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  • NCERT Solutions Class 12 BADAL RAG Suryakant Tripathi Nirala Chapter 7 Hindi Aroh

    पा�यपु�तक से हल शन्

    क�वता के साथ

    1. ‘अि�थर सुख पर दखु क� छाया’ पंि�त म� ‘दखु क� छाया’ कसे कहा गया ह� और �य�? [CBSE (Delhi), 2009 (C)]

    उ�तर- क�व ने ‘दखु क� छाया’ मानव-जीवन म� आन ेवाले दखु�, क!ट� को कहा है। क�व का मानना है क

    संसार म� सुख कभी 'थायी नह)ं होता। उसके साथ-साथ दखु का +भाव रहता है। धनी शोषण करके अकूत

    संपि2त जमा करता है परंत ुउसे सदैव 3ां4त क� आशंका रहती है। वह सब कुछ 4छनन ेके डर से भयभीत

    रहता है।

    2. ‘अशा�न-पात से शा�पत उ�नत शत-शत वीर ‘ पंि�त म� कसक� ओर संकेत कया है ? [CBSE Sample Paper, 2013, (Delhi), 2009 (C)]

    उ�तर- इस पंि�त म� क�व ने पूँजीप4त या शोषक या ध4नक वग: क� ओर संकेत कया है। ‘;बजल)

  • (i) बादल गज:न करते हुए मूसलाधार वषा: करते ह�।

    (ii) पGृवी से पौध� का अकुंरण होन ेलगता है।

    (iii) मूसलाधार वषा: होती है।

    (iv) ;बजल) चमकती है तथा उसके न हो जाते ह�।

    5. 1या2या क�िजए-

    (क) 4तरती है समीर-सागर पर

    अि'थर सुख पर दखु क� छाया-

    जग के दIध Jदय पर

    4नद:य �व=लव क� =ला�वत माया-

    (ख) अKा?लका नह)ं है रे

    आतंक-भवन

    सदा पंक पर ह) होता

    जल-�व=लव-=लावन,

    उ�तर- इनक� LयाMया के ?लए 3मश: LयाMया-1 व 3 देEखए।

    कला क� बात

    1. पूर# क�वता म, कृ�त का मानवीकरण -कया गया है। आपको कृ�त का कौन-सा मानवीय :प पसंद आया और

  • Eखल-Eखल,

    हाथ Bहलाते,

    तुझ ेबुलात,े

    इस काLयांश म� छोटे-छोटे पौध� को शो�षत वग: के Oप म� बताया गया है। इनक� संMया सवा:न होत ेह�। ये हाथ Bहला-Bहलाकर 3ां4त का आहवान करत ेहुए +तीत होत े

    ह�। यह कQपना अ2यंत सुंदर है।

    2. क�वता म, :पक अलंकार का योग कहाँ-कहाँ हुआ है ? संबं>धत वा

  • इस +कार है-

    4. क�व बादल' को -कस :प म, देखता ह$? का@लदास ने ‘मेघदतू’ का1य म, मेघ' को दतू के :प म, देखा/अप अपना कोई काMप�नक Nबबं द#िजए।

    उ�तर- क�व बादल� को 3ां4त के +तीक के Oप म� देखता है। बादल� के Vवारा वह समाज म� Lया=त शोषण

    को ख2म करना चाहता है ताक शो�षत वग: को अपने अ

  • (vii) U�त नयन- आँख� क� Lयाकुलता।

    (viii) जीण/ बाहु- भुजाओं क� दबु:लता।

    (ix) फुMल जलज- कमल क� Eखलावट।

    (x) Wदध कोष- भरे हुए खजान� हेतु।

    का1यगत �वशषेताए-ँ 4नराला जी छायावाद के आधार 'तंभ थे। इनके काLय म� छायावाद, +ग4तवाद तथा

    +योगवाद) काLय क� �वशषेताए ँ?मलती ह�। ये एक ओर कबीर क� परंपरा से जुड़ ेह� तो दसूर) ओर

    समकाल)न क�वय� क� +ेरणा के Zोत भी ह�। इनका यह �व'ततृ काLय-संसार अपने भीतर संघष: और

    जीवन, 3ां4त और 4नमा:ण, ओज और माधयु:, आशा-4नराशा के VवंVव को कुछ इस तरह समेटे हुए है क

    वह कसी सीमा म� बँध नह)ं पाता। उनका यह 4नब:ध और उदा2त काLय-Lयि�त2व क�वता और जीवन म�

    फ़क: नह)ं रखता। वे आपस म� घुले-?मले ह�। उनक� क�वता उQलास-शोक, राग-�वराग, उ2थान-पतन,

    अधंकार-+काश का सजीव कोलाज है। भाषा-शैल)-4नराला जी ने अपने काLय म� त2सम श\दावल)यु�त

    खड़ी बोल) का +योग कया है। बँगला भाषा के +भाव के कारण इनक� भाषा म� संगीता2मकता और गेयता

    का गुण पाया जाता है। +ग4तवाद क� भाषा सरल, सहज तथा बोधगDय है। इनक� भाषा म� उदू:, फ़ारसी

    और अ]ेंजी के श\द इस तरह +यु�त हुए ह� मानो Bहदं) के ह) ह�।

    क�वता का �तपादय एवं सार

    �तपादय- ‘ बादल राग ‘ क�वता ‘अना@मका’ काLय से ल) गई है। 4नराला को वषा: ऋत ुअह� देखकर

    पूँजीप4त वग: भयभीत होता है। बादल� क� 3ां4त का लाभ दबे-कुचले लोग� को ?मलता है, इस?लए कसान

    और उसके खेत� म� बड़-ेछोटे पौधे बादल� को हाथ Bहला-Bहलाकर बुलाते ह�। वा'तव म� समाज म� 3ां4त क�

    आवaयकता है, िजससे आ

  • थाम लेता है। आकाश म� तरैत ेबादल ऐसे लगते ह� मानो वWपात से सैकड़� वीर धराशायी हो गए ह� और

    उनके शर)र cत-�वcत ह�।

    क�व कहता है क छोटे व हलके पौधे Bहल-डुलकर हाथ Bहलात ेहुए बादल� को बलुात े+तीत होत ेह�। क�व बादल� को

    3ां4त-दतू क� सeंा देता है। बादल� का गज:न कसान� व मजदरू� को नव4नमा:ण क� +ेरणा देता है। 3ां4त से सदा आम

    आदमी को ह) फ़ायदा होता है। बादल आतकं के भवन जैसे ह� जो क�चड़ पर कहर बरसात ेह�। बरुाईOपी क�चड़ के

    सफ़ाए के ?लए बादल +लयकार) होत ेह�। छोटे-से तालाब म� उगने वाले कमल सदैव उसके पानी को 'वfछ व 4नम:ल

    बनात ेह�। आम Lयि�त हर ि'थ4त म� +स>न व सखुी रहत ेह�। अमीर अ2य

  • [CBSE Sample Paper-II, 2007, (Outside) 2008, 2009, (Delhi) 2012]

    शPदाथ/- �तरती-तैरती। समीर-सागर-वायुOपी समुb। अि�थर- cEणक, चचंल। दQध-जला हुआ। �नद/य- बेदद:। �वलव- �वनाश। ला�वत- बाढ़ से ]'त। रण-तर#- यु` क� नौका। माया- खेल। आकांZा-कामना। भेर#- नगाड़ा। सजग- जागOक। सु त- सोया हुआ। अकुंर- बीज से 4नकला न>हा पौधा। उर- Jदय। ताकना- अपेcा से एकटक देखना।

    संग- +'तुत काLयांश हमार) पाiयपु'तक ‘आरोह, भाग-2’ म� संक?लत क�वता ‘बादल राग’ से उ`ृत

    है। इसके रच4यता महाक�व सूय/कांत NUपाठ\ ‘�नराला’ ह�। इसम� क�व ने बादल को �व=लव व 3ां4त का

    +तीक मानकर उसका आहवान कया है।

    1या2या- क�व बादल को संबो

  • (ग) ‘अि'थर सुख पर दखु क� छाया-पंि�त का अथ: बताइए। (घ) पGृवी म� सोए हुए अकुंर� पर कसका �या +भाव पड़ता ह�?

    उ�तर-

    (क) क�व बादल का आहवान करता है �य�क वह उसे 3ां4त का +तीक मानता है। बादल बरसने से आम

    जनता को राहत ?मलती है तथा ;बजल) न

  • तुझ ेबुलात,े �व=लव-रव से छोटे ह) ह� शोभा पात।े

    शPदाथ/- वष/ण-बाFरश। मूसलधार-जोर� क� बाFरश। Rदय थामना- भयभीत होना। घोर- भयंकर। वS- हंुकार-वWपात के समान भयंकर आवाज़। अश�न-पात- ;बजल)

  • शन्

    (क) संसार के भयभीत होन ेका �या कारण ह�? (ख) 3ां4त क� गज:ना पर कौन है ? (ग) गगन-'पशl 'पmधा -धीर- कौन है ? (घ) लघुभार, श'य अपार कनके +तीक ह�। वे बादल� का 'वागत कस +कार करते ह�?

    उ�तर-

    (क) बादल भयंकर मूसलाधार बाFरश करते ह� तथा वW के समान कठोर गज:ना करते ह�। इस भीषण

    गज:ना को सुनकर +लय क� आशंका से संसार भयभीत हो जाता है।

    (ख) 3ां4त क� गज:ना से 4नDन वग: के लोग हँसत ेह� �य�क इस 3ां4त से उ>ह� कोई नुकसान नह)ं होता,

    अ�पतु उनका शोषण समा=त हो जाता है। उ>ह� उनका खोया अ

  • आतंक अकं पर काँप रहे ह�। धनी, वW-गज:न से बादल U'त नयन-मुख ढाँप रहे ह�। (पृ̂ ठ-42-43) [CBSE (Delhi) 2009, 2010, 2011]

    शPदाथ/–अ_ा@लका–अटार), महल। आतंक –भवन-भय का 4नवास। यक- क�चड़। लावन- बाढ़। Zु`- तुfछ। फुल- Eखला हुआ, +स>न। जलज-कमल। नीर- पानी। शोक-दखु। शैशव- बचपन। सुकुमार- कोमल। Wदध- pका हुआ। कोष- खजाना। ZुPध- कु`। तोष- शां4त। अगंना- प2नी। अगं-शर)र। अक- गोद। वS-गज/न-वW के समान गज:न। U�त- भयभीत।

    संग- +'तुत काLयांश हमार) पाiयपु'तक ‘आरोह, भाग-2’ म� संक?लत क�वता ‘बादल राग’ से उ`ृत

    है। इसके रच4यता महाक�व सूय/कांत NUपाठ\ ‘�नराला’ ह�। इसम� क�व ने बादल को �व=लव व 3ां4त का

    +तीक मानकर उसका आहवान कया है।

    1या2या- क�व कहता है क पूँजीप4तय� के ऊँचे-ऊँचे भवन माU भवन नह)ं ह� अ�पतु ये गर)ब� को

    आतंकत करने वाले भवन ह�। ये सदैव गर)ब� का शोषण करत ेह�। वषा: से जो बाढ़ आती है, वह सदा

    क�चड़ से भर) धरती को ह) डुबोती है। भयंकर जल-=लावन सदैव क�चड़ पर ह) होता है। यह) जल जब

    कमल क� पंखrुड़य� पर पड़ता है तो वह अन हो उठता है। +लय से पूँजीप4त वग: ह) +भा�वत

    होता है। 4नDन वग: म� बfच ेकोमल शर)र के होत ेह� तथा रोग व क!ट क� दशा म� भी सदैव मु'कराते रहत े

    ह�। वे 3ां4त होन ेम� भी +स>न रहत ेह�। पूँजीप4तय� न ेआह� शां4त नह)ं है। वे अपनी �+याओ ं

    से ?लपटे हुए ह� फर भी बादल� क� गज:ना सुनकर काँप रहे ह�। वे 3ां4त क� गज:न सुनकर भय से अपनी

    आँख� बँद कए हुए ह� तथा मुँह को 4छपाए हुए ह�।

    �वशषे-

    (i) क�व ने पूँजीप4तय� के �वलासी जीवन पर कटाc कया है।

    (ii) +तीका2मक भाषा का +योग है।

    (iii) त2सम श\दावल)युक्त खड़ी बोल) है।

    (iv) पंक पर, अगंना-अगं, आतंक अकं म� अनु+ास अलंकार है।

    (v) मु�तक छंद है।

    शन्

    (क) ‘पक’ और ‘अKा?लका’ कसके +तीक ह�? (ख) शैशव का सुकुमार शर)र कसम� हँसता रहता ह�?

  • (ग) ध4नक वण: के लोग कससे भयभीत ह�? वे भयभीत होन ेपर �या कर रहे ह�? (घ) क�व ने भय को कैसे वEण:त कया है?

    उ�तर-

    (क) ‘पंक’ आम आदमी का +तीक है तथा ‘अKा?लका’ शोषक पूँजीप4तय� का +तीक है।

    (ख) शैशव का सुकुमार शर)र रोग व शोक म� भी हँसता रहता है। दसूरे श\द� म�, 4नDन वग: क!ट म� भी

    +स>न रहता है।

    (ग) फूलोग3ांतसे भावी ह�। वे अपान �पलय� कागदम� लोहुएह� तथा भायसेअन ऑ� व मुँ को ढँक रहे ह�।

    (घ) क�व ने बादल� क� गज:ना से ध4नक� क� सुखी िजंदगी म� खलल Bदखाया है। वे सुख के cण� म� भी

    भय से काँप रहे ह�। इस +कार भय का

  • 1या2या- क�व कहता है क हे �व=लव के वीर! शोषण के कारण कसान क� बाँह� शि�तह)न हो गई ह�,

    उसका शर)र कमजोर हो गया है। वह शोषण को ख2म करने के ?लए अधीर होकर तुझ ेबुला रहा है।

    शोषक� ने उसक� जीवन-शि�त छuन ल) है, उसका सार त22व चसू ?लया है। अब वह हtrडय� का ढाँचा

    माU रह गया है। हे जीवन-दाता! तुम बरस कर कसान क� गर)बी दरू करो। 3ां4त करके शोषण को

    समा=त करो।

    �वशषे-

    (i) क�व ने कसान क� दयनीय दशा का सजीव

  • उ2प>न होती है तथा पानी क� कमी दरू होती है। इसके अलावा 3ां4त से शोषण समा=त होता है और

    जीवन खशुहाल बनता है।

    का1य-सbदय/ बोध संबंधी शन्

    1. �नcन@लAखत का1यांश' को पढ़कर पूछे गए Yन' के उ�तर द#िजए–

    p` कोष है, cु\ध तोष अगंना-अग से ?लपट भी आतंक अकं पर काँप रहे ह�। धनी, वW-गज:न से बादल U'त नयन-मुख ढाँप रहे ह�। जीण: बाहु, है शीण: शर)र,

    तुझ ेबुलाता कृषक अधीर, ऐ �व=लव के वीर! चसू ?लया ह� उसका सार, धनी, वज़-गजन से बादल। U'त-नयन मुख ढाँप रहे ह�। ऐ जीवन के पारावार ! (CBSE (Outside), 2008 (C)]

    शन्

    (क) ध4नक� और कृषक� के ?लए +यु�त �वशषेण� का सvदय: 'प!ट क�िजए। (ख) ‘�वQपव के वीर’ श\द के सvदय: को उVघाBटत क�िजए। (ग) इस कLयांस क� भा�षक �वशषेताओ ंपर +काश डा?लए।

    उ�तर-

    (क) क�व ने ध4नक� के ?लए p`, आतंक, U'त आBद �वशषेण� का +योग कया है। ये उनक� घबराहट क�

    दशा को बतात ेह�। कृषक� के ?लए जीण:, शीण:, अधीर आBद +यु�त �वशषेण� से कसान� क� द)न-ह)न

    दशा का

  • (ख) ‘�व=लव के वीर’ श\द का +योग बादल के ?लए कया गया है। बादल को 3ां4त का अ]णी माना गया

    है। बादल हर तरफ �वनाश कर सकता है। इस �वनाश के उपरांत भी बादल का अि'त2व kय�-का-2य� रह

    जाता है।

    (ग) इस काLयांश म� क�व ने �वशषेण� का सुंदर +योग कया है। आतंक, वW, जीण:-शीण: आBद �वशषेण

    मन:ि'थ4त को सट)क Oप से Lय�त करत ेह�। त2सम श\दावल) का सुंदर +योग है। खड़ी बोल) म� सहज

    अ?भLयि�त है। संबोधन शैल) भी है। अनु+ास अलंकार क� छटा है।

    2.

    अशा4न-पात से शा�पत उ>नत शत-शत वीर, cत-�वcत हत अचल-शर)र, गगन-'पशl सप्mधा धीर, हँसत ेह� छोटे पैधे लघुभार- श'य अपार,

    Bहल-Bहल Eखल-Eखल, हाथ Bहलाते, तुझ ेबुलात,े �व=लव-रव से छोटे ह) ह� शोभा पाते। [CBSE (Outside), 2011 (C)]

    शन्

    (क) आशय 'प!ट क�िजए-‘ �व=लव रव से छोटे ह) ह� शोभा पात े‘। (ख) पवत के ?लए +यु�त �वशषेण� का सvदय: 'प!ट क�िजए। (ग) वWपात करने वाले भीषण बादल� का छोटे पौधे कैसे आहवान करते ह� और �य� ?

    उ�तर-

    (क) इसका आशय यह है क 3ां4त से शोषक वग: Bहल जाता है। उसे इससे अपना �वनाश Bदखाई देता है।

    कसान-मजदरू वग: अथा:त शो�षत वग: 3ां4त से +स>न होता है। �य�क उ>ह� इससे शोषण से मुि�त

  • तथा खोया अह� >याय ?मलने क� आशा होती है। उ>ह� ह) सवा:

  • (क) काLय क� दो भा�षक �वशषेताए ँ

    (i) त2सम श\दावल) क� बहुलतायु�त खड़ी बोल)।

    (ii) भाषा म� +तीका2मकता है।

    (ख) शोक म� भी हँसता है-�वरोधाभास अलंकार।

    (ग) क�व के अनुसार ध4नय� के आवास शोषण के क� b ह�। यहाँ सदा शोषण के नए-नए तर)के ढँूढ़े जाते ह�।

    लेकन शोषण क� चरम-सीमा के बाद होन ेवाल) 3ां4त शोषण का अतं कर देती है। साथ ह) शो�षत वग: के

    बfच ेभी संघष:शील तथा जुझाO होते ह�। वे रोग तथा शोक म� भी +स>न

  • (क) इस काLयांश म� क�व ने बादल को 3ां4त का +तीक माना है। वह कहता है क जीवन के सुख� पर

    दखु� क� अoaय c4त ह) है। बालक शो सुलेह पथृ के पाप ंम� ;बजअकुंल हक आ�शक ओ 4नहारत ेह�।

    (ख) ‘समीर सागर’, ‘�व=लव के बादल’, ‘दखु क� छाया म�’ Oपक अलंकार; ‘फर-फर’ म� पुनpि�त +काश

    अलंकार तथा ‘सजग सु=त’ म� अनु+ास अलंकार ह�। इन अलंकार� के +योग से भा�षक सvदय: बढ़ गया है।

    (ग) काLयांश म� +यु�त भाषा सं'कृत श\दावल)यु�त खड़ी बोल) है िजसम� oaय ;बबं साकार हो उठा है।

    ‘मेर) गज:न’ म� बादल� क� गज:ना से xLय ;बबं उपि'थत है।


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