vardhaman mahaveer open universityassets.vmou.ac.in/maso-01.pdf · (1,3,10) अंजु...

370
1

Upload: others

Post on 19-Oct-2020

2 views

Category:

Documents


0 download

TRANSCRIPT

  • 1

  • 2

  • 3

  • 4

    पा य म नमाण स म त अ य ो.(डॉ.) नरेश दाधीच

    कुलप त वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा (राज थान)

    संयोजक सम वयक एवं सद य संयोजक डॉ.जे.के. शमा सहायक आचाय, अथशा वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    सद य 1. ो. के. एल. शमा

    आचाय (सेवा नवतृ), सी.एस.एस./एस.एस.एस जवाहरलाल नेह व व व यालय,नई द ल

    2. ो. यू. आर. नाहर आचाय, समाजशा वभाग जे. एन. व. व व व यालय, जोधपरु

    3. डा. आई . पी. मोद सह आचाय (सेवा नवतृ), समाजशा वभाग राज थान व व व यालय, जयपरु

    4. डा. एस. एल. दोषी सह –आचाय (सेवा नवतृ), समाजशा वभाग मो. ला. स.ु व व व यालय, उदयपरु

    5. डा. ( ीमती) र ता दाधीच सहायक आचाय, समाजशा वै दक क या पी. जी महा व वयालय, जयपरु

    6. ो. बी. के. नागला आचाय (सेवा नवतृ), समाजशा वभाग म. द. व व व यालय, रोहतक

    7. डा. अलका शमा सहायक आचाय,, समाजशा राजक य पीजी महा व यालय, दौसा

    संपादन तथा पाठ लेखन लेखन डा. र ता पचेहरा सहायक–आचाय, समाजशा अ वाल पी.जी. महा व यालय, जयपरु

    (1,3,10) अंजु यादव सहायक आचाय, समाजशा राजक य महा व यालय, कोटपतुल

    (8)

    डा. एन.के. भागव सह –आचाय (सेवा नवतृ) समाजशा वभाग मो.ल.स.ु व व व यालय, उदयपरु

    (2) ी सुबोध सहाय सहायक आचाय, समाजशा जे.डी.बी.क या महा व यालय, कोटा

    (9)

    ी अशोक कुमार सहायक आचाय, समाजशा राजक य ड़ू गंर महा व यालय, बीकानेर

    (4) डा. सुमी ा शमा सहायक आचाय, समाजशा वभाग मो. ला. स.ु व व व यालय, उदयपरु

    (11,17,18,19)

    डा. सी. एल. शमा आचाय (सेवा नवतृ), समाजशा वभाग मो. ला. स.ु व व व यालय, उदयपरु

    (5,15,16) डा सुशीला जैन सह आचाय, समाजशा वभाग राज थान व व व यालय, जयपरु

    (12)

    डा. मनीष वमा सहायक आचाय, समाजशा राजक य पी.जी. महा व यालय,कोटा

    (6,21) डा. ट .सी. ट क वाल सह आचाय (सेवा नवतृ) समाजशा वभाग

    राज थान व व व यालय, जयपरु

    (13)

    डा. रंजना जैन सहायक आचाय, समाजशा वभाग राज थान व व व यालय, जयपरु

    (7) डा. पी.सी. जैन सह आचाय, समाजशा वभाग मा.ला.व. मजीवी महा व यालय, उदयपरु

    (14)

    अकाद मक एवं शास नक यव था ो. नरेश दाधीच

    कुलप त वधमन महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    ो. एम.के.घडो लया नदेशक

    सकंाय वभाग

    योगे गोयल भार

    पा य सामाँ ी उ पादन एव ं वतरण वभाग

  • 5

    पा य म उ पादन योग गोयल

    सहायक उ पादन अ धकार वधमन महावीर खलुा व व व यालय कोटा

    उ पादन-पुन:मु ण:अग त, 2012 ISBN: 13/978-81-8496-351-9 इस सामा ी के कसी भी अंश को व.म.ख.ु व.कोटा क ल खत अनुम त के बना कसी भी प म अथवा म मयो ाफ (च मु ण) वारा या अ य पनु: ततु करने क अनुम त नह ं है। व.म.ख.ु व. कोटा के लये कुलस चव व.म.ख.ु व.., कोटा (राज.) वारा मु त एव ंका शत।

  • 6

    MASO-01 वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा (राज.)

    अनु म णक समाजशा के आधार

    इकाई व इकाई का नाम पृ ठ सं या ख ड I. : समाजशा के आधारभूत प इकाई 1. समाजशा : वकास एव ंअ भगम : ऐ तहा सक काया मक एव ं

    अंत व व 7—24

    इकाई 2. आदमी क समाजशा ीय अवधारणा 25—37 इकाई 3. समाज : अथ, वशेषताएँ, समाज और समाज म अंतर 38—55 इकाई 4. सं कृ त : अथ वशेषताएँ, स ांत, अवधारणाएँ 56—80 इकाई 5. सामािजक यव था एव ंसामािजक यवहार 81—98 इकाई 6. सामािजक संरचना एव ं काय 99—119 ख ड II: समाजशा क क य अवधारणाएँ इकाई 7. सामािजकरण अवधारणाएँ, सेपान और स ांत 120—139 इकाई 8. सामािजक समूह कार- ाथ मक एव ं स ांत 140—157 इकाई 9. समुदाय 158—177 इकाई 10. सं था एव ंस म त 178—193 इकाई 11. सामािजक याएं : सहयोगी सहयोग, समयोजन, सा मीकरण

    असहयोगी 194—204

    इकाई 12. ि थ त एव ंभू मका-अवधारणा, ि थ त एव ंभू मका के म य संबधं 205—220 इकाई 13. तमान एव ंमू य : अवधारणा और वग करण 221—248 ख ड III : सामािजक असमानता, नयं ण एव ंप रवतन इकाई 14. नराशा, वचलन एव ं व व अंतरण 249—264 इकाई 15. असमानता एव ंसामािजक तर करण अवधारणा एव ंआधार 265—276 इकाई 16. सामािजक तर करण के स ांत 277—287 इकाई 17. सामािजक नयं ण : अवधारणा, सं थाएं एव ं कार 288—301 इकाई 18. सामािजक प रवतन : अवधारणा कारक, या, उ वकास, वकास,

    ग त, ां त, वृ 302—316

    इकाई 19. सामािजक प रवतन के स ांत 317—329 इकाई 20. अलगाव : अवधारणा एव ं स ांत 330—343 इकाई 21. सामािजक या : अथ, पर भाषा एव ं स ांत 344—369

  • 7

    इकाई–1 समाजशा : वकास एव ंअ भगमन : ऐ तहा सक,

    काया मक एव ंअ त व व इकाई क प रेखा

    1.0 उ े य 1.1 तावना 1.2 समाजशा : एक प रचय 1.3 समाजशा के अ वभाव क पृ ठभू म 1.4 व ान के प म समाजशा का उदय 1.5 समाजशा का वकास

    1.5.1 पि चमी समाज म समाजशा का वकास 1.5.2 जमनी म समाजशा का वकास 1.5.3 ांस म समाजशा का वकास 1.5.4 इं लै ड म समाजशा का वकास 1.5.5 अमे रका म समाजशा का वकास 1.5.6 ाचीन भारत म समाजशा का अ ययन 1.5.7 आधु नक भारत म समाजशा का वकास 1.5.8 वतं ा ाि त के प चात समाजशा का वकास का

    1.6 समाजशा अ भगमन – ऐ तहा सक काया मक 1.6.1 अ ययन ि टकोण 1.6.2 ऐ तहा सक ि टकोण 1.6.3 काया मक ि टकोण

    1.7 समाजशा ीय प र े य 1.8 अ त व व 1.9 साराशं 1.10 श दावल 1.11 अ यास न 1.12 संदभ थ सचूी

    1.0 उ े य सामािजक व ान म समाजशा का एक मह वपणू वषय के प म उदय हुआ ।

    िजसका उ े य समाज का वै ा नक व ध से मब व यवि थत अ ययन करना है । समाजशा एक ऐसा वषय है िजस पर उ प त के पवू भी चतंन होत ेरहे है ले कन इसक कृ त पर चतंन इसक औपचा रक थापना के प चात ह ार भ हुआ । पि चमी देश व

  • 8

    भारतवष म इसके वकास म कन– कन समाजशाि य , दाश नक , वचारक का योगदान रहा है यह समझना है और इस इकाई के मा यम से आपको ात हो जायेगा । उन समाजशा ीय संदभ का िजनम समाजशा क उ पि त हु ई । समाजशा के वकास के व भ न चरण वकास के प चात ् व भ न ि टकोण िज ह न समाजशा को एक दशा दान क । वचैा रक मतभेद से समाजशा के वै ा नक प र े य को अ वीकार कया गया और

    नव वक सत मानवशा वाद प र े य का ज म हुआ ।

    1.1 तावना समाजशा ने अपने वकास काल मे कई चरण से गजुरते हु ए आज पि चमी देश मे व

    भारत वष मे अपने पांव जमा लए है एव ंएक वतं शाखा के प म इसका अ ययन कराया जाता ह । अनेक समाजशा ीय शोध के क थापना हु ई और असं य शोधाथ समाजशा के अ ययन व शोध काय म अ ययनरत है । समाजशा म समय–समय पर अनेक वचारधाराओं, प र े य, उपागम व परैाडाइम के आधार पर मह वपणू अवधारणाओं व स ा त का नमाण कया गया है ।

    1.2 समाजशा – एक प रचय समाजशा समाज एव ंसामािजक जीवन का अ ययन करने वाला व ान है । इस

    अ ययन का ार भ कब और कैसे हुआ, यह बात पाना मुि कल है य क इसके ज म के वषय म बहु त सी ाि तया ं है । इसका कारण प ट है । वै ा नक प त के आधार पर समाज का अ ययन 1 9वीं शता द से ार भ हुआ है ले कन 19वी शता द से पहले समाज व सामािजक सम याओं का अ ययन ह नह ंहोता था ऐसा मानना भी अनु चत होगा । स यता के ार भ से ह मनु य सामािजक घटनाओं को आ चय से देखता रहा है, उनके स ब ध म वचार करता रहा है, ऐसा कोई समाज नह ं है जो सामािजक सम याओं से मु त हो, उन सम याओं के त समाज के सद य के मि त क म कुछ न कुछ जाग कता अव य ह रह होगी । अत: यह कहा जा सकता है क ' 'समाजशा का अि त व चाहे वह ल खत हो या अ ल खत, वै ा नक हो या अवै ा नक हमेशा ह रहा है । राबट बीर ट ड ने अपनी पु तक ' 'द सो शयल ऑडर' ' म लखा है क ' 'समाजशा का अतीत काफ ाचीन या ल बा है । '' इसी कारण गसबट का यह मत भी यथाथ है क ' 'य द मानव वभाव से एक दाश नक म है तो वह वभावत: ह एक समाजशा ी भी है । '' वह वभाव से दाश नक इस अथ म है क वह अपने जीवन से स बि धत सम याओं के बारे म सोचता है उ हे सुलझाने के लए अपना मत य त करता है । एक सामािजक ाणी के प म वह अपने जीवन से स बि धत बात सोचता है, मनन करता है, न कष को य त करता है तभी वह समाजशा ी बन जाता है, चाहे वह कतना भी अवै ा नक प म ह य न हो । मक वर एव ंपेज ने भी अपनी पु तक सोसायट म लखा है क समाज का येक याशील सद य एक समाजशा ी भी है य क समाज म नवास करने के लए समाज क याओं और याओं म ह सा बांटने के लए उसे समाज

  • 9

    के स ब ध म कुछ न कुछ जानकार होनी ह चा हए । इसी जानकार के आधार पर वह अपने सामािजक जीवन के स ब ध के बारे म सोचता है अपने प रवार, पडौस, गांव, नगर, महानगर, रा के बारे म सोचता है कसी समूह का सद य बनता है, धम, पर परा, था, र तया,ँ जन र तया ँव सं कृ त के अनेक त व म वय ंको भागीदार समझता है और जीवन क दन–त दन क सम याओं को सुलझाता है । डॉन मा टनडेल ने लखा है ' 'य द मानव कृ त से

    दाश नक है तो वह वभावत: समाजशा ी भी है, य क सामािजक जीवन उसका वाभा वक उ े य है' ' ।

    1.3 समाजशा के आ वभाव क पृ ठभू म समाजशा का औपचा रक शुभार भ स ासंीसी दश नक ऑग त का ट ने 1838

    म मानव–समाज के अ यन के सं दभ म कया । इसी लए कॉ ट को समाजश का जनक या पता कहा जाता है वसेै तो समाज एव ंमानवीय स ब ध के बारे म अनेक दाश नक एव ंव वान ने अतीत मे अलग–अलग प र े य से व भ न वचार समय–समय पर तुत कय गये ले कन समाज के व भ न अंग एव ंमानवीय तथा सामािजक स ब ध के अनेक तमान का व लेषणा मक अ ययन एक व श ट प म अग त कॉ ट ने ह ार भ कया । कॉ ट क इस पर परा को हरबट पे सर, इमाइल दखुाईम तथा मै स वेबर जैसे समाजशाि य ने आगे बढ़ाया । काल मा स ने भी अपने वचार से समाजशा ीय जगत को समृ बनाया ।

    समाजशा के आधु नक व प को समझने से पहले हम उसके वकास क कहानी समझना अ त आव यक है । लया ेमसन ने अपनी पु तक ' ' द पॉ ल टकल कॉनटै ट ऑफ सो शयालॉजी के पृ ठ 11 पर कहा है क ''समाजशा के व भ न लेखक एव ं वचारक ने अपने समाजशा का उ े य व भ न सामािजक एव ंराजनै तक दशन के आधार पर समझा है। ये सब दशन समाजशा का अंग बन गये है । समाजशा के आधु नक व प के सू पात से पहले समाज को मब एव ं यवि थत प से समझने का थम यास यनूानी दाश नक ने कया । आज से लगभग प चीस सौ वष पहले इन दाश नक ने सामािजक स ब ध क सू म या या तुत क । सबसे पहला साथक यास यनूानी दाश नक लेटो का माना जाता है । लेटो ने अपनी पु तक ''द रपि लक'' मे बताया है क यि त ठ क उसी कार से यवहार करता है िजस कार से समाज उसे यवहार करना सखाता है । मानव यवहार उस समाज क उपज है िजसम क एक यि त ज म लेता है और पलता है । इसी कारण समाज यि त को कसी भी प से यवहार करना सखा सकता है । एक यि त कोई यि त नह ं है इस लए उसे समाज क आव यकता होती है िजससे क वह अ य यि तय क सहायता से अपनी आव यकताओं को परूा कर सके तथा सामािजक ाणी के प म अपने आप को सफल बना सके।

    लेटो के बाद उनके श य अर त ूका नाम भी इस स दभ म काफ मह वपणू है । अर त ु ने अपनी दो पु तक इ थ स व पाल ट स म अपने गु क वचारधारा को आगे बढ़ाया। अरसा ने सबसे पहले मनु य क सामािजक व राजनै तक कृ त को प ट प से वीकार कया और यह बताया क यि त वभाव से ह समहू म रहना पस द करता है ।

  • 10

    अर त ूने यह भी कहा है क जो मनु य दसूर के साथ मल–जुलकर नह ंरह सकता है वह या तो मनु यता के न न तर पर है या उ च तर पर । अथात या तो वह पश ुहै या परमा मा।

    अर त ूने सामािजक स ब ध के त अपने गु लेट क अपे ा अ धक वा त वक ि टकोण अपनाया पर त ुउसक खोज म एक आदश सामािजक यव था का ह प अं कत मलता है ।

    बाद म आगे चलकर अर त ूने अपने गु लेट के कुछ वचार म प रवतन भी कया जैसे लेट के इस वचार को क मनु य समाज क उपज है, अर त ूने बताया क समाज क कृ त यि त के वभाव पर नभर करती है न क यि त समाज पर । अर त ुयह भी

    मानता था क ''प रवार का थान रा य'' के पहले है तथा समुदाय प रवार का ह संकलन है। इस तरह इन दोन यनूानी वचारको ने पा रवा रक जीवन समुदाय र तया,ँ थाएँ, पर पराएं ि य क ि थ त आ द का अ छा वणन अपनी पु तक म कया है । फर भी इनक आधारभूत कमी यह रह है क इन वचारक ने समाज, समुदाय एव ं रा य तथा दशन व व ान आ द 'धारणाओं को आपस म मला दया व इनम प ट भेद नह ंकर पाये इस लए इन धारणाओं को लेकर म पदैा हो गये । इनम से कसी एक क भी वै ा नक प रभाषा भी

    तुत नह ंक जा सक । लेटो व अर त ू के बाद भी अनेक व वान के स ा त म हम समाजशा ीय

    वचारधारा के दशन होत े है । जैसे – लु े टयस (96–55 B.C) ससर (106–43 B.C.) भारकस अरे लयस (121 –180 A.D.) से ट अग टाइन (354–430 A.D.) इन वचारक ने भी र त रवाज, था पा रवा रक जीवन, भौगो लक अव थाओं का यि त तथा समाज पर भाव, अपराध, द ड आ द अनेक सामािजक वषय का व लेषण तथा न पण करने का यन कया है ।

    समाज तथा सामािजक सम याओं के बारे म इसी कार बखरे हु ए व लेषण तेरहवी शता द तक चलत ेरहे । पर त ुये सम त अ ययन कसी वै ा नक, व ध पर आधा रत नह ंथे बि क अ धकाशंत: ऐसे अ ययन क पना व दशन पर आधा रत थे क त ुइस ि टकोण से एक लाभ यह हुआ क पहले जो भगवान को ह सम त घटनाओं का कारण मान लया जाता था, वह स ा त कुछ दबुल पड़ा । सामािजक घटनाओं के कायकारण संबधं को केवल भगवान क म हमाओं या आलौ कक शि त म ह नह ंबि क अ य सामािजक याओं म भी ता कक आधार पर ढूढ़ने का य न कया जाने लगा । अथात 13वी शता द के उ तरा के बाद सामािजक घटनाओं के अ ययन म धम को कम मह व दया जाने लगा इसका थान तक ने ले लया । इस समय उ लेखनीय अ ययन म थामस इ यनूस क पु तक ''डी रजीमाईन

    सीपल'' तथा डा टे (दांत)े क पु तक ''डी मोनारक य म समाज के प रवतनशील त य का अ ययन करने के लए पहल बार सामािजक अ ययन म काय कारण स ब ध को प ट कया गया और इस तरह इन व वान ने अपने अ ययन म यह भी ात कया क वह प रवतन कुछ नि चत सामािजक नयम सामािजक याओं और शि तय वारा सचंा लत होता है । इस तरह हमारे सामने व ान क एक धुधंल सी आकृ त आने लगी ।

  • 11

    15वी शता द म वै ा नक व ध का ीगणेश हुआ और ाकृ तक व ान का े दशन से अलग कर दया गया अब ाकृ तक घटनाओं का अ ययन ई वर को आधार मानकर या कोर क पनाओं के आधार पर न होकर कुछ न कुछ वै ा नक व ध से होना ार भ हुआ । साथ ह समाज क व भ न घटनाओं या सामािजक जीवन के व भ न प को व श ट अ ययन भी आर भ हुआ ग त के येक पग पर सामािजक जीवन था घटनाएँ दन– त दन अ धक ज टल तथा व ततृ होती चल गई । इन ज टल तथा व ततृ सामािजक घटनाओं को समझना तब तक स भव न था जब तक इनको अलग–अलग करके छोटे–छोटे ह स म बाँट कर अ ययन न कया जाता । इस लए सामािजक जीवन के व भ न पहलओंु जैसे राजनी तक, आ थक, धा मक, इ या द का अ ययन अलग–अलग करने का यन कया गया िजसके फल व प राजनी तशा , अथशा मनो व ान, इ तहास एव ं व श ट सामािजक व ान क उ पि त हु ई । इस यगु के वचारक म मा थस, जॉन लॉक स , थॉमस, हा स तथा मा टे य ूआ द के नाम वशेष प से मह वपणू रहे है।

    17वी शता द म अ धकाशंत: सामािजक घटनाओं का अ ययन आ थक घटनाओं के साथ–साथ ह कया जाता था । जै स है रं टन ने इ तहास क आ थक या या'' नामक थं लखा िजसके आधार पर कालमा स व ऐंिजल ने अपनी व व व यात रचनाएँ तुत क । इस शता द के व वान म गारनर एडम ि मथ आ द के नाम वशेष उ लेखनीय थे ।

    19वी शता द के पवूाहन तक यह म चलता रहा अथात इस समय तक अ धकांश दाश नक अथशाि य एव ं इ तहास ने सामािजक घटनाओं का अ ययन आ थक प रि थ तय को के मानकर ह कया इन व वान म एडमभलूर यमून, हसलर, रोशर ल ले आरनो ड हलमैन आ द के नाम मुख प से लये जात ेहै । यह वह समय था –जब व ान अ तत अव था म पहु ँच चुका था ले कन पथृक–पथृक प र े य नधा रत करना क ठन था । इस शता द म वै ा नक व ध का योग हो जाने के प चात भी उनका परूा उपयोग नह ंहो पाया था ।

    इस कार इन व वान ने समाज के व भ न प के अ ययन अपने–अपने प र े य से कया क त ुसमाज का अ ययन सामािजक प र े य क ि ट से नह ं कया । इसके बाद सामािजक घटनाओं को सम प से अ ययन करने वाले व ान ''समाजशा क थम यवि थत व वै ा नक नींव ांसीसी दाश नक व समाजशा ी अग त का ट ने डाल । आपका व वास था क व भ न व ान का वकास एक नि चत म से हुआ है और इस म वकास म समाजशा सबसे आधु नक तथा सबसे पणू व ान है ।

    1.4 व ान के प म समाजशा का उदय समाजशा '' श द गढ़ने का ेय ी का ट को है । अग त का ट अपने समय क

    च लत दाश नक आ याि मक ि टकोण से सामािजक घटनाओं क अ ययन– णाल से स तु ट नह ं थे । इस लए आप एक ऐसे नये व ान का सजृन करना चाहत े थे जो क उस समय च लत आ याि मक तथा दाश नक वचार से पणूतया वमु त हो और जो सामािजक घटनाओं

    का अ ययन वै ा नक ढंग से कर । का ट ने पोिज टव फलॉसफ नामक पु तक म समाज के

  • 12

    अ ययन क एक वै ा नक प त और सामा य परेखा तुत क । का ट ने ार भ म ान क इस नवीन शाखा का नाम भौ तक रखना चाहा, ले कन जब का ट को ात हुआ क यह नाम बेि जयन के सांि यक शा ी अदो फ वेतलेत ने चुरा लया है तो फर इसको बदल कर सन ्1838 म अपने नवीन व ान का नाम ''समाजशा '' रखा । का ट ने ह सव थम ीक व ले टन भाषा के लोगस व सो शयस श द को मलाकर Sociology बनाया व Socius का आशय है समाज एव ं Logos का आशय है व ान । इस तरह दो व भ न भाषाओं के सि म ण से बने होने के कारण इस वषय को दागंल सतंान कहा गया । अपने दोगने पन के कारण जॉन टुअट मल ने इसे आचार– शा (Ethology) का नाम दया । पर त ुआगे चलकर जब हरबट पे सर ने इस वषय से स बि धत अपना थं तुत कया तो उसम इ ह ने समाजशा नाम को ह पस द कया और कहा क ''हमारे तीक क सु वधा और सूचकता उसक उ पि त स ब धी वधैता से कह ंअ धक मह वपणू है । ''इस कार समाजशा श द अि तम प से वीकृत कया गया । इसी व ान को आगे चलकर जॉन टुअट मल ने 1843 म इं लै ड म प र चत कराया । ी हरबट पे सर ने भी इसी तर पर समाजशा का पालन पोषण कया ।

    1.5 समाजशा का वकास

    1.5.1 पि चमी समाज म समाजशा का वकास

    समाजशा का अ ययन सव थम येल व व व यालय (अमे रका) म सन ् 1876 से ार भ हुआ इसके बाद ांस म इसका अ ययन 1889 म शु हुआ । सन ्1707 मे पहल

    बार इं लै ड म समाजशा पढ़ाया जाने लगा । 1920 म पौले ड, 1924 म म , 1947 म समाजशा का पथृक वषय के प म अ ययन वीडन म ार भ हुआ । सन ् 1923 म भारत म तथा सन ् 1947 म ीलंका म पढ़ाया जाने लगा । रंगनू व व व यालय ने सन ्1954 म इस वषय को अपने यहां मा यता दान क । अ य देश म जैसे :–आ े लया, थाईलै ड, इ डोने शया और पा क तान म समाजशा का अ ययन अ य वषय के साथ मलाकर कया जाता है इस तरह समाजशा के वकास म संसार के अनेक देश ने अपना अमू य सहयोग दया । समाजशा क वकास या ा न न ल खत है I

    1.5.2 जमनी म समाजशा का वकास

    जमनी म समाजशा को सामािजक व ान के बीच कोई वशेष थान नह ं दया गया । रेम डऐरन ने लख है क जमनी म पहले समाजशा को उसके व वकोशीय वभाव के कारण अ वीकार कर दया गया । दसूर जगह क भां त यहा ंक समाजशा के े को प रभा षत एव ं सी मत करने का यास कया गया । क त ु जाज स मेल तथा उनके अनयुा यय ने व पा मक समाजशा को वक सत कया और समाजशा को एक व श ट व ान क ि थ त दान करने हेत ुइस बात पर बल दया क समाजशा को केवल सामािजक स ब ध के व प का ह अ ययन करना चा हए । यास के साथ–साथ काल मा स के

  • 13

    वचार वारा े रत होकर ऐ तहा सक या या और सं कृ त के समाजशा म लोग क च लगातार बढ़ती गई जमनी म समाजशा के ती वकास का ेय ी मै सवबैर को जाता है । मै सवबैर ने समाजशा को अ य सामािजक व ान से पथृक एक व ान के प म ति ठत करने का अतुलनीय यास कया । उ होन इस बात पर भी बल दया क

    समाजशा का अ ययन वषय कोई वशेष यि त या समूह नह ंबि क इनके वारा होने वाल सामािजक या है । इसके अ त र त जमनी म टॉनीज, वीरका त रैजल, वॉन वजे के नाम भी समाजशा के वकास म काफ मह वपणू है ।

    1.5.3 ांस म समाजशा का वकास

    समाजशा के जनक अग त का ट ाँस के दाश नक थे िज ह इस वषय क थापना का ेय है । ां ससी सामािजक वचारक म का ट के प चात िज होन समाजशा

    को अ य सामािजक व ान से पथृक करने का य न कया उसम इमाइल दरुखाईम ने समाजशा को सामू हक त न ध व का व ान कहा है । सामू हक त न ध व वे सामािजक तीक ( वचार धारणाएँ भावनाएँ, यवहार के ढंग आ द) है । जो समाज के अ धकाशं लोग के वारा नयं त होते है । ांस म दरु वाइस के अलावा स , मा टेन, मास, टाड जैसे अनेक व वान ने समाजशा के वकास म योगदान दया ।

    1.5.4 इं लै ड म समाजशा का वकास

    का ट के बाद जॉन टुअट मल एव ंहरबट पे सर ने इं लै ड म समाजशा वषय का वकास कया समाजशा क सबसे पहल पु तक 1877 म ि सप स ऑफ सो शयोलॉजी के तीन ख ड का शत करने का ेय हरवट पे सर को ह है ।

    इं लै ड म समाजशा क वकास या ा से जुड ेअ य नाम म मो सस ग सबग, रॉबटसन बकल, बथू हॉ सन, हॉबहाऊस वे तरमाक एव ंकाल मैन हम के नाम वशेष प से उ लेखनीय है । इन व वान ने सामािजक स ब ध एव ंसामािजक याओं के वषय म सामािजक स ा त का न पण कया फर भी समाजशा के वकास क ग त इं लै ड म म द ह रह ।

    1.5.5 अमे रका म समाजशा का वकास

    अमे रका को य द समाजशा का गढ़ कहा जाऐ तो कोई अ त यो कत नह ं है । अमे रका म समाजशा का वकास ती ग त से हुआ । अमे रका म समाजशा क लोक यता का अनमुान इसी से लगाया जा सकता है क वहा ंअ धकाशं वचारक समाजशा ी ह है । इन वचारक मे बानस, पारस स, कोजर रॉस, मकैाइवर, वाड, सोरो कन पाक, बगस, िज मरमैन ऑगबन, नमकॉफ ल डबग ग ड ं स समनर, मटर आ द अनेक नाम मह वपणू व ति ठत है । अमे रकन समाजशा ार भ से ह अ य त समृ रहा है । यहा ं ायो गक

    समाजशा पर अ धक बल दया गया तथा समाज सुधार व सामािजक काय पर अ य धक मा ा म काम कया गया ।

  • 14

    नये समाजशा क ज म थल भी अमे रका ह है यह ाि तकार समाजशा क नींव रखी गयी । समाजशा का एक पथृक वषय के प म अ ययन अ यापक यापन भी सबसे पहले अमे रका म ह शु हुआ । सबसे पहले येल व व व यालय, अमे रका म 1876 से समाजशा ार भ हुआ । यहा ँ यह प ट है क समाजशा अपने वकास के पथ पर ग तशील है और नये स ा त व ि टकोण का नर तर वकास होता जा रहा है ।

    1.5.6 ाचीन भारत म सामािजक अ ययन

    भारत भू म पर समाजशा क नींव अ त ाचीन है– भारत म समाज एव ंसामािजक अ ययन का इ तहास लगभग चार हजार वष परुाना है । हमारे यहा ँ वै दक काल म ह सामािजक जीवन एव ंमानवीय स ब ध का सू म अ ययन कर के व ततृ यव थाओं का नमाण कर लया गया था । भारत म ह सबसे पहले इस तरह के अ ययन क पर परा शु हु ई थी । यह वह समय था जब हमारे यहा ंका सामािजक ान अ य धक अ तत अव था म था और पि चमी देश के व वान भी हमारे यहा ं श ा हण करने आते थे । हमने वण यव था कम, संयु त प रवार ामीण गणत तथा व भ न वग के अ धकार आ द क भी यापक ववेचना करके समाज को संग ठत बनाने म सफलता ा त कर ल थी । भारत के ाचीन समाजशा ी है–मन,ु या व कय, भगृ,ु चाण य आ द । मन ु वारा ल खत मनु मृ त

    चाण य र चत अथशा इसके मह वपणू उदाहरण है । उसी कार वेद उप नषद, धमसू रामायण, महाभारत गीता परुाण मृ तयां आ द थ म ाचीन भारत के लोग के जीवन से स बि धत ाय: सभी वषय मे वचार य त कये गये है ।

    बहु त ाचीनकाल मे हमारे देश म वै दक पर परा को अ धक प ट करने के लए उप नषद क रचना क गई । इस काल तक यह वीकार कया गया क यि तवा दता व भौ तकवा दता वारा समाज अ धक समय तक संग ठत नह ंरह सकता है, इस ि टकोण से दशन व पारलौ ककता को आधार मानकर यि त के कत य का नधारण कया गया । गीता के अनसुार मानवीय आचार का सार त व न वाथ कम है । कम करत े हु ए तुम ई वर को ा त कर सकत ेहो ।

    ाचीन भारत म सामािजक संगठन का आधार वण यव था थी । ऋ वेद के पु षसू त के एक मं म वण के उ पि त का वणन मलता है । इसके अनसुार मा के मु य से ाह ण बाहु से य जांघाओं से वै य व परै से शू क उ पि त हु ई है । इस लए ा मण

    का कम पठन पाठन, पजूा य आ द य का काय शि त से स बि धत था, अ श का योग करना उनक श ा देना जीवन व धन क र ा करना । वै य का काय कृ ष यापार से

    स बि धत काय करना और शू का काय उपर के तीन वण क सेवा करना था । हदार योप नषद के अनसुार मा ने पहले देवताओं म चार वण बनाये और उसके

    आधार पर मनु य म वण बनाय । धमशा , महाका य महाभारत म भी वण व जा त क उ पि त के स ा त का तपादन कया गया । इन वण को अपने वण से बाहर ववाह नह ं करना चा हए । ले कन समय के अनसुार सामािजक यव था क आव यकता अनभुव क जाने लगी जो लोकक याणकार हो ले कन प रवतन को ो सा हत न करे इस लए । अनलुोभ ववाह

  • 15

    को ो साहन दया जाने लगा । इस अनलुोभ ववाह से उ प न स तान को भन ने नई जा तया ँम रखा और वणसंकर जा तय के आपस म मलने से अनेक नई जा तय क े णया ँबन गई । इसके अलावा ाचीन भारत म स अथशा ी कौ ट य ने अपने ''अथशा ' और मन ुने मनु मृ त , शु ाचाय ने अपने नी तशा म सामािजक सरंचना पर वचार कया है ।

    समाजशा ीय आधार पर हम यह वीकार करने म सकंोच नह ं है क मनु मृ त सामािजक ान क एक ऐसी अनमुप कृ त है िजसम यि त तथा समाज वण यव था, जा त यव था, आ म, ववाह प रवार, सं कार, धम जसैी सामािजक सं थाओं क वशद ववेचना क गई है ।

    1.5.7 आधु नक भारत म समाजशा का वकास

    भारत म समाजशा का औपचा रक ार भ सन ् 1919 से माना जाता है जब समाजशा को सव थम ब बई व व व यालय म ोफेसर पै क ग डस क देखरेख म पढ़ाना ार भ हुआ था । इसके दो वष बाद सन ्1921 म लखनऊ व व व यालय म समाजशा को

    मा यता दान क तथा समाजशा के थम भारतीय व वान डॉ. राधाकमल मुकज को समाजशा का ोफेसर एव ं वभागा य नयु त कया गया 1923 म मैसूर एव ंआ ध देश व व व यालय म समाजशा का अ ययन ार भ हुआ । 1924 से गो व द सदा शव धुय ने ब बई व व व यालय म समाजशा वभाग क अ य ता क । ो. धयु ने भारत म समाजशा क वकास या ा को आगे बढ़ाने म मह वपणू योगदान दया ।

    1.5.8 वतं ता ाि त के बाद समाजशा का वकास

    भारत म समाजशा के यापक सार का यगु वतं ता ाि त के बाद सन ्1947 से ार भ होता है जब क एक वतं व ान के प म समाजशा का अ ययन एक के बाद

    दसूरे व व व यालय म तेजी से फैलता गया । उ तर देश म आगरा, वाराणसी, मेरठ, कानपरु, गोरखपरु, कुमाऊ गढ़वाल, अल गढ़, अवध, हेलख ड, बु देख ड, काशी व यापीठ आ द म समाजशा वभाग क थापना क गई तथा इसे एक पथृक वषय के प म पढ़ाया जाने लगा । इस समय उ तर देश के अलावा म य देश म व म, शवाजी, र वशंकर, अवधेश ताप सहं, रायपरु, इ दौर, सागर, जबलपरु तथा भोपाल व व व यालय व राज थान म

    राज थान व व व यालय जयपरु तथा उदयपरु व जोधपरु व व व यालय म भी समाजशा एक पथृक वषय के प म पढ़ाया जाने लगा । बहार म मुज फरपरु, राचँी, पटना समाजशा के मह वपणू अ ययन के बने । इसके अ त र त द ल , गजुरात, नागपरु, बड़ौदा, कनाटक, पजंाब, म ास, कु े व अ य व व व यालय म भी समाजशा वषय को तेजी से लोक यता ा त हु ई । इसके अ त र त अनेक थान पर समाजशा ीय अनसुंधान के क भी थापना क गई । िजनमे जे के इ ट टयटू ऑफ सो शयोलॉजी ए ड सोशन व स लखनऊ, टाटा इ ट यटू ऑफ सोशल साइ सेज, ब बई, इनट यटू ऑफ सोशल साइ सेज आगरा आ द मुख है । जहा ँसमाजशा ीय शोधकताओं के लए शोध क यव था क गई ।

  • 16

    भारतीय समाजशाि य ने भी समाजशा के वकास मे काफ मह वपणू योगदान दया उनम ोफेसर एम. एन. ी नवास, डॉ. राधाकमल मुकज , डॉ. जी. एस. धुय, मजूमदार एव ं मदान, के.एम. काप डया यामचरण दबेु, ए. आर. देसाई, ो. डी. पी मुकज , ीमती इरावती कव, डॉ. बी.आर चौहान, बजेृ नाथ शील, डॉ. एस.पी. नागे , ो. ट .के.एन. यिू नथान, ो. सि चदान द, ो. आ े बताई, ो. ए.के.सरन ो. योगेश अटल, ो. ट .के. ओमन, ो. योगे सहं, ो. के.एल. शमा, रो मला थापर, नीरादेसाई र ना नाइडू मला कपरू आ द अनेक समाजशाि य के नाम वशेष उ लेखनीय है ।

    1.6 समाजशा के अ भगमन ऐ तहा सक, काया मक समाजशा के वकास के बाद हम समाजशा ीय अ भगनम क चचा करगे य क

    जब समाजशा का वकास ती ग त पर था तब इस वषय ने सै ाि तक व वा त वक े म थोड़ी प रप वता ा त क । साथ ह साथ अपनी वचार प त म सावभौ मक तमान और वशेषत: व लेषण के ऐ तहा सक व काया मक ि टकोण को हण कया । ऐ तहा सक, काया मक ि टकोण को जानने से पहले यह जानना आव यक है क अ ययन ि टकोण या

    है।

    1.6.1 अ ययन ि टकोण

    समाजशा ीय अ भगम से ता पय ि टकोण से है । कसी सम या का हम कई उपागम के आधार पर अ ययन कर सकत ेहै । हर उपागम सम या के कसी वशेष पहल ूपर बल देता है । जैसे– य द हम प रवार का वकासवाद उपागम से अ ययन करत े है तो उसके ऐ तहा सक वकास क व लेषणा मक ववेचना आव यक हो जाती है । जब क संरचना मक काया मक उपागम के अ तगत प रवार के व भ न अगं के पर पर स ब ध व समाज म

    प रवार क सं था के भाव क ववेचना होगी । हर समाजशा ी अ ययन करत ेसमय कसी एक वशेष उपागम के वारा भा वत

    होता है । यह इस बात पर नभर करता है । क वह कस घटना का कस ि टकोण से अ ययन करता है । समाजशाि य ने सामािजक यव था सामािजक अव था और उसम होने वाले प रवतन का यवि थत व मब अ ययन कया एव ंवै ा नक स ा त बनाये िजनके लए उ होन व भ न उपागम का योग कया जैसे–ऐ तहा सक काया मक संघष व अ य उपागम आ द ।

    1.6.2 ऐ तहा सक ि टकोण

    जब समाजशा ी अपने अ ययन म ऐ तहा सक प पर बल देकर सामािजक सं था सामािजक या, सामािजक नय ण व उससे उ प न भाव से सामािजक स ब ध का अ ययन करता है तो वह ऐ तहा सक उपागम है । ारि भक समाज वै ा नक जैसे–हेनर मेन मागन, टाइलन, वे टरमाक, जैसे व वान ने इसी अ ययन व ध का योग कया ।

    िजस समय समाजशा का वकास हो रहा था उस समय (सन1्859 ई.) चा स डा वन ने ओ रिजन ्ऑफ पे सज नाम पु तक का शत क िजसम आपने उद वकासीय उपागम

  • 17

    के वारा जीव का उद वकासीय स ा त तपा दत कया था । उद वकासीय उपागम के अ तगत सामािजक घटना के काल के व भ न आयाम म होने वाले प रवतन व वकास क ववेचना होती है । पे सर का कथन है क ''समाजशा उद वकास के ज टल व प का अ ययन करता है । '' उस काल समाजशाि य ने समाज, सं कृ त, सामािजक, सं थाओं, धम पर पराओं, प रवार, ववाह आ द का अ ययन उद वकासीय प त से कया ।

    मागन का नाम इस ि ट से वशेष प से उ लेखनीय है उनका मानना है क मानव जा त का इ तहास अपने उदगम, अनभुव व ग त म एक है । आपके मत म वकासवाद का सरलता से धीरे–धीरे ज टलता म बदलने का स ा त मानव समाज और सं कृ त के वकास म भी सह च रताथ होता है, मागन के अनसुार

    “मानव समाज के उद वकास के तीन तर ह– 1 सव थम मानव सं कृ त आर यक अव था क थी । 2 दसूर अस य अव था । 3 तीसर स य अव था थी ।

    इ होन येक अव था को न न, म य और उ च तर मे बांटा । आर यक अव था के न न तर म मानव क उ पि त हु ई । म य तर पर उसने आग जलाना व मछल का शकार करना सीखा और उ च तर म धनषु आ द का आ व कार कया गया । मागन ने ववाह, प रवार, रा य और सं कृ त का वकास भी इसी स ा त के अनसुार बताया । मागन ने कहा क ववाह व प रवार का उ व पणूत: कामाचार अव था से लेकर एक ववाह प रवार स ब धी पाँच चरण का उ लेख कया है, जैसे–समर त प रवार, समूह प रवार, स डिे मयन प रवार, पतसृ ता मक प रवार और एक ववाह प रवार ।

    सर हेनर मेन मागन क भां त इसी वचार से सहमत थे क आ दम समाज का काननूी आधार र त और नातेदार पर आधा रत स ब ध मे गढ़ा हुआ है । उ होन उद वकासीय स ा त का समथन करत ेहु ए कहा है क मानवीय समाज का इ तहास उ तरो तर ग त को कट करता है अथात नातेदार के आधार पर ग ठत द त ि थ त वाले समाज धीरे–धीरे काननू

    स मत अनबु ध पर आधा रत आधु नक कार के उ नत समाज म बदलत जाते है । टायलर उद वकासीय स ा त के णेताओं म से रह है । उ होने इस स ा त का

    योग मु य प से धम और सं कृ त के े म कया । धम के े म उ होन जीववाद के स ा त का तपादन कया िजसे उ होन आ दम धम के आ य व प क सं ा द ।

    एडवड वे टरमाक टेन म समाजशा क नींव डालने वाले एक मुख यि त थे । वे टरमाक अपनी सु स पु तक मानवीय ववाह का इ तहास (1891) के लए वशेष प से जाने जात ेहै । इस पु तक म उ होन इस वचार का ख डन कया है क हमारे आ य मानवीय पवूज पणूत: लै गक प से कामचार थे जैसा अ य उद वकासीय ने माना है । वे टरमाक डा वन के इस मत का समथन करत ेहै क प रवार क उ पि त पु ष क ई या क भावना के कारण हु ई । पु ष का वभाव ई याल ुहै । वह ी पर स प त क तरह अ धकार जमाता है ।

  • 18

    इ ह ं कारणो से वह ी को दसूरे पु ष के साथ स ब ध बनाने नह ं देता है । िजसके प रणाम व प एक ववाह प रवार क यव था मानव समाज म च लत हु ई ।

    वे टरमाक ने अनेक समाज क सं थाओं के सहस ब ध क तुलना उन सामािजक यव थाओं के संदभ म नह ंक िजनसे वे जुड़ी हु ई थी, अ पत ुइन यव थाओं से पथृक रखकर तुलना क । इस कारण इस व ध क बाद म कटु आलोचना हु ई । इस व ध का थान बाद म सन ्1920– 1930 के बीच कायवाद उपागम वारा ले लया गया िजसके आधार पर था नक समुदाय का अ ययन एक कायशील स पणूता के प म कया जाता है I

    1.6.3 काया मक ि टकोण

    आधु नक समाजशा म संरचना मक– काया मक ि टकोण या व लेषण क धानता बढती जा रह है । संरचना व काय का अ ययन एक दसूरे के स दभ म ह हो सकती है जैसे हमारा शर र, हाथ, परै, आँख, नाक, कान आ द व भ न अंग का केवल एक ढेरमा नह ं है बि क एक यवि थत प ह सावयव कहलाता है । शर र के इन नमाणक अंग के एक सल सले से यवि थत होने के फल व प जो व प कट होता है वह सावयव संरचना ह । साथ ह इन सब अंग का काय एक दसूरे से ब कुल पथृक नह ं है बि क एक का काय दसूरे के काय से स बि धत है । इन अंग वारा कए जाने वाले काय तथा उनम पाये जाने वाले काया मक स ब ध के फल व प ह संरचना का अि त व स भव होता है । इसका अथ यह है क संरचना व काय को एक दसूरे से पथृक नह ं कया जा सकता और परेू शर र को इसी संरचना व काय के स दभ म ह समझा जा सकता है ।

    उपरो त बात समाज पर भी लाग ूहोती है । समाज क भी अपनी एक संरचना होती है िजसका नमाण अनेक सामािजक इकाइय वारा होता है, इनम से येक इकाई का कोई ने कोई काय होता है और उनम एक काया मक स ब ध पाया जाता है । इस कार सामािजक संरचना व काय म घ न ठ स ब ध होता है । समाज या उसके कसी अंग का यथाथ अ ययन करने के लए यह उ चत समझा गया क उसका अ ययन संरचना और काय के ह स दभ म कया जाए समाजशा म इसी को संरचना मक– काया मक ि टकोण कहत ेहै ।

    समाज व शर र क तुलना उतनी ह परुानी है िजतनी वचारधारा । ऐ तहा सक ि टकोण से सव ी हरबट पे सर तथा कैफल को इस कार तुलना मक अ ययन के लए

    मा यता द जाती है । इस कार के तुलना मक अ ययन के वारा जी वत ा णय व समाज क अयाि क कृ त को दशाना था ।

    इन दोन के वचार से सव थम ए. ड ल ू . माल तथा सी.एच.कूले भा वत थे । समनर तथा केलर भी यरूोपीय वचारधारा से भा वत थे । इन सभी व वान ने सामािजक सावयव क तुलना जैवक य सावयक से करत ेहु ए कायवाद के वकास म योगदान दया ।

    ी रैडि लफ ाउन का व वास है क ांस म ी इमाईल दखुाइम ने अपनी पु तक ''समाज म म वभाजन'' और ''समाजशा ीय प त के नयम'' म काया मक वचारधारा को एक ठोस प दया है ।

  • 19

    जमनी व इं लै ड म भी कायवाद वचारधारा च लत थी । जमनी म ी वानवीज ने कायवाद वचारधारा को अपनाया, जब क इं लै ड म मै लनोव क तथा रैडि लफ ाऊन ने

    सं कृ त के अ ययन म कायवाद ि टकोण को वीकार कया । इटल म परेटो ने काया मक वचारधारा को हण कया ।

    वतीय महायु से पहले तक िजतने अ ययन हु ए वे सब काय को संरचना का एक नभरशील त व मानकर हु ए । पर त ुबाद के अ ययन म बहु त प रवतन हु ए और ि टकोण काया मक न रहकर संरचना मक– काया मक हो गया िजसे लोक य बनाने का ेय मटन

    पारस स व लोवी आ द को है । संरचना मक– काया मक ि टकोण को लोक य बनाने म िज ह ने अपना योगदान

    दया उनके ि टकोण इस कार है– हरबट पे सर डा वन क ाणीशा ीय खोज के आधार पर सामािजक संरचना व

    समाज क व भ न इकाईय के काय के बीच पाये जाने वाले सहस ब ध व अ तः नभरता को प टत: दशाने का यन कया । उनके ि टकोण का आधार यह है क सामािजक संरचना

    और ाणीशा ीय संरचना म अनेक बात म समानताएँ ह उ होन कहा क सामािजक संरचना के व भ न अंग िजस कार के काय करत े ह उसी के अनसुार सामािजक संरचना को एक नि चत व प ा त हो जाता है जैसे–य द समाज क आ थक सं थाएँ इस कार याशील है क उससे पूजंीप तय को लाभ होता है तो उस समाज म पूजंीवाद आ थक संरचना का वकास होगा और इसका भाव स पणू सामािजक संरचना पर पड़ेगा ।

    इमाइल दखुाइम को समाजशा के कायवाद प र े य के शु आत करने का ेय दया जाता है,। इस प र े य क आधार शला दखुाईम के समाज के बारे म इस सोच वचार से ार भ होती है क वह या चीज है जो सामािजक यव था को बांधे रखती है और कस कार

    सामािजक यव थाओं का संगठन और काय संचालन स पणू यव था के भ न कार के प रणाम उ प न करती है ।

    दखुाइम ह पहले यि त थे िज ह न ''सामािजक काय'' क अवधारणा का योग एक सु प ट स ा त के प म कया है य य प इससे पहले '' काय' क अवधारणा का वशेषत: हरबट पे सर क कृ तय म योग हुआ है ।

    सामा यत: टालकॉट पास स को संरचना मक काया मक स ा त का सवा धक एक मुखर स ा तकार माना जाता है क त ुउनके श य और बाद म सहकम मटन ने त काल न च लत सरंचना मक– काया मक म कुछ मह वपणू सशंोधन एव ंप रवधन कये है । उ होन

    सव थम इस स ा त आ तवाद एव ं कमजोर प का उजागर कया और काया मक व लेषण क तीन मूलभूत थापनाओं जैसे समाज क काया मक एकता, सावभौ मक कायवाद और काया मक त व क अप रहायता क कटु आलोचना क । उ ह न कहा क कायवाद और काया मक थापनाएं अमूत और सै ाि तक ा क पनाओं पर आधा रत होने

    के कारण अनभुव स नह ं है । इन कमजो रय के कारण बाद म मटन ने सरंचना मक काया मक व लेषण का अपना एक पेराडाइम तुत कया । िजसम उ होन मुख प से काय व दु काय य त और अ य त बहु काय, अकाय, काया मक वक प तथा

  • 20

    संरचना मक समानाथ , अ य शत प रणाम आ द बात को सि म लत कया । इस स दभ म उ होन काय श द क वशद या या क और इसके कई अथ–संदभ म योग के साथ समाजशा क ि ट से उपयु त अथ पर काश डाला आधु नक अमे रका अ णी समाजशा ी म टालकॉट पारस स क गणना एक द गज स ा तकार के प म क जाती है । उनका समाजशा ी स ा त िजसे बहु धा ''संरचना मक कायवाद के नाम से जाना जाता है ।

    पारस स ने अपनी थम पु तक ''सामािजक या क संरचना (1937) म बताया है क कोई भी णाल तब तक जी वत रह सकती है, जब तक वह चार काया मक, आव यकताओं क पू त करती रहती है । अथात येक णाल ( स टम) के जी वत रहने के लल चार काया मक आव यकताओं क पू त करना आव यक है । 'ये आव यकताएँ है–

    1. अनकूुलन (भौ तक पयावरण के साथ सामंज य) 2. ल य उपलि ध (ल य नधारण) अथात तिृ ट ाि त हेत ुससंाधन का चुनाव तथा उ ह

    संग ठत करना । 3. एक ीकरण (आ त रक सम वय था पत करना तथा भ नताओं म उ चत तालमेल

    बठैाना) 4. तमान अनरु ण (सापे क था य व ा त करने के लए काय के स पादन के लए

    पया त ेरणा जा त करना) पारस स क सवा धक स वग करण योजनाओं म से यह ए.जी.आई.एल मॉडल के नाम से जानी जाती है । उपयु त व णत तीन णा लयां (सां कृ तक, यि त व, जवैक य भौ तक) एक व श ट

    पाकार का नमाण करती है िजसे पारस स ने या क सामा य णाल कहा है । पारस स ने इन णा लय को भी चार उप णाल म वग कृत करके सौपा नक म म लगाया । इस सं तरणा मक यव था को दशाने के लए उ होन इ तहास के उद वकासीय स ा त का योग कया । पारस स क च समाज म यव था बनाऐ रखने क थी और उस सम या को जानने व खोजने म थी क वे कौन से त व है जो सामािजक यव था को बांधे रखत ेहै ।

    अ त म पारस स ह वह यि त थे िज होन आधु नक कायवाद प र े य क नींव रखी । पास स ने मटन, के.डे वस.ड य ूमरेू जैसे अपने अनेक श य को भा वत कया है जो बाद म वय ंजाने माने स ा तकार के प म ति ठत हु ए है । सन ्1980 के दशक म पास स के स ा त को पनुमु यांकन कर उ ह ' 'नव कायवाद का नाम दया गया है ।

    1.7 समाजशा ीय प र े य सामािजक घटनाओं को एक व श ट प र े य से समझाने का यास सव थम च

    दाश नक अग त का ट से माना जाता है । कसी शा के स दभ म प र े य का यह अथ है क उसके अ ययन के व लेषण क इकाई को एक वशेष ि ट से देखा जाए । कसी नि चत उ े य के लए संगत प र े य वह होता है जो उस उ े य के साथ कोई पणू या अि तम तब ता नह ं रखता । व लेषण क वषयव त ु के त प र े य क बहु पता के

    प रणाम व प कसी अ ययन म अनेक स दाय ज म लेत े है । एक ह प र े य से स बि धत व भ न स दाय एक दसूरे के सहायक होते है ।

  • 21

    एले स इंक स ने समाजशा म वकैि पक उपागम का वणन करत ेहु ए लखा है क ''वै ा नक इस मसले पर वभािजत रहे है क या समाजशा व ान हो सकता है, इसक प तया ंसहानभुू तपणू समझ क होनी चा हए अथवा त य खोजकर लाना चा हए । इन न के वषय म समाजशा ी जो नणय लेत े है उसका समाजशा ीय जाँच के कार पर गहरा भाव पड़ता है'' इस कार समाजशाि य को अनेक वचैा रक स दाय म वभािजत कया जा

    सकता है । इनम मु य वै ा नक प र े य और मानवीय प र े य वाले है। वै ा नक प र े य को अपनाने वाले का ट पे सर, दखु म, मै स वेबर व पारस स

    आ द है । बाद म समाजशा ीय अनशुासन म एक अस तोष पदैा हुआ और औ यो गक ाि त एव ंपनुजागृ त के प रणाम व प उ प न वातावरण म मानव का अ ययन मह वपणू बन गया। नए प रवेश म वै ा नक प र े य से भा वत समाजशा अनेक सामािजक और मानवीय सम याओं का समाधान करने म अ म रहा । फलत: एक नए प र े य का ज म हुआ िजसे मानवीय प र े य कहा गया । सी.राइट म स, होरो वज, गो डनर, मा टन नकोलस पीटर बगर, हेरा ड गार फ कले आ द समाजशाि य ने इस प र े य को अपनाया ।

    1.8 अ त व द वगत कई वष से व ानवाद वचारधारा का समाजशा म भु व रहा है । ाय:

    सभी समाजशाि य ने वगत दशक म व ान के समाजशा ीय व लेषण के लए मह वपणू माना ह व ानवाद भौ तक य ा प पर आधा रत है िजसम यह माना जाता है क सामािजक घटनाओं को भौ तकशा के सै ाि तक प र े य म ह देखा समझा जा सकता है । पछले कुछ वष म नव वक सत मानववाद समाजशा के उपागम ने व ान और उसक प त को कई कारण से अ वीकार कया है ।

    चा स राइट म स एक आधु नक अमे रक (रे डकल) उ वाद समाजशा ी ह िज होन राजनी त म उ वामप का समथन कर यथाि थ तवाद समाजशाि य वशेषत: समाजशा के द गज कहे जाने वाले संरचना मक– काया मक समाजशा ी टालकाट पास स क कटु आलोचना क है । उ होन मानवतावाद प र े य को अपनाकर समाजशा को भा वत कया । म स के अनसुार एक मानवतावाद समाजशा ी हमारे जीवन के सामािजक, यि तगत और ऐ तहा सक आयाम के बीच स ब ध था पत करता है जो अमूत अनभुववाद और महत ्स ा त दोन का समान प से आलोचक होता है ।

    म स ने अपनी पु तक 'समाजश ीय क पना'' म समजाशा म बहु च लत उपागम , जैसे महत स ा त वाल पर परा और शु अमूत अनभुववाद पर परा दोनो क समान प से आलोचना क है । महत स ा तकार जहा ं यापक सामा य नयम क खोज म रत रहत े है । और अनभुवपरक े ण को कोई मह व नह ं देते, वहा ं दसूर ओर अमूत अनभुववाद व वान समाज को एक शु व तु न ठ घटना मानकर इसके उ े य से कोई सरोकार नह ंरखत े। अनभुवपरक समाजशाि य के लए आकड़ ेह सब कुछ होत ेहै और इ ह ंके आधार पर वे घटना को सह गलत स करना चाहत ेहै । म स ने आधु नक व ानवाद प तय को मा आड बर क सं ा देत ेहु ए इनके थान पर सामािजक दा य व और वा त वक

  • 22

    मानवतावाद सरोकार को मुखता द है । अमर क समाजशा ी गो डनर मु य प से कायवाद प र े य और मा सवाद के आलोचक के प म जाने जाते है । वे मा स, वेबर, कफट स दाय के आलोचना मक स ा त और सी.ड ल.ू म स के उ वाद समाजशा से भा वत रहे है । अपने लेखन म गो डनर ने तट थ व ान, नै तक वचन और राजनी तक

    ‘ तब ता म च लत अ तर को अ वीकार कया । अमर क समाजशा ी हेरा ड गार फंकल ने तीका मक अ तः यावाद के सामा य

    ढाचँ म 'नजृातीयप तशा को वक सत कया । सन ्1967 म इस वषय क थम पु तक ' टडीज इन एँथनामेथॉडालॉजी लखी । उ ह ने समाजशा के चरप र चत ''संरचना मक–काया मक'' प र े य के वरोध म तक तुत कर ढवाद समाजशा को नकारा । इस

    उपागम का मु य उ े य उन व धय का पता लगाना है जो यि त त दन के जीवन म अपनी याओं ववेचन करने तथा उनका अथ ढंूढने म कया करत े है । गार फंकल ने बाहय सामािजक यव थाओं के भाव पर केि त संरचना मक व काया मक उपागम क कटु आलोचना क है । नजृातीय प तशा को मानने वाले सामािजक अ तः या के मा यम से िजस सामािजक यथाथ का नमाण होता है उसके अ ययन पर बल देत े है । पर परावाद या वै ा नक समाजशा ी सामािजक यथाथ को द त मानता है । िजसके अ तगत सामािजक संरचना का ि थर ि टकोण मुख प से उभरता है । जब क नजृातीय प त शा के वतक सामािजक संरचना को एक प रवतनशील घटना मानत ेहै । इसी कारण ड सेल ने कहा है क संरचना मक– काया मक ि टकोण क तुलना नाटक के व भ न पा से क जा सकती है जो अपनी याओं को उस पा के अनु प करता है िजसका वह अ भनय कर रहा है । जब क इथनोमेथडालॉजी के वतक इसक तुलना खेल के मैदान म खला ड़यो क उन याओं से करत ेहै । जहा ंहर खलाड़ी खेल को एक व श ट ढंग से खेलता है ।

    अत: समाजशा वगत दो तीन दशक म एक नवीन व ाि तकार ि टकोण तुत करने म सफल है िजसके अ तगत वै ा नक ि टकोण को चुनौती दान कर सामािजक यथाथ को समझने के नये आयाम तुत कए गये ।

    वै ा नक प र े य के समाजशाि य के ि टकोण को ए थनी ग ड स ने अपनी पु तक ''समाजशा '' म योजनाब तर के से तुत कया जो न न रेखां कत है–

    समाजशा के मुख सै ाि तक ि टकोण

    नोट: टूट रखाऐं अ य भाव को दशाती ह ।

  • 23

    1.9 सारांश सामा यत: समाजशा का अतीत बहु त ल बा है, क त ुहमारा समाजशा से प रचय

    150 वष परुाना ह है य क समाजशा श द से प रचय 1838 म ांसीसी दाश नक अग त कॉ ट ने कराया । उ होन बताया क समाजशा समाज का मब और संग ठत अ ययन करने वाला व ान है ।

    समाजशा का वकास ाचीन लेख , लेट क पु तक ' ' रपि लक' ' अर त ूक पु तक इं थ स ए ड पॉ ल ट स लु े टयस, ससरो और से ट अग टाइन क कृ तय म मलता है । वतीय चरण के वकास म थामसहा स जॉनलॉक, स मा टेर य ूक कृ तय म भी सामािजक जीवन से स बि धत वचार तुत कए गये है ।

    भारत म भी समाजशा क उ पि त व वकास म समाजशाि य का वशेष योगदान रहा है । भारत म ाचीन थ म मन ु वारा र चत ' 'मनु मृ त ' ' चाण य र चत अथशा म व वेद, उप नषद, परुाण, महाभारत गीता आ द थ म भी भारत के लोग के जीवन से स बि धत वचार य त कये गये है । आधु नक भा�