shri guru arjan dev ji sakhi - 052a

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Spiritual


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Page 1: Shri Guru Arjan Dev Ji Sakhi - 052a
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एक दि�न समुं�े ने गुरु अर्ज�न �ेव र्जी से प्रार्थ�ना की किक महारार्ज! हमारे मन में एक शंका है जिर्जसका आप किनवारण करें| उन्होंने कहा सनमुख कौन होता है और बेमुख कौन? गुरु र्जी पहले उसकी बात को सुनते रहे कि+र उन्होंने वचन किकया, भाई सनमुख वह होता है र्जो स�ैव अपनी मालिलक की आज्ञा में रहता है|रै्जसे परमात्मा ने मनुष्य को नाम र्जपने व स्नान करने के लिलए संसार में भेर्जा है|

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इस प्रकार र्जो मनुष्य इस आज्ञा का पालन करता है जिर्जसमे शारीरिरक शुद्धता के लिलए स्नान करना व मन की शुद्धता के लिलए नाम र्जपना और शारीरिरक आरोग्यता के लिलए भूखे नंग ेको यर्था शलि: �ान करता है वाही सनमुख होता है| वही गुरु की आज्ञा में रहने वाला गुरु लिसख होता है| ऐसा मनुष्य स�ैव सुखी रहता है तर्था दुख उसके नर्ज�ीक नहीं आता|

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गुरु र्जी मनमुख भाव बेमुख की बात करन ेलगे किक वह पुरुष र्जो स�ा माया के व्यवहार में ही लगा रहता है| अपन ेमालिलक प्रभु की ओर ध्यान नहीं �ेता और सारा समय मोह-माया में ही व्यतीत कर �ेता है| ऐसा पुरुष स�ैव दुखी रहता है| वह कभी भी सुख को प्राप्त नहीं कर पाता| इस प्रकार गुरूर्जी नी सनमुख व बेमुख की परिरभाषा समंु�े को समझाई|