आइये जाने की कैसे होता है मुहूर्त...

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आआआआ आआआआ आआ आआआआ आआआआ आआ आआआआआआआ आआआआआआ???? आआआआआआआ आआआ आआआ आआआआआ आआ आआआआ आआ-आआआआआआआआआ आआआआ आआ आआआआ आआ आआआआआआ आआआआ आआआआ आआ आआआ आआ आआआआ आआआ आआआआआ आआआआआआआ आआआ आआआ आआआआ आआ आआ आआआआआआआ आआ आआआ आआआ आआआ आआआआ आआआआआआआ आआ आआआआआ आआ आआआआ आआआआआ आआआआ आआ आआआ आआआआआआ आआआआ आआआआ आआ आआआआआ आआ आआआआ आआआआ आआ-आआआ आआ आआआआआआ आआआ आआआ-आआआआआ आआआआ आआ आआआ आआआआआआ आआआआ आआआ आआआआआ आआ आआआआ आआ आआआआ आआ आआआ आआआआआआआआआ आआ आआआआआ आआआआ आआआआ आआआआआ आआआआ आआआआ आआ आआआआआ आआआआ आआआआ आआ आआआआआआ आआआआआ??? आआआआआआआ आ आआआआआ आआ आआआआ आआआआआआ आआ आआआआआआ आआआआ आआआआ आआ आआआआआ आआ आआआआ आ आआआआआआ आआ आआआआआआ आआआ आआआआआआ आआ-आआआआआ आआ आआआआआ आआ आआआआ आआआआआ आआ आआआआआआ आआ आआआआआआआआ आआआआआआ आआआआआ आआआ आआ आआआआआआआ आआ आआआआआआआआआआआआआआ आआ आआआआआआ आआआआ आआआ आआआ आआ आआआ आआआआआआआ आआआ आआआ आआआआआआआआआआ आआआ आआआ आआआ आआ आआआआआआआआआ आआआआआ आआ आआआ आआ आआआआआ आआआआआ आआआआआआआ आआ आआआआआआ आआआआआ आआआ आआआआआआ आआआ —– आआआआआआआ आआआआ आआ आआआआआ आआ आआआआआ आआआआ आआ आआआआ आआ आआआआआ आआआ आआआ आआआ आआआआ आआआ आआआआ आआ. आआआआआआ आआ आआआआआ आआआआआ आआ आआआआआ आआआ आआआ आआआआ आआ आआआआआआआआआ आआआआ आआ. आआआ आआआ आआआ आआआआआ आआ आआआआ आआआआआ आआआ आआ आआआ आआआआ आआआआ आआ. आआ आआआआआ आआ आआआआ आआआआ आआ आआआआआआ आआआआ आआआआ आआआआ आआ आआआ आआआआ आआ. आआआ आआआ आआआ आआ आआआआआ आआआआ आआआ आआआआ आआआआ आआ. आआआआ आआआआ आआ आआआआआ आआ आआआआआआ आआआ आआआ आआ आआ.:- 1. आआआआआआआ आ आआआआआ आआ आआआआ —– 27 आआआआआआआआआ आआआ आआ 10 आआआआआआआआआ आआ आआआआआ आआआआआ आआ आआआआ आआआआ आआआआ आआआआ आआ ! आआआआआ आआआआआ, आआआआआआआआ, आआआआआ, आआआआआआआ, आआआ, आआआआआआआआआआआआआआ, आआआआआआआआआआआआ, आआआआ, आआआआआआ, आआआआआआ आआआ आआआआआआआ आआआ आआ. आआ आआ आआआआआआआआआ आआआ आआ आआआ आआआआआआआ आआ आ आआआआआआ आआआआ आआआआ आआआ आआआआ आआ आआआआआ आआआ आआआआ आआ आआ आआआआआ आआआआ आआआ आआआआ आआआआ आआ.

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Page 1: आइये जाने की कैसे होता है मुहूर्त संशोधन

आइये जाने की कैसे होता है मुहूत� संशोधन????

हिहंदुओं में शुभ वि��ाह की वितथि �र-�धू की जन्म राथिश के आधार पर विनकाली जाती है। �र या �धू का जन्म जिजस चंद्र नक्षत्र में हुआ होता है उस नक्षत्र के चरण में आने �ाले अक्षर को भी वि��ाह की वितथि ज्ञात करने के थिलए प्रयोग विकया जाता है। वि��ाह विक वितथि सदै� �र-�धू की कंुडली में गुण-मिमलान करने के बाद विनकाली जाती है। वि��ाह की वितथि तय होने के बाद कंुडथिलयों का मिमलान नहीं विकया जाता।

आइये जाने की क्यों विकया जाता है कंुडली मिमलान???वि��ाह स्त्री � पुरुष की जी�न यात्रा की शुरुआत मानी जाती है। पुरुष का बाया � स्त्री का दाविहना भाग मिमलाकर एक-दूसरे की शथि@ को पूरक बनाने की विAया को वि��ाह कहा जाता है। भग�ान थिश� और पा��ती को अ र्द्ध�नारीश्वर की संज्ञा देना इसी बात का प्रमाण है। ज्योवितष में चार पुरुषा F में काम नाम का पुरुषा � वि��ाह के बाद ही पूण� होता है।

शुभ मूहूत� के अनुसार वि��ाह में �र्जिजंत काल —–

�ै�ाविहक जी�न की शुभता को बनाये रखने के थिलये यह काय� शुभ समय में करना उतम रहता है. अन्य ा इस परिरणय सूत्र की शुभता में कमी होने की संभा�नाए ंबनती है. कुछ समय काल वि��ाह के थिलये वि�शेष रुप से शुभ समझे जाते है. इस काय� के थिलये अशुभ या �र्जिजंत समझे जाने �ाला भी समय होता है. जिजस समय में यह काय� करना सही नहीं रहता है. आईये देखे की वि��ाह के �र्जिजंत काल कौन से है.:-

1. नक्षत्र � सूय� का गोचर —–27 नक्षत्रों में से 10 नक्षत्रों को वि��ाह काय� के थिलये नहीं थिलया जाता है ! इसमें आदा�, पुन��सु, पुष्य, आशे्लषा, मघा, पू�ा�फाल्गुणी, उतराफाल्गुणी, हस्त, थिचत्रा, स्�ाती आदिद नक्षत्र आते है. इन दस नक्षत्रों में से कोई नक्षत्र हो � सूर्य़� सिसंह राथिश में गुरु के न�ांश में गोचर कर तो वि��ाह करना सही नहीं रहता है.

2. जन्म मास, जन्मवितथि � जन्म नक्षत्र में वि��ाह —-इन तीनों समया�मिधयों में अपनी बडी सन्तान का वि��ाह करना सही नहीं रहता है. � जन्म नक्षत्र � जन्म नक्षत्र से दस�ां नक्षत्र, 16 �ां नक्षत्र, 23 �ां नक्षत्र का त्याग करना चाविहए !

3. शुA � गुरु का बाल्य�ृ्र्द्धत्�—-शुA पू�� दिदशा में उदिदत होने के बाद तीन दिदन तक बाल्यकाल में रहता है. इस अ�मिध में शुA अपने पूण� रुप से फल देने में असम � नहीं होता है. इसी प्रकार जब �ह पश्चिZम दिदशा में होता है. 10 दिदन तक बाल्यकाल की अ�स्था में होता है. शुA जब पू�� दिदशा में अस्त होता है. तो अस्त होने से पहले 15 दिदन तक फल देने में असम � होता है � पश्चिZम में अस्त होने से 5 दिदन पू�� तक �ृ्र्द्धा�स्था में होता है. इन सभी समयों में शुA की शुभता प्राप्त नहीं हो पाती है.गुर विकसी भी दिदशा मे उदिदत या अस्त हों, दोनों ही परिरस्थिस्थवितयों में 15-15 दिदनों के थिलये बाल्यकाल में �ृ्र्द्धा�स्था में होते है.

उपरो@ दोनों ही योगों में वि��ाह काय� संपन्न करने का काय� नहीं विकया जाता है. शुA � गुरु दोनों शुभ है. इसके कारण �ै�ाविहक काय� के थिलये इनका वि�चार विकया जाता है.

4. चन्द्र का शुभ/ अशुभ होना—चन्द्र को अमा�स्या से तीन दिदन पहले � तीन दिदन बाद तक बाल्य काल में होने के कारण इस समय को वि��ाह काय� के थिलये छोड दिदया जाता है. ज्योवितष शास्त्र में यह मान्यता है की शुA, गुरु � चन्द्र इन में से कोई भी ग्रह बाल्यकाल में हो तो �ह अपने पूण� फल देने की स्थिस्थवित में न होने के कारण शुभ नहीं होता है. और इस अ�मिध में वि��ाह काय� करने पर इस काय� की शुभता में कमी होती है.

5. तीन ज्येष्ठा वि�चार—वि��ाह काय� के थिलये �र्जिजंत समझा जाने �ाला एक अन्य योग है. जिजसे वित्रज्येष्ठा के नाम से जाना जाता है. इस योग के अनुसार सबसे बडी संतान का वि��ाह ज्येष्ठा मास में नहीं करना चाविहए. इस मास में उत्पन्न �र या कन्या का वि��ाह भी ज्येष्ठा मास में करना सही नहीं रहता है ! ये तीनों ज्येष्ठ मिमले तो वित्रज्येष्ठा नामक योग बनता है.

Page 2: आइये जाने की कैसे होता है मुहूर्त संशोधन

इसके अवितरिर@ तीन ज्येष्ठ बडा लडका, बडी लडकी त ा ज्येष्ठा मास इन सभी का योग शुभ नहीं माना जाता है. एक ज्येष्ठा अ ा�त के�ल मास या के�ल �र या कन्या हो तो यह अशुभ नहीं होता � इसे दोष नहीं समझा जाता है.

6. वित्रबल वि�चार—इस वि�चार में गुरु कन्या की जन्म राथिश से 1, 8 � 12 भा�ों में गोचर कर रहा हो तो इसे शुभ नहीं माना जाता है.गुरु कन्या की जन्म राथिश से 3,6 �ें राथिशयों में हों तो कन्या के थिलये इसे विहतकारी नहीं समझा जाता है. त ा 4, 10 राथिशयों में हों तो कन्या को वि��ाह के बाद दु:ख प्राप्त होने विक संभा�नाए ंबनती है.गुरु के अवितरिर@ सूय� � चन्द्र का भी गोचर अ�श्य देखा जाता है !इन तीनों ग्रहों का गोचर में शुभ होना वित्रबल शुजिर्द्ध के नाम से जाना जाता है.

7. चन्द्र बल—चन्द्र का गोचर 4, 8 �ें भा� के अवितरिर@ अन्य भा�ों में होने पर चन्द्र को शुभ समझा जाता है. चन्द्र जब पक्षबली, स्�राथिश, उच्चगत, मिमत्रके्षत्री होने पर उसे शुभ समझा जाता है अ ा�त इस स्थिस्थवित में चन्द्र बल का वि�चार नहीं विकया जाता है.

8. सगे भाई बहनों का वि�चार—एक लडके से दो सगी बहनों का वि��ाह नहीं विकया जाता है. � दो सगे भाईयों का वि��ाह दो सगी बहनों से नहीं करना चाविहए. इसके अवितरिर@ दो सगे भाईयों का वि��ाह या बहनों का वि��ाह एक ही मुहूत� समय में नहीं करना चाविहए. जुडं�ा भाईयों का वि��ाह जुड�ा बहनों से नहीं करना चाविहए. परन्तु सौतेले भाईयों का वि��ाह एक ही लग्न समय पर विकया जा सकता है. वि��ाह की शुभता में �्ृजिर्द्ध करने के थिलये मुहूत� की शुभता का ध्यान रखा जाता है.

9. पुत्री के बाद पुत्र का वि��ाह—पुत्री का वि��ाह करने के 6 सूय� मासों की अ�मिध के अन्दर सगे भाई का वि��ाह विकया जाता है. लेविकन पुत्र के बाद पुत्री का वि��ाह 6 मास की अ�मिध के मध्य नहीं विकया जा सकता है. ऎसा करना अशुभ समझा जाता है. यही विनयम उपनयन संस्कार पर भी लागू होता है. पुत्री या पुत्र के वि��ाह के बाद 6 मास तक उपनयन संस्कार नहीं विकया जाता है दो सगे भाईयों या बहनों का वि��ाह भी 6 मास से पहले नहीं विकया जाता है.

10. गण्ड मूलोत्पन्न का वि�चार—मूल नक्षत्र में जन्म लेने �ाली कन्या अपने ससुर के थिलये कष्टकारी समझी जाती है. आशे्लषा नक्षत्र में जन्म लेने �ाली कन्या को अपनी सास के थिलये अशुभ माना जाता है. ज्येष्ठा मास की कन्या को जेठ के थिलये अच्छा नहीं समझा जाता है. इसके अला�ा वि�शाखा नक्षत्र में जन्म लेने पर कन्या को दे�र के थिलये अशुभ माना जाता है. इन सभी नक्षत्रों में जन्म लेने �ाली कन्या का वि��ाह करने से पहले इन दोषों का विन�ारण विकया जाता है.