Transcript
Page 1: आइये जाने की कैसे होता है मुहूर्त संशोधन

आइये जाने की कैसे होता है मुहूत� संशोधन????

हिहंदुओं में शुभ वि��ाह की वितथि �र-�धू की जन्म राथिश के आधार पर विनकाली जाती है। �र या �धू का जन्म जिजस चंद्र नक्षत्र में हुआ होता है उस नक्षत्र के चरण में आने �ाले अक्षर को भी वि��ाह की वितथि ज्ञात करने के थिलए प्रयोग विकया जाता है। वि��ाह विक वितथि सदै� �र-�धू की कंुडली में गुण-मिमलान करने के बाद विनकाली जाती है। वि��ाह की वितथि तय होने के बाद कंुडथिलयों का मिमलान नहीं विकया जाता।

आइये जाने की क्यों विकया जाता है कंुडली मिमलान???वि��ाह स्त्री � पुरुष की जी�न यात्रा की शुरुआत मानी जाती है। पुरुष का बाया � स्त्री का दाविहना भाग मिमलाकर एक-दूसरे की शथि@ को पूरक बनाने की विAया को वि��ाह कहा जाता है। भग�ान थिश� और पा��ती को अ र्द्ध�नारीश्वर की संज्ञा देना इसी बात का प्रमाण है। ज्योवितष में चार पुरुषा F में काम नाम का पुरुषा � वि��ाह के बाद ही पूण� होता है।

शुभ मूहूत� के अनुसार वि��ाह में �र्जिजंत काल —–

�ै�ाविहक जी�न की शुभता को बनाये रखने के थिलये यह काय� शुभ समय में करना उतम रहता है. अन्य ा इस परिरणय सूत्र की शुभता में कमी होने की संभा�नाए ंबनती है. कुछ समय काल वि��ाह के थिलये वि�शेष रुप से शुभ समझे जाते है. इस काय� के थिलये अशुभ या �र्जिजंत समझे जाने �ाला भी समय होता है. जिजस समय में यह काय� करना सही नहीं रहता है. आईये देखे की वि��ाह के �र्जिजंत काल कौन से है.:-

1. नक्षत्र � सूय� का गोचर —–27 नक्षत्रों में से 10 नक्षत्रों को वि��ाह काय� के थिलये नहीं थिलया जाता है ! इसमें आदा�, पुन��सु, पुष्य, आशे्लषा, मघा, पू�ा�फाल्गुणी, उतराफाल्गुणी, हस्त, थिचत्रा, स्�ाती आदिद नक्षत्र आते है. इन दस नक्षत्रों में से कोई नक्षत्र हो � सूर्य़� सिसंह राथिश में गुरु के न�ांश में गोचर कर तो वि��ाह करना सही नहीं रहता है.

2. जन्म मास, जन्मवितथि � जन्म नक्षत्र में वि��ाह —-इन तीनों समया�मिधयों में अपनी बडी सन्तान का वि��ाह करना सही नहीं रहता है. � जन्म नक्षत्र � जन्म नक्षत्र से दस�ां नक्षत्र, 16 �ां नक्षत्र, 23 �ां नक्षत्र का त्याग करना चाविहए !

3. शुA � गुरु का बाल्य�ृ्र्द्धत्�—-शुA पू�� दिदशा में उदिदत होने के बाद तीन दिदन तक बाल्यकाल में रहता है. इस अ�मिध में शुA अपने पूण� रुप से फल देने में असम � नहीं होता है. इसी प्रकार जब �ह पश्चिZम दिदशा में होता है. 10 दिदन तक बाल्यकाल की अ�स्था में होता है. शुA जब पू�� दिदशा में अस्त होता है. तो अस्त होने से पहले 15 दिदन तक फल देने में असम � होता है � पश्चिZम में अस्त होने से 5 दिदन पू�� तक �ृ्र्द्धा�स्था में होता है. इन सभी समयों में शुA की शुभता प्राप्त नहीं हो पाती है.गुर विकसी भी दिदशा मे उदिदत या अस्त हों, दोनों ही परिरस्थिस्थवितयों में 15-15 दिदनों के थिलये बाल्यकाल में �ृ्र्द्धा�स्था में होते है.

उपरो@ दोनों ही योगों में वि��ाह काय� संपन्न करने का काय� नहीं विकया जाता है. शुA � गुरु दोनों शुभ है. इसके कारण �ै�ाविहक काय� के थिलये इनका वि�चार विकया जाता है.

4. चन्द्र का शुभ/ अशुभ होना—चन्द्र को अमा�स्या से तीन दिदन पहले � तीन दिदन बाद तक बाल्य काल में होने के कारण इस समय को वि��ाह काय� के थिलये छोड दिदया जाता है. ज्योवितष शास्त्र में यह मान्यता है की शुA, गुरु � चन्द्र इन में से कोई भी ग्रह बाल्यकाल में हो तो �ह अपने पूण� फल देने की स्थिस्थवित में न होने के कारण शुभ नहीं होता है. और इस अ�मिध में वि��ाह काय� करने पर इस काय� की शुभता में कमी होती है.

5. तीन ज्येष्ठा वि�चार—वि��ाह काय� के थिलये �र्जिजंत समझा जाने �ाला एक अन्य योग है. जिजसे वित्रज्येष्ठा के नाम से जाना जाता है. इस योग के अनुसार सबसे बडी संतान का वि��ाह ज्येष्ठा मास में नहीं करना चाविहए. इस मास में उत्पन्न �र या कन्या का वि��ाह भी ज्येष्ठा मास में करना सही नहीं रहता है ! ये तीनों ज्येष्ठ मिमले तो वित्रज्येष्ठा नामक योग बनता है.

Page 2: आइये जाने की कैसे होता है मुहूर्त संशोधन

इसके अवितरिर@ तीन ज्येष्ठ बडा लडका, बडी लडकी त ा ज्येष्ठा मास इन सभी का योग शुभ नहीं माना जाता है. एक ज्येष्ठा अ ा�त के�ल मास या के�ल �र या कन्या हो तो यह अशुभ नहीं होता � इसे दोष नहीं समझा जाता है.

6. वित्रबल वि�चार—इस वि�चार में गुरु कन्या की जन्म राथिश से 1, 8 � 12 भा�ों में गोचर कर रहा हो तो इसे शुभ नहीं माना जाता है.गुरु कन्या की जन्म राथिश से 3,6 �ें राथिशयों में हों तो कन्या के थिलये इसे विहतकारी नहीं समझा जाता है. त ा 4, 10 राथिशयों में हों तो कन्या को वि��ाह के बाद दु:ख प्राप्त होने विक संभा�नाए ंबनती है.गुरु के अवितरिर@ सूय� � चन्द्र का भी गोचर अ�श्य देखा जाता है !इन तीनों ग्रहों का गोचर में शुभ होना वित्रबल शुजिर्द्ध के नाम से जाना जाता है.

7. चन्द्र बल—चन्द्र का गोचर 4, 8 �ें भा� के अवितरिर@ अन्य भा�ों में होने पर चन्द्र को शुभ समझा जाता है. चन्द्र जब पक्षबली, स्�राथिश, उच्चगत, मिमत्रके्षत्री होने पर उसे शुभ समझा जाता है अ ा�त इस स्थिस्थवित में चन्द्र बल का वि�चार नहीं विकया जाता है.

8. सगे भाई बहनों का वि�चार—एक लडके से दो सगी बहनों का वि��ाह नहीं विकया जाता है. � दो सगे भाईयों का वि��ाह दो सगी बहनों से नहीं करना चाविहए. इसके अवितरिर@ दो सगे भाईयों का वि��ाह या बहनों का वि��ाह एक ही मुहूत� समय में नहीं करना चाविहए. जुडं�ा भाईयों का वि��ाह जुड�ा बहनों से नहीं करना चाविहए. परन्तु सौतेले भाईयों का वि��ाह एक ही लग्न समय पर विकया जा सकता है. वि��ाह की शुभता में �्ृजिर्द्ध करने के थिलये मुहूत� की शुभता का ध्यान रखा जाता है.

9. पुत्री के बाद पुत्र का वि��ाह—पुत्री का वि��ाह करने के 6 सूय� मासों की अ�मिध के अन्दर सगे भाई का वि��ाह विकया जाता है. लेविकन पुत्र के बाद पुत्री का वि��ाह 6 मास की अ�मिध के मध्य नहीं विकया जा सकता है. ऎसा करना अशुभ समझा जाता है. यही विनयम उपनयन संस्कार पर भी लागू होता है. पुत्री या पुत्र के वि��ाह के बाद 6 मास तक उपनयन संस्कार नहीं विकया जाता है दो सगे भाईयों या बहनों का वि��ाह भी 6 मास से पहले नहीं विकया जाता है.

10. गण्ड मूलोत्पन्न का वि�चार—मूल नक्षत्र में जन्म लेने �ाली कन्या अपने ससुर के थिलये कष्टकारी समझी जाती है. आशे्लषा नक्षत्र में जन्म लेने �ाली कन्या को अपनी सास के थिलये अशुभ माना जाता है. ज्येष्ठा मास की कन्या को जेठ के थिलये अच्छा नहीं समझा जाता है. इसके अला�ा वि�शाखा नक्षत्र में जन्म लेने पर कन्या को दे�र के थिलये अशुभ माना जाता है. इन सभी नक्षत्रों में जन्म लेने �ाली कन्या का वि��ाह करने से पहले इन दोषों का विन�ारण विकया जाता है.


Top Related