veerbhadra chalisa
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|| दोहा ||
वनद्ो वीरभ� शरण� शीश नवाओ �ात । ऊठकर ��मुह�त� शभु कर लो �भात ॥
�ानहीन तन ुजान के भजह�ह िशव कुमार। �ान धय्ान देही मोही देह� भक्ित सकुुमार।
|| चौपाई ||
जय-जय िशव ननद्न जय जगवनद्न । जय-जय िशव पाव�ती ननद्न ॥
जय पाव�ती �ाण दलुारे। जय-जय भक्तन के द:ुख टारे॥
कमल स�श्य नयन िवशाला । �वण� मकुुट ��ा�माला॥
ता� तन सनुद्र मखु सोहे। सरु नर मिुन मन छिव लय मोहे॥
मस्तक ितलक वसन सनुवाले। आओ वीरभ� कफली वाले॥
क�र भक्तन सँग हास िवलासा ।परून क�र सबक� अिभलासा॥
लिख शक्ित क� मिहमा भारी।ऐसे वीरभ� िहतकारी॥
�ान धय्ान से दश�न दीजै।बोलो िशव वीरभ� क� जै॥
नाथ अनाथ� के वीरभ�ा। डूबत भँवर बचावत श�ुा॥
वीरभ� मम कुमित िनवारो ।�मह� करो अपराध हमारो॥
वीरभ� जब नाम कहावै ।आठ� िसि� दौडती आवै॥
जय वीरभ� तप बल सागर । जय गणनाथ ि�लोग उजागर ॥
िशवदतू महावीर समाना । हनमुत समबल बुि� धामा ॥
द��जापित य� क� ठानी । सदािशव िबन सफल य� जानी॥
सित िनवेदन िशव आ�ा दीनह्ी । य� सभा सित �सथ्ान क�न्ही ॥
सबह� देवन भाग य� राखा । सदािशव क�र िदयो अनदेखा ॥
िशव के भाग य� नह� राखय्ौ। तत�्ण सती सशरीर त्यागो॥
िशव का �ोध चरम उपजायो। जटा केश धरा पर मारय्ो॥
तत�्ण टँकार उठी िदशाएँ । वीरभ� �प रौ� िदखाएँ॥
कृषण् वण� िनज तन फैलाए । सदािशव सँग ि�लोक हषा�ए॥
वय्ोम समान िनज �प धर िलन्हो । श�पु� पर दऊ चरण धर िलन्हो॥
रण�े� म� धव्ँस मचायो । आ�ा िशव क� पाने आयो ॥
िसंह समान गज�ना भारी । ि�मस्तक सह� भजुधारी॥
महाकाली �कटह� आई । �ाता वीरभ� क� नाई ॥
|| दोहा ||
आ�ा ल ेसदािशव क� चलह� ँय� क� ओर ।
वीरभ� अ� कािलका टूट पडे चह� ँओर॥
|| इित �ी वीरभ� चालीसा समा� ||