assets.vmou.ac.inassets.vmou.ac.in/so02.pdf · वीर बा gलका कÛया महा...

237
1

Upload: others

Post on 28-Oct-2019

16 views

Category:

Documents


0 download

TRANSCRIPT

  • 1

  • 2

  • 3

  • 4

    पा य म नमाण स म त अ य ो. (डॉ.) नरेश दाधीच

    कुलप त, वधमान महावीर खलुा व व व यालय , कोटा (राज थान)

    संयोजक/सद य संजोयक डॉ. जे. के. शमा सहायक आचाय, अथशा वधमान महावीर खलुा व व व यालय,कोटा

    सद य 1. ो. (डॉ.) के.एल. शमा

    सेवा नवृ त आचाय, समाजशा वभाग जवाहर लाल नेह व व व यालय, नई द ल

    2. ो. यू. आर. नाहर आचाय समाजशा जे. एन. व. व व व यालय जोधपरु

    3. डॉ. आई. पी. मोद सेवा नवृ त सह-आचाय, समाजशा वभाग राज थान व व व यालय, जयपरु

    4. डा. एस. एल. दोषी सेवा नवृ त सह-आचाय, समाजशा वभाग मो.ला.स.ु व व व यालय, उदयपरु

    5. डॉ. ( ीमती) र ता दाधीच सहायक आचाय, समाजशा वै दक क या पी.जी. महा व यालय, जयपरु

    6. ो. बी. के. नागला सेवा नवतृ आचाय, समाजशा वभाग म. द. व व व यालय, रोहतक

    7. डॉ. अलका शमा सहायक आचाय, समाजशा राजक य पी जी महा व यालय, दौसा

    स पादक तथा पाठ लेखन स पादक डा. राजीव गु ता सह-आचाय, समाजशा वभाग राज थान व व व यालय, जयपरु

    पाठ-लेखक इकाई सं या डा. वषा शमा

    सहायक आचाय, समाजशा कानो ड़या महा व यालय, जयपरु

    (1)

    डा. द पा माथुर सहायक आचाय, समाजशा वभाग राज थान व व व यालय, जयपरु

    (2)

    डा. अ णा भागव सहायक आचाय, समाजशा वभाग राज थान व व व यालय, जयपरु

    (3)

    डॉ. र ता दाधीच सहायक आचाय, समाजशा वै दक क या पी.जी. महा व यालय, जयपरु

    (4, 5)

    डा. भा गु ता सहायक आचाय, समाज शा ख डेलवाल वै य म हला नातको तर महा व यालय, जयपरु

    (6)

    डा. रोजी शाह सहायक आचाय, समाजशा वीर बा लका क या महा व यालय, जयपरु

    (7)

  • 5

    डा. चका शमा सहायक आचाय, समाजशा सबुोध क या महा व यालय, जयपरु

    (8)

    डा. मंजु कुमार सहायक आचाय, समाजशा वभाग राज थान व व व यालय, जयपरु

    (9)

    डा. सीमा पा डे सहायक आचाय, समाजशा एस. एस. जी. पार क कॉलेज, जयपरु

    (10)

    डा. तारा सघंल सहायक आचाय, समाजशा कानो ड़या महा व यालय, जयपरु

    (11)

    डा. यो त सडाना सहायक आचाय, समाजशा एस. एस. सबुोध महा व यालय, जयपरु

    (12)

    डा. रि म जैन सहायक आचाय, समाजशा वभाग राजक य मीरा, उदयपरु

    (13, 16)

    डा. सुशीला जैन सहायक आचाय, समाजशा वभाग राज थान व व व यालय, जयपरु

    (14)

    डा. राजीव गु ता सह-आचाय, समाजशा वभाग राज थान व व व यालय, जयपरु

    (15)

    अकाद मक एवं शास नक यव था ो. (डॉ.) नरेश दाधीच

    कुलप त वधमान महावीर खलुा व व व यालय,कोटा

    ो. (डॉ.) एम. के. घड़ो लया नदेशक

    अकाद मक

    योगे गोयल भार

    पा य म साम ी उ पादन एव ं वतरण वभाग

    पा य म उ पादन योगे गोयल

    सहायक उ पादन अ धकार वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    पुनः उ पादन : सत बर, 2012 ISBN: 13/978-81-8496-081-5 इस साम ी के कसी भी अंश क व.म.ख.ु व., कोटा क ल खत अनुम त के बना कसी भी प म अथवा म मयो ाफ (च मु ण) वारा या अ य पनुः ततु करने क अनुम त नह ंहै ।

  • 6

    SO-02

    वधमान महावीर खलुा व व व यालय,कोटा

    ख ड-I

    भारतीय समािजक यव था पृ ठ सं या इकाई 1 भारतीय समाज का उ व : ाचीन भारतीय समाज बौ धम, इ लाम व प चात सं कृ त का भाव 8—18 इकाई 2 पार प रक ह द ूसामािजक संगठन के आधार : कम पु षाथ, वण, आ म एव ंसं कार 19—35 इकाई 3 एकता एव ं व वधता 36—44 इकाई 4 ि य क ि थ त : समानता एव ंअसमानता 45—59

    ख ड II इकाई 5 भारतीय समाज क मूल सं थाएँ 60—71 इकाई 6 भारतीय समाज क मूल सं थाएँ – ववाह 72—89 इकाई 7 भारतीय समाज क मूल सं थाएँ – प रवार 90—111 इकाई 8 नातेदार 112—129 इकाई 9 भारत म जा त यव था 130—142 इकाई 10 जनजातीय समाज 143—158

  • 7

    ख ड III सामािजक प रवतन इकाई 11 ामीण एव ंनगर य समुदाय 159—173

    इकाई 12 भारत म सामािजक प रवतन क याएं: अवधारणाएं एव ंकारक 174—192 इकाई 13 सां कृ तकरण एव ंपायचा यीकरण 193—204 इकाई 14 आधु नक करण 205—216 इकाई 15 धम नरपे ीकरण 217—227 इकाई 16 भूम डल करण 228—236

  • 8

    इकाई 1 भारतीय समाज का उ व: ाचीन भारतीय समाज–बौ धम,

    इ लाम व पा चा य सं कृ त का भाव इकाई क परेखा 1.0 उ े य 1.1 तावना 1.2 भारतीय समाज का उ व : ऐ तहा सक ि टकोण 1.3 भारतीय समाज

    1.3.1 भौगो लक सरंचना 1.3.2 सामािजक पृ ठभू म 1.3.3 राजनी तक सरंचना 1.3.4 आ थक पृ ठभू म

    1.4 भारतीय समाज पर भाव 1.4.1 बौ धम का भाव 1.4.2 इ लाम धम का भाव 1.4.3 पा चा य सं कृ त का भाव

    1.5 साराशं 1.6 अ यासाथ न 1.7 स दभ थं

    1.0 उ े य इस इकाई के अ ययन के प चात आप –

    भारतीय समाज के उ व एव ंऐ तहा सक ि टकोण के बारे म समझ सकगे। भारतीय समाज क सामािजक पृ ठभू म, राजनी तक संरचना एव ंआ थक पृ ठभू म के बारे

    म ान ा त कर सकगे। भारतीय समाज पर बौ धम. इ लाम एव ंपा चा य सं कृ त के भाव क जानकार हा सल

    कर सकगे।

    1.1 तावना भारत म ' ु त’ और ‘ मृ त’ म समाज के काय– यवहार स ब धी न पर वचार कया गया

    है। कौ ट य के 'अथशा और मनु मृ त म समाज क संरचना पर वचार कया गया है। जैन और बौ धम के थं भी समाजशा ीय पृ ठभू म वाले माने जा सकते ह। भारत के अ धकाशं धम थं म सामािजक यवहार, सामािजक मानक एव ं नषेध का उ लेख मलता है। यह समाज रचना का ि भक काल था।

  • 9

    मनु य एक ऐसा सामािजक ाणी है िजसके पास सं कृ त है और ज म के त काल बाद समहू स पक के फल व प वह सामािजकता को सीखता है। दै नक जीवन क आव यकताओं क पू त के लए उसे अ य यि तय का आ य लेना पड़ता है, इस प म अ य यि तय के साथ उसक अ तः या होती है। इस अ त: या के प रणाम व प उसके सामािजक संबधंी का नधारण होता है उसक सामािजकता का नयं ण नदशन एव ंसचंालन होता है और यह काय समाज क यव था और उसके संगठन वारा कया जाता है। इस प म जहां जहां मानव है वहां वहा ंसमाज भी अव य है। समाज क इस ज टल यव था का वै ा नक अ ययन करने के लए समाजशा का ज म हुआ है। अत: समाजशा का अ ययन करने से पहले हम समाज के उ व और वकास को जानना आव यक है, य क इसको जाने बना हम अपनी सामािजक, सां कृ तक धरोहर के नमाण क या को नह समझ पायगे।

    अत: यहा ंहम समाज के उ व और यि तय के पणू इ तहास को देखने का यास करगे क कन कन यव थाओं से होता हुआ यह एक व श ट प म था पत हुआ है और कन– कन धम एव ंसं कृ तय ने इसम सहयोग दान कया है।

    ाचीन भारतीय समाज वा तव म ह द ूसमाज क यापक वशषेताओं का त न ध व करता है। भारतीय समाज व व के ाचीनतम समाज म से एक है और इसका इ तहास 5000 से 7000 वष परुाना है। यहां के ऋ षय , मु नय , वचारको एव ं चतंक ने अपनी साधना, अ ययन, चतंन तथा अनभुव के आधार पर ऐसी मानव–सं कृ त का नमाण कया तथा ऐसे जीवन–मू य को वक सत कया, िज ह ने आज तक मानव का माग दशन कया है।

    व भ न सं कृ तय एव ं जातीय म ण के समागम से भारतीय समाज का नमाण हुआ है। यह अनेक जा त व धम के लोग से मलकर बना है, यह कारण है क यहां के लोग के रहन–सहन, खान–पान, वेशभूषा, भाषा, यौहार–उ सव, थाओं, मू य व व वास के कारण भ नता देखने को मलती है। इन व भ नताओं के बावजूद भारतीय समाज का व प वकृत नह हुआ है अ पत ुइसके सौ दय म वृ ह हु ई है।

    भारत के न श ेपर ि ट डालते ह त काल यह प ट हो जाता है क इस देश का एक प ट अलग यि त व एव ंपहचान है। परुाताि वक खोज से पता चलता है क भारत म ाचीनतम काल म भी मनु य का नवास था। भारत ससंार क अवाचीन स यताओं म से एक क ज म भू म है और इसका एक अ वि छ न इ तहास है।

    1.2 भारतीय समाज का उ व: ऐ तहा सक ि टकोण ाचीन भारतीय समाज के उ व और इसके इ तहास को बताना कोई आसान काय नह है।

    उपल ध माण के आधार पर यह कहा जा सकता है क भारत म मनु य का अि त व उतना ह ाचीन है िजतना क हम–यगु का म यम भाग। य –त उपल ध परुा तर यगुीन उपकरण से यह इं गत होता है क यहां से आखेट करने, मछ लयां तथा खा य पदाथ एक करने म सलं न छोटे–छोटे मानव समूह का वजन हुआ था। ऐसा तीत होता है क परुातन यगु के मनु य सामा यत : न दय के कनारे पर बसे ह गे और उ तर–पि चम के अपे ाकृत ठ ड े े म उ ह ने गफुाओं म नवास करना उ चत समझा होगा।

  • 10

    कुछ समय पहले तक भारतीय समाज के इ तहास के ार म क कहानी आय के आगमन से मानी जाती थी ले कन हाल क खोज से यह ात होता है क लगभग 3000 ईसा पवू भारत म अ य त समृ हड़ पा स यता का अि त व था। िजसके अवशेष 1950 के आस पास सतलज घाट म, राज थान के जसैलमेर म एव ंद ण क ओर अहमदाबाद के नकट लोथल म मले ह।

    ‘हु माय’ँ कबीर’ ने लखा है क स ध ुघाट स यता भारतीय सं कृ त के यि तय म पहला ऐसा त व है िजसका भाव आज तक बना हुआ है। इसी कारण से कुछ इ तहासकार आधु नक भारत का ज म व तुत: यह ंसे मानते ह। जहां तक ात है, आय ने 2000 ईसा पवू के आस–पास भारत म आना शु कर दया था। वे न तो एक साथ बहु त बड़ी सं या म और न ह एकदम दल के दल बनाकर आए बि क भारत क उ तर–पि चम सीमाओं के हर पवत के रा ते से बरस तक लगातार आते रहे। भारतीय धम थ एव ंअ य सा ह य के मा यम से उनका च ण तुत होता है। बु और महावीर के आगमन से हमने ऐ तहा सक यगु क एक नई दहल ज पर कदम रखा। जब सक दर ने 326 ई. पवू. क एक नि चत तार ख पर भारत पर हमला कया तब भारतीय इ तहास का काल म नि चत हुआ। सक दर के वापस लौटने के बाद ह भारतीय इ तहास म पहले सा ा य क थापना हु ई। भारत म आयी के अलावा, शक, हू ण, पतुगाल , ांसीसी तथा मंगोल, पारसी आ द अनेक जा तय के लोग समय–समय पर आए तथा भारतीय समाज के अ भ न अंग बन गए।

    1.3 भारतीय समाज

    1.3.1 भौगो लक सरंचना

    भौगो लक ि ट से भारतीय समाज क संरचना अनोखी है। भारत म सं कृ तय के सम वय—क भावना का ेय बहु त हद तक इसके भूगोल को जाता है। य प से भारत क भौगो लक वशालता एव ंव वधता ने भारतीय क मान सकता को इस तरह से भा वत कया है क वह जलवाय ुऔर अ य व वधताओं को वीकार करने के लए तैयार रहते ह। भौगो लक ि टकोण से भारत व व का सातवां बड़ा देश है। इसके उ तर म ि थत वशाल एव ंसव च हमालय क र ाकार द वार के कारण ह भारत क सामािजक य था और स यता का ोत अ वरल गीत से चला आ रहा है। धा मक स ा त तथा व वास, ववैा हक नयम, सामािजक यव था एव ंजा त था आज भी सब ाचीन काल के अनु प ह व यमान है। भारतीय जीवन क यह अखंडता हमालय पवत क द देन है।

    हमालय से लेकर क याकुमार तक व ततृ इस महा वीप का नाम 'भरत' नामक तापी राजा के नाम पर ''भारतवष'' पड़ा। ''भारत'' का दसूरा नाम '' ह दु तान'' या ''इि डया'' ाि भक आ मणका रय , फार सय और यनूा नय वारा रखा गया। फार सय ने स ध ुनद के नाम पर सधं– देश रखा। ले कन फार सय वारा ‘स' अ र का उ चारण ‘ह' क भां त करने के कारण सं ध ुके थान पर ह द ूव धीरे–धीरे ह दु तान रख दया। इस कार भारत स यताओं के अ य त ाचीन ज म थान के प म अि त व म आया।

    1.3.2 सामािजक पृ ठभू म

    भारतीय समाज– यव था अ य त ाचीन है। वेद और उप नषद म िजन लोक–समाज का उ लेख मलता है वे भारतीय सामािजक यव था के के ब द ुह। व व के सामािजक इ तहास म

  • 11

    भारतीय वण यव था का अ य त मह वपणू थान है। मानव क मनोवै ा नक एव ंसामािजक आव यकताओं को यान म रखकर ह इनको ार म कया गया। इसका उ े य भारतीय सामािजक यव था एव ंसंगठन को था य व दान करना है। ाचीन समय म वण– यव था ने आ थक यव था को सु ढ़ कर समाज को समृ कया। इससे ाचीन भारतीय अथ यव था, सा ह य और सं कृ त क र ा हु ई तथा उनके उ थान म भी योगदान मला।

    ाचीन समय म वणा म समाज के लए आव यक था य क आ म का स ब ध यि त के आचरण से था और वण का समाज से िजसम वह रहता था। आ म यव था वारा जीवन क येक यव था म यि त के आचरण को श त कया जाता था तथा गणु और मता के अनसुार समाज म उसका थान नधा रत कया जाता था।

    इसी कार संयु त प रवार भी सामािजक यव था म मह वपणू थान रखता है। ह द ूसामािजक सरंचना म पचं ऋण (देव ऋण, ऋ ष ऋण, पत ृऋण, अ त थ ऋण, भूत ऋण) पचं महाय (देह य , ऋ ष य , पत ृय , अ त थ य , जीह य ) एव ंपु षाथ (धम, अथ काम व मो ) कम व पनुज म के स ा त का भी यापक महल है। इ ह के आधार पर ाचीन भारतीय सामािजक यव था क नींव रखी गई है।

    इस कार भारतीय समाज क आधार शला व भ न जा तय एव ंसं कृ तय के सि म ण से होती है। फल व प भारतीय समाज म रहन–सहन, खान–पान, भाषा, वेश–भूषा, आ द सनी म बहु त अ धक व भ नता पाई जाती है। यहां लोग के व वास, मूल थाएं, पर पराएं, आदश एव ंमा यताएं भी अलग–अलग ह।

    1.3.3 राजनी तक सरंचना

    राजनै तक ि टकोण से भी भारतीय समाज व व का सबसे बड़ा जातां क रा है। आरंभ म यहां राजशाह राजनी तक यव था थी, पर तु वाधीनता के बाद भारतीय समाज म राजनी तक एक करण क या से सामंती यव था ाय: समा त हो गई, भारत एक सु ढ़ जातां क रा के प म उभर कर सामने आया। अब भारत एक स पणू भु व–स प न समाजवाद , धम– नरपे ,

    लोकतं ा मक गणरा य है िजसम राजनी तक, सामािजक और आ थक लोकतं शा मल ह। हमारा सं वधान भी याय, वतं ता, समानता ातृ व और रा य एकता का तीक है। फल व प भारतीय राजनी तक यव था म कसी वग वशेष के हत का संर ण नह कया जाता वह साधारणत: जन हत क भावना से अनु ा णत है िजसम मानवा धकार क सुर ा को मह वपणू माना जाता है।

    1.3.4 आ थक पृ ठभू म

    य तो भारत क अथ य था मलूत: कृ ष पर आधा रत रह है ले कन कृ ष के अ त र त भी भारतीय समाज ने ार भ मे लघ ुउ योग से भारतीय अथ यव था को सु ढ़ता दान करने का यास कया। आज भारतीय अथ यव था म बड़–ेबडे कारखान से लेकर लघ ुऔ योगीक इकाइय तक का मह वपणू योगदान है । इस औ योगीकरण ने भारतीय सामािजक अपना जीवन पार प रक संबधंो को भी काफ हद तक भा वत कया है।

  • 12

    इस कार भारत म कई नई स यताएं फल –फूल और प रव तत हु ई ह पर तु इस या म उनक मूलभूत एकता पर कभी आँच नह आई। यह केवल इस लए स भव हो सका है क भारतीय समाज म अपने आपको नई प रि थ तय के अनु प ढालने क मता है। इस मता का आधार यह है क भारतीय इ तहास म, हमेशा स ह णुता क भावना के दशन होते ह। भारतीय जीव और जीने दो क नी त म व वास रखते ह।

    1.4 भारतीय समाज पर भाव छठ शता द ईसा पवू का समय स पणू व व इ तहास म अपना एक व श ट थान रखता

    है। इस शता द म व व के व भ न भाग म बौ क और धा मक आ दोलन हु ए, िजनसे मानव के धा मक, सामािजक और राजनी तक जीवन म मह वपणू प रवतन हुए। भारत म 600 बी.सी म राजनी तक, धा मक और सामािजक तीन े म ां त हु ई। राजनी तक ां त के प म मगध म एकछ शासन क थापना हु ई तथा धा मक एव ंसामािजक े म व भ न कुर तय के व जो त या हु ई उसम जैन और बो धम अ णी रहे। इस कार इन धम का उ व व ततु: उ तर वै दक

    काल क धा मक कुर तय के व त या का प रणाम था।

    1.4.1 बौ धम का भारतीय समाज पर भाव

    आंत रक दोष , भ ुओं के चा र क पतन, फूट, पवु–म य यगुीन राजनी तक तनाव एव ंशि त संघष आ द व भ न कारण से बौ धम य य प 12वी ंशता द के उपरा त भारत भू म से लगभग लु त हो गया फर भी भारत म 1500 वष के जीवनकाल म इसने भारतीय समाज के सां कृ तक, राजनी तक एव ंसा हि यक व धा मक े पर अपनी गहर छाप छोड़ी। 1. ह द ूधम पर भाव–

    धा मक े म ां त लाने का ेय बौ धम को जाता है। ज टल कम कांड एव ंआड बर पणू ह द ूधम के थान पर जनता को बौ धम के प म एक सीधा सादा सरल धम ा त हुआ तथा इसने ा मण को आ म नर ण के लए े रत कया य क बौ धम का आ वभाव ह पौरा णक ा मण के व त या के कारण हुआ था। धा मक दु हता मटाकर नै तक आदश तथा सदाचरण

    के साथ–साथ ा मण ने उदारतावाद ि टकोण अपनाया। पशुब ल वलु त होने लगी तथा ज टल के कमकां ड बदं होने लगे। इस कार बौ धम ने वै दक कमकांड से उकता चकु जनता को सरल सुबोध धम दान कया । 2. राजनी तक े म –

    स ाट अशोक ने “वसुधैव कुटु बकम” के स ा त का चार बौ धम से भा वत होकर ह कया था जो आज क राजनी त म भी दखाई देता है। इसके अ त र त बौ धम ने समाज म या त जा तवाद वशेष कर उंच–नीच छूआछूत के भाव को न ट कर सामािजक और सां कृ तक एकता को ढ़ करने का यास कया। बोलचाल क भाषा म धा मक उपदेश देने से यह एकता और भी ड़ हो

    गई। 3. सामािजक े म –

    जहां ह द ुधम क सामािजक यव था ने असमान वग को ज म देकर भारत म पथृकतावाद भावनाओं को वक सत कया वहां बौ धम ने जा त– था तथा अ पृ यता को दरू कर समानता के आधार

  • 13

    पर समाज को संग ठत करने का यास कया। समानता क भावना ने द लत वग म ह न–भावना को दरू कर नवचेतना का सचंार कया। दान, शु ता आ म– व वास, स यता, आ मसंयम, दया, समता, अ हसंा, मन, वचन और कम क प व ता आ द नै तक गणु को भारतीय समाज म समु चत ढंग से समा व ठ करने का ेय बौ धम को ह दया जाता है। 4. सा हि यक े म –

    सा हि यक े म बौ धम ने भारतीय समाज को गौरवाि वत कया। भारतीय सा ह य के कोष म अपार वृ क । याकरण और तकशा म बौ व वान का काय उ च णेी का है। बौ धम के काल म ह सबसे पहले नाल दा व व व यालय वारा जनता के लए नै तक श ा क यव था ार भ क । बोलचाल क भाषा ( ाकृत एव ंपाल ) म बौ धम के व ततृ सा ह य का सजृन हुआ।

    पाल म र चत बौ सा ह य म पटक और जातक कथाएं स ह। इसके अ त र त बौ धम म लोक–भाषाओं के वकास म भी मह वपणू योग दया। 5. कला के े म –

    व तुत: भारतीय कला का इ तहास बौ क कलाकृ तय से ह आर भ होता है। पहले भारत म मू तया ंऔर इमारत लकड़ी क बनती थी जो शी न ट हो जाती थी। अशोक के काल से ह इमारत और मू तया ँप थर क बनने लगी। बौ धम के भाव से वा तुकला एव ंभवन– नमाण कला का ख़ूब वकास हुआ। बौ भ ओंु के नवास हेतु मठ , वहार आ द का नमाण कराया गया। भारत म बौ वारा न मत मि दर, तुप, चै य, भवन, मू तया,ं गफुाएं आ द थाप य कला के उ कृ ठ नमूने ह।

    सांची, भरहु त, अमरावती के तूप, उनके वशाल वेश वार, सारनाथ तथा अजंता एलोरा क गफुाएं आ द बौ च कला के सव े ठ उदाहरण ह। 6. शास नक े म –

    बौ धम से भा वत होकर कई शासक ने उदारता और स ह णुता क नी त अपनाई तथा जा क भलाई के लए अनेक काय कये। रो मला थापर के अनसुार स ाट अशोक ने बौ धम से भा वत होकर पशु प य कसान , गर ब और आ दवा सय के त सहानभुू त क नी त अपनाई

    तथा अनेक हतकार काय कये” । कालातंर म स ाट क न ठ और हषवधन ने भी जा क भलाई करने म त परता दखाई। 7. वदेश म भारतीय स यता एव ंसं कृ त का सार –

    वदेश म भारतीय स यता एव ंसं कृ त के सार का ेय बौ धम को है। बौ भ ुओं और व वान ने बौ धम के चारक देश के कोने–कोने म व वदेश म मण करके भारत क पथृकता को भंग कया। इस कार इन चारक के साथ–साथ भारतीय सं कृ त भी अ य प से म य ए शया, चीन, जापान, त बत नेपाल, ीलकंा, जावा, सुमा ा, मलाया आ द देश म सा रत हु ई। फल व प भारतीय सं कृ त ने इन देश के आचार– वचार कला और समाज को बहु त भा वत कया। कालांतर म इन देश के साथ भारत के यापा रक व सां कृ तक संबधं बने।

    1.4.2 भारतीय समाज पर इ लाम का भाव

    प हवीं व सोलहवी ंशता द म ह द ूधम म नए मू य च लत करने के उ े य से भि त–स दाय का ादभुाव हुआ। कबीर, गु नानक, रामान द, चैत य, मीरा, तुकाराम, तुलसीदास

  • 14

    व रामदास आ द ने ह द ूसमाज म समतावाद मू य– यव था पर जोर दया। इ ह ं लोग ने ह द ूपर परा म उदारता व इ लाम के साथ इसके सि म ण का भी यास कया।

    म यकाल म इ लाम ने ह द ूआदश को भा वत कया। य तो दसवीं शता द म ह भारत पर मसुलमान का आ मण शु हो गया था ले कन प हवी ंशता द के बाद ह द ूपर परा पर इ लाम का भाव अ धक ि टगोचर हुआ।

    ो0 योगे सहं ने ह द ूपरंपराओं पर इ लाम का भाव तीन तर पर देखा, (1) इ ला मक शासन के समय, (2) टश शासनकाल म, (3) भारतीय वतं ता आ दोलन म। इ ला मक शासनकाल म मसुलमान शासक ने ऐसी अनेक नी तया ँबनायीं जो धा मक अ त: वरोध को य त करती है। हालां क कुछ मुि लम शासक व व वान ने ह द ूपरंपरा के कुछ प का इ लाम के साथ सामजं य करने क को शश भी क । उदाहरण के लए अकबर ने द न–ए–इलाह सं दाय क थापना क जो इ लाम, ह दू व, जैन व पारसी का म ण था।

    स व वान अमीर खसुर ने मुसलमान को ह द ूपरंपराओं से प र चत कराया। म यकाल म भी लंबे समय तक ह द ूऔर मुि लम सं कृ त के स पक के कारण कला, धम, सा ह य, प रवार, ववाह, संगीत और सं कृ त के कई े म दोन म बहु त आदान– दान हुआ।

    इ लाम का भारतीय समाज पर भाव का अवलोकन करने पर ात होता है क य क मुसलमान बाहर से आये और सं या म कम थे ह द ूजा त यव था म या त शोषण व असमानता ने अनेक ह दओंू को मुसलमान बनाया, यह कारण है क मसुलमान के कई तल दोन ह समाज म साथ–साथ दखाई देते ह।

    ताराच द ने लखा है क “भारत का अरब से स पक अ य त ाचीन है।” पि चम भारत म अरब लोग क बि तयां इ लाम धम के उदय से पवू ह व यमान थी। इ तहासकार के अनसुार इ लाम का भाव भारतीय समाज पर सातवीं शता द से माना जा सकता है। जर अरब के मसुलमान ने भारत म बसना शु कर दया था।

    वा त वकता तो यह है क ह द–ुमुसलमानो क सं कृ तय का पर पर आदान– दान तथा भा वत करने क या पछले 1200 वषा से चल आ रह है।

    इ लाम का भाव भारतीय समाज और सं कृ त के सभी े – कला, सा ह य, र त– रवाज, जा त था, वाल– ववाह, सती था आ द पर पड़ा। 1. इ लाम धम ने भारतीय समाज म ह द–ुसं कृ त से भ न समानता और समतावाद का चार

    और सार कया। ले कन मुगल और पठान यो ा, सामंत, कुल न और शासक थे इस लए भारत म इ लाम के अनयुा यय ने जा त–संरचना को अपनाने म सहयोग दया।

    2. ह द ूधम पर इ लाम के एके वरवाद का भाव पड़ा तथा नगुण म क उपासना ार भ हु ई ।

    3. ेम और समानता के गणु का चार– सार होने से जातीय कठोरता कम हु ई और अ पृ यता एव ंऊँच–नीच का भेदभाव समा त होने लगा।

    4. ह द और फारसी भाषा के सि म ण से उद ूएव ंखड़ी बोल का ादभुाव हुआ। म लक मोह मद जायसी, अ दलु रह म खानखाना, रसखान जैसे मुसलमान क वय ने उ च को ट क रचनाएं लख कर ह द सा ह य को समृ बनाया।

  • 15

    5. मुि लम वेशभूषा जैसे चड़ूीदार पजामा, अचकन एव ंशरेवानी का चलन हुआ। 6. कलाकंद, बफ , गलुाब–जामून, बालूशाह , हलवा, इमरती, जलेबी, मुसलमान क देन है। 7. थाप य कला के े म ह दओंु ने मसुलमान से गुबं द उंची मीनार मेहराब और तहखाना

    बनाना सीखा। 8. च कला के े म मनु य , पशुओं, पु प एव ंप य के सजीव च बनाना तथा व भ न

    पहले रंग भरना भी मुि लम सं कृ त क देन है। तकु व ईरान क च कार मसुलमान ह भारत म लाए। मथरुा के वारकाधीश दर म इसी शैल क कृ णल ला का च ण कया गया है।

    9. क वाल , गजल, ठुमर तथा तबला ब सतारवादन भी इ लाम क ह देन है। मुि लम व मुगल ने भारत पर 600 साल तक राज कया इसी लए भारतीय समाज व सं कृ त को मुगल का उ लेखनीय योगदान रहा जो वशेष तौर पर भवन नमाण कला च कला संगीत, सा ह य, धम, दशन, सामािजक र त– रवाज थाओं व यवहार आ द े म देखा जा सकता है। शाहजहां ने देश म कई मारक का नमाण करवाया और स ाट अशोक के शासन काल को आदश शासन माना गया। उपयु त ववरण से प ट है क इ लाम के भाव के कारण समाज सभी े म मा वत

    हुआ।

    1.4.3 पा चा य सं कृ त का भारतीय समाज पर भाव

    भारतीय समाज पर पड़ने वाला पा चा य सं कृ त का भाव मुि लम सं कृ त के भाव से भ न था। अं ेज के भारत आने का मु य कारण आ थक था। वे अपने देश के औ योगीकरण क आव यकताओं के लए ऐसा देश चाहते थे जहां से वे क चा माल ा त कर तैयार माल बेच सके। इस उ े य क पू त के लए उ ह ने यातायात के साधन के व तार, नगर के औ योगीकरण जमींदार था के ार भ पूजंीवाद य था के प म जो प रवतन कए उनके कारण भारतीय समाज के आदश

    मू य, मा यताएं, रहन–सहन के तर के आ द ग भीर प से भा वत हु ए। भारतीय समाज म अनेक प रवतन टश सरकार, ईसाई मशन रय के कारण हु ए। ो0 योगे सहं के अनसुार – टश शासनकाल म दो कार के सुधार आ दोलन हु ए:– पहला

    ह दओंु के मू य व यवहार म प रवतन लाने के लए, दसूरा, नवीन मू य के साथ पर परागत, सां कृ तक मानद ड व मू य का सामजं य। 1. पा चा य श ा का भाव –

    टश शासन ने अं जेी श ा देकर भारतीय के वचार बदले। इस काल म आय समाज वारा सुधार आ दोलन हु ए िजनसे आधु नक सामािजक मू य को लाने का यास कया गया।

    ाकृ तक और सामािजक व ान के अ ययन से भारतीय लोग ने सामािजक सम याओं को सुलझाने के लए वै ा नक व ता कक ि टकोण अपनाया िजसके फल व प उ ह जा त था बाल ववाह, पदा था, वधवा ववाह, ि य क ि थ त आ द के बारे म पनु वचार करने क आव यकता तीत हु ई।

  • 16

    अं ेजी श ा ने भारतीय सा ह य को भी समृ बनाया। सं कृत के मह वपणू थ का अं ेजी का म अनवुाद हुआ। इ तहास, ा य व ान तथा अ य व ान का अ ययन ार भ हुआ। 2. जा त था पर भाव –

    भारतीय सामािजक संरचना पर पा चा य सं कृ त का एक मह वपणू भाव जा तवाद के व प म प रवतन क ि ट से पड़ा। भारतीय सामािजक सरंचना जा त यव था पर आधा रत है जो यि त के ज म से नधा रत होती है तथा अंत ववाह है। ले कन पा चा य श ा के भाव से अब जा त का भाव श थल पड़ गया है तथा जा त का थान वग यव था ले रह है।

    औ योगीकरण व नगर करण क या ने ामीण सामािजक संरचना को भी भा वत कया है। समाज अब पर वतनशील हो गया है तथा पर पराओं व सकं णताओं के बधंन अब टूट रहे है। तजेी से होने वाले नगर करण व शहर म जनसं या घन व के कारण लोग को आज अपनी जा त को छुपाने म कोई असु वधा नह होती– अथात जा त पर शहर म कोई यान नह देता। जा तगत वशंानगुत पेश के थान पर आज नए पेश का वकास हो चुका है िजनका कसी जा त वशेष से कोई स ब ध नह है। पा चा य व अं ेजी श ा के भाव से ा मण का वच व वत: ह घट गया है और खान–पान क ि ट से जा तगत बधंन श थल हो गए ह। 3. म हलाओं क ि थ त पर भाव –

    पा चा य श ा के भाव से म हलाओं को घर से बाहर आकर श ा, नौकर एव ंसमाज सेवा करने के अवसर ा त हु ए। भारतीय समाज म सधुार सं थाओं जैसे आय समाज तथा ईसाई मशन रय के सहयोग से लड़ कय क श ा का सार हुआ िजससे उनके उ थान व आ थक वतं ता के अवसर बढ़े। पा चा य श ा का उ लेखनीय भाव ि य वारा पदा था को नकारना तथा समान अ धकार क मांग रहा। 4. धम क ि ट से भाव –

    ईसाई धम के भाव से ह द ूधम क अनेक मा यताओं एव ं व वास पर न च ह लगाये जाने लगे। पि चम के भौ तकवाद एव ंयथाथवाद दशन ने भारत के आ याि मक दशन के त संदेह उ प न कया। फल व प आ या म के थान पर भौ तकवाद का भाव बढ़ा। अ ध वशवास व कुर तय के वरोध व प तक बु का चलन हुआ। 5. ववाह सं था पर भाव –

    पा चा य श ा का वा धक भाव ववाह सं था पर पड़ा। पा चा य श ा ने यि तवाद भावनऔ म बढ़ोतर क िजसके प रणाम व प ववाह का उ े य धा मक कत य क पू त न होकर यि तगत तर पर सुखी जीवन यतीत करना हो गया। पहले भारतीय समाज म ववाह साथी के चुनाव म यवुक व यवुती क कोई, राय नह ल जाती थी, इसका नणय उनके माता– पता ह करत ेथे, ले कन अब दवे ववाह साथी के चुनाव म अपनी इ छा–अ न छा य त करने लगे ह। लड़ कय म श ा के सार से अब उ ह धीरे–धीरे यह समझ आने लगा है क बाल– ववाह वा य के लए हा नकारक है,

    फल व प इस कुर त का काफ हद तक उ मलून हो चकुा है। वधवा पनु ववाह व ववाह व छेद का ार भ हो गया और अ तजात य ववाह का चलन बढ़ गया।

    6. प रवार सं था पर भाव – भौ तकवाद ि टकोण एव ं यि तवाद भावनाओं के कारण संयु त प रवार के थान पर

    एकाक प रवार का चलन हो गया। ि य ने प रवार म प त के समान अ धकार क मांग क है।

  • 17

    7. वेश–भूषा क ि ट से भाव – पु ष धोती–कुत के थान पर पट–शट व टाई पहनने लगे। म हलाओं क पोशाक म भी

    गणुा मक प रवतन आया। 8. काननू का नमाण –

    ार भ म टश शासन ने ह दओंु के र त– रवाज म ह त ेप नह कया ले कन शासन क मांग तथा समाज सधुारको के दबाब के कारण सरकार ने अनेक समाज सुधारक काननू पा रत कए। जैसे सती– था नरोधक काननू (1929) वधवा पनुव वाह काननू (1856) वशेष ववाह अ ध नयम (1872), बाल– ववाह नरोधक अ ध नयम आ द। इसके अ त र त भी टश सरकार ने समय–समय पर ववाह, तलाक, संप त. ह ता तरण, द तक हण, प रवार, भू म व श ा आ द से संबं धत काननू पा रत कए।

    इस कार भारतीय समाज पर पा चा य स यता व सं कृ त का यापक भाव पड़ा। अं जे के साथ अं ेजी भाषा आई िजसके कारण पहले श त लोगो के मू य आदश जीवन–शैल , वचार आ द म मह वपणू प रवतन आया उसके प चात ्इस प रवतन का सार आम जनता म हुआ। टश शासन से देश म पि चमीकरण क या भी ार भ हु ई िजससे भारतीय समाज व ि य क ि थ त म सधुार संभव हुआ। इसके कुछ बरेु प रणाम भी सामने आये जैसे कई लोग ने पा चा य सं कृ त के भाव म आकर अपने समाज क सं कृ त पर पराओं को ह न समझा। व तुत: होना यह चा हए था क पि चमी स यता के अ छे त व को हम हण कर जसेै उनक तकशीलता व वै ा नक ि टकोण को अपनाय व भारतीय समाज क कुर तय व अ ध व वास का याग कर। आज आव यकता पवू व पि चम के मू य व सं कृ त के सम वय क है न क उसके अंधानकुरण क ।

    1.5 सारांश इस कार न कषत: यह कहा जा सकता है क भारतीय समाज के उ व व वकास म व भ न

    सं कृ तय का उ लेखनीय योगदान रहा। समय–समय पर बौ धम, इ लाम व पा चा य सं कृ त के भाव से भारतीय समाज के व भ न े म अनेक प रवतन आए। िजसके प रणाम व प ह दओंु

    के सामािजक र त– रवाज तथा यव थाओं म भी अनेक प रवतन हु ए। नई श ा ने आधु नक सामािजक मू य को लाने का यास कया। ी श ा को बढ़ावा व जा त था के ीतब धो का वरोध कया जाने लगा। द त के थान पर अिजत गणु का मह व बढ़ा। इन सब यास से भारत म जो नया श त म यम वग पनपा उसने भारतीय सा ह य, कला दशन आ द म अनेक योगदान दए। पर परागत साम तवाद तथा धा मक वचार म भी प रवतन आया।

    जातां क व धम– नरपे , ता कक ि टकोण के कारण आज भारत का नाग रक कसी भी धम व सं कृ त को अपनाने के लए वतं है।

    1.6 अ यासाथ न 1. भारतीय समाज के उ व क सामािजक, ऐ तहा सक व भौगो लक प रि थ तय का उ लेख

    क िजए। 2. भारतीय समाज पर बौ व इ लाम धम के भाव का वणन क िजए।

  • 18

    3. पा चा य श ा के भाव से भारतीय समाज क व भ न सं थाओं म आने वाले प रवतन क या या क िजए।

    1.7 स दभ ंथ 1. शवकुमार गु त– ाचीन भारत का इ तहास 2. वै य एव ंगु ता– भारतीय स यता एव ंसं कृ त का इ तहास 3. अ खल आन द– भारतीय समाज 4. Humayun Kabir – Indian Heritage 5. Tarachand. – Influence of Islam on Hindu Culture 6. K.L. Sharma. – Society in India–An overview

  • 19

    इकाई 2 पार प रक ह द ूसामािजक संगठन के आधार : कम, पु षाथ,

    वण, आ म एव ंसं कार इकाई क परेखा 2.0 उ े य 2.1 तावना 2.2 कम क अवधारणा

    2.2.1 कम तथा पनुज म का स ा त 2.2.2 कम और भा य

    2.3 पु षाथ क अवधारणा 2.3.1 पु षाथ का अथ 2.3.2 पु षाथ के कार 2.3.3 पु षाथ का समाजशा ीय मह व

    2.4 वष क अवधारणा 2.4.1 वण का अथ 2.4.2 वण के काय 2.4.3 वण यव था के लाभ 2.4.4 वण यव था के दोष

    2.5 अ ाम : अवधारणा 2.5.1 आ म का अथ 2.5.2 आ म का वभाजन

    2.6 सं कार : अवधारणा 2.6.1 सं कार का अथ 2.6.2 ह द ूजीवन के मखु सं कार

    2.7 साराशं 2.8 अ यासाथ न 2.9 श दावल 2.10 स दभ थं

    2.0 उ े य इस इकाई के अ ययन के प चात आप –

    कम, पु षाथ, वण, आ म और सं कार क अवधारणा समझ सकगे। कम तथा पनुज म के स ा त का ान ा त कर सकगे। पु षाथ का अथ, कार एव ंमह व जान सकगे। वण का अथ, काय तथा गणु एव ंदोष के बारे म जानकार हा सल कर सकगे।

  • 20

    आ म के बारे म ान ा त कर सकगे। सं कार का अथ एव ं मुख सं कार के बारे म समझ सकगे।

    2.1 तावना भारतीय समाज व सं कृ त अ त ाचीन एव ंगौरवपणू है। भारतीय समाज व व के ाचीनतम

    समाज म से एक है। इसका इ तहास 5000 से 7000 वष परुाना है। भारतीय समाज, स यता एव ंसं कृ त का यि तय उस समय हुआ जब व व के अ धकांश लोग जंगल एव ंबबर यव था म जीवन अतीत कर रहे थे। भारतीय ऋ ष–मु नय , वचारको एव ं चतंको ने अपनी साधना, अ ययन, च तन तथा अनभुव के आधार पर ऐसी मानव सं कृ त तथा जीवन मू य का वकास कया जो वतमान म भी मानव का माग–दशन कर रहे ह। भारतीय सामािजक सगंठन क अपनी कुछ मौ लक, अनठू व श टताएँ ह। इ ह ं के कारण भारतीय समाज व व क अ य सं कृ तय और समाज यव थाओं से भ न है।

    य द हम पार प रक ह द ूसामािजक संगठन का समाजशा ीय अ ययन कर तो हम पाएंगे क यह वै दक स यता पर आधा रत है। वै दक स यता का यि तय आया के वारा कया गया था जो 2500 वष ईसा पवू भारत म आए। वै दक काल को दो भाग म बाँटा गया है– पवू वै दक काल एव ंउ तर वै दक काल। पवू वै दककाल न भारत के वषय म जानकार का मुख सा हि यक ोत वेद ह। वेद चार ह– ऋ वेद, अथववेद, सामवेद एव ंयजवुद। ऋ वेद सबसे ाचीन है और पवू वै दककाल न स यता का ान इसी से मलता है। ऋ वेद के बाद का समय उ तर वै दक काल के नाम से जाना जाता है। इस यगु म अथववेद, सामवेद और यजुवद तथा ा मण, आर यक और उप नष आ द थो क रचना हु ई। इसी समय रामायण एव ंमहाभारत महाकथा लखे गए तथा जैन व बौ सा ह य का सजृन हुआ। भारतीय समाज के वकास से संबं धत मह वपणू साम ी; 6 वेदा त 3 सू थ तथा परुाण म भी मलती है।

    ाचीन भारतीय सं कृ त क उ लेखनीय वशेषता है, वण एव ंआ म क यव था, समाज म म वभाजन हेतु चार वणा– ा मण, य, वै य एव ंशू वण क रचना क गई। ा मण समाज बु और श ा के तीक ह तो य, शि त के। वै य भरण पोषण एव ंअथ– यव था का सचंालन करते ह तो शू समाज क सेवा करते ह।

    वण यव था के साथ–साथ ाचीन व वान ने मनु य क आय ुसौ वष मानकर उसका चार आ म – मचय, गहृ थ , वान थ और स यास म वमाजन कया है। आ म का उ े य मानव के बार पु षाथ –धम, अथ, काम और मो क पू त करना है जो क याि त का सामािजक और यवाहा रक जीवन सभंव बनाते ह।

    ाचीन भारतीय सं कृ त म कम को अ य धक महल दया गया है। यह माना जाता है क अ छे कम का फल अ छा और बरेु कम का फल बरुा मलता है। े ठ कम करने वाले को ऊँची यो न म ज म और सुखी जीवन यतीत करने का अवसर मलता है। जब क बरेु कम करने वाले को न न यो न म ज म लेना होता है तथा नाना कार के क ट उठाने पड़ते ह।

    यह सामािजक–मनोवै ा नक पृ ठभू म ह द ूसामािजक संगठन क आधार शला है। ाचीन पार प रक सं थाएँ वतमान म अपनी ासं गकता लगभग खो चुक ह। संभवत: उनका अ ययन

  • 21

    समकाल न समाज के संगठन तथा नयं ण के ान क ाि त म कोई वशेष महल न रखता हो। फर भी, उनको जानना आव यक है। अनेक ऐसी सामािजक सम याएँ ह जो वतमान म तो व यमान ह ह , पर तु िजनसे हमारे पवूज भी त थे। इन सामािजक सं थाओं तथा संदभ को समझकर अनेक समकाल न सम याओं के नराकरण हेतु सुझाव व मागदशन ा त कए जा सकते ह।

    2.2 कम क अवधारणा ह द ूजीवन को सवा धक भा वत करने वाल मा यता य द कोई है तो वह है कम तथा

    पनुज म। सभंवत: कसी भी अ य अवधारणा का एक सामा य भारतीय के जीवन पर उतना भाव नह पड़ सका िजतना क कम के स ा त का। यहा ंतक क बौ और जैन धम ने ह दओंु क अनेक पर परागत धा मक वचार क कद ुआलोचना करके उनका ब ह कार कया। पर त ुकम क अवधारणा इन धम का भी मखु आधार बनी रह । कम का स ा त यि त को दशा देता है, उसे सामािजक दा य व के नवाह क ेरणा दान करता है और भ व य के त आशावान बनाता है। कम क अवधारणा ने पछल अनेक शताि दय से लोग को वधम का पालन करने, सामािजक नयं ण बनाए रखने और सामािजक संगठन को ि थरता दान करने म अपवू योग दया है।

    ‘कम’ श द क उ पि त सं कृत भाषा के श द ‘कमन' से हु ई हे िजसका अथ या, कृ य, क त य, काय अथवा दैव (भा य) है। इससे प ट होता है क शाि दक प से कम का ता पय कसी भी ऐसी या से है िजसका स बधं यि त के दा य व से है अथवा जो यि त के भा य का नमाण करती है। वा तव म कम से हमारा ता पय उन सभी याओं से है िजनका स ब ध शर र, वाणी तथा मन से है। अथात ्बाहय प से यि त जो भी या करता है केवल वह कम नह है। बि क वह दसूर से जो कुछ भी कहता है अथवा वह मन म जैसा वचार करता है उसे भी कम के अ तगत सि म लत कया जाता है। िजस कार या क एक त या अव य होती है, उसी कार येक कम का एक फल भी अव य होता है। इसके प चात ्भी यि त को अपने सभी कम का फल इसी जीवन म नह मल जाता है। वतमान जीवन का अतीत म कए गए कम से भी घ न ठ स ब ध रहता है। इस त य को कम के तीन भेद अथात ्(क) ार ध (ब) सं चत कम तथा (ग) यामाण के वारा समझा जा सकता है। सं चत कम वे ह जो यि त ने अपने पवू ज म म कए ह, इनम से िजतने कमी का फल यि त को इस जीवन म भोगने को मल रहा है, वह उसका ार ध है। यामाण वह कम है जो मनु य इस जीवन म कर रहा है। इस कार आगामी जीवन म यि त को जो कम फल ा त होगा वह सं चत और यामाण का प रणाम होगा । इससे प ट होता है क कम क धारणा केवल वतमान जीवन से ह स बि धत नह है बि क यह पनुज म के स पणू च को भा वत करती है।

    2.2.1 कम तथा पनुज म का स ा त

    ह द ूजीवन दशन म वेद से लेकर मृ तय तक म कम तथा पनुज म के स ा त का यापक उ लेख कया गया है।

    कम और पनुज म दो पथृक स ा त नह होकर एक ह स ा त है। इनके बीच काय–कारण संबधं पाया जाता है। कम के स ा त का तपादन वै दक काल के अि तम वष (700 वष ईसा पवू) म कया गया। उप नषद म सव थम कम तथा पनुज म क अवधारणाओं को एक स ा त का प

  • 22

    दया गया। सतपथ ा मण म सबसे पहले कम के स ा त का उ लेख मलता है। उप नषद म कहा गया है क कम के फल व प आ मा का पनुज म होता है। कठोप नषद म कहा गया है क मतृक क आ मा नवीन शर र धारण करती है। इसी उप नष म या व ये ने बताया है क मनु य का आगामी जीवन उसके कम वारा नधा रत होता है, िजस कार एक इ ल (Caterpillar) घास का कनारा तभी छोड़ती है जब वह दसूर प ती को पकड़ लेती है, उसी कार यह आ मा भी शर र का याग तभी करती है जब उसे अि त व के लए दसूरे शर र का व प ा त हो जाता है।

    सव थम वेद म यह उ लेख मलता है क आ मा अमर है और शर र नाशवान है। इसी आधार पर वै दक म क अनेक ऋचाओं म यि त के लए अमर व को कामना क गई है तथा पनुज म के बधंन से छुटकारा पाने के लए स कम को मह व दया गया है ।

    उप नषद म सबसे पहले कम के साथ आवागमन और पनुज म क अवधारणाओं को जोड़ कर वै दक काल न कम धारणा को एक स ा त के प म तुत कया गया यहा ं प ट कया गया क कम के अनसुार यि त को परलोक म दःुख–सुख ह नह मलता बि क उसे इ ह ं कम के अनसुार संसार म बार–बार ज म भी लेना पड़ता है।

    महाभारत म कम के स ा त क या या मुख प से वण– यव था के औ च य को स करने के लए क गई है, ऐसा तीत होता है क इस समय तक न न वण के सद य म यह अस तोष फैल चुका होगा क जब कम के आधार पर ह यि त को सभी सखु–दःुख ा त होते ह तब अपने दा य व का परू न ठा से पालन करने के बाद भी उ ह समाज म न न ि थ त य मल हु ई है। इन पर पर वरोधी वचार म सम वय करने के लए यह व वास दलाया गया क वतमान जीवन के सुख अथवा दःुख का इस जीवन के कम से ह स ब ध नह है बि क पनुज म के कमी का भी ार ध के प म हमार वतमान ि थ त से घ न ठ स ब ध है।

    गीता म न काम कम का संदेश दया गया। कम वधम पालन के लए कया जाना चा हए, इि य के वशीभूत होकर नह । गीता म न काम कम, ान और भि त को वग के प म माना गया है। ान और भि त के मा यम से भि त कम–वचन से मु त हो म को ा त कर सकता है। गीता म कमवाद के स ा त को, भा य से जोड़कर देखने का यास कदा प नह कया गया है। वै दक पर परा और उप नषद म कम से संबि धत जो वचार तपा दत हु ए थे गीता म उ ह कह ं अ धक यवि थत प से ततु करके एक अ धक यावहा रक ि टकोण तुत कया गया। महाभारत म जहां इस बात पर बल दया गया था क पवूज म म यि त ने जैसे कम कए ह उसी के फल उसे इस ज म म ा त हो रहे ह, वह ं गीता म यि त के वतमान जीवन के कम को ार ध क अपे ा अ धक मह व दया गया । गीता म कम के स ा त का सार है ''कम येबा धकार ते मा फलेष ुकदाचन।’' अथात ् यि त कम करने म ह अपना अ धकार समझे कमफल क आशा न करे।

    2.2.2 कम और भा य

    मैकडोनल तथा ए.बी. क थ जैसे अनेक व वान का वचार है क कम का स ा त ह ह द ूजीवन म भा य का आधार रहा है। महाभारत म धम याध के कथन से प ट होता है क भा य मनु य के जीवन म सबसे अ धक मह वपणू है और मनु य को बना कसी ीतवाद के भा य को वीकार कर लेना चा हए। डा. राधाकृ णन के अनसुार यह आ ेप क कम स ा त मानवीय वतं ता का वरोधी

  • 23

    है, स य से परे है। वा तव म कम स ा त मानव–सतं ता का वरोधी न होकर यि त को े रत करता है। यि त को हर समय अपने वकास और ग त के लए य नशील होना चा हए। कम ह भा य का आधार है। िजस कार थोड़ी सी अि न पवन के वेग से जव लत होकर शि तशाल बन जाती है, उसी कार यि त अपने कम से भा य को मावशाल बना सकता है। या व य मृ त म उ लेख है क िजस कार एक प हए से रथ नह चलता, उसी कार बना मानव य न के भा य स नह होता।

    इस कार जहाँ यह कहना उ चत है क कम के बना भा य न फल रहता है, वह ं यह भी मीकार करना होगा क कम के स ा त ने लोग को भा यवाद बनने क ेरणा द ।

    2.3 पु षाथ क अवधारणा पर परागत भारतीय जीवन शैल को यवि थत बनाए रखने म ''पु षाथ'' को एक अ त

    मह वपणू अवधारणा के प म देखा जा सकता है। पु षाथ का स ा त यि त तथा समूह के बीच संबधं को स तु लत करने म अपवू योगदान देता है। पु षाथ के प म यि त के व भ न क तओं का उ लेख कया गया है। पु ष म चार बात का समावेश माना गया है– शर र, मन, बु और आ मा। इन सबको मलाकर जो सरंचना होती है उसी का नाम पु ष है। पु ष के वारा इन सभी क संतुि ट के लए जो य न कया जाता है वह पु षाथ है।

    पु षाथ क अवधारणा दो वरोधी पर त ुअ नवाय ल य म सम वय था पत करने म मह वपणू है। ह द ूजीवन म आ याि मकता तथा सांसा रकता को एक दसूरे का परूक माना जाता रहा है। एक ओर मो को जीवन का अि तम ल य मानकर याग को ो साहन दया गया है। दसूर ओर यि त को अनेक पा रवा रक तथा आ थक दा य व स पकर उसे समूह से अ भयोजन करने के नदश दए गए। यि त को सभी क त य को तथा स पणू समाज और व भ न समूह के त अपने उ तरदा य व का न पादन करने के लए ह पु षाथ क यव था का नमाण हुआ।

    2.3.1 पु षाथ का अथ

    पु षाथ का अ भ ाय है उ योग करना या यास करना इस संबधं म कहा गया है क ''पु षरै थत ेपु षाथ:'' िजसका अथ है अपने अभी ट को ा त करने के लए उ यम करना ह पु षाथ है। यहां अभी ट का अथ मो – ाि त से है। अत: मो जीवन का ल य है और इसक ाि त के लए धम, अथ और काम पु षाथ अथवा मा यम ह। नर तर य नशील रहना तथा अपने ल य क ओर अ सर रहना ह पु षाथ है। पु षाथ के मा यम से यि त अपने जीवन के व भ न क त य और दा य व के त जाग क रहता है। उप नषद गीता तथा मृ तय म जीवन के चार आधारभतू क त य के प म ''पु षाथ' का उ लेख ा त है िज ह धम, अथ, काम और मो का नाम दया गया है। इन चार पु षाथ को ा त करके यि त ज म–मृ य ुके ब धन से मु त होता है। डॉ. राधाकमल मकुज ने लखा है क वण और आ म के वमा और उ तरदा य व क पू त मनु य वारा बार पु षाथ के आंकलन पर नभर करती है। गहृ थ जीवन के उ े य अथ और काम ह। ये दोन मो के आधीन ह। इस कार जीवन के सभी मू य –धम, अथ, काम और मो का सम वय होता है।

    डा. काप ड़या ने भी मो को भारतीय जीवन का अि तम ल य बताया है। मानव क वा त वक कृ त को आ याि मक मानते हु ए ह द ू वचारको ने धन उपाजन तथा काम के भावकु पहलओंु को

  • 24

    भी सहज वभाव से संबं धत करके देखा है। पु षाथ के मा यम से ान और आन द का सम य ति ठत कया गया है।

    2.3.2 पु षाथ के कार

    पु षाथ के स ा त के अनसुार चार पु षाथ बताए गए ह– धम, अथ, काम और मो । तुत इकाई म इन चार पु षाथ का ववेचन करके सामािजक यव था म उनके समाजशा ीय मह व को प ट कया गया है।

    1. धम : धम को सभी पु षाथ म सव मुख माना गया है। इसके बना अ य कसी भी पु षाथ को समु चत प से परूा नह कया जा सकता है। धम से ता पय है वह जो धारण कया जा सके, अथात ्जीवन म उतारा जा सके। पु षाथ के प म धम का सामािजक मह व है। येक आ म म यि त को धम के अनु प आचरण करना चा हए धम दो कार का है– सामा य धम व वधम। सामा य धम को अपनाकर यि त आदश आचार सं हता के अनसुार सह माग पर चलता है और संयम, संतोष, उदारता, मा, अ हसंा आ द गणु को आ मसात ्करता है। सामा य धम को ''मानव धम'' भी कहा जाता है। मनु मृ त म सामा य धम के 10 ल ण बताते हु ए कहा गया:

    धृ त : मा दमो लेय ंशौच मि य न ह: । धी वधा स यम ोधो दशक धमल णम ्।। वधम को व श ट धम भी कहा जाता है, य क यह एक वशेष यि त का अपना धम

    है। गीता म उ त है क “ वधम नधन ं ेय: परधम भयावह:'', अथात अपने धम के लए मर जाना भी ेय कर है, ले कन दसूरे के धम का पालन करना एक गंभीर दोष है। वधम के अ तगत वण धम, आ म धम, कुल धम, राज धम, यगु धम, म धम तथा गु धम मुख ह।

    आपि तकाल म सामा य और वशेष धम म कुछ प रवतन कर लेने पर भी यि त दोषी नह माना जाता। आप म का नवाह उतने ह अंश म उ चत माना गया है िजतने अंश म कोई वपि त यि त पर हो। 2. अथ : दसूरा मह वपणू पु षाथ अथ है। अथ श द को अनेक अथ म योग कया गया है। ी पी. एच. भु के अनसुार ''अथ का तातपय उन सभी भौ तक साधन से है जो सासंा रक समृ ा त करने के लए आव यक है। ऋ वेद के अनसुार पु षाथ के प म अथ का ता पय उन सभी भौ तक व तुओं से ह, िजनक गहृ थी चलाने, प रवार बसाने तथा धा मक काय को परूा करने के लए आव यकता पड़ती है।'' डॉ. काप ड़या के अनसुार ''अथ' मानव के ा त करने के सहज– वभाव को इं गत करता है िजसके कारण यि त धन सचंय, धन उपभोग तथा उससे ा त सुख व अ य विृ तय को दशाता है। इन सभी वचार के आधार पर कहा जा सकता है क अथ उन सभी भौ तक पदाथ तथा साधन से संबं धत है िजनके वारा यि त अपना तथा अपने प रवार का भरण–पोषण करता है तथा व भ न सासंा रक दा य व क पू त करता है। 3. काम : पु षाथ म ''काम” का भी मह वपणू थान है। एक पु षाथ के प म ''काम'' का अथ दो प म द शत कया गया है– एक सकुं चत अथ और दसूरा यापक अथ। सकुं चत अथ म काम का ता पय इि य क सतंिु ट से संबं धत इ छाओं से ह। पर तु ह द ूजीवन शलै म यौन सुख को कम मह व दया गया है। यह कारण है क ह द ू ववाह के तीन उ े य म “र त” को सबसे न न

  • 25

    थान दया गया है। धम, तथा स तानो पि त को र त के तुलना मक प म अ धक मुखता द गई है। यापक अथ म काम का ता पय उन सभी इ छाओं से माना गया है जो इि य क स तुि ट से संबं धत ह और जो मनु य को भौ तक सखु क ओर े रत करती ह। “काम” का यह पहलू मानव क भावकुता तथा सौ दया मक अ भवृ तय से संबं धत है। इस अथ म काम के अ तगत वे सभी ल ण समा व ट