी ददली ररशत सhellip दफर िह ररशता चाह रवत क जररय स ही बना हो

हो सकता ह रजत यह सब महसस करता हो या न भी करता हो पर उसक चहर पर भी वमिता

का थिागतमय भाि हमशा ददखा ह तारक को वसिा उन कषणो क जब दक सचमच उन दोनो क बीच

lsquoररररोररयलrsquo झगड़ हए तब भी ि शायद इसानी आचार या परथपर सदभाि की सीमाओ को कभी

लाघ नही पर दफर भी तारक का रवत क सार का ररशता ऐसा नही दक रजत क सार वजस बार सक

रवत उसकी हथती का अवभि वहथसा ह िह कोई और कस हो सकता ह रजत रवत नही हो सकता

चाह उसक दकतन ही करीब रहा हो उस दकसी न दकसी तरह स अपन खत पान ही ह लदकन कस

और यही तारक बार-बार उलझ जाता ह अपनी यह परशानी िह दकसी क सार बार नही सकता

रजत स तो कतई नही खत अगर सचमच रजत क हार पड़ गय तो

लदकन रवत न यह भी तो कहा रा दक अगर िह नही रही तो कया फकथ पड़ता ह पर रजत

सचमच खत पढ़ ल तोhellip शायद उसकी पीड़ा पर तब करोध और घणा का कोई विकराल भत हािी हो

सकता हhellip हो सकता ह दक खत पढ़कर रजत रवत को खद स वछरक द लदकन उसस कया तब शायद

रवत और भी तारक क करीब आ जाय और भी उसकी अपनी हो जाय वसफथ उसी की समची एक रात

पहल उस ऐसा ही कछ सपना आया रा रवत की मौत की खबर क बाद यही उसका याद रह जानिाला

सपना रा िह रवत की अतयवि म गया ह और एक अधरा-सा बठकनमा कमरा हhellip कमर म कछ

कागज वबखर पड़ हhellip िह एक कागज उठाता हhellip िह उसी का रवत को वलखा खत हhellip और कई लोग

उसक आसपास ह और िह सोचन लगता ह दक कही इन लोगो न भी तो उनदह नही पढ़ाhellip तभी रजत

का चहरा उसकी ओर बढ़ता ह और िह कागज वछपान की तरकीब सोचन लगता हhellip इसी उधड़बन म

उसकी आख खल गयी री तो वजथम पसीन म नहाया हआ रा

एक रजत ही यहा उसक सबस करीब हhellip और रजत ही उस अजनबी-सा लगन लगा ह अब

तक उसका रवत का सदभथ रा अचानक उस सदभथ स करकर न होन जसा हो रहा ह तारक को अजीब-

सी मानवसक दरी और भयकर अकलापन-सा महसस हआ िह यहा आया ही कयो रा रवत की

नामौजदगी म दकतना बमानी ह उसका यहा होना रजत को भी दकतना दफजल-सा लग रहा होगा

उसका यहा उपवथरत होना वजन लोगो स वघरा ह ि तो सचमच उसक अपन हhellip तारक तो दर स भी

अपना नहीhellip मत स तारक का जो भी नाता रहा होhellip उसक दकसी दसर स तो नही रा उसक कॉलज

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कामो स लौर बचच भी तारक को पहचानत नही र तारक न ही उनकी शकलो और वयिहार स अदाज

लगाया रा और हॉलि म लगी तथिीरो स उनदह पहचान पाया रा

तारक क पास रजत स कहन को कछ नही रा उसका कछ भी कहना रजत को खल सकता रा

उलर तारक को लगन लगा दक रजत शायद सोच रहा हो दक अब कयो जखमो को याद ददलान आ गय

हो कछ भी हो तारक न उस पीड़ा तो पहचायी ही री कया अब उसका कछ भी करना रजत क कि को

कम कर सकता रा उसन वनगाहो स ही अपना दख बयान कर ददया जो शायद रजत न थिीकार भी

वलया राhellip शायद एक औपचाररकता की तरह जस िह दसर बहत स जमा लोगो की शोकावभवयविया

थिीकार रहा राhellip उसस कछ अलग नही शायद तारक का िहा होना ही रजत को खल रहा हो पर

िि की नाजकी की िजह स िह कछ कहना न चाह रहा हो तारक एकदम परशान-सा उठ खड़ा हआ

कछ लोग रजत क गल लग रह र शायद उसस विदा लकर जा रह र तारक न सोचा िह अब

कहगा दक रवत क पास कछ उसक जररी कागजात र अगर रजत उस कागजो िाली जगह पर ल चल

तो िह खद ही दख लगा तारक यि की गवत स रजत की ओर बढ़ा रजत जस दकसी को दख कर भी

दख नही रहा रा उसकी आख दकसी शनदय पर ररकी री तारक को लगा उन लोगो क वघराि म

वजसम उसक अपन अजीज दोथत और ररशतदार र रजत न उस कोई विशष लकष नही दकया तारक क

भीतर अजीब सनापन-सा आ वघरा लगा जस रवत रजत म कही नही री वसफथ भरम-सा हआ रा उस

उसक िहा होन का जस दक उसक रवत क नात स िहा होन म ही कोई भारी असगवत री उस लगा

िहा बठ अजनबी स लोग उस घर रह र उसक िहा होन पर परशनवचनदह लगा रह र पता नही दकतन

ही अजनवबयो स वघर गया रा तारक यहा तक दक रवत की उस तथिीर म भी उस रवत नजर नही आ

रही री िह भी कोई अजनबी छाया री यह दवनया उसकी नही री अगर िह रवत की दवनया रही

भी हो तो वजस रवत को िह जानता रा उस रवत क वलए भी यह दवनया अनवथतति री विसगत री

उसन रजत को बहत सभलत सभलत गल स लगान की औपचाररकता की उस लगा जस िह

दकसी अजनबी को गल लगा रहा रा रवत वजतन उसक अपन पास री उतन और कही नही दकसी क

पास नही दरअसल रवत और कही नही री उसक भीतर रीhellip बस उस रवत को िही अपन भीतर ही

कही सजोय रखना रा भीतर ही खोजना रा भीतर ही तसलली करनी री दकसी और स बार नही

सकता रा रवत को रजत क दोनो कधो को हलक स दबाकर उसन धीर स कहा rdquoरक कयरrdquo और मड़ा

तो वबना पीछ दख बाहर वनकल गया

12 47 2015 31

पासपोरथ अमरीकन मरो

ओम गपता

पासपोरथ अमरीकन मरो पर रगत सहदथतानी

आज सनाऊ तमको पयार अपनी रामकहानी

छोड़ो भारत मन भयया डॉलर दख-दख ललचायो

चार-पकोड़ी जब भी दख मोह म पानी भर आयो

दीिाली पर दीप जलाउ होली पर खल रग

मौको जब मझको लगतो पीतो म भी भग

कसो होगी सरकार हमारी मोक हरदम सचता

जब भी दश पड़ सकर म कपा करो हनमनदता

पज म अब भी राम-कषण जातो मददर रोज

गपशप यारो स करतो फोकर म वमलतो भोज

योगी-बाबा आए दश स जब दन मझको जञान

आख मद क ना कछ जान करतो उनको सममान

हमबगथर अब भी नही भातो भाती मझ कचोड़ी

जसो जब भी मौका आयो रोपी िसी ओढ़ी

जाऊ दश को जब म अपन खाऊ लडड और इमरती

कहतो खद को सहदथतानी अमरीका मरी अब धरती

कहन को बहत ह भयया रोड़ को समझो काफी

बरा-भला लगा जो तमको माग नतमथतक माफी

12 47 2015 32

शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

आकाकषा ह

वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

फर च अनिाद कर इस lsquoभोगिाद स पीवड़त पविम की आतमा को अतयवधक शावत दन िालाrsquo कहा

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ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

की सीमाओ क पर मनषय कया अनभि कर सकता ह उसकी एक झलक भी ददखा दता ह उसी

औपवनषदीय जञान को महरवष िदवयास न सामानदय जनो क वलए ldquoपविि गीताrdquo म सवकषपत रप म परथतत

दकया ह िदवयास की महानता ही ह जो दक 11 उपवनषदो क जञान को एक पथतक म बाध सक और

मानिता को एक आसान यवि स परमातम जञान का दशथन करा सक ldquoपविि गीताrdquo महाभारत क

भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

ह भगिद गीता वहनदद धमथ क पविितम गरनदरो म स एक ह जो इसानो की चौहददी की सीमा रखा पर

भगिान क शरी मख दवारा इसान स कही गयी सरहदो पर चहरो की थकररनी का लखा-जोखा ह यह

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पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

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-मॉडल

12 47 2015 43

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ह 13

Sneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStke Anmol haSy 9` Uuml na3k-sgh Yacute jIvn ke rg Uuml kaVy-sgh Yacute ddeR-jubagt Uuml nJ_m v g_j_l sgh Yacute Aaj ka pu=8 Uuml khanI-sgh Yacute jIvn-ini2 Uuml kaVy-sgh Yacute AaTm-gujn Uuml AayaiTmk-daxRink gIt Yacute has-pirhas Uuml haSy kivta0gt Yacute j_J_bato ka islisla Uuml kaVy-sgh Yacute The Galaxy Within UumlA collection of English poemsYacute AnuwUityagt Uuml kaVy-sgh Yacute kaVy-vlti3 Uuml skln 0v spadn Yacute pUrb-piXcm Uuml AapvasI sMbiN2t Aaleq sgh Yacute bO7ar Uuml skln 0v spadn Yacute kaVy hIrk Uuml skln 0v spadn Yacute sjIvnI Uuml SvaS$y sMbN2I leq Yacute ]pin8d dxRn Uuml AyaiTmk Yacute

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England

idLlI pes kI sirta v ANy raumlIy 0v ANtraRumlIy pi5kaAo me wI rcna0gt pkaixt

Page 5: Year 12, Issue 47Year 12, Issue 47 vsu2avsu2a · राथत § में आ वबछ §ग . ... श्रराम की अन ¡कम्पा स § ह हाल ह में

12 47 2015 3

वयथत री पर उन वयथत कषणो स भी समय वनकाल उनदहोन हमार सार कछ समय वबताया इस हत धनदयिाद क

शबद कम ह हदय स आशीिाथद दती ह दक ि अपन नाम को और भी उजागर कर

भारतीय साथकवतक सबध पररषद क अधयकष परो लोकश चर जी क अमलय समय क वलए आभारी ह

कई विषयो पर विचार-विमशथ हआ उनक उपयोगी विचारो स अिगत हई

शरीमती सनीवत शमाथ डीएस वहनददी एि डॉ नीना मलहोिा जएस वहनददी स वहनददी विषयक विदशो म

वहनददी वशकषण मानकीकरण शबदकोश विशव वहनददी सममलन आदद अनक विषयो पर गभीर विचार-विमशथ हआ

इस उपयोगी िाताथ हत दोनो की आभारी ह

सावहतय अकादमी क अधयकष डॉ विशवनार परसाद वतिारी जी स सावहतय पर िाताथलाप हआ उनक

दवारा परदतत ह-मान की आभारी ह

जिाहर लाल नहर विशवविदयालय क डॉ राजश पासिान न दो ददिसीय सत गर रविदास जी पर

अतरविषयक अतराथषटरीय सगोषठी का भवय आयोजन दकया विवशि अवतवर क रप म आमवित करन क वलए

धनदयिाद एि आभार

उदथ अरबी फारसी यवनिरवसरी लखनऊ क परो अशरफ़ी न दो ददिसीय रोल ऑफ सफ़ीज़ इन परमोशन

ऑफ सोशल हारमोनी विषय पर एक भवय आयोजन दकया सममावनत अवतवर हत धनदयिाद एि आभार

शरी अवनल जोशी जो ददलली म वहनददी क परचार-परसार म सलगन एक जान-मान वयविति ह तबादला

होकर फ़ीजी जा रह र उनक सममान समारोह म सवममवलत करन हत आभार

शरी दिनदर वमततल डॉ राम शरण गौड़ डॉ ददनश वमशर डॉ नताशा अरोरा न अतराथषटरीय मवहला

ददिस की पिथ सधया पर सममावनत दकया धनदयिाद एि आभार

सभी शभचछको की शभकामनाओ स वयविगत रप स यह िषथ मा सरथिती की असीम अनकपा लकर

मर वलए आया ह मा सरथिती न बहत कछ मरी झोली म डाला ह

शभचछको की शभकामनाओ स वलमका बक ऑफ ररकॉडथ म मरा नाम परिासी सावहतयकार एि

पिकार - सपादक-परकाशक िसधा - दोनो ही रपो म दज़थ हआ ह वलमका रीम को धनदयिाद आभार

फरिरी म सावहतय अकादमी म पर न मर उपनदयास ककयी चतना-वशखा को अवखल भारतीय

िीरससह दि परथकार स परथकत दकया ह सावहतय अकादमी सावहतय अकादमी क वनदशक डॉ विभिन नार

शकल सथकवत पररषद की आभारी ह भवय अलकरण समारोह हत धनदयिाद

२ माचथ को जय शकर परसाद सभागार म अिध रतन अिाडथ २०१५ वमला ह सगम क सभी

पदावधकाररयो क परवत धनदयिाद एि आभार

जहा यएन समबदध सथराओ दवारा इररनशनल िीमन एकसलनदस अिाडथ २०१४ वपछल िषथ वमला

रा िही इस िषथ एक और यएन समबदध परवतवषठत ररसचथ फाउडशन इररनशनल दवारा इररनशनल िीमन

सममान का सौभागय परापत हआ ह ररसचथ फाउडशन इररनशनल तरा इरर रोमा कलचरल यवनिरवसरी क

ततिािधान म पीजी वडपलोमा इन सोशल िकथ की विभागाधयकष तरा रोमा यवनिरवसरी की रवजथरार डॉ ऋचा

ससह दवारा आयोवजत भवय समारोह म मचासीन रोमा यवनिरवसरी क कलावधपवत पदमशरी डॉ शयाम ससह शवश

माउर एिरथर पररम मवहला विजता पदमशरी सतोष यादि एि डॉ सतोष खिा तरा वशकषा भिन क गणमानदय

अवतवरयो और भविषय क कणथधार मधािी छाि-छािाओ की उपवथरवत म यह सममान परदान दकया गया

शरी राम की कपा और आदरणीय एि वपरय अममा मा मातशवरी दिी क आशीिाथद स इस िषथ मरा नया उपनदयास

लोक-नायक राम भी परकावशत हो गया ह आशा ह दक इस भी पहल की ही तरह आपकी सदभािनाए परापत होगी

शरी अवनल िमाथ जी परकाशक क सार-सार वहतषी शभाकाकषी पाररिाररक सदथय क रप म ह आभार आशीिाथद

शरीराम की अनकमपा स ही हाल ही म मझ क रीय वहनददी सथरान आगरा दवारा परथकत होन की सचना

दी गई ह यह सममान मझ भारत क माननीय राषटरपवत क कर-कमलो दवारा राषटरपवत भिन म परदान दकया जाएगा

सभी की शभचछाओ को समर हए उनक परवत आभार परगर करत हए सभी क परवत मगल कामनाओ सवहत

जय शरी राम ससनह सनह ठाकर

12 47 2015 4

कषण आ गया ह डॉ नरनदर कोहली

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12 47 2015 5

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12 47 2015 8

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12 47 2015 9

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12 47 2015 13

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मरली कस अधर धर

महाकवि गलाब खडलिाल

मरली कस अधर धर

सर तो िदािन म छर कस तान भर

जो मरली सबक मन बसती

वजसस री तब सधा बरसती

आज िही नावगन-सी डसती छत वजस डर

वजसको लत ही अब कर म

पीड़ा होती ह अनदतर म

कस दफर उसकी धन पर म जग को मगध कर

इसको तभी धर अधरो पर

जब सग-सग हो राधा का थिर

जब यह मरली सना-सनाकर उसका मान हर

मरली कस अधर धर

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भारत और भारतीयता का अरथ

परो गिरीशवर ममशर कलपवत महातमा गाधी वहनददी विशवविदयालय

आजकल क चरवचत सरोकारो म भारत और भारतीयता क सिाल परछन न और परत यकष दोनो ही रपो

म खासी चचाथ का विषय बन चक ह और कई बड़ बवदधजीिी इस पर बहस म वशरकत कर रह ह दसरी

ओर ऐसो की भी कमी नही ह जो इस बमतलब का मददा मानत ह इसका पररदश य आज जररल और

बदला हआ ह दश क थ िति होन क पहल और थ िति होन क ततकाल बाद और अब लगभग सात

दशक की पररपक िता क करीब पहचत-पहचत इस लकर आज बहतर यह मान कर इस तरह की चचाथ

स तरथ र हो चल ह दक यह तो कोई सारथक परश न ही नही ह कछ इस िवशवक या भमडलीकत हो रह

आज क समय की जररतो क अनसार समझना चाहत ह कछ इस किल थ रानीय दवि स ही दखना

चाहत ह कछ इस सभ यता और सथ कवत क विमशथ स जोड़ कर दखत ह जो भी हो अतरराष रीयता क

सार परयासो क बािजद आज भी राज य या नशन थ रर की अिधारणा वनणाथयक महत ि रखती ह और

वनकर भविष य म सीमाविहीन दश जसी कोई अिधारणा आकार लती नजर नही आती आज का सत य यही ह दक दशो की सीमाए बाधा (का अवधक) और सपकथ (का कम) का काम

कर रही ह दश की सीमाओ की रकषा सबक सामन एक बड़ी चनौती ह दश और राष र किल कोरी

भौगोवलक अिधारणाए नही होती उन इकाइयो की रचना क सार एक समाज या समदाय विशष की

आशा-आकाकषा भी जड़ी होती ह दश की अिधारणा एक थ िप न को समरवपत रहती ह आज क तमाम

राष रो क सार उनक सार जड़ी लबी सघषथ-गारा आसानी स दखी जा सकती ह जो दसर समाजो और

समदायो की सामराज यिादी आकाकषाओ क परवतरोध को दशाथती ह शविसपनद न और आरवरक रप स परबल

दशो की दादावगरी उनकी सतता और शवि का जलिा अभी भी बरकरार ह कहन का तात पयथ यह दक

दश की इकाई अभी भी राजनवतक सामावजक आरवरक सामररक और सास कवतक रप स महत िपणथ

बनी हई ह और उस नकारा नही जा सकता

आज बौवदधक किायद म भारत समत सब कछ करथ रड मान जान का फशन-सा चल पड़ा ह

पर उसस दर करोड़ो (भारतीय) जनो क तन-मन म भारत जीवित ह आम आदमी वजनस दश आकार

लता ह िह भारत की एक सामावजक थ मवत भी रखता ह उसक वलए दश थ रानबोधक ह और भारत

एक भाि भी ह भारतीय होन का मतलब ह भारतभवम म रहन की जीिन-व यिथ रा म शावमल होना

भारत कह या इवडया यह मलतः एक भौगोवलक थ रान और उसकी पररवध को रखादकत करता ह इस

भभाग को जब दवीप आयाथितथ भारतिषथ और सहदथतान क नाम स भी जानत ह वहमालय और

सागर इसकी सीमाए बनात ह शथ यश यामला क दश गान और जनगणमन क राष रीय गान म जीित

भारत माता को वजस रप म थ मरण दकया गया ह िह भौगोवलक अिधारणा ही नही उसकी सीमा म

रहन िाल बासशदो की सामावजक-साथ कवतक अवथमता पर बल दती ह वजसका एक भािात मक रप भी

ह भारत एक सामावजक शरणी भी ह जो समाज दवारा रवचत और थ िीकत ह यह उस सामावजक

आकाकषा का परतीक भी ह जो एक आदशथ वथरवत की ददशा म जान क वलए परररत करती ह आधवनक

यग म एक थ िति जनति क रप म एक राज य की थ रापना हई और सहमवत स एक सविधान बना और

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सामावजक आकाकषा को एक मतथ रप वमला हमन उसम आिश यकतानसार बदलाि भी दकया ह इस

इकाई क सदथ य क रप म हमारी एक भारतीय पहचान ह

स मरणीय ह दक एक समदाय या सामावजक इकाई की वभनद नता या अलग सतता थ रावपत करना

वयािहाररक दवि स भी आिश यक ह ऐसा करना समाज को अदर स बाधता ह एकजर करता ह और

अनद य (िसी ही) इकाइयो स फकथ करता ह िधावनक रप स नशन या राष र एक काननी इकाई भी ह

और उसक सदथ य िध नागररक होत ह वजसकी थ िीकवत अनद य राष र भी करत ह और पासपोरथ िीसा

आदद की व यिथ रा स आिागमन को वनयवित करत ह नागररक क रप म िधावनक सामावजक और

साथ कवतक अवधकार क सार कतथव य और दावयत ि म भी भागीदारी होती ह समाज की वनयवत ह दक

जावत भाषा बोली कषि भोजन िथ ि रीवत-ररिाज धमथ आदद की विशषताए आ जाती ह इनक

सार समाज का भािात मक लगाि होता ह और उसक सदथ य थ िय को उसी आधार पर पररभावषत भी

करन लगत ह चदक इन विशषताओ का सचार पारथ पररक सबध और जीिन क विविध व यापारो स

गहरा ररश ता होता ह इसवलए य उस समाज की पाररभावषक विशषताए बन जाती ह

भारत दश हमार समकष एक सभ यता और मल य दविसपनद न सामावजक इकाई क रप म

उपवथरत होता ह इसकी समझ कई रपो म वमलती ह वनकर इवतहास म झाक तो पाएग दक इसक

कई रप ह एक छोर पर सहद उपलवबध को बलपिथक रखन िाल वतलक अरसिद सािरकर और

विवपन चर पाल जस ह दसरी और गोखल रानाड गाधी और रगोर सरीख आध यावतमक विचार को

मानन िाल ह जो सभी परभािो को आत मसात करन को तयार ह य सवहष णता आत मवनयिण आदद क

सार एक तरह की बहलता को ठीक मानत ह तीसरी ओर आधवनक दविसपनद न नौरोजी और पवडत

नहर जस लोग ह जो भारत को एक विकवसत सभ यता तो मानत ह पर यह भी महसस करत ह दक

उसका हरास भी हआ और उसम बहत कछ आधवनक जीिन दवि क विपरीत हआ जो आज उपयोगी

नही ह उनक वहसाब स एक बहलतािादी आधवनक नजररया जो विजञानसम मत हो उपयक त ठहरता ह

आज हर भारतीय की एक बहआयामी पहचान बनती ह िह सहद बगाली मवथलम गजराती

कश मीरी वबहारी बराहमण ओबीसी जन ईसाई आदद िाली एक सार कई तरह की पहचान रखता ह

य वभनद न वभनद न पहचान अक सर एक दसर की विरोधी न होकर परक होती ह साथ कवतक रप स ि

गहरी पठी ह और उनक सार लोगो का गहरा सािथजवनक लगाि भी ह िथ ततः हर भारतीय की

पहचान (आइडरररी) की अलग व यिस रा ह कोई एक यनीफामथ पमाना नही ह जो यह तय कर दक कई

पहचानो म स कौन सबस ऊपर नबर िन पर ह यह एक बड़ा तरल या फलइड मामला ह आज

पजा-पाठ सगीत और थ िाथ थ य लाभ क अनक क र भारत भर म फल हए ह जहा आन जान स सहद

ईसाई वसख और मसलमान दकसी को भी परहज नही होता कई पहचान क सार रहना अथ पष रता तो

पदा करता ह पर शायद दसरो क वलए िथ ततः हर भारतीय कई (उप) सथ कवतयो म जीता ह और य

सब वमलकर उसकी पहचान बनाती ह इस अरथ म हर भारतीय शायद बहसाथ कवतक ह और उसकी

पहचान बहआयामी

दश की छवि दशिावसयो क आत मगौरि का माध यम होती ह आज क भारत का अग होना उस

वबलाग करना हमको आरवरक परगवत की ओर अगरसर एक दश एक आरवरक पािर क सार जड़न का

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एहसास दता ह दसरी ओर भरष राचार अवशकषा अव यिथ रा सामावजक करीवतयो और भदभाि क

कारण मन म रकान उदासीनता और असहायता की भािना भी आती ह इस सबक बािजद एक

भारतीय का बोध जरर ह जो पजाबी मराठी या गजराती होन अलग जावत िगथ और समदाय का

सदथ य होन पर भी सबको भारतीय बनाता ह कभी-कभी विविधता म एकता िाल नहर जी का

भारत अपररभाषय या अव याख यय लगता ह भारत को एक विथ तत साथ कवतक इकाई क रप म दखन

पर कछ विचार उभरत ह जो भारतीय होन क अरथ को थ पष र करन म सहायक होत ह इनम परमख ह

धमथ कमथ पनजथनद म को दकसी न दकसी रप म थ िीकारना सामावजक इकाई - पररिार जावत समदाय

क थ तर पर अपन अवथतत ि को महसस करना सक स वििाह और अनद य व यवियो क परवत खास दविकोण

को अपनाना बहलता का थ िीकार और खल कछ-कछ असगरठत दकथ म की आत म या सल फ की

अिधारणा का थ िीकार और दकसी न दकसी रप म दकसी बड़ी जञात-अजञात सतता स जड़ाि की

अवभलाषा और पररिश परकवत और सवि क सार साझदारी तरा परथ पर अनपरकता का भाि

समकालीन विमशथ म राज य और राष र की अिधारणा क अरथ बहत कछ इस पर वनभथर करत ह

दक कौन दकस दविकोण और परयोजन स इन पर गौर कर रहा ह अक सर इनद ह अतीत ितथमान और

भविष य स जोड़ कर दखा जाता ह और लोग अपन चन िचाररक आदशथ स रग कर ही इस पर विचार

करत ह इन शब दो और इनस जड़ अरथ थ रान और समय क सार-सार बदलत रह ह जो थ िाभाविक ह

भारत दश क बार म सोचन की एक बड़ी मवशकल यह ह दक हमारी अपनी पररभाषा क पमान हमार

अपन न होकर दकसी और क ददए हए ह ि हमार बौवदधक मानस म इतन गहर पठ चक ह दक अब हम

अपन पमान क बार म भरोसा ही नही कर पा रह ह और खद को पररभावषत करन का अवधकार ही

खोत जा रह ह आरवरक और तकनीकी परगवत क पसराि की दवनया म आज हमारा आतम-सशय इतना

गहराता जा रहा ह दक भारत और भारतीयता की बात करना परानी और ददकयानस और इसवलए

अपरासवगक मानी जान लगी ह अगर इसकी बात करनी भी ह तो उसकी सनद कही और स जरानी

होगी आज अपनी पहचान क वलए हम पविमी दशो म विदवानो क दवारा परमाण और गिाही चाहत ह

आज भारत की साथ कवतक विविधता को सपनद नता और समवदध क ोत क रप म समझन समझान की

जररत ह वजसका उपयोग समाज क विकास म दकया जाय इसक वलए भारत को भारत क नजररए स

दखना होगा वबना इस भय क दक भारतीय होना दकसी कषमा याचना की अपकषा करता ह थ िदशी और

सराज जस विचार अभी भी परासवगक ह समरथ और थ िािलबी होन क वलए आत म थ िीकार और सतत

पररष कार आिश यक ह

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भकप का सदश

डॉ एमएल गपता ldquoआददतय

धरती हर ददन डोल रही ह कपन की बोली बोल रही ह

विनाश कर आकरोश स बदल कय भगोल रही ह

कय धरती न भकरी तानी कय वहमालय म आिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

जो ससाधन र पोषण क उनका शोषण कर डाला

ओजोन का जो किच रा उसका भी भदन कर डाला

बरहमी स कार हमन िसधरा क िन-कश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

सागर क तीरो को छीला पठार और पिथत को लीला

नददया बनी नाल और नाली नही ददखता जल वनमथल-नीला

चतािनी द रहा ह मौसम बदला भमडल का पररिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

विजञान की सीढ़ी चढ़ विनाश का सामान बनाया

परमाण सयि द रह यातना विकीरण का खतरा मडराया

रवडएशन स आतदकत ह दवनया क सब दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

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कोई अण कोई परमाण कोई हाईडरोजन बम ल ऐठा ह

वबछी हई बारद धरा म मानि बमो क ढर पर बठा ह

हआ परमाण यदध तो वमर जाएग दकतन दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

भकषक बनकर मानि इक दज पर चोर कर रहा

परीकषण की खावतर दकतन भीषण बम विथफोर कर रहा

परकवत का सतलन वबगड़ा तो हम बन जाएग अिशष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

कदरत कहर बरपा सकती ह कभी भी आफत आ सकती ह

धरा की जरा सी भी हरकत दकतना कोहराम मचा सकती ह

धरा न जरा करिर बदली तो कछ भी न रहगा शष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

पयाथिरण क आघात पर अब तो रोक लगानी होगी

सागर पिथत धरती क सग बद करनी मनमानी होगी

धरती को जो मा मानोग सब वमर जाएग कलश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

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ि दोनो

डॉ सषम बदी

छत स फशथ तक क लब शीशो स जड़ी उस बड़ी-सी बठक म खब सारी ददन की रौशनी भरी हई

री फशथ पर वबछी सफद चादरो पर सफद िसतर पहन ढर सार लोग उस रौशनी का ही वहथसा लग रह

र कमर म घसत ही तारक को लगा जस उस शवतता म घल मौत क सदथपन और जड़ता न अचानक

उसक भीतर को जकड़ वलया ह बीचोबीच फलो की माला चढ़ी एक बड़ी-सी रवत की तथिीर री

वजसका धप दीप और गीता क शलोको स अवभषक दकया जा रहा रा रवत अब तथिीर भर री तारक

की थतबध पवनयायी आख वनथसहाय-सी रजत को खोजन लगी

रजत सारा िि लोगो स वघरा ही रहा रा उसकी मा उसक बचच और दसर ररशतदार कोई न

कोई उसक आसपास रा ही उन दोनो की आख एक दसर स दो एक बार वमली पर रजत अपन स

बाहर नही आ पाया रा तारक न दकसी तरह अपनी शोकभािना वयि कर दी री न भी वयि करता

तो कया रजत को तो खद भी अहसास होगा उसकी अतभाथिना का एक िही तो ह इस भीड़ म जो

जानता ह दक िह कयो यहा ह बाकी तो तारक दकसी स पररवचत ही नही वसिाय कछक रवत क

कलीगज क एक दो कलीगज स ही उसकी बात हई रवत क बार म ि उस पररिार का वमि मानकर

बात कर रह र य पररिार का वमि तो िह रा ही पर इसस अलग या ऊपर भी कछ रा यह शायद

रजत क अलािा और कोई नही जानता रा जबदक रजत भी परा कहा जानता ह खास तौर स िह सब

कछ जो तारक महसस करता रहा ह या जो कछ तारक और रवत क बीच म रहा या अभी भी वजसका

बहत कछ बचा रा

य तारक न बहत बार सोचा दक अब रवत नही रही तो उसक यहा जान का कोई फायदा नही

उसकी तकलीफ बढ़गी ही दफर लगा दक नही उस रजत स वमलन जाना होगा रजत भी तो उसका

दोथत ह य रवत उन दोनो क बीच न होती तो ि शायद बहत गहर दोथत हो सकत र दफर भी िह खद

को कई तरह स रजत क करीब महसस करता रा और रजत भी बहत मामलो म उसी स सलाह करक

चलता रा उस पर भरोसा करता रा जो दक उसक मन क दोथती क भाि को ही जताती री चदक

तारक की विशषता ददल क रोगो म री िह रवत क हारथअरक क बाद स उसस अकसर रवत क बार म

सलाह लता यहा तक दक रवत स भी कोई वशकायत होती तो तारक स ही कहता दखो न इसका

कोलथराल इतना हाई चल रहा ह और मडम चीज मीर सभी कछ खाती ह अभी रथतरा ल चलो परा

का परा थरक गरक जायगी कस कर यह तो खद को नकसान पहचान स बाज नही आतीrdquo और तारक

तब ररका दता कसी डाकरर हो तम रवत मरीजो को उपदश दती रहती हो और खदhellipदफर उसन

खद ही एक विशषण गढ़ा रा रवत क वलए lsquoनानकपलायरrsquo यानी दक जो कछ भी कहा जायगा उसका

विरोध ही करगी रवत और दकसी िजह स नही बवलक विरोध करन क वलए विरोध

तब रवत और भी तिर चढ़ाकर बोलती rdquoरजत तो पहल ही मर पीछ पड़ा रहता ह अब तम

भी इसी स वमल गय हो िाह जी िाह दोथत दकसक हो तम मर या रजत कrdquo

तारक तब चप रह जाता रा रजत भी कछ नही कहता एक वपरय अवपरय सतय

शायद रवत भी इसीवलए कहती री दक तारक तब लाजिाब हो जायगा कयोदक रवत जानती ह दक जो

िह तारक क वलए ह िह और कोई नही हो सकता और रजत को भी इसका अदाज ह इसी स रजत न

शर म चाह दकतना विरोह दकया हो दकतना लड़ाई झगड़ाhellip दफर धीर-धीर मान वलया रा इस ररशत

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को रवत क वलए ही अगीकार कर वलया रा तारक को भी रवत न ही उस बतलाया रा जब रजत न

उस बाहो म भरकर कहा रा rdquoइतना पयार करता ह तमह दक यह भी थिीकारन क वलए राजी हrdquo

एक हक-सी उठी री तारक क भीतरhellip वजस इतना पयार वमला होhellip इतनाhellip िह इस तरह स

उन दोनो की वजनददगी को ही सना करक रखसत हो ली तारक क मन म गथसा भी आयाhellip शायद

अपनी सहत का धयान रखती तो कछ और जी जाती उन दोनो स ही तो चार-पाच साल छोरी री िह

जी भी सकती री पर अबhellip और तारक न लबी सास भरी

रवत की एक कलीग बता रही री rdquoपरसो तो काम पर आयी हई री रवत म सोच भी नही

सकती री दक इतना भारी थरोक हो सकता ह दक एक ही लपर म ल जायhellip मझ तो विशवास ही नही

होताrdquo तारक को भी विशवास नही होता रा उसी ददन सबह रवत न उसस फोन पर बात की री और

उसस मजाक दकया रा rdquoमर जनदमददन पर आओगrdquo

दरअसल सारा झगड़ा कछ साल पहल रवत क जनदमददन को लकर ही शर हआ रा िनाथ शायद

रजत को उन दोनो क बीच बढ़त ररशत की तवनक खबर न लगती रवत न उस बतलाया रा दक उसक

जनदमददन पर िह और रजत आमतौर पर शाम को बाहर दकसी बदढ़या स फर च रथतरा म खाना खान

जात ह तब तारक न कहा रा rdquoठीक ह तो लच तम मर सार लनाrdquo

रवत मान गयी री उसन उसी ददन रवत क शहर पहचन क वलए फलाईर भी बक करिा ली

री पर जब ठीक जनदमददन आनिाला रा तो रवत न उस बतलाया रा दक रजत को ठीक नही लग रहा

मरा तमहार सार लच पर जाना िह पछ रहा रा दक इतना इमपॉरर कस हो गया यह आदमी दक

तमको उस जनदमददन पर जरर वमलना ह

rdquoतमन कया कहाrdquo तारक वजजञास हो उठा रा

rdquoयही दक तमको दकसी काम स शहर म होना रा इसवलए लच पर वमलन की बात की इस पर

उसन कहा दक अगल ददन वमल लो जनदमददन िाला ददन तो उसी क वलए हhellip कोई और कयोrdquo

दफर िह बोली rdquoइसी पर उस शक हो रहा ह दक यह कोई आम दोथत नहीhelliprdquo

तारक न जोड़ ददया रा rdquoपरमी हrdquo

rdquoहा यही शक हो रहा ह उसrdquo

rdquoतो ह या नहीhelliprdquo

rdquoशायद होhellip यही मसीबत हrdquo

तारक न कहा रा rdquoअब तो ररकर ली हई ह म तो आऊगा ही तम वमल सको तो वमलना िनाथ

न वमलना चाह पाच वमनर क वलए या कॉफी क वलए भी आ जाओगी तो मर वलए िही काफी होगा

तमहार जनदमददन पर तमह दख भर लrdquo

rdquoतम भी कमाल क रोमाररक होhellip पर सच कह तो म भी तमस वमलना चाहती ह उस ददनhellip

कछ न कछ तो जगाड़ना पड़गाrdquo

rdquoमर वलए तमहारा जनदमददन मरी वजनददगी का बहत अहम ददन हhellip समझीrdquo

एयरपोरथ पहच कर तारक न फोन दकया रा रवत बोली री rdquoरजत कह रहा ह तम हम वडनर

पर जॉयन कर लोrdquo

तारक बहत हरान हआ रा पर रवत न फोन रजत को पकड़ा ददया रा तारक एकदम सकर म

पड़ गया रा उसन खद को बचान की कोवशश की rdquoसॉरी म तो यहा आया रा तो सोचा रवत स वमल

लगा पर इस तरह आप लोगो क परोगराम मhelliprdquo

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रजत न जोर दकर कहा रा rdquoनही भाई बहत तारीफ सन रहा ह बीिी स जरा हम भी तो

वमल आपस आप चाह तो घर पर आ जाईए या दफर सीध रथतरा पर वमलगrdquo

rdquoपर आप लोगो का तो वडनर पर सार जान का कायथकरम रा नrdquo

rdquoआप लच पर फरी ह तो लच पर वमल लत ह य मझ तो वडनर ही पसद ह जसा आप कहrdquo

रजत वबलकल दोथताना ढग स बात कर रहा रा एक पल को उसकी रोन म कछ तनाि तारक

को महसस हआ रा पर अगल ही पल आिाज दफर सहज हो गयी री तारक मान गया पर रकसी लकर

पहल होरल म सामान छोड़ा और इस दौरान खद को मानवसक तौर पर तयार भी करता रहा दक कस

पश आना ह अपन रकीब स दखा जाय तो ररशता रकीब का ही रा बाकी ि दकतन भी सभय या

समझदार इसानो की तरह एक-दसर स बताथि कर आवखर ि तीनो सममावनत पश क र तारक हारथ

थपशवलथर रा तो रजत अगरजी सावहतय का परोफसर और रवत सायकायररथर इसानी मन की

कमजोररयो को समझना मनोरोगो का इलाज करना रवत की विशषता तो री ही पर इसानी आकषथण

एक दसर क परवत सखचाि या ऐस ररशतो को समझन की सथकवत तो कही तीनो म ही री

रजत इस बात को खब समझता रा दक दकसी भी औरत क वलए दकसी दसर परष क परवत

सखचाि हो जाना बहत सहज रा िही एक पवत और पतनी स परम करन िाल क रप म िह रवत क इस

वयिहार स ईषयाल भी हो उठता रा एक सभय इसान क नात िह ईषया को दबा कर तारक क परवत भी

वमिित वयिहार करना चाहता रा पर िही उस रवत क वयिहार स कि पहचता रा दक िह उसक

अलािा भी दकसी दसर परष को चाह सकती ह वजसस उसक मन म आकरोश और वितषणा का भाि

उठता कभी िह अपन को उदार बना कर यह कहना चाहता दक रवत अगर दकसी दसर को चाहती ह

तो बशक उसको भी कयो न पाय सार ही जब करोध होता तो एक तरह स जस िह रवत को सजा दन क

वलए कह डालता rdquoतम जाओ दोनो सार रहोrdquo पर जो पीड़ा िह उसम सह रहा होता िह रवत और

तारक दोनो क वलए ही असहय होती

रवत न कहा रा rdquoकया तारक और म दोथत नही हो सकत और इतन दोथत हhellip एक िह वयवि

वजसस बात करक मझ खशी वमलती ह िह दोथत कयो नही बन सकता वसफथ इसवलए दक उसक मन म

तीखी भािना ह मर वलएhellip या शरीरो का आकषथण भी हhelliprdquo

रजत तब तकथ स सारी बात को समझन समझान की कोवशश करता हा करत-करत कह दता

rdquoऔरत आदमी म दोथती हो ही नही सकती कयोदक जहा शरीरो का आकषथण हो िहा दोथती जसा

वनषकपर भाि कस पनप सकता हrdquo तब रवत दोथती का एक और पकष पश करती rdquoतमहार कहन का

मतलब तो िही ददकयानसी बात हई दक शरीर पाप का मल ह जबदक तम खद ही यह पहल कह चक

हो दक शरीरो का मसला हल हो जाय तो औरत मदथ बहत खबसरत दोथत हो सकत हhellip शरीर को

अहवमयत दी कयो जाय शरीर वमल जान स उनका दोथती म बाधा बनन का मसला खतम हो जाता हrdquo

रजत रवत की बात मान भी जाता रा पर रवत दफर तारक को यह भी बताती री rdquoिन कार

रक वहम फॉर गरारड कल को िह अपना कोई नया तकथ द दगाrdquo

शायद इसी स तारक भी अचानक वहममत हारन लगा रा कस सामना करगा िह रजत का य

िह रजत स एकाध बार पहल वमल चका रा पर तब उसको यह अदाजा नही रा दक रवत और उसक

बीच कछ रा जबदक तारक तब भी कछ आतमसजग-सा हो रहा रा पर कछ वमनरो की मलाकात को

सभाल लना कोई बड़ी बात नही री और य भी रजत उस भला आदमी लगा रा यह भी सोचा रा दक

अगर रवत उन दोनो क बीच न होती तो यह वयवि उसका दोथत हो सकता रा य रवत क होन क

बािजद अतत ि दोथत बन ही पर इस दोथती का तानाबाना िसा न रा जस खावलस दोथती का होता

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ह इसम रवत क रश बन हए र जो एक और ही रगत वलए र और िह रगत तारक को बहत पयारी री

उस दोथती स जयादा

तारक न होरल पहच कर फोन कर ददया रा दक वडनर पर वमलना ही ठीक रहगा और िह

अपना काम इस दौरान कर लगा रजत आसानी स यह बात मान गया और कहा दक िह सडरकस पर

पहल घर पर आ जाय उसक बाद रथतरा खाना खान चल जायग

शाम को जब िह चलन लगा तो फोन बजा रा दसरी ओर रवत री हलो कहत ही रवत न

कहा rdquoसनो तम मत आना मर घर म बहत रशन चल रही हrdquo इसस पहल दक िह कछ कहता रवत न

फोन वडसकनकर कर ददया

रात को कोई फलाईर नही जाती री िनाथ िह उसी िि शहर छोड़ क चला जाता

आध घर बाद ही घरी दफर बजी रवत पछ रही री दक आ रह हो तारक बौखला गया दक आवखर हो

कया रहा ह कया यह रवत क मन की उलझन ह या दक रजत कीhellip या दोनो कीhellip या रवत वसफथ रजत

की उलझन को वयि कर रही री बोली री rdquoजलदी आ जाओ हम लोग इतजार कर रह हrdquo

िह पहचा तो रवत न अकल ही उसका थिागत दकया रा िह जानता रा दक दोनो बचच कालजो

म ह पर रजत काफी दर तक बठक म नही आया तो तारक हरान हआ रवत बोली rdquoिह नहा रहा हrdquo

दफर मथकरा कर जोड़ा rdquoशायद हम दोनो को कछ िि दना चाहता हrdquo

तारक तब कछ निथस हआ रा उस आग बढ़कर रवत को चमन का हौसला नही हआ उस लगा

दक रवत भी सहज नही री जस दक आम तौर पर होती ह पर उसन कछ कहा नही िह खद भी तो

सहज नही हो पा रहा रा जस लड़की क बाप क घर म शादी का परथताि लकर जा रहा हो कछ कछ

इसी तरह का महसस हो रहा रा िही डर कर परचा करना रा दक इमतहान म फल न हो जाय

रजत न कमर म आत ही बड़ तपाक स हलो दकया कछ औपचाररक-सी बात की दफर उसस

सडरक पछा और दकचन म बफथ िगरह का इतजाम करन क वलए दफर स गायब हो गया तारक को लगा

दक सहज होन की बहत कोवशश क बािजद रजत बहत असहज ह

ववहथकी का घर लत हए तारक न ही रजत स उसक काम क बार म पछना शर दकया बात

कही जा नही रही री तभी रवत एक नई दकताब की चचाथ करन लगी वजसका ररवय सबह क अखबार म

छपा रा तारक न हिाई जहाज म ही उसक बार म पढ़ा रा दफर तो बातचीत खब गरमागरम होन

लगी रजत न दवकषण एवशयाई अगरजी लखको क बार म अपन विचार झाड़न शर कर ददय यहा तक

दक रवत न अचानक घड़ी दखी तो पता चला दक रथतरा की ररजिशन का िि हो चका रा रजत न

रथतरा को फोन दकया दक कछ वमनर लर पहचग और तारक को बोला दक जलदी स सडरक खतम कर ल

या गाड़ी म ही ल चल दोनो न दो तीन सडरक चढ़ा रख र मौज-सी भी आयी हई री रजत ही कार

चला रहा रा और तारक पीछ िाली सीर पर बठा रा अचानक रजत कछ नश और कछ अपनी धन म

बोला rdquoतो तम मरी बीिी स पयार करत होrdquo

तारक भौचक-सा हो गया य ही बठा रहा जस रजत की बात को सना न हो या िह गभीरता

स लन लायक न हो रजत न अपनी बात को सिाल बनाकर दबारा पश दकया rdquoकयो तारक मरी बीिी

स पयार करत हो या नहीrdquo

तारक न कहा rdquoहाrdquo और चप कर गया उस लग रहा रा िह जो भी जिाब दगा खतर स खाली नही

पर यह जिाब सच रा तो सच बोल कर ही मार खायी जाय उस दकसी लड़की क वपता स हार मागन

नही जाना पड़ा रा आज यह भी सही

rdquoतम भी पयार करत हो िह भी करती ह तो तम दोनो सार कयो नही रहतrdquo

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तारक बोल पड़ा रा rdquoयह इतना आसान नहीrdquo

रजत इस पर आकरमण करता-सा बोला rdquoकमाल ह पयार भी करत ह और वजममिारी भी नही

वनभाना चाहतrdquo तारक को महसस हो रहा रा दक रजत कह तो कछ रहा ह और पहचाना कछ और

चाहता ह दफर भी िह जिाब तो उसी बात का द सकता रा जो दक पछी जा रही री यह कह कर

उस नाराज भी नही करना चाहता रा दक रजत वसफथ अपन भीतर क आकरोश आतक और आग को

आिाज द रहा रा बोला rdquoयह बात नही म आज भी रवत क सार वजनददगी शर करन को तयार ह

जहा तक म जानता ह रवत अपन शहर को छोड़ कर और कही नही जायगी न िह तमको छोड़न को

तयार होगी जहा तक म रवत को जानता हhelliprdquo

रवत चपचाप अपन पर अकश लगाय दोनो की बात सन रही री न तो िह रजत क पकष म

कछ बोलना चाहती री न तारक क पकष म ही बोल सकती री दफर भी दोनो क बीच तारतमय वबठाय

रखन की वजममिारी भी उसी की री और िह समझ नही पा रही री दक दकस तरह इस बातचीत को

सीमाय लाघन स बचाया जाय ऊपर स उस डर लग रहा रा दक आिश म रजत कही रककर न मार द

रथतरा बहत दर रा भी नही बात पर चरम पर चल रही री दक रथतरा आ गया रवत न रोका rdquoरजत

पारककग ढढ़ो रथतरा आ गयाrdquo रथतरा क सार ही पारककग गराज म गाड़ी छोड़ कर तीनो अदर चल गय

िरर न उनको मज पर वबठाया और सडरक क वलए पछा तरा मनदय लाकर ददय तीनो क तीनो उस मज

पर इस तरह खामोश और भर बठ र दक मनदय म वसर डबोना एक राहत बन गया रा तीनो न अपन-

अपन आडथर ददय पर बात कछ बन नही रही री हर कोई कछ भी कहन म जयादा ही सतकथ हो रहा रा

अचानक रवत बोली rdquoरजत तमको इतनी जयादा तकलीफ री तो तमन मना कयो नही कर

ददया म तो तारक को कह चकी री दक आज सार खाना नही होगा तमही न जोर ददया दक जरर

बलाओ अब इस तरह कयो बताथि कर रह होrdquo

रजत और भड़क गया rdquoम तो वसफथ यह कह रहा ह दक तम लोग एक-दसर को पयार करत हो

तो म कया कर रहा ह यहा तम जाओ एक दसर क सार रहोrdquo

दोनो की आिाज ऊची हो रही री और दसरी मजो पर बठ लोगो की वनगाह इस ओर उठ आयी री

तारक न धीर स सझाया रा rdquoमर खयाल स हम य बात यहा नही करनी चावहएrdquo सहसा रवत

न होश म आत कहा rdquoहा इतन बदढ़या रथतरा म खाना खान आय ह कछ खान पर भी तो धयान दhellip

दफर आज मरा जनदमददन ह आई िार र हि ए गड मीलrdquo

दफर भी खान पर तीनो म स दकसी का धयान नही लग सका तीनो औपचाररक-सी बात म लग

गय र तारक न ही शहर क निीनतम रथतराओ क बार म ताजा पढ़ी समीकषा का वजकर छड़ ददया रा

रजत न कार स जब उस होरल छोड़ा तो तारक न उपर कमर म आकर सडरक लन क वलए कहा

पर जसा दक िह अपकषा कर रहा रा रजत न दर होन का बहाना बना छटटी माग ली री रवत तब भी

कछ नही बोली री शायद उस डर रा दक उसका कछ भी कहना रजत क वलए घाि पर नमक वछड़कन

जसा होगा या उसकी कोई भी बात का गलत मतलब वनकाल कर रजत भड़क सकता रा य दर हो भी

चकी री

पर तारक यह भी जानता रा दक रवत एक नबर की वजददी री जो उस चावहए रा चावहए ही

रा उस रोका नही जा सकता रा िह ऊपर स मान जायगी पर भीतर स कभी माफ नही करगी

शायद इसी स रजत भी वबगड़ी हई लाड़ली बरी की तरह रवत की हर चाह या माग को विरोध करक

भी अतत मान जाता रा

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लौर आन क दो चार ददन बाद ही उसक फोन पर रवत न सदश छोड़ा रा rdquoतमहारा आना ठीक

नही हआ सॉरी तमह बलाकर भी वमल नही पायी अब लगता ह कभी नही वमलगी लर अस थरॉप

ददस वहयर पलीज मझस सपकथ मत करनाrdquo

तारक बहत ददन परशान घमता रहा रा पर रवत को फोन भी नही दकया उसन मना जो कर

डाला रा उस फोन करत हए तारक को लगता दक िह खद को उस पर लाद रहा ह और यह वथरवत

उस कभी गिारा नही री हर ददन दकसी जिालामखी-सा लाि स लदा हआ गजरता अदर ही अदर

सब तप रहा रा

महीन भर बाद रवत न फोन दकया रा rdquoगथसा हो न मझस तमस माफी भी नही माग सकीrdquo

उसकी तो कोई जररत नहीrdquo

दफर भी सोचा रा तमस कभी बात नही करगी इसी स तमको सपकथ करन स मना दकया

रा रजत को भी यही मालम ह दक तमस ररशता तोड़ ददया ह पर अब मझी स बात दकय वबना रहा

नही जा रहाrdquo

रजत को मालम ह मझस बात कर रही होrdquo

िह बहद गथसा ह तमसhellip जस दक सारा दोष तमहारा होhellip दक तमन उसकी बीिी को फसा वलयाrdquo

ि इसी तरह जब मौका लगता बात कर लत तारक क ददल ददमाग पर रवत ही छायी रहती

िह ऐस ही पलो क दौरान जीता जब दोनो क बीच कछ सपकथ होता बाकी क पल उन पलो क इतजार

म गजरत

इस बीच रवत को ददल का दौरा पड़ा रा घबराकर तारक को फोन कर डाला रा रजत न

तारक आया तो रजत उस अपनी गाड़ी म सार अथपताल ल आता जाता रहा दोनो म एक दोथती का

नाता तभी बना रा दवनया जहान की बात रजत न उस घर पर ही ठहराया रा तारक तीन ददन बाद

चला गया रा िावपस पर दोनो की फोन पर बात हो जाती रवत अथपताल स िावपस आ गयी री

धीर-धीर िह सामानदय होकर िावपस अपना काम सभालन लगी

रवत का जनदमददन दफर स आनिाला रा रवत न उस कहा रा rdquoरजत अपन आप ही बोल रहा ह

दक तम आ जाओ इस बार मरा जनदमददन मनान बोलो आओगrdquo

तारक परानी बात याद करक घबरा गया रा rdquoनही दफर स उसक भीतर सब घमड़न लगगाhellip

सबको तकलीफ होगीrdquo

यह सच भी रा रजत कभी तो उसक परवत बहत वमिित हो जाता िही अचानक गथसा ईषयाथ

उभर आत और िह अकसर बरखी ददखाता अचानक तारक को ऐसा महसस हआ जस रवत उसस खद

यह सब कह रही हो पल भर को िह भल ही गया दक रवत क ही अतयवि कमथ म िह शावमल हआ ह

और दरअसल उसक यहा आन की एक िजह यह भी ह दक िह रवत को वलख अपन खत िावपस ल

जाना चाहता ह उस डर ह दक कही ि खत रजत क हार न पड़ जाय

तारक रवत क सार काम करन िाली इस मवहला डॉ लोपज स पहल वमला हआ रा इस भीड़

म एक िही जान-पहचान की री तारक का मन हआ उसस पछ दक कया िह रवत की दराज म उसक

कागजात पर नजर मार सकता ह तारक को अदाज रा दक उसक खत िह दफतर की मज की दराज म

रखती री पर िह जानता रा दक ऐसा करना ममदकन रा नही आवखर तारक को कस हक पहचता रा

रवत की दराज खलिान का िह तो एक पररिार क वमि की हवसयत स िहा रा रजत ही कह सकता

रा दखा जाय तो ि लोग खद भी रजत स ही कहग दक रवत का सामान िह ल जाय तब तो रजत की

आख जरर उन पर पड़गी तब शायद उसको बरा लगगा दक रवत क सार तारक का एक अपना ररशता

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रा उन तीनो की आपसी दोथती क बाहरhellip रजत को बतहाशा चोर लगगी अब जबदक िह रवत स

जिाबतलबी भी नही कर सकता रवत अब कोई सफाई नही पश कर पायगी तारक क हक म कछ भी

नही कह सकगी दकसी तकथ स रजत को लाजिाब नही कर पायगी नही िह ऐसा नही कर सकता न

यह रवत क परवत सही होगा न रजत क परवत उस दकसी न दकसी तरह स खत पान ह

राथत म आत हए हिाई जहाज म तारक जब लगातार रवत क सार की अपनी वजनददगी क

गजर पल दहरा रहा रा बार-बार उस धयान आता दक जब स रवत को ददल का दौरा हआ रा िह

उसस कहना चाहता रा दक उसक खत विनि कर द एक बार उसन बात उठायी तो रवत बोली rdquoकयो

तमहार खत मर दफतर की दराज म सफ पड़ हrdquo

शायद िह वबना कह यह भी समझ गयी री दक तारक का इशारा दकस ओर ह तभी बोली

दखो जब तक म वजनददा ह म उनको फाड़ कर न तो फ क सकती ह न जला सकती ह एक बार मर गयी

तो कया फकथ पड़ता ह दक कोई कया करगा उनक सार तमको तो दफकर होनी नही चावहए अब तो ि

मरी अमानत हrdquo यह बातचीत दो एक महीन पहल की ही होगी तारक न सोचा रा बात कभी दफर

उठायगा पर उसस पहल हीhellip

तारक को भी तब यह अदाज नही रा दक रवत क अलािा रजत स भी उसका नाता रा रवत क

जान क बाद िह खद को रजत क बहत करीब महसस कर रहा रा और उस लगा दक उसक खत रजत

को उसस दफर दर धकल सकत र पर िह दकसी तरह भी रजत को खोना नही चाहगाhellip रजत जस स

रवत का ही एक वहथसा राhellipउसन दखा लोगो स वघरा रजत का चहरा बहद वनचड़ा हआ रिहीन और

सखा-सा लग रहा रा रात भर सोया नही होगा इसवलए आखो क नीच कालापन उतर आया रा आख

काफी अदर को धसी हई री तारक को लगा दक िह शायद रजत स बहतर हालत म ह दफर उस रशक

भी हआ रजत अपन गम का खला इजहार कर सकता हhellip तारक को यह सविधा नही री िह दकसी

उजड़ आवशक क रप म इस महदफल इस मौत का शोक करन िालो की महदफल मhellip अपना असली

चहराhellip अपना आवशक का चहराhellip नही ददखा सकता रा अचानक उसकी आख भर आयी अपन खोन

की वशददत क अहसास स

रवत क िाकय उसक कान म सरसरान लग जबस उस ददल का दौरा पड़ा रा िह जीिन की

कषणभगरता या इसान क नाचीज होन क अवथततििादी दशथन को बहत बघारन लग गयी री शायद

अपन जान का अहसास उस कही बहत गहर उदास कर जाता रा पर िही िह उस जान को एक

अिशयभािी अकारय सतय की तरह थिीकार करक उसस समझौता भी करन लग गयी री एक ददन

उसन हडसन नदी क दसर वसर स मनहरन की ओर दखत हए कहा रा rdquoदखो तो इन छोर-छोर वडबबो

म दकतन लाखो लोग रहत ह दकतन छोर ह हम लोग इतनी तग जमीन पर दकतनी बड़ी तादाद म

समा जात ह एकदम हजारो की सखया म सार-सार जड़ कीड़ो की तरह दफर भी अपन आप को

दकतना बड़ा मानत ह राजनीवत धमथ और नवतकता की तवखतया वचपका कर दकतना बड़ा होन का

भलािा दत रहत ह खद कोrdquo

रजत को रवत की इसान को नाचीज करार दन िाली बातो स हमशा बहत वचढ़ छरती री

बोला रा rdquoधमथ नवतकता जीिन क सतय ह इनको तम भलािा दन िाली चीज कस कह सकती हो

इसान इसीवलए तो बाकी जीिो स अलग ह दक िह सोच सकता हrdquo

rdquoऔर सोच क धरातल पर हर चीज को गलत या सही सावबत कर सकता ह नवतकता को गढ़

सकता ह या परा सतयानाश कर सकता हhellip ठीक ह मझ तो उसम कोई नकसान नहीrdquo

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हा नकसान दकसी का ह तो मरा ही रजत न कहा तो तारक झर स बोल पड़ा रा rdquoनकसान

तो तब होता जो म उस भगा क ल जाताrdquo

रजत न सजीदगी स कहा rdquoअब इसका ददल बर गया हhellip तो आधी सपवतत तो लर ही गयी न

तम भगा ल जाओ तो भी फकथ नही पड़गा यह आधािाला वहथसा तब भी यही रहगाrdquo

सचमच रजत का यह विशवास सही रा रवत और उसक ररशत की शरआत क ददनो म भािना

क परिाह म बहता तारक रवत क सार एक नयी वजनददगी क दकिाड़ खोलन की बात सोच पाया रा पर

जलद ही उस अहसास हो गया रा दक रवत कही बहत गहर जड़ी री रजत क सार दक िह कभी उस

ररशत को तोड़गी नही य रजत भी शर क ददनो म भीतर स वहल गया रा यह झरका दक रवत रजत

को छोड़ दकसी और को मन म ला सकती ह उस बहत दर जा फ क आया रा दफर रवत न खोय विशवास

को िापस लौरा ददया रजत अपन आध नकसान क सार धीर-धीर शायद समझौता करना सीख गया रा

तारक को लगा दक िह आध क सार समझौता करना सीख गया रा दफर तारक को लगा दक

िह आध क सार समझौता नही रा रजत क भीतर कही पर का भरोसा भी रा जस दक रवत को वसफथ

एक बदलाि चावहए रा जो तारक रा िनाथ िह परी रजत की ही री कयोदक मौका आन पर रजत

अपना परा हक जतान स चकता नही रा हमशा यही मानता रा दक पहला हक उसी का ह तारक

हमशा बाद म आयगा जस दक पर भर लन पर बचा हआ भोजन दकसी को भी ददया जा सकता हhellip

कछ ऐसा रख

पर रवत बचा हआ भोजन नही रीhellip दकसी तरह स भी उवचछि या अिवशि नही जो उसन

रवत म पाया रा िह पहल वजनददगी म कभी नही वमला रा रवत न उसकी पहचान करायी री

पररपणथता स रवत को जानना ही जस उस सपणथता को छना रा शायद रजत न भी रवत म ऐसा कछ

पाया रा जो आम औरतो स अलग रा रवत शादी क इतन बरस बाद भी उस अपन म उलझाय री और

िह उसस मि नही होना चाहता रा रवत म बाहरी खबसरती क बािजद वयवि क ददमाग को भी

उलझाय रखन का जो गण रा उसस सच म जो भी पास आता और सखचता जाता रवत म भरपर

पयार लन की चाह री तो भरपर दन की कषमता भी इसी स अभी भी उसस जी तो नही भरा रा रजत

का शायद िह ऐसी औरत री जो हमशा वनत निीन होती रहhellip सौदयथ की एक पररभाषा यह भी तो

दी गई ह दक जो वनत नतन होता रह िही सौदयथ ह रवत भी कभी परानी नही पड़ती रोज कछ नया

होता ह उसक पासhellip कोई नया खयालhellip कोई नई सझhellip कोई नई उकसान उलझान िाली बातhellip

शायद इस ददमागी सौदयथ कहना होगाhellip जो कछ भी उसम राhellip बस खीचता रा अपनी ओरhellip मोहता

राhellip शायद कया पर उगली धरना उस पररवध म बाधन की भोडी कोवशश होती

कछ दवदव उठता तो रवत रजत क ही हक म बोलती री रजत क वहतो को सरवकषत कर लन क

बाद ही िह तारक को उसका हक दती तारक को खीझ भी होती दक रजत उसक जीिन म चदक पहल

आ गया रा इसीवलए हर चीज म ही पहला हक उसी का बनता ह पर उसन रवत स अपनी यह

मनवथरवत कभी जावहर नही होन दी री वपछल साल िलनदराईन ड पर ऐसा ही तो हआ रा दरअसल

दोनो को अदाज नही रा दक उस िीक ड पर िलनदराईन ड पड़ता रा तारक को दकसी काम स रवत क

शहर आना रा और दोनो न वमलन का कायथकरम बना डाला रा रजत स रवत की बात हई होगी तो

उसन भनकर कहा रा rdquoतो िह तमहारा िलनदराईन ह जो उस ददन आ रहा हrdquo रवत क कहन पर दक उस

तो याद भी नही रा िह बोला रा rdquoम नही मान सकता दक तारक न य ही आन का बनाया ह इस

िीक ड परrdquo रवत न तारक स सारी बात बतलायी तो उसन सोचा रा िह खद फोन पर रजत स कहगा

दक उस सचमच याद नही रा पर दफर बात बढ़ान न दन क वलए चप रह गया रा और जान का

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परोगराम भी थरवगत कर डाला रा तब उस दो बात तकलीफ दती रही री एक तो यह दक रजत हमशा

उसक सामन परारवमकता ल जायगा दसरी यह कड़िी सचचाई दक रवत कभी भी उसकी जावहरी वजनददगी

का वहथसा नही बन सकती री उसकी कमर म हार डाल कर िह कभी दकसी स यह नही कह सकता

रा रवत मरी हrdquo तब उस बहद रशक होता रजत स कया रजत को सचमच अहसास ह दक रवत तारक

क वलए कया ह दक िह उसकी वजनददगी का कनदर उसकी वजनददगी का अरथ बन चकी ह यह कोई हलका-

फलका ठरकपन नही उसकी वजनददगी का रशा-रशा गर गया ह रवत स शबद म अरथ की तरह समायी ह

रवत उसक अवथतति म इस गरन म िह खद ही घरता रहगा हमशा

अब रवत नही ह तो िह घरन और भी कस रही ह उस कया अब िह रजत स कह पायगा

अचानक उसका मन हआ दक रजत स कह द rdquoतमको मालम ह दक मझ सचमच पता नही रा दक उस

ददन िलनदराईन ड रा िनाथ ऐसी जरथत न करताrdquo दक िह जानता हhellip अचछी तरह समझता ह अपनी

और उसकी ररीररी की पररवधयो को दक रजद शायद कभी जान न पायगा पर उसन हमशा एक दोथत

की तरह रजत का रजत की जररतो का खयाल रखा हhellip वसफथ ऊपर-ऊपर स सामावजक उपचार की

तरह नही भीतर स दकसी ददली ररशत सhellip दफर िह ररशता चाह रवत क जररय स ही बना हो

हो सकता ह रजत यह सब महसस करता हो या न भी करता हो पर उसक चहर पर भी वमिता

का थिागतमय भाि हमशा ददखा ह तारक को वसिा उन कषणो क जब दक सचमच उन दोनो क बीच

lsquoररररोररयलrsquo झगड़ हए तब भी ि शायद इसानी आचार या परथपर सदभाि की सीमाओ को कभी

लाघ नही पर दफर भी तारक का रवत क सार का ररशता ऐसा नही दक रजत क सार वजस बार सक

रवत उसकी हथती का अवभि वहथसा ह िह कोई और कस हो सकता ह रजत रवत नही हो सकता

चाह उसक दकतन ही करीब रहा हो उस दकसी न दकसी तरह स अपन खत पान ही ह लदकन कस

और यही तारक बार-बार उलझ जाता ह अपनी यह परशानी िह दकसी क सार बार नही सकता

रजत स तो कतई नही खत अगर सचमच रजत क हार पड़ गय तो

लदकन रवत न यह भी तो कहा रा दक अगर िह नही रही तो कया फकथ पड़ता ह पर रजत

सचमच खत पढ़ ल तोhellip शायद उसकी पीड़ा पर तब करोध और घणा का कोई विकराल भत हािी हो

सकता हhellip हो सकता ह दक खत पढ़कर रजत रवत को खद स वछरक द लदकन उसस कया तब शायद

रवत और भी तारक क करीब आ जाय और भी उसकी अपनी हो जाय वसफथ उसी की समची एक रात

पहल उस ऐसा ही कछ सपना आया रा रवत की मौत की खबर क बाद यही उसका याद रह जानिाला

सपना रा िह रवत की अतयवि म गया ह और एक अधरा-सा बठकनमा कमरा हhellip कमर म कछ

कागज वबखर पड़ हhellip िह एक कागज उठाता हhellip िह उसी का रवत को वलखा खत हhellip और कई लोग

उसक आसपास ह और िह सोचन लगता ह दक कही इन लोगो न भी तो उनदह नही पढ़ाhellip तभी रजत

का चहरा उसकी ओर बढ़ता ह और िह कागज वछपान की तरकीब सोचन लगता हhellip इसी उधड़बन म

उसकी आख खल गयी री तो वजथम पसीन म नहाया हआ रा

एक रजत ही यहा उसक सबस करीब हhellip और रजत ही उस अजनबी-सा लगन लगा ह अब

तक उसका रवत का सदभथ रा अचानक उस सदभथ स करकर न होन जसा हो रहा ह तारक को अजीब-

सी मानवसक दरी और भयकर अकलापन-सा महसस हआ िह यहा आया ही कयो रा रवत की

नामौजदगी म दकतना बमानी ह उसका यहा होना रजत को भी दकतना दफजल-सा लग रहा होगा

उसका यहा उपवथरत होना वजन लोगो स वघरा ह ि तो सचमच उसक अपन हhellip तारक तो दर स भी

अपना नहीhellip मत स तारक का जो भी नाता रहा होhellip उसक दकसी दसर स तो नही रा उसक कॉलज

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कामो स लौर बचच भी तारक को पहचानत नही र तारक न ही उनकी शकलो और वयिहार स अदाज

लगाया रा और हॉलि म लगी तथिीरो स उनदह पहचान पाया रा

तारक क पास रजत स कहन को कछ नही रा उसका कछ भी कहना रजत को खल सकता रा

उलर तारक को लगन लगा दक रजत शायद सोच रहा हो दक अब कयो जखमो को याद ददलान आ गय

हो कछ भी हो तारक न उस पीड़ा तो पहचायी ही री कया अब उसका कछ भी करना रजत क कि को

कम कर सकता रा उसन वनगाहो स ही अपना दख बयान कर ददया जो शायद रजत न थिीकार भी

वलया राhellip शायद एक औपचाररकता की तरह जस िह दसर बहत स जमा लोगो की शोकावभवयविया

थिीकार रहा राhellip उसस कछ अलग नही शायद तारक का िहा होना ही रजत को खल रहा हो पर

िि की नाजकी की िजह स िह कछ कहना न चाह रहा हो तारक एकदम परशान-सा उठ खड़ा हआ

कछ लोग रजत क गल लग रह र शायद उसस विदा लकर जा रह र तारक न सोचा िह अब

कहगा दक रवत क पास कछ उसक जररी कागजात र अगर रजत उस कागजो िाली जगह पर ल चल

तो िह खद ही दख लगा तारक यि की गवत स रजत की ओर बढ़ा रजत जस दकसी को दख कर भी

दख नही रहा रा उसकी आख दकसी शनदय पर ररकी री तारक को लगा उन लोगो क वघराि म

वजसम उसक अपन अजीज दोथत और ररशतदार र रजत न उस कोई विशष लकष नही दकया तारक क

भीतर अजीब सनापन-सा आ वघरा लगा जस रवत रजत म कही नही री वसफथ भरम-सा हआ रा उस

उसक िहा होन का जस दक उसक रवत क नात स िहा होन म ही कोई भारी असगवत री उस लगा

िहा बठ अजनबी स लोग उस घर रह र उसक िहा होन पर परशनवचनदह लगा रह र पता नही दकतन

ही अजनवबयो स वघर गया रा तारक यहा तक दक रवत की उस तथिीर म भी उस रवत नजर नही आ

रही री िह भी कोई अजनबी छाया री यह दवनया उसकी नही री अगर िह रवत की दवनया रही

भी हो तो वजस रवत को िह जानता रा उस रवत क वलए भी यह दवनया अनवथतति री विसगत री

उसन रजत को बहत सभलत सभलत गल स लगान की औपचाररकता की उस लगा जस िह

दकसी अजनबी को गल लगा रहा रा रवत वजतन उसक अपन पास री उतन और कही नही दकसी क

पास नही दरअसल रवत और कही नही री उसक भीतर रीhellip बस उस रवत को िही अपन भीतर ही

कही सजोय रखना रा भीतर ही खोजना रा भीतर ही तसलली करनी री दकसी और स बार नही

सकता रा रवत को रजत क दोनो कधो को हलक स दबाकर उसन धीर स कहा rdquoरक कयरrdquo और मड़ा

तो वबना पीछ दख बाहर वनकल गया

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पासपोरथ अमरीकन मरो

ओम गपता

पासपोरथ अमरीकन मरो पर रगत सहदथतानी

आज सनाऊ तमको पयार अपनी रामकहानी

छोड़ो भारत मन भयया डॉलर दख-दख ललचायो

चार-पकोड़ी जब भी दख मोह म पानी भर आयो

दीिाली पर दीप जलाउ होली पर खल रग

मौको जब मझको लगतो पीतो म भी भग

कसो होगी सरकार हमारी मोक हरदम सचता

जब भी दश पड़ सकर म कपा करो हनमनदता

पज म अब भी राम-कषण जातो मददर रोज

गपशप यारो स करतो फोकर म वमलतो भोज

योगी-बाबा आए दश स जब दन मझको जञान

आख मद क ना कछ जान करतो उनको सममान

हमबगथर अब भी नही भातो भाती मझ कचोड़ी

जसो जब भी मौका आयो रोपी िसी ओढ़ी

जाऊ दश को जब म अपन खाऊ लडड और इमरती

कहतो खद को सहदथतानी अमरीका मरी अब धरती

कहन को बहत ह भयया रोड़ को समझो काफी

बरा-भला लगा जो तमको माग नतमथतक माफी

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शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

आकाकषा ह

वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

फर च अनिाद कर इस lsquoभोगिाद स पीवड़त पविम की आतमा को अतयवधक शावत दन िालाrsquo कहा

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ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

की सीमाओ क पर मनषय कया अनभि कर सकता ह उसकी एक झलक भी ददखा दता ह उसी

औपवनषदीय जञान को महरवष िदवयास न सामानदय जनो क वलए ldquoपविि गीताrdquo म सवकषपत रप म परथतत

दकया ह िदवयास की महानता ही ह जो दक 11 उपवनषदो क जञान को एक पथतक म बाध सक और

मानिता को एक आसान यवि स परमातम जञान का दशथन करा सक ldquoपविि गीताrdquo महाभारत क

भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

ह भगिद गीता वहनदद धमथ क पविितम गरनदरो म स एक ह जो इसानो की चौहददी की सीमा रखा पर

भगिान क शरी मख दवारा इसान स कही गयी सरहदो पर चहरो की थकररनी का लखा-जोखा ह यह

12 47 2015 34

पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

12 47 2015 35

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Page 6: Year 12, Issue 47Year 12, Issue 47 vsu2avsu2a · राथत § में आ वबछ §ग . ... श्रराम की अन ¡कम्पा स § ह हाल ह में

12 47 2015 4

कषण आ गया ह डॉ नरनदर कोहली

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मरली कस अधर धर

महाकवि गलाब खडलिाल

मरली कस अधर धर

सर तो िदािन म छर कस तान भर

जो मरली सबक मन बसती

वजसस री तब सधा बरसती

आज िही नावगन-सी डसती छत वजस डर

वजसको लत ही अब कर म

पीड़ा होती ह अनदतर म

कस दफर उसकी धन पर म जग को मगध कर

इसको तभी धर अधरो पर

जब सग-सग हो राधा का थिर

जब यह मरली सना-सनाकर उसका मान हर

मरली कस अधर धर

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भारत और भारतीयता का अरथ

परो गिरीशवर ममशर कलपवत महातमा गाधी वहनददी विशवविदयालय

आजकल क चरवचत सरोकारो म भारत और भारतीयता क सिाल परछन न और परत यकष दोनो ही रपो

म खासी चचाथ का विषय बन चक ह और कई बड़ बवदधजीिी इस पर बहस म वशरकत कर रह ह दसरी

ओर ऐसो की भी कमी नही ह जो इस बमतलब का मददा मानत ह इसका पररदश य आज जररल और

बदला हआ ह दश क थ िति होन क पहल और थ िति होन क ततकाल बाद और अब लगभग सात

दशक की पररपक िता क करीब पहचत-पहचत इस लकर आज बहतर यह मान कर इस तरह की चचाथ

स तरथ र हो चल ह दक यह तो कोई सारथक परश न ही नही ह कछ इस िवशवक या भमडलीकत हो रह

आज क समय की जररतो क अनसार समझना चाहत ह कछ इस किल थ रानीय दवि स ही दखना

चाहत ह कछ इस सभ यता और सथ कवत क विमशथ स जोड़ कर दखत ह जो भी हो अतरराष रीयता क

सार परयासो क बािजद आज भी राज य या नशन थ रर की अिधारणा वनणाथयक महत ि रखती ह और

वनकर भविष य म सीमाविहीन दश जसी कोई अिधारणा आकार लती नजर नही आती आज का सत य यही ह दक दशो की सीमाए बाधा (का अवधक) और सपकथ (का कम) का काम

कर रही ह दश की सीमाओ की रकषा सबक सामन एक बड़ी चनौती ह दश और राष र किल कोरी

भौगोवलक अिधारणाए नही होती उन इकाइयो की रचना क सार एक समाज या समदाय विशष की

आशा-आकाकषा भी जड़ी होती ह दश की अिधारणा एक थ िप न को समरवपत रहती ह आज क तमाम

राष रो क सार उनक सार जड़ी लबी सघषथ-गारा आसानी स दखी जा सकती ह जो दसर समाजो और

समदायो की सामराज यिादी आकाकषाओ क परवतरोध को दशाथती ह शविसपनद न और आरवरक रप स परबल

दशो की दादावगरी उनकी सतता और शवि का जलिा अभी भी बरकरार ह कहन का तात पयथ यह दक

दश की इकाई अभी भी राजनवतक सामावजक आरवरक सामररक और सास कवतक रप स महत िपणथ

बनी हई ह और उस नकारा नही जा सकता

आज बौवदधक किायद म भारत समत सब कछ करथ रड मान जान का फशन-सा चल पड़ा ह

पर उसस दर करोड़ो (भारतीय) जनो क तन-मन म भारत जीवित ह आम आदमी वजनस दश आकार

लता ह िह भारत की एक सामावजक थ मवत भी रखता ह उसक वलए दश थ रानबोधक ह और भारत

एक भाि भी ह भारतीय होन का मतलब ह भारतभवम म रहन की जीिन-व यिथ रा म शावमल होना

भारत कह या इवडया यह मलतः एक भौगोवलक थ रान और उसकी पररवध को रखादकत करता ह इस

भभाग को जब दवीप आयाथितथ भारतिषथ और सहदथतान क नाम स भी जानत ह वहमालय और

सागर इसकी सीमाए बनात ह शथ यश यामला क दश गान और जनगणमन क राष रीय गान म जीित

भारत माता को वजस रप म थ मरण दकया गया ह िह भौगोवलक अिधारणा ही नही उसकी सीमा म

रहन िाल बासशदो की सामावजक-साथ कवतक अवथमता पर बल दती ह वजसका एक भािात मक रप भी

ह भारत एक सामावजक शरणी भी ह जो समाज दवारा रवचत और थ िीकत ह यह उस सामावजक

आकाकषा का परतीक भी ह जो एक आदशथ वथरवत की ददशा म जान क वलए परररत करती ह आधवनक

यग म एक थ िति जनति क रप म एक राज य की थ रापना हई और सहमवत स एक सविधान बना और

12 47 2015 17

सामावजक आकाकषा को एक मतथ रप वमला हमन उसम आिश यकतानसार बदलाि भी दकया ह इस

इकाई क सदथ य क रप म हमारी एक भारतीय पहचान ह

स मरणीय ह दक एक समदाय या सामावजक इकाई की वभनद नता या अलग सतता थ रावपत करना

वयािहाररक दवि स भी आिश यक ह ऐसा करना समाज को अदर स बाधता ह एकजर करता ह और

अनद य (िसी ही) इकाइयो स फकथ करता ह िधावनक रप स नशन या राष र एक काननी इकाई भी ह

और उसक सदथ य िध नागररक होत ह वजसकी थ िीकवत अनद य राष र भी करत ह और पासपोरथ िीसा

आदद की व यिथ रा स आिागमन को वनयवित करत ह नागररक क रप म िधावनक सामावजक और

साथ कवतक अवधकार क सार कतथव य और दावयत ि म भी भागीदारी होती ह समाज की वनयवत ह दक

जावत भाषा बोली कषि भोजन िथ ि रीवत-ररिाज धमथ आदद की विशषताए आ जाती ह इनक

सार समाज का भािात मक लगाि होता ह और उसक सदथ य थ िय को उसी आधार पर पररभावषत भी

करन लगत ह चदक इन विशषताओ का सचार पारथ पररक सबध और जीिन क विविध व यापारो स

गहरा ररश ता होता ह इसवलए य उस समाज की पाररभावषक विशषताए बन जाती ह

भारत दश हमार समकष एक सभ यता और मल य दविसपनद न सामावजक इकाई क रप म

उपवथरत होता ह इसकी समझ कई रपो म वमलती ह वनकर इवतहास म झाक तो पाएग दक इसक

कई रप ह एक छोर पर सहद उपलवबध को बलपिथक रखन िाल वतलक अरसिद सािरकर और

विवपन चर पाल जस ह दसरी और गोखल रानाड गाधी और रगोर सरीख आध यावतमक विचार को

मानन िाल ह जो सभी परभािो को आत मसात करन को तयार ह य सवहष णता आत मवनयिण आदद क

सार एक तरह की बहलता को ठीक मानत ह तीसरी ओर आधवनक दविसपनद न नौरोजी और पवडत

नहर जस लोग ह जो भारत को एक विकवसत सभ यता तो मानत ह पर यह भी महसस करत ह दक

उसका हरास भी हआ और उसम बहत कछ आधवनक जीिन दवि क विपरीत हआ जो आज उपयोगी

नही ह उनक वहसाब स एक बहलतािादी आधवनक नजररया जो विजञानसम मत हो उपयक त ठहरता ह

आज हर भारतीय की एक बहआयामी पहचान बनती ह िह सहद बगाली मवथलम गजराती

कश मीरी वबहारी बराहमण ओबीसी जन ईसाई आदद िाली एक सार कई तरह की पहचान रखता ह

य वभनद न वभनद न पहचान अक सर एक दसर की विरोधी न होकर परक होती ह साथ कवतक रप स ि

गहरी पठी ह और उनक सार लोगो का गहरा सािथजवनक लगाि भी ह िथ ततः हर भारतीय की

पहचान (आइडरररी) की अलग व यिस रा ह कोई एक यनीफामथ पमाना नही ह जो यह तय कर दक कई

पहचानो म स कौन सबस ऊपर नबर िन पर ह यह एक बड़ा तरल या फलइड मामला ह आज

पजा-पाठ सगीत और थ िाथ थ य लाभ क अनक क र भारत भर म फल हए ह जहा आन जान स सहद

ईसाई वसख और मसलमान दकसी को भी परहज नही होता कई पहचान क सार रहना अथ पष रता तो

पदा करता ह पर शायद दसरो क वलए िथ ततः हर भारतीय कई (उप) सथ कवतयो म जीता ह और य

सब वमलकर उसकी पहचान बनाती ह इस अरथ म हर भारतीय शायद बहसाथ कवतक ह और उसकी

पहचान बहआयामी

दश की छवि दशिावसयो क आत मगौरि का माध यम होती ह आज क भारत का अग होना उस

वबलाग करना हमको आरवरक परगवत की ओर अगरसर एक दश एक आरवरक पािर क सार जड़न का

12 47 2015 18

एहसास दता ह दसरी ओर भरष राचार अवशकषा अव यिथ रा सामावजक करीवतयो और भदभाि क

कारण मन म रकान उदासीनता और असहायता की भािना भी आती ह इस सबक बािजद एक

भारतीय का बोध जरर ह जो पजाबी मराठी या गजराती होन अलग जावत िगथ और समदाय का

सदथ य होन पर भी सबको भारतीय बनाता ह कभी-कभी विविधता म एकता िाल नहर जी का

भारत अपररभाषय या अव याख यय लगता ह भारत को एक विथ तत साथ कवतक इकाई क रप म दखन

पर कछ विचार उभरत ह जो भारतीय होन क अरथ को थ पष र करन म सहायक होत ह इनम परमख ह

धमथ कमथ पनजथनद म को दकसी न दकसी रप म थ िीकारना सामावजक इकाई - पररिार जावत समदाय

क थ तर पर अपन अवथतत ि को महसस करना सक स वििाह और अनद य व यवियो क परवत खास दविकोण

को अपनाना बहलता का थ िीकार और खल कछ-कछ असगरठत दकथ म की आत म या सल फ की

अिधारणा का थ िीकार और दकसी न दकसी रप म दकसी बड़ी जञात-अजञात सतता स जड़ाि की

अवभलाषा और पररिश परकवत और सवि क सार साझदारी तरा परथ पर अनपरकता का भाि

समकालीन विमशथ म राज य और राष र की अिधारणा क अरथ बहत कछ इस पर वनभथर करत ह

दक कौन दकस दविकोण और परयोजन स इन पर गौर कर रहा ह अक सर इनद ह अतीत ितथमान और

भविष य स जोड़ कर दखा जाता ह और लोग अपन चन िचाररक आदशथ स रग कर ही इस पर विचार

करत ह इन शब दो और इनस जड़ अरथ थ रान और समय क सार-सार बदलत रह ह जो थ िाभाविक ह

भारत दश क बार म सोचन की एक बड़ी मवशकल यह ह दक हमारी अपनी पररभाषा क पमान हमार

अपन न होकर दकसी और क ददए हए ह ि हमार बौवदधक मानस म इतन गहर पठ चक ह दक अब हम

अपन पमान क बार म भरोसा ही नही कर पा रह ह और खद को पररभावषत करन का अवधकार ही

खोत जा रह ह आरवरक और तकनीकी परगवत क पसराि की दवनया म आज हमारा आतम-सशय इतना

गहराता जा रहा ह दक भारत और भारतीयता की बात करना परानी और ददकयानस और इसवलए

अपरासवगक मानी जान लगी ह अगर इसकी बात करनी भी ह तो उसकी सनद कही और स जरानी

होगी आज अपनी पहचान क वलए हम पविमी दशो म विदवानो क दवारा परमाण और गिाही चाहत ह

आज भारत की साथ कवतक विविधता को सपनद नता और समवदध क ोत क रप म समझन समझान की

जररत ह वजसका उपयोग समाज क विकास म दकया जाय इसक वलए भारत को भारत क नजररए स

दखना होगा वबना इस भय क दक भारतीय होना दकसी कषमा याचना की अपकषा करता ह थ िदशी और

सराज जस विचार अभी भी परासवगक ह समरथ और थ िािलबी होन क वलए आत म थ िीकार और सतत

पररष कार आिश यक ह

12 47 2015 19

भकप का सदश

डॉ एमएल गपता ldquoआददतय

धरती हर ददन डोल रही ह कपन की बोली बोल रही ह

विनाश कर आकरोश स बदल कय भगोल रही ह

कय धरती न भकरी तानी कय वहमालय म आिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

जो ससाधन र पोषण क उनका शोषण कर डाला

ओजोन का जो किच रा उसका भी भदन कर डाला

बरहमी स कार हमन िसधरा क िन-कश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

सागर क तीरो को छीला पठार और पिथत को लीला

नददया बनी नाल और नाली नही ददखता जल वनमथल-नीला

चतािनी द रहा ह मौसम बदला भमडल का पररिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

विजञान की सीढ़ी चढ़ विनाश का सामान बनाया

परमाण सयि द रह यातना विकीरण का खतरा मडराया

रवडएशन स आतदकत ह दवनया क सब दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

12 47 2015 20

कोई अण कोई परमाण कोई हाईडरोजन बम ल ऐठा ह

वबछी हई बारद धरा म मानि बमो क ढर पर बठा ह

हआ परमाण यदध तो वमर जाएग दकतन दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

भकषक बनकर मानि इक दज पर चोर कर रहा

परीकषण की खावतर दकतन भीषण बम विथफोर कर रहा

परकवत का सतलन वबगड़ा तो हम बन जाएग अिशष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

कदरत कहर बरपा सकती ह कभी भी आफत आ सकती ह

धरा की जरा सी भी हरकत दकतना कोहराम मचा सकती ह

धरा न जरा करिर बदली तो कछ भी न रहगा शष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

पयाथिरण क आघात पर अब तो रोक लगानी होगी

सागर पिथत धरती क सग बद करनी मनमानी होगी

धरती को जो मा मानोग सब वमर जाएग कलश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

12 47 2015 21

ि दोनो

डॉ सषम बदी

छत स फशथ तक क लब शीशो स जड़ी उस बड़ी-सी बठक म खब सारी ददन की रौशनी भरी हई

री फशथ पर वबछी सफद चादरो पर सफद िसतर पहन ढर सार लोग उस रौशनी का ही वहथसा लग रह

र कमर म घसत ही तारक को लगा जस उस शवतता म घल मौत क सदथपन और जड़ता न अचानक

उसक भीतर को जकड़ वलया ह बीचोबीच फलो की माला चढ़ी एक बड़ी-सी रवत की तथिीर री

वजसका धप दीप और गीता क शलोको स अवभषक दकया जा रहा रा रवत अब तथिीर भर री तारक

की थतबध पवनयायी आख वनथसहाय-सी रजत को खोजन लगी

रजत सारा िि लोगो स वघरा ही रहा रा उसकी मा उसक बचच और दसर ररशतदार कोई न

कोई उसक आसपास रा ही उन दोनो की आख एक दसर स दो एक बार वमली पर रजत अपन स

बाहर नही आ पाया रा तारक न दकसी तरह अपनी शोकभािना वयि कर दी री न भी वयि करता

तो कया रजत को तो खद भी अहसास होगा उसकी अतभाथिना का एक िही तो ह इस भीड़ म जो

जानता ह दक िह कयो यहा ह बाकी तो तारक दकसी स पररवचत ही नही वसिाय कछक रवत क

कलीगज क एक दो कलीगज स ही उसकी बात हई रवत क बार म ि उस पररिार का वमि मानकर

बात कर रह र य पररिार का वमि तो िह रा ही पर इसस अलग या ऊपर भी कछ रा यह शायद

रजत क अलािा और कोई नही जानता रा जबदक रजत भी परा कहा जानता ह खास तौर स िह सब

कछ जो तारक महसस करता रहा ह या जो कछ तारक और रवत क बीच म रहा या अभी भी वजसका

बहत कछ बचा रा

य तारक न बहत बार सोचा दक अब रवत नही रही तो उसक यहा जान का कोई फायदा नही

उसकी तकलीफ बढ़गी ही दफर लगा दक नही उस रजत स वमलन जाना होगा रजत भी तो उसका

दोथत ह य रवत उन दोनो क बीच न होती तो ि शायद बहत गहर दोथत हो सकत र दफर भी िह खद

को कई तरह स रजत क करीब महसस करता रा और रजत भी बहत मामलो म उसी स सलाह करक

चलता रा उस पर भरोसा करता रा जो दक उसक मन क दोथती क भाि को ही जताती री चदक

तारक की विशषता ददल क रोगो म री िह रवत क हारथअरक क बाद स उसस अकसर रवत क बार म

सलाह लता यहा तक दक रवत स भी कोई वशकायत होती तो तारक स ही कहता दखो न इसका

कोलथराल इतना हाई चल रहा ह और मडम चीज मीर सभी कछ खाती ह अभी रथतरा ल चलो परा

का परा थरक गरक जायगी कस कर यह तो खद को नकसान पहचान स बाज नही आतीrdquo और तारक

तब ररका दता कसी डाकरर हो तम रवत मरीजो को उपदश दती रहती हो और खदhellipदफर उसन

खद ही एक विशषण गढ़ा रा रवत क वलए lsquoनानकपलायरrsquo यानी दक जो कछ भी कहा जायगा उसका

विरोध ही करगी रवत और दकसी िजह स नही बवलक विरोध करन क वलए विरोध

तब रवत और भी तिर चढ़ाकर बोलती rdquoरजत तो पहल ही मर पीछ पड़ा रहता ह अब तम

भी इसी स वमल गय हो िाह जी िाह दोथत दकसक हो तम मर या रजत कrdquo

तारक तब चप रह जाता रा रजत भी कछ नही कहता एक वपरय अवपरय सतय

शायद रवत भी इसीवलए कहती री दक तारक तब लाजिाब हो जायगा कयोदक रवत जानती ह दक जो

िह तारक क वलए ह िह और कोई नही हो सकता और रजत को भी इसका अदाज ह इसी स रजत न

शर म चाह दकतना विरोह दकया हो दकतना लड़ाई झगड़ाhellip दफर धीर-धीर मान वलया रा इस ररशत

12 47 2015 22

को रवत क वलए ही अगीकार कर वलया रा तारक को भी रवत न ही उस बतलाया रा जब रजत न

उस बाहो म भरकर कहा रा rdquoइतना पयार करता ह तमह दक यह भी थिीकारन क वलए राजी हrdquo

एक हक-सी उठी री तारक क भीतरhellip वजस इतना पयार वमला होhellip इतनाhellip िह इस तरह स

उन दोनो की वजनददगी को ही सना करक रखसत हो ली तारक क मन म गथसा भी आयाhellip शायद

अपनी सहत का धयान रखती तो कछ और जी जाती उन दोनो स ही तो चार-पाच साल छोरी री िह

जी भी सकती री पर अबhellip और तारक न लबी सास भरी

रवत की एक कलीग बता रही री rdquoपरसो तो काम पर आयी हई री रवत म सोच भी नही

सकती री दक इतना भारी थरोक हो सकता ह दक एक ही लपर म ल जायhellip मझ तो विशवास ही नही

होताrdquo तारक को भी विशवास नही होता रा उसी ददन सबह रवत न उसस फोन पर बात की री और

उसस मजाक दकया रा rdquoमर जनदमददन पर आओगrdquo

दरअसल सारा झगड़ा कछ साल पहल रवत क जनदमददन को लकर ही शर हआ रा िनाथ शायद

रजत को उन दोनो क बीच बढ़त ररशत की तवनक खबर न लगती रवत न उस बतलाया रा दक उसक

जनदमददन पर िह और रजत आमतौर पर शाम को बाहर दकसी बदढ़या स फर च रथतरा म खाना खान

जात ह तब तारक न कहा रा rdquoठीक ह तो लच तम मर सार लनाrdquo

रवत मान गयी री उसन उसी ददन रवत क शहर पहचन क वलए फलाईर भी बक करिा ली

री पर जब ठीक जनदमददन आनिाला रा तो रवत न उस बतलाया रा दक रजत को ठीक नही लग रहा

मरा तमहार सार लच पर जाना िह पछ रहा रा दक इतना इमपॉरर कस हो गया यह आदमी दक

तमको उस जनदमददन पर जरर वमलना ह

rdquoतमन कया कहाrdquo तारक वजजञास हो उठा रा

rdquoयही दक तमको दकसी काम स शहर म होना रा इसवलए लच पर वमलन की बात की इस पर

उसन कहा दक अगल ददन वमल लो जनदमददन िाला ददन तो उसी क वलए हhellip कोई और कयोrdquo

दफर िह बोली rdquoइसी पर उस शक हो रहा ह दक यह कोई आम दोथत नहीhelliprdquo

तारक न जोड़ ददया रा rdquoपरमी हrdquo

rdquoहा यही शक हो रहा ह उसrdquo

rdquoतो ह या नहीhelliprdquo

rdquoशायद होhellip यही मसीबत हrdquo

तारक न कहा रा rdquoअब तो ररकर ली हई ह म तो आऊगा ही तम वमल सको तो वमलना िनाथ

न वमलना चाह पाच वमनर क वलए या कॉफी क वलए भी आ जाओगी तो मर वलए िही काफी होगा

तमहार जनदमददन पर तमह दख भर लrdquo

rdquoतम भी कमाल क रोमाररक होhellip पर सच कह तो म भी तमस वमलना चाहती ह उस ददनhellip

कछ न कछ तो जगाड़ना पड़गाrdquo

rdquoमर वलए तमहारा जनदमददन मरी वजनददगी का बहत अहम ददन हhellip समझीrdquo

एयरपोरथ पहच कर तारक न फोन दकया रा रवत बोली री rdquoरजत कह रहा ह तम हम वडनर

पर जॉयन कर लोrdquo

तारक बहत हरान हआ रा पर रवत न फोन रजत को पकड़ा ददया रा तारक एकदम सकर म

पड़ गया रा उसन खद को बचान की कोवशश की rdquoसॉरी म तो यहा आया रा तो सोचा रवत स वमल

लगा पर इस तरह आप लोगो क परोगराम मhelliprdquo

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रजत न जोर दकर कहा रा rdquoनही भाई बहत तारीफ सन रहा ह बीिी स जरा हम भी तो

वमल आपस आप चाह तो घर पर आ जाईए या दफर सीध रथतरा पर वमलगrdquo

rdquoपर आप लोगो का तो वडनर पर सार जान का कायथकरम रा नrdquo

rdquoआप लच पर फरी ह तो लच पर वमल लत ह य मझ तो वडनर ही पसद ह जसा आप कहrdquo

रजत वबलकल दोथताना ढग स बात कर रहा रा एक पल को उसकी रोन म कछ तनाि तारक

को महसस हआ रा पर अगल ही पल आिाज दफर सहज हो गयी री तारक मान गया पर रकसी लकर

पहल होरल म सामान छोड़ा और इस दौरान खद को मानवसक तौर पर तयार भी करता रहा दक कस

पश आना ह अपन रकीब स दखा जाय तो ररशता रकीब का ही रा बाकी ि दकतन भी सभय या

समझदार इसानो की तरह एक-दसर स बताथि कर आवखर ि तीनो सममावनत पश क र तारक हारथ

थपशवलथर रा तो रजत अगरजी सावहतय का परोफसर और रवत सायकायररथर इसानी मन की

कमजोररयो को समझना मनोरोगो का इलाज करना रवत की विशषता तो री ही पर इसानी आकषथण

एक दसर क परवत सखचाि या ऐस ररशतो को समझन की सथकवत तो कही तीनो म ही री

रजत इस बात को खब समझता रा दक दकसी भी औरत क वलए दकसी दसर परष क परवत

सखचाि हो जाना बहत सहज रा िही एक पवत और पतनी स परम करन िाल क रप म िह रवत क इस

वयिहार स ईषयाल भी हो उठता रा एक सभय इसान क नात िह ईषया को दबा कर तारक क परवत भी

वमिित वयिहार करना चाहता रा पर िही उस रवत क वयिहार स कि पहचता रा दक िह उसक

अलािा भी दकसी दसर परष को चाह सकती ह वजसस उसक मन म आकरोश और वितषणा का भाि

उठता कभी िह अपन को उदार बना कर यह कहना चाहता दक रवत अगर दकसी दसर को चाहती ह

तो बशक उसको भी कयो न पाय सार ही जब करोध होता तो एक तरह स जस िह रवत को सजा दन क

वलए कह डालता rdquoतम जाओ दोनो सार रहोrdquo पर जो पीड़ा िह उसम सह रहा होता िह रवत और

तारक दोनो क वलए ही असहय होती

रवत न कहा रा rdquoकया तारक और म दोथत नही हो सकत और इतन दोथत हhellip एक िह वयवि

वजसस बात करक मझ खशी वमलती ह िह दोथत कयो नही बन सकता वसफथ इसवलए दक उसक मन म

तीखी भािना ह मर वलएhellip या शरीरो का आकषथण भी हhelliprdquo

रजत तब तकथ स सारी बात को समझन समझान की कोवशश करता हा करत-करत कह दता

rdquoऔरत आदमी म दोथती हो ही नही सकती कयोदक जहा शरीरो का आकषथण हो िहा दोथती जसा

वनषकपर भाि कस पनप सकता हrdquo तब रवत दोथती का एक और पकष पश करती rdquoतमहार कहन का

मतलब तो िही ददकयानसी बात हई दक शरीर पाप का मल ह जबदक तम खद ही यह पहल कह चक

हो दक शरीरो का मसला हल हो जाय तो औरत मदथ बहत खबसरत दोथत हो सकत हhellip शरीर को

अहवमयत दी कयो जाय शरीर वमल जान स उनका दोथती म बाधा बनन का मसला खतम हो जाता हrdquo

रजत रवत की बात मान भी जाता रा पर रवत दफर तारक को यह भी बताती री rdquoिन कार

रक वहम फॉर गरारड कल को िह अपना कोई नया तकथ द दगाrdquo

शायद इसी स तारक भी अचानक वहममत हारन लगा रा कस सामना करगा िह रजत का य

िह रजत स एकाध बार पहल वमल चका रा पर तब उसको यह अदाजा नही रा दक रवत और उसक

बीच कछ रा जबदक तारक तब भी कछ आतमसजग-सा हो रहा रा पर कछ वमनरो की मलाकात को

सभाल लना कोई बड़ी बात नही री और य भी रजत उस भला आदमी लगा रा यह भी सोचा रा दक

अगर रवत उन दोनो क बीच न होती तो यह वयवि उसका दोथत हो सकता रा य रवत क होन क

बािजद अतत ि दोथत बन ही पर इस दोथती का तानाबाना िसा न रा जस खावलस दोथती का होता

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ह इसम रवत क रश बन हए र जो एक और ही रगत वलए र और िह रगत तारक को बहत पयारी री

उस दोथती स जयादा

तारक न होरल पहच कर फोन कर ददया रा दक वडनर पर वमलना ही ठीक रहगा और िह

अपना काम इस दौरान कर लगा रजत आसानी स यह बात मान गया और कहा दक िह सडरकस पर

पहल घर पर आ जाय उसक बाद रथतरा खाना खान चल जायग

शाम को जब िह चलन लगा तो फोन बजा रा दसरी ओर रवत री हलो कहत ही रवत न

कहा rdquoसनो तम मत आना मर घर म बहत रशन चल रही हrdquo इसस पहल दक िह कछ कहता रवत न

फोन वडसकनकर कर ददया

रात को कोई फलाईर नही जाती री िनाथ िह उसी िि शहर छोड़ क चला जाता

आध घर बाद ही घरी दफर बजी रवत पछ रही री दक आ रह हो तारक बौखला गया दक आवखर हो

कया रहा ह कया यह रवत क मन की उलझन ह या दक रजत कीhellip या दोनो कीhellip या रवत वसफथ रजत

की उलझन को वयि कर रही री बोली री rdquoजलदी आ जाओ हम लोग इतजार कर रह हrdquo

िह पहचा तो रवत न अकल ही उसका थिागत दकया रा िह जानता रा दक दोनो बचच कालजो

म ह पर रजत काफी दर तक बठक म नही आया तो तारक हरान हआ रवत बोली rdquoिह नहा रहा हrdquo

दफर मथकरा कर जोड़ा rdquoशायद हम दोनो को कछ िि दना चाहता हrdquo

तारक तब कछ निथस हआ रा उस आग बढ़कर रवत को चमन का हौसला नही हआ उस लगा

दक रवत भी सहज नही री जस दक आम तौर पर होती ह पर उसन कछ कहा नही िह खद भी तो

सहज नही हो पा रहा रा जस लड़की क बाप क घर म शादी का परथताि लकर जा रहा हो कछ कछ

इसी तरह का महसस हो रहा रा िही डर कर परचा करना रा दक इमतहान म फल न हो जाय

रजत न कमर म आत ही बड़ तपाक स हलो दकया कछ औपचाररक-सी बात की दफर उसस

सडरक पछा और दकचन म बफथ िगरह का इतजाम करन क वलए दफर स गायब हो गया तारक को लगा

दक सहज होन की बहत कोवशश क बािजद रजत बहत असहज ह

ववहथकी का घर लत हए तारक न ही रजत स उसक काम क बार म पछना शर दकया बात

कही जा नही रही री तभी रवत एक नई दकताब की चचाथ करन लगी वजसका ररवय सबह क अखबार म

छपा रा तारक न हिाई जहाज म ही उसक बार म पढ़ा रा दफर तो बातचीत खब गरमागरम होन

लगी रजत न दवकषण एवशयाई अगरजी लखको क बार म अपन विचार झाड़न शर कर ददय यहा तक

दक रवत न अचानक घड़ी दखी तो पता चला दक रथतरा की ररजिशन का िि हो चका रा रजत न

रथतरा को फोन दकया दक कछ वमनर लर पहचग और तारक को बोला दक जलदी स सडरक खतम कर ल

या गाड़ी म ही ल चल दोनो न दो तीन सडरक चढ़ा रख र मौज-सी भी आयी हई री रजत ही कार

चला रहा रा और तारक पीछ िाली सीर पर बठा रा अचानक रजत कछ नश और कछ अपनी धन म

बोला rdquoतो तम मरी बीिी स पयार करत होrdquo

तारक भौचक-सा हो गया य ही बठा रहा जस रजत की बात को सना न हो या िह गभीरता

स लन लायक न हो रजत न अपनी बात को सिाल बनाकर दबारा पश दकया rdquoकयो तारक मरी बीिी

स पयार करत हो या नहीrdquo

तारक न कहा rdquoहाrdquo और चप कर गया उस लग रहा रा िह जो भी जिाब दगा खतर स खाली नही

पर यह जिाब सच रा तो सच बोल कर ही मार खायी जाय उस दकसी लड़की क वपता स हार मागन

नही जाना पड़ा रा आज यह भी सही

rdquoतम भी पयार करत हो िह भी करती ह तो तम दोनो सार कयो नही रहतrdquo

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तारक बोल पड़ा रा rdquoयह इतना आसान नहीrdquo

रजत इस पर आकरमण करता-सा बोला rdquoकमाल ह पयार भी करत ह और वजममिारी भी नही

वनभाना चाहतrdquo तारक को महसस हो रहा रा दक रजत कह तो कछ रहा ह और पहचाना कछ और

चाहता ह दफर भी िह जिाब तो उसी बात का द सकता रा जो दक पछी जा रही री यह कह कर

उस नाराज भी नही करना चाहता रा दक रजत वसफथ अपन भीतर क आकरोश आतक और आग को

आिाज द रहा रा बोला rdquoयह बात नही म आज भी रवत क सार वजनददगी शर करन को तयार ह

जहा तक म जानता ह रवत अपन शहर को छोड़ कर और कही नही जायगी न िह तमको छोड़न को

तयार होगी जहा तक म रवत को जानता हhelliprdquo

रवत चपचाप अपन पर अकश लगाय दोनो की बात सन रही री न तो िह रजत क पकष म

कछ बोलना चाहती री न तारक क पकष म ही बोल सकती री दफर भी दोनो क बीच तारतमय वबठाय

रखन की वजममिारी भी उसी की री और िह समझ नही पा रही री दक दकस तरह इस बातचीत को

सीमाय लाघन स बचाया जाय ऊपर स उस डर लग रहा रा दक आिश म रजत कही रककर न मार द

रथतरा बहत दर रा भी नही बात पर चरम पर चल रही री दक रथतरा आ गया रवत न रोका rdquoरजत

पारककग ढढ़ो रथतरा आ गयाrdquo रथतरा क सार ही पारककग गराज म गाड़ी छोड़ कर तीनो अदर चल गय

िरर न उनको मज पर वबठाया और सडरक क वलए पछा तरा मनदय लाकर ददय तीनो क तीनो उस मज

पर इस तरह खामोश और भर बठ र दक मनदय म वसर डबोना एक राहत बन गया रा तीनो न अपन-

अपन आडथर ददय पर बात कछ बन नही रही री हर कोई कछ भी कहन म जयादा ही सतकथ हो रहा रा

अचानक रवत बोली rdquoरजत तमको इतनी जयादा तकलीफ री तो तमन मना कयो नही कर

ददया म तो तारक को कह चकी री दक आज सार खाना नही होगा तमही न जोर ददया दक जरर

बलाओ अब इस तरह कयो बताथि कर रह होrdquo

रजत और भड़क गया rdquoम तो वसफथ यह कह रहा ह दक तम लोग एक-दसर को पयार करत हो

तो म कया कर रहा ह यहा तम जाओ एक दसर क सार रहोrdquo

दोनो की आिाज ऊची हो रही री और दसरी मजो पर बठ लोगो की वनगाह इस ओर उठ आयी री

तारक न धीर स सझाया रा rdquoमर खयाल स हम य बात यहा नही करनी चावहएrdquo सहसा रवत

न होश म आत कहा rdquoहा इतन बदढ़या रथतरा म खाना खान आय ह कछ खान पर भी तो धयान दhellip

दफर आज मरा जनदमददन ह आई िार र हि ए गड मीलrdquo

दफर भी खान पर तीनो म स दकसी का धयान नही लग सका तीनो औपचाररक-सी बात म लग

गय र तारक न ही शहर क निीनतम रथतराओ क बार म ताजा पढ़ी समीकषा का वजकर छड़ ददया रा

रजत न कार स जब उस होरल छोड़ा तो तारक न उपर कमर म आकर सडरक लन क वलए कहा

पर जसा दक िह अपकषा कर रहा रा रजत न दर होन का बहाना बना छटटी माग ली री रवत तब भी

कछ नही बोली री शायद उस डर रा दक उसका कछ भी कहना रजत क वलए घाि पर नमक वछड़कन

जसा होगा या उसकी कोई भी बात का गलत मतलब वनकाल कर रजत भड़क सकता रा य दर हो भी

चकी री

पर तारक यह भी जानता रा दक रवत एक नबर की वजददी री जो उस चावहए रा चावहए ही

रा उस रोका नही जा सकता रा िह ऊपर स मान जायगी पर भीतर स कभी माफ नही करगी

शायद इसी स रजत भी वबगड़ी हई लाड़ली बरी की तरह रवत की हर चाह या माग को विरोध करक

भी अतत मान जाता रा

12 47 2015 26

लौर आन क दो चार ददन बाद ही उसक फोन पर रवत न सदश छोड़ा रा rdquoतमहारा आना ठीक

नही हआ सॉरी तमह बलाकर भी वमल नही पायी अब लगता ह कभी नही वमलगी लर अस थरॉप

ददस वहयर पलीज मझस सपकथ मत करनाrdquo

तारक बहत ददन परशान घमता रहा रा पर रवत को फोन भी नही दकया उसन मना जो कर

डाला रा उस फोन करत हए तारक को लगता दक िह खद को उस पर लाद रहा ह और यह वथरवत

उस कभी गिारा नही री हर ददन दकसी जिालामखी-सा लाि स लदा हआ गजरता अदर ही अदर

सब तप रहा रा

महीन भर बाद रवत न फोन दकया रा rdquoगथसा हो न मझस तमस माफी भी नही माग सकीrdquo

उसकी तो कोई जररत नहीrdquo

दफर भी सोचा रा तमस कभी बात नही करगी इसी स तमको सपकथ करन स मना दकया

रा रजत को भी यही मालम ह दक तमस ररशता तोड़ ददया ह पर अब मझी स बात दकय वबना रहा

नही जा रहाrdquo

रजत को मालम ह मझस बात कर रही होrdquo

िह बहद गथसा ह तमसhellip जस दक सारा दोष तमहारा होhellip दक तमन उसकी बीिी को फसा वलयाrdquo

ि इसी तरह जब मौका लगता बात कर लत तारक क ददल ददमाग पर रवत ही छायी रहती

िह ऐस ही पलो क दौरान जीता जब दोनो क बीच कछ सपकथ होता बाकी क पल उन पलो क इतजार

म गजरत

इस बीच रवत को ददल का दौरा पड़ा रा घबराकर तारक को फोन कर डाला रा रजत न

तारक आया तो रजत उस अपनी गाड़ी म सार अथपताल ल आता जाता रहा दोनो म एक दोथती का

नाता तभी बना रा दवनया जहान की बात रजत न उस घर पर ही ठहराया रा तारक तीन ददन बाद

चला गया रा िावपस पर दोनो की फोन पर बात हो जाती रवत अथपताल स िावपस आ गयी री

धीर-धीर िह सामानदय होकर िावपस अपना काम सभालन लगी

रवत का जनदमददन दफर स आनिाला रा रवत न उस कहा रा rdquoरजत अपन आप ही बोल रहा ह

दक तम आ जाओ इस बार मरा जनदमददन मनान बोलो आओगrdquo

तारक परानी बात याद करक घबरा गया रा rdquoनही दफर स उसक भीतर सब घमड़न लगगाhellip

सबको तकलीफ होगीrdquo

यह सच भी रा रजत कभी तो उसक परवत बहत वमिित हो जाता िही अचानक गथसा ईषयाथ

उभर आत और िह अकसर बरखी ददखाता अचानक तारक को ऐसा महसस हआ जस रवत उसस खद

यह सब कह रही हो पल भर को िह भल ही गया दक रवत क ही अतयवि कमथ म िह शावमल हआ ह

और दरअसल उसक यहा आन की एक िजह यह भी ह दक िह रवत को वलख अपन खत िावपस ल

जाना चाहता ह उस डर ह दक कही ि खत रजत क हार न पड़ जाय

तारक रवत क सार काम करन िाली इस मवहला डॉ लोपज स पहल वमला हआ रा इस भीड़

म एक िही जान-पहचान की री तारक का मन हआ उसस पछ दक कया िह रवत की दराज म उसक

कागजात पर नजर मार सकता ह तारक को अदाज रा दक उसक खत िह दफतर की मज की दराज म

रखती री पर िह जानता रा दक ऐसा करना ममदकन रा नही आवखर तारक को कस हक पहचता रा

रवत की दराज खलिान का िह तो एक पररिार क वमि की हवसयत स िहा रा रजत ही कह सकता

रा दखा जाय तो ि लोग खद भी रजत स ही कहग दक रवत का सामान िह ल जाय तब तो रजत की

आख जरर उन पर पड़गी तब शायद उसको बरा लगगा दक रवत क सार तारक का एक अपना ररशता

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रा उन तीनो की आपसी दोथती क बाहरhellip रजत को बतहाशा चोर लगगी अब जबदक िह रवत स

जिाबतलबी भी नही कर सकता रवत अब कोई सफाई नही पश कर पायगी तारक क हक म कछ भी

नही कह सकगी दकसी तकथ स रजत को लाजिाब नही कर पायगी नही िह ऐसा नही कर सकता न

यह रवत क परवत सही होगा न रजत क परवत उस दकसी न दकसी तरह स खत पान ह

राथत म आत हए हिाई जहाज म तारक जब लगातार रवत क सार की अपनी वजनददगी क

गजर पल दहरा रहा रा बार-बार उस धयान आता दक जब स रवत को ददल का दौरा हआ रा िह

उसस कहना चाहता रा दक उसक खत विनि कर द एक बार उसन बात उठायी तो रवत बोली rdquoकयो

तमहार खत मर दफतर की दराज म सफ पड़ हrdquo

शायद िह वबना कह यह भी समझ गयी री दक तारक का इशारा दकस ओर ह तभी बोली

दखो जब तक म वजनददा ह म उनको फाड़ कर न तो फ क सकती ह न जला सकती ह एक बार मर गयी

तो कया फकथ पड़ता ह दक कोई कया करगा उनक सार तमको तो दफकर होनी नही चावहए अब तो ि

मरी अमानत हrdquo यह बातचीत दो एक महीन पहल की ही होगी तारक न सोचा रा बात कभी दफर

उठायगा पर उसस पहल हीhellip

तारक को भी तब यह अदाज नही रा दक रवत क अलािा रजत स भी उसका नाता रा रवत क

जान क बाद िह खद को रजत क बहत करीब महसस कर रहा रा और उस लगा दक उसक खत रजत

को उसस दफर दर धकल सकत र पर िह दकसी तरह भी रजत को खोना नही चाहगाhellip रजत जस स

रवत का ही एक वहथसा राhellipउसन दखा लोगो स वघरा रजत का चहरा बहद वनचड़ा हआ रिहीन और

सखा-सा लग रहा रा रात भर सोया नही होगा इसवलए आखो क नीच कालापन उतर आया रा आख

काफी अदर को धसी हई री तारक को लगा दक िह शायद रजत स बहतर हालत म ह दफर उस रशक

भी हआ रजत अपन गम का खला इजहार कर सकता हhellip तारक को यह सविधा नही री िह दकसी

उजड़ आवशक क रप म इस महदफल इस मौत का शोक करन िालो की महदफल मhellip अपना असली

चहराhellip अपना आवशक का चहराhellip नही ददखा सकता रा अचानक उसकी आख भर आयी अपन खोन

की वशददत क अहसास स

रवत क िाकय उसक कान म सरसरान लग जबस उस ददल का दौरा पड़ा रा िह जीिन की

कषणभगरता या इसान क नाचीज होन क अवथततििादी दशथन को बहत बघारन लग गयी री शायद

अपन जान का अहसास उस कही बहत गहर उदास कर जाता रा पर िही िह उस जान को एक

अिशयभािी अकारय सतय की तरह थिीकार करक उसस समझौता भी करन लग गयी री एक ददन

उसन हडसन नदी क दसर वसर स मनहरन की ओर दखत हए कहा रा rdquoदखो तो इन छोर-छोर वडबबो

म दकतन लाखो लोग रहत ह दकतन छोर ह हम लोग इतनी तग जमीन पर दकतनी बड़ी तादाद म

समा जात ह एकदम हजारो की सखया म सार-सार जड़ कीड़ो की तरह दफर भी अपन आप को

दकतना बड़ा मानत ह राजनीवत धमथ और नवतकता की तवखतया वचपका कर दकतना बड़ा होन का

भलािा दत रहत ह खद कोrdquo

रजत को रवत की इसान को नाचीज करार दन िाली बातो स हमशा बहत वचढ़ छरती री

बोला रा rdquoधमथ नवतकता जीिन क सतय ह इनको तम भलािा दन िाली चीज कस कह सकती हो

इसान इसीवलए तो बाकी जीिो स अलग ह दक िह सोच सकता हrdquo

rdquoऔर सोच क धरातल पर हर चीज को गलत या सही सावबत कर सकता ह नवतकता को गढ़

सकता ह या परा सतयानाश कर सकता हhellip ठीक ह मझ तो उसम कोई नकसान नहीrdquo

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हा नकसान दकसी का ह तो मरा ही रजत न कहा तो तारक झर स बोल पड़ा रा rdquoनकसान

तो तब होता जो म उस भगा क ल जाताrdquo

रजत न सजीदगी स कहा rdquoअब इसका ददल बर गया हhellip तो आधी सपवतत तो लर ही गयी न

तम भगा ल जाओ तो भी फकथ नही पड़गा यह आधािाला वहथसा तब भी यही रहगाrdquo

सचमच रजत का यह विशवास सही रा रवत और उसक ररशत की शरआत क ददनो म भािना

क परिाह म बहता तारक रवत क सार एक नयी वजनददगी क दकिाड़ खोलन की बात सोच पाया रा पर

जलद ही उस अहसास हो गया रा दक रवत कही बहत गहर जड़ी री रजत क सार दक िह कभी उस

ररशत को तोड़गी नही य रजत भी शर क ददनो म भीतर स वहल गया रा यह झरका दक रवत रजत

को छोड़ दकसी और को मन म ला सकती ह उस बहत दर जा फ क आया रा दफर रवत न खोय विशवास

को िापस लौरा ददया रजत अपन आध नकसान क सार धीर-धीर शायद समझौता करना सीख गया रा

तारक को लगा दक िह आध क सार समझौता करना सीख गया रा दफर तारक को लगा दक

िह आध क सार समझौता नही रा रजत क भीतर कही पर का भरोसा भी रा जस दक रवत को वसफथ

एक बदलाि चावहए रा जो तारक रा िनाथ िह परी रजत की ही री कयोदक मौका आन पर रजत

अपना परा हक जतान स चकता नही रा हमशा यही मानता रा दक पहला हक उसी का ह तारक

हमशा बाद म आयगा जस दक पर भर लन पर बचा हआ भोजन दकसी को भी ददया जा सकता हhellip

कछ ऐसा रख

पर रवत बचा हआ भोजन नही रीhellip दकसी तरह स भी उवचछि या अिवशि नही जो उसन

रवत म पाया रा िह पहल वजनददगी म कभी नही वमला रा रवत न उसकी पहचान करायी री

पररपणथता स रवत को जानना ही जस उस सपणथता को छना रा शायद रजत न भी रवत म ऐसा कछ

पाया रा जो आम औरतो स अलग रा रवत शादी क इतन बरस बाद भी उस अपन म उलझाय री और

िह उसस मि नही होना चाहता रा रवत म बाहरी खबसरती क बािजद वयवि क ददमाग को भी

उलझाय रखन का जो गण रा उसस सच म जो भी पास आता और सखचता जाता रवत म भरपर

पयार लन की चाह री तो भरपर दन की कषमता भी इसी स अभी भी उसस जी तो नही भरा रा रजत

का शायद िह ऐसी औरत री जो हमशा वनत निीन होती रहhellip सौदयथ की एक पररभाषा यह भी तो

दी गई ह दक जो वनत नतन होता रह िही सौदयथ ह रवत भी कभी परानी नही पड़ती रोज कछ नया

होता ह उसक पासhellip कोई नया खयालhellip कोई नई सझhellip कोई नई उकसान उलझान िाली बातhellip

शायद इस ददमागी सौदयथ कहना होगाhellip जो कछ भी उसम राhellip बस खीचता रा अपनी ओरhellip मोहता

राhellip शायद कया पर उगली धरना उस पररवध म बाधन की भोडी कोवशश होती

कछ दवदव उठता तो रवत रजत क ही हक म बोलती री रजत क वहतो को सरवकषत कर लन क

बाद ही िह तारक को उसका हक दती तारक को खीझ भी होती दक रजत उसक जीिन म चदक पहल

आ गया रा इसीवलए हर चीज म ही पहला हक उसी का बनता ह पर उसन रवत स अपनी यह

मनवथरवत कभी जावहर नही होन दी री वपछल साल िलनदराईन ड पर ऐसा ही तो हआ रा दरअसल

दोनो को अदाज नही रा दक उस िीक ड पर िलनदराईन ड पड़ता रा तारक को दकसी काम स रवत क

शहर आना रा और दोनो न वमलन का कायथकरम बना डाला रा रजत स रवत की बात हई होगी तो

उसन भनकर कहा रा rdquoतो िह तमहारा िलनदराईन ह जो उस ददन आ रहा हrdquo रवत क कहन पर दक उस

तो याद भी नही रा िह बोला रा rdquoम नही मान सकता दक तारक न य ही आन का बनाया ह इस

िीक ड परrdquo रवत न तारक स सारी बात बतलायी तो उसन सोचा रा िह खद फोन पर रजत स कहगा

दक उस सचमच याद नही रा पर दफर बात बढ़ान न दन क वलए चप रह गया रा और जान का

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परोगराम भी थरवगत कर डाला रा तब उस दो बात तकलीफ दती रही री एक तो यह दक रजत हमशा

उसक सामन परारवमकता ल जायगा दसरी यह कड़िी सचचाई दक रवत कभी भी उसकी जावहरी वजनददगी

का वहथसा नही बन सकती री उसकी कमर म हार डाल कर िह कभी दकसी स यह नही कह सकता

रा रवत मरी हrdquo तब उस बहद रशक होता रजत स कया रजत को सचमच अहसास ह दक रवत तारक

क वलए कया ह दक िह उसकी वजनददगी का कनदर उसकी वजनददगी का अरथ बन चकी ह यह कोई हलका-

फलका ठरकपन नही उसकी वजनददगी का रशा-रशा गर गया ह रवत स शबद म अरथ की तरह समायी ह

रवत उसक अवथतति म इस गरन म िह खद ही घरता रहगा हमशा

अब रवत नही ह तो िह घरन और भी कस रही ह उस कया अब िह रजत स कह पायगा

अचानक उसका मन हआ दक रजत स कह द rdquoतमको मालम ह दक मझ सचमच पता नही रा दक उस

ददन िलनदराईन ड रा िनाथ ऐसी जरथत न करताrdquo दक िह जानता हhellip अचछी तरह समझता ह अपनी

और उसकी ररीररी की पररवधयो को दक रजद शायद कभी जान न पायगा पर उसन हमशा एक दोथत

की तरह रजत का रजत की जररतो का खयाल रखा हhellip वसफथ ऊपर-ऊपर स सामावजक उपचार की

तरह नही भीतर स दकसी ददली ररशत सhellip दफर िह ररशता चाह रवत क जररय स ही बना हो

हो सकता ह रजत यह सब महसस करता हो या न भी करता हो पर उसक चहर पर भी वमिता

का थिागतमय भाि हमशा ददखा ह तारक को वसिा उन कषणो क जब दक सचमच उन दोनो क बीच

lsquoररररोररयलrsquo झगड़ हए तब भी ि शायद इसानी आचार या परथपर सदभाि की सीमाओ को कभी

लाघ नही पर दफर भी तारक का रवत क सार का ररशता ऐसा नही दक रजत क सार वजस बार सक

रवत उसकी हथती का अवभि वहथसा ह िह कोई और कस हो सकता ह रजत रवत नही हो सकता

चाह उसक दकतन ही करीब रहा हो उस दकसी न दकसी तरह स अपन खत पान ही ह लदकन कस

और यही तारक बार-बार उलझ जाता ह अपनी यह परशानी िह दकसी क सार बार नही सकता

रजत स तो कतई नही खत अगर सचमच रजत क हार पड़ गय तो

लदकन रवत न यह भी तो कहा रा दक अगर िह नही रही तो कया फकथ पड़ता ह पर रजत

सचमच खत पढ़ ल तोhellip शायद उसकी पीड़ा पर तब करोध और घणा का कोई विकराल भत हािी हो

सकता हhellip हो सकता ह दक खत पढ़कर रजत रवत को खद स वछरक द लदकन उसस कया तब शायद

रवत और भी तारक क करीब आ जाय और भी उसकी अपनी हो जाय वसफथ उसी की समची एक रात

पहल उस ऐसा ही कछ सपना आया रा रवत की मौत की खबर क बाद यही उसका याद रह जानिाला

सपना रा िह रवत की अतयवि म गया ह और एक अधरा-सा बठकनमा कमरा हhellip कमर म कछ

कागज वबखर पड़ हhellip िह एक कागज उठाता हhellip िह उसी का रवत को वलखा खत हhellip और कई लोग

उसक आसपास ह और िह सोचन लगता ह दक कही इन लोगो न भी तो उनदह नही पढ़ाhellip तभी रजत

का चहरा उसकी ओर बढ़ता ह और िह कागज वछपान की तरकीब सोचन लगता हhellip इसी उधड़बन म

उसकी आख खल गयी री तो वजथम पसीन म नहाया हआ रा

एक रजत ही यहा उसक सबस करीब हhellip और रजत ही उस अजनबी-सा लगन लगा ह अब

तक उसका रवत का सदभथ रा अचानक उस सदभथ स करकर न होन जसा हो रहा ह तारक को अजीब-

सी मानवसक दरी और भयकर अकलापन-सा महसस हआ िह यहा आया ही कयो रा रवत की

नामौजदगी म दकतना बमानी ह उसका यहा होना रजत को भी दकतना दफजल-सा लग रहा होगा

उसका यहा उपवथरत होना वजन लोगो स वघरा ह ि तो सचमच उसक अपन हhellip तारक तो दर स भी

अपना नहीhellip मत स तारक का जो भी नाता रहा होhellip उसक दकसी दसर स तो नही रा उसक कॉलज

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कामो स लौर बचच भी तारक को पहचानत नही र तारक न ही उनकी शकलो और वयिहार स अदाज

लगाया रा और हॉलि म लगी तथिीरो स उनदह पहचान पाया रा

तारक क पास रजत स कहन को कछ नही रा उसका कछ भी कहना रजत को खल सकता रा

उलर तारक को लगन लगा दक रजत शायद सोच रहा हो दक अब कयो जखमो को याद ददलान आ गय

हो कछ भी हो तारक न उस पीड़ा तो पहचायी ही री कया अब उसका कछ भी करना रजत क कि को

कम कर सकता रा उसन वनगाहो स ही अपना दख बयान कर ददया जो शायद रजत न थिीकार भी

वलया राhellip शायद एक औपचाररकता की तरह जस िह दसर बहत स जमा लोगो की शोकावभवयविया

थिीकार रहा राhellip उसस कछ अलग नही शायद तारक का िहा होना ही रजत को खल रहा हो पर

िि की नाजकी की िजह स िह कछ कहना न चाह रहा हो तारक एकदम परशान-सा उठ खड़ा हआ

कछ लोग रजत क गल लग रह र शायद उसस विदा लकर जा रह र तारक न सोचा िह अब

कहगा दक रवत क पास कछ उसक जररी कागजात र अगर रजत उस कागजो िाली जगह पर ल चल

तो िह खद ही दख लगा तारक यि की गवत स रजत की ओर बढ़ा रजत जस दकसी को दख कर भी

दख नही रहा रा उसकी आख दकसी शनदय पर ररकी री तारक को लगा उन लोगो क वघराि म

वजसम उसक अपन अजीज दोथत और ररशतदार र रजत न उस कोई विशष लकष नही दकया तारक क

भीतर अजीब सनापन-सा आ वघरा लगा जस रवत रजत म कही नही री वसफथ भरम-सा हआ रा उस

उसक िहा होन का जस दक उसक रवत क नात स िहा होन म ही कोई भारी असगवत री उस लगा

िहा बठ अजनबी स लोग उस घर रह र उसक िहा होन पर परशनवचनदह लगा रह र पता नही दकतन

ही अजनवबयो स वघर गया रा तारक यहा तक दक रवत की उस तथिीर म भी उस रवत नजर नही आ

रही री िह भी कोई अजनबी छाया री यह दवनया उसकी नही री अगर िह रवत की दवनया रही

भी हो तो वजस रवत को िह जानता रा उस रवत क वलए भी यह दवनया अनवथतति री विसगत री

उसन रजत को बहत सभलत सभलत गल स लगान की औपचाररकता की उस लगा जस िह

दकसी अजनबी को गल लगा रहा रा रवत वजतन उसक अपन पास री उतन और कही नही दकसी क

पास नही दरअसल रवत और कही नही री उसक भीतर रीhellip बस उस रवत को िही अपन भीतर ही

कही सजोय रखना रा भीतर ही खोजना रा भीतर ही तसलली करनी री दकसी और स बार नही

सकता रा रवत को रजत क दोनो कधो को हलक स दबाकर उसन धीर स कहा rdquoरक कयरrdquo और मड़ा

तो वबना पीछ दख बाहर वनकल गया

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पासपोरथ अमरीकन मरो

ओम गपता

पासपोरथ अमरीकन मरो पर रगत सहदथतानी

आज सनाऊ तमको पयार अपनी रामकहानी

छोड़ो भारत मन भयया डॉलर दख-दख ललचायो

चार-पकोड़ी जब भी दख मोह म पानी भर आयो

दीिाली पर दीप जलाउ होली पर खल रग

मौको जब मझको लगतो पीतो म भी भग

कसो होगी सरकार हमारी मोक हरदम सचता

जब भी दश पड़ सकर म कपा करो हनमनदता

पज म अब भी राम-कषण जातो मददर रोज

गपशप यारो स करतो फोकर म वमलतो भोज

योगी-बाबा आए दश स जब दन मझको जञान

आख मद क ना कछ जान करतो उनको सममान

हमबगथर अब भी नही भातो भाती मझ कचोड़ी

जसो जब भी मौका आयो रोपी िसी ओढ़ी

जाऊ दश को जब म अपन खाऊ लडड और इमरती

कहतो खद को सहदथतानी अमरीका मरी अब धरती

कहन को बहत ह भयया रोड़ को समझो काफी

बरा-भला लगा जो तमको माग नतमथतक माफी

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शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

आकाकषा ह

वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

फर च अनिाद कर इस lsquoभोगिाद स पीवड़त पविम की आतमा को अतयवधक शावत दन िालाrsquo कहा

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ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

की सीमाओ क पर मनषय कया अनभि कर सकता ह उसकी एक झलक भी ददखा दता ह उसी

औपवनषदीय जञान को महरवष िदवयास न सामानदय जनो क वलए ldquoपविि गीताrdquo म सवकषपत रप म परथतत

दकया ह िदवयास की महानता ही ह जो दक 11 उपवनषदो क जञान को एक पथतक म बाध सक और

मानिता को एक आसान यवि स परमातम जञान का दशथन करा सक ldquoपविि गीताrdquo महाभारत क

भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

ह भगिद गीता वहनदद धमथ क पविितम गरनदरो म स एक ह जो इसानो की चौहददी की सीमा रखा पर

भगिान क शरी मख दवारा इसान स कही गयी सरहदो पर चहरो की थकररनी का लखा-जोखा ह यह

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पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

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Page 7: Year 12, Issue 47Year 12, Issue 47 vsu2avsu2a · राथत § में आ वबछ §ग . ... श्रराम की अन ¡कम्पा स § ह हाल ह में

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मरली कस अधर धर

महाकवि गलाब खडलिाल

मरली कस अधर धर

सर तो िदािन म छर कस तान भर

जो मरली सबक मन बसती

वजसस री तब सधा बरसती

आज िही नावगन-सी डसती छत वजस डर

वजसको लत ही अब कर म

पीड़ा होती ह अनदतर म

कस दफर उसकी धन पर म जग को मगध कर

इसको तभी धर अधरो पर

जब सग-सग हो राधा का थिर

जब यह मरली सना-सनाकर उसका मान हर

मरली कस अधर धर

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भारत और भारतीयता का अरथ

परो गिरीशवर ममशर कलपवत महातमा गाधी वहनददी विशवविदयालय

आजकल क चरवचत सरोकारो म भारत और भारतीयता क सिाल परछन न और परत यकष दोनो ही रपो

म खासी चचाथ का विषय बन चक ह और कई बड़ बवदधजीिी इस पर बहस म वशरकत कर रह ह दसरी

ओर ऐसो की भी कमी नही ह जो इस बमतलब का मददा मानत ह इसका पररदश य आज जररल और

बदला हआ ह दश क थ िति होन क पहल और थ िति होन क ततकाल बाद और अब लगभग सात

दशक की पररपक िता क करीब पहचत-पहचत इस लकर आज बहतर यह मान कर इस तरह की चचाथ

स तरथ र हो चल ह दक यह तो कोई सारथक परश न ही नही ह कछ इस िवशवक या भमडलीकत हो रह

आज क समय की जररतो क अनसार समझना चाहत ह कछ इस किल थ रानीय दवि स ही दखना

चाहत ह कछ इस सभ यता और सथ कवत क विमशथ स जोड़ कर दखत ह जो भी हो अतरराष रीयता क

सार परयासो क बािजद आज भी राज य या नशन थ रर की अिधारणा वनणाथयक महत ि रखती ह और

वनकर भविष य म सीमाविहीन दश जसी कोई अिधारणा आकार लती नजर नही आती आज का सत य यही ह दक दशो की सीमाए बाधा (का अवधक) और सपकथ (का कम) का काम

कर रही ह दश की सीमाओ की रकषा सबक सामन एक बड़ी चनौती ह दश और राष र किल कोरी

भौगोवलक अिधारणाए नही होती उन इकाइयो की रचना क सार एक समाज या समदाय विशष की

आशा-आकाकषा भी जड़ी होती ह दश की अिधारणा एक थ िप न को समरवपत रहती ह आज क तमाम

राष रो क सार उनक सार जड़ी लबी सघषथ-गारा आसानी स दखी जा सकती ह जो दसर समाजो और

समदायो की सामराज यिादी आकाकषाओ क परवतरोध को दशाथती ह शविसपनद न और आरवरक रप स परबल

दशो की दादावगरी उनकी सतता और शवि का जलिा अभी भी बरकरार ह कहन का तात पयथ यह दक

दश की इकाई अभी भी राजनवतक सामावजक आरवरक सामररक और सास कवतक रप स महत िपणथ

बनी हई ह और उस नकारा नही जा सकता

आज बौवदधक किायद म भारत समत सब कछ करथ रड मान जान का फशन-सा चल पड़ा ह

पर उसस दर करोड़ो (भारतीय) जनो क तन-मन म भारत जीवित ह आम आदमी वजनस दश आकार

लता ह िह भारत की एक सामावजक थ मवत भी रखता ह उसक वलए दश थ रानबोधक ह और भारत

एक भाि भी ह भारतीय होन का मतलब ह भारतभवम म रहन की जीिन-व यिथ रा म शावमल होना

भारत कह या इवडया यह मलतः एक भौगोवलक थ रान और उसकी पररवध को रखादकत करता ह इस

भभाग को जब दवीप आयाथितथ भारतिषथ और सहदथतान क नाम स भी जानत ह वहमालय और

सागर इसकी सीमाए बनात ह शथ यश यामला क दश गान और जनगणमन क राष रीय गान म जीित

भारत माता को वजस रप म थ मरण दकया गया ह िह भौगोवलक अिधारणा ही नही उसकी सीमा म

रहन िाल बासशदो की सामावजक-साथ कवतक अवथमता पर बल दती ह वजसका एक भािात मक रप भी

ह भारत एक सामावजक शरणी भी ह जो समाज दवारा रवचत और थ िीकत ह यह उस सामावजक

आकाकषा का परतीक भी ह जो एक आदशथ वथरवत की ददशा म जान क वलए परररत करती ह आधवनक

यग म एक थ िति जनति क रप म एक राज य की थ रापना हई और सहमवत स एक सविधान बना और

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सामावजक आकाकषा को एक मतथ रप वमला हमन उसम आिश यकतानसार बदलाि भी दकया ह इस

इकाई क सदथ य क रप म हमारी एक भारतीय पहचान ह

स मरणीय ह दक एक समदाय या सामावजक इकाई की वभनद नता या अलग सतता थ रावपत करना

वयािहाररक दवि स भी आिश यक ह ऐसा करना समाज को अदर स बाधता ह एकजर करता ह और

अनद य (िसी ही) इकाइयो स फकथ करता ह िधावनक रप स नशन या राष र एक काननी इकाई भी ह

और उसक सदथ य िध नागररक होत ह वजसकी थ िीकवत अनद य राष र भी करत ह और पासपोरथ िीसा

आदद की व यिथ रा स आिागमन को वनयवित करत ह नागररक क रप म िधावनक सामावजक और

साथ कवतक अवधकार क सार कतथव य और दावयत ि म भी भागीदारी होती ह समाज की वनयवत ह दक

जावत भाषा बोली कषि भोजन िथ ि रीवत-ररिाज धमथ आदद की विशषताए आ जाती ह इनक

सार समाज का भािात मक लगाि होता ह और उसक सदथ य थ िय को उसी आधार पर पररभावषत भी

करन लगत ह चदक इन विशषताओ का सचार पारथ पररक सबध और जीिन क विविध व यापारो स

गहरा ररश ता होता ह इसवलए य उस समाज की पाररभावषक विशषताए बन जाती ह

भारत दश हमार समकष एक सभ यता और मल य दविसपनद न सामावजक इकाई क रप म

उपवथरत होता ह इसकी समझ कई रपो म वमलती ह वनकर इवतहास म झाक तो पाएग दक इसक

कई रप ह एक छोर पर सहद उपलवबध को बलपिथक रखन िाल वतलक अरसिद सािरकर और

विवपन चर पाल जस ह दसरी और गोखल रानाड गाधी और रगोर सरीख आध यावतमक विचार को

मानन िाल ह जो सभी परभािो को आत मसात करन को तयार ह य सवहष णता आत मवनयिण आदद क

सार एक तरह की बहलता को ठीक मानत ह तीसरी ओर आधवनक दविसपनद न नौरोजी और पवडत

नहर जस लोग ह जो भारत को एक विकवसत सभ यता तो मानत ह पर यह भी महसस करत ह दक

उसका हरास भी हआ और उसम बहत कछ आधवनक जीिन दवि क विपरीत हआ जो आज उपयोगी

नही ह उनक वहसाब स एक बहलतािादी आधवनक नजररया जो विजञानसम मत हो उपयक त ठहरता ह

आज हर भारतीय की एक बहआयामी पहचान बनती ह िह सहद बगाली मवथलम गजराती

कश मीरी वबहारी बराहमण ओबीसी जन ईसाई आदद िाली एक सार कई तरह की पहचान रखता ह

य वभनद न वभनद न पहचान अक सर एक दसर की विरोधी न होकर परक होती ह साथ कवतक रप स ि

गहरी पठी ह और उनक सार लोगो का गहरा सािथजवनक लगाि भी ह िथ ततः हर भारतीय की

पहचान (आइडरररी) की अलग व यिस रा ह कोई एक यनीफामथ पमाना नही ह जो यह तय कर दक कई

पहचानो म स कौन सबस ऊपर नबर िन पर ह यह एक बड़ा तरल या फलइड मामला ह आज

पजा-पाठ सगीत और थ िाथ थ य लाभ क अनक क र भारत भर म फल हए ह जहा आन जान स सहद

ईसाई वसख और मसलमान दकसी को भी परहज नही होता कई पहचान क सार रहना अथ पष रता तो

पदा करता ह पर शायद दसरो क वलए िथ ततः हर भारतीय कई (उप) सथ कवतयो म जीता ह और य

सब वमलकर उसकी पहचान बनाती ह इस अरथ म हर भारतीय शायद बहसाथ कवतक ह और उसकी

पहचान बहआयामी

दश की छवि दशिावसयो क आत मगौरि का माध यम होती ह आज क भारत का अग होना उस

वबलाग करना हमको आरवरक परगवत की ओर अगरसर एक दश एक आरवरक पािर क सार जड़न का

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एहसास दता ह दसरी ओर भरष राचार अवशकषा अव यिथ रा सामावजक करीवतयो और भदभाि क

कारण मन म रकान उदासीनता और असहायता की भािना भी आती ह इस सबक बािजद एक

भारतीय का बोध जरर ह जो पजाबी मराठी या गजराती होन अलग जावत िगथ और समदाय का

सदथ य होन पर भी सबको भारतीय बनाता ह कभी-कभी विविधता म एकता िाल नहर जी का

भारत अपररभाषय या अव याख यय लगता ह भारत को एक विथ तत साथ कवतक इकाई क रप म दखन

पर कछ विचार उभरत ह जो भारतीय होन क अरथ को थ पष र करन म सहायक होत ह इनम परमख ह

धमथ कमथ पनजथनद म को दकसी न दकसी रप म थ िीकारना सामावजक इकाई - पररिार जावत समदाय

क थ तर पर अपन अवथतत ि को महसस करना सक स वििाह और अनद य व यवियो क परवत खास दविकोण

को अपनाना बहलता का थ िीकार और खल कछ-कछ असगरठत दकथ म की आत म या सल फ की

अिधारणा का थ िीकार और दकसी न दकसी रप म दकसी बड़ी जञात-अजञात सतता स जड़ाि की

अवभलाषा और पररिश परकवत और सवि क सार साझदारी तरा परथ पर अनपरकता का भाि

समकालीन विमशथ म राज य और राष र की अिधारणा क अरथ बहत कछ इस पर वनभथर करत ह

दक कौन दकस दविकोण और परयोजन स इन पर गौर कर रहा ह अक सर इनद ह अतीत ितथमान और

भविष य स जोड़ कर दखा जाता ह और लोग अपन चन िचाररक आदशथ स रग कर ही इस पर विचार

करत ह इन शब दो और इनस जड़ अरथ थ रान और समय क सार-सार बदलत रह ह जो थ िाभाविक ह

भारत दश क बार म सोचन की एक बड़ी मवशकल यह ह दक हमारी अपनी पररभाषा क पमान हमार

अपन न होकर दकसी और क ददए हए ह ि हमार बौवदधक मानस म इतन गहर पठ चक ह दक अब हम

अपन पमान क बार म भरोसा ही नही कर पा रह ह और खद को पररभावषत करन का अवधकार ही

खोत जा रह ह आरवरक और तकनीकी परगवत क पसराि की दवनया म आज हमारा आतम-सशय इतना

गहराता जा रहा ह दक भारत और भारतीयता की बात करना परानी और ददकयानस और इसवलए

अपरासवगक मानी जान लगी ह अगर इसकी बात करनी भी ह तो उसकी सनद कही और स जरानी

होगी आज अपनी पहचान क वलए हम पविमी दशो म विदवानो क दवारा परमाण और गिाही चाहत ह

आज भारत की साथ कवतक विविधता को सपनद नता और समवदध क ोत क रप म समझन समझान की

जररत ह वजसका उपयोग समाज क विकास म दकया जाय इसक वलए भारत को भारत क नजररए स

दखना होगा वबना इस भय क दक भारतीय होना दकसी कषमा याचना की अपकषा करता ह थ िदशी और

सराज जस विचार अभी भी परासवगक ह समरथ और थ िािलबी होन क वलए आत म थ िीकार और सतत

पररष कार आिश यक ह

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भकप का सदश

डॉ एमएल गपता ldquoआददतय

धरती हर ददन डोल रही ह कपन की बोली बोल रही ह

विनाश कर आकरोश स बदल कय भगोल रही ह

कय धरती न भकरी तानी कय वहमालय म आिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

जो ससाधन र पोषण क उनका शोषण कर डाला

ओजोन का जो किच रा उसका भी भदन कर डाला

बरहमी स कार हमन िसधरा क िन-कश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

सागर क तीरो को छीला पठार और पिथत को लीला

नददया बनी नाल और नाली नही ददखता जल वनमथल-नीला

चतािनी द रहा ह मौसम बदला भमडल का पररिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

विजञान की सीढ़ी चढ़ विनाश का सामान बनाया

परमाण सयि द रह यातना विकीरण का खतरा मडराया

रवडएशन स आतदकत ह दवनया क सब दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

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कोई अण कोई परमाण कोई हाईडरोजन बम ल ऐठा ह

वबछी हई बारद धरा म मानि बमो क ढर पर बठा ह

हआ परमाण यदध तो वमर जाएग दकतन दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

भकषक बनकर मानि इक दज पर चोर कर रहा

परीकषण की खावतर दकतन भीषण बम विथफोर कर रहा

परकवत का सतलन वबगड़ा तो हम बन जाएग अिशष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

कदरत कहर बरपा सकती ह कभी भी आफत आ सकती ह

धरा की जरा सी भी हरकत दकतना कोहराम मचा सकती ह

धरा न जरा करिर बदली तो कछ भी न रहगा शष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

पयाथिरण क आघात पर अब तो रोक लगानी होगी

सागर पिथत धरती क सग बद करनी मनमानी होगी

धरती को जो मा मानोग सब वमर जाएग कलश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

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ि दोनो

डॉ सषम बदी

छत स फशथ तक क लब शीशो स जड़ी उस बड़ी-सी बठक म खब सारी ददन की रौशनी भरी हई

री फशथ पर वबछी सफद चादरो पर सफद िसतर पहन ढर सार लोग उस रौशनी का ही वहथसा लग रह

र कमर म घसत ही तारक को लगा जस उस शवतता म घल मौत क सदथपन और जड़ता न अचानक

उसक भीतर को जकड़ वलया ह बीचोबीच फलो की माला चढ़ी एक बड़ी-सी रवत की तथिीर री

वजसका धप दीप और गीता क शलोको स अवभषक दकया जा रहा रा रवत अब तथिीर भर री तारक

की थतबध पवनयायी आख वनथसहाय-सी रजत को खोजन लगी

रजत सारा िि लोगो स वघरा ही रहा रा उसकी मा उसक बचच और दसर ररशतदार कोई न

कोई उसक आसपास रा ही उन दोनो की आख एक दसर स दो एक बार वमली पर रजत अपन स

बाहर नही आ पाया रा तारक न दकसी तरह अपनी शोकभािना वयि कर दी री न भी वयि करता

तो कया रजत को तो खद भी अहसास होगा उसकी अतभाथिना का एक िही तो ह इस भीड़ म जो

जानता ह दक िह कयो यहा ह बाकी तो तारक दकसी स पररवचत ही नही वसिाय कछक रवत क

कलीगज क एक दो कलीगज स ही उसकी बात हई रवत क बार म ि उस पररिार का वमि मानकर

बात कर रह र य पररिार का वमि तो िह रा ही पर इसस अलग या ऊपर भी कछ रा यह शायद

रजत क अलािा और कोई नही जानता रा जबदक रजत भी परा कहा जानता ह खास तौर स िह सब

कछ जो तारक महसस करता रहा ह या जो कछ तारक और रवत क बीच म रहा या अभी भी वजसका

बहत कछ बचा रा

य तारक न बहत बार सोचा दक अब रवत नही रही तो उसक यहा जान का कोई फायदा नही

उसकी तकलीफ बढ़गी ही दफर लगा दक नही उस रजत स वमलन जाना होगा रजत भी तो उसका

दोथत ह य रवत उन दोनो क बीच न होती तो ि शायद बहत गहर दोथत हो सकत र दफर भी िह खद

को कई तरह स रजत क करीब महसस करता रा और रजत भी बहत मामलो म उसी स सलाह करक

चलता रा उस पर भरोसा करता रा जो दक उसक मन क दोथती क भाि को ही जताती री चदक

तारक की विशषता ददल क रोगो म री िह रवत क हारथअरक क बाद स उसस अकसर रवत क बार म

सलाह लता यहा तक दक रवत स भी कोई वशकायत होती तो तारक स ही कहता दखो न इसका

कोलथराल इतना हाई चल रहा ह और मडम चीज मीर सभी कछ खाती ह अभी रथतरा ल चलो परा

का परा थरक गरक जायगी कस कर यह तो खद को नकसान पहचान स बाज नही आतीrdquo और तारक

तब ररका दता कसी डाकरर हो तम रवत मरीजो को उपदश दती रहती हो और खदhellipदफर उसन

खद ही एक विशषण गढ़ा रा रवत क वलए lsquoनानकपलायरrsquo यानी दक जो कछ भी कहा जायगा उसका

विरोध ही करगी रवत और दकसी िजह स नही बवलक विरोध करन क वलए विरोध

तब रवत और भी तिर चढ़ाकर बोलती rdquoरजत तो पहल ही मर पीछ पड़ा रहता ह अब तम

भी इसी स वमल गय हो िाह जी िाह दोथत दकसक हो तम मर या रजत कrdquo

तारक तब चप रह जाता रा रजत भी कछ नही कहता एक वपरय अवपरय सतय

शायद रवत भी इसीवलए कहती री दक तारक तब लाजिाब हो जायगा कयोदक रवत जानती ह दक जो

िह तारक क वलए ह िह और कोई नही हो सकता और रजत को भी इसका अदाज ह इसी स रजत न

शर म चाह दकतना विरोह दकया हो दकतना लड़ाई झगड़ाhellip दफर धीर-धीर मान वलया रा इस ररशत

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को रवत क वलए ही अगीकार कर वलया रा तारक को भी रवत न ही उस बतलाया रा जब रजत न

उस बाहो म भरकर कहा रा rdquoइतना पयार करता ह तमह दक यह भी थिीकारन क वलए राजी हrdquo

एक हक-सी उठी री तारक क भीतरhellip वजस इतना पयार वमला होhellip इतनाhellip िह इस तरह स

उन दोनो की वजनददगी को ही सना करक रखसत हो ली तारक क मन म गथसा भी आयाhellip शायद

अपनी सहत का धयान रखती तो कछ और जी जाती उन दोनो स ही तो चार-पाच साल छोरी री िह

जी भी सकती री पर अबhellip और तारक न लबी सास भरी

रवत की एक कलीग बता रही री rdquoपरसो तो काम पर आयी हई री रवत म सोच भी नही

सकती री दक इतना भारी थरोक हो सकता ह दक एक ही लपर म ल जायhellip मझ तो विशवास ही नही

होताrdquo तारक को भी विशवास नही होता रा उसी ददन सबह रवत न उसस फोन पर बात की री और

उसस मजाक दकया रा rdquoमर जनदमददन पर आओगrdquo

दरअसल सारा झगड़ा कछ साल पहल रवत क जनदमददन को लकर ही शर हआ रा िनाथ शायद

रजत को उन दोनो क बीच बढ़त ररशत की तवनक खबर न लगती रवत न उस बतलाया रा दक उसक

जनदमददन पर िह और रजत आमतौर पर शाम को बाहर दकसी बदढ़या स फर च रथतरा म खाना खान

जात ह तब तारक न कहा रा rdquoठीक ह तो लच तम मर सार लनाrdquo

रवत मान गयी री उसन उसी ददन रवत क शहर पहचन क वलए फलाईर भी बक करिा ली

री पर जब ठीक जनदमददन आनिाला रा तो रवत न उस बतलाया रा दक रजत को ठीक नही लग रहा

मरा तमहार सार लच पर जाना िह पछ रहा रा दक इतना इमपॉरर कस हो गया यह आदमी दक

तमको उस जनदमददन पर जरर वमलना ह

rdquoतमन कया कहाrdquo तारक वजजञास हो उठा रा

rdquoयही दक तमको दकसी काम स शहर म होना रा इसवलए लच पर वमलन की बात की इस पर

उसन कहा दक अगल ददन वमल लो जनदमददन िाला ददन तो उसी क वलए हhellip कोई और कयोrdquo

दफर िह बोली rdquoइसी पर उस शक हो रहा ह दक यह कोई आम दोथत नहीhelliprdquo

तारक न जोड़ ददया रा rdquoपरमी हrdquo

rdquoहा यही शक हो रहा ह उसrdquo

rdquoतो ह या नहीhelliprdquo

rdquoशायद होhellip यही मसीबत हrdquo

तारक न कहा रा rdquoअब तो ररकर ली हई ह म तो आऊगा ही तम वमल सको तो वमलना िनाथ

न वमलना चाह पाच वमनर क वलए या कॉफी क वलए भी आ जाओगी तो मर वलए िही काफी होगा

तमहार जनदमददन पर तमह दख भर लrdquo

rdquoतम भी कमाल क रोमाररक होhellip पर सच कह तो म भी तमस वमलना चाहती ह उस ददनhellip

कछ न कछ तो जगाड़ना पड़गाrdquo

rdquoमर वलए तमहारा जनदमददन मरी वजनददगी का बहत अहम ददन हhellip समझीrdquo

एयरपोरथ पहच कर तारक न फोन दकया रा रवत बोली री rdquoरजत कह रहा ह तम हम वडनर

पर जॉयन कर लोrdquo

तारक बहत हरान हआ रा पर रवत न फोन रजत को पकड़ा ददया रा तारक एकदम सकर म

पड़ गया रा उसन खद को बचान की कोवशश की rdquoसॉरी म तो यहा आया रा तो सोचा रवत स वमल

लगा पर इस तरह आप लोगो क परोगराम मhelliprdquo

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रजत न जोर दकर कहा रा rdquoनही भाई बहत तारीफ सन रहा ह बीिी स जरा हम भी तो

वमल आपस आप चाह तो घर पर आ जाईए या दफर सीध रथतरा पर वमलगrdquo

rdquoपर आप लोगो का तो वडनर पर सार जान का कायथकरम रा नrdquo

rdquoआप लच पर फरी ह तो लच पर वमल लत ह य मझ तो वडनर ही पसद ह जसा आप कहrdquo

रजत वबलकल दोथताना ढग स बात कर रहा रा एक पल को उसकी रोन म कछ तनाि तारक

को महसस हआ रा पर अगल ही पल आिाज दफर सहज हो गयी री तारक मान गया पर रकसी लकर

पहल होरल म सामान छोड़ा और इस दौरान खद को मानवसक तौर पर तयार भी करता रहा दक कस

पश आना ह अपन रकीब स दखा जाय तो ररशता रकीब का ही रा बाकी ि दकतन भी सभय या

समझदार इसानो की तरह एक-दसर स बताथि कर आवखर ि तीनो सममावनत पश क र तारक हारथ

थपशवलथर रा तो रजत अगरजी सावहतय का परोफसर और रवत सायकायररथर इसानी मन की

कमजोररयो को समझना मनोरोगो का इलाज करना रवत की विशषता तो री ही पर इसानी आकषथण

एक दसर क परवत सखचाि या ऐस ररशतो को समझन की सथकवत तो कही तीनो म ही री

रजत इस बात को खब समझता रा दक दकसी भी औरत क वलए दकसी दसर परष क परवत

सखचाि हो जाना बहत सहज रा िही एक पवत और पतनी स परम करन िाल क रप म िह रवत क इस

वयिहार स ईषयाल भी हो उठता रा एक सभय इसान क नात िह ईषया को दबा कर तारक क परवत भी

वमिित वयिहार करना चाहता रा पर िही उस रवत क वयिहार स कि पहचता रा दक िह उसक

अलािा भी दकसी दसर परष को चाह सकती ह वजसस उसक मन म आकरोश और वितषणा का भाि

उठता कभी िह अपन को उदार बना कर यह कहना चाहता दक रवत अगर दकसी दसर को चाहती ह

तो बशक उसको भी कयो न पाय सार ही जब करोध होता तो एक तरह स जस िह रवत को सजा दन क

वलए कह डालता rdquoतम जाओ दोनो सार रहोrdquo पर जो पीड़ा िह उसम सह रहा होता िह रवत और

तारक दोनो क वलए ही असहय होती

रवत न कहा रा rdquoकया तारक और म दोथत नही हो सकत और इतन दोथत हhellip एक िह वयवि

वजसस बात करक मझ खशी वमलती ह िह दोथत कयो नही बन सकता वसफथ इसवलए दक उसक मन म

तीखी भािना ह मर वलएhellip या शरीरो का आकषथण भी हhelliprdquo

रजत तब तकथ स सारी बात को समझन समझान की कोवशश करता हा करत-करत कह दता

rdquoऔरत आदमी म दोथती हो ही नही सकती कयोदक जहा शरीरो का आकषथण हो िहा दोथती जसा

वनषकपर भाि कस पनप सकता हrdquo तब रवत दोथती का एक और पकष पश करती rdquoतमहार कहन का

मतलब तो िही ददकयानसी बात हई दक शरीर पाप का मल ह जबदक तम खद ही यह पहल कह चक

हो दक शरीरो का मसला हल हो जाय तो औरत मदथ बहत खबसरत दोथत हो सकत हhellip शरीर को

अहवमयत दी कयो जाय शरीर वमल जान स उनका दोथती म बाधा बनन का मसला खतम हो जाता हrdquo

रजत रवत की बात मान भी जाता रा पर रवत दफर तारक को यह भी बताती री rdquoिन कार

रक वहम फॉर गरारड कल को िह अपना कोई नया तकथ द दगाrdquo

शायद इसी स तारक भी अचानक वहममत हारन लगा रा कस सामना करगा िह रजत का य

िह रजत स एकाध बार पहल वमल चका रा पर तब उसको यह अदाजा नही रा दक रवत और उसक

बीच कछ रा जबदक तारक तब भी कछ आतमसजग-सा हो रहा रा पर कछ वमनरो की मलाकात को

सभाल लना कोई बड़ी बात नही री और य भी रजत उस भला आदमी लगा रा यह भी सोचा रा दक

अगर रवत उन दोनो क बीच न होती तो यह वयवि उसका दोथत हो सकता रा य रवत क होन क

बािजद अतत ि दोथत बन ही पर इस दोथती का तानाबाना िसा न रा जस खावलस दोथती का होता

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ह इसम रवत क रश बन हए र जो एक और ही रगत वलए र और िह रगत तारक को बहत पयारी री

उस दोथती स जयादा

तारक न होरल पहच कर फोन कर ददया रा दक वडनर पर वमलना ही ठीक रहगा और िह

अपना काम इस दौरान कर लगा रजत आसानी स यह बात मान गया और कहा दक िह सडरकस पर

पहल घर पर आ जाय उसक बाद रथतरा खाना खान चल जायग

शाम को जब िह चलन लगा तो फोन बजा रा दसरी ओर रवत री हलो कहत ही रवत न

कहा rdquoसनो तम मत आना मर घर म बहत रशन चल रही हrdquo इसस पहल दक िह कछ कहता रवत न

फोन वडसकनकर कर ददया

रात को कोई फलाईर नही जाती री िनाथ िह उसी िि शहर छोड़ क चला जाता

आध घर बाद ही घरी दफर बजी रवत पछ रही री दक आ रह हो तारक बौखला गया दक आवखर हो

कया रहा ह कया यह रवत क मन की उलझन ह या दक रजत कीhellip या दोनो कीhellip या रवत वसफथ रजत

की उलझन को वयि कर रही री बोली री rdquoजलदी आ जाओ हम लोग इतजार कर रह हrdquo

िह पहचा तो रवत न अकल ही उसका थिागत दकया रा िह जानता रा दक दोनो बचच कालजो

म ह पर रजत काफी दर तक बठक म नही आया तो तारक हरान हआ रवत बोली rdquoिह नहा रहा हrdquo

दफर मथकरा कर जोड़ा rdquoशायद हम दोनो को कछ िि दना चाहता हrdquo

तारक तब कछ निथस हआ रा उस आग बढ़कर रवत को चमन का हौसला नही हआ उस लगा

दक रवत भी सहज नही री जस दक आम तौर पर होती ह पर उसन कछ कहा नही िह खद भी तो

सहज नही हो पा रहा रा जस लड़की क बाप क घर म शादी का परथताि लकर जा रहा हो कछ कछ

इसी तरह का महसस हो रहा रा िही डर कर परचा करना रा दक इमतहान म फल न हो जाय

रजत न कमर म आत ही बड़ तपाक स हलो दकया कछ औपचाररक-सी बात की दफर उसस

सडरक पछा और दकचन म बफथ िगरह का इतजाम करन क वलए दफर स गायब हो गया तारक को लगा

दक सहज होन की बहत कोवशश क बािजद रजत बहत असहज ह

ववहथकी का घर लत हए तारक न ही रजत स उसक काम क बार म पछना शर दकया बात

कही जा नही रही री तभी रवत एक नई दकताब की चचाथ करन लगी वजसका ररवय सबह क अखबार म

छपा रा तारक न हिाई जहाज म ही उसक बार म पढ़ा रा दफर तो बातचीत खब गरमागरम होन

लगी रजत न दवकषण एवशयाई अगरजी लखको क बार म अपन विचार झाड़न शर कर ददय यहा तक

दक रवत न अचानक घड़ी दखी तो पता चला दक रथतरा की ररजिशन का िि हो चका रा रजत न

रथतरा को फोन दकया दक कछ वमनर लर पहचग और तारक को बोला दक जलदी स सडरक खतम कर ल

या गाड़ी म ही ल चल दोनो न दो तीन सडरक चढ़ा रख र मौज-सी भी आयी हई री रजत ही कार

चला रहा रा और तारक पीछ िाली सीर पर बठा रा अचानक रजत कछ नश और कछ अपनी धन म

बोला rdquoतो तम मरी बीिी स पयार करत होrdquo

तारक भौचक-सा हो गया य ही बठा रहा जस रजत की बात को सना न हो या िह गभीरता

स लन लायक न हो रजत न अपनी बात को सिाल बनाकर दबारा पश दकया rdquoकयो तारक मरी बीिी

स पयार करत हो या नहीrdquo

तारक न कहा rdquoहाrdquo और चप कर गया उस लग रहा रा िह जो भी जिाब दगा खतर स खाली नही

पर यह जिाब सच रा तो सच बोल कर ही मार खायी जाय उस दकसी लड़की क वपता स हार मागन

नही जाना पड़ा रा आज यह भी सही

rdquoतम भी पयार करत हो िह भी करती ह तो तम दोनो सार कयो नही रहतrdquo

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तारक बोल पड़ा रा rdquoयह इतना आसान नहीrdquo

रजत इस पर आकरमण करता-सा बोला rdquoकमाल ह पयार भी करत ह और वजममिारी भी नही

वनभाना चाहतrdquo तारक को महसस हो रहा रा दक रजत कह तो कछ रहा ह और पहचाना कछ और

चाहता ह दफर भी िह जिाब तो उसी बात का द सकता रा जो दक पछी जा रही री यह कह कर

उस नाराज भी नही करना चाहता रा दक रजत वसफथ अपन भीतर क आकरोश आतक और आग को

आिाज द रहा रा बोला rdquoयह बात नही म आज भी रवत क सार वजनददगी शर करन को तयार ह

जहा तक म जानता ह रवत अपन शहर को छोड़ कर और कही नही जायगी न िह तमको छोड़न को

तयार होगी जहा तक म रवत को जानता हhelliprdquo

रवत चपचाप अपन पर अकश लगाय दोनो की बात सन रही री न तो िह रजत क पकष म

कछ बोलना चाहती री न तारक क पकष म ही बोल सकती री दफर भी दोनो क बीच तारतमय वबठाय

रखन की वजममिारी भी उसी की री और िह समझ नही पा रही री दक दकस तरह इस बातचीत को

सीमाय लाघन स बचाया जाय ऊपर स उस डर लग रहा रा दक आिश म रजत कही रककर न मार द

रथतरा बहत दर रा भी नही बात पर चरम पर चल रही री दक रथतरा आ गया रवत न रोका rdquoरजत

पारककग ढढ़ो रथतरा आ गयाrdquo रथतरा क सार ही पारककग गराज म गाड़ी छोड़ कर तीनो अदर चल गय

िरर न उनको मज पर वबठाया और सडरक क वलए पछा तरा मनदय लाकर ददय तीनो क तीनो उस मज

पर इस तरह खामोश और भर बठ र दक मनदय म वसर डबोना एक राहत बन गया रा तीनो न अपन-

अपन आडथर ददय पर बात कछ बन नही रही री हर कोई कछ भी कहन म जयादा ही सतकथ हो रहा रा

अचानक रवत बोली rdquoरजत तमको इतनी जयादा तकलीफ री तो तमन मना कयो नही कर

ददया म तो तारक को कह चकी री दक आज सार खाना नही होगा तमही न जोर ददया दक जरर

बलाओ अब इस तरह कयो बताथि कर रह होrdquo

रजत और भड़क गया rdquoम तो वसफथ यह कह रहा ह दक तम लोग एक-दसर को पयार करत हो

तो म कया कर रहा ह यहा तम जाओ एक दसर क सार रहोrdquo

दोनो की आिाज ऊची हो रही री और दसरी मजो पर बठ लोगो की वनगाह इस ओर उठ आयी री

तारक न धीर स सझाया रा rdquoमर खयाल स हम य बात यहा नही करनी चावहएrdquo सहसा रवत

न होश म आत कहा rdquoहा इतन बदढ़या रथतरा म खाना खान आय ह कछ खान पर भी तो धयान दhellip

दफर आज मरा जनदमददन ह आई िार र हि ए गड मीलrdquo

दफर भी खान पर तीनो म स दकसी का धयान नही लग सका तीनो औपचाररक-सी बात म लग

गय र तारक न ही शहर क निीनतम रथतराओ क बार म ताजा पढ़ी समीकषा का वजकर छड़ ददया रा

रजत न कार स जब उस होरल छोड़ा तो तारक न उपर कमर म आकर सडरक लन क वलए कहा

पर जसा दक िह अपकषा कर रहा रा रजत न दर होन का बहाना बना छटटी माग ली री रवत तब भी

कछ नही बोली री शायद उस डर रा दक उसका कछ भी कहना रजत क वलए घाि पर नमक वछड़कन

जसा होगा या उसकी कोई भी बात का गलत मतलब वनकाल कर रजत भड़क सकता रा य दर हो भी

चकी री

पर तारक यह भी जानता रा दक रवत एक नबर की वजददी री जो उस चावहए रा चावहए ही

रा उस रोका नही जा सकता रा िह ऊपर स मान जायगी पर भीतर स कभी माफ नही करगी

शायद इसी स रजत भी वबगड़ी हई लाड़ली बरी की तरह रवत की हर चाह या माग को विरोध करक

भी अतत मान जाता रा

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लौर आन क दो चार ददन बाद ही उसक फोन पर रवत न सदश छोड़ा रा rdquoतमहारा आना ठीक

नही हआ सॉरी तमह बलाकर भी वमल नही पायी अब लगता ह कभी नही वमलगी लर अस थरॉप

ददस वहयर पलीज मझस सपकथ मत करनाrdquo

तारक बहत ददन परशान घमता रहा रा पर रवत को फोन भी नही दकया उसन मना जो कर

डाला रा उस फोन करत हए तारक को लगता दक िह खद को उस पर लाद रहा ह और यह वथरवत

उस कभी गिारा नही री हर ददन दकसी जिालामखी-सा लाि स लदा हआ गजरता अदर ही अदर

सब तप रहा रा

महीन भर बाद रवत न फोन दकया रा rdquoगथसा हो न मझस तमस माफी भी नही माग सकीrdquo

उसकी तो कोई जररत नहीrdquo

दफर भी सोचा रा तमस कभी बात नही करगी इसी स तमको सपकथ करन स मना दकया

रा रजत को भी यही मालम ह दक तमस ररशता तोड़ ददया ह पर अब मझी स बात दकय वबना रहा

नही जा रहाrdquo

रजत को मालम ह मझस बात कर रही होrdquo

िह बहद गथसा ह तमसhellip जस दक सारा दोष तमहारा होhellip दक तमन उसकी बीिी को फसा वलयाrdquo

ि इसी तरह जब मौका लगता बात कर लत तारक क ददल ददमाग पर रवत ही छायी रहती

िह ऐस ही पलो क दौरान जीता जब दोनो क बीच कछ सपकथ होता बाकी क पल उन पलो क इतजार

म गजरत

इस बीच रवत को ददल का दौरा पड़ा रा घबराकर तारक को फोन कर डाला रा रजत न

तारक आया तो रजत उस अपनी गाड़ी म सार अथपताल ल आता जाता रहा दोनो म एक दोथती का

नाता तभी बना रा दवनया जहान की बात रजत न उस घर पर ही ठहराया रा तारक तीन ददन बाद

चला गया रा िावपस पर दोनो की फोन पर बात हो जाती रवत अथपताल स िावपस आ गयी री

धीर-धीर िह सामानदय होकर िावपस अपना काम सभालन लगी

रवत का जनदमददन दफर स आनिाला रा रवत न उस कहा रा rdquoरजत अपन आप ही बोल रहा ह

दक तम आ जाओ इस बार मरा जनदमददन मनान बोलो आओगrdquo

तारक परानी बात याद करक घबरा गया रा rdquoनही दफर स उसक भीतर सब घमड़न लगगाhellip

सबको तकलीफ होगीrdquo

यह सच भी रा रजत कभी तो उसक परवत बहत वमिित हो जाता िही अचानक गथसा ईषयाथ

उभर आत और िह अकसर बरखी ददखाता अचानक तारक को ऐसा महसस हआ जस रवत उसस खद

यह सब कह रही हो पल भर को िह भल ही गया दक रवत क ही अतयवि कमथ म िह शावमल हआ ह

और दरअसल उसक यहा आन की एक िजह यह भी ह दक िह रवत को वलख अपन खत िावपस ल

जाना चाहता ह उस डर ह दक कही ि खत रजत क हार न पड़ जाय

तारक रवत क सार काम करन िाली इस मवहला डॉ लोपज स पहल वमला हआ रा इस भीड़

म एक िही जान-पहचान की री तारक का मन हआ उसस पछ दक कया िह रवत की दराज म उसक

कागजात पर नजर मार सकता ह तारक को अदाज रा दक उसक खत िह दफतर की मज की दराज म

रखती री पर िह जानता रा दक ऐसा करना ममदकन रा नही आवखर तारक को कस हक पहचता रा

रवत की दराज खलिान का िह तो एक पररिार क वमि की हवसयत स िहा रा रजत ही कह सकता

रा दखा जाय तो ि लोग खद भी रजत स ही कहग दक रवत का सामान िह ल जाय तब तो रजत की

आख जरर उन पर पड़गी तब शायद उसको बरा लगगा दक रवत क सार तारक का एक अपना ररशता

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रा उन तीनो की आपसी दोथती क बाहरhellip रजत को बतहाशा चोर लगगी अब जबदक िह रवत स

जिाबतलबी भी नही कर सकता रवत अब कोई सफाई नही पश कर पायगी तारक क हक म कछ भी

नही कह सकगी दकसी तकथ स रजत को लाजिाब नही कर पायगी नही िह ऐसा नही कर सकता न

यह रवत क परवत सही होगा न रजत क परवत उस दकसी न दकसी तरह स खत पान ह

राथत म आत हए हिाई जहाज म तारक जब लगातार रवत क सार की अपनी वजनददगी क

गजर पल दहरा रहा रा बार-बार उस धयान आता दक जब स रवत को ददल का दौरा हआ रा िह

उसस कहना चाहता रा दक उसक खत विनि कर द एक बार उसन बात उठायी तो रवत बोली rdquoकयो

तमहार खत मर दफतर की दराज म सफ पड़ हrdquo

शायद िह वबना कह यह भी समझ गयी री दक तारक का इशारा दकस ओर ह तभी बोली

दखो जब तक म वजनददा ह म उनको फाड़ कर न तो फ क सकती ह न जला सकती ह एक बार मर गयी

तो कया फकथ पड़ता ह दक कोई कया करगा उनक सार तमको तो दफकर होनी नही चावहए अब तो ि

मरी अमानत हrdquo यह बातचीत दो एक महीन पहल की ही होगी तारक न सोचा रा बात कभी दफर

उठायगा पर उसस पहल हीhellip

तारक को भी तब यह अदाज नही रा दक रवत क अलािा रजत स भी उसका नाता रा रवत क

जान क बाद िह खद को रजत क बहत करीब महसस कर रहा रा और उस लगा दक उसक खत रजत

को उसस दफर दर धकल सकत र पर िह दकसी तरह भी रजत को खोना नही चाहगाhellip रजत जस स

रवत का ही एक वहथसा राhellipउसन दखा लोगो स वघरा रजत का चहरा बहद वनचड़ा हआ रिहीन और

सखा-सा लग रहा रा रात भर सोया नही होगा इसवलए आखो क नीच कालापन उतर आया रा आख

काफी अदर को धसी हई री तारक को लगा दक िह शायद रजत स बहतर हालत म ह दफर उस रशक

भी हआ रजत अपन गम का खला इजहार कर सकता हhellip तारक को यह सविधा नही री िह दकसी

उजड़ आवशक क रप म इस महदफल इस मौत का शोक करन िालो की महदफल मhellip अपना असली

चहराhellip अपना आवशक का चहराhellip नही ददखा सकता रा अचानक उसकी आख भर आयी अपन खोन

की वशददत क अहसास स

रवत क िाकय उसक कान म सरसरान लग जबस उस ददल का दौरा पड़ा रा िह जीिन की

कषणभगरता या इसान क नाचीज होन क अवथततििादी दशथन को बहत बघारन लग गयी री शायद

अपन जान का अहसास उस कही बहत गहर उदास कर जाता रा पर िही िह उस जान को एक

अिशयभािी अकारय सतय की तरह थिीकार करक उसस समझौता भी करन लग गयी री एक ददन

उसन हडसन नदी क दसर वसर स मनहरन की ओर दखत हए कहा रा rdquoदखो तो इन छोर-छोर वडबबो

म दकतन लाखो लोग रहत ह दकतन छोर ह हम लोग इतनी तग जमीन पर दकतनी बड़ी तादाद म

समा जात ह एकदम हजारो की सखया म सार-सार जड़ कीड़ो की तरह दफर भी अपन आप को

दकतना बड़ा मानत ह राजनीवत धमथ और नवतकता की तवखतया वचपका कर दकतना बड़ा होन का

भलािा दत रहत ह खद कोrdquo

रजत को रवत की इसान को नाचीज करार दन िाली बातो स हमशा बहत वचढ़ छरती री

बोला रा rdquoधमथ नवतकता जीिन क सतय ह इनको तम भलािा दन िाली चीज कस कह सकती हो

इसान इसीवलए तो बाकी जीिो स अलग ह दक िह सोच सकता हrdquo

rdquoऔर सोच क धरातल पर हर चीज को गलत या सही सावबत कर सकता ह नवतकता को गढ़

सकता ह या परा सतयानाश कर सकता हhellip ठीक ह मझ तो उसम कोई नकसान नहीrdquo

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हा नकसान दकसी का ह तो मरा ही रजत न कहा तो तारक झर स बोल पड़ा रा rdquoनकसान

तो तब होता जो म उस भगा क ल जाताrdquo

रजत न सजीदगी स कहा rdquoअब इसका ददल बर गया हhellip तो आधी सपवतत तो लर ही गयी न

तम भगा ल जाओ तो भी फकथ नही पड़गा यह आधािाला वहथसा तब भी यही रहगाrdquo

सचमच रजत का यह विशवास सही रा रवत और उसक ररशत की शरआत क ददनो म भािना

क परिाह म बहता तारक रवत क सार एक नयी वजनददगी क दकिाड़ खोलन की बात सोच पाया रा पर

जलद ही उस अहसास हो गया रा दक रवत कही बहत गहर जड़ी री रजत क सार दक िह कभी उस

ररशत को तोड़गी नही य रजत भी शर क ददनो म भीतर स वहल गया रा यह झरका दक रवत रजत

को छोड़ दकसी और को मन म ला सकती ह उस बहत दर जा फ क आया रा दफर रवत न खोय विशवास

को िापस लौरा ददया रजत अपन आध नकसान क सार धीर-धीर शायद समझौता करना सीख गया रा

तारक को लगा दक िह आध क सार समझौता करना सीख गया रा दफर तारक को लगा दक

िह आध क सार समझौता नही रा रजत क भीतर कही पर का भरोसा भी रा जस दक रवत को वसफथ

एक बदलाि चावहए रा जो तारक रा िनाथ िह परी रजत की ही री कयोदक मौका आन पर रजत

अपना परा हक जतान स चकता नही रा हमशा यही मानता रा दक पहला हक उसी का ह तारक

हमशा बाद म आयगा जस दक पर भर लन पर बचा हआ भोजन दकसी को भी ददया जा सकता हhellip

कछ ऐसा रख

पर रवत बचा हआ भोजन नही रीhellip दकसी तरह स भी उवचछि या अिवशि नही जो उसन

रवत म पाया रा िह पहल वजनददगी म कभी नही वमला रा रवत न उसकी पहचान करायी री

पररपणथता स रवत को जानना ही जस उस सपणथता को छना रा शायद रजत न भी रवत म ऐसा कछ

पाया रा जो आम औरतो स अलग रा रवत शादी क इतन बरस बाद भी उस अपन म उलझाय री और

िह उसस मि नही होना चाहता रा रवत म बाहरी खबसरती क बािजद वयवि क ददमाग को भी

उलझाय रखन का जो गण रा उसस सच म जो भी पास आता और सखचता जाता रवत म भरपर

पयार लन की चाह री तो भरपर दन की कषमता भी इसी स अभी भी उसस जी तो नही भरा रा रजत

का शायद िह ऐसी औरत री जो हमशा वनत निीन होती रहhellip सौदयथ की एक पररभाषा यह भी तो

दी गई ह दक जो वनत नतन होता रह िही सौदयथ ह रवत भी कभी परानी नही पड़ती रोज कछ नया

होता ह उसक पासhellip कोई नया खयालhellip कोई नई सझhellip कोई नई उकसान उलझान िाली बातhellip

शायद इस ददमागी सौदयथ कहना होगाhellip जो कछ भी उसम राhellip बस खीचता रा अपनी ओरhellip मोहता

राhellip शायद कया पर उगली धरना उस पररवध म बाधन की भोडी कोवशश होती

कछ दवदव उठता तो रवत रजत क ही हक म बोलती री रजत क वहतो को सरवकषत कर लन क

बाद ही िह तारक को उसका हक दती तारक को खीझ भी होती दक रजत उसक जीिन म चदक पहल

आ गया रा इसीवलए हर चीज म ही पहला हक उसी का बनता ह पर उसन रवत स अपनी यह

मनवथरवत कभी जावहर नही होन दी री वपछल साल िलनदराईन ड पर ऐसा ही तो हआ रा दरअसल

दोनो को अदाज नही रा दक उस िीक ड पर िलनदराईन ड पड़ता रा तारक को दकसी काम स रवत क

शहर आना रा और दोनो न वमलन का कायथकरम बना डाला रा रजत स रवत की बात हई होगी तो

उसन भनकर कहा रा rdquoतो िह तमहारा िलनदराईन ह जो उस ददन आ रहा हrdquo रवत क कहन पर दक उस

तो याद भी नही रा िह बोला रा rdquoम नही मान सकता दक तारक न य ही आन का बनाया ह इस

िीक ड परrdquo रवत न तारक स सारी बात बतलायी तो उसन सोचा रा िह खद फोन पर रजत स कहगा

दक उस सचमच याद नही रा पर दफर बात बढ़ान न दन क वलए चप रह गया रा और जान का

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परोगराम भी थरवगत कर डाला रा तब उस दो बात तकलीफ दती रही री एक तो यह दक रजत हमशा

उसक सामन परारवमकता ल जायगा दसरी यह कड़िी सचचाई दक रवत कभी भी उसकी जावहरी वजनददगी

का वहथसा नही बन सकती री उसकी कमर म हार डाल कर िह कभी दकसी स यह नही कह सकता

रा रवत मरी हrdquo तब उस बहद रशक होता रजत स कया रजत को सचमच अहसास ह दक रवत तारक

क वलए कया ह दक िह उसकी वजनददगी का कनदर उसकी वजनददगी का अरथ बन चकी ह यह कोई हलका-

फलका ठरकपन नही उसकी वजनददगी का रशा-रशा गर गया ह रवत स शबद म अरथ की तरह समायी ह

रवत उसक अवथतति म इस गरन म िह खद ही घरता रहगा हमशा

अब रवत नही ह तो िह घरन और भी कस रही ह उस कया अब िह रजत स कह पायगा

अचानक उसका मन हआ दक रजत स कह द rdquoतमको मालम ह दक मझ सचमच पता नही रा दक उस

ददन िलनदराईन ड रा िनाथ ऐसी जरथत न करताrdquo दक िह जानता हhellip अचछी तरह समझता ह अपनी

और उसकी ररीररी की पररवधयो को दक रजद शायद कभी जान न पायगा पर उसन हमशा एक दोथत

की तरह रजत का रजत की जररतो का खयाल रखा हhellip वसफथ ऊपर-ऊपर स सामावजक उपचार की

तरह नही भीतर स दकसी ददली ररशत सhellip दफर िह ररशता चाह रवत क जररय स ही बना हो

हो सकता ह रजत यह सब महसस करता हो या न भी करता हो पर उसक चहर पर भी वमिता

का थिागतमय भाि हमशा ददखा ह तारक को वसिा उन कषणो क जब दक सचमच उन दोनो क बीच

lsquoररररोररयलrsquo झगड़ हए तब भी ि शायद इसानी आचार या परथपर सदभाि की सीमाओ को कभी

लाघ नही पर दफर भी तारक का रवत क सार का ररशता ऐसा नही दक रजत क सार वजस बार सक

रवत उसकी हथती का अवभि वहथसा ह िह कोई और कस हो सकता ह रजत रवत नही हो सकता

चाह उसक दकतन ही करीब रहा हो उस दकसी न दकसी तरह स अपन खत पान ही ह लदकन कस

और यही तारक बार-बार उलझ जाता ह अपनी यह परशानी िह दकसी क सार बार नही सकता

रजत स तो कतई नही खत अगर सचमच रजत क हार पड़ गय तो

लदकन रवत न यह भी तो कहा रा दक अगर िह नही रही तो कया फकथ पड़ता ह पर रजत

सचमच खत पढ़ ल तोhellip शायद उसकी पीड़ा पर तब करोध और घणा का कोई विकराल भत हािी हो

सकता हhellip हो सकता ह दक खत पढ़कर रजत रवत को खद स वछरक द लदकन उसस कया तब शायद

रवत और भी तारक क करीब आ जाय और भी उसकी अपनी हो जाय वसफथ उसी की समची एक रात

पहल उस ऐसा ही कछ सपना आया रा रवत की मौत की खबर क बाद यही उसका याद रह जानिाला

सपना रा िह रवत की अतयवि म गया ह और एक अधरा-सा बठकनमा कमरा हhellip कमर म कछ

कागज वबखर पड़ हhellip िह एक कागज उठाता हhellip िह उसी का रवत को वलखा खत हhellip और कई लोग

उसक आसपास ह और िह सोचन लगता ह दक कही इन लोगो न भी तो उनदह नही पढ़ाhellip तभी रजत

का चहरा उसकी ओर बढ़ता ह और िह कागज वछपान की तरकीब सोचन लगता हhellip इसी उधड़बन म

उसकी आख खल गयी री तो वजथम पसीन म नहाया हआ रा

एक रजत ही यहा उसक सबस करीब हhellip और रजत ही उस अजनबी-सा लगन लगा ह अब

तक उसका रवत का सदभथ रा अचानक उस सदभथ स करकर न होन जसा हो रहा ह तारक को अजीब-

सी मानवसक दरी और भयकर अकलापन-सा महसस हआ िह यहा आया ही कयो रा रवत की

नामौजदगी म दकतना बमानी ह उसका यहा होना रजत को भी दकतना दफजल-सा लग रहा होगा

उसका यहा उपवथरत होना वजन लोगो स वघरा ह ि तो सचमच उसक अपन हhellip तारक तो दर स भी

अपना नहीhellip मत स तारक का जो भी नाता रहा होhellip उसक दकसी दसर स तो नही रा उसक कॉलज

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कामो स लौर बचच भी तारक को पहचानत नही र तारक न ही उनकी शकलो और वयिहार स अदाज

लगाया रा और हॉलि म लगी तथिीरो स उनदह पहचान पाया रा

तारक क पास रजत स कहन को कछ नही रा उसका कछ भी कहना रजत को खल सकता रा

उलर तारक को लगन लगा दक रजत शायद सोच रहा हो दक अब कयो जखमो को याद ददलान आ गय

हो कछ भी हो तारक न उस पीड़ा तो पहचायी ही री कया अब उसका कछ भी करना रजत क कि को

कम कर सकता रा उसन वनगाहो स ही अपना दख बयान कर ददया जो शायद रजत न थिीकार भी

वलया राhellip शायद एक औपचाररकता की तरह जस िह दसर बहत स जमा लोगो की शोकावभवयविया

थिीकार रहा राhellip उसस कछ अलग नही शायद तारक का िहा होना ही रजत को खल रहा हो पर

िि की नाजकी की िजह स िह कछ कहना न चाह रहा हो तारक एकदम परशान-सा उठ खड़ा हआ

कछ लोग रजत क गल लग रह र शायद उसस विदा लकर जा रह र तारक न सोचा िह अब

कहगा दक रवत क पास कछ उसक जररी कागजात र अगर रजत उस कागजो िाली जगह पर ल चल

तो िह खद ही दख लगा तारक यि की गवत स रजत की ओर बढ़ा रजत जस दकसी को दख कर भी

दख नही रहा रा उसकी आख दकसी शनदय पर ररकी री तारक को लगा उन लोगो क वघराि म

वजसम उसक अपन अजीज दोथत और ररशतदार र रजत न उस कोई विशष लकष नही दकया तारक क

भीतर अजीब सनापन-सा आ वघरा लगा जस रवत रजत म कही नही री वसफथ भरम-सा हआ रा उस

उसक िहा होन का जस दक उसक रवत क नात स िहा होन म ही कोई भारी असगवत री उस लगा

िहा बठ अजनबी स लोग उस घर रह र उसक िहा होन पर परशनवचनदह लगा रह र पता नही दकतन

ही अजनवबयो स वघर गया रा तारक यहा तक दक रवत की उस तथिीर म भी उस रवत नजर नही आ

रही री िह भी कोई अजनबी छाया री यह दवनया उसकी नही री अगर िह रवत की दवनया रही

भी हो तो वजस रवत को िह जानता रा उस रवत क वलए भी यह दवनया अनवथतति री विसगत री

उसन रजत को बहत सभलत सभलत गल स लगान की औपचाररकता की उस लगा जस िह

दकसी अजनबी को गल लगा रहा रा रवत वजतन उसक अपन पास री उतन और कही नही दकसी क

पास नही दरअसल रवत और कही नही री उसक भीतर रीhellip बस उस रवत को िही अपन भीतर ही

कही सजोय रखना रा भीतर ही खोजना रा भीतर ही तसलली करनी री दकसी और स बार नही

सकता रा रवत को रजत क दोनो कधो को हलक स दबाकर उसन धीर स कहा rdquoरक कयरrdquo और मड़ा

तो वबना पीछ दख बाहर वनकल गया

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पासपोरथ अमरीकन मरो

ओम गपता

पासपोरथ अमरीकन मरो पर रगत सहदथतानी

आज सनाऊ तमको पयार अपनी रामकहानी

छोड़ो भारत मन भयया डॉलर दख-दख ललचायो

चार-पकोड़ी जब भी दख मोह म पानी भर आयो

दीिाली पर दीप जलाउ होली पर खल रग

मौको जब मझको लगतो पीतो म भी भग

कसो होगी सरकार हमारी मोक हरदम सचता

जब भी दश पड़ सकर म कपा करो हनमनदता

पज म अब भी राम-कषण जातो मददर रोज

गपशप यारो स करतो फोकर म वमलतो भोज

योगी-बाबा आए दश स जब दन मझको जञान

आख मद क ना कछ जान करतो उनको सममान

हमबगथर अब भी नही भातो भाती मझ कचोड़ी

जसो जब भी मौका आयो रोपी िसी ओढ़ी

जाऊ दश को जब म अपन खाऊ लडड और इमरती

कहतो खद को सहदथतानी अमरीका मरी अब धरती

कहन को बहत ह भयया रोड़ को समझो काफी

बरा-भला लगा जो तमको माग नतमथतक माफी

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शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

आकाकषा ह

वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

फर च अनिाद कर इस lsquoभोगिाद स पीवड़त पविम की आतमा को अतयवधक शावत दन िालाrsquo कहा

12 47 2015 33

ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

की सीमाओ क पर मनषय कया अनभि कर सकता ह उसकी एक झलक भी ददखा दता ह उसी

औपवनषदीय जञान को महरवष िदवयास न सामानदय जनो क वलए ldquoपविि गीताrdquo म सवकषपत रप म परथतत

दकया ह िदवयास की महानता ही ह जो दक 11 उपवनषदो क जञान को एक पथतक म बाध सक और

मानिता को एक आसान यवि स परमातम जञान का दशथन करा सक ldquoपविि गीताrdquo महाभारत क

भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

ह भगिद गीता वहनदद धमथ क पविितम गरनदरो म स एक ह जो इसानो की चौहददी की सीमा रखा पर

भगिान क शरी मख दवारा इसान स कही गयी सरहदो पर चहरो की थकररनी का लखा-जोखा ह यह

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पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

12 47 2015 35

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Page 8: Year 12, Issue 47Year 12, Issue 47 vsu2avsu2a · राथत § में आ वबछ §ग . ... श्रराम की अन ¡कम्पा स § ह हाल ह में

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मरली कस अधर धर

महाकवि गलाब खडलिाल

मरली कस अधर धर

सर तो िदािन म छर कस तान भर

जो मरली सबक मन बसती

वजसस री तब सधा बरसती

आज िही नावगन-सी डसती छत वजस डर

वजसको लत ही अब कर म

पीड़ा होती ह अनदतर म

कस दफर उसकी धन पर म जग को मगध कर

इसको तभी धर अधरो पर

जब सग-सग हो राधा का थिर

जब यह मरली सना-सनाकर उसका मान हर

मरली कस अधर धर

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भारत और भारतीयता का अरथ

परो गिरीशवर ममशर कलपवत महातमा गाधी वहनददी विशवविदयालय

आजकल क चरवचत सरोकारो म भारत और भारतीयता क सिाल परछन न और परत यकष दोनो ही रपो

म खासी चचाथ का विषय बन चक ह और कई बड़ बवदधजीिी इस पर बहस म वशरकत कर रह ह दसरी

ओर ऐसो की भी कमी नही ह जो इस बमतलब का मददा मानत ह इसका पररदश य आज जररल और

बदला हआ ह दश क थ िति होन क पहल और थ िति होन क ततकाल बाद और अब लगभग सात

दशक की पररपक िता क करीब पहचत-पहचत इस लकर आज बहतर यह मान कर इस तरह की चचाथ

स तरथ र हो चल ह दक यह तो कोई सारथक परश न ही नही ह कछ इस िवशवक या भमडलीकत हो रह

आज क समय की जररतो क अनसार समझना चाहत ह कछ इस किल थ रानीय दवि स ही दखना

चाहत ह कछ इस सभ यता और सथ कवत क विमशथ स जोड़ कर दखत ह जो भी हो अतरराष रीयता क

सार परयासो क बािजद आज भी राज य या नशन थ रर की अिधारणा वनणाथयक महत ि रखती ह और

वनकर भविष य म सीमाविहीन दश जसी कोई अिधारणा आकार लती नजर नही आती आज का सत य यही ह दक दशो की सीमाए बाधा (का अवधक) और सपकथ (का कम) का काम

कर रही ह दश की सीमाओ की रकषा सबक सामन एक बड़ी चनौती ह दश और राष र किल कोरी

भौगोवलक अिधारणाए नही होती उन इकाइयो की रचना क सार एक समाज या समदाय विशष की

आशा-आकाकषा भी जड़ी होती ह दश की अिधारणा एक थ िप न को समरवपत रहती ह आज क तमाम

राष रो क सार उनक सार जड़ी लबी सघषथ-गारा आसानी स दखी जा सकती ह जो दसर समाजो और

समदायो की सामराज यिादी आकाकषाओ क परवतरोध को दशाथती ह शविसपनद न और आरवरक रप स परबल

दशो की दादावगरी उनकी सतता और शवि का जलिा अभी भी बरकरार ह कहन का तात पयथ यह दक

दश की इकाई अभी भी राजनवतक सामावजक आरवरक सामररक और सास कवतक रप स महत िपणथ

बनी हई ह और उस नकारा नही जा सकता

आज बौवदधक किायद म भारत समत सब कछ करथ रड मान जान का फशन-सा चल पड़ा ह

पर उसस दर करोड़ो (भारतीय) जनो क तन-मन म भारत जीवित ह आम आदमी वजनस दश आकार

लता ह िह भारत की एक सामावजक थ मवत भी रखता ह उसक वलए दश थ रानबोधक ह और भारत

एक भाि भी ह भारतीय होन का मतलब ह भारतभवम म रहन की जीिन-व यिथ रा म शावमल होना

भारत कह या इवडया यह मलतः एक भौगोवलक थ रान और उसकी पररवध को रखादकत करता ह इस

भभाग को जब दवीप आयाथितथ भारतिषथ और सहदथतान क नाम स भी जानत ह वहमालय और

सागर इसकी सीमाए बनात ह शथ यश यामला क दश गान और जनगणमन क राष रीय गान म जीित

भारत माता को वजस रप म थ मरण दकया गया ह िह भौगोवलक अिधारणा ही नही उसकी सीमा म

रहन िाल बासशदो की सामावजक-साथ कवतक अवथमता पर बल दती ह वजसका एक भािात मक रप भी

ह भारत एक सामावजक शरणी भी ह जो समाज दवारा रवचत और थ िीकत ह यह उस सामावजक

आकाकषा का परतीक भी ह जो एक आदशथ वथरवत की ददशा म जान क वलए परररत करती ह आधवनक

यग म एक थ िति जनति क रप म एक राज य की थ रापना हई और सहमवत स एक सविधान बना और

12 47 2015 17

सामावजक आकाकषा को एक मतथ रप वमला हमन उसम आिश यकतानसार बदलाि भी दकया ह इस

इकाई क सदथ य क रप म हमारी एक भारतीय पहचान ह

स मरणीय ह दक एक समदाय या सामावजक इकाई की वभनद नता या अलग सतता थ रावपत करना

वयािहाररक दवि स भी आिश यक ह ऐसा करना समाज को अदर स बाधता ह एकजर करता ह और

अनद य (िसी ही) इकाइयो स फकथ करता ह िधावनक रप स नशन या राष र एक काननी इकाई भी ह

और उसक सदथ य िध नागररक होत ह वजसकी थ िीकवत अनद य राष र भी करत ह और पासपोरथ िीसा

आदद की व यिथ रा स आिागमन को वनयवित करत ह नागररक क रप म िधावनक सामावजक और

साथ कवतक अवधकार क सार कतथव य और दावयत ि म भी भागीदारी होती ह समाज की वनयवत ह दक

जावत भाषा बोली कषि भोजन िथ ि रीवत-ररिाज धमथ आदद की विशषताए आ जाती ह इनक

सार समाज का भािात मक लगाि होता ह और उसक सदथ य थ िय को उसी आधार पर पररभावषत भी

करन लगत ह चदक इन विशषताओ का सचार पारथ पररक सबध और जीिन क विविध व यापारो स

गहरा ररश ता होता ह इसवलए य उस समाज की पाररभावषक विशषताए बन जाती ह

भारत दश हमार समकष एक सभ यता और मल य दविसपनद न सामावजक इकाई क रप म

उपवथरत होता ह इसकी समझ कई रपो म वमलती ह वनकर इवतहास म झाक तो पाएग दक इसक

कई रप ह एक छोर पर सहद उपलवबध को बलपिथक रखन िाल वतलक अरसिद सािरकर और

विवपन चर पाल जस ह दसरी और गोखल रानाड गाधी और रगोर सरीख आध यावतमक विचार को

मानन िाल ह जो सभी परभािो को आत मसात करन को तयार ह य सवहष णता आत मवनयिण आदद क

सार एक तरह की बहलता को ठीक मानत ह तीसरी ओर आधवनक दविसपनद न नौरोजी और पवडत

नहर जस लोग ह जो भारत को एक विकवसत सभ यता तो मानत ह पर यह भी महसस करत ह दक

उसका हरास भी हआ और उसम बहत कछ आधवनक जीिन दवि क विपरीत हआ जो आज उपयोगी

नही ह उनक वहसाब स एक बहलतािादी आधवनक नजररया जो विजञानसम मत हो उपयक त ठहरता ह

आज हर भारतीय की एक बहआयामी पहचान बनती ह िह सहद बगाली मवथलम गजराती

कश मीरी वबहारी बराहमण ओबीसी जन ईसाई आदद िाली एक सार कई तरह की पहचान रखता ह

य वभनद न वभनद न पहचान अक सर एक दसर की विरोधी न होकर परक होती ह साथ कवतक रप स ि

गहरी पठी ह और उनक सार लोगो का गहरा सािथजवनक लगाि भी ह िथ ततः हर भारतीय की

पहचान (आइडरररी) की अलग व यिस रा ह कोई एक यनीफामथ पमाना नही ह जो यह तय कर दक कई

पहचानो म स कौन सबस ऊपर नबर िन पर ह यह एक बड़ा तरल या फलइड मामला ह आज

पजा-पाठ सगीत और थ िाथ थ य लाभ क अनक क र भारत भर म फल हए ह जहा आन जान स सहद

ईसाई वसख और मसलमान दकसी को भी परहज नही होता कई पहचान क सार रहना अथ पष रता तो

पदा करता ह पर शायद दसरो क वलए िथ ततः हर भारतीय कई (उप) सथ कवतयो म जीता ह और य

सब वमलकर उसकी पहचान बनाती ह इस अरथ म हर भारतीय शायद बहसाथ कवतक ह और उसकी

पहचान बहआयामी

दश की छवि दशिावसयो क आत मगौरि का माध यम होती ह आज क भारत का अग होना उस

वबलाग करना हमको आरवरक परगवत की ओर अगरसर एक दश एक आरवरक पािर क सार जड़न का

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एहसास दता ह दसरी ओर भरष राचार अवशकषा अव यिथ रा सामावजक करीवतयो और भदभाि क

कारण मन म रकान उदासीनता और असहायता की भािना भी आती ह इस सबक बािजद एक

भारतीय का बोध जरर ह जो पजाबी मराठी या गजराती होन अलग जावत िगथ और समदाय का

सदथ य होन पर भी सबको भारतीय बनाता ह कभी-कभी विविधता म एकता िाल नहर जी का

भारत अपररभाषय या अव याख यय लगता ह भारत को एक विथ तत साथ कवतक इकाई क रप म दखन

पर कछ विचार उभरत ह जो भारतीय होन क अरथ को थ पष र करन म सहायक होत ह इनम परमख ह

धमथ कमथ पनजथनद म को दकसी न दकसी रप म थ िीकारना सामावजक इकाई - पररिार जावत समदाय

क थ तर पर अपन अवथतत ि को महसस करना सक स वििाह और अनद य व यवियो क परवत खास दविकोण

को अपनाना बहलता का थ िीकार और खल कछ-कछ असगरठत दकथ म की आत म या सल फ की

अिधारणा का थ िीकार और दकसी न दकसी रप म दकसी बड़ी जञात-अजञात सतता स जड़ाि की

अवभलाषा और पररिश परकवत और सवि क सार साझदारी तरा परथ पर अनपरकता का भाि

समकालीन विमशथ म राज य और राष र की अिधारणा क अरथ बहत कछ इस पर वनभथर करत ह

दक कौन दकस दविकोण और परयोजन स इन पर गौर कर रहा ह अक सर इनद ह अतीत ितथमान और

भविष य स जोड़ कर दखा जाता ह और लोग अपन चन िचाररक आदशथ स रग कर ही इस पर विचार

करत ह इन शब दो और इनस जड़ अरथ थ रान और समय क सार-सार बदलत रह ह जो थ िाभाविक ह

भारत दश क बार म सोचन की एक बड़ी मवशकल यह ह दक हमारी अपनी पररभाषा क पमान हमार

अपन न होकर दकसी और क ददए हए ह ि हमार बौवदधक मानस म इतन गहर पठ चक ह दक अब हम

अपन पमान क बार म भरोसा ही नही कर पा रह ह और खद को पररभावषत करन का अवधकार ही

खोत जा रह ह आरवरक और तकनीकी परगवत क पसराि की दवनया म आज हमारा आतम-सशय इतना

गहराता जा रहा ह दक भारत और भारतीयता की बात करना परानी और ददकयानस और इसवलए

अपरासवगक मानी जान लगी ह अगर इसकी बात करनी भी ह तो उसकी सनद कही और स जरानी

होगी आज अपनी पहचान क वलए हम पविमी दशो म विदवानो क दवारा परमाण और गिाही चाहत ह

आज भारत की साथ कवतक विविधता को सपनद नता और समवदध क ोत क रप म समझन समझान की

जररत ह वजसका उपयोग समाज क विकास म दकया जाय इसक वलए भारत को भारत क नजररए स

दखना होगा वबना इस भय क दक भारतीय होना दकसी कषमा याचना की अपकषा करता ह थ िदशी और

सराज जस विचार अभी भी परासवगक ह समरथ और थ िािलबी होन क वलए आत म थ िीकार और सतत

पररष कार आिश यक ह

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भकप का सदश

डॉ एमएल गपता ldquoआददतय

धरती हर ददन डोल रही ह कपन की बोली बोल रही ह

विनाश कर आकरोश स बदल कय भगोल रही ह

कय धरती न भकरी तानी कय वहमालय म आिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

जो ससाधन र पोषण क उनका शोषण कर डाला

ओजोन का जो किच रा उसका भी भदन कर डाला

बरहमी स कार हमन िसधरा क िन-कश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

सागर क तीरो को छीला पठार और पिथत को लीला

नददया बनी नाल और नाली नही ददखता जल वनमथल-नीला

चतािनी द रहा ह मौसम बदला भमडल का पररिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

विजञान की सीढ़ी चढ़ विनाश का सामान बनाया

परमाण सयि द रह यातना विकीरण का खतरा मडराया

रवडएशन स आतदकत ह दवनया क सब दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

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कोई अण कोई परमाण कोई हाईडरोजन बम ल ऐठा ह

वबछी हई बारद धरा म मानि बमो क ढर पर बठा ह

हआ परमाण यदध तो वमर जाएग दकतन दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

भकषक बनकर मानि इक दज पर चोर कर रहा

परीकषण की खावतर दकतन भीषण बम विथफोर कर रहा

परकवत का सतलन वबगड़ा तो हम बन जाएग अिशष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

कदरत कहर बरपा सकती ह कभी भी आफत आ सकती ह

धरा की जरा सी भी हरकत दकतना कोहराम मचा सकती ह

धरा न जरा करिर बदली तो कछ भी न रहगा शष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

पयाथिरण क आघात पर अब तो रोक लगानी होगी

सागर पिथत धरती क सग बद करनी मनमानी होगी

धरती को जो मा मानोग सब वमर जाएग कलश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

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ि दोनो

डॉ सषम बदी

छत स फशथ तक क लब शीशो स जड़ी उस बड़ी-सी बठक म खब सारी ददन की रौशनी भरी हई

री फशथ पर वबछी सफद चादरो पर सफद िसतर पहन ढर सार लोग उस रौशनी का ही वहथसा लग रह

र कमर म घसत ही तारक को लगा जस उस शवतता म घल मौत क सदथपन और जड़ता न अचानक

उसक भीतर को जकड़ वलया ह बीचोबीच फलो की माला चढ़ी एक बड़ी-सी रवत की तथिीर री

वजसका धप दीप और गीता क शलोको स अवभषक दकया जा रहा रा रवत अब तथिीर भर री तारक

की थतबध पवनयायी आख वनथसहाय-सी रजत को खोजन लगी

रजत सारा िि लोगो स वघरा ही रहा रा उसकी मा उसक बचच और दसर ररशतदार कोई न

कोई उसक आसपास रा ही उन दोनो की आख एक दसर स दो एक बार वमली पर रजत अपन स

बाहर नही आ पाया रा तारक न दकसी तरह अपनी शोकभािना वयि कर दी री न भी वयि करता

तो कया रजत को तो खद भी अहसास होगा उसकी अतभाथिना का एक िही तो ह इस भीड़ म जो

जानता ह दक िह कयो यहा ह बाकी तो तारक दकसी स पररवचत ही नही वसिाय कछक रवत क

कलीगज क एक दो कलीगज स ही उसकी बात हई रवत क बार म ि उस पररिार का वमि मानकर

बात कर रह र य पररिार का वमि तो िह रा ही पर इसस अलग या ऊपर भी कछ रा यह शायद

रजत क अलािा और कोई नही जानता रा जबदक रजत भी परा कहा जानता ह खास तौर स िह सब

कछ जो तारक महसस करता रहा ह या जो कछ तारक और रवत क बीच म रहा या अभी भी वजसका

बहत कछ बचा रा

य तारक न बहत बार सोचा दक अब रवत नही रही तो उसक यहा जान का कोई फायदा नही

उसकी तकलीफ बढ़गी ही दफर लगा दक नही उस रजत स वमलन जाना होगा रजत भी तो उसका

दोथत ह य रवत उन दोनो क बीच न होती तो ि शायद बहत गहर दोथत हो सकत र दफर भी िह खद

को कई तरह स रजत क करीब महसस करता रा और रजत भी बहत मामलो म उसी स सलाह करक

चलता रा उस पर भरोसा करता रा जो दक उसक मन क दोथती क भाि को ही जताती री चदक

तारक की विशषता ददल क रोगो म री िह रवत क हारथअरक क बाद स उसस अकसर रवत क बार म

सलाह लता यहा तक दक रवत स भी कोई वशकायत होती तो तारक स ही कहता दखो न इसका

कोलथराल इतना हाई चल रहा ह और मडम चीज मीर सभी कछ खाती ह अभी रथतरा ल चलो परा

का परा थरक गरक जायगी कस कर यह तो खद को नकसान पहचान स बाज नही आतीrdquo और तारक

तब ररका दता कसी डाकरर हो तम रवत मरीजो को उपदश दती रहती हो और खदhellipदफर उसन

खद ही एक विशषण गढ़ा रा रवत क वलए lsquoनानकपलायरrsquo यानी दक जो कछ भी कहा जायगा उसका

विरोध ही करगी रवत और दकसी िजह स नही बवलक विरोध करन क वलए विरोध

तब रवत और भी तिर चढ़ाकर बोलती rdquoरजत तो पहल ही मर पीछ पड़ा रहता ह अब तम

भी इसी स वमल गय हो िाह जी िाह दोथत दकसक हो तम मर या रजत कrdquo

तारक तब चप रह जाता रा रजत भी कछ नही कहता एक वपरय अवपरय सतय

शायद रवत भी इसीवलए कहती री दक तारक तब लाजिाब हो जायगा कयोदक रवत जानती ह दक जो

िह तारक क वलए ह िह और कोई नही हो सकता और रजत को भी इसका अदाज ह इसी स रजत न

शर म चाह दकतना विरोह दकया हो दकतना लड़ाई झगड़ाhellip दफर धीर-धीर मान वलया रा इस ररशत

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को रवत क वलए ही अगीकार कर वलया रा तारक को भी रवत न ही उस बतलाया रा जब रजत न

उस बाहो म भरकर कहा रा rdquoइतना पयार करता ह तमह दक यह भी थिीकारन क वलए राजी हrdquo

एक हक-सी उठी री तारक क भीतरhellip वजस इतना पयार वमला होhellip इतनाhellip िह इस तरह स

उन दोनो की वजनददगी को ही सना करक रखसत हो ली तारक क मन म गथसा भी आयाhellip शायद

अपनी सहत का धयान रखती तो कछ और जी जाती उन दोनो स ही तो चार-पाच साल छोरी री िह

जी भी सकती री पर अबhellip और तारक न लबी सास भरी

रवत की एक कलीग बता रही री rdquoपरसो तो काम पर आयी हई री रवत म सोच भी नही

सकती री दक इतना भारी थरोक हो सकता ह दक एक ही लपर म ल जायhellip मझ तो विशवास ही नही

होताrdquo तारक को भी विशवास नही होता रा उसी ददन सबह रवत न उसस फोन पर बात की री और

उसस मजाक दकया रा rdquoमर जनदमददन पर आओगrdquo

दरअसल सारा झगड़ा कछ साल पहल रवत क जनदमददन को लकर ही शर हआ रा िनाथ शायद

रजत को उन दोनो क बीच बढ़त ररशत की तवनक खबर न लगती रवत न उस बतलाया रा दक उसक

जनदमददन पर िह और रजत आमतौर पर शाम को बाहर दकसी बदढ़या स फर च रथतरा म खाना खान

जात ह तब तारक न कहा रा rdquoठीक ह तो लच तम मर सार लनाrdquo

रवत मान गयी री उसन उसी ददन रवत क शहर पहचन क वलए फलाईर भी बक करिा ली

री पर जब ठीक जनदमददन आनिाला रा तो रवत न उस बतलाया रा दक रजत को ठीक नही लग रहा

मरा तमहार सार लच पर जाना िह पछ रहा रा दक इतना इमपॉरर कस हो गया यह आदमी दक

तमको उस जनदमददन पर जरर वमलना ह

rdquoतमन कया कहाrdquo तारक वजजञास हो उठा रा

rdquoयही दक तमको दकसी काम स शहर म होना रा इसवलए लच पर वमलन की बात की इस पर

उसन कहा दक अगल ददन वमल लो जनदमददन िाला ददन तो उसी क वलए हhellip कोई और कयोrdquo

दफर िह बोली rdquoइसी पर उस शक हो रहा ह दक यह कोई आम दोथत नहीhelliprdquo

तारक न जोड़ ददया रा rdquoपरमी हrdquo

rdquoहा यही शक हो रहा ह उसrdquo

rdquoतो ह या नहीhelliprdquo

rdquoशायद होhellip यही मसीबत हrdquo

तारक न कहा रा rdquoअब तो ररकर ली हई ह म तो आऊगा ही तम वमल सको तो वमलना िनाथ

न वमलना चाह पाच वमनर क वलए या कॉफी क वलए भी आ जाओगी तो मर वलए िही काफी होगा

तमहार जनदमददन पर तमह दख भर लrdquo

rdquoतम भी कमाल क रोमाररक होhellip पर सच कह तो म भी तमस वमलना चाहती ह उस ददनhellip

कछ न कछ तो जगाड़ना पड़गाrdquo

rdquoमर वलए तमहारा जनदमददन मरी वजनददगी का बहत अहम ददन हhellip समझीrdquo

एयरपोरथ पहच कर तारक न फोन दकया रा रवत बोली री rdquoरजत कह रहा ह तम हम वडनर

पर जॉयन कर लोrdquo

तारक बहत हरान हआ रा पर रवत न फोन रजत को पकड़ा ददया रा तारक एकदम सकर म

पड़ गया रा उसन खद को बचान की कोवशश की rdquoसॉरी म तो यहा आया रा तो सोचा रवत स वमल

लगा पर इस तरह आप लोगो क परोगराम मhelliprdquo

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रजत न जोर दकर कहा रा rdquoनही भाई बहत तारीफ सन रहा ह बीिी स जरा हम भी तो

वमल आपस आप चाह तो घर पर आ जाईए या दफर सीध रथतरा पर वमलगrdquo

rdquoपर आप लोगो का तो वडनर पर सार जान का कायथकरम रा नrdquo

rdquoआप लच पर फरी ह तो लच पर वमल लत ह य मझ तो वडनर ही पसद ह जसा आप कहrdquo

रजत वबलकल दोथताना ढग स बात कर रहा रा एक पल को उसकी रोन म कछ तनाि तारक

को महसस हआ रा पर अगल ही पल आिाज दफर सहज हो गयी री तारक मान गया पर रकसी लकर

पहल होरल म सामान छोड़ा और इस दौरान खद को मानवसक तौर पर तयार भी करता रहा दक कस

पश आना ह अपन रकीब स दखा जाय तो ररशता रकीब का ही रा बाकी ि दकतन भी सभय या

समझदार इसानो की तरह एक-दसर स बताथि कर आवखर ि तीनो सममावनत पश क र तारक हारथ

थपशवलथर रा तो रजत अगरजी सावहतय का परोफसर और रवत सायकायररथर इसानी मन की

कमजोररयो को समझना मनोरोगो का इलाज करना रवत की विशषता तो री ही पर इसानी आकषथण

एक दसर क परवत सखचाि या ऐस ररशतो को समझन की सथकवत तो कही तीनो म ही री

रजत इस बात को खब समझता रा दक दकसी भी औरत क वलए दकसी दसर परष क परवत

सखचाि हो जाना बहत सहज रा िही एक पवत और पतनी स परम करन िाल क रप म िह रवत क इस

वयिहार स ईषयाल भी हो उठता रा एक सभय इसान क नात िह ईषया को दबा कर तारक क परवत भी

वमिित वयिहार करना चाहता रा पर िही उस रवत क वयिहार स कि पहचता रा दक िह उसक

अलािा भी दकसी दसर परष को चाह सकती ह वजसस उसक मन म आकरोश और वितषणा का भाि

उठता कभी िह अपन को उदार बना कर यह कहना चाहता दक रवत अगर दकसी दसर को चाहती ह

तो बशक उसको भी कयो न पाय सार ही जब करोध होता तो एक तरह स जस िह रवत को सजा दन क

वलए कह डालता rdquoतम जाओ दोनो सार रहोrdquo पर जो पीड़ा िह उसम सह रहा होता िह रवत और

तारक दोनो क वलए ही असहय होती

रवत न कहा रा rdquoकया तारक और म दोथत नही हो सकत और इतन दोथत हhellip एक िह वयवि

वजसस बात करक मझ खशी वमलती ह िह दोथत कयो नही बन सकता वसफथ इसवलए दक उसक मन म

तीखी भािना ह मर वलएhellip या शरीरो का आकषथण भी हhelliprdquo

रजत तब तकथ स सारी बात को समझन समझान की कोवशश करता हा करत-करत कह दता

rdquoऔरत आदमी म दोथती हो ही नही सकती कयोदक जहा शरीरो का आकषथण हो िहा दोथती जसा

वनषकपर भाि कस पनप सकता हrdquo तब रवत दोथती का एक और पकष पश करती rdquoतमहार कहन का

मतलब तो िही ददकयानसी बात हई दक शरीर पाप का मल ह जबदक तम खद ही यह पहल कह चक

हो दक शरीरो का मसला हल हो जाय तो औरत मदथ बहत खबसरत दोथत हो सकत हhellip शरीर को

अहवमयत दी कयो जाय शरीर वमल जान स उनका दोथती म बाधा बनन का मसला खतम हो जाता हrdquo

रजत रवत की बात मान भी जाता रा पर रवत दफर तारक को यह भी बताती री rdquoिन कार

रक वहम फॉर गरारड कल को िह अपना कोई नया तकथ द दगाrdquo

शायद इसी स तारक भी अचानक वहममत हारन लगा रा कस सामना करगा िह रजत का य

िह रजत स एकाध बार पहल वमल चका रा पर तब उसको यह अदाजा नही रा दक रवत और उसक

बीच कछ रा जबदक तारक तब भी कछ आतमसजग-सा हो रहा रा पर कछ वमनरो की मलाकात को

सभाल लना कोई बड़ी बात नही री और य भी रजत उस भला आदमी लगा रा यह भी सोचा रा दक

अगर रवत उन दोनो क बीच न होती तो यह वयवि उसका दोथत हो सकता रा य रवत क होन क

बािजद अतत ि दोथत बन ही पर इस दोथती का तानाबाना िसा न रा जस खावलस दोथती का होता

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ह इसम रवत क रश बन हए र जो एक और ही रगत वलए र और िह रगत तारक को बहत पयारी री

उस दोथती स जयादा

तारक न होरल पहच कर फोन कर ददया रा दक वडनर पर वमलना ही ठीक रहगा और िह

अपना काम इस दौरान कर लगा रजत आसानी स यह बात मान गया और कहा दक िह सडरकस पर

पहल घर पर आ जाय उसक बाद रथतरा खाना खान चल जायग

शाम को जब िह चलन लगा तो फोन बजा रा दसरी ओर रवत री हलो कहत ही रवत न

कहा rdquoसनो तम मत आना मर घर म बहत रशन चल रही हrdquo इसस पहल दक िह कछ कहता रवत न

फोन वडसकनकर कर ददया

रात को कोई फलाईर नही जाती री िनाथ िह उसी िि शहर छोड़ क चला जाता

आध घर बाद ही घरी दफर बजी रवत पछ रही री दक आ रह हो तारक बौखला गया दक आवखर हो

कया रहा ह कया यह रवत क मन की उलझन ह या दक रजत कीhellip या दोनो कीhellip या रवत वसफथ रजत

की उलझन को वयि कर रही री बोली री rdquoजलदी आ जाओ हम लोग इतजार कर रह हrdquo

िह पहचा तो रवत न अकल ही उसका थिागत दकया रा िह जानता रा दक दोनो बचच कालजो

म ह पर रजत काफी दर तक बठक म नही आया तो तारक हरान हआ रवत बोली rdquoिह नहा रहा हrdquo

दफर मथकरा कर जोड़ा rdquoशायद हम दोनो को कछ िि दना चाहता हrdquo

तारक तब कछ निथस हआ रा उस आग बढ़कर रवत को चमन का हौसला नही हआ उस लगा

दक रवत भी सहज नही री जस दक आम तौर पर होती ह पर उसन कछ कहा नही िह खद भी तो

सहज नही हो पा रहा रा जस लड़की क बाप क घर म शादी का परथताि लकर जा रहा हो कछ कछ

इसी तरह का महसस हो रहा रा िही डर कर परचा करना रा दक इमतहान म फल न हो जाय

रजत न कमर म आत ही बड़ तपाक स हलो दकया कछ औपचाररक-सी बात की दफर उसस

सडरक पछा और दकचन म बफथ िगरह का इतजाम करन क वलए दफर स गायब हो गया तारक को लगा

दक सहज होन की बहत कोवशश क बािजद रजत बहत असहज ह

ववहथकी का घर लत हए तारक न ही रजत स उसक काम क बार म पछना शर दकया बात

कही जा नही रही री तभी रवत एक नई दकताब की चचाथ करन लगी वजसका ररवय सबह क अखबार म

छपा रा तारक न हिाई जहाज म ही उसक बार म पढ़ा रा दफर तो बातचीत खब गरमागरम होन

लगी रजत न दवकषण एवशयाई अगरजी लखको क बार म अपन विचार झाड़न शर कर ददय यहा तक

दक रवत न अचानक घड़ी दखी तो पता चला दक रथतरा की ररजिशन का िि हो चका रा रजत न

रथतरा को फोन दकया दक कछ वमनर लर पहचग और तारक को बोला दक जलदी स सडरक खतम कर ल

या गाड़ी म ही ल चल दोनो न दो तीन सडरक चढ़ा रख र मौज-सी भी आयी हई री रजत ही कार

चला रहा रा और तारक पीछ िाली सीर पर बठा रा अचानक रजत कछ नश और कछ अपनी धन म

बोला rdquoतो तम मरी बीिी स पयार करत होrdquo

तारक भौचक-सा हो गया य ही बठा रहा जस रजत की बात को सना न हो या िह गभीरता

स लन लायक न हो रजत न अपनी बात को सिाल बनाकर दबारा पश दकया rdquoकयो तारक मरी बीिी

स पयार करत हो या नहीrdquo

तारक न कहा rdquoहाrdquo और चप कर गया उस लग रहा रा िह जो भी जिाब दगा खतर स खाली नही

पर यह जिाब सच रा तो सच बोल कर ही मार खायी जाय उस दकसी लड़की क वपता स हार मागन

नही जाना पड़ा रा आज यह भी सही

rdquoतम भी पयार करत हो िह भी करती ह तो तम दोनो सार कयो नही रहतrdquo

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तारक बोल पड़ा रा rdquoयह इतना आसान नहीrdquo

रजत इस पर आकरमण करता-सा बोला rdquoकमाल ह पयार भी करत ह और वजममिारी भी नही

वनभाना चाहतrdquo तारक को महसस हो रहा रा दक रजत कह तो कछ रहा ह और पहचाना कछ और

चाहता ह दफर भी िह जिाब तो उसी बात का द सकता रा जो दक पछी जा रही री यह कह कर

उस नाराज भी नही करना चाहता रा दक रजत वसफथ अपन भीतर क आकरोश आतक और आग को

आिाज द रहा रा बोला rdquoयह बात नही म आज भी रवत क सार वजनददगी शर करन को तयार ह

जहा तक म जानता ह रवत अपन शहर को छोड़ कर और कही नही जायगी न िह तमको छोड़न को

तयार होगी जहा तक म रवत को जानता हhelliprdquo

रवत चपचाप अपन पर अकश लगाय दोनो की बात सन रही री न तो िह रजत क पकष म

कछ बोलना चाहती री न तारक क पकष म ही बोल सकती री दफर भी दोनो क बीच तारतमय वबठाय

रखन की वजममिारी भी उसी की री और िह समझ नही पा रही री दक दकस तरह इस बातचीत को

सीमाय लाघन स बचाया जाय ऊपर स उस डर लग रहा रा दक आिश म रजत कही रककर न मार द

रथतरा बहत दर रा भी नही बात पर चरम पर चल रही री दक रथतरा आ गया रवत न रोका rdquoरजत

पारककग ढढ़ो रथतरा आ गयाrdquo रथतरा क सार ही पारककग गराज म गाड़ी छोड़ कर तीनो अदर चल गय

िरर न उनको मज पर वबठाया और सडरक क वलए पछा तरा मनदय लाकर ददय तीनो क तीनो उस मज

पर इस तरह खामोश और भर बठ र दक मनदय म वसर डबोना एक राहत बन गया रा तीनो न अपन-

अपन आडथर ददय पर बात कछ बन नही रही री हर कोई कछ भी कहन म जयादा ही सतकथ हो रहा रा

अचानक रवत बोली rdquoरजत तमको इतनी जयादा तकलीफ री तो तमन मना कयो नही कर

ददया म तो तारक को कह चकी री दक आज सार खाना नही होगा तमही न जोर ददया दक जरर

बलाओ अब इस तरह कयो बताथि कर रह होrdquo

रजत और भड़क गया rdquoम तो वसफथ यह कह रहा ह दक तम लोग एक-दसर को पयार करत हो

तो म कया कर रहा ह यहा तम जाओ एक दसर क सार रहोrdquo

दोनो की आिाज ऊची हो रही री और दसरी मजो पर बठ लोगो की वनगाह इस ओर उठ आयी री

तारक न धीर स सझाया रा rdquoमर खयाल स हम य बात यहा नही करनी चावहएrdquo सहसा रवत

न होश म आत कहा rdquoहा इतन बदढ़या रथतरा म खाना खान आय ह कछ खान पर भी तो धयान दhellip

दफर आज मरा जनदमददन ह आई िार र हि ए गड मीलrdquo

दफर भी खान पर तीनो म स दकसी का धयान नही लग सका तीनो औपचाररक-सी बात म लग

गय र तारक न ही शहर क निीनतम रथतराओ क बार म ताजा पढ़ी समीकषा का वजकर छड़ ददया रा

रजत न कार स जब उस होरल छोड़ा तो तारक न उपर कमर म आकर सडरक लन क वलए कहा

पर जसा दक िह अपकषा कर रहा रा रजत न दर होन का बहाना बना छटटी माग ली री रवत तब भी

कछ नही बोली री शायद उस डर रा दक उसका कछ भी कहना रजत क वलए घाि पर नमक वछड़कन

जसा होगा या उसकी कोई भी बात का गलत मतलब वनकाल कर रजत भड़क सकता रा य दर हो भी

चकी री

पर तारक यह भी जानता रा दक रवत एक नबर की वजददी री जो उस चावहए रा चावहए ही

रा उस रोका नही जा सकता रा िह ऊपर स मान जायगी पर भीतर स कभी माफ नही करगी

शायद इसी स रजत भी वबगड़ी हई लाड़ली बरी की तरह रवत की हर चाह या माग को विरोध करक

भी अतत मान जाता रा

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लौर आन क दो चार ददन बाद ही उसक फोन पर रवत न सदश छोड़ा रा rdquoतमहारा आना ठीक

नही हआ सॉरी तमह बलाकर भी वमल नही पायी अब लगता ह कभी नही वमलगी लर अस थरॉप

ददस वहयर पलीज मझस सपकथ मत करनाrdquo

तारक बहत ददन परशान घमता रहा रा पर रवत को फोन भी नही दकया उसन मना जो कर

डाला रा उस फोन करत हए तारक को लगता दक िह खद को उस पर लाद रहा ह और यह वथरवत

उस कभी गिारा नही री हर ददन दकसी जिालामखी-सा लाि स लदा हआ गजरता अदर ही अदर

सब तप रहा रा

महीन भर बाद रवत न फोन दकया रा rdquoगथसा हो न मझस तमस माफी भी नही माग सकीrdquo

उसकी तो कोई जररत नहीrdquo

दफर भी सोचा रा तमस कभी बात नही करगी इसी स तमको सपकथ करन स मना दकया

रा रजत को भी यही मालम ह दक तमस ररशता तोड़ ददया ह पर अब मझी स बात दकय वबना रहा

नही जा रहाrdquo

रजत को मालम ह मझस बात कर रही होrdquo

िह बहद गथसा ह तमसhellip जस दक सारा दोष तमहारा होhellip दक तमन उसकी बीिी को फसा वलयाrdquo

ि इसी तरह जब मौका लगता बात कर लत तारक क ददल ददमाग पर रवत ही छायी रहती

िह ऐस ही पलो क दौरान जीता जब दोनो क बीच कछ सपकथ होता बाकी क पल उन पलो क इतजार

म गजरत

इस बीच रवत को ददल का दौरा पड़ा रा घबराकर तारक को फोन कर डाला रा रजत न

तारक आया तो रजत उस अपनी गाड़ी म सार अथपताल ल आता जाता रहा दोनो म एक दोथती का

नाता तभी बना रा दवनया जहान की बात रजत न उस घर पर ही ठहराया रा तारक तीन ददन बाद

चला गया रा िावपस पर दोनो की फोन पर बात हो जाती रवत अथपताल स िावपस आ गयी री

धीर-धीर िह सामानदय होकर िावपस अपना काम सभालन लगी

रवत का जनदमददन दफर स आनिाला रा रवत न उस कहा रा rdquoरजत अपन आप ही बोल रहा ह

दक तम आ जाओ इस बार मरा जनदमददन मनान बोलो आओगrdquo

तारक परानी बात याद करक घबरा गया रा rdquoनही दफर स उसक भीतर सब घमड़न लगगाhellip

सबको तकलीफ होगीrdquo

यह सच भी रा रजत कभी तो उसक परवत बहत वमिित हो जाता िही अचानक गथसा ईषयाथ

उभर आत और िह अकसर बरखी ददखाता अचानक तारक को ऐसा महसस हआ जस रवत उसस खद

यह सब कह रही हो पल भर को िह भल ही गया दक रवत क ही अतयवि कमथ म िह शावमल हआ ह

और दरअसल उसक यहा आन की एक िजह यह भी ह दक िह रवत को वलख अपन खत िावपस ल

जाना चाहता ह उस डर ह दक कही ि खत रजत क हार न पड़ जाय

तारक रवत क सार काम करन िाली इस मवहला डॉ लोपज स पहल वमला हआ रा इस भीड़

म एक िही जान-पहचान की री तारक का मन हआ उसस पछ दक कया िह रवत की दराज म उसक

कागजात पर नजर मार सकता ह तारक को अदाज रा दक उसक खत िह दफतर की मज की दराज म

रखती री पर िह जानता रा दक ऐसा करना ममदकन रा नही आवखर तारक को कस हक पहचता रा

रवत की दराज खलिान का िह तो एक पररिार क वमि की हवसयत स िहा रा रजत ही कह सकता

रा दखा जाय तो ि लोग खद भी रजत स ही कहग दक रवत का सामान िह ल जाय तब तो रजत की

आख जरर उन पर पड़गी तब शायद उसको बरा लगगा दक रवत क सार तारक का एक अपना ररशता

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रा उन तीनो की आपसी दोथती क बाहरhellip रजत को बतहाशा चोर लगगी अब जबदक िह रवत स

जिाबतलबी भी नही कर सकता रवत अब कोई सफाई नही पश कर पायगी तारक क हक म कछ भी

नही कह सकगी दकसी तकथ स रजत को लाजिाब नही कर पायगी नही िह ऐसा नही कर सकता न

यह रवत क परवत सही होगा न रजत क परवत उस दकसी न दकसी तरह स खत पान ह

राथत म आत हए हिाई जहाज म तारक जब लगातार रवत क सार की अपनी वजनददगी क

गजर पल दहरा रहा रा बार-बार उस धयान आता दक जब स रवत को ददल का दौरा हआ रा िह

उसस कहना चाहता रा दक उसक खत विनि कर द एक बार उसन बात उठायी तो रवत बोली rdquoकयो

तमहार खत मर दफतर की दराज म सफ पड़ हrdquo

शायद िह वबना कह यह भी समझ गयी री दक तारक का इशारा दकस ओर ह तभी बोली

दखो जब तक म वजनददा ह म उनको फाड़ कर न तो फ क सकती ह न जला सकती ह एक बार मर गयी

तो कया फकथ पड़ता ह दक कोई कया करगा उनक सार तमको तो दफकर होनी नही चावहए अब तो ि

मरी अमानत हrdquo यह बातचीत दो एक महीन पहल की ही होगी तारक न सोचा रा बात कभी दफर

उठायगा पर उसस पहल हीhellip

तारक को भी तब यह अदाज नही रा दक रवत क अलािा रजत स भी उसका नाता रा रवत क

जान क बाद िह खद को रजत क बहत करीब महसस कर रहा रा और उस लगा दक उसक खत रजत

को उसस दफर दर धकल सकत र पर िह दकसी तरह भी रजत को खोना नही चाहगाhellip रजत जस स

रवत का ही एक वहथसा राhellipउसन दखा लोगो स वघरा रजत का चहरा बहद वनचड़ा हआ रिहीन और

सखा-सा लग रहा रा रात भर सोया नही होगा इसवलए आखो क नीच कालापन उतर आया रा आख

काफी अदर को धसी हई री तारक को लगा दक िह शायद रजत स बहतर हालत म ह दफर उस रशक

भी हआ रजत अपन गम का खला इजहार कर सकता हhellip तारक को यह सविधा नही री िह दकसी

उजड़ आवशक क रप म इस महदफल इस मौत का शोक करन िालो की महदफल मhellip अपना असली

चहराhellip अपना आवशक का चहराhellip नही ददखा सकता रा अचानक उसकी आख भर आयी अपन खोन

की वशददत क अहसास स

रवत क िाकय उसक कान म सरसरान लग जबस उस ददल का दौरा पड़ा रा िह जीिन की

कषणभगरता या इसान क नाचीज होन क अवथततििादी दशथन को बहत बघारन लग गयी री शायद

अपन जान का अहसास उस कही बहत गहर उदास कर जाता रा पर िही िह उस जान को एक

अिशयभािी अकारय सतय की तरह थिीकार करक उसस समझौता भी करन लग गयी री एक ददन

उसन हडसन नदी क दसर वसर स मनहरन की ओर दखत हए कहा रा rdquoदखो तो इन छोर-छोर वडबबो

म दकतन लाखो लोग रहत ह दकतन छोर ह हम लोग इतनी तग जमीन पर दकतनी बड़ी तादाद म

समा जात ह एकदम हजारो की सखया म सार-सार जड़ कीड़ो की तरह दफर भी अपन आप को

दकतना बड़ा मानत ह राजनीवत धमथ और नवतकता की तवखतया वचपका कर दकतना बड़ा होन का

भलािा दत रहत ह खद कोrdquo

रजत को रवत की इसान को नाचीज करार दन िाली बातो स हमशा बहत वचढ़ छरती री

बोला रा rdquoधमथ नवतकता जीिन क सतय ह इनको तम भलािा दन िाली चीज कस कह सकती हो

इसान इसीवलए तो बाकी जीिो स अलग ह दक िह सोच सकता हrdquo

rdquoऔर सोच क धरातल पर हर चीज को गलत या सही सावबत कर सकता ह नवतकता को गढ़

सकता ह या परा सतयानाश कर सकता हhellip ठीक ह मझ तो उसम कोई नकसान नहीrdquo

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हा नकसान दकसी का ह तो मरा ही रजत न कहा तो तारक झर स बोल पड़ा रा rdquoनकसान

तो तब होता जो म उस भगा क ल जाताrdquo

रजत न सजीदगी स कहा rdquoअब इसका ददल बर गया हhellip तो आधी सपवतत तो लर ही गयी न

तम भगा ल जाओ तो भी फकथ नही पड़गा यह आधािाला वहथसा तब भी यही रहगाrdquo

सचमच रजत का यह विशवास सही रा रवत और उसक ररशत की शरआत क ददनो म भािना

क परिाह म बहता तारक रवत क सार एक नयी वजनददगी क दकिाड़ खोलन की बात सोच पाया रा पर

जलद ही उस अहसास हो गया रा दक रवत कही बहत गहर जड़ी री रजत क सार दक िह कभी उस

ररशत को तोड़गी नही य रजत भी शर क ददनो म भीतर स वहल गया रा यह झरका दक रवत रजत

को छोड़ दकसी और को मन म ला सकती ह उस बहत दर जा फ क आया रा दफर रवत न खोय विशवास

को िापस लौरा ददया रजत अपन आध नकसान क सार धीर-धीर शायद समझौता करना सीख गया रा

तारक को लगा दक िह आध क सार समझौता करना सीख गया रा दफर तारक को लगा दक

िह आध क सार समझौता नही रा रजत क भीतर कही पर का भरोसा भी रा जस दक रवत को वसफथ

एक बदलाि चावहए रा जो तारक रा िनाथ िह परी रजत की ही री कयोदक मौका आन पर रजत

अपना परा हक जतान स चकता नही रा हमशा यही मानता रा दक पहला हक उसी का ह तारक

हमशा बाद म आयगा जस दक पर भर लन पर बचा हआ भोजन दकसी को भी ददया जा सकता हhellip

कछ ऐसा रख

पर रवत बचा हआ भोजन नही रीhellip दकसी तरह स भी उवचछि या अिवशि नही जो उसन

रवत म पाया रा िह पहल वजनददगी म कभी नही वमला रा रवत न उसकी पहचान करायी री

पररपणथता स रवत को जानना ही जस उस सपणथता को छना रा शायद रजत न भी रवत म ऐसा कछ

पाया रा जो आम औरतो स अलग रा रवत शादी क इतन बरस बाद भी उस अपन म उलझाय री और

िह उसस मि नही होना चाहता रा रवत म बाहरी खबसरती क बािजद वयवि क ददमाग को भी

उलझाय रखन का जो गण रा उसस सच म जो भी पास आता और सखचता जाता रवत म भरपर

पयार लन की चाह री तो भरपर दन की कषमता भी इसी स अभी भी उसस जी तो नही भरा रा रजत

का शायद िह ऐसी औरत री जो हमशा वनत निीन होती रहhellip सौदयथ की एक पररभाषा यह भी तो

दी गई ह दक जो वनत नतन होता रह िही सौदयथ ह रवत भी कभी परानी नही पड़ती रोज कछ नया

होता ह उसक पासhellip कोई नया खयालhellip कोई नई सझhellip कोई नई उकसान उलझान िाली बातhellip

शायद इस ददमागी सौदयथ कहना होगाhellip जो कछ भी उसम राhellip बस खीचता रा अपनी ओरhellip मोहता

राhellip शायद कया पर उगली धरना उस पररवध म बाधन की भोडी कोवशश होती

कछ दवदव उठता तो रवत रजत क ही हक म बोलती री रजत क वहतो को सरवकषत कर लन क

बाद ही िह तारक को उसका हक दती तारक को खीझ भी होती दक रजत उसक जीिन म चदक पहल

आ गया रा इसीवलए हर चीज म ही पहला हक उसी का बनता ह पर उसन रवत स अपनी यह

मनवथरवत कभी जावहर नही होन दी री वपछल साल िलनदराईन ड पर ऐसा ही तो हआ रा दरअसल

दोनो को अदाज नही रा दक उस िीक ड पर िलनदराईन ड पड़ता रा तारक को दकसी काम स रवत क

शहर आना रा और दोनो न वमलन का कायथकरम बना डाला रा रजत स रवत की बात हई होगी तो

उसन भनकर कहा रा rdquoतो िह तमहारा िलनदराईन ह जो उस ददन आ रहा हrdquo रवत क कहन पर दक उस

तो याद भी नही रा िह बोला रा rdquoम नही मान सकता दक तारक न य ही आन का बनाया ह इस

िीक ड परrdquo रवत न तारक स सारी बात बतलायी तो उसन सोचा रा िह खद फोन पर रजत स कहगा

दक उस सचमच याद नही रा पर दफर बात बढ़ान न दन क वलए चप रह गया रा और जान का

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परोगराम भी थरवगत कर डाला रा तब उस दो बात तकलीफ दती रही री एक तो यह दक रजत हमशा

उसक सामन परारवमकता ल जायगा दसरी यह कड़िी सचचाई दक रवत कभी भी उसकी जावहरी वजनददगी

का वहथसा नही बन सकती री उसकी कमर म हार डाल कर िह कभी दकसी स यह नही कह सकता

रा रवत मरी हrdquo तब उस बहद रशक होता रजत स कया रजत को सचमच अहसास ह दक रवत तारक

क वलए कया ह दक िह उसकी वजनददगी का कनदर उसकी वजनददगी का अरथ बन चकी ह यह कोई हलका-

फलका ठरकपन नही उसकी वजनददगी का रशा-रशा गर गया ह रवत स शबद म अरथ की तरह समायी ह

रवत उसक अवथतति म इस गरन म िह खद ही घरता रहगा हमशा

अब रवत नही ह तो िह घरन और भी कस रही ह उस कया अब िह रजत स कह पायगा

अचानक उसका मन हआ दक रजत स कह द rdquoतमको मालम ह दक मझ सचमच पता नही रा दक उस

ददन िलनदराईन ड रा िनाथ ऐसी जरथत न करताrdquo दक िह जानता हhellip अचछी तरह समझता ह अपनी

और उसकी ररीररी की पररवधयो को दक रजद शायद कभी जान न पायगा पर उसन हमशा एक दोथत

की तरह रजत का रजत की जररतो का खयाल रखा हhellip वसफथ ऊपर-ऊपर स सामावजक उपचार की

तरह नही भीतर स दकसी ददली ररशत सhellip दफर िह ररशता चाह रवत क जररय स ही बना हो

हो सकता ह रजत यह सब महसस करता हो या न भी करता हो पर उसक चहर पर भी वमिता

का थिागतमय भाि हमशा ददखा ह तारक को वसिा उन कषणो क जब दक सचमच उन दोनो क बीच

lsquoररररोररयलrsquo झगड़ हए तब भी ि शायद इसानी आचार या परथपर सदभाि की सीमाओ को कभी

लाघ नही पर दफर भी तारक का रवत क सार का ररशता ऐसा नही दक रजत क सार वजस बार सक

रवत उसकी हथती का अवभि वहथसा ह िह कोई और कस हो सकता ह रजत रवत नही हो सकता

चाह उसक दकतन ही करीब रहा हो उस दकसी न दकसी तरह स अपन खत पान ही ह लदकन कस

और यही तारक बार-बार उलझ जाता ह अपनी यह परशानी िह दकसी क सार बार नही सकता

रजत स तो कतई नही खत अगर सचमच रजत क हार पड़ गय तो

लदकन रवत न यह भी तो कहा रा दक अगर िह नही रही तो कया फकथ पड़ता ह पर रजत

सचमच खत पढ़ ल तोhellip शायद उसकी पीड़ा पर तब करोध और घणा का कोई विकराल भत हािी हो

सकता हhellip हो सकता ह दक खत पढ़कर रजत रवत को खद स वछरक द लदकन उसस कया तब शायद

रवत और भी तारक क करीब आ जाय और भी उसकी अपनी हो जाय वसफथ उसी की समची एक रात

पहल उस ऐसा ही कछ सपना आया रा रवत की मौत की खबर क बाद यही उसका याद रह जानिाला

सपना रा िह रवत की अतयवि म गया ह और एक अधरा-सा बठकनमा कमरा हhellip कमर म कछ

कागज वबखर पड़ हhellip िह एक कागज उठाता हhellip िह उसी का रवत को वलखा खत हhellip और कई लोग

उसक आसपास ह और िह सोचन लगता ह दक कही इन लोगो न भी तो उनदह नही पढ़ाhellip तभी रजत

का चहरा उसकी ओर बढ़ता ह और िह कागज वछपान की तरकीब सोचन लगता हhellip इसी उधड़बन म

उसकी आख खल गयी री तो वजथम पसीन म नहाया हआ रा

एक रजत ही यहा उसक सबस करीब हhellip और रजत ही उस अजनबी-सा लगन लगा ह अब

तक उसका रवत का सदभथ रा अचानक उस सदभथ स करकर न होन जसा हो रहा ह तारक को अजीब-

सी मानवसक दरी और भयकर अकलापन-सा महसस हआ िह यहा आया ही कयो रा रवत की

नामौजदगी म दकतना बमानी ह उसका यहा होना रजत को भी दकतना दफजल-सा लग रहा होगा

उसका यहा उपवथरत होना वजन लोगो स वघरा ह ि तो सचमच उसक अपन हhellip तारक तो दर स भी

अपना नहीhellip मत स तारक का जो भी नाता रहा होhellip उसक दकसी दसर स तो नही रा उसक कॉलज

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कामो स लौर बचच भी तारक को पहचानत नही र तारक न ही उनकी शकलो और वयिहार स अदाज

लगाया रा और हॉलि म लगी तथिीरो स उनदह पहचान पाया रा

तारक क पास रजत स कहन को कछ नही रा उसका कछ भी कहना रजत को खल सकता रा

उलर तारक को लगन लगा दक रजत शायद सोच रहा हो दक अब कयो जखमो को याद ददलान आ गय

हो कछ भी हो तारक न उस पीड़ा तो पहचायी ही री कया अब उसका कछ भी करना रजत क कि को

कम कर सकता रा उसन वनगाहो स ही अपना दख बयान कर ददया जो शायद रजत न थिीकार भी

वलया राhellip शायद एक औपचाररकता की तरह जस िह दसर बहत स जमा लोगो की शोकावभवयविया

थिीकार रहा राhellip उसस कछ अलग नही शायद तारक का िहा होना ही रजत को खल रहा हो पर

िि की नाजकी की िजह स िह कछ कहना न चाह रहा हो तारक एकदम परशान-सा उठ खड़ा हआ

कछ लोग रजत क गल लग रह र शायद उसस विदा लकर जा रह र तारक न सोचा िह अब

कहगा दक रवत क पास कछ उसक जररी कागजात र अगर रजत उस कागजो िाली जगह पर ल चल

तो िह खद ही दख लगा तारक यि की गवत स रजत की ओर बढ़ा रजत जस दकसी को दख कर भी

दख नही रहा रा उसकी आख दकसी शनदय पर ररकी री तारक को लगा उन लोगो क वघराि म

वजसम उसक अपन अजीज दोथत और ररशतदार र रजत न उस कोई विशष लकष नही दकया तारक क

भीतर अजीब सनापन-सा आ वघरा लगा जस रवत रजत म कही नही री वसफथ भरम-सा हआ रा उस

उसक िहा होन का जस दक उसक रवत क नात स िहा होन म ही कोई भारी असगवत री उस लगा

िहा बठ अजनबी स लोग उस घर रह र उसक िहा होन पर परशनवचनदह लगा रह र पता नही दकतन

ही अजनवबयो स वघर गया रा तारक यहा तक दक रवत की उस तथिीर म भी उस रवत नजर नही आ

रही री िह भी कोई अजनबी छाया री यह दवनया उसकी नही री अगर िह रवत की दवनया रही

भी हो तो वजस रवत को िह जानता रा उस रवत क वलए भी यह दवनया अनवथतति री विसगत री

उसन रजत को बहत सभलत सभलत गल स लगान की औपचाररकता की उस लगा जस िह

दकसी अजनबी को गल लगा रहा रा रवत वजतन उसक अपन पास री उतन और कही नही दकसी क

पास नही दरअसल रवत और कही नही री उसक भीतर रीhellip बस उस रवत को िही अपन भीतर ही

कही सजोय रखना रा भीतर ही खोजना रा भीतर ही तसलली करनी री दकसी और स बार नही

सकता रा रवत को रजत क दोनो कधो को हलक स दबाकर उसन धीर स कहा rdquoरक कयरrdquo और मड़ा

तो वबना पीछ दख बाहर वनकल गया

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पासपोरथ अमरीकन मरो

ओम गपता

पासपोरथ अमरीकन मरो पर रगत सहदथतानी

आज सनाऊ तमको पयार अपनी रामकहानी

छोड़ो भारत मन भयया डॉलर दख-दख ललचायो

चार-पकोड़ी जब भी दख मोह म पानी भर आयो

दीिाली पर दीप जलाउ होली पर खल रग

मौको जब मझको लगतो पीतो म भी भग

कसो होगी सरकार हमारी मोक हरदम सचता

जब भी दश पड़ सकर म कपा करो हनमनदता

पज म अब भी राम-कषण जातो मददर रोज

गपशप यारो स करतो फोकर म वमलतो भोज

योगी-बाबा आए दश स जब दन मझको जञान

आख मद क ना कछ जान करतो उनको सममान

हमबगथर अब भी नही भातो भाती मझ कचोड़ी

जसो जब भी मौका आयो रोपी िसी ओढ़ी

जाऊ दश को जब म अपन खाऊ लडड और इमरती

कहतो खद को सहदथतानी अमरीका मरी अब धरती

कहन को बहत ह भयया रोड़ को समझो काफी

बरा-भला लगा जो तमको माग नतमथतक माफी

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शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

आकाकषा ह

वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

फर च अनिाद कर इस lsquoभोगिाद स पीवड़त पविम की आतमा को अतयवधक शावत दन िालाrsquo कहा

12 47 2015 33

ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

की सीमाओ क पर मनषय कया अनभि कर सकता ह उसकी एक झलक भी ददखा दता ह उसी

औपवनषदीय जञान को महरवष िदवयास न सामानदय जनो क वलए ldquoपविि गीताrdquo म सवकषपत रप म परथतत

दकया ह िदवयास की महानता ही ह जो दक 11 उपवनषदो क जञान को एक पथतक म बाध सक और

मानिता को एक आसान यवि स परमातम जञान का दशथन करा सक ldquoपविि गीताrdquo महाभारत क

भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

ह भगिद गीता वहनदद धमथ क पविितम गरनदरो म स एक ह जो इसानो की चौहददी की सीमा रखा पर

भगिान क शरी मख दवारा इसान स कही गयी सरहदो पर चहरो की थकररनी का लखा-जोखा ह यह

12 47 2015 34

पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

12 47 2015 35

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Page 9: Year 12, Issue 47Year 12, Issue 47 vsu2avsu2a · राथत § में आ वबछ §ग . ... श्रराम की अन ¡कम्पा स § ह हाल ह में

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मरली कस अधर धर

महाकवि गलाब खडलिाल

मरली कस अधर धर

सर तो िदािन म छर कस तान भर

जो मरली सबक मन बसती

वजसस री तब सधा बरसती

आज िही नावगन-सी डसती छत वजस डर

वजसको लत ही अब कर म

पीड़ा होती ह अनदतर म

कस दफर उसकी धन पर म जग को मगध कर

इसको तभी धर अधरो पर

जब सग-सग हो राधा का थिर

जब यह मरली सना-सनाकर उसका मान हर

मरली कस अधर धर

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भारत और भारतीयता का अरथ

परो गिरीशवर ममशर कलपवत महातमा गाधी वहनददी विशवविदयालय

आजकल क चरवचत सरोकारो म भारत और भारतीयता क सिाल परछन न और परत यकष दोनो ही रपो

म खासी चचाथ का विषय बन चक ह और कई बड़ बवदधजीिी इस पर बहस म वशरकत कर रह ह दसरी

ओर ऐसो की भी कमी नही ह जो इस बमतलब का मददा मानत ह इसका पररदश य आज जररल और

बदला हआ ह दश क थ िति होन क पहल और थ िति होन क ततकाल बाद और अब लगभग सात

दशक की पररपक िता क करीब पहचत-पहचत इस लकर आज बहतर यह मान कर इस तरह की चचाथ

स तरथ र हो चल ह दक यह तो कोई सारथक परश न ही नही ह कछ इस िवशवक या भमडलीकत हो रह

आज क समय की जररतो क अनसार समझना चाहत ह कछ इस किल थ रानीय दवि स ही दखना

चाहत ह कछ इस सभ यता और सथ कवत क विमशथ स जोड़ कर दखत ह जो भी हो अतरराष रीयता क

सार परयासो क बािजद आज भी राज य या नशन थ रर की अिधारणा वनणाथयक महत ि रखती ह और

वनकर भविष य म सीमाविहीन दश जसी कोई अिधारणा आकार लती नजर नही आती आज का सत य यही ह दक दशो की सीमाए बाधा (का अवधक) और सपकथ (का कम) का काम

कर रही ह दश की सीमाओ की रकषा सबक सामन एक बड़ी चनौती ह दश और राष र किल कोरी

भौगोवलक अिधारणाए नही होती उन इकाइयो की रचना क सार एक समाज या समदाय विशष की

आशा-आकाकषा भी जड़ी होती ह दश की अिधारणा एक थ िप न को समरवपत रहती ह आज क तमाम

राष रो क सार उनक सार जड़ी लबी सघषथ-गारा आसानी स दखी जा सकती ह जो दसर समाजो और

समदायो की सामराज यिादी आकाकषाओ क परवतरोध को दशाथती ह शविसपनद न और आरवरक रप स परबल

दशो की दादावगरी उनकी सतता और शवि का जलिा अभी भी बरकरार ह कहन का तात पयथ यह दक

दश की इकाई अभी भी राजनवतक सामावजक आरवरक सामररक और सास कवतक रप स महत िपणथ

बनी हई ह और उस नकारा नही जा सकता

आज बौवदधक किायद म भारत समत सब कछ करथ रड मान जान का फशन-सा चल पड़ा ह

पर उसस दर करोड़ो (भारतीय) जनो क तन-मन म भारत जीवित ह आम आदमी वजनस दश आकार

लता ह िह भारत की एक सामावजक थ मवत भी रखता ह उसक वलए दश थ रानबोधक ह और भारत

एक भाि भी ह भारतीय होन का मतलब ह भारतभवम म रहन की जीिन-व यिथ रा म शावमल होना

भारत कह या इवडया यह मलतः एक भौगोवलक थ रान और उसकी पररवध को रखादकत करता ह इस

भभाग को जब दवीप आयाथितथ भारतिषथ और सहदथतान क नाम स भी जानत ह वहमालय और

सागर इसकी सीमाए बनात ह शथ यश यामला क दश गान और जनगणमन क राष रीय गान म जीित

भारत माता को वजस रप म थ मरण दकया गया ह िह भौगोवलक अिधारणा ही नही उसकी सीमा म

रहन िाल बासशदो की सामावजक-साथ कवतक अवथमता पर बल दती ह वजसका एक भािात मक रप भी

ह भारत एक सामावजक शरणी भी ह जो समाज दवारा रवचत और थ िीकत ह यह उस सामावजक

आकाकषा का परतीक भी ह जो एक आदशथ वथरवत की ददशा म जान क वलए परररत करती ह आधवनक

यग म एक थ िति जनति क रप म एक राज य की थ रापना हई और सहमवत स एक सविधान बना और

12 47 2015 17

सामावजक आकाकषा को एक मतथ रप वमला हमन उसम आिश यकतानसार बदलाि भी दकया ह इस

इकाई क सदथ य क रप म हमारी एक भारतीय पहचान ह

स मरणीय ह दक एक समदाय या सामावजक इकाई की वभनद नता या अलग सतता थ रावपत करना

वयािहाररक दवि स भी आिश यक ह ऐसा करना समाज को अदर स बाधता ह एकजर करता ह और

अनद य (िसी ही) इकाइयो स फकथ करता ह िधावनक रप स नशन या राष र एक काननी इकाई भी ह

और उसक सदथ य िध नागररक होत ह वजसकी थ िीकवत अनद य राष र भी करत ह और पासपोरथ िीसा

आदद की व यिथ रा स आिागमन को वनयवित करत ह नागररक क रप म िधावनक सामावजक और

साथ कवतक अवधकार क सार कतथव य और दावयत ि म भी भागीदारी होती ह समाज की वनयवत ह दक

जावत भाषा बोली कषि भोजन िथ ि रीवत-ररिाज धमथ आदद की विशषताए आ जाती ह इनक

सार समाज का भािात मक लगाि होता ह और उसक सदथ य थ िय को उसी आधार पर पररभावषत भी

करन लगत ह चदक इन विशषताओ का सचार पारथ पररक सबध और जीिन क विविध व यापारो स

गहरा ररश ता होता ह इसवलए य उस समाज की पाररभावषक विशषताए बन जाती ह

भारत दश हमार समकष एक सभ यता और मल य दविसपनद न सामावजक इकाई क रप म

उपवथरत होता ह इसकी समझ कई रपो म वमलती ह वनकर इवतहास म झाक तो पाएग दक इसक

कई रप ह एक छोर पर सहद उपलवबध को बलपिथक रखन िाल वतलक अरसिद सािरकर और

विवपन चर पाल जस ह दसरी और गोखल रानाड गाधी और रगोर सरीख आध यावतमक विचार को

मानन िाल ह जो सभी परभािो को आत मसात करन को तयार ह य सवहष णता आत मवनयिण आदद क

सार एक तरह की बहलता को ठीक मानत ह तीसरी ओर आधवनक दविसपनद न नौरोजी और पवडत

नहर जस लोग ह जो भारत को एक विकवसत सभ यता तो मानत ह पर यह भी महसस करत ह दक

उसका हरास भी हआ और उसम बहत कछ आधवनक जीिन दवि क विपरीत हआ जो आज उपयोगी

नही ह उनक वहसाब स एक बहलतािादी आधवनक नजररया जो विजञानसम मत हो उपयक त ठहरता ह

आज हर भारतीय की एक बहआयामी पहचान बनती ह िह सहद बगाली मवथलम गजराती

कश मीरी वबहारी बराहमण ओबीसी जन ईसाई आदद िाली एक सार कई तरह की पहचान रखता ह

य वभनद न वभनद न पहचान अक सर एक दसर की विरोधी न होकर परक होती ह साथ कवतक रप स ि

गहरी पठी ह और उनक सार लोगो का गहरा सािथजवनक लगाि भी ह िथ ततः हर भारतीय की

पहचान (आइडरररी) की अलग व यिस रा ह कोई एक यनीफामथ पमाना नही ह जो यह तय कर दक कई

पहचानो म स कौन सबस ऊपर नबर िन पर ह यह एक बड़ा तरल या फलइड मामला ह आज

पजा-पाठ सगीत और थ िाथ थ य लाभ क अनक क र भारत भर म फल हए ह जहा आन जान स सहद

ईसाई वसख और मसलमान दकसी को भी परहज नही होता कई पहचान क सार रहना अथ पष रता तो

पदा करता ह पर शायद दसरो क वलए िथ ततः हर भारतीय कई (उप) सथ कवतयो म जीता ह और य

सब वमलकर उसकी पहचान बनाती ह इस अरथ म हर भारतीय शायद बहसाथ कवतक ह और उसकी

पहचान बहआयामी

दश की छवि दशिावसयो क आत मगौरि का माध यम होती ह आज क भारत का अग होना उस

वबलाग करना हमको आरवरक परगवत की ओर अगरसर एक दश एक आरवरक पािर क सार जड़न का

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एहसास दता ह दसरी ओर भरष राचार अवशकषा अव यिथ रा सामावजक करीवतयो और भदभाि क

कारण मन म रकान उदासीनता और असहायता की भािना भी आती ह इस सबक बािजद एक

भारतीय का बोध जरर ह जो पजाबी मराठी या गजराती होन अलग जावत िगथ और समदाय का

सदथ य होन पर भी सबको भारतीय बनाता ह कभी-कभी विविधता म एकता िाल नहर जी का

भारत अपररभाषय या अव याख यय लगता ह भारत को एक विथ तत साथ कवतक इकाई क रप म दखन

पर कछ विचार उभरत ह जो भारतीय होन क अरथ को थ पष र करन म सहायक होत ह इनम परमख ह

धमथ कमथ पनजथनद म को दकसी न दकसी रप म थ िीकारना सामावजक इकाई - पररिार जावत समदाय

क थ तर पर अपन अवथतत ि को महसस करना सक स वििाह और अनद य व यवियो क परवत खास दविकोण

को अपनाना बहलता का थ िीकार और खल कछ-कछ असगरठत दकथ म की आत म या सल फ की

अिधारणा का थ िीकार और दकसी न दकसी रप म दकसी बड़ी जञात-अजञात सतता स जड़ाि की

अवभलाषा और पररिश परकवत और सवि क सार साझदारी तरा परथ पर अनपरकता का भाि

समकालीन विमशथ म राज य और राष र की अिधारणा क अरथ बहत कछ इस पर वनभथर करत ह

दक कौन दकस दविकोण और परयोजन स इन पर गौर कर रहा ह अक सर इनद ह अतीत ितथमान और

भविष य स जोड़ कर दखा जाता ह और लोग अपन चन िचाररक आदशथ स रग कर ही इस पर विचार

करत ह इन शब दो और इनस जड़ अरथ थ रान और समय क सार-सार बदलत रह ह जो थ िाभाविक ह

भारत दश क बार म सोचन की एक बड़ी मवशकल यह ह दक हमारी अपनी पररभाषा क पमान हमार

अपन न होकर दकसी और क ददए हए ह ि हमार बौवदधक मानस म इतन गहर पठ चक ह दक अब हम

अपन पमान क बार म भरोसा ही नही कर पा रह ह और खद को पररभावषत करन का अवधकार ही

खोत जा रह ह आरवरक और तकनीकी परगवत क पसराि की दवनया म आज हमारा आतम-सशय इतना

गहराता जा रहा ह दक भारत और भारतीयता की बात करना परानी और ददकयानस और इसवलए

अपरासवगक मानी जान लगी ह अगर इसकी बात करनी भी ह तो उसकी सनद कही और स जरानी

होगी आज अपनी पहचान क वलए हम पविमी दशो म विदवानो क दवारा परमाण और गिाही चाहत ह

आज भारत की साथ कवतक विविधता को सपनद नता और समवदध क ोत क रप म समझन समझान की

जररत ह वजसका उपयोग समाज क विकास म दकया जाय इसक वलए भारत को भारत क नजररए स

दखना होगा वबना इस भय क दक भारतीय होना दकसी कषमा याचना की अपकषा करता ह थ िदशी और

सराज जस विचार अभी भी परासवगक ह समरथ और थ िािलबी होन क वलए आत म थ िीकार और सतत

पररष कार आिश यक ह

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भकप का सदश

डॉ एमएल गपता ldquoआददतय

धरती हर ददन डोल रही ह कपन की बोली बोल रही ह

विनाश कर आकरोश स बदल कय भगोल रही ह

कय धरती न भकरी तानी कय वहमालय म आिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

जो ससाधन र पोषण क उनका शोषण कर डाला

ओजोन का जो किच रा उसका भी भदन कर डाला

बरहमी स कार हमन िसधरा क िन-कश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

सागर क तीरो को छीला पठार और पिथत को लीला

नददया बनी नाल और नाली नही ददखता जल वनमथल-नीला

चतािनी द रहा ह मौसम बदला भमडल का पररिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

विजञान की सीढ़ी चढ़ विनाश का सामान बनाया

परमाण सयि द रह यातना विकीरण का खतरा मडराया

रवडएशन स आतदकत ह दवनया क सब दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

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कोई अण कोई परमाण कोई हाईडरोजन बम ल ऐठा ह

वबछी हई बारद धरा म मानि बमो क ढर पर बठा ह

हआ परमाण यदध तो वमर जाएग दकतन दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

भकषक बनकर मानि इक दज पर चोर कर रहा

परीकषण की खावतर दकतन भीषण बम विथफोर कर रहा

परकवत का सतलन वबगड़ा तो हम बन जाएग अिशष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

कदरत कहर बरपा सकती ह कभी भी आफत आ सकती ह

धरा की जरा सी भी हरकत दकतना कोहराम मचा सकती ह

धरा न जरा करिर बदली तो कछ भी न रहगा शष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

पयाथिरण क आघात पर अब तो रोक लगानी होगी

सागर पिथत धरती क सग बद करनी मनमानी होगी

धरती को जो मा मानोग सब वमर जाएग कलश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

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ि दोनो

डॉ सषम बदी

छत स फशथ तक क लब शीशो स जड़ी उस बड़ी-सी बठक म खब सारी ददन की रौशनी भरी हई

री फशथ पर वबछी सफद चादरो पर सफद िसतर पहन ढर सार लोग उस रौशनी का ही वहथसा लग रह

र कमर म घसत ही तारक को लगा जस उस शवतता म घल मौत क सदथपन और जड़ता न अचानक

उसक भीतर को जकड़ वलया ह बीचोबीच फलो की माला चढ़ी एक बड़ी-सी रवत की तथिीर री

वजसका धप दीप और गीता क शलोको स अवभषक दकया जा रहा रा रवत अब तथिीर भर री तारक

की थतबध पवनयायी आख वनथसहाय-सी रजत को खोजन लगी

रजत सारा िि लोगो स वघरा ही रहा रा उसकी मा उसक बचच और दसर ररशतदार कोई न

कोई उसक आसपास रा ही उन दोनो की आख एक दसर स दो एक बार वमली पर रजत अपन स

बाहर नही आ पाया रा तारक न दकसी तरह अपनी शोकभािना वयि कर दी री न भी वयि करता

तो कया रजत को तो खद भी अहसास होगा उसकी अतभाथिना का एक िही तो ह इस भीड़ म जो

जानता ह दक िह कयो यहा ह बाकी तो तारक दकसी स पररवचत ही नही वसिाय कछक रवत क

कलीगज क एक दो कलीगज स ही उसकी बात हई रवत क बार म ि उस पररिार का वमि मानकर

बात कर रह र य पररिार का वमि तो िह रा ही पर इसस अलग या ऊपर भी कछ रा यह शायद

रजत क अलािा और कोई नही जानता रा जबदक रजत भी परा कहा जानता ह खास तौर स िह सब

कछ जो तारक महसस करता रहा ह या जो कछ तारक और रवत क बीच म रहा या अभी भी वजसका

बहत कछ बचा रा

य तारक न बहत बार सोचा दक अब रवत नही रही तो उसक यहा जान का कोई फायदा नही

उसकी तकलीफ बढ़गी ही दफर लगा दक नही उस रजत स वमलन जाना होगा रजत भी तो उसका

दोथत ह य रवत उन दोनो क बीच न होती तो ि शायद बहत गहर दोथत हो सकत र दफर भी िह खद

को कई तरह स रजत क करीब महसस करता रा और रजत भी बहत मामलो म उसी स सलाह करक

चलता रा उस पर भरोसा करता रा जो दक उसक मन क दोथती क भाि को ही जताती री चदक

तारक की विशषता ददल क रोगो म री िह रवत क हारथअरक क बाद स उसस अकसर रवत क बार म

सलाह लता यहा तक दक रवत स भी कोई वशकायत होती तो तारक स ही कहता दखो न इसका

कोलथराल इतना हाई चल रहा ह और मडम चीज मीर सभी कछ खाती ह अभी रथतरा ल चलो परा

का परा थरक गरक जायगी कस कर यह तो खद को नकसान पहचान स बाज नही आतीrdquo और तारक

तब ररका दता कसी डाकरर हो तम रवत मरीजो को उपदश दती रहती हो और खदhellipदफर उसन

खद ही एक विशषण गढ़ा रा रवत क वलए lsquoनानकपलायरrsquo यानी दक जो कछ भी कहा जायगा उसका

विरोध ही करगी रवत और दकसी िजह स नही बवलक विरोध करन क वलए विरोध

तब रवत और भी तिर चढ़ाकर बोलती rdquoरजत तो पहल ही मर पीछ पड़ा रहता ह अब तम

भी इसी स वमल गय हो िाह जी िाह दोथत दकसक हो तम मर या रजत कrdquo

तारक तब चप रह जाता रा रजत भी कछ नही कहता एक वपरय अवपरय सतय

शायद रवत भी इसीवलए कहती री दक तारक तब लाजिाब हो जायगा कयोदक रवत जानती ह दक जो

िह तारक क वलए ह िह और कोई नही हो सकता और रजत को भी इसका अदाज ह इसी स रजत न

शर म चाह दकतना विरोह दकया हो दकतना लड़ाई झगड़ाhellip दफर धीर-धीर मान वलया रा इस ररशत

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को रवत क वलए ही अगीकार कर वलया रा तारक को भी रवत न ही उस बतलाया रा जब रजत न

उस बाहो म भरकर कहा रा rdquoइतना पयार करता ह तमह दक यह भी थिीकारन क वलए राजी हrdquo

एक हक-सी उठी री तारक क भीतरhellip वजस इतना पयार वमला होhellip इतनाhellip िह इस तरह स

उन दोनो की वजनददगी को ही सना करक रखसत हो ली तारक क मन म गथसा भी आयाhellip शायद

अपनी सहत का धयान रखती तो कछ और जी जाती उन दोनो स ही तो चार-पाच साल छोरी री िह

जी भी सकती री पर अबhellip और तारक न लबी सास भरी

रवत की एक कलीग बता रही री rdquoपरसो तो काम पर आयी हई री रवत म सोच भी नही

सकती री दक इतना भारी थरोक हो सकता ह दक एक ही लपर म ल जायhellip मझ तो विशवास ही नही

होताrdquo तारक को भी विशवास नही होता रा उसी ददन सबह रवत न उसस फोन पर बात की री और

उसस मजाक दकया रा rdquoमर जनदमददन पर आओगrdquo

दरअसल सारा झगड़ा कछ साल पहल रवत क जनदमददन को लकर ही शर हआ रा िनाथ शायद

रजत को उन दोनो क बीच बढ़त ररशत की तवनक खबर न लगती रवत न उस बतलाया रा दक उसक

जनदमददन पर िह और रजत आमतौर पर शाम को बाहर दकसी बदढ़या स फर च रथतरा म खाना खान

जात ह तब तारक न कहा रा rdquoठीक ह तो लच तम मर सार लनाrdquo

रवत मान गयी री उसन उसी ददन रवत क शहर पहचन क वलए फलाईर भी बक करिा ली

री पर जब ठीक जनदमददन आनिाला रा तो रवत न उस बतलाया रा दक रजत को ठीक नही लग रहा

मरा तमहार सार लच पर जाना िह पछ रहा रा दक इतना इमपॉरर कस हो गया यह आदमी दक

तमको उस जनदमददन पर जरर वमलना ह

rdquoतमन कया कहाrdquo तारक वजजञास हो उठा रा

rdquoयही दक तमको दकसी काम स शहर म होना रा इसवलए लच पर वमलन की बात की इस पर

उसन कहा दक अगल ददन वमल लो जनदमददन िाला ददन तो उसी क वलए हhellip कोई और कयोrdquo

दफर िह बोली rdquoइसी पर उस शक हो रहा ह दक यह कोई आम दोथत नहीhelliprdquo

तारक न जोड़ ददया रा rdquoपरमी हrdquo

rdquoहा यही शक हो रहा ह उसrdquo

rdquoतो ह या नहीhelliprdquo

rdquoशायद होhellip यही मसीबत हrdquo

तारक न कहा रा rdquoअब तो ररकर ली हई ह म तो आऊगा ही तम वमल सको तो वमलना िनाथ

न वमलना चाह पाच वमनर क वलए या कॉफी क वलए भी आ जाओगी तो मर वलए िही काफी होगा

तमहार जनदमददन पर तमह दख भर लrdquo

rdquoतम भी कमाल क रोमाररक होhellip पर सच कह तो म भी तमस वमलना चाहती ह उस ददनhellip

कछ न कछ तो जगाड़ना पड़गाrdquo

rdquoमर वलए तमहारा जनदमददन मरी वजनददगी का बहत अहम ददन हhellip समझीrdquo

एयरपोरथ पहच कर तारक न फोन दकया रा रवत बोली री rdquoरजत कह रहा ह तम हम वडनर

पर जॉयन कर लोrdquo

तारक बहत हरान हआ रा पर रवत न फोन रजत को पकड़ा ददया रा तारक एकदम सकर म

पड़ गया रा उसन खद को बचान की कोवशश की rdquoसॉरी म तो यहा आया रा तो सोचा रवत स वमल

लगा पर इस तरह आप लोगो क परोगराम मhelliprdquo

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रजत न जोर दकर कहा रा rdquoनही भाई बहत तारीफ सन रहा ह बीिी स जरा हम भी तो

वमल आपस आप चाह तो घर पर आ जाईए या दफर सीध रथतरा पर वमलगrdquo

rdquoपर आप लोगो का तो वडनर पर सार जान का कायथकरम रा नrdquo

rdquoआप लच पर फरी ह तो लच पर वमल लत ह य मझ तो वडनर ही पसद ह जसा आप कहrdquo

रजत वबलकल दोथताना ढग स बात कर रहा रा एक पल को उसकी रोन म कछ तनाि तारक

को महसस हआ रा पर अगल ही पल आिाज दफर सहज हो गयी री तारक मान गया पर रकसी लकर

पहल होरल म सामान छोड़ा और इस दौरान खद को मानवसक तौर पर तयार भी करता रहा दक कस

पश आना ह अपन रकीब स दखा जाय तो ररशता रकीब का ही रा बाकी ि दकतन भी सभय या

समझदार इसानो की तरह एक-दसर स बताथि कर आवखर ि तीनो सममावनत पश क र तारक हारथ

थपशवलथर रा तो रजत अगरजी सावहतय का परोफसर और रवत सायकायररथर इसानी मन की

कमजोररयो को समझना मनोरोगो का इलाज करना रवत की विशषता तो री ही पर इसानी आकषथण

एक दसर क परवत सखचाि या ऐस ररशतो को समझन की सथकवत तो कही तीनो म ही री

रजत इस बात को खब समझता रा दक दकसी भी औरत क वलए दकसी दसर परष क परवत

सखचाि हो जाना बहत सहज रा िही एक पवत और पतनी स परम करन िाल क रप म िह रवत क इस

वयिहार स ईषयाल भी हो उठता रा एक सभय इसान क नात िह ईषया को दबा कर तारक क परवत भी

वमिित वयिहार करना चाहता रा पर िही उस रवत क वयिहार स कि पहचता रा दक िह उसक

अलािा भी दकसी दसर परष को चाह सकती ह वजसस उसक मन म आकरोश और वितषणा का भाि

उठता कभी िह अपन को उदार बना कर यह कहना चाहता दक रवत अगर दकसी दसर को चाहती ह

तो बशक उसको भी कयो न पाय सार ही जब करोध होता तो एक तरह स जस िह रवत को सजा दन क

वलए कह डालता rdquoतम जाओ दोनो सार रहोrdquo पर जो पीड़ा िह उसम सह रहा होता िह रवत और

तारक दोनो क वलए ही असहय होती

रवत न कहा रा rdquoकया तारक और म दोथत नही हो सकत और इतन दोथत हhellip एक िह वयवि

वजसस बात करक मझ खशी वमलती ह िह दोथत कयो नही बन सकता वसफथ इसवलए दक उसक मन म

तीखी भािना ह मर वलएhellip या शरीरो का आकषथण भी हhelliprdquo

रजत तब तकथ स सारी बात को समझन समझान की कोवशश करता हा करत-करत कह दता

rdquoऔरत आदमी म दोथती हो ही नही सकती कयोदक जहा शरीरो का आकषथण हो िहा दोथती जसा

वनषकपर भाि कस पनप सकता हrdquo तब रवत दोथती का एक और पकष पश करती rdquoतमहार कहन का

मतलब तो िही ददकयानसी बात हई दक शरीर पाप का मल ह जबदक तम खद ही यह पहल कह चक

हो दक शरीरो का मसला हल हो जाय तो औरत मदथ बहत खबसरत दोथत हो सकत हhellip शरीर को

अहवमयत दी कयो जाय शरीर वमल जान स उनका दोथती म बाधा बनन का मसला खतम हो जाता हrdquo

रजत रवत की बात मान भी जाता रा पर रवत दफर तारक को यह भी बताती री rdquoिन कार

रक वहम फॉर गरारड कल को िह अपना कोई नया तकथ द दगाrdquo

शायद इसी स तारक भी अचानक वहममत हारन लगा रा कस सामना करगा िह रजत का य

िह रजत स एकाध बार पहल वमल चका रा पर तब उसको यह अदाजा नही रा दक रवत और उसक

बीच कछ रा जबदक तारक तब भी कछ आतमसजग-सा हो रहा रा पर कछ वमनरो की मलाकात को

सभाल लना कोई बड़ी बात नही री और य भी रजत उस भला आदमी लगा रा यह भी सोचा रा दक

अगर रवत उन दोनो क बीच न होती तो यह वयवि उसका दोथत हो सकता रा य रवत क होन क

बािजद अतत ि दोथत बन ही पर इस दोथती का तानाबाना िसा न रा जस खावलस दोथती का होता

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ह इसम रवत क रश बन हए र जो एक और ही रगत वलए र और िह रगत तारक को बहत पयारी री

उस दोथती स जयादा

तारक न होरल पहच कर फोन कर ददया रा दक वडनर पर वमलना ही ठीक रहगा और िह

अपना काम इस दौरान कर लगा रजत आसानी स यह बात मान गया और कहा दक िह सडरकस पर

पहल घर पर आ जाय उसक बाद रथतरा खाना खान चल जायग

शाम को जब िह चलन लगा तो फोन बजा रा दसरी ओर रवत री हलो कहत ही रवत न

कहा rdquoसनो तम मत आना मर घर म बहत रशन चल रही हrdquo इसस पहल दक िह कछ कहता रवत न

फोन वडसकनकर कर ददया

रात को कोई फलाईर नही जाती री िनाथ िह उसी िि शहर छोड़ क चला जाता

आध घर बाद ही घरी दफर बजी रवत पछ रही री दक आ रह हो तारक बौखला गया दक आवखर हो

कया रहा ह कया यह रवत क मन की उलझन ह या दक रजत कीhellip या दोनो कीhellip या रवत वसफथ रजत

की उलझन को वयि कर रही री बोली री rdquoजलदी आ जाओ हम लोग इतजार कर रह हrdquo

िह पहचा तो रवत न अकल ही उसका थिागत दकया रा िह जानता रा दक दोनो बचच कालजो

म ह पर रजत काफी दर तक बठक म नही आया तो तारक हरान हआ रवत बोली rdquoिह नहा रहा हrdquo

दफर मथकरा कर जोड़ा rdquoशायद हम दोनो को कछ िि दना चाहता हrdquo

तारक तब कछ निथस हआ रा उस आग बढ़कर रवत को चमन का हौसला नही हआ उस लगा

दक रवत भी सहज नही री जस दक आम तौर पर होती ह पर उसन कछ कहा नही िह खद भी तो

सहज नही हो पा रहा रा जस लड़की क बाप क घर म शादी का परथताि लकर जा रहा हो कछ कछ

इसी तरह का महसस हो रहा रा िही डर कर परचा करना रा दक इमतहान म फल न हो जाय

रजत न कमर म आत ही बड़ तपाक स हलो दकया कछ औपचाररक-सी बात की दफर उसस

सडरक पछा और दकचन म बफथ िगरह का इतजाम करन क वलए दफर स गायब हो गया तारक को लगा

दक सहज होन की बहत कोवशश क बािजद रजत बहत असहज ह

ववहथकी का घर लत हए तारक न ही रजत स उसक काम क बार म पछना शर दकया बात

कही जा नही रही री तभी रवत एक नई दकताब की चचाथ करन लगी वजसका ररवय सबह क अखबार म

छपा रा तारक न हिाई जहाज म ही उसक बार म पढ़ा रा दफर तो बातचीत खब गरमागरम होन

लगी रजत न दवकषण एवशयाई अगरजी लखको क बार म अपन विचार झाड़न शर कर ददय यहा तक

दक रवत न अचानक घड़ी दखी तो पता चला दक रथतरा की ररजिशन का िि हो चका रा रजत न

रथतरा को फोन दकया दक कछ वमनर लर पहचग और तारक को बोला दक जलदी स सडरक खतम कर ल

या गाड़ी म ही ल चल दोनो न दो तीन सडरक चढ़ा रख र मौज-सी भी आयी हई री रजत ही कार

चला रहा रा और तारक पीछ िाली सीर पर बठा रा अचानक रजत कछ नश और कछ अपनी धन म

बोला rdquoतो तम मरी बीिी स पयार करत होrdquo

तारक भौचक-सा हो गया य ही बठा रहा जस रजत की बात को सना न हो या िह गभीरता

स लन लायक न हो रजत न अपनी बात को सिाल बनाकर दबारा पश दकया rdquoकयो तारक मरी बीिी

स पयार करत हो या नहीrdquo

तारक न कहा rdquoहाrdquo और चप कर गया उस लग रहा रा िह जो भी जिाब दगा खतर स खाली नही

पर यह जिाब सच रा तो सच बोल कर ही मार खायी जाय उस दकसी लड़की क वपता स हार मागन

नही जाना पड़ा रा आज यह भी सही

rdquoतम भी पयार करत हो िह भी करती ह तो तम दोनो सार कयो नही रहतrdquo

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तारक बोल पड़ा रा rdquoयह इतना आसान नहीrdquo

रजत इस पर आकरमण करता-सा बोला rdquoकमाल ह पयार भी करत ह और वजममिारी भी नही

वनभाना चाहतrdquo तारक को महसस हो रहा रा दक रजत कह तो कछ रहा ह और पहचाना कछ और

चाहता ह दफर भी िह जिाब तो उसी बात का द सकता रा जो दक पछी जा रही री यह कह कर

उस नाराज भी नही करना चाहता रा दक रजत वसफथ अपन भीतर क आकरोश आतक और आग को

आिाज द रहा रा बोला rdquoयह बात नही म आज भी रवत क सार वजनददगी शर करन को तयार ह

जहा तक म जानता ह रवत अपन शहर को छोड़ कर और कही नही जायगी न िह तमको छोड़न को

तयार होगी जहा तक म रवत को जानता हhelliprdquo

रवत चपचाप अपन पर अकश लगाय दोनो की बात सन रही री न तो िह रजत क पकष म

कछ बोलना चाहती री न तारक क पकष म ही बोल सकती री दफर भी दोनो क बीच तारतमय वबठाय

रखन की वजममिारी भी उसी की री और िह समझ नही पा रही री दक दकस तरह इस बातचीत को

सीमाय लाघन स बचाया जाय ऊपर स उस डर लग रहा रा दक आिश म रजत कही रककर न मार द

रथतरा बहत दर रा भी नही बात पर चरम पर चल रही री दक रथतरा आ गया रवत न रोका rdquoरजत

पारककग ढढ़ो रथतरा आ गयाrdquo रथतरा क सार ही पारककग गराज म गाड़ी छोड़ कर तीनो अदर चल गय

िरर न उनको मज पर वबठाया और सडरक क वलए पछा तरा मनदय लाकर ददय तीनो क तीनो उस मज

पर इस तरह खामोश और भर बठ र दक मनदय म वसर डबोना एक राहत बन गया रा तीनो न अपन-

अपन आडथर ददय पर बात कछ बन नही रही री हर कोई कछ भी कहन म जयादा ही सतकथ हो रहा रा

अचानक रवत बोली rdquoरजत तमको इतनी जयादा तकलीफ री तो तमन मना कयो नही कर

ददया म तो तारक को कह चकी री दक आज सार खाना नही होगा तमही न जोर ददया दक जरर

बलाओ अब इस तरह कयो बताथि कर रह होrdquo

रजत और भड़क गया rdquoम तो वसफथ यह कह रहा ह दक तम लोग एक-दसर को पयार करत हो

तो म कया कर रहा ह यहा तम जाओ एक दसर क सार रहोrdquo

दोनो की आिाज ऊची हो रही री और दसरी मजो पर बठ लोगो की वनगाह इस ओर उठ आयी री

तारक न धीर स सझाया रा rdquoमर खयाल स हम य बात यहा नही करनी चावहएrdquo सहसा रवत

न होश म आत कहा rdquoहा इतन बदढ़या रथतरा म खाना खान आय ह कछ खान पर भी तो धयान दhellip

दफर आज मरा जनदमददन ह आई िार र हि ए गड मीलrdquo

दफर भी खान पर तीनो म स दकसी का धयान नही लग सका तीनो औपचाररक-सी बात म लग

गय र तारक न ही शहर क निीनतम रथतराओ क बार म ताजा पढ़ी समीकषा का वजकर छड़ ददया रा

रजत न कार स जब उस होरल छोड़ा तो तारक न उपर कमर म आकर सडरक लन क वलए कहा

पर जसा दक िह अपकषा कर रहा रा रजत न दर होन का बहाना बना छटटी माग ली री रवत तब भी

कछ नही बोली री शायद उस डर रा दक उसका कछ भी कहना रजत क वलए घाि पर नमक वछड़कन

जसा होगा या उसकी कोई भी बात का गलत मतलब वनकाल कर रजत भड़क सकता रा य दर हो भी

चकी री

पर तारक यह भी जानता रा दक रवत एक नबर की वजददी री जो उस चावहए रा चावहए ही

रा उस रोका नही जा सकता रा िह ऊपर स मान जायगी पर भीतर स कभी माफ नही करगी

शायद इसी स रजत भी वबगड़ी हई लाड़ली बरी की तरह रवत की हर चाह या माग को विरोध करक

भी अतत मान जाता रा

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लौर आन क दो चार ददन बाद ही उसक फोन पर रवत न सदश छोड़ा रा rdquoतमहारा आना ठीक

नही हआ सॉरी तमह बलाकर भी वमल नही पायी अब लगता ह कभी नही वमलगी लर अस थरॉप

ददस वहयर पलीज मझस सपकथ मत करनाrdquo

तारक बहत ददन परशान घमता रहा रा पर रवत को फोन भी नही दकया उसन मना जो कर

डाला रा उस फोन करत हए तारक को लगता दक िह खद को उस पर लाद रहा ह और यह वथरवत

उस कभी गिारा नही री हर ददन दकसी जिालामखी-सा लाि स लदा हआ गजरता अदर ही अदर

सब तप रहा रा

महीन भर बाद रवत न फोन दकया रा rdquoगथसा हो न मझस तमस माफी भी नही माग सकीrdquo

उसकी तो कोई जररत नहीrdquo

दफर भी सोचा रा तमस कभी बात नही करगी इसी स तमको सपकथ करन स मना दकया

रा रजत को भी यही मालम ह दक तमस ररशता तोड़ ददया ह पर अब मझी स बात दकय वबना रहा

नही जा रहाrdquo

रजत को मालम ह मझस बात कर रही होrdquo

िह बहद गथसा ह तमसhellip जस दक सारा दोष तमहारा होhellip दक तमन उसकी बीिी को फसा वलयाrdquo

ि इसी तरह जब मौका लगता बात कर लत तारक क ददल ददमाग पर रवत ही छायी रहती

िह ऐस ही पलो क दौरान जीता जब दोनो क बीच कछ सपकथ होता बाकी क पल उन पलो क इतजार

म गजरत

इस बीच रवत को ददल का दौरा पड़ा रा घबराकर तारक को फोन कर डाला रा रजत न

तारक आया तो रजत उस अपनी गाड़ी म सार अथपताल ल आता जाता रहा दोनो म एक दोथती का

नाता तभी बना रा दवनया जहान की बात रजत न उस घर पर ही ठहराया रा तारक तीन ददन बाद

चला गया रा िावपस पर दोनो की फोन पर बात हो जाती रवत अथपताल स िावपस आ गयी री

धीर-धीर िह सामानदय होकर िावपस अपना काम सभालन लगी

रवत का जनदमददन दफर स आनिाला रा रवत न उस कहा रा rdquoरजत अपन आप ही बोल रहा ह

दक तम आ जाओ इस बार मरा जनदमददन मनान बोलो आओगrdquo

तारक परानी बात याद करक घबरा गया रा rdquoनही दफर स उसक भीतर सब घमड़न लगगाhellip

सबको तकलीफ होगीrdquo

यह सच भी रा रजत कभी तो उसक परवत बहत वमिित हो जाता िही अचानक गथसा ईषयाथ

उभर आत और िह अकसर बरखी ददखाता अचानक तारक को ऐसा महसस हआ जस रवत उसस खद

यह सब कह रही हो पल भर को िह भल ही गया दक रवत क ही अतयवि कमथ म िह शावमल हआ ह

और दरअसल उसक यहा आन की एक िजह यह भी ह दक िह रवत को वलख अपन खत िावपस ल

जाना चाहता ह उस डर ह दक कही ि खत रजत क हार न पड़ जाय

तारक रवत क सार काम करन िाली इस मवहला डॉ लोपज स पहल वमला हआ रा इस भीड़

म एक िही जान-पहचान की री तारक का मन हआ उसस पछ दक कया िह रवत की दराज म उसक

कागजात पर नजर मार सकता ह तारक को अदाज रा दक उसक खत िह दफतर की मज की दराज म

रखती री पर िह जानता रा दक ऐसा करना ममदकन रा नही आवखर तारक को कस हक पहचता रा

रवत की दराज खलिान का िह तो एक पररिार क वमि की हवसयत स िहा रा रजत ही कह सकता

रा दखा जाय तो ि लोग खद भी रजत स ही कहग दक रवत का सामान िह ल जाय तब तो रजत की

आख जरर उन पर पड़गी तब शायद उसको बरा लगगा दक रवत क सार तारक का एक अपना ररशता

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रा उन तीनो की आपसी दोथती क बाहरhellip रजत को बतहाशा चोर लगगी अब जबदक िह रवत स

जिाबतलबी भी नही कर सकता रवत अब कोई सफाई नही पश कर पायगी तारक क हक म कछ भी

नही कह सकगी दकसी तकथ स रजत को लाजिाब नही कर पायगी नही िह ऐसा नही कर सकता न

यह रवत क परवत सही होगा न रजत क परवत उस दकसी न दकसी तरह स खत पान ह

राथत म आत हए हिाई जहाज म तारक जब लगातार रवत क सार की अपनी वजनददगी क

गजर पल दहरा रहा रा बार-बार उस धयान आता दक जब स रवत को ददल का दौरा हआ रा िह

उसस कहना चाहता रा दक उसक खत विनि कर द एक बार उसन बात उठायी तो रवत बोली rdquoकयो

तमहार खत मर दफतर की दराज म सफ पड़ हrdquo

शायद िह वबना कह यह भी समझ गयी री दक तारक का इशारा दकस ओर ह तभी बोली

दखो जब तक म वजनददा ह म उनको फाड़ कर न तो फ क सकती ह न जला सकती ह एक बार मर गयी

तो कया फकथ पड़ता ह दक कोई कया करगा उनक सार तमको तो दफकर होनी नही चावहए अब तो ि

मरी अमानत हrdquo यह बातचीत दो एक महीन पहल की ही होगी तारक न सोचा रा बात कभी दफर

उठायगा पर उसस पहल हीhellip

तारक को भी तब यह अदाज नही रा दक रवत क अलािा रजत स भी उसका नाता रा रवत क

जान क बाद िह खद को रजत क बहत करीब महसस कर रहा रा और उस लगा दक उसक खत रजत

को उसस दफर दर धकल सकत र पर िह दकसी तरह भी रजत को खोना नही चाहगाhellip रजत जस स

रवत का ही एक वहथसा राhellipउसन दखा लोगो स वघरा रजत का चहरा बहद वनचड़ा हआ रिहीन और

सखा-सा लग रहा रा रात भर सोया नही होगा इसवलए आखो क नीच कालापन उतर आया रा आख

काफी अदर को धसी हई री तारक को लगा दक िह शायद रजत स बहतर हालत म ह दफर उस रशक

भी हआ रजत अपन गम का खला इजहार कर सकता हhellip तारक को यह सविधा नही री िह दकसी

उजड़ आवशक क रप म इस महदफल इस मौत का शोक करन िालो की महदफल मhellip अपना असली

चहराhellip अपना आवशक का चहराhellip नही ददखा सकता रा अचानक उसकी आख भर आयी अपन खोन

की वशददत क अहसास स

रवत क िाकय उसक कान म सरसरान लग जबस उस ददल का दौरा पड़ा रा िह जीिन की

कषणभगरता या इसान क नाचीज होन क अवथततििादी दशथन को बहत बघारन लग गयी री शायद

अपन जान का अहसास उस कही बहत गहर उदास कर जाता रा पर िही िह उस जान को एक

अिशयभािी अकारय सतय की तरह थिीकार करक उसस समझौता भी करन लग गयी री एक ददन

उसन हडसन नदी क दसर वसर स मनहरन की ओर दखत हए कहा रा rdquoदखो तो इन छोर-छोर वडबबो

म दकतन लाखो लोग रहत ह दकतन छोर ह हम लोग इतनी तग जमीन पर दकतनी बड़ी तादाद म

समा जात ह एकदम हजारो की सखया म सार-सार जड़ कीड़ो की तरह दफर भी अपन आप को

दकतना बड़ा मानत ह राजनीवत धमथ और नवतकता की तवखतया वचपका कर दकतना बड़ा होन का

भलािा दत रहत ह खद कोrdquo

रजत को रवत की इसान को नाचीज करार दन िाली बातो स हमशा बहत वचढ़ छरती री

बोला रा rdquoधमथ नवतकता जीिन क सतय ह इनको तम भलािा दन िाली चीज कस कह सकती हो

इसान इसीवलए तो बाकी जीिो स अलग ह दक िह सोच सकता हrdquo

rdquoऔर सोच क धरातल पर हर चीज को गलत या सही सावबत कर सकता ह नवतकता को गढ़

सकता ह या परा सतयानाश कर सकता हhellip ठीक ह मझ तो उसम कोई नकसान नहीrdquo

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हा नकसान दकसी का ह तो मरा ही रजत न कहा तो तारक झर स बोल पड़ा रा rdquoनकसान

तो तब होता जो म उस भगा क ल जाताrdquo

रजत न सजीदगी स कहा rdquoअब इसका ददल बर गया हhellip तो आधी सपवतत तो लर ही गयी न

तम भगा ल जाओ तो भी फकथ नही पड़गा यह आधािाला वहथसा तब भी यही रहगाrdquo

सचमच रजत का यह विशवास सही रा रवत और उसक ररशत की शरआत क ददनो म भािना

क परिाह म बहता तारक रवत क सार एक नयी वजनददगी क दकिाड़ खोलन की बात सोच पाया रा पर

जलद ही उस अहसास हो गया रा दक रवत कही बहत गहर जड़ी री रजत क सार दक िह कभी उस

ररशत को तोड़गी नही य रजत भी शर क ददनो म भीतर स वहल गया रा यह झरका दक रवत रजत

को छोड़ दकसी और को मन म ला सकती ह उस बहत दर जा फ क आया रा दफर रवत न खोय विशवास

को िापस लौरा ददया रजत अपन आध नकसान क सार धीर-धीर शायद समझौता करना सीख गया रा

तारक को लगा दक िह आध क सार समझौता करना सीख गया रा दफर तारक को लगा दक

िह आध क सार समझौता नही रा रजत क भीतर कही पर का भरोसा भी रा जस दक रवत को वसफथ

एक बदलाि चावहए रा जो तारक रा िनाथ िह परी रजत की ही री कयोदक मौका आन पर रजत

अपना परा हक जतान स चकता नही रा हमशा यही मानता रा दक पहला हक उसी का ह तारक

हमशा बाद म आयगा जस दक पर भर लन पर बचा हआ भोजन दकसी को भी ददया जा सकता हhellip

कछ ऐसा रख

पर रवत बचा हआ भोजन नही रीhellip दकसी तरह स भी उवचछि या अिवशि नही जो उसन

रवत म पाया रा िह पहल वजनददगी म कभी नही वमला रा रवत न उसकी पहचान करायी री

पररपणथता स रवत को जानना ही जस उस सपणथता को छना रा शायद रजत न भी रवत म ऐसा कछ

पाया रा जो आम औरतो स अलग रा रवत शादी क इतन बरस बाद भी उस अपन म उलझाय री और

िह उसस मि नही होना चाहता रा रवत म बाहरी खबसरती क बािजद वयवि क ददमाग को भी

उलझाय रखन का जो गण रा उसस सच म जो भी पास आता और सखचता जाता रवत म भरपर

पयार लन की चाह री तो भरपर दन की कषमता भी इसी स अभी भी उसस जी तो नही भरा रा रजत

का शायद िह ऐसी औरत री जो हमशा वनत निीन होती रहhellip सौदयथ की एक पररभाषा यह भी तो

दी गई ह दक जो वनत नतन होता रह िही सौदयथ ह रवत भी कभी परानी नही पड़ती रोज कछ नया

होता ह उसक पासhellip कोई नया खयालhellip कोई नई सझhellip कोई नई उकसान उलझान िाली बातhellip

शायद इस ददमागी सौदयथ कहना होगाhellip जो कछ भी उसम राhellip बस खीचता रा अपनी ओरhellip मोहता

राhellip शायद कया पर उगली धरना उस पररवध म बाधन की भोडी कोवशश होती

कछ दवदव उठता तो रवत रजत क ही हक म बोलती री रजत क वहतो को सरवकषत कर लन क

बाद ही िह तारक को उसका हक दती तारक को खीझ भी होती दक रजत उसक जीिन म चदक पहल

आ गया रा इसीवलए हर चीज म ही पहला हक उसी का बनता ह पर उसन रवत स अपनी यह

मनवथरवत कभी जावहर नही होन दी री वपछल साल िलनदराईन ड पर ऐसा ही तो हआ रा दरअसल

दोनो को अदाज नही रा दक उस िीक ड पर िलनदराईन ड पड़ता रा तारक को दकसी काम स रवत क

शहर आना रा और दोनो न वमलन का कायथकरम बना डाला रा रजत स रवत की बात हई होगी तो

उसन भनकर कहा रा rdquoतो िह तमहारा िलनदराईन ह जो उस ददन आ रहा हrdquo रवत क कहन पर दक उस

तो याद भी नही रा िह बोला रा rdquoम नही मान सकता दक तारक न य ही आन का बनाया ह इस

िीक ड परrdquo रवत न तारक स सारी बात बतलायी तो उसन सोचा रा िह खद फोन पर रजत स कहगा

दक उस सचमच याद नही रा पर दफर बात बढ़ान न दन क वलए चप रह गया रा और जान का

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परोगराम भी थरवगत कर डाला रा तब उस दो बात तकलीफ दती रही री एक तो यह दक रजत हमशा

उसक सामन परारवमकता ल जायगा दसरी यह कड़िी सचचाई दक रवत कभी भी उसकी जावहरी वजनददगी

का वहथसा नही बन सकती री उसकी कमर म हार डाल कर िह कभी दकसी स यह नही कह सकता

रा रवत मरी हrdquo तब उस बहद रशक होता रजत स कया रजत को सचमच अहसास ह दक रवत तारक

क वलए कया ह दक िह उसकी वजनददगी का कनदर उसकी वजनददगी का अरथ बन चकी ह यह कोई हलका-

फलका ठरकपन नही उसकी वजनददगी का रशा-रशा गर गया ह रवत स शबद म अरथ की तरह समायी ह

रवत उसक अवथतति म इस गरन म िह खद ही घरता रहगा हमशा

अब रवत नही ह तो िह घरन और भी कस रही ह उस कया अब िह रजत स कह पायगा

अचानक उसका मन हआ दक रजत स कह द rdquoतमको मालम ह दक मझ सचमच पता नही रा दक उस

ददन िलनदराईन ड रा िनाथ ऐसी जरथत न करताrdquo दक िह जानता हhellip अचछी तरह समझता ह अपनी

और उसकी ररीररी की पररवधयो को दक रजद शायद कभी जान न पायगा पर उसन हमशा एक दोथत

की तरह रजत का रजत की जररतो का खयाल रखा हhellip वसफथ ऊपर-ऊपर स सामावजक उपचार की

तरह नही भीतर स दकसी ददली ररशत सhellip दफर िह ररशता चाह रवत क जररय स ही बना हो

हो सकता ह रजत यह सब महसस करता हो या न भी करता हो पर उसक चहर पर भी वमिता

का थिागतमय भाि हमशा ददखा ह तारक को वसिा उन कषणो क जब दक सचमच उन दोनो क बीच

lsquoररररोररयलrsquo झगड़ हए तब भी ि शायद इसानी आचार या परथपर सदभाि की सीमाओ को कभी

लाघ नही पर दफर भी तारक का रवत क सार का ररशता ऐसा नही दक रजत क सार वजस बार सक

रवत उसकी हथती का अवभि वहथसा ह िह कोई और कस हो सकता ह रजत रवत नही हो सकता

चाह उसक दकतन ही करीब रहा हो उस दकसी न दकसी तरह स अपन खत पान ही ह लदकन कस

और यही तारक बार-बार उलझ जाता ह अपनी यह परशानी िह दकसी क सार बार नही सकता

रजत स तो कतई नही खत अगर सचमच रजत क हार पड़ गय तो

लदकन रवत न यह भी तो कहा रा दक अगर िह नही रही तो कया फकथ पड़ता ह पर रजत

सचमच खत पढ़ ल तोhellip शायद उसकी पीड़ा पर तब करोध और घणा का कोई विकराल भत हािी हो

सकता हhellip हो सकता ह दक खत पढ़कर रजत रवत को खद स वछरक द लदकन उसस कया तब शायद

रवत और भी तारक क करीब आ जाय और भी उसकी अपनी हो जाय वसफथ उसी की समची एक रात

पहल उस ऐसा ही कछ सपना आया रा रवत की मौत की खबर क बाद यही उसका याद रह जानिाला

सपना रा िह रवत की अतयवि म गया ह और एक अधरा-सा बठकनमा कमरा हhellip कमर म कछ

कागज वबखर पड़ हhellip िह एक कागज उठाता हhellip िह उसी का रवत को वलखा खत हhellip और कई लोग

उसक आसपास ह और िह सोचन लगता ह दक कही इन लोगो न भी तो उनदह नही पढ़ाhellip तभी रजत

का चहरा उसकी ओर बढ़ता ह और िह कागज वछपान की तरकीब सोचन लगता हhellip इसी उधड़बन म

उसकी आख खल गयी री तो वजथम पसीन म नहाया हआ रा

एक रजत ही यहा उसक सबस करीब हhellip और रजत ही उस अजनबी-सा लगन लगा ह अब

तक उसका रवत का सदभथ रा अचानक उस सदभथ स करकर न होन जसा हो रहा ह तारक को अजीब-

सी मानवसक दरी और भयकर अकलापन-सा महसस हआ िह यहा आया ही कयो रा रवत की

नामौजदगी म दकतना बमानी ह उसका यहा होना रजत को भी दकतना दफजल-सा लग रहा होगा

उसका यहा उपवथरत होना वजन लोगो स वघरा ह ि तो सचमच उसक अपन हhellip तारक तो दर स भी

अपना नहीhellip मत स तारक का जो भी नाता रहा होhellip उसक दकसी दसर स तो नही रा उसक कॉलज

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कामो स लौर बचच भी तारक को पहचानत नही र तारक न ही उनकी शकलो और वयिहार स अदाज

लगाया रा और हॉलि म लगी तथिीरो स उनदह पहचान पाया रा

तारक क पास रजत स कहन को कछ नही रा उसका कछ भी कहना रजत को खल सकता रा

उलर तारक को लगन लगा दक रजत शायद सोच रहा हो दक अब कयो जखमो को याद ददलान आ गय

हो कछ भी हो तारक न उस पीड़ा तो पहचायी ही री कया अब उसका कछ भी करना रजत क कि को

कम कर सकता रा उसन वनगाहो स ही अपना दख बयान कर ददया जो शायद रजत न थिीकार भी

वलया राhellip शायद एक औपचाररकता की तरह जस िह दसर बहत स जमा लोगो की शोकावभवयविया

थिीकार रहा राhellip उसस कछ अलग नही शायद तारक का िहा होना ही रजत को खल रहा हो पर

िि की नाजकी की िजह स िह कछ कहना न चाह रहा हो तारक एकदम परशान-सा उठ खड़ा हआ

कछ लोग रजत क गल लग रह र शायद उसस विदा लकर जा रह र तारक न सोचा िह अब

कहगा दक रवत क पास कछ उसक जररी कागजात र अगर रजत उस कागजो िाली जगह पर ल चल

तो िह खद ही दख लगा तारक यि की गवत स रजत की ओर बढ़ा रजत जस दकसी को दख कर भी

दख नही रहा रा उसकी आख दकसी शनदय पर ररकी री तारक को लगा उन लोगो क वघराि म

वजसम उसक अपन अजीज दोथत और ररशतदार र रजत न उस कोई विशष लकष नही दकया तारक क

भीतर अजीब सनापन-सा आ वघरा लगा जस रवत रजत म कही नही री वसफथ भरम-सा हआ रा उस

उसक िहा होन का जस दक उसक रवत क नात स िहा होन म ही कोई भारी असगवत री उस लगा

िहा बठ अजनबी स लोग उस घर रह र उसक िहा होन पर परशनवचनदह लगा रह र पता नही दकतन

ही अजनवबयो स वघर गया रा तारक यहा तक दक रवत की उस तथिीर म भी उस रवत नजर नही आ

रही री िह भी कोई अजनबी छाया री यह दवनया उसकी नही री अगर िह रवत की दवनया रही

भी हो तो वजस रवत को िह जानता रा उस रवत क वलए भी यह दवनया अनवथतति री विसगत री

उसन रजत को बहत सभलत सभलत गल स लगान की औपचाररकता की उस लगा जस िह

दकसी अजनबी को गल लगा रहा रा रवत वजतन उसक अपन पास री उतन और कही नही दकसी क

पास नही दरअसल रवत और कही नही री उसक भीतर रीhellip बस उस रवत को िही अपन भीतर ही

कही सजोय रखना रा भीतर ही खोजना रा भीतर ही तसलली करनी री दकसी और स बार नही

सकता रा रवत को रजत क दोनो कधो को हलक स दबाकर उसन धीर स कहा rdquoरक कयरrdquo और मड़ा

तो वबना पीछ दख बाहर वनकल गया

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पासपोरथ अमरीकन मरो

ओम गपता

पासपोरथ अमरीकन मरो पर रगत सहदथतानी

आज सनाऊ तमको पयार अपनी रामकहानी

छोड़ो भारत मन भयया डॉलर दख-दख ललचायो

चार-पकोड़ी जब भी दख मोह म पानी भर आयो

दीिाली पर दीप जलाउ होली पर खल रग

मौको जब मझको लगतो पीतो म भी भग

कसो होगी सरकार हमारी मोक हरदम सचता

जब भी दश पड़ सकर म कपा करो हनमनदता

पज म अब भी राम-कषण जातो मददर रोज

गपशप यारो स करतो फोकर म वमलतो भोज

योगी-बाबा आए दश स जब दन मझको जञान

आख मद क ना कछ जान करतो उनको सममान

हमबगथर अब भी नही भातो भाती मझ कचोड़ी

जसो जब भी मौका आयो रोपी िसी ओढ़ी

जाऊ दश को जब म अपन खाऊ लडड और इमरती

कहतो खद को सहदथतानी अमरीका मरी अब धरती

कहन को बहत ह भयया रोड़ को समझो काफी

बरा-भला लगा जो तमको माग नतमथतक माफी

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शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

आकाकषा ह

वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

फर च अनिाद कर इस lsquoभोगिाद स पीवड़त पविम की आतमा को अतयवधक शावत दन िालाrsquo कहा

12 47 2015 33

ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

की सीमाओ क पर मनषय कया अनभि कर सकता ह उसकी एक झलक भी ददखा दता ह उसी

औपवनषदीय जञान को महरवष िदवयास न सामानदय जनो क वलए ldquoपविि गीताrdquo म सवकषपत रप म परथतत

दकया ह िदवयास की महानता ही ह जो दक 11 उपवनषदो क जञान को एक पथतक म बाध सक और

मानिता को एक आसान यवि स परमातम जञान का दशथन करा सक ldquoपविि गीताrdquo महाभारत क

भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

ह भगिद गीता वहनदद धमथ क पविितम गरनदरो म स एक ह जो इसानो की चौहददी की सीमा रखा पर

भगिान क शरी मख दवारा इसान स कही गयी सरहदो पर चहरो की थकररनी का लखा-जोखा ह यह

12 47 2015 34

पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

12 47 2015 35

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Page 10: Year 12, Issue 47Year 12, Issue 47 vsu2avsu2a · राथत § में आ वबछ §ग . ... श्रराम की अन ¡कम्पा स § ह हाल ह में

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मरली कस अधर धर

महाकवि गलाब खडलिाल

मरली कस अधर धर

सर तो िदािन म छर कस तान भर

जो मरली सबक मन बसती

वजसस री तब सधा बरसती

आज िही नावगन-सी डसती छत वजस डर

वजसको लत ही अब कर म

पीड़ा होती ह अनदतर म

कस दफर उसकी धन पर म जग को मगध कर

इसको तभी धर अधरो पर

जब सग-सग हो राधा का थिर

जब यह मरली सना-सनाकर उसका मान हर

मरली कस अधर धर

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भारत और भारतीयता का अरथ

परो गिरीशवर ममशर कलपवत महातमा गाधी वहनददी विशवविदयालय

आजकल क चरवचत सरोकारो म भारत और भारतीयता क सिाल परछन न और परत यकष दोनो ही रपो

म खासी चचाथ का विषय बन चक ह और कई बड़ बवदधजीिी इस पर बहस म वशरकत कर रह ह दसरी

ओर ऐसो की भी कमी नही ह जो इस बमतलब का मददा मानत ह इसका पररदश य आज जररल और

बदला हआ ह दश क थ िति होन क पहल और थ िति होन क ततकाल बाद और अब लगभग सात

दशक की पररपक िता क करीब पहचत-पहचत इस लकर आज बहतर यह मान कर इस तरह की चचाथ

स तरथ र हो चल ह दक यह तो कोई सारथक परश न ही नही ह कछ इस िवशवक या भमडलीकत हो रह

आज क समय की जररतो क अनसार समझना चाहत ह कछ इस किल थ रानीय दवि स ही दखना

चाहत ह कछ इस सभ यता और सथ कवत क विमशथ स जोड़ कर दखत ह जो भी हो अतरराष रीयता क

सार परयासो क बािजद आज भी राज य या नशन थ रर की अिधारणा वनणाथयक महत ि रखती ह और

वनकर भविष य म सीमाविहीन दश जसी कोई अिधारणा आकार लती नजर नही आती आज का सत य यही ह दक दशो की सीमाए बाधा (का अवधक) और सपकथ (का कम) का काम

कर रही ह दश की सीमाओ की रकषा सबक सामन एक बड़ी चनौती ह दश और राष र किल कोरी

भौगोवलक अिधारणाए नही होती उन इकाइयो की रचना क सार एक समाज या समदाय विशष की

आशा-आकाकषा भी जड़ी होती ह दश की अिधारणा एक थ िप न को समरवपत रहती ह आज क तमाम

राष रो क सार उनक सार जड़ी लबी सघषथ-गारा आसानी स दखी जा सकती ह जो दसर समाजो और

समदायो की सामराज यिादी आकाकषाओ क परवतरोध को दशाथती ह शविसपनद न और आरवरक रप स परबल

दशो की दादावगरी उनकी सतता और शवि का जलिा अभी भी बरकरार ह कहन का तात पयथ यह दक

दश की इकाई अभी भी राजनवतक सामावजक आरवरक सामररक और सास कवतक रप स महत िपणथ

बनी हई ह और उस नकारा नही जा सकता

आज बौवदधक किायद म भारत समत सब कछ करथ रड मान जान का फशन-सा चल पड़ा ह

पर उसस दर करोड़ो (भारतीय) जनो क तन-मन म भारत जीवित ह आम आदमी वजनस दश आकार

लता ह िह भारत की एक सामावजक थ मवत भी रखता ह उसक वलए दश थ रानबोधक ह और भारत

एक भाि भी ह भारतीय होन का मतलब ह भारतभवम म रहन की जीिन-व यिथ रा म शावमल होना

भारत कह या इवडया यह मलतः एक भौगोवलक थ रान और उसकी पररवध को रखादकत करता ह इस

भभाग को जब दवीप आयाथितथ भारतिषथ और सहदथतान क नाम स भी जानत ह वहमालय और

सागर इसकी सीमाए बनात ह शथ यश यामला क दश गान और जनगणमन क राष रीय गान म जीित

भारत माता को वजस रप म थ मरण दकया गया ह िह भौगोवलक अिधारणा ही नही उसकी सीमा म

रहन िाल बासशदो की सामावजक-साथ कवतक अवथमता पर बल दती ह वजसका एक भािात मक रप भी

ह भारत एक सामावजक शरणी भी ह जो समाज दवारा रवचत और थ िीकत ह यह उस सामावजक

आकाकषा का परतीक भी ह जो एक आदशथ वथरवत की ददशा म जान क वलए परररत करती ह आधवनक

यग म एक थ िति जनति क रप म एक राज य की थ रापना हई और सहमवत स एक सविधान बना और

12 47 2015 17

सामावजक आकाकषा को एक मतथ रप वमला हमन उसम आिश यकतानसार बदलाि भी दकया ह इस

इकाई क सदथ य क रप म हमारी एक भारतीय पहचान ह

स मरणीय ह दक एक समदाय या सामावजक इकाई की वभनद नता या अलग सतता थ रावपत करना

वयािहाररक दवि स भी आिश यक ह ऐसा करना समाज को अदर स बाधता ह एकजर करता ह और

अनद य (िसी ही) इकाइयो स फकथ करता ह िधावनक रप स नशन या राष र एक काननी इकाई भी ह

और उसक सदथ य िध नागररक होत ह वजसकी थ िीकवत अनद य राष र भी करत ह और पासपोरथ िीसा

आदद की व यिथ रा स आिागमन को वनयवित करत ह नागररक क रप म िधावनक सामावजक और

साथ कवतक अवधकार क सार कतथव य और दावयत ि म भी भागीदारी होती ह समाज की वनयवत ह दक

जावत भाषा बोली कषि भोजन िथ ि रीवत-ररिाज धमथ आदद की विशषताए आ जाती ह इनक

सार समाज का भािात मक लगाि होता ह और उसक सदथ य थ िय को उसी आधार पर पररभावषत भी

करन लगत ह चदक इन विशषताओ का सचार पारथ पररक सबध और जीिन क विविध व यापारो स

गहरा ररश ता होता ह इसवलए य उस समाज की पाररभावषक विशषताए बन जाती ह

भारत दश हमार समकष एक सभ यता और मल य दविसपनद न सामावजक इकाई क रप म

उपवथरत होता ह इसकी समझ कई रपो म वमलती ह वनकर इवतहास म झाक तो पाएग दक इसक

कई रप ह एक छोर पर सहद उपलवबध को बलपिथक रखन िाल वतलक अरसिद सािरकर और

विवपन चर पाल जस ह दसरी और गोखल रानाड गाधी और रगोर सरीख आध यावतमक विचार को

मानन िाल ह जो सभी परभािो को आत मसात करन को तयार ह य सवहष णता आत मवनयिण आदद क

सार एक तरह की बहलता को ठीक मानत ह तीसरी ओर आधवनक दविसपनद न नौरोजी और पवडत

नहर जस लोग ह जो भारत को एक विकवसत सभ यता तो मानत ह पर यह भी महसस करत ह दक

उसका हरास भी हआ और उसम बहत कछ आधवनक जीिन दवि क विपरीत हआ जो आज उपयोगी

नही ह उनक वहसाब स एक बहलतािादी आधवनक नजररया जो विजञानसम मत हो उपयक त ठहरता ह

आज हर भारतीय की एक बहआयामी पहचान बनती ह िह सहद बगाली मवथलम गजराती

कश मीरी वबहारी बराहमण ओबीसी जन ईसाई आदद िाली एक सार कई तरह की पहचान रखता ह

य वभनद न वभनद न पहचान अक सर एक दसर की विरोधी न होकर परक होती ह साथ कवतक रप स ि

गहरी पठी ह और उनक सार लोगो का गहरा सािथजवनक लगाि भी ह िथ ततः हर भारतीय की

पहचान (आइडरररी) की अलग व यिस रा ह कोई एक यनीफामथ पमाना नही ह जो यह तय कर दक कई

पहचानो म स कौन सबस ऊपर नबर िन पर ह यह एक बड़ा तरल या फलइड मामला ह आज

पजा-पाठ सगीत और थ िाथ थ य लाभ क अनक क र भारत भर म फल हए ह जहा आन जान स सहद

ईसाई वसख और मसलमान दकसी को भी परहज नही होता कई पहचान क सार रहना अथ पष रता तो

पदा करता ह पर शायद दसरो क वलए िथ ततः हर भारतीय कई (उप) सथ कवतयो म जीता ह और य

सब वमलकर उसकी पहचान बनाती ह इस अरथ म हर भारतीय शायद बहसाथ कवतक ह और उसकी

पहचान बहआयामी

दश की छवि दशिावसयो क आत मगौरि का माध यम होती ह आज क भारत का अग होना उस

वबलाग करना हमको आरवरक परगवत की ओर अगरसर एक दश एक आरवरक पािर क सार जड़न का

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एहसास दता ह दसरी ओर भरष राचार अवशकषा अव यिथ रा सामावजक करीवतयो और भदभाि क

कारण मन म रकान उदासीनता और असहायता की भािना भी आती ह इस सबक बािजद एक

भारतीय का बोध जरर ह जो पजाबी मराठी या गजराती होन अलग जावत िगथ और समदाय का

सदथ य होन पर भी सबको भारतीय बनाता ह कभी-कभी विविधता म एकता िाल नहर जी का

भारत अपररभाषय या अव याख यय लगता ह भारत को एक विथ तत साथ कवतक इकाई क रप म दखन

पर कछ विचार उभरत ह जो भारतीय होन क अरथ को थ पष र करन म सहायक होत ह इनम परमख ह

धमथ कमथ पनजथनद म को दकसी न दकसी रप म थ िीकारना सामावजक इकाई - पररिार जावत समदाय

क थ तर पर अपन अवथतत ि को महसस करना सक स वििाह और अनद य व यवियो क परवत खास दविकोण

को अपनाना बहलता का थ िीकार और खल कछ-कछ असगरठत दकथ म की आत म या सल फ की

अिधारणा का थ िीकार और दकसी न दकसी रप म दकसी बड़ी जञात-अजञात सतता स जड़ाि की

अवभलाषा और पररिश परकवत और सवि क सार साझदारी तरा परथ पर अनपरकता का भाि

समकालीन विमशथ म राज य और राष र की अिधारणा क अरथ बहत कछ इस पर वनभथर करत ह

दक कौन दकस दविकोण और परयोजन स इन पर गौर कर रहा ह अक सर इनद ह अतीत ितथमान और

भविष य स जोड़ कर दखा जाता ह और लोग अपन चन िचाररक आदशथ स रग कर ही इस पर विचार

करत ह इन शब दो और इनस जड़ अरथ थ रान और समय क सार-सार बदलत रह ह जो थ िाभाविक ह

भारत दश क बार म सोचन की एक बड़ी मवशकल यह ह दक हमारी अपनी पररभाषा क पमान हमार

अपन न होकर दकसी और क ददए हए ह ि हमार बौवदधक मानस म इतन गहर पठ चक ह दक अब हम

अपन पमान क बार म भरोसा ही नही कर पा रह ह और खद को पररभावषत करन का अवधकार ही

खोत जा रह ह आरवरक और तकनीकी परगवत क पसराि की दवनया म आज हमारा आतम-सशय इतना

गहराता जा रहा ह दक भारत और भारतीयता की बात करना परानी और ददकयानस और इसवलए

अपरासवगक मानी जान लगी ह अगर इसकी बात करनी भी ह तो उसकी सनद कही और स जरानी

होगी आज अपनी पहचान क वलए हम पविमी दशो म विदवानो क दवारा परमाण और गिाही चाहत ह

आज भारत की साथ कवतक विविधता को सपनद नता और समवदध क ोत क रप म समझन समझान की

जररत ह वजसका उपयोग समाज क विकास म दकया जाय इसक वलए भारत को भारत क नजररए स

दखना होगा वबना इस भय क दक भारतीय होना दकसी कषमा याचना की अपकषा करता ह थ िदशी और

सराज जस विचार अभी भी परासवगक ह समरथ और थ िािलबी होन क वलए आत म थ िीकार और सतत

पररष कार आिश यक ह

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भकप का सदश

डॉ एमएल गपता ldquoआददतय

धरती हर ददन डोल रही ह कपन की बोली बोल रही ह

विनाश कर आकरोश स बदल कय भगोल रही ह

कय धरती न भकरी तानी कय वहमालय म आिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

जो ससाधन र पोषण क उनका शोषण कर डाला

ओजोन का जो किच रा उसका भी भदन कर डाला

बरहमी स कार हमन िसधरा क िन-कश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

सागर क तीरो को छीला पठार और पिथत को लीला

नददया बनी नाल और नाली नही ददखता जल वनमथल-नीला

चतािनी द रहा ह मौसम बदला भमडल का पररिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

विजञान की सीढ़ी चढ़ विनाश का सामान बनाया

परमाण सयि द रह यातना विकीरण का खतरा मडराया

रवडएशन स आतदकत ह दवनया क सब दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

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कोई अण कोई परमाण कोई हाईडरोजन बम ल ऐठा ह

वबछी हई बारद धरा म मानि बमो क ढर पर बठा ह

हआ परमाण यदध तो वमर जाएग दकतन दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

भकषक बनकर मानि इक दज पर चोर कर रहा

परीकषण की खावतर दकतन भीषण बम विथफोर कर रहा

परकवत का सतलन वबगड़ा तो हम बन जाएग अिशष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

कदरत कहर बरपा सकती ह कभी भी आफत आ सकती ह

धरा की जरा सी भी हरकत दकतना कोहराम मचा सकती ह

धरा न जरा करिर बदली तो कछ भी न रहगा शष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

पयाथिरण क आघात पर अब तो रोक लगानी होगी

सागर पिथत धरती क सग बद करनी मनमानी होगी

धरती को जो मा मानोग सब वमर जाएग कलश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

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ि दोनो

डॉ सषम बदी

छत स फशथ तक क लब शीशो स जड़ी उस बड़ी-सी बठक म खब सारी ददन की रौशनी भरी हई

री फशथ पर वबछी सफद चादरो पर सफद िसतर पहन ढर सार लोग उस रौशनी का ही वहथसा लग रह

र कमर म घसत ही तारक को लगा जस उस शवतता म घल मौत क सदथपन और जड़ता न अचानक

उसक भीतर को जकड़ वलया ह बीचोबीच फलो की माला चढ़ी एक बड़ी-सी रवत की तथिीर री

वजसका धप दीप और गीता क शलोको स अवभषक दकया जा रहा रा रवत अब तथिीर भर री तारक

की थतबध पवनयायी आख वनथसहाय-सी रजत को खोजन लगी

रजत सारा िि लोगो स वघरा ही रहा रा उसकी मा उसक बचच और दसर ररशतदार कोई न

कोई उसक आसपास रा ही उन दोनो की आख एक दसर स दो एक बार वमली पर रजत अपन स

बाहर नही आ पाया रा तारक न दकसी तरह अपनी शोकभािना वयि कर दी री न भी वयि करता

तो कया रजत को तो खद भी अहसास होगा उसकी अतभाथिना का एक िही तो ह इस भीड़ म जो

जानता ह दक िह कयो यहा ह बाकी तो तारक दकसी स पररवचत ही नही वसिाय कछक रवत क

कलीगज क एक दो कलीगज स ही उसकी बात हई रवत क बार म ि उस पररिार का वमि मानकर

बात कर रह र य पररिार का वमि तो िह रा ही पर इसस अलग या ऊपर भी कछ रा यह शायद

रजत क अलािा और कोई नही जानता रा जबदक रजत भी परा कहा जानता ह खास तौर स िह सब

कछ जो तारक महसस करता रहा ह या जो कछ तारक और रवत क बीच म रहा या अभी भी वजसका

बहत कछ बचा रा

य तारक न बहत बार सोचा दक अब रवत नही रही तो उसक यहा जान का कोई फायदा नही

उसकी तकलीफ बढ़गी ही दफर लगा दक नही उस रजत स वमलन जाना होगा रजत भी तो उसका

दोथत ह य रवत उन दोनो क बीच न होती तो ि शायद बहत गहर दोथत हो सकत र दफर भी िह खद

को कई तरह स रजत क करीब महसस करता रा और रजत भी बहत मामलो म उसी स सलाह करक

चलता रा उस पर भरोसा करता रा जो दक उसक मन क दोथती क भाि को ही जताती री चदक

तारक की विशषता ददल क रोगो म री िह रवत क हारथअरक क बाद स उसस अकसर रवत क बार म

सलाह लता यहा तक दक रवत स भी कोई वशकायत होती तो तारक स ही कहता दखो न इसका

कोलथराल इतना हाई चल रहा ह और मडम चीज मीर सभी कछ खाती ह अभी रथतरा ल चलो परा

का परा थरक गरक जायगी कस कर यह तो खद को नकसान पहचान स बाज नही आतीrdquo और तारक

तब ररका दता कसी डाकरर हो तम रवत मरीजो को उपदश दती रहती हो और खदhellipदफर उसन

खद ही एक विशषण गढ़ा रा रवत क वलए lsquoनानकपलायरrsquo यानी दक जो कछ भी कहा जायगा उसका

विरोध ही करगी रवत और दकसी िजह स नही बवलक विरोध करन क वलए विरोध

तब रवत और भी तिर चढ़ाकर बोलती rdquoरजत तो पहल ही मर पीछ पड़ा रहता ह अब तम

भी इसी स वमल गय हो िाह जी िाह दोथत दकसक हो तम मर या रजत कrdquo

तारक तब चप रह जाता रा रजत भी कछ नही कहता एक वपरय अवपरय सतय

शायद रवत भी इसीवलए कहती री दक तारक तब लाजिाब हो जायगा कयोदक रवत जानती ह दक जो

िह तारक क वलए ह िह और कोई नही हो सकता और रजत को भी इसका अदाज ह इसी स रजत न

शर म चाह दकतना विरोह दकया हो दकतना लड़ाई झगड़ाhellip दफर धीर-धीर मान वलया रा इस ररशत

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को रवत क वलए ही अगीकार कर वलया रा तारक को भी रवत न ही उस बतलाया रा जब रजत न

उस बाहो म भरकर कहा रा rdquoइतना पयार करता ह तमह दक यह भी थिीकारन क वलए राजी हrdquo

एक हक-सी उठी री तारक क भीतरhellip वजस इतना पयार वमला होhellip इतनाhellip िह इस तरह स

उन दोनो की वजनददगी को ही सना करक रखसत हो ली तारक क मन म गथसा भी आयाhellip शायद

अपनी सहत का धयान रखती तो कछ और जी जाती उन दोनो स ही तो चार-पाच साल छोरी री िह

जी भी सकती री पर अबhellip और तारक न लबी सास भरी

रवत की एक कलीग बता रही री rdquoपरसो तो काम पर आयी हई री रवत म सोच भी नही

सकती री दक इतना भारी थरोक हो सकता ह दक एक ही लपर म ल जायhellip मझ तो विशवास ही नही

होताrdquo तारक को भी विशवास नही होता रा उसी ददन सबह रवत न उसस फोन पर बात की री और

उसस मजाक दकया रा rdquoमर जनदमददन पर आओगrdquo

दरअसल सारा झगड़ा कछ साल पहल रवत क जनदमददन को लकर ही शर हआ रा िनाथ शायद

रजत को उन दोनो क बीच बढ़त ररशत की तवनक खबर न लगती रवत न उस बतलाया रा दक उसक

जनदमददन पर िह और रजत आमतौर पर शाम को बाहर दकसी बदढ़या स फर च रथतरा म खाना खान

जात ह तब तारक न कहा रा rdquoठीक ह तो लच तम मर सार लनाrdquo

रवत मान गयी री उसन उसी ददन रवत क शहर पहचन क वलए फलाईर भी बक करिा ली

री पर जब ठीक जनदमददन आनिाला रा तो रवत न उस बतलाया रा दक रजत को ठीक नही लग रहा

मरा तमहार सार लच पर जाना िह पछ रहा रा दक इतना इमपॉरर कस हो गया यह आदमी दक

तमको उस जनदमददन पर जरर वमलना ह

rdquoतमन कया कहाrdquo तारक वजजञास हो उठा रा

rdquoयही दक तमको दकसी काम स शहर म होना रा इसवलए लच पर वमलन की बात की इस पर

उसन कहा दक अगल ददन वमल लो जनदमददन िाला ददन तो उसी क वलए हhellip कोई और कयोrdquo

दफर िह बोली rdquoइसी पर उस शक हो रहा ह दक यह कोई आम दोथत नहीhelliprdquo

तारक न जोड़ ददया रा rdquoपरमी हrdquo

rdquoहा यही शक हो रहा ह उसrdquo

rdquoतो ह या नहीhelliprdquo

rdquoशायद होhellip यही मसीबत हrdquo

तारक न कहा रा rdquoअब तो ररकर ली हई ह म तो आऊगा ही तम वमल सको तो वमलना िनाथ

न वमलना चाह पाच वमनर क वलए या कॉफी क वलए भी आ जाओगी तो मर वलए िही काफी होगा

तमहार जनदमददन पर तमह दख भर लrdquo

rdquoतम भी कमाल क रोमाररक होhellip पर सच कह तो म भी तमस वमलना चाहती ह उस ददनhellip

कछ न कछ तो जगाड़ना पड़गाrdquo

rdquoमर वलए तमहारा जनदमददन मरी वजनददगी का बहत अहम ददन हhellip समझीrdquo

एयरपोरथ पहच कर तारक न फोन दकया रा रवत बोली री rdquoरजत कह रहा ह तम हम वडनर

पर जॉयन कर लोrdquo

तारक बहत हरान हआ रा पर रवत न फोन रजत को पकड़ा ददया रा तारक एकदम सकर म

पड़ गया रा उसन खद को बचान की कोवशश की rdquoसॉरी म तो यहा आया रा तो सोचा रवत स वमल

लगा पर इस तरह आप लोगो क परोगराम मhelliprdquo

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रजत न जोर दकर कहा रा rdquoनही भाई बहत तारीफ सन रहा ह बीिी स जरा हम भी तो

वमल आपस आप चाह तो घर पर आ जाईए या दफर सीध रथतरा पर वमलगrdquo

rdquoपर आप लोगो का तो वडनर पर सार जान का कायथकरम रा नrdquo

rdquoआप लच पर फरी ह तो लच पर वमल लत ह य मझ तो वडनर ही पसद ह जसा आप कहrdquo

रजत वबलकल दोथताना ढग स बात कर रहा रा एक पल को उसकी रोन म कछ तनाि तारक

को महसस हआ रा पर अगल ही पल आिाज दफर सहज हो गयी री तारक मान गया पर रकसी लकर

पहल होरल म सामान छोड़ा और इस दौरान खद को मानवसक तौर पर तयार भी करता रहा दक कस

पश आना ह अपन रकीब स दखा जाय तो ररशता रकीब का ही रा बाकी ि दकतन भी सभय या

समझदार इसानो की तरह एक-दसर स बताथि कर आवखर ि तीनो सममावनत पश क र तारक हारथ

थपशवलथर रा तो रजत अगरजी सावहतय का परोफसर और रवत सायकायररथर इसानी मन की

कमजोररयो को समझना मनोरोगो का इलाज करना रवत की विशषता तो री ही पर इसानी आकषथण

एक दसर क परवत सखचाि या ऐस ररशतो को समझन की सथकवत तो कही तीनो म ही री

रजत इस बात को खब समझता रा दक दकसी भी औरत क वलए दकसी दसर परष क परवत

सखचाि हो जाना बहत सहज रा िही एक पवत और पतनी स परम करन िाल क रप म िह रवत क इस

वयिहार स ईषयाल भी हो उठता रा एक सभय इसान क नात िह ईषया को दबा कर तारक क परवत भी

वमिित वयिहार करना चाहता रा पर िही उस रवत क वयिहार स कि पहचता रा दक िह उसक

अलािा भी दकसी दसर परष को चाह सकती ह वजसस उसक मन म आकरोश और वितषणा का भाि

उठता कभी िह अपन को उदार बना कर यह कहना चाहता दक रवत अगर दकसी दसर को चाहती ह

तो बशक उसको भी कयो न पाय सार ही जब करोध होता तो एक तरह स जस िह रवत को सजा दन क

वलए कह डालता rdquoतम जाओ दोनो सार रहोrdquo पर जो पीड़ा िह उसम सह रहा होता िह रवत और

तारक दोनो क वलए ही असहय होती

रवत न कहा रा rdquoकया तारक और म दोथत नही हो सकत और इतन दोथत हhellip एक िह वयवि

वजसस बात करक मझ खशी वमलती ह िह दोथत कयो नही बन सकता वसफथ इसवलए दक उसक मन म

तीखी भािना ह मर वलएhellip या शरीरो का आकषथण भी हhelliprdquo

रजत तब तकथ स सारी बात को समझन समझान की कोवशश करता हा करत-करत कह दता

rdquoऔरत आदमी म दोथती हो ही नही सकती कयोदक जहा शरीरो का आकषथण हो िहा दोथती जसा

वनषकपर भाि कस पनप सकता हrdquo तब रवत दोथती का एक और पकष पश करती rdquoतमहार कहन का

मतलब तो िही ददकयानसी बात हई दक शरीर पाप का मल ह जबदक तम खद ही यह पहल कह चक

हो दक शरीरो का मसला हल हो जाय तो औरत मदथ बहत खबसरत दोथत हो सकत हhellip शरीर को

अहवमयत दी कयो जाय शरीर वमल जान स उनका दोथती म बाधा बनन का मसला खतम हो जाता हrdquo

रजत रवत की बात मान भी जाता रा पर रवत दफर तारक को यह भी बताती री rdquoिन कार

रक वहम फॉर गरारड कल को िह अपना कोई नया तकथ द दगाrdquo

शायद इसी स तारक भी अचानक वहममत हारन लगा रा कस सामना करगा िह रजत का य

िह रजत स एकाध बार पहल वमल चका रा पर तब उसको यह अदाजा नही रा दक रवत और उसक

बीच कछ रा जबदक तारक तब भी कछ आतमसजग-सा हो रहा रा पर कछ वमनरो की मलाकात को

सभाल लना कोई बड़ी बात नही री और य भी रजत उस भला आदमी लगा रा यह भी सोचा रा दक

अगर रवत उन दोनो क बीच न होती तो यह वयवि उसका दोथत हो सकता रा य रवत क होन क

बािजद अतत ि दोथत बन ही पर इस दोथती का तानाबाना िसा न रा जस खावलस दोथती का होता

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ह इसम रवत क रश बन हए र जो एक और ही रगत वलए र और िह रगत तारक को बहत पयारी री

उस दोथती स जयादा

तारक न होरल पहच कर फोन कर ददया रा दक वडनर पर वमलना ही ठीक रहगा और िह

अपना काम इस दौरान कर लगा रजत आसानी स यह बात मान गया और कहा दक िह सडरकस पर

पहल घर पर आ जाय उसक बाद रथतरा खाना खान चल जायग

शाम को जब िह चलन लगा तो फोन बजा रा दसरी ओर रवत री हलो कहत ही रवत न

कहा rdquoसनो तम मत आना मर घर म बहत रशन चल रही हrdquo इसस पहल दक िह कछ कहता रवत न

फोन वडसकनकर कर ददया

रात को कोई फलाईर नही जाती री िनाथ िह उसी िि शहर छोड़ क चला जाता

आध घर बाद ही घरी दफर बजी रवत पछ रही री दक आ रह हो तारक बौखला गया दक आवखर हो

कया रहा ह कया यह रवत क मन की उलझन ह या दक रजत कीhellip या दोनो कीhellip या रवत वसफथ रजत

की उलझन को वयि कर रही री बोली री rdquoजलदी आ जाओ हम लोग इतजार कर रह हrdquo

िह पहचा तो रवत न अकल ही उसका थिागत दकया रा िह जानता रा दक दोनो बचच कालजो

म ह पर रजत काफी दर तक बठक म नही आया तो तारक हरान हआ रवत बोली rdquoिह नहा रहा हrdquo

दफर मथकरा कर जोड़ा rdquoशायद हम दोनो को कछ िि दना चाहता हrdquo

तारक तब कछ निथस हआ रा उस आग बढ़कर रवत को चमन का हौसला नही हआ उस लगा

दक रवत भी सहज नही री जस दक आम तौर पर होती ह पर उसन कछ कहा नही िह खद भी तो

सहज नही हो पा रहा रा जस लड़की क बाप क घर म शादी का परथताि लकर जा रहा हो कछ कछ

इसी तरह का महसस हो रहा रा िही डर कर परचा करना रा दक इमतहान म फल न हो जाय

रजत न कमर म आत ही बड़ तपाक स हलो दकया कछ औपचाररक-सी बात की दफर उसस

सडरक पछा और दकचन म बफथ िगरह का इतजाम करन क वलए दफर स गायब हो गया तारक को लगा

दक सहज होन की बहत कोवशश क बािजद रजत बहत असहज ह

ववहथकी का घर लत हए तारक न ही रजत स उसक काम क बार म पछना शर दकया बात

कही जा नही रही री तभी रवत एक नई दकताब की चचाथ करन लगी वजसका ररवय सबह क अखबार म

छपा रा तारक न हिाई जहाज म ही उसक बार म पढ़ा रा दफर तो बातचीत खब गरमागरम होन

लगी रजत न दवकषण एवशयाई अगरजी लखको क बार म अपन विचार झाड़न शर कर ददय यहा तक

दक रवत न अचानक घड़ी दखी तो पता चला दक रथतरा की ररजिशन का िि हो चका रा रजत न

रथतरा को फोन दकया दक कछ वमनर लर पहचग और तारक को बोला दक जलदी स सडरक खतम कर ल

या गाड़ी म ही ल चल दोनो न दो तीन सडरक चढ़ा रख र मौज-सी भी आयी हई री रजत ही कार

चला रहा रा और तारक पीछ िाली सीर पर बठा रा अचानक रजत कछ नश और कछ अपनी धन म

बोला rdquoतो तम मरी बीिी स पयार करत होrdquo

तारक भौचक-सा हो गया य ही बठा रहा जस रजत की बात को सना न हो या िह गभीरता

स लन लायक न हो रजत न अपनी बात को सिाल बनाकर दबारा पश दकया rdquoकयो तारक मरी बीिी

स पयार करत हो या नहीrdquo

तारक न कहा rdquoहाrdquo और चप कर गया उस लग रहा रा िह जो भी जिाब दगा खतर स खाली नही

पर यह जिाब सच रा तो सच बोल कर ही मार खायी जाय उस दकसी लड़की क वपता स हार मागन

नही जाना पड़ा रा आज यह भी सही

rdquoतम भी पयार करत हो िह भी करती ह तो तम दोनो सार कयो नही रहतrdquo

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तारक बोल पड़ा रा rdquoयह इतना आसान नहीrdquo

रजत इस पर आकरमण करता-सा बोला rdquoकमाल ह पयार भी करत ह और वजममिारी भी नही

वनभाना चाहतrdquo तारक को महसस हो रहा रा दक रजत कह तो कछ रहा ह और पहचाना कछ और

चाहता ह दफर भी िह जिाब तो उसी बात का द सकता रा जो दक पछी जा रही री यह कह कर

उस नाराज भी नही करना चाहता रा दक रजत वसफथ अपन भीतर क आकरोश आतक और आग को

आिाज द रहा रा बोला rdquoयह बात नही म आज भी रवत क सार वजनददगी शर करन को तयार ह

जहा तक म जानता ह रवत अपन शहर को छोड़ कर और कही नही जायगी न िह तमको छोड़न को

तयार होगी जहा तक म रवत को जानता हhelliprdquo

रवत चपचाप अपन पर अकश लगाय दोनो की बात सन रही री न तो िह रजत क पकष म

कछ बोलना चाहती री न तारक क पकष म ही बोल सकती री दफर भी दोनो क बीच तारतमय वबठाय

रखन की वजममिारी भी उसी की री और िह समझ नही पा रही री दक दकस तरह इस बातचीत को

सीमाय लाघन स बचाया जाय ऊपर स उस डर लग रहा रा दक आिश म रजत कही रककर न मार द

रथतरा बहत दर रा भी नही बात पर चरम पर चल रही री दक रथतरा आ गया रवत न रोका rdquoरजत

पारककग ढढ़ो रथतरा आ गयाrdquo रथतरा क सार ही पारककग गराज म गाड़ी छोड़ कर तीनो अदर चल गय

िरर न उनको मज पर वबठाया और सडरक क वलए पछा तरा मनदय लाकर ददय तीनो क तीनो उस मज

पर इस तरह खामोश और भर बठ र दक मनदय म वसर डबोना एक राहत बन गया रा तीनो न अपन-

अपन आडथर ददय पर बात कछ बन नही रही री हर कोई कछ भी कहन म जयादा ही सतकथ हो रहा रा

अचानक रवत बोली rdquoरजत तमको इतनी जयादा तकलीफ री तो तमन मना कयो नही कर

ददया म तो तारक को कह चकी री दक आज सार खाना नही होगा तमही न जोर ददया दक जरर

बलाओ अब इस तरह कयो बताथि कर रह होrdquo

रजत और भड़क गया rdquoम तो वसफथ यह कह रहा ह दक तम लोग एक-दसर को पयार करत हो

तो म कया कर रहा ह यहा तम जाओ एक दसर क सार रहोrdquo

दोनो की आिाज ऊची हो रही री और दसरी मजो पर बठ लोगो की वनगाह इस ओर उठ आयी री

तारक न धीर स सझाया रा rdquoमर खयाल स हम य बात यहा नही करनी चावहएrdquo सहसा रवत

न होश म आत कहा rdquoहा इतन बदढ़या रथतरा म खाना खान आय ह कछ खान पर भी तो धयान दhellip

दफर आज मरा जनदमददन ह आई िार र हि ए गड मीलrdquo

दफर भी खान पर तीनो म स दकसी का धयान नही लग सका तीनो औपचाररक-सी बात म लग

गय र तारक न ही शहर क निीनतम रथतराओ क बार म ताजा पढ़ी समीकषा का वजकर छड़ ददया रा

रजत न कार स जब उस होरल छोड़ा तो तारक न उपर कमर म आकर सडरक लन क वलए कहा

पर जसा दक िह अपकषा कर रहा रा रजत न दर होन का बहाना बना छटटी माग ली री रवत तब भी

कछ नही बोली री शायद उस डर रा दक उसका कछ भी कहना रजत क वलए घाि पर नमक वछड़कन

जसा होगा या उसकी कोई भी बात का गलत मतलब वनकाल कर रजत भड़क सकता रा य दर हो भी

चकी री

पर तारक यह भी जानता रा दक रवत एक नबर की वजददी री जो उस चावहए रा चावहए ही

रा उस रोका नही जा सकता रा िह ऊपर स मान जायगी पर भीतर स कभी माफ नही करगी

शायद इसी स रजत भी वबगड़ी हई लाड़ली बरी की तरह रवत की हर चाह या माग को विरोध करक

भी अतत मान जाता रा

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लौर आन क दो चार ददन बाद ही उसक फोन पर रवत न सदश छोड़ा रा rdquoतमहारा आना ठीक

नही हआ सॉरी तमह बलाकर भी वमल नही पायी अब लगता ह कभी नही वमलगी लर अस थरॉप

ददस वहयर पलीज मझस सपकथ मत करनाrdquo

तारक बहत ददन परशान घमता रहा रा पर रवत को फोन भी नही दकया उसन मना जो कर

डाला रा उस फोन करत हए तारक को लगता दक िह खद को उस पर लाद रहा ह और यह वथरवत

उस कभी गिारा नही री हर ददन दकसी जिालामखी-सा लाि स लदा हआ गजरता अदर ही अदर

सब तप रहा रा

महीन भर बाद रवत न फोन दकया रा rdquoगथसा हो न मझस तमस माफी भी नही माग सकीrdquo

उसकी तो कोई जररत नहीrdquo

दफर भी सोचा रा तमस कभी बात नही करगी इसी स तमको सपकथ करन स मना दकया

रा रजत को भी यही मालम ह दक तमस ररशता तोड़ ददया ह पर अब मझी स बात दकय वबना रहा

नही जा रहाrdquo

रजत को मालम ह मझस बात कर रही होrdquo

िह बहद गथसा ह तमसhellip जस दक सारा दोष तमहारा होhellip दक तमन उसकी बीिी को फसा वलयाrdquo

ि इसी तरह जब मौका लगता बात कर लत तारक क ददल ददमाग पर रवत ही छायी रहती

िह ऐस ही पलो क दौरान जीता जब दोनो क बीच कछ सपकथ होता बाकी क पल उन पलो क इतजार

म गजरत

इस बीच रवत को ददल का दौरा पड़ा रा घबराकर तारक को फोन कर डाला रा रजत न

तारक आया तो रजत उस अपनी गाड़ी म सार अथपताल ल आता जाता रहा दोनो म एक दोथती का

नाता तभी बना रा दवनया जहान की बात रजत न उस घर पर ही ठहराया रा तारक तीन ददन बाद

चला गया रा िावपस पर दोनो की फोन पर बात हो जाती रवत अथपताल स िावपस आ गयी री

धीर-धीर िह सामानदय होकर िावपस अपना काम सभालन लगी

रवत का जनदमददन दफर स आनिाला रा रवत न उस कहा रा rdquoरजत अपन आप ही बोल रहा ह

दक तम आ जाओ इस बार मरा जनदमददन मनान बोलो आओगrdquo

तारक परानी बात याद करक घबरा गया रा rdquoनही दफर स उसक भीतर सब घमड़न लगगाhellip

सबको तकलीफ होगीrdquo

यह सच भी रा रजत कभी तो उसक परवत बहत वमिित हो जाता िही अचानक गथसा ईषयाथ

उभर आत और िह अकसर बरखी ददखाता अचानक तारक को ऐसा महसस हआ जस रवत उसस खद

यह सब कह रही हो पल भर को िह भल ही गया दक रवत क ही अतयवि कमथ म िह शावमल हआ ह

और दरअसल उसक यहा आन की एक िजह यह भी ह दक िह रवत को वलख अपन खत िावपस ल

जाना चाहता ह उस डर ह दक कही ि खत रजत क हार न पड़ जाय

तारक रवत क सार काम करन िाली इस मवहला डॉ लोपज स पहल वमला हआ रा इस भीड़

म एक िही जान-पहचान की री तारक का मन हआ उसस पछ दक कया िह रवत की दराज म उसक

कागजात पर नजर मार सकता ह तारक को अदाज रा दक उसक खत िह दफतर की मज की दराज म

रखती री पर िह जानता रा दक ऐसा करना ममदकन रा नही आवखर तारक को कस हक पहचता रा

रवत की दराज खलिान का िह तो एक पररिार क वमि की हवसयत स िहा रा रजत ही कह सकता

रा दखा जाय तो ि लोग खद भी रजत स ही कहग दक रवत का सामान िह ल जाय तब तो रजत की

आख जरर उन पर पड़गी तब शायद उसको बरा लगगा दक रवत क सार तारक का एक अपना ररशता

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रा उन तीनो की आपसी दोथती क बाहरhellip रजत को बतहाशा चोर लगगी अब जबदक िह रवत स

जिाबतलबी भी नही कर सकता रवत अब कोई सफाई नही पश कर पायगी तारक क हक म कछ भी

नही कह सकगी दकसी तकथ स रजत को लाजिाब नही कर पायगी नही िह ऐसा नही कर सकता न

यह रवत क परवत सही होगा न रजत क परवत उस दकसी न दकसी तरह स खत पान ह

राथत म आत हए हिाई जहाज म तारक जब लगातार रवत क सार की अपनी वजनददगी क

गजर पल दहरा रहा रा बार-बार उस धयान आता दक जब स रवत को ददल का दौरा हआ रा िह

उसस कहना चाहता रा दक उसक खत विनि कर द एक बार उसन बात उठायी तो रवत बोली rdquoकयो

तमहार खत मर दफतर की दराज म सफ पड़ हrdquo

शायद िह वबना कह यह भी समझ गयी री दक तारक का इशारा दकस ओर ह तभी बोली

दखो जब तक म वजनददा ह म उनको फाड़ कर न तो फ क सकती ह न जला सकती ह एक बार मर गयी

तो कया फकथ पड़ता ह दक कोई कया करगा उनक सार तमको तो दफकर होनी नही चावहए अब तो ि

मरी अमानत हrdquo यह बातचीत दो एक महीन पहल की ही होगी तारक न सोचा रा बात कभी दफर

उठायगा पर उसस पहल हीhellip

तारक को भी तब यह अदाज नही रा दक रवत क अलािा रजत स भी उसका नाता रा रवत क

जान क बाद िह खद को रजत क बहत करीब महसस कर रहा रा और उस लगा दक उसक खत रजत

को उसस दफर दर धकल सकत र पर िह दकसी तरह भी रजत को खोना नही चाहगाhellip रजत जस स

रवत का ही एक वहथसा राhellipउसन दखा लोगो स वघरा रजत का चहरा बहद वनचड़ा हआ रिहीन और

सखा-सा लग रहा रा रात भर सोया नही होगा इसवलए आखो क नीच कालापन उतर आया रा आख

काफी अदर को धसी हई री तारक को लगा दक िह शायद रजत स बहतर हालत म ह दफर उस रशक

भी हआ रजत अपन गम का खला इजहार कर सकता हhellip तारक को यह सविधा नही री िह दकसी

उजड़ आवशक क रप म इस महदफल इस मौत का शोक करन िालो की महदफल मhellip अपना असली

चहराhellip अपना आवशक का चहराhellip नही ददखा सकता रा अचानक उसकी आख भर आयी अपन खोन

की वशददत क अहसास स

रवत क िाकय उसक कान म सरसरान लग जबस उस ददल का दौरा पड़ा रा िह जीिन की

कषणभगरता या इसान क नाचीज होन क अवथततििादी दशथन को बहत बघारन लग गयी री शायद

अपन जान का अहसास उस कही बहत गहर उदास कर जाता रा पर िही िह उस जान को एक

अिशयभािी अकारय सतय की तरह थिीकार करक उसस समझौता भी करन लग गयी री एक ददन

उसन हडसन नदी क दसर वसर स मनहरन की ओर दखत हए कहा रा rdquoदखो तो इन छोर-छोर वडबबो

म दकतन लाखो लोग रहत ह दकतन छोर ह हम लोग इतनी तग जमीन पर दकतनी बड़ी तादाद म

समा जात ह एकदम हजारो की सखया म सार-सार जड़ कीड़ो की तरह दफर भी अपन आप को

दकतना बड़ा मानत ह राजनीवत धमथ और नवतकता की तवखतया वचपका कर दकतना बड़ा होन का

भलािा दत रहत ह खद कोrdquo

रजत को रवत की इसान को नाचीज करार दन िाली बातो स हमशा बहत वचढ़ छरती री

बोला रा rdquoधमथ नवतकता जीिन क सतय ह इनको तम भलािा दन िाली चीज कस कह सकती हो

इसान इसीवलए तो बाकी जीिो स अलग ह दक िह सोच सकता हrdquo

rdquoऔर सोच क धरातल पर हर चीज को गलत या सही सावबत कर सकता ह नवतकता को गढ़

सकता ह या परा सतयानाश कर सकता हhellip ठीक ह मझ तो उसम कोई नकसान नहीrdquo

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हा नकसान दकसी का ह तो मरा ही रजत न कहा तो तारक झर स बोल पड़ा रा rdquoनकसान

तो तब होता जो म उस भगा क ल जाताrdquo

रजत न सजीदगी स कहा rdquoअब इसका ददल बर गया हhellip तो आधी सपवतत तो लर ही गयी न

तम भगा ल जाओ तो भी फकथ नही पड़गा यह आधािाला वहथसा तब भी यही रहगाrdquo

सचमच रजत का यह विशवास सही रा रवत और उसक ररशत की शरआत क ददनो म भािना

क परिाह म बहता तारक रवत क सार एक नयी वजनददगी क दकिाड़ खोलन की बात सोच पाया रा पर

जलद ही उस अहसास हो गया रा दक रवत कही बहत गहर जड़ी री रजत क सार दक िह कभी उस

ररशत को तोड़गी नही य रजत भी शर क ददनो म भीतर स वहल गया रा यह झरका दक रवत रजत

को छोड़ दकसी और को मन म ला सकती ह उस बहत दर जा फ क आया रा दफर रवत न खोय विशवास

को िापस लौरा ददया रजत अपन आध नकसान क सार धीर-धीर शायद समझौता करना सीख गया रा

तारक को लगा दक िह आध क सार समझौता करना सीख गया रा दफर तारक को लगा दक

िह आध क सार समझौता नही रा रजत क भीतर कही पर का भरोसा भी रा जस दक रवत को वसफथ

एक बदलाि चावहए रा जो तारक रा िनाथ िह परी रजत की ही री कयोदक मौका आन पर रजत

अपना परा हक जतान स चकता नही रा हमशा यही मानता रा दक पहला हक उसी का ह तारक

हमशा बाद म आयगा जस दक पर भर लन पर बचा हआ भोजन दकसी को भी ददया जा सकता हhellip

कछ ऐसा रख

पर रवत बचा हआ भोजन नही रीhellip दकसी तरह स भी उवचछि या अिवशि नही जो उसन

रवत म पाया रा िह पहल वजनददगी म कभी नही वमला रा रवत न उसकी पहचान करायी री

पररपणथता स रवत को जानना ही जस उस सपणथता को छना रा शायद रजत न भी रवत म ऐसा कछ

पाया रा जो आम औरतो स अलग रा रवत शादी क इतन बरस बाद भी उस अपन म उलझाय री और

िह उसस मि नही होना चाहता रा रवत म बाहरी खबसरती क बािजद वयवि क ददमाग को भी

उलझाय रखन का जो गण रा उसस सच म जो भी पास आता और सखचता जाता रवत म भरपर

पयार लन की चाह री तो भरपर दन की कषमता भी इसी स अभी भी उसस जी तो नही भरा रा रजत

का शायद िह ऐसी औरत री जो हमशा वनत निीन होती रहhellip सौदयथ की एक पररभाषा यह भी तो

दी गई ह दक जो वनत नतन होता रह िही सौदयथ ह रवत भी कभी परानी नही पड़ती रोज कछ नया

होता ह उसक पासhellip कोई नया खयालhellip कोई नई सझhellip कोई नई उकसान उलझान िाली बातhellip

शायद इस ददमागी सौदयथ कहना होगाhellip जो कछ भी उसम राhellip बस खीचता रा अपनी ओरhellip मोहता

राhellip शायद कया पर उगली धरना उस पररवध म बाधन की भोडी कोवशश होती

कछ दवदव उठता तो रवत रजत क ही हक म बोलती री रजत क वहतो को सरवकषत कर लन क

बाद ही िह तारक को उसका हक दती तारक को खीझ भी होती दक रजत उसक जीिन म चदक पहल

आ गया रा इसीवलए हर चीज म ही पहला हक उसी का बनता ह पर उसन रवत स अपनी यह

मनवथरवत कभी जावहर नही होन दी री वपछल साल िलनदराईन ड पर ऐसा ही तो हआ रा दरअसल

दोनो को अदाज नही रा दक उस िीक ड पर िलनदराईन ड पड़ता रा तारक को दकसी काम स रवत क

शहर आना रा और दोनो न वमलन का कायथकरम बना डाला रा रजत स रवत की बात हई होगी तो

उसन भनकर कहा रा rdquoतो िह तमहारा िलनदराईन ह जो उस ददन आ रहा हrdquo रवत क कहन पर दक उस

तो याद भी नही रा िह बोला रा rdquoम नही मान सकता दक तारक न य ही आन का बनाया ह इस

िीक ड परrdquo रवत न तारक स सारी बात बतलायी तो उसन सोचा रा िह खद फोन पर रजत स कहगा

दक उस सचमच याद नही रा पर दफर बात बढ़ान न दन क वलए चप रह गया रा और जान का

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परोगराम भी थरवगत कर डाला रा तब उस दो बात तकलीफ दती रही री एक तो यह दक रजत हमशा

उसक सामन परारवमकता ल जायगा दसरी यह कड़िी सचचाई दक रवत कभी भी उसकी जावहरी वजनददगी

का वहथसा नही बन सकती री उसकी कमर म हार डाल कर िह कभी दकसी स यह नही कह सकता

रा रवत मरी हrdquo तब उस बहद रशक होता रजत स कया रजत को सचमच अहसास ह दक रवत तारक

क वलए कया ह दक िह उसकी वजनददगी का कनदर उसकी वजनददगी का अरथ बन चकी ह यह कोई हलका-

फलका ठरकपन नही उसकी वजनददगी का रशा-रशा गर गया ह रवत स शबद म अरथ की तरह समायी ह

रवत उसक अवथतति म इस गरन म िह खद ही घरता रहगा हमशा

अब रवत नही ह तो िह घरन और भी कस रही ह उस कया अब िह रजत स कह पायगा

अचानक उसका मन हआ दक रजत स कह द rdquoतमको मालम ह दक मझ सचमच पता नही रा दक उस

ददन िलनदराईन ड रा िनाथ ऐसी जरथत न करताrdquo दक िह जानता हhellip अचछी तरह समझता ह अपनी

और उसकी ररीररी की पररवधयो को दक रजद शायद कभी जान न पायगा पर उसन हमशा एक दोथत

की तरह रजत का रजत की जररतो का खयाल रखा हhellip वसफथ ऊपर-ऊपर स सामावजक उपचार की

तरह नही भीतर स दकसी ददली ररशत सhellip दफर िह ररशता चाह रवत क जररय स ही बना हो

हो सकता ह रजत यह सब महसस करता हो या न भी करता हो पर उसक चहर पर भी वमिता

का थिागतमय भाि हमशा ददखा ह तारक को वसिा उन कषणो क जब दक सचमच उन दोनो क बीच

lsquoररररोररयलrsquo झगड़ हए तब भी ि शायद इसानी आचार या परथपर सदभाि की सीमाओ को कभी

लाघ नही पर दफर भी तारक का रवत क सार का ररशता ऐसा नही दक रजत क सार वजस बार सक

रवत उसकी हथती का अवभि वहथसा ह िह कोई और कस हो सकता ह रजत रवत नही हो सकता

चाह उसक दकतन ही करीब रहा हो उस दकसी न दकसी तरह स अपन खत पान ही ह लदकन कस

और यही तारक बार-बार उलझ जाता ह अपनी यह परशानी िह दकसी क सार बार नही सकता

रजत स तो कतई नही खत अगर सचमच रजत क हार पड़ गय तो

लदकन रवत न यह भी तो कहा रा दक अगर िह नही रही तो कया फकथ पड़ता ह पर रजत

सचमच खत पढ़ ल तोhellip शायद उसकी पीड़ा पर तब करोध और घणा का कोई विकराल भत हािी हो

सकता हhellip हो सकता ह दक खत पढ़कर रजत रवत को खद स वछरक द लदकन उसस कया तब शायद

रवत और भी तारक क करीब आ जाय और भी उसकी अपनी हो जाय वसफथ उसी की समची एक रात

पहल उस ऐसा ही कछ सपना आया रा रवत की मौत की खबर क बाद यही उसका याद रह जानिाला

सपना रा िह रवत की अतयवि म गया ह और एक अधरा-सा बठकनमा कमरा हhellip कमर म कछ

कागज वबखर पड़ हhellip िह एक कागज उठाता हhellip िह उसी का रवत को वलखा खत हhellip और कई लोग

उसक आसपास ह और िह सोचन लगता ह दक कही इन लोगो न भी तो उनदह नही पढ़ाhellip तभी रजत

का चहरा उसकी ओर बढ़ता ह और िह कागज वछपान की तरकीब सोचन लगता हhellip इसी उधड़बन म

उसकी आख खल गयी री तो वजथम पसीन म नहाया हआ रा

एक रजत ही यहा उसक सबस करीब हhellip और रजत ही उस अजनबी-सा लगन लगा ह अब

तक उसका रवत का सदभथ रा अचानक उस सदभथ स करकर न होन जसा हो रहा ह तारक को अजीब-

सी मानवसक दरी और भयकर अकलापन-सा महसस हआ िह यहा आया ही कयो रा रवत की

नामौजदगी म दकतना बमानी ह उसका यहा होना रजत को भी दकतना दफजल-सा लग रहा होगा

उसका यहा उपवथरत होना वजन लोगो स वघरा ह ि तो सचमच उसक अपन हhellip तारक तो दर स भी

अपना नहीhellip मत स तारक का जो भी नाता रहा होhellip उसक दकसी दसर स तो नही रा उसक कॉलज

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कामो स लौर बचच भी तारक को पहचानत नही र तारक न ही उनकी शकलो और वयिहार स अदाज

लगाया रा और हॉलि म लगी तथिीरो स उनदह पहचान पाया रा

तारक क पास रजत स कहन को कछ नही रा उसका कछ भी कहना रजत को खल सकता रा

उलर तारक को लगन लगा दक रजत शायद सोच रहा हो दक अब कयो जखमो को याद ददलान आ गय

हो कछ भी हो तारक न उस पीड़ा तो पहचायी ही री कया अब उसका कछ भी करना रजत क कि को

कम कर सकता रा उसन वनगाहो स ही अपना दख बयान कर ददया जो शायद रजत न थिीकार भी

वलया राhellip शायद एक औपचाररकता की तरह जस िह दसर बहत स जमा लोगो की शोकावभवयविया

थिीकार रहा राhellip उसस कछ अलग नही शायद तारक का िहा होना ही रजत को खल रहा हो पर

िि की नाजकी की िजह स िह कछ कहना न चाह रहा हो तारक एकदम परशान-सा उठ खड़ा हआ

कछ लोग रजत क गल लग रह र शायद उसस विदा लकर जा रह र तारक न सोचा िह अब

कहगा दक रवत क पास कछ उसक जररी कागजात र अगर रजत उस कागजो िाली जगह पर ल चल

तो िह खद ही दख लगा तारक यि की गवत स रजत की ओर बढ़ा रजत जस दकसी को दख कर भी

दख नही रहा रा उसकी आख दकसी शनदय पर ररकी री तारक को लगा उन लोगो क वघराि म

वजसम उसक अपन अजीज दोथत और ररशतदार र रजत न उस कोई विशष लकष नही दकया तारक क

भीतर अजीब सनापन-सा आ वघरा लगा जस रवत रजत म कही नही री वसफथ भरम-सा हआ रा उस

उसक िहा होन का जस दक उसक रवत क नात स िहा होन म ही कोई भारी असगवत री उस लगा

िहा बठ अजनबी स लोग उस घर रह र उसक िहा होन पर परशनवचनदह लगा रह र पता नही दकतन

ही अजनवबयो स वघर गया रा तारक यहा तक दक रवत की उस तथिीर म भी उस रवत नजर नही आ

रही री िह भी कोई अजनबी छाया री यह दवनया उसकी नही री अगर िह रवत की दवनया रही

भी हो तो वजस रवत को िह जानता रा उस रवत क वलए भी यह दवनया अनवथतति री विसगत री

उसन रजत को बहत सभलत सभलत गल स लगान की औपचाररकता की उस लगा जस िह

दकसी अजनबी को गल लगा रहा रा रवत वजतन उसक अपन पास री उतन और कही नही दकसी क

पास नही दरअसल रवत और कही नही री उसक भीतर रीhellip बस उस रवत को िही अपन भीतर ही

कही सजोय रखना रा भीतर ही खोजना रा भीतर ही तसलली करनी री दकसी और स बार नही

सकता रा रवत को रजत क दोनो कधो को हलक स दबाकर उसन धीर स कहा rdquoरक कयरrdquo और मड़ा

तो वबना पीछ दख बाहर वनकल गया

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पासपोरथ अमरीकन मरो

ओम गपता

पासपोरथ अमरीकन मरो पर रगत सहदथतानी

आज सनाऊ तमको पयार अपनी रामकहानी

छोड़ो भारत मन भयया डॉलर दख-दख ललचायो

चार-पकोड़ी जब भी दख मोह म पानी भर आयो

दीिाली पर दीप जलाउ होली पर खल रग

मौको जब मझको लगतो पीतो म भी भग

कसो होगी सरकार हमारी मोक हरदम सचता

जब भी दश पड़ सकर म कपा करो हनमनदता

पज म अब भी राम-कषण जातो मददर रोज

गपशप यारो स करतो फोकर म वमलतो भोज

योगी-बाबा आए दश स जब दन मझको जञान

आख मद क ना कछ जान करतो उनको सममान

हमबगथर अब भी नही भातो भाती मझ कचोड़ी

जसो जब भी मौका आयो रोपी िसी ओढ़ी

जाऊ दश को जब म अपन खाऊ लडड और इमरती

कहतो खद को सहदथतानी अमरीका मरी अब धरती

कहन को बहत ह भयया रोड़ को समझो काफी

बरा-भला लगा जो तमको माग नतमथतक माफी

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शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

आकाकषा ह

वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

फर च अनिाद कर इस lsquoभोगिाद स पीवड़त पविम की आतमा को अतयवधक शावत दन िालाrsquo कहा

12 47 2015 33

ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

की सीमाओ क पर मनषय कया अनभि कर सकता ह उसकी एक झलक भी ददखा दता ह उसी

औपवनषदीय जञान को महरवष िदवयास न सामानदय जनो क वलए ldquoपविि गीताrdquo म सवकषपत रप म परथतत

दकया ह िदवयास की महानता ही ह जो दक 11 उपवनषदो क जञान को एक पथतक म बाध सक और

मानिता को एक आसान यवि स परमातम जञान का दशथन करा सक ldquoपविि गीताrdquo महाभारत क

भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

ह भगिद गीता वहनदद धमथ क पविितम गरनदरो म स एक ह जो इसानो की चौहददी की सीमा रखा पर

भगिान क शरी मख दवारा इसान स कही गयी सरहदो पर चहरो की थकररनी का लखा-जोखा ह यह

12 47 2015 34

पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

12 47 2015 35

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Page 11: Year 12, Issue 47Year 12, Issue 47 vsu2avsu2a · राथत § में आ वबछ §ग . ... श्रराम की अन ¡कम्पा स § ह हाल ह में

12 47 2015 9

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मरली कस अधर धर

महाकवि गलाब खडलिाल

मरली कस अधर धर

सर तो िदािन म छर कस तान भर

जो मरली सबक मन बसती

वजसस री तब सधा बरसती

आज िही नावगन-सी डसती छत वजस डर

वजसको लत ही अब कर म

पीड़ा होती ह अनदतर म

कस दफर उसकी धन पर म जग को मगध कर

इसको तभी धर अधरो पर

जब सग-सग हो राधा का थिर

जब यह मरली सना-सनाकर उसका मान हर

मरली कस अधर धर

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भारत और भारतीयता का अरथ

परो गिरीशवर ममशर कलपवत महातमा गाधी वहनददी विशवविदयालय

आजकल क चरवचत सरोकारो म भारत और भारतीयता क सिाल परछन न और परत यकष दोनो ही रपो

म खासी चचाथ का विषय बन चक ह और कई बड़ बवदधजीिी इस पर बहस म वशरकत कर रह ह दसरी

ओर ऐसो की भी कमी नही ह जो इस बमतलब का मददा मानत ह इसका पररदश य आज जररल और

बदला हआ ह दश क थ िति होन क पहल और थ िति होन क ततकाल बाद और अब लगभग सात

दशक की पररपक िता क करीब पहचत-पहचत इस लकर आज बहतर यह मान कर इस तरह की चचाथ

स तरथ र हो चल ह दक यह तो कोई सारथक परश न ही नही ह कछ इस िवशवक या भमडलीकत हो रह

आज क समय की जररतो क अनसार समझना चाहत ह कछ इस किल थ रानीय दवि स ही दखना

चाहत ह कछ इस सभ यता और सथ कवत क विमशथ स जोड़ कर दखत ह जो भी हो अतरराष रीयता क

सार परयासो क बािजद आज भी राज य या नशन थ रर की अिधारणा वनणाथयक महत ि रखती ह और

वनकर भविष य म सीमाविहीन दश जसी कोई अिधारणा आकार लती नजर नही आती आज का सत य यही ह दक दशो की सीमाए बाधा (का अवधक) और सपकथ (का कम) का काम

कर रही ह दश की सीमाओ की रकषा सबक सामन एक बड़ी चनौती ह दश और राष र किल कोरी

भौगोवलक अिधारणाए नही होती उन इकाइयो की रचना क सार एक समाज या समदाय विशष की

आशा-आकाकषा भी जड़ी होती ह दश की अिधारणा एक थ िप न को समरवपत रहती ह आज क तमाम

राष रो क सार उनक सार जड़ी लबी सघषथ-गारा आसानी स दखी जा सकती ह जो दसर समाजो और

समदायो की सामराज यिादी आकाकषाओ क परवतरोध को दशाथती ह शविसपनद न और आरवरक रप स परबल

दशो की दादावगरी उनकी सतता और शवि का जलिा अभी भी बरकरार ह कहन का तात पयथ यह दक

दश की इकाई अभी भी राजनवतक सामावजक आरवरक सामररक और सास कवतक रप स महत िपणथ

बनी हई ह और उस नकारा नही जा सकता

आज बौवदधक किायद म भारत समत सब कछ करथ रड मान जान का फशन-सा चल पड़ा ह

पर उसस दर करोड़ो (भारतीय) जनो क तन-मन म भारत जीवित ह आम आदमी वजनस दश आकार

लता ह िह भारत की एक सामावजक थ मवत भी रखता ह उसक वलए दश थ रानबोधक ह और भारत

एक भाि भी ह भारतीय होन का मतलब ह भारतभवम म रहन की जीिन-व यिथ रा म शावमल होना

भारत कह या इवडया यह मलतः एक भौगोवलक थ रान और उसकी पररवध को रखादकत करता ह इस

भभाग को जब दवीप आयाथितथ भारतिषथ और सहदथतान क नाम स भी जानत ह वहमालय और

सागर इसकी सीमाए बनात ह शथ यश यामला क दश गान और जनगणमन क राष रीय गान म जीित

भारत माता को वजस रप म थ मरण दकया गया ह िह भौगोवलक अिधारणा ही नही उसकी सीमा म

रहन िाल बासशदो की सामावजक-साथ कवतक अवथमता पर बल दती ह वजसका एक भािात मक रप भी

ह भारत एक सामावजक शरणी भी ह जो समाज दवारा रवचत और थ िीकत ह यह उस सामावजक

आकाकषा का परतीक भी ह जो एक आदशथ वथरवत की ददशा म जान क वलए परररत करती ह आधवनक

यग म एक थ िति जनति क रप म एक राज य की थ रापना हई और सहमवत स एक सविधान बना और

12 47 2015 17

सामावजक आकाकषा को एक मतथ रप वमला हमन उसम आिश यकतानसार बदलाि भी दकया ह इस

इकाई क सदथ य क रप म हमारी एक भारतीय पहचान ह

स मरणीय ह दक एक समदाय या सामावजक इकाई की वभनद नता या अलग सतता थ रावपत करना

वयािहाररक दवि स भी आिश यक ह ऐसा करना समाज को अदर स बाधता ह एकजर करता ह और

अनद य (िसी ही) इकाइयो स फकथ करता ह िधावनक रप स नशन या राष र एक काननी इकाई भी ह

और उसक सदथ य िध नागररक होत ह वजसकी थ िीकवत अनद य राष र भी करत ह और पासपोरथ िीसा

आदद की व यिथ रा स आिागमन को वनयवित करत ह नागररक क रप म िधावनक सामावजक और

साथ कवतक अवधकार क सार कतथव य और दावयत ि म भी भागीदारी होती ह समाज की वनयवत ह दक

जावत भाषा बोली कषि भोजन िथ ि रीवत-ररिाज धमथ आदद की विशषताए आ जाती ह इनक

सार समाज का भािात मक लगाि होता ह और उसक सदथ य थ िय को उसी आधार पर पररभावषत भी

करन लगत ह चदक इन विशषताओ का सचार पारथ पररक सबध और जीिन क विविध व यापारो स

गहरा ररश ता होता ह इसवलए य उस समाज की पाररभावषक विशषताए बन जाती ह

भारत दश हमार समकष एक सभ यता और मल य दविसपनद न सामावजक इकाई क रप म

उपवथरत होता ह इसकी समझ कई रपो म वमलती ह वनकर इवतहास म झाक तो पाएग दक इसक

कई रप ह एक छोर पर सहद उपलवबध को बलपिथक रखन िाल वतलक अरसिद सािरकर और

विवपन चर पाल जस ह दसरी और गोखल रानाड गाधी और रगोर सरीख आध यावतमक विचार को

मानन िाल ह जो सभी परभािो को आत मसात करन को तयार ह य सवहष णता आत मवनयिण आदद क

सार एक तरह की बहलता को ठीक मानत ह तीसरी ओर आधवनक दविसपनद न नौरोजी और पवडत

नहर जस लोग ह जो भारत को एक विकवसत सभ यता तो मानत ह पर यह भी महसस करत ह दक

उसका हरास भी हआ और उसम बहत कछ आधवनक जीिन दवि क विपरीत हआ जो आज उपयोगी

नही ह उनक वहसाब स एक बहलतािादी आधवनक नजररया जो विजञानसम मत हो उपयक त ठहरता ह

आज हर भारतीय की एक बहआयामी पहचान बनती ह िह सहद बगाली मवथलम गजराती

कश मीरी वबहारी बराहमण ओबीसी जन ईसाई आदद िाली एक सार कई तरह की पहचान रखता ह

य वभनद न वभनद न पहचान अक सर एक दसर की विरोधी न होकर परक होती ह साथ कवतक रप स ि

गहरी पठी ह और उनक सार लोगो का गहरा सािथजवनक लगाि भी ह िथ ततः हर भारतीय की

पहचान (आइडरररी) की अलग व यिस रा ह कोई एक यनीफामथ पमाना नही ह जो यह तय कर दक कई

पहचानो म स कौन सबस ऊपर नबर िन पर ह यह एक बड़ा तरल या फलइड मामला ह आज

पजा-पाठ सगीत और थ िाथ थ य लाभ क अनक क र भारत भर म फल हए ह जहा आन जान स सहद

ईसाई वसख और मसलमान दकसी को भी परहज नही होता कई पहचान क सार रहना अथ पष रता तो

पदा करता ह पर शायद दसरो क वलए िथ ततः हर भारतीय कई (उप) सथ कवतयो म जीता ह और य

सब वमलकर उसकी पहचान बनाती ह इस अरथ म हर भारतीय शायद बहसाथ कवतक ह और उसकी

पहचान बहआयामी

दश की छवि दशिावसयो क आत मगौरि का माध यम होती ह आज क भारत का अग होना उस

वबलाग करना हमको आरवरक परगवत की ओर अगरसर एक दश एक आरवरक पािर क सार जड़न का

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एहसास दता ह दसरी ओर भरष राचार अवशकषा अव यिथ रा सामावजक करीवतयो और भदभाि क

कारण मन म रकान उदासीनता और असहायता की भािना भी आती ह इस सबक बािजद एक

भारतीय का बोध जरर ह जो पजाबी मराठी या गजराती होन अलग जावत िगथ और समदाय का

सदथ य होन पर भी सबको भारतीय बनाता ह कभी-कभी विविधता म एकता िाल नहर जी का

भारत अपररभाषय या अव याख यय लगता ह भारत को एक विथ तत साथ कवतक इकाई क रप म दखन

पर कछ विचार उभरत ह जो भारतीय होन क अरथ को थ पष र करन म सहायक होत ह इनम परमख ह

धमथ कमथ पनजथनद म को दकसी न दकसी रप म थ िीकारना सामावजक इकाई - पररिार जावत समदाय

क थ तर पर अपन अवथतत ि को महसस करना सक स वििाह और अनद य व यवियो क परवत खास दविकोण

को अपनाना बहलता का थ िीकार और खल कछ-कछ असगरठत दकथ म की आत म या सल फ की

अिधारणा का थ िीकार और दकसी न दकसी रप म दकसी बड़ी जञात-अजञात सतता स जड़ाि की

अवभलाषा और पररिश परकवत और सवि क सार साझदारी तरा परथ पर अनपरकता का भाि

समकालीन विमशथ म राज य और राष र की अिधारणा क अरथ बहत कछ इस पर वनभथर करत ह

दक कौन दकस दविकोण और परयोजन स इन पर गौर कर रहा ह अक सर इनद ह अतीत ितथमान और

भविष य स जोड़ कर दखा जाता ह और लोग अपन चन िचाररक आदशथ स रग कर ही इस पर विचार

करत ह इन शब दो और इनस जड़ अरथ थ रान और समय क सार-सार बदलत रह ह जो थ िाभाविक ह

भारत दश क बार म सोचन की एक बड़ी मवशकल यह ह दक हमारी अपनी पररभाषा क पमान हमार

अपन न होकर दकसी और क ददए हए ह ि हमार बौवदधक मानस म इतन गहर पठ चक ह दक अब हम

अपन पमान क बार म भरोसा ही नही कर पा रह ह और खद को पररभावषत करन का अवधकार ही

खोत जा रह ह आरवरक और तकनीकी परगवत क पसराि की दवनया म आज हमारा आतम-सशय इतना

गहराता जा रहा ह दक भारत और भारतीयता की बात करना परानी और ददकयानस और इसवलए

अपरासवगक मानी जान लगी ह अगर इसकी बात करनी भी ह तो उसकी सनद कही और स जरानी

होगी आज अपनी पहचान क वलए हम पविमी दशो म विदवानो क दवारा परमाण और गिाही चाहत ह

आज भारत की साथ कवतक विविधता को सपनद नता और समवदध क ोत क रप म समझन समझान की

जररत ह वजसका उपयोग समाज क विकास म दकया जाय इसक वलए भारत को भारत क नजररए स

दखना होगा वबना इस भय क दक भारतीय होना दकसी कषमा याचना की अपकषा करता ह थ िदशी और

सराज जस विचार अभी भी परासवगक ह समरथ और थ िािलबी होन क वलए आत म थ िीकार और सतत

पररष कार आिश यक ह

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भकप का सदश

डॉ एमएल गपता ldquoआददतय

धरती हर ददन डोल रही ह कपन की बोली बोल रही ह

विनाश कर आकरोश स बदल कय भगोल रही ह

कय धरती न भकरी तानी कय वहमालय म आिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

जो ससाधन र पोषण क उनका शोषण कर डाला

ओजोन का जो किच रा उसका भी भदन कर डाला

बरहमी स कार हमन िसधरा क िन-कश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

सागर क तीरो को छीला पठार और पिथत को लीला

नददया बनी नाल और नाली नही ददखता जल वनमथल-नीला

चतािनी द रहा ह मौसम बदला भमडल का पररिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

विजञान की सीढ़ी चढ़ विनाश का सामान बनाया

परमाण सयि द रह यातना विकीरण का खतरा मडराया

रवडएशन स आतदकत ह दवनया क सब दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

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कोई अण कोई परमाण कोई हाईडरोजन बम ल ऐठा ह

वबछी हई बारद धरा म मानि बमो क ढर पर बठा ह

हआ परमाण यदध तो वमर जाएग दकतन दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

भकषक बनकर मानि इक दज पर चोर कर रहा

परीकषण की खावतर दकतन भीषण बम विथफोर कर रहा

परकवत का सतलन वबगड़ा तो हम बन जाएग अिशष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

कदरत कहर बरपा सकती ह कभी भी आफत आ सकती ह

धरा की जरा सी भी हरकत दकतना कोहराम मचा सकती ह

धरा न जरा करिर बदली तो कछ भी न रहगा शष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

पयाथिरण क आघात पर अब तो रोक लगानी होगी

सागर पिथत धरती क सग बद करनी मनमानी होगी

धरती को जो मा मानोग सब वमर जाएग कलश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

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ि दोनो

डॉ सषम बदी

छत स फशथ तक क लब शीशो स जड़ी उस बड़ी-सी बठक म खब सारी ददन की रौशनी भरी हई

री फशथ पर वबछी सफद चादरो पर सफद िसतर पहन ढर सार लोग उस रौशनी का ही वहथसा लग रह

र कमर म घसत ही तारक को लगा जस उस शवतता म घल मौत क सदथपन और जड़ता न अचानक

उसक भीतर को जकड़ वलया ह बीचोबीच फलो की माला चढ़ी एक बड़ी-सी रवत की तथिीर री

वजसका धप दीप और गीता क शलोको स अवभषक दकया जा रहा रा रवत अब तथिीर भर री तारक

की थतबध पवनयायी आख वनथसहाय-सी रजत को खोजन लगी

रजत सारा िि लोगो स वघरा ही रहा रा उसकी मा उसक बचच और दसर ररशतदार कोई न

कोई उसक आसपास रा ही उन दोनो की आख एक दसर स दो एक बार वमली पर रजत अपन स

बाहर नही आ पाया रा तारक न दकसी तरह अपनी शोकभािना वयि कर दी री न भी वयि करता

तो कया रजत को तो खद भी अहसास होगा उसकी अतभाथिना का एक िही तो ह इस भीड़ म जो

जानता ह दक िह कयो यहा ह बाकी तो तारक दकसी स पररवचत ही नही वसिाय कछक रवत क

कलीगज क एक दो कलीगज स ही उसकी बात हई रवत क बार म ि उस पररिार का वमि मानकर

बात कर रह र य पररिार का वमि तो िह रा ही पर इसस अलग या ऊपर भी कछ रा यह शायद

रजत क अलािा और कोई नही जानता रा जबदक रजत भी परा कहा जानता ह खास तौर स िह सब

कछ जो तारक महसस करता रहा ह या जो कछ तारक और रवत क बीच म रहा या अभी भी वजसका

बहत कछ बचा रा

य तारक न बहत बार सोचा दक अब रवत नही रही तो उसक यहा जान का कोई फायदा नही

उसकी तकलीफ बढ़गी ही दफर लगा दक नही उस रजत स वमलन जाना होगा रजत भी तो उसका

दोथत ह य रवत उन दोनो क बीच न होती तो ि शायद बहत गहर दोथत हो सकत र दफर भी िह खद

को कई तरह स रजत क करीब महसस करता रा और रजत भी बहत मामलो म उसी स सलाह करक

चलता रा उस पर भरोसा करता रा जो दक उसक मन क दोथती क भाि को ही जताती री चदक

तारक की विशषता ददल क रोगो म री िह रवत क हारथअरक क बाद स उसस अकसर रवत क बार म

सलाह लता यहा तक दक रवत स भी कोई वशकायत होती तो तारक स ही कहता दखो न इसका

कोलथराल इतना हाई चल रहा ह और मडम चीज मीर सभी कछ खाती ह अभी रथतरा ल चलो परा

का परा थरक गरक जायगी कस कर यह तो खद को नकसान पहचान स बाज नही आतीrdquo और तारक

तब ररका दता कसी डाकरर हो तम रवत मरीजो को उपदश दती रहती हो और खदhellipदफर उसन

खद ही एक विशषण गढ़ा रा रवत क वलए lsquoनानकपलायरrsquo यानी दक जो कछ भी कहा जायगा उसका

विरोध ही करगी रवत और दकसी िजह स नही बवलक विरोध करन क वलए विरोध

तब रवत और भी तिर चढ़ाकर बोलती rdquoरजत तो पहल ही मर पीछ पड़ा रहता ह अब तम

भी इसी स वमल गय हो िाह जी िाह दोथत दकसक हो तम मर या रजत कrdquo

तारक तब चप रह जाता रा रजत भी कछ नही कहता एक वपरय अवपरय सतय

शायद रवत भी इसीवलए कहती री दक तारक तब लाजिाब हो जायगा कयोदक रवत जानती ह दक जो

िह तारक क वलए ह िह और कोई नही हो सकता और रजत को भी इसका अदाज ह इसी स रजत न

शर म चाह दकतना विरोह दकया हो दकतना लड़ाई झगड़ाhellip दफर धीर-धीर मान वलया रा इस ररशत

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को रवत क वलए ही अगीकार कर वलया रा तारक को भी रवत न ही उस बतलाया रा जब रजत न

उस बाहो म भरकर कहा रा rdquoइतना पयार करता ह तमह दक यह भी थिीकारन क वलए राजी हrdquo

एक हक-सी उठी री तारक क भीतरhellip वजस इतना पयार वमला होhellip इतनाhellip िह इस तरह स

उन दोनो की वजनददगी को ही सना करक रखसत हो ली तारक क मन म गथसा भी आयाhellip शायद

अपनी सहत का धयान रखती तो कछ और जी जाती उन दोनो स ही तो चार-पाच साल छोरी री िह

जी भी सकती री पर अबhellip और तारक न लबी सास भरी

रवत की एक कलीग बता रही री rdquoपरसो तो काम पर आयी हई री रवत म सोच भी नही

सकती री दक इतना भारी थरोक हो सकता ह दक एक ही लपर म ल जायhellip मझ तो विशवास ही नही

होताrdquo तारक को भी विशवास नही होता रा उसी ददन सबह रवत न उसस फोन पर बात की री और

उसस मजाक दकया रा rdquoमर जनदमददन पर आओगrdquo

दरअसल सारा झगड़ा कछ साल पहल रवत क जनदमददन को लकर ही शर हआ रा िनाथ शायद

रजत को उन दोनो क बीच बढ़त ररशत की तवनक खबर न लगती रवत न उस बतलाया रा दक उसक

जनदमददन पर िह और रजत आमतौर पर शाम को बाहर दकसी बदढ़या स फर च रथतरा म खाना खान

जात ह तब तारक न कहा रा rdquoठीक ह तो लच तम मर सार लनाrdquo

रवत मान गयी री उसन उसी ददन रवत क शहर पहचन क वलए फलाईर भी बक करिा ली

री पर जब ठीक जनदमददन आनिाला रा तो रवत न उस बतलाया रा दक रजत को ठीक नही लग रहा

मरा तमहार सार लच पर जाना िह पछ रहा रा दक इतना इमपॉरर कस हो गया यह आदमी दक

तमको उस जनदमददन पर जरर वमलना ह

rdquoतमन कया कहाrdquo तारक वजजञास हो उठा रा

rdquoयही दक तमको दकसी काम स शहर म होना रा इसवलए लच पर वमलन की बात की इस पर

उसन कहा दक अगल ददन वमल लो जनदमददन िाला ददन तो उसी क वलए हhellip कोई और कयोrdquo

दफर िह बोली rdquoइसी पर उस शक हो रहा ह दक यह कोई आम दोथत नहीhelliprdquo

तारक न जोड़ ददया रा rdquoपरमी हrdquo

rdquoहा यही शक हो रहा ह उसrdquo

rdquoतो ह या नहीhelliprdquo

rdquoशायद होhellip यही मसीबत हrdquo

तारक न कहा रा rdquoअब तो ररकर ली हई ह म तो आऊगा ही तम वमल सको तो वमलना िनाथ

न वमलना चाह पाच वमनर क वलए या कॉफी क वलए भी आ जाओगी तो मर वलए िही काफी होगा

तमहार जनदमददन पर तमह दख भर लrdquo

rdquoतम भी कमाल क रोमाररक होhellip पर सच कह तो म भी तमस वमलना चाहती ह उस ददनhellip

कछ न कछ तो जगाड़ना पड़गाrdquo

rdquoमर वलए तमहारा जनदमददन मरी वजनददगी का बहत अहम ददन हhellip समझीrdquo

एयरपोरथ पहच कर तारक न फोन दकया रा रवत बोली री rdquoरजत कह रहा ह तम हम वडनर

पर जॉयन कर लोrdquo

तारक बहत हरान हआ रा पर रवत न फोन रजत को पकड़ा ददया रा तारक एकदम सकर म

पड़ गया रा उसन खद को बचान की कोवशश की rdquoसॉरी म तो यहा आया रा तो सोचा रवत स वमल

लगा पर इस तरह आप लोगो क परोगराम मhelliprdquo

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रजत न जोर दकर कहा रा rdquoनही भाई बहत तारीफ सन रहा ह बीिी स जरा हम भी तो

वमल आपस आप चाह तो घर पर आ जाईए या दफर सीध रथतरा पर वमलगrdquo

rdquoपर आप लोगो का तो वडनर पर सार जान का कायथकरम रा नrdquo

rdquoआप लच पर फरी ह तो लच पर वमल लत ह य मझ तो वडनर ही पसद ह जसा आप कहrdquo

रजत वबलकल दोथताना ढग स बात कर रहा रा एक पल को उसकी रोन म कछ तनाि तारक

को महसस हआ रा पर अगल ही पल आिाज दफर सहज हो गयी री तारक मान गया पर रकसी लकर

पहल होरल म सामान छोड़ा और इस दौरान खद को मानवसक तौर पर तयार भी करता रहा दक कस

पश आना ह अपन रकीब स दखा जाय तो ररशता रकीब का ही रा बाकी ि दकतन भी सभय या

समझदार इसानो की तरह एक-दसर स बताथि कर आवखर ि तीनो सममावनत पश क र तारक हारथ

थपशवलथर रा तो रजत अगरजी सावहतय का परोफसर और रवत सायकायररथर इसानी मन की

कमजोररयो को समझना मनोरोगो का इलाज करना रवत की विशषता तो री ही पर इसानी आकषथण

एक दसर क परवत सखचाि या ऐस ररशतो को समझन की सथकवत तो कही तीनो म ही री

रजत इस बात को खब समझता रा दक दकसी भी औरत क वलए दकसी दसर परष क परवत

सखचाि हो जाना बहत सहज रा िही एक पवत और पतनी स परम करन िाल क रप म िह रवत क इस

वयिहार स ईषयाल भी हो उठता रा एक सभय इसान क नात िह ईषया को दबा कर तारक क परवत भी

वमिित वयिहार करना चाहता रा पर िही उस रवत क वयिहार स कि पहचता रा दक िह उसक

अलािा भी दकसी दसर परष को चाह सकती ह वजसस उसक मन म आकरोश और वितषणा का भाि

उठता कभी िह अपन को उदार बना कर यह कहना चाहता दक रवत अगर दकसी दसर को चाहती ह

तो बशक उसको भी कयो न पाय सार ही जब करोध होता तो एक तरह स जस िह रवत को सजा दन क

वलए कह डालता rdquoतम जाओ दोनो सार रहोrdquo पर जो पीड़ा िह उसम सह रहा होता िह रवत और

तारक दोनो क वलए ही असहय होती

रवत न कहा रा rdquoकया तारक और म दोथत नही हो सकत और इतन दोथत हhellip एक िह वयवि

वजसस बात करक मझ खशी वमलती ह िह दोथत कयो नही बन सकता वसफथ इसवलए दक उसक मन म

तीखी भािना ह मर वलएhellip या शरीरो का आकषथण भी हhelliprdquo

रजत तब तकथ स सारी बात को समझन समझान की कोवशश करता हा करत-करत कह दता

rdquoऔरत आदमी म दोथती हो ही नही सकती कयोदक जहा शरीरो का आकषथण हो िहा दोथती जसा

वनषकपर भाि कस पनप सकता हrdquo तब रवत दोथती का एक और पकष पश करती rdquoतमहार कहन का

मतलब तो िही ददकयानसी बात हई दक शरीर पाप का मल ह जबदक तम खद ही यह पहल कह चक

हो दक शरीरो का मसला हल हो जाय तो औरत मदथ बहत खबसरत दोथत हो सकत हhellip शरीर को

अहवमयत दी कयो जाय शरीर वमल जान स उनका दोथती म बाधा बनन का मसला खतम हो जाता हrdquo

रजत रवत की बात मान भी जाता रा पर रवत दफर तारक को यह भी बताती री rdquoिन कार

रक वहम फॉर गरारड कल को िह अपना कोई नया तकथ द दगाrdquo

शायद इसी स तारक भी अचानक वहममत हारन लगा रा कस सामना करगा िह रजत का य

िह रजत स एकाध बार पहल वमल चका रा पर तब उसको यह अदाजा नही रा दक रवत और उसक

बीच कछ रा जबदक तारक तब भी कछ आतमसजग-सा हो रहा रा पर कछ वमनरो की मलाकात को

सभाल लना कोई बड़ी बात नही री और य भी रजत उस भला आदमी लगा रा यह भी सोचा रा दक

अगर रवत उन दोनो क बीच न होती तो यह वयवि उसका दोथत हो सकता रा य रवत क होन क

बािजद अतत ि दोथत बन ही पर इस दोथती का तानाबाना िसा न रा जस खावलस दोथती का होता

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ह इसम रवत क रश बन हए र जो एक और ही रगत वलए र और िह रगत तारक को बहत पयारी री

उस दोथती स जयादा

तारक न होरल पहच कर फोन कर ददया रा दक वडनर पर वमलना ही ठीक रहगा और िह

अपना काम इस दौरान कर लगा रजत आसानी स यह बात मान गया और कहा दक िह सडरकस पर

पहल घर पर आ जाय उसक बाद रथतरा खाना खान चल जायग

शाम को जब िह चलन लगा तो फोन बजा रा दसरी ओर रवत री हलो कहत ही रवत न

कहा rdquoसनो तम मत आना मर घर म बहत रशन चल रही हrdquo इसस पहल दक िह कछ कहता रवत न

फोन वडसकनकर कर ददया

रात को कोई फलाईर नही जाती री िनाथ िह उसी िि शहर छोड़ क चला जाता

आध घर बाद ही घरी दफर बजी रवत पछ रही री दक आ रह हो तारक बौखला गया दक आवखर हो

कया रहा ह कया यह रवत क मन की उलझन ह या दक रजत कीhellip या दोनो कीhellip या रवत वसफथ रजत

की उलझन को वयि कर रही री बोली री rdquoजलदी आ जाओ हम लोग इतजार कर रह हrdquo

िह पहचा तो रवत न अकल ही उसका थिागत दकया रा िह जानता रा दक दोनो बचच कालजो

म ह पर रजत काफी दर तक बठक म नही आया तो तारक हरान हआ रवत बोली rdquoिह नहा रहा हrdquo

दफर मथकरा कर जोड़ा rdquoशायद हम दोनो को कछ िि दना चाहता हrdquo

तारक तब कछ निथस हआ रा उस आग बढ़कर रवत को चमन का हौसला नही हआ उस लगा

दक रवत भी सहज नही री जस दक आम तौर पर होती ह पर उसन कछ कहा नही िह खद भी तो

सहज नही हो पा रहा रा जस लड़की क बाप क घर म शादी का परथताि लकर जा रहा हो कछ कछ

इसी तरह का महसस हो रहा रा िही डर कर परचा करना रा दक इमतहान म फल न हो जाय

रजत न कमर म आत ही बड़ तपाक स हलो दकया कछ औपचाररक-सी बात की दफर उसस

सडरक पछा और दकचन म बफथ िगरह का इतजाम करन क वलए दफर स गायब हो गया तारक को लगा

दक सहज होन की बहत कोवशश क बािजद रजत बहत असहज ह

ववहथकी का घर लत हए तारक न ही रजत स उसक काम क बार म पछना शर दकया बात

कही जा नही रही री तभी रवत एक नई दकताब की चचाथ करन लगी वजसका ररवय सबह क अखबार म

छपा रा तारक न हिाई जहाज म ही उसक बार म पढ़ा रा दफर तो बातचीत खब गरमागरम होन

लगी रजत न दवकषण एवशयाई अगरजी लखको क बार म अपन विचार झाड़न शर कर ददय यहा तक

दक रवत न अचानक घड़ी दखी तो पता चला दक रथतरा की ररजिशन का िि हो चका रा रजत न

रथतरा को फोन दकया दक कछ वमनर लर पहचग और तारक को बोला दक जलदी स सडरक खतम कर ल

या गाड़ी म ही ल चल दोनो न दो तीन सडरक चढ़ा रख र मौज-सी भी आयी हई री रजत ही कार

चला रहा रा और तारक पीछ िाली सीर पर बठा रा अचानक रजत कछ नश और कछ अपनी धन म

बोला rdquoतो तम मरी बीिी स पयार करत होrdquo

तारक भौचक-सा हो गया य ही बठा रहा जस रजत की बात को सना न हो या िह गभीरता

स लन लायक न हो रजत न अपनी बात को सिाल बनाकर दबारा पश दकया rdquoकयो तारक मरी बीिी

स पयार करत हो या नहीrdquo

तारक न कहा rdquoहाrdquo और चप कर गया उस लग रहा रा िह जो भी जिाब दगा खतर स खाली नही

पर यह जिाब सच रा तो सच बोल कर ही मार खायी जाय उस दकसी लड़की क वपता स हार मागन

नही जाना पड़ा रा आज यह भी सही

rdquoतम भी पयार करत हो िह भी करती ह तो तम दोनो सार कयो नही रहतrdquo

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तारक बोल पड़ा रा rdquoयह इतना आसान नहीrdquo

रजत इस पर आकरमण करता-सा बोला rdquoकमाल ह पयार भी करत ह और वजममिारी भी नही

वनभाना चाहतrdquo तारक को महसस हो रहा रा दक रजत कह तो कछ रहा ह और पहचाना कछ और

चाहता ह दफर भी िह जिाब तो उसी बात का द सकता रा जो दक पछी जा रही री यह कह कर

उस नाराज भी नही करना चाहता रा दक रजत वसफथ अपन भीतर क आकरोश आतक और आग को

आिाज द रहा रा बोला rdquoयह बात नही म आज भी रवत क सार वजनददगी शर करन को तयार ह

जहा तक म जानता ह रवत अपन शहर को छोड़ कर और कही नही जायगी न िह तमको छोड़न को

तयार होगी जहा तक म रवत को जानता हhelliprdquo

रवत चपचाप अपन पर अकश लगाय दोनो की बात सन रही री न तो िह रजत क पकष म

कछ बोलना चाहती री न तारक क पकष म ही बोल सकती री दफर भी दोनो क बीच तारतमय वबठाय

रखन की वजममिारी भी उसी की री और िह समझ नही पा रही री दक दकस तरह इस बातचीत को

सीमाय लाघन स बचाया जाय ऊपर स उस डर लग रहा रा दक आिश म रजत कही रककर न मार द

रथतरा बहत दर रा भी नही बात पर चरम पर चल रही री दक रथतरा आ गया रवत न रोका rdquoरजत

पारककग ढढ़ो रथतरा आ गयाrdquo रथतरा क सार ही पारककग गराज म गाड़ी छोड़ कर तीनो अदर चल गय

िरर न उनको मज पर वबठाया और सडरक क वलए पछा तरा मनदय लाकर ददय तीनो क तीनो उस मज

पर इस तरह खामोश और भर बठ र दक मनदय म वसर डबोना एक राहत बन गया रा तीनो न अपन-

अपन आडथर ददय पर बात कछ बन नही रही री हर कोई कछ भी कहन म जयादा ही सतकथ हो रहा रा

अचानक रवत बोली rdquoरजत तमको इतनी जयादा तकलीफ री तो तमन मना कयो नही कर

ददया म तो तारक को कह चकी री दक आज सार खाना नही होगा तमही न जोर ददया दक जरर

बलाओ अब इस तरह कयो बताथि कर रह होrdquo

रजत और भड़क गया rdquoम तो वसफथ यह कह रहा ह दक तम लोग एक-दसर को पयार करत हो

तो म कया कर रहा ह यहा तम जाओ एक दसर क सार रहोrdquo

दोनो की आिाज ऊची हो रही री और दसरी मजो पर बठ लोगो की वनगाह इस ओर उठ आयी री

तारक न धीर स सझाया रा rdquoमर खयाल स हम य बात यहा नही करनी चावहएrdquo सहसा रवत

न होश म आत कहा rdquoहा इतन बदढ़या रथतरा म खाना खान आय ह कछ खान पर भी तो धयान दhellip

दफर आज मरा जनदमददन ह आई िार र हि ए गड मीलrdquo

दफर भी खान पर तीनो म स दकसी का धयान नही लग सका तीनो औपचाररक-सी बात म लग

गय र तारक न ही शहर क निीनतम रथतराओ क बार म ताजा पढ़ी समीकषा का वजकर छड़ ददया रा

रजत न कार स जब उस होरल छोड़ा तो तारक न उपर कमर म आकर सडरक लन क वलए कहा

पर जसा दक िह अपकषा कर रहा रा रजत न दर होन का बहाना बना छटटी माग ली री रवत तब भी

कछ नही बोली री शायद उस डर रा दक उसका कछ भी कहना रजत क वलए घाि पर नमक वछड़कन

जसा होगा या उसकी कोई भी बात का गलत मतलब वनकाल कर रजत भड़क सकता रा य दर हो भी

चकी री

पर तारक यह भी जानता रा दक रवत एक नबर की वजददी री जो उस चावहए रा चावहए ही

रा उस रोका नही जा सकता रा िह ऊपर स मान जायगी पर भीतर स कभी माफ नही करगी

शायद इसी स रजत भी वबगड़ी हई लाड़ली बरी की तरह रवत की हर चाह या माग को विरोध करक

भी अतत मान जाता रा

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लौर आन क दो चार ददन बाद ही उसक फोन पर रवत न सदश छोड़ा रा rdquoतमहारा आना ठीक

नही हआ सॉरी तमह बलाकर भी वमल नही पायी अब लगता ह कभी नही वमलगी लर अस थरॉप

ददस वहयर पलीज मझस सपकथ मत करनाrdquo

तारक बहत ददन परशान घमता रहा रा पर रवत को फोन भी नही दकया उसन मना जो कर

डाला रा उस फोन करत हए तारक को लगता दक िह खद को उस पर लाद रहा ह और यह वथरवत

उस कभी गिारा नही री हर ददन दकसी जिालामखी-सा लाि स लदा हआ गजरता अदर ही अदर

सब तप रहा रा

महीन भर बाद रवत न फोन दकया रा rdquoगथसा हो न मझस तमस माफी भी नही माग सकीrdquo

उसकी तो कोई जररत नहीrdquo

दफर भी सोचा रा तमस कभी बात नही करगी इसी स तमको सपकथ करन स मना दकया

रा रजत को भी यही मालम ह दक तमस ररशता तोड़ ददया ह पर अब मझी स बात दकय वबना रहा

नही जा रहाrdquo

रजत को मालम ह मझस बात कर रही होrdquo

िह बहद गथसा ह तमसhellip जस दक सारा दोष तमहारा होhellip दक तमन उसकी बीिी को फसा वलयाrdquo

ि इसी तरह जब मौका लगता बात कर लत तारक क ददल ददमाग पर रवत ही छायी रहती

िह ऐस ही पलो क दौरान जीता जब दोनो क बीच कछ सपकथ होता बाकी क पल उन पलो क इतजार

म गजरत

इस बीच रवत को ददल का दौरा पड़ा रा घबराकर तारक को फोन कर डाला रा रजत न

तारक आया तो रजत उस अपनी गाड़ी म सार अथपताल ल आता जाता रहा दोनो म एक दोथती का

नाता तभी बना रा दवनया जहान की बात रजत न उस घर पर ही ठहराया रा तारक तीन ददन बाद

चला गया रा िावपस पर दोनो की फोन पर बात हो जाती रवत अथपताल स िावपस आ गयी री

धीर-धीर िह सामानदय होकर िावपस अपना काम सभालन लगी

रवत का जनदमददन दफर स आनिाला रा रवत न उस कहा रा rdquoरजत अपन आप ही बोल रहा ह

दक तम आ जाओ इस बार मरा जनदमददन मनान बोलो आओगrdquo

तारक परानी बात याद करक घबरा गया रा rdquoनही दफर स उसक भीतर सब घमड़न लगगाhellip

सबको तकलीफ होगीrdquo

यह सच भी रा रजत कभी तो उसक परवत बहत वमिित हो जाता िही अचानक गथसा ईषयाथ

उभर आत और िह अकसर बरखी ददखाता अचानक तारक को ऐसा महसस हआ जस रवत उसस खद

यह सब कह रही हो पल भर को िह भल ही गया दक रवत क ही अतयवि कमथ म िह शावमल हआ ह

और दरअसल उसक यहा आन की एक िजह यह भी ह दक िह रवत को वलख अपन खत िावपस ल

जाना चाहता ह उस डर ह दक कही ि खत रजत क हार न पड़ जाय

तारक रवत क सार काम करन िाली इस मवहला डॉ लोपज स पहल वमला हआ रा इस भीड़

म एक िही जान-पहचान की री तारक का मन हआ उसस पछ दक कया िह रवत की दराज म उसक

कागजात पर नजर मार सकता ह तारक को अदाज रा दक उसक खत िह दफतर की मज की दराज म

रखती री पर िह जानता रा दक ऐसा करना ममदकन रा नही आवखर तारक को कस हक पहचता रा

रवत की दराज खलिान का िह तो एक पररिार क वमि की हवसयत स िहा रा रजत ही कह सकता

रा दखा जाय तो ि लोग खद भी रजत स ही कहग दक रवत का सामान िह ल जाय तब तो रजत की

आख जरर उन पर पड़गी तब शायद उसको बरा लगगा दक रवत क सार तारक का एक अपना ररशता

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रा उन तीनो की आपसी दोथती क बाहरhellip रजत को बतहाशा चोर लगगी अब जबदक िह रवत स

जिाबतलबी भी नही कर सकता रवत अब कोई सफाई नही पश कर पायगी तारक क हक म कछ भी

नही कह सकगी दकसी तकथ स रजत को लाजिाब नही कर पायगी नही िह ऐसा नही कर सकता न

यह रवत क परवत सही होगा न रजत क परवत उस दकसी न दकसी तरह स खत पान ह

राथत म आत हए हिाई जहाज म तारक जब लगातार रवत क सार की अपनी वजनददगी क

गजर पल दहरा रहा रा बार-बार उस धयान आता दक जब स रवत को ददल का दौरा हआ रा िह

उसस कहना चाहता रा दक उसक खत विनि कर द एक बार उसन बात उठायी तो रवत बोली rdquoकयो

तमहार खत मर दफतर की दराज म सफ पड़ हrdquo

शायद िह वबना कह यह भी समझ गयी री दक तारक का इशारा दकस ओर ह तभी बोली

दखो जब तक म वजनददा ह म उनको फाड़ कर न तो फ क सकती ह न जला सकती ह एक बार मर गयी

तो कया फकथ पड़ता ह दक कोई कया करगा उनक सार तमको तो दफकर होनी नही चावहए अब तो ि

मरी अमानत हrdquo यह बातचीत दो एक महीन पहल की ही होगी तारक न सोचा रा बात कभी दफर

उठायगा पर उसस पहल हीhellip

तारक को भी तब यह अदाज नही रा दक रवत क अलािा रजत स भी उसका नाता रा रवत क

जान क बाद िह खद को रजत क बहत करीब महसस कर रहा रा और उस लगा दक उसक खत रजत

को उसस दफर दर धकल सकत र पर िह दकसी तरह भी रजत को खोना नही चाहगाhellip रजत जस स

रवत का ही एक वहथसा राhellipउसन दखा लोगो स वघरा रजत का चहरा बहद वनचड़ा हआ रिहीन और

सखा-सा लग रहा रा रात भर सोया नही होगा इसवलए आखो क नीच कालापन उतर आया रा आख

काफी अदर को धसी हई री तारक को लगा दक िह शायद रजत स बहतर हालत म ह दफर उस रशक

भी हआ रजत अपन गम का खला इजहार कर सकता हhellip तारक को यह सविधा नही री िह दकसी

उजड़ आवशक क रप म इस महदफल इस मौत का शोक करन िालो की महदफल मhellip अपना असली

चहराhellip अपना आवशक का चहराhellip नही ददखा सकता रा अचानक उसकी आख भर आयी अपन खोन

की वशददत क अहसास स

रवत क िाकय उसक कान म सरसरान लग जबस उस ददल का दौरा पड़ा रा िह जीिन की

कषणभगरता या इसान क नाचीज होन क अवथततििादी दशथन को बहत बघारन लग गयी री शायद

अपन जान का अहसास उस कही बहत गहर उदास कर जाता रा पर िही िह उस जान को एक

अिशयभािी अकारय सतय की तरह थिीकार करक उसस समझौता भी करन लग गयी री एक ददन

उसन हडसन नदी क दसर वसर स मनहरन की ओर दखत हए कहा रा rdquoदखो तो इन छोर-छोर वडबबो

म दकतन लाखो लोग रहत ह दकतन छोर ह हम लोग इतनी तग जमीन पर दकतनी बड़ी तादाद म

समा जात ह एकदम हजारो की सखया म सार-सार जड़ कीड़ो की तरह दफर भी अपन आप को

दकतना बड़ा मानत ह राजनीवत धमथ और नवतकता की तवखतया वचपका कर दकतना बड़ा होन का

भलािा दत रहत ह खद कोrdquo

रजत को रवत की इसान को नाचीज करार दन िाली बातो स हमशा बहत वचढ़ छरती री

बोला रा rdquoधमथ नवतकता जीिन क सतय ह इनको तम भलािा दन िाली चीज कस कह सकती हो

इसान इसीवलए तो बाकी जीिो स अलग ह दक िह सोच सकता हrdquo

rdquoऔर सोच क धरातल पर हर चीज को गलत या सही सावबत कर सकता ह नवतकता को गढ़

सकता ह या परा सतयानाश कर सकता हhellip ठीक ह मझ तो उसम कोई नकसान नहीrdquo

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हा नकसान दकसी का ह तो मरा ही रजत न कहा तो तारक झर स बोल पड़ा रा rdquoनकसान

तो तब होता जो म उस भगा क ल जाताrdquo

रजत न सजीदगी स कहा rdquoअब इसका ददल बर गया हhellip तो आधी सपवतत तो लर ही गयी न

तम भगा ल जाओ तो भी फकथ नही पड़गा यह आधािाला वहथसा तब भी यही रहगाrdquo

सचमच रजत का यह विशवास सही रा रवत और उसक ररशत की शरआत क ददनो म भािना

क परिाह म बहता तारक रवत क सार एक नयी वजनददगी क दकिाड़ खोलन की बात सोच पाया रा पर

जलद ही उस अहसास हो गया रा दक रवत कही बहत गहर जड़ी री रजत क सार दक िह कभी उस

ररशत को तोड़गी नही य रजत भी शर क ददनो म भीतर स वहल गया रा यह झरका दक रवत रजत

को छोड़ दकसी और को मन म ला सकती ह उस बहत दर जा फ क आया रा दफर रवत न खोय विशवास

को िापस लौरा ददया रजत अपन आध नकसान क सार धीर-धीर शायद समझौता करना सीख गया रा

तारक को लगा दक िह आध क सार समझौता करना सीख गया रा दफर तारक को लगा दक

िह आध क सार समझौता नही रा रजत क भीतर कही पर का भरोसा भी रा जस दक रवत को वसफथ

एक बदलाि चावहए रा जो तारक रा िनाथ िह परी रजत की ही री कयोदक मौका आन पर रजत

अपना परा हक जतान स चकता नही रा हमशा यही मानता रा दक पहला हक उसी का ह तारक

हमशा बाद म आयगा जस दक पर भर लन पर बचा हआ भोजन दकसी को भी ददया जा सकता हhellip

कछ ऐसा रख

पर रवत बचा हआ भोजन नही रीhellip दकसी तरह स भी उवचछि या अिवशि नही जो उसन

रवत म पाया रा िह पहल वजनददगी म कभी नही वमला रा रवत न उसकी पहचान करायी री

पररपणथता स रवत को जानना ही जस उस सपणथता को छना रा शायद रजत न भी रवत म ऐसा कछ

पाया रा जो आम औरतो स अलग रा रवत शादी क इतन बरस बाद भी उस अपन म उलझाय री और

िह उसस मि नही होना चाहता रा रवत म बाहरी खबसरती क बािजद वयवि क ददमाग को भी

उलझाय रखन का जो गण रा उसस सच म जो भी पास आता और सखचता जाता रवत म भरपर

पयार लन की चाह री तो भरपर दन की कषमता भी इसी स अभी भी उसस जी तो नही भरा रा रजत

का शायद िह ऐसी औरत री जो हमशा वनत निीन होती रहhellip सौदयथ की एक पररभाषा यह भी तो

दी गई ह दक जो वनत नतन होता रह िही सौदयथ ह रवत भी कभी परानी नही पड़ती रोज कछ नया

होता ह उसक पासhellip कोई नया खयालhellip कोई नई सझhellip कोई नई उकसान उलझान िाली बातhellip

शायद इस ददमागी सौदयथ कहना होगाhellip जो कछ भी उसम राhellip बस खीचता रा अपनी ओरhellip मोहता

राhellip शायद कया पर उगली धरना उस पररवध म बाधन की भोडी कोवशश होती

कछ दवदव उठता तो रवत रजत क ही हक म बोलती री रजत क वहतो को सरवकषत कर लन क

बाद ही िह तारक को उसका हक दती तारक को खीझ भी होती दक रजत उसक जीिन म चदक पहल

आ गया रा इसीवलए हर चीज म ही पहला हक उसी का बनता ह पर उसन रवत स अपनी यह

मनवथरवत कभी जावहर नही होन दी री वपछल साल िलनदराईन ड पर ऐसा ही तो हआ रा दरअसल

दोनो को अदाज नही रा दक उस िीक ड पर िलनदराईन ड पड़ता रा तारक को दकसी काम स रवत क

शहर आना रा और दोनो न वमलन का कायथकरम बना डाला रा रजत स रवत की बात हई होगी तो

उसन भनकर कहा रा rdquoतो िह तमहारा िलनदराईन ह जो उस ददन आ रहा हrdquo रवत क कहन पर दक उस

तो याद भी नही रा िह बोला रा rdquoम नही मान सकता दक तारक न य ही आन का बनाया ह इस

िीक ड परrdquo रवत न तारक स सारी बात बतलायी तो उसन सोचा रा िह खद फोन पर रजत स कहगा

दक उस सचमच याद नही रा पर दफर बात बढ़ान न दन क वलए चप रह गया रा और जान का

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परोगराम भी थरवगत कर डाला रा तब उस दो बात तकलीफ दती रही री एक तो यह दक रजत हमशा

उसक सामन परारवमकता ल जायगा दसरी यह कड़िी सचचाई दक रवत कभी भी उसकी जावहरी वजनददगी

का वहथसा नही बन सकती री उसकी कमर म हार डाल कर िह कभी दकसी स यह नही कह सकता

रा रवत मरी हrdquo तब उस बहद रशक होता रजत स कया रजत को सचमच अहसास ह दक रवत तारक

क वलए कया ह दक िह उसकी वजनददगी का कनदर उसकी वजनददगी का अरथ बन चकी ह यह कोई हलका-

फलका ठरकपन नही उसकी वजनददगी का रशा-रशा गर गया ह रवत स शबद म अरथ की तरह समायी ह

रवत उसक अवथतति म इस गरन म िह खद ही घरता रहगा हमशा

अब रवत नही ह तो िह घरन और भी कस रही ह उस कया अब िह रजत स कह पायगा

अचानक उसका मन हआ दक रजत स कह द rdquoतमको मालम ह दक मझ सचमच पता नही रा दक उस

ददन िलनदराईन ड रा िनाथ ऐसी जरथत न करताrdquo दक िह जानता हhellip अचछी तरह समझता ह अपनी

और उसकी ररीररी की पररवधयो को दक रजद शायद कभी जान न पायगा पर उसन हमशा एक दोथत

की तरह रजत का रजत की जररतो का खयाल रखा हhellip वसफथ ऊपर-ऊपर स सामावजक उपचार की

तरह नही भीतर स दकसी ददली ररशत सhellip दफर िह ररशता चाह रवत क जररय स ही बना हो

हो सकता ह रजत यह सब महसस करता हो या न भी करता हो पर उसक चहर पर भी वमिता

का थिागतमय भाि हमशा ददखा ह तारक को वसिा उन कषणो क जब दक सचमच उन दोनो क बीच

lsquoररररोररयलrsquo झगड़ हए तब भी ि शायद इसानी आचार या परथपर सदभाि की सीमाओ को कभी

लाघ नही पर दफर भी तारक का रवत क सार का ररशता ऐसा नही दक रजत क सार वजस बार सक

रवत उसकी हथती का अवभि वहथसा ह िह कोई और कस हो सकता ह रजत रवत नही हो सकता

चाह उसक दकतन ही करीब रहा हो उस दकसी न दकसी तरह स अपन खत पान ही ह लदकन कस

और यही तारक बार-बार उलझ जाता ह अपनी यह परशानी िह दकसी क सार बार नही सकता

रजत स तो कतई नही खत अगर सचमच रजत क हार पड़ गय तो

लदकन रवत न यह भी तो कहा रा दक अगर िह नही रही तो कया फकथ पड़ता ह पर रजत

सचमच खत पढ़ ल तोhellip शायद उसकी पीड़ा पर तब करोध और घणा का कोई विकराल भत हािी हो

सकता हhellip हो सकता ह दक खत पढ़कर रजत रवत को खद स वछरक द लदकन उसस कया तब शायद

रवत और भी तारक क करीब आ जाय और भी उसकी अपनी हो जाय वसफथ उसी की समची एक रात

पहल उस ऐसा ही कछ सपना आया रा रवत की मौत की खबर क बाद यही उसका याद रह जानिाला

सपना रा िह रवत की अतयवि म गया ह और एक अधरा-सा बठकनमा कमरा हhellip कमर म कछ

कागज वबखर पड़ हhellip िह एक कागज उठाता हhellip िह उसी का रवत को वलखा खत हhellip और कई लोग

उसक आसपास ह और िह सोचन लगता ह दक कही इन लोगो न भी तो उनदह नही पढ़ाhellip तभी रजत

का चहरा उसकी ओर बढ़ता ह और िह कागज वछपान की तरकीब सोचन लगता हhellip इसी उधड़बन म

उसकी आख खल गयी री तो वजथम पसीन म नहाया हआ रा

एक रजत ही यहा उसक सबस करीब हhellip और रजत ही उस अजनबी-सा लगन लगा ह अब

तक उसका रवत का सदभथ रा अचानक उस सदभथ स करकर न होन जसा हो रहा ह तारक को अजीब-

सी मानवसक दरी और भयकर अकलापन-सा महसस हआ िह यहा आया ही कयो रा रवत की

नामौजदगी म दकतना बमानी ह उसका यहा होना रजत को भी दकतना दफजल-सा लग रहा होगा

उसका यहा उपवथरत होना वजन लोगो स वघरा ह ि तो सचमच उसक अपन हhellip तारक तो दर स भी

अपना नहीhellip मत स तारक का जो भी नाता रहा होhellip उसक दकसी दसर स तो नही रा उसक कॉलज

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कामो स लौर बचच भी तारक को पहचानत नही र तारक न ही उनकी शकलो और वयिहार स अदाज

लगाया रा और हॉलि म लगी तथिीरो स उनदह पहचान पाया रा

तारक क पास रजत स कहन को कछ नही रा उसका कछ भी कहना रजत को खल सकता रा

उलर तारक को लगन लगा दक रजत शायद सोच रहा हो दक अब कयो जखमो को याद ददलान आ गय

हो कछ भी हो तारक न उस पीड़ा तो पहचायी ही री कया अब उसका कछ भी करना रजत क कि को

कम कर सकता रा उसन वनगाहो स ही अपना दख बयान कर ददया जो शायद रजत न थिीकार भी

वलया राhellip शायद एक औपचाररकता की तरह जस िह दसर बहत स जमा लोगो की शोकावभवयविया

थिीकार रहा राhellip उसस कछ अलग नही शायद तारक का िहा होना ही रजत को खल रहा हो पर

िि की नाजकी की िजह स िह कछ कहना न चाह रहा हो तारक एकदम परशान-सा उठ खड़ा हआ

कछ लोग रजत क गल लग रह र शायद उसस विदा लकर जा रह र तारक न सोचा िह अब

कहगा दक रवत क पास कछ उसक जररी कागजात र अगर रजत उस कागजो िाली जगह पर ल चल

तो िह खद ही दख लगा तारक यि की गवत स रजत की ओर बढ़ा रजत जस दकसी को दख कर भी

दख नही रहा रा उसकी आख दकसी शनदय पर ररकी री तारक को लगा उन लोगो क वघराि म

वजसम उसक अपन अजीज दोथत और ररशतदार र रजत न उस कोई विशष लकष नही दकया तारक क

भीतर अजीब सनापन-सा आ वघरा लगा जस रवत रजत म कही नही री वसफथ भरम-सा हआ रा उस

उसक िहा होन का जस दक उसक रवत क नात स िहा होन म ही कोई भारी असगवत री उस लगा

िहा बठ अजनबी स लोग उस घर रह र उसक िहा होन पर परशनवचनदह लगा रह र पता नही दकतन

ही अजनवबयो स वघर गया रा तारक यहा तक दक रवत की उस तथिीर म भी उस रवत नजर नही आ

रही री िह भी कोई अजनबी छाया री यह दवनया उसकी नही री अगर िह रवत की दवनया रही

भी हो तो वजस रवत को िह जानता रा उस रवत क वलए भी यह दवनया अनवथतति री विसगत री

उसन रजत को बहत सभलत सभलत गल स लगान की औपचाररकता की उस लगा जस िह

दकसी अजनबी को गल लगा रहा रा रवत वजतन उसक अपन पास री उतन और कही नही दकसी क

पास नही दरअसल रवत और कही नही री उसक भीतर रीhellip बस उस रवत को िही अपन भीतर ही

कही सजोय रखना रा भीतर ही खोजना रा भीतर ही तसलली करनी री दकसी और स बार नही

सकता रा रवत को रजत क दोनो कधो को हलक स दबाकर उसन धीर स कहा rdquoरक कयरrdquo और मड़ा

तो वबना पीछ दख बाहर वनकल गया

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पासपोरथ अमरीकन मरो

ओम गपता

पासपोरथ अमरीकन मरो पर रगत सहदथतानी

आज सनाऊ तमको पयार अपनी रामकहानी

छोड़ो भारत मन भयया डॉलर दख-दख ललचायो

चार-पकोड़ी जब भी दख मोह म पानी भर आयो

दीिाली पर दीप जलाउ होली पर खल रग

मौको जब मझको लगतो पीतो म भी भग

कसो होगी सरकार हमारी मोक हरदम सचता

जब भी दश पड़ सकर म कपा करो हनमनदता

पज म अब भी राम-कषण जातो मददर रोज

गपशप यारो स करतो फोकर म वमलतो भोज

योगी-बाबा आए दश स जब दन मझको जञान

आख मद क ना कछ जान करतो उनको सममान

हमबगथर अब भी नही भातो भाती मझ कचोड़ी

जसो जब भी मौका आयो रोपी िसी ओढ़ी

जाऊ दश को जब म अपन खाऊ लडड और इमरती

कहतो खद को सहदथतानी अमरीका मरी अब धरती

कहन को बहत ह भयया रोड़ को समझो काफी

बरा-भला लगा जो तमको माग नतमथतक माफी

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शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

आकाकषा ह

वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

फर च अनिाद कर इस lsquoभोगिाद स पीवड़त पविम की आतमा को अतयवधक शावत दन िालाrsquo कहा

12 47 2015 33

ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

की सीमाओ क पर मनषय कया अनभि कर सकता ह उसकी एक झलक भी ददखा दता ह उसी

औपवनषदीय जञान को महरवष िदवयास न सामानदय जनो क वलए ldquoपविि गीताrdquo म सवकषपत रप म परथतत

दकया ह िदवयास की महानता ही ह जो दक 11 उपवनषदो क जञान को एक पथतक म बाध सक और

मानिता को एक आसान यवि स परमातम जञान का दशथन करा सक ldquoपविि गीताrdquo महाभारत क

भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

ह भगिद गीता वहनदद धमथ क पविितम गरनदरो म स एक ह जो इसानो की चौहददी की सीमा रखा पर

भगिान क शरी मख दवारा इसान स कही गयी सरहदो पर चहरो की थकररनी का लखा-जोखा ह यह

12 47 2015 34

पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

12 47 2015 35

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Page 12: Year 12, Issue 47Year 12, Issue 47 vsu2avsu2a · राथत § में आ वबछ §ग . ... श्रराम की अन ¡कम्पा स § ह हाल ह में

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मरली कस अधर धर

महाकवि गलाब खडलिाल

मरली कस अधर धर

सर तो िदािन म छर कस तान भर

जो मरली सबक मन बसती

वजसस री तब सधा बरसती

आज िही नावगन-सी डसती छत वजस डर

वजसको लत ही अब कर म

पीड़ा होती ह अनदतर म

कस दफर उसकी धन पर म जग को मगध कर

इसको तभी धर अधरो पर

जब सग-सग हो राधा का थिर

जब यह मरली सना-सनाकर उसका मान हर

मरली कस अधर धर

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भारत और भारतीयता का अरथ

परो गिरीशवर ममशर कलपवत महातमा गाधी वहनददी विशवविदयालय

आजकल क चरवचत सरोकारो म भारत और भारतीयता क सिाल परछन न और परत यकष दोनो ही रपो

म खासी चचाथ का विषय बन चक ह और कई बड़ बवदधजीिी इस पर बहस म वशरकत कर रह ह दसरी

ओर ऐसो की भी कमी नही ह जो इस बमतलब का मददा मानत ह इसका पररदश य आज जररल और

बदला हआ ह दश क थ िति होन क पहल और थ िति होन क ततकाल बाद और अब लगभग सात

दशक की पररपक िता क करीब पहचत-पहचत इस लकर आज बहतर यह मान कर इस तरह की चचाथ

स तरथ र हो चल ह दक यह तो कोई सारथक परश न ही नही ह कछ इस िवशवक या भमडलीकत हो रह

आज क समय की जररतो क अनसार समझना चाहत ह कछ इस किल थ रानीय दवि स ही दखना

चाहत ह कछ इस सभ यता और सथ कवत क विमशथ स जोड़ कर दखत ह जो भी हो अतरराष रीयता क

सार परयासो क बािजद आज भी राज य या नशन थ रर की अिधारणा वनणाथयक महत ि रखती ह और

वनकर भविष य म सीमाविहीन दश जसी कोई अिधारणा आकार लती नजर नही आती आज का सत य यही ह दक दशो की सीमाए बाधा (का अवधक) और सपकथ (का कम) का काम

कर रही ह दश की सीमाओ की रकषा सबक सामन एक बड़ी चनौती ह दश और राष र किल कोरी

भौगोवलक अिधारणाए नही होती उन इकाइयो की रचना क सार एक समाज या समदाय विशष की

आशा-आकाकषा भी जड़ी होती ह दश की अिधारणा एक थ िप न को समरवपत रहती ह आज क तमाम

राष रो क सार उनक सार जड़ी लबी सघषथ-गारा आसानी स दखी जा सकती ह जो दसर समाजो और

समदायो की सामराज यिादी आकाकषाओ क परवतरोध को दशाथती ह शविसपनद न और आरवरक रप स परबल

दशो की दादावगरी उनकी सतता और शवि का जलिा अभी भी बरकरार ह कहन का तात पयथ यह दक

दश की इकाई अभी भी राजनवतक सामावजक आरवरक सामररक और सास कवतक रप स महत िपणथ

बनी हई ह और उस नकारा नही जा सकता

आज बौवदधक किायद म भारत समत सब कछ करथ रड मान जान का फशन-सा चल पड़ा ह

पर उसस दर करोड़ो (भारतीय) जनो क तन-मन म भारत जीवित ह आम आदमी वजनस दश आकार

लता ह िह भारत की एक सामावजक थ मवत भी रखता ह उसक वलए दश थ रानबोधक ह और भारत

एक भाि भी ह भारतीय होन का मतलब ह भारतभवम म रहन की जीिन-व यिथ रा म शावमल होना

भारत कह या इवडया यह मलतः एक भौगोवलक थ रान और उसकी पररवध को रखादकत करता ह इस

भभाग को जब दवीप आयाथितथ भारतिषथ और सहदथतान क नाम स भी जानत ह वहमालय और

सागर इसकी सीमाए बनात ह शथ यश यामला क दश गान और जनगणमन क राष रीय गान म जीित

भारत माता को वजस रप म थ मरण दकया गया ह िह भौगोवलक अिधारणा ही नही उसकी सीमा म

रहन िाल बासशदो की सामावजक-साथ कवतक अवथमता पर बल दती ह वजसका एक भािात मक रप भी

ह भारत एक सामावजक शरणी भी ह जो समाज दवारा रवचत और थ िीकत ह यह उस सामावजक

आकाकषा का परतीक भी ह जो एक आदशथ वथरवत की ददशा म जान क वलए परररत करती ह आधवनक

यग म एक थ िति जनति क रप म एक राज य की थ रापना हई और सहमवत स एक सविधान बना और

12 47 2015 17

सामावजक आकाकषा को एक मतथ रप वमला हमन उसम आिश यकतानसार बदलाि भी दकया ह इस

इकाई क सदथ य क रप म हमारी एक भारतीय पहचान ह

स मरणीय ह दक एक समदाय या सामावजक इकाई की वभनद नता या अलग सतता थ रावपत करना

वयािहाररक दवि स भी आिश यक ह ऐसा करना समाज को अदर स बाधता ह एकजर करता ह और

अनद य (िसी ही) इकाइयो स फकथ करता ह िधावनक रप स नशन या राष र एक काननी इकाई भी ह

और उसक सदथ य िध नागररक होत ह वजसकी थ िीकवत अनद य राष र भी करत ह और पासपोरथ िीसा

आदद की व यिथ रा स आिागमन को वनयवित करत ह नागररक क रप म िधावनक सामावजक और

साथ कवतक अवधकार क सार कतथव य और दावयत ि म भी भागीदारी होती ह समाज की वनयवत ह दक

जावत भाषा बोली कषि भोजन िथ ि रीवत-ररिाज धमथ आदद की विशषताए आ जाती ह इनक

सार समाज का भािात मक लगाि होता ह और उसक सदथ य थ िय को उसी आधार पर पररभावषत भी

करन लगत ह चदक इन विशषताओ का सचार पारथ पररक सबध और जीिन क विविध व यापारो स

गहरा ररश ता होता ह इसवलए य उस समाज की पाररभावषक विशषताए बन जाती ह

भारत दश हमार समकष एक सभ यता और मल य दविसपनद न सामावजक इकाई क रप म

उपवथरत होता ह इसकी समझ कई रपो म वमलती ह वनकर इवतहास म झाक तो पाएग दक इसक

कई रप ह एक छोर पर सहद उपलवबध को बलपिथक रखन िाल वतलक अरसिद सािरकर और

विवपन चर पाल जस ह दसरी और गोखल रानाड गाधी और रगोर सरीख आध यावतमक विचार को

मानन िाल ह जो सभी परभािो को आत मसात करन को तयार ह य सवहष णता आत मवनयिण आदद क

सार एक तरह की बहलता को ठीक मानत ह तीसरी ओर आधवनक दविसपनद न नौरोजी और पवडत

नहर जस लोग ह जो भारत को एक विकवसत सभ यता तो मानत ह पर यह भी महसस करत ह दक

उसका हरास भी हआ और उसम बहत कछ आधवनक जीिन दवि क विपरीत हआ जो आज उपयोगी

नही ह उनक वहसाब स एक बहलतािादी आधवनक नजररया जो विजञानसम मत हो उपयक त ठहरता ह

आज हर भारतीय की एक बहआयामी पहचान बनती ह िह सहद बगाली मवथलम गजराती

कश मीरी वबहारी बराहमण ओबीसी जन ईसाई आदद िाली एक सार कई तरह की पहचान रखता ह

य वभनद न वभनद न पहचान अक सर एक दसर की विरोधी न होकर परक होती ह साथ कवतक रप स ि

गहरी पठी ह और उनक सार लोगो का गहरा सािथजवनक लगाि भी ह िथ ततः हर भारतीय की

पहचान (आइडरररी) की अलग व यिस रा ह कोई एक यनीफामथ पमाना नही ह जो यह तय कर दक कई

पहचानो म स कौन सबस ऊपर नबर िन पर ह यह एक बड़ा तरल या फलइड मामला ह आज

पजा-पाठ सगीत और थ िाथ थ य लाभ क अनक क र भारत भर म फल हए ह जहा आन जान स सहद

ईसाई वसख और मसलमान दकसी को भी परहज नही होता कई पहचान क सार रहना अथ पष रता तो

पदा करता ह पर शायद दसरो क वलए िथ ततः हर भारतीय कई (उप) सथ कवतयो म जीता ह और य

सब वमलकर उसकी पहचान बनाती ह इस अरथ म हर भारतीय शायद बहसाथ कवतक ह और उसकी

पहचान बहआयामी

दश की छवि दशिावसयो क आत मगौरि का माध यम होती ह आज क भारत का अग होना उस

वबलाग करना हमको आरवरक परगवत की ओर अगरसर एक दश एक आरवरक पािर क सार जड़न का

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एहसास दता ह दसरी ओर भरष राचार अवशकषा अव यिथ रा सामावजक करीवतयो और भदभाि क

कारण मन म रकान उदासीनता और असहायता की भािना भी आती ह इस सबक बािजद एक

भारतीय का बोध जरर ह जो पजाबी मराठी या गजराती होन अलग जावत िगथ और समदाय का

सदथ य होन पर भी सबको भारतीय बनाता ह कभी-कभी विविधता म एकता िाल नहर जी का

भारत अपररभाषय या अव याख यय लगता ह भारत को एक विथ तत साथ कवतक इकाई क रप म दखन

पर कछ विचार उभरत ह जो भारतीय होन क अरथ को थ पष र करन म सहायक होत ह इनम परमख ह

धमथ कमथ पनजथनद म को दकसी न दकसी रप म थ िीकारना सामावजक इकाई - पररिार जावत समदाय

क थ तर पर अपन अवथतत ि को महसस करना सक स वििाह और अनद य व यवियो क परवत खास दविकोण

को अपनाना बहलता का थ िीकार और खल कछ-कछ असगरठत दकथ म की आत म या सल फ की

अिधारणा का थ िीकार और दकसी न दकसी रप म दकसी बड़ी जञात-अजञात सतता स जड़ाि की

अवभलाषा और पररिश परकवत और सवि क सार साझदारी तरा परथ पर अनपरकता का भाि

समकालीन विमशथ म राज य और राष र की अिधारणा क अरथ बहत कछ इस पर वनभथर करत ह

दक कौन दकस दविकोण और परयोजन स इन पर गौर कर रहा ह अक सर इनद ह अतीत ितथमान और

भविष य स जोड़ कर दखा जाता ह और लोग अपन चन िचाररक आदशथ स रग कर ही इस पर विचार

करत ह इन शब दो और इनस जड़ अरथ थ रान और समय क सार-सार बदलत रह ह जो थ िाभाविक ह

भारत दश क बार म सोचन की एक बड़ी मवशकल यह ह दक हमारी अपनी पररभाषा क पमान हमार

अपन न होकर दकसी और क ददए हए ह ि हमार बौवदधक मानस म इतन गहर पठ चक ह दक अब हम

अपन पमान क बार म भरोसा ही नही कर पा रह ह और खद को पररभावषत करन का अवधकार ही

खोत जा रह ह आरवरक और तकनीकी परगवत क पसराि की दवनया म आज हमारा आतम-सशय इतना

गहराता जा रहा ह दक भारत और भारतीयता की बात करना परानी और ददकयानस और इसवलए

अपरासवगक मानी जान लगी ह अगर इसकी बात करनी भी ह तो उसकी सनद कही और स जरानी

होगी आज अपनी पहचान क वलए हम पविमी दशो म विदवानो क दवारा परमाण और गिाही चाहत ह

आज भारत की साथ कवतक विविधता को सपनद नता और समवदध क ोत क रप म समझन समझान की

जररत ह वजसका उपयोग समाज क विकास म दकया जाय इसक वलए भारत को भारत क नजररए स

दखना होगा वबना इस भय क दक भारतीय होना दकसी कषमा याचना की अपकषा करता ह थ िदशी और

सराज जस विचार अभी भी परासवगक ह समरथ और थ िािलबी होन क वलए आत म थ िीकार और सतत

पररष कार आिश यक ह

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भकप का सदश

डॉ एमएल गपता ldquoआददतय

धरती हर ददन डोल रही ह कपन की बोली बोल रही ह

विनाश कर आकरोश स बदल कय भगोल रही ह

कय धरती न भकरी तानी कय वहमालय म आिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

जो ससाधन र पोषण क उनका शोषण कर डाला

ओजोन का जो किच रा उसका भी भदन कर डाला

बरहमी स कार हमन िसधरा क िन-कश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

सागर क तीरो को छीला पठार और पिथत को लीला

नददया बनी नाल और नाली नही ददखता जल वनमथल-नीला

चतािनी द रहा ह मौसम बदला भमडल का पररिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

विजञान की सीढ़ी चढ़ विनाश का सामान बनाया

परमाण सयि द रह यातना विकीरण का खतरा मडराया

रवडएशन स आतदकत ह दवनया क सब दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

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कोई अण कोई परमाण कोई हाईडरोजन बम ल ऐठा ह

वबछी हई बारद धरा म मानि बमो क ढर पर बठा ह

हआ परमाण यदध तो वमर जाएग दकतन दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

भकषक बनकर मानि इक दज पर चोर कर रहा

परीकषण की खावतर दकतन भीषण बम विथफोर कर रहा

परकवत का सतलन वबगड़ा तो हम बन जाएग अिशष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

कदरत कहर बरपा सकती ह कभी भी आफत आ सकती ह

धरा की जरा सी भी हरकत दकतना कोहराम मचा सकती ह

धरा न जरा करिर बदली तो कछ भी न रहगा शष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

पयाथिरण क आघात पर अब तो रोक लगानी होगी

सागर पिथत धरती क सग बद करनी मनमानी होगी

धरती को जो मा मानोग सब वमर जाएग कलश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

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ि दोनो

डॉ सषम बदी

छत स फशथ तक क लब शीशो स जड़ी उस बड़ी-सी बठक म खब सारी ददन की रौशनी भरी हई

री फशथ पर वबछी सफद चादरो पर सफद िसतर पहन ढर सार लोग उस रौशनी का ही वहथसा लग रह

र कमर म घसत ही तारक को लगा जस उस शवतता म घल मौत क सदथपन और जड़ता न अचानक

उसक भीतर को जकड़ वलया ह बीचोबीच फलो की माला चढ़ी एक बड़ी-सी रवत की तथिीर री

वजसका धप दीप और गीता क शलोको स अवभषक दकया जा रहा रा रवत अब तथिीर भर री तारक

की थतबध पवनयायी आख वनथसहाय-सी रजत को खोजन लगी

रजत सारा िि लोगो स वघरा ही रहा रा उसकी मा उसक बचच और दसर ररशतदार कोई न

कोई उसक आसपास रा ही उन दोनो की आख एक दसर स दो एक बार वमली पर रजत अपन स

बाहर नही आ पाया रा तारक न दकसी तरह अपनी शोकभािना वयि कर दी री न भी वयि करता

तो कया रजत को तो खद भी अहसास होगा उसकी अतभाथिना का एक िही तो ह इस भीड़ म जो

जानता ह दक िह कयो यहा ह बाकी तो तारक दकसी स पररवचत ही नही वसिाय कछक रवत क

कलीगज क एक दो कलीगज स ही उसकी बात हई रवत क बार म ि उस पररिार का वमि मानकर

बात कर रह र य पररिार का वमि तो िह रा ही पर इसस अलग या ऊपर भी कछ रा यह शायद

रजत क अलािा और कोई नही जानता रा जबदक रजत भी परा कहा जानता ह खास तौर स िह सब

कछ जो तारक महसस करता रहा ह या जो कछ तारक और रवत क बीच म रहा या अभी भी वजसका

बहत कछ बचा रा

य तारक न बहत बार सोचा दक अब रवत नही रही तो उसक यहा जान का कोई फायदा नही

उसकी तकलीफ बढ़गी ही दफर लगा दक नही उस रजत स वमलन जाना होगा रजत भी तो उसका

दोथत ह य रवत उन दोनो क बीच न होती तो ि शायद बहत गहर दोथत हो सकत र दफर भी िह खद

को कई तरह स रजत क करीब महसस करता रा और रजत भी बहत मामलो म उसी स सलाह करक

चलता रा उस पर भरोसा करता रा जो दक उसक मन क दोथती क भाि को ही जताती री चदक

तारक की विशषता ददल क रोगो म री िह रवत क हारथअरक क बाद स उसस अकसर रवत क बार म

सलाह लता यहा तक दक रवत स भी कोई वशकायत होती तो तारक स ही कहता दखो न इसका

कोलथराल इतना हाई चल रहा ह और मडम चीज मीर सभी कछ खाती ह अभी रथतरा ल चलो परा

का परा थरक गरक जायगी कस कर यह तो खद को नकसान पहचान स बाज नही आतीrdquo और तारक

तब ररका दता कसी डाकरर हो तम रवत मरीजो को उपदश दती रहती हो और खदhellipदफर उसन

खद ही एक विशषण गढ़ा रा रवत क वलए lsquoनानकपलायरrsquo यानी दक जो कछ भी कहा जायगा उसका

विरोध ही करगी रवत और दकसी िजह स नही बवलक विरोध करन क वलए विरोध

तब रवत और भी तिर चढ़ाकर बोलती rdquoरजत तो पहल ही मर पीछ पड़ा रहता ह अब तम

भी इसी स वमल गय हो िाह जी िाह दोथत दकसक हो तम मर या रजत कrdquo

तारक तब चप रह जाता रा रजत भी कछ नही कहता एक वपरय अवपरय सतय

शायद रवत भी इसीवलए कहती री दक तारक तब लाजिाब हो जायगा कयोदक रवत जानती ह दक जो

िह तारक क वलए ह िह और कोई नही हो सकता और रजत को भी इसका अदाज ह इसी स रजत न

शर म चाह दकतना विरोह दकया हो दकतना लड़ाई झगड़ाhellip दफर धीर-धीर मान वलया रा इस ररशत

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को रवत क वलए ही अगीकार कर वलया रा तारक को भी रवत न ही उस बतलाया रा जब रजत न

उस बाहो म भरकर कहा रा rdquoइतना पयार करता ह तमह दक यह भी थिीकारन क वलए राजी हrdquo

एक हक-सी उठी री तारक क भीतरhellip वजस इतना पयार वमला होhellip इतनाhellip िह इस तरह स

उन दोनो की वजनददगी को ही सना करक रखसत हो ली तारक क मन म गथसा भी आयाhellip शायद

अपनी सहत का धयान रखती तो कछ और जी जाती उन दोनो स ही तो चार-पाच साल छोरी री िह

जी भी सकती री पर अबhellip और तारक न लबी सास भरी

रवत की एक कलीग बता रही री rdquoपरसो तो काम पर आयी हई री रवत म सोच भी नही

सकती री दक इतना भारी थरोक हो सकता ह दक एक ही लपर म ल जायhellip मझ तो विशवास ही नही

होताrdquo तारक को भी विशवास नही होता रा उसी ददन सबह रवत न उसस फोन पर बात की री और

उसस मजाक दकया रा rdquoमर जनदमददन पर आओगrdquo

दरअसल सारा झगड़ा कछ साल पहल रवत क जनदमददन को लकर ही शर हआ रा िनाथ शायद

रजत को उन दोनो क बीच बढ़त ररशत की तवनक खबर न लगती रवत न उस बतलाया रा दक उसक

जनदमददन पर िह और रजत आमतौर पर शाम को बाहर दकसी बदढ़या स फर च रथतरा म खाना खान

जात ह तब तारक न कहा रा rdquoठीक ह तो लच तम मर सार लनाrdquo

रवत मान गयी री उसन उसी ददन रवत क शहर पहचन क वलए फलाईर भी बक करिा ली

री पर जब ठीक जनदमददन आनिाला रा तो रवत न उस बतलाया रा दक रजत को ठीक नही लग रहा

मरा तमहार सार लच पर जाना िह पछ रहा रा दक इतना इमपॉरर कस हो गया यह आदमी दक

तमको उस जनदमददन पर जरर वमलना ह

rdquoतमन कया कहाrdquo तारक वजजञास हो उठा रा

rdquoयही दक तमको दकसी काम स शहर म होना रा इसवलए लच पर वमलन की बात की इस पर

उसन कहा दक अगल ददन वमल लो जनदमददन िाला ददन तो उसी क वलए हhellip कोई और कयोrdquo

दफर िह बोली rdquoइसी पर उस शक हो रहा ह दक यह कोई आम दोथत नहीhelliprdquo

तारक न जोड़ ददया रा rdquoपरमी हrdquo

rdquoहा यही शक हो रहा ह उसrdquo

rdquoतो ह या नहीhelliprdquo

rdquoशायद होhellip यही मसीबत हrdquo

तारक न कहा रा rdquoअब तो ररकर ली हई ह म तो आऊगा ही तम वमल सको तो वमलना िनाथ

न वमलना चाह पाच वमनर क वलए या कॉफी क वलए भी आ जाओगी तो मर वलए िही काफी होगा

तमहार जनदमददन पर तमह दख भर लrdquo

rdquoतम भी कमाल क रोमाररक होhellip पर सच कह तो म भी तमस वमलना चाहती ह उस ददनhellip

कछ न कछ तो जगाड़ना पड़गाrdquo

rdquoमर वलए तमहारा जनदमददन मरी वजनददगी का बहत अहम ददन हhellip समझीrdquo

एयरपोरथ पहच कर तारक न फोन दकया रा रवत बोली री rdquoरजत कह रहा ह तम हम वडनर

पर जॉयन कर लोrdquo

तारक बहत हरान हआ रा पर रवत न फोन रजत को पकड़ा ददया रा तारक एकदम सकर म

पड़ गया रा उसन खद को बचान की कोवशश की rdquoसॉरी म तो यहा आया रा तो सोचा रवत स वमल

लगा पर इस तरह आप लोगो क परोगराम मhelliprdquo

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रजत न जोर दकर कहा रा rdquoनही भाई बहत तारीफ सन रहा ह बीिी स जरा हम भी तो

वमल आपस आप चाह तो घर पर आ जाईए या दफर सीध रथतरा पर वमलगrdquo

rdquoपर आप लोगो का तो वडनर पर सार जान का कायथकरम रा नrdquo

rdquoआप लच पर फरी ह तो लच पर वमल लत ह य मझ तो वडनर ही पसद ह जसा आप कहrdquo

रजत वबलकल दोथताना ढग स बात कर रहा रा एक पल को उसकी रोन म कछ तनाि तारक

को महसस हआ रा पर अगल ही पल आिाज दफर सहज हो गयी री तारक मान गया पर रकसी लकर

पहल होरल म सामान छोड़ा और इस दौरान खद को मानवसक तौर पर तयार भी करता रहा दक कस

पश आना ह अपन रकीब स दखा जाय तो ररशता रकीब का ही रा बाकी ि दकतन भी सभय या

समझदार इसानो की तरह एक-दसर स बताथि कर आवखर ि तीनो सममावनत पश क र तारक हारथ

थपशवलथर रा तो रजत अगरजी सावहतय का परोफसर और रवत सायकायररथर इसानी मन की

कमजोररयो को समझना मनोरोगो का इलाज करना रवत की विशषता तो री ही पर इसानी आकषथण

एक दसर क परवत सखचाि या ऐस ररशतो को समझन की सथकवत तो कही तीनो म ही री

रजत इस बात को खब समझता रा दक दकसी भी औरत क वलए दकसी दसर परष क परवत

सखचाि हो जाना बहत सहज रा िही एक पवत और पतनी स परम करन िाल क रप म िह रवत क इस

वयिहार स ईषयाल भी हो उठता रा एक सभय इसान क नात िह ईषया को दबा कर तारक क परवत भी

वमिित वयिहार करना चाहता रा पर िही उस रवत क वयिहार स कि पहचता रा दक िह उसक

अलािा भी दकसी दसर परष को चाह सकती ह वजसस उसक मन म आकरोश और वितषणा का भाि

उठता कभी िह अपन को उदार बना कर यह कहना चाहता दक रवत अगर दकसी दसर को चाहती ह

तो बशक उसको भी कयो न पाय सार ही जब करोध होता तो एक तरह स जस िह रवत को सजा दन क

वलए कह डालता rdquoतम जाओ दोनो सार रहोrdquo पर जो पीड़ा िह उसम सह रहा होता िह रवत और

तारक दोनो क वलए ही असहय होती

रवत न कहा रा rdquoकया तारक और म दोथत नही हो सकत और इतन दोथत हhellip एक िह वयवि

वजसस बात करक मझ खशी वमलती ह िह दोथत कयो नही बन सकता वसफथ इसवलए दक उसक मन म

तीखी भािना ह मर वलएhellip या शरीरो का आकषथण भी हhelliprdquo

रजत तब तकथ स सारी बात को समझन समझान की कोवशश करता हा करत-करत कह दता

rdquoऔरत आदमी म दोथती हो ही नही सकती कयोदक जहा शरीरो का आकषथण हो िहा दोथती जसा

वनषकपर भाि कस पनप सकता हrdquo तब रवत दोथती का एक और पकष पश करती rdquoतमहार कहन का

मतलब तो िही ददकयानसी बात हई दक शरीर पाप का मल ह जबदक तम खद ही यह पहल कह चक

हो दक शरीरो का मसला हल हो जाय तो औरत मदथ बहत खबसरत दोथत हो सकत हhellip शरीर को

अहवमयत दी कयो जाय शरीर वमल जान स उनका दोथती म बाधा बनन का मसला खतम हो जाता हrdquo

रजत रवत की बात मान भी जाता रा पर रवत दफर तारक को यह भी बताती री rdquoिन कार

रक वहम फॉर गरारड कल को िह अपना कोई नया तकथ द दगाrdquo

शायद इसी स तारक भी अचानक वहममत हारन लगा रा कस सामना करगा िह रजत का य

िह रजत स एकाध बार पहल वमल चका रा पर तब उसको यह अदाजा नही रा दक रवत और उसक

बीच कछ रा जबदक तारक तब भी कछ आतमसजग-सा हो रहा रा पर कछ वमनरो की मलाकात को

सभाल लना कोई बड़ी बात नही री और य भी रजत उस भला आदमी लगा रा यह भी सोचा रा दक

अगर रवत उन दोनो क बीच न होती तो यह वयवि उसका दोथत हो सकता रा य रवत क होन क

बािजद अतत ि दोथत बन ही पर इस दोथती का तानाबाना िसा न रा जस खावलस दोथती का होता

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ह इसम रवत क रश बन हए र जो एक और ही रगत वलए र और िह रगत तारक को बहत पयारी री

उस दोथती स जयादा

तारक न होरल पहच कर फोन कर ददया रा दक वडनर पर वमलना ही ठीक रहगा और िह

अपना काम इस दौरान कर लगा रजत आसानी स यह बात मान गया और कहा दक िह सडरकस पर

पहल घर पर आ जाय उसक बाद रथतरा खाना खान चल जायग

शाम को जब िह चलन लगा तो फोन बजा रा दसरी ओर रवत री हलो कहत ही रवत न

कहा rdquoसनो तम मत आना मर घर म बहत रशन चल रही हrdquo इसस पहल दक िह कछ कहता रवत न

फोन वडसकनकर कर ददया

रात को कोई फलाईर नही जाती री िनाथ िह उसी िि शहर छोड़ क चला जाता

आध घर बाद ही घरी दफर बजी रवत पछ रही री दक आ रह हो तारक बौखला गया दक आवखर हो

कया रहा ह कया यह रवत क मन की उलझन ह या दक रजत कीhellip या दोनो कीhellip या रवत वसफथ रजत

की उलझन को वयि कर रही री बोली री rdquoजलदी आ जाओ हम लोग इतजार कर रह हrdquo

िह पहचा तो रवत न अकल ही उसका थिागत दकया रा िह जानता रा दक दोनो बचच कालजो

म ह पर रजत काफी दर तक बठक म नही आया तो तारक हरान हआ रवत बोली rdquoिह नहा रहा हrdquo

दफर मथकरा कर जोड़ा rdquoशायद हम दोनो को कछ िि दना चाहता हrdquo

तारक तब कछ निथस हआ रा उस आग बढ़कर रवत को चमन का हौसला नही हआ उस लगा

दक रवत भी सहज नही री जस दक आम तौर पर होती ह पर उसन कछ कहा नही िह खद भी तो

सहज नही हो पा रहा रा जस लड़की क बाप क घर म शादी का परथताि लकर जा रहा हो कछ कछ

इसी तरह का महसस हो रहा रा िही डर कर परचा करना रा दक इमतहान म फल न हो जाय

रजत न कमर म आत ही बड़ तपाक स हलो दकया कछ औपचाररक-सी बात की दफर उसस

सडरक पछा और दकचन म बफथ िगरह का इतजाम करन क वलए दफर स गायब हो गया तारक को लगा

दक सहज होन की बहत कोवशश क बािजद रजत बहत असहज ह

ववहथकी का घर लत हए तारक न ही रजत स उसक काम क बार म पछना शर दकया बात

कही जा नही रही री तभी रवत एक नई दकताब की चचाथ करन लगी वजसका ररवय सबह क अखबार म

छपा रा तारक न हिाई जहाज म ही उसक बार म पढ़ा रा दफर तो बातचीत खब गरमागरम होन

लगी रजत न दवकषण एवशयाई अगरजी लखको क बार म अपन विचार झाड़न शर कर ददय यहा तक

दक रवत न अचानक घड़ी दखी तो पता चला दक रथतरा की ररजिशन का िि हो चका रा रजत न

रथतरा को फोन दकया दक कछ वमनर लर पहचग और तारक को बोला दक जलदी स सडरक खतम कर ल

या गाड़ी म ही ल चल दोनो न दो तीन सडरक चढ़ा रख र मौज-सी भी आयी हई री रजत ही कार

चला रहा रा और तारक पीछ िाली सीर पर बठा रा अचानक रजत कछ नश और कछ अपनी धन म

बोला rdquoतो तम मरी बीिी स पयार करत होrdquo

तारक भौचक-सा हो गया य ही बठा रहा जस रजत की बात को सना न हो या िह गभीरता

स लन लायक न हो रजत न अपनी बात को सिाल बनाकर दबारा पश दकया rdquoकयो तारक मरी बीिी

स पयार करत हो या नहीrdquo

तारक न कहा rdquoहाrdquo और चप कर गया उस लग रहा रा िह जो भी जिाब दगा खतर स खाली नही

पर यह जिाब सच रा तो सच बोल कर ही मार खायी जाय उस दकसी लड़की क वपता स हार मागन

नही जाना पड़ा रा आज यह भी सही

rdquoतम भी पयार करत हो िह भी करती ह तो तम दोनो सार कयो नही रहतrdquo

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तारक बोल पड़ा रा rdquoयह इतना आसान नहीrdquo

रजत इस पर आकरमण करता-सा बोला rdquoकमाल ह पयार भी करत ह और वजममिारी भी नही

वनभाना चाहतrdquo तारक को महसस हो रहा रा दक रजत कह तो कछ रहा ह और पहचाना कछ और

चाहता ह दफर भी िह जिाब तो उसी बात का द सकता रा जो दक पछी जा रही री यह कह कर

उस नाराज भी नही करना चाहता रा दक रजत वसफथ अपन भीतर क आकरोश आतक और आग को

आिाज द रहा रा बोला rdquoयह बात नही म आज भी रवत क सार वजनददगी शर करन को तयार ह

जहा तक म जानता ह रवत अपन शहर को छोड़ कर और कही नही जायगी न िह तमको छोड़न को

तयार होगी जहा तक म रवत को जानता हhelliprdquo

रवत चपचाप अपन पर अकश लगाय दोनो की बात सन रही री न तो िह रजत क पकष म

कछ बोलना चाहती री न तारक क पकष म ही बोल सकती री दफर भी दोनो क बीच तारतमय वबठाय

रखन की वजममिारी भी उसी की री और िह समझ नही पा रही री दक दकस तरह इस बातचीत को

सीमाय लाघन स बचाया जाय ऊपर स उस डर लग रहा रा दक आिश म रजत कही रककर न मार द

रथतरा बहत दर रा भी नही बात पर चरम पर चल रही री दक रथतरा आ गया रवत न रोका rdquoरजत

पारककग ढढ़ो रथतरा आ गयाrdquo रथतरा क सार ही पारककग गराज म गाड़ी छोड़ कर तीनो अदर चल गय

िरर न उनको मज पर वबठाया और सडरक क वलए पछा तरा मनदय लाकर ददय तीनो क तीनो उस मज

पर इस तरह खामोश और भर बठ र दक मनदय म वसर डबोना एक राहत बन गया रा तीनो न अपन-

अपन आडथर ददय पर बात कछ बन नही रही री हर कोई कछ भी कहन म जयादा ही सतकथ हो रहा रा

अचानक रवत बोली rdquoरजत तमको इतनी जयादा तकलीफ री तो तमन मना कयो नही कर

ददया म तो तारक को कह चकी री दक आज सार खाना नही होगा तमही न जोर ददया दक जरर

बलाओ अब इस तरह कयो बताथि कर रह होrdquo

रजत और भड़क गया rdquoम तो वसफथ यह कह रहा ह दक तम लोग एक-दसर को पयार करत हो

तो म कया कर रहा ह यहा तम जाओ एक दसर क सार रहोrdquo

दोनो की आिाज ऊची हो रही री और दसरी मजो पर बठ लोगो की वनगाह इस ओर उठ आयी री

तारक न धीर स सझाया रा rdquoमर खयाल स हम य बात यहा नही करनी चावहएrdquo सहसा रवत

न होश म आत कहा rdquoहा इतन बदढ़या रथतरा म खाना खान आय ह कछ खान पर भी तो धयान दhellip

दफर आज मरा जनदमददन ह आई िार र हि ए गड मीलrdquo

दफर भी खान पर तीनो म स दकसी का धयान नही लग सका तीनो औपचाररक-सी बात म लग

गय र तारक न ही शहर क निीनतम रथतराओ क बार म ताजा पढ़ी समीकषा का वजकर छड़ ददया रा

रजत न कार स जब उस होरल छोड़ा तो तारक न उपर कमर म आकर सडरक लन क वलए कहा

पर जसा दक िह अपकषा कर रहा रा रजत न दर होन का बहाना बना छटटी माग ली री रवत तब भी

कछ नही बोली री शायद उस डर रा दक उसका कछ भी कहना रजत क वलए घाि पर नमक वछड़कन

जसा होगा या उसकी कोई भी बात का गलत मतलब वनकाल कर रजत भड़क सकता रा य दर हो भी

चकी री

पर तारक यह भी जानता रा दक रवत एक नबर की वजददी री जो उस चावहए रा चावहए ही

रा उस रोका नही जा सकता रा िह ऊपर स मान जायगी पर भीतर स कभी माफ नही करगी

शायद इसी स रजत भी वबगड़ी हई लाड़ली बरी की तरह रवत की हर चाह या माग को विरोध करक

भी अतत मान जाता रा

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लौर आन क दो चार ददन बाद ही उसक फोन पर रवत न सदश छोड़ा रा rdquoतमहारा आना ठीक

नही हआ सॉरी तमह बलाकर भी वमल नही पायी अब लगता ह कभी नही वमलगी लर अस थरॉप

ददस वहयर पलीज मझस सपकथ मत करनाrdquo

तारक बहत ददन परशान घमता रहा रा पर रवत को फोन भी नही दकया उसन मना जो कर

डाला रा उस फोन करत हए तारक को लगता दक िह खद को उस पर लाद रहा ह और यह वथरवत

उस कभी गिारा नही री हर ददन दकसी जिालामखी-सा लाि स लदा हआ गजरता अदर ही अदर

सब तप रहा रा

महीन भर बाद रवत न फोन दकया रा rdquoगथसा हो न मझस तमस माफी भी नही माग सकीrdquo

उसकी तो कोई जररत नहीrdquo

दफर भी सोचा रा तमस कभी बात नही करगी इसी स तमको सपकथ करन स मना दकया

रा रजत को भी यही मालम ह दक तमस ररशता तोड़ ददया ह पर अब मझी स बात दकय वबना रहा

नही जा रहाrdquo

रजत को मालम ह मझस बात कर रही होrdquo

िह बहद गथसा ह तमसhellip जस दक सारा दोष तमहारा होhellip दक तमन उसकी बीिी को फसा वलयाrdquo

ि इसी तरह जब मौका लगता बात कर लत तारक क ददल ददमाग पर रवत ही छायी रहती

िह ऐस ही पलो क दौरान जीता जब दोनो क बीच कछ सपकथ होता बाकी क पल उन पलो क इतजार

म गजरत

इस बीच रवत को ददल का दौरा पड़ा रा घबराकर तारक को फोन कर डाला रा रजत न

तारक आया तो रजत उस अपनी गाड़ी म सार अथपताल ल आता जाता रहा दोनो म एक दोथती का

नाता तभी बना रा दवनया जहान की बात रजत न उस घर पर ही ठहराया रा तारक तीन ददन बाद

चला गया रा िावपस पर दोनो की फोन पर बात हो जाती रवत अथपताल स िावपस आ गयी री

धीर-धीर िह सामानदय होकर िावपस अपना काम सभालन लगी

रवत का जनदमददन दफर स आनिाला रा रवत न उस कहा रा rdquoरजत अपन आप ही बोल रहा ह

दक तम आ जाओ इस बार मरा जनदमददन मनान बोलो आओगrdquo

तारक परानी बात याद करक घबरा गया रा rdquoनही दफर स उसक भीतर सब घमड़न लगगाhellip

सबको तकलीफ होगीrdquo

यह सच भी रा रजत कभी तो उसक परवत बहत वमिित हो जाता िही अचानक गथसा ईषयाथ

उभर आत और िह अकसर बरखी ददखाता अचानक तारक को ऐसा महसस हआ जस रवत उसस खद

यह सब कह रही हो पल भर को िह भल ही गया दक रवत क ही अतयवि कमथ म िह शावमल हआ ह

और दरअसल उसक यहा आन की एक िजह यह भी ह दक िह रवत को वलख अपन खत िावपस ल

जाना चाहता ह उस डर ह दक कही ि खत रजत क हार न पड़ जाय

तारक रवत क सार काम करन िाली इस मवहला डॉ लोपज स पहल वमला हआ रा इस भीड़

म एक िही जान-पहचान की री तारक का मन हआ उसस पछ दक कया िह रवत की दराज म उसक

कागजात पर नजर मार सकता ह तारक को अदाज रा दक उसक खत िह दफतर की मज की दराज म

रखती री पर िह जानता रा दक ऐसा करना ममदकन रा नही आवखर तारक को कस हक पहचता रा

रवत की दराज खलिान का िह तो एक पररिार क वमि की हवसयत स िहा रा रजत ही कह सकता

रा दखा जाय तो ि लोग खद भी रजत स ही कहग दक रवत का सामान िह ल जाय तब तो रजत की

आख जरर उन पर पड़गी तब शायद उसको बरा लगगा दक रवत क सार तारक का एक अपना ररशता

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रा उन तीनो की आपसी दोथती क बाहरhellip रजत को बतहाशा चोर लगगी अब जबदक िह रवत स

जिाबतलबी भी नही कर सकता रवत अब कोई सफाई नही पश कर पायगी तारक क हक म कछ भी

नही कह सकगी दकसी तकथ स रजत को लाजिाब नही कर पायगी नही िह ऐसा नही कर सकता न

यह रवत क परवत सही होगा न रजत क परवत उस दकसी न दकसी तरह स खत पान ह

राथत म आत हए हिाई जहाज म तारक जब लगातार रवत क सार की अपनी वजनददगी क

गजर पल दहरा रहा रा बार-बार उस धयान आता दक जब स रवत को ददल का दौरा हआ रा िह

उसस कहना चाहता रा दक उसक खत विनि कर द एक बार उसन बात उठायी तो रवत बोली rdquoकयो

तमहार खत मर दफतर की दराज म सफ पड़ हrdquo

शायद िह वबना कह यह भी समझ गयी री दक तारक का इशारा दकस ओर ह तभी बोली

दखो जब तक म वजनददा ह म उनको फाड़ कर न तो फ क सकती ह न जला सकती ह एक बार मर गयी

तो कया फकथ पड़ता ह दक कोई कया करगा उनक सार तमको तो दफकर होनी नही चावहए अब तो ि

मरी अमानत हrdquo यह बातचीत दो एक महीन पहल की ही होगी तारक न सोचा रा बात कभी दफर

उठायगा पर उसस पहल हीhellip

तारक को भी तब यह अदाज नही रा दक रवत क अलािा रजत स भी उसका नाता रा रवत क

जान क बाद िह खद को रजत क बहत करीब महसस कर रहा रा और उस लगा दक उसक खत रजत

को उसस दफर दर धकल सकत र पर िह दकसी तरह भी रजत को खोना नही चाहगाhellip रजत जस स

रवत का ही एक वहथसा राhellipउसन दखा लोगो स वघरा रजत का चहरा बहद वनचड़ा हआ रिहीन और

सखा-सा लग रहा रा रात भर सोया नही होगा इसवलए आखो क नीच कालापन उतर आया रा आख

काफी अदर को धसी हई री तारक को लगा दक िह शायद रजत स बहतर हालत म ह दफर उस रशक

भी हआ रजत अपन गम का खला इजहार कर सकता हhellip तारक को यह सविधा नही री िह दकसी

उजड़ आवशक क रप म इस महदफल इस मौत का शोक करन िालो की महदफल मhellip अपना असली

चहराhellip अपना आवशक का चहराhellip नही ददखा सकता रा अचानक उसकी आख भर आयी अपन खोन

की वशददत क अहसास स

रवत क िाकय उसक कान म सरसरान लग जबस उस ददल का दौरा पड़ा रा िह जीिन की

कषणभगरता या इसान क नाचीज होन क अवथततििादी दशथन को बहत बघारन लग गयी री शायद

अपन जान का अहसास उस कही बहत गहर उदास कर जाता रा पर िही िह उस जान को एक

अिशयभािी अकारय सतय की तरह थिीकार करक उसस समझौता भी करन लग गयी री एक ददन

उसन हडसन नदी क दसर वसर स मनहरन की ओर दखत हए कहा रा rdquoदखो तो इन छोर-छोर वडबबो

म दकतन लाखो लोग रहत ह दकतन छोर ह हम लोग इतनी तग जमीन पर दकतनी बड़ी तादाद म

समा जात ह एकदम हजारो की सखया म सार-सार जड़ कीड़ो की तरह दफर भी अपन आप को

दकतना बड़ा मानत ह राजनीवत धमथ और नवतकता की तवखतया वचपका कर दकतना बड़ा होन का

भलािा दत रहत ह खद कोrdquo

रजत को रवत की इसान को नाचीज करार दन िाली बातो स हमशा बहत वचढ़ छरती री

बोला रा rdquoधमथ नवतकता जीिन क सतय ह इनको तम भलािा दन िाली चीज कस कह सकती हो

इसान इसीवलए तो बाकी जीिो स अलग ह दक िह सोच सकता हrdquo

rdquoऔर सोच क धरातल पर हर चीज को गलत या सही सावबत कर सकता ह नवतकता को गढ़

सकता ह या परा सतयानाश कर सकता हhellip ठीक ह मझ तो उसम कोई नकसान नहीrdquo

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हा नकसान दकसी का ह तो मरा ही रजत न कहा तो तारक झर स बोल पड़ा रा rdquoनकसान

तो तब होता जो म उस भगा क ल जाताrdquo

रजत न सजीदगी स कहा rdquoअब इसका ददल बर गया हhellip तो आधी सपवतत तो लर ही गयी न

तम भगा ल जाओ तो भी फकथ नही पड़गा यह आधािाला वहथसा तब भी यही रहगाrdquo

सचमच रजत का यह विशवास सही रा रवत और उसक ररशत की शरआत क ददनो म भािना

क परिाह म बहता तारक रवत क सार एक नयी वजनददगी क दकिाड़ खोलन की बात सोच पाया रा पर

जलद ही उस अहसास हो गया रा दक रवत कही बहत गहर जड़ी री रजत क सार दक िह कभी उस

ररशत को तोड़गी नही य रजत भी शर क ददनो म भीतर स वहल गया रा यह झरका दक रवत रजत

को छोड़ दकसी और को मन म ला सकती ह उस बहत दर जा फ क आया रा दफर रवत न खोय विशवास

को िापस लौरा ददया रजत अपन आध नकसान क सार धीर-धीर शायद समझौता करना सीख गया रा

तारक को लगा दक िह आध क सार समझौता करना सीख गया रा दफर तारक को लगा दक

िह आध क सार समझौता नही रा रजत क भीतर कही पर का भरोसा भी रा जस दक रवत को वसफथ

एक बदलाि चावहए रा जो तारक रा िनाथ िह परी रजत की ही री कयोदक मौका आन पर रजत

अपना परा हक जतान स चकता नही रा हमशा यही मानता रा दक पहला हक उसी का ह तारक

हमशा बाद म आयगा जस दक पर भर लन पर बचा हआ भोजन दकसी को भी ददया जा सकता हhellip

कछ ऐसा रख

पर रवत बचा हआ भोजन नही रीhellip दकसी तरह स भी उवचछि या अिवशि नही जो उसन

रवत म पाया रा िह पहल वजनददगी म कभी नही वमला रा रवत न उसकी पहचान करायी री

पररपणथता स रवत को जानना ही जस उस सपणथता को छना रा शायद रजत न भी रवत म ऐसा कछ

पाया रा जो आम औरतो स अलग रा रवत शादी क इतन बरस बाद भी उस अपन म उलझाय री और

िह उसस मि नही होना चाहता रा रवत म बाहरी खबसरती क बािजद वयवि क ददमाग को भी

उलझाय रखन का जो गण रा उसस सच म जो भी पास आता और सखचता जाता रवत म भरपर

पयार लन की चाह री तो भरपर दन की कषमता भी इसी स अभी भी उसस जी तो नही भरा रा रजत

का शायद िह ऐसी औरत री जो हमशा वनत निीन होती रहhellip सौदयथ की एक पररभाषा यह भी तो

दी गई ह दक जो वनत नतन होता रह िही सौदयथ ह रवत भी कभी परानी नही पड़ती रोज कछ नया

होता ह उसक पासhellip कोई नया खयालhellip कोई नई सझhellip कोई नई उकसान उलझान िाली बातhellip

शायद इस ददमागी सौदयथ कहना होगाhellip जो कछ भी उसम राhellip बस खीचता रा अपनी ओरhellip मोहता

राhellip शायद कया पर उगली धरना उस पररवध म बाधन की भोडी कोवशश होती

कछ दवदव उठता तो रवत रजत क ही हक म बोलती री रजत क वहतो को सरवकषत कर लन क

बाद ही िह तारक को उसका हक दती तारक को खीझ भी होती दक रजत उसक जीिन म चदक पहल

आ गया रा इसीवलए हर चीज म ही पहला हक उसी का बनता ह पर उसन रवत स अपनी यह

मनवथरवत कभी जावहर नही होन दी री वपछल साल िलनदराईन ड पर ऐसा ही तो हआ रा दरअसल

दोनो को अदाज नही रा दक उस िीक ड पर िलनदराईन ड पड़ता रा तारक को दकसी काम स रवत क

शहर आना रा और दोनो न वमलन का कायथकरम बना डाला रा रजत स रवत की बात हई होगी तो

उसन भनकर कहा रा rdquoतो िह तमहारा िलनदराईन ह जो उस ददन आ रहा हrdquo रवत क कहन पर दक उस

तो याद भी नही रा िह बोला रा rdquoम नही मान सकता दक तारक न य ही आन का बनाया ह इस

िीक ड परrdquo रवत न तारक स सारी बात बतलायी तो उसन सोचा रा िह खद फोन पर रजत स कहगा

दक उस सचमच याद नही रा पर दफर बात बढ़ान न दन क वलए चप रह गया रा और जान का

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परोगराम भी थरवगत कर डाला रा तब उस दो बात तकलीफ दती रही री एक तो यह दक रजत हमशा

उसक सामन परारवमकता ल जायगा दसरी यह कड़िी सचचाई दक रवत कभी भी उसकी जावहरी वजनददगी

का वहथसा नही बन सकती री उसकी कमर म हार डाल कर िह कभी दकसी स यह नही कह सकता

रा रवत मरी हrdquo तब उस बहद रशक होता रजत स कया रजत को सचमच अहसास ह दक रवत तारक

क वलए कया ह दक िह उसकी वजनददगी का कनदर उसकी वजनददगी का अरथ बन चकी ह यह कोई हलका-

फलका ठरकपन नही उसकी वजनददगी का रशा-रशा गर गया ह रवत स शबद म अरथ की तरह समायी ह

रवत उसक अवथतति म इस गरन म िह खद ही घरता रहगा हमशा

अब रवत नही ह तो िह घरन और भी कस रही ह उस कया अब िह रजत स कह पायगा

अचानक उसका मन हआ दक रजत स कह द rdquoतमको मालम ह दक मझ सचमच पता नही रा दक उस

ददन िलनदराईन ड रा िनाथ ऐसी जरथत न करताrdquo दक िह जानता हhellip अचछी तरह समझता ह अपनी

और उसकी ररीररी की पररवधयो को दक रजद शायद कभी जान न पायगा पर उसन हमशा एक दोथत

की तरह रजत का रजत की जररतो का खयाल रखा हhellip वसफथ ऊपर-ऊपर स सामावजक उपचार की

तरह नही भीतर स दकसी ददली ररशत सhellip दफर िह ररशता चाह रवत क जररय स ही बना हो

हो सकता ह रजत यह सब महसस करता हो या न भी करता हो पर उसक चहर पर भी वमिता

का थिागतमय भाि हमशा ददखा ह तारक को वसिा उन कषणो क जब दक सचमच उन दोनो क बीच

lsquoररररोररयलrsquo झगड़ हए तब भी ि शायद इसानी आचार या परथपर सदभाि की सीमाओ को कभी

लाघ नही पर दफर भी तारक का रवत क सार का ररशता ऐसा नही दक रजत क सार वजस बार सक

रवत उसकी हथती का अवभि वहथसा ह िह कोई और कस हो सकता ह रजत रवत नही हो सकता

चाह उसक दकतन ही करीब रहा हो उस दकसी न दकसी तरह स अपन खत पान ही ह लदकन कस

और यही तारक बार-बार उलझ जाता ह अपनी यह परशानी िह दकसी क सार बार नही सकता

रजत स तो कतई नही खत अगर सचमच रजत क हार पड़ गय तो

लदकन रवत न यह भी तो कहा रा दक अगर िह नही रही तो कया फकथ पड़ता ह पर रजत

सचमच खत पढ़ ल तोhellip शायद उसकी पीड़ा पर तब करोध और घणा का कोई विकराल भत हािी हो

सकता हhellip हो सकता ह दक खत पढ़कर रजत रवत को खद स वछरक द लदकन उसस कया तब शायद

रवत और भी तारक क करीब आ जाय और भी उसकी अपनी हो जाय वसफथ उसी की समची एक रात

पहल उस ऐसा ही कछ सपना आया रा रवत की मौत की खबर क बाद यही उसका याद रह जानिाला

सपना रा िह रवत की अतयवि म गया ह और एक अधरा-सा बठकनमा कमरा हhellip कमर म कछ

कागज वबखर पड़ हhellip िह एक कागज उठाता हhellip िह उसी का रवत को वलखा खत हhellip और कई लोग

उसक आसपास ह और िह सोचन लगता ह दक कही इन लोगो न भी तो उनदह नही पढ़ाhellip तभी रजत

का चहरा उसकी ओर बढ़ता ह और िह कागज वछपान की तरकीब सोचन लगता हhellip इसी उधड़बन म

उसकी आख खल गयी री तो वजथम पसीन म नहाया हआ रा

एक रजत ही यहा उसक सबस करीब हhellip और रजत ही उस अजनबी-सा लगन लगा ह अब

तक उसका रवत का सदभथ रा अचानक उस सदभथ स करकर न होन जसा हो रहा ह तारक को अजीब-

सी मानवसक दरी और भयकर अकलापन-सा महसस हआ िह यहा आया ही कयो रा रवत की

नामौजदगी म दकतना बमानी ह उसका यहा होना रजत को भी दकतना दफजल-सा लग रहा होगा

उसका यहा उपवथरत होना वजन लोगो स वघरा ह ि तो सचमच उसक अपन हhellip तारक तो दर स भी

अपना नहीhellip मत स तारक का जो भी नाता रहा होhellip उसक दकसी दसर स तो नही रा उसक कॉलज

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कामो स लौर बचच भी तारक को पहचानत नही र तारक न ही उनकी शकलो और वयिहार स अदाज

लगाया रा और हॉलि म लगी तथिीरो स उनदह पहचान पाया रा

तारक क पास रजत स कहन को कछ नही रा उसका कछ भी कहना रजत को खल सकता रा

उलर तारक को लगन लगा दक रजत शायद सोच रहा हो दक अब कयो जखमो को याद ददलान आ गय

हो कछ भी हो तारक न उस पीड़ा तो पहचायी ही री कया अब उसका कछ भी करना रजत क कि को

कम कर सकता रा उसन वनगाहो स ही अपना दख बयान कर ददया जो शायद रजत न थिीकार भी

वलया राhellip शायद एक औपचाररकता की तरह जस िह दसर बहत स जमा लोगो की शोकावभवयविया

थिीकार रहा राhellip उसस कछ अलग नही शायद तारक का िहा होना ही रजत को खल रहा हो पर

िि की नाजकी की िजह स िह कछ कहना न चाह रहा हो तारक एकदम परशान-सा उठ खड़ा हआ

कछ लोग रजत क गल लग रह र शायद उसस विदा लकर जा रह र तारक न सोचा िह अब

कहगा दक रवत क पास कछ उसक जररी कागजात र अगर रजत उस कागजो िाली जगह पर ल चल

तो िह खद ही दख लगा तारक यि की गवत स रजत की ओर बढ़ा रजत जस दकसी को दख कर भी

दख नही रहा रा उसकी आख दकसी शनदय पर ररकी री तारक को लगा उन लोगो क वघराि म

वजसम उसक अपन अजीज दोथत और ररशतदार र रजत न उस कोई विशष लकष नही दकया तारक क

भीतर अजीब सनापन-सा आ वघरा लगा जस रवत रजत म कही नही री वसफथ भरम-सा हआ रा उस

उसक िहा होन का जस दक उसक रवत क नात स िहा होन म ही कोई भारी असगवत री उस लगा

िहा बठ अजनबी स लोग उस घर रह र उसक िहा होन पर परशनवचनदह लगा रह र पता नही दकतन

ही अजनवबयो स वघर गया रा तारक यहा तक दक रवत की उस तथिीर म भी उस रवत नजर नही आ

रही री िह भी कोई अजनबी छाया री यह दवनया उसकी नही री अगर िह रवत की दवनया रही

भी हो तो वजस रवत को िह जानता रा उस रवत क वलए भी यह दवनया अनवथतति री विसगत री

उसन रजत को बहत सभलत सभलत गल स लगान की औपचाररकता की उस लगा जस िह

दकसी अजनबी को गल लगा रहा रा रवत वजतन उसक अपन पास री उतन और कही नही दकसी क

पास नही दरअसल रवत और कही नही री उसक भीतर रीhellip बस उस रवत को िही अपन भीतर ही

कही सजोय रखना रा भीतर ही खोजना रा भीतर ही तसलली करनी री दकसी और स बार नही

सकता रा रवत को रजत क दोनो कधो को हलक स दबाकर उसन धीर स कहा rdquoरक कयरrdquo और मड़ा

तो वबना पीछ दख बाहर वनकल गया

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पासपोरथ अमरीकन मरो

ओम गपता

पासपोरथ अमरीकन मरो पर रगत सहदथतानी

आज सनाऊ तमको पयार अपनी रामकहानी

छोड़ो भारत मन भयया डॉलर दख-दख ललचायो

चार-पकोड़ी जब भी दख मोह म पानी भर आयो

दीिाली पर दीप जलाउ होली पर खल रग

मौको जब मझको लगतो पीतो म भी भग

कसो होगी सरकार हमारी मोक हरदम सचता

जब भी दश पड़ सकर म कपा करो हनमनदता

पज म अब भी राम-कषण जातो मददर रोज

गपशप यारो स करतो फोकर म वमलतो भोज

योगी-बाबा आए दश स जब दन मझको जञान

आख मद क ना कछ जान करतो उनको सममान

हमबगथर अब भी नही भातो भाती मझ कचोड़ी

जसो जब भी मौका आयो रोपी िसी ओढ़ी

जाऊ दश को जब म अपन खाऊ लडड और इमरती

कहतो खद को सहदथतानी अमरीका मरी अब धरती

कहन को बहत ह भयया रोड़ को समझो काफी

बरा-भला लगा जो तमको माग नतमथतक माफी

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शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

आकाकषा ह

वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

फर च अनिाद कर इस lsquoभोगिाद स पीवड़त पविम की आतमा को अतयवधक शावत दन िालाrsquo कहा

12 47 2015 33

ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

की सीमाओ क पर मनषय कया अनभि कर सकता ह उसकी एक झलक भी ददखा दता ह उसी

औपवनषदीय जञान को महरवष िदवयास न सामानदय जनो क वलए ldquoपविि गीताrdquo म सवकषपत रप म परथतत

दकया ह िदवयास की महानता ही ह जो दक 11 उपवनषदो क जञान को एक पथतक म बाध सक और

मानिता को एक आसान यवि स परमातम जञान का दशथन करा सक ldquoपविि गीताrdquo महाभारत क

भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

ह भगिद गीता वहनदद धमथ क पविितम गरनदरो म स एक ह जो इसानो की चौहददी की सीमा रखा पर

भगिान क शरी मख दवारा इसान स कही गयी सरहदो पर चहरो की थकररनी का लखा-जोखा ह यह

12 47 2015 34

पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

12 47 2015 35

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Sneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStke Anmol haSy 9` Uuml na3k-sgh Yacute jIvn ke rg Uuml kaVy-sgh Yacute ddeR-jubagt Uuml nJ_m v g_j_l sgh Yacute Aaj ka pu=8 Uuml khanI-sgh Yacute jIvn-ini2 Uuml kaVy-sgh Yacute AaTm-gujn Uuml AayaiTmk-daxRink gIt Yacute has-pirhas Uuml haSy kivta0gt Yacute j_J_bato ka islisla Uuml kaVy-sgh Yacute The Galaxy Within UumlA collection of English poemsYacute AnuwUityagt Uuml kaVy-sgh Yacute kaVy-vlti3 Uuml skln 0v spadn Yacute pUrb-piXcm Uuml AapvasI sMbiN2t Aaleq sgh Yacute bO7ar Uuml skln 0v spadn Yacute kaVy hIrk Uuml skln 0v spadn Yacute sjIvnI Uuml SvaS$y sMbN2I leq Yacute ]pin8d dxRn Uuml AyaiTmk Yacute

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Page 13: Year 12, Issue 47Year 12, Issue 47 vsu2avsu2a · राथत § में आ वबछ §ग . ... श्रराम की अन ¡कम्पा स § ह हाल ह में

12 47 2015 11

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12 47 2015 13

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मरली कस अधर धर

महाकवि गलाब खडलिाल

मरली कस अधर धर

सर तो िदािन म छर कस तान भर

जो मरली सबक मन बसती

वजसस री तब सधा बरसती

आज िही नावगन-सी डसती छत वजस डर

वजसको लत ही अब कर म

पीड़ा होती ह अनदतर म

कस दफर उसकी धन पर म जग को मगध कर

इसको तभी धर अधरो पर

जब सग-सग हो राधा का थिर

जब यह मरली सना-सनाकर उसका मान हर

मरली कस अधर धर

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भारत और भारतीयता का अरथ

परो गिरीशवर ममशर कलपवत महातमा गाधी वहनददी विशवविदयालय

आजकल क चरवचत सरोकारो म भारत और भारतीयता क सिाल परछन न और परत यकष दोनो ही रपो

म खासी चचाथ का विषय बन चक ह और कई बड़ बवदधजीिी इस पर बहस म वशरकत कर रह ह दसरी

ओर ऐसो की भी कमी नही ह जो इस बमतलब का मददा मानत ह इसका पररदश य आज जररल और

बदला हआ ह दश क थ िति होन क पहल और थ िति होन क ततकाल बाद और अब लगभग सात

दशक की पररपक िता क करीब पहचत-पहचत इस लकर आज बहतर यह मान कर इस तरह की चचाथ

स तरथ र हो चल ह दक यह तो कोई सारथक परश न ही नही ह कछ इस िवशवक या भमडलीकत हो रह

आज क समय की जररतो क अनसार समझना चाहत ह कछ इस किल थ रानीय दवि स ही दखना

चाहत ह कछ इस सभ यता और सथ कवत क विमशथ स जोड़ कर दखत ह जो भी हो अतरराष रीयता क

सार परयासो क बािजद आज भी राज य या नशन थ रर की अिधारणा वनणाथयक महत ि रखती ह और

वनकर भविष य म सीमाविहीन दश जसी कोई अिधारणा आकार लती नजर नही आती आज का सत य यही ह दक दशो की सीमाए बाधा (का अवधक) और सपकथ (का कम) का काम

कर रही ह दश की सीमाओ की रकषा सबक सामन एक बड़ी चनौती ह दश और राष र किल कोरी

भौगोवलक अिधारणाए नही होती उन इकाइयो की रचना क सार एक समाज या समदाय विशष की

आशा-आकाकषा भी जड़ी होती ह दश की अिधारणा एक थ िप न को समरवपत रहती ह आज क तमाम

राष रो क सार उनक सार जड़ी लबी सघषथ-गारा आसानी स दखी जा सकती ह जो दसर समाजो और

समदायो की सामराज यिादी आकाकषाओ क परवतरोध को दशाथती ह शविसपनद न और आरवरक रप स परबल

दशो की दादावगरी उनकी सतता और शवि का जलिा अभी भी बरकरार ह कहन का तात पयथ यह दक

दश की इकाई अभी भी राजनवतक सामावजक आरवरक सामररक और सास कवतक रप स महत िपणथ

बनी हई ह और उस नकारा नही जा सकता

आज बौवदधक किायद म भारत समत सब कछ करथ रड मान जान का फशन-सा चल पड़ा ह

पर उसस दर करोड़ो (भारतीय) जनो क तन-मन म भारत जीवित ह आम आदमी वजनस दश आकार

लता ह िह भारत की एक सामावजक थ मवत भी रखता ह उसक वलए दश थ रानबोधक ह और भारत

एक भाि भी ह भारतीय होन का मतलब ह भारतभवम म रहन की जीिन-व यिथ रा म शावमल होना

भारत कह या इवडया यह मलतः एक भौगोवलक थ रान और उसकी पररवध को रखादकत करता ह इस

भभाग को जब दवीप आयाथितथ भारतिषथ और सहदथतान क नाम स भी जानत ह वहमालय और

सागर इसकी सीमाए बनात ह शथ यश यामला क दश गान और जनगणमन क राष रीय गान म जीित

भारत माता को वजस रप म थ मरण दकया गया ह िह भौगोवलक अिधारणा ही नही उसकी सीमा म

रहन िाल बासशदो की सामावजक-साथ कवतक अवथमता पर बल दती ह वजसका एक भािात मक रप भी

ह भारत एक सामावजक शरणी भी ह जो समाज दवारा रवचत और थ िीकत ह यह उस सामावजक

आकाकषा का परतीक भी ह जो एक आदशथ वथरवत की ददशा म जान क वलए परररत करती ह आधवनक

यग म एक थ िति जनति क रप म एक राज य की थ रापना हई और सहमवत स एक सविधान बना और

12 47 2015 17

सामावजक आकाकषा को एक मतथ रप वमला हमन उसम आिश यकतानसार बदलाि भी दकया ह इस

इकाई क सदथ य क रप म हमारी एक भारतीय पहचान ह

स मरणीय ह दक एक समदाय या सामावजक इकाई की वभनद नता या अलग सतता थ रावपत करना

वयािहाररक दवि स भी आिश यक ह ऐसा करना समाज को अदर स बाधता ह एकजर करता ह और

अनद य (िसी ही) इकाइयो स फकथ करता ह िधावनक रप स नशन या राष र एक काननी इकाई भी ह

और उसक सदथ य िध नागररक होत ह वजसकी थ िीकवत अनद य राष र भी करत ह और पासपोरथ िीसा

आदद की व यिथ रा स आिागमन को वनयवित करत ह नागररक क रप म िधावनक सामावजक और

साथ कवतक अवधकार क सार कतथव य और दावयत ि म भी भागीदारी होती ह समाज की वनयवत ह दक

जावत भाषा बोली कषि भोजन िथ ि रीवत-ररिाज धमथ आदद की विशषताए आ जाती ह इनक

सार समाज का भािात मक लगाि होता ह और उसक सदथ य थ िय को उसी आधार पर पररभावषत भी

करन लगत ह चदक इन विशषताओ का सचार पारथ पररक सबध और जीिन क विविध व यापारो स

गहरा ररश ता होता ह इसवलए य उस समाज की पाररभावषक विशषताए बन जाती ह

भारत दश हमार समकष एक सभ यता और मल य दविसपनद न सामावजक इकाई क रप म

उपवथरत होता ह इसकी समझ कई रपो म वमलती ह वनकर इवतहास म झाक तो पाएग दक इसक

कई रप ह एक छोर पर सहद उपलवबध को बलपिथक रखन िाल वतलक अरसिद सािरकर और

विवपन चर पाल जस ह दसरी और गोखल रानाड गाधी और रगोर सरीख आध यावतमक विचार को

मानन िाल ह जो सभी परभािो को आत मसात करन को तयार ह य सवहष णता आत मवनयिण आदद क

सार एक तरह की बहलता को ठीक मानत ह तीसरी ओर आधवनक दविसपनद न नौरोजी और पवडत

नहर जस लोग ह जो भारत को एक विकवसत सभ यता तो मानत ह पर यह भी महसस करत ह दक

उसका हरास भी हआ और उसम बहत कछ आधवनक जीिन दवि क विपरीत हआ जो आज उपयोगी

नही ह उनक वहसाब स एक बहलतािादी आधवनक नजररया जो विजञानसम मत हो उपयक त ठहरता ह

आज हर भारतीय की एक बहआयामी पहचान बनती ह िह सहद बगाली मवथलम गजराती

कश मीरी वबहारी बराहमण ओबीसी जन ईसाई आदद िाली एक सार कई तरह की पहचान रखता ह

य वभनद न वभनद न पहचान अक सर एक दसर की विरोधी न होकर परक होती ह साथ कवतक रप स ि

गहरी पठी ह और उनक सार लोगो का गहरा सािथजवनक लगाि भी ह िथ ततः हर भारतीय की

पहचान (आइडरररी) की अलग व यिस रा ह कोई एक यनीफामथ पमाना नही ह जो यह तय कर दक कई

पहचानो म स कौन सबस ऊपर नबर िन पर ह यह एक बड़ा तरल या फलइड मामला ह आज

पजा-पाठ सगीत और थ िाथ थ य लाभ क अनक क र भारत भर म फल हए ह जहा आन जान स सहद

ईसाई वसख और मसलमान दकसी को भी परहज नही होता कई पहचान क सार रहना अथ पष रता तो

पदा करता ह पर शायद दसरो क वलए िथ ततः हर भारतीय कई (उप) सथ कवतयो म जीता ह और य

सब वमलकर उसकी पहचान बनाती ह इस अरथ म हर भारतीय शायद बहसाथ कवतक ह और उसकी

पहचान बहआयामी

दश की छवि दशिावसयो क आत मगौरि का माध यम होती ह आज क भारत का अग होना उस

वबलाग करना हमको आरवरक परगवत की ओर अगरसर एक दश एक आरवरक पािर क सार जड़न का

12 47 2015 18

एहसास दता ह दसरी ओर भरष राचार अवशकषा अव यिथ रा सामावजक करीवतयो और भदभाि क

कारण मन म रकान उदासीनता और असहायता की भािना भी आती ह इस सबक बािजद एक

भारतीय का बोध जरर ह जो पजाबी मराठी या गजराती होन अलग जावत िगथ और समदाय का

सदथ य होन पर भी सबको भारतीय बनाता ह कभी-कभी विविधता म एकता िाल नहर जी का

भारत अपररभाषय या अव याख यय लगता ह भारत को एक विथ तत साथ कवतक इकाई क रप म दखन

पर कछ विचार उभरत ह जो भारतीय होन क अरथ को थ पष र करन म सहायक होत ह इनम परमख ह

धमथ कमथ पनजथनद म को दकसी न दकसी रप म थ िीकारना सामावजक इकाई - पररिार जावत समदाय

क थ तर पर अपन अवथतत ि को महसस करना सक स वििाह और अनद य व यवियो क परवत खास दविकोण

को अपनाना बहलता का थ िीकार और खल कछ-कछ असगरठत दकथ म की आत म या सल फ की

अिधारणा का थ िीकार और दकसी न दकसी रप म दकसी बड़ी जञात-अजञात सतता स जड़ाि की

अवभलाषा और पररिश परकवत और सवि क सार साझदारी तरा परथ पर अनपरकता का भाि

समकालीन विमशथ म राज य और राष र की अिधारणा क अरथ बहत कछ इस पर वनभथर करत ह

दक कौन दकस दविकोण और परयोजन स इन पर गौर कर रहा ह अक सर इनद ह अतीत ितथमान और

भविष य स जोड़ कर दखा जाता ह और लोग अपन चन िचाररक आदशथ स रग कर ही इस पर विचार

करत ह इन शब दो और इनस जड़ अरथ थ रान और समय क सार-सार बदलत रह ह जो थ िाभाविक ह

भारत दश क बार म सोचन की एक बड़ी मवशकल यह ह दक हमारी अपनी पररभाषा क पमान हमार

अपन न होकर दकसी और क ददए हए ह ि हमार बौवदधक मानस म इतन गहर पठ चक ह दक अब हम

अपन पमान क बार म भरोसा ही नही कर पा रह ह और खद को पररभावषत करन का अवधकार ही

खोत जा रह ह आरवरक और तकनीकी परगवत क पसराि की दवनया म आज हमारा आतम-सशय इतना

गहराता जा रहा ह दक भारत और भारतीयता की बात करना परानी और ददकयानस और इसवलए

अपरासवगक मानी जान लगी ह अगर इसकी बात करनी भी ह तो उसकी सनद कही और स जरानी

होगी आज अपनी पहचान क वलए हम पविमी दशो म विदवानो क दवारा परमाण और गिाही चाहत ह

आज भारत की साथ कवतक विविधता को सपनद नता और समवदध क ोत क रप म समझन समझान की

जररत ह वजसका उपयोग समाज क विकास म दकया जाय इसक वलए भारत को भारत क नजररए स

दखना होगा वबना इस भय क दक भारतीय होना दकसी कषमा याचना की अपकषा करता ह थ िदशी और

सराज जस विचार अभी भी परासवगक ह समरथ और थ िािलबी होन क वलए आत म थ िीकार और सतत

पररष कार आिश यक ह

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भकप का सदश

डॉ एमएल गपता ldquoआददतय

धरती हर ददन डोल रही ह कपन की बोली बोल रही ह

विनाश कर आकरोश स बदल कय भगोल रही ह

कय धरती न भकरी तानी कय वहमालय म आिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

जो ससाधन र पोषण क उनका शोषण कर डाला

ओजोन का जो किच रा उसका भी भदन कर डाला

बरहमी स कार हमन िसधरा क िन-कश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

सागर क तीरो को छीला पठार और पिथत को लीला

नददया बनी नाल और नाली नही ददखता जल वनमथल-नीला

चतािनी द रहा ह मौसम बदला भमडल का पररिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

विजञान की सीढ़ी चढ़ विनाश का सामान बनाया

परमाण सयि द रह यातना विकीरण का खतरा मडराया

रवडएशन स आतदकत ह दवनया क सब दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

12 47 2015 20

कोई अण कोई परमाण कोई हाईडरोजन बम ल ऐठा ह

वबछी हई बारद धरा म मानि बमो क ढर पर बठा ह

हआ परमाण यदध तो वमर जाएग दकतन दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

भकषक बनकर मानि इक दज पर चोर कर रहा

परीकषण की खावतर दकतन भीषण बम विथफोर कर रहा

परकवत का सतलन वबगड़ा तो हम बन जाएग अिशष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

कदरत कहर बरपा सकती ह कभी भी आफत आ सकती ह

धरा की जरा सी भी हरकत दकतना कोहराम मचा सकती ह

धरा न जरा करिर बदली तो कछ भी न रहगा शष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

पयाथिरण क आघात पर अब तो रोक लगानी होगी

सागर पिथत धरती क सग बद करनी मनमानी होगी

धरती को जो मा मानोग सब वमर जाएग कलश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

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ि दोनो

डॉ सषम बदी

छत स फशथ तक क लब शीशो स जड़ी उस बड़ी-सी बठक म खब सारी ददन की रौशनी भरी हई

री फशथ पर वबछी सफद चादरो पर सफद िसतर पहन ढर सार लोग उस रौशनी का ही वहथसा लग रह

र कमर म घसत ही तारक को लगा जस उस शवतता म घल मौत क सदथपन और जड़ता न अचानक

उसक भीतर को जकड़ वलया ह बीचोबीच फलो की माला चढ़ी एक बड़ी-सी रवत की तथिीर री

वजसका धप दीप और गीता क शलोको स अवभषक दकया जा रहा रा रवत अब तथिीर भर री तारक

की थतबध पवनयायी आख वनथसहाय-सी रजत को खोजन लगी

रजत सारा िि लोगो स वघरा ही रहा रा उसकी मा उसक बचच और दसर ररशतदार कोई न

कोई उसक आसपास रा ही उन दोनो की आख एक दसर स दो एक बार वमली पर रजत अपन स

बाहर नही आ पाया रा तारक न दकसी तरह अपनी शोकभािना वयि कर दी री न भी वयि करता

तो कया रजत को तो खद भी अहसास होगा उसकी अतभाथिना का एक िही तो ह इस भीड़ म जो

जानता ह दक िह कयो यहा ह बाकी तो तारक दकसी स पररवचत ही नही वसिाय कछक रवत क

कलीगज क एक दो कलीगज स ही उसकी बात हई रवत क बार म ि उस पररिार का वमि मानकर

बात कर रह र य पररिार का वमि तो िह रा ही पर इसस अलग या ऊपर भी कछ रा यह शायद

रजत क अलािा और कोई नही जानता रा जबदक रजत भी परा कहा जानता ह खास तौर स िह सब

कछ जो तारक महसस करता रहा ह या जो कछ तारक और रवत क बीच म रहा या अभी भी वजसका

बहत कछ बचा रा

य तारक न बहत बार सोचा दक अब रवत नही रही तो उसक यहा जान का कोई फायदा नही

उसकी तकलीफ बढ़गी ही दफर लगा दक नही उस रजत स वमलन जाना होगा रजत भी तो उसका

दोथत ह य रवत उन दोनो क बीच न होती तो ि शायद बहत गहर दोथत हो सकत र दफर भी िह खद

को कई तरह स रजत क करीब महसस करता रा और रजत भी बहत मामलो म उसी स सलाह करक

चलता रा उस पर भरोसा करता रा जो दक उसक मन क दोथती क भाि को ही जताती री चदक

तारक की विशषता ददल क रोगो म री िह रवत क हारथअरक क बाद स उसस अकसर रवत क बार म

सलाह लता यहा तक दक रवत स भी कोई वशकायत होती तो तारक स ही कहता दखो न इसका

कोलथराल इतना हाई चल रहा ह और मडम चीज मीर सभी कछ खाती ह अभी रथतरा ल चलो परा

का परा थरक गरक जायगी कस कर यह तो खद को नकसान पहचान स बाज नही आतीrdquo और तारक

तब ररका दता कसी डाकरर हो तम रवत मरीजो को उपदश दती रहती हो और खदhellipदफर उसन

खद ही एक विशषण गढ़ा रा रवत क वलए lsquoनानकपलायरrsquo यानी दक जो कछ भी कहा जायगा उसका

विरोध ही करगी रवत और दकसी िजह स नही बवलक विरोध करन क वलए विरोध

तब रवत और भी तिर चढ़ाकर बोलती rdquoरजत तो पहल ही मर पीछ पड़ा रहता ह अब तम

भी इसी स वमल गय हो िाह जी िाह दोथत दकसक हो तम मर या रजत कrdquo

तारक तब चप रह जाता रा रजत भी कछ नही कहता एक वपरय अवपरय सतय

शायद रवत भी इसीवलए कहती री दक तारक तब लाजिाब हो जायगा कयोदक रवत जानती ह दक जो

िह तारक क वलए ह िह और कोई नही हो सकता और रजत को भी इसका अदाज ह इसी स रजत न

शर म चाह दकतना विरोह दकया हो दकतना लड़ाई झगड़ाhellip दफर धीर-धीर मान वलया रा इस ररशत

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को रवत क वलए ही अगीकार कर वलया रा तारक को भी रवत न ही उस बतलाया रा जब रजत न

उस बाहो म भरकर कहा रा rdquoइतना पयार करता ह तमह दक यह भी थिीकारन क वलए राजी हrdquo

एक हक-सी उठी री तारक क भीतरhellip वजस इतना पयार वमला होhellip इतनाhellip िह इस तरह स

उन दोनो की वजनददगी को ही सना करक रखसत हो ली तारक क मन म गथसा भी आयाhellip शायद

अपनी सहत का धयान रखती तो कछ और जी जाती उन दोनो स ही तो चार-पाच साल छोरी री िह

जी भी सकती री पर अबhellip और तारक न लबी सास भरी

रवत की एक कलीग बता रही री rdquoपरसो तो काम पर आयी हई री रवत म सोच भी नही

सकती री दक इतना भारी थरोक हो सकता ह दक एक ही लपर म ल जायhellip मझ तो विशवास ही नही

होताrdquo तारक को भी विशवास नही होता रा उसी ददन सबह रवत न उसस फोन पर बात की री और

उसस मजाक दकया रा rdquoमर जनदमददन पर आओगrdquo

दरअसल सारा झगड़ा कछ साल पहल रवत क जनदमददन को लकर ही शर हआ रा िनाथ शायद

रजत को उन दोनो क बीच बढ़त ररशत की तवनक खबर न लगती रवत न उस बतलाया रा दक उसक

जनदमददन पर िह और रजत आमतौर पर शाम को बाहर दकसी बदढ़या स फर च रथतरा म खाना खान

जात ह तब तारक न कहा रा rdquoठीक ह तो लच तम मर सार लनाrdquo

रवत मान गयी री उसन उसी ददन रवत क शहर पहचन क वलए फलाईर भी बक करिा ली

री पर जब ठीक जनदमददन आनिाला रा तो रवत न उस बतलाया रा दक रजत को ठीक नही लग रहा

मरा तमहार सार लच पर जाना िह पछ रहा रा दक इतना इमपॉरर कस हो गया यह आदमी दक

तमको उस जनदमददन पर जरर वमलना ह

rdquoतमन कया कहाrdquo तारक वजजञास हो उठा रा

rdquoयही दक तमको दकसी काम स शहर म होना रा इसवलए लच पर वमलन की बात की इस पर

उसन कहा दक अगल ददन वमल लो जनदमददन िाला ददन तो उसी क वलए हhellip कोई और कयोrdquo

दफर िह बोली rdquoइसी पर उस शक हो रहा ह दक यह कोई आम दोथत नहीhelliprdquo

तारक न जोड़ ददया रा rdquoपरमी हrdquo

rdquoहा यही शक हो रहा ह उसrdquo

rdquoतो ह या नहीhelliprdquo

rdquoशायद होhellip यही मसीबत हrdquo

तारक न कहा रा rdquoअब तो ररकर ली हई ह म तो आऊगा ही तम वमल सको तो वमलना िनाथ

न वमलना चाह पाच वमनर क वलए या कॉफी क वलए भी आ जाओगी तो मर वलए िही काफी होगा

तमहार जनदमददन पर तमह दख भर लrdquo

rdquoतम भी कमाल क रोमाररक होhellip पर सच कह तो म भी तमस वमलना चाहती ह उस ददनhellip

कछ न कछ तो जगाड़ना पड़गाrdquo

rdquoमर वलए तमहारा जनदमददन मरी वजनददगी का बहत अहम ददन हhellip समझीrdquo

एयरपोरथ पहच कर तारक न फोन दकया रा रवत बोली री rdquoरजत कह रहा ह तम हम वडनर

पर जॉयन कर लोrdquo

तारक बहत हरान हआ रा पर रवत न फोन रजत को पकड़ा ददया रा तारक एकदम सकर म

पड़ गया रा उसन खद को बचान की कोवशश की rdquoसॉरी म तो यहा आया रा तो सोचा रवत स वमल

लगा पर इस तरह आप लोगो क परोगराम मhelliprdquo

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रजत न जोर दकर कहा रा rdquoनही भाई बहत तारीफ सन रहा ह बीिी स जरा हम भी तो

वमल आपस आप चाह तो घर पर आ जाईए या दफर सीध रथतरा पर वमलगrdquo

rdquoपर आप लोगो का तो वडनर पर सार जान का कायथकरम रा नrdquo

rdquoआप लच पर फरी ह तो लच पर वमल लत ह य मझ तो वडनर ही पसद ह जसा आप कहrdquo

रजत वबलकल दोथताना ढग स बात कर रहा रा एक पल को उसकी रोन म कछ तनाि तारक

को महसस हआ रा पर अगल ही पल आिाज दफर सहज हो गयी री तारक मान गया पर रकसी लकर

पहल होरल म सामान छोड़ा और इस दौरान खद को मानवसक तौर पर तयार भी करता रहा दक कस

पश आना ह अपन रकीब स दखा जाय तो ररशता रकीब का ही रा बाकी ि दकतन भी सभय या

समझदार इसानो की तरह एक-दसर स बताथि कर आवखर ि तीनो सममावनत पश क र तारक हारथ

थपशवलथर रा तो रजत अगरजी सावहतय का परोफसर और रवत सायकायररथर इसानी मन की

कमजोररयो को समझना मनोरोगो का इलाज करना रवत की विशषता तो री ही पर इसानी आकषथण

एक दसर क परवत सखचाि या ऐस ररशतो को समझन की सथकवत तो कही तीनो म ही री

रजत इस बात को खब समझता रा दक दकसी भी औरत क वलए दकसी दसर परष क परवत

सखचाि हो जाना बहत सहज रा िही एक पवत और पतनी स परम करन िाल क रप म िह रवत क इस

वयिहार स ईषयाल भी हो उठता रा एक सभय इसान क नात िह ईषया को दबा कर तारक क परवत भी

वमिित वयिहार करना चाहता रा पर िही उस रवत क वयिहार स कि पहचता रा दक िह उसक

अलािा भी दकसी दसर परष को चाह सकती ह वजसस उसक मन म आकरोश और वितषणा का भाि

उठता कभी िह अपन को उदार बना कर यह कहना चाहता दक रवत अगर दकसी दसर को चाहती ह

तो बशक उसको भी कयो न पाय सार ही जब करोध होता तो एक तरह स जस िह रवत को सजा दन क

वलए कह डालता rdquoतम जाओ दोनो सार रहोrdquo पर जो पीड़ा िह उसम सह रहा होता िह रवत और

तारक दोनो क वलए ही असहय होती

रवत न कहा रा rdquoकया तारक और म दोथत नही हो सकत और इतन दोथत हhellip एक िह वयवि

वजसस बात करक मझ खशी वमलती ह िह दोथत कयो नही बन सकता वसफथ इसवलए दक उसक मन म

तीखी भािना ह मर वलएhellip या शरीरो का आकषथण भी हhelliprdquo

रजत तब तकथ स सारी बात को समझन समझान की कोवशश करता हा करत-करत कह दता

rdquoऔरत आदमी म दोथती हो ही नही सकती कयोदक जहा शरीरो का आकषथण हो िहा दोथती जसा

वनषकपर भाि कस पनप सकता हrdquo तब रवत दोथती का एक और पकष पश करती rdquoतमहार कहन का

मतलब तो िही ददकयानसी बात हई दक शरीर पाप का मल ह जबदक तम खद ही यह पहल कह चक

हो दक शरीरो का मसला हल हो जाय तो औरत मदथ बहत खबसरत दोथत हो सकत हhellip शरीर को

अहवमयत दी कयो जाय शरीर वमल जान स उनका दोथती म बाधा बनन का मसला खतम हो जाता हrdquo

रजत रवत की बात मान भी जाता रा पर रवत दफर तारक को यह भी बताती री rdquoिन कार

रक वहम फॉर गरारड कल को िह अपना कोई नया तकथ द दगाrdquo

शायद इसी स तारक भी अचानक वहममत हारन लगा रा कस सामना करगा िह रजत का य

िह रजत स एकाध बार पहल वमल चका रा पर तब उसको यह अदाजा नही रा दक रवत और उसक

बीच कछ रा जबदक तारक तब भी कछ आतमसजग-सा हो रहा रा पर कछ वमनरो की मलाकात को

सभाल लना कोई बड़ी बात नही री और य भी रजत उस भला आदमी लगा रा यह भी सोचा रा दक

अगर रवत उन दोनो क बीच न होती तो यह वयवि उसका दोथत हो सकता रा य रवत क होन क

बािजद अतत ि दोथत बन ही पर इस दोथती का तानाबाना िसा न रा जस खावलस दोथती का होता

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ह इसम रवत क रश बन हए र जो एक और ही रगत वलए र और िह रगत तारक को बहत पयारी री

उस दोथती स जयादा

तारक न होरल पहच कर फोन कर ददया रा दक वडनर पर वमलना ही ठीक रहगा और िह

अपना काम इस दौरान कर लगा रजत आसानी स यह बात मान गया और कहा दक िह सडरकस पर

पहल घर पर आ जाय उसक बाद रथतरा खाना खान चल जायग

शाम को जब िह चलन लगा तो फोन बजा रा दसरी ओर रवत री हलो कहत ही रवत न

कहा rdquoसनो तम मत आना मर घर म बहत रशन चल रही हrdquo इसस पहल दक िह कछ कहता रवत न

फोन वडसकनकर कर ददया

रात को कोई फलाईर नही जाती री िनाथ िह उसी िि शहर छोड़ क चला जाता

आध घर बाद ही घरी दफर बजी रवत पछ रही री दक आ रह हो तारक बौखला गया दक आवखर हो

कया रहा ह कया यह रवत क मन की उलझन ह या दक रजत कीhellip या दोनो कीhellip या रवत वसफथ रजत

की उलझन को वयि कर रही री बोली री rdquoजलदी आ जाओ हम लोग इतजार कर रह हrdquo

िह पहचा तो रवत न अकल ही उसका थिागत दकया रा िह जानता रा दक दोनो बचच कालजो

म ह पर रजत काफी दर तक बठक म नही आया तो तारक हरान हआ रवत बोली rdquoिह नहा रहा हrdquo

दफर मथकरा कर जोड़ा rdquoशायद हम दोनो को कछ िि दना चाहता हrdquo

तारक तब कछ निथस हआ रा उस आग बढ़कर रवत को चमन का हौसला नही हआ उस लगा

दक रवत भी सहज नही री जस दक आम तौर पर होती ह पर उसन कछ कहा नही िह खद भी तो

सहज नही हो पा रहा रा जस लड़की क बाप क घर म शादी का परथताि लकर जा रहा हो कछ कछ

इसी तरह का महसस हो रहा रा िही डर कर परचा करना रा दक इमतहान म फल न हो जाय

रजत न कमर म आत ही बड़ तपाक स हलो दकया कछ औपचाररक-सी बात की दफर उसस

सडरक पछा और दकचन म बफथ िगरह का इतजाम करन क वलए दफर स गायब हो गया तारक को लगा

दक सहज होन की बहत कोवशश क बािजद रजत बहत असहज ह

ववहथकी का घर लत हए तारक न ही रजत स उसक काम क बार म पछना शर दकया बात

कही जा नही रही री तभी रवत एक नई दकताब की चचाथ करन लगी वजसका ररवय सबह क अखबार म

छपा रा तारक न हिाई जहाज म ही उसक बार म पढ़ा रा दफर तो बातचीत खब गरमागरम होन

लगी रजत न दवकषण एवशयाई अगरजी लखको क बार म अपन विचार झाड़न शर कर ददय यहा तक

दक रवत न अचानक घड़ी दखी तो पता चला दक रथतरा की ररजिशन का िि हो चका रा रजत न

रथतरा को फोन दकया दक कछ वमनर लर पहचग और तारक को बोला दक जलदी स सडरक खतम कर ल

या गाड़ी म ही ल चल दोनो न दो तीन सडरक चढ़ा रख र मौज-सी भी आयी हई री रजत ही कार

चला रहा रा और तारक पीछ िाली सीर पर बठा रा अचानक रजत कछ नश और कछ अपनी धन म

बोला rdquoतो तम मरी बीिी स पयार करत होrdquo

तारक भौचक-सा हो गया य ही बठा रहा जस रजत की बात को सना न हो या िह गभीरता

स लन लायक न हो रजत न अपनी बात को सिाल बनाकर दबारा पश दकया rdquoकयो तारक मरी बीिी

स पयार करत हो या नहीrdquo

तारक न कहा rdquoहाrdquo और चप कर गया उस लग रहा रा िह जो भी जिाब दगा खतर स खाली नही

पर यह जिाब सच रा तो सच बोल कर ही मार खायी जाय उस दकसी लड़की क वपता स हार मागन

नही जाना पड़ा रा आज यह भी सही

rdquoतम भी पयार करत हो िह भी करती ह तो तम दोनो सार कयो नही रहतrdquo

12 47 2015 25

तारक बोल पड़ा रा rdquoयह इतना आसान नहीrdquo

रजत इस पर आकरमण करता-सा बोला rdquoकमाल ह पयार भी करत ह और वजममिारी भी नही

वनभाना चाहतrdquo तारक को महसस हो रहा रा दक रजत कह तो कछ रहा ह और पहचाना कछ और

चाहता ह दफर भी िह जिाब तो उसी बात का द सकता रा जो दक पछी जा रही री यह कह कर

उस नाराज भी नही करना चाहता रा दक रजत वसफथ अपन भीतर क आकरोश आतक और आग को

आिाज द रहा रा बोला rdquoयह बात नही म आज भी रवत क सार वजनददगी शर करन को तयार ह

जहा तक म जानता ह रवत अपन शहर को छोड़ कर और कही नही जायगी न िह तमको छोड़न को

तयार होगी जहा तक म रवत को जानता हhelliprdquo

रवत चपचाप अपन पर अकश लगाय दोनो की बात सन रही री न तो िह रजत क पकष म

कछ बोलना चाहती री न तारक क पकष म ही बोल सकती री दफर भी दोनो क बीच तारतमय वबठाय

रखन की वजममिारी भी उसी की री और िह समझ नही पा रही री दक दकस तरह इस बातचीत को

सीमाय लाघन स बचाया जाय ऊपर स उस डर लग रहा रा दक आिश म रजत कही रककर न मार द

रथतरा बहत दर रा भी नही बात पर चरम पर चल रही री दक रथतरा आ गया रवत न रोका rdquoरजत

पारककग ढढ़ो रथतरा आ गयाrdquo रथतरा क सार ही पारककग गराज म गाड़ी छोड़ कर तीनो अदर चल गय

िरर न उनको मज पर वबठाया और सडरक क वलए पछा तरा मनदय लाकर ददय तीनो क तीनो उस मज

पर इस तरह खामोश और भर बठ र दक मनदय म वसर डबोना एक राहत बन गया रा तीनो न अपन-

अपन आडथर ददय पर बात कछ बन नही रही री हर कोई कछ भी कहन म जयादा ही सतकथ हो रहा रा

अचानक रवत बोली rdquoरजत तमको इतनी जयादा तकलीफ री तो तमन मना कयो नही कर

ददया म तो तारक को कह चकी री दक आज सार खाना नही होगा तमही न जोर ददया दक जरर

बलाओ अब इस तरह कयो बताथि कर रह होrdquo

रजत और भड़क गया rdquoम तो वसफथ यह कह रहा ह दक तम लोग एक-दसर को पयार करत हो

तो म कया कर रहा ह यहा तम जाओ एक दसर क सार रहोrdquo

दोनो की आिाज ऊची हो रही री और दसरी मजो पर बठ लोगो की वनगाह इस ओर उठ आयी री

तारक न धीर स सझाया रा rdquoमर खयाल स हम य बात यहा नही करनी चावहएrdquo सहसा रवत

न होश म आत कहा rdquoहा इतन बदढ़या रथतरा म खाना खान आय ह कछ खान पर भी तो धयान दhellip

दफर आज मरा जनदमददन ह आई िार र हि ए गड मीलrdquo

दफर भी खान पर तीनो म स दकसी का धयान नही लग सका तीनो औपचाररक-सी बात म लग

गय र तारक न ही शहर क निीनतम रथतराओ क बार म ताजा पढ़ी समीकषा का वजकर छड़ ददया रा

रजत न कार स जब उस होरल छोड़ा तो तारक न उपर कमर म आकर सडरक लन क वलए कहा

पर जसा दक िह अपकषा कर रहा रा रजत न दर होन का बहाना बना छटटी माग ली री रवत तब भी

कछ नही बोली री शायद उस डर रा दक उसका कछ भी कहना रजत क वलए घाि पर नमक वछड़कन

जसा होगा या उसकी कोई भी बात का गलत मतलब वनकाल कर रजत भड़क सकता रा य दर हो भी

चकी री

पर तारक यह भी जानता रा दक रवत एक नबर की वजददी री जो उस चावहए रा चावहए ही

रा उस रोका नही जा सकता रा िह ऊपर स मान जायगी पर भीतर स कभी माफ नही करगी

शायद इसी स रजत भी वबगड़ी हई लाड़ली बरी की तरह रवत की हर चाह या माग को विरोध करक

भी अतत मान जाता रा

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लौर आन क दो चार ददन बाद ही उसक फोन पर रवत न सदश छोड़ा रा rdquoतमहारा आना ठीक

नही हआ सॉरी तमह बलाकर भी वमल नही पायी अब लगता ह कभी नही वमलगी लर अस थरॉप

ददस वहयर पलीज मझस सपकथ मत करनाrdquo

तारक बहत ददन परशान घमता रहा रा पर रवत को फोन भी नही दकया उसन मना जो कर

डाला रा उस फोन करत हए तारक को लगता दक िह खद को उस पर लाद रहा ह और यह वथरवत

उस कभी गिारा नही री हर ददन दकसी जिालामखी-सा लाि स लदा हआ गजरता अदर ही अदर

सब तप रहा रा

महीन भर बाद रवत न फोन दकया रा rdquoगथसा हो न मझस तमस माफी भी नही माग सकीrdquo

उसकी तो कोई जररत नहीrdquo

दफर भी सोचा रा तमस कभी बात नही करगी इसी स तमको सपकथ करन स मना दकया

रा रजत को भी यही मालम ह दक तमस ररशता तोड़ ददया ह पर अब मझी स बात दकय वबना रहा

नही जा रहाrdquo

रजत को मालम ह मझस बात कर रही होrdquo

िह बहद गथसा ह तमसhellip जस दक सारा दोष तमहारा होhellip दक तमन उसकी बीिी को फसा वलयाrdquo

ि इसी तरह जब मौका लगता बात कर लत तारक क ददल ददमाग पर रवत ही छायी रहती

िह ऐस ही पलो क दौरान जीता जब दोनो क बीच कछ सपकथ होता बाकी क पल उन पलो क इतजार

म गजरत

इस बीच रवत को ददल का दौरा पड़ा रा घबराकर तारक को फोन कर डाला रा रजत न

तारक आया तो रजत उस अपनी गाड़ी म सार अथपताल ल आता जाता रहा दोनो म एक दोथती का

नाता तभी बना रा दवनया जहान की बात रजत न उस घर पर ही ठहराया रा तारक तीन ददन बाद

चला गया रा िावपस पर दोनो की फोन पर बात हो जाती रवत अथपताल स िावपस आ गयी री

धीर-धीर िह सामानदय होकर िावपस अपना काम सभालन लगी

रवत का जनदमददन दफर स आनिाला रा रवत न उस कहा रा rdquoरजत अपन आप ही बोल रहा ह

दक तम आ जाओ इस बार मरा जनदमददन मनान बोलो आओगrdquo

तारक परानी बात याद करक घबरा गया रा rdquoनही दफर स उसक भीतर सब घमड़न लगगाhellip

सबको तकलीफ होगीrdquo

यह सच भी रा रजत कभी तो उसक परवत बहत वमिित हो जाता िही अचानक गथसा ईषयाथ

उभर आत और िह अकसर बरखी ददखाता अचानक तारक को ऐसा महसस हआ जस रवत उसस खद

यह सब कह रही हो पल भर को िह भल ही गया दक रवत क ही अतयवि कमथ म िह शावमल हआ ह

और दरअसल उसक यहा आन की एक िजह यह भी ह दक िह रवत को वलख अपन खत िावपस ल

जाना चाहता ह उस डर ह दक कही ि खत रजत क हार न पड़ जाय

तारक रवत क सार काम करन िाली इस मवहला डॉ लोपज स पहल वमला हआ रा इस भीड़

म एक िही जान-पहचान की री तारक का मन हआ उसस पछ दक कया िह रवत की दराज म उसक

कागजात पर नजर मार सकता ह तारक को अदाज रा दक उसक खत िह दफतर की मज की दराज म

रखती री पर िह जानता रा दक ऐसा करना ममदकन रा नही आवखर तारक को कस हक पहचता रा

रवत की दराज खलिान का िह तो एक पररिार क वमि की हवसयत स िहा रा रजत ही कह सकता

रा दखा जाय तो ि लोग खद भी रजत स ही कहग दक रवत का सामान िह ल जाय तब तो रजत की

आख जरर उन पर पड़गी तब शायद उसको बरा लगगा दक रवत क सार तारक का एक अपना ररशता

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रा उन तीनो की आपसी दोथती क बाहरhellip रजत को बतहाशा चोर लगगी अब जबदक िह रवत स

जिाबतलबी भी नही कर सकता रवत अब कोई सफाई नही पश कर पायगी तारक क हक म कछ भी

नही कह सकगी दकसी तकथ स रजत को लाजिाब नही कर पायगी नही िह ऐसा नही कर सकता न

यह रवत क परवत सही होगा न रजत क परवत उस दकसी न दकसी तरह स खत पान ह

राथत म आत हए हिाई जहाज म तारक जब लगातार रवत क सार की अपनी वजनददगी क

गजर पल दहरा रहा रा बार-बार उस धयान आता दक जब स रवत को ददल का दौरा हआ रा िह

उसस कहना चाहता रा दक उसक खत विनि कर द एक बार उसन बात उठायी तो रवत बोली rdquoकयो

तमहार खत मर दफतर की दराज म सफ पड़ हrdquo

शायद िह वबना कह यह भी समझ गयी री दक तारक का इशारा दकस ओर ह तभी बोली

दखो जब तक म वजनददा ह म उनको फाड़ कर न तो फ क सकती ह न जला सकती ह एक बार मर गयी

तो कया फकथ पड़ता ह दक कोई कया करगा उनक सार तमको तो दफकर होनी नही चावहए अब तो ि

मरी अमानत हrdquo यह बातचीत दो एक महीन पहल की ही होगी तारक न सोचा रा बात कभी दफर

उठायगा पर उसस पहल हीhellip

तारक को भी तब यह अदाज नही रा दक रवत क अलािा रजत स भी उसका नाता रा रवत क

जान क बाद िह खद को रजत क बहत करीब महसस कर रहा रा और उस लगा दक उसक खत रजत

को उसस दफर दर धकल सकत र पर िह दकसी तरह भी रजत को खोना नही चाहगाhellip रजत जस स

रवत का ही एक वहथसा राhellipउसन दखा लोगो स वघरा रजत का चहरा बहद वनचड़ा हआ रिहीन और

सखा-सा लग रहा रा रात भर सोया नही होगा इसवलए आखो क नीच कालापन उतर आया रा आख

काफी अदर को धसी हई री तारक को लगा दक िह शायद रजत स बहतर हालत म ह दफर उस रशक

भी हआ रजत अपन गम का खला इजहार कर सकता हhellip तारक को यह सविधा नही री िह दकसी

उजड़ आवशक क रप म इस महदफल इस मौत का शोक करन िालो की महदफल मhellip अपना असली

चहराhellip अपना आवशक का चहराhellip नही ददखा सकता रा अचानक उसकी आख भर आयी अपन खोन

की वशददत क अहसास स

रवत क िाकय उसक कान म सरसरान लग जबस उस ददल का दौरा पड़ा रा िह जीिन की

कषणभगरता या इसान क नाचीज होन क अवथततििादी दशथन को बहत बघारन लग गयी री शायद

अपन जान का अहसास उस कही बहत गहर उदास कर जाता रा पर िही िह उस जान को एक

अिशयभािी अकारय सतय की तरह थिीकार करक उसस समझौता भी करन लग गयी री एक ददन

उसन हडसन नदी क दसर वसर स मनहरन की ओर दखत हए कहा रा rdquoदखो तो इन छोर-छोर वडबबो

म दकतन लाखो लोग रहत ह दकतन छोर ह हम लोग इतनी तग जमीन पर दकतनी बड़ी तादाद म

समा जात ह एकदम हजारो की सखया म सार-सार जड़ कीड़ो की तरह दफर भी अपन आप को

दकतना बड़ा मानत ह राजनीवत धमथ और नवतकता की तवखतया वचपका कर दकतना बड़ा होन का

भलािा दत रहत ह खद कोrdquo

रजत को रवत की इसान को नाचीज करार दन िाली बातो स हमशा बहत वचढ़ छरती री

बोला रा rdquoधमथ नवतकता जीिन क सतय ह इनको तम भलािा दन िाली चीज कस कह सकती हो

इसान इसीवलए तो बाकी जीिो स अलग ह दक िह सोच सकता हrdquo

rdquoऔर सोच क धरातल पर हर चीज को गलत या सही सावबत कर सकता ह नवतकता को गढ़

सकता ह या परा सतयानाश कर सकता हhellip ठीक ह मझ तो उसम कोई नकसान नहीrdquo

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हा नकसान दकसी का ह तो मरा ही रजत न कहा तो तारक झर स बोल पड़ा रा rdquoनकसान

तो तब होता जो म उस भगा क ल जाताrdquo

रजत न सजीदगी स कहा rdquoअब इसका ददल बर गया हhellip तो आधी सपवतत तो लर ही गयी न

तम भगा ल जाओ तो भी फकथ नही पड़गा यह आधािाला वहथसा तब भी यही रहगाrdquo

सचमच रजत का यह विशवास सही रा रवत और उसक ररशत की शरआत क ददनो म भािना

क परिाह म बहता तारक रवत क सार एक नयी वजनददगी क दकिाड़ खोलन की बात सोच पाया रा पर

जलद ही उस अहसास हो गया रा दक रवत कही बहत गहर जड़ी री रजत क सार दक िह कभी उस

ररशत को तोड़गी नही य रजत भी शर क ददनो म भीतर स वहल गया रा यह झरका दक रवत रजत

को छोड़ दकसी और को मन म ला सकती ह उस बहत दर जा फ क आया रा दफर रवत न खोय विशवास

को िापस लौरा ददया रजत अपन आध नकसान क सार धीर-धीर शायद समझौता करना सीख गया रा

तारक को लगा दक िह आध क सार समझौता करना सीख गया रा दफर तारक को लगा दक

िह आध क सार समझौता नही रा रजत क भीतर कही पर का भरोसा भी रा जस दक रवत को वसफथ

एक बदलाि चावहए रा जो तारक रा िनाथ िह परी रजत की ही री कयोदक मौका आन पर रजत

अपना परा हक जतान स चकता नही रा हमशा यही मानता रा दक पहला हक उसी का ह तारक

हमशा बाद म आयगा जस दक पर भर लन पर बचा हआ भोजन दकसी को भी ददया जा सकता हhellip

कछ ऐसा रख

पर रवत बचा हआ भोजन नही रीhellip दकसी तरह स भी उवचछि या अिवशि नही जो उसन

रवत म पाया रा िह पहल वजनददगी म कभी नही वमला रा रवत न उसकी पहचान करायी री

पररपणथता स रवत को जानना ही जस उस सपणथता को छना रा शायद रजत न भी रवत म ऐसा कछ

पाया रा जो आम औरतो स अलग रा रवत शादी क इतन बरस बाद भी उस अपन म उलझाय री और

िह उसस मि नही होना चाहता रा रवत म बाहरी खबसरती क बािजद वयवि क ददमाग को भी

उलझाय रखन का जो गण रा उसस सच म जो भी पास आता और सखचता जाता रवत म भरपर

पयार लन की चाह री तो भरपर दन की कषमता भी इसी स अभी भी उसस जी तो नही भरा रा रजत

का शायद िह ऐसी औरत री जो हमशा वनत निीन होती रहhellip सौदयथ की एक पररभाषा यह भी तो

दी गई ह दक जो वनत नतन होता रह िही सौदयथ ह रवत भी कभी परानी नही पड़ती रोज कछ नया

होता ह उसक पासhellip कोई नया खयालhellip कोई नई सझhellip कोई नई उकसान उलझान िाली बातhellip

शायद इस ददमागी सौदयथ कहना होगाhellip जो कछ भी उसम राhellip बस खीचता रा अपनी ओरhellip मोहता

राhellip शायद कया पर उगली धरना उस पररवध म बाधन की भोडी कोवशश होती

कछ दवदव उठता तो रवत रजत क ही हक म बोलती री रजत क वहतो को सरवकषत कर लन क

बाद ही िह तारक को उसका हक दती तारक को खीझ भी होती दक रजत उसक जीिन म चदक पहल

आ गया रा इसीवलए हर चीज म ही पहला हक उसी का बनता ह पर उसन रवत स अपनी यह

मनवथरवत कभी जावहर नही होन दी री वपछल साल िलनदराईन ड पर ऐसा ही तो हआ रा दरअसल

दोनो को अदाज नही रा दक उस िीक ड पर िलनदराईन ड पड़ता रा तारक को दकसी काम स रवत क

शहर आना रा और दोनो न वमलन का कायथकरम बना डाला रा रजत स रवत की बात हई होगी तो

उसन भनकर कहा रा rdquoतो िह तमहारा िलनदराईन ह जो उस ददन आ रहा हrdquo रवत क कहन पर दक उस

तो याद भी नही रा िह बोला रा rdquoम नही मान सकता दक तारक न य ही आन का बनाया ह इस

िीक ड परrdquo रवत न तारक स सारी बात बतलायी तो उसन सोचा रा िह खद फोन पर रजत स कहगा

दक उस सचमच याद नही रा पर दफर बात बढ़ान न दन क वलए चप रह गया रा और जान का

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परोगराम भी थरवगत कर डाला रा तब उस दो बात तकलीफ दती रही री एक तो यह दक रजत हमशा

उसक सामन परारवमकता ल जायगा दसरी यह कड़िी सचचाई दक रवत कभी भी उसकी जावहरी वजनददगी

का वहथसा नही बन सकती री उसकी कमर म हार डाल कर िह कभी दकसी स यह नही कह सकता

रा रवत मरी हrdquo तब उस बहद रशक होता रजत स कया रजत को सचमच अहसास ह दक रवत तारक

क वलए कया ह दक िह उसकी वजनददगी का कनदर उसकी वजनददगी का अरथ बन चकी ह यह कोई हलका-

फलका ठरकपन नही उसकी वजनददगी का रशा-रशा गर गया ह रवत स शबद म अरथ की तरह समायी ह

रवत उसक अवथतति म इस गरन म िह खद ही घरता रहगा हमशा

अब रवत नही ह तो िह घरन और भी कस रही ह उस कया अब िह रजत स कह पायगा

अचानक उसका मन हआ दक रजत स कह द rdquoतमको मालम ह दक मझ सचमच पता नही रा दक उस

ददन िलनदराईन ड रा िनाथ ऐसी जरथत न करताrdquo दक िह जानता हhellip अचछी तरह समझता ह अपनी

और उसकी ररीररी की पररवधयो को दक रजद शायद कभी जान न पायगा पर उसन हमशा एक दोथत

की तरह रजत का रजत की जररतो का खयाल रखा हhellip वसफथ ऊपर-ऊपर स सामावजक उपचार की

तरह नही भीतर स दकसी ददली ररशत सhellip दफर िह ररशता चाह रवत क जररय स ही बना हो

हो सकता ह रजत यह सब महसस करता हो या न भी करता हो पर उसक चहर पर भी वमिता

का थिागतमय भाि हमशा ददखा ह तारक को वसिा उन कषणो क जब दक सचमच उन दोनो क बीच

lsquoररररोररयलrsquo झगड़ हए तब भी ि शायद इसानी आचार या परथपर सदभाि की सीमाओ को कभी

लाघ नही पर दफर भी तारक का रवत क सार का ररशता ऐसा नही दक रजत क सार वजस बार सक

रवत उसकी हथती का अवभि वहथसा ह िह कोई और कस हो सकता ह रजत रवत नही हो सकता

चाह उसक दकतन ही करीब रहा हो उस दकसी न दकसी तरह स अपन खत पान ही ह लदकन कस

और यही तारक बार-बार उलझ जाता ह अपनी यह परशानी िह दकसी क सार बार नही सकता

रजत स तो कतई नही खत अगर सचमच रजत क हार पड़ गय तो

लदकन रवत न यह भी तो कहा रा दक अगर िह नही रही तो कया फकथ पड़ता ह पर रजत

सचमच खत पढ़ ल तोhellip शायद उसकी पीड़ा पर तब करोध और घणा का कोई विकराल भत हािी हो

सकता हhellip हो सकता ह दक खत पढ़कर रजत रवत को खद स वछरक द लदकन उसस कया तब शायद

रवत और भी तारक क करीब आ जाय और भी उसकी अपनी हो जाय वसफथ उसी की समची एक रात

पहल उस ऐसा ही कछ सपना आया रा रवत की मौत की खबर क बाद यही उसका याद रह जानिाला

सपना रा िह रवत की अतयवि म गया ह और एक अधरा-सा बठकनमा कमरा हhellip कमर म कछ

कागज वबखर पड़ हhellip िह एक कागज उठाता हhellip िह उसी का रवत को वलखा खत हhellip और कई लोग

उसक आसपास ह और िह सोचन लगता ह दक कही इन लोगो न भी तो उनदह नही पढ़ाhellip तभी रजत

का चहरा उसकी ओर बढ़ता ह और िह कागज वछपान की तरकीब सोचन लगता हhellip इसी उधड़बन म

उसकी आख खल गयी री तो वजथम पसीन म नहाया हआ रा

एक रजत ही यहा उसक सबस करीब हhellip और रजत ही उस अजनबी-सा लगन लगा ह अब

तक उसका रवत का सदभथ रा अचानक उस सदभथ स करकर न होन जसा हो रहा ह तारक को अजीब-

सी मानवसक दरी और भयकर अकलापन-सा महसस हआ िह यहा आया ही कयो रा रवत की

नामौजदगी म दकतना बमानी ह उसका यहा होना रजत को भी दकतना दफजल-सा लग रहा होगा

उसका यहा उपवथरत होना वजन लोगो स वघरा ह ि तो सचमच उसक अपन हhellip तारक तो दर स भी

अपना नहीhellip मत स तारक का जो भी नाता रहा होhellip उसक दकसी दसर स तो नही रा उसक कॉलज

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कामो स लौर बचच भी तारक को पहचानत नही र तारक न ही उनकी शकलो और वयिहार स अदाज

लगाया रा और हॉलि म लगी तथिीरो स उनदह पहचान पाया रा

तारक क पास रजत स कहन को कछ नही रा उसका कछ भी कहना रजत को खल सकता रा

उलर तारक को लगन लगा दक रजत शायद सोच रहा हो दक अब कयो जखमो को याद ददलान आ गय

हो कछ भी हो तारक न उस पीड़ा तो पहचायी ही री कया अब उसका कछ भी करना रजत क कि को

कम कर सकता रा उसन वनगाहो स ही अपना दख बयान कर ददया जो शायद रजत न थिीकार भी

वलया राhellip शायद एक औपचाररकता की तरह जस िह दसर बहत स जमा लोगो की शोकावभवयविया

थिीकार रहा राhellip उसस कछ अलग नही शायद तारक का िहा होना ही रजत को खल रहा हो पर

िि की नाजकी की िजह स िह कछ कहना न चाह रहा हो तारक एकदम परशान-सा उठ खड़ा हआ

कछ लोग रजत क गल लग रह र शायद उसस विदा लकर जा रह र तारक न सोचा िह अब

कहगा दक रवत क पास कछ उसक जररी कागजात र अगर रजत उस कागजो िाली जगह पर ल चल

तो िह खद ही दख लगा तारक यि की गवत स रजत की ओर बढ़ा रजत जस दकसी को दख कर भी

दख नही रहा रा उसकी आख दकसी शनदय पर ररकी री तारक को लगा उन लोगो क वघराि म

वजसम उसक अपन अजीज दोथत और ररशतदार र रजत न उस कोई विशष लकष नही दकया तारक क

भीतर अजीब सनापन-सा आ वघरा लगा जस रवत रजत म कही नही री वसफथ भरम-सा हआ रा उस

उसक िहा होन का जस दक उसक रवत क नात स िहा होन म ही कोई भारी असगवत री उस लगा

िहा बठ अजनबी स लोग उस घर रह र उसक िहा होन पर परशनवचनदह लगा रह र पता नही दकतन

ही अजनवबयो स वघर गया रा तारक यहा तक दक रवत की उस तथिीर म भी उस रवत नजर नही आ

रही री िह भी कोई अजनबी छाया री यह दवनया उसकी नही री अगर िह रवत की दवनया रही

भी हो तो वजस रवत को िह जानता रा उस रवत क वलए भी यह दवनया अनवथतति री विसगत री

उसन रजत को बहत सभलत सभलत गल स लगान की औपचाररकता की उस लगा जस िह

दकसी अजनबी को गल लगा रहा रा रवत वजतन उसक अपन पास री उतन और कही नही दकसी क

पास नही दरअसल रवत और कही नही री उसक भीतर रीhellip बस उस रवत को िही अपन भीतर ही

कही सजोय रखना रा भीतर ही खोजना रा भीतर ही तसलली करनी री दकसी और स बार नही

सकता रा रवत को रजत क दोनो कधो को हलक स दबाकर उसन धीर स कहा rdquoरक कयरrdquo और मड़ा

तो वबना पीछ दख बाहर वनकल गया

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पासपोरथ अमरीकन मरो

ओम गपता

पासपोरथ अमरीकन मरो पर रगत सहदथतानी

आज सनाऊ तमको पयार अपनी रामकहानी

छोड़ो भारत मन भयया डॉलर दख-दख ललचायो

चार-पकोड़ी जब भी दख मोह म पानी भर आयो

दीिाली पर दीप जलाउ होली पर खल रग

मौको जब मझको लगतो पीतो म भी भग

कसो होगी सरकार हमारी मोक हरदम सचता

जब भी दश पड़ सकर म कपा करो हनमनदता

पज म अब भी राम-कषण जातो मददर रोज

गपशप यारो स करतो फोकर म वमलतो भोज

योगी-बाबा आए दश स जब दन मझको जञान

आख मद क ना कछ जान करतो उनको सममान

हमबगथर अब भी नही भातो भाती मझ कचोड़ी

जसो जब भी मौका आयो रोपी िसी ओढ़ी

जाऊ दश को जब म अपन खाऊ लडड और इमरती

कहतो खद को सहदथतानी अमरीका मरी अब धरती

कहन को बहत ह भयया रोड़ को समझो काफी

बरा-भला लगा जो तमको माग नतमथतक माफी

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शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

आकाकषा ह

वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

फर च अनिाद कर इस lsquoभोगिाद स पीवड़त पविम की आतमा को अतयवधक शावत दन िालाrsquo कहा

12 47 2015 33

ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

की सीमाओ क पर मनषय कया अनभि कर सकता ह उसकी एक झलक भी ददखा दता ह उसी

औपवनषदीय जञान को महरवष िदवयास न सामानदय जनो क वलए ldquoपविि गीताrdquo म सवकषपत रप म परथतत

दकया ह िदवयास की महानता ही ह जो दक 11 उपवनषदो क जञान को एक पथतक म बाध सक और

मानिता को एक आसान यवि स परमातम जञान का दशथन करा सक ldquoपविि गीताrdquo महाभारत क

भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

ह भगिद गीता वहनदद धमथ क पविितम गरनदरो म स एक ह जो इसानो की चौहददी की सीमा रखा पर

भगिान क शरी मख दवारा इसान स कही गयी सरहदो पर चहरो की थकररनी का लखा-जोखा ह यह

12 47 2015 34

पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

12 47 2015 35

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Sneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStke Anmol haSy 9` Uuml na3k-sgh Yacute jIvn ke rg Uuml kaVy-sgh Yacute ddeR-jubagt Uuml nJ_m v g_j_l sgh Yacute Aaj ka pu=8 Uuml khanI-sgh Yacute jIvn-ini2 Uuml kaVy-sgh Yacute AaTm-gujn Uuml AayaiTmk-daxRink gIt Yacute has-pirhas Uuml haSy kivta0gt Yacute j_J_bato ka islisla Uuml kaVy-sgh Yacute The Galaxy Within UumlA collection of English poemsYacute AnuwUityagt Uuml kaVy-sgh Yacute kaVy-vlti3 Uuml skln 0v spadn Yacute pUrb-piXcm Uuml AapvasI sMbiN2t Aaleq sgh Yacute bO7ar Uuml skln 0v spadn Yacute kaVy hIrk Uuml skln 0v spadn Yacute sjIvnI Uuml SvaS$y sMbN2I leq Yacute ]pin8d dxRn Uuml AyaiTmk Yacute

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Page 14: Year 12, Issue 47Year 12, Issue 47 vsu2avsu2a · राथत § में आ वबछ §ग . ... श्रराम की अन ¡कम्पा स § ह हाल ह में

12 47 2015 12

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12 47 2015 14

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मरली कस अधर धर

महाकवि गलाब खडलिाल

मरली कस अधर धर

सर तो िदािन म छर कस तान भर

जो मरली सबक मन बसती

वजसस री तब सधा बरसती

आज िही नावगन-सी डसती छत वजस डर

वजसको लत ही अब कर म

पीड़ा होती ह अनदतर म

कस दफर उसकी धन पर म जग को मगध कर

इसको तभी धर अधरो पर

जब सग-सग हो राधा का थिर

जब यह मरली सना-सनाकर उसका मान हर

मरली कस अधर धर

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भारत और भारतीयता का अरथ

परो गिरीशवर ममशर कलपवत महातमा गाधी वहनददी विशवविदयालय

आजकल क चरवचत सरोकारो म भारत और भारतीयता क सिाल परछन न और परत यकष दोनो ही रपो

म खासी चचाथ का विषय बन चक ह और कई बड़ बवदधजीिी इस पर बहस म वशरकत कर रह ह दसरी

ओर ऐसो की भी कमी नही ह जो इस बमतलब का मददा मानत ह इसका पररदश य आज जररल और

बदला हआ ह दश क थ िति होन क पहल और थ िति होन क ततकाल बाद और अब लगभग सात

दशक की पररपक िता क करीब पहचत-पहचत इस लकर आज बहतर यह मान कर इस तरह की चचाथ

स तरथ र हो चल ह दक यह तो कोई सारथक परश न ही नही ह कछ इस िवशवक या भमडलीकत हो रह

आज क समय की जररतो क अनसार समझना चाहत ह कछ इस किल थ रानीय दवि स ही दखना

चाहत ह कछ इस सभ यता और सथ कवत क विमशथ स जोड़ कर दखत ह जो भी हो अतरराष रीयता क

सार परयासो क बािजद आज भी राज य या नशन थ रर की अिधारणा वनणाथयक महत ि रखती ह और

वनकर भविष य म सीमाविहीन दश जसी कोई अिधारणा आकार लती नजर नही आती आज का सत य यही ह दक दशो की सीमाए बाधा (का अवधक) और सपकथ (का कम) का काम

कर रही ह दश की सीमाओ की रकषा सबक सामन एक बड़ी चनौती ह दश और राष र किल कोरी

भौगोवलक अिधारणाए नही होती उन इकाइयो की रचना क सार एक समाज या समदाय विशष की

आशा-आकाकषा भी जड़ी होती ह दश की अिधारणा एक थ िप न को समरवपत रहती ह आज क तमाम

राष रो क सार उनक सार जड़ी लबी सघषथ-गारा आसानी स दखी जा सकती ह जो दसर समाजो और

समदायो की सामराज यिादी आकाकषाओ क परवतरोध को दशाथती ह शविसपनद न और आरवरक रप स परबल

दशो की दादावगरी उनकी सतता और शवि का जलिा अभी भी बरकरार ह कहन का तात पयथ यह दक

दश की इकाई अभी भी राजनवतक सामावजक आरवरक सामररक और सास कवतक रप स महत िपणथ

बनी हई ह और उस नकारा नही जा सकता

आज बौवदधक किायद म भारत समत सब कछ करथ रड मान जान का फशन-सा चल पड़ा ह

पर उसस दर करोड़ो (भारतीय) जनो क तन-मन म भारत जीवित ह आम आदमी वजनस दश आकार

लता ह िह भारत की एक सामावजक थ मवत भी रखता ह उसक वलए दश थ रानबोधक ह और भारत

एक भाि भी ह भारतीय होन का मतलब ह भारतभवम म रहन की जीिन-व यिथ रा म शावमल होना

भारत कह या इवडया यह मलतः एक भौगोवलक थ रान और उसकी पररवध को रखादकत करता ह इस

भभाग को जब दवीप आयाथितथ भारतिषथ और सहदथतान क नाम स भी जानत ह वहमालय और

सागर इसकी सीमाए बनात ह शथ यश यामला क दश गान और जनगणमन क राष रीय गान म जीित

भारत माता को वजस रप म थ मरण दकया गया ह िह भौगोवलक अिधारणा ही नही उसकी सीमा म

रहन िाल बासशदो की सामावजक-साथ कवतक अवथमता पर बल दती ह वजसका एक भािात मक रप भी

ह भारत एक सामावजक शरणी भी ह जो समाज दवारा रवचत और थ िीकत ह यह उस सामावजक

आकाकषा का परतीक भी ह जो एक आदशथ वथरवत की ददशा म जान क वलए परररत करती ह आधवनक

यग म एक थ िति जनति क रप म एक राज य की थ रापना हई और सहमवत स एक सविधान बना और

12 47 2015 17

सामावजक आकाकषा को एक मतथ रप वमला हमन उसम आिश यकतानसार बदलाि भी दकया ह इस

इकाई क सदथ य क रप म हमारी एक भारतीय पहचान ह

स मरणीय ह दक एक समदाय या सामावजक इकाई की वभनद नता या अलग सतता थ रावपत करना

वयािहाररक दवि स भी आिश यक ह ऐसा करना समाज को अदर स बाधता ह एकजर करता ह और

अनद य (िसी ही) इकाइयो स फकथ करता ह िधावनक रप स नशन या राष र एक काननी इकाई भी ह

और उसक सदथ य िध नागररक होत ह वजसकी थ िीकवत अनद य राष र भी करत ह और पासपोरथ िीसा

आदद की व यिथ रा स आिागमन को वनयवित करत ह नागररक क रप म िधावनक सामावजक और

साथ कवतक अवधकार क सार कतथव य और दावयत ि म भी भागीदारी होती ह समाज की वनयवत ह दक

जावत भाषा बोली कषि भोजन िथ ि रीवत-ररिाज धमथ आदद की विशषताए आ जाती ह इनक

सार समाज का भािात मक लगाि होता ह और उसक सदथ य थ िय को उसी आधार पर पररभावषत भी

करन लगत ह चदक इन विशषताओ का सचार पारथ पररक सबध और जीिन क विविध व यापारो स

गहरा ररश ता होता ह इसवलए य उस समाज की पाररभावषक विशषताए बन जाती ह

भारत दश हमार समकष एक सभ यता और मल य दविसपनद न सामावजक इकाई क रप म

उपवथरत होता ह इसकी समझ कई रपो म वमलती ह वनकर इवतहास म झाक तो पाएग दक इसक

कई रप ह एक छोर पर सहद उपलवबध को बलपिथक रखन िाल वतलक अरसिद सािरकर और

विवपन चर पाल जस ह दसरी और गोखल रानाड गाधी और रगोर सरीख आध यावतमक विचार को

मानन िाल ह जो सभी परभािो को आत मसात करन को तयार ह य सवहष णता आत मवनयिण आदद क

सार एक तरह की बहलता को ठीक मानत ह तीसरी ओर आधवनक दविसपनद न नौरोजी और पवडत

नहर जस लोग ह जो भारत को एक विकवसत सभ यता तो मानत ह पर यह भी महसस करत ह दक

उसका हरास भी हआ और उसम बहत कछ आधवनक जीिन दवि क विपरीत हआ जो आज उपयोगी

नही ह उनक वहसाब स एक बहलतािादी आधवनक नजररया जो विजञानसम मत हो उपयक त ठहरता ह

आज हर भारतीय की एक बहआयामी पहचान बनती ह िह सहद बगाली मवथलम गजराती

कश मीरी वबहारी बराहमण ओबीसी जन ईसाई आदद िाली एक सार कई तरह की पहचान रखता ह

य वभनद न वभनद न पहचान अक सर एक दसर की विरोधी न होकर परक होती ह साथ कवतक रप स ि

गहरी पठी ह और उनक सार लोगो का गहरा सािथजवनक लगाि भी ह िथ ततः हर भारतीय की

पहचान (आइडरररी) की अलग व यिस रा ह कोई एक यनीफामथ पमाना नही ह जो यह तय कर दक कई

पहचानो म स कौन सबस ऊपर नबर िन पर ह यह एक बड़ा तरल या फलइड मामला ह आज

पजा-पाठ सगीत और थ िाथ थ य लाभ क अनक क र भारत भर म फल हए ह जहा आन जान स सहद

ईसाई वसख और मसलमान दकसी को भी परहज नही होता कई पहचान क सार रहना अथ पष रता तो

पदा करता ह पर शायद दसरो क वलए िथ ततः हर भारतीय कई (उप) सथ कवतयो म जीता ह और य

सब वमलकर उसकी पहचान बनाती ह इस अरथ म हर भारतीय शायद बहसाथ कवतक ह और उसकी

पहचान बहआयामी

दश की छवि दशिावसयो क आत मगौरि का माध यम होती ह आज क भारत का अग होना उस

वबलाग करना हमको आरवरक परगवत की ओर अगरसर एक दश एक आरवरक पािर क सार जड़न का

12 47 2015 18

एहसास दता ह दसरी ओर भरष राचार अवशकषा अव यिथ रा सामावजक करीवतयो और भदभाि क

कारण मन म रकान उदासीनता और असहायता की भािना भी आती ह इस सबक बािजद एक

भारतीय का बोध जरर ह जो पजाबी मराठी या गजराती होन अलग जावत िगथ और समदाय का

सदथ य होन पर भी सबको भारतीय बनाता ह कभी-कभी विविधता म एकता िाल नहर जी का

भारत अपररभाषय या अव याख यय लगता ह भारत को एक विथ तत साथ कवतक इकाई क रप म दखन

पर कछ विचार उभरत ह जो भारतीय होन क अरथ को थ पष र करन म सहायक होत ह इनम परमख ह

धमथ कमथ पनजथनद म को दकसी न दकसी रप म थ िीकारना सामावजक इकाई - पररिार जावत समदाय

क थ तर पर अपन अवथतत ि को महसस करना सक स वििाह और अनद य व यवियो क परवत खास दविकोण

को अपनाना बहलता का थ िीकार और खल कछ-कछ असगरठत दकथ म की आत म या सल फ की

अिधारणा का थ िीकार और दकसी न दकसी रप म दकसी बड़ी जञात-अजञात सतता स जड़ाि की

अवभलाषा और पररिश परकवत और सवि क सार साझदारी तरा परथ पर अनपरकता का भाि

समकालीन विमशथ म राज य और राष र की अिधारणा क अरथ बहत कछ इस पर वनभथर करत ह

दक कौन दकस दविकोण और परयोजन स इन पर गौर कर रहा ह अक सर इनद ह अतीत ितथमान और

भविष य स जोड़ कर दखा जाता ह और लोग अपन चन िचाररक आदशथ स रग कर ही इस पर विचार

करत ह इन शब दो और इनस जड़ अरथ थ रान और समय क सार-सार बदलत रह ह जो थ िाभाविक ह

भारत दश क बार म सोचन की एक बड़ी मवशकल यह ह दक हमारी अपनी पररभाषा क पमान हमार

अपन न होकर दकसी और क ददए हए ह ि हमार बौवदधक मानस म इतन गहर पठ चक ह दक अब हम

अपन पमान क बार म भरोसा ही नही कर पा रह ह और खद को पररभावषत करन का अवधकार ही

खोत जा रह ह आरवरक और तकनीकी परगवत क पसराि की दवनया म आज हमारा आतम-सशय इतना

गहराता जा रहा ह दक भारत और भारतीयता की बात करना परानी और ददकयानस और इसवलए

अपरासवगक मानी जान लगी ह अगर इसकी बात करनी भी ह तो उसकी सनद कही और स जरानी

होगी आज अपनी पहचान क वलए हम पविमी दशो म विदवानो क दवारा परमाण और गिाही चाहत ह

आज भारत की साथ कवतक विविधता को सपनद नता और समवदध क ोत क रप म समझन समझान की

जररत ह वजसका उपयोग समाज क विकास म दकया जाय इसक वलए भारत को भारत क नजररए स

दखना होगा वबना इस भय क दक भारतीय होना दकसी कषमा याचना की अपकषा करता ह थ िदशी और

सराज जस विचार अभी भी परासवगक ह समरथ और थ िािलबी होन क वलए आत म थ िीकार और सतत

पररष कार आिश यक ह

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भकप का सदश

डॉ एमएल गपता ldquoआददतय

धरती हर ददन डोल रही ह कपन की बोली बोल रही ह

विनाश कर आकरोश स बदल कय भगोल रही ह

कय धरती न भकरी तानी कय वहमालय म आिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

जो ससाधन र पोषण क उनका शोषण कर डाला

ओजोन का जो किच रा उसका भी भदन कर डाला

बरहमी स कार हमन िसधरा क िन-कश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

सागर क तीरो को छीला पठार और पिथत को लीला

नददया बनी नाल और नाली नही ददखता जल वनमथल-नीला

चतािनी द रहा ह मौसम बदला भमडल का पररिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

विजञान की सीढ़ी चढ़ विनाश का सामान बनाया

परमाण सयि द रह यातना विकीरण का खतरा मडराया

रवडएशन स आतदकत ह दवनया क सब दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

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कोई अण कोई परमाण कोई हाईडरोजन बम ल ऐठा ह

वबछी हई बारद धरा म मानि बमो क ढर पर बठा ह

हआ परमाण यदध तो वमर जाएग दकतन दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

भकषक बनकर मानि इक दज पर चोर कर रहा

परीकषण की खावतर दकतन भीषण बम विथफोर कर रहा

परकवत का सतलन वबगड़ा तो हम बन जाएग अिशष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

कदरत कहर बरपा सकती ह कभी भी आफत आ सकती ह

धरा की जरा सी भी हरकत दकतना कोहराम मचा सकती ह

धरा न जरा करिर बदली तो कछ भी न रहगा शष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

पयाथिरण क आघात पर अब तो रोक लगानी होगी

सागर पिथत धरती क सग बद करनी मनमानी होगी

धरती को जो मा मानोग सब वमर जाएग कलश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

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ि दोनो

डॉ सषम बदी

छत स फशथ तक क लब शीशो स जड़ी उस बड़ी-सी बठक म खब सारी ददन की रौशनी भरी हई

री फशथ पर वबछी सफद चादरो पर सफद िसतर पहन ढर सार लोग उस रौशनी का ही वहथसा लग रह

र कमर म घसत ही तारक को लगा जस उस शवतता म घल मौत क सदथपन और जड़ता न अचानक

उसक भीतर को जकड़ वलया ह बीचोबीच फलो की माला चढ़ी एक बड़ी-सी रवत की तथिीर री

वजसका धप दीप और गीता क शलोको स अवभषक दकया जा रहा रा रवत अब तथिीर भर री तारक

की थतबध पवनयायी आख वनथसहाय-सी रजत को खोजन लगी

रजत सारा िि लोगो स वघरा ही रहा रा उसकी मा उसक बचच और दसर ररशतदार कोई न

कोई उसक आसपास रा ही उन दोनो की आख एक दसर स दो एक बार वमली पर रजत अपन स

बाहर नही आ पाया रा तारक न दकसी तरह अपनी शोकभािना वयि कर दी री न भी वयि करता

तो कया रजत को तो खद भी अहसास होगा उसकी अतभाथिना का एक िही तो ह इस भीड़ म जो

जानता ह दक िह कयो यहा ह बाकी तो तारक दकसी स पररवचत ही नही वसिाय कछक रवत क

कलीगज क एक दो कलीगज स ही उसकी बात हई रवत क बार म ि उस पररिार का वमि मानकर

बात कर रह र य पररिार का वमि तो िह रा ही पर इसस अलग या ऊपर भी कछ रा यह शायद

रजत क अलािा और कोई नही जानता रा जबदक रजत भी परा कहा जानता ह खास तौर स िह सब

कछ जो तारक महसस करता रहा ह या जो कछ तारक और रवत क बीच म रहा या अभी भी वजसका

बहत कछ बचा रा

य तारक न बहत बार सोचा दक अब रवत नही रही तो उसक यहा जान का कोई फायदा नही

उसकी तकलीफ बढ़गी ही दफर लगा दक नही उस रजत स वमलन जाना होगा रजत भी तो उसका

दोथत ह य रवत उन दोनो क बीच न होती तो ि शायद बहत गहर दोथत हो सकत र दफर भी िह खद

को कई तरह स रजत क करीब महसस करता रा और रजत भी बहत मामलो म उसी स सलाह करक

चलता रा उस पर भरोसा करता रा जो दक उसक मन क दोथती क भाि को ही जताती री चदक

तारक की विशषता ददल क रोगो म री िह रवत क हारथअरक क बाद स उसस अकसर रवत क बार म

सलाह लता यहा तक दक रवत स भी कोई वशकायत होती तो तारक स ही कहता दखो न इसका

कोलथराल इतना हाई चल रहा ह और मडम चीज मीर सभी कछ खाती ह अभी रथतरा ल चलो परा

का परा थरक गरक जायगी कस कर यह तो खद को नकसान पहचान स बाज नही आतीrdquo और तारक

तब ररका दता कसी डाकरर हो तम रवत मरीजो को उपदश दती रहती हो और खदhellipदफर उसन

खद ही एक विशषण गढ़ा रा रवत क वलए lsquoनानकपलायरrsquo यानी दक जो कछ भी कहा जायगा उसका

विरोध ही करगी रवत और दकसी िजह स नही बवलक विरोध करन क वलए विरोध

तब रवत और भी तिर चढ़ाकर बोलती rdquoरजत तो पहल ही मर पीछ पड़ा रहता ह अब तम

भी इसी स वमल गय हो िाह जी िाह दोथत दकसक हो तम मर या रजत कrdquo

तारक तब चप रह जाता रा रजत भी कछ नही कहता एक वपरय अवपरय सतय

शायद रवत भी इसीवलए कहती री दक तारक तब लाजिाब हो जायगा कयोदक रवत जानती ह दक जो

िह तारक क वलए ह िह और कोई नही हो सकता और रजत को भी इसका अदाज ह इसी स रजत न

शर म चाह दकतना विरोह दकया हो दकतना लड़ाई झगड़ाhellip दफर धीर-धीर मान वलया रा इस ररशत

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को रवत क वलए ही अगीकार कर वलया रा तारक को भी रवत न ही उस बतलाया रा जब रजत न

उस बाहो म भरकर कहा रा rdquoइतना पयार करता ह तमह दक यह भी थिीकारन क वलए राजी हrdquo

एक हक-सी उठी री तारक क भीतरhellip वजस इतना पयार वमला होhellip इतनाhellip िह इस तरह स

उन दोनो की वजनददगी को ही सना करक रखसत हो ली तारक क मन म गथसा भी आयाhellip शायद

अपनी सहत का धयान रखती तो कछ और जी जाती उन दोनो स ही तो चार-पाच साल छोरी री िह

जी भी सकती री पर अबhellip और तारक न लबी सास भरी

रवत की एक कलीग बता रही री rdquoपरसो तो काम पर आयी हई री रवत म सोच भी नही

सकती री दक इतना भारी थरोक हो सकता ह दक एक ही लपर म ल जायhellip मझ तो विशवास ही नही

होताrdquo तारक को भी विशवास नही होता रा उसी ददन सबह रवत न उसस फोन पर बात की री और

उसस मजाक दकया रा rdquoमर जनदमददन पर आओगrdquo

दरअसल सारा झगड़ा कछ साल पहल रवत क जनदमददन को लकर ही शर हआ रा िनाथ शायद

रजत को उन दोनो क बीच बढ़त ररशत की तवनक खबर न लगती रवत न उस बतलाया रा दक उसक

जनदमददन पर िह और रजत आमतौर पर शाम को बाहर दकसी बदढ़या स फर च रथतरा म खाना खान

जात ह तब तारक न कहा रा rdquoठीक ह तो लच तम मर सार लनाrdquo

रवत मान गयी री उसन उसी ददन रवत क शहर पहचन क वलए फलाईर भी बक करिा ली

री पर जब ठीक जनदमददन आनिाला रा तो रवत न उस बतलाया रा दक रजत को ठीक नही लग रहा

मरा तमहार सार लच पर जाना िह पछ रहा रा दक इतना इमपॉरर कस हो गया यह आदमी दक

तमको उस जनदमददन पर जरर वमलना ह

rdquoतमन कया कहाrdquo तारक वजजञास हो उठा रा

rdquoयही दक तमको दकसी काम स शहर म होना रा इसवलए लच पर वमलन की बात की इस पर

उसन कहा दक अगल ददन वमल लो जनदमददन िाला ददन तो उसी क वलए हhellip कोई और कयोrdquo

दफर िह बोली rdquoइसी पर उस शक हो रहा ह दक यह कोई आम दोथत नहीhelliprdquo

तारक न जोड़ ददया रा rdquoपरमी हrdquo

rdquoहा यही शक हो रहा ह उसrdquo

rdquoतो ह या नहीhelliprdquo

rdquoशायद होhellip यही मसीबत हrdquo

तारक न कहा रा rdquoअब तो ररकर ली हई ह म तो आऊगा ही तम वमल सको तो वमलना िनाथ

न वमलना चाह पाच वमनर क वलए या कॉफी क वलए भी आ जाओगी तो मर वलए िही काफी होगा

तमहार जनदमददन पर तमह दख भर लrdquo

rdquoतम भी कमाल क रोमाररक होhellip पर सच कह तो म भी तमस वमलना चाहती ह उस ददनhellip

कछ न कछ तो जगाड़ना पड़गाrdquo

rdquoमर वलए तमहारा जनदमददन मरी वजनददगी का बहत अहम ददन हhellip समझीrdquo

एयरपोरथ पहच कर तारक न फोन दकया रा रवत बोली री rdquoरजत कह रहा ह तम हम वडनर

पर जॉयन कर लोrdquo

तारक बहत हरान हआ रा पर रवत न फोन रजत को पकड़ा ददया रा तारक एकदम सकर म

पड़ गया रा उसन खद को बचान की कोवशश की rdquoसॉरी म तो यहा आया रा तो सोचा रवत स वमल

लगा पर इस तरह आप लोगो क परोगराम मhelliprdquo

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रजत न जोर दकर कहा रा rdquoनही भाई बहत तारीफ सन रहा ह बीिी स जरा हम भी तो

वमल आपस आप चाह तो घर पर आ जाईए या दफर सीध रथतरा पर वमलगrdquo

rdquoपर आप लोगो का तो वडनर पर सार जान का कायथकरम रा नrdquo

rdquoआप लच पर फरी ह तो लच पर वमल लत ह य मझ तो वडनर ही पसद ह जसा आप कहrdquo

रजत वबलकल दोथताना ढग स बात कर रहा रा एक पल को उसकी रोन म कछ तनाि तारक

को महसस हआ रा पर अगल ही पल आिाज दफर सहज हो गयी री तारक मान गया पर रकसी लकर

पहल होरल म सामान छोड़ा और इस दौरान खद को मानवसक तौर पर तयार भी करता रहा दक कस

पश आना ह अपन रकीब स दखा जाय तो ररशता रकीब का ही रा बाकी ि दकतन भी सभय या

समझदार इसानो की तरह एक-दसर स बताथि कर आवखर ि तीनो सममावनत पश क र तारक हारथ

थपशवलथर रा तो रजत अगरजी सावहतय का परोफसर और रवत सायकायररथर इसानी मन की

कमजोररयो को समझना मनोरोगो का इलाज करना रवत की विशषता तो री ही पर इसानी आकषथण

एक दसर क परवत सखचाि या ऐस ररशतो को समझन की सथकवत तो कही तीनो म ही री

रजत इस बात को खब समझता रा दक दकसी भी औरत क वलए दकसी दसर परष क परवत

सखचाि हो जाना बहत सहज रा िही एक पवत और पतनी स परम करन िाल क रप म िह रवत क इस

वयिहार स ईषयाल भी हो उठता रा एक सभय इसान क नात िह ईषया को दबा कर तारक क परवत भी

वमिित वयिहार करना चाहता रा पर िही उस रवत क वयिहार स कि पहचता रा दक िह उसक

अलािा भी दकसी दसर परष को चाह सकती ह वजसस उसक मन म आकरोश और वितषणा का भाि

उठता कभी िह अपन को उदार बना कर यह कहना चाहता दक रवत अगर दकसी दसर को चाहती ह

तो बशक उसको भी कयो न पाय सार ही जब करोध होता तो एक तरह स जस िह रवत को सजा दन क

वलए कह डालता rdquoतम जाओ दोनो सार रहोrdquo पर जो पीड़ा िह उसम सह रहा होता िह रवत और

तारक दोनो क वलए ही असहय होती

रवत न कहा रा rdquoकया तारक और म दोथत नही हो सकत और इतन दोथत हhellip एक िह वयवि

वजसस बात करक मझ खशी वमलती ह िह दोथत कयो नही बन सकता वसफथ इसवलए दक उसक मन म

तीखी भािना ह मर वलएhellip या शरीरो का आकषथण भी हhelliprdquo

रजत तब तकथ स सारी बात को समझन समझान की कोवशश करता हा करत-करत कह दता

rdquoऔरत आदमी म दोथती हो ही नही सकती कयोदक जहा शरीरो का आकषथण हो िहा दोथती जसा

वनषकपर भाि कस पनप सकता हrdquo तब रवत दोथती का एक और पकष पश करती rdquoतमहार कहन का

मतलब तो िही ददकयानसी बात हई दक शरीर पाप का मल ह जबदक तम खद ही यह पहल कह चक

हो दक शरीरो का मसला हल हो जाय तो औरत मदथ बहत खबसरत दोथत हो सकत हhellip शरीर को

अहवमयत दी कयो जाय शरीर वमल जान स उनका दोथती म बाधा बनन का मसला खतम हो जाता हrdquo

रजत रवत की बात मान भी जाता रा पर रवत दफर तारक को यह भी बताती री rdquoिन कार

रक वहम फॉर गरारड कल को िह अपना कोई नया तकथ द दगाrdquo

शायद इसी स तारक भी अचानक वहममत हारन लगा रा कस सामना करगा िह रजत का य

िह रजत स एकाध बार पहल वमल चका रा पर तब उसको यह अदाजा नही रा दक रवत और उसक

बीच कछ रा जबदक तारक तब भी कछ आतमसजग-सा हो रहा रा पर कछ वमनरो की मलाकात को

सभाल लना कोई बड़ी बात नही री और य भी रजत उस भला आदमी लगा रा यह भी सोचा रा दक

अगर रवत उन दोनो क बीच न होती तो यह वयवि उसका दोथत हो सकता रा य रवत क होन क

बािजद अतत ि दोथत बन ही पर इस दोथती का तानाबाना िसा न रा जस खावलस दोथती का होता

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ह इसम रवत क रश बन हए र जो एक और ही रगत वलए र और िह रगत तारक को बहत पयारी री

उस दोथती स जयादा

तारक न होरल पहच कर फोन कर ददया रा दक वडनर पर वमलना ही ठीक रहगा और िह

अपना काम इस दौरान कर लगा रजत आसानी स यह बात मान गया और कहा दक िह सडरकस पर

पहल घर पर आ जाय उसक बाद रथतरा खाना खान चल जायग

शाम को जब िह चलन लगा तो फोन बजा रा दसरी ओर रवत री हलो कहत ही रवत न

कहा rdquoसनो तम मत आना मर घर म बहत रशन चल रही हrdquo इसस पहल दक िह कछ कहता रवत न

फोन वडसकनकर कर ददया

रात को कोई फलाईर नही जाती री िनाथ िह उसी िि शहर छोड़ क चला जाता

आध घर बाद ही घरी दफर बजी रवत पछ रही री दक आ रह हो तारक बौखला गया दक आवखर हो

कया रहा ह कया यह रवत क मन की उलझन ह या दक रजत कीhellip या दोनो कीhellip या रवत वसफथ रजत

की उलझन को वयि कर रही री बोली री rdquoजलदी आ जाओ हम लोग इतजार कर रह हrdquo

िह पहचा तो रवत न अकल ही उसका थिागत दकया रा िह जानता रा दक दोनो बचच कालजो

म ह पर रजत काफी दर तक बठक म नही आया तो तारक हरान हआ रवत बोली rdquoिह नहा रहा हrdquo

दफर मथकरा कर जोड़ा rdquoशायद हम दोनो को कछ िि दना चाहता हrdquo

तारक तब कछ निथस हआ रा उस आग बढ़कर रवत को चमन का हौसला नही हआ उस लगा

दक रवत भी सहज नही री जस दक आम तौर पर होती ह पर उसन कछ कहा नही िह खद भी तो

सहज नही हो पा रहा रा जस लड़की क बाप क घर म शादी का परथताि लकर जा रहा हो कछ कछ

इसी तरह का महसस हो रहा रा िही डर कर परचा करना रा दक इमतहान म फल न हो जाय

रजत न कमर म आत ही बड़ तपाक स हलो दकया कछ औपचाररक-सी बात की दफर उसस

सडरक पछा और दकचन म बफथ िगरह का इतजाम करन क वलए दफर स गायब हो गया तारक को लगा

दक सहज होन की बहत कोवशश क बािजद रजत बहत असहज ह

ववहथकी का घर लत हए तारक न ही रजत स उसक काम क बार म पछना शर दकया बात

कही जा नही रही री तभी रवत एक नई दकताब की चचाथ करन लगी वजसका ररवय सबह क अखबार म

छपा रा तारक न हिाई जहाज म ही उसक बार म पढ़ा रा दफर तो बातचीत खब गरमागरम होन

लगी रजत न दवकषण एवशयाई अगरजी लखको क बार म अपन विचार झाड़न शर कर ददय यहा तक

दक रवत न अचानक घड़ी दखी तो पता चला दक रथतरा की ररजिशन का िि हो चका रा रजत न

रथतरा को फोन दकया दक कछ वमनर लर पहचग और तारक को बोला दक जलदी स सडरक खतम कर ल

या गाड़ी म ही ल चल दोनो न दो तीन सडरक चढ़ा रख र मौज-सी भी आयी हई री रजत ही कार

चला रहा रा और तारक पीछ िाली सीर पर बठा रा अचानक रजत कछ नश और कछ अपनी धन म

बोला rdquoतो तम मरी बीिी स पयार करत होrdquo

तारक भौचक-सा हो गया य ही बठा रहा जस रजत की बात को सना न हो या िह गभीरता

स लन लायक न हो रजत न अपनी बात को सिाल बनाकर दबारा पश दकया rdquoकयो तारक मरी बीिी

स पयार करत हो या नहीrdquo

तारक न कहा rdquoहाrdquo और चप कर गया उस लग रहा रा िह जो भी जिाब दगा खतर स खाली नही

पर यह जिाब सच रा तो सच बोल कर ही मार खायी जाय उस दकसी लड़की क वपता स हार मागन

नही जाना पड़ा रा आज यह भी सही

rdquoतम भी पयार करत हो िह भी करती ह तो तम दोनो सार कयो नही रहतrdquo

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तारक बोल पड़ा रा rdquoयह इतना आसान नहीrdquo

रजत इस पर आकरमण करता-सा बोला rdquoकमाल ह पयार भी करत ह और वजममिारी भी नही

वनभाना चाहतrdquo तारक को महसस हो रहा रा दक रजत कह तो कछ रहा ह और पहचाना कछ और

चाहता ह दफर भी िह जिाब तो उसी बात का द सकता रा जो दक पछी जा रही री यह कह कर

उस नाराज भी नही करना चाहता रा दक रजत वसफथ अपन भीतर क आकरोश आतक और आग को

आिाज द रहा रा बोला rdquoयह बात नही म आज भी रवत क सार वजनददगी शर करन को तयार ह

जहा तक म जानता ह रवत अपन शहर को छोड़ कर और कही नही जायगी न िह तमको छोड़न को

तयार होगी जहा तक म रवत को जानता हhelliprdquo

रवत चपचाप अपन पर अकश लगाय दोनो की बात सन रही री न तो िह रजत क पकष म

कछ बोलना चाहती री न तारक क पकष म ही बोल सकती री दफर भी दोनो क बीच तारतमय वबठाय

रखन की वजममिारी भी उसी की री और िह समझ नही पा रही री दक दकस तरह इस बातचीत को

सीमाय लाघन स बचाया जाय ऊपर स उस डर लग रहा रा दक आिश म रजत कही रककर न मार द

रथतरा बहत दर रा भी नही बात पर चरम पर चल रही री दक रथतरा आ गया रवत न रोका rdquoरजत

पारककग ढढ़ो रथतरा आ गयाrdquo रथतरा क सार ही पारककग गराज म गाड़ी छोड़ कर तीनो अदर चल गय

िरर न उनको मज पर वबठाया और सडरक क वलए पछा तरा मनदय लाकर ददय तीनो क तीनो उस मज

पर इस तरह खामोश और भर बठ र दक मनदय म वसर डबोना एक राहत बन गया रा तीनो न अपन-

अपन आडथर ददय पर बात कछ बन नही रही री हर कोई कछ भी कहन म जयादा ही सतकथ हो रहा रा

अचानक रवत बोली rdquoरजत तमको इतनी जयादा तकलीफ री तो तमन मना कयो नही कर

ददया म तो तारक को कह चकी री दक आज सार खाना नही होगा तमही न जोर ददया दक जरर

बलाओ अब इस तरह कयो बताथि कर रह होrdquo

रजत और भड़क गया rdquoम तो वसफथ यह कह रहा ह दक तम लोग एक-दसर को पयार करत हो

तो म कया कर रहा ह यहा तम जाओ एक दसर क सार रहोrdquo

दोनो की आिाज ऊची हो रही री और दसरी मजो पर बठ लोगो की वनगाह इस ओर उठ आयी री

तारक न धीर स सझाया रा rdquoमर खयाल स हम य बात यहा नही करनी चावहएrdquo सहसा रवत

न होश म आत कहा rdquoहा इतन बदढ़या रथतरा म खाना खान आय ह कछ खान पर भी तो धयान दhellip

दफर आज मरा जनदमददन ह आई िार र हि ए गड मीलrdquo

दफर भी खान पर तीनो म स दकसी का धयान नही लग सका तीनो औपचाररक-सी बात म लग

गय र तारक न ही शहर क निीनतम रथतराओ क बार म ताजा पढ़ी समीकषा का वजकर छड़ ददया रा

रजत न कार स जब उस होरल छोड़ा तो तारक न उपर कमर म आकर सडरक लन क वलए कहा

पर जसा दक िह अपकषा कर रहा रा रजत न दर होन का बहाना बना छटटी माग ली री रवत तब भी

कछ नही बोली री शायद उस डर रा दक उसका कछ भी कहना रजत क वलए घाि पर नमक वछड़कन

जसा होगा या उसकी कोई भी बात का गलत मतलब वनकाल कर रजत भड़क सकता रा य दर हो भी

चकी री

पर तारक यह भी जानता रा दक रवत एक नबर की वजददी री जो उस चावहए रा चावहए ही

रा उस रोका नही जा सकता रा िह ऊपर स मान जायगी पर भीतर स कभी माफ नही करगी

शायद इसी स रजत भी वबगड़ी हई लाड़ली बरी की तरह रवत की हर चाह या माग को विरोध करक

भी अतत मान जाता रा

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लौर आन क दो चार ददन बाद ही उसक फोन पर रवत न सदश छोड़ा रा rdquoतमहारा आना ठीक

नही हआ सॉरी तमह बलाकर भी वमल नही पायी अब लगता ह कभी नही वमलगी लर अस थरॉप

ददस वहयर पलीज मझस सपकथ मत करनाrdquo

तारक बहत ददन परशान घमता रहा रा पर रवत को फोन भी नही दकया उसन मना जो कर

डाला रा उस फोन करत हए तारक को लगता दक िह खद को उस पर लाद रहा ह और यह वथरवत

उस कभी गिारा नही री हर ददन दकसी जिालामखी-सा लाि स लदा हआ गजरता अदर ही अदर

सब तप रहा रा

महीन भर बाद रवत न फोन दकया रा rdquoगथसा हो न मझस तमस माफी भी नही माग सकीrdquo

उसकी तो कोई जररत नहीrdquo

दफर भी सोचा रा तमस कभी बात नही करगी इसी स तमको सपकथ करन स मना दकया

रा रजत को भी यही मालम ह दक तमस ररशता तोड़ ददया ह पर अब मझी स बात दकय वबना रहा

नही जा रहाrdquo

रजत को मालम ह मझस बात कर रही होrdquo

िह बहद गथसा ह तमसhellip जस दक सारा दोष तमहारा होhellip दक तमन उसकी बीिी को फसा वलयाrdquo

ि इसी तरह जब मौका लगता बात कर लत तारक क ददल ददमाग पर रवत ही छायी रहती

िह ऐस ही पलो क दौरान जीता जब दोनो क बीच कछ सपकथ होता बाकी क पल उन पलो क इतजार

म गजरत

इस बीच रवत को ददल का दौरा पड़ा रा घबराकर तारक को फोन कर डाला रा रजत न

तारक आया तो रजत उस अपनी गाड़ी म सार अथपताल ल आता जाता रहा दोनो म एक दोथती का

नाता तभी बना रा दवनया जहान की बात रजत न उस घर पर ही ठहराया रा तारक तीन ददन बाद

चला गया रा िावपस पर दोनो की फोन पर बात हो जाती रवत अथपताल स िावपस आ गयी री

धीर-धीर िह सामानदय होकर िावपस अपना काम सभालन लगी

रवत का जनदमददन दफर स आनिाला रा रवत न उस कहा रा rdquoरजत अपन आप ही बोल रहा ह

दक तम आ जाओ इस बार मरा जनदमददन मनान बोलो आओगrdquo

तारक परानी बात याद करक घबरा गया रा rdquoनही दफर स उसक भीतर सब घमड़न लगगाhellip

सबको तकलीफ होगीrdquo

यह सच भी रा रजत कभी तो उसक परवत बहत वमिित हो जाता िही अचानक गथसा ईषयाथ

उभर आत और िह अकसर बरखी ददखाता अचानक तारक को ऐसा महसस हआ जस रवत उसस खद

यह सब कह रही हो पल भर को िह भल ही गया दक रवत क ही अतयवि कमथ म िह शावमल हआ ह

और दरअसल उसक यहा आन की एक िजह यह भी ह दक िह रवत को वलख अपन खत िावपस ल

जाना चाहता ह उस डर ह दक कही ि खत रजत क हार न पड़ जाय

तारक रवत क सार काम करन िाली इस मवहला डॉ लोपज स पहल वमला हआ रा इस भीड़

म एक िही जान-पहचान की री तारक का मन हआ उसस पछ दक कया िह रवत की दराज म उसक

कागजात पर नजर मार सकता ह तारक को अदाज रा दक उसक खत िह दफतर की मज की दराज म

रखती री पर िह जानता रा दक ऐसा करना ममदकन रा नही आवखर तारक को कस हक पहचता रा

रवत की दराज खलिान का िह तो एक पररिार क वमि की हवसयत स िहा रा रजत ही कह सकता

रा दखा जाय तो ि लोग खद भी रजत स ही कहग दक रवत का सामान िह ल जाय तब तो रजत की

आख जरर उन पर पड़गी तब शायद उसको बरा लगगा दक रवत क सार तारक का एक अपना ररशता

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रा उन तीनो की आपसी दोथती क बाहरhellip रजत को बतहाशा चोर लगगी अब जबदक िह रवत स

जिाबतलबी भी नही कर सकता रवत अब कोई सफाई नही पश कर पायगी तारक क हक म कछ भी

नही कह सकगी दकसी तकथ स रजत को लाजिाब नही कर पायगी नही िह ऐसा नही कर सकता न

यह रवत क परवत सही होगा न रजत क परवत उस दकसी न दकसी तरह स खत पान ह

राथत म आत हए हिाई जहाज म तारक जब लगातार रवत क सार की अपनी वजनददगी क

गजर पल दहरा रहा रा बार-बार उस धयान आता दक जब स रवत को ददल का दौरा हआ रा िह

उसस कहना चाहता रा दक उसक खत विनि कर द एक बार उसन बात उठायी तो रवत बोली rdquoकयो

तमहार खत मर दफतर की दराज म सफ पड़ हrdquo

शायद िह वबना कह यह भी समझ गयी री दक तारक का इशारा दकस ओर ह तभी बोली

दखो जब तक म वजनददा ह म उनको फाड़ कर न तो फ क सकती ह न जला सकती ह एक बार मर गयी

तो कया फकथ पड़ता ह दक कोई कया करगा उनक सार तमको तो दफकर होनी नही चावहए अब तो ि

मरी अमानत हrdquo यह बातचीत दो एक महीन पहल की ही होगी तारक न सोचा रा बात कभी दफर

उठायगा पर उसस पहल हीhellip

तारक को भी तब यह अदाज नही रा दक रवत क अलािा रजत स भी उसका नाता रा रवत क

जान क बाद िह खद को रजत क बहत करीब महसस कर रहा रा और उस लगा दक उसक खत रजत

को उसस दफर दर धकल सकत र पर िह दकसी तरह भी रजत को खोना नही चाहगाhellip रजत जस स

रवत का ही एक वहथसा राhellipउसन दखा लोगो स वघरा रजत का चहरा बहद वनचड़ा हआ रिहीन और

सखा-सा लग रहा रा रात भर सोया नही होगा इसवलए आखो क नीच कालापन उतर आया रा आख

काफी अदर को धसी हई री तारक को लगा दक िह शायद रजत स बहतर हालत म ह दफर उस रशक

भी हआ रजत अपन गम का खला इजहार कर सकता हhellip तारक को यह सविधा नही री िह दकसी

उजड़ आवशक क रप म इस महदफल इस मौत का शोक करन िालो की महदफल मhellip अपना असली

चहराhellip अपना आवशक का चहराhellip नही ददखा सकता रा अचानक उसकी आख भर आयी अपन खोन

की वशददत क अहसास स

रवत क िाकय उसक कान म सरसरान लग जबस उस ददल का दौरा पड़ा रा िह जीिन की

कषणभगरता या इसान क नाचीज होन क अवथततििादी दशथन को बहत बघारन लग गयी री शायद

अपन जान का अहसास उस कही बहत गहर उदास कर जाता रा पर िही िह उस जान को एक

अिशयभािी अकारय सतय की तरह थिीकार करक उसस समझौता भी करन लग गयी री एक ददन

उसन हडसन नदी क दसर वसर स मनहरन की ओर दखत हए कहा रा rdquoदखो तो इन छोर-छोर वडबबो

म दकतन लाखो लोग रहत ह दकतन छोर ह हम लोग इतनी तग जमीन पर दकतनी बड़ी तादाद म

समा जात ह एकदम हजारो की सखया म सार-सार जड़ कीड़ो की तरह दफर भी अपन आप को

दकतना बड़ा मानत ह राजनीवत धमथ और नवतकता की तवखतया वचपका कर दकतना बड़ा होन का

भलािा दत रहत ह खद कोrdquo

रजत को रवत की इसान को नाचीज करार दन िाली बातो स हमशा बहत वचढ़ छरती री

बोला रा rdquoधमथ नवतकता जीिन क सतय ह इनको तम भलािा दन िाली चीज कस कह सकती हो

इसान इसीवलए तो बाकी जीिो स अलग ह दक िह सोच सकता हrdquo

rdquoऔर सोच क धरातल पर हर चीज को गलत या सही सावबत कर सकता ह नवतकता को गढ़

सकता ह या परा सतयानाश कर सकता हhellip ठीक ह मझ तो उसम कोई नकसान नहीrdquo

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हा नकसान दकसी का ह तो मरा ही रजत न कहा तो तारक झर स बोल पड़ा रा rdquoनकसान

तो तब होता जो म उस भगा क ल जाताrdquo

रजत न सजीदगी स कहा rdquoअब इसका ददल बर गया हhellip तो आधी सपवतत तो लर ही गयी न

तम भगा ल जाओ तो भी फकथ नही पड़गा यह आधािाला वहथसा तब भी यही रहगाrdquo

सचमच रजत का यह विशवास सही रा रवत और उसक ररशत की शरआत क ददनो म भािना

क परिाह म बहता तारक रवत क सार एक नयी वजनददगी क दकिाड़ खोलन की बात सोच पाया रा पर

जलद ही उस अहसास हो गया रा दक रवत कही बहत गहर जड़ी री रजत क सार दक िह कभी उस

ररशत को तोड़गी नही य रजत भी शर क ददनो म भीतर स वहल गया रा यह झरका दक रवत रजत

को छोड़ दकसी और को मन म ला सकती ह उस बहत दर जा फ क आया रा दफर रवत न खोय विशवास

को िापस लौरा ददया रजत अपन आध नकसान क सार धीर-धीर शायद समझौता करना सीख गया रा

तारक को लगा दक िह आध क सार समझौता करना सीख गया रा दफर तारक को लगा दक

िह आध क सार समझौता नही रा रजत क भीतर कही पर का भरोसा भी रा जस दक रवत को वसफथ

एक बदलाि चावहए रा जो तारक रा िनाथ िह परी रजत की ही री कयोदक मौका आन पर रजत

अपना परा हक जतान स चकता नही रा हमशा यही मानता रा दक पहला हक उसी का ह तारक

हमशा बाद म आयगा जस दक पर भर लन पर बचा हआ भोजन दकसी को भी ददया जा सकता हhellip

कछ ऐसा रख

पर रवत बचा हआ भोजन नही रीhellip दकसी तरह स भी उवचछि या अिवशि नही जो उसन

रवत म पाया रा िह पहल वजनददगी म कभी नही वमला रा रवत न उसकी पहचान करायी री

पररपणथता स रवत को जानना ही जस उस सपणथता को छना रा शायद रजत न भी रवत म ऐसा कछ

पाया रा जो आम औरतो स अलग रा रवत शादी क इतन बरस बाद भी उस अपन म उलझाय री और

िह उसस मि नही होना चाहता रा रवत म बाहरी खबसरती क बािजद वयवि क ददमाग को भी

उलझाय रखन का जो गण रा उसस सच म जो भी पास आता और सखचता जाता रवत म भरपर

पयार लन की चाह री तो भरपर दन की कषमता भी इसी स अभी भी उसस जी तो नही भरा रा रजत

का शायद िह ऐसी औरत री जो हमशा वनत निीन होती रहhellip सौदयथ की एक पररभाषा यह भी तो

दी गई ह दक जो वनत नतन होता रह िही सौदयथ ह रवत भी कभी परानी नही पड़ती रोज कछ नया

होता ह उसक पासhellip कोई नया खयालhellip कोई नई सझhellip कोई नई उकसान उलझान िाली बातhellip

शायद इस ददमागी सौदयथ कहना होगाhellip जो कछ भी उसम राhellip बस खीचता रा अपनी ओरhellip मोहता

राhellip शायद कया पर उगली धरना उस पररवध म बाधन की भोडी कोवशश होती

कछ दवदव उठता तो रवत रजत क ही हक म बोलती री रजत क वहतो को सरवकषत कर लन क

बाद ही िह तारक को उसका हक दती तारक को खीझ भी होती दक रजत उसक जीिन म चदक पहल

आ गया रा इसीवलए हर चीज म ही पहला हक उसी का बनता ह पर उसन रवत स अपनी यह

मनवथरवत कभी जावहर नही होन दी री वपछल साल िलनदराईन ड पर ऐसा ही तो हआ रा दरअसल

दोनो को अदाज नही रा दक उस िीक ड पर िलनदराईन ड पड़ता रा तारक को दकसी काम स रवत क

शहर आना रा और दोनो न वमलन का कायथकरम बना डाला रा रजत स रवत की बात हई होगी तो

उसन भनकर कहा रा rdquoतो िह तमहारा िलनदराईन ह जो उस ददन आ रहा हrdquo रवत क कहन पर दक उस

तो याद भी नही रा िह बोला रा rdquoम नही मान सकता दक तारक न य ही आन का बनाया ह इस

िीक ड परrdquo रवत न तारक स सारी बात बतलायी तो उसन सोचा रा िह खद फोन पर रजत स कहगा

दक उस सचमच याद नही रा पर दफर बात बढ़ान न दन क वलए चप रह गया रा और जान का

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परोगराम भी थरवगत कर डाला रा तब उस दो बात तकलीफ दती रही री एक तो यह दक रजत हमशा

उसक सामन परारवमकता ल जायगा दसरी यह कड़िी सचचाई दक रवत कभी भी उसकी जावहरी वजनददगी

का वहथसा नही बन सकती री उसकी कमर म हार डाल कर िह कभी दकसी स यह नही कह सकता

रा रवत मरी हrdquo तब उस बहद रशक होता रजत स कया रजत को सचमच अहसास ह दक रवत तारक

क वलए कया ह दक िह उसकी वजनददगी का कनदर उसकी वजनददगी का अरथ बन चकी ह यह कोई हलका-

फलका ठरकपन नही उसकी वजनददगी का रशा-रशा गर गया ह रवत स शबद म अरथ की तरह समायी ह

रवत उसक अवथतति म इस गरन म िह खद ही घरता रहगा हमशा

अब रवत नही ह तो िह घरन और भी कस रही ह उस कया अब िह रजत स कह पायगा

अचानक उसका मन हआ दक रजत स कह द rdquoतमको मालम ह दक मझ सचमच पता नही रा दक उस

ददन िलनदराईन ड रा िनाथ ऐसी जरथत न करताrdquo दक िह जानता हhellip अचछी तरह समझता ह अपनी

और उसकी ररीररी की पररवधयो को दक रजद शायद कभी जान न पायगा पर उसन हमशा एक दोथत

की तरह रजत का रजत की जररतो का खयाल रखा हhellip वसफथ ऊपर-ऊपर स सामावजक उपचार की

तरह नही भीतर स दकसी ददली ररशत सhellip दफर िह ररशता चाह रवत क जररय स ही बना हो

हो सकता ह रजत यह सब महसस करता हो या न भी करता हो पर उसक चहर पर भी वमिता

का थिागतमय भाि हमशा ददखा ह तारक को वसिा उन कषणो क जब दक सचमच उन दोनो क बीच

lsquoररररोररयलrsquo झगड़ हए तब भी ि शायद इसानी आचार या परथपर सदभाि की सीमाओ को कभी

लाघ नही पर दफर भी तारक का रवत क सार का ररशता ऐसा नही दक रजत क सार वजस बार सक

रवत उसकी हथती का अवभि वहथसा ह िह कोई और कस हो सकता ह रजत रवत नही हो सकता

चाह उसक दकतन ही करीब रहा हो उस दकसी न दकसी तरह स अपन खत पान ही ह लदकन कस

और यही तारक बार-बार उलझ जाता ह अपनी यह परशानी िह दकसी क सार बार नही सकता

रजत स तो कतई नही खत अगर सचमच रजत क हार पड़ गय तो

लदकन रवत न यह भी तो कहा रा दक अगर िह नही रही तो कया फकथ पड़ता ह पर रजत

सचमच खत पढ़ ल तोhellip शायद उसकी पीड़ा पर तब करोध और घणा का कोई विकराल भत हािी हो

सकता हhellip हो सकता ह दक खत पढ़कर रजत रवत को खद स वछरक द लदकन उसस कया तब शायद

रवत और भी तारक क करीब आ जाय और भी उसकी अपनी हो जाय वसफथ उसी की समची एक रात

पहल उस ऐसा ही कछ सपना आया रा रवत की मौत की खबर क बाद यही उसका याद रह जानिाला

सपना रा िह रवत की अतयवि म गया ह और एक अधरा-सा बठकनमा कमरा हhellip कमर म कछ

कागज वबखर पड़ हhellip िह एक कागज उठाता हhellip िह उसी का रवत को वलखा खत हhellip और कई लोग

उसक आसपास ह और िह सोचन लगता ह दक कही इन लोगो न भी तो उनदह नही पढ़ाhellip तभी रजत

का चहरा उसकी ओर बढ़ता ह और िह कागज वछपान की तरकीब सोचन लगता हhellip इसी उधड़बन म

उसकी आख खल गयी री तो वजथम पसीन म नहाया हआ रा

एक रजत ही यहा उसक सबस करीब हhellip और रजत ही उस अजनबी-सा लगन लगा ह अब

तक उसका रवत का सदभथ रा अचानक उस सदभथ स करकर न होन जसा हो रहा ह तारक को अजीब-

सी मानवसक दरी और भयकर अकलापन-सा महसस हआ िह यहा आया ही कयो रा रवत की

नामौजदगी म दकतना बमानी ह उसका यहा होना रजत को भी दकतना दफजल-सा लग रहा होगा

उसका यहा उपवथरत होना वजन लोगो स वघरा ह ि तो सचमच उसक अपन हhellip तारक तो दर स भी

अपना नहीhellip मत स तारक का जो भी नाता रहा होhellip उसक दकसी दसर स तो नही रा उसक कॉलज

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कामो स लौर बचच भी तारक को पहचानत नही र तारक न ही उनकी शकलो और वयिहार स अदाज

लगाया रा और हॉलि म लगी तथिीरो स उनदह पहचान पाया रा

तारक क पास रजत स कहन को कछ नही रा उसका कछ भी कहना रजत को खल सकता रा

उलर तारक को लगन लगा दक रजत शायद सोच रहा हो दक अब कयो जखमो को याद ददलान आ गय

हो कछ भी हो तारक न उस पीड़ा तो पहचायी ही री कया अब उसका कछ भी करना रजत क कि को

कम कर सकता रा उसन वनगाहो स ही अपना दख बयान कर ददया जो शायद रजत न थिीकार भी

वलया राhellip शायद एक औपचाररकता की तरह जस िह दसर बहत स जमा लोगो की शोकावभवयविया

थिीकार रहा राhellip उसस कछ अलग नही शायद तारक का िहा होना ही रजत को खल रहा हो पर

िि की नाजकी की िजह स िह कछ कहना न चाह रहा हो तारक एकदम परशान-सा उठ खड़ा हआ

कछ लोग रजत क गल लग रह र शायद उसस विदा लकर जा रह र तारक न सोचा िह अब

कहगा दक रवत क पास कछ उसक जररी कागजात र अगर रजत उस कागजो िाली जगह पर ल चल

तो िह खद ही दख लगा तारक यि की गवत स रजत की ओर बढ़ा रजत जस दकसी को दख कर भी

दख नही रहा रा उसकी आख दकसी शनदय पर ररकी री तारक को लगा उन लोगो क वघराि म

वजसम उसक अपन अजीज दोथत और ररशतदार र रजत न उस कोई विशष लकष नही दकया तारक क

भीतर अजीब सनापन-सा आ वघरा लगा जस रवत रजत म कही नही री वसफथ भरम-सा हआ रा उस

उसक िहा होन का जस दक उसक रवत क नात स िहा होन म ही कोई भारी असगवत री उस लगा

िहा बठ अजनबी स लोग उस घर रह र उसक िहा होन पर परशनवचनदह लगा रह र पता नही दकतन

ही अजनवबयो स वघर गया रा तारक यहा तक दक रवत की उस तथिीर म भी उस रवत नजर नही आ

रही री िह भी कोई अजनबी छाया री यह दवनया उसकी नही री अगर िह रवत की दवनया रही

भी हो तो वजस रवत को िह जानता रा उस रवत क वलए भी यह दवनया अनवथतति री विसगत री

उसन रजत को बहत सभलत सभलत गल स लगान की औपचाररकता की उस लगा जस िह

दकसी अजनबी को गल लगा रहा रा रवत वजतन उसक अपन पास री उतन और कही नही दकसी क

पास नही दरअसल रवत और कही नही री उसक भीतर रीhellip बस उस रवत को िही अपन भीतर ही

कही सजोय रखना रा भीतर ही खोजना रा भीतर ही तसलली करनी री दकसी और स बार नही

सकता रा रवत को रजत क दोनो कधो को हलक स दबाकर उसन धीर स कहा rdquoरक कयरrdquo और मड़ा

तो वबना पीछ दख बाहर वनकल गया

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पासपोरथ अमरीकन मरो

ओम गपता

पासपोरथ अमरीकन मरो पर रगत सहदथतानी

आज सनाऊ तमको पयार अपनी रामकहानी

छोड़ो भारत मन भयया डॉलर दख-दख ललचायो

चार-पकोड़ी जब भी दख मोह म पानी भर आयो

दीिाली पर दीप जलाउ होली पर खल रग

मौको जब मझको लगतो पीतो म भी भग

कसो होगी सरकार हमारी मोक हरदम सचता

जब भी दश पड़ सकर म कपा करो हनमनदता

पज म अब भी राम-कषण जातो मददर रोज

गपशप यारो स करतो फोकर म वमलतो भोज

योगी-बाबा आए दश स जब दन मझको जञान

आख मद क ना कछ जान करतो उनको सममान

हमबगथर अब भी नही भातो भाती मझ कचोड़ी

जसो जब भी मौका आयो रोपी िसी ओढ़ी

जाऊ दश को जब म अपन खाऊ लडड और इमरती

कहतो खद को सहदथतानी अमरीका मरी अब धरती

कहन को बहत ह भयया रोड़ को समझो काफी

बरा-भला लगा जो तमको माग नतमथतक माफी

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शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

आकाकषा ह

वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

फर च अनिाद कर इस lsquoभोगिाद स पीवड़त पविम की आतमा को अतयवधक शावत दन िालाrsquo कहा

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ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

की सीमाओ क पर मनषय कया अनभि कर सकता ह उसकी एक झलक भी ददखा दता ह उसी

औपवनषदीय जञान को महरवष िदवयास न सामानदय जनो क वलए ldquoपविि गीताrdquo म सवकषपत रप म परथतत

दकया ह िदवयास की महानता ही ह जो दक 11 उपवनषदो क जञान को एक पथतक म बाध सक और

मानिता को एक आसान यवि स परमातम जञान का दशथन करा सक ldquoपविि गीताrdquo महाभारत क

भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

ह भगिद गीता वहनदद धमथ क पविितम गरनदरो म स एक ह जो इसानो की चौहददी की सीमा रखा पर

भगिान क शरी मख दवारा इसान स कही गयी सरहदो पर चहरो की थकररनी का लखा-जोखा ह यह

12 47 2015 34

पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

12 47 2015 35

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Sneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStke Anmol haSy 9` Uuml na3k-sgh Yacute jIvn ke rg Uuml kaVy-sgh Yacute ddeR-jubagt Uuml nJ_m v g_j_l sgh Yacute Aaj ka pu=8 Uuml khanI-sgh Yacute jIvn-ini2 Uuml kaVy-sgh Yacute AaTm-gujn Uuml AayaiTmk-daxRink gIt Yacute has-pirhas Uuml haSy kivta0gt Yacute j_J_bato ka islisla Uuml kaVy-sgh Yacute The Galaxy Within UumlA collection of English poemsYacute AnuwUityagt Uuml kaVy-sgh Yacute kaVy-vlti3 Uuml skln 0v spadn Yacute pUrb-piXcm Uuml AapvasI sMbiN2t Aaleq sgh Yacute bO7ar Uuml skln 0v spadn Yacute kaVy hIrk Uuml skln 0v spadn Yacute sjIvnI Uuml SvaS$y sMbN2I leq Yacute ]pin8d dxRn Uuml AyaiTmk Yacute

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idLlI pes kI sirta v ANy raumlIy 0v ANtraRumlIy pi5kaAo me wI rcna0gt pkaixt

Page 15: Year 12, Issue 47Year 12, Issue 47 vsu2avsu2a · राथत § में आ वबछ §ग . ... श्रराम की अन ¡कम्पा स § ह हाल ह में

12 47 2015 13

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मरली कस अधर धर

महाकवि गलाब खडलिाल

मरली कस अधर धर

सर तो िदािन म छर कस तान भर

जो मरली सबक मन बसती

वजसस री तब सधा बरसती

आज िही नावगन-सी डसती छत वजस डर

वजसको लत ही अब कर म

पीड़ा होती ह अनदतर म

कस दफर उसकी धन पर म जग को मगध कर

इसको तभी धर अधरो पर

जब सग-सग हो राधा का थिर

जब यह मरली सना-सनाकर उसका मान हर

मरली कस अधर धर

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भारत और भारतीयता का अरथ

परो गिरीशवर ममशर कलपवत महातमा गाधी वहनददी विशवविदयालय

आजकल क चरवचत सरोकारो म भारत और भारतीयता क सिाल परछन न और परत यकष दोनो ही रपो

म खासी चचाथ का विषय बन चक ह और कई बड़ बवदधजीिी इस पर बहस म वशरकत कर रह ह दसरी

ओर ऐसो की भी कमी नही ह जो इस बमतलब का मददा मानत ह इसका पररदश य आज जररल और

बदला हआ ह दश क थ िति होन क पहल और थ िति होन क ततकाल बाद और अब लगभग सात

दशक की पररपक िता क करीब पहचत-पहचत इस लकर आज बहतर यह मान कर इस तरह की चचाथ

स तरथ र हो चल ह दक यह तो कोई सारथक परश न ही नही ह कछ इस िवशवक या भमडलीकत हो रह

आज क समय की जररतो क अनसार समझना चाहत ह कछ इस किल थ रानीय दवि स ही दखना

चाहत ह कछ इस सभ यता और सथ कवत क विमशथ स जोड़ कर दखत ह जो भी हो अतरराष रीयता क

सार परयासो क बािजद आज भी राज य या नशन थ रर की अिधारणा वनणाथयक महत ि रखती ह और

वनकर भविष य म सीमाविहीन दश जसी कोई अिधारणा आकार लती नजर नही आती आज का सत य यही ह दक दशो की सीमाए बाधा (का अवधक) और सपकथ (का कम) का काम

कर रही ह दश की सीमाओ की रकषा सबक सामन एक बड़ी चनौती ह दश और राष र किल कोरी

भौगोवलक अिधारणाए नही होती उन इकाइयो की रचना क सार एक समाज या समदाय विशष की

आशा-आकाकषा भी जड़ी होती ह दश की अिधारणा एक थ िप न को समरवपत रहती ह आज क तमाम

राष रो क सार उनक सार जड़ी लबी सघषथ-गारा आसानी स दखी जा सकती ह जो दसर समाजो और

समदायो की सामराज यिादी आकाकषाओ क परवतरोध को दशाथती ह शविसपनद न और आरवरक रप स परबल

दशो की दादावगरी उनकी सतता और शवि का जलिा अभी भी बरकरार ह कहन का तात पयथ यह दक

दश की इकाई अभी भी राजनवतक सामावजक आरवरक सामररक और सास कवतक रप स महत िपणथ

बनी हई ह और उस नकारा नही जा सकता

आज बौवदधक किायद म भारत समत सब कछ करथ रड मान जान का फशन-सा चल पड़ा ह

पर उसस दर करोड़ो (भारतीय) जनो क तन-मन म भारत जीवित ह आम आदमी वजनस दश आकार

लता ह िह भारत की एक सामावजक थ मवत भी रखता ह उसक वलए दश थ रानबोधक ह और भारत

एक भाि भी ह भारतीय होन का मतलब ह भारतभवम म रहन की जीिन-व यिथ रा म शावमल होना

भारत कह या इवडया यह मलतः एक भौगोवलक थ रान और उसकी पररवध को रखादकत करता ह इस

भभाग को जब दवीप आयाथितथ भारतिषथ और सहदथतान क नाम स भी जानत ह वहमालय और

सागर इसकी सीमाए बनात ह शथ यश यामला क दश गान और जनगणमन क राष रीय गान म जीित

भारत माता को वजस रप म थ मरण दकया गया ह िह भौगोवलक अिधारणा ही नही उसकी सीमा म

रहन िाल बासशदो की सामावजक-साथ कवतक अवथमता पर बल दती ह वजसका एक भािात मक रप भी

ह भारत एक सामावजक शरणी भी ह जो समाज दवारा रवचत और थ िीकत ह यह उस सामावजक

आकाकषा का परतीक भी ह जो एक आदशथ वथरवत की ददशा म जान क वलए परररत करती ह आधवनक

यग म एक थ िति जनति क रप म एक राज य की थ रापना हई और सहमवत स एक सविधान बना और

12 47 2015 17

सामावजक आकाकषा को एक मतथ रप वमला हमन उसम आिश यकतानसार बदलाि भी दकया ह इस

इकाई क सदथ य क रप म हमारी एक भारतीय पहचान ह

स मरणीय ह दक एक समदाय या सामावजक इकाई की वभनद नता या अलग सतता थ रावपत करना

वयािहाररक दवि स भी आिश यक ह ऐसा करना समाज को अदर स बाधता ह एकजर करता ह और

अनद य (िसी ही) इकाइयो स फकथ करता ह िधावनक रप स नशन या राष र एक काननी इकाई भी ह

और उसक सदथ य िध नागररक होत ह वजसकी थ िीकवत अनद य राष र भी करत ह और पासपोरथ िीसा

आदद की व यिथ रा स आिागमन को वनयवित करत ह नागररक क रप म िधावनक सामावजक और

साथ कवतक अवधकार क सार कतथव य और दावयत ि म भी भागीदारी होती ह समाज की वनयवत ह दक

जावत भाषा बोली कषि भोजन िथ ि रीवत-ररिाज धमथ आदद की विशषताए आ जाती ह इनक

सार समाज का भािात मक लगाि होता ह और उसक सदथ य थ िय को उसी आधार पर पररभावषत भी

करन लगत ह चदक इन विशषताओ का सचार पारथ पररक सबध और जीिन क विविध व यापारो स

गहरा ररश ता होता ह इसवलए य उस समाज की पाररभावषक विशषताए बन जाती ह

भारत दश हमार समकष एक सभ यता और मल य दविसपनद न सामावजक इकाई क रप म

उपवथरत होता ह इसकी समझ कई रपो म वमलती ह वनकर इवतहास म झाक तो पाएग दक इसक

कई रप ह एक छोर पर सहद उपलवबध को बलपिथक रखन िाल वतलक अरसिद सािरकर और

विवपन चर पाल जस ह दसरी और गोखल रानाड गाधी और रगोर सरीख आध यावतमक विचार को

मानन िाल ह जो सभी परभािो को आत मसात करन को तयार ह य सवहष णता आत मवनयिण आदद क

सार एक तरह की बहलता को ठीक मानत ह तीसरी ओर आधवनक दविसपनद न नौरोजी और पवडत

नहर जस लोग ह जो भारत को एक विकवसत सभ यता तो मानत ह पर यह भी महसस करत ह दक

उसका हरास भी हआ और उसम बहत कछ आधवनक जीिन दवि क विपरीत हआ जो आज उपयोगी

नही ह उनक वहसाब स एक बहलतािादी आधवनक नजररया जो विजञानसम मत हो उपयक त ठहरता ह

आज हर भारतीय की एक बहआयामी पहचान बनती ह िह सहद बगाली मवथलम गजराती

कश मीरी वबहारी बराहमण ओबीसी जन ईसाई आदद िाली एक सार कई तरह की पहचान रखता ह

य वभनद न वभनद न पहचान अक सर एक दसर की विरोधी न होकर परक होती ह साथ कवतक रप स ि

गहरी पठी ह और उनक सार लोगो का गहरा सािथजवनक लगाि भी ह िथ ततः हर भारतीय की

पहचान (आइडरररी) की अलग व यिस रा ह कोई एक यनीफामथ पमाना नही ह जो यह तय कर दक कई

पहचानो म स कौन सबस ऊपर नबर िन पर ह यह एक बड़ा तरल या फलइड मामला ह आज

पजा-पाठ सगीत और थ िाथ थ य लाभ क अनक क र भारत भर म फल हए ह जहा आन जान स सहद

ईसाई वसख और मसलमान दकसी को भी परहज नही होता कई पहचान क सार रहना अथ पष रता तो

पदा करता ह पर शायद दसरो क वलए िथ ततः हर भारतीय कई (उप) सथ कवतयो म जीता ह और य

सब वमलकर उसकी पहचान बनाती ह इस अरथ म हर भारतीय शायद बहसाथ कवतक ह और उसकी

पहचान बहआयामी

दश की छवि दशिावसयो क आत मगौरि का माध यम होती ह आज क भारत का अग होना उस

वबलाग करना हमको आरवरक परगवत की ओर अगरसर एक दश एक आरवरक पािर क सार जड़न का

12 47 2015 18

एहसास दता ह दसरी ओर भरष राचार अवशकषा अव यिथ रा सामावजक करीवतयो और भदभाि क

कारण मन म रकान उदासीनता और असहायता की भािना भी आती ह इस सबक बािजद एक

भारतीय का बोध जरर ह जो पजाबी मराठी या गजराती होन अलग जावत िगथ और समदाय का

सदथ य होन पर भी सबको भारतीय बनाता ह कभी-कभी विविधता म एकता िाल नहर जी का

भारत अपररभाषय या अव याख यय लगता ह भारत को एक विथ तत साथ कवतक इकाई क रप म दखन

पर कछ विचार उभरत ह जो भारतीय होन क अरथ को थ पष र करन म सहायक होत ह इनम परमख ह

धमथ कमथ पनजथनद म को दकसी न दकसी रप म थ िीकारना सामावजक इकाई - पररिार जावत समदाय

क थ तर पर अपन अवथतत ि को महसस करना सक स वििाह और अनद य व यवियो क परवत खास दविकोण

को अपनाना बहलता का थ िीकार और खल कछ-कछ असगरठत दकथ म की आत म या सल फ की

अिधारणा का थ िीकार और दकसी न दकसी रप म दकसी बड़ी जञात-अजञात सतता स जड़ाि की

अवभलाषा और पररिश परकवत और सवि क सार साझदारी तरा परथ पर अनपरकता का भाि

समकालीन विमशथ म राज य और राष र की अिधारणा क अरथ बहत कछ इस पर वनभथर करत ह

दक कौन दकस दविकोण और परयोजन स इन पर गौर कर रहा ह अक सर इनद ह अतीत ितथमान और

भविष य स जोड़ कर दखा जाता ह और लोग अपन चन िचाररक आदशथ स रग कर ही इस पर विचार

करत ह इन शब दो और इनस जड़ अरथ थ रान और समय क सार-सार बदलत रह ह जो थ िाभाविक ह

भारत दश क बार म सोचन की एक बड़ी मवशकल यह ह दक हमारी अपनी पररभाषा क पमान हमार

अपन न होकर दकसी और क ददए हए ह ि हमार बौवदधक मानस म इतन गहर पठ चक ह दक अब हम

अपन पमान क बार म भरोसा ही नही कर पा रह ह और खद को पररभावषत करन का अवधकार ही

खोत जा रह ह आरवरक और तकनीकी परगवत क पसराि की दवनया म आज हमारा आतम-सशय इतना

गहराता जा रहा ह दक भारत और भारतीयता की बात करना परानी और ददकयानस और इसवलए

अपरासवगक मानी जान लगी ह अगर इसकी बात करनी भी ह तो उसकी सनद कही और स जरानी

होगी आज अपनी पहचान क वलए हम पविमी दशो म विदवानो क दवारा परमाण और गिाही चाहत ह

आज भारत की साथ कवतक विविधता को सपनद नता और समवदध क ोत क रप म समझन समझान की

जररत ह वजसका उपयोग समाज क विकास म दकया जाय इसक वलए भारत को भारत क नजररए स

दखना होगा वबना इस भय क दक भारतीय होना दकसी कषमा याचना की अपकषा करता ह थ िदशी और

सराज जस विचार अभी भी परासवगक ह समरथ और थ िािलबी होन क वलए आत म थ िीकार और सतत

पररष कार आिश यक ह

12 47 2015 19

भकप का सदश

डॉ एमएल गपता ldquoआददतय

धरती हर ददन डोल रही ह कपन की बोली बोल रही ह

विनाश कर आकरोश स बदल कय भगोल रही ह

कय धरती न भकरी तानी कय वहमालय म आिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

जो ससाधन र पोषण क उनका शोषण कर डाला

ओजोन का जो किच रा उसका भी भदन कर डाला

बरहमी स कार हमन िसधरा क िन-कश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

सागर क तीरो को छीला पठार और पिथत को लीला

नददया बनी नाल और नाली नही ददखता जल वनमथल-नीला

चतािनी द रहा ह मौसम बदला भमडल का पररिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

विजञान की सीढ़ी चढ़ विनाश का सामान बनाया

परमाण सयि द रह यातना विकीरण का खतरा मडराया

रवडएशन स आतदकत ह दवनया क सब दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

12 47 2015 20

कोई अण कोई परमाण कोई हाईडरोजन बम ल ऐठा ह

वबछी हई बारद धरा म मानि बमो क ढर पर बठा ह

हआ परमाण यदध तो वमर जाएग दकतन दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

भकषक बनकर मानि इक दज पर चोर कर रहा

परीकषण की खावतर दकतन भीषण बम विथफोर कर रहा

परकवत का सतलन वबगड़ा तो हम बन जाएग अिशष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

कदरत कहर बरपा सकती ह कभी भी आफत आ सकती ह

धरा की जरा सी भी हरकत दकतना कोहराम मचा सकती ह

धरा न जरा करिर बदली तो कछ भी न रहगा शष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

पयाथिरण क आघात पर अब तो रोक लगानी होगी

सागर पिथत धरती क सग बद करनी मनमानी होगी

धरती को जो मा मानोग सब वमर जाएग कलश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

12 47 2015 21

ि दोनो

डॉ सषम बदी

छत स फशथ तक क लब शीशो स जड़ी उस बड़ी-सी बठक म खब सारी ददन की रौशनी भरी हई

री फशथ पर वबछी सफद चादरो पर सफद िसतर पहन ढर सार लोग उस रौशनी का ही वहथसा लग रह

र कमर म घसत ही तारक को लगा जस उस शवतता म घल मौत क सदथपन और जड़ता न अचानक

उसक भीतर को जकड़ वलया ह बीचोबीच फलो की माला चढ़ी एक बड़ी-सी रवत की तथिीर री

वजसका धप दीप और गीता क शलोको स अवभषक दकया जा रहा रा रवत अब तथिीर भर री तारक

की थतबध पवनयायी आख वनथसहाय-सी रजत को खोजन लगी

रजत सारा िि लोगो स वघरा ही रहा रा उसकी मा उसक बचच और दसर ररशतदार कोई न

कोई उसक आसपास रा ही उन दोनो की आख एक दसर स दो एक बार वमली पर रजत अपन स

बाहर नही आ पाया रा तारक न दकसी तरह अपनी शोकभािना वयि कर दी री न भी वयि करता

तो कया रजत को तो खद भी अहसास होगा उसकी अतभाथिना का एक िही तो ह इस भीड़ म जो

जानता ह दक िह कयो यहा ह बाकी तो तारक दकसी स पररवचत ही नही वसिाय कछक रवत क

कलीगज क एक दो कलीगज स ही उसकी बात हई रवत क बार म ि उस पररिार का वमि मानकर

बात कर रह र य पररिार का वमि तो िह रा ही पर इसस अलग या ऊपर भी कछ रा यह शायद

रजत क अलािा और कोई नही जानता रा जबदक रजत भी परा कहा जानता ह खास तौर स िह सब

कछ जो तारक महसस करता रहा ह या जो कछ तारक और रवत क बीच म रहा या अभी भी वजसका

बहत कछ बचा रा

य तारक न बहत बार सोचा दक अब रवत नही रही तो उसक यहा जान का कोई फायदा नही

उसकी तकलीफ बढ़गी ही दफर लगा दक नही उस रजत स वमलन जाना होगा रजत भी तो उसका

दोथत ह य रवत उन दोनो क बीच न होती तो ि शायद बहत गहर दोथत हो सकत र दफर भी िह खद

को कई तरह स रजत क करीब महसस करता रा और रजत भी बहत मामलो म उसी स सलाह करक

चलता रा उस पर भरोसा करता रा जो दक उसक मन क दोथती क भाि को ही जताती री चदक

तारक की विशषता ददल क रोगो म री िह रवत क हारथअरक क बाद स उसस अकसर रवत क बार म

सलाह लता यहा तक दक रवत स भी कोई वशकायत होती तो तारक स ही कहता दखो न इसका

कोलथराल इतना हाई चल रहा ह और मडम चीज मीर सभी कछ खाती ह अभी रथतरा ल चलो परा

का परा थरक गरक जायगी कस कर यह तो खद को नकसान पहचान स बाज नही आतीrdquo और तारक

तब ररका दता कसी डाकरर हो तम रवत मरीजो को उपदश दती रहती हो और खदhellipदफर उसन

खद ही एक विशषण गढ़ा रा रवत क वलए lsquoनानकपलायरrsquo यानी दक जो कछ भी कहा जायगा उसका

विरोध ही करगी रवत और दकसी िजह स नही बवलक विरोध करन क वलए विरोध

तब रवत और भी तिर चढ़ाकर बोलती rdquoरजत तो पहल ही मर पीछ पड़ा रहता ह अब तम

भी इसी स वमल गय हो िाह जी िाह दोथत दकसक हो तम मर या रजत कrdquo

तारक तब चप रह जाता रा रजत भी कछ नही कहता एक वपरय अवपरय सतय

शायद रवत भी इसीवलए कहती री दक तारक तब लाजिाब हो जायगा कयोदक रवत जानती ह दक जो

िह तारक क वलए ह िह और कोई नही हो सकता और रजत को भी इसका अदाज ह इसी स रजत न

शर म चाह दकतना विरोह दकया हो दकतना लड़ाई झगड़ाhellip दफर धीर-धीर मान वलया रा इस ररशत

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को रवत क वलए ही अगीकार कर वलया रा तारक को भी रवत न ही उस बतलाया रा जब रजत न

उस बाहो म भरकर कहा रा rdquoइतना पयार करता ह तमह दक यह भी थिीकारन क वलए राजी हrdquo

एक हक-सी उठी री तारक क भीतरhellip वजस इतना पयार वमला होhellip इतनाhellip िह इस तरह स

उन दोनो की वजनददगी को ही सना करक रखसत हो ली तारक क मन म गथसा भी आयाhellip शायद

अपनी सहत का धयान रखती तो कछ और जी जाती उन दोनो स ही तो चार-पाच साल छोरी री िह

जी भी सकती री पर अबhellip और तारक न लबी सास भरी

रवत की एक कलीग बता रही री rdquoपरसो तो काम पर आयी हई री रवत म सोच भी नही

सकती री दक इतना भारी थरोक हो सकता ह दक एक ही लपर म ल जायhellip मझ तो विशवास ही नही

होताrdquo तारक को भी विशवास नही होता रा उसी ददन सबह रवत न उसस फोन पर बात की री और

उसस मजाक दकया रा rdquoमर जनदमददन पर आओगrdquo

दरअसल सारा झगड़ा कछ साल पहल रवत क जनदमददन को लकर ही शर हआ रा िनाथ शायद

रजत को उन दोनो क बीच बढ़त ररशत की तवनक खबर न लगती रवत न उस बतलाया रा दक उसक

जनदमददन पर िह और रजत आमतौर पर शाम को बाहर दकसी बदढ़या स फर च रथतरा म खाना खान

जात ह तब तारक न कहा रा rdquoठीक ह तो लच तम मर सार लनाrdquo

रवत मान गयी री उसन उसी ददन रवत क शहर पहचन क वलए फलाईर भी बक करिा ली

री पर जब ठीक जनदमददन आनिाला रा तो रवत न उस बतलाया रा दक रजत को ठीक नही लग रहा

मरा तमहार सार लच पर जाना िह पछ रहा रा दक इतना इमपॉरर कस हो गया यह आदमी दक

तमको उस जनदमददन पर जरर वमलना ह

rdquoतमन कया कहाrdquo तारक वजजञास हो उठा रा

rdquoयही दक तमको दकसी काम स शहर म होना रा इसवलए लच पर वमलन की बात की इस पर

उसन कहा दक अगल ददन वमल लो जनदमददन िाला ददन तो उसी क वलए हhellip कोई और कयोrdquo

दफर िह बोली rdquoइसी पर उस शक हो रहा ह दक यह कोई आम दोथत नहीhelliprdquo

तारक न जोड़ ददया रा rdquoपरमी हrdquo

rdquoहा यही शक हो रहा ह उसrdquo

rdquoतो ह या नहीhelliprdquo

rdquoशायद होhellip यही मसीबत हrdquo

तारक न कहा रा rdquoअब तो ररकर ली हई ह म तो आऊगा ही तम वमल सको तो वमलना िनाथ

न वमलना चाह पाच वमनर क वलए या कॉफी क वलए भी आ जाओगी तो मर वलए िही काफी होगा

तमहार जनदमददन पर तमह दख भर लrdquo

rdquoतम भी कमाल क रोमाररक होhellip पर सच कह तो म भी तमस वमलना चाहती ह उस ददनhellip

कछ न कछ तो जगाड़ना पड़गाrdquo

rdquoमर वलए तमहारा जनदमददन मरी वजनददगी का बहत अहम ददन हhellip समझीrdquo

एयरपोरथ पहच कर तारक न फोन दकया रा रवत बोली री rdquoरजत कह रहा ह तम हम वडनर

पर जॉयन कर लोrdquo

तारक बहत हरान हआ रा पर रवत न फोन रजत को पकड़ा ददया रा तारक एकदम सकर म

पड़ गया रा उसन खद को बचान की कोवशश की rdquoसॉरी म तो यहा आया रा तो सोचा रवत स वमल

लगा पर इस तरह आप लोगो क परोगराम मhelliprdquo

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रजत न जोर दकर कहा रा rdquoनही भाई बहत तारीफ सन रहा ह बीिी स जरा हम भी तो

वमल आपस आप चाह तो घर पर आ जाईए या दफर सीध रथतरा पर वमलगrdquo

rdquoपर आप लोगो का तो वडनर पर सार जान का कायथकरम रा नrdquo

rdquoआप लच पर फरी ह तो लच पर वमल लत ह य मझ तो वडनर ही पसद ह जसा आप कहrdquo

रजत वबलकल दोथताना ढग स बात कर रहा रा एक पल को उसकी रोन म कछ तनाि तारक

को महसस हआ रा पर अगल ही पल आिाज दफर सहज हो गयी री तारक मान गया पर रकसी लकर

पहल होरल म सामान छोड़ा और इस दौरान खद को मानवसक तौर पर तयार भी करता रहा दक कस

पश आना ह अपन रकीब स दखा जाय तो ररशता रकीब का ही रा बाकी ि दकतन भी सभय या

समझदार इसानो की तरह एक-दसर स बताथि कर आवखर ि तीनो सममावनत पश क र तारक हारथ

थपशवलथर रा तो रजत अगरजी सावहतय का परोफसर और रवत सायकायररथर इसानी मन की

कमजोररयो को समझना मनोरोगो का इलाज करना रवत की विशषता तो री ही पर इसानी आकषथण

एक दसर क परवत सखचाि या ऐस ररशतो को समझन की सथकवत तो कही तीनो म ही री

रजत इस बात को खब समझता रा दक दकसी भी औरत क वलए दकसी दसर परष क परवत

सखचाि हो जाना बहत सहज रा िही एक पवत और पतनी स परम करन िाल क रप म िह रवत क इस

वयिहार स ईषयाल भी हो उठता रा एक सभय इसान क नात िह ईषया को दबा कर तारक क परवत भी

वमिित वयिहार करना चाहता रा पर िही उस रवत क वयिहार स कि पहचता रा दक िह उसक

अलािा भी दकसी दसर परष को चाह सकती ह वजसस उसक मन म आकरोश और वितषणा का भाि

उठता कभी िह अपन को उदार बना कर यह कहना चाहता दक रवत अगर दकसी दसर को चाहती ह

तो बशक उसको भी कयो न पाय सार ही जब करोध होता तो एक तरह स जस िह रवत को सजा दन क

वलए कह डालता rdquoतम जाओ दोनो सार रहोrdquo पर जो पीड़ा िह उसम सह रहा होता िह रवत और

तारक दोनो क वलए ही असहय होती

रवत न कहा रा rdquoकया तारक और म दोथत नही हो सकत और इतन दोथत हhellip एक िह वयवि

वजसस बात करक मझ खशी वमलती ह िह दोथत कयो नही बन सकता वसफथ इसवलए दक उसक मन म

तीखी भािना ह मर वलएhellip या शरीरो का आकषथण भी हhelliprdquo

रजत तब तकथ स सारी बात को समझन समझान की कोवशश करता हा करत-करत कह दता

rdquoऔरत आदमी म दोथती हो ही नही सकती कयोदक जहा शरीरो का आकषथण हो िहा दोथती जसा

वनषकपर भाि कस पनप सकता हrdquo तब रवत दोथती का एक और पकष पश करती rdquoतमहार कहन का

मतलब तो िही ददकयानसी बात हई दक शरीर पाप का मल ह जबदक तम खद ही यह पहल कह चक

हो दक शरीरो का मसला हल हो जाय तो औरत मदथ बहत खबसरत दोथत हो सकत हhellip शरीर को

अहवमयत दी कयो जाय शरीर वमल जान स उनका दोथती म बाधा बनन का मसला खतम हो जाता हrdquo

रजत रवत की बात मान भी जाता रा पर रवत दफर तारक को यह भी बताती री rdquoिन कार

रक वहम फॉर गरारड कल को िह अपना कोई नया तकथ द दगाrdquo

शायद इसी स तारक भी अचानक वहममत हारन लगा रा कस सामना करगा िह रजत का य

िह रजत स एकाध बार पहल वमल चका रा पर तब उसको यह अदाजा नही रा दक रवत और उसक

बीच कछ रा जबदक तारक तब भी कछ आतमसजग-सा हो रहा रा पर कछ वमनरो की मलाकात को

सभाल लना कोई बड़ी बात नही री और य भी रजत उस भला आदमी लगा रा यह भी सोचा रा दक

अगर रवत उन दोनो क बीच न होती तो यह वयवि उसका दोथत हो सकता रा य रवत क होन क

बािजद अतत ि दोथत बन ही पर इस दोथती का तानाबाना िसा न रा जस खावलस दोथती का होता

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ह इसम रवत क रश बन हए र जो एक और ही रगत वलए र और िह रगत तारक को बहत पयारी री

उस दोथती स जयादा

तारक न होरल पहच कर फोन कर ददया रा दक वडनर पर वमलना ही ठीक रहगा और िह

अपना काम इस दौरान कर लगा रजत आसानी स यह बात मान गया और कहा दक िह सडरकस पर

पहल घर पर आ जाय उसक बाद रथतरा खाना खान चल जायग

शाम को जब िह चलन लगा तो फोन बजा रा दसरी ओर रवत री हलो कहत ही रवत न

कहा rdquoसनो तम मत आना मर घर म बहत रशन चल रही हrdquo इसस पहल दक िह कछ कहता रवत न

फोन वडसकनकर कर ददया

रात को कोई फलाईर नही जाती री िनाथ िह उसी िि शहर छोड़ क चला जाता

आध घर बाद ही घरी दफर बजी रवत पछ रही री दक आ रह हो तारक बौखला गया दक आवखर हो

कया रहा ह कया यह रवत क मन की उलझन ह या दक रजत कीhellip या दोनो कीhellip या रवत वसफथ रजत

की उलझन को वयि कर रही री बोली री rdquoजलदी आ जाओ हम लोग इतजार कर रह हrdquo

िह पहचा तो रवत न अकल ही उसका थिागत दकया रा िह जानता रा दक दोनो बचच कालजो

म ह पर रजत काफी दर तक बठक म नही आया तो तारक हरान हआ रवत बोली rdquoिह नहा रहा हrdquo

दफर मथकरा कर जोड़ा rdquoशायद हम दोनो को कछ िि दना चाहता हrdquo

तारक तब कछ निथस हआ रा उस आग बढ़कर रवत को चमन का हौसला नही हआ उस लगा

दक रवत भी सहज नही री जस दक आम तौर पर होती ह पर उसन कछ कहा नही िह खद भी तो

सहज नही हो पा रहा रा जस लड़की क बाप क घर म शादी का परथताि लकर जा रहा हो कछ कछ

इसी तरह का महसस हो रहा रा िही डर कर परचा करना रा दक इमतहान म फल न हो जाय

रजत न कमर म आत ही बड़ तपाक स हलो दकया कछ औपचाररक-सी बात की दफर उसस

सडरक पछा और दकचन म बफथ िगरह का इतजाम करन क वलए दफर स गायब हो गया तारक को लगा

दक सहज होन की बहत कोवशश क बािजद रजत बहत असहज ह

ववहथकी का घर लत हए तारक न ही रजत स उसक काम क बार म पछना शर दकया बात

कही जा नही रही री तभी रवत एक नई दकताब की चचाथ करन लगी वजसका ररवय सबह क अखबार म

छपा रा तारक न हिाई जहाज म ही उसक बार म पढ़ा रा दफर तो बातचीत खब गरमागरम होन

लगी रजत न दवकषण एवशयाई अगरजी लखको क बार म अपन विचार झाड़न शर कर ददय यहा तक

दक रवत न अचानक घड़ी दखी तो पता चला दक रथतरा की ररजिशन का िि हो चका रा रजत न

रथतरा को फोन दकया दक कछ वमनर लर पहचग और तारक को बोला दक जलदी स सडरक खतम कर ल

या गाड़ी म ही ल चल दोनो न दो तीन सडरक चढ़ा रख र मौज-सी भी आयी हई री रजत ही कार

चला रहा रा और तारक पीछ िाली सीर पर बठा रा अचानक रजत कछ नश और कछ अपनी धन म

बोला rdquoतो तम मरी बीिी स पयार करत होrdquo

तारक भौचक-सा हो गया य ही बठा रहा जस रजत की बात को सना न हो या िह गभीरता

स लन लायक न हो रजत न अपनी बात को सिाल बनाकर दबारा पश दकया rdquoकयो तारक मरी बीिी

स पयार करत हो या नहीrdquo

तारक न कहा rdquoहाrdquo और चप कर गया उस लग रहा रा िह जो भी जिाब दगा खतर स खाली नही

पर यह जिाब सच रा तो सच बोल कर ही मार खायी जाय उस दकसी लड़की क वपता स हार मागन

नही जाना पड़ा रा आज यह भी सही

rdquoतम भी पयार करत हो िह भी करती ह तो तम दोनो सार कयो नही रहतrdquo

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तारक बोल पड़ा रा rdquoयह इतना आसान नहीrdquo

रजत इस पर आकरमण करता-सा बोला rdquoकमाल ह पयार भी करत ह और वजममिारी भी नही

वनभाना चाहतrdquo तारक को महसस हो रहा रा दक रजत कह तो कछ रहा ह और पहचाना कछ और

चाहता ह दफर भी िह जिाब तो उसी बात का द सकता रा जो दक पछी जा रही री यह कह कर

उस नाराज भी नही करना चाहता रा दक रजत वसफथ अपन भीतर क आकरोश आतक और आग को

आिाज द रहा रा बोला rdquoयह बात नही म आज भी रवत क सार वजनददगी शर करन को तयार ह

जहा तक म जानता ह रवत अपन शहर को छोड़ कर और कही नही जायगी न िह तमको छोड़न को

तयार होगी जहा तक म रवत को जानता हhelliprdquo

रवत चपचाप अपन पर अकश लगाय दोनो की बात सन रही री न तो िह रजत क पकष म

कछ बोलना चाहती री न तारक क पकष म ही बोल सकती री दफर भी दोनो क बीच तारतमय वबठाय

रखन की वजममिारी भी उसी की री और िह समझ नही पा रही री दक दकस तरह इस बातचीत को

सीमाय लाघन स बचाया जाय ऊपर स उस डर लग रहा रा दक आिश म रजत कही रककर न मार द

रथतरा बहत दर रा भी नही बात पर चरम पर चल रही री दक रथतरा आ गया रवत न रोका rdquoरजत

पारककग ढढ़ो रथतरा आ गयाrdquo रथतरा क सार ही पारककग गराज म गाड़ी छोड़ कर तीनो अदर चल गय

िरर न उनको मज पर वबठाया और सडरक क वलए पछा तरा मनदय लाकर ददय तीनो क तीनो उस मज

पर इस तरह खामोश और भर बठ र दक मनदय म वसर डबोना एक राहत बन गया रा तीनो न अपन-

अपन आडथर ददय पर बात कछ बन नही रही री हर कोई कछ भी कहन म जयादा ही सतकथ हो रहा रा

अचानक रवत बोली rdquoरजत तमको इतनी जयादा तकलीफ री तो तमन मना कयो नही कर

ददया म तो तारक को कह चकी री दक आज सार खाना नही होगा तमही न जोर ददया दक जरर

बलाओ अब इस तरह कयो बताथि कर रह होrdquo

रजत और भड़क गया rdquoम तो वसफथ यह कह रहा ह दक तम लोग एक-दसर को पयार करत हो

तो म कया कर रहा ह यहा तम जाओ एक दसर क सार रहोrdquo

दोनो की आिाज ऊची हो रही री और दसरी मजो पर बठ लोगो की वनगाह इस ओर उठ आयी री

तारक न धीर स सझाया रा rdquoमर खयाल स हम य बात यहा नही करनी चावहएrdquo सहसा रवत

न होश म आत कहा rdquoहा इतन बदढ़या रथतरा म खाना खान आय ह कछ खान पर भी तो धयान दhellip

दफर आज मरा जनदमददन ह आई िार र हि ए गड मीलrdquo

दफर भी खान पर तीनो म स दकसी का धयान नही लग सका तीनो औपचाररक-सी बात म लग

गय र तारक न ही शहर क निीनतम रथतराओ क बार म ताजा पढ़ी समीकषा का वजकर छड़ ददया रा

रजत न कार स जब उस होरल छोड़ा तो तारक न उपर कमर म आकर सडरक लन क वलए कहा

पर जसा दक िह अपकषा कर रहा रा रजत न दर होन का बहाना बना छटटी माग ली री रवत तब भी

कछ नही बोली री शायद उस डर रा दक उसका कछ भी कहना रजत क वलए घाि पर नमक वछड़कन

जसा होगा या उसकी कोई भी बात का गलत मतलब वनकाल कर रजत भड़क सकता रा य दर हो भी

चकी री

पर तारक यह भी जानता रा दक रवत एक नबर की वजददी री जो उस चावहए रा चावहए ही

रा उस रोका नही जा सकता रा िह ऊपर स मान जायगी पर भीतर स कभी माफ नही करगी

शायद इसी स रजत भी वबगड़ी हई लाड़ली बरी की तरह रवत की हर चाह या माग को विरोध करक

भी अतत मान जाता रा

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लौर आन क दो चार ददन बाद ही उसक फोन पर रवत न सदश छोड़ा रा rdquoतमहारा आना ठीक

नही हआ सॉरी तमह बलाकर भी वमल नही पायी अब लगता ह कभी नही वमलगी लर अस थरॉप

ददस वहयर पलीज मझस सपकथ मत करनाrdquo

तारक बहत ददन परशान घमता रहा रा पर रवत को फोन भी नही दकया उसन मना जो कर

डाला रा उस फोन करत हए तारक को लगता दक िह खद को उस पर लाद रहा ह और यह वथरवत

उस कभी गिारा नही री हर ददन दकसी जिालामखी-सा लाि स लदा हआ गजरता अदर ही अदर

सब तप रहा रा

महीन भर बाद रवत न फोन दकया रा rdquoगथसा हो न मझस तमस माफी भी नही माग सकीrdquo

उसकी तो कोई जररत नहीrdquo

दफर भी सोचा रा तमस कभी बात नही करगी इसी स तमको सपकथ करन स मना दकया

रा रजत को भी यही मालम ह दक तमस ररशता तोड़ ददया ह पर अब मझी स बात दकय वबना रहा

नही जा रहाrdquo

रजत को मालम ह मझस बात कर रही होrdquo

िह बहद गथसा ह तमसhellip जस दक सारा दोष तमहारा होhellip दक तमन उसकी बीिी को फसा वलयाrdquo

ि इसी तरह जब मौका लगता बात कर लत तारक क ददल ददमाग पर रवत ही छायी रहती

िह ऐस ही पलो क दौरान जीता जब दोनो क बीच कछ सपकथ होता बाकी क पल उन पलो क इतजार

म गजरत

इस बीच रवत को ददल का दौरा पड़ा रा घबराकर तारक को फोन कर डाला रा रजत न

तारक आया तो रजत उस अपनी गाड़ी म सार अथपताल ल आता जाता रहा दोनो म एक दोथती का

नाता तभी बना रा दवनया जहान की बात रजत न उस घर पर ही ठहराया रा तारक तीन ददन बाद

चला गया रा िावपस पर दोनो की फोन पर बात हो जाती रवत अथपताल स िावपस आ गयी री

धीर-धीर िह सामानदय होकर िावपस अपना काम सभालन लगी

रवत का जनदमददन दफर स आनिाला रा रवत न उस कहा रा rdquoरजत अपन आप ही बोल रहा ह

दक तम आ जाओ इस बार मरा जनदमददन मनान बोलो आओगrdquo

तारक परानी बात याद करक घबरा गया रा rdquoनही दफर स उसक भीतर सब घमड़न लगगाhellip

सबको तकलीफ होगीrdquo

यह सच भी रा रजत कभी तो उसक परवत बहत वमिित हो जाता िही अचानक गथसा ईषयाथ

उभर आत और िह अकसर बरखी ददखाता अचानक तारक को ऐसा महसस हआ जस रवत उसस खद

यह सब कह रही हो पल भर को िह भल ही गया दक रवत क ही अतयवि कमथ म िह शावमल हआ ह

और दरअसल उसक यहा आन की एक िजह यह भी ह दक िह रवत को वलख अपन खत िावपस ल

जाना चाहता ह उस डर ह दक कही ि खत रजत क हार न पड़ जाय

तारक रवत क सार काम करन िाली इस मवहला डॉ लोपज स पहल वमला हआ रा इस भीड़

म एक िही जान-पहचान की री तारक का मन हआ उसस पछ दक कया िह रवत की दराज म उसक

कागजात पर नजर मार सकता ह तारक को अदाज रा दक उसक खत िह दफतर की मज की दराज म

रखती री पर िह जानता रा दक ऐसा करना ममदकन रा नही आवखर तारक को कस हक पहचता रा

रवत की दराज खलिान का िह तो एक पररिार क वमि की हवसयत स िहा रा रजत ही कह सकता

रा दखा जाय तो ि लोग खद भी रजत स ही कहग दक रवत का सामान िह ल जाय तब तो रजत की

आख जरर उन पर पड़गी तब शायद उसको बरा लगगा दक रवत क सार तारक का एक अपना ररशता

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रा उन तीनो की आपसी दोथती क बाहरhellip रजत को बतहाशा चोर लगगी अब जबदक िह रवत स

जिाबतलबी भी नही कर सकता रवत अब कोई सफाई नही पश कर पायगी तारक क हक म कछ भी

नही कह सकगी दकसी तकथ स रजत को लाजिाब नही कर पायगी नही िह ऐसा नही कर सकता न

यह रवत क परवत सही होगा न रजत क परवत उस दकसी न दकसी तरह स खत पान ह

राथत म आत हए हिाई जहाज म तारक जब लगातार रवत क सार की अपनी वजनददगी क

गजर पल दहरा रहा रा बार-बार उस धयान आता दक जब स रवत को ददल का दौरा हआ रा िह

उसस कहना चाहता रा दक उसक खत विनि कर द एक बार उसन बात उठायी तो रवत बोली rdquoकयो

तमहार खत मर दफतर की दराज म सफ पड़ हrdquo

शायद िह वबना कह यह भी समझ गयी री दक तारक का इशारा दकस ओर ह तभी बोली

दखो जब तक म वजनददा ह म उनको फाड़ कर न तो फ क सकती ह न जला सकती ह एक बार मर गयी

तो कया फकथ पड़ता ह दक कोई कया करगा उनक सार तमको तो दफकर होनी नही चावहए अब तो ि

मरी अमानत हrdquo यह बातचीत दो एक महीन पहल की ही होगी तारक न सोचा रा बात कभी दफर

उठायगा पर उसस पहल हीhellip

तारक को भी तब यह अदाज नही रा दक रवत क अलािा रजत स भी उसका नाता रा रवत क

जान क बाद िह खद को रजत क बहत करीब महसस कर रहा रा और उस लगा दक उसक खत रजत

को उसस दफर दर धकल सकत र पर िह दकसी तरह भी रजत को खोना नही चाहगाhellip रजत जस स

रवत का ही एक वहथसा राhellipउसन दखा लोगो स वघरा रजत का चहरा बहद वनचड़ा हआ रिहीन और

सखा-सा लग रहा रा रात भर सोया नही होगा इसवलए आखो क नीच कालापन उतर आया रा आख

काफी अदर को धसी हई री तारक को लगा दक िह शायद रजत स बहतर हालत म ह दफर उस रशक

भी हआ रजत अपन गम का खला इजहार कर सकता हhellip तारक को यह सविधा नही री िह दकसी

उजड़ आवशक क रप म इस महदफल इस मौत का शोक करन िालो की महदफल मhellip अपना असली

चहराhellip अपना आवशक का चहराhellip नही ददखा सकता रा अचानक उसकी आख भर आयी अपन खोन

की वशददत क अहसास स

रवत क िाकय उसक कान म सरसरान लग जबस उस ददल का दौरा पड़ा रा िह जीिन की

कषणभगरता या इसान क नाचीज होन क अवथततििादी दशथन को बहत बघारन लग गयी री शायद

अपन जान का अहसास उस कही बहत गहर उदास कर जाता रा पर िही िह उस जान को एक

अिशयभािी अकारय सतय की तरह थिीकार करक उसस समझौता भी करन लग गयी री एक ददन

उसन हडसन नदी क दसर वसर स मनहरन की ओर दखत हए कहा रा rdquoदखो तो इन छोर-छोर वडबबो

म दकतन लाखो लोग रहत ह दकतन छोर ह हम लोग इतनी तग जमीन पर दकतनी बड़ी तादाद म

समा जात ह एकदम हजारो की सखया म सार-सार जड़ कीड़ो की तरह दफर भी अपन आप को

दकतना बड़ा मानत ह राजनीवत धमथ और नवतकता की तवखतया वचपका कर दकतना बड़ा होन का

भलािा दत रहत ह खद कोrdquo

रजत को रवत की इसान को नाचीज करार दन िाली बातो स हमशा बहत वचढ़ छरती री

बोला रा rdquoधमथ नवतकता जीिन क सतय ह इनको तम भलािा दन िाली चीज कस कह सकती हो

इसान इसीवलए तो बाकी जीिो स अलग ह दक िह सोच सकता हrdquo

rdquoऔर सोच क धरातल पर हर चीज को गलत या सही सावबत कर सकता ह नवतकता को गढ़

सकता ह या परा सतयानाश कर सकता हhellip ठीक ह मझ तो उसम कोई नकसान नहीrdquo

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हा नकसान दकसी का ह तो मरा ही रजत न कहा तो तारक झर स बोल पड़ा रा rdquoनकसान

तो तब होता जो म उस भगा क ल जाताrdquo

रजत न सजीदगी स कहा rdquoअब इसका ददल बर गया हhellip तो आधी सपवतत तो लर ही गयी न

तम भगा ल जाओ तो भी फकथ नही पड़गा यह आधािाला वहथसा तब भी यही रहगाrdquo

सचमच रजत का यह विशवास सही रा रवत और उसक ररशत की शरआत क ददनो म भािना

क परिाह म बहता तारक रवत क सार एक नयी वजनददगी क दकिाड़ खोलन की बात सोच पाया रा पर

जलद ही उस अहसास हो गया रा दक रवत कही बहत गहर जड़ी री रजत क सार दक िह कभी उस

ररशत को तोड़गी नही य रजत भी शर क ददनो म भीतर स वहल गया रा यह झरका दक रवत रजत

को छोड़ दकसी और को मन म ला सकती ह उस बहत दर जा फ क आया रा दफर रवत न खोय विशवास

को िापस लौरा ददया रजत अपन आध नकसान क सार धीर-धीर शायद समझौता करना सीख गया रा

तारक को लगा दक िह आध क सार समझौता करना सीख गया रा दफर तारक को लगा दक

िह आध क सार समझौता नही रा रजत क भीतर कही पर का भरोसा भी रा जस दक रवत को वसफथ

एक बदलाि चावहए रा जो तारक रा िनाथ िह परी रजत की ही री कयोदक मौका आन पर रजत

अपना परा हक जतान स चकता नही रा हमशा यही मानता रा दक पहला हक उसी का ह तारक

हमशा बाद म आयगा जस दक पर भर लन पर बचा हआ भोजन दकसी को भी ददया जा सकता हhellip

कछ ऐसा रख

पर रवत बचा हआ भोजन नही रीhellip दकसी तरह स भी उवचछि या अिवशि नही जो उसन

रवत म पाया रा िह पहल वजनददगी म कभी नही वमला रा रवत न उसकी पहचान करायी री

पररपणथता स रवत को जानना ही जस उस सपणथता को छना रा शायद रजत न भी रवत म ऐसा कछ

पाया रा जो आम औरतो स अलग रा रवत शादी क इतन बरस बाद भी उस अपन म उलझाय री और

िह उसस मि नही होना चाहता रा रवत म बाहरी खबसरती क बािजद वयवि क ददमाग को भी

उलझाय रखन का जो गण रा उसस सच म जो भी पास आता और सखचता जाता रवत म भरपर

पयार लन की चाह री तो भरपर दन की कषमता भी इसी स अभी भी उसस जी तो नही भरा रा रजत

का शायद िह ऐसी औरत री जो हमशा वनत निीन होती रहhellip सौदयथ की एक पररभाषा यह भी तो

दी गई ह दक जो वनत नतन होता रह िही सौदयथ ह रवत भी कभी परानी नही पड़ती रोज कछ नया

होता ह उसक पासhellip कोई नया खयालhellip कोई नई सझhellip कोई नई उकसान उलझान िाली बातhellip

शायद इस ददमागी सौदयथ कहना होगाhellip जो कछ भी उसम राhellip बस खीचता रा अपनी ओरhellip मोहता

राhellip शायद कया पर उगली धरना उस पररवध म बाधन की भोडी कोवशश होती

कछ दवदव उठता तो रवत रजत क ही हक म बोलती री रजत क वहतो को सरवकषत कर लन क

बाद ही िह तारक को उसका हक दती तारक को खीझ भी होती दक रजत उसक जीिन म चदक पहल

आ गया रा इसीवलए हर चीज म ही पहला हक उसी का बनता ह पर उसन रवत स अपनी यह

मनवथरवत कभी जावहर नही होन दी री वपछल साल िलनदराईन ड पर ऐसा ही तो हआ रा दरअसल

दोनो को अदाज नही रा दक उस िीक ड पर िलनदराईन ड पड़ता रा तारक को दकसी काम स रवत क

शहर आना रा और दोनो न वमलन का कायथकरम बना डाला रा रजत स रवत की बात हई होगी तो

उसन भनकर कहा रा rdquoतो िह तमहारा िलनदराईन ह जो उस ददन आ रहा हrdquo रवत क कहन पर दक उस

तो याद भी नही रा िह बोला रा rdquoम नही मान सकता दक तारक न य ही आन का बनाया ह इस

िीक ड परrdquo रवत न तारक स सारी बात बतलायी तो उसन सोचा रा िह खद फोन पर रजत स कहगा

दक उस सचमच याद नही रा पर दफर बात बढ़ान न दन क वलए चप रह गया रा और जान का

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परोगराम भी थरवगत कर डाला रा तब उस दो बात तकलीफ दती रही री एक तो यह दक रजत हमशा

उसक सामन परारवमकता ल जायगा दसरी यह कड़िी सचचाई दक रवत कभी भी उसकी जावहरी वजनददगी

का वहथसा नही बन सकती री उसकी कमर म हार डाल कर िह कभी दकसी स यह नही कह सकता

रा रवत मरी हrdquo तब उस बहद रशक होता रजत स कया रजत को सचमच अहसास ह दक रवत तारक

क वलए कया ह दक िह उसकी वजनददगी का कनदर उसकी वजनददगी का अरथ बन चकी ह यह कोई हलका-

फलका ठरकपन नही उसकी वजनददगी का रशा-रशा गर गया ह रवत स शबद म अरथ की तरह समायी ह

रवत उसक अवथतति म इस गरन म िह खद ही घरता रहगा हमशा

अब रवत नही ह तो िह घरन और भी कस रही ह उस कया अब िह रजत स कह पायगा

अचानक उसका मन हआ दक रजत स कह द rdquoतमको मालम ह दक मझ सचमच पता नही रा दक उस

ददन िलनदराईन ड रा िनाथ ऐसी जरथत न करताrdquo दक िह जानता हhellip अचछी तरह समझता ह अपनी

और उसकी ररीररी की पररवधयो को दक रजद शायद कभी जान न पायगा पर उसन हमशा एक दोथत

की तरह रजत का रजत की जररतो का खयाल रखा हhellip वसफथ ऊपर-ऊपर स सामावजक उपचार की

तरह नही भीतर स दकसी ददली ररशत सhellip दफर िह ररशता चाह रवत क जररय स ही बना हो

हो सकता ह रजत यह सब महसस करता हो या न भी करता हो पर उसक चहर पर भी वमिता

का थिागतमय भाि हमशा ददखा ह तारक को वसिा उन कषणो क जब दक सचमच उन दोनो क बीच

lsquoररररोररयलrsquo झगड़ हए तब भी ि शायद इसानी आचार या परथपर सदभाि की सीमाओ को कभी

लाघ नही पर दफर भी तारक का रवत क सार का ररशता ऐसा नही दक रजत क सार वजस बार सक

रवत उसकी हथती का अवभि वहथसा ह िह कोई और कस हो सकता ह रजत रवत नही हो सकता

चाह उसक दकतन ही करीब रहा हो उस दकसी न दकसी तरह स अपन खत पान ही ह लदकन कस

और यही तारक बार-बार उलझ जाता ह अपनी यह परशानी िह दकसी क सार बार नही सकता

रजत स तो कतई नही खत अगर सचमच रजत क हार पड़ गय तो

लदकन रवत न यह भी तो कहा रा दक अगर िह नही रही तो कया फकथ पड़ता ह पर रजत

सचमच खत पढ़ ल तोhellip शायद उसकी पीड़ा पर तब करोध और घणा का कोई विकराल भत हािी हो

सकता हhellip हो सकता ह दक खत पढ़कर रजत रवत को खद स वछरक द लदकन उसस कया तब शायद

रवत और भी तारक क करीब आ जाय और भी उसकी अपनी हो जाय वसफथ उसी की समची एक रात

पहल उस ऐसा ही कछ सपना आया रा रवत की मौत की खबर क बाद यही उसका याद रह जानिाला

सपना रा िह रवत की अतयवि म गया ह और एक अधरा-सा बठकनमा कमरा हhellip कमर म कछ

कागज वबखर पड़ हhellip िह एक कागज उठाता हhellip िह उसी का रवत को वलखा खत हhellip और कई लोग

उसक आसपास ह और िह सोचन लगता ह दक कही इन लोगो न भी तो उनदह नही पढ़ाhellip तभी रजत

का चहरा उसकी ओर बढ़ता ह और िह कागज वछपान की तरकीब सोचन लगता हhellip इसी उधड़बन म

उसकी आख खल गयी री तो वजथम पसीन म नहाया हआ रा

एक रजत ही यहा उसक सबस करीब हhellip और रजत ही उस अजनबी-सा लगन लगा ह अब

तक उसका रवत का सदभथ रा अचानक उस सदभथ स करकर न होन जसा हो रहा ह तारक को अजीब-

सी मानवसक दरी और भयकर अकलापन-सा महसस हआ िह यहा आया ही कयो रा रवत की

नामौजदगी म दकतना बमानी ह उसका यहा होना रजत को भी दकतना दफजल-सा लग रहा होगा

उसका यहा उपवथरत होना वजन लोगो स वघरा ह ि तो सचमच उसक अपन हhellip तारक तो दर स भी

अपना नहीhellip मत स तारक का जो भी नाता रहा होhellip उसक दकसी दसर स तो नही रा उसक कॉलज

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कामो स लौर बचच भी तारक को पहचानत नही र तारक न ही उनकी शकलो और वयिहार स अदाज

लगाया रा और हॉलि म लगी तथिीरो स उनदह पहचान पाया रा

तारक क पास रजत स कहन को कछ नही रा उसका कछ भी कहना रजत को खल सकता रा

उलर तारक को लगन लगा दक रजत शायद सोच रहा हो दक अब कयो जखमो को याद ददलान आ गय

हो कछ भी हो तारक न उस पीड़ा तो पहचायी ही री कया अब उसका कछ भी करना रजत क कि को

कम कर सकता रा उसन वनगाहो स ही अपना दख बयान कर ददया जो शायद रजत न थिीकार भी

वलया राhellip शायद एक औपचाररकता की तरह जस िह दसर बहत स जमा लोगो की शोकावभवयविया

थिीकार रहा राhellip उसस कछ अलग नही शायद तारक का िहा होना ही रजत को खल रहा हो पर

िि की नाजकी की िजह स िह कछ कहना न चाह रहा हो तारक एकदम परशान-सा उठ खड़ा हआ

कछ लोग रजत क गल लग रह र शायद उसस विदा लकर जा रह र तारक न सोचा िह अब

कहगा दक रवत क पास कछ उसक जररी कागजात र अगर रजत उस कागजो िाली जगह पर ल चल

तो िह खद ही दख लगा तारक यि की गवत स रजत की ओर बढ़ा रजत जस दकसी को दख कर भी

दख नही रहा रा उसकी आख दकसी शनदय पर ररकी री तारक को लगा उन लोगो क वघराि म

वजसम उसक अपन अजीज दोथत और ररशतदार र रजत न उस कोई विशष लकष नही दकया तारक क

भीतर अजीब सनापन-सा आ वघरा लगा जस रवत रजत म कही नही री वसफथ भरम-सा हआ रा उस

उसक िहा होन का जस दक उसक रवत क नात स िहा होन म ही कोई भारी असगवत री उस लगा

िहा बठ अजनबी स लोग उस घर रह र उसक िहा होन पर परशनवचनदह लगा रह र पता नही दकतन

ही अजनवबयो स वघर गया रा तारक यहा तक दक रवत की उस तथिीर म भी उस रवत नजर नही आ

रही री िह भी कोई अजनबी छाया री यह दवनया उसकी नही री अगर िह रवत की दवनया रही

भी हो तो वजस रवत को िह जानता रा उस रवत क वलए भी यह दवनया अनवथतति री विसगत री

उसन रजत को बहत सभलत सभलत गल स लगान की औपचाररकता की उस लगा जस िह

दकसी अजनबी को गल लगा रहा रा रवत वजतन उसक अपन पास री उतन और कही नही दकसी क

पास नही दरअसल रवत और कही नही री उसक भीतर रीhellip बस उस रवत को िही अपन भीतर ही

कही सजोय रखना रा भीतर ही खोजना रा भीतर ही तसलली करनी री दकसी और स बार नही

सकता रा रवत को रजत क दोनो कधो को हलक स दबाकर उसन धीर स कहा rdquoरक कयरrdquo और मड़ा

तो वबना पीछ दख बाहर वनकल गया

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पासपोरथ अमरीकन मरो

ओम गपता

पासपोरथ अमरीकन मरो पर रगत सहदथतानी

आज सनाऊ तमको पयार अपनी रामकहानी

छोड़ो भारत मन भयया डॉलर दख-दख ललचायो

चार-पकोड़ी जब भी दख मोह म पानी भर आयो

दीिाली पर दीप जलाउ होली पर खल रग

मौको जब मझको लगतो पीतो म भी भग

कसो होगी सरकार हमारी मोक हरदम सचता

जब भी दश पड़ सकर म कपा करो हनमनदता

पज म अब भी राम-कषण जातो मददर रोज

गपशप यारो स करतो फोकर म वमलतो भोज

योगी-बाबा आए दश स जब दन मझको जञान

आख मद क ना कछ जान करतो उनको सममान

हमबगथर अब भी नही भातो भाती मझ कचोड़ी

जसो जब भी मौका आयो रोपी िसी ओढ़ी

जाऊ दश को जब म अपन खाऊ लडड और इमरती

कहतो खद को सहदथतानी अमरीका मरी अब धरती

कहन को बहत ह भयया रोड़ को समझो काफी

बरा-भला लगा जो तमको माग नतमथतक माफी

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शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

आकाकषा ह

वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

फर च अनिाद कर इस lsquoभोगिाद स पीवड़त पविम की आतमा को अतयवधक शावत दन िालाrsquo कहा

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ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

की सीमाओ क पर मनषय कया अनभि कर सकता ह उसकी एक झलक भी ददखा दता ह उसी

औपवनषदीय जञान को महरवष िदवयास न सामानदय जनो क वलए ldquoपविि गीताrdquo म सवकषपत रप म परथतत

दकया ह िदवयास की महानता ही ह जो दक 11 उपवनषदो क जञान को एक पथतक म बाध सक और

मानिता को एक आसान यवि स परमातम जञान का दशथन करा सक ldquoपविि गीताrdquo महाभारत क

भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

ह भगिद गीता वहनदद धमथ क पविितम गरनदरो म स एक ह जो इसानो की चौहददी की सीमा रखा पर

भगिान क शरी मख दवारा इसान स कही गयी सरहदो पर चहरो की थकररनी का लखा-जोखा ह यह

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पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

12 47 2015 35

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Page 16: Year 12, Issue 47Year 12, Issue 47 vsu2avsu2a · राथत § में आ वबछ §ग . ... श्रराम की अन ¡कम्पा स § ह हाल ह में

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मरली कस अधर धर

महाकवि गलाब खडलिाल

मरली कस अधर धर

सर तो िदािन म छर कस तान भर

जो मरली सबक मन बसती

वजसस री तब सधा बरसती

आज िही नावगन-सी डसती छत वजस डर

वजसको लत ही अब कर म

पीड़ा होती ह अनदतर म

कस दफर उसकी धन पर म जग को मगध कर

इसको तभी धर अधरो पर

जब सग-सग हो राधा का थिर

जब यह मरली सना-सनाकर उसका मान हर

मरली कस अधर धर

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भारत और भारतीयता का अरथ

परो गिरीशवर ममशर कलपवत महातमा गाधी वहनददी विशवविदयालय

आजकल क चरवचत सरोकारो म भारत और भारतीयता क सिाल परछन न और परत यकष दोनो ही रपो

म खासी चचाथ का विषय बन चक ह और कई बड़ बवदधजीिी इस पर बहस म वशरकत कर रह ह दसरी

ओर ऐसो की भी कमी नही ह जो इस बमतलब का मददा मानत ह इसका पररदश य आज जररल और

बदला हआ ह दश क थ िति होन क पहल और थ िति होन क ततकाल बाद और अब लगभग सात

दशक की पररपक िता क करीब पहचत-पहचत इस लकर आज बहतर यह मान कर इस तरह की चचाथ

स तरथ र हो चल ह दक यह तो कोई सारथक परश न ही नही ह कछ इस िवशवक या भमडलीकत हो रह

आज क समय की जररतो क अनसार समझना चाहत ह कछ इस किल थ रानीय दवि स ही दखना

चाहत ह कछ इस सभ यता और सथ कवत क विमशथ स जोड़ कर दखत ह जो भी हो अतरराष रीयता क

सार परयासो क बािजद आज भी राज य या नशन थ रर की अिधारणा वनणाथयक महत ि रखती ह और

वनकर भविष य म सीमाविहीन दश जसी कोई अिधारणा आकार लती नजर नही आती आज का सत य यही ह दक दशो की सीमाए बाधा (का अवधक) और सपकथ (का कम) का काम

कर रही ह दश की सीमाओ की रकषा सबक सामन एक बड़ी चनौती ह दश और राष र किल कोरी

भौगोवलक अिधारणाए नही होती उन इकाइयो की रचना क सार एक समाज या समदाय विशष की

आशा-आकाकषा भी जड़ी होती ह दश की अिधारणा एक थ िप न को समरवपत रहती ह आज क तमाम

राष रो क सार उनक सार जड़ी लबी सघषथ-गारा आसानी स दखी जा सकती ह जो दसर समाजो और

समदायो की सामराज यिादी आकाकषाओ क परवतरोध को दशाथती ह शविसपनद न और आरवरक रप स परबल

दशो की दादावगरी उनकी सतता और शवि का जलिा अभी भी बरकरार ह कहन का तात पयथ यह दक

दश की इकाई अभी भी राजनवतक सामावजक आरवरक सामररक और सास कवतक रप स महत िपणथ

बनी हई ह और उस नकारा नही जा सकता

आज बौवदधक किायद म भारत समत सब कछ करथ रड मान जान का फशन-सा चल पड़ा ह

पर उसस दर करोड़ो (भारतीय) जनो क तन-मन म भारत जीवित ह आम आदमी वजनस दश आकार

लता ह िह भारत की एक सामावजक थ मवत भी रखता ह उसक वलए दश थ रानबोधक ह और भारत

एक भाि भी ह भारतीय होन का मतलब ह भारतभवम म रहन की जीिन-व यिथ रा म शावमल होना

भारत कह या इवडया यह मलतः एक भौगोवलक थ रान और उसकी पररवध को रखादकत करता ह इस

भभाग को जब दवीप आयाथितथ भारतिषथ और सहदथतान क नाम स भी जानत ह वहमालय और

सागर इसकी सीमाए बनात ह शथ यश यामला क दश गान और जनगणमन क राष रीय गान म जीित

भारत माता को वजस रप म थ मरण दकया गया ह िह भौगोवलक अिधारणा ही नही उसकी सीमा म

रहन िाल बासशदो की सामावजक-साथ कवतक अवथमता पर बल दती ह वजसका एक भािात मक रप भी

ह भारत एक सामावजक शरणी भी ह जो समाज दवारा रवचत और थ िीकत ह यह उस सामावजक

आकाकषा का परतीक भी ह जो एक आदशथ वथरवत की ददशा म जान क वलए परररत करती ह आधवनक

यग म एक थ िति जनति क रप म एक राज य की थ रापना हई और सहमवत स एक सविधान बना और

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सामावजक आकाकषा को एक मतथ रप वमला हमन उसम आिश यकतानसार बदलाि भी दकया ह इस

इकाई क सदथ य क रप म हमारी एक भारतीय पहचान ह

स मरणीय ह दक एक समदाय या सामावजक इकाई की वभनद नता या अलग सतता थ रावपत करना

वयािहाररक दवि स भी आिश यक ह ऐसा करना समाज को अदर स बाधता ह एकजर करता ह और

अनद य (िसी ही) इकाइयो स फकथ करता ह िधावनक रप स नशन या राष र एक काननी इकाई भी ह

और उसक सदथ य िध नागररक होत ह वजसकी थ िीकवत अनद य राष र भी करत ह और पासपोरथ िीसा

आदद की व यिथ रा स आिागमन को वनयवित करत ह नागररक क रप म िधावनक सामावजक और

साथ कवतक अवधकार क सार कतथव य और दावयत ि म भी भागीदारी होती ह समाज की वनयवत ह दक

जावत भाषा बोली कषि भोजन िथ ि रीवत-ररिाज धमथ आदद की विशषताए आ जाती ह इनक

सार समाज का भािात मक लगाि होता ह और उसक सदथ य थ िय को उसी आधार पर पररभावषत भी

करन लगत ह चदक इन विशषताओ का सचार पारथ पररक सबध और जीिन क विविध व यापारो स

गहरा ररश ता होता ह इसवलए य उस समाज की पाररभावषक विशषताए बन जाती ह

भारत दश हमार समकष एक सभ यता और मल य दविसपनद न सामावजक इकाई क रप म

उपवथरत होता ह इसकी समझ कई रपो म वमलती ह वनकर इवतहास म झाक तो पाएग दक इसक

कई रप ह एक छोर पर सहद उपलवबध को बलपिथक रखन िाल वतलक अरसिद सािरकर और

विवपन चर पाल जस ह दसरी और गोखल रानाड गाधी और रगोर सरीख आध यावतमक विचार को

मानन िाल ह जो सभी परभािो को आत मसात करन को तयार ह य सवहष णता आत मवनयिण आदद क

सार एक तरह की बहलता को ठीक मानत ह तीसरी ओर आधवनक दविसपनद न नौरोजी और पवडत

नहर जस लोग ह जो भारत को एक विकवसत सभ यता तो मानत ह पर यह भी महसस करत ह दक

उसका हरास भी हआ और उसम बहत कछ आधवनक जीिन दवि क विपरीत हआ जो आज उपयोगी

नही ह उनक वहसाब स एक बहलतािादी आधवनक नजररया जो विजञानसम मत हो उपयक त ठहरता ह

आज हर भारतीय की एक बहआयामी पहचान बनती ह िह सहद बगाली मवथलम गजराती

कश मीरी वबहारी बराहमण ओबीसी जन ईसाई आदद िाली एक सार कई तरह की पहचान रखता ह

य वभनद न वभनद न पहचान अक सर एक दसर की विरोधी न होकर परक होती ह साथ कवतक रप स ि

गहरी पठी ह और उनक सार लोगो का गहरा सािथजवनक लगाि भी ह िथ ततः हर भारतीय की

पहचान (आइडरररी) की अलग व यिस रा ह कोई एक यनीफामथ पमाना नही ह जो यह तय कर दक कई

पहचानो म स कौन सबस ऊपर नबर िन पर ह यह एक बड़ा तरल या फलइड मामला ह आज

पजा-पाठ सगीत और थ िाथ थ य लाभ क अनक क र भारत भर म फल हए ह जहा आन जान स सहद

ईसाई वसख और मसलमान दकसी को भी परहज नही होता कई पहचान क सार रहना अथ पष रता तो

पदा करता ह पर शायद दसरो क वलए िथ ततः हर भारतीय कई (उप) सथ कवतयो म जीता ह और य

सब वमलकर उसकी पहचान बनाती ह इस अरथ म हर भारतीय शायद बहसाथ कवतक ह और उसकी

पहचान बहआयामी

दश की छवि दशिावसयो क आत मगौरि का माध यम होती ह आज क भारत का अग होना उस

वबलाग करना हमको आरवरक परगवत की ओर अगरसर एक दश एक आरवरक पािर क सार जड़न का

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एहसास दता ह दसरी ओर भरष राचार अवशकषा अव यिथ रा सामावजक करीवतयो और भदभाि क

कारण मन म रकान उदासीनता और असहायता की भािना भी आती ह इस सबक बािजद एक

भारतीय का बोध जरर ह जो पजाबी मराठी या गजराती होन अलग जावत िगथ और समदाय का

सदथ य होन पर भी सबको भारतीय बनाता ह कभी-कभी विविधता म एकता िाल नहर जी का

भारत अपररभाषय या अव याख यय लगता ह भारत को एक विथ तत साथ कवतक इकाई क रप म दखन

पर कछ विचार उभरत ह जो भारतीय होन क अरथ को थ पष र करन म सहायक होत ह इनम परमख ह

धमथ कमथ पनजथनद म को दकसी न दकसी रप म थ िीकारना सामावजक इकाई - पररिार जावत समदाय

क थ तर पर अपन अवथतत ि को महसस करना सक स वििाह और अनद य व यवियो क परवत खास दविकोण

को अपनाना बहलता का थ िीकार और खल कछ-कछ असगरठत दकथ म की आत म या सल फ की

अिधारणा का थ िीकार और दकसी न दकसी रप म दकसी बड़ी जञात-अजञात सतता स जड़ाि की

अवभलाषा और पररिश परकवत और सवि क सार साझदारी तरा परथ पर अनपरकता का भाि

समकालीन विमशथ म राज य और राष र की अिधारणा क अरथ बहत कछ इस पर वनभथर करत ह

दक कौन दकस दविकोण और परयोजन स इन पर गौर कर रहा ह अक सर इनद ह अतीत ितथमान और

भविष य स जोड़ कर दखा जाता ह और लोग अपन चन िचाररक आदशथ स रग कर ही इस पर विचार

करत ह इन शब दो और इनस जड़ अरथ थ रान और समय क सार-सार बदलत रह ह जो थ िाभाविक ह

भारत दश क बार म सोचन की एक बड़ी मवशकल यह ह दक हमारी अपनी पररभाषा क पमान हमार

अपन न होकर दकसी और क ददए हए ह ि हमार बौवदधक मानस म इतन गहर पठ चक ह दक अब हम

अपन पमान क बार म भरोसा ही नही कर पा रह ह और खद को पररभावषत करन का अवधकार ही

खोत जा रह ह आरवरक और तकनीकी परगवत क पसराि की दवनया म आज हमारा आतम-सशय इतना

गहराता जा रहा ह दक भारत और भारतीयता की बात करना परानी और ददकयानस और इसवलए

अपरासवगक मानी जान लगी ह अगर इसकी बात करनी भी ह तो उसकी सनद कही और स जरानी

होगी आज अपनी पहचान क वलए हम पविमी दशो म विदवानो क दवारा परमाण और गिाही चाहत ह

आज भारत की साथ कवतक विविधता को सपनद नता और समवदध क ोत क रप म समझन समझान की

जररत ह वजसका उपयोग समाज क विकास म दकया जाय इसक वलए भारत को भारत क नजररए स

दखना होगा वबना इस भय क दक भारतीय होना दकसी कषमा याचना की अपकषा करता ह थ िदशी और

सराज जस विचार अभी भी परासवगक ह समरथ और थ िािलबी होन क वलए आत म थ िीकार और सतत

पररष कार आिश यक ह

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भकप का सदश

डॉ एमएल गपता ldquoआददतय

धरती हर ददन डोल रही ह कपन की बोली बोल रही ह

विनाश कर आकरोश स बदल कय भगोल रही ह

कय धरती न भकरी तानी कय वहमालय म आिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

जो ससाधन र पोषण क उनका शोषण कर डाला

ओजोन का जो किच रा उसका भी भदन कर डाला

बरहमी स कार हमन िसधरा क िन-कश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

सागर क तीरो को छीला पठार और पिथत को लीला

नददया बनी नाल और नाली नही ददखता जल वनमथल-नीला

चतािनी द रहा ह मौसम बदला भमडल का पररिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

विजञान की सीढ़ी चढ़ विनाश का सामान बनाया

परमाण सयि द रह यातना विकीरण का खतरा मडराया

रवडएशन स आतदकत ह दवनया क सब दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

12 47 2015 20

कोई अण कोई परमाण कोई हाईडरोजन बम ल ऐठा ह

वबछी हई बारद धरा म मानि बमो क ढर पर बठा ह

हआ परमाण यदध तो वमर जाएग दकतन दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

भकषक बनकर मानि इक दज पर चोर कर रहा

परीकषण की खावतर दकतन भीषण बम विथफोर कर रहा

परकवत का सतलन वबगड़ा तो हम बन जाएग अिशष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

कदरत कहर बरपा सकती ह कभी भी आफत आ सकती ह

धरा की जरा सी भी हरकत दकतना कोहराम मचा सकती ह

धरा न जरा करिर बदली तो कछ भी न रहगा शष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

पयाथिरण क आघात पर अब तो रोक लगानी होगी

सागर पिथत धरती क सग बद करनी मनमानी होगी

धरती को जो मा मानोग सब वमर जाएग कलश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

12 47 2015 21

ि दोनो

डॉ सषम बदी

छत स फशथ तक क लब शीशो स जड़ी उस बड़ी-सी बठक म खब सारी ददन की रौशनी भरी हई

री फशथ पर वबछी सफद चादरो पर सफद िसतर पहन ढर सार लोग उस रौशनी का ही वहथसा लग रह

र कमर म घसत ही तारक को लगा जस उस शवतता म घल मौत क सदथपन और जड़ता न अचानक

उसक भीतर को जकड़ वलया ह बीचोबीच फलो की माला चढ़ी एक बड़ी-सी रवत की तथिीर री

वजसका धप दीप और गीता क शलोको स अवभषक दकया जा रहा रा रवत अब तथिीर भर री तारक

की थतबध पवनयायी आख वनथसहाय-सी रजत को खोजन लगी

रजत सारा िि लोगो स वघरा ही रहा रा उसकी मा उसक बचच और दसर ररशतदार कोई न

कोई उसक आसपास रा ही उन दोनो की आख एक दसर स दो एक बार वमली पर रजत अपन स

बाहर नही आ पाया रा तारक न दकसी तरह अपनी शोकभािना वयि कर दी री न भी वयि करता

तो कया रजत को तो खद भी अहसास होगा उसकी अतभाथिना का एक िही तो ह इस भीड़ म जो

जानता ह दक िह कयो यहा ह बाकी तो तारक दकसी स पररवचत ही नही वसिाय कछक रवत क

कलीगज क एक दो कलीगज स ही उसकी बात हई रवत क बार म ि उस पररिार का वमि मानकर

बात कर रह र य पररिार का वमि तो िह रा ही पर इसस अलग या ऊपर भी कछ रा यह शायद

रजत क अलािा और कोई नही जानता रा जबदक रजत भी परा कहा जानता ह खास तौर स िह सब

कछ जो तारक महसस करता रहा ह या जो कछ तारक और रवत क बीच म रहा या अभी भी वजसका

बहत कछ बचा रा

य तारक न बहत बार सोचा दक अब रवत नही रही तो उसक यहा जान का कोई फायदा नही

उसकी तकलीफ बढ़गी ही दफर लगा दक नही उस रजत स वमलन जाना होगा रजत भी तो उसका

दोथत ह य रवत उन दोनो क बीच न होती तो ि शायद बहत गहर दोथत हो सकत र दफर भी िह खद

को कई तरह स रजत क करीब महसस करता रा और रजत भी बहत मामलो म उसी स सलाह करक

चलता रा उस पर भरोसा करता रा जो दक उसक मन क दोथती क भाि को ही जताती री चदक

तारक की विशषता ददल क रोगो म री िह रवत क हारथअरक क बाद स उसस अकसर रवत क बार म

सलाह लता यहा तक दक रवत स भी कोई वशकायत होती तो तारक स ही कहता दखो न इसका

कोलथराल इतना हाई चल रहा ह और मडम चीज मीर सभी कछ खाती ह अभी रथतरा ल चलो परा

का परा थरक गरक जायगी कस कर यह तो खद को नकसान पहचान स बाज नही आतीrdquo और तारक

तब ररका दता कसी डाकरर हो तम रवत मरीजो को उपदश दती रहती हो और खदhellipदफर उसन

खद ही एक विशषण गढ़ा रा रवत क वलए lsquoनानकपलायरrsquo यानी दक जो कछ भी कहा जायगा उसका

विरोध ही करगी रवत और दकसी िजह स नही बवलक विरोध करन क वलए विरोध

तब रवत और भी तिर चढ़ाकर बोलती rdquoरजत तो पहल ही मर पीछ पड़ा रहता ह अब तम

भी इसी स वमल गय हो िाह जी िाह दोथत दकसक हो तम मर या रजत कrdquo

तारक तब चप रह जाता रा रजत भी कछ नही कहता एक वपरय अवपरय सतय

शायद रवत भी इसीवलए कहती री दक तारक तब लाजिाब हो जायगा कयोदक रवत जानती ह दक जो

िह तारक क वलए ह िह और कोई नही हो सकता और रजत को भी इसका अदाज ह इसी स रजत न

शर म चाह दकतना विरोह दकया हो दकतना लड़ाई झगड़ाhellip दफर धीर-धीर मान वलया रा इस ररशत

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को रवत क वलए ही अगीकार कर वलया रा तारक को भी रवत न ही उस बतलाया रा जब रजत न

उस बाहो म भरकर कहा रा rdquoइतना पयार करता ह तमह दक यह भी थिीकारन क वलए राजी हrdquo

एक हक-सी उठी री तारक क भीतरhellip वजस इतना पयार वमला होhellip इतनाhellip िह इस तरह स

उन दोनो की वजनददगी को ही सना करक रखसत हो ली तारक क मन म गथसा भी आयाhellip शायद

अपनी सहत का धयान रखती तो कछ और जी जाती उन दोनो स ही तो चार-पाच साल छोरी री िह

जी भी सकती री पर अबhellip और तारक न लबी सास भरी

रवत की एक कलीग बता रही री rdquoपरसो तो काम पर आयी हई री रवत म सोच भी नही

सकती री दक इतना भारी थरोक हो सकता ह दक एक ही लपर म ल जायhellip मझ तो विशवास ही नही

होताrdquo तारक को भी विशवास नही होता रा उसी ददन सबह रवत न उसस फोन पर बात की री और

उसस मजाक दकया रा rdquoमर जनदमददन पर आओगrdquo

दरअसल सारा झगड़ा कछ साल पहल रवत क जनदमददन को लकर ही शर हआ रा िनाथ शायद

रजत को उन दोनो क बीच बढ़त ररशत की तवनक खबर न लगती रवत न उस बतलाया रा दक उसक

जनदमददन पर िह और रजत आमतौर पर शाम को बाहर दकसी बदढ़या स फर च रथतरा म खाना खान

जात ह तब तारक न कहा रा rdquoठीक ह तो लच तम मर सार लनाrdquo

रवत मान गयी री उसन उसी ददन रवत क शहर पहचन क वलए फलाईर भी बक करिा ली

री पर जब ठीक जनदमददन आनिाला रा तो रवत न उस बतलाया रा दक रजत को ठीक नही लग रहा

मरा तमहार सार लच पर जाना िह पछ रहा रा दक इतना इमपॉरर कस हो गया यह आदमी दक

तमको उस जनदमददन पर जरर वमलना ह

rdquoतमन कया कहाrdquo तारक वजजञास हो उठा रा

rdquoयही दक तमको दकसी काम स शहर म होना रा इसवलए लच पर वमलन की बात की इस पर

उसन कहा दक अगल ददन वमल लो जनदमददन िाला ददन तो उसी क वलए हhellip कोई और कयोrdquo

दफर िह बोली rdquoइसी पर उस शक हो रहा ह दक यह कोई आम दोथत नहीhelliprdquo

तारक न जोड़ ददया रा rdquoपरमी हrdquo

rdquoहा यही शक हो रहा ह उसrdquo

rdquoतो ह या नहीhelliprdquo

rdquoशायद होhellip यही मसीबत हrdquo

तारक न कहा रा rdquoअब तो ररकर ली हई ह म तो आऊगा ही तम वमल सको तो वमलना िनाथ

न वमलना चाह पाच वमनर क वलए या कॉफी क वलए भी आ जाओगी तो मर वलए िही काफी होगा

तमहार जनदमददन पर तमह दख भर लrdquo

rdquoतम भी कमाल क रोमाररक होhellip पर सच कह तो म भी तमस वमलना चाहती ह उस ददनhellip

कछ न कछ तो जगाड़ना पड़गाrdquo

rdquoमर वलए तमहारा जनदमददन मरी वजनददगी का बहत अहम ददन हhellip समझीrdquo

एयरपोरथ पहच कर तारक न फोन दकया रा रवत बोली री rdquoरजत कह रहा ह तम हम वडनर

पर जॉयन कर लोrdquo

तारक बहत हरान हआ रा पर रवत न फोन रजत को पकड़ा ददया रा तारक एकदम सकर म

पड़ गया रा उसन खद को बचान की कोवशश की rdquoसॉरी म तो यहा आया रा तो सोचा रवत स वमल

लगा पर इस तरह आप लोगो क परोगराम मhelliprdquo

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रजत न जोर दकर कहा रा rdquoनही भाई बहत तारीफ सन रहा ह बीिी स जरा हम भी तो

वमल आपस आप चाह तो घर पर आ जाईए या दफर सीध रथतरा पर वमलगrdquo

rdquoपर आप लोगो का तो वडनर पर सार जान का कायथकरम रा नrdquo

rdquoआप लच पर फरी ह तो लच पर वमल लत ह य मझ तो वडनर ही पसद ह जसा आप कहrdquo

रजत वबलकल दोथताना ढग स बात कर रहा रा एक पल को उसकी रोन म कछ तनाि तारक

को महसस हआ रा पर अगल ही पल आिाज दफर सहज हो गयी री तारक मान गया पर रकसी लकर

पहल होरल म सामान छोड़ा और इस दौरान खद को मानवसक तौर पर तयार भी करता रहा दक कस

पश आना ह अपन रकीब स दखा जाय तो ररशता रकीब का ही रा बाकी ि दकतन भी सभय या

समझदार इसानो की तरह एक-दसर स बताथि कर आवखर ि तीनो सममावनत पश क र तारक हारथ

थपशवलथर रा तो रजत अगरजी सावहतय का परोफसर और रवत सायकायररथर इसानी मन की

कमजोररयो को समझना मनोरोगो का इलाज करना रवत की विशषता तो री ही पर इसानी आकषथण

एक दसर क परवत सखचाि या ऐस ररशतो को समझन की सथकवत तो कही तीनो म ही री

रजत इस बात को खब समझता रा दक दकसी भी औरत क वलए दकसी दसर परष क परवत

सखचाि हो जाना बहत सहज रा िही एक पवत और पतनी स परम करन िाल क रप म िह रवत क इस

वयिहार स ईषयाल भी हो उठता रा एक सभय इसान क नात िह ईषया को दबा कर तारक क परवत भी

वमिित वयिहार करना चाहता रा पर िही उस रवत क वयिहार स कि पहचता रा दक िह उसक

अलािा भी दकसी दसर परष को चाह सकती ह वजसस उसक मन म आकरोश और वितषणा का भाि

उठता कभी िह अपन को उदार बना कर यह कहना चाहता दक रवत अगर दकसी दसर को चाहती ह

तो बशक उसको भी कयो न पाय सार ही जब करोध होता तो एक तरह स जस िह रवत को सजा दन क

वलए कह डालता rdquoतम जाओ दोनो सार रहोrdquo पर जो पीड़ा िह उसम सह रहा होता िह रवत और

तारक दोनो क वलए ही असहय होती

रवत न कहा रा rdquoकया तारक और म दोथत नही हो सकत और इतन दोथत हhellip एक िह वयवि

वजसस बात करक मझ खशी वमलती ह िह दोथत कयो नही बन सकता वसफथ इसवलए दक उसक मन म

तीखी भािना ह मर वलएhellip या शरीरो का आकषथण भी हhelliprdquo

रजत तब तकथ स सारी बात को समझन समझान की कोवशश करता हा करत-करत कह दता

rdquoऔरत आदमी म दोथती हो ही नही सकती कयोदक जहा शरीरो का आकषथण हो िहा दोथती जसा

वनषकपर भाि कस पनप सकता हrdquo तब रवत दोथती का एक और पकष पश करती rdquoतमहार कहन का

मतलब तो िही ददकयानसी बात हई दक शरीर पाप का मल ह जबदक तम खद ही यह पहल कह चक

हो दक शरीरो का मसला हल हो जाय तो औरत मदथ बहत खबसरत दोथत हो सकत हhellip शरीर को

अहवमयत दी कयो जाय शरीर वमल जान स उनका दोथती म बाधा बनन का मसला खतम हो जाता हrdquo

रजत रवत की बात मान भी जाता रा पर रवत दफर तारक को यह भी बताती री rdquoिन कार

रक वहम फॉर गरारड कल को िह अपना कोई नया तकथ द दगाrdquo

शायद इसी स तारक भी अचानक वहममत हारन लगा रा कस सामना करगा िह रजत का य

िह रजत स एकाध बार पहल वमल चका रा पर तब उसको यह अदाजा नही रा दक रवत और उसक

बीच कछ रा जबदक तारक तब भी कछ आतमसजग-सा हो रहा रा पर कछ वमनरो की मलाकात को

सभाल लना कोई बड़ी बात नही री और य भी रजत उस भला आदमी लगा रा यह भी सोचा रा दक

अगर रवत उन दोनो क बीच न होती तो यह वयवि उसका दोथत हो सकता रा य रवत क होन क

बािजद अतत ि दोथत बन ही पर इस दोथती का तानाबाना िसा न रा जस खावलस दोथती का होता

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ह इसम रवत क रश बन हए र जो एक और ही रगत वलए र और िह रगत तारक को बहत पयारी री

उस दोथती स जयादा

तारक न होरल पहच कर फोन कर ददया रा दक वडनर पर वमलना ही ठीक रहगा और िह

अपना काम इस दौरान कर लगा रजत आसानी स यह बात मान गया और कहा दक िह सडरकस पर

पहल घर पर आ जाय उसक बाद रथतरा खाना खान चल जायग

शाम को जब िह चलन लगा तो फोन बजा रा दसरी ओर रवत री हलो कहत ही रवत न

कहा rdquoसनो तम मत आना मर घर म बहत रशन चल रही हrdquo इसस पहल दक िह कछ कहता रवत न

फोन वडसकनकर कर ददया

रात को कोई फलाईर नही जाती री िनाथ िह उसी िि शहर छोड़ क चला जाता

आध घर बाद ही घरी दफर बजी रवत पछ रही री दक आ रह हो तारक बौखला गया दक आवखर हो

कया रहा ह कया यह रवत क मन की उलझन ह या दक रजत कीhellip या दोनो कीhellip या रवत वसफथ रजत

की उलझन को वयि कर रही री बोली री rdquoजलदी आ जाओ हम लोग इतजार कर रह हrdquo

िह पहचा तो रवत न अकल ही उसका थिागत दकया रा िह जानता रा दक दोनो बचच कालजो

म ह पर रजत काफी दर तक बठक म नही आया तो तारक हरान हआ रवत बोली rdquoिह नहा रहा हrdquo

दफर मथकरा कर जोड़ा rdquoशायद हम दोनो को कछ िि दना चाहता हrdquo

तारक तब कछ निथस हआ रा उस आग बढ़कर रवत को चमन का हौसला नही हआ उस लगा

दक रवत भी सहज नही री जस दक आम तौर पर होती ह पर उसन कछ कहा नही िह खद भी तो

सहज नही हो पा रहा रा जस लड़की क बाप क घर म शादी का परथताि लकर जा रहा हो कछ कछ

इसी तरह का महसस हो रहा रा िही डर कर परचा करना रा दक इमतहान म फल न हो जाय

रजत न कमर म आत ही बड़ तपाक स हलो दकया कछ औपचाररक-सी बात की दफर उसस

सडरक पछा और दकचन म बफथ िगरह का इतजाम करन क वलए दफर स गायब हो गया तारक को लगा

दक सहज होन की बहत कोवशश क बािजद रजत बहत असहज ह

ववहथकी का घर लत हए तारक न ही रजत स उसक काम क बार म पछना शर दकया बात

कही जा नही रही री तभी रवत एक नई दकताब की चचाथ करन लगी वजसका ररवय सबह क अखबार म

छपा रा तारक न हिाई जहाज म ही उसक बार म पढ़ा रा दफर तो बातचीत खब गरमागरम होन

लगी रजत न दवकषण एवशयाई अगरजी लखको क बार म अपन विचार झाड़न शर कर ददय यहा तक

दक रवत न अचानक घड़ी दखी तो पता चला दक रथतरा की ररजिशन का िि हो चका रा रजत न

रथतरा को फोन दकया दक कछ वमनर लर पहचग और तारक को बोला दक जलदी स सडरक खतम कर ल

या गाड़ी म ही ल चल दोनो न दो तीन सडरक चढ़ा रख र मौज-सी भी आयी हई री रजत ही कार

चला रहा रा और तारक पीछ िाली सीर पर बठा रा अचानक रजत कछ नश और कछ अपनी धन म

बोला rdquoतो तम मरी बीिी स पयार करत होrdquo

तारक भौचक-सा हो गया य ही बठा रहा जस रजत की बात को सना न हो या िह गभीरता

स लन लायक न हो रजत न अपनी बात को सिाल बनाकर दबारा पश दकया rdquoकयो तारक मरी बीिी

स पयार करत हो या नहीrdquo

तारक न कहा rdquoहाrdquo और चप कर गया उस लग रहा रा िह जो भी जिाब दगा खतर स खाली नही

पर यह जिाब सच रा तो सच बोल कर ही मार खायी जाय उस दकसी लड़की क वपता स हार मागन

नही जाना पड़ा रा आज यह भी सही

rdquoतम भी पयार करत हो िह भी करती ह तो तम दोनो सार कयो नही रहतrdquo

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तारक बोल पड़ा रा rdquoयह इतना आसान नहीrdquo

रजत इस पर आकरमण करता-सा बोला rdquoकमाल ह पयार भी करत ह और वजममिारी भी नही

वनभाना चाहतrdquo तारक को महसस हो रहा रा दक रजत कह तो कछ रहा ह और पहचाना कछ और

चाहता ह दफर भी िह जिाब तो उसी बात का द सकता रा जो दक पछी जा रही री यह कह कर

उस नाराज भी नही करना चाहता रा दक रजत वसफथ अपन भीतर क आकरोश आतक और आग को

आिाज द रहा रा बोला rdquoयह बात नही म आज भी रवत क सार वजनददगी शर करन को तयार ह

जहा तक म जानता ह रवत अपन शहर को छोड़ कर और कही नही जायगी न िह तमको छोड़न को

तयार होगी जहा तक म रवत को जानता हhelliprdquo

रवत चपचाप अपन पर अकश लगाय दोनो की बात सन रही री न तो िह रजत क पकष म

कछ बोलना चाहती री न तारक क पकष म ही बोल सकती री दफर भी दोनो क बीच तारतमय वबठाय

रखन की वजममिारी भी उसी की री और िह समझ नही पा रही री दक दकस तरह इस बातचीत को

सीमाय लाघन स बचाया जाय ऊपर स उस डर लग रहा रा दक आिश म रजत कही रककर न मार द

रथतरा बहत दर रा भी नही बात पर चरम पर चल रही री दक रथतरा आ गया रवत न रोका rdquoरजत

पारककग ढढ़ो रथतरा आ गयाrdquo रथतरा क सार ही पारककग गराज म गाड़ी छोड़ कर तीनो अदर चल गय

िरर न उनको मज पर वबठाया और सडरक क वलए पछा तरा मनदय लाकर ददय तीनो क तीनो उस मज

पर इस तरह खामोश और भर बठ र दक मनदय म वसर डबोना एक राहत बन गया रा तीनो न अपन-

अपन आडथर ददय पर बात कछ बन नही रही री हर कोई कछ भी कहन म जयादा ही सतकथ हो रहा रा

अचानक रवत बोली rdquoरजत तमको इतनी जयादा तकलीफ री तो तमन मना कयो नही कर

ददया म तो तारक को कह चकी री दक आज सार खाना नही होगा तमही न जोर ददया दक जरर

बलाओ अब इस तरह कयो बताथि कर रह होrdquo

रजत और भड़क गया rdquoम तो वसफथ यह कह रहा ह दक तम लोग एक-दसर को पयार करत हो

तो म कया कर रहा ह यहा तम जाओ एक दसर क सार रहोrdquo

दोनो की आिाज ऊची हो रही री और दसरी मजो पर बठ लोगो की वनगाह इस ओर उठ आयी री

तारक न धीर स सझाया रा rdquoमर खयाल स हम य बात यहा नही करनी चावहएrdquo सहसा रवत

न होश म आत कहा rdquoहा इतन बदढ़या रथतरा म खाना खान आय ह कछ खान पर भी तो धयान दhellip

दफर आज मरा जनदमददन ह आई िार र हि ए गड मीलrdquo

दफर भी खान पर तीनो म स दकसी का धयान नही लग सका तीनो औपचाररक-सी बात म लग

गय र तारक न ही शहर क निीनतम रथतराओ क बार म ताजा पढ़ी समीकषा का वजकर छड़ ददया रा

रजत न कार स जब उस होरल छोड़ा तो तारक न उपर कमर म आकर सडरक लन क वलए कहा

पर जसा दक िह अपकषा कर रहा रा रजत न दर होन का बहाना बना छटटी माग ली री रवत तब भी

कछ नही बोली री शायद उस डर रा दक उसका कछ भी कहना रजत क वलए घाि पर नमक वछड़कन

जसा होगा या उसकी कोई भी बात का गलत मतलब वनकाल कर रजत भड़क सकता रा य दर हो भी

चकी री

पर तारक यह भी जानता रा दक रवत एक नबर की वजददी री जो उस चावहए रा चावहए ही

रा उस रोका नही जा सकता रा िह ऊपर स मान जायगी पर भीतर स कभी माफ नही करगी

शायद इसी स रजत भी वबगड़ी हई लाड़ली बरी की तरह रवत की हर चाह या माग को विरोध करक

भी अतत मान जाता रा

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लौर आन क दो चार ददन बाद ही उसक फोन पर रवत न सदश छोड़ा रा rdquoतमहारा आना ठीक

नही हआ सॉरी तमह बलाकर भी वमल नही पायी अब लगता ह कभी नही वमलगी लर अस थरॉप

ददस वहयर पलीज मझस सपकथ मत करनाrdquo

तारक बहत ददन परशान घमता रहा रा पर रवत को फोन भी नही दकया उसन मना जो कर

डाला रा उस फोन करत हए तारक को लगता दक िह खद को उस पर लाद रहा ह और यह वथरवत

उस कभी गिारा नही री हर ददन दकसी जिालामखी-सा लाि स लदा हआ गजरता अदर ही अदर

सब तप रहा रा

महीन भर बाद रवत न फोन दकया रा rdquoगथसा हो न मझस तमस माफी भी नही माग सकीrdquo

उसकी तो कोई जररत नहीrdquo

दफर भी सोचा रा तमस कभी बात नही करगी इसी स तमको सपकथ करन स मना दकया

रा रजत को भी यही मालम ह दक तमस ररशता तोड़ ददया ह पर अब मझी स बात दकय वबना रहा

नही जा रहाrdquo

रजत को मालम ह मझस बात कर रही होrdquo

िह बहद गथसा ह तमसhellip जस दक सारा दोष तमहारा होhellip दक तमन उसकी बीिी को फसा वलयाrdquo

ि इसी तरह जब मौका लगता बात कर लत तारक क ददल ददमाग पर रवत ही छायी रहती

िह ऐस ही पलो क दौरान जीता जब दोनो क बीच कछ सपकथ होता बाकी क पल उन पलो क इतजार

म गजरत

इस बीच रवत को ददल का दौरा पड़ा रा घबराकर तारक को फोन कर डाला रा रजत न

तारक आया तो रजत उस अपनी गाड़ी म सार अथपताल ल आता जाता रहा दोनो म एक दोथती का

नाता तभी बना रा दवनया जहान की बात रजत न उस घर पर ही ठहराया रा तारक तीन ददन बाद

चला गया रा िावपस पर दोनो की फोन पर बात हो जाती रवत अथपताल स िावपस आ गयी री

धीर-धीर िह सामानदय होकर िावपस अपना काम सभालन लगी

रवत का जनदमददन दफर स आनिाला रा रवत न उस कहा रा rdquoरजत अपन आप ही बोल रहा ह

दक तम आ जाओ इस बार मरा जनदमददन मनान बोलो आओगrdquo

तारक परानी बात याद करक घबरा गया रा rdquoनही दफर स उसक भीतर सब घमड़न लगगाhellip

सबको तकलीफ होगीrdquo

यह सच भी रा रजत कभी तो उसक परवत बहत वमिित हो जाता िही अचानक गथसा ईषयाथ

उभर आत और िह अकसर बरखी ददखाता अचानक तारक को ऐसा महसस हआ जस रवत उसस खद

यह सब कह रही हो पल भर को िह भल ही गया दक रवत क ही अतयवि कमथ म िह शावमल हआ ह

और दरअसल उसक यहा आन की एक िजह यह भी ह दक िह रवत को वलख अपन खत िावपस ल

जाना चाहता ह उस डर ह दक कही ि खत रजत क हार न पड़ जाय

तारक रवत क सार काम करन िाली इस मवहला डॉ लोपज स पहल वमला हआ रा इस भीड़

म एक िही जान-पहचान की री तारक का मन हआ उसस पछ दक कया िह रवत की दराज म उसक

कागजात पर नजर मार सकता ह तारक को अदाज रा दक उसक खत िह दफतर की मज की दराज म

रखती री पर िह जानता रा दक ऐसा करना ममदकन रा नही आवखर तारक को कस हक पहचता रा

रवत की दराज खलिान का िह तो एक पररिार क वमि की हवसयत स िहा रा रजत ही कह सकता

रा दखा जाय तो ि लोग खद भी रजत स ही कहग दक रवत का सामान िह ल जाय तब तो रजत की

आख जरर उन पर पड़गी तब शायद उसको बरा लगगा दक रवत क सार तारक का एक अपना ररशता

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रा उन तीनो की आपसी दोथती क बाहरhellip रजत को बतहाशा चोर लगगी अब जबदक िह रवत स

जिाबतलबी भी नही कर सकता रवत अब कोई सफाई नही पश कर पायगी तारक क हक म कछ भी

नही कह सकगी दकसी तकथ स रजत को लाजिाब नही कर पायगी नही िह ऐसा नही कर सकता न

यह रवत क परवत सही होगा न रजत क परवत उस दकसी न दकसी तरह स खत पान ह

राथत म आत हए हिाई जहाज म तारक जब लगातार रवत क सार की अपनी वजनददगी क

गजर पल दहरा रहा रा बार-बार उस धयान आता दक जब स रवत को ददल का दौरा हआ रा िह

उसस कहना चाहता रा दक उसक खत विनि कर द एक बार उसन बात उठायी तो रवत बोली rdquoकयो

तमहार खत मर दफतर की दराज म सफ पड़ हrdquo

शायद िह वबना कह यह भी समझ गयी री दक तारक का इशारा दकस ओर ह तभी बोली

दखो जब तक म वजनददा ह म उनको फाड़ कर न तो फ क सकती ह न जला सकती ह एक बार मर गयी

तो कया फकथ पड़ता ह दक कोई कया करगा उनक सार तमको तो दफकर होनी नही चावहए अब तो ि

मरी अमानत हrdquo यह बातचीत दो एक महीन पहल की ही होगी तारक न सोचा रा बात कभी दफर

उठायगा पर उसस पहल हीhellip

तारक को भी तब यह अदाज नही रा दक रवत क अलािा रजत स भी उसका नाता रा रवत क

जान क बाद िह खद को रजत क बहत करीब महसस कर रहा रा और उस लगा दक उसक खत रजत

को उसस दफर दर धकल सकत र पर िह दकसी तरह भी रजत को खोना नही चाहगाhellip रजत जस स

रवत का ही एक वहथसा राhellipउसन दखा लोगो स वघरा रजत का चहरा बहद वनचड़ा हआ रिहीन और

सखा-सा लग रहा रा रात भर सोया नही होगा इसवलए आखो क नीच कालापन उतर आया रा आख

काफी अदर को धसी हई री तारक को लगा दक िह शायद रजत स बहतर हालत म ह दफर उस रशक

भी हआ रजत अपन गम का खला इजहार कर सकता हhellip तारक को यह सविधा नही री िह दकसी

उजड़ आवशक क रप म इस महदफल इस मौत का शोक करन िालो की महदफल मhellip अपना असली

चहराhellip अपना आवशक का चहराhellip नही ददखा सकता रा अचानक उसकी आख भर आयी अपन खोन

की वशददत क अहसास स

रवत क िाकय उसक कान म सरसरान लग जबस उस ददल का दौरा पड़ा रा िह जीिन की

कषणभगरता या इसान क नाचीज होन क अवथततििादी दशथन को बहत बघारन लग गयी री शायद

अपन जान का अहसास उस कही बहत गहर उदास कर जाता रा पर िही िह उस जान को एक

अिशयभािी अकारय सतय की तरह थिीकार करक उसस समझौता भी करन लग गयी री एक ददन

उसन हडसन नदी क दसर वसर स मनहरन की ओर दखत हए कहा रा rdquoदखो तो इन छोर-छोर वडबबो

म दकतन लाखो लोग रहत ह दकतन छोर ह हम लोग इतनी तग जमीन पर दकतनी बड़ी तादाद म

समा जात ह एकदम हजारो की सखया म सार-सार जड़ कीड़ो की तरह दफर भी अपन आप को

दकतना बड़ा मानत ह राजनीवत धमथ और नवतकता की तवखतया वचपका कर दकतना बड़ा होन का

भलािा दत रहत ह खद कोrdquo

रजत को रवत की इसान को नाचीज करार दन िाली बातो स हमशा बहत वचढ़ छरती री

बोला रा rdquoधमथ नवतकता जीिन क सतय ह इनको तम भलािा दन िाली चीज कस कह सकती हो

इसान इसीवलए तो बाकी जीिो स अलग ह दक िह सोच सकता हrdquo

rdquoऔर सोच क धरातल पर हर चीज को गलत या सही सावबत कर सकता ह नवतकता को गढ़

सकता ह या परा सतयानाश कर सकता हhellip ठीक ह मझ तो उसम कोई नकसान नहीrdquo

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हा नकसान दकसी का ह तो मरा ही रजत न कहा तो तारक झर स बोल पड़ा रा rdquoनकसान

तो तब होता जो म उस भगा क ल जाताrdquo

रजत न सजीदगी स कहा rdquoअब इसका ददल बर गया हhellip तो आधी सपवतत तो लर ही गयी न

तम भगा ल जाओ तो भी फकथ नही पड़गा यह आधािाला वहथसा तब भी यही रहगाrdquo

सचमच रजत का यह विशवास सही रा रवत और उसक ररशत की शरआत क ददनो म भािना

क परिाह म बहता तारक रवत क सार एक नयी वजनददगी क दकिाड़ खोलन की बात सोच पाया रा पर

जलद ही उस अहसास हो गया रा दक रवत कही बहत गहर जड़ी री रजत क सार दक िह कभी उस

ररशत को तोड़गी नही य रजत भी शर क ददनो म भीतर स वहल गया रा यह झरका दक रवत रजत

को छोड़ दकसी और को मन म ला सकती ह उस बहत दर जा फ क आया रा दफर रवत न खोय विशवास

को िापस लौरा ददया रजत अपन आध नकसान क सार धीर-धीर शायद समझौता करना सीख गया रा

तारक को लगा दक िह आध क सार समझौता करना सीख गया रा दफर तारक को लगा दक

िह आध क सार समझौता नही रा रजत क भीतर कही पर का भरोसा भी रा जस दक रवत को वसफथ

एक बदलाि चावहए रा जो तारक रा िनाथ िह परी रजत की ही री कयोदक मौका आन पर रजत

अपना परा हक जतान स चकता नही रा हमशा यही मानता रा दक पहला हक उसी का ह तारक

हमशा बाद म आयगा जस दक पर भर लन पर बचा हआ भोजन दकसी को भी ददया जा सकता हhellip

कछ ऐसा रख

पर रवत बचा हआ भोजन नही रीhellip दकसी तरह स भी उवचछि या अिवशि नही जो उसन

रवत म पाया रा िह पहल वजनददगी म कभी नही वमला रा रवत न उसकी पहचान करायी री

पररपणथता स रवत को जानना ही जस उस सपणथता को छना रा शायद रजत न भी रवत म ऐसा कछ

पाया रा जो आम औरतो स अलग रा रवत शादी क इतन बरस बाद भी उस अपन म उलझाय री और

िह उसस मि नही होना चाहता रा रवत म बाहरी खबसरती क बािजद वयवि क ददमाग को भी

उलझाय रखन का जो गण रा उसस सच म जो भी पास आता और सखचता जाता रवत म भरपर

पयार लन की चाह री तो भरपर दन की कषमता भी इसी स अभी भी उसस जी तो नही भरा रा रजत

का शायद िह ऐसी औरत री जो हमशा वनत निीन होती रहhellip सौदयथ की एक पररभाषा यह भी तो

दी गई ह दक जो वनत नतन होता रह िही सौदयथ ह रवत भी कभी परानी नही पड़ती रोज कछ नया

होता ह उसक पासhellip कोई नया खयालhellip कोई नई सझhellip कोई नई उकसान उलझान िाली बातhellip

शायद इस ददमागी सौदयथ कहना होगाhellip जो कछ भी उसम राhellip बस खीचता रा अपनी ओरhellip मोहता

राhellip शायद कया पर उगली धरना उस पररवध म बाधन की भोडी कोवशश होती

कछ दवदव उठता तो रवत रजत क ही हक म बोलती री रजत क वहतो को सरवकषत कर लन क

बाद ही िह तारक को उसका हक दती तारक को खीझ भी होती दक रजत उसक जीिन म चदक पहल

आ गया रा इसीवलए हर चीज म ही पहला हक उसी का बनता ह पर उसन रवत स अपनी यह

मनवथरवत कभी जावहर नही होन दी री वपछल साल िलनदराईन ड पर ऐसा ही तो हआ रा दरअसल

दोनो को अदाज नही रा दक उस िीक ड पर िलनदराईन ड पड़ता रा तारक को दकसी काम स रवत क

शहर आना रा और दोनो न वमलन का कायथकरम बना डाला रा रजत स रवत की बात हई होगी तो

उसन भनकर कहा रा rdquoतो िह तमहारा िलनदराईन ह जो उस ददन आ रहा हrdquo रवत क कहन पर दक उस

तो याद भी नही रा िह बोला रा rdquoम नही मान सकता दक तारक न य ही आन का बनाया ह इस

िीक ड परrdquo रवत न तारक स सारी बात बतलायी तो उसन सोचा रा िह खद फोन पर रजत स कहगा

दक उस सचमच याद नही रा पर दफर बात बढ़ान न दन क वलए चप रह गया रा और जान का

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परोगराम भी थरवगत कर डाला रा तब उस दो बात तकलीफ दती रही री एक तो यह दक रजत हमशा

उसक सामन परारवमकता ल जायगा दसरी यह कड़िी सचचाई दक रवत कभी भी उसकी जावहरी वजनददगी

का वहथसा नही बन सकती री उसकी कमर म हार डाल कर िह कभी दकसी स यह नही कह सकता

रा रवत मरी हrdquo तब उस बहद रशक होता रजत स कया रजत को सचमच अहसास ह दक रवत तारक

क वलए कया ह दक िह उसकी वजनददगी का कनदर उसकी वजनददगी का अरथ बन चकी ह यह कोई हलका-

फलका ठरकपन नही उसकी वजनददगी का रशा-रशा गर गया ह रवत स शबद म अरथ की तरह समायी ह

रवत उसक अवथतति म इस गरन म िह खद ही घरता रहगा हमशा

अब रवत नही ह तो िह घरन और भी कस रही ह उस कया अब िह रजत स कह पायगा

अचानक उसका मन हआ दक रजत स कह द rdquoतमको मालम ह दक मझ सचमच पता नही रा दक उस

ददन िलनदराईन ड रा िनाथ ऐसी जरथत न करताrdquo दक िह जानता हhellip अचछी तरह समझता ह अपनी

और उसकी ररीररी की पररवधयो को दक रजद शायद कभी जान न पायगा पर उसन हमशा एक दोथत

की तरह रजत का रजत की जररतो का खयाल रखा हhellip वसफथ ऊपर-ऊपर स सामावजक उपचार की

तरह नही भीतर स दकसी ददली ररशत सhellip दफर िह ररशता चाह रवत क जररय स ही बना हो

हो सकता ह रजत यह सब महसस करता हो या न भी करता हो पर उसक चहर पर भी वमिता

का थिागतमय भाि हमशा ददखा ह तारक को वसिा उन कषणो क जब दक सचमच उन दोनो क बीच

lsquoररररोररयलrsquo झगड़ हए तब भी ि शायद इसानी आचार या परथपर सदभाि की सीमाओ को कभी

लाघ नही पर दफर भी तारक का रवत क सार का ररशता ऐसा नही दक रजत क सार वजस बार सक

रवत उसकी हथती का अवभि वहथसा ह िह कोई और कस हो सकता ह रजत रवत नही हो सकता

चाह उसक दकतन ही करीब रहा हो उस दकसी न दकसी तरह स अपन खत पान ही ह लदकन कस

और यही तारक बार-बार उलझ जाता ह अपनी यह परशानी िह दकसी क सार बार नही सकता

रजत स तो कतई नही खत अगर सचमच रजत क हार पड़ गय तो

लदकन रवत न यह भी तो कहा रा दक अगर िह नही रही तो कया फकथ पड़ता ह पर रजत

सचमच खत पढ़ ल तोhellip शायद उसकी पीड़ा पर तब करोध और घणा का कोई विकराल भत हािी हो

सकता हhellip हो सकता ह दक खत पढ़कर रजत रवत को खद स वछरक द लदकन उसस कया तब शायद

रवत और भी तारक क करीब आ जाय और भी उसकी अपनी हो जाय वसफथ उसी की समची एक रात

पहल उस ऐसा ही कछ सपना आया रा रवत की मौत की खबर क बाद यही उसका याद रह जानिाला

सपना रा िह रवत की अतयवि म गया ह और एक अधरा-सा बठकनमा कमरा हhellip कमर म कछ

कागज वबखर पड़ हhellip िह एक कागज उठाता हhellip िह उसी का रवत को वलखा खत हhellip और कई लोग

उसक आसपास ह और िह सोचन लगता ह दक कही इन लोगो न भी तो उनदह नही पढ़ाhellip तभी रजत

का चहरा उसकी ओर बढ़ता ह और िह कागज वछपान की तरकीब सोचन लगता हhellip इसी उधड़बन म

उसकी आख खल गयी री तो वजथम पसीन म नहाया हआ रा

एक रजत ही यहा उसक सबस करीब हhellip और रजत ही उस अजनबी-सा लगन लगा ह अब

तक उसका रवत का सदभथ रा अचानक उस सदभथ स करकर न होन जसा हो रहा ह तारक को अजीब-

सी मानवसक दरी और भयकर अकलापन-सा महसस हआ िह यहा आया ही कयो रा रवत की

नामौजदगी म दकतना बमानी ह उसका यहा होना रजत को भी दकतना दफजल-सा लग रहा होगा

उसका यहा उपवथरत होना वजन लोगो स वघरा ह ि तो सचमच उसक अपन हhellip तारक तो दर स भी

अपना नहीhellip मत स तारक का जो भी नाता रहा होhellip उसक दकसी दसर स तो नही रा उसक कॉलज

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कामो स लौर बचच भी तारक को पहचानत नही र तारक न ही उनकी शकलो और वयिहार स अदाज

लगाया रा और हॉलि म लगी तथिीरो स उनदह पहचान पाया रा

तारक क पास रजत स कहन को कछ नही रा उसका कछ भी कहना रजत को खल सकता रा

उलर तारक को लगन लगा दक रजत शायद सोच रहा हो दक अब कयो जखमो को याद ददलान आ गय

हो कछ भी हो तारक न उस पीड़ा तो पहचायी ही री कया अब उसका कछ भी करना रजत क कि को

कम कर सकता रा उसन वनगाहो स ही अपना दख बयान कर ददया जो शायद रजत न थिीकार भी

वलया राhellip शायद एक औपचाररकता की तरह जस िह दसर बहत स जमा लोगो की शोकावभवयविया

थिीकार रहा राhellip उसस कछ अलग नही शायद तारक का िहा होना ही रजत को खल रहा हो पर

िि की नाजकी की िजह स िह कछ कहना न चाह रहा हो तारक एकदम परशान-सा उठ खड़ा हआ

कछ लोग रजत क गल लग रह र शायद उसस विदा लकर जा रह र तारक न सोचा िह अब

कहगा दक रवत क पास कछ उसक जररी कागजात र अगर रजत उस कागजो िाली जगह पर ल चल

तो िह खद ही दख लगा तारक यि की गवत स रजत की ओर बढ़ा रजत जस दकसी को दख कर भी

दख नही रहा रा उसकी आख दकसी शनदय पर ररकी री तारक को लगा उन लोगो क वघराि म

वजसम उसक अपन अजीज दोथत और ररशतदार र रजत न उस कोई विशष लकष नही दकया तारक क

भीतर अजीब सनापन-सा आ वघरा लगा जस रवत रजत म कही नही री वसफथ भरम-सा हआ रा उस

उसक िहा होन का जस दक उसक रवत क नात स िहा होन म ही कोई भारी असगवत री उस लगा

िहा बठ अजनबी स लोग उस घर रह र उसक िहा होन पर परशनवचनदह लगा रह र पता नही दकतन

ही अजनवबयो स वघर गया रा तारक यहा तक दक रवत की उस तथिीर म भी उस रवत नजर नही आ

रही री िह भी कोई अजनबी छाया री यह दवनया उसकी नही री अगर िह रवत की दवनया रही

भी हो तो वजस रवत को िह जानता रा उस रवत क वलए भी यह दवनया अनवथतति री विसगत री

उसन रजत को बहत सभलत सभलत गल स लगान की औपचाररकता की उस लगा जस िह

दकसी अजनबी को गल लगा रहा रा रवत वजतन उसक अपन पास री उतन और कही नही दकसी क

पास नही दरअसल रवत और कही नही री उसक भीतर रीhellip बस उस रवत को िही अपन भीतर ही

कही सजोय रखना रा भीतर ही खोजना रा भीतर ही तसलली करनी री दकसी और स बार नही

सकता रा रवत को रजत क दोनो कधो को हलक स दबाकर उसन धीर स कहा rdquoरक कयरrdquo और मड़ा

तो वबना पीछ दख बाहर वनकल गया

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पासपोरथ अमरीकन मरो

ओम गपता

पासपोरथ अमरीकन मरो पर रगत सहदथतानी

आज सनाऊ तमको पयार अपनी रामकहानी

छोड़ो भारत मन भयया डॉलर दख-दख ललचायो

चार-पकोड़ी जब भी दख मोह म पानी भर आयो

दीिाली पर दीप जलाउ होली पर खल रग

मौको जब मझको लगतो पीतो म भी भग

कसो होगी सरकार हमारी मोक हरदम सचता

जब भी दश पड़ सकर म कपा करो हनमनदता

पज म अब भी राम-कषण जातो मददर रोज

गपशप यारो स करतो फोकर म वमलतो भोज

योगी-बाबा आए दश स जब दन मझको जञान

आख मद क ना कछ जान करतो उनको सममान

हमबगथर अब भी नही भातो भाती मझ कचोड़ी

जसो जब भी मौका आयो रोपी िसी ओढ़ी

जाऊ दश को जब म अपन खाऊ लडड और इमरती

कहतो खद को सहदथतानी अमरीका मरी अब धरती

कहन को बहत ह भयया रोड़ को समझो काफी

बरा-भला लगा जो तमको माग नतमथतक माफी

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शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

आकाकषा ह

वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

फर च अनिाद कर इस lsquoभोगिाद स पीवड़त पविम की आतमा को अतयवधक शावत दन िालाrsquo कहा

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ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

की सीमाओ क पर मनषय कया अनभि कर सकता ह उसकी एक झलक भी ददखा दता ह उसी

औपवनषदीय जञान को महरवष िदवयास न सामानदय जनो क वलए ldquoपविि गीताrdquo म सवकषपत रप म परथतत

दकया ह िदवयास की महानता ही ह जो दक 11 उपवनषदो क जञान को एक पथतक म बाध सक और

मानिता को एक आसान यवि स परमातम जञान का दशथन करा सक ldquoपविि गीताrdquo महाभारत क

भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

ह भगिद गीता वहनदद धमथ क पविितम गरनदरो म स एक ह जो इसानो की चौहददी की सीमा रखा पर

भगिान क शरी मख दवारा इसान स कही गयी सरहदो पर चहरो की थकररनी का लखा-जोखा ह यह

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पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

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Page 17: Year 12, Issue 47Year 12, Issue 47 vsu2avsu2a · राथत § में आ वबछ §ग . ... श्रराम की अन ¡कम्पा स § ह हाल ह में

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मरली कस अधर धर

महाकवि गलाब खडलिाल

मरली कस अधर धर

सर तो िदािन म छर कस तान भर

जो मरली सबक मन बसती

वजसस री तब सधा बरसती

आज िही नावगन-सी डसती छत वजस डर

वजसको लत ही अब कर म

पीड़ा होती ह अनदतर म

कस दफर उसकी धन पर म जग को मगध कर

इसको तभी धर अधरो पर

जब सग-सग हो राधा का थिर

जब यह मरली सना-सनाकर उसका मान हर

मरली कस अधर धर

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भारत और भारतीयता का अरथ

परो गिरीशवर ममशर कलपवत महातमा गाधी वहनददी विशवविदयालय

आजकल क चरवचत सरोकारो म भारत और भारतीयता क सिाल परछन न और परत यकष दोनो ही रपो

म खासी चचाथ का विषय बन चक ह और कई बड़ बवदधजीिी इस पर बहस म वशरकत कर रह ह दसरी

ओर ऐसो की भी कमी नही ह जो इस बमतलब का मददा मानत ह इसका पररदश य आज जररल और

बदला हआ ह दश क थ िति होन क पहल और थ िति होन क ततकाल बाद और अब लगभग सात

दशक की पररपक िता क करीब पहचत-पहचत इस लकर आज बहतर यह मान कर इस तरह की चचाथ

स तरथ र हो चल ह दक यह तो कोई सारथक परश न ही नही ह कछ इस िवशवक या भमडलीकत हो रह

आज क समय की जररतो क अनसार समझना चाहत ह कछ इस किल थ रानीय दवि स ही दखना

चाहत ह कछ इस सभ यता और सथ कवत क विमशथ स जोड़ कर दखत ह जो भी हो अतरराष रीयता क

सार परयासो क बािजद आज भी राज य या नशन थ रर की अिधारणा वनणाथयक महत ि रखती ह और

वनकर भविष य म सीमाविहीन दश जसी कोई अिधारणा आकार लती नजर नही आती आज का सत य यही ह दक दशो की सीमाए बाधा (का अवधक) और सपकथ (का कम) का काम

कर रही ह दश की सीमाओ की रकषा सबक सामन एक बड़ी चनौती ह दश और राष र किल कोरी

भौगोवलक अिधारणाए नही होती उन इकाइयो की रचना क सार एक समाज या समदाय विशष की

आशा-आकाकषा भी जड़ी होती ह दश की अिधारणा एक थ िप न को समरवपत रहती ह आज क तमाम

राष रो क सार उनक सार जड़ी लबी सघषथ-गारा आसानी स दखी जा सकती ह जो दसर समाजो और

समदायो की सामराज यिादी आकाकषाओ क परवतरोध को दशाथती ह शविसपनद न और आरवरक रप स परबल

दशो की दादावगरी उनकी सतता और शवि का जलिा अभी भी बरकरार ह कहन का तात पयथ यह दक

दश की इकाई अभी भी राजनवतक सामावजक आरवरक सामररक और सास कवतक रप स महत िपणथ

बनी हई ह और उस नकारा नही जा सकता

आज बौवदधक किायद म भारत समत सब कछ करथ रड मान जान का फशन-सा चल पड़ा ह

पर उसस दर करोड़ो (भारतीय) जनो क तन-मन म भारत जीवित ह आम आदमी वजनस दश आकार

लता ह िह भारत की एक सामावजक थ मवत भी रखता ह उसक वलए दश थ रानबोधक ह और भारत

एक भाि भी ह भारतीय होन का मतलब ह भारतभवम म रहन की जीिन-व यिथ रा म शावमल होना

भारत कह या इवडया यह मलतः एक भौगोवलक थ रान और उसकी पररवध को रखादकत करता ह इस

भभाग को जब दवीप आयाथितथ भारतिषथ और सहदथतान क नाम स भी जानत ह वहमालय और

सागर इसकी सीमाए बनात ह शथ यश यामला क दश गान और जनगणमन क राष रीय गान म जीित

भारत माता को वजस रप म थ मरण दकया गया ह िह भौगोवलक अिधारणा ही नही उसकी सीमा म

रहन िाल बासशदो की सामावजक-साथ कवतक अवथमता पर बल दती ह वजसका एक भािात मक रप भी

ह भारत एक सामावजक शरणी भी ह जो समाज दवारा रवचत और थ िीकत ह यह उस सामावजक

आकाकषा का परतीक भी ह जो एक आदशथ वथरवत की ददशा म जान क वलए परररत करती ह आधवनक

यग म एक थ िति जनति क रप म एक राज य की थ रापना हई और सहमवत स एक सविधान बना और

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सामावजक आकाकषा को एक मतथ रप वमला हमन उसम आिश यकतानसार बदलाि भी दकया ह इस

इकाई क सदथ य क रप म हमारी एक भारतीय पहचान ह

स मरणीय ह दक एक समदाय या सामावजक इकाई की वभनद नता या अलग सतता थ रावपत करना

वयािहाररक दवि स भी आिश यक ह ऐसा करना समाज को अदर स बाधता ह एकजर करता ह और

अनद य (िसी ही) इकाइयो स फकथ करता ह िधावनक रप स नशन या राष र एक काननी इकाई भी ह

और उसक सदथ य िध नागररक होत ह वजसकी थ िीकवत अनद य राष र भी करत ह और पासपोरथ िीसा

आदद की व यिथ रा स आिागमन को वनयवित करत ह नागररक क रप म िधावनक सामावजक और

साथ कवतक अवधकार क सार कतथव य और दावयत ि म भी भागीदारी होती ह समाज की वनयवत ह दक

जावत भाषा बोली कषि भोजन िथ ि रीवत-ररिाज धमथ आदद की विशषताए आ जाती ह इनक

सार समाज का भािात मक लगाि होता ह और उसक सदथ य थ िय को उसी आधार पर पररभावषत भी

करन लगत ह चदक इन विशषताओ का सचार पारथ पररक सबध और जीिन क विविध व यापारो स

गहरा ररश ता होता ह इसवलए य उस समाज की पाररभावषक विशषताए बन जाती ह

भारत दश हमार समकष एक सभ यता और मल य दविसपनद न सामावजक इकाई क रप म

उपवथरत होता ह इसकी समझ कई रपो म वमलती ह वनकर इवतहास म झाक तो पाएग दक इसक

कई रप ह एक छोर पर सहद उपलवबध को बलपिथक रखन िाल वतलक अरसिद सािरकर और

विवपन चर पाल जस ह दसरी और गोखल रानाड गाधी और रगोर सरीख आध यावतमक विचार को

मानन िाल ह जो सभी परभािो को आत मसात करन को तयार ह य सवहष णता आत मवनयिण आदद क

सार एक तरह की बहलता को ठीक मानत ह तीसरी ओर आधवनक दविसपनद न नौरोजी और पवडत

नहर जस लोग ह जो भारत को एक विकवसत सभ यता तो मानत ह पर यह भी महसस करत ह दक

उसका हरास भी हआ और उसम बहत कछ आधवनक जीिन दवि क विपरीत हआ जो आज उपयोगी

नही ह उनक वहसाब स एक बहलतािादी आधवनक नजररया जो विजञानसम मत हो उपयक त ठहरता ह

आज हर भारतीय की एक बहआयामी पहचान बनती ह िह सहद बगाली मवथलम गजराती

कश मीरी वबहारी बराहमण ओबीसी जन ईसाई आदद िाली एक सार कई तरह की पहचान रखता ह

य वभनद न वभनद न पहचान अक सर एक दसर की विरोधी न होकर परक होती ह साथ कवतक रप स ि

गहरी पठी ह और उनक सार लोगो का गहरा सािथजवनक लगाि भी ह िथ ततः हर भारतीय की

पहचान (आइडरररी) की अलग व यिस रा ह कोई एक यनीफामथ पमाना नही ह जो यह तय कर दक कई

पहचानो म स कौन सबस ऊपर नबर िन पर ह यह एक बड़ा तरल या फलइड मामला ह आज

पजा-पाठ सगीत और थ िाथ थ य लाभ क अनक क र भारत भर म फल हए ह जहा आन जान स सहद

ईसाई वसख और मसलमान दकसी को भी परहज नही होता कई पहचान क सार रहना अथ पष रता तो

पदा करता ह पर शायद दसरो क वलए िथ ततः हर भारतीय कई (उप) सथ कवतयो म जीता ह और य

सब वमलकर उसकी पहचान बनाती ह इस अरथ म हर भारतीय शायद बहसाथ कवतक ह और उसकी

पहचान बहआयामी

दश की छवि दशिावसयो क आत मगौरि का माध यम होती ह आज क भारत का अग होना उस

वबलाग करना हमको आरवरक परगवत की ओर अगरसर एक दश एक आरवरक पािर क सार जड़न का

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एहसास दता ह दसरी ओर भरष राचार अवशकषा अव यिथ रा सामावजक करीवतयो और भदभाि क

कारण मन म रकान उदासीनता और असहायता की भािना भी आती ह इस सबक बािजद एक

भारतीय का बोध जरर ह जो पजाबी मराठी या गजराती होन अलग जावत िगथ और समदाय का

सदथ य होन पर भी सबको भारतीय बनाता ह कभी-कभी विविधता म एकता िाल नहर जी का

भारत अपररभाषय या अव याख यय लगता ह भारत को एक विथ तत साथ कवतक इकाई क रप म दखन

पर कछ विचार उभरत ह जो भारतीय होन क अरथ को थ पष र करन म सहायक होत ह इनम परमख ह

धमथ कमथ पनजथनद म को दकसी न दकसी रप म थ िीकारना सामावजक इकाई - पररिार जावत समदाय

क थ तर पर अपन अवथतत ि को महसस करना सक स वििाह और अनद य व यवियो क परवत खास दविकोण

को अपनाना बहलता का थ िीकार और खल कछ-कछ असगरठत दकथ म की आत म या सल फ की

अिधारणा का थ िीकार और दकसी न दकसी रप म दकसी बड़ी जञात-अजञात सतता स जड़ाि की

अवभलाषा और पररिश परकवत और सवि क सार साझदारी तरा परथ पर अनपरकता का भाि

समकालीन विमशथ म राज य और राष र की अिधारणा क अरथ बहत कछ इस पर वनभथर करत ह

दक कौन दकस दविकोण और परयोजन स इन पर गौर कर रहा ह अक सर इनद ह अतीत ितथमान और

भविष य स जोड़ कर दखा जाता ह और लोग अपन चन िचाररक आदशथ स रग कर ही इस पर विचार

करत ह इन शब दो और इनस जड़ अरथ थ रान और समय क सार-सार बदलत रह ह जो थ िाभाविक ह

भारत दश क बार म सोचन की एक बड़ी मवशकल यह ह दक हमारी अपनी पररभाषा क पमान हमार

अपन न होकर दकसी और क ददए हए ह ि हमार बौवदधक मानस म इतन गहर पठ चक ह दक अब हम

अपन पमान क बार म भरोसा ही नही कर पा रह ह और खद को पररभावषत करन का अवधकार ही

खोत जा रह ह आरवरक और तकनीकी परगवत क पसराि की दवनया म आज हमारा आतम-सशय इतना

गहराता जा रहा ह दक भारत और भारतीयता की बात करना परानी और ददकयानस और इसवलए

अपरासवगक मानी जान लगी ह अगर इसकी बात करनी भी ह तो उसकी सनद कही और स जरानी

होगी आज अपनी पहचान क वलए हम पविमी दशो म विदवानो क दवारा परमाण और गिाही चाहत ह

आज भारत की साथ कवतक विविधता को सपनद नता और समवदध क ोत क रप म समझन समझान की

जररत ह वजसका उपयोग समाज क विकास म दकया जाय इसक वलए भारत को भारत क नजररए स

दखना होगा वबना इस भय क दक भारतीय होना दकसी कषमा याचना की अपकषा करता ह थ िदशी और

सराज जस विचार अभी भी परासवगक ह समरथ और थ िािलबी होन क वलए आत म थ िीकार और सतत

पररष कार आिश यक ह

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भकप का सदश

डॉ एमएल गपता ldquoआददतय

धरती हर ददन डोल रही ह कपन की बोली बोल रही ह

विनाश कर आकरोश स बदल कय भगोल रही ह

कय धरती न भकरी तानी कय वहमालय म आिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

जो ससाधन र पोषण क उनका शोषण कर डाला

ओजोन का जो किच रा उसका भी भदन कर डाला

बरहमी स कार हमन िसधरा क िन-कश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

सागर क तीरो को छीला पठार और पिथत को लीला

नददया बनी नाल और नाली नही ददखता जल वनमथल-नीला

चतािनी द रहा ह मौसम बदला भमडल का पररिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

विजञान की सीढ़ी चढ़ विनाश का सामान बनाया

परमाण सयि द रह यातना विकीरण का खतरा मडराया

रवडएशन स आतदकत ह दवनया क सब दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

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कोई अण कोई परमाण कोई हाईडरोजन बम ल ऐठा ह

वबछी हई बारद धरा म मानि बमो क ढर पर बठा ह

हआ परमाण यदध तो वमर जाएग दकतन दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

भकषक बनकर मानि इक दज पर चोर कर रहा

परीकषण की खावतर दकतन भीषण बम विथफोर कर रहा

परकवत का सतलन वबगड़ा तो हम बन जाएग अिशष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

कदरत कहर बरपा सकती ह कभी भी आफत आ सकती ह

धरा की जरा सी भी हरकत दकतना कोहराम मचा सकती ह

धरा न जरा करिर बदली तो कछ भी न रहगा शष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

पयाथिरण क आघात पर अब तो रोक लगानी होगी

सागर पिथत धरती क सग बद करनी मनमानी होगी

धरती को जो मा मानोग सब वमर जाएग कलश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

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ि दोनो

डॉ सषम बदी

छत स फशथ तक क लब शीशो स जड़ी उस बड़ी-सी बठक म खब सारी ददन की रौशनी भरी हई

री फशथ पर वबछी सफद चादरो पर सफद िसतर पहन ढर सार लोग उस रौशनी का ही वहथसा लग रह

र कमर म घसत ही तारक को लगा जस उस शवतता म घल मौत क सदथपन और जड़ता न अचानक

उसक भीतर को जकड़ वलया ह बीचोबीच फलो की माला चढ़ी एक बड़ी-सी रवत की तथिीर री

वजसका धप दीप और गीता क शलोको स अवभषक दकया जा रहा रा रवत अब तथिीर भर री तारक

की थतबध पवनयायी आख वनथसहाय-सी रजत को खोजन लगी

रजत सारा िि लोगो स वघरा ही रहा रा उसकी मा उसक बचच और दसर ररशतदार कोई न

कोई उसक आसपास रा ही उन दोनो की आख एक दसर स दो एक बार वमली पर रजत अपन स

बाहर नही आ पाया रा तारक न दकसी तरह अपनी शोकभािना वयि कर दी री न भी वयि करता

तो कया रजत को तो खद भी अहसास होगा उसकी अतभाथिना का एक िही तो ह इस भीड़ म जो

जानता ह दक िह कयो यहा ह बाकी तो तारक दकसी स पररवचत ही नही वसिाय कछक रवत क

कलीगज क एक दो कलीगज स ही उसकी बात हई रवत क बार म ि उस पररिार का वमि मानकर

बात कर रह र य पररिार का वमि तो िह रा ही पर इसस अलग या ऊपर भी कछ रा यह शायद

रजत क अलािा और कोई नही जानता रा जबदक रजत भी परा कहा जानता ह खास तौर स िह सब

कछ जो तारक महसस करता रहा ह या जो कछ तारक और रवत क बीच म रहा या अभी भी वजसका

बहत कछ बचा रा

य तारक न बहत बार सोचा दक अब रवत नही रही तो उसक यहा जान का कोई फायदा नही

उसकी तकलीफ बढ़गी ही दफर लगा दक नही उस रजत स वमलन जाना होगा रजत भी तो उसका

दोथत ह य रवत उन दोनो क बीच न होती तो ि शायद बहत गहर दोथत हो सकत र दफर भी िह खद

को कई तरह स रजत क करीब महसस करता रा और रजत भी बहत मामलो म उसी स सलाह करक

चलता रा उस पर भरोसा करता रा जो दक उसक मन क दोथती क भाि को ही जताती री चदक

तारक की विशषता ददल क रोगो म री िह रवत क हारथअरक क बाद स उसस अकसर रवत क बार म

सलाह लता यहा तक दक रवत स भी कोई वशकायत होती तो तारक स ही कहता दखो न इसका

कोलथराल इतना हाई चल रहा ह और मडम चीज मीर सभी कछ खाती ह अभी रथतरा ल चलो परा

का परा थरक गरक जायगी कस कर यह तो खद को नकसान पहचान स बाज नही आतीrdquo और तारक

तब ररका दता कसी डाकरर हो तम रवत मरीजो को उपदश दती रहती हो और खदhellipदफर उसन

खद ही एक विशषण गढ़ा रा रवत क वलए lsquoनानकपलायरrsquo यानी दक जो कछ भी कहा जायगा उसका

विरोध ही करगी रवत और दकसी िजह स नही बवलक विरोध करन क वलए विरोध

तब रवत और भी तिर चढ़ाकर बोलती rdquoरजत तो पहल ही मर पीछ पड़ा रहता ह अब तम

भी इसी स वमल गय हो िाह जी िाह दोथत दकसक हो तम मर या रजत कrdquo

तारक तब चप रह जाता रा रजत भी कछ नही कहता एक वपरय अवपरय सतय

शायद रवत भी इसीवलए कहती री दक तारक तब लाजिाब हो जायगा कयोदक रवत जानती ह दक जो

िह तारक क वलए ह िह और कोई नही हो सकता और रजत को भी इसका अदाज ह इसी स रजत न

शर म चाह दकतना विरोह दकया हो दकतना लड़ाई झगड़ाhellip दफर धीर-धीर मान वलया रा इस ररशत

12 47 2015 22

को रवत क वलए ही अगीकार कर वलया रा तारक को भी रवत न ही उस बतलाया रा जब रजत न

उस बाहो म भरकर कहा रा rdquoइतना पयार करता ह तमह दक यह भी थिीकारन क वलए राजी हrdquo

एक हक-सी उठी री तारक क भीतरhellip वजस इतना पयार वमला होhellip इतनाhellip िह इस तरह स

उन दोनो की वजनददगी को ही सना करक रखसत हो ली तारक क मन म गथसा भी आयाhellip शायद

अपनी सहत का धयान रखती तो कछ और जी जाती उन दोनो स ही तो चार-पाच साल छोरी री िह

जी भी सकती री पर अबhellip और तारक न लबी सास भरी

रवत की एक कलीग बता रही री rdquoपरसो तो काम पर आयी हई री रवत म सोच भी नही

सकती री दक इतना भारी थरोक हो सकता ह दक एक ही लपर म ल जायhellip मझ तो विशवास ही नही

होताrdquo तारक को भी विशवास नही होता रा उसी ददन सबह रवत न उसस फोन पर बात की री और

उसस मजाक दकया रा rdquoमर जनदमददन पर आओगrdquo

दरअसल सारा झगड़ा कछ साल पहल रवत क जनदमददन को लकर ही शर हआ रा िनाथ शायद

रजत को उन दोनो क बीच बढ़त ररशत की तवनक खबर न लगती रवत न उस बतलाया रा दक उसक

जनदमददन पर िह और रजत आमतौर पर शाम को बाहर दकसी बदढ़या स फर च रथतरा म खाना खान

जात ह तब तारक न कहा रा rdquoठीक ह तो लच तम मर सार लनाrdquo

रवत मान गयी री उसन उसी ददन रवत क शहर पहचन क वलए फलाईर भी बक करिा ली

री पर जब ठीक जनदमददन आनिाला रा तो रवत न उस बतलाया रा दक रजत को ठीक नही लग रहा

मरा तमहार सार लच पर जाना िह पछ रहा रा दक इतना इमपॉरर कस हो गया यह आदमी दक

तमको उस जनदमददन पर जरर वमलना ह

rdquoतमन कया कहाrdquo तारक वजजञास हो उठा रा

rdquoयही दक तमको दकसी काम स शहर म होना रा इसवलए लच पर वमलन की बात की इस पर

उसन कहा दक अगल ददन वमल लो जनदमददन िाला ददन तो उसी क वलए हhellip कोई और कयोrdquo

दफर िह बोली rdquoइसी पर उस शक हो रहा ह दक यह कोई आम दोथत नहीhelliprdquo

तारक न जोड़ ददया रा rdquoपरमी हrdquo

rdquoहा यही शक हो रहा ह उसrdquo

rdquoतो ह या नहीhelliprdquo

rdquoशायद होhellip यही मसीबत हrdquo

तारक न कहा रा rdquoअब तो ररकर ली हई ह म तो आऊगा ही तम वमल सको तो वमलना िनाथ

न वमलना चाह पाच वमनर क वलए या कॉफी क वलए भी आ जाओगी तो मर वलए िही काफी होगा

तमहार जनदमददन पर तमह दख भर लrdquo

rdquoतम भी कमाल क रोमाररक होhellip पर सच कह तो म भी तमस वमलना चाहती ह उस ददनhellip

कछ न कछ तो जगाड़ना पड़गाrdquo

rdquoमर वलए तमहारा जनदमददन मरी वजनददगी का बहत अहम ददन हhellip समझीrdquo

एयरपोरथ पहच कर तारक न फोन दकया रा रवत बोली री rdquoरजत कह रहा ह तम हम वडनर

पर जॉयन कर लोrdquo

तारक बहत हरान हआ रा पर रवत न फोन रजत को पकड़ा ददया रा तारक एकदम सकर म

पड़ गया रा उसन खद को बचान की कोवशश की rdquoसॉरी म तो यहा आया रा तो सोचा रवत स वमल

लगा पर इस तरह आप लोगो क परोगराम मhelliprdquo

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रजत न जोर दकर कहा रा rdquoनही भाई बहत तारीफ सन रहा ह बीिी स जरा हम भी तो

वमल आपस आप चाह तो घर पर आ जाईए या दफर सीध रथतरा पर वमलगrdquo

rdquoपर आप लोगो का तो वडनर पर सार जान का कायथकरम रा नrdquo

rdquoआप लच पर फरी ह तो लच पर वमल लत ह य मझ तो वडनर ही पसद ह जसा आप कहrdquo

रजत वबलकल दोथताना ढग स बात कर रहा रा एक पल को उसकी रोन म कछ तनाि तारक

को महसस हआ रा पर अगल ही पल आिाज दफर सहज हो गयी री तारक मान गया पर रकसी लकर

पहल होरल म सामान छोड़ा और इस दौरान खद को मानवसक तौर पर तयार भी करता रहा दक कस

पश आना ह अपन रकीब स दखा जाय तो ररशता रकीब का ही रा बाकी ि दकतन भी सभय या

समझदार इसानो की तरह एक-दसर स बताथि कर आवखर ि तीनो सममावनत पश क र तारक हारथ

थपशवलथर रा तो रजत अगरजी सावहतय का परोफसर और रवत सायकायररथर इसानी मन की

कमजोररयो को समझना मनोरोगो का इलाज करना रवत की विशषता तो री ही पर इसानी आकषथण

एक दसर क परवत सखचाि या ऐस ररशतो को समझन की सथकवत तो कही तीनो म ही री

रजत इस बात को खब समझता रा दक दकसी भी औरत क वलए दकसी दसर परष क परवत

सखचाि हो जाना बहत सहज रा िही एक पवत और पतनी स परम करन िाल क रप म िह रवत क इस

वयिहार स ईषयाल भी हो उठता रा एक सभय इसान क नात िह ईषया को दबा कर तारक क परवत भी

वमिित वयिहार करना चाहता रा पर िही उस रवत क वयिहार स कि पहचता रा दक िह उसक

अलािा भी दकसी दसर परष को चाह सकती ह वजसस उसक मन म आकरोश और वितषणा का भाि

उठता कभी िह अपन को उदार बना कर यह कहना चाहता दक रवत अगर दकसी दसर को चाहती ह

तो बशक उसको भी कयो न पाय सार ही जब करोध होता तो एक तरह स जस िह रवत को सजा दन क

वलए कह डालता rdquoतम जाओ दोनो सार रहोrdquo पर जो पीड़ा िह उसम सह रहा होता िह रवत और

तारक दोनो क वलए ही असहय होती

रवत न कहा रा rdquoकया तारक और म दोथत नही हो सकत और इतन दोथत हhellip एक िह वयवि

वजसस बात करक मझ खशी वमलती ह िह दोथत कयो नही बन सकता वसफथ इसवलए दक उसक मन म

तीखी भािना ह मर वलएhellip या शरीरो का आकषथण भी हhelliprdquo

रजत तब तकथ स सारी बात को समझन समझान की कोवशश करता हा करत-करत कह दता

rdquoऔरत आदमी म दोथती हो ही नही सकती कयोदक जहा शरीरो का आकषथण हो िहा दोथती जसा

वनषकपर भाि कस पनप सकता हrdquo तब रवत दोथती का एक और पकष पश करती rdquoतमहार कहन का

मतलब तो िही ददकयानसी बात हई दक शरीर पाप का मल ह जबदक तम खद ही यह पहल कह चक

हो दक शरीरो का मसला हल हो जाय तो औरत मदथ बहत खबसरत दोथत हो सकत हhellip शरीर को

अहवमयत दी कयो जाय शरीर वमल जान स उनका दोथती म बाधा बनन का मसला खतम हो जाता हrdquo

रजत रवत की बात मान भी जाता रा पर रवत दफर तारक को यह भी बताती री rdquoिन कार

रक वहम फॉर गरारड कल को िह अपना कोई नया तकथ द दगाrdquo

शायद इसी स तारक भी अचानक वहममत हारन लगा रा कस सामना करगा िह रजत का य

िह रजत स एकाध बार पहल वमल चका रा पर तब उसको यह अदाजा नही रा दक रवत और उसक

बीच कछ रा जबदक तारक तब भी कछ आतमसजग-सा हो रहा रा पर कछ वमनरो की मलाकात को

सभाल लना कोई बड़ी बात नही री और य भी रजत उस भला आदमी लगा रा यह भी सोचा रा दक

अगर रवत उन दोनो क बीच न होती तो यह वयवि उसका दोथत हो सकता रा य रवत क होन क

बािजद अतत ि दोथत बन ही पर इस दोथती का तानाबाना िसा न रा जस खावलस दोथती का होता

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ह इसम रवत क रश बन हए र जो एक और ही रगत वलए र और िह रगत तारक को बहत पयारी री

उस दोथती स जयादा

तारक न होरल पहच कर फोन कर ददया रा दक वडनर पर वमलना ही ठीक रहगा और िह

अपना काम इस दौरान कर लगा रजत आसानी स यह बात मान गया और कहा दक िह सडरकस पर

पहल घर पर आ जाय उसक बाद रथतरा खाना खान चल जायग

शाम को जब िह चलन लगा तो फोन बजा रा दसरी ओर रवत री हलो कहत ही रवत न

कहा rdquoसनो तम मत आना मर घर म बहत रशन चल रही हrdquo इसस पहल दक िह कछ कहता रवत न

फोन वडसकनकर कर ददया

रात को कोई फलाईर नही जाती री िनाथ िह उसी िि शहर छोड़ क चला जाता

आध घर बाद ही घरी दफर बजी रवत पछ रही री दक आ रह हो तारक बौखला गया दक आवखर हो

कया रहा ह कया यह रवत क मन की उलझन ह या दक रजत कीhellip या दोनो कीhellip या रवत वसफथ रजत

की उलझन को वयि कर रही री बोली री rdquoजलदी आ जाओ हम लोग इतजार कर रह हrdquo

िह पहचा तो रवत न अकल ही उसका थिागत दकया रा िह जानता रा दक दोनो बचच कालजो

म ह पर रजत काफी दर तक बठक म नही आया तो तारक हरान हआ रवत बोली rdquoिह नहा रहा हrdquo

दफर मथकरा कर जोड़ा rdquoशायद हम दोनो को कछ िि दना चाहता हrdquo

तारक तब कछ निथस हआ रा उस आग बढ़कर रवत को चमन का हौसला नही हआ उस लगा

दक रवत भी सहज नही री जस दक आम तौर पर होती ह पर उसन कछ कहा नही िह खद भी तो

सहज नही हो पा रहा रा जस लड़की क बाप क घर म शादी का परथताि लकर जा रहा हो कछ कछ

इसी तरह का महसस हो रहा रा िही डर कर परचा करना रा दक इमतहान म फल न हो जाय

रजत न कमर म आत ही बड़ तपाक स हलो दकया कछ औपचाररक-सी बात की दफर उसस

सडरक पछा और दकचन म बफथ िगरह का इतजाम करन क वलए दफर स गायब हो गया तारक को लगा

दक सहज होन की बहत कोवशश क बािजद रजत बहत असहज ह

ववहथकी का घर लत हए तारक न ही रजत स उसक काम क बार म पछना शर दकया बात

कही जा नही रही री तभी रवत एक नई दकताब की चचाथ करन लगी वजसका ररवय सबह क अखबार म

छपा रा तारक न हिाई जहाज म ही उसक बार म पढ़ा रा दफर तो बातचीत खब गरमागरम होन

लगी रजत न दवकषण एवशयाई अगरजी लखको क बार म अपन विचार झाड़न शर कर ददय यहा तक

दक रवत न अचानक घड़ी दखी तो पता चला दक रथतरा की ररजिशन का िि हो चका रा रजत न

रथतरा को फोन दकया दक कछ वमनर लर पहचग और तारक को बोला दक जलदी स सडरक खतम कर ल

या गाड़ी म ही ल चल दोनो न दो तीन सडरक चढ़ा रख र मौज-सी भी आयी हई री रजत ही कार

चला रहा रा और तारक पीछ िाली सीर पर बठा रा अचानक रजत कछ नश और कछ अपनी धन म

बोला rdquoतो तम मरी बीिी स पयार करत होrdquo

तारक भौचक-सा हो गया य ही बठा रहा जस रजत की बात को सना न हो या िह गभीरता

स लन लायक न हो रजत न अपनी बात को सिाल बनाकर दबारा पश दकया rdquoकयो तारक मरी बीिी

स पयार करत हो या नहीrdquo

तारक न कहा rdquoहाrdquo और चप कर गया उस लग रहा रा िह जो भी जिाब दगा खतर स खाली नही

पर यह जिाब सच रा तो सच बोल कर ही मार खायी जाय उस दकसी लड़की क वपता स हार मागन

नही जाना पड़ा रा आज यह भी सही

rdquoतम भी पयार करत हो िह भी करती ह तो तम दोनो सार कयो नही रहतrdquo

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तारक बोल पड़ा रा rdquoयह इतना आसान नहीrdquo

रजत इस पर आकरमण करता-सा बोला rdquoकमाल ह पयार भी करत ह और वजममिारी भी नही

वनभाना चाहतrdquo तारक को महसस हो रहा रा दक रजत कह तो कछ रहा ह और पहचाना कछ और

चाहता ह दफर भी िह जिाब तो उसी बात का द सकता रा जो दक पछी जा रही री यह कह कर

उस नाराज भी नही करना चाहता रा दक रजत वसफथ अपन भीतर क आकरोश आतक और आग को

आिाज द रहा रा बोला rdquoयह बात नही म आज भी रवत क सार वजनददगी शर करन को तयार ह

जहा तक म जानता ह रवत अपन शहर को छोड़ कर और कही नही जायगी न िह तमको छोड़न को

तयार होगी जहा तक म रवत को जानता हhelliprdquo

रवत चपचाप अपन पर अकश लगाय दोनो की बात सन रही री न तो िह रजत क पकष म

कछ बोलना चाहती री न तारक क पकष म ही बोल सकती री दफर भी दोनो क बीच तारतमय वबठाय

रखन की वजममिारी भी उसी की री और िह समझ नही पा रही री दक दकस तरह इस बातचीत को

सीमाय लाघन स बचाया जाय ऊपर स उस डर लग रहा रा दक आिश म रजत कही रककर न मार द

रथतरा बहत दर रा भी नही बात पर चरम पर चल रही री दक रथतरा आ गया रवत न रोका rdquoरजत

पारककग ढढ़ो रथतरा आ गयाrdquo रथतरा क सार ही पारककग गराज म गाड़ी छोड़ कर तीनो अदर चल गय

िरर न उनको मज पर वबठाया और सडरक क वलए पछा तरा मनदय लाकर ददय तीनो क तीनो उस मज

पर इस तरह खामोश और भर बठ र दक मनदय म वसर डबोना एक राहत बन गया रा तीनो न अपन-

अपन आडथर ददय पर बात कछ बन नही रही री हर कोई कछ भी कहन म जयादा ही सतकथ हो रहा रा

अचानक रवत बोली rdquoरजत तमको इतनी जयादा तकलीफ री तो तमन मना कयो नही कर

ददया म तो तारक को कह चकी री दक आज सार खाना नही होगा तमही न जोर ददया दक जरर

बलाओ अब इस तरह कयो बताथि कर रह होrdquo

रजत और भड़क गया rdquoम तो वसफथ यह कह रहा ह दक तम लोग एक-दसर को पयार करत हो

तो म कया कर रहा ह यहा तम जाओ एक दसर क सार रहोrdquo

दोनो की आिाज ऊची हो रही री और दसरी मजो पर बठ लोगो की वनगाह इस ओर उठ आयी री

तारक न धीर स सझाया रा rdquoमर खयाल स हम य बात यहा नही करनी चावहएrdquo सहसा रवत

न होश म आत कहा rdquoहा इतन बदढ़या रथतरा म खाना खान आय ह कछ खान पर भी तो धयान दhellip

दफर आज मरा जनदमददन ह आई िार र हि ए गड मीलrdquo

दफर भी खान पर तीनो म स दकसी का धयान नही लग सका तीनो औपचाररक-सी बात म लग

गय र तारक न ही शहर क निीनतम रथतराओ क बार म ताजा पढ़ी समीकषा का वजकर छड़ ददया रा

रजत न कार स जब उस होरल छोड़ा तो तारक न उपर कमर म आकर सडरक लन क वलए कहा

पर जसा दक िह अपकषा कर रहा रा रजत न दर होन का बहाना बना छटटी माग ली री रवत तब भी

कछ नही बोली री शायद उस डर रा दक उसका कछ भी कहना रजत क वलए घाि पर नमक वछड़कन

जसा होगा या उसकी कोई भी बात का गलत मतलब वनकाल कर रजत भड़क सकता रा य दर हो भी

चकी री

पर तारक यह भी जानता रा दक रवत एक नबर की वजददी री जो उस चावहए रा चावहए ही

रा उस रोका नही जा सकता रा िह ऊपर स मान जायगी पर भीतर स कभी माफ नही करगी

शायद इसी स रजत भी वबगड़ी हई लाड़ली बरी की तरह रवत की हर चाह या माग को विरोध करक

भी अतत मान जाता रा

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लौर आन क दो चार ददन बाद ही उसक फोन पर रवत न सदश छोड़ा रा rdquoतमहारा आना ठीक

नही हआ सॉरी तमह बलाकर भी वमल नही पायी अब लगता ह कभी नही वमलगी लर अस थरॉप

ददस वहयर पलीज मझस सपकथ मत करनाrdquo

तारक बहत ददन परशान घमता रहा रा पर रवत को फोन भी नही दकया उसन मना जो कर

डाला रा उस फोन करत हए तारक को लगता दक िह खद को उस पर लाद रहा ह और यह वथरवत

उस कभी गिारा नही री हर ददन दकसी जिालामखी-सा लाि स लदा हआ गजरता अदर ही अदर

सब तप रहा रा

महीन भर बाद रवत न फोन दकया रा rdquoगथसा हो न मझस तमस माफी भी नही माग सकीrdquo

उसकी तो कोई जररत नहीrdquo

दफर भी सोचा रा तमस कभी बात नही करगी इसी स तमको सपकथ करन स मना दकया

रा रजत को भी यही मालम ह दक तमस ररशता तोड़ ददया ह पर अब मझी स बात दकय वबना रहा

नही जा रहाrdquo

रजत को मालम ह मझस बात कर रही होrdquo

िह बहद गथसा ह तमसhellip जस दक सारा दोष तमहारा होhellip दक तमन उसकी बीिी को फसा वलयाrdquo

ि इसी तरह जब मौका लगता बात कर लत तारक क ददल ददमाग पर रवत ही छायी रहती

िह ऐस ही पलो क दौरान जीता जब दोनो क बीच कछ सपकथ होता बाकी क पल उन पलो क इतजार

म गजरत

इस बीच रवत को ददल का दौरा पड़ा रा घबराकर तारक को फोन कर डाला रा रजत न

तारक आया तो रजत उस अपनी गाड़ी म सार अथपताल ल आता जाता रहा दोनो म एक दोथती का

नाता तभी बना रा दवनया जहान की बात रजत न उस घर पर ही ठहराया रा तारक तीन ददन बाद

चला गया रा िावपस पर दोनो की फोन पर बात हो जाती रवत अथपताल स िावपस आ गयी री

धीर-धीर िह सामानदय होकर िावपस अपना काम सभालन लगी

रवत का जनदमददन दफर स आनिाला रा रवत न उस कहा रा rdquoरजत अपन आप ही बोल रहा ह

दक तम आ जाओ इस बार मरा जनदमददन मनान बोलो आओगrdquo

तारक परानी बात याद करक घबरा गया रा rdquoनही दफर स उसक भीतर सब घमड़न लगगाhellip

सबको तकलीफ होगीrdquo

यह सच भी रा रजत कभी तो उसक परवत बहत वमिित हो जाता िही अचानक गथसा ईषयाथ

उभर आत और िह अकसर बरखी ददखाता अचानक तारक को ऐसा महसस हआ जस रवत उसस खद

यह सब कह रही हो पल भर को िह भल ही गया दक रवत क ही अतयवि कमथ म िह शावमल हआ ह

और दरअसल उसक यहा आन की एक िजह यह भी ह दक िह रवत को वलख अपन खत िावपस ल

जाना चाहता ह उस डर ह दक कही ि खत रजत क हार न पड़ जाय

तारक रवत क सार काम करन िाली इस मवहला डॉ लोपज स पहल वमला हआ रा इस भीड़

म एक िही जान-पहचान की री तारक का मन हआ उसस पछ दक कया िह रवत की दराज म उसक

कागजात पर नजर मार सकता ह तारक को अदाज रा दक उसक खत िह दफतर की मज की दराज म

रखती री पर िह जानता रा दक ऐसा करना ममदकन रा नही आवखर तारक को कस हक पहचता रा

रवत की दराज खलिान का िह तो एक पररिार क वमि की हवसयत स िहा रा रजत ही कह सकता

रा दखा जाय तो ि लोग खद भी रजत स ही कहग दक रवत का सामान िह ल जाय तब तो रजत की

आख जरर उन पर पड़गी तब शायद उसको बरा लगगा दक रवत क सार तारक का एक अपना ररशता

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रा उन तीनो की आपसी दोथती क बाहरhellip रजत को बतहाशा चोर लगगी अब जबदक िह रवत स

जिाबतलबी भी नही कर सकता रवत अब कोई सफाई नही पश कर पायगी तारक क हक म कछ भी

नही कह सकगी दकसी तकथ स रजत को लाजिाब नही कर पायगी नही िह ऐसा नही कर सकता न

यह रवत क परवत सही होगा न रजत क परवत उस दकसी न दकसी तरह स खत पान ह

राथत म आत हए हिाई जहाज म तारक जब लगातार रवत क सार की अपनी वजनददगी क

गजर पल दहरा रहा रा बार-बार उस धयान आता दक जब स रवत को ददल का दौरा हआ रा िह

उसस कहना चाहता रा दक उसक खत विनि कर द एक बार उसन बात उठायी तो रवत बोली rdquoकयो

तमहार खत मर दफतर की दराज म सफ पड़ हrdquo

शायद िह वबना कह यह भी समझ गयी री दक तारक का इशारा दकस ओर ह तभी बोली

दखो जब तक म वजनददा ह म उनको फाड़ कर न तो फ क सकती ह न जला सकती ह एक बार मर गयी

तो कया फकथ पड़ता ह दक कोई कया करगा उनक सार तमको तो दफकर होनी नही चावहए अब तो ि

मरी अमानत हrdquo यह बातचीत दो एक महीन पहल की ही होगी तारक न सोचा रा बात कभी दफर

उठायगा पर उसस पहल हीhellip

तारक को भी तब यह अदाज नही रा दक रवत क अलािा रजत स भी उसका नाता रा रवत क

जान क बाद िह खद को रजत क बहत करीब महसस कर रहा रा और उस लगा दक उसक खत रजत

को उसस दफर दर धकल सकत र पर िह दकसी तरह भी रजत को खोना नही चाहगाhellip रजत जस स

रवत का ही एक वहथसा राhellipउसन दखा लोगो स वघरा रजत का चहरा बहद वनचड़ा हआ रिहीन और

सखा-सा लग रहा रा रात भर सोया नही होगा इसवलए आखो क नीच कालापन उतर आया रा आख

काफी अदर को धसी हई री तारक को लगा दक िह शायद रजत स बहतर हालत म ह दफर उस रशक

भी हआ रजत अपन गम का खला इजहार कर सकता हhellip तारक को यह सविधा नही री िह दकसी

उजड़ आवशक क रप म इस महदफल इस मौत का शोक करन िालो की महदफल मhellip अपना असली

चहराhellip अपना आवशक का चहराhellip नही ददखा सकता रा अचानक उसकी आख भर आयी अपन खोन

की वशददत क अहसास स

रवत क िाकय उसक कान म सरसरान लग जबस उस ददल का दौरा पड़ा रा िह जीिन की

कषणभगरता या इसान क नाचीज होन क अवथततििादी दशथन को बहत बघारन लग गयी री शायद

अपन जान का अहसास उस कही बहत गहर उदास कर जाता रा पर िही िह उस जान को एक

अिशयभािी अकारय सतय की तरह थिीकार करक उसस समझौता भी करन लग गयी री एक ददन

उसन हडसन नदी क दसर वसर स मनहरन की ओर दखत हए कहा रा rdquoदखो तो इन छोर-छोर वडबबो

म दकतन लाखो लोग रहत ह दकतन छोर ह हम लोग इतनी तग जमीन पर दकतनी बड़ी तादाद म

समा जात ह एकदम हजारो की सखया म सार-सार जड़ कीड़ो की तरह दफर भी अपन आप को

दकतना बड़ा मानत ह राजनीवत धमथ और नवतकता की तवखतया वचपका कर दकतना बड़ा होन का

भलािा दत रहत ह खद कोrdquo

रजत को रवत की इसान को नाचीज करार दन िाली बातो स हमशा बहत वचढ़ छरती री

बोला रा rdquoधमथ नवतकता जीिन क सतय ह इनको तम भलािा दन िाली चीज कस कह सकती हो

इसान इसीवलए तो बाकी जीिो स अलग ह दक िह सोच सकता हrdquo

rdquoऔर सोच क धरातल पर हर चीज को गलत या सही सावबत कर सकता ह नवतकता को गढ़

सकता ह या परा सतयानाश कर सकता हhellip ठीक ह मझ तो उसम कोई नकसान नहीrdquo

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हा नकसान दकसी का ह तो मरा ही रजत न कहा तो तारक झर स बोल पड़ा रा rdquoनकसान

तो तब होता जो म उस भगा क ल जाताrdquo

रजत न सजीदगी स कहा rdquoअब इसका ददल बर गया हhellip तो आधी सपवतत तो लर ही गयी न

तम भगा ल जाओ तो भी फकथ नही पड़गा यह आधािाला वहथसा तब भी यही रहगाrdquo

सचमच रजत का यह विशवास सही रा रवत और उसक ररशत की शरआत क ददनो म भािना

क परिाह म बहता तारक रवत क सार एक नयी वजनददगी क दकिाड़ खोलन की बात सोच पाया रा पर

जलद ही उस अहसास हो गया रा दक रवत कही बहत गहर जड़ी री रजत क सार दक िह कभी उस

ररशत को तोड़गी नही य रजत भी शर क ददनो म भीतर स वहल गया रा यह झरका दक रवत रजत

को छोड़ दकसी और को मन म ला सकती ह उस बहत दर जा फ क आया रा दफर रवत न खोय विशवास

को िापस लौरा ददया रजत अपन आध नकसान क सार धीर-धीर शायद समझौता करना सीख गया रा

तारक को लगा दक िह आध क सार समझौता करना सीख गया रा दफर तारक को लगा दक

िह आध क सार समझौता नही रा रजत क भीतर कही पर का भरोसा भी रा जस दक रवत को वसफथ

एक बदलाि चावहए रा जो तारक रा िनाथ िह परी रजत की ही री कयोदक मौका आन पर रजत

अपना परा हक जतान स चकता नही रा हमशा यही मानता रा दक पहला हक उसी का ह तारक

हमशा बाद म आयगा जस दक पर भर लन पर बचा हआ भोजन दकसी को भी ददया जा सकता हhellip

कछ ऐसा रख

पर रवत बचा हआ भोजन नही रीhellip दकसी तरह स भी उवचछि या अिवशि नही जो उसन

रवत म पाया रा िह पहल वजनददगी म कभी नही वमला रा रवत न उसकी पहचान करायी री

पररपणथता स रवत को जानना ही जस उस सपणथता को छना रा शायद रजत न भी रवत म ऐसा कछ

पाया रा जो आम औरतो स अलग रा रवत शादी क इतन बरस बाद भी उस अपन म उलझाय री और

िह उसस मि नही होना चाहता रा रवत म बाहरी खबसरती क बािजद वयवि क ददमाग को भी

उलझाय रखन का जो गण रा उसस सच म जो भी पास आता और सखचता जाता रवत म भरपर

पयार लन की चाह री तो भरपर दन की कषमता भी इसी स अभी भी उसस जी तो नही भरा रा रजत

का शायद िह ऐसी औरत री जो हमशा वनत निीन होती रहhellip सौदयथ की एक पररभाषा यह भी तो

दी गई ह दक जो वनत नतन होता रह िही सौदयथ ह रवत भी कभी परानी नही पड़ती रोज कछ नया

होता ह उसक पासhellip कोई नया खयालhellip कोई नई सझhellip कोई नई उकसान उलझान िाली बातhellip

शायद इस ददमागी सौदयथ कहना होगाhellip जो कछ भी उसम राhellip बस खीचता रा अपनी ओरhellip मोहता

राhellip शायद कया पर उगली धरना उस पररवध म बाधन की भोडी कोवशश होती

कछ दवदव उठता तो रवत रजत क ही हक म बोलती री रजत क वहतो को सरवकषत कर लन क

बाद ही िह तारक को उसका हक दती तारक को खीझ भी होती दक रजत उसक जीिन म चदक पहल

आ गया रा इसीवलए हर चीज म ही पहला हक उसी का बनता ह पर उसन रवत स अपनी यह

मनवथरवत कभी जावहर नही होन दी री वपछल साल िलनदराईन ड पर ऐसा ही तो हआ रा दरअसल

दोनो को अदाज नही रा दक उस िीक ड पर िलनदराईन ड पड़ता रा तारक को दकसी काम स रवत क

शहर आना रा और दोनो न वमलन का कायथकरम बना डाला रा रजत स रवत की बात हई होगी तो

उसन भनकर कहा रा rdquoतो िह तमहारा िलनदराईन ह जो उस ददन आ रहा हrdquo रवत क कहन पर दक उस

तो याद भी नही रा िह बोला रा rdquoम नही मान सकता दक तारक न य ही आन का बनाया ह इस

िीक ड परrdquo रवत न तारक स सारी बात बतलायी तो उसन सोचा रा िह खद फोन पर रजत स कहगा

दक उस सचमच याद नही रा पर दफर बात बढ़ान न दन क वलए चप रह गया रा और जान का

12 47 2015 29

परोगराम भी थरवगत कर डाला रा तब उस दो बात तकलीफ दती रही री एक तो यह दक रजत हमशा

उसक सामन परारवमकता ल जायगा दसरी यह कड़िी सचचाई दक रवत कभी भी उसकी जावहरी वजनददगी

का वहथसा नही बन सकती री उसकी कमर म हार डाल कर िह कभी दकसी स यह नही कह सकता

रा रवत मरी हrdquo तब उस बहद रशक होता रजत स कया रजत को सचमच अहसास ह दक रवत तारक

क वलए कया ह दक िह उसकी वजनददगी का कनदर उसकी वजनददगी का अरथ बन चकी ह यह कोई हलका-

फलका ठरकपन नही उसकी वजनददगी का रशा-रशा गर गया ह रवत स शबद म अरथ की तरह समायी ह

रवत उसक अवथतति म इस गरन म िह खद ही घरता रहगा हमशा

अब रवत नही ह तो िह घरन और भी कस रही ह उस कया अब िह रजत स कह पायगा

अचानक उसका मन हआ दक रजत स कह द rdquoतमको मालम ह दक मझ सचमच पता नही रा दक उस

ददन िलनदराईन ड रा िनाथ ऐसी जरथत न करताrdquo दक िह जानता हhellip अचछी तरह समझता ह अपनी

और उसकी ररीररी की पररवधयो को दक रजद शायद कभी जान न पायगा पर उसन हमशा एक दोथत

की तरह रजत का रजत की जररतो का खयाल रखा हhellip वसफथ ऊपर-ऊपर स सामावजक उपचार की

तरह नही भीतर स दकसी ददली ररशत सhellip दफर िह ररशता चाह रवत क जररय स ही बना हो

हो सकता ह रजत यह सब महसस करता हो या न भी करता हो पर उसक चहर पर भी वमिता

का थिागतमय भाि हमशा ददखा ह तारक को वसिा उन कषणो क जब दक सचमच उन दोनो क बीच

lsquoररररोररयलrsquo झगड़ हए तब भी ि शायद इसानी आचार या परथपर सदभाि की सीमाओ को कभी

लाघ नही पर दफर भी तारक का रवत क सार का ररशता ऐसा नही दक रजत क सार वजस बार सक

रवत उसकी हथती का अवभि वहथसा ह िह कोई और कस हो सकता ह रजत रवत नही हो सकता

चाह उसक दकतन ही करीब रहा हो उस दकसी न दकसी तरह स अपन खत पान ही ह लदकन कस

और यही तारक बार-बार उलझ जाता ह अपनी यह परशानी िह दकसी क सार बार नही सकता

रजत स तो कतई नही खत अगर सचमच रजत क हार पड़ गय तो

लदकन रवत न यह भी तो कहा रा दक अगर िह नही रही तो कया फकथ पड़ता ह पर रजत

सचमच खत पढ़ ल तोhellip शायद उसकी पीड़ा पर तब करोध और घणा का कोई विकराल भत हािी हो

सकता हhellip हो सकता ह दक खत पढ़कर रजत रवत को खद स वछरक द लदकन उसस कया तब शायद

रवत और भी तारक क करीब आ जाय और भी उसकी अपनी हो जाय वसफथ उसी की समची एक रात

पहल उस ऐसा ही कछ सपना आया रा रवत की मौत की खबर क बाद यही उसका याद रह जानिाला

सपना रा िह रवत की अतयवि म गया ह और एक अधरा-सा बठकनमा कमरा हhellip कमर म कछ

कागज वबखर पड़ हhellip िह एक कागज उठाता हhellip िह उसी का रवत को वलखा खत हhellip और कई लोग

उसक आसपास ह और िह सोचन लगता ह दक कही इन लोगो न भी तो उनदह नही पढ़ाhellip तभी रजत

का चहरा उसकी ओर बढ़ता ह और िह कागज वछपान की तरकीब सोचन लगता हhellip इसी उधड़बन म

उसकी आख खल गयी री तो वजथम पसीन म नहाया हआ रा

एक रजत ही यहा उसक सबस करीब हhellip और रजत ही उस अजनबी-सा लगन लगा ह अब

तक उसका रवत का सदभथ रा अचानक उस सदभथ स करकर न होन जसा हो रहा ह तारक को अजीब-

सी मानवसक दरी और भयकर अकलापन-सा महसस हआ िह यहा आया ही कयो रा रवत की

नामौजदगी म दकतना बमानी ह उसका यहा होना रजत को भी दकतना दफजल-सा लग रहा होगा

उसका यहा उपवथरत होना वजन लोगो स वघरा ह ि तो सचमच उसक अपन हhellip तारक तो दर स भी

अपना नहीhellip मत स तारक का जो भी नाता रहा होhellip उसक दकसी दसर स तो नही रा उसक कॉलज

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कामो स लौर बचच भी तारक को पहचानत नही र तारक न ही उनकी शकलो और वयिहार स अदाज

लगाया रा और हॉलि म लगी तथिीरो स उनदह पहचान पाया रा

तारक क पास रजत स कहन को कछ नही रा उसका कछ भी कहना रजत को खल सकता रा

उलर तारक को लगन लगा दक रजत शायद सोच रहा हो दक अब कयो जखमो को याद ददलान आ गय

हो कछ भी हो तारक न उस पीड़ा तो पहचायी ही री कया अब उसका कछ भी करना रजत क कि को

कम कर सकता रा उसन वनगाहो स ही अपना दख बयान कर ददया जो शायद रजत न थिीकार भी

वलया राhellip शायद एक औपचाररकता की तरह जस िह दसर बहत स जमा लोगो की शोकावभवयविया

थिीकार रहा राhellip उसस कछ अलग नही शायद तारक का िहा होना ही रजत को खल रहा हो पर

िि की नाजकी की िजह स िह कछ कहना न चाह रहा हो तारक एकदम परशान-सा उठ खड़ा हआ

कछ लोग रजत क गल लग रह र शायद उसस विदा लकर जा रह र तारक न सोचा िह अब

कहगा दक रवत क पास कछ उसक जररी कागजात र अगर रजत उस कागजो िाली जगह पर ल चल

तो िह खद ही दख लगा तारक यि की गवत स रजत की ओर बढ़ा रजत जस दकसी को दख कर भी

दख नही रहा रा उसकी आख दकसी शनदय पर ररकी री तारक को लगा उन लोगो क वघराि म

वजसम उसक अपन अजीज दोथत और ररशतदार र रजत न उस कोई विशष लकष नही दकया तारक क

भीतर अजीब सनापन-सा आ वघरा लगा जस रवत रजत म कही नही री वसफथ भरम-सा हआ रा उस

उसक िहा होन का जस दक उसक रवत क नात स िहा होन म ही कोई भारी असगवत री उस लगा

िहा बठ अजनबी स लोग उस घर रह र उसक िहा होन पर परशनवचनदह लगा रह र पता नही दकतन

ही अजनवबयो स वघर गया रा तारक यहा तक दक रवत की उस तथिीर म भी उस रवत नजर नही आ

रही री िह भी कोई अजनबी छाया री यह दवनया उसकी नही री अगर िह रवत की दवनया रही

भी हो तो वजस रवत को िह जानता रा उस रवत क वलए भी यह दवनया अनवथतति री विसगत री

उसन रजत को बहत सभलत सभलत गल स लगान की औपचाररकता की उस लगा जस िह

दकसी अजनबी को गल लगा रहा रा रवत वजतन उसक अपन पास री उतन और कही नही दकसी क

पास नही दरअसल रवत और कही नही री उसक भीतर रीhellip बस उस रवत को िही अपन भीतर ही

कही सजोय रखना रा भीतर ही खोजना रा भीतर ही तसलली करनी री दकसी और स बार नही

सकता रा रवत को रजत क दोनो कधो को हलक स दबाकर उसन धीर स कहा rdquoरक कयरrdquo और मड़ा

तो वबना पीछ दख बाहर वनकल गया

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पासपोरथ अमरीकन मरो

ओम गपता

पासपोरथ अमरीकन मरो पर रगत सहदथतानी

आज सनाऊ तमको पयार अपनी रामकहानी

छोड़ो भारत मन भयया डॉलर दख-दख ललचायो

चार-पकोड़ी जब भी दख मोह म पानी भर आयो

दीिाली पर दीप जलाउ होली पर खल रग

मौको जब मझको लगतो पीतो म भी भग

कसो होगी सरकार हमारी मोक हरदम सचता

जब भी दश पड़ सकर म कपा करो हनमनदता

पज म अब भी राम-कषण जातो मददर रोज

गपशप यारो स करतो फोकर म वमलतो भोज

योगी-बाबा आए दश स जब दन मझको जञान

आख मद क ना कछ जान करतो उनको सममान

हमबगथर अब भी नही भातो भाती मझ कचोड़ी

जसो जब भी मौका आयो रोपी िसी ओढ़ी

जाऊ दश को जब म अपन खाऊ लडड और इमरती

कहतो खद को सहदथतानी अमरीका मरी अब धरती

कहन को बहत ह भयया रोड़ को समझो काफी

बरा-भला लगा जो तमको माग नतमथतक माफी

12 47 2015 32

शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

आकाकषा ह

वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

फर च अनिाद कर इस lsquoभोगिाद स पीवड़त पविम की आतमा को अतयवधक शावत दन िालाrsquo कहा

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ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

की सीमाओ क पर मनषय कया अनभि कर सकता ह उसकी एक झलक भी ददखा दता ह उसी

औपवनषदीय जञान को महरवष िदवयास न सामानदय जनो क वलए ldquoपविि गीताrdquo म सवकषपत रप म परथतत

दकया ह िदवयास की महानता ही ह जो दक 11 उपवनषदो क जञान को एक पथतक म बाध सक और

मानिता को एक आसान यवि स परमातम जञान का दशथन करा सक ldquoपविि गीताrdquo महाभारत क

भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

ह भगिद गीता वहनदद धमथ क पविितम गरनदरो म स एक ह जो इसानो की चौहददी की सीमा रखा पर

भगिान क शरी मख दवारा इसान स कही गयी सरहदो पर चहरो की थकररनी का लखा-जोखा ह यह

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पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

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Sneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStke Anmol haSy 9` Uuml na3k-sgh Yacute jIvn ke rg Uuml kaVy-sgh Yacute ddeR-jubagt Uuml nJ_m v g_j_l sgh Yacute Aaj ka pu=8 Uuml khanI-sgh Yacute jIvn-ini2 Uuml kaVy-sgh Yacute AaTm-gujn Uuml AayaiTmk-daxRink gIt Yacute has-pirhas Uuml haSy kivta0gt Yacute j_J_bato ka islisla Uuml kaVy-sgh Yacute The Galaxy Within UumlA collection of English poemsYacute AnuwUityagt Uuml kaVy-sgh Yacute kaVy-vlti3 Uuml skln 0v spadn Yacute pUrb-piXcm Uuml AapvasI sMbiN2t Aaleq sgh Yacute bO7ar Uuml skln 0v spadn Yacute kaVy hIrk Uuml skln 0v spadn Yacute sjIvnI Uuml SvaS$y sMbN2I leq Yacute ]pin8d dxRn Uuml AyaiTmk Yacute

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Page 18: Year 12, Issue 47Year 12, Issue 47 vsu2avsu2a · राथत § में आ वबछ §ग . ... श्रराम की अन ¡कम्पा स § ह हाल ह में

12 47 2015 16

भारत और भारतीयता का अरथ

परो गिरीशवर ममशर कलपवत महातमा गाधी वहनददी विशवविदयालय

आजकल क चरवचत सरोकारो म भारत और भारतीयता क सिाल परछन न और परत यकष दोनो ही रपो

म खासी चचाथ का विषय बन चक ह और कई बड़ बवदधजीिी इस पर बहस म वशरकत कर रह ह दसरी

ओर ऐसो की भी कमी नही ह जो इस बमतलब का मददा मानत ह इसका पररदश य आज जररल और

बदला हआ ह दश क थ िति होन क पहल और थ िति होन क ततकाल बाद और अब लगभग सात

दशक की पररपक िता क करीब पहचत-पहचत इस लकर आज बहतर यह मान कर इस तरह की चचाथ

स तरथ र हो चल ह दक यह तो कोई सारथक परश न ही नही ह कछ इस िवशवक या भमडलीकत हो रह

आज क समय की जररतो क अनसार समझना चाहत ह कछ इस किल थ रानीय दवि स ही दखना

चाहत ह कछ इस सभ यता और सथ कवत क विमशथ स जोड़ कर दखत ह जो भी हो अतरराष रीयता क

सार परयासो क बािजद आज भी राज य या नशन थ रर की अिधारणा वनणाथयक महत ि रखती ह और

वनकर भविष य म सीमाविहीन दश जसी कोई अिधारणा आकार लती नजर नही आती आज का सत य यही ह दक दशो की सीमाए बाधा (का अवधक) और सपकथ (का कम) का काम

कर रही ह दश की सीमाओ की रकषा सबक सामन एक बड़ी चनौती ह दश और राष र किल कोरी

भौगोवलक अिधारणाए नही होती उन इकाइयो की रचना क सार एक समाज या समदाय विशष की

आशा-आकाकषा भी जड़ी होती ह दश की अिधारणा एक थ िप न को समरवपत रहती ह आज क तमाम

राष रो क सार उनक सार जड़ी लबी सघषथ-गारा आसानी स दखी जा सकती ह जो दसर समाजो और

समदायो की सामराज यिादी आकाकषाओ क परवतरोध को दशाथती ह शविसपनद न और आरवरक रप स परबल

दशो की दादावगरी उनकी सतता और शवि का जलिा अभी भी बरकरार ह कहन का तात पयथ यह दक

दश की इकाई अभी भी राजनवतक सामावजक आरवरक सामररक और सास कवतक रप स महत िपणथ

बनी हई ह और उस नकारा नही जा सकता

आज बौवदधक किायद म भारत समत सब कछ करथ रड मान जान का फशन-सा चल पड़ा ह

पर उसस दर करोड़ो (भारतीय) जनो क तन-मन म भारत जीवित ह आम आदमी वजनस दश आकार

लता ह िह भारत की एक सामावजक थ मवत भी रखता ह उसक वलए दश थ रानबोधक ह और भारत

एक भाि भी ह भारतीय होन का मतलब ह भारतभवम म रहन की जीिन-व यिथ रा म शावमल होना

भारत कह या इवडया यह मलतः एक भौगोवलक थ रान और उसकी पररवध को रखादकत करता ह इस

भभाग को जब दवीप आयाथितथ भारतिषथ और सहदथतान क नाम स भी जानत ह वहमालय और

सागर इसकी सीमाए बनात ह शथ यश यामला क दश गान और जनगणमन क राष रीय गान म जीित

भारत माता को वजस रप म थ मरण दकया गया ह िह भौगोवलक अिधारणा ही नही उसकी सीमा म

रहन िाल बासशदो की सामावजक-साथ कवतक अवथमता पर बल दती ह वजसका एक भािात मक रप भी

ह भारत एक सामावजक शरणी भी ह जो समाज दवारा रवचत और थ िीकत ह यह उस सामावजक

आकाकषा का परतीक भी ह जो एक आदशथ वथरवत की ददशा म जान क वलए परररत करती ह आधवनक

यग म एक थ िति जनति क रप म एक राज य की थ रापना हई और सहमवत स एक सविधान बना और

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सामावजक आकाकषा को एक मतथ रप वमला हमन उसम आिश यकतानसार बदलाि भी दकया ह इस

इकाई क सदथ य क रप म हमारी एक भारतीय पहचान ह

स मरणीय ह दक एक समदाय या सामावजक इकाई की वभनद नता या अलग सतता थ रावपत करना

वयािहाररक दवि स भी आिश यक ह ऐसा करना समाज को अदर स बाधता ह एकजर करता ह और

अनद य (िसी ही) इकाइयो स फकथ करता ह िधावनक रप स नशन या राष र एक काननी इकाई भी ह

और उसक सदथ य िध नागररक होत ह वजसकी थ िीकवत अनद य राष र भी करत ह और पासपोरथ िीसा

आदद की व यिथ रा स आिागमन को वनयवित करत ह नागररक क रप म िधावनक सामावजक और

साथ कवतक अवधकार क सार कतथव य और दावयत ि म भी भागीदारी होती ह समाज की वनयवत ह दक

जावत भाषा बोली कषि भोजन िथ ि रीवत-ररिाज धमथ आदद की विशषताए आ जाती ह इनक

सार समाज का भािात मक लगाि होता ह और उसक सदथ य थ िय को उसी आधार पर पररभावषत भी

करन लगत ह चदक इन विशषताओ का सचार पारथ पररक सबध और जीिन क विविध व यापारो स

गहरा ररश ता होता ह इसवलए य उस समाज की पाररभावषक विशषताए बन जाती ह

भारत दश हमार समकष एक सभ यता और मल य दविसपनद न सामावजक इकाई क रप म

उपवथरत होता ह इसकी समझ कई रपो म वमलती ह वनकर इवतहास म झाक तो पाएग दक इसक

कई रप ह एक छोर पर सहद उपलवबध को बलपिथक रखन िाल वतलक अरसिद सािरकर और

विवपन चर पाल जस ह दसरी और गोखल रानाड गाधी और रगोर सरीख आध यावतमक विचार को

मानन िाल ह जो सभी परभािो को आत मसात करन को तयार ह य सवहष णता आत मवनयिण आदद क

सार एक तरह की बहलता को ठीक मानत ह तीसरी ओर आधवनक दविसपनद न नौरोजी और पवडत

नहर जस लोग ह जो भारत को एक विकवसत सभ यता तो मानत ह पर यह भी महसस करत ह दक

उसका हरास भी हआ और उसम बहत कछ आधवनक जीिन दवि क विपरीत हआ जो आज उपयोगी

नही ह उनक वहसाब स एक बहलतािादी आधवनक नजररया जो विजञानसम मत हो उपयक त ठहरता ह

आज हर भारतीय की एक बहआयामी पहचान बनती ह िह सहद बगाली मवथलम गजराती

कश मीरी वबहारी बराहमण ओबीसी जन ईसाई आदद िाली एक सार कई तरह की पहचान रखता ह

य वभनद न वभनद न पहचान अक सर एक दसर की विरोधी न होकर परक होती ह साथ कवतक रप स ि

गहरी पठी ह और उनक सार लोगो का गहरा सािथजवनक लगाि भी ह िथ ततः हर भारतीय की

पहचान (आइडरररी) की अलग व यिस रा ह कोई एक यनीफामथ पमाना नही ह जो यह तय कर दक कई

पहचानो म स कौन सबस ऊपर नबर िन पर ह यह एक बड़ा तरल या फलइड मामला ह आज

पजा-पाठ सगीत और थ िाथ थ य लाभ क अनक क र भारत भर म फल हए ह जहा आन जान स सहद

ईसाई वसख और मसलमान दकसी को भी परहज नही होता कई पहचान क सार रहना अथ पष रता तो

पदा करता ह पर शायद दसरो क वलए िथ ततः हर भारतीय कई (उप) सथ कवतयो म जीता ह और य

सब वमलकर उसकी पहचान बनाती ह इस अरथ म हर भारतीय शायद बहसाथ कवतक ह और उसकी

पहचान बहआयामी

दश की छवि दशिावसयो क आत मगौरि का माध यम होती ह आज क भारत का अग होना उस

वबलाग करना हमको आरवरक परगवत की ओर अगरसर एक दश एक आरवरक पािर क सार जड़न का

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एहसास दता ह दसरी ओर भरष राचार अवशकषा अव यिथ रा सामावजक करीवतयो और भदभाि क

कारण मन म रकान उदासीनता और असहायता की भािना भी आती ह इस सबक बािजद एक

भारतीय का बोध जरर ह जो पजाबी मराठी या गजराती होन अलग जावत िगथ और समदाय का

सदथ य होन पर भी सबको भारतीय बनाता ह कभी-कभी विविधता म एकता िाल नहर जी का

भारत अपररभाषय या अव याख यय लगता ह भारत को एक विथ तत साथ कवतक इकाई क रप म दखन

पर कछ विचार उभरत ह जो भारतीय होन क अरथ को थ पष र करन म सहायक होत ह इनम परमख ह

धमथ कमथ पनजथनद म को दकसी न दकसी रप म थ िीकारना सामावजक इकाई - पररिार जावत समदाय

क थ तर पर अपन अवथतत ि को महसस करना सक स वििाह और अनद य व यवियो क परवत खास दविकोण

को अपनाना बहलता का थ िीकार और खल कछ-कछ असगरठत दकथ म की आत म या सल फ की

अिधारणा का थ िीकार और दकसी न दकसी रप म दकसी बड़ी जञात-अजञात सतता स जड़ाि की

अवभलाषा और पररिश परकवत और सवि क सार साझदारी तरा परथ पर अनपरकता का भाि

समकालीन विमशथ म राज य और राष र की अिधारणा क अरथ बहत कछ इस पर वनभथर करत ह

दक कौन दकस दविकोण और परयोजन स इन पर गौर कर रहा ह अक सर इनद ह अतीत ितथमान और

भविष य स जोड़ कर दखा जाता ह और लोग अपन चन िचाररक आदशथ स रग कर ही इस पर विचार

करत ह इन शब दो और इनस जड़ अरथ थ रान और समय क सार-सार बदलत रह ह जो थ िाभाविक ह

भारत दश क बार म सोचन की एक बड़ी मवशकल यह ह दक हमारी अपनी पररभाषा क पमान हमार

अपन न होकर दकसी और क ददए हए ह ि हमार बौवदधक मानस म इतन गहर पठ चक ह दक अब हम

अपन पमान क बार म भरोसा ही नही कर पा रह ह और खद को पररभावषत करन का अवधकार ही

खोत जा रह ह आरवरक और तकनीकी परगवत क पसराि की दवनया म आज हमारा आतम-सशय इतना

गहराता जा रहा ह दक भारत और भारतीयता की बात करना परानी और ददकयानस और इसवलए

अपरासवगक मानी जान लगी ह अगर इसकी बात करनी भी ह तो उसकी सनद कही और स जरानी

होगी आज अपनी पहचान क वलए हम पविमी दशो म विदवानो क दवारा परमाण और गिाही चाहत ह

आज भारत की साथ कवतक विविधता को सपनद नता और समवदध क ोत क रप म समझन समझान की

जररत ह वजसका उपयोग समाज क विकास म दकया जाय इसक वलए भारत को भारत क नजररए स

दखना होगा वबना इस भय क दक भारतीय होना दकसी कषमा याचना की अपकषा करता ह थ िदशी और

सराज जस विचार अभी भी परासवगक ह समरथ और थ िािलबी होन क वलए आत म थ िीकार और सतत

पररष कार आिश यक ह

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भकप का सदश

डॉ एमएल गपता ldquoआददतय

धरती हर ददन डोल रही ह कपन की बोली बोल रही ह

विनाश कर आकरोश स बदल कय भगोल रही ह

कय धरती न भकरी तानी कय वहमालय म आिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

जो ससाधन र पोषण क उनका शोषण कर डाला

ओजोन का जो किच रा उसका भी भदन कर डाला

बरहमी स कार हमन िसधरा क िन-कश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

सागर क तीरो को छीला पठार और पिथत को लीला

नददया बनी नाल और नाली नही ददखता जल वनमथल-नीला

चतािनी द रहा ह मौसम बदला भमडल का पररिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

विजञान की सीढ़ी चढ़ विनाश का सामान बनाया

परमाण सयि द रह यातना विकीरण का खतरा मडराया

रवडएशन स आतदकत ह दवनया क सब दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

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कोई अण कोई परमाण कोई हाईडरोजन बम ल ऐठा ह

वबछी हई बारद धरा म मानि बमो क ढर पर बठा ह

हआ परमाण यदध तो वमर जाएग दकतन दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

भकषक बनकर मानि इक दज पर चोर कर रहा

परीकषण की खावतर दकतन भीषण बम विथफोर कर रहा

परकवत का सतलन वबगड़ा तो हम बन जाएग अिशष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

कदरत कहर बरपा सकती ह कभी भी आफत आ सकती ह

धरा की जरा सी भी हरकत दकतना कोहराम मचा सकती ह

धरा न जरा करिर बदली तो कछ भी न रहगा शष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

पयाथिरण क आघात पर अब तो रोक लगानी होगी

सागर पिथत धरती क सग बद करनी मनमानी होगी

धरती को जो मा मानोग सब वमर जाएग कलश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

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ि दोनो

डॉ सषम बदी

छत स फशथ तक क लब शीशो स जड़ी उस बड़ी-सी बठक म खब सारी ददन की रौशनी भरी हई

री फशथ पर वबछी सफद चादरो पर सफद िसतर पहन ढर सार लोग उस रौशनी का ही वहथसा लग रह

र कमर म घसत ही तारक को लगा जस उस शवतता म घल मौत क सदथपन और जड़ता न अचानक

उसक भीतर को जकड़ वलया ह बीचोबीच फलो की माला चढ़ी एक बड़ी-सी रवत की तथिीर री

वजसका धप दीप और गीता क शलोको स अवभषक दकया जा रहा रा रवत अब तथिीर भर री तारक

की थतबध पवनयायी आख वनथसहाय-सी रजत को खोजन लगी

रजत सारा िि लोगो स वघरा ही रहा रा उसकी मा उसक बचच और दसर ररशतदार कोई न

कोई उसक आसपास रा ही उन दोनो की आख एक दसर स दो एक बार वमली पर रजत अपन स

बाहर नही आ पाया रा तारक न दकसी तरह अपनी शोकभािना वयि कर दी री न भी वयि करता

तो कया रजत को तो खद भी अहसास होगा उसकी अतभाथिना का एक िही तो ह इस भीड़ म जो

जानता ह दक िह कयो यहा ह बाकी तो तारक दकसी स पररवचत ही नही वसिाय कछक रवत क

कलीगज क एक दो कलीगज स ही उसकी बात हई रवत क बार म ि उस पररिार का वमि मानकर

बात कर रह र य पररिार का वमि तो िह रा ही पर इसस अलग या ऊपर भी कछ रा यह शायद

रजत क अलािा और कोई नही जानता रा जबदक रजत भी परा कहा जानता ह खास तौर स िह सब

कछ जो तारक महसस करता रहा ह या जो कछ तारक और रवत क बीच म रहा या अभी भी वजसका

बहत कछ बचा रा

य तारक न बहत बार सोचा दक अब रवत नही रही तो उसक यहा जान का कोई फायदा नही

उसकी तकलीफ बढ़गी ही दफर लगा दक नही उस रजत स वमलन जाना होगा रजत भी तो उसका

दोथत ह य रवत उन दोनो क बीच न होती तो ि शायद बहत गहर दोथत हो सकत र दफर भी िह खद

को कई तरह स रजत क करीब महसस करता रा और रजत भी बहत मामलो म उसी स सलाह करक

चलता रा उस पर भरोसा करता रा जो दक उसक मन क दोथती क भाि को ही जताती री चदक

तारक की विशषता ददल क रोगो म री िह रवत क हारथअरक क बाद स उसस अकसर रवत क बार म

सलाह लता यहा तक दक रवत स भी कोई वशकायत होती तो तारक स ही कहता दखो न इसका

कोलथराल इतना हाई चल रहा ह और मडम चीज मीर सभी कछ खाती ह अभी रथतरा ल चलो परा

का परा थरक गरक जायगी कस कर यह तो खद को नकसान पहचान स बाज नही आतीrdquo और तारक

तब ररका दता कसी डाकरर हो तम रवत मरीजो को उपदश दती रहती हो और खदhellipदफर उसन

खद ही एक विशषण गढ़ा रा रवत क वलए lsquoनानकपलायरrsquo यानी दक जो कछ भी कहा जायगा उसका

विरोध ही करगी रवत और दकसी िजह स नही बवलक विरोध करन क वलए विरोध

तब रवत और भी तिर चढ़ाकर बोलती rdquoरजत तो पहल ही मर पीछ पड़ा रहता ह अब तम

भी इसी स वमल गय हो िाह जी िाह दोथत दकसक हो तम मर या रजत कrdquo

तारक तब चप रह जाता रा रजत भी कछ नही कहता एक वपरय अवपरय सतय

शायद रवत भी इसीवलए कहती री दक तारक तब लाजिाब हो जायगा कयोदक रवत जानती ह दक जो

िह तारक क वलए ह िह और कोई नही हो सकता और रजत को भी इसका अदाज ह इसी स रजत न

शर म चाह दकतना विरोह दकया हो दकतना लड़ाई झगड़ाhellip दफर धीर-धीर मान वलया रा इस ररशत

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को रवत क वलए ही अगीकार कर वलया रा तारक को भी रवत न ही उस बतलाया रा जब रजत न

उस बाहो म भरकर कहा रा rdquoइतना पयार करता ह तमह दक यह भी थिीकारन क वलए राजी हrdquo

एक हक-सी उठी री तारक क भीतरhellip वजस इतना पयार वमला होhellip इतनाhellip िह इस तरह स

उन दोनो की वजनददगी को ही सना करक रखसत हो ली तारक क मन म गथसा भी आयाhellip शायद

अपनी सहत का धयान रखती तो कछ और जी जाती उन दोनो स ही तो चार-पाच साल छोरी री िह

जी भी सकती री पर अबhellip और तारक न लबी सास भरी

रवत की एक कलीग बता रही री rdquoपरसो तो काम पर आयी हई री रवत म सोच भी नही

सकती री दक इतना भारी थरोक हो सकता ह दक एक ही लपर म ल जायhellip मझ तो विशवास ही नही

होताrdquo तारक को भी विशवास नही होता रा उसी ददन सबह रवत न उसस फोन पर बात की री और

उसस मजाक दकया रा rdquoमर जनदमददन पर आओगrdquo

दरअसल सारा झगड़ा कछ साल पहल रवत क जनदमददन को लकर ही शर हआ रा िनाथ शायद

रजत को उन दोनो क बीच बढ़त ररशत की तवनक खबर न लगती रवत न उस बतलाया रा दक उसक

जनदमददन पर िह और रजत आमतौर पर शाम को बाहर दकसी बदढ़या स फर च रथतरा म खाना खान

जात ह तब तारक न कहा रा rdquoठीक ह तो लच तम मर सार लनाrdquo

रवत मान गयी री उसन उसी ददन रवत क शहर पहचन क वलए फलाईर भी बक करिा ली

री पर जब ठीक जनदमददन आनिाला रा तो रवत न उस बतलाया रा दक रजत को ठीक नही लग रहा

मरा तमहार सार लच पर जाना िह पछ रहा रा दक इतना इमपॉरर कस हो गया यह आदमी दक

तमको उस जनदमददन पर जरर वमलना ह

rdquoतमन कया कहाrdquo तारक वजजञास हो उठा रा

rdquoयही दक तमको दकसी काम स शहर म होना रा इसवलए लच पर वमलन की बात की इस पर

उसन कहा दक अगल ददन वमल लो जनदमददन िाला ददन तो उसी क वलए हhellip कोई और कयोrdquo

दफर िह बोली rdquoइसी पर उस शक हो रहा ह दक यह कोई आम दोथत नहीhelliprdquo

तारक न जोड़ ददया रा rdquoपरमी हrdquo

rdquoहा यही शक हो रहा ह उसrdquo

rdquoतो ह या नहीhelliprdquo

rdquoशायद होhellip यही मसीबत हrdquo

तारक न कहा रा rdquoअब तो ररकर ली हई ह म तो आऊगा ही तम वमल सको तो वमलना िनाथ

न वमलना चाह पाच वमनर क वलए या कॉफी क वलए भी आ जाओगी तो मर वलए िही काफी होगा

तमहार जनदमददन पर तमह दख भर लrdquo

rdquoतम भी कमाल क रोमाररक होhellip पर सच कह तो म भी तमस वमलना चाहती ह उस ददनhellip

कछ न कछ तो जगाड़ना पड़गाrdquo

rdquoमर वलए तमहारा जनदमददन मरी वजनददगी का बहत अहम ददन हhellip समझीrdquo

एयरपोरथ पहच कर तारक न फोन दकया रा रवत बोली री rdquoरजत कह रहा ह तम हम वडनर

पर जॉयन कर लोrdquo

तारक बहत हरान हआ रा पर रवत न फोन रजत को पकड़ा ददया रा तारक एकदम सकर म

पड़ गया रा उसन खद को बचान की कोवशश की rdquoसॉरी म तो यहा आया रा तो सोचा रवत स वमल

लगा पर इस तरह आप लोगो क परोगराम मhelliprdquo

12 47 2015 23

रजत न जोर दकर कहा रा rdquoनही भाई बहत तारीफ सन रहा ह बीिी स जरा हम भी तो

वमल आपस आप चाह तो घर पर आ जाईए या दफर सीध रथतरा पर वमलगrdquo

rdquoपर आप लोगो का तो वडनर पर सार जान का कायथकरम रा नrdquo

rdquoआप लच पर फरी ह तो लच पर वमल लत ह य मझ तो वडनर ही पसद ह जसा आप कहrdquo

रजत वबलकल दोथताना ढग स बात कर रहा रा एक पल को उसकी रोन म कछ तनाि तारक

को महसस हआ रा पर अगल ही पल आिाज दफर सहज हो गयी री तारक मान गया पर रकसी लकर

पहल होरल म सामान छोड़ा और इस दौरान खद को मानवसक तौर पर तयार भी करता रहा दक कस

पश आना ह अपन रकीब स दखा जाय तो ररशता रकीब का ही रा बाकी ि दकतन भी सभय या

समझदार इसानो की तरह एक-दसर स बताथि कर आवखर ि तीनो सममावनत पश क र तारक हारथ

थपशवलथर रा तो रजत अगरजी सावहतय का परोफसर और रवत सायकायररथर इसानी मन की

कमजोररयो को समझना मनोरोगो का इलाज करना रवत की विशषता तो री ही पर इसानी आकषथण

एक दसर क परवत सखचाि या ऐस ररशतो को समझन की सथकवत तो कही तीनो म ही री

रजत इस बात को खब समझता रा दक दकसी भी औरत क वलए दकसी दसर परष क परवत

सखचाि हो जाना बहत सहज रा िही एक पवत और पतनी स परम करन िाल क रप म िह रवत क इस

वयिहार स ईषयाल भी हो उठता रा एक सभय इसान क नात िह ईषया को दबा कर तारक क परवत भी

वमिित वयिहार करना चाहता रा पर िही उस रवत क वयिहार स कि पहचता रा दक िह उसक

अलािा भी दकसी दसर परष को चाह सकती ह वजसस उसक मन म आकरोश और वितषणा का भाि

उठता कभी िह अपन को उदार बना कर यह कहना चाहता दक रवत अगर दकसी दसर को चाहती ह

तो बशक उसको भी कयो न पाय सार ही जब करोध होता तो एक तरह स जस िह रवत को सजा दन क

वलए कह डालता rdquoतम जाओ दोनो सार रहोrdquo पर जो पीड़ा िह उसम सह रहा होता िह रवत और

तारक दोनो क वलए ही असहय होती

रवत न कहा रा rdquoकया तारक और म दोथत नही हो सकत और इतन दोथत हhellip एक िह वयवि

वजसस बात करक मझ खशी वमलती ह िह दोथत कयो नही बन सकता वसफथ इसवलए दक उसक मन म

तीखी भािना ह मर वलएhellip या शरीरो का आकषथण भी हhelliprdquo

रजत तब तकथ स सारी बात को समझन समझान की कोवशश करता हा करत-करत कह दता

rdquoऔरत आदमी म दोथती हो ही नही सकती कयोदक जहा शरीरो का आकषथण हो िहा दोथती जसा

वनषकपर भाि कस पनप सकता हrdquo तब रवत दोथती का एक और पकष पश करती rdquoतमहार कहन का

मतलब तो िही ददकयानसी बात हई दक शरीर पाप का मल ह जबदक तम खद ही यह पहल कह चक

हो दक शरीरो का मसला हल हो जाय तो औरत मदथ बहत खबसरत दोथत हो सकत हhellip शरीर को

अहवमयत दी कयो जाय शरीर वमल जान स उनका दोथती म बाधा बनन का मसला खतम हो जाता हrdquo

रजत रवत की बात मान भी जाता रा पर रवत दफर तारक को यह भी बताती री rdquoिन कार

रक वहम फॉर गरारड कल को िह अपना कोई नया तकथ द दगाrdquo

शायद इसी स तारक भी अचानक वहममत हारन लगा रा कस सामना करगा िह रजत का य

िह रजत स एकाध बार पहल वमल चका रा पर तब उसको यह अदाजा नही रा दक रवत और उसक

बीच कछ रा जबदक तारक तब भी कछ आतमसजग-सा हो रहा रा पर कछ वमनरो की मलाकात को

सभाल लना कोई बड़ी बात नही री और य भी रजत उस भला आदमी लगा रा यह भी सोचा रा दक

अगर रवत उन दोनो क बीच न होती तो यह वयवि उसका दोथत हो सकता रा य रवत क होन क

बािजद अतत ि दोथत बन ही पर इस दोथती का तानाबाना िसा न रा जस खावलस दोथती का होता

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ह इसम रवत क रश बन हए र जो एक और ही रगत वलए र और िह रगत तारक को बहत पयारी री

उस दोथती स जयादा

तारक न होरल पहच कर फोन कर ददया रा दक वडनर पर वमलना ही ठीक रहगा और िह

अपना काम इस दौरान कर लगा रजत आसानी स यह बात मान गया और कहा दक िह सडरकस पर

पहल घर पर आ जाय उसक बाद रथतरा खाना खान चल जायग

शाम को जब िह चलन लगा तो फोन बजा रा दसरी ओर रवत री हलो कहत ही रवत न

कहा rdquoसनो तम मत आना मर घर म बहत रशन चल रही हrdquo इसस पहल दक िह कछ कहता रवत न

फोन वडसकनकर कर ददया

रात को कोई फलाईर नही जाती री िनाथ िह उसी िि शहर छोड़ क चला जाता

आध घर बाद ही घरी दफर बजी रवत पछ रही री दक आ रह हो तारक बौखला गया दक आवखर हो

कया रहा ह कया यह रवत क मन की उलझन ह या दक रजत कीhellip या दोनो कीhellip या रवत वसफथ रजत

की उलझन को वयि कर रही री बोली री rdquoजलदी आ जाओ हम लोग इतजार कर रह हrdquo

िह पहचा तो रवत न अकल ही उसका थिागत दकया रा िह जानता रा दक दोनो बचच कालजो

म ह पर रजत काफी दर तक बठक म नही आया तो तारक हरान हआ रवत बोली rdquoिह नहा रहा हrdquo

दफर मथकरा कर जोड़ा rdquoशायद हम दोनो को कछ िि दना चाहता हrdquo

तारक तब कछ निथस हआ रा उस आग बढ़कर रवत को चमन का हौसला नही हआ उस लगा

दक रवत भी सहज नही री जस दक आम तौर पर होती ह पर उसन कछ कहा नही िह खद भी तो

सहज नही हो पा रहा रा जस लड़की क बाप क घर म शादी का परथताि लकर जा रहा हो कछ कछ

इसी तरह का महसस हो रहा रा िही डर कर परचा करना रा दक इमतहान म फल न हो जाय

रजत न कमर म आत ही बड़ तपाक स हलो दकया कछ औपचाररक-सी बात की दफर उसस

सडरक पछा और दकचन म बफथ िगरह का इतजाम करन क वलए दफर स गायब हो गया तारक को लगा

दक सहज होन की बहत कोवशश क बािजद रजत बहत असहज ह

ववहथकी का घर लत हए तारक न ही रजत स उसक काम क बार म पछना शर दकया बात

कही जा नही रही री तभी रवत एक नई दकताब की चचाथ करन लगी वजसका ररवय सबह क अखबार म

छपा रा तारक न हिाई जहाज म ही उसक बार म पढ़ा रा दफर तो बातचीत खब गरमागरम होन

लगी रजत न दवकषण एवशयाई अगरजी लखको क बार म अपन विचार झाड़न शर कर ददय यहा तक

दक रवत न अचानक घड़ी दखी तो पता चला दक रथतरा की ररजिशन का िि हो चका रा रजत न

रथतरा को फोन दकया दक कछ वमनर लर पहचग और तारक को बोला दक जलदी स सडरक खतम कर ल

या गाड़ी म ही ल चल दोनो न दो तीन सडरक चढ़ा रख र मौज-सी भी आयी हई री रजत ही कार

चला रहा रा और तारक पीछ िाली सीर पर बठा रा अचानक रजत कछ नश और कछ अपनी धन म

बोला rdquoतो तम मरी बीिी स पयार करत होrdquo

तारक भौचक-सा हो गया य ही बठा रहा जस रजत की बात को सना न हो या िह गभीरता

स लन लायक न हो रजत न अपनी बात को सिाल बनाकर दबारा पश दकया rdquoकयो तारक मरी बीिी

स पयार करत हो या नहीrdquo

तारक न कहा rdquoहाrdquo और चप कर गया उस लग रहा रा िह जो भी जिाब दगा खतर स खाली नही

पर यह जिाब सच रा तो सच बोल कर ही मार खायी जाय उस दकसी लड़की क वपता स हार मागन

नही जाना पड़ा रा आज यह भी सही

rdquoतम भी पयार करत हो िह भी करती ह तो तम दोनो सार कयो नही रहतrdquo

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तारक बोल पड़ा रा rdquoयह इतना आसान नहीrdquo

रजत इस पर आकरमण करता-सा बोला rdquoकमाल ह पयार भी करत ह और वजममिारी भी नही

वनभाना चाहतrdquo तारक को महसस हो रहा रा दक रजत कह तो कछ रहा ह और पहचाना कछ और

चाहता ह दफर भी िह जिाब तो उसी बात का द सकता रा जो दक पछी जा रही री यह कह कर

उस नाराज भी नही करना चाहता रा दक रजत वसफथ अपन भीतर क आकरोश आतक और आग को

आिाज द रहा रा बोला rdquoयह बात नही म आज भी रवत क सार वजनददगी शर करन को तयार ह

जहा तक म जानता ह रवत अपन शहर को छोड़ कर और कही नही जायगी न िह तमको छोड़न को

तयार होगी जहा तक म रवत को जानता हhelliprdquo

रवत चपचाप अपन पर अकश लगाय दोनो की बात सन रही री न तो िह रजत क पकष म

कछ बोलना चाहती री न तारक क पकष म ही बोल सकती री दफर भी दोनो क बीच तारतमय वबठाय

रखन की वजममिारी भी उसी की री और िह समझ नही पा रही री दक दकस तरह इस बातचीत को

सीमाय लाघन स बचाया जाय ऊपर स उस डर लग रहा रा दक आिश म रजत कही रककर न मार द

रथतरा बहत दर रा भी नही बात पर चरम पर चल रही री दक रथतरा आ गया रवत न रोका rdquoरजत

पारककग ढढ़ो रथतरा आ गयाrdquo रथतरा क सार ही पारककग गराज म गाड़ी छोड़ कर तीनो अदर चल गय

िरर न उनको मज पर वबठाया और सडरक क वलए पछा तरा मनदय लाकर ददय तीनो क तीनो उस मज

पर इस तरह खामोश और भर बठ र दक मनदय म वसर डबोना एक राहत बन गया रा तीनो न अपन-

अपन आडथर ददय पर बात कछ बन नही रही री हर कोई कछ भी कहन म जयादा ही सतकथ हो रहा रा

अचानक रवत बोली rdquoरजत तमको इतनी जयादा तकलीफ री तो तमन मना कयो नही कर

ददया म तो तारक को कह चकी री दक आज सार खाना नही होगा तमही न जोर ददया दक जरर

बलाओ अब इस तरह कयो बताथि कर रह होrdquo

रजत और भड़क गया rdquoम तो वसफथ यह कह रहा ह दक तम लोग एक-दसर को पयार करत हो

तो म कया कर रहा ह यहा तम जाओ एक दसर क सार रहोrdquo

दोनो की आिाज ऊची हो रही री और दसरी मजो पर बठ लोगो की वनगाह इस ओर उठ आयी री

तारक न धीर स सझाया रा rdquoमर खयाल स हम य बात यहा नही करनी चावहएrdquo सहसा रवत

न होश म आत कहा rdquoहा इतन बदढ़या रथतरा म खाना खान आय ह कछ खान पर भी तो धयान दhellip

दफर आज मरा जनदमददन ह आई िार र हि ए गड मीलrdquo

दफर भी खान पर तीनो म स दकसी का धयान नही लग सका तीनो औपचाररक-सी बात म लग

गय र तारक न ही शहर क निीनतम रथतराओ क बार म ताजा पढ़ी समीकषा का वजकर छड़ ददया रा

रजत न कार स जब उस होरल छोड़ा तो तारक न उपर कमर म आकर सडरक लन क वलए कहा

पर जसा दक िह अपकषा कर रहा रा रजत न दर होन का बहाना बना छटटी माग ली री रवत तब भी

कछ नही बोली री शायद उस डर रा दक उसका कछ भी कहना रजत क वलए घाि पर नमक वछड़कन

जसा होगा या उसकी कोई भी बात का गलत मतलब वनकाल कर रजत भड़क सकता रा य दर हो भी

चकी री

पर तारक यह भी जानता रा दक रवत एक नबर की वजददी री जो उस चावहए रा चावहए ही

रा उस रोका नही जा सकता रा िह ऊपर स मान जायगी पर भीतर स कभी माफ नही करगी

शायद इसी स रजत भी वबगड़ी हई लाड़ली बरी की तरह रवत की हर चाह या माग को विरोध करक

भी अतत मान जाता रा

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लौर आन क दो चार ददन बाद ही उसक फोन पर रवत न सदश छोड़ा रा rdquoतमहारा आना ठीक

नही हआ सॉरी तमह बलाकर भी वमल नही पायी अब लगता ह कभी नही वमलगी लर अस थरॉप

ददस वहयर पलीज मझस सपकथ मत करनाrdquo

तारक बहत ददन परशान घमता रहा रा पर रवत को फोन भी नही दकया उसन मना जो कर

डाला रा उस फोन करत हए तारक को लगता दक िह खद को उस पर लाद रहा ह और यह वथरवत

उस कभी गिारा नही री हर ददन दकसी जिालामखी-सा लाि स लदा हआ गजरता अदर ही अदर

सब तप रहा रा

महीन भर बाद रवत न फोन दकया रा rdquoगथसा हो न मझस तमस माफी भी नही माग सकीrdquo

उसकी तो कोई जररत नहीrdquo

दफर भी सोचा रा तमस कभी बात नही करगी इसी स तमको सपकथ करन स मना दकया

रा रजत को भी यही मालम ह दक तमस ररशता तोड़ ददया ह पर अब मझी स बात दकय वबना रहा

नही जा रहाrdquo

रजत को मालम ह मझस बात कर रही होrdquo

िह बहद गथसा ह तमसhellip जस दक सारा दोष तमहारा होhellip दक तमन उसकी बीिी को फसा वलयाrdquo

ि इसी तरह जब मौका लगता बात कर लत तारक क ददल ददमाग पर रवत ही छायी रहती

िह ऐस ही पलो क दौरान जीता जब दोनो क बीच कछ सपकथ होता बाकी क पल उन पलो क इतजार

म गजरत

इस बीच रवत को ददल का दौरा पड़ा रा घबराकर तारक को फोन कर डाला रा रजत न

तारक आया तो रजत उस अपनी गाड़ी म सार अथपताल ल आता जाता रहा दोनो म एक दोथती का

नाता तभी बना रा दवनया जहान की बात रजत न उस घर पर ही ठहराया रा तारक तीन ददन बाद

चला गया रा िावपस पर दोनो की फोन पर बात हो जाती रवत अथपताल स िावपस आ गयी री

धीर-धीर िह सामानदय होकर िावपस अपना काम सभालन लगी

रवत का जनदमददन दफर स आनिाला रा रवत न उस कहा रा rdquoरजत अपन आप ही बोल रहा ह

दक तम आ जाओ इस बार मरा जनदमददन मनान बोलो आओगrdquo

तारक परानी बात याद करक घबरा गया रा rdquoनही दफर स उसक भीतर सब घमड़न लगगाhellip

सबको तकलीफ होगीrdquo

यह सच भी रा रजत कभी तो उसक परवत बहत वमिित हो जाता िही अचानक गथसा ईषयाथ

उभर आत और िह अकसर बरखी ददखाता अचानक तारक को ऐसा महसस हआ जस रवत उसस खद

यह सब कह रही हो पल भर को िह भल ही गया दक रवत क ही अतयवि कमथ म िह शावमल हआ ह

और दरअसल उसक यहा आन की एक िजह यह भी ह दक िह रवत को वलख अपन खत िावपस ल

जाना चाहता ह उस डर ह दक कही ि खत रजत क हार न पड़ जाय

तारक रवत क सार काम करन िाली इस मवहला डॉ लोपज स पहल वमला हआ रा इस भीड़

म एक िही जान-पहचान की री तारक का मन हआ उसस पछ दक कया िह रवत की दराज म उसक

कागजात पर नजर मार सकता ह तारक को अदाज रा दक उसक खत िह दफतर की मज की दराज म

रखती री पर िह जानता रा दक ऐसा करना ममदकन रा नही आवखर तारक को कस हक पहचता रा

रवत की दराज खलिान का िह तो एक पररिार क वमि की हवसयत स िहा रा रजत ही कह सकता

रा दखा जाय तो ि लोग खद भी रजत स ही कहग दक रवत का सामान िह ल जाय तब तो रजत की

आख जरर उन पर पड़गी तब शायद उसको बरा लगगा दक रवत क सार तारक का एक अपना ररशता

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रा उन तीनो की आपसी दोथती क बाहरhellip रजत को बतहाशा चोर लगगी अब जबदक िह रवत स

जिाबतलबी भी नही कर सकता रवत अब कोई सफाई नही पश कर पायगी तारक क हक म कछ भी

नही कह सकगी दकसी तकथ स रजत को लाजिाब नही कर पायगी नही िह ऐसा नही कर सकता न

यह रवत क परवत सही होगा न रजत क परवत उस दकसी न दकसी तरह स खत पान ह

राथत म आत हए हिाई जहाज म तारक जब लगातार रवत क सार की अपनी वजनददगी क

गजर पल दहरा रहा रा बार-बार उस धयान आता दक जब स रवत को ददल का दौरा हआ रा िह

उसस कहना चाहता रा दक उसक खत विनि कर द एक बार उसन बात उठायी तो रवत बोली rdquoकयो

तमहार खत मर दफतर की दराज म सफ पड़ हrdquo

शायद िह वबना कह यह भी समझ गयी री दक तारक का इशारा दकस ओर ह तभी बोली

दखो जब तक म वजनददा ह म उनको फाड़ कर न तो फ क सकती ह न जला सकती ह एक बार मर गयी

तो कया फकथ पड़ता ह दक कोई कया करगा उनक सार तमको तो दफकर होनी नही चावहए अब तो ि

मरी अमानत हrdquo यह बातचीत दो एक महीन पहल की ही होगी तारक न सोचा रा बात कभी दफर

उठायगा पर उसस पहल हीhellip

तारक को भी तब यह अदाज नही रा दक रवत क अलािा रजत स भी उसका नाता रा रवत क

जान क बाद िह खद को रजत क बहत करीब महसस कर रहा रा और उस लगा दक उसक खत रजत

को उसस दफर दर धकल सकत र पर िह दकसी तरह भी रजत को खोना नही चाहगाhellip रजत जस स

रवत का ही एक वहथसा राhellipउसन दखा लोगो स वघरा रजत का चहरा बहद वनचड़ा हआ रिहीन और

सखा-सा लग रहा रा रात भर सोया नही होगा इसवलए आखो क नीच कालापन उतर आया रा आख

काफी अदर को धसी हई री तारक को लगा दक िह शायद रजत स बहतर हालत म ह दफर उस रशक

भी हआ रजत अपन गम का खला इजहार कर सकता हhellip तारक को यह सविधा नही री िह दकसी

उजड़ आवशक क रप म इस महदफल इस मौत का शोक करन िालो की महदफल मhellip अपना असली

चहराhellip अपना आवशक का चहराhellip नही ददखा सकता रा अचानक उसकी आख भर आयी अपन खोन

की वशददत क अहसास स

रवत क िाकय उसक कान म सरसरान लग जबस उस ददल का दौरा पड़ा रा िह जीिन की

कषणभगरता या इसान क नाचीज होन क अवथततििादी दशथन को बहत बघारन लग गयी री शायद

अपन जान का अहसास उस कही बहत गहर उदास कर जाता रा पर िही िह उस जान को एक

अिशयभािी अकारय सतय की तरह थिीकार करक उसस समझौता भी करन लग गयी री एक ददन

उसन हडसन नदी क दसर वसर स मनहरन की ओर दखत हए कहा रा rdquoदखो तो इन छोर-छोर वडबबो

म दकतन लाखो लोग रहत ह दकतन छोर ह हम लोग इतनी तग जमीन पर दकतनी बड़ी तादाद म

समा जात ह एकदम हजारो की सखया म सार-सार जड़ कीड़ो की तरह दफर भी अपन आप को

दकतना बड़ा मानत ह राजनीवत धमथ और नवतकता की तवखतया वचपका कर दकतना बड़ा होन का

भलािा दत रहत ह खद कोrdquo

रजत को रवत की इसान को नाचीज करार दन िाली बातो स हमशा बहत वचढ़ छरती री

बोला रा rdquoधमथ नवतकता जीिन क सतय ह इनको तम भलािा दन िाली चीज कस कह सकती हो

इसान इसीवलए तो बाकी जीिो स अलग ह दक िह सोच सकता हrdquo

rdquoऔर सोच क धरातल पर हर चीज को गलत या सही सावबत कर सकता ह नवतकता को गढ़

सकता ह या परा सतयानाश कर सकता हhellip ठीक ह मझ तो उसम कोई नकसान नहीrdquo

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हा नकसान दकसी का ह तो मरा ही रजत न कहा तो तारक झर स बोल पड़ा रा rdquoनकसान

तो तब होता जो म उस भगा क ल जाताrdquo

रजत न सजीदगी स कहा rdquoअब इसका ददल बर गया हhellip तो आधी सपवतत तो लर ही गयी न

तम भगा ल जाओ तो भी फकथ नही पड़गा यह आधािाला वहथसा तब भी यही रहगाrdquo

सचमच रजत का यह विशवास सही रा रवत और उसक ररशत की शरआत क ददनो म भािना

क परिाह म बहता तारक रवत क सार एक नयी वजनददगी क दकिाड़ खोलन की बात सोच पाया रा पर

जलद ही उस अहसास हो गया रा दक रवत कही बहत गहर जड़ी री रजत क सार दक िह कभी उस

ररशत को तोड़गी नही य रजत भी शर क ददनो म भीतर स वहल गया रा यह झरका दक रवत रजत

को छोड़ दकसी और को मन म ला सकती ह उस बहत दर जा फ क आया रा दफर रवत न खोय विशवास

को िापस लौरा ददया रजत अपन आध नकसान क सार धीर-धीर शायद समझौता करना सीख गया रा

तारक को लगा दक िह आध क सार समझौता करना सीख गया रा दफर तारक को लगा दक

िह आध क सार समझौता नही रा रजत क भीतर कही पर का भरोसा भी रा जस दक रवत को वसफथ

एक बदलाि चावहए रा जो तारक रा िनाथ िह परी रजत की ही री कयोदक मौका आन पर रजत

अपना परा हक जतान स चकता नही रा हमशा यही मानता रा दक पहला हक उसी का ह तारक

हमशा बाद म आयगा जस दक पर भर लन पर बचा हआ भोजन दकसी को भी ददया जा सकता हhellip

कछ ऐसा रख

पर रवत बचा हआ भोजन नही रीhellip दकसी तरह स भी उवचछि या अिवशि नही जो उसन

रवत म पाया रा िह पहल वजनददगी म कभी नही वमला रा रवत न उसकी पहचान करायी री

पररपणथता स रवत को जानना ही जस उस सपणथता को छना रा शायद रजत न भी रवत म ऐसा कछ

पाया रा जो आम औरतो स अलग रा रवत शादी क इतन बरस बाद भी उस अपन म उलझाय री और

िह उसस मि नही होना चाहता रा रवत म बाहरी खबसरती क बािजद वयवि क ददमाग को भी

उलझाय रखन का जो गण रा उसस सच म जो भी पास आता और सखचता जाता रवत म भरपर

पयार लन की चाह री तो भरपर दन की कषमता भी इसी स अभी भी उसस जी तो नही भरा रा रजत

का शायद िह ऐसी औरत री जो हमशा वनत निीन होती रहhellip सौदयथ की एक पररभाषा यह भी तो

दी गई ह दक जो वनत नतन होता रह िही सौदयथ ह रवत भी कभी परानी नही पड़ती रोज कछ नया

होता ह उसक पासhellip कोई नया खयालhellip कोई नई सझhellip कोई नई उकसान उलझान िाली बातhellip

शायद इस ददमागी सौदयथ कहना होगाhellip जो कछ भी उसम राhellip बस खीचता रा अपनी ओरhellip मोहता

राhellip शायद कया पर उगली धरना उस पररवध म बाधन की भोडी कोवशश होती

कछ दवदव उठता तो रवत रजत क ही हक म बोलती री रजत क वहतो को सरवकषत कर लन क

बाद ही िह तारक को उसका हक दती तारक को खीझ भी होती दक रजत उसक जीिन म चदक पहल

आ गया रा इसीवलए हर चीज म ही पहला हक उसी का बनता ह पर उसन रवत स अपनी यह

मनवथरवत कभी जावहर नही होन दी री वपछल साल िलनदराईन ड पर ऐसा ही तो हआ रा दरअसल

दोनो को अदाज नही रा दक उस िीक ड पर िलनदराईन ड पड़ता रा तारक को दकसी काम स रवत क

शहर आना रा और दोनो न वमलन का कायथकरम बना डाला रा रजत स रवत की बात हई होगी तो

उसन भनकर कहा रा rdquoतो िह तमहारा िलनदराईन ह जो उस ददन आ रहा हrdquo रवत क कहन पर दक उस

तो याद भी नही रा िह बोला रा rdquoम नही मान सकता दक तारक न य ही आन का बनाया ह इस

िीक ड परrdquo रवत न तारक स सारी बात बतलायी तो उसन सोचा रा िह खद फोन पर रजत स कहगा

दक उस सचमच याद नही रा पर दफर बात बढ़ान न दन क वलए चप रह गया रा और जान का

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परोगराम भी थरवगत कर डाला रा तब उस दो बात तकलीफ दती रही री एक तो यह दक रजत हमशा

उसक सामन परारवमकता ल जायगा दसरी यह कड़िी सचचाई दक रवत कभी भी उसकी जावहरी वजनददगी

का वहथसा नही बन सकती री उसकी कमर म हार डाल कर िह कभी दकसी स यह नही कह सकता

रा रवत मरी हrdquo तब उस बहद रशक होता रजत स कया रजत को सचमच अहसास ह दक रवत तारक

क वलए कया ह दक िह उसकी वजनददगी का कनदर उसकी वजनददगी का अरथ बन चकी ह यह कोई हलका-

फलका ठरकपन नही उसकी वजनददगी का रशा-रशा गर गया ह रवत स शबद म अरथ की तरह समायी ह

रवत उसक अवथतति म इस गरन म िह खद ही घरता रहगा हमशा

अब रवत नही ह तो िह घरन और भी कस रही ह उस कया अब िह रजत स कह पायगा

अचानक उसका मन हआ दक रजत स कह द rdquoतमको मालम ह दक मझ सचमच पता नही रा दक उस

ददन िलनदराईन ड रा िनाथ ऐसी जरथत न करताrdquo दक िह जानता हhellip अचछी तरह समझता ह अपनी

और उसकी ररीररी की पररवधयो को दक रजद शायद कभी जान न पायगा पर उसन हमशा एक दोथत

की तरह रजत का रजत की जररतो का खयाल रखा हhellip वसफथ ऊपर-ऊपर स सामावजक उपचार की

तरह नही भीतर स दकसी ददली ररशत सhellip दफर िह ररशता चाह रवत क जररय स ही बना हो

हो सकता ह रजत यह सब महसस करता हो या न भी करता हो पर उसक चहर पर भी वमिता

का थिागतमय भाि हमशा ददखा ह तारक को वसिा उन कषणो क जब दक सचमच उन दोनो क बीच

lsquoररररोररयलrsquo झगड़ हए तब भी ि शायद इसानी आचार या परथपर सदभाि की सीमाओ को कभी

लाघ नही पर दफर भी तारक का रवत क सार का ररशता ऐसा नही दक रजत क सार वजस बार सक

रवत उसकी हथती का अवभि वहथसा ह िह कोई और कस हो सकता ह रजत रवत नही हो सकता

चाह उसक दकतन ही करीब रहा हो उस दकसी न दकसी तरह स अपन खत पान ही ह लदकन कस

और यही तारक बार-बार उलझ जाता ह अपनी यह परशानी िह दकसी क सार बार नही सकता

रजत स तो कतई नही खत अगर सचमच रजत क हार पड़ गय तो

लदकन रवत न यह भी तो कहा रा दक अगर िह नही रही तो कया फकथ पड़ता ह पर रजत

सचमच खत पढ़ ल तोhellip शायद उसकी पीड़ा पर तब करोध और घणा का कोई विकराल भत हािी हो

सकता हhellip हो सकता ह दक खत पढ़कर रजत रवत को खद स वछरक द लदकन उसस कया तब शायद

रवत और भी तारक क करीब आ जाय और भी उसकी अपनी हो जाय वसफथ उसी की समची एक रात

पहल उस ऐसा ही कछ सपना आया रा रवत की मौत की खबर क बाद यही उसका याद रह जानिाला

सपना रा िह रवत की अतयवि म गया ह और एक अधरा-सा बठकनमा कमरा हhellip कमर म कछ

कागज वबखर पड़ हhellip िह एक कागज उठाता हhellip िह उसी का रवत को वलखा खत हhellip और कई लोग

उसक आसपास ह और िह सोचन लगता ह दक कही इन लोगो न भी तो उनदह नही पढ़ाhellip तभी रजत

का चहरा उसकी ओर बढ़ता ह और िह कागज वछपान की तरकीब सोचन लगता हhellip इसी उधड़बन म

उसकी आख खल गयी री तो वजथम पसीन म नहाया हआ रा

एक रजत ही यहा उसक सबस करीब हhellip और रजत ही उस अजनबी-सा लगन लगा ह अब

तक उसका रवत का सदभथ रा अचानक उस सदभथ स करकर न होन जसा हो रहा ह तारक को अजीब-

सी मानवसक दरी और भयकर अकलापन-सा महसस हआ िह यहा आया ही कयो रा रवत की

नामौजदगी म दकतना बमानी ह उसका यहा होना रजत को भी दकतना दफजल-सा लग रहा होगा

उसका यहा उपवथरत होना वजन लोगो स वघरा ह ि तो सचमच उसक अपन हhellip तारक तो दर स भी

अपना नहीhellip मत स तारक का जो भी नाता रहा होhellip उसक दकसी दसर स तो नही रा उसक कॉलज

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कामो स लौर बचच भी तारक को पहचानत नही र तारक न ही उनकी शकलो और वयिहार स अदाज

लगाया रा और हॉलि म लगी तथिीरो स उनदह पहचान पाया रा

तारक क पास रजत स कहन को कछ नही रा उसका कछ भी कहना रजत को खल सकता रा

उलर तारक को लगन लगा दक रजत शायद सोच रहा हो दक अब कयो जखमो को याद ददलान आ गय

हो कछ भी हो तारक न उस पीड़ा तो पहचायी ही री कया अब उसका कछ भी करना रजत क कि को

कम कर सकता रा उसन वनगाहो स ही अपना दख बयान कर ददया जो शायद रजत न थिीकार भी

वलया राhellip शायद एक औपचाररकता की तरह जस िह दसर बहत स जमा लोगो की शोकावभवयविया

थिीकार रहा राhellip उसस कछ अलग नही शायद तारक का िहा होना ही रजत को खल रहा हो पर

िि की नाजकी की िजह स िह कछ कहना न चाह रहा हो तारक एकदम परशान-सा उठ खड़ा हआ

कछ लोग रजत क गल लग रह र शायद उसस विदा लकर जा रह र तारक न सोचा िह अब

कहगा दक रवत क पास कछ उसक जररी कागजात र अगर रजत उस कागजो िाली जगह पर ल चल

तो िह खद ही दख लगा तारक यि की गवत स रजत की ओर बढ़ा रजत जस दकसी को दख कर भी

दख नही रहा रा उसकी आख दकसी शनदय पर ररकी री तारक को लगा उन लोगो क वघराि म

वजसम उसक अपन अजीज दोथत और ररशतदार र रजत न उस कोई विशष लकष नही दकया तारक क

भीतर अजीब सनापन-सा आ वघरा लगा जस रवत रजत म कही नही री वसफथ भरम-सा हआ रा उस

उसक िहा होन का जस दक उसक रवत क नात स िहा होन म ही कोई भारी असगवत री उस लगा

िहा बठ अजनबी स लोग उस घर रह र उसक िहा होन पर परशनवचनदह लगा रह र पता नही दकतन

ही अजनवबयो स वघर गया रा तारक यहा तक दक रवत की उस तथिीर म भी उस रवत नजर नही आ

रही री िह भी कोई अजनबी छाया री यह दवनया उसकी नही री अगर िह रवत की दवनया रही

भी हो तो वजस रवत को िह जानता रा उस रवत क वलए भी यह दवनया अनवथतति री विसगत री

उसन रजत को बहत सभलत सभलत गल स लगान की औपचाररकता की उस लगा जस िह

दकसी अजनबी को गल लगा रहा रा रवत वजतन उसक अपन पास री उतन और कही नही दकसी क

पास नही दरअसल रवत और कही नही री उसक भीतर रीhellip बस उस रवत को िही अपन भीतर ही

कही सजोय रखना रा भीतर ही खोजना रा भीतर ही तसलली करनी री दकसी और स बार नही

सकता रा रवत को रजत क दोनो कधो को हलक स दबाकर उसन धीर स कहा rdquoरक कयरrdquo और मड़ा

तो वबना पीछ दख बाहर वनकल गया

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पासपोरथ अमरीकन मरो

ओम गपता

पासपोरथ अमरीकन मरो पर रगत सहदथतानी

आज सनाऊ तमको पयार अपनी रामकहानी

छोड़ो भारत मन भयया डॉलर दख-दख ललचायो

चार-पकोड़ी जब भी दख मोह म पानी भर आयो

दीिाली पर दीप जलाउ होली पर खल रग

मौको जब मझको लगतो पीतो म भी भग

कसो होगी सरकार हमारी मोक हरदम सचता

जब भी दश पड़ सकर म कपा करो हनमनदता

पज म अब भी राम-कषण जातो मददर रोज

गपशप यारो स करतो फोकर म वमलतो भोज

योगी-बाबा आए दश स जब दन मझको जञान

आख मद क ना कछ जान करतो उनको सममान

हमबगथर अब भी नही भातो भाती मझ कचोड़ी

जसो जब भी मौका आयो रोपी िसी ओढ़ी

जाऊ दश को जब म अपन खाऊ लडड और इमरती

कहतो खद को सहदथतानी अमरीका मरी अब धरती

कहन को बहत ह भयया रोड़ को समझो काफी

बरा-भला लगा जो तमको माग नतमथतक माफी

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शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

आकाकषा ह

वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

फर च अनिाद कर इस lsquoभोगिाद स पीवड़त पविम की आतमा को अतयवधक शावत दन िालाrsquo कहा

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ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

की सीमाओ क पर मनषय कया अनभि कर सकता ह उसकी एक झलक भी ददखा दता ह उसी

औपवनषदीय जञान को महरवष िदवयास न सामानदय जनो क वलए ldquoपविि गीताrdquo म सवकषपत रप म परथतत

दकया ह िदवयास की महानता ही ह जो दक 11 उपवनषदो क जञान को एक पथतक म बाध सक और

मानिता को एक आसान यवि स परमातम जञान का दशथन करा सक ldquoपविि गीताrdquo महाभारत क

भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

ह भगिद गीता वहनदद धमथ क पविितम गरनदरो म स एक ह जो इसानो की चौहददी की सीमा रखा पर

भगिान क शरी मख दवारा इसान स कही गयी सरहदो पर चहरो की थकररनी का लखा-जोखा ह यह

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पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

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Page 19: Year 12, Issue 47Year 12, Issue 47 vsu2avsu2a · राथत § में आ वबछ §ग . ... श्रराम की अन ¡कम्पा स § ह हाल ह में

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सामावजक आकाकषा को एक मतथ रप वमला हमन उसम आिश यकतानसार बदलाि भी दकया ह इस

इकाई क सदथ य क रप म हमारी एक भारतीय पहचान ह

स मरणीय ह दक एक समदाय या सामावजक इकाई की वभनद नता या अलग सतता थ रावपत करना

वयािहाररक दवि स भी आिश यक ह ऐसा करना समाज को अदर स बाधता ह एकजर करता ह और

अनद य (िसी ही) इकाइयो स फकथ करता ह िधावनक रप स नशन या राष र एक काननी इकाई भी ह

और उसक सदथ य िध नागररक होत ह वजसकी थ िीकवत अनद य राष र भी करत ह और पासपोरथ िीसा

आदद की व यिथ रा स आिागमन को वनयवित करत ह नागररक क रप म िधावनक सामावजक और

साथ कवतक अवधकार क सार कतथव य और दावयत ि म भी भागीदारी होती ह समाज की वनयवत ह दक

जावत भाषा बोली कषि भोजन िथ ि रीवत-ररिाज धमथ आदद की विशषताए आ जाती ह इनक

सार समाज का भािात मक लगाि होता ह और उसक सदथ य थ िय को उसी आधार पर पररभावषत भी

करन लगत ह चदक इन विशषताओ का सचार पारथ पररक सबध और जीिन क विविध व यापारो स

गहरा ररश ता होता ह इसवलए य उस समाज की पाररभावषक विशषताए बन जाती ह

भारत दश हमार समकष एक सभ यता और मल य दविसपनद न सामावजक इकाई क रप म

उपवथरत होता ह इसकी समझ कई रपो म वमलती ह वनकर इवतहास म झाक तो पाएग दक इसक

कई रप ह एक छोर पर सहद उपलवबध को बलपिथक रखन िाल वतलक अरसिद सािरकर और

विवपन चर पाल जस ह दसरी और गोखल रानाड गाधी और रगोर सरीख आध यावतमक विचार को

मानन िाल ह जो सभी परभािो को आत मसात करन को तयार ह य सवहष णता आत मवनयिण आदद क

सार एक तरह की बहलता को ठीक मानत ह तीसरी ओर आधवनक दविसपनद न नौरोजी और पवडत

नहर जस लोग ह जो भारत को एक विकवसत सभ यता तो मानत ह पर यह भी महसस करत ह दक

उसका हरास भी हआ और उसम बहत कछ आधवनक जीिन दवि क विपरीत हआ जो आज उपयोगी

नही ह उनक वहसाब स एक बहलतािादी आधवनक नजररया जो विजञानसम मत हो उपयक त ठहरता ह

आज हर भारतीय की एक बहआयामी पहचान बनती ह िह सहद बगाली मवथलम गजराती

कश मीरी वबहारी बराहमण ओबीसी जन ईसाई आदद िाली एक सार कई तरह की पहचान रखता ह

य वभनद न वभनद न पहचान अक सर एक दसर की विरोधी न होकर परक होती ह साथ कवतक रप स ि

गहरी पठी ह और उनक सार लोगो का गहरा सािथजवनक लगाि भी ह िथ ततः हर भारतीय की

पहचान (आइडरररी) की अलग व यिस रा ह कोई एक यनीफामथ पमाना नही ह जो यह तय कर दक कई

पहचानो म स कौन सबस ऊपर नबर िन पर ह यह एक बड़ा तरल या फलइड मामला ह आज

पजा-पाठ सगीत और थ िाथ थ य लाभ क अनक क र भारत भर म फल हए ह जहा आन जान स सहद

ईसाई वसख और मसलमान दकसी को भी परहज नही होता कई पहचान क सार रहना अथ पष रता तो

पदा करता ह पर शायद दसरो क वलए िथ ततः हर भारतीय कई (उप) सथ कवतयो म जीता ह और य

सब वमलकर उसकी पहचान बनाती ह इस अरथ म हर भारतीय शायद बहसाथ कवतक ह और उसकी

पहचान बहआयामी

दश की छवि दशिावसयो क आत मगौरि का माध यम होती ह आज क भारत का अग होना उस

वबलाग करना हमको आरवरक परगवत की ओर अगरसर एक दश एक आरवरक पािर क सार जड़न का

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एहसास दता ह दसरी ओर भरष राचार अवशकषा अव यिथ रा सामावजक करीवतयो और भदभाि क

कारण मन म रकान उदासीनता और असहायता की भािना भी आती ह इस सबक बािजद एक

भारतीय का बोध जरर ह जो पजाबी मराठी या गजराती होन अलग जावत िगथ और समदाय का

सदथ य होन पर भी सबको भारतीय बनाता ह कभी-कभी विविधता म एकता िाल नहर जी का

भारत अपररभाषय या अव याख यय लगता ह भारत को एक विथ तत साथ कवतक इकाई क रप म दखन

पर कछ विचार उभरत ह जो भारतीय होन क अरथ को थ पष र करन म सहायक होत ह इनम परमख ह

धमथ कमथ पनजथनद म को दकसी न दकसी रप म थ िीकारना सामावजक इकाई - पररिार जावत समदाय

क थ तर पर अपन अवथतत ि को महसस करना सक स वििाह और अनद य व यवियो क परवत खास दविकोण

को अपनाना बहलता का थ िीकार और खल कछ-कछ असगरठत दकथ म की आत म या सल फ की

अिधारणा का थ िीकार और दकसी न दकसी रप म दकसी बड़ी जञात-अजञात सतता स जड़ाि की

अवभलाषा और पररिश परकवत और सवि क सार साझदारी तरा परथ पर अनपरकता का भाि

समकालीन विमशथ म राज य और राष र की अिधारणा क अरथ बहत कछ इस पर वनभथर करत ह

दक कौन दकस दविकोण और परयोजन स इन पर गौर कर रहा ह अक सर इनद ह अतीत ितथमान और

भविष य स जोड़ कर दखा जाता ह और लोग अपन चन िचाररक आदशथ स रग कर ही इस पर विचार

करत ह इन शब दो और इनस जड़ अरथ थ रान और समय क सार-सार बदलत रह ह जो थ िाभाविक ह

भारत दश क बार म सोचन की एक बड़ी मवशकल यह ह दक हमारी अपनी पररभाषा क पमान हमार

अपन न होकर दकसी और क ददए हए ह ि हमार बौवदधक मानस म इतन गहर पठ चक ह दक अब हम

अपन पमान क बार म भरोसा ही नही कर पा रह ह और खद को पररभावषत करन का अवधकार ही

खोत जा रह ह आरवरक और तकनीकी परगवत क पसराि की दवनया म आज हमारा आतम-सशय इतना

गहराता जा रहा ह दक भारत और भारतीयता की बात करना परानी और ददकयानस और इसवलए

अपरासवगक मानी जान लगी ह अगर इसकी बात करनी भी ह तो उसकी सनद कही और स जरानी

होगी आज अपनी पहचान क वलए हम पविमी दशो म विदवानो क दवारा परमाण और गिाही चाहत ह

आज भारत की साथ कवतक विविधता को सपनद नता और समवदध क ोत क रप म समझन समझान की

जररत ह वजसका उपयोग समाज क विकास म दकया जाय इसक वलए भारत को भारत क नजररए स

दखना होगा वबना इस भय क दक भारतीय होना दकसी कषमा याचना की अपकषा करता ह थ िदशी और

सराज जस विचार अभी भी परासवगक ह समरथ और थ िािलबी होन क वलए आत म थ िीकार और सतत

पररष कार आिश यक ह

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भकप का सदश

डॉ एमएल गपता ldquoआददतय

धरती हर ददन डोल रही ह कपन की बोली बोल रही ह

विनाश कर आकरोश स बदल कय भगोल रही ह

कय धरती न भकरी तानी कय वहमालय म आिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

जो ससाधन र पोषण क उनका शोषण कर डाला

ओजोन का जो किच रा उसका भी भदन कर डाला

बरहमी स कार हमन िसधरा क िन-कश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

सागर क तीरो को छीला पठार और पिथत को लीला

नददया बनी नाल और नाली नही ददखता जल वनमथल-नीला

चतािनी द रहा ह मौसम बदला भमडल का पररिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

विजञान की सीढ़ी चढ़ विनाश का सामान बनाया

परमाण सयि द रह यातना विकीरण का खतरा मडराया

रवडएशन स आतदकत ह दवनया क सब दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

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कोई अण कोई परमाण कोई हाईडरोजन बम ल ऐठा ह

वबछी हई बारद धरा म मानि बमो क ढर पर बठा ह

हआ परमाण यदध तो वमर जाएग दकतन दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

भकषक बनकर मानि इक दज पर चोर कर रहा

परीकषण की खावतर दकतन भीषण बम विथफोर कर रहा

परकवत का सतलन वबगड़ा तो हम बन जाएग अिशष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

कदरत कहर बरपा सकती ह कभी भी आफत आ सकती ह

धरा की जरा सी भी हरकत दकतना कोहराम मचा सकती ह

धरा न जरा करिर बदली तो कछ भी न रहगा शष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

पयाथिरण क आघात पर अब तो रोक लगानी होगी

सागर पिथत धरती क सग बद करनी मनमानी होगी

धरती को जो मा मानोग सब वमर जाएग कलश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

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ि दोनो

डॉ सषम बदी

छत स फशथ तक क लब शीशो स जड़ी उस बड़ी-सी बठक म खब सारी ददन की रौशनी भरी हई

री फशथ पर वबछी सफद चादरो पर सफद िसतर पहन ढर सार लोग उस रौशनी का ही वहथसा लग रह

र कमर म घसत ही तारक को लगा जस उस शवतता म घल मौत क सदथपन और जड़ता न अचानक

उसक भीतर को जकड़ वलया ह बीचोबीच फलो की माला चढ़ी एक बड़ी-सी रवत की तथिीर री

वजसका धप दीप और गीता क शलोको स अवभषक दकया जा रहा रा रवत अब तथिीर भर री तारक

की थतबध पवनयायी आख वनथसहाय-सी रजत को खोजन लगी

रजत सारा िि लोगो स वघरा ही रहा रा उसकी मा उसक बचच और दसर ररशतदार कोई न

कोई उसक आसपास रा ही उन दोनो की आख एक दसर स दो एक बार वमली पर रजत अपन स

बाहर नही आ पाया रा तारक न दकसी तरह अपनी शोकभािना वयि कर दी री न भी वयि करता

तो कया रजत को तो खद भी अहसास होगा उसकी अतभाथिना का एक िही तो ह इस भीड़ म जो

जानता ह दक िह कयो यहा ह बाकी तो तारक दकसी स पररवचत ही नही वसिाय कछक रवत क

कलीगज क एक दो कलीगज स ही उसकी बात हई रवत क बार म ि उस पररिार का वमि मानकर

बात कर रह र य पररिार का वमि तो िह रा ही पर इसस अलग या ऊपर भी कछ रा यह शायद

रजत क अलािा और कोई नही जानता रा जबदक रजत भी परा कहा जानता ह खास तौर स िह सब

कछ जो तारक महसस करता रहा ह या जो कछ तारक और रवत क बीच म रहा या अभी भी वजसका

बहत कछ बचा रा

य तारक न बहत बार सोचा दक अब रवत नही रही तो उसक यहा जान का कोई फायदा नही

उसकी तकलीफ बढ़गी ही दफर लगा दक नही उस रजत स वमलन जाना होगा रजत भी तो उसका

दोथत ह य रवत उन दोनो क बीच न होती तो ि शायद बहत गहर दोथत हो सकत र दफर भी िह खद

को कई तरह स रजत क करीब महसस करता रा और रजत भी बहत मामलो म उसी स सलाह करक

चलता रा उस पर भरोसा करता रा जो दक उसक मन क दोथती क भाि को ही जताती री चदक

तारक की विशषता ददल क रोगो म री िह रवत क हारथअरक क बाद स उसस अकसर रवत क बार म

सलाह लता यहा तक दक रवत स भी कोई वशकायत होती तो तारक स ही कहता दखो न इसका

कोलथराल इतना हाई चल रहा ह और मडम चीज मीर सभी कछ खाती ह अभी रथतरा ल चलो परा

का परा थरक गरक जायगी कस कर यह तो खद को नकसान पहचान स बाज नही आतीrdquo और तारक

तब ररका दता कसी डाकरर हो तम रवत मरीजो को उपदश दती रहती हो और खदhellipदफर उसन

खद ही एक विशषण गढ़ा रा रवत क वलए lsquoनानकपलायरrsquo यानी दक जो कछ भी कहा जायगा उसका

विरोध ही करगी रवत और दकसी िजह स नही बवलक विरोध करन क वलए विरोध

तब रवत और भी तिर चढ़ाकर बोलती rdquoरजत तो पहल ही मर पीछ पड़ा रहता ह अब तम

भी इसी स वमल गय हो िाह जी िाह दोथत दकसक हो तम मर या रजत कrdquo

तारक तब चप रह जाता रा रजत भी कछ नही कहता एक वपरय अवपरय सतय

शायद रवत भी इसीवलए कहती री दक तारक तब लाजिाब हो जायगा कयोदक रवत जानती ह दक जो

िह तारक क वलए ह िह और कोई नही हो सकता और रजत को भी इसका अदाज ह इसी स रजत न

शर म चाह दकतना विरोह दकया हो दकतना लड़ाई झगड़ाhellip दफर धीर-धीर मान वलया रा इस ररशत

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को रवत क वलए ही अगीकार कर वलया रा तारक को भी रवत न ही उस बतलाया रा जब रजत न

उस बाहो म भरकर कहा रा rdquoइतना पयार करता ह तमह दक यह भी थिीकारन क वलए राजी हrdquo

एक हक-सी उठी री तारक क भीतरhellip वजस इतना पयार वमला होhellip इतनाhellip िह इस तरह स

उन दोनो की वजनददगी को ही सना करक रखसत हो ली तारक क मन म गथसा भी आयाhellip शायद

अपनी सहत का धयान रखती तो कछ और जी जाती उन दोनो स ही तो चार-पाच साल छोरी री िह

जी भी सकती री पर अबhellip और तारक न लबी सास भरी

रवत की एक कलीग बता रही री rdquoपरसो तो काम पर आयी हई री रवत म सोच भी नही

सकती री दक इतना भारी थरोक हो सकता ह दक एक ही लपर म ल जायhellip मझ तो विशवास ही नही

होताrdquo तारक को भी विशवास नही होता रा उसी ददन सबह रवत न उसस फोन पर बात की री और

उसस मजाक दकया रा rdquoमर जनदमददन पर आओगrdquo

दरअसल सारा झगड़ा कछ साल पहल रवत क जनदमददन को लकर ही शर हआ रा िनाथ शायद

रजत को उन दोनो क बीच बढ़त ररशत की तवनक खबर न लगती रवत न उस बतलाया रा दक उसक

जनदमददन पर िह और रजत आमतौर पर शाम को बाहर दकसी बदढ़या स फर च रथतरा म खाना खान

जात ह तब तारक न कहा रा rdquoठीक ह तो लच तम मर सार लनाrdquo

रवत मान गयी री उसन उसी ददन रवत क शहर पहचन क वलए फलाईर भी बक करिा ली

री पर जब ठीक जनदमददन आनिाला रा तो रवत न उस बतलाया रा दक रजत को ठीक नही लग रहा

मरा तमहार सार लच पर जाना िह पछ रहा रा दक इतना इमपॉरर कस हो गया यह आदमी दक

तमको उस जनदमददन पर जरर वमलना ह

rdquoतमन कया कहाrdquo तारक वजजञास हो उठा रा

rdquoयही दक तमको दकसी काम स शहर म होना रा इसवलए लच पर वमलन की बात की इस पर

उसन कहा दक अगल ददन वमल लो जनदमददन िाला ददन तो उसी क वलए हhellip कोई और कयोrdquo

दफर िह बोली rdquoइसी पर उस शक हो रहा ह दक यह कोई आम दोथत नहीhelliprdquo

तारक न जोड़ ददया रा rdquoपरमी हrdquo

rdquoहा यही शक हो रहा ह उसrdquo

rdquoतो ह या नहीhelliprdquo

rdquoशायद होhellip यही मसीबत हrdquo

तारक न कहा रा rdquoअब तो ररकर ली हई ह म तो आऊगा ही तम वमल सको तो वमलना िनाथ

न वमलना चाह पाच वमनर क वलए या कॉफी क वलए भी आ जाओगी तो मर वलए िही काफी होगा

तमहार जनदमददन पर तमह दख भर लrdquo

rdquoतम भी कमाल क रोमाररक होhellip पर सच कह तो म भी तमस वमलना चाहती ह उस ददनhellip

कछ न कछ तो जगाड़ना पड़गाrdquo

rdquoमर वलए तमहारा जनदमददन मरी वजनददगी का बहत अहम ददन हhellip समझीrdquo

एयरपोरथ पहच कर तारक न फोन दकया रा रवत बोली री rdquoरजत कह रहा ह तम हम वडनर

पर जॉयन कर लोrdquo

तारक बहत हरान हआ रा पर रवत न फोन रजत को पकड़ा ददया रा तारक एकदम सकर म

पड़ गया रा उसन खद को बचान की कोवशश की rdquoसॉरी म तो यहा आया रा तो सोचा रवत स वमल

लगा पर इस तरह आप लोगो क परोगराम मhelliprdquo

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रजत न जोर दकर कहा रा rdquoनही भाई बहत तारीफ सन रहा ह बीिी स जरा हम भी तो

वमल आपस आप चाह तो घर पर आ जाईए या दफर सीध रथतरा पर वमलगrdquo

rdquoपर आप लोगो का तो वडनर पर सार जान का कायथकरम रा नrdquo

rdquoआप लच पर फरी ह तो लच पर वमल लत ह य मझ तो वडनर ही पसद ह जसा आप कहrdquo

रजत वबलकल दोथताना ढग स बात कर रहा रा एक पल को उसकी रोन म कछ तनाि तारक

को महसस हआ रा पर अगल ही पल आिाज दफर सहज हो गयी री तारक मान गया पर रकसी लकर

पहल होरल म सामान छोड़ा और इस दौरान खद को मानवसक तौर पर तयार भी करता रहा दक कस

पश आना ह अपन रकीब स दखा जाय तो ररशता रकीब का ही रा बाकी ि दकतन भी सभय या

समझदार इसानो की तरह एक-दसर स बताथि कर आवखर ि तीनो सममावनत पश क र तारक हारथ

थपशवलथर रा तो रजत अगरजी सावहतय का परोफसर और रवत सायकायररथर इसानी मन की

कमजोररयो को समझना मनोरोगो का इलाज करना रवत की विशषता तो री ही पर इसानी आकषथण

एक दसर क परवत सखचाि या ऐस ररशतो को समझन की सथकवत तो कही तीनो म ही री

रजत इस बात को खब समझता रा दक दकसी भी औरत क वलए दकसी दसर परष क परवत

सखचाि हो जाना बहत सहज रा िही एक पवत और पतनी स परम करन िाल क रप म िह रवत क इस

वयिहार स ईषयाल भी हो उठता रा एक सभय इसान क नात िह ईषया को दबा कर तारक क परवत भी

वमिित वयिहार करना चाहता रा पर िही उस रवत क वयिहार स कि पहचता रा दक िह उसक

अलािा भी दकसी दसर परष को चाह सकती ह वजसस उसक मन म आकरोश और वितषणा का भाि

उठता कभी िह अपन को उदार बना कर यह कहना चाहता दक रवत अगर दकसी दसर को चाहती ह

तो बशक उसको भी कयो न पाय सार ही जब करोध होता तो एक तरह स जस िह रवत को सजा दन क

वलए कह डालता rdquoतम जाओ दोनो सार रहोrdquo पर जो पीड़ा िह उसम सह रहा होता िह रवत और

तारक दोनो क वलए ही असहय होती

रवत न कहा रा rdquoकया तारक और म दोथत नही हो सकत और इतन दोथत हhellip एक िह वयवि

वजसस बात करक मझ खशी वमलती ह िह दोथत कयो नही बन सकता वसफथ इसवलए दक उसक मन म

तीखी भािना ह मर वलएhellip या शरीरो का आकषथण भी हhelliprdquo

रजत तब तकथ स सारी बात को समझन समझान की कोवशश करता हा करत-करत कह दता

rdquoऔरत आदमी म दोथती हो ही नही सकती कयोदक जहा शरीरो का आकषथण हो िहा दोथती जसा

वनषकपर भाि कस पनप सकता हrdquo तब रवत दोथती का एक और पकष पश करती rdquoतमहार कहन का

मतलब तो िही ददकयानसी बात हई दक शरीर पाप का मल ह जबदक तम खद ही यह पहल कह चक

हो दक शरीरो का मसला हल हो जाय तो औरत मदथ बहत खबसरत दोथत हो सकत हhellip शरीर को

अहवमयत दी कयो जाय शरीर वमल जान स उनका दोथती म बाधा बनन का मसला खतम हो जाता हrdquo

रजत रवत की बात मान भी जाता रा पर रवत दफर तारक को यह भी बताती री rdquoिन कार

रक वहम फॉर गरारड कल को िह अपना कोई नया तकथ द दगाrdquo

शायद इसी स तारक भी अचानक वहममत हारन लगा रा कस सामना करगा िह रजत का य

िह रजत स एकाध बार पहल वमल चका रा पर तब उसको यह अदाजा नही रा दक रवत और उसक

बीच कछ रा जबदक तारक तब भी कछ आतमसजग-सा हो रहा रा पर कछ वमनरो की मलाकात को

सभाल लना कोई बड़ी बात नही री और य भी रजत उस भला आदमी लगा रा यह भी सोचा रा दक

अगर रवत उन दोनो क बीच न होती तो यह वयवि उसका दोथत हो सकता रा य रवत क होन क

बािजद अतत ि दोथत बन ही पर इस दोथती का तानाबाना िसा न रा जस खावलस दोथती का होता

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ह इसम रवत क रश बन हए र जो एक और ही रगत वलए र और िह रगत तारक को बहत पयारी री

उस दोथती स जयादा

तारक न होरल पहच कर फोन कर ददया रा दक वडनर पर वमलना ही ठीक रहगा और िह

अपना काम इस दौरान कर लगा रजत आसानी स यह बात मान गया और कहा दक िह सडरकस पर

पहल घर पर आ जाय उसक बाद रथतरा खाना खान चल जायग

शाम को जब िह चलन लगा तो फोन बजा रा दसरी ओर रवत री हलो कहत ही रवत न

कहा rdquoसनो तम मत आना मर घर म बहत रशन चल रही हrdquo इसस पहल दक िह कछ कहता रवत न

फोन वडसकनकर कर ददया

रात को कोई फलाईर नही जाती री िनाथ िह उसी िि शहर छोड़ क चला जाता

आध घर बाद ही घरी दफर बजी रवत पछ रही री दक आ रह हो तारक बौखला गया दक आवखर हो

कया रहा ह कया यह रवत क मन की उलझन ह या दक रजत कीhellip या दोनो कीhellip या रवत वसफथ रजत

की उलझन को वयि कर रही री बोली री rdquoजलदी आ जाओ हम लोग इतजार कर रह हrdquo

िह पहचा तो रवत न अकल ही उसका थिागत दकया रा िह जानता रा दक दोनो बचच कालजो

म ह पर रजत काफी दर तक बठक म नही आया तो तारक हरान हआ रवत बोली rdquoिह नहा रहा हrdquo

दफर मथकरा कर जोड़ा rdquoशायद हम दोनो को कछ िि दना चाहता हrdquo

तारक तब कछ निथस हआ रा उस आग बढ़कर रवत को चमन का हौसला नही हआ उस लगा

दक रवत भी सहज नही री जस दक आम तौर पर होती ह पर उसन कछ कहा नही िह खद भी तो

सहज नही हो पा रहा रा जस लड़की क बाप क घर म शादी का परथताि लकर जा रहा हो कछ कछ

इसी तरह का महसस हो रहा रा िही डर कर परचा करना रा दक इमतहान म फल न हो जाय

रजत न कमर म आत ही बड़ तपाक स हलो दकया कछ औपचाररक-सी बात की दफर उसस

सडरक पछा और दकचन म बफथ िगरह का इतजाम करन क वलए दफर स गायब हो गया तारक को लगा

दक सहज होन की बहत कोवशश क बािजद रजत बहत असहज ह

ववहथकी का घर लत हए तारक न ही रजत स उसक काम क बार म पछना शर दकया बात

कही जा नही रही री तभी रवत एक नई दकताब की चचाथ करन लगी वजसका ररवय सबह क अखबार म

छपा रा तारक न हिाई जहाज म ही उसक बार म पढ़ा रा दफर तो बातचीत खब गरमागरम होन

लगी रजत न दवकषण एवशयाई अगरजी लखको क बार म अपन विचार झाड़न शर कर ददय यहा तक

दक रवत न अचानक घड़ी दखी तो पता चला दक रथतरा की ररजिशन का िि हो चका रा रजत न

रथतरा को फोन दकया दक कछ वमनर लर पहचग और तारक को बोला दक जलदी स सडरक खतम कर ल

या गाड़ी म ही ल चल दोनो न दो तीन सडरक चढ़ा रख र मौज-सी भी आयी हई री रजत ही कार

चला रहा रा और तारक पीछ िाली सीर पर बठा रा अचानक रजत कछ नश और कछ अपनी धन म

बोला rdquoतो तम मरी बीिी स पयार करत होrdquo

तारक भौचक-सा हो गया य ही बठा रहा जस रजत की बात को सना न हो या िह गभीरता

स लन लायक न हो रजत न अपनी बात को सिाल बनाकर दबारा पश दकया rdquoकयो तारक मरी बीिी

स पयार करत हो या नहीrdquo

तारक न कहा rdquoहाrdquo और चप कर गया उस लग रहा रा िह जो भी जिाब दगा खतर स खाली नही

पर यह जिाब सच रा तो सच बोल कर ही मार खायी जाय उस दकसी लड़की क वपता स हार मागन

नही जाना पड़ा रा आज यह भी सही

rdquoतम भी पयार करत हो िह भी करती ह तो तम दोनो सार कयो नही रहतrdquo

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तारक बोल पड़ा रा rdquoयह इतना आसान नहीrdquo

रजत इस पर आकरमण करता-सा बोला rdquoकमाल ह पयार भी करत ह और वजममिारी भी नही

वनभाना चाहतrdquo तारक को महसस हो रहा रा दक रजत कह तो कछ रहा ह और पहचाना कछ और

चाहता ह दफर भी िह जिाब तो उसी बात का द सकता रा जो दक पछी जा रही री यह कह कर

उस नाराज भी नही करना चाहता रा दक रजत वसफथ अपन भीतर क आकरोश आतक और आग को

आिाज द रहा रा बोला rdquoयह बात नही म आज भी रवत क सार वजनददगी शर करन को तयार ह

जहा तक म जानता ह रवत अपन शहर को छोड़ कर और कही नही जायगी न िह तमको छोड़न को

तयार होगी जहा तक म रवत को जानता हhelliprdquo

रवत चपचाप अपन पर अकश लगाय दोनो की बात सन रही री न तो िह रजत क पकष म

कछ बोलना चाहती री न तारक क पकष म ही बोल सकती री दफर भी दोनो क बीच तारतमय वबठाय

रखन की वजममिारी भी उसी की री और िह समझ नही पा रही री दक दकस तरह इस बातचीत को

सीमाय लाघन स बचाया जाय ऊपर स उस डर लग रहा रा दक आिश म रजत कही रककर न मार द

रथतरा बहत दर रा भी नही बात पर चरम पर चल रही री दक रथतरा आ गया रवत न रोका rdquoरजत

पारककग ढढ़ो रथतरा आ गयाrdquo रथतरा क सार ही पारककग गराज म गाड़ी छोड़ कर तीनो अदर चल गय

िरर न उनको मज पर वबठाया और सडरक क वलए पछा तरा मनदय लाकर ददय तीनो क तीनो उस मज

पर इस तरह खामोश और भर बठ र दक मनदय म वसर डबोना एक राहत बन गया रा तीनो न अपन-

अपन आडथर ददय पर बात कछ बन नही रही री हर कोई कछ भी कहन म जयादा ही सतकथ हो रहा रा

अचानक रवत बोली rdquoरजत तमको इतनी जयादा तकलीफ री तो तमन मना कयो नही कर

ददया म तो तारक को कह चकी री दक आज सार खाना नही होगा तमही न जोर ददया दक जरर

बलाओ अब इस तरह कयो बताथि कर रह होrdquo

रजत और भड़क गया rdquoम तो वसफथ यह कह रहा ह दक तम लोग एक-दसर को पयार करत हो

तो म कया कर रहा ह यहा तम जाओ एक दसर क सार रहोrdquo

दोनो की आिाज ऊची हो रही री और दसरी मजो पर बठ लोगो की वनगाह इस ओर उठ आयी री

तारक न धीर स सझाया रा rdquoमर खयाल स हम य बात यहा नही करनी चावहएrdquo सहसा रवत

न होश म आत कहा rdquoहा इतन बदढ़या रथतरा म खाना खान आय ह कछ खान पर भी तो धयान दhellip

दफर आज मरा जनदमददन ह आई िार र हि ए गड मीलrdquo

दफर भी खान पर तीनो म स दकसी का धयान नही लग सका तीनो औपचाररक-सी बात म लग

गय र तारक न ही शहर क निीनतम रथतराओ क बार म ताजा पढ़ी समीकषा का वजकर छड़ ददया रा

रजत न कार स जब उस होरल छोड़ा तो तारक न उपर कमर म आकर सडरक लन क वलए कहा

पर जसा दक िह अपकषा कर रहा रा रजत न दर होन का बहाना बना छटटी माग ली री रवत तब भी

कछ नही बोली री शायद उस डर रा दक उसका कछ भी कहना रजत क वलए घाि पर नमक वछड़कन

जसा होगा या उसकी कोई भी बात का गलत मतलब वनकाल कर रजत भड़क सकता रा य दर हो भी

चकी री

पर तारक यह भी जानता रा दक रवत एक नबर की वजददी री जो उस चावहए रा चावहए ही

रा उस रोका नही जा सकता रा िह ऊपर स मान जायगी पर भीतर स कभी माफ नही करगी

शायद इसी स रजत भी वबगड़ी हई लाड़ली बरी की तरह रवत की हर चाह या माग को विरोध करक

भी अतत मान जाता रा

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लौर आन क दो चार ददन बाद ही उसक फोन पर रवत न सदश छोड़ा रा rdquoतमहारा आना ठीक

नही हआ सॉरी तमह बलाकर भी वमल नही पायी अब लगता ह कभी नही वमलगी लर अस थरॉप

ददस वहयर पलीज मझस सपकथ मत करनाrdquo

तारक बहत ददन परशान घमता रहा रा पर रवत को फोन भी नही दकया उसन मना जो कर

डाला रा उस फोन करत हए तारक को लगता दक िह खद को उस पर लाद रहा ह और यह वथरवत

उस कभी गिारा नही री हर ददन दकसी जिालामखी-सा लाि स लदा हआ गजरता अदर ही अदर

सब तप रहा रा

महीन भर बाद रवत न फोन दकया रा rdquoगथसा हो न मझस तमस माफी भी नही माग सकीrdquo

उसकी तो कोई जररत नहीrdquo

दफर भी सोचा रा तमस कभी बात नही करगी इसी स तमको सपकथ करन स मना दकया

रा रजत को भी यही मालम ह दक तमस ररशता तोड़ ददया ह पर अब मझी स बात दकय वबना रहा

नही जा रहाrdquo

रजत को मालम ह मझस बात कर रही होrdquo

िह बहद गथसा ह तमसhellip जस दक सारा दोष तमहारा होhellip दक तमन उसकी बीिी को फसा वलयाrdquo

ि इसी तरह जब मौका लगता बात कर लत तारक क ददल ददमाग पर रवत ही छायी रहती

िह ऐस ही पलो क दौरान जीता जब दोनो क बीच कछ सपकथ होता बाकी क पल उन पलो क इतजार

म गजरत

इस बीच रवत को ददल का दौरा पड़ा रा घबराकर तारक को फोन कर डाला रा रजत न

तारक आया तो रजत उस अपनी गाड़ी म सार अथपताल ल आता जाता रहा दोनो म एक दोथती का

नाता तभी बना रा दवनया जहान की बात रजत न उस घर पर ही ठहराया रा तारक तीन ददन बाद

चला गया रा िावपस पर दोनो की फोन पर बात हो जाती रवत अथपताल स िावपस आ गयी री

धीर-धीर िह सामानदय होकर िावपस अपना काम सभालन लगी

रवत का जनदमददन दफर स आनिाला रा रवत न उस कहा रा rdquoरजत अपन आप ही बोल रहा ह

दक तम आ जाओ इस बार मरा जनदमददन मनान बोलो आओगrdquo

तारक परानी बात याद करक घबरा गया रा rdquoनही दफर स उसक भीतर सब घमड़न लगगाhellip

सबको तकलीफ होगीrdquo

यह सच भी रा रजत कभी तो उसक परवत बहत वमिित हो जाता िही अचानक गथसा ईषयाथ

उभर आत और िह अकसर बरखी ददखाता अचानक तारक को ऐसा महसस हआ जस रवत उसस खद

यह सब कह रही हो पल भर को िह भल ही गया दक रवत क ही अतयवि कमथ म िह शावमल हआ ह

और दरअसल उसक यहा आन की एक िजह यह भी ह दक िह रवत को वलख अपन खत िावपस ल

जाना चाहता ह उस डर ह दक कही ि खत रजत क हार न पड़ जाय

तारक रवत क सार काम करन िाली इस मवहला डॉ लोपज स पहल वमला हआ रा इस भीड़

म एक िही जान-पहचान की री तारक का मन हआ उसस पछ दक कया िह रवत की दराज म उसक

कागजात पर नजर मार सकता ह तारक को अदाज रा दक उसक खत िह दफतर की मज की दराज म

रखती री पर िह जानता रा दक ऐसा करना ममदकन रा नही आवखर तारक को कस हक पहचता रा

रवत की दराज खलिान का िह तो एक पररिार क वमि की हवसयत स िहा रा रजत ही कह सकता

रा दखा जाय तो ि लोग खद भी रजत स ही कहग दक रवत का सामान िह ल जाय तब तो रजत की

आख जरर उन पर पड़गी तब शायद उसको बरा लगगा दक रवत क सार तारक का एक अपना ररशता

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रा उन तीनो की आपसी दोथती क बाहरhellip रजत को बतहाशा चोर लगगी अब जबदक िह रवत स

जिाबतलबी भी नही कर सकता रवत अब कोई सफाई नही पश कर पायगी तारक क हक म कछ भी

नही कह सकगी दकसी तकथ स रजत को लाजिाब नही कर पायगी नही िह ऐसा नही कर सकता न

यह रवत क परवत सही होगा न रजत क परवत उस दकसी न दकसी तरह स खत पान ह

राथत म आत हए हिाई जहाज म तारक जब लगातार रवत क सार की अपनी वजनददगी क

गजर पल दहरा रहा रा बार-बार उस धयान आता दक जब स रवत को ददल का दौरा हआ रा िह

उसस कहना चाहता रा दक उसक खत विनि कर द एक बार उसन बात उठायी तो रवत बोली rdquoकयो

तमहार खत मर दफतर की दराज म सफ पड़ हrdquo

शायद िह वबना कह यह भी समझ गयी री दक तारक का इशारा दकस ओर ह तभी बोली

दखो जब तक म वजनददा ह म उनको फाड़ कर न तो फ क सकती ह न जला सकती ह एक बार मर गयी

तो कया फकथ पड़ता ह दक कोई कया करगा उनक सार तमको तो दफकर होनी नही चावहए अब तो ि

मरी अमानत हrdquo यह बातचीत दो एक महीन पहल की ही होगी तारक न सोचा रा बात कभी दफर

उठायगा पर उसस पहल हीhellip

तारक को भी तब यह अदाज नही रा दक रवत क अलािा रजत स भी उसका नाता रा रवत क

जान क बाद िह खद को रजत क बहत करीब महसस कर रहा रा और उस लगा दक उसक खत रजत

को उसस दफर दर धकल सकत र पर िह दकसी तरह भी रजत को खोना नही चाहगाhellip रजत जस स

रवत का ही एक वहथसा राhellipउसन दखा लोगो स वघरा रजत का चहरा बहद वनचड़ा हआ रिहीन और

सखा-सा लग रहा रा रात भर सोया नही होगा इसवलए आखो क नीच कालापन उतर आया रा आख

काफी अदर को धसी हई री तारक को लगा दक िह शायद रजत स बहतर हालत म ह दफर उस रशक

भी हआ रजत अपन गम का खला इजहार कर सकता हhellip तारक को यह सविधा नही री िह दकसी

उजड़ आवशक क रप म इस महदफल इस मौत का शोक करन िालो की महदफल मhellip अपना असली

चहराhellip अपना आवशक का चहराhellip नही ददखा सकता रा अचानक उसकी आख भर आयी अपन खोन

की वशददत क अहसास स

रवत क िाकय उसक कान म सरसरान लग जबस उस ददल का दौरा पड़ा रा िह जीिन की

कषणभगरता या इसान क नाचीज होन क अवथततििादी दशथन को बहत बघारन लग गयी री शायद

अपन जान का अहसास उस कही बहत गहर उदास कर जाता रा पर िही िह उस जान को एक

अिशयभािी अकारय सतय की तरह थिीकार करक उसस समझौता भी करन लग गयी री एक ददन

उसन हडसन नदी क दसर वसर स मनहरन की ओर दखत हए कहा रा rdquoदखो तो इन छोर-छोर वडबबो

म दकतन लाखो लोग रहत ह दकतन छोर ह हम लोग इतनी तग जमीन पर दकतनी बड़ी तादाद म

समा जात ह एकदम हजारो की सखया म सार-सार जड़ कीड़ो की तरह दफर भी अपन आप को

दकतना बड़ा मानत ह राजनीवत धमथ और नवतकता की तवखतया वचपका कर दकतना बड़ा होन का

भलािा दत रहत ह खद कोrdquo

रजत को रवत की इसान को नाचीज करार दन िाली बातो स हमशा बहत वचढ़ छरती री

बोला रा rdquoधमथ नवतकता जीिन क सतय ह इनको तम भलािा दन िाली चीज कस कह सकती हो

इसान इसीवलए तो बाकी जीिो स अलग ह दक िह सोच सकता हrdquo

rdquoऔर सोच क धरातल पर हर चीज को गलत या सही सावबत कर सकता ह नवतकता को गढ़

सकता ह या परा सतयानाश कर सकता हhellip ठीक ह मझ तो उसम कोई नकसान नहीrdquo

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हा नकसान दकसी का ह तो मरा ही रजत न कहा तो तारक झर स बोल पड़ा रा rdquoनकसान

तो तब होता जो म उस भगा क ल जाताrdquo

रजत न सजीदगी स कहा rdquoअब इसका ददल बर गया हhellip तो आधी सपवतत तो लर ही गयी न

तम भगा ल जाओ तो भी फकथ नही पड़गा यह आधािाला वहथसा तब भी यही रहगाrdquo

सचमच रजत का यह विशवास सही रा रवत और उसक ररशत की शरआत क ददनो म भािना

क परिाह म बहता तारक रवत क सार एक नयी वजनददगी क दकिाड़ खोलन की बात सोच पाया रा पर

जलद ही उस अहसास हो गया रा दक रवत कही बहत गहर जड़ी री रजत क सार दक िह कभी उस

ररशत को तोड़गी नही य रजत भी शर क ददनो म भीतर स वहल गया रा यह झरका दक रवत रजत

को छोड़ दकसी और को मन म ला सकती ह उस बहत दर जा फ क आया रा दफर रवत न खोय विशवास

को िापस लौरा ददया रजत अपन आध नकसान क सार धीर-धीर शायद समझौता करना सीख गया रा

तारक को लगा दक िह आध क सार समझौता करना सीख गया रा दफर तारक को लगा दक

िह आध क सार समझौता नही रा रजत क भीतर कही पर का भरोसा भी रा जस दक रवत को वसफथ

एक बदलाि चावहए रा जो तारक रा िनाथ िह परी रजत की ही री कयोदक मौका आन पर रजत

अपना परा हक जतान स चकता नही रा हमशा यही मानता रा दक पहला हक उसी का ह तारक

हमशा बाद म आयगा जस दक पर भर लन पर बचा हआ भोजन दकसी को भी ददया जा सकता हhellip

कछ ऐसा रख

पर रवत बचा हआ भोजन नही रीhellip दकसी तरह स भी उवचछि या अिवशि नही जो उसन

रवत म पाया रा िह पहल वजनददगी म कभी नही वमला रा रवत न उसकी पहचान करायी री

पररपणथता स रवत को जानना ही जस उस सपणथता को छना रा शायद रजत न भी रवत म ऐसा कछ

पाया रा जो आम औरतो स अलग रा रवत शादी क इतन बरस बाद भी उस अपन म उलझाय री और

िह उसस मि नही होना चाहता रा रवत म बाहरी खबसरती क बािजद वयवि क ददमाग को भी

उलझाय रखन का जो गण रा उसस सच म जो भी पास आता और सखचता जाता रवत म भरपर

पयार लन की चाह री तो भरपर दन की कषमता भी इसी स अभी भी उसस जी तो नही भरा रा रजत

का शायद िह ऐसी औरत री जो हमशा वनत निीन होती रहhellip सौदयथ की एक पररभाषा यह भी तो

दी गई ह दक जो वनत नतन होता रह िही सौदयथ ह रवत भी कभी परानी नही पड़ती रोज कछ नया

होता ह उसक पासhellip कोई नया खयालhellip कोई नई सझhellip कोई नई उकसान उलझान िाली बातhellip

शायद इस ददमागी सौदयथ कहना होगाhellip जो कछ भी उसम राhellip बस खीचता रा अपनी ओरhellip मोहता

राhellip शायद कया पर उगली धरना उस पररवध म बाधन की भोडी कोवशश होती

कछ दवदव उठता तो रवत रजत क ही हक म बोलती री रजत क वहतो को सरवकषत कर लन क

बाद ही िह तारक को उसका हक दती तारक को खीझ भी होती दक रजत उसक जीिन म चदक पहल

आ गया रा इसीवलए हर चीज म ही पहला हक उसी का बनता ह पर उसन रवत स अपनी यह

मनवथरवत कभी जावहर नही होन दी री वपछल साल िलनदराईन ड पर ऐसा ही तो हआ रा दरअसल

दोनो को अदाज नही रा दक उस िीक ड पर िलनदराईन ड पड़ता रा तारक को दकसी काम स रवत क

शहर आना रा और दोनो न वमलन का कायथकरम बना डाला रा रजत स रवत की बात हई होगी तो

उसन भनकर कहा रा rdquoतो िह तमहारा िलनदराईन ह जो उस ददन आ रहा हrdquo रवत क कहन पर दक उस

तो याद भी नही रा िह बोला रा rdquoम नही मान सकता दक तारक न य ही आन का बनाया ह इस

िीक ड परrdquo रवत न तारक स सारी बात बतलायी तो उसन सोचा रा िह खद फोन पर रजत स कहगा

दक उस सचमच याद नही रा पर दफर बात बढ़ान न दन क वलए चप रह गया रा और जान का

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परोगराम भी थरवगत कर डाला रा तब उस दो बात तकलीफ दती रही री एक तो यह दक रजत हमशा

उसक सामन परारवमकता ल जायगा दसरी यह कड़िी सचचाई दक रवत कभी भी उसकी जावहरी वजनददगी

का वहथसा नही बन सकती री उसकी कमर म हार डाल कर िह कभी दकसी स यह नही कह सकता

रा रवत मरी हrdquo तब उस बहद रशक होता रजत स कया रजत को सचमच अहसास ह दक रवत तारक

क वलए कया ह दक िह उसकी वजनददगी का कनदर उसकी वजनददगी का अरथ बन चकी ह यह कोई हलका-

फलका ठरकपन नही उसकी वजनददगी का रशा-रशा गर गया ह रवत स शबद म अरथ की तरह समायी ह

रवत उसक अवथतति म इस गरन म िह खद ही घरता रहगा हमशा

अब रवत नही ह तो िह घरन और भी कस रही ह उस कया अब िह रजत स कह पायगा

अचानक उसका मन हआ दक रजत स कह द rdquoतमको मालम ह दक मझ सचमच पता नही रा दक उस

ददन िलनदराईन ड रा िनाथ ऐसी जरथत न करताrdquo दक िह जानता हhellip अचछी तरह समझता ह अपनी

और उसकी ररीररी की पररवधयो को दक रजद शायद कभी जान न पायगा पर उसन हमशा एक दोथत

की तरह रजत का रजत की जररतो का खयाल रखा हhellip वसफथ ऊपर-ऊपर स सामावजक उपचार की

तरह नही भीतर स दकसी ददली ररशत सhellip दफर िह ररशता चाह रवत क जररय स ही बना हो

हो सकता ह रजत यह सब महसस करता हो या न भी करता हो पर उसक चहर पर भी वमिता

का थिागतमय भाि हमशा ददखा ह तारक को वसिा उन कषणो क जब दक सचमच उन दोनो क बीच

lsquoररररोररयलrsquo झगड़ हए तब भी ि शायद इसानी आचार या परथपर सदभाि की सीमाओ को कभी

लाघ नही पर दफर भी तारक का रवत क सार का ररशता ऐसा नही दक रजत क सार वजस बार सक

रवत उसकी हथती का अवभि वहथसा ह िह कोई और कस हो सकता ह रजत रवत नही हो सकता

चाह उसक दकतन ही करीब रहा हो उस दकसी न दकसी तरह स अपन खत पान ही ह लदकन कस

और यही तारक बार-बार उलझ जाता ह अपनी यह परशानी िह दकसी क सार बार नही सकता

रजत स तो कतई नही खत अगर सचमच रजत क हार पड़ गय तो

लदकन रवत न यह भी तो कहा रा दक अगर िह नही रही तो कया फकथ पड़ता ह पर रजत

सचमच खत पढ़ ल तोhellip शायद उसकी पीड़ा पर तब करोध और घणा का कोई विकराल भत हािी हो

सकता हhellip हो सकता ह दक खत पढ़कर रजत रवत को खद स वछरक द लदकन उसस कया तब शायद

रवत और भी तारक क करीब आ जाय और भी उसकी अपनी हो जाय वसफथ उसी की समची एक रात

पहल उस ऐसा ही कछ सपना आया रा रवत की मौत की खबर क बाद यही उसका याद रह जानिाला

सपना रा िह रवत की अतयवि म गया ह और एक अधरा-सा बठकनमा कमरा हhellip कमर म कछ

कागज वबखर पड़ हhellip िह एक कागज उठाता हhellip िह उसी का रवत को वलखा खत हhellip और कई लोग

उसक आसपास ह और िह सोचन लगता ह दक कही इन लोगो न भी तो उनदह नही पढ़ाhellip तभी रजत

का चहरा उसकी ओर बढ़ता ह और िह कागज वछपान की तरकीब सोचन लगता हhellip इसी उधड़बन म

उसकी आख खल गयी री तो वजथम पसीन म नहाया हआ रा

एक रजत ही यहा उसक सबस करीब हhellip और रजत ही उस अजनबी-सा लगन लगा ह अब

तक उसका रवत का सदभथ रा अचानक उस सदभथ स करकर न होन जसा हो रहा ह तारक को अजीब-

सी मानवसक दरी और भयकर अकलापन-सा महसस हआ िह यहा आया ही कयो रा रवत की

नामौजदगी म दकतना बमानी ह उसका यहा होना रजत को भी दकतना दफजल-सा लग रहा होगा

उसका यहा उपवथरत होना वजन लोगो स वघरा ह ि तो सचमच उसक अपन हhellip तारक तो दर स भी

अपना नहीhellip मत स तारक का जो भी नाता रहा होhellip उसक दकसी दसर स तो नही रा उसक कॉलज

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कामो स लौर बचच भी तारक को पहचानत नही र तारक न ही उनकी शकलो और वयिहार स अदाज

लगाया रा और हॉलि म लगी तथिीरो स उनदह पहचान पाया रा

तारक क पास रजत स कहन को कछ नही रा उसका कछ भी कहना रजत को खल सकता रा

उलर तारक को लगन लगा दक रजत शायद सोच रहा हो दक अब कयो जखमो को याद ददलान आ गय

हो कछ भी हो तारक न उस पीड़ा तो पहचायी ही री कया अब उसका कछ भी करना रजत क कि को

कम कर सकता रा उसन वनगाहो स ही अपना दख बयान कर ददया जो शायद रजत न थिीकार भी

वलया राhellip शायद एक औपचाररकता की तरह जस िह दसर बहत स जमा लोगो की शोकावभवयविया

थिीकार रहा राhellip उसस कछ अलग नही शायद तारक का िहा होना ही रजत को खल रहा हो पर

िि की नाजकी की िजह स िह कछ कहना न चाह रहा हो तारक एकदम परशान-सा उठ खड़ा हआ

कछ लोग रजत क गल लग रह र शायद उसस विदा लकर जा रह र तारक न सोचा िह अब

कहगा दक रवत क पास कछ उसक जररी कागजात र अगर रजत उस कागजो िाली जगह पर ल चल

तो िह खद ही दख लगा तारक यि की गवत स रजत की ओर बढ़ा रजत जस दकसी को दख कर भी

दख नही रहा रा उसकी आख दकसी शनदय पर ररकी री तारक को लगा उन लोगो क वघराि म

वजसम उसक अपन अजीज दोथत और ररशतदार र रजत न उस कोई विशष लकष नही दकया तारक क

भीतर अजीब सनापन-सा आ वघरा लगा जस रवत रजत म कही नही री वसफथ भरम-सा हआ रा उस

उसक िहा होन का जस दक उसक रवत क नात स िहा होन म ही कोई भारी असगवत री उस लगा

िहा बठ अजनबी स लोग उस घर रह र उसक िहा होन पर परशनवचनदह लगा रह र पता नही दकतन

ही अजनवबयो स वघर गया रा तारक यहा तक दक रवत की उस तथिीर म भी उस रवत नजर नही आ

रही री िह भी कोई अजनबी छाया री यह दवनया उसकी नही री अगर िह रवत की दवनया रही

भी हो तो वजस रवत को िह जानता रा उस रवत क वलए भी यह दवनया अनवथतति री विसगत री

उसन रजत को बहत सभलत सभलत गल स लगान की औपचाररकता की उस लगा जस िह

दकसी अजनबी को गल लगा रहा रा रवत वजतन उसक अपन पास री उतन और कही नही दकसी क

पास नही दरअसल रवत और कही नही री उसक भीतर रीhellip बस उस रवत को िही अपन भीतर ही

कही सजोय रखना रा भीतर ही खोजना रा भीतर ही तसलली करनी री दकसी और स बार नही

सकता रा रवत को रजत क दोनो कधो को हलक स दबाकर उसन धीर स कहा rdquoरक कयरrdquo और मड़ा

तो वबना पीछ दख बाहर वनकल गया

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पासपोरथ अमरीकन मरो

ओम गपता

पासपोरथ अमरीकन मरो पर रगत सहदथतानी

आज सनाऊ तमको पयार अपनी रामकहानी

छोड़ो भारत मन भयया डॉलर दख-दख ललचायो

चार-पकोड़ी जब भी दख मोह म पानी भर आयो

दीिाली पर दीप जलाउ होली पर खल रग

मौको जब मझको लगतो पीतो म भी भग

कसो होगी सरकार हमारी मोक हरदम सचता

जब भी दश पड़ सकर म कपा करो हनमनदता

पज म अब भी राम-कषण जातो मददर रोज

गपशप यारो स करतो फोकर म वमलतो भोज

योगी-बाबा आए दश स जब दन मझको जञान

आख मद क ना कछ जान करतो उनको सममान

हमबगथर अब भी नही भातो भाती मझ कचोड़ी

जसो जब भी मौका आयो रोपी िसी ओढ़ी

जाऊ दश को जब म अपन खाऊ लडड और इमरती

कहतो खद को सहदथतानी अमरीका मरी अब धरती

कहन को बहत ह भयया रोड़ को समझो काफी

बरा-भला लगा जो तमको माग नतमथतक माफी

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शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

आकाकषा ह

वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

फर च अनिाद कर इस lsquoभोगिाद स पीवड़त पविम की आतमा को अतयवधक शावत दन िालाrsquo कहा

12 47 2015 33

ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

की सीमाओ क पर मनषय कया अनभि कर सकता ह उसकी एक झलक भी ददखा दता ह उसी

औपवनषदीय जञान को महरवष िदवयास न सामानदय जनो क वलए ldquoपविि गीताrdquo म सवकषपत रप म परथतत

दकया ह िदवयास की महानता ही ह जो दक 11 उपवनषदो क जञान को एक पथतक म बाध सक और

मानिता को एक आसान यवि स परमातम जञान का दशथन करा सक ldquoपविि गीताrdquo महाभारत क

भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

ह भगिद गीता वहनदद धमथ क पविितम गरनदरो म स एक ह जो इसानो की चौहददी की सीमा रखा पर

भगिान क शरी मख दवारा इसान स कही गयी सरहदो पर चहरो की थकररनी का लखा-जोखा ह यह

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पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

12 47 2015 35

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Page 20: Year 12, Issue 47Year 12, Issue 47 vsu2avsu2a · राथत § में आ वबछ §ग . ... श्रराम की अन ¡कम्पा स § ह हाल ह में

12 47 2015 18

एहसास दता ह दसरी ओर भरष राचार अवशकषा अव यिथ रा सामावजक करीवतयो और भदभाि क

कारण मन म रकान उदासीनता और असहायता की भािना भी आती ह इस सबक बािजद एक

भारतीय का बोध जरर ह जो पजाबी मराठी या गजराती होन अलग जावत िगथ और समदाय का

सदथ य होन पर भी सबको भारतीय बनाता ह कभी-कभी विविधता म एकता िाल नहर जी का

भारत अपररभाषय या अव याख यय लगता ह भारत को एक विथ तत साथ कवतक इकाई क रप म दखन

पर कछ विचार उभरत ह जो भारतीय होन क अरथ को थ पष र करन म सहायक होत ह इनम परमख ह

धमथ कमथ पनजथनद म को दकसी न दकसी रप म थ िीकारना सामावजक इकाई - पररिार जावत समदाय

क थ तर पर अपन अवथतत ि को महसस करना सक स वििाह और अनद य व यवियो क परवत खास दविकोण

को अपनाना बहलता का थ िीकार और खल कछ-कछ असगरठत दकथ म की आत म या सल फ की

अिधारणा का थ िीकार और दकसी न दकसी रप म दकसी बड़ी जञात-अजञात सतता स जड़ाि की

अवभलाषा और पररिश परकवत और सवि क सार साझदारी तरा परथ पर अनपरकता का भाि

समकालीन विमशथ म राज य और राष र की अिधारणा क अरथ बहत कछ इस पर वनभथर करत ह

दक कौन दकस दविकोण और परयोजन स इन पर गौर कर रहा ह अक सर इनद ह अतीत ितथमान और

भविष य स जोड़ कर दखा जाता ह और लोग अपन चन िचाररक आदशथ स रग कर ही इस पर विचार

करत ह इन शब दो और इनस जड़ अरथ थ रान और समय क सार-सार बदलत रह ह जो थ िाभाविक ह

भारत दश क बार म सोचन की एक बड़ी मवशकल यह ह दक हमारी अपनी पररभाषा क पमान हमार

अपन न होकर दकसी और क ददए हए ह ि हमार बौवदधक मानस म इतन गहर पठ चक ह दक अब हम

अपन पमान क बार म भरोसा ही नही कर पा रह ह और खद को पररभावषत करन का अवधकार ही

खोत जा रह ह आरवरक और तकनीकी परगवत क पसराि की दवनया म आज हमारा आतम-सशय इतना

गहराता जा रहा ह दक भारत और भारतीयता की बात करना परानी और ददकयानस और इसवलए

अपरासवगक मानी जान लगी ह अगर इसकी बात करनी भी ह तो उसकी सनद कही और स जरानी

होगी आज अपनी पहचान क वलए हम पविमी दशो म विदवानो क दवारा परमाण और गिाही चाहत ह

आज भारत की साथ कवतक विविधता को सपनद नता और समवदध क ोत क रप म समझन समझान की

जररत ह वजसका उपयोग समाज क विकास म दकया जाय इसक वलए भारत को भारत क नजररए स

दखना होगा वबना इस भय क दक भारतीय होना दकसी कषमा याचना की अपकषा करता ह थ िदशी और

सराज जस विचार अभी भी परासवगक ह समरथ और थ िािलबी होन क वलए आत म थ िीकार और सतत

पररष कार आिश यक ह

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भकप का सदश

डॉ एमएल गपता ldquoआददतय

धरती हर ददन डोल रही ह कपन की बोली बोल रही ह

विनाश कर आकरोश स बदल कय भगोल रही ह

कय धरती न भकरी तानी कय वहमालय म आिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

जो ससाधन र पोषण क उनका शोषण कर डाला

ओजोन का जो किच रा उसका भी भदन कर डाला

बरहमी स कार हमन िसधरा क िन-कश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

सागर क तीरो को छीला पठार और पिथत को लीला

नददया बनी नाल और नाली नही ददखता जल वनमथल-नीला

चतािनी द रहा ह मौसम बदला भमडल का पररिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

विजञान की सीढ़ी चढ़ विनाश का सामान बनाया

परमाण सयि द रह यातना विकीरण का खतरा मडराया

रवडएशन स आतदकत ह दवनया क सब दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

12 47 2015 20

कोई अण कोई परमाण कोई हाईडरोजन बम ल ऐठा ह

वबछी हई बारद धरा म मानि बमो क ढर पर बठा ह

हआ परमाण यदध तो वमर जाएग दकतन दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

भकषक बनकर मानि इक दज पर चोर कर रहा

परीकषण की खावतर दकतन भीषण बम विथफोर कर रहा

परकवत का सतलन वबगड़ा तो हम बन जाएग अिशष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

कदरत कहर बरपा सकती ह कभी भी आफत आ सकती ह

धरा की जरा सी भी हरकत दकतना कोहराम मचा सकती ह

धरा न जरा करिर बदली तो कछ भी न रहगा शष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

पयाथिरण क आघात पर अब तो रोक लगानी होगी

सागर पिथत धरती क सग बद करनी मनमानी होगी

धरती को जो मा मानोग सब वमर जाएग कलश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

12 47 2015 21

ि दोनो

डॉ सषम बदी

छत स फशथ तक क लब शीशो स जड़ी उस बड़ी-सी बठक म खब सारी ददन की रौशनी भरी हई

री फशथ पर वबछी सफद चादरो पर सफद िसतर पहन ढर सार लोग उस रौशनी का ही वहथसा लग रह

र कमर म घसत ही तारक को लगा जस उस शवतता म घल मौत क सदथपन और जड़ता न अचानक

उसक भीतर को जकड़ वलया ह बीचोबीच फलो की माला चढ़ी एक बड़ी-सी रवत की तथिीर री

वजसका धप दीप और गीता क शलोको स अवभषक दकया जा रहा रा रवत अब तथिीर भर री तारक

की थतबध पवनयायी आख वनथसहाय-सी रजत को खोजन लगी

रजत सारा िि लोगो स वघरा ही रहा रा उसकी मा उसक बचच और दसर ररशतदार कोई न

कोई उसक आसपास रा ही उन दोनो की आख एक दसर स दो एक बार वमली पर रजत अपन स

बाहर नही आ पाया रा तारक न दकसी तरह अपनी शोकभािना वयि कर दी री न भी वयि करता

तो कया रजत को तो खद भी अहसास होगा उसकी अतभाथिना का एक िही तो ह इस भीड़ म जो

जानता ह दक िह कयो यहा ह बाकी तो तारक दकसी स पररवचत ही नही वसिाय कछक रवत क

कलीगज क एक दो कलीगज स ही उसकी बात हई रवत क बार म ि उस पररिार का वमि मानकर

बात कर रह र य पररिार का वमि तो िह रा ही पर इसस अलग या ऊपर भी कछ रा यह शायद

रजत क अलािा और कोई नही जानता रा जबदक रजत भी परा कहा जानता ह खास तौर स िह सब

कछ जो तारक महसस करता रहा ह या जो कछ तारक और रवत क बीच म रहा या अभी भी वजसका

बहत कछ बचा रा

य तारक न बहत बार सोचा दक अब रवत नही रही तो उसक यहा जान का कोई फायदा नही

उसकी तकलीफ बढ़गी ही दफर लगा दक नही उस रजत स वमलन जाना होगा रजत भी तो उसका

दोथत ह य रवत उन दोनो क बीच न होती तो ि शायद बहत गहर दोथत हो सकत र दफर भी िह खद

को कई तरह स रजत क करीब महसस करता रा और रजत भी बहत मामलो म उसी स सलाह करक

चलता रा उस पर भरोसा करता रा जो दक उसक मन क दोथती क भाि को ही जताती री चदक

तारक की विशषता ददल क रोगो म री िह रवत क हारथअरक क बाद स उसस अकसर रवत क बार म

सलाह लता यहा तक दक रवत स भी कोई वशकायत होती तो तारक स ही कहता दखो न इसका

कोलथराल इतना हाई चल रहा ह और मडम चीज मीर सभी कछ खाती ह अभी रथतरा ल चलो परा

का परा थरक गरक जायगी कस कर यह तो खद को नकसान पहचान स बाज नही आतीrdquo और तारक

तब ररका दता कसी डाकरर हो तम रवत मरीजो को उपदश दती रहती हो और खदhellipदफर उसन

खद ही एक विशषण गढ़ा रा रवत क वलए lsquoनानकपलायरrsquo यानी दक जो कछ भी कहा जायगा उसका

विरोध ही करगी रवत और दकसी िजह स नही बवलक विरोध करन क वलए विरोध

तब रवत और भी तिर चढ़ाकर बोलती rdquoरजत तो पहल ही मर पीछ पड़ा रहता ह अब तम

भी इसी स वमल गय हो िाह जी िाह दोथत दकसक हो तम मर या रजत कrdquo

तारक तब चप रह जाता रा रजत भी कछ नही कहता एक वपरय अवपरय सतय

शायद रवत भी इसीवलए कहती री दक तारक तब लाजिाब हो जायगा कयोदक रवत जानती ह दक जो

िह तारक क वलए ह िह और कोई नही हो सकता और रजत को भी इसका अदाज ह इसी स रजत न

शर म चाह दकतना विरोह दकया हो दकतना लड़ाई झगड़ाhellip दफर धीर-धीर मान वलया रा इस ररशत

12 47 2015 22

को रवत क वलए ही अगीकार कर वलया रा तारक को भी रवत न ही उस बतलाया रा जब रजत न

उस बाहो म भरकर कहा रा rdquoइतना पयार करता ह तमह दक यह भी थिीकारन क वलए राजी हrdquo

एक हक-सी उठी री तारक क भीतरhellip वजस इतना पयार वमला होhellip इतनाhellip िह इस तरह स

उन दोनो की वजनददगी को ही सना करक रखसत हो ली तारक क मन म गथसा भी आयाhellip शायद

अपनी सहत का धयान रखती तो कछ और जी जाती उन दोनो स ही तो चार-पाच साल छोरी री िह

जी भी सकती री पर अबhellip और तारक न लबी सास भरी

रवत की एक कलीग बता रही री rdquoपरसो तो काम पर आयी हई री रवत म सोच भी नही

सकती री दक इतना भारी थरोक हो सकता ह दक एक ही लपर म ल जायhellip मझ तो विशवास ही नही

होताrdquo तारक को भी विशवास नही होता रा उसी ददन सबह रवत न उसस फोन पर बात की री और

उसस मजाक दकया रा rdquoमर जनदमददन पर आओगrdquo

दरअसल सारा झगड़ा कछ साल पहल रवत क जनदमददन को लकर ही शर हआ रा िनाथ शायद

रजत को उन दोनो क बीच बढ़त ररशत की तवनक खबर न लगती रवत न उस बतलाया रा दक उसक

जनदमददन पर िह और रजत आमतौर पर शाम को बाहर दकसी बदढ़या स फर च रथतरा म खाना खान

जात ह तब तारक न कहा रा rdquoठीक ह तो लच तम मर सार लनाrdquo

रवत मान गयी री उसन उसी ददन रवत क शहर पहचन क वलए फलाईर भी बक करिा ली

री पर जब ठीक जनदमददन आनिाला रा तो रवत न उस बतलाया रा दक रजत को ठीक नही लग रहा

मरा तमहार सार लच पर जाना िह पछ रहा रा दक इतना इमपॉरर कस हो गया यह आदमी दक

तमको उस जनदमददन पर जरर वमलना ह

rdquoतमन कया कहाrdquo तारक वजजञास हो उठा रा

rdquoयही दक तमको दकसी काम स शहर म होना रा इसवलए लच पर वमलन की बात की इस पर

उसन कहा दक अगल ददन वमल लो जनदमददन िाला ददन तो उसी क वलए हhellip कोई और कयोrdquo

दफर िह बोली rdquoइसी पर उस शक हो रहा ह दक यह कोई आम दोथत नहीhelliprdquo

तारक न जोड़ ददया रा rdquoपरमी हrdquo

rdquoहा यही शक हो रहा ह उसrdquo

rdquoतो ह या नहीhelliprdquo

rdquoशायद होhellip यही मसीबत हrdquo

तारक न कहा रा rdquoअब तो ररकर ली हई ह म तो आऊगा ही तम वमल सको तो वमलना िनाथ

न वमलना चाह पाच वमनर क वलए या कॉफी क वलए भी आ जाओगी तो मर वलए िही काफी होगा

तमहार जनदमददन पर तमह दख भर लrdquo

rdquoतम भी कमाल क रोमाररक होhellip पर सच कह तो म भी तमस वमलना चाहती ह उस ददनhellip

कछ न कछ तो जगाड़ना पड़गाrdquo

rdquoमर वलए तमहारा जनदमददन मरी वजनददगी का बहत अहम ददन हhellip समझीrdquo

एयरपोरथ पहच कर तारक न फोन दकया रा रवत बोली री rdquoरजत कह रहा ह तम हम वडनर

पर जॉयन कर लोrdquo

तारक बहत हरान हआ रा पर रवत न फोन रजत को पकड़ा ददया रा तारक एकदम सकर म

पड़ गया रा उसन खद को बचान की कोवशश की rdquoसॉरी म तो यहा आया रा तो सोचा रवत स वमल

लगा पर इस तरह आप लोगो क परोगराम मhelliprdquo

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रजत न जोर दकर कहा रा rdquoनही भाई बहत तारीफ सन रहा ह बीिी स जरा हम भी तो

वमल आपस आप चाह तो घर पर आ जाईए या दफर सीध रथतरा पर वमलगrdquo

rdquoपर आप लोगो का तो वडनर पर सार जान का कायथकरम रा नrdquo

rdquoआप लच पर फरी ह तो लच पर वमल लत ह य मझ तो वडनर ही पसद ह जसा आप कहrdquo

रजत वबलकल दोथताना ढग स बात कर रहा रा एक पल को उसकी रोन म कछ तनाि तारक

को महसस हआ रा पर अगल ही पल आिाज दफर सहज हो गयी री तारक मान गया पर रकसी लकर

पहल होरल म सामान छोड़ा और इस दौरान खद को मानवसक तौर पर तयार भी करता रहा दक कस

पश आना ह अपन रकीब स दखा जाय तो ररशता रकीब का ही रा बाकी ि दकतन भी सभय या

समझदार इसानो की तरह एक-दसर स बताथि कर आवखर ि तीनो सममावनत पश क र तारक हारथ

थपशवलथर रा तो रजत अगरजी सावहतय का परोफसर और रवत सायकायररथर इसानी मन की

कमजोररयो को समझना मनोरोगो का इलाज करना रवत की विशषता तो री ही पर इसानी आकषथण

एक दसर क परवत सखचाि या ऐस ररशतो को समझन की सथकवत तो कही तीनो म ही री

रजत इस बात को खब समझता रा दक दकसी भी औरत क वलए दकसी दसर परष क परवत

सखचाि हो जाना बहत सहज रा िही एक पवत और पतनी स परम करन िाल क रप म िह रवत क इस

वयिहार स ईषयाल भी हो उठता रा एक सभय इसान क नात िह ईषया को दबा कर तारक क परवत भी

वमिित वयिहार करना चाहता रा पर िही उस रवत क वयिहार स कि पहचता रा दक िह उसक

अलािा भी दकसी दसर परष को चाह सकती ह वजसस उसक मन म आकरोश और वितषणा का भाि

उठता कभी िह अपन को उदार बना कर यह कहना चाहता दक रवत अगर दकसी दसर को चाहती ह

तो बशक उसको भी कयो न पाय सार ही जब करोध होता तो एक तरह स जस िह रवत को सजा दन क

वलए कह डालता rdquoतम जाओ दोनो सार रहोrdquo पर जो पीड़ा िह उसम सह रहा होता िह रवत और

तारक दोनो क वलए ही असहय होती

रवत न कहा रा rdquoकया तारक और म दोथत नही हो सकत और इतन दोथत हhellip एक िह वयवि

वजसस बात करक मझ खशी वमलती ह िह दोथत कयो नही बन सकता वसफथ इसवलए दक उसक मन म

तीखी भािना ह मर वलएhellip या शरीरो का आकषथण भी हhelliprdquo

रजत तब तकथ स सारी बात को समझन समझान की कोवशश करता हा करत-करत कह दता

rdquoऔरत आदमी म दोथती हो ही नही सकती कयोदक जहा शरीरो का आकषथण हो िहा दोथती जसा

वनषकपर भाि कस पनप सकता हrdquo तब रवत दोथती का एक और पकष पश करती rdquoतमहार कहन का

मतलब तो िही ददकयानसी बात हई दक शरीर पाप का मल ह जबदक तम खद ही यह पहल कह चक

हो दक शरीरो का मसला हल हो जाय तो औरत मदथ बहत खबसरत दोथत हो सकत हhellip शरीर को

अहवमयत दी कयो जाय शरीर वमल जान स उनका दोथती म बाधा बनन का मसला खतम हो जाता हrdquo

रजत रवत की बात मान भी जाता रा पर रवत दफर तारक को यह भी बताती री rdquoिन कार

रक वहम फॉर गरारड कल को िह अपना कोई नया तकथ द दगाrdquo

शायद इसी स तारक भी अचानक वहममत हारन लगा रा कस सामना करगा िह रजत का य

िह रजत स एकाध बार पहल वमल चका रा पर तब उसको यह अदाजा नही रा दक रवत और उसक

बीच कछ रा जबदक तारक तब भी कछ आतमसजग-सा हो रहा रा पर कछ वमनरो की मलाकात को

सभाल लना कोई बड़ी बात नही री और य भी रजत उस भला आदमी लगा रा यह भी सोचा रा दक

अगर रवत उन दोनो क बीच न होती तो यह वयवि उसका दोथत हो सकता रा य रवत क होन क

बािजद अतत ि दोथत बन ही पर इस दोथती का तानाबाना िसा न रा जस खावलस दोथती का होता

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ह इसम रवत क रश बन हए र जो एक और ही रगत वलए र और िह रगत तारक को बहत पयारी री

उस दोथती स जयादा

तारक न होरल पहच कर फोन कर ददया रा दक वडनर पर वमलना ही ठीक रहगा और िह

अपना काम इस दौरान कर लगा रजत आसानी स यह बात मान गया और कहा दक िह सडरकस पर

पहल घर पर आ जाय उसक बाद रथतरा खाना खान चल जायग

शाम को जब िह चलन लगा तो फोन बजा रा दसरी ओर रवत री हलो कहत ही रवत न

कहा rdquoसनो तम मत आना मर घर म बहत रशन चल रही हrdquo इसस पहल दक िह कछ कहता रवत न

फोन वडसकनकर कर ददया

रात को कोई फलाईर नही जाती री िनाथ िह उसी िि शहर छोड़ क चला जाता

आध घर बाद ही घरी दफर बजी रवत पछ रही री दक आ रह हो तारक बौखला गया दक आवखर हो

कया रहा ह कया यह रवत क मन की उलझन ह या दक रजत कीhellip या दोनो कीhellip या रवत वसफथ रजत

की उलझन को वयि कर रही री बोली री rdquoजलदी आ जाओ हम लोग इतजार कर रह हrdquo

िह पहचा तो रवत न अकल ही उसका थिागत दकया रा िह जानता रा दक दोनो बचच कालजो

म ह पर रजत काफी दर तक बठक म नही आया तो तारक हरान हआ रवत बोली rdquoिह नहा रहा हrdquo

दफर मथकरा कर जोड़ा rdquoशायद हम दोनो को कछ िि दना चाहता हrdquo

तारक तब कछ निथस हआ रा उस आग बढ़कर रवत को चमन का हौसला नही हआ उस लगा

दक रवत भी सहज नही री जस दक आम तौर पर होती ह पर उसन कछ कहा नही िह खद भी तो

सहज नही हो पा रहा रा जस लड़की क बाप क घर म शादी का परथताि लकर जा रहा हो कछ कछ

इसी तरह का महसस हो रहा रा िही डर कर परचा करना रा दक इमतहान म फल न हो जाय

रजत न कमर म आत ही बड़ तपाक स हलो दकया कछ औपचाररक-सी बात की दफर उसस

सडरक पछा और दकचन म बफथ िगरह का इतजाम करन क वलए दफर स गायब हो गया तारक को लगा

दक सहज होन की बहत कोवशश क बािजद रजत बहत असहज ह

ववहथकी का घर लत हए तारक न ही रजत स उसक काम क बार म पछना शर दकया बात

कही जा नही रही री तभी रवत एक नई दकताब की चचाथ करन लगी वजसका ररवय सबह क अखबार म

छपा रा तारक न हिाई जहाज म ही उसक बार म पढ़ा रा दफर तो बातचीत खब गरमागरम होन

लगी रजत न दवकषण एवशयाई अगरजी लखको क बार म अपन विचार झाड़न शर कर ददय यहा तक

दक रवत न अचानक घड़ी दखी तो पता चला दक रथतरा की ररजिशन का िि हो चका रा रजत न

रथतरा को फोन दकया दक कछ वमनर लर पहचग और तारक को बोला दक जलदी स सडरक खतम कर ल

या गाड़ी म ही ल चल दोनो न दो तीन सडरक चढ़ा रख र मौज-सी भी आयी हई री रजत ही कार

चला रहा रा और तारक पीछ िाली सीर पर बठा रा अचानक रजत कछ नश और कछ अपनी धन म

बोला rdquoतो तम मरी बीिी स पयार करत होrdquo

तारक भौचक-सा हो गया य ही बठा रहा जस रजत की बात को सना न हो या िह गभीरता

स लन लायक न हो रजत न अपनी बात को सिाल बनाकर दबारा पश दकया rdquoकयो तारक मरी बीिी

स पयार करत हो या नहीrdquo

तारक न कहा rdquoहाrdquo और चप कर गया उस लग रहा रा िह जो भी जिाब दगा खतर स खाली नही

पर यह जिाब सच रा तो सच बोल कर ही मार खायी जाय उस दकसी लड़की क वपता स हार मागन

नही जाना पड़ा रा आज यह भी सही

rdquoतम भी पयार करत हो िह भी करती ह तो तम दोनो सार कयो नही रहतrdquo

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तारक बोल पड़ा रा rdquoयह इतना आसान नहीrdquo

रजत इस पर आकरमण करता-सा बोला rdquoकमाल ह पयार भी करत ह और वजममिारी भी नही

वनभाना चाहतrdquo तारक को महसस हो रहा रा दक रजत कह तो कछ रहा ह और पहचाना कछ और

चाहता ह दफर भी िह जिाब तो उसी बात का द सकता रा जो दक पछी जा रही री यह कह कर

उस नाराज भी नही करना चाहता रा दक रजत वसफथ अपन भीतर क आकरोश आतक और आग को

आिाज द रहा रा बोला rdquoयह बात नही म आज भी रवत क सार वजनददगी शर करन को तयार ह

जहा तक म जानता ह रवत अपन शहर को छोड़ कर और कही नही जायगी न िह तमको छोड़न को

तयार होगी जहा तक म रवत को जानता हhelliprdquo

रवत चपचाप अपन पर अकश लगाय दोनो की बात सन रही री न तो िह रजत क पकष म

कछ बोलना चाहती री न तारक क पकष म ही बोल सकती री दफर भी दोनो क बीच तारतमय वबठाय

रखन की वजममिारी भी उसी की री और िह समझ नही पा रही री दक दकस तरह इस बातचीत को

सीमाय लाघन स बचाया जाय ऊपर स उस डर लग रहा रा दक आिश म रजत कही रककर न मार द

रथतरा बहत दर रा भी नही बात पर चरम पर चल रही री दक रथतरा आ गया रवत न रोका rdquoरजत

पारककग ढढ़ो रथतरा आ गयाrdquo रथतरा क सार ही पारककग गराज म गाड़ी छोड़ कर तीनो अदर चल गय

िरर न उनको मज पर वबठाया और सडरक क वलए पछा तरा मनदय लाकर ददय तीनो क तीनो उस मज

पर इस तरह खामोश और भर बठ र दक मनदय म वसर डबोना एक राहत बन गया रा तीनो न अपन-

अपन आडथर ददय पर बात कछ बन नही रही री हर कोई कछ भी कहन म जयादा ही सतकथ हो रहा रा

अचानक रवत बोली rdquoरजत तमको इतनी जयादा तकलीफ री तो तमन मना कयो नही कर

ददया म तो तारक को कह चकी री दक आज सार खाना नही होगा तमही न जोर ददया दक जरर

बलाओ अब इस तरह कयो बताथि कर रह होrdquo

रजत और भड़क गया rdquoम तो वसफथ यह कह रहा ह दक तम लोग एक-दसर को पयार करत हो

तो म कया कर रहा ह यहा तम जाओ एक दसर क सार रहोrdquo

दोनो की आिाज ऊची हो रही री और दसरी मजो पर बठ लोगो की वनगाह इस ओर उठ आयी री

तारक न धीर स सझाया रा rdquoमर खयाल स हम य बात यहा नही करनी चावहएrdquo सहसा रवत

न होश म आत कहा rdquoहा इतन बदढ़या रथतरा म खाना खान आय ह कछ खान पर भी तो धयान दhellip

दफर आज मरा जनदमददन ह आई िार र हि ए गड मीलrdquo

दफर भी खान पर तीनो म स दकसी का धयान नही लग सका तीनो औपचाररक-सी बात म लग

गय र तारक न ही शहर क निीनतम रथतराओ क बार म ताजा पढ़ी समीकषा का वजकर छड़ ददया रा

रजत न कार स जब उस होरल छोड़ा तो तारक न उपर कमर म आकर सडरक लन क वलए कहा

पर जसा दक िह अपकषा कर रहा रा रजत न दर होन का बहाना बना छटटी माग ली री रवत तब भी

कछ नही बोली री शायद उस डर रा दक उसका कछ भी कहना रजत क वलए घाि पर नमक वछड़कन

जसा होगा या उसकी कोई भी बात का गलत मतलब वनकाल कर रजत भड़क सकता रा य दर हो भी

चकी री

पर तारक यह भी जानता रा दक रवत एक नबर की वजददी री जो उस चावहए रा चावहए ही

रा उस रोका नही जा सकता रा िह ऊपर स मान जायगी पर भीतर स कभी माफ नही करगी

शायद इसी स रजत भी वबगड़ी हई लाड़ली बरी की तरह रवत की हर चाह या माग को विरोध करक

भी अतत मान जाता रा

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लौर आन क दो चार ददन बाद ही उसक फोन पर रवत न सदश छोड़ा रा rdquoतमहारा आना ठीक

नही हआ सॉरी तमह बलाकर भी वमल नही पायी अब लगता ह कभी नही वमलगी लर अस थरॉप

ददस वहयर पलीज मझस सपकथ मत करनाrdquo

तारक बहत ददन परशान घमता रहा रा पर रवत को फोन भी नही दकया उसन मना जो कर

डाला रा उस फोन करत हए तारक को लगता दक िह खद को उस पर लाद रहा ह और यह वथरवत

उस कभी गिारा नही री हर ददन दकसी जिालामखी-सा लाि स लदा हआ गजरता अदर ही अदर

सब तप रहा रा

महीन भर बाद रवत न फोन दकया रा rdquoगथसा हो न मझस तमस माफी भी नही माग सकीrdquo

उसकी तो कोई जररत नहीrdquo

दफर भी सोचा रा तमस कभी बात नही करगी इसी स तमको सपकथ करन स मना दकया

रा रजत को भी यही मालम ह दक तमस ररशता तोड़ ददया ह पर अब मझी स बात दकय वबना रहा

नही जा रहाrdquo

रजत को मालम ह मझस बात कर रही होrdquo

िह बहद गथसा ह तमसhellip जस दक सारा दोष तमहारा होhellip दक तमन उसकी बीिी को फसा वलयाrdquo

ि इसी तरह जब मौका लगता बात कर लत तारक क ददल ददमाग पर रवत ही छायी रहती

िह ऐस ही पलो क दौरान जीता जब दोनो क बीच कछ सपकथ होता बाकी क पल उन पलो क इतजार

म गजरत

इस बीच रवत को ददल का दौरा पड़ा रा घबराकर तारक को फोन कर डाला रा रजत न

तारक आया तो रजत उस अपनी गाड़ी म सार अथपताल ल आता जाता रहा दोनो म एक दोथती का

नाता तभी बना रा दवनया जहान की बात रजत न उस घर पर ही ठहराया रा तारक तीन ददन बाद

चला गया रा िावपस पर दोनो की फोन पर बात हो जाती रवत अथपताल स िावपस आ गयी री

धीर-धीर िह सामानदय होकर िावपस अपना काम सभालन लगी

रवत का जनदमददन दफर स आनिाला रा रवत न उस कहा रा rdquoरजत अपन आप ही बोल रहा ह

दक तम आ जाओ इस बार मरा जनदमददन मनान बोलो आओगrdquo

तारक परानी बात याद करक घबरा गया रा rdquoनही दफर स उसक भीतर सब घमड़न लगगाhellip

सबको तकलीफ होगीrdquo

यह सच भी रा रजत कभी तो उसक परवत बहत वमिित हो जाता िही अचानक गथसा ईषयाथ

उभर आत और िह अकसर बरखी ददखाता अचानक तारक को ऐसा महसस हआ जस रवत उसस खद

यह सब कह रही हो पल भर को िह भल ही गया दक रवत क ही अतयवि कमथ म िह शावमल हआ ह

और दरअसल उसक यहा आन की एक िजह यह भी ह दक िह रवत को वलख अपन खत िावपस ल

जाना चाहता ह उस डर ह दक कही ि खत रजत क हार न पड़ जाय

तारक रवत क सार काम करन िाली इस मवहला डॉ लोपज स पहल वमला हआ रा इस भीड़

म एक िही जान-पहचान की री तारक का मन हआ उसस पछ दक कया िह रवत की दराज म उसक

कागजात पर नजर मार सकता ह तारक को अदाज रा दक उसक खत िह दफतर की मज की दराज म

रखती री पर िह जानता रा दक ऐसा करना ममदकन रा नही आवखर तारक को कस हक पहचता रा

रवत की दराज खलिान का िह तो एक पररिार क वमि की हवसयत स िहा रा रजत ही कह सकता

रा दखा जाय तो ि लोग खद भी रजत स ही कहग दक रवत का सामान िह ल जाय तब तो रजत की

आख जरर उन पर पड़गी तब शायद उसको बरा लगगा दक रवत क सार तारक का एक अपना ररशता

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रा उन तीनो की आपसी दोथती क बाहरhellip रजत को बतहाशा चोर लगगी अब जबदक िह रवत स

जिाबतलबी भी नही कर सकता रवत अब कोई सफाई नही पश कर पायगी तारक क हक म कछ भी

नही कह सकगी दकसी तकथ स रजत को लाजिाब नही कर पायगी नही िह ऐसा नही कर सकता न

यह रवत क परवत सही होगा न रजत क परवत उस दकसी न दकसी तरह स खत पान ह

राथत म आत हए हिाई जहाज म तारक जब लगातार रवत क सार की अपनी वजनददगी क

गजर पल दहरा रहा रा बार-बार उस धयान आता दक जब स रवत को ददल का दौरा हआ रा िह

उसस कहना चाहता रा दक उसक खत विनि कर द एक बार उसन बात उठायी तो रवत बोली rdquoकयो

तमहार खत मर दफतर की दराज म सफ पड़ हrdquo

शायद िह वबना कह यह भी समझ गयी री दक तारक का इशारा दकस ओर ह तभी बोली

दखो जब तक म वजनददा ह म उनको फाड़ कर न तो फ क सकती ह न जला सकती ह एक बार मर गयी

तो कया फकथ पड़ता ह दक कोई कया करगा उनक सार तमको तो दफकर होनी नही चावहए अब तो ि

मरी अमानत हrdquo यह बातचीत दो एक महीन पहल की ही होगी तारक न सोचा रा बात कभी दफर

उठायगा पर उसस पहल हीhellip

तारक को भी तब यह अदाज नही रा दक रवत क अलािा रजत स भी उसका नाता रा रवत क

जान क बाद िह खद को रजत क बहत करीब महसस कर रहा रा और उस लगा दक उसक खत रजत

को उसस दफर दर धकल सकत र पर िह दकसी तरह भी रजत को खोना नही चाहगाhellip रजत जस स

रवत का ही एक वहथसा राhellipउसन दखा लोगो स वघरा रजत का चहरा बहद वनचड़ा हआ रिहीन और

सखा-सा लग रहा रा रात भर सोया नही होगा इसवलए आखो क नीच कालापन उतर आया रा आख

काफी अदर को धसी हई री तारक को लगा दक िह शायद रजत स बहतर हालत म ह दफर उस रशक

भी हआ रजत अपन गम का खला इजहार कर सकता हhellip तारक को यह सविधा नही री िह दकसी

उजड़ आवशक क रप म इस महदफल इस मौत का शोक करन िालो की महदफल मhellip अपना असली

चहराhellip अपना आवशक का चहराhellip नही ददखा सकता रा अचानक उसकी आख भर आयी अपन खोन

की वशददत क अहसास स

रवत क िाकय उसक कान म सरसरान लग जबस उस ददल का दौरा पड़ा रा िह जीिन की

कषणभगरता या इसान क नाचीज होन क अवथततििादी दशथन को बहत बघारन लग गयी री शायद

अपन जान का अहसास उस कही बहत गहर उदास कर जाता रा पर िही िह उस जान को एक

अिशयभािी अकारय सतय की तरह थिीकार करक उसस समझौता भी करन लग गयी री एक ददन

उसन हडसन नदी क दसर वसर स मनहरन की ओर दखत हए कहा रा rdquoदखो तो इन छोर-छोर वडबबो

म दकतन लाखो लोग रहत ह दकतन छोर ह हम लोग इतनी तग जमीन पर दकतनी बड़ी तादाद म

समा जात ह एकदम हजारो की सखया म सार-सार जड़ कीड़ो की तरह दफर भी अपन आप को

दकतना बड़ा मानत ह राजनीवत धमथ और नवतकता की तवखतया वचपका कर दकतना बड़ा होन का

भलािा दत रहत ह खद कोrdquo

रजत को रवत की इसान को नाचीज करार दन िाली बातो स हमशा बहत वचढ़ छरती री

बोला रा rdquoधमथ नवतकता जीिन क सतय ह इनको तम भलािा दन िाली चीज कस कह सकती हो

इसान इसीवलए तो बाकी जीिो स अलग ह दक िह सोच सकता हrdquo

rdquoऔर सोच क धरातल पर हर चीज को गलत या सही सावबत कर सकता ह नवतकता को गढ़

सकता ह या परा सतयानाश कर सकता हhellip ठीक ह मझ तो उसम कोई नकसान नहीrdquo

12 47 2015 28

हा नकसान दकसी का ह तो मरा ही रजत न कहा तो तारक झर स बोल पड़ा रा rdquoनकसान

तो तब होता जो म उस भगा क ल जाताrdquo

रजत न सजीदगी स कहा rdquoअब इसका ददल बर गया हhellip तो आधी सपवतत तो लर ही गयी न

तम भगा ल जाओ तो भी फकथ नही पड़गा यह आधािाला वहथसा तब भी यही रहगाrdquo

सचमच रजत का यह विशवास सही रा रवत और उसक ररशत की शरआत क ददनो म भािना

क परिाह म बहता तारक रवत क सार एक नयी वजनददगी क दकिाड़ खोलन की बात सोच पाया रा पर

जलद ही उस अहसास हो गया रा दक रवत कही बहत गहर जड़ी री रजत क सार दक िह कभी उस

ररशत को तोड़गी नही य रजत भी शर क ददनो म भीतर स वहल गया रा यह झरका दक रवत रजत

को छोड़ दकसी और को मन म ला सकती ह उस बहत दर जा फ क आया रा दफर रवत न खोय विशवास

को िापस लौरा ददया रजत अपन आध नकसान क सार धीर-धीर शायद समझौता करना सीख गया रा

तारक को लगा दक िह आध क सार समझौता करना सीख गया रा दफर तारक को लगा दक

िह आध क सार समझौता नही रा रजत क भीतर कही पर का भरोसा भी रा जस दक रवत को वसफथ

एक बदलाि चावहए रा जो तारक रा िनाथ िह परी रजत की ही री कयोदक मौका आन पर रजत

अपना परा हक जतान स चकता नही रा हमशा यही मानता रा दक पहला हक उसी का ह तारक

हमशा बाद म आयगा जस दक पर भर लन पर बचा हआ भोजन दकसी को भी ददया जा सकता हhellip

कछ ऐसा रख

पर रवत बचा हआ भोजन नही रीhellip दकसी तरह स भी उवचछि या अिवशि नही जो उसन

रवत म पाया रा िह पहल वजनददगी म कभी नही वमला रा रवत न उसकी पहचान करायी री

पररपणथता स रवत को जानना ही जस उस सपणथता को छना रा शायद रजत न भी रवत म ऐसा कछ

पाया रा जो आम औरतो स अलग रा रवत शादी क इतन बरस बाद भी उस अपन म उलझाय री और

िह उसस मि नही होना चाहता रा रवत म बाहरी खबसरती क बािजद वयवि क ददमाग को भी

उलझाय रखन का जो गण रा उसस सच म जो भी पास आता और सखचता जाता रवत म भरपर

पयार लन की चाह री तो भरपर दन की कषमता भी इसी स अभी भी उसस जी तो नही भरा रा रजत

का शायद िह ऐसी औरत री जो हमशा वनत निीन होती रहhellip सौदयथ की एक पररभाषा यह भी तो

दी गई ह दक जो वनत नतन होता रह िही सौदयथ ह रवत भी कभी परानी नही पड़ती रोज कछ नया

होता ह उसक पासhellip कोई नया खयालhellip कोई नई सझhellip कोई नई उकसान उलझान िाली बातhellip

शायद इस ददमागी सौदयथ कहना होगाhellip जो कछ भी उसम राhellip बस खीचता रा अपनी ओरhellip मोहता

राhellip शायद कया पर उगली धरना उस पररवध म बाधन की भोडी कोवशश होती

कछ दवदव उठता तो रवत रजत क ही हक म बोलती री रजत क वहतो को सरवकषत कर लन क

बाद ही िह तारक को उसका हक दती तारक को खीझ भी होती दक रजत उसक जीिन म चदक पहल

आ गया रा इसीवलए हर चीज म ही पहला हक उसी का बनता ह पर उसन रवत स अपनी यह

मनवथरवत कभी जावहर नही होन दी री वपछल साल िलनदराईन ड पर ऐसा ही तो हआ रा दरअसल

दोनो को अदाज नही रा दक उस िीक ड पर िलनदराईन ड पड़ता रा तारक को दकसी काम स रवत क

शहर आना रा और दोनो न वमलन का कायथकरम बना डाला रा रजत स रवत की बात हई होगी तो

उसन भनकर कहा रा rdquoतो िह तमहारा िलनदराईन ह जो उस ददन आ रहा हrdquo रवत क कहन पर दक उस

तो याद भी नही रा िह बोला रा rdquoम नही मान सकता दक तारक न य ही आन का बनाया ह इस

िीक ड परrdquo रवत न तारक स सारी बात बतलायी तो उसन सोचा रा िह खद फोन पर रजत स कहगा

दक उस सचमच याद नही रा पर दफर बात बढ़ान न दन क वलए चप रह गया रा और जान का

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परोगराम भी थरवगत कर डाला रा तब उस दो बात तकलीफ दती रही री एक तो यह दक रजत हमशा

उसक सामन परारवमकता ल जायगा दसरी यह कड़िी सचचाई दक रवत कभी भी उसकी जावहरी वजनददगी

का वहथसा नही बन सकती री उसकी कमर म हार डाल कर िह कभी दकसी स यह नही कह सकता

रा रवत मरी हrdquo तब उस बहद रशक होता रजत स कया रजत को सचमच अहसास ह दक रवत तारक

क वलए कया ह दक िह उसकी वजनददगी का कनदर उसकी वजनददगी का अरथ बन चकी ह यह कोई हलका-

फलका ठरकपन नही उसकी वजनददगी का रशा-रशा गर गया ह रवत स शबद म अरथ की तरह समायी ह

रवत उसक अवथतति म इस गरन म िह खद ही घरता रहगा हमशा

अब रवत नही ह तो िह घरन और भी कस रही ह उस कया अब िह रजत स कह पायगा

अचानक उसका मन हआ दक रजत स कह द rdquoतमको मालम ह दक मझ सचमच पता नही रा दक उस

ददन िलनदराईन ड रा िनाथ ऐसी जरथत न करताrdquo दक िह जानता हhellip अचछी तरह समझता ह अपनी

और उसकी ररीररी की पररवधयो को दक रजद शायद कभी जान न पायगा पर उसन हमशा एक दोथत

की तरह रजत का रजत की जररतो का खयाल रखा हhellip वसफथ ऊपर-ऊपर स सामावजक उपचार की

तरह नही भीतर स दकसी ददली ररशत सhellip दफर िह ररशता चाह रवत क जररय स ही बना हो

हो सकता ह रजत यह सब महसस करता हो या न भी करता हो पर उसक चहर पर भी वमिता

का थिागतमय भाि हमशा ददखा ह तारक को वसिा उन कषणो क जब दक सचमच उन दोनो क बीच

lsquoररररोररयलrsquo झगड़ हए तब भी ि शायद इसानी आचार या परथपर सदभाि की सीमाओ को कभी

लाघ नही पर दफर भी तारक का रवत क सार का ररशता ऐसा नही दक रजत क सार वजस बार सक

रवत उसकी हथती का अवभि वहथसा ह िह कोई और कस हो सकता ह रजत रवत नही हो सकता

चाह उसक दकतन ही करीब रहा हो उस दकसी न दकसी तरह स अपन खत पान ही ह लदकन कस

और यही तारक बार-बार उलझ जाता ह अपनी यह परशानी िह दकसी क सार बार नही सकता

रजत स तो कतई नही खत अगर सचमच रजत क हार पड़ गय तो

लदकन रवत न यह भी तो कहा रा दक अगर िह नही रही तो कया फकथ पड़ता ह पर रजत

सचमच खत पढ़ ल तोhellip शायद उसकी पीड़ा पर तब करोध और घणा का कोई विकराल भत हािी हो

सकता हhellip हो सकता ह दक खत पढ़कर रजत रवत को खद स वछरक द लदकन उसस कया तब शायद

रवत और भी तारक क करीब आ जाय और भी उसकी अपनी हो जाय वसफथ उसी की समची एक रात

पहल उस ऐसा ही कछ सपना आया रा रवत की मौत की खबर क बाद यही उसका याद रह जानिाला

सपना रा िह रवत की अतयवि म गया ह और एक अधरा-सा बठकनमा कमरा हhellip कमर म कछ

कागज वबखर पड़ हhellip िह एक कागज उठाता हhellip िह उसी का रवत को वलखा खत हhellip और कई लोग

उसक आसपास ह और िह सोचन लगता ह दक कही इन लोगो न भी तो उनदह नही पढ़ाhellip तभी रजत

का चहरा उसकी ओर बढ़ता ह और िह कागज वछपान की तरकीब सोचन लगता हhellip इसी उधड़बन म

उसकी आख खल गयी री तो वजथम पसीन म नहाया हआ रा

एक रजत ही यहा उसक सबस करीब हhellip और रजत ही उस अजनबी-सा लगन लगा ह अब

तक उसका रवत का सदभथ रा अचानक उस सदभथ स करकर न होन जसा हो रहा ह तारक को अजीब-

सी मानवसक दरी और भयकर अकलापन-सा महसस हआ िह यहा आया ही कयो रा रवत की

नामौजदगी म दकतना बमानी ह उसका यहा होना रजत को भी दकतना दफजल-सा लग रहा होगा

उसका यहा उपवथरत होना वजन लोगो स वघरा ह ि तो सचमच उसक अपन हhellip तारक तो दर स भी

अपना नहीhellip मत स तारक का जो भी नाता रहा होhellip उसक दकसी दसर स तो नही रा उसक कॉलज

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कामो स लौर बचच भी तारक को पहचानत नही र तारक न ही उनकी शकलो और वयिहार स अदाज

लगाया रा और हॉलि म लगी तथिीरो स उनदह पहचान पाया रा

तारक क पास रजत स कहन को कछ नही रा उसका कछ भी कहना रजत को खल सकता रा

उलर तारक को लगन लगा दक रजत शायद सोच रहा हो दक अब कयो जखमो को याद ददलान आ गय

हो कछ भी हो तारक न उस पीड़ा तो पहचायी ही री कया अब उसका कछ भी करना रजत क कि को

कम कर सकता रा उसन वनगाहो स ही अपना दख बयान कर ददया जो शायद रजत न थिीकार भी

वलया राhellip शायद एक औपचाररकता की तरह जस िह दसर बहत स जमा लोगो की शोकावभवयविया

थिीकार रहा राhellip उसस कछ अलग नही शायद तारक का िहा होना ही रजत को खल रहा हो पर

िि की नाजकी की िजह स िह कछ कहना न चाह रहा हो तारक एकदम परशान-सा उठ खड़ा हआ

कछ लोग रजत क गल लग रह र शायद उसस विदा लकर जा रह र तारक न सोचा िह अब

कहगा दक रवत क पास कछ उसक जररी कागजात र अगर रजत उस कागजो िाली जगह पर ल चल

तो िह खद ही दख लगा तारक यि की गवत स रजत की ओर बढ़ा रजत जस दकसी को दख कर भी

दख नही रहा रा उसकी आख दकसी शनदय पर ररकी री तारक को लगा उन लोगो क वघराि म

वजसम उसक अपन अजीज दोथत और ररशतदार र रजत न उस कोई विशष लकष नही दकया तारक क

भीतर अजीब सनापन-सा आ वघरा लगा जस रवत रजत म कही नही री वसफथ भरम-सा हआ रा उस

उसक िहा होन का जस दक उसक रवत क नात स िहा होन म ही कोई भारी असगवत री उस लगा

िहा बठ अजनबी स लोग उस घर रह र उसक िहा होन पर परशनवचनदह लगा रह र पता नही दकतन

ही अजनवबयो स वघर गया रा तारक यहा तक दक रवत की उस तथिीर म भी उस रवत नजर नही आ

रही री िह भी कोई अजनबी छाया री यह दवनया उसकी नही री अगर िह रवत की दवनया रही

भी हो तो वजस रवत को िह जानता रा उस रवत क वलए भी यह दवनया अनवथतति री विसगत री

उसन रजत को बहत सभलत सभलत गल स लगान की औपचाररकता की उस लगा जस िह

दकसी अजनबी को गल लगा रहा रा रवत वजतन उसक अपन पास री उतन और कही नही दकसी क

पास नही दरअसल रवत और कही नही री उसक भीतर रीhellip बस उस रवत को िही अपन भीतर ही

कही सजोय रखना रा भीतर ही खोजना रा भीतर ही तसलली करनी री दकसी और स बार नही

सकता रा रवत को रजत क दोनो कधो को हलक स दबाकर उसन धीर स कहा rdquoरक कयरrdquo और मड़ा

तो वबना पीछ दख बाहर वनकल गया

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पासपोरथ अमरीकन मरो

ओम गपता

पासपोरथ अमरीकन मरो पर रगत सहदथतानी

आज सनाऊ तमको पयार अपनी रामकहानी

छोड़ो भारत मन भयया डॉलर दख-दख ललचायो

चार-पकोड़ी जब भी दख मोह म पानी भर आयो

दीिाली पर दीप जलाउ होली पर खल रग

मौको जब मझको लगतो पीतो म भी भग

कसो होगी सरकार हमारी मोक हरदम सचता

जब भी दश पड़ सकर म कपा करो हनमनदता

पज म अब भी राम-कषण जातो मददर रोज

गपशप यारो स करतो फोकर म वमलतो भोज

योगी-बाबा आए दश स जब दन मझको जञान

आख मद क ना कछ जान करतो उनको सममान

हमबगथर अब भी नही भातो भाती मझ कचोड़ी

जसो जब भी मौका आयो रोपी िसी ओढ़ी

जाऊ दश को जब म अपन खाऊ लडड और इमरती

कहतो खद को सहदथतानी अमरीका मरी अब धरती

कहन को बहत ह भयया रोड़ को समझो काफी

बरा-भला लगा जो तमको माग नतमथतक माफी

12 47 2015 32

शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

आकाकषा ह

वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

फर च अनिाद कर इस lsquoभोगिाद स पीवड़त पविम की आतमा को अतयवधक शावत दन िालाrsquo कहा

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ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

की सीमाओ क पर मनषय कया अनभि कर सकता ह उसकी एक झलक भी ददखा दता ह उसी

औपवनषदीय जञान को महरवष िदवयास न सामानदय जनो क वलए ldquoपविि गीताrdquo म सवकषपत रप म परथतत

दकया ह िदवयास की महानता ही ह जो दक 11 उपवनषदो क जञान को एक पथतक म बाध सक और

मानिता को एक आसान यवि स परमातम जञान का दशथन करा सक ldquoपविि गीताrdquo महाभारत क

भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

ह भगिद गीता वहनदद धमथ क पविितम गरनदरो म स एक ह जो इसानो की चौहददी की सीमा रखा पर

भगिान क शरी मख दवारा इसान स कही गयी सरहदो पर चहरो की थकररनी का लखा-जोखा ह यह

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पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

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Sneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStke Anmol haSy 9` Uuml na3k-sgh Yacute jIvn ke rg Uuml kaVy-sgh Yacute ddeR-jubagt Uuml nJ_m v g_j_l sgh Yacute Aaj ka pu=8 Uuml khanI-sgh Yacute jIvn-ini2 Uuml kaVy-sgh Yacute AaTm-gujn Uuml AayaiTmk-daxRink gIt Yacute has-pirhas Uuml haSy kivta0gt Yacute j_J_bato ka islisla Uuml kaVy-sgh Yacute The Galaxy Within UumlA collection of English poemsYacute AnuwUityagt Uuml kaVy-sgh Yacute kaVy-vlti3 Uuml skln 0v spadn Yacute pUrb-piXcm Uuml AapvasI sMbiN2t Aaleq sgh Yacute bO7ar Uuml skln 0v spadn Yacute kaVy hIrk Uuml skln 0v spadn Yacute sjIvnI Uuml SvaS$y sMbN2I leq Yacute ]pin8d dxRn Uuml AyaiTmk Yacute

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Page 21: Year 12, Issue 47Year 12, Issue 47 vsu2avsu2a · राथत § में आ वबछ §ग . ... श्रराम की अन ¡कम्पा स § ह हाल ह में

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भकप का सदश

डॉ एमएल गपता ldquoआददतय

धरती हर ददन डोल रही ह कपन की बोली बोल रही ह

विनाश कर आकरोश स बदल कय भगोल रही ह

कय धरती न भकरी तानी कय वहमालय म आिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

जो ससाधन र पोषण क उनका शोषण कर डाला

ओजोन का जो किच रा उसका भी भदन कर डाला

बरहमी स कार हमन िसधरा क िन-कश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

सागर क तीरो को छीला पठार और पिथत को लीला

नददया बनी नाल और नाली नही ददखता जल वनमथल-नीला

चतािनी द रहा ह मौसम बदला भमडल का पररिश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

विजञान की सीढ़ी चढ़ विनाश का सामान बनाया

परमाण सयि द रह यातना विकीरण का खतरा मडराया

रवडएशन स आतदकत ह दवनया क सब दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

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कोई अण कोई परमाण कोई हाईडरोजन बम ल ऐठा ह

वबछी हई बारद धरा म मानि बमो क ढर पर बठा ह

हआ परमाण यदध तो वमर जाएग दकतन दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

भकषक बनकर मानि इक दज पर चोर कर रहा

परीकषण की खावतर दकतन भीषण बम विथफोर कर रहा

परकवत का सतलन वबगड़ा तो हम बन जाएग अिशष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

कदरत कहर बरपा सकती ह कभी भी आफत आ सकती ह

धरा की जरा सी भी हरकत दकतना कोहराम मचा सकती ह

धरा न जरा करिर बदली तो कछ भी न रहगा शष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

पयाथिरण क आघात पर अब तो रोक लगानी होगी

सागर पिथत धरती क सग बद करनी मनमानी होगी

धरती को जो मा मानोग सब वमर जाएग कलश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

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ि दोनो

डॉ सषम बदी

छत स फशथ तक क लब शीशो स जड़ी उस बड़ी-सी बठक म खब सारी ददन की रौशनी भरी हई

री फशथ पर वबछी सफद चादरो पर सफद िसतर पहन ढर सार लोग उस रौशनी का ही वहथसा लग रह

र कमर म घसत ही तारक को लगा जस उस शवतता म घल मौत क सदथपन और जड़ता न अचानक

उसक भीतर को जकड़ वलया ह बीचोबीच फलो की माला चढ़ी एक बड़ी-सी रवत की तथिीर री

वजसका धप दीप और गीता क शलोको स अवभषक दकया जा रहा रा रवत अब तथिीर भर री तारक

की थतबध पवनयायी आख वनथसहाय-सी रजत को खोजन लगी

रजत सारा िि लोगो स वघरा ही रहा रा उसकी मा उसक बचच और दसर ररशतदार कोई न

कोई उसक आसपास रा ही उन दोनो की आख एक दसर स दो एक बार वमली पर रजत अपन स

बाहर नही आ पाया रा तारक न दकसी तरह अपनी शोकभािना वयि कर दी री न भी वयि करता

तो कया रजत को तो खद भी अहसास होगा उसकी अतभाथिना का एक िही तो ह इस भीड़ म जो

जानता ह दक िह कयो यहा ह बाकी तो तारक दकसी स पररवचत ही नही वसिाय कछक रवत क

कलीगज क एक दो कलीगज स ही उसकी बात हई रवत क बार म ि उस पररिार का वमि मानकर

बात कर रह र य पररिार का वमि तो िह रा ही पर इसस अलग या ऊपर भी कछ रा यह शायद

रजत क अलािा और कोई नही जानता रा जबदक रजत भी परा कहा जानता ह खास तौर स िह सब

कछ जो तारक महसस करता रहा ह या जो कछ तारक और रवत क बीच म रहा या अभी भी वजसका

बहत कछ बचा रा

य तारक न बहत बार सोचा दक अब रवत नही रही तो उसक यहा जान का कोई फायदा नही

उसकी तकलीफ बढ़गी ही दफर लगा दक नही उस रजत स वमलन जाना होगा रजत भी तो उसका

दोथत ह य रवत उन दोनो क बीच न होती तो ि शायद बहत गहर दोथत हो सकत र दफर भी िह खद

को कई तरह स रजत क करीब महसस करता रा और रजत भी बहत मामलो म उसी स सलाह करक

चलता रा उस पर भरोसा करता रा जो दक उसक मन क दोथती क भाि को ही जताती री चदक

तारक की विशषता ददल क रोगो म री िह रवत क हारथअरक क बाद स उसस अकसर रवत क बार म

सलाह लता यहा तक दक रवत स भी कोई वशकायत होती तो तारक स ही कहता दखो न इसका

कोलथराल इतना हाई चल रहा ह और मडम चीज मीर सभी कछ खाती ह अभी रथतरा ल चलो परा

का परा थरक गरक जायगी कस कर यह तो खद को नकसान पहचान स बाज नही आतीrdquo और तारक

तब ररका दता कसी डाकरर हो तम रवत मरीजो को उपदश दती रहती हो और खदhellipदफर उसन

खद ही एक विशषण गढ़ा रा रवत क वलए lsquoनानकपलायरrsquo यानी दक जो कछ भी कहा जायगा उसका

विरोध ही करगी रवत और दकसी िजह स नही बवलक विरोध करन क वलए विरोध

तब रवत और भी तिर चढ़ाकर बोलती rdquoरजत तो पहल ही मर पीछ पड़ा रहता ह अब तम

भी इसी स वमल गय हो िाह जी िाह दोथत दकसक हो तम मर या रजत कrdquo

तारक तब चप रह जाता रा रजत भी कछ नही कहता एक वपरय अवपरय सतय

शायद रवत भी इसीवलए कहती री दक तारक तब लाजिाब हो जायगा कयोदक रवत जानती ह दक जो

िह तारक क वलए ह िह और कोई नही हो सकता और रजत को भी इसका अदाज ह इसी स रजत न

शर म चाह दकतना विरोह दकया हो दकतना लड़ाई झगड़ाhellip दफर धीर-धीर मान वलया रा इस ररशत

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को रवत क वलए ही अगीकार कर वलया रा तारक को भी रवत न ही उस बतलाया रा जब रजत न

उस बाहो म भरकर कहा रा rdquoइतना पयार करता ह तमह दक यह भी थिीकारन क वलए राजी हrdquo

एक हक-सी उठी री तारक क भीतरhellip वजस इतना पयार वमला होhellip इतनाhellip िह इस तरह स

उन दोनो की वजनददगी को ही सना करक रखसत हो ली तारक क मन म गथसा भी आयाhellip शायद

अपनी सहत का धयान रखती तो कछ और जी जाती उन दोनो स ही तो चार-पाच साल छोरी री िह

जी भी सकती री पर अबhellip और तारक न लबी सास भरी

रवत की एक कलीग बता रही री rdquoपरसो तो काम पर आयी हई री रवत म सोच भी नही

सकती री दक इतना भारी थरोक हो सकता ह दक एक ही लपर म ल जायhellip मझ तो विशवास ही नही

होताrdquo तारक को भी विशवास नही होता रा उसी ददन सबह रवत न उसस फोन पर बात की री और

उसस मजाक दकया रा rdquoमर जनदमददन पर आओगrdquo

दरअसल सारा झगड़ा कछ साल पहल रवत क जनदमददन को लकर ही शर हआ रा िनाथ शायद

रजत को उन दोनो क बीच बढ़त ररशत की तवनक खबर न लगती रवत न उस बतलाया रा दक उसक

जनदमददन पर िह और रजत आमतौर पर शाम को बाहर दकसी बदढ़या स फर च रथतरा म खाना खान

जात ह तब तारक न कहा रा rdquoठीक ह तो लच तम मर सार लनाrdquo

रवत मान गयी री उसन उसी ददन रवत क शहर पहचन क वलए फलाईर भी बक करिा ली

री पर जब ठीक जनदमददन आनिाला रा तो रवत न उस बतलाया रा दक रजत को ठीक नही लग रहा

मरा तमहार सार लच पर जाना िह पछ रहा रा दक इतना इमपॉरर कस हो गया यह आदमी दक

तमको उस जनदमददन पर जरर वमलना ह

rdquoतमन कया कहाrdquo तारक वजजञास हो उठा रा

rdquoयही दक तमको दकसी काम स शहर म होना रा इसवलए लच पर वमलन की बात की इस पर

उसन कहा दक अगल ददन वमल लो जनदमददन िाला ददन तो उसी क वलए हhellip कोई और कयोrdquo

दफर िह बोली rdquoइसी पर उस शक हो रहा ह दक यह कोई आम दोथत नहीhelliprdquo

तारक न जोड़ ददया रा rdquoपरमी हrdquo

rdquoहा यही शक हो रहा ह उसrdquo

rdquoतो ह या नहीhelliprdquo

rdquoशायद होhellip यही मसीबत हrdquo

तारक न कहा रा rdquoअब तो ररकर ली हई ह म तो आऊगा ही तम वमल सको तो वमलना िनाथ

न वमलना चाह पाच वमनर क वलए या कॉफी क वलए भी आ जाओगी तो मर वलए िही काफी होगा

तमहार जनदमददन पर तमह दख भर लrdquo

rdquoतम भी कमाल क रोमाररक होhellip पर सच कह तो म भी तमस वमलना चाहती ह उस ददनhellip

कछ न कछ तो जगाड़ना पड़गाrdquo

rdquoमर वलए तमहारा जनदमददन मरी वजनददगी का बहत अहम ददन हhellip समझीrdquo

एयरपोरथ पहच कर तारक न फोन दकया रा रवत बोली री rdquoरजत कह रहा ह तम हम वडनर

पर जॉयन कर लोrdquo

तारक बहत हरान हआ रा पर रवत न फोन रजत को पकड़ा ददया रा तारक एकदम सकर म

पड़ गया रा उसन खद को बचान की कोवशश की rdquoसॉरी म तो यहा आया रा तो सोचा रवत स वमल

लगा पर इस तरह आप लोगो क परोगराम मhelliprdquo

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रजत न जोर दकर कहा रा rdquoनही भाई बहत तारीफ सन रहा ह बीिी स जरा हम भी तो

वमल आपस आप चाह तो घर पर आ जाईए या दफर सीध रथतरा पर वमलगrdquo

rdquoपर आप लोगो का तो वडनर पर सार जान का कायथकरम रा नrdquo

rdquoआप लच पर फरी ह तो लच पर वमल लत ह य मझ तो वडनर ही पसद ह जसा आप कहrdquo

रजत वबलकल दोथताना ढग स बात कर रहा रा एक पल को उसकी रोन म कछ तनाि तारक

को महसस हआ रा पर अगल ही पल आिाज दफर सहज हो गयी री तारक मान गया पर रकसी लकर

पहल होरल म सामान छोड़ा और इस दौरान खद को मानवसक तौर पर तयार भी करता रहा दक कस

पश आना ह अपन रकीब स दखा जाय तो ररशता रकीब का ही रा बाकी ि दकतन भी सभय या

समझदार इसानो की तरह एक-दसर स बताथि कर आवखर ि तीनो सममावनत पश क र तारक हारथ

थपशवलथर रा तो रजत अगरजी सावहतय का परोफसर और रवत सायकायररथर इसानी मन की

कमजोररयो को समझना मनोरोगो का इलाज करना रवत की विशषता तो री ही पर इसानी आकषथण

एक दसर क परवत सखचाि या ऐस ररशतो को समझन की सथकवत तो कही तीनो म ही री

रजत इस बात को खब समझता रा दक दकसी भी औरत क वलए दकसी दसर परष क परवत

सखचाि हो जाना बहत सहज रा िही एक पवत और पतनी स परम करन िाल क रप म िह रवत क इस

वयिहार स ईषयाल भी हो उठता रा एक सभय इसान क नात िह ईषया को दबा कर तारक क परवत भी

वमिित वयिहार करना चाहता रा पर िही उस रवत क वयिहार स कि पहचता रा दक िह उसक

अलािा भी दकसी दसर परष को चाह सकती ह वजसस उसक मन म आकरोश और वितषणा का भाि

उठता कभी िह अपन को उदार बना कर यह कहना चाहता दक रवत अगर दकसी दसर को चाहती ह

तो बशक उसको भी कयो न पाय सार ही जब करोध होता तो एक तरह स जस िह रवत को सजा दन क

वलए कह डालता rdquoतम जाओ दोनो सार रहोrdquo पर जो पीड़ा िह उसम सह रहा होता िह रवत और

तारक दोनो क वलए ही असहय होती

रवत न कहा रा rdquoकया तारक और म दोथत नही हो सकत और इतन दोथत हhellip एक िह वयवि

वजसस बात करक मझ खशी वमलती ह िह दोथत कयो नही बन सकता वसफथ इसवलए दक उसक मन म

तीखी भािना ह मर वलएhellip या शरीरो का आकषथण भी हhelliprdquo

रजत तब तकथ स सारी बात को समझन समझान की कोवशश करता हा करत-करत कह दता

rdquoऔरत आदमी म दोथती हो ही नही सकती कयोदक जहा शरीरो का आकषथण हो िहा दोथती जसा

वनषकपर भाि कस पनप सकता हrdquo तब रवत दोथती का एक और पकष पश करती rdquoतमहार कहन का

मतलब तो िही ददकयानसी बात हई दक शरीर पाप का मल ह जबदक तम खद ही यह पहल कह चक

हो दक शरीरो का मसला हल हो जाय तो औरत मदथ बहत खबसरत दोथत हो सकत हhellip शरीर को

अहवमयत दी कयो जाय शरीर वमल जान स उनका दोथती म बाधा बनन का मसला खतम हो जाता हrdquo

रजत रवत की बात मान भी जाता रा पर रवत दफर तारक को यह भी बताती री rdquoिन कार

रक वहम फॉर गरारड कल को िह अपना कोई नया तकथ द दगाrdquo

शायद इसी स तारक भी अचानक वहममत हारन लगा रा कस सामना करगा िह रजत का य

िह रजत स एकाध बार पहल वमल चका रा पर तब उसको यह अदाजा नही रा दक रवत और उसक

बीच कछ रा जबदक तारक तब भी कछ आतमसजग-सा हो रहा रा पर कछ वमनरो की मलाकात को

सभाल लना कोई बड़ी बात नही री और य भी रजत उस भला आदमी लगा रा यह भी सोचा रा दक

अगर रवत उन दोनो क बीच न होती तो यह वयवि उसका दोथत हो सकता रा य रवत क होन क

बािजद अतत ि दोथत बन ही पर इस दोथती का तानाबाना िसा न रा जस खावलस दोथती का होता

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ह इसम रवत क रश बन हए र जो एक और ही रगत वलए र और िह रगत तारक को बहत पयारी री

उस दोथती स जयादा

तारक न होरल पहच कर फोन कर ददया रा दक वडनर पर वमलना ही ठीक रहगा और िह

अपना काम इस दौरान कर लगा रजत आसानी स यह बात मान गया और कहा दक िह सडरकस पर

पहल घर पर आ जाय उसक बाद रथतरा खाना खान चल जायग

शाम को जब िह चलन लगा तो फोन बजा रा दसरी ओर रवत री हलो कहत ही रवत न

कहा rdquoसनो तम मत आना मर घर म बहत रशन चल रही हrdquo इसस पहल दक िह कछ कहता रवत न

फोन वडसकनकर कर ददया

रात को कोई फलाईर नही जाती री िनाथ िह उसी िि शहर छोड़ क चला जाता

आध घर बाद ही घरी दफर बजी रवत पछ रही री दक आ रह हो तारक बौखला गया दक आवखर हो

कया रहा ह कया यह रवत क मन की उलझन ह या दक रजत कीhellip या दोनो कीhellip या रवत वसफथ रजत

की उलझन को वयि कर रही री बोली री rdquoजलदी आ जाओ हम लोग इतजार कर रह हrdquo

िह पहचा तो रवत न अकल ही उसका थिागत दकया रा िह जानता रा दक दोनो बचच कालजो

म ह पर रजत काफी दर तक बठक म नही आया तो तारक हरान हआ रवत बोली rdquoिह नहा रहा हrdquo

दफर मथकरा कर जोड़ा rdquoशायद हम दोनो को कछ िि दना चाहता हrdquo

तारक तब कछ निथस हआ रा उस आग बढ़कर रवत को चमन का हौसला नही हआ उस लगा

दक रवत भी सहज नही री जस दक आम तौर पर होती ह पर उसन कछ कहा नही िह खद भी तो

सहज नही हो पा रहा रा जस लड़की क बाप क घर म शादी का परथताि लकर जा रहा हो कछ कछ

इसी तरह का महसस हो रहा रा िही डर कर परचा करना रा दक इमतहान म फल न हो जाय

रजत न कमर म आत ही बड़ तपाक स हलो दकया कछ औपचाररक-सी बात की दफर उसस

सडरक पछा और दकचन म बफथ िगरह का इतजाम करन क वलए दफर स गायब हो गया तारक को लगा

दक सहज होन की बहत कोवशश क बािजद रजत बहत असहज ह

ववहथकी का घर लत हए तारक न ही रजत स उसक काम क बार म पछना शर दकया बात

कही जा नही रही री तभी रवत एक नई दकताब की चचाथ करन लगी वजसका ररवय सबह क अखबार म

छपा रा तारक न हिाई जहाज म ही उसक बार म पढ़ा रा दफर तो बातचीत खब गरमागरम होन

लगी रजत न दवकषण एवशयाई अगरजी लखको क बार म अपन विचार झाड़न शर कर ददय यहा तक

दक रवत न अचानक घड़ी दखी तो पता चला दक रथतरा की ररजिशन का िि हो चका रा रजत न

रथतरा को फोन दकया दक कछ वमनर लर पहचग और तारक को बोला दक जलदी स सडरक खतम कर ल

या गाड़ी म ही ल चल दोनो न दो तीन सडरक चढ़ा रख र मौज-सी भी आयी हई री रजत ही कार

चला रहा रा और तारक पीछ िाली सीर पर बठा रा अचानक रजत कछ नश और कछ अपनी धन म

बोला rdquoतो तम मरी बीिी स पयार करत होrdquo

तारक भौचक-सा हो गया य ही बठा रहा जस रजत की बात को सना न हो या िह गभीरता

स लन लायक न हो रजत न अपनी बात को सिाल बनाकर दबारा पश दकया rdquoकयो तारक मरी बीिी

स पयार करत हो या नहीrdquo

तारक न कहा rdquoहाrdquo और चप कर गया उस लग रहा रा िह जो भी जिाब दगा खतर स खाली नही

पर यह जिाब सच रा तो सच बोल कर ही मार खायी जाय उस दकसी लड़की क वपता स हार मागन

नही जाना पड़ा रा आज यह भी सही

rdquoतम भी पयार करत हो िह भी करती ह तो तम दोनो सार कयो नही रहतrdquo

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तारक बोल पड़ा रा rdquoयह इतना आसान नहीrdquo

रजत इस पर आकरमण करता-सा बोला rdquoकमाल ह पयार भी करत ह और वजममिारी भी नही

वनभाना चाहतrdquo तारक को महसस हो रहा रा दक रजत कह तो कछ रहा ह और पहचाना कछ और

चाहता ह दफर भी िह जिाब तो उसी बात का द सकता रा जो दक पछी जा रही री यह कह कर

उस नाराज भी नही करना चाहता रा दक रजत वसफथ अपन भीतर क आकरोश आतक और आग को

आिाज द रहा रा बोला rdquoयह बात नही म आज भी रवत क सार वजनददगी शर करन को तयार ह

जहा तक म जानता ह रवत अपन शहर को छोड़ कर और कही नही जायगी न िह तमको छोड़न को

तयार होगी जहा तक म रवत को जानता हhelliprdquo

रवत चपचाप अपन पर अकश लगाय दोनो की बात सन रही री न तो िह रजत क पकष म

कछ बोलना चाहती री न तारक क पकष म ही बोल सकती री दफर भी दोनो क बीच तारतमय वबठाय

रखन की वजममिारी भी उसी की री और िह समझ नही पा रही री दक दकस तरह इस बातचीत को

सीमाय लाघन स बचाया जाय ऊपर स उस डर लग रहा रा दक आिश म रजत कही रककर न मार द

रथतरा बहत दर रा भी नही बात पर चरम पर चल रही री दक रथतरा आ गया रवत न रोका rdquoरजत

पारककग ढढ़ो रथतरा आ गयाrdquo रथतरा क सार ही पारककग गराज म गाड़ी छोड़ कर तीनो अदर चल गय

िरर न उनको मज पर वबठाया और सडरक क वलए पछा तरा मनदय लाकर ददय तीनो क तीनो उस मज

पर इस तरह खामोश और भर बठ र दक मनदय म वसर डबोना एक राहत बन गया रा तीनो न अपन-

अपन आडथर ददय पर बात कछ बन नही रही री हर कोई कछ भी कहन म जयादा ही सतकथ हो रहा रा

अचानक रवत बोली rdquoरजत तमको इतनी जयादा तकलीफ री तो तमन मना कयो नही कर

ददया म तो तारक को कह चकी री दक आज सार खाना नही होगा तमही न जोर ददया दक जरर

बलाओ अब इस तरह कयो बताथि कर रह होrdquo

रजत और भड़क गया rdquoम तो वसफथ यह कह रहा ह दक तम लोग एक-दसर को पयार करत हो

तो म कया कर रहा ह यहा तम जाओ एक दसर क सार रहोrdquo

दोनो की आिाज ऊची हो रही री और दसरी मजो पर बठ लोगो की वनगाह इस ओर उठ आयी री

तारक न धीर स सझाया रा rdquoमर खयाल स हम य बात यहा नही करनी चावहएrdquo सहसा रवत

न होश म आत कहा rdquoहा इतन बदढ़या रथतरा म खाना खान आय ह कछ खान पर भी तो धयान दhellip

दफर आज मरा जनदमददन ह आई िार र हि ए गड मीलrdquo

दफर भी खान पर तीनो म स दकसी का धयान नही लग सका तीनो औपचाररक-सी बात म लग

गय र तारक न ही शहर क निीनतम रथतराओ क बार म ताजा पढ़ी समीकषा का वजकर छड़ ददया रा

रजत न कार स जब उस होरल छोड़ा तो तारक न उपर कमर म आकर सडरक लन क वलए कहा

पर जसा दक िह अपकषा कर रहा रा रजत न दर होन का बहाना बना छटटी माग ली री रवत तब भी

कछ नही बोली री शायद उस डर रा दक उसका कछ भी कहना रजत क वलए घाि पर नमक वछड़कन

जसा होगा या उसकी कोई भी बात का गलत मतलब वनकाल कर रजत भड़क सकता रा य दर हो भी

चकी री

पर तारक यह भी जानता रा दक रवत एक नबर की वजददी री जो उस चावहए रा चावहए ही

रा उस रोका नही जा सकता रा िह ऊपर स मान जायगी पर भीतर स कभी माफ नही करगी

शायद इसी स रजत भी वबगड़ी हई लाड़ली बरी की तरह रवत की हर चाह या माग को विरोध करक

भी अतत मान जाता रा

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लौर आन क दो चार ददन बाद ही उसक फोन पर रवत न सदश छोड़ा रा rdquoतमहारा आना ठीक

नही हआ सॉरी तमह बलाकर भी वमल नही पायी अब लगता ह कभी नही वमलगी लर अस थरॉप

ददस वहयर पलीज मझस सपकथ मत करनाrdquo

तारक बहत ददन परशान घमता रहा रा पर रवत को फोन भी नही दकया उसन मना जो कर

डाला रा उस फोन करत हए तारक को लगता दक िह खद को उस पर लाद रहा ह और यह वथरवत

उस कभी गिारा नही री हर ददन दकसी जिालामखी-सा लाि स लदा हआ गजरता अदर ही अदर

सब तप रहा रा

महीन भर बाद रवत न फोन दकया रा rdquoगथसा हो न मझस तमस माफी भी नही माग सकीrdquo

उसकी तो कोई जररत नहीrdquo

दफर भी सोचा रा तमस कभी बात नही करगी इसी स तमको सपकथ करन स मना दकया

रा रजत को भी यही मालम ह दक तमस ररशता तोड़ ददया ह पर अब मझी स बात दकय वबना रहा

नही जा रहाrdquo

रजत को मालम ह मझस बात कर रही होrdquo

िह बहद गथसा ह तमसhellip जस दक सारा दोष तमहारा होhellip दक तमन उसकी बीिी को फसा वलयाrdquo

ि इसी तरह जब मौका लगता बात कर लत तारक क ददल ददमाग पर रवत ही छायी रहती

िह ऐस ही पलो क दौरान जीता जब दोनो क बीच कछ सपकथ होता बाकी क पल उन पलो क इतजार

म गजरत

इस बीच रवत को ददल का दौरा पड़ा रा घबराकर तारक को फोन कर डाला रा रजत न

तारक आया तो रजत उस अपनी गाड़ी म सार अथपताल ल आता जाता रहा दोनो म एक दोथती का

नाता तभी बना रा दवनया जहान की बात रजत न उस घर पर ही ठहराया रा तारक तीन ददन बाद

चला गया रा िावपस पर दोनो की फोन पर बात हो जाती रवत अथपताल स िावपस आ गयी री

धीर-धीर िह सामानदय होकर िावपस अपना काम सभालन लगी

रवत का जनदमददन दफर स आनिाला रा रवत न उस कहा रा rdquoरजत अपन आप ही बोल रहा ह

दक तम आ जाओ इस बार मरा जनदमददन मनान बोलो आओगrdquo

तारक परानी बात याद करक घबरा गया रा rdquoनही दफर स उसक भीतर सब घमड़न लगगाhellip

सबको तकलीफ होगीrdquo

यह सच भी रा रजत कभी तो उसक परवत बहत वमिित हो जाता िही अचानक गथसा ईषयाथ

उभर आत और िह अकसर बरखी ददखाता अचानक तारक को ऐसा महसस हआ जस रवत उसस खद

यह सब कह रही हो पल भर को िह भल ही गया दक रवत क ही अतयवि कमथ म िह शावमल हआ ह

और दरअसल उसक यहा आन की एक िजह यह भी ह दक िह रवत को वलख अपन खत िावपस ल

जाना चाहता ह उस डर ह दक कही ि खत रजत क हार न पड़ जाय

तारक रवत क सार काम करन िाली इस मवहला डॉ लोपज स पहल वमला हआ रा इस भीड़

म एक िही जान-पहचान की री तारक का मन हआ उसस पछ दक कया िह रवत की दराज म उसक

कागजात पर नजर मार सकता ह तारक को अदाज रा दक उसक खत िह दफतर की मज की दराज म

रखती री पर िह जानता रा दक ऐसा करना ममदकन रा नही आवखर तारक को कस हक पहचता रा

रवत की दराज खलिान का िह तो एक पररिार क वमि की हवसयत स िहा रा रजत ही कह सकता

रा दखा जाय तो ि लोग खद भी रजत स ही कहग दक रवत का सामान िह ल जाय तब तो रजत की

आख जरर उन पर पड़गी तब शायद उसको बरा लगगा दक रवत क सार तारक का एक अपना ररशता

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रा उन तीनो की आपसी दोथती क बाहरhellip रजत को बतहाशा चोर लगगी अब जबदक िह रवत स

जिाबतलबी भी नही कर सकता रवत अब कोई सफाई नही पश कर पायगी तारक क हक म कछ भी

नही कह सकगी दकसी तकथ स रजत को लाजिाब नही कर पायगी नही िह ऐसा नही कर सकता न

यह रवत क परवत सही होगा न रजत क परवत उस दकसी न दकसी तरह स खत पान ह

राथत म आत हए हिाई जहाज म तारक जब लगातार रवत क सार की अपनी वजनददगी क

गजर पल दहरा रहा रा बार-बार उस धयान आता दक जब स रवत को ददल का दौरा हआ रा िह

उसस कहना चाहता रा दक उसक खत विनि कर द एक बार उसन बात उठायी तो रवत बोली rdquoकयो

तमहार खत मर दफतर की दराज म सफ पड़ हrdquo

शायद िह वबना कह यह भी समझ गयी री दक तारक का इशारा दकस ओर ह तभी बोली

दखो जब तक म वजनददा ह म उनको फाड़ कर न तो फ क सकती ह न जला सकती ह एक बार मर गयी

तो कया फकथ पड़ता ह दक कोई कया करगा उनक सार तमको तो दफकर होनी नही चावहए अब तो ि

मरी अमानत हrdquo यह बातचीत दो एक महीन पहल की ही होगी तारक न सोचा रा बात कभी दफर

उठायगा पर उसस पहल हीhellip

तारक को भी तब यह अदाज नही रा दक रवत क अलािा रजत स भी उसका नाता रा रवत क

जान क बाद िह खद को रजत क बहत करीब महसस कर रहा रा और उस लगा दक उसक खत रजत

को उसस दफर दर धकल सकत र पर िह दकसी तरह भी रजत को खोना नही चाहगाhellip रजत जस स

रवत का ही एक वहथसा राhellipउसन दखा लोगो स वघरा रजत का चहरा बहद वनचड़ा हआ रिहीन और

सखा-सा लग रहा रा रात भर सोया नही होगा इसवलए आखो क नीच कालापन उतर आया रा आख

काफी अदर को धसी हई री तारक को लगा दक िह शायद रजत स बहतर हालत म ह दफर उस रशक

भी हआ रजत अपन गम का खला इजहार कर सकता हhellip तारक को यह सविधा नही री िह दकसी

उजड़ आवशक क रप म इस महदफल इस मौत का शोक करन िालो की महदफल मhellip अपना असली

चहराhellip अपना आवशक का चहराhellip नही ददखा सकता रा अचानक उसकी आख भर आयी अपन खोन

की वशददत क अहसास स

रवत क िाकय उसक कान म सरसरान लग जबस उस ददल का दौरा पड़ा रा िह जीिन की

कषणभगरता या इसान क नाचीज होन क अवथततििादी दशथन को बहत बघारन लग गयी री शायद

अपन जान का अहसास उस कही बहत गहर उदास कर जाता रा पर िही िह उस जान को एक

अिशयभािी अकारय सतय की तरह थिीकार करक उसस समझौता भी करन लग गयी री एक ददन

उसन हडसन नदी क दसर वसर स मनहरन की ओर दखत हए कहा रा rdquoदखो तो इन छोर-छोर वडबबो

म दकतन लाखो लोग रहत ह दकतन छोर ह हम लोग इतनी तग जमीन पर दकतनी बड़ी तादाद म

समा जात ह एकदम हजारो की सखया म सार-सार जड़ कीड़ो की तरह दफर भी अपन आप को

दकतना बड़ा मानत ह राजनीवत धमथ और नवतकता की तवखतया वचपका कर दकतना बड़ा होन का

भलािा दत रहत ह खद कोrdquo

रजत को रवत की इसान को नाचीज करार दन िाली बातो स हमशा बहत वचढ़ छरती री

बोला रा rdquoधमथ नवतकता जीिन क सतय ह इनको तम भलािा दन िाली चीज कस कह सकती हो

इसान इसीवलए तो बाकी जीिो स अलग ह दक िह सोच सकता हrdquo

rdquoऔर सोच क धरातल पर हर चीज को गलत या सही सावबत कर सकता ह नवतकता को गढ़

सकता ह या परा सतयानाश कर सकता हhellip ठीक ह मझ तो उसम कोई नकसान नहीrdquo

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हा नकसान दकसी का ह तो मरा ही रजत न कहा तो तारक झर स बोल पड़ा रा rdquoनकसान

तो तब होता जो म उस भगा क ल जाताrdquo

रजत न सजीदगी स कहा rdquoअब इसका ददल बर गया हhellip तो आधी सपवतत तो लर ही गयी न

तम भगा ल जाओ तो भी फकथ नही पड़गा यह आधािाला वहथसा तब भी यही रहगाrdquo

सचमच रजत का यह विशवास सही रा रवत और उसक ररशत की शरआत क ददनो म भािना

क परिाह म बहता तारक रवत क सार एक नयी वजनददगी क दकिाड़ खोलन की बात सोच पाया रा पर

जलद ही उस अहसास हो गया रा दक रवत कही बहत गहर जड़ी री रजत क सार दक िह कभी उस

ररशत को तोड़गी नही य रजत भी शर क ददनो म भीतर स वहल गया रा यह झरका दक रवत रजत

को छोड़ दकसी और को मन म ला सकती ह उस बहत दर जा फ क आया रा दफर रवत न खोय विशवास

को िापस लौरा ददया रजत अपन आध नकसान क सार धीर-धीर शायद समझौता करना सीख गया रा

तारक को लगा दक िह आध क सार समझौता करना सीख गया रा दफर तारक को लगा दक

िह आध क सार समझौता नही रा रजत क भीतर कही पर का भरोसा भी रा जस दक रवत को वसफथ

एक बदलाि चावहए रा जो तारक रा िनाथ िह परी रजत की ही री कयोदक मौका आन पर रजत

अपना परा हक जतान स चकता नही रा हमशा यही मानता रा दक पहला हक उसी का ह तारक

हमशा बाद म आयगा जस दक पर भर लन पर बचा हआ भोजन दकसी को भी ददया जा सकता हhellip

कछ ऐसा रख

पर रवत बचा हआ भोजन नही रीhellip दकसी तरह स भी उवचछि या अिवशि नही जो उसन

रवत म पाया रा िह पहल वजनददगी म कभी नही वमला रा रवत न उसकी पहचान करायी री

पररपणथता स रवत को जानना ही जस उस सपणथता को छना रा शायद रजत न भी रवत म ऐसा कछ

पाया रा जो आम औरतो स अलग रा रवत शादी क इतन बरस बाद भी उस अपन म उलझाय री और

िह उसस मि नही होना चाहता रा रवत म बाहरी खबसरती क बािजद वयवि क ददमाग को भी

उलझाय रखन का जो गण रा उसस सच म जो भी पास आता और सखचता जाता रवत म भरपर

पयार लन की चाह री तो भरपर दन की कषमता भी इसी स अभी भी उसस जी तो नही भरा रा रजत

का शायद िह ऐसी औरत री जो हमशा वनत निीन होती रहhellip सौदयथ की एक पररभाषा यह भी तो

दी गई ह दक जो वनत नतन होता रह िही सौदयथ ह रवत भी कभी परानी नही पड़ती रोज कछ नया

होता ह उसक पासhellip कोई नया खयालhellip कोई नई सझhellip कोई नई उकसान उलझान िाली बातhellip

शायद इस ददमागी सौदयथ कहना होगाhellip जो कछ भी उसम राhellip बस खीचता रा अपनी ओरhellip मोहता

राhellip शायद कया पर उगली धरना उस पररवध म बाधन की भोडी कोवशश होती

कछ दवदव उठता तो रवत रजत क ही हक म बोलती री रजत क वहतो को सरवकषत कर लन क

बाद ही िह तारक को उसका हक दती तारक को खीझ भी होती दक रजत उसक जीिन म चदक पहल

आ गया रा इसीवलए हर चीज म ही पहला हक उसी का बनता ह पर उसन रवत स अपनी यह

मनवथरवत कभी जावहर नही होन दी री वपछल साल िलनदराईन ड पर ऐसा ही तो हआ रा दरअसल

दोनो को अदाज नही रा दक उस िीक ड पर िलनदराईन ड पड़ता रा तारक को दकसी काम स रवत क

शहर आना रा और दोनो न वमलन का कायथकरम बना डाला रा रजत स रवत की बात हई होगी तो

उसन भनकर कहा रा rdquoतो िह तमहारा िलनदराईन ह जो उस ददन आ रहा हrdquo रवत क कहन पर दक उस

तो याद भी नही रा िह बोला रा rdquoम नही मान सकता दक तारक न य ही आन का बनाया ह इस

िीक ड परrdquo रवत न तारक स सारी बात बतलायी तो उसन सोचा रा िह खद फोन पर रजत स कहगा

दक उस सचमच याद नही रा पर दफर बात बढ़ान न दन क वलए चप रह गया रा और जान का

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परोगराम भी थरवगत कर डाला रा तब उस दो बात तकलीफ दती रही री एक तो यह दक रजत हमशा

उसक सामन परारवमकता ल जायगा दसरी यह कड़िी सचचाई दक रवत कभी भी उसकी जावहरी वजनददगी

का वहथसा नही बन सकती री उसकी कमर म हार डाल कर िह कभी दकसी स यह नही कह सकता

रा रवत मरी हrdquo तब उस बहद रशक होता रजत स कया रजत को सचमच अहसास ह दक रवत तारक

क वलए कया ह दक िह उसकी वजनददगी का कनदर उसकी वजनददगी का अरथ बन चकी ह यह कोई हलका-

फलका ठरकपन नही उसकी वजनददगी का रशा-रशा गर गया ह रवत स शबद म अरथ की तरह समायी ह

रवत उसक अवथतति म इस गरन म िह खद ही घरता रहगा हमशा

अब रवत नही ह तो िह घरन और भी कस रही ह उस कया अब िह रजत स कह पायगा

अचानक उसका मन हआ दक रजत स कह द rdquoतमको मालम ह दक मझ सचमच पता नही रा दक उस

ददन िलनदराईन ड रा िनाथ ऐसी जरथत न करताrdquo दक िह जानता हhellip अचछी तरह समझता ह अपनी

और उसकी ररीररी की पररवधयो को दक रजद शायद कभी जान न पायगा पर उसन हमशा एक दोथत

की तरह रजत का रजत की जररतो का खयाल रखा हhellip वसफथ ऊपर-ऊपर स सामावजक उपचार की

तरह नही भीतर स दकसी ददली ररशत सhellip दफर िह ररशता चाह रवत क जररय स ही बना हो

हो सकता ह रजत यह सब महसस करता हो या न भी करता हो पर उसक चहर पर भी वमिता

का थिागतमय भाि हमशा ददखा ह तारक को वसिा उन कषणो क जब दक सचमच उन दोनो क बीच

lsquoररररोररयलrsquo झगड़ हए तब भी ि शायद इसानी आचार या परथपर सदभाि की सीमाओ को कभी

लाघ नही पर दफर भी तारक का रवत क सार का ररशता ऐसा नही दक रजत क सार वजस बार सक

रवत उसकी हथती का अवभि वहथसा ह िह कोई और कस हो सकता ह रजत रवत नही हो सकता

चाह उसक दकतन ही करीब रहा हो उस दकसी न दकसी तरह स अपन खत पान ही ह लदकन कस

और यही तारक बार-बार उलझ जाता ह अपनी यह परशानी िह दकसी क सार बार नही सकता

रजत स तो कतई नही खत अगर सचमच रजत क हार पड़ गय तो

लदकन रवत न यह भी तो कहा रा दक अगर िह नही रही तो कया फकथ पड़ता ह पर रजत

सचमच खत पढ़ ल तोhellip शायद उसकी पीड़ा पर तब करोध और घणा का कोई विकराल भत हािी हो

सकता हhellip हो सकता ह दक खत पढ़कर रजत रवत को खद स वछरक द लदकन उसस कया तब शायद

रवत और भी तारक क करीब आ जाय और भी उसकी अपनी हो जाय वसफथ उसी की समची एक रात

पहल उस ऐसा ही कछ सपना आया रा रवत की मौत की खबर क बाद यही उसका याद रह जानिाला

सपना रा िह रवत की अतयवि म गया ह और एक अधरा-सा बठकनमा कमरा हhellip कमर म कछ

कागज वबखर पड़ हhellip िह एक कागज उठाता हhellip िह उसी का रवत को वलखा खत हhellip और कई लोग

उसक आसपास ह और िह सोचन लगता ह दक कही इन लोगो न भी तो उनदह नही पढ़ाhellip तभी रजत

का चहरा उसकी ओर बढ़ता ह और िह कागज वछपान की तरकीब सोचन लगता हhellip इसी उधड़बन म

उसकी आख खल गयी री तो वजथम पसीन म नहाया हआ रा

एक रजत ही यहा उसक सबस करीब हhellip और रजत ही उस अजनबी-सा लगन लगा ह अब

तक उसका रवत का सदभथ रा अचानक उस सदभथ स करकर न होन जसा हो रहा ह तारक को अजीब-

सी मानवसक दरी और भयकर अकलापन-सा महसस हआ िह यहा आया ही कयो रा रवत की

नामौजदगी म दकतना बमानी ह उसका यहा होना रजत को भी दकतना दफजल-सा लग रहा होगा

उसका यहा उपवथरत होना वजन लोगो स वघरा ह ि तो सचमच उसक अपन हhellip तारक तो दर स भी

अपना नहीhellip मत स तारक का जो भी नाता रहा होhellip उसक दकसी दसर स तो नही रा उसक कॉलज

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कामो स लौर बचच भी तारक को पहचानत नही र तारक न ही उनकी शकलो और वयिहार स अदाज

लगाया रा और हॉलि म लगी तथिीरो स उनदह पहचान पाया रा

तारक क पास रजत स कहन को कछ नही रा उसका कछ भी कहना रजत को खल सकता रा

उलर तारक को लगन लगा दक रजत शायद सोच रहा हो दक अब कयो जखमो को याद ददलान आ गय

हो कछ भी हो तारक न उस पीड़ा तो पहचायी ही री कया अब उसका कछ भी करना रजत क कि को

कम कर सकता रा उसन वनगाहो स ही अपना दख बयान कर ददया जो शायद रजत न थिीकार भी

वलया राhellip शायद एक औपचाररकता की तरह जस िह दसर बहत स जमा लोगो की शोकावभवयविया

थिीकार रहा राhellip उसस कछ अलग नही शायद तारक का िहा होना ही रजत को खल रहा हो पर

िि की नाजकी की िजह स िह कछ कहना न चाह रहा हो तारक एकदम परशान-सा उठ खड़ा हआ

कछ लोग रजत क गल लग रह र शायद उसस विदा लकर जा रह र तारक न सोचा िह अब

कहगा दक रवत क पास कछ उसक जररी कागजात र अगर रजत उस कागजो िाली जगह पर ल चल

तो िह खद ही दख लगा तारक यि की गवत स रजत की ओर बढ़ा रजत जस दकसी को दख कर भी

दख नही रहा रा उसकी आख दकसी शनदय पर ररकी री तारक को लगा उन लोगो क वघराि म

वजसम उसक अपन अजीज दोथत और ररशतदार र रजत न उस कोई विशष लकष नही दकया तारक क

भीतर अजीब सनापन-सा आ वघरा लगा जस रवत रजत म कही नही री वसफथ भरम-सा हआ रा उस

उसक िहा होन का जस दक उसक रवत क नात स िहा होन म ही कोई भारी असगवत री उस लगा

िहा बठ अजनबी स लोग उस घर रह र उसक िहा होन पर परशनवचनदह लगा रह र पता नही दकतन

ही अजनवबयो स वघर गया रा तारक यहा तक दक रवत की उस तथिीर म भी उस रवत नजर नही आ

रही री िह भी कोई अजनबी छाया री यह दवनया उसकी नही री अगर िह रवत की दवनया रही

भी हो तो वजस रवत को िह जानता रा उस रवत क वलए भी यह दवनया अनवथतति री विसगत री

उसन रजत को बहत सभलत सभलत गल स लगान की औपचाररकता की उस लगा जस िह

दकसी अजनबी को गल लगा रहा रा रवत वजतन उसक अपन पास री उतन और कही नही दकसी क

पास नही दरअसल रवत और कही नही री उसक भीतर रीhellip बस उस रवत को िही अपन भीतर ही

कही सजोय रखना रा भीतर ही खोजना रा भीतर ही तसलली करनी री दकसी और स बार नही

सकता रा रवत को रजत क दोनो कधो को हलक स दबाकर उसन धीर स कहा rdquoरक कयरrdquo और मड़ा

तो वबना पीछ दख बाहर वनकल गया

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पासपोरथ अमरीकन मरो

ओम गपता

पासपोरथ अमरीकन मरो पर रगत सहदथतानी

आज सनाऊ तमको पयार अपनी रामकहानी

छोड़ो भारत मन भयया डॉलर दख-दख ललचायो

चार-पकोड़ी जब भी दख मोह म पानी भर आयो

दीिाली पर दीप जलाउ होली पर खल रग

मौको जब मझको लगतो पीतो म भी भग

कसो होगी सरकार हमारी मोक हरदम सचता

जब भी दश पड़ सकर म कपा करो हनमनदता

पज म अब भी राम-कषण जातो मददर रोज

गपशप यारो स करतो फोकर म वमलतो भोज

योगी-बाबा आए दश स जब दन मझको जञान

आख मद क ना कछ जान करतो उनको सममान

हमबगथर अब भी नही भातो भाती मझ कचोड़ी

जसो जब भी मौका आयो रोपी िसी ओढ़ी

जाऊ दश को जब म अपन खाऊ लडड और इमरती

कहतो खद को सहदथतानी अमरीका मरी अब धरती

कहन को बहत ह भयया रोड़ को समझो काफी

बरा-भला लगा जो तमको माग नतमथतक माफी

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शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

आकाकषा ह

वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

फर च अनिाद कर इस lsquoभोगिाद स पीवड़त पविम की आतमा को अतयवधक शावत दन िालाrsquo कहा

12 47 2015 33

ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

की सीमाओ क पर मनषय कया अनभि कर सकता ह उसकी एक झलक भी ददखा दता ह उसी

औपवनषदीय जञान को महरवष िदवयास न सामानदय जनो क वलए ldquoपविि गीताrdquo म सवकषपत रप म परथतत

दकया ह िदवयास की महानता ही ह जो दक 11 उपवनषदो क जञान को एक पथतक म बाध सक और

मानिता को एक आसान यवि स परमातम जञान का दशथन करा सक ldquoपविि गीताrdquo महाभारत क

भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

ह भगिद गीता वहनदद धमथ क पविितम गरनदरो म स एक ह जो इसानो की चौहददी की सीमा रखा पर

भगिान क शरी मख दवारा इसान स कही गयी सरहदो पर चहरो की थकररनी का लखा-जोखा ह यह

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पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

12 47 2015 35

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Sneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStke Anmol haSy 9` Uuml na3k-sgh Yacute jIvn ke rg Uuml kaVy-sgh Yacute ddeR-jubagt Uuml nJ_m v g_j_l sgh Yacute Aaj ka pu=8 Uuml khanI-sgh Yacute jIvn-ini2 Uuml kaVy-sgh Yacute AaTm-gujn Uuml AayaiTmk-daxRink gIt Yacute has-pirhas Uuml haSy kivta0gt Yacute j_J_bato ka islisla Uuml kaVy-sgh Yacute The Galaxy Within UumlA collection of English poemsYacute AnuwUityagt Uuml kaVy-sgh Yacute kaVy-vlti3 Uuml skln 0v spadn Yacute pUrb-piXcm Uuml AapvasI sMbiN2t Aaleq sgh Yacute bO7ar Uuml skln 0v spadn Yacute kaVy hIrk Uuml skln 0v spadn Yacute sjIvnI Uuml SvaS$y sMbN2I leq Yacute ]pin8d dxRn Uuml AyaiTmk Yacute

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idLlI pes kI sirta v ANy raumlIy 0v ANtraRumlIy pi5kaAo me wI rcna0gt pkaixt

Page 22: Year 12, Issue 47Year 12, Issue 47 vsu2avsu2a · राथत § में आ वबछ §ग . ... श्रराम की अन ¡कम्पा स § ह हाल ह में

12 47 2015 20

कोई अण कोई परमाण कोई हाईडरोजन बम ल ऐठा ह

वबछी हई बारद धरा म मानि बमो क ढर पर बठा ह

हआ परमाण यदध तो वमर जाएग दकतन दश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

भकषक बनकर मानि इक दज पर चोर कर रहा

परीकषण की खावतर दकतन भीषण बम विथफोर कर रहा

परकवत का सतलन वबगड़ा तो हम बन जाएग अिशष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

कदरत कहर बरपा सकती ह कभी भी आफत आ सकती ह

धरा की जरा सी भी हरकत दकतना कोहराम मचा सकती ह

धरा न जरा करिर बदली तो कछ भी न रहगा शष

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

पयाथिरण क आघात पर अब तो रोक लगानी होगी

सागर पिथत धरती क सग बद करनी मनमानी होगी

धरती को जो मा मानोग सब वमर जाएग कलश

कदरत न वलख भजा ह भकप का सदश

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ि दोनो

डॉ सषम बदी

छत स फशथ तक क लब शीशो स जड़ी उस बड़ी-सी बठक म खब सारी ददन की रौशनी भरी हई

री फशथ पर वबछी सफद चादरो पर सफद िसतर पहन ढर सार लोग उस रौशनी का ही वहथसा लग रह

र कमर म घसत ही तारक को लगा जस उस शवतता म घल मौत क सदथपन और जड़ता न अचानक

उसक भीतर को जकड़ वलया ह बीचोबीच फलो की माला चढ़ी एक बड़ी-सी रवत की तथिीर री

वजसका धप दीप और गीता क शलोको स अवभषक दकया जा रहा रा रवत अब तथिीर भर री तारक

की थतबध पवनयायी आख वनथसहाय-सी रजत को खोजन लगी

रजत सारा िि लोगो स वघरा ही रहा रा उसकी मा उसक बचच और दसर ररशतदार कोई न

कोई उसक आसपास रा ही उन दोनो की आख एक दसर स दो एक बार वमली पर रजत अपन स

बाहर नही आ पाया रा तारक न दकसी तरह अपनी शोकभािना वयि कर दी री न भी वयि करता

तो कया रजत को तो खद भी अहसास होगा उसकी अतभाथिना का एक िही तो ह इस भीड़ म जो

जानता ह दक िह कयो यहा ह बाकी तो तारक दकसी स पररवचत ही नही वसिाय कछक रवत क

कलीगज क एक दो कलीगज स ही उसकी बात हई रवत क बार म ि उस पररिार का वमि मानकर

बात कर रह र य पररिार का वमि तो िह रा ही पर इसस अलग या ऊपर भी कछ रा यह शायद

रजत क अलािा और कोई नही जानता रा जबदक रजत भी परा कहा जानता ह खास तौर स िह सब

कछ जो तारक महसस करता रहा ह या जो कछ तारक और रवत क बीच म रहा या अभी भी वजसका

बहत कछ बचा रा

य तारक न बहत बार सोचा दक अब रवत नही रही तो उसक यहा जान का कोई फायदा नही

उसकी तकलीफ बढ़गी ही दफर लगा दक नही उस रजत स वमलन जाना होगा रजत भी तो उसका

दोथत ह य रवत उन दोनो क बीच न होती तो ि शायद बहत गहर दोथत हो सकत र दफर भी िह खद

को कई तरह स रजत क करीब महसस करता रा और रजत भी बहत मामलो म उसी स सलाह करक

चलता रा उस पर भरोसा करता रा जो दक उसक मन क दोथती क भाि को ही जताती री चदक

तारक की विशषता ददल क रोगो म री िह रवत क हारथअरक क बाद स उसस अकसर रवत क बार म

सलाह लता यहा तक दक रवत स भी कोई वशकायत होती तो तारक स ही कहता दखो न इसका

कोलथराल इतना हाई चल रहा ह और मडम चीज मीर सभी कछ खाती ह अभी रथतरा ल चलो परा

का परा थरक गरक जायगी कस कर यह तो खद को नकसान पहचान स बाज नही आतीrdquo और तारक

तब ररका दता कसी डाकरर हो तम रवत मरीजो को उपदश दती रहती हो और खदhellipदफर उसन

खद ही एक विशषण गढ़ा रा रवत क वलए lsquoनानकपलायरrsquo यानी दक जो कछ भी कहा जायगा उसका

विरोध ही करगी रवत और दकसी िजह स नही बवलक विरोध करन क वलए विरोध

तब रवत और भी तिर चढ़ाकर बोलती rdquoरजत तो पहल ही मर पीछ पड़ा रहता ह अब तम

भी इसी स वमल गय हो िाह जी िाह दोथत दकसक हो तम मर या रजत कrdquo

तारक तब चप रह जाता रा रजत भी कछ नही कहता एक वपरय अवपरय सतय

शायद रवत भी इसीवलए कहती री दक तारक तब लाजिाब हो जायगा कयोदक रवत जानती ह दक जो

िह तारक क वलए ह िह और कोई नही हो सकता और रजत को भी इसका अदाज ह इसी स रजत न

शर म चाह दकतना विरोह दकया हो दकतना लड़ाई झगड़ाhellip दफर धीर-धीर मान वलया रा इस ररशत

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को रवत क वलए ही अगीकार कर वलया रा तारक को भी रवत न ही उस बतलाया रा जब रजत न

उस बाहो म भरकर कहा रा rdquoइतना पयार करता ह तमह दक यह भी थिीकारन क वलए राजी हrdquo

एक हक-सी उठी री तारक क भीतरhellip वजस इतना पयार वमला होhellip इतनाhellip िह इस तरह स

उन दोनो की वजनददगी को ही सना करक रखसत हो ली तारक क मन म गथसा भी आयाhellip शायद

अपनी सहत का धयान रखती तो कछ और जी जाती उन दोनो स ही तो चार-पाच साल छोरी री िह

जी भी सकती री पर अबhellip और तारक न लबी सास भरी

रवत की एक कलीग बता रही री rdquoपरसो तो काम पर आयी हई री रवत म सोच भी नही

सकती री दक इतना भारी थरोक हो सकता ह दक एक ही लपर म ल जायhellip मझ तो विशवास ही नही

होताrdquo तारक को भी विशवास नही होता रा उसी ददन सबह रवत न उसस फोन पर बात की री और

उसस मजाक दकया रा rdquoमर जनदमददन पर आओगrdquo

दरअसल सारा झगड़ा कछ साल पहल रवत क जनदमददन को लकर ही शर हआ रा िनाथ शायद

रजत को उन दोनो क बीच बढ़त ररशत की तवनक खबर न लगती रवत न उस बतलाया रा दक उसक

जनदमददन पर िह और रजत आमतौर पर शाम को बाहर दकसी बदढ़या स फर च रथतरा म खाना खान

जात ह तब तारक न कहा रा rdquoठीक ह तो लच तम मर सार लनाrdquo

रवत मान गयी री उसन उसी ददन रवत क शहर पहचन क वलए फलाईर भी बक करिा ली

री पर जब ठीक जनदमददन आनिाला रा तो रवत न उस बतलाया रा दक रजत को ठीक नही लग रहा

मरा तमहार सार लच पर जाना िह पछ रहा रा दक इतना इमपॉरर कस हो गया यह आदमी दक

तमको उस जनदमददन पर जरर वमलना ह

rdquoतमन कया कहाrdquo तारक वजजञास हो उठा रा

rdquoयही दक तमको दकसी काम स शहर म होना रा इसवलए लच पर वमलन की बात की इस पर

उसन कहा दक अगल ददन वमल लो जनदमददन िाला ददन तो उसी क वलए हhellip कोई और कयोrdquo

दफर िह बोली rdquoइसी पर उस शक हो रहा ह दक यह कोई आम दोथत नहीhelliprdquo

तारक न जोड़ ददया रा rdquoपरमी हrdquo

rdquoहा यही शक हो रहा ह उसrdquo

rdquoतो ह या नहीhelliprdquo

rdquoशायद होhellip यही मसीबत हrdquo

तारक न कहा रा rdquoअब तो ररकर ली हई ह म तो आऊगा ही तम वमल सको तो वमलना िनाथ

न वमलना चाह पाच वमनर क वलए या कॉफी क वलए भी आ जाओगी तो मर वलए िही काफी होगा

तमहार जनदमददन पर तमह दख भर लrdquo

rdquoतम भी कमाल क रोमाररक होhellip पर सच कह तो म भी तमस वमलना चाहती ह उस ददनhellip

कछ न कछ तो जगाड़ना पड़गाrdquo

rdquoमर वलए तमहारा जनदमददन मरी वजनददगी का बहत अहम ददन हhellip समझीrdquo

एयरपोरथ पहच कर तारक न फोन दकया रा रवत बोली री rdquoरजत कह रहा ह तम हम वडनर

पर जॉयन कर लोrdquo

तारक बहत हरान हआ रा पर रवत न फोन रजत को पकड़ा ददया रा तारक एकदम सकर म

पड़ गया रा उसन खद को बचान की कोवशश की rdquoसॉरी म तो यहा आया रा तो सोचा रवत स वमल

लगा पर इस तरह आप लोगो क परोगराम मhelliprdquo

12 47 2015 23

रजत न जोर दकर कहा रा rdquoनही भाई बहत तारीफ सन रहा ह बीिी स जरा हम भी तो

वमल आपस आप चाह तो घर पर आ जाईए या दफर सीध रथतरा पर वमलगrdquo

rdquoपर आप लोगो का तो वडनर पर सार जान का कायथकरम रा नrdquo

rdquoआप लच पर फरी ह तो लच पर वमल लत ह य मझ तो वडनर ही पसद ह जसा आप कहrdquo

रजत वबलकल दोथताना ढग स बात कर रहा रा एक पल को उसकी रोन म कछ तनाि तारक

को महसस हआ रा पर अगल ही पल आिाज दफर सहज हो गयी री तारक मान गया पर रकसी लकर

पहल होरल म सामान छोड़ा और इस दौरान खद को मानवसक तौर पर तयार भी करता रहा दक कस

पश आना ह अपन रकीब स दखा जाय तो ररशता रकीब का ही रा बाकी ि दकतन भी सभय या

समझदार इसानो की तरह एक-दसर स बताथि कर आवखर ि तीनो सममावनत पश क र तारक हारथ

थपशवलथर रा तो रजत अगरजी सावहतय का परोफसर और रवत सायकायररथर इसानी मन की

कमजोररयो को समझना मनोरोगो का इलाज करना रवत की विशषता तो री ही पर इसानी आकषथण

एक दसर क परवत सखचाि या ऐस ररशतो को समझन की सथकवत तो कही तीनो म ही री

रजत इस बात को खब समझता रा दक दकसी भी औरत क वलए दकसी दसर परष क परवत

सखचाि हो जाना बहत सहज रा िही एक पवत और पतनी स परम करन िाल क रप म िह रवत क इस

वयिहार स ईषयाल भी हो उठता रा एक सभय इसान क नात िह ईषया को दबा कर तारक क परवत भी

वमिित वयिहार करना चाहता रा पर िही उस रवत क वयिहार स कि पहचता रा दक िह उसक

अलािा भी दकसी दसर परष को चाह सकती ह वजसस उसक मन म आकरोश और वितषणा का भाि

उठता कभी िह अपन को उदार बना कर यह कहना चाहता दक रवत अगर दकसी दसर को चाहती ह

तो बशक उसको भी कयो न पाय सार ही जब करोध होता तो एक तरह स जस िह रवत को सजा दन क

वलए कह डालता rdquoतम जाओ दोनो सार रहोrdquo पर जो पीड़ा िह उसम सह रहा होता िह रवत और

तारक दोनो क वलए ही असहय होती

रवत न कहा रा rdquoकया तारक और म दोथत नही हो सकत और इतन दोथत हhellip एक िह वयवि

वजसस बात करक मझ खशी वमलती ह िह दोथत कयो नही बन सकता वसफथ इसवलए दक उसक मन म

तीखी भािना ह मर वलएhellip या शरीरो का आकषथण भी हhelliprdquo

रजत तब तकथ स सारी बात को समझन समझान की कोवशश करता हा करत-करत कह दता

rdquoऔरत आदमी म दोथती हो ही नही सकती कयोदक जहा शरीरो का आकषथण हो िहा दोथती जसा

वनषकपर भाि कस पनप सकता हrdquo तब रवत दोथती का एक और पकष पश करती rdquoतमहार कहन का

मतलब तो िही ददकयानसी बात हई दक शरीर पाप का मल ह जबदक तम खद ही यह पहल कह चक

हो दक शरीरो का मसला हल हो जाय तो औरत मदथ बहत खबसरत दोथत हो सकत हhellip शरीर को

अहवमयत दी कयो जाय शरीर वमल जान स उनका दोथती म बाधा बनन का मसला खतम हो जाता हrdquo

रजत रवत की बात मान भी जाता रा पर रवत दफर तारक को यह भी बताती री rdquoिन कार

रक वहम फॉर गरारड कल को िह अपना कोई नया तकथ द दगाrdquo

शायद इसी स तारक भी अचानक वहममत हारन लगा रा कस सामना करगा िह रजत का य

िह रजत स एकाध बार पहल वमल चका रा पर तब उसको यह अदाजा नही रा दक रवत और उसक

बीच कछ रा जबदक तारक तब भी कछ आतमसजग-सा हो रहा रा पर कछ वमनरो की मलाकात को

सभाल लना कोई बड़ी बात नही री और य भी रजत उस भला आदमी लगा रा यह भी सोचा रा दक

अगर रवत उन दोनो क बीच न होती तो यह वयवि उसका दोथत हो सकता रा य रवत क होन क

बािजद अतत ि दोथत बन ही पर इस दोथती का तानाबाना िसा न रा जस खावलस दोथती का होता

12 47 2015 24

ह इसम रवत क रश बन हए र जो एक और ही रगत वलए र और िह रगत तारक को बहत पयारी री

उस दोथती स जयादा

तारक न होरल पहच कर फोन कर ददया रा दक वडनर पर वमलना ही ठीक रहगा और िह

अपना काम इस दौरान कर लगा रजत आसानी स यह बात मान गया और कहा दक िह सडरकस पर

पहल घर पर आ जाय उसक बाद रथतरा खाना खान चल जायग

शाम को जब िह चलन लगा तो फोन बजा रा दसरी ओर रवत री हलो कहत ही रवत न

कहा rdquoसनो तम मत आना मर घर म बहत रशन चल रही हrdquo इसस पहल दक िह कछ कहता रवत न

फोन वडसकनकर कर ददया

रात को कोई फलाईर नही जाती री िनाथ िह उसी िि शहर छोड़ क चला जाता

आध घर बाद ही घरी दफर बजी रवत पछ रही री दक आ रह हो तारक बौखला गया दक आवखर हो

कया रहा ह कया यह रवत क मन की उलझन ह या दक रजत कीhellip या दोनो कीhellip या रवत वसफथ रजत

की उलझन को वयि कर रही री बोली री rdquoजलदी आ जाओ हम लोग इतजार कर रह हrdquo

िह पहचा तो रवत न अकल ही उसका थिागत दकया रा िह जानता रा दक दोनो बचच कालजो

म ह पर रजत काफी दर तक बठक म नही आया तो तारक हरान हआ रवत बोली rdquoिह नहा रहा हrdquo

दफर मथकरा कर जोड़ा rdquoशायद हम दोनो को कछ िि दना चाहता हrdquo

तारक तब कछ निथस हआ रा उस आग बढ़कर रवत को चमन का हौसला नही हआ उस लगा

दक रवत भी सहज नही री जस दक आम तौर पर होती ह पर उसन कछ कहा नही िह खद भी तो

सहज नही हो पा रहा रा जस लड़की क बाप क घर म शादी का परथताि लकर जा रहा हो कछ कछ

इसी तरह का महसस हो रहा रा िही डर कर परचा करना रा दक इमतहान म फल न हो जाय

रजत न कमर म आत ही बड़ तपाक स हलो दकया कछ औपचाररक-सी बात की दफर उसस

सडरक पछा और दकचन म बफथ िगरह का इतजाम करन क वलए दफर स गायब हो गया तारक को लगा

दक सहज होन की बहत कोवशश क बािजद रजत बहत असहज ह

ववहथकी का घर लत हए तारक न ही रजत स उसक काम क बार म पछना शर दकया बात

कही जा नही रही री तभी रवत एक नई दकताब की चचाथ करन लगी वजसका ररवय सबह क अखबार म

छपा रा तारक न हिाई जहाज म ही उसक बार म पढ़ा रा दफर तो बातचीत खब गरमागरम होन

लगी रजत न दवकषण एवशयाई अगरजी लखको क बार म अपन विचार झाड़न शर कर ददय यहा तक

दक रवत न अचानक घड़ी दखी तो पता चला दक रथतरा की ररजिशन का िि हो चका रा रजत न

रथतरा को फोन दकया दक कछ वमनर लर पहचग और तारक को बोला दक जलदी स सडरक खतम कर ल

या गाड़ी म ही ल चल दोनो न दो तीन सडरक चढ़ा रख र मौज-सी भी आयी हई री रजत ही कार

चला रहा रा और तारक पीछ िाली सीर पर बठा रा अचानक रजत कछ नश और कछ अपनी धन म

बोला rdquoतो तम मरी बीिी स पयार करत होrdquo

तारक भौचक-सा हो गया य ही बठा रहा जस रजत की बात को सना न हो या िह गभीरता

स लन लायक न हो रजत न अपनी बात को सिाल बनाकर दबारा पश दकया rdquoकयो तारक मरी बीिी

स पयार करत हो या नहीrdquo

तारक न कहा rdquoहाrdquo और चप कर गया उस लग रहा रा िह जो भी जिाब दगा खतर स खाली नही

पर यह जिाब सच रा तो सच बोल कर ही मार खायी जाय उस दकसी लड़की क वपता स हार मागन

नही जाना पड़ा रा आज यह भी सही

rdquoतम भी पयार करत हो िह भी करती ह तो तम दोनो सार कयो नही रहतrdquo

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तारक बोल पड़ा रा rdquoयह इतना आसान नहीrdquo

रजत इस पर आकरमण करता-सा बोला rdquoकमाल ह पयार भी करत ह और वजममिारी भी नही

वनभाना चाहतrdquo तारक को महसस हो रहा रा दक रजत कह तो कछ रहा ह और पहचाना कछ और

चाहता ह दफर भी िह जिाब तो उसी बात का द सकता रा जो दक पछी जा रही री यह कह कर

उस नाराज भी नही करना चाहता रा दक रजत वसफथ अपन भीतर क आकरोश आतक और आग को

आिाज द रहा रा बोला rdquoयह बात नही म आज भी रवत क सार वजनददगी शर करन को तयार ह

जहा तक म जानता ह रवत अपन शहर को छोड़ कर और कही नही जायगी न िह तमको छोड़न को

तयार होगी जहा तक म रवत को जानता हhelliprdquo

रवत चपचाप अपन पर अकश लगाय दोनो की बात सन रही री न तो िह रजत क पकष म

कछ बोलना चाहती री न तारक क पकष म ही बोल सकती री दफर भी दोनो क बीच तारतमय वबठाय

रखन की वजममिारी भी उसी की री और िह समझ नही पा रही री दक दकस तरह इस बातचीत को

सीमाय लाघन स बचाया जाय ऊपर स उस डर लग रहा रा दक आिश म रजत कही रककर न मार द

रथतरा बहत दर रा भी नही बात पर चरम पर चल रही री दक रथतरा आ गया रवत न रोका rdquoरजत

पारककग ढढ़ो रथतरा आ गयाrdquo रथतरा क सार ही पारककग गराज म गाड़ी छोड़ कर तीनो अदर चल गय

िरर न उनको मज पर वबठाया और सडरक क वलए पछा तरा मनदय लाकर ददय तीनो क तीनो उस मज

पर इस तरह खामोश और भर बठ र दक मनदय म वसर डबोना एक राहत बन गया रा तीनो न अपन-

अपन आडथर ददय पर बात कछ बन नही रही री हर कोई कछ भी कहन म जयादा ही सतकथ हो रहा रा

अचानक रवत बोली rdquoरजत तमको इतनी जयादा तकलीफ री तो तमन मना कयो नही कर

ददया म तो तारक को कह चकी री दक आज सार खाना नही होगा तमही न जोर ददया दक जरर

बलाओ अब इस तरह कयो बताथि कर रह होrdquo

रजत और भड़क गया rdquoम तो वसफथ यह कह रहा ह दक तम लोग एक-दसर को पयार करत हो

तो म कया कर रहा ह यहा तम जाओ एक दसर क सार रहोrdquo

दोनो की आिाज ऊची हो रही री और दसरी मजो पर बठ लोगो की वनगाह इस ओर उठ आयी री

तारक न धीर स सझाया रा rdquoमर खयाल स हम य बात यहा नही करनी चावहएrdquo सहसा रवत

न होश म आत कहा rdquoहा इतन बदढ़या रथतरा म खाना खान आय ह कछ खान पर भी तो धयान दhellip

दफर आज मरा जनदमददन ह आई िार र हि ए गड मीलrdquo

दफर भी खान पर तीनो म स दकसी का धयान नही लग सका तीनो औपचाररक-सी बात म लग

गय र तारक न ही शहर क निीनतम रथतराओ क बार म ताजा पढ़ी समीकषा का वजकर छड़ ददया रा

रजत न कार स जब उस होरल छोड़ा तो तारक न उपर कमर म आकर सडरक लन क वलए कहा

पर जसा दक िह अपकषा कर रहा रा रजत न दर होन का बहाना बना छटटी माग ली री रवत तब भी

कछ नही बोली री शायद उस डर रा दक उसका कछ भी कहना रजत क वलए घाि पर नमक वछड़कन

जसा होगा या उसकी कोई भी बात का गलत मतलब वनकाल कर रजत भड़क सकता रा य दर हो भी

चकी री

पर तारक यह भी जानता रा दक रवत एक नबर की वजददी री जो उस चावहए रा चावहए ही

रा उस रोका नही जा सकता रा िह ऊपर स मान जायगी पर भीतर स कभी माफ नही करगी

शायद इसी स रजत भी वबगड़ी हई लाड़ली बरी की तरह रवत की हर चाह या माग को विरोध करक

भी अतत मान जाता रा

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लौर आन क दो चार ददन बाद ही उसक फोन पर रवत न सदश छोड़ा रा rdquoतमहारा आना ठीक

नही हआ सॉरी तमह बलाकर भी वमल नही पायी अब लगता ह कभी नही वमलगी लर अस थरॉप

ददस वहयर पलीज मझस सपकथ मत करनाrdquo

तारक बहत ददन परशान घमता रहा रा पर रवत को फोन भी नही दकया उसन मना जो कर

डाला रा उस फोन करत हए तारक को लगता दक िह खद को उस पर लाद रहा ह और यह वथरवत

उस कभी गिारा नही री हर ददन दकसी जिालामखी-सा लाि स लदा हआ गजरता अदर ही अदर

सब तप रहा रा

महीन भर बाद रवत न फोन दकया रा rdquoगथसा हो न मझस तमस माफी भी नही माग सकीrdquo

उसकी तो कोई जररत नहीrdquo

दफर भी सोचा रा तमस कभी बात नही करगी इसी स तमको सपकथ करन स मना दकया

रा रजत को भी यही मालम ह दक तमस ररशता तोड़ ददया ह पर अब मझी स बात दकय वबना रहा

नही जा रहाrdquo

रजत को मालम ह मझस बात कर रही होrdquo

िह बहद गथसा ह तमसhellip जस दक सारा दोष तमहारा होhellip दक तमन उसकी बीिी को फसा वलयाrdquo

ि इसी तरह जब मौका लगता बात कर लत तारक क ददल ददमाग पर रवत ही छायी रहती

िह ऐस ही पलो क दौरान जीता जब दोनो क बीच कछ सपकथ होता बाकी क पल उन पलो क इतजार

म गजरत

इस बीच रवत को ददल का दौरा पड़ा रा घबराकर तारक को फोन कर डाला रा रजत न

तारक आया तो रजत उस अपनी गाड़ी म सार अथपताल ल आता जाता रहा दोनो म एक दोथती का

नाता तभी बना रा दवनया जहान की बात रजत न उस घर पर ही ठहराया रा तारक तीन ददन बाद

चला गया रा िावपस पर दोनो की फोन पर बात हो जाती रवत अथपताल स िावपस आ गयी री

धीर-धीर िह सामानदय होकर िावपस अपना काम सभालन लगी

रवत का जनदमददन दफर स आनिाला रा रवत न उस कहा रा rdquoरजत अपन आप ही बोल रहा ह

दक तम आ जाओ इस बार मरा जनदमददन मनान बोलो आओगrdquo

तारक परानी बात याद करक घबरा गया रा rdquoनही दफर स उसक भीतर सब घमड़न लगगाhellip

सबको तकलीफ होगीrdquo

यह सच भी रा रजत कभी तो उसक परवत बहत वमिित हो जाता िही अचानक गथसा ईषयाथ

उभर आत और िह अकसर बरखी ददखाता अचानक तारक को ऐसा महसस हआ जस रवत उसस खद

यह सब कह रही हो पल भर को िह भल ही गया दक रवत क ही अतयवि कमथ म िह शावमल हआ ह

और दरअसल उसक यहा आन की एक िजह यह भी ह दक िह रवत को वलख अपन खत िावपस ल

जाना चाहता ह उस डर ह दक कही ि खत रजत क हार न पड़ जाय

तारक रवत क सार काम करन िाली इस मवहला डॉ लोपज स पहल वमला हआ रा इस भीड़

म एक िही जान-पहचान की री तारक का मन हआ उसस पछ दक कया िह रवत की दराज म उसक

कागजात पर नजर मार सकता ह तारक को अदाज रा दक उसक खत िह दफतर की मज की दराज म

रखती री पर िह जानता रा दक ऐसा करना ममदकन रा नही आवखर तारक को कस हक पहचता रा

रवत की दराज खलिान का िह तो एक पररिार क वमि की हवसयत स िहा रा रजत ही कह सकता

रा दखा जाय तो ि लोग खद भी रजत स ही कहग दक रवत का सामान िह ल जाय तब तो रजत की

आख जरर उन पर पड़गी तब शायद उसको बरा लगगा दक रवत क सार तारक का एक अपना ररशता

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रा उन तीनो की आपसी दोथती क बाहरhellip रजत को बतहाशा चोर लगगी अब जबदक िह रवत स

जिाबतलबी भी नही कर सकता रवत अब कोई सफाई नही पश कर पायगी तारक क हक म कछ भी

नही कह सकगी दकसी तकथ स रजत को लाजिाब नही कर पायगी नही िह ऐसा नही कर सकता न

यह रवत क परवत सही होगा न रजत क परवत उस दकसी न दकसी तरह स खत पान ह

राथत म आत हए हिाई जहाज म तारक जब लगातार रवत क सार की अपनी वजनददगी क

गजर पल दहरा रहा रा बार-बार उस धयान आता दक जब स रवत को ददल का दौरा हआ रा िह

उसस कहना चाहता रा दक उसक खत विनि कर द एक बार उसन बात उठायी तो रवत बोली rdquoकयो

तमहार खत मर दफतर की दराज म सफ पड़ हrdquo

शायद िह वबना कह यह भी समझ गयी री दक तारक का इशारा दकस ओर ह तभी बोली

दखो जब तक म वजनददा ह म उनको फाड़ कर न तो फ क सकती ह न जला सकती ह एक बार मर गयी

तो कया फकथ पड़ता ह दक कोई कया करगा उनक सार तमको तो दफकर होनी नही चावहए अब तो ि

मरी अमानत हrdquo यह बातचीत दो एक महीन पहल की ही होगी तारक न सोचा रा बात कभी दफर

उठायगा पर उसस पहल हीhellip

तारक को भी तब यह अदाज नही रा दक रवत क अलािा रजत स भी उसका नाता रा रवत क

जान क बाद िह खद को रजत क बहत करीब महसस कर रहा रा और उस लगा दक उसक खत रजत

को उसस दफर दर धकल सकत र पर िह दकसी तरह भी रजत को खोना नही चाहगाhellip रजत जस स

रवत का ही एक वहथसा राhellipउसन दखा लोगो स वघरा रजत का चहरा बहद वनचड़ा हआ रिहीन और

सखा-सा लग रहा रा रात भर सोया नही होगा इसवलए आखो क नीच कालापन उतर आया रा आख

काफी अदर को धसी हई री तारक को लगा दक िह शायद रजत स बहतर हालत म ह दफर उस रशक

भी हआ रजत अपन गम का खला इजहार कर सकता हhellip तारक को यह सविधा नही री िह दकसी

उजड़ आवशक क रप म इस महदफल इस मौत का शोक करन िालो की महदफल मhellip अपना असली

चहराhellip अपना आवशक का चहराhellip नही ददखा सकता रा अचानक उसकी आख भर आयी अपन खोन

की वशददत क अहसास स

रवत क िाकय उसक कान म सरसरान लग जबस उस ददल का दौरा पड़ा रा िह जीिन की

कषणभगरता या इसान क नाचीज होन क अवथततििादी दशथन को बहत बघारन लग गयी री शायद

अपन जान का अहसास उस कही बहत गहर उदास कर जाता रा पर िही िह उस जान को एक

अिशयभािी अकारय सतय की तरह थिीकार करक उसस समझौता भी करन लग गयी री एक ददन

उसन हडसन नदी क दसर वसर स मनहरन की ओर दखत हए कहा रा rdquoदखो तो इन छोर-छोर वडबबो

म दकतन लाखो लोग रहत ह दकतन छोर ह हम लोग इतनी तग जमीन पर दकतनी बड़ी तादाद म

समा जात ह एकदम हजारो की सखया म सार-सार जड़ कीड़ो की तरह दफर भी अपन आप को

दकतना बड़ा मानत ह राजनीवत धमथ और नवतकता की तवखतया वचपका कर दकतना बड़ा होन का

भलािा दत रहत ह खद कोrdquo

रजत को रवत की इसान को नाचीज करार दन िाली बातो स हमशा बहत वचढ़ छरती री

बोला रा rdquoधमथ नवतकता जीिन क सतय ह इनको तम भलािा दन िाली चीज कस कह सकती हो

इसान इसीवलए तो बाकी जीिो स अलग ह दक िह सोच सकता हrdquo

rdquoऔर सोच क धरातल पर हर चीज को गलत या सही सावबत कर सकता ह नवतकता को गढ़

सकता ह या परा सतयानाश कर सकता हhellip ठीक ह मझ तो उसम कोई नकसान नहीrdquo

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हा नकसान दकसी का ह तो मरा ही रजत न कहा तो तारक झर स बोल पड़ा रा rdquoनकसान

तो तब होता जो म उस भगा क ल जाताrdquo

रजत न सजीदगी स कहा rdquoअब इसका ददल बर गया हhellip तो आधी सपवतत तो लर ही गयी न

तम भगा ल जाओ तो भी फकथ नही पड़गा यह आधािाला वहथसा तब भी यही रहगाrdquo

सचमच रजत का यह विशवास सही रा रवत और उसक ररशत की शरआत क ददनो म भािना

क परिाह म बहता तारक रवत क सार एक नयी वजनददगी क दकिाड़ खोलन की बात सोच पाया रा पर

जलद ही उस अहसास हो गया रा दक रवत कही बहत गहर जड़ी री रजत क सार दक िह कभी उस

ररशत को तोड़गी नही य रजत भी शर क ददनो म भीतर स वहल गया रा यह झरका दक रवत रजत

को छोड़ दकसी और को मन म ला सकती ह उस बहत दर जा फ क आया रा दफर रवत न खोय विशवास

को िापस लौरा ददया रजत अपन आध नकसान क सार धीर-धीर शायद समझौता करना सीख गया रा

तारक को लगा दक िह आध क सार समझौता करना सीख गया रा दफर तारक को लगा दक

िह आध क सार समझौता नही रा रजत क भीतर कही पर का भरोसा भी रा जस दक रवत को वसफथ

एक बदलाि चावहए रा जो तारक रा िनाथ िह परी रजत की ही री कयोदक मौका आन पर रजत

अपना परा हक जतान स चकता नही रा हमशा यही मानता रा दक पहला हक उसी का ह तारक

हमशा बाद म आयगा जस दक पर भर लन पर बचा हआ भोजन दकसी को भी ददया जा सकता हhellip

कछ ऐसा रख

पर रवत बचा हआ भोजन नही रीhellip दकसी तरह स भी उवचछि या अिवशि नही जो उसन

रवत म पाया रा िह पहल वजनददगी म कभी नही वमला रा रवत न उसकी पहचान करायी री

पररपणथता स रवत को जानना ही जस उस सपणथता को छना रा शायद रजत न भी रवत म ऐसा कछ

पाया रा जो आम औरतो स अलग रा रवत शादी क इतन बरस बाद भी उस अपन म उलझाय री और

िह उसस मि नही होना चाहता रा रवत म बाहरी खबसरती क बािजद वयवि क ददमाग को भी

उलझाय रखन का जो गण रा उसस सच म जो भी पास आता और सखचता जाता रवत म भरपर

पयार लन की चाह री तो भरपर दन की कषमता भी इसी स अभी भी उसस जी तो नही भरा रा रजत

का शायद िह ऐसी औरत री जो हमशा वनत निीन होती रहhellip सौदयथ की एक पररभाषा यह भी तो

दी गई ह दक जो वनत नतन होता रह िही सौदयथ ह रवत भी कभी परानी नही पड़ती रोज कछ नया

होता ह उसक पासhellip कोई नया खयालhellip कोई नई सझhellip कोई नई उकसान उलझान िाली बातhellip

शायद इस ददमागी सौदयथ कहना होगाhellip जो कछ भी उसम राhellip बस खीचता रा अपनी ओरhellip मोहता

राhellip शायद कया पर उगली धरना उस पररवध म बाधन की भोडी कोवशश होती

कछ दवदव उठता तो रवत रजत क ही हक म बोलती री रजत क वहतो को सरवकषत कर लन क

बाद ही िह तारक को उसका हक दती तारक को खीझ भी होती दक रजत उसक जीिन म चदक पहल

आ गया रा इसीवलए हर चीज म ही पहला हक उसी का बनता ह पर उसन रवत स अपनी यह

मनवथरवत कभी जावहर नही होन दी री वपछल साल िलनदराईन ड पर ऐसा ही तो हआ रा दरअसल

दोनो को अदाज नही रा दक उस िीक ड पर िलनदराईन ड पड़ता रा तारक को दकसी काम स रवत क

शहर आना रा और दोनो न वमलन का कायथकरम बना डाला रा रजत स रवत की बात हई होगी तो

उसन भनकर कहा रा rdquoतो िह तमहारा िलनदराईन ह जो उस ददन आ रहा हrdquo रवत क कहन पर दक उस

तो याद भी नही रा िह बोला रा rdquoम नही मान सकता दक तारक न य ही आन का बनाया ह इस

िीक ड परrdquo रवत न तारक स सारी बात बतलायी तो उसन सोचा रा िह खद फोन पर रजत स कहगा

दक उस सचमच याद नही रा पर दफर बात बढ़ान न दन क वलए चप रह गया रा और जान का

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परोगराम भी थरवगत कर डाला रा तब उस दो बात तकलीफ दती रही री एक तो यह दक रजत हमशा

उसक सामन परारवमकता ल जायगा दसरी यह कड़िी सचचाई दक रवत कभी भी उसकी जावहरी वजनददगी

का वहथसा नही बन सकती री उसकी कमर म हार डाल कर िह कभी दकसी स यह नही कह सकता

रा रवत मरी हrdquo तब उस बहद रशक होता रजत स कया रजत को सचमच अहसास ह दक रवत तारक

क वलए कया ह दक िह उसकी वजनददगी का कनदर उसकी वजनददगी का अरथ बन चकी ह यह कोई हलका-

फलका ठरकपन नही उसकी वजनददगी का रशा-रशा गर गया ह रवत स शबद म अरथ की तरह समायी ह

रवत उसक अवथतति म इस गरन म िह खद ही घरता रहगा हमशा

अब रवत नही ह तो िह घरन और भी कस रही ह उस कया अब िह रजत स कह पायगा

अचानक उसका मन हआ दक रजत स कह द rdquoतमको मालम ह दक मझ सचमच पता नही रा दक उस

ददन िलनदराईन ड रा िनाथ ऐसी जरथत न करताrdquo दक िह जानता हhellip अचछी तरह समझता ह अपनी

और उसकी ररीररी की पररवधयो को दक रजद शायद कभी जान न पायगा पर उसन हमशा एक दोथत

की तरह रजत का रजत की जररतो का खयाल रखा हhellip वसफथ ऊपर-ऊपर स सामावजक उपचार की

तरह नही भीतर स दकसी ददली ररशत सhellip दफर िह ररशता चाह रवत क जररय स ही बना हो

हो सकता ह रजत यह सब महसस करता हो या न भी करता हो पर उसक चहर पर भी वमिता

का थिागतमय भाि हमशा ददखा ह तारक को वसिा उन कषणो क जब दक सचमच उन दोनो क बीच

lsquoररररोररयलrsquo झगड़ हए तब भी ि शायद इसानी आचार या परथपर सदभाि की सीमाओ को कभी

लाघ नही पर दफर भी तारक का रवत क सार का ररशता ऐसा नही दक रजत क सार वजस बार सक

रवत उसकी हथती का अवभि वहथसा ह िह कोई और कस हो सकता ह रजत रवत नही हो सकता

चाह उसक दकतन ही करीब रहा हो उस दकसी न दकसी तरह स अपन खत पान ही ह लदकन कस

और यही तारक बार-बार उलझ जाता ह अपनी यह परशानी िह दकसी क सार बार नही सकता

रजत स तो कतई नही खत अगर सचमच रजत क हार पड़ गय तो

लदकन रवत न यह भी तो कहा रा दक अगर िह नही रही तो कया फकथ पड़ता ह पर रजत

सचमच खत पढ़ ल तोhellip शायद उसकी पीड़ा पर तब करोध और घणा का कोई विकराल भत हािी हो

सकता हhellip हो सकता ह दक खत पढ़कर रजत रवत को खद स वछरक द लदकन उसस कया तब शायद

रवत और भी तारक क करीब आ जाय और भी उसकी अपनी हो जाय वसफथ उसी की समची एक रात

पहल उस ऐसा ही कछ सपना आया रा रवत की मौत की खबर क बाद यही उसका याद रह जानिाला

सपना रा िह रवत की अतयवि म गया ह और एक अधरा-सा बठकनमा कमरा हhellip कमर म कछ

कागज वबखर पड़ हhellip िह एक कागज उठाता हhellip िह उसी का रवत को वलखा खत हhellip और कई लोग

उसक आसपास ह और िह सोचन लगता ह दक कही इन लोगो न भी तो उनदह नही पढ़ाhellip तभी रजत

का चहरा उसकी ओर बढ़ता ह और िह कागज वछपान की तरकीब सोचन लगता हhellip इसी उधड़बन म

उसकी आख खल गयी री तो वजथम पसीन म नहाया हआ रा

एक रजत ही यहा उसक सबस करीब हhellip और रजत ही उस अजनबी-सा लगन लगा ह अब

तक उसका रवत का सदभथ रा अचानक उस सदभथ स करकर न होन जसा हो रहा ह तारक को अजीब-

सी मानवसक दरी और भयकर अकलापन-सा महसस हआ िह यहा आया ही कयो रा रवत की

नामौजदगी म दकतना बमानी ह उसका यहा होना रजत को भी दकतना दफजल-सा लग रहा होगा

उसका यहा उपवथरत होना वजन लोगो स वघरा ह ि तो सचमच उसक अपन हhellip तारक तो दर स भी

अपना नहीhellip मत स तारक का जो भी नाता रहा होhellip उसक दकसी दसर स तो नही रा उसक कॉलज

12 47 2015 30

कामो स लौर बचच भी तारक को पहचानत नही र तारक न ही उनकी शकलो और वयिहार स अदाज

लगाया रा और हॉलि म लगी तथिीरो स उनदह पहचान पाया रा

तारक क पास रजत स कहन को कछ नही रा उसका कछ भी कहना रजत को खल सकता रा

उलर तारक को लगन लगा दक रजत शायद सोच रहा हो दक अब कयो जखमो को याद ददलान आ गय

हो कछ भी हो तारक न उस पीड़ा तो पहचायी ही री कया अब उसका कछ भी करना रजत क कि को

कम कर सकता रा उसन वनगाहो स ही अपना दख बयान कर ददया जो शायद रजत न थिीकार भी

वलया राhellip शायद एक औपचाररकता की तरह जस िह दसर बहत स जमा लोगो की शोकावभवयविया

थिीकार रहा राhellip उसस कछ अलग नही शायद तारक का िहा होना ही रजत को खल रहा हो पर

िि की नाजकी की िजह स िह कछ कहना न चाह रहा हो तारक एकदम परशान-सा उठ खड़ा हआ

कछ लोग रजत क गल लग रह र शायद उसस विदा लकर जा रह र तारक न सोचा िह अब

कहगा दक रवत क पास कछ उसक जररी कागजात र अगर रजत उस कागजो िाली जगह पर ल चल

तो िह खद ही दख लगा तारक यि की गवत स रजत की ओर बढ़ा रजत जस दकसी को दख कर भी

दख नही रहा रा उसकी आख दकसी शनदय पर ररकी री तारक को लगा उन लोगो क वघराि म

वजसम उसक अपन अजीज दोथत और ररशतदार र रजत न उस कोई विशष लकष नही दकया तारक क

भीतर अजीब सनापन-सा आ वघरा लगा जस रवत रजत म कही नही री वसफथ भरम-सा हआ रा उस

उसक िहा होन का जस दक उसक रवत क नात स िहा होन म ही कोई भारी असगवत री उस लगा

िहा बठ अजनबी स लोग उस घर रह र उसक िहा होन पर परशनवचनदह लगा रह र पता नही दकतन

ही अजनवबयो स वघर गया रा तारक यहा तक दक रवत की उस तथिीर म भी उस रवत नजर नही आ

रही री िह भी कोई अजनबी छाया री यह दवनया उसकी नही री अगर िह रवत की दवनया रही

भी हो तो वजस रवत को िह जानता रा उस रवत क वलए भी यह दवनया अनवथतति री विसगत री

उसन रजत को बहत सभलत सभलत गल स लगान की औपचाररकता की उस लगा जस िह

दकसी अजनबी को गल लगा रहा रा रवत वजतन उसक अपन पास री उतन और कही नही दकसी क

पास नही दरअसल रवत और कही नही री उसक भीतर रीhellip बस उस रवत को िही अपन भीतर ही

कही सजोय रखना रा भीतर ही खोजना रा भीतर ही तसलली करनी री दकसी और स बार नही

सकता रा रवत को रजत क दोनो कधो को हलक स दबाकर उसन धीर स कहा rdquoरक कयरrdquo और मड़ा

तो वबना पीछ दख बाहर वनकल गया

12 47 2015 31

पासपोरथ अमरीकन मरो

ओम गपता

पासपोरथ अमरीकन मरो पर रगत सहदथतानी

आज सनाऊ तमको पयार अपनी रामकहानी

छोड़ो भारत मन भयया डॉलर दख-दख ललचायो

चार-पकोड़ी जब भी दख मोह म पानी भर आयो

दीिाली पर दीप जलाउ होली पर खल रग

मौको जब मझको लगतो पीतो म भी भग

कसो होगी सरकार हमारी मोक हरदम सचता

जब भी दश पड़ सकर म कपा करो हनमनदता

पज म अब भी राम-कषण जातो मददर रोज

गपशप यारो स करतो फोकर म वमलतो भोज

योगी-बाबा आए दश स जब दन मझको जञान

आख मद क ना कछ जान करतो उनको सममान

हमबगथर अब भी नही भातो भाती मझ कचोड़ी

जसो जब भी मौका आयो रोपी िसी ओढ़ी

जाऊ दश को जब म अपन खाऊ लडड और इमरती

कहतो खद को सहदथतानी अमरीका मरी अब धरती

कहन को बहत ह भयया रोड़ को समझो काफी

बरा-भला लगा जो तमको माग नतमथतक माफी

12 47 2015 32

शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

आकाकषा ह

वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

फर च अनिाद कर इस lsquoभोगिाद स पीवड़त पविम की आतमा को अतयवधक शावत दन िालाrsquo कहा

12 47 2015 33

ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

की सीमाओ क पर मनषय कया अनभि कर सकता ह उसकी एक झलक भी ददखा दता ह उसी

औपवनषदीय जञान को महरवष िदवयास न सामानदय जनो क वलए ldquoपविि गीताrdquo म सवकषपत रप म परथतत

दकया ह िदवयास की महानता ही ह जो दक 11 उपवनषदो क जञान को एक पथतक म बाध सक और

मानिता को एक आसान यवि स परमातम जञान का दशथन करा सक ldquoपविि गीताrdquo महाभारत क

भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

ह भगिद गीता वहनदद धमथ क पविितम गरनदरो म स एक ह जो इसानो की चौहददी की सीमा रखा पर

भगिान क शरी मख दवारा इसान स कही गयी सरहदो पर चहरो की थकररनी का लखा-जोखा ह यह

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पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

12 47 2015 35

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Page 23: Year 12, Issue 47Year 12, Issue 47 vsu2avsu2a · राथत § में आ वबछ §ग . ... श्रराम की अन ¡कम्पा स § ह हाल ह में

12 47 2015 21

ि दोनो

डॉ सषम बदी

छत स फशथ तक क लब शीशो स जड़ी उस बड़ी-सी बठक म खब सारी ददन की रौशनी भरी हई

री फशथ पर वबछी सफद चादरो पर सफद िसतर पहन ढर सार लोग उस रौशनी का ही वहथसा लग रह

र कमर म घसत ही तारक को लगा जस उस शवतता म घल मौत क सदथपन और जड़ता न अचानक

उसक भीतर को जकड़ वलया ह बीचोबीच फलो की माला चढ़ी एक बड़ी-सी रवत की तथिीर री

वजसका धप दीप और गीता क शलोको स अवभषक दकया जा रहा रा रवत अब तथिीर भर री तारक

की थतबध पवनयायी आख वनथसहाय-सी रजत को खोजन लगी

रजत सारा िि लोगो स वघरा ही रहा रा उसकी मा उसक बचच और दसर ररशतदार कोई न

कोई उसक आसपास रा ही उन दोनो की आख एक दसर स दो एक बार वमली पर रजत अपन स

बाहर नही आ पाया रा तारक न दकसी तरह अपनी शोकभािना वयि कर दी री न भी वयि करता

तो कया रजत को तो खद भी अहसास होगा उसकी अतभाथिना का एक िही तो ह इस भीड़ म जो

जानता ह दक िह कयो यहा ह बाकी तो तारक दकसी स पररवचत ही नही वसिाय कछक रवत क

कलीगज क एक दो कलीगज स ही उसकी बात हई रवत क बार म ि उस पररिार का वमि मानकर

बात कर रह र य पररिार का वमि तो िह रा ही पर इसस अलग या ऊपर भी कछ रा यह शायद

रजत क अलािा और कोई नही जानता रा जबदक रजत भी परा कहा जानता ह खास तौर स िह सब

कछ जो तारक महसस करता रहा ह या जो कछ तारक और रवत क बीच म रहा या अभी भी वजसका

बहत कछ बचा रा

य तारक न बहत बार सोचा दक अब रवत नही रही तो उसक यहा जान का कोई फायदा नही

उसकी तकलीफ बढ़गी ही दफर लगा दक नही उस रजत स वमलन जाना होगा रजत भी तो उसका

दोथत ह य रवत उन दोनो क बीच न होती तो ि शायद बहत गहर दोथत हो सकत र दफर भी िह खद

को कई तरह स रजत क करीब महसस करता रा और रजत भी बहत मामलो म उसी स सलाह करक

चलता रा उस पर भरोसा करता रा जो दक उसक मन क दोथती क भाि को ही जताती री चदक

तारक की विशषता ददल क रोगो म री िह रवत क हारथअरक क बाद स उसस अकसर रवत क बार म

सलाह लता यहा तक दक रवत स भी कोई वशकायत होती तो तारक स ही कहता दखो न इसका

कोलथराल इतना हाई चल रहा ह और मडम चीज मीर सभी कछ खाती ह अभी रथतरा ल चलो परा

का परा थरक गरक जायगी कस कर यह तो खद को नकसान पहचान स बाज नही आतीrdquo और तारक

तब ररका दता कसी डाकरर हो तम रवत मरीजो को उपदश दती रहती हो और खदhellipदफर उसन

खद ही एक विशषण गढ़ा रा रवत क वलए lsquoनानकपलायरrsquo यानी दक जो कछ भी कहा जायगा उसका

विरोध ही करगी रवत और दकसी िजह स नही बवलक विरोध करन क वलए विरोध

तब रवत और भी तिर चढ़ाकर बोलती rdquoरजत तो पहल ही मर पीछ पड़ा रहता ह अब तम

भी इसी स वमल गय हो िाह जी िाह दोथत दकसक हो तम मर या रजत कrdquo

तारक तब चप रह जाता रा रजत भी कछ नही कहता एक वपरय अवपरय सतय

शायद रवत भी इसीवलए कहती री दक तारक तब लाजिाब हो जायगा कयोदक रवत जानती ह दक जो

िह तारक क वलए ह िह और कोई नही हो सकता और रजत को भी इसका अदाज ह इसी स रजत न

शर म चाह दकतना विरोह दकया हो दकतना लड़ाई झगड़ाhellip दफर धीर-धीर मान वलया रा इस ररशत

12 47 2015 22

को रवत क वलए ही अगीकार कर वलया रा तारक को भी रवत न ही उस बतलाया रा जब रजत न

उस बाहो म भरकर कहा रा rdquoइतना पयार करता ह तमह दक यह भी थिीकारन क वलए राजी हrdquo

एक हक-सी उठी री तारक क भीतरhellip वजस इतना पयार वमला होhellip इतनाhellip िह इस तरह स

उन दोनो की वजनददगी को ही सना करक रखसत हो ली तारक क मन म गथसा भी आयाhellip शायद

अपनी सहत का धयान रखती तो कछ और जी जाती उन दोनो स ही तो चार-पाच साल छोरी री िह

जी भी सकती री पर अबhellip और तारक न लबी सास भरी

रवत की एक कलीग बता रही री rdquoपरसो तो काम पर आयी हई री रवत म सोच भी नही

सकती री दक इतना भारी थरोक हो सकता ह दक एक ही लपर म ल जायhellip मझ तो विशवास ही नही

होताrdquo तारक को भी विशवास नही होता रा उसी ददन सबह रवत न उसस फोन पर बात की री और

उसस मजाक दकया रा rdquoमर जनदमददन पर आओगrdquo

दरअसल सारा झगड़ा कछ साल पहल रवत क जनदमददन को लकर ही शर हआ रा िनाथ शायद

रजत को उन दोनो क बीच बढ़त ररशत की तवनक खबर न लगती रवत न उस बतलाया रा दक उसक

जनदमददन पर िह और रजत आमतौर पर शाम को बाहर दकसी बदढ़या स फर च रथतरा म खाना खान

जात ह तब तारक न कहा रा rdquoठीक ह तो लच तम मर सार लनाrdquo

रवत मान गयी री उसन उसी ददन रवत क शहर पहचन क वलए फलाईर भी बक करिा ली

री पर जब ठीक जनदमददन आनिाला रा तो रवत न उस बतलाया रा दक रजत को ठीक नही लग रहा

मरा तमहार सार लच पर जाना िह पछ रहा रा दक इतना इमपॉरर कस हो गया यह आदमी दक

तमको उस जनदमददन पर जरर वमलना ह

rdquoतमन कया कहाrdquo तारक वजजञास हो उठा रा

rdquoयही दक तमको दकसी काम स शहर म होना रा इसवलए लच पर वमलन की बात की इस पर

उसन कहा दक अगल ददन वमल लो जनदमददन िाला ददन तो उसी क वलए हhellip कोई और कयोrdquo

दफर िह बोली rdquoइसी पर उस शक हो रहा ह दक यह कोई आम दोथत नहीhelliprdquo

तारक न जोड़ ददया रा rdquoपरमी हrdquo

rdquoहा यही शक हो रहा ह उसrdquo

rdquoतो ह या नहीhelliprdquo

rdquoशायद होhellip यही मसीबत हrdquo

तारक न कहा रा rdquoअब तो ररकर ली हई ह म तो आऊगा ही तम वमल सको तो वमलना िनाथ

न वमलना चाह पाच वमनर क वलए या कॉफी क वलए भी आ जाओगी तो मर वलए िही काफी होगा

तमहार जनदमददन पर तमह दख भर लrdquo

rdquoतम भी कमाल क रोमाररक होhellip पर सच कह तो म भी तमस वमलना चाहती ह उस ददनhellip

कछ न कछ तो जगाड़ना पड़गाrdquo

rdquoमर वलए तमहारा जनदमददन मरी वजनददगी का बहत अहम ददन हhellip समझीrdquo

एयरपोरथ पहच कर तारक न फोन दकया रा रवत बोली री rdquoरजत कह रहा ह तम हम वडनर

पर जॉयन कर लोrdquo

तारक बहत हरान हआ रा पर रवत न फोन रजत को पकड़ा ददया रा तारक एकदम सकर म

पड़ गया रा उसन खद को बचान की कोवशश की rdquoसॉरी म तो यहा आया रा तो सोचा रवत स वमल

लगा पर इस तरह आप लोगो क परोगराम मhelliprdquo

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रजत न जोर दकर कहा रा rdquoनही भाई बहत तारीफ सन रहा ह बीिी स जरा हम भी तो

वमल आपस आप चाह तो घर पर आ जाईए या दफर सीध रथतरा पर वमलगrdquo

rdquoपर आप लोगो का तो वडनर पर सार जान का कायथकरम रा नrdquo

rdquoआप लच पर फरी ह तो लच पर वमल लत ह य मझ तो वडनर ही पसद ह जसा आप कहrdquo

रजत वबलकल दोथताना ढग स बात कर रहा रा एक पल को उसकी रोन म कछ तनाि तारक

को महसस हआ रा पर अगल ही पल आिाज दफर सहज हो गयी री तारक मान गया पर रकसी लकर

पहल होरल म सामान छोड़ा और इस दौरान खद को मानवसक तौर पर तयार भी करता रहा दक कस

पश आना ह अपन रकीब स दखा जाय तो ररशता रकीब का ही रा बाकी ि दकतन भी सभय या

समझदार इसानो की तरह एक-दसर स बताथि कर आवखर ि तीनो सममावनत पश क र तारक हारथ

थपशवलथर रा तो रजत अगरजी सावहतय का परोफसर और रवत सायकायररथर इसानी मन की

कमजोररयो को समझना मनोरोगो का इलाज करना रवत की विशषता तो री ही पर इसानी आकषथण

एक दसर क परवत सखचाि या ऐस ररशतो को समझन की सथकवत तो कही तीनो म ही री

रजत इस बात को खब समझता रा दक दकसी भी औरत क वलए दकसी दसर परष क परवत

सखचाि हो जाना बहत सहज रा िही एक पवत और पतनी स परम करन िाल क रप म िह रवत क इस

वयिहार स ईषयाल भी हो उठता रा एक सभय इसान क नात िह ईषया को दबा कर तारक क परवत भी

वमिित वयिहार करना चाहता रा पर िही उस रवत क वयिहार स कि पहचता रा दक िह उसक

अलािा भी दकसी दसर परष को चाह सकती ह वजसस उसक मन म आकरोश और वितषणा का भाि

उठता कभी िह अपन को उदार बना कर यह कहना चाहता दक रवत अगर दकसी दसर को चाहती ह

तो बशक उसको भी कयो न पाय सार ही जब करोध होता तो एक तरह स जस िह रवत को सजा दन क

वलए कह डालता rdquoतम जाओ दोनो सार रहोrdquo पर जो पीड़ा िह उसम सह रहा होता िह रवत और

तारक दोनो क वलए ही असहय होती

रवत न कहा रा rdquoकया तारक और म दोथत नही हो सकत और इतन दोथत हhellip एक िह वयवि

वजसस बात करक मझ खशी वमलती ह िह दोथत कयो नही बन सकता वसफथ इसवलए दक उसक मन म

तीखी भािना ह मर वलएhellip या शरीरो का आकषथण भी हhelliprdquo

रजत तब तकथ स सारी बात को समझन समझान की कोवशश करता हा करत-करत कह दता

rdquoऔरत आदमी म दोथती हो ही नही सकती कयोदक जहा शरीरो का आकषथण हो िहा दोथती जसा

वनषकपर भाि कस पनप सकता हrdquo तब रवत दोथती का एक और पकष पश करती rdquoतमहार कहन का

मतलब तो िही ददकयानसी बात हई दक शरीर पाप का मल ह जबदक तम खद ही यह पहल कह चक

हो दक शरीरो का मसला हल हो जाय तो औरत मदथ बहत खबसरत दोथत हो सकत हhellip शरीर को

अहवमयत दी कयो जाय शरीर वमल जान स उनका दोथती म बाधा बनन का मसला खतम हो जाता हrdquo

रजत रवत की बात मान भी जाता रा पर रवत दफर तारक को यह भी बताती री rdquoिन कार

रक वहम फॉर गरारड कल को िह अपना कोई नया तकथ द दगाrdquo

शायद इसी स तारक भी अचानक वहममत हारन लगा रा कस सामना करगा िह रजत का य

िह रजत स एकाध बार पहल वमल चका रा पर तब उसको यह अदाजा नही रा दक रवत और उसक

बीच कछ रा जबदक तारक तब भी कछ आतमसजग-सा हो रहा रा पर कछ वमनरो की मलाकात को

सभाल लना कोई बड़ी बात नही री और य भी रजत उस भला आदमी लगा रा यह भी सोचा रा दक

अगर रवत उन दोनो क बीच न होती तो यह वयवि उसका दोथत हो सकता रा य रवत क होन क

बािजद अतत ि दोथत बन ही पर इस दोथती का तानाबाना िसा न रा जस खावलस दोथती का होता

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ह इसम रवत क रश बन हए र जो एक और ही रगत वलए र और िह रगत तारक को बहत पयारी री

उस दोथती स जयादा

तारक न होरल पहच कर फोन कर ददया रा दक वडनर पर वमलना ही ठीक रहगा और िह

अपना काम इस दौरान कर लगा रजत आसानी स यह बात मान गया और कहा दक िह सडरकस पर

पहल घर पर आ जाय उसक बाद रथतरा खाना खान चल जायग

शाम को जब िह चलन लगा तो फोन बजा रा दसरी ओर रवत री हलो कहत ही रवत न

कहा rdquoसनो तम मत आना मर घर म बहत रशन चल रही हrdquo इसस पहल दक िह कछ कहता रवत न

फोन वडसकनकर कर ददया

रात को कोई फलाईर नही जाती री िनाथ िह उसी िि शहर छोड़ क चला जाता

आध घर बाद ही घरी दफर बजी रवत पछ रही री दक आ रह हो तारक बौखला गया दक आवखर हो

कया रहा ह कया यह रवत क मन की उलझन ह या दक रजत कीhellip या दोनो कीhellip या रवत वसफथ रजत

की उलझन को वयि कर रही री बोली री rdquoजलदी आ जाओ हम लोग इतजार कर रह हrdquo

िह पहचा तो रवत न अकल ही उसका थिागत दकया रा िह जानता रा दक दोनो बचच कालजो

म ह पर रजत काफी दर तक बठक म नही आया तो तारक हरान हआ रवत बोली rdquoिह नहा रहा हrdquo

दफर मथकरा कर जोड़ा rdquoशायद हम दोनो को कछ िि दना चाहता हrdquo

तारक तब कछ निथस हआ रा उस आग बढ़कर रवत को चमन का हौसला नही हआ उस लगा

दक रवत भी सहज नही री जस दक आम तौर पर होती ह पर उसन कछ कहा नही िह खद भी तो

सहज नही हो पा रहा रा जस लड़की क बाप क घर म शादी का परथताि लकर जा रहा हो कछ कछ

इसी तरह का महसस हो रहा रा िही डर कर परचा करना रा दक इमतहान म फल न हो जाय

रजत न कमर म आत ही बड़ तपाक स हलो दकया कछ औपचाररक-सी बात की दफर उसस

सडरक पछा और दकचन म बफथ िगरह का इतजाम करन क वलए दफर स गायब हो गया तारक को लगा

दक सहज होन की बहत कोवशश क बािजद रजत बहत असहज ह

ववहथकी का घर लत हए तारक न ही रजत स उसक काम क बार म पछना शर दकया बात

कही जा नही रही री तभी रवत एक नई दकताब की चचाथ करन लगी वजसका ररवय सबह क अखबार म

छपा रा तारक न हिाई जहाज म ही उसक बार म पढ़ा रा दफर तो बातचीत खब गरमागरम होन

लगी रजत न दवकषण एवशयाई अगरजी लखको क बार म अपन विचार झाड़न शर कर ददय यहा तक

दक रवत न अचानक घड़ी दखी तो पता चला दक रथतरा की ररजिशन का िि हो चका रा रजत न

रथतरा को फोन दकया दक कछ वमनर लर पहचग और तारक को बोला दक जलदी स सडरक खतम कर ल

या गाड़ी म ही ल चल दोनो न दो तीन सडरक चढ़ा रख र मौज-सी भी आयी हई री रजत ही कार

चला रहा रा और तारक पीछ िाली सीर पर बठा रा अचानक रजत कछ नश और कछ अपनी धन म

बोला rdquoतो तम मरी बीिी स पयार करत होrdquo

तारक भौचक-सा हो गया य ही बठा रहा जस रजत की बात को सना न हो या िह गभीरता

स लन लायक न हो रजत न अपनी बात को सिाल बनाकर दबारा पश दकया rdquoकयो तारक मरी बीिी

स पयार करत हो या नहीrdquo

तारक न कहा rdquoहाrdquo और चप कर गया उस लग रहा रा िह जो भी जिाब दगा खतर स खाली नही

पर यह जिाब सच रा तो सच बोल कर ही मार खायी जाय उस दकसी लड़की क वपता स हार मागन

नही जाना पड़ा रा आज यह भी सही

rdquoतम भी पयार करत हो िह भी करती ह तो तम दोनो सार कयो नही रहतrdquo

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तारक बोल पड़ा रा rdquoयह इतना आसान नहीrdquo

रजत इस पर आकरमण करता-सा बोला rdquoकमाल ह पयार भी करत ह और वजममिारी भी नही

वनभाना चाहतrdquo तारक को महसस हो रहा रा दक रजत कह तो कछ रहा ह और पहचाना कछ और

चाहता ह दफर भी िह जिाब तो उसी बात का द सकता रा जो दक पछी जा रही री यह कह कर

उस नाराज भी नही करना चाहता रा दक रजत वसफथ अपन भीतर क आकरोश आतक और आग को

आिाज द रहा रा बोला rdquoयह बात नही म आज भी रवत क सार वजनददगी शर करन को तयार ह

जहा तक म जानता ह रवत अपन शहर को छोड़ कर और कही नही जायगी न िह तमको छोड़न को

तयार होगी जहा तक म रवत को जानता हhelliprdquo

रवत चपचाप अपन पर अकश लगाय दोनो की बात सन रही री न तो िह रजत क पकष म

कछ बोलना चाहती री न तारक क पकष म ही बोल सकती री दफर भी दोनो क बीच तारतमय वबठाय

रखन की वजममिारी भी उसी की री और िह समझ नही पा रही री दक दकस तरह इस बातचीत को

सीमाय लाघन स बचाया जाय ऊपर स उस डर लग रहा रा दक आिश म रजत कही रककर न मार द

रथतरा बहत दर रा भी नही बात पर चरम पर चल रही री दक रथतरा आ गया रवत न रोका rdquoरजत

पारककग ढढ़ो रथतरा आ गयाrdquo रथतरा क सार ही पारककग गराज म गाड़ी छोड़ कर तीनो अदर चल गय

िरर न उनको मज पर वबठाया और सडरक क वलए पछा तरा मनदय लाकर ददय तीनो क तीनो उस मज

पर इस तरह खामोश और भर बठ र दक मनदय म वसर डबोना एक राहत बन गया रा तीनो न अपन-

अपन आडथर ददय पर बात कछ बन नही रही री हर कोई कछ भी कहन म जयादा ही सतकथ हो रहा रा

अचानक रवत बोली rdquoरजत तमको इतनी जयादा तकलीफ री तो तमन मना कयो नही कर

ददया म तो तारक को कह चकी री दक आज सार खाना नही होगा तमही न जोर ददया दक जरर

बलाओ अब इस तरह कयो बताथि कर रह होrdquo

रजत और भड़क गया rdquoम तो वसफथ यह कह रहा ह दक तम लोग एक-दसर को पयार करत हो

तो म कया कर रहा ह यहा तम जाओ एक दसर क सार रहोrdquo

दोनो की आिाज ऊची हो रही री और दसरी मजो पर बठ लोगो की वनगाह इस ओर उठ आयी री

तारक न धीर स सझाया रा rdquoमर खयाल स हम य बात यहा नही करनी चावहएrdquo सहसा रवत

न होश म आत कहा rdquoहा इतन बदढ़या रथतरा म खाना खान आय ह कछ खान पर भी तो धयान दhellip

दफर आज मरा जनदमददन ह आई िार र हि ए गड मीलrdquo

दफर भी खान पर तीनो म स दकसी का धयान नही लग सका तीनो औपचाररक-सी बात म लग

गय र तारक न ही शहर क निीनतम रथतराओ क बार म ताजा पढ़ी समीकषा का वजकर छड़ ददया रा

रजत न कार स जब उस होरल छोड़ा तो तारक न उपर कमर म आकर सडरक लन क वलए कहा

पर जसा दक िह अपकषा कर रहा रा रजत न दर होन का बहाना बना छटटी माग ली री रवत तब भी

कछ नही बोली री शायद उस डर रा दक उसका कछ भी कहना रजत क वलए घाि पर नमक वछड़कन

जसा होगा या उसकी कोई भी बात का गलत मतलब वनकाल कर रजत भड़क सकता रा य दर हो भी

चकी री

पर तारक यह भी जानता रा दक रवत एक नबर की वजददी री जो उस चावहए रा चावहए ही

रा उस रोका नही जा सकता रा िह ऊपर स मान जायगी पर भीतर स कभी माफ नही करगी

शायद इसी स रजत भी वबगड़ी हई लाड़ली बरी की तरह रवत की हर चाह या माग को विरोध करक

भी अतत मान जाता रा

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लौर आन क दो चार ददन बाद ही उसक फोन पर रवत न सदश छोड़ा रा rdquoतमहारा आना ठीक

नही हआ सॉरी तमह बलाकर भी वमल नही पायी अब लगता ह कभी नही वमलगी लर अस थरॉप

ददस वहयर पलीज मझस सपकथ मत करनाrdquo

तारक बहत ददन परशान घमता रहा रा पर रवत को फोन भी नही दकया उसन मना जो कर

डाला रा उस फोन करत हए तारक को लगता दक िह खद को उस पर लाद रहा ह और यह वथरवत

उस कभी गिारा नही री हर ददन दकसी जिालामखी-सा लाि स लदा हआ गजरता अदर ही अदर

सब तप रहा रा

महीन भर बाद रवत न फोन दकया रा rdquoगथसा हो न मझस तमस माफी भी नही माग सकीrdquo

उसकी तो कोई जररत नहीrdquo

दफर भी सोचा रा तमस कभी बात नही करगी इसी स तमको सपकथ करन स मना दकया

रा रजत को भी यही मालम ह दक तमस ररशता तोड़ ददया ह पर अब मझी स बात दकय वबना रहा

नही जा रहाrdquo

रजत को मालम ह मझस बात कर रही होrdquo

िह बहद गथसा ह तमसhellip जस दक सारा दोष तमहारा होhellip दक तमन उसकी बीिी को फसा वलयाrdquo

ि इसी तरह जब मौका लगता बात कर लत तारक क ददल ददमाग पर रवत ही छायी रहती

िह ऐस ही पलो क दौरान जीता जब दोनो क बीच कछ सपकथ होता बाकी क पल उन पलो क इतजार

म गजरत

इस बीच रवत को ददल का दौरा पड़ा रा घबराकर तारक को फोन कर डाला रा रजत न

तारक आया तो रजत उस अपनी गाड़ी म सार अथपताल ल आता जाता रहा दोनो म एक दोथती का

नाता तभी बना रा दवनया जहान की बात रजत न उस घर पर ही ठहराया रा तारक तीन ददन बाद

चला गया रा िावपस पर दोनो की फोन पर बात हो जाती रवत अथपताल स िावपस आ गयी री

धीर-धीर िह सामानदय होकर िावपस अपना काम सभालन लगी

रवत का जनदमददन दफर स आनिाला रा रवत न उस कहा रा rdquoरजत अपन आप ही बोल रहा ह

दक तम आ जाओ इस बार मरा जनदमददन मनान बोलो आओगrdquo

तारक परानी बात याद करक घबरा गया रा rdquoनही दफर स उसक भीतर सब घमड़न लगगाhellip

सबको तकलीफ होगीrdquo

यह सच भी रा रजत कभी तो उसक परवत बहत वमिित हो जाता िही अचानक गथसा ईषयाथ

उभर आत और िह अकसर बरखी ददखाता अचानक तारक को ऐसा महसस हआ जस रवत उसस खद

यह सब कह रही हो पल भर को िह भल ही गया दक रवत क ही अतयवि कमथ म िह शावमल हआ ह

और दरअसल उसक यहा आन की एक िजह यह भी ह दक िह रवत को वलख अपन खत िावपस ल

जाना चाहता ह उस डर ह दक कही ि खत रजत क हार न पड़ जाय

तारक रवत क सार काम करन िाली इस मवहला डॉ लोपज स पहल वमला हआ रा इस भीड़

म एक िही जान-पहचान की री तारक का मन हआ उसस पछ दक कया िह रवत की दराज म उसक

कागजात पर नजर मार सकता ह तारक को अदाज रा दक उसक खत िह दफतर की मज की दराज म

रखती री पर िह जानता रा दक ऐसा करना ममदकन रा नही आवखर तारक को कस हक पहचता रा

रवत की दराज खलिान का िह तो एक पररिार क वमि की हवसयत स िहा रा रजत ही कह सकता

रा दखा जाय तो ि लोग खद भी रजत स ही कहग दक रवत का सामान िह ल जाय तब तो रजत की

आख जरर उन पर पड़गी तब शायद उसको बरा लगगा दक रवत क सार तारक का एक अपना ररशता

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रा उन तीनो की आपसी दोथती क बाहरhellip रजत को बतहाशा चोर लगगी अब जबदक िह रवत स

जिाबतलबी भी नही कर सकता रवत अब कोई सफाई नही पश कर पायगी तारक क हक म कछ भी

नही कह सकगी दकसी तकथ स रजत को लाजिाब नही कर पायगी नही िह ऐसा नही कर सकता न

यह रवत क परवत सही होगा न रजत क परवत उस दकसी न दकसी तरह स खत पान ह

राथत म आत हए हिाई जहाज म तारक जब लगातार रवत क सार की अपनी वजनददगी क

गजर पल दहरा रहा रा बार-बार उस धयान आता दक जब स रवत को ददल का दौरा हआ रा िह

उसस कहना चाहता रा दक उसक खत विनि कर द एक बार उसन बात उठायी तो रवत बोली rdquoकयो

तमहार खत मर दफतर की दराज म सफ पड़ हrdquo

शायद िह वबना कह यह भी समझ गयी री दक तारक का इशारा दकस ओर ह तभी बोली

दखो जब तक म वजनददा ह म उनको फाड़ कर न तो फ क सकती ह न जला सकती ह एक बार मर गयी

तो कया फकथ पड़ता ह दक कोई कया करगा उनक सार तमको तो दफकर होनी नही चावहए अब तो ि

मरी अमानत हrdquo यह बातचीत दो एक महीन पहल की ही होगी तारक न सोचा रा बात कभी दफर

उठायगा पर उसस पहल हीhellip

तारक को भी तब यह अदाज नही रा दक रवत क अलािा रजत स भी उसका नाता रा रवत क

जान क बाद िह खद को रजत क बहत करीब महसस कर रहा रा और उस लगा दक उसक खत रजत

को उसस दफर दर धकल सकत र पर िह दकसी तरह भी रजत को खोना नही चाहगाhellip रजत जस स

रवत का ही एक वहथसा राhellipउसन दखा लोगो स वघरा रजत का चहरा बहद वनचड़ा हआ रिहीन और

सखा-सा लग रहा रा रात भर सोया नही होगा इसवलए आखो क नीच कालापन उतर आया रा आख

काफी अदर को धसी हई री तारक को लगा दक िह शायद रजत स बहतर हालत म ह दफर उस रशक

भी हआ रजत अपन गम का खला इजहार कर सकता हhellip तारक को यह सविधा नही री िह दकसी

उजड़ आवशक क रप म इस महदफल इस मौत का शोक करन िालो की महदफल मhellip अपना असली

चहराhellip अपना आवशक का चहराhellip नही ददखा सकता रा अचानक उसकी आख भर आयी अपन खोन

की वशददत क अहसास स

रवत क िाकय उसक कान म सरसरान लग जबस उस ददल का दौरा पड़ा रा िह जीिन की

कषणभगरता या इसान क नाचीज होन क अवथततििादी दशथन को बहत बघारन लग गयी री शायद

अपन जान का अहसास उस कही बहत गहर उदास कर जाता रा पर िही िह उस जान को एक

अिशयभािी अकारय सतय की तरह थिीकार करक उसस समझौता भी करन लग गयी री एक ददन

उसन हडसन नदी क दसर वसर स मनहरन की ओर दखत हए कहा रा rdquoदखो तो इन छोर-छोर वडबबो

म दकतन लाखो लोग रहत ह दकतन छोर ह हम लोग इतनी तग जमीन पर दकतनी बड़ी तादाद म

समा जात ह एकदम हजारो की सखया म सार-सार जड़ कीड़ो की तरह दफर भी अपन आप को

दकतना बड़ा मानत ह राजनीवत धमथ और नवतकता की तवखतया वचपका कर दकतना बड़ा होन का

भलािा दत रहत ह खद कोrdquo

रजत को रवत की इसान को नाचीज करार दन िाली बातो स हमशा बहत वचढ़ छरती री

बोला रा rdquoधमथ नवतकता जीिन क सतय ह इनको तम भलािा दन िाली चीज कस कह सकती हो

इसान इसीवलए तो बाकी जीिो स अलग ह दक िह सोच सकता हrdquo

rdquoऔर सोच क धरातल पर हर चीज को गलत या सही सावबत कर सकता ह नवतकता को गढ़

सकता ह या परा सतयानाश कर सकता हhellip ठीक ह मझ तो उसम कोई नकसान नहीrdquo

12 47 2015 28

हा नकसान दकसी का ह तो मरा ही रजत न कहा तो तारक झर स बोल पड़ा रा rdquoनकसान

तो तब होता जो म उस भगा क ल जाताrdquo

रजत न सजीदगी स कहा rdquoअब इसका ददल बर गया हhellip तो आधी सपवतत तो लर ही गयी न

तम भगा ल जाओ तो भी फकथ नही पड़गा यह आधािाला वहथसा तब भी यही रहगाrdquo

सचमच रजत का यह विशवास सही रा रवत और उसक ररशत की शरआत क ददनो म भािना

क परिाह म बहता तारक रवत क सार एक नयी वजनददगी क दकिाड़ खोलन की बात सोच पाया रा पर

जलद ही उस अहसास हो गया रा दक रवत कही बहत गहर जड़ी री रजत क सार दक िह कभी उस

ररशत को तोड़गी नही य रजत भी शर क ददनो म भीतर स वहल गया रा यह झरका दक रवत रजत

को छोड़ दकसी और को मन म ला सकती ह उस बहत दर जा फ क आया रा दफर रवत न खोय विशवास

को िापस लौरा ददया रजत अपन आध नकसान क सार धीर-धीर शायद समझौता करना सीख गया रा

तारक को लगा दक िह आध क सार समझौता करना सीख गया रा दफर तारक को लगा दक

िह आध क सार समझौता नही रा रजत क भीतर कही पर का भरोसा भी रा जस दक रवत को वसफथ

एक बदलाि चावहए रा जो तारक रा िनाथ िह परी रजत की ही री कयोदक मौका आन पर रजत

अपना परा हक जतान स चकता नही रा हमशा यही मानता रा दक पहला हक उसी का ह तारक

हमशा बाद म आयगा जस दक पर भर लन पर बचा हआ भोजन दकसी को भी ददया जा सकता हhellip

कछ ऐसा रख

पर रवत बचा हआ भोजन नही रीhellip दकसी तरह स भी उवचछि या अिवशि नही जो उसन

रवत म पाया रा िह पहल वजनददगी म कभी नही वमला रा रवत न उसकी पहचान करायी री

पररपणथता स रवत को जानना ही जस उस सपणथता को छना रा शायद रजत न भी रवत म ऐसा कछ

पाया रा जो आम औरतो स अलग रा रवत शादी क इतन बरस बाद भी उस अपन म उलझाय री और

िह उसस मि नही होना चाहता रा रवत म बाहरी खबसरती क बािजद वयवि क ददमाग को भी

उलझाय रखन का जो गण रा उसस सच म जो भी पास आता और सखचता जाता रवत म भरपर

पयार लन की चाह री तो भरपर दन की कषमता भी इसी स अभी भी उसस जी तो नही भरा रा रजत

का शायद िह ऐसी औरत री जो हमशा वनत निीन होती रहhellip सौदयथ की एक पररभाषा यह भी तो

दी गई ह दक जो वनत नतन होता रह िही सौदयथ ह रवत भी कभी परानी नही पड़ती रोज कछ नया

होता ह उसक पासhellip कोई नया खयालhellip कोई नई सझhellip कोई नई उकसान उलझान िाली बातhellip

शायद इस ददमागी सौदयथ कहना होगाhellip जो कछ भी उसम राhellip बस खीचता रा अपनी ओरhellip मोहता

राhellip शायद कया पर उगली धरना उस पररवध म बाधन की भोडी कोवशश होती

कछ दवदव उठता तो रवत रजत क ही हक म बोलती री रजत क वहतो को सरवकषत कर लन क

बाद ही िह तारक को उसका हक दती तारक को खीझ भी होती दक रजत उसक जीिन म चदक पहल

आ गया रा इसीवलए हर चीज म ही पहला हक उसी का बनता ह पर उसन रवत स अपनी यह

मनवथरवत कभी जावहर नही होन दी री वपछल साल िलनदराईन ड पर ऐसा ही तो हआ रा दरअसल

दोनो को अदाज नही रा दक उस िीक ड पर िलनदराईन ड पड़ता रा तारक को दकसी काम स रवत क

शहर आना रा और दोनो न वमलन का कायथकरम बना डाला रा रजत स रवत की बात हई होगी तो

उसन भनकर कहा रा rdquoतो िह तमहारा िलनदराईन ह जो उस ददन आ रहा हrdquo रवत क कहन पर दक उस

तो याद भी नही रा िह बोला रा rdquoम नही मान सकता दक तारक न य ही आन का बनाया ह इस

िीक ड परrdquo रवत न तारक स सारी बात बतलायी तो उसन सोचा रा िह खद फोन पर रजत स कहगा

दक उस सचमच याद नही रा पर दफर बात बढ़ान न दन क वलए चप रह गया रा और जान का

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परोगराम भी थरवगत कर डाला रा तब उस दो बात तकलीफ दती रही री एक तो यह दक रजत हमशा

उसक सामन परारवमकता ल जायगा दसरी यह कड़िी सचचाई दक रवत कभी भी उसकी जावहरी वजनददगी

का वहथसा नही बन सकती री उसकी कमर म हार डाल कर िह कभी दकसी स यह नही कह सकता

रा रवत मरी हrdquo तब उस बहद रशक होता रजत स कया रजत को सचमच अहसास ह दक रवत तारक

क वलए कया ह दक िह उसकी वजनददगी का कनदर उसकी वजनददगी का अरथ बन चकी ह यह कोई हलका-

फलका ठरकपन नही उसकी वजनददगी का रशा-रशा गर गया ह रवत स शबद म अरथ की तरह समायी ह

रवत उसक अवथतति म इस गरन म िह खद ही घरता रहगा हमशा

अब रवत नही ह तो िह घरन और भी कस रही ह उस कया अब िह रजत स कह पायगा

अचानक उसका मन हआ दक रजत स कह द rdquoतमको मालम ह दक मझ सचमच पता नही रा दक उस

ददन िलनदराईन ड रा िनाथ ऐसी जरथत न करताrdquo दक िह जानता हhellip अचछी तरह समझता ह अपनी

और उसकी ररीररी की पररवधयो को दक रजद शायद कभी जान न पायगा पर उसन हमशा एक दोथत

की तरह रजत का रजत की जररतो का खयाल रखा हhellip वसफथ ऊपर-ऊपर स सामावजक उपचार की

तरह नही भीतर स दकसी ददली ररशत सhellip दफर िह ररशता चाह रवत क जररय स ही बना हो

हो सकता ह रजत यह सब महसस करता हो या न भी करता हो पर उसक चहर पर भी वमिता

का थिागतमय भाि हमशा ददखा ह तारक को वसिा उन कषणो क जब दक सचमच उन दोनो क बीच

lsquoररररोररयलrsquo झगड़ हए तब भी ि शायद इसानी आचार या परथपर सदभाि की सीमाओ को कभी

लाघ नही पर दफर भी तारक का रवत क सार का ररशता ऐसा नही दक रजत क सार वजस बार सक

रवत उसकी हथती का अवभि वहथसा ह िह कोई और कस हो सकता ह रजत रवत नही हो सकता

चाह उसक दकतन ही करीब रहा हो उस दकसी न दकसी तरह स अपन खत पान ही ह लदकन कस

और यही तारक बार-बार उलझ जाता ह अपनी यह परशानी िह दकसी क सार बार नही सकता

रजत स तो कतई नही खत अगर सचमच रजत क हार पड़ गय तो

लदकन रवत न यह भी तो कहा रा दक अगर िह नही रही तो कया फकथ पड़ता ह पर रजत

सचमच खत पढ़ ल तोhellip शायद उसकी पीड़ा पर तब करोध और घणा का कोई विकराल भत हािी हो

सकता हhellip हो सकता ह दक खत पढ़कर रजत रवत को खद स वछरक द लदकन उसस कया तब शायद

रवत और भी तारक क करीब आ जाय और भी उसकी अपनी हो जाय वसफथ उसी की समची एक रात

पहल उस ऐसा ही कछ सपना आया रा रवत की मौत की खबर क बाद यही उसका याद रह जानिाला

सपना रा िह रवत की अतयवि म गया ह और एक अधरा-सा बठकनमा कमरा हhellip कमर म कछ

कागज वबखर पड़ हhellip िह एक कागज उठाता हhellip िह उसी का रवत को वलखा खत हhellip और कई लोग

उसक आसपास ह और िह सोचन लगता ह दक कही इन लोगो न भी तो उनदह नही पढ़ाhellip तभी रजत

का चहरा उसकी ओर बढ़ता ह और िह कागज वछपान की तरकीब सोचन लगता हhellip इसी उधड़बन म

उसकी आख खल गयी री तो वजथम पसीन म नहाया हआ रा

एक रजत ही यहा उसक सबस करीब हhellip और रजत ही उस अजनबी-सा लगन लगा ह अब

तक उसका रवत का सदभथ रा अचानक उस सदभथ स करकर न होन जसा हो रहा ह तारक को अजीब-

सी मानवसक दरी और भयकर अकलापन-सा महसस हआ िह यहा आया ही कयो रा रवत की

नामौजदगी म दकतना बमानी ह उसका यहा होना रजत को भी दकतना दफजल-सा लग रहा होगा

उसका यहा उपवथरत होना वजन लोगो स वघरा ह ि तो सचमच उसक अपन हhellip तारक तो दर स भी

अपना नहीhellip मत स तारक का जो भी नाता रहा होhellip उसक दकसी दसर स तो नही रा उसक कॉलज

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कामो स लौर बचच भी तारक को पहचानत नही र तारक न ही उनकी शकलो और वयिहार स अदाज

लगाया रा और हॉलि म लगी तथिीरो स उनदह पहचान पाया रा

तारक क पास रजत स कहन को कछ नही रा उसका कछ भी कहना रजत को खल सकता रा

उलर तारक को लगन लगा दक रजत शायद सोच रहा हो दक अब कयो जखमो को याद ददलान आ गय

हो कछ भी हो तारक न उस पीड़ा तो पहचायी ही री कया अब उसका कछ भी करना रजत क कि को

कम कर सकता रा उसन वनगाहो स ही अपना दख बयान कर ददया जो शायद रजत न थिीकार भी

वलया राhellip शायद एक औपचाररकता की तरह जस िह दसर बहत स जमा लोगो की शोकावभवयविया

थिीकार रहा राhellip उसस कछ अलग नही शायद तारक का िहा होना ही रजत को खल रहा हो पर

िि की नाजकी की िजह स िह कछ कहना न चाह रहा हो तारक एकदम परशान-सा उठ खड़ा हआ

कछ लोग रजत क गल लग रह र शायद उसस विदा लकर जा रह र तारक न सोचा िह अब

कहगा दक रवत क पास कछ उसक जररी कागजात र अगर रजत उस कागजो िाली जगह पर ल चल

तो िह खद ही दख लगा तारक यि की गवत स रजत की ओर बढ़ा रजत जस दकसी को दख कर भी

दख नही रहा रा उसकी आख दकसी शनदय पर ररकी री तारक को लगा उन लोगो क वघराि म

वजसम उसक अपन अजीज दोथत और ररशतदार र रजत न उस कोई विशष लकष नही दकया तारक क

भीतर अजीब सनापन-सा आ वघरा लगा जस रवत रजत म कही नही री वसफथ भरम-सा हआ रा उस

उसक िहा होन का जस दक उसक रवत क नात स िहा होन म ही कोई भारी असगवत री उस लगा

िहा बठ अजनबी स लोग उस घर रह र उसक िहा होन पर परशनवचनदह लगा रह र पता नही दकतन

ही अजनवबयो स वघर गया रा तारक यहा तक दक रवत की उस तथिीर म भी उस रवत नजर नही आ

रही री िह भी कोई अजनबी छाया री यह दवनया उसकी नही री अगर िह रवत की दवनया रही

भी हो तो वजस रवत को िह जानता रा उस रवत क वलए भी यह दवनया अनवथतति री विसगत री

उसन रजत को बहत सभलत सभलत गल स लगान की औपचाररकता की उस लगा जस िह

दकसी अजनबी को गल लगा रहा रा रवत वजतन उसक अपन पास री उतन और कही नही दकसी क

पास नही दरअसल रवत और कही नही री उसक भीतर रीhellip बस उस रवत को िही अपन भीतर ही

कही सजोय रखना रा भीतर ही खोजना रा भीतर ही तसलली करनी री दकसी और स बार नही

सकता रा रवत को रजत क दोनो कधो को हलक स दबाकर उसन धीर स कहा rdquoरक कयरrdquo और मड़ा

तो वबना पीछ दख बाहर वनकल गया

12 47 2015 31

पासपोरथ अमरीकन मरो

ओम गपता

पासपोरथ अमरीकन मरो पर रगत सहदथतानी

आज सनाऊ तमको पयार अपनी रामकहानी

छोड़ो भारत मन भयया डॉलर दख-दख ललचायो

चार-पकोड़ी जब भी दख मोह म पानी भर आयो

दीिाली पर दीप जलाउ होली पर खल रग

मौको जब मझको लगतो पीतो म भी भग

कसो होगी सरकार हमारी मोक हरदम सचता

जब भी दश पड़ सकर म कपा करो हनमनदता

पज म अब भी राम-कषण जातो मददर रोज

गपशप यारो स करतो फोकर म वमलतो भोज

योगी-बाबा आए दश स जब दन मझको जञान

आख मद क ना कछ जान करतो उनको सममान

हमबगथर अब भी नही भातो भाती मझ कचोड़ी

जसो जब भी मौका आयो रोपी िसी ओढ़ी

जाऊ दश को जब म अपन खाऊ लडड और इमरती

कहतो खद को सहदथतानी अमरीका मरी अब धरती

कहन को बहत ह भयया रोड़ को समझो काफी

बरा-भला लगा जो तमको माग नतमथतक माफी

12 47 2015 32

शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

आकाकषा ह

वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

फर च अनिाद कर इस lsquoभोगिाद स पीवड़त पविम की आतमा को अतयवधक शावत दन िालाrsquo कहा

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ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

की सीमाओ क पर मनषय कया अनभि कर सकता ह उसकी एक झलक भी ददखा दता ह उसी

औपवनषदीय जञान को महरवष िदवयास न सामानदय जनो क वलए ldquoपविि गीताrdquo म सवकषपत रप म परथतत

दकया ह िदवयास की महानता ही ह जो दक 11 उपवनषदो क जञान को एक पथतक म बाध सक और

मानिता को एक आसान यवि स परमातम जञान का दशथन करा सक ldquoपविि गीताrdquo महाभारत क

भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

ह भगिद गीता वहनदद धमथ क पविितम गरनदरो म स एक ह जो इसानो की चौहददी की सीमा रखा पर

भगिान क शरी मख दवारा इसान स कही गयी सरहदो पर चहरो की थकररनी का लखा-जोखा ह यह

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पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

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-मॉडल

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ह 13

Sneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStke Anmol haSy 9` Uuml na3k-sgh Yacute jIvn ke rg Uuml kaVy-sgh Yacute ddeR-jubagt Uuml nJ_m v g_j_l sgh Yacute Aaj ka pu=8 Uuml khanI-sgh Yacute jIvn-ini2 Uuml kaVy-sgh Yacute AaTm-gujn Uuml AayaiTmk-daxRink gIt Yacute has-pirhas Uuml haSy kivta0gt Yacute j_J_bato ka islisla Uuml kaVy-sgh Yacute The Galaxy Within UumlA collection of English poemsYacute AnuwUityagt Uuml kaVy-sgh Yacute kaVy-vlti3 Uuml skln 0v spadn Yacute pUrb-piXcm Uuml AapvasI sMbiN2t Aaleq sgh Yacute bO7ar Uuml skln 0v spadn Yacute kaVy hIrk Uuml skln 0v spadn Yacute sjIvnI Uuml SvaS$y sMbN2I leq Yacute ]pin8d dxRn Uuml AyaiTmk Yacute

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Page 24: Year 12, Issue 47Year 12, Issue 47 vsu2avsu2a · राथत § में आ वबछ §ग . ... श्रराम की अन ¡कम्पा स § ह हाल ह में

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को रवत क वलए ही अगीकार कर वलया रा तारक को भी रवत न ही उस बतलाया रा जब रजत न

उस बाहो म भरकर कहा रा rdquoइतना पयार करता ह तमह दक यह भी थिीकारन क वलए राजी हrdquo

एक हक-सी उठी री तारक क भीतरhellip वजस इतना पयार वमला होhellip इतनाhellip िह इस तरह स

उन दोनो की वजनददगी को ही सना करक रखसत हो ली तारक क मन म गथसा भी आयाhellip शायद

अपनी सहत का धयान रखती तो कछ और जी जाती उन दोनो स ही तो चार-पाच साल छोरी री िह

जी भी सकती री पर अबhellip और तारक न लबी सास भरी

रवत की एक कलीग बता रही री rdquoपरसो तो काम पर आयी हई री रवत म सोच भी नही

सकती री दक इतना भारी थरोक हो सकता ह दक एक ही लपर म ल जायhellip मझ तो विशवास ही नही

होताrdquo तारक को भी विशवास नही होता रा उसी ददन सबह रवत न उसस फोन पर बात की री और

उसस मजाक दकया रा rdquoमर जनदमददन पर आओगrdquo

दरअसल सारा झगड़ा कछ साल पहल रवत क जनदमददन को लकर ही शर हआ रा िनाथ शायद

रजत को उन दोनो क बीच बढ़त ररशत की तवनक खबर न लगती रवत न उस बतलाया रा दक उसक

जनदमददन पर िह और रजत आमतौर पर शाम को बाहर दकसी बदढ़या स फर च रथतरा म खाना खान

जात ह तब तारक न कहा रा rdquoठीक ह तो लच तम मर सार लनाrdquo

रवत मान गयी री उसन उसी ददन रवत क शहर पहचन क वलए फलाईर भी बक करिा ली

री पर जब ठीक जनदमददन आनिाला रा तो रवत न उस बतलाया रा दक रजत को ठीक नही लग रहा

मरा तमहार सार लच पर जाना िह पछ रहा रा दक इतना इमपॉरर कस हो गया यह आदमी दक

तमको उस जनदमददन पर जरर वमलना ह

rdquoतमन कया कहाrdquo तारक वजजञास हो उठा रा

rdquoयही दक तमको दकसी काम स शहर म होना रा इसवलए लच पर वमलन की बात की इस पर

उसन कहा दक अगल ददन वमल लो जनदमददन िाला ददन तो उसी क वलए हhellip कोई और कयोrdquo

दफर िह बोली rdquoइसी पर उस शक हो रहा ह दक यह कोई आम दोथत नहीhelliprdquo

तारक न जोड़ ददया रा rdquoपरमी हrdquo

rdquoहा यही शक हो रहा ह उसrdquo

rdquoतो ह या नहीhelliprdquo

rdquoशायद होhellip यही मसीबत हrdquo

तारक न कहा रा rdquoअब तो ररकर ली हई ह म तो आऊगा ही तम वमल सको तो वमलना िनाथ

न वमलना चाह पाच वमनर क वलए या कॉफी क वलए भी आ जाओगी तो मर वलए िही काफी होगा

तमहार जनदमददन पर तमह दख भर लrdquo

rdquoतम भी कमाल क रोमाररक होhellip पर सच कह तो म भी तमस वमलना चाहती ह उस ददनhellip

कछ न कछ तो जगाड़ना पड़गाrdquo

rdquoमर वलए तमहारा जनदमददन मरी वजनददगी का बहत अहम ददन हhellip समझीrdquo

एयरपोरथ पहच कर तारक न फोन दकया रा रवत बोली री rdquoरजत कह रहा ह तम हम वडनर

पर जॉयन कर लोrdquo

तारक बहत हरान हआ रा पर रवत न फोन रजत को पकड़ा ददया रा तारक एकदम सकर म

पड़ गया रा उसन खद को बचान की कोवशश की rdquoसॉरी म तो यहा आया रा तो सोचा रवत स वमल

लगा पर इस तरह आप लोगो क परोगराम मhelliprdquo

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रजत न जोर दकर कहा रा rdquoनही भाई बहत तारीफ सन रहा ह बीिी स जरा हम भी तो

वमल आपस आप चाह तो घर पर आ जाईए या दफर सीध रथतरा पर वमलगrdquo

rdquoपर आप लोगो का तो वडनर पर सार जान का कायथकरम रा नrdquo

rdquoआप लच पर फरी ह तो लच पर वमल लत ह य मझ तो वडनर ही पसद ह जसा आप कहrdquo

रजत वबलकल दोथताना ढग स बात कर रहा रा एक पल को उसकी रोन म कछ तनाि तारक

को महसस हआ रा पर अगल ही पल आिाज दफर सहज हो गयी री तारक मान गया पर रकसी लकर

पहल होरल म सामान छोड़ा और इस दौरान खद को मानवसक तौर पर तयार भी करता रहा दक कस

पश आना ह अपन रकीब स दखा जाय तो ररशता रकीब का ही रा बाकी ि दकतन भी सभय या

समझदार इसानो की तरह एक-दसर स बताथि कर आवखर ि तीनो सममावनत पश क र तारक हारथ

थपशवलथर रा तो रजत अगरजी सावहतय का परोफसर और रवत सायकायररथर इसानी मन की

कमजोररयो को समझना मनोरोगो का इलाज करना रवत की विशषता तो री ही पर इसानी आकषथण

एक दसर क परवत सखचाि या ऐस ररशतो को समझन की सथकवत तो कही तीनो म ही री

रजत इस बात को खब समझता रा दक दकसी भी औरत क वलए दकसी दसर परष क परवत

सखचाि हो जाना बहत सहज रा िही एक पवत और पतनी स परम करन िाल क रप म िह रवत क इस

वयिहार स ईषयाल भी हो उठता रा एक सभय इसान क नात िह ईषया को दबा कर तारक क परवत भी

वमिित वयिहार करना चाहता रा पर िही उस रवत क वयिहार स कि पहचता रा दक िह उसक

अलािा भी दकसी दसर परष को चाह सकती ह वजसस उसक मन म आकरोश और वितषणा का भाि

उठता कभी िह अपन को उदार बना कर यह कहना चाहता दक रवत अगर दकसी दसर को चाहती ह

तो बशक उसको भी कयो न पाय सार ही जब करोध होता तो एक तरह स जस िह रवत को सजा दन क

वलए कह डालता rdquoतम जाओ दोनो सार रहोrdquo पर जो पीड़ा िह उसम सह रहा होता िह रवत और

तारक दोनो क वलए ही असहय होती

रवत न कहा रा rdquoकया तारक और म दोथत नही हो सकत और इतन दोथत हhellip एक िह वयवि

वजसस बात करक मझ खशी वमलती ह िह दोथत कयो नही बन सकता वसफथ इसवलए दक उसक मन म

तीखी भािना ह मर वलएhellip या शरीरो का आकषथण भी हhelliprdquo

रजत तब तकथ स सारी बात को समझन समझान की कोवशश करता हा करत-करत कह दता

rdquoऔरत आदमी म दोथती हो ही नही सकती कयोदक जहा शरीरो का आकषथण हो िहा दोथती जसा

वनषकपर भाि कस पनप सकता हrdquo तब रवत दोथती का एक और पकष पश करती rdquoतमहार कहन का

मतलब तो िही ददकयानसी बात हई दक शरीर पाप का मल ह जबदक तम खद ही यह पहल कह चक

हो दक शरीरो का मसला हल हो जाय तो औरत मदथ बहत खबसरत दोथत हो सकत हhellip शरीर को

अहवमयत दी कयो जाय शरीर वमल जान स उनका दोथती म बाधा बनन का मसला खतम हो जाता हrdquo

रजत रवत की बात मान भी जाता रा पर रवत दफर तारक को यह भी बताती री rdquoिन कार

रक वहम फॉर गरारड कल को िह अपना कोई नया तकथ द दगाrdquo

शायद इसी स तारक भी अचानक वहममत हारन लगा रा कस सामना करगा िह रजत का य

िह रजत स एकाध बार पहल वमल चका रा पर तब उसको यह अदाजा नही रा दक रवत और उसक

बीच कछ रा जबदक तारक तब भी कछ आतमसजग-सा हो रहा रा पर कछ वमनरो की मलाकात को

सभाल लना कोई बड़ी बात नही री और य भी रजत उस भला आदमी लगा रा यह भी सोचा रा दक

अगर रवत उन दोनो क बीच न होती तो यह वयवि उसका दोथत हो सकता रा य रवत क होन क

बािजद अतत ि दोथत बन ही पर इस दोथती का तानाबाना िसा न रा जस खावलस दोथती का होता

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ह इसम रवत क रश बन हए र जो एक और ही रगत वलए र और िह रगत तारक को बहत पयारी री

उस दोथती स जयादा

तारक न होरल पहच कर फोन कर ददया रा दक वडनर पर वमलना ही ठीक रहगा और िह

अपना काम इस दौरान कर लगा रजत आसानी स यह बात मान गया और कहा दक िह सडरकस पर

पहल घर पर आ जाय उसक बाद रथतरा खाना खान चल जायग

शाम को जब िह चलन लगा तो फोन बजा रा दसरी ओर रवत री हलो कहत ही रवत न

कहा rdquoसनो तम मत आना मर घर म बहत रशन चल रही हrdquo इसस पहल दक िह कछ कहता रवत न

फोन वडसकनकर कर ददया

रात को कोई फलाईर नही जाती री िनाथ िह उसी िि शहर छोड़ क चला जाता

आध घर बाद ही घरी दफर बजी रवत पछ रही री दक आ रह हो तारक बौखला गया दक आवखर हो

कया रहा ह कया यह रवत क मन की उलझन ह या दक रजत कीhellip या दोनो कीhellip या रवत वसफथ रजत

की उलझन को वयि कर रही री बोली री rdquoजलदी आ जाओ हम लोग इतजार कर रह हrdquo

िह पहचा तो रवत न अकल ही उसका थिागत दकया रा िह जानता रा दक दोनो बचच कालजो

म ह पर रजत काफी दर तक बठक म नही आया तो तारक हरान हआ रवत बोली rdquoिह नहा रहा हrdquo

दफर मथकरा कर जोड़ा rdquoशायद हम दोनो को कछ िि दना चाहता हrdquo

तारक तब कछ निथस हआ रा उस आग बढ़कर रवत को चमन का हौसला नही हआ उस लगा

दक रवत भी सहज नही री जस दक आम तौर पर होती ह पर उसन कछ कहा नही िह खद भी तो

सहज नही हो पा रहा रा जस लड़की क बाप क घर म शादी का परथताि लकर जा रहा हो कछ कछ

इसी तरह का महसस हो रहा रा िही डर कर परचा करना रा दक इमतहान म फल न हो जाय

रजत न कमर म आत ही बड़ तपाक स हलो दकया कछ औपचाररक-सी बात की दफर उसस

सडरक पछा और दकचन म बफथ िगरह का इतजाम करन क वलए दफर स गायब हो गया तारक को लगा

दक सहज होन की बहत कोवशश क बािजद रजत बहत असहज ह

ववहथकी का घर लत हए तारक न ही रजत स उसक काम क बार म पछना शर दकया बात

कही जा नही रही री तभी रवत एक नई दकताब की चचाथ करन लगी वजसका ररवय सबह क अखबार म

छपा रा तारक न हिाई जहाज म ही उसक बार म पढ़ा रा दफर तो बातचीत खब गरमागरम होन

लगी रजत न दवकषण एवशयाई अगरजी लखको क बार म अपन विचार झाड़न शर कर ददय यहा तक

दक रवत न अचानक घड़ी दखी तो पता चला दक रथतरा की ररजिशन का िि हो चका रा रजत न

रथतरा को फोन दकया दक कछ वमनर लर पहचग और तारक को बोला दक जलदी स सडरक खतम कर ल

या गाड़ी म ही ल चल दोनो न दो तीन सडरक चढ़ा रख र मौज-सी भी आयी हई री रजत ही कार

चला रहा रा और तारक पीछ िाली सीर पर बठा रा अचानक रजत कछ नश और कछ अपनी धन म

बोला rdquoतो तम मरी बीिी स पयार करत होrdquo

तारक भौचक-सा हो गया य ही बठा रहा जस रजत की बात को सना न हो या िह गभीरता

स लन लायक न हो रजत न अपनी बात को सिाल बनाकर दबारा पश दकया rdquoकयो तारक मरी बीिी

स पयार करत हो या नहीrdquo

तारक न कहा rdquoहाrdquo और चप कर गया उस लग रहा रा िह जो भी जिाब दगा खतर स खाली नही

पर यह जिाब सच रा तो सच बोल कर ही मार खायी जाय उस दकसी लड़की क वपता स हार मागन

नही जाना पड़ा रा आज यह भी सही

rdquoतम भी पयार करत हो िह भी करती ह तो तम दोनो सार कयो नही रहतrdquo

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तारक बोल पड़ा रा rdquoयह इतना आसान नहीrdquo

रजत इस पर आकरमण करता-सा बोला rdquoकमाल ह पयार भी करत ह और वजममिारी भी नही

वनभाना चाहतrdquo तारक को महसस हो रहा रा दक रजत कह तो कछ रहा ह और पहचाना कछ और

चाहता ह दफर भी िह जिाब तो उसी बात का द सकता रा जो दक पछी जा रही री यह कह कर

उस नाराज भी नही करना चाहता रा दक रजत वसफथ अपन भीतर क आकरोश आतक और आग को

आिाज द रहा रा बोला rdquoयह बात नही म आज भी रवत क सार वजनददगी शर करन को तयार ह

जहा तक म जानता ह रवत अपन शहर को छोड़ कर और कही नही जायगी न िह तमको छोड़न को

तयार होगी जहा तक म रवत को जानता हhelliprdquo

रवत चपचाप अपन पर अकश लगाय दोनो की बात सन रही री न तो िह रजत क पकष म

कछ बोलना चाहती री न तारक क पकष म ही बोल सकती री दफर भी दोनो क बीच तारतमय वबठाय

रखन की वजममिारी भी उसी की री और िह समझ नही पा रही री दक दकस तरह इस बातचीत को

सीमाय लाघन स बचाया जाय ऊपर स उस डर लग रहा रा दक आिश म रजत कही रककर न मार द

रथतरा बहत दर रा भी नही बात पर चरम पर चल रही री दक रथतरा आ गया रवत न रोका rdquoरजत

पारककग ढढ़ो रथतरा आ गयाrdquo रथतरा क सार ही पारककग गराज म गाड़ी छोड़ कर तीनो अदर चल गय

िरर न उनको मज पर वबठाया और सडरक क वलए पछा तरा मनदय लाकर ददय तीनो क तीनो उस मज

पर इस तरह खामोश और भर बठ र दक मनदय म वसर डबोना एक राहत बन गया रा तीनो न अपन-

अपन आडथर ददय पर बात कछ बन नही रही री हर कोई कछ भी कहन म जयादा ही सतकथ हो रहा रा

अचानक रवत बोली rdquoरजत तमको इतनी जयादा तकलीफ री तो तमन मना कयो नही कर

ददया म तो तारक को कह चकी री दक आज सार खाना नही होगा तमही न जोर ददया दक जरर

बलाओ अब इस तरह कयो बताथि कर रह होrdquo

रजत और भड़क गया rdquoम तो वसफथ यह कह रहा ह दक तम लोग एक-दसर को पयार करत हो

तो म कया कर रहा ह यहा तम जाओ एक दसर क सार रहोrdquo

दोनो की आिाज ऊची हो रही री और दसरी मजो पर बठ लोगो की वनगाह इस ओर उठ आयी री

तारक न धीर स सझाया रा rdquoमर खयाल स हम य बात यहा नही करनी चावहएrdquo सहसा रवत

न होश म आत कहा rdquoहा इतन बदढ़या रथतरा म खाना खान आय ह कछ खान पर भी तो धयान दhellip

दफर आज मरा जनदमददन ह आई िार र हि ए गड मीलrdquo

दफर भी खान पर तीनो म स दकसी का धयान नही लग सका तीनो औपचाररक-सी बात म लग

गय र तारक न ही शहर क निीनतम रथतराओ क बार म ताजा पढ़ी समीकषा का वजकर छड़ ददया रा

रजत न कार स जब उस होरल छोड़ा तो तारक न उपर कमर म आकर सडरक लन क वलए कहा

पर जसा दक िह अपकषा कर रहा रा रजत न दर होन का बहाना बना छटटी माग ली री रवत तब भी

कछ नही बोली री शायद उस डर रा दक उसका कछ भी कहना रजत क वलए घाि पर नमक वछड़कन

जसा होगा या उसकी कोई भी बात का गलत मतलब वनकाल कर रजत भड़क सकता रा य दर हो भी

चकी री

पर तारक यह भी जानता रा दक रवत एक नबर की वजददी री जो उस चावहए रा चावहए ही

रा उस रोका नही जा सकता रा िह ऊपर स मान जायगी पर भीतर स कभी माफ नही करगी

शायद इसी स रजत भी वबगड़ी हई लाड़ली बरी की तरह रवत की हर चाह या माग को विरोध करक

भी अतत मान जाता रा

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लौर आन क दो चार ददन बाद ही उसक फोन पर रवत न सदश छोड़ा रा rdquoतमहारा आना ठीक

नही हआ सॉरी तमह बलाकर भी वमल नही पायी अब लगता ह कभी नही वमलगी लर अस थरॉप

ददस वहयर पलीज मझस सपकथ मत करनाrdquo

तारक बहत ददन परशान घमता रहा रा पर रवत को फोन भी नही दकया उसन मना जो कर

डाला रा उस फोन करत हए तारक को लगता दक िह खद को उस पर लाद रहा ह और यह वथरवत

उस कभी गिारा नही री हर ददन दकसी जिालामखी-सा लाि स लदा हआ गजरता अदर ही अदर

सब तप रहा रा

महीन भर बाद रवत न फोन दकया रा rdquoगथसा हो न मझस तमस माफी भी नही माग सकीrdquo

उसकी तो कोई जररत नहीrdquo

दफर भी सोचा रा तमस कभी बात नही करगी इसी स तमको सपकथ करन स मना दकया

रा रजत को भी यही मालम ह दक तमस ररशता तोड़ ददया ह पर अब मझी स बात दकय वबना रहा

नही जा रहाrdquo

रजत को मालम ह मझस बात कर रही होrdquo

िह बहद गथसा ह तमसhellip जस दक सारा दोष तमहारा होhellip दक तमन उसकी बीिी को फसा वलयाrdquo

ि इसी तरह जब मौका लगता बात कर लत तारक क ददल ददमाग पर रवत ही छायी रहती

िह ऐस ही पलो क दौरान जीता जब दोनो क बीच कछ सपकथ होता बाकी क पल उन पलो क इतजार

म गजरत

इस बीच रवत को ददल का दौरा पड़ा रा घबराकर तारक को फोन कर डाला रा रजत न

तारक आया तो रजत उस अपनी गाड़ी म सार अथपताल ल आता जाता रहा दोनो म एक दोथती का

नाता तभी बना रा दवनया जहान की बात रजत न उस घर पर ही ठहराया रा तारक तीन ददन बाद

चला गया रा िावपस पर दोनो की फोन पर बात हो जाती रवत अथपताल स िावपस आ गयी री

धीर-धीर िह सामानदय होकर िावपस अपना काम सभालन लगी

रवत का जनदमददन दफर स आनिाला रा रवत न उस कहा रा rdquoरजत अपन आप ही बोल रहा ह

दक तम आ जाओ इस बार मरा जनदमददन मनान बोलो आओगrdquo

तारक परानी बात याद करक घबरा गया रा rdquoनही दफर स उसक भीतर सब घमड़न लगगाhellip

सबको तकलीफ होगीrdquo

यह सच भी रा रजत कभी तो उसक परवत बहत वमिित हो जाता िही अचानक गथसा ईषयाथ

उभर आत और िह अकसर बरखी ददखाता अचानक तारक को ऐसा महसस हआ जस रवत उसस खद

यह सब कह रही हो पल भर को िह भल ही गया दक रवत क ही अतयवि कमथ म िह शावमल हआ ह

और दरअसल उसक यहा आन की एक िजह यह भी ह दक िह रवत को वलख अपन खत िावपस ल

जाना चाहता ह उस डर ह दक कही ि खत रजत क हार न पड़ जाय

तारक रवत क सार काम करन िाली इस मवहला डॉ लोपज स पहल वमला हआ रा इस भीड़

म एक िही जान-पहचान की री तारक का मन हआ उसस पछ दक कया िह रवत की दराज म उसक

कागजात पर नजर मार सकता ह तारक को अदाज रा दक उसक खत िह दफतर की मज की दराज म

रखती री पर िह जानता रा दक ऐसा करना ममदकन रा नही आवखर तारक को कस हक पहचता रा

रवत की दराज खलिान का िह तो एक पररिार क वमि की हवसयत स िहा रा रजत ही कह सकता

रा दखा जाय तो ि लोग खद भी रजत स ही कहग दक रवत का सामान िह ल जाय तब तो रजत की

आख जरर उन पर पड़गी तब शायद उसको बरा लगगा दक रवत क सार तारक का एक अपना ररशता

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रा उन तीनो की आपसी दोथती क बाहरhellip रजत को बतहाशा चोर लगगी अब जबदक िह रवत स

जिाबतलबी भी नही कर सकता रवत अब कोई सफाई नही पश कर पायगी तारक क हक म कछ भी

नही कह सकगी दकसी तकथ स रजत को लाजिाब नही कर पायगी नही िह ऐसा नही कर सकता न

यह रवत क परवत सही होगा न रजत क परवत उस दकसी न दकसी तरह स खत पान ह

राथत म आत हए हिाई जहाज म तारक जब लगातार रवत क सार की अपनी वजनददगी क

गजर पल दहरा रहा रा बार-बार उस धयान आता दक जब स रवत को ददल का दौरा हआ रा िह

उसस कहना चाहता रा दक उसक खत विनि कर द एक बार उसन बात उठायी तो रवत बोली rdquoकयो

तमहार खत मर दफतर की दराज म सफ पड़ हrdquo

शायद िह वबना कह यह भी समझ गयी री दक तारक का इशारा दकस ओर ह तभी बोली

दखो जब तक म वजनददा ह म उनको फाड़ कर न तो फ क सकती ह न जला सकती ह एक बार मर गयी

तो कया फकथ पड़ता ह दक कोई कया करगा उनक सार तमको तो दफकर होनी नही चावहए अब तो ि

मरी अमानत हrdquo यह बातचीत दो एक महीन पहल की ही होगी तारक न सोचा रा बात कभी दफर

उठायगा पर उसस पहल हीhellip

तारक को भी तब यह अदाज नही रा दक रवत क अलािा रजत स भी उसका नाता रा रवत क

जान क बाद िह खद को रजत क बहत करीब महसस कर रहा रा और उस लगा दक उसक खत रजत

को उसस दफर दर धकल सकत र पर िह दकसी तरह भी रजत को खोना नही चाहगाhellip रजत जस स

रवत का ही एक वहथसा राhellipउसन दखा लोगो स वघरा रजत का चहरा बहद वनचड़ा हआ रिहीन और

सखा-सा लग रहा रा रात भर सोया नही होगा इसवलए आखो क नीच कालापन उतर आया रा आख

काफी अदर को धसी हई री तारक को लगा दक िह शायद रजत स बहतर हालत म ह दफर उस रशक

भी हआ रजत अपन गम का खला इजहार कर सकता हhellip तारक को यह सविधा नही री िह दकसी

उजड़ आवशक क रप म इस महदफल इस मौत का शोक करन िालो की महदफल मhellip अपना असली

चहराhellip अपना आवशक का चहराhellip नही ददखा सकता रा अचानक उसकी आख भर आयी अपन खोन

की वशददत क अहसास स

रवत क िाकय उसक कान म सरसरान लग जबस उस ददल का दौरा पड़ा रा िह जीिन की

कषणभगरता या इसान क नाचीज होन क अवथततििादी दशथन को बहत बघारन लग गयी री शायद

अपन जान का अहसास उस कही बहत गहर उदास कर जाता रा पर िही िह उस जान को एक

अिशयभािी अकारय सतय की तरह थिीकार करक उसस समझौता भी करन लग गयी री एक ददन

उसन हडसन नदी क दसर वसर स मनहरन की ओर दखत हए कहा रा rdquoदखो तो इन छोर-छोर वडबबो

म दकतन लाखो लोग रहत ह दकतन छोर ह हम लोग इतनी तग जमीन पर दकतनी बड़ी तादाद म

समा जात ह एकदम हजारो की सखया म सार-सार जड़ कीड़ो की तरह दफर भी अपन आप को

दकतना बड़ा मानत ह राजनीवत धमथ और नवतकता की तवखतया वचपका कर दकतना बड़ा होन का

भलािा दत रहत ह खद कोrdquo

रजत को रवत की इसान को नाचीज करार दन िाली बातो स हमशा बहत वचढ़ छरती री

बोला रा rdquoधमथ नवतकता जीिन क सतय ह इनको तम भलािा दन िाली चीज कस कह सकती हो

इसान इसीवलए तो बाकी जीिो स अलग ह दक िह सोच सकता हrdquo

rdquoऔर सोच क धरातल पर हर चीज को गलत या सही सावबत कर सकता ह नवतकता को गढ़

सकता ह या परा सतयानाश कर सकता हhellip ठीक ह मझ तो उसम कोई नकसान नहीrdquo

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हा नकसान दकसी का ह तो मरा ही रजत न कहा तो तारक झर स बोल पड़ा रा rdquoनकसान

तो तब होता जो म उस भगा क ल जाताrdquo

रजत न सजीदगी स कहा rdquoअब इसका ददल बर गया हhellip तो आधी सपवतत तो लर ही गयी न

तम भगा ल जाओ तो भी फकथ नही पड़गा यह आधािाला वहथसा तब भी यही रहगाrdquo

सचमच रजत का यह विशवास सही रा रवत और उसक ररशत की शरआत क ददनो म भािना

क परिाह म बहता तारक रवत क सार एक नयी वजनददगी क दकिाड़ खोलन की बात सोच पाया रा पर

जलद ही उस अहसास हो गया रा दक रवत कही बहत गहर जड़ी री रजत क सार दक िह कभी उस

ररशत को तोड़गी नही य रजत भी शर क ददनो म भीतर स वहल गया रा यह झरका दक रवत रजत

को छोड़ दकसी और को मन म ला सकती ह उस बहत दर जा फ क आया रा दफर रवत न खोय विशवास

को िापस लौरा ददया रजत अपन आध नकसान क सार धीर-धीर शायद समझौता करना सीख गया रा

तारक को लगा दक िह आध क सार समझौता करना सीख गया रा दफर तारक को लगा दक

िह आध क सार समझौता नही रा रजत क भीतर कही पर का भरोसा भी रा जस दक रवत को वसफथ

एक बदलाि चावहए रा जो तारक रा िनाथ िह परी रजत की ही री कयोदक मौका आन पर रजत

अपना परा हक जतान स चकता नही रा हमशा यही मानता रा दक पहला हक उसी का ह तारक

हमशा बाद म आयगा जस दक पर भर लन पर बचा हआ भोजन दकसी को भी ददया जा सकता हhellip

कछ ऐसा रख

पर रवत बचा हआ भोजन नही रीhellip दकसी तरह स भी उवचछि या अिवशि नही जो उसन

रवत म पाया रा िह पहल वजनददगी म कभी नही वमला रा रवत न उसकी पहचान करायी री

पररपणथता स रवत को जानना ही जस उस सपणथता को छना रा शायद रजत न भी रवत म ऐसा कछ

पाया रा जो आम औरतो स अलग रा रवत शादी क इतन बरस बाद भी उस अपन म उलझाय री और

िह उसस मि नही होना चाहता रा रवत म बाहरी खबसरती क बािजद वयवि क ददमाग को भी

उलझाय रखन का जो गण रा उसस सच म जो भी पास आता और सखचता जाता रवत म भरपर

पयार लन की चाह री तो भरपर दन की कषमता भी इसी स अभी भी उसस जी तो नही भरा रा रजत

का शायद िह ऐसी औरत री जो हमशा वनत निीन होती रहhellip सौदयथ की एक पररभाषा यह भी तो

दी गई ह दक जो वनत नतन होता रह िही सौदयथ ह रवत भी कभी परानी नही पड़ती रोज कछ नया

होता ह उसक पासhellip कोई नया खयालhellip कोई नई सझhellip कोई नई उकसान उलझान िाली बातhellip

शायद इस ददमागी सौदयथ कहना होगाhellip जो कछ भी उसम राhellip बस खीचता रा अपनी ओरhellip मोहता

राhellip शायद कया पर उगली धरना उस पररवध म बाधन की भोडी कोवशश होती

कछ दवदव उठता तो रवत रजत क ही हक म बोलती री रजत क वहतो को सरवकषत कर लन क

बाद ही िह तारक को उसका हक दती तारक को खीझ भी होती दक रजत उसक जीिन म चदक पहल

आ गया रा इसीवलए हर चीज म ही पहला हक उसी का बनता ह पर उसन रवत स अपनी यह

मनवथरवत कभी जावहर नही होन दी री वपछल साल िलनदराईन ड पर ऐसा ही तो हआ रा दरअसल

दोनो को अदाज नही रा दक उस िीक ड पर िलनदराईन ड पड़ता रा तारक को दकसी काम स रवत क

शहर आना रा और दोनो न वमलन का कायथकरम बना डाला रा रजत स रवत की बात हई होगी तो

उसन भनकर कहा रा rdquoतो िह तमहारा िलनदराईन ह जो उस ददन आ रहा हrdquo रवत क कहन पर दक उस

तो याद भी नही रा िह बोला रा rdquoम नही मान सकता दक तारक न य ही आन का बनाया ह इस

िीक ड परrdquo रवत न तारक स सारी बात बतलायी तो उसन सोचा रा िह खद फोन पर रजत स कहगा

दक उस सचमच याद नही रा पर दफर बात बढ़ान न दन क वलए चप रह गया रा और जान का

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परोगराम भी थरवगत कर डाला रा तब उस दो बात तकलीफ दती रही री एक तो यह दक रजत हमशा

उसक सामन परारवमकता ल जायगा दसरी यह कड़िी सचचाई दक रवत कभी भी उसकी जावहरी वजनददगी

का वहथसा नही बन सकती री उसकी कमर म हार डाल कर िह कभी दकसी स यह नही कह सकता

रा रवत मरी हrdquo तब उस बहद रशक होता रजत स कया रजत को सचमच अहसास ह दक रवत तारक

क वलए कया ह दक िह उसकी वजनददगी का कनदर उसकी वजनददगी का अरथ बन चकी ह यह कोई हलका-

फलका ठरकपन नही उसकी वजनददगी का रशा-रशा गर गया ह रवत स शबद म अरथ की तरह समायी ह

रवत उसक अवथतति म इस गरन म िह खद ही घरता रहगा हमशा

अब रवत नही ह तो िह घरन और भी कस रही ह उस कया अब िह रजत स कह पायगा

अचानक उसका मन हआ दक रजत स कह द rdquoतमको मालम ह दक मझ सचमच पता नही रा दक उस

ददन िलनदराईन ड रा िनाथ ऐसी जरथत न करताrdquo दक िह जानता हhellip अचछी तरह समझता ह अपनी

और उसकी ररीररी की पररवधयो को दक रजद शायद कभी जान न पायगा पर उसन हमशा एक दोथत

की तरह रजत का रजत की जररतो का खयाल रखा हhellip वसफथ ऊपर-ऊपर स सामावजक उपचार की

तरह नही भीतर स दकसी ददली ररशत सhellip दफर िह ररशता चाह रवत क जररय स ही बना हो

हो सकता ह रजत यह सब महसस करता हो या न भी करता हो पर उसक चहर पर भी वमिता

का थिागतमय भाि हमशा ददखा ह तारक को वसिा उन कषणो क जब दक सचमच उन दोनो क बीच

lsquoररररोररयलrsquo झगड़ हए तब भी ि शायद इसानी आचार या परथपर सदभाि की सीमाओ को कभी

लाघ नही पर दफर भी तारक का रवत क सार का ररशता ऐसा नही दक रजत क सार वजस बार सक

रवत उसकी हथती का अवभि वहथसा ह िह कोई और कस हो सकता ह रजत रवत नही हो सकता

चाह उसक दकतन ही करीब रहा हो उस दकसी न दकसी तरह स अपन खत पान ही ह लदकन कस

और यही तारक बार-बार उलझ जाता ह अपनी यह परशानी िह दकसी क सार बार नही सकता

रजत स तो कतई नही खत अगर सचमच रजत क हार पड़ गय तो

लदकन रवत न यह भी तो कहा रा दक अगर िह नही रही तो कया फकथ पड़ता ह पर रजत

सचमच खत पढ़ ल तोhellip शायद उसकी पीड़ा पर तब करोध और घणा का कोई विकराल भत हािी हो

सकता हhellip हो सकता ह दक खत पढ़कर रजत रवत को खद स वछरक द लदकन उसस कया तब शायद

रवत और भी तारक क करीब आ जाय और भी उसकी अपनी हो जाय वसफथ उसी की समची एक रात

पहल उस ऐसा ही कछ सपना आया रा रवत की मौत की खबर क बाद यही उसका याद रह जानिाला

सपना रा िह रवत की अतयवि म गया ह और एक अधरा-सा बठकनमा कमरा हhellip कमर म कछ

कागज वबखर पड़ हhellip िह एक कागज उठाता हhellip िह उसी का रवत को वलखा खत हhellip और कई लोग

उसक आसपास ह और िह सोचन लगता ह दक कही इन लोगो न भी तो उनदह नही पढ़ाhellip तभी रजत

का चहरा उसकी ओर बढ़ता ह और िह कागज वछपान की तरकीब सोचन लगता हhellip इसी उधड़बन म

उसकी आख खल गयी री तो वजथम पसीन म नहाया हआ रा

एक रजत ही यहा उसक सबस करीब हhellip और रजत ही उस अजनबी-सा लगन लगा ह अब

तक उसका रवत का सदभथ रा अचानक उस सदभथ स करकर न होन जसा हो रहा ह तारक को अजीब-

सी मानवसक दरी और भयकर अकलापन-सा महसस हआ िह यहा आया ही कयो रा रवत की

नामौजदगी म दकतना बमानी ह उसका यहा होना रजत को भी दकतना दफजल-सा लग रहा होगा

उसका यहा उपवथरत होना वजन लोगो स वघरा ह ि तो सचमच उसक अपन हhellip तारक तो दर स भी

अपना नहीhellip मत स तारक का जो भी नाता रहा होhellip उसक दकसी दसर स तो नही रा उसक कॉलज

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कामो स लौर बचच भी तारक को पहचानत नही र तारक न ही उनकी शकलो और वयिहार स अदाज

लगाया रा और हॉलि म लगी तथिीरो स उनदह पहचान पाया रा

तारक क पास रजत स कहन को कछ नही रा उसका कछ भी कहना रजत को खल सकता रा

उलर तारक को लगन लगा दक रजत शायद सोच रहा हो दक अब कयो जखमो को याद ददलान आ गय

हो कछ भी हो तारक न उस पीड़ा तो पहचायी ही री कया अब उसका कछ भी करना रजत क कि को

कम कर सकता रा उसन वनगाहो स ही अपना दख बयान कर ददया जो शायद रजत न थिीकार भी

वलया राhellip शायद एक औपचाररकता की तरह जस िह दसर बहत स जमा लोगो की शोकावभवयविया

थिीकार रहा राhellip उसस कछ अलग नही शायद तारक का िहा होना ही रजत को खल रहा हो पर

िि की नाजकी की िजह स िह कछ कहना न चाह रहा हो तारक एकदम परशान-सा उठ खड़ा हआ

कछ लोग रजत क गल लग रह र शायद उसस विदा लकर जा रह र तारक न सोचा िह अब

कहगा दक रवत क पास कछ उसक जररी कागजात र अगर रजत उस कागजो िाली जगह पर ल चल

तो िह खद ही दख लगा तारक यि की गवत स रजत की ओर बढ़ा रजत जस दकसी को दख कर भी

दख नही रहा रा उसकी आख दकसी शनदय पर ररकी री तारक को लगा उन लोगो क वघराि म

वजसम उसक अपन अजीज दोथत और ररशतदार र रजत न उस कोई विशष लकष नही दकया तारक क

भीतर अजीब सनापन-सा आ वघरा लगा जस रवत रजत म कही नही री वसफथ भरम-सा हआ रा उस

उसक िहा होन का जस दक उसक रवत क नात स िहा होन म ही कोई भारी असगवत री उस लगा

िहा बठ अजनबी स लोग उस घर रह र उसक िहा होन पर परशनवचनदह लगा रह र पता नही दकतन

ही अजनवबयो स वघर गया रा तारक यहा तक दक रवत की उस तथिीर म भी उस रवत नजर नही आ

रही री िह भी कोई अजनबी छाया री यह दवनया उसकी नही री अगर िह रवत की दवनया रही

भी हो तो वजस रवत को िह जानता रा उस रवत क वलए भी यह दवनया अनवथतति री विसगत री

उसन रजत को बहत सभलत सभलत गल स लगान की औपचाररकता की उस लगा जस िह

दकसी अजनबी को गल लगा रहा रा रवत वजतन उसक अपन पास री उतन और कही नही दकसी क

पास नही दरअसल रवत और कही नही री उसक भीतर रीhellip बस उस रवत को िही अपन भीतर ही

कही सजोय रखना रा भीतर ही खोजना रा भीतर ही तसलली करनी री दकसी और स बार नही

सकता रा रवत को रजत क दोनो कधो को हलक स दबाकर उसन धीर स कहा rdquoरक कयरrdquo और मड़ा

तो वबना पीछ दख बाहर वनकल गया

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पासपोरथ अमरीकन मरो

ओम गपता

पासपोरथ अमरीकन मरो पर रगत सहदथतानी

आज सनाऊ तमको पयार अपनी रामकहानी

छोड़ो भारत मन भयया डॉलर दख-दख ललचायो

चार-पकोड़ी जब भी दख मोह म पानी भर आयो

दीिाली पर दीप जलाउ होली पर खल रग

मौको जब मझको लगतो पीतो म भी भग

कसो होगी सरकार हमारी मोक हरदम सचता

जब भी दश पड़ सकर म कपा करो हनमनदता

पज म अब भी राम-कषण जातो मददर रोज

गपशप यारो स करतो फोकर म वमलतो भोज

योगी-बाबा आए दश स जब दन मझको जञान

आख मद क ना कछ जान करतो उनको सममान

हमबगथर अब भी नही भातो भाती मझ कचोड़ी

जसो जब भी मौका आयो रोपी िसी ओढ़ी

जाऊ दश को जब म अपन खाऊ लडड और इमरती

कहतो खद को सहदथतानी अमरीका मरी अब धरती

कहन को बहत ह भयया रोड़ को समझो काफी

बरा-भला लगा जो तमको माग नतमथतक माफी

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शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

आकाकषा ह

वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

फर च अनिाद कर इस lsquoभोगिाद स पीवड़त पविम की आतमा को अतयवधक शावत दन िालाrsquo कहा

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ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

की सीमाओ क पर मनषय कया अनभि कर सकता ह उसकी एक झलक भी ददखा दता ह उसी

औपवनषदीय जञान को महरवष िदवयास न सामानदय जनो क वलए ldquoपविि गीताrdquo म सवकषपत रप म परथतत

दकया ह िदवयास की महानता ही ह जो दक 11 उपवनषदो क जञान को एक पथतक म बाध सक और

मानिता को एक आसान यवि स परमातम जञान का दशथन करा सक ldquoपविि गीताrdquo महाभारत क

भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

ह भगिद गीता वहनदद धमथ क पविितम गरनदरो म स एक ह जो इसानो की चौहददी की सीमा रखा पर

भगिान क शरी मख दवारा इसान स कही गयी सरहदो पर चहरो की थकररनी का लखा-जोखा ह यह

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पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

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Page 25: Year 12, Issue 47Year 12, Issue 47 vsu2avsu2a · राथत § में आ वबछ §ग . ... श्रराम की अन ¡कम्पा स § ह हाल ह में

12 47 2015 23

रजत न जोर दकर कहा रा rdquoनही भाई बहत तारीफ सन रहा ह बीिी स जरा हम भी तो

वमल आपस आप चाह तो घर पर आ जाईए या दफर सीध रथतरा पर वमलगrdquo

rdquoपर आप लोगो का तो वडनर पर सार जान का कायथकरम रा नrdquo

rdquoआप लच पर फरी ह तो लच पर वमल लत ह य मझ तो वडनर ही पसद ह जसा आप कहrdquo

रजत वबलकल दोथताना ढग स बात कर रहा रा एक पल को उसकी रोन म कछ तनाि तारक

को महसस हआ रा पर अगल ही पल आिाज दफर सहज हो गयी री तारक मान गया पर रकसी लकर

पहल होरल म सामान छोड़ा और इस दौरान खद को मानवसक तौर पर तयार भी करता रहा दक कस

पश आना ह अपन रकीब स दखा जाय तो ररशता रकीब का ही रा बाकी ि दकतन भी सभय या

समझदार इसानो की तरह एक-दसर स बताथि कर आवखर ि तीनो सममावनत पश क र तारक हारथ

थपशवलथर रा तो रजत अगरजी सावहतय का परोफसर और रवत सायकायररथर इसानी मन की

कमजोररयो को समझना मनोरोगो का इलाज करना रवत की विशषता तो री ही पर इसानी आकषथण

एक दसर क परवत सखचाि या ऐस ररशतो को समझन की सथकवत तो कही तीनो म ही री

रजत इस बात को खब समझता रा दक दकसी भी औरत क वलए दकसी दसर परष क परवत

सखचाि हो जाना बहत सहज रा िही एक पवत और पतनी स परम करन िाल क रप म िह रवत क इस

वयिहार स ईषयाल भी हो उठता रा एक सभय इसान क नात िह ईषया को दबा कर तारक क परवत भी

वमिित वयिहार करना चाहता रा पर िही उस रवत क वयिहार स कि पहचता रा दक िह उसक

अलािा भी दकसी दसर परष को चाह सकती ह वजसस उसक मन म आकरोश और वितषणा का भाि

उठता कभी िह अपन को उदार बना कर यह कहना चाहता दक रवत अगर दकसी दसर को चाहती ह

तो बशक उसको भी कयो न पाय सार ही जब करोध होता तो एक तरह स जस िह रवत को सजा दन क

वलए कह डालता rdquoतम जाओ दोनो सार रहोrdquo पर जो पीड़ा िह उसम सह रहा होता िह रवत और

तारक दोनो क वलए ही असहय होती

रवत न कहा रा rdquoकया तारक और म दोथत नही हो सकत और इतन दोथत हhellip एक िह वयवि

वजसस बात करक मझ खशी वमलती ह िह दोथत कयो नही बन सकता वसफथ इसवलए दक उसक मन म

तीखी भािना ह मर वलएhellip या शरीरो का आकषथण भी हhelliprdquo

रजत तब तकथ स सारी बात को समझन समझान की कोवशश करता हा करत-करत कह दता

rdquoऔरत आदमी म दोथती हो ही नही सकती कयोदक जहा शरीरो का आकषथण हो िहा दोथती जसा

वनषकपर भाि कस पनप सकता हrdquo तब रवत दोथती का एक और पकष पश करती rdquoतमहार कहन का

मतलब तो िही ददकयानसी बात हई दक शरीर पाप का मल ह जबदक तम खद ही यह पहल कह चक

हो दक शरीरो का मसला हल हो जाय तो औरत मदथ बहत खबसरत दोथत हो सकत हhellip शरीर को

अहवमयत दी कयो जाय शरीर वमल जान स उनका दोथती म बाधा बनन का मसला खतम हो जाता हrdquo

रजत रवत की बात मान भी जाता रा पर रवत दफर तारक को यह भी बताती री rdquoिन कार

रक वहम फॉर गरारड कल को िह अपना कोई नया तकथ द दगाrdquo

शायद इसी स तारक भी अचानक वहममत हारन लगा रा कस सामना करगा िह रजत का य

िह रजत स एकाध बार पहल वमल चका रा पर तब उसको यह अदाजा नही रा दक रवत और उसक

बीच कछ रा जबदक तारक तब भी कछ आतमसजग-सा हो रहा रा पर कछ वमनरो की मलाकात को

सभाल लना कोई बड़ी बात नही री और य भी रजत उस भला आदमी लगा रा यह भी सोचा रा दक

अगर रवत उन दोनो क बीच न होती तो यह वयवि उसका दोथत हो सकता रा य रवत क होन क

बािजद अतत ि दोथत बन ही पर इस दोथती का तानाबाना िसा न रा जस खावलस दोथती का होता

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ह इसम रवत क रश बन हए र जो एक और ही रगत वलए र और िह रगत तारक को बहत पयारी री

उस दोथती स जयादा

तारक न होरल पहच कर फोन कर ददया रा दक वडनर पर वमलना ही ठीक रहगा और िह

अपना काम इस दौरान कर लगा रजत आसानी स यह बात मान गया और कहा दक िह सडरकस पर

पहल घर पर आ जाय उसक बाद रथतरा खाना खान चल जायग

शाम को जब िह चलन लगा तो फोन बजा रा दसरी ओर रवत री हलो कहत ही रवत न

कहा rdquoसनो तम मत आना मर घर म बहत रशन चल रही हrdquo इसस पहल दक िह कछ कहता रवत न

फोन वडसकनकर कर ददया

रात को कोई फलाईर नही जाती री िनाथ िह उसी िि शहर छोड़ क चला जाता

आध घर बाद ही घरी दफर बजी रवत पछ रही री दक आ रह हो तारक बौखला गया दक आवखर हो

कया रहा ह कया यह रवत क मन की उलझन ह या दक रजत कीhellip या दोनो कीhellip या रवत वसफथ रजत

की उलझन को वयि कर रही री बोली री rdquoजलदी आ जाओ हम लोग इतजार कर रह हrdquo

िह पहचा तो रवत न अकल ही उसका थिागत दकया रा िह जानता रा दक दोनो बचच कालजो

म ह पर रजत काफी दर तक बठक म नही आया तो तारक हरान हआ रवत बोली rdquoिह नहा रहा हrdquo

दफर मथकरा कर जोड़ा rdquoशायद हम दोनो को कछ िि दना चाहता हrdquo

तारक तब कछ निथस हआ रा उस आग बढ़कर रवत को चमन का हौसला नही हआ उस लगा

दक रवत भी सहज नही री जस दक आम तौर पर होती ह पर उसन कछ कहा नही िह खद भी तो

सहज नही हो पा रहा रा जस लड़की क बाप क घर म शादी का परथताि लकर जा रहा हो कछ कछ

इसी तरह का महसस हो रहा रा िही डर कर परचा करना रा दक इमतहान म फल न हो जाय

रजत न कमर म आत ही बड़ तपाक स हलो दकया कछ औपचाररक-सी बात की दफर उसस

सडरक पछा और दकचन म बफथ िगरह का इतजाम करन क वलए दफर स गायब हो गया तारक को लगा

दक सहज होन की बहत कोवशश क बािजद रजत बहत असहज ह

ववहथकी का घर लत हए तारक न ही रजत स उसक काम क बार म पछना शर दकया बात

कही जा नही रही री तभी रवत एक नई दकताब की चचाथ करन लगी वजसका ररवय सबह क अखबार म

छपा रा तारक न हिाई जहाज म ही उसक बार म पढ़ा रा दफर तो बातचीत खब गरमागरम होन

लगी रजत न दवकषण एवशयाई अगरजी लखको क बार म अपन विचार झाड़न शर कर ददय यहा तक

दक रवत न अचानक घड़ी दखी तो पता चला दक रथतरा की ररजिशन का िि हो चका रा रजत न

रथतरा को फोन दकया दक कछ वमनर लर पहचग और तारक को बोला दक जलदी स सडरक खतम कर ल

या गाड़ी म ही ल चल दोनो न दो तीन सडरक चढ़ा रख र मौज-सी भी आयी हई री रजत ही कार

चला रहा रा और तारक पीछ िाली सीर पर बठा रा अचानक रजत कछ नश और कछ अपनी धन म

बोला rdquoतो तम मरी बीिी स पयार करत होrdquo

तारक भौचक-सा हो गया य ही बठा रहा जस रजत की बात को सना न हो या िह गभीरता

स लन लायक न हो रजत न अपनी बात को सिाल बनाकर दबारा पश दकया rdquoकयो तारक मरी बीिी

स पयार करत हो या नहीrdquo

तारक न कहा rdquoहाrdquo और चप कर गया उस लग रहा रा िह जो भी जिाब दगा खतर स खाली नही

पर यह जिाब सच रा तो सच बोल कर ही मार खायी जाय उस दकसी लड़की क वपता स हार मागन

नही जाना पड़ा रा आज यह भी सही

rdquoतम भी पयार करत हो िह भी करती ह तो तम दोनो सार कयो नही रहतrdquo

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तारक बोल पड़ा रा rdquoयह इतना आसान नहीrdquo

रजत इस पर आकरमण करता-सा बोला rdquoकमाल ह पयार भी करत ह और वजममिारी भी नही

वनभाना चाहतrdquo तारक को महसस हो रहा रा दक रजत कह तो कछ रहा ह और पहचाना कछ और

चाहता ह दफर भी िह जिाब तो उसी बात का द सकता रा जो दक पछी जा रही री यह कह कर

उस नाराज भी नही करना चाहता रा दक रजत वसफथ अपन भीतर क आकरोश आतक और आग को

आिाज द रहा रा बोला rdquoयह बात नही म आज भी रवत क सार वजनददगी शर करन को तयार ह

जहा तक म जानता ह रवत अपन शहर को छोड़ कर और कही नही जायगी न िह तमको छोड़न को

तयार होगी जहा तक म रवत को जानता हhelliprdquo

रवत चपचाप अपन पर अकश लगाय दोनो की बात सन रही री न तो िह रजत क पकष म

कछ बोलना चाहती री न तारक क पकष म ही बोल सकती री दफर भी दोनो क बीच तारतमय वबठाय

रखन की वजममिारी भी उसी की री और िह समझ नही पा रही री दक दकस तरह इस बातचीत को

सीमाय लाघन स बचाया जाय ऊपर स उस डर लग रहा रा दक आिश म रजत कही रककर न मार द

रथतरा बहत दर रा भी नही बात पर चरम पर चल रही री दक रथतरा आ गया रवत न रोका rdquoरजत

पारककग ढढ़ो रथतरा आ गयाrdquo रथतरा क सार ही पारककग गराज म गाड़ी छोड़ कर तीनो अदर चल गय

िरर न उनको मज पर वबठाया और सडरक क वलए पछा तरा मनदय लाकर ददय तीनो क तीनो उस मज

पर इस तरह खामोश और भर बठ र दक मनदय म वसर डबोना एक राहत बन गया रा तीनो न अपन-

अपन आडथर ददय पर बात कछ बन नही रही री हर कोई कछ भी कहन म जयादा ही सतकथ हो रहा रा

अचानक रवत बोली rdquoरजत तमको इतनी जयादा तकलीफ री तो तमन मना कयो नही कर

ददया म तो तारक को कह चकी री दक आज सार खाना नही होगा तमही न जोर ददया दक जरर

बलाओ अब इस तरह कयो बताथि कर रह होrdquo

रजत और भड़क गया rdquoम तो वसफथ यह कह रहा ह दक तम लोग एक-दसर को पयार करत हो

तो म कया कर रहा ह यहा तम जाओ एक दसर क सार रहोrdquo

दोनो की आिाज ऊची हो रही री और दसरी मजो पर बठ लोगो की वनगाह इस ओर उठ आयी री

तारक न धीर स सझाया रा rdquoमर खयाल स हम य बात यहा नही करनी चावहएrdquo सहसा रवत

न होश म आत कहा rdquoहा इतन बदढ़या रथतरा म खाना खान आय ह कछ खान पर भी तो धयान दhellip

दफर आज मरा जनदमददन ह आई िार र हि ए गड मीलrdquo

दफर भी खान पर तीनो म स दकसी का धयान नही लग सका तीनो औपचाररक-सी बात म लग

गय र तारक न ही शहर क निीनतम रथतराओ क बार म ताजा पढ़ी समीकषा का वजकर छड़ ददया रा

रजत न कार स जब उस होरल छोड़ा तो तारक न उपर कमर म आकर सडरक लन क वलए कहा

पर जसा दक िह अपकषा कर रहा रा रजत न दर होन का बहाना बना छटटी माग ली री रवत तब भी

कछ नही बोली री शायद उस डर रा दक उसका कछ भी कहना रजत क वलए घाि पर नमक वछड़कन

जसा होगा या उसकी कोई भी बात का गलत मतलब वनकाल कर रजत भड़क सकता रा य दर हो भी

चकी री

पर तारक यह भी जानता रा दक रवत एक नबर की वजददी री जो उस चावहए रा चावहए ही

रा उस रोका नही जा सकता रा िह ऊपर स मान जायगी पर भीतर स कभी माफ नही करगी

शायद इसी स रजत भी वबगड़ी हई लाड़ली बरी की तरह रवत की हर चाह या माग को विरोध करक

भी अतत मान जाता रा

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लौर आन क दो चार ददन बाद ही उसक फोन पर रवत न सदश छोड़ा रा rdquoतमहारा आना ठीक

नही हआ सॉरी तमह बलाकर भी वमल नही पायी अब लगता ह कभी नही वमलगी लर अस थरॉप

ददस वहयर पलीज मझस सपकथ मत करनाrdquo

तारक बहत ददन परशान घमता रहा रा पर रवत को फोन भी नही दकया उसन मना जो कर

डाला रा उस फोन करत हए तारक को लगता दक िह खद को उस पर लाद रहा ह और यह वथरवत

उस कभी गिारा नही री हर ददन दकसी जिालामखी-सा लाि स लदा हआ गजरता अदर ही अदर

सब तप रहा रा

महीन भर बाद रवत न फोन दकया रा rdquoगथसा हो न मझस तमस माफी भी नही माग सकीrdquo

उसकी तो कोई जररत नहीrdquo

दफर भी सोचा रा तमस कभी बात नही करगी इसी स तमको सपकथ करन स मना दकया

रा रजत को भी यही मालम ह दक तमस ररशता तोड़ ददया ह पर अब मझी स बात दकय वबना रहा

नही जा रहाrdquo

रजत को मालम ह मझस बात कर रही होrdquo

िह बहद गथसा ह तमसhellip जस दक सारा दोष तमहारा होhellip दक तमन उसकी बीिी को फसा वलयाrdquo

ि इसी तरह जब मौका लगता बात कर लत तारक क ददल ददमाग पर रवत ही छायी रहती

िह ऐस ही पलो क दौरान जीता जब दोनो क बीच कछ सपकथ होता बाकी क पल उन पलो क इतजार

म गजरत

इस बीच रवत को ददल का दौरा पड़ा रा घबराकर तारक को फोन कर डाला रा रजत न

तारक आया तो रजत उस अपनी गाड़ी म सार अथपताल ल आता जाता रहा दोनो म एक दोथती का

नाता तभी बना रा दवनया जहान की बात रजत न उस घर पर ही ठहराया रा तारक तीन ददन बाद

चला गया रा िावपस पर दोनो की फोन पर बात हो जाती रवत अथपताल स िावपस आ गयी री

धीर-धीर िह सामानदय होकर िावपस अपना काम सभालन लगी

रवत का जनदमददन दफर स आनिाला रा रवत न उस कहा रा rdquoरजत अपन आप ही बोल रहा ह

दक तम आ जाओ इस बार मरा जनदमददन मनान बोलो आओगrdquo

तारक परानी बात याद करक घबरा गया रा rdquoनही दफर स उसक भीतर सब घमड़न लगगाhellip

सबको तकलीफ होगीrdquo

यह सच भी रा रजत कभी तो उसक परवत बहत वमिित हो जाता िही अचानक गथसा ईषयाथ

उभर आत और िह अकसर बरखी ददखाता अचानक तारक को ऐसा महसस हआ जस रवत उसस खद

यह सब कह रही हो पल भर को िह भल ही गया दक रवत क ही अतयवि कमथ म िह शावमल हआ ह

और दरअसल उसक यहा आन की एक िजह यह भी ह दक िह रवत को वलख अपन खत िावपस ल

जाना चाहता ह उस डर ह दक कही ि खत रजत क हार न पड़ जाय

तारक रवत क सार काम करन िाली इस मवहला डॉ लोपज स पहल वमला हआ रा इस भीड़

म एक िही जान-पहचान की री तारक का मन हआ उसस पछ दक कया िह रवत की दराज म उसक

कागजात पर नजर मार सकता ह तारक को अदाज रा दक उसक खत िह दफतर की मज की दराज म

रखती री पर िह जानता रा दक ऐसा करना ममदकन रा नही आवखर तारक को कस हक पहचता रा

रवत की दराज खलिान का िह तो एक पररिार क वमि की हवसयत स िहा रा रजत ही कह सकता

रा दखा जाय तो ि लोग खद भी रजत स ही कहग दक रवत का सामान िह ल जाय तब तो रजत की

आख जरर उन पर पड़गी तब शायद उसको बरा लगगा दक रवत क सार तारक का एक अपना ररशता

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रा उन तीनो की आपसी दोथती क बाहरhellip रजत को बतहाशा चोर लगगी अब जबदक िह रवत स

जिाबतलबी भी नही कर सकता रवत अब कोई सफाई नही पश कर पायगी तारक क हक म कछ भी

नही कह सकगी दकसी तकथ स रजत को लाजिाब नही कर पायगी नही िह ऐसा नही कर सकता न

यह रवत क परवत सही होगा न रजत क परवत उस दकसी न दकसी तरह स खत पान ह

राथत म आत हए हिाई जहाज म तारक जब लगातार रवत क सार की अपनी वजनददगी क

गजर पल दहरा रहा रा बार-बार उस धयान आता दक जब स रवत को ददल का दौरा हआ रा िह

उसस कहना चाहता रा दक उसक खत विनि कर द एक बार उसन बात उठायी तो रवत बोली rdquoकयो

तमहार खत मर दफतर की दराज म सफ पड़ हrdquo

शायद िह वबना कह यह भी समझ गयी री दक तारक का इशारा दकस ओर ह तभी बोली

दखो जब तक म वजनददा ह म उनको फाड़ कर न तो फ क सकती ह न जला सकती ह एक बार मर गयी

तो कया फकथ पड़ता ह दक कोई कया करगा उनक सार तमको तो दफकर होनी नही चावहए अब तो ि

मरी अमानत हrdquo यह बातचीत दो एक महीन पहल की ही होगी तारक न सोचा रा बात कभी दफर

उठायगा पर उसस पहल हीhellip

तारक को भी तब यह अदाज नही रा दक रवत क अलािा रजत स भी उसका नाता रा रवत क

जान क बाद िह खद को रजत क बहत करीब महसस कर रहा रा और उस लगा दक उसक खत रजत

को उसस दफर दर धकल सकत र पर िह दकसी तरह भी रजत को खोना नही चाहगाhellip रजत जस स

रवत का ही एक वहथसा राhellipउसन दखा लोगो स वघरा रजत का चहरा बहद वनचड़ा हआ रिहीन और

सखा-सा लग रहा रा रात भर सोया नही होगा इसवलए आखो क नीच कालापन उतर आया रा आख

काफी अदर को धसी हई री तारक को लगा दक िह शायद रजत स बहतर हालत म ह दफर उस रशक

भी हआ रजत अपन गम का खला इजहार कर सकता हhellip तारक को यह सविधा नही री िह दकसी

उजड़ आवशक क रप म इस महदफल इस मौत का शोक करन िालो की महदफल मhellip अपना असली

चहराhellip अपना आवशक का चहराhellip नही ददखा सकता रा अचानक उसकी आख भर आयी अपन खोन

की वशददत क अहसास स

रवत क िाकय उसक कान म सरसरान लग जबस उस ददल का दौरा पड़ा रा िह जीिन की

कषणभगरता या इसान क नाचीज होन क अवथततििादी दशथन को बहत बघारन लग गयी री शायद

अपन जान का अहसास उस कही बहत गहर उदास कर जाता रा पर िही िह उस जान को एक

अिशयभािी अकारय सतय की तरह थिीकार करक उसस समझौता भी करन लग गयी री एक ददन

उसन हडसन नदी क दसर वसर स मनहरन की ओर दखत हए कहा रा rdquoदखो तो इन छोर-छोर वडबबो

म दकतन लाखो लोग रहत ह दकतन छोर ह हम लोग इतनी तग जमीन पर दकतनी बड़ी तादाद म

समा जात ह एकदम हजारो की सखया म सार-सार जड़ कीड़ो की तरह दफर भी अपन आप को

दकतना बड़ा मानत ह राजनीवत धमथ और नवतकता की तवखतया वचपका कर दकतना बड़ा होन का

भलािा दत रहत ह खद कोrdquo

रजत को रवत की इसान को नाचीज करार दन िाली बातो स हमशा बहत वचढ़ छरती री

बोला रा rdquoधमथ नवतकता जीिन क सतय ह इनको तम भलािा दन िाली चीज कस कह सकती हो

इसान इसीवलए तो बाकी जीिो स अलग ह दक िह सोच सकता हrdquo

rdquoऔर सोच क धरातल पर हर चीज को गलत या सही सावबत कर सकता ह नवतकता को गढ़

सकता ह या परा सतयानाश कर सकता हhellip ठीक ह मझ तो उसम कोई नकसान नहीrdquo

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हा नकसान दकसी का ह तो मरा ही रजत न कहा तो तारक झर स बोल पड़ा रा rdquoनकसान

तो तब होता जो म उस भगा क ल जाताrdquo

रजत न सजीदगी स कहा rdquoअब इसका ददल बर गया हhellip तो आधी सपवतत तो लर ही गयी न

तम भगा ल जाओ तो भी फकथ नही पड़गा यह आधािाला वहथसा तब भी यही रहगाrdquo

सचमच रजत का यह विशवास सही रा रवत और उसक ररशत की शरआत क ददनो म भािना

क परिाह म बहता तारक रवत क सार एक नयी वजनददगी क दकिाड़ खोलन की बात सोच पाया रा पर

जलद ही उस अहसास हो गया रा दक रवत कही बहत गहर जड़ी री रजत क सार दक िह कभी उस

ररशत को तोड़गी नही य रजत भी शर क ददनो म भीतर स वहल गया रा यह झरका दक रवत रजत

को छोड़ दकसी और को मन म ला सकती ह उस बहत दर जा फ क आया रा दफर रवत न खोय विशवास

को िापस लौरा ददया रजत अपन आध नकसान क सार धीर-धीर शायद समझौता करना सीख गया रा

तारक को लगा दक िह आध क सार समझौता करना सीख गया रा दफर तारक को लगा दक

िह आध क सार समझौता नही रा रजत क भीतर कही पर का भरोसा भी रा जस दक रवत को वसफथ

एक बदलाि चावहए रा जो तारक रा िनाथ िह परी रजत की ही री कयोदक मौका आन पर रजत

अपना परा हक जतान स चकता नही रा हमशा यही मानता रा दक पहला हक उसी का ह तारक

हमशा बाद म आयगा जस दक पर भर लन पर बचा हआ भोजन दकसी को भी ददया जा सकता हhellip

कछ ऐसा रख

पर रवत बचा हआ भोजन नही रीhellip दकसी तरह स भी उवचछि या अिवशि नही जो उसन

रवत म पाया रा िह पहल वजनददगी म कभी नही वमला रा रवत न उसकी पहचान करायी री

पररपणथता स रवत को जानना ही जस उस सपणथता को छना रा शायद रजत न भी रवत म ऐसा कछ

पाया रा जो आम औरतो स अलग रा रवत शादी क इतन बरस बाद भी उस अपन म उलझाय री और

िह उसस मि नही होना चाहता रा रवत म बाहरी खबसरती क बािजद वयवि क ददमाग को भी

उलझाय रखन का जो गण रा उसस सच म जो भी पास आता और सखचता जाता रवत म भरपर

पयार लन की चाह री तो भरपर दन की कषमता भी इसी स अभी भी उसस जी तो नही भरा रा रजत

का शायद िह ऐसी औरत री जो हमशा वनत निीन होती रहhellip सौदयथ की एक पररभाषा यह भी तो

दी गई ह दक जो वनत नतन होता रह िही सौदयथ ह रवत भी कभी परानी नही पड़ती रोज कछ नया

होता ह उसक पासhellip कोई नया खयालhellip कोई नई सझhellip कोई नई उकसान उलझान िाली बातhellip

शायद इस ददमागी सौदयथ कहना होगाhellip जो कछ भी उसम राhellip बस खीचता रा अपनी ओरhellip मोहता

राhellip शायद कया पर उगली धरना उस पररवध म बाधन की भोडी कोवशश होती

कछ दवदव उठता तो रवत रजत क ही हक म बोलती री रजत क वहतो को सरवकषत कर लन क

बाद ही िह तारक को उसका हक दती तारक को खीझ भी होती दक रजत उसक जीिन म चदक पहल

आ गया रा इसीवलए हर चीज म ही पहला हक उसी का बनता ह पर उसन रवत स अपनी यह

मनवथरवत कभी जावहर नही होन दी री वपछल साल िलनदराईन ड पर ऐसा ही तो हआ रा दरअसल

दोनो को अदाज नही रा दक उस िीक ड पर िलनदराईन ड पड़ता रा तारक को दकसी काम स रवत क

शहर आना रा और दोनो न वमलन का कायथकरम बना डाला रा रजत स रवत की बात हई होगी तो

उसन भनकर कहा रा rdquoतो िह तमहारा िलनदराईन ह जो उस ददन आ रहा हrdquo रवत क कहन पर दक उस

तो याद भी नही रा िह बोला रा rdquoम नही मान सकता दक तारक न य ही आन का बनाया ह इस

िीक ड परrdquo रवत न तारक स सारी बात बतलायी तो उसन सोचा रा िह खद फोन पर रजत स कहगा

दक उस सचमच याद नही रा पर दफर बात बढ़ान न दन क वलए चप रह गया रा और जान का

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परोगराम भी थरवगत कर डाला रा तब उस दो बात तकलीफ दती रही री एक तो यह दक रजत हमशा

उसक सामन परारवमकता ल जायगा दसरी यह कड़िी सचचाई दक रवत कभी भी उसकी जावहरी वजनददगी

का वहथसा नही बन सकती री उसकी कमर म हार डाल कर िह कभी दकसी स यह नही कह सकता

रा रवत मरी हrdquo तब उस बहद रशक होता रजत स कया रजत को सचमच अहसास ह दक रवत तारक

क वलए कया ह दक िह उसकी वजनददगी का कनदर उसकी वजनददगी का अरथ बन चकी ह यह कोई हलका-

फलका ठरकपन नही उसकी वजनददगी का रशा-रशा गर गया ह रवत स शबद म अरथ की तरह समायी ह

रवत उसक अवथतति म इस गरन म िह खद ही घरता रहगा हमशा

अब रवत नही ह तो िह घरन और भी कस रही ह उस कया अब िह रजत स कह पायगा

अचानक उसका मन हआ दक रजत स कह द rdquoतमको मालम ह दक मझ सचमच पता नही रा दक उस

ददन िलनदराईन ड रा िनाथ ऐसी जरथत न करताrdquo दक िह जानता हhellip अचछी तरह समझता ह अपनी

और उसकी ररीररी की पररवधयो को दक रजद शायद कभी जान न पायगा पर उसन हमशा एक दोथत

की तरह रजत का रजत की जररतो का खयाल रखा हhellip वसफथ ऊपर-ऊपर स सामावजक उपचार की

तरह नही भीतर स दकसी ददली ररशत सhellip दफर िह ररशता चाह रवत क जररय स ही बना हो

हो सकता ह रजत यह सब महसस करता हो या न भी करता हो पर उसक चहर पर भी वमिता

का थिागतमय भाि हमशा ददखा ह तारक को वसिा उन कषणो क जब दक सचमच उन दोनो क बीच

lsquoररररोररयलrsquo झगड़ हए तब भी ि शायद इसानी आचार या परथपर सदभाि की सीमाओ को कभी

लाघ नही पर दफर भी तारक का रवत क सार का ररशता ऐसा नही दक रजत क सार वजस बार सक

रवत उसकी हथती का अवभि वहथसा ह िह कोई और कस हो सकता ह रजत रवत नही हो सकता

चाह उसक दकतन ही करीब रहा हो उस दकसी न दकसी तरह स अपन खत पान ही ह लदकन कस

और यही तारक बार-बार उलझ जाता ह अपनी यह परशानी िह दकसी क सार बार नही सकता

रजत स तो कतई नही खत अगर सचमच रजत क हार पड़ गय तो

लदकन रवत न यह भी तो कहा रा दक अगर िह नही रही तो कया फकथ पड़ता ह पर रजत

सचमच खत पढ़ ल तोhellip शायद उसकी पीड़ा पर तब करोध और घणा का कोई विकराल भत हािी हो

सकता हhellip हो सकता ह दक खत पढ़कर रजत रवत को खद स वछरक द लदकन उसस कया तब शायद

रवत और भी तारक क करीब आ जाय और भी उसकी अपनी हो जाय वसफथ उसी की समची एक रात

पहल उस ऐसा ही कछ सपना आया रा रवत की मौत की खबर क बाद यही उसका याद रह जानिाला

सपना रा िह रवत की अतयवि म गया ह और एक अधरा-सा बठकनमा कमरा हhellip कमर म कछ

कागज वबखर पड़ हhellip िह एक कागज उठाता हhellip िह उसी का रवत को वलखा खत हhellip और कई लोग

उसक आसपास ह और िह सोचन लगता ह दक कही इन लोगो न भी तो उनदह नही पढ़ाhellip तभी रजत

का चहरा उसकी ओर बढ़ता ह और िह कागज वछपान की तरकीब सोचन लगता हhellip इसी उधड़बन म

उसकी आख खल गयी री तो वजथम पसीन म नहाया हआ रा

एक रजत ही यहा उसक सबस करीब हhellip और रजत ही उस अजनबी-सा लगन लगा ह अब

तक उसका रवत का सदभथ रा अचानक उस सदभथ स करकर न होन जसा हो रहा ह तारक को अजीब-

सी मानवसक दरी और भयकर अकलापन-सा महसस हआ िह यहा आया ही कयो रा रवत की

नामौजदगी म दकतना बमानी ह उसका यहा होना रजत को भी दकतना दफजल-सा लग रहा होगा

उसका यहा उपवथरत होना वजन लोगो स वघरा ह ि तो सचमच उसक अपन हhellip तारक तो दर स भी

अपना नहीhellip मत स तारक का जो भी नाता रहा होhellip उसक दकसी दसर स तो नही रा उसक कॉलज

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कामो स लौर बचच भी तारक को पहचानत नही र तारक न ही उनकी शकलो और वयिहार स अदाज

लगाया रा और हॉलि म लगी तथिीरो स उनदह पहचान पाया रा

तारक क पास रजत स कहन को कछ नही रा उसका कछ भी कहना रजत को खल सकता रा

उलर तारक को लगन लगा दक रजत शायद सोच रहा हो दक अब कयो जखमो को याद ददलान आ गय

हो कछ भी हो तारक न उस पीड़ा तो पहचायी ही री कया अब उसका कछ भी करना रजत क कि को

कम कर सकता रा उसन वनगाहो स ही अपना दख बयान कर ददया जो शायद रजत न थिीकार भी

वलया राhellip शायद एक औपचाररकता की तरह जस िह दसर बहत स जमा लोगो की शोकावभवयविया

थिीकार रहा राhellip उसस कछ अलग नही शायद तारक का िहा होना ही रजत को खल रहा हो पर

िि की नाजकी की िजह स िह कछ कहना न चाह रहा हो तारक एकदम परशान-सा उठ खड़ा हआ

कछ लोग रजत क गल लग रह र शायद उसस विदा लकर जा रह र तारक न सोचा िह अब

कहगा दक रवत क पास कछ उसक जररी कागजात र अगर रजत उस कागजो िाली जगह पर ल चल

तो िह खद ही दख लगा तारक यि की गवत स रजत की ओर बढ़ा रजत जस दकसी को दख कर भी

दख नही रहा रा उसकी आख दकसी शनदय पर ररकी री तारक को लगा उन लोगो क वघराि म

वजसम उसक अपन अजीज दोथत और ररशतदार र रजत न उस कोई विशष लकष नही दकया तारक क

भीतर अजीब सनापन-सा आ वघरा लगा जस रवत रजत म कही नही री वसफथ भरम-सा हआ रा उस

उसक िहा होन का जस दक उसक रवत क नात स िहा होन म ही कोई भारी असगवत री उस लगा

िहा बठ अजनबी स लोग उस घर रह र उसक िहा होन पर परशनवचनदह लगा रह र पता नही दकतन

ही अजनवबयो स वघर गया रा तारक यहा तक दक रवत की उस तथिीर म भी उस रवत नजर नही आ

रही री िह भी कोई अजनबी छाया री यह दवनया उसकी नही री अगर िह रवत की दवनया रही

भी हो तो वजस रवत को िह जानता रा उस रवत क वलए भी यह दवनया अनवथतति री विसगत री

उसन रजत को बहत सभलत सभलत गल स लगान की औपचाररकता की उस लगा जस िह

दकसी अजनबी को गल लगा रहा रा रवत वजतन उसक अपन पास री उतन और कही नही दकसी क

पास नही दरअसल रवत और कही नही री उसक भीतर रीhellip बस उस रवत को िही अपन भीतर ही

कही सजोय रखना रा भीतर ही खोजना रा भीतर ही तसलली करनी री दकसी और स बार नही

सकता रा रवत को रजत क दोनो कधो को हलक स दबाकर उसन धीर स कहा rdquoरक कयरrdquo और मड़ा

तो वबना पीछ दख बाहर वनकल गया

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पासपोरथ अमरीकन मरो

ओम गपता

पासपोरथ अमरीकन मरो पर रगत सहदथतानी

आज सनाऊ तमको पयार अपनी रामकहानी

छोड़ो भारत मन भयया डॉलर दख-दख ललचायो

चार-पकोड़ी जब भी दख मोह म पानी भर आयो

दीिाली पर दीप जलाउ होली पर खल रग

मौको जब मझको लगतो पीतो म भी भग

कसो होगी सरकार हमारी मोक हरदम सचता

जब भी दश पड़ सकर म कपा करो हनमनदता

पज म अब भी राम-कषण जातो मददर रोज

गपशप यारो स करतो फोकर म वमलतो भोज

योगी-बाबा आए दश स जब दन मझको जञान

आख मद क ना कछ जान करतो उनको सममान

हमबगथर अब भी नही भातो भाती मझ कचोड़ी

जसो जब भी मौका आयो रोपी िसी ओढ़ी

जाऊ दश को जब म अपन खाऊ लडड और इमरती

कहतो खद को सहदथतानी अमरीका मरी अब धरती

कहन को बहत ह भयया रोड़ को समझो काफी

बरा-भला लगा जो तमको माग नतमथतक माफी

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शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

आकाकषा ह

वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

फर च अनिाद कर इस lsquoभोगिाद स पीवड़त पविम की आतमा को अतयवधक शावत दन िालाrsquo कहा

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ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

की सीमाओ क पर मनषय कया अनभि कर सकता ह उसकी एक झलक भी ददखा दता ह उसी

औपवनषदीय जञान को महरवष िदवयास न सामानदय जनो क वलए ldquoपविि गीताrdquo म सवकषपत रप म परथतत

दकया ह िदवयास की महानता ही ह जो दक 11 उपवनषदो क जञान को एक पथतक म बाध सक और

मानिता को एक आसान यवि स परमातम जञान का दशथन करा सक ldquoपविि गीताrdquo महाभारत क

भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

ह भगिद गीता वहनदद धमथ क पविितम गरनदरो म स एक ह जो इसानो की चौहददी की सीमा रखा पर

भगिान क शरी मख दवारा इसान स कही गयी सरहदो पर चहरो की थकररनी का लखा-जोखा ह यह

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पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

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Page 26: Year 12, Issue 47Year 12, Issue 47 vsu2avsu2a · राथत § में आ वबछ §ग . ... श्रराम की अन ¡कम्पा स § ह हाल ह में

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ह इसम रवत क रश बन हए र जो एक और ही रगत वलए र और िह रगत तारक को बहत पयारी री

उस दोथती स जयादा

तारक न होरल पहच कर फोन कर ददया रा दक वडनर पर वमलना ही ठीक रहगा और िह

अपना काम इस दौरान कर लगा रजत आसानी स यह बात मान गया और कहा दक िह सडरकस पर

पहल घर पर आ जाय उसक बाद रथतरा खाना खान चल जायग

शाम को जब िह चलन लगा तो फोन बजा रा दसरी ओर रवत री हलो कहत ही रवत न

कहा rdquoसनो तम मत आना मर घर म बहत रशन चल रही हrdquo इसस पहल दक िह कछ कहता रवत न

फोन वडसकनकर कर ददया

रात को कोई फलाईर नही जाती री िनाथ िह उसी िि शहर छोड़ क चला जाता

आध घर बाद ही घरी दफर बजी रवत पछ रही री दक आ रह हो तारक बौखला गया दक आवखर हो

कया रहा ह कया यह रवत क मन की उलझन ह या दक रजत कीhellip या दोनो कीhellip या रवत वसफथ रजत

की उलझन को वयि कर रही री बोली री rdquoजलदी आ जाओ हम लोग इतजार कर रह हrdquo

िह पहचा तो रवत न अकल ही उसका थिागत दकया रा िह जानता रा दक दोनो बचच कालजो

म ह पर रजत काफी दर तक बठक म नही आया तो तारक हरान हआ रवत बोली rdquoिह नहा रहा हrdquo

दफर मथकरा कर जोड़ा rdquoशायद हम दोनो को कछ िि दना चाहता हrdquo

तारक तब कछ निथस हआ रा उस आग बढ़कर रवत को चमन का हौसला नही हआ उस लगा

दक रवत भी सहज नही री जस दक आम तौर पर होती ह पर उसन कछ कहा नही िह खद भी तो

सहज नही हो पा रहा रा जस लड़की क बाप क घर म शादी का परथताि लकर जा रहा हो कछ कछ

इसी तरह का महसस हो रहा रा िही डर कर परचा करना रा दक इमतहान म फल न हो जाय

रजत न कमर म आत ही बड़ तपाक स हलो दकया कछ औपचाररक-सी बात की दफर उसस

सडरक पछा और दकचन म बफथ िगरह का इतजाम करन क वलए दफर स गायब हो गया तारक को लगा

दक सहज होन की बहत कोवशश क बािजद रजत बहत असहज ह

ववहथकी का घर लत हए तारक न ही रजत स उसक काम क बार म पछना शर दकया बात

कही जा नही रही री तभी रवत एक नई दकताब की चचाथ करन लगी वजसका ररवय सबह क अखबार म

छपा रा तारक न हिाई जहाज म ही उसक बार म पढ़ा रा दफर तो बातचीत खब गरमागरम होन

लगी रजत न दवकषण एवशयाई अगरजी लखको क बार म अपन विचार झाड़न शर कर ददय यहा तक

दक रवत न अचानक घड़ी दखी तो पता चला दक रथतरा की ररजिशन का िि हो चका रा रजत न

रथतरा को फोन दकया दक कछ वमनर लर पहचग और तारक को बोला दक जलदी स सडरक खतम कर ल

या गाड़ी म ही ल चल दोनो न दो तीन सडरक चढ़ा रख र मौज-सी भी आयी हई री रजत ही कार

चला रहा रा और तारक पीछ िाली सीर पर बठा रा अचानक रजत कछ नश और कछ अपनी धन म

बोला rdquoतो तम मरी बीिी स पयार करत होrdquo

तारक भौचक-सा हो गया य ही बठा रहा जस रजत की बात को सना न हो या िह गभीरता

स लन लायक न हो रजत न अपनी बात को सिाल बनाकर दबारा पश दकया rdquoकयो तारक मरी बीिी

स पयार करत हो या नहीrdquo

तारक न कहा rdquoहाrdquo और चप कर गया उस लग रहा रा िह जो भी जिाब दगा खतर स खाली नही

पर यह जिाब सच रा तो सच बोल कर ही मार खायी जाय उस दकसी लड़की क वपता स हार मागन

नही जाना पड़ा रा आज यह भी सही

rdquoतम भी पयार करत हो िह भी करती ह तो तम दोनो सार कयो नही रहतrdquo

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तारक बोल पड़ा रा rdquoयह इतना आसान नहीrdquo

रजत इस पर आकरमण करता-सा बोला rdquoकमाल ह पयार भी करत ह और वजममिारी भी नही

वनभाना चाहतrdquo तारक को महसस हो रहा रा दक रजत कह तो कछ रहा ह और पहचाना कछ और

चाहता ह दफर भी िह जिाब तो उसी बात का द सकता रा जो दक पछी जा रही री यह कह कर

उस नाराज भी नही करना चाहता रा दक रजत वसफथ अपन भीतर क आकरोश आतक और आग को

आिाज द रहा रा बोला rdquoयह बात नही म आज भी रवत क सार वजनददगी शर करन को तयार ह

जहा तक म जानता ह रवत अपन शहर को छोड़ कर और कही नही जायगी न िह तमको छोड़न को

तयार होगी जहा तक म रवत को जानता हhelliprdquo

रवत चपचाप अपन पर अकश लगाय दोनो की बात सन रही री न तो िह रजत क पकष म

कछ बोलना चाहती री न तारक क पकष म ही बोल सकती री दफर भी दोनो क बीच तारतमय वबठाय

रखन की वजममिारी भी उसी की री और िह समझ नही पा रही री दक दकस तरह इस बातचीत को

सीमाय लाघन स बचाया जाय ऊपर स उस डर लग रहा रा दक आिश म रजत कही रककर न मार द

रथतरा बहत दर रा भी नही बात पर चरम पर चल रही री दक रथतरा आ गया रवत न रोका rdquoरजत

पारककग ढढ़ो रथतरा आ गयाrdquo रथतरा क सार ही पारककग गराज म गाड़ी छोड़ कर तीनो अदर चल गय

िरर न उनको मज पर वबठाया और सडरक क वलए पछा तरा मनदय लाकर ददय तीनो क तीनो उस मज

पर इस तरह खामोश और भर बठ र दक मनदय म वसर डबोना एक राहत बन गया रा तीनो न अपन-

अपन आडथर ददय पर बात कछ बन नही रही री हर कोई कछ भी कहन म जयादा ही सतकथ हो रहा रा

अचानक रवत बोली rdquoरजत तमको इतनी जयादा तकलीफ री तो तमन मना कयो नही कर

ददया म तो तारक को कह चकी री दक आज सार खाना नही होगा तमही न जोर ददया दक जरर

बलाओ अब इस तरह कयो बताथि कर रह होrdquo

रजत और भड़क गया rdquoम तो वसफथ यह कह रहा ह दक तम लोग एक-दसर को पयार करत हो

तो म कया कर रहा ह यहा तम जाओ एक दसर क सार रहोrdquo

दोनो की आिाज ऊची हो रही री और दसरी मजो पर बठ लोगो की वनगाह इस ओर उठ आयी री

तारक न धीर स सझाया रा rdquoमर खयाल स हम य बात यहा नही करनी चावहएrdquo सहसा रवत

न होश म आत कहा rdquoहा इतन बदढ़या रथतरा म खाना खान आय ह कछ खान पर भी तो धयान दhellip

दफर आज मरा जनदमददन ह आई िार र हि ए गड मीलrdquo

दफर भी खान पर तीनो म स दकसी का धयान नही लग सका तीनो औपचाररक-सी बात म लग

गय र तारक न ही शहर क निीनतम रथतराओ क बार म ताजा पढ़ी समीकषा का वजकर छड़ ददया रा

रजत न कार स जब उस होरल छोड़ा तो तारक न उपर कमर म आकर सडरक लन क वलए कहा

पर जसा दक िह अपकषा कर रहा रा रजत न दर होन का बहाना बना छटटी माग ली री रवत तब भी

कछ नही बोली री शायद उस डर रा दक उसका कछ भी कहना रजत क वलए घाि पर नमक वछड़कन

जसा होगा या उसकी कोई भी बात का गलत मतलब वनकाल कर रजत भड़क सकता रा य दर हो भी

चकी री

पर तारक यह भी जानता रा दक रवत एक नबर की वजददी री जो उस चावहए रा चावहए ही

रा उस रोका नही जा सकता रा िह ऊपर स मान जायगी पर भीतर स कभी माफ नही करगी

शायद इसी स रजत भी वबगड़ी हई लाड़ली बरी की तरह रवत की हर चाह या माग को विरोध करक

भी अतत मान जाता रा

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लौर आन क दो चार ददन बाद ही उसक फोन पर रवत न सदश छोड़ा रा rdquoतमहारा आना ठीक

नही हआ सॉरी तमह बलाकर भी वमल नही पायी अब लगता ह कभी नही वमलगी लर अस थरॉप

ददस वहयर पलीज मझस सपकथ मत करनाrdquo

तारक बहत ददन परशान घमता रहा रा पर रवत को फोन भी नही दकया उसन मना जो कर

डाला रा उस फोन करत हए तारक को लगता दक िह खद को उस पर लाद रहा ह और यह वथरवत

उस कभी गिारा नही री हर ददन दकसी जिालामखी-सा लाि स लदा हआ गजरता अदर ही अदर

सब तप रहा रा

महीन भर बाद रवत न फोन दकया रा rdquoगथसा हो न मझस तमस माफी भी नही माग सकीrdquo

उसकी तो कोई जररत नहीrdquo

दफर भी सोचा रा तमस कभी बात नही करगी इसी स तमको सपकथ करन स मना दकया

रा रजत को भी यही मालम ह दक तमस ररशता तोड़ ददया ह पर अब मझी स बात दकय वबना रहा

नही जा रहाrdquo

रजत को मालम ह मझस बात कर रही होrdquo

िह बहद गथसा ह तमसhellip जस दक सारा दोष तमहारा होhellip दक तमन उसकी बीिी को फसा वलयाrdquo

ि इसी तरह जब मौका लगता बात कर लत तारक क ददल ददमाग पर रवत ही छायी रहती

िह ऐस ही पलो क दौरान जीता जब दोनो क बीच कछ सपकथ होता बाकी क पल उन पलो क इतजार

म गजरत

इस बीच रवत को ददल का दौरा पड़ा रा घबराकर तारक को फोन कर डाला रा रजत न

तारक आया तो रजत उस अपनी गाड़ी म सार अथपताल ल आता जाता रहा दोनो म एक दोथती का

नाता तभी बना रा दवनया जहान की बात रजत न उस घर पर ही ठहराया रा तारक तीन ददन बाद

चला गया रा िावपस पर दोनो की फोन पर बात हो जाती रवत अथपताल स िावपस आ गयी री

धीर-धीर िह सामानदय होकर िावपस अपना काम सभालन लगी

रवत का जनदमददन दफर स आनिाला रा रवत न उस कहा रा rdquoरजत अपन आप ही बोल रहा ह

दक तम आ जाओ इस बार मरा जनदमददन मनान बोलो आओगrdquo

तारक परानी बात याद करक घबरा गया रा rdquoनही दफर स उसक भीतर सब घमड़न लगगाhellip

सबको तकलीफ होगीrdquo

यह सच भी रा रजत कभी तो उसक परवत बहत वमिित हो जाता िही अचानक गथसा ईषयाथ

उभर आत और िह अकसर बरखी ददखाता अचानक तारक को ऐसा महसस हआ जस रवत उसस खद

यह सब कह रही हो पल भर को िह भल ही गया दक रवत क ही अतयवि कमथ म िह शावमल हआ ह

और दरअसल उसक यहा आन की एक िजह यह भी ह दक िह रवत को वलख अपन खत िावपस ल

जाना चाहता ह उस डर ह दक कही ि खत रजत क हार न पड़ जाय

तारक रवत क सार काम करन िाली इस मवहला डॉ लोपज स पहल वमला हआ रा इस भीड़

म एक िही जान-पहचान की री तारक का मन हआ उसस पछ दक कया िह रवत की दराज म उसक

कागजात पर नजर मार सकता ह तारक को अदाज रा दक उसक खत िह दफतर की मज की दराज म

रखती री पर िह जानता रा दक ऐसा करना ममदकन रा नही आवखर तारक को कस हक पहचता रा

रवत की दराज खलिान का िह तो एक पररिार क वमि की हवसयत स िहा रा रजत ही कह सकता

रा दखा जाय तो ि लोग खद भी रजत स ही कहग दक रवत का सामान िह ल जाय तब तो रजत की

आख जरर उन पर पड़गी तब शायद उसको बरा लगगा दक रवत क सार तारक का एक अपना ररशता

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रा उन तीनो की आपसी दोथती क बाहरhellip रजत को बतहाशा चोर लगगी अब जबदक िह रवत स

जिाबतलबी भी नही कर सकता रवत अब कोई सफाई नही पश कर पायगी तारक क हक म कछ भी

नही कह सकगी दकसी तकथ स रजत को लाजिाब नही कर पायगी नही िह ऐसा नही कर सकता न

यह रवत क परवत सही होगा न रजत क परवत उस दकसी न दकसी तरह स खत पान ह

राथत म आत हए हिाई जहाज म तारक जब लगातार रवत क सार की अपनी वजनददगी क

गजर पल दहरा रहा रा बार-बार उस धयान आता दक जब स रवत को ददल का दौरा हआ रा िह

उसस कहना चाहता रा दक उसक खत विनि कर द एक बार उसन बात उठायी तो रवत बोली rdquoकयो

तमहार खत मर दफतर की दराज म सफ पड़ हrdquo

शायद िह वबना कह यह भी समझ गयी री दक तारक का इशारा दकस ओर ह तभी बोली

दखो जब तक म वजनददा ह म उनको फाड़ कर न तो फ क सकती ह न जला सकती ह एक बार मर गयी

तो कया फकथ पड़ता ह दक कोई कया करगा उनक सार तमको तो दफकर होनी नही चावहए अब तो ि

मरी अमानत हrdquo यह बातचीत दो एक महीन पहल की ही होगी तारक न सोचा रा बात कभी दफर

उठायगा पर उसस पहल हीhellip

तारक को भी तब यह अदाज नही रा दक रवत क अलािा रजत स भी उसका नाता रा रवत क

जान क बाद िह खद को रजत क बहत करीब महसस कर रहा रा और उस लगा दक उसक खत रजत

को उसस दफर दर धकल सकत र पर िह दकसी तरह भी रजत को खोना नही चाहगाhellip रजत जस स

रवत का ही एक वहथसा राhellipउसन दखा लोगो स वघरा रजत का चहरा बहद वनचड़ा हआ रिहीन और

सखा-सा लग रहा रा रात भर सोया नही होगा इसवलए आखो क नीच कालापन उतर आया रा आख

काफी अदर को धसी हई री तारक को लगा दक िह शायद रजत स बहतर हालत म ह दफर उस रशक

भी हआ रजत अपन गम का खला इजहार कर सकता हhellip तारक को यह सविधा नही री िह दकसी

उजड़ आवशक क रप म इस महदफल इस मौत का शोक करन िालो की महदफल मhellip अपना असली

चहराhellip अपना आवशक का चहराhellip नही ददखा सकता रा अचानक उसकी आख भर आयी अपन खोन

की वशददत क अहसास स

रवत क िाकय उसक कान म सरसरान लग जबस उस ददल का दौरा पड़ा रा िह जीिन की

कषणभगरता या इसान क नाचीज होन क अवथततििादी दशथन को बहत बघारन लग गयी री शायद

अपन जान का अहसास उस कही बहत गहर उदास कर जाता रा पर िही िह उस जान को एक

अिशयभािी अकारय सतय की तरह थिीकार करक उसस समझौता भी करन लग गयी री एक ददन

उसन हडसन नदी क दसर वसर स मनहरन की ओर दखत हए कहा रा rdquoदखो तो इन छोर-छोर वडबबो

म दकतन लाखो लोग रहत ह दकतन छोर ह हम लोग इतनी तग जमीन पर दकतनी बड़ी तादाद म

समा जात ह एकदम हजारो की सखया म सार-सार जड़ कीड़ो की तरह दफर भी अपन आप को

दकतना बड़ा मानत ह राजनीवत धमथ और नवतकता की तवखतया वचपका कर दकतना बड़ा होन का

भलािा दत रहत ह खद कोrdquo

रजत को रवत की इसान को नाचीज करार दन िाली बातो स हमशा बहत वचढ़ छरती री

बोला रा rdquoधमथ नवतकता जीिन क सतय ह इनको तम भलािा दन िाली चीज कस कह सकती हो

इसान इसीवलए तो बाकी जीिो स अलग ह दक िह सोच सकता हrdquo

rdquoऔर सोच क धरातल पर हर चीज को गलत या सही सावबत कर सकता ह नवतकता को गढ़

सकता ह या परा सतयानाश कर सकता हhellip ठीक ह मझ तो उसम कोई नकसान नहीrdquo

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हा नकसान दकसी का ह तो मरा ही रजत न कहा तो तारक झर स बोल पड़ा रा rdquoनकसान

तो तब होता जो म उस भगा क ल जाताrdquo

रजत न सजीदगी स कहा rdquoअब इसका ददल बर गया हhellip तो आधी सपवतत तो लर ही गयी न

तम भगा ल जाओ तो भी फकथ नही पड़गा यह आधािाला वहथसा तब भी यही रहगाrdquo

सचमच रजत का यह विशवास सही रा रवत और उसक ररशत की शरआत क ददनो म भािना

क परिाह म बहता तारक रवत क सार एक नयी वजनददगी क दकिाड़ खोलन की बात सोच पाया रा पर

जलद ही उस अहसास हो गया रा दक रवत कही बहत गहर जड़ी री रजत क सार दक िह कभी उस

ररशत को तोड़गी नही य रजत भी शर क ददनो म भीतर स वहल गया रा यह झरका दक रवत रजत

को छोड़ दकसी और को मन म ला सकती ह उस बहत दर जा फ क आया रा दफर रवत न खोय विशवास

को िापस लौरा ददया रजत अपन आध नकसान क सार धीर-धीर शायद समझौता करना सीख गया रा

तारक को लगा दक िह आध क सार समझौता करना सीख गया रा दफर तारक को लगा दक

िह आध क सार समझौता नही रा रजत क भीतर कही पर का भरोसा भी रा जस दक रवत को वसफथ

एक बदलाि चावहए रा जो तारक रा िनाथ िह परी रजत की ही री कयोदक मौका आन पर रजत

अपना परा हक जतान स चकता नही रा हमशा यही मानता रा दक पहला हक उसी का ह तारक

हमशा बाद म आयगा जस दक पर भर लन पर बचा हआ भोजन दकसी को भी ददया जा सकता हhellip

कछ ऐसा रख

पर रवत बचा हआ भोजन नही रीhellip दकसी तरह स भी उवचछि या अिवशि नही जो उसन

रवत म पाया रा िह पहल वजनददगी म कभी नही वमला रा रवत न उसकी पहचान करायी री

पररपणथता स रवत को जानना ही जस उस सपणथता को छना रा शायद रजत न भी रवत म ऐसा कछ

पाया रा जो आम औरतो स अलग रा रवत शादी क इतन बरस बाद भी उस अपन म उलझाय री और

िह उसस मि नही होना चाहता रा रवत म बाहरी खबसरती क बािजद वयवि क ददमाग को भी

उलझाय रखन का जो गण रा उसस सच म जो भी पास आता और सखचता जाता रवत म भरपर

पयार लन की चाह री तो भरपर दन की कषमता भी इसी स अभी भी उसस जी तो नही भरा रा रजत

का शायद िह ऐसी औरत री जो हमशा वनत निीन होती रहhellip सौदयथ की एक पररभाषा यह भी तो

दी गई ह दक जो वनत नतन होता रह िही सौदयथ ह रवत भी कभी परानी नही पड़ती रोज कछ नया

होता ह उसक पासhellip कोई नया खयालhellip कोई नई सझhellip कोई नई उकसान उलझान िाली बातhellip

शायद इस ददमागी सौदयथ कहना होगाhellip जो कछ भी उसम राhellip बस खीचता रा अपनी ओरhellip मोहता

राhellip शायद कया पर उगली धरना उस पररवध म बाधन की भोडी कोवशश होती

कछ दवदव उठता तो रवत रजत क ही हक म बोलती री रजत क वहतो को सरवकषत कर लन क

बाद ही िह तारक को उसका हक दती तारक को खीझ भी होती दक रजत उसक जीिन म चदक पहल

आ गया रा इसीवलए हर चीज म ही पहला हक उसी का बनता ह पर उसन रवत स अपनी यह

मनवथरवत कभी जावहर नही होन दी री वपछल साल िलनदराईन ड पर ऐसा ही तो हआ रा दरअसल

दोनो को अदाज नही रा दक उस िीक ड पर िलनदराईन ड पड़ता रा तारक को दकसी काम स रवत क

शहर आना रा और दोनो न वमलन का कायथकरम बना डाला रा रजत स रवत की बात हई होगी तो

उसन भनकर कहा रा rdquoतो िह तमहारा िलनदराईन ह जो उस ददन आ रहा हrdquo रवत क कहन पर दक उस

तो याद भी नही रा िह बोला रा rdquoम नही मान सकता दक तारक न य ही आन का बनाया ह इस

िीक ड परrdquo रवत न तारक स सारी बात बतलायी तो उसन सोचा रा िह खद फोन पर रजत स कहगा

दक उस सचमच याद नही रा पर दफर बात बढ़ान न दन क वलए चप रह गया रा और जान का

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परोगराम भी थरवगत कर डाला रा तब उस दो बात तकलीफ दती रही री एक तो यह दक रजत हमशा

उसक सामन परारवमकता ल जायगा दसरी यह कड़िी सचचाई दक रवत कभी भी उसकी जावहरी वजनददगी

का वहथसा नही बन सकती री उसकी कमर म हार डाल कर िह कभी दकसी स यह नही कह सकता

रा रवत मरी हrdquo तब उस बहद रशक होता रजत स कया रजत को सचमच अहसास ह दक रवत तारक

क वलए कया ह दक िह उसकी वजनददगी का कनदर उसकी वजनददगी का अरथ बन चकी ह यह कोई हलका-

फलका ठरकपन नही उसकी वजनददगी का रशा-रशा गर गया ह रवत स शबद म अरथ की तरह समायी ह

रवत उसक अवथतति म इस गरन म िह खद ही घरता रहगा हमशा

अब रवत नही ह तो िह घरन और भी कस रही ह उस कया अब िह रजत स कह पायगा

अचानक उसका मन हआ दक रजत स कह द rdquoतमको मालम ह दक मझ सचमच पता नही रा दक उस

ददन िलनदराईन ड रा िनाथ ऐसी जरथत न करताrdquo दक िह जानता हhellip अचछी तरह समझता ह अपनी

और उसकी ररीररी की पररवधयो को दक रजद शायद कभी जान न पायगा पर उसन हमशा एक दोथत

की तरह रजत का रजत की जररतो का खयाल रखा हhellip वसफथ ऊपर-ऊपर स सामावजक उपचार की

तरह नही भीतर स दकसी ददली ररशत सhellip दफर िह ररशता चाह रवत क जररय स ही बना हो

हो सकता ह रजत यह सब महसस करता हो या न भी करता हो पर उसक चहर पर भी वमिता

का थिागतमय भाि हमशा ददखा ह तारक को वसिा उन कषणो क जब दक सचमच उन दोनो क बीच

lsquoररररोररयलrsquo झगड़ हए तब भी ि शायद इसानी आचार या परथपर सदभाि की सीमाओ को कभी

लाघ नही पर दफर भी तारक का रवत क सार का ररशता ऐसा नही दक रजत क सार वजस बार सक

रवत उसकी हथती का अवभि वहथसा ह िह कोई और कस हो सकता ह रजत रवत नही हो सकता

चाह उसक दकतन ही करीब रहा हो उस दकसी न दकसी तरह स अपन खत पान ही ह लदकन कस

और यही तारक बार-बार उलझ जाता ह अपनी यह परशानी िह दकसी क सार बार नही सकता

रजत स तो कतई नही खत अगर सचमच रजत क हार पड़ गय तो

लदकन रवत न यह भी तो कहा रा दक अगर िह नही रही तो कया फकथ पड़ता ह पर रजत

सचमच खत पढ़ ल तोhellip शायद उसकी पीड़ा पर तब करोध और घणा का कोई विकराल भत हािी हो

सकता हhellip हो सकता ह दक खत पढ़कर रजत रवत को खद स वछरक द लदकन उसस कया तब शायद

रवत और भी तारक क करीब आ जाय और भी उसकी अपनी हो जाय वसफथ उसी की समची एक रात

पहल उस ऐसा ही कछ सपना आया रा रवत की मौत की खबर क बाद यही उसका याद रह जानिाला

सपना रा िह रवत की अतयवि म गया ह और एक अधरा-सा बठकनमा कमरा हhellip कमर म कछ

कागज वबखर पड़ हhellip िह एक कागज उठाता हhellip िह उसी का रवत को वलखा खत हhellip और कई लोग

उसक आसपास ह और िह सोचन लगता ह दक कही इन लोगो न भी तो उनदह नही पढ़ाhellip तभी रजत

का चहरा उसकी ओर बढ़ता ह और िह कागज वछपान की तरकीब सोचन लगता हhellip इसी उधड़बन म

उसकी आख खल गयी री तो वजथम पसीन म नहाया हआ रा

एक रजत ही यहा उसक सबस करीब हhellip और रजत ही उस अजनबी-सा लगन लगा ह अब

तक उसका रवत का सदभथ रा अचानक उस सदभथ स करकर न होन जसा हो रहा ह तारक को अजीब-

सी मानवसक दरी और भयकर अकलापन-सा महसस हआ िह यहा आया ही कयो रा रवत की

नामौजदगी म दकतना बमानी ह उसका यहा होना रजत को भी दकतना दफजल-सा लग रहा होगा

उसका यहा उपवथरत होना वजन लोगो स वघरा ह ि तो सचमच उसक अपन हhellip तारक तो दर स भी

अपना नहीhellip मत स तारक का जो भी नाता रहा होhellip उसक दकसी दसर स तो नही रा उसक कॉलज

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कामो स लौर बचच भी तारक को पहचानत नही र तारक न ही उनकी शकलो और वयिहार स अदाज

लगाया रा और हॉलि म लगी तथिीरो स उनदह पहचान पाया रा

तारक क पास रजत स कहन को कछ नही रा उसका कछ भी कहना रजत को खल सकता रा

उलर तारक को लगन लगा दक रजत शायद सोच रहा हो दक अब कयो जखमो को याद ददलान आ गय

हो कछ भी हो तारक न उस पीड़ा तो पहचायी ही री कया अब उसका कछ भी करना रजत क कि को

कम कर सकता रा उसन वनगाहो स ही अपना दख बयान कर ददया जो शायद रजत न थिीकार भी

वलया राhellip शायद एक औपचाररकता की तरह जस िह दसर बहत स जमा लोगो की शोकावभवयविया

थिीकार रहा राhellip उसस कछ अलग नही शायद तारक का िहा होना ही रजत को खल रहा हो पर

िि की नाजकी की िजह स िह कछ कहना न चाह रहा हो तारक एकदम परशान-सा उठ खड़ा हआ

कछ लोग रजत क गल लग रह र शायद उसस विदा लकर जा रह र तारक न सोचा िह अब

कहगा दक रवत क पास कछ उसक जररी कागजात र अगर रजत उस कागजो िाली जगह पर ल चल

तो िह खद ही दख लगा तारक यि की गवत स रजत की ओर बढ़ा रजत जस दकसी को दख कर भी

दख नही रहा रा उसकी आख दकसी शनदय पर ररकी री तारक को लगा उन लोगो क वघराि म

वजसम उसक अपन अजीज दोथत और ररशतदार र रजत न उस कोई विशष लकष नही दकया तारक क

भीतर अजीब सनापन-सा आ वघरा लगा जस रवत रजत म कही नही री वसफथ भरम-सा हआ रा उस

उसक िहा होन का जस दक उसक रवत क नात स िहा होन म ही कोई भारी असगवत री उस लगा

िहा बठ अजनबी स लोग उस घर रह र उसक िहा होन पर परशनवचनदह लगा रह र पता नही दकतन

ही अजनवबयो स वघर गया रा तारक यहा तक दक रवत की उस तथिीर म भी उस रवत नजर नही आ

रही री िह भी कोई अजनबी छाया री यह दवनया उसकी नही री अगर िह रवत की दवनया रही

भी हो तो वजस रवत को िह जानता रा उस रवत क वलए भी यह दवनया अनवथतति री विसगत री

उसन रजत को बहत सभलत सभलत गल स लगान की औपचाररकता की उस लगा जस िह

दकसी अजनबी को गल लगा रहा रा रवत वजतन उसक अपन पास री उतन और कही नही दकसी क

पास नही दरअसल रवत और कही नही री उसक भीतर रीhellip बस उस रवत को िही अपन भीतर ही

कही सजोय रखना रा भीतर ही खोजना रा भीतर ही तसलली करनी री दकसी और स बार नही

सकता रा रवत को रजत क दोनो कधो को हलक स दबाकर उसन धीर स कहा rdquoरक कयरrdquo और मड़ा

तो वबना पीछ दख बाहर वनकल गया

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पासपोरथ अमरीकन मरो

ओम गपता

पासपोरथ अमरीकन मरो पर रगत सहदथतानी

आज सनाऊ तमको पयार अपनी रामकहानी

छोड़ो भारत मन भयया डॉलर दख-दख ललचायो

चार-पकोड़ी जब भी दख मोह म पानी भर आयो

दीिाली पर दीप जलाउ होली पर खल रग

मौको जब मझको लगतो पीतो म भी भग

कसो होगी सरकार हमारी मोक हरदम सचता

जब भी दश पड़ सकर म कपा करो हनमनदता

पज म अब भी राम-कषण जातो मददर रोज

गपशप यारो स करतो फोकर म वमलतो भोज

योगी-बाबा आए दश स जब दन मझको जञान

आख मद क ना कछ जान करतो उनको सममान

हमबगथर अब भी नही भातो भाती मझ कचोड़ी

जसो जब भी मौका आयो रोपी िसी ओढ़ी

जाऊ दश को जब म अपन खाऊ लडड और इमरती

कहतो खद को सहदथतानी अमरीका मरी अब धरती

कहन को बहत ह भयया रोड़ को समझो काफी

बरा-भला लगा जो तमको माग नतमथतक माफी

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शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

आकाकषा ह

वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

फर च अनिाद कर इस lsquoभोगिाद स पीवड़त पविम की आतमा को अतयवधक शावत दन िालाrsquo कहा

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ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

की सीमाओ क पर मनषय कया अनभि कर सकता ह उसकी एक झलक भी ददखा दता ह उसी

औपवनषदीय जञान को महरवष िदवयास न सामानदय जनो क वलए ldquoपविि गीताrdquo म सवकषपत रप म परथतत

दकया ह िदवयास की महानता ही ह जो दक 11 उपवनषदो क जञान को एक पथतक म बाध सक और

मानिता को एक आसान यवि स परमातम जञान का दशथन करा सक ldquoपविि गीताrdquo महाभारत क

भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

ह भगिद गीता वहनदद धमथ क पविितम गरनदरो म स एक ह जो इसानो की चौहददी की सीमा रखा पर

भगिान क शरी मख दवारा इसान स कही गयी सरहदो पर चहरो की थकररनी का लखा-जोखा ह यह

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पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

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Page 27: Year 12, Issue 47Year 12, Issue 47 vsu2avsu2a · राथत § में आ वबछ §ग . ... श्रराम की अन ¡कम्पा स § ह हाल ह में

12 47 2015 25

तारक बोल पड़ा रा rdquoयह इतना आसान नहीrdquo

रजत इस पर आकरमण करता-सा बोला rdquoकमाल ह पयार भी करत ह और वजममिारी भी नही

वनभाना चाहतrdquo तारक को महसस हो रहा रा दक रजत कह तो कछ रहा ह और पहचाना कछ और

चाहता ह दफर भी िह जिाब तो उसी बात का द सकता रा जो दक पछी जा रही री यह कह कर

उस नाराज भी नही करना चाहता रा दक रजत वसफथ अपन भीतर क आकरोश आतक और आग को

आिाज द रहा रा बोला rdquoयह बात नही म आज भी रवत क सार वजनददगी शर करन को तयार ह

जहा तक म जानता ह रवत अपन शहर को छोड़ कर और कही नही जायगी न िह तमको छोड़न को

तयार होगी जहा तक म रवत को जानता हhelliprdquo

रवत चपचाप अपन पर अकश लगाय दोनो की बात सन रही री न तो िह रजत क पकष म

कछ बोलना चाहती री न तारक क पकष म ही बोल सकती री दफर भी दोनो क बीच तारतमय वबठाय

रखन की वजममिारी भी उसी की री और िह समझ नही पा रही री दक दकस तरह इस बातचीत को

सीमाय लाघन स बचाया जाय ऊपर स उस डर लग रहा रा दक आिश म रजत कही रककर न मार द

रथतरा बहत दर रा भी नही बात पर चरम पर चल रही री दक रथतरा आ गया रवत न रोका rdquoरजत

पारककग ढढ़ो रथतरा आ गयाrdquo रथतरा क सार ही पारककग गराज म गाड़ी छोड़ कर तीनो अदर चल गय

िरर न उनको मज पर वबठाया और सडरक क वलए पछा तरा मनदय लाकर ददय तीनो क तीनो उस मज

पर इस तरह खामोश और भर बठ र दक मनदय म वसर डबोना एक राहत बन गया रा तीनो न अपन-

अपन आडथर ददय पर बात कछ बन नही रही री हर कोई कछ भी कहन म जयादा ही सतकथ हो रहा रा

अचानक रवत बोली rdquoरजत तमको इतनी जयादा तकलीफ री तो तमन मना कयो नही कर

ददया म तो तारक को कह चकी री दक आज सार खाना नही होगा तमही न जोर ददया दक जरर

बलाओ अब इस तरह कयो बताथि कर रह होrdquo

रजत और भड़क गया rdquoम तो वसफथ यह कह रहा ह दक तम लोग एक-दसर को पयार करत हो

तो म कया कर रहा ह यहा तम जाओ एक दसर क सार रहोrdquo

दोनो की आिाज ऊची हो रही री और दसरी मजो पर बठ लोगो की वनगाह इस ओर उठ आयी री

तारक न धीर स सझाया रा rdquoमर खयाल स हम य बात यहा नही करनी चावहएrdquo सहसा रवत

न होश म आत कहा rdquoहा इतन बदढ़या रथतरा म खाना खान आय ह कछ खान पर भी तो धयान दhellip

दफर आज मरा जनदमददन ह आई िार र हि ए गड मीलrdquo

दफर भी खान पर तीनो म स दकसी का धयान नही लग सका तीनो औपचाररक-सी बात म लग

गय र तारक न ही शहर क निीनतम रथतराओ क बार म ताजा पढ़ी समीकषा का वजकर छड़ ददया रा

रजत न कार स जब उस होरल छोड़ा तो तारक न उपर कमर म आकर सडरक लन क वलए कहा

पर जसा दक िह अपकषा कर रहा रा रजत न दर होन का बहाना बना छटटी माग ली री रवत तब भी

कछ नही बोली री शायद उस डर रा दक उसका कछ भी कहना रजत क वलए घाि पर नमक वछड़कन

जसा होगा या उसकी कोई भी बात का गलत मतलब वनकाल कर रजत भड़क सकता रा य दर हो भी

चकी री

पर तारक यह भी जानता रा दक रवत एक नबर की वजददी री जो उस चावहए रा चावहए ही

रा उस रोका नही जा सकता रा िह ऊपर स मान जायगी पर भीतर स कभी माफ नही करगी

शायद इसी स रजत भी वबगड़ी हई लाड़ली बरी की तरह रवत की हर चाह या माग को विरोध करक

भी अतत मान जाता रा

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लौर आन क दो चार ददन बाद ही उसक फोन पर रवत न सदश छोड़ा रा rdquoतमहारा आना ठीक

नही हआ सॉरी तमह बलाकर भी वमल नही पायी अब लगता ह कभी नही वमलगी लर अस थरॉप

ददस वहयर पलीज मझस सपकथ मत करनाrdquo

तारक बहत ददन परशान घमता रहा रा पर रवत को फोन भी नही दकया उसन मना जो कर

डाला रा उस फोन करत हए तारक को लगता दक िह खद को उस पर लाद रहा ह और यह वथरवत

उस कभी गिारा नही री हर ददन दकसी जिालामखी-सा लाि स लदा हआ गजरता अदर ही अदर

सब तप रहा रा

महीन भर बाद रवत न फोन दकया रा rdquoगथसा हो न मझस तमस माफी भी नही माग सकीrdquo

उसकी तो कोई जररत नहीrdquo

दफर भी सोचा रा तमस कभी बात नही करगी इसी स तमको सपकथ करन स मना दकया

रा रजत को भी यही मालम ह दक तमस ररशता तोड़ ददया ह पर अब मझी स बात दकय वबना रहा

नही जा रहाrdquo

रजत को मालम ह मझस बात कर रही होrdquo

िह बहद गथसा ह तमसhellip जस दक सारा दोष तमहारा होhellip दक तमन उसकी बीिी को फसा वलयाrdquo

ि इसी तरह जब मौका लगता बात कर लत तारक क ददल ददमाग पर रवत ही छायी रहती

िह ऐस ही पलो क दौरान जीता जब दोनो क बीच कछ सपकथ होता बाकी क पल उन पलो क इतजार

म गजरत

इस बीच रवत को ददल का दौरा पड़ा रा घबराकर तारक को फोन कर डाला रा रजत न

तारक आया तो रजत उस अपनी गाड़ी म सार अथपताल ल आता जाता रहा दोनो म एक दोथती का

नाता तभी बना रा दवनया जहान की बात रजत न उस घर पर ही ठहराया रा तारक तीन ददन बाद

चला गया रा िावपस पर दोनो की फोन पर बात हो जाती रवत अथपताल स िावपस आ गयी री

धीर-धीर िह सामानदय होकर िावपस अपना काम सभालन लगी

रवत का जनदमददन दफर स आनिाला रा रवत न उस कहा रा rdquoरजत अपन आप ही बोल रहा ह

दक तम आ जाओ इस बार मरा जनदमददन मनान बोलो आओगrdquo

तारक परानी बात याद करक घबरा गया रा rdquoनही दफर स उसक भीतर सब घमड़न लगगाhellip

सबको तकलीफ होगीrdquo

यह सच भी रा रजत कभी तो उसक परवत बहत वमिित हो जाता िही अचानक गथसा ईषयाथ

उभर आत और िह अकसर बरखी ददखाता अचानक तारक को ऐसा महसस हआ जस रवत उसस खद

यह सब कह रही हो पल भर को िह भल ही गया दक रवत क ही अतयवि कमथ म िह शावमल हआ ह

और दरअसल उसक यहा आन की एक िजह यह भी ह दक िह रवत को वलख अपन खत िावपस ल

जाना चाहता ह उस डर ह दक कही ि खत रजत क हार न पड़ जाय

तारक रवत क सार काम करन िाली इस मवहला डॉ लोपज स पहल वमला हआ रा इस भीड़

म एक िही जान-पहचान की री तारक का मन हआ उसस पछ दक कया िह रवत की दराज म उसक

कागजात पर नजर मार सकता ह तारक को अदाज रा दक उसक खत िह दफतर की मज की दराज म

रखती री पर िह जानता रा दक ऐसा करना ममदकन रा नही आवखर तारक को कस हक पहचता रा

रवत की दराज खलिान का िह तो एक पररिार क वमि की हवसयत स िहा रा रजत ही कह सकता

रा दखा जाय तो ि लोग खद भी रजत स ही कहग दक रवत का सामान िह ल जाय तब तो रजत की

आख जरर उन पर पड़गी तब शायद उसको बरा लगगा दक रवत क सार तारक का एक अपना ररशता

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रा उन तीनो की आपसी दोथती क बाहरhellip रजत को बतहाशा चोर लगगी अब जबदक िह रवत स

जिाबतलबी भी नही कर सकता रवत अब कोई सफाई नही पश कर पायगी तारक क हक म कछ भी

नही कह सकगी दकसी तकथ स रजत को लाजिाब नही कर पायगी नही िह ऐसा नही कर सकता न

यह रवत क परवत सही होगा न रजत क परवत उस दकसी न दकसी तरह स खत पान ह

राथत म आत हए हिाई जहाज म तारक जब लगातार रवत क सार की अपनी वजनददगी क

गजर पल दहरा रहा रा बार-बार उस धयान आता दक जब स रवत को ददल का दौरा हआ रा िह

उसस कहना चाहता रा दक उसक खत विनि कर द एक बार उसन बात उठायी तो रवत बोली rdquoकयो

तमहार खत मर दफतर की दराज म सफ पड़ हrdquo

शायद िह वबना कह यह भी समझ गयी री दक तारक का इशारा दकस ओर ह तभी बोली

दखो जब तक म वजनददा ह म उनको फाड़ कर न तो फ क सकती ह न जला सकती ह एक बार मर गयी

तो कया फकथ पड़ता ह दक कोई कया करगा उनक सार तमको तो दफकर होनी नही चावहए अब तो ि

मरी अमानत हrdquo यह बातचीत दो एक महीन पहल की ही होगी तारक न सोचा रा बात कभी दफर

उठायगा पर उसस पहल हीhellip

तारक को भी तब यह अदाज नही रा दक रवत क अलािा रजत स भी उसका नाता रा रवत क

जान क बाद िह खद को रजत क बहत करीब महसस कर रहा रा और उस लगा दक उसक खत रजत

को उसस दफर दर धकल सकत र पर िह दकसी तरह भी रजत को खोना नही चाहगाhellip रजत जस स

रवत का ही एक वहथसा राhellipउसन दखा लोगो स वघरा रजत का चहरा बहद वनचड़ा हआ रिहीन और

सखा-सा लग रहा रा रात भर सोया नही होगा इसवलए आखो क नीच कालापन उतर आया रा आख

काफी अदर को धसी हई री तारक को लगा दक िह शायद रजत स बहतर हालत म ह दफर उस रशक

भी हआ रजत अपन गम का खला इजहार कर सकता हhellip तारक को यह सविधा नही री िह दकसी

उजड़ आवशक क रप म इस महदफल इस मौत का शोक करन िालो की महदफल मhellip अपना असली

चहराhellip अपना आवशक का चहराhellip नही ददखा सकता रा अचानक उसकी आख भर आयी अपन खोन

की वशददत क अहसास स

रवत क िाकय उसक कान म सरसरान लग जबस उस ददल का दौरा पड़ा रा िह जीिन की

कषणभगरता या इसान क नाचीज होन क अवथततििादी दशथन को बहत बघारन लग गयी री शायद

अपन जान का अहसास उस कही बहत गहर उदास कर जाता रा पर िही िह उस जान को एक

अिशयभािी अकारय सतय की तरह थिीकार करक उसस समझौता भी करन लग गयी री एक ददन

उसन हडसन नदी क दसर वसर स मनहरन की ओर दखत हए कहा रा rdquoदखो तो इन छोर-छोर वडबबो

म दकतन लाखो लोग रहत ह दकतन छोर ह हम लोग इतनी तग जमीन पर दकतनी बड़ी तादाद म

समा जात ह एकदम हजारो की सखया म सार-सार जड़ कीड़ो की तरह दफर भी अपन आप को

दकतना बड़ा मानत ह राजनीवत धमथ और नवतकता की तवखतया वचपका कर दकतना बड़ा होन का

भलािा दत रहत ह खद कोrdquo

रजत को रवत की इसान को नाचीज करार दन िाली बातो स हमशा बहत वचढ़ छरती री

बोला रा rdquoधमथ नवतकता जीिन क सतय ह इनको तम भलािा दन िाली चीज कस कह सकती हो

इसान इसीवलए तो बाकी जीिो स अलग ह दक िह सोच सकता हrdquo

rdquoऔर सोच क धरातल पर हर चीज को गलत या सही सावबत कर सकता ह नवतकता को गढ़

सकता ह या परा सतयानाश कर सकता हhellip ठीक ह मझ तो उसम कोई नकसान नहीrdquo

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हा नकसान दकसी का ह तो मरा ही रजत न कहा तो तारक झर स बोल पड़ा रा rdquoनकसान

तो तब होता जो म उस भगा क ल जाताrdquo

रजत न सजीदगी स कहा rdquoअब इसका ददल बर गया हhellip तो आधी सपवतत तो लर ही गयी न

तम भगा ल जाओ तो भी फकथ नही पड़गा यह आधािाला वहथसा तब भी यही रहगाrdquo

सचमच रजत का यह विशवास सही रा रवत और उसक ररशत की शरआत क ददनो म भािना

क परिाह म बहता तारक रवत क सार एक नयी वजनददगी क दकिाड़ खोलन की बात सोच पाया रा पर

जलद ही उस अहसास हो गया रा दक रवत कही बहत गहर जड़ी री रजत क सार दक िह कभी उस

ररशत को तोड़गी नही य रजत भी शर क ददनो म भीतर स वहल गया रा यह झरका दक रवत रजत

को छोड़ दकसी और को मन म ला सकती ह उस बहत दर जा फ क आया रा दफर रवत न खोय विशवास

को िापस लौरा ददया रजत अपन आध नकसान क सार धीर-धीर शायद समझौता करना सीख गया रा

तारक को लगा दक िह आध क सार समझौता करना सीख गया रा दफर तारक को लगा दक

िह आध क सार समझौता नही रा रजत क भीतर कही पर का भरोसा भी रा जस दक रवत को वसफथ

एक बदलाि चावहए रा जो तारक रा िनाथ िह परी रजत की ही री कयोदक मौका आन पर रजत

अपना परा हक जतान स चकता नही रा हमशा यही मानता रा दक पहला हक उसी का ह तारक

हमशा बाद म आयगा जस दक पर भर लन पर बचा हआ भोजन दकसी को भी ददया जा सकता हhellip

कछ ऐसा रख

पर रवत बचा हआ भोजन नही रीhellip दकसी तरह स भी उवचछि या अिवशि नही जो उसन

रवत म पाया रा िह पहल वजनददगी म कभी नही वमला रा रवत न उसकी पहचान करायी री

पररपणथता स रवत को जानना ही जस उस सपणथता को छना रा शायद रजत न भी रवत म ऐसा कछ

पाया रा जो आम औरतो स अलग रा रवत शादी क इतन बरस बाद भी उस अपन म उलझाय री और

िह उसस मि नही होना चाहता रा रवत म बाहरी खबसरती क बािजद वयवि क ददमाग को भी

उलझाय रखन का जो गण रा उसस सच म जो भी पास आता और सखचता जाता रवत म भरपर

पयार लन की चाह री तो भरपर दन की कषमता भी इसी स अभी भी उसस जी तो नही भरा रा रजत

का शायद िह ऐसी औरत री जो हमशा वनत निीन होती रहhellip सौदयथ की एक पररभाषा यह भी तो

दी गई ह दक जो वनत नतन होता रह िही सौदयथ ह रवत भी कभी परानी नही पड़ती रोज कछ नया

होता ह उसक पासhellip कोई नया खयालhellip कोई नई सझhellip कोई नई उकसान उलझान िाली बातhellip

शायद इस ददमागी सौदयथ कहना होगाhellip जो कछ भी उसम राhellip बस खीचता रा अपनी ओरhellip मोहता

राhellip शायद कया पर उगली धरना उस पररवध म बाधन की भोडी कोवशश होती

कछ दवदव उठता तो रवत रजत क ही हक म बोलती री रजत क वहतो को सरवकषत कर लन क

बाद ही िह तारक को उसका हक दती तारक को खीझ भी होती दक रजत उसक जीिन म चदक पहल

आ गया रा इसीवलए हर चीज म ही पहला हक उसी का बनता ह पर उसन रवत स अपनी यह

मनवथरवत कभी जावहर नही होन दी री वपछल साल िलनदराईन ड पर ऐसा ही तो हआ रा दरअसल

दोनो को अदाज नही रा दक उस िीक ड पर िलनदराईन ड पड़ता रा तारक को दकसी काम स रवत क

शहर आना रा और दोनो न वमलन का कायथकरम बना डाला रा रजत स रवत की बात हई होगी तो

उसन भनकर कहा रा rdquoतो िह तमहारा िलनदराईन ह जो उस ददन आ रहा हrdquo रवत क कहन पर दक उस

तो याद भी नही रा िह बोला रा rdquoम नही मान सकता दक तारक न य ही आन का बनाया ह इस

िीक ड परrdquo रवत न तारक स सारी बात बतलायी तो उसन सोचा रा िह खद फोन पर रजत स कहगा

दक उस सचमच याद नही रा पर दफर बात बढ़ान न दन क वलए चप रह गया रा और जान का

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परोगराम भी थरवगत कर डाला रा तब उस दो बात तकलीफ दती रही री एक तो यह दक रजत हमशा

उसक सामन परारवमकता ल जायगा दसरी यह कड़िी सचचाई दक रवत कभी भी उसकी जावहरी वजनददगी

का वहथसा नही बन सकती री उसकी कमर म हार डाल कर िह कभी दकसी स यह नही कह सकता

रा रवत मरी हrdquo तब उस बहद रशक होता रजत स कया रजत को सचमच अहसास ह दक रवत तारक

क वलए कया ह दक िह उसकी वजनददगी का कनदर उसकी वजनददगी का अरथ बन चकी ह यह कोई हलका-

फलका ठरकपन नही उसकी वजनददगी का रशा-रशा गर गया ह रवत स शबद म अरथ की तरह समायी ह

रवत उसक अवथतति म इस गरन म िह खद ही घरता रहगा हमशा

अब रवत नही ह तो िह घरन और भी कस रही ह उस कया अब िह रजत स कह पायगा

अचानक उसका मन हआ दक रजत स कह द rdquoतमको मालम ह दक मझ सचमच पता नही रा दक उस

ददन िलनदराईन ड रा िनाथ ऐसी जरथत न करताrdquo दक िह जानता हhellip अचछी तरह समझता ह अपनी

और उसकी ररीररी की पररवधयो को दक रजद शायद कभी जान न पायगा पर उसन हमशा एक दोथत

की तरह रजत का रजत की जररतो का खयाल रखा हhellip वसफथ ऊपर-ऊपर स सामावजक उपचार की

तरह नही भीतर स दकसी ददली ररशत सhellip दफर िह ररशता चाह रवत क जररय स ही बना हो

हो सकता ह रजत यह सब महसस करता हो या न भी करता हो पर उसक चहर पर भी वमिता

का थिागतमय भाि हमशा ददखा ह तारक को वसिा उन कषणो क जब दक सचमच उन दोनो क बीच

lsquoररररोररयलrsquo झगड़ हए तब भी ि शायद इसानी आचार या परथपर सदभाि की सीमाओ को कभी

लाघ नही पर दफर भी तारक का रवत क सार का ररशता ऐसा नही दक रजत क सार वजस बार सक

रवत उसकी हथती का अवभि वहथसा ह िह कोई और कस हो सकता ह रजत रवत नही हो सकता

चाह उसक दकतन ही करीब रहा हो उस दकसी न दकसी तरह स अपन खत पान ही ह लदकन कस

और यही तारक बार-बार उलझ जाता ह अपनी यह परशानी िह दकसी क सार बार नही सकता

रजत स तो कतई नही खत अगर सचमच रजत क हार पड़ गय तो

लदकन रवत न यह भी तो कहा रा दक अगर िह नही रही तो कया फकथ पड़ता ह पर रजत

सचमच खत पढ़ ल तोhellip शायद उसकी पीड़ा पर तब करोध और घणा का कोई विकराल भत हािी हो

सकता हhellip हो सकता ह दक खत पढ़कर रजत रवत को खद स वछरक द लदकन उसस कया तब शायद

रवत और भी तारक क करीब आ जाय और भी उसकी अपनी हो जाय वसफथ उसी की समची एक रात

पहल उस ऐसा ही कछ सपना आया रा रवत की मौत की खबर क बाद यही उसका याद रह जानिाला

सपना रा िह रवत की अतयवि म गया ह और एक अधरा-सा बठकनमा कमरा हhellip कमर म कछ

कागज वबखर पड़ हhellip िह एक कागज उठाता हhellip िह उसी का रवत को वलखा खत हhellip और कई लोग

उसक आसपास ह और िह सोचन लगता ह दक कही इन लोगो न भी तो उनदह नही पढ़ाhellip तभी रजत

का चहरा उसकी ओर बढ़ता ह और िह कागज वछपान की तरकीब सोचन लगता हhellip इसी उधड़बन म

उसकी आख खल गयी री तो वजथम पसीन म नहाया हआ रा

एक रजत ही यहा उसक सबस करीब हhellip और रजत ही उस अजनबी-सा लगन लगा ह अब

तक उसका रवत का सदभथ रा अचानक उस सदभथ स करकर न होन जसा हो रहा ह तारक को अजीब-

सी मानवसक दरी और भयकर अकलापन-सा महसस हआ िह यहा आया ही कयो रा रवत की

नामौजदगी म दकतना बमानी ह उसका यहा होना रजत को भी दकतना दफजल-सा लग रहा होगा

उसका यहा उपवथरत होना वजन लोगो स वघरा ह ि तो सचमच उसक अपन हhellip तारक तो दर स भी

अपना नहीhellip मत स तारक का जो भी नाता रहा होhellip उसक दकसी दसर स तो नही रा उसक कॉलज

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कामो स लौर बचच भी तारक को पहचानत नही र तारक न ही उनकी शकलो और वयिहार स अदाज

लगाया रा और हॉलि म लगी तथिीरो स उनदह पहचान पाया रा

तारक क पास रजत स कहन को कछ नही रा उसका कछ भी कहना रजत को खल सकता रा

उलर तारक को लगन लगा दक रजत शायद सोच रहा हो दक अब कयो जखमो को याद ददलान आ गय

हो कछ भी हो तारक न उस पीड़ा तो पहचायी ही री कया अब उसका कछ भी करना रजत क कि को

कम कर सकता रा उसन वनगाहो स ही अपना दख बयान कर ददया जो शायद रजत न थिीकार भी

वलया राhellip शायद एक औपचाररकता की तरह जस िह दसर बहत स जमा लोगो की शोकावभवयविया

थिीकार रहा राhellip उसस कछ अलग नही शायद तारक का िहा होना ही रजत को खल रहा हो पर

िि की नाजकी की िजह स िह कछ कहना न चाह रहा हो तारक एकदम परशान-सा उठ खड़ा हआ

कछ लोग रजत क गल लग रह र शायद उसस विदा लकर जा रह र तारक न सोचा िह अब

कहगा दक रवत क पास कछ उसक जररी कागजात र अगर रजत उस कागजो िाली जगह पर ल चल

तो िह खद ही दख लगा तारक यि की गवत स रजत की ओर बढ़ा रजत जस दकसी को दख कर भी

दख नही रहा रा उसकी आख दकसी शनदय पर ररकी री तारक को लगा उन लोगो क वघराि म

वजसम उसक अपन अजीज दोथत और ररशतदार र रजत न उस कोई विशष लकष नही दकया तारक क

भीतर अजीब सनापन-सा आ वघरा लगा जस रवत रजत म कही नही री वसफथ भरम-सा हआ रा उस

उसक िहा होन का जस दक उसक रवत क नात स िहा होन म ही कोई भारी असगवत री उस लगा

िहा बठ अजनबी स लोग उस घर रह र उसक िहा होन पर परशनवचनदह लगा रह र पता नही दकतन

ही अजनवबयो स वघर गया रा तारक यहा तक दक रवत की उस तथिीर म भी उस रवत नजर नही आ

रही री िह भी कोई अजनबी छाया री यह दवनया उसकी नही री अगर िह रवत की दवनया रही

भी हो तो वजस रवत को िह जानता रा उस रवत क वलए भी यह दवनया अनवथतति री विसगत री

उसन रजत को बहत सभलत सभलत गल स लगान की औपचाररकता की उस लगा जस िह

दकसी अजनबी को गल लगा रहा रा रवत वजतन उसक अपन पास री उतन और कही नही दकसी क

पास नही दरअसल रवत और कही नही री उसक भीतर रीhellip बस उस रवत को िही अपन भीतर ही

कही सजोय रखना रा भीतर ही खोजना रा भीतर ही तसलली करनी री दकसी और स बार नही

सकता रा रवत को रजत क दोनो कधो को हलक स दबाकर उसन धीर स कहा rdquoरक कयरrdquo और मड़ा

तो वबना पीछ दख बाहर वनकल गया

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पासपोरथ अमरीकन मरो

ओम गपता

पासपोरथ अमरीकन मरो पर रगत सहदथतानी

आज सनाऊ तमको पयार अपनी रामकहानी

छोड़ो भारत मन भयया डॉलर दख-दख ललचायो

चार-पकोड़ी जब भी दख मोह म पानी भर आयो

दीिाली पर दीप जलाउ होली पर खल रग

मौको जब मझको लगतो पीतो म भी भग

कसो होगी सरकार हमारी मोक हरदम सचता

जब भी दश पड़ सकर म कपा करो हनमनदता

पज म अब भी राम-कषण जातो मददर रोज

गपशप यारो स करतो फोकर म वमलतो भोज

योगी-बाबा आए दश स जब दन मझको जञान

आख मद क ना कछ जान करतो उनको सममान

हमबगथर अब भी नही भातो भाती मझ कचोड़ी

जसो जब भी मौका आयो रोपी िसी ओढ़ी

जाऊ दश को जब म अपन खाऊ लडड और इमरती

कहतो खद को सहदथतानी अमरीका मरी अब धरती

कहन को बहत ह भयया रोड़ को समझो काफी

बरा-भला लगा जो तमको माग नतमथतक माफी

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शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

आकाकषा ह

वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

फर च अनिाद कर इस lsquoभोगिाद स पीवड़त पविम की आतमा को अतयवधक शावत दन िालाrsquo कहा

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ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

की सीमाओ क पर मनषय कया अनभि कर सकता ह उसकी एक झलक भी ददखा दता ह उसी

औपवनषदीय जञान को महरवष िदवयास न सामानदय जनो क वलए ldquoपविि गीताrdquo म सवकषपत रप म परथतत

दकया ह िदवयास की महानता ही ह जो दक 11 उपवनषदो क जञान को एक पथतक म बाध सक और

मानिता को एक आसान यवि स परमातम जञान का दशथन करा सक ldquoपविि गीताrdquo महाभारत क

भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

ह भगिद गीता वहनदद धमथ क पविितम गरनदरो म स एक ह जो इसानो की चौहददी की सीमा रखा पर

भगिान क शरी मख दवारा इसान स कही गयी सरहदो पर चहरो की थकररनी का लखा-जोखा ह यह

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पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

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Page 28: Year 12, Issue 47Year 12, Issue 47 vsu2avsu2a · राथत § में आ वबछ §ग . ... श्रराम की अन ¡कम्पा स § ह हाल ह में

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लौर आन क दो चार ददन बाद ही उसक फोन पर रवत न सदश छोड़ा रा rdquoतमहारा आना ठीक

नही हआ सॉरी तमह बलाकर भी वमल नही पायी अब लगता ह कभी नही वमलगी लर अस थरॉप

ददस वहयर पलीज मझस सपकथ मत करनाrdquo

तारक बहत ददन परशान घमता रहा रा पर रवत को फोन भी नही दकया उसन मना जो कर

डाला रा उस फोन करत हए तारक को लगता दक िह खद को उस पर लाद रहा ह और यह वथरवत

उस कभी गिारा नही री हर ददन दकसी जिालामखी-सा लाि स लदा हआ गजरता अदर ही अदर

सब तप रहा रा

महीन भर बाद रवत न फोन दकया रा rdquoगथसा हो न मझस तमस माफी भी नही माग सकीrdquo

उसकी तो कोई जररत नहीrdquo

दफर भी सोचा रा तमस कभी बात नही करगी इसी स तमको सपकथ करन स मना दकया

रा रजत को भी यही मालम ह दक तमस ररशता तोड़ ददया ह पर अब मझी स बात दकय वबना रहा

नही जा रहाrdquo

रजत को मालम ह मझस बात कर रही होrdquo

िह बहद गथसा ह तमसhellip जस दक सारा दोष तमहारा होhellip दक तमन उसकी बीिी को फसा वलयाrdquo

ि इसी तरह जब मौका लगता बात कर लत तारक क ददल ददमाग पर रवत ही छायी रहती

िह ऐस ही पलो क दौरान जीता जब दोनो क बीच कछ सपकथ होता बाकी क पल उन पलो क इतजार

म गजरत

इस बीच रवत को ददल का दौरा पड़ा रा घबराकर तारक को फोन कर डाला रा रजत न

तारक आया तो रजत उस अपनी गाड़ी म सार अथपताल ल आता जाता रहा दोनो म एक दोथती का

नाता तभी बना रा दवनया जहान की बात रजत न उस घर पर ही ठहराया रा तारक तीन ददन बाद

चला गया रा िावपस पर दोनो की फोन पर बात हो जाती रवत अथपताल स िावपस आ गयी री

धीर-धीर िह सामानदय होकर िावपस अपना काम सभालन लगी

रवत का जनदमददन दफर स आनिाला रा रवत न उस कहा रा rdquoरजत अपन आप ही बोल रहा ह

दक तम आ जाओ इस बार मरा जनदमददन मनान बोलो आओगrdquo

तारक परानी बात याद करक घबरा गया रा rdquoनही दफर स उसक भीतर सब घमड़न लगगाhellip

सबको तकलीफ होगीrdquo

यह सच भी रा रजत कभी तो उसक परवत बहत वमिित हो जाता िही अचानक गथसा ईषयाथ

उभर आत और िह अकसर बरखी ददखाता अचानक तारक को ऐसा महसस हआ जस रवत उसस खद

यह सब कह रही हो पल भर को िह भल ही गया दक रवत क ही अतयवि कमथ म िह शावमल हआ ह

और दरअसल उसक यहा आन की एक िजह यह भी ह दक िह रवत को वलख अपन खत िावपस ल

जाना चाहता ह उस डर ह दक कही ि खत रजत क हार न पड़ जाय

तारक रवत क सार काम करन िाली इस मवहला डॉ लोपज स पहल वमला हआ रा इस भीड़

म एक िही जान-पहचान की री तारक का मन हआ उसस पछ दक कया िह रवत की दराज म उसक

कागजात पर नजर मार सकता ह तारक को अदाज रा दक उसक खत िह दफतर की मज की दराज म

रखती री पर िह जानता रा दक ऐसा करना ममदकन रा नही आवखर तारक को कस हक पहचता रा

रवत की दराज खलिान का िह तो एक पररिार क वमि की हवसयत स िहा रा रजत ही कह सकता

रा दखा जाय तो ि लोग खद भी रजत स ही कहग दक रवत का सामान िह ल जाय तब तो रजत की

आख जरर उन पर पड़गी तब शायद उसको बरा लगगा दक रवत क सार तारक का एक अपना ररशता

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रा उन तीनो की आपसी दोथती क बाहरhellip रजत को बतहाशा चोर लगगी अब जबदक िह रवत स

जिाबतलबी भी नही कर सकता रवत अब कोई सफाई नही पश कर पायगी तारक क हक म कछ भी

नही कह सकगी दकसी तकथ स रजत को लाजिाब नही कर पायगी नही िह ऐसा नही कर सकता न

यह रवत क परवत सही होगा न रजत क परवत उस दकसी न दकसी तरह स खत पान ह

राथत म आत हए हिाई जहाज म तारक जब लगातार रवत क सार की अपनी वजनददगी क

गजर पल दहरा रहा रा बार-बार उस धयान आता दक जब स रवत को ददल का दौरा हआ रा िह

उसस कहना चाहता रा दक उसक खत विनि कर द एक बार उसन बात उठायी तो रवत बोली rdquoकयो

तमहार खत मर दफतर की दराज म सफ पड़ हrdquo

शायद िह वबना कह यह भी समझ गयी री दक तारक का इशारा दकस ओर ह तभी बोली

दखो जब तक म वजनददा ह म उनको फाड़ कर न तो फ क सकती ह न जला सकती ह एक बार मर गयी

तो कया फकथ पड़ता ह दक कोई कया करगा उनक सार तमको तो दफकर होनी नही चावहए अब तो ि

मरी अमानत हrdquo यह बातचीत दो एक महीन पहल की ही होगी तारक न सोचा रा बात कभी दफर

उठायगा पर उसस पहल हीhellip

तारक को भी तब यह अदाज नही रा दक रवत क अलािा रजत स भी उसका नाता रा रवत क

जान क बाद िह खद को रजत क बहत करीब महसस कर रहा रा और उस लगा दक उसक खत रजत

को उसस दफर दर धकल सकत र पर िह दकसी तरह भी रजत को खोना नही चाहगाhellip रजत जस स

रवत का ही एक वहथसा राhellipउसन दखा लोगो स वघरा रजत का चहरा बहद वनचड़ा हआ रिहीन और

सखा-सा लग रहा रा रात भर सोया नही होगा इसवलए आखो क नीच कालापन उतर आया रा आख

काफी अदर को धसी हई री तारक को लगा दक िह शायद रजत स बहतर हालत म ह दफर उस रशक

भी हआ रजत अपन गम का खला इजहार कर सकता हhellip तारक को यह सविधा नही री िह दकसी

उजड़ आवशक क रप म इस महदफल इस मौत का शोक करन िालो की महदफल मhellip अपना असली

चहराhellip अपना आवशक का चहराhellip नही ददखा सकता रा अचानक उसकी आख भर आयी अपन खोन

की वशददत क अहसास स

रवत क िाकय उसक कान म सरसरान लग जबस उस ददल का दौरा पड़ा रा िह जीिन की

कषणभगरता या इसान क नाचीज होन क अवथततििादी दशथन को बहत बघारन लग गयी री शायद

अपन जान का अहसास उस कही बहत गहर उदास कर जाता रा पर िही िह उस जान को एक

अिशयभािी अकारय सतय की तरह थिीकार करक उसस समझौता भी करन लग गयी री एक ददन

उसन हडसन नदी क दसर वसर स मनहरन की ओर दखत हए कहा रा rdquoदखो तो इन छोर-छोर वडबबो

म दकतन लाखो लोग रहत ह दकतन छोर ह हम लोग इतनी तग जमीन पर दकतनी बड़ी तादाद म

समा जात ह एकदम हजारो की सखया म सार-सार जड़ कीड़ो की तरह दफर भी अपन आप को

दकतना बड़ा मानत ह राजनीवत धमथ और नवतकता की तवखतया वचपका कर दकतना बड़ा होन का

भलािा दत रहत ह खद कोrdquo

रजत को रवत की इसान को नाचीज करार दन िाली बातो स हमशा बहत वचढ़ छरती री

बोला रा rdquoधमथ नवतकता जीिन क सतय ह इनको तम भलािा दन िाली चीज कस कह सकती हो

इसान इसीवलए तो बाकी जीिो स अलग ह दक िह सोच सकता हrdquo

rdquoऔर सोच क धरातल पर हर चीज को गलत या सही सावबत कर सकता ह नवतकता को गढ़

सकता ह या परा सतयानाश कर सकता हhellip ठीक ह मझ तो उसम कोई नकसान नहीrdquo

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हा नकसान दकसी का ह तो मरा ही रजत न कहा तो तारक झर स बोल पड़ा रा rdquoनकसान

तो तब होता जो म उस भगा क ल जाताrdquo

रजत न सजीदगी स कहा rdquoअब इसका ददल बर गया हhellip तो आधी सपवतत तो लर ही गयी न

तम भगा ल जाओ तो भी फकथ नही पड़गा यह आधािाला वहथसा तब भी यही रहगाrdquo

सचमच रजत का यह विशवास सही रा रवत और उसक ररशत की शरआत क ददनो म भािना

क परिाह म बहता तारक रवत क सार एक नयी वजनददगी क दकिाड़ खोलन की बात सोच पाया रा पर

जलद ही उस अहसास हो गया रा दक रवत कही बहत गहर जड़ी री रजत क सार दक िह कभी उस

ररशत को तोड़गी नही य रजत भी शर क ददनो म भीतर स वहल गया रा यह झरका दक रवत रजत

को छोड़ दकसी और को मन म ला सकती ह उस बहत दर जा फ क आया रा दफर रवत न खोय विशवास

को िापस लौरा ददया रजत अपन आध नकसान क सार धीर-धीर शायद समझौता करना सीख गया रा

तारक को लगा दक िह आध क सार समझौता करना सीख गया रा दफर तारक को लगा दक

िह आध क सार समझौता नही रा रजत क भीतर कही पर का भरोसा भी रा जस दक रवत को वसफथ

एक बदलाि चावहए रा जो तारक रा िनाथ िह परी रजत की ही री कयोदक मौका आन पर रजत

अपना परा हक जतान स चकता नही रा हमशा यही मानता रा दक पहला हक उसी का ह तारक

हमशा बाद म आयगा जस दक पर भर लन पर बचा हआ भोजन दकसी को भी ददया जा सकता हhellip

कछ ऐसा रख

पर रवत बचा हआ भोजन नही रीhellip दकसी तरह स भी उवचछि या अिवशि नही जो उसन

रवत म पाया रा िह पहल वजनददगी म कभी नही वमला रा रवत न उसकी पहचान करायी री

पररपणथता स रवत को जानना ही जस उस सपणथता को छना रा शायद रजत न भी रवत म ऐसा कछ

पाया रा जो आम औरतो स अलग रा रवत शादी क इतन बरस बाद भी उस अपन म उलझाय री और

िह उसस मि नही होना चाहता रा रवत म बाहरी खबसरती क बािजद वयवि क ददमाग को भी

उलझाय रखन का जो गण रा उसस सच म जो भी पास आता और सखचता जाता रवत म भरपर

पयार लन की चाह री तो भरपर दन की कषमता भी इसी स अभी भी उसस जी तो नही भरा रा रजत

का शायद िह ऐसी औरत री जो हमशा वनत निीन होती रहhellip सौदयथ की एक पररभाषा यह भी तो

दी गई ह दक जो वनत नतन होता रह िही सौदयथ ह रवत भी कभी परानी नही पड़ती रोज कछ नया

होता ह उसक पासhellip कोई नया खयालhellip कोई नई सझhellip कोई नई उकसान उलझान िाली बातhellip

शायद इस ददमागी सौदयथ कहना होगाhellip जो कछ भी उसम राhellip बस खीचता रा अपनी ओरhellip मोहता

राhellip शायद कया पर उगली धरना उस पररवध म बाधन की भोडी कोवशश होती

कछ दवदव उठता तो रवत रजत क ही हक म बोलती री रजत क वहतो को सरवकषत कर लन क

बाद ही िह तारक को उसका हक दती तारक को खीझ भी होती दक रजत उसक जीिन म चदक पहल

आ गया रा इसीवलए हर चीज म ही पहला हक उसी का बनता ह पर उसन रवत स अपनी यह

मनवथरवत कभी जावहर नही होन दी री वपछल साल िलनदराईन ड पर ऐसा ही तो हआ रा दरअसल

दोनो को अदाज नही रा दक उस िीक ड पर िलनदराईन ड पड़ता रा तारक को दकसी काम स रवत क

शहर आना रा और दोनो न वमलन का कायथकरम बना डाला रा रजत स रवत की बात हई होगी तो

उसन भनकर कहा रा rdquoतो िह तमहारा िलनदराईन ह जो उस ददन आ रहा हrdquo रवत क कहन पर दक उस

तो याद भी नही रा िह बोला रा rdquoम नही मान सकता दक तारक न य ही आन का बनाया ह इस

िीक ड परrdquo रवत न तारक स सारी बात बतलायी तो उसन सोचा रा िह खद फोन पर रजत स कहगा

दक उस सचमच याद नही रा पर दफर बात बढ़ान न दन क वलए चप रह गया रा और जान का

12 47 2015 29

परोगराम भी थरवगत कर डाला रा तब उस दो बात तकलीफ दती रही री एक तो यह दक रजत हमशा

उसक सामन परारवमकता ल जायगा दसरी यह कड़िी सचचाई दक रवत कभी भी उसकी जावहरी वजनददगी

का वहथसा नही बन सकती री उसकी कमर म हार डाल कर िह कभी दकसी स यह नही कह सकता

रा रवत मरी हrdquo तब उस बहद रशक होता रजत स कया रजत को सचमच अहसास ह दक रवत तारक

क वलए कया ह दक िह उसकी वजनददगी का कनदर उसकी वजनददगी का अरथ बन चकी ह यह कोई हलका-

फलका ठरकपन नही उसकी वजनददगी का रशा-रशा गर गया ह रवत स शबद म अरथ की तरह समायी ह

रवत उसक अवथतति म इस गरन म िह खद ही घरता रहगा हमशा

अब रवत नही ह तो िह घरन और भी कस रही ह उस कया अब िह रजत स कह पायगा

अचानक उसका मन हआ दक रजत स कह द rdquoतमको मालम ह दक मझ सचमच पता नही रा दक उस

ददन िलनदराईन ड रा िनाथ ऐसी जरथत न करताrdquo दक िह जानता हhellip अचछी तरह समझता ह अपनी

और उसकी ररीररी की पररवधयो को दक रजद शायद कभी जान न पायगा पर उसन हमशा एक दोथत

की तरह रजत का रजत की जररतो का खयाल रखा हhellip वसफथ ऊपर-ऊपर स सामावजक उपचार की

तरह नही भीतर स दकसी ददली ररशत सhellip दफर िह ररशता चाह रवत क जररय स ही बना हो

हो सकता ह रजत यह सब महसस करता हो या न भी करता हो पर उसक चहर पर भी वमिता

का थिागतमय भाि हमशा ददखा ह तारक को वसिा उन कषणो क जब दक सचमच उन दोनो क बीच

lsquoररररोररयलrsquo झगड़ हए तब भी ि शायद इसानी आचार या परथपर सदभाि की सीमाओ को कभी

लाघ नही पर दफर भी तारक का रवत क सार का ररशता ऐसा नही दक रजत क सार वजस बार सक

रवत उसकी हथती का अवभि वहथसा ह िह कोई और कस हो सकता ह रजत रवत नही हो सकता

चाह उसक दकतन ही करीब रहा हो उस दकसी न दकसी तरह स अपन खत पान ही ह लदकन कस

और यही तारक बार-बार उलझ जाता ह अपनी यह परशानी िह दकसी क सार बार नही सकता

रजत स तो कतई नही खत अगर सचमच रजत क हार पड़ गय तो

लदकन रवत न यह भी तो कहा रा दक अगर िह नही रही तो कया फकथ पड़ता ह पर रजत

सचमच खत पढ़ ल तोhellip शायद उसकी पीड़ा पर तब करोध और घणा का कोई विकराल भत हािी हो

सकता हhellip हो सकता ह दक खत पढ़कर रजत रवत को खद स वछरक द लदकन उसस कया तब शायद

रवत और भी तारक क करीब आ जाय और भी उसकी अपनी हो जाय वसफथ उसी की समची एक रात

पहल उस ऐसा ही कछ सपना आया रा रवत की मौत की खबर क बाद यही उसका याद रह जानिाला

सपना रा िह रवत की अतयवि म गया ह और एक अधरा-सा बठकनमा कमरा हhellip कमर म कछ

कागज वबखर पड़ हhellip िह एक कागज उठाता हhellip िह उसी का रवत को वलखा खत हhellip और कई लोग

उसक आसपास ह और िह सोचन लगता ह दक कही इन लोगो न भी तो उनदह नही पढ़ाhellip तभी रजत

का चहरा उसकी ओर बढ़ता ह और िह कागज वछपान की तरकीब सोचन लगता हhellip इसी उधड़बन म

उसकी आख खल गयी री तो वजथम पसीन म नहाया हआ रा

एक रजत ही यहा उसक सबस करीब हhellip और रजत ही उस अजनबी-सा लगन लगा ह अब

तक उसका रवत का सदभथ रा अचानक उस सदभथ स करकर न होन जसा हो रहा ह तारक को अजीब-

सी मानवसक दरी और भयकर अकलापन-सा महसस हआ िह यहा आया ही कयो रा रवत की

नामौजदगी म दकतना बमानी ह उसका यहा होना रजत को भी दकतना दफजल-सा लग रहा होगा

उसका यहा उपवथरत होना वजन लोगो स वघरा ह ि तो सचमच उसक अपन हhellip तारक तो दर स भी

अपना नहीhellip मत स तारक का जो भी नाता रहा होhellip उसक दकसी दसर स तो नही रा उसक कॉलज

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कामो स लौर बचच भी तारक को पहचानत नही र तारक न ही उनकी शकलो और वयिहार स अदाज

लगाया रा और हॉलि म लगी तथिीरो स उनदह पहचान पाया रा

तारक क पास रजत स कहन को कछ नही रा उसका कछ भी कहना रजत को खल सकता रा

उलर तारक को लगन लगा दक रजत शायद सोच रहा हो दक अब कयो जखमो को याद ददलान आ गय

हो कछ भी हो तारक न उस पीड़ा तो पहचायी ही री कया अब उसका कछ भी करना रजत क कि को

कम कर सकता रा उसन वनगाहो स ही अपना दख बयान कर ददया जो शायद रजत न थिीकार भी

वलया राhellip शायद एक औपचाररकता की तरह जस िह दसर बहत स जमा लोगो की शोकावभवयविया

थिीकार रहा राhellip उसस कछ अलग नही शायद तारक का िहा होना ही रजत को खल रहा हो पर

िि की नाजकी की िजह स िह कछ कहना न चाह रहा हो तारक एकदम परशान-सा उठ खड़ा हआ

कछ लोग रजत क गल लग रह र शायद उसस विदा लकर जा रह र तारक न सोचा िह अब

कहगा दक रवत क पास कछ उसक जररी कागजात र अगर रजत उस कागजो िाली जगह पर ल चल

तो िह खद ही दख लगा तारक यि की गवत स रजत की ओर बढ़ा रजत जस दकसी को दख कर भी

दख नही रहा रा उसकी आख दकसी शनदय पर ररकी री तारक को लगा उन लोगो क वघराि म

वजसम उसक अपन अजीज दोथत और ररशतदार र रजत न उस कोई विशष लकष नही दकया तारक क

भीतर अजीब सनापन-सा आ वघरा लगा जस रवत रजत म कही नही री वसफथ भरम-सा हआ रा उस

उसक िहा होन का जस दक उसक रवत क नात स िहा होन म ही कोई भारी असगवत री उस लगा

िहा बठ अजनबी स लोग उस घर रह र उसक िहा होन पर परशनवचनदह लगा रह र पता नही दकतन

ही अजनवबयो स वघर गया रा तारक यहा तक दक रवत की उस तथिीर म भी उस रवत नजर नही आ

रही री िह भी कोई अजनबी छाया री यह दवनया उसकी नही री अगर िह रवत की दवनया रही

भी हो तो वजस रवत को िह जानता रा उस रवत क वलए भी यह दवनया अनवथतति री विसगत री

उसन रजत को बहत सभलत सभलत गल स लगान की औपचाररकता की उस लगा जस िह

दकसी अजनबी को गल लगा रहा रा रवत वजतन उसक अपन पास री उतन और कही नही दकसी क

पास नही दरअसल रवत और कही नही री उसक भीतर रीhellip बस उस रवत को िही अपन भीतर ही

कही सजोय रखना रा भीतर ही खोजना रा भीतर ही तसलली करनी री दकसी और स बार नही

सकता रा रवत को रजत क दोनो कधो को हलक स दबाकर उसन धीर स कहा rdquoरक कयरrdquo और मड़ा

तो वबना पीछ दख बाहर वनकल गया

12 47 2015 31

पासपोरथ अमरीकन मरो

ओम गपता

पासपोरथ अमरीकन मरो पर रगत सहदथतानी

आज सनाऊ तमको पयार अपनी रामकहानी

छोड़ो भारत मन भयया डॉलर दख-दख ललचायो

चार-पकोड़ी जब भी दख मोह म पानी भर आयो

दीिाली पर दीप जलाउ होली पर खल रग

मौको जब मझको लगतो पीतो म भी भग

कसो होगी सरकार हमारी मोक हरदम सचता

जब भी दश पड़ सकर म कपा करो हनमनदता

पज म अब भी राम-कषण जातो मददर रोज

गपशप यारो स करतो फोकर म वमलतो भोज

योगी-बाबा आए दश स जब दन मझको जञान

आख मद क ना कछ जान करतो उनको सममान

हमबगथर अब भी नही भातो भाती मझ कचोड़ी

जसो जब भी मौका आयो रोपी िसी ओढ़ी

जाऊ दश को जब म अपन खाऊ लडड और इमरती

कहतो खद को सहदथतानी अमरीका मरी अब धरती

कहन को बहत ह भयया रोड़ को समझो काफी

बरा-भला लगा जो तमको माग नतमथतक माफी

12 47 2015 32

शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

आकाकषा ह

वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

फर च अनिाद कर इस lsquoभोगिाद स पीवड़त पविम की आतमा को अतयवधक शावत दन िालाrsquo कहा

12 47 2015 33

ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

की सीमाओ क पर मनषय कया अनभि कर सकता ह उसकी एक झलक भी ददखा दता ह उसी

औपवनषदीय जञान को महरवष िदवयास न सामानदय जनो क वलए ldquoपविि गीताrdquo म सवकषपत रप म परथतत

दकया ह िदवयास की महानता ही ह जो दक 11 उपवनषदो क जञान को एक पथतक म बाध सक और

मानिता को एक आसान यवि स परमातम जञान का दशथन करा सक ldquoपविि गीताrdquo महाभारत क

भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

ह भगिद गीता वहनदद धमथ क पविितम गरनदरो म स एक ह जो इसानो की चौहददी की सीमा रखा पर

भगिान क शरी मख दवारा इसान स कही गयी सरहदो पर चहरो की थकररनी का लखा-जोखा ह यह

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पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

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-मॉडल

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Sneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStke Anmol haSy 9` Uuml na3k-sgh Yacute jIvn ke rg Uuml kaVy-sgh Yacute ddeR-jubagt Uuml nJ_m v g_j_l sgh Yacute Aaj ka pu=8 Uuml khanI-sgh Yacute jIvn-ini2 Uuml kaVy-sgh Yacute AaTm-gujn Uuml AayaiTmk-daxRink gIt Yacute has-pirhas Uuml haSy kivta0gt Yacute j_J_bato ka islisla Uuml kaVy-sgh Yacute The Galaxy Within UumlA collection of English poemsYacute AnuwUityagt Uuml kaVy-sgh Yacute kaVy-vlti3 Uuml skln 0v spadn Yacute pUrb-piXcm Uuml AapvasI sMbiN2t Aaleq sgh Yacute bO7ar Uuml skln 0v spadn Yacute kaVy hIrk Uuml skln 0v spadn Yacute sjIvnI Uuml SvaS$y sMbN2I leq Yacute ]pin8d dxRn Uuml AyaiTmk Yacute

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Page 29: Year 12, Issue 47Year 12, Issue 47 vsu2avsu2a · राथत § में आ वबछ §ग . ... श्रराम की अन ¡कम्पा स § ह हाल ह में

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रा उन तीनो की आपसी दोथती क बाहरhellip रजत को बतहाशा चोर लगगी अब जबदक िह रवत स

जिाबतलबी भी नही कर सकता रवत अब कोई सफाई नही पश कर पायगी तारक क हक म कछ भी

नही कह सकगी दकसी तकथ स रजत को लाजिाब नही कर पायगी नही िह ऐसा नही कर सकता न

यह रवत क परवत सही होगा न रजत क परवत उस दकसी न दकसी तरह स खत पान ह

राथत म आत हए हिाई जहाज म तारक जब लगातार रवत क सार की अपनी वजनददगी क

गजर पल दहरा रहा रा बार-बार उस धयान आता दक जब स रवत को ददल का दौरा हआ रा िह

उसस कहना चाहता रा दक उसक खत विनि कर द एक बार उसन बात उठायी तो रवत बोली rdquoकयो

तमहार खत मर दफतर की दराज म सफ पड़ हrdquo

शायद िह वबना कह यह भी समझ गयी री दक तारक का इशारा दकस ओर ह तभी बोली

दखो जब तक म वजनददा ह म उनको फाड़ कर न तो फ क सकती ह न जला सकती ह एक बार मर गयी

तो कया फकथ पड़ता ह दक कोई कया करगा उनक सार तमको तो दफकर होनी नही चावहए अब तो ि

मरी अमानत हrdquo यह बातचीत दो एक महीन पहल की ही होगी तारक न सोचा रा बात कभी दफर

उठायगा पर उसस पहल हीhellip

तारक को भी तब यह अदाज नही रा दक रवत क अलािा रजत स भी उसका नाता रा रवत क

जान क बाद िह खद को रजत क बहत करीब महसस कर रहा रा और उस लगा दक उसक खत रजत

को उसस दफर दर धकल सकत र पर िह दकसी तरह भी रजत को खोना नही चाहगाhellip रजत जस स

रवत का ही एक वहथसा राhellipउसन दखा लोगो स वघरा रजत का चहरा बहद वनचड़ा हआ रिहीन और

सखा-सा लग रहा रा रात भर सोया नही होगा इसवलए आखो क नीच कालापन उतर आया रा आख

काफी अदर को धसी हई री तारक को लगा दक िह शायद रजत स बहतर हालत म ह दफर उस रशक

भी हआ रजत अपन गम का खला इजहार कर सकता हhellip तारक को यह सविधा नही री िह दकसी

उजड़ आवशक क रप म इस महदफल इस मौत का शोक करन िालो की महदफल मhellip अपना असली

चहराhellip अपना आवशक का चहराhellip नही ददखा सकता रा अचानक उसकी आख भर आयी अपन खोन

की वशददत क अहसास स

रवत क िाकय उसक कान म सरसरान लग जबस उस ददल का दौरा पड़ा रा िह जीिन की

कषणभगरता या इसान क नाचीज होन क अवथततििादी दशथन को बहत बघारन लग गयी री शायद

अपन जान का अहसास उस कही बहत गहर उदास कर जाता रा पर िही िह उस जान को एक

अिशयभािी अकारय सतय की तरह थिीकार करक उसस समझौता भी करन लग गयी री एक ददन

उसन हडसन नदी क दसर वसर स मनहरन की ओर दखत हए कहा रा rdquoदखो तो इन छोर-छोर वडबबो

म दकतन लाखो लोग रहत ह दकतन छोर ह हम लोग इतनी तग जमीन पर दकतनी बड़ी तादाद म

समा जात ह एकदम हजारो की सखया म सार-सार जड़ कीड़ो की तरह दफर भी अपन आप को

दकतना बड़ा मानत ह राजनीवत धमथ और नवतकता की तवखतया वचपका कर दकतना बड़ा होन का

भलािा दत रहत ह खद कोrdquo

रजत को रवत की इसान को नाचीज करार दन िाली बातो स हमशा बहत वचढ़ छरती री

बोला रा rdquoधमथ नवतकता जीिन क सतय ह इनको तम भलािा दन िाली चीज कस कह सकती हो

इसान इसीवलए तो बाकी जीिो स अलग ह दक िह सोच सकता हrdquo

rdquoऔर सोच क धरातल पर हर चीज को गलत या सही सावबत कर सकता ह नवतकता को गढ़

सकता ह या परा सतयानाश कर सकता हhellip ठीक ह मझ तो उसम कोई नकसान नहीrdquo

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हा नकसान दकसी का ह तो मरा ही रजत न कहा तो तारक झर स बोल पड़ा रा rdquoनकसान

तो तब होता जो म उस भगा क ल जाताrdquo

रजत न सजीदगी स कहा rdquoअब इसका ददल बर गया हhellip तो आधी सपवतत तो लर ही गयी न

तम भगा ल जाओ तो भी फकथ नही पड़गा यह आधािाला वहथसा तब भी यही रहगाrdquo

सचमच रजत का यह विशवास सही रा रवत और उसक ररशत की शरआत क ददनो म भािना

क परिाह म बहता तारक रवत क सार एक नयी वजनददगी क दकिाड़ खोलन की बात सोच पाया रा पर

जलद ही उस अहसास हो गया रा दक रवत कही बहत गहर जड़ी री रजत क सार दक िह कभी उस

ररशत को तोड़गी नही य रजत भी शर क ददनो म भीतर स वहल गया रा यह झरका दक रवत रजत

को छोड़ दकसी और को मन म ला सकती ह उस बहत दर जा फ क आया रा दफर रवत न खोय विशवास

को िापस लौरा ददया रजत अपन आध नकसान क सार धीर-धीर शायद समझौता करना सीख गया रा

तारक को लगा दक िह आध क सार समझौता करना सीख गया रा दफर तारक को लगा दक

िह आध क सार समझौता नही रा रजत क भीतर कही पर का भरोसा भी रा जस दक रवत को वसफथ

एक बदलाि चावहए रा जो तारक रा िनाथ िह परी रजत की ही री कयोदक मौका आन पर रजत

अपना परा हक जतान स चकता नही रा हमशा यही मानता रा दक पहला हक उसी का ह तारक

हमशा बाद म आयगा जस दक पर भर लन पर बचा हआ भोजन दकसी को भी ददया जा सकता हhellip

कछ ऐसा रख

पर रवत बचा हआ भोजन नही रीhellip दकसी तरह स भी उवचछि या अिवशि नही जो उसन

रवत म पाया रा िह पहल वजनददगी म कभी नही वमला रा रवत न उसकी पहचान करायी री

पररपणथता स रवत को जानना ही जस उस सपणथता को छना रा शायद रजत न भी रवत म ऐसा कछ

पाया रा जो आम औरतो स अलग रा रवत शादी क इतन बरस बाद भी उस अपन म उलझाय री और

िह उसस मि नही होना चाहता रा रवत म बाहरी खबसरती क बािजद वयवि क ददमाग को भी

उलझाय रखन का जो गण रा उसस सच म जो भी पास आता और सखचता जाता रवत म भरपर

पयार लन की चाह री तो भरपर दन की कषमता भी इसी स अभी भी उसस जी तो नही भरा रा रजत

का शायद िह ऐसी औरत री जो हमशा वनत निीन होती रहhellip सौदयथ की एक पररभाषा यह भी तो

दी गई ह दक जो वनत नतन होता रह िही सौदयथ ह रवत भी कभी परानी नही पड़ती रोज कछ नया

होता ह उसक पासhellip कोई नया खयालhellip कोई नई सझhellip कोई नई उकसान उलझान िाली बातhellip

शायद इस ददमागी सौदयथ कहना होगाhellip जो कछ भी उसम राhellip बस खीचता रा अपनी ओरhellip मोहता

राhellip शायद कया पर उगली धरना उस पररवध म बाधन की भोडी कोवशश होती

कछ दवदव उठता तो रवत रजत क ही हक म बोलती री रजत क वहतो को सरवकषत कर लन क

बाद ही िह तारक को उसका हक दती तारक को खीझ भी होती दक रजत उसक जीिन म चदक पहल

आ गया रा इसीवलए हर चीज म ही पहला हक उसी का बनता ह पर उसन रवत स अपनी यह

मनवथरवत कभी जावहर नही होन दी री वपछल साल िलनदराईन ड पर ऐसा ही तो हआ रा दरअसल

दोनो को अदाज नही रा दक उस िीक ड पर िलनदराईन ड पड़ता रा तारक को दकसी काम स रवत क

शहर आना रा और दोनो न वमलन का कायथकरम बना डाला रा रजत स रवत की बात हई होगी तो

उसन भनकर कहा रा rdquoतो िह तमहारा िलनदराईन ह जो उस ददन आ रहा हrdquo रवत क कहन पर दक उस

तो याद भी नही रा िह बोला रा rdquoम नही मान सकता दक तारक न य ही आन का बनाया ह इस

िीक ड परrdquo रवत न तारक स सारी बात बतलायी तो उसन सोचा रा िह खद फोन पर रजत स कहगा

दक उस सचमच याद नही रा पर दफर बात बढ़ान न दन क वलए चप रह गया रा और जान का

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परोगराम भी थरवगत कर डाला रा तब उस दो बात तकलीफ दती रही री एक तो यह दक रजत हमशा

उसक सामन परारवमकता ल जायगा दसरी यह कड़िी सचचाई दक रवत कभी भी उसकी जावहरी वजनददगी

का वहथसा नही बन सकती री उसकी कमर म हार डाल कर िह कभी दकसी स यह नही कह सकता

रा रवत मरी हrdquo तब उस बहद रशक होता रजत स कया रजत को सचमच अहसास ह दक रवत तारक

क वलए कया ह दक िह उसकी वजनददगी का कनदर उसकी वजनददगी का अरथ बन चकी ह यह कोई हलका-

फलका ठरकपन नही उसकी वजनददगी का रशा-रशा गर गया ह रवत स शबद म अरथ की तरह समायी ह

रवत उसक अवथतति म इस गरन म िह खद ही घरता रहगा हमशा

अब रवत नही ह तो िह घरन और भी कस रही ह उस कया अब िह रजत स कह पायगा

अचानक उसका मन हआ दक रजत स कह द rdquoतमको मालम ह दक मझ सचमच पता नही रा दक उस

ददन िलनदराईन ड रा िनाथ ऐसी जरथत न करताrdquo दक िह जानता हhellip अचछी तरह समझता ह अपनी

और उसकी ररीररी की पररवधयो को दक रजद शायद कभी जान न पायगा पर उसन हमशा एक दोथत

की तरह रजत का रजत की जररतो का खयाल रखा हhellip वसफथ ऊपर-ऊपर स सामावजक उपचार की

तरह नही भीतर स दकसी ददली ररशत सhellip दफर िह ररशता चाह रवत क जररय स ही बना हो

हो सकता ह रजत यह सब महसस करता हो या न भी करता हो पर उसक चहर पर भी वमिता

का थिागतमय भाि हमशा ददखा ह तारक को वसिा उन कषणो क जब दक सचमच उन दोनो क बीच

lsquoररररोररयलrsquo झगड़ हए तब भी ि शायद इसानी आचार या परथपर सदभाि की सीमाओ को कभी

लाघ नही पर दफर भी तारक का रवत क सार का ररशता ऐसा नही दक रजत क सार वजस बार सक

रवत उसकी हथती का अवभि वहथसा ह िह कोई और कस हो सकता ह रजत रवत नही हो सकता

चाह उसक दकतन ही करीब रहा हो उस दकसी न दकसी तरह स अपन खत पान ही ह लदकन कस

और यही तारक बार-बार उलझ जाता ह अपनी यह परशानी िह दकसी क सार बार नही सकता

रजत स तो कतई नही खत अगर सचमच रजत क हार पड़ गय तो

लदकन रवत न यह भी तो कहा रा दक अगर िह नही रही तो कया फकथ पड़ता ह पर रजत

सचमच खत पढ़ ल तोhellip शायद उसकी पीड़ा पर तब करोध और घणा का कोई विकराल भत हािी हो

सकता हhellip हो सकता ह दक खत पढ़कर रजत रवत को खद स वछरक द लदकन उसस कया तब शायद

रवत और भी तारक क करीब आ जाय और भी उसकी अपनी हो जाय वसफथ उसी की समची एक रात

पहल उस ऐसा ही कछ सपना आया रा रवत की मौत की खबर क बाद यही उसका याद रह जानिाला

सपना रा िह रवत की अतयवि म गया ह और एक अधरा-सा बठकनमा कमरा हhellip कमर म कछ

कागज वबखर पड़ हhellip िह एक कागज उठाता हhellip िह उसी का रवत को वलखा खत हhellip और कई लोग

उसक आसपास ह और िह सोचन लगता ह दक कही इन लोगो न भी तो उनदह नही पढ़ाhellip तभी रजत

का चहरा उसकी ओर बढ़ता ह और िह कागज वछपान की तरकीब सोचन लगता हhellip इसी उधड़बन म

उसकी आख खल गयी री तो वजथम पसीन म नहाया हआ रा

एक रजत ही यहा उसक सबस करीब हhellip और रजत ही उस अजनबी-सा लगन लगा ह अब

तक उसका रवत का सदभथ रा अचानक उस सदभथ स करकर न होन जसा हो रहा ह तारक को अजीब-

सी मानवसक दरी और भयकर अकलापन-सा महसस हआ िह यहा आया ही कयो रा रवत की

नामौजदगी म दकतना बमानी ह उसका यहा होना रजत को भी दकतना दफजल-सा लग रहा होगा

उसका यहा उपवथरत होना वजन लोगो स वघरा ह ि तो सचमच उसक अपन हhellip तारक तो दर स भी

अपना नहीhellip मत स तारक का जो भी नाता रहा होhellip उसक दकसी दसर स तो नही रा उसक कॉलज

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कामो स लौर बचच भी तारक को पहचानत नही र तारक न ही उनकी शकलो और वयिहार स अदाज

लगाया रा और हॉलि म लगी तथिीरो स उनदह पहचान पाया रा

तारक क पास रजत स कहन को कछ नही रा उसका कछ भी कहना रजत को खल सकता रा

उलर तारक को लगन लगा दक रजत शायद सोच रहा हो दक अब कयो जखमो को याद ददलान आ गय

हो कछ भी हो तारक न उस पीड़ा तो पहचायी ही री कया अब उसका कछ भी करना रजत क कि को

कम कर सकता रा उसन वनगाहो स ही अपना दख बयान कर ददया जो शायद रजत न थिीकार भी

वलया राhellip शायद एक औपचाररकता की तरह जस िह दसर बहत स जमा लोगो की शोकावभवयविया

थिीकार रहा राhellip उसस कछ अलग नही शायद तारक का िहा होना ही रजत को खल रहा हो पर

िि की नाजकी की िजह स िह कछ कहना न चाह रहा हो तारक एकदम परशान-सा उठ खड़ा हआ

कछ लोग रजत क गल लग रह र शायद उसस विदा लकर जा रह र तारक न सोचा िह अब

कहगा दक रवत क पास कछ उसक जररी कागजात र अगर रजत उस कागजो िाली जगह पर ल चल

तो िह खद ही दख लगा तारक यि की गवत स रजत की ओर बढ़ा रजत जस दकसी को दख कर भी

दख नही रहा रा उसकी आख दकसी शनदय पर ररकी री तारक को लगा उन लोगो क वघराि म

वजसम उसक अपन अजीज दोथत और ररशतदार र रजत न उस कोई विशष लकष नही दकया तारक क

भीतर अजीब सनापन-सा आ वघरा लगा जस रवत रजत म कही नही री वसफथ भरम-सा हआ रा उस

उसक िहा होन का जस दक उसक रवत क नात स िहा होन म ही कोई भारी असगवत री उस लगा

िहा बठ अजनबी स लोग उस घर रह र उसक िहा होन पर परशनवचनदह लगा रह र पता नही दकतन

ही अजनवबयो स वघर गया रा तारक यहा तक दक रवत की उस तथिीर म भी उस रवत नजर नही आ

रही री िह भी कोई अजनबी छाया री यह दवनया उसकी नही री अगर िह रवत की दवनया रही

भी हो तो वजस रवत को िह जानता रा उस रवत क वलए भी यह दवनया अनवथतति री विसगत री

उसन रजत को बहत सभलत सभलत गल स लगान की औपचाररकता की उस लगा जस िह

दकसी अजनबी को गल लगा रहा रा रवत वजतन उसक अपन पास री उतन और कही नही दकसी क

पास नही दरअसल रवत और कही नही री उसक भीतर रीhellip बस उस रवत को िही अपन भीतर ही

कही सजोय रखना रा भीतर ही खोजना रा भीतर ही तसलली करनी री दकसी और स बार नही

सकता रा रवत को रजत क दोनो कधो को हलक स दबाकर उसन धीर स कहा rdquoरक कयरrdquo और मड़ा

तो वबना पीछ दख बाहर वनकल गया

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पासपोरथ अमरीकन मरो

ओम गपता

पासपोरथ अमरीकन मरो पर रगत सहदथतानी

आज सनाऊ तमको पयार अपनी रामकहानी

छोड़ो भारत मन भयया डॉलर दख-दख ललचायो

चार-पकोड़ी जब भी दख मोह म पानी भर आयो

दीिाली पर दीप जलाउ होली पर खल रग

मौको जब मझको लगतो पीतो म भी भग

कसो होगी सरकार हमारी मोक हरदम सचता

जब भी दश पड़ सकर म कपा करो हनमनदता

पज म अब भी राम-कषण जातो मददर रोज

गपशप यारो स करतो फोकर म वमलतो भोज

योगी-बाबा आए दश स जब दन मझको जञान

आख मद क ना कछ जान करतो उनको सममान

हमबगथर अब भी नही भातो भाती मझ कचोड़ी

जसो जब भी मौका आयो रोपी िसी ओढ़ी

जाऊ दश को जब म अपन खाऊ लडड और इमरती

कहतो खद को सहदथतानी अमरीका मरी अब धरती

कहन को बहत ह भयया रोड़ को समझो काफी

बरा-भला लगा जो तमको माग नतमथतक माफी

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शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

आकाकषा ह

वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

फर च अनिाद कर इस lsquoभोगिाद स पीवड़त पविम की आतमा को अतयवधक शावत दन िालाrsquo कहा

12 47 2015 33

ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

की सीमाओ क पर मनषय कया अनभि कर सकता ह उसकी एक झलक भी ददखा दता ह उसी

औपवनषदीय जञान को महरवष िदवयास न सामानदय जनो क वलए ldquoपविि गीताrdquo म सवकषपत रप म परथतत

दकया ह िदवयास की महानता ही ह जो दक 11 उपवनषदो क जञान को एक पथतक म बाध सक और

मानिता को एक आसान यवि स परमातम जञान का दशथन करा सक ldquoपविि गीताrdquo महाभारत क

भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

ह भगिद गीता वहनदद धमथ क पविितम गरनदरो म स एक ह जो इसानो की चौहददी की सीमा रखा पर

भगिान क शरी मख दवारा इसान स कही गयी सरहदो पर चहरो की थकररनी का लखा-जोखा ह यह

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पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

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Sneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStke Anmol haSy 9` Uuml na3k-sgh Yacute jIvn ke rg Uuml kaVy-sgh Yacute ddeR-jubagt Uuml nJ_m v g_j_l sgh Yacute Aaj ka pu=8 Uuml khanI-sgh Yacute jIvn-ini2 Uuml kaVy-sgh Yacute AaTm-gujn Uuml AayaiTmk-daxRink gIt Yacute has-pirhas Uuml haSy kivta0gt Yacute j_J_bato ka islisla Uuml kaVy-sgh Yacute The Galaxy Within UumlA collection of English poemsYacute AnuwUityagt Uuml kaVy-sgh Yacute kaVy-vlti3 Uuml skln 0v spadn Yacute pUrb-piXcm Uuml AapvasI sMbiN2t Aaleq sgh Yacute bO7ar Uuml skln 0v spadn Yacute kaVy hIrk Uuml skln 0v spadn Yacute sjIvnI Uuml SvaS$y sMbN2I leq Yacute ]pin8d dxRn Uuml AyaiTmk Yacute

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idLlI pes kI sirta v ANy raumlIy 0v ANtraRumlIy pi5kaAo me wI rcna0gt pkaixt

Page 30: Year 12, Issue 47Year 12, Issue 47 vsu2avsu2a · राथत § में आ वबछ §ग . ... श्रराम की अन ¡कम्पा स § ह हाल ह में

12 47 2015 28

हा नकसान दकसी का ह तो मरा ही रजत न कहा तो तारक झर स बोल पड़ा रा rdquoनकसान

तो तब होता जो म उस भगा क ल जाताrdquo

रजत न सजीदगी स कहा rdquoअब इसका ददल बर गया हhellip तो आधी सपवतत तो लर ही गयी न

तम भगा ल जाओ तो भी फकथ नही पड़गा यह आधािाला वहथसा तब भी यही रहगाrdquo

सचमच रजत का यह विशवास सही रा रवत और उसक ररशत की शरआत क ददनो म भािना

क परिाह म बहता तारक रवत क सार एक नयी वजनददगी क दकिाड़ खोलन की बात सोच पाया रा पर

जलद ही उस अहसास हो गया रा दक रवत कही बहत गहर जड़ी री रजत क सार दक िह कभी उस

ररशत को तोड़गी नही य रजत भी शर क ददनो म भीतर स वहल गया रा यह झरका दक रवत रजत

को छोड़ दकसी और को मन म ला सकती ह उस बहत दर जा फ क आया रा दफर रवत न खोय विशवास

को िापस लौरा ददया रजत अपन आध नकसान क सार धीर-धीर शायद समझौता करना सीख गया रा

तारक को लगा दक िह आध क सार समझौता करना सीख गया रा दफर तारक को लगा दक

िह आध क सार समझौता नही रा रजत क भीतर कही पर का भरोसा भी रा जस दक रवत को वसफथ

एक बदलाि चावहए रा जो तारक रा िनाथ िह परी रजत की ही री कयोदक मौका आन पर रजत

अपना परा हक जतान स चकता नही रा हमशा यही मानता रा दक पहला हक उसी का ह तारक

हमशा बाद म आयगा जस दक पर भर लन पर बचा हआ भोजन दकसी को भी ददया जा सकता हhellip

कछ ऐसा रख

पर रवत बचा हआ भोजन नही रीhellip दकसी तरह स भी उवचछि या अिवशि नही जो उसन

रवत म पाया रा िह पहल वजनददगी म कभी नही वमला रा रवत न उसकी पहचान करायी री

पररपणथता स रवत को जानना ही जस उस सपणथता को छना रा शायद रजत न भी रवत म ऐसा कछ

पाया रा जो आम औरतो स अलग रा रवत शादी क इतन बरस बाद भी उस अपन म उलझाय री और

िह उसस मि नही होना चाहता रा रवत म बाहरी खबसरती क बािजद वयवि क ददमाग को भी

उलझाय रखन का जो गण रा उसस सच म जो भी पास आता और सखचता जाता रवत म भरपर

पयार लन की चाह री तो भरपर दन की कषमता भी इसी स अभी भी उसस जी तो नही भरा रा रजत

का शायद िह ऐसी औरत री जो हमशा वनत निीन होती रहhellip सौदयथ की एक पररभाषा यह भी तो

दी गई ह दक जो वनत नतन होता रह िही सौदयथ ह रवत भी कभी परानी नही पड़ती रोज कछ नया

होता ह उसक पासhellip कोई नया खयालhellip कोई नई सझhellip कोई नई उकसान उलझान िाली बातhellip

शायद इस ददमागी सौदयथ कहना होगाhellip जो कछ भी उसम राhellip बस खीचता रा अपनी ओरhellip मोहता

राhellip शायद कया पर उगली धरना उस पररवध म बाधन की भोडी कोवशश होती

कछ दवदव उठता तो रवत रजत क ही हक म बोलती री रजत क वहतो को सरवकषत कर लन क

बाद ही िह तारक को उसका हक दती तारक को खीझ भी होती दक रजत उसक जीिन म चदक पहल

आ गया रा इसीवलए हर चीज म ही पहला हक उसी का बनता ह पर उसन रवत स अपनी यह

मनवथरवत कभी जावहर नही होन दी री वपछल साल िलनदराईन ड पर ऐसा ही तो हआ रा दरअसल

दोनो को अदाज नही रा दक उस िीक ड पर िलनदराईन ड पड़ता रा तारक को दकसी काम स रवत क

शहर आना रा और दोनो न वमलन का कायथकरम बना डाला रा रजत स रवत की बात हई होगी तो

उसन भनकर कहा रा rdquoतो िह तमहारा िलनदराईन ह जो उस ददन आ रहा हrdquo रवत क कहन पर दक उस

तो याद भी नही रा िह बोला रा rdquoम नही मान सकता दक तारक न य ही आन का बनाया ह इस

िीक ड परrdquo रवत न तारक स सारी बात बतलायी तो उसन सोचा रा िह खद फोन पर रजत स कहगा

दक उस सचमच याद नही रा पर दफर बात बढ़ान न दन क वलए चप रह गया रा और जान का

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परोगराम भी थरवगत कर डाला रा तब उस दो बात तकलीफ दती रही री एक तो यह दक रजत हमशा

उसक सामन परारवमकता ल जायगा दसरी यह कड़िी सचचाई दक रवत कभी भी उसकी जावहरी वजनददगी

का वहथसा नही बन सकती री उसकी कमर म हार डाल कर िह कभी दकसी स यह नही कह सकता

रा रवत मरी हrdquo तब उस बहद रशक होता रजत स कया रजत को सचमच अहसास ह दक रवत तारक

क वलए कया ह दक िह उसकी वजनददगी का कनदर उसकी वजनददगी का अरथ बन चकी ह यह कोई हलका-

फलका ठरकपन नही उसकी वजनददगी का रशा-रशा गर गया ह रवत स शबद म अरथ की तरह समायी ह

रवत उसक अवथतति म इस गरन म िह खद ही घरता रहगा हमशा

अब रवत नही ह तो िह घरन और भी कस रही ह उस कया अब िह रजत स कह पायगा

अचानक उसका मन हआ दक रजत स कह द rdquoतमको मालम ह दक मझ सचमच पता नही रा दक उस

ददन िलनदराईन ड रा िनाथ ऐसी जरथत न करताrdquo दक िह जानता हhellip अचछी तरह समझता ह अपनी

और उसकी ररीररी की पररवधयो को दक रजद शायद कभी जान न पायगा पर उसन हमशा एक दोथत

की तरह रजत का रजत की जररतो का खयाल रखा हhellip वसफथ ऊपर-ऊपर स सामावजक उपचार की

तरह नही भीतर स दकसी ददली ररशत सhellip दफर िह ररशता चाह रवत क जररय स ही बना हो

हो सकता ह रजत यह सब महसस करता हो या न भी करता हो पर उसक चहर पर भी वमिता

का थिागतमय भाि हमशा ददखा ह तारक को वसिा उन कषणो क जब दक सचमच उन दोनो क बीच

lsquoररररोररयलrsquo झगड़ हए तब भी ि शायद इसानी आचार या परथपर सदभाि की सीमाओ को कभी

लाघ नही पर दफर भी तारक का रवत क सार का ररशता ऐसा नही दक रजत क सार वजस बार सक

रवत उसकी हथती का अवभि वहथसा ह िह कोई और कस हो सकता ह रजत रवत नही हो सकता

चाह उसक दकतन ही करीब रहा हो उस दकसी न दकसी तरह स अपन खत पान ही ह लदकन कस

और यही तारक बार-बार उलझ जाता ह अपनी यह परशानी िह दकसी क सार बार नही सकता

रजत स तो कतई नही खत अगर सचमच रजत क हार पड़ गय तो

लदकन रवत न यह भी तो कहा रा दक अगर िह नही रही तो कया फकथ पड़ता ह पर रजत

सचमच खत पढ़ ल तोhellip शायद उसकी पीड़ा पर तब करोध और घणा का कोई विकराल भत हािी हो

सकता हhellip हो सकता ह दक खत पढ़कर रजत रवत को खद स वछरक द लदकन उसस कया तब शायद

रवत और भी तारक क करीब आ जाय और भी उसकी अपनी हो जाय वसफथ उसी की समची एक रात

पहल उस ऐसा ही कछ सपना आया रा रवत की मौत की खबर क बाद यही उसका याद रह जानिाला

सपना रा िह रवत की अतयवि म गया ह और एक अधरा-सा बठकनमा कमरा हhellip कमर म कछ

कागज वबखर पड़ हhellip िह एक कागज उठाता हhellip िह उसी का रवत को वलखा खत हhellip और कई लोग

उसक आसपास ह और िह सोचन लगता ह दक कही इन लोगो न भी तो उनदह नही पढ़ाhellip तभी रजत

का चहरा उसकी ओर बढ़ता ह और िह कागज वछपान की तरकीब सोचन लगता हhellip इसी उधड़बन म

उसकी आख खल गयी री तो वजथम पसीन म नहाया हआ रा

एक रजत ही यहा उसक सबस करीब हhellip और रजत ही उस अजनबी-सा लगन लगा ह अब

तक उसका रवत का सदभथ रा अचानक उस सदभथ स करकर न होन जसा हो रहा ह तारक को अजीब-

सी मानवसक दरी और भयकर अकलापन-सा महसस हआ िह यहा आया ही कयो रा रवत की

नामौजदगी म दकतना बमानी ह उसका यहा होना रजत को भी दकतना दफजल-सा लग रहा होगा

उसका यहा उपवथरत होना वजन लोगो स वघरा ह ि तो सचमच उसक अपन हhellip तारक तो दर स भी

अपना नहीhellip मत स तारक का जो भी नाता रहा होhellip उसक दकसी दसर स तो नही रा उसक कॉलज

12 47 2015 30

कामो स लौर बचच भी तारक को पहचानत नही र तारक न ही उनकी शकलो और वयिहार स अदाज

लगाया रा और हॉलि म लगी तथिीरो स उनदह पहचान पाया रा

तारक क पास रजत स कहन को कछ नही रा उसका कछ भी कहना रजत को खल सकता रा

उलर तारक को लगन लगा दक रजत शायद सोच रहा हो दक अब कयो जखमो को याद ददलान आ गय

हो कछ भी हो तारक न उस पीड़ा तो पहचायी ही री कया अब उसका कछ भी करना रजत क कि को

कम कर सकता रा उसन वनगाहो स ही अपना दख बयान कर ददया जो शायद रजत न थिीकार भी

वलया राhellip शायद एक औपचाररकता की तरह जस िह दसर बहत स जमा लोगो की शोकावभवयविया

थिीकार रहा राhellip उसस कछ अलग नही शायद तारक का िहा होना ही रजत को खल रहा हो पर

िि की नाजकी की िजह स िह कछ कहना न चाह रहा हो तारक एकदम परशान-सा उठ खड़ा हआ

कछ लोग रजत क गल लग रह र शायद उसस विदा लकर जा रह र तारक न सोचा िह अब

कहगा दक रवत क पास कछ उसक जररी कागजात र अगर रजत उस कागजो िाली जगह पर ल चल

तो िह खद ही दख लगा तारक यि की गवत स रजत की ओर बढ़ा रजत जस दकसी को दख कर भी

दख नही रहा रा उसकी आख दकसी शनदय पर ररकी री तारक को लगा उन लोगो क वघराि म

वजसम उसक अपन अजीज दोथत और ररशतदार र रजत न उस कोई विशष लकष नही दकया तारक क

भीतर अजीब सनापन-सा आ वघरा लगा जस रवत रजत म कही नही री वसफथ भरम-सा हआ रा उस

उसक िहा होन का जस दक उसक रवत क नात स िहा होन म ही कोई भारी असगवत री उस लगा

िहा बठ अजनबी स लोग उस घर रह र उसक िहा होन पर परशनवचनदह लगा रह र पता नही दकतन

ही अजनवबयो स वघर गया रा तारक यहा तक दक रवत की उस तथिीर म भी उस रवत नजर नही आ

रही री िह भी कोई अजनबी छाया री यह दवनया उसकी नही री अगर िह रवत की दवनया रही

भी हो तो वजस रवत को िह जानता रा उस रवत क वलए भी यह दवनया अनवथतति री विसगत री

उसन रजत को बहत सभलत सभलत गल स लगान की औपचाररकता की उस लगा जस िह

दकसी अजनबी को गल लगा रहा रा रवत वजतन उसक अपन पास री उतन और कही नही दकसी क

पास नही दरअसल रवत और कही नही री उसक भीतर रीhellip बस उस रवत को िही अपन भीतर ही

कही सजोय रखना रा भीतर ही खोजना रा भीतर ही तसलली करनी री दकसी और स बार नही

सकता रा रवत को रजत क दोनो कधो को हलक स दबाकर उसन धीर स कहा rdquoरक कयरrdquo और मड़ा

तो वबना पीछ दख बाहर वनकल गया

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पासपोरथ अमरीकन मरो

ओम गपता

पासपोरथ अमरीकन मरो पर रगत सहदथतानी

आज सनाऊ तमको पयार अपनी रामकहानी

छोड़ो भारत मन भयया डॉलर दख-दख ललचायो

चार-पकोड़ी जब भी दख मोह म पानी भर आयो

दीिाली पर दीप जलाउ होली पर खल रग

मौको जब मझको लगतो पीतो म भी भग

कसो होगी सरकार हमारी मोक हरदम सचता

जब भी दश पड़ सकर म कपा करो हनमनदता

पज म अब भी राम-कषण जातो मददर रोज

गपशप यारो स करतो फोकर म वमलतो भोज

योगी-बाबा आए दश स जब दन मझको जञान

आख मद क ना कछ जान करतो उनको सममान

हमबगथर अब भी नही भातो भाती मझ कचोड़ी

जसो जब भी मौका आयो रोपी िसी ओढ़ी

जाऊ दश को जब म अपन खाऊ लडड और इमरती

कहतो खद को सहदथतानी अमरीका मरी अब धरती

कहन को बहत ह भयया रोड़ को समझो काफी

बरा-भला लगा जो तमको माग नतमथतक माफी

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शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

आकाकषा ह

वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

फर च अनिाद कर इस lsquoभोगिाद स पीवड़त पविम की आतमा को अतयवधक शावत दन िालाrsquo कहा

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ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

की सीमाओ क पर मनषय कया अनभि कर सकता ह उसकी एक झलक भी ददखा दता ह उसी

औपवनषदीय जञान को महरवष िदवयास न सामानदय जनो क वलए ldquoपविि गीताrdquo म सवकषपत रप म परथतत

दकया ह िदवयास की महानता ही ह जो दक 11 उपवनषदो क जञान को एक पथतक म बाध सक और

मानिता को एक आसान यवि स परमातम जञान का दशथन करा सक ldquoपविि गीताrdquo महाभारत क

भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

ह भगिद गीता वहनदद धमथ क पविितम गरनदरो म स एक ह जो इसानो की चौहददी की सीमा रखा पर

भगिान क शरी मख दवारा इसान स कही गयी सरहदो पर चहरो की थकररनी का लखा-जोखा ह यह

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पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

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Page 31: Year 12, Issue 47Year 12, Issue 47 vsu2avsu2a · राथत § में आ वबछ §ग . ... श्रराम की अन ¡कम्पा स § ह हाल ह में

12 47 2015 29

परोगराम भी थरवगत कर डाला रा तब उस दो बात तकलीफ दती रही री एक तो यह दक रजत हमशा

उसक सामन परारवमकता ल जायगा दसरी यह कड़िी सचचाई दक रवत कभी भी उसकी जावहरी वजनददगी

का वहथसा नही बन सकती री उसकी कमर म हार डाल कर िह कभी दकसी स यह नही कह सकता

रा रवत मरी हrdquo तब उस बहद रशक होता रजत स कया रजत को सचमच अहसास ह दक रवत तारक

क वलए कया ह दक िह उसकी वजनददगी का कनदर उसकी वजनददगी का अरथ बन चकी ह यह कोई हलका-

फलका ठरकपन नही उसकी वजनददगी का रशा-रशा गर गया ह रवत स शबद म अरथ की तरह समायी ह

रवत उसक अवथतति म इस गरन म िह खद ही घरता रहगा हमशा

अब रवत नही ह तो िह घरन और भी कस रही ह उस कया अब िह रजत स कह पायगा

अचानक उसका मन हआ दक रजत स कह द rdquoतमको मालम ह दक मझ सचमच पता नही रा दक उस

ददन िलनदराईन ड रा िनाथ ऐसी जरथत न करताrdquo दक िह जानता हhellip अचछी तरह समझता ह अपनी

और उसकी ररीररी की पररवधयो को दक रजद शायद कभी जान न पायगा पर उसन हमशा एक दोथत

की तरह रजत का रजत की जररतो का खयाल रखा हhellip वसफथ ऊपर-ऊपर स सामावजक उपचार की

तरह नही भीतर स दकसी ददली ररशत सhellip दफर िह ररशता चाह रवत क जररय स ही बना हो

हो सकता ह रजत यह सब महसस करता हो या न भी करता हो पर उसक चहर पर भी वमिता

का थिागतमय भाि हमशा ददखा ह तारक को वसिा उन कषणो क जब दक सचमच उन दोनो क बीच

lsquoररररोररयलrsquo झगड़ हए तब भी ि शायद इसानी आचार या परथपर सदभाि की सीमाओ को कभी

लाघ नही पर दफर भी तारक का रवत क सार का ररशता ऐसा नही दक रजत क सार वजस बार सक

रवत उसकी हथती का अवभि वहथसा ह िह कोई और कस हो सकता ह रजत रवत नही हो सकता

चाह उसक दकतन ही करीब रहा हो उस दकसी न दकसी तरह स अपन खत पान ही ह लदकन कस

और यही तारक बार-बार उलझ जाता ह अपनी यह परशानी िह दकसी क सार बार नही सकता

रजत स तो कतई नही खत अगर सचमच रजत क हार पड़ गय तो

लदकन रवत न यह भी तो कहा रा दक अगर िह नही रही तो कया फकथ पड़ता ह पर रजत

सचमच खत पढ़ ल तोhellip शायद उसकी पीड़ा पर तब करोध और घणा का कोई विकराल भत हािी हो

सकता हhellip हो सकता ह दक खत पढ़कर रजत रवत को खद स वछरक द लदकन उसस कया तब शायद

रवत और भी तारक क करीब आ जाय और भी उसकी अपनी हो जाय वसफथ उसी की समची एक रात

पहल उस ऐसा ही कछ सपना आया रा रवत की मौत की खबर क बाद यही उसका याद रह जानिाला

सपना रा िह रवत की अतयवि म गया ह और एक अधरा-सा बठकनमा कमरा हhellip कमर म कछ

कागज वबखर पड़ हhellip िह एक कागज उठाता हhellip िह उसी का रवत को वलखा खत हhellip और कई लोग

उसक आसपास ह और िह सोचन लगता ह दक कही इन लोगो न भी तो उनदह नही पढ़ाhellip तभी रजत

का चहरा उसकी ओर बढ़ता ह और िह कागज वछपान की तरकीब सोचन लगता हhellip इसी उधड़बन म

उसकी आख खल गयी री तो वजथम पसीन म नहाया हआ रा

एक रजत ही यहा उसक सबस करीब हhellip और रजत ही उस अजनबी-सा लगन लगा ह अब

तक उसका रवत का सदभथ रा अचानक उस सदभथ स करकर न होन जसा हो रहा ह तारक को अजीब-

सी मानवसक दरी और भयकर अकलापन-सा महसस हआ िह यहा आया ही कयो रा रवत की

नामौजदगी म दकतना बमानी ह उसका यहा होना रजत को भी दकतना दफजल-सा लग रहा होगा

उसका यहा उपवथरत होना वजन लोगो स वघरा ह ि तो सचमच उसक अपन हhellip तारक तो दर स भी

अपना नहीhellip मत स तारक का जो भी नाता रहा होhellip उसक दकसी दसर स तो नही रा उसक कॉलज

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कामो स लौर बचच भी तारक को पहचानत नही र तारक न ही उनकी शकलो और वयिहार स अदाज

लगाया रा और हॉलि म लगी तथिीरो स उनदह पहचान पाया रा

तारक क पास रजत स कहन को कछ नही रा उसका कछ भी कहना रजत को खल सकता रा

उलर तारक को लगन लगा दक रजत शायद सोच रहा हो दक अब कयो जखमो को याद ददलान आ गय

हो कछ भी हो तारक न उस पीड़ा तो पहचायी ही री कया अब उसका कछ भी करना रजत क कि को

कम कर सकता रा उसन वनगाहो स ही अपना दख बयान कर ददया जो शायद रजत न थिीकार भी

वलया राhellip शायद एक औपचाररकता की तरह जस िह दसर बहत स जमा लोगो की शोकावभवयविया

थिीकार रहा राhellip उसस कछ अलग नही शायद तारक का िहा होना ही रजत को खल रहा हो पर

िि की नाजकी की िजह स िह कछ कहना न चाह रहा हो तारक एकदम परशान-सा उठ खड़ा हआ

कछ लोग रजत क गल लग रह र शायद उसस विदा लकर जा रह र तारक न सोचा िह अब

कहगा दक रवत क पास कछ उसक जररी कागजात र अगर रजत उस कागजो िाली जगह पर ल चल

तो िह खद ही दख लगा तारक यि की गवत स रजत की ओर बढ़ा रजत जस दकसी को दख कर भी

दख नही रहा रा उसकी आख दकसी शनदय पर ररकी री तारक को लगा उन लोगो क वघराि म

वजसम उसक अपन अजीज दोथत और ररशतदार र रजत न उस कोई विशष लकष नही दकया तारक क

भीतर अजीब सनापन-सा आ वघरा लगा जस रवत रजत म कही नही री वसफथ भरम-सा हआ रा उस

उसक िहा होन का जस दक उसक रवत क नात स िहा होन म ही कोई भारी असगवत री उस लगा

िहा बठ अजनबी स लोग उस घर रह र उसक िहा होन पर परशनवचनदह लगा रह र पता नही दकतन

ही अजनवबयो स वघर गया रा तारक यहा तक दक रवत की उस तथिीर म भी उस रवत नजर नही आ

रही री िह भी कोई अजनबी छाया री यह दवनया उसकी नही री अगर िह रवत की दवनया रही

भी हो तो वजस रवत को िह जानता रा उस रवत क वलए भी यह दवनया अनवथतति री विसगत री

उसन रजत को बहत सभलत सभलत गल स लगान की औपचाररकता की उस लगा जस िह

दकसी अजनबी को गल लगा रहा रा रवत वजतन उसक अपन पास री उतन और कही नही दकसी क

पास नही दरअसल रवत और कही नही री उसक भीतर रीhellip बस उस रवत को िही अपन भीतर ही

कही सजोय रखना रा भीतर ही खोजना रा भीतर ही तसलली करनी री दकसी और स बार नही

सकता रा रवत को रजत क दोनो कधो को हलक स दबाकर उसन धीर स कहा rdquoरक कयरrdquo और मड़ा

तो वबना पीछ दख बाहर वनकल गया

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पासपोरथ अमरीकन मरो

ओम गपता

पासपोरथ अमरीकन मरो पर रगत सहदथतानी

आज सनाऊ तमको पयार अपनी रामकहानी

छोड़ो भारत मन भयया डॉलर दख-दख ललचायो

चार-पकोड़ी जब भी दख मोह म पानी भर आयो

दीिाली पर दीप जलाउ होली पर खल रग

मौको जब मझको लगतो पीतो म भी भग

कसो होगी सरकार हमारी मोक हरदम सचता

जब भी दश पड़ सकर म कपा करो हनमनदता

पज म अब भी राम-कषण जातो मददर रोज

गपशप यारो स करतो फोकर म वमलतो भोज

योगी-बाबा आए दश स जब दन मझको जञान

आख मद क ना कछ जान करतो उनको सममान

हमबगथर अब भी नही भातो भाती मझ कचोड़ी

जसो जब भी मौका आयो रोपी िसी ओढ़ी

जाऊ दश को जब म अपन खाऊ लडड और इमरती

कहतो खद को सहदथतानी अमरीका मरी अब धरती

कहन को बहत ह भयया रोड़ को समझो काफी

बरा-भला लगा जो तमको माग नतमथतक माफी

12 47 2015 32

शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

आकाकषा ह

वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

फर च अनिाद कर इस lsquoभोगिाद स पीवड़त पविम की आतमा को अतयवधक शावत दन िालाrsquo कहा

12 47 2015 33

ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

की सीमाओ क पर मनषय कया अनभि कर सकता ह उसकी एक झलक भी ददखा दता ह उसी

औपवनषदीय जञान को महरवष िदवयास न सामानदय जनो क वलए ldquoपविि गीताrdquo म सवकषपत रप म परथतत

दकया ह िदवयास की महानता ही ह जो दक 11 उपवनषदो क जञान को एक पथतक म बाध सक और

मानिता को एक आसान यवि स परमातम जञान का दशथन करा सक ldquoपविि गीताrdquo महाभारत क

भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

ह भगिद गीता वहनदद धमथ क पविितम गरनदरो म स एक ह जो इसानो की चौहददी की सीमा रखा पर

भगिान क शरी मख दवारा इसान स कही गयी सरहदो पर चहरो की थकररनी का लखा-जोखा ह यह

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पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

12 47 2015 35

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Page 32: Year 12, Issue 47Year 12, Issue 47 vsu2avsu2a · राथत § में आ वबछ §ग . ... श्रराम की अन ¡कम्पा स § ह हाल ह में

12 47 2015 30

कामो स लौर बचच भी तारक को पहचानत नही र तारक न ही उनकी शकलो और वयिहार स अदाज

लगाया रा और हॉलि म लगी तथिीरो स उनदह पहचान पाया रा

तारक क पास रजत स कहन को कछ नही रा उसका कछ भी कहना रजत को खल सकता रा

उलर तारक को लगन लगा दक रजत शायद सोच रहा हो दक अब कयो जखमो को याद ददलान आ गय

हो कछ भी हो तारक न उस पीड़ा तो पहचायी ही री कया अब उसका कछ भी करना रजत क कि को

कम कर सकता रा उसन वनगाहो स ही अपना दख बयान कर ददया जो शायद रजत न थिीकार भी

वलया राhellip शायद एक औपचाररकता की तरह जस िह दसर बहत स जमा लोगो की शोकावभवयविया

थिीकार रहा राhellip उसस कछ अलग नही शायद तारक का िहा होना ही रजत को खल रहा हो पर

िि की नाजकी की िजह स िह कछ कहना न चाह रहा हो तारक एकदम परशान-सा उठ खड़ा हआ

कछ लोग रजत क गल लग रह र शायद उसस विदा लकर जा रह र तारक न सोचा िह अब

कहगा दक रवत क पास कछ उसक जररी कागजात र अगर रजत उस कागजो िाली जगह पर ल चल

तो िह खद ही दख लगा तारक यि की गवत स रजत की ओर बढ़ा रजत जस दकसी को दख कर भी

दख नही रहा रा उसकी आख दकसी शनदय पर ररकी री तारक को लगा उन लोगो क वघराि म

वजसम उसक अपन अजीज दोथत और ररशतदार र रजत न उस कोई विशष लकष नही दकया तारक क

भीतर अजीब सनापन-सा आ वघरा लगा जस रवत रजत म कही नही री वसफथ भरम-सा हआ रा उस

उसक िहा होन का जस दक उसक रवत क नात स िहा होन म ही कोई भारी असगवत री उस लगा

िहा बठ अजनबी स लोग उस घर रह र उसक िहा होन पर परशनवचनदह लगा रह र पता नही दकतन

ही अजनवबयो स वघर गया रा तारक यहा तक दक रवत की उस तथिीर म भी उस रवत नजर नही आ

रही री िह भी कोई अजनबी छाया री यह दवनया उसकी नही री अगर िह रवत की दवनया रही

भी हो तो वजस रवत को िह जानता रा उस रवत क वलए भी यह दवनया अनवथतति री विसगत री

उसन रजत को बहत सभलत सभलत गल स लगान की औपचाररकता की उस लगा जस िह

दकसी अजनबी को गल लगा रहा रा रवत वजतन उसक अपन पास री उतन और कही नही दकसी क

पास नही दरअसल रवत और कही नही री उसक भीतर रीhellip बस उस रवत को िही अपन भीतर ही

कही सजोय रखना रा भीतर ही खोजना रा भीतर ही तसलली करनी री दकसी और स बार नही

सकता रा रवत को रजत क दोनो कधो को हलक स दबाकर उसन धीर स कहा rdquoरक कयरrdquo और मड़ा

तो वबना पीछ दख बाहर वनकल गया

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पासपोरथ अमरीकन मरो

ओम गपता

पासपोरथ अमरीकन मरो पर रगत सहदथतानी

आज सनाऊ तमको पयार अपनी रामकहानी

छोड़ो भारत मन भयया डॉलर दख-दख ललचायो

चार-पकोड़ी जब भी दख मोह म पानी भर आयो

दीिाली पर दीप जलाउ होली पर खल रग

मौको जब मझको लगतो पीतो म भी भग

कसो होगी सरकार हमारी मोक हरदम सचता

जब भी दश पड़ सकर म कपा करो हनमनदता

पज म अब भी राम-कषण जातो मददर रोज

गपशप यारो स करतो फोकर म वमलतो भोज

योगी-बाबा आए दश स जब दन मझको जञान

आख मद क ना कछ जान करतो उनको सममान

हमबगथर अब भी नही भातो भाती मझ कचोड़ी

जसो जब भी मौका आयो रोपी िसी ओढ़ी

जाऊ दश को जब म अपन खाऊ लडड और इमरती

कहतो खद को सहदथतानी अमरीका मरी अब धरती

कहन को बहत ह भयया रोड़ को समझो काफी

बरा-भला लगा जो तमको माग नतमथतक माफी

12 47 2015 32

शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

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वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

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ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

की सीमाओ क पर मनषय कया अनभि कर सकता ह उसकी एक झलक भी ददखा दता ह उसी

औपवनषदीय जञान को महरवष िदवयास न सामानदय जनो क वलए ldquoपविि गीताrdquo म सवकषपत रप म परथतत

दकया ह िदवयास की महानता ही ह जो दक 11 उपवनषदो क जञान को एक पथतक म बाध सक और

मानिता को एक आसान यवि स परमातम जञान का दशथन करा सक ldquoपविि गीताrdquo महाभारत क

भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

ह भगिद गीता वहनदद धमथ क पविितम गरनदरो म स एक ह जो इसानो की चौहददी की सीमा रखा पर

भगिान क शरी मख दवारा इसान स कही गयी सरहदो पर चहरो की थकररनी का लखा-जोखा ह यह

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पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

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Page 33: Year 12, Issue 47Year 12, Issue 47 vsu2avsu2a · राथत § में आ वबछ §ग . ... श्रराम की अन ¡कम्पा स § ह हाल ह में

12 47 2015 31

पासपोरथ अमरीकन मरो

ओम गपता

पासपोरथ अमरीकन मरो पर रगत सहदथतानी

आज सनाऊ तमको पयार अपनी रामकहानी

छोड़ो भारत मन भयया डॉलर दख-दख ललचायो

चार-पकोड़ी जब भी दख मोह म पानी भर आयो

दीिाली पर दीप जलाउ होली पर खल रग

मौको जब मझको लगतो पीतो म भी भग

कसो होगी सरकार हमारी मोक हरदम सचता

जब भी दश पड़ सकर म कपा करो हनमनदता

पज म अब भी राम-कषण जातो मददर रोज

गपशप यारो स करतो फोकर म वमलतो भोज

योगी-बाबा आए दश स जब दन मझको जञान

आख मद क ना कछ जान करतो उनको सममान

हमबगथर अब भी नही भातो भाती मझ कचोड़ी

जसो जब भी मौका आयो रोपी िसी ओढ़ी

जाऊ दश को जब म अपन खाऊ लडड और इमरती

कहतो खद को सहदथतानी अमरीका मरी अब धरती

कहन को बहत ह भयया रोड़ को समझो काफी

बरा-भला लगा जो तमको माग नतमथतक माफी

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शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

आकाकषा ह

वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

फर च अनिाद कर इस lsquoभोगिाद स पीवड़त पविम की आतमा को अतयवधक शावत दन िालाrsquo कहा

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ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

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रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

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इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

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जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

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भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

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नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

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-मॉडल

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Sneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStkeSneh akur kI pkaixt puStke Anmol haSy 9` Uuml na3k-sgh Yacute jIvn ke rg Uuml kaVy-sgh Yacute ddeR-jubagt Uuml nJ_m v g_j_l sgh Yacute Aaj ka pu=8 Uuml khanI-sgh Yacute jIvn-ini2 Uuml kaVy-sgh Yacute AaTm-gujn Uuml AayaiTmk-daxRink gIt Yacute has-pirhas Uuml haSy kivta0gt Yacute j_J_bato ka islisla Uuml kaVy-sgh Yacute The Galaxy Within UumlA collection of English poemsYacute AnuwUityagt Uuml kaVy-sgh Yacute kaVy-vlti3 Uuml skln 0v spadn Yacute pUrb-piXcm Uuml AapvasI sMbiN2t Aaleq sgh Yacute bO7ar Uuml skln 0v spadn Yacute kaVy hIrk Uuml skln 0v spadn Yacute sjIvnI Uuml SvaS$y sMbN2I leq Yacute ]pin8d dxRn Uuml AyaiTmk Yacute

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England

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Page 34: Year 12, Issue 47Year 12, Issue 47 vsu2avsu2a · राथत § में आ वबछ §ग . ... श्रराम की अन ¡कम्पा स § ह हाल ह में

12 47 2015 32

शरीमदभगिद गीता राजधमथ का विशवगरर

यतीनदर नार चतिदी

भगिान का पजीकरण नही हो सकता भगिान की आकाश-िाणी का राषटरीयकरण नही होता

सयथ दकस दश की राषटरीय सपवतत ह चनदरमा दकसकी धरोहर ह धरती की चौहददी बार चका इसान जल

बाध रहा ह अवगन पर कावबज सभयता आकाश को नर हिा पर आवधपतय थरावपत कर लन को आतर

ह अपौरषय कह जान िाल आरणयक सथकवत क िद-उपवनषदो को राषटरीय घोवषत करना अपन

भगिान को पजीकत करना ह मानिीय सभयता क धरोहर गरनदर ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को इसानी

सरहदो तक सीवमत करना परकवत को बाध दना ह

किल lsquoराषटरगररrsquo नही नवतकता का lsquoविशवगररrsquo ह lsquoपविि गीताrsquo ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को किल

राषटरीय गरर घोवषत करन की परथतािना राषटर की सीमा म ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo को सीवमत कर दन जसा

बौवदधक वयायाम क अवतररि कया ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क पररम परििा सयथ ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo

म ही ऐसा उललख ह सयथ किल दकसी राषटर की वनजी समपदा यदद कोई घोवषत कर तो कया ऐसी

सामथयथ सयथ क समबनदध म दकसी भी राषटर की सभि ह ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo की मल जनदमभवम करकषि

की माि भारत-भवम नही सयथ-भवम ह सयथ लोकताविक ह वजस सयथभवम क विवभि गरहो की तरह

पथिी भी एक गरह ह वजस पथिी का एक राषटर भारत भी ह और सयथ जो सभी गरहो का मवखया ह सयथ

की सखया बरहमाणड म अगवणत ह अरथ हआ गीता समपणथ बरहमाणड क अगवणत सयो की सयथ भवम स

बरहमाणडवयापी पजथनदय िषाथ ह वजसकी बद भारत और इसक करकषि पर भी पड़ी ह पड़ रही ह पड़ती

जाती रहगी सौयथ मडल नकारातमक और सकारातमक दोनो परकार की ऊजाथ विकीररत करता ह

नकारातमकता का परवतवनवधति कौरि और सकारातमक ऊजाथ का परवतवनवधति पाडि करत ह दसर

शबदो म अचछाई और बराई क बीच यदध क वलए उतसक परवतदवददयो क मधय राग और दवष क बीच

अजातशिता का करावत पर ह गीता वजसका धयय शावत की मशाल जलाना ह यह अशावत और शावत

क बीच बराई और अचछाई क मधय-सबद पर अपन मनोरर को दढ़ता स थरावपत करन की आजथनय

आकाकषा ह

वजन दशो न इस मानिता का धरती पर अितररत अनिाद माना ह अरिा जो दश अभी तक

गीता क अनिाद स िवचत ह उन सबम अचछाई और बराई क बीच भलाई की थरापना की

ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo साररी ह भारत सवहत दवनया क सभी परमख दाशथवनको विचारको सचतको सतो

विदवानो सावहतयकारो िजञावनको न अपन-अपन थतर स इस पविि गरनदर को आतमसात दकया रा सर

विवलयम जोनदस (1746-1794) दवारा ldquoमन-थमवतrdquo क अनिाद गरनदर म ततकालीन अगरज गिथनर जनरल

िारन हसथरगस न इस गरनदर की भवमका म इस lsquoमानिता की उिवतrsquo क वलए आिशयक lsquoएक महान

मौवलक गरनदरrsquo मानत हए वलखा दक lsquoगीता का उपदश दकसी भी जावत को उिवत क वशखर पर पहचान

म अवदवतीय हrsquo (सनददभथ_बीएनपरी lsquoएनदसरrsquo इवडयन वहथरोगरफी - ए बाई सनदचरी थरडीrsquo ददलली 1994

प 41) ईथर इवणडया कमपनी क चालसथ विककस Charles Wilkins (1749-1836) वजसन बनारस म सथकत

भाषा सीखी न 1785 म भगिदगीता का अगरजी म अनिाद परकावशत दकया शायद यही पहली बार रा

जब सथकत गरनदर का सीध दकसी यरोपीय भाषा म अनिाद हआ डपरो फर च विदवान (1778 म) न इसका

फर च अनिाद कर इस lsquoभोगिाद स पीवड़त पविम की आतमा को अतयवधक शावत दन िालाrsquo कहा

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ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

की सीमाओ क पर मनषय कया अनभि कर सकता ह उसकी एक झलक भी ददखा दता ह उसी

औपवनषदीय जञान को महरवष िदवयास न सामानदय जनो क वलए ldquoपविि गीताrdquo म सवकषपत रप म परथतत

दकया ह िदवयास की महानता ही ह जो दक 11 उपवनषदो क जञान को एक पथतक म बाध सक और

मानिता को एक आसान यवि स परमातम जञान का दशथन करा सक ldquoपविि गीताrdquo महाभारत क

भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

ह भगिद गीता वहनदद धमथ क पविितम गरनदरो म स एक ह जो इसानो की चौहददी की सीमा रखा पर

भगिान क शरी मख दवारा इसान स कही गयी सरहदो पर चहरो की थकररनी का लखा-जोखा ह यह

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पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

12 47 2015 35

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ऑगथत शलगल (1767-1845) - जमथन दाशथवनक और विलहम हमबोलड न वमलकर भगिद गीता का जमथन

म भाषय परकावशत दकया विल डयनदर-अमरीकन दाशथवनक (1885ndash1981) मवजनी-इरली हनरी डविड

रोरो (1813-1862) इमसथन स लकर िजञावनक राबरथ ओपन हीमर तक सभी गीता जञान स थतवमभत

हए पादरी इमसथन न गीता अनिाद कर इस lsquoयवनिसथल बाइवबलrsquo कहा रा 16 जलाई 1945 को

अमरीका क नदयमवकसको रवगथतान म जब अण बम का पररम परीकषण दकया गया तो िजञावनक राबरथ

ओपनहाबर न विथफोर स अननदत सयथ म अनक जिालाओ को दखकर कहा दक उस गीता क विरार

थिरप का दशथन हआ तरा िह तयागपि दकर गीता भि बन गया रा रीएस इवलयर न गीता को

lsquoमानि िागमय की अमलय वनवधrsquo कहा दवनया की 28 सभयताओ क विशषजञ विदवान विशवविखयात

इवतहासकार सर आरनोलड रायनिी न यहा तक कहा दक विधिस की ओर जात पािातय जगत को

भारतीय ततिजञान की ओर जाना पड़गा जो सभी क अनददर ईशवर को मानता ह (सनददभथ ए थरडी ऑफ

वहथरीrsquo) अमरीकी विदवान इमशथन और इगलणड क सत कालाथलय न कभी परथपर एक दसर को गीता

भर दकया रा शोपनहािर जमथनी विदवान न माना दक lsquoभारत मानि जावत की वपतभवम हrsquo कार-

जमथनी विदवान क जीिन को गीता न दशथन का पवडत बना ददया मकसमलर तो भवि भाि स अवभभत

र रोमा रोला फर च विदवान नोबल परथकार विजता क अनसार गीता न यरोप की अनक आथराओ को

धल-धसररत कर ददया तरा मानि को निदवि दी

भगिान शरी राम की मयाथदा राषटरीय आचरण नही इसावनयत का समाजीकरण ह भगिान बदध

का पञचशील राषटरीय जीिन-दशथन नही इसावनयत का इनसाइकलोपीवडया ह भगिान महािीर का

पाच-महावरत राषटरीय सकलप नही इसावनयत का सकलप ह चाणकय का अरथशासतर राषटरीय वितत-नीवत

नही इसावनयत का राजय-वसदधात ह गाधी की असहसा राषटरीय सपवतत नही विशव क सभी दब-कचलो-

िवचतो का मौवलक अवधकार ह म और हम क कतथवय अवभमान स उपजी अवधकारो क सदपयोग-

दरपयोग की सरहदी नोक पर भगिान lsquoजनादथनrsquo न अपन भि lsquoजनताrsquo स जो कही िही अमरिाणी

शरीमदभगिद गीता म वलवपबदध हई आतमपरिचना और आतमशलाघा का रोग दवनया-भर क दशो क सार

भारत म भी बरी तरह स फल गया ह वजसस बचन-उबरन का उपाय भी राषटरीय धरोहर गीता म

वनवहत ह थिाधीनता आदोलन महातमा गाधी क नतति म लड़ा गया वजसम चपप-चपप पर lsquoपविि

गीताrsquo जझ रही री महातमा गाधी लोकमानदय वतलक थिामी वििकाननदद महरवष अरविनदद डॉ

राधाकषण विनोिा भाि जस सभी राषटरीय महान आतमाओ क वलए गीता सदि भारतीय जीिन दशथन

भारतीय जीिन पदधवत की पर परदरवशका रही ह गीता स ही मागथ वलया करत र राषटर क वलए समरवपत

राषटर परष लोग

भारतीय ऋवषयो न गहन विचार-मरन क पिात वजस जञान-परपरा को आतमसात दकया उस

उनदहोन िदो का पविि नाम ददया इनदही पविि िदो का अवतम भाग उपवनषद कहा गया उपवनषदो म

समावहत जञान मानि की बौवदधकता की उचचतम अिथरा ह मानिीय मलयो स परापत बौवदधक शवि बवदध

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भीषमपिथ क अनदतगथत ददया गया एक उपवनषद ह शरीमदभगिद गीता की पषठभवम महाभारत का यदध

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इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

जीिन म आतमसात करन का आहिान सभी राषटर क महापरषो न अपन-अपन समय पर कहा ह

आकाकषा

शकनदतला बहादर

बध गई री बधनो म म बहत

अब न बधन कोई मझको चावहय

उड़ सक उनदमि म आकाश म

बस यही अवधकार मझको चावहय

वयथत जीिन म सदा रहत हए

चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

आज िह िला सखद ह आ गई

मानवसक सनदतोष मझको चावहय

वयरथ ही जीिन गिा मन ददया

यह वनराशा अब न मझको चावहय

थिचछा स कर सक जनवहत यहा

शावनदत मन की ही मझ अब चावहय

लालसा यश की नही धन की नही

आतमगौरि ही मझ अब चावहय

वपरय दकसी का यदद कभी म कर सक

हषथ का िह कषण मझ अब चावहय

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डॉ

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पविि गरनदर शरीमदभगिद गीता म दह स अतीत आतमा का सलीक स वनरपण कर एकशवरिाद कमथ

योग जञानयोग भवि योग की सारगरवभत चचाथ हई ह जब इसान अपन जीिन की समथयाओ म

इवतहास क महानायक अजथन की तरह उलझकर कककतथवयविमढ़ हो जीिन की रणभवम स पलायन

करन का मन बना लता ह वनराशा अवनितता हताशा समथयाओ की सरहद पर कतथवय विमख न हो

सक इसी क वलए 5151 िषथ पिथ कही गयी ldquoशरीमदभगिद गीताrdquo क 700 शलोको को पढ़कर उनदह अपन

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शकनदतला बहादर

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चाह कर भी म न जो कछ कर सकी

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यह वनराशा अब न मझको चावहय

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-मॉडल

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-मॉडल

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