shri guru amar das ji - sakhi 068

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Page 1: Shri Guru Amar Das Ji - Sakhi 068
Page 2: Shri Guru Amar Das Ji - Sakhi 068

एक दि�न डल्ले गांव के सि�क्ख एकत्रि�त होकर गुरु जी के पा� आ गए| उन्हें पता चला की गुरु जी वात्रिप� गोइं�वाल जाने को तैयार है वे इकटे्ठ होकर �र्श)न के सिलए आ गए| गुरु जी न े�बको �मझाया - भाई! आप गुरुपव), अमावस्था, �ंक्रान्तिन्त, �ीपावली, वै�ाखी और �र्शहरा आदि� रु्शभ दि�नों को इकटे्ठ हों| मिमलकर कीत)न त्रिकया करो| उत्�ाह व श्रद्धा �े कढाह प्र�ा� करके गुरु त्रिनमिमत बांट दि�या करो| त्रिनष्काम भाव �े �बकी �ेवा करो| अगर कोई वस्�हीन नजर आए तो उन्हे वस्� �ो| भूखे को रोटी �ो|

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अगर त्रिक�ी सि�क्ख का कोई काम अटक जाए तो मिमलकर इकटे्ठ होकर काम �ंवार दि�या करो| आपको �ेखकर आपके बच्चों में अचे्छ �ंस्कार आएगंे| वे भी इ� रु्शभ रीत्रित को धारण करके अपना जीवन �ंवार लेंगे|