ganga aarti

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जय गंगा मैया मां जय सुरसरी मैया। भवबाररधध उाररणी अतिहि सु नैया।। िरी ऩद ऩदम सूिा ववमऱ वाररधारा। िदेव भागीरथी शुधि ऩुयगारा।। शंकर जिा वविाररणी िारणी य िाऩा। सागर ऩु गन िारणी िारणी सकऱ ऩाऩा।। गंगा -गंगा जो जन उिारिे मुखस। दूर देश म थथि भी िुरंि िरन सुखस।। ि की अथथ ितनक िुव जऱ धारा ऩावै। सो जन ऩावन िोकर ऩरम धाम जावे।। ि-िटवासी िवर जऱ थऱ िराणी। ऩी -ऩशु ऩिंग गति ऩावे तनवााणी।। मािु दयामयी कीजै दीनन ऩद दाया। भु ऩद ऩदम मऱकर िरी ऱीजै माया।।

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Gagnga dashahara par aarti karin

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