झरोखा€¦ · कावय झरोखा - ३ भगवान ने दी जो...

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निया को िई िर से देखिे का... झरोखा लेख योगदानकरा मय र पाटिल, ईशा गावस, जयोतिा मसो परबगावकर, वेलेनस फराज, टदवया के रकर, रेशमा मांेकर काशक टिंदी ववभाग, गणपत पासकर कॉलेज ऑफ एजय केशि, िरमल ल प ष: ७, सबसे पहले काशशर: २६ शसरंब२०१८

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  • दनुिया को िई िज़र से देखिे का...

    झरोखा

    लेख योगदानकराता

    मयुर पाटिल, ईशा गावस, जयोत्सिा मसो परबगावकर, वेलेनससी फराज, टदवया केरकर, रेशमा मांदे्कर

    प्रकाशकटिदंी ववभाग, गणपत पाससेकर कॉलेज ऑफ एजययूकेशि, िरमल

    कुल पषृ्ठ: ७, सबसे पहले प्रकाशशर: २६ शसरंबर २०१८

  • छोटी सी नाजकु कशल .....ककसी का सवाल बन गईरो ककसी का खयाल बन गईछोटी सी नाजकु कशल...और किर गलुाब बन गई

    ननखररा रबाब बन गईगज़ल की ककराब बन गईछोटी सी नाजकु कशल...और किर गलुाब बन गई

    आगँन की गडु़िया अब देखोब़िी सी शिसाल बन गईछोटी सी नाजकु कशल...और किर गलुाब बन गई

    घर की नवाब बन गईआशशक का खवाब बन गईहसीन िाहराब बन गई...छोटी सी नाजकु कशल... और किर गलुाब बन गई मयुर पाटिलबी. ए. बी.एड. दवीरीय वरता

    छोिी ससी िाजुक कलल...

    झरोखा - २कावय

    कजरारी आखँों वालीनीली नहीं पर काली-कालीउन आखँों िें थी शिता और हयाजो बबन बोले सब कुछ कर देरी थी बयांपरेशाननयाँ जब िझु पर थी आरीरब वह िझु ेअपने सीने से लगारीकिर अपने पयारे-पयारे हाथों से िझु ेवह अपना गोद िें सलुारीऐसी थी िेरी पहली िोहबबर पर आज न जाने िझु ेअकेला छो़िकरवह चली गई है कहाँउसके बबना सनुा-सनुा सा लगरा है ये जहाँउससे िझु ेबस इरना ही कहनाकक िझु ेशसिता उसके साथ है रहना....िेरी पहली िोहबबरकोई और नहीं, वो थी िेरी पयारी िाँजजसके चरणों िें था सारा जहाँ ईशा गावसबी. ए.बा.एड. दवीरीय वरता

    मेरी पिली मोिबबत....

  • झरोखा - ३कावय

    भगवान ने दी जो सरुक्षिर जगहवो है िेरी िाँ की कोख

    ककरनी नाजकु होरी है वह जगहककरनी होरी है... खुशशयाँवहाँ रहकर िजा लेने कीवहाँ रहकर खेलने की!

    वहाँ िनेै सपना देखा थाबेटी बनकर घर िें खशुशयाँ बबखेरने काअपनी ररुली भारा से िन हर लेने काबदले िें केवल पयार बाँटने का

    िैंने वहाँ एक सपना देखा खाएक बहन बनने काराखी के बंधन को ननभाने काएक बहना का करतावय ननभाने कािैंने वहाँ एक सपना देखा थाएक िाँ बनने काअपनी ििरा के आचँल से िारतृव बबखेरने काएक िाँ का करतावय ननभाने का

    िैंने एक सपना देखा थाएक अदयापपका बनने कापवदयारथतायों का भपवषय संवारने काएक शशषिक का करतावय ननभाने का

    ककरने सपने देखे थे िैंनेिाँ की कोख िें रहकरककरने सपनों को िझु ेसच करना था इस संसार िें आकर

    िेरे सपनों को आपने कयों कुचल ददया?इस संसार िें आने से पहले िेरा भपवषय आपने कयों धवसर ककया?िेरे इस संसार िें आने से पहले

    कया इस सब का एक ही िरलब है?कयोंकक िैं िाँ की केख िें पलरी बेटी थी, बेटा नहीं.....

    जयोत्सिा मसो परबगावकरबी. ए.बी.एड. प्रथि वरता

    अधुरा सपिा...

    आरी है गणेश चरुथथी जबसब होर ेहैं घर िें इकठ्ा रबअगर कोई काि न बने ककसीसेरो खति होरी है बार झग़ि ेसेरयैारी होरी है ब़िी धूि-धाि से

    गणेश जी आर ेहैं ब़ि ेआराि से।आगिन होरा उनका ब़िी ही श्रद्ा सेसुबह सभी करर ेहैं पूजा, चेदन और िूल चढ़करपाँच ददनों की पाँच रंगीन बनरी है रंगोशलयाँबचचे बुढे़ लेर ेहैं िजा िुलझ़िी और आनरशबाजजयों काल़िके लेर ेहैं िजा आररी और भजन काल़िककयाँ लेरी िजा िुग़िी और नाच-गाने काहोरा है घर पर गणेश जी का आशीवातादरहरा घर पर घूप और अगरबतरी का वास

    चरुथथी के पाँच ददन बीर जार ेहैं खुशी और िजे सेपहले ददन का झग़िा भी बदल जारा है पयार िें चरुथथी के पाँच ददन ददखरा है घर भरा-भरागणपनर पवसजतान के बाद घर लगरा है सूना-सूना

    वेलेनससी फराजबी. ए. बी.एड. दवीरीय वरता

    िमारे घर की गणेश चतरु्थी

  • झरोखा - ४लेख

    गोवा का लशगमोतसव

    गोवा का शशगिोतसव हर गोवा वासी को उतसाह और उिंग से भर देरा है। शशगिोतसव हर साल होली के दसूरे ददन से गु़िी प़िवा रक िनाया जाने वाला 14 ददन का उतसव है, जजसिे हर ददन गोवा के अलग-अलग गाँवों से लोगों दवारा छोटे जुलूस के रूप िें शहर के िुखय सथानों पर उतसव िनार ेहै। शशगिोतसव को हि काननतावाल का दहनदसुरानी संसकरण कह सकर ेहैं. भजन-कीरतान के अलावा पौराणणक कथाओं पर आधाररर झाँककयाँ भी जुलूस िें शाशिल होरी हैं. कहा जारा है कक पहले लोग पौराणणक कथाओं पर आधाररर झाँककयाँ के सथान पर पौराणणक कथाओं पर आधाररर नाटक करर े हुए चलर ेथे।

    शशगिोतसव का गोवा की आजादी से वही संबंध है जो लोकिानय नरलक ने गणशोतसव का भारर की आजादी की ल़िाई से था दरअसल गोवा के सवारंत्ररा संगाि सेनानीयों ने लोगों को जो़िने के शलए शशगिोतसव को पुरतागाशलयों के सलाना कॉननतावाल की रजता पर रचा गया राकी पुरतागाशलयों को लगे कक उनकी ही संसकृनर को आगे बढ़ाया जा रहा है।

    सभी के ददलो ददिाग िें गोवा की छपव पाशचातय संसकृनर के हैंगओवर से अलसाए शहर की रहरी है. पर यहाँ आने से अलग ही नजारे का दशतान होरा है। भाररीय संसकृनर के रंग िें रंगा गोवा अपनी एक अलग पहचान बनारा है।

    भजकरभाव से झाँककयों को प्रणाि करर ेगोवावाशसयों के बीच िें िेरी नजरे उस गोवन को ढंूढ रही थी जो राजकपूर की बॉबी किलि के पे्रिनाथ के ककरदार की ररह बार-बार िें दहप फलासक से रि ननकालकर पीरा है और सही-गलर अगें्जी िें िचछछी, नाव, और िुहबबर की बारें कररा है, लेककन यह रो शशवाजी िहाराज का गोवा है, िरा्ठछी संरों का गोवा है, जो िहाराषट्र के ककसी भी आि कसबे के जैसा ही था . जुलूस को देखने आये हजारों लोगों के चालचलन, कपड,े बारचीर और जीवन, पवशवासों िें िैं पुरतागाल ढंुढ रहा था, पर हैरान की बार थी की वह कहीं नहीं था। लगभग 400 वरता राजय करने के बाद भी पूरतागाली गोवा िें केवल चचचों के आककता टेकचर के शसवा कुछ नहीं बचा है. कयोंकक गोवावासी अपनी शिट्ी से जु़ि ेहुए हैं, अपनी परंपरा को जजनदा रखे हुए हैं। रभी रो केसररया रंग के ककसी सलैाब की ररह आर ेशशगिोतसव का जुलूस अप्रनरि और अपवसिरणीय है।

    टदवया केरकरबी. ए.बा.एड. प्रथि वरता

  • झरोखा - ५नाटय रूपानररण

    (धितादास असवसथ बै्ेठ थे, सािने बै्ेठ रचत्रगपुर बार-बार चशिा पोंछ हुए रजजसटर का पनना पलट पलट कर देख रहे थे। आणखर िें उनहोंने खींझकर ररशसटर इरने जोर से बेद ककया कक िकखी चपेट िें आ गई। उसे ननकालर ेहुए वो बोले - )

    चचत्रगुपत – “िहाराज, ररकॉडता िें सब ्ठछीक है। भोलाराि के जीव ने पाँच ददन पहले शरीर तयाग ददया और यिदरू के साथ इस लोक के शलए रवाना भी हुआ था, पर यहाँ अभी रक नहीं पहँुचा।”यमराज – “और वह दरू कहाँ गया?”चचत्रगुपत - िहाराज - वह भी लापरा है।(इसी सिय दवार खुलरा है और यिदरू बदहवास-सा वहाँ आरा है। उसका चेहरा परेशानी और भय के कारण और भी पवकृर हो या है।)चचत्रगुपत – (रचललाकर) अरे! रुि कहाँ थे इरने ददन? भोलाराि का जीन कहाँ है?यमदयूत – (हाथ जो़िकर) दयाननधान, िैं कैले बराऊँ कक कया हो गया? आज रक िैं धोखा नहीं खाया, पर इस बार भोलाराि का जीव िुझ ेचकिा दे गया। पाँच ददन पहले जब जीव ने भोलाराि की देह तयागी, रब िैंने उसे पक़िा और इस लेक की यात्रा प्रारंभ की, नगर के बाहर जसेै ही िैं उसे लेकर एक रीव्र वायु ररंग पर सवार हुआ वसेै ही वह िेरे चंगुल से छुटकर न जाने कहाँ गायब हो गया। इन पाँच ददनों िें िैंने सारा ब्रहिाणड छान डाला, पर वह कहीं नहीं शिला।धम्मराज – (क्ोध से) िुखता जीवों को लार ेलार ेबुढ़ा

    हो गया, किर भी एक िािूली बूढे़ आदिी के जीव ने रुमहें चकिा दे ददया।यमदयूत – (शसर झुकाकर) िहाराज, िेरी सावधानी िें पवलकुल कसर नहीं थी। िेरे उन अभयसर हाथों से अचछे-अचछे वकील भी नहीं छुट सके, पर एस बार रो कोई इंद्रजाल ही हो गया।चचत्रगुपत – िहाराज, आजकल पथृवी िें इस प्रकार का वयापारबहुर चल रहा है। लोग देसरों को िल भेजर ेहैं और रासर ेिें ही रेलवे किताचाररयों दवारा उ़िा शलए जार ेहैं। होजरी के पासतालों के िोजे रेलवे.... अिसर पहनर ेहैं। िालगा़िी के डडबबे के डडबबे रासरें िें कट जार ेहैं। एक बार और हो रही है राजननैरक दलों के नेरा पवरोधी दलों के नेरा को उ़िाकर कहीं बंद कर देर ेहैं। कहीं भोलाराि के ककसी पवरोधी ने रो उसके जीव को नहीं उ़िा शलया?धम्मराज – (वयंगय से रचत्रगुपर की ओर देखरा हुआ) रुमहारी भी ररटायर होने की उम्र हो गयी है। भली भोलाराि जसेै नगणय आदिी से ककसी को कया लेना देना?(इसी सिय कहीं से घुिर ेकिरर ेनारद िुनन वहाँ पहँुचे और धिताराज को गुि-सुि ब्ैठा देखकर बोले)िारद मुनि - कयों धितादास, कैसे रचनंरर ब्ेैठ हो? कया नकता िें ननवास सथान की सिसया अभी हल नहीं हुई?धम्मराज – वह सिसया रो कब की हल हो गई, िुननवर! सिसया दसूरी ही है... भोलारे िान के एक आदिी की पाँच ददन पहले ितृयु हुई, उसके जीव को यह दरू लाने गया था, लेककन वह रासर ेिें दरू को चकिा देकर भाग गया। ऐसा होने लगा रो पाप-पुणय का भेद ही शिट जाएगा।

    भोलाराम का जसीव का िाटय रूपानतरण

    हररशंकर परसाई की कहानी

    भाग 1

  • झरोखा - ६

    िारद मुनि – उस पर इनकि-टैकस जो बकाया नहीं था? हो सकरा है, उन लोगों ने रोक ददया हो।चचत्रगुपत – इनकि होरी रो टेकस होरा!... भुखिरा था।िारद मुनि – िािला ब़िा ददलचसप है। अचछा िुझ ेनाि परा रो बराओ, िैं पथृवी पर जारा हँू।चचत्रगुपत – (रजजसटर देखकर) भोलाराि नाि था उसका, जबलपुर शहर के धिातापुर िुहलले िें नाले के ककनारे एक किरे के टूटे-िूटे िकान िें वह पररवार सदहर रहरा था। उसका पतनी, जो ल़िके और एक ल़िकी थी। उम्र लगभग पैंस्ठ साल। सरकारी नौकरी थी, पाँच साल पहले ही ररटायर हो गया था। उसने एक साल से िकान का ककराया नहीं ददया था, इसशलए िकान िाशलक उसे ननकालना चाहरा था। इरने िें भोलाराि ने संसार ही छो़ि ददया। आज पाँचवा ददन है।रुमहें उसके पररवार की रलाश िें कािी घुिना प़िगेा।

    भाग 2...(िाँ बेटे के सजमिशलर कं्दन से नारद िुनन भोलाराि का िकान पहचान गए)िारद मुनि – (दवार पर जा कर आवाज़ लगाई) नारायण..... नारायण!लड़की – आगे जाओ, िहाराज।िारद मुनि – िुझ ेशभषिा नहीं चादहए, िुझ ेभोलाराि के बारे िें कुछ पूछराछ करनी है। अपनी िाँ जरा बाहर भेजो बेटी।(भोलाराि की पतनी बाहर आरी है)िारद मुनि – िारा भोलाराि को कया बीिारी थी?पतिसी – कया बराऊँ? गरीबी की बीिारी थी। पाँच साल हो गए नौकरी से ररटायर हुए, पर पेंशन अभी रक नहीं शिली। हर दस-पंद्रह ददन िें एक दरखवासर देर ेथे, पर वहाँ से या रो जवाब नहीं आरा था या आरा रो यही कक रुमहारी पेंशन पर पवचार ककया जा रहा है। इन पाँच सालों िें घर के बरतान, गहने सब बबक गए, घर िें कुछ भी नहीं बचा। रचरंा और भूख से उनहोंने अपना दि रो़ि ददया।िारद मुनि – कया ककया जा सकरा है..... उनकी उम्र ही उरनी थी।पतिसी – ऐसा िर कहो, िहाराज! उम्र रो बहुर थी। पचास-सा्ठ रूपया िदहना पेंशन शिलरी रो गुजारा हो जारा। पर कया करें उनके ररटायर होने के बाद िूटी कौ़िी भी नहीं शिली।(दखु की वयथा सुनने की िूसतार नारद जी को नहीं थी इसशलए झट से िुद्े पर आए)िारद मुनि – िाँ यह बराइए कक यहाँ उनका ककसी से पवशरे पे्रि था, जजसिें उनका जी लगा हो?

    पतिसी – लगाओ रो िहाराज बाल-हचचों से ही होरा है।िारद मुनि – नहीं, पररवार के बाहर भी हो सकरा है, िेरा िरलब कोई सत्री.......।(सत्री ने गुराताकर नारद जी की ओर देखा)पतिसी – बको िर, िहाराज! साधु हो कोई लुचचे-लिंगें नहीं हो। जज़ंदगी भर उनहोंने ककसी दसूरा सत्री को आखँ उ्ठाकर नहीं देखा।िारद मुनि – (हंसकर) हाँ, रुमहारा सोचना ्ठछीक ही है। यही भ्रि अचछछी गहृसथी का आधार है।अचछा िारा िैं चला।(वयंगय सिझने की असिथतारा ने नारद को सरी के क्ोध की जवाला से बचा शलया।)पतिसी – िहाराज, आप रो साधु हैं, शसद् पुरूर हैं। कुछ ऐसा नहीं कर सकर ेकक उनकी रूकी हुई पेंशन शिल जाए। इन बचचों का पेट भर जाया करेगा।िारद मुनि – (दया से) साधुओ ंकी बार कौि िानरा है? िेरा यहाँ कोई ि्ठ रो है नहीं! किर भी िैं सरकारी दफरर जाकर कोशशश करँूगा।(वहाँ से ननकलकर नारद सरकारी दफरर पहँुचे, किरे िें पहले ही ब्ेैठ बाबू से उनहोंने भोलाराि के केस के बारे िें बार की।)बाबयू – भोलाराि ने दरखवासरों रो भेजी थी, पर उनपर वजन नहीं रखा था, इस शलए कहीं उ़ि गई होगी।िारद मुनि – भई, ये बहुर से पेपर वेट रो रखे हैं। इनहें कयों नहीं रख ददया?बाबयू – (हंसकर) आप साधु हैं आपको दनुनयादारी सिझ िें नहीं आरी। दरखवासरें पेपरवेट से नहीं दबरा..... खैर आप उस किरे िें बै्ेठ बाबू से शिशलए।(नारद उस बाबू के पास गए, उसने रीसरे के पास भेजा, रासरे ने चौथे के पास, चौथे ने पाँचवे के पास। जब नारद पचचीस-रीस बाबुओ ंऔर अिसरों के पास घूि आए, रब एक चपरासी ने कहा)चपराससी – िहाराज, आप कयों इस झंझट िें प़ि गए। आप अगर साल भर भी चककर लगार ेरहे जोभी काि नहीं होगा। आप रो सीधे ब़ि ेसाहब से शिशलए। उनहें खुश कर शलया रो अभी कां हो जाएगा।(नारद ब़ि ेसाहब के किरे िें पहँुचे, बाहर चपरासी ऊँघ रहा था, नारद जी सीधा किरे िें घुसे, बबना पवजजदटग काडता के आया देख... साहब नाराज हो गए।)सािब – इसे कोई िंददर-वंददर सिझ शलया है कया? ध़िध़िार ेहुए चले आए, रचट कयों नहीं भेजी?िारद मुनि – कैसे भेजरा, चपरासी रो सो रहा है।

    नाटय रूपानररण

  • झरोखा - ७

    सािब – कया काि है? (रौब से)(नारद जी ने भोलाराि के पेशंन-केस के बारे िें बराया।)सािब – आप हैं वरैागी, दफररों के रीनर-ररवाज नहीं जानर,े असल िें भोलाराि ने गलरी की। भई यह भी एक िंददर है, यहाँ भी दान-पुणय करना प़िरा है, भेंट चढ़ानी प़िरी है।आप भोलाराि के आतिीय िालूि होर ेहैं। भोलाराि की दरखवासरें उ़ि रही है। उनपर वजन रणखए।(नारद जी ने सोचा कक किर यहाँ वजन की सिसया ख़िी हो गयी।)सािब – भई, सरकारी पसेै का िािला है, पेंशन का केस वीसों दफररों िें जारा है। देर लग जारी है, ह़जारों बार एक ही बार को हर जगह शलखना प़िरा है, रब पककी होरी है। हाँ जलदी भी दो सकरी है, िगर.... (साहब रूके)िारद मुनि – िगर कया? सािब – (कुदटल िुसकान से) िगर वजन चादहए। आप सिझ ेनहीं जसेै आपकी सुनदर वीणा है, इसका भी वजन भोलाराि की दरखवासर िें रखा जा सकरा है। िेरी ल़िकी गाना-बजाना सीखरी है, यह िैं उसे दे दगूाँ। साधुओ ंकी वीणा रो ब़िी ही पपवत्र होरी है। ल़िकी जलदी संगीर सीख गई रो उसकी शादी हो जाएगी।(नारद जी अपनी वीणा टेबल पर रखकर)िारद मुनि – यह लीजजए, अब जरा जलदी उसकी पेंशन का ऑडतार ननकाल दीजजए।(साहब ने प्रसननरा से उनहें कुसथी दी, वीणा को एक कोने िें रखा और घंटी बजायी। चपरासी हाजज़र हुआ।)सािब – (हुकि ददया) ब़ि ेबाबू से भोलाराि के केस की िाइल लाओ।(थो़िी देर िें चपरासी भोलाराि की सौ-डढे़ सौ दखवासरों से भरी िाइल ले आया। साहब ने ननजशचर करने के नाि पुछा)िारद मुनि – (ऊँची आवाज िें) भोलाराि।(सहसा िाइल िें से आवाज आई)भोलाराि की आतिा – कौन पुकार रहा है िुझ?े पोसटिनै है कया? पेंशन का ऑडतार आ गया?(साहब डर कर कुसथी से लुढ़क गए, नारद जी भी चौक गए पर दसूरे ही षिण बार सिझ गए।)िारद मुनि – भोलाराि! रुि कया भोलाराि के जीव हो? भोलाराि की आतिा – हाँ!िारद जसी – िैं नारद हँू, िैं रुमहें लेने आया हँू। चलो सवगता िें रुमहारा इंरजार हो रहा है।भोलाराि की आतिा – नहीं.. िुझ ेनहीं जाना, िैं रो पेशि की दरखवासरों िें अटका हँू। यहीं िेरा िन सगा है, िैं अपनी दरखवासरें

    छो़िकर नहीं जा सकरा......... --------------- सिापर---------------- रेशमा मांदे्करबी. ए. बी.एड. दवीरीय वरता

    नाटय रूपानररण / कावय

    बुढ़ापे का ददतारार ददन बहाना पसीनाघर के िाशलक का सीना।अपने हर सपनों की दी कुरबानीघर सजाने िें बीरी उनकी जवानी।लेककन अब बुढ़ापे िें भूल जार ेहैं उनके ही, उनकी िौजु़दगी।गुससा आरा उरारर ेउनपरकरर ेउपयोग उनका, रखर ेकबा़िखाने िेंनहीं करर ेयाद कभी उनहें।जब हो अकेले लगरा है उनहें भी डर कयों नहीं सोचर ेहिारी भी होगी उिर

    वेलेनससी फराजबी. ए. बी.एड. दवीरीय वरता

    बुढापे का दद्म