nirmala - premchand

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Nirmala - premchand

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पे्रमचंद

निममला

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निममला

तो बाब ूउदयभािलुाल के परिवाि में बीसों ही प्राणी थे, कोई ममेिा भाई था, कोई फुफेिा, कोई भाजंा था, कोई भतीजा, लेककि यहा ं हमें

उिसे कोई प्रयोजि िही,ं वह अच्छे वकील थे, लक्ष्मी प्रसन्ि थी ंऔि कुटुम्ब के दरिद्र प्राणणयों को आश्रय देिा उिका कत्तव्य ही था। हमािा सम्बन्ध तो केवल उिकी दोिों कन्याओं से है, जजिमें बडी का िाम निममला औि छोटी का कृष्णा था। अभी कल दोिों साथ-साथ गुडडया खेलती थी।ं निममला का पन्द्रहवां साल था, कृष्णा का दसवा,ं कफि भी उिके स्वभाव में कोई ववशषे अन्ति ि था। दोिों चंचल, णखलाडडि औि सिै-तमाश े पि जाि देती थी।ं दोिों गडुडया का धमूधाम से ब्याह किती थी,ं सदा काम से जी चिुाती थी।ं मा ंपकुािती िहती थी, पि दोिों कोठे पि नछपी बठैी िहती थी ं कक ि जाि ेककस काम के ललए बलुाती हैं। दोिों अपिे भाइयों से लडती थीं, िौकिों को डांटती थी ंऔि बाजे की आवाज सिुत ेही द्वाि पि आकि खडी हो जाती थी ंपि आज एकाएक एक ऐसी बात हो गई है, जजसिे बडी को बडी औि छोटी को छोटी बिा ददया है। कृष्णा यही है, पि निममला बडी गम्भीि, एकान्त-वप्रय औि लज्जाशील हो गई है। इधि महीिों से बाब ूउदयभािलुाल निममला के वववाह की बातचीत कि िहे थे। आज उिकी मेहित दठकािे लगी है। बाब ूभालचन्द्र लसन्हा के ज्येष्ठ पतु्र भवुि मोहि लसन्हा से बात पक्की हो गई है। वि के वपता िे कह ददया है कक आपकी खुशी ही दहेज दें, या ि दें, मझुे इसकी पिवाह िही;ं हा,ं बािात में जो लोग जायें उिका आदि-सत्काि अच्छी तिह होिा चदहए, जजसमें मेिी औि आपकी जग-हंसाई ि हो। बाब ूउदयभािलुाल थे तो वकील, पि संचय कििा ि जाित े थे। दहेज उिके सामिे कदठि समस्या थी। इसललए जब वि के वपता ि ेस्वयं कह ददया कक मझु ेदहेज की पिवाह िही,ं तो मािों उन्हें आंखें लमल गई। डित ेथे, ि जािे ककस-ककस के सामि ेहाथ फैलािा पड,े दो-तीि महाजिों को ठीक कि िखा था। उिका अिमुाि था कक हाथ िोकिे पि भी बीस हजाि से कम खचम ि होंगे। यह आश्वासि पाकि वे खुशी के मािे फूले ि समाये।

इसकी सचूिा िे अज्ञाि बललका को मुंह ढांप कि एक कोिे में बबठा िखा है। उसके हृदय में एक ववचचत्र शंका समा गई है, िो-िोम में एक अज्ञात भय का संचाि हो गया है, ि जािे क्या होगा। उसके मि में वे उमंगें िही ं

यों

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हैं, जो यवुनतयों की आंखों में नतिछी चचतवि बिकि, ओंठों पि मधिु हास्य बिकि औि अंगों में आलस्य बिकि प्रकट होती है। िहीं वहां अलभलाषाएं िहीं हैं वहा ंकेवल शंकाएं, चचन्ताएं औि भीरू कल्पिाएं हैं। यौवि का अभी तक पणूम प्रकाश िहीं हुआ है। कृष्णा कुछ-कुछ जािती है, कुछ-कुछ िही ंजािती। जािती है, बहि को अच्छे-अच्छे गहिे लमलेंगे, द्वाि पि बाजे बजेंगे, मेहमाि आयेंगे, िाच होगा-यह जािकि प्रसन्ि है औि यह भी जािती है कक बहि सबके गले लमलकि िोयेगी, यहा ंसे िो-धोकि ववदा हो जायेगी, मैं अकेली िह जाऊंगी- यह जािकि द:ुखी है, पि यह िही ं जािती कक यह इसललए हो िहा है, माताजी औि वपताजी क्यों बहि को इस घि से निकालिे को इतिे उत्सकु हो िहे हैं। बहि ि ेतो ककसी को कुछ िही ंकहा, ककसी से लडाई िही ंकी, क्या इसी तिह एक ददि मझु े भी ये लोग निकाल देंगे? मैं भी इसी तिह कोिे में बठैकि िोऊंगी औि ककसी को मझु पि दया ि आयेगी? इसललए वह भयभीत भी हैं।

संध्या का समय था, निममला छत पि जािकि अकेली बठैी आकाश की औि तवृषत िेत्रों से ताक िही थी। ऐसा मि होता था पखं होते, तो वह उड जाती औि इि सािे झंझटों से छूट जाती। इस समय बहुधा दोिों बहिें कही ंसिै कििे जाया किती थीं। बग्घी खाली ि होती, तो बगीच े में ही टहला किती,ं इसललए कृष्णा उसे खोजती कफिती थी, जब कही ंि पाया, तो छत पि आई औि उसे देखत ेही हंसकि बोली-तुम यहां आकि नछपी बठैी हो औि मैं तुम्हें ढंूढती कफिती हंू। चलो, बग्घी तैयाि किा आयी हंू। निममला- ि ेउदासीि भाव से कहा-तू जा, मैं ि जाऊंगी। कृष्णा-िहीं मेिी अच्छी दीदी, आज जरूि चलो। देखो, कैसी ठण्डी-ठण्डी हवा चल िही है। निममला-मेिा मि िही ंचाहता, तू चली जा। कृष्णा की आंखें डबडबा आई। कांपती हुई आवाज से बोली- आज तुम क्यों िही ंचलतीं मझुसे क्यों िही ंबोलतीं क्यों इधि-उधि नछपी-नछपी कफिती हो? मेिा जी अकेले बठेै-बठेै घबडाता है। तुम ि चलोगी, तो मैं भी ि जाऊगी। यही ंतुम्हािे साथ बठैी िहंूगी। निममला-औि जब मैं चली जाऊंगी तब क्या किेगी? तब ककसके साथ खेलेगी औि ककसके साथ घमूिे जायेगी, बता?

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कृष्णा-मैं भी तुम्हािे साथ चलूंगी। अकेले मझुसे यहां ि िहा जायेगा। निममला मसु्किाकि बोली-तुझ ेअम्मा ि जािे देंगी।

कृष्णा-तो मैं भी तुम्हें ि जािे दूंगी। तुम अम्मा से कह क्यों िहीं देती कक मैं ि जाउंगी। निममला- कह तो िही हंू, कोई सिुता है! कृष्णा-तो क्या यह तमु्हािा घि िहीं है?

निममला-िही,ं मेिा घि होता, तो कोई क्यों जबदमस्ती निकाल देता?

कृष्णा-इसी तिह ककसी ददि मैं भी निकाल दी जाऊंगी?

निममला-औि िहीं क्या तू बठैी िहेगी! हम लडककयां हैं, हमािा घि कही ंिहीं होता। कृष्णा-चन्दि भी निकाल ददया जायेगा?

निममला-चन्दि तो लडका है, उसे कौि निकालेगा? कृष्णा-तो लडककया ंबहुत खिाब होती होंगी?

निममला-खिाब ि होती,ं तो घि से भगाई क्यों जाती?

कृष्णा-चन्दि इतिा बदमाश है, उसे कोई िही ं भगाता। हम-तुम तो कोई बदमाशी भी िही ंकितीं। एकाएक चन्दि धम-धम किता हुआ छत पि आ पहंुचा औि निममला को देखकि बोला-अच्छा आप यहा ंबठैी हैं। ओहो! अब तो बाजे बजेंगे, दीदी दलु्हि बिेंगी, पालकी पि चढेंगी, ओहो! ओहो! चन्दि का पिूा िाम चन्द्रभाि ुलसन्हा था। निममला से तीि साल छोटा औि कृष्णा से दो साल बडा। निममला-चन्दि, मझु ेचचढाओगे तो अभी जाकि अम्मा से कह दूंगी। चन्द्र-तो चचढती क्यों हो तुम भी बाजे सिुिा। ओ हो-हो! अब आप दलु्हि बिेंगी। क्यों ककशिी, तू बाजे सिेुगी ि वसेै बाजे तूिे कभी ि सिेु होंगे। कृष्णा-क्या बणै्ड से भी अच्छे होंगे?

चन्द्र-हां-हा,ं बणै्ड से भी अच्छे, हजाि गुिे अच्छे, लाख गुिे अच्छे। तुम जािो क्या एक बणै्ड सिु ललया, तो समझिे लगी ंकक उससे अच्छे बाजे िही ंहोते। बाजे बजािेवाले लाल-लाल वददमयां औि काली-काली टोवपयां पहिे होंगे। ऐसे खबसूिूत मालमू होंगे कक तुमसे क्या कहंू आनतशबाजजयां भी होंगी,

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हवाइया ंआसमाि में उड जायेंगी औि वहा ंतािों में लगेंगी तो लाल, पील,े हिे,

िीले तािे टूट-टूटकि चगिेंगे। बडा बजा आयेगा। कृष्णा-औि क्या-क्या होगा चन्दि, बता दे मेिे भयैा?

चन्द्र-मेिे साथ घमूिे चल, तो िास्ते में सािी बातें बता दूं। ऐसे-ऐसे तमाश ेहोंगे कक देखकि तेिी आंखें खुल जायेंगी। हवा में उडती हुई परिया ंहोंगी, सचमचु की परियां। कृष्णा-अच्छा चलो, लेककि ि बताओगे, तो मारंूगी। चन्द्रभाि ू औि कृष्णा चले गए, पि निममला अकेली बठैी िह गई। कृष्णा के चले जािे से इस समय उसे बडा क्षोभ हुआ। कृष्णा, जजसे वह प्राणों से भी अचधक प्याि किती थी, आज इतिी निठुि हो गई। अकेली छोडकि चली गई। बात कोई ि थी, लेककि द:ुखी हृदय दखुती हुई आंख है,

जजसमें हवा से भी पीडा होती है। निममला बडी देि तक बठैी िोती िही। भाई-बहि, माता-वपता, सभी इसी भांनत मझु ेभलू जायेंगे, सबकी आंखें कफि जायेंगी, कफि शायद इन्हें देखिे को भी तिस जाऊं।

बाग में फूल णखले हुए थे। मीठी-मीठी सगुन्ध आ िही थी। चतै की शीतल मन्द समीि चल िही थी। आकाश में तािे नछटके हुए थे। निममला इन्ही ंशोकमय ववचािों में पडी-पडी सो गई औि आंख लगत ेही उसका मि स्वप्ि-देश में, ववचििे लगा। क्या देखती है कक सामिे एक िदी लहिें माि िही है औि वह िदी के ककिािे िाव की बाठ देख िही है। सन्ध्या का समय है। अंधेिा ककसी भयंकि जन्त ु की भानंत बढता चला आता है। वह घोि चचन्ता में पडी हुई है कक कैसे यह िदी पाि होगी, कैसे पहंुचूगंी! िो िही है कक कही ंिात ि हो जाये, िही ंतो मैं अकेली यहा ंकैसे िहंूगी। एकाएक उसे एक सनु्दि िौका घाट की ओि आती ददखाई देती है। वह खशुी से उछल पडती है औि ज्योही िाव घाट पि आती है, वह उस पि चढिे के ललए बढती है, लेककि ज्योंही िाव के पटिे पि पिै िखिा चाहती है, उसका मल्लाह बोल उठता है-तेिे ललए यहां जगह िही ं है! वह मल्लाह की खुशामद किती है,

उसके पिैों पडती है, िोती है, लेककि वह यह कहे जाता है, तेिे ललए यहा ंजगह िही ं है। एक क्षण में िाव खुल जाती है। वह चचल्ला-चचल्लाकि िोि ेलगती है। िदी के निजमि तट पि िात भि कैसे िहेगी, यह सोच वह िदी में कूद कि उस िाव को पकडिा चाहती है कक इतिे में कही ंसे आवाज आती है-ठहिो, ठहिो, िदी गहिी है, डूब जाओगी। वह िाव तुम्हािे ललए िही ं है, मैं

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आता हंू, मेिी िाव में बठै जाओ। मैं उस पाि पहंुचा दूंगा। वह भयभीत होकि इधि-उधि देखती है कक यह आवाज कहा ंसे आई? थोडी देि के बाद एक छोटी-सी डोंगी आती ददखाई देती है। उसमें ि पाल है, ि पतवाि औि ि मस्तूल। पेंदा फटा हुआ है, तख्ते टूटे हुए, िाव में पािी भिा हुआ है औि एक आदमी उसमें से पािी उलीच िहा है। वह उससे कहती है, यह तो टूटी हुई है,

यह कैसे पाि लगेगी? मल्लाह कहता है- तुम्हािे ललए यही भेजी गई है,

आकि बठै जाओ! वह एक क्षण सोचती है- इसमें बठंूै या ि बठंूै? अन्त में वह निश्चय किती है- बठै जाऊं। यहा ंअकेली पडी िहिे से िाव में बठै जािा कफि भी अच्छा है। ककसी भयंकि जन्त ुके पेट में जािे से तो यही अच्छा है कक िदी में डूब जाऊं। कौि जािे, िाव पाि पहंुच ही जाये। यह सोचकि वह प्राणों की मटु्ठी में ललए हुए िाव पि बठै जाती है। कुछ देि तक िाव डगमगाती हुई चलती है, लेककि प्रनतक्षण उसमें पािी भिता जाता है। वह भी मल्लाह के साथ दोिों हाथों से पािी उलीचिे लगती है। यहा ंतक कक उिके हाथ िह जाते हैं, पि पािी बढता ही चला जाता है, आणखि िाव चक्कि खाि ेलगती है, मालमू होती है- अब डूबी, अब डूबी। तब वह ककसी अदृश्य सहािे के ललए दोिों हाथ फैलाती है, िाव िीच ेजाती है औि उसके पिै उखड जात ेहैं। वह जोि से चचल्लाई औि चचल्लात ेही उसकी आंखें खुल गई। देखा, तो माता सामिे खडी उसका कन्धा पकडकि दहला िही थी।

दो

ब ूउदयभािलुाल का मकाि बाजाि बिा हुआ है। बिामदे में सिुाि के हथौड ेऔि कमिे में दजी की सईुयां चल िही हैं। सामिे िीम के

िीच े बढई चािपाइया ं बिा िहा है। खपिैल में हलवाई के ललए भट्ठा खोदा गया है। मेहमािों के ललए अलग एक मकाि ठीक ककया गया है। यह प्रबन्ध ककया जा िहा है कक हिेक मेहमाि के ललए एक-एक चािपाई, एक-एक कुसी औि एक-एक मेज हो। हि तीि मेहमािों के ललए एक-एक कहाि िखि ेकी तजवीज हो िही है। अभी बािात आिे में एक महीिे की देि है, लेककि तैयारियां अभी से हो िही हैं। बािानतयों का ऐसा सत्काि ककया जाये कक ककसी को जबाि दहलािे का मौका ि लमले। वे लोग भी याद किें कक ककसी के यहा ंबािात में गये थे। पिूा मकाि बतमिों से भिा हुआ है। चाय के सेट

बा

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हैं, िाश्ते की तश्तरिया,ं थाल, लोटे, चगलास। जो लोग नित्य खाट पि पड ेहुक्का पीते िहत ेथे, बडी तत्पिता से काम में लगे हुए हैं। अपिी उपयोचगता लसद्ध कििे का ऐसा अच्छा अवसि उन्हें कफि बहुत ददिों के बाद लमलेगा। जहा ंएक आदमी को जािा होता है, पांच दौडते हैं। काम कम होता है, हुल्लड अचधक। जिा-जिा सी बात पि घण्टों तकम -ववतकम होता है औि अन्त में वकील साहब को आकि निणमय कििा पडता है। एक कहता है, यह घी खिाब है, दसूिा कहता है, इससे अच्छा बाजाि में लमल जाये तो टागं की िाह से निकल जाऊं। तीसिा कहता है, इसमें तो हीक आती है। चौथा कहता है,

तुम्हािी िाक ही सड गई है, तुम क्या जािो घी ककसे कहत ेहैं। जब से यहा ंआये हो, घी लमलिे लगा है, िहीं तो घी के दशमि भी ि होत े थे! इस पि तकिाि बढ जाती है औि वकील साहब को झगडा चकुािा पडता है।

िात के िौ बजे थे। उदयभािलुाल अन्दि बठेै हुए खचम का तखमीिा लगा िहे थे। वह प्राय: िोज ही तखमीिा लगते थे पि िोज ही उसमें कुछ-ि-कुछ परिवतमि औि परिवधमि कििा पडता था। सामिे कल्याणी भौंहे लसकोड ेहुए खडी थी। बाब ूसाहब िे बडी देि के बाद लसि उठाया औि बोले-दस हजाि से कम िही ंहोता, बजल्क शायद औि बढ जाये।

कल्याणी-दस ददि में पांच से दस हजाि हुए। एक महीिे में तो शायद एक लाख िौबत आ जाये। उदयभाि-ुक्या करंू, जग हंसाई भी तो अच्छी िही ं लगती। कोई लशकायत हुई तो लोग कहेंगे, िाम बड ेदशमि थोड।े कफि जब वह मझुसे दहेज एक पाई िहीं लेत ेतो मेिा भी कतमव्य है कक मेहमािों के आदि-सत्काि में कोई बात उठा ि िखूं।

कल्याणी- जब से ब्रह्मा िे सवृि िची, तब से आज तक कभी बािानतयों को कोई प्रसन्ि िही ंिख सकता। उन्हें दोष निकालिे औि निन्दा कििे का कोई-ि-कोई अवसि लमल ही जाता है। जजसे अपिे घि सखूी िोदटयां भी मयस्सि िहीं वह भी बािात में जाकि तािाशाह बि बठैता है। तेल खुशबदूाि िही,ं साबिु टके सेि का जािे कहा ं से बटोि लाये, कहाि बात िही ंसिुत,े लालटेिें धआंु देती हैं, कुलसमयों में खटमल है, चािपाइयां ढीली हैं, जिवासे की जगह हवादाि िहीं। ऐसी-ऐसी हजािों लशकायतें होती िहती हैं। उन्हें आप कहा ंतक िोककयेगा? अगि यह मौका ि लमला, तो औि कोई ऐब निकाल ललये जायेंगे। भई, यह तेल तो िंडडयों के लगािे लायक है, हमें तो सादा तेल

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चादहए। जिाब िे यह साबिु िहीं भेजा है, अपिी अमीिी की शाि ददखाई है,

मािो हमिे साबिु देखा ही िहीं। ये कहाि िहीं यमदतू हैं, जब देणखये लसि पि सवाि! लालटेिें ऐसी भेजी हैं कक आंखें चमकिे लगती हैं, अगि दस-पांच ददि इस िोशिी में बठैिा पड ेतो आंखें फूट जाएं। जिवासा क्या है, अभागे का भाग्य है, जजस पि चािों तिफ से झोंके आते िहत ेहैं। मैं तो कफि यही कहंूगी कक बािनतयों के िखिों का ववचाि ही छोड दो। उदयभाि-ु तो आणखि तुम मझु ेक्या किि ेको कहती हो?

कल्याणी-कह तो िही हंू, पक्का इिादा कि लो कक मैं पांच हजाि से अचधक ि खचम करंूगा। घि में तो टका है िही,ं कजम ही का भिोसा ठहिा, तो इतिा कजम क्यों लें कक जजन्दगी में अदा ि हो। आणखि मेिे औि बच्च ेभी तो हैं, उिके ललए भी तो कुछ चादहए।

उदयभाि-ु तो आज मैं मिा जाता हंू?

कल्याणी- जीि-ेमििे का हाल कोई िहीं जािता। कल्याणी- इसमें बबगडिे की तो कोई बात िहीं। मििा एक ददि सभी को है। कोई यहां अमि होकि थोड ेही आया है। आंखें बन्द कि लेिे से तो होि-ेवाली बात ि टलेगी। िोज आंखों देखती हंू, बाप का देहान्त हो जाता है,

उसके बच्च ेगली-गली ठोकिें खाते कफित ेहैं। आदमी ऐसा काम ही क्यों किे?

उदयभाि ुि जलकि कहा- जो अब समझ लूं कक मेिे मििे के ददि निकट आ गये, यही तुम्हािी भववष्यवाणी है! सहुाग से जियों का जी ऊबत ेिहीं सिुा था, आज यह िई बात मालमू हुई। िंडापे में भी कोई सखु होगा ही!

कल्याणी-तुमसे दनुिया की कोई भी बात कही जाती है, तो जहि उगलि ेलगत ेहो। इसललए ि कक जाित ेहो, इसे कही ंदटकिा िही ंहै, मेिी ही िोदटयों पि पडी हुई है या औि कुछ! जहा ंकोई बात कही, बस लसि हो गये,

मािों मैं घि की लौंडी हंू, मेिा केवल िोटी औि कपड ेका िाता है। जजतिा ही मैं दबती हंू, तुम औि भी दबात ेहो। मफु्तखोि माल उडायें, कोई मुंह ि खोले,

शिाब-कबाब में रूपये लटुें, कोई जबाि ि दहलाये। व ेसािे कांटे मेिे बच्चों ही के ललए तो बोये जा िहे है।

उदयभाि ुलाल- तो मैं क्या तुम्हािा गुलाम हंू?

कल्याणी- तो क्या मैं तुम्हािी लौंडी हंू?

उदयभाि ुलाल- ऐसे मदम औि होंगे, जो औितों के इशािों पि िाचते हैं।

9

कल्याणी- तो ऐसी जियों भी होंगी, जो मदों की जूनतया ंसहा किती हैं। उदयभाि ुलाल- मैं कमाकि लाता हंू, जैसे चाहंू खचम कि सकता हंू। ककसी को बोलिे का अचधकाि िहीं। कल्याणी- तो आप अपिा घि संभललये! ऐसे घि को मेिा दिू ही से सलाम है, जहा ंमेिी कोई पछू िहीं घि में तुम्हािा जजतिा अचधकाि है, उतिा ही मेिा भी। इससे जौ भि भी कम िही।ं अगि तुम अपिे मि के िाजा हो, तो मैं भी अपिे मि को िािी हंू। तुम्हािा घि तुम्हें मबुािक िहे, मेिे ललए पेट की िोदटयों की कमी िही ं है। तुम्हािे बच्च े हैं, मािो या जजलाओ। ि आंखों से देखूंगी, ि पीडा होगी। आंखें फूटी,ं पीि गई!

उदयभाि-ु क्या तुम समझती हो कक तुम ि संभालेगी तो मेिा घि ही ि संभलेगा? मैं अकेले ऐसे-ऐसे दस घि संभाल सकता हंू। कल्याणी-कौि? अगि ‘आज के महीिे ददि लमट्टी में ि लमल जाये, तो कहिा कोई कहती थी! यह कहत-ेकहत ेकल्याणी का चहेिा तमतमा उठा, वह झमककि उठी औि कमिे के द्वाि की ओि चली। वकील साहब मकुदमें में तो खबू मीि-मेख निकालत ेथे, लेककि जियों के स्वभाव का उन्हें कुछ यों ही-सा ज्ञाि था। यही एक ऐसी ववद्या है, जजसमें आदमी बढूा होिे पि भी कोिा िह जाता है। अगि वे अब भी ििम पड जात ेऔि कल्याणी का हाथ पकडकि बबठा लेते, तो शायद वह रूक जाती, लेककि आपसे यह तो हो ि सका, उल्टे चलत-ेचलते एक औि चिका ददया।

बोल-मकेै का घमण्ड होगा?

कल्याणी ि ेद्वािा पि रूक कि पनत की ओि लाल-लाल िेत्रों से देखा औि बबफिकि बोल- मकेै वाले मेिे तकदीि के साथी िही ंहै औि ि मैं इतिी िीच हंू कक उिकी िोदटयों पि जा पडू।ं उदयभाि-ुतब कहां जा िही हो?

कल्याणी-तुम यह पछूिे वाले कौि होत ेहो? ईश्वि की सवृि में असंख्य प्रावप्रयों के ललए जगह है, क्या मेिे ही ललए जगह िहीं है?

यह कहकि कल्याणी कमिे के बाहि निकल गई। आंगि में आकि उसिे एक बाि आकाश की ओि देखा, मािो तािागण को साक्षी दे िही है कक मैं इस घि में ककतिी निदमयता से निकाली जा िही हंू। िात के ग्यािह बज गये थे। घि में सन्िाटा छा गया था, दोिों बेटों की चािपाई उसी के कमिे में

10

िहती थी। वह अपिे कमिे में आई, देखा चन्द्रभाि ु सोया है, सबसे छोटा सयूमभाि ुचािपाई पि उठ बठैा है। माता को देखत ेही वह बोला-तुम तहा ंदई ती ंअम्मा?ं

कल्याणी दिू ही से खड-ेखड ेबोली- कही ंतो िही ंबेटा, तुम्हािे बाबजूी के पास गई थी। सयूम-तुम तली दई, मधेु अतेले दि लदता था। तुम क्यों तली दई ती,ं बताओ?

यह कहकि बच्च े िे गोद में चढिे के ललए दोिों हाथ फैला ददये। कल्याणी अब अपिे को ि िोक सकी। मात-ृस्िेह के सधुा-प्रवाह से उसका संतप्त हृदय परिप्लाववत हो गया। हृदय के कोमल पौधे, जो क्रोध के ताप से मिुझा गये थे, कफि हिे हो गये। आंखें सजल हो गई। उसिे बच्च ेको गोद में उठा ललया औि छाती से लगाकि बोली-तुमिे पकुाि क्यों ि ललया, बेटा?

सयूम-पतुालता तो ता, तुम थिुती ि ती,ं बताओ अब तो कबी ि दाओगी।

कल्याणी-िहीं भयैा, अब िही ंजाऊंगी। यह कहकि कल्याणी सयूमभाि ुको लेकि चािपाई पि लेटी। मा ंके हृदय से ललपटते ही बालक नि:शकं होकि सो गया, कल्याणी के मि में संकल्प-ववकल्प होिे लगे, पनत की बातें याद आतीं तो मि होता-घि को नतलांजलल देकि चली जाऊं, लेककि बच्चों का मुंह देखती, तो वासल्य से चचत्त गद्रगद्र हो जाता। बच्चों को ककस पि छोडकि जाऊं? मेिे इि लालों को कौि पालगेा, ये ककसके होकि िहेंगे? कौि प्रात:काल इन्हें दधू औि हलवा णखलायेगा, कौि इिकी िींद सोयेगा, इिकी िींद जागेगा? बेचािे कौडी के तीि हो जायेंगे। िहीं प्यािो, मैं तुम्हें छोडकि िही ं जाऊंगी। तुम्हािे ललए सब कुछ सह लूगंी। नििादि-अपमाि, जली-कटी, खोटी-खिी, घडुकी-णझडकी सब तुम्हािे ललए सहंूगी।

कल्याणी तो बच्च ेको लेकि लेटी, पि बाब ू साहब को िींद ि आई उन्हें चोट कििेवाली बातें बडी मजुश्कल से भलूती थी। उफ, यह लमजाज! मािों मैं ही इिकी िी हंू। बात मुंह से निकालिी मजुश्कल है। अब मैं इिका गुलाम होकि िहंू। घि में अकेली यह िहें औि बाकी जजतिे अपिे बेगािे हैं, सब निकाल ददये जायें। जला किती हैं। मिाती हैं कक यह ककसी तिह मिें, तो मैं अकेली आिाम करंू। ददल की बात मुंह से निकल ही आती है, चाहे कोई ककतिा ही नछपाये। कई ददि से देख िहा हंू ऐसी ही जली-कटी सिुाया

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किती हैं। मकेै का घमण्ड होगा, लेककि वहां कोई भी ि पछेूगा, अभी सब आवभगत किते हैं। जब जाकि लसि पड जायेंगी तो आटे-दाल का भाव मालमू हो जायेगा। िोती हुई जायेंगी। वाह िे घमण्ड! सोचती हैं-मैं ही यह गहृस्थी चलाती हंू। अभी चाि ददि को कहीं चला जाऊं, तो मालमू हो जायेगा, सािी शखेी ककिककिी हो जायेगा। एक बाि इिका घमण्ड तोड ही दूं। जिा वधैव्य का मजा भी चखा दूं। ि जािे इिकी दहम्मत कैसे पडती है कक मझु ेयों कोसिे लगत हैं। मालमू होता है, पे्रम इन्हें छू िही ंगया या समझती हैं, यह घि से इतिा चचमटा हुआ है कक इसे चाहे जजतिा कोसू,ं टलिे का िाम ि लेगा। यही बात है, पि यहा ं संसाि से चचमटिेवाले जीव िही ं हैं! जहन्िमु में जाये यह घि, जहा ंऐसे प्राणणयों से पाला पड।े घि है या ििक? आदमी बाहि से थका-मांदा आता है, तो उसे घि में आिाम लमलता है। यहा ंआिाम के बदले कोसिे सिुिे पडत ेहैं। मेिी मतृ्य ुके ललए व्रत िखे जाते हैं। यह है पचीस वषम के दाम्पत्य जीवि का अन्त! बस, चल ही दूं। जब देख लूंगा इिका सािा घमण्ड धलू में लमल गया औि लमजाज ठण्डा हो गया, तो लौट आऊंगा। चाि-पांच ददि काफी होंगे। लो, तुम भी याद किोगी ककसी से पाला पडा था। यही सोचते हुए बाब ूसाहब उठे, िेशमी चादि गले में डाली, कुछ रूपये ललये, अपिा काडम निकालकि दसूिे कुते की जेब में िखा, छडी उठाई औि चपुके से बाहि निकले। सब िौकि िींद में मस्त थे। कुत्ता आहट पाकि चौंक पडा औि उिके साथ हो ललया। पि यह कौि जािता था कक यह सािी लीला ववचध के हाथों िची जा िही है। जीवि-िंगशाला का वह निदमय सतू्रधाि ककसी अगम गुप्त स्थाि पि बठैा हुआ अपिी जदटल कू्रि क्रीडा ददखा िहा है। यह कौि जािता था कक िकल असल होिे जा िही है, अलभिय सत्य का रूप ग्रहण कििे वाला है। निशा िे इन्द ूको पिास्त किके अपिा साम्राज्य स्थावपत कि ललया था। उसकी पशैाचचक सेिा िे प्रकृनत पि आतंक जमा िखा था। सद्रववृत्तयां मुंह नछपाये पडी थी ंऔि कुववृत्तया ंववजय-गवम से इठलाती कफिती थी।ं वि में वन्यजन्त ु लशकाि की खोज में ववचाि िहे थे औि िगिों में िि-वपशाच गललयों में मंडिाते कफिते थे।

बाब ूउदयभािलुाल लपके हुए गंगा की ओि चले जा िहे थे। उन्होंिे अपिा कुत्ताम घाट के ककिािे िखकि पांच ददि के ललए लमजामपिु चले जािे का

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निश्चय ककया था। उिके कपड े देखकि लोगों को डूब जािे का ववश्वास हो जायेगा, काडम कुते की जेब में था। पता लगािे में कोई ददक्कत ि हो सकती थी। दम-के-दम में सािे शहि में खबि मशहूि हो जायेगी। आठ बजत-ेबजत ेतो मेिे द्वाि पि सािा शहि जमा हो जायेगा, तब देखूं, देवी जी क्या किती हैं?

यही सोचते हुए बाब ू साहब गललयों में चले जा िहे थे, सहसा उन्हें अपिे पीछे ककसी दसूिे आदमी के आिे की आहट लमली, समझ ेकोई होगा। आगे बढे, लेककि जजस गली में वह मडुत ेउसी तिफ यह आदमी भी मडुता था। तब बाब ूसाहब को आशंका हुई कक यह आदमी मेिा पीछा कि िहा है। ऐसा आभास हुआ कक इसकी िीयत साफ िहीं है। उन्होंिे तुिन्त जेबी लालटेि निकाली औि उसके प्रकाश में उस आदमी को देखा। एक बरिष्ष्ठ मिषु्य कन्धे पि लाठी िखे चला आता था। बाब ूसाहब उसे देखत ेही चौंक पड।े यह शहि का छटा हुआ बदमाश था। तीि साल पहले उस पि डाके का अलभयोग चला था। उदयभाि ु िे उस मकुदमे में सिकाि की ओि से पिैवी की थी औि इस बदमाश को तीि साल की सजा ददलाई थी। सभी से वह इिके खूि का प्यासा हो िहा था। कल ही वह छूटकि आया था। आज दैवात ्साहब अकेले िात को ददखाई ददये, तो उसिे सोचा यह इिसे दाव चकुािे का अच्छा मौका है। ऐसा मौका शायद ही कफि कभी लमले। तुिन्त पीछे हो ललया औि वाि कििे की घात ही में था कक बाब ूसाहब िे जेबी लालटेि जलाई। बदमाश जिा दठठककि बोला-क्यों बाबजूी पहचाित ेहो? मैं हंू मतई। बाब ूसाहब िे डपटकि कहा- तुम मेिे वपछे-वपछे क्यों आिहे हो? मतई- क्यों, ककसी को िास्ता चलिे की मिाही है? यह गली तुम्हािे बाप की है?

बाब ूसाहब जवािी में कुश्ती लड ेथे, अब भी हृि-पिु आदमी थे। ददल के भी कच्च ेि थे। छडी संभालकि बोले-अभी शायद मि िही ंभिा। अबकी सात साल को जाओगे। मतई-मैं सात साल को जाऊंगा या चौदह साल को, पि तुम्हें जजद्दा ि छोडूगंा। हा,ं अगि तमु मेिे पिैों पि चगिकि कसम खाओ कक अब ककसी को सजा ि किाऊंगा, तो छोड दूं। बोलो मंजिू है?

उदयभाि-ुतेिी शामत तो िही ंआई?

मतई-शामत मेिी िही ंआई, तुम्हािी आई है। बोलो खात ेहो कसम-एक! उदयभाि-ुतुम हटत ेहो कक मैं पलुलसमिै को बलुाऊं।

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मतई-दो! उदयभाि-ु(गिजकि) हट जा बादशाह, सामिे स!े

मतई-तीि! मुंह से ‘तीि’ शब्द निकालत ेही बाब ूसाहब के लसि पि लाठी का ऐसा तुला हाथ पडा कक वह अचते होकि जमीि पि चगि पड।े मुंह से केवल इतिा ही निकला-हाय! माि डाला! मतई ि ेसमीप आकि देखा, तो लसि फट गया था औि खूि की घाि निकल िही थी। िाडी का कहीं पता ि था। समझ गया कक काम तमाम हो गया। उसिे कलाई से सोिे की घडी खोल ली, कुते से सोिे के बटि निकाल ललये, उंगली से अंगूठी उतािी औि अपिी िाह चला गया, मािो कुछ हुआ ही िहीं। हा,ं इतिी दया की कक लाश िास्ते से घसीटकि ककिािे डाल दी। हाय,

बेचािे क्या सोचकि चले थे, क्या हो गया! जीवि, तुमसे ज्यादा असाि भी दनुिया में कोई वस्त ुहै? क्या वह उस दीपक की भानंत ही क्षणभंगुि िहीं है,

जो हवा के एक झोंके से बझु जाता है! पािी के एक बलुबलेु को देखत ेहो, लेककि उसे टूटत ेभी कुछ देि लगती है, जीवि में उतिा साि भी िहीं। सांस का भिोसा ही क्या औि इसी िश्विता पि हम अलभलाषाओं के ककतिे ववशाल भवि बिात ेहैं! िही ंजाित,े िीच ेजािेवाली सांस ऊपि आयेगी या िहीं, पि सोचते इतिी दिू की हैं, मािो हम अमि हैं।

तीि

वाह का ववलाप औि अिाथों का िोिा सिुाकि हम पाठकों का ददल ि दखुायेंगे। जजसके ऊपि पडती है, वह िोता है, ववलाप किता है,

पछाडें खाता है। यह कोई ियी बात िही।ं हा,ं अगि आप चाहें तो कल्याणी की उस घोि मािलसक यातिा का अिमुाि कि सकत ेहैं, जो उसे इस ववचाि से हो िही थी कक मैं ही अपिे प्राणाधाि की घानतका हंू। वे वाक्य जो क्रोध के आवेश में उसके असंयत मखु से निकले थे, अब उसके हृदय को वाणों की भांनत छेद िहे थे। अगि पनत िे उसकी गोद में किाह-किाहकि प्राण-त्याग ददए होत,े तो उसे संतोष होता कक मैंिे उिके प्रनत अपिे कतमव्य का पालि ककया। शोकाकुल हृदय को इससे ज्यादा सान्त्विा औि ककसी बात से िही ंहोती। उसे इस ववचाि से ककतिा संतोष होता कक मेिे स्वामी मझुसे प्रसन्ि

वव

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गये, अजन्तम समय तक उिके हृदय में मेिा पे्रम बिा िहा। कल्याणी को यह सन्तोष ि था। वह सोचती थी-हा! मेिी पचीस बिस की तपस्या निष्फल हो गई। मैं अन्त समय अपिे प्राणपनत के पे्रम के वंचचत हो गयी। अगि मैंिे उन्हें ऐसे कठोि शब्द ि कहे होत,े तो वह कदावप िात को घि से ि जाते।ि जािे उिके मि में क्या-क्या ववचाि आये हों? उिके मिोभावों की कल्पिा किके औि अपिे अपिाध को बढा-बढाकि वह आठों पहि कुढती िहती थी। जजि बच्चों पि वह प्राण देती थी, अब उिकी सिूत से चचढती। इन्हीं के कािण मझु ेअपिे स्वामी से िाि मोल लेिी पडी। यही मेिे शत्र ु हैं। जहा ंआठों पहि कचहिी-सी लगी िहती थी, वहा ंअब खाक उडती है। वह मेला ही उठ गया। जब णखलािेवाला ही ि िहा, तो खािेवाले कैसे पड ेिहते। धीिे-धीिे एक महीिे के अन्दि सभी भांजे-भतीजे बबदा हो गये। जजिका दावा था कक हम पािी की जगह खूि बहािेवालों में हैं, वे ऐसा सिपट भागे कक पीछे कफिकि भी ि देखा। दनुिया ही दसूिी हो गयी। जजि बच्चों को देखकि प्याि किि ेको जी चाहता था उिके चहेिे पि अब मजक्खया ंलभिलभिाती थीं। ि जाि ेवह कानंत कहा ंचली गई?

शोक का आवेग कम हुआ, तो निममला के वववाह की समस्या उपजस्थत हुई। कुछ लोगों की सलाह हुई कक वववाह इस साल िोक ददया जाये, लेककि कल्याणी ि ेकहा- इतिी तैयरियों के बाद वववाह को िोक देि ेसे सब ककया-धिा लमट्टी में लमल जायेगा औि दसूिे साल कफि यही तैयारियां कििी पडेंगी, जजसकी कोई आशा िहीं। वववाह कि ही देिा अच्छा है। कुछ लेिा-देिा तो है ही िही।ं बािानतयों के सेवा-सत्काि का काफी सामाि हो चकुा है, ववलम्ब कििे में हानि-ही-हानि है। अतएव महाशय भालचन्द्र को शक-सचूिा के साथ यह सन्देश भी भेज ददया गया। कल्याणी िे अपिे पत्र में ललखा-इस अिाचथिी पि दया कीजजए औि डूबती हुई िाव को पाि लगाइये। स्वामीजी के मि में बडी-बडी कामिाएं थीं, ककंत ुईश्वि को कुछ औि ही मंजूि था। अब मेिी लाज आपके हाथ है। कन्या आपकी हो चकुी। मैं लोगों के सेवा-सत्काि कििे को अपिा सौभाग्य समझती हंू, लेककि यदद इसमें कुछ कमी हो, कुछ त्रदुट पड,े तो मेिी दशा का ववचाि किके क्षमा कीजजयेगा। मझु ेववश्वास है कक आप इस अिाचथिी की निन्दा ि होिे देंगे, आदद।

कल्याणी ि ेयह पत्र डाक से ि भेजा, बजल्क पिुोदहत से कहा-आपको कि तो होगा, पि आप स्वयं जाकि यह पत्र दीजजए औि मेिी ओि से बहुत

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वविय के साथ कदहयेगा कक जजतिे कम आदमी आयें, उतिा ही अच्छा। यहां कोई प्रबन्ध कििेवाला िही ंहै। पिुोदहत मोटेिाम यह सन्देश लेकि तीसिे ददि लखिऊ जा पहंुच।े संध्या का समय था। बाब ूभालचन्द्र दीवािखािे के सामिे आिामकुसी पि िंग-धडगं लेटे हुए हुक्का पी िहे थे। बहुत ही स्थलू, ऊंच ेकद के आदमी थे। ऐसा मालमू होता था कक काला देव है या कोई हब्शी अफ्रीका से पकडकि आया है। लसि से पिै तक एक ही िंग था-काला। चहेिा इतिा स्याह था कक मालमू ि होता था कक माथे का अंत कहा ंहै लसि का आिम्भ कहां। बस, कोयले की एक सजीव मनूतम थी। आपको गमी बहुत सताती थी। दो आदमी खड ेपखंा झल िहे थे, उस पि भी पसीिे का ताि बंधा हुआ था। आप आबकािी के ववभाग में एक ऊंच ेओहदे पि थे। पांच सौ रूपये वेति लमलता था। ठेकेदािों से खूब रिश्वत लेत े थे। ठेकेदाि शिाब के िाम पािी बेचें, चौबीसों घंटे दकुाि खुली िखें, आपको केवल खुश िखिा काफी था। सािा काििू आपकी खुशी थी। इतिी भयंकि मनूतम थी कक चांदिी िात में लोग उन्हें देख कि सहसा चौंक पडते थे-बालक औि जिया ं ही िहीं, परुूष तक सहम जाते थे। चांदिी िात इसललए कहा गया कक अंधेिी िात में तो उन्हें कोई देख ही ि सकता था-श्यामलता अन्धकाि में ववलीि हो जाती थी। केवल आंखों का िंग लाल था। जैसे पक्का मसुलमाि पांच बाि िमाज पढता है, वसेै ही आप भी पांच बाि शिाब पीत े थे, मफु्त की शिाब तो काजी को हलाल है, कफि आप तो शिाब के अफसि ही थे, जजतिी चाहें वपयें, कोई हाथ पकडिे वाला ि था। जब प्यास लगती शिाब पी लेते । जैसे कुछ िंगों में पिस्पि सहािभुनूत है, उसी तिह कुछ िंगों में पिस्पि वविोध है। लाललमा के संयोग से काललमा औि भी भयंकि हो जाती है। बाब ूसाहब िे पंडडतजी को देखते ही कुसी से उठकि कहा-अख्खाह! आप हैं? आइए-आइए। धन्य भाग! अिे कोई है। कहा ंचले गये सब-के-सब,

झगडू, गुिदीि, छकौडी, भवािी, िामगुलाम कोई है? क्या सब-के-सब मि गये! चलो िामगुलाम, भवािी, छकौडी, गिुदीि, झगडू। कोई िहीं बोलता, सब मि गये! दजमि-भि आदमी हैं, पि मौके पि एक की भी सिूत िही ंिजि आती, ि जािे सब कहां गायब हो जाते हैं। आपके वास्त ेकुसी लाओ। बाब ूसाहब िे ये पाचंों िाम कई बाि दहुिाये, लेककि यह ि हुआ कक पंखा झलिेवाले दोिों आदलमयों में से ककसी को कुसी लािे को भेज देत।े

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तीि-चाि लमिट के बाद एक कािा आदमी खांसता हुआ आकि बोला-सिकाि,

ईतिा की िौकिी हमाि कीि ि होई ! कहा ं तक उधाि-बाढी ल-ैल ै खाई मांगत-मांगत थेथि होय गयेिा। भाल- बको मत, जाकि कुसी लाओ। जब कोई काम कििे की कहा गया, तो िोि ेलगता है। कदहए पडडतजी, वहां सब कुशल है?

मोटेिाम-क्या कुशल कहंू बाबजूी, अब कुशल कहा?ं सािा घि लमट्टी में लमल गया। इतिे में कहाि िे एक टूटा हुआ चीड का सन्दकू लाकि िख ददया औि बोला-कसी-मेज हमािे उठाये िाहीं उठत है। पंडडतजी शमामते हुए डित-ेडिते उस पि बठेै कक कहीं टूट ि जाये औि कल्याणी का पत्र बाब ूसाहब के हाथ में िख ददया। भाल-अब औि कैसे लमट्टी में लमलेगा? इससे बडी औि कौि ववपवत्त पडगेी? बाब ूउदयभाि ुलाल से मेिी पिुािी दोस्ती थी। आदमी िही,ं हीिा था! क्या ददल था, क्या दहम्मत थी, (आंखें पोंछकि) मेिा तो जैसे दादहिा हाथ ही कट गया। ववश्वास मानिए, जबसे यह खबि सिुी है, आंखों में अंधेिा-सा छा गया है। खािे बठैता हंू, तो कौि मुंह में िही ंजाता। उिकी सिूत आंखों के सामिे खडी िहती है। मुंह जूठा किके उठ जाता हंू। ककसी काम में ददल िही ंलगता। भाई के मिि ेका िंज भी इससे कम ही होता है। आदमी िहीं, हीिा था!

मोटे- सिकाि, िगि में अब ऐसा कोई िईस िही ंिहा। भाल- मैं खूब जािता हंू, पंडडतजी, आप मझुसे क्या कहत े हैं। ऐसा आदमी लाख-दो-लाख में एक होता है। जजतिा मैं उिको जािता था, उतिा दसूिा िहीं जाि सकता। दो-ही-तीि बाि की मलुाकात में उिका भक्त हो गया औि मििे दम तक िहंूगा। आप समचधि साहब से कह दीजजएगा, मझु ेददली िंज है।

मोटे-आपसे ऐसी ही आशा थी! आज-जैसे सज्जिों के दशमि दलुमभ हैं। िहीं तो आज कौि बबिा दहेज के पतु्र का वववाह किता है। भाल-महािाज, देहज की बातचीत ऐसे सत्यवादी परुूषों से िहीं की जाती। उिसे सम्बन्ध हो जािा ही लाख रूपये के बिाबि है। मैं इसी को अपिा अहोभाग्य समझता हंू। हा! ककतिी उदाि आमत्मा थी। रूपये को तो उन्होंिे कुछ समझा ही िही,ं नतिके के बिाबि भी पिवाह िहीं की। बिुा

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रिवाज है, बेहद बिुा! मेिा बस चले, तो दहेज लेिेवालों औि दहेज देिेवालों दोिों ही को गोली माि दूं, हां साहब, साफ गोली माि दूं, कफि चाहे फांसी ही क्यों ि हो जाय! पछूो, आप लडके का वववाह कित े हैं कक उसे बेचत े हैं? अगि आपको लडके के शादी में ददल खोलकि खचम कििे का अिमाि है, तो शौक के खचम कीजजए, लेककि जो कुछ कीजजए, अपिे बल पि। यह क्या कक कन्या के वपता का गला िेनतए। िीचता है, घोि िीचता! मेिा बस चले, तो इि पाजजयों को गोली माि दूं। मोटे- धन्य हो सिकाि! भगवाि ्िे आपको बडी बवुद्ध दी है। यह धमम का प्रताप है। मालककि की इच्छा है कक वववाह का महूुतम वही िहे औि तो उन्होंिे सािी बातें पत्र में ललख दी हैं। बस, अब आप ही उबािें तो हम उबि सकत ेहैं। इस तिह तो बािात में जजतिे सज्जि आयेंगे, उिकी सेवा-सत्काि हम किेंगे ही, लेककि परिजस्थनत अब बहुत बदल गयी है सिकाि, कोई किि-ेधििेवाला िही ंहै। बस ऐसी बात कीजजए कक वकील साहब के िाम पि बट्टा ि लगे। भालचन्द्र एक लमिट तक आंखें बन्द ककये बठेै िहे, कफि एक लम्बी सांस खींच कि बोले-ईश्वि को मंजिू ही ि था कक वह लक्ष्मी मेिे घि आती, िहीं तो क्या यह वज्र चगिता? सािे मिसबेू खाक में लमल गये। फूला ि समाता था कक वह शभु-अवसि निकट आ िहा है, पि क्या जािता था कक ईश्वि के दिबाि में कुछ औि षड्यन्त्र िचा जा िहा है। मििेवाले की याद ही रूलािे के ललए काफी है। उसे देखकि तो जख्म औि भी हिा जो जायेगा। उस दशा में ि जािे क्या कि बठंूै। इसे गुण समणझए, चाहे दोष कक जजससे एक बाि मेिी घनिष्ठता हो गयी, कफि उसकी याद चचत्त से िही ंउतिती। अभी तो खैि इतिा ही है कक उिकी सिूत आंखों के सामिे िाचती िहती है,

लेककि यदद वह कन्या घि में आ गयी, तब मेिा जजन्दा िहिा कदठि हो जायेगा। सच मानिए, िोत-ेिोते मेिी आंखें फूट जायेंगी। जािता हंू, िोिा-धोिा व्यथम है। जो मि गया वह लौटकि िही ंआ सकता। सब्र कििे के लसवाय औि कोई उपाय िही ंहै, लेककि ददल से मजबिू हंू। उस अिाथ बाललका को देखकि मेिा कलेजा फट जायेगा। मोटे- ऐसा ि कदहए सिकाि! वकील साहब िही ंतो क्या, आप तो हैं। अब आप ही उसके वपता-तुल्य हैं। वह अब वकील साहब की कन्या िहीं, आपकी कन्या है। आपके हृदय के भाव तो कोई जािता िहीं, लोग समझेंगे,

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वकील साहब का देहान्त हो जािे के कािण आप अपिे वचि से कफि गये। इसमें आपकी बदिामी है। चचत्त को समझाइए औि हंस-खशुी कन्या का पाणणग्रहण किा लीजजए। हाथी मिे तो िौ लाख का। लाख ववपवत्त पडी है,

लेककि मालककि आप लोगों की सेवा-सत्काि कििे में कोई बात ि उठा िखेंगी। बाब ू साहब समझ गये कक पंडडत मोटेिाम कोिे पोथी के ही पंडडत िही,ं विि व्यवहाि-िीनत में भी चतुि हैं। बोले-पंडडतजी, हलफ से कहता हंू,

मझु ेउस लडकी से जजतिा पे्रम है, उतिा अपिी लडकी से भी िहीं है, लेककि जब ईश्वि को मंजूि िहीं है, तो मेिा क्या बस है? वह मतृ्य ुएक प्रकाि की अमंगल सचूिा है, जो ववधाता की ओि से हमें लमली है। यह ककसी आिेवाली मसुीबत की आकाशवाणी है ववधाता स्पि िीनत से कह िहा है कक यह वववाह मंगलमय ि होगा। ऐसी दशा में आप ही सोचचये, यह संयोग कहां तक उचचत है। आप तो ववद्वाि आदमी हैं। सोचचए, जजस काम का आिम्भ ही अमंगल से हो, उसका अंत अमंगलमय हो सकता है? िही,ं जािबझूकि मक्खी िहीं निगली जाती। समचधि साहब को समझाकि कह दीजजएगा, मैं उिकी आज्ञापालि कििे को तैयाि हंू, लेककि इसका परिणाम अच्छा ि होगा। स्वाथम के वंश में होकि मैं अपिे पिम लमत्र की सन्ताि के साथ यह अन्याय िही ंकि सकता। इस तकम िे पडडतजी को निरुत्ति कि ददया। वादी िे यह तीि छोडा था, जजसकी उिके पास कोई काट ि थी। शत्र ु िे उन्ही ंके हचथयाि से उि पि वाि ककया था औि वह उसका प्रनतकाि ि कि सकत ेथे। वह अभी कोई जवाब सोच ही िहे थे, कक बाब ूसाहब िे कफि िौकिों को पकुाििा शरुू ककया- अिे, तुम सब कफि गायब हो गये- झगडू, छकौडी, भवािी, गुरूदीि, िामगुलाम! एक भी िही ंबोलता, सब-के-सब मि गये। पंडडतजी के वास्ते पािी-वािी की कफक्र है? िा जाि ेइि सबों को कोई कहा ंतक समझये। अक्ल छू तक िही ंगयी। देख िहे हैं कक एक महाशय दिू से थके-मांदे चले आ िहे हैं, पि ककसी को जिा भी पिवाह िहीं। लाओं, पािी-वािी िखो। पडडतजी, आपके ललए शबमत बिवाऊं या फलाहािी लमठाई मंगवा दूं। मोटेिामजी लमठाइयों के ववषय में ककसी तिह का बन्धि ि स्वीकाि कित े थे। उिका लसद्धान्त था कक घतृ से सभी वस्तएंु पववत्र हो जाती हैं। िसगुल्ले औि बेसि के लड्डू उन्हें बहुत वप्रय थे, पि शबमत से उन्हें रुचच ि

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थी। पािी से पेट भििा उिके नियम के ववरूद्ध था। सकुचात ेहुए बोले-शबमत पीिे की तो मझु ेआदत िही,ं लमठाई खा लूगंा। भाल- फलाहािी ि?

मोटे- इसका मझु ेकोई ववचाि िही।ं भाल- है तो यही बात। छूत-छात सब ढकोसला है। मैं स्वयं िही ंमािता। अिे, अभी तक कोई िही ंआया? छकौडी, भवािी, गुरुदीि, िामगुलाम,

कोई तो बोल!े अबकी भी वही बढूा कहाि खांसता हुआ आकि खडा हो गया औि बोला-सिकाि, मोि तलब दै दीि जाय। ऐसी िौकिी मोसे ि होई। कहां लो दौिी दौित-दौित गोड वपिाय लागत है। भाल-काम कुछ किो या ि किो, पि तलब पदहले चदहए! ददि भि पड-ेपड ेखांसा किो, तलब तो तुम्हािी चढ िही है। जाकि बाजाि से एक आिे की ताजी लमठाई ला। दौडता हुआ जा। कहाि को यह हुक्म देकि बाब ूसाहब घि में गये औि िी से बोले-वहा ंसे एक पंडडतजी आये हैं। यह खत लाये हैं, जिा पढो तो।

पत्नी जी का िाम िंगीलीबाई था। गोिे िंग की प्रसन्ि-मखु मदहला थी।ं रूप औि यौवि उिसे ववदा हो िहे थे, पि ककसी प्रेमी लमत्र की भांनत मचल-मचल कि तीस साल तक जजसके गले से लगे िहे, उसे छोडत ेि बिता था। िंगीलीबाई बठैी पाि लगा िही थीं। बोली-कह ददया ि कक हमें वहा ंब्याह कििा मंजिू िहीं। भाल-हा,ं कह तो ददया, पि मािे संकोच के मुंह से शब्द ि निकलता था। झठू-मठू का होला कििा पडता। िंगीली-साफ बात कििे में संकोच क्या? हमािी इच्छा है, िही ंकिते। ककसी का कुछ ललया तो िही ंहै? जब दसूिी जगह दस हजाि िगद लमल िहे हैं; तो वहा ं क्यों ि करंू? उिकी लडकी कोई सोि ेकी थोड े ही है। वकील साहब जीत ेहोत ेतो शिमाते-शमाते पन्द्रह-बीस हजाि दे मिते। अब वहा ंक्या िखा है?

भाल- एक दफा जबाि देकि मकुि जािा अच्छी बात िही।ं कोई मखु से कुछ ि कह, पि बदिामी हुए बबिा िही ं िहती। मगि तुम्हािी जजद से मजबिू हंू।

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िंगीलीबाई ि े पाि खाकि खत खोला औि पढिे लगीं। दहन्दी का अभ्यास बाब ूसाहब को तो बबल्कुल ि था औि यद्यवप िंगीलीबाई भी शायद ही कभी ककताब पढती हों, पि खत-वत पढ लेती थीं। पहली ही पांनत पढकि उिकी आंखें सजल हो गयी ंऔि पत्र समाप्त ककया। तो उिकी आंखों से आंस ूबह िहे थे-एक-एक शब्द करूणा के िस में डूबा हुआ था। एक-एक अक्षि से दीिता टपक िही थी। िंगीलीबाई की कठोिता पत्थि की िहीं, लाख की थी, जो एक ही आंच से वपघल जाती है। कल्याणी के करूणोत्पादक शब्दों ि ेउिके स्वाथम-मंडडत हृदय को वपघला ददया। रंूधे हुए कंठ से बोली-अभी ब्राह्मण बठैा है ि?

भालचन्द्र पत्नी के आंसओंु को देख-देखकि सखेू जात ेथे। अपिे ऊपि झल्ला िहे थे कक िाहक मैंिे यह खत इसे ददखाया। इसकी जरूित क्या थी? इतिी बडी भलू उिसे कभी ि हुई थी। संददग्ध भाव से बोले-शायद बठैा हो, मैंिे तो जािे को कह ददया था। िंगीली िे णखडकी से झांककि देखा। पंडडत मोटेिाम जी बगुले की तिह ध्याि लगाये बाजाि के िास्ते की ओि ताक िहे थे। लालसा में व्यग्र होकि कभी यह पहल ू बदलत,े कभी वह पहल।ू ‘एक आिे की लमठाई’ िे तो आशा की कमि ही तोड दी थी, उसमें भी यह ववलम्ब, दारूण दशा थी। उन्हें बठेै देखकि िंगीलीबाई बोली-है-है अभी है,

जाकि कह दो, हम वववाह किेंगे, जरूि किेंगे। बेचािी बडी मसुीबत में है। भाल- तुम कभी-कभी बच्चों की-सी बातें किि ेलगती हो, अभी उससे कह आया हंू कक मझु े वववाह कििा मंजूि िहीं। एक लम्बी-चौडी भलूमका बांधिी पडी। अब जाकि यह संदेश कहंूगा, तो वह अपिे ददल में क्या कहेगा, जिा सोचो तो? यह शादी-वववाह का मामला है। लडकों का खेल िहीं कक अभी एक बात तय की, अभी पलट गये। भले आदमी की बात ि हुई,

ददल्लगी हुई। िंगीली- अच्छा, तुम अपिे मुंह से ि कहो, उस ब्राह्मण को मेिे पास भेज दो। मैं इस तिह समझा दूंगी कक तमु्हािी बात भी िह जाये औि मेिी भी। इसमें तो तुम्हें कोई आपवत्त िही ंहै।

भाल-तुम अपिे लसवा सािी दनुिया को िादाि समझती हो। तमु कहो या मैं कहंू, बात एक ही है। जो बात तय हो गयी, वह हो गई, अब मैं उसे कफि िहीं उठािा चाहता। तुम्हीं तो बाि-बाि कहती थी ंकक मैं वहां ि करंूगी। तुम्हािे ही कािण मझु ेअपिी बात खोिी पडी। अब तुम कफि िंग बदलती

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हो। यह तो मेिी छाती पि मूंग दलिा है। आणखि तुम्हें कुछ तो मेिे माि-अपमाि का ववचाि कििा चादहए।

िंगीली- तो मझु ेक्या मालमू था कक ववधवा की दशा इतिी हीि हो गया है? तुम्ही ंिे तो कहा था कक उसिे पनत की सािी सम्पवत्त नछपा िखी है औि अपिी गिीबी का ढोंग िचकि काम निकालिा चाहती है। एक ही छंटी औित है। तुमिे जो कहा, वह मैंिे माि ललया। भलाई किके बिुाई कििे में तो लज्जा औि संकोच है। बिुाई किके भलाई कििे मे कोई संकोच िहीं। अगि तुम ‘हां’ कि आये होते औि मैं ‘िही’ं कििे को कहती, तो तुम्हािा संकोच उचचत था। ‘िही’ं कििे के बाद ‘हा’ं कििे में तो अपिा बडप्पि है। भाल- तुम्हें बडप्पि मालमू होता हो, मझु ेतो लचु्चापि ही मालमू होता है। कफि तुमिे यह कैसे माि ललया कक मैंिे वकीलाइि में ववषय में जो बात कही थी, वह झठूी थी! क्या वह पत्र देखकि? तुम जैसी खुद सिल हो, वसेै ही दसूिे को भी सिल समझती हो। िंगीली- इस पत्र में बिावट िहीं मालमू होती। बिावट की बात ददल में चभुती िही।ं उसमें बिावट की गन्ध अवश्य िहती है। भाल- बिावट की बात तो ऐसी चभुती है कक सच्ची बात उसके सामिे बबल्कुल फीकी मालमू होती है। यह ककस्से-कहानिया ं ललखि े वाले जजिकी ककताबें पढ-पढकि तमु घण्टों िोती हो, क्या सच्ची बातें ललखते है? सिासि झठू का तूमाि बांधत ेहैं। यह भी एक कला है। िंगीली- क्यों जी, तुम मझुसे भी उडत ेहो! दाई से पेट नछपात ेहो? मैं तुम्हािी बातें माि जाती हंू, तो तुम समझते हो, इसे चकमा ददया। मगि मैं तुम्हािी एक-एक िस पहचािती हंू। तुम अपिा ऐब मेिे लसि मढकि खुद बेदाग बचिा चहाते हो। बोलो, कुछ झठू कहती हंू, जब वकील साहब जीत ेथे,

जो तुमिे सोचा था कक ठहिाव की जरूित ही कया है, वे खुद ही जजतिा उचचत समेझेंगे देंगे, बजल्क बबिा ठहिाव के औि भी ज्यादा लमलिे की आशा होगी। अब जो वकील साहब का देहान्त हो गया, तो तिह-तिह के हीले-हवाले किि ेलगे। यह भलमिसी िहीं, छोटापि है, इसका इलजाम भी तुम्हािे लसि है। म।ै अब शादी-ब्याह के िगीच ि जाऊंगी। तुम्हािी जसैी इच्छा हो, किो। ढोंगी आदलमयों से मझु ेचचढ है। जो बात किो, सफाई से किो, बिुा हो या अच्छा। ‘हाथी के दांत खािे के औि ददखािे के औि’ वाली िीनत पि चलिा तुम्हें शोभा िहीं देता। बोला आब भी वहां शादी किते हो या िही?ं

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भाला- जब मैं बेईमाि, दगाबाज औि झठूा ठहिा, तो मझुसे पछूिा ही क्या! मगि खूब पहचािती हो आदलमयों को! क्या कहिा है, तुम्हािी इस सझू-बझू की, बलयैा ले लें! िंगीली- हो बड ेहयादाि, ब भी िहीं शिमाते। ईमाि से कहा, मैंिे बात

ताड ली कक िही?ं

भाल-अजी जाओ, वह दसूिी औितें होती हैं जो मदों को पहचािती हैं। अब तक मैं यही समझता था कक औितों की दृवि बडी सकू्ष्म होती है, पि आज यह ववश्वास उठ गया औि महात्माओं िे औितों के ववषय में जो तत्व की बात ेकही है, उिको माििा पडा। िंगीली- जिा आईिे में अपिी सिूत तो देख आओं, तुम्हें मेिी कमस है। जिा देख लो, ककतिा झेंपे हुए हो। भाल- सच कहिा, ककतिा झेंपा हुआ हंू?

िंगीली- इतिा ही, जजतिा कोई भलामािस चोि चोिी खुल जािे पि झेंपता है।

भाल- खिै, मैं झेंपा ही सही, पि शादी वहा ंि होगी। िंगीली- मेिी बला से, जहा ंचाहो किो। क्यों, भवुि से एक बाि क्यों िहीं पछू लेत?े

भाल- अच्छी बात है, उसी पि फैसला िहा। िंगीली- जिा भी इशािा ि कििा! भाल- अजी, मैं उसकी तिफ ताकंूगा भी िहीं। संयोग से ठीक इसी वक्त भवुिमोहि भी आ पहंुचा। ऐसे सनु्दि, सडुौल,

बललष्ठ यवुक कालेजों में बहुत कम देखिे में आते हैं। बबल्कुल मां को पडा था, वही गोिा-चचट्टा िंग, वही पतल-ेपतले गुलाब की पत्ती के-से ओंठ, वही चौडा, माथा, वही बडी-बडी आंखें, डील-डौल बाप का-सा था। ऊंचा कोट, ब्रीचजे,

टाई, बटू, हैट उस पि खूब ल िहे थे। हाथ में एक हाकी-जस्टक थी। चाल में जवािी का गरूि था, आंखों में आमत्मगौिव। िंगीली ि ेकहा-आज बडी देि लगाई तुमिे? यह देखो, तुम्हािी ससिुाल से यह खत आया है। तुम्हािी सास िे ललखा है। साफ-साफ बतला दो, अभी सबेिा है। तुम्हें वहा ंशादी कििा मंजिू है या िही?ं

भवुि- शादी कििी तो चादहए अम्मां, पि मैं करंूगा िहीं। िंगीली- क्यों?

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भवुि- कहीं ऐसी जगह शादी किवाइये कक खूब रूपये लमलें। औि ि सही एक लाख का तो डौल हो। वहा ंअब क्या िखा है? वकील साहब िहे ही िही,ं बदुढया के पास अब क्या होगा?

िंगीली- तुम्हें ऐसी बातें मुंह से निकालत ेशमम िही ंआती?

भवुि- इसमें शमम की कौि-सी बात है? रूपये ककसे काटत ेहैं? लाख रूपये तो लाख जन्म में भी ि जमा कि पाऊंगा। इस साल पास भी हो गया, तो कम-से-कम पांच साल तक रूपये से सिूत िजि ि आयेगी। कफि सौ-दो-सौ रूपये महीिे कमािे लगूंगा। पांच-छ: तक पहंुचत-ेपहंुचते उम्र के तीि भाग बीत जायेंगे। रूपये जमा कििे की िौबत ही ि आयेगी। दनुिया का कुछ मजा ि उठा सकंूग। ककसी धिी की लडकी से शादी हो जाती, तो चिै से कटती। मैं ज्यादा िही ंचाहता, बस एक लाख हो या कफि कोई ऐसी जायदादवाली बवेा लमले, जजसके एक ही लडकी हो। िंगीली- चाहे औित कैसे ही लमले। भवूि- धि सािे ऐबों को नछपा देगा। मझु ेवह गाललया ंभी सिुाये, तो भी चू ंि करंू। दधुारू गाय की लात ककसे बिुी मालमू होती है?

बाब ू साहब िे प्रशंसा-सचूक भाव से कहा-हमें उि लोगों के साथ सहािभुनत है औि द:ुखी है कक ईश्वि िे उन्हें ववपवत्त में डाला, लेककि बवुद्ध से काम लेकि ही कोई निश्चय कििा चदहए। हम ककतिे ही फटे-हालों जायें, कफि भी अच्छी-खासी बािात हो जायेगी। वहां भोजि का भी दठकािा िही।ं लसवा इसके कक लोग हंसें औि कोई ितीजा ि निकलेगा। िंगीली- तुम बाप-पतू दोिों एक ही थलैी के चटे्ट-बटे्ट हो। दोिों उस गिीब लडकी के गले पि छुिी फेििा चाहत ेहो। भवुि-जो गिीब है, उसे गिीबों ही के यहां सम्बन्ध कििा चदहए। अपिी हैलसयत से बढकि.....। िंगीली- चपु भी िह, आया है वहा ं से हैलसयत लेकि। तुम कहा ं के धन्िा-सेठ हो? कोई आदमी द्वािा पि आ जाये, तो एक लोटे पािी को तिस जाये। बड ेहैलसयतवाले बिे हो! यह कहकि िंगीली वहां से उठकि िसोई का प्रबन्ध कििे चली गयी।

भवुिमोहि मसु्किाता हुआ अपिे कमिे में चला गया औि बाब ूसाहब मछूों पि ताव देते हुए बाहि आये कक मोटेिाम को अजन्तम निश्चय सिुा दें। पि उिका कही ंपता ि था।

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मोटेिामजी कुछ देि तक तो कहाि की िाह देखत ेिहे, जब उसके आि ेमें बहुत देि हुई, तो उिसे बठैा ि गया। सोचा यहा ंबठेै-बठेै काम ि चलेगा, कुछ उद्योग कििा चादहए। भाग्य के भिोसे यहा ंअडी ककये बठेै िहें, तो भखूों मि जायेंगे। यहा ंतुम्हािी दाल िही ंगलिे की। चपुके से लकडी उठायी औि जजधि वह कहाि गया था, उसी तिफ चले। बाजाि थोडी ही दिू पि था, एक क्षण में जा पहंुच।े देखा, तो बडु्ढा एक हलवाई की दकूाि पि बठैा चचलम पी िहा था। उसे देखत ेही आपिे बडी बेतकल्लफुी से कहा-अभी कुछ तैयाि िही ंहै क्या महिा? सिकाि वहा ंबठेै बबगड िहे हैं कक जाकि सो गया या ताडी पीिे लगा। मैंिे कहा-‘सिकाि यह बात िही,ं बढु्डा आदमी है, आते ही आते तो आयेगा।’ बड ेववचचत्र जीव हैं। ि जािे इिके यहा ंकैसे िौकि दटकत ेहैं। कहाि-मझु ेछोडकि आज तक दसूिा कोई दटका िही,ं औि ि दटकेगा। साल-भि से तलब िहीं लमली। ककसी को तलब िहीं देते। जहां ककसी ि ेतलब मागंी औि लगे डांटि।े बेचािा िौकिी छोडकि भाग जाता है। व ेदोिों आदमी, जो पखंा झल िहे थे, सिकािी िौकि हैं। सिकाि से दो अदमली लमले हैं ि! इसी से पड े हुए हैं। मैं भी सोचता हंू, जैसा तेिा तािा-बािा वसेै मेिी भििी! इस साल कट गये हैं, साल दो साल औि इसी तिह कट जायेंगे। मोटेिाम- तो तुम्ही ंअकेले हो? िाम तो कई कहािों का लेते है। कहाि- वह सब इि दो-तीि महीिों के अन्दि आये औि छोड-छोड कि चले गये। यह अपिा िोब जमािे को अभी तक उिका िाम जपा किते हैं। कही ंिौकिी ददलाइएगा, चलूं?

मोटेिाम- अजी, बहुत िौकिी है। कहाि तो आजकल ढंूढे िही ं लमलते। तुम तो पिुािे आदमी हो, तुम्हािे ललए िौकिी की क्या कमी है। यहा ंकोई ताजी चीज? मझुसे कहिे लगे, णखचडी बिाइएगा या बाटी लगाइएगा? मैंिे कह ददया-सिकाि, बढु्डा आदमी है, िात को उसे मेिा भोजि बिािे में कि होगा, मैं कुछ बाजाि ही से खा लूगंा। इसकी आप चचन्ता ि किें। बोले,

अच्छी बात है, कहाि आपको दकुाि पि लमलेगा। बोलो साहजी, कुछ ति माल तैयाि है? लड्डू तो ताजे मालमू होते हैं तौल दो एक सेि भि। आ जाऊं वही ंऊपि ि?

यह कहकि मोटेिामजी हलवाई की दकूाि पि जा बठेै औि ति माल चखिे लगे। खूब छककि खाया। ढाई-तीि सेि चट कि गये। खाते जाते थे औि हलवाई की तािीफ कित ेजात ेथे- शाहजी, तुम्हािी दकूाि का जैसा िाम

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सिुा था, वसैा ही माल भी पाया। बिािसवाले ऐसे िसगुल्ले िहीं बिा पात,े

कलाकन्द अच्छी बिाते हैं, पि तुम्हािी उिसे बिुी िही,ं माल डालिे से अच्छी चीज िही ंबि जाती, ववद्या चदहए। हलवाई-कुछ औि लीजजए महािाज! थोडी-सी िबडी मेिी तिफ से लीजजए। मोटेिाम-इच्छा तो िहीं है, लेककि दे दो पाव-भि। हलवाई-पाव-भि क्या लीजजएगा? चीज अच्छी है, आध सेि तो लीजजए।

खूब इच्छापणूम भोजि किके पंडडतजी िे थोडी देि तक बाजाि की सिै की औि िौ बजत-ेबजत ेमकाि पि आये। यहां सन्िाटा-सा छाया हुआ था। एक लालटेि जल िही थी। अपिे चबतूिे पि बबस्ति जमाया औि सो गये। सबेिे अपिे नियमािसुाि कोई आठ बजे उठे, तो देखा कक बाबसूाहब टहल िहे हैं। इन्हें जगा देखकि वह पालागि कि बोले-महािाज, आज िात कहा ं चले गये? मैं बडी िात तक आपकी िाह देखता िहा। भोजि का सब सामाि बडी देि तक िखा िहा। जब आज ि आये, तो िखवा ददया गया। आपिे कुछ भोजि ककया था। या िही?ं

मोटे- हलवाई की दकूाि में कुछ खा आया था। भाल- अजी पिूी-लमठाई में वह आिन्द कहा,ं जो बाटी औि दाल में है। दस-बािह आिे खचम हो गये होंगे, कफि भी पेट ि भिा होगा, आप मेिे मेहमाि हैं, जजति ेपसेै लगे हों ले लीजजएगा।

मोटे- आप ही के हलवाई की दकूाि पि खाया था, वह जो िकु्कड पि बठैता है। भाल- ककति ेपसेै देि ेपड?े

मोटे- आपके दहसाब में ललखा ददये हैं।

भाल- जजतिी लमठाइयां ली हों, मझु े बता दीजजए, िहीं तो पीछे से बेईमािी कििे लगेगा। एक ही ठग है। मोटे- कोई ढाई सेि लमठाई थी औि आधा सेि िबडी। बाब ूसाहब िे ववस्फरित िेत्रों से पंडडतजी को देखा, मािो कोई अचम्भे की बात सिुी हो। तीि सेि तो कभी यहा ंमहीिे भि का टोटल भी ि होता था औि यह महाशय एक ही बाि में कोई चाि रूपये का माल उडा गये। अगि एक आध ददि औि िह गये, तो या बठै जायेगी। पेट है या शतैाि की कब्र? तीि सेि! कुछ दठकािा है! उदद्वग्ि दशा में दौड े हुए अन्दि गये औि

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िंगीली से बोल-कुछ सिुती हो, यह महाशय कल तीि सेि लमठाई उडा गये। तीि सेि पक्की तौल!

िंगीलीबाई ि ेववजस्मत होकि कहा-अजी िही,ं तीि सेि भला क्या खा जायेगा! आदमी है या बलै?

भाल- तीि सेि तो अपिे मुंह से कह िहा है। चाि सेि से कम ि होगा, पक्की तौल! िंगीली- पेट में सिीचि है क्या?

भाल- आज औि िह गया तो छ: सेि पि हाथ फेिेगा। िंगीली- तो आज िहे ही क्यों, खत का जवाब जो देिा देकि ववदा किो। अगि िहे तो साफ कह देिा कक हमािे यहा ंलमठाई मफु्त िहीं आती। णखचडी बिािा हो, बिाव,े िहीं तो अपिी िाह ले। जजन्हें ऐसे पेटुओं को णखलािे से मडुक्त लमलती हो, वे णखलायें हमें ऐसी मडुक्त ि चादहये! मगि पडंडत ववदा होिे को तैयाि बठेै थे, इसललए बाबसूाहब को कौशल से काम लेि ेकी जरूित ि पडी।

पछूा- क्या तैयािी कि दी महािाज?

मोटे- हा ंसिकाि, अब चलूंगा। िौ बजे की गाडी लमलेगी ि?

भाल- भला आज तो औि िदहए। यह कहत-ेकहत ेबाबजूी को भय हुआ कक कही ंयह महािाज सचमचु ि िह जायें, इसललये वाक्य को यों पिूा ककया- हा,ं वहा ं भी लोग आपका इन्तजाि कि िहे होंगे। मोटे- एक-दो ददि की तो कोई बात ि थी औि ववचाि भी यही था कक बत्रवेणी का स्िाि करंूगा, पि बिुा ि मानिए तो कहंू, आप लोगों में ब्राह्राणों के प्रनत लेशमात्र भी श्रद्धा िही ं है। हमािे जजमाि हैं, जो हमािा मुंह जोहत ेिहत ेहैं कक पंडडतजी कोई आज्ञा दें, तो उसका पालि किें। हम उिके द्वािा पहंुच जात ेहैं, तो वे अपिा धन्य भाग्य समझते हैं औि सािा घि-छोटे से बड ेतक हमािी सेवा-सत्काि में मग्ि हो जाते हैं। जहां अपिा आदि िही,ं वहा ंएक क्षण भी ठहििा असह्राय है। जहां ब्रह्राण का आदि िहीं, वहां कल्याण िहीं हो सकता। भाल- महािाज, हमसे तो ऐसा अपिाध िही ंहुआ। मोटे- अपिाध िहीं हुआ! औि अपिाध कहते ककसे हैं? अभी आप ही ि ेघि में जाकि कहा कक यह महाशय तीि सेि लमठाई चट कि गये, पक्की

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तौल। आपिे अभी खािेवाले देखे कहा?ं एक बाि णखलाइये तो आंखें खुल जायें। ऐसे-ऐसे महाि परुूष पड ेहैं, जो पसेिी भि लमठाई खा जायें औि डकाि तक ि लें। एक-एक लमठाई खाि ेके ललए हमािी चचिौिी की जाती है, रूपये ददये जाते हैं। हम लभकु्षक ब्राह्राण िहीं हैं, जो आपके द्वाि पि पड े िहें। आपका िाम सिुकि आये थे, यह ि जािते थे कक यहा ं मेिे भोजि के भी लाले पडेंगे। जाइये, भगवाि ्आपका कल्याण किें!

बाब ूसाहब ऐसा झेंपे कक मुंह से बात ि निकली। जजन्दगी भि में उि पि कभी ऐसी फटकाि ि पडी थी। बहुत बातें बिायी-ंआपकी चचाम ि थी, एक दसूिे ही महाशय की बात थी, लेककि पंडडतजी का क्रोध शान्त ि हुआ। वह सब कुछ सह सकत ेथे, पि अपिे पेट की निन्दा ि सह सकते थे। औितों को रूप की निन्दा जजतिी वप्रय लगती है, उससे कही ंअचधक अवप्रय परुूषों को अपिे पेट की निन्दा लगती है। बाब ूसाहब मिात ेतो थे; पि धडका भी समाया हुआ था कक यह दटक ि जायें। उिकी कृपणता का पिदा खुल गया था, अब इसमें सन्देह ि था। उस पदे को ढांकिा जरूिी था। अपिी कृपणता को नछपाि ेके ललए उन्होंि ेकोई बात उठा ि िखी पि होिेवाली बात होकि िही। पछता िहे थे कक कहा ंसे घि में इसकी बात कहिे गया औि कहा भी तो उच्च स्वि में। यह दिु भी काि लगाये सिुता िहा, ककन्त ुअब पछतािे से क्या हो सकता था? ि जािे ककस मिहूस की सिूत देखी थी यह ववपवत्त गले पडी। अगि इस वक्त यहां से रूि होकि चला गया; तो वहां जाकि बदिाम किेगा औि मेिा सािा कौशल खलु जायेगा। अब तो इसका मुंह बन्द कि देिा ही पडगेा। यह सोच-ववचाि किते हुए वह घि में जाकि िंगीलीबाई से बोले-इस दिु िे हमािी-तुम्हािी बातें सिु ली। रूठकि चला जा िहा है।

िंगीली-जब तुम जािते थे कक द्वाि पि खडा है, तो धीिे से क्यों ि बोल?े

भाल-ववपवत्त आती है; तो अकेले िहीं आती। यह क्या जािता था कक वह द्वाि पि काि लगाये खडा है।

िंगीली- ि जािे ककसका मुंह देख था?

भाल-वही दिु सामिे लेटा हुआ था। जािता तो उधि ताकता ही िहीं। अब तो इसे कुछ दे-ददलाकि िाजी कििा पडगेा।

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िंगीली- ऊंह, जािे भी दो। जब तुम्हें वहा ंवववाह ही िही ंकििा है, तो क्या पिवाह है? जो चाहे समझ,े जो चाहे कहे। भाल-यों जाि ि बचगेी। आओं दस रूपये ववदाई के बहािे दे दूं। ईश्वि कफि इस मिहूस की सिूत ि ददखाये। िंगीली िे बहुत अछतात-ेपछताते दस रुपये निकाले औि बाब ूसाहब िे उन्हें ले जाकि पंडडतजी के चिणों पि िख ददया। पंडडतजी िे ददल में कहा-धत्तिेै मक्खीचसू की! ऐसा िगडा कक याद किोगे। तुम समझत ेहोगे कक दस रुपये देकि इसे उल्ल ूबिा लूगंा। इस फेि में ि िहिा। यहां तुम्हािी िस-िस पहचाित ेहैं। रुपये जेब में िख ललये औि आशीवामद देकि अपिी िाह ली। बाब ूसाहब बडी देकि तक खड ेसोच िहे थे-मालमू िही,ं अब भी मझु ेकृपण ही समझ िहा है या पिदा ढंक गया। कहीं ये रुपये भी तो पािी में िहीं चगि पड।े

चाि

ल्याणी के सामिे अब एक ववषम समस्या आ खडी हुई। पनत के देहान्त के बाद उसे अपिी दिुवस्था का यह पहला औि बहुत ही

कडवा अिभुव हुआ। दरिद्र ववधवा के ललए इससे बडी औि क्या ववपवत्त हो सकती है कक जवाि बेटी लसि पि सवाि हो? लडके िगें पांव पढिे जा सकत ेहैं, चौका-बत्तमि भी अपिे हाथ से ककया जा सकता है, रूखा-सखूा खाकि निवामह ककया जा सकता है, झोपड ेमें ददि काटे जा सकत ेहैं, लेककि यवुती कन्या घि में िही ंबठैाई जा सकती। कल्याणी को भालचन्द्र पि ऐसा क्रोध आता था कक स्वयं जाकि उसके मुंह में काललख लगाऊं, लसि के बाल िोच लू,ं कहंू कक त ूअपिी बात से कफि गया, त ूअपिे बाप का बेटा िहीं। पडंडत मोटेिाम िे उिकी कपट-लीला का िग्ि वतृ्तान्त सिुा ददया था। वह इसी क्रोध में भिी बठैी थी कक कृष्णा खेलती हुई आयी औि बोली-कै ददि में बािात आयेगी अम्मा?ं पंडडत तो आ गये। कल्याणी- बािात का सपिा देख िही है क्या?

कृष्णा-वही चन्दि तो कह िहा है कक-दो-तीि ददि में बािात आयेगी, क्या ि जायेगी अम्मां?

कल्याणी-एक बाि तो कह ददया, लसि क्यों खाती है?

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कृष्णा-सबके घि तो बािात आ िही है, हमािे यहां क्यों िही ंआती?

कल्याणी-तेिे यहां जो बािात लािे वाला था, उसके घि में आग लग गई। कृष्णा-सच, अम्मा!ं तब तो सािा घि जल गया होगा। कहा ंिहत ेहोंगे? बहि कहा ंजाकि िहेगी?

कल्याणी-अिे पगली! त ूतो बात ही िही ंसमझती। आग िहीं लगी। वह हमािे यहां ब्याह ि किेगा। कृष्णा-यह क्यों अम्मा?ं पहले तो वहीं ठीक हो गया था ि?

कल्याणी-बहुत से रुपये मागंता है। मेिे पास उसे देिे को रुपये िही ंहैं। कृष्णा-क्या बड ेलालची हैं, अम्मा?ं

कल्याणी-लालची िही ंतो औि क्या है। पिूा कसाई निदमयी, दगाबाज। कृष्णा-तब तो अम्मा,ं बहुत अच्छा हुआ कक उसके घि बहि का ब्याह िहीं हुआ। बहि उसके साथ कैसे िहती? यह तो खुश होिे की बात है अम्मा,ं तुम िंज क्यों किती हो?

कल्याणी िे पतु्री को स्िेहमयी दृवि से देखा। इिका कथि ककतिा सत्य है? भोले शब्दों में समस्या का ककतिा मालममक निरूपण है? सचमचु यह त ेप्रसन्ि होिे की बात है कक ऐसे कुपात्रों से सम्बन्ध िही ंहुआ, िंज की कोई बात िहीं। ऐसे कुमािसुों के बीच में बेचािी निममला की ि जािे क्या गनत होती अपिे िसीबों को िोती। जिा सा घी दाल में अचधक पड जाता, तो सािे घि में शोि मच जाता, जिा खािा ज्यादा पक जाता, तो सास दनिया लसि पि उठा लेती। लडका भी ऐसा लोभी है। बडी अच्छी बात हुई, िही,ं बेचािी को उम्र भि िोिा पडता। कल्याणी यहा ंसे उठी, तो उसका हृदय हल्का हो गया था। लेककि वववाह तो कििा ही था औि हो सके तो इसी साल, िही ंतो दसूिे साल कफि िये लसिे से तैयारिया ं कििी पडगेी। अब अच्छे घि की जरूित ि थी। अच्छे वि की जरूित ि थी। अभाचगिी को अच्छा घि-वि कहा ं लमलता! अब तो ककसी भानंत लसि का बोझा उताििा था, ककसी भानंत लडकी को पाि लगािा था, उसे कुएं में झोंकिा था। यह रूपवती है, गुणशीला है, चतुि है, कुलीि है, तो हुआ किें, दहेज िही ंतो उसके सािे गणु दोष हैं,

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दहेज हो तो सािे दोष गुण हैं। प्राणी का कोई मलू्य िही,ं केवल देहज का मलू्य है। ककतिी ववषम भग्यलीला है!

कल्याणी का दोष कुछ कम ि था। अबला औि ववधवा होिा ही उसे दोषों से मकु्त िही ंकि सकता। उसे अपिे लडके अपिी लडककयों से कही ंज्यादा प्यािे थे। लडके हल के बलै हैं, भसेू खली पि पहला हक उिका है,

उिके खाि ेसे जो बच ेवह गायों का! मकाि था, कुछ िकद था, कई हजाि के गहिे थे, लेककि उसे अभी दो लडकों का पालि-पोषण कििा था, उन्हें पढािा-ललखािा था। एक कन्या औि भी चाि-पांच साल में वववाह किि ेयोग्य हो जायेगी। इसललए वह कोई बडी िकम दहेज में ि दे सकती थी, आणखि लडकों को भी तो कुछ चादहए। वे क्या समझेंगे कक हमािा भी कोई बाप था।

पंडडत मोटेिाम को लखिऊ से लौटे पन्द्रह ददि बीत चकेु थे। लौटिे के बाद दसूिे ही ददि से वह वि की खोज में निकले थे। उन्होंिे प्रण ककया था कक मैं लखिऊ वालों को ददखा दूंगा कक संसाि में तुम्ही ंअकेले िही ंहो, तुम्हािे ऐसे औि भी ककतिे पड ेहुए हैं। कल्याणी िोज ददि चगिा किती थी। आज उसिे उन्हें पत्र ललखिे का निश्चय ककया औि कलम-दवात लेकि बठैी ही थी कक पडंडत मोटेिाम ि ेपदापमण ककया। कल्याणी-आइये पडंडतजी, मैं तो आपको खत ललखिे जा िही थी, कब लौटे?

मोटेिाम-लौटा तो प्रात:काल ही था, पि इसी समय एक सेठ के यहां से निमन्त्रण आ गया। कई ददि से ति माल ि लमले थे। मैंिे कहा कक लगे हाथ यह भी काम निपटाता चलूं। अभी उधि ही से लौटा आ िहा हंू, कोई पांच सौ ब्रह्राणों को पगंत थी। कल्याणी-कुछ कायम भी लसद्ध हुआ या िास्ता ही िापिा पडा। मोटेिाम- कायम क्यों ि लसद्ध होगा? भला, यह भी कोई बात है? पांच जगह बातचीत कि आया हंू। पांचों की िकल लाया हंू। उिमें से आप चाहे जजसे पसन्द किें। यह देणखए इस लडके का बाप डाक के सीगे में सौ रूपये महीिे का िौकि है। लडका अभी कालेज में पढ िहा है। मगि िौकिी का भिोसा है, घि में कोई जायदाद िही।ं लडका होिहाि मालमू होता है। खािदाि भी अच्छा है दो हजाि में बात तय हो जायेगी। मागंत ेतो यह तीि हजाि हैं।

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कल्याणी- लडके के कोई भाई है?

मोटे-िही,ं मगि तीि बहिें हैं औि तीिों क्वांिी। माता जीववत है। अच्छा अब दसूिी िकल ददये। यह लडका िेल के सीगे में पचास रूपये महीिा पाता है। मां-बाप िही ंहैं। बहुत ही रूपवाि ्सशुील औि शिीि से खूब हृि-पिु कसिती जवाि है। मगि खािदाि अच्छा िहीं, कोई कहता है, मां िाइि थी, कोई कहता है, ठकुिाइि थी। बाप ककसी रियासत में मखु्ताि थे। घि पि थोडी सी जमींदािी है, मगि उस पि कई हजाि का कजम है। वहां कुछ लेिा-देिा ि पडगेा। उम्र कोई बीस साल होगी। कल्याणी-खािदाि में दाग ि होता, तो मंजूि कि लेती। देखकि तो मक्खी िही ंनिगली जाती। मोटे-तीसिी िकल देणखए। एक जमींदाि का लडका है, कोई एक हजाि सालािा िफा है। कुछ खेती-बािी भी होती है। लडका पढ-ललखा तो थोडा ही है, कचहिी-अदालत के काम में चतिु है। दहुाज ूहै, पहली िी को मिे दो साल हुए। उससे कोई संताि िही,ं लेककि िहिा-सहि, मोटा है। पीसिा-कूटिा घि ही में होता है। कल्याणी- कुछ देहज मांगत ेहैं?

मोटे-इसकी कुछ ि पनूछए। चाि हजाि सिुात े हैं। अच्छा यह चौथी िकल ददये। लडका वकील है, उम्र कोई पैंतीस साल होगी। तीि-चाि सौ की आमदिी है। पहली िी मि चकुी है उससे तीि लडके भी हैं। अपिा घि बिवाया है। कुछ जायदाद भी खिीदी है। यहा ंभी लेि-देि का झगडा िही ंहै। कल्याणी- खािदाि कैसा है?

मोटे-बहुत ही उत्तम, पिुािे िईस हैं। अच्छा, यह पांचवी ंिकल ददए। बाप का छापाखािा है। लडका पढा तो बी. ए. तक है, पि उस छापेखािे में काम किता है। उम्र अठािह साल की होगी। घि में पे्रस के लसवाय कोई जायदाद िहीं है, मगि ककसी का कजम लसि पि िहीं। खािदाि ि बहुत अच्छा है, ि बिुा। लडका बहुत सनु्दि औि सच्चरित्र है। मगि एक हजाि से कम में मामला तय ि होगा, मांगत ेतो वह तीि हजाि हैं। अब बताइए, आप कौि-सा वि पसन्द किती हैं?

कल्याणी-आपकों सबों में कौि पसन्द है?

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मोटे-मझु ेतो दो वि पसन्द हैं। एक वह जो िेलवई में है औि दसूिा जो छापेखािे में काम किता है। कल्याणी-मगि पहले के तो खािदाि में आप दोष बतात ेहैं?

मोटे-हा,ं यह दोष तो है। छापखेािे वाले को ही िहि ेदीजजये। कल्याणी-यहा ं एक हजाि देिे को कहा ं से आयेगा? एक हजाि तो आपका अिमुाि है, शायद वह औि मुंह फैलाये। आप तो इस घि की दशा देख ही िहे हैं, भोजि लमलता जाये, यही गिीमत है। रूपये कहां से आयेंगे? जमींदाि साहब चाि हजाि सिुात ेहैं, डाक बाब ूभी दो हजाि का सवाल कित ेहैं। इिको जािे दीजजए। बस, वकील साहब ही बच सकत ेहैं। पैंतीस साल की उम्र भी कोई ज्यादा िहीं। इन्ही ंको क्यों ि िणखए।

मोटेिाम-आप खूब सोच-ववचाि लें। मैं यों आपकी मजी का ताबेदाि हंू। जहा ंकदहएगा वहां जाकि टीका कि आऊंगा। मगि हजाि का मुंह ि देणखए,

छापखेाि े वाला लडका ित्न है। उसके साथ कन्या का जीवि सफल हो जाएगा। जैसी यह रूप औि गणु की पिूी है, वसैा ही लडका भी सनु्दि औि सशुील है। कल्याणी-पसन्द तो मझु ेभी यही है महािाज, पि रुपये ककसके घि से आयें! कौि देि ेवाला है! है कोई दािी? खािेवाले खा-पीकि चंपत हुए। अब ककसी की भी सिूत िहीं ददखाई देती, बजल्क औि मझुसे बिुा माित ेहैं कक हमें निकाल ददया। जो बात अपिे बस के बाहि है, उसके ललए हाथ ही क्यों फैलाऊं? सन्ताि ककसको प्यािी िही ं होती? कौि उसे सखुी िही ं देखिा चाहता? पि जब अपिा काब ूभी हो। आप ईश्वि का िाम लेकि वकील साहब को टीका कि आइये। आय ुकुछ अचधक है, लेककि मििा-जीिा ववचध के हाथ है। पैंतीस साल का आदमी बढु्डा िही ंकहलाता। अगि लडकी के भाग्य में सखु भोगिा बदा है, तो जहां जायेगी सखुी िहेगी, द:ुख भोगिा है, तो जहा ंजायेगी द:ुख झलेेगी। हमािी निममला को बच्चों से प्रेम है। उिके बच्चों को अपिा समझगेी। आप शभु महूुतम देखकि टीका कि आयें।

पाचं

ममला का वववाह हो गया। ससिुाल आ गयी। वकील साहब का िाम था मुंशी तोतािाम। सांवले िंग के मोटे-ताजे आदमी थे। उम्र तो नि

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अभी चालीस से अचधक ि थी, पि वकालत के कदठि परिश्रम िे लसि के बाल पका ददये थे। व्यायाम कििे का उन्हें अवकाश ि लमलता था। वहा ंतक कक कभी कहीं घमूिे भी ि जात,े इसललए तोंद निकल आई थी। देह के स्थिू होते हुए भी आये ददि कोई-ि-कोई लशकायत िहती थी। मंदजग्ि औि बवासीि से तो उिका चचिस्थायी सम्बन्ध था। अतएव बहुत फंूक-फंूककि कदम िखत े थे। उिके तीि लडके थे। बडा मंसािाम सोहल वषम का था, मंझला जजयािाम बािह औि लसयािाम सात वषम का। तीिों अंगे्रजी पढत ेथे। घि में वकील साहब की ववधवा बदहि के लसवा औि कोई औित ि थी। वही घि की मालककि थी। उिका िाम था रुकलमणी औि अवस्था पचास के ऊपि थी। ससिुाल में कोई ि था। स्थायी िीनत से यही ंिहती थीं। तोतािाम दम्पनत-ववज्ञाि में कुशल थे। निममला के प्रसन्ि िखिे के ललए उिमें जो स्वाभाववक कमी थी, उसे वह उपहािों से पिूी कििा चाहत ेथे। यद्यवप वह बहु ही लमतव्ययी परुूष थे, पि निममला के ललए कोई-ि-कोई तोहफा िोज लाया किते। मौके पि धि की पिवाइ ि कित े थे। लडके के ललए थोडा दधू आता था, पि निममला के ललए मेवे, मिुब्बे, लमठाइया-ंककसी चीज की कमी ि थी। अपिी जजन्दगी में कभी सिै-तमाश ेदेखि ेि गये थे,

पि अब छुदट्टयों में निममला को लसिेमा, सिकस, एटि, ददखाि े ले जात े थे। अपिे बहुमलू्य समय का थोडा-सा दहस्सा उसके साथ बैंठकि ग्रामोफोि बजािे में व्यतीत ककया किते थे। लेककि निममला को ि जािे क्यों तोतािाम के पास बठैिे औि हंसिे-बोलिे में संकोच होता था। इसका कदाचचत ्यह कािण था कक अब तक ऐसा ही एक आदमी उसका वपता था, जजसके सामिे वह लसि-झकुाकि, देह चिुाकि निकलती थी, अब उिकी अवस्था का एक आदमी उसका पनत था। वह उसे पे्रम की वस्त ु िही ं सम्माि की वस्तु समझती थी। उिसे भागती कफिती, उिको देखत ेही उसकी प्रफुल्लता पलायि कि जाती थी। वकील साहब को िके दम्पवत्त-ववज्ञाि ि लसखाया था कक यवुती के सामिे खूब पे्रम की बातें कििी चादहये। ददल निकालकि िख देिा चदहये,

यही उसके वशीकिण का मखु्य मंत्र है। इसललए वकील साहब अपिे पे्रम-प्रदशमि में कोई कसि ि िखत ेथे, लेककि निममला को इि बातों से घणृा होती थी। वही बातें, जजन्हें ककसी यवुक के मखु से सिुकि उिका हृदय पे्रम से उन्मत्त हो जाता, वकील साहब के मुंह से निकलकि उसके हृदय पि शि के

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समाि आघात किती थी।ं उिमें िस ि था उल्लास ि था, उन्माद ि था, हृदय ि था, केवल बिावट थी, घोखा था औि शषु्क, िीिस शब्दाडम्बि। उसे इत्र औि तेल बिुा ि लगता, सिै-तमाश ेबिेु ि लगत,े बिाव-लसगंाि भी बिुा ि लगता था, बिुा लगता था, तो केवल तोतािाम के पास बठैिा। वह अपिा रूप औि यौवि उन्हें ि ददखािा चाहती थी, क्योंकक वहां देखिे वाली आंखें ि थीं। वह उन्हें इि िसों का आस्वादि लेिे योग्य ि समझती थी। कली प्रभात-समीि ही के सपशम से णखलती है। दोिों में समाि सािस्य है। निममला के ललए वह प्रभात समीि कहां था?

पहला महीिा गुजित ेही तोतािाम िे निममला को अपिा खजाचंी बिा ललया। कचहिी से आकि ददि-भि की कमाई उसे दे देत।े उिका ख्याल था कक निममला इि रूपयों को देखकि फूली ि समाएगी। निममला बड ेशौक से इस पद का काम अंजाम देती। एक-एक पसेै का दहसाब ललखती, अगि कभी रूपये कम लमलत,े तो पछूती आज कम क्यों हैं। गहृस्थी के सम्बन्ध में उिसे खूब बातें किती। इन्हीं बातों के लायक वह उिको समझती थी। ज्योंही कोई वविोद की बात उिके मुंह से निकल जाती, उसका मखु ललि हो जाता था। निममला जब विाभषू्णों से अलंकृत होकि आइिे के सामिे खडी होती औि उसमें अपिे सौंन्दयम की सषुमापणूम आभा देखती, तो उसका हृदय एक सतषृ्ण कामिा से तडप उठता था। उस वक्त उसके हृदय में एक ज्वाला-सी उठती। मि में आता इस घि में आग लगा दूं। अपिी माता पि क्रोध आता, पि सबसे अचधक क्रोध बेचािे नििपिाध तोतािाम पि आता। वह सदैव इस ताप से जला किती। बाकंा सवाि लद्रद-ूटटू्ट पि सवाि होिा कब पसन्द किेगा, चाहे उसे पदैल ही क्यों ि चलिा पड?े निममला की दशा उसी बाकें सवाि की-सी थी। वह उस पि सवाि होकि उडिा चाहती थी, उस उल्लासमयी ववद्यत ्गनत का आिन्द उठािा चाहती थी, टटू्ट के दहिदहिािे औि किौनतया ंखडी किि ेसे क्या आशा होती? संभव था कक बच्चों के साथ हंसिे-खेलिे से वह अपिी दशा को थोडी देि के ललए भलू जाती, कुछ मि हिा हो जाता, लेककि रुकलमणी देवी लडकों को उसके पास फटकि ेतक ि देतीं, मािो वह कोई वपशाचचिी है, जो उन्हें निगल जायेगी। रुकलमणी देवी का स्वभाव सािे संसाि से नििाला था, यह पता लगािा कदठि था कक वह ककस बात से खुश होती थीं औि ककस बात से िािाज। एक बाि जजस बात से खुश हो जाती

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थीं, दसूिी बाि उसी बात से जल जाती थी। अगि निममला अपिे कमिे में बठैी िहती, तो कहती ंकक ि जािे कहां की मिहूलसि है! अगि वह कोठे पि चढ जाती या महरियों से बातें किती, तो छाती पीटि ेलगती-ंि लाज है, ि शिम, निगोडी िे हया भिू खाई! अब क्या कुछ ददिों में बाजाि में िाचगेी! जब से वकील साहब िे निममला के हाथ में रुपये-पसेै देिे शरुू ककये,

रुकलमणी उसकी आलोचिा कििे पि आरूढ हो गयी। उन्हें मालमू होता था। कक अब प्रलय होिे में बहुत थोडी कसि िह गयी है। लडकों को बाि-बाि पसैों की जरूित पडती। जब तक खुद स्वालमिी थी,ं उन्हें बहला ददया किती थी।ं अब सीधे निममला के पास भेज देतीं। निममला को लडकों के चटोिापि अच्छा ि लगता था। कभी-कभी पसेै देि ेसे इन्काि कि देती। रुकलमणी को अपिे वाग्बाण सि कििे का अवसि लमल जाता-अब तो मालककि हुई है, लडके काहे को जजयेंगे। बबिा मा ंके बच्च ेको कौि पछेू? रूपयों की लमठाइयां खा जाते थे, अब धेले-धेले को तिसते हैं। निममला अगि चचढकि ककसी ददि बबिा कुछ पछेू-ताछे पसेै दे देती, तो देवीजी उसकी दसूिी ही आलोचिा किती-ंइन्हें क्या, लडके मिे या जजयें, इिकी बला से, मां के बबिा कौि समझाये कक बेटा, बहुत लमठाइया ंमत खाओ। आयी-गयी तो मेिे लसि जायेगी, इन्हें क्या? यही ंतक होता, तो निममला शायद जब्त कि जाती, पि देवीजी तो खकुफया पलुलस से लसपाही की भानंत निममला का पीछा किती िहती थीं। अगि वह कोठे पि खडी है, तो अवश्य ही ककसी पि निगाह डाल िही होगी, महिी से बातें किती है, तो अवश्य ही उिकी निन्दा किती होगी। बाजाि से कुछ मंगवाती है, तो अवश्य कोई ववलास वस्तु होगी। यह बिाबि उसके पत्र पढिे की चिेा ककया किती। नछप-नछपकि बातें सिुा किती। निममला उिकी दोधिी तलवाि से कांपती िहती थी। यहां तक कक उसिे एक ददि पनत से कहा-आप जिा जीजी को समझा दीजजए, क्यों मेिे पीछे पड िहती हैं?

तोतािाम ि ेतजे होकि कह- तुम्हें कुछ कहा है, क्या?

‘िोज ही कहती हैं। बात मुंह से निकालिा मजुश्कल है। अगि उन्हें इस बात की जलि हो कक यह मालककि क्यों बिी हुई है, तो आप उन्हीं को रूपये-पसेै दीजजये, मझु ेि चादहये, यही मालककि बिी िहें। मैं तो केवल इतिा चाहती हंू कक कोई मझु ेतािे-मेहिे ि ददया किे।’ यह कहत-ेकहते निममला की आंखों से आंस ूबहिे लगे। तोतािाम को अपिा पे्रम ददखािे का यह बहुत ही अच्छा मौका लमला। बोले-मैं आज ही

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उिकी खबि लूगंा। साफ कह दूंगा, मुंह बन्द किके िहिा है, तो िहो, िही ंतो अपिी िाह लो। इस घि की स्वालमिी वह िही ंहै, तुम हो। वह केवल तुम्हािी सहायता के ललए हैं। अगि सहायता कििे के बदले तुम्हें ददक किती हैं, तो उिके यहा ंिहिे की जरूित िहीं। मैंिे सोचा था कक ववधवा हैं, अिाथ हैं, पाव भि आटा खायेंगी, पडी िहेंगी। जब औि िौकि-चाकि खा िहे हैं, तो वह तो अपिी बदहि ही है। लडकों की देखभाल के ललए एक औित की जरूित भी थी, िख ललया, लेककि इसके यह माि ेिही ंकक वह तुम्हािे ऊपि शासि किें। निममला िे कफि कहा-लडकों को लसखा देती हैं कक जाकि मा ं से पसेै मांगे, कभी कुछ-कभी कुछ। लडके आकि मेिी जाि खात ेहैं। घडी भि लेटिा मजुश्कल हो जाता है। डांटती हंू, तो वह आखें लाल-पीली किके दौडती हैं। मझु ेसमझती हैं कक लडकों को देखकि जलती है। ईश्वि जाित ेहोंगे कक मैं बच्चों को ककतिा प्याि किती हंू। आणखि मेिे ही बच्च ेतो हैं। मझु ेउिसे क्यों जलि होिे लगी?

तोतािाम क्रोध से कापं उठे। बोल-तुम्हें जो लडका ददक किे, उसे पीट ददया किो। मैं भी देखता हंू कक लौंड ेशिीि हो गये हैं। मंसािाम को तो में बोडडिंग हाउस में भेज दूंगा। बाकी दोिों को तो आज ही ठीक ककये देता हंू। उस वक्त तोतािाम कचहिी जा िहे थे, डांट-डपट किि ेका मौका ि था, लेककि कचहिी से लौटत े ही उन्होंिे घि में रुजक्मणी से कहा-क्यों बदहि,

तुम्हें इस घि में िहिा है या िही?ं अगि िहिा है, शान्त होकि िहो। यह क्या कक दसूिों का िहिा मजुश्कल कि दो।

रुजक्मणी समझ गयी ंकक बहू िे अपिा वाि ककया, पि वह दबिे वाली औित ि थी।ं एक तो उम्र में बडी नतस पि इसी घि की सेवा में जजन्दगी काट दी थी। ककसकी मजाल थी कक उन्हें बेदखल कि दे! उन्हें भाई की इस कु्षद्रता पि आश्चयम हुआ। बोली-ंतो क्या लौंडी बिाकि िखेगे? लौंडी बिकि िहिा है, तो इस घि की लौंडी ि बिूंगी। अगि तुम्हािी यह इच्छा हो कक घि में कोई आग लगा दे औि मैं खडी देखा करंू, ककसी को बेिाह चलते देखूं; तो चपु साध लू,ं जो जजसके मि में आये किे, मैं लमट्टी की देवी बिी िहंू, तो यह मझुसे ि होगा। यह हुआ क्या, जो तुम इतिा आपे से बाहि हो िहे हो? निकल गयी सािी बवुद्धमािी, कल की लौंडडया चोटी पकडकि िचाि े लगी? कुछ पछूिा ि ताछिा, बस, उसिे ताि खीचंा औि तुम काठ के लसपाही की तिह तलवाि निकालकि खड ेहो गये।

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तोता-सिुता हंू, कक तमु हमेशा खुचि निकालती िहती हो, बात-बात पि तािे देती हो। अगि कुछ सीख देिी हो, तो उसे प्याि से, मीठे शब्दों में देिी चादहये। तािों से सीख लमलिे के बदले उलटा औि जी जलि ेलगता है।

रुजक्मणी-तो तुम्हािी यह मजी है कक ककसी बात में ि बोलू,ं यही सही, ककि कफि यह ि कहिा, कक तुम घि में बठैी थी,ं क्यों िहीं सलाह दी। जब मेिी बातें जहि लगती हैं, तो मझु ेक्या कुते्त िे काटा है, जो बोलूं? मसल है- ‘िाटों खेती, बहुरियों घि।’ मैं भी देखू,ं बहुरिया कैसे कि चलाती है! इतिे में लसयािाम औि जजयािाम स्कूल से आ गये। आते ही आत ेदोिों बआुजी के पास जाकि खािे को मागंिे लगे। रुजक्मणी ि ेकहा-जाकि अपिी ियी अम्मां से क्यों िही ंमागंते, मझु ेबोलिे का हुक्म िही ंहै। तोता-अगि तुम लोगों िे उस घि में कदम िखा, तो टागं तोड दूंगा। बदमाशी पि कमि बाधंी है। जजयािाम जिा शोख था। बोला-उिको तो आप कुछ िही ंकहत,े हमी ंको धमकात ेहैं। कभी पसेै िहीं देती।ं लसयािाम िे इस कथि का अिमुोदि ककया-कहती हैं, मझु ेददक किोगे तो काि काट लूंगी। कहती है कक िहीं जजया?

निममला अपिे कमिे से बोली-मैंिे कब कहा था कक तुम्हािे काि काट लूंगी अभी से झठू बोलिे लगे?

इतिा सिुिा था कक तोतािाम िे लसयािाम के दोिों काि पकडकि उठा ललया। लडका जोि से चीख मािकाि िोिे लगा। रुजक्मणी िे दौडकि बच्च े को मुंशीजी के हाथ से छुडा ललया औि बोली-ं बस, िहिे भी दो, क्या बच्च ेको माि डालोगे? हाय-हाय! काि लाल हो गया। सच कहा है, ियी बीवी पाकि आदमी अन्धा हो जाता है। अभी से यह हाल है, तो इस घि के भगवाि ही माललक हैं। निममला अपिी ववजय पि मि-ही-मि प्रसन्ि हो िही थी, लेककि जब मुंशी जी िे बच्च े का काि पकडकि उठा ललया, तो उससे ि िहा गया। छुडािे को दौडी, पि रुजक्मणी पहले ही पहंुच गयी थीं। बोली-ंपहले आग लगा दी, अब बझुािे दौडी हो। जब अपिे लडके होंगे, तब आंखें खुलेंगी। पिाई पीि क्या जािो?

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निममला- खड ेतो हैं, पछू लो ि, मैंिे क्या आग लगा दी? मैंिे इतिा ही कहा था कक लडके मझु ेपसैों के ललए बाि-बाि ददक कित ेहैं, इसके लसवाय जो मेिे मुंह से कुछ निकला हो, तो मेिे आंखें फूट जायें। तोता-मैं खुद इि लौंडों की शिाित देखा किता हंू, अन्धा थोड ेही हंू। तीिों जजद्दी औि शिीि हो गये हैं। बड ेलमयां को तो मैं आज ही होस्टल में भेजता हंू। रुजक्मणी-अब तक तमु्हें इिकी कोई शिाित ि सझूी थी, आज आंखें क्यों इतिी तजे हो गयी?ं

तोतािाम- तुम्ही ंि इन्हें इतिा शोख कि िखा है। रुकलमणी- तो मैं ही ववष की गांठ हंू। मेिे ही कािण तुम्हािा घि चौपट हो िहा है। लो मैं जाती हंू, तुम्हािे लडके हैं, मािो चाहे काटो, ि बोलूंगी।

यह कहकि वह वहा ं से चली गयी।ं निममला बच्च े को िोत े देखकि ववहृल हो उठी। उसिे उसे छाती से लगा ललया औि गोद में ललए हुए अपिे कमिे में लाकि उसे चमुकाििे लगी, लेककि बालक औि भी लससक-लससक कि िोिे लगा। उसका अबोध हृदय इस प्याि में वह मात-ृस्िेह ि पाता था, जजससे दैव ि ेउसे वचंचत कि ददया था। यह वात्सल्य ि था, केवल दया थी। यह वह वस्त ुथी, जजस पि उसका कोई अचधकाि ि था, जो केवल लभक्षा के रूप में उसे दी जा िही थी। वपता िे पहले भी दो-एक बाि मािा था, जब उसकी मां जीववत थी, लेककि तब उसकी मां उसे छाती से लगाकि िोती ि थी। वह अप्रसन्ि होकि उससे बोलिा छोड देती, यहा ंतक कक वह स्वयं थोडी ही देि के बाद कुछ भलूकि कफि माता के पास दौडा जाता था। शिाित के ललए सजा पािा तो उसकी समझ में आता था, लेककि माि खािे पाि चमुकािा जािा उसकी समझ में ि आता था। मात-ृपे्रम में कठोिता होती थी, लेककि मदृलुता से लमली हुई। इस पे्रम में करूणा थी, पि वह कठोिता ि थी, जो आत्मीयता का गुप्त संदेश है। स्वस्थ अंग की पािवाह कौि किता है? लेककि वही अंग जब ककसी वेदिा से टपकिे लगता है, तो उसे ठेस औि घक्के से बचािे का यत्न ककया जाता है। निममला का करूण िोदि बालक को उसके अिाथ होिे की सचूिा दे िहा था। वह बडी देि तक निममला की गोद में बठैा िोता िहा औि िोते-िोते सो गया। निममला िे उसे चािपाई पि सलुािा चाहा, तो बालक िे सषुपु्तावस्था में अपिी दोिों कोमल बाहें उसकी गदमि में डाल दीं औि ऐसा चचपट गया, मािो िीच ेकोई गढा हो। शकंा औि भय से

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उसका मखु ववकृत हो गया। निममला िे कफि बालक को गोद में उठा ललया, चािपाई पि ि सलुा सकी। इस समय बालक को गोद में ललये हुए उसे वह तुवि हो िही थी, जो अब तक कभी ि हुई थी, आज पहली बाि उसे आत्मवेदिा हुई, जजसके िा आंख िही ं खुलती, अपिा कत्तमव्य-मागम िही ंसमझता। वह मागम अब ददखायी देिे लगा।

छह

स ददि अपिे प्रगाढ प्रणय का सबल प्रमाण देिे के बाद मुंशी तोतािाम को आशा हुई थी कक निममला के ममम-स्थल पि मेिा लसक्का जम

जायेगा, लेककि उिकी यह आशा लेशमात्र भी पिूी ि हुई बजल्क पहले तो वह कभी-कभी उिसे हंसकि बोला भी किती थी, अब बच्चों ही के लालि-पालि में व्यस्त िहिे लगी। जब घि आत,े बच्चों को उसके पास बठेै पाते। कभी देखत ेकक उन्हें ला िही है, कभी कपड ेपहिा िही है, कभी कोई खेल, खेला िही है औि कभी कोई कहािी कह िही है। निममला का तवृषत हृदय प्रणय की ओि से नििाश होकि इस अवलम्ब ही को गिीमत समझिे लगा, बच्चों के साथ हंसि-ेबोलिे में उसकी मात-ृकल्पिा तपृ्त होती थीं। पनत के साथ हंसिे-बोलिे में उसे जो संकोच, जो अरुचच तथा जो अनिच्छा होती थी, यहां तक कक वह उठकि भाग जािा चाहती, उसके बदले बालकों के सच्चे, सिल स्िेह से चचत्त प्रसन्ि हो जाता था। पहले मंसािाम उसके पास आत ेहुए णझझकता था, लेककि मािलसक ववकास में पांच साल छोटा। हॉकी औि फुटबाल ही उसका संसाि, उसकी कल्पिाओं का मकु्त-के्षत्र तथा उसकी कामिाओं का हिा-भिा बाग था। इकहिे बदि का छिहिा, सनु्दि, हंसमखु, लज्जशील बालक था, जजसका घि से केवल भोजि का िाता था, बाकी सािे ददि ि जािे कहा ंघमूा किता। निममला उसके मुंह से खेल की बातें सिुकि थोडी देि के ललए अपिी चचन्ताओं को भलू जाती औि चाहती थी एक बाि कफि वही ददि आ जात,े

जब वह गुडडया खेलती औि उसके ब्याह िचाया किती थी औि जजसे अभी थोड ेआह, बहुत ही थोड ेददि गुजिे थे। मुंशी तोतािाम अन्य एकान्त-सेवी मिषु्यों की भांनत ववषयी जीव थे। कुछ ददिों तो वह निममला को सिै-तमाश े ददखात ेिहे, लेककि जब देखा कक इसका कुछ फल िही ंहोता, तो कफि एकान्त-सेवि किि ेलगे। ददि-भि के

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कदठि मालसक परिश्रम के बाद उिका चचत्त आमोद-प्रमोद के ललए लालनयत हो जाता, लेककि जब अपिी वविोद-वादटका में प्रवेश कित ेऔि उसके फूलों को मिुझाया, पौधों को सखूा औि क्यारियों से धलू उडती हुई देखत,े तो उिका जी चाहता-क्यों ि इस वादटका को उजाड दूं? निममला उिसे क्यों वविक्त िहती है, इसका िहस्य उिकी समझ में ि आता था। दम्पनत शाि के सािे मन्त्रों की पिीक्षा कि चकेु, पि मिोिथ पिूा ि हुआ। अब क्या कििा चादहये, यह उिकी समझ में ि आता था। एक ददि वह इसी चचतंा में बठेै हुए थे कक उिके सहपाठी लमत्र ियिसखुिाम आकि बठै गये औि सलाम-वलाम के बाद मसु्किाकि बोले-आजकल तो खूब गहिी छिती होगी। ियी बीवी का आललगंि किके जवािी का मजा आ जाता होगा? बड ेभाग्यवाि हो! भई रूठी हुई जवािी को मिािे का इससे अच्छा कोई उपाय िही ंकक िया वववाह हो जाये। यहां तो जजन्दगी बवाल हो िही है। पत्नी जी इस बिुी तिह चचमटी हैं कक ककसी तिह वपण्ड ही िहीं छोडती। मैं तो दसूिी शादी की कफक्र में हंू। कहीं डौल हो, तो ठीक-ठाक कि दो। दस्तूिी में एक ददि तुम्हें उसके हाथ के बिे हुए पाि णखला देंगे। तोतािाम िे गम्भीि भाव से कहा-कही ं ऐसी दहमाकत ि कि बठैिा, िहीं तो पछताओगे। लौंडडया ंतो लौंडों से ही खुश िहती हैं। हम तुम अब उस काम के िहीं िहे। सच कहता हंू मैं तो शादी किके पछता िहा हंू, बिुी बला गले पडी! सोचा था, दो-चाि साल औि जजन्दगी का मजा उठा लूं, पि उलटी आंतें गले पडी।ं ियिसखु-तुम क्या बातें कित े हो। लौडडयों को पंजों में लािा क्या मजुश्कल बात है, जिा सिै-तमाश ेददखा दो, उिके रूप-िंग की तािीफ कि दो, बस, िंग जम गया। तोता-यह सब कुछ कि-धिके हाि गया। ियि-अच्छा, कुछ इत्र-तेल, फूल-पते्त, चाट-वाट का भी मजा चखाया?

तोता-अजी, यह सब कि चकुा। दम्पवत्त-शाि के सािे मन्त्रों का इम्तहाि ले चकुा, सब कोिी गप्पे हैं। ियि-अच्छा, तो अब मेिी एक सलाह मािो, जिा अपिी सिूत बिवा लो। आजकल यहां एक बबजली के डॉक्टि आये हुए हैं, जो बढुापे के सािे निशाि लमटा देत ेहैं। क्या मजाल कक चहेिे पि एक झिुीया या लसि का बाल

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पका िह जाये। ि जािे क्या जाद ूकि देत ेहैं कक आदमी का चोला ही बदल जाता है।

तोता-फीस क्या लेते हैं?

ियि-फीस तो सिुा है, शायद पांच सौ रूपये!

तोता-अजी, कोई पाखण्डी होगा, बेवकूफों को लटू िहा होगा। कोई िोगि लगाकि दो-चाि ददि के ललए जिा चहेिा चचकिा कि देता होगा। इश्तहािी डॉक्टिों पि तो अपिा ववश्वास ही िहीं। दस-पांच की बात होती, तो कहता, जिा ददल्लगी ही सही। पांच सौ रूपये बडी िकम है। ियि-तुम्हािे ललए पाचं सौ रूपये कौि बडी बात है। एक महीिे की आमदिी है। मेिे पास तो भाई पांच सौ रूपये होते, तो सबसे पहला काम यही किता। जवािी के एक घण्टे की कीमत पांच सौ रूपये से कही ंज्यादा है।

तोता-अजी, कोई सस्ता िसु्खा बताओ, कोई फकीिी जुडी-बटूी जो कक बबिा हिम-कफटकिी के िंग चीखा हो जाये। बबजली औि िेडडयम बड ेआदलमयों के ललए िहिे दो। उन्हीं को मबुािक हो। ियि-तो कफि िंगीलेपि का स्वागं िचो। यह ढीला-ढाला कोट फें कों, तंजेब की चसु्त अचकि हो, चनु्िटदाि पाजामा, गले में सोिे की जंजीि पडी हुई, लसि पि जयपिुी साफा बांधा हुआ, आंखों में सिुमा औि बालों में दहिा का तेल पडा हुआ। तोंद का वपचकिा भी जरूिी है। दोहिा कमिबन्द बांधे। जिा तकलीफ तो होगी, पाि अचकि सज उठेगी। णखजाब मैं ला दूंगा। सौ-पचास गजलें याद कि लो औि मौके-मौके से शिे पढी। बातों में िस भिा हो। ऐसा मालमू हो कक तुम्हें दीि औि दनुिया की कोई कफक्र िहीं है, बस, जो कुछ है, वप्रयतमा ही है। जवांमदी औि साहस के काम कििे का मौका ढंूढत ेिहो। िात को झठू-मठू शोि किो-चोि-चोि औि तलवाि लेकि अकेले वपल पडो। हा,ं जिा मौका देख लेिा, ऐसा ि हो कक सचमचु कोई चोि आ जाये औि तुम उसके पीछे दौडो, िहीं तो सािी कलई खुल जायेगी औि मफु्त के उल्ल ूबिोगे। उस वक्त तो जवांमदी इसी में है कक दम साधे खड ेिहो, जजससे वह समझ ेकक तुम्हें खबि ही िहीं हुई, लेककि ज्योंही चोि भाग खडा हो, तुम भी उछलकि बाहि निकलो औि तलवाि लेकि ‘कहा?ं कहा?ं’ कहत े दौडो। ज्यादा िही,ं एक महीिा मेिी बातों का इम्तहाि किके देखें। अगि वह तुम्हािी दम ि भििे लगे, तो जो जुमामिा कहो, वह दूं।

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तोतािाम िे उस वक्त तो यह बातें हंसी में उडा दी,ं जैसा कक एक व्यवहाि कुशल मिषु्य को कििा चदहए था, लेककि इसमें की कुछ बातें उसके मि में बठै गयी। उिका असि पडिे में कोई संदेह ि था। धीिे-धीिे िंग बदलिे लगे, जजसमें लोग खटक ि जायें। पहले बालों से शरुू ककया, कफि सिुमे की बािी आयी, यहां तक कक एक-दो महीिे में उिका कलेवि ही बदल गया। गजलें याद कििे का प्रस्ताव तो हास्यास्पद था, लेककि वीिता की डीगं माििे में कोई हानि ि थी। उस ददि से वह िोज अपिी जवांमदी का कोई-ि-कोई प्रसंग अवश्य छेड देते। निममला को सन्देह होिे लगा कक कही ंइन्हें उन्माद का िोग तो िहीं हो िहा है। जो आदमी मूगं की दाल औि मोटे आटे के दो फुलके खाकि भी िमक सलेुमािी का महुताज हो, उसके छैलेपि पि उन्माद का सन्देह हो, तो आश्चयम ही क्या? निममला पि इस पागलपि का औि क्या िंग जमता? हों उसे उि पाि दया आजे लगी। क्रोध औि घणृा का भाव जाता िहा। क्रोध औि घणृा उि पि होती है, जो अपिे होश में हो, पागल आदमी तो दया ही का पात्र है। वह बात-बात में उिकी चटुककयां लेती, उिका मजाक उडाती, जैसे लोग पागलों के साथ ककया किते हैं। हा,ं इसका ध्याि िखती थी कक वह समझ ि जायें। वह सोचती, बेचािा अपिे पाप का प्रायजश्चत कि िहा है। यह सािा स्वागं केवल इसललए तो है कक मैं अपिा द:ुख भलू जाऊं। आणखि अब भाग्य तो बदल सकता िहीं, इस बेचािे को क्यों जलाऊं?

एक ददि िात को िौ बजे तोतािाम बांके बिे हुए सिै किके लौटे औि निममला से बोल-ेआज तीि चोिों से सामिा हो गया। जिा लशवपिु की तिफ चला गया था। अंधेिा था ही। ज्योंही िेल की सडक के पास पहंुचा, तो तीि आदमी तलवाि ललए हुए ि जािे ककधि से निकल पड।े यकीि मािो, तीिों काले देव थे। मैं बबल्कुल अकेला, पास में लसफम यह छडी थी। उधि तीिों तलवाि बांधे हुए, होश उड गये। समझ गया कक जजन्दगी का यही ंतक साथ था, मगि मैंिे भी सोचा, मिता ही हंू, तो वीिों की मौत क्यों ि मरंु। इतिे में एक आदमी ि ेललकाि कि कहा-िख दे तिेे पास जो कुछ हो औि चपुके से चला जा।

मैं छडी संभालकि खडा हो गया औि बोला-मेिे पास तो लसफम यह छडी है औि इसका मलू्य एक आदमी का लसि है।

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मेिे मुंह से इतिा निकलिा था कक तीिों तलवाि खींचकि मझु पि झपट पड े औि मैं उिके वािों को छडी पि िोकिे लगा। तीिों झल्ला-झल्लाकि वाि कित ेथे, खटाके की आवाज होती थी औि मैं बबजली की तिह झपटकि उिके तािों को काट देता था। कोई दस लमिट तक तीिों िे खूब तलवाि के जौहि ददखाये, पि मझु पि िेफ तक ि आयी। मजबिूी यही थी कक मेिे हाथ में तलवाि ि थी। यदद कहीं तलवाि होती, तो एक को जीता ि छोडता। खैि, कहां तक बयाि करंु। उस वक्त मेिे हाथों की सफाई देखि ेकाबबल थी। मझु ेखुद आश्चयम हो िहा था कक यह चपलता मझुमें कहां से आ गयी। जब तीिों ि ेदेखा कक यहा ंदाल िहीं गलिे की, तो तलवाि म्याि में िख ली औि पीठ ठोककि बोले-जवाि, तुम-सा वीि आज तक िहीं देखा। हम तीिों तीि सौ पि भािी गांव-के-गावं ढोल बजाकि लटूते हैं, पि आज तुमिे हमें िीचा ददखा ददया। हम तुम्हािा लोहा माि गए। यह कहकि तीिों कफि िजिों से गायब हो गए। निममला िे गम्भीि भाव से मसु्किाकि कहा-इस छडी पि तो तलवाि के बहुत से निशाि बिे हुए होंगे?

मुंशीजी इस शंका के ललए तैयाि ि थे, पि कोई जवाब देिा आवश्यक था, बोल-ेमैं वािों को बिाबि खाली कि देता। दो-चाि चोटें छडी पि पडी ंभी, तो उचटती हुई, जजिसे कोई निशाि िहीं पड सकता था।

अभी उिके मुंह से पिूी बात भी ि निकली थी कक सहसा रुजक्मणी देवी बदहवास दौडती हुई आयी ंऔि हांफत ेहुए बोली-ंतोता है कक िही?ं मेिे कमिे में सांप निकल आया है। मेिी चािपाई के िीच ेबठैा हुआ है। मैं उठकि भागी। मआु कोई दो गज का होगा। फि निकाले फुफकाि िहा है, जिा चलो तो। डडंा लेते चलिा। तोतािाम के चहेिे का िंग उड गया, मुंह पि हवाइयां छुटिे लगी,ं मगि मि के भावों को नछपाकि बोले-सांप यहा ंकहां? तुम्हें धोखा हुआ होगा। कोई िस्सी होगी। रुजक्मणी-अिे, मैंिे अपिी आंखों देखा है। जिा चलकि देख लो ि। हैं, हैं। मदम होकि डिते हो?

मुंशीजी घि से तो निकले, लेककि बिामदे में कफि दठठक गये। उिके पांव ही ि उठते थे कलेजा धड-धड कि िहा था। सांप बडा क्रोधी जािवि है। कही ंकाट ले तो मफु्त में प्राण से हाथ धोिा पड।े बोले-डिता िही ंहंू। सापं

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ही तो है, शिे तो िही,ं मगि सांप पि लाठी िही ंअसि किती, जाकि ककसी को भेजू,ं ककसी के घि से भाला लाये। यह कहकि मुंशीजी लपके हुए बाहि चले गये। मंसािाम बठैा खािा खा िहा था। मुंशीजी तो बाहि चले गये, इधि वह खािा छोड, अपिी हॉकी का डडंा हाथ में ले, कमिे में घसु ही तो पडा औि तुिंत चािपाई खींच ली। सांप मस्त था, भागि ेके बदले फि निकालकि खडा हो गया। मंसािाम ि ेचटपट चािपाई की चादि उठाकि सांप के ऊपि फें क दी औि ताबडतोड तीि-चाि डडं ेकसकि जमाये। सांप चादि के अंदि तडप कि िह गया। तब उसे डडं ेपि उठाये हुए बाहि चला। मुंशीजी कई आदलमयों को साथ ललये चले आ िहे थे। मंसािाम को सापं लटकाये आत ेदेखा, तो सहसा उिके मुंह से चीख निकल पडी, मगि कफि संभल गये औि बोले-मैं तो आ ही िहा था, तुमिे क्यों जल्दी की? दे दो, कोई फें क आए। यह कहकि बहादिुी के साथ रुजक्मणी के कमिे के द्वाि पि जाकि खड ेहो गये औि कमिे को खूब देखभाल कि मूंछों पि ताव देत ेहुए निममला के पास जाकि बोल-ेमैं जब तक आऊं-जाऊं, मंसािाम िे माि डाला। बेसमझ ्लडका डडंा लेकि दौड पडा। सांप हमेशा भाले से माििा चादहए। यही तो लडकों में ऐब है। मैंिे ऐसे-ऐसे ककतिे सापं मािे हैं। सांप को णखला-णखलाकि मािता हंू। ककतिों ही को मटु्ठी से पकडकि मसल ददया है। रुजक्मणी ि ेकहा-जाओ भी, देख ली तुम्हािी मदामिगी। मुंशीजी झेंपकि बोले-अच्छा जाओ, मैं डिपोक ही सही, तुमसे कुछ इिाम तो िही ंमागं िहा हंू। जाकि महािाज से कहा, खािा निकाले। मुंशीजी तो भोजि कििे गये औि निममला द्वाि की चौखट पि खडी सोच िही थी-भगवाि।् क्या इन्हें सचमचु कोई भीषण िोग हो िहा है? क्या मेिी दशा को औि भी दारुण बिािा चाहत ेहो? मैं इिकी सेवा कि सकती हंू,

सम्माि कि सकी हंू, अपिा जीवि इिके चिणों पि अपमण कि सकती हंू,

लेककि वह िही ंकि सकती, जो मेिे ककये िही ंहो सकता। अवस्था का भेद लमटािा मेिे वश की बात िही ं । आणखि यह मझुसे क्या चाहते हैं-समझ ्गयी। आह यह बात पहले ही िहीं समझी थी, िहीं तो इिको क्यों इतिी तपस्या कििी पडती क्यों इतिे स्वांग भििे पडते।

सात

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स ददि से निममला का िंग-ढंग बदलिे लगा। उसिे अपिे को कत्तमव्य पि लमटा देिे का निश्चय कि ददया। अब तक ििैाश्य के संताप में

उसिे कत्तमव्य पि ध्याि ही ि ददया था उसके हृदय में ववप्लव की ज्वाला-सी दहकती िहती थी, जजसकी असह्य वेदिा ि े उसे संज्ञाहीि-सा कि िखा था। अब उस वेदिा का वेग शांत होिे लगा। उसे ज्ञात हुआ कक मेिे ललए जीवि का कोई आंिद िही।ं उसका स्वप्ि देखकि क्यों इस जीवि को िि करंु। संसाि में सब-के-सब प्राणी सखु-सेज ही पि तो िहीं सोते। मैं भी उन्ही ंअभागों में से हंू। मझु ेभी ववधाता िे दखु की गठिी ढोिे के ललए चिुा है। वह बोझ लसि से उति िहीं सकता। उसे फें किा भी चाहंू, तो िहीं फें क सकती। उस कदठि भाि से चाहे आंखों में अंधेिा छा जाये, चाहे गदमि टूटिे लगे, चाहे पिै उठािा दसु्ति हो जाये, लेककि वह गठिी ढोिी ही पडगेी ? उम्र भि का कैदी कहां तक िोयेगा? िोये भी तो कौि देखता है? ककसे उस पि दया आती है? िोिे से काम में हजम होिे के कािण उसे औि यातिाएं ही तो सहिी पडती हैं। दसूिे ददि वकील साहब कचहिी से आये तो देखा-निममला की सहास्य मनूतम अपिे कमिे के द्वाि पि खडी है। वह अनिन्द्य छवव देखकि उिकी आंखें तपृ्त हा गयीं। आज बहुत ददिों के बाद उन्हें यह कमल णखला हुआ ददखलाई ददया। कमिे में एक बडा-सा आईिा दीवाि में लटका हुआ था। उस पि एक पिदा पडा िहता था। आज उसका पिदा उठा हुआ था। वकील साहब िे कमिे में कदम िखा, तो शीश ेपि निगाह पडी। अपिी सिूत साफ-साफ ददखाई दी। उिके हृदय में चोट-सी लग गयी। ददि भि के परिश्रम से मखु की कानंत मललि हो गयी थी, भांनत-भांनत के पौविक पदाथम खािे पि भी गालों की झरुिमया ंसाफ ददखाई दे िही थी।ं तोंद कसी होिे पि भी ककसी मुंहजोि घोड ेकी भांनत बाहि निकली हुई थी। आईिे के ही सामिे ककन्त ू दसूिी ओि ताकती हुई निममला भी खडी हुई थी। दोिों सिूतों में ककतिा अंति था। एक ित्न जदटत ववशाल भवि, दसूिा टूटा-फूटा खंडहि। वह उस आईिे की ओि ि देख सके। अपिी यह हीिावस्था उिके ललए असह्य थी। वह आईिे के सामि ेसे हट गये, उन्हें अपिी ही सिूत से घणृा होिे लगी। कफि इस रूपवती

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कालमिी का उिसे घणृा कििा कोई आश्चयम की बात ि थी। निममला की ओि ताकिे का भी उन्हें साहस ि हुआ। उसकी यह अिपुम छवव उिके हृदय का शलू बि गयी।

निममला िे कहा-आज इतिी देि कहा ं लगायी? ददि भि िाह देखते-देखत ेआंखे फूट जाती हैं। तोतािाम िे णखडकी की ओि ताकत ेहुए जवाब ददया-मकुदमों के मािे दम माििे की छुट्टी िहीं लमलती। अभी एक मकुदमा औि था, लेककि मैं लसिददम का बहािा किके भाग खडा हुआ। निममला-तो क्यों इतिे मकुदमे लेत ेहो? काम उतिा ही कििा चादहए जजतिा आिाम से हो सके। प्राण देकि थोड े ही काम ककया जाता है। मत ललया किो, बहुत मकुदमे। मझु ेरुपयों का लालच िही।ं तुम आिाम से िहोगे,

तो रुपये बहुत लमलेंगे। तोतािाम-भई, आती हुई लक्ष्मी भी तो िही ंठुकिाई जाती। निममला-लक्ष्मी अगि िक्त औि मांस की भेंट लेकि आती है, तो उसका ि आिा ही अच्छा। मैं धि की भखूी िही ंहंू। इस वक्त मंसािाम भी स्कूल से लौटा। धपू में चलिे के कािण मखु पि पसीिे की बूंदे आयी हुई थी,ं गोिे मखुड ेपि खूि की लाली दौड िही थी, आंखों से ज्योनत-सी निकलती मालमू होती थी। द्वाि पि खडा होकि बोला-अम्मा ंजी, लाइए, कुछ खािे का निकाललए, जिा खेलिे जािा है। निममला जाकि चगलास में पािी लाई औि एक तश्तिी में कुछ मेवे िखकि मंसािाम को ददए। मंसािाम जब खाकि चलि ेलगा, तो निममला ि ेपछूा-कब तक आओगे?

मंसािाम-कह िहीं सकता, गोिों के साथ हॉकी का मचै है। बािक यहा ंसे बहुत दिू है।

निममला-भई, जल्द आिा। खािा ठण्डा हो जायेगा, तो कहोगे मझु ेभखू िहीं है।

मंसािाम िे निममला की ओि सिल स्िेह भाव से देखकि कहा-मझु ेदेि हो जाये तो समझ लीजजएगा, वहीं खा िहा हंू। मेिे ललए बठैिे की जरुित िहीं।

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वह चला गया, तो निममला बोली-पहले तो घि में आते ही ि थे, मझुसे बोलते शमामते थे। ककसी चीज की जरुित होती, तो बाहि से ही मंगवा भेजत।े जब से मैंिें बलुाकि कहा, तब से आिे लगे हैं। तोतािाम िे कुछ चचढकि कहा-यह तुम्हािे पास खािे-पीिे की चीजें मांगि ेक्यों आता है? दीदी से क्यों िही कहता?

निममला ि ेयह बात प्रशंसा पाि ेके लोभ से कही थी। वह यह ददखािा चाहती थी कक मैं तुम्हािे लडकों को ककतिा चाहती हंू। यह कोई बिावटी पे्रम ि था। उसे लडकों से सचमचु स्िेह था। उसके चरित्र में अभी तक बाल-भाव ही प्रधाि था, उसमें वही उत्सकुता, वही चंचलता, वही वविोदवप्रयता ववद्यमाि थी औि बालकों के साथ उसकी ये बालववृत्तयां प्रस्फुदटत होती थीं। पत्नी-सलुभ ईष्याम अभी तक उसके मि में उदय िही ं हुई थी, लेककि पनत के प्रसन्ि होिे के बदले िाक-भौं लसकोडिे का आशय ि समझ्कि बोली-मैं क्या जािू,ं उिसे क्यों िही ंमागंते? मेिे पास आत ेहैं, तो दतु्काि िही ंदेती। अगि ऐसा करंु, तो यही होगा कक यह लडकों को देखकि जलती है। मुंशीजी िे इसका कुछ जवाब ि ददया, लेककि आज उन्होंि े मवुजक्कलों से बातें िही ंकी,ं सीधे मंसािाम के पास गये औि उसका इम्तहाि लेिे लगे। यह जीवि में पहला ही अवसि था कक इन्होंिे मंसािाम या ककसी लडके की लशक्षोन्िनत के ववषय में इतिी ददलचस्पी ददखायी हो। उन्हें अपिे काम से लसि उठािे की फुिसत ही ि लमलती थी। उन्हें इि ववषयों को पढे हुए चालीस वषम के लगभग हो गये थे। तब से उिकी ओि आंख तक ि उठायी थी। वह काििूी पसु्तकों औि पत्रों के लसवा औि कुछ पडते ही ि थे। इसका समय ही ि लमलता, पि आज उन्ही ं ववषयों में मंसािाम की पिीक्षा लेिे लगे। मंसािाम जहीि था औि इसके साथ ही मेहिती भी था। खेल में भी टीम का कैप्टि होिे पि भी वह क्लास में प्रथम िहता था। जजस पाठ को एक बाि देख लेता, पत्थि की लकीि हो जाती थी। मुंशीजी को उतावली में ऐसे मालममक प्रश्न तो सझू ेिही,ं जजिके उत्ति देिे में चतिु लडके को भी कुछ सोचिा पडता औि ऊपिी प्रश्नों को मंसािाम से चटुककयों में उडा ददया। कोई लसपाही अपिे शत्र ुपि वाि खाली जात े देखकि जैसे झल्ला-झल्लाकि औि भी तजेी से वाि किता है, उसी भानंत मंसािाम के जवाबों को सिु-सिुकि वकील साहब भी झल्लात े थे। वह कोई ऐसा प्रश्न कििा चाहत े थे,

जजसका जवाब मंसािाम से ि बि पड।े देखिा चाहत ेथे कक इसका कमजोि

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पहल ूकहा ं है। यह देखकि अब उन्हें संतोष ि हो सकता था कक वह क्या किता है। वह यह देखिा चाहत े थे कक यह क्या िही ं कि सकता। कोई अभ्यस्त पिीक्षक मंसािाम की कमजोरियों को आसािी से ददखा देता, पि वकील साहब अपिी आधी शताब्दी की भलूी हुई लशक्षा के आधाि पि इतिे सफल कैसे होत?े अंत में उन्हें अपिा गुस्सा उताििे के ललए कोई बहािा ि लमला तो बोले-मैं देखता हंू, तुम सािे ददि इधि-उधि मटिगश्ती ककया कित ेहो, मैं तुम्हािे चरित्र को तुम्हािी बवुद्ध से बढकि समझता हंू औि तुम्हािा यों आवािा घमूिा मझु ेकभी गवािा िही ंहो सकता। मंसािाम ि ेनिभीकता से कहा-मैं शाम को एक घण्टा खेलिे के ललए जािे के लसवा ददि भि कही ंिही ंजाता। आप अम्मां या बआुजी से पछू लें। मझु ेखुद इस तिह घमूिा पसंद िही।ं हा,ं खेलिे के ललए हेड मास्टि साहब से आग्रह किके बलुाते हैं, तो मजबिूि जािा पडता है। अगि आपको मेिा खेलिे जािा पसंद िहीं है, तो कल से ि जाऊंगा। मुंशीजी िे देखा कक बातें दसूिी ही रुख पि जा िही हैं, तो तीव्र स्वि में बोल-ेमझु ेइस बात का इतमीिाि क्योंकि हो कक खेलिे के लसवा कहीं िही ंघमूिे जात?े मैं बिाबि लशकायतें सिुता हंू।

मंसािाम ि ेउते्तजजत होकि कहा-ककि महाशय िे आपसे यह लशकायत की है, जिा मैं भी तो सिुूं?

वकील-कोई हो, इससे तुमसे कोई मतलब िहीं। तुम्हें इतिा ववश्वास होिा चादहए कक मैं झठूा आके्षप िही ंकिता। मंसािाम-अगि मेिे सामिे कोई आकि कह दे कक मैंिे इन्हें कही ंघमूते देखा है, तो मुंह ि ददखाऊं। वकील-ककसी को ऐसी क्या गिज पडी है कक तुम्हािी मुंह पि तुम्हािी लशकायत किे औि तमुसे बिै मोल ले? तमु अपिे दो-चाि साचथयों को लेकि उसके घि की खपिैल फोडत े कफिो। मझुसे इस ककस्म की लशकायत एक आदमी ि ेिही,ं कई आदलमयों िे की है औि कोई वजह िहीं है कक मैं अपिे दोस्तों की बात पि ववश्वास ि करंु। मैं चाहता हंू कक तुम स्कूल ही में िहा किो। मंसािाम िे मुंह चगिाकि कहा-मझु ेवहां िहिे में कोई आपवत्त िहीं है,

जब स ेकदहये, चला जाऊं।

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वकील- तुमिे मुंह क्यों लटका ललया? क्या वहां िहिा अच्छा िही ंलगता? ऐसा मालमू होता है, मािों वहां जािे के भय से तुम्हािी िािी मिी जा िही है। आणखि बात क्या है, वहां तुम्हें क्या तकलीफ होगी?

मंसािाम छात्रालय में िहिे के ललए उत्सकु िही ं था, लेककि जब मुंशीजी िे यही बात कह दी औि इसका कािण पछूा, सो वह अपिी झेंप लमटािे के ललए प्रसन्िचचत्त होकि बोला-मुंह क्यों लटकाऊं? मेिे ललए जैसे बोडडिंग हाउस। तकलीफ भी कोई िहीं, औि हो भी तो उसे सह सकता हंू। मैं कल से चला जाऊंगा। हा ंअगि जगह ि खाली हुई तो मजबिूी है। मुंशीजी वकील थे। समझ गये कक यह लौंडा कोई ऐसा बहािा ढंूढ िहा है, जजसमें मझु ेवहा ंजािा भी ि पड ेऔि कोई इल्जाम भी लसि पि ि आये। बोल-ेसब लडकों के ललए जगह है, तुम्हािे ही ललये जगह ि होगी?

मंसािाम- ककति ेही लडकों को जगह िही ंलमली औि व ेबाहि ककिाये के मकािों में पड े हुए हैं। अभी बोडडिंग हाउस में एक लडके का िाम कट गया था, तो पचास अजजमयां उस जगह के ललए आयी थीं। वकील साहब िे ज्यादा तकम -ववतकम कििा उचचत िही ं समझा। मंसािाम को कल तैयाि िहि ेकी आज्ञा देकि अपिी बग्घी तैयाि किायी औि सिै कििे चल गये। इधि कुछ ददिों से वह शाम को प्राय: सिै किि ेचले जाया कित ेथे। ककसी अिभुवी प्राणी िे बतलाया था कक दीघम जीवि के ललए इससे बढकि कोई मंत्र िही ंहै। उिके जािे के बाद मंसािाम आकि रुजक्मणी से बोला बआुजी, बाबजूी िे मझु ेकल से स्कूल में िहिे को कहा है।

रुजक्मणी िे ववजस्मत होकि पछूा-क्यों?

मंसािाम-मैं क्या जाि?ू कहिे लगे कक तुम यहां आवािों की तिह इधि-उधि कफिा कित ेहो।

रुजक्मणी-तूिे कहा िहीं कक मैं कही ंिही ंजाता। मंसािाम-कहा क्यों िहीं, मगि वह जब मािें भी। रुजक्मणी-तुम्हािी ियी अम्मा जी की कृपा होगी औि क्या?

मंसािाम-िहीं, बआुजी, मझु े उि पि संदेह िहीं है, वह बेचािी भलू से कभी कुछ िहीं कहती।ं कोई चीज़ मागंिे जाता हंू, तो तिुन्त उठाकि दे देती हैं। रुजक्मणी-तू यह बत्रया-चरित्र क्या जाि,े यह उन्हीं की लगाई हुई आग है। देख, मैं जाकि पछूती हंू।

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रुजक्मणी झल्लाई हुई निममला के पास जा पहंुची। उसे आड ेहाथों लेिे का, कांटों में घसीटिे का, तािों से छेदिे का, रुलािे का सअुवसि वह हाथ से ि जाि े देती थी। निममला उिका आदि किती थी, उिसे दबती थी, उिकी बातों का जवाब तक ि देती थी। वह चाहती थी कक यह लसखावि की बातें कहें, जहा ंमैं भलूूं वहा ंसधुािें, सब कामों की देख-िेख किती िहें, पि रुजक्मणी उससे तिी ही िहती थी। निममला चािपाई से उठकि बोली-आइए दीदी, बदैठए। रुजक्मणी िे खड-ेखड े कहा-मैं पछूती हंू क्या तुम सबको घि से निकालकि अकेले ही िहिा चाहती हो?

निममला ि ेकाति भाव से कहा-क्या हुआ दीदी जी? मैंिे तो ककसी से कुछ िहीं कहा। रुजक्मणी-मंसािाम को घि से निकाले देती हो, नतस पि कहती हो, मैंिे तो ककसी से कुछ िहीं कहा। क्या तुमसे इतिा भी देखा िही ंजाता?

निममला-दीदी जी, तुम्हािे चिणों को छूकि कहती हंू, मझु े कुछ िही ंमालमू। मेिी आंखे फूट जायें, अगि उसके ववषय में मुंह तक खोला हो। रुजक्मणी-क्यों व्यथम कसमें खाती हो। अब तक तोतािाम कभी लडके से िहीं बोलते थे। एक हफ्ते के ललए मंसािाम िनिहाल चला गया था, तो इति ेघबिाए कक खुद जाकि ललवा लाए। अब इसी मंसािाम को घि से निकालकि स्कूल में िखे देते हैं। अगि लडके का बाल भी बाकंा हुआ, तो तुम जािोगी। वह कभी बाहि िहीं िहा, उसे ि खािे की सधु िहती है, ि पहििे की-जहा ंबठैता, वहीं सो जाता है। कहिे को तो जवाि हो गया, पि स्वभाव बालकों-सा है। स्कूल में उसकी मिि हो जायेगी। वहा ंककसे कफक्र है कक इसिे खोया या िही,ं कहां कपड ेउतािे, कहा ंसो िहा है। जब घि में कोई पछूिे वाला िही,ं तो बाहि कौि पछेूगा मैंिे तुम्हें चतेा ददया, आगे तुम जािो, तुम्हािा काम जािे। यह कहकि रुजक्मणी वहां से चली गयी।

वकील साहब सिै किके लौटे, तो निममला ि तुिंत यह ववषय छेड ददया-मंसािाम से वह आजकल थोडी अंगे्रजी पढती थी। उसके चले जाि ेपि कफि उसके पढि ेका हिज ि होगा? दसूिा कौि पढायेगा? वकील साहब को अब तक यह बात ि मालमू थी। निममला िे सोचा था कक जब कुछ अभ्यास हो जायेगा, तो वकील साहब को एक ददि अंगे्रजी में बातें किके चककत कि दूंगी। कुछ थोडा-सा ज्ञाि तो उसे अपिे भाइयों से ही हो गया था। अब वह

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नियलमत रूप से पढ िही थी। वकील साहब की छाती पि सांप-सा लोट गया, त्योरियां बदलकि बोले-वे कब से पढा िहा है, तुम्हें। मझुसे तमुिे कभी िही कहा। निममला ि े उिका यह रूप केवल एक बाि देखा था, जब उन्होि ेलसयािाम को मािते-माित ेबेदम कि ददया था। वही रूप औि भी ववकिाल बिकि आज उसे कफि ददखाई ददया। सहमती हुई बोली-उिके पढिे में तो इससे कोई हिज िही ं होता, मैं उसी वक्त उिसे पढती हंू जब उन्हें फुिसत िहती है। पछू लेती हंू कक तुम्हािा हिज होता हो, तो जाओ। बहुधा जब वह खेलिे जािे लगत ेहैं, तो दस लमिट के ललए िोक लेती हंू। मैं खुद चाहती हंू कक उिका िकुसाि ि हो। बात कुछ ि थी, मगि वकील साहब हताश से होकि चािपाई पि चगि पड े औि माथे पि हाथ िखकि चचतंा में मग्ि हो गये। उन्होंिं जजतिा समझा था, बात उससे कहीं अचधक बढ गयी थी। उन्हें अपिे ऊपि क्रोध आया कक मैंिे पहले ही क्यों ि इस लौंड ेको बाहि िखिे का प्रबंध ककया। आजकल जो यह महािािी इतिी खुश ददखाई देती हैं, इसका िहस्य अब समझ में आया। पहले कभी कमिा इतिा सजा-सजाया ि िहता था, बिाव-चिुाव भी ि किती थीं, पि अब देखता हंू कायापलट-सी हो गयी है। जी में तो आया कक इसी वक्त चलकि मंसािाम को निकाल दें, लेककि प्रौढ बवुद्ध िे समझाया कक इस अवसि पि क्रोध की जरूित िहीं। कही ंइसिे भांप ललया, तो गजब ही हो जायेगा। हां, जिा इसके मिोभावों को टटोलिा चादहए। बोले-यह तो मैं जािता हंू कक तुम्हें दो-चाि लमिट पढािे से उसका हिज िही ंहोता, लेककि आवािा लडका है, अपिा काम ि कििे का उसे एक बहािा तो लमल जाता है। कल अगि फेल हो गया, तो साफ कह देगा-मैं तो ददि भि पढाता िहता था। मैं तुम्हािे ललए कोई लमस िौकि िख दूंगा। कुछ ज्यादा खचम ि होगा। तुमिे मझुसे पहले कहा ही िही।ं यह तुम्हें भला क्या पढाता होगा, दो-चाि शब्द बताकि भाग जाता होगा। इस तिह तो तुम्हें कुछ भी ि आयेगा। निममला िे तुिन्त इस आके्षप का खण्डि ककया-िही,ं यह बात तो िहीं। वह मझु ेददल लगा कि पढाते हैं औि उिकी शलैी भी कुछ ऐसी है कक पढिे में मि लगता है। आप एक ददि जिा उिका समझािा देणखए। मैं तो समझती हंू कक लमस इतिे ध्याि से ि पढायेगी।

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मुंशीजी अपिी प्रश्न-कुशलता पि मूछंों पि ताव देत े हुए बोले-ददि में एक ही बाि पढाता है या कई बाि?

निममला अब भी इि प्रश्नों का आशय ि समझी। बोली-पहले तो शाम ही को पढा देत ेथे, अब कई ददिों से एक बाि आकि ललखिा भी देख लेत ेहैं। वह तो कहत ेहैं कक मैं अपिे क्लास में सबसे अच्छा हंू। अभी पिीक्षा में इन्हीं को प्रथम स्थाि लमला था, कफि आप कैसे समझते हैं कक उिका पढिे में जी िही ंलगता? मैं इसललए औि भी कहती हंू कक दीदी समझेंगी, इसी िे यह आग लगाई है। मफु्त में मझु ेतािे सिुिे पडेंगे। अभी जिा ही देि हुई,

धमकाकि गयी हैं। मुंशीजी िे ददल में कहा-खूब समझता हंू। तुम कल की छोकिी होकि मझु ेचिािे चलीं। दीदी का सहािा लेकि अपिा मतलब पिूा कििा चाहती हैं। बोल-ेमैं िहीं समझता, बोडडिंग का िाम सिुकि क्यों लौंड ेकी िािी मिती है। औि लडके खुश होत ेहैं कक अब अपिे दोस्तों में िहेंगे, यह उलटे िो िहा है। अभी कुछ ददि पहले तक यह ददल लगाकि पढता था, यह उसी मेहित का ितीजा है कक अपिे क्लास में सबसे अच्छा है, लेककि इधि कुछ ददिों से इसे सिै-सपाटे का चस्का पड चला है। अगि अभी से िोकथाम ि की गयी, तो पीछे कित-ेधिते ि बि पडगेा। तुम्हािे ललए मैं एक लमस िख दूंगा। दसूिे ददि मुंशीजी प्रात:काल कपड-ेलते्त पहिकि बाहि निकले। दीवािखािे में कई मवुजक्कल बठेै हुए थे। इिमें एक िाजा साहब भी थे,

जजिसे मुंशीजी को कई हजाि सालािा मेहितािा लमलता था, मगि मुंशीजी उन्हें वहीं बठेै छोड दस लमिट में आिे का वादा किके बग्घी पि बठैकि स्कूल के हेडमास्टि के यहा ंजा पहंुच।े हेडमास्टि साहब बड ेसज्जि परुुष थे। वकील साहब का बहुत आदि-सत्काि ककया, पि उिके यहा एक लडके की भी जगह खाली ि थी। सभी कमिे भिे हुए थे। इंस्पेक्टि साहब की कडी ताकीद थी कक मफुजस्सल के लडकों को जगह देकि तब शहि के लडकों को ददया जाये। इसीललए यदद कोई जगह खाली भी हुई, तो भी मंसािाम को जगह ि लमल सकेगी, क्योंकक ककति े ही बाहिी लडकों के प्राथमिा-पत्र िखे हुए थे। मुंशीजी वकील थे, िात ददि ऐसे प्राणणयों से साबबका िहता था, जो लोभवश असंभव का भी संभव, असाध्य को भी साध्य बिा सकते हैं। समझ ेशायद

कुछ दे-ददलाकि काम निकल जाये, दफ्ति क्लकम से ढंग की कुछ बातचीत कििी चादहए, पि उसिे हंसकि कहा- मुशंीजी यह कचहिी िही,ं स्कूल है,

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हैडमास्टि साहब के कािों में इसकी भिक भी पड गयी, तो जामे से बाहि हो जायेंगे औि मंसािाम को खड-ेखड े निकाल देंगे। संभव है, अफसिों से लशकायत कि दें। बेचािे मुंशीजी अपिा-सा मुंह लेकि िह गये। दस बजत-ेबजत े झुंझलाये हुए घि लौटे। मंसािाम उसी वक्त घि से स्कूल जािे को निकला मुंशीजी िे कठोि िेत्रों से उसे देखा, मािो वह उिका शत्र ुहो औि घि में चले गये। इसके बाद दस-बािह ददिों तक वकील साहब का यही नियम िहा कक कभी सबुह कभी शाम, ककसी-ि-ककसी स्कूल के हेडमास्टि से लमलते औि मंसािाम को बोडडिंग हाउस में दाणखल कििे कल चिेा कित,े पि ककसी स्कूल में जगह ि थी। सभी जगहों से कोिा जवाब लमल गया। अब दो ही उपाय थे-या तो मंसािाम को अलग ककिाये के मकाि में िख ददया जाये या ककसी दसूिे स्कूल में भती किा ददया जाये। ये दोिों बातें आसाि थीं। मफुजस्सल के स्कूलों में जगह अक्सि खाली िहेती थी, लेककि अब मुंशीजी का शंककत हृदय कुछ शांत हो गया था। उस ददि से उन्होंिे मंसािाम को कभी घि में जात ेि देखा। यहा ंतक कक अब वह खेलिे भी ि जाता था। स्कूल जािे के पहले औि आि ेके बाद, बिाबि अपिे कमिे में बठैा िहता। गमी के ददि थे,

खुले हुए मदैाि में भी देह से पसीिे की धािें निकलती थी,ं लेककि मंसािाम अपिे कमिे से बाहि ि निकलता। उसका आत्मालभमाि आवािापि के आक्षेप से मकु्त होिे के ललए ववकल हो िहा था। वह अपिे आचिण से इस कलंक को लमटा देिा चाहता था।

एक ददि मुंशीजी बठेै भोजि कि िहे थे, कक मंसािाम भी िहाकि खाि ेआया, मुंशीजी िे इधि उसे महीिों से िंगे बदि ि देखा था। आज उस पि निगाह पडी, तो होश उड गये। हड्डडयों का ढांचा सामिे खडा था। मखु पि अब भी ब्रह्राचयम का तेज था, पि देह घलुकि कांटा हो गयी थी। पछूा-आजकल तुम्हािी तबीयत अच्छी िही ंहै, क्या? इतिे दबुमल क्यों हो?

मंसािाम ि ेधोती ओढकि कहा-तबीयत तो बबल्कुल अच्छी है।

मुंशीजी-कफि इतिे दबुमल क्यों हो?

मंसािाम- दबुमल तो िहीं हंू। मैं इससे ज्यादा मोटा कब था?

मुंशीजी-वाह, आधी देह भी िही ं िही औि कहते हो, मैं दबुमल िहीं हंू? क्यों दीदी, यह ऐसा ही था?

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रुजक्मणी आंगि में खडी तुलसी को जल चढा िही थी, बोली-दबुला क्यों होगा, अब तो बहुत अच्छी तिह लालि-पालि हो िहा है। मैं गंवारिि थी, लडकों को णखलािा-वपलािा िहीं जािती थी। खोमचा णखला-णखलाकि इिकी आदत बबगाड देते थी। अब तो एक पढी-ललखी, गहृस्थी के कामों में चतुि औित पाि की तिह फेि िही है ि। दबुला हो उसका दशु्मि। मुंशीजी-दीदी, तुम बडा अन्याय किती हो। तुमसे ककसिे कहा कक लडकों को बबगाड िही हो। जो काम दसूिों के ककये ि हो सके, वह तुम्हें खुद कििे चादहए। यह िहीं कक घि से कोई िाता ि िखो। जो अभी खुद लडकी है, वह लडकों की देख-िेख क्या किेगी? यह तुम्हािा काम है। रुजक्मणी-जब तक अपिा समझती थी, किती थी। जब तमुिे गैि समझ ललया, तो मझु ेक्या पडी है कक मैं तुम्हािे गले से चचपटंू? पछूो, कै ददि से दधू िही ंवपया? जाके कमिे में देख आओ, िाश्त ेके ललए जो लमठाई भेजी गयी थी, वह पडी सड िही है। मालककि समझती हैं, मैंिे तो खािे का सामाि िख ददया, कोई ि खाये तो क्या मैं मुंह में डाल दूं? तो भयैा, इस तिह वे लडके पलत े होंगे, जजन्होंि े कभी लाड-प्याि का सखु िही ं देखा। तुम्हािे लडके बिाबि पाि की तिह फेिे जाते िहे हैं, अब अिाथों की तिह िहकि सखुी िहीं िह सकत।े मैं तो बात साफ कहती हंू। बिुा मािकि ही कोई क्या कि लेगा? उस पि सिुती हंू कक लडके को स्कूल में िखिे का प्रबंध कि िहे हो। बेचािे को घि में आिे तक की मिाही है। मेिे पास आत ेभी डिता है, औि कफि मेिे पास िखा ही क्या िहता है, जो जाकि णखलाऊंगी।

इतिे में मंसािाम दो फुलके खाकि उठ खडा हुआ। मुंशीजी िे पछूा-क्या दो ही फुलके तो ललये थे। अभी बठेै एक लमिट से ज्यादा िही ं हुआ। तुमिे खाया क्या, दो ही फुलके तो ललये थे। मंसािाम िे सकुचात े हुए कहा-दाल औि तिकािी भी तो थी। ज्यादा खा जाता हंू, तो गला जलिे लगता है, खट्टी डकािें आिे लगती ंहैं। मुंशीजी भोजि किके उठे तो बहुत चचनंतत थे। अगि यों ही दबुला होता गया, तो उसे कोई भंयकि िोग पकड लेगा। उन्हें रुजक्मणी पि इस समय बहुत क्रोध आ िहा था। उन्हें यही जलि है कक मैं घि की मालककि िही ं हंू। यह िही ं समझतीं कक मझु े घि की मालककि बििे का क्या अचधकाि है? जजसे रुपया का दहसाब तक िही ंअता, वह घि की स्वालमिी कैसे हो सकती है? बिीं तो थी ंसाल भि तक मालककि, एक पाई की बचत

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ि होती थी। इस आमदिी में रूपकला दो-ढाई सौ रुपये बचा लेती थी। इिके िाज में वही आमदिी खचम को भी पिूी ि पडती थी। कोई बात िही,ं लाड-प्याि ि े इि लडकों को चौपट कि ददया। इतिे बड-ेबड ेलडकों को इसकी क्या जरूित कक जब कोई णखलाये तो खायें। इन्हें तो खुद अपिी कफक्र कििी चादहए। मुंशी जी ददिभि उसी उधेड-बिु में पड ेिहे। दो-चाि लमत्रों से भी जजक्र ककया। लोगों ि ेकहा-उसके खेल-कूद में बाधा ि डाललए, अभी से उसे कैद ि कीजजए, खुली हवा में चरित्र के भ्रि होिे की उससे कम संभाविा है, जजतिा बन्द कमिे में। कुसंगत से जरूि बचाइए, मगि यह िहीं कक उसे घि से निकलिे ही ि दीजजए। यवुावस्था में एकान्तवास चरित्र के ललए बहुत ही हानिकािक है। मुशंीजी को अब अपिी गलती मालमू हुई। घि लौटकि मंसािाम के पास गये। वह अभी स्कूल से आया था औि बबिा कपड ेउतािे,

एक ककताब सामिे खोलकि, सामिे णखडकी की ओि ताक िहा था। उसकी दृवि एक लभखारिि पि लगी हुई थी, जो अपिे बालक को गोद में ललए लभक्षा मांग िही थी। बालक माता की गोद में बठैा ऐसा प्रसन्ि था, मािो वह ककसी िाजलसहंासि पि बठैा हो। मंसािाम उस बालक को देखकि िो पडा। यह बालक क्या मझुसे अचधक सखुी िहीं है? इस अन्ित ववश्व में ऐसी कौि-सी वस्तु है, जजसे वह इस गोद के बदले पाकि प्रसन्ि हो? ईश्वि भी ऐसी वस्त ुकी सवृि िही ंकि सकते। ईश्वि ऐसे बालकों को जन्म ही क्यों देत ेहो, जजिके भाग्य में मात-ृववयोग का दखु भोगिा बडा? आज मझु-सा अभागा संसाि में औि कौि है? ककसे मेिे खाि-ेपीि ेकी, मििे-जीिे की सधु है। अगि मैं आज मि भी जाऊं, तो ककसके ददल को चोट लगेगी। वपता को अब मझु ेरुलािे में मजा आता है, वह मेिी सिूत भी िही ंदेखिा चाहत,े मझु ेघि से निकाल देि ेकी तैयारिया ंहो िही हैं। आह माता। तुम्हािा लाडला बेटा आज आवािा कहा ंजा िहा है। वही वपताजी, जजिके हाथ में तुमिे हम तीिों भाइयों के हाथ पकडाये थे, आज मझु ेआवािा औि बदमाश कह िहे हैं। मैं इस योग्य भी िहीं कक इस घि में िह सकंू। यह सोचते-सोचते मंसािाम अपाि वेदिा से फूट-फूटकि िोिे लगा। उसी समय तोतािाम कमिे में आकि खड ेहो गये। मंसािाम िे चटपट आंस ू पोंछ डाले औि लसि झकुाकि खडा हो गया। मुंशीजी िे शायद यह पहली बाि उसके कमिे में कदम िखा था। मंसािाम का ददल धडधड कििे लगा कक देखें आज क्या आफत आती है। मुंशीजी िे उसे िोत ेदेखा, तो एक

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क्षण के ललए उिका वात्सल्य घेि निद्रा से चौंक पडा घबिाकि बोले-क्यों, िोत ेक्यों हो बेटा। ककसी िे कुछ कहा है?

मंसािाम िे बडी मजुश्कल से उमडते हुए आंसओंु को िोककि कहा- जी िही,ं िोता तो िही ंहंू। मुंशीजी-तुम्हािी अम्मा ंिे तो कुछ िहीं कहा?

मंसािाम-जी िही,ं वह तो मझुसे बोलती ही िहीं।

मुंशीजी-क्या करंु बेटा, शादी तो इसललए की थी कक बच्चों को मा ंलमल जायेगी, लेककि वह आशा पिूी िही ंहुई, तो क्या बबल्कुल िहीं बोलती?ं

मंसािाम-जी िही,ं इधि महीिों से िहीं बोलीं। मुंशीजी-ववचचत्र स्वभाव की औित है, मालमू ही िहीं होता कक क्या चाहती है? मैं जािता कक उसका ऐसा लमजाज होगा, तो कभी शादी ि किता िोज एक-ि-एक बात लेकि उठ खडी होती है। उसी िे मझुसे कहा था कक यह ददि भि ि जािे कहां गायब िहता है। मैं उसके ददल की बात क्या जािता था? समझा, तुम कुसंगत में पडकि शायद ददिभि घमूा कित ेहो। कौि ऐसा वपता है, जजसे अपिे प्यािे पतु्र को आवािा कफित ेदेखकि िंज ि हो? इसीललए मैंिे तुम्हें बोडडिंग हाउस में िखिे का निश्चय ककया था। बस, औि कोई बात िहीं थी, बेटा। मैं तुम्हािा खेलि-कूदिा बंद िही ंकििा चाहता था। तुम्हािी यह दशा देखकि मेिे ददल के टुकड ेहुए जाते हैं। कल मझु ेमालमू हुआ मैं भ्रम में था। तुम शौक से खेलो, सबुह-शाम मदैाि में निकल जाया किो। ताजी हवा से तुम्हें लाभ होगा। जजस चीज की जरूित हो मझुसे कहो, उिसे कहिे की जरूित िहीं। समझ लो कक वह घि में है ही िहीं। तुम्हािी माता छोडकि चली गयी तो मैं तो हंू। बालक का सिल निष्कपट हृदय वपत-ृपे्रम से पलुककत हो उठा। मालमू हुआ कक साक्षात ्भगवाि ्खड ेहैं। ििैाश्य औि क्षोभ से ववकल होकि उसिे मि में अपिे वपता का निषु्ठि औि ि जािे क्या-क्या समझ िखा। ववमाता से उसे कोई चगला ि था। अब उसे ज्ञात हुआ कक मैंिे अपिे देवतुल्य वपता के साथ ककतिा अन्याय ककया है। वपत-ृभडक्त की एक तिंग-सी हृदय में उठी, औि वह वपता के चिणों पि लसि िखकि िोिे लगा। मुंशीजी करुणा से ववह्वल हो गये। जजस पतु्र को क्षण भि आंखों से दिू देखकि उिका हृदय व्यग्र हो उठता था, जजसके शील, बवुद्ध औि चरित्र का अपिे-पिाये सभी बखाि किते थे, उसी के प्रनत उिका हृदय इतिा कठोि क्यों हो गया? वह अपिे ही वप्रय

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पतु्र को शत्र ुसमझिे लगे, उसको निवामसि देिे को तैयाि हो गये। निममला पतु्र औि वपता के बी में दीवाि बिकि खडी थी। निममला को अपिी ओि खींचिे के ललए पीछे हटिा पडता था, औि वपता तथा पतु्र में अंति बढता जाता था। फलत: आज यह दशा हो गयी है कक अपिे अलभन्ि पतु्र उन्हें इतिा छल कििा पड िहा है। आज बहुत सोचिे के बाद उन्हें एक एक ऐसी यडुक्त सझूी है, जजससे आशा हो िही है कक वह निममला को बीच से निकालकि अपिे दसूिे बाजू को अपिी तिफ खींच लेंगे। उन्होंिे उस यडुक्त का आिंभ भी कि ददया है, लेककि इसमें अभीि लसद्ध होगा या िही,ं इसे कौि जािता है।

जजस ददि से तोतोिाम िे निममला के बहुत लमन्ित-समाजत कििे पि भी मंसािाम को बोडडिंग हाउस में भेजिे का निश्चय ककया था, उसी ददि से उसिे मंसािाम से पढिा छोड ददया। यहा ंतक कक बोलती भी ि थी। उसे स्वामी की इस अववश्वासपणूम तत्पिता का कुछ-कुछ आभास हो गया था। ओफ्फोह। इतिा शक्की लमजाज। ईश्वि ही इस घि की लाज िखें। इिके मि में ऐसी-ऐसी दभुामविाएं भिी हुई हैं। मझु ेयह इतिी गयी-गुजिी समझत ेहैं। ये बातें सोच-सोचकि वह कई ददि िोती िही। तब उसिे सोचिा शरूू ककया, इन्हें क्या ऐसा संदेह हो िहा है? मझु में ऐसी कौि-सी बात है, जो इिकी आंखों में खटकती है। बहुत सोचिे पि भी उसे अपिे में कोई ऐसी बात िजि ि आयी। तो क्या उसका मंसािाम से पढिा, उससे हंसिा-बोलिा ही इिके संदेह का कािण है, तो कफि मैं पढिा छोड दूंगी, भलूकि भी मंसािाम से ि बोलूंगी, उसकी सिूत ि दखूंगी। लेककि यह तपस्या उसे असाध्य जाि पडती थी। मंसािाम से हंसिे-बोलिे में उसकी ववलालसिी कल्पिा उते्तजजत भी होती थी औि तपृ्त भी। उसे बातें कित ेहुए उसे अपाि सखु का अिभुव होता था, जजसे वह शब्दों में प्रकट ि कि सकती थी। कुवासिा की उसके मि में छाया भी ि थी। वह स्वप्ि में भी मंसािाम से कलवुषत पे्रम कििे की बात ि सोच सकती थी। प्रत्येक प्राणी को अपिे हमजोललयों के साथ, हंसिे-बोलिे की जो एक िसैचगमक तषृ्णा होती है, उसी की तनृप्त का यह एक अज्ञात साधि था। अब वह अतपृ्त तषृ्णा निममला के हृदय में दीपक की भांनत जलिे लगी। िह-िहकि उसका मि ककसी अज्ञात वेदिा से ववकल हो जाता। खोयी हुई ककसी अज्ञात वस्त ुकी खोज में इधि-उधि घमूती-कफिती, जहां बठैती, वहां बठैी ही िह जाती, ककसी

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काम में जी ि लगता। हा,ं जब मुंशीजी आ जात,े वह अपिी सािी तषृ्णाओं को ििैाश्य में डुबाकि, उिसे मसु्किाकि इधि-उधि की बातें कििे लगती।

कल जब मुंशीजी भोजि किके कचहिी चले गये, तो रुजक्मणी ि ेनिममला को खुब तािों से छेदा-जािती तो थी कक यहा ं बच्चों का पालि-पोषण कििा पडगेा, तो क्यों घिवालों से िहीं कह ददया कक वहां मेिा वववाह ि किो? वहा ंजाती जहा ंपरुुष के लसवा औि कोई ि होता। वही यह बिाव-चिुाव औि छवव देखकि खुश होता, अपिे भाग्य को सिाहता। यहां बडु्ढा आदमी तुम्हािे िंग-रूप, हाव-भाव पि क्या लटू्ट होगा? इसिे इन्हीं बालकों की सेवा कििे के ललए तमुसे वववाह ककया है, भोग-ववलास के ललए िहीं वह बडी देि तक घाव पि िमक नछडकती िही, पि निममला िे चूं तक ि की। वह अपिी सफाई तो पेश कििा चाहती थी, पि ि कि सकती थी। अगि कहे कक मैं वही कि िही हंू, जो मेिे स्वामी की इच्छा है तो घि का भण्डा फूटता है। अगि वह अपिी भलू स्वीकाि किके उसका सधुाि किती है, तो भय है कक उसका ि जािे क्या परिणाम हो? वह यों बडी स्पिवाददिी थी, सत्य कहिे में उसे संकोच या भय ि होता था, लेककि इस िाजकु मौके पि उसे चपु्पी साधिी पडी। इसके लसवा दसूिा उपाय ि था। वह देखती थी मंसािाम बहुत वविक्त औि उदास िहता है, यह भी देखती थी कक वह ददि-ददि दबुमल होता जाता है, लेककि उसकी वाणी औि कमम दोिों ही पि मोहि लगी हुई थी। चोि के घि चोिी हो जािे से उसकी जो दशा होती है, वही दशा इस समय निममला की हो िही थी।

आठ

ब कोई बात हमािी आशा के ववरुद्ध होती है, तभी दखु होता है। मंसािाम को निममला से कभी इस बात की आशा ि थी कक वे उसकी

लशकायत किेंगी। इसललए उसे घोि वेदिा हो िही थी। वह क्यों मेिी लशकायत किती है? क्या चाहती है? यही ि कक वह मेिे पनत की कमाई खाता है, इसके पढाि-ललखािे में रुपये खचम होते हैं, कपडा पहिता है। उिकी यही इच्छा होगी कक यह घि में ि िहे। मेिे ि िहिे से उिके रुपये बच जायेंगे। वह मझुसे बहुत प्रसन्िचचत्त िहती हैं। कभी मैंिे उिके मुंह से कटु शब्द िहीं सिेु। क्या यह सब कौशल है? हो सकता है? चचडडया को जाल में

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फंसािे के पहले लशकािी दािे बबखेिता है। आह। मैं िही ंजािता था कक दािे के िीच ेजाल है, यह मात-ृस्िेह केवल मेिे निवामसि की भलूमका है।

अच्छा, मेिा यहा ं िहिा क्यों बिुा लगता है? जो उिका पनत है, क्या वह मेिा वपता िहीं है? क्या वपता-पतु्र का संबंध िी-परुुष के संबंध से कुछ कम घनिि है? अगि मझु ेउिके संपणूम आचधपत्य से ईष्याम िहीं होती, वह जो चाहे किें, मैं मुंह िही ंखोल सकता, तो वह मझु ेएक अगुंल भि भलूम भी देिा िहीं चाहतीं। आप पक्के महल में िहकि क्यों मझु ेवकृ्ष की छाया में बठैा िहीं देख सकती।ं हा,ं वह समझती होंगी कक वह बडा होकि मेिे पनत की सम्पवत्त का स्वामी हो जायेगा, इसललए अभी से निकाल देिा अच्छा है। उिको कैसे ववश्वास ददलाऊं कक मेिी ओि से यह शंका ि किें। उन्हें क्योंकि बताऊं कक मंसािाम ववष खाकि प्राण दे देगा, इसके पहले कक उिका अदहत कि। उसे चाहे ककतिी ही कदठिाइयां सहिी पडें वह उिके हृदय का शलू ि बिेगा। यों तो वपताजी िे मझु ेजन्म ददया है औि अब भी मझु पि उिका स्िेह कम िहीं है, लेककि क्या मैं इतिा भी िही ंजािता कक जजस ददि वपताजी िे उिसे वववाह ककया, उसी ददि उन्होंिे हमें अपिे हृदय से बाहि निकाल ददया? अब हम अिाथों की भानंत यहा ं पड े िह सकत ेहैं, इस घि पि हमािा कोई अचधकाि िही ं है। कदाचचत ् पवूम संस्कािों के कािण यहा ं अन्य अिाथों से हमािी दशा कुछ अच्छी है, पि हैं अिाथ ही। हम उसी ददि अिाथ हुए, जजस ददि अम्मा ंजी पिलोक लसधािीं। जो कुछ कसि िह गयी थी, वह इस वववाह िे पिूी कि दी। मैं तो खुद पहले इिसे ववशषे संबंध ि िखता था। अगि,

उन्हीं ददिों वपताजी से मेिी लशकायत की होती, तो शायद मझु ेइतिा दखु ि होता। मैं तो उसे आघात के ललए तैयाि बठैा था। संसाि में क्या मैं मजदिूी भी िहीं कि सकता? लेककि बिेु वक्त में इन्होंिे चोट की। दहसंक पश ुभी आदमी को गाकफल पाकि ही चोट किते हैं। इसीललए मेिी आवभगत होती थी, खािा खािे के ललए उठिे में जिा भी देि हो जाती थी, तो बलुावे पि बलुावे आते थे, जलपाि के ललए प्रात: हलआु बिाया जाता था, बाि-बाि पछूा जाता था-रुपयों की जरूित तो िहीं है? इसीललए वह सौ रुपयों की घडी मंगवाई थी। मगि क्या इन्हें क्या दसूिी लशकायत ि सझूी, जो मझु ेआवािा कहा? आणखि उन्होंिे मेिी क्या आवािगी देखी? यह कह सकती थी ंकक इसका मि

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पढि-ेललखिे में िही ं लगता, एक-ि-एक चीज के ललए नित्य रुपये मागंता िहता है। यही एक बात उन्हें क्यों सझूी? शायद इसीललए कक यही सबसे कठोि आघात है, जो वह मझु पि कि सकती हैं। पहली ही बाि इन्होंिे मझु ेपि अजग्ि–बाण चला ददया, जजससे कही ं शिण िहीं। इसीललए ि कक वह वपता की िजिों से चगि जाये? मझु ेबोडडिंग-हाउस में िखिे का तो एक बहािा था। उदे्दश्य यह था कक इसे दधू की मक्खी की तिह निकाल ददया जाये। दो-चाि महीि े के बाद खचम-वचम देिा बंद कि ददया जाये, कफि चाहे मिे या जजये। अगि मैं जािता कक यह पे्रिणा इिकी ओि से हुई है, तो कही ंजगह ि िहिे पि भी जगह निकाल लेता। िौकिों की कोठरियों में तो जगह लमल जाती, बिामदे में पड ेिहिे के ललए बहुत जगह लमल जाती। खैि, अब सबेिा है। जब स्िेह िहीं िहा, तो केवल पेट भििे के ललए यहा ंपड ेिहिा बेहयाई है, यह अब मेिा घि िहीं। इसी घि में पदैा हुआ हंू, यही खेला हंू, पि यह अब मेिा िहीं। वपताजी भी मेिे वपता िही ंहैं। मैं उिका पतु्र हंू, पि वह मेिे वपता िहीं हैं। संसाि के सािे िात े स्िेह के िात े हैं। जहां स्िेह िही,ं वहा ं कुछ िहीं। हाय, अम्माजंी, तुम कहा ंहो?

यह सोचकि मंसािाम िोिे लगा। ज्यों-ज्यों मात ृस्िेह की पवूम-स्मनृतया ंजागतृ होती थी,ं उसके आंस ू उमडत ेआते थे। वह कई बाि अम्मा-ंअम्मा ंपकुाि उठा, मािो वह खडी सिु िही हैं। मात-ृहीिता के द:ुख का आज उसे पहली बाि अिभुव हुआ। वह आत्मालभमािी था, साहसी था, पि अब तक सखु की गोद में लालि-पालि होि े के कािण वह इस समय अपिे आप को नििाधाि समझ िहा था।

िात के दस बज गये थे। मुंशीजी आज कही ंदावत खािे गये हुए थे। दो बाि महिी मंसािाम को भोजि किि े के ललए बलुािे आ चकुी थी। मंसािाम िे वपछली बाि उससे झुंझलाकि कह ददया था-मझु ेभखू िही ं है,

कुछ ि खाऊंगा। बाि-बाि आकि लसि पि सवाि हो जाती है। इसीललए जब निममला ि ेउसे कफि उसी काम के ललए भजेिा चाहा, तो वह ि गयी।

बोली-बहूजी, वह मेिे बलुािे से ि आवेंगे। निममला-आयेंगे क्यों िही?ं जाकि कह दे खािा ठण्डा हुआ जाता है। दो चाि कौि खा लें।

महिी-मैं यह सब कह के हाि गयी, िही ंआते। निममला-तूिे यह कहा था कक वह बठैी हुई हैं।

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महिी-िहीं बहूजी, यह तो मैंिे िहीं कहा, झठू क्यों बोलूं। निममला-अच्छा, तो जाकि यह कह देिा, वह बठैी तुम्हािी िाह देख िही हैं। तुम ि खाओगे तो वह िसोई उठाकि सो िहेंगी। मेिी भूगंी, सिु, अबकी औि चली जा। (हंसकि) ि आवें, तो गोद में उठा लािा।

भूंगी िाक-भौं लसकोडत े गयी, पि एक ही क्षण में आकि बोली-अिे बहूजी, वह तो िो िहे हैं। ककसी िे कुछ कहा है क्या?

निममला इस तिह चौककि उठी औि दो-तीि पग आगे चली, मािो ककसी माता िे अपिे बेटे के कुएं में चगि पडिे की खबि पायी हो, कफि वह दठठक गयी औि भूगंी से बोली-िो िहे हैं? तूिे पछूा िहीं क्यों िो िहे हैं?

भूंगी- िहीं बहूजी, यह तो मैंिे िहीं पछूा। झठू क्यों बोलू?ं

वह िो िहे हैं। इस निस्तबध िाबत्र में अकेले बठैै हुए वह िो िहे हैं। माता की याद आयी होगी? कैसे जाकि उन्हें समझाऊं? हाय, कैसे समझाऊं? यहां तो छीकंत ेिाक कटती है। ईश्वि, तुम साक्षी हो अगि मैंिे उन्हें भलू से भी कुछ कहा हो, तो वह मेिे गे आये। मैं क्या करंु? वह ददल में समझत ेहोंगे कक इसी ि े वपताजी से मेिी लशकायत की होगी। कैसे ववश्वास ददलाऊं कक मैंिे कभी तुम्हािे ववरुद्ध एक शब्द भी मुंह से िही ं निकाला? अगि मैं ऐसे देवकुमाि के-से चरित्र िखिे वाले यवुक का बिुा चतेूं, तो मझुसे बढकि िाक्षसी संसाि में ि होगी।

निममला देखती थी कक मंसािाम का स्वास््य ददि-ददि बबगडता जाता है, वह ददि-ददि दबुमल होता जाता है, उसके मखु की निममल कानंत ददि-ददि मललि होती जाती है, उसका सहास बदि संकुचचत होता जाता है। इसका कािण भी उससे नछपा ि था, पि वह इस ववषय में अपिे स्वामी से कुछ ि कह सकती थी। यह सब देख-देखकि उसका हृदय ववदीणम होता िहता था, पि उसकी जबाि ि खलु सकती थी। वह कभी-कभी मि में झुंझलाती कक मंसािाम क्यों जिा-सी बात पि इतिा क्षोभ किता है? क्या इिके आवािा कहिे से वह आवािा हो गया? मेिी औि बात है, एक जिा-सा शक मेिा सवमिाश कि सकता है, पि उसे ऐसी बातों की इतिी क्या पिवाह?

सके जी में प्रबल इच्छा हुई कक चलकि उन्हें चपु किाऊं औि लाकि खािा णखला दूं। बेचािे िात-भि भखेू पड ेिहेंगे। हाय। मैं इस उपद्रव की

जड हंू। मेिे आिे के पहले इस घि में शांनत का िाज्य था। वपता बालकों पि उ

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जाि देता था, बालक वपता को प्याि कित ेथे। मेिे आत ेही सािी बाधाएं आ खडी हुईं। इिका अंत क्या होगा? भगवाि ्ही जािे। भगवाि ्मझु ेमौत भी िहीं देत।े बेचािा अकेले भखूों पडा है। उस वक्त भी मुंह जुठा किके उठ गया था। औि उसका आहाि ही क्या है, जजतिा वह खाता है, उतिा तो साल-दो-साल के बच्च ेखा जाते हैं।

निममला चली। पनत की इच्छा के ववरुद्ध चली। जो िाते में उसका पतु्र होता था, उसी को मिािे जात े उसका हृदय कांप िहा था। उसि े पहले रुजक्मणी के कमिे की ओि देखा, वह भोजि किके बखेबि सो िही थीं, कफि बाहि कमिे की ओि गयी। वहां सन्िाटा था। मुंशी अभी ि आये थे। यह सब देख-भालकि वह मंसािाम के कमिे के सामिे जा पहंुची। कमिा खुला हुआ था, मंसािाम एक पसु्तक सामिे िखे मेज पि लसि झकुाये बठैा हुआ था, मािो शोक औि चचन्ता की सजीव मनूतम हो। निममला िे पकुाििा चाहा पि उसके कंठ से आवाज़ ि निकली। सहसा मंसािाम ि े लसि उठाकि द्वाि की ओि देखा। निममला को देखकि अंधेिे में पहचाि ि सका। चौंककि बोला-कौि?

निममला िे कांपत ेहुए स्वि में कहा-मैं तो हंू। भोजि कििे क्यों िही ंचल िहे हो? ककतिी िात गयी। मंसािाम िे मुंह फेिकि कहा-मझु ेभखू िही ंहै।

निममला-यह तो मैं तीि बाि भूगंी से सिु चकुी हंू। मंसािाम-तो चौथी बाि मेिे मुंह से सिु लीजजए। निममला-शाम को भी तो कुछ िही ंखाया था, भखू क्यों िही ंलगी?

मंसािाम ि ेव्यंग्य की हंसी हंसकि कहा-बहुत भखू लगेगी, तो आयेग कहा ंसे?

यह कहत-ेकहते मंसािाम ि े कमिे का द्वाि बंद कििा चाहा, लेककि निममला ककवाडों को हटाकि कमिे में चली आयी औि मंसािाम का हाथ पकड सजल िेत्रों से वविय-मधिु स्वि में बोली-मेिे कहिे से चलकि थोडा-सा खा लो। तुम ि खाओगे, तो मैं भी जाकि सो िहंूगी। दो ही कौि खा लेिा। क्या मझु ेिात-भि भखूों माििा चाहत ेहो?

मंसािाम सोच में पड गया। अभी भोजि िही ंककया, मेिे ही इंतजाि में बठैी िहीं। यह स्िेह, वात्सल्य औि वविय की देवी हैं या ईष्याम औि अमंगल की मायावविी मनूतम? उसे अपिी माता का स्मिण हो आया। जब वह रुठ

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जाता था, तो वे भी इसी तिह मिािे आ किती थीं औि जब तक वह ि जाता था, वहां से ि उठती थीं। वह इस वविय को अस्वीकाि ि कि सका। बोला-मेिे ललए आपको इतिा कि हुआ, इसका मझु ेखेद है। मैं जािता कक आप मेिे इंतजाि में भखूी बठैी हैं, तो तभी खा आया होता।

निममला ि े नतिस्काि-भाव से कहा-यह तमु कैसे समझ सकत े थे कक तुम भखेू िहोगे औि मैं खाकि सो िहंूगी? क्या ववमाता का िाता होि ेसे ही मैं ऐसी स्वाचथमिी हो जाऊंगी?

सहसा मदामिे कमिे में मुंशीजी के खांसिे की आवाज आयी। ऐसा मालमू हुआ कक वह मंसािाम के कमिे की ओि आ िहे हैं। निममला के चहेिे का िंग उड गया। वह तुिंत कमिे से निकल गयी औि भीति जािे का मौका ि पाकि कठोि स्वि में बोली-मैं लौंडी िहीं हंू कक इतिी िात तक ककसी के ललए िसोई के द्वाि पि बठैी िहंू। जजसे ि खािा हो, वह पहले ही कह ददया किे।

मुंशीजी िे निममला को वहा ंखड ेदेखा। यह अिथम। यह यहा ंक्या कििे आ गयी? बोल-ेयहा ंक्या कि िही हो?

निममला िे ककम श स्वि में कहा-कि क्या िही हंू, अपिे भाग्य को िो िही हंू। बस, सािी बिुाइयों की जड मैं ही हंू। कोई इधि रुठा है, कोई उधि मुंह फुलाये खडा है। ककस-ककस को मिाऊं औि कहा ंतक मिाऊं। मुंशीजी कुछ चककत होकि बोले-बात क्या है?

निममला-भोजि किि ेिहीं जात ेऔि क्या बात है? दस दफे महिी को भे, आणखि आप दौडी आयी। इन्हें तो इतिा कह देिा आसाि है, मझु ेभखू िहीं है, यहां तो घि भि की लौंडी हंू, सािी दनुिया मुंह में काललख पोतिे को तैयाि। ककसी को भखू ि हो, पि कहिे वालों को यह कहिे से कौि िोकेगा कक वपशाचचिी ककसी को खािा िही ंदेती। मुंशीजी िे मंसािाम से कहा-खािा क्यों िहीं खा लेत ेजी? जािते हो क्या वक्त है?

मंसािाम जस्त्म्भत-सा खडा था। उसके सामिे एक ऐसा िहस्य हो िहा था, जजसका ममम वह कुछ भी ि समझ सकताथा। जजि िेत्रों में एक क्षण पहले वविय के आंस ूभिे हुए थे, उिमें अकस्मात ्ईष्याम की ज्वाला कहा ंसे आ गयी? जजि अधिों से एक क्षण पहले सधुा-ववृि हो िही थी, उिमें से ववष प्रवाह क्यों होि ेलगा? उसी अधम चतेिा की दशा में बोला-मझु ेभखू िहीं है।

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मुंशीजी िे घडुककि कहा-क्यों भखू िही ंहै? भखू िहीं थी, तो शाम को क्यों ि कहला ददया? तुम्हािी भखू के इंतजाि में कौि सािी िात बठैा िहे? तुममें पहले तो यह आदत ि थी। रुठिा कब से सीख ललया? जाकि खा लो। मंसािाम-जी िही,ं मझुे जिा भी भखू िहीं है। तोतािाम-िे दांत पीसकि कहा-अच्छी बात है, जब भखू लगे तब खािा। यह कहते हुए एवह अंदि चले गये। निममला भी उिके पीछे ही चली गयी। मुंशीजी तो लेटिे चले गये, उसिे जाकि िसोई उठा दी औि कुल्लाकि, पाि खा मसु्किाती हुई आ पहंुची। मुंशीजी िे पछूा-खािा खा ललया ि?

निममला-क्या किती, ककसी के ललए अन्ि-जल छोड दूंगी?

मुंशीजी-इसे ि जाि ेक्या हो गया है, कुछ समझ में िहीं आता? ददि-ददि घलुता चला जाता है, ददि भि उसी कमिे में पडा िहता है।

निममला कुछ ि बोली। वह चचतंा के अपाि सागि में डुबककया ंखा िही थी। मंसािाम ि े मेिे भाव-परिवतमि को देखकि ददल में क्या-क्या समझा होगा? क्या उसके मि में यह प्रश्न उठा होगा कक वपताजी को देखत े ही इसकी त्योरियं क्यों बदल गयी?ं इसका कािण भी क्या उसकी समझ में आ गया होगा? बेचािा खािे आ िहा था, तब तक यह महाशय ि जाि ेकहां से फट पड?े इस िहस्य को उसे कैसे समझाऊं समझािा संभव भी है? मैं ककस ववपवत्त में फंस गयी?

सवेिे वह उठकि घि के काम-धंधे में लगी। सहसा िौ बजे भूंगी िे आकि कहा-मंसा बाब ूतो अपिे कागज-पत्ति सब इक्के पि लाद िहे हैं। भूंगी-मैंिे पछूा तो बोले, अब स्कूल में ही िहंूगा। मंसािाम प्रात:काल उठकि अपिे स्कूल के हेडमास्टि साहब के पास गया था औि अपिे िहिे का प्रबंध कि आया था। हेडमास्टि साहब ि ेपहले तो कहा-यहा ंजगह िही ं है, तुमसे पहले के ककति ेही लडकों के प्राथमिा-पत्र पड ेहुए हैं, लेककि जब मंसािाम िे कहा-मझु ेजगह ि लमलेगी, तो कदाचचत ्मेिा पढिा ि हो सके औि मैं इम्तहाि में शिीक ि हो सकंू, तो हेडमास्टि साहब को हाि माििी पडी। मंसािाम के प्रथम शे्रणी में पास होिे की आशा थी। अध्यापकों को ववश्वास था कक वह उस शाला की कीनतम को उज्जवल किेगा। हेडमास्टि साहब ऐसे लडकों को कैसे छोड सकत ेथे? उन्होिे अपिे दफ्ति का कमिा खाली किा ददया। इसीललए मंसािाम वहा ंसे आत ेही अपिा सामाि इक्के पि लादिे लगा।

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मुंशीजी िे कहा-अभी ऐसी क्या जल्दी है? दो-चाि ददि में चले जािा। मैं चाहता हंू, तुम्हािे ललए कोई अच्छा सा िसोइया ठीक कि दूं। मंसािाम-वहां का िसोइया बहुत अच्छा भोजि पकाता है।

मुंशीजी-अपिे स्वास््य का ध्याि िखिा। ऐसा ि हो कक पढि ेके पीछे स्वास््य खो बठैो। मंसािाम-वहां िौ बजे के बाद कोई पढि ेिहीं पाता औि सबको नियम के साथ खेलिा पडता है। मुंशी जी-बबस्ति क्यों छोड देत ेहो? सोओगे ककस पि?

मंसािाम-कंबल ललए जाता हंू। बबस्ति जरुित िहीं।

मुंशी जी-कहाि जब तक तुम्हािा सामाि िख िहा है, जाकि कुछ खा लो। िात भी तो कुछ िही ंखाया था।

मंसािाम-वहीं खा लूगंा। िसोइये से भोजि बिािे को कह आया हंू यहा ंखािे लगूंगा तो देि होगी।

घि में जजयािाम औि लसयािाम भी भाई के साथ जािे के जजद कि िहे थे निममला उि दोिों के बहला िही थी-बेटा, वहां छोटे िही ं िहते, सब काम अपिे ही हाथ से कििा पडता है। एकाएक रुजक्मणी ि ेआकि कहा-तुम्हािा वज्र का हृदय है, महािाि। लडके िे िात भी कुछ िही ंखाया, इस वक्त भी बबिा खाय-पीये चला जा िहा है औि तुम लडको के ललए बातें कि िही हो? उसको तुम जािती िहीं हो। यह समझ लो कक वह स्कूल िही ंजा िहा है, बिवास ले िहा है, लौटकि कफि ि आयेगा। यह उि लडकों में िहीं है, जो खेल में माि भलू जाते हैं। बात उसके ददल पि पत्थि की लकीि हो जाती है।

निममला िे काति स्वि में कहा-क्या करंु, दीदीजी? वह ककसी की सिुत ेही िहीं। आप जिा जाकि बलुा लें। आपके बलुािे से आ जायेंगे। रुजक्मणी- आणखि हुआ क्या, जजस पि भागा जाता है? घि से उसका जी कभ उचाट ि होता था। उसे तो अपिे घि के लसवा औि कही ंअच्छा ही ि लगता था। तुम्ही ं िे उसे कुछ कहा होगा, या उसकी कुछ लशकायत की होगी। क्यों अपिे ललए कांटे बो िही हो? िािी, घि को लमट्टी में लमलाकि चिै से ि बठैिे पाओगी।

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निममला िे िोकि कहा-मैंिे उन्हें कुछ कहा हो, तो मेिी जबाि कट जाये। हा,ं सौतेली मा ंहोिे के कािण बदिाम तो हंू ही। आपके हाथ जोडती हंू जिा जाकि उन्हें बलुा लाइये।

रुजक्मणी िे तीव्र स्वि में कहा- तुम क्यों िही ंबलुा लाती?ं क्या छोटी हो जाओगी? अपिा होता, तो क्या इसी तिह बठैी िहती?

निममला की दशा उस पंखहीि पक्षी की तिह हो िही थी, जो सपम को अपिी ओि आत ेदेख कि उडिा चाहता है, पि उड िही ंसकता, उछलता है औि चगि पडता है, पंख फडफडाकि िह जाता है। उसका हृदय अंदि ही अंदि तडप िहा था, पि बाहि ि जा सकती थी। इतिे में दोिों लडके आकि बोले-भयैाजी चले गये। निममला मनूतमवत ्खडी िही, मािो संज्ञाहीि हो गयी हो। चले गये? घि में आये तक िही,ं मझुसे लमले तक िही ंचले गये। मझुसे इतिी घणृा। मैं उिकी कोई ि सही, उिकी बआु तो थी।ं उिसे तो लमलिे आिा चादहए था? मैं यहा ंथी ि। अंदि कैसे कदम िखत?े मैं देख लेती ि। इसीललए चले गये।

िौ

सािाम के जािे से घि सिूा हो गया। दोिों छोटे लडके उसी स्कूल में पढते थे। निममला िोज उिसे मंसािाम का हाल पछूती। आशा थी कक

छुट्टी के ददि वह आयेगा, लेककि जब छुट्टी के ददि गुजि गये औि वह ि आया, तो निममला की तबीयत घबिाि ेलगी। उसि ेउसके ललए मूंग के लड्डू बिा िखे थे। सोमवाि को प्रात: भूगंी का लड्डू देकि मदिसे भेजा। िौ बजे भूंगी लौट आयी। मंसािाम िे लड्डू ज्यों-के-त्यों लौटा ददये थे। निममला िे पछूा-पहले से कुछ हिे हुए हैं, िे?

भूंगी-हिे-विे तो िही ंहुए, औि सखू गये हैं। निममला- क्या जी अच्छा िहीं है?

भूंगी-यह तो मैंिे िही ंपछूा बहूजी, झठू क्यों बोलू?ं हा,ं वहां का कहाि मेिा देवि लगता है । वह कहता था कक तुम्हािे बाबजूी की खिुाक कुछ िही ंहै। दो फुलककयां खाकि उठ जात ेहैं, कफि ददि भि कुछ िही ंखात।े हिदम पढते िहत ेहैं। निममला-तूिे पछूा िही,ं लड्डू क्यों लौटाये देते हो?

मं

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भूंगी- बहूजी, झठू क्यों बोलू?ं यह पछूिे की तो मझु ेसधु ही ि िही। हा,ं यह कहत ेथे कक अब त ूयहा ंकभी ि आिा, ि मेिे ललए कोई चीज लािा औि अपिी बहूजी से कह देिा कक मेिे पास कोई चचट्ठी-पत्तिी ि भेजें। लडकों से भी मेिे पास कोई संदेशा ि भेजें औि एक ऐसी बात कही कक मेिे मुंह से निकल िही ंसकती, कफि िोि ेलगे। निममला-कौि बात थी कह तो?

भूंगी-क्या कहंू कहत े थे मेिे जीिे को धीक्काि है? यही कहकि िोि ेलगे। निममला के मुंह से एक ठंडी सांस निकल गयी। ऐसा मालमू हुआ, मािो कलेजा बठैा जाता है। उसका िोम-िोम आतमिाद किि ेलगा। वह वहां बठैी ि िह सकी। जाकि बबस्ति पि मुंह ढापंकि लेट िही औि फूट-फूटकि िोिे लगी। ‘वह भी जाि गये’। उसके अन्त:किण में बाि-बाि यही आवाज़ गूंजिे लगी-‘वह भी जाि गये’। भगवाि ्अब क्या होगा? जजस संदेह की आग में वह भस्म हो िही थी, अब शतगुण वगे से धधकि ेलगी। उसे अपिी कोई चचतंा ि थी। जीवि में अब सखु की क्या आशा थी, जजसकी उसे लालसा होती? उसिे अपिे मि को इस ववचाि से समझाया था कक यह मेिे पवूम कमों का प्रायजश्चत है। कौि प्राणी ऐसा निलमज्ज होगा, जो इस दशा में बहुत ददि जी सके? कत्तमव्य की वेदी पि उसिे अपिा जीवि औि उसकी सािी कामिाएं होम कि दी थी।ं हृदय िोता िहता था, पि मखु पि हंसी का िंग भििा पडता था। जजसका मुंह देखिे को जी ि चाहता था, उसके सामि ेहंस-हंसकि बातें कििी पडती थी।ं जजस देह का स्पशम उसे सपम के शीतल स्पशम के समाि लगता था, उससे आललचंगत होकि उसे जजतिी घणृा, जजतिी मममवेदिा होती थी, उसे कौि जाि सकता है? उस समय उसकी यही इच्छा थी कक धिती फट जाये औि मैं उसमें समा जाऊं। लेककि सािी ववडम्बिा अब तक अपिे ही तक थी। अपिी चचतंा उसि छोड दी थी, लेककि वह समस्या अब अत्यंत भयंकि हो गयी थी। वह अपिी आंखों से मंसािाम की आत्मपीडा िहीं देख सकती थी। मंसािाम जैसे मिस्वी, साहसी यवुक पि इस आक्षेप का जो असि पड सकता था, उसकी कल्पिा ही से उसके प्राण कांप उठते थे। अब चाहे उस पि ककतिे ही संदेह क्यों ि हों, चाहे उसे आत्महत्या ही क्यों ि कििी पड,े पि वह चपु िही ंबठै सकती। मंसािाम की िक्षा कििे

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के ललए वह ववकल हो गयी। उसिे संकोच औि लज्जा की चादि उतािकि फें क देिे का निश्चय कि ललया।

वकील साहब भोजि किके कचहिी जाि े के पहले एक बाि उससे अवश्य लमल ललया किते थे। उिके आिे का समय हो गया था। आ ही िहे होंग,े यह सोचकि निममला द्वाि पि खडी हो गयी औि उिका इंतजाि किि ेलगी लेककि यह क्या? वह तो बाहि चले जा िहे है। गाडी जुतकि आ गयी, यह हुक्म वह यही ंसे ददया कित ेथे। तो क्या आज वह ि आयेंगे, बाहि-ही-बाहि चले जायेंगे। िही,ं ऐसा िहीं होिे पायेगा। उसिे भूंगी से कहा-जाकि बाबजूी को बलुा ला। कहिा, एक जरुिी काम है, सिु लीजजए। मुंशीजी जािे को तैयाि ही थे। यह संदेशा पाकि अंदि आये, पि कमिे में ि आकि दिू से ही पछूा-क्या बात है भाई? जल्दी कह दो, मझु ेएक जरुिी काम से जािा है। अभी थोडी देि हुई, हेडमास्टि साहब का एक पत्र आया है कक मंसािाम को ज्वि आ गया है, बेहति हो कक आप घि ही पि उसका इलाज किें। इसललए उधि ही से हाता हुआ कचहिी जाऊंगा। तुम्हें कोई खास बात तो िही ंकहिी है।

निममला पि मािो वज्र चगि पडा। आंसओंु के आवेग औि कंठ-स्वि में घोि संग्राम होिे लगा। दोिों पहले निकलिे पि तुले हुए थे। दो में से कोई एक कदम भी पीछे हटिा िहीं चाहता था। कंठ-स्वि की दबुमलता औि आंसओंु की सबलता देखकि यह निश्चय कििा कदठि िहीं था कक एक क्षण यही संग्राम होता िहा तो मदैाि ककसके हाथ िहेगा। अखीि दोिों साथ-साथ निकल,े लेककि बाहि आत ेही बलवाि ि ेनिबमल को दबा ललया। केवल इतिा मुंह से निकला-कोई खास बात िही ंथी। आप तो उधि जा ही िहे हैं। मुंशीजी- मैंिे लडकों पछूा था, तो वे कहते थे, कल बठेै पढ िहे थे, आज ि जािे क्या हो गया। निममला िे आवेश से कांपते हुए कहा-यह सब आप कि िहे हैं

मुंशीजी िे त्योरिया ंबदलकि कहा-मैं कि िहा हंू? मैं क्या कि िहा हंू?

निममला-अपिे ददल से पनूछए। मुंशीजी-मैंिे तो यही सोचा था कक यहा ं उसका पढिे में जी िही ंलगता, वहा ंऔि लडकों के साथ खामाख्वह पढेगा ही। यह तो बिुी बात ि थी औि मैंिे क्या ककया?

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निममला-खूब सोचचए, इसीललए आपिे उन्हें वहा ंभेजा था? आपके मि में औि कोई बात ि थी।

मुंशीजी जिा दहचककचाए औि अपिी दबुमलता को नछपािे के ललए मसु्किािे की चिेा किके बोले-औि क्या बात हो सकती थी? भला तुम्ही ंसोचो। निममला-खैि, यही सही। अब आप कृपा किके उन्हें आज ही लेते आइयेगा, वहां िहि े से उिकी बीमािी बढ जािे का भय है। यहां दीदीजी जजतिी तीमािदािी कि सकती हैं, दसूिा िहीं कि सकता। एक क्षण के बाद उसिे लसि िीचा किके कहा-मेिे कािण ि लािा चाहत ेहों, तो मझु ेघि भेज दीजजए। मैं वहा ंआिाम से िहंूगी।

मुंशीजी िे इसका कुछ जवाब ि ददया। बाहि चले गये, औि एक क्षण में गाडी स्कूल की ओि चली।

मि। तिेी गनत ककतिी ववचचत्र है, ककतिी िहस्य से भिी हुई, ककतिी दभेुद्य। त ू ककतिी जल्द िंग बदलता है? इस कला में तू निपणु है। आनतशबाजी की चखी को भी िंग बदलत ेकुछ देिी लगती है, पि तुझ े िंग बदलिे में उसका लक्षांश समय भी िही ंलगता। जहा ंअभी वात्सल्य था, वहा ं कफि संदेह िे आसि जमा ललया।

वह सोचत ेथे-कही ंउसिे बहािा तो िही ंककया है?

दस

सािाम दो ददि तक गहिी चचतंा में डूबा िहा। बाि-बाि अपिी माता की याद आती, ि खािा अच्छा लगता, ि पढिे ही में जी लगता। उसकी

कायापलट-सी हो गई। दो ददि गजुि गये औि छात्रालय में िहत े हुए भी उसिे वह काम ि ककया, जो स्कूल के मास्टिों िे घि से कि लािे को ददया था। परिणाम स्वरुप उसे बेंच पि खडा िहिा पडा। जो बात कभी ि हुई थी, वह आज हो गई। यह असह्य अपमाि भी उसे सहिा पडा।

तीसिे ददि वह इन्हीं चचतंाओं में मग्ि हुआ अपिे मि को समझा िहा था-कहा संसाि में अकेले मेिी ही माता मिी है? ववमाताएं तो सभी इसी प्रकाि की होती हैं। मेिे साथ कोई िई बात िही ंहो िही है। अब मझु ेपरुुषों की भांनत दद्वगणु परिश्रम से अपिा म कििा चादहए, जैसे माता-वपता िाजी

म ं

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िहें, वसेै उन्हें िाजी िखिा चादहए। इस साल अगि छात्रवनृत लमल गई, तो मझु ेघि से कुछ लेिे की जरुित ही ि िहेगी। ककतिे ही लडके अपिे ही बल पि बडी-बडी उपाचधयां प्राप्त कि लेत ेहैं। भागय के िाम को िोिे-कोसिे से क्या होगा। इतिे में जजयािाम आकि खडा हो गया।

मंसािाम िे पछूा-घि का क्या हाल है जजया? िई अम्माजंी तो बहुत प्रसन्ि होंगी?

जजयािाम-उिके मि का हाल तो मैं िही ंजािता, लेककि जब से तुम आये हो, उन्होिे एक जूि भी खािा िही ंखाया। जब देखो, तब िोया किती हैं। जब बाबजूी आत ेहैं, तब अलबत्ता हंसिे लगती हैं। तुम चले आये तो मैंिे भी शाम को अपिी ककताबें संभाली। यहीं तुम्हािे साथ िहिा चाहता था। भूंगी चडुलै िे जाकि अम्माजंी से कह ददया। बाबजूी बठेै थे, उिके सामिे ही अम्माजंी िे आकि मेिी ककताबें छीि ली ं औि िोकि बोली,ं तुम भी चले जाओगे, तो इस घि में कौि िहेगा? अगि मेिे कािण तुम लोग घि छोड-छोडकि भागे जा िहे तो लो, मैं ही कही ंचली जाती हंू। मैं तो झल्लाया हुआ था ही, वहां अब बाबजूी भी ि थे, बबगडकि बोला, आप क्यों कही ं चली जायेंगी? आपका तो घि है, आप आिाम से िदहए। गैि तो हमी ंलोग हैं, हम ि िहेंगे, तब तो आपको आिाम-आिाम ही होग। मंसािाम-तुमिे खूब कहा, बहुत ही अच्छा कहा। इस पि औि भी झल्लाई होंगी औि जाकि बाबजूी से लशकायत की होगी। जजयािाम-िही,ं यह कुछ िहीं हुआ। बेचािी जमीि पि बठैकि िोिे लगीं। मझु ेभी करुणा आ गयी। मैं भी िो पडा। उन्होिे आंचल से मेिे आंस ूपोंछे औि बोली,ं जजया। मैं ईश्वि को साक्षी देकि कहती हंू कक मैंिे तुम्हािे भयैा केइववषय में तमु्हािे बाबजूी से एक शब्द भी िहीं कहा। मेिे भाग में कलंक ललखा हुआ है, वही भाग िही हंू। कफि औि ि जािे क्या-क्या कहा, जा मेिी समझ में िही ंआया। कुछ बाबजुी की बात थी। मंसािाम िे उदद्वग्िता से पछूा-बाबजूी के ववषय में क्या कहा? कुछ याद है?

जजयािाम-बातें तो भई, मझु ेयाद िहीं आती। मेिी ‘मेमोिी’ कौि बडी ते है, लेककि उिकी बातों का मतलब कुछ ऐसा मालमू होता था कक उन्हें बाबजूी को प्रसन्ि िखिे के ललए यह स्वागं भििा पड िहा है। ि जािे धमम-

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अधमम की कैसी बातें किती थी ंजो मैं बबल्कुल ि समझ सका। मझु ेतो अब इसका ववश्वास आ गया है कक उिकी इच्छा तुम्हें यहा ंभेजि की ि थी।

मंसािाम- तुम इि चालों का मतलब िही ंसमझ सकते। ये बडी गहिी चालें हैं।

जजयािाम- तुम्हािी समझ में होंगी, मेिी समझ में िही ंहैं। मंसािाम- जब तुम ज्योमेट्री िही ंसमझ सकत,े तो इि बातों को क्या समझ सकोगे? उस िात को जब मझु ेखािा खािे के ललए बलुािे आयी थी ंऔिउिके आग्रह पि मैं जािे को तैयाि भी हो गया था, उस वक्त बाबजूी को देखत ेही उन्होिे जो कैं डा बदला, वह क्या मैं कभी भी भलू सकता हंू?

जजयािाम-यही बात मेिी समझ में िही ंआती। अभी कल ही मैं यहा ंसे गया, तो लगीं तुम्हािा हाल पछूिे। मैंिे कहा, वह तो कहते थे कक अब कभी इस घि में कदम ि िखूंगा। मैंिे कुछ झठू तो कहा िही,ं तुमिे मझुसे कहा ही था। इतिा सिुिा था कक फूट-फूटकि िोिे लगीं मैं ददल में बहुत पछताया कक कहा-ंसे-कहा ंमैंिे यह बात कह दी। बाि-बाि यही कहती थी,ं क्या वह मेिे कािण घि छोड देंगे? मझुसे इतिे िािाज है।? चले गये औि मझसे लमले तक िही।ं खािा तैयाि था, खािे तक िहीं आये। हाय। मैं क्या बताऊं, ककस ववपवत्त में हंू। इतिे में बाबजूी आ गये। बस तुिन्त आंखें पोंछकि मसु्कुिाती हुई उिके पास चली गई। यह बात मेिी समझ में िही ंआती। आज मझु े बडी लमन्ित की कक उिको साथ लेत ेआिा। आज मैं तुम्हें खींच ले चलूंगा। दो ददि में वह ककतिी दबुली हो गयी हैं, तुम्हें यह देखकि उि पि दया आयी। तो चलोगे ि?

मंसािाम िे कुछ जवाब ि ददया। उसके पिै कांप िहे थे। जजयािाम तो हाजजिी की घंटी सिुकि भागा, पि वह बेंच पि लेट गया औि इतिी लम्बी सांस ली, मािो बहुत देि से उसिे सांस ही िही ंली है। उसके मखु से दसु्सह वेदिा में डूबे हुए शब्द निकले-हाय ईश्वि। इस िाम के लसवा उसे अपिा जीवि नििाधाि मालमू होता था। इस एक उच्छवास में ककतिा ििैाश्य था, ककतिी संवेदिा, ककतिी करुणा, ककतिी दीि-प्राथमिा भिी हुई थी, इसका कौि अिमुाि कि सकता है। अब सािा िहस्य उसकी समझ में आ िहा था औि बाि-बाि उसका पीडडत हृदय आतमिाद कि िहा था-हाय ईश्वि। इतिा घोि कलंक।

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क्या जीवि में इससे बडी ववपवत्त की कल्पिा की जा सकती है? क्या संसाि में इससे घोितम िीचता की कल्पिा हो सकती है? आज तक ककसी वपता ि ेअपिे पतु्र पि इतिा निदमय कलंक ि लगाया होगा। जजसके चरित्र की सभी प्रशंसा कित ेथे, जो अन्य यवुकों के ललए आदशम समझा जाता था, जजसिे कभी अपववत्र ववचािों को अपिे पास िहीं फटकिे ददया, उसी पि यह घोितम कलंक। मंसािाम को ऐसा मालमू हुआ, मािों उसका ददल फटा जाता है।

दसूिी घंटी भी बज गई। लडके अपिे-अपिे कमिे में गए, पि मंसािाम हथेली पि गाल िखे अनिमेष िेत्रों से भलूम की ओि देख िहा था, मािो उसका सवमस्व जलमग्ि हो गया हो, मािो वह ककसी को मुंह ि ददखा सकता हो। स्कूल में गैिहाजजिी हो जायेगी, जुमामिा हो जायेगा, इसकी उसे चचतंा िही,ं जब उसका सवमस्व लटु गया, तो अब इि छोटी-छोटी बातों का क्या भय? इतिा बडा कलंक लगिे पि भी अगि जीता िहंू, तो मेिे जीि े को चधक्काि है। उसी शोकानतिेक दशा में वह चचल्ला पडा-माताजी। तुम कहां हो? तुम्हािा बेटा, जजस पि तुम प्राण देती थी,ं जजसे तुम अपिे जीवि का आधाि समझती थी,ं आज घोि संकट में है। उसी का वपता उसकी गदमि पि छुिी फेि िहा है। हाय, तुम हो?

मंसािाम कफि शांतचचत्त से सोचि ेलगा-मुझ पि यह संदेह क्यों हो िहा है? इसका क्या कािण है? मझुमें ऐसी कौि-सी बात उन्होंि े देखी, जजससे उन्हें यह संदेह हुआ? वह हमािे वपता हैं, मेिे शत्र ुिही ं है, जो अिायास ही मझ पि यह अपिाध लगािे बठै जायें। जरुि उन्होिें कोई-कोई बात देखी या सिुी है। उिका मझु पि ककतिा स्िेह था। मेिे बगैि भोजि ि कित ेथे, वही मेिे शत्र ुहो जायें, यह बात अकािण िही ंहो सकती। अच्छा, इस संदेह का बीजािोपण ककस ददि हुआ? मझु ेबोडडिंग हाउस में ठहिािे की बात तो पीछे की है। उस ददि िात को वह मेिे कमिे में आकि मेिी पिीक्षा लेिे लगे थे, उसी ददि उिकी त्योरियां बदली हुईं थीं। उस ददि ऐसी कौि-सी बात हुई, जो अवप्रय लगी हो। मैं िई अम्मा ंसे कुछ खािे को मागंिे गया था। बाबजूी उस समय वहां बठेै थे। हा,ं अब याद आती है,

उसी वक्त उिका चहेिा तमतमा गया था। उसी ददि से िई अम्मां िे मझुसे पढिा छोड ददया। अगि मैं जािता कक मेिा घि में आिा-जािा, अम्मांजी से

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कुछ कहिा-सिुिा औि उन्हें पढािा-ललखािा वपताजी को बिुा लगता है, तो आज क्यों यह िौबत आती? औि िई अम्मां। उि पि क्या बीत िही होगी?

मंसािाम िे अब तक निममला की ओि ध्याि िही ं ददया था। निममला का ध्याि आत ेही उसके िोंये खड ेहो गये। हाय उिका सिल स्िेहशील हृदय यह आघात कैसे सह सकेगा? आह। मैं ककतिे भ्रम में था। मैं उिके स्िेह को कौशल समझता था। मझु े क्या मालमू था कक उन्हें वपताजी का भ्रम शांत किि ेके ललए मेिे प्रनत इतिा कटु व्यवहाि कििा पडता है। आह। मैंिे उि पि ककतिा अन्याय ककया है। उिकी दशा तो मझुसे भी खिाब हो िही होगी। मैं तो यहां चला आय, मगि वह कहां जायेंगी? जजया कहता था, उन्होंिे दो ददि से भोजि िही ं ककया। हिदम िोया किती हैं। कैसे जाकि समझाऊं। वह इस अभागे के पीछे क्यों अपिे लसि यह ववपवत्त ले िही हैं? वह बाि-बाि मेिा हाल पछूती हैं? क्यों बाि-बाि मझु ेबलुाती हैं? कैसे कह दूं कक माता मझु े तुमसे जिा भी लशकायत िही,ं मेिा ददल तुम्हािी तिफ से साफ है।

वह अब भी बठैी िो िही होंगी। ककतिा बडा अिथम है। बाबजूी को यह क्या हो िहा है? क्या इसीललए वववाह ककया था? एक बाललका की हत्या किि ेके ललए ही उसे लाये थे? इस कोमल पषु्प को मसल डालिे के ललए ही तोडा था। उिका उद्वाि कैसे होगा। उस नििपिाचधिी का मखु कैस उज्जवल होगा? उन्हें केवल मेिे साथ स्िेह का व्यवहाि कििे के ललए यह दंड ददया जा िहा है। उिकी सज्जिता का उन्हें यह उपहाि लमल िहा है। मैं उन्हें इस प्रकाि निदमय आघात सहते देखकि बठैा िहंूगा? अपिी माि-िक्षा के ललए ि सही, उिकी आत्म-िक्षा के ललए इि प्राणों का बललदाि कििा पडगेा। इसके लसवाय उद्धाि का काई उपाय िहीं। आह। ददल में कैसे-कैसे अिमाि थे। व ेसब खाक में लमला देिे होंगे। एक सती पि संदेह ककया जा िहा है औि मेिे कािण। मझु ेअपिी प्राणों से उिकी िक्षा कििी होगी, यही मेिा कत्तमव्य है। इसी में सच्ची वीिता है। माता, मैं अपिे िक्त से इस काललमा को धो दूंगा। इसी में मेिा औि तुम्हािा दोिों का कल्याण है।

वह ददि भि इन्ही ं ववचािों मे डूबा िहा। शाम को उसके दोिों भाई आकि घि चलिे के ललए आग्रह कििे लगे। लसयािाम-चलते क्या ंिही? मेिे भयैाजी, चले चलो ि।

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मंसािाम-मझु ेफुिसत िहीं है कक तुम्हािे कहिे से चला चलूं।

जजयािाम-आणखि कल तो इतवाि है ही।

मंसािाम-इतवाि को भी काम है।

जजयािाम-अच्छा, कल आआगे ि?

मंसािाम-िहीं, कल मझु ेएक मचै में जािा है।

लसयािाम-अम्माजंी मूगं के लड्डू बिा िही हैं। ि चलोगे तो एक भी पाआगे। हम तुम लमल के खा जायेंगे, जजया इन्हें ि देंगे। जजयािाम-भयैा, अगि तुम कल ि गये तो शायद अम्माजंी यहीं चली आयें। मंसािाम-सच। िहीं ऐसा क्यों किेंगी। यहां आयी,ं तो बडी पिेशािी होगी। तुम कह देिा, वह कही ंमचै देखिे गये हैं। जजयािाम-मैं झठू क्यों बोलिे लगा। मैं कह दूंगा, वह मुंह फुलाये बठेै थे। देख ले उन्हें साथ लाता हंू कक िहीं। लसयािाम-हम कह देंगे कक आज पढिे िहीं गये। पड-ेपड ेसोत ेिहे।

मंसािाम िे इि दतूों से कल आिे का वादा किके गला छुडाया। जब दोिों चले गये, तो कफि चचतंा में डूबा। िात-भि उसे किवटें बदलते गुजिी। छुट्टी का ददि भी बठेै-बठेै कट गया, उसे ददि भि शंका होती िहती कक कही ंअम्माजंी सचमचु ि चली आयें। ककसी गाडी की खडखडाहट सिुता, तो उसका कलेजा धकधक किि ेलगता। कही ंआ तो िही ंगयीं?

छात्रालय में एक छोटा-सा औषधालय था। एक डांक्टि साहब संध्या समय एक घण्टे के ललए आ जाया कित ेथे। अगि कोई लडका बीमाि होता तो उसे दवा देते। आज वह आये तो मंसािाम कुछ सोचता हुआ उिके पास जाकि खडा हो गया। वह मंसािाम को अच्छी तिह जािते थे। उसे देखकि आश्चयम से बोले-यह तुम्हािी क्या हालत है जी? तुम तो मािो गले जा िहे हो। कही ंबाजाि का का चस्का तो िही ंपड गया? आणखि तुम्हें हुआ क्या? जिा यहा ंतो आओ। मंसािाम िे मसु्किाकि कहा-मझु े जजन्दगी का िोग है। आपके पास इसकी भी तो कोई दवा है?

डाक्टि-मैं तुम्हािी पिीक्षा कििा चाहता हंू। तुम्हािी सिूत ही बदल गयी है, पहचाि ेभी िहीं जाते।

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यह कहकि, उन्होि े मंसािाम का हाथ पकड ललया औि छाती, पीठ,

आंखें, जीभ सब बािी-बािी से देखी।ं तब चचनंतत होकि बोले-वकील साहब से मैं आज ही लमलूगंा। तुम्हें थाइलसस हो िहा है। सािे लक्षण उसी के हैं। मंसािाम िे बडी उत्सकुता से पछूा-ककतिे ददिों में काम तमाम हो जायेगा, डक्टि साहब?

डाक्टि-कैसी बात कित े हो जी। मैं वकील साहब से लमलकि तुम्हें ककसी पहाडी जगह भेजिे की सलाद दूंगा। ईश्वि िे चाहा, तो बहुत जल्द अच्छे हो जाओगे। बीमािी अभी पहले स्टेज में है। मंसािाम-तब तो अभी साल दो साल की देि मालमू होती है। मैं तो इतिा इंतजाि िही ंकि सकता। सनुिए, मझु ेथायलसस-वायलसस कुछ िहीं है,

ि कोई दसूिी लशकायत ही है, आप बाबजूी को िाहक तिद्रददु में ि डाललएगा। इस वक्त मेिे लसि में ददम है, कोई दवा दीजजए। कोई ऐसी दवा हो, जजससे िींद भी आ जाये। मझु ेदो िात से िींद िही ंआती। डॉक्टि िे जहिीली दवाइयों की आलमािी खोली औि शीशी से थोडी सी दवा निकालकि मंसािाम को दी। मंसािाम िे पछूा-यह तो कोई जहि है भला इस कोई पी ले तो मि जाये?

डॉक्टि-िहीं, मि तो िहीं जाये, पि लसि में चक्कि जरूि आ जाये। मंसािाम-कोई ऐसी दवा भी इसमें है, जजसे पीत ेही प्राण निकल जायें?

डॉक्टि-ऐसी एक-दो िहीं ककतिी ही दवाएं हैं। यह जो शीशी देख िहे हो, इसकी एक बूंद भी पेट में चली जाये, तो जाि ि बच।े आिि-फािि में मौत हो जाये। मंसािाम-क्यों डॉक्टि साहब, जो लोग जहि खा लेत े हैं, उन्हें बडी तकलीफ होती होगी?

डॉक्टि-सभी जहिों में तकलीफ िहीं होती। बाज तो ऐसे हैं कक पीत ेही आदमी ठंडा हो जाता है। यह शीशी इसी ककस्म की है, इस पीते ही आदमी बेहोश हो जाता है, कफि उसे होश िही ंआता। मंसािाम िे सोचा-तब तो प्राण देिा बहुत आसाि है, कफि क्यों लोग इतिा डिते हैं? यह शीशी कैसे लमलेगी? अगि दवा का िाम पछूकि शहि के ककसी दवा-फिोश से लेिा चाहंू, तो वह कभी ि देगा। ऊंह, इसे लमलिे में कोई ददक्कत िही।ं यह तो मालमू हो गया कक प्राणों का अन्त बडी आसािी से ककया जा सकता है। मंसािाम इतिा प्रसन्ि हुआ, मािो कोई इिाम पा गया

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हो। उसके ददल पि से बोझ-सा हट गया। चचतंा की मेघ-िालश जो लसि पि मंडिा िही थी, नछन्ि-लभन्ि ् हो गयी। महीिों बाद आज उसे मि में एक स्फूनतम का अिभुव हुआ। लडके चथयेटि देखिे जा िहे थे, नििीक्षक से आज्ञा ले ली थी। मंसािाम भी उिके साथ चथयेटि देखिे चला गया। ऐसा खुश था, मािो उससे ज्यादा सखुी जीव संसाि में कोई िहीं है। चथयेटि में िकल देखकि तो वह हंसते-हंसते लोट गया। बाि-बाि ताललया ंबजाि ेऔि ‘वन्स मोि’ की हाकं लगािे में पहला िम्बि उसी का था। गािा सिुकि वह मस्त हो जाता था, औि ‘ओहो हो। किके चचल्ला उठता था। दशमकों की निगाहें बाि-बाि उसकी तिफ उठ जाती थीं। चथयेटि के पात्र भी उसी की ओि ताकत ेथे औि यह जाििे को उत्सकु थे कक कौि महाशय इतिे िलसक औि भावकु हैं। उसके लमत्रों को उसकी उच्छंृखलता पि आश्चयम हो िहा था। वह बहुत ही शांतचचत्त, गम्भीि स्वभाव का यवुक था। आज वह क्यों इतिा हास्यशील हो गया है, क्यों उसके वविोद का पािावाि िही ंहै। दो बजे िात को चथयेटि से लौटिे पि भी उसका हास्योन्माद कम िही ंहुआ। उसिे एक लडके की चािपाई उलट दी, कई लडकों के कमिे के द्वाि बाहि से बंद कि ददये औि उन्हें भीति से खट-खट कित ेसिुकि हंसता िहा। यहा ंतक कक छात्रालय के अध्यक्ष महोदय किी िींद में भी शोिगुल सिुकि खुल गयी औि उन्होंिे मंसािाम की शिाित पि खेद प्रकट ककया। कौि जािता है कक उसके अन्त:स्थल में ककतिी भीषण क्रांनत हो िही है? संदेह के निदमय आघात िे उसकी लज्जा औि आत्मसम्माि को कुचल डाला है। उसे अपमाि औि नतिस्काि का लेशमात्र भी भय िहीं है। यह वविोद िहीं, उसकी आत्मा का करुण ववलाप है। जब औि सब लडके सो गये, तो वह भी चािपाई पि लेटा, लेककि उसे िींद िही ंआयी। एक क्षण के बाद वह बठैा औि अपिी सािी पसु्तकें बांधकि संदकू में िख दी।ं जब मििा ही है, तो पढकि क्या होगा? जजस जीवि में ऐसी-एसी बाधाएं हैं, ऐसी-ऐसी यातिाएं हैं, उससे मतृ्यु कही ंअच्छी। यह सोचत-ेसोचते तडका हो गया। तीि िात से वह एक क्षण भी ि सोया था। इस वक्त वह उठा तो उसके पिै थि-थि कांप िहे थे औि लसि में चक्कि सा आ िहा था। आंखें जल िही थीं औि शिीि के सािे अंग लशचथल हो िहे थे। ददि चढता जाता था औि उसमें इतिी शडक्त ददि चढता जाता था औि उसमें इतिी शडक्त भी ि थी कक उठकि मुंह हाथ धो डाले। एकाएक

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उसिे भूंगी को रूमाल में कुछ ललए हुए एक कहाि के साथ आते देखा। उसका कलेजा सन्ि िह गया। हाय। ईश्वि व ेआ गयीं। अब क्या होगा? भूंगी अकेले िहीं आयी होगी? बग्घी जरूि बाहि खडी होगी? कहा ंतो उससे उठा प्रश्न जाता था, कहा ं भूंगी को देखत े ही दौडा औि घबिाई हुई आवाज में बोला-अम्माजंी भी आयी हैं, क्या िे? जब मालमू हुआ कक अम्माजंी िही ंआयी, तब उसका चचत्त शातं हुआ।

भूंगी िे कहा-भयैा। तुम कल गये िही, बहूजी तुम्हािी िाह देखती िह गयीं। उिसे क्यों रुठे हो भयैा? कहती हैं, मैंिे उिकी कुछ भी लशकायत िही ंकी है। मझुसे आज िोकि कहिे लगी-ंउिके पास यह लमठाई लेती जा औि कहिा, मेिे कािण क्यों घि छोड ददया है? कहा ंिख दूं यह थाली?

मंसािाम ि ेरुखाई से कहा-यह थाली अपिे लसि पि पटक दे चडुलै। वहां से चली है लमठाई लेकि। खबिदाि, जो कफि कभी इधि आयी। सौगात लेकि चली है। जाकि कह देिा, मझु ेउिकी लमठाई िही ंचादहए। जाकि कह देिा, तुम्हािा घि है तुम िहो, वहा ंवे बड ेआिाम से हैं। खूब खात ेऔि मौज कित ेहैं। सिुती है, बाबजूी की मुंह पि कहिा, समझ गयी? मझु े ककसी का डि िही ं है, औि जो कििा चाहें, कि डालें, जजससे ददल में कोई अिमाि ि िह जाये। कहें तो इलाहाबाद, लखिऊ, कलकत्ता चला जाऊं। मेिे ललए जसेै बिािस वसेै दसूिा शहि। यहा ंक्या िखा है?

भूंगी-भयैा, लमठाई िख लो, िही ं िो-िोकि मि जायेंगी। सच मािो िो-िोकि मि जायेंगी।

मंसािाम िे आंसओंु के उठते हुए वेग को दबाकि कहा-मि जायेंगी, मेिी बला से। कौि मझु े बडा सखु दे ददया है, जजसके ललए पछताऊं। मेिा तो उन्होंि े सवमिाश कि ददया। कह देिा, मेिे पास कोई संदेशा ि भेजें, कुछ जरूित िहीं।

भूंगी- भयैा, तुम तो कहत ेहो यहा ंखूब खाता हंू औि मौज किता हंू,

मगि देह तो आधी भी ि िही। जैसे आये थे, उससे आधे भी ि िहे। मंसािाम-यह तेिी आंखों का फेि है। देखिा, दो-चाि ददि में मटुाकि

कोल्हू हो जाता हंू कक िही।ं उिसे यह भी कह देिा कक िोिा-धोिा बंद किें। जो मैंिे सिुा कक िोती हैं औि खािा िही ंखाती,ं मझुसे बिुा कोई िहीं। मझु ेघि से निकाला है, तो आप ि से िहें। चली हैं, पे्रम ददखािे। मैं ऐसे बत्रया-चरित्र बहुत पढे बठैा हंू।

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भूंगी चली गयी। मंसािाम को उससे बातें कित ेही कुछ ठण्ड मालमू होिे लगी थी। यह अलभिय कििे के ललए उसे अपिे मिोभावों को जजतिा दबािा पडा था, वह उसके ललए असाध्य था। उसका आत्म-सम्माि उसे इस कुदटल व्यवहाि का जल्द-से-जल्द अंत कि देिे के ललए बाध्य कि िहा था, पि इसका परिणाम क्या होगा? निममला क्या यह आघात सह सकेगी? अब तक वह मतृ्य ु की कल्पिा कित े समय ककसी अन्य प्राणी का ववचाि ि किता था, पि आज एकाएक ज्ञाि हुआ कक मेिे जीवि के साथ एक औि प्राणी का जीवि-सतू्र भी बंधा हुआ है। निममला यह समझगेी कक मेिी निषु्ठिता ही िे इिकी जाि ली। यह समझकि उसका कोमल हृदय फट ि जायेगा? उसका जीवि तो अब भी संकट में है। संदेह के कठोि पंजे में फंसी हुई अबला क्या अपिे का हत्यारिणी समझकि बहुत ददि जीववत िह सकती है?

मंसािाम ि ेचािपाई पि लेटकि ललहाफ ओढ ललया, कफि भी सदी से कलेजा कांप िहा था। थोडी ही देि में उसे जोि से ज्वि चढ आया, वह बेहोश हो गया। इस अचते दशा में उसे भानंत-भांनत के स्वप्ि ददखाई देिे लगे। थोडी-थोडी देि के बाद चौंक पडता, आंखें खलु जाती, कफि बेहोश हो जाता। सहसा वकील साहब की आवाज सिुकि वह चौंक पडा। हा,ं वकील साहब की आवाज थी। उसिे ललहाफ फें क ददया औि चािपाई से उतिकि िीच े खडा हो गया। उसके मि में एक आवेग हुआ कक इस वक्त इिके सामिे प्राण दे दूं। उसे ऐसा मालमू हुआ कक मैं मि जाऊं, तो इन्हें सच्ची खुशी होगी। शायद इसीललए वह देखिे आये हैं कक मेिे मििे में ककतिी देि है। वकील साहब िे उसका हाथ पकड ललया, जजससे वह चगि ि पड ेऔि पछूा-कैसी तबीयत है लल्ल।ू लेटे क्यों ि िहे? लेट ि जाओ, तुम खड ेक्यों हो गये?

मंसािाम-मेिी तबीयत तो बहुत अच्छी है। आपको व्यथम ही कि हुआ। मुंशी जी िे कुछ जवाब ि ददया। लडके की दशा देखकि उिकी आंखों से आंस ूनिकल आये। वह हृि-पिु बालक, जजसे देखकि चचत्त प्रसन्ि हो जाता था, अब सखूकि कांटा हो गया था। पांच-छ: ददि में ही वह इतिा दबुला हो गया था कक उसे पहचाििा कदठि था। मुंशीजी िे उसे आदहस्ता से चािपाई पि ललटा ददया औि ललहाफ अच्छी तिह उसे उढाकि सोचि ेलगे कक अब क्या कििा चादहए। कही ंलडका हाथ से तो िहीं जाएगा। यह ख्याल किके वह शोक ववह्ववल हो गये औि स्टूल पि बठैकि फूट-फूटकि िोिे लगे।

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मंसािाम भी ललहाफ में मुंह लपेटे िो िहा था। अभी थोड ेही ददिों पहले उसे देखकि वपता का हृदय गवम से फूल उठता था, लेककि आज उसे इस दारुण दशा में देखकि भी वह सोच िहे हैं कक इसे घि ले चलूं या िहीं। क्या यहा ंदवा िही ंहो सकती? मैं यहा ंचौबीसों घण्टे बठैा िहंूगा। डॉक्टि साहब यहा ंहैं ही। कोई ददक्कत ि होगी। घि ले चलिे से में उन्हें बाधाएं-ही-बाधाएं ददखाई देती थी,ं सबसे बडा भय यह था कक वहा ं निममला इसके पास हिदम बठैी िहेगी औि मैं मिा ि कि सकंूगा, यह उिके ललए असह्य था।

इतिे में अध्यक्ष िे आकि कहा-मैं तो समझता हंू कक आप इन्हें अपिे साथ ले जायें। गाडी है ही, कोई तकलीफ ि होगी। यहा ंअच्छी तिह देखभाल ि हो सकेगी।

मुंशीजी-हा,ं आया तो मैं इसी खयाल से था, लेककि इिकी हालत बहुत ही िाजकु मालमू होती है। जिा-सी असावधािी होिे से सिसाम हो जाि ेका भय है।

अध्यक्ष-यहा ंसे इन्हें ले जािे में थोडी-सी ददक्कत जरुि है, लेककि यह तो आप खुद सोच सकते हैं कक घि पि जो आिाम लमल सकता है, वह यहा ंककसी तिह िहीं लमल सकता। इसके अनतरिक्त ककसी बीमाि लडके को यहा ंिखिा नियम-ववरुद्ध भी है।

मुंशीजी- कदहए तो मैं हेडमास्टि से आज्ञा ले लूं। मझु ेइिका यहां से इस हालत में ले जािा ककसी तिह मिुालसब िही ंमालमू होता। अध्यक्ष िे हेडमास्टि का िाम सिुा, तो समझ ेकक यह महाशय धमकी दे िहे हैं। जिा नतिककि बोले-हेडमास्टि नियम-ववरुद्व कोई बात िही ं कि सकते। मैं इतिी बडी जजम्मेदािी कैसे ले सकता हंू?

अब क्या हो? क्या घि ले जािा ही पडगेा? यहा ं िखिे का तो यह बहािा था कक ले जािे बीमािी बढ जाि ेकी शकंा है। यहा ं से ले जाकि हस्पताल में ठहिािे का कोई बहािा िहीं है। जो सिेुगा, वह यही कहेगा कक डाक्टि की फीस बचािे के ललए लडके को अस्पताल फें क आये, पि अब ले जाि े के लसवा औि कोई उपाय ि था। अगि अध्यक्ष महोदय इस वक्त रिश्वत लेि े पि तैयाि हो जाते, तो शायद दो-चाि साल का वेति ले लेते, लेककि कायदे के पाबंद लोगों में इतिी बदुद्व, इतिी चतिुाई कहा।ं अगि इस वक्त मुंशीजी को कोई आदमी ऐसा उज्र सझुा देता, जजसमें उिहें मंसािाम को घि ि ले जािा पड,े तो वह आजीवि असका एहसाि मािते। सोचिे का

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समय भी ि था। अध्यक्ष महोदय शतैाि की तिह लसि पि सवाि था। वववश होकि मुंशीजी िे दोिों साईसों को बलुाया औि मंसािाम को उठािे लगे। मंसािाम अधमचतेिा की दशा में था, चौककि बोला, क्या है? कोि है?

मुंशीजी-कोई िहीं है बेटा, मैं तुम्हें घि ले चलिा चाहता हंू, आओ, गोद में उठा लूं।

मंसािाम- मझु ेक्यों घि ले चलत ेहैं? मैं वहां िही ंजाऊंगा। मुंशीजी- यहां तो िह िहीं सकत, नियम ही ऐसा है।

मंसािाम- कुछ भी हो, वहां ि जाऊंगा। मझु ेऔि कही ंले चललए, ककसी पेड के िीच,े ककसी झोंपड ेमें, जहां चाहे िणखए, पि घि पि ि ल ेचललए। अध्यक्ष िे मुंशीजी से कहा-आप इि बातों का ख्याल ि किें, यह तो होश में िही ंहै।

मंसािाम- कौि होश में िहीं है? मैं होश में िहीं हंू? ककसी को गाललया ंदेता हू? दांत काटता हंू? क्यों होश में िहीं हंू? मझु ेयही ंपडा िहिे दीजजए,

जो कुछ होिा होगा, अगिि ऐसा है, तो मझु ेअस्पताल ले चललए, मैं वहां पडा िहंूगा। जीिा होगा, जीऊगा, मििा होगा मरंुगा, लेककि घि ककसी तिह भी ि जाऊंगा। यह जोि पाकि मुंशीजी कफिा अध्यक्ष की लमन्ितें कििे लगे, लेककि वह कायदे का पाबंदी आदमी कुछ सिुता ही ि था। अगि छूत की बीमािी हुई औि ककसी दसूिे लडके को छूत लग गयी, तो कौि उसका जवाबदेह होगा। इस तकम के सामिे मुंशीजी की काििूी दलीलें भी मात हो गयीं। आणखि मुंशीजी िे मंसािाम से कहा-बेटा, तुम्हें घि चलिे से क्यों इंकाि हो िहा है? वहा ंतो सभी तिह का आिाम िहेगा। मुंशीजी िे कहिे को तो यह बात कह दी, लेककि डि िहे थे कक कही ंसचमचु मंसािाम च लिे पि िाजी ि हो जाये। मंसािाम को अस्पताल में िखिे का कोई बहािा खोज िहे थे औि उसकी जजम्मेदािी मंसािाम ही के लसि डालिा चाहत े थे। यह अध्यक्ष के सामिे की बात थी, वह इस बात की साक्षी दे सकत े थे कक मंसािाम अपिी जजद से अस्पताल जा िहा है। मुंशीजी का इसमे लेशमात्र भी दोष िही ंहै। मंसािाम िे झल्लाकि हा-िही,ं िहीं सौ बाि िही,ं मैं घ िहीं जाऊंगा। मझु ेअस्पताल ले चललए औि घि के सब आदलमयों को मिा कि दीजजए

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कक मझु े देखिे ि आये। मझु ेकुछ िही ं हुआ है, बबल्कुल बीमाि िही ं हू। आप मझु ेछोड दीजजए, मैं अपिे पांव से चल सकता हंू।

वह उठ खडा हुआ औि उन्मत्त की भानंत द्वाि की ओि चला, लेककि पिै लडखडा गये। यदद मुंशीजी िे संभाल ि ललया होता, तो उसे बडी चोट आती। दोिों िौकिों की मदद से मुंशीजी उसे बग्घी के पास लाये औि अंदि बठैा ददया।

गाडी अस्पताल की ओि चली। वही हुआ जो मुंशीजी चाहते थे। इस शोक में भी उिका चचत्त संतुि था। लडका अपिी इच्छा से अस्पताल जा िहा था क्या यह इस बात का प्रमाण िही ंथा कक घि में इसे कोई स्िेह िही ंहै? क्या इससे यह लसद्ध िहीं होता कक मंसािाम निदोष है ? वह उसक पि अकािण ही भ्रम कि िहे थे। लेककि जिा ही देि में इस तुवि की जगह उिके मि में ग्लानि का भाव जाग्रत हुआ। वह अपिे प्राण-वप्रय पतु्र को घि ि ले जाकि अस्पताल ललये जा िहे थे। उिके ववशाल भवि में उिके पतु्र के ललए जगह ि थी, इस दशा में भी जबकक उसकी जीवल संकट में पडा हुआ था। ककतिी ववडम्बिा है! एक क्षण के बाद एकाएक मुंशीजी के मि में प्रश्न उठा-कहीं मंसािाम उिके भावों को ताड तो िही ंगया? इसीललए तो उसे घि से घणृा िही ंहो गेयी है? अगि ऐसा है, तो गजब हो जायेगा। उस अिथम की कल्पिा ही से मुंशीजी के िोंए खड ेहो गये औि कलेजा धक्धक कििे लगा। हृदय में एक धक्का-सा लगा। अगि इस ज्वि का यही कािण है, तो ईश्वि ही माललक है। इस समय उिकी दशा अत्यन्त दयिीय थी। वह आग जो उन्होंिे अपिे दठठुिे हुए हाथों को सेंकिे के ललए जलाई थी, अब उिके घि में लगी जा िही थी। इस करुणा, शोक, पश्चात्ताप औि शकंा से उिका चचत्त घबिा उठा। उिके गुप्त िोदि की ध्वनि बाहि निकल सकती, तो सिुिे वाले िो पडते। उिके आंस ूबाहि निकल सकत,े तो उिका ताि बधं जाता। उन्होंिे पतु्र के वणम-हीि मखु की ओि एक वात्सल्यपूणम िेत्रों से देखा, वेदिा से ववकल होकि उसे छाती से लगा ललया औि इतिा िोये कक दहचकी बंच गयी। सामिे अस्पताल का फाटक ददखाई दे िहा था।

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ग्यािह

शी तोतािाम संध्या समय कचहिी से घि पहंुच,े तो निममला िे पछूा- उन्हें देखा, क्या हाल है? मुंशीजी िे देखा कक निममला के मखु पि

िाममात्र को भी शोक याचचिता का चचन्ह िही ंहै। उसका बिाव-लसगंाि औि ददिों से भी कुछ गाढा हुआ है। मसलि वह गले का हाि ि पहिती थी, पि आजा वह भी गले मे शोभ दे िहा था। झमूि से भी उसे बहुत पे्रम था, वह आज वह भी महीि िेशमी साडी के िीच,े काले-काले केशों के ऊपि, फािसु के दीपक की भानंत चमक िहा था। मुंशीजी िे मुंह फेिकि कहा- बीमाि है औि क्या हाल बताऊं?

निममला- तुम तो उन्हें यहा ंलािे गये थे?

मुंशीजी िे झुंझलाकि कहा- वह िहीं आता, तो क्या मैं जबिदस्ती उठा लाता? ककतिा समझाया कक बेटा घि चलो, वहां तुम्हें कोई तकलीफ ि होिे पावेगी, लेककि घि का िाम सिुकि उसे जैसे दिूा ज्वि हो जाता था। कहिे लगा- मैं यहां मि जाऊंगा, लेककि घि ि जाऊंगा। आणखि मजबिू होकि अस्पताल पहंुचा आया औि क्या किता?

रुजक्मणी भी आकि बिामदे में खडी हो गई थी। बोली-ं वह जन्म का हठी है, यहा ंककसी तिह ि आयेगा औि यह भी देख लेिा, वहां अच्छा भी ि होगा?

मुंशीजी िे काति स्वि में कहा- तुम दो-चाि ददि के ललए वहां चली जाओ, तो बडा अच्छा हो बहि, तुम्हािे िहिे से उसे तस्कीि होती िहेगी। मेिी बहि, मेिी यह वविय माि लो। अकेले वह िो-िोकि प्राण दे देगा। बस हाय अम्मां! हाय अम्मां! की िट लगाकि िोया किता है। मैं वहीं जा िहा हंू,

मेिे साथ ही चलो। उसकी दशा अच्छी िहीं। बहि, वह सिूत ही िही ं िही। देखें ईश्वि क्या कित ेहैं?

यह कहत-ेकहत ेमुंशीजी की आंखों से आंस ूबहिे लगे, लेककि रुजक्मणी अववचललत भाव से बोली- मैं जािे को तैयाि हंू। मेिे वहां िहिे से अगि मेिे लाल के प्राण बच जायें, तो मैं लसि के बल दौडी जाऊं, लेककि मेिा कहिा चगिह में बांध लो भयैा, वहा ंवह अच्छा ि होगा। मैं उसे खूब पहचािती हंू। उसे कोई बीमािी िही ंहै, केवल घि से निकाले जािे का शोक है। यही द:ुख

मु ं

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ज्वि के रुप में प्रकट हुआ है। तुम एक िही,ं लाख दवा किो, लसववल सजमि को ही क्यों ि ददखाओ, उसे कोई दवा असाि ि किेगी। मुंशीजी- बहि, उसे घि से निकाला ककसिे है? मैंिे तो केवल उसकी पढाई के खयाल से उसे वहा ंभेजा था। रुजक्मणी- तुमिे चाहे जजस खयाल से भेजा हो, लेककि यह बात उसे लग गयी। मैं तो अब ककसी चगिती में िहीं हंू, मझु ेककसी बात में बोलिे का कोई अचधकाि िहीं। माललक तुम, मालककि तुम्हािी िी। मैं तो केवल तुम्हािी िोदटयों पि पडी हुई अभचगिी ववधवा हंू। मेिी कौि सिेुगा औि कौि पिवाह किेगा? लेककि बबिा बोले िही िहीं जाता। मंसा तभी अच्छा होगा: जब घि आयेगा, जब तुम्हािा हृदय वही हो जायेगा, जो पहले था। यह कहकि रुजक्मणी वहा ं से चली गयीं, उिकी ज्योनतहीि, पि अिभुवपणूम आंखों के सामिे जो चरित्र हो िहे थे, उिका िहस्य वह खूब समझती थी ंऔि उिका सािा क्रोध नििपिाचधिी निममला ही पि उतिता था। इस समय भी वह कहते-कहत ेरुग गयी,ं कक जब तक यह लक्ष्मी इस घि में िहेंगी, इस घि की दशा बबगडती हो जायेगी। उसको प्रगट रुप से ि कहिे पि भी उसका आशय मुंशीजी से नछपा िहीं िहा। उिके चले जाि े पि मुंशीजी िे लसि झकुा ललया औि सोचिे लगे। उन्हें अपिे ऊपि इस समय इतिा क्रोध आ िहा था कक दीवाि से लसि पटककि प्राणों का अन्त कि दें। उन्होंि ेक्यों वववाह ककया था? वववाह किेि की क्या जरुित थी? ईश्वि ि ेउन्हें एक िही,ं तीि-तीि पतु्र ददये थे? उिकी अवस्था भी पचास के लगभग पहंुच गेयी थी कफि उन्होंिे क्यों वववाह ककया? क्या इसी बहािे ईश्वि को उिका सवमिाश कििा मंजिू था? उन्होंिे लसि उठाकि एक बाि निममला को सहास, पि निश्चल मनूतम देखी औि अस्पताल चले गये। निममला की सहास,

छवव िे उिका चचत्त शान्त कि ददया था। आज कई ददिों के बाद उन्हें शाजन्त मयसि हुई थी। पे्रम-पीडडत हृदय इस दशा में क्या इतिा शान्त औि अववचललत िह सकता है? िही,ं कभी िही।ं हृदय की चोट भाव-कौशल से िही ंनछपाई जा सकती। अपिे चचत्त की दबुमिजा पि इस समय उन्हें अत्यन्त क्षोभ हुआ। उन्होंिे अकािण ही सन्देह को हृदय में स्थाि देकि इतिा अिथम ककया। मंसािाम की ओि से भी उिका मि नि:शंक हो गया। हा ं उसकी जगह अब एक ियी शंका उत्पन्ि हो गयी। क्या मंसािाम भांप तो िही ंगया? क्या भांपकि ही तो घि आिे से इन्काि िहीं कि िहा है? अगि वह

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भांप गया है, तो महाि ्अिथम हो जायेगा। उसकी कल्पिा ही से उिका मि दहल उठा। उिकी देह की सािी हड्डडया ंमािों इस हाहाकाि पि पािी डालिे के ललए व्याकुल हो उठीं। उन्होंिे कोचवाि से घोड ेको तजे चलािे को कहा। आज कई ददिों के बाद उिके हृदय मंडल पि छाया हुआ सघि फट गया था औि प्रकाश की लहिें अन्दि से निकलिे के ललए व्यग्र हो िही थीं। उन्होंिे बाहि लसि निकाल कि देखा, कोचवाि सो तो िहीं िहा ह। घोड ेकी चाल उन्हें इतिी मन्द कभी ि मालमू हुई थी। अस्पताल पहंुचकि वह लपके हुए मंसािाम के पास गये। देखा तो डॉक्टि साहब उसके सामिे चचन्ता में मग्ि खड े थे। मुंशीजी के हाथ-पांव फूल गये। मुंह से शब्द ि निकल सका। भिभिाई हुई आवाज में बडी मजुश्कल से बोल-े क्या हाल है, डॉक्टि साहब? यह कहत-ेकहते वह िो पड ेऔि जब डॉक्टि साहब को उिके प्रश्न का उत्ति देिे में एक क्षण का ववलम्बा हुआ, तब तो उिके प्राण िहों में समा गये। उन्होंिे पलंग पि बठैकि अचते बालक को गोद में उठा ललया औि बालक की भानंत लससक-लससककि िोि ेलगे। मंसािाम की देह तवे की तिह जल िही थी। मंसािाम िे एक बाि आंखें खोलीं। आह, ककतिी भयंकि औि उसके साथ ही ककतिी दी दृवि थी। मुंशीजी िे बालक को कण्ठ से लगाकि डॉक्टि से पछूा-क्या हाल है, साहब! आप चपु क्यों हैं?

डॉक्टि ि ेसंददग्ध स्वि से कहा- हाल जो कुछ है, वह आप ेदेख ही िहे हैं। 106 डडग्री का ज्वि है औि मैं क्या बताऊं? अभी ज्वि का प्रकोप बढता ही जाता है। मेिे ककये जो कुद हो सकता है, कि िहा हंू। ईश्वि माललक है। जबसे आप गये हैं, मैं एक लमिट के ललए भी यहा ं से िही ं दहला। भोजि तक िही ं कि सका। हालत इतिी िाजकु है कक एक लमिट में क्या हो जायेगा, िहीं कहा जा सकता? यह महाज्वि है, बबलकुल होश िही ं है। िह-िहकि ‘डडलीरियम’ का दौिा-सा हो जाता है। क्या घि में इन्हें ककसी िे कुछ कहा है! बाि-बाि, अम्मांजी, तुम कहां हो! यही आवाज मुंह से निकली है।

डॉक्टि साहब यह कह ही िहे थे कक सहसा मंसािाम उठकि बठै गया औि धक्के से मुंशीज को चािपाई के िीच ेढकेलकि उन्मत्त स्वि से बोला- क्यों धमकात े हैं, आप! माि डाललए, माि डालल, अभी माि डाललए। तलवाि िही ं लमलती! िस्सी का फन्दा है या वह भी िहीं। मैं अपिे गले में लगा

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लूंगा। हाय अम्माजंी, तुम कहां हो! यह कहत-ेकहत े वह कफि अचते े होकि चगि पडा। मुंशीजी एक क्षण तक मंसािाम की लशचथल मदु्रा की ओि व्यचथत िेत्रों से ताकत े िहे, कफि सहस उन्होंिे डॉक्टि साहब का हाथ पकड ललया औि अत्यन्त दीितापणूम आग्रह से बोले-डॉक्टि साहब, इस लडके को बचा लीजजए,

ईश्वि के ललए बचा लीजजए, िहीं मेिा सवमिाश हो जायेगा। मैं अमीि िहीं हंू लेककि आप जो कुछ कहेंगे, वह हाजजि करंुगा, इसे बचा लीजजए। आप बड-ेसे-बड े डॉक्टि को बलुाइए औि उिकी िाय लीजजएक , मैं सब खचम दूंगा। इसीक अब िही ंदेखी जाती। हाय, मेिा होिहाि बेटा!

डॉक्टि साहब ि ेकरुण स्वि में कहा- बाब ूसाहब, मैं आपसे सत्य कह िहा हंू कक मैं इिके ललए अपिी तिफ से कोई बात उठा िही ंिख िहा हंू। अब आप दसूिे डॉक्टिों से सलाह लेिे को कहत े हैं। अभी डॉक्टि लादहिी, डॉक्टि भादटया औि डॉक्टि माथिु को बलुाता हंू। वविायक शािी को भी बलुाये लेता हंू, लेककि मैं आपको व्यथम का आश्वासि िही ंदेिा चाहता, हालत िाजकु है। मंशीजी िे िोत े हुए कहा- िहीं, डॉक्टि साहब, यह शब्द मुंह से ि निकाललए। हाल इसके दशु्मिों की िाजुक हो। ईश्वि मझु पि इतिा कोप ि किेंगे। आप कलकत्ता औि बम्बई के डॉक्टिों को तािा दीजजए, मैं जजन्दगी भि आपकी गुलामी करंुगा। यही मेिे कुल का दीपक है। यही मेिे जीवि का आधाि है। मेिा हृदय फटा जा िहा है। कोई ऐसी दवा दीजजए, जजससे इसे होश आ जाये। मैं जिा अपिे कािों से उसकी बात ेसिुू ंजािू ंकक उसे क्या कि हो िहा है? हाय, मेिा बच्चा! डॉक्टि- आप जिा ददल को तस्कीि दीजजए। आप बजुगुम आदमी हैं, यों हाय-हाय किि े औि डॉक्टिों की फौज जमा किि े से कोई ितीजा ि निकलगेा। शान्त होकि बदैठए, मैं शहि के लोगों को बलुा िहा हंू, देणखए क्या कहत ेहैं? आप तो खदु ही बदहवास हुए जात ेहैं।

मुंशीजी- अच्छा, डॉक्टि साहब! मैं अब ि बोलूगं, जबाि तब तक ि खोलूगंा, आप जो चाहे किें, बच्चा अब हाथ में है। आप ही उसकी िक्षा कि सकते हैं। मैं इतिा ही चाहता हंू कक जिा इसे होश आ जाये, मुझ ेपहचाि ले,

मेिी बातें समझिे लगे। क्या कोई ऐसी संजीविी बटूी िही?ं मैं इससे दो-चाि बातें कि लेता।

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यह कहत-ेकहत ेमुंशीजी आवेश में आकि मंसािाम से बोले- बेटा, जिा आंखें खोलो, कैसा जी है? मैं तुम्हािे पास बठैा िो िहा हंू, मुझ ेतुमसे कोई लशकायत िही ंहै, मेिा ददल तुम्हािी ओि से साफ है। डॉक्टि- कफि आपिे अिगमला बातें कििी शरुु कीं। अिे साहब, आप बच्च ेिही ंहैं, बजुुगम है, जिा धयैम से काम लीजजए।

मुंशीजी- अच्छा, डॉक्टि साहब, अब ि बोलूगंा, खता हुई। आप जो चाहें कीजजए। मैंिे सब कुछ आप पि छोड ददया। कोई ऐसा उपाय िही,ं जजससे मैं इसे इतिा समझा सकंू कक मेिा ददल साफ है? आप ही कह दीजजए डॉक्टि साहब, कह दीजजए, तमु्हािा अभागा वपता बठैा िो िहा है। उसका ददल तुम्हािी तिफ से बबलकुल साफ है। उसे कुछ भ्रम हुआ था। वब अब दिू हो गया। बस, इतिा ही कि दीजजए। मैं औि कुछ िहीं चाहता। मैं चपुचाप बठैा हंू। जबाि को िही ंखोलता, लेककि आप इतिा जरुि कह दीजजए। डॉक्टि- ईश्वि के ललए बाब ूसाहब, जिा सब्र कीजजए, वििा मझु ेमजबिू होकि आपसे कहिा पडगेा कक घि जाइए। मैं जिा दफ्ति में जाकि डॉक्टिों को खत ललख िहा हंू। आप चपुचाप बठेै िदहएगा। निदमयी डॉक्टि! जवाि बेटे की यहा दशा देखकि कौि वपता है, जो धयैम से कामे लेगा? मुंशीजी बहुत गम्भीि स्वभाव के मिषु्य थे। यह भी जािते थे कक इस वक्त हाय-हाय मचािे से कोई ितीजा िहीं, लेककि कफिी भी इस समय शान्त बठैिा उिके ललए असम्भव था। अगि दैव-गनत से यह बीमािी होती, तो वह शान्त हो सकत ेथे, दसूिों को समझा सकत ेथे, खदु डॉक्टिों का बलुा सकत ेथे, लेककि क्यायह जािकि भी धयैम िख सकत ेथे कक यह सब आग मेिी ही लगाई हुई है? कोई वपता इतिा वज्र-हृदय हो सकता है? उिका िोम-िोम इस समय उन्हें चधक्काि िहा था। उन्होंिे सोचा, मझुे यह दभुामविा उत्पन्ि ही क्यों हुई? मैंिे क्या ं बबिा ककसी प्रत्यक्ष प्रमाण के ऐसी भीषण कल्पिा कि डाली? अच्दा मझु े उसक दशा में क्या कििा चादहए था। जो कुछ उन्होंिे ककया उसके लसवा वह औि क्या कित,े इसका वह निश्चय ि कि सके। वास्तव में वववाह के बन्धि में पडिा ही अपिे पिैों में कुल्हाडी मािािा था। हा,ं यही सािे उपद्रव की जड है। मगि मैंिे यह कोई अिोखी बात िही ंकी। सभी िी-परुुष का वववाह कित ेहैं। उिका जीवि आिन्द से कटता है। आिन्द की अच्दा से ही तो हम वववाह किते हैं। महुल्ले में सकैडों आदलमयों िे दसूिी, तीसिी, चौथी यहां तक

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कक सातवीं शददया ंकी हैं औि मझुसे भी कही ंअचधक अवस्था में। वह जब तक जजये आिाम ही से जजये। यह भी िहीं हआ कक सभी िी से पहले मि गये हों। दहुाज-नतहाज होिे पि भी ककतिे ही कफि िंडुए हो गये। अगि मेिी-जैसी दशा सबकी होती, तो वववाह का िाम ही कौि लेता? मेिे वपताजी ि ेपचपिवें वषम में वववाह ककया था औि मेिे जन्म के समय उिकी अवस्था साठ से कम ि थी। हां, इतिी बात जरुि है कक तब औि अब में कुछ अंति हो गया है। पहले िीयां पढी-ललखी ि होती थीं। पनत चाहे कैसा ही हो, उसे पजू्य समझती थी, यह बात हो कक परुुष सब कुछ देखकि भी बेहयाई से काम लेता हो, अवश्य यही बात है। जब यवुक वदृ्धा के साथ प्रसन्ि िहीं िह सकता, तो यवुती क्यों ककसी वदृ्ध के साथ प्रसन्ि िहिे लगी? लेककि मैं तो कुछ ऐसा बडु्ढा ि था। मझु े देखकि कोई चालीस से अचधक िही ं बता सकता। कुछ भी हो, जवािी ढल जािे पि जवाि औित से वववाह किके कुछ-ि-कुछ बेहयाई जरुि कििी पडती है, इसमें सन्देह िहीं। िी स्वभाव से लज्जाशील होती है। कुलटाओं की बात तो दसूिी है, पि साधािणत: िी परुुष से कही ंज्यादा संयमशील होती है। जोड का पनत पाकि वह चाहे पि-परुुष से हंसी-ददल्लगी कि ले, पि उसका मि शदु्ध िहता है। बेजोड ेवववाह हो जािे से वह चाहे ककसी की ओि आंखे उठाकि ि देखे, पि उसका चचत्त दखुी िहता है। वह पक्की दीवाि है, उसमें सबिी का असि िहीं होता, यह कच्ची दीवाि है औि उसी वक्त तक खडी िहती है, जब तक इस पि सबिी ि चलाई जाये। इन्ही ं ववचािा ं में पड-ेपड े मुंशीजी का एक झपकी आ गयी। मिे के भावों िे तत्काल स्वप्ि का रुप धािण कि ललया। क्या देखत ेहैं कक उिकी पहली िी मंसािाम के सामि े खडी कह िही है- ‘स्वामी, यह तुमिे क्या ककया? जजस बालक को मैंिे अपिा िक्त वपला-वपलाकि पाला, उसको तुमिे इतिी निदमयता से माि डाला। ऐसे आदशम चरित्र बालक पि तुमिे इतिा घोि कलंक लगा ददया? अब बठेै क्या बबसिूते हो। तुमिे उससे हाथ धो ललया। मैं तुम्हािे निदमया हाथों से छीिकि उसे अपिे साथ ललए जाती हंू। तुम तो इतिो शक्की कभी ि थे। क्या वववाह किते ही शक को भी गले बांध लाये? इस कोमल हृदय पि इतिा कठािे आघात! इतिा भीषण कलंक! इति बडा अपमाि सहकि जीिवेाले कोई बेहया होंगे। मेिा बेटा िही ंसह सकता!’ यह कहत-ेकहत ेउसिे बालक को गोद में उठा ललया औि चली। मुशंीजी िे िोत ेहुए उसकी गोद से मंसािाम को छीििे के ललए हाथ बढाया, तो आंखे खुल

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गयीं औि डॉक्टि लादहिी, डॉक्टि लादहिी, डॉक्टि भादटया आदद आधे दजमि डॉक्टि उिको सामिे खड ेददखायी ददये।

बािह

ि ददि गजुि गये औि मुंशीजी घि ि आये। रुजक्मणी दोिों वक्त अस्पताल जाती ंऔि मंसािाम को देख आती थीं। दोिों लडके भी

जात ेथे, पि निममला कैसे जाती? उिके पिैों में तो बेडडयां पडी हुई थी।ं वह मंसािाम की बीमािी का हाल-चाल जाििे क ललए व्यग्र िहती थी, यदद रुजक्मणी से कुछ पछूती थी,ं तो ताि े लमलते थे औि लडको से पछूती तो बेलसि-पिै की बातें कििे लगत े थे। एक बाि खुद जाकि देखिे के ललए उसका चचत्त व्याकुल हो िहा था। उसे यह भय होता था कक सन्देह िे कही ंमुंशीजी के पतु्र-प्रेम को लशचथल ि कि ददया हो, कही ंउिकी कृपणता ही तो मंसािाम क अच्छे होिे में बाधक िहीं हो िही है? डॉक्टि ककसी के सगे िही ंहोत,े उन्हें तो अपिे पसैों से काम है, मदुाम दोजख में जाये या बदहश्त में। उसक मि मे प्रबल इच्छा होती थी कक जाकि अस्पताल क डॉक्टिों का एक हजाि की थलैी देकि कहे- इन्हें बचा लीजजए, यह थलैी आपकी भेंट हैं, पि उसके पास ि तो इतिे रुपये ही थे, ि इतिे साहस ही था। अब भी यदद वहां पहंुच सकती, तो मंसािाम अच्छा हो जाता। उसकी जैसी सेवा-शशु्रषूा होिी चादहए, वसैी िहीं हो िही है। िही ंतो क्या तीि ददि तक ज्वि ही ि उतिता? यह दैदहक ज्वि िहीं, मािलसक ज्वि है औि चचत्त के शान्त होिे ही से इसका प्रकोप उति सकता है। अगि वह वहा ं िात भि बठैी िह सकती औि मुंशीजी जिा भी मि मलैा ि कित,े तो कदाचचत ्मंसािाम को ववश्वास हो जाता कक वपताजी का ददल साफ है औि कफि अच्छे होिे में देि ि लगती, लेककि ऐसा होगा? मुंशीजी उसे वहां देखकि प्रसन्िचचत्त िह सकें गे? क्या अब भी उिका ददल साफ िहीं हुआ? यहां से जाते समय तो ऐसा ज्ञात हुआ था कक वह अपिे प्रमाद पि पछता िहे हैं। ऐसा तो ि होगा कक उसके वहां जात ेही मुंशीजी का सन्देह कफि भडक उठे औि वह बेटे की जाि लेकि ही छोडें?

इस दवुवधा में पड-ेपड ेतीि ददि गुजि गये औि ि घि में चलू्हा जला, ि ककसी िे कुछ खाया। लडको के ललए बाजाि से परूियां ली जाती थी,ं

ती

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रुजक्मणी औि निममला भखूी ही सो जाती थीं। उन्हें भोजि की इच्छा ही ि होती। चौथे ददि जजयािाम स्कूल से लौटा, तो अस्पताल होता हुआ घि आया। निममला िे पछूा-क्यों भयैा, अस्पताल भी गये थे? आज क्या हाल है? तुम्हािे भयैा उठे या िही?ं

जजयािाम रुआंसा होकि बोला- अम्माजंी, आज तो वह कुछ बोलत-ेचालते ही ि थे। चपुचाप चािपाई पि पड ेजोि-जोि से हाथ-पांव पटक िहे थे।

निममला के चहेिे का िंग उड गया। घबिाकि पछूा- तुम्हािे बाबजूी वहा ंि थ?े

जजयािाम- थे क्यों िही?ं आज वह बहुत िोत ेथे। निममला का कलेजा धक्-धक् कििे लगा। पछूा- डॉक्टि लोग वहां ि थे?

जजयािाम- डॉक्टि भी खड ेथे औि आपस में कुछ सलाह कि िहे थे। सबसे बडा लसववल सजमि अंगिेजी में कह िहा था कक मिीज की देह में कुछ ताजा खूि डालिा चादहए। इस पि बाबजूीय िे कहा- मेिी देह से जजतिा खूि चाहें ले लीजजए। लसववल सजमि िे हंसकि कहा- आपके ब्लड से काम िहीं चलेगा, ककसी जवाि आदमी का ब्लड चादहए। आणखि उसिे वपचकािी से कोई दवा भयैा के बाजू में डाल दी। चाि अंगुल से कम के सईु ि िही होगी, पि भयैा लमिके तक िहीं। मैंिे तो मािे डिके आंखें बन्द कि ली।ं बड-ेबड ेमहाि संकल्प आवेश में ही जन्म लेते हैं। कहां तो निममला भय से सखूी जाती थी, कहा ं उसके मुंह पि दृढ संकल्प की आभा झलक पडी। उसिे अपिी देह का ताजा खूि देिे का निश्चय ककया। आगि उसके िक्त से मंसािाम के प्राण बच जायें, तो वह बडी खुशी से उसकी अजन्तम बूंद तक दे डालेगी। अब जजसका जो जी चाहे समझे, वह कुछ पिवाह ि किेगी। उसिे जजयािाम से काह- तुम लपककि एक एक्का बलुा लो, मैं अस्पताला जाऊंगी। जजयािाम- वहा ंतो इस वक्त बहुत से आदमी होंगे। जिा िात हो जािे दीजजए। निममला- िही,ं तुम अभी एक्का बलुा लो। जजयािाम- कही ंबाबजूी बबगडें ि?

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निममला- बबगडिे दो। तुमे अभी जाकि सवािी लाओ। जजयािाम- मैं कह दूंगा, अम्माजंी ही िे मझुसे सवािी मंगाई थी। निममला- कह देिा। जजयािाम तो उधि तांगा लाि ेगया, इतिी देि में निममला िे लसि में कंघी की, जूडा बांधा, कपड े बदले, आभषूण पहिे, पाि खाया औि द्वाि पि आकि तागें की िाह देखिे लगी। रुजक्मणी अपिे कमिे में बठैी हुई थीं उसे इस तैयािी से आत ेदेखकि बोली-ं कहां जाती हो, बहू?

निममला- जिा अस्पताल तक जाती हंू। रुजक्मणी- वहां जाकि क्या किोगी?

निममला- कुछ िही,ं करंुगी क्या? कििे वाले तो भगवाि हैं। देखिे को जी चाहता है। रुजक्मणी- मैं कहती ंहंू, मत जाओ।

निममला- िे वविीत भाव से कहा- अभी चली आऊंगी, दीदीजी। जजयािाम कह िहे हैं कक इस वक्त उिकी हालत अच्छी िही ं है। जी िही ंमािता, आप भी चललए ि?

रुजक्मणी- मैं देख आई हंू। इतिा ही समझ लो कक, अब बाहिी खूि पहंुचािे पि ही जीवि की आशा है। कौि अपिा ताजा खूि देगा औि क्यों देगा? उसमें भी तो प्राणों का भय है। निममला- इसीललए तो मैं जाती हंू। मेिे खूि से क्या काम ि चलेगा?

रुजक्मणी- चलेगा क्यों िही,ं जवाि ही का तो खूि चादहए, लेककि तुम्हािे खूि से मंसािाम की जाि बच,े इससे यह कही ं अच्छा है कक उसे पािी में बहा ददया जाये। तागंा आ गया। निममला औि जजयािाम दोिों जा बठेै। तागंा चला। रुजक्मणी द्वाि पि खडी देत तक िोती िही। आज पहली बाि उसे निममला पि दया आई, उसका बस होता तो वह निममला को बांध िखती। करुणा औि सहािभुनूत का आवेश उसे कहां ललये जाता है, वह अप्रकट रुप से देख िही थी। आह! यह दभुामग्य की पे्रिणा है। यह सवमिाश का मागम है। निममला अस्पताल पहंुची, तो दीपक जल चकेु थे। डॉक्टि लोग अपिी िाय देकि ववदा हो चकेु थे। मंसािाम का ज्वि कुछ कम हो गयाथा वह टकटकी लगाए हुद द्वाि की ओि देख िहा था। उसकी दृवि उन्मकु्त आकाश

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की ओि लगी हुई थी, मािे ककसी देवता की प्रतीक्षा कि िहा हो! वह कहा ं है, जजस दशा में है, इसका उसे कुछ ज्ञाि ि था।

सहसा निममला को देखत ेही वह चौंककि उठ बठैा। उसका समाचध टूट गई। उसकी ववलपु्त चतेिा प्रदीप्त हो गई। उसे अपिे जस्थनत का, अपिी दशा का ज्ञाि हो गया, मािो कोई भलूी हुई बात याद हो गई हो। उसिे आंखें फाडकि निममला को देखा औि मुंह फेि ललया। एकाएक मुंशीजी तीव्र स्वि से बोले- तुम, यहां क्या किि ेआईं?

निममला अवाक् िह गई। वह बतलाये कक क्या कििे आई? इतिे सीधे से प्रश्न का भी वह कोई जवाब दे सकी? वह क्या किि ेआई थी? इतिा जदटल प्रश्न ककसिे सामिे आया होगा? घि का आदमी बीमाि है, उसे देखि ेआई है, यह बात क्या बबिा पछेू मालमू ि हो सकती थी? कफि प्रश्न क्यों?

वह हतबदु्धी-सी खडी िही, मािो संज्ञाहीि हो गई हो उसिे दोिों लडको से मुंशीजी के शोक औि संताप की बातें सिुकि यह अिमुाि ककया था कक अब उसिका ददल साफ हो गया है। अब उसे ज्ञात हुआ कक वह भ्रम था। हा,ं वह महाभ्रम था। मगि वह जािती थी आंसओंु की दृवि िे भी संदेह की अजग्ि शातं िहीं की, तो वह कदावप ि आती। वह कुढ-कुढाकि मि जाती, घि से पांव ि निकालती। मुंशजी िे कफि वही प्रश्न ककया- तुम यहा ंक्यों आईं?

निममला ि ेनि:शंक भाव से उत्ति ददया- आप यहा ंक्या कििे आये हैं?

मुंशीजी के िथिेु फडकिे लगा। वह झल्लाकि चािपाई से उठे औि निममला का हाथ पकडकि बोले- तुम्हािे यहां आिे की कोई जरुित िहीं। जब मैं बलुाऊं तब आिा। समझ गईं?

अिे! यह क्या अिथम हुआ! मंसािाम जो चािपाई से दहल भी ि सकता था, उठकि खडा हो गया औग्र निममला के पिैों पि चगिकि िोत े हुए बोला- अम्माजंी, इस अभागे के ललए आपको व्यथम इतिा कि हुआ। मैं आपका स्िेह कभी भी ि भलंूगा। ईश्वि से मेिी यही प्राथमिा है कक मेिा पिुमजिम आपके गभम से हो, जजससे मैं आपके ऋण से अऋण हो सकंू। ईश्वि जािता है, मैंिे आपको ववमाता िही ंसमझा। मैं आपको अपिी माता समझता िहा । आपकी उम्र मझुसे बहुत ज्या ि हो, लेककि आप, मेिी माता के स्थाि पि थी औि मैंिे आपको सदैव इसी दृवि से देखा...अब िही ंबोला जाता अम्माजंी, क्षमा कीजजए! यह अंनतम भेंट है।

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निममला िे अश्र-ुप्रवाह को िोकते हुए कहा- तुम ऐसी बातें क्यों कित ेहो? दो-चाि ददि में अच्छे हो जाओगे। मंसािाम िे क्षीण स्वि में कहा- अब जीिे की इच्छा िहीं औि ि बोलिे की शडक्त ही है। यह कहत-ेकहत े मंसािाम अशक्त होकि वही ं जमीि पि लेट गया। निममला िे पनत की ओि निभमय िेत्रों से देखत े हुए कहा- डॉक्टि ि े क्या सलाह दी?

मुंशीजी- सब-के-सब भंग खा गए हैं, कहत ेहैं, ताजा खूि चादहए।

निममला- ताजा खूि लमल जाये, तो प्राण-िक्षा हो सकती है?

मुंशीजी िे निमेला की ओि तीव्र िेत्रों से देखकि कहा- मैं ईश्वि िहीं हंू औि ि डॉक्टि ही को ईश्वि समझता हंू। निममला- ताजा खूि तो ऐसी अलभ्य वस्तु िहीं! मुंशीजी- आकाश के तािे भी तो अलभ्य िही! मुंह के सामिे खदंक क्या चीज है?

निममला- मैं आपिा खिू देिे को तैयाि हंू। डॉक्टि को बलुाइए।

मुंशीजी िे ववजस्मत होकि कहा- तुम! निममला- हा,ं क्या मेिे खूि से काम ि चलेगा?

मुंशीजी- तुम अपिा खूि दोगी? िही,ं तमु्हािे खूि की जरुित िहीं। इसमें प्राणो का भय है। निममला- मेिे प्राण औि ककस ददि काम आयेंगे?

मुंशीजी िे सजल-िेत्र होकि कहा- िहीं निममला, उसका मलू्य अब मेिी निगाहों में बहुत बढ गया है। आज तक वह मेिे भोग की वस्त ुथी, आज से वह मेिी भडक्त की वस्तु है। मैंिे तुम्हािे साथ बडा अन्याय ककया है, क्षमा किो।

तेिह

कुछ होिा था हो गया, ककसी को कुछ ि चली। डॉक्टि साहब निममला की देह से िक्त निकालिे की चिेा कि ही िहे थे कक

मंसािाम अपिे उज्ज्वल चरित्र की अजन्तम झलक ददखाकि इस भ्रम-लोक से ववदा हो गया। कदाचचत ्इतिी देि तक उसके प्राण निममला ही की िाह देख

जो

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िहे थे। उसे निष्कलंक लसद्ध ककये बबिा व े देह को कैसे त्याग देते? अब उिका उदे्दश्य पिूा हो गया। मुंशीजी को निममला के निदोष होिे का ववश्वास हो गया, पि कब? जब हाथ से तीि निकल चकुा था, जब मसुकफि िे िकाब में पांव डाल ललया था।

पतु्र-शोक में मुंशीजी का जीवि भाि-स्वरुप हो गया। उस ददि से कफि उिके ओठों पि हंसी ि आई। यह जीवि अब उन्हें व्यथम-सा जाि पडता था। कचहिी जात,े मगि मकुदमों की पिैवी कििे के ललए िही,ं केवल ददल बहलाि ेके ललए घंटे-दो-घंटे में वहा ंसे उकताकि चले आत।े खािे बठैते तो कौि मुंह में ि जाता। निममला अच्छी से अच्छी चीज पकाती पि मुंशीजी दो-चाि कौि से अचधक ि खा सकते। ऐसा जाि पडता कक कौि मुंह से निकला आता है! मंसािाम के कमिे की ओि जात ेही उिका हृदय टूक-टूक हो जाता था। जहां उिकी आशाओं का दीपक जलता िहता था, वहां अब अंधकाि छाया हुआ था। उिके दो पतु्र अब भी थे, लेककि दधू देती हुई गायमि गई, तो बनछया का क्या भिोसा? जब फूलिे-फलिेवाला वकृ्ष चगि पडा, िन्हे-िन्हे पौधों से क्या आशा? यों ता जवाि-बढेू सभी मित हैं, लेककि द:ुख इस बात का था कक उन्होंि े स्वयं लडके की जाि ली। जजस दम बात याद आ जाती, तो ऐसा मालमू होता था कक उिकी छाती फट जायेगी-मािो हृदय बाहि निकल पडगेा। निममला को पनत से सच्ची सहािभुनूत थी। जहा ंतक हो सकता था, वह उिको प्रसन्ि िखिे का कफक्र िखती थी औि भलूकि भी वपछली बातें जबाि पि ि लाती थी। मुशंीजी उससे मंसािाम की कोई चचाम कित ेशिमाते थे। उिकी कभी-कभी ऐसी इच्छा होती कक एक बाि निममला से अपिे मि के सािे भाव खोलकि कह दूं, लेककि लज्जा िोक लेती थी। इस भांनत उन्हें सान्त्विा भी ि लमलती थी, जो अपिी व्यथा कह डालिे से, दसूिो को अपिे गम में शिीक कि लेिे से, प्राप्त होती है। मवाद बाहि ि निकलकि अन्दि-ही-अन्दि अपिा ववष फैलाता जाता था, ददि-ददि देह घलुती जाती थी। इधि कुछ ददिों से मुंशीजी औि उि डॉक्टि साहब में जजन्होंिे मंसािाम की दवा की थी, यािािा हो गया था, बेचािे कभी-कभी आकि मुंशीजी को समझाया किते, कभी-कभी अपिे साथ हवा णखलाि े के ललए खींच ले जाते। उिकी िी भी दो-चाि बाि निममला से लमलि ेआई थी।ं निममला भी कई बाि उिके घि गई थी, मगि वहां से जब लौटती, तो कई ददि तक

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उदास िहती। उस दम्पवत्त का सखुमय जीवि देखकि उसे अपिी दशा पि द:ुख हुए बबिा ि िहता था। डॉक्टि साहब को कुल दो सौ रुपये लमलत ेथे,

पि इतिे में ही दोिों आिन्द से जीवि व्यतीत कित ेथे। घि मं केवल एक महिी थी, गहृस्थी का बहुत-सा काम िी को अपिे ही हाथों कििा पडता थ। गहिे भी उसकी देह पि बहुत कम थे, पि उि दोिों में वह पे्रम था, जो धि की तणृ के बिाबि पिवाह िही ंकिता। परुुष को देखकि िी को चहेिा णखल उठता था। िी को देखकि परुुष निहाल हो जाता था। निममला के घि में धि इससे कहीं अचधक था, अभषूणों से उिकी देह फटी पडती थी, घि का कोई काम उसे अपिे हाथ से ि कििा पडता था। पि निममला सम्पन्ि होिे पि भी अचधक दखुी थी, औि सधुा ववपिि होिे पि भी सखुी। सधुा के पास कोई ऐसी वस्त ुथी, जो निममला के पास ि थी, जजसके सामि े उसे अपिा वभैव तुच्छ जाि पडता था। यहा ंतक कक वह सधुा के घि गहिे पहिकि जाते शिमाती थी। एक ददि निममला डॉक्टि साहब से घि आई, तो उसे बहुत उदास देखकि सधुा िे पछूा-बदहि, आज बहुत उदास हो, वकील साहब की तबीयत तो अच्छी है, ि?

निममला- क्या कहंू, सुधा? उिकी दशा ददि-ददि खिाब होती जाती है,

कुछ कहत ेिहीं बिता। ि जािे ईश्वि को क्या मंजूि है?

सधुा- हमािे बाबजूी तो कहत े हैं कक उन्हें कहीं जलवाय ु बदलिे के ललए जािा जरुिी है, िहीं तो, कोई भंयकि िोग खडा हो जायेगा। कई बाि वकील साहब से कह भी चकेु हैं पि वह यही कह ददया कित ेहैं कक मैं तो बहुत अच्छी तिह हंू, मझु ेकोई लशकायत िहीं। आज तुम कहिा। निममला- जब डॉक्टि साहब की िहीं सिुा, तो मेिी सिुेंगे?

यह कहत-ेकहते निममला की आंखें डबडबा गई औि जो शंका, इधि महीिों से उसके हृदय को ववकल किती िहती थी, मुंह से निकल पडी। अब तक उसिे उस शकंा को नछपाया था, पि अब ि नछपा सकी। बोली-बदहि मझु ेलक्षण कुद अच्छे िही ंमालमू होत।े देखें, भगवाि ्क्या किते हैं?

साध-ुतुम आज उिसे खूब जोि देकि कहिा कक कहीं जलवाय ुबदलिे

चादहए। दो चाि महीिे बाहि िहिे से बहुत सी बातें भलू जायेंगी। मैं तो समझती हंू,शायद मकाि बदलि ेसे भी उिका शोक कुछ कम हो जायेगा। तुम कही ंबाहि जा भी ि सकोगी। यह कौि-सा महीिा है?

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निममला- आठवा ंमहीिा बीत िहा है। यह चचन्ता तो मझु ेऔि भी मािे डालती है। मैंिे तो इसके ललए ईश्चि से कभी प्राथमि ि की थी। यह बला मेिे लसि ि जाि ेक्यों मढ दी? मैं बडी अभाचगिी हंू, बदहि, वववाह के एक महीि ेपहले वपताजी का देहान्ता हो गया। उिके मिते ही मेिे लसि शिीचि सवाि हुए। जहा ंपहले वववाह की बातचीत पक्की हुई थी, उि लोगों िे आंखें फेि लीं। बेचािी अम्मां को हािकि मेिा वववाह यहां कििा पडा। अब छोटी बदहि का वववाह होिे वाला है। देखें, उसकी िाव ककस घाट जाती है! सधुा- जहा ंपहले वववाह की बातचीत हुई थी, उि लोगों ि ेइन्काि क्यों कि ददया?

निममला- यह तो वे ही जािें। वपताजी ि िहे, तो सोिे की गठिी कौि देता?

सधुा- यह ता िीचता है। कहा ंके िहि ेवाल ेथे?

निममला- लखिऊ के। िाम तो याद िहीं, आबकािी के कोई बड ेअफसि थे।

सधुा िे गम्भीिा भाव से पछूा- औि उिका लडका क्या किता था?

निममला- कुछ िही,ं कहीं पढता था, पि बडा होिहाि था।

सधुा िे लसि िीचा किके कहा- उसिे अपिे वपता से कुछ ि कहा था? वह तो जवाि था, अपिे बाप को दबा ि सकता था?

निममला- अब यह मैं क्या जािू ं बदहि? सोिे की गठिी ककसे प्यािी िहीं होती? जो पजण्डत मेिे यहा ंसे सन्देश लेकि गया था, उसिे तो कहा था कक लडका ही इन्काि कि िहा है। लडके की मा ंअलबत्ता देवी थी। उसिे पतु्र औि पनत दोिों ही को समझाया, पि उसकी कुछ ि चली।

सधुा- मैं तो उस लडके को पाती, तो खूब आड ेहाथों लेती। निममला- मिे भाग्य में जो ललखा था, वह हो चकुा। बेचािी कृष्णा पि ि जाि ेक्या बीतगेी?

संध्या समय निममला िे जािे के बाद जब डॉक्टि साहब बाहि से आये,

तो सधुा िे कहा-क्यों जी, तुम उस आदमी का क्या कहोगे, जो एक जगह वववाह ठीक कि लेिे बाद कफि लोभवश ककसी दसूिी जगह?

डॉक्टि लसन्हा िे िी की ओि कुतूहल से देखकि कहा- ऐसा िही ंकििा चादहए, औि क्या?

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सधुा- यह क्यों िही ं कहत े कक ये घोि िीचता है, पहले लसिे का कमीिापि है!

लसन्हा- हा,ं यह कहिे में भी मझु ेइन्काि िहीं। सधुा- ककसका अपिाध बडा है? वि का या वि के वपता का?

लसन्हा की समझ में अभी तक िही ंआया कक सधुा के इि प्रश्नों का आशय क्या है? ववस्मय से बोले- जैसी जस्थनत हो अगि वह वपता क अधीि हो, तो वपता का ही अपिाध समझो। सधुा- अधीि होिे पि भी क्या जवाि आदमी का अपिा कोई कत्तमव्य िहीं है? अगि उसे अपिे ललए िये कोट की जरुित हो, तो वह वपता के वविाध किि ेपि भी उसे िो-धोकि बिवा लेता है। क्या ऐसे महत्तव के ववषय में वह अपिी आवाज वपता के कािों तक िहीं पहंुचा सकता? यह कहो कक वह औि उसका वपता दोिों अपिाधी हैं, पिन्तु वि अचधक। बढूा आदमी सोचता है- मझु े तो सािा खचम संभालिा पडगेा, कन्या पक्ष से जजतिा ऐंठ सकंू, उतिा ही अच्छा। मगेि वि का धमम है कक यदद वह स्वाथम के हाथों बबलकुल बबक िही ं गया है, तो अपिे आत्मबल का परिचय दे। अगि वह ऐसा िहीं किता, तो मैं कहंूगी कक वह लोभी है औि कायि भी। दभुामग्यवश ऐसा ही एक प्राणी मेिा पनत है औि मेिी समझ में िही ंआता कक ककि शब्दों में उसका नतिस्काि करंु! लसन्हा िे दहचककचात े हुए कहा- वह...वह...वह...दसूिी बात थी। लेि-देि का कािण िही ंथा, बबलकुल दसूिी बाता थी। कन्या के वपता का देहान्त हो गया था। ऐसी दशा में हम लोग क्यो कित?े यह भी सिुिे में आया था कक कन्या में कोई ऐब है। वह बबलकुल दसूिी बाता थी, मगि तुमसे यह कथा ककसिे कही। सधुा- कह दो कक वह कन्या कािी थी, या कुबडी थी या िाइि के पेट की थी या भ्रिा थी। इतिी कसि क्यों छोड दी? भला सिुू ंतो, उस कन्या में क्या ऐब था?

लसन्हा- मैंिे देखा तो था िहीं, सिुिे में आया था कक उसमें कोई ऐब है। सधुा- सबसे बडा ऐब यही था कक उसके वपता का स्वगमवास हो गया था औि वह कोई लंबी-चौडी िकम ि दे सकती थी। इतिा स्वीकाि कित ेक्यों झेंपत ेहो? मैं कुछ तुम्हािे काि तो काट ि लूगंी! अगि दो-चाि कफकिे

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कहंू, तो इस काि से सिुकि उसक काि से उडा देिा। ज्यादा-चीं-चपड करंु,

तो छडी से काम ले सकत ेहो। औित जात डण्ड ेही से ठीक िहती है। अगि उस कन्या में कोई ऐब था, तो मैं कहंूगी, लक्ष्मी भी ब-ेऐब िहीं। तुम्हािी खोटी थी, बस! औि क्या? तुम्हें तो मेिे पाले पडिा था। लसन्हा- तुमसे ककसिे कहा कक वह ऐसी थी वसैी थी? जैसे तुमिे ककसी से सिुकि माि ललया। सधुा- मैंिे सिुकि िही ंमाि ललया। अपिी आंखों देखा। ज्यादा बखाि क्या करंु, मैंिे ऐसी सनु्दी िी कभी िहीं देखी थी। लसन्हा िे व्यग्र होकि पछूा-क्या वह यही ंकही ं है? सच बताओ, उसे कहा ंदेखा! क्या तुमळािे घि आई थी?

सधुा-हा,ं मेिे घि में आई थी औि एक बाि िही,ं कई बाि आ चकुी है। मैं भी उसके यहा ंकई बाि जा चकुी हंू, वकील साहब के बीवी वही कन्या है,

जजसे आपि ेऐबों के कािण त्याग ददया। लसन्हा-सच! सधुा-बबलकुल सच। आज अगि उसे मालमू हो जाये कक आप वही महापरुुष हैं, तो शायद कफि इस घि मे कदम ि िखे। ऐसी सशुीला, घि के कामों में ऐसी निपणु औि ऐसी पिम सनु्दािी िी इस शहि मे दो ही चाि होंगी। तुम मेिा बखाि कित ेहो। म।ै उसकी लौंडी बििे के योग्य भी िही ंहंू। घि में ईश्वि का ददया हुआ सब कुछ है, मगि जब प्राणी ही मेल केा िही,ं तो औि सब िहकि क्या किेगा? धन्य है उसके धयैम को कक उस बडु्ढे खूसट वकील के साथ जीवि के ददि काट िही है। मैंिे तो कब का जहि खा ललया होता। मगि मि की व्यथा कहिे से ही थोड ेप्रकट होती है। हंसती है, बोलती है, गहिे-कपड ेपहिती है, पि िोया-ंिोया ंिाया किता है। लसन्हा-वकील साहब की खूब लशकायत किती होगी?

सधुा-लशकायत क्यों किेगी? क्या वह उसके पनत िहीं हैं? संसाि मे अब उसके ललए जो कुछ हैं, वकील साहब। वह बडु्ढे हों या िोगी, पि हैं तो उसके स्वामी ही। कुलवंती िीया ं पनत की निन्दा िही ंकिती,ंयह कुलटाओं का काम है। वह उिकी दशा देखकि कुढती हैं, पि मुंह से कुछा िहीं कहती।

लसन्हा- इि वकील साहब को क्या सझूी थी, जो इस उम्र में ब्याह किि ेचले?

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सधुा- ऐसे आदमी ि हों, तो गिीब क्वारियों की िाव कौि पाि लगाये? तुम औि तुम्हािे साथी बबिा भािी गठिी ललए बात िहीं किते, तो कफि ये बेचािि ककसके घि जाय?ं तुमिे यह बडा भािी अन्याय ककया है, औि तुम्हें इसका प्राजश्यचत कििा पडगेा। ईश्वि उसका सहुाग अमि किे, लेककि वकील साहब को कही ं कुछ हो गया, तो बेचािी का जीवि ही िि हो जायेेेगा। आज तो वह बहुत िोती थी। तुम लोग सचमचु बड े निदमयी हो। म।ै तो अपिे सोहि का वववाह ककसी गिीब लडकी से करंुगी। डॉक्टि साहब िे यह वपछला वाक्या िही ंसिुा। वह घोि चचन्ता मं पड गये। उिके मि में यह प्रश्न उठ-उठकि उन्हें ववकल कििे लगा-कही ंवकील साहब को कुछ हो गया तो? आज उन्हें अपिे स्वाथम का भंयकि स्वरुप ददखायी ददया। वास्तव में यह उन्ही ंका अपिाध था। अगि उन्होंिे वपता से जोि देकि कहा होता कक म।ै औि कही ंवववाह ि करंुगा, तो क्या वह उिकी इच्छा के ववरुद्व उिका वववाह कि देते?

सहसा सधुा िे कहा-कहो तो कल निममला से तुम्हािी मलुाकात किा दूं? वह भी जिा तमु्हािी सिूत देख ले। वह कुछ बोलगी तो िही,ं पि कदाचचत ्एक दृवि से वह तुम्हािा इतिा नतिस्काि कि देगी, जजसे तुम कभी ि भलू सकोगे। बोलों, कल लमला दूूँ? तुम्हािा बहुत संक्षक्षप्त परिचय भी किा दूंगी ं लसन्हा ि ेकहा-िहीं सधुा, तुम्हािे हाथ जोडता हंू, कही ं ऐसा गजब ि कििा! िही ंतो सच कहता हंू, घि छोडकि भाग जाऊंगा। सधुा-जो कांटा बोया है, उसका फल खात ेक्यों इतिा डित ेहो? जजसकी गदमि पि कटाि चलाई है, जिा उसे तडपत ेभी तो देखो। मेिे दादा जी ि ेपांच हजाि ददये ि! अभी छोटे भाई के वववाह मं पांच-छ: हजाि औि लमल जायेंगे। कफि तो तुम्हािे बिाबि धिी संसाि में काई दसूिा ि होगा। ग्यािह हजाि बहुत होत े हैं। बाप-िे-बाप! ग्यािह हजाि! उठा-उठाकि िखिे लगे, तो महीिों लग जायें अगि लडके उडािे लगें, तो पीदढयों तक चले। कहीं से बात हो िही है या िही?ं

इस परिहास से डॉक्टि साहब इतिा झेंपे कक लसि तक ि उठा सके। उिका सािा वाक्-चातुयम गायब हो गया। िन्हा-सा मुंह निकल आया, मािो माि पड गई हो। इसी वक्त ककसी डॉक्टि साहब को बाहि से पकुािां बेचािे

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जाि लेकि भागे। िी ककतिी परिहास कुशल होती है, इसका आज परिचय लमल गया। िात को डॉक्टि साहब शयि किते हुए सधुा से बोल-ेनिम्रला की तो कोई बदहि है ि?

सधुा- हा,ं आज उसकी चचाम तो किती थी। इसकी चचन्ता अभी से सवाि हो िही है। अपिे ऊपि तो जो कुछ बीतिा था, बीत चकुा, बदहि की ककफक्र में पडी हुई थी।मा ंके पास तो अब ओि भी कुछ िही ंिहा, मजबिूि ककसी ऐसे ही बढेू बाबा क गले वह भी मढ दी जियेगी। लसन्हा- निममला तो अपिी मा ंकी मदद कि सकती है। सधुा िे तीक्ष्ण स्वि में कहा-तुम भी कभी-कभी बबलकुल बेलसि’ पिै की बातें कििे लगत ेहो। निममला बहुत किेगी, तो दा-चाि सौ रुपये दे देगी, औि क्या कि सकती है? वकील साहब का यह हाल हो िहा है, उसे अभी पहाड-सी उम्र काटिी है। कफि कौि जाि ेउिके घि का क्यश हाल है? इधि छ:महीिे से बेचािे घि बठेै हैं। रुपये आकाश से थोड ेही बिसत ेहै। दस-बीस हजाि होंगे भी तो बैंक में होंगे, कुछ निममला के पास तो िखे ि होंगे। हमािा दो सौ रुपया महीिे का खचम है, तो क्या इिका चाि सौ रुपये महीिे का भी ि होगा?

सधुा को तो िींद आ गई,पि डॉक्टि साहब बहुत देि तक किवट बदलते िहे, कफि कुछ सोचकि उठे औि मेज पि बठैकि एक पत्र ललखिे लगे।

चौदह

िों बात ेएक ही साथ हुईं-निममला के कन्या को जन्म ददया, कृष्णा का वववाह निजश्चत हुआ औि मुंशी तोतािाम का मकाि िीलाम हो गया।

कन्या का जन्म तो साधािण बात थी, यद्यवप निममला की दृवि में यह उसके जीवि की सबसे महाि घटिा थी, लेककि शषे दोिों घटिाएं अयाधािण थीं। कृष्णा का वववाह-ऐसे सम्पन्ि घिािे में क्योंकि ठीक हुआ? उसकी माता के पास तो दहेज के िाम को कौडी भी ि थी औि इधि बढेू लसन्हा साहब जो अब पेंशि लेकि घि आ गये थे, बबिादिी महालोभी मशहूि थे। वह अपिे पतु्र का वववाह ऐसे दरिद्र घिािे में कििे पि कैसे िाजी हुए। ककसी को सहसा

दो

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ववश्वास ि आता था। इससे भी बड आश्चयम की बात मुंशीजी के मकाि का िीलाम होिा था। लोग मुंशीजी को अगि लखपती िहीं, तो बडा आदमी अवश्य समझत े थे। उिका मकाि कैसे िीलाम हुआ? बात यह थी कक मुंशीजी िे एक महाजि से कुछ रुपये कजम लेकि एक गांव िहेि िखाथा। उन्हें आशा थी कक साल-आध-साल में यह रुपये पाट देंगे, कफि दस-पांच साल में उस गांव पि कब्जा कि लेंगे। वह जमींदािअसल औि सदू के कुल रुपये अदा कििे में असमथम हो जायेगा। इसी भिोसे पि मुंशीजी िे यह मामला ककया था। गांव बेहुत बडा था, चाि-पांच सौ रुपये िफा होता था, लेककि मि की सोची मि ही में िह गई। मुंशीज ददल को बहुत समझािे पि भी कचहिी ि जा सके। पतु्रशोक िे उिमं कोई काम कििे की शडक्त ही िही ंछोडी। कौि ऐसा हृदय –शनू्य वपता है, जो पतु्र की गदमि पि तलवाि चलाकि चचत्त को शान्त कि ले?

महाजि के पास जब साल भि तक सदू ि पहंुचा औि ि उसके बाि-बाि बलुािे पि मुंशीजी उसके पास गये। यहा ंतक कक वपछली बाि उन्होंिे साफ-साफ कही ददया कक हम ककसी के गुलाम िही ंहैं, साहूजी जो चाहे किें तब साहूजी को गुस्सा आ गया। उसिे िाललश कि दी। मुंशजी पिैवी कििे भी ि गये। एकाएक डडग्री हो गई। यहां घि में रुपये कहा ंिखे थे? इति ेही ददिों में मुंशीजी की साख भी उठ गई थी। वह रुपये का कोई प्रबन्ध ि कि सके। आणखि मकाि िीलाम पि चढ गया। निम्रला सौि में थी। यह खबि सिुी, तो कलेजा सन्ि-सा हो गया। जीवि में कोई सखु ि होिे पि भी धिाभाव की चचन्ताओं से मकु्त थी। धि मािव जीवि में अगि सवमप्रधाि वस्तु िही,ं तो वह उसके बहुत निकट की वस्तु अवश्य है। अब औि अभावों के साथ यह चचन्ता भी उसके लसि सवाि हुई। उसे दाई द्वािा कहला भेजा, मेिे सब गहिे बेचकि घि को बचा लीजजए, लेककि मुंशीजी िे यह प्रस्ताव ककसी तिह स्वीकाि ि ककया। उस ददि से मुंशीजी औि भी चचन्ताग्रस्त िहिे लगे। जजस धि का सखु भोगिे के ललए उन्होंिे वववाह ककया था, वह अब अतीत की स्मनृत मात्र था। वह मािे ग्लानि क अब निममला को अपिा मुंह तक ि ददखा सकते। उन्हें अब उसक अन्याय का अिमुाि हो िहा था, जो उन्होंि ेनिममला के साथ ककया था औि कन्या के जन्म िे तो िही-सही कसि भी पिूी कि दी, सवमिाश ही कि डाला!

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बािहवें ददि सौि से निकलकि निममला िवजात लशश ुको गोद ललये पनत के पास गई। वह इस अभाव में भी इतिी प्रसन्ि थी, मािो उसे कोई चचन्ता िही ंहै। बाललका को हृदय से लगाि वह अपिी सािी चचन्ताएसं भलू गई थी। लशश ु के ववकलसत औि हषम प्रदीप्त िेत्रों को देखकि उसका हृदय प्रफुजल्लत हो िहा था। माततृ्व के इस उद्गाि में उसके सािे क्लेश ववलीि हो गये थे। वह लशश ुको पनत की गोद मे देकि निहाल हो जािा चाहती थी, लेककि मुंशीजी कन्या को देखकि सहम उठे। गोद लेिे के ललए उिका हृदय हुलसा िही,ं पि उन्होंिे एक बाि उसे करुण िेत्रों से देखा औि कफि लसि झकुा ललया, लशश ुकी सिूत मंसािाम से बबलकुल लमलती थी। निममला िे उसके मि का भाव औि ही समझा। उसिे शतगणु स्िेह से लडकी को हृदय से लगा ललया मािो उसिसे कह िही है-अगि तुम इसके बोझ से दबे जात ेहो, तो आज से मैं इस पि तुम्हाि साया भी िहीं पडिे दूंगी। जजस िति को मैंिे इतिी तपस्या के बाद पाया है, उसका नििादि कित े हुए तुम्हाि हृदय फट िही ं जाता? वह उसी क्षण लशश ुको गोद से चचपकात ेहुए अपिे कमिे में चली आई औि देि तक िोती िही। उसिे पनत की इस उदासीिता को समझिे की जिी भी चिेा ि की, िही ंतो शायद वह उन्हें इतिा कठोि ि समझती। उसके लसि पि उत्तिदानयत्व का इतिा बडा भाि कहां था,जो उसके पनत पि आ पडा था? वह सोचि ेकी चिेा किती, तो क्या इतिा भी उसकी समझ में ि आता?

मुंशीजी को एक ही क्षण में अपिी भलू मालमू हो गई। माता का हृदय पे्रम में इतिा अििुक्त िहता है कक भववष्य की चचन्त्ज्ञ औि बाधाएं उसे जिा भी भयभीत िहीं किती।ं उसे अपिे अंत:किण में एक अलौककक शडक्त का अिभुव होता है, जो बाधाओं को उिके सामिे पिास्त कि देती है। मुंशीजी दौड े हुए घि मे आये औि लशश ुको गोद में लेकि बोले मझु ेयाद आती है, मंसा भी ऐसा ही था-बबलकुल ऐसा ही!

निममला-दीदीजी भी तो यही कहती है। मुंशीजी-बबलकुल वही ंबडी-बडी आंखे औि लाल-लाल ओंठ हैं। ईश्वि िे मझु ेमेिा मंसािाम इस रुप में दे ददया। वही माथा है, वही मुंह, वही हाथ-पांव! ईश्वि तुम्हािी लीला अपाि है।

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सहसा रुजक्मणी भी आ गई। मुंशीजी को देखत े ही बोली-देखों बाब,ू

मंसािाम है कक िहीं? वही आया है। कोई लाख कहे, मैं ि मािूंगी। साफ मंसािाम है। साल भि के लगभग ही भी तो गया। मुंशीजी-बदहि, एक-एक अंग तो लमलता है। बस, भगवाि ्िे मझु ेमेिा मंसािाम दे ददया। (लशश ु से) क्यों िी, त ू मंसािाम ही है? छौडकि जाि ेका िाम ि लेिा, िहीं कफि खींच लाऊंगा। कैसे निषु्ठि होकि भागे थे। आणखि पकड लाया कक िही?ं बस, कह ददया, अब मझु ेछोडकि जािे का िाम ि लेिा। देखो बदहि, कैसी टुकुि-टुकुि ताक िही है?

उसी क्षण मुंशीजी िे कफि से अलभलाषाओं का भवि बिािा शरुु कि ददया। मोह िे उन्हें कफि संसाि की ओि खींचां मािव जीवि! त ू इतिा क्षणभंगिु है, पि तेिी कल्पिाएं ककतिी दीघामल!ु वही तोतािाम जो संसाि से वविक्त हो िह थे, जो िात-ददि मतु्य ुका आवाहि ककया कित ेथे, नतिके का सहािा पाकि तट पि पहंुचिे के ललए पिूी शडक्त से हाथ-पांव माि िहे हैं। मगि नतिके का सहािा पाकि कोई तट पि पहंुचा है?

पन्द्रह

ममला को यद्यवप अपिे घि के झंझटों से अवकाश ि था, पि कृष्णा के वववाह का संदेश पाकि वह ककसी तिह ि रुक सकी। उसकी

माता िे बेहुत आग्रह किके बलुाया था। सबसे बडा आकषमण यह था कक कृष्णा का वववाह उसी घि में हो िहा था, जहा ंनिममला का वववाह पहले तय हुआ था। आश्चयम यही था कक इस बाि ये लोग बबिा कुछ दहेज ललए कैसे वववाह किि ेपि तैयाि हो गए! निममला को कृष्णा के ववषय में बडी चचन्ता हो िही थी। समझती थी- मेिी ही तिह वह भी ककसी के गले मढ दी जायेगी। बहुत चाहती थी कक माता की कुछ सहायता करंु, जजससे कृष्णा के ललए कोई योग्य वह लमले, लेककि इधि वकील साहब के घि बठै जाि ेऔि महाजि के िाललश कि देिे से उसका हाथ भी तंग था। ऐसी दशा में यह खबि पाकि उसे बडी शजन्त लमली। चलिे की तैयािी कि ली। वकील साहब स्टेशि तक पहंुचािे आये। िन्हीं बच्ची से उन्हें बहुत पे्रम था। छोेैडत ेही ि थे, यहां तक कक निममला के साथ चलिे को तैयाि हो गये, लेककि वववाह से एक महीिे पहले उिका ससिुाल जा बठैिा निममला को उचचत ि मालमू

नि

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हुआ। निममला िे अपिी माता से अब तक अपिी ववपवत्त कथा ि कही थी। जो बात हो गई, उसका िोिा िोकि माता को कि देिे औि रुलािे से क्या फायदा? इसललए उसकी माता समझती थी, निममला बड ेआिन्द से है। अब जो निममला की सिूत देखी, तो मािो उसके हृदय पि धक्का-सा लग गया। लडककयां ससुिुाल से घलुकि िहीं आती,ं कफि निममला जैसी लडकी, जजसको सखु की सभी सामचग्रया ं प्राप्त थी।ं उसिे ककतिी लडककयों को दजू की चन्द्रमा की भांनत ससिुाल जात ेऔि पणूम चन्द्र बिकि आत ेदेखा था। मि में कल्पिा कि िही थी, निममला का िंग निखि गया होगा, देह भिकि सडुौल हो गई होगी, अंग-प्रत्यंग की शोभा कुछ औि ही हो गई होगी। अब जो देखा, तो वह आधी भी ि िही थी ंि यौवि की चंचलता थी सि वह ववहलसत छवव लो हृदय को मोह लेती है। वह कमिीयता, सकुुमािता, जो ववलासमय जीवि से आ जाती है, यहा ंिाम को ि थी। मखु पीला, चिेा चगिी हुईं, तो माता िे पछूा-क्यों िी, तुझ ेवहा ंखािे को ि लमलता था? इससे कही ंअच्छी तो त ूयही ंथी। वहा ंतुझ ेक्या तकलीफ थी?

कृष्णा िे हंसकि कहा-वहां मालककि थी ं कक िही।ं मालककि दनुिया भि की चचन्ताएं िहती हैं, भोजि कब किें?

निममला-िही ंअम्मा,ं वहा ंका पािी मझु ेिास िही आया। तबीयत भािी िहती है। माता-वकील साहब न्योत ेमें आयेंगे ि? तब पछंूूगी कक आपिे फूल-सी लडकी ले जाकि उसकी यह गत बिा डाली। अच्छा, अब यह बता कक तूिे यहा ंरुपये क्यों भेजे थे? मैंिे तो तुमसे कभी ि मांगे थे। लाख गई-गुलिी हंू, लेककि बेटी का धि खाि ेकी िीयत िहीं।

निममला िे चककत होकि पछूा- ककसिे रुपये भेजे थे। अम्मां, मैंिे तो िहीं भेजे। माता-झठू िे बोल! तिेू पांच सौ रुपये के िोट िहीं भेजे थे?

कृष्णा-भेजे िही ंथे, तो क्या आसमाि से आ गये? तुम्हािा िाम साफ ललखा था। मोहि भी वहीं की थी। निममला-तुम्हािे चिण छूकि कहती हंू, मैंिे रुपये िही ंभेजे। यह कब की बात है?

माता-अिे, दो-ढाई महीिे हुए होंगे। अगि तूिे िहीं भेजे, तो आये कहा ंसे?

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निममला-यह मैं क्या जाि?ू मगि मैंिे रुपये िही ंभेजे। हमािे यहां तो जब से जवाि बेटा मिा है, कचहिी ही िही ंजाते। मेिा हाथ तो आप ही तंग था, रुपये कहा ंसे आते?

माता- यह तो बड े आश्चयम की बात है। वहा ं औि कोई तेिा सगा सम्बन्धी तो िही ंहै? वकील साहब िे तुमसे नछपाकि तो िही ंभेजे?

निममला- िहीं अम्मा,ं मझु ेतो ववश्वास िहीं। माता- इसका पता लगािा चादहए। मैंिे सािे रुपये कृष्णा के गहिे-कपड ेमें खचम कि डाले। यही बडी मजुश्कल हुई। दोिों लडको में ककसी ववषय पि वववाद उठ खडा हुआ औि कृष्णा उधि फैसला कििे चली गई, तो निममला िे माता से कहा- इस वववाह की बात सिुकि मझु ेबडा आश्चयम हुआ। यह कैसे हुआ अम्मा?ं

माता-यहा ंजो सिुता है, दांतों उंगली दबाता हैं। जजि लोगों िे पक्की की किाई बात फेि दी औि केवल थोड े से रुपये के लोभ से, वे अब बबिा कुछ ललए कैसे वववाह कििे पि तैयाि हो गये, समझ में िही ंआता। उन्होंि ेखुद ही पत्र भेजा। मैंिे साफ ललख ददया कक मेिे पास देिे-लेिे को कुछ िहीं है, कुश-कन्या ही से आपकी सेवा कि सकती हंू। निममला-इसका कुछ जवाब िही ंददया?

माता-शािीजी पत्र लेकि गये थे। वह तो यही कहते थे कक अब मुंशीजी कुछ लेिे के इच्छुक िही ं है। अपिी पहली वादा-णखलाफ पि कुछ लजज्जत भी हैं। मुंशीजी से तो इतिी उदािता की आशा ि थी, मगि सिुती हंू, उिके बड ेपतु्र बहुत सज्जि आदमी है। उन्होंिे कह सिुकि बाप को िाजी ककया है। निममला- पहले तो वह महाशय भी थलैी चाहते थे ि?

माता- हा,ं मगि अब तो शािीजी कहत े थो कक दहेज के िाम से चचढते हैं। सिुा है यहां वववाह ि कििे पि पछतात ेभी थे। रुपये के ललए बात छोडी थी औि रुपये खूब पाये, िी पसंन्द िही।ं निममला के मि में उस परुुष को देखिे की प्रबल उत्कंठा हुई, जो उसकी अवहेलिा किके अब उसकी बदहि का उद्वाि कििा चाहता हैं प्रायजश्चत सही, लेककि ककतिे ऐसे प्राणी हैं, जो इस तिह प्रायजश्चत कििे को तैयाि हैं? उिसे बातें कििे के ललए, िम्र शब्दों से उिका नतिस्काि कििे के ललए,

अपिी अिपुम छवव ददखाकि उन्हें औि भी जलािे के ललए निममला का हृदय

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अधीि हो उठा। िात को दोिों बदहिें एक ही केमिे में सोई। महुल्ले में ककि-ककि लडककयों का वववाह हो गया, कौि-कौि लडकोिी हुईं, ककस-ककस का वववाह धमू-धाम से हुआ। ककस-ककस के पनत कि इच्छािकूुल लमले, कौि ककतिे औि कैस गहिे चढावे में लाया, इन्हीं ववषयों में दोिों मे बडी देि तक बातें होती िहीं। कृष्णा बाि-बाि चाहती थी कक बदहि के घि का कुछ हाल पछंू, मगि निममला उसे पछूिे का अवसि ि देती थी। जािती थी कक यह जो बातें पछेूगी उसके बतािे में मझु े संकोच होगा। आणखि एक बाि कृष्णा पछू ही बठैी-जीजाजी भी आयेंगे ि?

निमलाम- आिे को कहा तो है। कृष्ण- अब तो तुमसे प्रसन्ि िहत ेहैं ि या अब भी वही हाल है? मैं तो सिुा किती थी दहुाज ूपनत िी को प्राणों से भी वप्रया समझते हैं, वहा ंबबलकुल उल्टी बात देखी। आणखि ककस बात पि बबगडते िहत ेहैं?

निममला- अब मैं ककसी के मि की बात क्या जाि?ू

कुष्णा- मैं तो समझती हंू, तुम्हािी रुखाई से वह चचढते होंगे। तुम हो यहीं से जली हुई गई थी। वहां भी उन्हें कुछ कहा होगा। निममला- यह बात िही ंहै, कृष्णा, मैं सौगन्ध खाकि कहती हंू, जो मेिे मि में उिकी ओि से जिा भी मलै हो। मझुसे जहा ंतक हो सकता है, उिकी सेवा किती हंू, अगि उिकी जगह कोई देवता भी होता, तो भी मैं इससे ज्यादा औि कुछ ि कि सकती। उन्हें भी मझुसे पे्रम है। बिाबि मेिा मुखं देखत ेिहत ेहैं, लेककि जो बात उिक औि मेिे काब ूके बाहि है, उसके ललए वह क्या कि सकत ेहैं औि मैं क्या कि सकती हंू? ि वह जवाि हो सकत ेहैं, ि मैं बदुढया हो सकती हंू। जवाि बिि ेके ललए वह ि जाि ेककति ेिस औि भस्म खात ेिहत ेहैं, मैं बदुढया बििे के ललए दधू-घी सब छोड ेबठैी हंू। सोचती हंू, मेिे दबुलेपि ही से अवस्था का भेद कुछ कम हो जाय, लेककि ि उन्हें पौविक पदाथों से कुछ लाभ होता है, ि मझु े उपवसों से। जब से मंसािाम का देहान्त हो गया है, तब से उिकी दशा औि खिाब हो गयी है। कृष्णा- मंसािाम को तुम भी बहुत प्याि किती थी?ं

निममला- वह लडका ही ऐसा था कक जो देखता था, प्याि किता था। ऐसी बडी-बडी डोिेदाि आंखें मैंिे ककसी की िही ंदेखी।ं कमल की भानंत मखु हिदम णखला िह था। ऐसा साहसी कक अगि अवसि आ पडता, तो आग में फांद जाता। कृष्णा, मैं तुमसे कहती हंू, जब वह मेिे पास आकि बठै जाता, तो

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मैं अपिे को भलू जाती थी। जी चाहता था, वह हिदम सामिे बठैा िहे औि मैं देखा करंु। मेिे मि में पाप का लेश भी ि था। अगि एक क्षण के ललए भी मैंिे उसकी ओि ककसी औि भाव से देखा हो, तो मेिी आंखें फूट जायें, पि ि जािे क्यों उसे अपिे पास देखकि मेिा हृदय फूला ि समाता था। इसीललए मैंिे पढिे का स्वागं िचा िही ंतो वह घि में आता ही ि था। यह म।ै जािती हंू कक अगि उसके मि में पाप होता, तो मैं उसके ललए सब कुछ कि सकती थी।

कृष्णा- अिे बदहि, चपु िहो, कैसी बातें मुंह से निकालती हो?

निममला- हा,ं यह बात सिुिे में बिुी मालमू होती है औि है भी बिुी, लेककि मिषु्य की प्रकृनत को तो कोई बदल िहीं सकता। तू ही बता- एक पचास वषम के मदम से तेिा वववाह हो जाये, तो तू क्या किेगी?

कृष्णा-बदहि, मैं तो जहि खाकि सो िहंू। मझुसे तो उसका मुहं भी ि देखत ेबिे। निममला- तो बस यही समझ ले। उस लडके िे कभी मेिी ओि आंख उठाकि िहीं देखा, लेककि बडु्ढे तो शक्की होते ही हैं, तुम्हािे जीजा उस लडके के दशु्मि हो गए औि आणखि उसकी जाि लेकि ही छोडी। जजसे ददि उसे मालमू हो गया कक वपताजी के मि में मेिी ओि से सन्देह है, उसी ददि के उसे ज्वि चढा, जो जाि लेकि ही उतिा। हाय! उस अजन्तम समय का दृश्य आंखों से िही ंउतिता। मैं अस्पताल गई थी, वह ज्वी में बेहोश पडा था, उठिे की शडक्त ि थी, लेककि ज्यों ही मेिी आवाज सिुी, चौंककि उठ बठैा औि ‘माता-माता’ कहकि मेिे पिैों पि चगि पडा (िोकि) कृष्णा, उस समय ऐसा जी चाहता था अपिे प्राण निकाल कि उसे दे दूं। मेिे पिैां पि ही वह मनूछमत हो गया औि कफि आंखें ि खोली। डॉक्टि िे उसकी देह मे ताजा खूि डालिे का प्रस्ताव ककया था, यही सिुकि मैं दौडी गई थी लेककि जब तक डॉक्टि लोग वह प्रकक्रया आिम्भ किें, उसके प्राण, निकल गए। कृष्णा- ताजा िक्त पड जाि ेसे उसकी जाि बच जाती?

निममला- कौि जािता है? लेककि मैं तो अपिे रुचधि की अजन्तम बूंद तक देिे का तैयाि थी उस दशा में भी उसका मखुमण्डल दीपक की भानंत चमकता था। अगि वह मझु े देखते ही दौडकि मेिे पिैों पि ि चगि पडता, पहले कुछ िक्त देह में पहंुच जाता, तो शायद बच जाता। कृष्णा- तो तुमिे उन्हें उसी वक्ता ललटा क्यों ि ददया?

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निममला- अिे पगली, तू अभी तक बात ि समझी। वह मेिे पिैों पि चगिकि औि माता-पतु्र का सम्बन्ध ददखाकि अपिे बाप के ददल से वह सन्देह निकाल देिा चाहता था। केवल इसीललए वह उठा थ। मेिा क्लेश लमटािे के ललए उसिे प्राण ददये औि उसकी वह इच्छा पिूी हो गई। तुम्हािे जीजाजी उसी ददि से सीधे हो गये। अब तो उिकी दशा पि मझु ेदया आती है। पतु्र-शाक उिक प्राण लेकि छोडगेा। मझु पि सन्देह किके मेिे साथ जो अन्याय ककया है, अब उसका प्रनतशोध कि िहे हैं। अबकी उिकी सिूत देखकि तू डि जायेगी। बढेू बाबा हो गये हैं, कमि भी कुछ झकु चली है। कृष्णा- बडु्ढे लोग इतिी शक्की क्यों होत ेहैं, बदहि?

निममला- यह जाकि बडु्ढों से पछूो। कृष्णा- मैं समझती हंू, उिके ददल में हिदम एक चोि-सा बठैा िहता

होगा कक इस यवुती को प्रसन्ि िही ंिख सकता। इसललए जिा-जिा-सी बात पि उन्हें शक होिे लगता है। निममला- जािती तो है, कफि मझुसे क्यों पछूती है?

कुष्णा- इसीललए बेचािा िी से दबता भी होगा। देखि ेवाले समझते होंगे कक यह बहुत पे्रम किता है। निममला- तूिे इतिे ही ददिों में इ तिी बातें कहां सीख ली?ं इि बातों को जाि ेदे, बता, तुझ ेअपिा वि पसन्द है? उसकी तस्वीि ता देखी होगी?

कृष्णा- हा,ं आई तो थी, लाऊं, देखोगी?

एक क्षण में कृष्णा िे तस्वीि लाकि निममला के हाथ में िख दी। निममला िे मसु्किाकि कहा-तू बडी भाग्यवाि ्है। कृष्णा- अम्माजी िे भी बहुत पसन्द ककया। निममला- तुझ ेपसन्द है कक िही,ं सो कह, दसूिों की बात ि चला। कृष्णा- (लजाती हुई) शक्ल-सिूत तो बिुी िही ं है, स्वभाव का हाल ईश्वि जािे। शािीजी तो कहते थे, ऐसे सशुील औि चरित्रवाि ् यवुक कम होंगे। निममला- यहां से तेिी तस्वीि भी गई थी?

कृष्णा- गई तो थी, शािीजी ही तो ल ेगए थे। निममला- उन्हें पसन्द आई?

कृष्णा- अब ककसी के मि की बात मैं क्या जािू?ं शािी जी कहते थे,

बहुत खुश हुए थे।

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निममला- अच्छा, बता, तुझ े क्या उपहाि दूं? अभी से बता दे, जजससे बिवा िखूं। कृष्णा- जो तुम्हािा जी चाहे, देिा। उन्हें पसु्तकों से बहुत पे्रम है। अच्छी-अच्छी पसु्तकें मंगवा देिा। निममला-उिके ललए िहीं पछूती तेिे ललए पछूती हंू। कृष्णा- अपिे ही ललये तो मैं कह िही हंू। निममला- (तस्वीि की तिफ देखती हुई) कपड ेसब खद्दि के मालमू होत ेहैं। कृष्णा- हा,ं खद्दि के बड ेपे्रमी हैं। सिुती हंू कक पीठ पि खद्दि लाद कि देहातों में बेचिे जाया कित ेहैं। व्याख्याि देिे में भी चतिु हैं। निममला- तब तो मझु ेभी खद्द पहििा पडगेा। तुझ ेतो मोटे कपडो से चचढ है। कृष्णा- जब उन्हें मोटे कपड ेअच्छे लगत ेहैं, तो मझु ेक्यों चचढ होगी, मैंिे तो चखाम चलािा सीख ललया है।

निममला- सच! सतू निकाल लेती है?

कृष्णा- हा,ं बदहि, थोडा-थोडा निकाल लेती हंू। जब वह खद्दि के इतिे पे्रमी हैं, जो चखाम भी जरुि चलाते होंगे। मैं ि चला सकंूगी, तो मझु ेककतिा लजज्जत होिा पडगेा।

इस तिह बात कित-ेकित े दोिों बदहिों सोईं। कोई दो बजे िात को बच्ची िोई तो निममला की िींद खुली। देखा तो कृष्णा की चािपाई खाली पडी थी। निममला को आश्चयम हुआ कक इतिा िात गये कृष्णा कहा ं चली गई। शायद पािी-वािी पीिे गई हो। मगिी पािी तो लसिहािे िखा हुआ है, कफि कहा ंगई है? उसे दो-तीि बाि उसका िाम लेकि आवाज दी, पि कृष्णा का पता ि था। तब तो निममला घबिा उठी। उसके मि में भांनत-भानंत की शकंाएं होिे लगी। सहसा उसे ख्याल आया कक शायद अपिे कमिे में ि चली गई हो। बच्ची सो गई, तो वह उठकि कृष्णा के के कमिे के द्वाि पि आई। उसका अिमुाि ठीक था, कृष्णा अपिे कमिे में थी। सािा घि सो िहा था औि वह बठैी चखाम चला िही थी। इतिी तन्मयता से शायद उसिे चथऐटि भी ि देखा होगा। निममला दंग िह गई। अन्दि जाकि बोली- यह क्या कि िही है िे! यह चखाम चलािे का समय है?

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कृष्णा चौंककि उठ बठैी औि संकोच से लसि झकुाकि बोली- तुम्हािी िींद कैसे खुल गई? पािी-वािी तो मैंिे िख ददया था। निममला- मैं कहती हंू, ददि को तुझ ेसमय िहीं लमलता, जो वपछली िात को चखाम लेकि बठैी है?

कृष्णा- ददि को फुिसत ही िही ंलमलती?

निममला- (सतू देखकि) सतू तो बहुत महीि है। कृष्णा- कहा-ंबदहि, यह सतू तो मोटा है। मैं बािीक सतूकात कि उिके ललए साफा बिािा चाहती हंू। यही मेिा उपहाि होगा। निममला- बात तो तूिे खूब सोची है। इससे अचधक मलू्यवसाि वस्त ुउिकी दृवि में औि क्या होगी? अच्छा, उठ इस वक्त, कल कातिा! कही ंबीमाि पड जायेगी, तो सब धिा िह जायेगा। कृष्णा- िही ंमेिी बदहि, तुम चलकि सोओ, मैं अभी आती हंू।

निममला ि ेअचधक आग्रह ि ककया, लेटिे चली गई। मगि ककसी तिह िींद ि आई। कृष्णा की उत्सकुता औि यह उमंग देखकि उसका हृदय ककसी अलक्षक्षत आकांक्षा से आन्दोललत हो उठा ं ओह! इस समय इसका हृदय ककतिा प्रफुजल्लत हो िहा है। अििुाग िे इसे ककतिा उन्मत्त कि िखा है। तब उसे अपिे वववाह की याद आई। जजस ददि नतलक गया था, उसी ददि से उसकी सािी चंचलता, सािी सजीवता ववदा हो गेई थी। अपिी कोठिी में बठैी वह अपिी ककस्मत को िोती थी औि ईश्वि से वविय किती थी कक प्राण निकल जाये। अपिाधी जैसे दंड की प्रतीक्षा किता है, उसी भांनत वह वववाह की प्रतीक्षा किती थी, उस वववाह की, जजसमें उसक जीवि की सािी अलभलाषाएं ववलीि हो जाएंगी, जब मण्डप के िीच े बिे हुए हवि-कुण्ड में उसकी आशाएं जलकि भस्म हो जायेंगी।

सोलह

हीिा कटते देि ि लगी। वववाह का शभु महूुतम आ पहंुचां मेहमािों से घाि भाि गया। मंशी तोतािाम एक ददि पहले आ गये औि उसिके

साथ निममला की सहेली भी आई। निममला िे बहुत आग्रह ि ककया था, वह खुद आिे को उत्सकु थी। निममला की सबसे बडी उत्कंठा यही थी कक वि के

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बड े भाई के दशमि करंुगी औि हो सकता तो उसकी सबुदुद्व पि धन्यवाद दूंगी। सधुा िे हंस कि कहा-तुम उिसे बोल सकोगी?

निममला- क्यों, बोलिे में क्या हानि है? अब तो दसूिा ही सम्बन्ध हो गया औि मैं ि बोल सकंूगी, तो तुम तो हो ही। सधुा-ि भाई, मझुसे यह ि होगा। मैं पिाये मदम से िहीं बोल सकती। ि जािे कैसे आदमी हों। निममला-आदमी तो बिेु िहीं है, औि कफि उिसे कुछ वववाह तो कििा िही,ं जिा-सा बोलिे में क्या हानि है? डॉक्टि साहब यहा ंहोते, तो मैं तुम्हें आज्ञा ददला देती।

सधुा-जो लोग हुदय के उदाि होत ेहैं, क्या चरित्र के भी अच्छे होत ेहै? पिाई िी की घिूिे में तो ककसी मदम को संकोच िही ंहोता। निममला-अच्छा ि बोलिा, मैं ही बातें कि लूंगी, घिू लेंगे जजतिा उिसे घिूते बिेगा, बस, अब तो िाजी हुई। इतिे में कृष्णा आकि बठै गई। निममला िे मसु्किाकि कहा-सच बता कृष्णा, तेिा मि इस वक्त क्यों उचाट हो िहा है?

कृष्णा-जीजाजी बलुा िहे हैं, पहले जाकि सिुा आआ, पीछे गप्पें लडािा बहुत बबगड िहे हैं। निममला- क्या है, तूि कुछ पछूा िही?ं

कृष्णा- कुछ बीमाि से मालमू होत ेहैं। बहुत दबुले हो गए हैं। निममला- तो जिा बठैकि उिका मि बहला देती। यहां दौडी क्यों चली आई? यह कहो, ईश्वि िे कृपा की, िहीं तो ऐसा ही परुुषा तुझ ेभी लमलता। जिा बठैकि बातें किो। बडु्ढे बातें बडी लच्छेदाि कित े हैं। जवाि इतिे डींचगयल िहीं होते। कृष्णा- िही ंबदहि, तुम जाओ, मझुसे तो वहां बठैा िही ंजाता।

निममला चली गई, तो सधुा िे कृष्णा से कहा- अब तो बािात आ गई होगी। द्वाि-पजूा क्यों िही होती?

कृष्णा- क्या जाि ेबदहि, शािीजी सामाि इकट्ठा कि िहे हैं?

सधुा- सिुा है, दलू्हा का भावज बड ेकड ेस्वाभाव की िी है। कृष्णा- कैसे मालमू?

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सधुा- मैंिे सिुा है, इसीललए चतेाये देती हंू। चाि बातें गम खाकि िहिा होगा। कृष्णा- मेिी झगडि ेकी आदत िहीं। जब मेिी तिफ से कोई लशकायत ही ि पायेंगी तो क्या अिायास ही बबगडगेी! सधुा- हा,ं सिुा तो ऐसा ही है। झठू-मठू लडा कािती है। कृष्णा- मैं तो सौबात की एक बात जािती हंू, िम्रता पत्थि को भी मोम कि देती है। सहसा शोि मचा- बािात आ िही है। दोिों िमणणया ंणखडकी के सामि ेआ बठैीं। एक क्षण में निममला भी आ पहंुची। वि के बड ेभाई को देखिे की उसे बडी उत्सकुता हो िही थी। सधुा िे कहा- कैसे पता चलेगा कक बड ेभाई कौि हैं?

निममला- शािीजी से पछंूू, तो मालमू हो। हाथी पि तो कृष्णा के ससिु महाशय हैं। अच्छा डॉक्टि साहब यहां कैसे आ पहंुच!े वह घोड ेपि क्या हैं, देखती िहीं हो?

सधुा- हा,ं हैं तो वही। निममला- उि लोगों से लमत्रता होगी। कोई सम्बन्ध तो िहीं है। सधुा- अब भेंट हो तो पछंूू, मझु ेतो कुछ िहीं मालमू। निममला- पालकी मे जो महाशय बठेै हुए हैं, वह तो दलू्हा के भाई जैसे िहीं दीखते। सधुा- बबलकुल िहीं। मालमू होता है, सािी देहे मे पछे-ही-पेट है। निममला- दसूिे हाथी पि कौि बठैा है, समझ में िही आता। सधुा- कोई हो, दलू्हा का भाई िही ंहो सकता। उसकी उम्र िही ंदेखती हो, चालीस के ऊपि होंगी। निममला- शािजी तो इस वक्त द्वाि-पजूा कक कफक्र में हैं, िही ं तोेा उिसे पछूती।

संयोग से िाई आ गया। सन्दकूों की कंुललयां निममला के पास थीं। इस वक्त द्वािचाि के ललए कुछ रुपये की जरुित थी, माता िे भेजा था, यह िाई भी पजण्डत मोटेिाम जी के साथ नतलक लेकि गया था। निममला ि ेकहा- क्या अभी रुपये चादहए?

िाई- हां बदहिजी, चलकि दे दीजजए।

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निममला- अच्छा चलती हंू। पहले यह बता, तू दलू्हा क बड ेभाई को पहचािता है?

िाई- पहचािता काहे िही,ं वह क्या सामिे हैं। निममला- कहा,ं मैं तो िहीं देखती?

िाई- अिे वह क्या घोड ेपि सवाि हैं। वही तो हैं। निममला ि ेचककत होकि कहा- क्या कहता है, घोड ेपि दलू्हा के भाई हैं! पहचािता है या अटकल से कह िहा है?

िाई- अिे बदहिजी, क्या इतिा भलू जाऊंगा अभी तो जलपाि का सामाि ददये चला आता हंू। निममल- अिे, यह तो डॉक्टि साहब हैं। मेिे पडोस में िहत ेहैं। िाई- हा-ंहा,ं वही तो डॉक्टि साहब है। निममला िे सधुा की ओि देखकि कहा- सिुती ही बदहि, इसकी बातें? सधुा िे हंसी िोककि कहा-झठू बोलता है। िाई- अच्छा साहब, झठू ही सही, अब बडों के मुंह कौि लगे! अभी शािीजी से पछूवा दूंगा, तब तो मानिएगा?

िाई के आिे में देि हुई, मोटेिाम खुद आंगि में आकि शोि मचािे लगे-इस घि की मयामदा िखिा ईश्वि ही के हाथ है। िाई घण्टे भि से आया हुआ है, औि अभी तक रुपये िहीं लमले। निममला- जिा यहा ं चले आइएगा शािीजी, ककतिे रुपये दिकिाि हैं, निकाल दूं?

शािीजी भिुभिुाते औि जोि-जािे से हाफंते हुए ऊपि आये औि एक लम्बी सांस लेकि बोले-क्या है? यह बातों का समय िहीं है, जल्दी से रुपये निकाल दो। निममला- लीजजए, निकाल तो िही ं हंू। अब क्या मुंह के बल चगि पडू?ं पहले यह बताइए कक दलूहा के बड ेभाई कौि हैं?

शािीजी- िामे-िाम, इतिी-सी बात के ललए मझु ेआकाश पि लटका ददया। िाई क्या ि पहचािता था?

निममला- िाई तो कहता है कक वह जो घोड ेपि सवाि है, वही हैं। शािीजी- तो कफि ककसे बता दे? वही तो हैं ही। िाई- घडी भि से कह िहा हंू, पि बदहिजी मािती ही िहीं।

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निममला िे सधुा की ओि स्िेह, ममता, वविोद कृबत्रम नतिस्काि की दृवि से देखकि कहा- अच्छा, तो तुम्ही अब तक मेिे साथ यह बत्रया-चरित्र खेि िही थी! मैं जािती, तो तुम्हें यहां बलुाती ही िही।ं ओफ्फोह! बडा गहिा पेट है तुम्हािा! तुम महीिों से मेिे साथ शिाित किती चली आती हो, औि कभी भलू से भी इस ववषय का एक शब्द तुम्हािे मुंह से िही ंनिकला। मैं तो दो-चाि ही ददि में उबल पडती। सधुा- तुम्हें मालमू हो जाता, तो तुम मेिे यहां आती ही क्यों?

निममला- गजब-िे-गजब, मैं डॉक्टि साहब से कई बाि बातें कि चकुी हंू। तुम्हािो ऊपि यह सािा पाप पडगेा। देखा कृष्णा, तूिे अपिी जेठािी की शिाित! यह ऐसी मायावविी है, इिसे डिती िहिा। कृष्णा- मैं तो ऐसी देवी के चिण धो-धोकि माथे चढाऊंगी। धन्य-भाग कक इिके दशमि हुए। निममला- अब समझ गई। रुपये भी तुम्हें ि लभजवाये होंगे। अब लसि दहलाया तो सच कहती हंू, माि बठंूैगी। सधुा- अपिे घि बलुाकि के मेहमाि का अपमाि िहीं ककया जाता। निममला- देखो तो अभी कैसी-कैसी खबिे लेती हंू। मैंिे तुम्हािा माि िखि ेको जिा-सा ललख ददया था औि तुम सचमचु आ पहंुची। भला वहा ंवाले क्या कहत ेहोंगे?

सधुा- सबसे कहकि आई हंू। निममला- अब तुम्हािे पास कभी ि आऊंगी। इतिा तो इशािा कि देती ंकक डॉक्टि साहब से पदाम िखिा। सधुा- उिके देख लेिे ही से कौि बिुाई हो गई? ि देखत ेतो अपिी ककस्मत को िोते कैसे? जािते कैसे कक लोभ में पडकि कैसी चीज खो दी? अब तो तुम्हें देखकि लालाजी हाथ मलकि िह जाते हैं। मुंह से तो कुछ िही ंसकहत,े पि मि में अपिी भलू पि पछतात ेहैं। निममला- अब तुम्हािे घि कभी ि आऊंगी। सधुा- अब वपण्ड िही ंछूट सकता। मैंिे कौि तुम्हािे घि की िाह िी ंदेखी है। द्वाि-पजूा समाप्त हो चकुी थी। मेहमाि लोग बठै जलपाि कि िहे थे। मुंशीजी की बेगल में ही डॉक्टि लसन्हा बठेै हुए थे। निममला िे कोठे पि चचक की आड से उन्हें देखा औि कलेजा थामकि िह गई। एक आिोग्य, यौवि

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औि प्रनतभा का देवता था, पि दसूिा...इस ववषय में कुछ ि कहिा ही दचचत है। निममला िे डॉक्टि साहब को सकैडों ही बाि देखा था, पि आज उसके हृदय में जो ववचाि उठे, वे कभी ि उठे थे। बाि-बाि यह जी चाहता था कक बलुाकि खूब फटकारंु, ऐसे-ऐसे तािे मारंु कक वह भी याद किें, रुला-रुलाकि छोडू,ं मेगि िहम किके िह जाती थी। बािात जिवासे चली गई थी। भोजि की तैयािी हो िही थी। निममला भोजि के थाल चिुिे में व्यस्त थी। सहसा महिी िे आकि कहा- बबट्टी, तुम्हें सधुा िािी बलुा िही है। तुम्हािे कमिे में बठैी हैं। निममला िे थाल छोड ददये औि घबिाई हुई सधुा के पास आई, मगि अन्दि कदम िखत ेही दठठक गई, डॉक्टि लसन्हा खड ेथे। सधुा िे मसु्किाकि कहा- लो बदहि, बलुा ददया। अब जजतिा चाहो, फटकािो। मैं दिवाजा िोके खडी हंू, भाग िहीं सकते। डॉक्टि साहब िे गम्भीि भाव से कहा- भागता कौि है? यहा ंतो लसि झकुाए खडा हंू। निममला िे हाथ जोडकि कहा- इसी तिह सदा कृपा-दृवि िणखएगा, भलू ि जाइएगा। यह मेिी वविय है।

सत्रह

ष्णा के वववाह के बाद सधुा चली गई, लेककि निममला मकेै ही में िह गई। वकील साहब बाि-बाि ललखत ेथे, पि वह ि जाती थी। वहां जाि े

को उसका जी ि चाहता था। वहा ंकोई ऐसी चीज ि थी, जो उसे खींच ले जाये। यहां माता की सेवा औि छोटे भाइयों की देखभाल में उसका समय बड ेआिन्द के कट जाता था। वकील साहब खुद आत ेतो शायद वह जाि ेपि िाजी हो जाती, लेककि इस वववाह में, महुल्ले की लडककयों िे उिकी वह दगुमत की थी कक बेचािे आिे का िाम ही ि लेत ेथे। सधुा िे भी कई बाि पत्र ललखा, पि निममला ि ेउससे भी हीले-हवाले ककया। आणखि एक ददि सधुा िे िौकि को साथ ललया औि स्वयं आ धमकी।

जब दोिों गले लमल चकुी,ं तो सधुा िे कहा-तुम्हें तो वहा ंजात ेमािो डि लगता है।

कृ

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निममला- हा ंबदहि, डि तो लगता है। ब्याह की गई तीि साल में आई,

अब की तो वहां उम्र ही खतम हो जायेगी, कफि कौि बलुाता है औि कौि आता है?

सधुा- आिे को क्या हुआ, जब जी चाहे चली आिा। वहां वकील साहब बहुत बेचिै हो िहे हैं। निममला- बहुत बेचिै, िात को शायद िींद ि आती हो। सधुा- बदहि, तुम्हािा कलेजा पत्थि का है। उिकी दशा देखकि तिस आता है। कहते थे, घि मे कोई पछूिे वाला िही,ं ि कोई लडका, ि बाला, ककससे जी बहलायें? जब से दसूिे मकाि में उठ आए हैं, बहुत दखुी िहते हैं। निममला- लडके तो ईश्वि के ददये दो-दो हैं। सधुा- उि दोिों की तो बडी लशकायत कित ेथे। जजयािाम तो अब बात ही िहीं सिुता-तुकी-बतुकी जवाब देता है। िहा छोटा, वह भी उसी के कहिे में है। बेचािे बड ेलडके की याद किके िोया किते हैं। निममला- जजयािाम तो शिीि ि था, वह बदमाशी कब से सीख गया? मेिी तो कोई बात ि टालता था, इशािे पि काम किता था। सधुा- क्या जािे बदहि, सिुा, कहता है, आप ही िे भयैा को जहि देकि माि डाला, आप हत्यािे हैं। कई बाि तुमसे वववाह कििे के ललए तािे दे चकुा है। ऐसी-ऐसी बातें कहता है कक वकील साहब िो पडत ेहैं। अिे, औि तो क्या कहंू, एक ददि पत्थि उठाकि मािि ेदौडा था। निममला िे गम्भीि चचन्ता में पडकि कहा- यह लडका तो बडा शतैाि निकला। उसे यह ककसिे कहा कक उसके भाई को उन्होंि ेजहि दे ददया है?

सधुा- वह तुम्ही ंसे ठीक होगा। निममला को यह िई चचन्ता पदैा हुई। अगि जजया की यही िंग है,

अपिे बाप से लडिे पि तैयाि िहता है, तो मझुसे क्यों दबिे लगा? वह िात को बडी देि तक इसी कफक्र मे डूबी िही। मंसािाम की आज उसे बहुत याद आई। उसके साथ जजन्दगी आिाम से कट जाती। इस लडके का जब अपिे वपता के सामिे ही वह हाल है, तो उिके पीछे उसके साथ कैसे निवामह होगा! घि हाथ से निकल ही गया। कुछ-ि-कुछ कजम अभी लसि पि होगा ही, आमदिी का यह हाल। ईश्ववि ही बेडा पाि लगायेंगे। आज पहली बाि निममला को बच्चों की कफक्र पदैा हुई। इस बेचािी का ि जािे क्या हाल होगा? ईश्वि िे यह ववपवत्त लसि डाल दी। मझु े तो इसकी जरुित ि थी।

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जन्म ही लेिा था, तो ककसी भाग्यवाि के घि जन्म लेती। बच्ची उसकी छाती से ललपटी हुई सो िही थी। माता िे उसको औि भी चचपटा ललया, मािो कोई उसके हाथ से उसे छीिे ललये जाता है।

निममला के पास ही सधुा की चािपाई भी थी। निमेला तो चचन्त्ज्ञ सागि मे गोता था िही थी औि सधुा मीठी िींद का आिन्द उठा िही थी। क्या उसे अपिे बालक की कफक्र सताती है? मतृ्य ुतो बढेू औि जवाि का भेद िहीं किती, कफिि सधुा को कोई चचन्ता क्यों िही ंसताती? उसे तो कभी भववष्य की चचन्ता से उदास िही ंदेखा। सहसा सधुा की िींद खुल गई। उसिे निममला को अभी तक जागत ेदेखा, तो बोली- अिे अभी तुम सोई िही?ं

निममला- िींद ही िही ंआती। सधुा- आंखें बन्द कि लो, आप ही िींद आ जायेगी। मैं तो चािपाई पि आत ेही मि-सी जाती हंू। वह जागते भी हैं, तो खबि िहीं होती। ि जाि ेमझु ेक्यों इतिी िींद आती है। शायद कोई िोग है। निममला- हा,ं बडा भािी िोग है। इसे िाज-िोग कहत ेहैं। डॉक्टि साहब से कहो-दवा शरुु कि दें। सधुा- तो आणखि जागकि क्या सोचू?ं कभी-कभी मकेै की याद आ जाती है, तो उस ददि जिा देि में आंख लगती है। निममला- डॉक्टि साहब की यादा िही ंआती?

सधुा- कभी िही,ं उिकी याद क्यों आये? जािती हंू कक टेनिस खेलकि आये होंगे, खािा खाया होगा औि आिाम से लेटे होंगे। निममला- लो, सोहि भी जाग गया। जब तुम जाग गईं

तो भला यह क्यों सोिे लगा?

सधुा- हां बदहि, इसकी अजीब आदत है। मेिे साथ सोता औि मेिे ही साथ जागता है। उस जन्म का कोई तपस्वी है। देखो, इसके माथे पि नतलक का कैसा निशाि है। बांहों पि भी ऐसे ही निशाि हैं। जरुि कोई तपस्वी है। निममला- तपस्वी लोग तो चन्दि-नतलक िहीं लगाते। उस जन्म का कोई धतूम पजुािी होगा। क्यों िे, त ूकहा ंका पजुािी था? बता?

सधुा- इसका ब्याह मैं बच्ची से करंुगी। निममला- चलो बदहि, गाली देती हो। बदहि से भी भाई का ब्याह होता है?

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सधुा- मैं तो करंुगी, चाहे कोई कुछ कहे। ऐसी सनु्दि बहू औि कहा ंपाऊंगी? जिा देखो तो बहि, इसकी देह कुछ गमम है या मझुके ही मालमू होती है। निममला ि ेसोहि का माथा छूकि कहा-िही-ंिही,ं देह गमम है। यह ज्वि कब आ गया! दधू तो पी िहा है ि?

सधुा- अभी सोया था, तब तो देह ठंडी थी। शायद सदी लग गई,

उढाकि सलुाये देती हंू। सबेिे तक ठीक हो जायेगा। सबेिा हुआ तो सोहि की दशा औि भी खिाब हो गई। उसकी िाक बहिे लगी औि बखुाि औि भी तजे हो गया। आंखें चढ गईं औि लसि झकु गया। ि वह हाथ-पिै दहलाता था, ि हंसता-बोलता था, बस, चपुचाप पडा था। ऐसा मालमू होता था कक उसे इस वक्त ककसी का बोलिा अच्छा िही ंलगता। कुछ-कुछ खांसी भी आिे लगी। अब तो सधुा घबिाई। निममला की भी िाय हुई कक डॉक्टि साहब को बलुाया जाये, लेककि उसकी बढूी माता िे कहा-डॉक्टि-हकीम साहब का यहा ंकुछ काम िहीं। साफ तो देख िही हंू। कक बच्च ेको िजि लग गई है। भला डॉक्टि

आकि क्या किेंगे?

सधुा- अम्माजंी, भला यहा ंिजि कौि लगा देगा? अभी तक तो बाहि कही ंगया भी िही।ं माता- िजि कोई लगाता िही ंबेटी, ककसी-ककसी आदमी की दीठ बिुी होती है, आप-ही-आप लग जाती है। कभी-कभी मा-ंबाप तक की िजि लग जाती है। जब से आया है, एक बाि भी िहीं िोया। चोंचले बच्चों को यही गनत होती है। मैं इसे हुमकत े देखकि डिी थी कक कुछ-ि-कुछ अनिि होिे वाला है। आंखें िहीं देखती हो, ककतिी चढ गई हैं। यही िजि की सबसे बडी पहचाि है।

बदुढया महिी औि पडोस की पंडडताइि िे इस कथि का अिमुोदि कि ददया। बस महंगू िे आकि बच्च े का मुंह देखा औि हंस कि बोला-मालककि, यह दीठ है औि िहीं। जिा पतली-पतली तीललया ं मंगवा दीजजए। भगवाि िे चाहा तो संझा तक बच्चा हंसिे लगेगा। सिकण्ड ेके पांच टुकड ेलाये गये। महगूं िे उन्हें बिाबि किके एक डोिे से बांध ददया औि कुछ बदुबदुाकि उसी पोले हाथों से पांच बाि सोहि का लसि सहलाया। अब जो देखा, तो पांचों तीललया ंछोटी-बडी हो गेई थी। सब

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िीयों यह कौतकु देखकि दंग िह गईं। अब िजि में ककसे सन्देह हो सकता था। महगूं िे कफि बच्च े को तीललयों से सहलािा शरुु ककया। अब की तीललया ंबिाबि हो गईं। केवल थोडा-सा अन्ति िह गया। यह सब इस बात का प्रमाण था कक िजि का असि अब थोडा-सा औि िह गया है। महग ूसबको ददलासा देकि शाम को कफि आि ेका वायदा किके चला गया। बालक की दशा ददि को औि खिाब हो गई। खांसी का जोि हो गया। शाम के समय महगूं िे आकिा कफि तीललयों का तमाशा ककया। इस वक्त पांचों तीललयों बिाबि निकलीं। िीया ं निजश्चत हो गईं लेककि सोहि को सािी िात खांसत े गुजिी। यहां तक कक कई बाि उसकी आंखें उलट गईं। सधुा औि निममला दोिों ि ेबठैकि सबिेा ककया। खैि, िात कुशल से कट गई। अब वदृ्वा माताजी िया िंग लाईं। महगूं िजि ि उताि सका, इसललए अब ककसी मौलवी से फंूक डलवािा जरुिी हो गया। सधुा कफि भी अपिे पनत को सचूिा ि दे सकी। मेहिी सोहि को एक चादि से लपेट कि एक मजस्जद में ले गई औि फंूक डलवा लाई, शाम को भी फंूक छोडी, पि सोहि ि ेलसि ि उठाया। िात आ गई, सधुा िे मि मे निश्चय ककया कक िात कुशल से बीतेगी, तो प्रात:काल पनत को ताि दूंगी।

लेककि िात कुशल से ि बीतिे पाई। आधी िात जात-ेजाते बच्चा हाथ से निकल गया। सधुा की जीि- सम्पवत्त देखत-ेदेखत ेउसके हाथों से नछि गई। वही जजसके वववाह का दो ददि पहले वविोद हो िहा था, आज सािे घि को रुला िहा है। जजसकी भोली-भाली सिूत देखकि माता की छाती फूल उठती थी, उसी को देखकि आज माता की छाती फटी जाती है। सािा घि सधुा को समझाता था, पि उसके आंस ूि थमते थे, सब्र ि होता था। सबसे बडा द:ुख इस बात का था का पनत को कौि मुंह ददखलाऊंगी! उन्हें खबि तक ि दी। िात ही को ताि दे ददया गया औि दसूिे ददि डॉक्टि लसन्हा िौ बजत-ेबजत ेमोटि पि आ पहंुच।े सधुा िे उिके आिे की खबि पाई, तो औि भी फूट-फूटकि िोिे लगी। बालक की जल-कक्रया हुई, डॉक्टि साहब कई बाि अन्दि आये, ककन्त ुसधुा उिके पास ि गई। उिके सामिे कैसे जाये? कौि मुंह ददखाये? उसिे अपिी िादािी से उिके जीवि का ित्न छीिकि दरिया में डाल ददया। अब उिके पास जात ेउसकी छाती के टुकड-ेटुकड ेहुए जात ेथे।

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बालक को उसकी गोद में देखकि पनत की आंखे चमक उठती थीं। बालक हुमककि वपता की गोद में चला जाता था। माता कफि बलुाती, तो वपता की छाती से चचपट जाता था औि लाख चमुिािे-दलुाििे पि भी बाप को गोद ि छोडता था। तब मा ंकहती थी- बडैा मतलबी है। आज वह ककसे गोद मे लेकि पनत के पास जायेगी? उसकी सिूी गोद देखकि कही ंवह चचल्लाकि िो ि पड।े पनत के सम्मखु जािे की अपेक्षा उसे मि जािा कही ंआसाि जाि पडता था। वह एक क्षण के ललए भी निममला को ि छोडती थी कक कहीं पनत से सामिा ि हो जाये। निममला ि ेकहा- बदहि, जो होिा था वह हो चकुा, अब उिसे कब तक भागती कफिोगी। िात ही को चले जायेंगे। अम्मा ंकहती थीं। सधुा से सजल िेत्रों से ताकत े हुए कहा- कौि मुंह लेकि उिके पास जाऊं? मझु ेडि लग िहा है कक उिके सामिे जात ेही मेिा पिैा ि थिामिे लगे औि मैं चगि पडू।ं निममला- चलो, मैं तुम्हािे साथ चलती हंू। तमु्हें संभाले िहंूगी। सधुा- मझु ेछोडकि भाग तो ि जाओगी?

निममला- िही-ंिही,ं भागूंगी िहीं। सधुा- मेिा कलेजा तो अभी से उमडा आता है। मैं इतिा घोि व्रजपाता होिे पि भी बठैी हंू, मझु ेयही आश्चयम हो िहा है। सोहि को वह बहुत प्याि कित ेथे बदहि। ि जािे उिके चचत्त की क्या दशा होगी। मैं उन्हें ढाढस क्या दूंगी, आप हो िोती िहंूगी। क्या िात ही को चले जायेंगे?

निममला- हा,ं अम्माजंी तो कहती थी छुट्टी िहीं ली है। दोिो सहेललयां मदामि ेकमिे की ओि चलीं, लेककि कमिे के द्वाि पि पहंुचकि सधुा िे निममला से ववदा कि ददया। अकेली कमिे मे दाणखल हुई। डॉक्टि साहब घबिा िहे थे कक ि जािे सधुा की क्या दशा हो िही है। भांनत-भांनत की शकंाएं मि मे आ िही थीं। जाि ेको तैयाि बठेै थे, लेककि जी ि चाहता था। जीवि शनू्य-सा मालमू होता था। मि-ही-मि कुढ िहे थे,

अगि ईश्वि को इतिी जल्दी यह पदाथम देकि छीि लेिा था, तो ददया ही क्यों था? उन्होंि े तो कभी सन्ताि के ललए ईश्वि से प्राथमिा ि की थी। वह आजन्म नि:सन्ताि िह सकत ेथे, पि सन्ताि पाकि उससे वचंचत हो जािा उन्हं असह्रा जाि पडता था। क्या सचमचु मिषु्य ईश्वि का णखलौिा है? यही मािव जीवि का महत्व है? यह केवल बालकों का घिौंदा है, जजसके बिि ेका

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ि कोई हेत ुहै ि बबगडिे का? कफि बालकों को भी तो अपिे घिौंदे से अपिी कागेज की िावों से, अपिी लकडी के घोडों से ममता होती है। अच्छे णखलौि ेका वह जाि के पीछे नछपाकि िखत ेहैं। अगि ईश्वि बालक ही है तो वह ववचचत्र बालक है। ककन्त ुबदुद्व तो ईश्चि का यह रुप स्वीकाि िहीं किती। अिन्त सवृि का कत्ताम उद्दण्ड बालक िहीं हो सकता है। हम उसे उि सािे गुणों से ववभवूषत कित ेहैं, जो हमािी बदुद्व का पहंुच से बाहि है। णखलाडीपि तो साउि महाि ्गणुों मे िही!ं क्या हंसत-ेखेलत ेबालकों का प्राण हि लेिा खेल है? क्या ईश्वि ऐसा पशैाचचक खेल खेलता है?

सहसा सधुा दबे-पांव कमिे में दाणखल हुई। डासॅक्टि साहब उठ खड ेहुए औि उसके समीप आकि बोले-तुम कहा ंथी, सधुा? मैं तमु्हािी िाह देख िहा था।

सधुा की आंखों से कमिा तैिता हुआ जाि पडा। पनत की गदमि मे हाथ डालकि उसिे उिकी छाती पि लसि िख ददया औि िोिे लगी, लेककि इस अश्र-ुप्रवाह में उसे असीम धयैम औि सांत्विा का अिभुव हो िहा था। पनत के वक्ष-स्थल से ललपटी हुई वह अपिे हृदय में एक ववचचत्र स्फूनतम औि बल का संचाि होत ेहुए पाती थी, मािो पवि से थिथिाता हुआ दीपक अंचल की आड में आ गया हो। डॉक्टि साहब िे िमणी के अश्र-ुलसचंचत कपोलों को दोिो हाथो में लेकि कहा-सधुा, तुम इतिा छोटा ददल क्यों किती हो? सोहि अपिे जीवि में जो कुछ कििे आया था, वह कि चकुा था, कफि वह क्यों बठैा िहता? जैसे कोई वकृ्ष जल औि प्रकाश से बढता है, लेककि पवि के प्रबल झोकों ही से सदुृढ होता है, उसी भांनत प्रणय भी द:ुख के आघातों ही से ववकास पाता है। खुशी के साथ हंसिेवाले बहुतेिे लमल जाते हैं, िंज में जो साथ िोये, वहि हमािा सच्चा लमत्र है। जजि पे्रलमयों को साथ िोिा िही ं िसीब हुआ, वे महुब्बत के मजे क्या जािें? सोहि की मतृ्य ुिे आज हमािे दै्वत को बबलकुल लमटा ददया। आज ही हमिे एक दसूिे का सच्चा स्वरुप देखा।;?! सधुा िे लससकत ेहुए कहा- मैं िजि के धोखे में थी। हाय! तुम उसका मुंह भी ि देखिे पाये। ि जािे इि सददिों उसे इतिी समझ कहां से आ गई थी। जब मझु ेिोते देखता, तो अपिे केि भलूकि मसु्किा देता। तीसिे ही ददि मिे लाडले की आंख बन्द हो गई। कुछ दवा-दपमि भी ि कििे पाईं।

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यह कहत-ेकहते सधुा के आंस ूकफि उमड आये। डॉक्टि लसन्हा िे उसे सीिे से लगाकि करुणा से कांपती हुई आवाज में कहा-वप्रये, आज तक कोई ऐसा बालक या वदृ्व ि मिा होगा, जजससे घिवालों की दवा-दपमि की लालसा पिूी हो गई। सधुा- निममला िे मेिी बडी मदद की। मैं तो एकाध झपकी ले भी लेती थी, पि उसकी आंखें िहीं झपकी। िात-िात ललये बठैी या टहलती िहती थी। उसके अहसाि कभी ि भलंूगी। क्या तुम आज ही जा िहे हो?

डॉक्टि- हा,ं छुट्टी लेिे का मौका ि था। लसववल सजमि लशकाि खेलि ेगया हुआ था। सधुा- यह सब हमेशा लशकाि ही खेला किते हैं?

डॉक्टि- िाजाओं को औि काम ही क्या है?

सधुा- मैं तो आज ि जािे दूंगी। डॉक्टि- जी तो मेिा भी िहीं चाहता। सधुा- तो मत जाओ, ताि दे दो। मैं भी तुम्हािे साथ चलूगंी। निममला को भी लेती चलूगंी। सधुा वहां से लौटी, तो उसके हृदय का बोझ हलका हो गया था। पनत की पे्रमपणूाम कोमल वाणी िे उसके सािे शोक औि संताप का हिण कि ललया था। पे्रम में असीम ववश्वास है, असीम धयैम है औि असीम बल है।

अठािह

ब हमािे ऊपि कोई बडी ववपवत्त आ पडती है, तो उससे हमें केवल द:ुख ही िही ंहोता, हमें दसूिों के तािे भी सहिे पडत ेहैं। जिता को

हमािे ऊपि दटप्पणणयों कििे का वह सअुवसि लमल जाता है, जजसके ललए वह हमेशा बेचिै िहती है। मंसािाम क्या मिा, मािों समाज को उि पि आवाजें कसिे का बहाि लमल गया। भीति की बातें कौि जािे, प्रत्यक्ष बात यह थी कक यह सब सौतेली मां की किततू है चािों तिफ यही चचाम थी, ईश्वि िे किे लडकों को सौतेली मा ं से पाला पड।े जजसे अपिा बिा-बिाया घि उजाडिा हो, अपिे प्यािे बच्चों की गदमि पि छुिी फेििी हो, वह बच्चों के िहत ेहुए अपिा दसूिा ब्याह किे। ऐसा कभी िही ंदेखा कक सौत के आि ेपि घि तबाह ि हो गया हो, वही बाप जो बच्चों पि जाि देता था सौत के आत े

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ही उन्ही ंबच्चों का दशु्मि हो जाता है, उसकी मनत ही बदल जाती है। ऐसी देवी ि ेजैन्म ही िही ंललया, जजसि ेसौत के बच्चों का अपिा समझा हो। मजुश्कल यह थी कक लोग दटप्पणणयों पि सन्तुि ि होते थे। कुछ ऐसे सज्जि भी थे, जजन्हें अब जजयािाम औि लसयािाम से ववशषे स्िेह हो गया था। वे दािों बालकों से बडी सहािभुनूत प्रकट कित,े यहां तक कक दो-सएक मदहलाएं तो उसकी माता के शील औि स्वभाव को याद किे आंस ू बहािे लगती थी।ं हाय-हाय! बेचािी क्या जािती थी कक उसके मिते ही लाडलों की यह ददुमशा होगी! अब दधू-मक्खि काहे को लमलता होगा! जजयािाम कहता- लमलता क्यों िही?ं

मदहला कहती- लमलता है! अिे बेटा, लमलिा भी कई तिह का होता है। पािीवाल दधू टके सेि का मंगाकि िख ददया, वपयों चाहे ि वपयो, कौि पछूता है? िही ंतो बेचािी िौकि से दधू दहुवा कि मंगवाती थी। वह तो चहेिा ही कहे देता है। दधू की सिूत नछपी िही ंिहती, वह सिूत ही िही ंिही ं जजया को अपिी मा ंके समय के दधू का स्वाद तो याद था सिही,ं जो इस आके्षप का उत्ति देता औि ि उस समय की अपिी सिूत ही याद थी, चपु िह जाता। इि शभुाकांक्षाओं का असि भी पडिा स्वाभाववक था। जजयािाम को अपिे घिवालों से चचढ होती जाती थी। मुंशीजी मकाि िीलामी हो जोिे के बाद दसूिे घि में उठ आये, तो ककिाये की कफक्र हुई। निममला िे मक्खि बन्द कि ददया। वह आमदिी हा िही ंिही, तो खचम कैसे िहता। दोिों कहाि अलगे कि ददये गये। जजयािाम को यह कति-ब्योंत बिुी लगती थी। जब निममला मकेै चली गयी, तो मुंशीजी िे दधू भी बन्द कि ददया। िवजात कन्या की चचिता अभी से उिके लसि पि सवाि हा गयी थी। लसयािाम ि ेबबगडकि कहा- दधू बन्द िहिे से तो आपका महल बि िहा होगा, भोजि भी बंद कि दीजजए! मुंशीजी- दधू पीिे का शौक है, तो जाकि दहुा क्यों िही लात?े पािी के पसेै तो मझुसे ि ददये जायेंगे। जजयािाम- मैं दधू दहुािे जाऊं, कोई स्कूल का लडका देख ले तब?

मुंशीजी- तब कुछ िहीं। कह देिा अपिे ललए दधू ललए जाता हंू। दधू लािा कोई चोिी िही ंहै। जजयािाम- चोिी िहीं है! आप ही को कोई दधू लाते देख ले, तो आपको शमम ि आयेगी।

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मुंशीजी- बबल्कुल िहीं। मैंिे तो इन्हीं हाथों से पािी खींचा है, अिाज की गठरिया ंलाया हंू। मेिे बाप लखपनत िहीं थे।

जजयािाम-मेिे बाप तो गिीब िहीं, मैं क्यों दधू दहुािे जाऊं? आणखि आपिे कहािों को क्यों जवाब दे ददया?

मंशीजी- क्या तुम्हें इतिा भी िही ं सझूता कक मेिी आमदिी अब पहली सी िहीं िही इतिे िादाि तो िही ंहो?

जजयािाम- आणखि आपकी आमदिी क्यों कम हो गयी?

मुंशीजी- जब तुम्हें अकल ही िहीं है, तो क्या समझाऊं। यहा ंजजन्दगी से तंगे आ गया हंू, मकुदमें कौि ले औि ले भी तो तैयाि कौि किे? वह ददल ही िही ं िहा। अब तो जजंदगी के ददि पिेू कि िहा हंू। सािे अिमाि लल्ल ूके साथ चले गये। जजयािाम- अपिे ही हाथों ि। मुंशीजी िे चीखकि कहा- अिे अहमक! यह ईश्वि की मजी थी। अपिे हाथों कोई अपिा गला काटता है। जजयािाम- ईश्वि तो आपका वववाह कििे ि आया था। मंशीजी अब जब्त ि कि सके, लाल-लाल आंखें निकालक बोले-क्या तुम आज लडिे के ललए कमि बांधकि आये हो? आणखि ककस बबित ेपि? मेिी िोदटयां तो िही ंचलाते? जब इस काबबल हो जािा, मझु ेउपदेश देिा। तब मैं सिु लूंगा। अभी तुमको मझु ेउपदेश देिे का अचधकाि िहीं है। कुछ ददिों अदब औि तमीज़ सीखो। तुम मेिे सलाहकाि िहीं हो कक मैं जो काम करंु, उसमें तुमसे सलाह लूं। मेिी पदैा की हुई दौलत है, उसे जैसे चाहंू खचम कि सकता हंू। तुमको जबाि खोलिे का भी हक िही ंहै। अगि कफि तुमिे मझुसे बेअदबी की, तो ितीजा बिुा होगा। जब मंसािाम ऐसा ित्न खोकि मिे प्राण ि निकले, तो तमु्हािे बगिै मैं मि ि जाऊंगा, समझ गये?

यह कडी फटकाि पाकि भी जजयािाम वहा ंसे ि टला। नि:शकं भाव से बोला-तो आप क्या चाहते हैं कक हमें चाहे ककतिी ही तकलीफ हो मुंह ि खोले? मझुसे तो यह ि होगा। भाई साहब को अदब औि तमीज का जो इिाम लमला, उसकी मझु ेभखू िहीं। मझुमें जहि खाकि प्राण देिे की दहम्मत िहीं। ऐसे अदब को दिू से दंडवत किता हंू। मुंशीजी- तुम्हें ऐसी बातें कित ेहुए शमम िहीं आती?

जजयािाम- लडके अपिे बजुगुों ही की िकल कित ेहैं।

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मुंशीजी का क्रोध शान्त हो गया। जजयािाम पि उसका कुछ भी असि ि होगा, इसका उन्हें यकीि हो गया। उठकि टहलिे चले गये। आज उन्हें सचूिा लमल गयी के इस घि का शीघ्र ही सवमिाश होिे वाला हैं। उस ददि से वपता औि पतु्र मे ककसी ि ककसी बात पि िोज ही एक झपट हो जाती है। मुंशीजी ज्यों-त्यों तिह देत े थे, जजयािाम औि भी शिे होता जाता था। एक ददि जजयािाम िे रुजक्मणी से यहां तक कह डाला- बाप हैं, यह समझकि छोड देता हंू, िहीं तो मेिे ऐसे-ऐसे साथी हैं कक चाहंू तो भिे बाजाि मे वपटवा दूं। रुजक्मणी िे मुंशीजी से कह ददया। मुंशीजी िे प्रकट रुप से तो बेपिवाही ही ददखायी, पि उिके मि में शंका समा गया। शाम को सिै कििा छोड ददया। यह ियी चचन्ता सवाि हो गयी। इसी भय से निममला को भी ि लात ेथे कक शतैाि उसके साथ भी यही बतामव किेगा। जजयािाम एक बाि दबी जबाि में कह भी चकुा था- देखूं, अबकी कैसे इस घि में आती है? मुंशीजी भी खूब समझ गये थे कक मैं इसका कुछ भी िही ंकि सकता। कोई बाहि का आदमी होता, तो उसे पलुलस औि काििू के लशजें में कसते। अपिे लडके को क्या किें? सच कहा है- आदमी हािता है, तो अपिे लडकों ही से। एक ददि डॉक्टि लसन्हा िे जजयािाम को बलुाकि समझािा शरुु ककया। जजयािाम उिका अदब किता था। चपुचाप बठैा सिुता िहा। जब डॉक्टि साहब िे अन्त में पछूा, आणखि तुम चाहते क्या हो? तो वह बोला- साफ-साफ कह दूं? बिूा तो ि मानिएगा?

लसन्हा- िही,ं जो कुछ तुम्हािे ददल में हो साफ-साफ कह दो।

जजयािाम- तो सनुिए, जब से भयैा मिे हैं, मझु े वपताजी की सिूत देखकि क्रोध आता है। मझु ेऐसा मालमू होता है कक इन्ही ंिे भयैा की हत्या की है औि एक ददि मौका पाकि हम दोिों भाइयों को भी हत्या किेंगे। अगि उिकी यह इच्छा ि होती तो ब्याह ही क्यों किते?

डॉक्टि साहब िे बडी मजुश्कल से हंसी िोककि कहा- तुम्हािी हत्या कििे के ललए उन्हें ब्याह किि ेकी क्या जरुित थी, यह बात मेिी समझ में िहीं आयी। बबिा वववाह ककये भी तो वह हत्या कि सकते थे। जजयािाम- कभी िही,ं उस वक्त तो उिका ददल ही कुछ औि था, हम लोगों पि जाि देते थे अब मुंह तके िहीं देखिा चाहत।े उिकी यही इच्छा है कक उि दोिों प्राणणयों के लसवा घि में औि कोई ि िहे। अब जसे लडके होंगे उिक िास्ते से हम लोगों का हटा देिा चाहत े है। यही उि दोिों आदलमयों

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की ददली मंशा है। हमें तिह-तिह की तकलीफें देकि भगा देिा चाहत े हैं। इसीललए आजकल मकुदमे िही ंलेते। हम दोिों भाई आज मि जायें, तो कफि देणखए कैसी बहाि होती है। डॉक्टि- अगि तुम्हें भागिा ही होता, तो कोई इल्जाम लगाकि घि से निकल ि देत?े

जजयािाम- इसके ललए पहले ही से तैयाि बठैा हंू। डॉक्टि- सिुू,ं क्या तैयािी कही है?

जजयािाम- जब मौका आयेगा, देख लीजजएगा। यह कहकि जजयिाम चलता हुआ। डॉक्टि लसन्हा िे बहुत पकुािा, पि

उसिे कफि कि देखा भी िहीं। कई ददि के बाद डॉक्टि साहब की जजयािाम से कफि मलुाकात हो गयी। डॉक्टि साहब लसिेमा के प्रेमी थे औि जजयािाम की तो जाि ही लसिेमा में बसती थी। डॉक्टि साहब िे लसिेमा पि आलोचिा किके जजयािाम को बातों में लगा ललया औि अपिे घि लाये। भोजि का समय आ गया था,, दोिों आदमी साथ ही भोजि कििे बठेै। जजयािाम को वहां भोजि बहुत स्वाददि लगा, बोल- मेिे यहां तो जब से महािाज अलग हुआ खािे का मजा ही जाता िहा। बआुजी पक्का वषै्णवी भोजि बिाती हैं। जबिदस्ती खा लेता हंू, पि खाि ेकी तिफ ताकिे को जी िहीं चाहता। डॉक्टि- मेिे यहां तो जब घि में खािा पकता है, तो इसे कहीं स्वाददि होता है। तुम्हािी बआुजी प्याज-लहसिु ि छूती होंगी?

जजयािाम- हां साहब, उबालकि िख देती हैं। लालाली को इसकी पिवाह ही िही ंकक कोई खाता है या िही।ं इसीललए तो महािाज को अलग ककया है। अगि रुपये िहीं है, तो गहिे कहा ंसे बिते हैं?

डॉक्टि- यह बात िही ंहै जजयािाम, उिकी आमदिी सचमचु बहुत कम हो गयी है। तुम उन्हें बहुत ददक कित ेहो। जजयािाम- (हंसकि) मैं उन्हें ददक किता हंू? मझुससे कसम ले लीजजए,

जो कभी उिसे बोलता भी हंू। मझु ेबदिाम कििे का उन्होंिे बीडा उठा ललया है। बेसबब, बेवजह पीछे पड ेिहत ेहैं। यहा ंतक कक मेिे दोस्तों से भी उन्हें चचढ है। आप ही सोचचए, दोस्तों के बगिै कोई जजन्दा िह सकता है? मैं कोई लचु्चा िहीं हू कक लचु्चों की सोहबत िखूं, मगि आप दोस्तों ही के पीछे मझु ेिोज सताया किते हैं। कल तो मैंिे साफ कह ददया- मेिे दोस्त घि

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आयेंगे, ककसी को अच्छा लगे या बिुा। जिाब, कोई हो, हि वक्त की धौंस ही ंसह सकता। डॉक्टि- मझु ेतो भाई, उि पि बडी दया आती है। यह जमािा उिके आिाम कििे का था। एक तो बढुापा, उस पि जवाि बेटे का शोक, स्वास््य भी अच्छा िहीं। ऐसा आदमी क्या कि सकता है? वह जो कुछ थोडा-बहुत कित ेहैं, वही बहुत है। तुम अभी औि कुछ िही ंकि सकत,े तो कम-से-कम अपिे आचिण से तो उन्हें प्रसन्ि िख सकत ेहो। बडु्ढों को प्रसन्ि कििा बहुत कदठि काम िहीं। यकीि मािो, तुम्हािा हंसकि बोलिा ही उन्हें खुश कििे को काफी है। इतिा पछूिे में तमु्हािा क्या खचम होता है। बाबजूी, आपकी तबीयत कैसी है? वह तुम्हािी यह उद्दण्डता देखकि मि-ही-मि कुढत ेिहत ेहैं। मैं तुमसे सच कहता हंू, कई बाि िो चकेु हैं। उन्होिें माि लो शादी कििे में गलती की। इसे वह भी स्वीकाि कित ेहैं, लेककि तुम अपिे कत्तमव्य से क्यों मुंह मोडत ेहो? वह तुम्हािे वपता है, तुम्हें उिकी सेवा कििी चादहए। एक बात भी ऐसी मुंह से ि निकालिी चादहए, जजससे उिका ददल दखेु। उन्हें यह खयाल कििे का मौका ही क्यों दे कक सब मेिी कमाई खािे वाले हैं, बात पछूिे वाला कोई िहीं। मेिी उम्र तुमसे कही ंज्यादा है, जजयािाम, पि आज तक मैंिे अपिे वपताजी की ककसी बात का जवाब िही ंददया। वह आज भी मझु ेडांटत ेहै, लसि झकुाकि सिु लेता हंू। जािता हंू, वह जो कुछ कहत ेहैं, मेिे भले ही को कहत ेहैं। माता-वपता से बढकि हमािा दहतैषी औि कौि हो सकता है? उसके ऋण से कौि मकु्त हो सकता है?

जजयािाम बठैा िोता िहा। अभी उसके सद्भावों का सम्पणूमत: लोप ि हुआ था, अपिी दजुमिता उसे साफ िजि आ िही थी। इतिी ग्लानि उसे बहुत ददिों से ि आयी थी। िोकि डॉक्टि साहब से कहा- मैं बहुत लजज्जत हंू। दसूिों के बहकािे में आ गया। अब आप मेिी जिा भी लशकयत ि सिुेंगे। आप वपताजी से मेिे अपिाध क्षमा कि दीजजए। मैं सचमचु बडा अभागा हंू। उन्हें मैंिे बहुत सताया। उिसे कदहए- मेिे अपिाध क्षमा कि दें, िहीं मैं मुंह में काललख लगाकि कही ंनिकल जाऊंगा, डूब मरंुगा। डॉक्टि साहब अपिी उपदेश-कुशलता पि फूले ि समाये। जजयािाम को गले लगाकि ववदा ककया।

जजयािाम घि पहंुचा, तो ग्यािह बज गये थे। मुंशीजी भोजि किे अभी बाहि आये थे। उसे देखत ेही बोले- जािते हो कै बजे है? बािह का वक्त है।

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जजयािाम ि ेबडी िम्रता से कहा- डॉक्टि लसन्हा लमल गये। उिके साथ उिके घि तक चला गया। उन्होंिे खािे के ललए जजद कक, मजबिूि खािा पडा। इसी से देि हो गयी। मुंशीज- डॉक्टि लसन्हा से दखुड ेिोिे गये होंगे या औि कोई काम था। जजयािाम की िम्रता का चौथा भाग उड गय, बोला- दखुड ेिोिे की मेिी आदत िही ंहै। मुंशीजी- जिा भी िही,ं तुम्हािे मुंह मे तो जबाि ही िहीं। मझुसे जो लोग तुम्हािी बातें किते हैं, वह गढा कित ेहोंगे?

जजयािाम- औि ददिों की मैं िही ंकहता, लेककि आज डॉक्टि लसन्हा के यहां मैंिे कोई बात ऐसी िहीं की, जो इस वक्त आपके सामिे ि कि सकंू। मुंशीजी- बडी खुशी की बात है। बेहद खशुी हुई। आज से गुरुदीक्षा ले ली है क्या?

जजयािाम की िम्रता का एक चतुथािंश औि गायब हो गया। लसि उठाकि बोला- आदमी बबिा गुरुदीक्षा ललए हुए भी अपिी बिुाइयों पि लजज्जत हो सकता है। अपािा सधुाि कििे के ललए गुरुपन्त्र कोई जरुिी चीज िहीं।

मुंशीजी- अब तो लचु्च ेि जमा होंगे?

जजयािाम- आप ककसी को लचु्चा क्यों कहते हैं, जब तक ऐसा कहिे के ललए आपके पास कोई प्रमाण िहीं?

मुंशीजी- तुम्हािे दोस्त सब लचु्च-ेलफंगे हैं। एक भी भला आदमी िही। मैं तुमसे कई बाि कह चकुा कक उन्हें यहा ंमत जमा ककया किोख ्पि तुमिे सिुा िहीं। आज में आणखि बाि कहे देता हंू कक अगि तुमिे उि शोहदों को जमा ककया, तो मझुो पलुलस की सहायता लेिी पडगेी। जजयािाम की िम्रता का एक चतुथािंश औि गायब हो गया। फडककाि बोला- अच्छी बात है, पलुलस की सहायता लीजजए। देखें क्या किती है? मेिे दोस्तों में आधे से ज्यादा पलुलस के अफसिों ही के बेटे हैं। जब आप ही मेिा सधुाि कििे पि तुले हुए है, तो मैं व्यथम क्यों कि उठाऊं?

यह कहता हुआ जजयािाम अपिे कमिे मे चला गया औि एक क्षण के बाद हािमोनिया के मीठे स्विों की आवाज बाहि आि ेलगी।

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सहृदयता का जलया हुआ दीपक निदमय व्यंग्य के एक झोंके से बझु गया। अडा हुआ घोडा चमुकािािे से जोि माििे लगा था, पि हण्टि पडत ेही कफि अड गया औि गाडी की पीछे ढकेलिे लगा।

उन्िीस

बकी सधुा के साथ निममला को भी आिा पडा। वह तो मकेै में कुछ ददि औि िहिा चाहती थी, लेककि शोकातुि सधुा अकेले कैसे िही!

उसको आणखि आिा ही पडा। रुजक्मणी िे भूंगी से कहा- देखती है, बहू मकेै से कैसा निखिकि आयी है! भूंगी िे कहा- दीदी, मां के हाथ की िोदटया ंलडककयों को बहुत अच्छी लगती है। रुजक्मणी- ठीक कहती है भूगंी, णखलािा तो बस मां ही जािती है। निममला को ऐसा मालमू हुआ कक घि का कोई आदमी उसके आिे से खुश िहीं। मुंशीजी िे खुशी तो बहुत ददखाई, पि हृदयगत चचिता को ि नछपा सके। बच्ची का िाम सधुा िे आशा िख ददया था। वह आशा की मनूतम-सी थी भी। देखकि सािी चचन्ता भाग जाती थी। मुंशीजी िे उसे गोद में लेिा चाहा, तो िोिे लगी, दौडकि मां से ललपट गयी, मािो वपता को पहचािती ही िहीं। मुंशीजी िे लमठाइयों से उसे पिचािा चाहा। घि में कोई िौकि तो था िही,ं जाकि लसयािाम से दो आि ेकी लमठाइया ंलािे को कहा। जजयिाम भी बठैा हुआ था। बोल उठा- हम लोगों के ललए तो कभी लमठाइया ंिहीं आतीं। मंशीजी िे झुंझलाकि कहा- तुम लोग बच्च ेिही ंहो। जजयािाम- औि क्या बढेू हैं? लमठाइया ंमंगवाकि िख दीजजए, तो मालमू हो कक बच्च ेहैं या बढेू। निकाललए चाि आिा औि आशा के बदौलत हमािे िसीब भी जागें। मुंशीजी- मेिे पास इस वक्त पसेै िही ंहै। जाओ लसया, जल्द जािा।

जजयािाम- लसया िही ंजायेगा। ककसी का गुलाम िहीं है। आशा अपिे बाप की बेटी है, तो वह भी अपिे बाप का बेटा है। मुंशीजी- क्या फजजू की बातें किते हो। िन्ही-ंसी बच्ची की बिाबिी कित ेतुम्हें शमम िही आती? जाओ लसयािाम, ये पसेै लो।

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जजयािाम- मत जािा लसया! तुम ककसी के िौकि िहीं हो। लसया बडी दवुवधा में पड गया। ककसका कहिा मािे? अन्त में उसिे जजयािाम का कहिा माििे का निश्चय ककया। बाप ज्यादा-से-ज्यादा घडुक देंगे, जजया तो मािेगा, कफि वह ककसके पास फरियाद लेकि जायेगा। बोला- मैं ि जाऊंगा। मुंशीजी िे धमकाकि कहा- अच्छा, तो मेिे पास कफि कोई चीज मांगि ेमत आिा। मुंशीजी खुद बाजाि चले गये औि एक रुपये की लमठाई लेकि लौटे। दो आिे की लमठाई मांगत ेहुए उन्हें शमम आयी। हलवाई उन्हें पहचािता था। ददल में क्या कहेगा?

लमठाई ललए हुए मुशंीजी अन्दि चले गये। लसयािाम िे लमठाई का बडा-सा दोिा देखा, तो बाप का कहिा ि माििे का उसे दखु हुआ। अब वह ककस मुंह से लमठाई लेिे अन्द जायेगा। बडी भलू हुई। वह मि-ही-मि जजयािाम को चोटों की चोट औि लमठाई की लमठास में तुलिा कििे लगा। सहसा भूंगी िे दो तश्तरिया ंदोिो के सामिे लाकि िख दीं। जजयािाम िे बबगडकि कहा- इसे उठा ले जा! भूंगी- काहे को बबगडता हो बाब ूक्या लमठाई अच्छी िही ंलगती?

जजयािाम- लमठाई आशा के ललए आयी है, हमािे ललए िहीं आयी? ले जा, िही ंतो सडक पि फें क दूंगा। हम तो पसेै-पसेै के ललए िटते िहत ेह। औ यहा ंरुपये की लमठाई आती है। भूंगी- तुम ले लो लसया बाब,ू यह ि लेंगे ि सहीं।

लसयािाम ि ेडिते-डिते हाथ बढाया था कक जजयािाम ि ेडांटकि कहा- मत छूिा लमठाई, िही ंतो हाथ तोडकि िख दूंगा। लालची कही ंका! लसयािाम यह धडुकी सिुकि सहम उठा, लमठाई खािे की दहम्मत ि पडी। निममला िे यह कथा सिुी, तो दोिों लडकों को मिािे चली। मुंशजी िे कडी कसम िख दी।

निममला- आप समझत ेिही ंहै। यह सािा गसु्सा मझु पि है। मुंशीजी- गुस्ताख हो गया है। इस खयाल से कोई सख्ती िही ंकिता कक लोग कहेंगे, बबिा मा ंके बच्चों को सतात ेहैं, िहीं तो सािी शिाित घडी भि में निकाल दूं।

निममला- इसी बदिामी का तो मझु ेडि है।

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मुंशीजी- अब ि डरंुगा, जजसके जी में जो आये कहे। निममला- पहले तो ये ऐसे ि थे। मुंशीजी- अजी, कहता है कक आपके लडके मौजूद थे, आपिे शादी क्यों की! यह कहत ेभी इसे संकोच िहीं हाता कक आप लोगों िे मंसािाम को ववष दे ददया। लडका िही ंहै, शत्र ुहै। जजयािाम द्वाि पि नछपकि खडा था। िी-परुुष मे लमठाई के ववषय मे क्या बातें होती हैं, यही सिुिे वह आया था। मुंशीजी का अजन्तम वाक्य सिुकि उससे ि िहा गया। बोल उठा- शत्र ुि होता, तो आप उसके पीछे क्यों पडत?े आप जो इस वक्त कि हिे हैं, वह मैं बहुत पहले समझ ेबठैा हंू। भयैा ि समझ थे, धोखा ख गये। हमािे साथ आपकी दाला ि गलेगी। सािा जमािा कह िहा है कक भाई साहब को जहि ददया गया है। मैं कहता हंू तो आपको क्यों गुस्सा आता है?

निममला तो सन्िाटे में आ गयी। मालमू हुआ, ककसी ि ेउसकी देह पि अंगािे डाल ददये। मंशजी िे डांटकि जजयािाम को चपु किािा चाहा, जजयािाम नि:शं खडा ईंट का जवाब पत्थि से देता िहा। यहा ंतक कक निममला को भी उस पि क्रोध आ गया। यह कल का छोकिा, ककसी काम का ि काज का, यो खडा टिाम िहा है, जैसे घि भि का पालि-पोषण यही किता हो। त्योंरिया ंचढाकि बोली- बस, अब बहुत हुआ जजयािाम, मालमू हो गया, तुम बड ेलायक हो, बाहि जाकि बठैो। मुंशीजी अब तक तो कुछ दब-दबकि बोलते िहे, निममला की शह पाई तो ददल बढ गया। दांत पीसकि लपके औि इसके पहले कक निममला उिके हाथ पकड सकें , एक थप्पड चला ही ददया। थप्पड निममला के मुंह पि पडा, वही सामिे पडी। माथा चकिा गया। मुंशीजी िे सखेू हाथों में इतिी शडक्त है,

इसका वह अिमुाि ि कि सकती थी। लसि पकडकि बठै गयी। मुंशीजी का क्रोध औि भी भडक उठा, कफि घूंसा चलाया पि अबकी जजयािाम िे उिका हाथ पकड ललया औि पीछे ढकेलकि बोला- दिू से बातें कीजजए, क्यांेे िाहक अपिी बेइज्जती किवाते हैं? अम्माजंी का ललहाज कि िहा हंू, िहीं तो ददखा देता।

यह कहता हुआ वह बाहि चला गया। मुंशीजी संज्ञा-शनू्य से खड ेिहे। इस वक्त अगि जजयािाम पि दैवी वज्र चगि पडता, तो शायद उन्हें हाददमक

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आिन्द होता। जजस पतु्र का कभी गोद में लेकि निहाल हो जाते थे, उसी के प्रनत आज भानंत-भांनत की दषु्कल्पिाएं मि में आ िही थी।ं रुजक्मणी अब तक तो अपिी कोठिी में थी। अब आकि बोली-बेटा आपिे बिाबि का हो जाये तो उस पि हाथ ि छोडिा चादहए। मुंशीजी िे ओंठ चबाकि कहा- मैं इसे घि से निकालकि छोडूगंा। भीख मांगे या चोिी किे, मझुसे कोई मतलब िहीं। रुजक्मणी- िाक ककसकी कटेगी?

मुंशीजी- इसकी चचन्ता िहीं। निममला- मैं जािती कक मेिे आिे से यह तुफाि खडा हो जायेगा, तो भलूकि भी ि आती। अब भी भला है, मझु ेभेज दीजजए। इस घि में मझुसे ि िहा जायेगा। रुजक्मणी- तुम्हािा बहुत ललहाज किता है बहू, िही ंतो आज अिथम ही हो जाता। निममला- अब औि क्या अिथम होगा दीदीजी? मैं तो फंूक-फंूककि पांव िखती हंू, कफि भी अपयश लग ही जाता है। अभी घि में पावं िखत ेदेि िही ंहुई औि यह हाल हो गेया। ईश्वि ही कुशल किे। िात को भोजि किि ेकोई ि उठा, अकेले मुंशीजी िे खाया। निममला को आज ियी चचन्ता हो गयी- जीवि कैसे पाि लगेगा? अपिा ही पेट होता तो ववशषे चचन्ता ि थी। अब तो एक ियी ववपवत्त गले पड गयी थी। वह सोच िही थी- मेिी बच्ची के भाग्य में क्या ललखा है िाम?

बीस

न्ता में िींद कब आती है? निममला चािपाई पि किवटें बदल िही थी। ककतिा चाहती थी कक िींद आ जाये, पि िींद ि ेि आिे की

कसम सी खा ली थी। चचिाग बझुा ददया था, णखडकी के दिवाजे खोल ददये थे, दटक-दटक कििे वाली घडी भी दसूिे कमिे में िख आयीय थी, पि िींद का िाम था। जजतिी बातें सोचिी थी,ं सब सोच चकुी, चचन्ताओं का भी अन्त हो गया, पि पलकें ि झपकी।ं तब उसिे कफि लमै्प जलाया औि एक पसु्तक पढिे लगी। दो-चाि ही पषृ्ठ पढे होंगे कक झपकी आ गयी। ककताब खुली िह गयी।

चच

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सहसा जजयािाम िे कमिे में कदम िखा। उसके पांव थि-थि कांप िहे थे। उसि ेकमिे मे ऊपि-िीच ेदेखा। निममला सोई हुई थी, उसके लसिहाि ेताक पि, एक छोटा-सा पीतल का सन्दकूचा िक्खा हुआ था। जजयािाम दबे पांव गया, धीिे से सन्दकूचा उतािा औि बडी तजेी से कमिे के बाहि निकला। उसी वक्त निममला की आंखें खुल गयी।ं चौंककि उठ खडी हुई। द्वाि पि आकि देखा। कलेजा धक् से हो गया। क्या यह जजयािाम है? मेिे केमिे मे क्या कििे आया था। कही ंमझु ेधोखा तो िही ंहुआ? शायद दीदीजी के कमिे से आया हो। यहां उसका काम ही क्या था? शायद मझुसे कुछ कहिे आया हो, लेककि इस वक्त क्या कहिे आया होगा? इसकी िीयत क्या है? उसका ददल कांप उठा। मुंशीजी ऊपि छत पि सो िहे थे। मुंडिे ि होिे के कािण निममला ऊपि ि सो सकती थी। उसिे सोचा चलकि उन्हें जगाऊं, पि जाि ेकी दहम्मत ि पडी। शक्की आदमी है, ि जािे क्या समझ बठैें औि क्या कििे पि तैयाि हो जायें? आकि कफि पसु्तक पढिे लगी। सबेिे पछूिे पि आप ही मालमू हो जायेगा। कौि जािे मझु े धोखा ही हुआ हो। िींद मे कभी-कभी धोखा हो जाता है, लेककि सबेिे पछूिे का निश्चय कि भी उसे कफि िींद िहीं आयी।

सबेिे वह जलपाि लेकि स्वय ं जजयािाम के पास गयी, तो वह उसे देखकि चौंक पडा। िोज तो भूंगी आती थी आज यह क्यों आ िही है? निममला की ओि ताकिे की उसकी दहम्मत ि पडी। निममला िे उसकी ओि ववश्वासपणूम िेत्रों से देखकि पछूा- िात को तुम मेिे कमिे मे गये थे?

जजयािाम ि ेववस्मय ददखाकि कहा- मैं? भला मैं िात को क्या कििे जाता? क्या कोई गया था?

निममला ि ेइस भाव से कहा, मािो उसे उसकी बात का पिूी ववश्वास हो गया- हा,ं मझु ेऐसा मालमू हुआ कक कोई मेिे कमिे से निकला। मैंिे उसका मुंह तो ि देखा, पि उसकी पीठ देखकि अिमुाि ककया कक शयद तुम ककसी काम से आये हो। इसका पता कैसे चले कौि था? कोई था जरुि इसमें कोई सन्देह िही।ं जजयािाम अपिे को नििपिाध लसद्व किि ेकी चिेा कि कहिे लगा- म।ै तो िात को चथयेटि देखिे चला गया था। वहा ंसे लौटा तो एक लमत्र के घि लेट िहा। थोडी देि हुई लौटा हंू। मेिे साथ औि भी कई लमत्र थे। जजससे जी

133

चाहे, पछू लें। हा,ं भाई मैं बहुत डिता हंू। ऐसा ि हो, कोई चीज गायब हो गयी, तो मेिा िाम ेलगे। चोि को तो कोई पकड िही ंसकता, मेिे मत्थे जायेगी। बाबजूी को आप जािती हैं। मझुो माििे दौडेंगे।

निममला- तुम्हािा िाम क्यों लगेगा? अगि तुम्हीं होत ेतो भी तुम्हें कोई चोिी िही ंलगा सकता। चोिी दसूिे की चीज की जाती है, अपिी चीज की चोिी कोई िहीं किता। अभी तक निममला की निगाह अपिे सन्दकूच ेपि ि पडी थी। भोजि बिाि े लगी। जब वकील साहब कचहिी चले गये, तो वह सधुा से लमलिे चली। इधि कई ददिों से मलुाकात ि हुई थी, कफि िातवाली घटिा पि ववचाि परिवतमि भी कििा था। भूंगी से कहा- कमिे मे से गहिों का बक्स उठा ला। भूंगी िे लौटकि कहा- वहा ंतो कही ंसन्दकू िहीं हैं। ककहा ंिखा था? निममला िे चचढकि कहा- एक बाि में तो तेिा काम ही कभी िही ंहोता। वहा ंछोडकि औि जायेगा कहां। आलमािी में देखा था?

भूंगी- िही ंबहूजी, आलमािी में तो िही ंदेखा, झठू क्यों बोलू?ं

निममला मसु्किा पडी। बोली- जा देख, जल्दी आ। एक क्षण में भूंगी कफि खाली हाथ लौट आयी- आलमािी में भी तो िहीं है। अब जहां बताओ वहां देखूं।

निममला झुंझलाकि यह कहती हुई उठ खडी हुई- तुझ ेईश्वि िे आंखें ही ि जािे ककसललए दी! देख, उसी कमिे में से लाती हंू कक िहीं। भूंगी भी पीछे-पीछे कमिे में गयी। निममला िे ताक पि निगाह डाली, अलमािी खोलकि देखी। चािपाई के िीच ेझांककाि देखा, कफि कपडों का बडा संदकू खोलकि देखा। बक्स का कहीं पता िहीं। आश्चयम हुआ, आणखि बक्सा गया कहा?ं

सहसा िातवाली घटिा बबजली की भानंत उसकी आंखों के सामि ेचमक गयी। कलेजा उछल पडा। अब तक निजश्चन्त होकि खोज िही थी। अब ताप-सा चढ आया। बडी उतावली से चािों ओि खोजिे लगी। कहीं पता िहीं। जहा ंखोजिा चादहए था, वहां भी खोजा औि जहां िहीं खोजिा चादहए था, वहां भी खोजा। इतिा बडा सन्दकूचा बबछावि के िीच ेकैसे नछप जाता? पि बबछावि भी झाडकि देखा। क्षण-क्षण मखु की काजन्त मललि होती जाती थी। प्राण िहीं मे समाते जात ेथे। अित में नििाशा होकि उसिे छाती पि एक घूंसा मािा औि िोिे लगी।

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गहिे ही िी की सम्पवत्त होत े हैं। पनत की औि ककसी सम्पवत्त पि उसका अचधकाि िही ंहोता। इन्हीं का उसे बल औि गौिव होता है। निममला के पास पांच-छ: हजाि के गहिे थे। जब उन्हें पहिकि वह निकलती थी, तो उतिी देि के ललए उल्लास से उसका हृदय णखला िहता था। एक-एक गहिा मािो ववपवत्त औि बाधा से बचािे के ललए एक-एक िक्षाि था। अभी िात ही उसिे सोचा था, जजयािाम की लौंडी बिकि वह ि िहेगी। ईश्वि ि किे कक वह ककसी के सामिे हाथ फैलाये। इसी खेवे से वह अपिी िाव को भी पाि लगा देगी औि अपिी बच्ची को भी ककसी-ि-ककसी घाट पहंुचा देगी। उसे ककस बात की चचन्त है! उन्हें तो कोई उससे ि छीि लेगा। आज ये मेिे लसगंाि हैं, कल को मेिे आधाि हो जायेंगे। इस ववचाि से उसके हृदय को ककतिी सान्तविा लमली थी! वह सम्पवत्त आज उसके हाथ से निकल गयी। अब वह नििाधाि थी। संसाि उसे कोई अवलम्ब कोई सहािा ि था। उसकी आशाओं का आधाि जड से कट गया, वह फूट-फूटकि िोिे लगी। ईश्चि! तुमसे इतिा भी ि देखा गया? मझु दणुखया को तुमिे यों ही अपंग बिा ददया थ, अब आंखे भी फोड दी।ं अब वह ककसके सामिे हाथ फैलायेगी, ककसके द्वाि पि भीख मागेंगी। पसीि ेसे उसकी देह भीग गयी, िोत-ेिोत ेआंखे सजू गयी।ं निममला लसि िीचा ककये िा िही थी। रुजक्मणी उसे धीिज ददला िही थी,ं लेककि उसके आंस ूि रुकत ेथे, शोके की ज्वाल केम िे होती थी। तीि बजे जजयािाम स्कूल से लौटा। निममला उसिे आिे की खबि पाकि ववक्षक्षप्त की भानंत उठी औि उसके कमिे के द्वाि पि आकि बोली-भयैा, ददल्लगी की हो तो दे दो। दणुखया को सताकि क्या पाओगे?

जजयािाम एक क्षण के ललए काति हो उठा। चोि-कला में उसका यह पहला ही प्रयास था। यह कठािेता, जजससे दहसंा में मिोिंजि होता है अभी तक उसे प्राप्त ि हुई थी। यदद उसके पास सन्दकूचा होता औि कफि इतिा मौका लमलता कक उसे ताक पि िख आव,े तो कदाचचत ्वह उसे मौके को ि छोडता, लेककि सन्दकू उसके हाथ से निकल चकुा था। यािों िे उसे सिाफें में पहंुचा ददया था औि औिे-पौिे बेच भी डाला थ। चोिों की झठू के लसवा औि कौि िक्षा कि सकता है। बोला-भला अम्माजंी, मैं आपसे ऐसी ददल्लगी करंुगा? आप अभी तक मझु पि शक किती जा िही हैं। मैं कह चकुा कक मैं िात को घि पि ि था, लेककि आपको यकीि ही िही ंआता। बड ेद:ुख की बात है कक मझु ेआप इतिा िीच समझती हैं।

135

निममला िे आंस ूपोंछते हुए कहा- मैं तुम्हािे पि शक िहीं किती भयैा, तुम्हें चोिी िहीं लगाती। मैंिे समझा, शायद ददल्लगी की हो। जजयािाम पि वह चोिी का संदेह कैसे कि सकती थी? दनुिया यही तो कहेगी कक लडके की मां मि गई है, तो उस पि चोिी का इलजाम लगाया जा िहा है। मेिे मुंह मे ही तो काललख लगेगी! जजयािाम िे आश्वासि देते हुए कहा- चललए, मैं देखू,ं आणखि ले कौि गया? चोि आया ककस िास्ते से?

भूंगी- भयैा, तुम चोिों के आिे को कहत े हो। चहेू के बबल से तो निकल ही आत ेहैं, यहां तो चािो ओि ही णखडककयां हैं। जजयािाम- खूब अच्छी तिह तलाश कि ललया है?

निममला- सािा घि तो छाि मािा, अब कहा ंखोजिे को कहत ेहो?

जजयािाम- आप लोग सो भी तो जाती हैं मदुों से बाजी लगाकि। चाि बजे मुंशीजी घि आये, तो निममला की दशा देखकि पछूा- कैसी तबीयत है? कही ंददम तो िही ंहै? कह कहकि उन्होंिे आशा को गोद में उठा ललया। निममला कोई जवाब ि दे सकी, कफि िोि ेलगी। भूंगी िे कहा- ऐसा कभी िहीं हुआ था। मेिी सािी उमम इसी घि मं कट गयी। आज तक एक पसेै की चोिी िही ं हुई। दनुिया यही कहेगी कक भूंगी का कोम है, अब तो भगेवाि ही पत-पािी िखें। मुंशीजी अचकि के बटि खोल िहे थे, कफि बटि बन्द कित ेहुए बोले- क्या हुआ? कोई चीज चोिी हो गयी?

भूंगी- बहूजी के सािे गहिे उठ गये। मुंशीजी- िखे कहा ंथे?

निममला िे लससककया ंलेत ेहुए िात की सािी घटिा बयािा कि दी, पि जजयािाम की सिूत के आदमी के अपिे कमिे से निकलिे की बात ि कही। मुंशीजी िे ठंडी सांस भिकि कहा- ईश्वि भी बडा अन्यायी है। जो मिे उन्ही ंको मािता है। मालमू होता है, अददि आ गये हैं। मगि चोि आया तो ककधि से? कही ंसेंध िही ंपडी औि ककसी तिफ से आिे का िास्ता िहीं। मैंिे तो कोई ऐसा पाप िही ं ककया, जजसकी मझु े यह सजा लमल िही है। बाि-बाि कहता िहा, गहिे का सन्दकूचा ताक पि मत िखो, मगेि कौि सिुता है। निममला- मैं क्या जािती थी कक यह गजब टूट पडगेा!

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मुंशीजी- इतिा तो जािती थी कक सब ददि बिाबि िहीं जात।े आज बिवािे जाऊं, तो इस हजाि से कम ि लगेंगे। आजकल अपिी जो दशा है,

वह तुमसे नछपी िही,ं खचम भि का मजुश्कल से लमलता है, गहिे कहा ं से बिेंगे। जाता हंू, पलुलस में इवत्तला कि आता हंू, पि लमलिे की उम्मीद ि समझो। निममला ि े आपवत्त के भाव से कहा- जब जािते हैं कक पलुलस में इवत्तला कििे से कुद ि होगा, तो क्यों जा िहे हैं?

मुंशीजी- ददल िही ं मािता औि क्या? इतिा बडा िकुसाि उठाकि चपुचाप तो िही ंबठै जाता। निममला- लमलिेवाले होत,े तो जात ेही क्यों? तकदीि में ि थे, तो कैसे िहत?े

मुंशीजी- तकदीि मे होंगे, तो लमल जायेंगे, िहीं तो गये तो हैं ही। मुंशीजी कमिे से निकले। निममला िे उिका हाथ पकडकि कहा- मैं कहती हंू, मत जाओ, कही ंऐसा ि हो, लेिे के देिे पड जायें। मुंशीजी िे हाथ छुडाकि कहा- तुम भी बच्चों की-सी जजद्द कि िही हो। दस हजाि का िकुसाि ऐसा िही ंहै, जजसे मैं यों ही उठा लू।ं मैं िो िही ंिहा हंू, पि मेिे हृदय पि जो बीत िही है, वह मैं ही जािता हंू। यह चोट मेिे कलेजे पि लगी है। मुंशीजी औि कुछ ि कह सके। गला फंस गया। वह तेजी से कमिे से निकल आये औि थािे पि जा पहंुच।े थािेदाि उिका बहुत ललहाज किता था। उसे एक बाि रिश्वत के मकुदमे से बिी किा चकेु थे। उिके साथ ही तफ्तीश कििे आ पहंुचा। िाम था अलायाि खा।ं शाम हो गयी थी। थािेदाि िे मकाि के अगवाडे-वपछवाड ेघमू-घमूकि देखा। अन्दि जाकि निममला के कमिे को गौि से देखा। ऊपि की मुंडिे की जांच की। महुल्ले के दो-चाि आदलमयों से चपुके-चपुके कुछ बातें की औि तब मुंशीजी से बोले- जिाब, खुदा की कसम, यह ककसी बाहि के आदमी का काम िही।ं खुदा की कसम, अगि कोई बाहि की आमदी निकले, तो आज से थािेदािी कििा छोड दूं। आपके घि में कोई मलुाजजम ऐसा तो िही ंहै, जजस पि आपको शबुहा हो। मुंशीजी- घि मे तो आजकल लसफम एक महिी है। थािेदाि-अजी, वह पगली है। यह ककसी बड ेशानति का काम है, खुदा की कसम।

137

मुंशीजी- तो घि में औि कौि है? मेिे दोिे लडके हैं, िी है औि बहि है। इिमें से ककस पि शक करंु?

थािेदाि- खुदा की कसम, घि ही के ककसी आदमी का काम है, चाहे, वह कोई हो, इन्शाअल्लाह, दो-चाि ददि में मैं आपको इसकी खबि दूंगा। यह तो िहीं कह सकता कक माल भी सब लमल जायेगा, पि खुदा की कसम, चोि जरुि पकड ददखाऊंगा। थािेदाि चला गया, तो मुंशीजी िे आकि निममला से उसकी बातें कहीं। निममला सहम उठी- आप थािेदाि से कह दीजजए, तफतीश ि किें, आपके पिैों पडती हंू। मुंशीजी- आणखि क्यों?

निममला- अब क्यों बताऊं? वह कह िहा है कक घि ही के ककसी का काम है।

मुंशीजी- उसे बकि ेदो। जजयािाम अपिे कमिे में बठैा हुआ भगवाि ्को याद कि िहा था। उसक मुंह पि हवाइयां उड िही थी।ं सिु चकुा थाकक पलुलसवाले चहेिे से भांप जाते हैं। बाहि निकलिे की दहम्मत ि पडती थी। दोिों आदलमयों में क्या बातें हो िही हैं, यह जाििे के ललए छटपटा िहा था। ज्योंही थािेदाि चला गया औि भूगंी ककसी काम से बाहि निकली, जजयािाम िे पछूा-थािेदाि क्या कि िहा था भूगंी?

भूंगी िे पास आकि कहा- दाढीजाि कहता था, घि ही से ककसी आदमी का काम है, बाहि को कोई िही ंहै। जजयािाम- बाबजूी िे कुछ िहीं कहा?

भूंगी- कुछ तो िहीं कहा, खड े ‘हंू-हंू’ किते िहे। घि मे एक भूंगी ही गैि है ि! औि तो सब अपिे ही हैं।

जजयािाम- मैं भी तो गैि हंू, तू ही क्यों?

भूंगी- तुम गैि काहे हो भयैा?

जजयािाम- बाबजूी िे थािेदाि से कहा िही,ं घि में ककसी पि उिका शबुहा िहीं है। भूंगी- कुछ तो कहते िहीं सिुा। बेचािे थािेदाि िे भले ही कहा- भूंगी तो पगली है, वह क्या चोिी किेगी। बाबजूी तो मझु ेफंसाये ही देते थे।

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जजयािाम- तब तो तू भी निकल गयी। अकेला मैं ही िह गया। त ूही बता, तूिे मझु ेउस ददि घि में देखा था?

भूंगी- िहीं भयैा, तुम तो ठेठि देखिे गये थे। जजयािाम- गवाही देगी ि?

भूंगी- यह क्या कहत ेहो भयैा? बहूजी तफ्तीश बन्द कि देंगी। जजयिाम- सच?

भूंगी- हा ंभयैा, बाि-बाि कहती है कक तफ्तीश ि किाओ। गहिे गये,

जाि ेदो, पि बाबजूी मािते ही िही।ं पांच-छ: ददि तक जजयािाम िे पेट भि भोजि िहीं ककया। कभी दो-चाि कौि खा लेता, कभी कह देता, भखू िही ं है। उसके चहेिे का िंग उडा िहता था। िातें जागतें कटती,ं प्रनतक्षण थािदेाि की शंका बिी िहती थी। यदद वह जािता कक मामला इतिा तूल खींचेंगा, तो कभी ऐसा काम ि किता। उसिे तो समझा था- ककसी चोि पि शबुहा होगा। मेिी तिफ ककसी का ध्याि भी ि जायेगा, पि अब भण्डा फूटता हुआ मालमू होता था। अभागा थािेदाि जजस ढंगे से छाि-बीि कि िहा था, उससे जजयािाम को बडी शंका हो िही थी। सातवें ददि संध्या समय घि लौटा तो बहुत चचजन्तत था। आज तक उसे बचिे की कुछ-ि-कुछ आशा थी। माल अभी तक कही ंबिामद ि हुआ था, पि आज उसे माल के बिामद होिे की खबि लमल गयी थी। इसी दम थािेदाि कांस्टेबबल के ललए आता होगा। बचिे को कोई उपाय िहीं। थािेदाि को रिश्वत देिे से सम्भव है मकुदमे को दबा दे, रुपये हाथ में थे, पि क्या बात नछपी िहेगी? अभी माल बिामद िही हुआ, कफि भी सािे शहि में अफवाह थी कक बेटे िे ही माल उडाया है। माल लमल जाि ेपि तो गली-गली बात फैल जायेगी। कफि वह ककसी को मुंह ि ददखा सकेगा। मुंशीजी कचहिी से लौटे तो बहुत घबिाये हुए थे। लसि थामकि चािपाई पि बठै गये। निममला ि ेकहा- कपड ेक्यों िही ंउतािते? आज तो औि ददिों से देि हो गयी है। मुंशीजी- क्या कपड ेऊतारंु? तुमिे कुछ सिुा?

निममला- क्य बात है? मैंिे तो कुछ िही ंसिुा?

मुंशीजी- माल बिामद हो गया। अब जजया का बचिा मजुश्कल है।

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निममला को आश्चयम िहीं हुआ। उसके चहेिे से ऐसा जाि पडा, मािो उसे यह बात मालमू थी। बोली- मैं तो पहले ही कि िही थी कक थािे में इत्तला मत कीजजए। मुंशीजी- तुम्हें जजया पि शका था?

निममला- शक क्यों िहीं था, मैंिे उन्हें अपिे कमिे से निकलत े देखा था।

मुंशीजी- कफि तुमिे मझुसे क्यों ि कह ददया?

निममला- यह बात मेिे कहिे की ि थी। आपके ददल में जरुि खयाल आता कक यह ईष्यामवश आक्षेप लगा िही है। कदहए, यह खयाल होता या िही?ं झठू ि बोललएगा। मुंशीजी- सम्भव है, मैं इन्काि िही ंकि सकता। कफि भी उसक दशा में तुम्हें मझुसे कह देिा चादहए था। रिपोटम की िौबत ि आती। तुमिे अपिी िेकिामी की तो- कफक्र की, पि यह ि सोचा कक परिणाम क्या होगा? मैं अभी थािे में चला आता हंू। अलायाि खा ंआता ही होगा! निममला िे हताश होकि पछूा- कफि अब?

मुंशीजी िे आकाश की ओि ताकते हुए कहा- कफि जैसी भगवाि ्की इच्छा। हजाि-दो हजाि रुपये रिश्वत देि ेके ललए होत ेतो शायद मामेला दब जाता, पि मेिी हालत तो तुम जािती हो। तकदीि खोटी है औि कुछ िही।ं पाप तो मैंिे ककया है, दण्ड कौि भोगेगा? एक लडका था, उसकी वह दशा हुई, दसूिे की यह दशा हो िही है। िालायक था, गुस्ताख था, गुस्ताख था, कामचोि था, पि था ता अपिा ही लडका, कभी-ि-कभी चते ही जाता। यह चोट अब ि सही जायेगी। निममला- अगि कुछ दे-ददलाकि जाि बच सके, तो मैं रुपये का प्रबन्ध कि दूं। मुंशीजी- कि सकती हो? ककति ेरुपये दे सकती हो?

निममला- ककतिा दिकाि होगा?

मुंशीजी- एक हजाि से कम तो शायद बातचीत ि हो सके। मैंिे एक मकुदमे में उससे एक हजाि ललए थे। वह कसि आज निकालेगा। निममला- हो जायेगा। अभी थाि ेजाइए। मुंशीजी को थािे में बडी देि लगी। एकान्त में बातचीत कििे का बहुत देि मे मौका लमला। अलायाि खां पिुािा घाघ थ। बडी मजुश्कल से अण्टी पि

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चढा। पांच सौ रुवये लेकि भी अहसाि का बोझा लसि पि लाद ही ददया। काम हो गया। लौटकि निममला से बोला- लो भाई, बाजी माि ली, रुपये तुमिे ददये, पि काम मेिी जबाि ही िे ककया। बडी-बडी मजुश्कलों से िाजी हो गया। यह भी याद िहेगी। जजयािाम भोजि कि चकुा है?

निममला- कहा,ं वह तो अभी घमूकि लौटे ही िही।ं मुंशीजी- बािह तो बज िहे होंगें। निममला- कई दफे जा-जाकि देख आयी। कमिे में अंधेिा पडा हुआ है। मुंशीजी- औि लसयािाम?

निममला- वह तो खा-पीकि सोये हैं। मुंशीजी- उससे पछूा िही,ं जजया कहा ंगया?

निममला- वह तो कहत ेहैं, मझुसे कुछ कहकि िहीं गये। मुंशीजी को कुछ शंका हुई। लसयािाम को जगाकि पछूा- तुमसे जजयािाम िे कुछ कहा िही,ं कब तक लौटेगा? गया कहा ंहै?

लसयािाम िे लसि खजुलात ेऔि आंखों मलते हुए कहा- मझुसे कुछ िहीं कहा। मुंशीजी- कपड ेसब पहिकि गया है?

लसयािाम- जी िही,ं कुताम औि धोती।

मुंशीजी- जाते वक्त खशु था?

लसयािाम- खुश तो िहीं मालमू होते थे। कई बाि अन्दि आिे का इिादा ककया, पि देहिी से ही लौट गये। कई लमिट तक सायबाि में खड ेिहे। चलिे लगे, तो आंखें पोंछ िहे थे। इधि कई ददि से अक्सा िोया किते थे। मुंशीजी िे ऐसी ठंडी सांस ली, मािो जीवि में अब कुछ िही ंिहा औि निममला से बोले- तुमिे ककया तो अपिी समझ में भले ही के ललए, पि कोई शत्र ुभी मझु पि इससे कठािे आघात ि कि सकता था। जजयािाम की माता होती, तो क्या वह यह संकोच किती? कदावप िही।ं निममला बोली- जिा डॉक्टि साहब के यहा ंक्यों िही ंचले जाते? शायद वहा ं बठेै हों। कई लडके िोज आत े है, उिसे पनूछए, शायद कुछ पता लग जाये। फंूक-फंूककि चलिे पि भी अपयश लग ही गया। मुंशीजी िे मािो खलुी हुई णखडकी से कहा- हा,ं जाता हंू औि क्या करंुगा।

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मुंशीज बाहि आये तो देखा, डॉक्टि लसन्हा खड ेहैं। चौंककि पछूा- क्या आप देि से खड ेहैं?

डॉक्टि- जी िही,ं अभी आया हंू। आप इस वक्त कहा ंजा िहे हैं? साढे बािह हो गये हैं।

मुंशीजी- आप ही की तिफ आ िहा था। जजयािाम अभी तक घमूकि िहीं आया। आपकी तिफ तो िही ंगया था?

डॉक्टि लसन्हा ि े मुशंीजी के दोिों हाथ पकड ललए औि इतिा कह पाये थे, ‘भाई साहब, अब धयैम से काम..’ कक मुंशीजी गोली खाये हुए मिषु्य की भानंत जमीि पि चगि पड।े

इक्कीस

ककम्णी ि ेनिममला से त्यारिया ंबदलकि कहा- क्या िंगे पांव ही मदिसे जायेगा?

निममला िे बच्ची के बाल गूंथते हुए कहा- मैं क्या करंु? मेिे पास रुपये िहीं हैं। रुजक्मणी- गहिे बिवािे को रुपये जुडत े हैं, लडके के जूतों के ललए रुपयों में आग लग जाती है। दो तो चले ही गये, क्या तीसिे को भी रुला-रुलाकि माि डालिे का इिादा है?

निममला िे एक सांस खींचकि कहा- जजसको जीिा है, जजयेगा, जजसको मििा है, मिेगा। मैं ककसी को माििे-जजलािे िही ंजाती। आजकल एक-ि-एक बात पि निममला औि रुजक्मणी में िोज ही झडप हो जाती थी। जब से गहिे चोिी गये हैं, निममला का स्वभाव बबलकुल बदल गया है। वह एक-एक कौडी दांत से पकडिे लगी है। लसयािाम िोते-िोत ेचहे जाि दे दे, मगि उसे लमठाई के ललए पसेै िही ंलमलत ेऔि यह बतामव कुछ लसयािाम ही के साथ िही ंहै, निममला स्वयं अपिी जरुितों को टालती िहती है। धोती जब तक फटकिि ताि-ताि ि हो जाये, ियी धोती िही ंआती। महीिों लसि का तेल िहीं मंगाया जाता। पाि खािे का उसे शौक था, कई-कई ददि तक पािदाि खाली पडा िहता है, यहां तक कक बच्ची के ललए दधू भी िहीं आता। िन्हे से लशश ुका भववष्य वविाट् रुप धािण किके उसके ववचाि-के्षत्र पि मंडिाता िहता ।

रु

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मुंशीजी िे अपिे को सम्पणूमतया निममला के हाथों मे सौंप ददया है। उसके ककसी काम में दखल िहीं देत।े ि जािे क्यों उससे कुछ दबे िहते हैं। वह अब बबिा िागा कचहिी जात ेहैं। इतिी मेहित उन्होंिे जवािी में भी ि की थी। आंखें खिाब हो गयी हैं, डॉक्टि लसन्हा िे िात को ललखिे-पढिे की ममुनुियत कि दी है, पाचिशडक्त पहले ही दबुमल थी, अब औि भी खिाब हो गयी है, दमें की लशकायत भी पदैा ही चली है, पि बेचािे सबेिे से आधी-आधी िात तक काम कित ेहैं। काम कििे को जी चाहे या ि चाहे, तबीयत अच्छी हो या ि हो, काम कििा ही पडता है। निममला को उि पि जिा भी दया आती। वही भववष्य की भीषण चचन्ता उसके आन्तरिक सद्भावों को सवमिाश कि िही है। ककसी लभकु्षक की आवाज सिुकि झल्ला पडती है। वह एक कोडी भी खचम कििा िहीं चाहती । एक ददि निममला िे लसयािाम को घी लािे के ललए बाजाि भेजा। भूगंी पि उिका ववश्वास ि था, उससे अब कोई सौदा ि मागंती थी। लसयािाम में काट-कपट की आदत ि थी। औिे-पौिे कििा ि जािता था। प्राय: बाजाि का सािा काम उसी को कििा पडता। निममला एक-एक चीज को तोलती, जिा भी कोई चीज तोल में कम पडती, तो उसे लौटा देती। लसयािाम का बहुत-सा समय इसी लौट-फेिी में बीत जाता था। बाजाि वाले उसे जल्दी कोई सौदा ि देते। आज भी वही िौबत आयी। लसयािाम अपिे ववचाि से बहुत अच्छा घी, कई दकूािि से देखकि लाया, लेककि निममला िे उसे सूंघत े ही कहा- घी खिाब है, लौटा आओ। लसयािाम िे झुंझलाकि कहा- इससे अच्छा घी बाजाि में िहीं है, मैं सािी दकूािे देखकि लाया हंू?

निममला- तो मैं झठू कहती हंू?

लसयािाम- यह मैं िहीं कहता, लेककि बनिया अब घी वावपस ि लेगा। उसिे मझुसे कहा था, जजस तिह देखिा चाहो, यही ंदेखो, माल तमु्हािे सामिे है। बोदहिी-बटे्ट के वक्त में सौदा वापस ि लूंगा। मैंिे सूंघकि, चखकि ललया। अब ककस मुंह से लौटिे जाऊ?

निममला िे दातं पीसकि कहा- घी में साफ चिबी लमली हुई है औि तुम कहत ेहो, घी अच्छा है। मैं इसे िसोई में ि ले जाऊंगी, तुम्हािा जी चाहे लौटा दो, चाहे खा जाओ।

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घी की हांडी वही ंछोडकि निममला घि में चली गयी। लसयािाम क्रोध औि क्षोभ से काति हो उठा। वह कौि मुहं लेकि लौटािे जाये? बनिया साफ कह देगा- मैं िही ं लौटाता। तब वह क्या किेगा? आस-पास के दस-पांच बनिये औि सडक पि चलिे वाले आदमी खाड े हो जायेंगे। उि सबों के सामिे उसे लजज्जत होिा पडगेा। बाजाि में यों ही कोई बनिया उसे जल्दी सौदा िही ंदेता, वह ककसी दकूाि पि खडा होिे िही ंपाता। चािों ओि से उसी पि लताड पडगेी। उसिे मि-ही-मि झुझंलाकि कहा- पडा िहे घी, मैं लौटािे ि जाऊंगा। मात-ृहीि बालक के समाि दखुी, दीि-प्राणी संसाि में दसूिा िहीं होता औि सािे द:ुख भलू जाते हैं। बालक को माता याद आयी, अम्मां होती, तो क्या आज मझु े यह सब सहिा पडता? भयैा चले गये, मैं ही अकेला यह ववपवत्त सहिे के ललए क्यों बचा िहा? लसयािाम की आंखों में आंस ूकी झडी लग गयी। उसके शोक काति कण्ठ से एक गहिे नि:श्वास के साथ लमले हुए ये शब्द निकल आये- अम्मां! तुम मझु ेभलू क्यों गयी,ं क्यों िहीं बलुा लेती?ं

सहसा निममला कफि कमिे की तिफ आयी। उसि े समझा था, लसयािाम चला गया होगा। उसे बठैा देखा, तो गुस्से से बोली- तुम अभी तक बठेै ही हो? आणखि खािा कब बिेगा?

लसयािाम िे आंखें पोंड डाली।ं बोला- मझु े स्कूल जािे में देि हो जायेगी। निममला- एक ददि देि हो जायेगी तो कौि हिज है? यह भी तो घि ही का काम है?

लसयािाम- िोज तो यही धन्धा लगा िहता है। कभी वक्त पि स्कूल िहीं पहंुचता। घि पि भी पढिे का वक्त िहीं लमलता। कोई सौदा दो-चाि बाि लौटाये बबिा िही ंजाता। डांट तो मझु पि पडती है, शलमिंदा तो मझु े होिा पडता है, आपको क्या?

निममला- हा,ं मझु ेक्या? मैं तो तुम्हािी दशु्मि ठहिी! अपिा होता, तब तो उसे द:ुख होता। मैं तो ईश्वि से मािाया किती हंू कक तुम पढ-ललख ि सको। मझुमें सािी बिुाइया-ंही-बिुाइया ं हैं, तुम्हािा कोई कसिू िहीं। ववमाता का िाम ही बिुा होता है। अपिी मा ंववष भी णखलाये, तो अमतृ हैं; मैं अमतृ भी वपलाऊं, तो ववष हो जायेगा। तुम लोगों के कािण में लमट्टी में लमल गयी, िोत-ेिोत उम्र काटी जाती है, मालमू ही ि हुआ कक भगवाि िे ककसललए

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जन्म ददया था औि तुम्हािी समझ में मैं ववहाि कि िही हंू। तमु्हें सतािे में मझु ेबडा मजा आता है। भगवाि ्भी िही ंपछूते कक सािी ववपवत्त का अन्त हो जाता।

यह कहत-ेकहत े निममला की आंखें भि आयी। अन्दि चली गयी। लसयािाम उसको िोत ेदेखकि सहम उठा। ग्लानिक तो िही ंआयी; पि शंका हुई कक िे जािे कौि-सा दण्ड लमले। चपुके से हांडी उठा ली औि घी लौटािे चला, इस तिह जैसे कोई कुत्ता ककसी िये गांव में जाता है। उसे देखकि साधािण बदुद्व का मिषु्य भी आिमुाि कि सकता था कक वह अिाथ है। लसयािाम ज्यों-ज्यों आगे बढता था, आिवेाले संग्राम के भय से उसकी हृदय-गनत बढती जाती थी। उसिे निश्चय ककया-बनिये िे घी ि लौटाया, तो वह घी वही ंछोडकि चला आयेगा। झख मािकि बनिया आप ही बलुायेगा। बनिये को डांटिे के ललए भी उसिे शब्द सोच ललए। वह कहेगा- क्यों साहूजी, आंखों में धलू झोंकत ेहो? ददखात ेहो चोखा माल औि औि देत ेही िद्दी माल? पि यह निश्चय कििे पि भी उसके पिै आगे बहुत धीिे-धीिे उठत ेथे। वह यह ि चाहता था, बनिया उसे आता हुआ देखे, वह अकस्मात ् ही उसके सामिे पहंुच जािा चाहता था। इसललए वह चक्काि काटकि दसूिी गली से बनिये की दकूाि पि गया। बनिये िे उसे देखते ही कहा- हमिे कह ददया था कक हमे सौदा वापस ि लेंगे। बोलों, कहा था कक िहीं। लसयािाम ि ेबबगडकि कहा- तुमिे वह घी कहा ंददया, जो ददखाया था? ददखाया एक माल, ददया दसूिा माल, लौटाओगे कैसे िही?ं क्या कुछ िाहजिी है?

साह- इससे चोखा घी बाजाि में निकल आये तो जिीबािा दूं। उठा लो हांडी औि दो-चाि दकूाि देख आओ। लसयािाम- हमें इतिी फुसमत िही ंहै। अपिा घी लौटा लो। साह- घी ि लौटेगा। बनिये की दकुाि पि एक जटाधािी साध ूबठैा हुआ यह तमाश देख िहा था। उठकि लसयािाम के पास आया औि हांडी का घी सूंघकि बोला- बच्चा, घी तो बहुत अच्छा मालमू होता है। साह सिे शह पाकि कहा- बाबाजी हम लोग तो आप ही इिको घदटया माल िही ंदेत।े खिाब माल क्या जािे-सिेु ग्राहकों को ददया जाता है?

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साध-ु घी ले जाव बच्चा, बहुत अच्छा है। लसयािाम िो पडा। घी को बिुा लसद्वा कििे के ललए उसके पास अब क्या प्रमाण था? बोला- वही तो कहती हैं, घी अच्छा िही ंहै, लौटा आओ। मैं तो कहता था कक घी अच्छा है। साध-ु कौि कहता है?

साह- इसकी अम्मां कहती होंगी। कोई सौदा उिके मि ही िही ंभाता। बेचािे लडके को बाि-बाि दौडाया किती है। सौतेली मा ं है ि! अपिी मां हो तो कुछ ख्याल भी किे। साध ुिे लसयिाम को सदय िेत्रों से देखा, मािो उसे त्राण देि ेके ललए उिका हृदय ववकल हो िहा है। तब करुण स्वि से बोले- तुम्हािी माता का स्वगमवास हुए ककतिे ददि हुए बच्च?

लसयािाम- छठा साल है। साध-ु ता तुम उस वक्त बहुत ही छोटे िहे होंगे। भगेवाि ्तुम्हािी लीला ककतिी ववचचत्र है। इस दधुमुंहे बालक को तुमिे मात-्प्रेम से वंचचत कि ददया। बडा अिथम कित े हो भगवाि!् छ: साल का बालक औि िाक्षसी ववमाता के पािले पडे! धन्य हो दयानिचध! साहजी, बालक पि दया किो, घी लौटा लो, िहीं तो इसकी मात इसे घि में िहिे ि देगी। भगवाि की इच्छा से तुम्हािा घी जल्द बबक जायेगा। मेिा आशीवामद तुम्हािे साथ िहेगा ं साहजी िे रुपये वापस ि ककये। आणखि लडके को कफि घी लेिे आिा ही पडगेा। ि जािे ददि में ककतिी बाि चक्कि लगािा पड े औि ककस जाललये से पाला पड।े उसकी दकुाि में जो घी सबसे अच्छा था, वह लसयािाम ददल से सोच िहा था, बाबाजी ककतिे दयाल ु हैं? इन्होंिे लसफारिश ि की होती, तो साहजी क्यों अच्छा घी देते?

लसयािाम घी लेकि चला, तो बाबाजी भी उसके साथ ही ललये। िास्त ेमें मीठी-मीठी बातें कििे लगे। ‘बच्चा, मेिी माता भी मझु ेतीि साल का छोडकि पिलोक लसधािी थी।ं तभी से मात-ृववहीि बालकों को देखता हंू तो मेिा हृदय फटिे लगता हैं।’ लसयािाम िे पछूा- आपके वपताजी िे भी तो दसूिा वववाह कि ललया था?

साध-ु हा,ं बच्चा, िहीं तो आज साध ु क्यों होता? पहले तो वपताजी वववाह ि किते थे। मझु ेबहुत प्याि किते थे, कफि ि जािे क्यों मि बदल

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गया, वववाह कि ललया। साध ु हंू, कटु वचि मुंह से िही ं निकालिा चादहए, पि मेिी ववमात जजतिी ही सनु्दि थी,ं उतिी ही कठोि थीं। मझु ेददि-ददि-भि खाि ेको ि देतीं, िोता तो माितीं। वपताजी की आंखें भी कफि गयीं। उन्हें मेिी सिूत से घणृा होिे लगी। मेिा िोिा सिुकि मझु ेपीटिे लगते। अन्त को मैं एक ददि घि से निकल खडा हुआ। लसयािाम के मि में भी घि से निकल भागिे का ववचाि कई बाि हुआ था। इस समय भी उसके मि में यही ववचाि उठ िहा था। बडी उत्सकुता से बोला-घि से निकलकि आप कहां गये?

बाबाजी ि े हंसकि कहा- उसी ददि मेिे सािे किों का अन्त हो गया जजस ददि घि के मोह-बन्धि से छूटा औि भय मि से निकला, उसी ददि मािो मेिा उद्वाि हो गया। ददि भि मैं एक पलु के िीच ेबठैा िहा। संध्या समय मझु ेएक महात्मा लमल गये। उिका स्वामी पिमािन्दजी था। व ेबाल-ब्रह्रचािी थे। मझु पि उन्होंिे दया की औि अपिे साथ िख ललया। उिके साथ िख ललया। उिके साथ मैं देश-देशान्तिों में घमूिे लगा। वह बड ेअच्छे योगी थे। मझु ेभी उन्होंिे योग-ववद्या लसखाई। अब तो मेिे को इतिा अभ्यास हो येगया है कक जब इच्छा होती है, माताजी के दशमि कि लेता हंू, उिसे बात कि लेता हंू। लसयािाम िे ववस्फारित िेत्रों से देखकि पछूा- आपकी माता का तो देहान्त हो चकुा था?

साध-ु तो क्या हुआ बच्च, योग-ववद्या में वह शडक्त है कक जजस मतृ-आत्म को चाहे, बलुा ले। लसयािाम- मैं योग-ववद्या सीख ्लू,ं तो मझु ेभी माताजी के दशमि होंगे?

साध-ु अवश्य, अभ्यास से सब कुछ हो सकता है। हा,ं योग्य गुरु चादहए। योग से बडी-बडी लसदद्वया ंप्राप्त हो सकती हैं। जजतिा धि चाहो, पल-मात्र में मंगा सकत ेहो। कैसी ही बीमािी हो, उसकी औषचध अता सकत ेहो। लसयािाम- आपका स्थाि कहां है?

साध-ु बच्चा, मेिे को स्थाि कही ं िहीं है। देश-देशान्तिों से िमता कफिता हंू। अच्छा, बच्चा अब तुम जाओ, म।ै जिा स्िाि-ध्ययाि किि ेजाऊंगा। लसयिाम- चललए मैं भी उसी तिफ चलता हंू। आपके दशमि से जी िही ंभिा।

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साध-ु िही ंबच्चा, तुम्हें पाठशाला जािे की देिी हो िही है। लसयिाम- कफि आपके दशमि कब होंगे?

साध-ु कभी आ जाऊंगा बच्चा, तुम्हािा घि कहा ंहै?

लसयािाम प्रसन्ि होकि बोला- चललएगा मेिे घि? बहुत िजदीक है। आपकी बडी कृपा होगी। लसयािाम कदम बढाकि आगे-आगे चलिे लगा। इतिा प्रसन्ि था, मािो सोिे की गठिी ललए जाता हो। घि के सामिे पहंुचकि बोला- आइए,

बदैठए कुछ देि।

साध-ु िही ं बच्चा, बठंूैगा िहीं। कफि कल-पिसों ककसी समय आ जाऊंगा। यही तुम्हािा घि है?

लसयािाम- कल ककस वक्त आइयेगा?

साध-ु निश्चय िही ंकह सकता। ककसी समय आ जाऊंगा।

साध ु आगे बढे, तो थोडी ही दिू पि उन्हें एक दसूिा साध ु लमला। उसका िाम था हरिहिािन्द। पिमािन्द से पछूा- कहा-ंकहां की सिै की? कोई लशकाि फंसा?

हरिहिािन्द- इधिा चािों तिफ घमू आया, कोई लशकाि ि लमला ंएकाध लमला भी, तो मेिी हंसी उडाि ेलगा। पिमािन्द- मझु े तो एक लमलता हुआ जाि पडता है! फंस जाये तो जािू।ं

हरिहिािन्द- तुम यों ही कहा किते हो। जो आता है, दो-एक ददि के बाद निकल भागता है। पिमािन्द- अबकी ि भागेगा, देख लेिा। इसकी मां मि गयी है। बाप िे दसूिा वववाह कि ललया है। मा ंभी सताया किती है। घि से ऊबा हुआ है। हरिहिािन्द- खूब अच्छी तिह। यही तिकीब सबसे अच्छी है। पहले इसका पता लगा लेिा चादहए कक महुल्ले में ककि-ककि घिों में ववमाताएं हैं? उन्ही ंघिों में फन्दा डालिा चादहए।

बाईस

ममला िे बबगडकि कहा- इतिी देि कहा ंलगायी?

लसयािाम ि ेदढठाई से कहा- िास्ते में एक जगह सो गया था। नि

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निममला- यह तो मैं िहीं कहती, पि जािते हो कै बज गये हैं? दस कभी के बज गये। बाजाि कुद दिू भी तो िहीं है। लसयािाम- कुछ दिू िहीं। दिवाजे ही पि तो है। निममला- सीधे से क्यों िही ं बोलते? ऐसा बबगड िहे हो, जैसे मेिा ही कोई कामे कििे गये हो?

लसयािाम- तो आप व्यथम की बकवास क्यों किती हैं? ललया सौदा लौटािा क्या आसाि काम है? बनिये से घंटों हुज्जत कििी पडी यह तो कहो, एक बाबाजी ि ेकह-सिुकि फेिवा ददया, िहीं तो ककसी तिह ि फेिता। िास्त ेमें कहीं एक लमिट भी ि रुका, सीधा चला आता हंू। निममला- घी के ललए गये-गये, तो तुम ग्यािह बजे लौटे हो, लकडी के ललए जाओग,े तो साझं ही कि दोगे। तुम्हािे बाबजूी बबिा खाये ही चले गये। तुम्हें इतिी देि लगािी था, तो पहले ही क्यों ि कह ददया? जाते ही लकडी के ललए। लसयािाम अब अपिे को संभाल ि सका। झल्लाकि बोला- लकडी ककसी औि से मंगाइए। मझु ेस्कूल जािे को देि हो िही है। निममला- खािा ि खाओग?े

लसयािाम- ि खाऊंगा। निममला- मैं खािा बिािे को तैयाि हंू। हा,ं लकडी लािे िहीं जा सकती।

लसयािाम- भूंगी को क्यों िहीं भेजती?

निममला- भूंगी का लाया सौदा तुमिे कभी देखा िहीं हैं?

लसयािाम- तो मैं इस वक्त ि जाऊंगा। निममला- मझु ेदोष ि देिा। लसयािाम कई ददिों से स्कूल िही ंगया था। बाजाि-हाट के मािे उसे ककताबें देखिे का समय ही ि लमलता था। स्कूल जाकि णझडककया ंखाि, से बेंच पि खड ेहोिे या ऊंची टोपी देिे के लसवा औि क्या लमलता? वह घि से ककताबें लेकि चलता, पि शहि के बाहि जाकि ककसी वकृ्ष की छांह में बठैा िहता या पल्टिों की कवायद देखता। तीि बजे घि से लौट आता। आज भी वह घि से चला, लेककि बठैिे में उसका जी ि लगा, उस पि आंतें अल ग जल िही थी।ं हा! अब उसे िोदटयों के भी लाले पड गये। दस बजे क्या खािा ि बि सकता था? मािा कक बाबजूी चले गये थे। क्या मेिे ललए घि में दो-

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चाि पसेै भी ि थे? अम्मा ं होती,ं तो इस तिह बबिा कुछ खाये-वपये आि ेदेती?ं मेिा अब कोई िहीं िहा। लसयािाम का मि बाबाजी के दशमि के ललए व्याकुल हो उठा। उसिे सोचा- इस वक्त वह कहा ं लमलेंगे? कहां चलकि देखूं? उिकी मिोहि वाणी, उिकी उत्साहप्रद सान्त्विा, उसके मि को खींचिे लगी। उसिे आतुि होकि कहा- मैं उिके साथ ही क्यों ि चला गया? घि पि मेिे ललए क्या िखा था?

वह आज यहा ं से चला तो घि ि जाकि सीधा घी वाले साहजी की दकुाि पि गया। शायद बाबाजी से वहा ंमलुाकात हो जाये, पि वहा ंबाबाजी ि थे। बडी देि तक खडा-खडा लौट आया। घि आकि बठैा ही था ककस निममला ि ेआकि कहा- आज देि कहा ंलगाई? सवेिे खािा िहीं बिा, क्या इस वक्त भी उपवास होगा? जाकि बाजाि से कोई तिकािी लाओ। लसयािाम ि े झल्लाकि कहा- ददिभि का भखूा चला आता हंू; कुछ पीिी पीि ेतक को लाई िहीं, ऊपि से बाजाि जािे का हुक्म दे ददया। मैं िहीं जाता बाजाि, ककसी का िौकि िही ं हंू। आणखि िोदटयां ही तो णखलाती हो या औि कुछ? ऐसी िोदटयां जहां मेहित करंुगा, वहीं लमल जायेंगी। जब मजूिी ही कििी है, तो आपकी ि करंुगा, जाइए मेिे ललए खािा मत बिाइएगा। निममला अवाक् िह गयी। लडके को आज क्या हो गया? औि ददि तो चपुके से जाकि काम कि लाता था, आज क्यों त्योरिया ंबदल िहा है? अब भी उसको यह ि सझूी कक लसयािाम को दो-चाि पसेै कुछ खािे के दे दे। उसका स्वभाव इतिा कृपण हो गया था, बोली- घि का काम कििा तो मजूिी िही ंकहलाती। इसी तिह मैं भी कह दूं कक मैं खािा िही ं पकाती, तुम्हािे बाबजूी कह दें कक कचहिी िही ंजाता, तो क्या हो बताओ? िही ंजािा चाहत,े तो मत जाओ, भूंगी से मंगा लूगंी। मैं क्या जािती थी कक तुम्हें बाजाि जािा बिुा लगता है, िही ंतो बला से धेले की चीज पसेै में आती, तुम्हें ि भेजती। लो, आज से काि पकडती हंू। लसयािाम ददल में कुछ लजज्जत तो हुआ, पि बाजाि ि गया। उसका ध्याि बाबाजी की ओि लगा हुआ था। अपिे सािे दखुों का अन्त औि जीवि की सािी आशाएं उसे अब बाबाजी क आशीवामद में मालमू होती थीं। उन्ही ंकी शिण जाकि उसका यह आधािहीि जीवि साथमक होगा। सयूामस्त के समय

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वह अधीि हो गया। सािा बाजाि छाि मािा, लेककि बाबाजी का कहीं पता ि लमला। ददिभि का भखू-प्यासा, वह अबोध बालक दखुत ेहुए ददल को हाथों से दबाये, आशा औि भय की मनूतम बिा, दकुािों, गाललयों औि मजन्दिों में उस आश्रमे को खोजता कफिता था, जजसके बबिा उसे अपिा जीवि दसु्सह हो िहा था। एक बाि मजन्दि के सामिे उसे कोई साध ुखडा ददखाई ददया। उसिे समझा वही हैं। हषोल्लास से वह फूल उठा। दौडा औि साध ुके पास खडा हो गया। पि यह कोई औि ही महात्मा थे। नििाश हो कि आगे बढ गया। धािे-धीिे सडकों पि सन्िाटा दा गया, घिों के द्वािा बन्द होि े लगे। सडक की पटरियों पि औि गललयों में बंसखटे या बोिे बबछा-बबछाकि भाित की प्रजा सखु-निद्रा में मग्ि होिे लगी, लेककि लसयािाम घि ि लौटा। उस घि से उसक ददल फट गया था, जहा ंककसी को उससे प्रेम ि था, जहा ंवह ककसी पिाचश्रत की भांनत पडा हुआ था, केवल इसीललए कक उसे औि कही ंशिण ि थी। इस वक्त भी उसके घि ि जाि ेको ककसे चचन्ता होगी? बाबजूी भोजि किके लेटे होंगे, अम्माजंी भी आिाम कििे जा िही होंगी। ककसी ि ेमेिे कमिे की ओि झांककि देखा भी ि होगा। हां, बआुजी घबिा िही होंगी, वह अभी तक मेिी िाह देखती होंगी। जब तक मैं ि जाऊंगा, भोजि ि किेंगी। रुजक्मणी की याद आत े ही लसयािाम घि की ओि चल ददया। वह अगि औि कुछ ि कि सकती थी, तो कम-से-कम उसे गोद में चचमटाकि िोती थी? उसके बाहि से आि ेपि हाथ-मुंह धोिे के ललए पािी तो िख देती थीं। संसाि में सभी बालक दधू की कुजल्लयों िहीं कित,े सभी सोि ेके कौि िहीं खाते। ककतिों के पेट भि भोजि भी िही ं लमलता; पि घि से वविक्त वही होत ेहैं, जो मात-ृस्िेह से वंचचत हैं। लसयािाम घि की ओि चला ही कक सहसा बाबा पिमािन्द एक गली से आत ेददखायी ददये। लसयािाम िे जाकि उिका हाथ पकड ललया। पिमािन्द िे चौंककि पछूा- बच्चा, तुम यहा ंकहा?ं

लसयािाम ि े बात बिाकि कहा- एक दोस्त से लमलिे आया था। आपका स्थाि यहा ंसे ककतिी दिू है?

पिमािन्द- हम लोग तो आज यहा ं से जा िहे हैं, बच्चा, हरिद्वाि की यात्रा है।

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लसयािाम ि ेहतोत्साह होकि कहा- क्या आज ही चले जाइएगा?

पिमािन्द- हा ंबच्चा, अब लौटकि आऊंगा, तो दशमि दूंगा?

लसयािाम ि ेकात कंठ से कहा- मैं भी आपके साथ चलूगंा। पिमािन्द- मेिे साथ! तुम्हािे घि के लोग जािे देंगे?

लसयािाम- घि के लोगों को मेिी क्या पिवाह है? इसके आगे लसयािाम औि कुछ सि कह सका। उसके अश्र-ुपरूित िेत्रों िे उसकी करुणा -गाथा उससे कहीं ववस्ताि के साथ सिुा दी, जजतिी उसकी वाणी कि सकती थी। पिमािन्द िे बालक को कंठ से लगाकि कहा- अच्छा बच्च, तिेी इच्छा हो तो चल। साध-ुसन्तों की संगनत का आिन्द उठा। भगवाि ् की इच्छा होगी, तो तिेी इच्छा पिूी होगी। दािे पि मण्डिाता हुआ पक्षी अन्त में दािे पि चगि पडा। उसके जीवि का अन्त वपजंिे में होगा या व्याध की छुिी के तले- यह कौि जािता है?

तेईस

शीजी पांच बजे कचहिी से लौटे औि अन्दि आकि चािपाई पि चगि पड।े बढुापे की देह, उस पि आज सािे ददि भोजि ि लमला। मुंह सखू

गया। निममला समझ गयी, आज ददि खाली गया ंनिममला िे पछूा- आज कुछ ि लमला।

मुंशीजी- सािा ददि दौडते गजुिा, पि हाथ कुछ ि लगा। निममला- फौजदािी वाले मामले में क्या हुआ?

मुंशीजी- मेिे मवुजक्कल को सजा हो गयी। निममला- पंडडत वाले मकुदमे में?

मुंशीजी- पडंडत पि डडग्री हो गयी। निममला- आप तो कहते थे, दावा खरिज हो जायेगा। मुंशीजी- कहता तो था, औि जब भी कहता हंू कक दावा खारिज हो जािा चादहए था, मगि उतिा लसि मगजि कौि किे?

निममला- औि सीिवाले दावे में?

मुंशीजी- उसमें भी हाि हो गयी। निममला- तो आज आप ककसी अभागे का मुंह देखकि उठे थे।

मु ं

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मुंशीजी से अब काम बबलकुल ि हो सकता था ंएक तो उसके पास मकुदमे आते ही ि थे औि जो आते भी थे, वह बबगड जाते थे। मगि अपिी असफलताओं को वह निममला से नछपात े िहते थे। जजस ददि कुछ हाथ ि लगता, उस ददि ककसी से दो-चाि रुपये उधाि लाकि निममला को देते, प्राय: सभी लमत्रों से कुछ-ि-कुछ ले चकेु थे। आज वह डौल भी ि लगा। निममला िे चचन्तापणूम स्वि में कहा- आमदिी का यह हाल है, तो ईश्श्वि ही माललक है, उसक पि बेटे का यह हाल है कक बाजाि जािा मजुश्कल है। भूगंी ही से सब काम किािे को जी चाहता है। घी लेकि ग्यािह बजे लौटा। ककतिा कहकि हाि गयी कक लकडी लेत ेआओ, पि सिुा ही िहीं। मुंशीजी- तो खािा िहीं पकाया?

निममला- ऐसी ही बातों से तो आप मकुदमे हािते हैं। ईंधि के बबिा ककसी िे खािा बिाया है कक मैं ही बिा लेती?

मुंशीजी- तो बबिा कुछ खाये ही चला गया। निममला- घि में औि क्या िखा था जो णखला देती?

मुंशीजी िे डित-ेडित ेकहका- कुछ पसेै-वसेै ि दे ददये?

निममला ि ेभौंहे लसकोडकि कहा- घि में पसेै फलत ेहैं ि?

मुंशीजी िे कुछ जवाब ि ददया। जिा देि तक तो प्रतीक्षा कित े िहे कक शायद जलपाि के ललए कुछ लमलेगा, लेककि जब निममला ि ेपािी तक ि मंगवाय, तो बेचािे नििाश होकि चले गये। लसयािाम के कि का अिमुाि किके उिका चचत्त चचंल हो उठा। एक बाि भूगंी ही से लकडी मंगा ली जाती, तो ऐसा क्या िकुसाि हो जाता? ऐसी ककफायत भी ककस काम की कक घि के आदमी भखेू िह जायें। अपिा संदकूचा खोलकि टटोलिे लगे कक शायद दो-चाि आिे पसेै लमल जायें। उसके अन्दि के सािे कागज निकाल डाल,े एक-एक, खािा देखा, िीच ेहाथ डालकि देखा पि कुछ ि लमला। अगि निममला के सन्दकू में पसेै ि फलत ेथे, तो इस सन्दकूच ेमें शायद इसके फूल भी ि लगते हों, लेककि संयोग ही कदहए कक कागजों को झाडक़त ेहुए एक चवन्िी चगि पडी। मािे हषम के मुंशीजी उछल पड।े बडी-बडी िकमें इसके पहले कमा चकेु थे, पि यह चवन्िी पाकि इस समय उन्हें जजतिा आह्लाद हुआ, उिका पहले कभी ि हुआ था। चवन्िी हाथ में ललए हुए लसयािाम के कमिे के सामिे आकि पकुािा। कोई जवाब ि लमला। तब कमिे में जाकि देखा। लसयािाम का कही ंपता िहीं- क्या अभी स्कूल से िहीं लौटा? मि में

153

यह प्रश्न उठत ेही मुंशीजी िे अन्दि जाकि भूगंी से पछूा। मालमू हुआ स्कूल से लौट आये। मुंशीजी िे पछूा- कुछ पािी वपया है?

भूंगी िे कुछ जवाब ि ददया। िाक लसकोडकि मुंह फेिे हुए चली गयी। मुंशीजी अदहस्ता-आदहस्ता आकि अपिे कमिे में बठै गये। आज पहली बाि उन्हें निमेला पि क्रोध आया, लेककि एक ही क्षण क्रोध का आघात अपिे ऊपि होिे लगा। उस अंधेिे कमेिे में फशम पि लेटे हुए वह अपिे पतु्र की ओि से इतिा उदासीि हो जाि ेपि चधक्कािि ेलगे। ददि भि के थके थे। थोडी ही देि में उन्हें िींद आ गयी। भूंगी िे आकि पकुािा- बाबजूी, िसोई तैयाि है। मुंशीजी चौंककि उठ बठेै। कमिे में लमै्प जल िहा था पछूा- कै बज गये भूगंी? मझु ेतो िींद आ गयी थी। भूंगी िे कहा- कोतवाली के घण्टे में िौ बज गये हैं औि हम िाही ंजानित। मुंशीजी- लसया बाब ूआये?

भूंगी- आये होंगे, तो घि ही में ि होंगे। मुंशीजी िे झल्लाकि पछूा- मैं पछूता हंू, आये कक िही?ं औि त ू ि जाि ेक्या-क्या जवाब देती है? आये कक िही?ं

भूंगी- मैंिे तो िही ंदेखा, झठू कैसे कह दूं। मुंशीजी कफि लेट गये औि बोले- उिको आ जािे दे, तब चलता हंू। आध घंटे द्वाि की ओि आंख लगाए मुशंीजी लेटे िहे, तब वह उठकि बाहि आये औि दादहिे हाथ कोई दो फलािंग तक चले। तब लौटकि द्वाि पि आये औि पछूा- लसया बाब ूआ गये?

अन्दि से आवाज आयी- अभी िही।ं मुंशीजी कफि बायीं ओि चले औि गली के िकु्कड तक गये। लसयािाम कही ंददखाई ि ददया। वहा ंसे कफि घि आये औि द्वािा पि खड ेहोकि पछूा- लसया बाब ूआ गये?

अन्दि से जवाब लमला- िहीं। कोतवाली के घंटे में दस बजिे लगे। मुंशीजी बड े वेग से कम्पिी बाग की तिफ चले। सोचि लगे, शायद वहां घमूिे गया हो औि घास पि लेटे-लेट िींद आ गयी हो। बाग में

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पहंुचकि उन्होंिे हिेक बेंच को देखा, चािों तिफ घमेू, बहुते से आदमी घास पि पड े हुए थे, पि लसयािाम का निशाि ि था। उन्होंि ेलसयािाम का िाम लेकि जोि से पकुािा, पि कही ंसे आवाज ि आयी। ख्याल आया शायद स्कूल में तमाशा हो िहा हो। स्कूल एक मील से कुछ ज्यादा ही था। स्कूल की तिफ चले, पि आध ेिास्त े से ही लौट पड।े बाजाि बन्द हो गया था। स्कूल में इतिी िात तक तमाशा िही ंहो सकता। अब भी उन्हें आशा हो िही थी कक लसयािाम लौट आया होगा। द्वाि पि आकि उन्होंिे पकुािा- लसया बाब ूआये? ककवाड बन्द थे। कोई आवाज ि आयी। कफि जोि से पकुािा। भूंगी ककवाड खोलकि बोली- अभी तो िही ंआये। मुंशीजी िे धीिे से भूंगी को अपिे पास बलुाया औि करुण स्वि में बोले- त ूता घि की सब बातें जािती है, बता आज क्या हुआ था?

भूंगी- बाबजूी, झठू ि बोलूंगी, मालककि छुडा देगी औि क्या? दसूिे का लडका इस तिह िहीं िखा जाता। जहा ं कोई काम हुआ, बस बाजाि भेज ददया। ददि भि बाजाि दौडते बीतता था। आज लकडी लाि ेि गये, तो चलू्हा ही िही ंजला। कहो तो मुंह फुलावें। जब आप ही िही ंदेखत,े तो दसूिा कौि देखेगा? चललए, भोजि कि लीजजए, बहूजी कब से बठैी है। मुंशीजी- कह दे, इस वक्त िही ंखायेंगे। मुंशीजी कफि अपिे कमेिे में चले गये औि एक लम्बी सांस ली। वेदिा से भिे हुए ये शब्द उिके मुंह से निकल पड-े ईश्वि, क्या अभी दण्ड पिूा िही ंहुआ? क्या इस अंधे की लकडी को हाथ से छीि लोगे?

निममला िे आकि कहा- आज लसयािाम अभी तक िहीं आये। कहती िही कक खािा बिाये देती हंू, खा लो मगि सि जािे कब उठकि चल ददये! ि जािे कहा ंघमू िहे हैं। बात तो सिुत ेही िहीं। कब तक उिकी िाह देखा करु! आप चलकि खा लीजजए, उिके ललए खािा उठाकि िख दूंगी। मुंशीजी िे निममला की ओि कठािे िेत्रों से देखकि कहा- अभी कै बजे होंग?े

निममल- क्या जाि,े दस बजे होंगे। मुंशीजी- जी िही,ं बािह बजे हैं। निममला- बािह बज गये? इतिी देि तो कभी ि कित ेथे। तो कब तक उिकी िाह देखोगे! दोपहि को भी कुछ िही ंखाया था। ऐसा सलैािी लडका मैंिे िही ंदेखा।

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मुंशीजी- जी तुम्हें ददक किता है, क्यों?

निममला- देणखये ि, इतिा िात गयी औि घि की सधु ही िहीं। मुंशीजी- शायद यह आणखिी शिाित हो।

निममला- कैसी बातें मुंह से निकालत ेहैं? जायेंगे कहा?ं ककसी याि-दोस्त के यहा ंपड िहे होंगे। मुंशीजी- शायद ऐसी ही हो। ईश्वि किे ऐसा ही हो। निममला- सबेिे आवें, तो जिा तम्बीह कीजजएगा। मुंशीजी- खूब अच्छी तिह करंुगा। निममला- चललए, खा लीजजए, दिू बहुत हुई। मुंशीजी- सबेिे उसकी तम्बीह किके खाऊंगा, कही ं ि आया, तो तुम्हें ऐसा ईमािदाि िौकि कहा ंलमलेगा?

निममला ि ेऐंठकि कहा- तो क्या मैंिे भागा ददया?

मुंशीजी- िही,ं यह कौि कहता है? तुम उसे क्यों भगािे लगीं। तुम्हािा तो काम किता था, शामत आ गयी होगी। निममला िे औि कुछ िही ंकहा। बात बढ जािे का भय था। भीति चली आयीय। सोिे को भी ि कहा। जिा देि में भूंगी िे अन्दि से ककवाड भी बन्द कि ददये। क्या मुंशीजी को िींद आ सकती थी? तीि लडकों में केवल एक बच िहा था। वह भी हाथ से निकल गया, तो कफि जीवि में अंधकाि के लसवाय औि है? कोई िाम लेिेवाल भी िही ंिहेगा। हा! कैसे-कैसे ित्न हाथ से निकल गये? मुंशीजी की आंखों से अश्रधुािा बह िही थी, तो कोई आश्चयम है? उस व्यापक पश्चाताप, उस सघि ग्लानि-नतलमि में आशा की एक हल्की-सी िेखा उन्हें संभाले हुए थी। जजस क्षण वह िेखा लपु्त हो जायेगी, कौि कह सकता है, उि पि क्या बीतेगी? उिकी उस वेदिा की कल्पिा कौि कि सकता है?

कई बाि मुंशीजी की आंखें झपकी,ं लेककि हि बाि लसयािाम की आहट के धोखे में चौंक पड।े सबेिा होते ही मुंशीजी कफि लसयािाम को खोजिे निकले। ककसी से पछूत ेशमम आती थी। ककस मुंह से पछूें? उन्हें ककसी से सहािभुनूत की आशा ि थी। प्रकट ि कहकि मि में सब यही कहेंगे, जैसा ककया, वसैा भोगो! सािे दनि वह स्कूल के मदैािों, बाजािों औि बगीचों का चक्कि लगात े िहे, दो ददि नििाहाि िहिे पि भी उन्हें इतिी शडक्त कैसे हुई, यह वही जािें।

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िात के बािह बजे मुशंीजी घि लौटे, दिवाजे पि लालटेि जल िही थी, निममला द्वाि पि खडी थी। देखत ेही बोली- कहा भी िही,ं ि जाि ेकब चल ददये। कुछ पता चला?

मुंशीजी िे आग्िेय िेत्रों से ताकत ेहुए कहा- हट जाओ सामिे से, िही ंतो बिुा होगा। मैं आपे में िही ं हंू। यह तमु्हािी कििी है। तुम्हािे ही कािण आज मेिी यह दशा हो िही है। आज से छ: साल पहले क्या इस घि की यह दशा थी? तुमिे मेिा बिा-बिाया घि बबगाड ददया, तुमिे मेिे लहलहाते बाग को उजाड डाला। केवल एक ठंूठ िह गया है। उसका निशाि लमटाकि तभी तुम्हें सन्तोष होगा। मैं अपिा सवमिाश कििे के ललए तुम्हें घि िही ंजाया था। सखुी जीवि को औि भी सखुमय बिािा चाहता था। यह उसी का प्रायजश्चत है। जो लडके पाि की तिह फेिे जात ेथे, उन्हें मेिे जीत-ेजी तुमिे चाकि समझ ललया औि मैं आंखों से सब कुछ देखते हुए भी अंधा बिा बठैा िहा। जाओ, मेिे ललए थोडा-सा संणखया भेज दो। बस, यही कसि िह गयी है,

वह भी पिूी हो जाये। निममला िे िोते हुए कहा- मैं तो अभाचगि हंू ही, आप कहेंगे तब जािूगंी? िे जािे ईश्वि िे मझु ेजन्म क्यों ददया था? मगि यह आपि ेकैसे समझ ललया कक लसयािाम आवेंगे ही िही?ं

मुंशीजी िे अपिे कमिे की ओि जात े हुए कहा- जलाओ मत जाकि खुलशयां मिाओ। तुम्हािी मिोकामिा पिूी हो गयी। निममला सािी िात िोती िही। इतिा कलंक! उसि ेजजयािाम को गहिे ले जात ेदेखिे पि भी मुंह खोलिे का साहस िही ंककया। क्यों? इसीललए तो कक लोग समझेंगे कक यह लम्या दोषािोपण किके लडके से विै साध िही हैं। आज उसके मौि िहिे पि उसे अपिाचधिी ठहिाया जा िहा है। यदद वह जजयािाम को उसी क्षण िोक देती औि जजयािाम लज्जावश कहीं भाग जाता, तो क्या उसके लसि अपिाध ि मढा जाता?

लसयािाम ही के साथ उसिे कौि-सा दवु्यमवहाि ककया था। वह कुछ बचत किि ेके ललए ही ववचाि से तो लसयािाम से सौदा मंगवाया किती थी। क्या वह बचत किके अपिे ललए गहिे गढवािा चाहती थी? जब आमदिी की यह हाल हो िहा था तो पसेै-पसेै पि निगाह िखिे के लसवाय कुछ जमा कििे का उसके पास औि साधाि ही क्या था? जवािों की जजन्दगी का तो कोई भिोसा ही ंिहीं, बढूों की जजन्दगी का क्या दठकािा? बच्ची के वववाह के

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ललए वह ककसके सामिे हाथ फैलती? बच्ची का भाि कुद उसी पि तो िही ंथा। वह केवल पनत की सवुवधा ही के ललए कुछ बटोििे का प्रयत्न कि िही थी। पनत ही की क्यों? लसयािाम ही तो वपता के बाद घि का स्वामी होता। बदहि के वववाह कििे का भाि क्या उसके लसि पि ि पडता? निममला सािी कति- व्योंत पनत औि पतु्र का संकट-मोचि किि ेही के ललए कि िही थी। बच्ची का वववाह इस परिजस्थनत में सकंट के लसवा औि क्या था? पि इसके ललए भी उसके भाग्य में अपयश ही बदा था। दोपहि हो गयी, पि आज भी चलू्हा िही ंजला। खािा भी जीवि का काम है, इसकी ककसी को सधु ही िथी। मुंशीजी बाहि बेजाि-से पड ेथे औि निममला भीति थी। बच्ची कभी भीति जाती, कभी बाहि। कोई उससे बोलिे वाला ि था। बाि-बाि लसयािाम के कमिे के द्वाि पि जाकि खडी होती औि ‘बयैा-बयैा’ पकुािती, पि ‘बयैा’ कोई जवाब ि देता था। संध्या समय मुंशीजी आकि निममला से बोले- तुम्हािे पास कुछ रुपये हैं?

निममला िे चौंककि पछूा- क्या कीजजएगा। मुंशीजी- मैं जो पछूता हंू, उसका जवाब दो। निममला- क्या आपको िही ंमालमू है? देिेवाले तो आप ही हैं। मुंशीजी- तुम्हािे पास कुछ रुपये हैं या िहीं अगेि हों, तो मझु ेदे दो, ि हों तो साफ जवाब दो। निममला ि ेअब भी साफ जवाब ि ददया। बोली- होंगे तो घि ही में ि होंगे। मैंिे कही ंऔि िहीं भेज ददये। मुंशीजी बाहि चले गये। वह जाित ेथे कक निममला के पास रुपये हैं, वास्तव में थे भी। निममला िे यह भी िही ंकहा कक िही हैं या मैं ि दूंगी, उि उसकी बातों स ेप्रकट हो यगया कक वह देिा िहीं चाहती। िौ बजे िात तो मुंशीजी िे आकि रुजक्मणी से काह- बहि, मैं जिा बाहि जा िहा हंू। मेिा बबस्ति भूंगी से बंधवा देिा औि टं्रक में कुछ कपड ेिखवाकि बन्द कि देिा । रुजक्मणी भोजि बिा िही थीं। बोलीं- बहू तो कमेिे में है, कह क्यों िही देत?े कहा ंजािे का इिादा है?

मुंशीजी- मैं तुमसे कहता हंू, बहू से कहिा होता, तो तुमसे क्यों कहाता? आज तुमे क्यों खािा पका िही हो?

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रुजक्मणी- कौि पकाव?े बहू के लसि में ददम हो िहा है। आणखिइस वक्त कहा ंजा िहे हो? सबेिे ि चले जािा। मुंशीजी- इसी तिह टालत-ेटालते तो आज तीि ददि हो गये। इधि-इधि घमू-घामकि देखूं, शायद कही ंलसयािाम का पता लमल जाये। कुछ लोग कहते हैं कक एक साध ुके साथ बातें कि िहा था। शायद वह कही ंबहका ले गया हो। रुजक्मणी- तो लौटोगे कब तक?

मुंशीजी- कह िही ंसकता। हफ्ता भि लग जाये महीिा भि लग जाये। क्या दठकािा है?

रुजक्मणी- आज कौि ददि है? ककसी पंडडत से पछू ललया है कक िही?ं

मुंशीजी भोजि कििे बठेै। निममला को इस वक्त उि पि बडी दया आयी। उसका सािा क्रोध शान्त हो गया। खुद तो ि बोली, बच्ची को जगाकि चमुकािती हुई बोली- देख, तेिे बाबजूी कहां जो िहे हैं? पछू तो?

बच्ची िे द्वाि से झाकंकि पछूा- बाब ूदी, तहां दात ेहो?

मुंशीजी- बडी दिू जाता हंू बेटी, तुम्हािे भयैा को खोजिे जाता हंू। बच्ची ि ेवही ंसे खड-ेखड ेकहा- अम बी तलेंगे।

मुंशीजी- बडी दिू जाते हैं बच्ची, तुम्हािे वास्त ेचीजें लायेंगे। यहां क्यों िहीं आती?

बच्ची मसु्किाकि नछप गयी औि एक क्षण में कफि ककवाड से लसि निकालकि बोली- अम बी तलेंगे। मुंशीजी िे उसी स्वि में कहा- तुमको िहम ले तलेंगे। बच्ची- हमको क्यों िई ले तलोगे?

मुंशीजी- तुम तो हमािे पास आती िही ंहो। लडकी ठुमकती हुई आकि वपता की गोद में बठै गयी। थोडी देि के ललए मुंशीजी उसकी बाल-क्रीडा में अपिी अन्तवेदिा भलू गये। भोजि किके मुंशीजी बाहि चले गये। निममला खडके़ी ताकती िही। कहिा चाहती थी- व्यथम जो िहे हो, पि कह ि सकती थी। कुछ रुपये निकाल कि देिे का ववचाि किती थी, पि दे ि सकती थी। अंत को ि िहा गया, रुजक्मणी से बोली- दीदीजी जिा समझा दीजजए,

कहा ंजा िहे हैं! मेिी जबाि पकडी जायेगी, पि बबिा बोल ेिहा िही ंजाता। बबिा दठकािे कहां खोजेंगे? व्यथम की हैिािी होगी।

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रुजक्मणी ि ेकरुणा-सचूक िेत्रों से देखा औि अपिे कमिे में चली गईं। निममला बच्ची को गोद में ललए सोच िही थी कक शायद जािे के पहले बच्ची को देखिे या मझुसे लमलिे के ललए आवें, पि उसकी आशा ववफल हो गई? मुंशीजी िे बबस्ति उठाया औि तांगे पि जा बठेै।

उसी वक्त निममला का कलेजा मसोसिे लगा। उसे ऐसा जाि पडा कक इिसे भेंट ि होगी। वह अधीि होकि द्वाि पि आई कक मुंशीजी को िोक ले,

पि तागंा चल चकुा था।

पच्चीस

ि ि गजुििे लगे। एक महीिा पिूा निकल गया, लेककि मुशंीजी ि लौटे। कोई खत भी ि भेजा। निममला को अब नित्य यही चचन्ता बिी

िहती कक वह लौटकि ि आये तो क्या होगा? उसे इसकी चचन्ता ि होती थी कक उि पि क्या बीत िही होगी, वह कहां मािे-मािे कफित े होंगे, स्वास््य कैसा होगा? उसे केवल अपिी औिं उससे भी बढकि बच्ची की चचन्ता थी। गहृस्थी का निवामह कैसे होगा? ईश्वि कैसे बेडा पाि लगायेंगे? बच्ची का क्या हाल होगा? उसि ेकति-व्योंत किके जो रुपये जमा कि िखे थे, उसमें कुछ-ि-कुछ िोज ही कमी होती जाती थी। निममला को उसमें से एक-एक पसैा निकालते इतिी अखि होती थी, मािो कोई उसकी देह से िक्त निकाल िहा हो। झुंझलाकि मुंशीजी को कोसती। लडकी ककसी चीज के ललए िोती, तो उसे अभाचगि, कलमुंही कहकि झल्लाती। यही िही,ं रुजक्मणी का घि में िहिा उसे ऐसा जाि पडता था, मािो वह गदमि पि सवाि है। जब हृदय जलता है, तो वाणी भी अजग्िमय हो जाती है। निममला बडी मधिु-भावषणी िी थी, पि अब उसकी गणिा ककम शाओ में की जा सकती थी। ददि भि उसके मखु से जली-कटी बातें निकला किती थीं। उसके शब्दों की कोमलता ि जाि ेक्या हो गई! भावों में माधयुम का कही ंिाम िहीं। भूगंी बहुत ददिों से इस घि मे िौकि थी। स्वभाव की सहिशील थी, पि यह आठों पहहि की बकबक उससे भी ि सकी गई। एक ददि उसिे भी घि की िाह ली। यहां तक कक जजस बच्ची को प्राणों से भी अचधक प्याि किती थी, उसकी सिूत से भी घणृा हो गई। बात-बात पि घडुक पडती, कभी-कभी माि बठैती। रुजक्मणी िोई हुई बाललका को

दद

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गोद में बठैा लेती औि चमुकाि-दलुाि कि चपु किातीं। उस अिाथ के ललए अब यही एक आश्रय िह गया था। निमेला को अब अगि कुछ अच्छा लगता था, तो वह सधुा से बात कििा था। वह वहा ंजाि ेका अवसि खोजती िहती थी। बच्ची को अब वह अपिे साथ ि ले जािा चाहती थी। पहले जब बच्ची को अपिे घि सभी चीजें खािे को लमलती थी,ं तो वह वहा ंजाकि हंसती-खेलती थी। अब वहीं जाकि उसे भखू लगती थी। निममला उसे घिू-घिूकि देखती, मदुटठयां-बांधकि धमकाती, पि लडकी भखू की िट लगािा ि छोडती थी। इसललए निममला उसे साथ ि ले जाती थी। सधुा के पास बठैकि उसे मालमू होता था कक मैं आदमी हंू। उतिी देि के ललए वह चचतंाआं से मकु्त हो जाती थी। जैसे शिाबी शिाब के िश ेमें सािी चचन्ताएं भलू जाता है, उसी तिह निममला सधुा के घि जाकि सािी बातें भलू जाती थी। जजसिे उसे उसके घि पि देखा हो, वह उसे यहां देखकि चककत िह जाता। वहीं ककम शा, कटु-भावषणी िी यहां आकि हास्यवविोद औि माधयुम की पतुली बि जाती थी। यौवि-काल की स्वाभाववक ववृत्तया ंअपिे घि पि िास्ता बन्द पाकि यहां ककलोलें कििे लगती थीं। यहा ंआते वक्त वह मागं-चोटी, कपड-ेलते्त से लसै होकि आती औि यथासाध्य अपिी ववपवत्त कथा को मि ही में िखती थी। वह यहा ंिोिे के ललए िही,ं हंसिे के ललए आती थी। पि कदाचचत ् उसके भाग्य में यह सखु भी िही ं बदा था। निममला मामली तौि से दोपहि को या तीसिे पहि से सधुा के घि जाया किती थी। एक ददि उसका जी इतिा ऊबा कक सबेिे ही जा पहंुची। सधुा िदी स्िाि किि े गई थी, डॉक्टि साहब अस्पताल जािे के ललए कपड े पहि िहे थे। महिी अपिे काम-धंधे में लगी हुई थी। निममला अपिी सहेली के कमिे में जाकि निजश्चन्त बठै गई। उसिे समझा-सधुा कोई काम कि िही होगी, अभी आती होगी। जब बठेै दो-ददि लमिट गजुि गये, तो उसिे अलमािी से तस्वीिों की एक ककताब उताि ली औि केश खोल पलंग पि लेटकि चचत्र देखि ेलगी। इसी बीच में डॉक्टि साहब को ककसी जरुित से निममला के कमिे में आिा पडा। अपिी ऐिक ढंूढते कफित े थे। बेधडक अन्दि चले आये। निममला द्वाि की ओि केश खोले लेटी हुई थी। डॉक्टि साहब को देखत ेही चौंककाि उठ बठैी औि लसि ढाकंती हुई चािपाई से उतकि खडी हो गई। डॉक्टि साहब िे लौटत ेहुए चचक के पास खड ेहोकि कहा- क्षमा कििा निममला, मझु ेमालमू

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ि था कक यहा ंहो! मेिी ऐिक मेिे कमिे में िही ंलमल िही है, ि जाि ेकहा ंउताि कि िख दी थी। मैंिे समझा शायद यहां हो। निममला सिे चािपाई के लसिहाि ेआल ेपि निगाह डाली तो ऐिक की डडबबया ददखाई दी। उसिे आगे बढकि डडबबया उताि ली, औि लसि झकुाये,

देह समेटे, संकोच से डॉक्टि साहब की ओि हाथ बढाया। डॉक्टि साबह ि ेनिममला को दो-एक बाि पहले भी देखा था, पि इस समय के-से भाव कभी उसके मि में ि आये थे। जजस ज्वाजा को वह बिसों से हृदय में दवाये हुए थे, वह आज पवि का झोंका पाकि दहक उठी। उन्होंिे ऐिक लेिे के ललए हाथ बढाया, तो हाथ कांप िहा था। ऐिक लेकि भी वह बाहि ि गये, वही ंखोए हुए से खड ेिहे। निममला िे इस एकान्त से भयभीत होकि पछूा- सधुा कही ंगई है क्या?

डॉक्टि साहब िे लसि झकुाये हुए जवाब ददया- हा,ं जिा स्िाि किि ेचली गई हैं। कफि भी डॉक्टि साहब बाहि ि गये। वहीं खड ेिहे। निममला िे कफश्र पछूा- कब तक आयेगी?

डॉक्टि साहब िे लसि झकुाये हुए केहा- आती होंगीं। कफि भी वह बाहि िहीं आये। उिके मि में घािे द्वन्द्व मचा हुआ था। औचचत्य का बंधि िहीं, भीरुता का कच्चा तागा उिकी जबाि को िोके हुए था। निममला ि े कफि कहा- कही ं घमूिे-घामिे लगी होंगी। मैं भी इस वक्त जाती हंू।

भीरुता का कच्चा तागा भी टूट गया। िदी के कगाि पि पहंुच कि भागती हुई सेिा में अद्भतु शडक्त आ जाती है। डॉक्टि साहब िे लसि उठाकि निममला को देखा औि अििुाग में डूबे हुए स्वि में बोले- िही,ं निममला, अब आती हो होंगी। अभी ि जाओ। िोज सधुा की खानति से बठैती हो, आज मेिी खानति से बठैो। बताओ, कम तक इस आग में जला करु? सत्य कहता हंू निममला...। निममला िे कुछ औि िहीं सिुा। उसे ऐसा जाि पडा मािो सािी पृ् वी चक्कि खा िही है। मािो उसके प्राणों पि सहस्रों वज्रों का आघात हो िहा है। उसिे जल्दी से अलगिी पि लटकी हुई चादि उताि ली औि बबिा मुंह से एक शब्द निकाले कमिे से निकल गई। डॉक्टि साहब णखलसयाये हुए-से िोिा मुंह बिाये खड ेिहे! उसको िोकिे की या कुछ कहिे की दहम्मत ि पडी।

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निममला ज्योंही द्वाि पि पहंुची उसिे सधुा को तागें से उतित े देखा। सधुा उसे निममला िे उसे अवसि ि ददया, तीि की तिह झपटकि चली। सधुा एक क्षण तक ववस्मेय की दशा में खडी िहीं। बात क्या है, उसकी समझ में कुछ ि आ सका। वह व्यग्र हो उठी। जल्दी से अन्दि गई महिी से पछूिे कक क्या बात हुई है। वह अपिाधी का पता लगायेगी औि अगि उसे मालमू हुआ कक महिी या औि ककसी िौकि से उसे कोई अपमाि-सचूक बात कह दी है, तो वह खड-ेखड े निकाल देगी। लपकी हुई वह अपिे कमिे में गई। अन्दि कदम िखत ेही डॉक्टि को मुंह लटकाये चािपाई पि बठेै देख। पछूा- निममला यहां आई थी?

डॉक्टि साहब िे लसि खजुलात ेहुए कहा- हा,ं आई तो थीं। सधुा- ककसी महिी-अहिी िे उन्हें कुछ कहा तो िही?ं मझुसे बोली तक िही,ं झपटकि निकल गईं। डॉक्टी साहब की मखु-काजन्त मजजि हो गई, कहा- यहा ंतो उन्हें ककसी िे भी कुछ िही ंकहा।

सधुा- ककसी िे कुछ कहा है। देखो, मैं पछूती हंू ि, ईश्वि जािता है,

पता पा जाऊंगी, तो खड-ेखड ेनिकाल दूंगी। डॉक्टि साहब लसटवपटात ेहुए बोले- मैंिे तो ककसी को कुछ कहते िही ंसिुा। तुम्हें उन्होंिे देखा ि होगा। सधुा-वाह, देखा ही ि होगा! उसिके सामिे तो मैं तागें से उतिी हंू। उन्होंि ेमेिी ओि ताका भी, पि बोली ंकुद िहीं। इस कमिे में आई थी?

डॉक्टि साहब के प्राण सखेू जा िहे थे। दहचककचात ेहुए बोले- आई क्यों िही ंथी। सधुा- तुम्हें यहां बठेै देखकि चली गई होंगी। बस, ककसी महिी िे कुछ कह ददया होगा। िीच जात हैं ि, ककसी को बात किि ेकी तमीज तो है िही।ं अिे, ओ सनु्दरिया, जिा यहां तो आ! डॉक्टि- उसे क्यों बलुाती हो, वह यहां से सीधे दिवाजे की तिफ गईं। महरियों से बात तक िहीं हुई। सधुा- तो कफि तुम्हीं िे कुछ कह ददया होगा। डॉक्टि साहब का कलेजा धक्-धक् कििे लगा। बोले- मैं भला क्या कह देता क्या ऐसा गंवाह हंू?

सधुा- तुमिे उन्हें आते देखा, तब भी बठेै िह गये?

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डॉक्टि- मैं यहां था ही िही।ं बाहि बठैक में अपिी ऐिक ढंूढता िहा, जब वहां ि लमली, तो मैंिे सोचा, शायद अन्दि हो। यहां आया तो उन्हें बठेै देखा। मैं बाहि जािा चाहता था कक उन्होंिे खुद पछूा- ककसी चीज की जरुित है? मैंिे कहा- जिा देखिा, यहां मेिी ऐिक तो िहीं है। ऐिक इसी लसिहाि ेवाल ेताक पि थी। उन्होंि ेउठाकि दे दी। बस इतिी ही बात हुई। सधुा- बस, तुम्हें ऐिक देत ेही वह झल्लाई बाहि चली गई? क्यों?

डॉक्टि- झल्लाई हुई तो िही ं चली गई। जािे लगी,ं तो मैंिे कहा- बदैठए वह आती होंगी। ि बठैी ंतो मैं क्या किता?

सधुा िे कुछ सोचकि कहा- बात कुछ समझ में िही ंआती, मैं जिा उसके पास जाती हंू। देखूं, क्या बात है। डॉक्टि-तो चली जािा ऐसी जल्दी क्या है। सािा ददि तो पडा हुआ है। सधुा िे चादि ओढत ेहुऐ कहा- मेिे पेट में खलबली माची हुई है, कहत ेहो जल्दी है?

सधुा तेजी से कदम बढती हुई निममला के घि की ओि चली औि पांच लमिट में जा पहंुची? देखा तो निममला अपिे कमिे में चािपाई पि पडी िो िही थी औि बच्ची उसके पास खडी िही थी- अम्मा,ं क्यों लोती हो?

सधुा िे लडकी को गोद मे उठा ललया औि निममला से बोली-बदहि, सच बताओ, क्या बात है? मेिे यहा ं ककसी िे तुम्हें कुछ कहा है? मैं सबसे पछू चकुी, कोई िही ंबतलाता। निममला आंस ूपोंछती हुई बोली- ककसी िे कुछ कहा िहीं बदहि, भला वहां मझु ेकौि कुछ कहता?

सधुा- तो कफि मझुसे बोली क्यों िही ंओि आत-ेही-आत ेिोि ेलगीं?

निममला- अपिे िसीबों को िो िही हंू, औि क्या। सधुा- तुम यों ि बतलाओगी, तो मैं कसम दूंगी। निममला- कसम-कसम ि िखािा भाई, मझु े ककसी िे कुछ िहीं कहा, झठू ककसे लगा दूं?

सधुा- खाओ मेिी कसम। निममला- तुम तो िाहक ही जजद किती हो। सधुा- अगि तुमिे ि बताया निममला, तो मैं समझूंगी, तुम्हें जिा भी प्रेम िही ंहै। बस, सब जबािी जमा- खचम है। मैं तुमसे ककसी बात का पदाम

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िहीं िखती औि तुम मझु ेगैि समझती हो। तुम्हािे ऊपि मझु ेबडा भिोसा थ। अब जाि गई कक कोई ककसी का िहीं होता। सधुा की ं आंखें सजल हो गई। उसिे बच्ची को गोद से उताि ललया औि द्वाि की ओि चली। निममला ि े उठाकि उसका हाथ पकड ललया औि िोती हुई बोली- सधुा, मैं तुम्हािे पिै पडती हंू, मत पछूो। सिुकि दखु होगा औि शायद मैं कफि तुम्हें अपिा मुंह ि ददखा सकंू। मैं अभचगिी िे होती, तो यह ददि दह क्यों देखती? अब तो ईश्वि से यही प्राथमिा है कक संसाि से मझु ेउठा ले। अभी यह दगुमनत हो िही है, तो आगे ि जािे क्या होगा?

इि शब्दों में जो संकेत था, वह बदुद्वमती सधुा से नछपा ि िह सका। वह समझ गई कक डॉक्टि साहब िे कुछ छेड-छाड की है। उिका दहचक-दहचककि बातें कििा औि उसके प्रश्नों को टालिा, उिकी वह ग्लानिमये,

कानंतहीि मदु्रा उसे याद आ गई। वह लसि से पांव तक कांप उठी औि बबिा कुछ कहे-सिेु लसहंिी की भांनत क्रोध से भिी हुई द्वाि की ओि चली। निममला िे उसे िोकिा चाहा, पि ि पा सकी। देखते-देखत ेवह सडक पि आ गई औि घि की ओि चली। तब निममला वहीं भलूम पि बठै गई औि फूट-फूटकि िोिे लगी।

छब्बीस

निममला ददि भि चािपाई पि पडी िही। मालमू होता है, उसकी देह में प्राण िहीं है। ि स्िाि ककया, ि भोजि किि ेउठी। संध्या समय उसे ज्वि हो आया। िात भि देह तवे की भानंत तपती िही। दसूिे ददि ज्वि ि उतिा। हा,ं कुछ-कुछ कमे हो गया था। वह चािपाई पि लेटी हुई निश्चल िेत्रों से द्वाि की ओि ताक िही थी। चािों ओि शनू्य था, अन्दि भी शनू्य बाहि भी शनू्य कोई चचन्ता ि थी, ि कोई स्मनृत, ि कोई द:ुख, मजस्तष्क में स्पन्दि की शडक्त ही ि िही थी। सहसा रुजक्मणी बच्ची को गोद में ललये हुए आकि खडी हो गई। निममला िे पछूा- क्या यह बहुत िोती थी?

रुजक्मणी- िही,ं यह तो लससकी तक िही।ं िात भि चपुचाप पडी िही, सधुा िे थोडा-सा दधू भेज ददया था। निममला- अहीरिि दधू ि दे गई थी?

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रुजक्मणी- कहती थी, वपछल ेपसेै दे दो, तो दूं। तुम्हािा जी अब कैसा है?

निममला- मझु ेकुछ िहीं हुआ है? कल देह गिम हो गई थीं। रुजक्मणी- डॉक्टि साहब का बिुा हाल है?

निममला िे घबिाकि पछूा- क्या हुआ, क्या? कुशल से है ि?

रुजक्मणी- कुशल से हैं कक लाश उठािे की तैयािी हो िही है! कोई कहता है, जहि खा ललया था, कोई कहता है, ददल का चलिा बन्द हो गया था। भगवाि ्जािे क्या हुआ था। निममला िे एक ठण्डी सांस ली औि रंुधे हुए कंठ से बोली- हाया भगवाि!् सधुा की क्या गनत होगी! कैसे जजयेगी?

यह कहत-ेकहत ेवह िो पडी औि बडी देि तक लससकती िही। तब बडी मजुश्कल से उठकि सधुा के पास जािे को तैयाि हुई पांव थि-थि कांप िहे थे, दीवाि थामे खडी थी, पि जी ि मािता था। ि जािे सधुा िे यहा ं से जाकि पनत से क्या कहा? मैंिे तो उससे कुछ कहा भी िही,ं ि जािे मेिी बातों का वह क्या मतलब समझी? हाय! ऐसे रुपवाि ् दयाल,ु ऐसे सशुील प्राणी का यह अन्त! अगि निममला को मालमू होत कक उसके क्रोध का यह भीषण परिणाम होगा, तो वह जहि का घूंट पीकि भी उस बात को हंसी में उडा देती।

यह सोचकि कक मेिी ही निषु्ठिता के कािण डॉक्टि साहब का यह हाल हुआ, निममला के हृदय के टुकड ेहोिे लगे। ऐसी वेदिा होिे लगी, मािो हृदय में शलू उठ िहा हो। वह डॉक्टि साहब के घि चली। लाश उठ चकुी थी। बाहि सन्िाटा छाया हुआ था। घि में िीयां जमा थीं। सधुा जमीि पि बठैी िो िही थी। निममला को देखत े ही वह जोि से चचल्लाकि िो पडी औि आकि उसकी छाती से ललपट गई। दोिों देि तके िोती िही।ं जब औितों की भीड कम हुई औि एकान्त हो गया, निममला िे पछूा- यह क्या हो गया बदहि, तुमिे क्या कह ददया?

सधुा अपिे मि को इसी प्रश्न का उत्ति ककतिी ही बाि दे चकुी थी। उसकी मि जजस उत्ति से शांत हो गया था, वही उत्ति उसिे निममला को ददया। बोली- चपु भी तो ि िह सकती थी बदहि, क्रोध की बात पि क्रोध आती ही है।

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निममला- मैंिे तो तुमसे कोई ऐसी बात भी ि कही थी। सधुा- तुम कैसे कहती, कह ही िही ंसकती थीं, लेककि उन्होंिे जो बात हुई थी, वह कह दी थी। उस पि मैंिे जो कुद मुंह में आया, कहा। जब एक बात ददल में आ गई,तो उसे हुआ ही समझिा चादहये। अवसि औि घात लमले, तो वह अवश्य ही पिूी हो। यह कहकि कोई िहीं निकल सकता कक मैंिे तो हंसी की थी। एकान्त में एसा शब्द जबाि पि लािा ही कह देता है कक िीयत बिुी थी। मैंिे तुमसे कभी कहा िही ंबदहि, लेककि मैंिे उन्हें कई बात तुम्हािी ओि झांकत े देखा। उस वक्त मैंिे भी यही समझा कक शायद मझु े धोखा हो िहा हो। अब मालमू हुआ कक उसक ताक-झांक का क्या मतलब था! अगि मैंिे दनुिया ज्यादा देखी होती, तो तुम्हें अपिे घि ि आिे देती। कम-से-कम तमु पि उिकी निगाह कभी ि ेपडिे देती, लेककि यह क्या जािती थी कक परुुषों के मुंह में कुछ औि मि में कुछ औि होता है। ईश्वि को जो मंजूि था, वह हुआ। ऐसे सौभाग्य से मैं वधैव्य को बिु िही ंसमझती। दरिद्र प्राणी उस धिी से कही ंसखुी है, जजसे उसका धि सांप बिकि काटिे दौड।े उपवास कि लेिा आसाि है, ववषलैा भोजि किि उससे कहीं मुजंश्कल । इसी वक्त डॉक्टि लसन्हा के छोटे भाई औि कृष्णा िे घि में प्रवेश ककया। घि में कोहिाम मच गया।

सत्ताईस

क महीिा औि गुजि गया। सधुा अपिे देवि के साथ तीसिे ही ददि चली गई। अब निममला अकेली थी। पहले हंस-बोलकि जी बहला ललया

किती थी। अब िोिा ही एक काम िह गया। उसका स्वास्थय ददि-ददि बबगडके़ता गया। पिुािे मकाि का ककिाया अचधक था। दसूिा मकाि थोड ेककिाये का ललया, यह तंग गली में था। अन्दि एक कमिा था औि छोटा-सा आंगि। ि प्रकाशा जाता, ि वाय।ु दगुमन्ध उडा किती थी। भोजि का यह हाल कक पसेै िहते हुये भी कभी-कभी उपवास कििा पडता था। बाजाि से जाये कौि? कफि अपिा कोई मदम िहीं, कोई लडका िही,ं तो िोज भोजि बिािे का कि कौि उठाये? औितों के ललये िोज भोजि किेि की आवश्यका ही क्या? अगि एक वक्त खा ललया, तो दो ददि के ललये छुट्टी हो गई। बच्ची के ललए ताजा हलआु या िोदटया ंबि जाती थी! ऐसी दशा में स्वास््य क्यों

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ि बबगडता? चचन्त, शोक, दिुवस्था, एक हो तो कोई कहे। यहा ंतो त्रयताप का धावा था। उस पि निममला िे दवा खाि ेकी कसम खा ली थी। किती ही क्या? उि थोड-ेसे रुपयों में दवा की गुंजाइश कहा ं थी? जहां भोजि का दठकािा ि था, वहा ं दवा का जजक्र ही क्या? ददि-ददि सखूती चली जाती थी। एक ददि रुजक्मणी ि ेकहा- बहु, इस तिक कब तक घलुा किोगी, जी ही से तो जहाि है। चलो, ककसी वदै्य को ददखा लाऊं। निममला ि े वविक्त भाव से कहा- जजसे िोिे के ललए जीिा हो, उसका मि जािा ही अच्छा। रुजक्मणी- बलुािे से तो मौत िहीं आती?

निममला- मौत तो बबि बलुाए आती है, बलुािे में क्यों ि आयेगी? उसके आिे में बहुत ददि लगेंगे बदहि, ज ैददि चलती हंू, उतिे साल समझ लीजजए।

रुजक्मणी- ददल ऐसा छोटा मत किो बहू, अभी संसाि का सखु ही क्या देखा है?

निममला- अगि संसाि की यही सखु है, जो इतिे ददिों से देख िही हंू,

तो उससे जी भि गया। सच कहती हंू बदहि, इस बच्ची का मोह मझु ेबांधे हुए है, िही ंतो अब तक कभी की चली गई होती। ि जाि ेइस बेचािी के भाग्य में क्या ललखा है?

दोिों मदहलाएं िोि ेलगी।ं इधि जब से निममला िे चािपाई पकड ली है,

रुजक्मणी के हृदय में दया का सोता-सा खुल गया है। दे्वष का लेश भी िही ंिहा। कोई काम किती हों, निममला की आवाज सिुते ही दौडती हैं। घण्टों उसके पास कथा-पिुाण सिुाया किती हैं। कोई ऐसी चीज पकािा चाहती हैं, जजसे निममला रुचच से खाये। निममला को कभी हंसत ेदेख लेती हैं, तो निहाल हो जाती है औि बच्ची को तो अपिे गले का हाि बिाये िहती हैं। उसी की िींद सोती हैं, उसी की िींद जागती हैं। वही बाललका अब उसके जीवि का आधाि है। रुजक्मणी ि ेजिा देि बाद कहा- बहू, तुम इतिी नििाश क्यों होती हो? भगवाि ्चाहेंगे, तो तमु दो-चाि ददि में अच्छी हो जाओगी। मेिे साथ आज वदै्यजी के पास चला। बड ेसज्जि हैं।

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निममला- दीदीजी, अब मझु ेककसी वदै्य, हकीम की दवा फायदा ि किेगी। आप मेिी चचन्ता ि किें। बच्ची को आपकी गोद में छोड ेजाती हंू। अगि जीती-जागती िहे, तो ककसी अच्छे कुल में वववाह कि दीजजयेगा। मैं तो इसके ललये अपिे जीवि में कुछ ि कि सकी, केवल जन्म देि ेभि की अपिाचधिी हंू। चाहे क्वांिी िणखयेगा, चाहे ववष देकि माि डाललएग, पि कुपात्र के गले ि मदढएगा, इतिी ही आपसे मेिी वविय है। मैंिें आपकी कुछ सेवा ि की, इसका बडा द:ुख हो िहा है। मझु अभाचगिी से ककसी को सखु िही ं लमला। जजस पि मेिी छाया भी पड गई, उसका सवमिाश हो गया अगि स्वामीजी कभी घि आवें, तो उिसे कदहएगा कक इस किम-जली के अपिाध क्षमा कि दें। रुजक्मणी िोती हुई बोली- बहू, तुम्हािा कोई अपिाध िही ं ईश्वि से कहती हंू, तुम्हािी ओि से मेिे मि में जिा भी मलै िही ं है। हा,ं मैंिे सदैव तुम्हािे साथ कपट ककया, इसका मझु ेमिते दम तक द:ुख िहेगा। निममला िे काति िेत्रों से देखत ेहुये केहा- दीदीजी, कहिे की बात िही,ं पि बबिा कहे िहा िहीं जात। स्वामीजी िे हमेशा मझु ेअववश्वास की दृवि से देखा, लेककि मैंिे कभी मि मे भी उिकी उपेक्षा िहीं की। जो होिा था, वह तो हो ही चकुा था। अधमम किके अपिा पिलोक क्यों बबगाडती? पवूम जन्म में ि जािे कौि-सा पाप ककया था, जजसका वह प्रायजश्चत कििा पडा। इस जन्म में कांटे बोती, तोत कौि गनत होती?

निममला की सांस बड ेवेग से चलिे लगी, कफि खाट पि लेट गई औि बच्ची की ओि एक ऐसी दृवि से देखा, जो उसके चरित्र जीवि की संपणूम ववमत्कथा की वहृद् आलोचिा थी, वाणी में इतिी साम्यम कहा?

तीि ददिों तक निममला की आंखों से आंसओंु की धािा बहती िही। वह ि ककसी से बोलती थी, ि ककसी की ओि देखती थी औि ि ककसी का कुछ सिुती थी। बस, िोये चली जाती थी। उस वेदिा का कौि अिमुाि कि सकता है?

चौथे ददि संध्या समय वह ववपवत्त कथा समाप्त हो गई। उसी समय जब पश-ुपक्षी अपिे-अपिे बसेिे को लौट िहे थे, निममला का प्राण-पक्षी भी ददि भि लशकारियों के निशािों, लशकािी चचडडयों के पंजों औि वाय ुके प्रचंड झोंकों से आहत औि व्यचथत अपिे बसेिे की ओि उड गया।

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महुल्ले के लोग जमा हो गये। लाश बाहि निकाली गई। कौि दाह किेगा, यह प्रश्न उठा। लोग इसी चचन्ता में थे कक सहसा एक बढूा पचथक एक बकुचा लटकाये आकि खडा हो गया। यह मुंशी तोतािाम थे।

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