taara rahasya 7
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7/30/2019 Taara Rahasya 7
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तारा रहसय भाग 7
चमवृता तारा =============================================
भगवती तारा क बारे िजतना िलख वो कम ही है. माँ क ववध प का ान ाधक को हर उ वृि का बोध कराता है जो उ वशुदता क ओर ल जा कती और
उ ह क ा करवा कती है. ाधना करन क िलए ाधक का मायम उका शरीर होता है जो पचमहाभूतो नमत है.. ाधना काल म जै य माला आ
का एक अलग वशष सथान है उी तरह इ बात का भी वशष महव है क वो क पर आीत हो कर ाधना प कर रहा है.
मरे य पाठक आप यहाँ इ बात को मझन क चा करे क जब हम यहाँ आन क बात कर रह तो हर आन का अपना एक वशष महव है. उ ाधनाओ क
िलए हम उ रंग क आानो को जै लाल काला इया का उपयोग करत है ठीक उी कार गु ाधना या ौय ाधना क िलए पग या फ ..ाधना क अनुार
ामी थक होती रहती है. या अपन कभी ोचा है या क पडता अगर रंग म बल ना हो एक ही एक उपयोग होता रह ? बलकल, बहत बहत क पडता है..
युक य शा है जो ाधना लता हायक होत है. ठीक वै ही जै याघ चम बना , चीता या मृग इया चम बना आन भ भ भाव का तीक है.
यहाँ आन का तापय उ बंिधत भाव या गुण है.खैर “आन” पर वशष चचा की और लख म.
खैर अब हम बात करत है वी तारा का वह प जो चम को धारण कय हए है. अब तक चम का आन प ात था लकन आज वी क उन ो प क बारे म रहसय
उजागर करन का यन कर रही ह जो अयंत लुभ और रहसयमयी है. वी का पहला प है “याघ चमवृता” जो अधो भाग म याघ का चम धारण कय हए है. बा
रज पशु का तीक है और इ पशुओ का रजा भी कहा गया है. तो जो बा का चम धारण कय हए है वह रज ्गुण को शाती है. रज ्भाव महालमी का है जो
इछा श क तीक है. जहा इछा है वह आवरण भी है.. युक हर इछा यनीय नह . यहाँ भगवती क इ प क ाधना भोतक लता अथात धन , ौलत,
ऐवय, मान मान ा क िलए क जाती है.
यहाँ इन ोन ही प म अान क ो शया है एक आवरण श और ूरा वप श . िचलए पहल श को मझत है -
चम धारण करन का अथ या है ? जो पशु भाव का नाश करन वाली है. िजह न सवयं ही पशु चम धारण कर उ पर नयंण सथापत कया हो वो ही तो भला पशु
भाव का नाश कर कती है. िअधकतर ऐा होता है क जब ाधक क इछा पूत होती है अथात जो ाधना उन भौतक ुखो को ा करन क िलए क है उ
लता क ाथ उ अय प अनक ोष भी गृसत कर त है. अानी बनात जात है. उक अतर क वशुद ान पर आवरण ाल त है. य ोष जै धन
लोलुपता उप होती है.. यहाँ जब लालच पी इछा का वग बढता है तो एक आवरण तयार होत जाता है जो उ ान क बोध रू करत जाता है.
जहा वी का य प भौतक ऐवया ता है वही उ इन ोष मु भी करता है. याघ चमा जो खु पशु का चम धारण कय हए है वह ाधक को पशु भाव मु
भी ती है. अान का नाश कर उका उदार करती है.
भगवती तारा क ूरे प म उहन चीता का चम धारण कया है. िज कार बा रज गुण का तीक है वही चीता तम गुण का तीक है. तम भाव महाकाली का
है और महाकाली याश है. य उ पा है. इनक ाधना तीण ाधना होती है.
जब या श का वग ाधक म याा हो जाता है अथात ऊजा बढ जाती हो तो उ ोध जै वकार क उिप होती है. इनका य प जीवन म वला न
वाला तो है ही . लकन वला क ाथ ाथ य वला िनलता भी ान करती है. जहा वला , भोग क ा होती है ाधक का उक ान , चत और बोध
भाव वपण हो जाता है..अथात वछन .. िखय जब य को ोध आता है तभी वह गलत काय करन पर उता हो जाता है. ज उ मय उक लोमाग
पर ि ोध हावी रहता है वो ही गलत का बोध भूल जाता है. तो वी का यहाँ प उ इ वकार मु करा कर वशुदता क ओर ल जाता है.
माँ पराबा तारा क लीला नचत अपरपार है..
इिलए वताओं न भी कहा है -
“चे कपा मर नरता च ा”