भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से...

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1 भारतदु और भि १. नवजागरण और धमसुधार: भारतदु कᳱ सया हजारीसाद िवेदी सूरदास के सााजक आधार के बारे िखते हए यान ᳰदिाते ह ᳰक वह एक ऐसे साज से आये थे जहाा का “गृहथ जीवन विासता का जीवन था, याचार और फरेब का जीवन था और ‘यौवन-द, जन-द, धन-द, वध-द भारी’ का जीवन था।” 1 ठीक इह अथ तो नह िᳰकन भारतदु काशी के जस पᳯरवार से आये थे वहाि का जीवन भी या ऐसा ही नह था? वैणव ऻदय भारतदु का या यह भी एक प नह था? राचि शुि भारतदु को ाचीन और नवीन के सिधथि पर खड़े एक नए युग के वतमक के ऱप देखते थे। भारतदु कᳱ वशता बताते हए शुि जी िखते ह: “अपनी सवमतोुखी तभा के बि से एक ओर तो वे पदाकर, िजदेव कᳱ परिपरा ᳰदखाई पड़ते थे, दूसरी ओर बिग देश के ाइकि और हेच कᳱ ेणी । एक ओर तो राधा कृण कᳱ भि झूिते हए नई भिाि गूाथते ᳰदखाई देते थे, दूसरी ओर िᳰदर के अधकाᳯरय और टीकाधारी भि के चᳯर कᳱ हिसी उड़ाते और िᳰदर, ᳫी शा, साज सुधार आᳰद पर ायान देते पाए जाते थे। ाचीन और नवीन का ही सुदर सािजय भारतदु कᳱ किा का वशेष ाधुयम है। साहय के एक नवीन युग के आᳰद वतमक के ऱप खड़े होकर उहने यह भी दᳶशमत ᳰकया ᳰक नए या बाहरी भाव को पचाकर इस कार िाना चाहए ᳰक अपने ही साहय के वकसत अिग िग। ाचीन और नवीन के उस सिधकाि जैसी शीति किा का सिचार अपेत था वैसी ही शीति किा के साथ भारतदु का उदय हआ, इस सिदेह नह।” 2 ाचीन और नवीन के सिधथि पर खड़े भारतदु रीतकाि और बाििा नवजागरण के सिधथि पर भी खड़े ह। एक ओर भि दूसरी ओर धम के बााचार पर हिा और साजसुधार भी। कहना न होगा ᳰक शुि जी ने भारतदु के सिकृतकम पर बाििा नवजागरण का भाव वशेषकर बिग देश के साहयक नवजागरण का भाव ित ᳰकया था। भारतदु के इस युगवतमक िव का उेष आगे चिकर राविास जी ने ‘१८५७ कᳱ रायाित’ थर ᳰकया। भारतदु बाििा नवजागरण से ेᳯरत भिे ही रहे ह िेᳰकन उनकᳱ अपनी जड़ १८५७ थ और इह अथ राविास जी ने भारतदु को साायवाद- साितवाद वरोधी हदी नवजागरण के पुरकताम के ऱप थापत करने कᳱ कोशश कᳱ। 1 हजारीसाद िवेदी िथाविी, (सि) ुकुि द िवेदी, खिड ४, पृ- १८२, राजकि काशन, नई ᳰदिी- २००७. 2 राचि शुि, ᳲहिदी साहय का इतहास, पृ ३३२, काशन सिथान, नई ᳰदिी- २००७.

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Page 1: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

1

भारतद और भकति

१ नवजागरण और धरमसधार भारतद की सरसया

हजारीपरसाद कतिवदी सरदास क साराकतजक आधार क बार र कतिखत हए धयान ददिात ह दक वह

एक ऐस सराज स आय थ जहाा का ldquoगहसथ जीवन कतविाकतसता का जीवन था कतरथयाचार और फरब का

जीवन था और lsquoयौवन-रद जन-रद धन-रद कतवध-रद भारीrsquo का जीवन थाrdquo1 ठीक इनही अथो र तो नही

िदकन भारतद काशी क कतजस पररवार स आय थ वहाा का जीवन भी कया ऐसा ही नही था वषणव हदय

भारतद का कया यह भी एक पकष नही था रारचादर शकि भारतद को पराचीन और नवीन क साकतधसथि पर

खड़ एक नए यग क परवतमक क रप र दखत थ भारतद की कतवकतशषटता बतात हए शकि जी कतिखत ह

ldquoअपनी सवमतोनरखी परकततभा क बि स एक ओर तो व पदमाकर कतिजदव की परापरा र ददखाई पड़त थ

दसरी ओर बाग दश क राइकि और हरचनदर की शरणी र एक ओर तो राधा कषण की भकति र झित हए

नई भिराि गाथत ददखाई दत थ दसरी ओर राददरो क अकतधकाररयो और टीकाधारी भिो क चररतर की

हासी उड़ात और राददरो सतरी कतशकषा सराज सधार आदद पर वयाखयान दत पाए जात थ पराचीन और

नवीन का ही सनदर साराजसय भारतद की किा का कतवशष राधयम ह साकतहतय क एक नवीन यग क आदद र

परवतमक क रप र खड़ होकर उनहोन यह भी परदरशमत दकया दक नए या बाहरी भावो को पचाकर इस परकार

कतरिाना चाकतहए दक अपन ही साकतहतय क कतवककतसत अाग िग पराचीन और नवीन क उस साकतधकाि र जसी

शीति किा का साचार अपकतकषत था वसी ही शीति किा क साथ भारतद का उदय हआ इसर सादह

नहीrdquo2 पराचीन और नवीन क साकतधसथि पर खड़ भारतद रीकततकाि और बाागिा नवजागरण क साकतधसथि

पर भी खड़ ह एक ओर भकति दसरी ओर धरम क बाहयाचार पर हरिा और सराजसधार भी कहना न

होगा दक शकि जी न भारतद क सासककततकरम पर बाागिा नवजागरण का परभाव कतवशषकर बाग दश क

साकतहकततयक नवजागरण का परभाव िकतकषत दकया था भारतद क इस यगपरवतमक वयकतितव का उनरष आग

चिकर रारकतविास जी न lsquo१८५७ की राजयकााकततrsquo र कतसथर दकया भारतद बाागिा नवजागरण स परररत

भि ही रह हो िदकन उनकी अपनी जड़ १८५७ र थी और इनही अथो र रारकतविास जी न भारतद को

सामराजयवाद- सारातवाद कतवरोधी कतहनदी नवजागरण क परसकताम क रप र सथाकतपत करन की कोकतशश की

1 हजारीपरसाद कतिवदी गराथाविी (सा) रका द कतिवदी खाड ४ पषठ- १८२ राजकरि परकाशन नई ददलिी- २००७

2 रारचादर शकि हहादी साकतहतय का इकततहास पषठ ३३२ परकाशन सासथान नई ददलिी- २००७

2

सन १९४२ क राजनीकततक-साासककततक साकट क सरय रारकतविास जी न हहादी नवजागरण क नता

क रप र भारतद की ऐसी छकतव गढ़ी जो तिसीदास की परापरा वािी साासककततक यगनायक की छकतव थी

राषटरीय एकता या जातीय एकता क सतरधार क रप र रारकतविास जी न भारतद का साबाध lsquo१८५७ की

राजयकााकततrsquo स और भी भिी-भााकतत पवमक ददखान क कतिए सन १९८४ र lsquoभारतद हररशचादर और हहादी

नवजागरण की सरसयाएाrsquo नारक एक नवीन िख कतिखकर अपनी परानी पसतक क आरमभ र जोड़ा था

इस िख र भारतद क नवजागरण की परापरा को उनहोन जनजागरण की एक परानी परापरा का एक खास

दौर कहा जनजागरण की यह परानी परापरा दरअसि भकति आनदोिन क lsquoिोकजागरणrsquo की परापरा ह

कतजसका आराभ तब हआ था जब दशी भाषाओ र पहिी बार साकतहकततयक अकतभवयकतियाा होन िगी थी

रारकतविास शराम इस सारातवाद-कतवरोधी परापरा कहत ह दसरी ओर पिासी की िड़ाई स १८५७ क

lsquoसवाधीनता सागरारrsquo तक जो यदध हए व रखयतः कतवदशी शतरओ क कतखिाफ हए और इसकतिए यह दसरा

जनजागरण रखयतः सामराजयवाद-कतवरोधी जनजागरण ह भारतद या भारतनदयगीन रचनाकारो क यहाा

१८५७ क सागरार का lsquoसपषट परशासातरक उलिखrsquo न कतरिना इस परापरा क कतनधामरण पर एक बड़ा परशनकतचनह

था रारकतविास जी न इस परशन का उततर दत हए कतिखा दक दो रहतवपणम चीज भारतद यग का साबाध

१८५७ स जोड़ती ह- १ राषटरीय सवाधीनता का उददशय और २ अागरजी राज क सवरप की पहचान राषटरीय

सवाधीनता का उददशय था अागरजो को सार दश स कतनकािना और अागरजी राज का सवरप था lsquoधन का

कतनषकासनrsquo अागरजी राज र भारतीय उदयोग धाधो और वयापार का नाश हआ था अागरजी राज न कतजस तरह

यहाा की दशी ररयासतो को हड़पत हए सार दश पर अकतधकार दकया था उसकी सरकतत िोगो क ददिो

ददराग र थी यह सरकतत ldquoयह याद राषटरीय एकता का भाव जगान वािी थीrdquo3 इस परकार राषटरीय एकता की

भावना और आरथमक दोहन क कतखिाफ उद बोधन भारतद क साकतहतय का साबाध १८५७ स जोड़ता ह

भारतद क सारन उपकतनवशवाद कतवरोधी साघषम का एक राषटरीय रपक था सवदशी और सवाधीनता आपस र

जड़ हए थ रारकतविास जी न भारतद को उदधत दकया ह ldquoकतजस परकार अरररका उपकतनवकतशत होकर

सवाधीन हई वस ही भारतवषम भी सवाधीनता िाभ कर सकता हrdquo4 आरथमक सवाधीनता की राह र दशी

पाजी का कतवकास उसका सारकषण दशी उदयोगो का कतवकास और औदयोकतगक कतवकास क कतनकतरतत कतशकषा की

नीकततयो का कतनरामण जररी था भारतद न सवदशी क साथ साथ नौजवानो क कतिए आधकतनक अथो र

पॉिीटककतनक कतशकषण क कतिए एक कतशलप रहाकतवदयािय खोिन की आवशयकता पर जोर ददया था दादा

भाई नौरोजी क धन-कतनषकासन कतसदधाात का परभाव भारतद पर गहरा था और उनहोन दादा भाई नौरोजी क

िखो को हहादी र धारावाकतहक परकाकतशत दकया था

3 रारकतविास शराम भारतद हररशचादर और हहादी नवजागरण की सरसयाएा पषठ- १५ राजकरि परकाशन नई ददलिी- २०१०

4 ककतववचन-सधा ६ जिाई १८७४

3

राषटरीय एकता की भावना का सवाि जातीयता क ऐकततहाकतसक कतवकास की परदकया स भी जड़ा हआ

था रारकतविास जी न १८५७ क भीतर कसी lsquoराषटरीय चतनाrsquo बन रही थी इसकी भावना क कतिए जिाई

१८५७ क अवध क एक इशतहार का कतिक दकया ह इशतहार र कतसपाकतहयो स अपीि की गयी ह दक ददलिी

और िखनऊ को बचान क कतिए जररी ह दक परब की ओर िगातार बढ़त रहा जाय और दफराकतगयो का

पीछा किकतत तक दकया जाना चाकतहए रारकतविास जी उदधत करत ह ldquoऐसा करन स ददलिी और

िखनऊ की रकषा हो सकगी यदद कतसपाही परब को नही जात तो नतीजा अचछा न होगाrdquo5 इशतहार र

कहा गया दक कतहनद और रसिरान दोनो को साथ-साथ कतरिकर इस lsquoनािायक कौरrsquo पर हरिा करना

चाकतहए रारकतविास जी कहत ह दक इस तरह यहाा हहादसतान कवि सीकतरत अथो र हहादी भाषा परदश ही

न था बकतलक वयापक अथो र वह सारा दश था सार दश की भावना सन १८५८ र बगर हजरत रहि

िारा जारी घोषणापतर र भी ह

हहादी जाकतत की अवधारणा और नवजागरण की अवधारणा रारकतविास जी क यहाा एक दसर स

जड़ी ह वयापाररक पाजी (कतजस रारकतविास जी वयापाररक पाजीवाद कहत ह) क कतवकास क साथ जाकतत का

कतवकास होता ह इस वयापाररक पाजी का जनर सारातवाद क गभम स होता ह और सबस पहि वयापाररक

पाजी कतवकतनरय स साबाधो र कतवककतसत होती ह रारकतविास जी बारहवी-तरहवी शताबदी क आसपास

कतवकतनरय और उतपादन क साबाधो र होन वाि पररवतमनो को नोट करत ह पररवतमनो क क दर र वह परदकया

थी जहाा उतपादन पशगी धन िकर होना शर होता ह lsquoददनी परथाrsquo का कतिक करत हए उनहोन ददखाया दक

कस वयापारी अपन राि क कतिए पहि स पशगी की एक रकर दकर रजदरो की शररशकति पर कतनयातरण

सथाकतपत करता ह lsquoकतबकी योगय रािrsquo क उतपादन की इस परदकया र पाजीवाद क आगारी कतवकास क बीज

कतनकतहत ह इसी परदकया क साथ जाकतत कतनरामण की परदकया भी बाजारो क साथ शर हो जाती ह औदयोकतगक

कााकतत क बाद इस परदकया र जो सबस रहतवपणम पररवतमन होता ह वह ह औदयोकतगक सवमहारा क रप र नए

वगम का उदय रनजर पााडय की आिोचना करत हए रारकतविास जी कतिखत ह ldquoवयापाररक पाजीवाद क

यग र जाकतत का कतनरामण होता ह औदयोकतगक पाजीवाद क यग र यह जाकतत कायर रहती ह दोनो यगो की

जाकतत र बहत बड़ा अातर यह ह दक दसर यग र औदयोकतगक सवमहारा रौजद ह पहि क यग र उसका

अभाव ह वयापाररक पाजीवाद क यग र रखय अातरवमरोध दकसानो-कारीगरो तथा जरीदारो र होता ह

औदयोकतगक पाजीवाद क यग र सवमहारा और उदयोगपकततयो रrdquo6 रारकतविास जी न १९वी सदी क भारतद

यग को बारहवी- तरहवी सदी सदी र हए िोकजागरण की परापरा र ही दखा ह पााडय जी की आिोचना

5 रारकतविास शराम पषठ- १४

6 वही पषठ १५

4

करत हए उनहोन कतिखा दक उननीसवी सदी का भारत औदयोकतगक कााकतत स काफी दर था और अगर उननीसवी

सदी को आधकतनक काि की शरआत रान कतिया जाएगा तो रानना पड़गा दक भारतद क साकतहतय र

पाजीपकतत वगम और औदयोकतगक सवमहारा क साघषम का कोई न कोई कतचतरण जरर कतरिना चाकतहए और अगर

ऐसा नही कतरिता ह तो यह रानना पड़गा दक lsquoआधकतनक काि की शरआत तो हो गयी पर साकतहतय र

आधकतनकता का अकाि बना रहाrsquo जबदक पाजीवादी कतवकास की जो परदकया बारहवी- तरहवी सदी र

सारातवाद क गभम स कतवककतसत हई थी उननीसवी शताबदी र वही चिी आ रही ह- अागरजो का काि उसको

अवरदध करता ह पर वह रक नही सकती इसकतिए परकतत कााकततकारी शकति क रप र उपकतनवशवाद क भीतर

स चिी आती परापरा र ही भारतद यग नवजागरण की तरह ह बीच का यग lsquoकतवसरकततयोrsquo का यग नही

था वरन शकति सातिन र जागरण की शकतियाा ससपत पड़ी थी १८५७ र वह साराकतजक- राजनीकततक

जीवन र दफर स िोकशकति क रप र उठ खड़ी हई इस परकार lsquoहहादी जाकततrsquo का ही रानो lsquoनवजागरणrsquo

हआ ह यह lsquoहहादी जाकततrsquo कतवकतशषट होकर भी राषटर की सापणम पररकलपना ह कतजसका पता उस इशतहार स भी

चिता ह जहाा lsquoसार दशrsquo को साबोकतधत दकया गया था

साकतहतय र यह जागरण िोक बोकतियो स अपनी ऊजाम गरहण करता ह िोक बोकतियो स कतवककतसत

हहादी जातीयता १८५७ र उपकतनवश कतवरोधी चतना क साथ कतरिकर नवजागरण का रप गरहण करती ह

इसकतिए यह हहादी नवजागरण भी ह इस पररकलपना र पाजीवादी कतवकास की पररणकतत क बीज बारहवी-

तरहवी सदी र ही पड़ गए थ अब सामराजयवाद- सारातवाद कतवरोध का राषटरीय चररतर पाजीवाद को पणम

कतवककतसत करन र ह तब जाकर सवमहारा की चतना का उदय होगा साकतहतय क भीतर भारतद यग न उसी

परदकया क नए अधयाय की शरआत की थी अागरजी राज को भारतद न lsquoपगमबर चसाrsquo की तरह दखा था

इसी पगमबर चसा क कतखिाफ दशी वयापाररयो को दशी पाजीपकतत बनान का उदयोग करना चाकतहए यही

सवदशी का ररम था इन नए दशी पाजीपकततयो क कतवकास क कतिए कशि कारगारो की जररत थी और

इसकतिए जररी था दक कतशलप कतवदयािय का कतनरामण कतशकषा नीकतत र शाकतरि दकया जाय अागरज परसती का

जो सवर भारतद क यहाा ददखाई दता ह उसको रारकतविास जी न lsquoगौण अातरवमरोधrsquo राना ह इसी तरह

सामपरदाकतयकता आदद क परशन गौण अातरवमरोध ह वह इन गौण अातरवमरोधो की वसतरतता को परकट करत हए

कहत ह ldquoभारतद हररशचादर न और उनक सरकािीन िखको न कई जगह अागरजो की और अागरजी राज की

परशासा की ह इस सनदभम र याद रखना चाकतहए दक १ रानी कतवकटोररया क घोषणापतर स कछ िोगो क

रान र वासतकतवक भरर पदा हआ था दक दश की दशा सधार जाएगी २ राजभकति का परदशमन अकतधकतर

शाही खानदान क िोगो क परकतत होता था और उनस अागरज अकतधकाररयो को अिगाया जाता था ३

राजभकति की आड़ र जनता की बदहािी पर धयान ककतनदरत दकया जाता था और अागरज ऐसी राजभकति को

5

शक की कतनगाह स दखत थ आदद आददrdquo7 इसी तरह lsquoहहादी नई चाि र ढिीrsquo कहकर भारतद भाषा क

बदि दरअसि साकतहतय क नयपन को ददखा रह थ और साकतहतय का यह नयापन रखय अातरवमरोधो को परकट

करन र ह िोकसाकतहतय और रौकतखक साकतहतय र १८५७ की ओजकतसवता चिी आई थी और भारतद यग क

साकतहतय र जो ऊजाम जो चरक जो नयापन था वह उसी िोक और रौकतखक साकतहतय स पररणा पाती थी

यह सारा साकतहतय चादक अागरजी काननो स बाहर था इसकतिए भारतद यग को यह सहज ही उपिबध था

यह सारा साकतहतय कतवचारधारातरक रप स सदीघम उपकतनवशवादी िट की सरकतत और १८५७ र झिक उठन

वािी उपकतनवश-कतवरोधी lsquoजातीयता की सरकततrsquo दोनो को अपन भीतर कतिए थी भारतनदयगीन साकतहतय

रणनीकततक रप स कछ ऐसी चीज करता था कतजसस वह अागरजी कोप और कानन स बचा भी रह और

जातीय चतना को एक आनदोिनकारी रप भी द सक रारकतविास जी रनजर पााडय की इसी बात की

आिोचना करत ह दक वह गौण कतवरोधो को जयादा रहततव दत ह परगकततशीि आनदोिन क आताररक

अातरवमरोधो को असवीकार तो रारकतविास जी न भी नही दकया पर इसक चित होन वािी गिकततयो की

तरफ उनहोन इशारा जरर दकया था

भकति और रीकतत काि को दो आताररक परवकतततयो क रप र न दखकर जब दो कतभनन कािखाड रान

कतिया जाता ह तब इकततहास-दकतषट का एक भरारक रप खड़ा होता ह भकतिकाि र भकति रखय धारा थी और

रीकतत गौण और रीकतत काि र रीकतत रखय धारा बन गयी और भकति गौण इस परकार दखन पर पता चिता

ह दक िोकजागरण की परगकततशीि धारा ख़तर नही हो गयी थी या अवरदध नही हो गयी थी बकतलक गौण

धारा क रप र चिी आ रही थी रनजर पााडय क अनसार बारहवी सदी स आरमभ होन वािा वयापाररक

पाजी का कतवकास सफि नही हआ और साराती वयवसथा जस की तस बनी रह गयी सराज की साराती

अकतधरचना और उसका आधार दोनो करजोर जरर हए पर बन रह उनक अनसार ldquoभकति आादोिन

साराती सराज र कतवककतसत सौदागरी पाजीवाद और जातीय कतनरामण क फिसवरप उतपनन साराकतजक साबाधो

की साासककततक अकतभवयकति ह रीकततकाि का साकतहतय सारात कतवरोधी साराकतजक साबाध (साबाधो) और

साासककततक चतना क अवरदध होन का पररणार तथा परराण हrdquo8 रारकतविास जी इस अवरदध होन क तकम

को सवीकार नही करत उनक अनसार यह शकति सातिन सौदागरी पाजीपकतत और जरीदारो क बीच का

शकति सातिन था ऐसा नही था दक पाजीवाद का कतवकास अवरदध और कतनषफि हो गया था भकति स रीकतत

र साासककततक जागरण का पयमवकतसत होना एक lsquoछोटी टरजडीrsquo ह अथामत गौण अातरवमरोध ह जबदक अागरजी

राज की सथापना lsquoबड़ी टरजडीrsquo ह इसकतिए सवाभाकतवक जातीय पाजीवाद या भारतीय पाजीवाद की गकतत

7 वही पषठ- १९

8 वही उदधत पषठ ३१

6

अवरदध होती ह अागरजी राज र रारकतविास जी पााडय जी पर आरोप िगात ह दक उननीसवी सदी र

औदयोकतगक कााकतत स शर होन वािी आधकतनकता एक ऐसी कलपना ह जो इस lsquoबड़ी टरजडीrsquo को भि जाती ह

जबदक बड़ी टरजडी रखय अातरवमरोध क कारण बनती ह

रारकतविास जी न एागलस क हवाि स ददखान की कोकतशश की ह दक पाजीवादी शासन की नीव

डािन वािो को पाजीवाद की सीराओ क अनदर ही दखना एक बड़ी भि ह पनजामगरण क नताओ और

उनक परकततभाशािी वयकतितव र पाजीवाद की सीरा और उसका अकततरक भी था इस बात का जो िोग

धयान नही रखत उनक यहाा आधार और अकतधरचना या वगम और साकतहतय की यााकततरक सरझ होती ह

भारतद आदद साकतहतयकारो क इस अकततरक को कतचकतननत करन क कर र ही रारकतविास जी lsquoरखय

अातरवमरोधrsquo क परकततकतबमब को सारन रखत ह पाजीवादी सीराओ र नही बाध होन का रतिब एागलस क

कतिए रजदर वगम की परापरा क पवम पकष स ह जहाा एागलस पनजामगरण क कतवशवजनीन रलयो और पराककततक

कतवजञानो क कााकततकारी रहततव को रखाादकत करत ह lsquoपरककतत की िािातरकताrsquo र एागलस न यााकततरक

भौकततकवाद की आिोचना की ह और ददखाया ह दक अठारहवी सदी र फाासीसी यााकततरक भौकततकवाददयो न

भौकततकवाद क नार स कतजस कतवचारधारा का परचार दकया उसका िािातरक भौकततकवाद स कतवरोध ह9

रजदर वगम की कतवचारधारा का पनजामगरण स साबाध एागलस उननीसवी शताबदी क आकतखरी दशको र ददखा

रह थ उनहोन ददखाया दक जरमन शासतरीय दशमन र जो कछ रहान था उन सबका सीधा वाररस जरमन

पाजीपकतत वगम नही बकतलक जरमन रजदर वगम था इसी तरह राकसम न पाजी-१ की भकतरका र जरमन रजदर

वगम को जरमन बजमआ हचातको और कतवचारको स जयादा ऊननत कतवचारधारातरक चतना स िस बताया ह

राकसम न १८४८ स १८५२ की कााकततयो और परकततकााकततयो क कतवशलषण क बाद १८५७ क कतवदरोह को भी

lsquoभारतीय सवाधीनता आादोिनrsquo की तरह कतवशलकतषत दकया था इन कतवशलषणो र बाद तक राकसम थोड़ा थोड़ा

पररवतमन करत रह थ परनत कतनकतशचत रप स औपकतनवकतशक पाजी क कतवसतार और यरोपीय कााकततयो क

आपसी ररशतो को वह दकसी यरो ककतनदरत दकतषट स नही दख रह थ राकसम क सारन रखय सवाि पाजी क

वकतशवक चररतर और उसक कतखिाफ कतवदरोह की कतवकतशषटता को पहचानन का था राकसम दख रह थ दक इागिणड

र रजदर वगम क आनदोिन क कतिए या यरोप र रजदर वगम क आनदोिन क कतिए उपकतनवशो क भीतर होन

वाि कतवदरोह की साभावनाओ का कया रहततव था १८४८ की रहािीपीय कााकतत की इागिणड र होन वािी

परकततदकया को राकसम इन शबदो र सारन रखत ह- ldquoजो िोग अभी भी कछ वजञाकतनक सरझ का दावा करत

थ और शासक वगो क रातर सोदफसस या साइकोफनस स कछ जयादा होन की इचछा रखत थ उन िोगो

न सवमहारा क दाव क साथ कतजसकी अनदखी अब साभव नही थी पाजी क राजनीकततक अथमशासतर क सरनवय

9 कतवसतत चचाम क कतिए दख अधयाय तीन

7

की कोकतशश की इस परकार एक कतछछिा सरनवयवाद सारन आया कतजसक सबस बड़ परकततकतनकतध जॉन सटअटम

कतरि ह यह lsquoबजमआrsquo अथमशासतर क ददवाकतियपन की घोषणा हrdquo10 यह बात पाजी की भकतरका र राकसम

१८७३ र कतिख रह ह जरमनी क बार र कतिखत हए वह कहत ह दक वहाा पाजीवादी उतपादन पदधकतत क

पररपकव होन क पहि ही उसका शतरतापणम चररतर (एाटागोकतनकतसटक) अपन को परकट कर चका था यह साभव

हआ था फ़ाानस और इागिड र होन वाि ऐकततहाकतसक साघषो क कारण11 इस तरह जरमनी र बजमआ

अथमशासतर कवि बरी नकि क रप र ही कतवककतसत हो पाया कयोदक जरमन सवमहारा क पास बजमआ अथमशासतर

की सीराओ की आिोचना उपिबध थी ऐस ही सरय बजमआ अथमशासतर क रहनरा दो सरहो र बाट गए

एक तरफ यााकततरक और भौड़ा अथमशासतर बघारन वाि िोग थ दसरी ओर कतरि क अनयायी थ कतजनहोन

असराधय क बीच सागकतत कतबठानी चाही पर य सार परयास असफि होन को बाधय थ कयोदक उनकी

आिोचना पहि स ही वहाा परापत थी राकसम कतिखत ह ldquoइसकतिए जरमन सराज क कतवकतशषट ऐकततहाकतसक

कतवकास न दकसी lsquoबजमआrsquo अथमशासतर क कतवकास को बाहर रखा परनत उसकी आिोचना को बाहर नही

दकया जहाा तक इस तरह की आिोचना एक वगम का परकततकतनकतधतव करती ह यह कवि उसी वगम का

परकततकतनकतधतव कर सकती ह कतजसका ऐकततहाकतसक कायमभार पाजीवादी उतपादन पदधकतत को उखाड़ फ कना और

सभी वगो का अाकततर सफाया ह- याकतन सवमहाराrdquo12

भारतद यग क बजमआ अथमशासतर र जॉन सटअटम कतरि का दकतना परभाव था इस दहरान की जररत

नही lsquoआिोचनाrsquo क रप र सवमहारा वगम बजमआ अथमशासतर की असाभावयता ह यह lsquoआिोचनाrsquo जरमन

रजदर वगम को कतजतना अपन साघषो स परापत थी उतना ही फ़ाास और इागिणड क साघषो स भी भारतद की

आिोचना कतजस वगम का परकततकतनकतधतव करती ह वह रजदर वगम नही ह अागरजो की कतवजय और िट की सरकतत

क साथ पाजी की तथाककतथत आददर साचय की तरासद सरकतत भी ह तथाककतथत आददर साचय अगर रजदर

वगम की पररकतसथकतत ह तो यह सरकतत रितः रजदर वगम की तरासद सरकतत ह पर भारतद यग क साकतहतय को

या भारतद की रचनाओ र कतरिन वािी आिोचना दकतषट का जो पकष रारकतविास जी सारन रखना चाहत ह

वह उस तरासद सरकतत क साथ lsquoबजमआ अथमशासतरrsquo की सरनवयकारी आिोचना ह इसकतिए कह सकत ह दक

भारतद यग का १८५७ की lsquoआिोचनाrsquo क साथ साबाध सरनवयकारी ह भारतद क साकतहतय र कतरिन वािा

दकतचततापन इसी असराधय सराजन की कोकतशश क चित पदा हआ ह भारतद क साकतहतय र जहाा इस

सराजन का अकततरक ह वह उनका उजजवि पकष ह दसर शबदो र lsquoसवतव कतनज भारत गहrsquo या अकतसरता

कतनरामण या हहादी जातीयता का जहाा अकततरक ह भारतद का साकतहतय वही उजजवि ह lsquoअाधर नगरीrsquo क

10 कािम राकसम ककतपटि- वॉलयर १ अन बन फोकस पषठ ९८ पकतगवन बकस िादन- १९९०

11 वही

12 वही

8

रपक र हर इस तरह का एक अकततरक ददखाई दता ह जहाा lsquoअाधर नगरीrsquo राजय सतता हहासा और नयाय क

अकतनवायम साबाधो का रपक ह भारतद क परहसनो और वयागयो र जहाा कही इस असराधय सराजन का

खोखिापन उजागर होता ह भारतद का वतमरान अथम उनही र राना जाना चाकतहए

िोकजागरण की कतवचारधारा क रप र भकति रारकतविास जी क कतिए भी वषणवता क अनदर ही

पररभाकतषत थी अकारण नही दक भारतद को वह तिसी की परापरा का नवजागरण रानत थ भकति की

इस कतवचारधारा क कतखिाफ सातरत की कतवकतशषटताओ को वह निरअादाज करत ह अगर सातरत कारीगरो

और कतनमनवगीय जनता का साासककततक और इसकतिए राजनीकततक परयास था तो उस कवि भाषा या बोकतियो

स बनन वािी lsquoजातीय चतनाrsquo र कतनसशष नही दकया जा सकता कबीर आदद सातो क िोकजागरण स

भारतद क नवजागरण का साबाध रारकतविास जी न नही ददखाया ह कबीर आदद क यहाा जो जयोकतत ददखाई

पड़ी थी उस वषणव भकति की कतवचारधारा क बड़ परवाह र सरझन स यह ददककत पदा होती ह रखय

अातरवमरोध क भीतर जो शतरतापणम कषण ह उस दकतषट स ओझि करन का कार ही परभतवशािी कतवचारधारा

करती ह रारकतविास जी पाजी क अातरवमरोधी चररतर को तो दखत ह िदकन यह नही दख पात दक

अातरवमरोधो स ही वह गकततशीि ह राकसम न इनही अथो र पाजी को lsquoगकततशीि अातरवमरोधrsquo कहा था

परभतवशािी कतवचारधारा भी अपन भीतर क अातरवमरोधो स ही आग बढ़ती ह भकति और रीकतत या कतनगमण

या सगण ऐस ही अातरवमरोध ह भारतद यग भी अपन अातरवमरोधी चररतर स ही बन रहा था उपकतनवशवाद

का कतवरोध भी उपकतनवशवादी कतवकास का ही कतहससा था सारातवाद स पाजीवाद र साकरण कवि

सारातवाद कतवरोध क रप र ही नही कतवककतसत होता बकतलक वहाा पाजीवाद क अकततकरण की साभावना भी

अनतरनमकतहत होती ह जो बाद र पाजी क कतवकास क दौरान पाजी क साराकतजक साबाधो र बदि जाता ह

थॉरस रनतसिर क नततव र हए कषक कतवदरोह र एागलस न या रधयकािीन कतवधरी आनदोिनो र कतसतरयो

की भकतरका ददखान क कर र कतसकतलवया फददरची न इस अकततकरण को और पनः पाजी क साराकतजक साबाधो

र रपाातरण की परदकया को ददखान की कोकतशश की ह13 पाजीवाद की काकतनतकारी भकतरका पर जोर दन स

उसकी परकततकााकततकारी भकतरका आाखो स ओझि हो जाती ह lsquoइकततहास जसा था वसा पान कीrsquo कोकतशश की

यह अकतनवायम सीरा ह अागरजी राज की िट पाजी की िट थी भारतीय आतर या हहादी जाकतत का

आतरकतबमबअाततः इस िट को कतछपान वािी और उस भिान वािी रोहक कलपना थी कही १८५७ स

भारतद यग का साबाध ददखाना भी एक रोहक कलपना ही तो नही ह

13 दख फडररक एागलस द पीजट वॉर इन जरमनी परोगरस पकतबिशसम रासको- १९७७ और कतसकतलवया फददरची ककतिबन एाड द कतवच फोकतनर

बकस ददलिी- २०१३

9

नारवर जी न नवजागरण को ररनसाास क बदि परबोधन या एनिाइटनरट की तरह दखन की बात

कही थी और कहा था दक इस नवजागरण का १८५७ स कोई भी साबाध कतशषट साकतहतय र नही ददखाई

पड़ता रारकतविास जी क िख क दो साि बाद lsquoआिोचनाrsquo र नारवर जी न lsquoहहादी नवजागरण की

सरसयाएाrsquo नार स एक िख कतिखा उपरोि दो चीज नारवर जी न उसी िख र कही ह उननीसवी सदी क

भारतीय नवजागरण को ररनसाास कहन र कई ददककत ह यरोप र कतजस lsquoररनसाासrsquo lsquoररफारशनrsquo या

lsquoकतचनकवचतोrsquo आदद कहा जाता ह वह पादरहवी शताबदी का नवजागरण था पादरहवी शताबदी र भारत भी

भकति आनदोिन क रप र एक जागरण स गजर रहा था इसकतिए नारवर जी कहत ह दक अगर उननीसवी

सदी क नवजागरण को ररनसाास कहग तब पादरहवी शताबदी क भकति आनदोिन को कौन सा जागरण

कहग रारकतविास जी इसीकतिए एक को िोकजागरण और दसर को नवजागरण कहत ह नारवर जी

कतिखत ह ldquoउननीसवी शताबदी क भारतीय नवजागरण को lsquoररनसाासrsquo कहन र एक करठनाई तो यह ह दक

इस यग क भारतीय कतवचारको और साकतहतयकारो क पररणासरोत यरोप क पादरहवी शताबदी क कतचनतक और

साकतहतयकार न थ बकतलक इसक कतवपरीत पररणासरोत क रप र अकतधकााश कतवचारक उस काि क थ कतजस

यरोप र lsquoएनिाइटनरटrsquo का काि तथा उसक बाद का काि कहा जाता ह सवया बादकर की सहानभकतत

रसो और परधो क साथ थी और व कोत जॉन सटअटम कतरि तथा हबमटम सपसर स परभाकतवत ददखाई पड़त

हrdquo 14 इस परकार यह lsquoनवजागरणrsquo lsquoपरबोधनrsquo की चतना क तलय ह और इसकतिए इसकी अातवमसत

lsquoिोकजागरणrsquo स कतभनन ह यदयकतप एक र दसर की चतना lsquoअाशतः कतवदयरानrsquo ह पर नवजागरण

िोकजागरण का पनरतथान रातर नही ह नवजागरण का नततव करन वाि रधयवगीय थ िोक क बीच स

नही आन क चित उनका सारानय िोक जीवन स एक दराव था और कतवचारो र िोकोनरख होकर भी

वयवहार र उनका िोक क साथ कोई तादातमय नही था नवजागरण का परभाव शहरो तक सीकतरत था और

इसकतिए िोकजागरण की तिना र इसका परसार भी सीकतरत था नारवरजी इस नवजागरण को रखयतः

साासककततक आनदोिन क रप र दखन की कतहरायत करत ह पर सवाि यह ह दक इस साासककततक आनदोिन

की राजनीकतत कया थी

भारतद क शबदो र नारवर जी भारतीय नवजागरण की रि सरसया lsquoसवतवrsquo या lsquoअकतसरताrsquo की

सरसया बतात ह धयान रखन वािी बात ह दक परबोधन या एनिाइटनरट की एक रि सरसया अकतसरता

की सरसया ह lsquoपरबोधन की िािातरकताrsquo नारक अपनी दकताब र एडोनो और हाखमइरर न ददखाया ह दक

कस परबोधन या जञान की शकति न यथाथम को कतरथ बनाया और कतरथको को यथाथम दकया एक पणय-वसत क

रप र जञान का उतपादन और पनरतपादन उननीसवी सदी की कतवशषता ह खासतौर स पवी कतवदया की रााग

14 नारवर हसाह हहादी का गदयपवम (सा) आशीष कततरपाठी पषठ-८६ राजकरि परकाशन नई ददलिी- २०१०

10

बािार र बहत थी जञान का कतवकतनरय एक बड़ बािार र हो रहा था और जञान की सारचना और उसकी

सापणमता एक फरटसाइजड कतवशवदकतषट बनाती थी कतभननता ह इसकतिए कतवकतनरय ह हर चीज जो कतवकतनरय र

शाकतरि ह रनषय की दकसी न दकसी जररत को परा करती ह य जररत य इचछाएा कवि पट स पदा नही

होती बकतलक कलपनाओ स भी पदा होती ह परबोधन की िािातरक परदकया क भीतर कतवजञान और धरम दोनो

न रनषय क कलपनाजगत की इचछाओ को भी परा करन वािा बािार बनाया कतभननताओ की

वासतकतवकताओ को छपान क कतिए या दसर शबदो र कह तो जञान की वासतकतवक जररत को छपान क कतिए

जञान का एक भरर खड़ा दकया जाता ह ठीक वस ही जस बजमआ अथमशासतर पाजीवाद की अतारकमकता को

ढाकन और दबान की परदकया र ही बना था पराककततक कतवजञानो क भीतर स कतनकिन वािी दो तरह की

कतवचारधाराओ की रााग बहत थी एक अटठारहवी सदी र िोककतपरय lsquoयााकततरक भौकततकवादrsquo की कतवचारधारा

और दसरी जीवकतवजञान स आन वािा कतवकासवाद का कतसदधाात राजनीकततक अथमशासतर क कतिए भारत र जॉन

सटअटम कतरि आदद िखको क बजमआ अथमशासतर का नया बािार था तकम की सावमभौकतरकता को उसकी

वासतकतवक जररत स काटकर lsquoअकतसरता कतनरामणrsquo स जोड़ ददया गया जो इकततहास कतरथ क अात का दावा

करता था वह सवया कतरथ गढ़न िगा यह सब साभव हआ उस कतवशाि जनसारानय क भय क सहार

कतजनहोन अपन ऊपर अपना कतनयातरण खो ददया था धरम इस भय क सहार कतवजञान की आिोचना करता था

और कतवजञान धरम की परबोधन-पवम की परापरा र जो आसथा या कतवशवास और जञान का अकतनवायम साबाध था

उसक सहार धरम आसथाकतवहीन जञान की आिोचना क िारा कतवशाि जनसारानय की रकति का कारोबार

करता ह

परबोधन की एक धारा आिोचनातरक जञान की धारा थी कतजसकी आिोचना राकसम न

lsquoआिोचनातरक आिोचना की आिोचनाrsquo कहकर की थी भारतीय नवजागरण क भीतर आिोचनातरक

जञान की धारा को नारवर जी न रहतवपणम राना ह यह ldquoआिोचनातरक दकतषट यरोप क lsquoपराचयकतवदयावादrsquo

(ओररएणटकतिजर) क इस उपकतनवशी रायापाश को कतछनन करन की चतावनी दती हrdquo15 यह उपकतनवशी

रायापाश पाजी का रायापाश भी ह जञान की पाजी का रायापाश कतजस हर पराचयकतवदयावाद का रायापाश

कह रह ह वह आिोचना-परतयािोचना की एक तथाककतथत िोकताकतनतरक परदकया र ही बन रहा था

इसकतिए इस आिोचना-परतयािोचना की परदकया की आिोचना क सनदभम र ही हर उस आिोचनातरक

धारा की चचाम कर सकत ह और कहना न होगा दक यह एक राजनीकततक करम भी ह नारवर जी न कहा दक

भारतीय नवजागरण र lsquoसवतव पराकतपतrsquo का साबाध राजनीकततक रकति स नही जोड़ा गया ह राजनीकततक

सवाधीनता अथामत lsquoराजसतता पिटन क कतवचार को अातगमहावास द ददया गयाrsquo इस तरह १८५७ या उसक

15 वही पषठ- ८७

11

पहि क दकसान कतवदरोहो क भीतर जो राजसतता पिटन का कतवचार था उस भारतीय नवजागरण न

अातगमहावास दन का कार दकया अतः भारतीय नवजागरण रखयतः साासककततक आिोचना ही थी

राजनीकततक आिोचना को गहावास दन वािी साासककततक आिोचना वह कतिखत ह ldquoसच तो यह ह दक

अकतधकााश िखक सरकषा सशासन कतशकषा उननकतत और शााकतत क कतिए कतिरटश राज क परकतत उपकत अनभव

करत ह- कतवशष रप स रगिो क शासन की तिना र इस परवकततत क अवशष बीसवी शताबदी क दसर

दशक तक रकतथिीशरण गपत की lsquoभारत भारतीrsquo जसी राषटरीय कही जान वािी कावय-ककतत र भी कतरिती ह

यहाा तक दक कभी-कभी तो नवजागरण क अनक उननायक राजसतता क साथ सहयोग करत भी ददखाई पड़त

ह अब इस कोई चाह तो नवजागरण क उननायको का रधयवगीय अथवा भदरिोक चररतर कह ि अथवा

दकसी सागरठत राजनीकततक परकततरोध क अभाव क िारा इस कतनरपायता की वयाखया कर ि दकनत हर हाित

र यह तथय कतवसरत न हो दक कि कतरिाकर था यह रितः नवजागरण ही- साासककततक नवजागरण कतजस

राषटरीय सवाधीनता साघषम का पवमराग भि कह ि दकनत उसका पयामय न सरझrdquo16 इसी साासककततक

नवजागरण स वह lsquoआतरकतबमबrsquo तयार हआ कतजसक कतबना राजनीकततक साघषम का वह रप कतवककतसत नही होता

जो आग चिकर वासतव र हआ अजञय की इस वयाखया स नारवर जी सहरत ह दक राजनीकततक-साराकतजक

आधारो की वासतकतवकता क बावजद भदरवगीय साासककततक आनदोिन न जो lsquoआतरकतबमबrsquo रचा वह

राजनीकततक सवतातरता साघषम र हकतथयार बन गया राजनीकततक सवतव पराकतपत की जो चतना इस पररणापरद

आतरकतबमब र अातगमहावास कर रही थी आग चिकर वही राजनीकततक सवतव पराकतपत र उभरकर कतनज

कतवककतसत होती गयी एक बार दफर lsquoइकततहास जसा था वसा पानrsquo की कोकतशश र इकततहासवाद की

कतवचारधारा सारन आ खड़ी होती ह इस इकततहासवाद की आिोचना गरामशी न भी की थी खासतौर पर

कोच क परर इकततहासवाद की आिोचना करत हए सवाि ह दक सासककततकरम की राजनीकतत कया ह

ददरागी गिारी स रकति का साघषम और राजनकततक रकति का साघषम कया इस तरह क अिगाव र रह सकता

ह और अगर अिगाव ह तो इस अिगाव को कस सरझ एक बार यह तय हो जान पर दक उनका वगम

कया था हर उसी क आिोक र उनक साासककततक परयासो की आिोचना करनी चाकतहए दसर शबदो र

उनक अपन वगीय अातरवमरोधो क आिोक र ही उसकी आिोचना साभव ह उपकतनवशवाद की रानकतसक

गिारी क कतखिाफ साघषम जञान की सतता क कतखिाफ साघषम ह और शायद इसकतिए नारवरजी कहत भी ह दक

यह साघषम राजनीकततक साघषम स lsquoकर करठन न थाrsquo यरोपीय जञान क बरकस भारतीय जञान को सथाकतपत

करन का साघषम ही यह साघषम था ldquoउपकतनवशवाद की छाया र भारतीय सासककतत क िोप का खतरा था

इसकतिए अपनी सासककतत की रकषा का परशन सवतव-रकषा का परशन बन गयाrdquo17 सतता पिटन क कतवचार को

16 वही पषठ ८८

17 वही

12

अातगमहावास दकर सवतव-पराकतपत सवतव-रकषा का परशन बन गया और यह सवतव कया था कतजसकी रकषा

साासककततक रोच पर नवजागरण क परसकताम कर रह थ- कलपना या यथाथम परबोधन न जञान का एक कतरथ

तयार दकया और चपक स कतरथको को जञान बना ददया इस नवजागरण की एक बड़ी दन एक परकतत-

इकततहास-दकतषट का कतवकास ह नारवर जी कतिखत ह ldquoनवजागरण की एक बहत बड़ी दन साभवतः वह

इकततहासदकतषट ह कतजसस अपन अतीत को शतर स रि करक उसक कतवरदध वतमरान र इसतराि करन की किा

आती ह और भकतवषय क कतिए सवपन दकतषट भी कतरिती हrdquo18 अगर वासतव र यह दकतषट नवजागरण की दन ह

तो रानना पड़गा दक यह फासीवाद की इकततहासदकतषट ह एक ऐस रकतसिर अतीत की कलपना जहाा रकतसिर

शतरओ स भारतीयता को रि करक वतमरान र उनक कतखिाफ इसतराि दकया जाता ह और इसस भकतवषय

की एक सवपन दकतषट भी भी कतरिती ह कहना न होगा दक परबोधन स कतनकिी यह इकततहासदकतषट अतारकम क

नही थी कयोदक यह साघषम की वासतकतवकता का सबस भरकतरत रप खड़ा करती ह फासीवाद इस अथम र वगम

साघषम का सबस कतरथकीय रप ह और अगर यह सही ह तो सवतव-रकषा र परापत इस इकततहासदकतषट को हर

परकततकााकतत की इकततहासदकतषट कह सकत ह भारतीयता का यह भरकतरत आतरकतबमब सवया को दो बनाकर ही

गकततशीि था यही इकततहासदकतषट आग चिकर lsquoकतवरदधो का साराजसयrsquo की इकततहासदकतषट क रप र इकततहास

का सबस भवय ढााचा खड़ा करती ह आतरकतबमब क इस कतवखाडन को िकषय करत हय नारवर जी न कतिखा

ldquoहरानी की बात ह दक हहादी परदश का नवजागरण धरम इकततहास भाषा सभी सतरो पर दो टकड़ हो गया

सवतव रकषा क परयास धरम तथा सापरदाय की जरीन स दकय गएrdquo19

आतरकतबमब का यह दो होना िखको क दो वगो र परकततहबाकतबत हआ नारवर जी क अनसार एक

वगम अागरजो का घोर कतवरोध करता ह पर धरम-सासककतत और साराकतजक परथाओ क बार र परापरावादी ह

दसरा वगम अागरजी राज क परकतत नरर रख अपनाता ह पर अनय रारिो र या तो रिगारी ह या दफर

सधारवादी िखको का पहिा वगम भारतीय होन का दावा करता ह जबदक नररपाथी िखक पकतशचरोनरख

ह हहादी नवजागरण क नता जयादातर परापरावादी ह जहाा अागरजी कतशकषा का परसार जयादा हआ वहाा

पकतशचरोनरख िखक जयादा थ दयानाद की अपकषा भारतद का झकाव कशवचादर सन जस पकतशचरोनरख

िखको या सधारको क परकतत था ऐसा साभवतः वषणव भावकता क चित था नारवर जी भारतद र परखर

बकतदधवाद का अभाव पात ह पर उनकी रराकतनयत को रानवतावाद की कतवचारधारा स जोड़त ह

नवजागरण क इस साकतशलषट कतचतर को सारन रखन की कोकतशश र नारवर जी एक ऐसी इकततहासदकतषट

कतवककतसत कर रह थ जो अतीत को उसक सापणम अातरवमरोधो र पान की कोकतशश करता ह अतीत को खिा

18 वही पषठ-८९

19 वही पषठ ९१

13

छोड़ दन वािी यह इकततहासदकतषट या एक सातकतित इकततहासदकतषट का यह परयास खाड खाड कतबमबो की एक ऐसी

गकततशीिता का भरर पदा करती ह जो इकततहासवाद की एक पररख कतवशषता रही ह इस पकष पर सवया

नारवर जी का धयान था और आग चिकर उनहोन नवजागरण क इस कतरथकीय चररतर को सवया ही

आिोकतचत दकया इस आिोचना र वह नवजागरण को परबोधन कहन क बदि lsquoअकतभजञान-कािrsquo कहना

जयादा उपयि रानत ह खद lsquoनवजागरणrsquo नार को अागरजो की कलपना बतात ह और उननीसवी सदी को

lsquoसरकतत-भराशrsquo का काि कहत ह यहाा १८५७ स िकर भारतद और कतववकानाद सब एक कतरथकीय चतना क

भीतर सराकतहत ददखत ह और कतजस भारतीय नवजागरण कहा जाता था उस कतवपरीत जागरण रानत ह

इसी कतवपरीत जागरण का नार उनहोन अकतभजञान ददया 20 डा वीरभारत तिवार न कवि कतहनदी

नवजागरण को भारतीय नवजागरण की परकततकााकततकारी धारा कहा था वही नारवर जी अब पर भारतीय

नवजागरण को ही कतवपरीत जागरण कह रह ह और बहत हद तक सही कह रह ह

डा तिवार न अपनी lsquoरससाकशीrsquo र lsquoहहादी नवजागरणrsquo को एक भरारक पद बताया था न तो

इसका साबाध १८५७ स था न रधयकािीन भकति आनदोिन स और न ही जनवादी राषटरवाद की दकसी

अवधारणा स उनक अनसार परबोधन क कतववकवाद तथा धरमसधार-सराज सधार की कतरिी जिी परदकया

क रप र कतवककतसत होत बागािी या रराठी नवजागरण या भारतीय नवजागरण की परकततगारी धारा क रप

र कतवककतसत होन वाि भारतद आदद क साासककततक आनदोिन को lsquoहहादी आनदोिनrsquo कहना ठीक ह कतशकतकषत

रधयवगम क भीतर दो परसपर कतवरोधी धाराओ की चचाम डा तिवार करत ह एक धारा कतववकवाद की

धारा थी दसरी सनातनी कतहनद धरम की धारा रहाराषटर और बागाि र अागरजी कतशकषा क परचार-परसार न कतजस

नए धरम और सराज सधार को गकतत परदान की वह अपकषाकत अकतधक परगकततशीि धारा थी पकतशचरोततर यि

परानत क पवी इिाक खासतौर पर बनारस इिाहाबाद और बहत हद तक पटना कानपर भागिपर आदद

शहरो र कतवककतसत नव-रधयवगम इस परगकततशीि धारा क साथ नही था इसका सबस बड़ा कारण अागरजी

कतशकषा का अभाव था यि परानत र कोई धारा परगकततशीि भकतरका अदा कर रही थी तो वह कवि दयानाद

सरसवती की आयमसराजी धारा थी इस आयमसराज का भी अपना जनाधार सनातनी पाकतडतो या िाहमणो क

यहाा नही बकतलक नौकरीपशा अागरजी कतशकषा परापत वह भदरवगम था जो अपन धरम और सासकारो क कतपछड़पन

को िकर गिाकतनबोध स भरा था इस वगम को अपनी पहचान आयम सराज र ददखती थी आयम सराज क

रिवाद र तथा उसक तारकम क सथिवाद र आधकतनक होन का रासता ददखता था िहमोसराज और

कतथयोसोदफकि सोसाइटी दो ऐसी सासथाएा और थी जो यि परानत र धरम और सराज सधार का परयास कर

रही थी परनत इसका परभाव बहत सीकतरत था आरतौर पर यिपराात र रहन वाि बागािी अपरवासी ही

20 दख नारवर हसाह उननीसवी सदी का भारतीय पनजामगरण यथाथम या कतरथक (अन) पाकज पराशर पकषधर अाक ११ जिाई २०११

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इनक सदसय थ हहादी आनदोिन क नताओ न इन दोनो धाराओ की आिोचना की ह इनहोन दयानाद क

रिवाद की आिोचना अपनी परापरावादी करमकााडी दकतषट स की इनक अनसार उपकतनषद या पराण आदद

अगर अपराराकतणक भी ह तब भी चादक िोक र सवीकत ह इसकतिए उनह एकदर ख़ाररज करक कोई धरम या

सराजसधार नही हो सकता तिवार जी का कहना ह दक अपनी िचर दिीिो की आड़ र य िोग वसततः

सतरी कतशकषा कतवधवा कतववाह या आधकतनक जीवनशिी आदद की परगकततशीिता का कतवरोध कर रह थ यह

कतवरोध आरतौर पर सरदाय की रानयताओ को ही सारन रखकर दकया जाता था एक दकसर क

कतबरादरीवाद क भीतर स सरझौता करत चिन क कारण हहादी आनदोिन क नता अपन पाररवाररक या

वयकतिगत जीवन क उथिपथि स बचन की कोकतशश करत ह धरम इनक कतिए सधार का नही वरन

राजनीकततक हथका डा रातर था धरम की आड़ र य रकतसिर भदरवगम को अपना परकततयोगी साकतबत कर कतहनद

एकता की अपीि करत तादक इनह सरकारी नौकररयो र कछ कतवशषाकतधकार कतरि सक तिवार जी क

अनसार रकतसिर भदरवगम इन हहादी आनदोिन क परसकततामओ स कही जयादा परगकततशीि था उनक यहाा

आधकतनकता क परकतत जयादा खिी और कतववकसापनन दकतषट थी और उनहोन जोर दकर कहा दक हहादी आनदोिन

को सर सयद अहरद खाा जस दकसी सकषर कतववकवादी वयकतितव का नततव नही कतरि पाया हहादी

आनदोिन और नताओ क अातरवमरोधो को ददखात हए तिवार जी न भारतद की छकतव एक पतनशीि कतहनद

रोररटक की गढ़ी ह यहाा भारतद एक परकततनायक क रप र नजर आत ह

कतववकवादी इस धारा न राषटरीयता की जो धारणा गढ़ी वह रितः साापरदाकतयक थी अागरजी राज क

कतखिाफ अगर इनका साघषम सराज और धरम सधार को साथ-साथ रखन क बजाय उसर अिगाव करता ह

बकतलक उनक कतखिाफ जाकर सागरठत होन का परयास करता ह तो उसक सारन रकतसिर भय पदा करन क

अिावा और कोई रासता साभव नही था lsquoहहादी नागरी और गोरकषाrsquo आनदोिन इसकी सवभाकतवक पररणकतत

थी आग चिकर उननीसवी सदी क आकतखरी दशक र आकार गरहण करन वािी कतहनद राषटरवाद की यह

पषठभकतर ह इसक वग र दयानाद न भी साथ ददया कयोदक उनर भी पनरतथानवाद क बीज थ पवी परदशो

की अपकषा आयम सराज पाजाब र कही जयादा रकतडकि था आयम सराकतजयो की सदसयता की साखया पाजाब

क रकाबि यि परानत र जयादा थी पर वहाा कोई गणातरक पररवतमन साभव नही हआ और यह रहज

साखयाबि क रप र ही बना रहा इसका कारण उनहोन पाजाब की कतभनन नतततवशासतरीय अवकतसथकतत र

बताया ह पाजाब र िाहमणो का परभाव कर था कतजसका एक कारण रसिरानो क साथ िमबा सासगम और

कतसख धरम आदद का परभाव भी था इस तरह का कोई कतवशलषण पवी परदशो क बार र नही दकया गया जसा

दक बहत पहि रदमरशरारी की ररपोटम स ही हजारीपरसाद कतिवदी न दकया था अथामत रधययगीन कतसख

धरम क परभावो की तरह कबीरपाथी आदद सरदायो क परभाव और वषणवता क अातसबाधो की पड़ताि नही

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की गयी ह काशी क बनकरो की एक हड़ताि का कतिक रारकतविास जी बार बार करत ह जो १८३३ ई र

ही हई थी और इकततहासकार बिी क अनसार यह वक़त आरथमक साकट का भी वक़त था

भदरवगम का जो कतहससा हहादी आनदोिन क साथ था उस जाकतत वयवसथा की परानी रानयता को

बनाय रखन या उस रजबत करन की जररत कया कवि नौकररयो र कतवशषाकतधकार परापत करन क कतिए थी

या जाकतत वयवसथा रातर र आय एक रिगारी साराकतजक साकट का वह परकततदकयावादी रपाातरण ह शहरो

र आरथमक-वयापाररक गकततकतवकतधयो क कारण और आसपास क इिाको स परवासी रजदरो का आगरन तथा

बढ़ती वशयावकततत आदद क चित शहरी साराकतजक साबाधो र भी उथि-पथि थी ऐस सरय र सारदाकतयक

या कतबरादरी बोध lsquoएकाrsquo की भावना पदा करती ह तिवार जी इस नव-भदरवगम का अपन ही भीतर अिग-

अिग खााचो र बाट होन की बात करत ह अिग-अिग खााचो र बाट होन क चित यह भदरवगम रधयवगम की

कतवचारधारा अथामत कतववकवाद या नवजागरण को परापत नही कर पायी थी वगम था िदकन वगम की

कतवचारधारा नही थी खद भारतद क जीवन स हर उस दौर की अकतसथरता का कछ अादािा कतरिता ह

अकतसथरता और खााचो र बाटा रधयवगम दरअसि सापणम सराज र होन वाि एक आधारभत पररवतमन की ओर

इशारा करता ह यह पररपरकषय १८५७ की तरासदी का भी ह ऐसी कतसथकतत र हपराट पाजी क साथ बनन वािा

यह साासककततक आनदोिन था जहाा सवतव रकषा रखयतः अपन परान कतवशषाकतधकार की रकषा थी साराकतजक

साबाधो र आय उथि पथि क कारण उनह अपन कतवशषाकतधकार कतछन जान का खतरा साफ़ ददखाई द रहा

था जहाा अागरजी कतशकषा थोड़ा पहि ही परसार पा चकी थी वहाा कशि कारीगरो स िकर अधयापको और

परशासकतनक अकतधकारीयो क एक बड़ सरह न अपना नया कतवशषाकतधकार पा कतिया था साराकतजक साबाधो र

उनकी शरषठता उनक कतववकवाद क कारण बन चकी थी भारतद क एक शरआती िख lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

क राधयर स खााचो और जनरत की राजनीकतत को सरझन की कोकतशश आग करग

तिवार जी क अनसार दयानाद क कतवचारो क कतिए पाजाब जयादा गरहणशीि था कयोदक वहाा

जाकतत वयवसथा क बाधन पहि ही ढीि हो गए थ यिपराात र जाकतत क बाधन जायदा कठोर थ कतजन अथो र

कतिवदी जी रधय दश की रकषणशीिता का कतजक करत ह कछ-कछ उनही अथो र पर सवया दयानाद क

कतवचारो र कतववकवाद-पनरतथानवाद का दोरखापन कतरिता ह तिवार जी कहत ह दक कतजन सथि तको स

वह वदो की ओर िौटन को कहत थ आयम भाषा आयम जाकतत और आयम धरम की बात करत थ उसक कारण

ही इनका झकाव आग चिकर राषटरीय सवयासवक साघ की ओर होता गया पर आयम सराज क साराकतजक

सधारो और धरम सधारो की एकता क कारण वहाा वह साभावना भी थी कतजसक परभाव स आग चिकर बहत

सार कमयकतनसट कायमकताम भी कतनकि पररचाद राहि साकतयायन या गणश शाकर कतवदयाथी जस साकतहतयकार

और आनदोिनकताम आयम सराज क परभाव र थ आयम सराज तिवार जी क अनसार वासतकतवक साराकतजक

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पररवतमनो का सावाहक और सराज र वयकति स िकर साराकतजक जीवन क हर कषतर र गणातरक पररवतमन

िान वािा इसकतिए हो पाया कयोदक वहाा धरमसधार और सराज सधार अिग-अिग नही था दसरी ओर

हहादी आादोिन साापरदाकतयक जाकततवादी और सतरीकतवरोधी रलयो को ही सराज र फ़िान र कारयाब हआ

यह धारा अागरजो को अरजमयाा दकर नौकरी पान वाि रधयवगम की धारा थी

तिवार जी न भारतद की तकमशीिता को बहत कतनमन कोरट का कहा ह भारतद क चररतर र शायद

वह एक lsquoिमपनrsquo की छकतव भी दखत ह पसा उड़ान की वकतत सतरी क साथ वयवहार और उनक साबाध

चाररतरय बि का अभाव आदद आदद क सनदभम र वह कहत ह दक भारतद क चररतर र वह सदढ़ता या

सदाचाररता नही ह जो सराजसधार क कतिए आवशयक होती ह घर र पतनी उनह कभी पसाद नही आई

और वह बाहर रहदफ़िो र वाहवाही िटत रह रदमवादी दकतषट भी उनर कट-कटकर भरी थी भारतद क

इस चररतर की तिना तिवार जी न दो अनय परमपरावादी सधारको स की ह एक बागाि क राधाकाात दव

और दसर पाजाब क शरदधारार फलिौरी यदयकतप य दोनो भी भारतद की तरह परापरा की रकषा र ही सधार

की ओर अगरसर हए थ िदकन इन िोगो का चररतर जयादा परगकततशीि था इन दोनो की तिना र भारतद

का खिनायकतव और भी अकतधक उभरकर सारन आता ह सापकतकषक परगकततशीिता क कतनधामरण क कर र

भारतद अपन सापणम जीवन वयवहार र एक एाटी हीरो की तरह उभरत ह ठीक परान खिनायको की तरह

नही एाटी हीरो क साथ दशमक या पाठक की एक आतरीयता भी जड़ी रहती ह उसका चररतर ददराग र बस

जाता ह िदकन इसक चित यथाथम क ओझि होन का खतरा भी ह तिवार जी इसकतिए कदर कदर पर

उनकी साकतहकततयक छकतव क बरकस उनक राजनकततक- साागठकतनक जीवन वयवहार स बनन वािी छकतव को

सारन ररतमरान करत जात ह

अपनी परी आिोचना र तिवार जी भारतद की रचनाओ र कतरिन वाि भाषायी िदधड़पन और

राद तकमशीिता की चचाम तो करत ह िदकन व भारतद क वयागयो पर चचाम नही करत कया यह रहज

सायोग ह दक भारतद क परहसन lsquoअाधर नगरीrsquo का राचन आज भी परगकततशीि रलयो की परकततषठा ही करता

हभारतद क वयागयो या परहसनो र ऐसा कया ह कतजसर दहराव क साथ नवीन होत चिन की कषरता भी ह

भारतद क िखो या परहसनो या रपको र जो कही-कही वणमन या सावाद िारा वयागय का तीखा बोध पदा

होता ह उसकी शकति उनह कहाा स कतरिती ह वयागय की कषरता सवया र उनकी सकषर कतनररकषण र सरथम

दकतषट का परराण ह परान साराकतजक साबाधो र पररवतमन और तीवर पररवतमन क साथ साथ जो एक परहसन

चि रहा था उसका बोध भारतद को था भदरवगम क भीतर की कतववकवादी धारा का कतवकास भी कतहनद

राषटरवाद की कतवचारधारा र ही हआ परनत lsquoअाधर नगरीrsquo कया कतहनद राषटरवादी कतवचारधारा वािा परहसन ह

या कया यह कवि राषटरवादी कतवचारधारा का वाहक ह lsquoउरराव जान अदाrsquo र उभरकर सारन आन वाि

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साराकतजक साासककततक साकषोभ या उस वयापक टरजडी क सनदभम र दख तो भारतद क वयागय और परहसनो का

अथम थोड़ा और उभरता ह रकतलिका या राधवी स भारतद क साबाधो र कया उस तरासदी का सराग भी नही

ह वशयावकततत और पतनशीि रइसो का साकट एक दसर स अिग नही था उस सरय की औपनयाकतसक

ककततयो र वशयावकततत का सनदभम अवशय आता ह आग चिकर पररचाद की सरन बनारस र ही lsquoसवासदनrsquo

का सराधान ढाढ रही थी

भारतद क वयागयो पर रारकतविास जी का धयान था यह बात अिग ह दक अकतधकााश रौको पर

इनर वह जातीय चतना खोज कतनकाित ह बीस साि की उमर र भारतद न एक िख lsquoिवी पराणिवीrsquo नार

स कतिखा था रारकतविास जी इसका उलिख करत हए कतिखत ह ldquoगवनमर जनरि कतहनद क कतजस दरबार का

भारतद न वणमन दकया ह वह काशीराज क घर पर हआ था इसकतिए भारतद की सतयकतपरयता और भी

सराहनीय ह वहाा जो सजजन िोगो क नार कतिख रह थ उनका वणमन या दकया ह lsquoनार कतिखन वाि राशी

बदरीनाथ फि-फाि अबा पकतहन पगड़ी सज परान दादर की भााकतत इधर-उधर उछित और शबद करत

दफरत थrsquo िोग दकस तरह एक आनररी रकतजसटरट क lsquoकतसट डौनrsquo lsquoसटड अपrsquo कहन स उठत और बठ जात थ

इसका उनहोन बहत ही नाटकीय वणमन दकया ह आनररी रकतजसटरट का वयवहार हविदार का सा था कतसफम

हाथ र एक िकड़ी की कसर थी िोग कीरती पोशाक पहनकर गए थ ldquoसबक अागो स पसीन की नदी

बहती थी रानो शरीयत को सब lsquoअरघय पादयाrsquo दत थrdquo िोगो की उठा बठी और बहदा कवायद को िकषय

करक कतिखा था ldquoवाह-वाह दबामर कया था lsquoकठपतिी का तराशाrsquo था या बलिरटरो की lsquoकबायदrsquo थी या

बादरो का नाच था या दकसी पाप का फि भगतना था या lsquoफौजदारी की सजाrsquo थीrdquordquo21 काशी की इस सभा

र खद भारतद भी बठ थ इस परकार यह भारतद क वगम का परहसन भी था पतनशीि सासककतत की

आतरािोचना क कतबना यह साभव नही था बात कवि उमर की नही ह ठठ वतमरान र हसतकषप और उस

बदिन का बोध कतजन पतनशीि कतसथकततयो का आतर साकषातकार कर रहा था यह उसक परकतत एक

सवाभाकतवक सवतःसफतम परकततदकया थी यह तारकम क की नही बकतलक किाकार की सवतः सफतमता थी यह बात

सही ह दक भारतद कतवचारो की तारकम कता क रारि र उननीस पड़त थ पर इस करी को उनकी तीकषण

वसतकतनरीकषण दकतषट भर दती थी जीवन कतसथकततयो की कतवडमबना का बोध कतजतना गहरा था बदिन का

परयास उतना ही ऊजामवान था भारतद सवया अपनी भी कहानी कतिख रह थ lsquoपयार हररचाद की कहानीrsquo

कतिख रह थ भारतद क परहसनो र दकसी न दकसी पातर की भकतरका र हर जगह सवया भारतद भी ददख

जात ह अपन वगीय अातरवमरोधो का सवबोध उनक यहाा एकतिगोररकि हो जाता ह इस एकतिगरी र lsquoकतहनद

21 रारकतविास शराम पषठ- ६६

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भारतrsquo की रधर कलपना थी इसस इनकार नही दकया जा सकता भाव जगत का वषणव परर lsquoकतहनद भारतrsquo

की कलपना स परर र बदिता गया

भारतद की रचनाओ र कतवशवदकतषट की एकता खोजन पर हर परभतवशािी कतवचारधाराओ की

वयवसथा ही कतरिगी जञान और वयावहाररक सारानय बोध क बीच एक सदकय साबाध बनान क कर र ही

उनका सवाभाकतवक आवग कतजन वयावहाररक धाररमक कतवचारधाराओ र आतरकतबकतमबत होता ह व

परभतवशािी कतवचारधाराएा ह इन कतवचारधाराओ का कतनरामण कही बाहर स नही हो रहा था बकतलक

पराचयकतवदयाकतवदो की कलपना क साथ परसपर भागीदारी र बन रहा था इन कलपनाओ को यथाथम रप द

रही थी हपराट पाजी क साथ कतवककतसत होती lsquoबजमआ पकतबिक सफीयरrsquo की दकयाएा भारतद की सवाभाकतवक

सफरतम ततकाि ही एक फ टसी र बदिन िगती ह और दकयातरक होना चाहती ह ऐस ही सरय

पराचयकतवदया क पाकतडतो क िारा जगाय गए कतरथकीय परत भी आकर सर पर सवार हो जात ह पराचयवाद

दकसी परत-कतवदया स कर न था दखना चाकतहए दक भारतद की रचनाओ र कहाा परतो की दकतनया र यथाथम

का हसतकषप होता ह उनकी एकतिगरी कहाा कतसथकततयो क अकततरक को अकतभवयि कर रही ह जस भारतद की

lsquoअाधर नगरीrsquo ऐन हरार वक़त र राजयसतता का रपक बन जाती ह यह रपक राजयसतता र अनतरनमकतहत

हहासा की अकतनवायमता और नयाय क भरर का परहसन भी ह

२ धरम सधार पर कतवचार सभा

िहमो सराज या दयानाद सरसवती को खद भारतद कस दख रह थ इसका पता हर lsquoसवगम र कतवचार

सभा का अकतधवशनrsquo22 नारक एक वयागय रपक स चिता ह सवारी दयानाद सरसवती और कशवचादर सन

जब ररन क बाद सवगम पहाच तो ldquoवहाा एक बर बड़ा आनदोिन हो गयाrdquo रतय क कछ ही सरय पहि कतिखा

गया यह वयागय रपक अपन सरय क धरम सधार आादोिनो क चररतर की वयाखया करता ह सबस पहि

इसका परकाशन किकतत स कतनकिन वािी परकततकतषठत हहादी पकततरका lsquoकतरतर कतविासrsquo (जन १८८५) र हआ था

िहमो सराज और आयम सराज क आनदोिनो को भारतद इस सरय तक आकर एक तटसथ आिोचकीय दकतषट

स दखन का परयास करन िग थ सवगम र एकबारगी पदा हए इस आनदोिन र रोट तौर पर दो खर बन

गए एक इनका परशासक था दसरा हनादक पहिा कतिबरि ह दसरा काजरवरटव इन दोनो खााचो र

अनदफट एक तीसरा दि ह जो वषणव आतराओ का ह इस दि क सासथापक तो कतिबरि थ पर अब य

lsquoरकतडकलस कया रहा रकतडकलस हो गए हrsquo कतनकतशचत रप स इन रहा रकतडकलस आतराओ र हर सवया भारतद

22 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन सा- करिा परसाद परसा- नारवर हसाह पषठ- ८२-८६ नशनि बक टरसट इाकतडया नई ददलिी- २००६

(आग इस िख क उदधरणो को कतबना पाद रटपणणी क ददया गया ह)

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को भी कतगन सकत ह वयासदव एक ऐस बकतदधजीवी क रप र सारन आत ह जो दकसी का भी पकष िन स

बचत ह पर उनका रान दोनो खरो र ह ldquoकतबचार बढ़ वयासदव को दोनो दि क िोग पकड़-पकड़ कर ि

जात और अपनी अपनी सभा का lsquoचयररनrsquo बनात थ और बचार वयास जी अपन पराचीन अवयवकतसथत

सवभाव और शीि क कारण कतजसकी सभा र जात थ वसी ही विता कर दत थrdquo कतिबरिो की तिना र

का जरवरटव दि जयादा रजबत था कयोदक उनह सवगम क जरीदारो का सहयोग परापत था काजरवरटव दि की

आतराएा साकीणम कटररपाथी आतराएा थी य आतराएा उन परान िरान क ऋकतष रकतनयो की आतराएा ह जो

ldquoयजञ कर करक या तपसया करक अपन-अपन शरीर को सखा-सखाकर और पच-पच कर ररक सवगम गए हrdquo

करमकााड और वरत उपवास आदद को भारतद वही तक सही रानत थ जहाा तक व शरीर को कषट न पहाचाएा

कठोर दह साधना करन वाि इन ऋकतष रकतनयो की आतराएा सधारो क कतखिाफ थी और इनका साथ दन

वाि जरीदारो र lsquoउदार िोगो की बढ़तीrsquo स अपना रान-अकतभरान और बि कतछन जान का डर था

कतिबरि दि भिो की आतराएा या तो सावमजाकतनक जीवन क उचच रलयो या आदशो क सापादन क चित या

पररशवर की भकति स सवगम र गयी थी

सराज सधार और वयकतिक परर रिक भकति- कतिबरि कतवशवदकतषट को भारतद इसी पररपरकषय र दख

रह ह रकतडकि वषणव दि भिो क कतिए वषणव होन रातर स य चीज पहि स ही उपिबध थी भारतद क

कतिए वषणवता सवाभाकतवक रप स कतवशवदकतषट ह पर रकतडकि वषणव इस सवाभाकतवक उदारता को

राजनीकततक रप दन वाि ह वषणव उदारता का और उसक भावावग का राजनीकततकरण करन वाि रहा

रकतडकि इस तरह भारतद क कतिए वषणवता की आधकतनक वयाखया र सराज सधार वयकतिक परर रिक

भकति और राजनीकतत तीनो का lsquoएकाrsquo ह इस एका क रकतडकि परयास क कतिए जनरत या िोकरत का

कतनरामण आवशयक ह भारतद की रकतडकि वषणवता ही lsquoसब उननकतत का रिrsquo ह यह एक िोककतपरय

वयावहाररक कतवचारधारा क रप र आकर गरहण करन वािी वषणवता ह यह रकतडकि वषणवता धरम का

राजनीकततकरण ह

काजरवरटव दिभिो को दवताओ का सरथमन परापत था य दवता ही सवगम क जरीदार थ अपन

अपन तरीक स इन दवताओ न काजरवरटव दि की सथानीय शाखाएा भी खोि िी और वहाा इनक पकष र

lsquoपरकाश सभाएाrsquo होन िगी कतिबरि दि वािो क पकष र कवि इस lsquoकतहनद सवगमrsquo क िोग नही थ ldquoइधर

lsquoकतिबरिrsquo िोगो की सचना परचकतित होन पर रसिरानी-सवगम और जन सवगम तथा दकसतानी सवगम स पगमबर

कतसदध रसीह परभत कतहनद सवगम र उपकतसथत हए और lsquoकतिबरिrsquo सभा र योग दन िग बका ठ र चारो ओर

इसकी धर फि गयीrdquo अिग अिग सवगम कतवकतभनन धाररमक पहचानो की ओर इशारा करता ह बका ठ कतहनदओ

का सवगम ह और यह नया धरम आनदोिन रखयतः कतहनद धरम की एक बड़ी पहचान क भीतर ही पदा हआ ह

20

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग क तीन कतनकतहताथम वसधा डािकतरया न भारतद यग क सनदभम र नोट दकय ह23 पहिा

एक पराक औपकतनवकतशक lsquoकतहनद अथमrsquo जहाा हहादसतान का हर बाहशादा शाकतरि था दसरा परसपर कतभनन

धाररमक रतो और आसथाओ की कतनकट अातरकम या क अथम को वयि करता ह कतजसक आराकतभक साकषय सलतनत

कािीन ऐतहाकतसक वतताातो र कतरित ह यहाा यह शबद lsquoतकम rsquo क सरानाातर उपयोग र आया था और

सारानयतः रसिरानो क बरकतखिाफ उपयोग दकया जाता था आरमभ र यह धाररमक कर साराकतजक-

राजनीकततक अथो र जयादा परयि होता था अागरजी राज क साथ यह दसरा अथम धरम स अकतनवायमतः जड़कर

lsquoकतहनदवादrsquo की कतवचारधारा र बदि गया जमस कतरि आदद क इकततहासो र lsquoकतहनदकािrsquo और lsquoरसिरान

कािrsquo की ऐकततहाकतसक कलपना क साथ कतहनद शबद जड़ गया था भारतीय भी रसिरानो को सारन कर

lsquoकतहनद पीकतड़त गराकतथrsquo क कतिए इस शबद का इसतराि करन िग कतहनद शबद का तीसरा अथम राषटर की

अवधारणा स जड़कर बन रहा था आरथमक राषटरवाद और अागरजी राज की यातना की साझी सरकतत स बनन

वाि इस तीसर अथम का रतिब था- lsquoजो कतहनदसतान र रह वह कतहनदrsquo रारकतविास जी भारतद क यहाा

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग को इनही अथो र ित थ पर वसधा डािकतरया का कहना ह दक यह तीसरा अथम दसर क

वयापक परभाव र था तीनो अथो की अातरकम या क बार र डािकतरया न कतिखा ldquoतीसरा अथम या राषटरवादी

अथम कभी भी अपन धाररमक साकताथो स परी तरह छटकारा नही पा सका इस पद की परयकति उननीसवी

सदी र अकतसथर बनी रही और इसक रखतकतिफ रायनो र आपसी जड़ाव कायर रहा बावजद इसक दकसी

परदतत सनदभम र lsquoकतहनदrsquo क पराथकतरक अथम को कतनधामररत करना साभव ह यदद एक बार यह तय हो जाय दक

इिाकाई धाररमक राषटरीय र स दकस आधार पर यह पद परयोग र आ रहा ह और lsquoअनयrsquo की भकतरका र

दकस रखा जा रहा ह चाह वह अनय जसा दक परानी इिाकाई परयकति र ददखता ह फारसी या तकी हो

या रसिरान (कतजस इस िरान र भी कई बार सरह क हवाि स तकम ही कहा जाता ह) या दफर अाततः

औपकतनवकतशक सवारी िदकन यह बात ददराग र रखना जररी ह दक धाररमक सरदाय को कतनरदमषट करन

वािी दसरी परयकति अतयात परभावी सनदभम-हबाद बनी रहती हrdquo24

इस सनदभम र दख तो कतिबरि दिो क सरथमन र शाकतरि lsquoअनयrsquo कतहनद धरम क सधारवाद क सरथमक

ह और lsquoसधारोrsquo र छपी वकतशवक भावनाओ को सरथमन दन पहाच ह का जरवरटव दिो की lsquoअनयताrsquo यहाा नोट

करन िायक ह इस अनयता र साराती जरीदार और करमकााडी िाहमणवाद का बिाक ह जबदक कतिबरि

दकतषट क आसपास एक lsquoसायि रोचrsquo की कलपना की गयी ह धयान रखना चाकतहए दक भारतद क रकतडकि

वषणव इस lsquoसायि रोचrsquo क बाहर ह उनका lsquoएबसटकतनजरrsquo वषणव होन क चित नही बकतलक रकतडकि या

23 वसधा दिकतरया कतहनद परमपराओ का राषटरीयकरण भारतद हररशचादर और उननीसवी सदी का बनारस अन साजीव करार योगनदर दतत पषठ-

४०-४२ राजकरि पपरबकस नई ददलिी- २०१६

24 वही पषठ- ४२

21

रहा रकतडकि होन क चित था कतनकतशचत रप स सवगम सासद का रपक ह और सवगम का राजा ईशवर

कतनषपरभावी हो गया ह और जनता सवया जनरत क िारा कतनणमय कतसथर करन पर जोर दती ह जनरत क

िारा lsquoसलफ गवनमरटrsquo का परयास सबस पहि वषणव भिो न दकया था और आज क कतिबरलस उसी को

आग बढ़ा रह ह ईशवर क पास दोनो दिो क िोगो न जब अपन अपन ररोररयि तयार कर भज तो ईशवर

न दोनो दिो क डपयटशन को बिाकर कहा ldquoबाबा अब तो तरिोगो की lsquoसलफगवनमरटrsquo ह अब कौन

हरको पछता ह जो कतजसकी जी र आता ह करता ह अब चाह वद कया सासकत का अकषर भी सवपन र भी न

दखा हो पर धरम कतवषय पर वाद करन िगत ह हर तो कवि अदाित या वयवहार या कतसतरयो क शपथ

खान को ही कतरिाय जात ह दकसी को हरारा डर ह कोई भी हरारा सचचा lsquoिायकrsquo ह भत परत ताकतजया

क इतना भी तो हरारा दजाम नही बचा हरको कया कार चाह बका ठ र कोई आवहर जानत ह चारो

िड़को (सनक आदद) न पहि स ही चाि कतबगाड़ दी ह कया हर अपन कतबचार जयकतवजय को दफर राकषस

बनवाव दक दकसी का रोकटोक कर चाह सगन रानो चाह कतनगमन चाह ित रानो चाह अित हर अब न

बोिग तर जानो सवगम जानrdquo

काजरवरटव दिभिो न दयानाद और कशवचादर सन पर कया कया आरोप िगाय यह दख िना

चाकतहए दयानाद को सवगम र सथान नही कतरिना चाकतहए कयोदक १ इसन पराणो की हनादा की २ ररतमपजा

की हनादा की ३ वदो का अथम उलटा-पलटा कर डािा ४ दस कतनयोग करन की कतवकतध कतनकािी ५ दवताओ

का अकतसततव कतरटाना चाहा (दवताओ याकतन जरीदार) ६ इसन धरम कतवपिव दकया और आयामवतम को धरम

बकतहरमख दकया पकतशचरोततर परानत क परकततकतनकतध क रप र lsquoकाशी क कतवशवनाथ जीrsquo न lsquoउदयपर क एकहिाग

जीrsquo पर दयानाद क सरथमन का आरोप िगाया कतवशवनाथ जी काजरवरटव दिो की तरफ स यह आरोप िगा

रह थ परब की अपकषा पकतशचरी इिाको र आयम सराज क परभाव की चचाम क सनदभम र एकहिाग जी का

जवाब धयान दन िायक ह कतवशवनाथ जी न जब एकहिाग जी को कतधककारत हए कतिबरिो क साथ कतरि जान

को कहा तब एकहिाग जी न कहा ldquoभाई हरारा रतिब तरिोग नही सरझ हर उसकी बरी बातो को न

रानत न उसका परचार करत कवि अपन यहाा क जागि की सफाई का कछ ददन उसको ठका ददया बीच

र वह रर गया अब उसका राि रता रठकान रखवा ददया तो उसका बरा दकयाrdquo यह एकहिाग जी

दफ़िहाि सवारी जी क दि क सभापकतत बन ह आकतखर इनहोन अपन यहाा क दकस lsquoजागिrsquo की सफाई का

ठका सवारी जी को ददया था यह जागि छोट-रोट धाररमक समपरदायो और रतो का जागि था एकहिागी

जी और काशी क कतवशवनाथ जी दोनो ही िाहमणीकत शवरत क धाररमक परतीक ह पर जहाा काशी क

कतवशवनाथ शर स ही दयानाद क कतवरोधी थ वही एकहिाग जी रणनीकततक रप स दयानाद क पास गए थ यह

साकीणम कटररपाथ क भीतर का कतववाद था यह बात गौर करन िायक ह दक जगननाथपरी र जब भरव की

22

रौजदगी का कतववाद भारतद क सारन आया था उस सरय उनहोन इस बात का परतयाखयान दकया था दक

भरव की परकततरा अनाददकाि स वहाा ह भारतद न पराण आदद स साकषय दकर यह परराकतणत दकया दक

कषण ही एकरातर उपासय ह तिवार जी न इस घटना का उलिख करत हए कतिखा ह दक ldquoदकसी वयकति न

lsquoतहकीकातपरीrsquo दकताब दकखकर बताया दक वहाा पहि भरो की पजा होती थी वषणवो न उसकी ररतम

उखाड़ फ की थी बाद र पाडो न जगननाथजी (कतवषण) क साथ भरो को दफर स परकततकतषठत दकया यह रारिा

काशी धरमसभा क सारन १८७० र आया भारतद न धरम साबाधी पसतक र lsquoतहकीकातrsquo जस फारसी शबद

की आिोचना करत हए कतवकतभनन धरमगराथो स परराण जटाकर दो बातो पर जोर ददया एक इसका परराण

नही कतरिता ह दक वहाा जगननाथजी क साथ पहि भरो की भी ररतम थी कतजस वषणवो न उखाड़ फ का दो

अगर वह थी भी तो यह उकतचत था या नही- इसपर कतवचार होना चाकतहए भारतद न अपनी वयवसथा दत

हए कतिखा दक भरो कतवषण स बहत छोटा दवता ह इसकतिए यह कतवषण क साथ बठाया नही जा सकता

lsquoदसर भरव कापाकतिको क दवता ह उनका पजन वषणव-सरातम सबको कतनकतषदध हrsquo गौरतिब ह दक भारत

र कतवकतभनन सथानीय धरो क परकतत कतजतन असकतहषण और फा डारटकतिसट आयमसराजी थ उतन ही काशी क

सनातनी भी थrdquo25

सथानीय धरम-रतो क जागि को साफ़ करन र आयमसराकतजयो और काशी क सनातनी पाडो क इस

गठजोड़ स भारतद भी वादकफ थ िदकन आयमसराकतजयो क साथ उदयपर क एकहिाग जी का रोचाम कसा

था इस भी भारतद बखबी सरझ रह थ सथानीय रतो क साथ भारतद का समबनध कसा था इसका पता

उनक छोट-छोट यातरा सासररणो स भी चिता ह lsquoसरय पार की यातराrsquo26 र रहदावि का हाि बयान करत

हए lsquoपराणनाथrsquo क रिहब का भारतद आशचयम क साथ उलिख करत ह भारतद क ही शबदो र ldquoयहाा एक

पराणनाथ का रिहब ह और दस बीस िोग उसक रानन वाि ह य िोग एकादशी तीथम वगरह को नही

रानत और सन सनाय दो तीन शलोक जो याद कर कतिए ह बस उसी पर चर हो lsquoरदीनासया शारदाा शताrsquo

और lsquoगोकतवनदrsquo lsquoगोकिानाद रककशवरrsquo यह शलोक पढ़ क कहत ह दक वद र रकका रदीन का वणमन ह ऐस ही

बहत वाकतहयात बात करत ह और कोई दकतना भी कह कछ सनत नही कहत ह दक गोिोक का नाश ह

और गोिोक ऊपर एक lsquoअखाड रणडिाकारrsquo िोक ह उसर रर कषण ह इनका रिहब एक पराणनाथ नारक

एक कषतरी न पनना र करीब तीन सौ बरस हए चिाया थाrdquo भारतद इस अजीबो गरीब lsquoरिहबrsquo का कषण स

कया साबाध ह यह सोचकर ताजजब र थ इस lsquoरिहबrsquo क गरनथ र भारतद न एक शलोक बलिभाचायम का

दखा तो उनका राथा और घर गया ldquoकि रिहब का हाि हरन नीच कतिखा था उसका अचछी तरह स

25 वीरभारततिवार रससाकशी १९वी सदी का नवजागरण और पकतशचरोततर परानत पषठ- १५२ सारााश परकाशन ददलिी- २००६

26 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन पषठ- १३७-३८

23

हाि दरयाफत दकया तो रािर हआ दक हरार ही रिहब की शाखा ह इनक गराथो र हरन एक शलोक शरी

रहापरभजी की सबोकतधनी की काररका का दखा इसी स हरको सादह हआ दफर हरन बहत खोद खाद कर

पछा तो वह साफ़ रािर हआ दक इसी रत स यह रत कतनकिा ह कयोदक एक बात वह और बोि दक हरारा

रत शरी बलिभाचारज की टीका र कतिखा ह इन िोगो क उपासय शरीकषण ह और एकादशी शािगरार

ररतमपजा तीथम दकसी को नही रानत इनक पकतहि आचायम दवचाद जी थ जो जाकतत क कायथ थ और दसर

पराणनाथ जी जो कचछ क कषतरी (भारटया) थ हरार ही रत की शाखा सही पर कतवकतचतर रत ह वषणव होकर

ररतमपजा का खाडन करन वाि यही िोग सनrdquo वणमन स सपषट ह दक सात और कतनगमण पाथो क साथ वषणव

कतवचारधारा क आदान-परदान का साकतशलषट इकततहास भारतद क कतिए ताजजब की चीज थी पर इन सबक बीच

आकतखर उनहोन इसक वषणव रि का पता िगा कतिया और वषणवता की इस धाररमक कतवचारधारा र उनहोन

ररतमपजा का कतवरोधी होना भी शाकतरि रान कतिया भारतद न ररतमपजा क सरथमन र बड़ बड़ िख कतिख

थ इसकतिए असाभव नही दक कषण क परकतत परररिक भकति क कतिए ररतम की जररत पर उनहोन कछ पछा

जरर होगा िदकन lsquoकोई दकतना भी कछ कह सनत ही नहीrdquo आग चिकर lsquoवषणवता और भारतवषमrsquo र

वह बड़ कतवशवास क साथ घोकतषत करत ह दक ldquoपहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद कतजतन पाथ ह सब

वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और भारतवषम इन पाथो स छाया हआ हrdquo27 तब वह वषणवता और

िोकरतो और रधयकािीन पाथो क भीतर पहि स सदकय एक ऐकततहाकतसक परदकया का सारानयीकरण कर

उसका नार lsquoवषणवrsquo रख रह थ अकारण नही दक उसी िख र वषणव वयापकता को बतान क कतिए

परचकतित lsquoनारोrsquo का साकषय पश दकया गया ह वयकतियो स िकर वरत और उपवासो तक यह परभतवशािी

सारानय बोध की कतवचारधारा थी कतिवदी जी रधयकािीन वषणवता को िोकधरम कहत थ भारतद

उननीसवी सदी क िोकधरो को वषणव कहत ह

काजरवरटव दिो की तरफ स कशवचादर सन पर िगाय गए आरोप थ १ वद पराण सबको कतरटा

डािा २ दकसतान रसिरान सबको कतहनद बनाया ३ खान पीन का कतवचार कछ न बाकी रखा ४ रदय की

तो नदी बहा दी आयम सराकतजयो क ऊपर रखयतः आरोप lsquoआयामवतम को धरम बकतहरमखrsquo करन का ह धरम

बकतहरमख अथामत सनातन धरम स कतवरख उनहोन कवि धरम क भीतर कतवपिव दकया परनत िहमो सराज न तो

lsquoभारतवषम का सतयानाशrsquo कर डािा इनहोन तो पराणो क अिावा वदो को भी कतरटा डािा lsquoआयामवतमrsquo की

जातीय पकतवतरता नषट करक दकसतान रसिरान जस lsquoकतवदशी ततवोrsquo को घर र घसा कतिया कटररपाथी

करमकााकतडयो क कतिए इनक साथ रणनीकततक तौर पर भी रोचाम बनान वािा कोई एकहिाग जी तयार नही

था सनातकतनयो िारा दकया गया यह बारीक भद खद कतिबरि दिभिो क भीतर का भी अातरवमरोध था

27 भारतद वषणवता और भारतवषम वही पषठ-७६

24

कतिबरिो की सभा र भी दो दि हो गए थ एक सवारीजी क सरथमको का दि था और एक कशव

क सरथमको का कतहनद कतिबरिो की आताररक एकता कतिकतवभाकतजत थी दयानाद क सरथमको क अनसार सवारी

जी न कतहनदओ की आतरा को जगाया था उनह सफतम बनाया वरना तो आयामवतम क आिसी और रखम

रोहकतनदरा र ही कतनरगन थ इस तरह रखम और आिसी सारानयजनो को lsquoिाहमणो क फा द स छड़ायाrsquo िाहमणो

की तिना भारतद न lsquoपादररयोrsquo स की ह जो lsquoवयथम परजा का दरवय खान वाि हrsquo आयम सराज न सासथाकत

परोकतहतवाद पर हरिा दकया था जो भारतद क कतिए रितः जनता क पसो पर पिन वािा परजीवी वगम

िगता था और तो और आधकतनक कतवजञान क आग जो lsquoआयोrsquo की नाक कटी जा रही थी उस भी सवारी जी

न बचा कतिया उनहोन वदो र भी रि तार करटी कचहरी आदद ददखाकर कतहनदओ र आतरसमरान पदा

दकया दसरी ओर कशव क सरथमको का कहना था दक ldquoधनय कशव तर साकषात दसर कशव हो तरन बाग

दश की रनषय नदी क उस वग को जो कशचन सरदर र कतरि जान को उचछकतित हो रहा था जञान करम का

कतनरादर करक पररशवर का कतनरमि भकति रागम परचकतित दकयाrdquo lsquoजञान करम का कतनरादरrsquo करक भी lsquoकतनरमि

भकति रागमrsquo का जो परवतमन कशव न दकया उसस ही ईसाई lsquoअनयताrsquo का साथमक परकततरोध साभव हआ lsquoरनषय

नदी का आवगrsquo भावावग ह इसी बात को दसर शबदो र कह तो भाव जगत क सवाभाकतवक वग को भगवत

भकति की शदध lsquoअनयताrsquo की ओर रोड़कर उस कतवदशी ईसाई lsquoअनयताrsquo क रागम पर जान स रोक ददया इस

कायम क कतिए वद पराण समरत lsquoजञान-करमrsquo क रागो का कतनरादर अगर करना पड़ा तो भी वह उकतचत ही था

वषणव भकति क रधयकािीन सवरप की जो वयाखया आग चिकर की गयी उसक आराकतभक कतचनन हर यहाा

दख सकत ह कहना न होगा दक भारतद का अपना अनभव भी यहाा बोि रहा ह

शासतरीय काजरवरटव पाटी र दवताओ क अिावा यजञवलकय जस औपकतनषददक ऋकतष क साथ-साथ

नारायण भटर रघनाद भटराचायम राडन कतरशर जस कतनबाधकारो और टीकाकारो का जरघट भी था इसक साथ

साथ इसिारी सवगम स आय हए कटररपाथी कतशया िोगो का भी सरथमन उनह परापत था इस परकार कटररपाथ का

दवताओ (जरीदारो) िाहमणो (पादररयो) जञानरागी औपकतनषददक ऋकतष रधययगीन कतनबाधकारो और

कतवदशी कतशया िोगो का एक वकतशवक रोचाम बन रहा था दसरी ओर कतिबरि दि र चतनय परभकतत आचायम

दाद नानक कबीर परभकतत भि और जञानी िोग भी शाकतरि थ इसक अिावा काजरवरटव दि क

कतवदरोकतहयो को भी कतिबरिो न अपन यहाा जगह दी य कतवदरोही थ अितवादी (या नववदााती) भाषयकार

पाचदशीकार और कोई कतरसटर िडिा इन दोनो िोगो पर शर र का जरवरटव दि वािो न बहत हरि

दकय परनत अात र इनह कतिबरिो न अपन यहाा जगह द दी धयान रखना चाकतहए दक भारतद अपन सापरदाय

क अनरप अित वदाात या रायावाद क घोर आिोचक थ सन १८७३ र हररशचादर रगजीन क पहि ही अाक

र भारतद न शााकतडलय भकति सतरो का अनवाद lsquoभकति सतर वजयातीrsquo नार स परकाकतशत दकया भकतरका र

25

भारतद कतिखत ह ldquo दखो आज वसात पाचरी ह इसस बहत स िोग आर क रौर वा फिो क गचछ िकर

तरस कतरिन आवग तो र भी यह एक फिो की वजयाती रािा बना कर िाया हा अागीकार करो वजयाती

रािा बनान का यह हत ह दक वनरािा होगी तो होिी क खि र अरझगी और इसक कतसवाय इस वजयाती

स कतनशचय करक जञानाददक को जय करना ह पर पयार बहत साभि कर यह रािा पहरना टट न जाए

कयोदक सत कचचा ह और ककतियाा तािी और कोरि ह इस स कमहिान का भी भय ह जो हो इस वसात

पाचरी को तयोहारी रझ यही दो दक इस सतयानाशी lsquoअहरrsquo िहमवाद lsquo को पणमरप स नाश करक और भी

सब बातो र इस नव-वसात र भारतवषम की सब आपकतततयो का बस अात करो और अपन भिो क कतचतत र

नव पलिव दफर स िहिह करो जो सदा एक रस रहrdquo28 lsquoएकरसrsquo भकति क कतिए जररी ह दक जञानवाद

अहर िहमवाद को जड़ स उखाड़ फ का जाय कषण को अरपमत अपनी वजयाती रािा स भारतद जञानाददक

को जय करना चाहत ह एक ओर यह पकतषटरागी परापरा क lsquoवीर वषणवrsquo भारतद का परर कतनवदन ह दसरी

ओर lsquoनव-वसातrsquo र भारतवषम की सब आपकतततयो को नाश करन की सारथयम रपी lsquoउपहारीrsquo का साकलप भी

ह lsquoभारतद भारतवषम की सब आपकतततयोrsquo को दर करन की राह र एक बड़ी बाधा अित क जञानवाद को

रानत ह भकति का lsquoएकरसrsquo पहि भी इसक परभाव स ररझाता रहा ह भारतद का साकलप सापरदाय क

परान कतवरोधो क बावजद बन रहन वाि इस अितवाद का पणम सफाया करन का ह जबतक यह न कतरटगा

परररिा भकति क lsquoकमहिान का भयrsquo बना रहगा भकति सतरो र उपासना कााड को परर कतसकतदध का हत

बताया गया था पर भारतद दख रह थ दक उपासना कााड का परचार कतवरि हो गया ह इसी परचार क

कतनकतरतत उनहोन इन सतरो का भाषा र अथम परचार दकया था १८७३ र ही हररशचादर रगजीन का एक

समपादकीय कतनकिा कतजसका शीषमक था- lsquoभकति जञानाददक स कयो बड़ी हrsquo इस िख र भी उपासना रागम

की रहतता का परकततपादन दकया गया ह तकम और जञान को करम की शकतदध और उपासन की परर कतसकतदध क

रासत र कवि एक चरण बताया गया ह वसधा डािकतरया न भारतद क आराकतभक साापरदाकतयक परचार

परसार क कायो र कतनगमकतनयो को बाहर रखन का उपकर नोट दकया था29 यहाा कतनगमकतनए कबीर आदद lsquoभि

और जञानीrsquo कतिबरिो क सरथमक ददखाए गए ह वषणव भकति क राषटरीय चररतर र य बाहर नही थ उनकी

एकता का आधार उनक lsquoकतिबरि रिrsquo र ह सावमजकतनक उचच भाव का सापादन और भकति इन दोनो क साथ

अित वदााती या जञानाददक- सनातनी परापरा क कतवदरोकतहयो की जगह भी कतिबरि दि पाकतथयो र थी

कतिबरि वाि ही झगड़ क कतनपटार की अजी पररशवर को दन गए थ पर पररशवर अपनी

परतीकातरक हो गयी कतसथकतत स खजिाय हए थ यह सवोचच अदाित थी पर साथ ही साथ शकतिहीन

28 भारतद गराथाविी खाड- ५ पषठ ११३

29 वसधा डािकतरया पषठ ३४२

26

राषटराधयकष की कलपना भी कतजस कतहनद सवगम क य राषटराधयकष ह वहाा दकसी दकसर की सलफ गवनमरट चनन

की परणािी आ जान स ईशवर की एकाकतधकारी शकतियाा कतछन गयी ह िोग जनरत कतनरामण क िारा सही

और गित की पहचान करन िग थ इसकतिए थोड़ा खजिाय तो रहत ही होग lsquoअब कौन हरको पछता

ह तर जानो सवगम जानrsquo परनत साकट गहरा था यदयकतप कतिबरि िोगो की सभा भी धरधार स जर

रही थी पर काजरवरटव दि पाकतथयो की सरकार र पठ थी दवता सब भी उनक साथ थ इसकतिए पररशवर

क पास जररी नयाय का परशन उठाया गया था नयाय दक इन दो रहापरषो को सवगम र जगह कतरिनी

चाकतहए या नही सराज र इनक नकततक उचच आदशो क अवरलयन का परचार काजरवरटव कर रह ह इस

परचार क कारण जनता अपनी निरो स पहचानन र सकषर नही ह ऐसी कतसथकतत सवगम र पहि नही आई

थी नई कतसथकततयो क नए रानदाड कया होग िाकतहर ह नयाय और नकततकता को एक वकतशवक सवीककतत

चाकतहए इसकतिए पररशवर न इस कतवषय पर कतवचार क कतिए जो ककतरटी चनी वह गौर करन िायक ह इस

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo र ldquoराजा राररोहन राय वयास दव टोडररि कबीर परभकतत कतभनन-कतभनन रत क िोग चन

गए रसिरानी- सवगम स क lsquoइरारrsquo दकसतानी स िथर जनी स पारसनाथ बौदधो स नागाजमन और

अफीका स कतसटोवायो क बाप कोrdquo चना गया कतहनद सवगम स नवजागरण क अगरदत वयासदव जस

बौकतदधकिखक टोडररि जस राजनीकततजञ और धरम-ररमजञ कबीर जस जञानी-भि पराचीनो र कवि वयास

दव ह बाकी दो lsquoरधयकािrsquo क और एक lsquoआधकतनकrsquo काि क वयकति ह उधर यरोपीय नवजागरणधरमसधार

क परणता िथर को भी बिाया गया ह और बौदधो की तरफ स परर कतनषधवादी नागाजमन भी ह पर य

अफीका क कतसटोवायो धरो की अकतसरता क साथ-साथ यह अफ़ीकी सवगम कतनकतशचत रप स अफीका की छकतव

पराचीन आददवासी सासककतत वाि एक lsquoकािrsquo रहादश क रप र गढ़ी गयी थी यह अफ़ीकी सवगम साभवतः

आददवासी धाररमक रानयताओ की ओर इशारा करता ह यह भी धयान दन िायक ह दक राजा राररोहन

राय िथर और कबीर इन तीनो क साथ lsquoनवजागरणrsquo की कोई न कोई पररकलपना ठठ सरकािीन कतवरशो

क क दर र भी ह कई अथो र अकबर िारा आयोकतजत होन वािी lsquoसिह-ए-किrsquo जसी धरम सभाओ की एक

रोहक कलपना भी भारतद को रही होगी टोडररि की उपकतसथकतत अकारण नही ह

अकबर को िकर भारतद की इकततहासदकतषट कसी थी इसकी एक झिक हर १८८४ र छपी उनकी

lsquoबादशाह दपमणrsquo की भकतरका र ददखती ह इस गरनथ र उन िोगो का चररतर-कतचतरण दकया गया था ldquoकतजनहोन

हरिोगो को गिार बनाना आरमभ दकया इसर उन रसत हाकतथयो क छोट-छोट कतचतर ह कतजनहोन भारत क

िहिहात हए करिवन को उजाड़कर-पर स कचिकर कतछनन-कतभनन कर ददया रहमरद रहरद अिाउददीन

अकबर और औरागजब आदद इनर रखय ह पयार भोि कतहनद भाइयो अकबर का नार सनकर आपिोग

चौदकए रत यह ऐसा बकतदधरान शतर था दक उसक बकतदधबि स आजतक आपिोग उसको कतरतर सरझत ह

27

दकनत वह ऐसा ही नही उसकी नीकतत अागरजो की भााकतत गढ़ थी रखम औरागजब उसको सरझा नही नही तो

आज ददन हहादसतान रसिरान होता कतहनद-रसिरान र खाना-पीना बयाह-शादी कभी चि गयी होती

अागरजो को जो बात नही सझी वह इसको सझी थीrdquo30 कतनकतशचत रप lsquoबकतदधरानrsquo दशरन स सीखन को बहत

कछ कतरिता ह अकबर की दीन-ए-इिाही क परयोग स भारतद भी बहत कछ सीख रह थ रधयकािीन

इकततहास क बार र रकतसिर शतर की छकतव का कतनरामण पराचयकतवदयाकतवदो क िारा दकया जा रहा था इकतियट

आदद इकततहासकारो न जो दकतषट कतवककतसत की उसका परभाव बहत गहरा था पर इस इकततहासिखन क साथ

साथ भारतद क कछ दशी सरोत भी थ अिग-अिग रहापरषो की चररताविी कतिखन की पररणा भारतद न

कतजतना अपनी वषणव भकति की परापरा स पाया था उतना ही इसिारी इकततहास िखन की परापरा स भी

lsquoबादशाहदपमणrsquo की भकतरका र भारतद कतिखत ह ldquoरर पररातारह राय कतगरधरिाि साहब जो यवनी कतवदया

क बड़ भारी पाकतडत और काशीसथ ददलिी क शाहजादो क रखय दीवान थ उनकी इचछा स ददलिी क परकतसदध

कतविान सययद अहरद न एक ऐसा चक बनाया था कतजसर तरर स िकर शाह आिार तक सब बादशाहो क

नार आदद कतिख थ उस फारसी गरनथ स बहत सी बात इसर िी गयी ह इस कारण तरर पवम क बादशाहो

का वणमन इतना परा नही ह कतजतना तरर क पीछ ह दफर रर रातारह राय कतखरोधरिाि न बहादर शाह

क काि क आरमभ तक शष वतत सागरह दकयाrdquo31

अरणदव जी अपन एक िख र भारतद क आराकतभक अकबर परर का कतिक दकया ह १८७२-७४ क

आसपास भारतद अकबर को रहान शासक रानत थ जबदक औरागजब को कतहनदओ का दशरन नाबर एक

भारतद न औरागजब की तिना र अकबर की रहानता को परराकतणत करन क कतिए रारदास कछवाह क एक

शलोक को अपना आधार बनाया ह इस शलोक का भावाथम भारतद क शबदो र इस परकार ह ldquoजो सरदर स रर

तक पथवी को पािता ह जो रतय स गउओ की रकषा करता ह कतजसन तीथम और वयापार स कर छड़ा ददए

कतजसन पराण सन जो सयम का नार जपता जो योग धारण करता ह और गागाजि छोड़कर पानी नही

पीता उस जिािददीन की जय अाग वाग कहिाग कतसिहट कततपरा कारत (कारटी) काररप अाध कणामटक

िाट दरकतवड़ रहाराषटर िारका चोि पााडया भोट रारवाड़ उड़ीसा रलि खरासान का दहार जमब काशी ढाका

बिख बदखशाा और काबि को जो शासन करता ह ककतियग की रकतहरा स घटत हए वद गउ कतिज और

धरम की रकषा को सगन शरीर कतजसन धारण दकया ह उस अपररय परष अकबर शाह को हर नरसकार करत

हrdquo32 यही अकबर १८८४ र औरागजब स जयादा शाकततर और बकतदधरान शतर र बदि गया lsquoकािचकrsquo क

कतनकतहताथो र यह फरबदि भारतद पर रकतसिर कतवदशीपन और कतहनद शतरता क समपणम बिॉक बनान की

30 बादशाह दपमण भारतद गराथाविी खाड-६

31 वही

32 httpsamalochanblogspotin201209blog-post_9html

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रणनीकतत क दबाव क कारण था और lsquoपरावकततrsquo की कतरथकीयता र भी कतहनदओ को lsquoरहारोहनासतरrsquo क सहार

पहि भी वश र दकया गया था यह एक बारीक चाि थी अकबर की इस चाि को अागरज भी नही सरझ

पा रह थ भारतद की यह परकततदकया औपकतनवकतशक इकततहासिखन क दबाव र थी १८७३ र जब भारतद

न कतशवपरसाद की दकताब lsquoइकततहासकततकतररनाशकrsquo क तीसर खाड की आिोचना की थी तो उनक सारन

रकतसिर शासन की बबमरता और अागरजी राज क सशासन का कतशवपरसाद िारा ककतलपत आखयान था १८८४

र समपणम रकतसिर काि अनधकार यग र बदि गया कततकतररनाशक क पहि खाड र बाब कतशवपरसाद न भी

अकबर की रजहबी उदारता और साराकतजक सधारो की बड़ाई की थी इस परकार हर दख सकत ह दक

ऐकततहाकतसक िखन र पकष और कतवपकष की पनरावकततत एक बाद घर र उिझी हई थी इनक सारन रकतसिर

कतवरोध और अागरजी शासन क कतवरोध का एक कतवसागत फर था और िखक उसर अपनी फौरी जररतो क

कतहसाब स कतरतर और दशरन वािा इकततहास कतिखता था इकततहास ठठ राजनीकततक ततकाि क वशीभत था

जो भी हो धाररमक उदारता और सिह-ए-कि का परयोग एक कतशकषापरद परयोग था यह कतवकतभनन

रतो या कतवशवासो क बीच lsquoजनरतrsquo बनान का एक रधयकािीन परयोग था भारतद lsquoजनरतrsquo क परयोग को

इस तरह दखत थ रानो यह lsquoचािrsquo अगर कारयाब हो जाती तो lsquoआज क ददन हहादसतान रसिरान होताrsquo

भारतद क सारन सरसया वही थी बस वह कवि यह चाहत थ दक कतहनदसतान lsquoकतहनदrsquo हो जाय कतहनद

अथामत वषणव हो जाय वषणवता भारतद क कतिए हहादसतान का नया lsquoसिह-ए-किrsquo था इसकतिए कछ

सावमजनीन रलयो की तिाश उनह भी थी कतसिकट ककतरटी क उपरोि रमबर lsquoएकसअफीकतशयोrsquo रमबर थ

रोर क परान हररकिस जस दवता कतजनहोन धरती स साबाध तोड़ ददया ह व िोग तथा उनही क जस

पारकतसयो क lsquoजरदशतजीrsquo को कोरसपोहडाग ऑनररी रमबर बनाया गया य धरम क रप र रतपराय रतो क

परकततकतनकतध थ ककतरटी न जो ररपोटम तयार की उसका ररम भारतद न ददया ह यह ररम उनक रकतडकि वषणव

पकष का रत था कतिबरि दि और काजरवरटव दि क अपन पकषो स इतर यह नरनायक तीसरा पकष वषणवो

की तरफ स सनाया गया था रकतडकि वषणवो की तरफ स भारतद इस धाररमक आनदोिन क भीतर अपना

ही पकष रखत हए इसका ररम कतिख रह थ ldquoहरिोगो की समरकतत र इन दोनो परषो न परभ की रागिरयी

सकतषट का कछ कतवघन नही दकया वराच उसर सख और सातकतत अकतधक हो इसी र पररशरर दकयाrdquo कतहनद सराज

सधार क परयासो का ररम बतात हए सबस पहि धयान सतरी सधारो पर ददया गया ह साराकतजक करीकततयो

की कतशकार रकतहिाओ क परकतत जो दकतषट उभरकर सारन आती ह उसक रि र धरम की रीकतत स यौन

रयामदाओ की अवयवसथा को दफर स रयामददत करन की चषटा ह कतसतरयो क करागम पर जान का पहिा कारण

ह रनराना परष धरमपवमक न पाना यह कतववाह सासथा की कतवककततयो की आिोचना थी जहाा बाि कतववाह

कतवधवा कतववाह आदद की तरफ इशारा ह धयान रखना चाकतहए दक यहाा बरि कतववाह क बदि कतसतरयो िारा

29

lsquoरनराना वरrsquo न चन पान का उलिख ह गभमनाश और बाि हतया क कतखिाफ सधार परयास दसरा

रहतवपणम योगदान ह कतववाह सासथा बीच र भी भाग की जा सकती ह इसकी सवीककतत ह कनया क कतहत र

अातरजातीय कतववाह की सवीककतत ह एक रहतवपणम बात गरओ और पाकतडतो क वयाकतभचार क साबाध र ह

भारतद क सारन पकतषटरागी रहातो और गरओ क वयाकतभचार का अनभव भी इसर शाकतरि ह

१८७४ र ककतववचन सधा र भारतद की एक रटपणणी छपी थी lsquoगर को कसा होना चाकतहएrsquo इसक अिावा

दो वषम पहि lsquoगर और रहातrsquo नार स भी एक रटपणणी कतिखकर वषणव पाडो-परोकतहतो की खिकर

आिोचना की गयी थी तिवार जी न कतिखा ह दक राददरो क भीतर कतसतरयो का यौन शोषण और वयाकतभचार

इतना भीषण था दक दयानाद भारतद क पकतषट सापरदाय को lsquoकषठी सापरदायrsquo कहत थ १८६० क आरमभ र ही

वषणव गोसाइयो क अनाचार और यौन शोषण क कतखिाफ बमबई र एक बड़ा आनदोिन पकतषटरागी

करसनदास रि जी क नततव र हो चका था वषणव बकतनया पषठभकतर स आय करसनदास जी उन नौजवानो

र थ कतजनहोन एकतिफ सटन कॉिज स आधकतनक कतशकषा परापत की थी गोसाइयो और रहाराजो िारा अपन

lsquoसमपरदाय की बह बरटयोrsquo क साथ होन वाि अतयाचार क कतखिाफ उनहोन िख कतिख और समपरदाय क

इकततहास को नए कतसर स सारन रखा पण स आए जदनाथ वजरतन जी रहाराज न करसनदास जी पर

रानहाकतन का रकदरा दायर कर ददया इसी रक़दर स वषणव रहातो की कई सारी बात जनता क सारन

परतयकष हई तिवार जी न इस lsquoरहाराज िाइबि कसrsquo को भारतीय नवजागरण र वषणव गोसाइयो क

दराचार और यौन शोषण क कतखिाफ हआ सबस बड़ा आनदोिन कहा ह भारतद पर इसका बहत परभाव

था यह कस १८६० र हआ था एक दशक बाद जब भारतद सापरदाय क कायो र रत थ उसी सरय कतिख

रह थ ldquoराददर कया होत ह रानो कतसतरयो की खान ह जसी चाकतहए िीकतजय- वराच अचछी सतरी भी वहाा जाकर

कतबगड़ जाती ह आशचयम यह ह दक कतजनको व िोग बटी कहत ह और जो उनक परिोक क रधयसथ ह और

कतजनको वो दीकषा दत ह उन कतसतरयो की ओर व आप ही बरी दकतषट स दखत ह ओर रर पयार कतहनदओ तर

इनक जाि र कब तक फा स रहोग और कया तरको यही सासार स बचावग और इनही क भरोस तरको

भगवान कतरिगाrdquo33

राददरो क धन-ऐशवयम और वयाकतभचार र डब जीवन क जीवात कतचतर हर बनारस क रखाकतचतर lsquoपरर

जोकतगनीrsquo क अिावा lsquoकाशी क छायाकतचतर क दो बर-भि फोटोगराफrsquo र भी कतरित ह यहाा भारतद का वयागय

अपन वषणव सापरदाय की आतरािोचना स सदकय ह lsquoपरर योकतगनीrsquo नाटक र आन वािा चररतर रारचादर

खद भारतद ही थ नाटक का सतरधार कहता ह दक भारतवषम की दीन हीन गकतत क कारण उसका तो

कतवशवास ही ईशवर स उठन िगा ह नाटक क पहि ही दशय र भारतद हर राददर क भीतर कतिए चित ह

33 वसधा डािकतरया िारा उदधत पषठ- ३३७

30

जहाा राददर र कार करन वािा साधारण टहिआ झपरटया हर ददखाई दता ह पजारी बाब अभी तक नीद

स नही जाग ह कयोदक आधी रात तक lsquoबठ क ही-ही-ठी-ठी करा चाह दफर सबर नीद कस खिrsquo कतनकतशचत

रप स यह टहिआ सबह सवर ही राददर र हाकतिर ह िदकन दवता अभी राददर र सोय ह रारचादर

परदशी ह काशी र बाहर स आय ह छकक जी और राखनदास इस रारचादर की आिोचना करत ह इनक

सावादो स पता चिता ह दक बाब रारचादर क यहाा ददन रात नाच गाना हआ करता ह और उनको अपनी

कतवदया का घराड ह दो चार ककतवतत भी बना ित ह पर lsquoककतवतत बनाव स का होव और ककतवतत बनावन कछ

अपन िोगन का कार थोर हय ई भााटन का कार हयrsquo छकक जी कहत ह दक अपन रागम का उनह कछ जञान

तो ह नही बस दो चार बात इधर उधर स सनकर कछ lsquoदकसतानी रतrsquo सीखकर पाकतडत बन दफरत ह

कतनकतशचत रप स य भारतद पर िगन वाि आरोप थ राददर र सवारी धनदास वकतनतादा बभकतकषत पाकतडत

आदद धरम क ठकदार ह इनकी पतनशीि सासककतत को दखकर रारचादर का दःख इन शबदो र वयि होता ह

lsquoहा कया इस नगर की यही दशा रहगी जहाा क िोग ऐस रखम ह वहाा आग दकस बात की वकतदध की

साभावना करrsquo lsquoवददकी हहासा हहासा न भवकततrsquo जस शरआती नाटको र भी करमकााडी परोकतहतवाद की

आिोचना की गयी ह राजा और परोकतहत कतरिकर वहाा जनता का शोषण करत ह जआ रददरा और

रथन की ऐययाश सासककतत क परतीक परोकतहतो का काजरवरटव दि इन परहसनो र रतम होता ह कतचतरगपत यर

स कहत ह ldquoरहाराज य गर िोग इनक चररतर का कछ न पकतछए कवि दमभाथम इनका कततिक रदरा और

ठगन क अथम इनकी पजा कभी भकति स ररतम को दाडवत न दकया होगा पर राददर र जो कतसतरयाा आयी उनको

सवमदा तकत रह रहाराज इनहोन अनको को कताथम दकया ह और इस सरय तो र lsquoशरीरारचनदर जी का

शरीकषण का दास हाrsquo पर जब सतरी सारन आव तो उसस कहग lsquoर रार तर जानकी र कषण तर गोपीrsquo और

कतसतरयाा भी ऐसी रखम दक दफर इन िोगो क पास जाती हrdquo34

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo की ररपोटम र सतरी सधारो क कायो की रहतता बतान क बाद जाकतत वयवसथा पर

इन सधारको का परहार कयो जररी था इस बताया गया ह कठोर जाकतत बनधनो क चित कस हर साि

जाकतत-बाहय होकर जाकतत र वापस आन क दकसी उपाय को न जान lsquoहजारो रनषय आयम पाकति स हर साि

छटत थ उसको इनहोन रोकाrsquo इस परकार इन सधारको न lsquoआयमधरमrsquo क भीतर जो पररवतमन करन चाह

उसस आयो की एकता दफर स बहाि हो गयी इसक अिावा अाधकतवशवासो को इनहोन दर दकया यही नही

बकतलक जहाा िोग lsquoरसिरानी पीर पगमबर औकतिया वीर ताकतजया गाजी कतरयाा कतजनहोन बड़ी ररतम तोड़कर

और तीथम पाटकर आयम धरम कतवधवास दकयाrsquo उनको भी पजन िग थ और lsquoकतवशवास तो रानो कतछनाि का अाग

हो रहा थाrsquo ऐसी िजजाजनक कतसथकतत स िोगो को बाहर कतनकािकर lsquoसार आयामवतम को शदध lsquoिायिrsquo कर

34 दख रारकतविास शराम पषठ १३१

31

ददयाrsquo lsquoिायिrsquo कर ददया गया इसका अथम आयम जाकतत को दफर स िायि करन र था आयम जाकतत क भीतर

कतबगाड़ क चित ही कतनमन जाकततयो का बड़ परान पर पिायन था इस इन िोगो न रोका और इनक परताप

स ही अनक छोट और सथानीय धरम-रतो क भीतर जो lsquoरसिरानीrsquo परभाव घस आय थ उनको दफर स lsquoबड़ी

ररतमrsquo की कतनषठा र िाया जा सका इस परकार कतहनद धरम और वणामशरर क परकतत दफर स िोगो को lsquoिायिrsquo

दकया यह lsquoिायकतिटीrsquo भारतद की रकतडकि वषणवता क जनरत क कतिए भी जररी था तिवार जी जब

आयमसराकतजयो की lsquoकााकततकारीrsquo भकतरका ददखात ह तब आयम सराज िारा आयामवतम को िायि बनान वािी

इस भकतरका की साकतशलषटता पर जयादा बात नही करत भारतद दयानाद क कााकततकारी परयासो र lsquoिायिrsquo

बनान की परदकया उसी वक़त दख रह थ और इसी कारण ररपोटम र दयानाद की आिोचना धयान दन िायक

ह सवारी जी न ldquoजाि को छरी स न काटकर दसर जाि ही स कतजसको काटना चाहा इसी स दोनो आपस

र उिझ गए और इसका पररणार गह कतवचछद उतपनन हआrdquo गह कतवचछद का रतिब कतहनद धरम र गह

कतवचछद जबदक कशवचादर सन क बार र कहा गया दक उनहोन जाि काटकर भकति की उचछकतित िहरो का

पररषकत पथ परकट दकया इस परकार रकतडकि वषणवता की lsquoअनयताrsquo और परररिक भकति क परशसत पथ क

सवीकार का कतनषकषम कतवचार सभा का भी कतनषकषम था धयान दन िायक ह दक कशवचादर की आिोचना उनक

कतचतत कतवकषप क कारण की गयी थी जहाा lsquoईसारसीह आदद उनस कतरित हrsquo य एक दकसर का इिहारी

अनभव था कतजस भारतद अपनी वषणवता स बाहर रखत ह ईशवर न इस ररपोटम पर अपना रत सरकतकषत

रख कतिया और भारतद कतिखत ह ldquoइसको दख कर इस पर कया आजञा हई और व िोग कहाा भज गए यह

जब कर भी वहाा जायग और दफर िौट कर आ सक ग तो पाठक िोगो को बतिावग या आप िोग कछ

ददन पीछ आप ही जानोगrdquo

३ जनरत और वषणवता

ककतववचन सधा ९ राचम १८७२ र भारतद न lsquoPublic Opinion In Indiarsquo नार स अागरजी र

एक िख परकाकतशत दकया िख र उनहोन कहा दक कई सददयो दक दासता क बाद भारतवषमहहादसतान अब

जाकर कतिरटश राषटर क सवोचच कतनयातरण र आया ह दश धीर-धीर सभयता और परबोधन की पकतशचरी दकरणो

क सहार दरन और कशासन क रतय-तलय कतनदरा स जाग रहा ह कतिरटश शासन की परगकततशीि नीकततयो का

परभाव यहाा की बहरपी आबादी पर पड़ रहा ह

ldquoBut in this progressive state national energy and zeal sympathy and

disintiredness are waiting to make both the conqueror and the conquered to act in

32

concert and in harmony and hence we have the broad distinction of white and

black still But in this country many are the blemishes that adhere to us to be

eradicated and many are the shortcomings that are hovering around us to be done

away with before we can have a public opinion here in its true senserdquo35

गोर और काि क बड़ भद को छोड़ कर कतवजता अागरजो और भारतीयो क बीच एक सराजन तो बन गया ह

पर अनदरनी ददककत अभी भी राह बाए खड़ी ह रौका ह दक इस परगकततशीि कतसथकतत का फायदा उठा कर हर

एक सचच जनरत का कतनरामण कर सचच िोकरत क कतनरामण र अादरनी बाधाएा कया थी भारतद न इस

आग सपषट करत हए कतिखा-

ldquoRace antagonism rivalry and mutual misunderstanding are the favourite

occupations of the aristocratic class Want of confidence among all classes of men

are the prevailing characteristic of the nation and above all multifarious castes and

creeds with there numerous forms of religion and local habits and customs which all

combined have kept the progressive policy at a stand still True it is that a

representative Government is a boon to this country and true it is that Sir Bartle

fregravere a man of vast experience and a good statesman has found out that in village

community we can have public opinion but with all his experience he has lost sight

of our national defects ndash defects which we ourselves know and which no foreigner

can catch at a glancerdquo36

भारतद इस बात को िकर कतनकतशचत ह दक िोकरत और परकततकतनकतधरिक सासथाओ क बहतर कतवकास क कतिए

सीध-सीध कतवदशी रॉडि कभी सफि नही हो पायगा ऐसा इसकतिए कयादक हरारी आपसी कतवकतभननताओ

और झगड़ो को कोई बाहरीकतवदशी सतता कभी भी परी तरह सरझ नही सकती lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo नार

35भारतद गराथाविी -6 361

36 वही

33

स भारतद का एक दसरा िख इस अागरजी वाि िख क दो साि बाद अपरि सन १८७४ र हररशचनदर

रगजीन र छपा पकतबिक ओकतपकतनयन कया बिा ह इस साफ़ करत हए भारतद िख क आरमभ र ही कहत

ह ldquoपकतबिक ओकतपकतनयन अथामत सब साधारण िोगो की राय कया वसत ह और इसर दकतना जोर ह और

इसक कतिए कया हो सकता ह यह परशन ठहरा तो इसका साधारण उततर यही ह दक यह वह वसत ह जो

सासार को एक कर सकती ह गागा की धरा दफर कतहरािय पर चढ़ा ि जा सकती ह सययम को पकतशचर उगा

सकती ह और चाह तो ईशवर को भी पकड़ क कठपतिी की भााकतत नचा सकती हrdquo37 यह पकतबिक

ओकतपकतनयन lsquoएक रतrsquo होना ह जस अिग अिग चार पतिी िककतड़यो को एक साथ बााध दन स उस

तोड़ना करठन हो जाता ह उसी तरह एक रत होन स बड़ स बड़ा बरी भी हरारा कछ कतबगाड़ नही सकता

बहत स िोगो का रत एक हो तो वह शकति बन जाती ह हिारो आदरी की बकतदध एक हो जाए तो ldquoऐसा

कौन कार ह जो न हो सक तो यह कतसदधाात हआ दक कतनशचय सब िोगो क रत र बड़ी सारथयम ह इसस यह

कतसदध हआ दक बिो स बड़ा बि एक रत ही हrdquo38

आग भारतद कहत ह दक यह जनरत और उसकी शकति हहादसतान क कतिए कोई नई बात नही ह

पराचीन काि र इसक उदाहरण कतरित ह lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo की इस धारणा को भारतद न इकततहास क

अिग-अिग दौर र बनत और कतबगड़त ददखाया सबस पहि चार वणो की िररत पड़ी सब कार को

सचार रप स चिन क कतिए दसर शबदो र कह तो शरर-कतवभाजन की िररत स इसका जनर हआ

lsquoकतहनदओ न अपन गर क कार र इस वणामशरर धमरम को इसी वासत बनाया कतजस र उन क दकसी कार र

कोई हजम न हो और उनिोगो न सासार क सब कारो र चार कार रखय सरझrsquo धरम कतवदया और किाओ का

कार िड़ाई और राजय परबाध का कार वयापार और धन और सब िोगो की सवा और रजदरी इन चार

कारो की सवयवसथा वािा वणामशरर दरअसि lsquoएक रतrsquo कतहनद वयवसथा या lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo थी पर

कािाातर र इस lsquoएकरतrsquo क भीतर जाकततवयवसथा कठोर हो गयी और िाहमण और शदर दोनो एक दसर क

कतखिाफ हो गए एकरत र कतवचछद पदा होन स कतहनद शकति करिोर हो गयी भारतद क अनसार आपस

का यह झगड़ा बड़ा कतवनाशकारी साकतबत हआ पकतबिक ओकतपकतनयन क कतबना वयाकतभचार और जयादकततयो का

अाधर था आग चि कर जनो क जरान र दफर lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo न जोर पकड़ा बकतलक भारतद जोर

दकर कहत ह दक जनो क रत की उततपकततत ही lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo स हई ldquoकतहनदओ क जब नाश क ददन

जब कतनकट आय तो आपस र परसपर बड़ा कतवरोध खड़ा हआ और उस काि र िाहमणो का बड़ा जोर था

वरन य और वणो पर जयादती करत थ तो वशय और कषकततरयो की रकतत इनस दफर गयी और बाब वािी बड़ी

37गराथाविी- 678

38वही

34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

36

कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

37

उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

38

ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 2: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

2

सन १९४२ क राजनीकततक-साासककततक साकट क सरय रारकतविास जी न हहादी नवजागरण क नता

क रप र भारतद की ऐसी छकतव गढ़ी जो तिसीदास की परापरा वािी साासककततक यगनायक की छकतव थी

राषटरीय एकता या जातीय एकता क सतरधार क रप र रारकतविास जी न भारतद का साबाध lsquo१८५७ की

राजयकााकततrsquo स और भी भिी-भााकतत पवमक ददखान क कतिए सन १९८४ र lsquoभारतद हररशचादर और हहादी

नवजागरण की सरसयाएाrsquo नारक एक नवीन िख कतिखकर अपनी परानी पसतक क आरमभ र जोड़ा था

इस िख र भारतद क नवजागरण की परापरा को उनहोन जनजागरण की एक परानी परापरा का एक खास

दौर कहा जनजागरण की यह परानी परापरा दरअसि भकति आनदोिन क lsquoिोकजागरणrsquo की परापरा ह

कतजसका आराभ तब हआ था जब दशी भाषाओ र पहिी बार साकतहकततयक अकतभवयकतियाा होन िगी थी

रारकतविास शराम इस सारातवाद-कतवरोधी परापरा कहत ह दसरी ओर पिासी की िड़ाई स १८५७ क

lsquoसवाधीनता सागरारrsquo तक जो यदध हए व रखयतः कतवदशी शतरओ क कतखिाफ हए और इसकतिए यह दसरा

जनजागरण रखयतः सामराजयवाद-कतवरोधी जनजागरण ह भारतद या भारतनदयगीन रचनाकारो क यहाा

१८५७ क सागरार का lsquoसपषट परशासातरक उलिखrsquo न कतरिना इस परापरा क कतनधामरण पर एक बड़ा परशनकतचनह

था रारकतविास जी न इस परशन का उततर दत हए कतिखा दक दो रहतवपणम चीज भारतद यग का साबाध

१८५७ स जोड़ती ह- १ राषटरीय सवाधीनता का उददशय और २ अागरजी राज क सवरप की पहचान राषटरीय

सवाधीनता का उददशय था अागरजो को सार दश स कतनकािना और अागरजी राज का सवरप था lsquoधन का

कतनषकासनrsquo अागरजी राज र भारतीय उदयोग धाधो और वयापार का नाश हआ था अागरजी राज न कतजस तरह

यहाा की दशी ररयासतो को हड़पत हए सार दश पर अकतधकार दकया था उसकी सरकतत िोगो क ददिो

ददराग र थी यह सरकतत ldquoयह याद राषटरीय एकता का भाव जगान वािी थीrdquo3 इस परकार राषटरीय एकता की

भावना और आरथमक दोहन क कतखिाफ उद बोधन भारतद क साकतहतय का साबाध १८५७ स जोड़ता ह

भारतद क सारन उपकतनवशवाद कतवरोधी साघषम का एक राषटरीय रपक था सवदशी और सवाधीनता आपस र

जड़ हए थ रारकतविास जी न भारतद को उदधत दकया ह ldquoकतजस परकार अरररका उपकतनवकतशत होकर

सवाधीन हई वस ही भारतवषम भी सवाधीनता िाभ कर सकता हrdquo4 आरथमक सवाधीनता की राह र दशी

पाजी का कतवकास उसका सारकषण दशी उदयोगो का कतवकास और औदयोकतगक कतवकास क कतनकतरतत कतशकषा की

नीकततयो का कतनरामण जररी था भारतद न सवदशी क साथ साथ नौजवानो क कतिए आधकतनक अथो र

पॉिीटककतनक कतशकषण क कतिए एक कतशलप रहाकतवदयािय खोिन की आवशयकता पर जोर ददया था दादा

भाई नौरोजी क धन-कतनषकासन कतसदधाात का परभाव भारतद पर गहरा था और उनहोन दादा भाई नौरोजी क

िखो को हहादी र धारावाकतहक परकाकतशत दकया था

3 रारकतविास शराम भारतद हररशचादर और हहादी नवजागरण की सरसयाएा पषठ- १५ राजकरि परकाशन नई ददलिी- २०१०

4 ककतववचन-सधा ६ जिाई १८७४

3

राषटरीय एकता की भावना का सवाि जातीयता क ऐकततहाकतसक कतवकास की परदकया स भी जड़ा हआ

था रारकतविास जी न १८५७ क भीतर कसी lsquoराषटरीय चतनाrsquo बन रही थी इसकी भावना क कतिए जिाई

१८५७ क अवध क एक इशतहार का कतिक दकया ह इशतहार र कतसपाकतहयो स अपीि की गयी ह दक ददलिी

और िखनऊ को बचान क कतिए जररी ह दक परब की ओर िगातार बढ़त रहा जाय और दफराकतगयो का

पीछा किकतत तक दकया जाना चाकतहए रारकतविास जी उदधत करत ह ldquoऐसा करन स ददलिी और

िखनऊ की रकषा हो सकगी यदद कतसपाही परब को नही जात तो नतीजा अचछा न होगाrdquo5 इशतहार र

कहा गया दक कतहनद और रसिरान दोनो को साथ-साथ कतरिकर इस lsquoनािायक कौरrsquo पर हरिा करना

चाकतहए रारकतविास जी कहत ह दक इस तरह यहाा हहादसतान कवि सीकतरत अथो र हहादी भाषा परदश ही

न था बकतलक वयापक अथो र वह सारा दश था सार दश की भावना सन १८५८ र बगर हजरत रहि

िारा जारी घोषणापतर र भी ह

हहादी जाकतत की अवधारणा और नवजागरण की अवधारणा रारकतविास जी क यहाा एक दसर स

जड़ी ह वयापाररक पाजी (कतजस रारकतविास जी वयापाररक पाजीवाद कहत ह) क कतवकास क साथ जाकतत का

कतवकास होता ह इस वयापाररक पाजी का जनर सारातवाद क गभम स होता ह और सबस पहि वयापाररक

पाजी कतवकतनरय स साबाधो र कतवककतसत होती ह रारकतविास जी बारहवी-तरहवी शताबदी क आसपास

कतवकतनरय और उतपादन क साबाधो र होन वाि पररवतमनो को नोट करत ह पररवतमनो क क दर र वह परदकया

थी जहाा उतपादन पशगी धन िकर होना शर होता ह lsquoददनी परथाrsquo का कतिक करत हए उनहोन ददखाया दक

कस वयापारी अपन राि क कतिए पहि स पशगी की एक रकर दकर रजदरो की शररशकति पर कतनयातरण

सथाकतपत करता ह lsquoकतबकी योगय रािrsquo क उतपादन की इस परदकया र पाजीवाद क आगारी कतवकास क बीज

कतनकतहत ह इसी परदकया क साथ जाकतत कतनरामण की परदकया भी बाजारो क साथ शर हो जाती ह औदयोकतगक

कााकतत क बाद इस परदकया र जो सबस रहतवपणम पररवतमन होता ह वह ह औदयोकतगक सवमहारा क रप र नए

वगम का उदय रनजर पााडय की आिोचना करत हए रारकतविास जी कतिखत ह ldquoवयापाररक पाजीवाद क

यग र जाकतत का कतनरामण होता ह औदयोकतगक पाजीवाद क यग र यह जाकतत कायर रहती ह दोनो यगो की

जाकतत र बहत बड़ा अातर यह ह दक दसर यग र औदयोकतगक सवमहारा रौजद ह पहि क यग र उसका

अभाव ह वयापाररक पाजीवाद क यग र रखय अातरवमरोध दकसानो-कारीगरो तथा जरीदारो र होता ह

औदयोकतगक पाजीवाद क यग र सवमहारा और उदयोगपकततयो रrdquo6 रारकतविास जी न १९वी सदी क भारतद

यग को बारहवी- तरहवी सदी सदी र हए िोकजागरण की परापरा र ही दखा ह पााडय जी की आिोचना

5 रारकतविास शराम पषठ- १४

6 वही पषठ १५

4

करत हए उनहोन कतिखा दक उननीसवी सदी का भारत औदयोकतगक कााकतत स काफी दर था और अगर उननीसवी

सदी को आधकतनक काि की शरआत रान कतिया जाएगा तो रानना पड़गा दक भारतद क साकतहतय र

पाजीपकतत वगम और औदयोकतगक सवमहारा क साघषम का कोई न कोई कतचतरण जरर कतरिना चाकतहए और अगर

ऐसा नही कतरिता ह तो यह रानना पड़गा दक lsquoआधकतनक काि की शरआत तो हो गयी पर साकतहतय र

आधकतनकता का अकाि बना रहाrsquo जबदक पाजीवादी कतवकास की जो परदकया बारहवी- तरहवी सदी र

सारातवाद क गभम स कतवककतसत हई थी उननीसवी शताबदी र वही चिी आ रही ह- अागरजो का काि उसको

अवरदध करता ह पर वह रक नही सकती इसकतिए परकतत कााकततकारी शकति क रप र उपकतनवशवाद क भीतर

स चिी आती परापरा र ही भारतद यग नवजागरण की तरह ह बीच का यग lsquoकतवसरकततयोrsquo का यग नही

था वरन शकति सातिन र जागरण की शकतियाा ससपत पड़ी थी १८५७ र वह साराकतजक- राजनीकततक

जीवन र दफर स िोकशकति क रप र उठ खड़ी हई इस परकार lsquoहहादी जाकततrsquo का ही रानो lsquoनवजागरणrsquo

हआ ह यह lsquoहहादी जाकततrsquo कतवकतशषट होकर भी राषटर की सापणम पररकलपना ह कतजसका पता उस इशतहार स भी

चिता ह जहाा lsquoसार दशrsquo को साबोकतधत दकया गया था

साकतहतय र यह जागरण िोक बोकतियो स अपनी ऊजाम गरहण करता ह िोक बोकतियो स कतवककतसत

हहादी जातीयता १८५७ र उपकतनवश कतवरोधी चतना क साथ कतरिकर नवजागरण का रप गरहण करती ह

इसकतिए यह हहादी नवजागरण भी ह इस पररकलपना र पाजीवादी कतवकास की पररणकतत क बीज बारहवी-

तरहवी सदी र ही पड़ गए थ अब सामराजयवाद- सारातवाद कतवरोध का राषटरीय चररतर पाजीवाद को पणम

कतवककतसत करन र ह तब जाकर सवमहारा की चतना का उदय होगा साकतहतय क भीतर भारतद यग न उसी

परदकया क नए अधयाय की शरआत की थी अागरजी राज को भारतद न lsquoपगमबर चसाrsquo की तरह दखा था

इसी पगमबर चसा क कतखिाफ दशी वयापाररयो को दशी पाजीपकतत बनान का उदयोग करना चाकतहए यही

सवदशी का ररम था इन नए दशी पाजीपकततयो क कतवकास क कतिए कशि कारगारो की जररत थी और

इसकतिए जररी था दक कतशलप कतवदयािय का कतनरामण कतशकषा नीकतत र शाकतरि दकया जाय अागरज परसती का

जो सवर भारतद क यहाा ददखाई दता ह उसको रारकतविास जी न lsquoगौण अातरवमरोधrsquo राना ह इसी तरह

सामपरदाकतयकता आदद क परशन गौण अातरवमरोध ह वह इन गौण अातरवमरोधो की वसतरतता को परकट करत हए

कहत ह ldquoभारतद हररशचादर न और उनक सरकािीन िखको न कई जगह अागरजो की और अागरजी राज की

परशासा की ह इस सनदभम र याद रखना चाकतहए दक १ रानी कतवकटोररया क घोषणापतर स कछ िोगो क

रान र वासतकतवक भरर पदा हआ था दक दश की दशा सधार जाएगी २ राजभकति का परदशमन अकतधकतर

शाही खानदान क िोगो क परकतत होता था और उनस अागरज अकतधकाररयो को अिगाया जाता था ३

राजभकति की आड़ र जनता की बदहािी पर धयान ककतनदरत दकया जाता था और अागरज ऐसी राजभकति को

5

शक की कतनगाह स दखत थ आदद आददrdquo7 इसी तरह lsquoहहादी नई चाि र ढिीrsquo कहकर भारतद भाषा क

बदि दरअसि साकतहतय क नयपन को ददखा रह थ और साकतहतय का यह नयापन रखय अातरवमरोधो को परकट

करन र ह िोकसाकतहतय और रौकतखक साकतहतय र १८५७ की ओजकतसवता चिी आई थी और भारतद यग क

साकतहतय र जो ऊजाम जो चरक जो नयापन था वह उसी िोक और रौकतखक साकतहतय स पररणा पाती थी

यह सारा साकतहतय चादक अागरजी काननो स बाहर था इसकतिए भारतद यग को यह सहज ही उपिबध था

यह सारा साकतहतय कतवचारधारातरक रप स सदीघम उपकतनवशवादी िट की सरकतत और १८५७ र झिक उठन

वािी उपकतनवश-कतवरोधी lsquoजातीयता की सरकततrsquo दोनो को अपन भीतर कतिए थी भारतनदयगीन साकतहतय

रणनीकततक रप स कछ ऐसी चीज करता था कतजसस वह अागरजी कोप और कानन स बचा भी रह और

जातीय चतना को एक आनदोिनकारी रप भी द सक रारकतविास जी रनजर पााडय की इसी बात की

आिोचना करत ह दक वह गौण कतवरोधो को जयादा रहततव दत ह परगकततशीि आनदोिन क आताररक

अातरवमरोधो को असवीकार तो रारकतविास जी न भी नही दकया पर इसक चित होन वािी गिकततयो की

तरफ उनहोन इशारा जरर दकया था

भकति और रीकतत काि को दो आताररक परवकतततयो क रप र न दखकर जब दो कतभनन कािखाड रान

कतिया जाता ह तब इकततहास-दकतषट का एक भरारक रप खड़ा होता ह भकतिकाि र भकति रखय धारा थी और

रीकतत गौण और रीकतत काि र रीकतत रखय धारा बन गयी और भकति गौण इस परकार दखन पर पता चिता

ह दक िोकजागरण की परगकततशीि धारा ख़तर नही हो गयी थी या अवरदध नही हो गयी थी बकतलक गौण

धारा क रप र चिी आ रही थी रनजर पााडय क अनसार बारहवी सदी स आरमभ होन वािा वयापाररक

पाजी का कतवकास सफि नही हआ और साराती वयवसथा जस की तस बनी रह गयी सराज की साराती

अकतधरचना और उसका आधार दोनो करजोर जरर हए पर बन रह उनक अनसार ldquoभकति आादोिन

साराती सराज र कतवककतसत सौदागरी पाजीवाद और जातीय कतनरामण क फिसवरप उतपनन साराकतजक साबाधो

की साासककततक अकतभवयकति ह रीकततकाि का साकतहतय सारात कतवरोधी साराकतजक साबाध (साबाधो) और

साासककततक चतना क अवरदध होन का पररणार तथा परराण हrdquo8 रारकतविास जी इस अवरदध होन क तकम

को सवीकार नही करत उनक अनसार यह शकति सातिन सौदागरी पाजीपकतत और जरीदारो क बीच का

शकति सातिन था ऐसा नही था दक पाजीवाद का कतवकास अवरदध और कतनषफि हो गया था भकति स रीकतत

र साासककततक जागरण का पयमवकतसत होना एक lsquoछोटी टरजडीrsquo ह अथामत गौण अातरवमरोध ह जबदक अागरजी

राज की सथापना lsquoबड़ी टरजडीrsquo ह इसकतिए सवाभाकतवक जातीय पाजीवाद या भारतीय पाजीवाद की गकतत

7 वही पषठ- १९

8 वही उदधत पषठ ३१

6

अवरदध होती ह अागरजी राज र रारकतविास जी पााडय जी पर आरोप िगात ह दक उननीसवी सदी र

औदयोकतगक कााकतत स शर होन वािी आधकतनकता एक ऐसी कलपना ह जो इस lsquoबड़ी टरजडीrsquo को भि जाती ह

जबदक बड़ी टरजडी रखय अातरवमरोध क कारण बनती ह

रारकतविास जी न एागलस क हवाि स ददखान की कोकतशश की ह दक पाजीवादी शासन की नीव

डािन वािो को पाजीवाद की सीराओ क अनदर ही दखना एक बड़ी भि ह पनजामगरण क नताओ और

उनक परकततभाशािी वयकतितव र पाजीवाद की सीरा और उसका अकततरक भी था इस बात का जो िोग

धयान नही रखत उनक यहाा आधार और अकतधरचना या वगम और साकतहतय की यााकततरक सरझ होती ह

भारतद आदद साकतहतयकारो क इस अकततरक को कतचकतननत करन क कर र ही रारकतविास जी lsquoरखय

अातरवमरोधrsquo क परकततकतबमब को सारन रखत ह पाजीवादी सीराओ र नही बाध होन का रतिब एागलस क

कतिए रजदर वगम की परापरा क पवम पकष स ह जहाा एागलस पनजामगरण क कतवशवजनीन रलयो और पराककततक

कतवजञानो क कााकततकारी रहततव को रखाादकत करत ह lsquoपरककतत की िािातरकताrsquo र एागलस न यााकततरक

भौकततकवाद की आिोचना की ह और ददखाया ह दक अठारहवी सदी र फाासीसी यााकततरक भौकततकवाददयो न

भौकततकवाद क नार स कतजस कतवचारधारा का परचार दकया उसका िािातरक भौकततकवाद स कतवरोध ह9

रजदर वगम की कतवचारधारा का पनजामगरण स साबाध एागलस उननीसवी शताबदी क आकतखरी दशको र ददखा

रह थ उनहोन ददखाया दक जरमन शासतरीय दशमन र जो कछ रहान था उन सबका सीधा वाररस जरमन

पाजीपकतत वगम नही बकतलक जरमन रजदर वगम था इसी तरह राकसम न पाजी-१ की भकतरका र जरमन रजदर

वगम को जरमन बजमआ हचातको और कतवचारको स जयादा ऊननत कतवचारधारातरक चतना स िस बताया ह

राकसम न १८४८ स १८५२ की कााकततयो और परकततकााकततयो क कतवशलषण क बाद १८५७ क कतवदरोह को भी

lsquoभारतीय सवाधीनता आादोिनrsquo की तरह कतवशलकतषत दकया था इन कतवशलषणो र बाद तक राकसम थोड़ा थोड़ा

पररवतमन करत रह थ परनत कतनकतशचत रप स औपकतनवकतशक पाजी क कतवसतार और यरोपीय कााकततयो क

आपसी ररशतो को वह दकसी यरो ककतनदरत दकतषट स नही दख रह थ राकसम क सारन रखय सवाि पाजी क

वकतशवक चररतर और उसक कतखिाफ कतवदरोह की कतवकतशषटता को पहचानन का था राकसम दख रह थ दक इागिणड

र रजदर वगम क आनदोिन क कतिए या यरोप र रजदर वगम क आनदोिन क कतिए उपकतनवशो क भीतर होन

वाि कतवदरोह की साभावनाओ का कया रहततव था १८४८ की रहािीपीय कााकतत की इागिणड र होन वािी

परकततदकया को राकसम इन शबदो र सारन रखत ह- ldquoजो िोग अभी भी कछ वजञाकतनक सरझ का दावा करत

थ और शासक वगो क रातर सोदफसस या साइकोफनस स कछ जयादा होन की इचछा रखत थ उन िोगो

न सवमहारा क दाव क साथ कतजसकी अनदखी अब साभव नही थी पाजी क राजनीकततक अथमशासतर क सरनवय

9 कतवसतत चचाम क कतिए दख अधयाय तीन

7

की कोकतशश की इस परकार एक कतछछिा सरनवयवाद सारन आया कतजसक सबस बड़ परकततकतनकतध जॉन सटअटम

कतरि ह यह lsquoबजमआrsquo अथमशासतर क ददवाकतियपन की घोषणा हrdquo10 यह बात पाजी की भकतरका र राकसम

१८७३ र कतिख रह ह जरमनी क बार र कतिखत हए वह कहत ह दक वहाा पाजीवादी उतपादन पदधकतत क

पररपकव होन क पहि ही उसका शतरतापणम चररतर (एाटागोकतनकतसटक) अपन को परकट कर चका था यह साभव

हआ था फ़ाानस और इागिड र होन वाि ऐकततहाकतसक साघषो क कारण11 इस तरह जरमनी र बजमआ

अथमशासतर कवि बरी नकि क रप र ही कतवककतसत हो पाया कयोदक जरमन सवमहारा क पास बजमआ अथमशासतर

की सीराओ की आिोचना उपिबध थी ऐस ही सरय बजमआ अथमशासतर क रहनरा दो सरहो र बाट गए

एक तरफ यााकततरक और भौड़ा अथमशासतर बघारन वाि िोग थ दसरी ओर कतरि क अनयायी थ कतजनहोन

असराधय क बीच सागकतत कतबठानी चाही पर य सार परयास असफि होन को बाधय थ कयोदक उनकी

आिोचना पहि स ही वहाा परापत थी राकसम कतिखत ह ldquoइसकतिए जरमन सराज क कतवकतशषट ऐकततहाकतसक

कतवकास न दकसी lsquoबजमआrsquo अथमशासतर क कतवकास को बाहर रखा परनत उसकी आिोचना को बाहर नही

दकया जहाा तक इस तरह की आिोचना एक वगम का परकततकतनकतधतव करती ह यह कवि उसी वगम का

परकततकतनकतधतव कर सकती ह कतजसका ऐकततहाकतसक कायमभार पाजीवादी उतपादन पदधकतत को उखाड़ फ कना और

सभी वगो का अाकततर सफाया ह- याकतन सवमहाराrdquo12

भारतद यग क बजमआ अथमशासतर र जॉन सटअटम कतरि का दकतना परभाव था इस दहरान की जररत

नही lsquoआिोचनाrsquo क रप र सवमहारा वगम बजमआ अथमशासतर की असाभावयता ह यह lsquoआिोचनाrsquo जरमन

रजदर वगम को कतजतना अपन साघषो स परापत थी उतना ही फ़ाास और इागिणड क साघषो स भी भारतद की

आिोचना कतजस वगम का परकततकतनकतधतव करती ह वह रजदर वगम नही ह अागरजो की कतवजय और िट की सरकतत

क साथ पाजी की तथाककतथत आददर साचय की तरासद सरकतत भी ह तथाककतथत आददर साचय अगर रजदर

वगम की पररकतसथकतत ह तो यह सरकतत रितः रजदर वगम की तरासद सरकतत ह पर भारतद यग क साकतहतय को

या भारतद की रचनाओ र कतरिन वािी आिोचना दकतषट का जो पकष रारकतविास जी सारन रखना चाहत ह

वह उस तरासद सरकतत क साथ lsquoबजमआ अथमशासतरrsquo की सरनवयकारी आिोचना ह इसकतिए कह सकत ह दक

भारतद यग का १८५७ की lsquoआिोचनाrsquo क साथ साबाध सरनवयकारी ह भारतद क साकतहतय र कतरिन वािा

दकतचततापन इसी असराधय सराजन की कोकतशश क चित पदा हआ ह भारतद क साकतहतय र जहाा इस

सराजन का अकततरक ह वह उनका उजजवि पकष ह दसर शबदो र lsquoसवतव कतनज भारत गहrsquo या अकतसरता

कतनरामण या हहादी जातीयता का जहाा अकततरक ह भारतद का साकतहतय वही उजजवि ह lsquoअाधर नगरीrsquo क

10 कािम राकसम ककतपटि- वॉलयर १ अन बन फोकस पषठ ९८ पकतगवन बकस िादन- १९९०

11 वही

12 वही

8

रपक र हर इस तरह का एक अकततरक ददखाई दता ह जहाा lsquoअाधर नगरीrsquo राजय सतता हहासा और नयाय क

अकतनवायम साबाधो का रपक ह भारतद क परहसनो और वयागयो र जहाा कही इस असराधय सराजन का

खोखिापन उजागर होता ह भारतद का वतमरान अथम उनही र राना जाना चाकतहए

िोकजागरण की कतवचारधारा क रप र भकति रारकतविास जी क कतिए भी वषणवता क अनदर ही

पररभाकतषत थी अकारण नही दक भारतद को वह तिसी की परापरा का नवजागरण रानत थ भकति की

इस कतवचारधारा क कतखिाफ सातरत की कतवकतशषटताओ को वह निरअादाज करत ह अगर सातरत कारीगरो

और कतनमनवगीय जनता का साासककततक और इसकतिए राजनीकततक परयास था तो उस कवि भाषा या बोकतियो

स बनन वािी lsquoजातीय चतनाrsquo र कतनसशष नही दकया जा सकता कबीर आदद सातो क िोकजागरण स

भारतद क नवजागरण का साबाध रारकतविास जी न नही ददखाया ह कबीर आदद क यहाा जो जयोकतत ददखाई

पड़ी थी उस वषणव भकति की कतवचारधारा क बड़ परवाह र सरझन स यह ददककत पदा होती ह रखय

अातरवमरोध क भीतर जो शतरतापणम कषण ह उस दकतषट स ओझि करन का कार ही परभतवशािी कतवचारधारा

करती ह रारकतविास जी पाजी क अातरवमरोधी चररतर को तो दखत ह िदकन यह नही दख पात दक

अातरवमरोधो स ही वह गकततशीि ह राकसम न इनही अथो र पाजी को lsquoगकततशीि अातरवमरोधrsquo कहा था

परभतवशािी कतवचारधारा भी अपन भीतर क अातरवमरोधो स ही आग बढ़ती ह भकति और रीकतत या कतनगमण

या सगण ऐस ही अातरवमरोध ह भारतद यग भी अपन अातरवमरोधी चररतर स ही बन रहा था उपकतनवशवाद

का कतवरोध भी उपकतनवशवादी कतवकास का ही कतहससा था सारातवाद स पाजीवाद र साकरण कवि

सारातवाद कतवरोध क रप र ही नही कतवककतसत होता बकतलक वहाा पाजीवाद क अकततकरण की साभावना भी

अनतरनमकतहत होती ह जो बाद र पाजी क कतवकास क दौरान पाजी क साराकतजक साबाधो र बदि जाता ह

थॉरस रनतसिर क नततव र हए कषक कतवदरोह र एागलस न या रधयकािीन कतवधरी आनदोिनो र कतसतरयो

की भकतरका ददखान क कर र कतसकतलवया फददरची न इस अकततकरण को और पनः पाजी क साराकतजक साबाधो

र रपाातरण की परदकया को ददखान की कोकतशश की ह13 पाजीवाद की काकतनतकारी भकतरका पर जोर दन स

उसकी परकततकााकततकारी भकतरका आाखो स ओझि हो जाती ह lsquoइकततहास जसा था वसा पान कीrsquo कोकतशश की

यह अकतनवायम सीरा ह अागरजी राज की िट पाजी की िट थी भारतीय आतर या हहादी जाकतत का

आतरकतबमबअाततः इस िट को कतछपान वािी और उस भिान वािी रोहक कलपना थी कही १८५७ स

भारतद यग का साबाध ददखाना भी एक रोहक कलपना ही तो नही ह

13 दख फडररक एागलस द पीजट वॉर इन जरमनी परोगरस पकतबिशसम रासको- १९७७ और कतसकतलवया फददरची ककतिबन एाड द कतवच फोकतनर

बकस ददलिी- २०१३

9

नारवर जी न नवजागरण को ररनसाास क बदि परबोधन या एनिाइटनरट की तरह दखन की बात

कही थी और कहा था दक इस नवजागरण का १८५७ स कोई भी साबाध कतशषट साकतहतय र नही ददखाई

पड़ता रारकतविास जी क िख क दो साि बाद lsquoआिोचनाrsquo र नारवर जी न lsquoहहादी नवजागरण की

सरसयाएाrsquo नार स एक िख कतिखा उपरोि दो चीज नारवर जी न उसी िख र कही ह उननीसवी सदी क

भारतीय नवजागरण को ररनसाास कहन र कई ददककत ह यरोप र कतजस lsquoररनसाासrsquo lsquoररफारशनrsquo या

lsquoकतचनकवचतोrsquo आदद कहा जाता ह वह पादरहवी शताबदी का नवजागरण था पादरहवी शताबदी र भारत भी

भकति आनदोिन क रप र एक जागरण स गजर रहा था इसकतिए नारवर जी कहत ह दक अगर उननीसवी

सदी क नवजागरण को ररनसाास कहग तब पादरहवी शताबदी क भकति आनदोिन को कौन सा जागरण

कहग रारकतविास जी इसीकतिए एक को िोकजागरण और दसर को नवजागरण कहत ह नारवर जी

कतिखत ह ldquoउननीसवी शताबदी क भारतीय नवजागरण को lsquoररनसाासrsquo कहन र एक करठनाई तो यह ह दक

इस यग क भारतीय कतवचारको और साकतहतयकारो क पररणासरोत यरोप क पादरहवी शताबदी क कतचनतक और

साकतहतयकार न थ बकतलक इसक कतवपरीत पररणासरोत क रप र अकतधकााश कतवचारक उस काि क थ कतजस

यरोप र lsquoएनिाइटनरटrsquo का काि तथा उसक बाद का काि कहा जाता ह सवया बादकर की सहानभकतत

रसो और परधो क साथ थी और व कोत जॉन सटअटम कतरि तथा हबमटम सपसर स परभाकतवत ददखाई पड़त

हrdquo 14 इस परकार यह lsquoनवजागरणrsquo lsquoपरबोधनrsquo की चतना क तलय ह और इसकतिए इसकी अातवमसत

lsquoिोकजागरणrsquo स कतभनन ह यदयकतप एक र दसर की चतना lsquoअाशतः कतवदयरानrsquo ह पर नवजागरण

िोकजागरण का पनरतथान रातर नही ह नवजागरण का नततव करन वाि रधयवगीय थ िोक क बीच स

नही आन क चित उनका सारानय िोक जीवन स एक दराव था और कतवचारो र िोकोनरख होकर भी

वयवहार र उनका िोक क साथ कोई तादातमय नही था नवजागरण का परभाव शहरो तक सीकतरत था और

इसकतिए िोकजागरण की तिना र इसका परसार भी सीकतरत था नारवरजी इस नवजागरण को रखयतः

साासककततक आनदोिन क रप र दखन की कतहरायत करत ह पर सवाि यह ह दक इस साासककततक आनदोिन

की राजनीकतत कया थी

भारतद क शबदो र नारवर जी भारतीय नवजागरण की रि सरसया lsquoसवतवrsquo या lsquoअकतसरताrsquo की

सरसया बतात ह धयान रखन वािी बात ह दक परबोधन या एनिाइटनरट की एक रि सरसया अकतसरता

की सरसया ह lsquoपरबोधन की िािातरकताrsquo नारक अपनी दकताब र एडोनो और हाखमइरर न ददखाया ह दक

कस परबोधन या जञान की शकति न यथाथम को कतरथ बनाया और कतरथको को यथाथम दकया एक पणय-वसत क

रप र जञान का उतपादन और पनरतपादन उननीसवी सदी की कतवशषता ह खासतौर स पवी कतवदया की रााग

14 नारवर हसाह हहादी का गदयपवम (सा) आशीष कततरपाठी पषठ-८६ राजकरि परकाशन नई ददलिी- २०१०

10

बािार र बहत थी जञान का कतवकतनरय एक बड़ बािार र हो रहा था और जञान की सारचना और उसकी

सापणमता एक फरटसाइजड कतवशवदकतषट बनाती थी कतभननता ह इसकतिए कतवकतनरय ह हर चीज जो कतवकतनरय र

शाकतरि ह रनषय की दकसी न दकसी जररत को परा करती ह य जररत य इचछाएा कवि पट स पदा नही

होती बकतलक कलपनाओ स भी पदा होती ह परबोधन की िािातरक परदकया क भीतर कतवजञान और धरम दोनो

न रनषय क कलपनाजगत की इचछाओ को भी परा करन वािा बािार बनाया कतभननताओ की

वासतकतवकताओ को छपान क कतिए या दसर शबदो र कह तो जञान की वासतकतवक जररत को छपान क कतिए

जञान का एक भरर खड़ा दकया जाता ह ठीक वस ही जस बजमआ अथमशासतर पाजीवाद की अतारकमकता को

ढाकन और दबान की परदकया र ही बना था पराककततक कतवजञानो क भीतर स कतनकिन वािी दो तरह की

कतवचारधाराओ की रााग बहत थी एक अटठारहवी सदी र िोककतपरय lsquoयााकततरक भौकततकवादrsquo की कतवचारधारा

और दसरी जीवकतवजञान स आन वािा कतवकासवाद का कतसदधाात राजनीकततक अथमशासतर क कतिए भारत र जॉन

सटअटम कतरि आदद िखको क बजमआ अथमशासतर का नया बािार था तकम की सावमभौकतरकता को उसकी

वासतकतवक जररत स काटकर lsquoअकतसरता कतनरामणrsquo स जोड़ ददया गया जो इकततहास कतरथ क अात का दावा

करता था वह सवया कतरथ गढ़न िगा यह सब साभव हआ उस कतवशाि जनसारानय क भय क सहार

कतजनहोन अपन ऊपर अपना कतनयातरण खो ददया था धरम इस भय क सहार कतवजञान की आिोचना करता था

और कतवजञान धरम की परबोधन-पवम की परापरा र जो आसथा या कतवशवास और जञान का अकतनवायम साबाध था

उसक सहार धरम आसथाकतवहीन जञान की आिोचना क िारा कतवशाि जनसारानय की रकति का कारोबार

करता ह

परबोधन की एक धारा आिोचनातरक जञान की धारा थी कतजसकी आिोचना राकसम न

lsquoआिोचनातरक आिोचना की आिोचनाrsquo कहकर की थी भारतीय नवजागरण क भीतर आिोचनातरक

जञान की धारा को नारवर जी न रहतवपणम राना ह यह ldquoआिोचनातरक दकतषट यरोप क lsquoपराचयकतवदयावादrsquo

(ओररएणटकतिजर) क इस उपकतनवशी रायापाश को कतछनन करन की चतावनी दती हrdquo15 यह उपकतनवशी

रायापाश पाजी का रायापाश भी ह जञान की पाजी का रायापाश कतजस हर पराचयकतवदयावाद का रायापाश

कह रह ह वह आिोचना-परतयािोचना की एक तथाककतथत िोकताकतनतरक परदकया र ही बन रहा था

इसकतिए इस आिोचना-परतयािोचना की परदकया की आिोचना क सनदभम र ही हर उस आिोचनातरक

धारा की चचाम कर सकत ह और कहना न होगा दक यह एक राजनीकततक करम भी ह नारवर जी न कहा दक

भारतीय नवजागरण र lsquoसवतव पराकतपतrsquo का साबाध राजनीकततक रकति स नही जोड़ा गया ह राजनीकततक

सवाधीनता अथामत lsquoराजसतता पिटन क कतवचार को अातगमहावास द ददया गयाrsquo इस तरह १८५७ या उसक

15 वही पषठ- ८७

11

पहि क दकसान कतवदरोहो क भीतर जो राजसतता पिटन का कतवचार था उस भारतीय नवजागरण न

अातगमहावास दन का कार दकया अतः भारतीय नवजागरण रखयतः साासककततक आिोचना ही थी

राजनीकततक आिोचना को गहावास दन वािी साासककततक आिोचना वह कतिखत ह ldquoसच तो यह ह दक

अकतधकााश िखक सरकषा सशासन कतशकषा उननकतत और शााकतत क कतिए कतिरटश राज क परकतत उपकत अनभव

करत ह- कतवशष रप स रगिो क शासन की तिना र इस परवकततत क अवशष बीसवी शताबदी क दसर

दशक तक रकतथिीशरण गपत की lsquoभारत भारतीrsquo जसी राषटरीय कही जान वािी कावय-ककतत र भी कतरिती ह

यहाा तक दक कभी-कभी तो नवजागरण क अनक उननायक राजसतता क साथ सहयोग करत भी ददखाई पड़त

ह अब इस कोई चाह तो नवजागरण क उननायको का रधयवगीय अथवा भदरिोक चररतर कह ि अथवा

दकसी सागरठत राजनीकततक परकततरोध क अभाव क िारा इस कतनरपायता की वयाखया कर ि दकनत हर हाित

र यह तथय कतवसरत न हो दक कि कतरिाकर था यह रितः नवजागरण ही- साासककततक नवजागरण कतजस

राषटरीय सवाधीनता साघषम का पवमराग भि कह ि दकनत उसका पयामय न सरझrdquo16 इसी साासककततक

नवजागरण स वह lsquoआतरकतबमबrsquo तयार हआ कतजसक कतबना राजनीकततक साघषम का वह रप कतवककतसत नही होता

जो आग चिकर वासतव र हआ अजञय की इस वयाखया स नारवर जी सहरत ह दक राजनीकततक-साराकतजक

आधारो की वासतकतवकता क बावजद भदरवगीय साासककततक आनदोिन न जो lsquoआतरकतबमबrsquo रचा वह

राजनीकततक सवतातरता साघषम र हकतथयार बन गया राजनीकततक सवतव पराकतपत की जो चतना इस पररणापरद

आतरकतबमब र अातगमहावास कर रही थी आग चिकर वही राजनीकततक सवतव पराकतपत र उभरकर कतनज

कतवककतसत होती गयी एक बार दफर lsquoइकततहास जसा था वसा पानrsquo की कोकतशश र इकततहासवाद की

कतवचारधारा सारन आ खड़ी होती ह इस इकततहासवाद की आिोचना गरामशी न भी की थी खासतौर पर

कोच क परर इकततहासवाद की आिोचना करत हए सवाि ह दक सासककततकरम की राजनीकतत कया ह

ददरागी गिारी स रकति का साघषम और राजनकततक रकति का साघषम कया इस तरह क अिगाव र रह सकता

ह और अगर अिगाव ह तो इस अिगाव को कस सरझ एक बार यह तय हो जान पर दक उनका वगम

कया था हर उसी क आिोक र उनक साासककततक परयासो की आिोचना करनी चाकतहए दसर शबदो र

उनक अपन वगीय अातरवमरोधो क आिोक र ही उसकी आिोचना साभव ह उपकतनवशवाद की रानकतसक

गिारी क कतखिाफ साघषम जञान की सतता क कतखिाफ साघषम ह और शायद इसकतिए नारवरजी कहत भी ह दक

यह साघषम राजनीकततक साघषम स lsquoकर करठन न थाrsquo यरोपीय जञान क बरकस भारतीय जञान को सथाकतपत

करन का साघषम ही यह साघषम था ldquoउपकतनवशवाद की छाया र भारतीय सासककतत क िोप का खतरा था

इसकतिए अपनी सासककतत की रकषा का परशन सवतव-रकषा का परशन बन गयाrdquo17 सतता पिटन क कतवचार को

16 वही पषठ ८८

17 वही

12

अातगमहावास दकर सवतव-पराकतपत सवतव-रकषा का परशन बन गया और यह सवतव कया था कतजसकी रकषा

साासककततक रोच पर नवजागरण क परसकताम कर रह थ- कलपना या यथाथम परबोधन न जञान का एक कतरथ

तयार दकया और चपक स कतरथको को जञान बना ददया इस नवजागरण की एक बड़ी दन एक परकतत-

इकततहास-दकतषट का कतवकास ह नारवर जी कतिखत ह ldquoनवजागरण की एक बहत बड़ी दन साभवतः वह

इकततहासदकतषट ह कतजसस अपन अतीत को शतर स रि करक उसक कतवरदध वतमरान र इसतराि करन की किा

आती ह और भकतवषय क कतिए सवपन दकतषट भी कतरिती हrdquo18 अगर वासतव र यह दकतषट नवजागरण की दन ह

तो रानना पड़गा दक यह फासीवाद की इकततहासदकतषट ह एक ऐस रकतसिर अतीत की कलपना जहाा रकतसिर

शतरओ स भारतीयता को रि करक वतमरान र उनक कतखिाफ इसतराि दकया जाता ह और इसस भकतवषय

की एक सवपन दकतषट भी भी कतरिती ह कहना न होगा दक परबोधन स कतनकिी यह इकततहासदकतषट अतारकम क

नही थी कयोदक यह साघषम की वासतकतवकता का सबस भरकतरत रप खड़ा करती ह फासीवाद इस अथम र वगम

साघषम का सबस कतरथकीय रप ह और अगर यह सही ह तो सवतव-रकषा र परापत इस इकततहासदकतषट को हर

परकततकााकतत की इकततहासदकतषट कह सकत ह भारतीयता का यह भरकतरत आतरकतबमब सवया को दो बनाकर ही

गकततशीि था यही इकततहासदकतषट आग चिकर lsquoकतवरदधो का साराजसयrsquo की इकततहासदकतषट क रप र इकततहास

का सबस भवय ढााचा खड़ा करती ह आतरकतबमब क इस कतवखाडन को िकषय करत हय नारवर जी न कतिखा

ldquoहरानी की बात ह दक हहादी परदश का नवजागरण धरम इकततहास भाषा सभी सतरो पर दो टकड़ हो गया

सवतव रकषा क परयास धरम तथा सापरदाय की जरीन स दकय गएrdquo19

आतरकतबमब का यह दो होना िखको क दो वगो र परकततहबाकतबत हआ नारवर जी क अनसार एक

वगम अागरजो का घोर कतवरोध करता ह पर धरम-सासककतत और साराकतजक परथाओ क बार र परापरावादी ह

दसरा वगम अागरजी राज क परकतत नरर रख अपनाता ह पर अनय रारिो र या तो रिगारी ह या दफर

सधारवादी िखको का पहिा वगम भारतीय होन का दावा करता ह जबदक नररपाथी िखक पकतशचरोनरख

ह हहादी नवजागरण क नता जयादातर परापरावादी ह जहाा अागरजी कतशकषा का परसार जयादा हआ वहाा

पकतशचरोनरख िखक जयादा थ दयानाद की अपकषा भारतद का झकाव कशवचादर सन जस पकतशचरोनरख

िखको या सधारको क परकतत था ऐसा साभवतः वषणव भावकता क चित था नारवर जी भारतद र परखर

बकतदधवाद का अभाव पात ह पर उनकी रराकतनयत को रानवतावाद की कतवचारधारा स जोड़त ह

नवजागरण क इस साकतशलषट कतचतर को सारन रखन की कोकतशश र नारवर जी एक ऐसी इकततहासदकतषट

कतवककतसत कर रह थ जो अतीत को उसक सापणम अातरवमरोधो र पान की कोकतशश करता ह अतीत को खिा

18 वही पषठ-८९

19 वही पषठ ९१

13

छोड़ दन वािी यह इकततहासदकतषट या एक सातकतित इकततहासदकतषट का यह परयास खाड खाड कतबमबो की एक ऐसी

गकततशीिता का भरर पदा करती ह जो इकततहासवाद की एक पररख कतवशषता रही ह इस पकष पर सवया

नारवर जी का धयान था और आग चिकर उनहोन नवजागरण क इस कतरथकीय चररतर को सवया ही

आिोकतचत दकया इस आिोचना र वह नवजागरण को परबोधन कहन क बदि lsquoअकतभजञान-कािrsquo कहना

जयादा उपयि रानत ह खद lsquoनवजागरणrsquo नार को अागरजो की कलपना बतात ह और उननीसवी सदी को

lsquoसरकतत-भराशrsquo का काि कहत ह यहाा १८५७ स िकर भारतद और कतववकानाद सब एक कतरथकीय चतना क

भीतर सराकतहत ददखत ह और कतजस भारतीय नवजागरण कहा जाता था उस कतवपरीत जागरण रानत ह

इसी कतवपरीत जागरण का नार उनहोन अकतभजञान ददया 20 डा वीरभारत तिवार न कवि कतहनदी

नवजागरण को भारतीय नवजागरण की परकततकााकततकारी धारा कहा था वही नारवर जी अब पर भारतीय

नवजागरण को ही कतवपरीत जागरण कह रह ह और बहत हद तक सही कह रह ह

डा तिवार न अपनी lsquoरससाकशीrsquo र lsquoहहादी नवजागरणrsquo को एक भरारक पद बताया था न तो

इसका साबाध १८५७ स था न रधयकािीन भकति आनदोिन स और न ही जनवादी राषटरवाद की दकसी

अवधारणा स उनक अनसार परबोधन क कतववकवाद तथा धरमसधार-सराज सधार की कतरिी जिी परदकया

क रप र कतवककतसत होत बागािी या रराठी नवजागरण या भारतीय नवजागरण की परकततगारी धारा क रप

र कतवककतसत होन वाि भारतद आदद क साासककततक आनदोिन को lsquoहहादी आनदोिनrsquo कहना ठीक ह कतशकतकषत

रधयवगम क भीतर दो परसपर कतवरोधी धाराओ की चचाम डा तिवार करत ह एक धारा कतववकवाद की

धारा थी दसरी सनातनी कतहनद धरम की धारा रहाराषटर और बागाि र अागरजी कतशकषा क परचार-परसार न कतजस

नए धरम और सराज सधार को गकतत परदान की वह अपकषाकत अकतधक परगकततशीि धारा थी पकतशचरोततर यि

परानत क पवी इिाक खासतौर पर बनारस इिाहाबाद और बहत हद तक पटना कानपर भागिपर आदद

शहरो र कतवककतसत नव-रधयवगम इस परगकततशीि धारा क साथ नही था इसका सबस बड़ा कारण अागरजी

कतशकषा का अभाव था यि परानत र कोई धारा परगकततशीि भकतरका अदा कर रही थी तो वह कवि दयानाद

सरसवती की आयमसराजी धारा थी इस आयमसराज का भी अपना जनाधार सनातनी पाकतडतो या िाहमणो क

यहाा नही बकतलक नौकरीपशा अागरजी कतशकषा परापत वह भदरवगम था जो अपन धरम और सासकारो क कतपछड़पन

को िकर गिाकतनबोध स भरा था इस वगम को अपनी पहचान आयम सराज र ददखती थी आयम सराज क

रिवाद र तथा उसक तारकम क सथिवाद र आधकतनक होन का रासता ददखता था िहमोसराज और

कतथयोसोदफकि सोसाइटी दो ऐसी सासथाएा और थी जो यि परानत र धरम और सराज सधार का परयास कर

रही थी परनत इसका परभाव बहत सीकतरत था आरतौर पर यिपराात र रहन वाि बागािी अपरवासी ही

20 दख नारवर हसाह उननीसवी सदी का भारतीय पनजामगरण यथाथम या कतरथक (अन) पाकज पराशर पकषधर अाक ११ जिाई २०११

14

इनक सदसय थ हहादी आनदोिन क नताओ न इन दोनो धाराओ की आिोचना की ह इनहोन दयानाद क

रिवाद की आिोचना अपनी परापरावादी करमकााडी दकतषट स की इनक अनसार उपकतनषद या पराण आदद

अगर अपराराकतणक भी ह तब भी चादक िोक र सवीकत ह इसकतिए उनह एकदर ख़ाररज करक कोई धरम या

सराजसधार नही हो सकता तिवार जी का कहना ह दक अपनी िचर दिीिो की आड़ र य िोग वसततः

सतरी कतशकषा कतवधवा कतववाह या आधकतनक जीवनशिी आदद की परगकततशीिता का कतवरोध कर रह थ यह

कतवरोध आरतौर पर सरदाय की रानयताओ को ही सारन रखकर दकया जाता था एक दकसर क

कतबरादरीवाद क भीतर स सरझौता करत चिन क कारण हहादी आनदोिन क नता अपन पाररवाररक या

वयकतिगत जीवन क उथिपथि स बचन की कोकतशश करत ह धरम इनक कतिए सधार का नही वरन

राजनीकततक हथका डा रातर था धरम की आड़ र य रकतसिर भदरवगम को अपना परकततयोगी साकतबत कर कतहनद

एकता की अपीि करत तादक इनह सरकारी नौकररयो र कछ कतवशषाकतधकार कतरि सक तिवार जी क

अनसार रकतसिर भदरवगम इन हहादी आनदोिन क परसकततामओ स कही जयादा परगकततशीि था उनक यहाा

आधकतनकता क परकतत जयादा खिी और कतववकसापनन दकतषट थी और उनहोन जोर दकर कहा दक हहादी आनदोिन

को सर सयद अहरद खाा जस दकसी सकषर कतववकवादी वयकतितव का नततव नही कतरि पाया हहादी

आनदोिन और नताओ क अातरवमरोधो को ददखात हए तिवार जी न भारतद की छकतव एक पतनशीि कतहनद

रोररटक की गढ़ी ह यहाा भारतद एक परकततनायक क रप र नजर आत ह

कतववकवादी इस धारा न राषटरीयता की जो धारणा गढ़ी वह रितः साापरदाकतयक थी अागरजी राज क

कतखिाफ अगर इनका साघषम सराज और धरम सधार को साथ-साथ रखन क बजाय उसर अिगाव करता ह

बकतलक उनक कतखिाफ जाकर सागरठत होन का परयास करता ह तो उसक सारन रकतसिर भय पदा करन क

अिावा और कोई रासता साभव नही था lsquoहहादी नागरी और गोरकषाrsquo आनदोिन इसकी सवभाकतवक पररणकतत

थी आग चिकर उननीसवी सदी क आकतखरी दशक र आकार गरहण करन वािी कतहनद राषटरवाद की यह

पषठभकतर ह इसक वग र दयानाद न भी साथ ददया कयोदक उनर भी पनरतथानवाद क बीज थ पवी परदशो

की अपकषा आयम सराज पाजाब र कही जयादा रकतडकि था आयम सराकतजयो की सदसयता की साखया पाजाब

क रकाबि यि परानत र जयादा थी पर वहाा कोई गणातरक पररवतमन साभव नही हआ और यह रहज

साखयाबि क रप र ही बना रहा इसका कारण उनहोन पाजाब की कतभनन नतततवशासतरीय अवकतसथकतत र

बताया ह पाजाब र िाहमणो का परभाव कर था कतजसका एक कारण रसिरानो क साथ िमबा सासगम और

कतसख धरम आदद का परभाव भी था इस तरह का कोई कतवशलषण पवी परदशो क बार र नही दकया गया जसा

दक बहत पहि रदमरशरारी की ररपोटम स ही हजारीपरसाद कतिवदी न दकया था अथामत रधययगीन कतसख

धरम क परभावो की तरह कबीरपाथी आदद सरदायो क परभाव और वषणवता क अातसबाधो की पड़ताि नही

15

की गयी ह काशी क बनकरो की एक हड़ताि का कतिक रारकतविास जी बार बार करत ह जो १८३३ ई र

ही हई थी और इकततहासकार बिी क अनसार यह वक़त आरथमक साकट का भी वक़त था

भदरवगम का जो कतहससा हहादी आनदोिन क साथ था उस जाकतत वयवसथा की परानी रानयता को

बनाय रखन या उस रजबत करन की जररत कया कवि नौकररयो र कतवशषाकतधकार परापत करन क कतिए थी

या जाकतत वयवसथा रातर र आय एक रिगारी साराकतजक साकट का वह परकततदकयावादी रपाातरण ह शहरो

र आरथमक-वयापाररक गकततकतवकतधयो क कारण और आसपास क इिाको स परवासी रजदरो का आगरन तथा

बढ़ती वशयावकततत आदद क चित शहरी साराकतजक साबाधो र भी उथि-पथि थी ऐस सरय र सारदाकतयक

या कतबरादरी बोध lsquoएकाrsquo की भावना पदा करती ह तिवार जी इस नव-भदरवगम का अपन ही भीतर अिग-

अिग खााचो र बाट होन की बात करत ह अिग-अिग खााचो र बाट होन क चित यह भदरवगम रधयवगम की

कतवचारधारा अथामत कतववकवाद या नवजागरण को परापत नही कर पायी थी वगम था िदकन वगम की

कतवचारधारा नही थी खद भारतद क जीवन स हर उस दौर की अकतसथरता का कछ अादािा कतरिता ह

अकतसथरता और खााचो र बाटा रधयवगम दरअसि सापणम सराज र होन वाि एक आधारभत पररवतमन की ओर

इशारा करता ह यह पररपरकषय १८५७ की तरासदी का भी ह ऐसी कतसथकतत र हपराट पाजी क साथ बनन वािा

यह साासककततक आनदोिन था जहाा सवतव रकषा रखयतः अपन परान कतवशषाकतधकार की रकषा थी साराकतजक

साबाधो र आय उथि पथि क कारण उनह अपन कतवशषाकतधकार कतछन जान का खतरा साफ़ ददखाई द रहा

था जहाा अागरजी कतशकषा थोड़ा पहि ही परसार पा चकी थी वहाा कशि कारीगरो स िकर अधयापको और

परशासकतनक अकतधकारीयो क एक बड़ सरह न अपना नया कतवशषाकतधकार पा कतिया था साराकतजक साबाधो र

उनकी शरषठता उनक कतववकवाद क कारण बन चकी थी भारतद क एक शरआती िख lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

क राधयर स खााचो और जनरत की राजनीकतत को सरझन की कोकतशश आग करग

तिवार जी क अनसार दयानाद क कतवचारो क कतिए पाजाब जयादा गरहणशीि था कयोदक वहाा

जाकतत वयवसथा क बाधन पहि ही ढीि हो गए थ यिपराात र जाकतत क बाधन जायदा कठोर थ कतजन अथो र

कतिवदी जी रधय दश की रकषणशीिता का कतजक करत ह कछ-कछ उनही अथो र पर सवया दयानाद क

कतवचारो र कतववकवाद-पनरतथानवाद का दोरखापन कतरिता ह तिवार जी कहत ह दक कतजन सथि तको स

वह वदो की ओर िौटन को कहत थ आयम भाषा आयम जाकतत और आयम धरम की बात करत थ उसक कारण

ही इनका झकाव आग चिकर राषटरीय सवयासवक साघ की ओर होता गया पर आयम सराज क साराकतजक

सधारो और धरम सधारो की एकता क कारण वहाा वह साभावना भी थी कतजसक परभाव स आग चिकर बहत

सार कमयकतनसट कायमकताम भी कतनकि पररचाद राहि साकतयायन या गणश शाकर कतवदयाथी जस साकतहतयकार

और आनदोिनकताम आयम सराज क परभाव र थ आयम सराज तिवार जी क अनसार वासतकतवक साराकतजक

16

पररवतमनो का सावाहक और सराज र वयकति स िकर साराकतजक जीवन क हर कषतर र गणातरक पररवतमन

िान वािा इसकतिए हो पाया कयोदक वहाा धरमसधार और सराज सधार अिग-अिग नही था दसरी ओर

हहादी आादोिन साापरदाकतयक जाकततवादी और सतरीकतवरोधी रलयो को ही सराज र फ़िान र कारयाब हआ

यह धारा अागरजो को अरजमयाा दकर नौकरी पान वाि रधयवगम की धारा थी

तिवार जी न भारतद की तकमशीिता को बहत कतनमन कोरट का कहा ह भारतद क चररतर र शायद

वह एक lsquoिमपनrsquo की छकतव भी दखत ह पसा उड़ान की वकतत सतरी क साथ वयवहार और उनक साबाध

चाररतरय बि का अभाव आदद आदद क सनदभम र वह कहत ह दक भारतद क चररतर र वह सदढ़ता या

सदाचाररता नही ह जो सराजसधार क कतिए आवशयक होती ह घर र पतनी उनह कभी पसाद नही आई

और वह बाहर रहदफ़िो र वाहवाही िटत रह रदमवादी दकतषट भी उनर कट-कटकर भरी थी भारतद क

इस चररतर की तिना तिवार जी न दो अनय परमपरावादी सधारको स की ह एक बागाि क राधाकाात दव

और दसर पाजाब क शरदधारार फलिौरी यदयकतप य दोनो भी भारतद की तरह परापरा की रकषा र ही सधार

की ओर अगरसर हए थ िदकन इन िोगो का चररतर जयादा परगकततशीि था इन दोनो की तिना र भारतद

का खिनायकतव और भी अकतधक उभरकर सारन आता ह सापकतकषक परगकततशीिता क कतनधामरण क कर र

भारतद अपन सापणम जीवन वयवहार र एक एाटी हीरो की तरह उभरत ह ठीक परान खिनायको की तरह

नही एाटी हीरो क साथ दशमक या पाठक की एक आतरीयता भी जड़ी रहती ह उसका चररतर ददराग र बस

जाता ह िदकन इसक चित यथाथम क ओझि होन का खतरा भी ह तिवार जी इसकतिए कदर कदर पर

उनकी साकतहकततयक छकतव क बरकस उनक राजनकततक- साागठकतनक जीवन वयवहार स बनन वािी छकतव को

सारन ररतमरान करत जात ह

अपनी परी आिोचना र तिवार जी भारतद की रचनाओ र कतरिन वाि भाषायी िदधड़पन और

राद तकमशीिता की चचाम तो करत ह िदकन व भारतद क वयागयो पर चचाम नही करत कया यह रहज

सायोग ह दक भारतद क परहसन lsquoअाधर नगरीrsquo का राचन आज भी परगकततशीि रलयो की परकततषठा ही करता

हभारतद क वयागयो या परहसनो र ऐसा कया ह कतजसर दहराव क साथ नवीन होत चिन की कषरता भी ह

भारतद क िखो या परहसनो या रपको र जो कही-कही वणमन या सावाद िारा वयागय का तीखा बोध पदा

होता ह उसकी शकति उनह कहाा स कतरिती ह वयागय की कषरता सवया र उनकी सकषर कतनररकषण र सरथम

दकतषट का परराण ह परान साराकतजक साबाधो र पररवतमन और तीवर पररवतमन क साथ साथ जो एक परहसन

चि रहा था उसका बोध भारतद को था भदरवगम क भीतर की कतववकवादी धारा का कतवकास भी कतहनद

राषटरवाद की कतवचारधारा र ही हआ परनत lsquoअाधर नगरीrsquo कया कतहनद राषटरवादी कतवचारधारा वािा परहसन ह

या कया यह कवि राषटरवादी कतवचारधारा का वाहक ह lsquoउरराव जान अदाrsquo र उभरकर सारन आन वाि

17

साराकतजक साासककततक साकषोभ या उस वयापक टरजडी क सनदभम र दख तो भारतद क वयागय और परहसनो का

अथम थोड़ा और उभरता ह रकतलिका या राधवी स भारतद क साबाधो र कया उस तरासदी का सराग भी नही

ह वशयावकततत और पतनशीि रइसो का साकट एक दसर स अिग नही था उस सरय की औपनयाकतसक

ककततयो र वशयावकततत का सनदभम अवशय आता ह आग चिकर पररचाद की सरन बनारस र ही lsquoसवासदनrsquo

का सराधान ढाढ रही थी

भारतद क वयागयो पर रारकतविास जी का धयान था यह बात अिग ह दक अकतधकााश रौको पर

इनर वह जातीय चतना खोज कतनकाित ह बीस साि की उमर र भारतद न एक िख lsquoिवी पराणिवीrsquo नार

स कतिखा था रारकतविास जी इसका उलिख करत हए कतिखत ह ldquoगवनमर जनरि कतहनद क कतजस दरबार का

भारतद न वणमन दकया ह वह काशीराज क घर पर हआ था इसकतिए भारतद की सतयकतपरयता और भी

सराहनीय ह वहाा जो सजजन िोगो क नार कतिख रह थ उनका वणमन या दकया ह lsquoनार कतिखन वाि राशी

बदरीनाथ फि-फाि अबा पकतहन पगड़ी सज परान दादर की भााकतत इधर-उधर उछित और शबद करत

दफरत थrsquo िोग दकस तरह एक आनररी रकतजसटरट क lsquoकतसट डौनrsquo lsquoसटड अपrsquo कहन स उठत और बठ जात थ

इसका उनहोन बहत ही नाटकीय वणमन दकया ह आनररी रकतजसटरट का वयवहार हविदार का सा था कतसफम

हाथ र एक िकड़ी की कसर थी िोग कीरती पोशाक पहनकर गए थ ldquoसबक अागो स पसीन की नदी

बहती थी रानो शरीयत को सब lsquoअरघय पादयाrsquo दत थrdquo िोगो की उठा बठी और बहदा कवायद को िकषय

करक कतिखा था ldquoवाह-वाह दबामर कया था lsquoकठपतिी का तराशाrsquo था या बलिरटरो की lsquoकबायदrsquo थी या

बादरो का नाच था या दकसी पाप का फि भगतना था या lsquoफौजदारी की सजाrsquo थीrdquordquo21 काशी की इस सभा

र खद भारतद भी बठ थ इस परकार यह भारतद क वगम का परहसन भी था पतनशीि सासककतत की

आतरािोचना क कतबना यह साभव नही था बात कवि उमर की नही ह ठठ वतमरान र हसतकषप और उस

बदिन का बोध कतजन पतनशीि कतसथकततयो का आतर साकषातकार कर रहा था यह उसक परकतत एक

सवाभाकतवक सवतःसफतम परकततदकया थी यह तारकम क की नही बकतलक किाकार की सवतः सफतमता थी यह बात

सही ह दक भारतद कतवचारो की तारकम कता क रारि र उननीस पड़त थ पर इस करी को उनकी तीकषण

वसतकतनरीकषण दकतषट भर दती थी जीवन कतसथकततयो की कतवडमबना का बोध कतजतना गहरा था बदिन का

परयास उतना ही ऊजामवान था भारतद सवया अपनी भी कहानी कतिख रह थ lsquoपयार हररचाद की कहानीrsquo

कतिख रह थ भारतद क परहसनो र दकसी न दकसी पातर की भकतरका र हर जगह सवया भारतद भी ददख

जात ह अपन वगीय अातरवमरोधो का सवबोध उनक यहाा एकतिगोररकि हो जाता ह इस एकतिगरी र lsquoकतहनद

21 रारकतविास शराम पषठ- ६६

18

भारतrsquo की रधर कलपना थी इसस इनकार नही दकया जा सकता भाव जगत का वषणव परर lsquoकतहनद भारतrsquo

की कलपना स परर र बदिता गया

भारतद की रचनाओ र कतवशवदकतषट की एकता खोजन पर हर परभतवशािी कतवचारधाराओ की

वयवसथा ही कतरिगी जञान और वयावहाररक सारानय बोध क बीच एक सदकय साबाध बनान क कर र ही

उनका सवाभाकतवक आवग कतजन वयावहाररक धाररमक कतवचारधाराओ र आतरकतबकतमबत होता ह व

परभतवशािी कतवचारधाराएा ह इन कतवचारधाराओ का कतनरामण कही बाहर स नही हो रहा था बकतलक

पराचयकतवदयाकतवदो की कलपना क साथ परसपर भागीदारी र बन रहा था इन कलपनाओ को यथाथम रप द

रही थी हपराट पाजी क साथ कतवककतसत होती lsquoबजमआ पकतबिक सफीयरrsquo की दकयाएा भारतद की सवाभाकतवक

सफरतम ततकाि ही एक फ टसी र बदिन िगती ह और दकयातरक होना चाहती ह ऐस ही सरय

पराचयकतवदया क पाकतडतो क िारा जगाय गए कतरथकीय परत भी आकर सर पर सवार हो जात ह पराचयवाद

दकसी परत-कतवदया स कर न था दखना चाकतहए दक भारतद की रचनाओ र कहाा परतो की दकतनया र यथाथम

का हसतकषप होता ह उनकी एकतिगरी कहाा कतसथकततयो क अकततरक को अकतभवयि कर रही ह जस भारतद की

lsquoअाधर नगरीrsquo ऐन हरार वक़त र राजयसतता का रपक बन जाती ह यह रपक राजयसतता र अनतरनमकतहत

हहासा की अकतनवायमता और नयाय क भरर का परहसन भी ह

२ धरम सधार पर कतवचार सभा

िहमो सराज या दयानाद सरसवती को खद भारतद कस दख रह थ इसका पता हर lsquoसवगम र कतवचार

सभा का अकतधवशनrsquo22 नारक एक वयागय रपक स चिता ह सवारी दयानाद सरसवती और कशवचादर सन

जब ररन क बाद सवगम पहाच तो ldquoवहाा एक बर बड़ा आनदोिन हो गयाrdquo रतय क कछ ही सरय पहि कतिखा

गया यह वयागय रपक अपन सरय क धरम सधार आादोिनो क चररतर की वयाखया करता ह सबस पहि

इसका परकाशन किकतत स कतनकिन वािी परकततकतषठत हहादी पकततरका lsquoकतरतर कतविासrsquo (जन १८८५) र हआ था

िहमो सराज और आयम सराज क आनदोिनो को भारतद इस सरय तक आकर एक तटसथ आिोचकीय दकतषट

स दखन का परयास करन िग थ सवगम र एकबारगी पदा हए इस आनदोिन र रोट तौर पर दो खर बन

गए एक इनका परशासक था दसरा हनादक पहिा कतिबरि ह दसरा काजरवरटव इन दोनो खााचो र

अनदफट एक तीसरा दि ह जो वषणव आतराओ का ह इस दि क सासथापक तो कतिबरि थ पर अब य

lsquoरकतडकलस कया रहा रकतडकलस हो गए हrsquo कतनकतशचत रप स इन रहा रकतडकलस आतराओ र हर सवया भारतद

22 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन सा- करिा परसाद परसा- नारवर हसाह पषठ- ८२-८६ नशनि बक टरसट इाकतडया नई ददलिी- २००६

(आग इस िख क उदधरणो को कतबना पाद रटपणणी क ददया गया ह)

19

को भी कतगन सकत ह वयासदव एक ऐस बकतदधजीवी क रप र सारन आत ह जो दकसी का भी पकष िन स

बचत ह पर उनका रान दोनो खरो र ह ldquoकतबचार बढ़ वयासदव को दोनो दि क िोग पकड़-पकड़ कर ि

जात और अपनी अपनी सभा का lsquoचयररनrsquo बनात थ और बचार वयास जी अपन पराचीन अवयवकतसथत

सवभाव और शीि क कारण कतजसकी सभा र जात थ वसी ही विता कर दत थrdquo कतिबरिो की तिना र

का जरवरटव दि जयादा रजबत था कयोदक उनह सवगम क जरीदारो का सहयोग परापत था काजरवरटव दि की

आतराएा साकीणम कटररपाथी आतराएा थी य आतराएा उन परान िरान क ऋकतष रकतनयो की आतराएा ह जो

ldquoयजञ कर करक या तपसया करक अपन-अपन शरीर को सखा-सखाकर और पच-पच कर ररक सवगम गए हrdquo

करमकााड और वरत उपवास आदद को भारतद वही तक सही रानत थ जहाा तक व शरीर को कषट न पहाचाएा

कठोर दह साधना करन वाि इन ऋकतष रकतनयो की आतराएा सधारो क कतखिाफ थी और इनका साथ दन

वाि जरीदारो र lsquoउदार िोगो की बढ़तीrsquo स अपना रान-अकतभरान और बि कतछन जान का डर था

कतिबरि दि भिो की आतराएा या तो सावमजाकतनक जीवन क उचच रलयो या आदशो क सापादन क चित या

पररशवर की भकति स सवगम र गयी थी

सराज सधार और वयकतिक परर रिक भकति- कतिबरि कतवशवदकतषट को भारतद इसी पररपरकषय र दख

रह ह रकतडकि वषणव दि भिो क कतिए वषणव होन रातर स य चीज पहि स ही उपिबध थी भारतद क

कतिए वषणवता सवाभाकतवक रप स कतवशवदकतषट ह पर रकतडकि वषणव इस सवाभाकतवक उदारता को

राजनीकततक रप दन वाि ह वषणव उदारता का और उसक भावावग का राजनीकततकरण करन वाि रहा

रकतडकि इस तरह भारतद क कतिए वषणवता की आधकतनक वयाखया र सराज सधार वयकतिक परर रिक

भकति और राजनीकतत तीनो का lsquoएकाrsquo ह इस एका क रकतडकि परयास क कतिए जनरत या िोकरत का

कतनरामण आवशयक ह भारतद की रकतडकि वषणवता ही lsquoसब उननकतत का रिrsquo ह यह एक िोककतपरय

वयावहाररक कतवचारधारा क रप र आकर गरहण करन वािी वषणवता ह यह रकतडकि वषणवता धरम का

राजनीकततकरण ह

काजरवरटव दिभिो को दवताओ का सरथमन परापत था य दवता ही सवगम क जरीदार थ अपन

अपन तरीक स इन दवताओ न काजरवरटव दि की सथानीय शाखाएा भी खोि िी और वहाा इनक पकष र

lsquoपरकाश सभाएाrsquo होन िगी कतिबरि दि वािो क पकष र कवि इस lsquoकतहनद सवगमrsquo क िोग नही थ ldquoइधर

lsquoकतिबरिrsquo िोगो की सचना परचकतित होन पर रसिरानी-सवगम और जन सवगम तथा दकसतानी सवगम स पगमबर

कतसदध रसीह परभत कतहनद सवगम र उपकतसथत हए और lsquoकतिबरिrsquo सभा र योग दन िग बका ठ र चारो ओर

इसकी धर फि गयीrdquo अिग अिग सवगम कतवकतभनन धाररमक पहचानो की ओर इशारा करता ह बका ठ कतहनदओ

का सवगम ह और यह नया धरम आनदोिन रखयतः कतहनद धरम की एक बड़ी पहचान क भीतर ही पदा हआ ह

20

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग क तीन कतनकतहताथम वसधा डािकतरया न भारतद यग क सनदभम र नोट दकय ह23 पहिा

एक पराक औपकतनवकतशक lsquoकतहनद अथमrsquo जहाा हहादसतान का हर बाहशादा शाकतरि था दसरा परसपर कतभनन

धाररमक रतो और आसथाओ की कतनकट अातरकम या क अथम को वयि करता ह कतजसक आराकतभक साकषय सलतनत

कािीन ऐतहाकतसक वतताातो र कतरित ह यहाा यह शबद lsquoतकम rsquo क सरानाातर उपयोग र आया था और

सारानयतः रसिरानो क बरकतखिाफ उपयोग दकया जाता था आरमभ र यह धाररमक कर साराकतजक-

राजनीकततक अथो र जयादा परयि होता था अागरजी राज क साथ यह दसरा अथम धरम स अकतनवायमतः जड़कर

lsquoकतहनदवादrsquo की कतवचारधारा र बदि गया जमस कतरि आदद क इकततहासो र lsquoकतहनदकािrsquo और lsquoरसिरान

कािrsquo की ऐकततहाकतसक कलपना क साथ कतहनद शबद जड़ गया था भारतीय भी रसिरानो को सारन कर

lsquoकतहनद पीकतड़त गराकतथrsquo क कतिए इस शबद का इसतराि करन िग कतहनद शबद का तीसरा अथम राषटर की

अवधारणा स जड़कर बन रहा था आरथमक राषटरवाद और अागरजी राज की यातना की साझी सरकतत स बनन

वाि इस तीसर अथम का रतिब था- lsquoजो कतहनदसतान र रह वह कतहनदrsquo रारकतविास जी भारतद क यहाा

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग को इनही अथो र ित थ पर वसधा डािकतरया का कहना ह दक यह तीसरा अथम दसर क

वयापक परभाव र था तीनो अथो की अातरकम या क बार र डािकतरया न कतिखा ldquoतीसरा अथम या राषटरवादी

अथम कभी भी अपन धाररमक साकताथो स परी तरह छटकारा नही पा सका इस पद की परयकति उननीसवी

सदी र अकतसथर बनी रही और इसक रखतकतिफ रायनो र आपसी जड़ाव कायर रहा बावजद इसक दकसी

परदतत सनदभम र lsquoकतहनदrsquo क पराथकतरक अथम को कतनधामररत करना साभव ह यदद एक बार यह तय हो जाय दक

इिाकाई धाररमक राषटरीय र स दकस आधार पर यह पद परयोग र आ रहा ह और lsquoअनयrsquo की भकतरका र

दकस रखा जा रहा ह चाह वह अनय जसा दक परानी इिाकाई परयकति र ददखता ह फारसी या तकी हो

या रसिरान (कतजस इस िरान र भी कई बार सरह क हवाि स तकम ही कहा जाता ह) या दफर अाततः

औपकतनवकतशक सवारी िदकन यह बात ददराग र रखना जररी ह दक धाररमक सरदाय को कतनरदमषट करन

वािी दसरी परयकति अतयात परभावी सनदभम-हबाद बनी रहती हrdquo24

इस सनदभम र दख तो कतिबरि दिो क सरथमन र शाकतरि lsquoअनयrsquo कतहनद धरम क सधारवाद क सरथमक

ह और lsquoसधारोrsquo र छपी वकतशवक भावनाओ को सरथमन दन पहाच ह का जरवरटव दिो की lsquoअनयताrsquo यहाा नोट

करन िायक ह इस अनयता र साराती जरीदार और करमकााडी िाहमणवाद का बिाक ह जबदक कतिबरि

दकतषट क आसपास एक lsquoसायि रोचrsquo की कलपना की गयी ह धयान रखना चाकतहए दक भारतद क रकतडकि

वषणव इस lsquoसायि रोचrsquo क बाहर ह उनका lsquoएबसटकतनजरrsquo वषणव होन क चित नही बकतलक रकतडकि या

23 वसधा दिकतरया कतहनद परमपराओ का राषटरीयकरण भारतद हररशचादर और उननीसवी सदी का बनारस अन साजीव करार योगनदर दतत पषठ-

४०-४२ राजकरि पपरबकस नई ददलिी- २०१६

24 वही पषठ- ४२

21

रहा रकतडकि होन क चित था कतनकतशचत रप स सवगम सासद का रपक ह और सवगम का राजा ईशवर

कतनषपरभावी हो गया ह और जनता सवया जनरत क िारा कतनणमय कतसथर करन पर जोर दती ह जनरत क

िारा lsquoसलफ गवनमरटrsquo का परयास सबस पहि वषणव भिो न दकया था और आज क कतिबरलस उसी को

आग बढ़ा रह ह ईशवर क पास दोनो दिो क िोगो न जब अपन अपन ररोररयि तयार कर भज तो ईशवर

न दोनो दिो क डपयटशन को बिाकर कहा ldquoबाबा अब तो तरिोगो की lsquoसलफगवनमरटrsquo ह अब कौन

हरको पछता ह जो कतजसकी जी र आता ह करता ह अब चाह वद कया सासकत का अकषर भी सवपन र भी न

दखा हो पर धरम कतवषय पर वाद करन िगत ह हर तो कवि अदाित या वयवहार या कतसतरयो क शपथ

खान को ही कतरिाय जात ह दकसी को हरारा डर ह कोई भी हरारा सचचा lsquoिायकrsquo ह भत परत ताकतजया

क इतना भी तो हरारा दजाम नही बचा हरको कया कार चाह बका ठ र कोई आवहर जानत ह चारो

िड़को (सनक आदद) न पहि स ही चाि कतबगाड़ दी ह कया हर अपन कतबचार जयकतवजय को दफर राकषस

बनवाव दक दकसी का रोकटोक कर चाह सगन रानो चाह कतनगमन चाह ित रानो चाह अित हर अब न

बोिग तर जानो सवगम जानrdquo

काजरवरटव दिभिो न दयानाद और कशवचादर सन पर कया कया आरोप िगाय यह दख िना

चाकतहए दयानाद को सवगम र सथान नही कतरिना चाकतहए कयोदक १ इसन पराणो की हनादा की २ ररतमपजा

की हनादा की ३ वदो का अथम उलटा-पलटा कर डािा ४ दस कतनयोग करन की कतवकतध कतनकािी ५ दवताओ

का अकतसततव कतरटाना चाहा (दवताओ याकतन जरीदार) ६ इसन धरम कतवपिव दकया और आयामवतम को धरम

बकतहरमख दकया पकतशचरोततर परानत क परकततकतनकतध क रप र lsquoकाशी क कतवशवनाथ जीrsquo न lsquoउदयपर क एकहिाग

जीrsquo पर दयानाद क सरथमन का आरोप िगाया कतवशवनाथ जी काजरवरटव दिो की तरफ स यह आरोप िगा

रह थ परब की अपकषा पकतशचरी इिाको र आयम सराज क परभाव की चचाम क सनदभम र एकहिाग जी का

जवाब धयान दन िायक ह कतवशवनाथ जी न जब एकहिाग जी को कतधककारत हए कतिबरिो क साथ कतरि जान

को कहा तब एकहिाग जी न कहा ldquoभाई हरारा रतिब तरिोग नही सरझ हर उसकी बरी बातो को न

रानत न उसका परचार करत कवि अपन यहाा क जागि की सफाई का कछ ददन उसको ठका ददया बीच

र वह रर गया अब उसका राि रता रठकान रखवा ददया तो उसका बरा दकयाrdquo यह एकहिाग जी

दफ़िहाि सवारी जी क दि क सभापकतत बन ह आकतखर इनहोन अपन यहाा क दकस lsquoजागिrsquo की सफाई का

ठका सवारी जी को ददया था यह जागि छोट-रोट धाररमक समपरदायो और रतो का जागि था एकहिागी

जी और काशी क कतवशवनाथ जी दोनो ही िाहमणीकत शवरत क धाररमक परतीक ह पर जहाा काशी क

कतवशवनाथ शर स ही दयानाद क कतवरोधी थ वही एकहिाग जी रणनीकततक रप स दयानाद क पास गए थ यह

साकीणम कटररपाथ क भीतर का कतववाद था यह बात गौर करन िायक ह दक जगननाथपरी र जब भरव की

22

रौजदगी का कतववाद भारतद क सारन आया था उस सरय उनहोन इस बात का परतयाखयान दकया था दक

भरव की परकततरा अनाददकाि स वहाा ह भारतद न पराण आदद स साकषय दकर यह परराकतणत दकया दक

कषण ही एकरातर उपासय ह तिवार जी न इस घटना का उलिख करत हए कतिखा ह दक ldquoदकसी वयकति न

lsquoतहकीकातपरीrsquo दकताब दकखकर बताया दक वहाा पहि भरो की पजा होती थी वषणवो न उसकी ररतम

उखाड़ फ की थी बाद र पाडो न जगननाथजी (कतवषण) क साथ भरो को दफर स परकततकतषठत दकया यह रारिा

काशी धरमसभा क सारन १८७० र आया भारतद न धरम साबाधी पसतक र lsquoतहकीकातrsquo जस फारसी शबद

की आिोचना करत हए कतवकतभनन धरमगराथो स परराण जटाकर दो बातो पर जोर ददया एक इसका परराण

नही कतरिता ह दक वहाा जगननाथजी क साथ पहि भरो की भी ररतम थी कतजस वषणवो न उखाड़ फ का दो

अगर वह थी भी तो यह उकतचत था या नही- इसपर कतवचार होना चाकतहए भारतद न अपनी वयवसथा दत

हए कतिखा दक भरो कतवषण स बहत छोटा दवता ह इसकतिए यह कतवषण क साथ बठाया नही जा सकता

lsquoदसर भरव कापाकतिको क दवता ह उनका पजन वषणव-सरातम सबको कतनकतषदध हrsquo गौरतिब ह दक भारत

र कतवकतभनन सथानीय धरो क परकतत कतजतन असकतहषण और फा डारटकतिसट आयमसराजी थ उतन ही काशी क

सनातनी भी थrdquo25

सथानीय धरम-रतो क जागि को साफ़ करन र आयमसराकतजयो और काशी क सनातनी पाडो क इस

गठजोड़ स भारतद भी वादकफ थ िदकन आयमसराकतजयो क साथ उदयपर क एकहिाग जी का रोचाम कसा

था इस भी भारतद बखबी सरझ रह थ सथानीय रतो क साथ भारतद का समबनध कसा था इसका पता

उनक छोट-छोट यातरा सासररणो स भी चिता ह lsquoसरय पार की यातराrsquo26 र रहदावि का हाि बयान करत

हए lsquoपराणनाथrsquo क रिहब का भारतद आशचयम क साथ उलिख करत ह भारतद क ही शबदो र ldquoयहाा एक

पराणनाथ का रिहब ह और दस बीस िोग उसक रानन वाि ह य िोग एकादशी तीथम वगरह को नही

रानत और सन सनाय दो तीन शलोक जो याद कर कतिए ह बस उसी पर चर हो lsquoरदीनासया शारदाा शताrsquo

और lsquoगोकतवनदrsquo lsquoगोकिानाद रककशवरrsquo यह शलोक पढ़ क कहत ह दक वद र रकका रदीन का वणमन ह ऐस ही

बहत वाकतहयात बात करत ह और कोई दकतना भी कह कछ सनत नही कहत ह दक गोिोक का नाश ह

और गोिोक ऊपर एक lsquoअखाड रणडिाकारrsquo िोक ह उसर रर कषण ह इनका रिहब एक पराणनाथ नारक

एक कषतरी न पनना र करीब तीन सौ बरस हए चिाया थाrdquo भारतद इस अजीबो गरीब lsquoरिहबrsquo का कषण स

कया साबाध ह यह सोचकर ताजजब र थ इस lsquoरिहबrsquo क गरनथ र भारतद न एक शलोक बलिभाचायम का

दखा तो उनका राथा और घर गया ldquoकि रिहब का हाि हरन नीच कतिखा था उसका अचछी तरह स

25 वीरभारततिवार रससाकशी १९वी सदी का नवजागरण और पकतशचरोततर परानत पषठ- १५२ सारााश परकाशन ददलिी- २००६

26 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन पषठ- १३७-३८

23

हाि दरयाफत दकया तो रािर हआ दक हरार ही रिहब की शाखा ह इनक गराथो र हरन एक शलोक शरी

रहापरभजी की सबोकतधनी की काररका का दखा इसी स हरको सादह हआ दफर हरन बहत खोद खाद कर

पछा तो वह साफ़ रािर हआ दक इसी रत स यह रत कतनकिा ह कयोदक एक बात वह और बोि दक हरारा

रत शरी बलिभाचारज की टीका र कतिखा ह इन िोगो क उपासय शरीकषण ह और एकादशी शािगरार

ररतमपजा तीथम दकसी को नही रानत इनक पकतहि आचायम दवचाद जी थ जो जाकतत क कायथ थ और दसर

पराणनाथ जी जो कचछ क कषतरी (भारटया) थ हरार ही रत की शाखा सही पर कतवकतचतर रत ह वषणव होकर

ररतमपजा का खाडन करन वाि यही िोग सनrdquo वणमन स सपषट ह दक सात और कतनगमण पाथो क साथ वषणव

कतवचारधारा क आदान-परदान का साकतशलषट इकततहास भारतद क कतिए ताजजब की चीज थी पर इन सबक बीच

आकतखर उनहोन इसक वषणव रि का पता िगा कतिया और वषणवता की इस धाररमक कतवचारधारा र उनहोन

ररतमपजा का कतवरोधी होना भी शाकतरि रान कतिया भारतद न ररतमपजा क सरथमन र बड़ बड़ िख कतिख

थ इसकतिए असाभव नही दक कषण क परकतत परररिक भकति क कतिए ररतम की जररत पर उनहोन कछ पछा

जरर होगा िदकन lsquoकोई दकतना भी कछ कह सनत ही नहीrdquo आग चिकर lsquoवषणवता और भारतवषमrsquo र

वह बड़ कतवशवास क साथ घोकतषत करत ह दक ldquoपहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद कतजतन पाथ ह सब

वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और भारतवषम इन पाथो स छाया हआ हrdquo27 तब वह वषणवता और

िोकरतो और रधयकािीन पाथो क भीतर पहि स सदकय एक ऐकततहाकतसक परदकया का सारानयीकरण कर

उसका नार lsquoवषणवrsquo रख रह थ अकारण नही दक उसी िख र वषणव वयापकता को बतान क कतिए

परचकतित lsquoनारोrsquo का साकषय पश दकया गया ह वयकतियो स िकर वरत और उपवासो तक यह परभतवशािी

सारानय बोध की कतवचारधारा थी कतिवदी जी रधयकािीन वषणवता को िोकधरम कहत थ भारतद

उननीसवी सदी क िोकधरो को वषणव कहत ह

काजरवरटव दिो की तरफ स कशवचादर सन पर िगाय गए आरोप थ १ वद पराण सबको कतरटा

डािा २ दकसतान रसिरान सबको कतहनद बनाया ३ खान पीन का कतवचार कछ न बाकी रखा ४ रदय की

तो नदी बहा दी आयम सराकतजयो क ऊपर रखयतः आरोप lsquoआयामवतम को धरम बकतहरमखrsquo करन का ह धरम

बकतहरमख अथामत सनातन धरम स कतवरख उनहोन कवि धरम क भीतर कतवपिव दकया परनत िहमो सराज न तो

lsquoभारतवषम का सतयानाशrsquo कर डािा इनहोन तो पराणो क अिावा वदो को भी कतरटा डािा lsquoआयामवतमrsquo की

जातीय पकतवतरता नषट करक दकसतान रसिरान जस lsquoकतवदशी ततवोrsquo को घर र घसा कतिया कटररपाथी

करमकााकतडयो क कतिए इनक साथ रणनीकततक तौर पर भी रोचाम बनान वािा कोई एकहिाग जी तयार नही

था सनातकतनयो िारा दकया गया यह बारीक भद खद कतिबरि दिभिो क भीतर का भी अातरवमरोध था

27 भारतद वषणवता और भारतवषम वही पषठ-७६

24

कतिबरिो की सभा र भी दो दि हो गए थ एक सवारीजी क सरथमको का दि था और एक कशव

क सरथमको का कतहनद कतिबरिो की आताररक एकता कतिकतवभाकतजत थी दयानाद क सरथमको क अनसार सवारी

जी न कतहनदओ की आतरा को जगाया था उनह सफतम बनाया वरना तो आयामवतम क आिसी और रखम

रोहकतनदरा र ही कतनरगन थ इस तरह रखम और आिसी सारानयजनो को lsquoिाहमणो क फा द स छड़ायाrsquo िाहमणो

की तिना भारतद न lsquoपादररयोrsquo स की ह जो lsquoवयथम परजा का दरवय खान वाि हrsquo आयम सराज न सासथाकत

परोकतहतवाद पर हरिा दकया था जो भारतद क कतिए रितः जनता क पसो पर पिन वािा परजीवी वगम

िगता था और तो और आधकतनक कतवजञान क आग जो lsquoआयोrsquo की नाक कटी जा रही थी उस भी सवारी जी

न बचा कतिया उनहोन वदो र भी रि तार करटी कचहरी आदद ददखाकर कतहनदओ र आतरसमरान पदा

दकया दसरी ओर कशव क सरथमको का कहना था दक ldquoधनय कशव तर साकषात दसर कशव हो तरन बाग

दश की रनषय नदी क उस वग को जो कशचन सरदर र कतरि जान को उचछकतित हो रहा था जञान करम का

कतनरादर करक पररशवर का कतनरमि भकति रागम परचकतित दकयाrdquo lsquoजञान करम का कतनरादरrsquo करक भी lsquoकतनरमि

भकति रागमrsquo का जो परवतमन कशव न दकया उसस ही ईसाई lsquoअनयताrsquo का साथमक परकततरोध साभव हआ lsquoरनषय

नदी का आवगrsquo भावावग ह इसी बात को दसर शबदो र कह तो भाव जगत क सवाभाकतवक वग को भगवत

भकति की शदध lsquoअनयताrsquo की ओर रोड़कर उस कतवदशी ईसाई lsquoअनयताrsquo क रागम पर जान स रोक ददया इस

कायम क कतिए वद पराण समरत lsquoजञान-करमrsquo क रागो का कतनरादर अगर करना पड़ा तो भी वह उकतचत ही था

वषणव भकति क रधयकािीन सवरप की जो वयाखया आग चिकर की गयी उसक आराकतभक कतचनन हर यहाा

दख सकत ह कहना न होगा दक भारतद का अपना अनभव भी यहाा बोि रहा ह

शासतरीय काजरवरटव पाटी र दवताओ क अिावा यजञवलकय जस औपकतनषददक ऋकतष क साथ-साथ

नारायण भटर रघनाद भटराचायम राडन कतरशर जस कतनबाधकारो और टीकाकारो का जरघट भी था इसक साथ

साथ इसिारी सवगम स आय हए कटररपाथी कतशया िोगो का भी सरथमन उनह परापत था इस परकार कटररपाथ का

दवताओ (जरीदारो) िाहमणो (पादररयो) जञानरागी औपकतनषददक ऋकतष रधययगीन कतनबाधकारो और

कतवदशी कतशया िोगो का एक वकतशवक रोचाम बन रहा था दसरी ओर कतिबरि दि र चतनय परभकतत आचायम

दाद नानक कबीर परभकतत भि और जञानी िोग भी शाकतरि थ इसक अिावा काजरवरटव दि क

कतवदरोकतहयो को भी कतिबरिो न अपन यहाा जगह दी य कतवदरोही थ अितवादी (या नववदााती) भाषयकार

पाचदशीकार और कोई कतरसटर िडिा इन दोनो िोगो पर शर र का जरवरटव दि वािो न बहत हरि

दकय परनत अात र इनह कतिबरिो न अपन यहाा जगह द दी धयान रखना चाकतहए दक भारतद अपन सापरदाय

क अनरप अित वदाात या रायावाद क घोर आिोचक थ सन १८७३ र हररशचादर रगजीन क पहि ही अाक

र भारतद न शााकतडलय भकति सतरो का अनवाद lsquoभकति सतर वजयातीrsquo नार स परकाकतशत दकया भकतरका र

25

भारतद कतिखत ह ldquo दखो आज वसात पाचरी ह इसस बहत स िोग आर क रौर वा फिो क गचछ िकर

तरस कतरिन आवग तो र भी यह एक फिो की वजयाती रािा बना कर िाया हा अागीकार करो वजयाती

रािा बनान का यह हत ह दक वनरािा होगी तो होिी क खि र अरझगी और इसक कतसवाय इस वजयाती

स कतनशचय करक जञानाददक को जय करना ह पर पयार बहत साभि कर यह रािा पहरना टट न जाए

कयोदक सत कचचा ह और ककतियाा तािी और कोरि ह इस स कमहिान का भी भय ह जो हो इस वसात

पाचरी को तयोहारी रझ यही दो दक इस सतयानाशी lsquoअहरrsquo िहमवाद lsquo को पणमरप स नाश करक और भी

सब बातो र इस नव-वसात र भारतवषम की सब आपकतततयो का बस अात करो और अपन भिो क कतचतत र

नव पलिव दफर स िहिह करो जो सदा एक रस रहrdquo28 lsquoएकरसrsquo भकति क कतिए जररी ह दक जञानवाद

अहर िहमवाद को जड़ स उखाड़ फ का जाय कषण को अरपमत अपनी वजयाती रािा स भारतद जञानाददक

को जय करना चाहत ह एक ओर यह पकतषटरागी परापरा क lsquoवीर वषणवrsquo भारतद का परर कतनवदन ह दसरी

ओर lsquoनव-वसातrsquo र भारतवषम की सब आपकतततयो को नाश करन की सारथयम रपी lsquoउपहारीrsquo का साकलप भी

ह lsquoभारतद भारतवषम की सब आपकतततयोrsquo को दर करन की राह र एक बड़ी बाधा अित क जञानवाद को

रानत ह भकति का lsquoएकरसrsquo पहि भी इसक परभाव स ररझाता रहा ह भारतद का साकलप सापरदाय क

परान कतवरोधो क बावजद बन रहन वाि इस अितवाद का पणम सफाया करन का ह जबतक यह न कतरटगा

परररिा भकति क lsquoकमहिान का भयrsquo बना रहगा भकति सतरो र उपासना कााड को परर कतसकतदध का हत

बताया गया था पर भारतद दख रह थ दक उपासना कााड का परचार कतवरि हो गया ह इसी परचार क

कतनकतरतत उनहोन इन सतरो का भाषा र अथम परचार दकया था १८७३ र ही हररशचादर रगजीन का एक

समपादकीय कतनकिा कतजसका शीषमक था- lsquoभकति जञानाददक स कयो बड़ी हrsquo इस िख र भी उपासना रागम

की रहतता का परकततपादन दकया गया ह तकम और जञान को करम की शकतदध और उपासन की परर कतसकतदध क

रासत र कवि एक चरण बताया गया ह वसधा डािकतरया न भारतद क आराकतभक साापरदाकतयक परचार

परसार क कायो र कतनगमकतनयो को बाहर रखन का उपकर नोट दकया था29 यहाा कतनगमकतनए कबीर आदद lsquoभि

और जञानीrsquo कतिबरिो क सरथमक ददखाए गए ह वषणव भकति क राषटरीय चररतर र य बाहर नही थ उनकी

एकता का आधार उनक lsquoकतिबरि रिrsquo र ह सावमजकतनक उचच भाव का सापादन और भकति इन दोनो क साथ

अित वदााती या जञानाददक- सनातनी परापरा क कतवदरोकतहयो की जगह भी कतिबरि दि पाकतथयो र थी

कतिबरि वाि ही झगड़ क कतनपटार की अजी पररशवर को दन गए थ पर पररशवर अपनी

परतीकातरक हो गयी कतसथकतत स खजिाय हए थ यह सवोचच अदाित थी पर साथ ही साथ शकतिहीन

28 भारतद गराथाविी खाड- ५ पषठ ११३

29 वसधा डािकतरया पषठ ३४२

26

राषटराधयकष की कलपना भी कतजस कतहनद सवगम क य राषटराधयकष ह वहाा दकसी दकसर की सलफ गवनमरट चनन

की परणािी आ जान स ईशवर की एकाकतधकारी शकतियाा कतछन गयी ह िोग जनरत कतनरामण क िारा सही

और गित की पहचान करन िग थ इसकतिए थोड़ा खजिाय तो रहत ही होग lsquoअब कौन हरको पछता

ह तर जानो सवगम जानrsquo परनत साकट गहरा था यदयकतप कतिबरि िोगो की सभा भी धरधार स जर

रही थी पर काजरवरटव दि पाकतथयो की सरकार र पठ थी दवता सब भी उनक साथ थ इसकतिए पररशवर

क पास जररी नयाय का परशन उठाया गया था नयाय दक इन दो रहापरषो को सवगम र जगह कतरिनी

चाकतहए या नही सराज र इनक नकततक उचच आदशो क अवरलयन का परचार काजरवरटव कर रह ह इस

परचार क कारण जनता अपनी निरो स पहचानन र सकषर नही ह ऐसी कतसथकतत सवगम र पहि नही आई

थी नई कतसथकततयो क नए रानदाड कया होग िाकतहर ह नयाय और नकततकता को एक वकतशवक सवीककतत

चाकतहए इसकतिए पररशवर न इस कतवषय पर कतवचार क कतिए जो ककतरटी चनी वह गौर करन िायक ह इस

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo र ldquoराजा राररोहन राय वयास दव टोडररि कबीर परभकतत कतभनन-कतभनन रत क िोग चन

गए रसिरानी- सवगम स क lsquoइरारrsquo दकसतानी स िथर जनी स पारसनाथ बौदधो स नागाजमन और

अफीका स कतसटोवायो क बाप कोrdquo चना गया कतहनद सवगम स नवजागरण क अगरदत वयासदव जस

बौकतदधकिखक टोडररि जस राजनीकततजञ और धरम-ररमजञ कबीर जस जञानी-भि पराचीनो र कवि वयास

दव ह बाकी दो lsquoरधयकािrsquo क और एक lsquoआधकतनकrsquo काि क वयकति ह उधर यरोपीय नवजागरणधरमसधार

क परणता िथर को भी बिाया गया ह और बौदधो की तरफ स परर कतनषधवादी नागाजमन भी ह पर य

अफीका क कतसटोवायो धरो की अकतसरता क साथ-साथ यह अफ़ीकी सवगम कतनकतशचत रप स अफीका की छकतव

पराचीन आददवासी सासककतत वाि एक lsquoकािrsquo रहादश क रप र गढ़ी गयी थी यह अफ़ीकी सवगम साभवतः

आददवासी धाररमक रानयताओ की ओर इशारा करता ह यह भी धयान दन िायक ह दक राजा राररोहन

राय िथर और कबीर इन तीनो क साथ lsquoनवजागरणrsquo की कोई न कोई पररकलपना ठठ सरकािीन कतवरशो

क क दर र भी ह कई अथो र अकबर िारा आयोकतजत होन वािी lsquoसिह-ए-किrsquo जसी धरम सभाओ की एक

रोहक कलपना भी भारतद को रही होगी टोडररि की उपकतसथकतत अकारण नही ह

अकबर को िकर भारतद की इकततहासदकतषट कसी थी इसकी एक झिक हर १८८४ र छपी उनकी

lsquoबादशाह दपमणrsquo की भकतरका र ददखती ह इस गरनथ र उन िोगो का चररतर-कतचतरण दकया गया था ldquoकतजनहोन

हरिोगो को गिार बनाना आरमभ दकया इसर उन रसत हाकतथयो क छोट-छोट कतचतर ह कतजनहोन भारत क

िहिहात हए करिवन को उजाड़कर-पर स कचिकर कतछनन-कतभनन कर ददया रहमरद रहरद अिाउददीन

अकबर और औरागजब आदद इनर रखय ह पयार भोि कतहनद भाइयो अकबर का नार सनकर आपिोग

चौदकए रत यह ऐसा बकतदधरान शतर था दक उसक बकतदधबि स आजतक आपिोग उसको कतरतर सरझत ह

27

दकनत वह ऐसा ही नही उसकी नीकतत अागरजो की भााकतत गढ़ थी रखम औरागजब उसको सरझा नही नही तो

आज ददन हहादसतान रसिरान होता कतहनद-रसिरान र खाना-पीना बयाह-शादी कभी चि गयी होती

अागरजो को जो बात नही सझी वह इसको सझी थीrdquo30 कतनकतशचत रप lsquoबकतदधरानrsquo दशरन स सीखन को बहत

कछ कतरिता ह अकबर की दीन-ए-इिाही क परयोग स भारतद भी बहत कछ सीख रह थ रधयकािीन

इकततहास क बार र रकतसिर शतर की छकतव का कतनरामण पराचयकतवदयाकतवदो क िारा दकया जा रहा था इकतियट

आदद इकततहासकारो न जो दकतषट कतवककतसत की उसका परभाव बहत गहरा था पर इस इकततहासिखन क साथ

साथ भारतद क कछ दशी सरोत भी थ अिग-अिग रहापरषो की चररताविी कतिखन की पररणा भारतद न

कतजतना अपनी वषणव भकति की परापरा स पाया था उतना ही इसिारी इकततहास िखन की परापरा स भी

lsquoबादशाहदपमणrsquo की भकतरका र भारतद कतिखत ह ldquoरर पररातारह राय कतगरधरिाि साहब जो यवनी कतवदया

क बड़ भारी पाकतडत और काशीसथ ददलिी क शाहजादो क रखय दीवान थ उनकी इचछा स ददलिी क परकतसदध

कतविान सययद अहरद न एक ऐसा चक बनाया था कतजसर तरर स िकर शाह आिार तक सब बादशाहो क

नार आदद कतिख थ उस फारसी गरनथ स बहत सी बात इसर िी गयी ह इस कारण तरर पवम क बादशाहो

का वणमन इतना परा नही ह कतजतना तरर क पीछ ह दफर रर रातारह राय कतखरोधरिाि न बहादर शाह

क काि क आरमभ तक शष वतत सागरह दकयाrdquo31

अरणदव जी अपन एक िख र भारतद क आराकतभक अकबर परर का कतिक दकया ह १८७२-७४ क

आसपास भारतद अकबर को रहान शासक रानत थ जबदक औरागजब को कतहनदओ का दशरन नाबर एक

भारतद न औरागजब की तिना र अकबर की रहानता को परराकतणत करन क कतिए रारदास कछवाह क एक

शलोक को अपना आधार बनाया ह इस शलोक का भावाथम भारतद क शबदो र इस परकार ह ldquoजो सरदर स रर

तक पथवी को पािता ह जो रतय स गउओ की रकषा करता ह कतजसन तीथम और वयापार स कर छड़ा ददए

कतजसन पराण सन जो सयम का नार जपता जो योग धारण करता ह और गागाजि छोड़कर पानी नही

पीता उस जिािददीन की जय अाग वाग कहिाग कतसिहट कततपरा कारत (कारटी) काररप अाध कणामटक

िाट दरकतवड़ रहाराषटर िारका चोि पााडया भोट रारवाड़ उड़ीसा रलि खरासान का दहार जमब काशी ढाका

बिख बदखशाा और काबि को जो शासन करता ह ककतियग की रकतहरा स घटत हए वद गउ कतिज और

धरम की रकषा को सगन शरीर कतजसन धारण दकया ह उस अपररय परष अकबर शाह को हर नरसकार करत

हrdquo32 यही अकबर १८८४ र औरागजब स जयादा शाकततर और बकतदधरान शतर र बदि गया lsquoकािचकrsquo क

कतनकतहताथो र यह फरबदि भारतद पर रकतसिर कतवदशीपन और कतहनद शतरता क समपणम बिॉक बनान की

30 बादशाह दपमण भारतद गराथाविी खाड-६

31 वही

32 httpsamalochanblogspotin201209blog-post_9html

28

रणनीकतत क दबाव क कारण था और lsquoपरावकततrsquo की कतरथकीयता र भी कतहनदओ को lsquoरहारोहनासतरrsquo क सहार

पहि भी वश र दकया गया था यह एक बारीक चाि थी अकबर की इस चाि को अागरज भी नही सरझ

पा रह थ भारतद की यह परकततदकया औपकतनवकतशक इकततहासिखन क दबाव र थी १८७३ र जब भारतद

न कतशवपरसाद की दकताब lsquoइकततहासकततकतररनाशकrsquo क तीसर खाड की आिोचना की थी तो उनक सारन

रकतसिर शासन की बबमरता और अागरजी राज क सशासन का कतशवपरसाद िारा ककतलपत आखयान था १८८४

र समपणम रकतसिर काि अनधकार यग र बदि गया कततकतररनाशक क पहि खाड र बाब कतशवपरसाद न भी

अकबर की रजहबी उदारता और साराकतजक सधारो की बड़ाई की थी इस परकार हर दख सकत ह दक

ऐकततहाकतसक िखन र पकष और कतवपकष की पनरावकततत एक बाद घर र उिझी हई थी इनक सारन रकतसिर

कतवरोध और अागरजी शासन क कतवरोध का एक कतवसागत फर था और िखक उसर अपनी फौरी जररतो क

कतहसाब स कतरतर और दशरन वािा इकततहास कतिखता था इकततहास ठठ राजनीकततक ततकाि क वशीभत था

जो भी हो धाररमक उदारता और सिह-ए-कि का परयोग एक कतशकषापरद परयोग था यह कतवकतभनन

रतो या कतवशवासो क बीच lsquoजनरतrsquo बनान का एक रधयकािीन परयोग था भारतद lsquoजनरतrsquo क परयोग को

इस तरह दखत थ रानो यह lsquoचािrsquo अगर कारयाब हो जाती तो lsquoआज क ददन हहादसतान रसिरान होताrsquo

भारतद क सारन सरसया वही थी बस वह कवि यह चाहत थ दक कतहनदसतान lsquoकतहनदrsquo हो जाय कतहनद

अथामत वषणव हो जाय वषणवता भारतद क कतिए हहादसतान का नया lsquoसिह-ए-किrsquo था इसकतिए कछ

सावमजनीन रलयो की तिाश उनह भी थी कतसिकट ककतरटी क उपरोि रमबर lsquoएकसअफीकतशयोrsquo रमबर थ

रोर क परान हररकिस जस दवता कतजनहोन धरती स साबाध तोड़ ददया ह व िोग तथा उनही क जस

पारकतसयो क lsquoजरदशतजीrsquo को कोरसपोहडाग ऑनररी रमबर बनाया गया य धरम क रप र रतपराय रतो क

परकततकतनकतध थ ककतरटी न जो ररपोटम तयार की उसका ररम भारतद न ददया ह यह ररम उनक रकतडकि वषणव

पकष का रत था कतिबरि दि और काजरवरटव दि क अपन पकषो स इतर यह नरनायक तीसरा पकष वषणवो

की तरफ स सनाया गया था रकतडकि वषणवो की तरफ स भारतद इस धाररमक आनदोिन क भीतर अपना

ही पकष रखत हए इसका ररम कतिख रह थ ldquoहरिोगो की समरकतत र इन दोनो परषो न परभ की रागिरयी

सकतषट का कछ कतवघन नही दकया वराच उसर सख और सातकतत अकतधक हो इसी र पररशरर दकयाrdquo कतहनद सराज

सधार क परयासो का ररम बतात हए सबस पहि धयान सतरी सधारो पर ददया गया ह साराकतजक करीकततयो

की कतशकार रकतहिाओ क परकतत जो दकतषट उभरकर सारन आती ह उसक रि र धरम की रीकतत स यौन

रयामदाओ की अवयवसथा को दफर स रयामददत करन की चषटा ह कतसतरयो क करागम पर जान का पहिा कारण

ह रनराना परष धरमपवमक न पाना यह कतववाह सासथा की कतवककततयो की आिोचना थी जहाा बाि कतववाह

कतवधवा कतववाह आदद की तरफ इशारा ह धयान रखना चाकतहए दक यहाा बरि कतववाह क बदि कतसतरयो िारा

29

lsquoरनराना वरrsquo न चन पान का उलिख ह गभमनाश और बाि हतया क कतखिाफ सधार परयास दसरा

रहतवपणम योगदान ह कतववाह सासथा बीच र भी भाग की जा सकती ह इसकी सवीककतत ह कनया क कतहत र

अातरजातीय कतववाह की सवीककतत ह एक रहतवपणम बात गरओ और पाकतडतो क वयाकतभचार क साबाध र ह

भारतद क सारन पकतषटरागी रहातो और गरओ क वयाकतभचार का अनभव भी इसर शाकतरि ह

१८७४ र ककतववचन सधा र भारतद की एक रटपणणी छपी थी lsquoगर को कसा होना चाकतहएrsquo इसक अिावा

दो वषम पहि lsquoगर और रहातrsquo नार स भी एक रटपणणी कतिखकर वषणव पाडो-परोकतहतो की खिकर

आिोचना की गयी थी तिवार जी न कतिखा ह दक राददरो क भीतर कतसतरयो का यौन शोषण और वयाकतभचार

इतना भीषण था दक दयानाद भारतद क पकतषट सापरदाय को lsquoकषठी सापरदायrsquo कहत थ १८६० क आरमभ र ही

वषणव गोसाइयो क अनाचार और यौन शोषण क कतखिाफ बमबई र एक बड़ा आनदोिन पकतषटरागी

करसनदास रि जी क नततव र हो चका था वषणव बकतनया पषठभकतर स आय करसनदास जी उन नौजवानो

र थ कतजनहोन एकतिफ सटन कॉिज स आधकतनक कतशकषा परापत की थी गोसाइयो और रहाराजो िारा अपन

lsquoसमपरदाय की बह बरटयोrsquo क साथ होन वाि अतयाचार क कतखिाफ उनहोन िख कतिख और समपरदाय क

इकततहास को नए कतसर स सारन रखा पण स आए जदनाथ वजरतन जी रहाराज न करसनदास जी पर

रानहाकतन का रकदरा दायर कर ददया इसी रक़दर स वषणव रहातो की कई सारी बात जनता क सारन

परतयकष हई तिवार जी न इस lsquoरहाराज िाइबि कसrsquo को भारतीय नवजागरण र वषणव गोसाइयो क

दराचार और यौन शोषण क कतखिाफ हआ सबस बड़ा आनदोिन कहा ह भारतद पर इसका बहत परभाव

था यह कस १८६० र हआ था एक दशक बाद जब भारतद सापरदाय क कायो र रत थ उसी सरय कतिख

रह थ ldquoराददर कया होत ह रानो कतसतरयो की खान ह जसी चाकतहए िीकतजय- वराच अचछी सतरी भी वहाा जाकर

कतबगड़ जाती ह आशचयम यह ह दक कतजनको व िोग बटी कहत ह और जो उनक परिोक क रधयसथ ह और

कतजनको वो दीकषा दत ह उन कतसतरयो की ओर व आप ही बरी दकतषट स दखत ह ओर रर पयार कतहनदओ तर

इनक जाि र कब तक फा स रहोग और कया तरको यही सासार स बचावग और इनही क भरोस तरको

भगवान कतरिगाrdquo33

राददरो क धन-ऐशवयम और वयाकतभचार र डब जीवन क जीवात कतचतर हर बनारस क रखाकतचतर lsquoपरर

जोकतगनीrsquo क अिावा lsquoकाशी क छायाकतचतर क दो बर-भि फोटोगराफrsquo र भी कतरित ह यहाा भारतद का वयागय

अपन वषणव सापरदाय की आतरािोचना स सदकय ह lsquoपरर योकतगनीrsquo नाटक र आन वािा चररतर रारचादर

खद भारतद ही थ नाटक का सतरधार कहता ह दक भारतवषम की दीन हीन गकतत क कारण उसका तो

कतवशवास ही ईशवर स उठन िगा ह नाटक क पहि ही दशय र भारतद हर राददर क भीतर कतिए चित ह

33 वसधा डािकतरया िारा उदधत पषठ- ३३७

30

जहाा राददर र कार करन वािा साधारण टहिआ झपरटया हर ददखाई दता ह पजारी बाब अभी तक नीद

स नही जाग ह कयोदक आधी रात तक lsquoबठ क ही-ही-ठी-ठी करा चाह दफर सबर नीद कस खिrsquo कतनकतशचत

रप स यह टहिआ सबह सवर ही राददर र हाकतिर ह िदकन दवता अभी राददर र सोय ह रारचादर

परदशी ह काशी र बाहर स आय ह छकक जी और राखनदास इस रारचादर की आिोचना करत ह इनक

सावादो स पता चिता ह दक बाब रारचादर क यहाा ददन रात नाच गाना हआ करता ह और उनको अपनी

कतवदया का घराड ह दो चार ककतवतत भी बना ित ह पर lsquoककतवतत बनाव स का होव और ककतवतत बनावन कछ

अपन िोगन का कार थोर हय ई भााटन का कार हयrsquo छकक जी कहत ह दक अपन रागम का उनह कछ जञान

तो ह नही बस दो चार बात इधर उधर स सनकर कछ lsquoदकसतानी रतrsquo सीखकर पाकतडत बन दफरत ह

कतनकतशचत रप स य भारतद पर िगन वाि आरोप थ राददर र सवारी धनदास वकतनतादा बभकतकषत पाकतडत

आदद धरम क ठकदार ह इनकी पतनशीि सासककतत को दखकर रारचादर का दःख इन शबदो र वयि होता ह

lsquoहा कया इस नगर की यही दशा रहगी जहाा क िोग ऐस रखम ह वहाा आग दकस बात की वकतदध की

साभावना करrsquo lsquoवददकी हहासा हहासा न भवकततrsquo जस शरआती नाटको र भी करमकााडी परोकतहतवाद की

आिोचना की गयी ह राजा और परोकतहत कतरिकर वहाा जनता का शोषण करत ह जआ रददरा और

रथन की ऐययाश सासककतत क परतीक परोकतहतो का काजरवरटव दि इन परहसनो र रतम होता ह कतचतरगपत यर

स कहत ह ldquoरहाराज य गर िोग इनक चररतर का कछ न पकतछए कवि दमभाथम इनका कततिक रदरा और

ठगन क अथम इनकी पजा कभी भकति स ररतम को दाडवत न दकया होगा पर राददर र जो कतसतरयाा आयी उनको

सवमदा तकत रह रहाराज इनहोन अनको को कताथम दकया ह और इस सरय तो र lsquoशरीरारचनदर जी का

शरीकषण का दास हाrsquo पर जब सतरी सारन आव तो उसस कहग lsquoर रार तर जानकी र कषण तर गोपीrsquo और

कतसतरयाा भी ऐसी रखम दक दफर इन िोगो क पास जाती हrdquo34

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo की ररपोटम र सतरी सधारो क कायो की रहतता बतान क बाद जाकतत वयवसथा पर

इन सधारको का परहार कयो जररी था इस बताया गया ह कठोर जाकतत बनधनो क चित कस हर साि

जाकतत-बाहय होकर जाकतत र वापस आन क दकसी उपाय को न जान lsquoहजारो रनषय आयम पाकति स हर साि

छटत थ उसको इनहोन रोकाrsquo इस परकार इन सधारको न lsquoआयमधरमrsquo क भीतर जो पररवतमन करन चाह

उसस आयो की एकता दफर स बहाि हो गयी इसक अिावा अाधकतवशवासो को इनहोन दर दकया यही नही

बकतलक जहाा िोग lsquoरसिरानी पीर पगमबर औकतिया वीर ताकतजया गाजी कतरयाा कतजनहोन बड़ी ररतम तोड़कर

और तीथम पाटकर आयम धरम कतवधवास दकयाrsquo उनको भी पजन िग थ और lsquoकतवशवास तो रानो कतछनाि का अाग

हो रहा थाrsquo ऐसी िजजाजनक कतसथकतत स िोगो को बाहर कतनकािकर lsquoसार आयामवतम को शदध lsquoिायिrsquo कर

34 दख रारकतविास शराम पषठ १३१

31

ददयाrsquo lsquoिायिrsquo कर ददया गया इसका अथम आयम जाकतत को दफर स िायि करन र था आयम जाकतत क भीतर

कतबगाड़ क चित ही कतनमन जाकततयो का बड़ परान पर पिायन था इस इन िोगो न रोका और इनक परताप

स ही अनक छोट और सथानीय धरम-रतो क भीतर जो lsquoरसिरानीrsquo परभाव घस आय थ उनको दफर स lsquoबड़ी

ररतमrsquo की कतनषठा र िाया जा सका इस परकार कतहनद धरम और वणामशरर क परकतत दफर स िोगो को lsquoिायिrsquo

दकया यह lsquoिायकतिटीrsquo भारतद की रकतडकि वषणवता क जनरत क कतिए भी जररी था तिवार जी जब

आयमसराकतजयो की lsquoकााकततकारीrsquo भकतरका ददखात ह तब आयम सराज िारा आयामवतम को िायि बनान वािी

इस भकतरका की साकतशलषटता पर जयादा बात नही करत भारतद दयानाद क कााकततकारी परयासो र lsquoिायिrsquo

बनान की परदकया उसी वक़त दख रह थ और इसी कारण ररपोटम र दयानाद की आिोचना धयान दन िायक

ह सवारी जी न ldquoजाि को छरी स न काटकर दसर जाि ही स कतजसको काटना चाहा इसी स दोनो आपस

र उिझ गए और इसका पररणार गह कतवचछद उतपनन हआrdquo गह कतवचछद का रतिब कतहनद धरम र गह

कतवचछद जबदक कशवचादर सन क बार र कहा गया दक उनहोन जाि काटकर भकति की उचछकतित िहरो का

पररषकत पथ परकट दकया इस परकार रकतडकि वषणवता की lsquoअनयताrsquo और परररिक भकति क परशसत पथ क

सवीकार का कतनषकषम कतवचार सभा का भी कतनषकषम था धयान दन िायक ह दक कशवचादर की आिोचना उनक

कतचतत कतवकषप क कारण की गयी थी जहाा lsquoईसारसीह आदद उनस कतरित हrsquo य एक दकसर का इिहारी

अनभव था कतजस भारतद अपनी वषणवता स बाहर रखत ह ईशवर न इस ररपोटम पर अपना रत सरकतकषत

रख कतिया और भारतद कतिखत ह ldquoइसको दख कर इस पर कया आजञा हई और व िोग कहाा भज गए यह

जब कर भी वहाा जायग और दफर िौट कर आ सक ग तो पाठक िोगो को बतिावग या आप िोग कछ

ददन पीछ आप ही जानोगrdquo

३ जनरत और वषणवता

ककतववचन सधा ९ राचम १८७२ र भारतद न lsquoPublic Opinion In Indiarsquo नार स अागरजी र

एक िख परकाकतशत दकया िख र उनहोन कहा दक कई सददयो दक दासता क बाद भारतवषमहहादसतान अब

जाकर कतिरटश राषटर क सवोचच कतनयातरण र आया ह दश धीर-धीर सभयता और परबोधन की पकतशचरी दकरणो

क सहार दरन और कशासन क रतय-तलय कतनदरा स जाग रहा ह कतिरटश शासन की परगकततशीि नीकततयो का

परभाव यहाा की बहरपी आबादी पर पड़ रहा ह

ldquoBut in this progressive state national energy and zeal sympathy and

disintiredness are waiting to make both the conqueror and the conquered to act in

32

concert and in harmony and hence we have the broad distinction of white and

black still But in this country many are the blemishes that adhere to us to be

eradicated and many are the shortcomings that are hovering around us to be done

away with before we can have a public opinion here in its true senserdquo35

गोर और काि क बड़ भद को छोड़ कर कतवजता अागरजो और भारतीयो क बीच एक सराजन तो बन गया ह

पर अनदरनी ददककत अभी भी राह बाए खड़ी ह रौका ह दक इस परगकततशीि कतसथकतत का फायदा उठा कर हर

एक सचच जनरत का कतनरामण कर सचच िोकरत क कतनरामण र अादरनी बाधाएा कया थी भारतद न इस

आग सपषट करत हए कतिखा-

ldquoRace antagonism rivalry and mutual misunderstanding are the favourite

occupations of the aristocratic class Want of confidence among all classes of men

are the prevailing characteristic of the nation and above all multifarious castes and

creeds with there numerous forms of religion and local habits and customs which all

combined have kept the progressive policy at a stand still True it is that a

representative Government is a boon to this country and true it is that Sir Bartle

fregravere a man of vast experience and a good statesman has found out that in village

community we can have public opinion but with all his experience he has lost sight

of our national defects ndash defects which we ourselves know and which no foreigner

can catch at a glancerdquo36

भारतद इस बात को िकर कतनकतशचत ह दक िोकरत और परकततकतनकतधरिक सासथाओ क बहतर कतवकास क कतिए

सीध-सीध कतवदशी रॉडि कभी सफि नही हो पायगा ऐसा इसकतिए कयादक हरारी आपसी कतवकतभननताओ

और झगड़ो को कोई बाहरीकतवदशी सतता कभी भी परी तरह सरझ नही सकती lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo नार

35भारतद गराथाविी -6 361

36 वही

33

स भारतद का एक दसरा िख इस अागरजी वाि िख क दो साि बाद अपरि सन १८७४ र हररशचनदर

रगजीन र छपा पकतबिक ओकतपकतनयन कया बिा ह इस साफ़ करत हए भारतद िख क आरमभ र ही कहत

ह ldquoपकतबिक ओकतपकतनयन अथामत सब साधारण िोगो की राय कया वसत ह और इसर दकतना जोर ह और

इसक कतिए कया हो सकता ह यह परशन ठहरा तो इसका साधारण उततर यही ह दक यह वह वसत ह जो

सासार को एक कर सकती ह गागा की धरा दफर कतहरािय पर चढ़ा ि जा सकती ह सययम को पकतशचर उगा

सकती ह और चाह तो ईशवर को भी पकड़ क कठपतिी की भााकतत नचा सकती हrdquo37 यह पकतबिक

ओकतपकतनयन lsquoएक रतrsquo होना ह जस अिग अिग चार पतिी िककतड़यो को एक साथ बााध दन स उस

तोड़ना करठन हो जाता ह उसी तरह एक रत होन स बड़ स बड़ा बरी भी हरारा कछ कतबगाड़ नही सकता

बहत स िोगो का रत एक हो तो वह शकति बन जाती ह हिारो आदरी की बकतदध एक हो जाए तो ldquoऐसा

कौन कार ह जो न हो सक तो यह कतसदधाात हआ दक कतनशचय सब िोगो क रत र बड़ी सारथयम ह इसस यह

कतसदध हआ दक बिो स बड़ा बि एक रत ही हrdquo38

आग भारतद कहत ह दक यह जनरत और उसकी शकति हहादसतान क कतिए कोई नई बात नही ह

पराचीन काि र इसक उदाहरण कतरित ह lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo की इस धारणा को भारतद न इकततहास क

अिग-अिग दौर र बनत और कतबगड़त ददखाया सबस पहि चार वणो की िररत पड़ी सब कार को

सचार रप स चिन क कतिए दसर शबदो र कह तो शरर-कतवभाजन की िररत स इसका जनर हआ

lsquoकतहनदओ न अपन गर क कार र इस वणामशरर धमरम को इसी वासत बनाया कतजस र उन क दकसी कार र

कोई हजम न हो और उनिोगो न सासार क सब कारो र चार कार रखय सरझrsquo धरम कतवदया और किाओ का

कार िड़ाई और राजय परबाध का कार वयापार और धन और सब िोगो की सवा और रजदरी इन चार

कारो की सवयवसथा वािा वणामशरर दरअसि lsquoएक रतrsquo कतहनद वयवसथा या lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo थी पर

कािाातर र इस lsquoएकरतrsquo क भीतर जाकततवयवसथा कठोर हो गयी और िाहमण और शदर दोनो एक दसर क

कतखिाफ हो गए एकरत र कतवचछद पदा होन स कतहनद शकति करिोर हो गयी भारतद क अनसार आपस

का यह झगड़ा बड़ा कतवनाशकारी साकतबत हआ पकतबिक ओकतपकतनयन क कतबना वयाकतभचार और जयादकततयो का

अाधर था आग चि कर जनो क जरान र दफर lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo न जोर पकड़ा बकतलक भारतद जोर

दकर कहत ह दक जनो क रत की उततपकततत ही lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo स हई ldquoकतहनदओ क जब नाश क ददन

जब कतनकट आय तो आपस र परसपर बड़ा कतवरोध खड़ा हआ और उस काि र िाहमणो का बड़ा जोर था

वरन य और वणो पर जयादती करत थ तो वशय और कषकततरयो की रकतत इनस दफर गयी और बाब वािी बड़ी

37गराथाविी- 678

38वही

34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

36

कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

37

उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

38

ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 3: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

3

राषटरीय एकता की भावना का सवाि जातीयता क ऐकततहाकतसक कतवकास की परदकया स भी जड़ा हआ

था रारकतविास जी न १८५७ क भीतर कसी lsquoराषटरीय चतनाrsquo बन रही थी इसकी भावना क कतिए जिाई

१८५७ क अवध क एक इशतहार का कतिक दकया ह इशतहार र कतसपाकतहयो स अपीि की गयी ह दक ददलिी

और िखनऊ को बचान क कतिए जररी ह दक परब की ओर िगातार बढ़त रहा जाय और दफराकतगयो का

पीछा किकतत तक दकया जाना चाकतहए रारकतविास जी उदधत करत ह ldquoऐसा करन स ददलिी और

िखनऊ की रकषा हो सकगी यदद कतसपाही परब को नही जात तो नतीजा अचछा न होगाrdquo5 इशतहार र

कहा गया दक कतहनद और रसिरान दोनो को साथ-साथ कतरिकर इस lsquoनािायक कौरrsquo पर हरिा करना

चाकतहए रारकतविास जी कहत ह दक इस तरह यहाा हहादसतान कवि सीकतरत अथो र हहादी भाषा परदश ही

न था बकतलक वयापक अथो र वह सारा दश था सार दश की भावना सन १८५८ र बगर हजरत रहि

िारा जारी घोषणापतर र भी ह

हहादी जाकतत की अवधारणा और नवजागरण की अवधारणा रारकतविास जी क यहाा एक दसर स

जड़ी ह वयापाररक पाजी (कतजस रारकतविास जी वयापाररक पाजीवाद कहत ह) क कतवकास क साथ जाकतत का

कतवकास होता ह इस वयापाररक पाजी का जनर सारातवाद क गभम स होता ह और सबस पहि वयापाररक

पाजी कतवकतनरय स साबाधो र कतवककतसत होती ह रारकतविास जी बारहवी-तरहवी शताबदी क आसपास

कतवकतनरय और उतपादन क साबाधो र होन वाि पररवतमनो को नोट करत ह पररवतमनो क क दर र वह परदकया

थी जहाा उतपादन पशगी धन िकर होना शर होता ह lsquoददनी परथाrsquo का कतिक करत हए उनहोन ददखाया दक

कस वयापारी अपन राि क कतिए पहि स पशगी की एक रकर दकर रजदरो की शररशकति पर कतनयातरण

सथाकतपत करता ह lsquoकतबकी योगय रािrsquo क उतपादन की इस परदकया र पाजीवाद क आगारी कतवकास क बीज

कतनकतहत ह इसी परदकया क साथ जाकतत कतनरामण की परदकया भी बाजारो क साथ शर हो जाती ह औदयोकतगक

कााकतत क बाद इस परदकया र जो सबस रहतवपणम पररवतमन होता ह वह ह औदयोकतगक सवमहारा क रप र नए

वगम का उदय रनजर पााडय की आिोचना करत हए रारकतविास जी कतिखत ह ldquoवयापाररक पाजीवाद क

यग र जाकतत का कतनरामण होता ह औदयोकतगक पाजीवाद क यग र यह जाकतत कायर रहती ह दोनो यगो की

जाकतत र बहत बड़ा अातर यह ह दक दसर यग र औदयोकतगक सवमहारा रौजद ह पहि क यग र उसका

अभाव ह वयापाररक पाजीवाद क यग र रखय अातरवमरोध दकसानो-कारीगरो तथा जरीदारो र होता ह

औदयोकतगक पाजीवाद क यग र सवमहारा और उदयोगपकततयो रrdquo6 रारकतविास जी न १९वी सदी क भारतद

यग को बारहवी- तरहवी सदी सदी र हए िोकजागरण की परापरा र ही दखा ह पााडय जी की आिोचना

5 रारकतविास शराम पषठ- १४

6 वही पषठ १५

4

करत हए उनहोन कतिखा दक उननीसवी सदी का भारत औदयोकतगक कााकतत स काफी दर था और अगर उननीसवी

सदी को आधकतनक काि की शरआत रान कतिया जाएगा तो रानना पड़गा दक भारतद क साकतहतय र

पाजीपकतत वगम और औदयोकतगक सवमहारा क साघषम का कोई न कोई कतचतरण जरर कतरिना चाकतहए और अगर

ऐसा नही कतरिता ह तो यह रानना पड़गा दक lsquoआधकतनक काि की शरआत तो हो गयी पर साकतहतय र

आधकतनकता का अकाि बना रहाrsquo जबदक पाजीवादी कतवकास की जो परदकया बारहवी- तरहवी सदी र

सारातवाद क गभम स कतवककतसत हई थी उननीसवी शताबदी र वही चिी आ रही ह- अागरजो का काि उसको

अवरदध करता ह पर वह रक नही सकती इसकतिए परकतत कााकततकारी शकति क रप र उपकतनवशवाद क भीतर

स चिी आती परापरा र ही भारतद यग नवजागरण की तरह ह बीच का यग lsquoकतवसरकततयोrsquo का यग नही

था वरन शकति सातिन र जागरण की शकतियाा ससपत पड़ी थी १८५७ र वह साराकतजक- राजनीकततक

जीवन र दफर स िोकशकति क रप र उठ खड़ी हई इस परकार lsquoहहादी जाकततrsquo का ही रानो lsquoनवजागरणrsquo

हआ ह यह lsquoहहादी जाकततrsquo कतवकतशषट होकर भी राषटर की सापणम पररकलपना ह कतजसका पता उस इशतहार स भी

चिता ह जहाा lsquoसार दशrsquo को साबोकतधत दकया गया था

साकतहतय र यह जागरण िोक बोकतियो स अपनी ऊजाम गरहण करता ह िोक बोकतियो स कतवककतसत

हहादी जातीयता १८५७ र उपकतनवश कतवरोधी चतना क साथ कतरिकर नवजागरण का रप गरहण करती ह

इसकतिए यह हहादी नवजागरण भी ह इस पररकलपना र पाजीवादी कतवकास की पररणकतत क बीज बारहवी-

तरहवी सदी र ही पड़ गए थ अब सामराजयवाद- सारातवाद कतवरोध का राषटरीय चररतर पाजीवाद को पणम

कतवककतसत करन र ह तब जाकर सवमहारा की चतना का उदय होगा साकतहतय क भीतर भारतद यग न उसी

परदकया क नए अधयाय की शरआत की थी अागरजी राज को भारतद न lsquoपगमबर चसाrsquo की तरह दखा था

इसी पगमबर चसा क कतखिाफ दशी वयापाररयो को दशी पाजीपकतत बनान का उदयोग करना चाकतहए यही

सवदशी का ररम था इन नए दशी पाजीपकततयो क कतवकास क कतिए कशि कारगारो की जररत थी और

इसकतिए जररी था दक कतशलप कतवदयािय का कतनरामण कतशकषा नीकतत र शाकतरि दकया जाय अागरज परसती का

जो सवर भारतद क यहाा ददखाई दता ह उसको रारकतविास जी न lsquoगौण अातरवमरोधrsquo राना ह इसी तरह

सामपरदाकतयकता आदद क परशन गौण अातरवमरोध ह वह इन गौण अातरवमरोधो की वसतरतता को परकट करत हए

कहत ह ldquoभारतद हररशचादर न और उनक सरकािीन िखको न कई जगह अागरजो की और अागरजी राज की

परशासा की ह इस सनदभम र याद रखना चाकतहए दक १ रानी कतवकटोररया क घोषणापतर स कछ िोगो क

रान र वासतकतवक भरर पदा हआ था दक दश की दशा सधार जाएगी २ राजभकति का परदशमन अकतधकतर

शाही खानदान क िोगो क परकतत होता था और उनस अागरज अकतधकाररयो को अिगाया जाता था ३

राजभकति की आड़ र जनता की बदहािी पर धयान ककतनदरत दकया जाता था और अागरज ऐसी राजभकति को

5

शक की कतनगाह स दखत थ आदद आददrdquo7 इसी तरह lsquoहहादी नई चाि र ढिीrsquo कहकर भारतद भाषा क

बदि दरअसि साकतहतय क नयपन को ददखा रह थ और साकतहतय का यह नयापन रखय अातरवमरोधो को परकट

करन र ह िोकसाकतहतय और रौकतखक साकतहतय र १८५७ की ओजकतसवता चिी आई थी और भारतद यग क

साकतहतय र जो ऊजाम जो चरक जो नयापन था वह उसी िोक और रौकतखक साकतहतय स पररणा पाती थी

यह सारा साकतहतय चादक अागरजी काननो स बाहर था इसकतिए भारतद यग को यह सहज ही उपिबध था

यह सारा साकतहतय कतवचारधारातरक रप स सदीघम उपकतनवशवादी िट की सरकतत और १८५७ र झिक उठन

वािी उपकतनवश-कतवरोधी lsquoजातीयता की सरकततrsquo दोनो को अपन भीतर कतिए थी भारतनदयगीन साकतहतय

रणनीकततक रप स कछ ऐसी चीज करता था कतजसस वह अागरजी कोप और कानन स बचा भी रह और

जातीय चतना को एक आनदोिनकारी रप भी द सक रारकतविास जी रनजर पााडय की इसी बात की

आिोचना करत ह दक वह गौण कतवरोधो को जयादा रहततव दत ह परगकततशीि आनदोिन क आताररक

अातरवमरोधो को असवीकार तो रारकतविास जी न भी नही दकया पर इसक चित होन वािी गिकततयो की

तरफ उनहोन इशारा जरर दकया था

भकति और रीकतत काि को दो आताररक परवकतततयो क रप र न दखकर जब दो कतभनन कािखाड रान

कतिया जाता ह तब इकततहास-दकतषट का एक भरारक रप खड़ा होता ह भकतिकाि र भकति रखय धारा थी और

रीकतत गौण और रीकतत काि र रीकतत रखय धारा बन गयी और भकति गौण इस परकार दखन पर पता चिता

ह दक िोकजागरण की परगकततशीि धारा ख़तर नही हो गयी थी या अवरदध नही हो गयी थी बकतलक गौण

धारा क रप र चिी आ रही थी रनजर पााडय क अनसार बारहवी सदी स आरमभ होन वािा वयापाररक

पाजी का कतवकास सफि नही हआ और साराती वयवसथा जस की तस बनी रह गयी सराज की साराती

अकतधरचना और उसका आधार दोनो करजोर जरर हए पर बन रह उनक अनसार ldquoभकति आादोिन

साराती सराज र कतवककतसत सौदागरी पाजीवाद और जातीय कतनरामण क फिसवरप उतपनन साराकतजक साबाधो

की साासककततक अकतभवयकति ह रीकततकाि का साकतहतय सारात कतवरोधी साराकतजक साबाध (साबाधो) और

साासककततक चतना क अवरदध होन का पररणार तथा परराण हrdquo8 रारकतविास जी इस अवरदध होन क तकम

को सवीकार नही करत उनक अनसार यह शकति सातिन सौदागरी पाजीपकतत और जरीदारो क बीच का

शकति सातिन था ऐसा नही था दक पाजीवाद का कतवकास अवरदध और कतनषफि हो गया था भकति स रीकतत

र साासककततक जागरण का पयमवकतसत होना एक lsquoछोटी टरजडीrsquo ह अथामत गौण अातरवमरोध ह जबदक अागरजी

राज की सथापना lsquoबड़ी टरजडीrsquo ह इसकतिए सवाभाकतवक जातीय पाजीवाद या भारतीय पाजीवाद की गकतत

7 वही पषठ- १९

8 वही उदधत पषठ ३१

6

अवरदध होती ह अागरजी राज र रारकतविास जी पााडय जी पर आरोप िगात ह दक उननीसवी सदी र

औदयोकतगक कााकतत स शर होन वािी आधकतनकता एक ऐसी कलपना ह जो इस lsquoबड़ी टरजडीrsquo को भि जाती ह

जबदक बड़ी टरजडी रखय अातरवमरोध क कारण बनती ह

रारकतविास जी न एागलस क हवाि स ददखान की कोकतशश की ह दक पाजीवादी शासन की नीव

डािन वािो को पाजीवाद की सीराओ क अनदर ही दखना एक बड़ी भि ह पनजामगरण क नताओ और

उनक परकततभाशािी वयकतितव र पाजीवाद की सीरा और उसका अकततरक भी था इस बात का जो िोग

धयान नही रखत उनक यहाा आधार और अकतधरचना या वगम और साकतहतय की यााकततरक सरझ होती ह

भारतद आदद साकतहतयकारो क इस अकततरक को कतचकतननत करन क कर र ही रारकतविास जी lsquoरखय

अातरवमरोधrsquo क परकततकतबमब को सारन रखत ह पाजीवादी सीराओ र नही बाध होन का रतिब एागलस क

कतिए रजदर वगम की परापरा क पवम पकष स ह जहाा एागलस पनजामगरण क कतवशवजनीन रलयो और पराककततक

कतवजञानो क कााकततकारी रहततव को रखाादकत करत ह lsquoपरककतत की िािातरकताrsquo र एागलस न यााकततरक

भौकततकवाद की आिोचना की ह और ददखाया ह दक अठारहवी सदी र फाासीसी यााकततरक भौकततकवाददयो न

भौकततकवाद क नार स कतजस कतवचारधारा का परचार दकया उसका िािातरक भौकततकवाद स कतवरोध ह9

रजदर वगम की कतवचारधारा का पनजामगरण स साबाध एागलस उननीसवी शताबदी क आकतखरी दशको र ददखा

रह थ उनहोन ददखाया दक जरमन शासतरीय दशमन र जो कछ रहान था उन सबका सीधा वाररस जरमन

पाजीपकतत वगम नही बकतलक जरमन रजदर वगम था इसी तरह राकसम न पाजी-१ की भकतरका र जरमन रजदर

वगम को जरमन बजमआ हचातको और कतवचारको स जयादा ऊननत कतवचारधारातरक चतना स िस बताया ह

राकसम न १८४८ स १८५२ की कााकततयो और परकततकााकततयो क कतवशलषण क बाद १८५७ क कतवदरोह को भी

lsquoभारतीय सवाधीनता आादोिनrsquo की तरह कतवशलकतषत दकया था इन कतवशलषणो र बाद तक राकसम थोड़ा थोड़ा

पररवतमन करत रह थ परनत कतनकतशचत रप स औपकतनवकतशक पाजी क कतवसतार और यरोपीय कााकततयो क

आपसी ररशतो को वह दकसी यरो ककतनदरत दकतषट स नही दख रह थ राकसम क सारन रखय सवाि पाजी क

वकतशवक चररतर और उसक कतखिाफ कतवदरोह की कतवकतशषटता को पहचानन का था राकसम दख रह थ दक इागिणड

र रजदर वगम क आनदोिन क कतिए या यरोप र रजदर वगम क आनदोिन क कतिए उपकतनवशो क भीतर होन

वाि कतवदरोह की साभावनाओ का कया रहततव था १८४८ की रहािीपीय कााकतत की इागिणड र होन वािी

परकततदकया को राकसम इन शबदो र सारन रखत ह- ldquoजो िोग अभी भी कछ वजञाकतनक सरझ का दावा करत

थ और शासक वगो क रातर सोदफसस या साइकोफनस स कछ जयादा होन की इचछा रखत थ उन िोगो

न सवमहारा क दाव क साथ कतजसकी अनदखी अब साभव नही थी पाजी क राजनीकततक अथमशासतर क सरनवय

9 कतवसतत चचाम क कतिए दख अधयाय तीन

7

की कोकतशश की इस परकार एक कतछछिा सरनवयवाद सारन आया कतजसक सबस बड़ परकततकतनकतध जॉन सटअटम

कतरि ह यह lsquoबजमआrsquo अथमशासतर क ददवाकतियपन की घोषणा हrdquo10 यह बात पाजी की भकतरका र राकसम

१८७३ र कतिख रह ह जरमनी क बार र कतिखत हए वह कहत ह दक वहाा पाजीवादी उतपादन पदधकतत क

पररपकव होन क पहि ही उसका शतरतापणम चररतर (एाटागोकतनकतसटक) अपन को परकट कर चका था यह साभव

हआ था फ़ाानस और इागिड र होन वाि ऐकततहाकतसक साघषो क कारण11 इस तरह जरमनी र बजमआ

अथमशासतर कवि बरी नकि क रप र ही कतवककतसत हो पाया कयोदक जरमन सवमहारा क पास बजमआ अथमशासतर

की सीराओ की आिोचना उपिबध थी ऐस ही सरय बजमआ अथमशासतर क रहनरा दो सरहो र बाट गए

एक तरफ यााकततरक और भौड़ा अथमशासतर बघारन वाि िोग थ दसरी ओर कतरि क अनयायी थ कतजनहोन

असराधय क बीच सागकतत कतबठानी चाही पर य सार परयास असफि होन को बाधय थ कयोदक उनकी

आिोचना पहि स ही वहाा परापत थी राकसम कतिखत ह ldquoइसकतिए जरमन सराज क कतवकतशषट ऐकततहाकतसक

कतवकास न दकसी lsquoबजमआrsquo अथमशासतर क कतवकास को बाहर रखा परनत उसकी आिोचना को बाहर नही

दकया जहाा तक इस तरह की आिोचना एक वगम का परकततकतनकतधतव करती ह यह कवि उसी वगम का

परकततकतनकतधतव कर सकती ह कतजसका ऐकततहाकतसक कायमभार पाजीवादी उतपादन पदधकतत को उखाड़ फ कना और

सभी वगो का अाकततर सफाया ह- याकतन सवमहाराrdquo12

भारतद यग क बजमआ अथमशासतर र जॉन सटअटम कतरि का दकतना परभाव था इस दहरान की जररत

नही lsquoआिोचनाrsquo क रप र सवमहारा वगम बजमआ अथमशासतर की असाभावयता ह यह lsquoआिोचनाrsquo जरमन

रजदर वगम को कतजतना अपन साघषो स परापत थी उतना ही फ़ाास और इागिणड क साघषो स भी भारतद की

आिोचना कतजस वगम का परकततकतनकतधतव करती ह वह रजदर वगम नही ह अागरजो की कतवजय और िट की सरकतत

क साथ पाजी की तथाककतथत आददर साचय की तरासद सरकतत भी ह तथाककतथत आददर साचय अगर रजदर

वगम की पररकतसथकतत ह तो यह सरकतत रितः रजदर वगम की तरासद सरकतत ह पर भारतद यग क साकतहतय को

या भारतद की रचनाओ र कतरिन वािी आिोचना दकतषट का जो पकष रारकतविास जी सारन रखना चाहत ह

वह उस तरासद सरकतत क साथ lsquoबजमआ अथमशासतरrsquo की सरनवयकारी आिोचना ह इसकतिए कह सकत ह दक

भारतद यग का १८५७ की lsquoआिोचनाrsquo क साथ साबाध सरनवयकारी ह भारतद क साकतहतय र कतरिन वािा

दकतचततापन इसी असराधय सराजन की कोकतशश क चित पदा हआ ह भारतद क साकतहतय र जहाा इस

सराजन का अकततरक ह वह उनका उजजवि पकष ह दसर शबदो र lsquoसवतव कतनज भारत गहrsquo या अकतसरता

कतनरामण या हहादी जातीयता का जहाा अकततरक ह भारतद का साकतहतय वही उजजवि ह lsquoअाधर नगरीrsquo क

10 कािम राकसम ककतपटि- वॉलयर १ अन बन फोकस पषठ ९८ पकतगवन बकस िादन- १९९०

11 वही

12 वही

8

रपक र हर इस तरह का एक अकततरक ददखाई दता ह जहाा lsquoअाधर नगरीrsquo राजय सतता हहासा और नयाय क

अकतनवायम साबाधो का रपक ह भारतद क परहसनो और वयागयो र जहाा कही इस असराधय सराजन का

खोखिापन उजागर होता ह भारतद का वतमरान अथम उनही र राना जाना चाकतहए

िोकजागरण की कतवचारधारा क रप र भकति रारकतविास जी क कतिए भी वषणवता क अनदर ही

पररभाकतषत थी अकारण नही दक भारतद को वह तिसी की परापरा का नवजागरण रानत थ भकति की

इस कतवचारधारा क कतखिाफ सातरत की कतवकतशषटताओ को वह निरअादाज करत ह अगर सातरत कारीगरो

और कतनमनवगीय जनता का साासककततक और इसकतिए राजनीकततक परयास था तो उस कवि भाषा या बोकतियो

स बनन वािी lsquoजातीय चतनाrsquo र कतनसशष नही दकया जा सकता कबीर आदद सातो क िोकजागरण स

भारतद क नवजागरण का साबाध रारकतविास जी न नही ददखाया ह कबीर आदद क यहाा जो जयोकतत ददखाई

पड़ी थी उस वषणव भकति की कतवचारधारा क बड़ परवाह र सरझन स यह ददककत पदा होती ह रखय

अातरवमरोध क भीतर जो शतरतापणम कषण ह उस दकतषट स ओझि करन का कार ही परभतवशािी कतवचारधारा

करती ह रारकतविास जी पाजी क अातरवमरोधी चररतर को तो दखत ह िदकन यह नही दख पात दक

अातरवमरोधो स ही वह गकततशीि ह राकसम न इनही अथो र पाजी को lsquoगकततशीि अातरवमरोधrsquo कहा था

परभतवशािी कतवचारधारा भी अपन भीतर क अातरवमरोधो स ही आग बढ़ती ह भकति और रीकतत या कतनगमण

या सगण ऐस ही अातरवमरोध ह भारतद यग भी अपन अातरवमरोधी चररतर स ही बन रहा था उपकतनवशवाद

का कतवरोध भी उपकतनवशवादी कतवकास का ही कतहससा था सारातवाद स पाजीवाद र साकरण कवि

सारातवाद कतवरोध क रप र ही नही कतवककतसत होता बकतलक वहाा पाजीवाद क अकततकरण की साभावना भी

अनतरनमकतहत होती ह जो बाद र पाजी क कतवकास क दौरान पाजी क साराकतजक साबाधो र बदि जाता ह

थॉरस रनतसिर क नततव र हए कषक कतवदरोह र एागलस न या रधयकािीन कतवधरी आनदोिनो र कतसतरयो

की भकतरका ददखान क कर र कतसकतलवया फददरची न इस अकततकरण को और पनः पाजी क साराकतजक साबाधो

र रपाातरण की परदकया को ददखान की कोकतशश की ह13 पाजीवाद की काकतनतकारी भकतरका पर जोर दन स

उसकी परकततकााकततकारी भकतरका आाखो स ओझि हो जाती ह lsquoइकततहास जसा था वसा पान कीrsquo कोकतशश की

यह अकतनवायम सीरा ह अागरजी राज की िट पाजी की िट थी भारतीय आतर या हहादी जाकतत का

आतरकतबमबअाततः इस िट को कतछपान वािी और उस भिान वािी रोहक कलपना थी कही १८५७ स

भारतद यग का साबाध ददखाना भी एक रोहक कलपना ही तो नही ह

13 दख फडररक एागलस द पीजट वॉर इन जरमनी परोगरस पकतबिशसम रासको- १९७७ और कतसकतलवया फददरची ककतिबन एाड द कतवच फोकतनर

बकस ददलिी- २०१३

9

नारवर जी न नवजागरण को ररनसाास क बदि परबोधन या एनिाइटनरट की तरह दखन की बात

कही थी और कहा था दक इस नवजागरण का १८५७ स कोई भी साबाध कतशषट साकतहतय र नही ददखाई

पड़ता रारकतविास जी क िख क दो साि बाद lsquoआिोचनाrsquo र नारवर जी न lsquoहहादी नवजागरण की

सरसयाएाrsquo नार स एक िख कतिखा उपरोि दो चीज नारवर जी न उसी िख र कही ह उननीसवी सदी क

भारतीय नवजागरण को ररनसाास कहन र कई ददककत ह यरोप र कतजस lsquoररनसाासrsquo lsquoररफारशनrsquo या

lsquoकतचनकवचतोrsquo आदद कहा जाता ह वह पादरहवी शताबदी का नवजागरण था पादरहवी शताबदी र भारत भी

भकति आनदोिन क रप र एक जागरण स गजर रहा था इसकतिए नारवर जी कहत ह दक अगर उननीसवी

सदी क नवजागरण को ररनसाास कहग तब पादरहवी शताबदी क भकति आनदोिन को कौन सा जागरण

कहग रारकतविास जी इसीकतिए एक को िोकजागरण और दसर को नवजागरण कहत ह नारवर जी

कतिखत ह ldquoउननीसवी शताबदी क भारतीय नवजागरण को lsquoररनसाासrsquo कहन र एक करठनाई तो यह ह दक

इस यग क भारतीय कतवचारको और साकतहतयकारो क पररणासरोत यरोप क पादरहवी शताबदी क कतचनतक और

साकतहतयकार न थ बकतलक इसक कतवपरीत पररणासरोत क रप र अकतधकााश कतवचारक उस काि क थ कतजस

यरोप र lsquoएनिाइटनरटrsquo का काि तथा उसक बाद का काि कहा जाता ह सवया बादकर की सहानभकतत

रसो और परधो क साथ थी और व कोत जॉन सटअटम कतरि तथा हबमटम सपसर स परभाकतवत ददखाई पड़त

हrdquo 14 इस परकार यह lsquoनवजागरणrsquo lsquoपरबोधनrsquo की चतना क तलय ह और इसकतिए इसकी अातवमसत

lsquoिोकजागरणrsquo स कतभनन ह यदयकतप एक र दसर की चतना lsquoअाशतः कतवदयरानrsquo ह पर नवजागरण

िोकजागरण का पनरतथान रातर नही ह नवजागरण का नततव करन वाि रधयवगीय थ िोक क बीच स

नही आन क चित उनका सारानय िोक जीवन स एक दराव था और कतवचारो र िोकोनरख होकर भी

वयवहार र उनका िोक क साथ कोई तादातमय नही था नवजागरण का परभाव शहरो तक सीकतरत था और

इसकतिए िोकजागरण की तिना र इसका परसार भी सीकतरत था नारवरजी इस नवजागरण को रखयतः

साासककततक आनदोिन क रप र दखन की कतहरायत करत ह पर सवाि यह ह दक इस साासककततक आनदोिन

की राजनीकतत कया थी

भारतद क शबदो र नारवर जी भारतीय नवजागरण की रि सरसया lsquoसवतवrsquo या lsquoअकतसरताrsquo की

सरसया बतात ह धयान रखन वािी बात ह दक परबोधन या एनिाइटनरट की एक रि सरसया अकतसरता

की सरसया ह lsquoपरबोधन की िािातरकताrsquo नारक अपनी दकताब र एडोनो और हाखमइरर न ददखाया ह दक

कस परबोधन या जञान की शकति न यथाथम को कतरथ बनाया और कतरथको को यथाथम दकया एक पणय-वसत क

रप र जञान का उतपादन और पनरतपादन उननीसवी सदी की कतवशषता ह खासतौर स पवी कतवदया की रााग

14 नारवर हसाह हहादी का गदयपवम (सा) आशीष कततरपाठी पषठ-८६ राजकरि परकाशन नई ददलिी- २०१०

10

बािार र बहत थी जञान का कतवकतनरय एक बड़ बािार र हो रहा था और जञान की सारचना और उसकी

सापणमता एक फरटसाइजड कतवशवदकतषट बनाती थी कतभननता ह इसकतिए कतवकतनरय ह हर चीज जो कतवकतनरय र

शाकतरि ह रनषय की दकसी न दकसी जररत को परा करती ह य जररत य इचछाएा कवि पट स पदा नही

होती बकतलक कलपनाओ स भी पदा होती ह परबोधन की िािातरक परदकया क भीतर कतवजञान और धरम दोनो

न रनषय क कलपनाजगत की इचछाओ को भी परा करन वािा बािार बनाया कतभननताओ की

वासतकतवकताओ को छपान क कतिए या दसर शबदो र कह तो जञान की वासतकतवक जररत को छपान क कतिए

जञान का एक भरर खड़ा दकया जाता ह ठीक वस ही जस बजमआ अथमशासतर पाजीवाद की अतारकमकता को

ढाकन और दबान की परदकया र ही बना था पराककततक कतवजञानो क भीतर स कतनकिन वािी दो तरह की

कतवचारधाराओ की रााग बहत थी एक अटठारहवी सदी र िोककतपरय lsquoयााकततरक भौकततकवादrsquo की कतवचारधारा

और दसरी जीवकतवजञान स आन वािा कतवकासवाद का कतसदधाात राजनीकततक अथमशासतर क कतिए भारत र जॉन

सटअटम कतरि आदद िखको क बजमआ अथमशासतर का नया बािार था तकम की सावमभौकतरकता को उसकी

वासतकतवक जररत स काटकर lsquoअकतसरता कतनरामणrsquo स जोड़ ददया गया जो इकततहास कतरथ क अात का दावा

करता था वह सवया कतरथ गढ़न िगा यह सब साभव हआ उस कतवशाि जनसारानय क भय क सहार

कतजनहोन अपन ऊपर अपना कतनयातरण खो ददया था धरम इस भय क सहार कतवजञान की आिोचना करता था

और कतवजञान धरम की परबोधन-पवम की परापरा र जो आसथा या कतवशवास और जञान का अकतनवायम साबाध था

उसक सहार धरम आसथाकतवहीन जञान की आिोचना क िारा कतवशाि जनसारानय की रकति का कारोबार

करता ह

परबोधन की एक धारा आिोचनातरक जञान की धारा थी कतजसकी आिोचना राकसम न

lsquoआिोचनातरक आिोचना की आिोचनाrsquo कहकर की थी भारतीय नवजागरण क भीतर आिोचनातरक

जञान की धारा को नारवर जी न रहतवपणम राना ह यह ldquoआिोचनातरक दकतषट यरोप क lsquoपराचयकतवदयावादrsquo

(ओररएणटकतिजर) क इस उपकतनवशी रायापाश को कतछनन करन की चतावनी दती हrdquo15 यह उपकतनवशी

रायापाश पाजी का रायापाश भी ह जञान की पाजी का रायापाश कतजस हर पराचयकतवदयावाद का रायापाश

कह रह ह वह आिोचना-परतयािोचना की एक तथाककतथत िोकताकतनतरक परदकया र ही बन रहा था

इसकतिए इस आिोचना-परतयािोचना की परदकया की आिोचना क सनदभम र ही हर उस आिोचनातरक

धारा की चचाम कर सकत ह और कहना न होगा दक यह एक राजनीकततक करम भी ह नारवर जी न कहा दक

भारतीय नवजागरण र lsquoसवतव पराकतपतrsquo का साबाध राजनीकततक रकति स नही जोड़ा गया ह राजनीकततक

सवाधीनता अथामत lsquoराजसतता पिटन क कतवचार को अातगमहावास द ददया गयाrsquo इस तरह १८५७ या उसक

15 वही पषठ- ८७

11

पहि क दकसान कतवदरोहो क भीतर जो राजसतता पिटन का कतवचार था उस भारतीय नवजागरण न

अातगमहावास दन का कार दकया अतः भारतीय नवजागरण रखयतः साासककततक आिोचना ही थी

राजनीकततक आिोचना को गहावास दन वािी साासककततक आिोचना वह कतिखत ह ldquoसच तो यह ह दक

अकतधकााश िखक सरकषा सशासन कतशकषा उननकतत और शााकतत क कतिए कतिरटश राज क परकतत उपकत अनभव

करत ह- कतवशष रप स रगिो क शासन की तिना र इस परवकततत क अवशष बीसवी शताबदी क दसर

दशक तक रकतथिीशरण गपत की lsquoभारत भारतीrsquo जसी राषटरीय कही जान वािी कावय-ककतत र भी कतरिती ह

यहाा तक दक कभी-कभी तो नवजागरण क अनक उननायक राजसतता क साथ सहयोग करत भी ददखाई पड़त

ह अब इस कोई चाह तो नवजागरण क उननायको का रधयवगीय अथवा भदरिोक चररतर कह ि अथवा

दकसी सागरठत राजनीकततक परकततरोध क अभाव क िारा इस कतनरपायता की वयाखया कर ि दकनत हर हाित

र यह तथय कतवसरत न हो दक कि कतरिाकर था यह रितः नवजागरण ही- साासककततक नवजागरण कतजस

राषटरीय सवाधीनता साघषम का पवमराग भि कह ि दकनत उसका पयामय न सरझrdquo16 इसी साासककततक

नवजागरण स वह lsquoआतरकतबमबrsquo तयार हआ कतजसक कतबना राजनीकततक साघषम का वह रप कतवककतसत नही होता

जो आग चिकर वासतव र हआ अजञय की इस वयाखया स नारवर जी सहरत ह दक राजनीकततक-साराकतजक

आधारो की वासतकतवकता क बावजद भदरवगीय साासककततक आनदोिन न जो lsquoआतरकतबमबrsquo रचा वह

राजनीकततक सवतातरता साघषम र हकतथयार बन गया राजनीकततक सवतव पराकतपत की जो चतना इस पररणापरद

आतरकतबमब र अातगमहावास कर रही थी आग चिकर वही राजनीकततक सवतव पराकतपत र उभरकर कतनज

कतवककतसत होती गयी एक बार दफर lsquoइकततहास जसा था वसा पानrsquo की कोकतशश र इकततहासवाद की

कतवचारधारा सारन आ खड़ी होती ह इस इकततहासवाद की आिोचना गरामशी न भी की थी खासतौर पर

कोच क परर इकततहासवाद की आिोचना करत हए सवाि ह दक सासककततकरम की राजनीकतत कया ह

ददरागी गिारी स रकति का साघषम और राजनकततक रकति का साघषम कया इस तरह क अिगाव र रह सकता

ह और अगर अिगाव ह तो इस अिगाव को कस सरझ एक बार यह तय हो जान पर दक उनका वगम

कया था हर उसी क आिोक र उनक साासककततक परयासो की आिोचना करनी चाकतहए दसर शबदो र

उनक अपन वगीय अातरवमरोधो क आिोक र ही उसकी आिोचना साभव ह उपकतनवशवाद की रानकतसक

गिारी क कतखिाफ साघषम जञान की सतता क कतखिाफ साघषम ह और शायद इसकतिए नारवरजी कहत भी ह दक

यह साघषम राजनीकततक साघषम स lsquoकर करठन न थाrsquo यरोपीय जञान क बरकस भारतीय जञान को सथाकतपत

करन का साघषम ही यह साघषम था ldquoउपकतनवशवाद की छाया र भारतीय सासककतत क िोप का खतरा था

इसकतिए अपनी सासककतत की रकषा का परशन सवतव-रकषा का परशन बन गयाrdquo17 सतता पिटन क कतवचार को

16 वही पषठ ८८

17 वही

12

अातगमहावास दकर सवतव-पराकतपत सवतव-रकषा का परशन बन गया और यह सवतव कया था कतजसकी रकषा

साासककततक रोच पर नवजागरण क परसकताम कर रह थ- कलपना या यथाथम परबोधन न जञान का एक कतरथ

तयार दकया और चपक स कतरथको को जञान बना ददया इस नवजागरण की एक बड़ी दन एक परकतत-

इकततहास-दकतषट का कतवकास ह नारवर जी कतिखत ह ldquoनवजागरण की एक बहत बड़ी दन साभवतः वह

इकततहासदकतषट ह कतजसस अपन अतीत को शतर स रि करक उसक कतवरदध वतमरान र इसतराि करन की किा

आती ह और भकतवषय क कतिए सवपन दकतषट भी कतरिती हrdquo18 अगर वासतव र यह दकतषट नवजागरण की दन ह

तो रानना पड़गा दक यह फासीवाद की इकततहासदकतषट ह एक ऐस रकतसिर अतीत की कलपना जहाा रकतसिर

शतरओ स भारतीयता को रि करक वतमरान र उनक कतखिाफ इसतराि दकया जाता ह और इसस भकतवषय

की एक सवपन दकतषट भी भी कतरिती ह कहना न होगा दक परबोधन स कतनकिी यह इकततहासदकतषट अतारकम क

नही थी कयोदक यह साघषम की वासतकतवकता का सबस भरकतरत रप खड़ा करती ह फासीवाद इस अथम र वगम

साघषम का सबस कतरथकीय रप ह और अगर यह सही ह तो सवतव-रकषा र परापत इस इकततहासदकतषट को हर

परकततकााकतत की इकततहासदकतषट कह सकत ह भारतीयता का यह भरकतरत आतरकतबमब सवया को दो बनाकर ही

गकततशीि था यही इकततहासदकतषट आग चिकर lsquoकतवरदधो का साराजसयrsquo की इकततहासदकतषट क रप र इकततहास

का सबस भवय ढााचा खड़ा करती ह आतरकतबमब क इस कतवखाडन को िकषय करत हय नारवर जी न कतिखा

ldquoहरानी की बात ह दक हहादी परदश का नवजागरण धरम इकततहास भाषा सभी सतरो पर दो टकड़ हो गया

सवतव रकषा क परयास धरम तथा सापरदाय की जरीन स दकय गएrdquo19

आतरकतबमब का यह दो होना िखको क दो वगो र परकततहबाकतबत हआ नारवर जी क अनसार एक

वगम अागरजो का घोर कतवरोध करता ह पर धरम-सासककतत और साराकतजक परथाओ क बार र परापरावादी ह

दसरा वगम अागरजी राज क परकतत नरर रख अपनाता ह पर अनय रारिो र या तो रिगारी ह या दफर

सधारवादी िखको का पहिा वगम भारतीय होन का दावा करता ह जबदक नररपाथी िखक पकतशचरोनरख

ह हहादी नवजागरण क नता जयादातर परापरावादी ह जहाा अागरजी कतशकषा का परसार जयादा हआ वहाा

पकतशचरोनरख िखक जयादा थ दयानाद की अपकषा भारतद का झकाव कशवचादर सन जस पकतशचरोनरख

िखको या सधारको क परकतत था ऐसा साभवतः वषणव भावकता क चित था नारवर जी भारतद र परखर

बकतदधवाद का अभाव पात ह पर उनकी रराकतनयत को रानवतावाद की कतवचारधारा स जोड़त ह

नवजागरण क इस साकतशलषट कतचतर को सारन रखन की कोकतशश र नारवर जी एक ऐसी इकततहासदकतषट

कतवककतसत कर रह थ जो अतीत को उसक सापणम अातरवमरोधो र पान की कोकतशश करता ह अतीत को खिा

18 वही पषठ-८९

19 वही पषठ ९१

13

छोड़ दन वािी यह इकततहासदकतषट या एक सातकतित इकततहासदकतषट का यह परयास खाड खाड कतबमबो की एक ऐसी

गकततशीिता का भरर पदा करती ह जो इकततहासवाद की एक पररख कतवशषता रही ह इस पकष पर सवया

नारवर जी का धयान था और आग चिकर उनहोन नवजागरण क इस कतरथकीय चररतर को सवया ही

आिोकतचत दकया इस आिोचना र वह नवजागरण को परबोधन कहन क बदि lsquoअकतभजञान-कािrsquo कहना

जयादा उपयि रानत ह खद lsquoनवजागरणrsquo नार को अागरजो की कलपना बतात ह और उननीसवी सदी को

lsquoसरकतत-भराशrsquo का काि कहत ह यहाा १८५७ स िकर भारतद और कतववकानाद सब एक कतरथकीय चतना क

भीतर सराकतहत ददखत ह और कतजस भारतीय नवजागरण कहा जाता था उस कतवपरीत जागरण रानत ह

इसी कतवपरीत जागरण का नार उनहोन अकतभजञान ददया 20 डा वीरभारत तिवार न कवि कतहनदी

नवजागरण को भारतीय नवजागरण की परकततकााकततकारी धारा कहा था वही नारवर जी अब पर भारतीय

नवजागरण को ही कतवपरीत जागरण कह रह ह और बहत हद तक सही कह रह ह

डा तिवार न अपनी lsquoरससाकशीrsquo र lsquoहहादी नवजागरणrsquo को एक भरारक पद बताया था न तो

इसका साबाध १८५७ स था न रधयकािीन भकति आनदोिन स और न ही जनवादी राषटरवाद की दकसी

अवधारणा स उनक अनसार परबोधन क कतववकवाद तथा धरमसधार-सराज सधार की कतरिी जिी परदकया

क रप र कतवककतसत होत बागािी या रराठी नवजागरण या भारतीय नवजागरण की परकततगारी धारा क रप

र कतवककतसत होन वाि भारतद आदद क साासककततक आनदोिन को lsquoहहादी आनदोिनrsquo कहना ठीक ह कतशकतकषत

रधयवगम क भीतर दो परसपर कतवरोधी धाराओ की चचाम डा तिवार करत ह एक धारा कतववकवाद की

धारा थी दसरी सनातनी कतहनद धरम की धारा रहाराषटर और बागाि र अागरजी कतशकषा क परचार-परसार न कतजस

नए धरम और सराज सधार को गकतत परदान की वह अपकषाकत अकतधक परगकततशीि धारा थी पकतशचरोततर यि

परानत क पवी इिाक खासतौर पर बनारस इिाहाबाद और बहत हद तक पटना कानपर भागिपर आदद

शहरो र कतवककतसत नव-रधयवगम इस परगकततशीि धारा क साथ नही था इसका सबस बड़ा कारण अागरजी

कतशकषा का अभाव था यि परानत र कोई धारा परगकततशीि भकतरका अदा कर रही थी तो वह कवि दयानाद

सरसवती की आयमसराजी धारा थी इस आयमसराज का भी अपना जनाधार सनातनी पाकतडतो या िाहमणो क

यहाा नही बकतलक नौकरीपशा अागरजी कतशकषा परापत वह भदरवगम था जो अपन धरम और सासकारो क कतपछड़पन

को िकर गिाकतनबोध स भरा था इस वगम को अपनी पहचान आयम सराज र ददखती थी आयम सराज क

रिवाद र तथा उसक तारकम क सथिवाद र आधकतनक होन का रासता ददखता था िहमोसराज और

कतथयोसोदफकि सोसाइटी दो ऐसी सासथाएा और थी जो यि परानत र धरम और सराज सधार का परयास कर

रही थी परनत इसका परभाव बहत सीकतरत था आरतौर पर यिपराात र रहन वाि बागािी अपरवासी ही

20 दख नारवर हसाह उननीसवी सदी का भारतीय पनजामगरण यथाथम या कतरथक (अन) पाकज पराशर पकषधर अाक ११ जिाई २०११

14

इनक सदसय थ हहादी आनदोिन क नताओ न इन दोनो धाराओ की आिोचना की ह इनहोन दयानाद क

रिवाद की आिोचना अपनी परापरावादी करमकााडी दकतषट स की इनक अनसार उपकतनषद या पराण आदद

अगर अपराराकतणक भी ह तब भी चादक िोक र सवीकत ह इसकतिए उनह एकदर ख़ाररज करक कोई धरम या

सराजसधार नही हो सकता तिवार जी का कहना ह दक अपनी िचर दिीिो की आड़ र य िोग वसततः

सतरी कतशकषा कतवधवा कतववाह या आधकतनक जीवनशिी आदद की परगकततशीिता का कतवरोध कर रह थ यह

कतवरोध आरतौर पर सरदाय की रानयताओ को ही सारन रखकर दकया जाता था एक दकसर क

कतबरादरीवाद क भीतर स सरझौता करत चिन क कारण हहादी आनदोिन क नता अपन पाररवाररक या

वयकतिगत जीवन क उथिपथि स बचन की कोकतशश करत ह धरम इनक कतिए सधार का नही वरन

राजनीकततक हथका डा रातर था धरम की आड़ र य रकतसिर भदरवगम को अपना परकततयोगी साकतबत कर कतहनद

एकता की अपीि करत तादक इनह सरकारी नौकररयो र कछ कतवशषाकतधकार कतरि सक तिवार जी क

अनसार रकतसिर भदरवगम इन हहादी आनदोिन क परसकततामओ स कही जयादा परगकततशीि था उनक यहाा

आधकतनकता क परकतत जयादा खिी और कतववकसापनन दकतषट थी और उनहोन जोर दकर कहा दक हहादी आनदोिन

को सर सयद अहरद खाा जस दकसी सकषर कतववकवादी वयकतितव का नततव नही कतरि पाया हहादी

आनदोिन और नताओ क अातरवमरोधो को ददखात हए तिवार जी न भारतद की छकतव एक पतनशीि कतहनद

रोररटक की गढ़ी ह यहाा भारतद एक परकततनायक क रप र नजर आत ह

कतववकवादी इस धारा न राषटरीयता की जो धारणा गढ़ी वह रितः साापरदाकतयक थी अागरजी राज क

कतखिाफ अगर इनका साघषम सराज और धरम सधार को साथ-साथ रखन क बजाय उसर अिगाव करता ह

बकतलक उनक कतखिाफ जाकर सागरठत होन का परयास करता ह तो उसक सारन रकतसिर भय पदा करन क

अिावा और कोई रासता साभव नही था lsquoहहादी नागरी और गोरकषाrsquo आनदोिन इसकी सवभाकतवक पररणकतत

थी आग चिकर उननीसवी सदी क आकतखरी दशक र आकार गरहण करन वािी कतहनद राषटरवाद की यह

पषठभकतर ह इसक वग र दयानाद न भी साथ ददया कयोदक उनर भी पनरतथानवाद क बीज थ पवी परदशो

की अपकषा आयम सराज पाजाब र कही जयादा रकतडकि था आयम सराकतजयो की सदसयता की साखया पाजाब

क रकाबि यि परानत र जयादा थी पर वहाा कोई गणातरक पररवतमन साभव नही हआ और यह रहज

साखयाबि क रप र ही बना रहा इसका कारण उनहोन पाजाब की कतभनन नतततवशासतरीय अवकतसथकतत र

बताया ह पाजाब र िाहमणो का परभाव कर था कतजसका एक कारण रसिरानो क साथ िमबा सासगम और

कतसख धरम आदद का परभाव भी था इस तरह का कोई कतवशलषण पवी परदशो क बार र नही दकया गया जसा

दक बहत पहि रदमरशरारी की ररपोटम स ही हजारीपरसाद कतिवदी न दकया था अथामत रधययगीन कतसख

धरम क परभावो की तरह कबीरपाथी आदद सरदायो क परभाव और वषणवता क अातसबाधो की पड़ताि नही

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की गयी ह काशी क बनकरो की एक हड़ताि का कतिक रारकतविास जी बार बार करत ह जो १८३३ ई र

ही हई थी और इकततहासकार बिी क अनसार यह वक़त आरथमक साकट का भी वक़त था

भदरवगम का जो कतहससा हहादी आनदोिन क साथ था उस जाकतत वयवसथा की परानी रानयता को

बनाय रखन या उस रजबत करन की जररत कया कवि नौकररयो र कतवशषाकतधकार परापत करन क कतिए थी

या जाकतत वयवसथा रातर र आय एक रिगारी साराकतजक साकट का वह परकततदकयावादी रपाातरण ह शहरो

र आरथमक-वयापाररक गकततकतवकतधयो क कारण और आसपास क इिाको स परवासी रजदरो का आगरन तथा

बढ़ती वशयावकततत आदद क चित शहरी साराकतजक साबाधो र भी उथि-पथि थी ऐस सरय र सारदाकतयक

या कतबरादरी बोध lsquoएकाrsquo की भावना पदा करती ह तिवार जी इस नव-भदरवगम का अपन ही भीतर अिग-

अिग खााचो र बाट होन की बात करत ह अिग-अिग खााचो र बाट होन क चित यह भदरवगम रधयवगम की

कतवचारधारा अथामत कतववकवाद या नवजागरण को परापत नही कर पायी थी वगम था िदकन वगम की

कतवचारधारा नही थी खद भारतद क जीवन स हर उस दौर की अकतसथरता का कछ अादािा कतरिता ह

अकतसथरता और खााचो र बाटा रधयवगम दरअसि सापणम सराज र होन वाि एक आधारभत पररवतमन की ओर

इशारा करता ह यह पररपरकषय १८५७ की तरासदी का भी ह ऐसी कतसथकतत र हपराट पाजी क साथ बनन वािा

यह साासककततक आनदोिन था जहाा सवतव रकषा रखयतः अपन परान कतवशषाकतधकार की रकषा थी साराकतजक

साबाधो र आय उथि पथि क कारण उनह अपन कतवशषाकतधकार कतछन जान का खतरा साफ़ ददखाई द रहा

था जहाा अागरजी कतशकषा थोड़ा पहि ही परसार पा चकी थी वहाा कशि कारीगरो स िकर अधयापको और

परशासकतनक अकतधकारीयो क एक बड़ सरह न अपना नया कतवशषाकतधकार पा कतिया था साराकतजक साबाधो र

उनकी शरषठता उनक कतववकवाद क कारण बन चकी थी भारतद क एक शरआती िख lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

क राधयर स खााचो और जनरत की राजनीकतत को सरझन की कोकतशश आग करग

तिवार जी क अनसार दयानाद क कतवचारो क कतिए पाजाब जयादा गरहणशीि था कयोदक वहाा

जाकतत वयवसथा क बाधन पहि ही ढीि हो गए थ यिपराात र जाकतत क बाधन जायदा कठोर थ कतजन अथो र

कतिवदी जी रधय दश की रकषणशीिता का कतजक करत ह कछ-कछ उनही अथो र पर सवया दयानाद क

कतवचारो र कतववकवाद-पनरतथानवाद का दोरखापन कतरिता ह तिवार जी कहत ह दक कतजन सथि तको स

वह वदो की ओर िौटन को कहत थ आयम भाषा आयम जाकतत और आयम धरम की बात करत थ उसक कारण

ही इनका झकाव आग चिकर राषटरीय सवयासवक साघ की ओर होता गया पर आयम सराज क साराकतजक

सधारो और धरम सधारो की एकता क कारण वहाा वह साभावना भी थी कतजसक परभाव स आग चिकर बहत

सार कमयकतनसट कायमकताम भी कतनकि पररचाद राहि साकतयायन या गणश शाकर कतवदयाथी जस साकतहतयकार

और आनदोिनकताम आयम सराज क परभाव र थ आयम सराज तिवार जी क अनसार वासतकतवक साराकतजक

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पररवतमनो का सावाहक और सराज र वयकति स िकर साराकतजक जीवन क हर कषतर र गणातरक पररवतमन

िान वािा इसकतिए हो पाया कयोदक वहाा धरमसधार और सराज सधार अिग-अिग नही था दसरी ओर

हहादी आादोिन साापरदाकतयक जाकततवादी और सतरीकतवरोधी रलयो को ही सराज र फ़िान र कारयाब हआ

यह धारा अागरजो को अरजमयाा दकर नौकरी पान वाि रधयवगम की धारा थी

तिवार जी न भारतद की तकमशीिता को बहत कतनमन कोरट का कहा ह भारतद क चररतर र शायद

वह एक lsquoिमपनrsquo की छकतव भी दखत ह पसा उड़ान की वकतत सतरी क साथ वयवहार और उनक साबाध

चाररतरय बि का अभाव आदद आदद क सनदभम र वह कहत ह दक भारतद क चररतर र वह सदढ़ता या

सदाचाररता नही ह जो सराजसधार क कतिए आवशयक होती ह घर र पतनी उनह कभी पसाद नही आई

और वह बाहर रहदफ़िो र वाहवाही िटत रह रदमवादी दकतषट भी उनर कट-कटकर भरी थी भारतद क

इस चररतर की तिना तिवार जी न दो अनय परमपरावादी सधारको स की ह एक बागाि क राधाकाात दव

और दसर पाजाब क शरदधारार फलिौरी यदयकतप य दोनो भी भारतद की तरह परापरा की रकषा र ही सधार

की ओर अगरसर हए थ िदकन इन िोगो का चररतर जयादा परगकततशीि था इन दोनो की तिना र भारतद

का खिनायकतव और भी अकतधक उभरकर सारन आता ह सापकतकषक परगकततशीिता क कतनधामरण क कर र

भारतद अपन सापणम जीवन वयवहार र एक एाटी हीरो की तरह उभरत ह ठीक परान खिनायको की तरह

नही एाटी हीरो क साथ दशमक या पाठक की एक आतरीयता भी जड़ी रहती ह उसका चररतर ददराग र बस

जाता ह िदकन इसक चित यथाथम क ओझि होन का खतरा भी ह तिवार जी इसकतिए कदर कदर पर

उनकी साकतहकततयक छकतव क बरकस उनक राजनकततक- साागठकतनक जीवन वयवहार स बनन वािी छकतव को

सारन ररतमरान करत जात ह

अपनी परी आिोचना र तिवार जी भारतद की रचनाओ र कतरिन वाि भाषायी िदधड़पन और

राद तकमशीिता की चचाम तो करत ह िदकन व भारतद क वयागयो पर चचाम नही करत कया यह रहज

सायोग ह दक भारतद क परहसन lsquoअाधर नगरीrsquo का राचन आज भी परगकततशीि रलयो की परकततषठा ही करता

हभारतद क वयागयो या परहसनो र ऐसा कया ह कतजसर दहराव क साथ नवीन होत चिन की कषरता भी ह

भारतद क िखो या परहसनो या रपको र जो कही-कही वणमन या सावाद िारा वयागय का तीखा बोध पदा

होता ह उसकी शकति उनह कहाा स कतरिती ह वयागय की कषरता सवया र उनकी सकषर कतनररकषण र सरथम

दकतषट का परराण ह परान साराकतजक साबाधो र पररवतमन और तीवर पररवतमन क साथ साथ जो एक परहसन

चि रहा था उसका बोध भारतद को था भदरवगम क भीतर की कतववकवादी धारा का कतवकास भी कतहनद

राषटरवाद की कतवचारधारा र ही हआ परनत lsquoअाधर नगरीrsquo कया कतहनद राषटरवादी कतवचारधारा वािा परहसन ह

या कया यह कवि राषटरवादी कतवचारधारा का वाहक ह lsquoउरराव जान अदाrsquo र उभरकर सारन आन वाि

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साराकतजक साासककततक साकषोभ या उस वयापक टरजडी क सनदभम र दख तो भारतद क वयागय और परहसनो का

अथम थोड़ा और उभरता ह रकतलिका या राधवी स भारतद क साबाधो र कया उस तरासदी का सराग भी नही

ह वशयावकततत और पतनशीि रइसो का साकट एक दसर स अिग नही था उस सरय की औपनयाकतसक

ककततयो र वशयावकततत का सनदभम अवशय आता ह आग चिकर पररचाद की सरन बनारस र ही lsquoसवासदनrsquo

का सराधान ढाढ रही थी

भारतद क वयागयो पर रारकतविास जी का धयान था यह बात अिग ह दक अकतधकााश रौको पर

इनर वह जातीय चतना खोज कतनकाित ह बीस साि की उमर र भारतद न एक िख lsquoिवी पराणिवीrsquo नार

स कतिखा था रारकतविास जी इसका उलिख करत हए कतिखत ह ldquoगवनमर जनरि कतहनद क कतजस दरबार का

भारतद न वणमन दकया ह वह काशीराज क घर पर हआ था इसकतिए भारतद की सतयकतपरयता और भी

सराहनीय ह वहाा जो सजजन िोगो क नार कतिख रह थ उनका वणमन या दकया ह lsquoनार कतिखन वाि राशी

बदरीनाथ फि-फाि अबा पकतहन पगड़ी सज परान दादर की भााकतत इधर-उधर उछित और शबद करत

दफरत थrsquo िोग दकस तरह एक आनररी रकतजसटरट क lsquoकतसट डौनrsquo lsquoसटड अपrsquo कहन स उठत और बठ जात थ

इसका उनहोन बहत ही नाटकीय वणमन दकया ह आनररी रकतजसटरट का वयवहार हविदार का सा था कतसफम

हाथ र एक िकड़ी की कसर थी िोग कीरती पोशाक पहनकर गए थ ldquoसबक अागो स पसीन की नदी

बहती थी रानो शरीयत को सब lsquoअरघय पादयाrsquo दत थrdquo िोगो की उठा बठी और बहदा कवायद को िकषय

करक कतिखा था ldquoवाह-वाह दबामर कया था lsquoकठपतिी का तराशाrsquo था या बलिरटरो की lsquoकबायदrsquo थी या

बादरो का नाच था या दकसी पाप का फि भगतना था या lsquoफौजदारी की सजाrsquo थीrdquordquo21 काशी की इस सभा

र खद भारतद भी बठ थ इस परकार यह भारतद क वगम का परहसन भी था पतनशीि सासककतत की

आतरािोचना क कतबना यह साभव नही था बात कवि उमर की नही ह ठठ वतमरान र हसतकषप और उस

बदिन का बोध कतजन पतनशीि कतसथकततयो का आतर साकषातकार कर रहा था यह उसक परकतत एक

सवाभाकतवक सवतःसफतम परकततदकया थी यह तारकम क की नही बकतलक किाकार की सवतः सफतमता थी यह बात

सही ह दक भारतद कतवचारो की तारकम कता क रारि र उननीस पड़त थ पर इस करी को उनकी तीकषण

वसतकतनरीकषण दकतषट भर दती थी जीवन कतसथकततयो की कतवडमबना का बोध कतजतना गहरा था बदिन का

परयास उतना ही ऊजामवान था भारतद सवया अपनी भी कहानी कतिख रह थ lsquoपयार हररचाद की कहानीrsquo

कतिख रह थ भारतद क परहसनो र दकसी न दकसी पातर की भकतरका र हर जगह सवया भारतद भी ददख

जात ह अपन वगीय अातरवमरोधो का सवबोध उनक यहाा एकतिगोररकि हो जाता ह इस एकतिगरी र lsquoकतहनद

21 रारकतविास शराम पषठ- ६६

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भारतrsquo की रधर कलपना थी इसस इनकार नही दकया जा सकता भाव जगत का वषणव परर lsquoकतहनद भारतrsquo

की कलपना स परर र बदिता गया

भारतद की रचनाओ र कतवशवदकतषट की एकता खोजन पर हर परभतवशािी कतवचारधाराओ की

वयवसथा ही कतरिगी जञान और वयावहाररक सारानय बोध क बीच एक सदकय साबाध बनान क कर र ही

उनका सवाभाकतवक आवग कतजन वयावहाररक धाररमक कतवचारधाराओ र आतरकतबकतमबत होता ह व

परभतवशािी कतवचारधाराएा ह इन कतवचारधाराओ का कतनरामण कही बाहर स नही हो रहा था बकतलक

पराचयकतवदयाकतवदो की कलपना क साथ परसपर भागीदारी र बन रहा था इन कलपनाओ को यथाथम रप द

रही थी हपराट पाजी क साथ कतवककतसत होती lsquoबजमआ पकतबिक सफीयरrsquo की दकयाएा भारतद की सवाभाकतवक

सफरतम ततकाि ही एक फ टसी र बदिन िगती ह और दकयातरक होना चाहती ह ऐस ही सरय

पराचयकतवदया क पाकतडतो क िारा जगाय गए कतरथकीय परत भी आकर सर पर सवार हो जात ह पराचयवाद

दकसी परत-कतवदया स कर न था दखना चाकतहए दक भारतद की रचनाओ र कहाा परतो की दकतनया र यथाथम

का हसतकषप होता ह उनकी एकतिगरी कहाा कतसथकततयो क अकततरक को अकतभवयि कर रही ह जस भारतद की

lsquoअाधर नगरीrsquo ऐन हरार वक़त र राजयसतता का रपक बन जाती ह यह रपक राजयसतता र अनतरनमकतहत

हहासा की अकतनवायमता और नयाय क भरर का परहसन भी ह

२ धरम सधार पर कतवचार सभा

िहमो सराज या दयानाद सरसवती को खद भारतद कस दख रह थ इसका पता हर lsquoसवगम र कतवचार

सभा का अकतधवशनrsquo22 नारक एक वयागय रपक स चिता ह सवारी दयानाद सरसवती और कशवचादर सन

जब ररन क बाद सवगम पहाच तो ldquoवहाा एक बर बड़ा आनदोिन हो गयाrdquo रतय क कछ ही सरय पहि कतिखा

गया यह वयागय रपक अपन सरय क धरम सधार आादोिनो क चररतर की वयाखया करता ह सबस पहि

इसका परकाशन किकतत स कतनकिन वािी परकततकतषठत हहादी पकततरका lsquoकतरतर कतविासrsquo (जन १८८५) र हआ था

िहमो सराज और आयम सराज क आनदोिनो को भारतद इस सरय तक आकर एक तटसथ आिोचकीय दकतषट

स दखन का परयास करन िग थ सवगम र एकबारगी पदा हए इस आनदोिन र रोट तौर पर दो खर बन

गए एक इनका परशासक था दसरा हनादक पहिा कतिबरि ह दसरा काजरवरटव इन दोनो खााचो र

अनदफट एक तीसरा दि ह जो वषणव आतराओ का ह इस दि क सासथापक तो कतिबरि थ पर अब य

lsquoरकतडकलस कया रहा रकतडकलस हो गए हrsquo कतनकतशचत रप स इन रहा रकतडकलस आतराओ र हर सवया भारतद

22 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन सा- करिा परसाद परसा- नारवर हसाह पषठ- ८२-८६ नशनि बक टरसट इाकतडया नई ददलिी- २००६

(आग इस िख क उदधरणो को कतबना पाद रटपणणी क ददया गया ह)

19

को भी कतगन सकत ह वयासदव एक ऐस बकतदधजीवी क रप र सारन आत ह जो दकसी का भी पकष िन स

बचत ह पर उनका रान दोनो खरो र ह ldquoकतबचार बढ़ वयासदव को दोनो दि क िोग पकड़-पकड़ कर ि

जात और अपनी अपनी सभा का lsquoचयररनrsquo बनात थ और बचार वयास जी अपन पराचीन अवयवकतसथत

सवभाव और शीि क कारण कतजसकी सभा र जात थ वसी ही विता कर दत थrdquo कतिबरिो की तिना र

का जरवरटव दि जयादा रजबत था कयोदक उनह सवगम क जरीदारो का सहयोग परापत था काजरवरटव दि की

आतराएा साकीणम कटररपाथी आतराएा थी य आतराएा उन परान िरान क ऋकतष रकतनयो की आतराएा ह जो

ldquoयजञ कर करक या तपसया करक अपन-अपन शरीर को सखा-सखाकर और पच-पच कर ररक सवगम गए हrdquo

करमकााड और वरत उपवास आदद को भारतद वही तक सही रानत थ जहाा तक व शरीर को कषट न पहाचाएा

कठोर दह साधना करन वाि इन ऋकतष रकतनयो की आतराएा सधारो क कतखिाफ थी और इनका साथ दन

वाि जरीदारो र lsquoउदार िोगो की बढ़तीrsquo स अपना रान-अकतभरान और बि कतछन जान का डर था

कतिबरि दि भिो की आतराएा या तो सावमजाकतनक जीवन क उचच रलयो या आदशो क सापादन क चित या

पररशवर की भकति स सवगम र गयी थी

सराज सधार और वयकतिक परर रिक भकति- कतिबरि कतवशवदकतषट को भारतद इसी पररपरकषय र दख

रह ह रकतडकि वषणव दि भिो क कतिए वषणव होन रातर स य चीज पहि स ही उपिबध थी भारतद क

कतिए वषणवता सवाभाकतवक रप स कतवशवदकतषट ह पर रकतडकि वषणव इस सवाभाकतवक उदारता को

राजनीकततक रप दन वाि ह वषणव उदारता का और उसक भावावग का राजनीकततकरण करन वाि रहा

रकतडकि इस तरह भारतद क कतिए वषणवता की आधकतनक वयाखया र सराज सधार वयकतिक परर रिक

भकति और राजनीकतत तीनो का lsquoएकाrsquo ह इस एका क रकतडकि परयास क कतिए जनरत या िोकरत का

कतनरामण आवशयक ह भारतद की रकतडकि वषणवता ही lsquoसब उननकतत का रिrsquo ह यह एक िोककतपरय

वयावहाररक कतवचारधारा क रप र आकर गरहण करन वािी वषणवता ह यह रकतडकि वषणवता धरम का

राजनीकततकरण ह

काजरवरटव दिभिो को दवताओ का सरथमन परापत था य दवता ही सवगम क जरीदार थ अपन

अपन तरीक स इन दवताओ न काजरवरटव दि की सथानीय शाखाएा भी खोि िी और वहाा इनक पकष र

lsquoपरकाश सभाएाrsquo होन िगी कतिबरि दि वािो क पकष र कवि इस lsquoकतहनद सवगमrsquo क िोग नही थ ldquoइधर

lsquoकतिबरिrsquo िोगो की सचना परचकतित होन पर रसिरानी-सवगम और जन सवगम तथा दकसतानी सवगम स पगमबर

कतसदध रसीह परभत कतहनद सवगम र उपकतसथत हए और lsquoकतिबरिrsquo सभा र योग दन िग बका ठ र चारो ओर

इसकी धर फि गयीrdquo अिग अिग सवगम कतवकतभनन धाररमक पहचानो की ओर इशारा करता ह बका ठ कतहनदओ

का सवगम ह और यह नया धरम आनदोिन रखयतः कतहनद धरम की एक बड़ी पहचान क भीतर ही पदा हआ ह

20

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग क तीन कतनकतहताथम वसधा डािकतरया न भारतद यग क सनदभम र नोट दकय ह23 पहिा

एक पराक औपकतनवकतशक lsquoकतहनद अथमrsquo जहाा हहादसतान का हर बाहशादा शाकतरि था दसरा परसपर कतभनन

धाररमक रतो और आसथाओ की कतनकट अातरकम या क अथम को वयि करता ह कतजसक आराकतभक साकषय सलतनत

कािीन ऐतहाकतसक वतताातो र कतरित ह यहाा यह शबद lsquoतकम rsquo क सरानाातर उपयोग र आया था और

सारानयतः रसिरानो क बरकतखिाफ उपयोग दकया जाता था आरमभ र यह धाररमक कर साराकतजक-

राजनीकततक अथो र जयादा परयि होता था अागरजी राज क साथ यह दसरा अथम धरम स अकतनवायमतः जड़कर

lsquoकतहनदवादrsquo की कतवचारधारा र बदि गया जमस कतरि आदद क इकततहासो र lsquoकतहनदकािrsquo और lsquoरसिरान

कािrsquo की ऐकततहाकतसक कलपना क साथ कतहनद शबद जड़ गया था भारतीय भी रसिरानो को सारन कर

lsquoकतहनद पीकतड़त गराकतथrsquo क कतिए इस शबद का इसतराि करन िग कतहनद शबद का तीसरा अथम राषटर की

अवधारणा स जड़कर बन रहा था आरथमक राषटरवाद और अागरजी राज की यातना की साझी सरकतत स बनन

वाि इस तीसर अथम का रतिब था- lsquoजो कतहनदसतान र रह वह कतहनदrsquo रारकतविास जी भारतद क यहाा

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग को इनही अथो र ित थ पर वसधा डािकतरया का कहना ह दक यह तीसरा अथम दसर क

वयापक परभाव र था तीनो अथो की अातरकम या क बार र डािकतरया न कतिखा ldquoतीसरा अथम या राषटरवादी

अथम कभी भी अपन धाररमक साकताथो स परी तरह छटकारा नही पा सका इस पद की परयकति उननीसवी

सदी र अकतसथर बनी रही और इसक रखतकतिफ रायनो र आपसी जड़ाव कायर रहा बावजद इसक दकसी

परदतत सनदभम र lsquoकतहनदrsquo क पराथकतरक अथम को कतनधामररत करना साभव ह यदद एक बार यह तय हो जाय दक

इिाकाई धाररमक राषटरीय र स दकस आधार पर यह पद परयोग र आ रहा ह और lsquoअनयrsquo की भकतरका र

दकस रखा जा रहा ह चाह वह अनय जसा दक परानी इिाकाई परयकति र ददखता ह फारसी या तकी हो

या रसिरान (कतजस इस िरान र भी कई बार सरह क हवाि स तकम ही कहा जाता ह) या दफर अाततः

औपकतनवकतशक सवारी िदकन यह बात ददराग र रखना जररी ह दक धाररमक सरदाय को कतनरदमषट करन

वािी दसरी परयकति अतयात परभावी सनदभम-हबाद बनी रहती हrdquo24

इस सनदभम र दख तो कतिबरि दिो क सरथमन र शाकतरि lsquoअनयrsquo कतहनद धरम क सधारवाद क सरथमक

ह और lsquoसधारोrsquo र छपी वकतशवक भावनाओ को सरथमन दन पहाच ह का जरवरटव दिो की lsquoअनयताrsquo यहाा नोट

करन िायक ह इस अनयता र साराती जरीदार और करमकााडी िाहमणवाद का बिाक ह जबदक कतिबरि

दकतषट क आसपास एक lsquoसायि रोचrsquo की कलपना की गयी ह धयान रखना चाकतहए दक भारतद क रकतडकि

वषणव इस lsquoसायि रोचrsquo क बाहर ह उनका lsquoएबसटकतनजरrsquo वषणव होन क चित नही बकतलक रकतडकि या

23 वसधा दिकतरया कतहनद परमपराओ का राषटरीयकरण भारतद हररशचादर और उननीसवी सदी का बनारस अन साजीव करार योगनदर दतत पषठ-

४०-४२ राजकरि पपरबकस नई ददलिी- २०१६

24 वही पषठ- ४२

21

रहा रकतडकि होन क चित था कतनकतशचत रप स सवगम सासद का रपक ह और सवगम का राजा ईशवर

कतनषपरभावी हो गया ह और जनता सवया जनरत क िारा कतनणमय कतसथर करन पर जोर दती ह जनरत क

िारा lsquoसलफ गवनमरटrsquo का परयास सबस पहि वषणव भिो न दकया था और आज क कतिबरलस उसी को

आग बढ़ा रह ह ईशवर क पास दोनो दिो क िोगो न जब अपन अपन ररोररयि तयार कर भज तो ईशवर

न दोनो दिो क डपयटशन को बिाकर कहा ldquoबाबा अब तो तरिोगो की lsquoसलफगवनमरटrsquo ह अब कौन

हरको पछता ह जो कतजसकी जी र आता ह करता ह अब चाह वद कया सासकत का अकषर भी सवपन र भी न

दखा हो पर धरम कतवषय पर वाद करन िगत ह हर तो कवि अदाित या वयवहार या कतसतरयो क शपथ

खान को ही कतरिाय जात ह दकसी को हरारा डर ह कोई भी हरारा सचचा lsquoिायकrsquo ह भत परत ताकतजया

क इतना भी तो हरारा दजाम नही बचा हरको कया कार चाह बका ठ र कोई आवहर जानत ह चारो

िड़को (सनक आदद) न पहि स ही चाि कतबगाड़ दी ह कया हर अपन कतबचार जयकतवजय को दफर राकषस

बनवाव दक दकसी का रोकटोक कर चाह सगन रानो चाह कतनगमन चाह ित रानो चाह अित हर अब न

बोिग तर जानो सवगम जानrdquo

काजरवरटव दिभिो न दयानाद और कशवचादर सन पर कया कया आरोप िगाय यह दख िना

चाकतहए दयानाद को सवगम र सथान नही कतरिना चाकतहए कयोदक १ इसन पराणो की हनादा की २ ररतमपजा

की हनादा की ३ वदो का अथम उलटा-पलटा कर डािा ४ दस कतनयोग करन की कतवकतध कतनकािी ५ दवताओ

का अकतसततव कतरटाना चाहा (दवताओ याकतन जरीदार) ६ इसन धरम कतवपिव दकया और आयामवतम को धरम

बकतहरमख दकया पकतशचरोततर परानत क परकततकतनकतध क रप र lsquoकाशी क कतवशवनाथ जीrsquo न lsquoउदयपर क एकहिाग

जीrsquo पर दयानाद क सरथमन का आरोप िगाया कतवशवनाथ जी काजरवरटव दिो की तरफ स यह आरोप िगा

रह थ परब की अपकषा पकतशचरी इिाको र आयम सराज क परभाव की चचाम क सनदभम र एकहिाग जी का

जवाब धयान दन िायक ह कतवशवनाथ जी न जब एकहिाग जी को कतधककारत हए कतिबरिो क साथ कतरि जान

को कहा तब एकहिाग जी न कहा ldquoभाई हरारा रतिब तरिोग नही सरझ हर उसकी बरी बातो को न

रानत न उसका परचार करत कवि अपन यहाा क जागि की सफाई का कछ ददन उसको ठका ददया बीच

र वह रर गया अब उसका राि रता रठकान रखवा ददया तो उसका बरा दकयाrdquo यह एकहिाग जी

दफ़िहाि सवारी जी क दि क सभापकतत बन ह आकतखर इनहोन अपन यहाा क दकस lsquoजागिrsquo की सफाई का

ठका सवारी जी को ददया था यह जागि छोट-रोट धाररमक समपरदायो और रतो का जागि था एकहिागी

जी और काशी क कतवशवनाथ जी दोनो ही िाहमणीकत शवरत क धाररमक परतीक ह पर जहाा काशी क

कतवशवनाथ शर स ही दयानाद क कतवरोधी थ वही एकहिाग जी रणनीकततक रप स दयानाद क पास गए थ यह

साकीणम कटररपाथ क भीतर का कतववाद था यह बात गौर करन िायक ह दक जगननाथपरी र जब भरव की

22

रौजदगी का कतववाद भारतद क सारन आया था उस सरय उनहोन इस बात का परतयाखयान दकया था दक

भरव की परकततरा अनाददकाि स वहाा ह भारतद न पराण आदद स साकषय दकर यह परराकतणत दकया दक

कषण ही एकरातर उपासय ह तिवार जी न इस घटना का उलिख करत हए कतिखा ह दक ldquoदकसी वयकति न

lsquoतहकीकातपरीrsquo दकताब दकखकर बताया दक वहाा पहि भरो की पजा होती थी वषणवो न उसकी ररतम

उखाड़ फ की थी बाद र पाडो न जगननाथजी (कतवषण) क साथ भरो को दफर स परकततकतषठत दकया यह रारिा

काशी धरमसभा क सारन १८७० र आया भारतद न धरम साबाधी पसतक र lsquoतहकीकातrsquo जस फारसी शबद

की आिोचना करत हए कतवकतभनन धरमगराथो स परराण जटाकर दो बातो पर जोर ददया एक इसका परराण

नही कतरिता ह दक वहाा जगननाथजी क साथ पहि भरो की भी ररतम थी कतजस वषणवो न उखाड़ फ का दो

अगर वह थी भी तो यह उकतचत था या नही- इसपर कतवचार होना चाकतहए भारतद न अपनी वयवसथा दत

हए कतिखा दक भरो कतवषण स बहत छोटा दवता ह इसकतिए यह कतवषण क साथ बठाया नही जा सकता

lsquoदसर भरव कापाकतिको क दवता ह उनका पजन वषणव-सरातम सबको कतनकतषदध हrsquo गौरतिब ह दक भारत

र कतवकतभनन सथानीय धरो क परकतत कतजतन असकतहषण और फा डारटकतिसट आयमसराजी थ उतन ही काशी क

सनातनी भी थrdquo25

सथानीय धरम-रतो क जागि को साफ़ करन र आयमसराकतजयो और काशी क सनातनी पाडो क इस

गठजोड़ स भारतद भी वादकफ थ िदकन आयमसराकतजयो क साथ उदयपर क एकहिाग जी का रोचाम कसा

था इस भी भारतद बखबी सरझ रह थ सथानीय रतो क साथ भारतद का समबनध कसा था इसका पता

उनक छोट-छोट यातरा सासररणो स भी चिता ह lsquoसरय पार की यातराrsquo26 र रहदावि का हाि बयान करत

हए lsquoपराणनाथrsquo क रिहब का भारतद आशचयम क साथ उलिख करत ह भारतद क ही शबदो र ldquoयहाा एक

पराणनाथ का रिहब ह और दस बीस िोग उसक रानन वाि ह य िोग एकादशी तीथम वगरह को नही

रानत और सन सनाय दो तीन शलोक जो याद कर कतिए ह बस उसी पर चर हो lsquoरदीनासया शारदाा शताrsquo

और lsquoगोकतवनदrsquo lsquoगोकिानाद रककशवरrsquo यह शलोक पढ़ क कहत ह दक वद र रकका रदीन का वणमन ह ऐस ही

बहत वाकतहयात बात करत ह और कोई दकतना भी कह कछ सनत नही कहत ह दक गोिोक का नाश ह

और गोिोक ऊपर एक lsquoअखाड रणडिाकारrsquo िोक ह उसर रर कषण ह इनका रिहब एक पराणनाथ नारक

एक कषतरी न पनना र करीब तीन सौ बरस हए चिाया थाrdquo भारतद इस अजीबो गरीब lsquoरिहबrsquo का कषण स

कया साबाध ह यह सोचकर ताजजब र थ इस lsquoरिहबrsquo क गरनथ र भारतद न एक शलोक बलिभाचायम का

दखा तो उनका राथा और घर गया ldquoकि रिहब का हाि हरन नीच कतिखा था उसका अचछी तरह स

25 वीरभारततिवार रससाकशी १९वी सदी का नवजागरण और पकतशचरोततर परानत पषठ- १५२ सारााश परकाशन ददलिी- २००६

26 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन पषठ- १३७-३८

23

हाि दरयाफत दकया तो रािर हआ दक हरार ही रिहब की शाखा ह इनक गराथो र हरन एक शलोक शरी

रहापरभजी की सबोकतधनी की काररका का दखा इसी स हरको सादह हआ दफर हरन बहत खोद खाद कर

पछा तो वह साफ़ रािर हआ दक इसी रत स यह रत कतनकिा ह कयोदक एक बात वह और बोि दक हरारा

रत शरी बलिभाचारज की टीका र कतिखा ह इन िोगो क उपासय शरीकषण ह और एकादशी शािगरार

ररतमपजा तीथम दकसी को नही रानत इनक पकतहि आचायम दवचाद जी थ जो जाकतत क कायथ थ और दसर

पराणनाथ जी जो कचछ क कषतरी (भारटया) थ हरार ही रत की शाखा सही पर कतवकतचतर रत ह वषणव होकर

ररतमपजा का खाडन करन वाि यही िोग सनrdquo वणमन स सपषट ह दक सात और कतनगमण पाथो क साथ वषणव

कतवचारधारा क आदान-परदान का साकतशलषट इकततहास भारतद क कतिए ताजजब की चीज थी पर इन सबक बीच

आकतखर उनहोन इसक वषणव रि का पता िगा कतिया और वषणवता की इस धाररमक कतवचारधारा र उनहोन

ररतमपजा का कतवरोधी होना भी शाकतरि रान कतिया भारतद न ररतमपजा क सरथमन र बड़ बड़ िख कतिख

थ इसकतिए असाभव नही दक कषण क परकतत परररिक भकति क कतिए ररतम की जररत पर उनहोन कछ पछा

जरर होगा िदकन lsquoकोई दकतना भी कछ कह सनत ही नहीrdquo आग चिकर lsquoवषणवता और भारतवषमrsquo र

वह बड़ कतवशवास क साथ घोकतषत करत ह दक ldquoपहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद कतजतन पाथ ह सब

वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और भारतवषम इन पाथो स छाया हआ हrdquo27 तब वह वषणवता और

िोकरतो और रधयकािीन पाथो क भीतर पहि स सदकय एक ऐकततहाकतसक परदकया का सारानयीकरण कर

उसका नार lsquoवषणवrsquo रख रह थ अकारण नही दक उसी िख र वषणव वयापकता को बतान क कतिए

परचकतित lsquoनारोrsquo का साकषय पश दकया गया ह वयकतियो स िकर वरत और उपवासो तक यह परभतवशािी

सारानय बोध की कतवचारधारा थी कतिवदी जी रधयकािीन वषणवता को िोकधरम कहत थ भारतद

उननीसवी सदी क िोकधरो को वषणव कहत ह

काजरवरटव दिो की तरफ स कशवचादर सन पर िगाय गए आरोप थ १ वद पराण सबको कतरटा

डािा २ दकसतान रसिरान सबको कतहनद बनाया ३ खान पीन का कतवचार कछ न बाकी रखा ४ रदय की

तो नदी बहा दी आयम सराकतजयो क ऊपर रखयतः आरोप lsquoआयामवतम को धरम बकतहरमखrsquo करन का ह धरम

बकतहरमख अथामत सनातन धरम स कतवरख उनहोन कवि धरम क भीतर कतवपिव दकया परनत िहमो सराज न तो

lsquoभारतवषम का सतयानाशrsquo कर डािा इनहोन तो पराणो क अिावा वदो को भी कतरटा डािा lsquoआयामवतमrsquo की

जातीय पकतवतरता नषट करक दकसतान रसिरान जस lsquoकतवदशी ततवोrsquo को घर र घसा कतिया कटररपाथी

करमकााकतडयो क कतिए इनक साथ रणनीकततक तौर पर भी रोचाम बनान वािा कोई एकहिाग जी तयार नही

था सनातकतनयो िारा दकया गया यह बारीक भद खद कतिबरि दिभिो क भीतर का भी अातरवमरोध था

27 भारतद वषणवता और भारतवषम वही पषठ-७६

24

कतिबरिो की सभा र भी दो दि हो गए थ एक सवारीजी क सरथमको का दि था और एक कशव

क सरथमको का कतहनद कतिबरिो की आताररक एकता कतिकतवभाकतजत थी दयानाद क सरथमको क अनसार सवारी

जी न कतहनदओ की आतरा को जगाया था उनह सफतम बनाया वरना तो आयामवतम क आिसी और रखम

रोहकतनदरा र ही कतनरगन थ इस तरह रखम और आिसी सारानयजनो को lsquoिाहमणो क फा द स छड़ायाrsquo िाहमणो

की तिना भारतद न lsquoपादररयोrsquo स की ह जो lsquoवयथम परजा का दरवय खान वाि हrsquo आयम सराज न सासथाकत

परोकतहतवाद पर हरिा दकया था जो भारतद क कतिए रितः जनता क पसो पर पिन वािा परजीवी वगम

िगता था और तो और आधकतनक कतवजञान क आग जो lsquoआयोrsquo की नाक कटी जा रही थी उस भी सवारी जी

न बचा कतिया उनहोन वदो र भी रि तार करटी कचहरी आदद ददखाकर कतहनदओ र आतरसमरान पदा

दकया दसरी ओर कशव क सरथमको का कहना था दक ldquoधनय कशव तर साकषात दसर कशव हो तरन बाग

दश की रनषय नदी क उस वग को जो कशचन सरदर र कतरि जान को उचछकतित हो रहा था जञान करम का

कतनरादर करक पररशवर का कतनरमि भकति रागम परचकतित दकयाrdquo lsquoजञान करम का कतनरादरrsquo करक भी lsquoकतनरमि

भकति रागमrsquo का जो परवतमन कशव न दकया उसस ही ईसाई lsquoअनयताrsquo का साथमक परकततरोध साभव हआ lsquoरनषय

नदी का आवगrsquo भावावग ह इसी बात को दसर शबदो र कह तो भाव जगत क सवाभाकतवक वग को भगवत

भकति की शदध lsquoअनयताrsquo की ओर रोड़कर उस कतवदशी ईसाई lsquoअनयताrsquo क रागम पर जान स रोक ददया इस

कायम क कतिए वद पराण समरत lsquoजञान-करमrsquo क रागो का कतनरादर अगर करना पड़ा तो भी वह उकतचत ही था

वषणव भकति क रधयकािीन सवरप की जो वयाखया आग चिकर की गयी उसक आराकतभक कतचनन हर यहाा

दख सकत ह कहना न होगा दक भारतद का अपना अनभव भी यहाा बोि रहा ह

शासतरीय काजरवरटव पाटी र दवताओ क अिावा यजञवलकय जस औपकतनषददक ऋकतष क साथ-साथ

नारायण भटर रघनाद भटराचायम राडन कतरशर जस कतनबाधकारो और टीकाकारो का जरघट भी था इसक साथ

साथ इसिारी सवगम स आय हए कटररपाथी कतशया िोगो का भी सरथमन उनह परापत था इस परकार कटररपाथ का

दवताओ (जरीदारो) िाहमणो (पादररयो) जञानरागी औपकतनषददक ऋकतष रधययगीन कतनबाधकारो और

कतवदशी कतशया िोगो का एक वकतशवक रोचाम बन रहा था दसरी ओर कतिबरि दि र चतनय परभकतत आचायम

दाद नानक कबीर परभकतत भि और जञानी िोग भी शाकतरि थ इसक अिावा काजरवरटव दि क

कतवदरोकतहयो को भी कतिबरिो न अपन यहाा जगह दी य कतवदरोही थ अितवादी (या नववदााती) भाषयकार

पाचदशीकार और कोई कतरसटर िडिा इन दोनो िोगो पर शर र का जरवरटव दि वािो न बहत हरि

दकय परनत अात र इनह कतिबरिो न अपन यहाा जगह द दी धयान रखना चाकतहए दक भारतद अपन सापरदाय

क अनरप अित वदाात या रायावाद क घोर आिोचक थ सन १८७३ र हररशचादर रगजीन क पहि ही अाक

र भारतद न शााकतडलय भकति सतरो का अनवाद lsquoभकति सतर वजयातीrsquo नार स परकाकतशत दकया भकतरका र

25

भारतद कतिखत ह ldquo दखो आज वसात पाचरी ह इसस बहत स िोग आर क रौर वा फिो क गचछ िकर

तरस कतरिन आवग तो र भी यह एक फिो की वजयाती रािा बना कर िाया हा अागीकार करो वजयाती

रािा बनान का यह हत ह दक वनरािा होगी तो होिी क खि र अरझगी और इसक कतसवाय इस वजयाती

स कतनशचय करक जञानाददक को जय करना ह पर पयार बहत साभि कर यह रािा पहरना टट न जाए

कयोदक सत कचचा ह और ककतियाा तािी और कोरि ह इस स कमहिान का भी भय ह जो हो इस वसात

पाचरी को तयोहारी रझ यही दो दक इस सतयानाशी lsquoअहरrsquo िहमवाद lsquo को पणमरप स नाश करक और भी

सब बातो र इस नव-वसात र भारतवषम की सब आपकतततयो का बस अात करो और अपन भिो क कतचतत र

नव पलिव दफर स िहिह करो जो सदा एक रस रहrdquo28 lsquoएकरसrsquo भकति क कतिए जररी ह दक जञानवाद

अहर िहमवाद को जड़ स उखाड़ फ का जाय कषण को अरपमत अपनी वजयाती रािा स भारतद जञानाददक

को जय करना चाहत ह एक ओर यह पकतषटरागी परापरा क lsquoवीर वषणवrsquo भारतद का परर कतनवदन ह दसरी

ओर lsquoनव-वसातrsquo र भारतवषम की सब आपकतततयो को नाश करन की सारथयम रपी lsquoउपहारीrsquo का साकलप भी

ह lsquoभारतद भारतवषम की सब आपकतततयोrsquo को दर करन की राह र एक बड़ी बाधा अित क जञानवाद को

रानत ह भकति का lsquoएकरसrsquo पहि भी इसक परभाव स ररझाता रहा ह भारतद का साकलप सापरदाय क

परान कतवरोधो क बावजद बन रहन वाि इस अितवाद का पणम सफाया करन का ह जबतक यह न कतरटगा

परररिा भकति क lsquoकमहिान का भयrsquo बना रहगा भकति सतरो र उपासना कााड को परर कतसकतदध का हत

बताया गया था पर भारतद दख रह थ दक उपासना कााड का परचार कतवरि हो गया ह इसी परचार क

कतनकतरतत उनहोन इन सतरो का भाषा र अथम परचार दकया था १८७३ र ही हररशचादर रगजीन का एक

समपादकीय कतनकिा कतजसका शीषमक था- lsquoभकति जञानाददक स कयो बड़ी हrsquo इस िख र भी उपासना रागम

की रहतता का परकततपादन दकया गया ह तकम और जञान को करम की शकतदध और उपासन की परर कतसकतदध क

रासत र कवि एक चरण बताया गया ह वसधा डािकतरया न भारतद क आराकतभक साापरदाकतयक परचार

परसार क कायो र कतनगमकतनयो को बाहर रखन का उपकर नोट दकया था29 यहाा कतनगमकतनए कबीर आदद lsquoभि

और जञानीrsquo कतिबरिो क सरथमक ददखाए गए ह वषणव भकति क राषटरीय चररतर र य बाहर नही थ उनकी

एकता का आधार उनक lsquoकतिबरि रिrsquo र ह सावमजकतनक उचच भाव का सापादन और भकति इन दोनो क साथ

अित वदााती या जञानाददक- सनातनी परापरा क कतवदरोकतहयो की जगह भी कतिबरि दि पाकतथयो र थी

कतिबरि वाि ही झगड़ क कतनपटार की अजी पररशवर को दन गए थ पर पररशवर अपनी

परतीकातरक हो गयी कतसथकतत स खजिाय हए थ यह सवोचच अदाित थी पर साथ ही साथ शकतिहीन

28 भारतद गराथाविी खाड- ५ पषठ ११३

29 वसधा डािकतरया पषठ ३४२

26

राषटराधयकष की कलपना भी कतजस कतहनद सवगम क य राषटराधयकष ह वहाा दकसी दकसर की सलफ गवनमरट चनन

की परणािी आ जान स ईशवर की एकाकतधकारी शकतियाा कतछन गयी ह िोग जनरत कतनरामण क िारा सही

और गित की पहचान करन िग थ इसकतिए थोड़ा खजिाय तो रहत ही होग lsquoअब कौन हरको पछता

ह तर जानो सवगम जानrsquo परनत साकट गहरा था यदयकतप कतिबरि िोगो की सभा भी धरधार स जर

रही थी पर काजरवरटव दि पाकतथयो की सरकार र पठ थी दवता सब भी उनक साथ थ इसकतिए पररशवर

क पास जररी नयाय का परशन उठाया गया था नयाय दक इन दो रहापरषो को सवगम र जगह कतरिनी

चाकतहए या नही सराज र इनक नकततक उचच आदशो क अवरलयन का परचार काजरवरटव कर रह ह इस

परचार क कारण जनता अपनी निरो स पहचानन र सकषर नही ह ऐसी कतसथकतत सवगम र पहि नही आई

थी नई कतसथकततयो क नए रानदाड कया होग िाकतहर ह नयाय और नकततकता को एक वकतशवक सवीककतत

चाकतहए इसकतिए पररशवर न इस कतवषय पर कतवचार क कतिए जो ककतरटी चनी वह गौर करन िायक ह इस

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo र ldquoराजा राररोहन राय वयास दव टोडररि कबीर परभकतत कतभनन-कतभनन रत क िोग चन

गए रसिरानी- सवगम स क lsquoइरारrsquo दकसतानी स िथर जनी स पारसनाथ बौदधो स नागाजमन और

अफीका स कतसटोवायो क बाप कोrdquo चना गया कतहनद सवगम स नवजागरण क अगरदत वयासदव जस

बौकतदधकिखक टोडररि जस राजनीकततजञ और धरम-ररमजञ कबीर जस जञानी-भि पराचीनो र कवि वयास

दव ह बाकी दो lsquoरधयकािrsquo क और एक lsquoआधकतनकrsquo काि क वयकति ह उधर यरोपीय नवजागरणधरमसधार

क परणता िथर को भी बिाया गया ह और बौदधो की तरफ स परर कतनषधवादी नागाजमन भी ह पर य

अफीका क कतसटोवायो धरो की अकतसरता क साथ-साथ यह अफ़ीकी सवगम कतनकतशचत रप स अफीका की छकतव

पराचीन आददवासी सासककतत वाि एक lsquoकािrsquo रहादश क रप र गढ़ी गयी थी यह अफ़ीकी सवगम साभवतः

आददवासी धाररमक रानयताओ की ओर इशारा करता ह यह भी धयान दन िायक ह दक राजा राररोहन

राय िथर और कबीर इन तीनो क साथ lsquoनवजागरणrsquo की कोई न कोई पररकलपना ठठ सरकािीन कतवरशो

क क दर र भी ह कई अथो र अकबर िारा आयोकतजत होन वािी lsquoसिह-ए-किrsquo जसी धरम सभाओ की एक

रोहक कलपना भी भारतद को रही होगी टोडररि की उपकतसथकतत अकारण नही ह

अकबर को िकर भारतद की इकततहासदकतषट कसी थी इसकी एक झिक हर १८८४ र छपी उनकी

lsquoबादशाह दपमणrsquo की भकतरका र ददखती ह इस गरनथ र उन िोगो का चररतर-कतचतरण दकया गया था ldquoकतजनहोन

हरिोगो को गिार बनाना आरमभ दकया इसर उन रसत हाकतथयो क छोट-छोट कतचतर ह कतजनहोन भारत क

िहिहात हए करिवन को उजाड़कर-पर स कचिकर कतछनन-कतभनन कर ददया रहमरद रहरद अिाउददीन

अकबर और औरागजब आदद इनर रखय ह पयार भोि कतहनद भाइयो अकबर का नार सनकर आपिोग

चौदकए रत यह ऐसा बकतदधरान शतर था दक उसक बकतदधबि स आजतक आपिोग उसको कतरतर सरझत ह

27

दकनत वह ऐसा ही नही उसकी नीकतत अागरजो की भााकतत गढ़ थी रखम औरागजब उसको सरझा नही नही तो

आज ददन हहादसतान रसिरान होता कतहनद-रसिरान र खाना-पीना बयाह-शादी कभी चि गयी होती

अागरजो को जो बात नही सझी वह इसको सझी थीrdquo30 कतनकतशचत रप lsquoबकतदधरानrsquo दशरन स सीखन को बहत

कछ कतरिता ह अकबर की दीन-ए-इिाही क परयोग स भारतद भी बहत कछ सीख रह थ रधयकािीन

इकततहास क बार र रकतसिर शतर की छकतव का कतनरामण पराचयकतवदयाकतवदो क िारा दकया जा रहा था इकतियट

आदद इकततहासकारो न जो दकतषट कतवककतसत की उसका परभाव बहत गहरा था पर इस इकततहासिखन क साथ

साथ भारतद क कछ दशी सरोत भी थ अिग-अिग रहापरषो की चररताविी कतिखन की पररणा भारतद न

कतजतना अपनी वषणव भकति की परापरा स पाया था उतना ही इसिारी इकततहास िखन की परापरा स भी

lsquoबादशाहदपमणrsquo की भकतरका र भारतद कतिखत ह ldquoरर पररातारह राय कतगरधरिाि साहब जो यवनी कतवदया

क बड़ भारी पाकतडत और काशीसथ ददलिी क शाहजादो क रखय दीवान थ उनकी इचछा स ददलिी क परकतसदध

कतविान सययद अहरद न एक ऐसा चक बनाया था कतजसर तरर स िकर शाह आिार तक सब बादशाहो क

नार आदद कतिख थ उस फारसी गरनथ स बहत सी बात इसर िी गयी ह इस कारण तरर पवम क बादशाहो

का वणमन इतना परा नही ह कतजतना तरर क पीछ ह दफर रर रातारह राय कतखरोधरिाि न बहादर शाह

क काि क आरमभ तक शष वतत सागरह दकयाrdquo31

अरणदव जी अपन एक िख र भारतद क आराकतभक अकबर परर का कतिक दकया ह १८७२-७४ क

आसपास भारतद अकबर को रहान शासक रानत थ जबदक औरागजब को कतहनदओ का दशरन नाबर एक

भारतद न औरागजब की तिना र अकबर की रहानता को परराकतणत करन क कतिए रारदास कछवाह क एक

शलोक को अपना आधार बनाया ह इस शलोक का भावाथम भारतद क शबदो र इस परकार ह ldquoजो सरदर स रर

तक पथवी को पािता ह जो रतय स गउओ की रकषा करता ह कतजसन तीथम और वयापार स कर छड़ा ददए

कतजसन पराण सन जो सयम का नार जपता जो योग धारण करता ह और गागाजि छोड़कर पानी नही

पीता उस जिािददीन की जय अाग वाग कहिाग कतसिहट कततपरा कारत (कारटी) काररप अाध कणामटक

िाट दरकतवड़ रहाराषटर िारका चोि पााडया भोट रारवाड़ उड़ीसा रलि खरासान का दहार जमब काशी ढाका

बिख बदखशाा और काबि को जो शासन करता ह ककतियग की रकतहरा स घटत हए वद गउ कतिज और

धरम की रकषा को सगन शरीर कतजसन धारण दकया ह उस अपररय परष अकबर शाह को हर नरसकार करत

हrdquo32 यही अकबर १८८४ र औरागजब स जयादा शाकततर और बकतदधरान शतर र बदि गया lsquoकािचकrsquo क

कतनकतहताथो र यह फरबदि भारतद पर रकतसिर कतवदशीपन और कतहनद शतरता क समपणम बिॉक बनान की

30 बादशाह दपमण भारतद गराथाविी खाड-६

31 वही

32 httpsamalochanblogspotin201209blog-post_9html

28

रणनीकतत क दबाव क कारण था और lsquoपरावकततrsquo की कतरथकीयता र भी कतहनदओ को lsquoरहारोहनासतरrsquo क सहार

पहि भी वश र दकया गया था यह एक बारीक चाि थी अकबर की इस चाि को अागरज भी नही सरझ

पा रह थ भारतद की यह परकततदकया औपकतनवकतशक इकततहासिखन क दबाव र थी १८७३ र जब भारतद

न कतशवपरसाद की दकताब lsquoइकततहासकततकतररनाशकrsquo क तीसर खाड की आिोचना की थी तो उनक सारन

रकतसिर शासन की बबमरता और अागरजी राज क सशासन का कतशवपरसाद िारा ककतलपत आखयान था १८८४

र समपणम रकतसिर काि अनधकार यग र बदि गया कततकतररनाशक क पहि खाड र बाब कतशवपरसाद न भी

अकबर की रजहबी उदारता और साराकतजक सधारो की बड़ाई की थी इस परकार हर दख सकत ह दक

ऐकततहाकतसक िखन र पकष और कतवपकष की पनरावकततत एक बाद घर र उिझी हई थी इनक सारन रकतसिर

कतवरोध और अागरजी शासन क कतवरोध का एक कतवसागत फर था और िखक उसर अपनी फौरी जररतो क

कतहसाब स कतरतर और दशरन वािा इकततहास कतिखता था इकततहास ठठ राजनीकततक ततकाि क वशीभत था

जो भी हो धाररमक उदारता और सिह-ए-कि का परयोग एक कतशकषापरद परयोग था यह कतवकतभनन

रतो या कतवशवासो क बीच lsquoजनरतrsquo बनान का एक रधयकािीन परयोग था भारतद lsquoजनरतrsquo क परयोग को

इस तरह दखत थ रानो यह lsquoचािrsquo अगर कारयाब हो जाती तो lsquoआज क ददन हहादसतान रसिरान होताrsquo

भारतद क सारन सरसया वही थी बस वह कवि यह चाहत थ दक कतहनदसतान lsquoकतहनदrsquo हो जाय कतहनद

अथामत वषणव हो जाय वषणवता भारतद क कतिए हहादसतान का नया lsquoसिह-ए-किrsquo था इसकतिए कछ

सावमजनीन रलयो की तिाश उनह भी थी कतसिकट ककतरटी क उपरोि रमबर lsquoएकसअफीकतशयोrsquo रमबर थ

रोर क परान हररकिस जस दवता कतजनहोन धरती स साबाध तोड़ ददया ह व िोग तथा उनही क जस

पारकतसयो क lsquoजरदशतजीrsquo को कोरसपोहडाग ऑनररी रमबर बनाया गया य धरम क रप र रतपराय रतो क

परकततकतनकतध थ ककतरटी न जो ररपोटम तयार की उसका ररम भारतद न ददया ह यह ररम उनक रकतडकि वषणव

पकष का रत था कतिबरि दि और काजरवरटव दि क अपन पकषो स इतर यह नरनायक तीसरा पकष वषणवो

की तरफ स सनाया गया था रकतडकि वषणवो की तरफ स भारतद इस धाररमक आनदोिन क भीतर अपना

ही पकष रखत हए इसका ररम कतिख रह थ ldquoहरिोगो की समरकतत र इन दोनो परषो न परभ की रागिरयी

सकतषट का कछ कतवघन नही दकया वराच उसर सख और सातकतत अकतधक हो इसी र पररशरर दकयाrdquo कतहनद सराज

सधार क परयासो का ररम बतात हए सबस पहि धयान सतरी सधारो पर ददया गया ह साराकतजक करीकततयो

की कतशकार रकतहिाओ क परकतत जो दकतषट उभरकर सारन आती ह उसक रि र धरम की रीकतत स यौन

रयामदाओ की अवयवसथा को दफर स रयामददत करन की चषटा ह कतसतरयो क करागम पर जान का पहिा कारण

ह रनराना परष धरमपवमक न पाना यह कतववाह सासथा की कतवककततयो की आिोचना थी जहाा बाि कतववाह

कतवधवा कतववाह आदद की तरफ इशारा ह धयान रखना चाकतहए दक यहाा बरि कतववाह क बदि कतसतरयो िारा

29

lsquoरनराना वरrsquo न चन पान का उलिख ह गभमनाश और बाि हतया क कतखिाफ सधार परयास दसरा

रहतवपणम योगदान ह कतववाह सासथा बीच र भी भाग की जा सकती ह इसकी सवीककतत ह कनया क कतहत र

अातरजातीय कतववाह की सवीककतत ह एक रहतवपणम बात गरओ और पाकतडतो क वयाकतभचार क साबाध र ह

भारतद क सारन पकतषटरागी रहातो और गरओ क वयाकतभचार का अनभव भी इसर शाकतरि ह

१८७४ र ककतववचन सधा र भारतद की एक रटपणणी छपी थी lsquoगर को कसा होना चाकतहएrsquo इसक अिावा

दो वषम पहि lsquoगर और रहातrsquo नार स भी एक रटपणणी कतिखकर वषणव पाडो-परोकतहतो की खिकर

आिोचना की गयी थी तिवार जी न कतिखा ह दक राददरो क भीतर कतसतरयो का यौन शोषण और वयाकतभचार

इतना भीषण था दक दयानाद भारतद क पकतषट सापरदाय को lsquoकषठी सापरदायrsquo कहत थ १८६० क आरमभ र ही

वषणव गोसाइयो क अनाचार और यौन शोषण क कतखिाफ बमबई र एक बड़ा आनदोिन पकतषटरागी

करसनदास रि जी क नततव र हो चका था वषणव बकतनया पषठभकतर स आय करसनदास जी उन नौजवानो

र थ कतजनहोन एकतिफ सटन कॉिज स आधकतनक कतशकषा परापत की थी गोसाइयो और रहाराजो िारा अपन

lsquoसमपरदाय की बह बरटयोrsquo क साथ होन वाि अतयाचार क कतखिाफ उनहोन िख कतिख और समपरदाय क

इकततहास को नए कतसर स सारन रखा पण स आए जदनाथ वजरतन जी रहाराज न करसनदास जी पर

रानहाकतन का रकदरा दायर कर ददया इसी रक़दर स वषणव रहातो की कई सारी बात जनता क सारन

परतयकष हई तिवार जी न इस lsquoरहाराज िाइबि कसrsquo को भारतीय नवजागरण र वषणव गोसाइयो क

दराचार और यौन शोषण क कतखिाफ हआ सबस बड़ा आनदोिन कहा ह भारतद पर इसका बहत परभाव

था यह कस १८६० र हआ था एक दशक बाद जब भारतद सापरदाय क कायो र रत थ उसी सरय कतिख

रह थ ldquoराददर कया होत ह रानो कतसतरयो की खान ह जसी चाकतहए िीकतजय- वराच अचछी सतरी भी वहाा जाकर

कतबगड़ जाती ह आशचयम यह ह दक कतजनको व िोग बटी कहत ह और जो उनक परिोक क रधयसथ ह और

कतजनको वो दीकषा दत ह उन कतसतरयो की ओर व आप ही बरी दकतषट स दखत ह ओर रर पयार कतहनदओ तर

इनक जाि र कब तक फा स रहोग और कया तरको यही सासार स बचावग और इनही क भरोस तरको

भगवान कतरिगाrdquo33

राददरो क धन-ऐशवयम और वयाकतभचार र डब जीवन क जीवात कतचतर हर बनारस क रखाकतचतर lsquoपरर

जोकतगनीrsquo क अिावा lsquoकाशी क छायाकतचतर क दो बर-भि फोटोगराफrsquo र भी कतरित ह यहाा भारतद का वयागय

अपन वषणव सापरदाय की आतरािोचना स सदकय ह lsquoपरर योकतगनीrsquo नाटक र आन वािा चररतर रारचादर

खद भारतद ही थ नाटक का सतरधार कहता ह दक भारतवषम की दीन हीन गकतत क कारण उसका तो

कतवशवास ही ईशवर स उठन िगा ह नाटक क पहि ही दशय र भारतद हर राददर क भीतर कतिए चित ह

33 वसधा डािकतरया िारा उदधत पषठ- ३३७

30

जहाा राददर र कार करन वािा साधारण टहिआ झपरटया हर ददखाई दता ह पजारी बाब अभी तक नीद

स नही जाग ह कयोदक आधी रात तक lsquoबठ क ही-ही-ठी-ठी करा चाह दफर सबर नीद कस खिrsquo कतनकतशचत

रप स यह टहिआ सबह सवर ही राददर र हाकतिर ह िदकन दवता अभी राददर र सोय ह रारचादर

परदशी ह काशी र बाहर स आय ह छकक जी और राखनदास इस रारचादर की आिोचना करत ह इनक

सावादो स पता चिता ह दक बाब रारचादर क यहाा ददन रात नाच गाना हआ करता ह और उनको अपनी

कतवदया का घराड ह दो चार ककतवतत भी बना ित ह पर lsquoककतवतत बनाव स का होव और ककतवतत बनावन कछ

अपन िोगन का कार थोर हय ई भााटन का कार हयrsquo छकक जी कहत ह दक अपन रागम का उनह कछ जञान

तो ह नही बस दो चार बात इधर उधर स सनकर कछ lsquoदकसतानी रतrsquo सीखकर पाकतडत बन दफरत ह

कतनकतशचत रप स य भारतद पर िगन वाि आरोप थ राददर र सवारी धनदास वकतनतादा बभकतकषत पाकतडत

आदद धरम क ठकदार ह इनकी पतनशीि सासककतत को दखकर रारचादर का दःख इन शबदो र वयि होता ह

lsquoहा कया इस नगर की यही दशा रहगी जहाा क िोग ऐस रखम ह वहाा आग दकस बात की वकतदध की

साभावना करrsquo lsquoवददकी हहासा हहासा न भवकततrsquo जस शरआती नाटको र भी करमकााडी परोकतहतवाद की

आिोचना की गयी ह राजा और परोकतहत कतरिकर वहाा जनता का शोषण करत ह जआ रददरा और

रथन की ऐययाश सासककतत क परतीक परोकतहतो का काजरवरटव दि इन परहसनो र रतम होता ह कतचतरगपत यर

स कहत ह ldquoरहाराज य गर िोग इनक चररतर का कछ न पकतछए कवि दमभाथम इनका कततिक रदरा और

ठगन क अथम इनकी पजा कभी भकति स ररतम को दाडवत न दकया होगा पर राददर र जो कतसतरयाा आयी उनको

सवमदा तकत रह रहाराज इनहोन अनको को कताथम दकया ह और इस सरय तो र lsquoशरीरारचनदर जी का

शरीकषण का दास हाrsquo पर जब सतरी सारन आव तो उसस कहग lsquoर रार तर जानकी र कषण तर गोपीrsquo और

कतसतरयाा भी ऐसी रखम दक दफर इन िोगो क पास जाती हrdquo34

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo की ररपोटम र सतरी सधारो क कायो की रहतता बतान क बाद जाकतत वयवसथा पर

इन सधारको का परहार कयो जररी था इस बताया गया ह कठोर जाकतत बनधनो क चित कस हर साि

जाकतत-बाहय होकर जाकतत र वापस आन क दकसी उपाय को न जान lsquoहजारो रनषय आयम पाकति स हर साि

छटत थ उसको इनहोन रोकाrsquo इस परकार इन सधारको न lsquoआयमधरमrsquo क भीतर जो पररवतमन करन चाह

उसस आयो की एकता दफर स बहाि हो गयी इसक अिावा अाधकतवशवासो को इनहोन दर दकया यही नही

बकतलक जहाा िोग lsquoरसिरानी पीर पगमबर औकतिया वीर ताकतजया गाजी कतरयाा कतजनहोन बड़ी ररतम तोड़कर

और तीथम पाटकर आयम धरम कतवधवास दकयाrsquo उनको भी पजन िग थ और lsquoकतवशवास तो रानो कतछनाि का अाग

हो रहा थाrsquo ऐसी िजजाजनक कतसथकतत स िोगो को बाहर कतनकािकर lsquoसार आयामवतम को शदध lsquoिायिrsquo कर

34 दख रारकतविास शराम पषठ १३१

31

ददयाrsquo lsquoिायिrsquo कर ददया गया इसका अथम आयम जाकतत को दफर स िायि करन र था आयम जाकतत क भीतर

कतबगाड़ क चित ही कतनमन जाकततयो का बड़ परान पर पिायन था इस इन िोगो न रोका और इनक परताप

स ही अनक छोट और सथानीय धरम-रतो क भीतर जो lsquoरसिरानीrsquo परभाव घस आय थ उनको दफर स lsquoबड़ी

ररतमrsquo की कतनषठा र िाया जा सका इस परकार कतहनद धरम और वणामशरर क परकतत दफर स िोगो को lsquoिायिrsquo

दकया यह lsquoिायकतिटीrsquo भारतद की रकतडकि वषणवता क जनरत क कतिए भी जररी था तिवार जी जब

आयमसराकतजयो की lsquoकााकततकारीrsquo भकतरका ददखात ह तब आयम सराज िारा आयामवतम को िायि बनान वािी

इस भकतरका की साकतशलषटता पर जयादा बात नही करत भारतद दयानाद क कााकततकारी परयासो र lsquoिायिrsquo

बनान की परदकया उसी वक़त दख रह थ और इसी कारण ररपोटम र दयानाद की आिोचना धयान दन िायक

ह सवारी जी न ldquoजाि को छरी स न काटकर दसर जाि ही स कतजसको काटना चाहा इसी स दोनो आपस

र उिझ गए और इसका पररणार गह कतवचछद उतपनन हआrdquo गह कतवचछद का रतिब कतहनद धरम र गह

कतवचछद जबदक कशवचादर सन क बार र कहा गया दक उनहोन जाि काटकर भकति की उचछकतित िहरो का

पररषकत पथ परकट दकया इस परकार रकतडकि वषणवता की lsquoअनयताrsquo और परररिक भकति क परशसत पथ क

सवीकार का कतनषकषम कतवचार सभा का भी कतनषकषम था धयान दन िायक ह दक कशवचादर की आिोचना उनक

कतचतत कतवकषप क कारण की गयी थी जहाा lsquoईसारसीह आदद उनस कतरित हrsquo य एक दकसर का इिहारी

अनभव था कतजस भारतद अपनी वषणवता स बाहर रखत ह ईशवर न इस ररपोटम पर अपना रत सरकतकषत

रख कतिया और भारतद कतिखत ह ldquoइसको दख कर इस पर कया आजञा हई और व िोग कहाा भज गए यह

जब कर भी वहाा जायग और दफर िौट कर आ सक ग तो पाठक िोगो को बतिावग या आप िोग कछ

ददन पीछ आप ही जानोगrdquo

३ जनरत और वषणवता

ककतववचन सधा ९ राचम १८७२ र भारतद न lsquoPublic Opinion In Indiarsquo नार स अागरजी र

एक िख परकाकतशत दकया िख र उनहोन कहा दक कई सददयो दक दासता क बाद भारतवषमहहादसतान अब

जाकर कतिरटश राषटर क सवोचच कतनयातरण र आया ह दश धीर-धीर सभयता और परबोधन की पकतशचरी दकरणो

क सहार दरन और कशासन क रतय-तलय कतनदरा स जाग रहा ह कतिरटश शासन की परगकततशीि नीकततयो का

परभाव यहाा की बहरपी आबादी पर पड़ रहा ह

ldquoBut in this progressive state national energy and zeal sympathy and

disintiredness are waiting to make both the conqueror and the conquered to act in

32

concert and in harmony and hence we have the broad distinction of white and

black still But in this country many are the blemishes that adhere to us to be

eradicated and many are the shortcomings that are hovering around us to be done

away with before we can have a public opinion here in its true senserdquo35

गोर और काि क बड़ भद को छोड़ कर कतवजता अागरजो और भारतीयो क बीच एक सराजन तो बन गया ह

पर अनदरनी ददककत अभी भी राह बाए खड़ी ह रौका ह दक इस परगकततशीि कतसथकतत का फायदा उठा कर हर

एक सचच जनरत का कतनरामण कर सचच िोकरत क कतनरामण र अादरनी बाधाएा कया थी भारतद न इस

आग सपषट करत हए कतिखा-

ldquoRace antagonism rivalry and mutual misunderstanding are the favourite

occupations of the aristocratic class Want of confidence among all classes of men

are the prevailing characteristic of the nation and above all multifarious castes and

creeds with there numerous forms of religion and local habits and customs which all

combined have kept the progressive policy at a stand still True it is that a

representative Government is a boon to this country and true it is that Sir Bartle

fregravere a man of vast experience and a good statesman has found out that in village

community we can have public opinion but with all his experience he has lost sight

of our national defects ndash defects which we ourselves know and which no foreigner

can catch at a glancerdquo36

भारतद इस बात को िकर कतनकतशचत ह दक िोकरत और परकततकतनकतधरिक सासथाओ क बहतर कतवकास क कतिए

सीध-सीध कतवदशी रॉडि कभी सफि नही हो पायगा ऐसा इसकतिए कयादक हरारी आपसी कतवकतभननताओ

और झगड़ो को कोई बाहरीकतवदशी सतता कभी भी परी तरह सरझ नही सकती lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo नार

35भारतद गराथाविी -6 361

36 वही

33

स भारतद का एक दसरा िख इस अागरजी वाि िख क दो साि बाद अपरि सन १८७४ र हररशचनदर

रगजीन र छपा पकतबिक ओकतपकतनयन कया बिा ह इस साफ़ करत हए भारतद िख क आरमभ र ही कहत

ह ldquoपकतबिक ओकतपकतनयन अथामत सब साधारण िोगो की राय कया वसत ह और इसर दकतना जोर ह और

इसक कतिए कया हो सकता ह यह परशन ठहरा तो इसका साधारण उततर यही ह दक यह वह वसत ह जो

सासार को एक कर सकती ह गागा की धरा दफर कतहरािय पर चढ़ा ि जा सकती ह सययम को पकतशचर उगा

सकती ह और चाह तो ईशवर को भी पकड़ क कठपतिी की भााकतत नचा सकती हrdquo37 यह पकतबिक

ओकतपकतनयन lsquoएक रतrsquo होना ह जस अिग अिग चार पतिी िककतड़यो को एक साथ बााध दन स उस

तोड़ना करठन हो जाता ह उसी तरह एक रत होन स बड़ स बड़ा बरी भी हरारा कछ कतबगाड़ नही सकता

बहत स िोगो का रत एक हो तो वह शकति बन जाती ह हिारो आदरी की बकतदध एक हो जाए तो ldquoऐसा

कौन कार ह जो न हो सक तो यह कतसदधाात हआ दक कतनशचय सब िोगो क रत र बड़ी सारथयम ह इसस यह

कतसदध हआ दक बिो स बड़ा बि एक रत ही हrdquo38

आग भारतद कहत ह दक यह जनरत और उसकी शकति हहादसतान क कतिए कोई नई बात नही ह

पराचीन काि र इसक उदाहरण कतरित ह lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo की इस धारणा को भारतद न इकततहास क

अिग-अिग दौर र बनत और कतबगड़त ददखाया सबस पहि चार वणो की िररत पड़ी सब कार को

सचार रप स चिन क कतिए दसर शबदो र कह तो शरर-कतवभाजन की िररत स इसका जनर हआ

lsquoकतहनदओ न अपन गर क कार र इस वणामशरर धमरम को इसी वासत बनाया कतजस र उन क दकसी कार र

कोई हजम न हो और उनिोगो न सासार क सब कारो र चार कार रखय सरझrsquo धरम कतवदया और किाओ का

कार िड़ाई और राजय परबाध का कार वयापार और धन और सब िोगो की सवा और रजदरी इन चार

कारो की सवयवसथा वािा वणामशरर दरअसि lsquoएक रतrsquo कतहनद वयवसथा या lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo थी पर

कािाातर र इस lsquoएकरतrsquo क भीतर जाकततवयवसथा कठोर हो गयी और िाहमण और शदर दोनो एक दसर क

कतखिाफ हो गए एकरत र कतवचछद पदा होन स कतहनद शकति करिोर हो गयी भारतद क अनसार आपस

का यह झगड़ा बड़ा कतवनाशकारी साकतबत हआ पकतबिक ओकतपकतनयन क कतबना वयाकतभचार और जयादकततयो का

अाधर था आग चि कर जनो क जरान र दफर lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo न जोर पकड़ा बकतलक भारतद जोर

दकर कहत ह दक जनो क रत की उततपकततत ही lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo स हई ldquoकतहनदओ क जब नाश क ददन

जब कतनकट आय तो आपस र परसपर बड़ा कतवरोध खड़ा हआ और उस काि र िाहमणो का बड़ा जोर था

वरन य और वणो पर जयादती करत थ तो वशय और कषकततरयो की रकतत इनस दफर गयी और बाब वािी बड़ी

37गराथाविी- 678

38वही

34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

36

कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

37

उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

38

ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 4: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

4

करत हए उनहोन कतिखा दक उननीसवी सदी का भारत औदयोकतगक कााकतत स काफी दर था और अगर उननीसवी

सदी को आधकतनक काि की शरआत रान कतिया जाएगा तो रानना पड़गा दक भारतद क साकतहतय र

पाजीपकतत वगम और औदयोकतगक सवमहारा क साघषम का कोई न कोई कतचतरण जरर कतरिना चाकतहए और अगर

ऐसा नही कतरिता ह तो यह रानना पड़गा दक lsquoआधकतनक काि की शरआत तो हो गयी पर साकतहतय र

आधकतनकता का अकाि बना रहाrsquo जबदक पाजीवादी कतवकास की जो परदकया बारहवी- तरहवी सदी र

सारातवाद क गभम स कतवककतसत हई थी उननीसवी शताबदी र वही चिी आ रही ह- अागरजो का काि उसको

अवरदध करता ह पर वह रक नही सकती इसकतिए परकतत कााकततकारी शकति क रप र उपकतनवशवाद क भीतर

स चिी आती परापरा र ही भारतद यग नवजागरण की तरह ह बीच का यग lsquoकतवसरकततयोrsquo का यग नही

था वरन शकति सातिन र जागरण की शकतियाा ससपत पड़ी थी १८५७ र वह साराकतजक- राजनीकततक

जीवन र दफर स िोकशकति क रप र उठ खड़ी हई इस परकार lsquoहहादी जाकततrsquo का ही रानो lsquoनवजागरणrsquo

हआ ह यह lsquoहहादी जाकततrsquo कतवकतशषट होकर भी राषटर की सापणम पररकलपना ह कतजसका पता उस इशतहार स भी

चिता ह जहाा lsquoसार दशrsquo को साबोकतधत दकया गया था

साकतहतय र यह जागरण िोक बोकतियो स अपनी ऊजाम गरहण करता ह िोक बोकतियो स कतवककतसत

हहादी जातीयता १८५७ र उपकतनवश कतवरोधी चतना क साथ कतरिकर नवजागरण का रप गरहण करती ह

इसकतिए यह हहादी नवजागरण भी ह इस पररकलपना र पाजीवादी कतवकास की पररणकतत क बीज बारहवी-

तरहवी सदी र ही पड़ गए थ अब सामराजयवाद- सारातवाद कतवरोध का राषटरीय चररतर पाजीवाद को पणम

कतवककतसत करन र ह तब जाकर सवमहारा की चतना का उदय होगा साकतहतय क भीतर भारतद यग न उसी

परदकया क नए अधयाय की शरआत की थी अागरजी राज को भारतद न lsquoपगमबर चसाrsquo की तरह दखा था

इसी पगमबर चसा क कतखिाफ दशी वयापाररयो को दशी पाजीपकतत बनान का उदयोग करना चाकतहए यही

सवदशी का ररम था इन नए दशी पाजीपकततयो क कतवकास क कतिए कशि कारगारो की जररत थी और

इसकतिए जररी था दक कतशलप कतवदयािय का कतनरामण कतशकषा नीकतत र शाकतरि दकया जाय अागरज परसती का

जो सवर भारतद क यहाा ददखाई दता ह उसको रारकतविास जी न lsquoगौण अातरवमरोधrsquo राना ह इसी तरह

सामपरदाकतयकता आदद क परशन गौण अातरवमरोध ह वह इन गौण अातरवमरोधो की वसतरतता को परकट करत हए

कहत ह ldquoभारतद हररशचादर न और उनक सरकािीन िखको न कई जगह अागरजो की और अागरजी राज की

परशासा की ह इस सनदभम र याद रखना चाकतहए दक १ रानी कतवकटोररया क घोषणापतर स कछ िोगो क

रान र वासतकतवक भरर पदा हआ था दक दश की दशा सधार जाएगी २ राजभकति का परदशमन अकतधकतर

शाही खानदान क िोगो क परकतत होता था और उनस अागरज अकतधकाररयो को अिगाया जाता था ३

राजभकति की आड़ र जनता की बदहािी पर धयान ककतनदरत दकया जाता था और अागरज ऐसी राजभकति को

5

शक की कतनगाह स दखत थ आदद आददrdquo7 इसी तरह lsquoहहादी नई चाि र ढिीrsquo कहकर भारतद भाषा क

बदि दरअसि साकतहतय क नयपन को ददखा रह थ और साकतहतय का यह नयापन रखय अातरवमरोधो को परकट

करन र ह िोकसाकतहतय और रौकतखक साकतहतय र १८५७ की ओजकतसवता चिी आई थी और भारतद यग क

साकतहतय र जो ऊजाम जो चरक जो नयापन था वह उसी िोक और रौकतखक साकतहतय स पररणा पाती थी

यह सारा साकतहतय चादक अागरजी काननो स बाहर था इसकतिए भारतद यग को यह सहज ही उपिबध था

यह सारा साकतहतय कतवचारधारातरक रप स सदीघम उपकतनवशवादी िट की सरकतत और १८५७ र झिक उठन

वािी उपकतनवश-कतवरोधी lsquoजातीयता की सरकततrsquo दोनो को अपन भीतर कतिए थी भारतनदयगीन साकतहतय

रणनीकततक रप स कछ ऐसी चीज करता था कतजसस वह अागरजी कोप और कानन स बचा भी रह और

जातीय चतना को एक आनदोिनकारी रप भी द सक रारकतविास जी रनजर पााडय की इसी बात की

आिोचना करत ह दक वह गौण कतवरोधो को जयादा रहततव दत ह परगकततशीि आनदोिन क आताररक

अातरवमरोधो को असवीकार तो रारकतविास जी न भी नही दकया पर इसक चित होन वािी गिकततयो की

तरफ उनहोन इशारा जरर दकया था

भकति और रीकतत काि को दो आताररक परवकतततयो क रप र न दखकर जब दो कतभनन कािखाड रान

कतिया जाता ह तब इकततहास-दकतषट का एक भरारक रप खड़ा होता ह भकतिकाि र भकति रखय धारा थी और

रीकतत गौण और रीकतत काि र रीकतत रखय धारा बन गयी और भकति गौण इस परकार दखन पर पता चिता

ह दक िोकजागरण की परगकततशीि धारा ख़तर नही हो गयी थी या अवरदध नही हो गयी थी बकतलक गौण

धारा क रप र चिी आ रही थी रनजर पााडय क अनसार बारहवी सदी स आरमभ होन वािा वयापाररक

पाजी का कतवकास सफि नही हआ और साराती वयवसथा जस की तस बनी रह गयी सराज की साराती

अकतधरचना और उसका आधार दोनो करजोर जरर हए पर बन रह उनक अनसार ldquoभकति आादोिन

साराती सराज र कतवककतसत सौदागरी पाजीवाद और जातीय कतनरामण क फिसवरप उतपनन साराकतजक साबाधो

की साासककततक अकतभवयकति ह रीकततकाि का साकतहतय सारात कतवरोधी साराकतजक साबाध (साबाधो) और

साासककततक चतना क अवरदध होन का पररणार तथा परराण हrdquo8 रारकतविास जी इस अवरदध होन क तकम

को सवीकार नही करत उनक अनसार यह शकति सातिन सौदागरी पाजीपकतत और जरीदारो क बीच का

शकति सातिन था ऐसा नही था दक पाजीवाद का कतवकास अवरदध और कतनषफि हो गया था भकति स रीकतत

र साासककततक जागरण का पयमवकतसत होना एक lsquoछोटी टरजडीrsquo ह अथामत गौण अातरवमरोध ह जबदक अागरजी

राज की सथापना lsquoबड़ी टरजडीrsquo ह इसकतिए सवाभाकतवक जातीय पाजीवाद या भारतीय पाजीवाद की गकतत

7 वही पषठ- १९

8 वही उदधत पषठ ३१

6

अवरदध होती ह अागरजी राज र रारकतविास जी पााडय जी पर आरोप िगात ह दक उननीसवी सदी र

औदयोकतगक कााकतत स शर होन वािी आधकतनकता एक ऐसी कलपना ह जो इस lsquoबड़ी टरजडीrsquo को भि जाती ह

जबदक बड़ी टरजडी रखय अातरवमरोध क कारण बनती ह

रारकतविास जी न एागलस क हवाि स ददखान की कोकतशश की ह दक पाजीवादी शासन की नीव

डािन वािो को पाजीवाद की सीराओ क अनदर ही दखना एक बड़ी भि ह पनजामगरण क नताओ और

उनक परकततभाशािी वयकतितव र पाजीवाद की सीरा और उसका अकततरक भी था इस बात का जो िोग

धयान नही रखत उनक यहाा आधार और अकतधरचना या वगम और साकतहतय की यााकततरक सरझ होती ह

भारतद आदद साकतहतयकारो क इस अकततरक को कतचकतननत करन क कर र ही रारकतविास जी lsquoरखय

अातरवमरोधrsquo क परकततकतबमब को सारन रखत ह पाजीवादी सीराओ र नही बाध होन का रतिब एागलस क

कतिए रजदर वगम की परापरा क पवम पकष स ह जहाा एागलस पनजामगरण क कतवशवजनीन रलयो और पराककततक

कतवजञानो क कााकततकारी रहततव को रखाादकत करत ह lsquoपरककतत की िािातरकताrsquo र एागलस न यााकततरक

भौकततकवाद की आिोचना की ह और ददखाया ह दक अठारहवी सदी र फाासीसी यााकततरक भौकततकवाददयो न

भौकततकवाद क नार स कतजस कतवचारधारा का परचार दकया उसका िािातरक भौकततकवाद स कतवरोध ह9

रजदर वगम की कतवचारधारा का पनजामगरण स साबाध एागलस उननीसवी शताबदी क आकतखरी दशको र ददखा

रह थ उनहोन ददखाया दक जरमन शासतरीय दशमन र जो कछ रहान था उन सबका सीधा वाररस जरमन

पाजीपकतत वगम नही बकतलक जरमन रजदर वगम था इसी तरह राकसम न पाजी-१ की भकतरका र जरमन रजदर

वगम को जरमन बजमआ हचातको और कतवचारको स जयादा ऊननत कतवचारधारातरक चतना स िस बताया ह

राकसम न १८४८ स १८५२ की कााकततयो और परकततकााकततयो क कतवशलषण क बाद १८५७ क कतवदरोह को भी

lsquoभारतीय सवाधीनता आादोिनrsquo की तरह कतवशलकतषत दकया था इन कतवशलषणो र बाद तक राकसम थोड़ा थोड़ा

पररवतमन करत रह थ परनत कतनकतशचत रप स औपकतनवकतशक पाजी क कतवसतार और यरोपीय कााकततयो क

आपसी ररशतो को वह दकसी यरो ककतनदरत दकतषट स नही दख रह थ राकसम क सारन रखय सवाि पाजी क

वकतशवक चररतर और उसक कतखिाफ कतवदरोह की कतवकतशषटता को पहचानन का था राकसम दख रह थ दक इागिणड

र रजदर वगम क आनदोिन क कतिए या यरोप र रजदर वगम क आनदोिन क कतिए उपकतनवशो क भीतर होन

वाि कतवदरोह की साभावनाओ का कया रहततव था १८४८ की रहािीपीय कााकतत की इागिणड र होन वािी

परकततदकया को राकसम इन शबदो र सारन रखत ह- ldquoजो िोग अभी भी कछ वजञाकतनक सरझ का दावा करत

थ और शासक वगो क रातर सोदफसस या साइकोफनस स कछ जयादा होन की इचछा रखत थ उन िोगो

न सवमहारा क दाव क साथ कतजसकी अनदखी अब साभव नही थी पाजी क राजनीकततक अथमशासतर क सरनवय

9 कतवसतत चचाम क कतिए दख अधयाय तीन

7

की कोकतशश की इस परकार एक कतछछिा सरनवयवाद सारन आया कतजसक सबस बड़ परकततकतनकतध जॉन सटअटम

कतरि ह यह lsquoबजमआrsquo अथमशासतर क ददवाकतियपन की घोषणा हrdquo10 यह बात पाजी की भकतरका र राकसम

१८७३ र कतिख रह ह जरमनी क बार र कतिखत हए वह कहत ह दक वहाा पाजीवादी उतपादन पदधकतत क

पररपकव होन क पहि ही उसका शतरतापणम चररतर (एाटागोकतनकतसटक) अपन को परकट कर चका था यह साभव

हआ था फ़ाानस और इागिड र होन वाि ऐकततहाकतसक साघषो क कारण11 इस तरह जरमनी र बजमआ

अथमशासतर कवि बरी नकि क रप र ही कतवककतसत हो पाया कयोदक जरमन सवमहारा क पास बजमआ अथमशासतर

की सीराओ की आिोचना उपिबध थी ऐस ही सरय बजमआ अथमशासतर क रहनरा दो सरहो र बाट गए

एक तरफ यााकततरक और भौड़ा अथमशासतर बघारन वाि िोग थ दसरी ओर कतरि क अनयायी थ कतजनहोन

असराधय क बीच सागकतत कतबठानी चाही पर य सार परयास असफि होन को बाधय थ कयोदक उनकी

आिोचना पहि स ही वहाा परापत थी राकसम कतिखत ह ldquoइसकतिए जरमन सराज क कतवकतशषट ऐकततहाकतसक

कतवकास न दकसी lsquoबजमआrsquo अथमशासतर क कतवकास को बाहर रखा परनत उसकी आिोचना को बाहर नही

दकया जहाा तक इस तरह की आिोचना एक वगम का परकततकतनकतधतव करती ह यह कवि उसी वगम का

परकततकतनकतधतव कर सकती ह कतजसका ऐकततहाकतसक कायमभार पाजीवादी उतपादन पदधकतत को उखाड़ फ कना और

सभी वगो का अाकततर सफाया ह- याकतन सवमहाराrdquo12

भारतद यग क बजमआ अथमशासतर र जॉन सटअटम कतरि का दकतना परभाव था इस दहरान की जररत

नही lsquoआिोचनाrsquo क रप र सवमहारा वगम बजमआ अथमशासतर की असाभावयता ह यह lsquoआिोचनाrsquo जरमन

रजदर वगम को कतजतना अपन साघषो स परापत थी उतना ही फ़ाास और इागिणड क साघषो स भी भारतद की

आिोचना कतजस वगम का परकततकतनकतधतव करती ह वह रजदर वगम नही ह अागरजो की कतवजय और िट की सरकतत

क साथ पाजी की तथाककतथत आददर साचय की तरासद सरकतत भी ह तथाककतथत आददर साचय अगर रजदर

वगम की पररकतसथकतत ह तो यह सरकतत रितः रजदर वगम की तरासद सरकतत ह पर भारतद यग क साकतहतय को

या भारतद की रचनाओ र कतरिन वािी आिोचना दकतषट का जो पकष रारकतविास जी सारन रखना चाहत ह

वह उस तरासद सरकतत क साथ lsquoबजमआ अथमशासतरrsquo की सरनवयकारी आिोचना ह इसकतिए कह सकत ह दक

भारतद यग का १८५७ की lsquoआिोचनाrsquo क साथ साबाध सरनवयकारी ह भारतद क साकतहतय र कतरिन वािा

दकतचततापन इसी असराधय सराजन की कोकतशश क चित पदा हआ ह भारतद क साकतहतय र जहाा इस

सराजन का अकततरक ह वह उनका उजजवि पकष ह दसर शबदो र lsquoसवतव कतनज भारत गहrsquo या अकतसरता

कतनरामण या हहादी जातीयता का जहाा अकततरक ह भारतद का साकतहतय वही उजजवि ह lsquoअाधर नगरीrsquo क

10 कािम राकसम ककतपटि- वॉलयर १ अन बन फोकस पषठ ९८ पकतगवन बकस िादन- १९९०

11 वही

12 वही

8

रपक र हर इस तरह का एक अकततरक ददखाई दता ह जहाा lsquoअाधर नगरीrsquo राजय सतता हहासा और नयाय क

अकतनवायम साबाधो का रपक ह भारतद क परहसनो और वयागयो र जहाा कही इस असराधय सराजन का

खोखिापन उजागर होता ह भारतद का वतमरान अथम उनही र राना जाना चाकतहए

िोकजागरण की कतवचारधारा क रप र भकति रारकतविास जी क कतिए भी वषणवता क अनदर ही

पररभाकतषत थी अकारण नही दक भारतद को वह तिसी की परापरा का नवजागरण रानत थ भकति की

इस कतवचारधारा क कतखिाफ सातरत की कतवकतशषटताओ को वह निरअादाज करत ह अगर सातरत कारीगरो

और कतनमनवगीय जनता का साासककततक और इसकतिए राजनीकततक परयास था तो उस कवि भाषा या बोकतियो

स बनन वािी lsquoजातीय चतनाrsquo र कतनसशष नही दकया जा सकता कबीर आदद सातो क िोकजागरण स

भारतद क नवजागरण का साबाध रारकतविास जी न नही ददखाया ह कबीर आदद क यहाा जो जयोकतत ददखाई

पड़ी थी उस वषणव भकति की कतवचारधारा क बड़ परवाह र सरझन स यह ददककत पदा होती ह रखय

अातरवमरोध क भीतर जो शतरतापणम कषण ह उस दकतषट स ओझि करन का कार ही परभतवशािी कतवचारधारा

करती ह रारकतविास जी पाजी क अातरवमरोधी चररतर को तो दखत ह िदकन यह नही दख पात दक

अातरवमरोधो स ही वह गकततशीि ह राकसम न इनही अथो र पाजी को lsquoगकततशीि अातरवमरोधrsquo कहा था

परभतवशािी कतवचारधारा भी अपन भीतर क अातरवमरोधो स ही आग बढ़ती ह भकति और रीकतत या कतनगमण

या सगण ऐस ही अातरवमरोध ह भारतद यग भी अपन अातरवमरोधी चररतर स ही बन रहा था उपकतनवशवाद

का कतवरोध भी उपकतनवशवादी कतवकास का ही कतहससा था सारातवाद स पाजीवाद र साकरण कवि

सारातवाद कतवरोध क रप र ही नही कतवककतसत होता बकतलक वहाा पाजीवाद क अकततकरण की साभावना भी

अनतरनमकतहत होती ह जो बाद र पाजी क कतवकास क दौरान पाजी क साराकतजक साबाधो र बदि जाता ह

थॉरस रनतसिर क नततव र हए कषक कतवदरोह र एागलस न या रधयकािीन कतवधरी आनदोिनो र कतसतरयो

की भकतरका ददखान क कर र कतसकतलवया फददरची न इस अकततकरण को और पनः पाजी क साराकतजक साबाधो

र रपाातरण की परदकया को ददखान की कोकतशश की ह13 पाजीवाद की काकतनतकारी भकतरका पर जोर दन स

उसकी परकततकााकततकारी भकतरका आाखो स ओझि हो जाती ह lsquoइकततहास जसा था वसा पान कीrsquo कोकतशश की

यह अकतनवायम सीरा ह अागरजी राज की िट पाजी की िट थी भारतीय आतर या हहादी जाकतत का

आतरकतबमबअाततः इस िट को कतछपान वािी और उस भिान वािी रोहक कलपना थी कही १८५७ स

भारतद यग का साबाध ददखाना भी एक रोहक कलपना ही तो नही ह

13 दख फडररक एागलस द पीजट वॉर इन जरमनी परोगरस पकतबिशसम रासको- १९७७ और कतसकतलवया फददरची ककतिबन एाड द कतवच फोकतनर

बकस ददलिी- २०१३

9

नारवर जी न नवजागरण को ररनसाास क बदि परबोधन या एनिाइटनरट की तरह दखन की बात

कही थी और कहा था दक इस नवजागरण का १८५७ स कोई भी साबाध कतशषट साकतहतय र नही ददखाई

पड़ता रारकतविास जी क िख क दो साि बाद lsquoआिोचनाrsquo र नारवर जी न lsquoहहादी नवजागरण की

सरसयाएाrsquo नार स एक िख कतिखा उपरोि दो चीज नारवर जी न उसी िख र कही ह उननीसवी सदी क

भारतीय नवजागरण को ररनसाास कहन र कई ददककत ह यरोप र कतजस lsquoररनसाासrsquo lsquoररफारशनrsquo या

lsquoकतचनकवचतोrsquo आदद कहा जाता ह वह पादरहवी शताबदी का नवजागरण था पादरहवी शताबदी र भारत भी

भकति आनदोिन क रप र एक जागरण स गजर रहा था इसकतिए नारवर जी कहत ह दक अगर उननीसवी

सदी क नवजागरण को ररनसाास कहग तब पादरहवी शताबदी क भकति आनदोिन को कौन सा जागरण

कहग रारकतविास जी इसीकतिए एक को िोकजागरण और दसर को नवजागरण कहत ह नारवर जी

कतिखत ह ldquoउननीसवी शताबदी क भारतीय नवजागरण को lsquoररनसाासrsquo कहन र एक करठनाई तो यह ह दक

इस यग क भारतीय कतवचारको और साकतहतयकारो क पररणासरोत यरोप क पादरहवी शताबदी क कतचनतक और

साकतहतयकार न थ बकतलक इसक कतवपरीत पररणासरोत क रप र अकतधकााश कतवचारक उस काि क थ कतजस

यरोप र lsquoएनिाइटनरटrsquo का काि तथा उसक बाद का काि कहा जाता ह सवया बादकर की सहानभकतत

रसो और परधो क साथ थी और व कोत जॉन सटअटम कतरि तथा हबमटम सपसर स परभाकतवत ददखाई पड़त

हrdquo 14 इस परकार यह lsquoनवजागरणrsquo lsquoपरबोधनrsquo की चतना क तलय ह और इसकतिए इसकी अातवमसत

lsquoिोकजागरणrsquo स कतभनन ह यदयकतप एक र दसर की चतना lsquoअाशतः कतवदयरानrsquo ह पर नवजागरण

िोकजागरण का पनरतथान रातर नही ह नवजागरण का नततव करन वाि रधयवगीय थ िोक क बीच स

नही आन क चित उनका सारानय िोक जीवन स एक दराव था और कतवचारो र िोकोनरख होकर भी

वयवहार र उनका िोक क साथ कोई तादातमय नही था नवजागरण का परभाव शहरो तक सीकतरत था और

इसकतिए िोकजागरण की तिना र इसका परसार भी सीकतरत था नारवरजी इस नवजागरण को रखयतः

साासककततक आनदोिन क रप र दखन की कतहरायत करत ह पर सवाि यह ह दक इस साासककततक आनदोिन

की राजनीकतत कया थी

भारतद क शबदो र नारवर जी भारतीय नवजागरण की रि सरसया lsquoसवतवrsquo या lsquoअकतसरताrsquo की

सरसया बतात ह धयान रखन वािी बात ह दक परबोधन या एनिाइटनरट की एक रि सरसया अकतसरता

की सरसया ह lsquoपरबोधन की िािातरकताrsquo नारक अपनी दकताब र एडोनो और हाखमइरर न ददखाया ह दक

कस परबोधन या जञान की शकति न यथाथम को कतरथ बनाया और कतरथको को यथाथम दकया एक पणय-वसत क

रप र जञान का उतपादन और पनरतपादन उननीसवी सदी की कतवशषता ह खासतौर स पवी कतवदया की रााग

14 नारवर हसाह हहादी का गदयपवम (सा) आशीष कततरपाठी पषठ-८६ राजकरि परकाशन नई ददलिी- २०१०

10

बािार र बहत थी जञान का कतवकतनरय एक बड़ बािार र हो रहा था और जञान की सारचना और उसकी

सापणमता एक फरटसाइजड कतवशवदकतषट बनाती थी कतभननता ह इसकतिए कतवकतनरय ह हर चीज जो कतवकतनरय र

शाकतरि ह रनषय की दकसी न दकसी जररत को परा करती ह य जररत य इचछाएा कवि पट स पदा नही

होती बकतलक कलपनाओ स भी पदा होती ह परबोधन की िािातरक परदकया क भीतर कतवजञान और धरम दोनो

न रनषय क कलपनाजगत की इचछाओ को भी परा करन वािा बािार बनाया कतभननताओ की

वासतकतवकताओ को छपान क कतिए या दसर शबदो र कह तो जञान की वासतकतवक जररत को छपान क कतिए

जञान का एक भरर खड़ा दकया जाता ह ठीक वस ही जस बजमआ अथमशासतर पाजीवाद की अतारकमकता को

ढाकन और दबान की परदकया र ही बना था पराककततक कतवजञानो क भीतर स कतनकिन वािी दो तरह की

कतवचारधाराओ की रााग बहत थी एक अटठारहवी सदी र िोककतपरय lsquoयााकततरक भौकततकवादrsquo की कतवचारधारा

और दसरी जीवकतवजञान स आन वािा कतवकासवाद का कतसदधाात राजनीकततक अथमशासतर क कतिए भारत र जॉन

सटअटम कतरि आदद िखको क बजमआ अथमशासतर का नया बािार था तकम की सावमभौकतरकता को उसकी

वासतकतवक जररत स काटकर lsquoअकतसरता कतनरामणrsquo स जोड़ ददया गया जो इकततहास कतरथ क अात का दावा

करता था वह सवया कतरथ गढ़न िगा यह सब साभव हआ उस कतवशाि जनसारानय क भय क सहार

कतजनहोन अपन ऊपर अपना कतनयातरण खो ददया था धरम इस भय क सहार कतवजञान की आिोचना करता था

और कतवजञान धरम की परबोधन-पवम की परापरा र जो आसथा या कतवशवास और जञान का अकतनवायम साबाध था

उसक सहार धरम आसथाकतवहीन जञान की आिोचना क िारा कतवशाि जनसारानय की रकति का कारोबार

करता ह

परबोधन की एक धारा आिोचनातरक जञान की धारा थी कतजसकी आिोचना राकसम न

lsquoआिोचनातरक आिोचना की आिोचनाrsquo कहकर की थी भारतीय नवजागरण क भीतर आिोचनातरक

जञान की धारा को नारवर जी न रहतवपणम राना ह यह ldquoआिोचनातरक दकतषट यरोप क lsquoपराचयकतवदयावादrsquo

(ओररएणटकतिजर) क इस उपकतनवशी रायापाश को कतछनन करन की चतावनी दती हrdquo15 यह उपकतनवशी

रायापाश पाजी का रायापाश भी ह जञान की पाजी का रायापाश कतजस हर पराचयकतवदयावाद का रायापाश

कह रह ह वह आिोचना-परतयािोचना की एक तथाककतथत िोकताकतनतरक परदकया र ही बन रहा था

इसकतिए इस आिोचना-परतयािोचना की परदकया की आिोचना क सनदभम र ही हर उस आिोचनातरक

धारा की चचाम कर सकत ह और कहना न होगा दक यह एक राजनीकततक करम भी ह नारवर जी न कहा दक

भारतीय नवजागरण र lsquoसवतव पराकतपतrsquo का साबाध राजनीकततक रकति स नही जोड़ा गया ह राजनीकततक

सवाधीनता अथामत lsquoराजसतता पिटन क कतवचार को अातगमहावास द ददया गयाrsquo इस तरह १८५७ या उसक

15 वही पषठ- ८७

11

पहि क दकसान कतवदरोहो क भीतर जो राजसतता पिटन का कतवचार था उस भारतीय नवजागरण न

अातगमहावास दन का कार दकया अतः भारतीय नवजागरण रखयतः साासककततक आिोचना ही थी

राजनीकततक आिोचना को गहावास दन वािी साासककततक आिोचना वह कतिखत ह ldquoसच तो यह ह दक

अकतधकााश िखक सरकषा सशासन कतशकषा उननकतत और शााकतत क कतिए कतिरटश राज क परकतत उपकत अनभव

करत ह- कतवशष रप स रगिो क शासन की तिना र इस परवकततत क अवशष बीसवी शताबदी क दसर

दशक तक रकतथिीशरण गपत की lsquoभारत भारतीrsquo जसी राषटरीय कही जान वािी कावय-ककतत र भी कतरिती ह

यहाा तक दक कभी-कभी तो नवजागरण क अनक उननायक राजसतता क साथ सहयोग करत भी ददखाई पड़त

ह अब इस कोई चाह तो नवजागरण क उननायको का रधयवगीय अथवा भदरिोक चररतर कह ि अथवा

दकसी सागरठत राजनीकततक परकततरोध क अभाव क िारा इस कतनरपायता की वयाखया कर ि दकनत हर हाित

र यह तथय कतवसरत न हो दक कि कतरिाकर था यह रितः नवजागरण ही- साासककततक नवजागरण कतजस

राषटरीय सवाधीनता साघषम का पवमराग भि कह ि दकनत उसका पयामय न सरझrdquo16 इसी साासककततक

नवजागरण स वह lsquoआतरकतबमबrsquo तयार हआ कतजसक कतबना राजनीकततक साघषम का वह रप कतवककतसत नही होता

जो आग चिकर वासतव र हआ अजञय की इस वयाखया स नारवर जी सहरत ह दक राजनीकततक-साराकतजक

आधारो की वासतकतवकता क बावजद भदरवगीय साासककततक आनदोिन न जो lsquoआतरकतबमबrsquo रचा वह

राजनीकततक सवतातरता साघषम र हकतथयार बन गया राजनीकततक सवतव पराकतपत की जो चतना इस पररणापरद

आतरकतबमब र अातगमहावास कर रही थी आग चिकर वही राजनीकततक सवतव पराकतपत र उभरकर कतनज

कतवककतसत होती गयी एक बार दफर lsquoइकततहास जसा था वसा पानrsquo की कोकतशश र इकततहासवाद की

कतवचारधारा सारन आ खड़ी होती ह इस इकततहासवाद की आिोचना गरामशी न भी की थी खासतौर पर

कोच क परर इकततहासवाद की आिोचना करत हए सवाि ह दक सासककततकरम की राजनीकतत कया ह

ददरागी गिारी स रकति का साघषम और राजनकततक रकति का साघषम कया इस तरह क अिगाव र रह सकता

ह और अगर अिगाव ह तो इस अिगाव को कस सरझ एक बार यह तय हो जान पर दक उनका वगम

कया था हर उसी क आिोक र उनक साासककततक परयासो की आिोचना करनी चाकतहए दसर शबदो र

उनक अपन वगीय अातरवमरोधो क आिोक र ही उसकी आिोचना साभव ह उपकतनवशवाद की रानकतसक

गिारी क कतखिाफ साघषम जञान की सतता क कतखिाफ साघषम ह और शायद इसकतिए नारवरजी कहत भी ह दक

यह साघषम राजनीकततक साघषम स lsquoकर करठन न थाrsquo यरोपीय जञान क बरकस भारतीय जञान को सथाकतपत

करन का साघषम ही यह साघषम था ldquoउपकतनवशवाद की छाया र भारतीय सासककतत क िोप का खतरा था

इसकतिए अपनी सासककतत की रकषा का परशन सवतव-रकषा का परशन बन गयाrdquo17 सतता पिटन क कतवचार को

16 वही पषठ ८८

17 वही

12

अातगमहावास दकर सवतव-पराकतपत सवतव-रकषा का परशन बन गया और यह सवतव कया था कतजसकी रकषा

साासककततक रोच पर नवजागरण क परसकताम कर रह थ- कलपना या यथाथम परबोधन न जञान का एक कतरथ

तयार दकया और चपक स कतरथको को जञान बना ददया इस नवजागरण की एक बड़ी दन एक परकतत-

इकततहास-दकतषट का कतवकास ह नारवर जी कतिखत ह ldquoनवजागरण की एक बहत बड़ी दन साभवतः वह

इकततहासदकतषट ह कतजसस अपन अतीत को शतर स रि करक उसक कतवरदध वतमरान र इसतराि करन की किा

आती ह और भकतवषय क कतिए सवपन दकतषट भी कतरिती हrdquo18 अगर वासतव र यह दकतषट नवजागरण की दन ह

तो रानना पड़गा दक यह फासीवाद की इकततहासदकतषट ह एक ऐस रकतसिर अतीत की कलपना जहाा रकतसिर

शतरओ स भारतीयता को रि करक वतमरान र उनक कतखिाफ इसतराि दकया जाता ह और इसस भकतवषय

की एक सवपन दकतषट भी भी कतरिती ह कहना न होगा दक परबोधन स कतनकिी यह इकततहासदकतषट अतारकम क

नही थी कयोदक यह साघषम की वासतकतवकता का सबस भरकतरत रप खड़ा करती ह फासीवाद इस अथम र वगम

साघषम का सबस कतरथकीय रप ह और अगर यह सही ह तो सवतव-रकषा र परापत इस इकततहासदकतषट को हर

परकततकााकतत की इकततहासदकतषट कह सकत ह भारतीयता का यह भरकतरत आतरकतबमब सवया को दो बनाकर ही

गकततशीि था यही इकततहासदकतषट आग चिकर lsquoकतवरदधो का साराजसयrsquo की इकततहासदकतषट क रप र इकततहास

का सबस भवय ढााचा खड़ा करती ह आतरकतबमब क इस कतवखाडन को िकषय करत हय नारवर जी न कतिखा

ldquoहरानी की बात ह दक हहादी परदश का नवजागरण धरम इकततहास भाषा सभी सतरो पर दो टकड़ हो गया

सवतव रकषा क परयास धरम तथा सापरदाय की जरीन स दकय गएrdquo19

आतरकतबमब का यह दो होना िखको क दो वगो र परकततहबाकतबत हआ नारवर जी क अनसार एक

वगम अागरजो का घोर कतवरोध करता ह पर धरम-सासककतत और साराकतजक परथाओ क बार र परापरावादी ह

दसरा वगम अागरजी राज क परकतत नरर रख अपनाता ह पर अनय रारिो र या तो रिगारी ह या दफर

सधारवादी िखको का पहिा वगम भारतीय होन का दावा करता ह जबदक नररपाथी िखक पकतशचरोनरख

ह हहादी नवजागरण क नता जयादातर परापरावादी ह जहाा अागरजी कतशकषा का परसार जयादा हआ वहाा

पकतशचरोनरख िखक जयादा थ दयानाद की अपकषा भारतद का झकाव कशवचादर सन जस पकतशचरोनरख

िखको या सधारको क परकतत था ऐसा साभवतः वषणव भावकता क चित था नारवर जी भारतद र परखर

बकतदधवाद का अभाव पात ह पर उनकी रराकतनयत को रानवतावाद की कतवचारधारा स जोड़त ह

नवजागरण क इस साकतशलषट कतचतर को सारन रखन की कोकतशश र नारवर जी एक ऐसी इकततहासदकतषट

कतवककतसत कर रह थ जो अतीत को उसक सापणम अातरवमरोधो र पान की कोकतशश करता ह अतीत को खिा

18 वही पषठ-८९

19 वही पषठ ९१

13

छोड़ दन वािी यह इकततहासदकतषट या एक सातकतित इकततहासदकतषट का यह परयास खाड खाड कतबमबो की एक ऐसी

गकततशीिता का भरर पदा करती ह जो इकततहासवाद की एक पररख कतवशषता रही ह इस पकष पर सवया

नारवर जी का धयान था और आग चिकर उनहोन नवजागरण क इस कतरथकीय चररतर को सवया ही

आिोकतचत दकया इस आिोचना र वह नवजागरण को परबोधन कहन क बदि lsquoअकतभजञान-कािrsquo कहना

जयादा उपयि रानत ह खद lsquoनवजागरणrsquo नार को अागरजो की कलपना बतात ह और उननीसवी सदी को

lsquoसरकतत-भराशrsquo का काि कहत ह यहाा १८५७ स िकर भारतद और कतववकानाद सब एक कतरथकीय चतना क

भीतर सराकतहत ददखत ह और कतजस भारतीय नवजागरण कहा जाता था उस कतवपरीत जागरण रानत ह

इसी कतवपरीत जागरण का नार उनहोन अकतभजञान ददया 20 डा वीरभारत तिवार न कवि कतहनदी

नवजागरण को भारतीय नवजागरण की परकततकााकततकारी धारा कहा था वही नारवर जी अब पर भारतीय

नवजागरण को ही कतवपरीत जागरण कह रह ह और बहत हद तक सही कह रह ह

डा तिवार न अपनी lsquoरससाकशीrsquo र lsquoहहादी नवजागरणrsquo को एक भरारक पद बताया था न तो

इसका साबाध १८५७ स था न रधयकािीन भकति आनदोिन स और न ही जनवादी राषटरवाद की दकसी

अवधारणा स उनक अनसार परबोधन क कतववकवाद तथा धरमसधार-सराज सधार की कतरिी जिी परदकया

क रप र कतवककतसत होत बागािी या रराठी नवजागरण या भारतीय नवजागरण की परकततगारी धारा क रप

र कतवककतसत होन वाि भारतद आदद क साासककततक आनदोिन को lsquoहहादी आनदोिनrsquo कहना ठीक ह कतशकतकषत

रधयवगम क भीतर दो परसपर कतवरोधी धाराओ की चचाम डा तिवार करत ह एक धारा कतववकवाद की

धारा थी दसरी सनातनी कतहनद धरम की धारा रहाराषटर और बागाि र अागरजी कतशकषा क परचार-परसार न कतजस

नए धरम और सराज सधार को गकतत परदान की वह अपकषाकत अकतधक परगकततशीि धारा थी पकतशचरोततर यि

परानत क पवी इिाक खासतौर पर बनारस इिाहाबाद और बहत हद तक पटना कानपर भागिपर आदद

शहरो र कतवककतसत नव-रधयवगम इस परगकततशीि धारा क साथ नही था इसका सबस बड़ा कारण अागरजी

कतशकषा का अभाव था यि परानत र कोई धारा परगकततशीि भकतरका अदा कर रही थी तो वह कवि दयानाद

सरसवती की आयमसराजी धारा थी इस आयमसराज का भी अपना जनाधार सनातनी पाकतडतो या िाहमणो क

यहाा नही बकतलक नौकरीपशा अागरजी कतशकषा परापत वह भदरवगम था जो अपन धरम और सासकारो क कतपछड़पन

को िकर गिाकतनबोध स भरा था इस वगम को अपनी पहचान आयम सराज र ददखती थी आयम सराज क

रिवाद र तथा उसक तारकम क सथिवाद र आधकतनक होन का रासता ददखता था िहमोसराज और

कतथयोसोदफकि सोसाइटी दो ऐसी सासथाएा और थी जो यि परानत र धरम और सराज सधार का परयास कर

रही थी परनत इसका परभाव बहत सीकतरत था आरतौर पर यिपराात र रहन वाि बागािी अपरवासी ही

20 दख नारवर हसाह उननीसवी सदी का भारतीय पनजामगरण यथाथम या कतरथक (अन) पाकज पराशर पकषधर अाक ११ जिाई २०११

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इनक सदसय थ हहादी आनदोिन क नताओ न इन दोनो धाराओ की आिोचना की ह इनहोन दयानाद क

रिवाद की आिोचना अपनी परापरावादी करमकााडी दकतषट स की इनक अनसार उपकतनषद या पराण आदद

अगर अपराराकतणक भी ह तब भी चादक िोक र सवीकत ह इसकतिए उनह एकदर ख़ाररज करक कोई धरम या

सराजसधार नही हो सकता तिवार जी का कहना ह दक अपनी िचर दिीिो की आड़ र य िोग वसततः

सतरी कतशकषा कतवधवा कतववाह या आधकतनक जीवनशिी आदद की परगकततशीिता का कतवरोध कर रह थ यह

कतवरोध आरतौर पर सरदाय की रानयताओ को ही सारन रखकर दकया जाता था एक दकसर क

कतबरादरीवाद क भीतर स सरझौता करत चिन क कारण हहादी आनदोिन क नता अपन पाररवाररक या

वयकतिगत जीवन क उथिपथि स बचन की कोकतशश करत ह धरम इनक कतिए सधार का नही वरन

राजनीकततक हथका डा रातर था धरम की आड़ र य रकतसिर भदरवगम को अपना परकततयोगी साकतबत कर कतहनद

एकता की अपीि करत तादक इनह सरकारी नौकररयो र कछ कतवशषाकतधकार कतरि सक तिवार जी क

अनसार रकतसिर भदरवगम इन हहादी आनदोिन क परसकततामओ स कही जयादा परगकततशीि था उनक यहाा

आधकतनकता क परकतत जयादा खिी और कतववकसापनन दकतषट थी और उनहोन जोर दकर कहा दक हहादी आनदोिन

को सर सयद अहरद खाा जस दकसी सकषर कतववकवादी वयकतितव का नततव नही कतरि पाया हहादी

आनदोिन और नताओ क अातरवमरोधो को ददखात हए तिवार जी न भारतद की छकतव एक पतनशीि कतहनद

रोररटक की गढ़ी ह यहाा भारतद एक परकततनायक क रप र नजर आत ह

कतववकवादी इस धारा न राषटरीयता की जो धारणा गढ़ी वह रितः साापरदाकतयक थी अागरजी राज क

कतखिाफ अगर इनका साघषम सराज और धरम सधार को साथ-साथ रखन क बजाय उसर अिगाव करता ह

बकतलक उनक कतखिाफ जाकर सागरठत होन का परयास करता ह तो उसक सारन रकतसिर भय पदा करन क

अिावा और कोई रासता साभव नही था lsquoहहादी नागरी और गोरकषाrsquo आनदोिन इसकी सवभाकतवक पररणकतत

थी आग चिकर उननीसवी सदी क आकतखरी दशक र आकार गरहण करन वािी कतहनद राषटरवाद की यह

पषठभकतर ह इसक वग र दयानाद न भी साथ ददया कयोदक उनर भी पनरतथानवाद क बीज थ पवी परदशो

की अपकषा आयम सराज पाजाब र कही जयादा रकतडकि था आयम सराकतजयो की सदसयता की साखया पाजाब

क रकाबि यि परानत र जयादा थी पर वहाा कोई गणातरक पररवतमन साभव नही हआ और यह रहज

साखयाबि क रप र ही बना रहा इसका कारण उनहोन पाजाब की कतभनन नतततवशासतरीय अवकतसथकतत र

बताया ह पाजाब र िाहमणो का परभाव कर था कतजसका एक कारण रसिरानो क साथ िमबा सासगम और

कतसख धरम आदद का परभाव भी था इस तरह का कोई कतवशलषण पवी परदशो क बार र नही दकया गया जसा

दक बहत पहि रदमरशरारी की ररपोटम स ही हजारीपरसाद कतिवदी न दकया था अथामत रधययगीन कतसख

धरम क परभावो की तरह कबीरपाथी आदद सरदायो क परभाव और वषणवता क अातसबाधो की पड़ताि नही

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की गयी ह काशी क बनकरो की एक हड़ताि का कतिक रारकतविास जी बार बार करत ह जो १८३३ ई र

ही हई थी और इकततहासकार बिी क अनसार यह वक़त आरथमक साकट का भी वक़त था

भदरवगम का जो कतहससा हहादी आनदोिन क साथ था उस जाकतत वयवसथा की परानी रानयता को

बनाय रखन या उस रजबत करन की जररत कया कवि नौकररयो र कतवशषाकतधकार परापत करन क कतिए थी

या जाकतत वयवसथा रातर र आय एक रिगारी साराकतजक साकट का वह परकततदकयावादी रपाातरण ह शहरो

र आरथमक-वयापाररक गकततकतवकतधयो क कारण और आसपास क इिाको स परवासी रजदरो का आगरन तथा

बढ़ती वशयावकततत आदद क चित शहरी साराकतजक साबाधो र भी उथि-पथि थी ऐस सरय र सारदाकतयक

या कतबरादरी बोध lsquoएकाrsquo की भावना पदा करती ह तिवार जी इस नव-भदरवगम का अपन ही भीतर अिग-

अिग खााचो र बाट होन की बात करत ह अिग-अिग खााचो र बाट होन क चित यह भदरवगम रधयवगम की

कतवचारधारा अथामत कतववकवाद या नवजागरण को परापत नही कर पायी थी वगम था िदकन वगम की

कतवचारधारा नही थी खद भारतद क जीवन स हर उस दौर की अकतसथरता का कछ अादािा कतरिता ह

अकतसथरता और खााचो र बाटा रधयवगम दरअसि सापणम सराज र होन वाि एक आधारभत पररवतमन की ओर

इशारा करता ह यह पररपरकषय १८५७ की तरासदी का भी ह ऐसी कतसथकतत र हपराट पाजी क साथ बनन वािा

यह साासककततक आनदोिन था जहाा सवतव रकषा रखयतः अपन परान कतवशषाकतधकार की रकषा थी साराकतजक

साबाधो र आय उथि पथि क कारण उनह अपन कतवशषाकतधकार कतछन जान का खतरा साफ़ ददखाई द रहा

था जहाा अागरजी कतशकषा थोड़ा पहि ही परसार पा चकी थी वहाा कशि कारीगरो स िकर अधयापको और

परशासकतनक अकतधकारीयो क एक बड़ सरह न अपना नया कतवशषाकतधकार पा कतिया था साराकतजक साबाधो र

उनकी शरषठता उनक कतववकवाद क कारण बन चकी थी भारतद क एक शरआती िख lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

क राधयर स खााचो और जनरत की राजनीकतत को सरझन की कोकतशश आग करग

तिवार जी क अनसार दयानाद क कतवचारो क कतिए पाजाब जयादा गरहणशीि था कयोदक वहाा

जाकतत वयवसथा क बाधन पहि ही ढीि हो गए थ यिपराात र जाकतत क बाधन जायदा कठोर थ कतजन अथो र

कतिवदी जी रधय दश की रकषणशीिता का कतजक करत ह कछ-कछ उनही अथो र पर सवया दयानाद क

कतवचारो र कतववकवाद-पनरतथानवाद का दोरखापन कतरिता ह तिवार जी कहत ह दक कतजन सथि तको स

वह वदो की ओर िौटन को कहत थ आयम भाषा आयम जाकतत और आयम धरम की बात करत थ उसक कारण

ही इनका झकाव आग चिकर राषटरीय सवयासवक साघ की ओर होता गया पर आयम सराज क साराकतजक

सधारो और धरम सधारो की एकता क कारण वहाा वह साभावना भी थी कतजसक परभाव स आग चिकर बहत

सार कमयकतनसट कायमकताम भी कतनकि पररचाद राहि साकतयायन या गणश शाकर कतवदयाथी जस साकतहतयकार

और आनदोिनकताम आयम सराज क परभाव र थ आयम सराज तिवार जी क अनसार वासतकतवक साराकतजक

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पररवतमनो का सावाहक और सराज र वयकति स िकर साराकतजक जीवन क हर कषतर र गणातरक पररवतमन

िान वािा इसकतिए हो पाया कयोदक वहाा धरमसधार और सराज सधार अिग-अिग नही था दसरी ओर

हहादी आादोिन साापरदाकतयक जाकततवादी और सतरीकतवरोधी रलयो को ही सराज र फ़िान र कारयाब हआ

यह धारा अागरजो को अरजमयाा दकर नौकरी पान वाि रधयवगम की धारा थी

तिवार जी न भारतद की तकमशीिता को बहत कतनमन कोरट का कहा ह भारतद क चररतर र शायद

वह एक lsquoिमपनrsquo की छकतव भी दखत ह पसा उड़ान की वकतत सतरी क साथ वयवहार और उनक साबाध

चाररतरय बि का अभाव आदद आदद क सनदभम र वह कहत ह दक भारतद क चररतर र वह सदढ़ता या

सदाचाररता नही ह जो सराजसधार क कतिए आवशयक होती ह घर र पतनी उनह कभी पसाद नही आई

और वह बाहर रहदफ़िो र वाहवाही िटत रह रदमवादी दकतषट भी उनर कट-कटकर भरी थी भारतद क

इस चररतर की तिना तिवार जी न दो अनय परमपरावादी सधारको स की ह एक बागाि क राधाकाात दव

और दसर पाजाब क शरदधारार फलिौरी यदयकतप य दोनो भी भारतद की तरह परापरा की रकषा र ही सधार

की ओर अगरसर हए थ िदकन इन िोगो का चररतर जयादा परगकततशीि था इन दोनो की तिना र भारतद

का खिनायकतव और भी अकतधक उभरकर सारन आता ह सापकतकषक परगकततशीिता क कतनधामरण क कर र

भारतद अपन सापणम जीवन वयवहार र एक एाटी हीरो की तरह उभरत ह ठीक परान खिनायको की तरह

नही एाटी हीरो क साथ दशमक या पाठक की एक आतरीयता भी जड़ी रहती ह उसका चररतर ददराग र बस

जाता ह िदकन इसक चित यथाथम क ओझि होन का खतरा भी ह तिवार जी इसकतिए कदर कदर पर

उनकी साकतहकततयक छकतव क बरकस उनक राजनकततक- साागठकतनक जीवन वयवहार स बनन वािी छकतव को

सारन ररतमरान करत जात ह

अपनी परी आिोचना र तिवार जी भारतद की रचनाओ र कतरिन वाि भाषायी िदधड़पन और

राद तकमशीिता की चचाम तो करत ह िदकन व भारतद क वयागयो पर चचाम नही करत कया यह रहज

सायोग ह दक भारतद क परहसन lsquoअाधर नगरीrsquo का राचन आज भी परगकततशीि रलयो की परकततषठा ही करता

हभारतद क वयागयो या परहसनो र ऐसा कया ह कतजसर दहराव क साथ नवीन होत चिन की कषरता भी ह

भारतद क िखो या परहसनो या रपको र जो कही-कही वणमन या सावाद िारा वयागय का तीखा बोध पदा

होता ह उसकी शकति उनह कहाा स कतरिती ह वयागय की कषरता सवया र उनकी सकषर कतनररकषण र सरथम

दकतषट का परराण ह परान साराकतजक साबाधो र पररवतमन और तीवर पररवतमन क साथ साथ जो एक परहसन

चि रहा था उसका बोध भारतद को था भदरवगम क भीतर की कतववकवादी धारा का कतवकास भी कतहनद

राषटरवाद की कतवचारधारा र ही हआ परनत lsquoअाधर नगरीrsquo कया कतहनद राषटरवादी कतवचारधारा वािा परहसन ह

या कया यह कवि राषटरवादी कतवचारधारा का वाहक ह lsquoउरराव जान अदाrsquo र उभरकर सारन आन वाि

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साराकतजक साासककततक साकषोभ या उस वयापक टरजडी क सनदभम र दख तो भारतद क वयागय और परहसनो का

अथम थोड़ा और उभरता ह रकतलिका या राधवी स भारतद क साबाधो र कया उस तरासदी का सराग भी नही

ह वशयावकततत और पतनशीि रइसो का साकट एक दसर स अिग नही था उस सरय की औपनयाकतसक

ककततयो र वशयावकततत का सनदभम अवशय आता ह आग चिकर पररचाद की सरन बनारस र ही lsquoसवासदनrsquo

का सराधान ढाढ रही थी

भारतद क वयागयो पर रारकतविास जी का धयान था यह बात अिग ह दक अकतधकााश रौको पर

इनर वह जातीय चतना खोज कतनकाित ह बीस साि की उमर र भारतद न एक िख lsquoिवी पराणिवीrsquo नार

स कतिखा था रारकतविास जी इसका उलिख करत हए कतिखत ह ldquoगवनमर जनरि कतहनद क कतजस दरबार का

भारतद न वणमन दकया ह वह काशीराज क घर पर हआ था इसकतिए भारतद की सतयकतपरयता और भी

सराहनीय ह वहाा जो सजजन िोगो क नार कतिख रह थ उनका वणमन या दकया ह lsquoनार कतिखन वाि राशी

बदरीनाथ फि-फाि अबा पकतहन पगड़ी सज परान दादर की भााकतत इधर-उधर उछित और शबद करत

दफरत थrsquo िोग दकस तरह एक आनररी रकतजसटरट क lsquoकतसट डौनrsquo lsquoसटड अपrsquo कहन स उठत और बठ जात थ

इसका उनहोन बहत ही नाटकीय वणमन दकया ह आनररी रकतजसटरट का वयवहार हविदार का सा था कतसफम

हाथ र एक िकड़ी की कसर थी िोग कीरती पोशाक पहनकर गए थ ldquoसबक अागो स पसीन की नदी

बहती थी रानो शरीयत को सब lsquoअरघय पादयाrsquo दत थrdquo िोगो की उठा बठी और बहदा कवायद को िकषय

करक कतिखा था ldquoवाह-वाह दबामर कया था lsquoकठपतिी का तराशाrsquo था या बलिरटरो की lsquoकबायदrsquo थी या

बादरो का नाच था या दकसी पाप का फि भगतना था या lsquoफौजदारी की सजाrsquo थीrdquordquo21 काशी की इस सभा

र खद भारतद भी बठ थ इस परकार यह भारतद क वगम का परहसन भी था पतनशीि सासककतत की

आतरािोचना क कतबना यह साभव नही था बात कवि उमर की नही ह ठठ वतमरान र हसतकषप और उस

बदिन का बोध कतजन पतनशीि कतसथकततयो का आतर साकषातकार कर रहा था यह उसक परकतत एक

सवाभाकतवक सवतःसफतम परकततदकया थी यह तारकम क की नही बकतलक किाकार की सवतः सफतमता थी यह बात

सही ह दक भारतद कतवचारो की तारकम कता क रारि र उननीस पड़त थ पर इस करी को उनकी तीकषण

वसतकतनरीकषण दकतषट भर दती थी जीवन कतसथकततयो की कतवडमबना का बोध कतजतना गहरा था बदिन का

परयास उतना ही ऊजामवान था भारतद सवया अपनी भी कहानी कतिख रह थ lsquoपयार हररचाद की कहानीrsquo

कतिख रह थ भारतद क परहसनो र दकसी न दकसी पातर की भकतरका र हर जगह सवया भारतद भी ददख

जात ह अपन वगीय अातरवमरोधो का सवबोध उनक यहाा एकतिगोररकि हो जाता ह इस एकतिगरी र lsquoकतहनद

21 रारकतविास शराम पषठ- ६६

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भारतrsquo की रधर कलपना थी इसस इनकार नही दकया जा सकता भाव जगत का वषणव परर lsquoकतहनद भारतrsquo

की कलपना स परर र बदिता गया

भारतद की रचनाओ र कतवशवदकतषट की एकता खोजन पर हर परभतवशािी कतवचारधाराओ की

वयवसथा ही कतरिगी जञान और वयावहाररक सारानय बोध क बीच एक सदकय साबाध बनान क कर र ही

उनका सवाभाकतवक आवग कतजन वयावहाररक धाररमक कतवचारधाराओ र आतरकतबकतमबत होता ह व

परभतवशािी कतवचारधाराएा ह इन कतवचारधाराओ का कतनरामण कही बाहर स नही हो रहा था बकतलक

पराचयकतवदयाकतवदो की कलपना क साथ परसपर भागीदारी र बन रहा था इन कलपनाओ को यथाथम रप द

रही थी हपराट पाजी क साथ कतवककतसत होती lsquoबजमआ पकतबिक सफीयरrsquo की दकयाएा भारतद की सवाभाकतवक

सफरतम ततकाि ही एक फ टसी र बदिन िगती ह और दकयातरक होना चाहती ह ऐस ही सरय

पराचयकतवदया क पाकतडतो क िारा जगाय गए कतरथकीय परत भी आकर सर पर सवार हो जात ह पराचयवाद

दकसी परत-कतवदया स कर न था दखना चाकतहए दक भारतद की रचनाओ र कहाा परतो की दकतनया र यथाथम

का हसतकषप होता ह उनकी एकतिगरी कहाा कतसथकततयो क अकततरक को अकतभवयि कर रही ह जस भारतद की

lsquoअाधर नगरीrsquo ऐन हरार वक़त र राजयसतता का रपक बन जाती ह यह रपक राजयसतता र अनतरनमकतहत

हहासा की अकतनवायमता और नयाय क भरर का परहसन भी ह

२ धरम सधार पर कतवचार सभा

िहमो सराज या दयानाद सरसवती को खद भारतद कस दख रह थ इसका पता हर lsquoसवगम र कतवचार

सभा का अकतधवशनrsquo22 नारक एक वयागय रपक स चिता ह सवारी दयानाद सरसवती और कशवचादर सन

जब ररन क बाद सवगम पहाच तो ldquoवहाा एक बर बड़ा आनदोिन हो गयाrdquo रतय क कछ ही सरय पहि कतिखा

गया यह वयागय रपक अपन सरय क धरम सधार आादोिनो क चररतर की वयाखया करता ह सबस पहि

इसका परकाशन किकतत स कतनकिन वािी परकततकतषठत हहादी पकततरका lsquoकतरतर कतविासrsquo (जन १८८५) र हआ था

िहमो सराज और आयम सराज क आनदोिनो को भारतद इस सरय तक आकर एक तटसथ आिोचकीय दकतषट

स दखन का परयास करन िग थ सवगम र एकबारगी पदा हए इस आनदोिन र रोट तौर पर दो खर बन

गए एक इनका परशासक था दसरा हनादक पहिा कतिबरि ह दसरा काजरवरटव इन दोनो खााचो र

अनदफट एक तीसरा दि ह जो वषणव आतराओ का ह इस दि क सासथापक तो कतिबरि थ पर अब य

lsquoरकतडकलस कया रहा रकतडकलस हो गए हrsquo कतनकतशचत रप स इन रहा रकतडकलस आतराओ र हर सवया भारतद

22 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन सा- करिा परसाद परसा- नारवर हसाह पषठ- ८२-८६ नशनि बक टरसट इाकतडया नई ददलिी- २००६

(आग इस िख क उदधरणो को कतबना पाद रटपणणी क ददया गया ह)

19

को भी कतगन सकत ह वयासदव एक ऐस बकतदधजीवी क रप र सारन आत ह जो दकसी का भी पकष िन स

बचत ह पर उनका रान दोनो खरो र ह ldquoकतबचार बढ़ वयासदव को दोनो दि क िोग पकड़-पकड़ कर ि

जात और अपनी अपनी सभा का lsquoचयररनrsquo बनात थ और बचार वयास जी अपन पराचीन अवयवकतसथत

सवभाव और शीि क कारण कतजसकी सभा र जात थ वसी ही विता कर दत थrdquo कतिबरिो की तिना र

का जरवरटव दि जयादा रजबत था कयोदक उनह सवगम क जरीदारो का सहयोग परापत था काजरवरटव दि की

आतराएा साकीणम कटररपाथी आतराएा थी य आतराएा उन परान िरान क ऋकतष रकतनयो की आतराएा ह जो

ldquoयजञ कर करक या तपसया करक अपन-अपन शरीर को सखा-सखाकर और पच-पच कर ररक सवगम गए हrdquo

करमकााड और वरत उपवास आदद को भारतद वही तक सही रानत थ जहाा तक व शरीर को कषट न पहाचाएा

कठोर दह साधना करन वाि इन ऋकतष रकतनयो की आतराएा सधारो क कतखिाफ थी और इनका साथ दन

वाि जरीदारो र lsquoउदार िोगो की बढ़तीrsquo स अपना रान-अकतभरान और बि कतछन जान का डर था

कतिबरि दि भिो की आतराएा या तो सावमजाकतनक जीवन क उचच रलयो या आदशो क सापादन क चित या

पररशवर की भकति स सवगम र गयी थी

सराज सधार और वयकतिक परर रिक भकति- कतिबरि कतवशवदकतषट को भारतद इसी पररपरकषय र दख

रह ह रकतडकि वषणव दि भिो क कतिए वषणव होन रातर स य चीज पहि स ही उपिबध थी भारतद क

कतिए वषणवता सवाभाकतवक रप स कतवशवदकतषट ह पर रकतडकि वषणव इस सवाभाकतवक उदारता को

राजनीकततक रप दन वाि ह वषणव उदारता का और उसक भावावग का राजनीकततकरण करन वाि रहा

रकतडकि इस तरह भारतद क कतिए वषणवता की आधकतनक वयाखया र सराज सधार वयकतिक परर रिक

भकति और राजनीकतत तीनो का lsquoएकाrsquo ह इस एका क रकतडकि परयास क कतिए जनरत या िोकरत का

कतनरामण आवशयक ह भारतद की रकतडकि वषणवता ही lsquoसब उननकतत का रिrsquo ह यह एक िोककतपरय

वयावहाररक कतवचारधारा क रप र आकर गरहण करन वािी वषणवता ह यह रकतडकि वषणवता धरम का

राजनीकततकरण ह

काजरवरटव दिभिो को दवताओ का सरथमन परापत था य दवता ही सवगम क जरीदार थ अपन

अपन तरीक स इन दवताओ न काजरवरटव दि की सथानीय शाखाएा भी खोि िी और वहाा इनक पकष र

lsquoपरकाश सभाएाrsquo होन िगी कतिबरि दि वािो क पकष र कवि इस lsquoकतहनद सवगमrsquo क िोग नही थ ldquoइधर

lsquoकतिबरिrsquo िोगो की सचना परचकतित होन पर रसिरानी-सवगम और जन सवगम तथा दकसतानी सवगम स पगमबर

कतसदध रसीह परभत कतहनद सवगम र उपकतसथत हए और lsquoकतिबरिrsquo सभा र योग दन िग बका ठ र चारो ओर

इसकी धर फि गयीrdquo अिग अिग सवगम कतवकतभनन धाररमक पहचानो की ओर इशारा करता ह बका ठ कतहनदओ

का सवगम ह और यह नया धरम आनदोिन रखयतः कतहनद धरम की एक बड़ी पहचान क भीतर ही पदा हआ ह

20

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग क तीन कतनकतहताथम वसधा डािकतरया न भारतद यग क सनदभम र नोट दकय ह23 पहिा

एक पराक औपकतनवकतशक lsquoकतहनद अथमrsquo जहाा हहादसतान का हर बाहशादा शाकतरि था दसरा परसपर कतभनन

धाररमक रतो और आसथाओ की कतनकट अातरकम या क अथम को वयि करता ह कतजसक आराकतभक साकषय सलतनत

कािीन ऐतहाकतसक वतताातो र कतरित ह यहाा यह शबद lsquoतकम rsquo क सरानाातर उपयोग र आया था और

सारानयतः रसिरानो क बरकतखिाफ उपयोग दकया जाता था आरमभ र यह धाररमक कर साराकतजक-

राजनीकततक अथो र जयादा परयि होता था अागरजी राज क साथ यह दसरा अथम धरम स अकतनवायमतः जड़कर

lsquoकतहनदवादrsquo की कतवचारधारा र बदि गया जमस कतरि आदद क इकततहासो र lsquoकतहनदकािrsquo और lsquoरसिरान

कािrsquo की ऐकततहाकतसक कलपना क साथ कतहनद शबद जड़ गया था भारतीय भी रसिरानो को सारन कर

lsquoकतहनद पीकतड़त गराकतथrsquo क कतिए इस शबद का इसतराि करन िग कतहनद शबद का तीसरा अथम राषटर की

अवधारणा स जड़कर बन रहा था आरथमक राषटरवाद और अागरजी राज की यातना की साझी सरकतत स बनन

वाि इस तीसर अथम का रतिब था- lsquoजो कतहनदसतान र रह वह कतहनदrsquo रारकतविास जी भारतद क यहाा

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग को इनही अथो र ित थ पर वसधा डािकतरया का कहना ह दक यह तीसरा अथम दसर क

वयापक परभाव र था तीनो अथो की अातरकम या क बार र डािकतरया न कतिखा ldquoतीसरा अथम या राषटरवादी

अथम कभी भी अपन धाररमक साकताथो स परी तरह छटकारा नही पा सका इस पद की परयकति उननीसवी

सदी र अकतसथर बनी रही और इसक रखतकतिफ रायनो र आपसी जड़ाव कायर रहा बावजद इसक दकसी

परदतत सनदभम र lsquoकतहनदrsquo क पराथकतरक अथम को कतनधामररत करना साभव ह यदद एक बार यह तय हो जाय दक

इिाकाई धाररमक राषटरीय र स दकस आधार पर यह पद परयोग र आ रहा ह और lsquoअनयrsquo की भकतरका र

दकस रखा जा रहा ह चाह वह अनय जसा दक परानी इिाकाई परयकति र ददखता ह फारसी या तकी हो

या रसिरान (कतजस इस िरान र भी कई बार सरह क हवाि स तकम ही कहा जाता ह) या दफर अाततः

औपकतनवकतशक सवारी िदकन यह बात ददराग र रखना जररी ह दक धाररमक सरदाय को कतनरदमषट करन

वािी दसरी परयकति अतयात परभावी सनदभम-हबाद बनी रहती हrdquo24

इस सनदभम र दख तो कतिबरि दिो क सरथमन र शाकतरि lsquoअनयrsquo कतहनद धरम क सधारवाद क सरथमक

ह और lsquoसधारोrsquo र छपी वकतशवक भावनाओ को सरथमन दन पहाच ह का जरवरटव दिो की lsquoअनयताrsquo यहाा नोट

करन िायक ह इस अनयता र साराती जरीदार और करमकााडी िाहमणवाद का बिाक ह जबदक कतिबरि

दकतषट क आसपास एक lsquoसायि रोचrsquo की कलपना की गयी ह धयान रखना चाकतहए दक भारतद क रकतडकि

वषणव इस lsquoसायि रोचrsquo क बाहर ह उनका lsquoएबसटकतनजरrsquo वषणव होन क चित नही बकतलक रकतडकि या

23 वसधा दिकतरया कतहनद परमपराओ का राषटरीयकरण भारतद हररशचादर और उननीसवी सदी का बनारस अन साजीव करार योगनदर दतत पषठ-

४०-४२ राजकरि पपरबकस नई ददलिी- २०१६

24 वही पषठ- ४२

21

रहा रकतडकि होन क चित था कतनकतशचत रप स सवगम सासद का रपक ह और सवगम का राजा ईशवर

कतनषपरभावी हो गया ह और जनता सवया जनरत क िारा कतनणमय कतसथर करन पर जोर दती ह जनरत क

िारा lsquoसलफ गवनमरटrsquo का परयास सबस पहि वषणव भिो न दकया था और आज क कतिबरलस उसी को

आग बढ़ा रह ह ईशवर क पास दोनो दिो क िोगो न जब अपन अपन ररोररयि तयार कर भज तो ईशवर

न दोनो दिो क डपयटशन को बिाकर कहा ldquoबाबा अब तो तरिोगो की lsquoसलफगवनमरटrsquo ह अब कौन

हरको पछता ह जो कतजसकी जी र आता ह करता ह अब चाह वद कया सासकत का अकषर भी सवपन र भी न

दखा हो पर धरम कतवषय पर वाद करन िगत ह हर तो कवि अदाित या वयवहार या कतसतरयो क शपथ

खान को ही कतरिाय जात ह दकसी को हरारा डर ह कोई भी हरारा सचचा lsquoिायकrsquo ह भत परत ताकतजया

क इतना भी तो हरारा दजाम नही बचा हरको कया कार चाह बका ठ र कोई आवहर जानत ह चारो

िड़को (सनक आदद) न पहि स ही चाि कतबगाड़ दी ह कया हर अपन कतबचार जयकतवजय को दफर राकषस

बनवाव दक दकसी का रोकटोक कर चाह सगन रानो चाह कतनगमन चाह ित रानो चाह अित हर अब न

बोिग तर जानो सवगम जानrdquo

काजरवरटव दिभिो न दयानाद और कशवचादर सन पर कया कया आरोप िगाय यह दख िना

चाकतहए दयानाद को सवगम र सथान नही कतरिना चाकतहए कयोदक १ इसन पराणो की हनादा की २ ररतमपजा

की हनादा की ३ वदो का अथम उलटा-पलटा कर डािा ४ दस कतनयोग करन की कतवकतध कतनकािी ५ दवताओ

का अकतसततव कतरटाना चाहा (दवताओ याकतन जरीदार) ६ इसन धरम कतवपिव दकया और आयामवतम को धरम

बकतहरमख दकया पकतशचरोततर परानत क परकततकतनकतध क रप र lsquoकाशी क कतवशवनाथ जीrsquo न lsquoउदयपर क एकहिाग

जीrsquo पर दयानाद क सरथमन का आरोप िगाया कतवशवनाथ जी काजरवरटव दिो की तरफ स यह आरोप िगा

रह थ परब की अपकषा पकतशचरी इिाको र आयम सराज क परभाव की चचाम क सनदभम र एकहिाग जी का

जवाब धयान दन िायक ह कतवशवनाथ जी न जब एकहिाग जी को कतधककारत हए कतिबरिो क साथ कतरि जान

को कहा तब एकहिाग जी न कहा ldquoभाई हरारा रतिब तरिोग नही सरझ हर उसकी बरी बातो को न

रानत न उसका परचार करत कवि अपन यहाा क जागि की सफाई का कछ ददन उसको ठका ददया बीच

र वह रर गया अब उसका राि रता रठकान रखवा ददया तो उसका बरा दकयाrdquo यह एकहिाग जी

दफ़िहाि सवारी जी क दि क सभापकतत बन ह आकतखर इनहोन अपन यहाा क दकस lsquoजागिrsquo की सफाई का

ठका सवारी जी को ददया था यह जागि छोट-रोट धाररमक समपरदायो और रतो का जागि था एकहिागी

जी और काशी क कतवशवनाथ जी दोनो ही िाहमणीकत शवरत क धाररमक परतीक ह पर जहाा काशी क

कतवशवनाथ शर स ही दयानाद क कतवरोधी थ वही एकहिाग जी रणनीकततक रप स दयानाद क पास गए थ यह

साकीणम कटररपाथ क भीतर का कतववाद था यह बात गौर करन िायक ह दक जगननाथपरी र जब भरव की

22

रौजदगी का कतववाद भारतद क सारन आया था उस सरय उनहोन इस बात का परतयाखयान दकया था दक

भरव की परकततरा अनाददकाि स वहाा ह भारतद न पराण आदद स साकषय दकर यह परराकतणत दकया दक

कषण ही एकरातर उपासय ह तिवार जी न इस घटना का उलिख करत हए कतिखा ह दक ldquoदकसी वयकति न

lsquoतहकीकातपरीrsquo दकताब दकखकर बताया दक वहाा पहि भरो की पजा होती थी वषणवो न उसकी ररतम

उखाड़ फ की थी बाद र पाडो न जगननाथजी (कतवषण) क साथ भरो को दफर स परकततकतषठत दकया यह रारिा

काशी धरमसभा क सारन १८७० र आया भारतद न धरम साबाधी पसतक र lsquoतहकीकातrsquo जस फारसी शबद

की आिोचना करत हए कतवकतभनन धरमगराथो स परराण जटाकर दो बातो पर जोर ददया एक इसका परराण

नही कतरिता ह दक वहाा जगननाथजी क साथ पहि भरो की भी ररतम थी कतजस वषणवो न उखाड़ फ का दो

अगर वह थी भी तो यह उकतचत था या नही- इसपर कतवचार होना चाकतहए भारतद न अपनी वयवसथा दत

हए कतिखा दक भरो कतवषण स बहत छोटा दवता ह इसकतिए यह कतवषण क साथ बठाया नही जा सकता

lsquoदसर भरव कापाकतिको क दवता ह उनका पजन वषणव-सरातम सबको कतनकतषदध हrsquo गौरतिब ह दक भारत

र कतवकतभनन सथानीय धरो क परकतत कतजतन असकतहषण और फा डारटकतिसट आयमसराजी थ उतन ही काशी क

सनातनी भी थrdquo25

सथानीय धरम-रतो क जागि को साफ़ करन र आयमसराकतजयो और काशी क सनातनी पाडो क इस

गठजोड़ स भारतद भी वादकफ थ िदकन आयमसराकतजयो क साथ उदयपर क एकहिाग जी का रोचाम कसा

था इस भी भारतद बखबी सरझ रह थ सथानीय रतो क साथ भारतद का समबनध कसा था इसका पता

उनक छोट-छोट यातरा सासररणो स भी चिता ह lsquoसरय पार की यातराrsquo26 र रहदावि का हाि बयान करत

हए lsquoपराणनाथrsquo क रिहब का भारतद आशचयम क साथ उलिख करत ह भारतद क ही शबदो र ldquoयहाा एक

पराणनाथ का रिहब ह और दस बीस िोग उसक रानन वाि ह य िोग एकादशी तीथम वगरह को नही

रानत और सन सनाय दो तीन शलोक जो याद कर कतिए ह बस उसी पर चर हो lsquoरदीनासया शारदाा शताrsquo

और lsquoगोकतवनदrsquo lsquoगोकिानाद रककशवरrsquo यह शलोक पढ़ क कहत ह दक वद र रकका रदीन का वणमन ह ऐस ही

बहत वाकतहयात बात करत ह और कोई दकतना भी कह कछ सनत नही कहत ह दक गोिोक का नाश ह

और गोिोक ऊपर एक lsquoअखाड रणडिाकारrsquo िोक ह उसर रर कषण ह इनका रिहब एक पराणनाथ नारक

एक कषतरी न पनना र करीब तीन सौ बरस हए चिाया थाrdquo भारतद इस अजीबो गरीब lsquoरिहबrsquo का कषण स

कया साबाध ह यह सोचकर ताजजब र थ इस lsquoरिहबrsquo क गरनथ र भारतद न एक शलोक बलिभाचायम का

दखा तो उनका राथा और घर गया ldquoकि रिहब का हाि हरन नीच कतिखा था उसका अचछी तरह स

25 वीरभारततिवार रससाकशी १९वी सदी का नवजागरण और पकतशचरोततर परानत पषठ- १५२ सारााश परकाशन ददलिी- २००६

26 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन पषठ- १३७-३८

23

हाि दरयाफत दकया तो रािर हआ दक हरार ही रिहब की शाखा ह इनक गराथो र हरन एक शलोक शरी

रहापरभजी की सबोकतधनी की काररका का दखा इसी स हरको सादह हआ दफर हरन बहत खोद खाद कर

पछा तो वह साफ़ रािर हआ दक इसी रत स यह रत कतनकिा ह कयोदक एक बात वह और बोि दक हरारा

रत शरी बलिभाचारज की टीका र कतिखा ह इन िोगो क उपासय शरीकषण ह और एकादशी शािगरार

ररतमपजा तीथम दकसी को नही रानत इनक पकतहि आचायम दवचाद जी थ जो जाकतत क कायथ थ और दसर

पराणनाथ जी जो कचछ क कषतरी (भारटया) थ हरार ही रत की शाखा सही पर कतवकतचतर रत ह वषणव होकर

ररतमपजा का खाडन करन वाि यही िोग सनrdquo वणमन स सपषट ह दक सात और कतनगमण पाथो क साथ वषणव

कतवचारधारा क आदान-परदान का साकतशलषट इकततहास भारतद क कतिए ताजजब की चीज थी पर इन सबक बीच

आकतखर उनहोन इसक वषणव रि का पता िगा कतिया और वषणवता की इस धाररमक कतवचारधारा र उनहोन

ररतमपजा का कतवरोधी होना भी शाकतरि रान कतिया भारतद न ररतमपजा क सरथमन र बड़ बड़ िख कतिख

थ इसकतिए असाभव नही दक कषण क परकतत परररिक भकति क कतिए ररतम की जररत पर उनहोन कछ पछा

जरर होगा िदकन lsquoकोई दकतना भी कछ कह सनत ही नहीrdquo आग चिकर lsquoवषणवता और भारतवषमrsquo र

वह बड़ कतवशवास क साथ घोकतषत करत ह दक ldquoपहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद कतजतन पाथ ह सब

वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और भारतवषम इन पाथो स छाया हआ हrdquo27 तब वह वषणवता और

िोकरतो और रधयकािीन पाथो क भीतर पहि स सदकय एक ऐकततहाकतसक परदकया का सारानयीकरण कर

उसका नार lsquoवषणवrsquo रख रह थ अकारण नही दक उसी िख र वषणव वयापकता को बतान क कतिए

परचकतित lsquoनारोrsquo का साकषय पश दकया गया ह वयकतियो स िकर वरत और उपवासो तक यह परभतवशािी

सारानय बोध की कतवचारधारा थी कतिवदी जी रधयकािीन वषणवता को िोकधरम कहत थ भारतद

उननीसवी सदी क िोकधरो को वषणव कहत ह

काजरवरटव दिो की तरफ स कशवचादर सन पर िगाय गए आरोप थ १ वद पराण सबको कतरटा

डािा २ दकसतान रसिरान सबको कतहनद बनाया ३ खान पीन का कतवचार कछ न बाकी रखा ४ रदय की

तो नदी बहा दी आयम सराकतजयो क ऊपर रखयतः आरोप lsquoआयामवतम को धरम बकतहरमखrsquo करन का ह धरम

बकतहरमख अथामत सनातन धरम स कतवरख उनहोन कवि धरम क भीतर कतवपिव दकया परनत िहमो सराज न तो

lsquoभारतवषम का सतयानाशrsquo कर डािा इनहोन तो पराणो क अिावा वदो को भी कतरटा डािा lsquoआयामवतमrsquo की

जातीय पकतवतरता नषट करक दकसतान रसिरान जस lsquoकतवदशी ततवोrsquo को घर र घसा कतिया कटररपाथी

करमकााकतडयो क कतिए इनक साथ रणनीकततक तौर पर भी रोचाम बनान वािा कोई एकहिाग जी तयार नही

था सनातकतनयो िारा दकया गया यह बारीक भद खद कतिबरि दिभिो क भीतर का भी अातरवमरोध था

27 भारतद वषणवता और भारतवषम वही पषठ-७६

24

कतिबरिो की सभा र भी दो दि हो गए थ एक सवारीजी क सरथमको का दि था और एक कशव

क सरथमको का कतहनद कतिबरिो की आताररक एकता कतिकतवभाकतजत थी दयानाद क सरथमको क अनसार सवारी

जी न कतहनदओ की आतरा को जगाया था उनह सफतम बनाया वरना तो आयामवतम क आिसी और रखम

रोहकतनदरा र ही कतनरगन थ इस तरह रखम और आिसी सारानयजनो को lsquoिाहमणो क फा द स छड़ायाrsquo िाहमणो

की तिना भारतद न lsquoपादररयोrsquo स की ह जो lsquoवयथम परजा का दरवय खान वाि हrsquo आयम सराज न सासथाकत

परोकतहतवाद पर हरिा दकया था जो भारतद क कतिए रितः जनता क पसो पर पिन वािा परजीवी वगम

िगता था और तो और आधकतनक कतवजञान क आग जो lsquoआयोrsquo की नाक कटी जा रही थी उस भी सवारी जी

न बचा कतिया उनहोन वदो र भी रि तार करटी कचहरी आदद ददखाकर कतहनदओ र आतरसमरान पदा

दकया दसरी ओर कशव क सरथमको का कहना था दक ldquoधनय कशव तर साकषात दसर कशव हो तरन बाग

दश की रनषय नदी क उस वग को जो कशचन सरदर र कतरि जान को उचछकतित हो रहा था जञान करम का

कतनरादर करक पररशवर का कतनरमि भकति रागम परचकतित दकयाrdquo lsquoजञान करम का कतनरादरrsquo करक भी lsquoकतनरमि

भकति रागमrsquo का जो परवतमन कशव न दकया उसस ही ईसाई lsquoअनयताrsquo का साथमक परकततरोध साभव हआ lsquoरनषय

नदी का आवगrsquo भावावग ह इसी बात को दसर शबदो र कह तो भाव जगत क सवाभाकतवक वग को भगवत

भकति की शदध lsquoअनयताrsquo की ओर रोड़कर उस कतवदशी ईसाई lsquoअनयताrsquo क रागम पर जान स रोक ददया इस

कायम क कतिए वद पराण समरत lsquoजञान-करमrsquo क रागो का कतनरादर अगर करना पड़ा तो भी वह उकतचत ही था

वषणव भकति क रधयकािीन सवरप की जो वयाखया आग चिकर की गयी उसक आराकतभक कतचनन हर यहाा

दख सकत ह कहना न होगा दक भारतद का अपना अनभव भी यहाा बोि रहा ह

शासतरीय काजरवरटव पाटी र दवताओ क अिावा यजञवलकय जस औपकतनषददक ऋकतष क साथ-साथ

नारायण भटर रघनाद भटराचायम राडन कतरशर जस कतनबाधकारो और टीकाकारो का जरघट भी था इसक साथ

साथ इसिारी सवगम स आय हए कटररपाथी कतशया िोगो का भी सरथमन उनह परापत था इस परकार कटररपाथ का

दवताओ (जरीदारो) िाहमणो (पादररयो) जञानरागी औपकतनषददक ऋकतष रधययगीन कतनबाधकारो और

कतवदशी कतशया िोगो का एक वकतशवक रोचाम बन रहा था दसरी ओर कतिबरि दि र चतनय परभकतत आचायम

दाद नानक कबीर परभकतत भि और जञानी िोग भी शाकतरि थ इसक अिावा काजरवरटव दि क

कतवदरोकतहयो को भी कतिबरिो न अपन यहाा जगह दी य कतवदरोही थ अितवादी (या नववदााती) भाषयकार

पाचदशीकार और कोई कतरसटर िडिा इन दोनो िोगो पर शर र का जरवरटव दि वािो न बहत हरि

दकय परनत अात र इनह कतिबरिो न अपन यहाा जगह द दी धयान रखना चाकतहए दक भारतद अपन सापरदाय

क अनरप अित वदाात या रायावाद क घोर आिोचक थ सन १८७३ र हररशचादर रगजीन क पहि ही अाक

र भारतद न शााकतडलय भकति सतरो का अनवाद lsquoभकति सतर वजयातीrsquo नार स परकाकतशत दकया भकतरका र

25

भारतद कतिखत ह ldquo दखो आज वसात पाचरी ह इसस बहत स िोग आर क रौर वा फिो क गचछ िकर

तरस कतरिन आवग तो र भी यह एक फिो की वजयाती रािा बना कर िाया हा अागीकार करो वजयाती

रािा बनान का यह हत ह दक वनरािा होगी तो होिी क खि र अरझगी और इसक कतसवाय इस वजयाती

स कतनशचय करक जञानाददक को जय करना ह पर पयार बहत साभि कर यह रािा पहरना टट न जाए

कयोदक सत कचचा ह और ककतियाा तािी और कोरि ह इस स कमहिान का भी भय ह जो हो इस वसात

पाचरी को तयोहारी रझ यही दो दक इस सतयानाशी lsquoअहरrsquo िहमवाद lsquo को पणमरप स नाश करक और भी

सब बातो र इस नव-वसात र भारतवषम की सब आपकतततयो का बस अात करो और अपन भिो क कतचतत र

नव पलिव दफर स िहिह करो जो सदा एक रस रहrdquo28 lsquoएकरसrsquo भकति क कतिए जररी ह दक जञानवाद

अहर िहमवाद को जड़ स उखाड़ फ का जाय कषण को अरपमत अपनी वजयाती रािा स भारतद जञानाददक

को जय करना चाहत ह एक ओर यह पकतषटरागी परापरा क lsquoवीर वषणवrsquo भारतद का परर कतनवदन ह दसरी

ओर lsquoनव-वसातrsquo र भारतवषम की सब आपकतततयो को नाश करन की सारथयम रपी lsquoउपहारीrsquo का साकलप भी

ह lsquoभारतद भारतवषम की सब आपकतततयोrsquo को दर करन की राह र एक बड़ी बाधा अित क जञानवाद को

रानत ह भकति का lsquoएकरसrsquo पहि भी इसक परभाव स ररझाता रहा ह भारतद का साकलप सापरदाय क

परान कतवरोधो क बावजद बन रहन वाि इस अितवाद का पणम सफाया करन का ह जबतक यह न कतरटगा

परररिा भकति क lsquoकमहिान का भयrsquo बना रहगा भकति सतरो र उपासना कााड को परर कतसकतदध का हत

बताया गया था पर भारतद दख रह थ दक उपासना कााड का परचार कतवरि हो गया ह इसी परचार क

कतनकतरतत उनहोन इन सतरो का भाषा र अथम परचार दकया था १८७३ र ही हररशचादर रगजीन का एक

समपादकीय कतनकिा कतजसका शीषमक था- lsquoभकति जञानाददक स कयो बड़ी हrsquo इस िख र भी उपासना रागम

की रहतता का परकततपादन दकया गया ह तकम और जञान को करम की शकतदध और उपासन की परर कतसकतदध क

रासत र कवि एक चरण बताया गया ह वसधा डािकतरया न भारतद क आराकतभक साापरदाकतयक परचार

परसार क कायो र कतनगमकतनयो को बाहर रखन का उपकर नोट दकया था29 यहाा कतनगमकतनए कबीर आदद lsquoभि

और जञानीrsquo कतिबरिो क सरथमक ददखाए गए ह वषणव भकति क राषटरीय चररतर र य बाहर नही थ उनकी

एकता का आधार उनक lsquoकतिबरि रिrsquo र ह सावमजकतनक उचच भाव का सापादन और भकति इन दोनो क साथ

अित वदााती या जञानाददक- सनातनी परापरा क कतवदरोकतहयो की जगह भी कतिबरि दि पाकतथयो र थी

कतिबरि वाि ही झगड़ क कतनपटार की अजी पररशवर को दन गए थ पर पररशवर अपनी

परतीकातरक हो गयी कतसथकतत स खजिाय हए थ यह सवोचच अदाित थी पर साथ ही साथ शकतिहीन

28 भारतद गराथाविी खाड- ५ पषठ ११३

29 वसधा डािकतरया पषठ ३४२

26

राषटराधयकष की कलपना भी कतजस कतहनद सवगम क य राषटराधयकष ह वहाा दकसी दकसर की सलफ गवनमरट चनन

की परणािी आ जान स ईशवर की एकाकतधकारी शकतियाा कतछन गयी ह िोग जनरत कतनरामण क िारा सही

और गित की पहचान करन िग थ इसकतिए थोड़ा खजिाय तो रहत ही होग lsquoअब कौन हरको पछता

ह तर जानो सवगम जानrsquo परनत साकट गहरा था यदयकतप कतिबरि िोगो की सभा भी धरधार स जर

रही थी पर काजरवरटव दि पाकतथयो की सरकार र पठ थी दवता सब भी उनक साथ थ इसकतिए पररशवर

क पास जररी नयाय का परशन उठाया गया था नयाय दक इन दो रहापरषो को सवगम र जगह कतरिनी

चाकतहए या नही सराज र इनक नकततक उचच आदशो क अवरलयन का परचार काजरवरटव कर रह ह इस

परचार क कारण जनता अपनी निरो स पहचानन र सकषर नही ह ऐसी कतसथकतत सवगम र पहि नही आई

थी नई कतसथकततयो क नए रानदाड कया होग िाकतहर ह नयाय और नकततकता को एक वकतशवक सवीककतत

चाकतहए इसकतिए पररशवर न इस कतवषय पर कतवचार क कतिए जो ककतरटी चनी वह गौर करन िायक ह इस

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo र ldquoराजा राररोहन राय वयास दव टोडररि कबीर परभकतत कतभनन-कतभनन रत क िोग चन

गए रसिरानी- सवगम स क lsquoइरारrsquo दकसतानी स िथर जनी स पारसनाथ बौदधो स नागाजमन और

अफीका स कतसटोवायो क बाप कोrdquo चना गया कतहनद सवगम स नवजागरण क अगरदत वयासदव जस

बौकतदधकिखक टोडररि जस राजनीकततजञ और धरम-ररमजञ कबीर जस जञानी-भि पराचीनो र कवि वयास

दव ह बाकी दो lsquoरधयकािrsquo क और एक lsquoआधकतनकrsquo काि क वयकति ह उधर यरोपीय नवजागरणधरमसधार

क परणता िथर को भी बिाया गया ह और बौदधो की तरफ स परर कतनषधवादी नागाजमन भी ह पर य

अफीका क कतसटोवायो धरो की अकतसरता क साथ-साथ यह अफ़ीकी सवगम कतनकतशचत रप स अफीका की छकतव

पराचीन आददवासी सासककतत वाि एक lsquoकािrsquo रहादश क रप र गढ़ी गयी थी यह अफ़ीकी सवगम साभवतः

आददवासी धाररमक रानयताओ की ओर इशारा करता ह यह भी धयान दन िायक ह दक राजा राररोहन

राय िथर और कबीर इन तीनो क साथ lsquoनवजागरणrsquo की कोई न कोई पररकलपना ठठ सरकािीन कतवरशो

क क दर र भी ह कई अथो र अकबर िारा आयोकतजत होन वािी lsquoसिह-ए-किrsquo जसी धरम सभाओ की एक

रोहक कलपना भी भारतद को रही होगी टोडररि की उपकतसथकतत अकारण नही ह

अकबर को िकर भारतद की इकततहासदकतषट कसी थी इसकी एक झिक हर १८८४ र छपी उनकी

lsquoबादशाह दपमणrsquo की भकतरका र ददखती ह इस गरनथ र उन िोगो का चररतर-कतचतरण दकया गया था ldquoकतजनहोन

हरिोगो को गिार बनाना आरमभ दकया इसर उन रसत हाकतथयो क छोट-छोट कतचतर ह कतजनहोन भारत क

िहिहात हए करिवन को उजाड़कर-पर स कचिकर कतछनन-कतभनन कर ददया रहमरद रहरद अिाउददीन

अकबर और औरागजब आदद इनर रखय ह पयार भोि कतहनद भाइयो अकबर का नार सनकर आपिोग

चौदकए रत यह ऐसा बकतदधरान शतर था दक उसक बकतदधबि स आजतक आपिोग उसको कतरतर सरझत ह

27

दकनत वह ऐसा ही नही उसकी नीकतत अागरजो की भााकतत गढ़ थी रखम औरागजब उसको सरझा नही नही तो

आज ददन हहादसतान रसिरान होता कतहनद-रसिरान र खाना-पीना बयाह-शादी कभी चि गयी होती

अागरजो को जो बात नही सझी वह इसको सझी थीrdquo30 कतनकतशचत रप lsquoबकतदधरानrsquo दशरन स सीखन को बहत

कछ कतरिता ह अकबर की दीन-ए-इिाही क परयोग स भारतद भी बहत कछ सीख रह थ रधयकािीन

इकततहास क बार र रकतसिर शतर की छकतव का कतनरामण पराचयकतवदयाकतवदो क िारा दकया जा रहा था इकतियट

आदद इकततहासकारो न जो दकतषट कतवककतसत की उसका परभाव बहत गहरा था पर इस इकततहासिखन क साथ

साथ भारतद क कछ दशी सरोत भी थ अिग-अिग रहापरषो की चररताविी कतिखन की पररणा भारतद न

कतजतना अपनी वषणव भकति की परापरा स पाया था उतना ही इसिारी इकततहास िखन की परापरा स भी

lsquoबादशाहदपमणrsquo की भकतरका र भारतद कतिखत ह ldquoरर पररातारह राय कतगरधरिाि साहब जो यवनी कतवदया

क बड़ भारी पाकतडत और काशीसथ ददलिी क शाहजादो क रखय दीवान थ उनकी इचछा स ददलिी क परकतसदध

कतविान सययद अहरद न एक ऐसा चक बनाया था कतजसर तरर स िकर शाह आिार तक सब बादशाहो क

नार आदद कतिख थ उस फारसी गरनथ स बहत सी बात इसर िी गयी ह इस कारण तरर पवम क बादशाहो

का वणमन इतना परा नही ह कतजतना तरर क पीछ ह दफर रर रातारह राय कतखरोधरिाि न बहादर शाह

क काि क आरमभ तक शष वतत सागरह दकयाrdquo31

अरणदव जी अपन एक िख र भारतद क आराकतभक अकबर परर का कतिक दकया ह १८७२-७४ क

आसपास भारतद अकबर को रहान शासक रानत थ जबदक औरागजब को कतहनदओ का दशरन नाबर एक

भारतद न औरागजब की तिना र अकबर की रहानता को परराकतणत करन क कतिए रारदास कछवाह क एक

शलोक को अपना आधार बनाया ह इस शलोक का भावाथम भारतद क शबदो र इस परकार ह ldquoजो सरदर स रर

तक पथवी को पािता ह जो रतय स गउओ की रकषा करता ह कतजसन तीथम और वयापार स कर छड़ा ददए

कतजसन पराण सन जो सयम का नार जपता जो योग धारण करता ह और गागाजि छोड़कर पानी नही

पीता उस जिािददीन की जय अाग वाग कहिाग कतसिहट कततपरा कारत (कारटी) काररप अाध कणामटक

िाट दरकतवड़ रहाराषटर िारका चोि पााडया भोट रारवाड़ उड़ीसा रलि खरासान का दहार जमब काशी ढाका

बिख बदखशाा और काबि को जो शासन करता ह ककतियग की रकतहरा स घटत हए वद गउ कतिज और

धरम की रकषा को सगन शरीर कतजसन धारण दकया ह उस अपररय परष अकबर शाह को हर नरसकार करत

हrdquo32 यही अकबर १८८४ र औरागजब स जयादा शाकततर और बकतदधरान शतर र बदि गया lsquoकािचकrsquo क

कतनकतहताथो र यह फरबदि भारतद पर रकतसिर कतवदशीपन और कतहनद शतरता क समपणम बिॉक बनान की

30 बादशाह दपमण भारतद गराथाविी खाड-६

31 वही

32 httpsamalochanblogspotin201209blog-post_9html

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रणनीकतत क दबाव क कारण था और lsquoपरावकततrsquo की कतरथकीयता र भी कतहनदओ को lsquoरहारोहनासतरrsquo क सहार

पहि भी वश र दकया गया था यह एक बारीक चाि थी अकबर की इस चाि को अागरज भी नही सरझ

पा रह थ भारतद की यह परकततदकया औपकतनवकतशक इकततहासिखन क दबाव र थी १८७३ र जब भारतद

न कतशवपरसाद की दकताब lsquoइकततहासकततकतररनाशकrsquo क तीसर खाड की आिोचना की थी तो उनक सारन

रकतसिर शासन की बबमरता और अागरजी राज क सशासन का कतशवपरसाद िारा ककतलपत आखयान था १८८४

र समपणम रकतसिर काि अनधकार यग र बदि गया कततकतररनाशक क पहि खाड र बाब कतशवपरसाद न भी

अकबर की रजहबी उदारता और साराकतजक सधारो की बड़ाई की थी इस परकार हर दख सकत ह दक

ऐकततहाकतसक िखन र पकष और कतवपकष की पनरावकततत एक बाद घर र उिझी हई थी इनक सारन रकतसिर

कतवरोध और अागरजी शासन क कतवरोध का एक कतवसागत फर था और िखक उसर अपनी फौरी जररतो क

कतहसाब स कतरतर और दशरन वािा इकततहास कतिखता था इकततहास ठठ राजनीकततक ततकाि क वशीभत था

जो भी हो धाररमक उदारता और सिह-ए-कि का परयोग एक कतशकषापरद परयोग था यह कतवकतभनन

रतो या कतवशवासो क बीच lsquoजनरतrsquo बनान का एक रधयकािीन परयोग था भारतद lsquoजनरतrsquo क परयोग को

इस तरह दखत थ रानो यह lsquoचािrsquo अगर कारयाब हो जाती तो lsquoआज क ददन हहादसतान रसिरान होताrsquo

भारतद क सारन सरसया वही थी बस वह कवि यह चाहत थ दक कतहनदसतान lsquoकतहनदrsquo हो जाय कतहनद

अथामत वषणव हो जाय वषणवता भारतद क कतिए हहादसतान का नया lsquoसिह-ए-किrsquo था इसकतिए कछ

सावमजनीन रलयो की तिाश उनह भी थी कतसिकट ककतरटी क उपरोि रमबर lsquoएकसअफीकतशयोrsquo रमबर थ

रोर क परान हररकिस जस दवता कतजनहोन धरती स साबाध तोड़ ददया ह व िोग तथा उनही क जस

पारकतसयो क lsquoजरदशतजीrsquo को कोरसपोहडाग ऑनररी रमबर बनाया गया य धरम क रप र रतपराय रतो क

परकततकतनकतध थ ककतरटी न जो ररपोटम तयार की उसका ररम भारतद न ददया ह यह ररम उनक रकतडकि वषणव

पकष का रत था कतिबरि दि और काजरवरटव दि क अपन पकषो स इतर यह नरनायक तीसरा पकष वषणवो

की तरफ स सनाया गया था रकतडकि वषणवो की तरफ स भारतद इस धाररमक आनदोिन क भीतर अपना

ही पकष रखत हए इसका ररम कतिख रह थ ldquoहरिोगो की समरकतत र इन दोनो परषो न परभ की रागिरयी

सकतषट का कछ कतवघन नही दकया वराच उसर सख और सातकतत अकतधक हो इसी र पररशरर दकयाrdquo कतहनद सराज

सधार क परयासो का ररम बतात हए सबस पहि धयान सतरी सधारो पर ददया गया ह साराकतजक करीकततयो

की कतशकार रकतहिाओ क परकतत जो दकतषट उभरकर सारन आती ह उसक रि र धरम की रीकतत स यौन

रयामदाओ की अवयवसथा को दफर स रयामददत करन की चषटा ह कतसतरयो क करागम पर जान का पहिा कारण

ह रनराना परष धरमपवमक न पाना यह कतववाह सासथा की कतवककततयो की आिोचना थी जहाा बाि कतववाह

कतवधवा कतववाह आदद की तरफ इशारा ह धयान रखना चाकतहए दक यहाा बरि कतववाह क बदि कतसतरयो िारा

29

lsquoरनराना वरrsquo न चन पान का उलिख ह गभमनाश और बाि हतया क कतखिाफ सधार परयास दसरा

रहतवपणम योगदान ह कतववाह सासथा बीच र भी भाग की जा सकती ह इसकी सवीककतत ह कनया क कतहत र

अातरजातीय कतववाह की सवीककतत ह एक रहतवपणम बात गरओ और पाकतडतो क वयाकतभचार क साबाध र ह

भारतद क सारन पकतषटरागी रहातो और गरओ क वयाकतभचार का अनभव भी इसर शाकतरि ह

१८७४ र ककतववचन सधा र भारतद की एक रटपणणी छपी थी lsquoगर को कसा होना चाकतहएrsquo इसक अिावा

दो वषम पहि lsquoगर और रहातrsquo नार स भी एक रटपणणी कतिखकर वषणव पाडो-परोकतहतो की खिकर

आिोचना की गयी थी तिवार जी न कतिखा ह दक राददरो क भीतर कतसतरयो का यौन शोषण और वयाकतभचार

इतना भीषण था दक दयानाद भारतद क पकतषट सापरदाय को lsquoकषठी सापरदायrsquo कहत थ १८६० क आरमभ र ही

वषणव गोसाइयो क अनाचार और यौन शोषण क कतखिाफ बमबई र एक बड़ा आनदोिन पकतषटरागी

करसनदास रि जी क नततव र हो चका था वषणव बकतनया पषठभकतर स आय करसनदास जी उन नौजवानो

र थ कतजनहोन एकतिफ सटन कॉिज स आधकतनक कतशकषा परापत की थी गोसाइयो और रहाराजो िारा अपन

lsquoसमपरदाय की बह बरटयोrsquo क साथ होन वाि अतयाचार क कतखिाफ उनहोन िख कतिख और समपरदाय क

इकततहास को नए कतसर स सारन रखा पण स आए जदनाथ वजरतन जी रहाराज न करसनदास जी पर

रानहाकतन का रकदरा दायर कर ददया इसी रक़दर स वषणव रहातो की कई सारी बात जनता क सारन

परतयकष हई तिवार जी न इस lsquoरहाराज िाइबि कसrsquo को भारतीय नवजागरण र वषणव गोसाइयो क

दराचार और यौन शोषण क कतखिाफ हआ सबस बड़ा आनदोिन कहा ह भारतद पर इसका बहत परभाव

था यह कस १८६० र हआ था एक दशक बाद जब भारतद सापरदाय क कायो र रत थ उसी सरय कतिख

रह थ ldquoराददर कया होत ह रानो कतसतरयो की खान ह जसी चाकतहए िीकतजय- वराच अचछी सतरी भी वहाा जाकर

कतबगड़ जाती ह आशचयम यह ह दक कतजनको व िोग बटी कहत ह और जो उनक परिोक क रधयसथ ह और

कतजनको वो दीकषा दत ह उन कतसतरयो की ओर व आप ही बरी दकतषट स दखत ह ओर रर पयार कतहनदओ तर

इनक जाि र कब तक फा स रहोग और कया तरको यही सासार स बचावग और इनही क भरोस तरको

भगवान कतरिगाrdquo33

राददरो क धन-ऐशवयम और वयाकतभचार र डब जीवन क जीवात कतचतर हर बनारस क रखाकतचतर lsquoपरर

जोकतगनीrsquo क अिावा lsquoकाशी क छायाकतचतर क दो बर-भि फोटोगराफrsquo र भी कतरित ह यहाा भारतद का वयागय

अपन वषणव सापरदाय की आतरािोचना स सदकय ह lsquoपरर योकतगनीrsquo नाटक र आन वािा चररतर रारचादर

खद भारतद ही थ नाटक का सतरधार कहता ह दक भारतवषम की दीन हीन गकतत क कारण उसका तो

कतवशवास ही ईशवर स उठन िगा ह नाटक क पहि ही दशय र भारतद हर राददर क भीतर कतिए चित ह

33 वसधा डािकतरया िारा उदधत पषठ- ३३७

30

जहाा राददर र कार करन वािा साधारण टहिआ झपरटया हर ददखाई दता ह पजारी बाब अभी तक नीद

स नही जाग ह कयोदक आधी रात तक lsquoबठ क ही-ही-ठी-ठी करा चाह दफर सबर नीद कस खिrsquo कतनकतशचत

रप स यह टहिआ सबह सवर ही राददर र हाकतिर ह िदकन दवता अभी राददर र सोय ह रारचादर

परदशी ह काशी र बाहर स आय ह छकक जी और राखनदास इस रारचादर की आिोचना करत ह इनक

सावादो स पता चिता ह दक बाब रारचादर क यहाा ददन रात नाच गाना हआ करता ह और उनको अपनी

कतवदया का घराड ह दो चार ककतवतत भी बना ित ह पर lsquoककतवतत बनाव स का होव और ककतवतत बनावन कछ

अपन िोगन का कार थोर हय ई भााटन का कार हयrsquo छकक जी कहत ह दक अपन रागम का उनह कछ जञान

तो ह नही बस दो चार बात इधर उधर स सनकर कछ lsquoदकसतानी रतrsquo सीखकर पाकतडत बन दफरत ह

कतनकतशचत रप स य भारतद पर िगन वाि आरोप थ राददर र सवारी धनदास वकतनतादा बभकतकषत पाकतडत

आदद धरम क ठकदार ह इनकी पतनशीि सासककतत को दखकर रारचादर का दःख इन शबदो र वयि होता ह

lsquoहा कया इस नगर की यही दशा रहगी जहाा क िोग ऐस रखम ह वहाा आग दकस बात की वकतदध की

साभावना करrsquo lsquoवददकी हहासा हहासा न भवकततrsquo जस शरआती नाटको र भी करमकााडी परोकतहतवाद की

आिोचना की गयी ह राजा और परोकतहत कतरिकर वहाा जनता का शोषण करत ह जआ रददरा और

रथन की ऐययाश सासककतत क परतीक परोकतहतो का काजरवरटव दि इन परहसनो र रतम होता ह कतचतरगपत यर

स कहत ह ldquoरहाराज य गर िोग इनक चररतर का कछ न पकतछए कवि दमभाथम इनका कततिक रदरा और

ठगन क अथम इनकी पजा कभी भकति स ररतम को दाडवत न दकया होगा पर राददर र जो कतसतरयाा आयी उनको

सवमदा तकत रह रहाराज इनहोन अनको को कताथम दकया ह और इस सरय तो र lsquoशरीरारचनदर जी का

शरीकषण का दास हाrsquo पर जब सतरी सारन आव तो उसस कहग lsquoर रार तर जानकी र कषण तर गोपीrsquo और

कतसतरयाा भी ऐसी रखम दक दफर इन िोगो क पास जाती हrdquo34

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo की ररपोटम र सतरी सधारो क कायो की रहतता बतान क बाद जाकतत वयवसथा पर

इन सधारको का परहार कयो जररी था इस बताया गया ह कठोर जाकतत बनधनो क चित कस हर साि

जाकतत-बाहय होकर जाकतत र वापस आन क दकसी उपाय को न जान lsquoहजारो रनषय आयम पाकति स हर साि

छटत थ उसको इनहोन रोकाrsquo इस परकार इन सधारको न lsquoआयमधरमrsquo क भीतर जो पररवतमन करन चाह

उसस आयो की एकता दफर स बहाि हो गयी इसक अिावा अाधकतवशवासो को इनहोन दर दकया यही नही

बकतलक जहाा िोग lsquoरसिरानी पीर पगमबर औकतिया वीर ताकतजया गाजी कतरयाा कतजनहोन बड़ी ररतम तोड़कर

और तीथम पाटकर आयम धरम कतवधवास दकयाrsquo उनको भी पजन िग थ और lsquoकतवशवास तो रानो कतछनाि का अाग

हो रहा थाrsquo ऐसी िजजाजनक कतसथकतत स िोगो को बाहर कतनकािकर lsquoसार आयामवतम को शदध lsquoिायिrsquo कर

34 दख रारकतविास शराम पषठ १३१

31

ददयाrsquo lsquoिायिrsquo कर ददया गया इसका अथम आयम जाकतत को दफर स िायि करन र था आयम जाकतत क भीतर

कतबगाड़ क चित ही कतनमन जाकततयो का बड़ परान पर पिायन था इस इन िोगो न रोका और इनक परताप

स ही अनक छोट और सथानीय धरम-रतो क भीतर जो lsquoरसिरानीrsquo परभाव घस आय थ उनको दफर स lsquoबड़ी

ररतमrsquo की कतनषठा र िाया जा सका इस परकार कतहनद धरम और वणामशरर क परकतत दफर स िोगो को lsquoिायिrsquo

दकया यह lsquoिायकतिटीrsquo भारतद की रकतडकि वषणवता क जनरत क कतिए भी जररी था तिवार जी जब

आयमसराकतजयो की lsquoकााकततकारीrsquo भकतरका ददखात ह तब आयम सराज िारा आयामवतम को िायि बनान वािी

इस भकतरका की साकतशलषटता पर जयादा बात नही करत भारतद दयानाद क कााकततकारी परयासो र lsquoिायिrsquo

बनान की परदकया उसी वक़त दख रह थ और इसी कारण ररपोटम र दयानाद की आिोचना धयान दन िायक

ह सवारी जी न ldquoजाि को छरी स न काटकर दसर जाि ही स कतजसको काटना चाहा इसी स दोनो आपस

र उिझ गए और इसका पररणार गह कतवचछद उतपनन हआrdquo गह कतवचछद का रतिब कतहनद धरम र गह

कतवचछद जबदक कशवचादर सन क बार र कहा गया दक उनहोन जाि काटकर भकति की उचछकतित िहरो का

पररषकत पथ परकट दकया इस परकार रकतडकि वषणवता की lsquoअनयताrsquo और परररिक भकति क परशसत पथ क

सवीकार का कतनषकषम कतवचार सभा का भी कतनषकषम था धयान दन िायक ह दक कशवचादर की आिोचना उनक

कतचतत कतवकषप क कारण की गयी थी जहाा lsquoईसारसीह आदद उनस कतरित हrsquo य एक दकसर का इिहारी

अनभव था कतजस भारतद अपनी वषणवता स बाहर रखत ह ईशवर न इस ररपोटम पर अपना रत सरकतकषत

रख कतिया और भारतद कतिखत ह ldquoइसको दख कर इस पर कया आजञा हई और व िोग कहाा भज गए यह

जब कर भी वहाा जायग और दफर िौट कर आ सक ग तो पाठक िोगो को बतिावग या आप िोग कछ

ददन पीछ आप ही जानोगrdquo

३ जनरत और वषणवता

ककतववचन सधा ९ राचम १८७२ र भारतद न lsquoPublic Opinion In Indiarsquo नार स अागरजी र

एक िख परकाकतशत दकया िख र उनहोन कहा दक कई सददयो दक दासता क बाद भारतवषमहहादसतान अब

जाकर कतिरटश राषटर क सवोचच कतनयातरण र आया ह दश धीर-धीर सभयता और परबोधन की पकतशचरी दकरणो

क सहार दरन और कशासन क रतय-तलय कतनदरा स जाग रहा ह कतिरटश शासन की परगकततशीि नीकततयो का

परभाव यहाा की बहरपी आबादी पर पड़ रहा ह

ldquoBut in this progressive state national energy and zeal sympathy and

disintiredness are waiting to make both the conqueror and the conquered to act in

32

concert and in harmony and hence we have the broad distinction of white and

black still But in this country many are the blemishes that adhere to us to be

eradicated and many are the shortcomings that are hovering around us to be done

away with before we can have a public opinion here in its true senserdquo35

गोर और काि क बड़ भद को छोड़ कर कतवजता अागरजो और भारतीयो क बीच एक सराजन तो बन गया ह

पर अनदरनी ददककत अभी भी राह बाए खड़ी ह रौका ह दक इस परगकततशीि कतसथकतत का फायदा उठा कर हर

एक सचच जनरत का कतनरामण कर सचच िोकरत क कतनरामण र अादरनी बाधाएा कया थी भारतद न इस

आग सपषट करत हए कतिखा-

ldquoRace antagonism rivalry and mutual misunderstanding are the favourite

occupations of the aristocratic class Want of confidence among all classes of men

are the prevailing characteristic of the nation and above all multifarious castes and

creeds with there numerous forms of religion and local habits and customs which all

combined have kept the progressive policy at a stand still True it is that a

representative Government is a boon to this country and true it is that Sir Bartle

fregravere a man of vast experience and a good statesman has found out that in village

community we can have public opinion but with all his experience he has lost sight

of our national defects ndash defects which we ourselves know and which no foreigner

can catch at a glancerdquo36

भारतद इस बात को िकर कतनकतशचत ह दक िोकरत और परकततकतनकतधरिक सासथाओ क बहतर कतवकास क कतिए

सीध-सीध कतवदशी रॉडि कभी सफि नही हो पायगा ऐसा इसकतिए कयादक हरारी आपसी कतवकतभननताओ

और झगड़ो को कोई बाहरीकतवदशी सतता कभी भी परी तरह सरझ नही सकती lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo नार

35भारतद गराथाविी -6 361

36 वही

33

स भारतद का एक दसरा िख इस अागरजी वाि िख क दो साि बाद अपरि सन १८७४ र हररशचनदर

रगजीन र छपा पकतबिक ओकतपकतनयन कया बिा ह इस साफ़ करत हए भारतद िख क आरमभ र ही कहत

ह ldquoपकतबिक ओकतपकतनयन अथामत सब साधारण िोगो की राय कया वसत ह और इसर दकतना जोर ह और

इसक कतिए कया हो सकता ह यह परशन ठहरा तो इसका साधारण उततर यही ह दक यह वह वसत ह जो

सासार को एक कर सकती ह गागा की धरा दफर कतहरािय पर चढ़ा ि जा सकती ह सययम को पकतशचर उगा

सकती ह और चाह तो ईशवर को भी पकड़ क कठपतिी की भााकतत नचा सकती हrdquo37 यह पकतबिक

ओकतपकतनयन lsquoएक रतrsquo होना ह जस अिग अिग चार पतिी िककतड़यो को एक साथ बााध दन स उस

तोड़ना करठन हो जाता ह उसी तरह एक रत होन स बड़ स बड़ा बरी भी हरारा कछ कतबगाड़ नही सकता

बहत स िोगो का रत एक हो तो वह शकति बन जाती ह हिारो आदरी की बकतदध एक हो जाए तो ldquoऐसा

कौन कार ह जो न हो सक तो यह कतसदधाात हआ दक कतनशचय सब िोगो क रत र बड़ी सारथयम ह इसस यह

कतसदध हआ दक बिो स बड़ा बि एक रत ही हrdquo38

आग भारतद कहत ह दक यह जनरत और उसकी शकति हहादसतान क कतिए कोई नई बात नही ह

पराचीन काि र इसक उदाहरण कतरित ह lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo की इस धारणा को भारतद न इकततहास क

अिग-अिग दौर र बनत और कतबगड़त ददखाया सबस पहि चार वणो की िररत पड़ी सब कार को

सचार रप स चिन क कतिए दसर शबदो र कह तो शरर-कतवभाजन की िररत स इसका जनर हआ

lsquoकतहनदओ न अपन गर क कार र इस वणामशरर धमरम को इसी वासत बनाया कतजस र उन क दकसी कार र

कोई हजम न हो और उनिोगो न सासार क सब कारो र चार कार रखय सरझrsquo धरम कतवदया और किाओ का

कार िड़ाई और राजय परबाध का कार वयापार और धन और सब िोगो की सवा और रजदरी इन चार

कारो की सवयवसथा वािा वणामशरर दरअसि lsquoएक रतrsquo कतहनद वयवसथा या lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo थी पर

कािाातर र इस lsquoएकरतrsquo क भीतर जाकततवयवसथा कठोर हो गयी और िाहमण और शदर दोनो एक दसर क

कतखिाफ हो गए एकरत र कतवचछद पदा होन स कतहनद शकति करिोर हो गयी भारतद क अनसार आपस

का यह झगड़ा बड़ा कतवनाशकारी साकतबत हआ पकतबिक ओकतपकतनयन क कतबना वयाकतभचार और जयादकततयो का

अाधर था आग चि कर जनो क जरान र दफर lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo न जोर पकड़ा बकतलक भारतद जोर

दकर कहत ह दक जनो क रत की उततपकततत ही lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo स हई ldquoकतहनदओ क जब नाश क ददन

जब कतनकट आय तो आपस र परसपर बड़ा कतवरोध खड़ा हआ और उस काि र िाहमणो का बड़ा जोर था

वरन य और वणो पर जयादती करत थ तो वशय और कषकततरयो की रकतत इनस दफर गयी और बाब वािी बड़ी

37गराथाविी- 678

38वही

34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

36

कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

37

उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

38

ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 5: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

5

शक की कतनगाह स दखत थ आदद आददrdquo7 इसी तरह lsquoहहादी नई चाि र ढिीrsquo कहकर भारतद भाषा क

बदि दरअसि साकतहतय क नयपन को ददखा रह थ और साकतहतय का यह नयापन रखय अातरवमरोधो को परकट

करन र ह िोकसाकतहतय और रौकतखक साकतहतय र १८५७ की ओजकतसवता चिी आई थी और भारतद यग क

साकतहतय र जो ऊजाम जो चरक जो नयापन था वह उसी िोक और रौकतखक साकतहतय स पररणा पाती थी

यह सारा साकतहतय चादक अागरजी काननो स बाहर था इसकतिए भारतद यग को यह सहज ही उपिबध था

यह सारा साकतहतय कतवचारधारातरक रप स सदीघम उपकतनवशवादी िट की सरकतत और १८५७ र झिक उठन

वािी उपकतनवश-कतवरोधी lsquoजातीयता की सरकततrsquo दोनो को अपन भीतर कतिए थी भारतनदयगीन साकतहतय

रणनीकततक रप स कछ ऐसी चीज करता था कतजसस वह अागरजी कोप और कानन स बचा भी रह और

जातीय चतना को एक आनदोिनकारी रप भी द सक रारकतविास जी रनजर पााडय की इसी बात की

आिोचना करत ह दक वह गौण कतवरोधो को जयादा रहततव दत ह परगकततशीि आनदोिन क आताररक

अातरवमरोधो को असवीकार तो रारकतविास जी न भी नही दकया पर इसक चित होन वािी गिकततयो की

तरफ उनहोन इशारा जरर दकया था

भकति और रीकतत काि को दो आताररक परवकतततयो क रप र न दखकर जब दो कतभनन कािखाड रान

कतिया जाता ह तब इकततहास-दकतषट का एक भरारक रप खड़ा होता ह भकतिकाि र भकति रखय धारा थी और

रीकतत गौण और रीकतत काि र रीकतत रखय धारा बन गयी और भकति गौण इस परकार दखन पर पता चिता

ह दक िोकजागरण की परगकततशीि धारा ख़तर नही हो गयी थी या अवरदध नही हो गयी थी बकतलक गौण

धारा क रप र चिी आ रही थी रनजर पााडय क अनसार बारहवी सदी स आरमभ होन वािा वयापाररक

पाजी का कतवकास सफि नही हआ और साराती वयवसथा जस की तस बनी रह गयी सराज की साराती

अकतधरचना और उसका आधार दोनो करजोर जरर हए पर बन रह उनक अनसार ldquoभकति आादोिन

साराती सराज र कतवककतसत सौदागरी पाजीवाद और जातीय कतनरामण क फिसवरप उतपनन साराकतजक साबाधो

की साासककततक अकतभवयकति ह रीकततकाि का साकतहतय सारात कतवरोधी साराकतजक साबाध (साबाधो) और

साासककततक चतना क अवरदध होन का पररणार तथा परराण हrdquo8 रारकतविास जी इस अवरदध होन क तकम

को सवीकार नही करत उनक अनसार यह शकति सातिन सौदागरी पाजीपकतत और जरीदारो क बीच का

शकति सातिन था ऐसा नही था दक पाजीवाद का कतवकास अवरदध और कतनषफि हो गया था भकति स रीकतत

र साासककततक जागरण का पयमवकतसत होना एक lsquoछोटी टरजडीrsquo ह अथामत गौण अातरवमरोध ह जबदक अागरजी

राज की सथापना lsquoबड़ी टरजडीrsquo ह इसकतिए सवाभाकतवक जातीय पाजीवाद या भारतीय पाजीवाद की गकतत

7 वही पषठ- १९

8 वही उदधत पषठ ३१

6

अवरदध होती ह अागरजी राज र रारकतविास जी पााडय जी पर आरोप िगात ह दक उननीसवी सदी र

औदयोकतगक कााकतत स शर होन वािी आधकतनकता एक ऐसी कलपना ह जो इस lsquoबड़ी टरजडीrsquo को भि जाती ह

जबदक बड़ी टरजडी रखय अातरवमरोध क कारण बनती ह

रारकतविास जी न एागलस क हवाि स ददखान की कोकतशश की ह दक पाजीवादी शासन की नीव

डािन वािो को पाजीवाद की सीराओ क अनदर ही दखना एक बड़ी भि ह पनजामगरण क नताओ और

उनक परकततभाशािी वयकतितव र पाजीवाद की सीरा और उसका अकततरक भी था इस बात का जो िोग

धयान नही रखत उनक यहाा आधार और अकतधरचना या वगम और साकतहतय की यााकततरक सरझ होती ह

भारतद आदद साकतहतयकारो क इस अकततरक को कतचकतननत करन क कर र ही रारकतविास जी lsquoरखय

अातरवमरोधrsquo क परकततकतबमब को सारन रखत ह पाजीवादी सीराओ र नही बाध होन का रतिब एागलस क

कतिए रजदर वगम की परापरा क पवम पकष स ह जहाा एागलस पनजामगरण क कतवशवजनीन रलयो और पराककततक

कतवजञानो क कााकततकारी रहततव को रखाादकत करत ह lsquoपरककतत की िािातरकताrsquo र एागलस न यााकततरक

भौकततकवाद की आिोचना की ह और ददखाया ह दक अठारहवी सदी र फाासीसी यााकततरक भौकततकवाददयो न

भौकततकवाद क नार स कतजस कतवचारधारा का परचार दकया उसका िािातरक भौकततकवाद स कतवरोध ह9

रजदर वगम की कतवचारधारा का पनजामगरण स साबाध एागलस उननीसवी शताबदी क आकतखरी दशको र ददखा

रह थ उनहोन ददखाया दक जरमन शासतरीय दशमन र जो कछ रहान था उन सबका सीधा वाररस जरमन

पाजीपकतत वगम नही बकतलक जरमन रजदर वगम था इसी तरह राकसम न पाजी-१ की भकतरका र जरमन रजदर

वगम को जरमन बजमआ हचातको और कतवचारको स जयादा ऊननत कतवचारधारातरक चतना स िस बताया ह

राकसम न १८४८ स १८५२ की कााकततयो और परकततकााकततयो क कतवशलषण क बाद १८५७ क कतवदरोह को भी

lsquoभारतीय सवाधीनता आादोिनrsquo की तरह कतवशलकतषत दकया था इन कतवशलषणो र बाद तक राकसम थोड़ा थोड़ा

पररवतमन करत रह थ परनत कतनकतशचत रप स औपकतनवकतशक पाजी क कतवसतार और यरोपीय कााकततयो क

आपसी ररशतो को वह दकसी यरो ककतनदरत दकतषट स नही दख रह थ राकसम क सारन रखय सवाि पाजी क

वकतशवक चररतर और उसक कतखिाफ कतवदरोह की कतवकतशषटता को पहचानन का था राकसम दख रह थ दक इागिणड

र रजदर वगम क आनदोिन क कतिए या यरोप र रजदर वगम क आनदोिन क कतिए उपकतनवशो क भीतर होन

वाि कतवदरोह की साभावनाओ का कया रहततव था १८४८ की रहािीपीय कााकतत की इागिणड र होन वािी

परकततदकया को राकसम इन शबदो र सारन रखत ह- ldquoजो िोग अभी भी कछ वजञाकतनक सरझ का दावा करत

थ और शासक वगो क रातर सोदफसस या साइकोफनस स कछ जयादा होन की इचछा रखत थ उन िोगो

न सवमहारा क दाव क साथ कतजसकी अनदखी अब साभव नही थी पाजी क राजनीकततक अथमशासतर क सरनवय

9 कतवसतत चचाम क कतिए दख अधयाय तीन

7

की कोकतशश की इस परकार एक कतछछिा सरनवयवाद सारन आया कतजसक सबस बड़ परकततकतनकतध जॉन सटअटम

कतरि ह यह lsquoबजमआrsquo अथमशासतर क ददवाकतियपन की घोषणा हrdquo10 यह बात पाजी की भकतरका र राकसम

१८७३ र कतिख रह ह जरमनी क बार र कतिखत हए वह कहत ह दक वहाा पाजीवादी उतपादन पदधकतत क

पररपकव होन क पहि ही उसका शतरतापणम चररतर (एाटागोकतनकतसटक) अपन को परकट कर चका था यह साभव

हआ था फ़ाानस और इागिड र होन वाि ऐकततहाकतसक साघषो क कारण11 इस तरह जरमनी र बजमआ

अथमशासतर कवि बरी नकि क रप र ही कतवककतसत हो पाया कयोदक जरमन सवमहारा क पास बजमआ अथमशासतर

की सीराओ की आिोचना उपिबध थी ऐस ही सरय बजमआ अथमशासतर क रहनरा दो सरहो र बाट गए

एक तरफ यााकततरक और भौड़ा अथमशासतर बघारन वाि िोग थ दसरी ओर कतरि क अनयायी थ कतजनहोन

असराधय क बीच सागकतत कतबठानी चाही पर य सार परयास असफि होन को बाधय थ कयोदक उनकी

आिोचना पहि स ही वहाा परापत थी राकसम कतिखत ह ldquoइसकतिए जरमन सराज क कतवकतशषट ऐकततहाकतसक

कतवकास न दकसी lsquoबजमआrsquo अथमशासतर क कतवकास को बाहर रखा परनत उसकी आिोचना को बाहर नही

दकया जहाा तक इस तरह की आिोचना एक वगम का परकततकतनकतधतव करती ह यह कवि उसी वगम का

परकततकतनकतधतव कर सकती ह कतजसका ऐकततहाकतसक कायमभार पाजीवादी उतपादन पदधकतत को उखाड़ फ कना और

सभी वगो का अाकततर सफाया ह- याकतन सवमहाराrdquo12

भारतद यग क बजमआ अथमशासतर र जॉन सटअटम कतरि का दकतना परभाव था इस दहरान की जररत

नही lsquoआिोचनाrsquo क रप र सवमहारा वगम बजमआ अथमशासतर की असाभावयता ह यह lsquoआिोचनाrsquo जरमन

रजदर वगम को कतजतना अपन साघषो स परापत थी उतना ही फ़ाास और इागिणड क साघषो स भी भारतद की

आिोचना कतजस वगम का परकततकतनकतधतव करती ह वह रजदर वगम नही ह अागरजो की कतवजय और िट की सरकतत

क साथ पाजी की तथाककतथत आददर साचय की तरासद सरकतत भी ह तथाककतथत आददर साचय अगर रजदर

वगम की पररकतसथकतत ह तो यह सरकतत रितः रजदर वगम की तरासद सरकतत ह पर भारतद यग क साकतहतय को

या भारतद की रचनाओ र कतरिन वािी आिोचना दकतषट का जो पकष रारकतविास जी सारन रखना चाहत ह

वह उस तरासद सरकतत क साथ lsquoबजमआ अथमशासतरrsquo की सरनवयकारी आिोचना ह इसकतिए कह सकत ह दक

भारतद यग का १८५७ की lsquoआिोचनाrsquo क साथ साबाध सरनवयकारी ह भारतद क साकतहतय र कतरिन वािा

दकतचततापन इसी असराधय सराजन की कोकतशश क चित पदा हआ ह भारतद क साकतहतय र जहाा इस

सराजन का अकततरक ह वह उनका उजजवि पकष ह दसर शबदो र lsquoसवतव कतनज भारत गहrsquo या अकतसरता

कतनरामण या हहादी जातीयता का जहाा अकततरक ह भारतद का साकतहतय वही उजजवि ह lsquoअाधर नगरीrsquo क

10 कािम राकसम ककतपटि- वॉलयर १ अन बन फोकस पषठ ९८ पकतगवन बकस िादन- १९९०

11 वही

12 वही

8

रपक र हर इस तरह का एक अकततरक ददखाई दता ह जहाा lsquoअाधर नगरीrsquo राजय सतता हहासा और नयाय क

अकतनवायम साबाधो का रपक ह भारतद क परहसनो और वयागयो र जहाा कही इस असराधय सराजन का

खोखिापन उजागर होता ह भारतद का वतमरान अथम उनही र राना जाना चाकतहए

िोकजागरण की कतवचारधारा क रप र भकति रारकतविास जी क कतिए भी वषणवता क अनदर ही

पररभाकतषत थी अकारण नही दक भारतद को वह तिसी की परापरा का नवजागरण रानत थ भकति की

इस कतवचारधारा क कतखिाफ सातरत की कतवकतशषटताओ को वह निरअादाज करत ह अगर सातरत कारीगरो

और कतनमनवगीय जनता का साासककततक और इसकतिए राजनीकततक परयास था तो उस कवि भाषा या बोकतियो

स बनन वािी lsquoजातीय चतनाrsquo र कतनसशष नही दकया जा सकता कबीर आदद सातो क िोकजागरण स

भारतद क नवजागरण का साबाध रारकतविास जी न नही ददखाया ह कबीर आदद क यहाा जो जयोकतत ददखाई

पड़ी थी उस वषणव भकति की कतवचारधारा क बड़ परवाह र सरझन स यह ददककत पदा होती ह रखय

अातरवमरोध क भीतर जो शतरतापणम कषण ह उस दकतषट स ओझि करन का कार ही परभतवशािी कतवचारधारा

करती ह रारकतविास जी पाजी क अातरवमरोधी चररतर को तो दखत ह िदकन यह नही दख पात दक

अातरवमरोधो स ही वह गकततशीि ह राकसम न इनही अथो र पाजी को lsquoगकततशीि अातरवमरोधrsquo कहा था

परभतवशािी कतवचारधारा भी अपन भीतर क अातरवमरोधो स ही आग बढ़ती ह भकति और रीकतत या कतनगमण

या सगण ऐस ही अातरवमरोध ह भारतद यग भी अपन अातरवमरोधी चररतर स ही बन रहा था उपकतनवशवाद

का कतवरोध भी उपकतनवशवादी कतवकास का ही कतहससा था सारातवाद स पाजीवाद र साकरण कवि

सारातवाद कतवरोध क रप र ही नही कतवककतसत होता बकतलक वहाा पाजीवाद क अकततकरण की साभावना भी

अनतरनमकतहत होती ह जो बाद र पाजी क कतवकास क दौरान पाजी क साराकतजक साबाधो र बदि जाता ह

थॉरस रनतसिर क नततव र हए कषक कतवदरोह र एागलस न या रधयकािीन कतवधरी आनदोिनो र कतसतरयो

की भकतरका ददखान क कर र कतसकतलवया फददरची न इस अकततकरण को और पनः पाजी क साराकतजक साबाधो

र रपाातरण की परदकया को ददखान की कोकतशश की ह13 पाजीवाद की काकतनतकारी भकतरका पर जोर दन स

उसकी परकततकााकततकारी भकतरका आाखो स ओझि हो जाती ह lsquoइकततहास जसा था वसा पान कीrsquo कोकतशश की

यह अकतनवायम सीरा ह अागरजी राज की िट पाजी की िट थी भारतीय आतर या हहादी जाकतत का

आतरकतबमबअाततः इस िट को कतछपान वािी और उस भिान वािी रोहक कलपना थी कही १८५७ स

भारतद यग का साबाध ददखाना भी एक रोहक कलपना ही तो नही ह

13 दख फडररक एागलस द पीजट वॉर इन जरमनी परोगरस पकतबिशसम रासको- १९७७ और कतसकतलवया फददरची ककतिबन एाड द कतवच फोकतनर

बकस ददलिी- २०१३

9

नारवर जी न नवजागरण को ररनसाास क बदि परबोधन या एनिाइटनरट की तरह दखन की बात

कही थी और कहा था दक इस नवजागरण का १८५७ स कोई भी साबाध कतशषट साकतहतय र नही ददखाई

पड़ता रारकतविास जी क िख क दो साि बाद lsquoआिोचनाrsquo र नारवर जी न lsquoहहादी नवजागरण की

सरसयाएाrsquo नार स एक िख कतिखा उपरोि दो चीज नारवर जी न उसी िख र कही ह उननीसवी सदी क

भारतीय नवजागरण को ररनसाास कहन र कई ददककत ह यरोप र कतजस lsquoररनसाासrsquo lsquoररफारशनrsquo या

lsquoकतचनकवचतोrsquo आदद कहा जाता ह वह पादरहवी शताबदी का नवजागरण था पादरहवी शताबदी र भारत भी

भकति आनदोिन क रप र एक जागरण स गजर रहा था इसकतिए नारवर जी कहत ह दक अगर उननीसवी

सदी क नवजागरण को ररनसाास कहग तब पादरहवी शताबदी क भकति आनदोिन को कौन सा जागरण

कहग रारकतविास जी इसीकतिए एक को िोकजागरण और दसर को नवजागरण कहत ह नारवर जी

कतिखत ह ldquoउननीसवी शताबदी क भारतीय नवजागरण को lsquoररनसाासrsquo कहन र एक करठनाई तो यह ह दक

इस यग क भारतीय कतवचारको और साकतहतयकारो क पररणासरोत यरोप क पादरहवी शताबदी क कतचनतक और

साकतहतयकार न थ बकतलक इसक कतवपरीत पररणासरोत क रप र अकतधकााश कतवचारक उस काि क थ कतजस

यरोप र lsquoएनिाइटनरटrsquo का काि तथा उसक बाद का काि कहा जाता ह सवया बादकर की सहानभकतत

रसो और परधो क साथ थी और व कोत जॉन सटअटम कतरि तथा हबमटम सपसर स परभाकतवत ददखाई पड़त

हrdquo 14 इस परकार यह lsquoनवजागरणrsquo lsquoपरबोधनrsquo की चतना क तलय ह और इसकतिए इसकी अातवमसत

lsquoिोकजागरणrsquo स कतभनन ह यदयकतप एक र दसर की चतना lsquoअाशतः कतवदयरानrsquo ह पर नवजागरण

िोकजागरण का पनरतथान रातर नही ह नवजागरण का नततव करन वाि रधयवगीय थ िोक क बीच स

नही आन क चित उनका सारानय िोक जीवन स एक दराव था और कतवचारो र िोकोनरख होकर भी

वयवहार र उनका िोक क साथ कोई तादातमय नही था नवजागरण का परभाव शहरो तक सीकतरत था और

इसकतिए िोकजागरण की तिना र इसका परसार भी सीकतरत था नारवरजी इस नवजागरण को रखयतः

साासककततक आनदोिन क रप र दखन की कतहरायत करत ह पर सवाि यह ह दक इस साासककततक आनदोिन

की राजनीकतत कया थी

भारतद क शबदो र नारवर जी भारतीय नवजागरण की रि सरसया lsquoसवतवrsquo या lsquoअकतसरताrsquo की

सरसया बतात ह धयान रखन वािी बात ह दक परबोधन या एनिाइटनरट की एक रि सरसया अकतसरता

की सरसया ह lsquoपरबोधन की िािातरकताrsquo नारक अपनी दकताब र एडोनो और हाखमइरर न ददखाया ह दक

कस परबोधन या जञान की शकति न यथाथम को कतरथ बनाया और कतरथको को यथाथम दकया एक पणय-वसत क

रप र जञान का उतपादन और पनरतपादन उननीसवी सदी की कतवशषता ह खासतौर स पवी कतवदया की रााग

14 नारवर हसाह हहादी का गदयपवम (सा) आशीष कततरपाठी पषठ-८६ राजकरि परकाशन नई ददलिी- २०१०

10

बािार र बहत थी जञान का कतवकतनरय एक बड़ बािार र हो रहा था और जञान की सारचना और उसकी

सापणमता एक फरटसाइजड कतवशवदकतषट बनाती थी कतभननता ह इसकतिए कतवकतनरय ह हर चीज जो कतवकतनरय र

शाकतरि ह रनषय की दकसी न दकसी जररत को परा करती ह य जररत य इचछाएा कवि पट स पदा नही

होती बकतलक कलपनाओ स भी पदा होती ह परबोधन की िािातरक परदकया क भीतर कतवजञान और धरम दोनो

न रनषय क कलपनाजगत की इचछाओ को भी परा करन वािा बािार बनाया कतभननताओ की

वासतकतवकताओ को छपान क कतिए या दसर शबदो र कह तो जञान की वासतकतवक जररत को छपान क कतिए

जञान का एक भरर खड़ा दकया जाता ह ठीक वस ही जस बजमआ अथमशासतर पाजीवाद की अतारकमकता को

ढाकन और दबान की परदकया र ही बना था पराककततक कतवजञानो क भीतर स कतनकिन वािी दो तरह की

कतवचारधाराओ की रााग बहत थी एक अटठारहवी सदी र िोककतपरय lsquoयााकततरक भौकततकवादrsquo की कतवचारधारा

और दसरी जीवकतवजञान स आन वािा कतवकासवाद का कतसदधाात राजनीकततक अथमशासतर क कतिए भारत र जॉन

सटअटम कतरि आदद िखको क बजमआ अथमशासतर का नया बािार था तकम की सावमभौकतरकता को उसकी

वासतकतवक जररत स काटकर lsquoअकतसरता कतनरामणrsquo स जोड़ ददया गया जो इकततहास कतरथ क अात का दावा

करता था वह सवया कतरथ गढ़न िगा यह सब साभव हआ उस कतवशाि जनसारानय क भय क सहार

कतजनहोन अपन ऊपर अपना कतनयातरण खो ददया था धरम इस भय क सहार कतवजञान की आिोचना करता था

और कतवजञान धरम की परबोधन-पवम की परापरा र जो आसथा या कतवशवास और जञान का अकतनवायम साबाध था

उसक सहार धरम आसथाकतवहीन जञान की आिोचना क िारा कतवशाि जनसारानय की रकति का कारोबार

करता ह

परबोधन की एक धारा आिोचनातरक जञान की धारा थी कतजसकी आिोचना राकसम न

lsquoआिोचनातरक आिोचना की आिोचनाrsquo कहकर की थी भारतीय नवजागरण क भीतर आिोचनातरक

जञान की धारा को नारवर जी न रहतवपणम राना ह यह ldquoआिोचनातरक दकतषट यरोप क lsquoपराचयकतवदयावादrsquo

(ओररएणटकतिजर) क इस उपकतनवशी रायापाश को कतछनन करन की चतावनी दती हrdquo15 यह उपकतनवशी

रायापाश पाजी का रायापाश भी ह जञान की पाजी का रायापाश कतजस हर पराचयकतवदयावाद का रायापाश

कह रह ह वह आिोचना-परतयािोचना की एक तथाककतथत िोकताकतनतरक परदकया र ही बन रहा था

इसकतिए इस आिोचना-परतयािोचना की परदकया की आिोचना क सनदभम र ही हर उस आिोचनातरक

धारा की चचाम कर सकत ह और कहना न होगा दक यह एक राजनीकततक करम भी ह नारवर जी न कहा दक

भारतीय नवजागरण र lsquoसवतव पराकतपतrsquo का साबाध राजनीकततक रकति स नही जोड़ा गया ह राजनीकततक

सवाधीनता अथामत lsquoराजसतता पिटन क कतवचार को अातगमहावास द ददया गयाrsquo इस तरह १८५७ या उसक

15 वही पषठ- ८७

11

पहि क दकसान कतवदरोहो क भीतर जो राजसतता पिटन का कतवचार था उस भारतीय नवजागरण न

अातगमहावास दन का कार दकया अतः भारतीय नवजागरण रखयतः साासककततक आिोचना ही थी

राजनीकततक आिोचना को गहावास दन वािी साासककततक आिोचना वह कतिखत ह ldquoसच तो यह ह दक

अकतधकााश िखक सरकषा सशासन कतशकषा उननकतत और शााकतत क कतिए कतिरटश राज क परकतत उपकत अनभव

करत ह- कतवशष रप स रगिो क शासन की तिना र इस परवकततत क अवशष बीसवी शताबदी क दसर

दशक तक रकतथिीशरण गपत की lsquoभारत भारतीrsquo जसी राषटरीय कही जान वािी कावय-ककतत र भी कतरिती ह

यहाा तक दक कभी-कभी तो नवजागरण क अनक उननायक राजसतता क साथ सहयोग करत भी ददखाई पड़त

ह अब इस कोई चाह तो नवजागरण क उननायको का रधयवगीय अथवा भदरिोक चररतर कह ि अथवा

दकसी सागरठत राजनीकततक परकततरोध क अभाव क िारा इस कतनरपायता की वयाखया कर ि दकनत हर हाित

र यह तथय कतवसरत न हो दक कि कतरिाकर था यह रितः नवजागरण ही- साासककततक नवजागरण कतजस

राषटरीय सवाधीनता साघषम का पवमराग भि कह ि दकनत उसका पयामय न सरझrdquo16 इसी साासककततक

नवजागरण स वह lsquoआतरकतबमबrsquo तयार हआ कतजसक कतबना राजनीकततक साघषम का वह रप कतवककतसत नही होता

जो आग चिकर वासतव र हआ अजञय की इस वयाखया स नारवर जी सहरत ह दक राजनीकततक-साराकतजक

आधारो की वासतकतवकता क बावजद भदरवगीय साासककततक आनदोिन न जो lsquoआतरकतबमबrsquo रचा वह

राजनीकततक सवतातरता साघषम र हकतथयार बन गया राजनीकततक सवतव पराकतपत की जो चतना इस पररणापरद

आतरकतबमब र अातगमहावास कर रही थी आग चिकर वही राजनीकततक सवतव पराकतपत र उभरकर कतनज

कतवककतसत होती गयी एक बार दफर lsquoइकततहास जसा था वसा पानrsquo की कोकतशश र इकततहासवाद की

कतवचारधारा सारन आ खड़ी होती ह इस इकततहासवाद की आिोचना गरामशी न भी की थी खासतौर पर

कोच क परर इकततहासवाद की आिोचना करत हए सवाि ह दक सासककततकरम की राजनीकतत कया ह

ददरागी गिारी स रकति का साघषम और राजनकततक रकति का साघषम कया इस तरह क अिगाव र रह सकता

ह और अगर अिगाव ह तो इस अिगाव को कस सरझ एक बार यह तय हो जान पर दक उनका वगम

कया था हर उसी क आिोक र उनक साासककततक परयासो की आिोचना करनी चाकतहए दसर शबदो र

उनक अपन वगीय अातरवमरोधो क आिोक र ही उसकी आिोचना साभव ह उपकतनवशवाद की रानकतसक

गिारी क कतखिाफ साघषम जञान की सतता क कतखिाफ साघषम ह और शायद इसकतिए नारवरजी कहत भी ह दक

यह साघषम राजनीकततक साघषम स lsquoकर करठन न थाrsquo यरोपीय जञान क बरकस भारतीय जञान को सथाकतपत

करन का साघषम ही यह साघषम था ldquoउपकतनवशवाद की छाया र भारतीय सासककतत क िोप का खतरा था

इसकतिए अपनी सासककतत की रकषा का परशन सवतव-रकषा का परशन बन गयाrdquo17 सतता पिटन क कतवचार को

16 वही पषठ ८८

17 वही

12

अातगमहावास दकर सवतव-पराकतपत सवतव-रकषा का परशन बन गया और यह सवतव कया था कतजसकी रकषा

साासककततक रोच पर नवजागरण क परसकताम कर रह थ- कलपना या यथाथम परबोधन न जञान का एक कतरथ

तयार दकया और चपक स कतरथको को जञान बना ददया इस नवजागरण की एक बड़ी दन एक परकतत-

इकततहास-दकतषट का कतवकास ह नारवर जी कतिखत ह ldquoनवजागरण की एक बहत बड़ी दन साभवतः वह

इकततहासदकतषट ह कतजसस अपन अतीत को शतर स रि करक उसक कतवरदध वतमरान र इसतराि करन की किा

आती ह और भकतवषय क कतिए सवपन दकतषट भी कतरिती हrdquo18 अगर वासतव र यह दकतषट नवजागरण की दन ह

तो रानना पड़गा दक यह फासीवाद की इकततहासदकतषट ह एक ऐस रकतसिर अतीत की कलपना जहाा रकतसिर

शतरओ स भारतीयता को रि करक वतमरान र उनक कतखिाफ इसतराि दकया जाता ह और इसस भकतवषय

की एक सवपन दकतषट भी भी कतरिती ह कहना न होगा दक परबोधन स कतनकिी यह इकततहासदकतषट अतारकम क

नही थी कयोदक यह साघषम की वासतकतवकता का सबस भरकतरत रप खड़ा करती ह फासीवाद इस अथम र वगम

साघषम का सबस कतरथकीय रप ह और अगर यह सही ह तो सवतव-रकषा र परापत इस इकततहासदकतषट को हर

परकततकााकतत की इकततहासदकतषट कह सकत ह भारतीयता का यह भरकतरत आतरकतबमब सवया को दो बनाकर ही

गकततशीि था यही इकततहासदकतषट आग चिकर lsquoकतवरदधो का साराजसयrsquo की इकततहासदकतषट क रप र इकततहास

का सबस भवय ढााचा खड़ा करती ह आतरकतबमब क इस कतवखाडन को िकषय करत हय नारवर जी न कतिखा

ldquoहरानी की बात ह दक हहादी परदश का नवजागरण धरम इकततहास भाषा सभी सतरो पर दो टकड़ हो गया

सवतव रकषा क परयास धरम तथा सापरदाय की जरीन स दकय गएrdquo19

आतरकतबमब का यह दो होना िखको क दो वगो र परकततहबाकतबत हआ नारवर जी क अनसार एक

वगम अागरजो का घोर कतवरोध करता ह पर धरम-सासककतत और साराकतजक परथाओ क बार र परापरावादी ह

दसरा वगम अागरजी राज क परकतत नरर रख अपनाता ह पर अनय रारिो र या तो रिगारी ह या दफर

सधारवादी िखको का पहिा वगम भारतीय होन का दावा करता ह जबदक नररपाथी िखक पकतशचरोनरख

ह हहादी नवजागरण क नता जयादातर परापरावादी ह जहाा अागरजी कतशकषा का परसार जयादा हआ वहाा

पकतशचरोनरख िखक जयादा थ दयानाद की अपकषा भारतद का झकाव कशवचादर सन जस पकतशचरोनरख

िखको या सधारको क परकतत था ऐसा साभवतः वषणव भावकता क चित था नारवर जी भारतद र परखर

बकतदधवाद का अभाव पात ह पर उनकी रराकतनयत को रानवतावाद की कतवचारधारा स जोड़त ह

नवजागरण क इस साकतशलषट कतचतर को सारन रखन की कोकतशश र नारवर जी एक ऐसी इकततहासदकतषट

कतवककतसत कर रह थ जो अतीत को उसक सापणम अातरवमरोधो र पान की कोकतशश करता ह अतीत को खिा

18 वही पषठ-८९

19 वही पषठ ९१

13

छोड़ दन वािी यह इकततहासदकतषट या एक सातकतित इकततहासदकतषट का यह परयास खाड खाड कतबमबो की एक ऐसी

गकततशीिता का भरर पदा करती ह जो इकततहासवाद की एक पररख कतवशषता रही ह इस पकष पर सवया

नारवर जी का धयान था और आग चिकर उनहोन नवजागरण क इस कतरथकीय चररतर को सवया ही

आिोकतचत दकया इस आिोचना र वह नवजागरण को परबोधन कहन क बदि lsquoअकतभजञान-कािrsquo कहना

जयादा उपयि रानत ह खद lsquoनवजागरणrsquo नार को अागरजो की कलपना बतात ह और उननीसवी सदी को

lsquoसरकतत-भराशrsquo का काि कहत ह यहाा १८५७ स िकर भारतद और कतववकानाद सब एक कतरथकीय चतना क

भीतर सराकतहत ददखत ह और कतजस भारतीय नवजागरण कहा जाता था उस कतवपरीत जागरण रानत ह

इसी कतवपरीत जागरण का नार उनहोन अकतभजञान ददया 20 डा वीरभारत तिवार न कवि कतहनदी

नवजागरण को भारतीय नवजागरण की परकततकााकततकारी धारा कहा था वही नारवर जी अब पर भारतीय

नवजागरण को ही कतवपरीत जागरण कह रह ह और बहत हद तक सही कह रह ह

डा तिवार न अपनी lsquoरससाकशीrsquo र lsquoहहादी नवजागरणrsquo को एक भरारक पद बताया था न तो

इसका साबाध १८५७ स था न रधयकािीन भकति आनदोिन स और न ही जनवादी राषटरवाद की दकसी

अवधारणा स उनक अनसार परबोधन क कतववकवाद तथा धरमसधार-सराज सधार की कतरिी जिी परदकया

क रप र कतवककतसत होत बागािी या रराठी नवजागरण या भारतीय नवजागरण की परकततगारी धारा क रप

र कतवककतसत होन वाि भारतद आदद क साासककततक आनदोिन को lsquoहहादी आनदोिनrsquo कहना ठीक ह कतशकतकषत

रधयवगम क भीतर दो परसपर कतवरोधी धाराओ की चचाम डा तिवार करत ह एक धारा कतववकवाद की

धारा थी दसरी सनातनी कतहनद धरम की धारा रहाराषटर और बागाि र अागरजी कतशकषा क परचार-परसार न कतजस

नए धरम और सराज सधार को गकतत परदान की वह अपकषाकत अकतधक परगकततशीि धारा थी पकतशचरोततर यि

परानत क पवी इिाक खासतौर पर बनारस इिाहाबाद और बहत हद तक पटना कानपर भागिपर आदद

शहरो र कतवककतसत नव-रधयवगम इस परगकततशीि धारा क साथ नही था इसका सबस बड़ा कारण अागरजी

कतशकषा का अभाव था यि परानत र कोई धारा परगकततशीि भकतरका अदा कर रही थी तो वह कवि दयानाद

सरसवती की आयमसराजी धारा थी इस आयमसराज का भी अपना जनाधार सनातनी पाकतडतो या िाहमणो क

यहाा नही बकतलक नौकरीपशा अागरजी कतशकषा परापत वह भदरवगम था जो अपन धरम और सासकारो क कतपछड़पन

को िकर गिाकतनबोध स भरा था इस वगम को अपनी पहचान आयम सराज र ददखती थी आयम सराज क

रिवाद र तथा उसक तारकम क सथिवाद र आधकतनक होन का रासता ददखता था िहमोसराज और

कतथयोसोदफकि सोसाइटी दो ऐसी सासथाएा और थी जो यि परानत र धरम और सराज सधार का परयास कर

रही थी परनत इसका परभाव बहत सीकतरत था आरतौर पर यिपराात र रहन वाि बागािी अपरवासी ही

20 दख नारवर हसाह उननीसवी सदी का भारतीय पनजामगरण यथाथम या कतरथक (अन) पाकज पराशर पकषधर अाक ११ जिाई २०११

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इनक सदसय थ हहादी आनदोिन क नताओ न इन दोनो धाराओ की आिोचना की ह इनहोन दयानाद क

रिवाद की आिोचना अपनी परापरावादी करमकााडी दकतषट स की इनक अनसार उपकतनषद या पराण आदद

अगर अपराराकतणक भी ह तब भी चादक िोक र सवीकत ह इसकतिए उनह एकदर ख़ाररज करक कोई धरम या

सराजसधार नही हो सकता तिवार जी का कहना ह दक अपनी िचर दिीिो की आड़ र य िोग वसततः

सतरी कतशकषा कतवधवा कतववाह या आधकतनक जीवनशिी आदद की परगकततशीिता का कतवरोध कर रह थ यह

कतवरोध आरतौर पर सरदाय की रानयताओ को ही सारन रखकर दकया जाता था एक दकसर क

कतबरादरीवाद क भीतर स सरझौता करत चिन क कारण हहादी आनदोिन क नता अपन पाररवाररक या

वयकतिगत जीवन क उथिपथि स बचन की कोकतशश करत ह धरम इनक कतिए सधार का नही वरन

राजनीकततक हथका डा रातर था धरम की आड़ र य रकतसिर भदरवगम को अपना परकततयोगी साकतबत कर कतहनद

एकता की अपीि करत तादक इनह सरकारी नौकररयो र कछ कतवशषाकतधकार कतरि सक तिवार जी क

अनसार रकतसिर भदरवगम इन हहादी आनदोिन क परसकततामओ स कही जयादा परगकततशीि था उनक यहाा

आधकतनकता क परकतत जयादा खिी और कतववकसापनन दकतषट थी और उनहोन जोर दकर कहा दक हहादी आनदोिन

को सर सयद अहरद खाा जस दकसी सकषर कतववकवादी वयकतितव का नततव नही कतरि पाया हहादी

आनदोिन और नताओ क अातरवमरोधो को ददखात हए तिवार जी न भारतद की छकतव एक पतनशीि कतहनद

रोररटक की गढ़ी ह यहाा भारतद एक परकततनायक क रप र नजर आत ह

कतववकवादी इस धारा न राषटरीयता की जो धारणा गढ़ी वह रितः साापरदाकतयक थी अागरजी राज क

कतखिाफ अगर इनका साघषम सराज और धरम सधार को साथ-साथ रखन क बजाय उसर अिगाव करता ह

बकतलक उनक कतखिाफ जाकर सागरठत होन का परयास करता ह तो उसक सारन रकतसिर भय पदा करन क

अिावा और कोई रासता साभव नही था lsquoहहादी नागरी और गोरकषाrsquo आनदोिन इसकी सवभाकतवक पररणकतत

थी आग चिकर उननीसवी सदी क आकतखरी दशक र आकार गरहण करन वािी कतहनद राषटरवाद की यह

पषठभकतर ह इसक वग र दयानाद न भी साथ ददया कयोदक उनर भी पनरतथानवाद क बीज थ पवी परदशो

की अपकषा आयम सराज पाजाब र कही जयादा रकतडकि था आयम सराकतजयो की सदसयता की साखया पाजाब

क रकाबि यि परानत र जयादा थी पर वहाा कोई गणातरक पररवतमन साभव नही हआ और यह रहज

साखयाबि क रप र ही बना रहा इसका कारण उनहोन पाजाब की कतभनन नतततवशासतरीय अवकतसथकतत र

बताया ह पाजाब र िाहमणो का परभाव कर था कतजसका एक कारण रसिरानो क साथ िमबा सासगम और

कतसख धरम आदद का परभाव भी था इस तरह का कोई कतवशलषण पवी परदशो क बार र नही दकया गया जसा

दक बहत पहि रदमरशरारी की ररपोटम स ही हजारीपरसाद कतिवदी न दकया था अथामत रधययगीन कतसख

धरम क परभावो की तरह कबीरपाथी आदद सरदायो क परभाव और वषणवता क अातसबाधो की पड़ताि नही

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की गयी ह काशी क बनकरो की एक हड़ताि का कतिक रारकतविास जी बार बार करत ह जो १८३३ ई र

ही हई थी और इकततहासकार बिी क अनसार यह वक़त आरथमक साकट का भी वक़त था

भदरवगम का जो कतहससा हहादी आनदोिन क साथ था उस जाकतत वयवसथा की परानी रानयता को

बनाय रखन या उस रजबत करन की जररत कया कवि नौकररयो र कतवशषाकतधकार परापत करन क कतिए थी

या जाकतत वयवसथा रातर र आय एक रिगारी साराकतजक साकट का वह परकततदकयावादी रपाातरण ह शहरो

र आरथमक-वयापाररक गकततकतवकतधयो क कारण और आसपास क इिाको स परवासी रजदरो का आगरन तथा

बढ़ती वशयावकततत आदद क चित शहरी साराकतजक साबाधो र भी उथि-पथि थी ऐस सरय र सारदाकतयक

या कतबरादरी बोध lsquoएकाrsquo की भावना पदा करती ह तिवार जी इस नव-भदरवगम का अपन ही भीतर अिग-

अिग खााचो र बाट होन की बात करत ह अिग-अिग खााचो र बाट होन क चित यह भदरवगम रधयवगम की

कतवचारधारा अथामत कतववकवाद या नवजागरण को परापत नही कर पायी थी वगम था िदकन वगम की

कतवचारधारा नही थी खद भारतद क जीवन स हर उस दौर की अकतसथरता का कछ अादािा कतरिता ह

अकतसथरता और खााचो र बाटा रधयवगम दरअसि सापणम सराज र होन वाि एक आधारभत पररवतमन की ओर

इशारा करता ह यह पररपरकषय १८५७ की तरासदी का भी ह ऐसी कतसथकतत र हपराट पाजी क साथ बनन वािा

यह साासककततक आनदोिन था जहाा सवतव रकषा रखयतः अपन परान कतवशषाकतधकार की रकषा थी साराकतजक

साबाधो र आय उथि पथि क कारण उनह अपन कतवशषाकतधकार कतछन जान का खतरा साफ़ ददखाई द रहा

था जहाा अागरजी कतशकषा थोड़ा पहि ही परसार पा चकी थी वहाा कशि कारीगरो स िकर अधयापको और

परशासकतनक अकतधकारीयो क एक बड़ सरह न अपना नया कतवशषाकतधकार पा कतिया था साराकतजक साबाधो र

उनकी शरषठता उनक कतववकवाद क कारण बन चकी थी भारतद क एक शरआती िख lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

क राधयर स खााचो और जनरत की राजनीकतत को सरझन की कोकतशश आग करग

तिवार जी क अनसार दयानाद क कतवचारो क कतिए पाजाब जयादा गरहणशीि था कयोदक वहाा

जाकतत वयवसथा क बाधन पहि ही ढीि हो गए थ यिपराात र जाकतत क बाधन जायदा कठोर थ कतजन अथो र

कतिवदी जी रधय दश की रकषणशीिता का कतजक करत ह कछ-कछ उनही अथो र पर सवया दयानाद क

कतवचारो र कतववकवाद-पनरतथानवाद का दोरखापन कतरिता ह तिवार जी कहत ह दक कतजन सथि तको स

वह वदो की ओर िौटन को कहत थ आयम भाषा आयम जाकतत और आयम धरम की बात करत थ उसक कारण

ही इनका झकाव आग चिकर राषटरीय सवयासवक साघ की ओर होता गया पर आयम सराज क साराकतजक

सधारो और धरम सधारो की एकता क कारण वहाा वह साभावना भी थी कतजसक परभाव स आग चिकर बहत

सार कमयकतनसट कायमकताम भी कतनकि पररचाद राहि साकतयायन या गणश शाकर कतवदयाथी जस साकतहतयकार

और आनदोिनकताम आयम सराज क परभाव र थ आयम सराज तिवार जी क अनसार वासतकतवक साराकतजक

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पररवतमनो का सावाहक और सराज र वयकति स िकर साराकतजक जीवन क हर कषतर र गणातरक पररवतमन

िान वािा इसकतिए हो पाया कयोदक वहाा धरमसधार और सराज सधार अिग-अिग नही था दसरी ओर

हहादी आादोिन साापरदाकतयक जाकततवादी और सतरीकतवरोधी रलयो को ही सराज र फ़िान र कारयाब हआ

यह धारा अागरजो को अरजमयाा दकर नौकरी पान वाि रधयवगम की धारा थी

तिवार जी न भारतद की तकमशीिता को बहत कतनमन कोरट का कहा ह भारतद क चररतर र शायद

वह एक lsquoिमपनrsquo की छकतव भी दखत ह पसा उड़ान की वकतत सतरी क साथ वयवहार और उनक साबाध

चाररतरय बि का अभाव आदद आदद क सनदभम र वह कहत ह दक भारतद क चररतर र वह सदढ़ता या

सदाचाररता नही ह जो सराजसधार क कतिए आवशयक होती ह घर र पतनी उनह कभी पसाद नही आई

और वह बाहर रहदफ़िो र वाहवाही िटत रह रदमवादी दकतषट भी उनर कट-कटकर भरी थी भारतद क

इस चररतर की तिना तिवार जी न दो अनय परमपरावादी सधारको स की ह एक बागाि क राधाकाात दव

और दसर पाजाब क शरदधारार फलिौरी यदयकतप य दोनो भी भारतद की तरह परापरा की रकषा र ही सधार

की ओर अगरसर हए थ िदकन इन िोगो का चररतर जयादा परगकततशीि था इन दोनो की तिना र भारतद

का खिनायकतव और भी अकतधक उभरकर सारन आता ह सापकतकषक परगकततशीिता क कतनधामरण क कर र

भारतद अपन सापणम जीवन वयवहार र एक एाटी हीरो की तरह उभरत ह ठीक परान खिनायको की तरह

नही एाटी हीरो क साथ दशमक या पाठक की एक आतरीयता भी जड़ी रहती ह उसका चररतर ददराग र बस

जाता ह िदकन इसक चित यथाथम क ओझि होन का खतरा भी ह तिवार जी इसकतिए कदर कदर पर

उनकी साकतहकततयक छकतव क बरकस उनक राजनकततक- साागठकतनक जीवन वयवहार स बनन वािी छकतव को

सारन ररतमरान करत जात ह

अपनी परी आिोचना र तिवार जी भारतद की रचनाओ र कतरिन वाि भाषायी िदधड़पन और

राद तकमशीिता की चचाम तो करत ह िदकन व भारतद क वयागयो पर चचाम नही करत कया यह रहज

सायोग ह दक भारतद क परहसन lsquoअाधर नगरीrsquo का राचन आज भी परगकततशीि रलयो की परकततषठा ही करता

हभारतद क वयागयो या परहसनो र ऐसा कया ह कतजसर दहराव क साथ नवीन होत चिन की कषरता भी ह

भारतद क िखो या परहसनो या रपको र जो कही-कही वणमन या सावाद िारा वयागय का तीखा बोध पदा

होता ह उसकी शकति उनह कहाा स कतरिती ह वयागय की कषरता सवया र उनकी सकषर कतनररकषण र सरथम

दकतषट का परराण ह परान साराकतजक साबाधो र पररवतमन और तीवर पररवतमन क साथ साथ जो एक परहसन

चि रहा था उसका बोध भारतद को था भदरवगम क भीतर की कतववकवादी धारा का कतवकास भी कतहनद

राषटरवाद की कतवचारधारा र ही हआ परनत lsquoअाधर नगरीrsquo कया कतहनद राषटरवादी कतवचारधारा वािा परहसन ह

या कया यह कवि राषटरवादी कतवचारधारा का वाहक ह lsquoउरराव जान अदाrsquo र उभरकर सारन आन वाि

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साराकतजक साासककततक साकषोभ या उस वयापक टरजडी क सनदभम र दख तो भारतद क वयागय और परहसनो का

अथम थोड़ा और उभरता ह रकतलिका या राधवी स भारतद क साबाधो र कया उस तरासदी का सराग भी नही

ह वशयावकततत और पतनशीि रइसो का साकट एक दसर स अिग नही था उस सरय की औपनयाकतसक

ककततयो र वशयावकततत का सनदभम अवशय आता ह आग चिकर पररचाद की सरन बनारस र ही lsquoसवासदनrsquo

का सराधान ढाढ रही थी

भारतद क वयागयो पर रारकतविास जी का धयान था यह बात अिग ह दक अकतधकााश रौको पर

इनर वह जातीय चतना खोज कतनकाित ह बीस साि की उमर र भारतद न एक िख lsquoिवी पराणिवीrsquo नार

स कतिखा था रारकतविास जी इसका उलिख करत हए कतिखत ह ldquoगवनमर जनरि कतहनद क कतजस दरबार का

भारतद न वणमन दकया ह वह काशीराज क घर पर हआ था इसकतिए भारतद की सतयकतपरयता और भी

सराहनीय ह वहाा जो सजजन िोगो क नार कतिख रह थ उनका वणमन या दकया ह lsquoनार कतिखन वाि राशी

बदरीनाथ फि-फाि अबा पकतहन पगड़ी सज परान दादर की भााकतत इधर-उधर उछित और शबद करत

दफरत थrsquo िोग दकस तरह एक आनररी रकतजसटरट क lsquoकतसट डौनrsquo lsquoसटड अपrsquo कहन स उठत और बठ जात थ

इसका उनहोन बहत ही नाटकीय वणमन दकया ह आनररी रकतजसटरट का वयवहार हविदार का सा था कतसफम

हाथ र एक िकड़ी की कसर थी िोग कीरती पोशाक पहनकर गए थ ldquoसबक अागो स पसीन की नदी

बहती थी रानो शरीयत को सब lsquoअरघय पादयाrsquo दत थrdquo िोगो की उठा बठी और बहदा कवायद को िकषय

करक कतिखा था ldquoवाह-वाह दबामर कया था lsquoकठपतिी का तराशाrsquo था या बलिरटरो की lsquoकबायदrsquo थी या

बादरो का नाच था या दकसी पाप का फि भगतना था या lsquoफौजदारी की सजाrsquo थीrdquordquo21 काशी की इस सभा

र खद भारतद भी बठ थ इस परकार यह भारतद क वगम का परहसन भी था पतनशीि सासककतत की

आतरािोचना क कतबना यह साभव नही था बात कवि उमर की नही ह ठठ वतमरान र हसतकषप और उस

बदिन का बोध कतजन पतनशीि कतसथकततयो का आतर साकषातकार कर रहा था यह उसक परकतत एक

सवाभाकतवक सवतःसफतम परकततदकया थी यह तारकम क की नही बकतलक किाकार की सवतः सफतमता थी यह बात

सही ह दक भारतद कतवचारो की तारकम कता क रारि र उननीस पड़त थ पर इस करी को उनकी तीकषण

वसतकतनरीकषण दकतषट भर दती थी जीवन कतसथकततयो की कतवडमबना का बोध कतजतना गहरा था बदिन का

परयास उतना ही ऊजामवान था भारतद सवया अपनी भी कहानी कतिख रह थ lsquoपयार हररचाद की कहानीrsquo

कतिख रह थ भारतद क परहसनो र दकसी न दकसी पातर की भकतरका र हर जगह सवया भारतद भी ददख

जात ह अपन वगीय अातरवमरोधो का सवबोध उनक यहाा एकतिगोररकि हो जाता ह इस एकतिगरी र lsquoकतहनद

21 रारकतविास शराम पषठ- ६६

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भारतrsquo की रधर कलपना थी इसस इनकार नही दकया जा सकता भाव जगत का वषणव परर lsquoकतहनद भारतrsquo

की कलपना स परर र बदिता गया

भारतद की रचनाओ र कतवशवदकतषट की एकता खोजन पर हर परभतवशािी कतवचारधाराओ की

वयवसथा ही कतरिगी जञान और वयावहाररक सारानय बोध क बीच एक सदकय साबाध बनान क कर र ही

उनका सवाभाकतवक आवग कतजन वयावहाररक धाररमक कतवचारधाराओ र आतरकतबकतमबत होता ह व

परभतवशािी कतवचारधाराएा ह इन कतवचारधाराओ का कतनरामण कही बाहर स नही हो रहा था बकतलक

पराचयकतवदयाकतवदो की कलपना क साथ परसपर भागीदारी र बन रहा था इन कलपनाओ को यथाथम रप द

रही थी हपराट पाजी क साथ कतवककतसत होती lsquoबजमआ पकतबिक सफीयरrsquo की दकयाएा भारतद की सवाभाकतवक

सफरतम ततकाि ही एक फ टसी र बदिन िगती ह और दकयातरक होना चाहती ह ऐस ही सरय

पराचयकतवदया क पाकतडतो क िारा जगाय गए कतरथकीय परत भी आकर सर पर सवार हो जात ह पराचयवाद

दकसी परत-कतवदया स कर न था दखना चाकतहए दक भारतद की रचनाओ र कहाा परतो की दकतनया र यथाथम

का हसतकषप होता ह उनकी एकतिगरी कहाा कतसथकततयो क अकततरक को अकतभवयि कर रही ह जस भारतद की

lsquoअाधर नगरीrsquo ऐन हरार वक़त र राजयसतता का रपक बन जाती ह यह रपक राजयसतता र अनतरनमकतहत

हहासा की अकतनवायमता और नयाय क भरर का परहसन भी ह

२ धरम सधार पर कतवचार सभा

िहमो सराज या दयानाद सरसवती को खद भारतद कस दख रह थ इसका पता हर lsquoसवगम र कतवचार

सभा का अकतधवशनrsquo22 नारक एक वयागय रपक स चिता ह सवारी दयानाद सरसवती और कशवचादर सन

जब ररन क बाद सवगम पहाच तो ldquoवहाा एक बर बड़ा आनदोिन हो गयाrdquo रतय क कछ ही सरय पहि कतिखा

गया यह वयागय रपक अपन सरय क धरम सधार आादोिनो क चररतर की वयाखया करता ह सबस पहि

इसका परकाशन किकतत स कतनकिन वािी परकततकतषठत हहादी पकततरका lsquoकतरतर कतविासrsquo (जन १८८५) र हआ था

िहमो सराज और आयम सराज क आनदोिनो को भारतद इस सरय तक आकर एक तटसथ आिोचकीय दकतषट

स दखन का परयास करन िग थ सवगम र एकबारगी पदा हए इस आनदोिन र रोट तौर पर दो खर बन

गए एक इनका परशासक था दसरा हनादक पहिा कतिबरि ह दसरा काजरवरटव इन दोनो खााचो र

अनदफट एक तीसरा दि ह जो वषणव आतराओ का ह इस दि क सासथापक तो कतिबरि थ पर अब य

lsquoरकतडकलस कया रहा रकतडकलस हो गए हrsquo कतनकतशचत रप स इन रहा रकतडकलस आतराओ र हर सवया भारतद

22 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन सा- करिा परसाद परसा- नारवर हसाह पषठ- ८२-८६ नशनि बक टरसट इाकतडया नई ददलिी- २००६

(आग इस िख क उदधरणो को कतबना पाद रटपणणी क ददया गया ह)

19

को भी कतगन सकत ह वयासदव एक ऐस बकतदधजीवी क रप र सारन आत ह जो दकसी का भी पकष िन स

बचत ह पर उनका रान दोनो खरो र ह ldquoकतबचार बढ़ वयासदव को दोनो दि क िोग पकड़-पकड़ कर ि

जात और अपनी अपनी सभा का lsquoचयररनrsquo बनात थ और बचार वयास जी अपन पराचीन अवयवकतसथत

सवभाव और शीि क कारण कतजसकी सभा र जात थ वसी ही विता कर दत थrdquo कतिबरिो की तिना र

का जरवरटव दि जयादा रजबत था कयोदक उनह सवगम क जरीदारो का सहयोग परापत था काजरवरटव दि की

आतराएा साकीणम कटररपाथी आतराएा थी य आतराएा उन परान िरान क ऋकतष रकतनयो की आतराएा ह जो

ldquoयजञ कर करक या तपसया करक अपन-अपन शरीर को सखा-सखाकर और पच-पच कर ररक सवगम गए हrdquo

करमकााड और वरत उपवास आदद को भारतद वही तक सही रानत थ जहाा तक व शरीर को कषट न पहाचाएा

कठोर दह साधना करन वाि इन ऋकतष रकतनयो की आतराएा सधारो क कतखिाफ थी और इनका साथ दन

वाि जरीदारो र lsquoउदार िोगो की बढ़तीrsquo स अपना रान-अकतभरान और बि कतछन जान का डर था

कतिबरि दि भिो की आतराएा या तो सावमजाकतनक जीवन क उचच रलयो या आदशो क सापादन क चित या

पररशवर की भकति स सवगम र गयी थी

सराज सधार और वयकतिक परर रिक भकति- कतिबरि कतवशवदकतषट को भारतद इसी पररपरकषय र दख

रह ह रकतडकि वषणव दि भिो क कतिए वषणव होन रातर स य चीज पहि स ही उपिबध थी भारतद क

कतिए वषणवता सवाभाकतवक रप स कतवशवदकतषट ह पर रकतडकि वषणव इस सवाभाकतवक उदारता को

राजनीकततक रप दन वाि ह वषणव उदारता का और उसक भावावग का राजनीकततकरण करन वाि रहा

रकतडकि इस तरह भारतद क कतिए वषणवता की आधकतनक वयाखया र सराज सधार वयकतिक परर रिक

भकति और राजनीकतत तीनो का lsquoएकाrsquo ह इस एका क रकतडकि परयास क कतिए जनरत या िोकरत का

कतनरामण आवशयक ह भारतद की रकतडकि वषणवता ही lsquoसब उननकतत का रिrsquo ह यह एक िोककतपरय

वयावहाररक कतवचारधारा क रप र आकर गरहण करन वािी वषणवता ह यह रकतडकि वषणवता धरम का

राजनीकततकरण ह

काजरवरटव दिभिो को दवताओ का सरथमन परापत था य दवता ही सवगम क जरीदार थ अपन

अपन तरीक स इन दवताओ न काजरवरटव दि की सथानीय शाखाएा भी खोि िी और वहाा इनक पकष र

lsquoपरकाश सभाएाrsquo होन िगी कतिबरि दि वािो क पकष र कवि इस lsquoकतहनद सवगमrsquo क िोग नही थ ldquoइधर

lsquoकतिबरिrsquo िोगो की सचना परचकतित होन पर रसिरानी-सवगम और जन सवगम तथा दकसतानी सवगम स पगमबर

कतसदध रसीह परभत कतहनद सवगम र उपकतसथत हए और lsquoकतिबरिrsquo सभा र योग दन िग बका ठ र चारो ओर

इसकी धर फि गयीrdquo अिग अिग सवगम कतवकतभनन धाररमक पहचानो की ओर इशारा करता ह बका ठ कतहनदओ

का सवगम ह और यह नया धरम आनदोिन रखयतः कतहनद धरम की एक बड़ी पहचान क भीतर ही पदा हआ ह

20

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग क तीन कतनकतहताथम वसधा डािकतरया न भारतद यग क सनदभम र नोट दकय ह23 पहिा

एक पराक औपकतनवकतशक lsquoकतहनद अथमrsquo जहाा हहादसतान का हर बाहशादा शाकतरि था दसरा परसपर कतभनन

धाररमक रतो और आसथाओ की कतनकट अातरकम या क अथम को वयि करता ह कतजसक आराकतभक साकषय सलतनत

कािीन ऐतहाकतसक वतताातो र कतरित ह यहाा यह शबद lsquoतकम rsquo क सरानाातर उपयोग र आया था और

सारानयतः रसिरानो क बरकतखिाफ उपयोग दकया जाता था आरमभ र यह धाररमक कर साराकतजक-

राजनीकततक अथो र जयादा परयि होता था अागरजी राज क साथ यह दसरा अथम धरम स अकतनवायमतः जड़कर

lsquoकतहनदवादrsquo की कतवचारधारा र बदि गया जमस कतरि आदद क इकततहासो र lsquoकतहनदकािrsquo और lsquoरसिरान

कािrsquo की ऐकततहाकतसक कलपना क साथ कतहनद शबद जड़ गया था भारतीय भी रसिरानो को सारन कर

lsquoकतहनद पीकतड़त गराकतथrsquo क कतिए इस शबद का इसतराि करन िग कतहनद शबद का तीसरा अथम राषटर की

अवधारणा स जड़कर बन रहा था आरथमक राषटरवाद और अागरजी राज की यातना की साझी सरकतत स बनन

वाि इस तीसर अथम का रतिब था- lsquoजो कतहनदसतान र रह वह कतहनदrsquo रारकतविास जी भारतद क यहाा

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग को इनही अथो र ित थ पर वसधा डािकतरया का कहना ह दक यह तीसरा अथम दसर क

वयापक परभाव र था तीनो अथो की अातरकम या क बार र डािकतरया न कतिखा ldquoतीसरा अथम या राषटरवादी

अथम कभी भी अपन धाररमक साकताथो स परी तरह छटकारा नही पा सका इस पद की परयकति उननीसवी

सदी र अकतसथर बनी रही और इसक रखतकतिफ रायनो र आपसी जड़ाव कायर रहा बावजद इसक दकसी

परदतत सनदभम र lsquoकतहनदrsquo क पराथकतरक अथम को कतनधामररत करना साभव ह यदद एक बार यह तय हो जाय दक

इिाकाई धाररमक राषटरीय र स दकस आधार पर यह पद परयोग र आ रहा ह और lsquoअनयrsquo की भकतरका र

दकस रखा जा रहा ह चाह वह अनय जसा दक परानी इिाकाई परयकति र ददखता ह फारसी या तकी हो

या रसिरान (कतजस इस िरान र भी कई बार सरह क हवाि स तकम ही कहा जाता ह) या दफर अाततः

औपकतनवकतशक सवारी िदकन यह बात ददराग र रखना जररी ह दक धाररमक सरदाय को कतनरदमषट करन

वािी दसरी परयकति अतयात परभावी सनदभम-हबाद बनी रहती हrdquo24

इस सनदभम र दख तो कतिबरि दिो क सरथमन र शाकतरि lsquoअनयrsquo कतहनद धरम क सधारवाद क सरथमक

ह और lsquoसधारोrsquo र छपी वकतशवक भावनाओ को सरथमन दन पहाच ह का जरवरटव दिो की lsquoअनयताrsquo यहाा नोट

करन िायक ह इस अनयता र साराती जरीदार और करमकााडी िाहमणवाद का बिाक ह जबदक कतिबरि

दकतषट क आसपास एक lsquoसायि रोचrsquo की कलपना की गयी ह धयान रखना चाकतहए दक भारतद क रकतडकि

वषणव इस lsquoसायि रोचrsquo क बाहर ह उनका lsquoएबसटकतनजरrsquo वषणव होन क चित नही बकतलक रकतडकि या

23 वसधा दिकतरया कतहनद परमपराओ का राषटरीयकरण भारतद हररशचादर और उननीसवी सदी का बनारस अन साजीव करार योगनदर दतत पषठ-

४०-४२ राजकरि पपरबकस नई ददलिी- २०१६

24 वही पषठ- ४२

21

रहा रकतडकि होन क चित था कतनकतशचत रप स सवगम सासद का रपक ह और सवगम का राजा ईशवर

कतनषपरभावी हो गया ह और जनता सवया जनरत क िारा कतनणमय कतसथर करन पर जोर दती ह जनरत क

िारा lsquoसलफ गवनमरटrsquo का परयास सबस पहि वषणव भिो न दकया था और आज क कतिबरलस उसी को

आग बढ़ा रह ह ईशवर क पास दोनो दिो क िोगो न जब अपन अपन ररोररयि तयार कर भज तो ईशवर

न दोनो दिो क डपयटशन को बिाकर कहा ldquoबाबा अब तो तरिोगो की lsquoसलफगवनमरटrsquo ह अब कौन

हरको पछता ह जो कतजसकी जी र आता ह करता ह अब चाह वद कया सासकत का अकषर भी सवपन र भी न

दखा हो पर धरम कतवषय पर वाद करन िगत ह हर तो कवि अदाित या वयवहार या कतसतरयो क शपथ

खान को ही कतरिाय जात ह दकसी को हरारा डर ह कोई भी हरारा सचचा lsquoिायकrsquo ह भत परत ताकतजया

क इतना भी तो हरारा दजाम नही बचा हरको कया कार चाह बका ठ र कोई आवहर जानत ह चारो

िड़को (सनक आदद) न पहि स ही चाि कतबगाड़ दी ह कया हर अपन कतबचार जयकतवजय को दफर राकषस

बनवाव दक दकसी का रोकटोक कर चाह सगन रानो चाह कतनगमन चाह ित रानो चाह अित हर अब न

बोिग तर जानो सवगम जानrdquo

काजरवरटव दिभिो न दयानाद और कशवचादर सन पर कया कया आरोप िगाय यह दख िना

चाकतहए दयानाद को सवगम र सथान नही कतरिना चाकतहए कयोदक १ इसन पराणो की हनादा की २ ररतमपजा

की हनादा की ३ वदो का अथम उलटा-पलटा कर डािा ४ दस कतनयोग करन की कतवकतध कतनकािी ५ दवताओ

का अकतसततव कतरटाना चाहा (दवताओ याकतन जरीदार) ६ इसन धरम कतवपिव दकया और आयामवतम को धरम

बकतहरमख दकया पकतशचरोततर परानत क परकततकतनकतध क रप र lsquoकाशी क कतवशवनाथ जीrsquo न lsquoउदयपर क एकहिाग

जीrsquo पर दयानाद क सरथमन का आरोप िगाया कतवशवनाथ जी काजरवरटव दिो की तरफ स यह आरोप िगा

रह थ परब की अपकषा पकतशचरी इिाको र आयम सराज क परभाव की चचाम क सनदभम र एकहिाग जी का

जवाब धयान दन िायक ह कतवशवनाथ जी न जब एकहिाग जी को कतधककारत हए कतिबरिो क साथ कतरि जान

को कहा तब एकहिाग जी न कहा ldquoभाई हरारा रतिब तरिोग नही सरझ हर उसकी बरी बातो को न

रानत न उसका परचार करत कवि अपन यहाा क जागि की सफाई का कछ ददन उसको ठका ददया बीच

र वह रर गया अब उसका राि रता रठकान रखवा ददया तो उसका बरा दकयाrdquo यह एकहिाग जी

दफ़िहाि सवारी जी क दि क सभापकतत बन ह आकतखर इनहोन अपन यहाा क दकस lsquoजागिrsquo की सफाई का

ठका सवारी जी को ददया था यह जागि छोट-रोट धाररमक समपरदायो और रतो का जागि था एकहिागी

जी और काशी क कतवशवनाथ जी दोनो ही िाहमणीकत शवरत क धाररमक परतीक ह पर जहाा काशी क

कतवशवनाथ शर स ही दयानाद क कतवरोधी थ वही एकहिाग जी रणनीकततक रप स दयानाद क पास गए थ यह

साकीणम कटररपाथ क भीतर का कतववाद था यह बात गौर करन िायक ह दक जगननाथपरी र जब भरव की

22

रौजदगी का कतववाद भारतद क सारन आया था उस सरय उनहोन इस बात का परतयाखयान दकया था दक

भरव की परकततरा अनाददकाि स वहाा ह भारतद न पराण आदद स साकषय दकर यह परराकतणत दकया दक

कषण ही एकरातर उपासय ह तिवार जी न इस घटना का उलिख करत हए कतिखा ह दक ldquoदकसी वयकति न

lsquoतहकीकातपरीrsquo दकताब दकखकर बताया दक वहाा पहि भरो की पजा होती थी वषणवो न उसकी ररतम

उखाड़ फ की थी बाद र पाडो न जगननाथजी (कतवषण) क साथ भरो को दफर स परकततकतषठत दकया यह रारिा

काशी धरमसभा क सारन १८७० र आया भारतद न धरम साबाधी पसतक र lsquoतहकीकातrsquo जस फारसी शबद

की आिोचना करत हए कतवकतभनन धरमगराथो स परराण जटाकर दो बातो पर जोर ददया एक इसका परराण

नही कतरिता ह दक वहाा जगननाथजी क साथ पहि भरो की भी ररतम थी कतजस वषणवो न उखाड़ फ का दो

अगर वह थी भी तो यह उकतचत था या नही- इसपर कतवचार होना चाकतहए भारतद न अपनी वयवसथा दत

हए कतिखा दक भरो कतवषण स बहत छोटा दवता ह इसकतिए यह कतवषण क साथ बठाया नही जा सकता

lsquoदसर भरव कापाकतिको क दवता ह उनका पजन वषणव-सरातम सबको कतनकतषदध हrsquo गौरतिब ह दक भारत

र कतवकतभनन सथानीय धरो क परकतत कतजतन असकतहषण और फा डारटकतिसट आयमसराजी थ उतन ही काशी क

सनातनी भी थrdquo25

सथानीय धरम-रतो क जागि को साफ़ करन र आयमसराकतजयो और काशी क सनातनी पाडो क इस

गठजोड़ स भारतद भी वादकफ थ िदकन आयमसराकतजयो क साथ उदयपर क एकहिाग जी का रोचाम कसा

था इस भी भारतद बखबी सरझ रह थ सथानीय रतो क साथ भारतद का समबनध कसा था इसका पता

उनक छोट-छोट यातरा सासररणो स भी चिता ह lsquoसरय पार की यातराrsquo26 र रहदावि का हाि बयान करत

हए lsquoपराणनाथrsquo क रिहब का भारतद आशचयम क साथ उलिख करत ह भारतद क ही शबदो र ldquoयहाा एक

पराणनाथ का रिहब ह और दस बीस िोग उसक रानन वाि ह य िोग एकादशी तीथम वगरह को नही

रानत और सन सनाय दो तीन शलोक जो याद कर कतिए ह बस उसी पर चर हो lsquoरदीनासया शारदाा शताrsquo

और lsquoगोकतवनदrsquo lsquoगोकिानाद रककशवरrsquo यह शलोक पढ़ क कहत ह दक वद र रकका रदीन का वणमन ह ऐस ही

बहत वाकतहयात बात करत ह और कोई दकतना भी कह कछ सनत नही कहत ह दक गोिोक का नाश ह

और गोिोक ऊपर एक lsquoअखाड रणडिाकारrsquo िोक ह उसर रर कषण ह इनका रिहब एक पराणनाथ नारक

एक कषतरी न पनना र करीब तीन सौ बरस हए चिाया थाrdquo भारतद इस अजीबो गरीब lsquoरिहबrsquo का कषण स

कया साबाध ह यह सोचकर ताजजब र थ इस lsquoरिहबrsquo क गरनथ र भारतद न एक शलोक बलिभाचायम का

दखा तो उनका राथा और घर गया ldquoकि रिहब का हाि हरन नीच कतिखा था उसका अचछी तरह स

25 वीरभारततिवार रससाकशी १९वी सदी का नवजागरण और पकतशचरोततर परानत पषठ- १५२ सारााश परकाशन ददलिी- २००६

26 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन पषठ- १३७-३८

23

हाि दरयाफत दकया तो रािर हआ दक हरार ही रिहब की शाखा ह इनक गराथो र हरन एक शलोक शरी

रहापरभजी की सबोकतधनी की काररका का दखा इसी स हरको सादह हआ दफर हरन बहत खोद खाद कर

पछा तो वह साफ़ रािर हआ दक इसी रत स यह रत कतनकिा ह कयोदक एक बात वह और बोि दक हरारा

रत शरी बलिभाचारज की टीका र कतिखा ह इन िोगो क उपासय शरीकषण ह और एकादशी शािगरार

ररतमपजा तीथम दकसी को नही रानत इनक पकतहि आचायम दवचाद जी थ जो जाकतत क कायथ थ और दसर

पराणनाथ जी जो कचछ क कषतरी (भारटया) थ हरार ही रत की शाखा सही पर कतवकतचतर रत ह वषणव होकर

ररतमपजा का खाडन करन वाि यही िोग सनrdquo वणमन स सपषट ह दक सात और कतनगमण पाथो क साथ वषणव

कतवचारधारा क आदान-परदान का साकतशलषट इकततहास भारतद क कतिए ताजजब की चीज थी पर इन सबक बीच

आकतखर उनहोन इसक वषणव रि का पता िगा कतिया और वषणवता की इस धाररमक कतवचारधारा र उनहोन

ररतमपजा का कतवरोधी होना भी शाकतरि रान कतिया भारतद न ररतमपजा क सरथमन र बड़ बड़ िख कतिख

थ इसकतिए असाभव नही दक कषण क परकतत परररिक भकति क कतिए ररतम की जररत पर उनहोन कछ पछा

जरर होगा िदकन lsquoकोई दकतना भी कछ कह सनत ही नहीrdquo आग चिकर lsquoवषणवता और भारतवषमrsquo र

वह बड़ कतवशवास क साथ घोकतषत करत ह दक ldquoपहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद कतजतन पाथ ह सब

वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और भारतवषम इन पाथो स छाया हआ हrdquo27 तब वह वषणवता और

िोकरतो और रधयकािीन पाथो क भीतर पहि स सदकय एक ऐकततहाकतसक परदकया का सारानयीकरण कर

उसका नार lsquoवषणवrsquo रख रह थ अकारण नही दक उसी िख र वषणव वयापकता को बतान क कतिए

परचकतित lsquoनारोrsquo का साकषय पश दकया गया ह वयकतियो स िकर वरत और उपवासो तक यह परभतवशािी

सारानय बोध की कतवचारधारा थी कतिवदी जी रधयकािीन वषणवता को िोकधरम कहत थ भारतद

उननीसवी सदी क िोकधरो को वषणव कहत ह

काजरवरटव दिो की तरफ स कशवचादर सन पर िगाय गए आरोप थ १ वद पराण सबको कतरटा

डािा २ दकसतान रसिरान सबको कतहनद बनाया ३ खान पीन का कतवचार कछ न बाकी रखा ४ रदय की

तो नदी बहा दी आयम सराकतजयो क ऊपर रखयतः आरोप lsquoआयामवतम को धरम बकतहरमखrsquo करन का ह धरम

बकतहरमख अथामत सनातन धरम स कतवरख उनहोन कवि धरम क भीतर कतवपिव दकया परनत िहमो सराज न तो

lsquoभारतवषम का सतयानाशrsquo कर डािा इनहोन तो पराणो क अिावा वदो को भी कतरटा डािा lsquoआयामवतमrsquo की

जातीय पकतवतरता नषट करक दकसतान रसिरान जस lsquoकतवदशी ततवोrsquo को घर र घसा कतिया कटररपाथी

करमकााकतडयो क कतिए इनक साथ रणनीकततक तौर पर भी रोचाम बनान वािा कोई एकहिाग जी तयार नही

था सनातकतनयो िारा दकया गया यह बारीक भद खद कतिबरि दिभिो क भीतर का भी अातरवमरोध था

27 भारतद वषणवता और भारतवषम वही पषठ-७६

24

कतिबरिो की सभा र भी दो दि हो गए थ एक सवारीजी क सरथमको का दि था और एक कशव

क सरथमको का कतहनद कतिबरिो की आताररक एकता कतिकतवभाकतजत थी दयानाद क सरथमको क अनसार सवारी

जी न कतहनदओ की आतरा को जगाया था उनह सफतम बनाया वरना तो आयामवतम क आिसी और रखम

रोहकतनदरा र ही कतनरगन थ इस तरह रखम और आिसी सारानयजनो को lsquoिाहमणो क फा द स छड़ायाrsquo िाहमणो

की तिना भारतद न lsquoपादररयोrsquo स की ह जो lsquoवयथम परजा का दरवय खान वाि हrsquo आयम सराज न सासथाकत

परोकतहतवाद पर हरिा दकया था जो भारतद क कतिए रितः जनता क पसो पर पिन वािा परजीवी वगम

िगता था और तो और आधकतनक कतवजञान क आग जो lsquoआयोrsquo की नाक कटी जा रही थी उस भी सवारी जी

न बचा कतिया उनहोन वदो र भी रि तार करटी कचहरी आदद ददखाकर कतहनदओ र आतरसमरान पदा

दकया दसरी ओर कशव क सरथमको का कहना था दक ldquoधनय कशव तर साकषात दसर कशव हो तरन बाग

दश की रनषय नदी क उस वग को जो कशचन सरदर र कतरि जान को उचछकतित हो रहा था जञान करम का

कतनरादर करक पररशवर का कतनरमि भकति रागम परचकतित दकयाrdquo lsquoजञान करम का कतनरादरrsquo करक भी lsquoकतनरमि

भकति रागमrsquo का जो परवतमन कशव न दकया उसस ही ईसाई lsquoअनयताrsquo का साथमक परकततरोध साभव हआ lsquoरनषय

नदी का आवगrsquo भावावग ह इसी बात को दसर शबदो र कह तो भाव जगत क सवाभाकतवक वग को भगवत

भकति की शदध lsquoअनयताrsquo की ओर रोड़कर उस कतवदशी ईसाई lsquoअनयताrsquo क रागम पर जान स रोक ददया इस

कायम क कतिए वद पराण समरत lsquoजञान-करमrsquo क रागो का कतनरादर अगर करना पड़ा तो भी वह उकतचत ही था

वषणव भकति क रधयकािीन सवरप की जो वयाखया आग चिकर की गयी उसक आराकतभक कतचनन हर यहाा

दख सकत ह कहना न होगा दक भारतद का अपना अनभव भी यहाा बोि रहा ह

शासतरीय काजरवरटव पाटी र दवताओ क अिावा यजञवलकय जस औपकतनषददक ऋकतष क साथ-साथ

नारायण भटर रघनाद भटराचायम राडन कतरशर जस कतनबाधकारो और टीकाकारो का जरघट भी था इसक साथ

साथ इसिारी सवगम स आय हए कटररपाथी कतशया िोगो का भी सरथमन उनह परापत था इस परकार कटररपाथ का

दवताओ (जरीदारो) िाहमणो (पादररयो) जञानरागी औपकतनषददक ऋकतष रधययगीन कतनबाधकारो और

कतवदशी कतशया िोगो का एक वकतशवक रोचाम बन रहा था दसरी ओर कतिबरि दि र चतनय परभकतत आचायम

दाद नानक कबीर परभकतत भि और जञानी िोग भी शाकतरि थ इसक अिावा काजरवरटव दि क

कतवदरोकतहयो को भी कतिबरिो न अपन यहाा जगह दी य कतवदरोही थ अितवादी (या नववदााती) भाषयकार

पाचदशीकार और कोई कतरसटर िडिा इन दोनो िोगो पर शर र का जरवरटव दि वािो न बहत हरि

दकय परनत अात र इनह कतिबरिो न अपन यहाा जगह द दी धयान रखना चाकतहए दक भारतद अपन सापरदाय

क अनरप अित वदाात या रायावाद क घोर आिोचक थ सन १८७३ र हररशचादर रगजीन क पहि ही अाक

र भारतद न शााकतडलय भकति सतरो का अनवाद lsquoभकति सतर वजयातीrsquo नार स परकाकतशत दकया भकतरका र

25

भारतद कतिखत ह ldquo दखो आज वसात पाचरी ह इसस बहत स िोग आर क रौर वा फिो क गचछ िकर

तरस कतरिन आवग तो र भी यह एक फिो की वजयाती रािा बना कर िाया हा अागीकार करो वजयाती

रािा बनान का यह हत ह दक वनरािा होगी तो होिी क खि र अरझगी और इसक कतसवाय इस वजयाती

स कतनशचय करक जञानाददक को जय करना ह पर पयार बहत साभि कर यह रािा पहरना टट न जाए

कयोदक सत कचचा ह और ककतियाा तािी और कोरि ह इस स कमहिान का भी भय ह जो हो इस वसात

पाचरी को तयोहारी रझ यही दो दक इस सतयानाशी lsquoअहरrsquo िहमवाद lsquo को पणमरप स नाश करक और भी

सब बातो र इस नव-वसात र भारतवषम की सब आपकतततयो का बस अात करो और अपन भिो क कतचतत र

नव पलिव दफर स िहिह करो जो सदा एक रस रहrdquo28 lsquoएकरसrsquo भकति क कतिए जररी ह दक जञानवाद

अहर िहमवाद को जड़ स उखाड़ फ का जाय कषण को अरपमत अपनी वजयाती रािा स भारतद जञानाददक

को जय करना चाहत ह एक ओर यह पकतषटरागी परापरा क lsquoवीर वषणवrsquo भारतद का परर कतनवदन ह दसरी

ओर lsquoनव-वसातrsquo र भारतवषम की सब आपकतततयो को नाश करन की सारथयम रपी lsquoउपहारीrsquo का साकलप भी

ह lsquoभारतद भारतवषम की सब आपकतततयोrsquo को दर करन की राह र एक बड़ी बाधा अित क जञानवाद को

रानत ह भकति का lsquoएकरसrsquo पहि भी इसक परभाव स ररझाता रहा ह भारतद का साकलप सापरदाय क

परान कतवरोधो क बावजद बन रहन वाि इस अितवाद का पणम सफाया करन का ह जबतक यह न कतरटगा

परररिा भकति क lsquoकमहिान का भयrsquo बना रहगा भकति सतरो र उपासना कााड को परर कतसकतदध का हत

बताया गया था पर भारतद दख रह थ दक उपासना कााड का परचार कतवरि हो गया ह इसी परचार क

कतनकतरतत उनहोन इन सतरो का भाषा र अथम परचार दकया था १८७३ र ही हररशचादर रगजीन का एक

समपादकीय कतनकिा कतजसका शीषमक था- lsquoभकति जञानाददक स कयो बड़ी हrsquo इस िख र भी उपासना रागम

की रहतता का परकततपादन दकया गया ह तकम और जञान को करम की शकतदध और उपासन की परर कतसकतदध क

रासत र कवि एक चरण बताया गया ह वसधा डािकतरया न भारतद क आराकतभक साापरदाकतयक परचार

परसार क कायो र कतनगमकतनयो को बाहर रखन का उपकर नोट दकया था29 यहाा कतनगमकतनए कबीर आदद lsquoभि

और जञानीrsquo कतिबरिो क सरथमक ददखाए गए ह वषणव भकति क राषटरीय चररतर र य बाहर नही थ उनकी

एकता का आधार उनक lsquoकतिबरि रिrsquo र ह सावमजकतनक उचच भाव का सापादन और भकति इन दोनो क साथ

अित वदााती या जञानाददक- सनातनी परापरा क कतवदरोकतहयो की जगह भी कतिबरि दि पाकतथयो र थी

कतिबरि वाि ही झगड़ क कतनपटार की अजी पररशवर को दन गए थ पर पररशवर अपनी

परतीकातरक हो गयी कतसथकतत स खजिाय हए थ यह सवोचच अदाित थी पर साथ ही साथ शकतिहीन

28 भारतद गराथाविी खाड- ५ पषठ ११३

29 वसधा डािकतरया पषठ ३४२

26

राषटराधयकष की कलपना भी कतजस कतहनद सवगम क य राषटराधयकष ह वहाा दकसी दकसर की सलफ गवनमरट चनन

की परणािी आ जान स ईशवर की एकाकतधकारी शकतियाा कतछन गयी ह िोग जनरत कतनरामण क िारा सही

और गित की पहचान करन िग थ इसकतिए थोड़ा खजिाय तो रहत ही होग lsquoअब कौन हरको पछता

ह तर जानो सवगम जानrsquo परनत साकट गहरा था यदयकतप कतिबरि िोगो की सभा भी धरधार स जर

रही थी पर काजरवरटव दि पाकतथयो की सरकार र पठ थी दवता सब भी उनक साथ थ इसकतिए पररशवर

क पास जररी नयाय का परशन उठाया गया था नयाय दक इन दो रहापरषो को सवगम र जगह कतरिनी

चाकतहए या नही सराज र इनक नकततक उचच आदशो क अवरलयन का परचार काजरवरटव कर रह ह इस

परचार क कारण जनता अपनी निरो स पहचानन र सकषर नही ह ऐसी कतसथकतत सवगम र पहि नही आई

थी नई कतसथकततयो क नए रानदाड कया होग िाकतहर ह नयाय और नकततकता को एक वकतशवक सवीककतत

चाकतहए इसकतिए पररशवर न इस कतवषय पर कतवचार क कतिए जो ककतरटी चनी वह गौर करन िायक ह इस

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo र ldquoराजा राररोहन राय वयास दव टोडररि कबीर परभकतत कतभनन-कतभनन रत क िोग चन

गए रसिरानी- सवगम स क lsquoइरारrsquo दकसतानी स िथर जनी स पारसनाथ बौदधो स नागाजमन और

अफीका स कतसटोवायो क बाप कोrdquo चना गया कतहनद सवगम स नवजागरण क अगरदत वयासदव जस

बौकतदधकिखक टोडररि जस राजनीकततजञ और धरम-ररमजञ कबीर जस जञानी-भि पराचीनो र कवि वयास

दव ह बाकी दो lsquoरधयकािrsquo क और एक lsquoआधकतनकrsquo काि क वयकति ह उधर यरोपीय नवजागरणधरमसधार

क परणता िथर को भी बिाया गया ह और बौदधो की तरफ स परर कतनषधवादी नागाजमन भी ह पर य

अफीका क कतसटोवायो धरो की अकतसरता क साथ-साथ यह अफ़ीकी सवगम कतनकतशचत रप स अफीका की छकतव

पराचीन आददवासी सासककतत वाि एक lsquoकािrsquo रहादश क रप र गढ़ी गयी थी यह अफ़ीकी सवगम साभवतः

आददवासी धाररमक रानयताओ की ओर इशारा करता ह यह भी धयान दन िायक ह दक राजा राररोहन

राय िथर और कबीर इन तीनो क साथ lsquoनवजागरणrsquo की कोई न कोई पररकलपना ठठ सरकािीन कतवरशो

क क दर र भी ह कई अथो र अकबर िारा आयोकतजत होन वािी lsquoसिह-ए-किrsquo जसी धरम सभाओ की एक

रोहक कलपना भी भारतद को रही होगी टोडररि की उपकतसथकतत अकारण नही ह

अकबर को िकर भारतद की इकततहासदकतषट कसी थी इसकी एक झिक हर १८८४ र छपी उनकी

lsquoबादशाह दपमणrsquo की भकतरका र ददखती ह इस गरनथ र उन िोगो का चररतर-कतचतरण दकया गया था ldquoकतजनहोन

हरिोगो को गिार बनाना आरमभ दकया इसर उन रसत हाकतथयो क छोट-छोट कतचतर ह कतजनहोन भारत क

िहिहात हए करिवन को उजाड़कर-पर स कचिकर कतछनन-कतभनन कर ददया रहमरद रहरद अिाउददीन

अकबर और औरागजब आदद इनर रखय ह पयार भोि कतहनद भाइयो अकबर का नार सनकर आपिोग

चौदकए रत यह ऐसा बकतदधरान शतर था दक उसक बकतदधबि स आजतक आपिोग उसको कतरतर सरझत ह

27

दकनत वह ऐसा ही नही उसकी नीकतत अागरजो की भााकतत गढ़ थी रखम औरागजब उसको सरझा नही नही तो

आज ददन हहादसतान रसिरान होता कतहनद-रसिरान र खाना-पीना बयाह-शादी कभी चि गयी होती

अागरजो को जो बात नही सझी वह इसको सझी थीrdquo30 कतनकतशचत रप lsquoबकतदधरानrsquo दशरन स सीखन को बहत

कछ कतरिता ह अकबर की दीन-ए-इिाही क परयोग स भारतद भी बहत कछ सीख रह थ रधयकािीन

इकततहास क बार र रकतसिर शतर की छकतव का कतनरामण पराचयकतवदयाकतवदो क िारा दकया जा रहा था इकतियट

आदद इकततहासकारो न जो दकतषट कतवककतसत की उसका परभाव बहत गहरा था पर इस इकततहासिखन क साथ

साथ भारतद क कछ दशी सरोत भी थ अिग-अिग रहापरषो की चररताविी कतिखन की पररणा भारतद न

कतजतना अपनी वषणव भकति की परापरा स पाया था उतना ही इसिारी इकततहास िखन की परापरा स भी

lsquoबादशाहदपमणrsquo की भकतरका र भारतद कतिखत ह ldquoरर पररातारह राय कतगरधरिाि साहब जो यवनी कतवदया

क बड़ भारी पाकतडत और काशीसथ ददलिी क शाहजादो क रखय दीवान थ उनकी इचछा स ददलिी क परकतसदध

कतविान सययद अहरद न एक ऐसा चक बनाया था कतजसर तरर स िकर शाह आिार तक सब बादशाहो क

नार आदद कतिख थ उस फारसी गरनथ स बहत सी बात इसर िी गयी ह इस कारण तरर पवम क बादशाहो

का वणमन इतना परा नही ह कतजतना तरर क पीछ ह दफर रर रातारह राय कतखरोधरिाि न बहादर शाह

क काि क आरमभ तक शष वतत सागरह दकयाrdquo31

अरणदव जी अपन एक िख र भारतद क आराकतभक अकबर परर का कतिक दकया ह १८७२-७४ क

आसपास भारतद अकबर को रहान शासक रानत थ जबदक औरागजब को कतहनदओ का दशरन नाबर एक

भारतद न औरागजब की तिना र अकबर की रहानता को परराकतणत करन क कतिए रारदास कछवाह क एक

शलोक को अपना आधार बनाया ह इस शलोक का भावाथम भारतद क शबदो र इस परकार ह ldquoजो सरदर स रर

तक पथवी को पािता ह जो रतय स गउओ की रकषा करता ह कतजसन तीथम और वयापार स कर छड़ा ददए

कतजसन पराण सन जो सयम का नार जपता जो योग धारण करता ह और गागाजि छोड़कर पानी नही

पीता उस जिािददीन की जय अाग वाग कहिाग कतसिहट कततपरा कारत (कारटी) काररप अाध कणामटक

िाट दरकतवड़ रहाराषटर िारका चोि पााडया भोट रारवाड़ उड़ीसा रलि खरासान का दहार जमब काशी ढाका

बिख बदखशाा और काबि को जो शासन करता ह ककतियग की रकतहरा स घटत हए वद गउ कतिज और

धरम की रकषा को सगन शरीर कतजसन धारण दकया ह उस अपररय परष अकबर शाह को हर नरसकार करत

हrdquo32 यही अकबर १८८४ र औरागजब स जयादा शाकततर और बकतदधरान शतर र बदि गया lsquoकािचकrsquo क

कतनकतहताथो र यह फरबदि भारतद पर रकतसिर कतवदशीपन और कतहनद शतरता क समपणम बिॉक बनान की

30 बादशाह दपमण भारतद गराथाविी खाड-६

31 वही

32 httpsamalochanblogspotin201209blog-post_9html

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रणनीकतत क दबाव क कारण था और lsquoपरावकततrsquo की कतरथकीयता र भी कतहनदओ को lsquoरहारोहनासतरrsquo क सहार

पहि भी वश र दकया गया था यह एक बारीक चाि थी अकबर की इस चाि को अागरज भी नही सरझ

पा रह थ भारतद की यह परकततदकया औपकतनवकतशक इकततहासिखन क दबाव र थी १८७३ र जब भारतद

न कतशवपरसाद की दकताब lsquoइकततहासकततकतररनाशकrsquo क तीसर खाड की आिोचना की थी तो उनक सारन

रकतसिर शासन की बबमरता और अागरजी राज क सशासन का कतशवपरसाद िारा ककतलपत आखयान था १८८४

र समपणम रकतसिर काि अनधकार यग र बदि गया कततकतररनाशक क पहि खाड र बाब कतशवपरसाद न भी

अकबर की रजहबी उदारता और साराकतजक सधारो की बड़ाई की थी इस परकार हर दख सकत ह दक

ऐकततहाकतसक िखन र पकष और कतवपकष की पनरावकततत एक बाद घर र उिझी हई थी इनक सारन रकतसिर

कतवरोध और अागरजी शासन क कतवरोध का एक कतवसागत फर था और िखक उसर अपनी फौरी जररतो क

कतहसाब स कतरतर और दशरन वािा इकततहास कतिखता था इकततहास ठठ राजनीकततक ततकाि क वशीभत था

जो भी हो धाररमक उदारता और सिह-ए-कि का परयोग एक कतशकषापरद परयोग था यह कतवकतभनन

रतो या कतवशवासो क बीच lsquoजनरतrsquo बनान का एक रधयकािीन परयोग था भारतद lsquoजनरतrsquo क परयोग को

इस तरह दखत थ रानो यह lsquoचािrsquo अगर कारयाब हो जाती तो lsquoआज क ददन हहादसतान रसिरान होताrsquo

भारतद क सारन सरसया वही थी बस वह कवि यह चाहत थ दक कतहनदसतान lsquoकतहनदrsquo हो जाय कतहनद

अथामत वषणव हो जाय वषणवता भारतद क कतिए हहादसतान का नया lsquoसिह-ए-किrsquo था इसकतिए कछ

सावमजनीन रलयो की तिाश उनह भी थी कतसिकट ककतरटी क उपरोि रमबर lsquoएकसअफीकतशयोrsquo रमबर थ

रोर क परान हररकिस जस दवता कतजनहोन धरती स साबाध तोड़ ददया ह व िोग तथा उनही क जस

पारकतसयो क lsquoजरदशतजीrsquo को कोरसपोहडाग ऑनररी रमबर बनाया गया य धरम क रप र रतपराय रतो क

परकततकतनकतध थ ककतरटी न जो ररपोटम तयार की उसका ररम भारतद न ददया ह यह ररम उनक रकतडकि वषणव

पकष का रत था कतिबरि दि और काजरवरटव दि क अपन पकषो स इतर यह नरनायक तीसरा पकष वषणवो

की तरफ स सनाया गया था रकतडकि वषणवो की तरफ स भारतद इस धाररमक आनदोिन क भीतर अपना

ही पकष रखत हए इसका ररम कतिख रह थ ldquoहरिोगो की समरकतत र इन दोनो परषो न परभ की रागिरयी

सकतषट का कछ कतवघन नही दकया वराच उसर सख और सातकतत अकतधक हो इसी र पररशरर दकयाrdquo कतहनद सराज

सधार क परयासो का ररम बतात हए सबस पहि धयान सतरी सधारो पर ददया गया ह साराकतजक करीकततयो

की कतशकार रकतहिाओ क परकतत जो दकतषट उभरकर सारन आती ह उसक रि र धरम की रीकतत स यौन

रयामदाओ की अवयवसथा को दफर स रयामददत करन की चषटा ह कतसतरयो क करागम पर जान का पहिा कारण

ह रनराना परष धरमपवमक न पाना यह कतववाह सासथा की कतवककततयो की आिोचना थी जहाा बाि कतववाह

कतवधवा कतववाह आदद की तरफ इशारा ह धयान रखना चाकतहए दक यहाा बरि कतववाह क बदि कतसतरयो िारा

29

lsquoरनराना वरrsquo न चन पान का उलिख ह गभमनाश और बाि हतया क कतखिाफ सधार परयास दसरा

रहतवपणम योगदान ह कतववाह सासथा बीच र भी भाग की जा सकती ह इसकी सवीककतत ह कनया क कतहत र

अातरजातीय कतववाह की सवीककतत ह एक रहतवपणम बात गरओ और पाकतडतो क वयाकतभचार क साबाध र ह

भारतद क सारन पकतषटरागी रहातो और गरओ क वयाकतभचार का अनभव भी इसर शाकतरि ह

१८७४ र ककतववचन सधा र भारतद की एक रटपणणी छपी थी lsquoगर को कसा होना चाकतहएrsquo इसक अिावा

दो वषम पहि lsquoगर और रहातrsquo नार स भी एक रटपणणी कतिखकर वषणव पाडो-परोकतहतो की खिकर

आिोचना की गयी थी तिवार जी न कतिखा ह दक राददरो क भीतर कतसतरयो का यौन शोषण और वयाकतभचार

इतना भीषण था दक दयानाद भारतद क पकतषट सापरदाय को lsquoकषठी सापरदायrsquo कहत थ १८६० क आरमभ र ही

वषणव गोसाइयो क अनाचार और यौन शोषण क कतखिाफ बमबई र एक बड़ा आनदोिन पकतषटरागी

करसनदास रि जी क नततव र हो चका था वषणव बकतनया पषठभकतर स आय करसनदास जी उन नौजवानो

र थ कतजनहोन एकतिफ सटन कॉिज स आधकतनक कतशकषा परापत की थी गोसाइयो और रहाराजो िारा अपन

lsquoसमपरदाय की बह बरटयोrsquo क साथ होन वाि अतयाचार क कतखिाफ उनहोन िख कतिख और समपरदाय क

इकततहास को नए कतसर स सारन रखा पण स आए जदनाथ वजरतन जी रहाराज न करसनदास जी पर

रानहाकतन का रकदरा दायर कर ददया इसी रक़दर स वषणव रहातो की कई सारी बात जनता क सारन

परतयकष हई तिवार जी न इस lsquoरहाराज िाइबि कसrsquo को भारतीय नवजागरण र वषणव गोसाइयो क

दराचार और यौन शोषण क कतखिाफ हआ सबस बड़ा आनदोिन कहा ह भारतद पर इसका बहत परभाव

था यह कस १८६० र हआ था एक दशक बाद जब भारतद सापरदाय क कायो र रत थ उसी सरय कतिख

रह थ ldquoराददर कया होत ह रानो कतसतरयो की खान ह जसी चाकतहए िीकतजय- वराच अचछी सतरी भी वहाा जाकर

कतबगड़ जाती ह आशचयम यह ह दक कतजनको व िोग बटी कहत ह और जो उनक परिोक क रधयसथ ह और

कतजनको वो दीकषा दत ह उन कतसतरयो की ओर व आप ही बरी दकतषट स दखत ह ओर रर पयार कतहनदओ तर

इनक जाि र कब तक फा स रहोग और कया तरको यही सासार स बचावग और इनही क भरोस तरको

भगवान कतरिगाrdquo33

राददरो क धन-ऐशवयम और वयाकतभचार र डब जीवन क जीवात कतचतर हर बनारस क रखाकतचतर lsquoपरर

जोकतगनीrsquo क अिावा lsquoकाशी क छायाकतचतर क दो बर-भि फोटोगराफrsquo र भी कतरित ह यहाा भारतद का वयागय

अपन वषणव सापरदाय की आतरािोचना स सदकय ह lsquoपरर योकतगनीrsquo नाटक र आन वािा चररतर रारचादर

खद भारतद ही थ नाटक का सतरधार कहता ह दक भारतवषम की दीन हीन गकतत क कारण उसका तो

कतवशवास ही ईशवर स उठन िगा ह नाटक क पहि ही दशय र भारतद हर राददर क भीतर कतिए चित ह

33 वसधा डािकतरया िारा उदधत पषठ- ३३७

30

जहाा राददर र कार करन वािा साधारण टहिआ झपरटया हर ददखाई दता ह पजारी बाब अभी तक नीद

स नही जाग ह कयोदक आधी रात तक lsquoबठ क ही-ही-ठी-ठी करा चाह दफर सबर नीद कस खिrsquo कतनकतशचत

रप स यह टहिआ सबह सवर ही राददर र हाकतिर ह िदकन दवता अभी राददर र सोय ह रारचादर

परदशी ह काशी र बाहर स आय ह छकक जी और राखनदास इस रारचादर की आिोचना करत ह इनक

सावादो स पता चिता ह दक बाब रारचादर क यहाा ददन रात नाच गाना हआ करता ह और उनको अपनी

कतवदया का घराड ह दो चार ककतवतत भी बना ित ह पर lsquoककतवतत बनाव स का होव और ककतवतत बनावन कछ

अपन िोगन का कार थोर हय ई भााटन का कार हयrsquo छकक जी कहत ह दक अपन रागम का उनह कछ जञान

तो ह नही बस दो चार बात इधर उधर स सनकर कछ lsquoदकसतानी रतrsquo सीखकर पाकतडत बन दफरत ह

कतनकतशचत रप स य भारतद पर िगन वाि आरोप थ राददर र सवारी धनदास वकतनतादा बभकतकषत पाकतडत

आदद धरम क ठकदार ह इनकी पतनशीि सासककतत को दखकर रारचादर का दःख इन शबदो र वयि होता ह

lsquoहा कया इस नगर की यही दशा रहगी जहाा क िोग ऐस रखम ह वहाा आग दकस बात की वकतदध की

साभावना करrsquo lsquoवददकी हहासा हहासा न भवकततrsquo जस शरआती नाटको र भी करमकााडी परोकतहतवाद की

आिोचना की गयी ह राजा और परोकतहत कतरिकर वहाा जनता का शोषण करत ह जआ रददरा और

रथन की ऐययाश सासककतत क परतीक परोकतहतो का काजरवरटव दि इन परहसनो र रतम होता ह कतचतरगपत यर

स कहत ह ldquoरहाराज य गर िोग इनक चररतर का कछ न पकतछए कवि दमभाथम इनका कततिक रदरा और

ठगन क अथम इनकी पजा कभी भकति स ररतम को दाडवत न दकया होगा पर राददर र जो कतसतरयाा आयी उनको

सवमदा तकत रह रहाराज इनहोन अनको को कताथम दकया ह और इस सरय तो र lsquoशरीरारचनदर जी का

शरीकषण का दास हाrsquo पर जब सतरी सारन आव तो उसस कहग lsquoर रार तर जानकी र कषण तर गोपीrsquo और

कतसतरयाा भी ऐसी रखम दक दफर इन िोगो क पास जाती हrdquo34

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo की ररपोटम र सतरी सधारो क कायो की रहतता बतान क बाद जाकतत वयवसथा पर

इन सधारको का परहार कयो जररी था इस बताया गया ह कठोर जाकतत बनधनो क चित कस हर साि

जाकतत-बाहय होकर जाकतत र वापस आन क दकसी उपाय को न जान lsquoहजारो रनषय आयम पाकति स हर साि

छटत थ उसको इनहोन रोकाrsquo इस परकार इन सधारको न lsquoआयमधरमrsquo क भीतर जो पररवतमन करन चाह

उसस आयो की एकता दफर स बहाि हो गयी इसक अिावा अाधकतवशवासो को इनहोन दर दकया यही नही

बकतलक जहाा िोग lsquoरसिरानी पीर पगमबर औकतिया वीर ताकतजया गाजी कतरयाा कतजनहोन बड़ी ररतम तोड़कर

और तीथम पाटकर आयम धरम कतवधवास दकयाrsquo उनको भी पजन िग थ और lsquoकतवशवास तो रानो कतछनाि का अाग

हो रहा थाrsquo ऐसी िजजाजनक कतसथकतत स िोगो को बाहर कतनकािकर lsquoसार आयामवतम को शदध lsquoिायिrsquo कर

34 दख रारकतविास शराम पषठ १३१

31

ददयाrsquo lsquoिायिrsquo कर ददया गया इसका अथम आयम जाकतत को दफर स िायि करन र था आयम जाकतत क भीतर

कतबगाड़ क चित ही कतनमन जाकततयो का बड़ परान पर पिायन था इस इन िोगो न रोका और इनक परताप

स ही अनक छोट और सथानीय धरम-रतो क भीतर जो lsquoरसिरानीrsquo परभाव घस आय थ उनको दफर स lsquoबड़ी

ररतमrsquo की कतनषठा र िाया जा सका इस परकार कतहनद धरम और वणामशरर क परकतत दफर स िोगो को lsquoिायिrsquo

दकया यह lsquoिायकतिटीrsquo भारतद की रकतडकि वषणवता क जनरत क कतिए भी जररी था तिवार जी जब

आयमसराकतजयो की lsquoकााकततकारीrsquo भकतरका ददखात ह तब आयम सराज िारा आयामवतम को िायि बनान वािी

इस भकतरका की साकतशलषटता पर जयादा बात नही करत भारतद दयानाद क कााकततकारी परयासो र lsquoिायिrsquo

बनान की परदकया उसी वक़त दख रह थ और इसी कारण ररपोटम र दयानाद की आिोचना धयान दन िायक

ह सवारी जी न ldquoजाि को छरी स न काटकर दसर जाि ही स कतजसको काटना चाहा इसी स दोनो आपस

र उिझ गए और इसका पररणार गह कतवचछद उतपनन हआrdquo गह कतवचछद का रतिब कतहनद धरम र गह

कतवचछद जबदक कशवचादर सन क बार र कहा गया दक उनहोन जाि काटकर भकति की उचछकतित िहरो का

पररषकत पथ परकट दकया इस परकार रकतडकि वषणवता की lsquoअनयताrsquo और परररिक भकति क परशसत पथ क

सवीकार का कतनषकषम कतवचार सभा का भी कतनषकषम था धयान दन िायक ह दक कशवचादर की आिोचना उनक

कतचतत कतवकषप क कारण की गयी थी जहाा lsquoईसारसीह आदद उनस कतरित हrsquo य एक दकसर का इिहारी

अनभव था कतजस भारतद अपनी वषणवता स बाहर रखत ह ईशवर न इस ररपोटम पर अपना रत सरकतकषत

रख कतिया और भारतद कतिखत ह ldquoइसको दख कर इस पर कया आजञा हई और व िोग कहाा भज गए यह

जब कर भी वहाा जायग और दफर िौट कर आ सक ग तो पाठक िोगो को बतिावग या आप िोग कछ

ददन पीछ आप ही जानोगrdquo

३ जनरत और वषणवता

ककतववचन सधा ९ राचम १८७२ र भारतद न lsquoPublic Opinion In Indiarsquo नार स अागरजी र

एक िख परकाकतशत दकया िख र उनहोन कहा दक कई सददयो दक दासता क बाद भारतवषमहहादसतान अब

जाकर कतिरटश राषटर क सवोचच कतनयातरण र आया ह दश धीर-धीर सभयता और परबोधन की पकतशचरी दकरणो

क सहार दरन और कशासन क रतय-तलय कतनदरा स जाग रहा ह कतिरटश शासन की परगकततशीि नीकततयो का

परभाव यहाा की बहरपी आबादी पर पड़ रहा ह

ldquoBut in this progressive state national energy and zeal sympathy and

disintiredness are waiting to make both the conqueror and the conquered to act in

32

concert and in harmony and hence we have the broad distinction of white and

black still But in this country many are the blemishes that adhere to us to be

eradicated and many are the shortcomings that are hovering around us to be done

away with before we can have a public opinion here in its true senserdquo35

गोर और काि क बड़ भद को छोड़ कर कतवजता अागरजो और भारतीयो क बीच एक सराजन तो बन गया ह

पर अनदरनी ददककत अभी भी राह बाए खड़ी ह रौका ह दक इस परगकततशीि कतसथकतत का फायदा उठा कर हर

एक सचच जनरत का कतनरामण कर सचच िोकरत क कतनरामण र अादरनी बाधाएा कया थी भारतद न इस

आग सपषट करत हए कतिखा-

ldquoRace antagonism rivalry and mutual misunderstanding are the favourite

occupations of the aristocratic class Want of confidence among all classes of men

are the prevailing characteristic of the nation and above all multifarious castes and

creeds with there numerous forms of religion and local habits and customs which all

combined have kept the progressive policy at a stand still True it is that a

representative Government is a boon to this country and true it is that Sir Bartle

fregravere a man of vast experience and a good statesman has found out that in village

community we can have public opinion but with all his experience he has lost sight

of our national defects ndash defects which we ourselves know and which no foreigner

can catch at a glancerdquo36

भारतद इस बात को िकर कतनकतशचत ह दक िोकरत और परकततकतनकतधरिक सासथाओ क बहतर कतवकास क कतिए

सीध-सीध कतवदशी रॉडि कभी सफि नही हो पायगा ऐसा इसकतिए कयादक हरारी आपसी कतवकतभननताओ

और झगड़ो को कोई बाहरीकतवदशी सतता कभी भी परी तरह सरझ नही सकती lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo नार

35भारतद गराथाविी -6 361

36 वही

33

स भारतद का एक दसरा िख इस अागरजी वाि िख क दो साि बाद अपरि सन १८७४ र हररशचनदर

रगजीन र छपा पकतबिक ओकतपकतनयन कया बिा ह इस साफ़ करत हए भारतद िख क आरमभ र ही कहत

ह ldquoपकतबिक ओकतपकतनयन अथामत सब साधारण िोगो की राय कया वसत ह और इसर दकतना जोर ह और

इसक कतिए कया हो सकता ह यह परशन ठहरा तो इसका साधारण उततर यही ह दक यह वह वसत ह जो

सासार को एक कर सकती ह गागा की धरा दफर कतहरािय पर चढ़ा ि जा सकती ह सययम को पकतशचर उगा

सकती ह और चाह तो ईशवर को भी पकड़ क कठपतिी की भााकतत नचा सकती हrdquo37 यह पकतबिक

ओकतपकतनयन lsquoएक रतrsquo होना ह जस अिग अिग चार पतिी िककतड़यो को एक साथ बााध दन स उस

तोड़ना करठन हो जाता ह उसी तरह एक रत होन स बड़ स बड़ा बरी भी हरारा कछ कतबगाड़ नही सकता

बहत स िोगो का रत एक हो तो वह शकति बन जाती ह हिारो आदरी की बकतदध एक हो जाए तो ldquoऐसा

कौन कार ह जो न हो सक तो यह कतसदधाात हआ दक कतनशचय सब िोगो क रत र बड़ी सारथयम ह इसस यह

कतसदध हआ दक बिो स बड़ा बि एक रत ही हrdquo38

आग भारतद कहत ह दक यह जनरत और उसकी शकति हहादसतान क कतिए कोई नई बात नही ह

पराचीन काि र इसक उदाहरण कतरित ह lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo की इस धारणा को भारतद न इकततहास क

अिग-अिग दौर र बनत और कतबगड़त ददखाया सबस पहि चार वणो की िररत पड़ी सब कार को

सचार रप स चिन क कतिए दसर शबदो र कह तो शरर-कतवभाजन की िररत स इसका जनर हआ

lsquoकतहनदओ न अपन गर क कार र इस वणामशरर धमरम को इसी वासत बनाया कतजस र उन क दकसी कार र

कोई हजम न हो और उनिोगो न सासार क सब कारो र चार कार रखय सरझrsquo धरम कतवदया और किाओ का

कार िड़ाई और राजय परबाध का कार वयापार और धन और सब िोगो की सवा और रजदरी इन चार

कारो की सवयवसथा वािा वणामशरर दरअसि lsquoएक रतrsquo कतहनद वयवसथा या lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo थी पर

कािाातर र इस lsquoएकरतrsquo क भीतर जाकततवयवसथा कठोर हो गयी और िाहमण और शदर दोनो एक दसर क

कतखिाफ हो गए एकरत र कतवचछद पदा होन स कतहनद शकति करिोर हो गयी भारतद क अनसार आपस

का यह झगड़ा बड़ा कतवनाशकारी साकतबत हआ पकतबिक ओकतपकतनयन क कतबना वयाकतभचार और जयादकततयो का

अाधर था आग चि कर जनो क जरान र दफर lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo न जोर पकड़ा बकतलक भारतद जोर

दकर कहत ह दक जनो क रत की उततपकततत ही lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo स हई ldquoकतहनदओ क जब नाश क ददन

जब कतनकट आय तो आपस र परसपर बड़ा कतवरोध खड़ा हआ और उस काि र िाहमणो का बड़ा जोर था

वरन य और वणो पर जयादती करत थ तो वशय और कषकततरयो की रकतत इनस दफर गयी और बाब वािी बड़ी

37गराथाविी- 678

38वही

34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

36

कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

37

उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

38

ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 6: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

6

अवरदध होती ह अागरजी राज र रारकतविास जी पााडय जी पर आरोप िगात ह दक उननीसवी सदी र

औदयोकतगक कााकतत स शर होन वािी आधकतनकता एक ऐसी कलपना ह जो इस lsquoबड़ी टरजडीrsquo को भि जाती ह

जबदक बड़ी टरजडी रखय अातरवमरोध क कारण बनती ह

रारकतविास जी न एागलस क हवाि स ददखान की कोकतशश की ह दक पाजीवादी शासन की नीव

डािन वािो को पाजीवाद की सीराओ क अनदर ही दखना एक बड़ी भि ह पनजामगरण क नताओ और

उनक परकततभाशािी वयकतितव र पाजीवाद की सीरा और उसका अकततरक भी था इस बात का जो िोग

धयान नही रखत उनक यहाा आधार और अकतधरचना या वगम और साकतहतय की यााकततरक सरझ होती ह

भारतद आदद साकतहतयकारो क इस अकततरक को कतचकतननत करन क कर र ही रारकतविास जी lsquoरखय

अातरवमरोधrsquo क परकततकतबमब को सारन रखत ह पाजीवादी सीराओ र नही बाध होन का रतिब एागलस क

कतिए रजदर वगम की परापरा क पवम पकष स ह जहाा एागलस पनजामगरण क कतवशवजनीन रलयो और पराककततक

कतवजञानो क कााकततकारी रहततव को रखाादकत करत ह lsquoपरककतत की िािातरकताrsquo र एागलस न यााकततरक

भौकततकवाद की आिोचना की ह और ददखाया ह दक अठारहवी सदी र फाासीसी यााकततरक भौकततकवाददयो न

भौकततकवाद क नार स कतजस कतवचारधारा का परचार दकया उसका िािातरक भौकततकवाद स कतवरोध ह9

रजदर वगम की कतवचारधारा का पनजामगरण स साबाध एागलस उननीसवी शताबदी क आकतखरी दशको र ददखा

रह थ उनहोन ददखाया दक जरमन शासतरीय दशमन र जो कछ रहान था उन सबका सीधा वाररस जरमन

पाजीपकतत वगम नही बकतलक जरमन रजदर वगम था इसी तरह राकसम न पाजी-१ की भकतरका र जरमन रजदर

वगम को जरमन बजमआ हचातको और कतवचारको स जयादा ऊननत कतवचारधारातरक चतना स िस बताया ह

राकसम न १८४८ स १८५२ की कााकततयो और परकततकााकततयो क कतवशलषण क बाद १८५७ क कतवदरोह को भी

lsquoभारतीय सवाधीनता आादोिनrsquo की तरह कतवशलकतषत दकया था इन कतवशलषणो र बाद तक राकसम थोड़ा थोड़ा

पररवतमन करत रह थ परनत कतनकतशचत रप स औपकतनवकतशक पाजी क कतवसतार और यरोपीय कााकततयो क

आपसी ररशतो को वह दकसी यरो ककतनदरत दकतषट स नही दख रह थ राकसम क सारन रखय सवाि पाजी क

वकतशवक चररतर और उसक कतखिाफ कतवदरोह की कतवकतशषटता को पहचानन का था राकसम दख रह थ दक इागिणड

र रजदर वगम क आनदोिन क कतिए या यरोप र रजदर वगम क आनदोिन क कतिए उपकतनवशो क भीतर होन

वाि कतवदरोह की साभावनाओ का कया रहततव था १८४८ की रहािीपीय कााकतत की इागिणड र होन वािी

परकततदकया को राकसम इन शबदो र सारन रखत ह- ldquoजो िोग अभी भी कछ वजञाकतनक सरझ का दावा करत

थ और शासक वगो क रातर सोदफसस या साइकोफनस स कछ जयादा होन की इचछा रखत थ उन िोगो

न सवमहारा क दाव क साथ कतजसकी अनदखी अब साभव नही थी पाजी क राजनीकततक अथमशासतर क सरनवय

9 कतवसतत चचाम क कतिए दख अधयाय तीन

7

की कोकतशश की इस परकार एक कतछछिा सरनवयवाद सारन आया कतजसक सबस बड़ परकततकतनकतध जॉन सटअटम

कतरि ह यह lsquoबजमआrsquo अथमशासतर क ददवाकतियपन की घोषणा हrdquo10 यह बात पाजी की भकतरका र राकसम

१८७३ र कतिख रह ह जरमनी क बार र कतिखत हए वह कहत ह दक वहाा पाजीवादी उतपादन पदधकतत क

पररपकव होन क पहि ही उसका शतरतापणम चररतर (एाटागोकतनकतसटक) अपन को परकट कर चका था यह साभव

हआ था फ़ाानस और इागिड र होन वाि ऐकततहाकतसक साघषो क कारण11 इस तरह जरमनी र बजमआ

अथमशासतर कवि बरी नकि क रप र ही कतवककतसत हो पाया कयोदक जरमन सवमहारा क पास बजमआ अथमशासतर

की सीराओ की आिोचना उपिबध थी ऐस ही सरय बजमआ अथमशासतर क रहनरा दो सरहो र बाट गए

एक तरफ यााकततरक और भौड़ा अथमशासतर बघारन वाि िोग थ दसरी ओर कतरि क अनयायी थ कतजनहोन

असराधय क बीच सागकतत कतबठानी चाही पर य सार परयास असफि होन को बाधय थ कयोदक उनकी

आिोचना पहि स ही वहाा परापत थी राकसम कतिखत ह ldquoइसकतिए जरमन सराज क कतवकतशषट ऐकततहाकतसक

कतवकास न दकसी lsquoबजमआrsquo अथमशासतर क कतवकास को बाहर रखा परनत उसकी आिोचना को बाहर नही

दकया जहाा तक इस तरह की आिोचना एक वगम का परकततकतनकतधतव करती ह यह कवि उसी वगम का

परकततकतनकतधतव कर सकती ह कतजसका ऐकततहाकतसक कायमभार पाजीवादी उतपादन पदधकतत को उखाड़ फ कना और

सभी वगो का अाकततर सफाया ह- याकतन सवमहाराrdquo12

भारतद यग क बजमआ अथमशासतर र जॉन सटअटम कतरि का दकतना परभाव था इस दहरान की जररत

नही lsquoआिोचनाrsquo क रप र सवमहारा वगम बजमआ अथमशासतर की असाभावयता ह यह lsquoआिोचनाrsquo जरमन

रजदर वगम को कतजतना अपन साघषो स परापत थी उतना ही फ़ाास और इागिणड क साघषो स भी भारतद की

आिोचना कतजस वगम का परकततकतनकतधतव करती ह वह रजदर वगम नही ह अागरजो की कतवजय और िट की सरकतत

क साथ पाजी की तथाककतथत आददर साचय की तरासद सरकतत भी ह तथाककतथत आददर साचय अगर रजदर

वगम की पररकतसथकतत ह तो यह सरकतत रितः रजदर वगम की तरासद सरकतत ह पर भारतद यग क साकतहतय को

या भारतद की रचनाओ र कतरिन वािी आिोचना दकतषट का जो पकष रारकतविास जी सारन रखना चाहत ह

वह उस तरासद सरकतत क साथ lsquoबजमआ अथमशासतरrsquo की सरनवयकारी आिोचना ह इसकतिए कह सकत ह दक

भारतद यग का १८५७ की lsquoआिोचनाrsquo क साथ साबाध सरनवयकारी ह भारतद क साकतहतय र कतरिन वािा

दकतचततापन इसी असराधय सराजन की कोकतशश क चित पदा हआ ह भारतद क साकतहतय र जहाा इस

सराजन का अकततरक ह वह उनका उजजवि पकष ह दसर शबदो र lsquoसवतव कतनज भारत गहrsquo या अकतसरता

कतनरामण या हहादी जातीयता का जहाा अकततरक ह भारतद का साकतहतय वही उजजवि ह lsquoअाधर नगरीrsquo क

10 कािम राकसम ककतपटि- वॉलयर १ अन बन फोकस पषठ ९८ पकतगवन बकस िादन- १९९०

11 वही

12 वही

8

रपक र हर इस तरह का एक अकततरक ददखाई दता ह जहाा lsquoअाधर नगरीrsquo राजय सतता हहासा और नयाय क

अकतनवायम साबाधो का रपक ह भारतद क परहसनो और वयागयो र जहाा कही इस असराधय सराजन का

खोखिापन उजागर होता ह भारतद का वतमरान अथम उनही र राना जाना चाकतहए

िोकजागरण की कतवचारधारा क रप र भकति रारकतविास जी क कतिए भी वषणवता क अनदर ही

पररभाकतषत थी अकारण नही दक भारतद को वह तिसी की परापरा का नवजागरण रानत थ भकति की

इस कतवचारधारा क कतखिाफ सातरत की कतवकतशषटताओ को वह निरअादाज करत ह अगर सातरत कारीगरो

और कतनमनवगीय जनता का साासककततक और इसकतिए राजनीकततक परयास था तो उस कवि भाषा या बोकतियो

स बनन वािी lsquoजातीय चतनाrsquo र कतनसशष नही दकया जा सकता कबीर आदद सातो क िोकजागरण स

भारतद क नवजागरण का साबाध रारकतविास जी न नही ददखाया ह कबीर आदद क यहाा जो जयोकतत ददखाई

पड़ी थी उस वषणव भकति की कतवचारधारा क बड़ परवाह र सरझन स यह ददककत पदा होती ह रखय

अातरवमरोध क भीतर जो शतरतापणम कषण ह उस दकतषट स ओझि करन का कार ही परभतवशािी कतवचारधारा

करती ह रारकतविास जी पाजी क अातरवमरोधी चररतर को तो दखत ह िदकन यह नही दख पात दक

अातरवमरोधो स ही वह गकततशीि ह राकसम न इनही अथो र पाजी को lsquoगकततशीि अातरवमरोधrsquo कहा था

परभतवशािी कतवचारधारा भी अपन भीतर क अातरवमरोधो स ही आग बढ़ती ह भकति और रीकतत या कतनगमण

या सगण ऐस ही अातरवमरोध ह भारतद यग भी अपन अातरवमरोधी चररतर स ही बन रहा था उपकतनवशवाद

का कतवरोध भी उपकतनवशवादी कतवकास का ही कतहससा था सारातवाद स पाजीवाद र साकरण कवि

सारातवाद कतवरोध क रप र ही नही कतवककतसत होता बकतलक वहाा पाजीवाद क अकततकरण की साभावना भी

अनतरनमकतहत होती ह जो बाद र पाजी क कतवकास क दौरान पाजी क साराकतजक साबाधो र बदि जाता ह

थॉरस रनतसिर क नततव र हए कषक कतवदरोह र एागलस न या रधयकािीन कतवधरी आनदोिनो र कतसतरयो

की भकतरका ददखान क कर र कतसकतलवया फददरची न इस अकततकरण को और पनः पाजी क साराकतजक साबाधो

र रपाातरण की परदकया को ददखान की कोकतशश की ह13 पाजीवाद की काकतनतकारी भकतरका पर जोर दन स

उसकी परकततकााकततकारी भकतरका आाखो स ओझि हो जाती ह lsquoइकततहास जसा था वसा पान कीrsquo कोकतशश की

यह अकतनवायम सीरा ह अागरजी राज की िट पाजी की िट थी भारतीय आतर या हहादी जाकतत का

आतरकतबमबअाततः इस िट को कतछपान वािी और उस भिान वािी रोहक कलपना थी कही १८५७ स

भारतद यग का साबाध ददखाना भी एक रोहक कलपना ही तो नही ह

13 दख फडररक एागलस द पीजट वॉर इन जरमनी परोगरस पकतबिशसम रासको- १९७७ और कतसकतलवया फददरची ककतिबन एाड द कतवच फोकतनर

बकस ददलिी- २०१३

9

नारवर जी न नवजागरण को ररनसाास क बदि परबोधन या एनिाइटनरट की तरह दखन की बात

कही थी और कहा था दक इस नवजागरण का १८५७ स कोई भी साबाध कतशषट साकतहतय र नही ददखाई

पड़ता रारकतविास जी क िख क दो साि बाद lsquoआिोचनाrsquo र नारवर जी न lsquoहहादी नवजागरण की

सरसयाएाrsquo नार स एक िख कतिखा उपरोि दो चीज नारवर जी न उसी िख र कही ह उननीसवी सदी क

भारतीय नवजागरण को ररनसाास कहन र कई ददककत ह यरोप र कतजस lsquoररनसाासrsquo lsquoररफारशनrsquo या

lsquoकतचनकवचतोrsquo आदद कहा जाता ह वह पादरहवी शताबदी का नवजागरण था पादरहवी शताबदी र भारत भी

भकति आनदोिन क रप र एक जागरण स गजर रहा था इसकतिए नारवर जी कहत ह दक अगर उननीसवी

सदी क नवजागरण को ररनसाास कहग तब पादरहवी शताबदी क भकति आनदोिन को कौन सा जागरण

कहग रारकतविास जी इसीकतिए एक को िोकजागरण और दसर को नवजागरण कहत ह नारवर जी

कतिखत ह ldquoउननीसवी शताबदी क भारतीय नवजागरण को lsquoररनसाासrsquo कहन र एक करठनाई तो यह ह दक

इस यग क भारतीय कतवचारको और साकतहतयकारो क पररणासरोत यरोप क पादरहवी शताबदी क कतचनतक और

साकतहतयकार न थ बकतलक इसक कतवपरीत पररणासरोत क रप र अकतधकााश कतवचारक उस काि क थ कतजस

यरोप र lsquoएनिाइटनरटrsquo का काि तथा उसक बाद का काि कहा जाता ह सवया बादकर की सहानभकतत

रसो और परधो क साथ थी और व कोत जॉन सटअटम कतरि तथा हबमटम सपसर स परभाकतवत ददखाई पड़त

हrdquo 14 इस परकार यह lsquoनवजागरणrsquo lsquoपरबोधनrsquo की चतना क तलय ह और इसकतिए इसकी अातवमसत

lsquoिोकजागरणrsquo स कतभनन ह यदयकतप एक र दसर की चतना lsquoअाशतः कतवदयरानrsquo ह पर नवजागरण

िोकजागरण का पनरतथान रातर नही ह नवजागरण का नततव करन वाि रधयवगीय थ िोक क बीच स

नही आन क चित उनका सारानय िोक जीवन स एक दराव था और कतवचारो र िोकोनरख होकर भी

वयवहार र उनका िोक क साथ कोई तादातमय नही था नवजागरण का परभाव शहरो तक सीकतरत था और

इसकतिए िोकजागरण की तिना र इसका परसार भी सीकतरत था नारवरजी इस नवजागरण को रखयतः

साासककततक आनदोिन क रप र दखन की कतहरायत करत ह पर सवाि यह ह दक इस साासककततक आनदोिन

की राजनीकतत कया थी

भारतद क शबदो र नारवर जी भारतीय नवजागरण की रि सरसया lsquoसवतवrsquo या lsquoअकतसरताrsquo की

सरसया बतात ह धयान रखन वािी बात ह दक परबोधन या एनिाइटनरट की एक रि सरसया अकतसरता

की सरसया ह lsquoपरबोधन की िािातरकताrsquo नारक अपनी दकताब र एडोनो और हाखमइरर न ददखाया ह दक

कस परबोधन या जञान की शकति न यथाथम को कतरथ बनाया और कतरथको को यथाथम दकया एक पणय-वसत क

रप र जञान का उतपादन और पनरतपादन उननीसवी सदी की कतवशषता ह खासतौर स पवी कतवदया की रााग

14 नारवर हसाह हहादी का गदयपवम (सा) आशीष कततरपाठी पषठ-८६ राजकरि परकाशन नई ददलिी- २०१०

10

बािार र बहत थी जञान का कतवकतनरय एक बड़ बािार र हो रहा था और जञान की सारचना और उसकी

सापणमता एक फरटसाइजड कतवशवदकतषट बनाती थी कतभननता ह इसकतिए कतवकतनरय ह हर चीज जो कतवकतनरय र

शाकतरि ह रनषय की दकसी न दकसी जररत को परा करती ह य जररत य इचछाएा कवि पट स पदा नही

होती बकतलक कलपनाओ स भी पदा होती ह परबोधन की िािातरक परदकया क भीतर कतवजञान और धरम दोनो

न रनषय क कलपनाजगत की इचछाओ को भी परा करन वािा बािार बनाया कतभननताओ की

वासतकतवकताओ को छपान क कतिए या दसर शबदो र कह तो जञान की वासतकतवक जररत को छपान क कतिए

जञान का एक भरर खड़ा दकया जाता ह ठीक वस ही जस बजमआ अथमशासतर पाजीवाद की अतारकमकता को

ढाकन और दबान की परदकया र ही बना था पराककततक कतवजञानो क भीतर स कतनकिन वािी दो तरह की

कतवचारधाराओ की रााग बहत थी एक अटठारहवी सदी र िोककतपरय lsquoयााकततरक भौकततकवादrsquo की कतवचारधारा

और दसरी जीवकतवजञान स आन वािा कतवकासवाद का कतसदधाात राजनीकततक अथमशासतर क कतिए भारत र जॉन

सटअटम कतरि आदद िखको क बजमआ अथमशासतर का नया बािार था तकम की सावमभौकतरकता को उसकी

वासतकतवक जररत स काटकर lsquoअकतसरता कतनरामणrsquo स जोड़ ददया गया जो इकततहास कतरथ क अात का दावा

करता था वह सवया कतरथ गढ़न िगा यह सब साभव हआ उस कतवशाि जनसारानय क भय क सहार

कतजनहोन अपन ऊपर अपना कतनयातरण खो ददया था धरम इस भय क सहार कतवजञान की आिोचना करता था

और कतवजञान धरम की परबोधन-पवम की परापरा र जो आसथा या कतवशवास और जञान का अकतनवायम साबाध था

उसक सहार धरम आसथाकतवहीन जञान की आिोचना क िारा कतवशाि जनसारानय की रकति का कारोबार

करता ह

परबोधन की एक धारा आिोचनातरक जञान की धारा थी कतजसकी आिोचना राकसम न

lsquoआिोचनातरक आिोचना की आिोचनाrsquo कहकर की थी भारतीय नवजागरण क भीतर आिोचनातरक

जञान की धारा को नारवर जी न रहतवपणम राना ह यह ldquoआिोचनातरक दकतषट यरोप क lsquoपराचयकतवदयावादrsquo

(ओररएणटकतिजर) क इस उपकतनवशी रायापाश को कतछनन करन की चतावनी दती हrdquo15 यह उपकतनवशी

रायापाश पाजी का रायापाश भी ह जञान की पाजी का रायापाश कतजस हर पराचयकतवदयावाद का रायापाश

कह रह ह वह आिोचना-परतयािोचना की एक तथाककतथत िोकताकतनतरक परदकया र ही बन रहा था

इसकतिए इस आिोचना-परतयािोचना की परदकया की आिोचना क सनदभम र ही हर उस आिोचनातरक

धारा की चचाम कर सकत ह और कहना न होगा दक यह एक राजनीकततक करम भी ह नारवर जी न कहा दक

भारतीय नवजागरण र lsquoसवतव पराकतपतrsquo का साबाध राजनीकततक रकति स नही जोड़ा गया ह राजनीकततक

सवाधीनता अथामत lsquoराजसतता पिटन क कतवचार को अातगमहावास द ददया गयाrsquo इस तरह १८५७ या उसक

15 वही पषठ- ८७

11

पहि क दकसान कतवदरोहो क भीतर जो राजसतता पिटन का कतवचार था उस भारतीय नवजागरण न

अातगमहावास दन का कार दकया अतः भारतीय नवजागरण रखयतः साासककततक आिोचना ही थी

राजनीकततक आिोचना को गहावास दन वािी साासककततक आिोचना वह कतिखत ह ldquoसच तो यह ह दक

अकतधकााश िखक सरकषा सशासन कतशकषा उननकतत और शााकतत क कतिए कतिरटश राज क परकतत उपकत अनभव

करत ह- कतवशष रप स रगिो क शासन की तिना र इस परवकततत क अवशष बीसवी शताबदी क दसर

दशक तक रकतथिीशरण गपत की lsquoभारत भारतीrsquo जसी राषटरीय कही जान वािी कावय-ककतत र भी कतरिती ह

यहाा तक दक कभी-कभी तो नवजागरण क अनक उननायक राजसतता क साथ सहयोग करत भी ददखाई पड़त

ह अब इस कोई चाह तो नवजागरण क उननायको का रधयवगीय अथवा भदरिोक चररतर कह ि अथवा

दकसी सागरठत राजनीकततक परकततरोध क अभाव क िारा इस कतनरपायता की वयाखया कर ि दकनत हर हाित

र यह तथय कतवसरत न हो दक कि कतरिाकर था यह रितः नवजागरण ही- साासककततक नवजागरण कतजस

राषटरीय सवाधीनता साघषम का पवमराग भि कह ि दकनत उसका पयामय न सरझrdquo16 इसी साासककततक

नवजागरण स वह lsquoआतरकतबमबrsquo तयार हआ कतजसक कतबना राजनीकततक साघषम का वह रप कतवककतसत नही होता

जो आग चिकर वासतव र हआ अजञय की इस वयाखया स नारवर जी सहरत ह दक राजनीकततक-साराकतजक

आधारो की वासतकतवकता क बावजद भदरवगीय साासककततक आनदोिन न जो lsquoआतरकतबमबrsquo रचा वह

राजनीकततक सवतातरता साघषम र हकतथयार बन गया राजनीकततक सवतव पराकतपत की जो चतना इस पररणापरद

आतरकतबमब र अातगमहावास कर रही थी आग चिकर वही राजनीकततक सवतव पराकतपत र उभरकर कतनज

कतवककतसत होती गयी एक बार दफर lsquoइकततहास जसा था वसा पानrsquo की कोकतशश र इकततहासवाद की

कतवचारधारा सारन आ खड़ी होती ह इस इकततहासवाद की आिोचना गरामशी न भी की थी खासतौर पर

कोच क परर इकततहासवाद की आिोचना करत हए सवाि ह दक सासककततकरम की राजनीकतत कया ह

ददरागी गिारी स रकति का साघषम और राजनकततक रकति का साघषम कया इस तरह क अिगाव र रह सकता

ह और अगर अिगाव ह तो इस अिगाव को कस सरझ एक बार यह तय हो जान पर दक उनका वगम

कया था हर उसी क आिोक र उनक साासककततक परयासो की आिोचना करनी चाकतहए दसर शबदो र

उनक अपन वगीय अातरवमरोधो क आिोक र ही उसकी आिोचना साभव ह उपकतनवशवाद की रानकतसक

गिारी क कतखिाफ साघषम जञान की सतता क कतखिाफ साघषम ह और शायद इसकतिए नारवरजी कहत भी ह दक

यह साघषम राजनीकततक साघषम स lsquoकर करठन न थाrsquo यरोपीय जञान क बरकस भारतीय जञान को सथाकतपत

करन का साघषम ही यह साघषम था ldquoउपकतनवशवाद की छाया र भारतीय सासककतत क िोप का खतरा था

इसकतिए अपनी सासककतत की रकषा का परशन सवतव-रकषा का परशन बन गयाrdquo17 सतता पिटन क कतवचार को

16 वही पषठ ८८

17 वही

12

अातगमहावास दकर सवतव-पराकतपत सवतव-रकषा का परशन बन गया और यह सवतव कया था कतजसकी रकषा

साासककततक रोच पर नवजागरण क परसकताम कर रह थ- कलपना या यथाथम परबोधन न जञान का एक कतरथ

तयार दकया और चपक स कतरथको को जञान बना ददया इस नवजागरण की एक बड़ी दन एक परकतत-

इकततहास-दकतषट का कतवकास ह नारवर जी कतिखत ह ldquoनवजागरण की एक बहत बड़ी दन साभवतः वह

इकततहासदकतषट ह कतजसस अपन अतीत को शतर स रि करक उसक कतवरदध वतमरान र इसतराि करन की किा

आती ह और भकतवषय क कतिए सवपन दकतषट भी कतरिती हrdquo18 अगर वासतव र यह दकतषट नवजागरण की दन ह

तो रानना पड़गा दक यह फासीवाद की इकततहासदकतषट ह एक ऐस रकतसिर अतीत की कलपना जहाा रकतसिर

शतरओ स भारतीयता को रि करक वतमरान र उनक कतखिाफ इसतराि दकया जाता ह और इसस भकतवषय

की एक सवपन दकतषट भी भी कतरिती ह कहना न होगा दक परबोधन स कतनकिी यह इकततहासदकतषट अतारकम क

नही थी कयोदक यह साघषम की वासतकतवकता का सबस भरकतरत रप खड़ा करती ह फासीवाद इस अथम र वगम

साघषम का सबस कतरथकीय रप ह और अगर यह सही ह तो सवतव-रकषा र परापत इस इकततहासदकतषट को हर

परकततकााकतत की इकततहासदकतषट कह सकत ह भारतीयता का यह भरकतरत आतरकतबमब सवया को दो बनाकर ही

गकततशीि था यही इकततहासदकतषट आग चिकर lsquoकतवरदधो का साराजसयrsquo की इकततहासदकतषट क रप र इकततहास

का सबस भवय ढााचा खड़ा करती ह आतरकतबमब क इस कतवखाडन को िकषय करत हय नारवर जी न कतिखा

ldquoहरानी की बात ह दक हहादी परदश का नवजागरण धरम इकततहास भाषा सभी सतरो पर दो टकड़ हो गया

सवतव रकषा क परयास धरम तथा सापरदाय की जरीन स दकय गएrdquo19

आतरकतबमब का यह दो होना िखको क दो वगो र परकततहबाकतबत हआ नारवर जी क अनसार एक

वगम अागरजो का घोर कतवरोध करता ह पर धरम-सासककतत और साराकतजक परथाओ क बार र परापरावादी ह

दसरा वगम अागरजी राज क परकतत नरर रख अपनाता ह पर अनय रारिो र या तो रिगारी ह या दफर

सधारवादी िखको का पहिा वगम भारतीय होन का दावा करता ह जबदक नररपाथी िखक पकतशचरोनरख

ह हहादी नवजागरण क नता जयादातर परापरावादी ह जहाा अागरजी कतशकषा का परसार जयादा हआ वहाा

पकतशचरोनरख िखक जयादा थ दयानाद की अपकषा भारतद का झकाव कशवचादर सन जस पकतशचरोनरख

िखको या सधारको क परकतत था ऐसा साभवतः वषणव भावकता क चित था नारवर जी भारतद र परखर

बकतदधवाद का अभाव पात ह पर उनकी रराकतनयत को रानवतावाद की कतवचारधारा स जोड़त ह

नवजागरण क इस साकतशलषट कतचतर को सारन रखन की कोकतशश र नारवर जी एक ऐसी इकततहासदकतषट

कतवककतसत कर रह थ जो अतीत को उसक सापणम अातरवमरोधो र पान की कोकतशश करता ह अतीत को खिा

18 वही पषठ-८९

19 वही पषठ ९१

13

छोड़ दन वािी यह इकततहासदकतषट या एक सातकतित इकततहासदकतषट का यह परयास खाड खाड कतबमबो की एक ऐसी

गकततशीिता का भरर पदा करती ह जो इकततहासवाद की एक पररख कतवशषता रही ह इस पकष पर सवया

नारवर जी का धयान था और आग चिकर उनहोन नवजागरण क इस कतरथकीय चररतर को सवया ही

आिोकतचत दकया इस आिोचना र वह नवजागरण को परबोधन कहन क बदि lsquoअकतभजञान-कािrsquo कहना

जयादा उपयि रानत ह खद lsquoनवजागरणrsquo नार को अागरजो की कलपना बतात ह और उननीसवी सदी को

lsquoसरकतत-भराशrsquo का काि कहत ह यहाा १८५७ स िकर भारतद और कतववकानाद सब एक कतरथकीय चतना क

भीतर सराकतहत ददखत ह और कतजस भारतीय नवजागरण कहा जाता था उस कतवपरीत जागरण रानत ह

इसी कतवपरीत जागरण का नार उनहोन अकतभजञान ददया 20 डा वीरभारत तिवार न कवि कतहनदी

नवजागरण को भारतीय नवजागरण की परकततकााकततकारी धारा कहा था वही नारवर जी अब पर भारतीय

नवजागरण को ही कतवपरीत जागरण कह रह ह और बहत हद तक सही कह रह ह

डा तिवार न अपनी lsquoरससाकशीrsquo र lsquoहहादी नवजागरणrsquo को एक भरारक पद बताया था न तो

इसका साबाध १८५७ स था न रधयकािीन भकति आनदोिन स और न ही जनवादी राषटरवाद की दकसी

अवधारणा स उनक अनसार परबोधन क कतववकवाद तथा धरमसधार-सराज सधार की कतरिी जिी परदकया

क रप र कतवककतसत होत बागािी या रराठी नवजागरण या भारतीय नवजागरण की परकततगारी धारा क रप

र कतवककतसत होन वाि भारतद आदद क साासककततक आनदोिन को lsquoहहादी आनदोिनrsquo कहना ठीक ह कतशकतकषत

रधयवगम क भीतर दो परसपर कतवरोधी धाराओ की चचाम डा तिवार करत ह एक धारा कतववकवाद की

धारा थी दसरी सनातनी कतहनद धरम की धारा रहाराषटर और बागाि र अागरजी कतशकषा क परचार-परसार न कतजस

नए धरम और सराज सधार को गकतत परदान की वह अपकषाकत अकतधक परगकततशीि धारा थी पकतशचरोततर यि

परानत क पवी इिाक खासतौर पर बनारस इिाहाबाद और बहत हद तक पटना कानपर भागिपर आदद

शहरो र कतवककतसत नव-रधयवगम इस परगकततशीि धारा क साथ नही था इसका सबस बड़ा कारण अागरजी

कतशकषा का अभाव था यि परानत र कोई धारा परगकततशीि भकतरका अदा कर रही थी तो वह कवि दयानाद

सरसवती की आयमसराजी धारा थी इस आयमसराज का भी अपना जनाधार सनातनी पाकतडतो या िाहमणो क

यहाा नही बकतलक नौकरीपशा अागरजी कतशकषा परापत वह भदरवगम था जो अपन धरम और सासकारो क कतपछड़पन

को िकर गिाकतनबोध स भरा था इस वगम को अपनी पहचान आयम सराज र ददखती थी आयम सराज क

रिवाद र तथा उसक तारकम क सथिवाद र आधकतनक होन का रासता ददखता था िहमोसराज और

कतथयोसोदफकि सोसाइटी दो ऐसी सासथाएा और थी जो यि परानत र धरम और सराज सधार का परयास कर

रही थी परनत इसका परभाव बहत सीकतरत था आरतौर पर यिपराात र रहन वाि बागािी अपरवासी ही

20 दख नारवर हसाह उननीसवी सदी का भारतीय पनजामगरण यथाथम या कतरथक (अन) पाकज पराशर पकषधर अाक ११ जिाई २०११

14

इनक सदसय थ हहादी आनदोिन क नताओ न इन दोनो धाराओ की आिोचना की ह इनहोन दयानाद क

रिवाद की आिोचना अपनी परापरावादी करमकााडी दकतषट स की इनक अनसार उपकतनषद या पराण आदद

अगर अपराराकतणक भी ह तब भी चादक िोक र सवीकत ह इसकतिए उनह एकदर ख़ाररज करक कोई धरम या

सराजसधार नही हो सकता तिवार जी का कहना ह दक अपनी िचर दिीिो की आड़ र य िोग वसततः

सतरी कतशकषा कतवधवा कतववाह या आधकतनक जीवनशिी आदद की परगकततशीिता का कतवरोध कर रह थ यह

कतवरोध आरतौर पर सरदाय की रानयताओ को ही सारन रखकर दकया जाता था एक दकसर क

कतबरादरीवाद क भीतर स सरझौता करत चिन क कारण हहादी आनदोिन क नता अपन पाररवाररक या

वयकतिगत जीवन क उथिपथि स बचन की कोकतशश करत ह धरम इनक कतिए सधार का नही वरन

राजनीकततक हथका डा रातर था धरम की आड़ र य रकतसिर भदरवगम को अपना परकततयोगी साकतबत कर कतहनद

एकता की अपीि करत तादक इनह सरकारी नौकररयो र कछ कतवशषाकतधकार कतरि सक तिवार जी क

अनसार रकतसिर भदरवगम इन हहादी आनदोिन क परसकततामओ स कही जयादा परगकततशीि था उनक यहाा

आधकतनकता क परकतत जयादा खिी और कतववकसापनन दकतषट थी और उनहोन जोर दकर कहा दक हहादी आनदोिन

को सर सयद अहरद खाा जस दकसी सकषर कतववकवादी वयकतितव का नततव नही कतरि पाया हहादी

आनदोिन और नताओ क अातरवमरोधो को ददखात हए तिवार जी न भारतद की छकतव एक पतनशीि कतहनद

रोररटक की गढ़ी ह यहाा भारतद एक परकततनायक क रप र नजर आत ह

कतववकवादी इस धारा न राषटरीयता की जो धारणा गढ़ी वह रितः साापरदाकतयक थी अागरजी राज क

कतखिाफ अगर इनका साघषम सराज और धरम सधार को साथ-साथ रखन क बजाय उसर अिगाव करता ह

बकतलक उनक कतखिाफ जाकर सागरठत होन का परयास करता ह तो उसक सारन रकतसिर भय पदा करन क

अिावा और कोई रासता साभव नही था lsquoहहादी नागरी और गोरकषाrsquo आनदोिन इसकी सवभाकतवक पररणकतत

थी आग चिकर उननीसवी सदी क आकतखरी दशक र आकार गरहण करन वािी कतहनद राषटरवाद की यह

पषठभकतर ह इसक वग र दयानाद न भी साथ ददया कयोदक उनर भी पनरतथानवाद क बीज थ पवी परदशो

की अपकषा आयम सराज पाजाब र कही जयादा रकतडकि था आयम सराकतजयो की सदसयता की साखया पाजाब

क रकाबि यि परानत र जयादा थी पर वहाा कोई गणातरक पररवतमन साभव नही हआ और यह रहज

साखयाबि क रप र ही बना रहा इसका कारण उनहोन पाजाब की कतभनन नतततवशासतरीय अवकतसथकतत र

बताया ह पाजाब र िाहमणो का परभाव कर था कतजसका एक कारण रसिरानो क साथ िमबा सासगम और

कतसख धरम आदद का परभाव भी था इस तरह का कोई कतवशलषण पवी परदशो क बार र नही दकया गया जसा

दक बहत पहि रदमरशरारी की ररपोटम स ही हजारीपरसाद कतिवदी न दकया था अथामत रधययगीन कतसख

धरम क परभावो की तरह कबीरपाथी आदद सरदायो क परभाव और वषणवता क अातसबाधो की पड़ताि नही

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की गयी ह काशी क बनकरो की एक हड़ताि का कतिक रारकतविास जी बार बार करत ह जो १८३३ ई र

ही हई थी और इकततहासकार बिी क अनसार यह वक़त आरथमक साकट का भी वक़त था

भदरवगम का जो कतहससा हहादी आनदोिन क साथ था उस जाकतत वयवसथा की परानी रानयता को

बनाय रखन या उस रजबत करन की जररत कया कवि नौकररयो र कतवशषाकतधकार परापत करन क कतिए थी

या जाकतत वयवसथा रातर र आय एक रिगारी साराकतजक साकट का वह परकततदकयावादी रपाातरण ह शहरो

र आरथमक-वयापाररक गकततकतवकतधयो क कारण और आसपास क इिाको स परवासी रजदरो का आगरन तथा

बढ़ती वशयावकततत आदद क चित शहरी साराकतजक साबाधो र भी उथि-पथि थी ऐस सरय र सारदाकतयक

या कतबरादरी बोध lsquoएकाrsquo की भावना पदा करती ह तिवार जी इस नव-भदरवगम का अपन ही भीतर अिग-

अिग खााचो र बाट होन की बात करत ह अिग-अिग खााचो र बाट होन क चित यह भदरवगम रधयवगम की

कतवचारधारा अथामत कतववकवाद या नवजागरण को परापत नही कर पायी थी वगम था िदकन वगम की

कतवचारधारा नही थी खद भारतद क जीवन स हर उस दौर की अकतसथरता का कछ अादािा कतरिता ह

अकतसथरता और खााचो र बाटा रधयवगम दरअसि सापणम सराज र होन वाि एक आधारभत पररवतमन की ओर

इशारा करता ह यह पररपरकषय १८५७ की तरासदी का भी ह ऐसी कतसथकतत र हपराट पाजी क साथ बनन वािा

यह साासककततक आनदोिन था जहाा सवतव रकषा रखयतः अपन परान कतवशषाकतधकार की रकषा थी साराकतजक

साबाधो र आय उथि पथि क कारण उनह अपन कतवशषाकतधकार कतछन जान का खतरा साफ़ ददखाई द रहा

था जहाा अागरजी कतशकषा थोड़ा पहि ही परसार पा चकी थी वहाा कशि कारीगरो स िकर अधयापको और

परशासकतनक अकतधकारीयो क एक बड़ सरह न अपना नया कतवशषाकतधकार पा कतिया था साराकतजक साबाधो र

उनकी शरषठता उनक कतववकवाद क कारण बन चकी थी भारतद क एक शरआती िख lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

क राधयर स खााचो और जनरत की राजनीकतत को सरझन की कोकतशश आग करग

तिवार जी क अनसार दयानाद क कतवचारो क कतिए पाजाब जयादा गरहणशीि था कयोदक वहाा

जाकतत वयवसथा क बाधन पहि ही ढीि हो गए थ यिपराात र जाकतत क बाधन जायदा कठोर थ कतजन अथो र

कतिवदी जी रधय दश की रकषणशीिता का कतजक करत ह कछ-कछ उनही अथो र पर सवया दयानाद क

कतवचारो र कतववकवाद-पनरतथानवाद का दोरखापन कतरिता ह तिवार जी कहत ह दक कतजन सथि तको स

वह वदो की ओर िौटन को कहत थ आयम भाषा आयम जाकतत और आयम धरम की बात करत थ उसक कारण

ही इनका झकाव आग चिकर राषटरीय सवयासवक साघ की ओर होता गया पर आयम सराज क साराकतजक

सधारो और धरम सधारो की एकता क कारण वहाा वह साभावना भी थी कतजसक परभाव स आग चिकर बहत

सार कमयकतनसट कायमकताम भी कतनकि पररचाद राहि साकतयायन या गणश शाकर कतवदयाथी जस साकतहतयकार

और आनदोिनकताम आयम सराज क परभाव र थ आयम सराज तिवार जी क अनसार वासतकतवक साराकतजक

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पररवतमनो का सावाहक और सराज र वयकति स िकर साराकतजक जीवन क हर कषतर र गणातरक पररवतमन

िान वािा इसकतिए हो पाया कयोदक वहाा धरमसधार और सराज सधार अिग-अिग नही था दसरी ओर

हहादी आादोिन साापरदाकतयक जाकततवादी और सतरीकतवरोधी रलयो को ही सराज र फ़िान र कारयाब हआ

यह धारा अागरजो को अरजमयाा दकर नौकरी पान वाि रधयवगम की धारा थी

तिवार जी न भारतद की तकमशीिता को बहत कतनमन कोरट का कहा ह भारतद क चररतर र शायद

वह एक lsquoिमपनrsquo की छकतव भी दखत ह पसा उड़ान की वकतत सतरी क साथ वयवहार और उनक साबाध

चाररतरय बि का अभाव आदद आदद क सनदभम र वह कहत ह दक भारतद क चररतर र वह सदढ़ता या

सदाचाररता नही ह जो सराजसधार क कतिए आवशयक होती ह घर र पतनी उनह कभी पसाद नही आई

और वह बाहर रहदफ़िो र वाहवाही िटत रह रदमवादी दकतषट भी उनर कट-कटकर भरी थी भारतद क

इस चररतर की तिना तिवार जी न दो अनय परमपरावादी सधारको स की ह एक बागाि क राधाकाात दव

और दसर पाजाब क शरदधारार फलिौरी यदयकतप य दोनो भी भारतद की तरह परापरा की रकषा र ही सधार

की ओर अगरसर हए थ िदकन इन िोगो का चररतर जयादा परगकततशीि था इन दोनो की तिना र भारतद

का खिनायकतव और भी अकतधक उभरकर सारन आता ह सापकतकषक परगकततशीिता क कतनधामरण क कर र

भारतद अपन सापणम जीवन वयवहार र एक एाटी हीरो की तरह उभरत ह ठीक परान खिनायको की तरह

नही एाटी हीरो क साथ दशमक या पाठक की एक आतरीयता भी जड़ी रहती ह उसका चररतर ददराग र बस

जाता ह िदकन इसक चित यथाथम क ओझि होन का खतरा भी ह तिवार जी इसकतिए कदर कदर पर

उनकी साकतहकततयक छकतव क बरकस उनक राजनकततक- साागठकतनक जीवन वयवहार स बनन वािी छकतव को

सारन ररतमरान करत जात ह

अपनी परी आिोचना र तिवार जी भारतद की रचनाओ र कतरिन वाि भाषायी िदधड़पन और

राद तकमशीिता की चचाम तो करत ह िदकन व भारतद क वयागयो पर चचाम नही करत कया यह रहज

सायोग ह दक भारतद क परहसन lsquoअाधर नगरीrsquo का राचन आज भी परगकततशीि रलयो की परकततषठा ही करता

हभारतद क वयागयो या परहसनो र ऐसा कया ह कतजसर दहराव क साथ नवीन होत चिन की कषरता भी ह

भारतद क िखो या परहसनो या रपको र जो कही-कही वणमन या सावाद िारा वयागय का तीखा बोध पदा

होता ह उसकी शकति उनह कहाा स कतरिती ह वयागय की कषरता सवया र उनकी सकषर कतनररकषण र सरथम

दकतषट का परराण ह परान साराकतजक साबाधो र पररवतमन और तीवर पररवतमन क साथ साथ जो एक परहसन

चि रहा था उसका बोध भारतद को था भदरवगम क भीतर की कतववकवादी धारा का कतवकास भी कतहनद

राषटरवाद की कतवचारधारा र ही हआ परनत lsquoअाधर नगरीrsquo कया कतहनद राषटरवादी कतवचारधारा वािा परहसन ह

या कया यह कवि राषटरवादी कतवचारधारा का वाहक ह lsquoउरराव जान अदाrsquo र उभरकर सारन आन वाि

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साराकतजक साासककततक साकषोभ या उस वयापक टरजडी क सनदभम र दख तो भारतद क वयागय और परहसनो का

अथम थोड़ा और उभरता ह रकतलिका या राधवी स भारतद क साबाधो र कया उस तरासदी का सराग भी नही

ह वशयावकततत और पतनशीि रइसो का साकट एक दसर स अिग नही था उस सरय की औपनयाकतसक

ककततयो र वशयावकततत का सनदभम अवशय आता ह आग चिकर पररचाद की सरन बनारस र ही lsquoसवासदनrsquo

का सराधान ढाढ रही थी

भारतद क वयागयो पर रारकतविास जी का धयान था यह बात अिग ह दक अकतधकााश रौको पर

इनर वह जातीय चतना खोज कतनकाित ह बीस साि की उमर र भारतद न एक िख lsquoिवी पराणिवीrsquo नार

स कतिखा था रारकतविास जी इसका उलिख करत हए कतिखत ह ldquoगवनमर जनरि कतहनद क कतजस दरबार का

भारतद न वणमन दकया ह वह काशीराज क घर पर हआ था इसकतिए भारतद की सतयकतपरयता और भी

सराहनीय ह वहाा जो सजजन िोगो क नार कतिख रह थ उनका वणमन या दकया ह lsquoनार कतिखन वाि राशी

बदरीनाथ फि-फाि अबा पकतहन पगड़ी सज परान दादर की भााकतत इधर-उधर उछित और शबद करत

दफरत थrsquo िोग दकस तरह एक आनररी रकतजसटरट क lsquoकतसट डौनrsquo lsquoसटड अपrsquo कहन स उठत और बठ जात थ

इसका उनहोन बहत ही नाटकीय वणमन दकया ह आनररी रकतजसटरट का वयवहार हविदार का सा था कतसफम

हाथ र एक िकड़ी की कसर थी िोग कीरती पोशाक पहनकर गए थ ldquoसबक अागो स पसीन की नदी

बहती थी रानो शरीयत को सब lsquoअरघय पादयाrsquo दत थrdquo िोगो की उठा बठी और बहदा कवायद को िकषय

करक कतिखा था ldquoवाह-वाह दबामर कया था lsquoकठपतिी का तराशाrsquo था या बलिरटरो की lsquoकबायदrsquo थी या

बादरो का नाच था या दकसी पाप का फि भगतना था या lsquoफौजदारी की सजाrsquo थीrdquordquo21 काशी की इस सभा

र खद भारतद भी बठ थ इस परकार यह भारतद क वगम का परहसन भी था पतनशीि सासककतत की

आतरािोचना क कतबना यह साभव नही था बात कवि उमर की नही ह ठठ वतमरान र हसतकषप और उस

बदिन का बोध कतजन पतनशीि कतसथकततयो का आतर साकषातकार कर रहा था यह उसक परकतत एक

सवाभाकतवक सवतःसफतम परकततदकया थी यह तारकम क की नही बकतलक किाकार की सवतः सफतमता थी यह बात

सही ह दक भारतद कतवचारो की तारकम कता क रारि र उननीस पड़त थ पर इस करी को उनकी तीकषण

वसतकतनरीकषण दकतषट भर दती थी जीवन कतसथकततयो की कतवडमबना का बोध कतजतना गहरा था बदिन का

परयास उतना ही ऊजामवान था भारतद सवया अपनी भी कहानी कतिख रह थ lsquoपयार हररचाद की कहानीrsquo

कतिख रह थ भारतद क परहसनो र दकसी न दकसी पातर की भकतरका र हर जगह सवया भारतद भी ददख

जात ह अपन वगीय अातरवमरोधो का सवबोध उनक यहाा एकतिगोररकि हो जाता ह इस एकतिगरी र lsquoकतहनद

21 रारकतविास शराम पषठ- ६६

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भारतrsquo की रधर कलपना थी इसस इनकार नही दकया जा सकता भाव जगत का वषणव परर lsquoकतहनद भारतrsquo

की कलपना स परर र बदिता गया

भारतद की रचनाओ र कतवशवदकतषट की एकता खोजन पर हर परभतवशािी कतवचारधाराओ की

वयवसथा ही कतरिगी जञान और वयावहाररक सारानय बोध क बीच एक सदकय साबाध बनान क कर र ही

उनका सवाभाकतवक आवग कतजन वयावहाररक धाररमक कतवचारधाराओ र आतरकतबकतमबत होता ह व

परभतवशािी कतवचारधाराएा ह इन कतवचारधाराओ का कतनरामण कही बाहर स नही हो रहा था बकतलक

पराचयकतवदयाकतवदो की कलपना क साथ परसपर भागीदारी र बन रहा था इन कलपनाओ को यथाथम रप द

रही थी हपराट पाजी क साथ कतवककतसत होती lsquoबजमआ पकतबिक सफीयरrsquo की दकयाएा भारतद की सवाभाकतवक

सफरतम ततकाि ही एक फ टसी र बदिन िगती ह और दकयातरक होना चाहती ह ऐस ही सरय

पराचयकतवदया क पाकतडतो क िारा जगाय गए कतरथकीय परत भी आकर सर पर सवार हो जात ह पराचयवाद

दकसी परत-कतवदया स कर न था दखना चाकतहए दक भारतद की रचनाओ र कहाा परतो की दकतनया र यथाथम

का हसतकषप होता ह उनकी एकतिगरी कहाा कतसथकततयो क अकततरक को अकतभवयि कर रही ह जस भारतद की

lsquoअाधर नगरीrsquo ऐन हरार वक़त र राजयसतता का रपक बन जाती ह यह रपक राजयसतता र अनतरनमकतहत

हहासा की अकतनवायमता और नयाय क भरर का परहसन भी ह

२ धरम सधार पर कतवचार सभा

िहमो सराज या दयानाद सरसवती को खद भारतद कस दख रह थ इसका पता हर lsquoसवगम र कतवचार

सभा का अकतधवशनrsquo22 नारक एक वयागय रपक स चिता ह सवारी दयानाद सरसवती और कशवचादर सन

जब ररन क बाद सवगम पहाच तो ldquoवहाा एक बर बड़ा आनदोिन हो गयाrdquo रतय क कछ ही सरय पहि कतिखा

गया यह वयागय रपक अपन सरय क धरम सधार आादोिनो क चररतर की वयाखया करता ह सबस पहि

इसका परकाशन किकतत स कतनकिन वािी परकततकतषठत हहादी पकततरका lsquoकतरतर कतविासrsquo (जन १८८५) र हआ था

िहमो सराज और आयम सराज क आनदोिनो को भारतद इस सरय तक आकर एक तटसथ आिोचकीय दकतषट

स दखन का परयास करन िग थ सवगम र एकबारगी पदा हए इस आनदोिन र रोट तौर पर दो खर बन

गए एक इनका परशासक था दसरा हनादक पहिा कतिबरि ह दसरा काजरवरटव इन दोनो खााचो र

अनदफट एक तीसरा दि ह जो वषणव आतराओ का ह इस दि क सासथापक तो कतिबरि थ पर अब य

lsquoरकतडकलस कया रहा रकतडकलस हो गए हrsquo कतनकतशचत रप स इन रहा रकतडकलस आतराओ र हर सवया भारतद

22 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन सा- करिा परसाद परसा- नारवर हसाह पषठ- ८२-८६ नशनि बक टरसट इाकतडया नई ददलिी- २००६

(आग इस िख क उदधरणो को कतबना पाद रटपणणी क ददया गया ह)

19

को भी कतगन सकत ह वयासदव एक ऐस बकतदधजीवी क रप र सारन आत ह जो दकसी का भी पकष िन स

बचत ह पर उनका रान दोनो खरो र ह ldquoकतबचार बढ़ वयासदव को दोनो दि क िोग पकड़-पकड़ कर ि

जात और अपनी अपनी सभा का lsquoचयररनrsquo बनात थ और बचार वयास जी अपन पराचीन अवयवकतसथत

सवभाव और शीि क कारण कतजसकी सभा र जात थ वसी ही विता कर दत थrdquo कतिबरिो की तिना र

का जरवरटव दि जयादा रजबत था कयोदक उनह सवगम क जरीदारो का सहयोग परापत था काजरवरटव दि की

आतराएा साकीणम कटररपाथी आतराएा थी य आतराएा उन परान िरान क ऋकतष रकतनयो की आतराएा ह जो

ldquoयजञ कर करक या तपसया करक अपन-अपन शरीर को सखा-सखाकर और पच-पच कर ररक सवगम गए हrdquo

करमकााड और वरत उपवास आदद को भारतद वही तक सही रानत थ जहाा तक व शरीर को कषट न पहाचाएा

कठोर दह साधना करन वाि इन ऋकतष रकतनयो की आतराएा सधारो क कतखिाफ थी और इनका साथ दन

वाि जरीदारो र lsquoउदार िोगो की बढ़तीrsquo स अपना रान-अकतभरान और बि कतछन जान का डर था

कतिबरि दि भिो की आतराएा या तो सावमजाकतनक जीवन क उचच रलयो या आदशो क सापादन क चित या

पररशवर की भकति स सवगम र गयी थी

सराज सधार और वयकतिक परर रिक भकति- कतिबरि कतवशवदकतषट को भारतद इसी पररपरकषय र दख

रह ह रकतडकि वषणव दि भिो क कतिए वषणव होन रातर स य चीज पहि स ही उपिबध थी भारतद क

कतिए वषणवता सवाभाकतवक रप स कतवशवदकतषट ह पर रकतडकि वषणव इस सवाभाकतवक उदारता को

राजनीकततक रप दन वाि ह वषणव उदारता का और उसक भावावग का राजनीकततकरण करन वाि रहा

रकतडकि इस तरह भारतद क कतिए वषणवता की आधकतनक वयाखया र सराज सधार वयकतिक परर रिक

भकति और राजनीकतत तीनो का lsquoएकाrsquo ह इस एका क रकतडकि परयास क कतिए जनरत या िोकरत का

कतनरामण आवशयक ह भारतद की रकतडकि वषणवता ही lsquoसब उननकतत का रिrsquo ह यह एक िोककतपरय

वयावहाररक कतवचारधारा क रप र आकर गरहण करन वािी वषणवता ह यह रकतडकि वषणवता धरम का

राजनीकततकरण ह

काजरवरटव दिभिो को दवताओ का सरथमन परापत था य दवता ही सवगम क जरीदार थ अपन

अपन तरीक स इन दवताओ न काजरवरटव दि की सथानीय शाखाएा भी खोि िी और वहाा इनक पकष र

lsquoपरकाश सभाएाrsquo होन िगी कतिबरि दि वािो क पकष र कवि इस lsquoकतहनद सवगमrsquo क िोग नही थ ldquoइधर

lsquoकतिबरिrsquo िोगो की सचना परचकतित होन पर रसिरानी-सवगम और जन सवगम तथा दकसतानी सवगम स पगमबर

कतसदध रसीह परभत कतहनद सवगम र उपकतसथत हए और lsquoकतिबरिrsquo सभा र योग दन िग बका ठ र चारो ओर

इसकी धर फि गयीrdquo अिग अिग सवगम कतवकतभनन धाररमक पहचानो की ओर इशारा करता ह बका ठ कतहनदओ

का सवगम ह और यह नया धरम आनदोिन रखयतः कतहनद धरम की एक बड़ी पहचान क भीतर ही पदा हआ ह

20

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग क तीन कतनकतहताथम वसधा डािकतरया न भारतद यग क सनदभम र नोट दकय ह23 पहिा

एक पराक औपकतनवकतशक lsquoकतहनद अथमrsquo जहाा हहादसतान का हर बाहशादा शाकतरि था दसरा परसपर कतभनन

धाररमक रतो और आसथाओ की कतनकट अातरकम या क अथम को वयि करता ह कतजसक आराकतभक साकषय सलतनत

कािीन ऐतहाकतसक वतताातो र कतरित ह यहाा यह शबद lsquoतकम rsquo क सरानाातर उपयोग र आया था और

सारानयतः रसिरानो क बरकतखिाफ उपयोग दकया जाता था आरमभ र यह धाररमक कर साराकतजक-

राजनीकततक अथो र जयादा परयि होता था अागरजी राज क साथ यह दसरा अथम धरम स अकतनवायमतः जड़कर

lsquoकतहनदवादrsquo की कतवचारधारा र बदि गया जमस कतरि आदद क इकततहासो र lsquoकतहनदकािrsquo और lsquoरसिरान

कािrsquo की ऐकततहाकतसक कलपना क साथ कतहनद शबद जड़ गया था भारतीय भी रसिरानो को सारन कर

lsquoकतहनद पीकतड़त गराकतथrsquo क कतिए इस शबद का इसतराि करन िग कतहनद शबद का तीसरा अथम राषटर की

अवधारणा स जड़कर बन रहा था आरथमक राषटरवाद और अागरजी राज की यातना की साझी सरकतत स बनन

वाि इस तीसर अथम का रतिब था- lsquoजो कतहनदसतान र रह वह कतहनदrsquo रारकतविास जी भारतद क यहाा

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग को इनही अथो र ित थ पर वसधा डािकतरया का कहना ह दक यह तीसरा अथम दसर क

वयापक परभाव र था तीनो अथो की अातरकम या क बार र डािकतरया न कतिखा ldquoतीसरा अथम या राषटरवादी

अथम कभी भी अपन धाररमक साकताथो स परी तरह छटकारा नही पा सका इस पद की परयकति उननीसवी

सदी र अकतसथर बनी रही और इसक रखतकतिफ रायनो र आपसी जड़ाव कायर रहा बावजद इसक दकसी

परदतत सनदभम र lsquoकतहनदrsquo क पराथकतरक अथम को कतनधामररत करना साभव ह यदद एक बार यह तय हो जाय दक

इिाकाई धाररमक राषटरीय र स दकस आधार पर यह पद परयोग र आ रहा ह और lsquoअनयrsquo की भकतरका र

दकस रखा जा रहा ह चाह वह अनय जसा दक परानी इिाकाई परयकति र ददखता ह फारसी या तकी हो

या रसिरान (कतजस इस िरान र भी कई बार सरह क हवाि स तकम ही कहा जाता ह) या दफर अाततः

औपकतनवकतशक सवारी िदकन यह बात ददराग र रखना जररी ह दक धाररमक सरदाय को कतनरदमषट करन

वािी दसरी परयकति अतयात परभावी सनदभम-हबाद बनी रहती हrdquo24

इस सनदभम र दख तो कतिबरि दिो क सरथमन र शाकतरि lsquoअनयrsquo कतहनद धरम क सधारवाद क सरथमक

ह और lsquoसधारोrsquo र छपी वकतशवक भावनाओ को सरथमन दन पहाच ह का जरवरटव दिो की lsquoअनयताrsquo यहाा नोट

करन िायक ह इस अनयता र साराती जरीदार और करमकााडी िाहमणवाद का बिाक ह जबदक कतिबरि

दकतषट क आसपास एक lsquoसायि रोचrsquo की कलपना की गयी ह धयान रखना चाकतहए दक भारतद क रकतडकि

वषणव इस lsquoसायि रोचrsquo क बाहर ह उनका lsquoएबसटकतनजरrsquo वषणव होन क चित नही बकतलक रकतडकि या

23 वसधा दिकतरया कतहनद परमपराओ का राषटरीयकरण भारतद हररशचादर और उननीसवी सदी का बनारस अन साजीव करार योगनदर दतत पषठ-

४०-४२ राजकरि पपरबकस नई ददलिी- २०१६

24 वही पषठ- ४२

21

रहा रकतडकि होन क चित था कतनकतशचत रप स सवगम सासद का रपक ह और सवगम का राजा ईशवर

कतनषपरभावी हो गया ह और जनता सवया जनरत क िारा कतनणमय कतसथर करन पर जोर दती ह जनरत क

िारा lsquoसलफ गवनमरटrsquo का परयास सबस पहि वषणव भिो न दकया था और आज क कतिबरलस उसी को

आग बढ़ा रह ह ईशवर क पास दोनो दिो क िोगो न जब अपन अपन ररोररयि तयार कर भज तो ईशवर

न दोनो दिो क डपयटशन को बिाकर कहा ldquoबाबा अब तो तरिोगो की lsquoसलफगवनमरटrsquo ह अब कौन

हरको पछता ह जो कतजसकी जी र आता ह करता ह अब चाह वद कया सासकत का अकषर भी सवपन र भी न

दखा हो पर धरम कतवषय पर वाद करन िगत ह हर तो कवि अदाित या वयवहार या कतसतरयो क शपथ

खान को ही कतरिाय जात ह दकसी को हरारा डर ह कोई भी हरारा सचचा lsquoिायकrsquo ह भत परत ताकतजया

क इतना भी तो हरारा दजाम नही बचा हरको कया कार चाह बका ठ र कोई आवहर जानत ह चारो

िड़को (सनक आदद) न पहि स ही चाि कतबगाड़ दी ह कया हर अपन कतबचार जयकतवजय को दफर राकषस

बनवाव दक दकसी का रोकटोक कर चाह सगन रानो चाह कतनगमन चाह ित रानो चाह अित हर अब न

बोिग तर जानो सवगम जानrdquo

काजरवरटव दिभिो न दयानाद और कशवचादर सन पर कया कया आरोप िगाय यह दख िना

चाकतहए दयानाद को सवगम र सथान नही कतरिना चाकतहए कयोदक १ इसन पराणो की हनादा की २ ररतमपजा

की हनादा की ३ वदो का अथम उलटा-पलटा कर डािा ४ दस कतनयोग करन की कतवकतध कतनकािी ५ दवताओ

का अकतसततव कतरटाना चाहा (दवताओ याकतन जरीदार) ६ इसन धरम कतवपिव दकया और आयामवतम को धरम

बकतहरमख दकया पकतशचरोततर परानत क परकततकतनकतध क रप र lsquoकाशी क कतवशवनाथ जीrsquo न lsquoउदयपर क एकहिाग

जीrsquo पर दयानाद क सरथमन का आरोप िगाया कतवशवनाथ जी काजरवरटव दिो की तरफ स यह आरोप िगा

रह थ परब की अपकषा पकतशचरी इिाको र आयम सराज क परभाव की चचाम क सनदभम र एकहिाग जी का

जवाब धयान दन िायक ह कतवशवनाथ जी न जब एकहिाग जी को कतधककारत हए कतिबरिो क साथ कतरि जान

को कहा तब एकहिाग जी न कहा ldquoभाई हरारा रतिब तरिोग नही सरझ हर उसकी बरी बातो को न

रानत न उसका परचार करत कवि अपन यहाा क जागि की सफाई का कछ ददन उसको ठका ददया बीच

र वह रर गया अब उसका राि रता रठकान रखवा ददया तो उसका बरा दकयाrdquo यह एकहिाग जी

दफ़िहाि सवारी जी क दि क सभापकतत बन ह आकतखर इनहोन अपन यहाा क दकस lsquoजागिrsquo की सफाई का

ठका सवारी जी को ददया था यह जागि छोट-रोट धाररमक समपरदायो और रतो का जागि था एकहिागी

जी और काशी क कतवशवनाथ जी दोनो ही िाहमणीकत शवरत क धाररमक परतीक ह पर जहाा काशी क

कतवशवनाथ शर स ही दयानाद क कतवरोधी थ वही एकहिाग जी रणनीकततक रप स दयानाद क पास गए थ यह

साकीणम कटररपाथ क भीतर का कतववाद था यह बात गौर करन िायक ह दक जगननाथपरी र जब भरव की

22

रौजदगी का कतववाद भारतद क सारन आया था उस सरय उनहोन इस बात का परतयाखयान दकया था दक

भरव की परकततरा अनाददकाि स वहाा ह भारतद न पराण आदद स साकषय दकर यह परराकतणत दकया दक

कषण ही एकरातर उपासय ह तिवार जी न इस घटना का उलिख करत हए कतिखा ह दक ldquoदकसी वयकति न

lsquoतहकीकातपरीrsquo दकताब दकखकर बताया दक वहाा पहि भरो की पजा होती थी वषणवो न उसकी ररतम

उखाड़ फ की थी बाद र पाडो न जगननाथजी (कतवषण) क साथ भरो को दफर स परकततकतषठत दकया यह रारिा

काशी धरमसभा क सारन १८७० र आया भारतद न धरम साबाधी पसतक र lsquoतहकीकातrsquo जस फारसी शबद

की आिोचना करत हए कतवकतभनन धरमगराथो स परराण जटाकर दो बातो पर जोर ददया एक इसका परराण

नही कतरिता ह दक वहाा जगननाथजी क साथ पहि भरो की भी ररतम थी कतजस वषणवो न उखाड़ फ का दो

अगर वह थी भी तो यह उकतचत था या नही- इसपर कतवचार होना चाकतहए भारतद न अपनी वयवसथा दत

हए कतिखा दक भरो कतवषण स बहत छोटा दवता ह इसकतिए यह कतवषण क साथ बठाया नही जा सकता

lsquoदसर भरव कापाकतिको क दवता ह उनका पजन वषणव-सरातम सबको कतनकतषदध हrsquo गौरतिब ह दक भारत

र कतवकतभनन सथानीय धरो क परकतत कतजतन असकतहषण और फा डारटकतिसट आयमसराजी थ उतन ही काशी क

सनातनी भी थrdquo25

सथानीय धरम-रतो क जागि को साफ़ करन र आयमसराकतजयो और काशी क सनातनी पाडो क इस

गठजोड़ स भारतद भी वादकफ थ िदकन आयमसराकतजयो क साथ उदयपर क एकहिाग जी का रोचाम कसा

था इस भी भारतद बखबी सरझ रह थ सथानीय रतो क साथ भारतद का समबनध कसा था इसका पता

उनक छोट-छोट यातरा सासररणो स भी चिता ह lsquoसरय पार की यातराrsquo26 र रहदावि का हाि बयान करत

हए lsquoपराणनाथrsquo क रिहब का भारतद आशचयम क साथ उलिख करत ह भारतद क ही शबदो र ldquoयहाा एक

पराणनाथ का रिहब ह और दस बीस िोग उसक रानन वाि ह य िोग एकादशी तीथम वगरह को नही

रानत और सन सनाय दो तीन शलोक जो याद कर कतिए ह बस उसी पर चर हो lsquoरदीनासया शारदाा शताrsquo

और lsquoगोकतवनदrsquo lsquoगोकिानाद रककशवरrsquo यह शलोक पढ़ क कहत ह दक वद र रकका रदीन का वणमन ह ऐस ही

बहत वाकतहयात बात करत ह और कोई दकतना भी कह कछ सनत नही कहत ह दक गोिोक का नाश ह

और गोिोक ऊपर एक lsquoअखाड रणडिाकारrsquo िोक ह उसर रर कषण ह इनका रिहब एक पराणनाथ नारक

एक कषतरी न पनना र करीब तीन सौ बरस हए चिाया थाrdquo भारतद इस अजीबो गरीब lsquoरिहबrsquo का कषण स

कया साबाध ह यह सोचकर ताजजब र थ इस lsquoरिहबrsquo क गरनथ र भारतद न एक शलोक बलिभाचायम का

दखा तो उनका राथा और घर गया ldquoकि रिहब का हाि हरन नीच कतिखा था उसका अचछी तरह स

25 वीरभारततिवार रससाकशी १९वी सदी का नवजागरण और पकतशचरोततर परानत पषठ- १५२ सारााश परकाशन ददलिी- २००६

26 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन पषठ- १३७-३८

23

हाि दरयाफत दकया तो रािर हआ दक हरार ही रिहब की शाखा ह इनक गराथो र हरन एक शलोक शरी

रहापरभजी की सबोकतधनी की काररका का दखा इसी स हरको सादह हआ दफर हरन बहत खोद खाद कर

पछा तो वह साफ़ रािर हआ दक इसी रत स यह रत कतनकिा ह कयोदक एक बात वह और बोि दक हरारा

रत शरी बलिभाचारज की टीका र कतिखा ह इन िोगो क उपासय शरीकषण ह और एकादशी शािगरार

ररतमपजा तीथम दकसी को नही रानत इनक पकतहि आचायम दवचाद जी थ जो जाकतत क कायथ थ और दसर

पराणनाथ जी जो कचछ क कषतरी (भारटया) थ हरार ही रत की शाखा सही पर कतवकतचतर रत ह वषणव होकर

ररतमपजा का खाडन करन वाि यही िोग सनrdquo वणमन स सपषट ह दक सात और कतनगमण पाथो क साथ वषणव

कतवचारधारा क आदान-परदान का साकतशलषट इकततहास भारतद क कतिए ताजजब की चीज थी पर इन सबक बीच

आकतखर उनहोन इसक वषणव रि का पता िगा कतिया और वषणवता की इस धाररमक कतवचारधारा र उनहोन

ररतमपजा का कतवरोधी होना भी शाकतरि रान कतिया भारतद न ररतमपजा क सरथमन र बड़ बड़ िख कतिख

थ इसकतिए असाभव नही दक कषण क परकतत परररिक भकति क कतिए ररतम की जररत पर उनहोन कछ पछा

जरर होगा िदकन lsquoकोई दकतना भी कछ कह सनत ही नहीrdquo आग चिकर lsquoवषणवता और भारतवषमrsquo र

वह बड़ कतवशवास क साथ घोकतषत करत ह दक ldquoपहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद कतजतन पाथ ह सब

वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और भारतवषम इन पाथो स छाया हआ हrdquo27 तब वह वषणवता और

िोकरतो और रधयकािीन पाथो क भीतर पहि स सदकय एक ऐकततहाकतसक परदकया का सारानयीकरण कर

उसका नार lsquoवषणवrsquo रख रह थ अकारण नही दक उसी िख र वषणव वयापकता को बतान क कतिए

परचकतित lsquoनारोrsquo का साकषय पश दकया गया ह वयकतियो स िकर वरत और उपवासो तक यह परभतवशािी

सारानय बोध की कतवचारधारा थी कतिवदी जी रधयकािीन वषणवता को िोकधरम कहत थ भारतद

उननीसवी सदी क िोकधरो को वषणव कहत ह

काजरवरटव दिो की तरफ स कशवचादर सन पर िगाय गए आरोप थ १ वद पराण सबको कतरटा

डािा २ दकसतान रसिरान सबको कतहनद बनाया ३ खान पीन का कतवचार कछ न बाकी रखा ४ रदय की

तो नदी बहा दी आयम सराकतजयो क ऊपर रखयतः आरोप lsquoआयामवतम को धरम बकतहरमखrsquo करन का ह धरम

बकतहरमख अथामत सनातन धरम स कतवरख उनहोन कवि धरम क भीतर कतवपिव दकया परनत िहमो सराज न तो

lsquoभारतवषम का सतयानाशrsquo कर डािा इनहोन तो पराणो क अिावा वदो को भी कतरटा डािा lsquoआयामवतमrsquo की

जातीय पकतवतरता नषट करक दकसतान रसिरान जस lsquoकतवदशी ततवोrsquo को घर र घसा कतिया कटररपाथी

करमकााकतडयो क कतिए इनक साथ रणनीकततक तौर पर भी रोचाम बनान वािा कोई एकहिाग जी तयार नही

था सनातकतनयो िारा दकया गया यह बारीक भद खद कतिबरि दिभिो क भीतर का भी अातरवमरोध था

27 भारतद वषणवता और भारतवषम वही पषठ-७६

24

कतिबरिो की सभा र भी दो दि हो गए थ एक सवारीजी क सरथमको का दि था और एक कशव

क सरथमको का कतहनद कतिबरिो की आताररक एकता कतिकतवभाकतजत थी दयानाद क सरथमको क अनसार सवारी

जी न कतहनदओ की आतरा को जगाया था उनह सफतम बनाया वरना तो आयामवतम क आिसी और रखम

रोहकतनदरा र ही कतनरगन थ इस तरह रखम और आिसी सारानयजनो को lsquoिाहमणो क फा द स छड़ायाrsquo िाहमणो

की तिना भारतद न lsquoपादररयोrsquo स की ह जो lsquoवयथम परजा का दरवय खान वाि हrsquo आयम सराज न सासथाकत

परोकतहतवाद पर हरिा दकया था जो भारतद क कतिए रितः जनता क पसो पर पिन वािा परजीवी वगम

िगता था और तो और आधकतनक कतवजञान क आग जो lsquoआयोrsquo की नाक कटी जा रही थी उस भी सवारी जी

न बचा कतिया उनहोन वदो र भी रि तार करटी कचहरी आदद ददखाकर कतहनदओ र आतरसमरान पदा

दकया दसरी ओर कशव क सरथमको का कहना था दक ldquoधनय कशव तर साकषात दसर कशव हो तरन बाग

दश की रनषय नदी क उस वग को जो कशचन सरदर र कतरि जान को उचछकतित हो रहा था जञान करम का

कतनरादर करक पररशवर का कतनरमि भकति रागम परचकतित दकयाrdquo lsquoजञान करम का कतनरादरrsquo करक भी lsquoकतनरमि

भकति रागमrsquo का जो परवतमन कशव न दकया उसस ही ईसाई lsquoअनयताrsquo का साथमक परकततरोध साभव हआ lsquoरनषय

नदी का आवगrsquo भावावग ह इसी बात को दसर शबदो र कह तो भाव जगत क सवाभाकतवक वग को भगवत

भकति की शदध lsquoअनयताrsquo की ओर रोड़कर उस कतवदशी ईसाई lsquoअनयताrsquo क रागम पर जान स रोक ददया इस

कायम क कतिए वद पराण समरत lsquoजञान-करमrsquo क रागो का कतनरादर अगर करना पड़ा तो भी वह उकतचत ही था

वषणव भकति क रधयकािीन सवरप की जो वयाखया आग चिकर की गयी उसक आराकतभक कतचनन हर यहाा

दख सकत ह कहना न होगा दक भारतद का अपना अनभव भी यहाा बोि रहा ह

शासतरीय काजरवरटव पाटी र दवताओ क अिावा यजञवलकय जस औपकतनषददक ऋकतष क साथ-साथ

नारायण भटर रघनाद भटराचायम राडन कतरशर जस कतनबाधकारो और टीकाकारो का जरघट भी था इसक साथ

साथ इसिारी सवगम स आय हए कटररपाथी कतशया िोगो का भी सरथमन उनह परापत था इस परकार कटररपाथ का

दवताओ (जरीदारो) िाहमणो (पादररयो) जञानरागी औपकतनषददक ऋकतष रधययगीन कतनबाधकारो और

कतवदशी कतशया िोगो का एक वकतशवक रोचाम बन रहा था दसरी ओर कतिबरि दि र चतनय परभकतत आचायम

दाद नानक कबीर परभकतत भि और जञानी िोग भी शाकतरि थ इसक अिावा काजरवरटव दि क

कतवदरोकतहयो को भी कतिबरिो न अपन यहाा जगह दी य कतवदरोही थ अितवादी (या नववदााती) भाषयकार

पाचदशीकार और कोई कतरसटर िडिा इन दोनो िोगो पर शर र का जरवरटव दि वािो न बहत हरि

दकय परनत अात र इनह कतिबरिो न अपन यहाा जगह द दी धयान रखना चाकतहए दक भारतद अपन सापरदाय

क अनरप अित वदाात या रायावाद क घोर आिोचक थ सन १८७३ र हररशचादर रगजीन क पहि ही अाक

र भारतद न शााकतडलय भकति सतरो का अनवाद lsquoभकति सतर वजयातीrsquo नार स परकाकतशत दकया भकतरका र

25

भारतद कतिखत ह ldquo दखो आज वसात पाचरी ह इसस बहत स िोग आर क रौर वा फिो क गचछ िकर

तरस कतरिन आवग तो र भी यह एक फिो की वजयाती रािा बना कर िाया हा अागीकार करो वजयाती

रािा बनान का यह हत ह दक वनरािा होगी तो होिी क खि र अरझगी और इसक कतसवाय इस वजयाती

स कतनशचय करक जञानाददक को जय करना ह पर पयार बहत साभि कर यह रािा पहरना टट न जाए

कयोदक सत कचचा ह और ककतियाा तािी और कोरि ह इस स कमहिान का भी भय ह जो हो इस वसात

पाचरी को तयोहारी रझ यही दो दक इस सतयानाशी lsquoअहरrsquo िहमवाद lsquo को पणमरप स नाश करक और भी

सब बातो र इस नव-वसात र भारतवषम की सब आपकतततयो का बस अात करो और अपन भिो क कतचतत र

नव पलिव दफर स िहिह करो जो सदा एक रस रहrdquo28 lsquoएकरसrsquo भकति क कतिए जररी ह दक जञानवाद

अहर िहमवाद को जड़ स उखाड़ फ का जाय कषण को अरपमत अपनी वजयाती रािा स भारतद जञानाददक

को जय करना चाहत ह एक ओर यह पकतषटरागी परापरा क lsquoवीर वषणवrsquo भारतद का परर कतनवदन ह दसरी

ओर lsquoनव-वसातrsquo र भारतवषम की सब आपकतततयो को नाश करन की सारथयम रपी lsquoउपहारीrsquo का साकलप भी

ह lsquoभारतद भारतवषम की सब आपकतततयोrsquo को दर करन की राह र एक बड़ी बाधा अित क जञानवाद को

रानत ह भकति का lsquoएकरसrsquo पहि भी इसक परभाव स ररझाता रहा ह भारतद का साकलप सापरदाय क

परान कतवरोधो क बावजद बन रहन वाि इस अितवाद का पणम सफाया करन का ह जबतक यह न कतरटगा

परररिा भकति क lsquoकमहिान का भयrsquo बना रहगा भकति सतरो र उपासना कााड को परर कतसकतदध का हत

बताया गया था पर भारतद दख रह थ दक उपासना कााड का परचार कतवरि हो गया ह इसी परचार क

कतनकतरतत उनहोन इन सतरो का भाषा र अथम परचार दकया था १८७३ र ही हररशचादर रगजीन का एक

समपादकीय कतनकिा कतजसका शीषमक था- lsquoभकति जञानाददक स कयो बड़ी हrsquo इस िख र भी उपासना रागम

की रहतता का परकततपादन दकया गया ह तकम और जञान को करम की शकतदध और उपासन की परर कतसकतदध क

रासत र कवि एक चरण बताया गया ह वसधा डािकतरया न भारतद क आराकतभक साापरदाकतयक परचार

परसार क कायो र कतनगमकतनयो को बाहर रखन का उपकर नोट दकया था29 यहाा कतनगमकतनए कबीर आदद lsquoभि

और जञानीrsquo कतिबरिो क सरथमक ददखाए गए ह वषणव भकति क राषटरीय चररतर र य बाहर नही थ उनकी

एकता का आधार उनक lsquoकतिबरि रिrsquo र ह सावमजकतनक उचच भाव का सापादन और भकति इन दोनो क साथ

अित वदााती या जञानाददक- सनातनी परापरा क कतवदरोकतहयो की जगह भी कतिबरि दि पाकतथयो र थी

कतिबरि वाि ही झगड़ क कतनपटार की अजी पररशवर को दन गए थ पर पररशवर अपनी

परतीकातरक हो गयी कतसथकतत स खजिाय हए थ यह सवोचच अदाित थी पर साथ ही साथ शकतिहीन

28 भारतद गराथाविी खाड- ५ पषठ ११३

29 वसधा डािकतरया पषठ ३४२

26

राषटराधयकष की कलपना भी कतजस कतहनद सवगम क य राषटराधयकष ह वहाा दकसी दकसर की सलफ गवनमरट चनन

की परणािी आ जान स ईशवर की एकाकतधकारी शकतियाा कतछन गयी ह िोग जनरत कतनरामण क िारा सही

और गित की पहचान करन िग थ इसकतिए थोड़ा खजिाय तो रहत ही होग lsquoअब कौन हरको पछता

ह तर जानो सवगम जानrsquo परनत साकट गहरा था यदयकतप कतिबरि िोगो की सभा भी धरधार स जर

रही थी पर काजरवरटव दि पाकतथयो की सरकार र पठ थी दवता सब भी उनक साथ थ इसकतिए पररशवर

क पास जररी नयाय का परशन उठाया गया था नयाय दक इन दो रहापरषो को सवगम र जगह कतरिनी

चाकतहए या नही सराज र इनक नकततक उचच आदशो क अवरलयन का परचार काजरवरटव कर रह ह इस

परचार क कारण जनता अपनी निरो स पहचानन र सकषर नही ह ऐसी कतसथकतत सवगम र पहि नही आई

थी नई कतसथकततयो क नए रानदाड कया होग िाकतहर ह नयाय और नकततकता को एक वकतशवक सवीककतत

चाकतहए इसकतिए पररशवर न इस कतवषय पर कतवचार क कतिए जो ककतरटी चनी वह गौर करन िायक ह इस

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo र ldquoराजा राररोहन राय वयास दव टोडररि कबीर परभकतत कतभनन-कतभनन रत क िोग चन

गए रसिरानी- सवगम स क lsquoइरारrsquo दकसतानी स िथर जनी स पारसनाथ बौदधो स नागाजमन और

अफीका स कतसटोवायो क बाप कोrdquo चना गया कतहनद सवगम स नवजागरण क अगरदत वयासदव जस

बौकतदधकिखक टोडररि जस राजनीकततजञ और धरम-ररमजञ कबीर जस जञानी-भि पराचीनो र कवि वयास

दव ह बाकी दो lsquoरधयकािrsquo क और एक lsquoआधकतनकrsquo काि क वयकति ह उधर यरोपीय नवजागरणधरमसधार

क परणता िथर को भी बिाया गया ह और बौदधो की तरफ स परर कतनषधवादी नागाजमन भी ह पर य

अफीका क कतसटोवायो धरो की अकतसरता क साथ-साथ यह अफ़ीकी सवगम कतनकतशचत रप स अफीका की छकतव

पराचीन आददवासी सासककतत वाि एक lsquoकािrsquo रहादश क रप र गढ़ी गयी थी यह अफ़ीकी सवगम साभवतः

आददवासी धाररमक रानयताओ की ओर इशारा करता ह यह भी धयान दन िायक ह दक राजा राररोहन

राय िथर और कबीर इन तीनो क साथ lsquoनवजागरणrsquo की कोई न कोई पररकलपना ठठ सरकािीन कतवरशो

क क दर र भी ह कई अथो र अकबर िारा आयोकतजत होन वािी lsquoसिह-ए-किrsquo जसी धरम सभाओ की एक

रोहक कलपना भी भारतद को रही होगी टोडररि की उपकतसथकतत अकारण नही ह

अकबर को िकर भारतद की इकततहासदकतषट कसी थी इसकी एक झिक हर १८८४ र छपी उनकी

lsquoबादशाह दपमणrsquo की भकतरका र ददखती ह इस गरनथ र उन िोगो का चररतर-कतचतरण दकया गया था ldquoकतजनहोन

हरिोगो को गिार बनाना आरमभ दकया इसर उन रसत हाकतथयो क छोट-छोट कतचतर ह कतजनहोन भारत क

िहिहात हए करिवन को उजाड़कर-पर स कचिकर कतछनन-कतभनन कर ददया रहमरद रहरद अिाउददीन

अकबर और औरागजब आदद इनर रखय ह पयार भोि कतहनद भाइयो अकबर का नार सनकर आपिोग

चौदकए रत यह ऐसा बकतदधरान शतर था दक उसक बकतदधबि स आजतक आपिोग उसको कतरतर सरझत ह

27

दकनत वह ऐसा ही नही उसकी नीकतत अागरजो की भााकतत गढ़ थी रखम औरागजब उसको सरझा नही नही तो

आज ददन हहादसतान रसिरान होता कतहनद-रसिरान र खाना-पीना बयाह-शादी कभी चि गयी होती

अागरजो को जो बात नही सझी वह इसको सझी थीrdquo30 कतनकतशचत रप lsquoबकतदधरानrsquo दशरन स सीखन को बहत

कछ कतरिता ह अकबर की दीन-ए-इिाही क परयोग स भारतद भी बहत कछ सीख रह थ रधयकािीन

इकततहास क बार र रकतसिर शतर की छकतव का कतनरामण पराचयकतवदयाकतवदो क िारा दकया जा रहा था इकतियट

आदद इकततहासकारो न जो दकतषट कतवककतसत की उसका परभाव बहत गहरा था पर इस इकततहासिखन क साथ

साथ भारतद क कछ दशी सरोत भी थ अिग-अिग रहापरषो की चररताविी कतिखन की पररणा भारतद न

कतजतना अपनी वषणव भकति की परापरा स पाया था उतना ही इसिारी इकततहास िखन की परापरा स भी

lsquoबादशाहदपमणrsquo की भकतरका र भारतद कतिखत ह ldquoरर पररातारह राय कतगरधरिाि साहब जो यवनी कतवदया

क बड़ भारी पाकतडत और काशीसथ ददलिी क शाहजादो क रखय दीवान थ उनकी इचछा स ददलिी क परकतसदध

कतविान सययद अहरद न एक ऐसा चक बनाया था कतजसर तरर स िकर शाह आिार तक सब बादशाहो क

नार आदद कतिख थ उस फारसी गरनथ स बहत सी बात इसर िी गयी ह इस कारण तरर पवम क बादशाहो

का वणमन इतना परा नही ह कतजतना तरर क पीछ ह दफर रर रातारह राय कतखरोधरिाि न बहादर शाह

क काि क आरमभ तक शष वतत सागरह दकयाrdquo31

अरणदव जी अपन एक िख र भारतद क आराकतभक अकबर परर का कतिक दकया ह १८७२-७४ क

आसपास भारतद अकबर को रहान शासक रानत थ जबदक औरागजब को कतहनदओ का दशरन नाबर एक

भारतद न औरागजब की तिना र अकबर की रहानता को परराकतणत करन क कतिए रारदास कछवाह क एक

शलोक को अपना आधार बनाया ह इस शलोक का भावाथम भारतद क शबदो र इस परकार ह ldquoजो सरदर स रर

तक पथवी को पािता ह जो रतय स गउओ की रकषा करता ह कतजसन तीथम और वयापार स कर छड़ा ददए

कतजसन पराण सन जो सयम का नार जपता जो योग धारण करता ह और गागाजि छोड़कर पानी नही

पीता उस जिािददीन की जय अाग वाग कहिाग कतसिहट कततपरा कारत (कारटी) काररप अाध कणामटक

िाट दरकतवड़ रहाराषटर िारका चोि पााडया भोट रारवाड़ उड़ीसा रलि खरासान का दहार जमब काशी ढाका

बिख बदखशाा और काबि को जो शासन करता ह ककतियग की रकतहरा स घटत हए वद गउ कतिज और

धरम की रकषा को सगन शरीर कतजसन धारण दकया ह उस अपररय परष अकबर शाह को हर नरसकार करत

हrdquo32 यही अकबर १८८४ र औरागजब स जयादा शाकततर और बकतदधरान शतर र बदि गया lsquoकािचकrsquo क

कतनकतहताथो र यह फरबदि भारतद पर रकतसिर कतवदशीपन और कतहनद शतरता क समपणम बिॉक बनान की

30 बादशाह दपमण भारतद गराथाविी खाड-६

31 वही

32 httpsamalochanblogspotin201209blog-post_9html

28

रणनीकतत क दबाव क कारण था और lsquoपरावकततrsquo की कतरथकीयता र भी कतहनदओ को lsquoरहारोहनासतरrsquo क सहार

पहि भी वश र दकया गया था यह एक बारीक चाि थी अकबर की इस चाि को अागरज भी नही सरझ

पा रह थ भारतद की यह परकततदकया औपकतनवकतशक इकततहासिखन क दबाव र थी १८७३ र जब भारतद

न कतशवपरसाद की दकताब lsquoइकततहासकततकतररनाशकrsquo क तीसर खाड की आिोचना की थी तो उनक सारन

रकतसिर शासन की बबमरता और अागरजी राज क सशासन का कतशवपरसाद िारा ककतलपत आखयान था १८८४

र समपणम रकतसिर काि अनधकार यग र बदि गया कततकतररनाशक क पहि खाड र बाब कतशवपरसाद न भी

अकबर की रजहबी उदारता और साराकतजक सधारो की बड़ाई की थी इस परकार हर दख सकत ह दक

ऐकततहाकतसक िखन र पकष और कतवपकष की पनरावकततत एक बाद घर र उिझी हई थी इनक सारन रकतसिर

कतवरोध और अागरजी शासन क कतवरोध का एक कतवसागत फर था और िखक उसर अपनी फौरी जररतो क

कतहसाब स कतरतर और दशरन वािा इकततहास कतिखता था इकततहास ठठ राजनीकततक ततकाि क वशीभत था

जो भी हो धाररमक उदारता और सिह-ए-कि का परयोग एक कतशकषापरद परयोग था यह कतवकतभनन

रतो या कतवशवासो क बीच lsquoजनरतrsquo बनान का एक रधयकािीन परयोग था भारतद lsquoजनरतrsquo क परयोग को

इस तरह दखत थ रानो यह lsquoचािrsquo अगर कारयाब हो जाती तो lsquoआज क ददन हहादसतान रसिरान होताrsquo

भारतद क सारन सरसया वही थी बस वह कवि यह चाहत थ दक कतहनदसतान lsquoकतहनदrsquo हो जाय कतहनद

अथामत वषणव हो जाय वषणवता भारतद क कतिए हहादसतान का नया lsquoसिह-ए-किrsquo था इसकतिए कछ

सावमजनीन रलयो की तिाश उनह भी थी कतसिकट ककतरटी क उपरोि रमबर lsquoएकसअफीकतशयोrsquo रमबर थ

रोर क परान हररकिस जस दवता कतजनहोन धरती स साबाध तोड़ ददया ह व िोग तथा उनही क जस

पारकतसयो क lsquoजरदशतजीrsquo को कोरसपोहडाग ऑनररी रमबर बनाया गया य धरम क रप र रतपराय रतो क

परकततकतनकतध थ ककतरटी न जो ररपोटम तयार की उसका ररम भारतद न ददया ह यह ररम उनक रकतडकि वषणव

पकष का रत था कतिबरि दि और काजरवरटव दि क अपन पकषो स इतर यह नरनायक तीसरा पकष वषणवो

की तरफ स सनाया गया था रकतडकि वषणवो की तरफ स भारतद इस धाररमक आनदोिन क भीतर अपना

ही पकष रखत हए इसका ररम कतिख रह थ ldquoहरिोगो की समरकतत र इन दोनो परषो न परभ की रागिरयी

सकतषट का कछ कतवघन नही दकया वराच उसर सख और सातकतत अकतधक हो इसी र पररशरर दकयाrdquo कतहनद सराज

सधार क परयासो का ररम बतात हए सबस पहि धयान सतरी सधारो पर ददया गया ह साराकतजक करीकततयो

की कतशकार रकतहिाओ क परकतत जो दकतषट उभरकर सारन आती ह उसक रि र धरम की रीकतत स यौन

रयामदाओ की अवयवसथा को दफर स रयामददत करन की चषटा ह कतसतरयो क करागम पर जान का पहिा कारण

ह रनराना परष धरमपवमक न पाना यह कतववाह सासथा की कतवककततयो की आिोचना थी जहाा बाि कतववाह

कतवधवा कतववाह आदद की तरफ इशारा ह धयान रखना चाकतहए दक यहाा बरि कतववाह क बदि कतसतरयो िारा

29

lsquoरनराना वरrsquo न चन पान का उलिख ह गभमनाश और बाि हतया क कतखिाफ सधार परयास दसरा

रहतवपणम योगदान ह कतववाह सासथा बीच र भी भाग की जा सकती ह इसकी सवीककतत ह कनया क कतहत र

अातरजातीय कतववाह की सवीककतत ह एक रहतवपणम बात गरओ और पाकतडतो क वयाकतभचार क साबाध र ह

भारतद क सारन पकतषटरागी रहातो और गरओ क वयाकतभचार का अनभव भी इसर शाकतरि ह

१८७४ र ककतववचन सधा र भारतद की एक रटपणणी छपी थी lsquoगर को कसा होना चाकतहएrsquo इसक अिावा

दो वषम पहि lsquoगर और रहातrsquo नार स भी एक रटपणणी कतिखकर वषणव पाडो-परोकतहतो की खिकर

आिोचना की गयी थी तिवार जी न कतिखा ह दक राददरो क भीतर कतसतरयो का यौन शोषण और वयाकतभचार

इतना भीषण था दक दयानाद भारतद क पकतषट सापरदाय को lsquoकषठी सापरदायrsquo कहत थ १८६० क आरमभ र ही

वषणव गोसाइयो क अनाचार और यौन शोषण क कतखिाफ बमबई र एक बड़ा आनदोिन पकतषटरागी

करसनदास रि जी क नततव र हो चका था वषणव बकतनया पषठभकतर स आय करसनदास जी उन नौजवानो

र थ कतजनहोन एकतिफ सटन कॉिज स आधकतनक कतशकषा परापत की थी गोसाइयो और रहाराजो िारा अपन

lsquoसमपरदाय की बह बरटयोrsquo क साथ होन वाि अतयाचार क कतखिाफ उनहोन िख कतिख और समपरदाय क

इकततहास को नए कतसर स सारन रखा पण स आए जदनाथ वजरतन जी रहाराज न करसनदास जी पर

रानहाकतन का रकदरा दायर कर ददया इसी रक़दर स वषणव रहातो की कई सारी बात जनता क सारन

परतयकष हई तिवार जी न इस lsquoरहाराज िाइबि कसrsquo को भारतीय नवजागरण र वषणव गोसाइयो क

दराचार और यौन शोषण क कतखिाफ हआ सबस बड़ा आनदोिन कहा ह भारतद पर इसका बहत परभाव

था यह कस १८६० र हआ था एक दशक बाद जब भारतद सापरदाय क कायो र रत थ उसी सरय कतिख

रह थ ldquoराददर कया होत ह रानो कतसतरयो की खान ह जसी चाकतहए िीकतजय- वराच अचछी सतरी भी वहाा जाकर

कतबगड़ जाती ह आशचयम यह ह दक कतजनको व िोग बटी कहत ह और जो उनक परिोक क रधयसथ ह और

कतजनको वो दीकषा दत ह उन कतसतरयो की ओर व आप ही बरी दकतषट स दखत ह ओर रर पयार कतहनदओ तर

इनक जाि र कब तक फा स रहोग और कया तरको यही सासार स बचावग और इनही क भरोस तरको

भगवान कतरिगाrdquo33

राददरो क धन-ऐशवयम और वयाकतभचार र डब जीवन क जीवात कतचतर हर बनारस क रखाकतचतर lsquoपरर

जोकतगनीrsquo क अिावा lsquoकाशी क छायाकतचतर क दो बर-भि फोटोगराफrsquo र भी कतरित ह यहाा भारतद का वयागय

अपन वषणव सापरदाय की आतरािोचना स सदकय ह lsquoपरर योकतगनीrsquo नाटक र आन वािा चररतर रारचादर

खद भारतद ही थ नाटक का सतरधार कहता ह दक भारतवषम की दीन हीन गकतत क कारण उसका तो

कतवशवास ही ईशवर स उठन िगा ह नाटक क पहि ही दशय र भारतद हर राददर क भीतर कतिए चित ह

33 वसधा डािकतरया िारा उदधत पषठ- ३३७

30

जहाा राददर र कार करन वािा साधारण टहिआ झपरटया हर ददखाई दता ह पजारी बाब अभी तक नीद

स नही जाग ह कयोदक आधी रात तक lsquoबठ क ही-ही-ठी-ठी करा चाह दफर सबर नीद कस खिrsquo कतनकतशचत

रप स यह टहिआ सबह सवर ही राददर र हाकतिर ह िदकन दवता अभी राददर र सोय ह रारचादर

परदशी ह काशी र बाहर स आय ह छकक जी और राखनदास इस रारचादर की आिोचना करत ह इनक

सावादो स पता चिता ह दक बाब रारचादर क यहाा ददन रात नाच गाना हआ करता ह और उनको अपनी

कतवदया का घराड ह दो चार ककतवतत भी बना ित ह पर lsquoककतवतत बनाव स का होव और ककतवतत बनावन कछ

अपन िोगन का कार थोर हय ई भााटन का कार हयrsquo छकक जी कहत ह दक अपन रागम का उनह कछ जञान

तो ह नही बस दो चार बात इधर उधर स सनकर कछ lsquoदकसतानी रतrsquo सीखकर पाकतडत बन दफरत ह

कतनकतशचत रप स य भारतद पर िगन वाि आरोप थ राददर र सवारी धनदास वकतनतादा बभकतकषत पाकतडत

आदद धरम क ठकदार ह इनकी पतनशीि सासककतत को दखकर रारचादर का दःख इन शबदो र वयि होता ह

lsquoहा कया इस नगर की यही दशा रहगी जहाा क िोग ऐस रखम ह वहाा आग दकस बात की वकतदध की

साभावना करrsquo lsquoवददकी हहासा हहासा न भवकततrsquo जस शरआती नाटको र भी करमकााडी परोकतहतवाद की

आिोचना की गयी ह राजा और परोकतहत कतरिकर वहाा जनता का शोषण करत ह जआ रददरा और

रथन की ऐययाश सासककतत क परतीक परोकतहतो का काजरवरटव दि इन परहसनो र रतम होता ह कतचतरगपत यर

स कहत ह ldquoरहाराज य गर िोग इनक चररतर का कछ न पकतछए कवि दमभाथम इनका कततिक रदरा और

ठगन क अथम इनकी पजा कभी भकति स ररतम को दाडवत न दकया होगा पर राददर र जो कतसतरयाा आयी उनको

सवमदा तकत रह रहाराज इनहोन अनको को कताथम दकया ह और इस सरय तो र lsquoशरीरारचनदर जी का

शरीकषण का दास हाrsquo पर जब सतरी सारन आव तो उसस कहग lsquoर रार तर जानकी र कषण तर गोपीrsquo और

कतसतरयाा भी ऐसी रखम दक दफर इन िोगो क पास जाती हrdquo34

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo की ररपोटम र सतरी सधारो क कायो की रहतता बतान क बाद जाकतत वयवसथा पर

इन सधारको का परहार कयो जररी था इस बताया गया ह कठोर जाकतत बनधनो क चित कस हर साि

जाकतत-बाहय होकर जाकतत र वापस आन क दकसी उपाय को न जान lsquoहजारो रनषय आयम पाकति स हर साि

छटत थ उसको इनहोन रोकाrsquo इस परकार इन सधारको न lsquoआयमधरमrsquo क भीतर जो पररवतमन करन चाह

उसस आयो की एकता दफर स बहाि हो गयी इसक अिावा अाधकतवशवासो को इनहोन दर दकया यही नही

बकतलक जहाा िोग lsquoरसिरानी पीर पगमबर औकतिया वीर ताकतजया गाजी कतरयाा कतजनहोन बड़ी ररतम तोड़कर

और तीथम पाटकर आयम धरम कतवधवास दकयाrsquo उनको भी पजन िग थ और lsquoकतवशवास तो रानो कतछनाि का अाग

हो रहा थाrsquo ऐसी िजजाजनक कतसथकतत स िोगो को बाहर कतनकािकर lsquoसार आयामवतम को शदध lsquoिायिrsquo कर

34 दख रारकतविास शराम पषठ १३१

31

ददयाrsquo lsquoिायिrsquo कर ददया गया इसका अथम आयम जाकतत को दफर स िायि करन र था आयम जाकतत क भीतर

कतबगाड़ क चित ही कतनमन जाकततयो का बड़ परान पर पिायन था इस इन िोगो न रोका और इनक परताप

स ही अनक छोट और सथानीय धरम-रतो क भीतर जो lsquoरसिरानीrsquo परभाव घस आय थ उनको दफर स lsquoबड़ी

ररतमrsquo की कतनषठा र िाया जा सका इस परकार कतहनद धरम और वणामशरर क परकतत दफर स िोगो को lsquoिायिrsquo

दकया यह lsquoिायकतिटीrsquo भारतद की रकतडकि वषणवता क जनरत क कतिए भी जररी था तिवार जी जब

आयमसराकतजयो की lsquoकााकततकारीrsquo भकतरका ददखात ह तब आयम सराज िारा आयामवतम को िायि बनान वािी

इस भकतरका की साकतशलषटता पर जयादा बात नही करत भारतद दयानाद क कााकततकारी परयासो र lsquoिायिrsquo

बनान की परदकया उसी वक़त दख रह थ और इसी कारण ररपोटम र दयानाद की आिोचना धयान दन िायक

ह सवारी जी न ldquoजाि को छरी स न काटकर दसर जाि ही स कतजसको काटना चाहा इसी स दोनो आपस

र उिझ गए और इसका पररणार गह कतवचछद उतपनन हआrdquo गह कतवचछद का रतिब कतहनद धरम र गह

कतवचछद जबदक कशवचादर सन क बार र कहा गया दक उनहोन जाि काटकर भकति की उचछकतित िहरो का

पररषकत पथ परकट दकया इस परकार रकतडकि वषणवता की lsquoअनयताrsquo और परररिक भकति क परशसत पथ क

सवीकार का कतनषकषम कतवचार सभा का भी कतनषकषम था धयान दन िायक ह दक कशवचादर की आिोचना उनक

कतचतत कतवकषप क कारण की गयी थी जहाा lsquoईसारसीह आदद उनस कतरित हrsquo य एक दकसर का इिहारी

अनभव था कतजस भारतद अपनी वषणवता स बाहर रखत ह ईशवर न इस ररपोटम पर अपना रत सरकतकषत

रख कतिया और भारतद कतिखत ह ldquoइसको दख कर इस पर कया आजञा हई और व िोग कहाा भज गए यह

जब कर भी वहाा जायग और दफर िौट कर आ सक ग तो पाठक िोगो को बतिावग या आप िोग कछ

ददन पीछ आप ही जानोगrdquo

३ जनरत और वषणवता

ककतववचन सधा ९ राचम १८७२ र भारतद न lsquoPublic Opinion In Indiarsquo नार स अागरजी र

एक िख परकाकतशत दकया िख र उनहोन कहा दक कई सददयो दक दासता क बाद भारतवषमहहादसतान अब

जाकर कतिरटश राषटर क सवोचच कतनयातरण र आया ह दश धीर-धीर सभयता और परबोधन की पकतशचरी दकरणो

क सहार दरन और कशासन क रतय-तलय कतनदरा स जाग रहा ह कतिरटश शासन की परगकततशीि नीकततयो का

परभाव यहाा की बहरपी आबादी पर पड़ रहा ह

ldquoBut in this progressive state national energy and zeal sympathy and

disintiredness are waiting to make both the conqueror and the conquered to act in

32

concert and in harmony and hence we have the broad distinction of white and

black still But in this country many are the blemishes that adhere to us to be

eradicated and many are the shortcomings that are hovering around us to be done

away with before we can have a public opinion here in its true senserdquo35

गोर और काि क बड़ भद को छोड़ कर कतवजता अागरजो और भारतीयो क बीच एक सराजन तो बन गया ह

पर अनदरनी ददककत अभी भी राह बाए खड़ी ह रौका ह दक इस परगकततशीि कतसथकतत का फायदा उठा कर हर

एक सचच जनरत का कतनरामण कर सचच िोकरत क कतनरामण र अादरनी बाधाएा कया थी भारतद न इस

आग सपषट करत हए कतिखा-

ldquoRace antagonism rivalry and mutual misunderstanding are the favourite

occupations of the aristocratic class Want of confidence among all classes of men

are the prevailing characteristic of the nation and above all multifarious castes and

creeds with there numerous forms of religion and local habits and customs which all

combined have kept the progressive policy at a stand still True it is that a

representative Government is a boon to this country and true it is that Sir Bartle

fregravere a man of vast experience and a good statesman has found out that in village

community we can have public opinion but with all his experience he has lost sight

of our national defects ndash defects which we ourselves know and which no foreigner

can catch at a glancerdquo36

भारतद इस बात को िकर कतनकतशचत ह दक िोकरत और परकततकतनकतधरिक सासथाओ क बहतर कतवकास क कतिए

सीध-सीध कतवदशी रॉडि कभी सफि नही हो पायगा ऐसा इसकतिए कयादक हरारी आपसी कतवकतभननताओ

और झगड़ो को कोई बाहरीकतवदशी सतता कभी भी परी तरह सरझ नही सकती lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo नार

35भारतद गराथाविी -6 361

36 वही

33

स भारतद का एक दसरा िख इस अागरजी वाि िख क दो साि बाद अपरि सन १८७४ र हररशचनदर

रगजीन र छपा पकतबिक ओकतपकतनयन कया बिा ह इस साफ़ करत हए भारतद िख क आरमभ र ही कहत

ह ldquoपकतबिक ओकतपकतनयन अथामत सब साधारण िोगो की राय कया वसत ह और इसर दकतना जोर ह और

इसक कतिए कया हो सकता ह यह परशन ठहरा तो इसका साधारण उततर यही ह दक यह वह वसत ह जो

सासार को एक कर सकती ह गागा की धरा दफर कतहरािय पर चढ़ा ि जा सकती ह सययम को पकतशचर उगा

सकती ह और चाह तो ईशवर को भी पकड़ क कठपतिी की भााकतत नचा सकती हrdquo37 यह पकतबिक

ओकतपकतनयन lsquoएक रतrsquo होना ह जस अिग अिग चार पतिी िककतड़यो को एक साथ बााध दन स उस

तोड़ना करठन हो जाता ह उसी तरह एक रत होन स बड़ स बड़ा बरी भी हरारा कछ कतबगाड़ नही सकता

बहत स िोगो का रत एक हो तो वह शकति बन जाती ह हिारो आदरी की बकतदध एक हो जाए तो ldquoऐसा

कौन कार ह जो न हो सक तो यह कतसदधाात हआ दक कतनशचय सब िोगो क रत र बड़ी सारथयम ह इसस यह

कतसदध हआ दक बिो स बड़ा बि एक रत ही हrdquo38

आग भारतद कहत ह दक यह जनरत और उसकी शकति हहादसतान क कतिए कोई नई बात नही ह

पराचीन काि र इसक उदाहरण कतरित ह lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo की इस धारणा को भारतद न इकततहास क

अिग-अिग दौर र बनत और कतबगड़त ददखाया सबस पहि चार वणो की िररत पड़ी सब कार को

सचार रप स चिन क कतिए दसर शबदो र कह तो शरर-कतवभाजन की िररत स इसका जनर हआ

lsquoकतहनदओ न अपन गर क कार र इस वणामशरर धमरम को इसी वासत बनाया कतजस र उन क दकसी कार र

कोई हजम न हो और उनिोगो न सासार क सब कारो र चार कार रखय सरझrsquo धरम कतवदया और किाओ का

कार िड़ाई और राजय परबाध का कार वयापार और धन और सब िोगो की सवा और रजदरी इन चार

कारो की सवयवसथा वािा वणामशरर दरअसि lsquoएक रतrsquo कतहनद वयवसथा या lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo थी पर

कािाातर र इस lsquoएकरतrsquo क भीतर जाकततवयवसथा कठोर हो गयी और िाहमण और शदर दोनो एक दसर क

कतखिाफ हो गए एकरत र कतवचछद पदा होन स कतहनद शकति करिोर हो गयी भारतद क अनसार आपस

का यह झगड़ा बड़ा कतवनाशकारी साकतबत हआ पकतबिक ओकतपकतनयन क कतबना वयाकतभचार और जयादकततयो का

अाधर था आग चि कर जनो क जरान र दफर lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo न जोर पकड़ा बकतलक भारतद जोर

दकर कहत ह दक जनो क रत की उततपकततत ही lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo स हई ldquoकतहनदओ क जब नाश क ददन

जब कतनकट आय तो आपस र परसपर बड़ा कतवरोध खड़ा हआ और उस काि र िाहमणो का बड़ा जोर था

वरन य और वणो पर जयादती करत थ तो वशय और कषकततरयो की रकतत इनस दफर गयी और बाब वािी बड़ी

37गराथाविी- 678

38वही

34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

36

कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

37

उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

38

ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 7: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

7

की कोकतशश की इस परकार एक कतछछिा सरनवयवाद सारन आया कतजसक सबस बड़ परकततकतनकतध जॉन सटअटम

कतरि ह यह lsquoबजमआrsquo अथमशासतर क ददवाकतियपन की घोषणा हrdquo10 यह बात पाजी की भकतरका र राकसम

१८७३ र कतिख रह ह जरमनी क बार र कतिखत हए वह कहत ह दक वहाा पाजीवादी उतपादन पदधकतत क

पररपकव होन क पहि ही उसका शतरतापणम चररतर (एाटागोकतनकतसटक) अपन को परकट कर चका था यह साभव

हआ था फ़ाानस और इागिड र होन वाि ऐकततहाकतसक साघषो क कारण11 इस तरह जरमनी र बजमआ

अथमशासतर कवि बरी नकि क रप र ही कतवककतसत हो पाया कयोदक जरमन सवमहारा क पास बजमआ अथमशासतर

की सीराओ की आिोचना उपिबध थी ऐस ही सरय बजमआ अथमशासतर क रहनरा दो सरहो र बाट गए

एक तरफ यााकततरक और भौड़ा अथमशासतर बघारन वाि िोग थ दसरी ओर कतरि क अनयायी थ कतजनहोन

असराधय क बीच सागकतत कतबठानी चाही पर य सार परयास असफि होन को बाधय थ कयोदक उनकी

आिोचना पहि स ही वहाा परापत थी राकसम कतिखत ह ldquoइसकतिए जरमन सराज क कतवकतशषट ऐकततहाकतसक

कतवकास न दकसी lsquoबजमआrsquo अथमशासतर क कतवकास को बाहर रखा परनत उसकी आिोचना को बाहर नही

दकया जहाा तक इस तरह की आिोचना एक वगम का परकततकतनकतधतव करती ह यह कवि उसी वगम का

परकततकतनकतधतव कर सकती ह कतजसका ऐकततहाकतसक कायमभार पाजीवादी उतपादन पदधकतत को उखाड़ फ कना और

सभी वगो का अाकततर सफाया ह- याकतन सवमहाराrdquo12

भारतद यग क बजमआ अथमशासतर र जॉन सटअटम कतरि का दकतना परभाव था इस दहरान की जररत

नही lsquoआिोचनाrsquo क रप र सवमहारा वगम बजमआ अथमशासतर की असाभावयता ह यह lsquoआिोचनाrsquo जरमन

रजदर वगम को कतजतना अपन साघषो स परापत थी उतना ही फ़ाास और इागिणड क साघषो स भी भारतद की

आिोचना कतजस वगम का परकततकतनकतधतव करती ह वह रजदर वगम नही ह अागरजो की कतवजय और िट की सरकतत

क साथ पाजी की तथाककतथत आददर साचय की तरासद सरकतत भी ह तथाककतथत आददर साचय अगर रजदर

वगम की पररकतसथकतत ह तो यह सरकतत रितः रजदर वगम की तरासद सरकतत ह पर भारतद यग क साकतहतय को

या भारतद की रचनाओ र कतरिन वािी आिोचना दकतषट का जो पकष रारकतविास जी सारन रखना चाहत ह

वह उस तरासद सरकतत क साथ lsquoबजमआ अथमशासतरrsquo की सरनवयकारी आिोचना ह इसकतिए कह सकत ह दक

भारतद यग का १८५७ की lsquoआिोचनाrsquo क साथ साबाध सरनवयकारी ह भारतद क साकतहतय र कतरिन वािा

दकतचततापन इसी असराधय सराजन की कोकतशश क चित पदा हआ ह भारतद क साकतहतय र जहाा इस

सराजन का अकततरक ह वह उनका उजजवि पकष ह दसर शबदो र lsquoसवतव कतनज भारत गहrsquo या अकतसरता

कतनरामण या हहादी जातीयता का जहाा अकततरक ह भारतद का साकतहतय वही उजजवि ह lsquoअाधर नगरीrsquo क

10 कािम राकसम ककतपटि- वॉलयर १ अन बन फोकस पषठ ९८ पकतगवन बकस िादन- १९९०

11 वही

12 वही

8

रपक र हर इस तरह का एक अकततरक ददखाई दता ह जहाा lsquoअाधर नगरीrsquo राजय सतता हहासा और नयाय क

अकतनवायम साबाधो का रपक ह भारतद क परहसनो और वयागयो र जहाा कही इस असराधय सराजन का

खोखिापन उजागर होता ह भारतद का वतमरान अथम उनही र राना जाना चाकतहए

िोकजागरण की कतवचारधारा क रप र भकति रारकतविास जी क कतिए भी वषणवता क अनदर ही

पररभाकतषत थी अकारण नही दक भारतद को वह तिसी की परापरा का नवजागरण रानत थ भकति की

इस कतवचारधारा क कतखिाफ सातरत की कतवकतशषटताओ को वह निरअादाज करत ह अगर सातरत कारीगरो

और कतनमनवगीय जनता का साासककततक और इसकतिए राजनीकततक परयास था तो उस कवि भाषा या बोकतियो

स बनन वािी lsquoजातीय चतनाrsquo र कतनसशष नही दकया जा सकता कबीर आदद सातो क िोकजागरण स

भारतद क नवजागरण का साबाध रारकतविास जी न नही ददखाया ह कबीर आदद क यहाा जो जयोकतत ददखाई

पड़ी थी उस वषणव भकति की कतवचारधारा क बड़ परवाह र सरझन स यह ददककत पदा होती ह रखय

अातरवमरोध क भीतर जो शतरतापणम कषण ह उस दकतषट स ओझि करन का कार ही परभतवशािी कतवचारधारा

करती ह रारकतविास जी पाजी क अातरवमरोधी चररतर को तो दखत ह िदकन यह नही दख पात दक

अातरवमरोधो स ही वह गकततशीि ह राकसम न इनही अथो र पाजी को lsquoगकततशीि अातरवमरोधrsquo कहा था

परभतवशािी कतवचारधारा भी अपन भीतर क अातरवमरोधो स ही आग बढ़ती ह भकति और रीकतत या कतनगमण

या सगण ऐस ही अातरवमरोध ह भारतद यग भी अपन अातरवमरोधी चररतर स ही बन रहा था उपकतनवशवाद

का कतवरोध भी उपकतनवशवादी कतवकास का ही कतहससा था सारातवाद स पाजीवाद र साकरण कवि

सारातवाद कतवरोध क रप र ही नही कतवककतसत होता बकतलक वहाा पाजीवाद क अकततकरण की साभावना भी

अनतरनमकतहत होती ह जो बाद र पाजी क कतवकास क दौरान पाजी क साराकतजक साबाधो र बदि जाता ह

थॉरस रनतसिर क नततव र हए कषक कतवदरोह र एागलस न या रधयकािीन कतवधरी आनदोिनो र कतसतरयो

की भकतरका ददखान क कर र कतसकतलवया फददरची न इस अकततकरण को और पनः पाजी क साराकतजक साबाधो

र रपाातरण की परदकया को ददखान की कोकतशश की ह13 पाजीवाद की काकतनतकारी भकतरका पर जोर दन स

उसकी परकततकााकततकारी भकतरका आाखो स ओझि हो जाती ह lsquoइकततहास जसा था वसा पान कीrsquo कोकतशश की

यह अकतनवायम सीरा ह अागरजी राज की िट पाजी की िट थी भारतीय आतर या हहादी जाकतत का

आतरकतबमबअाततः इस िट को कतछपान वािी और उस भिान वािी रोहक कलपना थी कही १८५७ स

भारतद यग का साबाध ददखाना भी एक रोहक कलपना ही तो नही ह

13 दख फडररक एागलस द पीजट वॉर इन जरमनी परोगरस पकतबिशसम रासको- १९७७ और कतसकतलवया फददरची ककतिबन एाड द कतवच फोकतनर

बकस ददलिी- २०१३

9

नारवर जी न नवजागरण को ररनसाास क बदि परबोधन या एनिाइटनरट की तरह दखन की बात

कही थी और कहा था दक इस नवजागरण का १८५७ स कोई भी साबाध कतशषट साकतहतय र नही ददखाई

पड़ता रारकतविास जी क िख क दो साि बाद lsquoआिोचनाrsquo र नारवर जी न lsquoहहादी नवजागरण की

सरसयाएाrsquo नार स एक िख कतिखा उपरोि दो चीज नारवर जी न उसी िख र कही ह उननीसवी सदी क

भारतीय नवजागरण को ररनसाास कहन र कई ददककत ह यरोप र कतजस lsquoररनसाासrsquo lsquoररफारशनrsquo या

lsquoकतचनकवचतोrsquo आदद कहा जाता ह वह पादरहवी शताबदी का नवजागरण था पादरहवी शताबदी र भारत भी

भकति आनदोिन क रप र एक जागरण स गजर रहा था इसकतिए नारवर जी कहत ह दक अगर उननीसवी

सदी क नवजागरण को ररनसाास कहग तब पादरहवी शताबदी क भकति आनदोिन को कौन सा जागरण

कहग रारकतविास जी इसीकतिए एक को िोकजागरण और दसर को नवजागरण कहत ह नारवर जी

कतिखत ह ldquoउननीसवी शताबदी क भारतीय नवजागरण को lsquoररनसाासrsquo कहन र एक करठनाई तो यह ह दक

इस यग क भारतीय कतवचारको और साकतहतयकारो क पररणासरोत यरोप क पादरहवी शताबदी क कतचनतक और

साकतहतयकार न थ बकतलक इसक कतवपरीत पररणासरोत क रप र अकतधकााश कतवचारक उस काि क थ कतजस

यरोप र lsquoएनिाइटनरटrsquo का काि तथा उसक बाद का काि कहा जाता ह सवया बादकर की सहानभकतत

रसो और परधो क साथ थी और व कोत जॉन सटअटम कतरि तथा हबमटम सपसर स परभाकतवत ददखाई पड़त

हrdquo 14 इस परकार यह lsquoनवजागरणrsquo lsquoपरबोधनrsquo की चतना क तलय ह और इसकतिए इसकी अातवमसत

lsquoिोकजागरणrsquo स कतभनन ह यदयकतप एक र दसर की चतना lsquoअाशतः कतवदयरानrsquo ह पर नवजागरण

िोकजागरण का पनरतथान रातर नही ह नवजागरण का नततव करन वाि रधयवगीय थ िोक क बीच स

नही आन क चित उनका सारानय िोक जीवन स एक दराव था और कतवचारो र िोकोनरख होकर भी

वयवहार र उनका िोक क साथ कोई तादातमय नही था नवजागरण का परभाव शहरो तक सीकतरत था और

इसकतिए िोकजागरण की तिना र इसका परसार भी सीकतरत था नारवरजी इस नवजागरण को रखयतः

साासककततक आनदोिन क रप र दखन की कतहरायत करत ह पर सवाि यह ह दक इस साासककततक आनदोिन

की राजनीकतत कया थी

भारतद क शबदो र नारवर जी भारतीय नवजागरण की रि सरसया lsquoसवतवrsquo या lsquoअकतसरताrsquo की

सरसया बतात ह धयान रखन वािी बात ह दक परबोधन या एनिाइटनरट की एक रि सरसया अकतसरता

की सरसया ह lsquoपरबोधन की िािातरकताrsquo नारक अपनी दकताब र एडोनो और हाखमइरर न ददखाया ह दक

कस परबोधन या जञान की शकति न यथाथम को कतरथ बनाया और कतरथको को यथाथम दकया एक पणय-वसत क

रप र जञान का उतपादन और पनरतपादन उननीसवी सदी की कतवशषता ह खासतौर स पवी कतवदया की रााग

14 नारवर हसाह हहादी का गदयपवम (सा) आशीष कततरपाठी पषठ-८६ राजकरि परकाशन नई ददलिी- २०१०

10

बािार र बहत थी जञान का कतवकतनरय एक बड़ बािार र हो रहा था और जञान की सारचना और उसकी

सापणमता एक फरटसाइजड कतवशवदकतषट बनाती थी कतभननता ह इसकतिए कतवकतनरय ह हर चीज जो कतवकतनरय र

शाकतरि ह रनषय की दकसी न दकसी जररत को परा करती ह य जररत य इचछाएा कवि पट स पदा नही

होती बकतलक कलपनाओ स भी पदा होती ह परबोधन की िािातरक परदकया क भीतर कतवजञान और धरम दोनो

न रनषय क कलपनाजगत की इचछाओ को भी परा करन वािा बािार बनाया कतभननताओ की

वासतकतवकताओ को छपान क कतिए या दसर शबदो र कह तो जञान की वासतकतवक जररत को छपान क कतिए

जञान का एक भरर खड़ा दकया जाता ह ठीक वस ही जस बजमआ अथमशासतर पाजीवाद की अतारकमकता को

ढाकन और दबान की परदकया र ही बना था पराककततक कतवजञानो क भीतर स कतनकिन वािी दो तरह की

कतवचारधाराओ की रााग बहत थी एक अटठारहवी सदी र िोककतपरय lsquoयााकततरक भौकततकवादrsquo की कतवचारधारा

और दसरी जीवकतवजञान स आन वािा कतवकासवाद का कतसदधाात राजनीकततक अथमशासतर क कतिए भारत र जॉन

सटअटम कतरि आदद िखको क बजमआ अथमशासतर का नया बािार था तकम की सावमभौकतरकता को उसकी

वासतकतवक जररत स काटकर lsquoअकतसरता कतनरामणrsquo स जोड़ ददया गया जो इकततहास कतरथ क अात का दावा

करता था वह सवया कतरथ गढ़न िगा यह सब साभव हआ उस कतवशाि जनसारानय क भय क सहार

कतजनहोन अपन ऊपर अपना कतनयातरण खो ददया था धरम इस भय क सहार कतवजञान की आिोचना करता था

और कतवजञान धरम की परबोधन-पवम की परापरा र जो आसथा या कतवशवास और जञान का अकतनवायम साबाध था

उसक सहार धरम आसथाकतवहीन जञान की आिोचना क िारा कतवशाि जनसारानय की रकति का कारोबार

करता ह

परबोधन की एक धारा आिोचनातरक जञान की धारा थी कतजसकी आिोचना राकसम न

lsquoआिोचनातरक आिोचना की आिोचनाrsquo कहकर की थी भारतीय नवजागरण क भीतर आिोचनातरक

जञान की धारा को नारवर जी न रहतवपणम राना ह यह ldquoआिोचनातरक दकतषट यरोप क lsquoपराचयकतवदयावादrsquo

(ओररएणटकतिजर) क इस उपकतनवशी रायापाश को कतछनन करन की चतावनी दती हrdquo15 यह उपकतनवशी

रायापाश पाजी का रायापाश भी ह जञान की पाजी का रायापाश कतजस हर पराचयकतवदयावाद का रायापाश

कह रह ह वह आिोचना-परतयािोचना की एक तथाककतथत िोकताकतनतरक परदकया र ही बन रहा था

इसकतिए इस आिोचना-परतयािोचना की परदकया की आिोचना क सनदभम र ही हर उस आिोचनातरक

धारा की चचाम कर सकत ह और कहना न होगा दक यह एक राजनीकततक करम भी ह नारवर जी न कहा दक

भारतीय नवजागरण र lsquoसवतव पराकतपतrsquo का साबाध राजनीकततक रकति स नही जोड़ा गया ह राजनीकततक

सवाधीनता अथामत lsquoराजसतता पिटन क कतवचार को अातगमहावास द ददया गयाrsquo इस तरह १८५७ या उसक

15 वही पषठ- ८७

11

पहि क दकसान कतवदरोहो क भीतर जो राजसतता पिटन का कतवचार था उस भारतीय नवजागरण न

अातगमहावास दन का कार दकया अतः भारतीय नवजागरण रखयतः साासककततक आिोचना ही थी

राजनीकततक आिोचना को गहावास दन वािी साासककततक आिोचना वह कतिखत ह ldquoसच तो यह ह दक

अकतधकााश िखक सरकषा सशासन कतशकषा उननकतत और शााकतत क कतिए कतिरटश राज क परकतत उपकत अनभव

करत ह- कतवशष रप स रगिो क शासन की तिना र इस परवकततत क अवशष बीसवी शताबदी क दसर

दशक तक रकतथिीशरण गपत की lsquoभारत भारतीrsquo जसी राषटरीय कही जान वािी कावय-ककतत र भी कतरिती ह

यहाा तक दक कभी-कभी तो नवजागरण क अनक उननायक राजसतता क साथ सहयोग करत भी ददखाई पड़त

ह अब इस कोई चाह तो नवजागरण क उननायको का रधयवगीय अथवा भदरिोक चररतर कह ि अथवा

दकसी सागरठत राजनीकततक परकततरोध क अभाव क िारा इस कतनरपायता की वयाखया कर ि दकनत हर हाित

र यह तथय कतवसरत न हो दक कि कतरिाकर था यह रितः नवजागरण ही- साासककततक नवजागरण कतजस

राषटरीय सवाधीनता साघषम का पवमराग भि कह ि दकनत उसका पयामय न सरझrdquo16 इसी साासककततक

नवजागरण स वह lsquoआतरकतबमबrsquo तयार हआ कतजसक कतबना राजनीकततक साघषम का वह रप कतवककतसत नही होता

जो आग चिकर वासतव र हआ अजञय की इस वयाखया स नारवर जी सहरत ह दक राजनीकततक-साराकतजक

आधारो की वासतकतवकता क बावजद भदरवगीय साासककततक आनदोिन न जो lsquoआतरकतबमबrsquo रचा वह

राजनीकततक सवतातरता साघषम र हकतथयार बन गया राजनीकततक सवतव पराकतपत की जो चतना इस पररणापरद

आतरकतबमब र अातगमहावास कर रही थी आग चिकर वही राजनीकततक सवतव पराकतपत र उभरकर कतनज

कतवककतसत होती गयी एक बार दफर lsquoइकततहास जसा था वसा पानrsquo की कोकतशश र इकततहासवाद की

कतवचारधारा सारन आ खड़ी होती ह इस इकततहासवाद की आिोचना गरामशी न भी की थी खासतौर पर

कोच क परर इकततहासवाद की आिोचना करत हए सवाि ह दक सासककततकरम की राजनीकतत कया ह

ददरागी गिारी स रकति का साघषम और राजनकततक रकति का साघषम कया इस तरह क अिगाव र रह सकता

ह और अगर अिगाव ह तो इस अिगाव को कस सरझ एक बार यह तय हो जान पर दक उनका वगम

कया था हर उसी क आिोक र उनक साासककततक परयासो की आिोचना करनी चाकतहए दसर शबदो र

उनक अपन वगीय अातरवमरोधो क आिोक र ही उसकी आिोचना साभव ह उपकतनवशवाद की रानकतसक

गिारी क कतखिाफ साघषम जञान की सतता क कतखिाफ साघषम ह और शायद इसकतिए नारवरजी कहत भी ह दक

यह साघषम राजनीकततक साघषम स lsquoकर करठन न थाrsquo यरोपीय जञान क बरकस भारतीय जञान को सथाकतपत

करन का साघषम ही यह साघषम था ldquoउपकतनवशवाद की छाया र भारतीय सासककतत क िोप का खतरा था

इसकतिए अपनी सासककतत की रकषा का परशन सवतव-रकषा का परशन बन गयाrdquo17 सतता पिटन क कतवचार को

16 वही पषठ ८८

17 वही

12

अातगमहावास दकर सवतव-पराकतपत सवतव-रकषा का परशन बन गया और यह सवतव कया था कतजसकी रकषा

साासककततक रोच पर नवजागरण क परसकताम कर रह थ- कलपना या यथाथम परबोधन न जञान का एक कतरथ

तयार दकया और चपक स कतरथको को जञान बना ददया इस नवजागरण की एक बड़ी दन एक परकतत-

इकततहास-दकतषट का कतवकास ह नारवर जी कतिखत ह ldquoनवजागरण की एक बहत बड़ी दन साभवतः वह

इकततहासदकतषट ह कतजसस अपन अतीत को शतर स रि करक उसक कतवरदध वतमरान र इसतराि करन की किा

आती ह और भकतवषय क कतिए सवपन दकतषट भी कतरिती हrdquo18 अगर वासतव र यह दकतषट नवजागरण की दन ह

तो रानना पड़गा दक यह फासीवाद की इकततहासदकतषट ह एक ऐस रकतसिर अतीत की कलपना जहाा रकतसिर

शतरओ स भारतीयता को रि करक वतमरान र उनक कतखिाफ इसतराि दकया जाता ह और इसस भकतवषय

की एक सवपन दकतषट भी भी कतरिती ह कहना न होगा दक परबोधन स कतनकिी यह इकततहासदकतषट अतारकम क

नही थी कयोदक यह साघषम की वासतकतवकता का सबस भरकतरत रप खड़ा करती ह फासीवाद इस अथम र वगम

साघषम का सबस कतरथकीय रप ह और अगर यह सही ह तो सवतव-रकषा र परापत इस इकततहासदकतषट को हर

परकततकााकतत की इकततहासदकतषट कह सकत ह भारतीयता का यह भरकतरत आतरकतबमब सवया को दो बनाकर ही

गकततशीि था यही इकततहासदकतषट आग चिकर lsquoकतवरदधो का साराजसयrsquo की इकततहासदकतषट क रप र इकततहास

का सबस भवय ढााचा खड़ा करती ह आतरकतबमब क इस कतवखाडन को िकषय करत हय नारवर जी न कतिखा

ldquoहरानी की बात ह दक हहादी परदश का नवजागरण धरम इकततहास भाषा सभी सतरो पर दो टकड़ हो गया

सवतव रकषा क परयास धरम तथा सापरदाय की जरीन स दकय गएrdquo19

आतरकतबमब का यह दो होना िखको क दो वगो र परकततहबाकतबत हआ नारवर जी क अनसार एक

वगम अागरजो का घोर कतवरोध करता ह पर धरम-सासककतत और साराकतजक परथाओ क बार र परापरावादी ह

दसरा वगम अागरजी राज क परकतत नरर रख अपनाता ह पर अनय रारिो र या तो रिगारी ह या दफर

सधारवादी िखको का पहिा वगम भारतीय होन का दावा करता ह जबदक नररपाथी िखक पकतशचरोनरख

ह हहादी नवजागरण क नता जयादातर परापरावादी ह जहाा अागरजी कतशकषा का परसार जयादा हआ वहाा

पकतशचरोनरख िखक जयादा थ दयानाद की अपकषा भारतद का झकाव कशवचादर सन जस पकतशचरोनरख

िखको या सधारको क परकतत था ऐसा साभवतः वषणव भावकता क चित था नारवर जी भारतद र परखर

बकतदधवाद का अभाव पात ह पर उनकी रराकतनयत को रानवतावाद की कतवचारधारा स जोड़त ह

नवजागरण क इस साकतशलषट कतचतर को सारन रखन की कोकतशश र नारवर जी एक ऐसी इकततहासदकतषट

कतवककतसत कर रह थ जो अतीत को उसक सापणम अातरवमरोधो र पान की कोकतशश करता ह अतीत को खिा

18 वही पषठ-८९

19 वही पषठ ९१

13

छोड़ दन वािी यह इकततहासदकतषट या एक सातकतित इकततहासदकतषट का यह परयास खाड खाड कतबमबो की एक ऐसी

गकततशीिता का भरर पदा करती ह जो इकततहासवाद की एक पररख कतवशषता रही ह इस पकष पर सवया

नारवर जी का धयान था और आग चिकर उनहोन नवजागरण क इस कतरथकीय चररतर को सवया ही

आिोकतचत दकया इस आिोचना र वह नवजागरण को परबोधन कहन क बदि lsquoअकतभजञान-कािrsquo कहना

जयादा उपयि रानत ह खद lsquoनवजागरणrsquo नार को अागरजो की कलपना बतात ह और उननीसवी सदी को

lsquoसरकतत-भराशrsquo का काि कहत ह यहाा १८५७ स िकर भारतद और कतववकानाद सब एक कतरथकीय चतना क

भीतर सराकतहत ददखत ह और कतजस भारतीय नवजागरण कहा जाता था उस कतवपरीत जागरण रानत ह

इसी कतवपरीत जागरण का नार उनहोन अकतभजञान ददया 20 डा वीरभारत तिवार न कवि कतहनदी

नवजागरण को भारतीय नवजागरण की परकततकााकततकारी धारा कहा था वही नारवर जी अब पर भारतीय

नवजागरण को ही कतवपरीत जागरण कह रह ह और बहत हद तक सही कह रह ह

डा तिवार न अपनी lsquoरससाकशीrsquo र lsquoहहादी नवजागरणrsquo को एक भरारक पद बताया था न तो

इसका साबाध १८५७ स था न रधयकािीन भकति आनदोिन स और न ही जनवादी राषटरवाद की दकसी

अवधारणा स उनक अनसार परबोधन क कतववकवाद तथा धरमसधार-सराज सधार की कतरिी जिी परदकया

क रप र कतवककतसत होत बागािी या रराठी नवजागरण या भारतीय नवजागरण की परकततगारी धारा क रप

र कतवककतसत होन वाि भारतद आदद क साासककततक आनदोिन को lsquoहहादी आनदोिनrsquo कहना ठीक ह कतशकतकषत

रधयवगम क भीतर दो परसपर कतवरोधी धाराओ की चचाम डा तिवार करत ह एक धारा कतववकवाद की

धारा थी दसरी सनातनी कतहनद धरम की धारा रहाराषटर और बागाि र अागरजी कतशकषा क परचार-परसार न कतजस

नए धरम और सराज सधार को गकतत परदान की वह अपकषाकत अकतधक परगकततशीि धारा थी पकतशचरोततर यि

परानत क पवी इिाक खासतौर पर बनारस इिाहाबाद और बहत हद तक पटना कानपर भागिपर आदद

शहरो र कतवककतसत नव-रधयवगम इस परगकततशीि धारा क साथ नही था इसका सबस बड़ा कारण अागरजी

कतशकषा का अभाव था यि परानत र कोई धारा परगकततशीि भकतरका अदा कर रही थी तो वह कवि दयानाद

सरसवती की आयमसराजी धारा थी इस आयमसराज का भी अपना जनाधार सनातनी पाकतडतो या िाहमणो क

यहाा नही बकतलक नौकरीपशा अागरजी कतशकषा परापत वह भदरवगम था जो अपन धरम और सासकारो क कतपछड़पन

को िकर गिाकतनबोध स भरा था इस वगम को अपनी पहचान आयम सराज र ददखती थी आयम सराज क

रिवाद र तथा उसक तारकम क सथिवाद र आधकतनक होन का रासता ददखता था िहमोसराज और

कतथयोसोदफकि सोसाइटी दो ऐसी सासथाएा और थी जो यि परानत र धरम और सराज सधार का परयास कर

रही थी परनत इसका परभाव बहत सीकतरत था आरतौर पर यिपराात र रहन वाि बागािी अपरवासी ही

20 दख नारवर हसाह उननीसवी सदी का भारतीय पनजामगरण यथाथम या कतरथक (अन) पाकज पराशर पकषधर अाक ११ जिाई २०११

14

इनक सदसय थ हहादी आनदोिन क नताओ न इन दोनो धाराओ की आिोचना की ह इनहोन दयानाद क

रिवाद की आिोचना अपनी परापरावादी करमकााडी दकतषट स की इनक अनसार उपकतनषद या पराण आदद

अगर अपराराकतणक भी ह तब भी चादक िोक र सवीकत ह इसकतिए उनह एकदर ख़ाररज करक कोई धरम या

सराजसधार नही हो सकता तिवार जी का कहना ह दक अपनी िचर दिीिो की आड़ र य िोग वसततः

सतरी कतशकषा कतवधवा कतववाह या आधकतनक जीवनशिी आदद की परगकततशीिता का कतवरोध कर रह थ यह

कतवरोध आरतौर पर सरदाय की रानयताओ को ही सारन रखकर दकया जाता था एक दकसर क

कतबरादरीवाद क भीतर स सरझौता करत चिन क कारण हहादी आनदोिन क नता अपन पाररवाररक या

वयकतिगत जीवन क उथिपथि स बचन की कोकतशश करत ह धरम इनक कतिए सधार का नही वरन

राजनीकततक हथका डा रातर था धरम की आड़ र य रकतसिर भदरवगम को अपना परकततयोगी साकतबत कर कतहनद

एकता की अपीि करत तादक इनह सरकारी नौकररयो र कछ कतवशषाकतधकार कतरि सक तिवार जी क

अनसार रकतसिर भदरवगम इन हहादी आनदोिन क परसकततामओ स कही जयादा परगकततशीि था उनक यहाा

आधकतनकता क परकतत जयादा खिी और कतववकसापनन दकतषट थी और उनहोन जोर दकर कहा दक हहादी आनदोिन

को सर सयद अहरद खाा जस दकसी सकषर कतववकवादी वयकतितव का नततव नही कतरि पाया हहादी

आनदोिन और नताओ क अातरवमरोधो को ददखात हए तिवार जी न भारतद की छकतव एक पतनशीि कतहनद

रोररटक की गढ़ी ह यहाा भारतद एक परकततनायक क रप र नजर आत ह

कतववकवादी इस धारा न राषटरीयता की जो धारणा गढ़ी वह रितः साापरदाकतयक थी अागरजी राज क

कतखिाफ अगर इनका साघषम सराज और धरम सधार को साथ-साथ रखन क बजाय उसर अिगाव करता ह

बकतलक उनक कतखिाफ जाकर सागरठत होन का परयास करता ह तो उसक सारन रकतसिर भय पदा करन क

अिावा और कोई रासता साभव नही था lsquoहहादी नागरी और गोरकषाrsquo आनदोिन इसकी सवभाकतवक पररणकतत

थी आग चिकर उननीसवी सदी क आकतखरी दशक र आकार गरहण करन वािी कतहनद राषटरवाद की यह

पषठभकतर ह इसक वग र दयानाद न भी साथ ददया कयोदक उनर भी पनरतथानवाद क बीज थ पवी परदशो

की अपकषा आयम सराज पाजाब र कही जयादा रकतडकि था आयम सराकतजयो की सदसयता की साखया पाजाब

क रकाबि यि परानत र जयादा थी पर वहाा कोई गणातरक पररवतमन साभव नही हआ और यह रहज

साखयाबि क रप र ही बना रहा इसका कारण उनहोन पाजाब की कतभनन नतततवशासतरीय अवकतसथकतत र

बताया ह पाजाब र िाहमणो का परभाव कर था कतजसका एक कारण रसिरानो क साथ िमबा सासगम और

कतसख धरम आदद का परभाव भी था इस तरह का कोई कतवशलषण पवी परदशो क बार र नही दकया गया जसा

दक बहत पहि रदमरशरारी की ररपोटम स ही हजारीपरसाद कतिवदी न दकया था अथामत रधययगीन कतसख

धरम क परभावो की तरह कबीरपाथी आदद सरदायो क परभाव और वषणवता क अातसबाधो की पड़ताि नही

15

की गयी ह काशी क बनकरो की एक हड़ताि का कतिक रारकतविास जी बार बार करत ह जो १८३३ ई र

ही हई थी और इकततहासकार बिी क अनसार यह वक़त आरथमक साकट का भी वक़त था

भदरवगम का जो कतहससा हहादी आनदोिन क साथ था उस जाकतत वयवसथा की परानी रानयता को

बनाय रखन या उस रजबत करन की जररत कया कवि नौकररयो र कतवशषाकतधकार परापत करन क कतिए थी

या जाकतत वयवसथा रातर र आय एक रिगारी साराकतजक साकट का वह परकततदकयावादी रपाातरण ह शहरो

र आरथमक-वयापाररक गकततकतवकतधयो क कारण और आसपास क इिाको स परवासी रजदरो का आगरन तथा

बढ़ती वशयावकततत आदद क चित शहरी साराकतजक साबाधो र भी उथि-पथि थी ऐस सरय र सारदाकतयक

या कतबरादरी बोध lsquoएकाrsquo की भावना पदा करती ह तिवार जी इस नव-भदरवगम का अपन ही भीतर अिग-

अिग खााचो र बाट होन की बात करत ह अिग-अिग खााचो र बाट होन क चित यह भदरवगम रधयवगम की

कतवचारधारा अथामत कतववकवाद या नवजागरण को परापत नही कर पायी थी वगम था िदकन वगम की

कतवचारधारा नही थी खद भारतद क जीवन स हर उस दौर की अकतसथरता का कछ अादािा कतरिता ह

अकतसथरता और खााचो र बाटा रधयवगम दरअसि सापणम सराज र होन वाि एक आधारभत पररवतमन की ओर

इशारा करता ह यह पररपरकषय १८५७ की तरासदी का भी ह ऐसी कतसथकतत र हपराट पाजी क साथ बनन वािा

यह साासककततक आनदोिन था जहाा सवतव रकषा रखयतः अपन परान कतवशषाकतधकार की रकषा थी साराकतजक

साबाधो र आय उथि पथि क कारण उनह अपन कतवशषाकतधकार कतछन जान का खतरा साफ़ ददखाई द रहा

था जहाा अागरजी कतशकषा थोड़ा पहि ही परसार पा चकी थी वहाा कशि कारीगरो स िकर अधयापको और

परशासकतनक अकतधकारीयो क एक बड़ सरह न अपना नया कतवशषाकतधकार पा कतिया था साराकतजक साबाधो र

उनकी शरषठता उनक कतववकवाद क कारण बन चकी थी भारतद क एक शरआती िख lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

क राधयर स खााचो और जनरत की राजनीकतत को सरझन की कोकतशश आग करग

तिवार जी क अनसार दयानाद क कतवचारो क कतिए पाजाब जयादा गरहणशीि था कयोदक वहाा

जाकतत वयवसथा क बाधन पहि ही ढीि हो गए थ यिपराात र जाकतत क बाधन जायदा कठोर थ कतजन अथो र

कतिवदी जी रधय दश की रकषणशीिता का कतजक करत ह कछ-कछ उनही अथो र पर सवया दयानाद क

कतवचारो र कतववकवाद-पनरतथानवाद का दोरखापन कतरिता ह तिवार जी कहत ह दक कतजन सथि तको स

वह वदो की ओर िौटन को कहत थ आयम भाषा आयम जाकतत और आयम धरम की बात करत थ उसक कारण

ही इनका झकाव आग चिकर राषटरीय सवयासवक साघ की ओर होता गया पर आयम सराज क साराकतजक

सधारो और धरम सधारो की एकता क कारण वहाा वह साभावना भी थी कतजसक परभाव स आग चिकर बहत

सार कमयकतनसट कायमकताम भी कतनकि पररचाद राहि साकतयायन या गणश शाकर कतवदयाथी जस साकतहतयकार

और आनदोिनकताम आयम सराज क परभाव र थ आयम सराज तिवार जी क अनसार वासतकतवक साराकतजक

16

पररवतमनो का सावाहक और सराज र वयकति स िकर साराकतजक जीवन क हर कषतर र गणातरक पररवतमन

िान वािा इसकतिए हो पाया कयोदक वहाा धरमसधार और सराज सधार अिग-अिग नही था दसरी ओर

हहादी आादोिन साापरदाकतयक जाकततवादी और सतरीकतवरोधी रलयो को ही सराज र फ़िान र कारयाब हआ

यह धारा अागरजो को अरजमयाा दकर नौकरी पान वाि रधयवगम की धारा थी

तिवार जी न भारतद की तकमशीिता को बहत कतनमन कोरट का कहा ह भारतद क चररतर र शायद

वह एक lsquoिमपनrsquo की छकतव भी दखत ह पसा उड़ान की वकतत सतरी क साथ वयवहार और उनक साबाध

चाररतरय बि का अभाव आदद आदद क सनदभम र वह कहत ह दक भारतद क चररतर र वह सदढ़ता या

सदाचाररता नही ह जो सराजसधार क कतिए आवशयक होती ह घर र पतनी उनह कभी पसाद नही आई

और वह बाहर रहदफ़िो र वाहवाही िटत रह रदमवादी दकतषट भी उनर कट-कटकर भरी थी भारतद क

इस चररतर की तिना तिवार जी न दो अनय परमपरावादी सधारको स की ह एक बागाि क राधाकाात दव

और दसर पाजाब क शरदधारार फलिौरी यदयकतप य दोनो भी भारतद की तरह परापरा की रकषा र ही सधार

की ओर अगरसर हए थ िदकन इन िोगो का चररतर जयादा परगकततशीि था इन दोनो की तिना र भारतद

का खिनायकतव और भी अकतधक उभरकर सारन आता ह सापकतकषक परगकततशीिता क कतनधामरण क कर र

भारतद अपन सापणम जीवन वयवहार र एक एाटी हीरो की तरह उभरत ह ठीक परान खिनायको की तरह

नही एाटी हीरो क साथ दशमक या पाठक की एक आतरीयता भी जड़ी रहती ह उसका चररतर ददराग र बस

जाता ह िदकन इसक चित यथाथम क ओझि होन का खतरा भी ह तिवार जी इसकतिए कदर कदर पर

उनकी साकतहकततयक छकतव क बरकस उनक राजनकततक- साागठकतनक जीवन वयवहार स बनन वािी छकतव को

सारन ररतमरान करत जात ह

अपनी परी आिोचना र तिवार जी भारतद की रचनाओ र कतरिन वाि भाषायी िदधड़पन और

राद तकमशीिता की चचाम तो करत ह िदकन व भारतद क वयागयो पर चचाम नही करत कया यह रहज

सायोग ह दक भारतद क परहसन lsquoअाधर नगरीrsquo का राचन आज भी परगकततशीि रलयो की परकततषठा ही करता

हभारतद क वयागयो या परहसनो र ऐसा कया ह कतजसर दहराव क साथ नवीन होत चिन की कषरता भी ह

भारतद क िखो या परहसनो या रपको र जो कही-कही वणमन या सावाद िारा वयागय का तीखा बोध पदा

होता ह उसकी शकति उनह कहाा स कतरिती ह वयागय की कषरता सवया र उनकी सकषर कतनररकषण र सरथम

दकतषट का परराण ह परान साराकतजक साबाधो र पररवतमन और तीवर पररवतमन क साथ साथ जो एक परहसन

चि रहा था उसका बोध भारतद को था भदरवगम क भीतर की कतववकवादी धारा का कतवकास भी कतहनद

राषटरवाद की कतवचारधारा र ही हआ परनत lsquoअाधर नगरीrsquo कया कतहनद राषटरवादी कतवचारधारा वािा परहसन ह

या कया यह कवि राषटरवादी कतवचारधारा का वाहक ह lsquoउरराव जान अदाrsquo र उभरकर सारन आन वाि

17

साराकतजक साासककततक साकषोभ या उस वयापक टरजडी क सनदभम र दख तो भारतद क वयागय और परहसनो का

अथम थोड़ा और उभरता ह रकतलिका या राधवी स भारतद क साबाधो र कया उस तरासदी का सराग भी नही

ह वशयावकततत और पतनशीि रइसो का साकट एक दसर स अिग नही था उस सरय की औपनयाकतसक

ककततयो र वशयावकततत का सनदभम अवशय आता ह आग चिकर पररचाद की सरन बनारस र ही lsquoसवासदनrsquo

का सराधान ढाढ रही थी

भारतद क वयागयो पर रारकतविास जी का धयान था यह बात अिग ह दक अकतधकााश रौको पर

इनर वह जातीय चतना खोज कतनकाित ह बीस साि की उमर र भारतद न एक िख lsquoिवी पराणिवीrsquo नार

स कतिखा था रारकतविास जी इसका उलिख करत हए कतिखत ह ldquoगवनमर जनरि कतहनद क कतजस दरबार का

भारतद न वणमन दकया ह वह काशीराज क घर पर हआ था इसकतिए भारतद की सतयकतपरयता और भी

सराहनीय ह वहाा जो सजजन िोगो क नार कतिख रह थ उनका वणमन या दकया ह lsquoनार कतिखन वाि राशी

बदरीनाथ फि-फाि अबा पकतहन पगड़ी सज परान दादर की भााकतत इधर-उधर उछित और शबद करत

दफरत थrsquo िोग दकस तरह एक आनररी रकतजसटरट क lsquoकतसट डौनrsquo lsquoसटड अपrsquo कहन स उठत और बठ जात थ

इसका उनहोन बहत ही नाटकीय वणमन दकया ह आनररी रकतजसटरट का वयवहार हविदार का सा था कतसफम

हाथ र एक िकड़ी की कसर थी िोग कीरती पोशाक पहनकर गए थ ldquoसबक अागो स पसीन की नदी

बहती थी रानो शरीयत को सब lsquoअरघय पादयाrsquo दत थrdquo िोगो की उठा बठी और बहदा कवायद को िकषय

करक कतिखा था ldquoवाह-वाह दबामर कया था lsquoकठपतिी का तराशाrsquo था या बलिरटरो की lsquoकबायदrsquo थी या

बादरो का नाच था या दकसी पाप का फि भगतना था या lsquoफौजदारी की सजाrsquo थीrdquordquo21 काशी की इस सभा

र खद भारतद भी बठ थ इस परकार यह भारतद क वगम का परहसन भी था पतनशीि सासककतत की

आतरािोचना क कतबना यह साभव नही था बात कवि उमर की नही ह ठठ वतमरान र हसतकषप और उस

बदिन का बोध कतजन पतनशीि कतसथकततयो का आतर साकषातकार कर रहा था यह उसक परकतत एक

सवाभाकतवक सवतःसफतम परकततदकया थी यह तारकम क की नही बकतलक किाकार की सवतः सफतमता थी यह बात

सही ह दक भारतद कतवचारो की तारकम कता क रारि र उननीस पड़त थ पर इस करी को उनकी तीकषण

वसतकतनरीकषण दकतषट भर दती थी जीवन कतसथकततयो की कतवडमबना का बोध कतजतना गहरा था बदिन का

परयास उतना ही ऊजामवान था भारतद सवया अपनी भी कहानी कतिख रह थ lsquoपयार हररचाद की कहानीrsquo

कतिख रह थ भारतद क परहसनो र दकसी न दकसी पातर की भकतरका र हर जगह सवया भारतद भी ददख

जात ह अपन वगीय अातरवमरोधो का सवबोध उनक यहाा एकतिगोररकि हो जाता ह इस एकतिगरी र lsquoकतहनद

21 रारकतविास शराम पषठ- ६६

18

भारतrsquo की रधर कलपना थी इसस इनकार नही दकया जा सकता भाव जगत का वषणव परर lsquoकतहनद भारतrsquo

की कलपना स परर र बदिता गया

भारतद की रचनाओ र कतवशवदकतषट की एकता खोजन पर हर परभतवशािी कतवचारधाराओ की

वयवसथा ही कतरिगी जञान और वयावहाररक सारानय बोध क बीच एक सदकय साबाध बनान क कर र ही

उनका सवाभाकतवक आवग कतजन वयावहाररक धाररमक कतवचारधाराओ र आतरकतबकतमबत होता ह व

परभतवशािी कतवचारधाराएा ह इन कतवचारधाराओ का कतनरामण कही बाहर स नही हो रहा था बकतलक

पराचयकतवदयाकतवदो की कलपना क साथ परसपर भागीदारी र बन रहा था इन कलपनाओ को यथाथम रप द

रही थी हपराट पाजी क साथ कतवककतसत होती lsquoबजमआ पकतबिक सफीयरrsquo की दकयाएा भारतद की सवाभाकतवक

सफरतम ततकाि ही एक फ टसी र बदिन िगती ह और दकयातरक होना चाहती ह ऐस ही सरय

पराचयकतवदया क पाकतडतो क िारा जगाय गए कतरथकीय परत भी आकर सर पर सवार हो जात ह पराचयवाद

दकसी परत-कतवदया स कर न था दखना चाकतहए दक भारतद की रचनाओ र कहाा परतो की दकतनया र यथाथम

का हसतकषप होता ह उनकी एकतिगरी कहाा कतसथकततयो क अकततरक को अकतभवयि कर रही ह जस भारतद की

lsquoअाधर नगरीrsquo ऐन हरार वक़त र राजयसतता का रपक बन जाती ह यह रपक राजयसतता र अनतरनमकतहत

हहासा की अकतनवायमता और नयाय क भरर का परहसन भी ह

२ धरम सधार पर कतवचार सभा

िहमो सराज या दयानाद सरसवती को खद भारतद कस दख रह थ इसका पता हर lsquoसवगम र कतवचार

सभा का अकतधवशनrsquo22 नारक एक वयागय रपक स चिता ह सवारी दयानाद सरसवती और कशवचादर सन

जब ररन क बाद सवगम पहाच तो ldquoवहाा एक बर बड़ा आनदोिन हो गयाrdquo रतय क कछ ही सरय पहि कतिखा

गया यह वयागय रपक अपन सरय क धरम सधार आादोिनो क चररतर की वयाखया करता ह सबस पहि

इसका परकाशन किकतत स कतनकिन वािी परकततकतषठत हहादी पकततरका lsquoकतरतर कतविासrsquo (जन १८८५) र हआ था

िहमो सराज और आयम सराज क आनदोिनो को भारतद इस सरय तक आकर एक तटसथ आिोचकीय दकतषट

स दखन का परयास करन िग थ सवगम र एकबारगी पदा हए इस आनदोिन र रोट तौर पर दो खर बन

गए एक इनका परशासक था दसरा हनादक पहिा कतिबरि ह दसरा काजरवरटव इन दोनो खााचो र

अनदफट एक तीसरा दि ह जो वषणव आतराओ का ह इस दि क सासथापक तो कतिबरि थ पर अब य

lsquoरकतडकलस कया रहा रकतडकलस हो गए हrsquo कतनकतशचत रप स इन रहा रकतडकलस आतराओ र हर सवया भारतद

22 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन सा- करिा परसाद परसा- नारवर हसाह पषठ- ८२-८६ नशनि बक टरसट इाकतडया नई ददलिी- २००६

(आग इस िख क उदधरणो को कतबना पाद रटपणणी क ददया गया ह)

19

को भी कतगन सकत ह वयासदव एक ऐस बकतदधजीवी क रप र सारन आत ह जो दकसी का भी पकष िन स

बचत ह पर उनका रान दोनो खरो र ह ldquoकतबचार बढ़ वयासदव को दोनो दि क िोग पकड़-पकड़ कर ि

जात और अपनी अपनी सभा का lsquoचयररनrsquo बनात थ और बचार वयास जी अपन पराचीन अवयवकतसथत

सवभाव और शीि क कारण कतजसकी सभा र जात थ वसी ही विता कर दत थrdquo कतिबरिो की तिना र

का जरवरटव दि जयादा रजबत था कयोदक उनह सवगम क जरीदारो का सहयोग परापत था काजरवरटव दि की

आतराएा साकीणम कटररपाथी आतराएा थी य आतराएा उन परान िरान क ऋकतष रकतनयो की आतराएा ह जो

ldquoयजञ कर करक या तपसया करक अपन-अपन शरीर को सखा-सखाकर और पच-पच कर ररक सवगम गए हrdquo

करमकााड और वरत उपवास आदद को भारतद वही तक सही रानत थ जहाा तक व शरीर को कषट न पहाचाएा

कठोर दह साधना करन वाि इन ऋकतष रकतनयो की आतराएा सधारो क कतखिाफ थी और इनका साथ दन

वाि जरीदारो र lsquoउदार िोगो की बढ़तीrsquo स अपना रान-अकतभरान और बि कतछन जान का डर था

कतिबरि दि भिो की आतराएा या तो सावमजाकतनक जीवन क उचच रलयो या आदशो क सापादन क चित या

पररशवर की भकति स सवगम र गयी थी

सराज सधार और वयकतिक परर रिक भकति- कतिबरि कतवशवदकतषट को भारतद इसी पररपरकषय र दख

रह ह रकतडकि वषणव दि भिो क कतिए वषणव होन रातर स य चीज पहि स ही उपिबध थी भारतद क

कतिए वषणवता सवाभाकतवक रप स कतवशवदकतषट ह पर रकतडकि वषणव इस सवाभाकतवक उदारता को

राजनीकततक रप दन वाि ह वषणव उदारता का और उसक भावावग का राजनीकततकरण करन वाि रहा

रकतडकि इस तरह भारतद क कतिए वषणवता की आधकतनक वयाखया र सराज सधार वयकतिक परर रिक

भकति और राजनीकतत तीनो का lsquoएकाrsquo ह इस एका क रकतडकि परयास क कतिए जनरत या िोकरत का

कतनरामण आवशयक ह भारतद की रकतडकि वषणवता ही lsquoसब उननकतत का रिrsquo ह यह एक िोककतपरय

वयावहाररक कतवचारधारा क रप र आकर गरहण करन वािी वषणवता ह यह रकतडकि वषणवता धरम का

राजनीकततकरण ह

काजरवरटव दिभिो को दवताओ का सरथमन परापत था य दवता ही सवगम क जरीदार थ अपन

अपन तरीक स इन दवताओ न काजरवरटव दि की सथानीय शाखाएा भी खोि िी और वहाा इनक पकष र

lsquoपरकाश सभाएाrsquo होन िगी कतिबरि दि वािो क पकष र कवि इस lsquoकतहनद सवगमrsquo क िोग नही थ ldquoइधर

lsquoकतिबरिrsquo िोगो की सचना परचकतित होन पर रसिरानी-सवगम और जन सवगम तथा दकसतानी सवगम स पगमबर

कतसदध रसीह परभत कतहनद सवगम र उपकतसथत हए और lsquoकतिबरिrsquo सभा र योग दन िग बका ठ र चारो ओर

इसकी धर फि गयीrdquo अिग अिग सवगम कतवकतभनन धाररमक पहचानो की ओर इशारा करता ह बका ठ कतहनदओ

का सवगम ह और यह नया धरम आनदोिन रखयतः कतहनद धरम की एक बड़ी पहचान क भीतर ही पदा हआ ह

20

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग क तीन कतनकतहताथम वसधा डािकतरया न भारतद यग क सनदभम र नोट दकय ह23 पहिा

एक पराक औपकतनवकतशक lsquoकतहनद अथमrsquo जहाा हहादसतान का हर बाहशादा शाकतरि था दसरा परसपर कतभनन

धाररमक रतो और आसथाओ की कतनकट अातरकम या क अथम को वयि करता ह कतजसक आराकतभक साकषय सलतनत

कािीन ऐतहाकतसक वतताातो र कतरित ह यहाा यह शबद lsquoतकम rsquo क सरानाातर उपयोग र आया था और

सारानयतः रसिरानो क बरकतखिाफ उपयोग दकया जाता था आरमभ र यह धाररमक कर साराकतजक-

राजनीकततक अथो र जयादा परयि होता था अागरजी राज क साथ यह दसरा अथम धरम स अकतनवायमतः जड़कर

lsquoकतहनदवादrsquo की कतवचारधारा र बदि गया जमस कतरि आदद क इकततहासो र lsquoकतहनदकािrsquo और lsquoरसिरान

कािrsquo की ऐकततहाकतसक कलपना क साथ कतहनद शबद जड़ गया था भारतीय भी रसिरानो को सारन कर

lsquoकतहनद पीकतड़त गराकतथrsquo क कतिए इस शबद का इसतराि करन िग कतहनद शबद का तीसरा अथम राषटर की

अवधारणा स जड़कर बन रहा था आरथमक राषटरवाद और अागरजी राज की यातना की साझी सरकतत स बनन

वाि इस तीसर अथम का रतिब था- lsquoजो कतहनदसतान र रह वह कतहनदrsquo रारकतविास जी भारतद क यहाा

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग को इनही अथो र ित थ पर वसधा डािकतरया का कहना ह दक यह तीसरा अथम दसर क

वयापक परभाव र था तीनो अथो की अातरकम या क बार र डािकतरया न कतिखा ldquoतीसरा अथम या राषटरवादी

अथम कभी भी अपन धाररमक साकताथो स परी तरह छटकारा नही पा सका इस पद की परयकति उननीसवी

सदी र अकतसथर बनी रही और इसक रखतकतिफ रायनो र आपसी जड़ाव कायर रहा बावजद इसक दकसी

परदतत सनदभम र lsquoकतहनदrsquo क पराथकतरक अथम को कतनधामररत करना साभव ह यदद एक बार यह तय हो जाय दक

इिाकाई धाररमक राषटरीय र स दकस आधार पर यह पद परयोग र आ रहा ह और lsquoअनयrsquo की भकतरका र

दकस रखा जा रहा ह चाह वह अनय जसा दक परानी इिाकाई परयकति र ददखता ह फारसी या तकी हो

या रसिरान (कतजस इस िरान र भी कई बार सरह क हवाि स तकम ही कहा जाता ह) या दफर अाततः

औपकतनवकतशक सवारी िदकन यह बात ददराग र रखना जररी ह दक धाररमक सरदाय को कतनरदमषट करन

वािी दसरी परयकति अतयात परभावी सनदभम-हबाद बनी रहती हrdquo24

इस सनदभम र दख तो कतिबरि दिो क सरथमन र शाकतरि lsquoअनयrsquo कतहनद धरम क सधारवाद क सरथमक

ह और lsquoसधारोrsquo र छपी वकतशवक भावनाओ को सरथमन दन पहाच ह का जरवरटव दिो की lsquoअनयताrsquo यहाा नोट

करन िायक ह इस अनयता र साराती जरीदार और करमकााडी िाहमणवाद का बिाक ह जबदक कतिबरि

दकतषट क आसपास एक lsquoसायि रोचrsquo की कलपना की गयी ह धयान रखना चाकतहए दक भारतद क रकतडकि

वषणव इस lsquoसायि रोचrsquo क बाहर ह उनका lsquoएबसटकतनजरrsquo वषणव होन क चित नही बकतलक रकतडकि या

23 वसधा दिकतरया कतहनद परमपराओ का राषटरीयकरण भारतद हररशचादर और उननीसवी सदी का बनारस अन साजीव करार योगनदर दतत पषठ-

४०-४२ राजकरि पपरबकस नई ददलिी- २०१६

24 वही पषठ- ४२

21

रहा रकतडकि होन क चित था कतनकतशचत रप स सवगम सासद का रपक ह और सवगम का राजा ईशवर

कतनषपरभावी हो गया ह और जनता सवया जनरत क िारा कतनणमय कतसथर करन पर जोर दती ह जनरत क

िारा lsquoसलफ गवनमरटrsquo का परयास सबस पहि वषणव भिो न दकया था और आज क कतिबरलस उसी को

आग बढ़ा रह ह ईशवर क पास दोनो दिो क िोगो न जब अपन अपन ररोररयि तयार कर भज तो ईशवर

न दोनो दिो क डपयटशन को बिाकर कहा ldquoबाबा अब तो तरिोगो की lsquoसलफगवनमरटrsquo ह अब कौन

हरको पछता ह जो कतजसकी जी र आता ह करता ह अब चाह वद कया सासकत का अकषर भी सवपन र भी न

दखा हो पर धरम कतवषय पर वाद करन िगत ह हर तो कवि अदाित या वयवहार या कतसतरयो क शपथ

खान को ही कतरिाय जात ह दकसी को हरारा डर ह कोई भी हरारा सचचा lsquoिायकrsquo ह भत परत ताकतजया

क इतना भी तो हरारा दजाम नही बचा हरको कया कार चाह बका ठ र कोई आवहर जानत ह चारो

िड़को (सनक आदद) न पहि स ही चाि कतबगाड़ दी ह कया हर अपन कतबचार जयकतवजय को दफर राकषस

बनवाव दक दकसी का रोकटोक कर चाह सगन रानो चाह कतनगमन चाह ित रानो चाह अित हर अब न

बोिग तर जानो सवगम जानrdquo

काजरवरटव दिभिो न दयानाद और कशवचादर सन पर कया कया आरोप िगाय यह दख िना

चाकतहए दयानाद को सवगम र सथान नही कतरिना चाकतहए कयोदक १ इसन पराणो की हनादा की २ ररतमपजा

की हनादा की ३ वदो का अथम उलटा-पलटा कर डािा ४ दस कतनयोग करन की कतवकतध कतनकािी ५ दवताओ

का अकतसततव कतरटाना चाहा (दवताओ याकतन जरीदार) ६ इसन धरम कतवपिव दकया और आयामवतम को धरम

बकतहरमख दकया पकतशचरोततर परानत क परकततकतनकतध क रप र lsquoकाशी क कतवशवनाथ जीrsquo न lsquoउदयपर क एकहिाग

जीrsquo पर दयानाद क सरथमन का आरोप िगाया कतवशवनाथ जी काजरवरटव दिो की तरफ स यह आरोप िगा

रह थ परब की अपकषा पकतशचरी इिाको र आयम सराज क परभाव की चचाम क सनदभम र एकहिाग जी का

जवाब धयान दन िायक ह कतवशवनाथ जी न जब एकहिाग जी को कतधककारत हए कतिबरिो क साथ कतरि जान

को कहा तब एकहिाग जी न कहा ldquoभाई हरारा रतिब तरिोग नही सरझ हर उसकी बरी बातो को न

रानत न उसका परचार करत कवि अपन यहाा क जागि की सफाई का कछ ददन उसको ठका ददया बीच

र वह रर गया अब उसका राि रता रठकान रखवा ददया तो उसका बरा दकयाrdquo यह एकहिाग जी

दफ़िहाि सवारी जी क दि क सभापकतत बन ह आकतखर इनहोन अपन यहाा क दकस lsquoजागिrsquo की सफाई का

ठका सवारी जी को ददया था यह जागि छोट-रोट धाररमक समपरदायो और रतो का जागि था एकहिागी

जी और काशी क कतवशवनाथ जी दोनो ही िाहमणीकत शवरत क धाररमक परतीक ह पर जहाा काशी क

कतवशवनाथ शर स ही दयानाद क कतवरोधी थ वही एकहिाग जी रणनीकततक रप स दयानाद क पास गए थ यह

साकीणम कटररपाथ क भीतर का कतववाद था यह बात गौर करन िायक ह दक जगननाथपरी र जब भरव की

22

रौजदगी का कतववाद भारतद क सारन आया था उस सरय उनहोन इस बात का परतयाखयान दकया था दक

भरव की परकततरा अनाददकाि स वहाा ह भारतद न पराण आदद स साकषय दकर यह परराकतणत दकया दक

कषण ही एकरातर उपासय ह तिवार जी न इस घटना का उलिख करत हए कतिखा ह दक ldquoदकसी वयकति न

lsquoतहकीकातपरीrsquo दकताब दकखकर बताया दक वहाा पहि भरो की पजा होती थी वषणवो न उसकी ररतम

उखाड़ फ की थी बाद र पाडो न जगननाथजी (कतवषण) क साथ भरो को दफर स परकततकतषठत दकया यह रारिा

काशी धरमसभा क सारन १८७० र आया भारतद न धरम साबाधी पसतक र lsquoतहकीकातrsquo जस फारसी शबद

की आिोचना करत हए कतवकतभनन धरमगराथो स परराण जटाकर दो बातो पर जोर ददया एक इसका परराण

नही कतरिता ह दक वहाा जगननाथजी क साथ पहि भरो की भी ररतम थी कतजस वषणवो न उखाड़ फ का दो

अगर वह थी भी तो यह उकतचत था या नही- इसपर कतवचार होना चाकतहए भारतद न अपनी वयवसथा दत

हए कतिखा दक भरो कतवषण स बहत छोटा दवता ह इसकतिए यह कतवषण क साथ बठाया नही जा सकता

lsquoदसर भरव कापाकतिको क दवता ह उनका पजन वषणव-सरातम सबको कतनकतषदध हrsquo गौरतिब ह दक भारत

र कतवकतभनन सथानीय धरो क परकतत कतजतन असकतहषण और फा डारटकतिसट आयमसराजी थ उतन ही काशी क

सनातनी भी थrdquo25

सथानीय धरम-रतो क जागि को साफ़ करन र आयमसराकतजयो और काशी क सनातनी पाडो क इस

गठजोड़ स भारतद भी वादकफ थ िदकन आयमसराकतजयो क साथ उदयपर क एकहिाग जी का रोचाम कसा

था इस भी भारतद बखबी सरझ रह थ सथानीय रतो क साथ भारतद का समबनध कसा था इसका पता

उनक छोट-छोट यातरा सासररणो स भी चिता ह lsquoसरय पार की यातराrsquo26 र रहदावि का हाि बयान करत

हए lsquoपराणनाथrsquo क रिहब का भारतद आशचयम क साथ उलिख करत ह भारतद क ही शबदो र ldquoयहाा एक

पराणनाथ का रिहब ह और दस बीस िोग उसक रानन वाि ह य िोग एकादशी तीथम वगरह को नही

रानत और सन सनाय दो तीन शलोक जो याद कर कतिए ह बस उसी पर चर हो lsquoरदीनासया शारदाा शताrsquo

और lsquoगोकतवनदrsquo lsquoगोकिानाद रककशवरrsquo यह शलोक पढ़ क कहत ह दक वद र रकका रदीन का वणमन ह ऐस ही

बहत वाकतहयात बात करत ह और कोई दकतना भी कह कछ सनत नही कहत ह दक गोिोक का नाश ह

और गोिोक ऊपर एक lsquoअखाड रणडिाकारrsquo िोक ह उसर रर कषण ह इनका रिहब एक पराणनाथ नारक

एक कषतरी न पनना र करीब तीन सौ बरस हए चिाया थाrdquo भारतद इस अजीबो गरीब lsquoरिहबrsquo का कषण स

कया साबाध ह यह सोचकर ताजजब र थ इस lsquoरिहबrsquo क गरनथ र भारतद न एक शलोक बलिभाचायम का

दखा तो उनका राथा और घर गया ldquoकि रिहब का हाि हरन नीच कतिखा था उसका अचछी तरह स

25 वीरभारततिवार रससाकशी १९वी सदी का नवजागरण और पकतशचरोततर परानत पषठ- १५२ सारााश परकाशन ददलिी- २००६

26 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन पषठ- १३७-३८

23

हाि दरयाफत दकया तो रािर हआ दक हरार ही रिहब की शाखा ह इनक गराथो र हरन एक शलोक शरी

रहापरभजी की सबोकतधनी की काररका का दखा इसी स हरको सादह हआ दफर हरन बहत खोद खाद कर

पछा तो वह साफ़ रािर हआ दक इसी रत स यह रत कतनकिा ह कयोदक एक बात वह और बोि दक हरारा

रत शरी बलिभाचारज की टीका र कतिखा ह इन िोगो क उपासय शरीकषण ह और एकादशी शािगरार

ररतमपजा तीथम दकसी को नही रानत इनक पकतहि आचायम दवचाद जी थ जो जाकतत क कायथ थ और दसर

पराणनाथ जी जो कचछ क कषतरी (भारटया) थ हरार ही रत की शाखा सही पर कतवकतचतर रत ह वषणव होकर

ररतमपजा का खाडन करन वाि यही िोग सनrdquo वणमन स सपषट ह दक सात और कतनगमण पाथो क साथ वषणव

कतवचारधारा क आदान-परदान का साकतशलषट इकततहास भारतद क कतिए ताजजब की चीज थी पर इन सबक बीच

आकतखर उनहोन इसक वषणव रि का पता िगा कतिया और वषणवता की इस धाररमक कतवचारधारा र उनहोन

ररतमपजा का कतवरोधी होना भी शाकतरि रान कतिया भारतद न ररतमपजा क सरथमन र बड़ बड़ िख कतिख

थ इसकतिए असाभव नही दक कषण क परकतत परररिक भकति क कतिए ररतम की जररत पर उनहोन कछ पछा

जरर होगा िदकन lsquoकोई दकतना भी कछ कह सनत ही नहीrdquo आग चिकर lsquoवषणवता और भारतवषमrsquo र

वह बड़ कतवशवास क साथ घोकतषत करत ह दक ldquoपहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद कतजतन पाथ ह सब

वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और भारतवषम इन पाथो स छाया हआ हrdquo27 तब वह वषणवता और

िोकरतो और रधयकािीन पाथो क भीतर पहि स सदकय एक ऐकततहाकतसक परदकया का सारानयीकरण कर

उसका नार lsquoवषणवrsquo रख रह थ अकारण नही दक उसी िख र वषणव वयापकता को बतान क कतिए

परचकतित lsquoनारोrsquo का साकषय पश दकया गया ह वयकतियो स िकर वरत और उपवासो तक यह परभतवशािी

सारानय बोध की कतवचारधारा थी कतिवदी जी रधयकािीन वषणवता को िोकधरम कहत थ भारतद

उननीसवी सदी क िोकधरो को वषणव कहत ह

काजरवरटव दिो की तरफ स कशवचादर सन पर िगाय गए आरोप थ १ वद पराण सबको कतरटा

डािा २ दकसतान रसिरान सबको कतहनद बनाया ३ खान पीन का कतवचार कछ न बाकी रखा ४ रदय की

तो नदी बहा दी आयम सराकतजयो क ऊपर रखयतः आरोप lsquoआयामवतम को धरम बकतहरमखrsquo करन का ह धरम

बकतहरमख अथामत सनातन धरम स कतवरख उनहोन कवि धरम क भीतर कतवपिव दकया परनत िहमो सराज न तो

lsquoभारतवषम का सतयानाशrsquo कर डािा इनहोन तो पराणो क अिावा वदो को भी कतरटा डािा lsquoआयामवतमrsquo की

जातीय पकतवतरता नषट करक दकसतान रसिरान जस lsquoकतवदशी ततवोrsquo को घर र घसा कतिया कटररपाथी

करमकााकतडयो क कतिए इनक साथ रणनीकततक तौर पर भी रोचाम बनान वािा कोई एकहिाग जी तयार नही

था सनातकतनयो िारा दकया गया यह बारीक भद खद कतिबरि दिभिो क भीतर का भी अातरवमरोध था

27 भारतद वषणवता और भारतवषम वही पषठ-७६

24

कतिबरिो की सभा र भी दो दि हो गए थ एक सवारीजी क सरथमको का दि था और एक कशव

क सरथमको का कतहनद कतिबरिो की आताररक एकता कतिकतवभाकतजत थी दयानाद क सरथमको क अनसार सवारी

जी न कतहनदओ की आतरा को जगाया था उनह सफतम बनाया वरना तो आयामवतम क आिसी और रखम

रोहकतनदरा र ही कतनरगन थ इस तरह रखम और आिसी सारानयजनो को lsquoिाहमणो क फा द स छड़ायाrsquo िाहमणो

की तिना भारतद न lsquoपादररयोrsquo स की ह जो lsquoवयथम परजा का दरवय खान वाि हrsquo आयम सराज न सासथाकत

परोकतहतवाद पर हरिा दकया था जो भारतद क कतिए रितः जनता क पसो पर पिन वािा परजीवी वगम

िगता था और तो और आधकतनक कतवजञान क आग जो lsquoआयोrsquo की नाक कटी जा रही थी उस भी सवारी जी

न बचा कतिया उनहोन वदो र भी रि तार करटी कचहरी आदद ददखाकर कतहनदओ र आतरसमरान पदा

दकया दसरी ओर कशव क सरथमको का कहना था दक ldquoधनय कशव तर साकषात दसर कशव हो तरन बाग

दश की रनषय नदी क उस वग को जो कशचन सरदर र कतरि जान को उचछकतित हो रहा था जञान करम का

कतनरादर करक पररशवर का कतनरमि भकति रागम परचकतित दकयाrdquo lsquoजञान करम का कतनरादरrsquo करक भी lsquoकतनरमि

भकति रागमrsquo का जो परवतमन कशव न दकया उसस ही ईसाई lsquoअनयताrsquo का साथमक परकततरोध साभव हआ lsquoरनषय

नदी का आवगrsquo भावावग ह इसी बात को दसर शबदो र कह तो भाव जगत क सवाभाकतवक वग को भगवत

भकति की शदध lsquoअनयताrsquo की ओर रोड़कर उस कतवदशी ईसाई lsquoअनयताrsquo क रागम पर जान स रोक ददया इस

कायम क कतिए वद पराण समरत lsquoजञान-करमrsquo क रागो का कतनरादर अगर करना पड़ा तो भी वह उकतचत ही था

वषणव भकति क रधयकािीन सवरप की जो वयाखया आग चिकर की गयी उसक आराकतभक कतचनन हर यहाा

दख सकत ह कहना न होगा दक भारतद का अपना अनभव भी यहाा बोि रहा ह

शासतरीय काजरवरटव पाटी र दवताओ क अिावा यजञवलकय जस औपकतनषददक ऋकतष क साथ-साथ

नारायण भटर रघनाद भटराचायम राडन कतरशर जस कतनबाधकारो और टीकाकारो का जरघट भी था इसक साथ

साथ इसिारी सवगम स आय हए कटररपाथी कतशया िोगो का भी सरथमन उनह परापत था इस परकार कटररपाथ का

दवताओ (जरीदारो) िाहमणो (पादररयो) जञानरागी औपकतनषददक ऋकतष रधययगीन कतनबाधकारो और

कतवदशी कतशया िोगो का एक वकतशवक रोचाम बन रहा था दसरी ओर कतिबरि दि र चतनय परभकतत आचायम

दाद नानक कबीर परभकतत भि और जञानी िोग भी शाकतरि थ इसक अिावा काजरवरटव दि क

कतवदरोकतहयो को भी कतिबरिो न अपन यहाा जगह दी य कतवदरोही थ अितवादी (या नववदााती) भाषयकार

पाचदशीकार और कोई कतरसटर िडिा इन दोनो िोगो पर शर र का जरवरटव दि वािो न बहत हरि

दकय परनत अात र इनह कतिबरिो न अपन यहाा जगह द दी धयान रखना चाकतहए दक भारतद अपन सापरदाय

क अनरप अित वदाात या रायावाद क घोर आिोचक थ सन १८७३ र हररशचादर रगजीन क पहि ही अाक

र भारतद न शााकतडलय भकति सतरो का अनवाद lsquoभकति सतर वजयातीrsquo नार स परकाकतशत दकया भकतरका र

25

भारतद कतिखत ह ldquo दखो आज वसात पाचरी ह इसस बहत स िोग आर क रौर वा फिो क गचछ िकर

तरस कतरिन आवग तो र भी यह एक फिो की वजयाती रािा बना कर िाया हा अागीकार करो वजयाती

रािा बनान का यह हत ह दक वनरािा होगी तो होिी क खि र अरझगी और इसक कतसवाय इस वजयाती

स कतनशचय करक जञानाददक को जय करना ह पर पयार बहत साभि कर यह रािा पहरना टट न जाए

कयोदक सत कचचा ह और ककतियाा तािी और कोरि ह इस स कमहिान का भी भय ह जो हो इस वसात

पाचरी को तयोहारी रझ यही दो दक इस सतयानाशी lsquoअहरrsquo िहमवाद lsquo को पणमरप स नाश करक और भी

सब बातो र इस नव-वसात र भारतवषम की सब आपकतततयो का बस अात करो और अपन भिो क कतचतत र

नव पलिव दफर स िहिह करो जो सदा एक रस रहrdquo28 lsquoएकरसrsquo भकति क कतिए जररी ह दक जञानवाद

अहर िहमवाद को जड़ स उखाड़ फ का जाय कषण को अरपमत अपनी वजयाती रािा स भारतद जञानाददक

को जय करना चाहत ह एक ओर यह पकतषटरागी परापरा क lsquoवीर वषणवrsquo भारतद का परर कतनवदन ह दसरी

ओर lsquoनव-वसातrsquo र भारतवषम की सब आपकतततयो को नाश करन की सारथयम रपी lsquoउपहारीrsquo का साकलप भी

ह lsquoभारतद भारतवषम की सब आपकतततयोrsquo को दर करन की राह र एक बड़ी बाधा अित क जञानवाद को

रानत ह भकति का lsquoएकरसrsquo पहि भी इसक परभाव स ररझाता रहा ह भारतद का साकलप सापरदाय क

परान कतवरोधो क बावजद बन रहन वाि इस अितवाद का पणम सफाया करन का ह जबतक यह न कतरटगा

परररिा भकति क lsquoकमहिान का भयrsquo बना रहगा भकति सतरो र उपासना कााड को परर कतसकतदध का हत

बताया गया था पर भारतद दख रह थ दक उपासना कााड का परचार कतवरि हो गया ह इसी परचार क

कतनकतरतत उनहोन इन सतरो का भाषा र अथम परचार दकया था १८७३ र ही हररशचादर रगजीन का एक

समपादकीय कतनकिा कतजसका शीषमक था- lsquoभकति जञानाददक स कयो बड़ी हrsquo इस िख र भी उपासना रागम

की रहतता का परकततपादन दकया गया ह तकम और जञान को करम की शकतदध और उपासन की परर कतसकतदध क

रासत र कवि एक चरण बताया गया ह वसधा डािकतरया न भारतद क आराकतभक साापरदाकतयक परचार

परसार क कायो र कतनगमकतनयो को बाहर रखन का उपकर नोट दकया था29 यहाा कतनगमकतनए कबीर आदद lsquoभि

और जञानीrsquo कतिबरिो क सरथमक ददखाए गए ह वषणव भकति क राषटरीय चररतर र य बाहर नही थ उनकी

एकता का आधार उनक lsquoकतिबरि रिrsquo र ह सावमजकतनक उचच भाव का सापादन और भकति इन दोनो क साथ

अित वदााती या जञानाददक- सनातनी परापरा क कतवदरोकतहयो की जगह भी कतिबरि दि पाकतथयो र थी

कतिबरि वाि ही झगड़ क कतनपटार की अजी पररशवर को दन गए थ पर पररशवर अपनी

परतीकातरक हो गयी कतसथकतत स खजिाय हए थ यह सवोचच अदाित थी पर साथ ही साथ शकतिहीन

28 भारतद गराथाविी खाड- ५ पषठ ११३

29 वसधा डािकतरया पषठ ३४२

26

राषटराधयकष की कलपना भी कतजस कतहनद सवगम क य राषटराधयकष ह वहाा दकसी दकसर की सलफ गवनमरट चनन

की परणािी आ जान स ईशवर की एकाकतधकारी शकतियाा कतछन गयी ह िोग जनरत कतनरामण क िारा सही

और गित की पहचान करन िग थ इसकतिए थोड़ा खजिाय तो रहत ही होग lsquoअब कौन हरको पछता

ह तर जानो सवगम जानrsquo परनत साकट गहरा था यदयकतप कतिबरि िोगो की सभा भी धरधार स जर

रही थी पर काजरवरटव दि पाकतथयो की सरकार र पठ थी दवता सब भी उनक साथ थ इसकतिए पररशवर

क पास जररी नयाय का परशन उठाया गया था नयाय दक इन दो रहापरषो को सवगम र जगह कतरिनी

चाकतहए या नही सराज र इनक नकततक उचच आदशो क अवरलयन का परचार काजरवरटव कर रह ह इस

परचार क कारण जनता अपनी निरो स पहचानन र सकषर नही ह ऐसी कतसथकतत सवगम र पहि नही आई

थी नई कतसथकततयो क नए रानदाड कया होग िाकतहर ह नयाय और नकततकता को एक वकतशवक सवीककतत

चाकतहए इसकतिए पररशवर न इस कतवषय पर कतवचार क कतिए जो ककतरटी चनी वह गौर करन िायक ह इस

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo र ldquoराजा राररोहन राय वयास दव टोडररि कबीर परभकतत कतभनन-कतभनन रत क िोग चन

गए रसिरानी- सवगम स क lsquoइरारrsquo दकसतानी स िथर जनी स पारसनाथ बौदधो स नागाजमन और

अफीका स कतसटोवायो क बाप कोrdquo चना गया कतहनद सवगम स नवजागरण क अगरदत वयासदव जस

बौकतदधकिखक टोडररि जस राजनीकततजञ और धरम-ररमजञ कबीर जस जञानी-भि पराचीनो र कवि वयास

दव ह बाकी दो lsquoरधयकािrsquo क और एक lsquoआधकतनकrsquo काि क वयकति ह उधर यरोपीय नवजागरणधरमसधार

क परणता िथर को भी बिाया गया ह और बौदधो की तरफ स परर कतनषधवादी नागाजमन भी ह पर य

अफीका क कतसटोवायो धरो की अकतसरता क साथ-साथ यह अफ़ीकी सवगम कतनकतशचत रप स अफीका की छकतव

पराचीन आददवासी सासककतत वाि एक lsquoकािrsquo रहादश क रप र गढ़ी गयी थी यह अफ़ीकी सवगम साभवतः

आददवासी धाररमक रानयताओ की ओर इशारा करता ह यह भी धयान दन िायक ह दक राजा राररोहन

राय िथर और कबीर इन तीनो क साथ lsquoनवजागरणrsquo की कोई न कोई पररकलपना ठठ सरकािीन कतवरशो

क क दर र भी ह कई अथो र अकबर िारा आयोकतजत होन वािी lsquoसिह-ए-किrsquo जसी धरम सभाओ की एक

रोहक कलपना भी भारतद को रही होगी टोडररि की उपकतसथकतत अकारण नही ह

अकबर को िकर भारतद की इकततहासदकतषट कसी थी इसकी एक झिक हर १८८४ र छपी उनकी

lsquoबादशाह दपमणrsquo की भकतरका र ददखती ह इस गरनथ र उन िोगो का चररतर-कतचतरण दकया गया था ldquoकतजनहोन

हरिोगो को गिार बनाना आरमभ दकया इसर उन रसत हाकतथयो क छोट-छोट कतचतर ह कतजनहोन भारत क

िहिहात हए करिवन को उजाड़कर-पर स कचिकर कतछनन-कतभनन कर ददया रहमरद रहरद अिाउददीन

अकबर और औरागजब आदद इनर रखय ह पयार भोि कतहनद भाइयो अकबर का नार सनकर आपिोग

चौदकए रत यह ऐसा बकतदधरान शतर था दक उसक बकतदधबि स आजतक आपिोग उसको कतरतर सरझत ह

27

दकनत वह ऐसा ही नही उसकी नीकतत अागरजो की भााकतत गढ़ थी रखम औरागजब उसको सरझा नही नही तो

आज ददन हहादसतान रसिरान होता कतहनद-रसिरान र खाना-पीना बयाह-शादी कभी चि गयी होती

अागरजो को जो बात नही सझी वह इसको सझी थीrdquo30 कतनकतशचत रप lsquoबकतदधरानrsquo दशरन स सीखन को बहत

कछ कतरिता ह अकबर की दीन-ए-इिाही क परयोग स भारतद भी बहत कछ सीख रह थ रधयकािीन

इकततहास क बार र रकतसिर शतर की छकतव का कतनरामण पराचयकतवदयाकतवदो क िारा दकया जा रहा था इकतियट

आदद इकततहासकारो न जो दकतषट कतवककतसत की उसका परभाव बहत गहरा था पर इस इकततहासिखन क साथ

साथ भारतद क कछ दशी सरोत भी थ अिग-अिग रहापरषो की चररताविी कतिखन की पररणा भारतद न

कतजतना अपनी वषणव भकति की परापरा स पाया था उतना ही इसिारी इकततहास िखन की परापरा स भी

lsquoबादशाहदपमणrsquo की भकतरका र भारतद कतिखत ह ldquoरर पररातारह राय कतगरधरिाि साहब जो यवनी कतवदया

क बड़ भारी पाकतडत और काशीसथ ददलिी क शाहजादो क रखय दीवान थ उनकी इचछा स ददलिी क परकतसदध

कतविान सययद अहरद न एक ऐसा चक बनाया था कतजसर तरर स िकर शाह आिार तक सब बादशाहो क

नार आदद कतिख थ उस फारसी गरनथ स बहत सी बात इसर िी गयी ह इस कारण तरर पवम क बादशाहो

का वणमन इतना परा नही ह कतजतना तरर क पीछ ह दफर रर रातारह राय कतखरोधरिाि न बहादर शाह

क काि क आरमभ तक शष वतत सागरह दकयाrdquo31

अरणदव जी अपन एक िख र भारतद क आराकतभक अकबर परर का कतिक दकया ह १८७२-७४ क

आसपास भारतद अकबर को रहान शासक रानत थ जबदक औरागजब को कतहनदओ का दशरन नाबर एक

भारतद न औरागजब की तिना र अकबर की रहानता को परराकतणत करन क कतिए रारदास कछवाह क एक

शलोक को अपना आधार बनाया ह इस शलोक का भावाथम भारतद क शबदो र इस परकार ह ldquoजो सरदर स रर

तक पथवी को पािता ह जो रतय स गउओ की रकषा करता ह कतजसन तीथम और वयापार स कर छड़ा ददए

कतजसन पराण सन जो सयम का नार जपता जो योग धारण करता ह और गागाजि छोड़कर पानी नही

पीता उस जिािददीन की जय अाग वाग कहिाग कतसिहट कततपरा कारत (कारटी) काररप अाध कणामटक

िाट दरकतवड़ रहाराषटर िारका चोि पााडया भोट रारवाड़ उड़ीसा रलि खरासान का दहार जमब काशी ढाका

बिख बदखशाा और काबि को जो शासन करता ह ककतियग की रकतहरा स घटत हए वद गउ कतिज और

धरम की रकषा को सगन शरीर कतजसन धारण दकया ह उस अपररय परष अकबर शाह को हर नरसकार करत

हrdquo32 यही अकबर १८८४ र औरागजब स जयादा शाकततर और बकतदधरान शतर र बदि गया lsquoकािचकrsquo क

कतनकतहताथो र यह फरबदि भारतद पर रकतसिर कतवदशीपन और कतहनद शतरता क समपणम बिॉक बनान की

30 बादशाह दपमण भारतद गराथाविी खाड-६

31 वही

32 httpsamalochanblogspotin201209blog-post_9html

28

रणनीकतत क दबाव क कारण था और lsquoपरावकततrsquo की कतरथकीयता र भी कतहनदओ को lsquoरहारोहनासतरrsquo क सहार

पहि भी वश र दकया गया था यह एक बारीक चाि थी अकबर की इस चाि को अागरज भी नही सरझ

पा रह थ भारतद की यह परकततदकया औपकतनवकतशक इकततहासिखन क दबाव र थी १८७३ र जब भारतद

न कतशवपरसाद की दकताब lsquoइकततहासकततकतररनाशकrsquo क तीसर खाड की आिोचना की थी तो उनक सारन

रकतसिर शासन की बबमरता और अागरजी राज क सशासन का कतशवपरसाद िारा ककतलपत आखयान था १८८४

र समपणम रकतसिर काि अनधकार यग र बदि गया कततकतररनाशक क पहि खाड र बाब कतशवपरसाद न भी

अकबर की रजहबी उदारता और साराकतजक सधारो की बड़ाई की थी इस परकार हर दख सकत ह दक

ऐकततहाकतसक िखन र पकष और कतवपकष की पनरावकततत एक बाद घर र उिझी हई थी इनक सारन रकतसिर

कतवरोध और अागरजी शासन क कतवरोध का एक कतवसागत फर था और िखक उसर अपनी फौरी जररतो क

कतहसाब स कतरतर और दशरन वािा इकततहास कतिखता था इकततहास ठठ राजनीकततक ततकाि क वशीभत था

जो भी हो धाररमक उदारता और सिह-ए-कि का परयोग एक कतशकषापरद परयोग था यह कतवकतभनन

रतो या कतवशवासो क बीच lsquoजनरतrsquo बनान का एक रधयकािीन परयोग था भारतद lsquoजनरतrsquo क परयोग को

इस तरह दखत थ रानो यह lsquoचािrsquo अगर कारयाब हो जाती तो lsquoआज क ददन हहादसतान रसिरान होताrsquo

भारतद क सारन सरसया वही थी बस वह कवि यह चाहत थ दक कतहनदसतान lsquoकतहनदrsquo हो जाय कतहनद

अथामत वषणव हो जाय वषणवता भारतद क कतिए हहादसतान का नया lsquoसिह-ए-किrsquo था इसकतिए कछ

सावमजनीन रलयो की तिाश उनह भी थी कतसिकट ककतरटी क उपरोि रमबर lsquoएकसअफीकतशयोrsquo रमबर थ

रोर क परान हररकिस जस दवता कतजनहोन धरती स साबाध तोड़ ददया ह व िोग तथा उनही क जस

पारकतसयो क lsquoजरदशतजीrsquo को कोरसपोहडाग ऑनररी रमबर बनाया गया य धरम क रप र रतपराय रतो क

परकततकतनकतध थ ककतरटी न जो ररपोटम तयार की उसका ररम भारतद न ददया ह यह ररम उनक रकतडकि वषणव

पकष का रत था कतिबरि दि और काजरवरटव दि क अपन पकषो स इतर यह नरनायक तीसरा पकष वषणवो

की तरफ स सनाया गया था रकतडकि वषणवो की तरफ स भारतद इस धाररमक आनदोिन क भीतर अपना

ही पकष रखत हए इसका ररम कतिख रह थ ldquoहरिोगो की समरकतत र इन दोनो परषो न परभ की रागिरयी

सकतषट का कछ कतवघन नही दकया वराच उसर सख और सातकतत अकतधक हो इसी र पररशरर दकयाrdquo कतहनद सराज

सधार क परयासो का ररम बतात हए सबस पहि धयान सतरी सधारो पर ददया गया ह साराकतजक करीकततयो

की कतशकार रकतहिाओ क परकतत जो दकतषट उभरकर सारन आती ह उसक रि र धरम की रीकतत स यौन

रयामदाओ की अवयवसथा को दफर स रयामददत करन की चषटा ह कतसतरयो क करागम पर जान का पहिा कारण

ह रनराना परष धरमपवमक न पाना यह कतववाह सासथा की कतवककततयो की आिोचना थी जहाा बाि कतववाह

कतवधवा कतववाह आदद की तरफ इशारा ह धयान रखना चाकतहए दक यहाा बरि कतववाह क बदि कतसतरयो िारा

29

lsquoरनराना वरrsquo न चन पान का उलिख ह गभमनाश और बाि हतया क कतखिाफ सधार परयास दसरा

रहतवपणम योगदान ह कतववाह सासथा बीच र भी भाग की जा सकती ह इसकी सवीककतत ह कनया क कतहत र

अातरजातीय कतववाह की सवीककतत ह एक रहतवपणम बात गरओ और पाकतडतो क वयाकतभचार क साबाध र ह

भारतद क सारन पकतषटरागी रहातो और गरओ क वयाकतभचार का अनभव भी इसर शाकतरि ह

१८७४ र ककतववचन सधा र भारतद की एक रटपणणी छपी थी lsquoगर को कसा होना चाकतहएrsquo इसक अिावा

दो वषम पहि lsquoगर और रहातrsquo नार स भी एक रटपणणी कतिखकर वषणव पाडो-परोकतहतो की खिकर

आिोचना की गयी थी तिवार जी न कतिखा ह दक राददरो क भीतर कतसतरयो का यौन शोषण और वयाकतभचार

इतना भीषण था दक दयानाद भारतद क पकतषट सापरदाय को lsquoकषठी सापरदायrsquo कहत थ १८६० क आरमभ र ही

वषणव गोसाइयो क अनाचार और यौन शोषण क कतखिाफ बमबई र एक बड़ा आनदोिन पकतषटरागी

करसनदास रि जी क नततव र हो चका था वषणव बकतनया पषठभकतर स आय करसनदास जी उन नौजवानो

र थ कतजनहोन एकतिफ सटन कॉिज स आधकतनक कतशकषा परापत की थी गोसाइयो और रहाराजो िारा अपन

lsquoसमपरदाय की बह बरटयोrsquo क साथ होन वाि अतयाचार क कतखिाफ उनहोन िख कतिख और समपरदाय क

इकततहास को नए कतसर स सारन रखा पण स आए जदनाथ वजरतन जी रहाराज न करसनदास जी पर

रानहाकतन का रकदरा दायर कर ददया इसी रक़दर स वषणव रहातो की कई सारी बात जनता क सारन

परतयकष हई तिवार जी न इस lsquoरहाराज िाइबि कसrsquo को भारतीय नवजागरण र वषणव गोसाइयो क

दराचार और यौन शोषण क कतखिाफ हआ सबस बड़ा आनदोिन कहा ह भारतद पर इसका बहत परभाव

था यह कस १८६० र हआ था एक दशक बाद जब भारतद सापरदाय क कायो र रत थ उसी सरय कतिख

रह थ ldquoराददर कया होत ह रानो कतसतरयो की खान ह जसी चाकतहए िीकतजय- वराच अचछी सतरी भी वहाा जाकर

कतबगड़ जाती ह आशचयम यह ह दक कतजनको व िोग बटी कहत ह और जो उनक परिोक क रधयसथ ह और

कतजनको वो दीकषा दत ह उन कतसतरयो की ओर व आप ही बरी दकतषट स दखत ह ओर रर पयार कतहनदओ तर

इनक जाि र कब तक फा स रहोग और कया तरको यही सासार स बचावग और इनही क भरोस तरको

भगवान कतरिगाrdquo33

राददरो क धन-ऐशवयम और वयाकतभचार र डब जीवन क जीवात कतचतर हर बनारस क रखाकतचतर lsquoपरर

जोकतगनीrsquo क अिावा lsquoकाशी क छायाकतचतर क दो बर-भि फोटोगराफrsquo र भी कतरित ह यहाा भारतद का वयागय

अपन वषणव सापरदाय की आतरािोचना स सदकय ह lsquoपरर योकतगनीrsquo नाटक र आन वािा चररतर रारचादर

खद भारतद ही थ नाटक का सतरधार कहता ह दक भारतवषम की दीन हीन गकतत क कारण उसका तो

कतवशवास ही ईशवर स उठन िगा ह नाटक क पहि ही दशय र भारतद हर राददर क भीतर कतिए चित ह

33 वसधा डािकतरया िारा उदधत पषठ- ३३७

30

जहाा राददर र कार करन वािा साधारण टहिआ झपरटया हर ददखाई दता ह पजारी बाब अभी तक नीद

स नही जाग ह कयोदक आधी रात तक lsquoबठ क ही-ही-ठी-ठी करा चाह दफर सबर नीद कस खिrsquo कतनकतशचत

रप स यह टहिआ सबह सवर ही राददर र हाकतिर ह िदकन दवता अभी राददर र सोय ह रारचादर

परदशी ह काशी र बाहर स आय ह छकक जी और राखनदास इस रारचादर की आिोचना करत ह इनक

सावादो स पता चिता ह दक बाब रारचादर क यहाा ददन रात नाच गाना हआ करता ह और उनको अपनी

कतवदया का घराड ह दो चार ककतवतत भी बना ित ह पर lsquoककतवतत बनाव स का होव और ककतवतत बनावन कछ

अपन िोगन का कार थोर हय ई भााटन का कार हयrsquo छकक जी कहत ह दक अपन रागम का उनह कछ जञान

तो ह नही बस दो चार बात इधर उधर स सनकर कछ lsquoदकसतानी रतrsquo सीखकर पाकतडत बन दफरत ह

कतनकतशचत रप स य भारतद पर िगन वाि आरोप थ राददर र सवारी धनदास वकतनतादा बभकतकषत पाकतडत

आदद धरम क ठकदार ह इनकी पतनशीि सासककतत को दखकर रारचादर का दःख इन शबदो र वयि होता ह

lsquoहा कया इस नगर की यही दशा रहगी जहाा क िोग ऐस रखम ह वहाा आग दकस बात की वकतदध की

साभावना करrsquo lsquoवददकी हहासा हहासा न भवकततrsquo जस शरआती नाटको र भी करमकााडी परोकतहतवाद की

आिोचना की गयी ह राजा और परोकतहत कतरिकर वहाा जनता का शोषण करत ह जआ रददरा और

रथन की ऐययाश सासककतत क परतीक परोकतहतो का काजरवरटव दि इन परहसनो र रतम होता ह कतचतरगपत यर

स कहत ह ldquoरहाराज य गर िोग इनक चररतर का कछ न पकतछए कवि दमभाथम इनका कततिक रदरा और

ठगन क अथम इनकी पजा कभी भकति स ररतम को दाडवत न दकया होगा पर राददर र जो कतसतरयाा आयी उनको

सवमदा तकत रह रहाराज इनहोन अनको को कताथम दकया ह और इस सरय तो र lsquoशरीरारचनदर जी का

शरीकषण का दास हाrsquo पर जब सतरी सारन आव तो उसस कहग lsquoर रार तर जानकी र कषण तर गोपीrsquo और

कतसतरयाा भी ऐसी रखम दक दफर इन िोगो क पास जाती हrdquo34

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo की ररपोटम र सतरी सधारो क कायो की रहतता बतान क बाद जाकतत वयवसथा पर

इन सधारको का परहार कयो जररी था इस बताया गया ह कठोर जाकतत बनधनो क चित कस हर साि

जाकतत-बाहय होकर जाकतत र वापस आन क दकसी उपाय को न जान lsquoहजारो रनषय आयम पाकति स हर साि

छटत थ उसको इनहोन रोकाrsquo इस परकार इन सधारको न lsquoआयमधरमrsquo क भीतर जो पररवतमन करन चाह

उसस आयो की एकता दफर स बहाि हो गयी इसक अिावा अाधकतवशवासो को इनहोन दर दकया यही नही

बकतलक जहाा िोग lsquoरसिरानी पीर पगमबर औकतिया वीर ताकतजया गाजी कतरयाा कतजनहोन बड़ी ररतम तोड़कर

और तीथम पाटकर आयम धरम कतवधवास दकयाrsquo उनको भी पजन िग थ और lsquoकतवशवास तो रानो कतछनाि का अाग

हो रहा थाrsquo ऐसी िजजाजनक कतसथकतत स िोगो को बाहर कतनकािकर lsquoसार आयामवतम को शदध lsquoिायिrsquo कर

34 दख रारकतविास शराम पषठ १३१

31

ददयाrsquo lsquoिायिrsquo कर ददया गया इसका अथम आयम जाकतत को दफर स िायि करन र था आयम जाकतत क भीतर

कतबगाड़ क चित ही कतनमन जाकततयो का बड़ परान पर पिायन था इस इन िोगो न रोका और इनक परताप

स ही अनक छोट और सथानीय धरम-रतो क भीतर जो lsquoरसिरानीrsquo परभाव घस आय थ उनको दफर स lsquoबड़ी

ररतमrsquo की कतनषठा र िाया जा सका इस परकार कतहनद धरम और वणामशरर क परकतत दफर स िोगो को lsquoिायिrsquo

दकया यह lsquoिायकतिटीrsquo भारतद की रकतडकि वषणवता क जनरत क कतिए भी जररी था तिवार जी जब

आयमसराकतजयो की lsquoकााकततकारीrsquo भकतरका ददखात ह तब आयम सराज िारा आयामवतम को िायि बनान वािी

इस भकतरका की साकतशलषटता पर जयादा बात नही करत भारतद दयानाद क कााकततकारी परयासो र lsquoिायिrsquo

बनान की परदकया उसी वक़त दख रह थ और इसी कारण ररपोटम र दयानाद की आिोचना धयान दन िायक

ह सवारी जी न ldquoजाि को छरी स न काटकर दसर जाि ही स कतजसको काटना चाहा इसी स दोनो आपस

र उिझ गए और इसका पररणार गह कतवचछद उतपनन हआrdquo गह कतवचछद का रतिब कतहनद धरम र गह

कतवचछद जबदक कशवचादर सन क बार र कहा गया दक उनहोन जाि काटकर भकति की उचछकतित िहरो का

पररषकत पथ परकट दकया इस परकार रकतडकि वषणवता की lsquoअनयताrsquo और परररिक भकति क परशसत पथ क

सवीकार का कतनषकषम कतवचार सभा का भी कतनषकषम था धयान दन िायक ह दक कशवचादर की आिोचना उनक

कतचतत कतवकषप क कारण की गयी थी जहाा lsquoईसारसीह आदद उनस कतरित हrsquo य एक दकसर का इिहारी

अनभव था कतजस भारतद अपनी वषणवता स बाहर रखत ह ईशवर न इस ररपोटम पर अपना रत सरकतकषत

रख कतिया और भारतद कतिखत ह ldquoइसको दख कर इस पर कया आजञा हई और व िोग कहाा भज गए यह

जब कर भी वहाा जायग और दफर िौट कर आ सक ग तो पाठक िोगो को बतिावग या आप िोग कछ

ददन पीछ आप ही जानोगrdquo

३ जनरत और वषणवता

ककतववचन सधा ९ राचम १८७२ र भारतद न lsquoPublic Opinion In Indiarsquo नार स अागरजी र

एक िख परकाकतशत दकया िख र उनहोन कहा दक कई सददयो दक दासता क बाद भारतवषमहहादसतान अब

जाकर कतिरटश राषटर क सवोचच कतनयातरण र आया ह दश धीर-धीर सभयता और परबोधन की पकतशचरी दकरणो

क सहार दरन और कशासन क रतय-तलय कतनदरा स जाग रहा ह कतिरटश शासन की परगकततशीि नीकततयो का

परभाव यहाा की बहरपी आबादी पर पड़ रहा ह

ldquoBut in this progressive state national energy and zeal sympathy and

disintiredness are waiting to make both the conqueror and the conquered to act in

32

concert and in harmony and hence we have the broad distinction of white and

black still But in this country many are the blemishes that adhere to us to be

eradicated and many are the shortcomings that are hovering around us to be done

away with before we can have a public opinion here in its true senserdquo35

गोर और काि क बड़ भद को छोड़ कर कतवजता अागरजो और भारतीयो क बीच एक सराजन तो बन गया ह

पर अनदरनी ददककत अभी भी राह बाए खड़ी ह रौका ह दक इस परगकततशीि कतसथकतत का फायदा उठा कर हर

एक सचच जनरत का कतनरामण कर सचच िोकरत क कतनरामण र अादरनी बाधाएा कया थी भारतद न इस

आग सपषट करत हए कतिखा-

ldquoRace antagonism rivalry and mutual misunderstanding are the favourite

occupations of the aristocratic class Want of confidence among all classes of men

are the prevailing characteristic of the nation and above all multifarious castes and

creeds with there numerous forms of religion and local habits and customs which all

combined have kept the progressive policy at a stand still True it is that a

representative Government is a boon to this country and true it is that Sir Bartle

fregravere a man of vast experience and a good statesman has found out that in village

community we can have public opinion but with all his experience he has lost sight

of our national defects ndash defects which we ourselves know and which no foreigner

can catch at a glancerdquo36

भारतद इस बात को िकर कतनकतशचत ह दक िोकरत और परकततकतनकतधरिक सासथाओ क बहतर कतवकास क कतिए

सीध-सीध कतवदशी रॉडि कभी सफि नही हो पायगा ऐसा इसकतिए कयादक हरारी आपसी कतवकतभननताओ

और झगड़ो को कोई बाहरीकतवदशी सतता कभी भी परी तरह सरझ नही सकती lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo नार

35भारतद गराथाविी -6 361

36 वही

33

स भारतद का एक दसरा िख इस अागरजी वाि िख क दो साि बाद अपरि सन १८७४ र हररशचनदर

रगजीन र छपा पकतबिक ओकतपकतनयन कया बिा ह इस साफ़ करत हए भारतद िख क आरमभ र ही कहत

ह ldquoपकतबिक ओकतपकतनयन अथामत सब साधारण िोगो की राय कया वसत ह और इसर दकतना जोर ह और

इसक कतिए कया हो सकता ह यह परशन ठहरा तो इसका साधारण उततर यही ह दक यह वह वसत ह जो

सासार को एक कर सकती ह गागा की धरा दफर कतहरािय पर चढ़ा ि जा सकती ह सययम को पकतशचर उगा

सकती ह और चाह तो ईशवर को भी पकड़ क कठपतिी की भााकतत नचा सकती हrdquo37 यह पकतबिक

ओकतपकतनयन lsquoएक रतrsquo होना ह जस अिग अिग चार पतिी िककतड़यो को एक साथ बााध दन स उस

तोड़ना करठन हो जाता ह उसी तरह एक रत होन स बड़ स बड़ा बरी भी हरारा कछ कतबगाड़ नही सकता

बहत स िोगो का रत एक हो तो वह शकति बन जाती ह हिारो आदरी की बकतदध एक हो जाए तो ldquoऐसा

कौन कार ह जो न हो सक तो यह कतसदधाात हआ दक कतनशचय सब िोगो क रत र बड़ी सारथयम ह इसस यह

कतसदध हआ दक बिो स बड़ा बि एक रत ही हrdquo38

आग भारतद कहत ह दक यह जनरत और उसकी शकति हहादसतान क कतिए कोई नई बात नही ह

पराचीन काि र इसक उदाहरण कतरित ह lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo की इस धारणा को भारतद न इकततहास क

अिग-अिग दौर र बनत और कतबगड़त ददखाया सबस पहि चार वणो की िररत पड़ी सब कार को

सचार रप स चिन क कतिए दसर शबदो र कह तो शरर-कतवभाजन की िररत स इसका जनर हआ

lsquoकतहनदओ न अपन गर क कार र इस वणामशरर धमरम को इसी वासत बनाया कतजस र उन क दकसी कार र

कोई हजम न हो और उनिोगो न सासार क सब कारो र चार कार रखय सरझrsquo धरम कतवदया और किाओ का

कार िड़ाई और राजय परबाध का कार वयापार और धन और सब िोगो की सवा और रजदरी इन चार

कारो की सवयवसथा वािा वणामशरर दरअसि lsquoएक रतrsquo कतहनद वयवसथा या lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo थी पर

कािाातर र इस lsquoएकरतrsquo क भीतर जाकततवयवसथा कठोर हो गयी और िाहमण और शदर दोनो एक दसर क

कतखिाफ हो गए एकरत र कतवचछद पदा होन स कतहनद शकति करिोर हो गयी भारतद क अनसार आपस

का यह झगड़ा बड़ा कतवनाशकारी साकतबत हआ पकतबिक ओकतपकतनयन क कतबना वयाकतभचार और जयादकततयो का

अाधर था आग चि कर जनो क जरान र दफर lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo न जोर पकड़ा बकतलक भारतद जोर

दकर कहत ह दक जनो क रत की उततपकततत ही lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo स हई ldquoकतहनदओ क जब नाश क ददन

जब कतनकट आय तो आपस र परसपर बड़ा कतवरोध खड़ा हआ और उस काि र िाहमणो का बड़ा जोर था

वरन य और वणो पर जयादती करत थ तो वशय और कषकततरयो की रकतत इनस दफर गयी और बाब वािी बड़ी

37गराथाविी- 678

38वही

34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

36

कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

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उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

38

ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 8: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

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रपक र हर इस तरह का एक अकततरक ददखाई दता ह जहाा lsquoअाधर नगरीrsquo राजय सतता हहासा और नयाय क

अकतनवायम साबाधो का रपक ह भारतद क परहसनो और वयागयो र जहाा कही इस असराधय सराजन का

खोखिापन उजागर होता ह भारतद का वतमरान अथम उनही र राना जाना चाकतहए

िोकजागरण की कतवचारधारा क रप र भकति रारकतविास जी क कतिए भी वषणवता क अनदर ही

पररभाकतषत थी अकारण नही दक भारतद को वह तिसी की परापरा का नवजागरण रानत थ भकति की

इस कतवचारधारा क कतखिाफ सातरत की कतवकतशषटताओ को वह निरअादाज करत ह अगर सातरत कारीगरो

और कतनमनवगीय जनता का साासककततक और इसकतिए राजनीकततक परयास था तो उस कवि भाषा या बोकतियो

स बनन वािी lsquoजातीय चतनाrsquo र कतनसशष नही दकया जा सकता कबीर आदद सातो क िोकजागरण स

भारतद क नवजागरण का साबाध रारकतविास जी न नही ददखाया ह कबीर आदद क यहाा जो जयोकतत ददखाई

पड़ी थी उस वषणव भकति की कतवचारधारा क बड़ परवाह र सरझन स यह ददककत पदा होती ह रखय

अातरवमरोध क भीतर जो शतरतापणम कषण ह उस दकतषट स ओझि करन का कार ही परभतवशािी कतवचारधारा

करती ह रारकतविास जी पाजी क अातरवमरोधी चररतर को तो दखत ह िदकन यह नही दख पात दक

अातरवमरोधो स ही वह गकततशीि ह राकसम न इनही अथो र पाजी को lsquoगकततशीि अातरवमरोधrsquo कहा था

परभतवशािी कतवचारधारा भी अपन भीतर क अातरवमरोधो स ही आग बढ़ती ह भकति और रीकतत या कतनगमण

या सगण ऐस ही अातरवमरोध ह भारतद यग भी अपन अातरवमरोधी चररतर स ही बन रहा था उपकतनवशवाद

का कतवरोध भी उपकतनवशवादी कतवकास का ही कतहससा था सारातवाद स पाजीवाद र साकरण कवि

सारातवाद कतवरोध क रप र ही नही कतवककतसत होता बकतलक वहाा पाजीवाद क अकततकरण की साभावना भी

अनतरनमकतहत होती ह जो बाद र पाजी क कतवकास क दौरान पाजी क साराकतजक साबाधो र बदि जाता ह

थॉरस रनतसिर क नततव र हए कषक कतवदरोह र एागलस न या रधयकािीन कतवधरी आनदोिनो र कतसतरयो

की भकतरका ददखान क कर र कतसकतलवया फददरची न इस अकततकरण को और पनः पाजी क साराकतजक साबाधो

र रपाातरण की परदकया को ददखान की कोकतशश की ह13 पाजीवाद की काकतनतकारी भकतरका पर जोर दन स

उसकी परकततकााकततकारी भकतरका आाखो स ओझि हो जाती ह lsquoइकततहास जसा था वसा पान कीrsquo कोकतशश की

यह अकतनवायम सीरा ह अागरजी राज की िट पाजी की िट थी भारतीय आतर या हहादी जाकतत का

आतरकतबमबअाततः इस िट को कतछपान वािी और उस भिान वािी रोहक कलपना थी कही १८५७ स

भारतद यग का साबाध ददखाना भी एक रोहक कलपना ही तो नही ह

13 दख फडररक एागलस द पीजट वॉर इन जरमनी परोगरस पकतबिशसम रासको- १९७७ और कतसकतलवया फददरची ककतिबन एाड द कतवच फोकतनर

बकस ददलिी- २०१३

9

नारवर जी न नवजागरण को ररनसाास क बदि परबोधन या एनिाइटनरट की तरह दखन की बात

कही थी और कहा था दक इस नवजागरण का १८५७ स कोई भी साबाध कतशषट साकतहतय र नही ददखाई

पड़ता रारकतविास जी क िख क दो साि बाद lsquoआिोचनाrsquo र नारवर जी न lsquoहहादी नवजागरण की

सरसयाएाrsquo नार स एक िख कतिखा उपरोि दो चीज नारवर जी न उसी िख र कही ह उननीसवी सदी क

भारतीय नवजागरण को ररनसाास कहन र कई ददककत ह यरोप र कतजस lsquoररनसाासrsquo lsquoररफारशनrsquo या

lsquoकतचनकवचतोrsquo आदद कहा जाता ह वह पादरहवी शताबदी का नवजागरण था पादरहवी शताबदी र भारत भी

भकति आनदोिन क रप र एक जागरण स गजर रहा था इसकतिए नारवर जी कहत ह दक अगर उननीसवी

सदी क नवजागरण को ररनसाास कहग तब पादरहवी शताबदी क भकति आनदोिन को कौन सा जागरण

कहग रारकतविास जी इसीकतिए एक को िोकजागरण और दसर को नवजागरण कहत ह नारवर जी

कतिखत ह ldquoउननीसवी शताबदी क भारतीय नवजागरण को lsquoररनसाासrsquo कहन र एक करठनाई तो यह ह दक

इस यग क भारतीय कतवचारको और साकतहतयकारो क पररणासरोत यरोप क पादरहवी शताबदी क कतचनतक और

साकतहतयकार न थ बकतलक इसक कतवपरीत पररणासरोत क रप र अकतधकााश कतवचारक उस काि क थ कतजस

यरोप र lsquoएनिाइटनरटrsquo का काि तथा उसक बाद का काि कहा जाता ह सवया बादकर की सहानभकतत

रसो और परधो क साथ थी और व कोत जॉन सटअटम कतरि तथा हबमटम सपसर स परभाकतवत ददखाई पड़त

हrdquo 14 इस परकार यह lsquoनवजागरणrsquo lsquoपरबोधनrsquo की चतना क तलय ह और इसकतिए इसकी अातवमसत

lsquoिोकजागरणrsquo स कतभनन ह यदयकतप एक र दसर की चतना lsquoअाशतः कतवदयरानrsquo ह पर नवजागरण

िोकजागरण का पनरतथान रातर नही ह नवजागरण का नततव करन वाि रधयवगीय थ िोक क बीच स

नही आन क चित उनका सारानय िोक जीवन स एक दराव था और कतवचारो र िोकोनरख होकर भी

वयवहार र उनका िोक क साथ कोई तादातमय नही था नवजागरण का परभाव शहरो तक सीकतरत था और

इसकतिए िोकजागरण की तिना र इसका परसार भी सीकतरत था नारवरजी इस नवजागरण को रखयतः

साासककततक आनदोिन क रप र दखन की कतहरायत करत ह पर सवाि यह ह दक इस साासककततक आनदोिन

की राजनीकतत कया थी

भारतद क शबदो र नारवर जी भारतीय नवजागरण की रि सरसया lsquoसवतवrsquo या lsquoअकतसरताrsquo की

सरसया बतात ह धयान रखन वािी बात ह दक परबोधन या एनिाइटनरट की एक रि सरसया अकतसरता

की सरसया ह lsquoपरबोधन की िािातरकताrsquo नारक अपनी दकताब र एडोनो और हाखमइरर न ददखाया ह दक

कस परबोधन या जञान की शकति न यथाथम को कतरथ बनाया और कतरथको को यथाथम दकया एक पणय-वसत क

रप र जञान का उतपादन और पनरतपादन उननीसवी सदी की कतवशषता ह खासतौर स पवी कतवदया की रााग

14 नारवर हसाह हहादी का गदयपवम (सा) आशीष कततरपाठी पषठ-८६ राजकरि परकाशन नई ददलिी- २०१०

10

बािार र बहत थी जञान का कतवकतनरय एक बड़ बािार र हो रहा था और जञान की सारचना और उसकी

सापणमता एक फरटसाइजड कतवशवदकतषट बनाती थी कतभननता ह इसकतिए कतवकतनरय ह हर चीज जो कतवकतनरय र

शाकतरि ह रनषय की दकसी न दकसी जररत को परा करती ह य जररत य इचछाएा कवि पट स पदा नही

होती बकतलक कलपनाओ स भी पदा होती ह परबोधन की िािातरक परदकया क भीतर कतवजञान और धरम दोनो

न रनषय क कलपनाजगत की इचछाओ को भी परा करन वािा बािार बनाया कतभननताओ की

वासतकतवकताओ को छपान क कतिए या दसर शबदो र कह तो जञान की वासतकतवक जररत को छपान क कतिए

जञान का एक भरर खड़ा दकया जाता ह ठीक वस ही जस बजमआ अथमशासतर पाजीवाद की अतारकमकता को

ढाकन और दबान की परदकया र ही बना था पराककततक कतवजञानो क भीतर स कतनकिन वािी दो तरह की

कतवचारधाराओ की रााग बहत थी एक अटठारहवी सदी र िोककतपरय lsquoयााकततरक भौकततकवादrsquo की कतवचारधारा

और दसरी जीवकतवजञान स आन वािा कतवकासवाद का कतसदधाात राजनीकततक अथमशासतर क कतिए भारत र जॉन

सटअटम कतरि आदद िखको क बजमआ अथमशासतर का नया बािार था तकम की सावमभौकतरकता को उसकी

वासतकतवक जररत स काटकर lsquoअकतसरता कतनरामणrsquo स जोड़ ददया गया जो इकततहास कतरथ क अात का दावा

करता था वह सवया कतरथ गढ़न िगा यह सब साभव हआ उस कतवशाि जनसारानय क भय क सहार

कतजनहोन अपन ऊपर अपना कतनयातरण खो ददया था धरम इस भय क सहार कतवजञान की आिोचना करता था

और कतवजञान धरम की परबोधन-पवम की परापरा र जो आसथा या कतवशवास और जञान का अकतनवायम साबाध था

उसक सहार धरम आसथाकतवहीन जञान की आिोचना क िारा कतवशाि जनसारानय की रकति का कारोबार

करता ह

परबोधन की एक धारा आिोचनातरक जञान की धारा थी कतजसकी आिोचना राकसम न

lsquoआिोचनातरक आिोचना की आिोचनाrsquo कहकर की थी भारतीय नवजागरण क भीतर आिोचनातरक

जञान की धारा को नारवर जी न रहतवपणम राना ह यह ldquoआिोचनातरक दकतषट यरोप क lsquoपराचयकतवदयावादrsquo

(ओररएणटकतिजर) क इस उपकतनवशी रायापाश को कतछनन करन की चतावनी दती हrdquo15 यह उपकतनवशी

रायापाश पाजी का रायापाश भी ह जञान की पाजी का रायापाश कतजस हर पराचयकतवदयावाद का रायापाश

कह रह ह वह आिोचना-परतयािोचना की एक तथाककतथत िोकताकतनतरक परदकया र ही बन रहा था

इसकतिए इस आिोचना-परतयािोचना की परदकया की आिोचना क सनदभम र ही हर उस आिोचनातरक

धारा की चचाम कर सकत ह और कहना न होगा दक यह एक राजनीकततक करम भी ह नारवर जी न कहा दक

भारतीय नवजागरण र lsquoसवतव पराकतपतrsquo का साबाध राजनीकततक रकति स नही जोड़ा गया ह राजनीकततक

सवाधीनता अथामत lsquoराजसतता पिटन क कतवचार को अातगमहावास द ददया गयाrsquo इस तरह १८५७ या उसक

15 वही पषठ- ८७

11

पहि क दकसान कतवदरोहो क भीतर जो राजसतता पिटन का कतवचार था उस भारतीय नवजागरण न

अातगमहावास दन का कार दकया अतः भारतीय नवजागरण रखयतः साासककततक आिोचना ही थी

राजनीकततक आिोचना को गहावास दन वािी साासककततक आिोचना वह कतिखत ह ldquoसच तो यह ह दक

अकतधकााश िखक सरकषा सशासन कतशकषा उननकतत और शााकतत क कतिए कतिरटश राज क परकतत उपकत अनभव

करत ह- कतवशष रप स रगिो क शासन की तिना र इस परवकततत क अवशष बीसवी शताबदी क दसर

दशक तक रकतथिीशरण गपत की lsquoभारत भारतीrsquo जसी राषटरीय कही जान वािी कावय-ककतत र भी कतरिती ह

यहाा तक दक कभी-कभी तो नवजागरण क अनक उननायक राजसतता क साथ सहयोग करत भी ददखाई पड़त

ह अब इस कोई चाह तो नवजागरण क उननायको का रधयवगीय अथवा भदरिोक चररतर कह ि अथवा

दकसी सागरठत राजनीकततक परकततरोध क अभाव क िारा इस कतनरपायता की वयाखया कर ि दकनत हर हाित

र यह तथय कतवसरत न हो दक कि कतरिाकर था यह रितः नवजागरण ही- साासककततक नवजागरण कतजस

राषटरीय सवाधीनता साघषम का पवमराग भि कह ि दकनत उसका पयामय न सरझrdquo16 इसी साासककततक

नवजागरण स वह lsquoआतरकतबमबrsquo तयार हआ कतजसक कतबना राजनीकततक साघषम का वह रप कतवककतसत नही होता

जो आग चिकर वासतव र हआ अजञय की इस वयाखया स नारवर जी सहरत ह दक राजनीकततक-साराकतजक

आधारो की वासतकतवकता क बावजद भदरवगीय साासककततक आनदोिन न जो lsquoआतरकतबमबrsquo रचा वह

राजनीकततक सवतातरता साघषम र हकतथयार बन गया राजनीकततक सवतव पराकतपत की जो चतना इस पररणापरद

आतरकतबमब र अातगमहावास कर रही थी आग चिकर वही राजनीकततक सवतव पराकतपत र उभरकर कतनज

कतवककतसत होती गयी एक बार दफर lsquoइकततहास जसा था वसा पानrsquo की कोकतशश र इकततहासवाद की

कतवचारधारा सारन आ खड़ी होती ह इस इकततहासवाद की आिोचना गरामशी न भी की थी खासतौर पर

कोच क परर इकततहासवाद की आिोचना करत हए सवाि ह दक सासककततकरम की राजनीकतत कया ह

ददरागी गिारी स रकति का साघषम और राजनकततक रकति का साघषम कया इस तरह क अिगाव र रह सकता

ह और अगर अिगाव ह तो इस अिगाव को कस सरझ एक बार यह तय हो जान पर दक उनका वगम

कया था हर उसी क आिोक र उनक साासककततक परयासो की आिोचना करनी चाकतहए दसर शबदो र

उनक अपन वगीय अातरवमरोधो क आिोक र ही उसकी आिोचना साभव ह उपकतनवशवाद की रानकतसक

गिारी क कतखिाफ साघषम जञान की सतता क कतखिाफ साघषम ह और शायद इसकतिए नारवरजी कहत भी ह दक

यह साघषम राजनीकततक साघषम स lsquoकर करठन न थाrsquo यरोपीय जञान क बरकस भारतीय जञान को सथाकतपत

करन का साघषम ही यह साघषम था ldquoउपकतनवशवाद की छाया र भारतीय सासककतत क िोप का खतरा था

इसकतिए अपनी सासककतत की रकषा का परशन सवतव-रकषा का परशन बन गयाrdquo17 सतता पिटन क कतवचार को

16 वही पषठ ८८

17 वही

12

अातगमहावास दकर सवतव-पराकतपत सवतव-रकषा का परशन बन गया और यह सवतव कया था कतजसकी रकषा

साासककततक रोच पर नवजागरण क परसकताम कर रह थ- कलपना या यथाथम परबोधन न जञान का एक कतरथ

तयार दकया और चपक स कतरथको को जञान बना ददया इस नवजागरण की एक बड़ी दन एक परकतत-

इकततहास-दकतषट का कतवकास ह नारवर जी कतिखत ह ldquoनवजागरण की एक बहत बड़ी दन साभवतः वह

इकततहासदकतषट ह कतजसस अपन अतीत को शतर स रि करक उसक कतवरदध वतमरान र इसतराि करन की किा

आती ह और भकतवषय क कतिए सवपन दकतषट भी कतरिती हrdquo18 अगर वासतव र यह दकतषट नवजागरण की दन ह

तो रानना पड़गा दक यह फासीवाद की इकततहासदकतषट ह एक ऐस रकतसिर अतीत की कलपना जहाा रकतसिर

शतरओ स भारतीयता को रि करक वतमरान र उनक कतखिाफ इसतराि दकया जाता ह और इसस भकतवषय

की एक सवपन दकतषट भी भी कतरिती ह कहना न होगा दक परबोधन स कतनकिी यह इकततहासदकतषट अतारकम क

नही थी कयोदक यह साघषम की वासतकतवकता का सबस भरकतरत रप खड़ा करती ह फासीवाद इस अथम र वगम

साघषम का सबस कतरथकीय रप ह और अगर यह सही ह तो सवतव-रकषा र परापत इस इकततहासदकतषट को हर

परकततकााकतत की इकततहासदकतषट कह सकत ह भारतीयता का यह भरकतरत आतरकतबमब सवया को दो बनाकर ही

गकततशीि था यही इकततहासदकतषट आग चिकर lsquoकतवरदधो का साराजसयrsquo की इकततहासदकतषट क रप र इकततहास

का सबस भवय ढााचा खड़ा करती ह आतरकतबमब क इस कतवखाडन को िकषय करत हय नारवर जी न कतिखा

ldquoहरानी की बात ह दक हहादी परदश का नवजागरण धरम इकततहास भाषा सभी सतरो पर दो टकड़ हो गया

सवतव रकषा क परयास धरम तथा सापरदाय की जरीन स दकय गएrdquo19

आतरकतबमब का यह दो होना िखको क दो वगो र परकततहबाकतबत हआ नारवर जी क अनसार एक

वगम अागरजो का घोर कतवरोध करता ह पर धरम-सासककतत और साराकतजक परथाओ क बार र परापरावादी ह

दसरा वगम अागरजी राज क परकतत नरर रख अपनाता ह पर अनय रारिो र या तो रिगारी ह या दफर

सधारवादी िखको का पहिा वगम भारतीय होन का दावा करता ह जबदक नररपाथी िखक पकतशचरोनरख

ह हहादी नवजागरण क नता जयादातर परापरावादी ह जहाा अागरजी कतशकषा का परसार जयादा हआ वहाा

पकतशचरोनरख िखक जयादा थ दयानाद की अपकषा भारतद का झकाव कशवचादर सन जस पकतशचरोनरख

िखको या सधारको क परकतत था ऐसा साभवतः वषणव भावकता क चित था नारवर जी भारतद र परखर

बकतदधवाद का अभाव पात ह पर उनकी रराकतनयत को रानवतावाद की कतवचारधारा स जोड़त ह

नवजागरण क इस साकतशलषट कतचतर को सारन रखन की कोकतशश र नारवर जी एक ऐसी इकततहासदकतषट

कतवककतसत कर रह थ जो अतीत को उसक सापणम अातरवमरोधो र पान की कोकतशश करता ह अतीत को खिा

18 वही पषठ-८९

19 वही पषठ ९१

13

छोड़ दन वािी यह इकततहासदकतषट या एक सातकतित इकततहासदकतषट का यह परयास खाड खाड कतबमबो की एक ऐसी

गकततशीिता का भरर पदा करती ह जो इकततहासवाद की एक पररख कतवशषता रही ह इस पकष पर सवया

नारवर जी का धयान था और आग चिकर उनहोन नवजागरण क इस कतरथकीय चररतर को सवया ही

आिोकतचत दकया इस आिोचना र वह नवजागरण को परबोधन कहन क बदि lsquoअकतभजञान-कािrsquo कहना

जयादा उपयि रानत ह खद lsquoनवजागरणrsquo नार को अागरजो की कलपना बतात ह और उननीसवी सदी को

lsquoसरकतत-भराशrsquo का काि कहत ह यहाा १८५७ स िकर भारतद और कतववकानाद सब एक कतरथकीय चतना क

भीतर सराकतहत ददखत ह और कतजस भारतीय नवजागरण कहा जाता था उस कतवपरीत जागरण रानत ह

इसी कतवपरीत जागरण का नार उनहोन अकतभजञान ददया 20 डा वीरभारत तिवार न कवि कतहनदी

नवजागरण को भारतीय नवजागरण की परकततकााकततकारी धारा कहा था वही नारवर जी अब पर भारतीय

नवजागरण को ही कतवपरीत जागरण कह रह ह और बहत हद तक सही कह रह ह

डा तिवार न अपनी lsquoरससाकशीrsquo र lsquoहहादी नवजागरणrsquo को एक भरारक पद बताया था न तो

इसका साबाध १८५७ स था न रधयकािीन भकति आनदोिन स और न ही जनवादी राषटरवाद की दकसी

अवधारणा स उनक अनसार परबोधन क कतववकवाद तथा धरमसधार-सराज सधार की कतरिी जिी परदकया

क रप र कतवककतसत होत बागािी या रराठी नवजागरण या भारतीय नवजागरण की परकततगारी धारा क रप

र कतवककतसत होन वाि भारतद आदद क साासककततक आनदोिन को lsquoहहादी आनदोिनrsquo कहना ठीक ह कतशकतकषत

रधयवगम क भीतर दो परसपर कतवरोधी धाराओ की चचाम डा तिवार करत ह एक धारा कतववकवाद की

धारा थी दसरी सनातनी कतहनद धरम की धारा रहाराषटर और बागाि र अागरजी कतशकषा क परचार-परसार न कतजस

नए धरम और सराज सधार को गकतत परदान की वह अपकषाकत अकतधक परगकततशीि धारा थी पकतशचरोततर यि

परानत क पवी इिाक खासतौर पर बनारस इिाहाबाद और बहत हद तक पटना कानपर भागिपर आदद

शहरो र कतवककतसत नव-रधयवगम इस परगकततशीि धारा क साथ नही था इसका सबस बड़ा कारण अागरजी

कतशकषा का अभाव था यि परानत र कोई धारा परगकततशीि भकतरका अदा कर रही थी तो वह कवि दयानाद

सरसवती की आयमसराजी धारा थी इस आयमसराज का भी अपना जनाधार सनातनी पाकतडतो या िाहमणो क

यहाा नही बकतलक नौकरीपशा अागरजी कतशकषा परापत वह भदरवगम था जो अपन धरम और सासकारो क कतपछड़पन

को िकर गिाकतनबोध स भरा था इस वगम को अपनी पहचान आयम सराज र ददखती थी आयम सराज क

रिवाद र तथा उसक तारकम क सथिवाद र आधकतनक होन का रासता ददखता था िहमोसराज और

कतथयोसोदफकि सोसाइटी दो ऐसी सासथाएा और थी जो यि परानत र धरम और सराज सधार का परयास कर

रही थी परनत इसका परभाव बहत सीकतरत था आरतौर पर यिपराात र रहन वाि बागािी अपरवासी ही

20 दख नारवर हसाह उननीसवी सदी का भारतीय पनजामगरण यथाथम या कतरथक (अन) पाकज पराशर पकषधर अाक ११ जिाई २०११

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इनक सदसय थ हहादी आनदोिन क नताओ न इन दोनो धाराओ की आिोचना की ह इनहोन दयानाद क

रिवाद की आिोचना अपनी परापरावादी करमकााडी दकतषट स की इनक अनसार उपकतनषद या पराण आदद

अगर अपराराकतणक भी ह तब भी चादक िोक र सवीकत ह इसकतिए उनह एकदर ख़ाररज करक कोई धरम या

सराजसधार नही हो सकता तिवार जी का कहना ह दक अपनी िचर दिीिो की आड़ र य िोग वसततः

सतरी कतशकषा कतवधवा कतववाह या आधकतनक जीवनशिी आदद की परगकततशीिता का कतवरोध कर रह थ यह

कतवरोध आरतौर पर सरदाय की रानयताओ को ही सारन रखकर दकया जाता था एक दकसर क

कतबरादरीवाद क भीतर स सरझौता करत चिन क कारण हहादी आनदोिन क नता अपन पाररवाररक या

वयकतिगत जीवन क उथिपथि स बचन की कोकतशश करत ह धरम इनक कतिए सधार का नही वरन

राजनीकततक हथका डा रातर था धरम की आड़ र य रकतसिर भदरवगम को अपना परकततयोगी साकतबत कर कतहनद

एकता की अपीि करत तादक इनह सरकारी नौकररयो र कछ कतवशषाकतधकार कतरि सक तिवार जी क

अनसार रकतसिर भदरवगम इन हहादी आनदोिन क परसकततामओ स कही जयादा परगकततशीि था उनक यहाा

आधकतनकता क परकतत जयादा खिी और कतववकसापनन दकतषट थी और उनहोन जोर दकर कहा दक हहादी आनदोिन

को सर सयद अहरद खाा जस दकसी सकषर कतववकवादी वयकतितव का नततव नही कतरि पाया हहादी

आनदोिन और नताओ क अातरवमरोधो को ददखात हए तिवार जी न भारतद की छकतव एक पतनशीि कतहनद

रोररटक की गढ़ी ह यहाा भारतद एक परकततनायक क रप र नजर आत ह

कतववकवादी इस धारा न राषटरीयता की जो धारणा गढ़ी वह रितः साापरदाकतयक थी अागरजी राज क

कतखिाफ अगर इनका साघषम सराज और धरम सधार को साथ-साथ रखन क बजाय उसर अिगाव करता ह

बकतलक उनक कतखिाफ जाकर सागरठत होन का परयास करता ह तो उसक सारन रकतसिर भय पदा करन क

अिावा और कोई रासता साभव नही था lsquoहहादी नागरी और गोरकषाrsquo आनदोिन इसकी सवभाकतवक पररणकतत

थी आग चिकर उननीसवी सदी क आकतखरी दशक र आकार गरहण करन वािी कतहनद राषटरवाद की यह

पषठभकतर ह इसक वग र दयानाद न भी साथ ददया कयोदक उनर भी पनरतथानवाद क बीज थ पवी परदशो

की अपकषा आयम सराज पाजाब र कही जयादा रकतडकि था आयम सराकतजयो की सदसयता की साखया पाजाब

क रकाबि यि परानत र जयादा थी पर वहाा कोई गणातरक पररवतमन साभव नही हआ और यह रहज

साखयाबि क रप र ही बना रहा इसका कारण उनहोन पाजाब की कतभनन नतततवशासतरीय अवकतसथकतत र

बताया ह पाजाब र िाहमणो का परभाव कर था कतजसका एक कारण रसिरानो क साथ िमबा सासगम और

कतसख धरम आदद का परभाव भी था इस तरह का कोई कतवशलषण पवी परदशो क बार र नही दकया गया जसा

दक बहत पहि रदमरशरारी की ररपोटम स ही हजारीपरसाद कतिवदी न दकया था अथामत रधययगीन कतसख

धरम क परभावो की तरह कबीरपाथी आदद सरदायो क परभाव और वषणवता क अातसबाधो की पड़ताि नही

15

की गयी ह काशी क बनकरो की एक हड़ताि का कतिक रारकतविास जी बार बार करत ह जो १८३३ ई र

ही हई थी और इकततहासकार बिी क अनसार यह वक़त आरथमक साकट का भी वक़त था

भदरवगम का जो कतहससा हहादी आनदोिन क साथ था उस जाकतत वयवसथा की परानी रानयता को

बनाय रखन या उस रजबत करन की जररत कया कवि नौकररयो र कतवशषाकतधकार परापत करन क कतिए थी

या जाकतत वयवसथा रातर र आय एक रिगारी साराकतजक साकट का वह परकततदकयावादी रपाातरण ह शहरो

र आरथमक-वयापाररक गकततकतवकतधयो क कारण और आसपास क इिाको स परवासी रजदरो का आगरन तथा

बढ़ती वशयावकततत आदद क चित शहरी साराकतजक साबाधो र भी उथि-पथि थी ऐस सरय र सारदाकतयक

या कतबरादरी बोध lsquoएकाrsquo की भावना पदा करती ह तिवार जी इस नव-भदरवगम का अपन ही भीतर अिग-

अिग खााचो र बाट होन की बात करत ह अिग-अिग खााचो र बाट होन क चित यह भदरवगम रधयवगम की

कतवचारधारा अथामत कतववकवाद या नवजागरण को परापत नही कर पायी थी वगम था िदकन वगम की

कतवचारधारा नही थी खद भारतद क जीवन स हर उस दौर की अकतसथरता का कछ अादािा कतरिता ह

अकतसथरता और खााचो र बाटा रधयवगम दरअसि सापणम सराज र होन वाि एक आधारभत पररवतमन की ओर

इशारा करता ह यह पररपरकषय १८५७ की तरासदी का भी ह ऐसी कतसथकतत र हपराट पाजी क साथ बनन वािा

यह साासककततक आनदोिन था जहाा सवतव रकषा रखयतः अपन परान कतवशषाकतधकार की रकषा थी साराकतजक

साबाधो र आय उथि पथि क कारण उनह अपन कतवशषाकतधकार कतछन जान का खतरा साफ़ ददखाई द रहा

था जहाा अागरजी कतशकषा थोड़ा पहि ही परसार पा चकी थी वहाा कशि कारीगरो स िकर अधयापको और

परशासकतनक अकतधकारीयो क एक बड़ सरह न अपना नया कतवशषाकतधकार पा कतिया था साराकतजक साबाधो र

उनकी शरषठता उनक कतववकवाद क कारण बन चकी थी भारतद क एक शरआती िख lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

क राधयर स खााचो और जनरत की राजनीकतत को सरझन की कोकतशश आग करग

तिवार जी क अनसार दयानाद क कतवचारो क कतिए पाजाब जयादा गरहणशीि था कयोदक वहाा

जाकतत वयवसथा क बाधन पहि ही ढीि हो गए थ यिपराात र जाकतत क बाधन जायदा कठोर थ कतजन अथो र

कतिवदी जी रधय दश की रकषणशीिता का कतजक करत ह कछ-कछ उनही अथो र पर सवया दयानाद क

कतवचारो र कतववकवाद-पनरतथानवाद का दोरखापन कतरिता ह तिवार जी कहत ह दक कतजन सथि तको स

वह वदो की ओर िौटन को कहत थ आयम भाषा आयम जाकतत और आयम धरम की बात करत थ उसक कारण

ही इनका झकाव आग चिकर राषटरीय सवयासवक साघ की ओर होता गया पर आयम सराज क साराकतजक

सधारो और धरम सधारो की एकता क कारण वहाा वह साभावना भी थी कतजसक परभाव स आग चिकर बहत

सार कमयकतनसट कायमकताम भी कतनकि पररचाद राहि साकतयायन या गणश शाकर कतवदयाथी जस साकतहतयकार

और आनदोिनकताम आयम सराज क परभाव र थ आयम सराज तिवार जी क अनसार वासतकतवक साराकतजक

16

पररवतमनो का सावाहक और सराज र वयकति स िकर साराकतजक जीवन क हर कषतर र गणातरक पररवतमन

िान वािा इसकतिए हो पाया कयोदक वहाा धरमसधार और सराज सधार अिग-अिग नही था दसरी ओर

हहादी आादोिन साापरदाकतयक जाकततवादी और सतरीकतवरोधी रलयो को ही सराज र फ़िान र कारयाब हआ

यह धारा अागरजो को अरजमयाा दकर नौकरी पान वाि रधयवगम की धारा थी

तिवार जी न भारतद की तकमशीिता को बहत कतनमन कोरट का कहा ह भारतद क चररतर र शायद

वह एक lsquoिमपनrsquo की छकतव भी दखत ह पसा उड़ान की वकतत सतरी क साथ वयवहार और उनक साबाध

चाररतरय बि का अभाव आदद आदद क सनदभम र वह कहत ह दक भारतद क चररतर र वह सदढ़ता या

सदाचाररता नही ह जो सराजसधार क कतिए आवशयक होती ह घर र पतनी उनह कभी पसाद नही आई

और वह बाहर रहदफ़िो र वाहवाही िटत रह रदमवादी दकतषट भी उनर कट-कटकर भरी थी भारतद क

इस चररतर की तिना तिवार जी न दो अनय परमपरावादी सधारको स की ह एक बागाि क राधाकाात दव

और दसर पाजाब क शरदधारार फलिौरी यदयकतप य दोनो भी भारतद की तरह परापरा की रकषा र ही सधार

की ओर अगरसर हए थ िदकन इन िोगो का चररतर जयादा परगकततशीि था इन दोनो की तिना र भारतद

का खिनायकतव और भी अकतधक उभरकर सारन आता ह सापकतकषक परगकततशीिता क कतनधामरण क कर र

भारतद अपन सापणम जीवन वयवहार र एक एाटी हीरो की तरह उभरत ह ठीक परान खिनायको की तरह

नही एाटी हीरो क साथ दशमक या पाठक की एक आतरीयता भी जड़ी रहती ह उसका चररतर ददराग र बस

जाता ह िदकन इसक चित यथाथम क ओझि होन का खतरा भी ह तिवार जी इसकतिए कदर कदर पर

उनकी साकतहकततयक छकतव क बरकस उनक राजनकततक- साागठकतनक जीवन वयवहार स बनन वािी छकतव को

सारन ररतमरान करत जात ह

अपनी परी आिोचना र तिवार जी भारतद की रचनाओ र कतरिन वाि भाषायी िदधड़पन और

राद तकमशीिता की चचाम तो करत ह िदकन व भारतद क वयागयो पर चचाम नही करत कया यह रहज

सायोग ह दक भारतद क परहसन lsquoअाधर नगरीrsquo का राचन आज भी परगकततशीि रलयो की परकततषठा ही करता

हभारतद क वयागयो या परहसनो र ऐसा कया ह कतजसर दहराव क साथ नवीन होत चिन की कषरता भी ह

भारतद क िखो या परहसनो या रपको र जो कही-कही वणमन या सावाद िारा वयागय का तीखा बोध पदा

होता ह उसकी शकति उनह कहाा स कतरिती ह वयागय की कषरता सवया र उनकी सकषर कतनररकषण र सरथम

दकतषट का परराण ह परान साराकतजक साबाधो र पररवतमन और तीवर पररवतमन क साथ साथ जो एक परहसन

चि रहा था उसका बोध भारतद को था भदरवगम क भीतर की कतववकवादी धारा का कतवकास भी कतहनद

राषटरवाद की कतवचारधारा र ही हआ परनत lsquoअाधर नगरीrsquo कया कतहनद राषटरवादी कतवचारधारा वािा परहसन ह

या कया यह कवि राषटरवादी कतवचारधारा का वाहक ह lsquoउरराव जान अदाrsquo र उभरकर सारन आन वाि

17

साराकतजक साासककततक साकषोभ या उस वयापक टरजडी क सनदभम र दख तो भारतद क वयागय और परहसनो का

अथम थोड़ा और उभरता ह रकतलिका या राधवी स भारतद क साबाधो र कया उस तरासदी का सराग भी नही

ह वशयावकततत और पतनशीि रइसो का साकट एक दसर स अिग नही था उस सरय की औपनयाकतसक

ककततयो र वशयावकततत का सनदभम अवशय आता ह आग चिकर पररचाद की सरन बनारस र ही lsquoसवासदनrsquo

का सराधान ढाढ रही थी

भारतद क वयागयो पर रारकतविास जी का धयान था यह बात अिग ह दक अकतधकााश रौको पर

इनर वह जातीय चतना खोज कतनकाित ह बीस साि की उमर र भारतद न एक िख lsquoिवी पराणिवीrsquo नार

स कतिखा था रारकतविास जी इसका उलिख करत हए कतिखत ह ldquoगवनमर जनरि कतहनद क कतजस दरबार का

भारतद न वणमन दकया ह वह काशीराज क घर पर हआ था इसकतिए भारतद की सतयकतपरयता और भी

सराहनीय ह वहाा जो सजजन िोगो क नार कतिख रह थ उनका वणमन या दकया ह lsquoनार कतिखन वाि राशी

बदरीनाथ फि-फाि अबा पकतहन पगड़ी सज परान दादर की भााकतत इधर-उधर उछित और शबद करत

दफरत थrsquo िोग दकस तरह एक आनररी रकतजसटरट क lsquoकतसट डौनrsquo lsquoसटड अपrsquo कहन स उठत और बठ जात थ

इसका उनहोन बहत ही नाटकीय वणमन दकया ह आनररी रकतजसटरट का वयवहार हविदार का सा था कतसफम

हाथ र एक िकड़ी की कसर थी िोग कीरती पोशाक पहनकर गए थ ldquoसबक अागो स पसीन की नदी

बहती थी रानो शरीयत को सब lsquoअरघय पादयाrsquo दत थrdquo िोगो की उठा बठी और बहदा कवायद को िकषय

करक कतिखा था ldquoवाह-वाह दबामर कया था lsquoकठपतिी का तराशाrsquo था या बलिरटरो की lsquoकबायदrsquo थी या

बादरो का नाच था या दकसी पाप का फि भगतना था या lsquoफौजदारी की सजाrsquo थीrdquordquo21 काशी की इस सभा

र खद भारतद भी बठ थ इस परकार यह भारतद क वगम का परहसन भी था पतनशीि सासककतत की

आतरािोचना क कतबना यह साभव नही था बात कवि उमर की नही ह ठठ वतमरान र हसतकषप और उस

बदिन का बोध कतजन पतनशीि कतसथकततयो का आतर साकषातकार कर रहा था यह उसक परकतत एक

सवाभाकतवक सवतःसफतम परकततदकया थी यह तारकम क की नही बकतलक किाकार की सवतः सफतमता थी यह बात

सही ह दक भारतद कतवचारो की तारकम कता क रारि र उननीस पड़त थ पर इस करी को उनकी तीकषण

वसतकतनरीकषण दकतषट भर दती थी जीवन कतसथकततयो की कतवडमबना का बोध कतजतना गहरा था बदिन का

परयास उतना ही ऊजामवान था भारतद सवया अपनी भी कहानी कतिख रह थ lsquoपयार हररचाद की कहानीrsquo

कतिख रह थ भारतद क परहसनो र दकसी न दकसी पातर की भकतरका र हर जगह सवया भारतद भी ददख

जात ह अपन वगीय अातरवमरोधो का सवबोध उनक यहाा एकतिगोररकि हो जाता ह इस एकतिगरी र lsquoकतहनद

21 रारकतविास शराम पषठ- ६६

18

भारतrsquo की रधर कलपना थी इसस इनकार नही दकया जा सकता भाव जगत का वषणव परर lsquoकतहनद भारतrsquo

की कलपना स परर र बदिता गया

भारतद की रचनाओ र कतवशवदकतषट की एकता खोजन पर हर परभतवशािी कतवचारधाराओ की

वयवसथा ही कतरिगी जञान और वयावहाररक सारानय बोध क बीच एक सदकय साबाध बनान क कर र ही

उनका सवाभाकतवक आवग कतजन वयावहाररक धाररमक कतवचारधाराओ र आतरकतबकतमबत होता ह व

परभतवशािी कतवचारधाराएा ह इन कतवचारधाराओ का कतनरामण कही बाहर स नही हो रहा था बकतलक

पराचयकतवदयाकतवदो की कलपना क साथ परसपर भागीदारी र बन रहा था इन कलपनाओ को यथाथम रप द

रही थी हपराट पाजी क साथ कतवककतसत होती lsquoबजमआ पकतबिक सफीयरrsquo की दकयाएा भारतद की सवाभाकतवक

सफरतम ततकाि ही एक फ टसी र बदिन िगती ह और दकयातरक होना चाहती ह ऐस ही सरय

पराचयकतवदया क पाकतडतो क िारा जगाय गए कतरथकीय परत भी आकर सर पर सवार हो जात ह पराचयवाद

दकसी परत-कतवदया स कर न था दखना चाकतहए दक भारतद की रचनाओ र कहाा परतो की दकतनया र यथाथम

का हसतकषप होता ह उनकी एकतिगरी कहाा कतसथकततयो क अकततरक को अकतभवयि कर रही ह जस भारतद की

lsquoअाधर नगरीrsquo ऐन हरार वक़त र राजयसतता का रपक बन जाती ह यह रपक राजयसतता र अनतरनमकतहत

हहासा की अकतनवायमता और नयाय क भरर का परहसन भी ह

२ धरम सधार पर कतवचार सभा

िहमो सराज या दयानाद सरसवती को खद भारतद कस दख रह थ इसका पता हर lsquoसवगम र कतवचार

सभा का अकतधवशनrsquo22 नारक एक वयागय रपक स चिता ह सवारी दयानाद सरसवती और कशवचादर सन

जब ररन क बाद सवगम पहाच तो ldquoवहाा एक बर बड़ा आनदोिन हो गयाrdquo रतय क कछ ही सरय पहि कतिखा

गया यह वयागय रपक अपन सरय क धरम सधार आादोिनो क चररतर की वयाखया करता ह सबस पहि

इसका परकाशन किकतत स कतनकिन वािी परकततकतषठत हहादी पकततरका lsquoकतरतर कतविासrsquo (जन १८८५) र हआ था

िहमो सराज और आयम सराज क आनदोिनो को भारतद इस सरय तक आकर एक तटसथ आिोचकीय दकतषट

स दखन का परयास करन िग थ सवगम र एकबारगी पदा हए इस आनदोिन र रोट तौर पर दो खर बन

गए एक इनका परशासक था दसरा हनादक पहिा कतिबरि ह दसरा काजरवरटव इन दोनो खााचो र

अनदफट एक तीसरा दि ह जो वषणव आतराओ का ह इस दि क सासथापक तो कतिबरि थ पर अब य

lsquoरकतडकलस कया रहा रकतडकलस हो गए हrsquo कतनकतशचत रप स इन रहा रकतडकलस आतराओ र हर सवया भारतद

22 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन सा- करिा परसाद परसा- नारवर हसाह पषठ- ८२-८६ नशनि बक टरसट इाकतडया नई ददलिी- २००६

(आग इस िख क उदधरणो को कतबना पाद रटपणणी क ददया गया ह)

19

को भी कतगन सकत ह वयासदव एक ऐस बकतदधजीवी क रप र सारन आत ह जो दकसी का भी पकष िन स

बचत ह पर उनका रान दोनो खरो र ह ldquoकतबचार बढ़ वयासदव को दोनो दि क िोग पकड़-पकड़ कर ि

जात और अपनी अपनी सभा का lsquoचयररनrsquo बनात थ और बचार वयास जी अपन पराचीन अवयवकतसथत

सवभाव और शीि क कारण कतजसकी सभा र जात थ वसी ही विता कर दत थrdquo कतिबरिो की तिना र

का जरवरटव दि जयादा रजबत था कयोदक उनह सवगम क जरीदारो का सहयोग परापत था काजरवरटव दि की

आतराएा साकीणम कटररपाथी आतराएा थी य आतराएा उन परान िरान क ऋकतष रकतनयो की आतराएा ह जो

ldquoयजञ कर करक या तपसया करक अपन-अपन शरीर को सखा-सखाकर और पच-पच कर ररक सवगम गए हrdquo

करमकााड और वरत उपवास आदद को भारतद वही तक सही रानत थ जहाा तक व शरीर को कषट न पहाचाएा

कठोर दह साधना करन वाि इन ऋकतष रकतनयो की आतराएा सधारो क कतखिाफ थी और इनका साथ दन

वाि जरीदारो र lsquoउदार िोगो की बढ़तीrsquo स अपना रान-अकतभरान और बि कतछन जान का डर था

कतिबरि दि भिो की आतराएा या तो सावमजाकतनक जीवन क उचच रलयो या आदशो क सापादन क चित या

पररशवर की भकति स सवगम र गयी थी

सराज सधार और वयकतिक परर रिक भकति- कतिबरि कतवशवदकतषट को भारतद इसी पररपरकषय र दख

रह ह रकतडकि वषणव दि भिो क कतिए वषणव होन रातर स य चीज पहि स ही उपिबध थी भारतद क

कतिए वषणवता सवाभाकतवक रप स कतवशवदकतषट ह पर रकतडकि वषणव इस सवाभाकतवक उदारता को

राजनीकततक रप दन वाि ह वषणव उदारता का और उसक भावावग का राजनीकततकरण करन वाि रहा

रकतडकि इस तरह भारतद क कतिए वषणवता की आधकतनक वयाखया र सराज सधार वयकतिक परर रिक

भकति और राजनीकतत तीनो का lsquoएकाrsquo ह इस एका क रकतडकि परयास क कतिए जनरत या िोकरत का

कतनरामण आवशयक ह भारतद की रकतडकि वषणवता ही lsquoसब उननकतत का रिrsquo ह यह एक िोककतपरय

वयावहाररक कतवचारधारा क रप र आकर गरहण करन वािी वषणवता ह यह रकतडकि वषणवता धरम का

राजनीकततकरण ह

काजरवरटव दिभिो को दवताओ का सरथमन परापत था य दवता ही सवगम क जरीदार थ अपन

अपन तरीक स इन दवताओ न काजरवरटव दि की सथानीय शाखाएा भी खोि िी और वहाा इनक पकष र

lsquoपरकाश सभाएाrsquo होन िगी कतिबरि दि वािो क पकष र कवि इस lsquoकतहनद सवगमrsquo क िोग नही थ ldquoइधर

lsquoकतिबरिrsquo िोगो की सचना परचकतित होन पर रसिरानी-सवगम और जन सवगम तथा दकसतानी सवगम स पगमबर

कतसदध रसीह परभत कतहनद सवगम र उपकतसथत हए और lsquoकतिबरिrsquo सभा र योग दन िग बका ठ र चारो ओर

इसकी धर फि गयीrdquo अिग अिग सवगम कतवकतभनन धाररमक पहचानो की ओर इशारा करता ह बका ठ कतहनदओ

का सवगम ह और यह नया धरम आनदोिन रखयतः कतहनद धरम की एक बड़ी पहचान क भीतर ही पदा हआ ह

20

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग क तीन कतनकतहताथम वसधा डािकतरया न भारतद यग क सनदभम र नोट दकय ह23 पहिा

एक पराक औपकतनवकतशक lsquoकतहनद अथमrsquo जहाा हहादसतान का हर बाहशादा शाकतरि था दसरा परसपर कतभनन

धाररमक रतो और आसथाओ की कतनकट अातरकम या क अथम को वयि करता ह कतजसक आराकतभक साकषय सलतनत

कािीन ऐतहाकतसक वतताातो र कतरित ह यहाा यह शबद lsquoतकम rsquo क सरानाातर उपयोग र आया था और

सारानयतः रसिरानो क बरकतखिाफ उपयोग दकया जाता था आरमभ र यह धाररमक कर साराकतजक-

राजनीकततक अथो र जयादा परयि होता था अागरजी राज क साथ यह दसरा अथम धरम स अकतनवायमतः जड़कर

lsquoकतहनदवादrsquo की कतवचारधारा र बदि गया जमस कतरि आदद क इकततहासो र lsquoकतहनदकािrsquo और lsquoरसिरान

कािrsquo की ऐकततहाकतसक कलपना क साथ कतहनद शबद जड़ गया था भारतीय भी रसिरानो को सारन कर

lsquoकतहनद पीकतड़त गराकतथrsquo क कतिए इस शबद का इसतराि करन िग कतहनद शबद का तीसरा अथम राषटर की

अवधारणा स जड़कर बन रहा था आरथमक राषटरवाद और अागरजी राज की यातना की साझी सरकतत स बनन

वाि इस तीसर अथम का रतिब था- lsquoजो कतहनदसतान र रह वह कतहनदrsquo रारकतविास जी भारतद क यहाा

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग को इनही अथो र ित थ पर वसधा डािकतरया का कहना ह दक यह तीसरा अथम दसर क

वयापक परभाव र था तीनो अथो की अातरकम या क बार र डािकतरया न कतिखा ldquoतीसरा अथम या राषटरवादी

अथम कभी भी अपन धाररमक साकताथो स परी तरह छटकारा नही पा सका इस पद की परयकति उननीसवी

सदी र अकतसथर बनी रही और इसक रखतकतिफ रायनो र आपसी जड़ाव कायर रहा बावजद इसक दकसी

परदतत सनदभम र lsquoकतहनदrsquo क पराथकतरक अथम को कतनधामररत करना साभव ह यदद एक बार यह तय हो जाय दक

इिाकाई धाररमक राषटरीय र स दकस आधार पर यह पद परयोग र आ रहा ह और lsquoअनयrsquo की भकतरका र

दकस रखा जा रहा ह चाह वह अनय जसा दक परानी इिाकाई परयकति र ददखता ह फारसी या तकी हो

या रसिरान (कतजस इस िरान र भी कई बार सरह क हवाि स तकम ही कहा जाता ह) या दफर अाततः

औपकतनवकतशक सवारी िदकन यह बात ददराग र रखना जररी ह दक धाररमक सरदाय को कतनरदमषट करन

वािी दसरी परयकति अतयात परभावी सनदभम-हबाद बनी रहती हrdquo24

इस सनदभम र दख तो कतिबरि दिो क सरथमन र शाकतरि lsquoअनयrsquo कतहनद धरम क सधारवाद क सरथमक

ह और lsquoसधारोrsquo र छपी वकतशवक भावनाओ को सरथमन दन पहाच ह का जरवरटव दिो की lsquoअनयताrsquo यहाा नोट

करन िायक ह इस अनयता र साराती जरीदार और करमकााडी िाहमणवाद का बिाक ह जबदक कतिबरि

दकतषट क आसपास एक lsquoसायि रोचrsquo की कलपना की गयी ह धयान रखना चाकतहए दक भारतद क रकतडकि

वषणव इस lsquoसायि रोचrsquo क बाहर ह उनका lsquoएबसटकतनजरrsquo वषणव होन क चित नही बकतलक रकतडकि या

23 वसधा दिकतरया कतहनद परमपराओ का राषटरीयकरण भारतद हररशचादर और उननीसवी सदी का बनारस अन साजीव करार योगनदर दतत पषठ-

४०-४२ राजकरि पपरबकस नई ददलिी- २०१६

24 वही पषठ- ४२

21

रहा रकतडकि होन क चित था कतनकतशचत रप स सवगम सासद का रपक ह और सवगम का राजा ईशवर

कतनषपरभावी हो गया ह और जनता सवया जनरत क िारा कतनणमय कतसथर करन पर जोर दती ह जनरत क

िारा lsquoसलफ गवनमरटrsquo का परयास सबस पहि वषणव भिो न दकया था और आज क कतिबरलस उसी को

आग बढ़ा रह ह ईशवर क पास दोनो दिो क िोगो न जब अपन अपन ररोररयि तयार कर भज तो ईशवर

न दोनो दिो क डपयटशन को बिाकर कहा ldquoबाबा अब तो तरिोगो की lsquoसलफगवनमरटrsquo ह अब कौन

हरको पछता ह जो कतजसकी जी र आता ह करता ह अब चाह वद कया सासकत का अकषर भी सवपन र भी न

दखा हो पर धरम कतवषय पर वाद करन िगत ह हर तो कवि अदाित या वयवहार या कतसतरयो क शपथ

खान को ही कतरिाय जात ह दकसी को हरारा डर ह कोई भी हरारा सचचा lsquoिायकrsquo ह भत परत ताकतजया

क इतना भी तो हरारा दजाम नही बचा हरको कया कार चाह बका ठ र कोई आवहर जानत ह चारो

िड़को (सनक आदद) न पहि स ही चाि कतबगाड़ दी ह कया हर अपन कतबचार जयकतवजय को दफर राकषस

बनवाव दक दकसी का रोकटोक कर चाह सगन रानो चाह कतनगमन चाह ित रानो चाह अित हर अब न

बोिग तर जानो सवगम जानrdquo

काजरवरटव दिभिो न दयानाद और कशवचादर सन पर कया कया आरोप िगाय यह दख िना

चाकतहए दयानाद को सवगम र सथान नही कतरिना चाकतहए कयोदक १ इसन पराणो की हनादा की २ ररतमपजा

की हनादा की ३ वदो का अथम उलटा-पलटा कर डािा ४ दस कतनयोग करन की कतवकतध कतनकािी ५ दवताओ

का अकतसततव कतरटाना चाहा (दवताओ याकतन जरीदार) ६ इसन धरम कतवपिव दकया और आयामवतम को धरम

बकतहरमख दकया पकतशचरोततर परानत क परकततकतनकतध क रप र lsquoकाशी क कतवशवनाथ जीrsquo न lsquoउदयपर क एकहिाग

जीrsquo पर दयानाद क सरथमन का आरोप िगाया कतवशवनाथ जी काजरवरटव दिो की तरफ स यह आरोप िगा

रह थ परब की अपकषा पकतशचरी इिाको र आयम सराज क परभाव की चचाम क सनदभम र एकहिाग जी का

जवाब धयान दन िायक ह कतवशवनाथ जी न जब एकहिाग जी को कतधककारत हए कतिबरिो क साथ कतरि जान

को कहा तब एकहिाग जी न कहा ldquoभाई हरारा रतिब तरिोग नही सरझ हर उसकी बरी बातो को न

रानत न उसका परचार करत कवि अपन यहाा क जागि की सफाई का कछ ददन उसको ठका ददया बीच

र वह रर गया अब उसका राि रता रठकान रखवा ददया तो उसका बरा दकयाrdquo यह एकहिाग जी

दफ़िहाि सवारी जी क दि क सभापकतत बन ह आकतखर इनहोन अपन यहाा क दकस lsquoजागिrsquo की सफाई का

ठका सवारी जी को ददया था यह जागि छोट-रोट धाररमक समपरदायो और रतो का जागि था एकहिागी

जी और काशी क कतवशवनाथ जी दोनो ही िाहमणीकत शवरत क धाररमक परतीक ह पर जहाा काशी क

कतवशवनाथ शर स ही दयानाद क कतवरोधी थ वही एकहिाग जी रणनीकततक रप स दयानाद क पास गए थ यह

साकीणम कटररपाथ क भीतर का कतववाद था यह बात गौर करन िायक ह दक जगननाथपरी र जब भरव की

22

रौजदगी का कतववाद भारतद क सारन आया था उस सरय उनहोन इस बात का परतयाखयान दकया था दक

भरव की परकततरा अनाददकाि स वहाा ह भारतद न पराण आदद स साकषय दकर यह परराकतणत दकया दक

कषण ही एकरातर उपासय ह तिवार जी न इस घटना का उलिख करत हए कतिखा ह दक ldquoदकसी वयकति न

lsquoतहकीकातपरीrsquo दकताब दकखकर बताया दक वहाा पहि भरो की पजा होती थी वषणवो न उसकी ररतम

उखाड़ फ की थी बाद र पाडो न जगननाथजी (कतवषण) क साथ भरो को दफर स परकततकतषठत दकया यह रारिा

काशी धरमसभा क सारन १८७० र आया भारतद न धरम साबाधी पसतक र lsquoतहकीकातrsquo जस फारसी शबद

की आिोचना करत हए कतवकतभनन धरमगराथो स परराण जटाकर दो बातो पर जोर ददया एक इसका परराण

नही कतरिता ह दक वहाा जगननाथजी क साथ पहि भरो की भी ररतम थी कतजस वषणवो न उखाड़ फ का दो

अगर वह थी भी तो यह उकतचत था या नही- इसपर कतवचार होना चाकतहए भारतद न अपनी वयवसथा दत

हए कतिखा दक भरो कतवषण स बहत छोटा दवता ह इसकतिए यह कतवषण क साथ बठाया नही जा सकता

lsquoदसर भरव कापाकतिको क दवता ह उनका पजन वषणव-सरातम सबको कतनकतषदध हrsquo गौरतिब ह दक भारत

र कतवकतभनन सथानीय धरो क परकतत कतजतन असकतहषण और फा डारटकतिसट आयमसराजी थ उतन ही काशी क

सनातनी भी थrdquo25

सथानीय धरम-रतो क जागि को साफ़ करन र आयमसराकतजयो और काशी क सनातनी पाडो क इस

गठजोड़ स भारतद भी वादकफ थ िदकन आयमसराकतजयो क साथ उदयपर क एकहिाग जी का रोचाम कसा

था इस भी भारतद बखबी सरझ रह थ सथानीय रतो क साथ भारतद का समबनध कसा था इसका पता

उनक छोट-छोट यातरा सासररणो स भी चिता ह lsquoसरय पार की यातराrsquo26 र रहदावि का हाि बयान करत

हए lsquoपराणनाथrsquo क रिहब का भारतद आशचयम क साथ उलिख करत ह भारतद क ही शबदो र ldquoयहाा एक

पराणनाथ का रिहब ह और दस बीस िोग उसक रानन वाि ह य िोग एकादशी तीथम वगरह को नही

रानत और सन सनाय दो तीन शलोक जो याद कर कतिए ह बस उसी पर चर हो lsquoरदीनासया शारदाा शताrsquo

और lsquoगोकतवनदrsquo lsquoगोकिानाद रककशवरrsquo यह शलोक पढ़ क कहत ह दक वद र रकका रदीन का वणमन ह ऐस ही

बहत वाकतहयात बात करत ह और कोई दकतना भी कह कछ सनत नही कहत ह दक गोिोक का नाश ह

और गोिोक ऊपर एक lsquoअखाड रणडिाकारrsquo िोक ह उसर रर कषण ह इनका रिहब एक पराणनाथ नारक

एक कषतरी न पनना र करीब तीन सौ बरस हए चिाया थाrdquo भारतद इस अजीबो गरीब lsquoरिहबrsquo का कषण स

कया साबाध ह यह सोचकर ताजजब र थ इस lsquoरिहबrsquo क गरनथ र भारतद न एक शलोक बलिभाचायम का

दखा तो उनका राथा और घर गया ldquoकि रिहब का हाि हरन नीच कतिखा था उसका अचछी तरह स

25 वीरभारततिवार रससाकशी १९वी सदी का नवजागरण और पकतशचरोततर परानत पषठ- १५२ सारााश परकाशन ददलिी- २००६

26 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन पषठ- १३७-३८

23

हाि दरयाफत दकया तो रािर हआ दक हरार ही रिहब की शाखा ह इनक गराथो र हरन एक शलोक शरी

रहापरभजी की सबोकतधनी की काररका का दखा इसी स हरको सादह हआ दफर हरन बहत खोद खाद कर

पछा तो वह साफ़ रािर हआ दक इसी रत स यह रत कतनकिा ह कयोदक एक बात वह और बोि दक हरारा

रत शरी बलिभाचारज की टीका र कतिखा ह इन िोगो क उपासय शरीकषण ह और एकादशी शािगरार

ररतमपजा तीथम दकसी को नही रानत इनक पकतहि आचायम दवचाद जी थ जो जाकतत क कायथ थ और दसर

पराणनाथ जी जो कचछ क कषतरी (भारटया) थ हरार ही रत की शाखा सही पर कतवकतचतर रत ह वषणव होकर

ररतमपजा का खाडन करन वाि यही िोग सनrdquo वणमन स सपषट ह दक सात और कतनगमण पाथो क साथ वषणव

कतवचारधारा क आदान-परदान का साकतशलषट इकततहास भारतद क कतिए ताजजब की चीज थी पर इन सबक बीच

आकतखर उनहोन इसक वषणव रि का पता िगा कतिया और वषणवता की इस धाररमक कतवचारधारा र उनहोन

ररतमपजा का कतवरोधी होना भी शाकतरि रान कतिया भारतद न ररतमपजा क सरथमन र बड़ बड़ िख कतिख

थ इसकतिए असाभव नही दक कषण क परकतत परररिक भकति क कतिए ररतम की जररत पर उनहोन कछ पछा

जरर होगा िदकन lsquoकोई दकतना भी कछ कह सनत ही नहीrdquo आग चिकर lsquoवषणवता और भारतवषमrsquo र

वह बड़ कतवशवास क साथ घोकतषत करत ह दक ldquoपहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद कतजतन पाथ ह सब

वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और भारतवषम इन पाथो स छाया हआ हrdquo27 तब वह वषणवता और

िोकरतो और रधयकािीन पाथो क भीतर पहि स सदकय एक ऐकततहाकतसक परदकया का सारानयीकरण कर

उसका नार lsquoवषणवrsquo रख रह थ अकारण नही दक उसी िख र वषणव वयापकता को बतान क कतिए

परचकतित lsquoनारोrsquo का साकषय पश दकया गया ह वयकतियो स िकर वरत और उपवासो तक यह परभतवशािी

सारानय बोध की कतवचारधारा थी कतिवदी जी रधयकािीन वषणवता को िोकधरम कहत थ भारतद

उननीसवी सदी क िोकधरो को वषणव कहत ह

काजरवरटव दिो की तरफ स कशवचादर सन पर िगाय गए आरोप थ १ वद पराण सबको कतरटा

डािा २ दकसतान रसिरान सबको कतहनद बनाया ३ खान पीन का कतवचार कछ न बाकी रखा ४ रदय की

तो नदी बहा दी आयम सराकतजयो क ऊपर रखयतः आरोप lsquoआयामवतम को धरम बकतहरमखrsquo करन का ह धरम

बकतहरमख अथामत सनातन धरम स कतवरख उनहोन कवि धरम क भीतर कतवपिव दकया परनत िहमो सराज न तो

lsquoभारतवषम का सतयानाशrsquo कर डािा इनहोन तो पराणो क अिावा वदो को भी कतरटा डािा lsquoआयामवतमrsquo की

जातीय पकतवतरता नषट करक दकसतान रसिरान जस lsquoकतवदशी ततवोrsquo को घर र घसा कतिया कटररपाथी

करमकााकतडयो क कतिए इनक साथ रणनीकततक तौर पर भी रोचाम बनान वािा कोई एकहिाग जी तयार नही

था सनातकतनयो िारा दकया गया यह बारीक भद खद कतिबरि दिभिो क भीतर का भी अातरवमरोध था

27 भारतद वषणवता और भारतवषम वही पषठ-७६

24

कतिबरिो की सभा र भी दो दि हो गए थ एक सवारीजी क सरथमको का दि था और एक कशव

क सरथमको का कतहनद कतिबरिो की आताररक एकता कतिकतवभाकतजत थी दयानाद क सरथमको क अनसार सवारी

जी न कतहनदओ की आतरा को जगाया था उनह सफतम बनाया वरना तो आयामवतम क आिसी और रखम

रोहकतनदरा र ही कतनरगन थ इस तरह रखम और आिसी सारानयजनो को lsquoिाहमणो क फा द स छड़ायाrsquo िाहमणो

की तिना भारतद न lsquoपादररयोrsquo स की ह जो lsquoवयथम परजा का दरवय खान वाि हrsquo आयम सराज न सासथाकत

परोकतहतवाद पर हरिा दकया था जो भारतद क कतिए रितः जनता क पसो पर पिन वािा परजीवी वगम

िगता था और तो और आधकतनक कतवजञान क आग जो lsquoआयोrsquo की नाक कटी जा रही थी उस भी सवारी जी

न बचा कतिया उनहोन वदो र भी रि तार करटी कचहरी आदद ददखाकर कतहनदओ र आतरसमरान पदा

दकया दसरी ओर कशव क सरथमको का कहना था दक ldquoधनय कशव तर साकषात दसर कशव हो तरन बाग

दश की रनषय नदी क उस वग को जो कशचन सरदर र कतरि जान को उचछकतित हो रहा था जञान करम का

कतनरादर करक पररशवर का कतनरमि भकति रागम परचकतित दकयाrdquo lsquoजञान करम का कतनरादरrsquo करक भी lsquoकतनरमि

भकति रागमrsquo का जो परवतमन कशव न दकया उसस ही ईसाई lsquoअनयताrsquo का साथमक परकततरोध साभव हआ lsquoरनषय

नदी का आवगrsquo भावावग ह इसी बात को दसर शबदो र कह तो भाव जगत क सवाभाकतवक वग को भगवत

भकति की शदध lsquoअनयताrsquo की ओर रोड़कर उस कतवदशी ईसाई lsquoअनयताrsquo क रागम पर जान स रोक ददया इस

कायम क कतिए वद पराण समरत lsquoजञान-करमrsquo क रागो का कतनरादर अगर करना पड़ा तो भी वह उकतचत ही था

वषणव भकति क रधयकािीन सवरप की जो वयाखया आग चिकर की गयी उसक आराकतभक कतचनन हर यहाा

दख सकत ह कहना न होगा दक भारतद का अपना अनभव भी यहाा बोि रहा ह

शासतरीय काजरवरटव पाटी र दवताओ क अिावा यजञवलकय जस औपकतनषददक ऋकतष क साथ-साथ

नारायण भटर रघनाद भटराचायम राडन कतरशर जस कतनबाधकारो और टीकाकारो का जरघट भी था इसक साथ

साथ इसिारी सवगम स आय हए कटररपाथी कतशया िोगो का भी सरथमन उनह परापत था इस परकार कटररपाथ का

दवताओ (जरीदारो) िाहमणो (पादररयो) जञानरागी औपकतनषददक ऋकतष रधययगीन कतनबाधकारो और

कतवदशी कतशया िोगो का एक वकतशवक रोचाम बन रहा था दसरी ओर कतिबरि दि र चतनय परभकतत आचायम

दाद नानक कबीर परभकतत भि और जञानी िोग भी शाकतरि थ इसक अिावा काजरवरटव दि क

कतवदरोकतहयो को भी कतिबरिो न अपन यहाा जगह दी य कतवदरोही थ अितवादी (या नववदााती) भाषयकार

पाचदशीकार और कोई कतरसटर िडिा इन दोनो िोगो पर शर र का जरवरटव दि वािो न बहत हरि

दकय परनत अात र इनह कतिबरिो न अपन यहाा जगह द दी धयान रखना चाकतहए दक भारतद अपन सापरदाय

क अनरप अित वदाात या रायावाद क घोर आिोचक थ सन १८७३ र हररशचादर रगजीन क पहि ही अाक

र भारतद न शााकतडलय भकति सतरो का अनवाद lsquoभकति सतर वजयातीrsquo नार स परकाकतशत दकया भकतरका र

25

भारतद कतिखत ह ldquo दखो आज वसात पाचरी ह इसस बहत स िोग आर क रौर वा फिो क गचछ िकर

तरस कतरिन आवग तो र भी यह एक फिो की वजयाती रािा बना कर िाया हा अागीकार करो वजयाती

रािा बनान का यह हत ह दक वनरािा होगी तो होिी क खि र अरझगी और इसक कतसवाय इस वजयाती

स कतनशचय करक जञानाददक को जय करना ह पर पयार बहत साभि कर यह रािा पहरना टट न जाए

कयोदक सत कचचा ह और ककतियाा तािी और कोरि ह इस स कमहिान का भी भय ह जो हो इस वसात

पाचरी को तयोहारी रझ यही दो दक इस सतयानाशी lsquoअहरrsquo िहमवाद lsquo को पणमरप स नाश करक और भी

सब बातो र इस नव-वसात र भारतवषम की सब आपकतततयो का बस अात करो और अपन भिो क कतचतत र

नव पलिव दफर स िहिह करो जो सदा एक रस रहrdquo28 lsquoएकरसrsquo भकति क कतिए जररी ह दक जञानवाद

अहर िहमवाद को जड़ स उखाड़ फ का जाय कषण को अरपमत अपनी वजयाती रािा स भारतद जञानाददक

को जय करना चाहत ह एक ओर यह पकतषटरागी परापरा क lsquoवीर वषणवrsquo भारतद का परर कतनवदन ह दसरी

ओर lsquoनव-वसातrsquo र भारतवषम की सब आपकतततयो को नाश करन की सारथयम रपी lsquoउपहारीrsquo का साकलप भी

ह lsquoभारतद भारतवषम की सब आपकतततयोrsquo को दर करन की राह र एक बड़ी बाधा अित क जञानवाद को

रानत ह भकति का lsquoएकरसrsquo पहि भी इसक परभाव स ररझाता रहा ह भारतद का साकलप सापरदाय क

परान कतवरोधो क बावजद बन रहन वाि इस अितवाद का पणम सफाया करन का ह जबतक यह न कतरटगा

परररिा भकति क lsquoकमहिान का भयrsquo बना रहगा भकति सतरो र उपासना कााड को परर कतसकतदध का हत

बताया गया था पर भारतद दख रह थ दक उपासना कााड का परचार कतवरि हो गया ह इसी परचार क

कतनकतरतत उनहोन इन सतरो का भाषा र अथम परचार दकया था १८७३ र ही हररशचादर रगजीन का एक

समपादकीय कतनकिा कतजसका शीषमक था- lsquoभकति जञानाददक स कयो बड़ी हrsquo इस िख र भी उपासना रागम

की रहतता का परकततपादन दकया गया ह तकम और जञान को करम की शकतदध और उपासन की परर कतसकतदध क

रासत र कवि एक चरण बताया गया ह वसधा डािकतरया न भारतद क आराकतभक साापरदाकतयक परचार

परसार क कायो र कतनगमकतनयो को बाहर रखन का उपकर नोट दकया था29 यहाा कतनगमकतनए कबीर आदद lsquoभि

और जञानीrsquo कतिबरिो क सरथमक ददखाए गए ह वषणव भकति क राषटरीय चररतर र य बाहर नही थ उनकी

एकता का आधार उनक lsquoकतिबरि रिrsquo र ह सावमजकतनक उचच भाव का सापादन और भकति इन दोनो क साथ

अित वदााती या जञानाददक- सनातनी परापरा क कतवदरोकतहयो की जगह भी कतिबरि दि पाकतथयो र थी

कतिबरि वाि ही झगड़ क कतनपटार की अजी पररशवर को दन गए थ पर पररशवर अपनी

परतीकातरक हो गयी कतसथकतत स खजिाय हए थ यह सवोचच अदाित थी पर साथ ही साथ शकतिहीन

28 भारतद गराथाविी खाड- ५ पषठ ११३

29 वसधा डािकतरया पषठ ३४२

26

राषटराधयकष की कलपना भी कतजस कतहनद सवगम क य राषटराधयकष ह वहाा दकसी दकसर की सलफ गवनमरट चनन

की परणािी आ जान स ईशवर की एकाकतधकारी शकतियाा कतछन गयी ह िोग जनरत कतनरामण क िारा सही

और गित की पहचान करन िग थ इसकतिए थोड़ा खजिाय तो रहत ही होग lsquoअब कौन हरको पछता

ह तर जानो सवगम जानrsquo परनत साकट गहरा था यदयकतप कतिबरि िोगो की सभा भी धरधार स जर

रही थी पर काजरवरटव दि पाकतथयो की सरकार र पठ थी दवता सब भी उनक साथ थ इसकतिए पररशवर

क पास जररी नयाय का परशन उठाया गया था नयाय दक इन दो रहापरषो को सवगम र जगह कतरिनी

चाकतहए या नही सराज र इनक नकततक उचच आदशो क अवरलयन का परचार काजरवरटव कर रह ह इस

परचार क कारण जनता अपनी निरो स पहचानन र सकषर नही ह ऐसी कतसथकतत सवगम र पहि नही आई

थी नई कतसथकततयो क नए रानदाड कया होग िाकतहर ह नयाय और नकततकता को एक वकतशवक सवीककतत

चाकतहए इसकतिए पररशवर न इस कतवषय पर कतवचार क कतिए जो ककतरटी चनी वह गौर करन िायक ह इस

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo र ldquoराजा राररोहन राय वयास दव टोडररि कबीर परभकतत कतभनन-कतभनन रत क िोग चन

गए रसिरानी- सवगम स क lsquoइरारrsquo दकसतानी स िथर जनी स पारसनाथ बौदधो स नागाजमन और

अफीका स कतसटोवायो क बाप कोrdquo चना गया कतहनद सवगम स नवजागरण क अगरदत वयासदव जस

बौकतदधकिखक टोडररि जस राजनीकततजञ और धरम-ररमजञ कबीर जस जञानी-भि पराचीनो र कवि वयास

दव ह बाकी दो lsquoरधयकािrsquo क और एक lsquoआधकतनकrsquo काि क वयकति ह उधर यरोपीय नवजागरणधरमसधार

क परणता िथर को भी बिाया गया ह और बौदधो की तरफ स परर कतनषधवादी नागाजमन भी ह पर य

अफीका क कतसटोवायो धरो की अकतसरता क साथ-साथ यह अफ़ीकी सवगम कतनकतशचत रप स अफीका की छकतव

पराचीन आददवासी सासककतत वाि एक lsquoकािrsquo रहादश क रप र गढ़ी गयी थी यह अफ़ीकी सवगम साभवतः

आददवासी धाररमक रानयताओ की ओर इशारा करता ह यह भी धयान दन िायक ह दक राजा राररोहन

राय िथर और कबीर इन तीनो क साथ lsquoनवजागरणrsquo की कोई न कोई पररकलपना ठठ सरकािीन कतवरशो

क क दर र भी ह कई अथो र अकबर िारा आयोकतजत होन वािी lsquoसिह-ए-किrsquo जसी धरम सभाओ की एक

रोहक कलपना भी भारतद को रही होगी टोडररि की उपकतसथकतत अकारण नही ह

अकबर को िकर भारतद की इकततहासदकतषट कसी थी इसकी एक झिक हर १८८४ र छपी उनकी

lsquoबादशाह दपमणrsquo की भकतरका र ददखती ह इस गरनथ र उन िोगो का चररतर-कतचतरण दकया गया था ldquoकतजनहोन

हरिोगो को गिार बनाना आरमभ दकया इसर उन रसत हाकतथयो क छोट-छोट कतचतर ह कतजनहोन भारत क

िहिहात हए करिवन को उजाड़कर-पर स कचिकर कतछनन-कतभनन कर ददया रहमरद रहरद अिाउददीन

अकबर और औरागजब आदद इनर रखय ह पयार भोि कतहनद भाइयो अकबर का नार सनकर आपिोग

चौदकए रत यह ऐसा बकतदधरान शतर था दक उसक बकतदधबि स आजतक आपिोग उसको कतरतर सरझत ह

27

दकनत वह ऐसा ही नही उसकी नीकतत अागरजो की भााकतत गढ़ थी रखम औरागजब उसको सरझा नही नही तो

आज ददन हहादसतान रसिरान होता कतहनद-रसिरान र खाना-पीना बयाह-शादी कभी चि गयी होती

अागरजो को जो बात नही सझी वह इसको सझी थीrdquo30 कतनकतशचत रप lsquoबकतदधरानrsquo दशरन स सीखन को बहत

कछ कतरिता ह अकबर की दीन-ए-इिाही क परयोग स भारतद भी बहत कछ सीख रह थ रधयकािीन

इकततहास क बार र रकतसिर शतर की छकतव का कतनरामण पराचयकतवदयाकतवदो क िारा दकया जा रहा था इकतियट

आदद इकततहासकारो न जो दकतषट कतवककतसत की उसका परभाव बहत गहरा था पर इस इकततहासिखन क साथ

साथ भारतद क कछ दशी सरोत भी थ अिग-अिग रहापरषो की चररताविी कतिखन की पररणा भारतद न

कतजतना अपनी वषणव भकति की परापरा स पाया था उतना ही इसिारी इकततहास िखन की परापरा स भी

lsquoबादशाहदपमणrsquo की भकतरका र भारतद कतिखत ह ldquoरर पररातारह राय कतगरधरिाि साहब जो यवनी कतवदया

क बड़ भारी पाकतडत और काशीसथ ददलिी क शाहजादो क रखय दीवान थ उनकी इचछा स ददलिी क परकतसदध

कतविान सययद अहरद न एक ऐसा चक बनाया था कतजसर तरर स िकर शाह आिार तक सब बादशाहो क

नार आदद कतिख थ उस फारसी गरनथ स बहत सी बात इसर िी गयी ह इस कारण तरर पवम क बादशाहो

का वणमन इतना परा नही ह कतजतना तरर क पीछ ह दफर रर रातारह राय कतखरोधरिाि न बहादर शाह

क काि क आरमभ तक शष वतत सागरह दकयाrdquo31

अरणदव जी अपन एक िख र भारतद क आराकतभक अकबर परर का कतिक दकया ह १८७२-७४ क

आसपास भारतद अकबर को रहान शासक रानत थ जबदक औरागजब को कतहनदओ का दशरन नाबर एक

भारतद न औरागजब की तिना र अकबर की रहानता को परराकतणत करन क कतिए रारदास कछवाह क एक

शलोक को अपना आधार बनाया ह इस शलोक का भावाथम भारतद क शबदो र इस परकार ह ldquoजो सरदर स रर

तक पथवी को पािता ह जो रतय स गउओ की रकषा करता ह कतजसन तीथम और वयापार स कर छड़ा ददए

कतजसन पराण सन जो सयम का नार जपता जो योग धारण करता ह और गागाजि छोड़कर पानी नही

पीता उस जिािददीन की जय अाग वाग कहिाग कतसिहट कततपरा कारत (कारटी) काररप अाध कणामटक

िाट दरकतवड़ रहाराषटर िारका चोि पााडया भोट रारवाड़ उड़ीसा रलि खरासान का दहार जमब काशी ढाका

बिख बदखशाा और काबि को जो शासन करता ह ककतियग की रकतहरा स घटत हए वद गउ कतिज और

धरम की रकषा को सगन शरीर कतजसन धारण दकया ह उस अपररय परष अकबर शाह को हर नरसकार करत

हrdquo32 यही अकबर १८८४ र औरागजब स जयादा शाकततर और बकतदधरान शतर र बदि गया lsquoकािचकrsquo क

कतनकतहताथो र यह फरबदि भारतद पर रकतसिर कतवदशीपन और कतहनद शतरता क समपणम बिॉक बनान की

30 बादशाह दपमण भारतद गराथाविी खाड-६

31 वही

32 httpsamalochanblogspotin201209blog-post_9html

28

रणनीकतत क दबाव क कारण था और lsquoपरावकततrsquo की कतरथकीयता र भी कतहनदओ को lsquoरहारोहनासतरrsquo क सहार

पहि भी वश र दकया गया था यह एक बारीक चाि थी अकबर की इस चाि को अागरज भी नही सरझ

पा रह थ भारतद की यह परकततदकया औपकतनवकतशक इकततहासिखन क दबाव र थी १८७३ र जब भारतद

न कतशवपरसाद की दकताब lsquoइकततहासकततकतररनाशकrsquo क तीसर खाड की आिोचना की थी तो उनक सारन

रकतसिर शासन की बबमरता और अागरजी राज क सशासन का कतशवपरसाद िारा ककतलपत आखयान था १८८४

र समपणम रकतसिर काि अनधकार यग र बदि गया कततकतररनाशक क पहि खाड र बाब कतशवपरसाद न भी

अकबर की रजहबी उदारता और साराकतजक सधारो की बड़ाई की थी इस परकार हर दख सकत ह दक

ऐकततहाकतसक िखन र पकष और कतवपकष की पनरावकततत एक बाद घर र उिझी हई थी इनक सारन रकतसिर

कतवरोध और अागरजी शासन क कतवरोध का एक कतवसागत फर था और िखक उसर अपनी फौरी जररतो क

कतहसाब स कतरतर और दशरन वािा इकततहास कतिखता था इकततहास ठठ राजनीकततक ततकाि क वशीभत था

जो भी हो धाररमक उदारता और सिह-ए-कि का परयोग एक कतशकषापरद परयोग था यह कतवकतभनन

रतो या कतवशवासो क बीच lsquoजनरतrsquo बनान का एक रधयकािीन परयोग था भारतद lsquoजनरतrsquo क परयोग को

इस तरह दखत थ रानो यह lsquoचािrsquo अगर कारयाब हो जाती तो lsquoआज क ददन हहादसतान रसिरान होताrsquo

भारतद क सारन सरसया वही थी बस वह कवि यह चाहत थ दक कतहनदसतान lsquoकतहनदrsquo हो जाय कतहनद

अथामत वषणव हो जाय वषणवता भारतद क कतिए हहादसतान का नया lsquoसिह-ए-किrsquo था इसकतिए कछ

सावमजनीन रलयो की तिाश उनह भी थी कतसिकट ककतरटी क उपरोि रमबर lsquoएकसअफीकतशयोrsquo रमबर थ

रोर क परान हररकिस जस दवता कतजनहोन धरती स साबाध तोड़ ददया ह व िोग तथा उनही क जस

पारकतसयो क lsquoजरदशतजीrsquo को कोरसपोहडाग ऑनररी रमबर बनाया गया य धरम क रप र रतपराय रतो क

परकततकतनकतध थ ककतरटी न जो ररपोटम तयार की उसका ररम भारतद न ददया ह यह ररम उनक रकतडकि वषणव

पकष का रत था कतिबरि दि और काजरवरटव दि क अपन पकषो स इतर यह नरनायक तीसरा पकष वषणवो

की तरफ स सनाया गया था रकतडकि वषणवो की तरफ स भारतद इस धाररमक आनदोिन क भीतर अपना

ही पकष रखत हए इसका ररम कतिख रह थ ldquoहरिोगो की समरकतत र इन दोनो परषो न परभ की रागिरयी

सकतषट का कछ कतवघन नही दकया वराच उसर सख और सातकतत अकतधक हो इसी र पररशरर दकयाrdquo कतहनद सराज

सधार क परयासो का ररम बतात हए सबस पहि धयान सतरी सधारो पर ददया गया ह साराकतजक करीकततयो

की कतशकार रकतहिाओ क परकतत जो दकतषट उभरकर सारन आती ह उसक रि र धरम की रीकतत स यौन

रयामदाओ की अवयवसथा को दफर स रयामददत करन की चषटा ह कतसतरयो क करागम पर जान का पहिा कारण

ह रनराना परष धरमपवमक न पाना यह कतववाह सासथा की कतवककततयो की आिोचना थी जहाा बाि कतववाह

कतवधवा कतववाह आदद की तरफ इशारा ह धयान रखना चाकतहए दक यहाा बरि कतववाह क बदि कतसतरयो िारा

29

lsquoरनराना वरrsquo न चन पान का उलिख ह गभमनाश और बाि हतया क कतखिाफ सधार परयास दसरा

रहतवपणम योगदान ह कतववाह सासथा बीच र भी भाग की जा सकती ह इसकी सवीककतत ह कनया क कतहत र

अातरजातीय कतववाह की सवीककतत ह एक रहतवपणम बात गरओ और पाकतडतो क वयाकतभचार क साबाध र ह

भारतद क सारन पकतषटरागी रहातो और गरओ क वयाकतभचार का अनभव भी इसर शाकतरि ह

१८७४ र ककतववचन सधा र भारतद की एक रटपणणी छपी थी lsquoगर को कसा होना चाकतहएrsquo इसक अिावा

दो वषम पहि lsquoगर और रहातrsquo नार स भी एक रटपणणी कतिखकर वषणव पाडो-परोकतहतो की खिकर

आिोचना की गयी थी तिवार जी न कतिखा ह दक राददरो क भीतर कतसतरयो का यौन शोषण और वयाकतभचार

इतना भीषण था दक दयानाद भारतद क पकतषट सापरदाय को lsquoकषठी सापरदायrsquo कहत थ १८६० क आरमभ र ही

वषणव गोसाइयो क अनाचार और यौन शोषण क कतखिाफ बमबई र एक बड़ा आनदोिन पकतषटरागी

करसनदास रि जी क नततव र हो चका था वषणव बकतनया पषठभकतर स आय करसनदास जी उन नौजवानो

र थ कतजनहोन एकतिफ सटन कॉिज स आधकतनक कतशकषा परापत की थी गोसाइयो और रहाराजो िारा अपन

lsquoसमपरदाय की बह बरटयोrsquo क साथ होन वाि अतयाचार क कतखिाफ उनहोन िख कतिख और समपरदाय क

इकततहास को नए कतसर स सारन रखा पण स आए जदनाथ वजरतन जी रहाराज न करसनदास जी पर

रानहाकतन का रकदरा दायर कर ददया इसी रक़दर स वषणव रहातो की कई सारी बात जनता क सारन

परतयकष हई तिवार जी न इस lsquoरहाराज िाइबि कसrsquo को भारतीय नवजागरण र वषणव गोसाइयो क

दराचार और यौन शोषण क कतखिाफ हआ सबस बड़ा आनदोिन कहा ह भारतद पर इसका बहत परभाव

था यह कस १८६० र हआ था एक दशक बाद जब भारतद सापरदाय क कायो र रत थ उसी सरय कतिख

रह थ ldquoराददर कया होत ह रानो कतसतरयो की खान ह जसी चाकतहए िीकतजय- वराच अचछी सतरी भी वहाा जाकर

कतबगड़ जाती ह आशचयम यह ह दक कतजनको व िोग बटी कहत ह और जो उनक परिोक क रधयसथ ह और

कतजनको वो दीकषा दत ह उन कतसतरयो की ओर व आप ही बरी दकतषट स दखत ह ओर रर पयार कतहनदओ तर

इनक जाि र कब तक फा स रहोग और कया तरको यही सासार स बचावग और इनही क भरोस तरको

भगवान कतरिगाrdquo33

राददरो क धन-ऐशवयम और वयाकतभचार र डब जीवन क जीवात कतचतर हर बनारस क रखाकतचतर lsquoपरर

जोकतगनीrsquo क अिावा lsquoकाशी क छायाकतचतर क दो बर-भि फोटोगराफrsquo र भी कतरित ह यहाा भारतद का वयागय

अपन वषणव सापरदाय की आतरािोचना स सदकय ह lsquoपरर योकतगनीrsquo नाटक र आन वािा चररतर रारचादर

खद भारतद ही थ नाटक का सतरधार कहता ह दक भारतवषम की दीन हीन गकतत क कारण उसका तो

कतवशवास ही ईशवर स उठन िगा ह नाटक क पहि ही दशय र भारतद हर राददर क भीतर कतिए चित ह

33 वसधा डािकतरया िारा उदधत पषठ- ३३७

30

जहाा राददर र कार करन वािा साधारण टहिआ झपरटया हर ददखाई दता ह पजारी बाब अभी तक नीद

स नही जाग ह कयोदक आधी रात तक lsquoबठ क ही-ही-ठी-ठी करा चाह दफर सबर नीद कस खिrsquo कतनकतशचत

रप स यह टहिआ सबह सवर ही राददर र हाकतिर ह िदकन दवता अभी राददर र सोय ह रारचादर

परदशी ह काशी र बाहर स आय ह छकक जी और राखनदास इस रारचादर की आिोचना करत ह इनक

सावादो स पता चिता ह दक बाब रारचादर क यहाा ददन रात नाच गाना हआ करता ह और उनको अपनी

कतवदया का घराड ह दो चार ककतवतत भी बना ित ह पर lsquoककतवतत बनाव स का होव और ककतवतत बनावन कछ

अपन िोगन का कार थोर हय ई भााटन का कार हयrsquo छकक जी कहत ह दक अपन रागम का उनह कछ जञान

तो ह नही बस दो चार बात इधर उधर स सनकर कछ lsquoदकसतानी रतrsquo सीखकर पाकतडत बन दफरत ह

कतनकतशचत रप स य भारतद पर िगन वाि आरोप थ राददर र सवारी धनदास वकतनतादा बभकतकषत पाकतडत

आदद धरम क ठकदार ह इनकी पतनशीि सासककतत को दखकर रारचादर का दःख इन शबदो र वयि होता ह

lsquoहा कया इस नगर की यही दशा रहगी जहाा क िोग ऐस रखम ह वहाा आग दकस बात की वकतदध की

साभावना करrsquo lsquoवददकी हहासा हहासा न भवकततrsquo जस शरआती नाटको र भी करमकााडी परोकतहतवाद की

आिोचना की गयी ह राजा और परोकतहत कतरिकर वहाा जनता का शोषण करत ह जआ रददरा और

रथन की ऐययाश सासककतत क परतीक परोकतहतो का काजरवरटव दि इन परहसनो र रतम होता ह कतचतरगपत यर

स कहत ह ldquoरहाराज य गर िोग इनक चररतर का कछ न पकतछए कवि दमभाथम इनका कततिक रदरा और

ठगन क अथम इनकी पजा कभी भकति स ररतम को दाडवत न दकया होगा पर राददर र जो कतसतरयाा आयी उनको

सवमदा तकत रह रहाराज इनहोन अनको को कताथम दकया ह और इस सरय तो र lsquoशरीरारचनदर जी का

शरीकषण का दास हाrsquo पर जब सतरी सारन आव तो उसस कहग lsquoर रार तर जानकी र कषण तर गोपीrsquo और

कतसतरयाा भी ऐसी रखम दक दफर इन िोगो क पास जाती हrdquo34

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo की ररपोटम र सतरी सधारो क कायो की रहतता बतान क बाद जाकतत वयवसथा पर

इन सधारको का परहार कयो जररी था इस बताया गया ह कठोर जाकतत बनधनो क चित कस हर साि

जाकतत-बाहय होकर जाकतत र वापस आन क दकसी उपाय को न जान lsquoहजारो रनषय आयम पाकति स हर साि

छटत थ उसको इनहोन रोकाrsquo इस परकार इन सधारको न lsquoआयमधरमrsquo क भीतर जो पररवतमन करन चाह

उसस आयो की एकता दफर स बहाि हो गयी इसक अिावा अाधकतवशवासो को इनहोन दर दकया यही नही

बकतलक जहाा िोग lsquoरसिरानी पीर पगमबर औकतिया वीर ताकतजया गाजी कतरयाा कतजनहोन बड़ी ररतम तोड़कर

और तीथम पाटकर आयम धरम कतवधवास दकयाrsquo उनको भी पजन िग थ और lsquoकतवशवास तो रानो कतछनाि का अाग

हो रहा थाrsquo ऐसी िजजाजनक कतसथकतत स िोगो को बाहर कतनकािकर lsquoसार आयामवतम को शदध lsquoिायिrsquo कर

34 दख रारकतविास शराम पषठ १३१

31

ददयाrsquo lsquoिायिrsquo कर ददया गया इसका अथम आयम जाकतत को दफर स िायि करन र था आयम जाकतत क भीतर

कतबगाड़ क चित ही कतनमन जाकततयो का बड़ परान पर पिायन था इस इन िोगो न रोका और इनक परताप

स ही अनक छोट और सथानीय धरम-रतो क भीतर जो lsquoरसिरानीrsquo परभाव घस आय थ उनको दफर स lsquoबड़ी

ररतमrsquo की कतनषठा र िाया जा सका इस परकार कतहनद धरम और वणामशरर क परकतत दफर स िोगो को lsquoिायिrsquo

दकया यह lsquoिायकतिटीrsquo भारतद की रकतडकि वषणवता क जनरत क कतिए भी जररी था तिवार जी जब

आयमसराकतजयो की lsquoकााकततकारीrsquo भकतरका ददखात ह तब आयम सराज िारा आयामवतम को िायि बनान वािी

इस भकतरका की साकतशलषटता पर जयादा बात नही करत भारतद दयानाद क कााकततकारी परयासो र lsquoिायिrsquo

बनान की परदकया उसी वक़त दख रह थ और इसी कारण ररपोटम र दयानाद की आिोचना धयान दन िायक

ह सवारी जी न ldquoजाि को छरी स न काटकर दसर जाि ही स कतजसको काटना चाहा इसी स दोनो आपस

र उिझ गए और इसका पररणार गह कतवचछद उतपनन हआrdquo गह कतवचछद का रतिब कतहनद धरम र गह

कतवचछद जबदक कशवचादर सन क बार र कहा गया दक उनहोन जाि काटकर भकति की उचछकतित िहरो का

पररषकत पथ परकट दकया इस परकार रकतडकि वषणवता की lsquoअनयताrsquo और परररिक भकति क परशसत पथ क

सवीकार का कतनषकषम कतवचार सभा का भी कतनषकषम था धयान दन िायक ह दक कशवचादर की आिोचना उनक

कतचतत कतवकषप क कारण की गयी थी जहाा lsquoईसारसीह आदद उनस कतरित हrsquo य एक दकसर का इिहारी

अनभव था कतजस भारतद अपनी वषणवता स बाहर रखत ह ईशवर न इस ररपोटम पर अपना रत सरकतकषत

रख कतिया और भारतद कतिखत ह ldquoइसको दख कर इस पर कया आजञा हई और व िोग कहाा भज गए यह

जब कर भी वहाा जायग और दफर िौट कर आ सक ग तो पाठक िोगो को बतिावग या आप िोग कछ

ददन पीछ आप ही जानोगrdquo

३ जनरत और वषणवता

ककतववचन सधा ९ राचम १८७२ र भारतद न lsquoPublic Opinion In Indiarsquo नार स अागरजी र

एक िख परकाकतशत दकया िख र उनहोन कहा दक कई सददयो दक दासता क बाद भारतवषमहहादसतान अब

जाकर कतिरटश राषटर क सवोचच कतनयातरण र आया ह दश धीर-धीर सभयता और परबोधन की पकतशचरी दकरणो

क सहार दरन और कशासन क रतय-तलय कतनदरा स जाग रहा ह कतिरटश शासन की परगकततशीि नीकततयो का

परभाव यहाा की बहरपी आबादी पर पड़ रहा ह

ldquoBut in this progressive state national energy and zeal sympathy and

disintiredness are waiting to make both the conqueror and the conquered to act in

32

concert and in harmony and hence we have the broad distinction of white and

black still But in this country many are the blemishes that adhere to us to be

eradicated and many are the shortcomings that are hovering around us to be done

away with before we can have a public opinion here in its true senserdquo35

गोर और काि क बड़ भद को छोड़ कर कतवजता अागरजो और भारतीयो क बीच एक सराजन तो बन गया ह

पर अनदरनी ददककत अभी भी राह बाए खड़ी ह रौका ह दक इस परगकततशीि कतसथकतत का फायदा उठा कर हर

एक सचच जनरत का कतनरामण कर सचच िोकरत क कतनरामण र अादरनी बाधाएा कया थी भारतद न इस

आग सपषट करत हए कतिखा-

ldquoRace antagonism rivalry and mutual misunderstanding are the favourite

occupations of the aristocratic class Want of confidence among all classes of men

are the prevailing characteristic of the nation and above all multifarious castes and

creeds with there numerous forms of religion and local habits and customs which all

combined have kept the progressive policy at a stand still True it is that a

representative Government is a boon to this country and true it is that Sir Bartle

fregravere a man of vast experience and a good statesman has found out that in village

community we can have public opinion but with all his experience he has lost sight

of our national defects ndash defects which we ourselves know and which no foreigner

can catch at a glancerdquo36

भारतद इस बात को िकर कतनकतशचत ह दक िोकरत और परकततकतनकतधरिक सासथाओ क बहतर कतवकास क कतिए

सीध-सीध कतवदशी रॉडि कभी सफि नही हो पायगा ऐसा इसकतिए कयादक हरारी आपसी कतवकतभननताओ

और झगड़ो को कोई बाहरीकतवदशी सतता कभी भी परी तरह सरझ नही सकती lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo नार

35भारतद गराथाविी -6 361

36 वही

33

स भारतद का एक दसरा िख इस अागरजी वाि िख क दो साि बाद अपरि सन १८७४ र हररशचनदर

रगजीन र छपा पकतबिक ओकतपकतनयन कया बिा ह इस साफ़ करत हए भारतद िख क आरमभ र ही कहत

ह ldquoपकतबिक ओकतपकतनयन अथामत सब साधारण िोगो की राय कया वसत ह और इसर दकतना जोर ह और

इसक कतिए कया हो सकता ह यह परशन ठहरा तो इसका साधारण उततर यही ह दक यह वह वसत ह जो

सासार को एक कर सकती ह गागा की धरा दफर कतहरािय पर चढ़ा ि जा सकती ह सययम को पकतशचर उगा

सकती ह और चाह तो ईशवर को भी पकड़ क कठपतिी की भााकतत नचा सकती हrdquo37 यह पकतबिक

ओकतपकतनयन lsquoएक रतrsquo होना ह जस अिग अिग चार पतिी िककतड़यो को एक साथ बााध दन स उस

तोड़ना करठन हो जाता ह उसी तरह एक रत होन स बड़ स बड़ा बरी भी हरारा कछ कतबगाड़ नही सकता

बहत स िोगो का रत एक हो तो वह शकति बन जाती ह हिारो आदरी की बकतदध एक हो जाए तो ldquoऐसा

कौन कार ह जो न हो सक तो यह कतसदधाात हआ दक कतनशचय सब िोगो क रत र बड़ी सारथयम ह इसस यह

कतसदध हआ दक बिो स बड़ा बि एक रत ही हrdquo38

आग भारतद कहत ह दक यह जनरत और उसकी शकति हहादसतान क कतिए कोई नई बात नही ह

पराचीन काि र इसक उदाहरण कतरित ह lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo की इस धारणा को भारतद न इकततहास क

अिग-अिग दौर र बनत और कतबगड़त ददखाया सबस पहि चार वणो की िररत पड़ी सब कार को

सचार रप स चिन क कतिए दसर शबदो र कह तो शरर-कतवभाजन की िररत स इसका जनर हआ

lsquoकतहनदओ न अपन गर क कार र इस वणामशरर धमरम को इसी वासत बनाया कतजस र उन क दकसी कार र

कोई हजम न हो और उनिोगो न सासार क सब कारो र चार कार रखय सरझrsquo धरम कतवदया और किाओ का

कार िड़ाई और राजय परबाध का कार वयापार और धन और सब िोगो की सवा और रजदरी इन चार

कारो की सवयवसथा वािा वणामशरर दरअसि lsquoएक रतrsquo कतहनद वयवसथा या lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo थी पर

कािाातर र इस lsquoएकरतrsquo क भीतर जाकततवयवसथा कठोर हो गयी और िाहमण और शदर दोनो एक दसर क

कतखिाफ हो गए एकरत र कतवचछद पदा होन स कतहनद शकति करिोर हो गयी भारतद क अनसार आपस

का यह झगड़ा बड़ा कतवनाशकारी साकतबत हआ पकतबिक ओकतपकतनयन क कतबना वयाकतभचार और जयादकततयो का

अाधर था आग चि कर जनो क जरान र दफर lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo न जोर पकड़ा बकतलक भारतद जोर

दकर कहत ह दक जनो क रत की उततपकततत ही lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo स हई ldquoकतहनदओ क जब नाश क ददन

जब कतनकट आय तो आपस र परसपर बड़ा कतवरोध खड़ा हआ और उस काि र िाहमणो का बड़ा जोर था

वरन य और वणो पर जयादती करत थ तो वशय और कषकततरयो की रकतत इनस दफर गयी और बाब वािी बड़ी

37गराथाविी- 678

38वही

34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

36

कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

37

उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

38

ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 9: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

9

नारवर जी न नवजागरण को ररनसाास क बदि परबोधन या एनिाइटनरट की तरह दखन की बात

कही थी और कहा था दक इस नवजागरण का १८५७ स कोई भी साबाध कतशषट साकतहतय र नही ददखाई

पड़ता रारकतविास जी क िख क दो साि बाद lsquoआिोचनाrsquo र नारवर जी न lsquoहहादी नवजागरण की

सरसयाएाrsquo नार स एक िख कतिखा उपरोि दो चीज नारवर जी न उसी िख र कही ह उननीसवी सदी क

भारतीय नवजागरण को ररनसाास कहन र कई ददककत ह यरोप र कतजस lsquoररनसाासrsquo lsquoररफारशनrsquo या

lsquoकतचनकवचतोrsquo आदद कहा जाता ह वह पादरहवी शताबदी का नवजागरण था पादरहवी शताबदी र भारत भी

भकति आनदोिन क रप र एक जागरण स गजर रहा था इसकतिए नारवर जी कहत ह दक अगर उननीसवी

सदी क नवजागरण को ररनसाास कहग तब पादरहवी शताबदी क भकति आनदोिन को कौन सा जागरण

कहग रारकतविास जी इसीकतिए एक को िोकजागरण और दसर को नवजागरण कहत ह नारवर जी

कतिखत ह ldquoउननीसवी शताबदी क भारतीय नवजागरण को lsquoररनसाासrsquo कहन र एक करठनाई तो यह ह दक

इस यग क भारतीय कतवचारको और साकतहतयकारो क पररणासरोत यरोप क पादरहवी शताबदी क कतचनतक और

साकतहतयकार न थ बकतलक इसक कतवपरीत पररणासरोत क रप र अकतधकााश कतवचारक उस काि क थ कतजस

यरोप र lsquoएनिाइटनरटrsquo का काि तथा उसक बाद का काि कहा जाता ह सवया बादकर की सहानभकतत

रसो और परधो क साथ थी और व कोत जॉन सटअटम कतरि तथा हबमटम सपसर स परभाकतवत ददखाई पड़त

हrdquo 14 इस परकार यह lsquoनवजागरणrsquo lsquoपरबोधनrsquo की चतना क तलय ह और इसकतिए इसकी अातवमसत

lsquoिोकजागरणrsquo स कतभनन ह यदयकतप एक र दसर की चतना lsquoअाशतः कतवदयरानrsquo ह पर नवजागरण

िोकजागरण का पनरतथान रातर नही ह नवजागरण का नततव करन वाि रधयवगीय थ िोक क बीच स

नही आन क चित उनका सारानय िोक जीवन स एक दराव था और कतवचारो र िोकोनरख होकर भी

वयवहार र उनका िोक क साथ कोई तादातमय नही था नवजागरण का परभाव शहरो तक सीकतरत था और

इसकतिए िोकजागरण की तिना र इसका परसार भी सीकतरत था नारवरजी इस नवजागरण को रखयतः

साासककततक आनदोिन क रप र दखन की कतहरायत करत ह पर सवाि यह ह दक इस साासककततक आनदोिन

की राजनीकतत कया थी

भारतद क शबदो र नारवर जी भारतीय नवजागरण की रि सरसया lsquoसवतवrsquo या lsquoअकतसरताrsquo की

सरसया बतात ह धयान रखन वािी बात ह दक परबोधन या एनिाइटनरट की एक रि सरसया अकतसरता

की सरसया ह lsquoपरबोधन की िािातरकताrsquo नारक अपनी दकताब र एडोनो और हाखमइरर न ददखाया ह दक

कस परबोधन या जञान की शकति न यथाथम को कतरथ बनाया और कतरथको को यथाथम दकया एक पणय-वसत क

रप र जञान का उतपादन और पनरतपादन उननीसवी सदी की कतवशषता ह खासतौर स पवी कतवदया की रााग

14 नारवर हसाह हहादी का गदयपवम (सा) आशीष कततरपाठी पषठ-८६ राजकरि परकाशन नई ददलिी- २०१०

10

बािार र बहत थी जञान का कतवकतनरय एक बड़ बािार र हो रहा था और जञान की सारचना और उसकी

सापणमता एक फरटसाइजड कतवशवदकतषट बनाती थी कतभननता ह इसकतिए कतवकतनरय ह हर चीज जो कतवकतनरय र

शाकतरि ह रनषय की दकसी न दकसी जररत को परा करती ह य जररत य इचछाएा कवि पट स पदा नही

होती बकतलक कलपनाओ स भी पदा होती ह परबोधन की िािातरक परदकया क भीतर कतवजञान और धरम दोनो

न रनषय क कलपनाजगत की इचछाओ को भी परा करन वािा बािार बनाया कतभननताओ की

वासतकतवकताओ को छपान क कतिए या दसर शबदो र कह तो जञान की वासतकतवक जररत को छपान क कतिए

जञान का एक भरर खड़ा दकया जाता ह ठीक वस ही जस बजमआ अथमशासतर पाजीवाद की अतारकमकता को

ढाकन और दबान की परदकया र ही बना था पराककततक कतवजञानो क भीतर स कतनकिन वािी दो तरह की

कतवचारधाराओ की रााग बहत थी एक अटठारहवी सदी र िोककतपरय lsquoयााकततरक भौकततकवादrsquo की कतवचारधारा

और दसरी जीवकतवजञान स आन वािा कतवकासवाद का कतसदधाात राजनीकततक अथमशासतर क कतिए भारत र जॉन

सटअटम कतरि आदद िखको क बजमआ अथमशासतर का नया बािार था तकम की सावमभौकतरकता को उसकी

वासतकतवक जररत स काटकर lsquoअकतसरता कतनरामणrsquo स जोड़ ददया गया जो इकततहास कतरथ क अात का दावा

करता था वह सवया कतरथ गढ़न िगा यह सब साभव हआ उस कतवशाि जनसारानय क भय क सहार

कतजनहोन अपन ऊपर अपना कतनयातरण खो ददया था धरम इस भय क सहार कतवजञान की आिोचना करता था

और कतवजञान धरम की परबोधन-पवम की परापरा र जो आसथा या कतवशवास और जञान का अकतनवायम साबाध था

उसक सहार धरम आसथाकतवहीन जञान की आिोचना क िारा कतवशाि जनसारानय की रकति का कारोबार

करता ह

परबोधन की एक धारा आिोचनातरक जञान की धारा थी कतजसकी आिोचना राकसम न

lsquoआिोचनातरक आिोचना की आिोचनाrsquo कहकर की थी भारतीय नवजागरण क भीतर आिोचनातरक

जञान की धारा को नारवर जी न रहतवपणम राना ह यह ldquoआिोचनातरक दकतषट यरोप क lsquoपराचयकतवदयावादrsquo

(ओररएणटकतिजर) क इस उपकतनवशी रायापाश को कतछनन करन की चतावनी दती हrdquo15 यह उपकतनवशी

रायापाश पाजी का रायापाश भी ह जञान की पाजी का रायापाश कतजस हर पराचयकतवदयावाद का रायापाश

कह रह ह वह आिोचना-परतयािोचना की एक तथाककतथत िोकताकतनतरक परदकया र ही बन रहा था

इसकतिए इस आिोचना-परतयािोचना की परदकया की आिोचना क सनदभम र ही हर उस आिोचनातरक

धारा की चचाम कर सकत ह और कहना न होगा दक यह एक राजनीकततक करम भी ह नारवर जी न कहा दक

भारतीय नवजागरण र lsquoसवतव पराकतपतrsquo का साबाध राजनीकततक रकति स नही जोड़ा गया ह राजनीकततक

सवाधीनता अथामत lsquoराजसतता पिटन क कतवचार को अातगमहावास द ददया गयाrsquo इस तरह १८५७ या उसक

15 वही पषठ- ८७

11

पहि क दकसान कतवदरोहो क भीतर जो राजसतता पिटन का कतवचार था उस भारतीय नवजागरण न

अातगमहावास दन का कार दकया अतः भारतीय नवजागरण रखयतः साासककततक आिोचना ही थी

राजनीकततक आिोचना को गहावास दन वािी साासककततक आिोचना वह कतिखत ह ldquoसच तो यह ह दक

अकतधकााश िखक सरकषा सशासन कतशकषा उननकतत और शााकतत क कतिए कतिरटश राज क परकतत उपकत अनभव

करत ह- कतवशष रप स रगिो क शासन की तिना र इस परवकततत क अवशष बीसवी शताबदी क दसर

दशक तक रकतथिीशरण गपत की lsquoभारत भारतीrsquo जसी राषटरीय कही जान वािी कावय-ककतत र भी कतरिती ह

यहाा तक दक कभी-कभी तो नवजागरण क अनक उननायक राजसतता क साथ सहयोग करत भी ददखाई पड़त

ह अब इस कोई चाह तो नवजागरण क उननायको का रधयवगीय अथवा भदरिोक चररतर कह ि अथवा

दकसी सागरठत राजनीकततक परकततरोध क अभाव क िारा इस कतनरपायता की वयाखया कर ि दकनत हर हाित

र यह तथय कतवसरत न हो दक कि कतरिाकर था यह रितः नवजागरण ही- साासककततक नवजागरण कतजस

राषटरीय सवाधीनता साघषम का पवमराग भि कह ि दकनत उसका पयामय न सरझrdquo16 इसी साासककततक

नवजागरण स वह lsquoआतरकतबमबrsquo तयार हआ कतजसक कतबना राजनीकततक साघषम का वह रप कतवककतसत नही होता

जो आग चिकर वासतव र हआ अजञय की इस वयाखया स नारवर जी सहरत ह दक राजनीकततक-साराकतजक

आधारो की वासतकतवकता क बावजद भदरवगीय साासककततक आनदोिन न जो lsquoआतरकतबमबrsquo रचा वह

राजनीकततक सवतातरता साघषम र हकतथयार बन गया राजनीकततक सवतव पराकतपत की जो चतना इस पररणापरद

आतरकतबमब र अातगमहावास कर रही थी आग चिकर वही राजनीकततक सवतव पराकतपत र उभरकर कतनज

कतवककतसत होती गयी एक बार दफर lsquoइकततहास जसा था वसा पानrsquo की कोकतशश र इकततहासवाद की

कतवचारधारा सारन आ खड़ी होती ह इस इकततहासवाद की आिोचना गरामशी न भी की थी खासतौर पर

कोच क परर इकततहासवाद की आिोचना करत हए सवाि ह दक सासककततकरम की राजनीकतत कया ह

ददरागी गिारी स रकति का साघषम और राजनकततक रकति का साघषम कया इस तरह क अिगाव र रह सकता

ह और अगर अिगाव ह तो इस अिगाव को कस सरझ एक बार यह तय हो जान पर दक उनका वगम

कया था हर उसी क आिोक र उनक साासककततक परयासो की आिोचना करनी चाकतहए दसर शबदो र

उनक अपन वगीय अातरवमरोधो क आिोक र ही उसकी आिोचना साभव ह उपकतनवशवाद की रानकतसक

गिारी क कतखिाफ साघषम जञान की सतता क कतखिाफ साघषम ह और शायद इसकतिए नारवरजी कहत भी ह दक

यह साघषम राजनीकततक साघषम स lsquoकर करठन न थाrsquo यरोपीय जञान क बरकस भारतीय जञान को सथाकतपत

करन का साघषम ही यह साघषम था ldquoउपकतनवशवाद की छाया र भारतीय सासककतत क िोप का खतरा था

इसकतिए अपनी सासककतत की रकषा का परशन सवतव-रकषा का परशन बन गयाrdquo17 सतता पिटन क कतवचार को

16 वही पषठ ८८

17 वही

12

अातगमहावास दकर सवतव-पराकतपत सवतव-रकषा का परशन बन गया और यह सवतव कया था कतजसकी रकषा

साासककततक रोच पर नवजागरण क परसकताम कर रह थ- कलपना या यथाथम परबोधन न जञान का एक कतरथ

तयार दकया और चपक स कतरथको को जञान बना ददया इस नवजागरण की एक बड़ी दन एक परकतत-

इकततहास-दकतषट का कतवकास ह नारवर जी कतिखत ह ldquoनवजागरण की एक बहत बड़ी दन साभवतः वह

इकततहासदकतषट ह कतजसस अपन अतीत को शतर स रि करक उसक कतवरदध वतमरान र इसतराि करन की किा

आती ह और भकतवषय क कतिए सवपन दकतषट भी कतरिती हrdquo18 अगर वासतव र यह दकतषट नवजागरण की दन ह

तो रानना पड़गा दक यह फासीवाद की इकततहासदकतषट ह एक ऐस रकतसिर अतीत की कलपना जहाा रकतसिर

शतरओ स भारतीयता को रि करक वतमरान र उनक कतखिाफ इसतराि दकया जाता ह और इसस भकतवषय

की एक सवपन दकतषट भी भी कतरिती ह कहना न होगा दक परबोधन स कतनकिी यह इकततहासदकतषट अतारकम क

नही थी कयोदक यह साघषम की वासतकतवकता का सबस भरकतरत रप खड़ा करती ह फासीवाद इस अथम र वगम

साघषम का सबस कतरथकीय रप ह और अगर यह सही ह तो सवतव-रकषा र परापत इस इकततहासदकतषट को हर

परकततकााकतत की इकततहासदकतषट कह सकत ह भारतीयता का यह भरकतरत आतरकतबमब सवया को दो बनाकर ही

गकततशीि था यही इकततहासदकतषट आग चिकर lsquoकतवरदधो का साराजसयrsquo की इकततहासदकतषट क रप र इकततहास

का सबस भवय ढााचा खड़ा करती ह आतरकतबमब क इस कतवखाडन को िकषय करत हय नारवर जी न कतिखा

ldquoहरानी की बात ह दक हहादी परदश का नवजागरण धरम इकततहास भाषा सभी सतरो पर दो टकड़ हो गया

सवतव रकषा क परयास धरम तथा सापरदाय की जरीन स दकय गएrdquo19

आतरकतबमब का यह दो होना िखको क दो वगो र परकततहबाकतबत हआ नारवर जी क अनसार एक

वगम अागरजो का घोर कतवरोध करता ह पर धरम-सासककतत और साराकतजक परथाओ क बार र परापरावादी ह

दसरा वगम अागरजी राज क परकतत नरर रख अपनाता ह पर अनय रारिो र या तो रिगारी ह या दफर

सधारवादी िखको का पहिा वगम भारतीय होन का दावा करता ह जबदक नररपाथी िखक पकतशचरोनरख

ह हहादी नवजागरण क नता जयादातर परापरावादी ह जहाा अागरजी कतशकषा का परसार जयादा हआ वहाा

पकतशचरोनरख िखक जयादा थ दयानाद की अपकषा भारतद का झकाव कशवचादर सन जस पकतशचरोनरख

िखको या सधारको क परकतत था ऐसा साभवतः वषणव भावकता क चित था नारवर जी भारतद र परखर

बकतदधवाद का अभाव पात ह पर उनकी रराकतनयत को रानवतावाद की कतवचारधारा स जोड़त ह

नवजागरण क इस साकतशलषट कतचतर को सारन रखन की कोकतशश र नारवर जी एक ऐसी इकततहासदकतषट

कतवककतसत कर रह थ जो अतीत को उसक सापणम अातरवमरोधो र पान की कोकतशश करता ह अतीत को खिा

18 वही पषठ-८९

19 वही पषठ ९१

13

छोड़ दन वािी यह इकततहासदकतषट या एक सातकतित इकततहासदकतषट का यह परयास खाड खाड कतबमबो की एक ऐसी

गकततशीिता का भरर पदा करती ह जो इकततहासवाद की एक पररख कतवशषता रही ह इस पकष पर सवया

नारवर जी का धयान था और आग चिकर उनहोन नवजागरण क इस कतरथकीय चररतर को सवया ही

आिोकतचत दकया इस आिोचना र वह नवजागरण को परबोधन कहन क बदि lsquoअकतभजञान-कािrsquo कहना

जयादा उपयि रानत ह खद lsquoनवजागरणrsquo नार को अागरजो की कलपना बतात ह और उननीसवी सदी को

lsquoसरकतत-भराशrsquo का काि कहत ह यहाा १८५७ स िकर भारतद और कतववकानाद सब एक कतरथकीय चतना क

भीतर सराकतहत ददखत ह और कतजस भारतीय नवजागरण कहा जाता था उस कतवपरीत जागरण रानत ह

इसी कतवपरीत जागरण का नार उनहोन अकतभजञान ददया 20 डा वीरभारत तिवार न कवि कतहनदी

नवजागरण को भारतीय नवजागरण की परकततकााकततकारी धारा कहा था वही नारवर जी अब पर भारतीय

नवजागरण को ही कतवपरीत जागरण कह रह ह और बहत हद तक सही कह रह ह

डा तिवार न अपनी lsquoरससाकशीrsquo र lsquoहहादी नवजागरणrsquo को एक भरारक पद बताया था न तो

इसका साबाध १८५७ स था न रधयकािीन भकति आनदोिन स और न ही जनवादी राषटरवाद की दकसी

अवधारणा स उनक अनसार परबोधन क कतववकवाद तथा धरमसधार-सराज सधार की कतरिी जिी परदकया

क रप र कतवककतसत होत बागािी या रराठी नवजागरण या भारतीय नवजागरण की परकततगारी धारा क रप

र कतवककतसत होन वाि भारतद आदद क साासककततक आनदोिन को lsquoहहादी आनदोिनrsquo कहना ठीक ह कतशकतकषत

रधयवगम क भीतर दो परसपर कतवरोधी धाराओ की चचाम डा तिवार करत ह एक धारा कतववकवाद की

धारा थी दसरी सनातनी कतहनद धरम की धारा रहाराषटर और बागाि र अागरजी कतशकषा क परचार-परसार न कतजस

नए धरम और सराज सधार को गकतत परदान की वह अपकषाकत अकतधक परगकततशीि धारा थी पकतशचरोततर यि

परानत क पवी इिाक खासतौर पर बनारस इिाहाबाद और बहत हद तक पटना कानपर भागिपर आदद

शहरो र कतवककतसत नव-रधयवगम इस परगकततशीि धारा क साथ नही था इसका सबस बड़ा कारण अागरजी

कतशकषा का अभाव था यि परानत र कोई धारा परगकततशीि भकतरका अदा कर रही थी तो वह कवि दयानाद

सरसवती की आयमसराजी धारा थी इस आयमसराज का भी अपना जनाधार सनातनी पाकतडतो या िाहमणो क

यहाा नही बकतलक नौकरीपशा अागरजी कतशकषा परापत वह भदरवगम था जो अपन धरम और सासकारो क कतपछड़पन

को िकर गिाकतनबोध स भरा था इस वगम को अपनी पहचान आयम सराज र ददखती थी आयम सराज क

रिवाद र तथा उसक तारकम क सथिवाद र आधकतनक होन का रासता ददखता था िहमोसराज और

कतथयोसोदफकि सोसाइटी दो ऐसी सासथाएा और थी जो यि परानत र धरम और सराज सधार का परयास कर

रही थी परनत इसका परभाव बहत सीकतरत था आरतौर पर यिपराात र रहन वाि बागािी अपरवासी ही

20 दख नारवर हसाह उननीसवी सदी का भारतीय पनजामगरण यथाथम या कतरथक (अन) पाकज पराशर पकषधर अाक ११ जिाई २०११

14

इनक सदसय थ हहादी आनदोिन क नताओ न इन दोनो धाराओ की आिोचना की ह इनहोन दयानाद क

रिवाद की आिोचना अपनी परापरावादी करमकााडी दकतषट स की इनक अनसार उपकतनषद या पराण आदद

अगर अपराराकतणक भी ह तब भी चादक िोक र सवीकत ह इसकतिए उनह एकदर ख़ाररज करक कोई धरम या

सराजसधार नही हो सकता तिवार जी का कहना ह दक अपनी िचर दिीिो की आड़ र य िोग वसततः

सतरी कतशकषा कतवधवा कतववाह या आधकतनक जीवनशिी आदद की परगकततशीिता का कतवरोध कर रह थ यह

कतवरोध आरतौर पर सरदाय की रानयताओ को ही सारन रखकर दकया जाता था एक दकसर क

कतबरादरीवाद क भीतर स सरझौता करत चिन क कारण हहादी आनदोिन क नता अपन पाररवाररक या

वयकतिगत जीवन क उथिपथि स बचन की कोकतशश करत ह धरम इनक कतिए सधार का नही वरन

राजनीकततक हथका डा रातर था धरम की आड़ र य रकतसिर भदरवगम को अपना परकततयोगी साकतबत कर कतहनद

एकता की अपीि करत तादक इनह सरकारी नौकररयो र कछ कतवशषाकतधकार कतरि सक तिवार जी क

अनसार रकतसिर भदरवगम इन हहादी आनदोिन क परसकततामओ स कही जयादा परगकततशीि था उनक यहाा

आधकतनकता क परकतत जयादा खिी और कतववकसापनन दकतषट थी और उनहोन जोर दकर कहा दक हहादी आनदोिन

को सर सयद अहरद खाा जस दकसी सकषर कतववकवादी वयकतितव का नततव नही कतरि पाया हहादी

आनदोिन और नताओ क अातरवमरोधो को ददखात हए तिवार जी न भारतद की छकतव एक पतनशीि कतहनद

रोररटक की गढ़ी ह यहाा भारतद एक परकततनायक क रप र नजर आत ह

कतववकवादी इस धारा न राषटरीयता की जो धारणा गढ़ी वह रितः साापरदाकतयक थी अागरजी राज क

कतखिाफ अगर इनका साघषम सराज और धरम सधार को साथ-साथ रखन क बजाय उसर अिगाव करता ह

बकतलक उनक कतखिाफ जाकर सागरठत होन का परयास करता ह तो उसक सारन रकतसिर भय पदा करन क

अिावा और कोई रासता साभव नही था lsquoहहादी नागरी और गोरकषाrsquo आनदोिन इसकी सवभाकतवक पररणकतत

थी आग चिकर उननीसवी सदी क आकतखरी दशक र आकार गरहण करन वािी कतहनद राषटरवाद की यह

पषठभकतर ह इसक वग र दयानाद न भी साथ ददया कयोदक उनर भी पनरतथानवाद क बीज थ पवी परदशो

की अपकषा आयम सराज पाजाब र कही जयादा रकतडकि था आयम सराकतजयो की सदसयता की साखया पाजाब

क रकाबि यि परानत र जयादा थी पर वहाा कोई गणातरक पररवतमन साभव नही हआ और यह रहज

साखयाबि क रप र ही बना रहा इसका कारण उनहोन पाजाब की कतभनन नतततवशासतरीय अवकतसथकतत र

बताया ह पाजाब र िाहमणो का परभाव कर था कतजसका एक कारण रसिरानो क साथ िमबा सासगम और

कतसख धरम आदद का परभाव भी था इस तरह का कोई कतवशलषण पवी परदशो क बार र नही दकया गया जसा

दक बहत पहि रदमरशरारी की ररपोटम स ही हजारीपरसाद कतिवदी न दकया था अथामत रधययगीन कतसख

धरम क परभावो की तरह कबीरपाथी आदद सरदायो क परभाव और वषणवता क अातसबाधो की पड़ताि नही

15

की गयी ह काशी क बनकरो की एक हड़ताि का कतिक रारकतविास जी बार बार करत ह जो १८३३ ई र

ही हई थी और इकततहासकार बिी क अनसार यह वक़त आरथमक साकट का भी वक़त था

भदरवगम का जो कतहससा हहादी आनदोिन क साथ था उस जाकतत वयवसथा की परानी रानयता को

बनाय रखन या उस रजबत करन की जररत कया कवि नौकररयो र कतवशषाकतधकार परापत करन क कतिए थी

या जाकतत वयवसथा रातर र आय एक रिगारी साराकतजक साकट का वह परकततदकयावादी रपाातरण ह शहरो

र आरथमक-वयापाररक गकततकतवकतधयो क कारण और आसपास क इिाको स परवासी रजदरो का आगरन तथा

बढ़ती वशयावकततत आदद क चित शहरी साराकतजक साबाधो र भी उथि-पथि थी ऐस सरय र सारदाकतयक

या कतबरादरी बोध lsquoएकाrsquo की भावना पदा करती ह तिवार जी इस नव-भदरवगम का अपन ही भीतर अिग-

अिग खााचो र बाट होन की बात करत ह अिग-अिग खााचो र बाट होन क चित यह भदरवगम रधयवगम की

कतवचारधारा अथामत कतववकवाद या नवजागरण को परापत नही कर पायी थी वगम था िदकन वगम की

कतवचारधारा नही थी खद भारतद क जीवन स हर उस दौर की अकतसथरता का कछ अादािा कतरिता ह

अकतसथरता और खााचो र बाटा रधयवगम दरअसि सापणम सराज र होन वाि एक आधारभत पररवतमन की ओर

इशारा करता ह यह पररपरकषय १८५७ की तरासदी का भी ह ऐसी कतसथकतत र हपराट पाजी क साथ बनन वािा

यह साासककततक आनदोिन था जहाा सवतव रकषा रखयतः अपन परान कतवशषाकतधकार की रकषा थी साराकतजक

साबाधो र आय उथि पथि क कारण उनह अपन कतवशषाकतधकार कतछन जान का खतरा साफ़ ददखाई द रहा

था जहाा अागरजी कतशकषा थोड़ा पहि ही परसार पा चकी थी वहाा कशि कारीगरो स िकर अधयापको और

परशासकतनक अकतधकारीयो क एक बड़ सरह न अपना नया कतवशषाकतधकार पा कतिया था साराकतजक साबाधो र

उनकी शरषठता उनक कतववकवाद क कारण बन चकी थी भारतद क एक शरआती िख lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

क राधयर स खााचो और जनरत की राजनीकतत को सरझन की कोकतशश आग करग

तिवार जी क अनसार दयानाद क कतवचारो क कतिए पाजाब जयादा गरहणशीि था कयोदक वहाा

जाकतत वयवसथा क बाधन पहि ही ढीि हो गए थ यिपराात र जाकतत क बाधन जायदा कठोर थ कतजन अथो र

कतिवदी जी रधय दश की रकषणशीिता का कतजक करत ह कछ-कछ उनही अथो र पर सवया दयानाद क

कतवचारो र कतववकवाद-पनरतथानवाद का दोरखापन कतरिता ह तिवार जी कहत ह दक कतजन सथि तको स

वह वदो की ओर िौटन को कहत थ आयम भाषा आयम जाकतत और आयम धरम की बात करत थ उसक कारण

ही इनका झकाव आग चिकर राषटरीय सवयासवक साघ की ओर होता गया पर आयम सराज क साराकतजक

सधारो और धरम सधारो की एकता क कारण वहाा वह साभावना भी थी कतजसक परभाव स आग चिकर बहत

सार कमयकतनसट कायमकताम भी कतनकि पररचाद राहि साकतयायन या गणश शाकर कतवदयाथी जस साकतहतयकार

और आनदोिनकताम आयम सराज क परभाव र थ आयम सराज तिवार जी क अनसार वासतकतवक साराकतजक

16

पररवतमनो का सावाहक और सराज र वयकति स िकर साराकतजक जीवन क हर कषतर र गणातरक पररवतमन

िान वािा इसकतिए हो पाया कयोदक वहाा धरमसधार और सराज सधार अिग-अिग नही था दसरी ओर

हहादी आादोिन साापरदाकतयक जाकततवादी और सतरीकतवरोधी रलयो को ही सराज र फ़िान र कारयाब हआ

यह धारा अागरजो को अरजमयाा दकर नौकरी पान वाि रधयवगम की धारा थी

तिवार जी न भारतद की तकमशीिता को बहत कतनमन कोरट का कहा ह भारतद क चररतर र शायद

वह एक lsquoिमपनrsquo की छकतव भी दखत ह पसा उड़ान की वकतत सतरी क साथ वयवहार और उनक साबाध

चाररतरय बि का अभाव आदद आदद क सनदभम र वह कहत ह दक भारतद क चररतर र वह सदढ़ता या

सदाचाररता नही ह जो सराजसधार क कतिए आवशयक होती ह घर र पतनी उनह कभी पसाद नही आई

और वह बाहर रहदफ़िो र वाहवाही िटत रह रदमवादी दकतषट भी उनर कट-कटकर भरी थी भारतद क

इस चररतर की तिना तिवार जी न दो अनय परमपरावादी सधारको स की ह एक बागाि क राधाकाात दव

और दसर पाजाब क शरदधारार फलिौरी यदयकतप य दोनो भी भारतद की तरह परापरा की रकषा र ही सधार

की ओर अगरसर हए थ िदकन इन िोगो का चररतर जयादा परगकततशीि था इन दोनो की तिना र भारतद

का खिनायकतव और भी अकतधक उभरकर सारन आता ह सापकतकषक परगकततशीिता क कतनधामरण क कर र

भारतद अपन सापणम जीवन वयवहार र एक एाटी हीरो की तरह उभरत ह ठीक परान खिनायको की तरह

नही एाटी हीरो क साथ दशमक या पाठक की एक आतरीयता भी जड़ी रहती ह उसका चररतर ददराग र बस

जाता ह िदकन इसक चित यथाथम क ओझि होन का खतरा भी ह तिवार जी इसकतिए कदर कदर पर

उनकी साकतहकततयक छकतव क बरकस उनक राजनकततक- साागठकतनक जीवन वयवहार स बनन वािी छकतव को

सारन ररतमरान करत जात ह

अपनी परी आिोचना र तिवार जी भारतद की रचनाओ र कतरिन वाि भाषायी िदधड़पन और

राद तकमशीिता की चचाम तो करत ह िदकन व भारतद क वयागयो पर चचाम नही करत कया यह रहज

सायोग ह दक भारतद क परहसन lsquoअाधर नगरीrsquo का राचन आज भी परगकततशीि रलयो की परकततषठा ही करता

हभारतद क वयागयो या परहसनो र ऐसा कया ह कतजसर दहराव क साथ नवीन होत चिन की कषरता भी ह

भारतद क िखो या परहसनो या रपको र जो कही-कही वणमन या सावाद िारा वयागय का तीखा बोध पदा

होता ह उसकी शकति उनह कहाा स कतरिती ह वयागय की कषरता सवया र उनकी सकषर कतनररकषण र सरथम

दकतषट का परराण ह परान साराकतजक साबाधो र पररवतमन और तीवर पररवतमन क साथ साथ जो एक परहसन

चि रहा था उसका बोध भारतद को था भदरवगम क भीतर की कतववकवादी धारा का कतवकास भी कतहनद

राषटरवाद की कतवचारधारा र ही हआ परनत lsquoअाधर नगरीrsquo कया कतहनद राषटरवादी कतवचारधारा वािा परहसन ह

या कया यह कवि राषटरवादी कतवचारधारा का वाहक ह lsquoउरराव जान अदाrsquo र उभरकर सारन आन वाि

17

साराकतजक साासककततक साकषोभ या उस वयापक टरजडी क सनदभम र दख तो भारतद क वयागय और परहसनो का

अथम थोड़ा और उभरता ह रकतलिका या राधवी स भारतद क साबाधो र कया उस तरासदी का सराग भी नही

ह वशयावकततत और पतनशीि रइसो का साकट एक दसर स अिग नही था उस सरय की औपनयाकतसक

ककततयो र वशयावकततत का सनदभम अवशय आता ह आग चिकर पररचाद की सरन बनारस र ही lsquoसवासदनrsquo

का सराधान ढाढ रही थी

भारतद क वयागयो पर रारकतविास जी का धयान था यह बात अिग ह दक अकतधकााश रौको पर

इनर वह जातीय चतना खोज कतनकाित ह बीस साि की उमर र भारतद न एक िख lsquoिवी पराणिवीrsquo नार

स कतिखा था रारकतविास जी इसका उलिख करत हए कतिखत ह ldquoगवनमर जनरि कतहनद क कतजस दरबार का

भारतद न वणमन दकया ह वह काशीराज क घर पर हआ था इसकतिए भारतद की सतयकतपरयता और भी

सराहनीय ह वहाा जो सजजन िोगो क नार कतिख रह थ उनका वणमन या दकया ह lsquoनार कतिखन वाि राशी

बदरीनाथ फि-फाि अबा पकतहन पगड़ी सज परान दादर की भााकतत इधर-उधर उछित और शबद करत

दफरत थrsquo िोग दकस तरह एक आनररी रकतजसटरट क lsquoकतसट डौनrsquo lsquoसटड अपrsquo कहन स उठत और बठ जात थ

इसका उनहोन बहत ही नाटकीय वणमन दकया ह आनररी रकतजसटरट का वयवहार हविदार का सा था कतसफम

हाथ र एक िकड़ी की कसर थी िोग कीरती पोशाक पहनकर गए थ ldquoसबक अागो स पसीन की नदी

बहती थी रानो शरीयत को सब lsquoअरघय पादयाrsquo दत थrdquo िोगो की उठा बठी और बहदा कवायद को िकषय

करक कतिखा था ldquoवाह-वाह दबामर कया था lsquoकठपतिी का तराशाrsquo था या बलिरटरो की lsquoकबायदrsquo थी या

बादरो का नाच था या दकसी पाप का फि भगतना था या lsquoफौजदारी की सजाrsquo थीrdquordquo21 काशी की इस सभा

र खद भारतद भी बठ थ इस परकार यह भारतद क वगम का परहसन भी था पतनशीि सासककतत की

आतरािोचना क कतबना यह साभव नही था बात कवि उमर की नही ह ठठ वतमरान र हसतकषप और उस

बदिन का बोध कतजन पतनशीि कतसथकततयो का आतर साकषातकार कर रहा था यह उसक परकतत एक

सवाभाकतवक सवतःसफतम परकततदकया थी यह तारकम क की नही बकतलक किाकार की सवतः सफतमता थी यह बात

सही ह दक भारतद कतवचारो की तारकम कता क रारि र उननीस पड़त थ पर इस करी को उनकी तीकषण

वसतकतनरीकषण दकतषट भर दती थी जीवन कतसथकततयो की कतवडमबना का बोध कतजतना गहरा था बदिन का

परयास उतना ही ऊजामवान था भारतद सवया अपनी भी कहानी कतिख रह थ lsquoपयार हररचाद की कहानीrsquo

कतिख रह थ भारतद क परहसनो र दकसी न दकसी पातर की भकतरका र हर जगह सवया भारतद भी ददख

जात ह अपन वगीय अातरवमरोधो का सवबोध उनक यहाा एकतिगोररकि हो जाता ह इस एकतिगरी र lsquoकतहनद

21 रारकतविास शराम पषठ- ६६

18

भारतrsquo की रधर कलपना थी इसस इनकार नही दकया जा सकता भाव जगत का वषणव परर lsquoकतहनद भारतrsquo

की कलपना स परर र बदिता गया

भारतद की रचनाओ र कतवशवदकतषट की एकता खोजन पर हर परभतवशािी कतवचारधाराओ की

वयवसथा ही कतरिगी जञान और वयावहाररक सारानय बोध क बीच एक सदकय साबाध बनान क कर र ही

उनका सवाभाकतवक आवग कतजन वयावहाररक धाररमक कतवचारधाराओ र आतरकतबकतमबत होता ह व

परभतवशािी कतवचारधाराएा ह इन कतवचारधाराओ का कतनरामण कही बाहर स नही हो रहा था बकतलक

पराचयकतवदयाकतवदो की कलपना क साथ परसपर भागीदारी र बन रहा था इन कलपनाओ को यथाथम रप द

रही थी हपराट पाजी क साथ कतवककतसत होती lsquoबजमआ पकतबिक सफीयरrsquo की दकयाएा भारतद की सवाभाकतवक

सफरतम ततकाि ही एक फ टसी र बदिन िगती ह और दकयातरक होना चाहती ह ऐस ही सरय

पराचयकतवदया क पाकतडतो क िारा जगाय गए कतरथकीय परत भी आकर सर पर सवार हो जात ह पराचयवाद

दकसी परत-कतवदया स कर न था दखना चाकतहए दक भारतद की रचनाओ र कहाा परतो की दकतनया र यथाथम

का हसतकषप होता ह उनकी एकतिगरी कहाा कतसथकततयो क अकततरक को अकतभवयि कर रही ह जस भारतद की

lsquoअाधर नगरीrsquo ऐन हरार वक़त र राजयसतता का रपक बन जाती ह यह रपक राजयसतता र अनतरनमकतहत

हहासा की अकतनवायमता और नयाय क भरर का परहसन भी ह

२ धरम सधार पर कतवचार सभा

िहमो सराज या दयानाद सरसवती को खद भारतद कस दख रह थ इसका पता हर lsquoसवगम र कतवचार

सभा का अकतधवशनrsquo22 नारक एक वयागय रपक स चिता ह सवारी दयानाद सरसवती और कशवचादर सन

जब ररन क बाद सवगम पहाच तो ldquoवहाा एक बर बड़ा आनदोिन हो गयाrdquo रतय क कछ ही सरय पहि कतिखा

गया यह वयागय रपक अपन सरय क धरम सधार आादोिनो क चररतर की वयाखया करता ह सबस पहि

इसका परकाशन किकतत स कतनकिन वािी परकततकतषठत हहादी पकततरका lsquoकतरतर कतविासrsquo (जन १८८५) र हआ था

िहमो सराज और आयम सराज क आनदोिनो को भारतद इस सरय तक आकर एक तटसथ आिोचकीय दकतषट

स दखन का परयास करन िग थ सवगम र एकबारगी पदा हए इस आनदोिन र रोट तौर पर दो खर बन

गए एक इनका परशासक था दसरा हनादक पहिा कतिबरि ह दसरा काजरवरटव इन दोनो खााचो र

अनदफट एक तीसरा दि ह जो वषणव आतराओ का ह इस दि क सासथापक तो कतिबरि थ पर अब य

lsquoरकतडकलस कया रहा रकतडकलस हो गए हrsquo कतनकतशचत रप स इन रहा रकतडकलस आतराओ र हर सवया भारतद

22 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन सा- करिा परसाद परसा- नारवर हसाह पषठ- ८२-८६ नशनि बक टरसट इाकतडया नई ददलिी- २००६

(आग इस िख क उदधरणो को कतबना पाद रटपणणी क ददया गया ह)

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को भी कतगन सकत ह वयासदव एक ऐस बकतदधजीवी क रप र सारन आत ह जो दकसी का भी पकष िन स

बचत ह पर उनका रान दोनो खरो र ह ldquoकतबचार बढ़ वयासदव को दोनो दि क िोग पकड़-पकड़ कर ि

जात और अपनी अपनी सभा का lsquoचयररनrsquo बनात थ और बचार वयास जी अपन पराचीन अवयवकतसथत

सवभाव और शीि क कारण कतजसकी सभा र जात थ वसी ही विता कर दत थrdquo कतिबरिो की तिना र

का जरवरटव दि जयादा रजबत था कयोदक उनह सवगम क जरीदारो का सहयोग परापत था काजरवरटव दि की

आतराएा साकीणम कटररपाथी आतराएा थी य आतराएा उन परान िरान क ऋकतष रकतनयो की आतराएा ह जो

ldquoयजञ कर करक या तपसया करक अपन-अपन शरीर को सखा-सखाकर और पच-पच कर ररक सवगम गए हrdquo

करमकााड और वरत उपवास आदद को भारतद वही तक सही रानत थ जहाा तक व शरीर को कषट न पहाचाएा

कठोर दह साधना करन वाि इन ऋकतष रकतनयो की आतराएा सधारो क कतखिाफ थी और इनका साथ दन

वाि जरीदारो र lsquoउदार िोगो की बढ़तीrsquo स अपना रान-अकतभरान और बि कतछन जान का डर था

कतिबरि दि भिो की आतराएा या तो सावमजाकतनक जीवन क उचच रलयो या आदशो क सापादन क चित या

पररशवर की भकति स सवगम र गयी थी

सराज सधार और वयकतिक परर रिक भकति- कतिबरि कतवशवदकतषट को भारतद इसी पररपरकषय र दख

रह ह रकतडकि वषणव दि भिो क कतिए वषणव होन रातर स य चीज पहि स ही उपिबध थी भारतद क

कतिए वषणवता सवाभाकतवक रप स कतवशवदकतषट ह पर रकतडकि वषणव इस सवाभाकतवक उदारता को

राजनीकततक रप दन वाि ह वषणव उदारता का और उसक भावावग का राजनीकततकरण करन वाि रहा

रकतडकि इस तरह भारतद क कतिए वषणवता की आधकतनक वयाखया र सराज सधार वयकतिक परर रिक

भकति और राजनीकतत तीनो का lsquoएकाrsquo ह इस एका क रकतडकि परयास क कतिए जनरत या िोकरत का

कतनरामण आवशयक ह भारतद की रकतडकि वषणवता ही lsquoसब उननकतत का रिrsquo ह यह एक िोककतपरय

वयावहाररक कतवचारधारा क रप र आकर गरहण करन वािी वषणवता ह यह रकतडकि वषणवता धरम का

राजनीकततकरण ह

काजरवरटव दिभिो को दवताओ का सरथमन परापत था य दवता ही सवगम क जरीदार थ अपन

अपन तरीक स इन दवताओ न काजरवरटव दि की सथानीय शाखाएा भी खोि िी और वहाा इनक पकष र

lsquoपरकाश सभाएाrsquo होन िगी कतिबरि दि वािो क पकष र कवि इस lsquoकतहनद सवगमrsquo क िोग नही थ ldquoइधर

lsquoकतिबरिrsquo िोगो की सचना परचकतित होन पर रसिरानी-सवगम और जन सवगम तथा दकसतानी सवगम स पगमबर

कतसदध रसीह परभत कतहनद सवगम र उपकतसथत हए और lsquoकतिबरिrsquo सभा र योग दन िग बका ठ र चारो ओर

इसकी धर फि गयीrdquo अिग अिग सवगम कतवकतभनन धाररमक पहचानो की ओर इशारा करता ह बका ठ कतहनदओ

का सवगम ह और यह नया धरम आनदोिन रखयतः कतहनद धरम की एक बड़ी पहचान क भीतर ही पदा हआ ह

20

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग क तीन कतनकतहताथम वसधा डािकतरया न भारतद यग क सनदभम र नोट दकय ह23 पहिा

एक पराक औपकतनवकतशक lsquoकतहनद अथमrsquo जहाा हहादसतान का हर बाहशादा शाकतरि था दसरा परसपर कतभनन

धाररमक रतो और आसथाओ की कतनकट अातरकम या क अथम को वयि करता ह कतजसक आराकतभक साकषय सलतनत

कािीन ऐतहाकतसक वतताातो र कतरित ह यहाा यह शबद lsquoतकम rsquo क सरानाातर उपयोग र आया था और

सारानयतः रसिरानो क बरकतखिाफ उपयोग दकया जाता था आरमभ र यह धाररमक कर साराकतजक-

राजनीकततक अथो र जयादा परयि होता था अागरजी राज क साथ यह दसरा अथम धरम स अकतनवायमतः जड़कर

lsquoकतहनदवादrsquo की कतवचारधारा र बदि गया जमस कतरि आदद क इकततहासो र lsquoकतहनदकािrsquo और lsquoरसिरान

कािrsquo की ऐकततहाकतसक कलपना क साथ कतहनद शबद जड़ गया था भारतीय भी रसिरानो को सारन कर

lsquoकतहनद पीकतड़त गराकतथrsquo क कतिए इस शबद का इसतराि करन िग कतहनद शबद का तीसरा अथम राषटर की

अवधारणा स जड़कर बन रहा था आरथमक राषटरवाद और अागरजी राज की यातना की साझी सरकतत स बनन

वाि इस तीसर अथम का रतिब था- lsquoजो कतहनदसतान र रह वह कतहनदrsquo रारकतविास जी भारतद क यहाा

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग को इनही अथो र ित थ पर वसधा डािकतरया का कहना ह दक यह तीसरा अथम दसर क

वयापक परभाव र था तीनो अथो की अातरकम या क बार र डािकतरया न कतिखा ldquoतीसरा अथम या राषटरवादी

अथम कभी भी अपन धाररमक साकताथो स परी तरह छटकारा नही पा सका इस पद की परयकति उननीसवी

सदी र अकतसथर बनी रही और इसक रखतकतिफ रायनो र आपसी जड़ाव कायर रहा बावजद इसक दकसी

परदतत सनदभम र lsquoकतहनदrsquo क पराथकतरक अथम को कतनधामररत करना साभव ह यदद एक बार यह तय हो जाय दक

इिाकाई धाररमक राषटरीय र स दकस आधार पर यह पद परयोग र आ रहा ह और lsquoअनयrsquo की भकतरका र

दकस रखा जा रहा ह चाह वह अनय जसा दक परानी इिाकाई परयकति र ददखता ह फारसी या तकी हो

या रसिरान (कतजस इस िरान र भी कई बार सरह क हवाि स तकम ही कहा जाता ह) या दफर अाततः

औपकतनवकतशक सवारी िदकन यह बात ददराग र रखना जररी ह दक धाररमक सरदाय को कतनरदमषट करन

वािी दसरी परयकति अतयात परभावी सनदभम-हबाद बनी रहती हrdquo24

इस सनदभम र दख तो कतिबरि दिो क सरथमन र शाकतरि lsquoअनयrsquo कतहनद धरम क सधारवाद क सरथमक

ह और lsquoसधारोrsquo र छपी वकतशवक भावनाओ को सरथमन दन पहाच ह का जरवरटव दिो की lsquoअनयताrsquo यहाा नोट

करन िायक ह इस अनयता र साराती जरीदार और करमकााडी िाहमणवाद का बिाक ह जबदक कतिबरि

दकतषट क आसपास एक lsquoसायि रोचrsquo की कलपना की गयी ह धयान रखना चाकतहए दक भारतद क रकतडकि

वषणव इस lsquoसायि रोचrsquo क बाहर ह उनका lsquoएबसटकतनजरrsquo वषणव होन क चित नही बकतलक रकतडकि या

23 वसधा दिकतरया कतहनद परमपराओ का राषटरीयकरण भारतद हररशचादर और उननीसवी सदी का बनारस अन साजीव करार योगनदर दतत पषठ-

४०-४२ राजकरि पपरबकस नई ददलिी- २०१६

24 वही पषठ- ४२

21

रहा रकतडकि होन क चित था कतनकतशचत रप स सवगम सासद का रपक ह और सवगम का राजा ईशवर

कतनषपरभावी हो गया ह और जनता सवया जनरत क िारा कतनणमय कतसथर करन पर जोर दती ह जनरत क

िारा lsquoसलफ गवनमरटrsquo का परयास सबस पहि वषणव भिो न दकया था और आज क कतिबरलस उसी को

आग बढ़ा रह ह ईशवर क पास दोनो दिो क िोगो न जब अपन अपन ररोररयि तयार कर भज तो ईशवर

न दोनो दिो क डपयटशन को बिाकर कहा ldquoबाबा अब तो तरिोगो की lsquoसलफगवनमरटrsquo ह अब कौन

हरको पछता ह जो कतजसकी जी र आता ह करता ह अब चाह वद कया सासकत का अकषर भी सवपन र भी न

दखा हो पर धरम कतवषय पर वाद करन िगत ह हर तो कवि अदाित या वयवहार या कतसतरयो क शपथ

खान को ही कतरिाय जात ह दकसी को हरारा डर ह कोई भी हरारा सचचा lsquoिायकrsquo ह भत परत ताकतजया

क इतना भी तो हरारा दजाम नही बचा हरको कया कार चाह बका ठ र कोई आवहर जानत ह चारो

िड़को (सनक आदद) न पहि स ही चाि कतबगाड़ दी ह कया हर अपन कतबचार जयकतवजय को दफर राकषस

बनवाव दक दकसी का रोकटोक कर चाह सगन रानो चाह कतनगमन चाह ित रानो चाह अित हर अब न

बोिग तर जानो सवगम जानrdquo

काजरवरटव दिभिो न दयानाद और कशवचादर सन पर कया कया आरोप िगाय यह दख िना

चाकतहए दयानाद को सवगम र सथान नही कतरिना चाकतहए कयोदक १ इसन पराणो की हनादा की २ ररतमपजा

की हनादा की ३ वदो का अथम उलटा-पलटा कर डािा ४ दस कतनयोग करन की कतवकतध कतनकािी ५ दवताओ

का अकतसततव कतरटाना चाहा (दवताओ याकतन जरीदार) ६ इसन धरम कतवपिव दकया और आयामवतम को धरम

बकतहरमख दकया पकतशचरोततर परानत क परकततकतनकतध क रप र lsquoकाशी क कतवशवनाथ जीrsquo न lsquoउदयपर क एकहिाग

जीrsquo पर दयानाद क सरथमन का आरोप िगाया कतवशवनाथ जी काजरवरटव दिो की तरफ स यह आरोप िगा

रह थ परब की अपकषा पकतशचरी इिाको र आयम सराज क परभाव की चचाम क सनदभम र एकहिाग जी का

जवाब धयान दन िायक ह कतवशवनाथ जी न जब एकहिाग जी को कतधककारत हए कतिबरिो क साथ कतरि जान

को कहा तब एकहिाग जी न कहा ldquoभाई हरारा रतिब तरिोग नही सरझ हर उसकी बरी बातो को न

रानत न उसका परचार करत कवि अपन यहाा क जागि की सफाई का कछ ददन उसको ठका ददया बीच

र वह रर गया अब उसका राि रता रठकान रखवा ददया तो उसका बरा दकयाrdquo यह एकहिाग जी

दफ़िहाि सवारी जी क दि क सभापकतत बन ह आकतखर इनहोन अपन यहाा क दकस lsquoजागिrsquo की सफाई का

ठका सवारी जी को ददया था यह जागि छोट-रोट धाररमक समपरदायो और रतो का जागि था एकहिागी

जी और काशी क कतवशवनाथ जी दोनो ही िाहमणीकत शवरत क धाररमक परतीक ह पर जहाा काशी क

कतवशवनाथ शर स ही दयानाद क कतवरोधी थ वही एकहिाग जी रणनीकततक रप स दयानाद क पास गए थ यह

साकीणम कटररपाथ क भीतर का कतववाद था यह बात गौर करन िायक ह दक जगननाथपरी र जब भरव की

22

रौजदगी का कतववाद भारतद क सारन आया था उस सरय उनहोन इस बात का परतयाखयान दकया था दक

भरव की परकततरा अनाददकाि स वहाा ह भारतद न पराण आदद स साकषय दकर यह परराकतणत दकया दक

कषण ही एकरातर उपासय ह तिवार जी न इस घटना का उलिख करत हए कतिखा ह दक ldquoदकसी वयकति न

lsquoतहकीकातपरीrsquo दकताब दकखकर बताया दक वहाा पहि भरो की पजा होती थी वषणवो न उसकी ररतम

उखाड़ फ की थी बाद र पाडो न जगननाथजी (कतवषण) क साथ भरो को दफर स परकततकतषठत दकया यह रारिा

काशी धरमसभा क सारन १८७० र आया भारतद न धरम साबाधी पसतक र lsquoतहकीकातrsquo जस फारसी शबद

की आिोचना करत हए कतवकतभनन धरमगराथो स परराण जटाकर दो बातो पर जोर ददया एक इसका परराण

नही कतरिता ह दक वहाा जगननाथजी क साथ पहि भरो की भी ररतम थी कतजस वषणवो न उखाड़ फ का दो

अगर वह थी भी तो यह उकतचत था या नही- इसपर कतवचार होना चाकतहए भारतद न अपनी वयवसथा दत

हए कतिखा दक भरो कतवषण स बहत छोटा दवता ह इसकतिए यह कतवषण क साथ बठाया नही जा सकता

lsquoदसर भरव कापाकतिको क दवता ह उनका पजन वषणव-सरातम सबको कतनकतषदध हrsquo गौरतिब ह दक भारत

र कतवकतभनन सथानीय धरो क परकतत कतजतन असकतहषण और फा डारटकतिसट आयमसराजी थ उतन ही काशी क

सनातनी भी थrdquo25

सथानीय धरम-रतो क जागि को साफ़ करन र आयमसराकतजयो और काशी क सनातनी पाडो क इस

गठजोड़ स भारतद भी वादकफ थ िदकन आयमसराकतजयो क साथ उदयपर क एकहिाग जी का रोचाम कसा

था इस भी भारतद बखबी सरझ रह थ सथानीय रतो क साथ भारतद का समबनध कसा था इसका पता

उनक छोट-छोट यातरा सासररणो स भी चिता ह lsquoसरय पार की यातराrsquo26 र रहदावि का हाि बयान करत

हए lsquoपराणनाथrsquo क रिहब का भारतद आशचयम क साथ उलिख करत ह भारतद क ही शबदो र ldquoयहाा एक

पराणनाथ का रिहब ह और दस बीस िोग उसक रानन वाि ह य िोग एकादशी तीथम वगरह को नही

रानत और सन सनाय दो तीन शलोक जो याद कर कतिए ह बस उसी पर चर हो lsquoरदीनासया शारदाा शताrsquo

और lsquoगोकतवनदrsquo lsquoगोकिानाद रककशवरrsquo यह शलोक पढ़ क कहत ह दक वद र रकका रदीन का वणमन ह ऐस ही

बहत वाकतहयात बात करत ह और कोई दकतना भी कह कछ सनत नही कहत ह दक गोिोक का नाश ह

और गोिोक ऊपर एक lsquoअखाड रणडिाकारrsquo िोक ह उसर रर कषण ह इनका रिहब एक पराणनाथ नारक

एक कषतरी न पनना र करीब तीन सौ बरस हए चिाया थाrdquo भारतद इस अजीबो गरीब lsquoरिहबrsquo का कषण स

कया साबाध ह यह सोचकर ताजजब र थ इस lsquoरिहबrsquo क गरनथ र भारतद न एक शलोक बलिभाचायम का

दखा तो उनका राथा और घर गया ldquoकि रिहब का हाि हरन नीच कतिखा था उसका अचछी तरह स

25 वीरभारततिवार रससाकशी १९वी सदी का नवजागरण और पकतशचरोततर परानत पषठ- १५२ सारााश परकाशन ददलिी- २००६

26 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन पषठ- १३७-३८

23

हाि दरयाफत दकया तो रािर हआ दक हरार ही रिहब की शाखा ह इनक गराथो र हरन एक शलोक शरी

रहापरभजी की सबोकतधनी की काररका का दखा इसी स हरको सादह हआ दफर हरन बहत खोद खाद कर

पछा तो वह साफ़ रािर हआ दक इसी रत स यह रत कतनकिा ह कयोदक एक बात वह और बोि दक हरारा

रत शरी बलिभाचारज की टीका र कतिखा ह इन िोगो क उपासय शरीकषण ह और एकादशी शािगरार

ररतमपजा तीथम दकसी को नही रानत इनक पकतहि आचायम दवचाद जी थ जो जाकतत क कायथ थ और दसर

पराणनाथ जी जो कचछ क कषतरी (भारटया) थ हरार ही रत की शाखा सही पर कतवकतचतर रत ह वषणव होकर

ररतमपजा का खाडन करन वाि यही िोग सनrdquo वणमन स सपषट ह दक सात और कतनगमण पाथो क साथ वषणव

कतवचारधारा क आदान-परदान का साकतशलषट इकततहास भारतद क कतिए ताजजब की चीज थी पर इन सबक बीच

आकतखर उनहोन इसक वषणव रि का पता िगा कतिया और वषणवता की इस धाररमक कतवचारधारा र उनहोन

ररतमपजा का कतवरोधी होना भी शाकतरि रान कतिया भारतद न ररतमपजा क सरथमन र बड़ बड़ िख कतिख

थ इसकतिए असाभव नही दक कषण क परकतत परररिक भकति क कतिए ररतम की जररत पर उनहोन कछ पछा

जरर होगा िदकन lsquoकोई दकतना भी कछ कह सनत ही नहीrdquo आग चिकर lsquoवषणवता और भारतवषमrsquo र

वह बड़ कतवशवास क साथ घोकतषत करत ह दक ldquoपहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद कतजतन पाथ ह सब

वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और भारतवषम इन पाथो स छाया हआ हrdquo27 तब वह वषणवता और

िोकरतो और रधयकािीन पाथो क भीतर पहि स सदकय एक ऐकततहाकतसक परदकया का सारानयीकरण कर

उसका नार lsquoवषणवrsquo रख रह थ अकारण नही दक उसी िख र वषणव वयापकता को बतान क कतिए

परचकतित lsquoनारोrsquo का साकषय पश दकया गया ह वयकतियो स िकर वरत और उपवासो तक यह परभतवशािी

सारानय बोध की कतवचारधारा थी कतिवदी जी रधयकािीन वषणवता को िोकधरम कहत थ भारतद

उननीसवी सदी क िोकधरो को वषणव कहत ह

काजरवरटव दिो की तरफ स कशवचादर सन पर िगाय गए आरोप थ १ वद पराण सबको कतरटा

डािा २ दकसतान रसिरान सबको कतहनद बनाया ३ खान पीन का कतवचार कछ न बाकी रखा ४ रदय की

तो नदी बहा दी आयम सराकतजयो क ऊपर रखयतः आरोप lsquoआयामवतम को धरम बकतहरमखrsquo करन का ह धरम

बकतहरमख अथामत सनातन धरम स कतवरख उनहोन कवि धरम क भीतर कतवपिव दकया परनत िहमो सराज न तो

lsquoभारतवषम का सतयानाशrsquo कर डािा इनहोन तो पराणो क अिावा वदो को भी कतरटा डािा lsquoआयामवतमrsquo की

जातीय पकतवतरता नषट करक दकसतान रसिरान जस lsquoकतवदशी ततवोrsquo को घर र घसा कतिया कटररपाथी

करमकााकतडयो क कतिए इनक साथ रणनीकततक तौर पर भी रोचाम बनान वािा कोई एकहिाग जी तयार नही

था सनातकतनयो िारा दकया गया यह बारीक भद खद कतिबरि दिभिो क भीतर का भी अातरवमरोध था

27 भारतद वषणवता और भारतवषम वही पषठ-७६

24

कतिबरिो की सभा र भी दो दि हो गए थ एक सवारीजी क सरथमको का दि था और एक कशव

क सरथमको का कतहनद कतिबरिो की आताररक एकता कतिकतवभाकतजत थी दयानाद क सरथमको क अनसार सवारी

जी न कतहनदओ की आतरा को जगाया था उनह सफतम बनाया वरना तो आयामवतम क आिसी और रखम

रोहकतनदरा र ही कतनरगन थ इस तरह रखम और आिसी सारानयजनो को lsquoिाहमणो क फा द स छड़ायाrsquo िाहमणो

की तिना भारतद न lsquoपादररयोrsquo स की ह जो lsquoवयथम परजा का दरवय खान वाि हrsquo आयम सराज न सासथाकत

परोकतहतवाद पर हरिा दकया था जो भारतद क कतिए रितः जनता क पसो पर पिन वािा परजीवी वगम

िगता था और तो और आधकतनक कतवजञान क आग जो lsquoआयोrsquo की नाक कटी जा रही थी उस भी सवारी जी

न बचा कतिया उनहोन वदो र भी रि तार करटी कचहरी आदद ददखाकर कतहनदओ र आतरसमरान पदा

दकया दसरी ओर कशव क सरथमको का कहना था दक ldquoधनय कशव तर साकषात दसर कशव हो तरन बाग

दश की रनषय नदी क उस वग को जो कशचन सरदर र कतरि जान को उचछकतित हो रहा था जञान करम का

कतनरादर करक पररशवर का कतनरमि भकति रागम परचकतित दकयाrdquo lsquoजञान करम का कतनरादरrsquo करक भी lsquoकतनरमि

भकति रागमrsquo का जो परवतमन कशव न दकया उसस ही ईसाई lsquoअनयताrsquo का साथमक परकततरोध साभव हआ lsquoरनषय

नदी का आवगrsquo भावावग ह इसी बात को दसर शबदो र कह तो भाव जगत क सवाभाकतवक वग को भगवत

भकति की शदध lsquoअनयताrsquo की ओर रोड़कर उस कतवदशी ईसाई lsquoअनयताrsquo क रागम पर जान स रोक ददया इस

कायम क कतिए वद पराण समरत lsquoजञान-करमrsquo क रागो का कतनरादर अगर करना पड़ा तो भी वह उकतचत ही था

वषणव भकति क रधयकािीन सवरप की जो वयाखया आग चिकर की गयी उसक आराकतभक कतचनन हर यहाा

दख सकत ह कहना न होगा दक भारतद का अपना अनभव भी यहाा बोि रहा ह

शासतरीय काजरवरटव पाटी र दवताओ क अिावा यजञवलकय जस औपकतनषददक ऋकतष क साथ-साथ

नारायण भटर रघनाद भटराचायम राडन कतरशर जस कतनबाधकारो और टीकाकारो का जरघट भी था इसक साथ

साथ इसिारी सवगम स आय हए कटररपाथी कतशया िोगो का भी सरथमन उनह परापत था इस परकार कटररपाथ का

दवताओ (जरीदारो) िाहमणो (पादररयो) जञानरागी औपकतनषददक ऋकतष रधययगीन कतनबाधकारो और

कतवदशी कतशया िोगो का एक वकतशवक रोचाम बन रहा था दसरी ओर कतिबरि दि र चतनय परभकतत आचायम

दाद नानक कबीर परभकतत भि और जञानी िोग भी शाकतरि थ इसक अिावा काजरवरटव दि क

कतवदरोकतहयो को भी कतिबरिो न अपन यहाा जगह दी य कतवदरोही थ अितवादी (या नववदााती) भाषयकार

पाचदशीकार और कोई कतरसटर िडिा इन दोनो िोगो पर शर र का जरवरटव दि वािो न बहत हरि

दकय परनत अात र इनह कतिबरिो न अपन यहाा जगह द दी धयान रखना चाकतहए दक भारतद अपन सापरदाय

क अनरप अित वदाात या रायावाद क घोर आिोचक थ सन १८७३ र हररशचादर रगजीन क पहि ही अाक

र भारतद न शााकतडलय भकति सतरो का अनवाद lsquoभकति सतर वजयातीrsquo नार स परकाकतशत दकया भकतरका र

25

भारतद कतिखत ह ldquo दखो आज वसात पाचरी ह इसस बहत स िोग आर क रौर वा फिो क गचछ िकर

तरस कतरिन आवग तो र भी यह एक फिो की वजयाती रािा बना कर िाया हा अागीकार करो वजयाती

रािा बनान का यह हत ह दक वनरािा होगी तो होिी क खि र अरझगी और इसक कतसवाय इस वजयाती

स कतनशचय करक जञानाददक को जय करना ह पर पयार बहत साभि कर यह रािा पहरना टट न जाए

कयोदक सत कचचा ह और ककतियाा तािी और कोरि ह इस स कमहिान का भी भय ह जो हो इस वसात

पाचरी को तयोहारी रझ यही दो दक इस सतयानाशी lsquoअहरrsquo िहमवाद lsquo को पणमरप स नाश करक और भी

सब बातो र इस नव-वसात र भारतवषम की सब आपकतततयो का बस अात करो और अपन भिो क कतचतत र

नव पलिव दफर स िहिह करो जो सदा एक रस रहrdquo28 lsquoएकरसrsquo भकति क कतिए जररी ह दक जञानवाद

अहर िहमवाद को जड़ स उखाड़ फ का जाय कषण को अरपमत अपनी वजयाती रािा स भारतद जञानाददक

को जय करना चाहत ह एक ओर यह पकतषटरागी परापरा क lsquoवीर वषणवrsquo भारतद का परर कतनवदन ह दसरी

ओर lsquoनव-वसातrsquo र भारतवषम की सब आपकतततयो को नाश करन की सारथयम रपी lsquoउपहारीrsquo का साकलप भी

ह lsquoभारतद भारतवषम की सब आपकतततयोrsquo को दर करन की राह र एक बड़ी बाधा अित क जञानवाद को

रानत ह भकति का lsquoएकरसrsquo पहि भी इसक परभाव स ररझाता रहा ह भारतद का साकलप सापरदाय क

परान कतवरोधो क बावजद बन रहन वाि इस अितवाद का पणम सफाया करन का ह जबतक यह न कतरटगा

परररिा भकति क lsquoकमहिान का भयrsquo बना रहगा भकति सतरो र उपासना कााड को परर कतसकतदध का हत

बताया गया था पर भारतद दख रह थ दक उपासना कााड का परचार कतवरि हो गया ह इसी परचार क

कतनकतरतत उनहोन इन सतरो का भाषा र अथम परचार दकया था १८७३ र ही हररशचादर रगजीन का एक

समपादकीय कतनकिा कतजसका शीषमक था- lsquoभकति जञानाददक स कयो बड़ी हrsquo इस िख र भी उपासना रागम

की रहतता का परकततपादन दकया गया ह तकम और जञान को करम की शकतदध और उपासन की परर कतसकतदध क

रासत र कवि एक चरण बताया गया ह वसधा डािकतरया न भारतद क आराकतभक साापरदाकतयक परचार

परसार क कायो र कतनगमकतनयो को बाहर रखन का उपकर नोट दकया था29 यहाा कतनगमकतनए कबीर आदद lsquoभि

और जञानीrsquo कतिबरिो क सरथमक ददखाए गए ह वषणव भकति क राषटरीय चररतर र य बाहर नही थ उनकी

एकता का आधार उनक lsquoकतिबरि रिrsquo र ह सावमजकतनक उचच भाव का सापादन और भकति इन दोनो क साथ

अित वदााती या जञानाददक- सनातनी परापरा क कतवदरोकतहयो की जगह भी कतिबरि दि पाकतथयो र थी

कतिबरि वाि ही झगड़ क कतनपटार की अजी पररशवर को दन गए थ पर पररशवर अपनी

परतीकातरक हो गयी कतसथकतत स खजिाय हए थ यह सवोचच अदाित थी पर साथ ही साथ शकतिहीन

28 भारतद गराथाविी खाड- ५ पषठ ११३

29 वसधा डािकतरया पषठ ३४२

26

राषटराधयकष की कलपना भी कतजस कतहनद सवगम क य राषटराधयकष ह वहाा दकसी दकसर की सलफ गवनमरट चनन

की परणािी आ जान स ईशवर की एकाकतधकारी शकतियाा कतछन गयी ह िोग जनरत कतनरामण क िारा सही

और गित की पहचान करन िग थ इसकतिए थोड़ा खजिाय तो रहत ही होग lsquoअब कौन हरको पछता

ह तर जानो सवगम जानrsquo परनत साकट गहरा था यदयकतप कतिबरि िोगो की सभा भी धरधार स जर

रही थी पर काजरवरटव दि पाकतथयो की सरकार र पठ थी दवता सब भी उनक साथ थ इसकतिए पररशवर

क पास जररी नयाय का परशन उठाया गया था नयाय दक इन दो रहापरषो को सवगम र जगह कतरिनी

चाकतहए या नही सराज र इनक नकततक उचच आदशो क अवरलयन का परचार काजरवरटव कर रह ह इस

परचार क कारण जनता अपनी निरो स पहचानन र सकषर नही ह ऐसी कतसथकतत सवगम र पहि नही आई

थी नई कतसथकततयो क नए रानदाड कया होग िाकतहर ह नयाय और नकततकता को एक वकतशवक सवीककतत

चाकतहए इसकतिए पररशवर न इस कतवषय पर कतवचार क कतिए जो ककतरटी चनी वह गौर करन िायक ह इस

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo र ldquoराजा राररोहन राय वयास दव टोडररि कबीर परभकतत कतभनन-कतभनन रत क िोग चन

गए रसिरानी- सवगम स क lsquoइरारrsquo दकसतानी स िथर जनी स पारसनाथ बौदधो स नागाजमन और

अफीका स कतसटोवायो क बाप कोrdquo चना गया कतहनद सवगम स नवजागरण क अगरदत वयासदव जस

बौकतदधकिखक टोडररि जस राजनीकततजञ और धरम-ररमजञ कबीर जस जञानी-भि पराचीनो र कवि वयास

दव ह बाकी दो lsquoरधयकािrsquo क और एक lsquoआधकतनकrsquo काि क वयकति ह उधर यरोपीय नवजागरणधरमसधार

क परणता िथर को भी बिाया गया ह और बौदधो की तरफ स परर कतनषधवादी नागाजमन भी ह पर य

अफीका क कतसटोवायो धरो की अकतसरता क साथ-साथ यह अफ़ीकी सवगम कतनकतशचत रप स अफीका की छकतव

पराचीन आददवासी सासककतत वाि एक lsquoकािrsquo रहादश क रप र गढ़ी गयी थी यह अफ़ीकी सवगम साभवतः

आददवासी धाररमक रानयताओ की ओर इशारा करता ह यह भी धयान दन िायक ह दक राजा राररोहन

राय िथर और कबीर इन तीनो क साथ lsquoनवजागरणrsquo की कोई न कोई पररकलपना ठठ सरकािीन कतवरशो

क क दर र भी ह कई अथो र अकबर िारा आयोकतजत होन वािी lsquoसिह-ए-किrsquo जसी धरम सभाओ की एक

रोहक कलपना भी भारतद को रही होगी टोडररि की उपकतसथकतत अकारण नही ह

अकबर को िकर भारतद की इकततहासदकतषट कसी थी इसकी एक झिक हर १८८४ र छपी उनकी

lsquoबादशाह दपमणrsquo की भकतरका र ददखती ह इस गरनथ र उन िोगो का चररतर-कतचतरण दकया गया था ldquoकतजनहोन

हरिोगो को गिार बनाना आरमभ दकया इसर उन रसत हाकतथयो क छोट-छोट कतचतर ह कतजनहोन भारत क

िहिहात हए करिवन को उजाड़कर-पर स कचिकर कतछनन-कतभनन कर ददया रहमरद रहरद अिाउददीन

अकबर और औरागजब आदद इनर रखय ह पयार भोि कतहनद भाइयो अकबर का नार सनकर आपिोग

चौदकए रत यह ऐसा बकतदधरान शतर था दक उसक बकतदधबि स आजतक आपिोग उसको कतरतर सरझत ह

27

दकनत वह ऐसा ही नही उसकी नीकतत अागरजो की भााकतत गढ़ थी रखम औरागजब उसको सरझा नही नही तो

आज ददन हहादसतान रसिरान होता कतहनद-रसिरान र खाना-पीना बयाह-शादी कभी चि गयी होती

अागरजो को जो बात नही सझी वह इसको सझी थीrdquo30 कतनकतशचत रप lsquoबकतदधरानrsquo दशरन स सीखन को बहत

कछ कतरिता ह अकबर की दीन-ए-इिाही क परयोग स भारतद भी बहत कछ सीख रह थ रधयकािीन

इकततहास क बार र रकतसिर शतर की छकतव का कतनरामण पराचयकतवदयाकतवदो क िारा दकया जा रहा था इकतियट

आदद इकततहासकारो न जो दकतषट कतवककतसत की उसका परभाव बहत गहरा था पर इस इकततहासिखन क साथ

साथ भारतद क कछ दशी सरोत भी थ अिग-अिग रहापरषो की चररताविी कतिखन की पररणा भारतद न

कतजतना अपनी वषणव भकति की परापरा स पाया था उतना ही इसिारी इकततहास िखन की परापरा स भी

lsquoबादशाहदपमणrsquo की भकतरका र भारतद कतिखत ह ldquoरर पररातारह राय कतगरधरिाि साहब जो यवनी कतवदया

क बड़ भारी पाकतडत और काशीसथ ददलिी क शाहजादो क रखय दीवान थ उनकी इचछा स ददलिी क परकतसदध

कतविान सययद अहरद न एक ऐसा चक बनाया था कतजसर तरर स िकर शाह आिार तक सब बादशाहो क

नार आदद कतिख थ उस फारसी गरनथ स बहत सी बात इसर िी गयी ह इस कारण तरर पवम क बादशाहो

का वणमन इतना परा नही ह कतजतना तरर क पीछ ह दफर रर रातारह राय कतखरोधरिाि न बहादर शाह

क काि क आरमभ तक शष वतत सागरह दकयाrdquo31

अरणदव जी अपन एक िख र भारतद क आराकतभक अकबर परर का कतिक दकया ह १८७२-७४ क

आसपास भारतद अकबर को रहान शासक रानत थ जबदक औरागजब को कतहनदओ का दशरन नाबर एक

भारतद न औरागजब की तिना र अकबर की रहानता को परराकतणत करन क कतिए रारदास कछवाह क एक

शलोक को अपना आधार बनाया ह इस शलोक का भावाथम भारतद क शबदो र इस परकार ह ldquoजो सरदर स रर

तक पथवी को पािता ह जो रतय स गउओ की रकषा करता ह कतजसन तीथम और वयापार स कर छड़ा ददए

कतजसन पराण सन जो सयम का नार जपता जो योग धारण करता ह और गागाजि छोड़कर पानी नही

पीता उस जिािददीन की जय अाग वाग कहिाग कतसिहट कततपरा कारत (कारटी) काररप अाध कणामटक

िाट दरकतवड़ रहाराषटर िारका चोि पााडया भोट रारवाड़ उड़ीसा रलि खरासान का दहार जमब काशी ढाका

बिख बदखशाा और काबि को जो शासन करता ह ककतियग की रकतहरा स घटत हए वद गउ कतिज और

धरम की रकषा को सगन शरीर कतजसन धारण दकया ह उस अपररय परष अकबर शाह को हर नरसकार करत

हrdquo32 यही अकबर १८८४ र औरागजब स जयादा शाकततर और बकतदधरान शतर र बदि गया lsquoकािचकrsquo क

कतनकतहताथो र यह फरबदि भारतद पर रकतसिर कतवदशीपन और कतहनद शतरता क समपणम बिॉक बनान की

30 बादशाह दपमण भारतद गराथाविी खाड-६

31 वही

32 httpsamalochanblogspotin201209blog-post_9html

28

रणनीकतत क दबाव क कारण था और lsquoपरावकततrsquo की कतरथकीयता र भी कतहनदओ को lsquoरहारोहनासतरrsquo क सहार

पहि भी वश र दकया गया था यह एक बारीक चाि थी अकबर की इस चाि को अागरज भी नही सरझ

पा रह थ भारतद की यह परकततदकया औपकतनवकतशक इकततहासिखन क दबाव र थी १८७३ र जब भारतद

न कतशवपरसाद की दकताब lsquoइकततहासकततकतररनाशकrsquo क तीसर खाड की आिोचना की थी तो उनक सारन

रकतसिर शासन की बबमरता और अागरजी राज क सशासन का कतशवपरसाद िारा ककतलपत आखयान था १८८४

र समपणम रकतसिर काि अनधकार यग र बदि गया कततकतररनाशक क पहि खाड र बाब कतशवपरसाद न भी

अकबर की रजहबी उदारता और साराकतजक सधारो की बड़ाई की थी इस परकार हर दख सकत ह दक

ऐकततहाकतसक िखन र पकष और कतवपकष की पनरावकततत एक बाद घर र उिझी हई थी इनक सारन रकतसिर

कतवरोध और अागरजी शासन क कतवरोध का एक कतवसागत फर था और िखक उसर अपनी फौरी जररतो क

कतहसाब स कतरतर और दशरन वािा इकततहास कतिखता था इकततहास ठठ राजनीकततक ततकाि क वशीभत था

जो भी हो धाररमक उदारता और सिह-ए-कि का परयोग एक कतशकषापरद परयोग था यह कतवकतभनन

रतो या कतवशवासो क बीच lsquoजनरतrsquo बनान का एक रधयकािीन परयोग था भारतद lsquoजनरतrsquo क परयोग को

इस तरह दखत थ रानो यह lsquoचािrsquo अगर कारयाब हो जाती तो lsquoआज क ददन हहादसतान रसिरान होताrsquo

भारतद क सारन सरसया वही थी बस वह कवि यह चाहत थ दक कतहनदसतान lsquoकतहनदrsquo हो जाय कतहनद

अथामत वषणव हो जाय वषणवता भारतद क कतिए हहादसतान का नया lsquoसिह-ए-किrsquo था इसकतिए कछ

सावमजनीन रलयो की तिाश उनह भी थी कतसिकट ककतरटी क उपरोि रमबर lsquoएकसअफीकतशयोrsquo रमबर थ

रोर क परान हररकिस जस दवता कतजनहोन धरती स साबाध तोड़ ददया ह व िोग तथा उनही क जस

पारकतसयो क lsquoजरदशतजीrsquo को कोरसपोहडाग ऑनररी रमबर बनाया गया य धरम क रप र रतपराय रतो क

परकततकतनकतध थ ककतरटी न जो ररपोटम तयार की उसका ररम भारतद न ददया ह यह ररम उनक रकतडकि वषणव

पकष का रत था कतिबरि दि और काजरवरटव दि क अपन पकषो स इतर यह नरनायक तीसरा पकष वषणवो

की तरफ स सनाया गया था रकतडकि वषणवो की तरफ स भारतद इस धाररमक आनदोिन क भीतर अपना

ही पकष रखत हए इसका ररम कतिख रह थ ldquoहरिोगो की समरकतत र इन दोनो परषो न परभ की रागिरयी

सकतषट का कछ कतवघन नही दकया वराच उसर सख और सातकतत अकतधक हो इसी र पररशरर दकयाrdquo कतहनद सराज

सधार क परयासो का ररम बतात हए सबस पहि धयान सतरी सधारो पर ददया गया ह साराकतजक करीकततयो

की कतशकार रकतहिाओ क परकतत जो दकतषट उभरकर सारन आती ह उसक रि र धरम की रीकतत स यौन

रयामदाओ की अवयवसथा को दफर स रयामददत करन की चषटा ह कतसतरयो क करागम पर जान का पहिा कारण

ह रनराना परष धरमपवमक न पाना यह कतववाह सासथा की कतवककततयो की आिोचना थी जहाा बाि कतववाह

कतवधवा कतववाह आदद की तरफ इशारा ह धयान रखना चाकतहए दक यहाा बरि कतववाह क बदि कतसतरयो िारा

29

lsquoरनराना वरrsquo न चन पान का उलिख ह गभमनाश और बाि हतया क कतखिाफ सधार परयास दसरा

रहतवपणम योगदान ह कतववाह सासथा बीच र भी भाग की जा सकती ह इसकी सवीककतत ह कनया क कतहत र

अातरजातीय कतववाह की सवीककतत ह एक रहतवपणम बात गरओ और पाकतडतो क वयाकतभचार क साबाध र ह

भारतद क सारन पकतषटरागी रहातो और गरओ क वयाकतभचार का अनभव भी इसर शाकतरि ह

१८७४ र ककतववचन सधा र भारतद की एक रटपणणी छपी थी lsquoगर को कसा होना चाकतहएrsquo इसक अिावा

दो वषम पहि lsquoगर और रहातrsquo नार स भी एक रटपणणी कतिखकर वषणव पाडो-परोकतहतो की खिकर

आिोचना की गयी थी तिवार जी न कतिखा ह दक राददरो क भीतर कतसतरयो का यौन शोषण और वयाकतभचार

इतना भीषण था दक दयानाद भारतद क पकतषट सापरदाय को lsquoकषठी सापरदायrsquo कहत थ १८६० क आरमभ र ही

वषणव गोसाइयो क अनाचार और यौन शोषण क कतखिाफ बमबई र एक बड़ा आनदोिन पकतषटरागी

करसनदास रि जी क नततव र हो चका था वषणव बकतनया पषठभकतर स आय करसनदास जी उन नौजवानो

र थ कतजनहोन एकतिफ सटन कॉिज स आधकतनक कतशकषा परापत की थी गोसाइयो और रहाराजो िारा अपन

lsquoसमपरदाय की बह बरटयोrsquo क साथ होन वाि अतयाचार क कतखिाफ उनहोन िख कतिख और समपरदाय क

इकततहास को नए कतसर स सारन रखा पण स आए जदनाथ वजरतन जी रहाराज न करसनदास जी पर

रानहाकतन का रकदरा दायर कर ददया इसी रक़दर स वषणव रहातो की कई सारी बात जनता क सारन

परतयकष हई तिवार जी न इस lsquoरहाराज िाइबि कसrsquo को भारतीय नवजागरण र वषणव गोसाइयो क

दराचार और यौन शोषण क कतखिाफ हआ सबस बड़ा आनदोिन कहा ह भारतद पर इसका बहत परभाव

था यह कस १८६० र हआ था एक दशक बाद जब भारतद सापरदाय क कायो र रत थ उसी सरय कतिख

रह थ ldquoराददर कया होत ह रानो कतसतरयो की खान ह जसी चाकतहए िीकतजय- वराच अचछी सतरी भी वहाा जाकर

कतबगड़ जाती ह आशचयम यह ह दक कतजनको व िोग बटी कहत ह और जो उनक परिोक क रधयसथ ह और

कतजनको वो दीकषा दत ह उन कतसतरयो की ओर व आप ही बरी दकतषट स दखत ह ओर रर पयार कतहनदओ तर

इनक जाि र कब तक फा स रहोग और कया तरको यही सासार स बचावग और इनही क भरोस तरको

भगवान कतरिगाrdquo33

राददरो क धन-ऐशवयम और वयाकतभचार र डब जीवन क जीवात कतचतर हर बनारस क रखाकतचतर lsquoपरर

जोकतगनीrsquo क अिावा lsquoकाशी क छायाकतचतर क दो बर-भि फोटोगराफrsquo र भी कतरित ह यहाा भारतद का वयागय

अपन वषणव सापरदाय की आतरािोचना स सदकय ह lsquoपरर योकतगनीrsquo नाटक र आन वािा चररतर रारचादर

खद भारतद ही थ नाटक का सतरधार कहता ह दक भारतवषम की दीन हीन गकतत क कारण उसका तो

कतवशवास ही ईशवर स उठन िगा ह नाटक क पहि ही दशय र भारतद हर राददर क भीतर कतिए चित ह

33 वसधा डािकतरया िारा उदधत पषठ- ३३७

30

जहाा राददर र कार करन वािा साधारण टहिआ झपरटया हर ददखाई दता ह पजारी बाब अभी तक नीद

स नही जाग ह कयोदक आधी रात तक lsquoबठ क ही-ही-ठी-ठी करा चाह दफर सबर नीद कस खिrsquo कतनकतशचत

रप स यह टहिआ सबह सवर ही राददर र हाकतिर ह िदकन दवता अभी राददर र सोय ह रारचादर

परदशी ह काशी र बाहर स आय ह छकक जी और राखनदास इस रारचादर की आिोचना करत ह इनक

सावादो स पता चिता ह दक बाब रारचादर क यहाा ददन रात नाच गाना हआ करता ह और उनको अपनी

कतवदया का घराड ह दो चार ककतवतत भी बना ित ह पर lsquoककतवतत बनाव स का होव और ककतवतत बनावन कछ

अपन िोगन का कार थोर हय ई भााटन का कार हयrsquo छकक जी कहत ह दक अपन रागम का उनह कछ जञान

तो ह नही बस दो चार बात इधर उधर स सनकर कछ lsquoदकसतानी रतrsquo सीखकर पाकतडत बन दफरत ह

कतनकतशचत रप स य भारतद पर िगन वाि आरोप थ राददर र सवारी धनदास वकतनतादा बभकतकषत पाकतडत

आदद धरम क ठकदार ह इनकी पतनशीि सासककतत को दखकर रारचादर का दःख इन शबदो र वयि होता ह

lsquoहा कया इस नगर की यही दशा रहगी जहाा क िोग ऐस रखम ह वहाा आग दकस बात की वकतदध की

साभावना करrsquo lsquoवददकी हहासा हहासा न भवकततrsquo जस शरआती नाटको र भी करमकााडी परोकतहतवाद की

आिोचना की गयी ह राजा और परोकतहत कतरिकर वहाा जनता का शोषण करत ह जआ रददरा और

रथन की ऐययाश सासककतत क परतीक परोकतहतो का काजरवरटव दि इन परहसनो र रतम होता ह कतचतरगपत यर

स कहत ह ldquoरहाराज य गर िोग इनक चररतर का कछ न पकतछए कवि दमभाथम इनका कततिक रदरा और

ठगन क अथम इनकी पजा कभी भकति स ररतम को दाडवत न दकया होगा पर राददर र जो कतसतरयाा आयी उनको

सवमदा तकत रह रहाराज इनहोन अनको को कताथम दकया ह और इस सरय तो र lsquoशरीरारचनदर जी का

शरीकषण का दास हाrsquo पर जब सतरी सारन आव तो उसस कहग lsquoर रार तर जानकी र कषण तर गोपीrsquo और

कतसतरयाा भी ऐसी रखम दक दफर इन िोगो क पास जाती हrdquo34

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo की ररपोटम र सतरी सधारो क कायो की रहतता बतान क बाद जाकतत वयवसथा पर

इन सधारको का परहार कयो जररी था इस बताया गया ह कठोर जाकतत बनधनो क चित कस हर साि

जाकतत-बाहय होकर जाकतत र वापस आन क दकसी उपाय को न जान lsquoहजारो रनषय आयम पाकति स हर साि

छटत थ उसको इनहोन रोकाrsquo इस परकार इन सधारको न lsquoआयमधरमrsquo क भीतर जो पररवतमन करन चाह

उसस आयो की एकता दफर स बहाि हो गयी इसक अिावा अाधकतवशवासो को इनहोन दर दकया यही नही

बकतलक जहाा िोग lsquoरसिरानी पीर पगमबर औकतिया वीर ताकतजया गाजी कतरयाा कतजनहोन बड़ी ररतम तोड़कर

और तीथम पाटकर आयम धरम कतवधवास दकयाrsquo उनको भी पजन िग थ और lsquoकतवशवास तो रानो कतछनाि का अाग

हो रहा थाrsquo ऐसी िजजाजनक कतसथकतत स िोगो को बाहर कतनकािकर lsquoसार आयामवतम को शदध lsquoिायिrsquo कर

34 दख रारकतविास शराम पषठ १३१

31

ददयाrsquo lsquoिायिrsquo कर ददया गया इसका अथम आयम जाकतत को दफर स िायि करन र था आयम जाकतत क भीतर

कतबगाड़ क चित ही कतनमन जाकततयो का बड़ परान पर पिायन था इस इन िोगो न रोका और इनक परताप

स ही अनक छोट और सथानीय धरम-रतो क भीतर जो lsquoरसिरानीrsquo परभाव घस आय थ उनको दफर स lsquoबड़ी

ररतमrsquo की कतनषठा र िाया जा सका इस परकार कतहनद धरम और वणामशरर क परकतत दफर स िोगो को lsquoिायिrsquo

दकया यह lsquoिायकतिटीrsquo भारतद की रकतडकि वषणवता क जनरत क कतिए भी जररी था तिवार जी जब

आयमसराकतजयो की lsquoकााकततकारीrsquo भकतरका ददखात ह तब आयम सराज िारा आयामवतम को िायि बनान वािी

इस भकतरका की साकतशलषटता पर जयादा बात नही करत भारतद दयानाद क कााकततकारी परयासो र lsquoिायिrsquo

बनान की परदकया उसी वक़त दख रह थ और इसी कारण ररपोटम र दयानाद की आिोचना धयान दन िायक

ह सवारी जी न ldquoजाि को छरी स न काटकर दसर जाि ही स कतजसको काटना चाहा इसी स दोनो आपस

र उिझ गए और इसका पररणार गह कतवचछद उतपनन हआrdquo गह कतवचछद का रतिब कतहनद धरम र गह

कतवचछद जबदक कशवचादर सन क बार र कहा गया दक उनहोन जाि काटकर भकति की उचछकतित िहरो का

पररषकत पथ परकट दकया इस परकार रकतडकि वषणवता की lsquoअनयताrsquo और परररिक भकति क परशसत पथ क

सवीकार का कतनषकषम कतवचार सभा का भी कतनषकषम था धयान दन िायक ह दक कशवचादर की आिोचना उनक

कतचतत कतवकषप क कारण की गयी थी जहाा lsquoईसारसीह आदद उनस कतरित हrsquo य एक दकसर का इिहारी

अनभव था कतजस भारतद अपनी वषणवता स बाहर रखत ह ईशवर न इस ररपोटम पर अपना रत सरकतकषत

रख कतिया और भारतद कतिखत ह ldquoइसको दख कर इस पर कया आजञा हई और व िोग कहाा भज गए यह

जब कर भी वहाा जायग और दफर िौट कर आ सक ग तो पाठक िोगो को बतिावग या आप िोग कछ

ददन पीछ आप ही जानोगrdquo

३ जनरत और वषणवता

ककतववचन सधा ९ राचम १८७२ र भारतद न lsquoPublic Opinion In Indiarsquo नार स अागरजी र

एक िख परकाकतशत दकया िख र उनहोन कहा दक कई सददयो दक दासता क बाद भारतवषमहहादसतान अब

जाकर कतिरटश राषटर क सवोचच कतनयातरण र आया ह दश धीर-धीर सभयता और परबोधन की पकतशचरी दकरणो

क सहार दरन और कशासन क रतय-तलय कतनदरा स जाग रहा ह कतिरटश शासन की परगकततशीि नीकततयो का

परभाव यहाा की बहरपी आबादी पर पड़ रहा ह

ldquoBut in this progressive state national energy and zeal sympathy and

disintiredness are waiting to make both the conqueror and the conquered to act in

32

concert and in harmony and hence we have the broad distinction of white and

black still But in this country many are the blemishes that adhere to us to be

eradicated and many are the shortcomings that are hovering around us to be done

away with before we can have a public opinion here in its true senserdquo35

गोर और काि क बड़ भद को छोड़ कर कतवजता अागरजो और भारतीयो क बीच एक सराजन तो बन गया ह

पर अनदरनी ददककत अभी भी राह बाए खड़ी ह रौका ह दक इस परगकततशीि कतसथकतत का फायदा उठा कर हर

एक सचच जनरत का कतनरामण कर सचच िोकरत क कतनरामण र अादरनी बाधाएा कया थी भारतद न इस

आग सपषट करत हए कतिखा-

ldquoRace antagonism rivalry and mutual misunderstanding are the favourite

occupations of the aristocratic class Want of confidence among all classes of men

are the prevailing characteristic of the nation and above all multifarious castes and

creeds with there numerous forms of religion and local habits and customs which all

combined have kept the progressive policy at a stand still True it is that a

representative Government is a boon to this country and true it is that Sir Bartle

fregravere a man of vast experience and a good statesman has found out that in village

community we can have public opinion but with all his experience he has lost sight

of our national defects ndash defects which we ourselves know and which no foreigner

can catch at a glancerdquo36

भारतद इस बात को िकर कतनकतशचत ह दक िोकरत और परकततकतनकतधरिक सासथाओ क बहतर कतवकास क कतिए

सीध-सीध कतवदशी रॉडि कभी सफि नही हो पायगा ऐसा इसकतिए कयादक हरारी आपसी कतवकतभननताओ

और झगड़ो को कोई बाहरीकतवदशी सतता कभी भी परी तरह सरझ नही सकती lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo नार

35भारतद गराथाविी -6 361

36 वही

33

स भारतद का एक दसरा िख इस अागरजी वाि िख क दो साि बाद अपरि सन १८७४ र हररशचनदर

रगजीन र छपा पकतबिक ओकतपकतनयन कया बिा ह इस साफ़ करत हए भारतद िख क आरमभ र ही कहत

ह ldquoपकतबिक ओकतपकतनयन अथामत सब साधारण िोगो की राय कया वसत ह और इसर दकतना जोर ह और

इसक कतिए कया हो सकता ह यह परशन ठहरा तो इसका साधारण उततर यही ह दक यह वह वसत ह जो

सासार को एक कर सकती ह गागा की धरा दफर कतहरािय पर चढ़ा ि जा सकती ह सययम को पकतशचर उगा

सकती ह और चाह तो ईशवर को भी पकड़ क कठपतिी की भााकतत नचा सकती हrdquo37 यह पकतबिक

ओकतपकतनयन lsquoएक रतrsquo होना ह जस अिग अिग चार पतिी िककतड़यो को एक साथ बााध दन स उस

तोड़ना करठन हो जाता ह उसी तरह एक रत होन स बड़ स बड़ा बरी भी हरारा कछ कतबगाड़ नही सकता

बहत स िोगो का रत एक हो तो वह शकति बन जाती ह हिारो आदरी की बकतदध एक हो जाए तो ldquoऐसा

कौन कार ह जो न हो सक तो यह कतसदधाात हआ दक कतनशचय सब िोगो क रत र बड़ी सारथयम ह इसस यह

कतसदध हआ दक बिो स बड़ा बि एक रत ही हrdquo38

आग भारतद कहत ह दक यह जनरत और उसकी शकति हहादसतान क कतिए कोई नई बात नही ह

पराचीन काि र इसक उदाहरण कतरित ह lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo की इस धारणा को भारतद न इकततहास क

अिग-अिग दौर र बनत और कतबगड़त ददखाया सबस पहि चार वणो की िररत पड़ी सब कार को

सचार रप स चिन क कतिए दसर शबदो र कह तो शरर-कतवभाजन की िररत स इसका जनर हआ

lsquoकतहनदओ न अपन गर क कार र इस वणामशरर धमरम को इसी वासत बनाया कतजस र उन क दकसी कार र

कोई हजम न हो और उनिोगो न सासार क सब कारो र चार कार रखय सरझrsquo धरम कतवदया और किाओ का

कार िड़ाई और राजय परबाध का कार वयापार और धन और सब िोगो की सवा और रजदरी इन चार

कारो की सवयवसथा वािा वणामशरर दरअसि lsquoएक रतrsquo कतहनद वयवसथा या lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo थी पर

कािाातर र इस lsquoएकरतrsquo क भीतर जाकततवयवसथा कठोर हो गयी और िाहमण और शदर दोनो एक दसर क

कतखिाफ हो गए एकरत र कतवचछद पदा होन स कतहनद शकति करिोर हो गयी भारतद क अनसार आपस

का यह झगड़ा बड़ा कतवनाशकारी साकतबत हआ पकतबिक ओकतपकतनयन क कतबना वयाकतभचार और जयादकततयो का

अाधर था आग चि कर जनो क जरान र दफर lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo न जोर पकड़ा बकतलक भारतद जोर

दकर कहत ह दक जनो क रत की उततपकततत ही lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo स हई ldquoकतहनदओ क जब नाश क ददन

जब कतनकट आय तो आपस र परसपर बड़ा कतवरोध खड़ा हआ और उस काि र िाहमणो का बड़ा जोर था

वरन य और वणो पर जयादती करत थ तो वशय और कषकततरयो की रकतत इनस दफर गयी और बाब वािी बड़ी

37गराथाविी- 678

38वही

34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

36

कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

37

उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

38

ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 10: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

10

बािार र बहत थी जञान का कतवकतनरय एक बड़ बािार र हो रहा था और जञान की सारचना और उसकी

सापणमता एक फरटसाइजड कतवशवदकतषट बनाती थी कतभननता ह इसकतिए कतवकतनरय ह हर चीज जो कतवकतनरय र

शाकतरि ह रनषय की दकसी न दकसी जररत को परा करती ह य जररत य इचछाएा कवि पट स पदा नही

होती बकतलक कलपनाओ स भी पदा होती ह परबोधन की िािातरक परदकया क भीतर कतवजञान और धरम दोनो

न रनषय क कलपनाजगत की इचछाओ को भी परा करन वािा बािार बनाया कतभननताओ की

वासतकतवकताओ को छपान क कतिए या दसर शबदो र कह तो जञान की वासतकतवक जररत को छपान क कतिए

जञान का एक भरर खड़ा दकया जाता ह ठीक वस ही जस बजमआ अथमशासतर पाजीवाद की अतारकमकता को

ढाकन और दबान की परदकया र ही बना था पराककततक कतवजञानो क भीतर स कतनकिन वािी दो तरह की

कतवचारधाराओ की रााग बहत थी एक अटठारहवी सदी र िोककतपरय lsquoयााकततरक भौकततकवादrsquo की कतवचारधारा

और दसरी जीवकतवजञान स आन वािा कतवकासवाद का कतसदधाात राजनीकततक अथमशासतर क कतिए भारत र जॉन

सटअटम कतरि आदद िखको क बजमआ अथमशासतर का नया बािार था तकम की सावमभौकतरकता को उसकी

वासतकतवक जररत स काटकर lsquoअकतसरता कतनरामणrsquo स जोड़ ददया गया जो इकततहास कतरथ क अात का दावा

करता था वह सवया कतरथ गढ़न िगा यह सब साभव हआ उस कतवशाि जनसारानय क भय क सहार

कतजनहोन अपन ऊपर अपना कतनयातरण खो ददया था धरम इस भय क सहार कतवजञान की आिोचना करता था

और कतवजञान धरम की परबोधन-पवम की परापरा र जो आसथा या कतवशवास और जञान का अकतनवायम साबाध था

उसक सहार धरम आसथाकतवहीन जञान की आिोचना क िारा कतवशाि जनसारानय की रकति का कारोबार

करता ह

परबोधन की एक धारा आिोचनातरक जञान की धारा थी कतजसकी आिोचना राकसम न

lsquoआिोचनातरक आिोचना की आिोचनाrsquo कहकर की थी भारतीय नवजागरण क भीतर आिोचनातरक

जञान की धारा को नारवर जी न रहतवपणम राना ह यह ldquoआिोचनातरक दकतषट यरोप क lsquoपराचयकतवदयावादrsquo

(ओररएणटकतिजर) क इस उपकतनवशी रायापाश को कतछनन करन की चतावनी दती हrdquo15 यह उपकतनवशी

रायापाश पाजी का रायापाश भी ह जञान की पाजी का रायापाश कतजस हर पराचयकतवदयावाद का रायापाश

कह रह ह वह आिोचना-परतयािोचना की एक तथाककतथत िोकताकतनतरक परदकया र ही बन रहा था

इसकतिए इस आिोचना-परतयािोचना की परदकया की आिोचना क सनदभम र ही हर उस आिोचनातरक

धारा की चचाम कर सकत ह और कहना न होगा दक यह एक राजनीकततक करम भी ह नारवर जी न कहा दक

भारतीय नवजागरण र lsquoसवतव पराकतपतrsquo का साबाध राजनीकततक रकति स नही जोड़ा गया ह राजनीकततक

सवाधीनता अथामत lsquoराजसतता पिटन क कतवचार को अातगमहावास द ददया गयाrsquo इस तरह १८५७ या उसक

15 वही पषठ- ८७

11

पहि क दकसान कतवदरोहो क भीतर जो राजसतता पिटन का कतवचार था उस भारतीय नवजागरण न

अातगमहावास दन का कार दकया अतः भारतीय नवजागरण रखयतः साासककततक आिोचना ही थी

राजनीकततक आिोचना को गहावास दन वािी साासककततक आिोचना वह कतिखत ह ldquoसच तो यह ह दक

अकतधकााश िखक सरकषा सशासन कतशकषा उननकतत और शााकतत क कतिए कतिरटश राज क परकतत उपकत अनभव

करत ह- कतवशष रप स रगिो क शासन की तिना र इस परवकततत क अवशष बीसवी शताबदी क दसर

दशक तक रकतथिीशरण गपत की lsquoभारत भारतीrsquo जसी राषटरीय कही जान वािी कावय-ककतत र भी कतरिती ह

यहाा तक दक कभी-कभी तो नवजागरण क अनक उननायक राजसतता क साथ सहयोग करत भी ददखाई पड़त

ह अब इस कोई चाह तो नवजागरण क उननायको का रधयवगीय अथवा भदरिोक चररतर कह ि अथवा

दकसी सागरठत राजनीकततक परकततरोध क अभाव क िारा इस कतनरपायता की वयाखया कर ि दकनत हर हाित

र यह तथय कतवसरत न हो दक कि कतरिाकर था यह रितः नवजागरण ही- साासककततक नवजागरण कतजस

राषटरीय सवाधीनता साघषम का पवमराग भि कह ि दकनत उसका पयामय न सरझrdquo16 इसी साासककततक

नवजागरण स वह lsquoआतरकतबमबrsquo तयार हआ कतजसक कतबना राजनीकततक साघषम का वह रप कतवककतसत नही होता

जो आग चिकर वासतव र हआ अजञय की इस वयाखया स नारवर जी सहरत ह दक राजनीकततक-साराकतजक

आधारो की वासतकतवकता क बावजद भदरवगीय साासककततक आनदोिन न जो lsquoआतरकतबमबrsquo रचा वह

राजनीकततक सवतातरता साघषम र हकतथयार बन गया राजनीकततक सवतव पराकतपत की जो चतना इस पररणापरद

आतरकतबमब र अातगमहावास कर रही थी आग चिकर वही राजनीकततक सवतव पराकतपत र उभरकर कतनज

कतवककतसत होती गयी एक बार दफर lsquoइकततहास जसा था वसा पानrsquo की कोकतशश र इकततहासवाद की

कतवचारधारा सारन आ खड़ी होती ह इस इकततहासवाद की आिोचना गरामशी न भी की थी खासतौर पर

कोच क परर इकततहासवाद की आिोचना करत हए सवाि ह दक सासककततकरम की राजनीकतत कया ह

ददरागी गिारी स रकति का साघषम और राजनकततक रकति का साघषम कया इस तरह क अिगाव र रह सकता

ह और अगर अिगाव ह तो इस अिगाव को कस सरझ एक बार यह तय हो जान पर दक उनका वगम

कया था हर उसी क आिोक र उनक साासककततक परयासो की आिोचना करनी चाकतहए दसर शबदो र

उनक अपन वगीय अातरवमरोधो क आिोक र ही उसकी आिोचना साभव ह उपकतनवशवाद की रानकतसक

गिारी क कतखिाफ साघषम जञान की सतता क कतखिाफ साघषम ह और शायद इसकतिए नारवरजी कहत भी ह दक

यह साघषम राजनीकततक साघषम स lsquoकर करठन न थाrsquo यरोपीय जञान क बरकस भारतीय जञान को सथाकतपत

करन का साघषम ही यह साघषम था ldquoउपकतनवशवाद की छाया र भारतीय सासककतत क िोप का खतरा था

इसकतिए अपनी सासककतत की रकषा का परशन सवतव-रकषा का परशन बन गयाrdquo17 सतता पिटन क कतवचार को

16 वही पषठ ८८

17 वही

12

अातगमहावास दकर सवतव-पराकतपत सवतव-रकषा का परशन बन गया और यह सवतव कया था कतजसकी रकषा

साासककततक रोच पर नवजागरण क परसकताम कर रह थ- कलपना या यथाथम परबोधन न जञान का एक कतरथ

तयार दकया और चपक स कतरथको को जञान बना ददया इस नवजागरण की एक बड़ी दन एक परकतत-

इकततहास-दकतषट का कतवकास ह नारवर जी कतिखत ह ldquoनवजागरण की एक बहत बड़ी दन साभवतः वह

इकततहासदकतषट ह कतजसस अपन अतीत को शतर स रि करक उसक कतवरदध वतमरान र इसतराि करन की किा

आती ह और भकतवषय क कतिए सवपन दकतषट भी कतरिती हrdquo18 अगर वासतव र यह दकतषट नवजागरण की दन ह

तो रानना पड़गा दक यह फासीवाद की इकततहासदकतषट ह एक ऐस रकतसिर अतीत की कलपना जहाा रकतसिर

शतरओ स भारतीयता को रि करक वतमरान र उनक कतखिाफ इसतराि दकया जाता ह और इसस भकतवषय

की एक सवपन दकतषट भी भी कतरिती ह कहना न होगा दक परबोधन स कतनकिी यह इकततहासदकतषट अतारकम क

नही थी कयोदक यह साघषम की वासतकतवकता का सबस भरकतरत रप खड़ा करती ह फासीवाद इस अथम र वगम

साघषम का सबस कतरथकीय रप ह और अगर यह सही ह तो सवतव-रकषा र परापत इस इकततहासदकतषट को हर

परकततकााकतत की इकततहासदकतषट कह सकत ह भारतीयता का यह भरकतरत आतरकतबमब सवया को दो बनाकर ही

गकततशीि था यही इकततहासदकतषट आग चिकर lsquoकतवरदधो का साराजसयrsquo की इकततहासदकतषट क रप र इकततहास

का सबस भवय ढााचा खड़ा करती ह आतरकतबमब क इस कतवखाडन को िकषय करत हय नारवर जी न कतिखा

ldquoहरानी की बात ह दक हहादी परदश का नवजागरण धरम इकततहास भाषा सभी सतरो पर दो टकड़ हो गया

सवतव रकषा क परयास धरम तथा सापरदाय की जरीन स दकय गएrdquo19

आतरकतबमब का यह दो होना िखको क दो वगो र परकततहबाकतबत हआ नारवर जी क अनसार एक

वगम अागरजो का घोर कतवरोध करता ह पर धरम-सासककतत और साराकतजक परथाओ क बार र परापरावादी ह

दसरा वगम अागरजी राज क परकतत नरर रख अपनाता ह पर अनय रारिो र या तो रिगारी ह या दफर

सधारवादी िखको का पहिा वगम भारतीय होन का दावा करता ह जबदक नररपाथी िखक पकतशचरोनरख

ह हहादी नवजागरण क नता जयादातर परापरावादी ह जहाा अागरजी कतशकषा का परसार जयादा हआ वहाा

पकतशचरोनरख िखक जयादा थ दयानाद की अपकषा भारतद का झकाव कशवचादर सन जस पकतशचरोनरख

िखको या सधारको क परकतत था ऐसा साभवतः वषणव भावकता क चित था नारवर जी भारतद र परखर

बकतदधवाद का अभाव पात ह पर उनकी रराकतनयत को रानवतावाद की कतवचारधारा स जोड़त ह

नवजागरण क इस साकतशलषट कतचतर को सारन रखन की कोकतशश र नारवर जी एक ऐसी इकततहासदकतषट

कतवककतसत कर रह थ जो अतीत को उसक सापणम अातरवमरोधो र पान की कोकतशश करता ह अतीत को खिा

18 वही पषठ-८९

19 वही पषठ ९१

13

छोड़ दन वािी यह इकततहासदकतषट या एक सातकतित इकततहासदकतषट का यह परयास खाड खाड कतबमबो की एक ऐसी

गकततशीिता का भरर पदा करती ह जो इकततहासवाद की एक पररख कतवशषता रही ह इस पकष पर सवया

नारवर जी का धयान था और आग चिकर उनहोन नवजागरण क इस कतरथकीय चररतर को सवया ही

आिोकतचत दकया इस आिोचना र वह नवजागरण को परबोधन कहन क बदि lsquoअकतभजञान-कािrsquo कहना

जयादा उपयि रानत ह खद lsquoनवजागरणrsquo नार को अागरजो की कलपना बतात ह और उननीसवी सदी को

lsquoसरकतत-भराशrsquo का काि कहत ह यहाा १८५७ स िकर भारतद और कतववकानाद सब एक कतरथकीय चतना क

भीतर सराकतहत ददखत ह और कतजस भारतीय नवजागरण कहा जाता था उस कतवपरीत जागरण रानत ह

इसी कतवपरीत जागरण का नार उनहोन अकतभजञान ददया 20 डा वीरभारत तिवार न कवि कतहनदी

नवजागरण को भारतीय नवजागरण की परकततकााकततकारी धारा कहा था वही नारवर जी अब पर भारतीय

नवजागरण को ही कतवपरीत जागरण कह रह ह और बहत हद तक सही कह रह ह

डा तिवार न अपनी lsquoरससाकशीrsquo र lsquoहहादी नवजागरणrsquo को एक भरारक पद बताया था न तो

इसका साबाध १८५७ स था न रधयकािीन भकति आनदोिन स और न ही जनवादी राषटरवाद की दकसी

अवधारणा स उनक अनसार परबोधन क कतववकवाद तथा धरमसधार-सराज सधार की कतरिी जिी परदकया

क रप र कतवककतसत होत बागािी या रराठी नवजागरण या भारतीय नवजागरण की परकततगारी धारा क रप

र कतवककतसत होन वाि भारतद आदद क साासककततक आनदोिन को lsquoहहादी आनदोिनrsquo कहना ठीक ह कतशकतकषत

रधयवगम क भीतर दो परसपर कतवरोधी धाराओ की चचाम डा तिवार करत ह एक धारा कतववकवाद की

धारा थी दसरी सनातनी कतहनद धरम की धारा रहाराषटर और बागाि र अागरजी कतशकषा क परचार-परसार न कतजस

नए धरम और सराज सधार को गकतत परदान की वह अपकषाकत अकतधक परगकततशीि धारा थी पकतशचरोततर यि

परानत क पवी इिाक खासतौर पर बनारस इिाहाबाद और बहत हद तक पटना कानपर भागिपर आदद

शहरो र कतवककतसत नव-रधयवगम इस परगकततशीि धारा क साथ नही था इसका सबस बड़ा कारण अागरजी

कतशकषा का अभाव था यि परानत र कोई धारा परगकततशीि भकतरका अदा कर रही थी तो वह कवि दयानाद

सरसवती की आयमसराजी धारा थी इस आयमसराज का भी अपना जनाधार सनातनी पाकतडतो या िाहमणो क

यहाा नही बकतलक नौकरीपशा अागरजी कतशकषा परापत वह भदरवगम था जो अपन धरम और सासकारो क कतपछड़पन

को िकर गिाकतनबोध स भरा था इस वगम को अपनी पहचान आयम सराज र ददखती थी आयम सराज क

रिवाद र तथा उसक तारकम क सथिवाद र आधकतनक होन का रासता ददखता था िहमोसराज और

कतथयोसोदफकि सोसाइटी दो ऐसी सासथाएा और थी जो यि परानत र धरम और सराज सधार का परयास कर

रही थी परनत इसका परभाव बहत सीकतरत था आरतौर पर यिपराात र रहन वाि बागािी अपरवासी ही

20 दख नारवर हसाह उननीसवी सदी का भारतीय पनजामगरण यथाथम या कतरथक (अन) पाकज पराशर पकषधर अाक ११ जिाई २०११

14

इनक सदसय थ हहादी आनदोिन क नताओ न इन दोनो धाराओ की आिोचना की ह इनहोन दयानाद क

रिवाद की आिोचना अपनी परापरावादी करमकााडी दकतषट स की इनक अनसार उपकतनषद या पराण आदद

अगर अपराराकतणक भी ह तब भी चादक िोक र सवीकत ह इसकतिए उनह एकदर ख़ाररज करक कोई धरम या

सराजसधार नही हो सकता तिवार जी का कहना ह दक अपनी िचर दिीिो की आड़ र य िोग वसततः

सतरी कतशकषा कतवधवा कतववाह या आधकतनक जीवनशिी आदद की परगकततशीिता का कतवरोध कर रह थ यह

कतवरोध आरतौर पर सरदाय की रानयताओ को ही सारन रखकर दकया जाता था एक दकसर क

कतबरादरीवाद क भीतर स सरझौता करत चिन क कारण हहादी आनदोिन क नता अपन पाररवाररक या

वयकतिगत जीवन क उथिपथि स बचन की कोकतशश करत ह धरम इनक कतिए सधार का नही वरन

राजनीकततक हथका डा रातर था धरम की आड़ र य रकतसिर भदरवगम को अपना परकततयोगी साकतबत कर कतहनद

एकता की अपीि करत तादक इनह सरकारी नौकररयो र कछ कतवशषाकतधकार कतरि सक तिवार जी क

अनसार रकतसिर भदरवगम इन हहादी आनदोिन क परसकततामओ स कही जयादा परगकततशीि था उनक यहाा

आधकतनकता क परकतत जयादा खिी और कतववकसापनन दकतषट थी और उनहोन जोर दकर कहा दक हहादी आनदोिन

को सर सयद अहरद खाा जस दकसी सकषर कतववकवादी वयकतितव का नततव नही कतरि पाया हहादी

आनदोिन और नताओ क अातरवमरोधो को ददखात हए तिवार जी न भारतद की छकतव एक पतनशीि कतहनद

रोररटक की गढ़ी ह यहाा भारतद एक परकततनायक क रप र नजर आत ह

कतववकवादी इस धारा न राषटरीयता की जो धारणा गढ़ी वह रितः साापरदाकतयक थी अागरजी राज क

कतखिाफ अगर इनका साघषम सराज और धरम सधार को साथ-साथ रखन क बजाय उसर अिगाव करता ह

बकतलक उनक कतखिाफ जाकर सागरठत होन का परयास करता ह तो उसक सारन रकतसिर भय पदा करन क

अिावा और कोई रासता साभव नही था lsquoहहादी नागरी और गोरकषाrsquo आनदोिन इसकी सवभाकतवक पररणकतत

थी आग चिकर उननीसवी सदी क आकतखरी दशक र आकार गरहण करन वािी कतहनद राषटरवाद की यह

पषठभकतर ह इसक वग र दयानाद न भी साथ ददया कयोदक उनर भी पनरतथानवाद क बीज थ पवी परदशो

की अपकषा आयम सराज पाजाब र कही जयादा रकतडकि था आयम सराकतजयो की सदसयता की साखया पाजाब

क रकाबि यि परानत र जयादा थी पर वहाा कोई गणातरक पररवतमन साभव नही हआ और यह रहज

साखयाबि क रप र ही बना रहा इसका कारण उनहोन पाजाब की कतभनन नतततवशासतरीय अवकतसथकतत र

बताया ह पाजाब र िाहमणो का परभाव कर था कतजसका एक कारण रसिरानो क साथ िमबा सासगम और

कतसख धरम आदद का परभाव भी था इस तरह का कोई कतवशलषण पवी परदशो क बार र नही दकया गया जसा

दक बहत पहि रदमरशरारी की ररपोटम स ही हजारीपरसाद कतिवदी न दकया था अथामत रधययगीन कतसख

धरम क परभावो की तरह कबीरपाथी आदद सरदायो क परभाव और वषणवता क अातसबाधो की पड़ताि नही

15

की गयी ह काशी क बनकरो की एक हड़ताि का कतिक रारकतविास जी बार बार करत ह जो १८३३ ई र

ही हई थी और इकततहासकार बिी क अनसार यह वक़त आरथमक साकट का भी वक़त था

भदरवगम का जो कतहससा हहादी आनदोिन क साथ था उस जाकतत वयवसथा की परानी रानयता को

बनाय रखन या उस रजबत करन की जररत कया कवि नौकररयो र कतवशषाकतधकार परापत करन क कतिए थी

या जाकतत वयवसथा रातर र आय एक रिगारी साराकतजक साकट का वह परकततदकयावादी रपाातरण ह शहरो

र आरथमक-वयापाररक गकततकतवकतधयो क कारण और आसपास क इिाको स परवासी रजदरो का आगरन तथा

बढ़ती वशयावकततत आदद क चित शहरी साराकतजक साबाधो र भी उथि-पथि थी ऐस सरय र सारदाकतयक

या कतबरादरी बोध lsquoएकाrsquo की भावना पदा करती ह तिवार जी इस नव-भदरवगम का अपन ही भीतर अिग-

अिग खााचो र बाट होन की बात करत ह अिग-अिग खााचो र बाट होन क चित यह भदरवगम रधयवगम की

कतवचारधारा अथामत कतववकवाद या नवजागरण को परापत नही कर पायी थी वगम था िदकन वगम की

कतवचारधारा नही थी खद भारतद क जीवन स हर उस दौर की अकतसथरता का कछ अादािा कतरिता ह

अकतसथरता और खााचो र बाटा रधयवगम दरअसि सापणम सराज र होन वाि एक आधारभत पररवतमन की ओर

इशारा करता ह यह पररपरकषय १८५७ की तरासदी का भी ह ऐसी कतसथकतत र हपराट पाजी क साथ बनन वािा

यह साासककततक आनदोिन था जहाा सवतव रकषा रखयतः अपन परान कतवशषाकतधकार की रकषा थी साराकतजक

साबाधो र आय उथि पथि क कारण उनह अपन कतवशषाकतधकार कतछन जान का खतरा साफ़ ददखाई द रहा

था जहाा अागरजी कतशकषा थोड़ा पहि ही परसार पा चकी थी वहाा कशि कारीगरो स िकर अधयापको और

परशासकतनक अकतधकारीयो क एक बड़ सरह न अपना नया कतवशषाकतधकार पा कतिया था साराकतजक साबाधो र

उनकी शरषठता उनक कतववकवाद क कारण बन चकी थी भारतद क एक शरआती िख lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

क राधयर स खााचो और जनरत की राजनीकतत को सरझन की कोकतशश आग करग

तिवार जी क अनसार दयानाद क कतवचारो क कतिए पाजाब जयादा गरहणशीि था कयोदक वहाा

जाकतत वयवसथा क बाधन पहि ही ढीि हो गए थ यिपराात र जाकतत क बाधन जायदा कठोर थ कतजन अथो र

कतिवदी जी रधय दश की रकषणशीिता का कतजक करत ह कछ-कछ उनही अथो र पर सवया दयानाद क

कतवचारो र कतववकवाद-पनरतथानवाद का दोरखापन कतरिता ह तिवार जी कहत ह दक कतजन सथि तको स

वह वदो की ओर िौटन को कहत थ आयम भाषा आयम जाकतत और आयम धरम की बात करत थ उसक कारण

ही इनका झकाव आग चिकर राषटरीय सवयासवक साघ की ओर होता गया पर आयम सराज क साराकतजक

सधारो और धरम सधारो की एकता क कारण वहाा वह साभावना भी थी कतजसक परभाव स आग चिकर बहत

सार कमयकतनसट कायमकताम भी कतनकि पररचाद राहि साकतयायन या गणश शाकर कतवदयाथी जस साकतहतयकार

और आनदोिनकताम आयम सराज क परभाव र थ आयम सराज तिवार जी क अनसार वासतकतवक साराकतजक

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पररवतमनो का सावाहक और सराज र वयकति स िकर साराकतजक जीवन क हर कषतर र गणातरक पररवतमन

िान वािा इसकतिए हो पाया कयोदक वहाा धरमसधार और सराज सधार अिग-अिग नही था दसरी ओर

हहादी आादोिन साापरदाकतयक जाकततवादी और सतरीकतवरोधी रलयो को ही सराज र फ़िान र कारयाब हआ

यह धारा अागरजो को अरजमयाा दकर नौकरी पान वाि रधयवगम की धारा थी

तिवार जी न भारतद की तकमशीिता को बहत कतनमन कोरट का कहा ह भारतद क चररतर र शायद

वह एक lsquoिमपनrsquo की छकतव भी दखत ह पसा उड़ान की वकतत सतरी क साथ वयवहार और उनक साबाध

चाररतरय बि का अभाव आदद आदद क सनदभम र वह कहत ह दक भारतद क चररतर र वह सदढ़ता या

सदाचाररता नही ह जो सराजसधार क कतिए आवशयक होती ह घर र पतनी उनह कभी पसाद नही आई

और वह बाहर रहदफ़िो र वाहवाही िटत रह रदमवादी दकतषट भी उनर कट-कटकर भरी थी भारतद क

इस चररतर की तिना तिवार जी न दो अनय परमपरावादी सधारको स की ह एक बागाि क राधाकाात दव

और दसर पाजाब क शरदधारार फलिौरी यदयकतप य दोनो भी भारतद की तरह परापरा की रकषा र ही सधार

की ओर अगरसर हए थ िदकन इन िोगो का चररतर जयादा परगकततशीि था इन दोनो की तिना र भारतद

का खिनायकतव और भी अकतधक उभरकर सारन आता ह सापकतकषक परगकततशीिता क कतनधामरण क कर र

भारतद अपन सापणम जीवन वयवहार र एक एाटी हीरो की तरह उभरत ह ठीक परान खिनायको की तरह

नही एाटी हीरो क साथ दशमक या पाठक की एक आतरीयता भी जड़ी रहती ह उसका चररतर ददराग र बस

जाता ह िदकन इसक चित यथाथम क ओझि होन का खतरा भी ह तिवार जी इसकतिए कदर कदर पर

उनकी साकतहकततयक छकतव क बरकस उनक राजनकततक- साागठकतनक जीवन वयवहार स बनन वािी छकतव को

सारन ररतमरान करत जात ह

अपनी परी आिोचना र तिवार जी भारतद की रचनाओ र कतरिन वाि भाषायी िदधड़पन और

राद तकमशीिता की चचाम तो करत ह िदकन व भारतद क वयागयो पर चचाम नही करत कया यह रहज

सायोग ह दक भारतद क परहसन lsquoअाधर नगरीrsquo का राचन आज भी परगकततशीि रलयो की परकततषठा ही करता

हभारतद क वयागयो या परहसनो र ऐसा कया ह कतजसर दहराव क साथ नवीन होत चिन की कषरता भी ह

भारतद क िखो या परहसनो या रपको र जो कही-कही वणमन या सावाद िारा वयागय का तीखा बोध पदा

होता ह उसकी शकति उनह कहाा स कतरिती ह वयागय की कषरता सवया र उनकी सकषर कतनररकषण र सरथम

दकतषट का परराण ह परान साराकतजक साबाधो र पररवतमन और तीवर पररवतमन क साथ साथ जो एक परहसन

चि रहा था उसका बोध भारतद को था भदरवगम क भीतर की कतववकवादी धारा का कतवकास भी कतहनद

राषटरवाद की कतवचारधारा र ही हआ परनत lsquoअाधर नगरीrsquo कया कतहनद राषटरवादी कतवचारधारा वािा परहसन ह

या कया यह कवि राषटरवादी कतवचारधारा का वाहक ह lsquoउरराव जान अदाrsquo र उभरकर सारन आन वाि

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साराकतजक साासककततक साकषोभ या उस वयापक टरजडी क सनदभम र दख तो भारतद क वयागय और परहसनो का

अथम थोड़ा और उभरता ह रकतलिका या राधवी स भारतद क साबाधो र कया उस तरासदी का सराग भी नही

ह वशयावकततत और पतनशीि रइसो का साकट एक दसर स अिग नही था उस सरय की औपनयाकतसक

ककततयो र वशयावकततत का सनदभम अवशय आता ह आग चिकर पररचाद की सरन बनारस र ही lsquoसवासदनrsquo

का सराधान ढाढ रही थी

भारतद क वयागयो पर रारकतविास जी का धयान था यह बात अिग ह दक अकतधकााश रौको पर

इनर वह जातीय चतना खोज कतनकाित ह बीस साि की उमर र भारतद न एक िख lsquoिवी पराणिवीrsquo नार

स कतिखा था रारकतविास जी इसका उलिख करत हए कतिखत ह ldquoगवनमर जनरि कतहनद क कतजस दरबार का

भारतद न वणमन दकया ह वह काशीराज क घर पर हआ था इसकतिए भारतद की सतयकतपरयता और भी

सराहनीय ह वहाा जो सजजन िोगो क नार कतिख रह थ उनका वणमन या दकया ह lsquoनार कतिखन वाि राशी

बदरीनाथ फि-फाि अबा पकतहन पगड़ी सज परान दादर की भााकतत इधर-उधर उछित और शबद करत

दफरत थrsquo िोग दकस तरह एक आनररी रकतजसटरट क lsquoकतसट डौनrsquo lsquoसटड अपrsquo कहन स उठत और बठ जात थ

इसका उनहोन बहत ही नाटकीय वणमन दकया ह आनररी रकतजसटरट का वयवहार हविदार का सा था कतसफम

हाथ र एक िकड़ी की कसर थी िोग कीरती पोशाक पहनकर गए थ ldquoसबक अागो स पसीन की नदी

बहती थी रानो शरीयत को सब lsquoअरघय पादयाrsquo दत थrdquo िोगो की उठा बठी और बहदा कवायद को िकषय

करक कतिखा था ldquoवाह-वाह दबामर कया था lsquoकठपतिी का तराशाrsquo था या बलिरटरो की lsquoकबायदrsquo थी या

बादरो का नाच था या दकसी पाप का फि भगतना था या lsquoफौजदारी की सजाrsquo थीrdquordquo21 काशी की इस सभा

र खद भारतद भी बठ थ इस परकार यह भारतद क वगम का परहसन भी था पतनशीि सासककतत की

आतरािोचना क कतबना यह साभव नही था बात कवि उमर की नही ह ठठ वतमरान र हसतकषप और उस

बदिन का बोध कतजन पतनशीि कतसथकततयो का आतर साकषातकार कर रहा था यह उसक परकतत एक

सवाभाकतवक सवतःसफतम परकततदकया थी यह तारकम क की नही बकतलक किाकार की सवतः सफतमता थी यह बात

सही ह दक भारतद कतवचारो की तारकम कता क रारि र उननीस पड़त थ पर इस करी को उनकी तीकषण

वसतकतनरीकषण दकतषट भर दती थी जीवन कतसथकततयो की कतवडमबना का बोध कतजतना गहरा था बदिन का

परयास उतना ही ऊजामवान था भारतद सवया अपनी भी कहानी कतिख रह थ lsquoपयार हररचाद की कहानीrsquo

कतिख रह थ भारतद क परहसनो र दकसी न दकसी पातर की भकतरका र हर जगह सवया भारतद भी ददख

जात ह अपन वगीय अातरवमरोधो का सवबोध उनक यहाा एकतिगोररकि हो जाता ह इस एकतिगरी र lsquoकतहनद

21 रारकतविास शराम पषठ- ६६

18

भारतrsquo की रधर कलपना थी इसस इनकार नही दकया जा सकता भाव जगत का वषणव परर lsquoकतहनद भारतrsquo

की कलपना स परर र बदिता गया

भारतद की रचनाओ र कतवशवदकतषट की एकता खोजन पर हर परभतवशािी कतवचारधाराओ की

वयवसथा ही कतरिगी जञान और वयावहाररक सारानय बोध क बीच एक सदकय साबाध बनान क कर र ही

उनका सवाभाकतवक आवग कतजन वयावहाररक धाररमक कतवचारधाराओ र आतरकतबकतमबत होता ह व

परभतवशािी कतवचारधाराएा ह इन कतवचारधाराओ का कतनरामण कही बाहर स नही हो रहा था बकतलक

पराचयकतवदयाकतवदो की कलपना क साथ परसपर भागीदारी र बन रहा था इन कलपनाओ को यथाथम रप द

रही थी हपराट पाजी क साथ कतवककतसत होती lsquoबजमआ पकतबिक सफीयरrsquo की दकयाएा भारतद की सवाभाकतवक

सफरतम ततकाि ही एक फ टसी र बदिन िगती ह और दकयातरक होना चाहती ह ऐस ही सरय

पराचयकतवदया क पाकतडतो क िारा जगाय गए कतरथकीय परत भी आकर सर पर सवार हो जात ह पराचयवाद

दकसी परत-कतवदया स कर न था दखना चाकतहए दक भारतद की रचनाओ र कहाा परतो की दकतनया र यथाथम

का हसतकषप होता ह उनकी एकतिगरी कहाा कतसथकततयो क अकततरक को अकतभवयि कर रही ह जस भारतद की

lsquoअाधर नगरीrsquo ऐन हरार वक़त र राजयसतता का रपक बन जाती ह यह रपक राजयसतता र अनतरनमकतहत

हहासा की अकतनवायमता और नयाय क भरर का परहसन भी ह

२ धरम सधार पर कतवचार सभा

िहमो सराज या दयानाद सरसवती को खद भारतद कस दख रह थ इसका पता हर lsquoसवगम र कतवचार

सभा का अकतधवशनrsquo22 नारक एक वयागय रपक स चिता ह सवारी दयानाद सरसवती और कशवचादर सन

जब ररन क बाद सवगम पहाच तो ldquoवहाा एक बर बड़ा आनदोिन हो गयाrdquo रतय क कछ ही सरय पहि कतिखा

गया यह वयागय रपक अपन सरय क धरम सधार आादोिनो क चररतर की वयाखया करता ह सबस पहि

इसका परकाशन किकतत स कतनकिन वािी परकततकतषठत हहादी पकततरका lsquoकतरतर कतविासrsquo (जन १८८५) र हआ था

िहमो सराज और आयम सराज क आनदोिनो को भारतद इस सरय तक आकर एक तटसथ आिोचकीय दकतषट

स दखन का परयास करन िग थ सवगम र एकबारगी पदा हए इस आनदोिन र रोट तौर पर दो खर बन

गए एक इनका परशासक था दसरा हनादक पहिा कतिबरि ह दसरा काजरवरटव इन दोनो खााचो र

अनदफट एक तीसरा दि ह जो वषणव आतराओ का ह इस दि क सासथापक तो कतिबरि थ पर अब य

lsquoरकतडकलस कया रहा रकतडकलस हो गए हrsquo कतनकतशचत रप स इन रहा रकतडकलस आतराओ र हर सवया भारतद

22 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन सा- करिा परसाद परसा- नारवर हसाह पषठ- ८२-८६ नशनि बक टरसट इाकतडया नई ददलिी- २००६

(आग इस िख क उदधरणो को कतबना पाद रटपणणी क ददया गया ह)

19

को भी कतगन सकत ह वयासदव एक ऐस बकतदधजीवी क रप र सारन आत ह जो दकसी का भी पकष िन स

बचत ह पर उनका रान दोनो खरो र ह ldquoकतबचार बढ़ वयासदव को दोनो दि क िोग पकड़-पकड़ कर ि

जात और अपनी अपनी सभा का lsquoचयररनrsquo बनात थ और बचार वयास जी अपन पराचीन अवयवकतसथत

सवभाव और शीि क कारण कतजसकी सभा र जात थ वसी ही विता कर दत थrdquo कतिबरिो की तिना र

का जरवरटव दि जयादा रजबत था कयोदक उनह सवगम क जरीदारो का सहयोग परापत था काजरवरटव दि की

आतराएा साकीणम कटररपाथी आतराएा थी य आतराएा उन परान िरान क ऋकतष रकतनयो की आतराएा ह जो

ldquoयजञ कर करक या तपसया करक अपन-अपन शरीर को सखा-सखाकर और पच-पच कर ररक सवगम गए हrdquo

करमकााड और वरत उपवास आदद को भारतद वही तक सही रानत थ जहाा तक व शरीर को कषट न पहाचाएा

कठोर दह साधना करन वाि इन ऋकतष रकतनयो की आतराएा सधारो क कतखिाफ थी और इनका साथ दन

वाि जरीदारो र lsquoउदार िोगो की बढ़तीrsquo स अपना रान-अकतभरान और बि कतछन जान का डर था

कतिबरि दि भिो की आतराएा या तो सावमजाकतनक जीवन क उचच रलयो या आदशो क सापादन क चित या

पररशवर की भकति स सवगम र गयी थी

सराज सधार और वयकतिक परर रिक भकति- कतिबरि कतवशवदकतषट को भारतद इसी पररपरकषय र दख

रह ह रकतडकि वषणव दि भिो क कतिए वषणव होन रातर स य चीज पहि स ही उपिबध थी भारतद क

कतिए वषणवता सवाभाकतवक रप स कतवशवदकतषट ह पर रकतडकि वषणव इस सवाभाकतवक उदारता को

राजनीकततक रप दन वाि ह वषणव उदारता का और उसक भावावग का राजनीकततकरण करन वाि रहा

रकतडकि इस तरह भारतद क कतिए वषणवता की आधकतनक वयाखया र सराज सधार वयकतिक परर रिक

भकति और राजनीकतत तीनो का lsquoएकाrsquo ह इस एका क रकतडकि परयास क कतिए जनरत या िोकरत का

कतनरामण आवशयक ह भारतद की रकतडकि वषणवता ही lsquoसब उननकतत का रिrsquo ह यह एक िोककतपरय

वयावहाररक कतवचारधारा क रप र आकर गरहण करन वािी वषणवता ह यह रकतडकि वषणवता धरम का

राजनीकततकरण ह

काजरवरटव दिभिो को दवताओ का सरथमन परापत था य दवता ही सवगम क जरीदार थ अपन

अपन तरीक स इन दवताओ न काजरवरटव दि की सथानीय शाखाएा भी खोि िी और वहाा इनक पकष र

lsquoपरकाश सभाएाrsquo होन िगी कतिबरि दि वािो क पकष र कवि इस lsquoकतहनद सवगमrsquo क िोग नही थ ldquoइधर

lsquoकतिबरिrsquo िोगो की सचना परचकतित होन पर रसिरानी-सवगम और जन सवगम तथा दकसतानी सवगम स पगमबर

कतसदध रसीह परभत कतहनद सवगम र उपकतसथत हए और lsquoकतिबरिrsquo सभा र योग दन िग बका ठ र चारो ओर

इसकी धर फि गयीrdquo अिग अिग सवगम कतवकतभनन धाररमक पहचानो की ओर इशारा करता ह बका ठ कतहनदओ

का सवगम ह और यह नया धरम आनदोिन रखयतः कतहनद धरम की एक बड़ी पहचान क भीतर ही पदा हआ ह

20

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग क तीन कतनकतहताथम वसधा डािकतरया न भारतद यग क सनदभम र नोट दकय ह23 पहिा

एक पराक औपकतनवकतशक lsquoकतहनद अथमrsquo जहाा हहादसतान का हर बाहशादा शाकतरि था दसरा परसपर कतभनन

धाररमक रतो और आसथाओ की कतनकट अातरकम या क अथम को वयि करता ह कतजसक आराकतभक साकषय सलतनत

कािीन ऐतहाकतसक वतताातो र कतरित ह यहाा यह शबद lsquoतकम rsquo क सरानाातर उपयोग र आया था और

सारानयतः रसिरानो क बरकतखिाफ उपयोग दकया जाता था आरमभ र यह धाररमक कर साराकतजक-

राजनीकततक अथो र जयादा परयि होता था अागरजी राज क साथ यह दसरा अथम धरम स अकतनवायमतः जड़कर

lsquoकतहनदवादrsquo की कतवचारधारा र बदि गया जमस कतरि आदद क इकततहासो र lsquoकतहनदकािrsquo और lsquoरसिरान

कािrsquo की ऐकततहाकतसक कलपना क साथ कतहनद शबद जड़ गया था भारतीय भी रसिरानो को सारन कर

lsquoकतहनद पीकतड़त गराकतथrsquo क कतिए इस शबद का इसतराि करन िग कतहनद शबद का तीसरा अथम राषटर की

अवधारणा स जड़कर बन रहा था आरथमक राषटरवाद और अागरजी राज की यातना की साझी सरकतत स बनन

वाि इस तीसर अथम का रतिब था- lsquoजो कतहनदसतान र रह वह कतहनदrsquo रारकतविास जी भारतद क यहाा

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग को इनही अथो र ित थ पर वसधा डािकतरया का कहना ह दक यह तीसरा अथम दसर क

वयापक परभाव र था तीनो अथो की अातरकम या क बार र डािकतरया न कतिखा ldquoतीसरा अथम या राषटरवादी

अथम कभी भी अपन धाररमक साकताथो स परी तरह छटकारा नही पा सका इस पद की परयकति उननीसवी

सदी र अकतसथर बनी रही और इसक रखतकतिफ रायनो र आपसी जड़ाव कायर रहा बावजद इसक दकसी

परदतत सनदभम र lsquoकतहनदrsquo क पराथकतरक अथम को कतनधामररत करना साभव ह यदद एक बार यह तय हो जाय दक

इिाकाई धाररमक राषटरीय र स दकस आधार पर यह पद परयोग र आ रहा ह और lsquoअनयrsquo की भकतरका र

दकस रखा जा रहा ह चाह वह अनय जसा दक परानी इिाकाई परयकति र ददखता ह फारसी या तकी हो

या रसिरान (कतजस इस िरान र भी कई बार सरह क हवाि स तकम ही कहा जाता ह) या दफर अाततः

औपकतनवकतशक सवारी िदकन यह बात ददराग र रखना जररी ह दक धाररमक सरदाय को कतनरदमषट करन

वािी दसरी परयकति अतयात परभावी सनदभम-हबाद बनी रहती हrdquo24

इस सनदभम र दख तो कतिबरि दिो क सरथमन र शाकतरि lsquoअनयrsquo कतहनद धरम क सधारवाद क सरथमक

ह और lsquoसधारोrsquo र छपी वकतशवक भावनाओ को सरथमन दन पहाच ह का जरवरटव दिो की lsquoअनयताrsquo यहाा नोट

करन िायक ह इस अनयता र साराती जरीदार और करमकााडी िाहमणवाद का बिाक ह जबदक कतिबरि

दकतषट क आसपास एक lsquoसायि रोचrsquo की कलपना की गयी ह धयान रखना चाकतहए दक भारतद क रकतडकि

वषणव इस lsquoसायि रोचrsquo क बाहर ह उनका lsquoएबसटकतनजरrsquo वषणव होन क चित नही बकतलक रकतडकि या

23 वसधा दिकतरया कतहनद परमपराओ का राषटरीयकरण भारतद हररशचादर और उननीसवी सदी का बनारस अन साजीव करार योगनदर दतत पषठ-

४०-४२ राजकरि पपरबकस नई ददलिी- २०१६

24 वही पषठ- ४२

21

रहा रकतडकि होन क चित था कतनकतशचत रप स सवगम सासद का रपक ह और सवगम का राजा ईशवर

कतनषपरभावी हो गया ह और जनता सवया जनरत क िारा कतनणमय कतसथर करन पर जोर दती ह जनरत क

िारा lsquoसलफ गवनमरटrsquo का परयास सबस पहि वषणव भिो न दकया था और आज क कतिबरलस उसी को

आग बढ़ा रह ह ईशवर क पास दोनो दिो क िोगो न जब अपन अपन ररोररयि तयार कर भज तो ईशवर

न दोनो दिो क डपयटशन को बिाकर कहा ldquoबाबा अब तो तरिोगो की lsquoसलफगवनमरटrsquo ह अब कौन

हरको पछता ह जो कतजसकी जी र आता ह करता ह अब चाह वद कया सासकत का अकषर भी सवपन र भी न

दखा हो पर धरम कतवषय पर वाद करन िगत ह हर तो कवि अदाित या वयवहार या कतसतरयो क शपथ

खान को ही कतरिाय जात ह दकसी को हरारा डर ह कोई भी हरारा सचचा lsquoिायकrsquo ह भत परत ताकतजया

क इतना भी तो हरारा दजाम नही बचा हरको कया कार चाह बका ठ र कोई आवहर जानत ह चारो

िड़को (सनक आदद) न पहि स ही चाि कतबगाड़ दी ह कया हर अपन कतबचार जयकतवजय को दफर राकषस

बनवाव दक दकसी का रोकटोक कर चाह सगन रानो चाह कतनगमन चाह ित रानो चाह अित हर अब न

बोिग तर जानो सवगम जानrdquo

काजरवरटव दिभिो न दयानाद और कशवचादर सन पर कया कया आरोप िगाय यह दख िना

चाकतहए दयानाद को सवगम र सथान नही कतरिना चाकतहए कयोदक १ इसन पराणो की हनादा की २ ररतमपजा

की हनादा की ३ वदो का अथम उलटा-पलटा कर डािा ४ दस कतनयोग करन की कतवकतध कतनकािी ५ दवताओ

का अकतसततव कतरटाना चाहा (दवताओ याकतन जरीदार) ६ इसन धरम कतवपिव दकया और आयामवतम को धरम

बकतहरमख दकया पकतशचरोततर परानत क परकततकतनकतध क रप र lsquoकाशी क कतवशवनाथ जीrsquo न lsquoउदयपर क एकहिाग

जीrsquo पर दयानाद क सरथमन का आरोप िगाया कतवशवनाथ जी काजरवरटव दिो की तरफ स यह आरोप िगा

रह थ परब की अपकषा पकतशचरी इिाको र आयम सराज क परभाव की चचाम क सनदभम र एकहिाग जी का

जवाब धयान दन िायक ह कतवशवनाथ जी न जब एकहिाग जी को कतधककारत हए कतिबरिो क साथ कतरि जान

को कहा तब एकहिाग जी न कहा ldquoभाई हरारा रतिब तरिोग नही सरझ हर उसकी बरी बातो को न

रानत न उसका परचार करत कवि अपन यहाा क जागि की सफाई का कछ ददन उसको ठका ददया बीच

र वह रर गया अब उसका राि रता रठकान रखवा ददया तो उसका बरा दकयाrdquo यह एकहिाग जी

दफ़िहाि सवारी जी क दि क सभापकतत बन ह आकतखर इनहोन अपन यहाा क दकस lsquoजागिrsquo की सफाई का

ठका सवारी जी को ददया था यह जागि छोट-रोट धाररमक समपरदायो और रतो का जागि था एकहिागी

जी और काशी क कतवशवनाथ जी दोनो ही िाहमणीकत शवरत क धाररमक परतीक ह पर जहाा काशी क

कतवशवनाथ शर स ही दयानाद क कतवरोधी थ वही एकहिाग जी रणनीकततक रप स दयानाद क पास गए थ यह

साकीणम कटररपाथ क भीतर का कतववाद था यह बात गौर करन िायक ह दक जगननाथपरी र जब भरव की

22

रौजदगी का कतववाद भारतद क सारन आया था उस सरय उनहोन इस बात का परतयाखयान दकया था दक

भरव की परकततरा अनाददकाि स वहाा ह भारतद न पराण आदद स साकषय दकर यह परराकतणत दकया दक

कषण ही एकरातर उपासय ह तिवार जी न इस घटना का उलिख करत हए कतिखा ह दक ldquoदकसी वयकति न

lsquoतहकीकातपरीrsquo दकताब दकखकर बताया दक वहाा पहि भरो की पजा होती थी वषणवो न उसकी ररतम

उखाड़ फ की थी बाद र पाडो न जगननाथजी (कतवषण) क साथ भरो को दफर स परकततकतषठत दकया यह रारिा

काशी धरमसभा क सारन १८७० र आया भारतद न धरम साबाधी पसतक र lsquoतहकीकातrsquo जस फारसी शबद

की आिोचना करत हए कतवकतभनन धरमगराथो स परराण जटाकर दो बातो पर जोर ददया एक इसका परराण

नही कतरिता ह दक वहाा जगननाथजी क साथ पहि भरो की भी ररतम थी कतजस वषणवो न उखाड़ फ का दो

अगर वह थी भी तो यह उकतचत था या नही- इसपर कतवचार होना चाकतहए भारतद न अपनी वयवसथा दत

हए कतिखा दक भरो कतवषण स बहत छोटा दवता ह इसकतिए यह कतवषण क साथ बठाया नही जा सकता

lsquoदसर भरव कापाकतिको क दवता ह उनका पजन वषणव-सरातम सबको कतनकतषदध हrsquo गौरतिब ह दक भारत

र कतवकतभनन सथानीय धरो क परकतत कतजतन असकतहषण और फा डारटकतिसट आयमसराजी थ उतन ही काशी क

सनातनी भी थrdquo25

सथानीय धरम-रतो क जागि को साफ़ करन र आयमसराकतजयो और काशी क सनातनी पाडो क इस

गठजोड़ स भारतद भी वादकफ थ िदकन आयमसराकतजयो क साथ उदयपर क एकहिाग जी का रोचाम कसा

था इस भी भारतद बखबी सरझ रह थ सथानीय रतो क साथ भारतद का समबनध कसा था इसका पता

उनक छोट-छोट यातरा सासररणो स भी चिता ह lsquoसरय पार की यातराrsquo26 र रहदावि का हाि बयान करत

हए lsquoपराणनाथrsquo क रिहब का भारतद आशचयम क साथ उलिख करत ह भारतद क ही शबदो र ldquoयहाा एक

पराणनाथ का रिहब ह और दस बीस िोग उसक रानन वाि ह य िोग एकादशी तीथम वगरह को नही

रानत और सन सनाय दो तीन शलोक जो याद कर कतिए ह बस उसी पर चर हो lsquoरदीनासया शारदाा शताrsquo

और lsquoगोकतवनदrsquo lsquoगोकिानाद रककशवरrsquo यह शलोक पढ़ क कहत ह दक वद र रकका रदीन का वणमन ह ऐस ही

बहत वाकतहयात बात करत ह और कोई दकतना भी कह कछ सनत नही कहत ह दक गोिोक का नाश ह

और गोिोक ऊपर एक lsquoअखाड रणडिाकारrsquo िोक ह उसर रर कषण ह इनका रिहब एक पराणनाथ नारक

एक कषतरी न पनना र करीब तीन सौ बरस हए चिाया थाrdquo भारतद इस अजीबो गरीब lsquoरिहबrsquo का कषण स

कया साबाध ह यह सोचकर ताजजब र थ इस lsquoरिहबrsquo क गरनथ र भारतद न एक शलोक बलिभाचायम का

दखा तो उनका राथा और घर गया ldquoकि रिहब का हाि हरन नीच कतिखा था उसका अचछी तरह स

25 वीरभारततिवार रससाकशी १९वी सदी का नवजागरण और पकतशचरोततर परानत पषठ- १५२ सारााश परकाशन ददलिी- २००६

26 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन पषठ- १३७-३८

23

हाि दरयाफत दकया तो रािर हआ दक हरार ही रिहब की शाखा ह इनक गराथो र हरन एक शलोक शरी

रहापरभजी की सबोकतधनी की काररका का दखा इसी स हरको सादह हआ दफर हरन बहत खोद खाद कर

पछा तो वह साफ़ रािर हआ दक इसी रत स यह रत कतनकिा ह कयोदक एक बात वह और बोि दक हरारा

रत शरी बलिभाचारज की टीका र कतिखा ह इन िोगो क उपासय शरीकषण ह और एकादशी शािगरार

ररतमपजा तीथम दकसी को नही रानत इनक पकतहि आचायम दवचाद जी थ जो जाकतत क कायथ थ और दसर

पराणनाथ जी जो कचछ क कषतरी (भारटया) थ हरार ही रत की शाखा सही पर कतवकतचतर रत ह वषणव होकर

ररतमपजा का खाडन करन वाि यही िोग सनrdquo वणमन स सपषट ह दक सात और कतनगमण पाथो क साथ वषणव

कतवचारधारा क आदान-परदान का साकतशलषट इकततहास भारतद क कतिए ताजजब की चीज थी पर इन सबक बीच

आकतखर उनहोन इसक वषणव रि का पता िगा कतिया और वषणवता की इस धाररमक कतवचारधारा र उनहोन

ररतमपजा का कतवरोधी होना भी शाकतरि रान कतिया भारतद न ररतमपजा क सरथमन र बड़ बड़ िख कतिख

थ इसकतिए असाभव नही दक कषण क परकतत परररिक भकति क कतिए ररतम की जररत पर उनहोन कछ पछा

जरर होगा िदकन lsquoकोई दकतना भी कछ कह सनत ही नहीrdquo आग चिकर lsquoवषणवता और भारतवषमrsquo र

वह बड़ कतवशवास क साथ घोकतषत करत ह दक ldquoपहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद कतजतन पाथ ह सब

वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और भारतवषम इन पाथो स छाया हआ हrdquo27 तब वह वषणवता और

िोकरतो और रधयकािीन पाथो क भीतर पहि स सदकय एक ऐकततहाकतसक परदकया का सारानयीकरण कर

उसका नार lsquoवषणवrsquo रख रह थ अकारण नही दक उसी िख र वषणव वयापकता को बतान क कतिए

परचकतित lsquoनारोrsquo का साकषय पश दकया गया ह वयकतियो स िकर वरत और उपवासो तक यह परभतवशािी

सारानय बोध की कतवचारधारा थी कतिवदी जी रधयकािीन वषणवता को िोकधरम कहत थ भारतद

उननीसवी सदी क िोकधरो को वषणव कहत ह

काजरवरटव दिो की तरफ स कशवचादर सन पर िगाय गए आरोप थ १ वद पराण सबको कतरटा

डािा २ दकसतान रसिरान सबको कतहनद बनाया ३ खान पीन का कतवचार कछ न बाकी रखा ४ रदय की

तो नदी बहा दी आयम सराकतजयो क ऊपर रखयतः आरोप lsquoआयामवतम को धरम बकतहरमखrsquo करन का ह धरम

बकतहरमख अथामत सनातन धरम स कतवरख उनहोन कवि धरम क भीतर कतवपिव दकया परनत िहमो सराज न तो

lsquoभारतवषम का सतयानाशrsquo कर डािा इनहोन तो पराणो क अिावा वदो को भी कतरटा डािा lsquoआयामवतमrsquo की

जातीय पकतवतरता नषट करक दकसतान रसिरान जस lsquoकतवदशी ततवोrsquo को घर र घसा कतिया कटररपाथी

करमकााकतडयो क कतिए इनक साथ रणनीकततक तौर पर भी रोचाम बनान वािा कोई एकहिाग जी तयार नही

था सनातकतनयो िारा दकया गया यह बारीक भद खद कतिबरि दिभिो क भीतर का भी अातरवमरोध था

27 भारतद वषणवता और भारतवषम वही पषठ-७६

24

कतिबरिो की सभा र भी दो दि हो गए थ एक सवारीजी क सरथमको का दि था और एक कशव

क सरथमको का कतहनद कतिबरिो की आताररक एकता कतिकतवभाकतजत थी दयानाद क सरथमको क अनसार सवारी

जी न कतहनदओ की आतरा को जगाया था उनह सफतम बनाया वरना तो आयामवतम क आिसी और रखम

रोहकतनदरा र ही कतनरगन थ इस तरह रखम और आिसी सारानयजनो को lsquoिाहमणो क फा द स छड़ायाrsquo िाहमणो

की तिना भारतद न lsquoपादररयोrsquo स की ह जो lsquoवयथम परजा का दरवय खान वाि हrsquo आयम सराज न सासथाकत

परोकतहतवाद पर हरिा दकया था जो भारतद क कतिए रितः जनता क पसो पर पिन वािा परजीवी वगम

िगता था और तो और आधकतनक कतवजञान क आग जो lsquoआयोrsquo की नाक कटी जा रही थी उस भी सवारी जी

न बचा कतिया उनहोन वदो र भी रि तार करटी कचहरी आदद ददखाकर कतहनदओ र आतरसमरान पदा

दकया दसरी ओर कशव क सरथमको का कहना था दक ldquoधनय कशव तर साकषात दसर कशव हो तरन बाग

दश की रनषय नदी क उस वग को जो कशचन सरदर र कतरि जान को उचछकतित हो रहा था जञान करम का

कतनरादर करक पररशवर का कतनरमि भकति रागम परचकतित दकयाrdquo lsquoजञान करम का कतनरादरrsquo करक भी lsquoकतनरमि

भकति रागमrsquo का जो परवतमन कशव न दकया उसस ही ईसाई lsquoअनयताrsquo का साथमक परकततरोध साभव हआ lsquoरनषय

नदी का आवगrsquo भावावग ह इसी बात को दसर शबदो र कह तो भाव जगत क सवाभाकतवक वग को भगवत

भकति की शदध lsquoअनयताrsquo की ओर रोड़कर उस कतवदशी ईसाई lsquoअनयताrsquo क रागम पर जान स रोक ददया इस

कायम क कतिए वद पराण समरत lsquoजञान-करमrsquo क रागो का कतनरादर अगर करना पड़ा तो भी वह उकतचत ही था

वषणव भकति क रधयकािीन सवरप की जो वयाखया आग चिकर की गयी उसक आराकतभक कतचनन हर यहाा

दख सकत ह कहना न होगा दक भारतद का अपना अनभव भी यहाा बोि रहा ह

शासतरीय काजरवरटव पाटी र दवताओ क अिावा यजञवलकय जस औपकतनषददक ऋकतष क साथ-साथ

नारायण भटर रघनाद भटराचायम राडन कतरशर जस कतनबाधकारो और टीकाकारो का जरघट भी था इसक साथ

साथ इसिारी सवगम स आय हए कटररपाथी कतशया िोगो का भी सरथमन उनह परापत था इस परकार कटररपाथ का

दवताओ (जरीदारो) िाहमणो (पादररयो) जञानरागी औपकतनषददक ऋकतष रधययगीन कतनबाधकारो और

कतवदशी कतशया िोगो का एक वकतशवक रोचाम बन रहा था दसरी ओर कतिबरि दि र चतनय परभकतत आचायम

दाद नानक कबीर परभकतत भि और जञानी िोग भी शाकतरि थ इसक अिावा काजरवरटव दि क

कतवदरोकतहयो को भी कतिबरिो न अपन यहाा जगह दी य कतवदरोही थ अितवादी (या नववदााती) भाषयकार

पाचदशीकार और कोई कतरसटर िडिा इन दोनो िोगो पर शर र का जरवरटव दि वािो न बहत हरि

दकय परनत अात र इनह कतिबरिो न अपन यहाा जगह द दी धयान रखना चाकतहए दक भारतद अपन सापरदाय

क अनरप अित वदाात या रायावाद क घोर आिोचक थ सन १८७३ र हररशचादर रगजीन क पहि ही अाक

र भारतद न शााकतडलय भकति सतरो का अनवाद lsquoभकति सतर वजयातीrsquo नार स परकाकतशत दकया भकतरका र

25

भारतद कतिखत ह ldquo दखो आज वसात पाचरी ह इसस बहत स िोग आर क रौर वा फिो क गचछ िकर

तरस कतरिन आवग तो र भी यह एक फिो की वजयाती रािा बना कर िाया हा अागीकार करो वजयाती

रािा बनान का यह हत ह दक वनरािा होगी तो होिी क खि र अरझगी और इसक कतसवाय इस वजयाती

स कतनशचय करक जञानाददक को जय करना ह पर पयार बहत साभि कर यह रािा पहरना टट न जाए

कयोदक सत कचचा ह और ककतियाा तािी और कोरि ह इस स कमहिान का भी भय ह जो हो इस वसात

पाचरी को तयोहारी रझ यही दो दक इस सतयानाशी lsquoअहरrsquo िहमवाद lsquo को पणमरप स नाश करक और भी

सब बातो र इस नव-वसात र भारतवषम की सब आपकतततयो का बस अात करो और अपन भिो क कतचतत र

नव पलिव दफर स िहिह करो जो सदा एक रस रहrdquo28 lsquoएकरसrsquo भकति क कतिए जररी ह दक जञानवाद

अहर िहमवाद को जड़ स उखाड़ फ का जाय कषण को अरपमत अपनी वजयाती रािा स भारतद जञानाददक

को जय करना चाहत ह एक ओर यह पकतषटरागी परापरा क lsquoवीर वषणवrsquo भारतद का परर कतनवदन ह दसरी

ओर lsquoनव-वसातrsquo र भारतवषम की सब आपकतततयो को नाश करन की सारथयम रपी lsquoउपहारीrsquo का साकलप भी

ह lsquoभारतद भारतवषम की सब आपकतततयोrsquo को दर करन की राह र एक बड़ी बाधा अित क जञानवाद को

रानत ह भकति का lsquoएकरसrsquo पहि भी इसक परभाव स ररझाता रहा ह भारतद का साकलप सापरदाय क

परान कतवरोधो क बावजद बन रहन वाि इस अितवाद का पणम सफाया करन का ह जबतक यह न कतरटगा

परररिा भकति क lsquoकमहिान का भयrsquo बना रहगा भकति सतरो र उपासना कााड को परर कतसकतदध का हत

बताया गया था पर भारतद दख रह थ दक उपासना कााड का परचार कतवरि हो गया ह इसी परचार क

कतनकतरतत उनहोन इन सतरो का भाषा र अथम परचार दकया था १८७३ र ही हररशचादर रगजीन का एक

समपादकीय कतनकिा कतजसका शीषमक था- lsquoभकति जञानाददक स कयो बड़ी हrsquo इस िख र भी उपासना रागम

की रहतता का परकततपादन दकया गया ह तकम और जञान को करम की शकतदध और उपासन की परर कतसकतदध क

रासत र कवि एक चरण बताया गया ह वसधा डािकतरया न भारतद क आराकतभक साापरदाकतयक परचार

परसार क कायो र कतनगमकतनयो को बाहर रखन का उपकर नोट दकया था29 यहाा कतनगमकतनए कबीर आदद lsquoभि

और जञानीrsquo कतिबरिो क सरथमक ददखाए गए ह वषणव भकति क राषटरीय चररतर र य बाहर नही थ उनकी

एकता का आधार उनक lsquoकतिबरि रिrsquo र ह सावमजकतनक उचच भाव का सापादन और भकति इन दोनो क साथ

अित वदााती या जञानाददक- सनातनी परापरा क कतवदरोकतहयो की जगह भी कतिबरि दि पाकतथयो र थी

कतिबरि वाि ही झगड़ क कतनपटार की अजी पररशवर को दन गए थ पर पररशवर अपनी

परतीकातरक हो गयी कतसथकतत स खजिाय हए थ यह सवोचच अदाित थी पर साथ ही साथ शकतिहीन

28 भारतद गराथाविी खाड- ५ पषठ ११३

29 वसधा डािकतरया पषठ ३४२

26

राषटराधयकष की कलपना भी कतजस कतहनद सवगम क य राषटराधयकष ह वहाा दकसी दकसर की सलफ गवनमरट चनन

की परणािी आ जान स ईशवर की एकाकतधकारी शकतियाा कतछन गयी ह िोग जनरत कतनरामण क िारा सही

और गित की पहचान करन िग थ इसकतिए थोड़ा खजिाय तो रहत ही होग lsquoअब कौन हरको पछता

ह तर जानो सवगम जानrsquo परनत साकट गहरा था यदयकतप कतिबरि िोगो की सभा भी धरधार स जर

रही थी पर काजरवरटव दि पाकतथयो की सरकार र पठ थी दवता सब भी उनक साथ थ इसकतिए पररशवर

क पास जररी नयाय का परशन उठाया गया था नयाय दक इन दो रहापरषो को सवगम र जगह कतरिनी

चाकतहए या नही सराज र इनक नकततक उचच आदशो क अवरलयन का परचार काजरवरटव कर रह ह इस

परचार क कारण जनता अपनी निरो स पहचानन र सकषर नही ह ऐसी कतसथकतत सवगम र पहि नही आई

थी नई कतसथकततयो क नए रानदाड कया होग िाकतहर ह नयाय और नकततकता को एक वकतशवक सवीककतत

चाकतहए इसकतिए पररशवर न इस कतवषय पर कतवचार क कतिए जो ककतरटी चनी वह गौर करन िायक ह इस

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo र ldquoराजा राररोहन राय वयास दव टोडररि कबीर परभकतत कतभनन-कतभनन रत क िोग चन

गए रसिरानी- सवगम स क lsquoइरारrsquo दकसतानी स िथर जनी स पारसनाथ बौदधो स नागाजमन और

अफीका स कतसटोवायो क बाप कोrdquo चना गया कतहनद सवगम स नवजागरण क अगरदत वयासदव जस

बौकतदधकिखक टोडररि जस राजनीकततजञ और धरम-ररमजञ कबीर जस जञानी-भि पराचीनो र कवि वयास

दव ह बाकी दो lsquoरधयकािrsquo क और एक lsquoआधकतनकrsquo काि क वयकति ह उधर यरोपीय नवजागरणधरमसधार

क परणता िथर को भी बिाया गया ह और बौदधो की तरफ स परर कतनषधवादी नागाजमन भी ह पर य

अफीका क कतसटोवायो धरो की अकतसरता क साथ-साथ यह अफ़ीकी सवगम कतनकतशचत रप स अफीका की छकतव

पराचीन आददवासी सासककतत वाि एक lsquoकािrsquo रहादश क रप र गढ़ी गयी थी यह अफ़ीकी सवगम साभवतः

आददवासी धाररमक रानयताओ की ओर इशारा करता ह यह भी धयान दन िायक ह दक राजा राररोहन

राय िथर और कबीर इन तीनो क साथ lsquoनवजागरणrsquo की कोई न कोई पररकलपना ठठ सरकािीन कतवरशो

क क दर र भी ह कई अथो र अकबर िारा आयोकतजत होन वािी lsquoसिह-ए-किrsquo जसी धरम सभाओ की एक

रोहक कलपना भी भारतद को रही होगी टोडररि की उपकतसथकतत अकारण नही ह

अकबर को िकर भारतद की इकततहासदकतषट कसी थी इसकी एक झिक हर १८८४ र छपी उनकी

lsquoबादशाह दपमणrsquo की भकतरका र ददखती ह इस गरनथ र उन िोगो का चररतर-कतचतरण दकया गया था ldquoकतजनहोन

हरिोगो को गिार बनाना आरमभ दकया इसर उन रसत हाकतथयो क छोट-छोट कतचतर ह कतजनहोन भारत क

िहिहात हए करिवन को उजाड़कर-पर स कचिकर कतछनन-कतभनन कर ददया रहमरद रहरद अिाउददीन

अकबर और औरागजब आदद इनर रखय ह पयार भोि कतहनद भाइयो अकबर का नार सनकर आपिोग

चौदकए रत यह ऐसा बकतदधरान शतर था दक उसक बकतदधबि स आजतक आपिोग उसको कतरतर सरझत ह

27

दकनत वह ऐसा ही नही उसकी नीकतत अागरजो की भााकतत गढ़ थी रखम औरागजब उसको सरझा नही नही तो

आज ददन हहादसतान रसिरान होता कतहनद-रसिरान र खाना-पीना बयाह-शादी कभी चि गयी होती

अागरजो को जो बात नही सझी वह इसको सझी थीrdquo30 कतनकतशचत रप lsquoबकतदधरानrsquo दशरन स सीखन को बहत

कछ कतरिता ह अकबर की दीन-ए-इिाही क परयोग स भारतद भी बहत कछ सीख रह थ रधयकािीन

इकततहास क बार र रकतसिर शतर की छकतव का कतनरामण पराचयकतवदयाकतवदो क िारा दकया जा रहा था इकतियट

आदद इकततहासकारो न जो दकतषट कतवककतसत की उसका परभाव बहत गहरा था पर इस इकततहासिखन क साथ

साथ भारतद क कछ दशी सरोत भी थ अिग-अिग रहापरषो की चररताविी कतिखन की पररणा भारतद न

कतजतना अपनी वषणव भकति की परापरा स पाया था उतना ही इसिारी इकततहास िखन की परापरा स भी

lsquoबादशाहदपमणrsquo की भकतरका र भारतद कतिखत ह ldquoरर पररातारह राय कतगरधरिाि साहब जो यवनी कतवदया

क बड़ भारी पाकतडत और काशीसथ ददलिी क शाहजादो क रखय दीवान थ उनकी इचछा स ददलिी क परकतसदध

कतविान सययद अहरद न एक ऐसा चक बनाया था कतजसर तरर स िकर शाह आिार तक सब बादशाहो क

नार आदद कतिख थ उस फारसी गरनथ स बहत सी बात इसर िी गयी ह इस कारण तरर पवम क बादशाहो

का वणमन इतना परा नही ह कतजतना तरर क पीछ ह दफर रर रातारह राय कतखरोधरिाि न बहादर शाह

क काि क आरमभ तक शष वतत सागरह दकयाrdquo31

अरणदव जी अपन एक िख र भारतद क आराकतभक अकबर परर का कतिक दकया ह १८७२-७४ क

आसपास भारतद अकबर को रहान शासक रानत थ जबदक औरागजब को कतहनदओ का दशरन नाबर एक

भारतद न औरागजब की तिना र अकबर की रहानता को परराकतणत करन क कतिए रारदास कछवाह क एक

शलोक को अपना आधार बनाया ह इस शलोक का भावाथम भारतद क शबदो र इस परकार ह ldquoजो सरदर स रर

तक पथवी को पािता ह जो रतय स गउओ की रकषा करता ह कतजसन तीथम और वयापार स कर छड़ा ददए

कतजसन पराण सन जो सयम का नार जपता जो योग धारण करता ह और गागाजि छोड़कर पानी नही

पीता उस जिािददीन की जय अाग वाग कहिाग कतसिहट कततपरा कारत (कारटी) काररप अाध कणामटक

िाट दरकतवड़ रहाराषटर िारका चोि पााडया भोट रारवाड़ उड़ीसा रलि खरासान का दहार जमब काशी ढाका

बिख बदखशाा और काबि को जो शासन करता ह ककतियग की रकतहरा स घटत हए वद गउ कतिज और

धरम की रकषा को सगन शरीर कतजसन धारण दकया ह उस अपररय परष अकबर शाह को हर नरसकार करत

हrdquo32 यही अकबर १८८४ र औरागजब स जयादा शाकततर और बकतदधरान शतर र बदि गया lsquoकािचकrsquo क

कतनकतहताथो र यह फरबदि भारतद पर रकतसिर कतवदशीपन और कतहनद शतरता क समपणम बिॉक बनान की

30 बादशाह दपमण भारतद गराथाविी खाड-६

31 वही

32 httpsamalochanblogspotin201209blog-post_9html

28

रणनीकतत क दबाव क कारण था और lsquoपरावकततrsquo की कतरथकीयता र भी कतहनदओ को lsquoरहारोहनासतरrsquo क सहार

पहि भी वश र दकया गया था यह एक बारीक चाि थी अकबर की इस चाि को अागरज भी नही सरझ

पा रह थ भारतद की यह परकततदकया औपकतनवकतशक इकततहासिखन क दबाव र थी १८७३ र जब भारतद

न कतशवपरसाद की दकताब lsquoइकततहासकततकतररनाशकrsquo क तीसर खाड की आिोचना की थी तो उनक सारन

रकतसिर शासन की बबमरता और अागरजी राज क सशासन का कतशवपरसाद िारा ककतलपत आखयान था १८८४

र समपणम रकतसिर काि अनधकार यग र बदि गया कततकतररनाशक क पहि खाड र बाब कतशवपरसाद न भी

अकबर की रजहबी उदारता और साराकतजक सधारो की बड़ाई की थी इस परकार हर दख सकत ह दक

ऐकततहाकतसक िखन र पकष और कतवपकष की पनरावकततत एक बाद घर र उिझी हई थी इनक सारन रकतसिर

कतवरोध और अागरजी शासन क कतवरोध का एक कतवसागत फर था और िखक उसर अपनी फौरी जररतो क

कतहसाब स कतरतर और दशरन वािा इकततहास कतिखता था इकततहास ठठ राजनीकततक ततकाि क वशीभत था

जो भी हो धाररमक उदारता और सिह-ए-कि का परयोग एक कतशकषापरद परयोग था यह कतवकतभनन

रतो या कतवशवासो क बीच lsquoजनरतrsquo बनान का एक रधयकािीन परयोग था भारतद lsquoजनरतrsquo क परयोग को

इस तरह दखत थ रानो यह lsquoचािrsquo अगर कारयाब हो जाती तो lsquoआज क ददन हहादसतान रसिरान होताrsquo

भारतद क सारन सरसया वही थी बस वह कवि यह चाहत थ दक कतहनदसतान lsquoकतहनदrsquo हो जाय कतहनद

अथामत वषणव हो जाय वषणवता भारतद क कतिए हहादसतान का नया lsquoसिह-ए-किrsquo था इसकतिए कछ

सावमजनीन रलयो की तिाश उनह भी थी कतसिकट ककतरटी क उपरोि रमबर lsquoएकसअफीकतशयोrsquo रमबर थ

रोर क परान हररकिस जस दवता कतजनहोन धरती स साबाध तोड़ ददया ह व िोग तथा उनही क जस

पारकतसयो क lsquoजरदशतजीrsquo को कोरसपोहडाग ऑनररी रमबर बनाया गया य धरम क रप र रतपराय रतो क

परकततकतनकतध थ ककतरटी न जो ररपोटम तयार की उसका ररम भारतद न ददया ह यह ररम उनक रकतडकि वषणव

पकष का रत था कतिबरि दि और काजरवरटव दि क अपन पकषो स इतर यह नरनायक तीसरा पकष वषणवो

की तरफ स सनाया गया था रकतडकि वषणवो की तरफ स भारतद इस धाररमक आनदोिन क भीतर अपना

ही पकष रखत हए इसका ररम कतिख रह थ ldquoहरिोगो की समरकतत र इन दोनो परषो न परभ की रागिरयी

सकतषट का कछ कतवघन नही दकया वराच उसर सख और सातकतत अकतधक हो इसी र पररशरर दकयाrdquo कतहनद सराज

सधार क परयासो का ररम बतात हए सबस पहि धयान सतरी सधारो पर ददया गया ह साराकतजक करीकततयो

की कतशकार रकतहिाओ क परकतत जो दकतषट उभरकर सारन आती ह उसक रि र धरम की रीकतत स यौन

रयामदाओ की अवयवसथा को दफर स रयामददत करन की चषटा ह कतसतरयो क करागम पर जान का पहिा कारण

ह रनराना परष धरमपवमक न पाना यह कतववाह सासथा की कतवककततयो की आिोचना थी जहाा बाि कतववाह

कतवधवा कतववाह आदद की तरफ इशारा ह धयान रखना चाकतहए दक यहाा बरि कतववाह क बदि कतसतरयो िारा

29

lsquoरनराना वरrsquo न चन पान का उलिख ह गभमनाश और बाि हतया क कतखिाफ सधार परयास दसरा

रहतवपणम योगदान ह कतववाह सासथा बीच र भी भाग की जा सकती ह इसकी सवीककतत ह कनया क कतहत र

अातरजातीय कतववाह की सवीककतत ह एक रहतवपणम बात गरओ और पाकतडतो क वयाकतभचार क साबाध र ह

भारतद क सारन पकतषटरागी रहातो और गरओ क वयाकतभचार का अनभव भी इसर शाकतरि ह

१८७४ र ककतववचन सधा र भारतद की एक रटपणणी छपी थी lsquoगर को कसा होना चाकतहएrsquo इसक अिावा

दो वषम पहि lsquoगर और रहातrsquo नार स भी एक रटपणणी कतिखकर वषणव पाडो-परोकतहतो की खिकर

आिोचना की गयी थी तिवार जी न कतिखा ह दक राददरो क भीतर कतसतरयो का यौन शोषण और वयाकतभचार

इतना भीषण था दक दयानाद भारतद क पकतषट सापरदाय को lsquoकषठी सापरदायrsquo कहत थ १८६० क आरमभ र ही

वषणव गोसाइयो क अनाचार और यौन शोषण क कतखिाफ बमबई र एक बड़ा आनदोिन पकतषटरागी

करसनदास रि जी क नततव र हो चका था वषणव बकतनया पषठभकतर स आय करसनदास जी उन नौजवानो

र थ कतजनहोन एकतिफ सटन कॉिज स आधकतनक कतशकषा परापत की थी गोसाइयो और रहाराजो िारा अपन

lsquoसमपरदाय की बह बरटयोrsquo क साथ होन वाि अतयाचार क कतखिाफ उनहोन िख कतिख और समपरदाय क

इकततहास को नए कतसर स सारन रखा पण स आए जदनाथ वजरतन जी रहाराज न करसनदास जी पर

रानहाकतन का रकदरा दायर कर ददया इसी रक़दर स वषणव रहातो की कई सारी बात जनता क सारन

परतयकष हई तिवार जी न इस lsquoरहाराज िाइबि कसrsquo को भारतीय नवजागरण र वषणव गोसाइयो क

दराचार और यौन शोषण क कतखिाफ हआ सबस बड़ा आनदोिन कहा ह भारतद पर इसका बहत परभाव

था यह कस १८६० र हआ था एक दशक बाद जब भारतद सापरदाय क कायो र रत थ उसी सरय कतिख

रह थ ldquoराददर कया होत ह रानो कतसतरयो की खान ह जसी चाकतहए िीकतजय- वराच अचछी सतरी भी वहाा जाकर

कतबगड़ जाती ह आशचयम यह ह दक कतजनको व िोग बटी कहत ह और जो उनक परिोक क रधयसथ ह और

कतजनको वो दीकषा दत ह उन कतसतरयो की ओर व आप ही बरी दकतषट स दखत ह ओर रर पयार कतहनदओ तर

इनक जाि र कब तक फा स रहोग और कया तरको यही सासार स बचावग और इनही क भरोस तरको

भगवान कतरिगाrdquo33

राददरो क धन-ऐशवयम और वयाकतभचार र डब जीवन क जीवात कतचतर हर बनारस क रखाकतचतर lsquoपरर

जोकतगनीrsquo क अिावा lsquoकाशी क छायाकतचतर क दो बर-भि फोटोगराफrsquo र भी कतरित ह यहाा भारतद का वयागय

अपन वषणव सापरदाय की आतरािोचना स सदकय ह lsquoपरर योकतगनीrsquo नाटक र आन वािा चररतर रारचादर

खद भारतद ही थ नाटक का सतरधार कहता ह दक भारतवषम की दीन हीन गकतत क कारण उसका तो

कतवशवास ही ईशवर स उठन िगा ह नाटक क पहि ही दशय र भारतद हर राददर क भीतर कतिए चित ह

33 वसधा डािकतरया िारा उदधत पषठ- ३३७

30

जहाा राददर र कार करन वािा साधारण टहिआ झपरटया हर ददखाई दता ह पजारी बाब अभी तक नीद

स नही जाग ह कयोदक आधी रात तक lsquoबठ क ही-ही-ठी-ठी करा चाह दफर सबर नीद कस खिrsquo कतनकतशचत

रप स यह टहिआ सबह सवर ही राददर र हाकतिर ह िदकन दवता अभी राददर र सोय ह रारचादर

परदशी ह काशी र बाहर स आय ह छकक जी और राखनदास इस रारचादर की आिोचना करत ह इनक

सावादो स पता चिता ह दक बाब रारचादर क यहाा ददन रात नाच गाना हआ करता ह और उनको अपनी

कतवदया का घराड ह दो चार ककतवतत भी बना ित ह पर lsquoककतवतत बनाव स का होव और ककतवतत बनावन कछ

अपन िोगन का कार थोर हय ई भााटन का कार हयrsquo छकक जी कहत ह दक अपन रागम का उनह कछ जञान

तो ह नही बस दो चार बात इधर उधर स सनकर कछ lsquoदकसतानी रतrsquo सीखकर पाकतडत बन दफरत ह

कतनकतशचत रप स य भारतद पर िगन वाि आरोप थ राददर र सवारी धनदास वकतनतादा बभकतकषत पाकतडत

आदद धरम क ठकदार ह इनकी पतनशीि सासककतत को दखकर रारचादर का दःख इन शबदो र वयि होता ह

lsquoहा कया इस नगर की यही दशा रहगी जहाा क िोग ऐस रखम ह वहाा आग दकस बात की वकतदध की

साभावना करrsquo lsquoवददकी हहासा हहासा न भवकततrsquo जस शरआती नाटको र भी करमकााडी परोकतहतवाद की

आिोचना की गयी ह राजा और परोकतहत कतरिकर वहाा जनता का शोषण करत ह जआ रददरा और

रथन की ऐययाश सासककतत क परतीक परोकतहतो का काजरवरटव दि इन परहसनो र रतम होता ह कतचतरगपत यर

स कहत ह ldquoरहाराज य गर िोग इनक चररतर का कछ न पकतछए कवि दमभाथम इनका कततिक रदरा और

ठगन क अथम इनकी पजा कभी भकति स ररतम को दाडवत न दकया होगा पर राददर र जो कतसतरयाा आयी उनको

सवमदा तकत रह रहाराज इनहोन अनको को कताथम दकया ह और इस सरय तो र lsquoशरीरारचनदर जी का

शरीकषण का दास हाrsquo पर जब सतरी सारन आव तो उसस कहग lsquoर रार तर जानकी र कषण तर गोपीrsquo और

कतसतरयाा भी ऐसी रखम दक दफर इन िोगो क पास जाती हrdquo34

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo की ररपोटम र सतरी सधारो क कायो की रहतता बतान क बाद जाकतत वयवसथा पर

इन सधारको का परहार कयो जररी था इस बताया गया ह कठोर जाकतत बनधनो क चित कस हर साि

जाकतत-बाहय होकर जाकतत र वापस आन क दकसी उपाय को न जान lsquoहजारो रनषय आयम पाकति स हर साि

छटत थ उसको इनहोन रोकाrsquo इस परकार इन सधारको न lsquoआयमधरमrsquo क भीतर जो पररवतमन करन चाह

उसस आयो की एकता दफर स बहाि हो गयी इसक अिावा अाधकतवशवासो को इनहोन दर दकया यही नही

बकतलक जहाा िोग lsquoरसिरानी पीर पगमबर औकतिया वीर ताकतजया गाजी कतरयाा कतजनहोन बड़ी ररतम तोड़कर

और तीथम पाटकर आयम धरम कतवधवास दकयाrsquo उनको भी पजन िग थ और lsquoकतवशवास तो रानो कतछनाि का अाग

हो रहा थाrsquo ऐसी िजजाजनक कतसथकतत स िोगो को बाहर कतनकािकर lsquoसार आयामवतम को शदध lsquoिायिrsquo कर

34 दख रारकतविास शराम पषठ १३१

31

ददयाrsquo lsquoिायिrsquo कर ददया गया इसका अथम आयम जाकतत को दफर स िायि करन र था आयम जाकतत क भीतर

कतबगाड़ क चित ही कतनमन जाकततयो का बड़ परान पर पिायन था इस इन िोगो न रोका और इनक परताप

स ही अनक छोट और सथानीय धरम-रतो क भीतर जो lsquoरसिरानीrsquo परभाव घस आय थ उनको दफर स lsquoबड़ी

ररतमrsquo की कतनषठा र िाया जा सका इस परकार कतहनद धरम और वणामशरर क परकतत दफर स िोगो को lsquoिायिrsquo

दकया यह lsquoिायकतिटीrsquo भारतद की रकतडकि वषणवता क जनरत क कतिए भी जररी था तिवार जी जब

आयमसराकतजयो की lsquoकााकततकारीrsquo भकतरका ददखात ह तब आयम सराज िारा आयामवतम को िायि बनान वािी

इस भकतरका की साकतशलषटता पर जयादा बात नही करत भारतद दयानाद क कााकततकारी परयासो र lsquoिायिrsquo

बनान की परदकया उसी वक़त दख रह थ और इसी कारण ररपोटम र दयानाद की आिोचना धयान दन िायक

ह सवारी जी न ldquoजाि को छरी स न काटकर दसर जाि ही स कतजसको काटना चाहा इसी स दोनो आपस

र उिझ गए और इसका पररणार गह कतवचछद उतपनन हआrdquo गह कतवचछद का रतिब कतहनद धरम र गह

कतवचछद जबदक कशवचादर सन क बार र कहा गया दक उनहोन जाि काटकर भकति की उचछकतित िहरो का

पररषकत पथ परकट दकया इस परकार रकतडकि वषणवता की lsquoअनयताrsquo और परररिक भकति क परशसत पथ क

सवीकार का कतनषकषम कतवचार सभा का भी कतनषकषम था धयान दन िायक ह दक कशवचादर की आिोचना उनक

कतचतत कतवकषप क कारण की गयी थी जहाा lsquoईसारसीह आदद उनस कतरित हrsquo य एक दकसर का इिहारी

अनभव था कतजस भारतद अपनी वषणवता स बाहर रखत ह ईशवर न इस ररपोटम पर अपना रत सरकतकषत

रख कतिया और भारतद कतिखत ह ldquoइसको दख कर इस पर कया आजञा हई और व िोग कहाा भज गए यह

जब कर भी वहाा जायग और दफर िौट कर आ सक ग तो पाठक िोगो को बतिावग या आप िोग कछ

ददन पीछ आप ही जानोगrdquo

३ जनरत और वषणवता

ककतववचन सधा ९ राचम १८७२ र भारतद न lsquoPublic Opinion In Indiarsquo नार स अागरजी र

एक िख परकाकतशत दकया िख र उनहोन कहा दक कई सददयो दक दासता क बाद भारतवषमहहादसतान अब

जाकर कतिरटश राषटर क सवोचच कतनयातरण र आया ह दश धीर-धीर सभयता और परबोधन की पकतशचरी दकरणो

क सहार दरन और कशासन क रतय-तलय कतनदरा स जाग रहा ह कतिरटश शासन की परगकततशीि नीकततयो का

परभाव यहाा की बहरपी आबादी पर पड़ रहा ह

ldquoBut in this progressive state national energy and zeal sympathy and

disintiredness are waiting to make both the conqueror and the conquered to act in

32

concert and in harmony and hence we have the broad distinction of white and

black still But in this country many are the blemishes that adhere to us to be

eradicated and many are the shortcomings that are hovering around us to be done

away with before we can have a public opinion here in its true senserdquo35

गोर और काि क बड़ भद को छोड़ कर कतवजता अागरजो और भारतीयो क बीच एक सराजन तो बन गया ह

पर अनदरनी ददककत अभी भी राह बाए खड़ी ह रौका ह दक इस परगकततशीि कतसथकतत का फायदा उठा कर हर

एक सचच जनरत का कतनरामण कर सचच िोकरत क कतनरामण र अादरनी बाधाएा कया थी भारतद न इस

आग सपषट करत हए कतिखा-

ldquoRace antagonism rivalry and mutual misunderstanding are the favourite

occupations of the aristocratic class Want of confidence among all classes of men

are the prevailing characteristic of the nation and above all multifarious castes and

creeds with there numerous forms of religion and local habits and customs which all

combined have kept the progressive policy at a stand still True it is that a

representative Government is a boon to this country and true it is that Sir Bartle

fregravere a man of vast experience and a good statesman has found out that in village

community we can have public opinion but with all his experience he has lost sight

of our national defects ndash defects which we ourselves know and which no foreigner

can catch at a glancerdquo36

भारतद इस बात को िकर कतनकतशचत ह दक िोकरत और परकततकतनकतधरिक सासथाओ क बहतर कतवकास क कतिए

सीध-सीध कतवदशी रॉडि कभी सफि नही हो पायगा ऐसा इसकतिए कयादक हरारी आपसी कतवकतभननताओ

और झगड़ो को कोई बाहरीकतवदशी सतता कभी भी परी तरह सरझ नही सकती lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo नार

35भारतद गराथाविी -6 361

36 वही

33

स भारतद का एक दसरा िख इस अागरजी वाि िख क दो साि बाद अपरि सन १८७४ र हररशचनदर

रगजीन र छपा पकतबिक ओकतपकतनयन कया बिा ह इस साफ़ करत हए भारतद िख क आरमभ र ही कहत

ह ldquoपकतबिक ओकतपकतनयन अथामत सब साधारण िोगो की राय कया वसत ह और इसर दकतना जोर ह और

इसक कतिए कया हो सकता ह यह परशन ठहरा तो इसका साधारण उततर यही ह दक यह वह वसत ह जो

सासार को एक कर सकती ह गागा की धरा दफर कतहरािय पर चढ़ा ि जा सकती ह सययम को पकतशचर उगा

सकती ह और चाह तो ईशवर को भी पकड़ क कठपतिी की भााकतत नचा सकती हrdquo37 यह पकतबिक

ओकतपकतनयन lsquoएक रतrsquo होना ह जस अिग अिग चार पतिी िककतड़यो को एक साथ बााध दन स उस

तोड़ना करठन हो जाता ह उसी तरह एक रत होन स बड़ स बड़ा बरी भी हरारा कछ कतबगाड़ नही सकता

बहत स िोगो का रत एक हो तो वह शकति बन जाती ह हिारो आदरी की बकतदध एक हो जाए तो ldquoऐसा

कौन कार ह जो न हो सक तो यह कतसदधाात हआ दक कतनशचय सब िोगो क रत र बड़ी सारथयम ह इसस यह

कतसदध हआ दक बिो स बड़ा बि एक रत ही हrdquo38

आग भारतद कहत ह दक यह जनरत और उसकी शकति हहादसतान क कतिए कोई नई बात नही ह

पराचीन काि र इसक उदाहरण कतरित ह lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo की इस धारणा को भारतद न इकततहास क

अिग-अिग दौर र बनत और कतबगड़त ददखाया सबस पहि चार वणो की िररत पड़ी सब कार को

सचार रप स चिन क कतिए दसर शबदो र कह तो शरर-कतवभाजन की िररत स इसका जनर हआ

lsquoकतहनदओ न अपन गर क कार र इस वणामशरर धमरम को इसी वासत बनाया कतजस र उन क दकसी कार र

कोई हजम न हो और उनिोगो न सासार क सब कारो र चार कार रखय सरझrsquo धरम कतवदया और किाओ का

कार िड़ाई और राजय परबाध का कार वयापार और धन और सब िोगो की सवा और रजदरी इन चार

कारो की सवयवसथा वािा वणामशरर दरअसि lsquoएक रतrsquo कतहनद वयवसथा या lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo थी पर

कािाातर र इस lsquoएकरतrsquo क भीतर जाकततवयवसथा कठोर हो गयी और िाहमण और शदर दोनो एक दसर क

कतखिाफ हो गए एकरत र कतवचछद पदा होन स कतहनद शकति करिोर हो गयी भारतद क अनसार आपस

का यह झगड़ा बड़ा कतवनाशकारी साकतबत हआ पकतबिक ओकतपकतनयन क कतबना वयाकतभचार और जयादकततयो का

अाधर था आग चि कर जनो क जरान र दफर lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo न जोर पकड़ा बकतलक भारतद जोर

दकर कहत ह दक जनो क रत की उततपकततत ही lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo स हई ldquoकतहनदओ क जब नाश क ददन

जब कतनकट आय तो आपस र परसपर बड़ा कतवरोध खड़ा हआ और उस काि र िाहमणो का बड़ा जोर था

वरन य और वणो पर जयादती करत थ तो वशय और कषकततरयो की रकतत इनस दफर गयी और बाब वािी बड़ी

37गराथाविी- 678

38वही

34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

36

कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

37

उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

38

ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 11: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

11

पहि क दकसान कतवदरोहो क भीतर जो राजसतता पिटन का कतवचार था उस भारतीय नवजागरण न

अातगमहावास दन का कार दकया अतः भारतीय नवजागरण रखयतः साासककततक आिोचना ही थी

राजनीकततक आिोचना को गहावास दन वािी साासककततक आिोचना वह कतिखत ह ldquoसच तो यह ह दक

अकतधकााश िखक सरकषा सशासन कतशकषा उननकतत और शााकतत क कतिए कतिरटश राज क परकतत उपकत अनभव

करत ह- कतवशष रप स रगिो क शासन की तिना र इस परवकततत क अवशष बीसवी शताबदी क दसर

दशक तक रकतथिीशरण गपत की lsquoभारत भारतीrsquo जसी राषटरीय कही जान वािी कावय-ककतत र भी कतरिती ह

यहाा तक दक कभी-कभी तो नवजागरण क अनक उननायक राजसतता क साथ सहयोग करत भी ददखाई पड़त

ह अब इस कोई चाह तो नवजागरण क उननायको का रधयवगीय अथवा भदरिोक चररतर कह ि अथवा

दकसी सागरठत राजनीकततक परकततरोध क अभाव क िारा इस कतनरपायता की वयाखया कर ि दकनत हर हाित

र यह तथय कतवसरत न हो दक कि कतरिाकर था यह रितः नवजागरण ही- साासककततक नवजागरण कतजस

राषटरीय सवाधीनता साघषम का पवमराग भि कह ि दकनत उसका पयामय न सरझrdquo16 इसी साासककततक

नवजागरण स वह lsquoआतरकतबमबrsquo तयार हआ कतजसक कतबना राजनीकततक साघषम का वह रप कतवककतसत नही होता

जो आग चिकर वासतव र हआ अजञय की इस वयाखया स नारवर जी सहरत ह दक राजनीकततक-साराकतजक

आधारो की वासतकतवकता क बावजद भदरवगीय साासककततक आनदोिन न जो lsquoआतरकतबमबrsquo रचा वह

राजनीकततक सवतातरता साघषम र हकतथयार बन गया राजनीकततक सवतव पराकतपत की जो चतना इस पररणापरद

आतरकतबमब र अातगमहावास कर रही थी आग चिकर वही राजनीकततक सवतव पराकतपत र उभरकर कतनज

कतवककतसत होती गयी एक बार दफर lsquoइकततहास जसा था वसा पानrsquo की कोकतशश र इकततहासवाद की

कतवचारधारा सारन आ खड़ी होती ह इस इकततहासवाद की आिोचना गरामशी न भी की थी खासतौर पर

कोच क परर इकततहासवाद की आिोचना करत हए सवाि ह दक सासककततकरम की राजनीकतत कया ह

ददरागी गिारी स रकति का साघषम और राजनकततक रकति का साघषम कया इस तरह क अिगाव र रह सकता

ह और अगर अिगाव ह तो इस अिगाव को कस सरझ एक बार यह तय हो जान पर दक उनका वगम

कया था हर उसी क आिोक र उनक साासककततक परयासो की आिोचना करनी चाकतहए दसर शबदो र

उनक अपन वगीय अातरवमरोधो क आिोक र ही उसकी आिोचना साभव ह उपकतनवशवाद की रानकतसक

गिारी क कतखिाफ साघषम जञान की सतता क कतखिाफ साघषम ह और शायद इसकतिए नारवरजी कहत भी ह दक

यह साघषम राजनीकततक साघषम स lsquoकर करठन न थाrsquo यरोपीय जञान क बरकस भारतीय जञान को सथाकतपत

करन का साघषम ही यह साघषम था ldquoउपकतनवशवाद की छाया र भारतीय सासककतत क िोप का खतरा था

इसकतिए अपनी सासककतत की रकषा का परशन सवतव-रकषा का परशन बन गयाrdquo17 सतता पिटन क कतवचार को

16 वही पषठ ८८

17 वही

12

अातगमहावास दकर सवतव-पराकतपत सवतव-रकषा का परशन बन गया और यह सवतव कया था कतजसकी रकषा

साासककततक रोच पर नवजागरण क परसकताम कर रह थ- कलपना या यथाथम परबोधन न जञान का एक कतरथ

तयार दकया और चपक स कतरथको को जञान बना ददया इस नवजागरण की एक बड़ी दन एक परकतत-

इकततहास-दकतषट का कतवकास ह नारवर जी कतिखत ह ldquoनवजागरण की एक बहत बड़ी दन साभवतः वह

इकततहासदकतषट ह कतजसस अपन अतीत को शतर स रि करक उसक कतवरदध वतमरान र इसतराि करन की किा

आती ह और भकतवषय क कतिए सवपन दकतषट भी कतरिती हrdquo18 अगर वासतव र यह दकतषट नवजागरण की दन ह

तो रानना पड़गा दक यह फासीवाद की इकततहासदकतषट ह एक ऐस रकतसिर अतीत की कलपना जहाा रकतसिर

शतरओ स भारतीयता को रि करक वतमरान र उनक कतखिाफ इसतराि दकया जाता ह और इसस भकतवषय

की एक सवपन दकतषट भी भी कतरिती ह कहना न होगा दक परबोधन स कतनकिी यह इकततहासदकतषट अतारकम क

नही थी कयोदक यह साघषम की वासतकतवकता का सबस भरकतरत रप खड़ा करती ह फासीवाद इस अथम र वगम

साघषम का सबस कतरथकीय रप ह और अगर यह सही ह तो सवतव-रकषा र परापत इस इकततहासदकतषट को हर

परकततकााकतत की इकततहासदकतषट कह सकत ह भारतीयता का यह भरकतरत आतरकतबमब सवया को दो बनाकर ही

गकततशीि था यही इकततहासदकतषट आग चिकर lsquoकतवरदधो का साराजसयrsquo की इकततहासदकतषट क रप र इकततहास

का सबस भवय ढााचा खड़ा करती ह आतरकतबमब क इस कतवखाडन को िकषय करत हय नारवर जी न कतिखा

ldquoहरानी की बात ह दक हहादी परदश का नवजागरण धरम इकततहास भाषा सभी सतरो पर दो टकड़ हो गया

सवतव रकषा क परयास धरम तथा सापरदाय की जरीन स दकय गएrdquo19

आतरकतबमब का यह दो होना िखको क दो वगो र परकततहबाकतबत हआ नारवर जी क अनसार एक

वगम अागरजो का घोर कतवरोध करता ह पर धरम-सासककतत और साराकतजक परथाओ क बार र परापरावादी ह

दसरा वगम अागरजी राज क परकतत नरर रख अपनाता ह पर अनय रारिो र या तो रिगारी ह या दफर

सधारवादी िखको का पहिा वगम भारतीय होन का दावा करता ह जबदक नररपाथी िखक पकतशचरोनरख

ह हहादी नवजागरण क नता जयादातर परापरावादी ह जहाा अागरजी कतशकषा का परसार जयादा हआ वहाा

पकतशचरोनरख िखक जयादा थ दयानाद की अपकषा भारतद का झकाव कशवचादर सन जस पकतशचरोनरख

िखको या सधारको क परकतत था ऐसा साभवतः वषणव भावकता क चित था नारवर जी भारतद र परखर

बकतदधवाद का अभाव पात ह पर उनकी रराकतनयत को रानवतावाद की कतवचारधारा स जोड़त ह

नवजागरण क इस साकतशलषट कतचतर को सारन रखन की कोकतशश र नारवर जी एक ऐसी इकततहासदकतषट

कतवककतसत कर रह थ जो अतीत को उसक सापणम अातरवमरोधो र पान की कोकतशश करता ह अतीत को खिा

18 वही पषठ-८९

19 वही पषठ ९१

13

छोड़ दन वािी यह इकततहासदकतषट या एक सातकतित इकततहासदकतषट का यह परयास खाड खाड कतबमबो की एक ऐसी

गकततशीिता का भरर पदा करती ह जो इकततहासवाद की एक पररख कतवशषता रही ह इस पकष पर सवया

नारवर जी का धयान था और आग चिकर उनहोन नवजागरण क इस कतरथकीय चररतर को सवया ही

आिोकतचत दकया इस आिोचना र वह नवजागरण को परबोधन कहन क बदि lsquoअकतभजञान-कािrsquo कहना

जयादा उपयि रानत ह खद lsquoनवजागरणrsquo नार को अागरजो की कलपना बतात ह और उननीसवी सदी को

lsquoसरकतत-भराशrsquo का काि कहत ह यहाा १८५७ स िकर भारतद और कतववकानाद सब एक कतरथकीय चतना क

भीतर सराकतहत ददखत ह और कतजस भारतीय नवजागरण कहा जाता था उस कतवपरीत जागरण रानत ह

इसी कतवपरीत जागरण का नार उनहोन अकतभजञान ददया 20 डा वीरभारत तिवार न कवि कतहनदी

नवजागरण को भारतीय नवजागरण की परकततकााकततकारी धारा कहा था वही नारवर जी अब पर भारतीय

नवजागरण को ही कतवपरीत जागरण कह रह ह और बहत हद तक सही कह रह ह

डा तिवार न अपनी lsquoरससाकशीrsquo र lsquoहहादी नवजागरणrsquo को एक भरारक पद बताया था न तो

इसका साबाध १८५७ स था न रधयकािीन भकति आनदोिन स और न ही जनवादी राषटरवाद की दकसी

अवधारणा स उनक अनसार परबोधन क कतववकवाद तथा धरमसधार-सराज सधार की कतरिी जिी परदकया

क रप र कतवककतसत होत बागािी या रराठी नवजागरण या भारतीय नवजागरण की परकततगारी धारा क रप

र कतवककतसत होन वाि भारतद आदद क साासककततक आनदोिन को lsquoहहादी आनदोिनrsquo कहना ठीक ह कतशकतकषत

रधयवगम क भीतर दो परसपर कतवरोधी धाराओ की चचाम डा तिवार करत ह एक धारा कतववकवाद की

धारा थी दसरी सनातनी कतहनद धरम की धारा रहाराषटर और बागाि र अागरजी कतशकषा क परचार-परसार न कतजस

नए धरम और सराज सधार को गकतत परदान की वह अपकषाकत अकतधक परगकततशीि धारा थी पकतशचरोततर यि

परानत क पवी इिाक खासतौर पर बनारस इिाहाबाद और बहत हद तक पटना कानपर भागिपर आदद

शहरो र कतवककतसत नव-रधयवगम इस परगकततशीि धारा क साथ नही था इसका सबस बड़ा कारण अागरजी

कतशकषा का अभाव था यि परानत र कोई धारा परगकततशीि भकतरका अदा कर रही थी तो वह कवि दयानाद

सरसवती की आयमसराजी धारा थी इस आयमसराज का भी अपना जनाधार सनातनी पाकतडतो या िाहमणो क

यहाा नही बकतलक नौकरीपशा अागरजी कतशकषा परापत वह भदरवगम था जो अपन धरम और सासकारो क कतपछड़पन

को िकर गिाकतनबोध स भरा था इस वगम को अपनी पहचान आयम सराज र ददखती थी आयम सराज क

रिवाद र तथा उसक तारकम क सथिवाद र आधकतनक होन का रासता ददखता था िहमोसराज और

कतथयोसोदफकि सोसाइटी दो ऐसी सासथाएा और थी जो यि परानत र धरम और सराज सधार का परयास कर

रही थी परनत इसका परभाव बहत सीकतरत था आरतौर पर यिपराात र रहन वाि बागािी अपरवासी ही

20 दख नारवर हसाह उननीसवी सदी का भारतीय पनजामगरण यथाथम या कतरथक (अन) पाकज पराशर पकषधर अाक ११ जिाई २०११

14

इनक सदसय थ हहादी आनदोिन क नताओ न इन दोनो धाराओ की आिोचना की ह इनहोन दयानाद क

रिवाद की आिोचना अपनी परापरावादी करमकााडी दकतषट स की इनक अनसार उपकतनषद या पराण आदद

अगर अपराराकतणक भी ह तब भी चादक िोक र सवीकत ह इसकतिए उनह एकदर ख़ाररज करक कोई धरम या

सराजसधार नही हो सकता तिवार जी का कहना ह दक अपनी िचर दिीिो की आड़ र य िोग वसततः

सतरी कतशकषा कतवधवा कतववाह या आधकतनक जीवनशिी आदद की परगकततशीिता का कतवरोध कर रह थ यह

कतवरोध आरतौर पर सरदाय की रानयताओ को ही सारन रखकर दकया जाता था एक दकसर क

कतबरादरीवाद क भीतर स सरझौता करत चिन क कारण हहादी आनदोिन क नता अपन पाररवाररक या

वयकतिगत जीवन क उथिपथि स बचन की कोकतशश करत ह धरम इनक कतिए सधार का नही वरन

राजनीकततक हथका डा रातर था धरम की आड़ र य रकतसिर भदरवगम को अपना परकततयोगी साकतबत कर कतहनद

एकता की अपीि करत तादक इनह सरकारी नौकररयो र कछ कतवशषाकतधकार कतरि सक तिवार जी क

अनसार रकतसिर भदरवगम इन हहादी आनदोिन क परसकततामओ स कही जयादा परगकततशीि था उनक यहाा

आधकतनकता क परकतत जयादा खिी और कतववकसापनन दकतषट थी और उनहोन जोर दकर कहा दक हहादी आनदोिन

को सर सयद अहरद खाा जस दकसी सकषर कतववकवादी वयकतितव का नततव नही कतरि पाया हहादी

आनदोिन और नताओ क अातरवमरोधो को ददखात हए तिवार जी न भारतद की छकतव एक पतनशीि कतहनद

रोररटक की गढ़ी ह यहाा भारतद एक परकततनायक क रप र नजर आत ह

कतववकवादी इस धारा न राषटरीयता की जो धारणा गढ़ी वह रितः साापरदाकतयक थी अागरजी राज क

कतखिाफ अगर इनका साघषम सराज और धरम सधार को साथ-साथ रखन क बजाय उसर अिगाव करता ह

बकतलक उनक कतखिाफ जाकर सागरठत होन का परयास करता ह तो उसक सारन रकतसिर भय पदा करन क

अिावा और कोई रासता साभव नही था lsquoहहादी नागरी और गोरकषाrsquo आनदोिन इसकी सवभाकतवक पररणकतत

थी आग चिकर उननीसवी सदी क आकतखरी दशक र आकार गरहण करन वािी कतहनद राषटरवाद की यह

पषठभकतर ह इसक वग र दयानाद न भी साथ ददया कयोदक उनर भी पनरतथानवाद क बीज थ पवी परदशो

की अपकषा आयम सराज पाजाब र कही जयादा रकतडकि था आयम सराकतजयो की सदसयता की साखया पाजाब

क रकाबि यि परानत र जयादा थी पर वहाा कोई गणातरक पररवतमन साभव नही हआ और यह रहज

साखयाबि क रप र ही बना रहा इसका कारण उनहोन पाजाब की कतभनन नतततवशासतरीय अवकतसथकतत र

बताया ह पाजाब र िाहमणो का परभाव कर था कतजसका एक कारण रसिरानो क साथ िमबा सासगम और

कतसख धरम आदद का परभाव भी था इस तरह का कोई कतवशलषण पवी परदशो क बार र नही दकया गया जसा

दक बहत पहि रदमरशरारी की ररपोटम स ही हजारीपरसाद कतिवदी न दकया था अथामत रधययगीन कतसख

धरम क परभावो की तरह कबीरपाथी आदद सरदायो क परभाव और वषणवता क अातसबाधो की पड़ताि नही

15

की गयी ह काशी क बनकरो की एक हड़ताि का कतिक रारकतविास जी बार बार करत ह जो १८३३ ई र

ही हई थी और इकततहासकार बिी क अनसार यह वक़त आरथमक साकट का भी वक़त था

भदरवगम का जो कतहससा हहादी आनदोिन क साथ था उस जाकतत वयवसथा की परानी रानयता को

बनाय रखन या उस रजबत करन की जररत कया कवि नौकररयो र कतवशषाकतधकार परापत करन क कतिए थी

या जाकतत वयवसथा रातर र आय एक रिगारी साराकतजक साकट का वह परकततदकयावादी रपाातरण ह शहरो

र आरथमक-वयापाररक गकततकतवकतधयो क कारण और आसपास क इिाको स परवासी रजदरो का आगरन तथा

बढ़ती वशयावकततत आदद क चित शहरी साराकतजक साबाधो र भी उथि-पथि थी ऐस सरय र सारदाकतयक

या कतबरादरी बोध lsquoएकाrsquo की भावना पदा करती ह तिवार जी इस नव-भदरवगम का अपन ही भीतर अिग-

अिग खााचो र बाट होन की बात करत ह अिग-अिग खााचो र बाट होन क चित यह भदरवगम रधयवगम की

कतवचारधारा अथामत कतववकवाद या नवजागरण को परापत नही कर पायी थी वगम था िदकन वगम की

कतवचारधारा नही थी खद भारतद क जीवन स हर उस दौर की अकतसथरता का कछ अादािा कतरिता ह

अकतसथरता और खााचो र बाटा रधयवगम दरअसि सापणम सराज र होन वाि एक आधारभत पररवतमन की ओर

इशारा करता ह यह पररपरकषय १८५७ की तरासदी का भी ह ऐसी कतसथकतत र हपराट पाजी क साथ बनन वािा

यह साासककततक आनदोिन था जहाा सवतव रकषा रखयतः अपन परान कतवशषाकतधकार की रकषा थी साराकतजक

साबाधो र आय उथि पथि क कारण उनह अपन कतवशषाकतधकार कतछन जान का खतरा साफ़ ददखाई द रहा

था जहाा अागरजी कतशकषा थोड़ा पहि ही परसार पा चकी थी वहाा कशि कारीगरो स िकर अधयापको और

परशासकतनक अकतधकारीयो क एक बड़ सरह न अपना नया कतवशषाकतधकार पा कतिया था साराकतजक साबाधो र

उनकी शरषठता उनक कतववकवाद क कारण बन चकी थी भारतद क एक शरआती िख lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

क राधयर स खााचो और जनरत की राजनीकतत को सरझन की कोकतशश आग करग

तिवार जी क अनसार दयानाद क कतवचारो क कतिए पाजाब जयादा गरहणशीि था कयोदक वहाा

जाकतत वयवसथा क बाधन पहि ही ढीि हो गए थ यिपराात र जाकतत क बाधन जायदा कठोर थ कतजन अथो र

कतिवदी जी रधय दश की रकषणशीिता का कतजक करत ह कछ-कछ उनही अथो र पर सवया दयानाद क

कतवचारो र कतववकवाद-पनरतथानवाद का दोरखापन कतरिता ह तिवार जी कहत ह दक कतजन सथि तको स

वह वदो की ओर िौटन को कहत थ आयम भाषा आयम जाकतत और आयम धरम की बात करत थ उसक कारण

ही इनका झकाव आग चिकर राषटरीय सवयासवक साघ की ओर होता गया पर आयम सराज क साराकतजक

सधारो और धरम सधारो की एकता क कारण वहाा वह साभावना भी थी कतजसक परभाव स आग चिकर बहत

सार कमयकतनसट कायमकताम भी कतनकि पररचाद राहि साकतयायन या गणश शाकर कतवदयाथी जस साकतहतयकार

और आनदोिनकताम आयम सराज क परभाव र थ आयम सराज तिवार जी क अनसार वासतकतवक साराकतजक

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पररवतमनो का सावाहक और सराज र वयकति स िकर साराकतजक जीवन क हर कषतर र गणातरक पररवतमन

िान वािा इसकतिए हो पाया कयोदक वहाा धरमसधार और सराज सधार अिग-अिग नही था दसरी ओर

हहादी आादोिन साापरदाकतयक जाकततवादी और सतरीकतवरोधी रलयो को ही सराज र फ़िान र कारयाब हआ

यह धारा अागरजो को अरजमयाा दकर नौकरी पान वाि रधयवगम की धारा थी

तिवार जी न भारतद की तकमशीिता को बहत कतनमन कोरट का कहा ह भारतद क चररतर र शायद

वह एक lsquoिमपनrsquo की छकतव भी दखत ह पसा उड़ान की वकतत सतरी क साथ वयवहार और उनक साबाध

चाररतरय बि का अभाव आदद आदद क सनदभम र वह कहत ह दक भारतद क चररतर र वह सदढ़ता या

सदाचाररता नही ह जो सराजसधार क कतिए आवशयक होती ह घर र पतनी उनह कभी पसाद नही आई

और वह बाहर रहदफ़िो र वाहवाही िटत रह रदमवादी दकतषट भी उनर कट-कटकर भरी थी भारतद क

इस चररतर की तिना तिवार जी न दो अनय परमपरावादी सधारको स की ह एक बागाि क राधाकाात दव

और दसर पाजाब क शरदधारार फलिौरी यदयकतप य दोनो भी भारतद की तरह परापरा की रकषा र ही सधार

की ओर अगरसर हए थ िदकन इन िोगो का चररतर जयादा परगकततशीि था इन दोनो की तिना र भारतद

का खिनायकतव और भी अकतधक उभरकर सारन आता ह सापकतकषक परगकततशीिता क कतनधामरण क कर र

भारतद अपन सापणम जीवन वयवहार र एक एाटी हीरो की तरह उभरत ह ठीक परान खिनायको की तरह

नही एाटी हीरो क साथ दशमक या पाठक की एक आतरीयता भी जड़ी रहती ह उसका चररतर ददराग र बस

जाता ह िदकन इसक चित यथाथम क ओझि होन का खतरा भी ह तिवार जी इसकतिए कदर कदर पर

उनकी साकतहकततयक छकतव क बरकस उनक राजनकततक- साागठकतनक जीवन वयवहार स बनन वािी छकतव को

सारन ररतमरान करत जात ह

अपनी परी आिोचना र तिवार जी भारतद की रचनाओ र कतरिन वाि भाषायी िदधड़पन और

राद तकमशीिता की चचाम तो करत ह िदकन व भारतद क वयागयो पर चचाम नही करत कया यह रहज

सायोग ह दक भारतद क परहसन lsquoअाधर नगरीrsquo का राचन आज भी परगकततशीि रलयो की परकततषठा ही करता

हभारतद क वयागयो या परहसनो र ऐसा कया ह कतजसर दहराव क साथ नवीन होत चिन की कषरता भी ह

भारतद क िखो या परहसनो या रपको र जो कही-कही वणमन या सावाद िारा वयागय का तीखा बोध पदा

होता ह उसकी शकति उनह कहाा स कतरिती ह वयागय की कषरता सवया र उनकी सकषर कतनररकषण र सरथम

दकतषट का परराण ह परान साराकतजक साबाधो र पररवतमन और तीवर पररवतमन क साथ साथ जो एक परहसन

चि रहा था उसका बोध भारतद को था भदरवगम क भीतर की कतववकवादी धारा का कतवकास भी कतहनद

राषटरवाद की कतवचारधारा र ही हआ परनत lsquoअाधर नगरीrsquo कया कतहनद राषटरवादी कतवचारधारा वािा परहसन ह

या कया यह कवि राषटरवादी कतवचारधारा का वाहक ह lsquoउरराव जान अदाrsquo र उभरकर सारन आन वाि

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साराकतजक साासककततक साकषोभ या उस वयापक टरजडी क सनदभम र दख तो भारतद क वयागय और परहसनो का

अथम थोड़ा और उभरता ह रकतलिका या राधवी स भारतद क साबाधो र कया उस तरासदी का सराग भी नही

ह वशयावकततत और पतनशीि रइसो का साकट एक दसर स अिग नही था उस सरय की औपनयाकतसक

ककततयो र वशयावकततत का सनदभम अवशय आता ह आग चिकर पररचाद की सरन बनारस र ही lsquoसवासदनrsquo

का सराधान ढाढ रही थी

भारतद क वयागयो पर रारकतविास जी का धयान था यह बात अिग ह दक अकतधकााश रौको पर

इनर वह जातीय चतना खोज कतनकाित ह बीस साि की उमर र भारतद न एक िख lsquoिवी पराणिवीrsquo नार

स कतिखा था रारकतविास जी इसका उलिख करत हए कतिखत ह ldquoगवनमर जनरि कतहनद क कतजस दरबार का

भारतद न वणमन दकया ह वह काशीराज क घर पर हआ था इसकतिए भारतद की सतयकतपरयता और भी

सराहनीय ह वहाा जो सजजन िोगो क नार कतिख रह थ उनका वणमन या दकया ह lsquoनार कतिखन वाि राशी

बदरीनाथ फि-फाि अबा पकतहन पगड़ी सज परान दादर की भााकतत इधर-उधर उछित और शबद करत

दफरत थrsquo िोग दकस तरह एक आनररी रकतजसटरट क lsquoकतसट डौनrsquo lsquoसटड अपrsquo कहन स उठत और बठ जात थ

इसका उनहोन बहत ही नाटकीय वणमन दकया ह आनररी रकतजसटरट का वयवहार हविदार का सा था कतसफम

हाथ र एक िकड़ी की कसर थी िोग कीरती पोशाक पहनकर गए थ ldquoसबक अागो स पसीन की नदी

बहती थी रानो शरीयत को सब lsquoअरघय पादयाrsquo दत थrdquo िोगो की उठा बठी और बहदा कवायद को िकषय

करक कतिखा था ldquoवाह-वाह दबामर कया था lsquoकठपतिी का तराशाrsquo था या बलिरटरो की lsquoकबायदrsquo थी या

बादरो का नाच था या दकसी पाप का फि भगतना था या lsquoफौजदारी की सजाrsquo थीrdquordquo21 काशी की इस सभा

र खद भारतद भी बठ थ इस परकार यह भारतद क वगम का परहसन भी था पतनशीि सासककतत की

आतरािोचना क कतबना यह साभव नही था बात कवि उमर की नही ह ठठ वतमरान र हसतकषप और उस

बदिन का बोध कतजन पतनशीि कतसथकततयो का आतर साकषातकार कर रहा था यह उसक परकतत एक

सवाभाकतवक सवतःसफतम परकततदकया थी यह तारकम क की नही बकतलक किाकार की सवतः सफतमता थी यह बात

सही ह दक भारतद कतवचारो की तारकम कता क रारि र उननीस पड़त थ पर इस करी को उनकी तीकषण

वसतकतनरीकषण दकतषट भर दती थी जीवन कतसथकततयो की कतवडमबना का बोध कतजतना गहरा था बदिन का

परयास उतना ही ऊजामवान था भारतद सवया अपनी भी कहानी कतिख रह थ lsquoपयार हररचाद की कहानीrsquo

कतिख रह थ भारतद क परहसनो र दकसी न दकसी पातर की भकतरका र हर जगह सवया भारतद भी ददख

जात ह अपन वगीय अातरवमरोधो का सवबोध उनक यहाा एकतिगोररकि हो जाता ह इस एकतिगरी र lsquoकतहनद

21 रारकतविास शराम पषठ- ६६

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भारतrsquo की रधर कलपना थी इसस इनकार नही दकया जा सकता भाव जगत का वषणव परर lsquoकतहनद भारतrsquo

की कलपना स परर र बदिता गया

भारतद की रचनाओ र कतवशवदकतषट की एकता खोजन पर हर परभतवशािी कतवचारधाराओ की

वयवसथा ही कतरिगी जञान और वयावहाररक सारानय बोध क बीच एक सदकय साबाध बनान क कर र ही

उनका सवाभाकतवक आवग कतजन वयावहाररक धाररमक कतवचारधाराओ र आतरकतबकतमबत होता ह व

परभतवशािी कतवचारधाराएा ह इन कतवचारधाराओ का कतनरामण कही बाहर स नही हो रहा था बकतलक

पराचयकतवदयाकतवदो की कलपना क साथ परसपर भागीदारी र बन रहा था इन कलपनाओ को यथाथम रप द

रही थी हपराट पाजी क साथ कतवककतसत होती lsquoबजमआ पकतबिक सफीयरrsquo की दकयाएा भारतद की सवाभाकतवक

सफरतम ततकाि ही एक फ टसी र बदिन िगती ह और दकयातरक होना चाहती ह ऐस ही सरय

पराचयकतवदया क पाकतडतो क िारा जगाय गए कतरथकीय परत भी आकर सर पर सवार हो जात ह पराचयवाद

दकसी परत-कतवदया स कर न था दखना चाकतहए दक भारतद की रचनाओ र कहाा परतो की दकतनया र यथाथम

का हसतकषप होता ह उनकी एकतिगरी कहाा कतसथकततयो क अकततरक को अकतभवयि कर रही ह जस भारतद की

lsquoअाधर नगरीrsquo ऐन हरार वक़त र राजयसतता का रपक बन जाती ह यह रपक राजयसतता र अनतरनमकतहत

हहासा की अकतनवायमता और नयाय क भरर का परहसन भी ह

२ धरम सधार पर कतवचार सभा

िहमो सराज या दयानाद सरसवती को खद भारतद कस दख रह थ इसका पता हर lsquoसवगम र कतवचार

सभा का अकतधवशनrsquo22 नारक एक वयागय रपक स चिता ह सवारी दयानाद सरसवती और कशवचादर सन

जब ररन क बाद सवगम पहाच तो ldquoवहाा एक बर बड़ा आनदोिन हो गयाrdquo रतय क कछ ही सरय पहि कतिखा

गया यह वयागय रपक अपन सरय क धरम सधार आादोिनो क चररतर की वयाखया करता ह सबस पहि

इसका परकाशन किकतत स कतनकिन वािी परकततकतषठत हहादी पकततरका lsquoकतरतर कतविासrsquo (जन १८८५) र हआ था

िहमो सराज और आयम सराज क आनदोिनो को भारतद इस सरय तक आकर एक तटसथ आिोचकीय दकतषट

स दखन का परयास करन िग थ सवगम र एकबारगी पदा हए इस आनदोिन र रोट तौर पर दो खर बन

गए एक इनका परशासक था दसरा हनादक पहिा कतिबरि ह दसरा काजरवरटव इन दोनो खााचो र

अनदफट एक तीसरा दि ह जो वषणव आतराओ का ह इस दि क सासथापक तो कतिबरि थ पर अब य

lsquoरकतडकलस कया रहा रकतडकलस हो गए हrsquo कतनकतशचत रप स इन रहा रकतडकलस आतराओ र हर सवया भारतद

22 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन सा- करिा परसाद परसा- नारवर हसाह पषठ- ८२-८६ नशनि बक टरसट इाकतडया नई ददलिी- २००६

(आग इस िख क उदधरणो को कतबना पाद रटपणणी क ददया गया ह)

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को भी कतगन सकत ह वयासदव एक ऐस बकतदधजीवी क रप र सारन आत ह जो दकसी का भी पकष िन स

बचत ह पर उनका रान दोनो खरो र ह ldquoकतबचार बढ़ वयासदव को दोनो दि क िोग पकड़-पकड़ कर ि

जात और अपनी अपनी सभा का lsquoचयररनrsquo बनात थ और बचार वयास जी अपन पराचीन अवयवकतसथत

सवभाव और शीि क कारण कतजसकी सभा र जात थ वसी ही विता कर दत थrdquo कतिबरिो की तिना र

का जरवरटव दि जयादा रजबत था कयोदक उनह सवगम क जरीदारो का सहयोग परापत था काजरवरटव दि की

आतराएा साकीणम कटररपाथी आतराएा थी य आतराएा उन परान िरान क ऋकतष रकतनयो की आतराएा ह जो

ldquoयजञ कर करक या तपसया करक अपन-अपन शरीर को सखा-सखाकर और पच-पच कर ररक सवगम गए हrdquo

करमकााड और वरत उपवास आदद को भारतद वही तक सही रानत थ जहाा तक व शरीर को कषट न पहाचाएा

कठोर दह साधना करन वाि इन ऋकतष रकतनयो की आतराएा सधारो क कतखिाफ थी और इनका साथ दन

वाि जरीदारो र lsquoउदार िोगो की बढ़तीrsquo स अपना रान-अकतभरान और बि कतछन जान का डर था

कतिबरि दि भिो की आतराएा या तो सावमजाकतनक जीवन क उचच रलयो या आदशो क सापादन क चित या

पररशवर की भकति स सवगम र गयी थी

सराज सधार और वयकतिक परर रिक भकति- कतिबरि कतवशवदकतषट को भारतद इसी पररपरकषय र दख

रह ह रकतडकि वषणव दि भिो क कतिए वषणव होन रातर स य चीज पहि स ही उपिबध थी भारतद क

कतिए वषणवता सवाभाकतवक रप स कतवशवदकतषट ह पर रकतडकि वषणव इस सवाभाकतवक उदारता को

राजनीकततक रप दन वाि ह वषणव उदारता का और उसक भावावग का राजनीकततकरण करन वाि रहा

रकतडकि इस तरह भारतद क कतिए वषणवता की आधकतनक वयाखया र सराज सधार वयकतिक परर रिक

भकति और राजनीकतत तीनो का lsquoएकाrsquo ह इस एका क रकतडकि परयास क कतिए जनरत या िोकरत का

कतनरामण आवशयक ह भारतद की रकतडकि वषणवता ही lsquoसब उननकतत का रिrsquo ह यह एक िोककतपरय

वयावहाररक कतवचारधारा क रप र आकर गरहण करन वािी वषणवता ह यह रकतडकि वषणवता धरम का

राजनीकततकरण ह

काजरवरटव दिभिो को दवताओ का सरथमन परापत था य दवता ही सवगम क जरीदार थ अपन

अपन तरीक स इन दवताओ न काजरवरटव दि की सथानीय शाखाएा भी खोि िी और वहाा इनक पकष र

lsquoपरकाश सभाएाrsquo होन िगी कतिबरि दि वािो क पकष र कवि इस lsquoकतहनद सवगमrsquo क िोग नही थ ldquoइधर

lsquoकतिबरिrsquo िोगो की सचना परचकतित होन पर रसिरानी-सवगम और जन सवगम तथा दकसतानी सवगम स पगमबर

कतसदध रसीह परभत कतहनद सवगम र उपकतसथत हए और lsquoकतिबरिrsquo सभा र योग दन िग बका ठ र चारो ओर

इसकी धर फि गयीrdquo अिग अिग सवगम कतवकतभनन धाररमक पहचानो की ओर इशारा करता ह बका ठ कतहनदओ

का सवगम ह और यह नया धरम आनदोिन रखयतः कतहनद धरम की एक बड़ी पहचान क भीतर ही पदा हआ ह

20

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग क तीन कतनकतहताथम वसधा डािकतरया न भारतद यग क सनदभम र नोट दकय ह23 पहिा

एक पराक औपकतनवकतशक lsquoकतहनद अथमrsquo जहाा हहादसतान का हर बाहशादा शाकतरि था दसरा परसपर कतभनन

धाररमक रतो और आसथाओ की कतनकट अातरकम या क अथम को वयि करता ह कतजसक आराकतभक साकषय सलतनत

कािीन ऐतहाकतसक वतताातो र कतरित ह यहाा यह शबद lsquoतकम rsquo क सरानाातर उपयोग र आया था और

सारानयतः रसिरानो क बरकतखिाफ उपयोग दकया जाता था आरमभ र यह धाररमक कर साराकतजक-

राजनीकततक अथो र जयादा परयि होता था अागरजी राज क साथ यह दसरा अथम धरम स अकतनवायमतः जड़कर

lsquoकतहनदवादrsquo की कतवचारधारा र बदि गया जमस कतरि आदद क इकततहासो र lsquoकतहनदकािrsquo और lsquoरसिरान

कािrsquo की ऐकततहाकतसक कलपना क साथ कतहनद शबद जड़ गया था भारतीय भी रसिरानो को सारन कर

lsquoकतहनद पीकतड़त गराकतथrsquo क कतिए इस शबद का इसतराि करन िग कतहनद शबद का तीसरा अथम राषटर की

अवधारणा स जड़कर बन रहा था आरथमक राषटरवाद और अागरजी राज की यातना की साझी सरकतत स बनन

वाि इस तीसर अथम का रतिब था- lsquoजो कतहनदसतान र रह वह कतहनदrsquo रारकतविास जी भारतद क यहाा

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग को इनही अथो र ित थ पर वसधा डािकतरया का कहना ह दक यह तीसरा अथम दसर क

वयापक परभाव र था तीनो अथो की अातरकम या क बार र डािकतरया न कतिखा ldquoतीसरा अथम या राषटरवादी

अथम कभी भी अपन धाररमक साकताथो स परी तरह छटकारा नही पा सका इस पद की परयकति उननीसवी

सदी र अकतसथर बनी रही और इसक रखतकतिफ रायनो र आपसी जड़ाव कायर रहा बावजद इसक दकसी

परदतत सनदभम र lsquoकतहनदrsquo क पराथकतरक अथम को कतनधामररत करना साभव ह यदद एक बार यह तय हो जाय दक

इिाकाई धाररमक राषटरीय र स दकस आधार पर यह पद परयोग र आ रहा ह और lsquoअनयrsquo की भकतरका र

दकस रखा जा रहा ह चाह वह अनय जसा दक परानी इिाकाई परयकति र ददखता ह फारसी या तकी हो

या रसिरान (कतजस इस िरान र भी कई बार सरह क हवाि स तकम ही कहा जाता ह) या दफर अाततः

औपकतनवकतशक सवारी िदकन यह बात ददराग र रखना जररी ह दक धाररमक सरदाय को कतनरदमषट करन

वािी दसरी परयकति अतयात परभावी सनदभम-हबाद बनी रहती हrdquo24

इस सनदभम र दख तो कतिबरि दिो क सरथमन र शाकतरि lsquoअनयrsquo कतहनद धरम क सधारवाद क सरथमक

ह और lsquoसधारोrsquo र छपी वकतशवक भावनाओ को सरथमन दन पहाच ह का जरवरटव दिो की lsquoअनयताrsquo यहाा नोट

करन िायक ह इस अनयता र साराती जरीदार और करमकााडी िाहमणवाद का बिाक ह जबदक कतिबरि

दकतषट क आसपास एक lsquoसायि रोचrsquo की कलपना की गयी ह धयान रखना चाकतहए दक भारतद क रकतडकि

वषणव इस lsquoसायि रोचrsquo क बाहर ह उनका lsquoएबसटकतनजरrsquo वषणव होन क चित नही बकतलक रकतडकि या

23 वसधा दिकतरया कतहनद परमपराओ का राषटरीयकरण भारतद हररशचादर और उननीसवी सदी का बनारस अन साजीव करार योगनदर दतत पषठ-

४०-४२ राजकरि पपरबकस नई ददलिी- २०१६

24 वही पषठ- ४२

21

रहा रकतडकि होन क चित था कतनकतशचत रप स सवगम सासद का रपक ह और सवगम का राजा ईशवर

कतनषपरभावी हो गया ह और जनता सवया जनरत क िारा कतनणमय कतसथर करन पर जोर दती ह जनरत क

िारा lsquoसलफ गवनमरटrsquo का परयास सबस पहि वषणव भिो न दकया था और आज क कतिबरलस उसी को

आग बढ़ा रह ह ईशवर क पास दोनो दिो क िोगो न जब अपन अपन ररोररयि तयार कर भज तो ईशवर

न दोनो दिो क डपयटशन को बिाकर कहा ldquoबाबा अब तो तरिोगो की lsquoसलफगवनमरटrsquo ह अब कौन

हरको पछता ह जो कतजसकी जी र आता ह करता ह अब चाह वद कया सासकत का अकषर भी सवपन र भी न

दखा हो पर धरम कतवषय पर वाद करन िगत ह हर तो कवि अदाित या वयवहार या कतसतरयो क शपथ

खान को ही कतरिाय जात ह दकसी को हरारा डर ह कोई भी हरारा सचचा lsquoिायकrsquo ह भत परत ताकतजया

क इतना भी तो हरारा दजाम नही बचा हरको कया कार चाह बका ठ र कोई आवहर जानत ह चारो

िड़को (सनक आदद) न पहि स ही चाि कतबगाड़ दी ह कया हर अपन कतबचार जयकतवजय को दफर राकषस

बनवाव दक दकसी का रोकटोक कर चाह सगन रानो चाह कतनगमन चाह ित रानो चाह अित हर अब न

बोिग तर जानो सवगम जानrdquo

काजरवरटव दिभिो न दयानाद और कशवचादर सन पर कया कया आरोप िगाय यह दख िना

चाकतहए दयानाद को सवगम र सथान नही कतरिना चाकतहए कयोदक १ इसन पराणो की हनादा की २ ररतमपजा

की हनादा की ३ वदो का अथम उलटा-पलटा कर डािा ४ दस कतनयोग करन की कतवकतध कतनकािी ५ दवताओ

का अकतसततव कतरटाना चाहा (दवताओ याकतन जरीदार) ६ इसन धरम कतवपिव दकया और आयामवतम को धरम

बकतहरमख दकया पकतशचरोततर परानत क परकततकतनकतध क रप र lsquoकाशी क कतवशवनाथ जीrsquo न lsquoउदयपर क एकहिाग

जीrsquo पर दयानाद क सरथमन का आरोप िगाया कतवशवनाथ जी काजरवरटव दिो की तरफ स यह आरोप िगा

रह थ परब की अपकषा पकतशचरी इिाको र आयम सराज क परभाव की चचाम क सनदभम र एकहिाग जी का

जवाब धयान दन िायक ह कतवशवनाथ जी न जब एकहिाग जी को कतधककारत हए कतिबरिो क साथ कतरि जान

को कहा तब एकहिाग जी न कहा ldquoभाई हरारा रतिब तरिोग नही सरझ हर उसकी बरी बातो को न

रानत न उसका परचार करत कवि अपन यहाा क जागि की सफाई का कछ ददन उसको ठका ददया बीच

र वह रर गया अब उसका राि रता रठकान रखवा ददया तो उसका बरा दकयाrdquo यह एकहिाग जी

दफ़िहाि सवारी जी क दि क सभापकतत बन ह आकतखर इनहोन अपन यहाा क दकस lsquoजागिrsquo की सफाई का

ठका सवारी जी को ददया था यह जागि छोट-रोट धाररमक समपरदायो और रतो का जागि था एकहिागी

जी और काशी क कतवशवनाथ जी दोनो ही िाहमणीकत शवरत क धाररमक परतीक ह पर जहाा काशी क

कतवशवनाथ शर स ही दयानाद क कतवरोधी थ वही एकहिाग जी रणनीकततक रप स दयानाद क पास गए थ यह

साकीणम कटररपाथ क भीतर का कतववाद था यह बात गौर करन िायक ह दक जगननाथपरी र जब भरव की

22

रौजदगी का कतववाद भारतद क सारन आया था उस सरय उनहोन इस बात का परतयाखयान दकया था दक

भरव की परकततरा अनाददकाि स वहाा ह भारतद न पराण आदद स साकषय दकर यह परराकतणत दकया दक

कषण ही एकरातर उपासय ह तिवार जी न इस घटना का उलिख करत हए कतिखा ह दक ldquoदकसी वयकति न

lsquoतहकीकातपरीrsquo दकताब दकखकर बताया दक वहाा पहि भरो की पजा होती थी वषणवो न उसकी ररतम

उखाड़ फ की थी बाद र पाडो न जगननाथजी (कतवषण) क साथ भरो को दफर स परकततकतषठत दकया यह रारिा

काशी धरमसभा क सारन १८७० र आया भारतद न धरम साबाधी पसतक र lsquoतहकीकातrsquo जस फारसी शबद

की आिोचना करत हए कतवकतभनन धरमगराथो स परराण जटाकर दो बातो पर जोर ददया एक इसका परराण

नही कतरिता ह दक वहाा जगननाथजी क साथ पहि भरो की भी ररतम थी कतजस वषणवो न उखाड़ फ का दो

अगर वह थी भी तो यह उकतचत था या नही- इसपर कतवचार होना चाकतहए भारतद न अपनी वयवसथा दत

हए कतिखा दक भरो कतवषण स बहत छोटा दवता ह इसकतिए यह कतवषण क साथ बठाया नही जा सकता

lsquoदसर भरव कापाकतिको क दवता ह उनका पजन वषणव-सरातम सबको कतनकतषदध हrsquo गौरतिब ह दक भारत

र कतवकतभनन सथानीय धरो क परकतत कतजतन असकतहषण और फा डारटकतिसट आयमसराजी थ उतन ही काशी क

सनातनी भी थrdquo25

सथानीय धरम-रतो क जागि को साफ़ करन र आयमसराकतजयो और काशी क सनातनी पाडो क इस

गठजोड़ स भारतद भी वादकफ थ िदकन आयमसराकतजयो क साथ उदयपर क एकहिाग जी का रोचाम कसा

था इस भी भारतद बखबी सरझ रह थ सथानीय रतो क साथ भारतद का समबनध कसा था इसका पता

उनक छोट-छोट यातरा सासररणो स भी चिता ह lsquoसरय पार की यातराrsquo26 र रहदावि का हाि बयान करत

हए lsquoपराणनाथrsquo क रिहब का भारतद आशचयम क साथ उलिख करत ह भारतद क ही शबदो र ldquoयहाा एक

पराणनाथ का रिहब ह और दस बीस िोग उसक रानन वाि ह य िोग एकादशी तीथम वगरह को नही

रानत और सन सनाय दो तीन शलोक जो याद कर कतिए ह बस उसी पर चर हो lsquoरदीनासया शारदाा शताrsquo

और lsquoगोकतवनदrsquo lsquoगोकिानाद रककशवरrsquo यह शलोक पढ़ क कहत ह दक वद र रकका रदीन का वणमन ह ऐस ही

बहत वाकतहयात बात करत ह और कोई दकतना भी कह कछ सनत नही कहत ह दक गोिोक का नाश ह

और गोिोक ऊपर एक lsquoअखाड रणडिाकारrsquo िोक ह उसर रर कषण ह इनका रिहब एक पराणनाथ नारक

एक कषतरी न पनना र करीब तीन सौ बरस हए चिाया थाrdquo भारतद इस अजीबो गरीब lsquoरिहबrsquo का कषण स

कया साबाध ह यह सोचकर ताजजब र थ इस lsquoरिहबrsquo क गरनथ र भारतद न एक शलोक बलिभाचायम का

दखा तो उनका राथा और घर गया ldquoकि रिहब का हाि हरन नीच कतिखा था उसका अचछी तरह स

25 वीरभारततिवार रससाकशी १९वी सदी का नवजागरण और पकतशचरोततर परानत पषठ- १५२ सारााश परकाशन ददलिी- २००६

26 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन पषठ- १३७-३८

23

हाि दरयाफत दकया तो रािर हआ दक हरार ही रिहब की शाखा ह इनक गराथो र हरन एक शलोक शरी

रहापरभजी की सबोकतधनी की काररका का दखा इसी स हरको सादह हआ दफर हरन बहत खोद खाद कर

पछा तो वह साफ़ रािर हआ दक इसी रत स यह रत कतनकिा ह कयोदक एक बात वह और बोि दक हरारा

रत शरी बलिभाचारज की टीका र कतिखा ह इन िोगो क उपासय शरीकषण ह और एकादशी शािगरार

ररतमपजा तीथम दकसी को नही रानत इनक पकतहि आचायम दवचाद जी थ जो जाकतत क कायथ थ और दसर

पराणनाथ जी जो कचछ क कषतरी (भारटया) थ हरार ही रत की शाखा सही पर कतवकतचतर रत ह वषणव होकर

ररतमपजा का खाडन करन वाि यही िोग सनrdquo वणमन स सपषट ह दक सात और कतनगमण पाथो क साथ वषणव

कतवचारधारा क आदान-परदान का साकतशलषट इकततहास भारतद क कतिए ताजजब की चीज थी पर इन सबक बीच

आकतखर उनहोन इसक वषणव रि का पता िगा कतिया और वषणवता की इस धाररमक कतवचारधारा र उनहोन

ररतमपजा का कतवरोधी होना भी शाकतरि रान कतिया भारतद न ररतमपजा क सरथमन र बड़ बड़ िख कतिख

थ इसकतिए असाभव नही दक कषण क परकतत परररिक भकति क कतिए ररतम की जररत पर उनहोन कछ पछा

जरर होगा िदकन lsquoकोई दकतना भी कछ कह सनत ही नहीrdquo आग चिकर lsquoवषणवता और भारतवषमrsquo र

वह बड़ कतवशवास क साथ घोकतषत करत ह दक ldquoपहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद कतजतन पाथ ह सब

वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और भारतवषम इन पाथो स छाया हआ हrdquo27 तब वह वषणवता और

िोकरतो और रधयकािीन पाथो क भीतर पहि स सदकय एक ऐकततहाकतसक परदकया का सारानयीकरण कर

उसका नार lsquoवषणवrsquo रख रह थ अकारण नही दक उसी िख र वषणव वयापकता को बतान क कतिए

परचकतित lsquoनारोrsquo का साकषय पश दकया गया ह वयकतियो स िकर वरत और उपवासो तक यह परभतवशािी

सारानय बोध की कतवचारधारा थी कतिवदी जी रधयकािीन वषणवता को िोकधरम कहत थ भारतद

उननीसवी सदी क िोकधरो को वषणव कहत ह

काजरवरटव दिो की तरफ स कशवचादर सन पर िगाय गए आरोप थ १ वद पराण सबको कतरटा

डािा २ दकसतान रसिरान सबको कतहनद बनाया ३ खान पीन का कतवचार कछ न बाकी रखा ४ रदय की

तो नदी बहा दी आयम सराकतजयो क ऊपर रखयतः आरोप lsquoआयामवतम को धरम बकतहरमखrsquo करन का ह धरम

बकतहरमख अथामत सनातन धरम स कतवरख उनहोन कवि धरम क भीतर कतवपिव दकया परनत िहमो सराज न तो

lsquoभारतवषम का सतयानाशrsquo कर डािा इनहोन तो पराणो क अिावा वदो को भी कतरटा डािा lsquoआयामवतमrsquo की

जातीय पकतवतरता नषट करक दकसतान रसिरान जस lsquoकतवदशी ततवोrsquo को घर र घसा कतिया कटररपाथी

करमकााकतडयो क कतिए इनक साथ रणनीकततक तौर पर भी रोचाम बनान वािा कोई एकहिाग जी तयार नही

था सनातकतनयो िारा दकया गया यह बारीक भद खद कतिबरि दिभिो क भीतर का भी अातरवमरोध था

27 भारतद वषणवता और भारतवषम वही पषठ-७६

24

कतिबरिो की सभा र भी दो दि हो गए थ एक सवारीजी क सरथमको का दि था और एक कशव

क सरथमको का कतहनद कतिबरिो की आताररक एकता कतिकतवभाकतजत थी दयानाद क सरथमको क अनसार सवारी

जी न कतहनदओ की आतरा को जगाया था उनह सफतम बनाया वरना तो आयामवतम क आिसी और रखम

रोहकतनदरा र ही कतनरगन थ इस तरह रखम और आिसी सारानयजनो को lsquoिाहमणो क फा द स छड़ायाrsquo िाहमणो

की तिना भारतद न lsquoपादररयोrsquo स की ह जो lsquoवयथम परजा का दरवय खान वाि हrsquo आयम सराज न सासथाकत

परोकतहतवाद पर हरिा दकया था जो भारतद क कतिए रितः जनता क पसो पर पिन वािा परजीवी वगम

िगता था और तो और आधकतनक कतवजञान क आग जो lsquoआयोrsquo की नाक कटी जा रही थी उस भी सवारी जी

न बचा कतिया उनहोन वदो र भी रि तार करटी कचहरी आदद ददखाकर कतहनदओ र आतरसमरान पदा

दकया दसरी ओर कशव क सरथमको का कहना था दक ldquoधनय कशव तर साकषात दसर कशव हो तरन बाग

दश की रनषय नदी क उस वग को जो कशचन सरदर र कतरि जान को उचछकतित हो रहा था जञान करम का

कतनरादर करक पररशवर का कतनरमि भकति रागम परचकतित दकयाrdquo lsquoजञान करम का कतनरादरrsquo करक भी lsquoकतनरमि

भकति रागमrsquo का जो परवतमन कशव न दकया उसस ही ईसाई lsquoअनयताrsquo का साथमक परकततरोध साभव हआ lsquoरनषय

नदी का आवगrsquo भावावग ह इसी बात को दसर शबदो र कह तो भाव जगत क सवाभाकतवक वग को भगवत

भकति की शदध lsquoअनयताrsquo की ओर रोड़कर उस कतवदशी ईसाई lsquoअनयताrsquo क रागम पर जान स रोक ददया इस

कायम क कतिए वद पराण समरत lsquoजञान-करमrsquo क रागो का कतनरादर अगर करना पड़ा तो भी वह उकतचत ही था

वषणव भकति क रधयकािीन सवरप की जो वयाखया आग चिकर की गयी उसक आराकतभक कतचनन हर यहाा

दख सकत ह कहना न होगा दक भारतद का अपना अनभव भी यहाा बोि रहा ह

शासतरीय काजरवरटव पाटी र दवताओ क अिावा यजञवलकय जस औपकतनषददक ऋकतष क साथ-साथ

नारायण भटर रघनाद भटराचायम राडन कतरशर जस कतनबाधकारो और टीकाकारो का जरघट भी था इसक साथ

साथ इसिारी सवगम स आय हए कटररपाथी कतशया िोगो का भी सरथमन उनह परापत था इस परकार कटररपाथ का

दवताओ (जरीदारो) िाहमणो (पादररयो) जञानरागी औपकतनषददक ऋकतष रधययगीन कतनबाधकारो और

कतवदशी कतशया िोगो का एक वकतशवक रोचाम बन रहा था दसरी ओर कतिबरि दि र चतनय परभकतत आचायम

दाद नानक कबीर परभकतत भि और जञानी िोग भी शाकतरि थ इसक अिावा काजरवरटव दि क

कतवदरोकतहयो को भी कतिबरिो न अपन यहाा जगह दी य कतवदरोही थ अितवादी (या नववदााती) भाषयकार

पाचदशीकार और कोई कतरसटर िडिा इन दोनो िोगो पर शर र का जरवरटव दि वािो न बहत हरि

दकय परनत अात र इनह कतिबरिो न अपन यहाा जगह द दी धयान रखना चाकतहए दक भारतद अपन सापरदाय

क अनरप अित वदाात या रायावाद क घोर आिोचक थ सन १८७३ र हररशचादर रगजीन क पहि ही अाक

र भारतद न शााकतडलय भकति सतरो का अनवाद lsquoभकति सतर वजयातीrsquo नार स परकाकतशत दकया भकतरका र

25

भारतद कतिखत ह ldquo दखो आज वसात पाचरी ह इसस बहत स िोग आर क रौर वा फिो क गचछ िकर

तरस कतरिन आवग तो र भी यह एक फिो की वजयाती रािा बना कर िाया हा अागीकार करो वजयाती

रािा बनान का यह हत ह दक वनरािा होगी तो होिी क खि र अरझगी और इसक कतसवाय इस वजयाती

स कतनशचय करक जञानाददक को जय करना ह पर पयार बहत साभि कर यह रािा पहरना टट न जाए

कयोदक सत कचचा ह और ककतियाा तािी और कोरि ह इस स कमहिान का भी भय ह जो हो इस वसात

पाचरी को तयोहारी रझ यही दो दक इस सतयानाशी lsquoअहरrsquo िहमवाद lsquo को पणमरप स नाश करक और भी

सब बातो र इस नव-वसात र भारतवषम की सब आपकतततयो का बस अात करो और अपन भिो क कतचतत र

नव पलिव दफर स िहिह करो जो सदा एक रस रहrdquo28 lsquoएकरसrsquo भकति क कतिए जररी ह दक जञानवाद

अहर िहमवाद को जड़ स उखाड़ फ का जाय कषण को अरपमत अपनी वजयाती रािा स भारतद जञानाददक

को जय करना चाहत ह एक ओर यह पकतषटरागी परापरा क lsquoवीर वषणवrsquo भारतद का परर कतनवदन ह दसरी

ओर lsquoनव-वसातrsquo र भारतवषम की सब आपकतततयो को नाश करन की सारथयम रपी lsquoउपहारीrsquo का साकलप भी

ह lsquoभारतद भारतवषम की सब आपकतततयोrsquo को दर करन की राह र एक बड़ी बाधा अित क जञानवाद को

रानत ह भकति का lsquoएकरसrsquo पहि भी इसक परभाव स ररझाता रहा ह भारतद का साकलप सापरदाय क

परान कतवरोधो क बावजद बन रहन वाि इस अितवाद का पणम सफाया करन का ह जबतक यह न कतरटगा

परररिा भकति क lsquoकमहिान का भयrsquo बना रहगा भकति सतरो र उपासना कााड को परर कतसकतदध का हत

बताया गया था पर भारतद दख रह थ दक उपासना कााड का परचार कतवरि हो गया ह इसी परचार क

कतनकतरतत उनहोन इन सतरो का भाषा र अथम परचार दकया था १८७३ र ही हररशचादर रगजीन का एक

समपादकीय कतनकिा कतजसका शीषमक था- lsquoभकति जञानाददक स कयो बड़ी हrsquo इस िख र भी उपासना रागम

की रहतता का परकततपादन दकया गया ह तकम और जञान को करम की शकतदध और उपासन की परर कतसकतदध क

रासत र कवि एक चरण बताया गया ह वसधा डािकतरया न भारतद क आराकतभक साापरदाकतयक परचार

परसार क कायो र कतनगमकतनयो को बाहर रखन का उपकर नोट दकया था29 यहाा कतनगमकतनए कबीर आदद lsquoभि

और जञानीrsquo कतिबरिो क सरथमक ददखाए गए ह वषणव भकति क राषटरीय चररतर र य बाहर नही थ उनकी

एकता का आधार उनक lsquoकतिबरि रिrsquo र ह सावमजकतनक उचच भाव का सापादन और भकति इन दोनो क साथ

अित वदााती या जञानाददक- सनातनी परापरा क कतवदरोकतहयो की जगह भी कतिबरि दि पाकतथयो र थी

कतिबरि वाि ही झगड़ क कतनपटार की अजी पररशवर को दन गए थ पर पररशवर अपनी

परतीकातरक हो गयी कतसथकतत स खजिाय हए थ यह सवोचच अदाित थी पर साथ ही साथ शकतिहीन

28 भारतद गराथाविी खाड- ५ पषठ ११३

29 वसधा डािकतरया पषठ ३४२

26

राषटराधयकष की कलपना भी कतजस कतहनद सवगम क य राषटराधयकष ह वहाा दकसी दकसर की सलफ गवनमरट चनन

की परणािी आ जान स ईशवर की एकाकतधकारी शकतियाा कतछन गयी ह िोग जनरत कतनरामण क िारा सही

और गित की पहचान करन िग थ इसकतिए थोड़ा खजिाय तो रहत ही होग lsquoअब कौन हरको पछता

ह तर जानो सवगम जानrsquo परनत साकट गहरा था यदयकतप कतिबरि िोगो की सभा भी धरधार स जर

रही थी पर काजरवरटव दि पाकतथयो की सरकार र पठ थी दवता सब भी उनक साथ थ इसकतिए पररशवर

क पास जररी नयाय का परशन उठाया गया था नयाय दक इन दो रहापरषो को सवगम र जगह कतरिनी

चाकतहए या नही सराज र इनक नकततक उचच आदशो क अवरलयन का परचार काजरवरटव कर रह ह इस

परचार क कारण जनता अपनी निरो स पहचानन र सकषर नही ह ऐसी कतसथकतत सवगम र पहि नही आई

थी नई कतसथकततयो क नए रानदाड कया होग िाकतहर ह नयाय और नकततकता को एक वकतशवक सवीककतत

चाकतहए इसकतिए पररशवर न इस कतवषय पर कतवचार क कतिए जो ककतरटी चनी वह गौर करन िायक ह इस

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo र ldquoराजा राररोहन राय वयास दव टोडररि कबीर परभकतत कतभनन-कतभनन रत क िोग चन

गए रसिरानी- सवगम स क lsquoइरारrsquo दकसतानी स िथर जनी स पारसनाथ बौदधो स नागाजमन और

अफीका स कतसटोवायो क बाप कोrdquo चना गया कतहनद सवगम स नवजागरण क अगरदत वयासदव जस

बौकतदधकिखक टोडररि जस राजनीकततजञ और धरम-ररमजञ कबीर जस जञानी-भि पराचीनो र कवि वयास

दव ह बाकी दो lsquoरधयकािrsquo क और एक lsquoआधकतनकrsquo काि क वयकति ह उधर यरोपीय नवजागरणधरमसधार

क परणता िथर को भी बिाया गया ह और बौदधो की तरफ स परर कतनषधवादी नागाजमन भी ह पर य

अफीका क कतसटोवायो धरो की अकतसरता क साथ-साथ यह अफ़ीकी सवगम कतनकतशचत रप स अफीका की छकतव

पराचीन आददवासी सासककतत वाि एक lsquoकािrsquo रहादश क रप र गढ़ी गयी थी यह अफ़ीकी सवगम साभवतः

आददवासी धाररमक रानयताओ की ओर इशारा करता ह यह भी धयान दन िायक ह दक राजा राररोहन

राय िथर और कबीर इन तीनो क साथ lsquoनवजागरणrsquo की कोई न कोई पररकलपना ठठ सरकािीन कतवरशो

क क दर र भी ह कई अथो र अकबर िारा आयोकतजत होन वािी lsquoसिह-ए-किrsquo जसी धरम सभाओ की एक

रोहक कलपना भी भारतद को रही होगी टोडररि की उपकतसथकतत अकारण नही ह

अकबर को िकर भारतद की इकततहासदकतषट कसी थी इसकी एक झिक हर १८८४ र छपी उनकी

lsquoबादशाह दपमणrsquo की भकतरका र ददखती ह इस गरनथ र उन िोगो का चररतर-कतचतरण दकया गया था ldquoकतजनहोन

हरिोगो को गिार बनाना आरमभ दकया इसर उन रसत हाकतथयो क छोट-छोट कतचतर ह कतजनहोन भारत क

िहिहात हए करिवन को उजाड़कर-पर स कचिकर कतछनन-कतभनन कर ददया रहमरद रहरद अिाउददीन

अकबर और औरागजब आदद इनर रखय ह पयार भोि कतहनद भाइयो अकबर का नार सनकर आपिोग

चौदकए रत यह ऐसा बकतदधरान शतर था दक उसक बकतदधबि स आजतक आपिोग उसको कतरतर सरझत ह

27

दकनत वह ऐसा ही नही उसकी नीकतत अागरजो की भााकतत गढ़ थी रखम औरागजब उसको सरझा नही नही तो

आज ददन हहादसतान रसिरान होता कतहनद-रसिरान र खाना-पीना बयाह-शादी कभी चि गयी होती

अागरजो को जो बात नही सझी वह इसको सझी थीrdquo30 कतनकतशचत रप lsquoबकतदधरानrsquo दशरन स सीखन को बहत

कछ कतरिता ह अकबर की दीन-ए-इिाही क परयोग स भारतद भी बहत कछ सीख रह थ रधयकािीन

इकततहास क बार र रकतसिर शतर की छकतव का कतनरामण पराचयकतवदयाकतवदो क िारा दकया जा रहा था इकतियट

आदद इकततहासकारो न जो दकतषट कतवककतसत की उसका परभाव बहत गहरा था पर इस इकततहासिखन क साथ

साथ भारतद क कछ दशी सरोत भी थ अिग-अिग रहापरषो की चररताविी कतिखन की पररणा भारतद न

कतजतना अपनी वषणव भकति की परापरा स पाया था उतना ही इसिारी इकततहास िखन की परापरा स भी

lsquoबादशाहदपमणrsquo की भकतरका र भारतद कतिखत ह ldquoरर पररातारह राय कतगरधरिाि साहब जो यवनी कतवदया

क बड़ भारी पाकतडत और काशीसथ ददलिी क शाहजादो क रखय दीवान थ उनकी इचछा स ददलिी क परकतसदध

कतविान सययद अहरद न एक ऐसा चक बनाया था कतजसर तरर स िकर शाह आिार तक सब बादशाहो क

नार आदद कतिख थ उस फारसी गरनथ स बहत सी बात इसर िी गयी ह इस कारण तरर पवम क बादशाहो

का वणमन इतना परा नही ह कतजतना तरर क पीछ ह दफर रर रातारह राय कतखरोधरिाि न बहादर शाह

क काि क आरमभ तक शष वतत सागरह दकयाrdquo31

अरणदव जी अपन एक िख र भारतद क आराकतभक अकबर परर का कतिक दकया ह १८७२-७४ क

आसपास भारतद अकबर को रहान शासक रानत थ जबदक औरागजब को कतहनदओ का दशरन नाबर एक

भारतद न औरागजब की तिना र अकबर की रहानता को परराकतणत करन क कतिए रारदास कछवाह क एक

शलोक को अपना आधार बनाया ह इस शलोक का भावाथम भारतद क शबदो र इस परकार ह ldquoजो सरदर स रर

तक पथवी को पािता ह जो रतय स गउओ की रकषा करता ह कतजसन तीथम और वयापार स कर छड़ा ददए

कतजसन पराण सन जो सयम का नार जपता जो योग धारण करता ह और गागाजि छोड़कर पानी नही

पीता उस जिािददीन की जय अाग वाग कहिाग कतसिहट कततपरा कारत (कारटी) काररप अाध कणामटक

िाट दरकतवड़ रहाराषटर िारका चोि पााडया भोट रारवाड़ उड़ीसा रलि खरासान का दहार जमब काशी ढाका

बिख बदखशाा और काबि को जो शासन करता ह ककतियग की रकतहरा स घटत हए वद गउ कतिज और

धरम की रकषा को सगन शरीर कतजसन धारण दकया ह उस अपररय परष अकबर शाह को हर नरसकार करत

हrdquo32 यही अकबर १८८४ र औरागजब स जयादा शाकततर और बकतदधरान शतर र बदि गया lsquoकािचकrsquo क

कतनकतहताथो र यह फरबदि भारतद पर रकतसिर कतवदशीपन और कतहनद शतरता क समपणम बिॉक बनान की

30 बादशाह दपमण भारतद गराथाविी खाड-६

31 वही

32 httpsamalochanblogspotin201209blog-post_9html

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रणनीकतत क दबाव क कारण था और lsquoपरावकततrsquo की कतरथकीयता र भी कतहनदओ को lsquoरहारोहनासतरrsquo क सहार

पहि भी वश र दकया गया था यह एक बारीक चाि थी अकबर की इस चाि को अागरज भी नही सरझ

पा रह थ भारतद की यह परकततदकया औपकतनवकतशक इकततहासिखन क दबाव र थी १८७३ र जब भारतद

न कतशवपरसाद की दकताब lsquoइकततहासकततकतररनाशकrsquo क तीसर खाड की आिोचना की थी तो उनक सारन

रकतसिर शासन की बबमरता और अागरजी राज क सशासन का कतशवपरसाद िारा ककतलपत आखयान था १८८४

र समपणम रकतसिर काि अनधकार यग र बदि गया कततकतररनाशक क पहि खाड र बाब कतशवपरसाद न भी

अकबर की रजहबी उदारता और साराकतजक सधारो की बड़ाई की थी इस परकार हर दख सकत ह दक

ऐकततहाकतसक िखन र पकष और कतवपकष की पनरावकततत एक बाद घर र उिझी हई थी इनक सारन रकतसिर

कतवरोध और अागरजी शासन क कतवरोध का एक कतवसागत फर था और िखक उसर अपनी फौरी जररतो क

कतहसाब स कतरतर और दशरन वािा इकततहास कतिखता था इकततहास ठठ राजनीकततक ततकाि क वशीभत था

जो भी हो धाररमक उदारता और सिह-ए-कि का परयोग एक कतशकषापरद परयोग था यह कतवकतभनन

रतो या कतवशवासो क बीच lsquoजनरतrsquo बनान का एक रधयकािीन परयोग था भारतद lsquoजनरतrsquo क परयोग को

इस तरह दखत थ रानो यह lsquoचािrsquo अगर कारयाब हो जाती तो lsquoआज क ददन हहादसतान रसिरान होताrsquo

भारतद क सारन सरसया वही थी बस वह कवि यह चाहत थ दक कतहनदसतान lsquoकतहनदrsquo हो जाय कतहनद

अथामत वषणव हो जाय वषणवता भारतद क कतिए हहादसतान का नया lsquoसिह-ए-किrsquo था इसकतिए कछ

सावमजनीन रलयो की तिाश उनह भी थी कतसिकट ककतरटी क उपरोि रमबर lsquoएकसअफीकतशयोrsquo रमबर थ

रोर क परान हररकिस जस दवता कतजनहोन धरती स साबाध तोड़ ददया ह व िोग तथा उनही क जस

पारकतसयो क lsquoजरदशतजीrsquo को कोरसपोहडाग ऑनररी रमबर बनाया गया य धरम क रप र रतपराय रतो क

परकततकतनकतध थ ककतरटी न जो ररपोटम तयार की उसका ररम भारतद न ददया ह यह ररम उनक रकतडकि वषणव

पकष का रत था कतिबरि दि और काजरवरटव दि क अपन पकषो स इतर यह नरनायक तीसरा पकष वषणवो

की तरफ स सनाया गया था रकतडकि वषणवो की तरफ स भारतद इस धाररमक आनदोिन क भीतर अपना

ही पकष रखत हए इसका ररम कतिख रह थ ldquoहरिोगो की समरकतत र इन दोनो परषो न परभ की रागिरयी

सकतषट का कछ कतवघन नही दकया वराच उसर सख और सातकतत अकतधक हो इसी र पररशरर दकयाrdquo कतहनद सराज

सधार क परयासो का ररम बतात हए सबस पहि धयान सतरी सधारो पर ददया गया ह साराकतजक करीकततयो

की कतशकार रकतहिाओ क परकतत जो दकतषट उभरकर सारन आती ह उसक रि र धरम की रीकतत स यौन

रयामदाओ की अवयवसथा को दफर स रयामददत करन की चषटा ह कतसतरयो क करागम पर जान का पहिा कारण

ह रनराना परष धरमपवमक न पाना यह कतववाह सासथा की कतवककततयो की आिोचना थी जहाा बाि कतववाह

कतवधवा कतववाह आदद की तरफ इशारा ह धयान रखना चाकतहए दक यहाा बरि कतववाह क बदि कतसतरयो िारा

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lsquoरनराना वरrsquo न चन पान का उलिख ह गभमनाश और बाि हतया क कतखिाफ सधार परयास दसरा

रहतवपणम योगदान ह कतववाह सासथा बीच र भी भाग की जा सकती ह इसकी सवीककतत ह कनया क कतहत र

अातरजातीय कतववाह की सवीककतत ह एक रहतवपणम बात गरओ और पाकतडतो क वयाकतभचार क साबाध र ह

भारतद क सारन पकतषटरागी रहातो और गरओ क वयाकतभचार का अनभव भी इसर शाकतरि ह

१८७४ र ककतववचन सधा र भारतद की एक रटपणणी छपी थी lsquoगर को कसा होना चाकतहएrsquo इसक अिावा

दो वषम पहि lsquoगर और रहातrsquo नार स भी एक रटपणणी कतिखकर वषणव पाडो-परोकतहतो की खिकर

आिोचना की गयी थी तिवार जी न कतिखा ह दक राददरो क भीतर कतसतरयो का यौन शोषण और वयाकतभचार

इतना भीषण था दक दयानाद भारतद क पकतषट सापरदाय को lsquoकषठी सापरदायrsquo कहत थ १८६० क आरमभ र ही

वषणव गोसाइयो क अनाचार और यौन शोषण क कतखिाफ बमबई र एक बड़ा आनदोिन पकतषटरागी

करसनदास रि जी क नततव र हो चका था वषणव बकतनया पषठभकतर स आय करसनदास जी उन नौजवानो

र थ कतजनहोन एकतिफ सटन कॉिज स आधकतनक कतशकषा परापत की थी गोसाइयो और रहाराजो िारा अपन

lsquoसमपरदाय की बह बरटयोrsquo क साथ होन वाि अतयाचार क कतखिाफ उनहोन िख कतिख और समपरदाय क

इकततहास को नए कतसर स सारन रखा पण स आए जदनाथ वजरतन जी रहाराज न करसनदास जी पर

रानहाकतन का रकदरा दायर कर ददया इसी रक़दर स वषणव रहातो की कई सारी बात जनता क सारन

परतयकष हई तिवार जी न इस lsquoरहाराज िाइबि कसrsquo को भारतीय नवजागरण र वषणव गोसाइयो क

दराचार और यौन शोषण क कतखिाफ हआ सबस बड़ा आनदोिन कहा ह भारतद पर इसका बहत परभाव

था यह कस १८६० र हआ था एक दशक बाद जब भारतद सापरदाय क कायो र रत थ उसी सरय कतिख

रह थ ldquoराददर कया होत ह रानो कतसतरयो की खान ह जसी चाकतहए िीकतजय- वराच अचछी सतरी भी वहाा जाकर

कतबगड़ जाती ह आशचयम यह ह दक कतजनको व िोग बटी कहत ह और जो उनक परिोक क रधयसथ ह और

कतजनको वो दीकषा दत ह उन कतसतरयो की ओर व आप ही बरी दकतषट स दखत ह ओर रर पयार कतहनदओ तर

इनक जाि र कब तक फा स रहोग और कया तरको यही सासार स बचावग और इनही क भरोस तरको

भगवान कतरिगाrdquo33

राददरो क धन-ऐशवयम और वयाकतभचार र डब जीवन क जीवात कतचतर हर बनारस क रखाकतचतर lsquoपरर

जोकतगनीrsquo क अिावा lsquoकाशी क छायाकतचतर क दो बर-भि फोटोगराफrsquo र भी कतरित ह यहाा भारतद का वयागय

अपन वषणव सापरदाय की आतरािोचना स सदकय ह lsquoपरर योकतगनीrsquo नाटक र आन वािा चररतर रारचादर

खद भारतद ही थ नाटक का सतरधार कहता ह दक भारतवषम की दीन हीन गकतत क कारण उसका तो

कतवशवास ही ईशवर स उठन िगा ह नाटक क पहि ही दशय र भारतद हर राददर क भीतर कतिए चित ह

33 वसधा डािकतरया िारा उदधत पषठ- ३३७

30

जहाा राददर र कार करन वािा साधारण टहिआ झपरटया हर ददखाई दता ह पजारी बाब अभी तक नीद

स नही जाग ह कयोदक आधी रात तक lsquoबठ क ही-ही-ठी-ठी करा चाह दफर सबर नीद कस खिrsquo कतनकतशचत

रप स यह टहिआ सबह सवर ही राददर र हाकतिर ह िदकन दवता अभी राददर र सोय ह रारचादर

परदशी ह काशी र बाहर स आय ह छकक जी और राखनदास इस रारचादर की आिोचना करत ह इनक

सावादो स पता चिता ह दक बाब रारचादर क यहाा ददन रात नाच गाना हआ करता ह और उनको अपनी

कतवदया का घराड ह दो चार ककतवतत भी बना ित ह पर lsquoककतवतत बनाव स का होव और ककतवतत बनावन कछ

अपन िोगन का कार थोर हय ई भााटन का कार हयrsquo छकक जी कहत ह दक अपन रागम का उनह कछ जञान

तो ह नही बस दो चार बात इधर उधर स सनकर कछ lsquoदकसतानी रतrsquo सीखकर पाकतडत बन दफरत ह

कतनकतशचत रप स य भारतद पर िगन वाि आरोप थ राददर र सवारी धनदास वकतनतादा बभकतकषत पाकतडत

आदद धरम क ठकदार ह इनकी पतनशीि सासककतत को दखकर रारचादर का दःख इन शबदो र वयि होता ह

lsquoहा कया इस नगर की यही दशा रहगी जहाा क िोग ऐस रखम ह वहाा आग दकस बात की वकतदध की

साभावना करrsquo lsquoवददकी हहासा हहासा न भवकततrsquo जस शरआती नाटको र भी करमकााडी परोकतहतवाद की

आिोचना की गयी ह राजा और परोकतहत कतरिकर वहाा जनता का शोषण करत ह जआ रददरा और

रथन की ऐययाश सासककतत क परतीक परोकतहतो का काजरवरटव दि इन परहसनो र रतम होता ह कतचतरगपत यर

स कहत ह ldquoरहाराज य गर िोग इनक चररतर का कछ न पकतछए कवि दमभाथम इनका कततिक रदरा और

ठगन क अथम इनकी पजा कभी भकति स ररतम को दाडवत न दकया होगा पर राददर र जो कतसतरयाा आयी उनको

सवमदा तकत रह रहाराज इनहोन अनको को कताथम दकया ह और इस सरय तो र lsquoशरीरारचनदर जी का

शरीकषण का दास हाrsquo पर जब सतरी सारन आव तो उसस कहग lsquoर रार तर जानकी र कषण तर गोपीrsquo और

कतसतरयाा भी ऐसी रखम दक दफर इन िोगो क पास जाती हrdquo34

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo की ररपोटम र सतरी सधारो क कायो की रहतता बतान क बाद जाकतत वयवसथा पर

इन सधारको का परहार कयो जररी था इस बताया गया ह कठोर जाकतत बनधनो क चित कस हर साि

जाकतत-बाहय होकर जाकतत र वापस आन क दकसी उपाय को न जान lsquoहजारो रनषय आयम पाकति स हर साि

छटत थ उसको इनहोन रोकाrsquo इस परकार इन सधारको न lsquoआयमधरमrsquo क भीतर जो पररवतमन करन चाह

उसस आयो की एकता दफर स बहाि हो गयी इसक अिावा अाधकतवशवासो को इनहोन दर दकया यही नही

बकतलक जहाा िोग lsquoरसिरानी पीर पगमबर औकतिया वीर ताकतजया गाजी कतरयाा कतजनहोन बड़ी ररतम तोड़कर

और तीथम पाटकर आयम धरम कतवधवास दकयाrsquo उनको भी पजन िग थ और lsquoकतवशवास तो रानो कतछनाि का अाग

हो रहा थाrsquo ऐसी िजजाजनक कतसथकतत स िोगो को बाहर कतनकािकर lsquoसार आयामवतम को शदध lsquoिायिrsquo कर

34 दख रारकतविास शराम पषठ १३१

31

ददयाrsquo lsquoिायिrsquo कर ददया गया इसका अथम आयम जाकतत को दफर स िायि करन र था आयम जाकतत क भीतर

कतबगाड़ क चित ही कतनमन जाकततयो का बड़ परान पर पिायन था इस इन िोगो न रोका और इनक परताप

स ही अनक छोट और सथानीय धरम-रतो क भीतर जो lsquoरसिरानीrsquo परभाव घस आय थ उनको दफर स lsquoबड़ी

ररतमrsquo की कतनषठा र िाया जा सका इस परकार कतहनद धरम और वणामशरर क परकतत दफर स िोगो को lsquoिायिrsquo

दकया यह lsquoिायकतिटीrsquo भारतद की रकतडकि वषणवता क जनरत क कतिए भी जररी था तिवार जी जब

आयमसराकतजयो की lsquoकााकततकारीrsquo भकतरका ददखात ह तब आयम सराज िारा आयामवतम को िायि बनान वािी

इस भकतरका की साकतशलषटता पर जयादा बात नही करत भारतद दयानाद क कााकततकारी परयासो र lsquoिायिrsquo

बनान की परदकया उसी वक़त दख रह थ और इसी कारण ररपोटम र दयानाद की आिोचना धयान दन िायक

ह सवारी जी न ldquoजाि को छरी स न काटकर दसर जाि ही स कतजसको काटना चाहा इसी स दोनो आपस

र उिझ गए और इसका पररणार गह कतवचछद उतपनन हआrdquo गह कतवचछद का रतिब कतहनद धरम र गह

कतवचछद जबदक कशवचादर सन क बार र कहा गया दक उनहोन जाि काटकर भकति की उचछकतित िहरो का

पररषकत पथ परकट दकया इस परकार रकतडकि वषणवता की lsquoअनयताrsquo और परररिक भकति क परशसत पथ क

सवीकार का कतनषकषम कतवचार सभा का भी कतनषकषम था धयान दन िायक ह दक कशवचादर की आिोचना उनक

कतचतत कतवकषप क कारण की गयी थी जहाा lsquoईसारसीह आदद उनस कतरित हrsquo य एक दकसर का इिहारी

अनभव था कतजस भारतद अपनी वषणवता स बाहर रखत ह ईशवर न इस ररपोटम पर अपना रत सरकतकषत

रख कतिया और भारतद कतिखत ह ldquoइसको दख कर इस पर कया आजञा हई और व िोग कहाा भज गए यह

जब कर भी वहाा जायग और दफर िौट कर आ सक ग तो पाठक िोगो को बतिावग या आप िोग कछ

ददन पीछ आप ही जानोगrdquo

३ जनरत और वषणवता

ककतववचन सधा ९ राचम १८७२ र भारतद न lsquoPublic Opinion In Indiarsquo नार स अागरजी र

एक िख परकाकतशत दकया िख र उनहोन कहा दक कई सददयो दक दासता क बाद भारतवषमहहादसतान अब

जाकर कतिरटश राषटर क सवोचच कतनयातरण र आया ह दश धीर-धीर सभयता और परबोधन की पकतशचरी दकरणो

क सहार दरन और कशासन क रतय-तलय कतनदरा स जाग रहा ह कतिरटश शासन की परगकततशीि नीकततयो का

परभाव यहाा की बहरपी आबादी पर पड़ रहा ह

ldquoBut in this progressive state national energy and zeal sympathy and

disintiredness are waiting to make both the conqueror and the conquered to act in

32

concert and in harmony and hence we have the broad distinction of white and

black still But in this country many are the blemishes that adhere to us to be

eradicated and many are the shortcomings that are hovering around us to be done

away with before we can have a public opinion here in its true senserdquo35

गोर और काि क बड़ भद को छोड़ कर कतवजता अागरजो और भारतीयो क बीच एक सराजन तो बन गया ह

पर अनदरनी ददककत अभी भी राह बाए खड़ी ह रौका ह दक इस परगकततशीि कतसथकतत का फायदा उठा कर हर

एक सचच जनरत का कतनरामण कर सचच िोकरत क कतनरामण र अादरनी बाधाएा कया थी भारतद न इस

आग सपषट करत हए कतिखा-

ldquoRace antagonism rivalry and mutual misunderstanding are the favourite

occupations of the aristocratic class Want of confidence among all classes of men

are the prevailing characteristic of the nation and above all multifarious castes and

creeds with there numerous forms of religion and local habits and customs which all

combined have kept the progressive policy at a stand still True it is that a

representative Government is a boon to this country and true it is that Sir Bartle

fregravere a man of vast experience and a good statesman has found out that in village

community we can have public opinion but with all his experience he has lost sight

of our national defects ndash defects which we ourselves know and which no foreigner

can catch at a glancerdquo36

भारतद इस बात को िकर कतनकतशचत ह दक िोकरत और परकततकतनकतधरिक सासथाओ क बहतर कतवकास क कतिए

सीध-सीध कतवदशी रॉडि कभी सफि नही हो पायगा ऐसा इसकतिए कयादक हरारी आपसी कतवकतभननताओ

और झगड़ो को कोई बाहरीकतवदशी सतता कभी भी परी तरह सरझ नही सकती lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo नार

35भारतद गराथाविी -6 361

36 वही

33

स भारतद का एक दसरा िख इस अागरजी वाि िख क दो साि बाद अपरि सन १८७४ र हररशचनदर

रगजीन र छपा पकतबिक ओकतपकतनयन कया बिा ह इस साफ़ करत हए भारतद िख क आरमभ र ही कहत

ह ldquoपकतबिक ओकतपकतनयन अथामत सब साधारण िोगो की राय कया वसत ह और इसर दकतना जोर ह और

इसक कतिए कया हो सकता ह यह परशन ठहरा तो इसका साधारण उततर यही ह दक यह वह वसत ह जो

सासार को एक कर सकती ह गागा की धरा दफर कतहरािय पर चढ़ा ि जा सकती ह सययम को पकतशचर उगा

सकती ह और चाह तो ईशवर को भी पकड़ क कठपतिी की भााकतत नचा सकती हrdquo37 यह पकतबिक

ओकतपकतनयन lsquoएक रतrsquo होना ह जस अिग अिग चार पतिी िककतड़यो को एक साथ बााध दन स उस

तोड़ना करठन हो जाता ह उसी तरह एक रत होन स बड़ स बड़ा बरी भी हरारा कछ कतबगाड़ नही सकता

बहत स िोगो का रत एक हो तो वह शकति बन जाती ह हिारो आदरी की बकतदध एक हो जाए तो ldquoऐसा

कौन कार ह जो न हो सक तो यह कतसदधाात हआ दक कतनशचय सब िोगो क रत र बड़ी सारथयम ह इसस यह

कतसदध हआ दक बिो स बड़ा बि एक रत ही हrdquo38

आग भारतद कहत ह दक यह जनरत और उसकी शकति हहादसतान क कतिए कोई नई बात नही ह

पराचीन काि र इसक उदाहरण कतरित ह lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo की इस धारणा को भारतद न इकततहास क

अिग-अिग दौर र बनत और कतबगड़त ददखाया सबस पहि चार वणो की िररत पड़ी सब कार को

सचार रप स चिन क कतिए दसर शबदो र कह तो शरर-कतवभाजन की िररत स इसका जनर हआ

lsquoकतहनदओ न अपन गर क कार र इस वणामशरर धमरम को इसी वासत बनाया कतजस र उन क दकसी कार र

कोई हजम न हो और उनिोगो न सासार क सब कारो र चार कार रखय सरझrsquo धरम कतवदया और किाओ का

कार िड़ाई और राजय परबाध का कार वयापार और धन और सब िोगो की सवा और रजदरी इन चार

कारो की सवयवसथा वािा वणामशरर दरअसि lsquoएक रतrsquo कतहनद वयवसथा या lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo थी पर

कािाातर र इस lsquoएकरतrsquo क भीतर जाकततवयवसथा कठोर हो गयी और िाहमण और शदर दोनो एक दसर क

कतखिाफ हो गए एकरत र कतवचछद पदा होन स कतहनद शकति करिोर हो गयी भारतद क अनसार आपस

का यह झगड़ा बड़ा कतवनाशकारी साकतबत हआ पकतबिक ओकतपकतनयन क कतबना वयाकतभचार और जयादकततयो का

अाधर था आग चि कर जनो क जरान र दफर lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo न जोर पकड़ा बकतलक भारतद जोर

दकर कहत ह दक जनो क रत की उततपकततत ही lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo स हई ldquoकतहनदओ क जब नाश क ददन

जब कतनकट आय तो आपस र परसपर बड़ा कतवरोध खड़ा हआ और उस काि र िाहमणो का बड़ा जोर था

वरन य और वणो पर जयादती करत थ तो वशय और कषकततरयो की रकतत इनस दफर गयी और बाब वािी बड़ी

37गराथाविी- 678

38वही

34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

36

कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

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उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

38

ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 12: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

12

अातगमहावास दकर सवतव-पराकतपत सवतव-रकषा का परशन बन गया और यह सवतव कया था कतजसकी रकषा

साासककततक रोच पर नवजागरण क परसकताम कर रह थ- कलपना या यथाथम परबोधन न जञान का एक कतरथ

तयार दकया और चपक स कतरथको को जञान बना ददया इस नवजागरण की एक बड़ी दन एक परकतत-

इकततहास-दकतषट का कतवकास ह नारवर जी कतिखत ह ldquoनवजागरण की एक बहत बड़ी दन साभवतः वह

इकततहासदकतषट ह कतजसस अपन अतीत को शतर स रि करक उसक कतवरदध वतमरान र इसतराि करन की किा

आती ह और भकतवषय क कतिए सवपन दकतषट भी कतरिती हrdquo18 अगर वासतव र यह दकतषट नवजागरण की दन ह

तो रानना पड़गा दक यह फासीवाद की इकततहासदकतषट ह एक ऐस रकतसिर अतीत की कलपना जहाा रकतसिर

शतरओ स भारतीयता को रि करक वतमरान र उनक कतखिाफ इसतराि दकया जाता ह और इसस भकतवषय

की एक सवपन दकतषट भी भी कतरिती ह कहना न होगा दक परबोधन स कतनकिी यह इकततहासदकतषट अतारकम क

नही थी कयोदक यह साघषम की वासतकतवकता का सबस भरकतरत रप खड़ा करती ह फासीवाद इस अथम र वगम

साघषम का सबस कतरथकीय रप ह और अगर यह सही ह तो सवतव-रकषा र परापत इस इकततहासदकतषट को हर

परकततकााकतत की इकततहासदकतषट कह सकत ह भारतीयता का यह भरकतरत आतरकतबमब सवया को दो बनाकर ही

गकततशीि था यही इकततहासदकतषट आग चिकर lsquoकतवरदधो का साराजसयrsquo की इकततहासदकतषट क रप र इकततहास

का सबस भवय ढााचा खड़ा करती ह आतरकतबमब क इस कतवखाडन को िकषय करत हय नारवर जी न कतिखा

ldquoहरानी की बात ह दक हहादी परदश का नवजागरण धरम इकततहास भाषा सभी सतरो पर दो टकड़ हो गया

सवतव रकषा क परयास धरम तथा सापरदाय की जरीन स दकय गएrdquo19

आतरकतबमब का यह दो होना िखको क दो वगो र परकततहबाकतबत हआ नारवर जी क अनसार एक

वगम अागरजो का घोर कतवरोध करता ह पर धरम-सासककतत और साराकतजक परथाओ क बार र परापरावादी ह

दसरा वगम अागरजी राज क परकतत नरर रख अपनाता ह पर अनय रारिो र या तो रिगारी ह या दफर

सधारवादी िखको का पहिा वगम भारतीय होन का दावा करता ह जबदक नररपाथी िखक पकतशचरोनरख

ह हहादी नवजागरण क नता जयादातर परापरावादी ह जहाा अागरजी कतशकषा का परसार जयादा हआ वहाा

पकतशचरोनरख िखक जयादा थ दयानाद की अपकषा भारतद का झकाव कशवचादर सन जस पकतशचरोनरख

िखको या सधारको क परकतत था ऐसा साभवतः वषणव भावकता क चित था नारवर जी भारतद र परखर

बकतदधवाद का अभाव पात ह पर उनकी रराकतनयत को रानवतावाद की कतवचारधारा स जोड़त ह

नवजागरण क इस साकतशलषट कतचतर को सारन रखन की कोकतशश र नारवर जी एक ऐसी इकततहासदकतषट

कतवककतसत कर रह थ जो अतीत को उसक सापणम अातरवमरोधो र पान की कोकतशश करता ह अतीत को खिा

18 वही पषठ-८९

19 वही पषठ ९१

13

छोड़ दन वािी यह इकततहासदकतषट या एक सातकतित इकततहासदकतषट का यह परयास खाड खाड कतबमबो की एक ऐसी

गकततशीिता का भरर पदा करती ह जो इकततहासवाद की एक पररख कतवशषता रही ह इस पकष पर सवया

नारवर जी का धयान था और आग चिकर उनहोन नवजागरण क इस कतरथकीय चररतर को सवया ही

आिोकतचत दकया इस आिोचना र वह नवजागरण को परबोधन कहन क बदि lsquoअकतभजञान-कािrsquo कहना

जयादा उपयि रानत ह खद lsquoनवजागरणrsquo नार को अागरजो की कलपना बतात ह और उननीसवी सदी को

lsquoसरकतत-भराशrsquo का काि कहत ह यहाा १८५७ स िकर भारतद और कतववकानाद सब एक कतरथकीय चतना क

भीतर सराकतहत ददखत ह और कतजस भारतीय नवजागरण कहा जाता था उस कतवपरीत जागरण रानत ह

इसी कतवपरीत जागरण का नार उनहोन अकतभजञान ददया 20 डा वीरभारत तिवार न कवि कतहनदी

नवजागरण को भारतीय नवजागरण की परकततकााकततकारी धारा कहा था वही नारवर जी अब पर भारतीय

नवजागरण को ही कतवपरीत जागरण कह रह ह और बहत हद तक सही कह रह ह

डा तिवार न अपनी lsquoरससाकशीrsquo र lsquoहहादी नवजागरणrsquo को एक भरारक पद बताया था न तो

इसका साबाध १८५७ स था न रधयकािीन भकति आनदोिन स और न ही जनवादी राषटरवाद की दकसी

अवधारणा स उनक अनसार परबोधन क कतववकवाद तथा धरमसधार-सराज सधार की कतरिी जिी परदकया

क रप र कतवककतसत होत बागािी या रराठी नवजागरण या भारतीय नवजागरण की परकततगारी धारा क रप

र कतवककतसत होन वाि भारतद आदद क साासककततक आनदोिन को lsquoहहादी आनदोिनrsquo कहना ठीक ह कतशकतकषत

रधयवगम क भीतर दो परसपर कतवरोधी धाराओ की चचाम डा तिवार करत ह एक धारा कतववकवाद की

धारा थी दसरी सनातनी कतहनद धरम की धारा रहाराषटर और बागाि र अागरजी कतशकषा क परचार-परसार न कतजस

नए धरम और सराज सधार को गकतत परदान की वह अपकषाकत अकतधक परगकततशीि धारा थी पकतशचरोततर यि

परानत क पवी इिाक खासतौर पर बनारस इिाहाबाद और बहत हद तक पटना कानपर भागिपर आदद

शहरो र कतवककतसत नव-रधयवगम इस परगकततशीि धारा क साथ नही था इसका सबस बड़ा कारण अागरजी

कतशकषा का अभाव था यि परानत र कोई धारा परगकततशीि भकतरका अदा कर रही थी तो वह कवि दयानाद

सरसवती की आयमसराजी धारा थी इस आयमसराज का भी अपना जनाधार सनातनी पाकतडतो या िाहमणो क

यहाा नही बकतलक नौकरीपशा अागरजी कतशकषा परापत वह भदरवगम था जो अपन धरम और सासकारो क कतपछड़पन

को िकर गिाकतनबोध स भरा था इस वगम को अपनी पहचान आयम सराज र ददखती थी आयम सराज क

रिवाद र तथा उसक तारकम क सथिवाद र आधकतनक होन का रासता ददखता था िहमोसराज और

कतथयोसोदफकि सोसाइटी दो ऐसी सासथाएा और थी जो यि परानत र धरम और सराज सधार का परयास कर

रही थी परनत इसका परभाव बहत सीकतरत था आरतौर पर यिपराात र रहन वाि बागािी अपरवासी ही

20 दख नारवर हसाह उननीसवी सदी का भारतीय पनजामगरण यथाथम या कतरथक (अन) पाकज पराशर पकषधर अाक ११ जिाई २०११

14

इनक सदसय थ हहादी आनदोिन क नताओ न इन दोनो धाराओ की आिोचना की ह इनहोन दयानाद क

रिवाद की आिोचना अपनी परापरावादी करमकााडी दकतषट स की इनक अनसार उपकतनषद या पराण आदद

अगर अपराराकतणक भी ह तब भी चादक िोक र सवीकत ह इसकतिए उनह एकदर ख़ाररज करक कोई धरम या

सराजसधार नही हो सकता तिवार जी का कहना ह दक अपनी िचर दिीिो की आड़ र य िोग वसततः

सतरी कतशकषा कतवधवा कतववाह या आधकतनक जीवनशिी आदद की परगकततशीिता का कतवरोध कर रह थ यह

कतवरोध आरतौर पर सरदाय की रानयताओ को ही सारन रखकर दकया जाता था एक दकसर क

कतबरादरीवाद क भीतर स सरझौता करत चिन क कारण हहादी आनदोिन क नता अपन पाररवाररक या

वयकतिगत जीवन क उथिपथि स बचन की कोकतशश करत ह धरम इनक कतिए सधार का नही वरन

राजनीकततक हथका डा रातर था धरम की आड़ र य रकतसिर भदरवगम को अपना परकततयोगी साकतबत कर कतहनद

एकता की अपीि करत तादक इनह सरकारी नौकररयो र कछ कतवशषाकतधकार कतरि सक तिवार जी क

अनसार रकतसिर भदरवगम इन हहादी आनदोिन क परसकततामओ स कही जयादा परगकततशीि था उनक यहाा

आधकतनकता क परकतत जयादा खिी और कतववकसापनन दकतषट थी और उनहोन जोर दकर कहा दक हहादी आनदोिन

को सर सयद अहरद खाा जस दकसी सकषर कतववकवादी वयकतितव का नततव नही कतरि पाया हहादी

आनदोिन और नताओ क अातरवमरोधो को ददखात हए तिवार जी न भारतद की छकतव एक पतनशीि कतहनद

रोररटक की गढ़ी ह यहाा भारतद एक परकततनायक क रप र नजर आत ह

कतववकवादी इस धारा न राषटरीयता की जो धारणा गढ़ी वह रितः साापरदाकतयक थी अागरजी राज क

कतखिाफ अगर इनका साघषम सराज और धरम सधार को साथ-साथ रखन क बजाय उसर अिगाव करता ह

बकतलक उनक कतखिाफ जाकर सागरठत होन का परयास करता ह तो उसक सारन रकतसिर भय पदा करन क

अिावा और कोई रासता साभव नही था lsquoहहादी नागरी और गोरकषाrsquo आनदोिन इसकी सवभाकतवक पररणकतत

थी आग चिकर उननीसवी सदी क आकतखरी दशक र आकार गरहण करन वािी कतहनद राषटरवाद की यह

पषठभकतर ह इसक वग र दयानाद न भी साथ ददया कयोदक उनर भी पनरतथानवाद क बीज थ पवी परदशो

की अपकषा आयम सराज पाजाब र कही जयादा रकतडकि था आयम सराकतजयो की सदसयता की साखया पाजाब

क रकाबि यि परानत र जयादा थी पर वहाा कोई गणातरक पररवतमन साभव नही हआ और यह रहज

साखयाबि क रप र ही बना रहा इसका कारण उनहोन पाजाब की कतभनन नतततवशासतरीय अवकतसथकतत र

बताया ह पाजाब र िाहमणो का परभाव कर था कतजसका एक कारण रसिरानो क साथ िमबा सासगम और

कतसख धरम आदद का परभाव भी था इस तरह का कोई कतवशलषण पवी परदशो क बार र नही दकया गया जसा

दक बहत पहि रदमरशरारी की ररपोटम स ही हजारीपरसाद कतिवदी न दकया था अथामत रधययगीन कतसख

धरम क परभावो की तरह कबीरपाथी आदद सरदायो क परभाव और वषणवता क अातसबाधो की पड़ताि नही

15

की गयी ह काशी क बनकरो की एक हड़ताि का कतिक रारकतविास जी बार बार करत ह जो १८३३ ई र

ही हई थी और इकततहासकार बिी क अनसार यह वक़त आरथमक साकट का भी वक़त था

भदरवगम का जो कतहससा हहादी आनदोिन क साथ था उस जाकतत वयवसथा की परानी रानयता को

बनाय रखन या उस रजबत करन की जररत कया कवि नौकररयो र कतवशषाकतधकार परापत करन क कतिए थी

या जाकतत वयवसथा रातर र आय एक रिगारी साराकतजक साकट का वह परकततदकयावादी रपाातरण ह शहरो

र आरथमक-वयापाररक गकततकतवकतधयो क कारण और आसपास क इिाको स परवासी रजदरो का आगरन तथा

बढ़ती वशयावकततत आदद क चित शहरी साराकतजक साबाधो र भी उथि-पथि थी ऐस सरय र सारदाकतयक

या कतबरादरी बोध lsquoएकाrsquo की भावना पदा करती ह तिवार जी इस नव-भदरवगम का अपन ही भीतर अिग-

अिग खााचो र बाट होन की बात करत ह अिग-अिग खााचो र बाट होन क चित यह भदरवगम रधयवगम की

कतवचारधारा अथामत कतववकवाद या नवजागरण को परापत नही कर पायी थी वगम था िदकन वगम की

कतवचारधारा नही थी खद भारतद क जीवन स हर उस दौर की अकतसथरता का कछ अादािा कतरिता ह

अकतसथरता और खााचो र बाटा रधयवगम दरअसि सापणम सराज र होन वाि एक आधारभत पररवतमन की ओर

इशारा करता ह यह पररपरकषय १८५७ की तरासदी का भी ह ऐसी कतसथकतत र हपराट पाजी क साथ बनन वािा

यह साासककततक आनदोिन था जहाा सवतव रकषा रखयतः अपन परान कतवशषाकतधकार की रकषा थी साराकतजक

साबाधो र आय उथि पथि क कारण उनह अपन कतवशषाकतधकार कतछन जान का खतरा साफ़ ददखाई द रहा

था जहाा अागरजी कतशकषा थोड़ा पहि ही परसार पा चकी थी वहाा कशि कारीगरो स िकर अधयापको और

परशासकतनक अकतधकारीयो क एक बड़ सरह न अपना नया कतवशषाकतधकार पा कतिया था साराकतजक साबाधो र

उनकी शरषठता उनक कतववकवाद क कारण बन चकी थी भारतद क एक शरआती िख lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

क राधयर स खााचो और जनरत की राजनीकतत को सरझन की कोकतशश आग करग

तिवार जी क अनसार दयानाद क कतवचारो क कतिए पाजाब जयादा गरहणशीि था कयोदक वहाा

जाकतत वयवसथा क बाधन पहि ही ढीि हो गए थ यिपराात र जाकतत क बाधन जायदा कठोर थ कतजन अथो र

कतिवदी जी रधय दश की रकषणशीिता का कतजक करत ह कछ-कछ उनही अथो र पर सवया दयानाद क

कतवचारो र कतववकवाद-पनरतथानवाद का दोरखापन कतरिता ह तिवार जी कहत ह दक कतजन सथि तको स

वह वदो की ओर िौटन को कहत थ आयम भाषा आयम जाकतत और आयम धरम की बात करत थ उसक कारण

ही इनका झकाव आग चिकर राषटरीय सवयासवक साघ की ओर होता गया पर आयम सराज क साराकतजक

सधारो और धरम सधारो की एकता क कारण वहाा वह साभावना भी थी कतजसक परभाव स आग चिकर बहत

सार कमयकतनसट कायमकताम भी कतनकि पररचाद राहि साकतयायन या गणश शाकर कतवदयाथी जस साकतहतयकार

और आनदोिनकताम आयम सराज क परभाव र थ आयम सराज तिवार जी क अनसार वासतकतवक साराकतजक

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पररवतमनो का सावाहक और सराज र वयकति स िकर साराकतजक जीवन क हर कषतर र गणातरक पररवतमन

िान वािा इसकतिए हो पाया कयोदक वहाा धरमसधार और सराज सधार अिग-अिग नही था दसरी ओर

हहादी आादोिन साापरदाकतयक जाकततवादी और सतरीकतवरोधी रलयो को ही सराज र फ़िान र कारयाब हआ

यह धारा अागरजो को अरजमयाा दकर नौकरी पान वाि रधयवगम की धारा थी

तिवार जी न भारतद की तकमशीिता को बहत कतनमन कोरट का कहा ह भारतद क चररतर र शायद

वह एक lsquoिमपनrsquo की छकतव भी दखत ह पसा उड़ान की वकतत सतरी क साथ वयवहार और उनक साबाध

चाररतरय बि का अभाव आदद आदद क सनदभम र वह कहत ह दक भारतद क चररतर र वह सदढ़ता या

सदाचाररता नही ह जो सराजसधार क कतिए आवशयक होती ह घर र पतनी उनह कभी पसाद नही आई

और वह बाहर रहदफ़िो र वाहवाही िटत रह रदमवादी दकतषट भी उनर कट-कटकर भरी थी भारतद क

इस चररतर की तिना तिवार जी न दो अनय परमपरावादी सधारको स की ह एक बागाि क राधाकाात दव

और दसर पाजाब क शरदधारार फलिौरी यदयकतप य दोनो भी भारतद की तरह परापरा की रकषा र ही सधार

की ओर अगरसर हए थ िदकन इन िोगो का चररतर जयादा परगकततशीि था इन दोनो की तिना र भारतद

का खिनायकतव और भी अकतधक उभरकर सारन आता ह सापकतकषक परगकततशीिता क कतनधामरण क कर र

भारतद अपन सापणम जीवन वयवहार र एक एाटी हीरो की तरह उभरत ह ठीक परान खिनायको की तरह

नही एाटी हीरो क साथ दशमक या पाठक की एक आतरीयता भी जड़ी रहती ह उसका चररतर ददराग र बस

जाता ह िदकन इसक चित यथाथम क ओझि होन का खतरा भी ह तिवार जी इसकतिए कदर कदर पर

उनकी साकतहकततयक छकतव क बरकस उनक राजनकततक- साागठकतनक जीवन वयवहार स बनन वािी छकतव को

सारन ररतमरान करत जात ह

अपनी परी आिोचना र तिवार जी भारतद की रचनाओ र कतरिन वाि भाषायी िदधड़पन और

राद तकमशीिता की चचाम तो करत ह िदकन व भारतद क वयागयो पर चचाम नही करत कया यह रहज

सायोग ह दक भारतद क परहसन lsquoअाधर नगरीrsquo का राचन आज भी परगकततशीि रलयो की परकततषठा ही करता

हभारतद क वयागयो या परहसनो र ऐसा कया ह कतजसर दहराव क साथ नवीन होत चिन की कषरता भी ह

भारतद क िखो या परहसनो या रपको र जो कही-कही वणमन या सावाद िारा वयागय का तीखा बोध पदा

होता ह उसकी शकति उनह कहाा स कतरिती ह वयागय की कषरता सवया र उनकी सकषर कतनररकषण र सरथम

दकतषट का परराण ह परान साराकतजक साबाधो र पररवतमन और तीवर पररवतमन क साथ साथ जो एक परहसन

चि रहा था उसका बोध भारतद को था भदरवगम क भीतर की कतववकवादी धारा का कतवकास भी कतहनद

राषटरवाद की कतवचारधारा र ही हआ परनत lsquoअाधर नगरीrsquo कया कतहनद राषटरवादी कतवचारधारा वािा परहसन ह

या कया यह कवि राषटरवादी कतवचारधारा का वाहक ह lsquoउरराव जान अदाrsquo र उभरकर सारन आन वाि

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साराकतजक साासककततक साकषोभ या उस वयापक टरजडी क सनदभम र दख तो भारतद क वयागय और परहसनो का

अथम थोड़ा और उभरता ह रकतलिका या राधवी स भारतद क साबाधो र कया उस तरासदी का सराग भी नही

ह वशयावकततत और पतनशीि रइसो का साकट एक दसर स अिग नही था उस सरय की औपनयाकतसक

ककततयो र वशयावकततत का सनदभम अवशय आता ह आग चिकर पररचाद की सरन बनारस र ही lsquoसवासदनrsquo

का सराधान ढाढ रही थी

भारतद क वयागयो पर रारकतविास जी का धयान था यह बात अिग ह दक अकतधकााश रौको पर

इनर वह जातीय चतना खोज कतनकाित ह बीस साि की उमर र भारतद न एक िख lsquoिवी पराणिवीrsquo नार

स कतिखा था रारकतविास जी इसका उलिख करत हए कतिखत ह ldquoगवनमर जनरि कतहनद क कतजस दरबार का

भारतद न वणमन दकया ह वह काशीराज क घर पर हआ था इसकतिए भारतद की सतयकतपरयता और भी

सराहनीय ह वहाा जो सजजन िोगो क नार कतिख रह थ उनका वणमन या दकया ह lsquoनार कतिखन वाि राशी

बदरीनाथ फि-फाि अबा पकतहन पगड़ी सज परान दादर की भााकतत इधर-उधर उछित और शबद करत

दफरत थrsquo िोग दकस तरह एक आनररी रकतजसटरट क lsquoकतसट डौनrsquo lsquoसटड अपrsquo कहन स उठत और बठ जात थ

इसका उनहोन बहत ही नाटकीय वणमन दकया ह आनररी रकतजसटरट का वयवहार हविदार का सा था कतसफम

हाथ र एक िकड़ी की कसर थी िोग कीरती पोशाक पहनकर गए थ ldquoसबक अागो स पसीन की नदी

बहती थी रानो शरीयत को सब lsquoअरघय पादयाrsquo दत थrdquo िोगो की उठा बठी और बहदा कवायद को िकषय

करक कतिखा था ldquoवाह-वाह दबामर कया था lsquoकठपतिी का तराशाrsquo था या बलिरटरो की lsquoकबायदrsquo थी या

बादरो का नाच था या दकसी पाप का फि भगतना था या lsquoफौजदारी की सजाrsquo थीrdquordquo21 काशी की इस सभा

र खद भारतद भी बठ थ इस परकार यह भारतद क वगम का परहसन भी था पतनशीि सासककतत की

आतरािोचना क कतबना यह साभव नही था बात कवि उमर की नही ह ठठ वतमरान र हसतकषप और उस

बदिन का बोध कतजन पतनशीि कतसथकततयो का आतर साकषातकार कर रहा था यह उसक परकतत एक

सवाभाकतवक सवतःसफतम परकततदकया थी यह तारकम क की नही बकतलक किाकार की सवतः सफतमता थी यह बात

सही ह दक भारतद कतवचारो की तारकम कता क रारि र उननीस पड़त थ पर इस करी को उनकी तीकषण

वसतकतनरीकषण दकतषट भर दती थी जीवन कतसथकततयो की कतवडमबना का बोध कतजतना गहरा था बदिन का

परयास उतना ही ऊजामवान था भारतद सवया अपनी भी कहानी कतिख रह थ lsquoपयार हररचाद की कहानीrsquo

कतिख रह थ भारतद क परहसनो र दकसी न दकसी पातर की भकतरका र हर जगह सवया भारतद भी ददख

जात ह अपन वगीय अातरवमरोधो का सवबोध उनक यहाा एकतिगोररकि हो जाता ह इस एकतिगरी र lsquoकतहनद

21 रारकतविास शराम पषठ- ६६

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भारतrsquo की रधर कलपना थी इसस इनकार नही दकया जा सकता भाव जगत का वषणव परर lsquoकतहनद भारतrsquo

की कलपना स परर र बदिता गया

भारतद की रचनाओ र कतवशवदकतषट की एकता खोजन पर हर परभतवशािी कतवचारधाराओ की

वयवसथा ही कतरिगी जञान और वयावहाररक सारानय बोध क बीच एक सदकय साबाध बनान क कर र ही

उनका सवाभाकतवक आवग कतजन वयावहाररक धाररमक कतवचारधाराओ र आतरकतबकतमबत होता ह व

परभतवशािी कतवचारधाराएा ह इन कतवचारधाराओ का कतनरामण कही बाहर स नही हो रहा था बकतलक

पराचयकतवदयाकतवदो की कलपना क साथ परसपर भागीदारी र बन रहा था इन कलपनाओ को यथाथम रप द

रही थी हपराट पाजी क साथ कतवककतसत होती lsquoबजमआ पकतबिक सफीयरrsquo की दकयाएा भारतद की सवाभाकतवक

सफरतम ततकाि ही एक फ टसी र बदिन िगती ह और दकयातरक होना चाहती ह ऐस ही सरय

पराचयकतवदया क पाकतडतो क िारा जगाय गए कतरथकीय परत भी आकर सर पर सवार हो जात ह पराचयवाद

दकसी परत-कतवदया स कर न था दखना चाकतहए दक भारतद की रचनाओ र कहाा परतो की दकतनया र यथाथम

का हसतकषप होता ह उनकी एकतिगरी कहाा कतसथकततयो क अकततरक को अकतभवयि कर रही ह जस भारतद की

lsquoअाधर नगरीrsquo ऐन हरार वक़त र राजयसतता का रपक बन जाती ह यह रपक राजयसतता र अनतरनमकतहत

हहासा की अकतनवायमता और नयाय क भरर का परहसन भी ह

२ धरम सधार पर कतवचार सभा

िहमो सराज या दयानाद सरसवती को खद भारतद कस दख रह थ इसका पता हर lsquoसवगम र कतवचार

सभा का अकतधवशनrsquo22 नारक एक वयागय रपक स चिता ह सवारी दयानाद सरसवती और कशवचादर सन

जब ररन क बाद सवगम पहाच तो ldquoवहाा एक बर बड़ा आनदोिन हो गयाrdquo रतय क कछ ही सरय पहि कतिखा

गया यह वयागय रपक अपन सरय क धरम सधार आादोिनो क चररतर की वयाखया करता ह सबस पहि

इसका परकाशन किकतत स कतनकिन वािी परकततकतषठत हहादी पकततरका lsquoकतरतर कतविासrsquo (जन १८८५) र हआ था

िहमो सराज और आयम सराज क आनदोिनो को भारतद इस सरय तक आकर एक तटसथ आिोचकीय दकतषट

स दखन का परयास करन िग थ सवगम र एकबारगी पदा हए इस आनदोिन र रोट तौर पर दो खर बन

गए एक इनका परशासक था दसरा हनादक पहिा कतिबरि ह दसरा काजरवरटव इन दोनो खााचो र

अनदफट एक तीसरा दि ह जो वषणव आतराओ का ह इस दि क सासथापक तो कतिबरि थ पर अब य

lsquoरकतडकलस कया रहा रकतडकलस हो गए हrsquo कतनकतशचत रप स इन रहा रकतडकलस आतराओ र हर सवया भारतद

22 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन सा- करिा परसाद परसा- नारवर हसाह पषठ- ८२-८६ नशनि बक टरसट इाकतडया नई ददलिी- २००६

(आग इस िख क उदधरणो को कतबना पाद रटपणणी क ददया गया ह)

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को भी कतगन सकत ह वयासदव एक ऐस बकतदधजीवी क रप र सारन आत ह जो दकसी का भी पकष िन स

बचत ह पर उनका रान दोनो खरो र ह ldquoकतबचार बढ़ वयासदव को दोनो दि क िोग पकड़-पकड़ कर ि

जात और अपनी अपनी सभा का lsquoचयररनrsquo बनात थ और बचार वयास जी अपन पराचीन अवयवकतसथत

सवभाव और शीि क कारण कतजसकी सभा र जात थ वसी ही विता कर दत थrdquo कतिबरिो की तिना र

का जरवरटव दि जयादा रजबत था कयोदक उनह सवगम क जरीदारो का सहयोग परापत था काजरवरटव दि की

आतराएा साकीणम कटररपाथी आतराएा थी य आतराएा उन परान िरान क ऋकतष रकतनयो की आतराएा ह जो

ldquoयजञ कर करक या तपसया करक अपन-अपन शरीर को सखा-सखाकर और पच-पच कर ररक सवगम गए हrdquo

करमकााड और वरत उपवास आदद को भारतद वही तक सही रानत थ जहाा तक व शरीर को कषट न पहाचाएा

कठोर दह साधना करन वाि इन ऋकतष रकतनयो की आतराएा सधारो क कतखिाफ थी और इनका साथ दन

वाि जरीदारो र lsquoउदार िोगो की बढ़तीrsquo स अपना रान-अकतभरान और बि कतछन जान का डर था

कतिबरि दि भिो की आतराएा या तो सावमजाकतनक जीवन क उचच रलयो या आदशो क सापादन क चित या

पररशवर की भकति स सवगम र गयी थी

सराज सधार और वयकतिक परर रिक भकति- कतिबरि कतवशवदकतषट को भारतद इसी पररपरकषय र दख

रह ह रकतडकि वषणव दि भिो क कतिए वषणव होन रातर स य चीज पहि स ही उपिबध थी भारतद क

कतिए वषणवता सवाभाकतवक रप स कतवशवदकतषट ह पर रकतडकि वषणव इस सवाभाकतवक उदारता को

राजनीकततक रप दन वाि ह वषणव उदारता का और उसक भावावग का राजनीकततकरण करन वाि रहा

रकतडकि इस तरह भारतद क कतिए वषणवता की आधकतनक वयाखया र सराज सधार वयकतिक परर रिक

भकति और राजनीकतत तीनो का lsquoएकाrsquo ह इस एका क रकतडकि परयास क कतिए जनरत या िोकरत का

कतनरामण आवशयक ह भारतद की रकतडकि वषणवता ही lsquoसब उननकतत का रिrsquo ह यह एक िोककतपरय

वयावहाररक कतवचारधारा क रप र आकर गरहण करन वािी वषणवता ह यह रकतडकि वषणवता धरम का

राजनीकततकरण ह

काजरवरटव दिभिो को दवताओ का सरथमन परापत था य दवता ही सवगम क जरीदार थ अपन

अपन तरीक स इन दवताओ न काजरवरटव दि की सथानीय शाखाएा भी खोि िी और वहाा इनक पकष र

lsquoपरकाश सभाएाrsquo होन िगी कतिबरि दि वािो क पकष र कवि इस lsquoकतहनद सवगमrsquo क िोग नही थ ldquoइधर

lsquoकतिबरिrsquo िोगो की सचना परचकतित होन पर रसिरानी-सवगम और जन सवगम तथा दकसतानी सवगम स पगमबर

कतसदध रसीह परभत कतहनद सवगम र उपकतसथत हए और lsquoकतिबरिrsquo सभा र योग दन िग बका ठ र चारो ओर

इसकी धर फि गयीrdquo अिग अिग सवगम कतवकतभनन धाररमक पहचानो की ओर इशारा करता ह बका ठ कतहनदओ

का सवगम ह और यह नया धरम आनदोिन रखयतः कतहनद धरम की एक बड़ी पहचान क भीतर ही पदा हआ ह

20

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग क तीन कतनकतहताथम वसधा डािकतरया न भारतद यग क सनदभम र नोट दकय ह23 पहिा

एक पराक औपकतनवकतशक lsquoकतहनद अथमrsquo जहाा हहादसतान का हर बाहशादा शाकतरि था दसरा परसपर कतभनन

धाररमक रतो और आसथाओ की कतनकट अातरकम या क अथम को वयि करता ह कतजसक आराकतभक साकषय सलतनत

कािीन ऐतहाकतसक वतताातो र कतरित ह यहाा यह शबद lsquoतकम rsquo क सरानाातर उपयोग र आया था और

सारानयतः रसिरानो क बरकतखिाफ उपयोग दकया जाता था आरमभ र यह धाररमक कर साराकतजक-

राजनीकततक अथो र जयादा परयि होता था अागरजी राज क साथ यह दसरा अथम धरम स अकतनवायमतः जड़कर

lsquoकतहनदवादrsquo की कतवचारधारा र बदि गया जमस कतरि आदद क इकततहासो र lsquoकतहनदकािrsquo और lsquoरसिरान

कािrsquo की ऐकततहाकतसक कलपना क साथ कतहनद शबद जड़ गया था भारतीय भी रसिरानो को सारन कर

lsquoकतहनद पीकतड़त गराकतथrsquo क कतिए इस शबद का इसतराि करन िग कतहनद शबद का तीसरा अथम राषटर की

अवधारणा स जड़कर बन रहा था आरथमक राषटरवाद और अागरजी राज की यातना की साझी सरकतत स बनन

वाि इस तीसर अथम का रतिब था- lsquoजो कतहनदसतान र रह वह कतहनदrsquo रारकतविास जी भारतद क यहाा

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग को इनही अथो र ित थ पर वसधा डािकतरया का कहना ह दक यह तीसरा अथम दसर क

वयापक परभाव र था तीनो अथो की अातरकम या क बार र डािकतरया न कतिखा ldquoतीसरा अथम या राषटरवादी

अथम कभी भी अपन धाररमक साकताथो स परी तरह छटकारा नही पा सका इस पद की परयकति उननीसवी

सदी र अकतसथर बनी रही और इसक रखतकतिफ रायनो र आपसी जड़ाव कायर रहा बावजद इसक दकसी

परदतत सनदभम र lsquoकतहनदrsquo क पराथकतरक अथम को कतनधामररत करना साभव ह यदद एक बार यह तय हो जाय दक

इिाकाई धाररमक राषटरीय र स दकस आधार पर यह पद परयोग र आ रहा ह और lsquoअनयrsquo की भकतरका र

दकस रखा जा रहा ह चाह वह अनय जसा दक परानी इिाकाई परयकति र ददखता ह फारसी या तकी हो

या रसिरान (कतजस इस िरान र भी कई बार सरह क हवाि स तकम ही कहा जाता ह) या दफर अाततः

औपकतनवकतशक सवारी िदकन यह बात ददराग र रखना जररी ह दक धाररमक सरदाय को कतनरदमषट करन

वािी दसरी परयकति अतयात परभावी सनदभम-हबाद बनी रहती हrdquo24

इस सनदभम र दख तो कतिबरि दिो क सरथमन र शाकतरि lsquoअनयrsquo कतहनद धरम क सधारवाद क सरथमक

ह और lsquoसधारोrsquo र छपी वकतशवक भावनाओ को सरथमन दन पहाच ह का जरवरटव दिो की lsquoअनयताrsquo यहाा नोट

करन िायक ह इस अनयता र साराती जरीदार और करमकााडी िाहमणवाद का बिाक ह जबदक कतिबरि

दकतषट क आसपास एक lsquoसायि रोचrsquo की कलपना की गयी ह धयान रखना चाकतहए दक भारतद क रकतडकि

वषणव इस lsquoसायि रोचrsquo क बाहर ह उनका lsquoएबसटकतनजरrsquo वषणव होन क चित नही बकतलक रकतडकि या

23 वसधा दिकतरया कतहनद परमपराओ का राषटरीयकरण भारतद हररशचादर और उननीसवी सदी का बनारस अन साजीव करार योगनदर दतत पषठ-

४०-४२ राजकरि पपरबकस नई ददलिी- २०१६

24 वही पषठ- ४२

21

रहा रकतडकि होन क चित था कतनकतशचत रप स सवगम सासद का रपक ह और सवगम का राजा ईशवर

कतनषपरभावी हो गया ह और जनता सवया जनरत क िारा कतनणमय कतसथर करन पर जोर दती ह जनरत क

िारा lsquoसलफ गवनमरटrsquo का परयास सबस पहि वषणव भिो न दकया था और आज क कतिबरलस उसी को

आग बढ़ा रह ह ईशवर क पास दोनो दिो क िोगो न जब अपन अपन ररोररयि तयार कर भज तो ईशवर

न दोनो दिो क डपयटशन को बिाकर कहा ldquoबाबा अब तो तरिोगो की lsquoसलफगवनमरटrsquo ह अब कौन

हरको पछता ह जो कतजसकी जी र आता ह करता ह अब चाह वद कया सासकत का अकषर भी सवपन र भी न

दखा हो पर धरम कतवषय पर वाद करन िगत ह हर तो कवि अदाित या वयवहार या कतसतरयो क शपथ

खान को ही कतरिाय जात ह दकसी को हरारा डर ह कोई भी हरारा सचचा lsquoिायकrsquo ह भत परत ताकतजया

क इतना भी तो हरारा दजाम नही बचा हरको कया कार चाह बका ठ र कोई आवहर जानत ह चारो

िड़को (सनक आदद) न पहि स ही चाि कतबगाड़ दी ह कया हर अपन कतबचार जयकतवजय को दफर राकषस

बनवाव दक दकसी का रोकटोक कर चाह सगन रानो चाह कतनगमन चाह ित रानो चाह अित हर अब न

बोिग तर जानो सवगम जानrdquo

काजरवरटव दिभिो न दयानाद और कशवचादर सन पर कया कया आरोप िगाय यह दख िना

चाकतहए दयानाद को सवगम र सथान नही कतरिना चाकतहए कयोदक १ इसन पराणो की हनादा की २ ररतमपजा

की हनादा की ३ वदो का अथम उलटा-पलटा कर डािा ४ दस कतनयोग करन की कतवकतध कतनकािी ५ दवताओ

का अकतसततव कतरटाना चाहा (दवताओ याकतन जरीदार) ६ इसन धरम कतवपिव दकया और आयामवतम को धरम

बकतहरमख दकया पकतशचरोततर परानत क परकततकतनकतध क रप र lsquoकाशी क कतवशवनाथ जीrsquo न lsquoउदयपर क एकहिाग

जीrsquo पर दयानाद क सरथमन का आरोप िगाया कतवशवनाथ जी काजरवरटव दिो की तरफ स यह आरोप िगा

रह थ परब की अपकषा पकतशचरी इिाको र आयम सराज क परभाव की चचाम क सनदभम र एकहिाग जी का

जवाब धयान दन िायक ह कतवशवनाथ जी न जब एकहिाग जी को कतधककारत हए कतिबरिो क साथ कतरि जान

को कहा तब एकहिाग जी न कहा ldquoभाई हरारा रतिब तरिोग नही सरझ हर उसकी बरी बातो को न

रानत न उसका परचार करत कवि अपन यहाा क जागि की सफाई का कछ ददन उसको ठका ददया बीच

र वह रर गया अब उसका राि रता रठकान रखवा ददया तो उसका बरा दकयाrdquo यह एकहिाग जी

दफ़िहाि सवारी जी क दि क सभापकतत बन ह आकतखर इनहोन अपन यहाा क दकस lsquoजागिrsquo की सफाई का

ठका सवारी जी को ददया था यह जागि छोट-रोट धाररमक समपरदायो और रतो का जागि था एकहिागी

जी और काशी क कतवशवनाथ जी दोनो ही िाहमणीकत शवरत क धाररमक परतीक ह पर जहाा काशी क

कतवशवनाथ शर स ही दयानाद क कतवरोधी थ वही एकहिाग जी रणनीकततक रप स दयानाद क पास गए थ यह

साकीणम कटररपाथ क भीतर का कतववाद था यह बात गौर करन िायक ह दक जगननाथपरी र जब भरव की

22

रौजदगी का कतववाद भारतद क सारन आया था उस सरय उनहोन इस बात का परतयाखयान दकया था दक

भरव की परकततरा अनाददकाि स वहाा ह भारतद न पराण आदद स साकषय दकर यह परराकतणत दकया दक

कषण ही एकरातर उपासय ह तिवार जी न इस घटना का उलिख करत हए कतिखा ह दक ldquoदकसी वयकति न

lsquoतहकीकातपरीrsquo दकताब दकखकर बताया दक वहाा पहि भरो की पजा होती थी वषणवो न उसकी ररतम

उखाड़ फ की थी बाद र पाडो न जगननाथजी (कतवषण) क साथ भरो को दफर स परकततकतषठत दकया यह रारिा

काशी धरमसभा क सारन १८७० र आया भारतद न धरम साबाधी पसतक र lsquoतहकीकातrsquo जस फारसी शबद

की आिोचना करत हए कतवकतभनन धरमगराथो स परराण जटाकर दो बातो पर जोर ददया एक इसका परराण

नही कतरिता ह दक वहाा जगननाथजी क साथ पहि भरो की भी ररतम थी कतजस वषणवो न उखाड़ फ का दो

अगर वह थी भी तो यह उकतचत था या नही- इसपर कतवचार होना चाकतहए भारतद न अपनी वयवसथा दत

हए कतिखा दक भरो कतवषण स बहत छोटा दवता ह इसकतिए यह कतवषण क साथ बठाया नही जा सकता

lsquoदसर भरव कापाकतिको क दवता ह उनका पजन वषणव-सरातम सबको कतनकतषदध हrsquo गौरतिब ह दक भारत

र कतवकतभनन सथानीय धरो क परकतत कतजतन असकतहषण और फा डारटकतिसट आयमसराजी थ उतन ही काशी क

सनातनी भी थrdquo25

सथानीय धरम-रतो क जागि को साफ़ करन र आयमसराकतजयो और काशी क सनातनी पाडो क इस

गठजोड़ स भारतद भी वादकफ थ िदकन आयमसराकतजयो क साथ उदयपर क एकहिाग जी का रोचाम कसा

था इस भी भारतद बखबी सरझ रह थ सथानीय रतो क साथ भारतद का समबनध कसा था इसका पता

उनक छोट-छोट यातरा सासररणो स भी चिता ह lsquoसरय पार की यातराrsquo26 र रहदावि का हाि बयान करत

हए lsquoपराणनाथrsquo क रिहब का भारतद आशचयम क साथ उलिख करत ह भारतद क ही शबदो र ldquoयहाा एक

पराणनाथ का रिहब ह और दस बीस िोग उसक रानन वाि ह य िोग एकादशी तीथम वगरह को नही

रानत और सन सनाय दो तीन शलोक जो याद कर कतिए ह बस उसी पर चर हो lsquoरदीनासया शारदाा शताrsquo

और lsquoगोकतवनदrsquo lsquoगोकिानाद रककशवरrsquo यह शलोक पढ़ क कहत ह दक वद र रकका रदीन का वणमन ह ऐस ही

बहत वाकतहयात बात करत ह और कोई दकतना भी कह कछ सनत नही कहत ह दक गोिोक का नाश ह

और गोिोक ऊपर एक lsquoअखाड रणडिाकारrsquo िोक ह उसर रर कषण ह इनका रिहब एक पराणनाथ नारक

एक कषतरी न पनना र करीब तीन सौ बरस हए चिाया थाrdquo भारतद इस अजीबो गरीब lsquoरिहबrsquo का कषण स

कया साबाध ह यह सोचकर ताजजब र थ इस lsquoरिहबrsquo क गरनथ र भारतद न एक शलोक बलिभाचायम का

दखा तो उनका राथा और घर गया ldquoकि रिहब का हाि हरन नीच कतिखा था उसका अचछी तरह स

25 वीरभारततिवार रससाकशी १९वी सदी का नवजागरण और पकतशचरोततर परानत पषठ- १५२ सारााश परकाशन ददलिी- २००६

26 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन पषठ- १३७-३८

23

हाि दरयाफत दकया तो रािर हआ दक हरार ही रिहब की शाखा ह इनक गराथो र हरन एक शलोक शरी

रहापरभजी की सबोकतधनी की काररका का दखा इसी स हरको सादह हआ दफर हरन बहत खोद खाद कर

पछा तो वह साफ़ रािर हआ दक इसी रत स यह रत कतनकिा ह कयोदक एक बात वह और बोि दक हरारा

रत शरी बलिभाचारज की टीका र कतिखा ह इन िोगो क उपासय शरीकषण ह और एकादशी शािगरार

ररतमपजा तीथम दकसी को नही रानत इनक पकतहि आचायम दवचाद जी थ जो जाकतत क कायथ थ और दसर

पराणनाथ जी जो कचछ क कषतरी (भारटया) थ हरार ही रत की शाखा सही पर कतवकतचतर रत ह वषणव होकर

ररतमपजा का खाडन करन वाि यही िोग सनrdquo वणमन स सपषट ह दक सात और कतनगमण पाथो क साथ वषणव

कतवचारधारा क आदान-परदान का साकतशलषट इकततहास भारतद क कतिए ताजजब की चीज थी पर इन सबक बीच

आकतखर उनहोन इसक वषणव रि का पता िगा कतिया और वषणवता की इस धाररमक कतवचारधारा र उनहोन

ररतमपजा का कतवरोधी होना भी शाकतरि रान कतिया भारतद न ररतमपजा क सरथमन र बड़ बड़ िख कतिख

थ इसकतिए असाभव नही दक कषण क परकतत परररिक भकति क कतिए ररतम की जररत पर उनहोन कछ पछा

जरर होगा िदकन lsquoकोई दकतना भी कछ कह सनत ही नहीrdquo आग चिकर lsquoवषणवता और भारतवषमrsquo र

वह बड़ कतवशवास क साथ घोकतषत करत ह दक ldquoपहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद कतजतन पाथ ह सब

वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और भारतवषम इन पाथो स छाया हआ हrdquo27 तब वह वषणवता और

िोकरतो और रधयकािीन पाथो क भीतर पहि स सदकय एक ऐकततहाकतसक परदकया का सारानयीकरण कर

उसका नार lsquoवषणवrsquo रख रह थ अकारण नही दक उसी िख र वषणव वयापकता को बतान क कतिए

परचकतित lsquoनारोrsquo का साकषय पश दकया गया ह वयकतियो स िकर वरत और उपवासो तक यह परभतवशािी

सारानय बोध की कतवचारधारा थी कतिवदी जी रधयकािीन वषणवता को िोकधरम कहत थ भारतद

उननीसवी सदी क िोकधरो को वषणव कहत ह

काजरवरटव दिो की तरफ स कशवचादर सन पर िगाय गए आरोप थ १ वद पराण सबको कतरटा

डािा २ दकसतान रसिरान सबको कतहनद बनाया ३ खान पीन का कतवचार कछ न बाकी रखा ४ रदय की

तो नदी बहा दी आयम सराकतजयो क ऊपर रखयतः आरोप lsquoआयामवतम को धरम बकतहरमखrsquo करन का ह धरम

बकतहरमख अथामत सनातन धरम स कतवरख उनहोन कवि धरम क भीतर कतवपिव दकया परनत िहमो सराज न तो

lsquoभारतवषम का सतयानाशrsquo कर डािा इनहोन तो पराणो क अिावा वदो को भी कतरटा डािा lsquoआयामवतमrsquo की

जातीय पकतवतरता नषट करक दकसतान रसिरान जस lsquoकतवदशी ततवोrsquo को घर र घसा कतिया कटररपाथी

करमकााकतडयो क कतिए इनक साथ रणनीकततक तौर पर भी रोचाम बनान वािा कोई एकहिाग जी तयार नही

था सनातकतनयो िारा दकया गया यह बारीक भद खद कतिबरि दिभिो क भीतर का भी अातरवमरोध था

27 भारतद वषणवता और भारतवषम वही पषठ-७६

24

कतिबरिो की सभा र भी दो दि हो गए थ एक सवारीजी क सरथमको का दि था और एक कशव

क सरथमको का कतहनद कतिबरिो की आताररक एकता कतिकतवभाकतजत थी दयानाद क सरथमको क अनसार सवारी

जी न कतहनदओ की आतरा को जगाया था उनह सफतम बनाया वरना तो आयामवतम क आिसी और रखम

रोहकतनदरा र ही कतनरगन थ इस तरह रखम और आिसी सारानयजनो को lsquoिाहमणो क फा द स छड़ायाrsquo िाहमणो

की तिना भारतद न lsquoपादररयोrsquo स की ह जो lsquoवयथम परजा का दरवय खान वाि हrsquo आयम सराज न सासथाकत

परोकतहतवाद पर हरिा दकया था जो भारतद क कतिए रितः जनता क पसो पर पिन वािा परजीवी वगम

िगता था और तो और आधकतनक कतवजञान क आग जो lsquoआयोrsquo की नाक कटी जा रही थी उस भी सवारी जी

न बचा कतिया उनहोन वदो र भी रि तार करटी कचहरी आदद ददखाकर कतहनदओ र आतरसमरान पदा

दकया दसरी ओर कशव क सरथमको का कहना था दक ldquoधनय कशव तर साकषात दसर कशव हो तरन बाग

दश की रनषय नदी क उस वग को जो कशचन सरदर र कतरि जान को उचछकतित हो रहा था जञान करम का

कतनरादर करक पररशवर का कतनरमि भकति रागम परचकतित दकयाrdquo lsquoजञान करम का कतनरादरrsquo करक भी lsquoकतनरमि

भकति रागमrsquo का जो परवतमन कशव न दकया उसस ही ईसाई lsquoअनयताrsquo का साथमक परकततरोध साभव हआ lsquoरनषय

नदी का आवगrsquo भावावग ह इसी बात को दसर शबदो र कह तो भाव जगत क सवाभाकतवक वग को भगवत

भकति की शदध lsquoअनयताrsquo की ओर रोड़कर उस कतवदशी ईसाई lsquoअनयताrsquo क रागम पर जान स रोक ददया इस

कायम क कतिए वद पराण समरत lsquoजञान-करमrsquo क रागो का कतनरादर अगर करना पड़ा तो भी वह उकतचत ही था

वषणव भकति क रधयकािीन सवरप की जो वयाखया आग चिकर की गयी उसक आराकतभक कतचनन हर यहाा

दख सकत ह कहना न होगा दक भारतद का अपना अनभव भी यहाा बोि रहा ह

शासतरीय काजरवरटव पाटी र दवताओ क अिावा यजञवलकय जस औपकतनषददक ऋकतष क साथ-साथ

नारायण भटर रघनाद भटराचायम राडन कतरशर जस कतनबाधकारो और टीकाकारो का जरघट भी था इसक साथ

साथ इसिारी सवगम स आय हए कटररपाथी कतशया िोगो का भी सरथमन उनह परापत था इस परकार कटररपाथ का

दवताओ (जरीदारो) िाहमणो (पादररयो) जञानरागी औपकतनषददक ऋकतष रधययगीन कतनबाधकारो और

कतवदशी कतशया िोगो का एक वकतशवक रोचाम बन रहा था दसरी ओर कतिबरि दि र चतनय परभकतत आचायम

दाद नानक कबीर परभकतत भि और जञानी िोग भी शाकतरि थ इसक अिावा काजरवरटव दि क

कतवदरोकतहयो को भी कतिबरिो न अपन यहाा जगह दी य कतवदरोही थ अितवादी (या नववदााती) भाषयकार

पाचदशीकार और कोई कतरसटर िडिा इन दोनो िोगो पर शर र का जरवरटव दि वािो न बहत हरि

दकय परनत अात र इनह कतिबरिो न अपन यहाा जगह द दी धयान रखना चाकतहए दक भारतद अपन सापरदाय

क अनरप अित वदाात या रायावाद क घोर आिोचक थ सन १८७३ र हररशचादर रगजीन क पहि ही अाक

र भारतद न शााकतडलय भकति सतरो का अनवाद lsquoभकति सतर वजयातीrsquo नार स परकाकतशत दकया भकतरका र

25

भारतद कतिखत ह ldquo दखो आज वसात पाचरी ह इसस बहत स िोग आर क रौर वा फिो क गचछ िकर

तरस कतरिन आवग तो र भी यह एक फिो की वजयाती रािा बना कर िाया हा अागीकार करो वजयाती

रािा बनान का यह हत ह दक वनरािा होगी तो होिी क खि र अरझगी और इसक कतसवाय इस वजयाती

स कतनशचय करक जञानाददक को जय करना ह पर पयार बहत साभि कर यह रािा पहरना टट न जाए

कयोदक सत कचचा ह और ककतियाा तािी और कोरि ह इस स कमहिान का भी भय ह जो हो इस वसात

पाचरी को तयोहारी रझ यही दो दक इस सतयानाशी lsquoअहरrsquo िहमवाद lsquo को पणमरप स नाश करक और भी

सब बातो र इस नव-वसात र भारतवषम की सब आपकतततयो का बस अात करो और अपन भिो क कतचतत र

नव पलिव दफर स िहिह करो जो सदा एक रस रहrdquo28 lsquoएकरसrsquo भकति क कतिए जररी ह दक जञानवाद

अहर िहमवाद को जड़ स उखाड़ फ का जाय कषण को अरपमत अपनी वजयाती रािा स भारतद जञानाददक

को जय करना चाहत ह एक ओर यह पकतषटरागी परापरा क lsquoवीर वषणवrsquo भारतद का परर कतनवदन ह दसरी

ओर lsquoनव-वसातrsquo र भारतवषम की सब आपकतततयो को नाश करन की सारथयम रपी lsquoउपहारीrsquo का साकलप भी

ह lsquoभारतद भारतवषम की सब आपकतततयोrsquo को दर करन की राह र एक बड़ी बाधा अित क जञानवाद को

रानत ह भकति का lsquoएकरसrsquo पहि भी इसक परभाव स ररझाता रहा ह भारतद का साकलप सापरदाय क

परान कतवरोधो क बावजद बन रहन वाि इस अितवाद का पणम सफाया करन का ह जबतक यह न कतरटगा

परररिा भकति क lsquoकमहिान का भयrsquo बना रहगा भकति सतरो र उपासना कााड को परर कतसकतदध का हत

बताया गया था पर भारतद दख रह थ दक उपासना कााड का परचार कतवरि हो गया ह इसी परचार क

कतनकतरतत उनहोन इन सतरो का भाषा र अथम परचार दकया था १८७३ र ही हररशचादर रगजीन का एक

समपादकीय कतनकिा कतजसका शीषमक था- lsquoभकति जञानाददक स कयो बड़ी हrsquo इस िख र भी उपासना रागम

की रहतता का परकततपादन दकया गया ह तकम और जञान को करम की शकतदध और उपासन की परर कतसकतदध क

रासत र कवि एक चरण बताया गया ह वसधा डािकतरया न भारतद क आराकतभक साापरदाकतयक परचार

परसार क कायो र कतनगमकतनयो को बाहर रखन का उपकर नोट दकया था29 यहाा कतनगमकतनए कबीर आदद lsquoभि

और जञानीrsquo कतिबरिो क सरथमक ददखाए गए ह वषणव भकति क राषटरीय चररतर र य बाहर नही थ उनकी

एकता का आधार उनक lsquoकतिबरि रिrsquo र ह सावमजकतनक उचच भाव का सापादन और भकति इन दोनो क साथ

अित वदााती या जञानाददक- सनातनी परापरा क कतवदरोकतहयो की जगह भी कतिबरि दि पाकतथयो र थी

कतिबरि वाि ही झगड़ क कतनपटार की अजी पररशवर को दन गए थ पर पररशवर अपनी

परतीकातरक हो गयी कतसथकतत स खजिाय हए थ यह सवोचच अदाित थी पर साथ ही साथ शकतिहीन

28 भारतद गराथाविी खाड- ५ पषठ ११३

29 वसधा डािकतरया पषठ ३४२

26

राषटराधयकष की कलपना भी कतजस कतहनद सवगम क य राषटराधयकष ह वहाा दकसी दकसर की सलफ गवनमरट चनन

की परणािी आ जान स ईशवर की एकाकतधकारी शकतियाा कतछन गयी ह िोग जनरत कतनरामण क िारा सही

और गित की पहचान करन िग थ इसकतिए थोड़ा खजिाय तो रहत ही होग lsquoअब कौन हरको पछता

ह तर जानो सवगम जानrsquo परनत साकट गहरा था यदयकतप कतिबरि िोगो की सभा भी धरधार स जर

रही थी पर काजरवरटव दि पाकतथयो की सरकार र पठ थी दवता सब भी उनक साथ थ इसकतिए पररशवर

क पास जररी नयाय का परशन उठाया गया था नयाय दक इन दो रहापरषो को सवगम र जगह कतरिनी

चाकतहए या नही सराज र इनक नकततक उचच आदशो क अवरलयन का परचार काजरवरटव कर रह ह इस

परचार क कारण जनता अपनी निरो स पहचानन र सकषर नही ह ऐसी कतसथकतत सवगम र पहि नही आई

थी नई कतसथकततयो क नए रानदाड कया होग िाकतहर ह नयाय और नकततकता को एक वकतशवक सवीककतत

चाकतहए इसकतिए पररशवर न इस कतवषय पर कतवचार क कतिए जो ककतरटी चनी वह गौर करन िायक ह इस

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo र ldquoराजा राररोहन राय वयास दव टोडररि कबीर परभकतत कतभनन-कतभनन रत क िोग चन

गए रसिरानी- सवगम स क lsquoइरारrsquo दकसतानी स िथर जनी स पारसनाथ बौदधो स नागाजमन और

अफीका स कतसटोवायो क बाप कोrdquo चना गया कतहनद सवगम स नवजागरण क अगरदत वयासदव जस

बौकतदधकिखक टोडररि जस राजनीकततजञ और धरम-ररमजञ कबीर जस जञानी-भि पराचीनो र कवि वयास

दव ह बाकी दो lsquoरधयकािrsquo क और एक lsquoआधकतनकrsquo काि क वयकति ह उधर यरोपीय नवजागरणधरमसधार

क परणता िथर को भी बिाया गया ह और बौदधो की तरफ स परर कतनषधवादी नागाजमन भी ह पर य

अफीका क कतसटोवायो धरो की अकतसरता क साथ-साथ यह अफ़ीकी सवगम कतनकतशचत रप स अफीका की छकतव

पराचीन आददवासी सासककतत वाि एक lsquoकािrsquo रहादश क रप र गढ़ी गयी थी यह अफ़ीकी सवगम साभवतः

आददवासी धाररमक रानयताओ की ओर इशारा करता ह यह भी धयान दन िायक ह दक राजा राररोहन

राय िथर और कबीर इन तीनो क साथ lsquoनवजागरणrsquo की कोई न कोई पररकलपना ठठ सरकािीन कतवरशो

क क दर र भी ह कई अथो र अकबर िारा आयोकतजत होन वािी lsquoसिह-ए-किrsquo जसी धरम सभाओ की एक

रोहक कलपना भी भारतद को रही होगी टोडररि की उपकतसथकतत अकारण नही ह

अकबर को िकर भारतद की इकततहासदकतषट कसी थी इसकी एक झिक हर १८८४ र छपी उनकी

lsquoबादशाह दपमणrsquo की भकतरका र ददखती ह इस गरनथ र उन िोगो का चररतर-कतचतरण दकया गया था ldquoकतजनहोन

हरिोगो को गिार बनाना आरमभ दकया इसर उन रसत हाकतथयो क छोट-छोट कतचतर ह कतजनहोन भारत क

िहिहात हए करिवन को उजाड़कर-पर स कचिकर कतछनन-कतभनन कर ददया रहमरद रहरद अिाउददीन

अकबर और औरागजब आदद इनर रखय ह पयार भोि कतहनद भाइयो अकबर का नार सनकर आपिोग

चौदकए रत यह ऐसा बकतदधरान शतर था दक उसक बकतदधबि स आजतक आपिोग उसको कतरतर सरझत ह

27

दकनत वह ऐसा ही नही उसकी नीकतत अागरजो की भााकतत गढ़ थी रखम औरागजब उसको सरझा नही नही तो

आज ददन हहादसतान रसिरान होता कतहनद-रसिरान र खाना-पीना बयाह-शादी कभी चि गयी होती

अागरजो को जो बात नही सझी वह इसको सझी थीrdquo30 कतनकतशचत रप lsquoबकतदधरानrsquo दशरन स सीखन को बहत

कछ कतरिता ह अकबर की दीन-ए-इिाही क परयोग स भारतद भी बहत कछ सीख रह थ रधयकािीन

इकततहास क बार र रकतसिर शतर की छकतव का कतनरामण पराचयकतवदयाकतवदो क िारा दकया जा रहा था इकतियट

आदद इकततहासकारो न जो दकतषट कतवककतसत की उसका परभाव बहत गहरा था पर इस इकततहासिखन क साथ

साथ भारतद क कछ दशी सरोत भी थ अिग-अिग रहापरषो की चररताविी कतिखन की पररणा भारतद न

कतजतना अपनी वषणव भकति की परापरा स पाया था उतना ही इसिारी इकततहास िखन की परापरा स भी

lsquoबादशाहदपमणrsquo की भकतरका र भारतद कतिखत ह ldquoरर पररातारह राय कतगरधरिाि साहब जो यवनी कतवदया

क बड़ भारी पाकतडत और काशीसथ ददलिी क शाहजादो क रखय दीवान थ उनकी इचछा स ददलिी क परकतसदध

कतविान सययद अहरद न एक ऐसा चक बनाया था कतजसर तरर स िकर शाह आिार तक सब बादशाहो क

नार आदद कतिख थ उस फारसी गरनथ स बहत सी बात इसर िी गयी ह इस कारण तरर पवम क बादशाहो

का वणमन इतना परा नही ह कतजतना तरर क पीछ ह दफर रर रातारह राय कतखरोधरिाि न बहादर शाह

क काि क आरमभ तक शष वतत सागरह दकयाrdquo31

अरणदव जी अपन एक िख र भारतद क आराकतभक अकबर परर का कतिक दकया ह १८७२-७४ क

आसपास भारतद अकबर को रहान शासक रानत थ जबदक औरागजब को कतहनदओ का दशरन नाबर एक

भारतद न औरागजब की तिना र अकबर की रहानता को परराकतणत करन क कतिए रारदास कछवाह क एक

शलोक को अपना आधार बनाया ह इस शलोक का भावाथम भारतद क शबदो र इस परकार ह ldquoजो सरदर स रर

तक पथवी को पािता ह जो रतय स गउओ की रकषा करता ह कतजसन तीथम और वयापार स कर छड़ा ददए

कतजसन पराण सन जो सयम का नार जपता जो योग धारण करता ह और गागाजि छोड़कर पानी नही

पीता उस जिािददीन की जय अाग वाग कहिाग कतसिहट कततपरा कारत (कारटी) काररप अाध कणामटक

िाट दरकतवड़ रहाराषटर िारका चोि पााडया भोट रारवाड़ उड़ीसा रलि खरासान का दहार जमब काशी ढाका

बिख बदखशाा और काबि को जो शासन करता ह ककतियग की रकतहरा स घटत हए वद गउ कतिज और

धरम की रकषा को सगन शरीर कतजसन धारण दकया ह उस अपररय परष अकबर शाह को हर नरसकार करत

हrdquo32 यही अकबर १८८४ र औरागजब स जयादा शाकततर और बकतदधरान शतर र बदि गया lsquoकािचकrsquo क

कतनकतहताथो र यह फरबदि भारतद पर रकतसिर कतवदशीपन और कतहनद शतरता क समपणम बिॉक बनान की

30 बादशाह दपमण भारतद गराथाविी खाड-६

31 वही

32 httpsamalochanblogspotin201209blog-post_9html

28

रणनीकतत क दबाव क कारण था और lsquoपरावकततrsquo की कतरथकीयता र भी कतहनदओ को lsquoरहारोहनासतरrsquo क सहार

पहि भी वश र दकया गया था यह एक बारीक चाि थी अकबर की इस चाि को अागरज भी नही सरझ

पा रह थ भारतद की यह परकततदकया औपकतनवकतशक इकततहासिखन क दबाव र थी १८७३ र जब भारतद

न कतशवपरसाद की दकताब lsquoइकततहासकततकतररनाशकrsquo क तीसर खाड की आिोचना की थी तो उनक सारन

रकतसिर शासन की बबमरता और अागरजी राज क सशासन का कतशवपरसाद िारा ककतलपत आखयान था १८८४

र समपणम रकतसिर काि अनधकार यग र बदि गया कततकतररनाशक क पहि खाड र बाब कतशवपरसाद न भी

अकबर की रजहबी उदारता और साराकतजक सधारो की बड़ाई की थी इस परकार हर दख सकत ह दक

ऐकततहाकतसक िखन र पकष और कतवपकष की पनरावकततत एक बाद घर र उिझी हई थी इनक सारन रकतसिर

कतवरोध और अागरजी शासन क कतवरोध का एक कतवसागत फर था और िखक उसर अपनी फौरी जररतो क

कतहसाब स कतरतर और दशरन वािा इकततहास कतिखता था इकततहास ठठ राजनीकततक ततकाि क वशीभत था

जो भी हो धाररमक उदारता और सिह-ए-कि का परयोग एक कतशकषापरद परयोग था यह कतवकतभनन

रतो या कतवशवासो क बीच lsquoजनरतrsquo बनान का एक रधयकािीन परयोग था भारतद lsquoजनरतrsquo क परयोग को

इस तरह दखत थ रानो यह lsquoचािrsquo अगर कारयाब हो जाती तो lsquoआज क ददन हहादसतान रसिरान होताrsquo

भारतद क सारन सरसया वही थी बस वह कवि यह चाहत थ दक कतहनदसतान lsquoकतहनदrsquo हो जाय कतहनद

अथामत वषणव हो जाय वषणवता भारतद क कतिए हहादसतान का नया lsquoसिह-ए-किrsquo था इसकतिए कछ

सावमजनीन रलयो की तिाश उनह भी थी कतसिकट ककतरटी क उपरोि रमबर lsquoएकसअफीकतशयोrsquo रमबर थ

रोर क परान हररकिस जस दवता कतजनहोन धरती स साबाध तोड़ ददया ह व िोग तथा उनही क जस

पारकतसयो क lsquoजरदशतजीrsquo को कोरसपोहडाग ऑनररी रमबर बनाया गया य धरम क रप र रतपराय रतो क

परकततकतनकतध थ ककतरटी न जो ररपोटम तयार की उसका ररम भारतद न ददया ह यह ररम उनक रकतडकि वषणव

पकष का रत था कतिबरि दि और काजरवरटव दि क अपन पकषो स इतर यह नरनायक तीसरा पकष वषणवो

की तरफ स सनाया गया था रकतडकि वषणवो की तरफ स भारतद इस धाररमक आनदोिन क भीतर अपना

ही पकष रखत हए इसका ररम कतिख रह थ ldquoहरिोगो की समरकतत र इन दोनो परषो न परभ की रागिरयी

सकतषट का कछ कतवघन नही दकया वराच उसर सख और सातकतत अकतधक हो इसी र पररशरर दकयाrdquo कतहनद सराज

सधार क परयासो का ररम बतात हए सबस पहि धयान सतरी सधारो पर ददया गया ह साराकतजक करीकततयो

की कतशकार रकतहिाओ क परकतत जो दकतषट उभरकर सारन आती ह उसक रि र धरम की रीकतत स यौन

रयामदाओ की अवयवसथा को दफर स रयामददत करन की चषटा ह कतसतरयो क करागम पर जान का पहिा कारण

ह रनराना परष धरमपवमक न पाना यह कतववाह सासथा की कतवककततयो की आिोचना थी जहाा बाि कतववाह

कतवधवा कतववाह आदद की तरफ इशारा ह धयान रखना चाकतहए दक यहाा बरि कतववाह क बदि कतसतरयो िारा

29

lsquoरनराना वरrsquo न चन पान का उलिख ह गभमनाश और बाि हतया क कतखिाफ सधार परयास दसरा

रहतवपणम योगदान ह कतववाह सासथा बीच र भी भाग की जा सकती ह इसकी सवीककतत ह कनया क कतहत र

अातरजातीय कतववाह की सवीककतत ह एक रहतवपणम बात गरओ और पाकतडतो क वयाकतभचार क साबाध र ह

भारतद क सारन पकतषटरागी रहातो और गरओ क वयाकतभचार का अनभव भी इसर शाकतरि ह

१८७४ र ककतववचन सधा र भारतद की एक रटपणणी छपी थी lsquoगर को कसा होना चाकतहएrsquo इसक अिावा

दो वषम पहि lsquoगर और रहातrsquo नार स भी एक रटपणणी कतिखकर वषणव पाडो-परोकतहतो की खिकर

आिोचना की गयी थी तिवार जी न कतिखा ह दक राददरो क भीतर कतसतरयो का यौन शोषण और वयाकतभचार

इतना भीषण था दक दयानाद भारतद क पकतषट सापरदाय को lsquoकषठी सापरदायrsquo कहत थ १८६० क आरमभ र ही

वषणव गोसाइयो क अनाचार और यौन शोषण क कतखिाफ बमबई र एक बड़ा आनदोिन पकतषटरागी

करसनदास रि जी क नततव र हो चका था वषणव बकतनया पषठभकतर स आय करसनदास जी उन नौजवानो

र थ कतजनहोन एकतिफ सटन कॉिज स आधकतनक कतशकषा परापत की थी गोसाइयो और रहाराजो िारा अपन

lsquoसमपरदाय की बह बरटयोrsquo क साथ होन वाि अतयाचार क कतखिाफ उनहोन िख कतिख और समपरदाय क

इकततहास को नए कतसर स सारन रखा पण स आए जदनाथ वजरतन जी रहाराज न करसनदास जी पर

रानहाकतन का रकदरा दायर कर ददया इसी रक़दर स वषणव रहातो की कई सारी बात जनता क सारन

परतयकष हई तिवार जी न इस lsquoरहाराज िाइबि कसrsquo को भारतीय नवजागरण र वषणव गोसाइयो क

दराचार और यौन शोषण क कतखिाफ हआ सबस बड़ा आनदोिन कहा ह भारतद पर इसका बहत परभाव

था यह कस १८६० र हआ था एक दशक बाद जब भारतद सापरदाय क कायो र रत थ उसी सरय कतिख

रह थ ldquoराददर कया होत ह रानो कतसतरयो की खान ह जसी चाकतहए िीकतजय- वराच अचछी सतरी भी वहाा जाकर

कतबगड़ जाती ह आशचयम यह ह दक कतजनको व िोग बटी कहत ह और जो उनक परिोक क रधयसथ ह और

कतजनको वो दीकषा दत ह उन कतसतरयो की ओर व आप ही बरी दकतषट स दखत ह ओर रर पयार कतहनदओ तर

इनक जाि र कब तक फा स रहोग और कया तरको यही सासार स बचावग और इनही क भरोस तरको

भगवान कतरिगाrdquo33

राददरो क धन-ऐशवयम और वयाकतभचार र डब जीवन क जीवात कतचतर हर बनारस क रखाकतचतर lsquoपरर

जोकतगनीrsquo क अिावा lsquoकाशी क छायाकतचतर क दो बर-भि फोटोगराफrsquo र भी कतरित ह यहाा भारतद का वयागय

अपन वषणव सापरदाय की आतरािोचना स सदकय ह lsquoपरर योकतगनीrsquo नाटक र आन वािा चररतर रारचादर

खद भारतद ही थ नाटक का सतरधार कहता ह दक भारतवषम की दीन हीन गकतत क कारण उसका तो

कतवशवास ही ईशवर स उठन िगा ह नाटक क पहि ही दशय र भारतद हर राददर क भीतर कतिए चित ह

33 वसधा डािकतरया िारा उदधत पषठ- ३३७

30

जहाा राददर र कार करन वािा साधारण टहिआ झपरटया हर ददखाई दता ह पजारी बाब अभी तक नीद

स नही जाग ह कयोदक आधी रात तक lsquoबठ क ही-ही-ठी-ठी करा चाह दफर सबर नीद कस खिrsquo कतनकतशचत

रप स यह टहिआ सबह सवर ही राददर र हाकतिर ह िदकन दवता अभी राददर र सोय ह रारचादर

परदशी ह काशी र बाहर स आय ह छकक जी और राखनदास इस रारचादर की आिोचना करत ह इनक

सावादो स पता चिता ह दक बाब रारचादर क यहाा ददन रात नाच गाना हआ करता ह और उनको अपनी

कतवदया का घराड ह दो चार ककतवतत भी बना ित ह पर lsquoककतवतत बनाव स का होव और ककतवतत बनावन कछ

अपन िोगन का कार थोर हय ई भााटन का कार हयrsquo छकक जी कहत ह दक अपन रागम का उनह कछ जञान

तो ह नही बस दो चार बात इधर उधर स सनकर कछ lsquoदकसतानी रतrsquo सीखकर पाकतडत बन दफरत ह

कतनकतशचत रप स य भारतद पर िगन वाि आरोप थ राददर र सवारी धनदास वकतनतादा बभकतकषत पाकतडत

आदद धरम क ठकदार ह इनकी पतनशीि सासककतत को दखकर रारचादर का दःख इन शबदो र वयि होता ह

lsquoहा कया इस नगर की यही दशा रहगी जहाा क िोग ऐस रखम ह वहाा आग दकस बात की वकतदध की

साभावना करrsquo lsquoवददकी हहासा हहासा न भवकततrsquo जस शरआती नाटको र भी करमकााडी परोकतहतवाद की

आिोचना की गयी ह राजा और परोकतहत कतरिकर वहाा जनता का शोषण करत ह जआ रददरा और

रथन की ऐययाश सासककतत क परतीक परोकतहतो का काजरवरटव दि इन परहसनो र रतम होता ह कतचतरगपत यर

स कहत ह ldquoरहाराज य गर िोग इनक चररतर का कछ न पकतछए कवि दमभाथम इनका कततिक रदरा और

ठगन क अथम इनकी पजा कभी भकति स ररतम को दाडवत न दकया होगा पर राददर र जो कतसतरयाा आयी उनको

सवमदा तकत रह रहाराज इनहोन अनको को कताथम दकया ह और इस सरय तो र lsquoशरीरारचनदर जी का

शरीकषण का दास हाrsquo पर जब सतरी सारन आव तो उसस कहग lsquoर रार तर जानकी र कषण तर गोपीrsquo और

कतसतरयाा भी ऐसी रखम दक दफर इन िोगो क पास जाती हrdquo34

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo की ररपोटम र सतरी सधारो क कायो की रहतता बतान क बाद जाकतत वयवसथा पर

इन सधारको का परहार कयो जररी था इस बताया गया ह कठोर जाकतत बनधनो क चित कस हर साि

जाकतत-बाहय होकर जाकतत र वापस आन क दकसी उपाय को न जान lsquoहजारो रनषय आयम पाकति स हर साि

छटत थ उसको इनहोन रोकाrsquo इस परकार इन सधारको न lsquoआयमधरमrsquo क भीतर जो पररवतमन करन चाह

उसस आयो की एकता दफर स बहाि हो गयी इसक अिावा अाधकतवशवासो को इनहोन दर दकया यही नही

बकतलक जहाा िोग lsquoरसिरानी पीर पगमबर औकतिया वीर ताकतजया गाजी कतरयाा कतजनहोन बड़ी ररतम तोड़कर

और तीथम पाटकर आयम धरम कतवधवास दकयाrsquo उनको भी पजन िग थ और lsquoकतवशवास तो रानो कतछनाि का अाग

हो रहा थाrsquo ऐसी िजजाजनक कतसथकतत स िोगो को बाहर कतनकािकर lsquoसार आयामवतम को शदध lsquoिायिrsquo कर

34 दख रारकतविास शराम पषठ १३१

31

ददयाrsquo lsquoिायिrsquo कर ददया गया इसका अथम आयम जाकतत को दफर स िायि करन र था आयम जाकतत क भीतर

कतबगाड़ क चित ही कतनमन जाकततयो का बड़ परान पर पिायन था इस इन िोगो न रोका और इनक परताप

स ही अनक छोट और सथानीय धरम-रतो क भीतर जो lsquoरसिरानीrsquo परभाव घस आय थ उनको दफर स lsquoबड़ी

ररतमrsquo की कतनषठा र िाया जा सका इस परकार कतहनद धरम और वणामशरर क परकतत दफर स िोगो को lsquoिायिrsquo

दकया यह lsquoिायकतिटीrsquo भारतद की रकतडकि वषणवता क जनरत क कतिए भी जररी था तिवार जी जब

आयमसराकतजयो की lsquoकााकततकारीrsquo भकतरका ददखात ह तब आयम सराज िारा आयामवतम को िायि बनान वािी

इस भकतरका की साकतशलषटता पर जयादा बात नही करत भारतद दयानाद क कााकततकारी परयासो र lsquoिायिrsquo

बनान की परदकया उसी वक़त दख रह थ और इसी कारण ररपोटम र दयानाद की आिोचना धयान दन िायक

ह सवारी जी न ldquoजाि को छरी स न काटकर दसर जाि ही स कतजसको काटना चाहा इसी स दोनो आपस

र उिझ गए और इसका पररणार गह कतवचछद उतपनन हआrdquo गह कतवचछद का रतिब कतहनद धरम र गह

कतवचछद जबदक कशवचादर सन क बार र कहा गया दक उनहोन जाि काटकर भकति की उचछकतित िहरो का

पररषकत पथ परकट दकया इस परकार रकतडकि वषणवता की lsquoअनयताrsquo और परररिक भकति क परशसत पथ क

सवीकार का कतनषकषम कतवचार सभा का भी कतनषकषम था धयान दन िायक ह दक कशवचादर की आिोचना उनक

कतचतत कतवकषप क कारण की गयी थी जहाा lsquoईसारसीह आदद उनस कतरित हrsquo य एक दकसर का इिहारी

अनभव था कतजस भारतद अपनी वषणवता स बाहर रखत ह ईशवर न इस ररपोटम पर अपना रत सरकतकषत

रख कतिया और भारतद कतिखत ह ldquoइसको दख कर इस पर कया आजञा हई और व िोग कहाा भज गए यह

जब कर भी वहाा जायग और दफर िौट कर आ सक ग तो पाठक िोगो को बतिावग या आप िोग कछ

ददन पीछ आप ही जानोगrdquo

३ जनरत और वषणवता

ककतववचन सधा ९ राचम १८७२ र भारतद न lsquoPublic Opinion In Indiarsquo नार स अागरजी र

एक िख परकाकतशत दकया िख र उनहोन कहा दक कई सददयो दक दासता क बाद भारतवषमहहादसतान अब

जाकर कतिरटश राषटर क सवोचच कतनयातरण र आया ह दश धीर-धीर सभयता और परबोधन की पकतशचरी दकरणो

क सहार दरन और कशासन क रतय-तलय कतनदरा स जाग रहा ह कतिरटश शासन की परगकततशीि नीकततयो का

परभाव यहाा की बहरपी आबादी पर पड़ रहा ह

ldquoBut in this progressive state national energy and zeal sympathy and

disintiredness are waiting to make both the conqueror and the conquered to act in

32

concert and in harmony and hence we have the broad distinction of white and

black still But in this country many are the blemishes that adhere to us to be

eradicated and many are the shortcomings that are hovering around us to be done

away with before we can have a public opinion here in its true senserdquo35

गोर और काि क बड़ भद को छोड़ कर कतवजता अागरजो और भारतीयो क बीच एक सराजन तो बन गया ह

पर अनदरनी ददककत अभी भी राह बाए खड़ी ह रौका ह दक इस परगकततशीि कतसथकतत का फायदा उठा कर हर

एक सचच जनरत का कतनरामण कर सचच िोकरत क कतनरामण र अादरनी बाधाएा कया थी भारतद न इस

आग सपषट करत हए कतिखा-

ldquoRace antagonism rivalry and mutual misunderstanding are the favourite

occupations of the aristocratic class Want of confidence among all classes of men

are the prevailing characteristic of the nation and above all multifarious castes and

creeds with there numerous forms of religion and local habits and customs which all

combined have kept the progressive policy at a stand still True it is that a

representative Government is a boon to this country and true it is that Sir Bartle

fregravere a man of vast experience and a good statesman has found out that in village

community we can have public opinion but with all his experience he has lost sight

of our national defects ndash defects which we ourselves know and which no foreigner

can catch at a glancerdquo36

भारतद इस बात को िकर कतनकतशचत ह दक िोकरत और परकततकतनकतधरिक सासथाओ क बहतर कतवकास क कतिए

सीध-सीध कतवदशी रॉडि कभी सफि नही हो पायगा ऐसा इसकतिए कयादक हरारी आपसी कतवकतभननताओ

और झगड़ो को कोई बाहरीकतवदशी सतता कभी भी परी तरह सरझ नही सकती lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo नार

35भारतद गराथाविी -6 361

36 वही

33

स भारतद का एक दसरा िख इस अागरजी वाि िख क दो साि बाद अपरि सन १८७४ र हररशचनदर

रगजीन र छपा पकतबिक ओकतपकतनयन कया बिा ह इस साफ़ करत हए भारतद िख क आरमभ र ही कहत

ह ldquoपकतबिक ओकतपकतनयन अथामत सब साधारण िोगो की राय कया वसत ह और इसर दकतना जोर ह और

इसक कतिए कया हो सकता ह यह परशन ठहरा तो इसका साधारण उततर यही ह दक यह वह वसत ह जो

सासार को एक कर सकती ह गागा की धरा दफर कतहरािय पर चढ़ा ि जा सकती ह सययम को पकतशचर उगा

सकती ह और चाह तो ईशवर को भी पकड़ क कठपतिी की भााकतत नचा सकती हrdquo37 यह पकतबिक

ओकतपकतनयन lsquoएक रतrsquo होना ह जस अिग अिग चार पतिी िककतड़यो को एक साथ बााध दन स उस

तोड़ना करठन हो जाता ह उसी तरह एक रत होन स बड़ स बड़ा बरी भी हरारा कछ कतबगाड़ नही सकता

बहत स िोगो का रत एक हो तो वह शकति बन जाती ह हिारो आदरी की बकतदध एक हो जाए तो ldquoऐसा

कौन कार ह जो न हो सक तो यह कतसदधाात हआ दक कतनशचय सब िोगो क रत र बड़ी सारथयम ह इसस यह

कतसदध हआ दक बिो स बड़ा बि एक रत ही हrdquo38

आग भारतद कहत ह दक यह जनरत और उसकी शकति हहादसतान क कतिए कोई नई बात नही ह

पराचीन काि र इसक उदाहरण कतरित ह lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo की इस धारणा को भारतद न इकततहास क

अिग-अिग दौर र बनत और कतबगड़त ददखाया सबस पहि चार वणो की िररत पड़ी सब कार को

सचार रप स चिन क कतिए दसर शबदो र कह तो शरर-कतवभाजन की िररत स इसका जनर हआ

lsquoकतहनदओ न अपन गर क कार र इस वणामशरर धमरम को इसी वासत बनाया कतजस र उन क दकसी कार र

कोई हजम न हो और उनिोगो न सासार क सब कारो र चार कार रखय सरझrsquo धरम कतवदया और किाओ का

कार िड़ाई और राजय परबाध का कार वयापार और धन और सब िोगो की सवा और रजदरी इन चार

कारो की सवयवसथा वािा वणामशरर दरअसि lsquoएक रतrsquo कतहनद वयवसथा या lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo थी पर

कािाातर र इस lsquoएकरतrsquo क भीतर जाकततवयवसथा कठोर हो गयी और िाहमण और शदर दोनो एक दसर क

कतखिाफ हो गए एकरत र कतवचछद पदा होन स कतहनद शकति करिोर हो गयी भारतद क अनसार आपस

का यह झगड़ा बड़ा कतवनाशकारी साकतबत हआ पकतबिक ओकतपकतनयन क कतबना वयाकतभचार और जयादकततयो का

अाधर था आग चि कर जनो क जरान र दफर lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo न जोर पकड़ा बकतलक भारतद जोर

दकर कहत ह दक जनो क रत की उततपकततत ही lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo स हई ldquoकतहनदओ क जब नाश क ददन

जब कतनकट आय तो आपस र परसपर बड़ा कतवरोध खड़ा हआ और उस काि र िाहमणो का बड़ा जोर था

वरन य और वणो पर जयादती करत थ तो वशय और कषकततरयो की रकतत इनस दफर गयी और बाब वािी बड़ी

37गराथाविी- 678

38वही

34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

36

कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

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उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

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ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 13: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

13

छोड़ दन वािी यह इकततहासदकतषट या एक सातकतित इकततहासदकतषट का यह परयास खाड खाड कतबमबो की एक ऐसी

गकततशीिता का भरर पदा करती ह जो इकततहासवाद की एक पररख कतवशषता रही ह इस पकष पर सवया

नारवर जी का धयान था और आग चिकर उनहोन नवजागरण क इस कतरथकीय चररतर को सवया ही

आिोकतचत दकया इस आिोचना र वह नवजागरण को परबोधन कहन क बदि lsquoअकतभजञान-कािrsquo कहना

जयादा उपयि रानत ह खद lsquoनवजागरणrsquo नार को अागरजो की कलपना बतात ह और उननीसवी सदी को

lsquoसरकतत-भराशrsquo का काि कहत ह यहाा १८५७ स िकर भारतद और कतववकानाद सब एक कतरथकीय चतना क

भीतर सराकतहत ददखत ह और कतजस भारतीय नवजागरण कहा जाता था उस कतवपरीत जागरण रानत ह

इसी कतवपरीत जागरण का नार उनहोन अकतभजञान ददया 20 डा वीरभारत तिवार न कवि कतहनदी

नवजागरण को भारतीय नवजागरण की परकततकााकततकारी धारा कहा था वही नारवर जी अब पर भारतीय

नवजागरण को ही कतवपरीत जागरण कह रह ह और बहत हद तक सही कह रह ह

डा तिवार न अपनी lsquoरससाकशीrsquo र lsquoहहादी नवजागरणrsquo को एक भरारक पद बताया था न तो

इसका साबाध १८५७ स था न रधयकािीन भकति आनदोिन स और न ही जनवादी राषटरवाद की दकसी

अवधारणा स उनक अनसार परबोधन क कतववकवाद तथा धरमसधार-सराज सधार की कतरिी जिी परदकया

क रप र कतवककतसत होत बागािी या रराठी नवजागरण या भारतीय नवजागरण की परकततगारी धारा क रप

र कतवककतसत होन वाि भारतद आदद क साासककततक आनदोिन को lsquoहहादी आनदोिनrsquo कहना ठीक ह कतशकतकषत

रधयवगम क भीतर दो परसपर कतवरोधी धाराओ की चचाम डा तिवार करत ह एक धारा कतववकवाद की

धारा थी दसरी सनातनी कतहनद धरम की धारा रहाराषटर और बागाि र अागरजी कतशकषा क परचार-परसार न कतजस

नए धरम और सराज सधार को गकतत परदान की वह अपकषाकत अकतधक परगकततशीि धारा थी पकतशचरोततर यि

परानत क पवी इिाक खासतौर पर बनारस इिाहाबाद और बहत हद तक पटना कानपर भागिपर आदद

शहरो र कतवककतसत नव-रधयवगम इस परगकततशीि धारा क साथ नही था इसका सबस बड़ा कारण अागरजी

कतशकषा का अभाव था यि परानत र कोई धारा परगकततशीि भकतरका अदा कर रही थी तो वह कवि दयानाद

सरसवती की आयमसराजी धारा थी इस आयमसराज का भी अपना जनाधार सनातनी पाकतडतो या िाहमणो क

यहाा नही बकतलक नौकरीपशा अागरजी कतशकषा परापत वह भदरवगम था जो अपन धरम और सासकारो क कतपछड़पन

को िकर गिाकतनबोध स भरा था इस वगम को अपनी पहचान आयम सराज र ददखती थी आयम सराज क

रिवाद र तथा उसक तारकम क सथिवाद र आधकतनक होन का रासता ददखता था िहमोसराज और

कतथयोसोदफकि सोसाइटी दो ऐसी सासथाएा और थी जो यि परानत र धरम और सराज सधार का परयास कर

रही थी परनत इसका परभाव बहत सीकतरत था आरतौर पर यिपराात र रहन वाि बागािी अपरवासी ही

20 दख नारवर हसाह उननीसवी सदी का भारतीय पनजामगरण यथाथम या कतरथक (अन) पाकज पराशर पकषधर अाक ११ जिाई २०११

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इनक सदसय थ हहादी आनदोिन क नताओ न इन दोनो धाराओ की आिोचना की ह इनहोन दयानाद क

रिवाद की आिोचना अपनी परापरावादी करमकााडी दकतषट स की इनक अनसार उपकतनषद या पराण आदद

अगर अपराराकतणक भी ह तब भी चादक िोक र सवीकत ह इसकतिए उनह एकदर ख़ाररज करक कोई धरम या

सराजसधार नही हो सकता तिवार जी का कहना ह दक अपनी िचर दिीिो की आड़ र य िोग वसततः

सतरी कतशकषा कतवधवा कतववाह या आधकतनक जीवनशिी आदद की परगकततशीिता का कतवरोध कर रह थ यह

कतवरोध आरतौर पर सरदाय की रानयताओ को ही सारन रखकर दकया जाता था एक दकसर क

कतबरादरीवाद क भीतर स सरझौता करत चिन क कारण हहादी आनदोिन क नता अपन पाररवाररक या

वयकतिगत जीवन क उथिपथि स बचन की कोकतशश करत ह धरम इनक कतिए सधार का नही वरन

राजनीकततक हथका डा रातर था धरम की आड़ र य रकतसिर भदरवगम को अपना परकततयोगी साकतबत कर कतहनद

एकता की अपीि करत तादक इनह सरकारी नौकररयो र कछ कतवशषाकतधकार कतरि सक तिवार जी क

अनसार रकतसिर भदरवगम इन हहादी आनदोिन क परसकततामओ स कही जयादा परगकततशीि था उनक यहाा

आधकतनकता क परकतत जयादा खिी और कतववकसापनन दकतषट थी और उनहोन जोर दकर कहा दक हहादी आनदोिन

को सर सयद अहरद खाा जस दकसी सकषर कतववकवादी वयकतितव का नततव नही कतरि पाया हहादी

आनदोिन और नताओ क अातरवमरोधो को ददखात हए तिवार जी न भारतद की छकतव एक पतनशीि कतहनद

रोररटक की गढ़ी ह यहाा भारतद एक परकततनायक क रप र नजर आत ह

कतववकवादी इस धारा न राषटरीयता की जो धारणा गढ़ी वह रितः साापरदाकतयक थी अागरजी राज क

कतखिाफ अगर इनका साघषम सराज और धरम सधार को साथ-साथ रखन क बजाय उसर अिगाव करता ह

बकतलक उनक कतखिाफ जाकर सागरठत होन का परयास करता ह तो उसक सारन रकतसिर भय पदा करन क

अिावा और कोई रासता साभव नही था lsquoहहादी नागरी और गोरकषाrsquo आनदोिन इसकी सवभाकतवक पररणकतत

थी आग चिकर उननीसवी सदी क आकतखरी दशक र आकार गरहण करन वािी कतहनद राषटरवाद की यह

पषठभकतर ह इसक वग र दयानाद न भी साथ ददया कयोदक उनर भी पनरतथानवाद क बीज थ पवी परदशो

की अपकषा आयम सराज पाजाब र कही जयादा रकतडकि था आयम सराकतजयो की सदसयता की साखया पाजाब

क रकाबि यि परानत र जयादा थी पर वहाा कोई गणातरक पररवतमन साभव नही हआ और यह रहज

साखयाबि क रप र ही बना रहा इसका कारण उनहोन पाजाब की कतभनन नतततवशासतरीय अवकतसथकतत र

बताया ह पाजाब र िाहमणो का परभाव कर था कतजसका एक कारण रसिरानो क साथ िमबा सासगम और

कतसख धरम आदद का परभाव भी था इस तरह का कोई कतवशलषण पवी परदशो क बार र नही दकया गया जसा

दक बहत पहि रदमरशरारी की ररपोटम स ही हजारीपरसाद कतिवदी न दकया था अथामत रधययगीन कतसख

धरम क परभावो की तरह कबीरपाथी आदद सरदायो क परभाव और वषणवता क अातसबाधो की पड़ताि नही

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की गयी ह काशी क बनकरो की एक हड़ताि का कतिक रारकतविास जी बार बार करत ह जो १८३३ ई र

ही हई थी और इकततहासकार बिी क अनसार यह वक़त आरथमक साकट का भी वक़त था

भदरवगम का जो कतहससा हहादी आनदोिन क साथ था उस जाकतत वयवसथा की परानी रानयता को

बनाय रखन या उस रजबत करन की जररत कया कवि नौकररयो र कतवशषाकतधकार परापत करन क कतिए थी

या जाकतत वयवसथा रातर र आय एक रिगारी साराकतजक साकट का वह परकततदकयावादी रपाातरण ह शहरो

र आरथमक-वयापाररक गकततकतवकतधयो क कारण और आसपास क इिाको स परवासी रजदरो का आगरन तथा

बढ़ती वशयावकततत आदद क चित शहरी साराकतजक साबाधो र भी उथि-पथि थी ऐस सरय र सारदाकतयक

या कतबरादरी बोध lsquoएकाrsquo की भावना पदा करती ह तिवार जी इस नव-भदरवगम का अपन ही भीतर अिग-

अिग खााचो र बाट होन की बात करत ह अिग-अिग खााचो र बाट होन क चित यह भदरवगम रधयवगम की

कतवचारधारा अथामत कतववकवाद या नवजागरण को परापत नही कर पायी थी वगम था िदकन वगम की

कतवचारधारा नही थी खद भारतद क जीवन स हर उस दौर की अकतसथरता का कछ अादािा कतरिता ह

अकतसथरता और खााचो र बाटा रधयवगम दरअसि सापणम सराज र होन वाि एक आधारभत पररवतमन की ओर

इशारा करता ह यह पररपरकषय १८५७ की तरासदी का भी ह ऐसी कतसथकतत र हपराट पाजी क साथ बनन वािा

यह साासककततक आनदोिन था जहाा सवतव रकषा रखयतः अपन परान कतवशषाकतधकार की रकषा थी साराकतजक

साबाधो र आय उथि पथि क कारण उनह अपन कतवशषाकतधकार कतछन जान का खतरा साफ़ ददखाई द रहा

था जहाा अागरजी कतशकषा थोड़ा पहि ही परसार पा चकी थी वहाा कशि कारीगरो स िकर अधयापको और

परशासकतनक अकतधकारीयो क एक बड़ सरह न अपना नया कतवशषाकतधकार पा कतिया था साराकतजक साबाधो र

उनकी शरषठता उनक कतववकवाद क कारण बन चकी थी भारतद क एक शरआती िख lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

क राधयर स खााचो और जनरत की राजनीकतत को सरझन की कोकतशश आग करग

तिवार जी क अनसार दयानाद क कतवचारो क कतिए पाजाब जयादा गरहणशीि था कयोदक वहाा

जाकतत वयवसथा क बाधन पहि ही ढीि हो गए थ यिपराात र जाकतत क बाधन जायदा कठोर थ कतजन अथो र

कतिवदी जी रधय दश की रकषणशीिता का कतजक करत ह कछ-कछ उनही अथो र पर सवया दयानाद क

कतवचारो र कतववकवाद-पनरतथानवाद का दोरखापन कतरिता ह तिवार जी कहत ह दक कतजन सथि तको स

वह वदो की ओर िौटन को कहत थ आयम भाषा आयम जाकतत और आयम धरम की बात करत थ उसक कारण

ही इनका झकाव आग चिकर राषटरीय सवयासवक साघ की ओर होता गया पर आयम सराज क साराकतजक

सधारो और धरम सधारो की एकता क कारण वहाा वह साभावना भी थी कतजसक परभाव स आग चिकर बहत

सार कमयकतनसट कायमकताम भी कतनकि पररचाद राहि साकतयायन या गणश शाकर कतवदयाथी जस साकतहतयकार

और आनदोिनकताम आयम सराज क परभाव र थ आयम सराज तिवार जी क अनसार वासतकतवक साराकतजक

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पररवतमनो का सावाहक और सराज र वयकति स िकर साराकतजक जीवन क हर कषतर र गणातरक पररवतमन

िान वािा इसकतिए हो पाया कयोदक वहाा धरमसधार और सराज सधार अिग-अिग नही था दसरी ओर

हहादी आादोिन साापरदाकतयक जाकततवादी और सतरीकतवरोधी रलयो को ही सराज र फ़िान र कारयाब हआ

यह धारा अागरजो को अरजमयाा दकर नौकरी पान वाि रधयवगम की धारा थी

तिवार जी न भारतद की तकमशीिता को बहत कतनमन कोरट का कहा ह भारतद क चररतर र शायद

वह एक lsquoिमपनrsquo की छकतव भी दखत ह पसा उड़ान की वकतत सतरी क साथ वयवहार और उनक साबाध

चाररतरय बि का अभाव आदद आदद क सनदभम र वह कहत ह दक भारतद क चररतर र वह सदढ़ता या

सदाचाररता नही ह जो सराजसधार क कतिए आवशयक होती ह घर र पतनी उनह कभी पसाद नही आई

और वह बाहर रहदफ़िो र वाहवाही िटत रह रदमवादी दकतषट भी उनर कट-कटकर भरी थी भारतद क

इस चररतर की तिना तिवार जी न दो अनय परमपरावादी सधारको स की ह एक बागाि क राधाकाात दव

और दसर पाजाब क शरदधारार फलिौरी यदयकतप य दोनो भी भारतद की तरह परापरा की रकषा र ही सधार

की ओर अगरसर हए थ िदकन इन िोगो का चररतर जयादा परगकततशीि था इन दोनो की तिना र भारतद

का खिनायकतव और भी अकतधक उभरकर सारन आता ह सापकतकषक परगकततशीिता क कतनधामरण क कर र

भारतद अपन सापणम जीवन वयवहार र एक एाटी हीरो की तरह उभरत ह ठीक परान खिनायको की तरह

नही एाटी हीरो क साथ दशमक या पाठक की एक आतरीयता भी जड़ी रहती ह उसका चररतर ददराग र बस

जाता ह िदकन इसक चित यथाथम क ओझि होन का खतरा भी ह तिवार जी इसकतिए कदर कदर पर

उनकी साकतहकततयक छकतव क बरकस उनक राजनकततक- साागठकतनक जीवन वयवहार स बनन वािी छकतव को

सारन ररतमरान करत जात ह

अपनी परी आिोचना र तिवार जी भारतद की रचनाओ र कतरिन वाि भाषायी िदधड़पन और

राद तकमशीिता की चचाम तो करत ह िदकन व भारतद क वयागयो पर चचाम नही करत कया यह रहज

सायोग ह दक भारतद क परहसन lsquoअाधर नगरीrsquo का राचन आज भी परगकततशीि रलयो की परकततषठा ही करता

हभारतद क वयागयो या परहसनो र ऐसा कया ह कतजसर दहराव क साथ नवीन होत चिन की कषरता भी ह

भारतद क िखो या परहसनो या रपको र जो कही-कही वणमन या सावाद िारा वयागय का तीखा बोध पदा

होता ह उसकी शकति उनह कहाा स कतरिती ह वयागय की कषरता सवया र उनकी सकषर कतनररकषण र सरथम

दकतषट का परराण ह परान साराकतजक साबाधो र पररवतमन और तीवर पररवतमन क साथ साथ जो एक परहसन

चि रहा था उसका बोध भारतद को था भदरवगम क भीतर की कतववकवादी धारा का कतवकास भी कतहनद

राषटरवाद की कतवचारधारा र ही हआ परनत lsquoअाधर नगरीrsquo कया कतहनद राषटरवादी कतवचारधारा वािा परहसन ह

या कया यह कवि राषटरवादी कतवचारधारा का वाहक ह lsquoउरराव जान अदाrsquo र उभरकर सारन आन वाि

17

साराकतजक साासककततक साकषोभ या उस वयापक टरजडी क सनदभम र दख तो भारतद क वयागय और परहसनो का

अथम थोड़ा और उभरता ह रकतलिका या राधवी स भारतद क साबाधो र कया उस तरासदी का सराग भी नही

ह वशयावकततत और पतनशीि रइसो का साकट एक दसर स अिग नही था उस सरय की औपनयाकतसक

ककततयो र वशयावकततत का सनदभम अवशय आता ह आग चिकर पररचाद की सरन बनारस र ही lsquoसवासदनrsquo

का सराधान ढाढ रही थी

भारतद क वयागयो पर रारकतविास जी का धयान था यह बात अिग ह दक अकतधकााश रौको पर

इनर वह जातीय चतना खोज कतनकाित ह बीस साि की उमर र भारतद न एक िख lsquoिवी पराणिवीrsquo नार

स कतिखा था रारकतविास जी इसका उलिख करत हए कतिखत ह ldquoगवनमर जनरि कतहनद क कतजस दरबार का

भारतद न वणमन दकया ह वह काशीराज क घर पर हआ था इसकतिए भारतद की सतयकतपरयता और भी

सराहनीय ह वहाा जो सजजन िोगो क नार कतिख रह थ उनका वणमन या दकया ह lsquoनार कतिखन वाि राशी

बदरीनाथ फि-फाि अबा पकतहन पगड़ी सज परान दादर की भााकतत इधर-उधर उछित और शबद करत

दफरत थrsquo िोग दकस तरह एक आनररी रकतजसटरट क lsquoकतसट डौनrsquo lsquoसटड अपrsquo कहन स उठत और बठ जात थ

इसका उनहोन बहत ही नाटकीय वणमन दकया ह आनररी रकतजसटरट का वयवहार हविदार का सा था कतसफम

हाथ र एक िकड़ी की कसर थी िोग कीरती पोशाक पहनकर गए थ ldquoसबक अागो स पसीन की नदी

बहती थी रानो शरीयत को सब lsquoअरघय पादयाrsquo दत थrdquo िोगो की उठा बठी और बहदा कवायद को िकषय

करक कतिखा था ldquoवाह-वाह दबामर कया था lsquoकठपतिी का तराशाrsquo था या बलिरटरो की lsquoकबायदrsquo थी या

बादरो का नाच था या दकसी पाप का फि भगतना था या lsquoफौजदारी की सजाrsquo थीrdquordquo21 काशी की इस सभा

र खद भारतद भी बठ थ इस परकार यह भारतद क वगम का परहसन भी था पतनशीि सासककतत की

आतरािोचना क कतबना यह साभव नही था बात कवि उमर की नही ह ठठ वतमरान र हसतकषप और उस

बदिन का बोध कतजन पतनशीि कतसथकततयो का आतर साकषातकार कर रहा था यह उसक परकतत एक

सवाभाकतवक सवतःसफतम परकततदकया थी यह तारकम क की नही बकतलक किाकार की सवतः सफतमता थी यह बात

सही ह दक भारतद कतवचारो की तारकम कता क रारि र उननीस पड़त थ पर इस करी को उनकी तीकषण

वसतकतनरीकषण दकतषट भर दती थी जीवन कतसथकततयो की कतवडमबना का बोध कतजतना गहरा था बदिन का

परयास उतना ही ऊजामवान था भारतद सवया अपनी भी कहानी कतिख रह थ lsquoपयार हररचाद की कहानीrsquo

कतिख रह थ भारतद क परहसनो र दकसी न दकसी पातर की भकतरका र हर जगह सवया भारतद भी ददख

जात ह अपन वगीय अातरवमरोधो का सवबोध उनक यहाा एकतिगोररकि हो जाता ह इस एकतिगरी र lsquoकतहनद

21 रारकतविास शराम पषठ- ६६

18

भारतrsquo की रधर कलपना थी इसस इनकार नही दकया जा सकता भाव जगत का वषणव परर lsquoकतहनद भारतrsquo

की कलपना स परर र बदिता गया

भारतद की रचनाओ र कतवशवदकतषट की एकता खोजन पर हर परभतवशािी कतवचारधाराओ की

वयवसथा ही कतरिगी जञान और वयावहाररक सारानय बोध क बीच एक सदकय साबाध बनान क कर र ही

उनका सवाभाकतवक आवग कतजन वयावहाररक धाररमक कतवचारधाराओ र आतरकतबकतमबत होता ह व

परभतवशािी कतवचारधाराएा ह इन कतवचारधाराओ का कतनरामण कही बाहर स नही हो रहा था बकतलक

पराचयकतवदयाकतवदो की कलपना क साथ परसपर भागीदारी र बन रहा था इन कलपनाओ को यथाथम रप द

रही थी हपराट पाजी क साथ कतवककतसत होती lsquoबजमआ पकतबिक सफीयरrsquo की दकयाएा भारतद की सवाभाकतवक

सफरतम ततकाि ही एक फ टसी र बदिन िगती ह और दकयातरक होना चाहती ह ऐस ही सरय

पराचयकतवदया क पाकतडतो क िारा जगाय गए कतरथकीय परत भी आकर सर पर सवार हो जात ह पराचयवाद

दकसी परत-कतवदया स कर न था दखना चाकतहए दक भारतद की रचनाओ र कहाा परतो की दकतनया र यथाथम

का हसतकषप होता ह उनकी एकतिगरी कहाा कतसथकततयो क अकततरक को अकतभवयि कर रही ह जस भारतद की

lsquoअाधर नगरीrsquo ऐन हरार वक़त र राजयसतता का रपक बन जाती ह यह रपक राजयसतता र अनतरनमकतहत

हहासा की अकतनवायमता और नयाय क भरर का परहसन भी ह

२ धरम सधार पर कतवचार सभा

िहमो सराज या दयानाद सरसवती को खद भारतद कस दख रह थ इसका पता हर lsquoसवगम र कतवचार

सभा का अकतधवशनrsquo22 नारक एक वयागय रपक स चिता ह सवारी दयानाद सरसवती और कशवचादर सन

जब ररन क बाद सवगम पहाच तो ldquoवहाा एक बर बड़ा आनदोिन हो गयाrdquo रतय क कछ ही सरय पहि कतिखा

गया यह वयागय रपक अपन सरय क धरम सधार आादोिनो क चररतर की वयाखया करता ह सबस पहि

इसका परकाशन किकतत स कतनकिन वािी परकततकतषठत हहादी पकततरका lsquoकतरतर कतविासrsquo (जन १८८५) र हआ था

िहमो सराज और आयम सराज क आनदोिनो को भारतद इस सरय तक आकर एक तटसथ आिोचकीय दकतषट

स दखन का परयास करन िग थ सवगम र एकबारगी पदा हए इस आनदोिन र रोट तौर पर दो खर बन

गए एक इनका परशासक था दसरा हनादक पहिा कतिबरि ह दसरा काजरवरटव इन दोनो खााचो र

अनदफट एक तीसरा दि ह जो वषणव आतराओ का ह इस दि क सासथापक तो कतिबरि थ पर अब य

lsquoरकतडकलस कया रहा रकतडकलस हो गए हrsquo कतनकतशचत रप स इन रहा रकतडकलस आतराओ र हर सवया भारतद

22 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन सा- करिा परसाद परसा- नारवर हसाह पषठ- ८२-८६ नशनि बक टरसट इाकतडया नई ददलिी- २००६

(आग इस िख क उदधरणो को कतबना पाद रटपणणी क ददया गया ह)

19

को भी कतगन सकत ह वयासदव एक ऐस बकतदधजीवी क रप र सारन आत ह जो दकसी का भी पकष िन स

बचत ह पर उनका रान दोनो खरो र ह ldquoकतबचार बढ़ वयासदव को दोनो दि क िोग पकड़-पकड़ कर ि

जात और अपनी अपनी सभा का lsquoचयररनrsquo बनात थ और बचार वयास जी अपन पराचीन अवयवकतसथत

सवभाव और शीि क कारण कतजसकी सभा र जात थ वसी ही विता कर दत थrdquo कतिबरिो की तिना र

का जरवरटव दि जयादा रजबत था कयोदक उनह सवगम क जरीदारो का सहयोग परापत था काजरवरटव दि की

आतराएा साकीणम कटररपाथी आतराएा थी य आतराएा उन परान िरान क ऋकतष रकतनयो की आतराएा ह जो

ldquoयजञ कर करक या तपसया करक अपन-अपन शरीर को सखा-सखाकर और पच-पच कर ररक सवगम गए हrdquo

करमकााड और वरत उपवास आदद को भारतद वही तक सही रानत थ जहाा तक व शरीर को कषट न पहाचाएा

कठोर दह साधना करन वाि इन ऋकतष रकतनयो की आतराएा सधारो क कतखिाफ थी और इनका साथ दन

वाि जरीदारो र lsquoउदार िोगो की बढ़तीrsquo स अपना रान-अकतभरान और बि कतछन जान का डर था

कतिबरि दि भिो की आतराएा या तो सावमजाकतनक जीवन क उचच रलयो या आदशो क सापादन क चित या

पररशवर की भकति स सवगम र गयी थी

सराज सधार और वयकतिक परर रिक भकति- कतिबरि कतवशवदकतषट को भारतद इसी पररपरकषय र दख

रह ह रकतडकि वषणव दि भिो क कतिए वषणव होन रातर स य चीज पहि स ही उपिबध थी भारतद क

कतिए वषणवता सवाभाकतवक रप स कतवशवदकतषट ह पर रकतडकि वषणव इस सवाभाकतवक उदारता को

राजनीकततक रप दन वाि ह वषणव उदारता का और उसक भावावग का राजनीकततकरण करन वाि रहा

रकतडकि इस तरह भारतद क कतिए वषणवता की आधकतनक वयाखया र सराज सधार वयकतिक परर रिक

भकति और राजनीकतत तीनो का lsquoएकाrsquo ह इस एका क रकतडकि परयास क कतिए जनरत या िोकरत का

कतनरामण आवशयक ह भारतद की रकतडकि वषणवता ही lsquoसब उननकतत का रिrsquo ह यह एक िोककतपरय

वयावहाररक कतवचारधारा क रप र आकर गरहण करन वािी वषणवता ह यह रकतडकि वषणवता धरम का

राजनीकततकरण ह

काजरवरटव दिभिो को दवताओ का सरथमन परापत था य दवता ही सवगम क जरीदार थ अपन

अपन तरीक स इन दवताओ न काजरवरटव दि की सथानीय शाखाएा भी खोि िी और वहाा इनक पकष र

lsquoपरकाश सभाएाrsquo होन िगी कतिबरि दि वािो क पकष र कवि इस lsquoकतहनद सवगमrsquo क िोग नही थ ldquoइधर

lsquoकतिबरिrsquo िोगो की सचना परचकतित होन पर रसिरानी-सवगम और जन सवगम तथा दकसतानी सवगम स पगमबर

कतसदध रसीह परभत कतहनद सवगम र उपकतसथत हए और lsquoकतिबरिrsquo सभा र योग दन िग बका ठ र चारो ओर

इसकी धर फि गयीrdquo अिग अिग सवगम कतवकतभनन धाररमक पहचानो की ओर इशारा करता ह बका ठ कतहनदओ

का सवगम ह और यह नया धरम आनदोिन रखयतः कतहनद धरम की एक बड़ी पहचान क भीतर ही पदा हआ ह

20

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग क तीन कतनकतहताथम वसधा डािकतरया न भारतद यग क सनदभम र नोट दकय ह23 पहिा

एक पराक औपकतनवकतशक lsquoकतहनद अथमrsquo जहाा हहादसतान का हर बाहशादा शाकतरि था दसरा परसपर कतभनन

धाररमक रतो और आसथाओ की कतनकट अातरकम या क अथम को वयि करता ह कतजसक आराकतभक साकषय सलतनत

कािीन ऐतहाकतसक वतताातो र कतरित ह यहाा यह शबद lsquoतकम rsquo क सरानाातर उपयोग र आया था और

सारानयतः रसिरानो क बरकतखिाफ उपयोग दकया जाता था आरमभ र यह धाररमक कर साराकतजक-

राजनीकततक अथो र जयादा परयि होता था अागरजी राज क साथ यह दसरा अथम धरम स अकतनवायमतः जड़कर

lsquoकतहनदवादrsquo की कतवचारधारा र बदि गया जमस कतरि आदद क इकततहासो र lsquoकतहनदकािrsquo और lsquoरसिरान

कािrsquo की ऐकततहाकतसक कलपना क साथ कतहनद शबद जड़ गया था भारतीय भी रसिरानो को सारन कर

lsquoकतहनद पीकतड़त गराकतथrsquo क कतिए इस शबद का इसतराि करन िग कतहनद शबद का तीसरा अथम राषटर की

अवधारणा स जड़कर बन रहा था आरथमक राषटरवाद और अागरजी राज की यातना की साझी सरकतत स बनन

वाि इस तीसर अथम का रतिब था- lsquoजो कतहनदसतान र रह वह कतहनदrsquo रारकतविास जी भारतद क यहाा

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग को इनही अथो र ित थ पर वसधा डािकतरया का कहना ह दक यह तीसरा अथम दसर क

वयापक परभाव र था तीनो अथो की अातरकम या क बार र डािकतरया न कतिखा ldquoतीसरा अथम या राषटरवादी

अथम कभी भी अपन धाररमक साकताथो स परी तरह छटकारा नही पा सका इस पद की परयकति उननीसवी

सदी र अकतसथर बनी रही और इसक रखतकतिफ रायनो र आपसी जड़ाव कायर रहा बावजद इसक दकसी

परदतत सनदभम र lsquoकतहनदrsquo क पराथकतरक अथम को कतनधामररत करना साभव ह यदद एक बार यह तय हो जाय दक

इिाकाई धाररमक राषटरीय र स दकस आधार पर यह पद परयोग र आ रहा ह और lsquoअनयrsquo की भकतरका र

दकस रखा जा रहा ह चाह वह अनय जसा दक परानी इिाकाई परयकति र ददखता ह फारसी या तकी हो

या रसिरान (कतजस इस िरान र भी कई बार सरह क हवाि स तकम ही कहा जाता ह) या दफर अाततः

औपकतनवकतशक सवारी िदकन यह बात ददराग र रखना जररी ह दक धाररमक सरदाय को कतनरदमषट करन

वािी दसरी परयकति अतयात परभावी सनदभम-हबाद बनी रहती हrdquo24

इस सनदभम र दख तो कतिबरि दिो क सरथमन र शाकतरि lsquoअनयrsquo कतहनद धरम क सधारवाद क सरथमक

ह और lsquoसधारोrsquo र छपी वकतशवक भावनाओ को सरथमन दन पहाच ह का जरवरटव दिो की lsquoअनयताrsquo यहाा नोट

करन िायक ह इस अनयता र साराती जरीदार और करमकााडी िाहमणवाद का बिाक ह जबदक कतिबरि

दकतषट क आसपास एक lsquoसायि रोचrsquo की कलपना की गयी ह धयान रखना चाकतहए दक भारतद क रकतडकि

वषणव इस lsquoसायि रोचrsquo क बाहर ह उनका lsquoएबसटकतनजरrsquo वषणव होन क चित नही बकतलक रकतडकि या

23 वसधा दिकतरया कतहनद परमपराओ का राषटरीयकरण भारतद हररशचादर और उननीसवी सदी का बनारस अन साजीव करार योगनदर दतत पषठ-

४०-४२ राजकरि पपरबकस नई ददलिी- २०१६

24 वही पषठ- ४२

21

रहा रकतडकि होन क चित था कतनकतशचत रप स सवगम सासद का रपक ह और सवगम का राजा ईशवर

कतनषपरभावी हो गया ह और जनता सवया जनरत क िारा कतनणमय कतसथर करन पर जोर दती ह जनरत क

िारा lsquoसलफ गवनमरटrsquo का परयास सबस पहि वषणव भिो न दकया था और आज क कतिबरलस उसी को

आग बढ़ा रह ह ईशवर क पास दोनो दिो क िोगो न जब अपन अपन ररोररयि तयार कर भज तो ईशवर

न दोनो दिो क डपयटशन को बिाकर कहा ldquoबाबा अब तो तरिोगो की lsquoसलफगवनमरटrsquo ह अब कौन

हरको पछता ह जो कतजसकी जी र आता ह करता ह अब चाह वद कया सासकत का अकषर भी सवपन र भी न

दखा हो पर धरम कतवषय पर वाद करन िगत ह हर तो कवि अदाित या वयवहार या कतसतरयो क शपथ

खान को ही कतरिाय जात ह दकसी को हरारा डर ह कोई भी हरारा सचचा lsquoिायकrsquo ह भत परत ताकतजया

क इतना भी तो हरारा दजाम नही बचा हरको कया कार चाह बका ठ र कोई आवहर जानत ह चारो

िड़को (सनक आदद) न पहि स ही चाि कतबगाड़ दी ह कया हर अपन कतबचार जयकतवजय को दफर राकषस

बनवाव दक दकसी का रोकटोक कर चाह सगन रानो चाह कतनगमन चाह ित रानो चाह अित हर अब न

बोिग तर जानो सवगम जानrdquo

काजरवरटव दिभिो न दयानाद और कशवचादर सन पर कया कया आरोप िगाय यह दख िना

चाकतहए दयानाद को सवगम र सथान नही कतरिना चाकतहए कयोदक १ इसन पराणो की हनादा की २ ररतमपजा

की हनादा की ३ वदो का अथम उलटा-पलटा कर डािा ४ दस कतनयोग करन की कतवकतध कतनकािी ५ दवताओ

का अकतसततव कतरटाना चाहा (दवताओ याकतन जरीदार) ६ इसन धरम कतवपिव दकया और आयामवतम को धरम

बकतहरमख दकया पकतशचरोततर परानत क परकततकतनकतध क रप र lsquoकाशी क कतवशवनाथ जीrsquo न lsquoउदयपर क एकहिाग

जीrsquo पर दयानाद क सरथमन का आरोप िगाया कतवशवनाथ जी काजरवरटव दिो की तरफ स यह आरोप िगा

रह थ परब की अपकषा पकतशचरी इिाको र आयम सराज क परभाव की चचाम क सनदभम र एकहिाग जी का

जवाब धयान दन िायक ह कतवशवनाथ जी न जब एकहिाग जी को कतधककारत हए कतिबरिो क साथ कतरि जान

को कहा तब एकहिाग जी न कहा ldquoभाई हरारा रतिब तरिोग नही सरझ हर उसकी बरी बातो को न

रानत न उसका परचार करत कवि अपन यहाा क जागि की सफाई का कछ ददन उसको ठका ददया बीच

र वह रर गया अब उसका राि रता रठकान रखवा ददया तो उसका बरा दकयाrdquo यह एकहिाग जी

दफ़िहाि सवारी जी क दि क सभापकतत बन ह आकतखर इनहोन अपन यहाा क दकस lsquoजागिrsquo की सफाई का

ठका सवारी जी को ददया था यह जागि छोट-रोट धाररमक समपरदायो और रतो का जागि था एकहिागी

जी और काशी क कतवशवनाथ जी दोनो ही िाहमणीकत शवरत क धाररमक परतीक ह पर जहाा काशी क

कतवशवनाथ शर स ही दयानाद क कतवरोधी थ वही एकहिाग जी रणनीकततक रप स दयानाद क पास गए थ यह

साकीणम कटररपाथ क भीतर का कतववाद था यह बात गौर करन िायक ह दक जगननाथपरी र जब भरव की

22

रौजदगी का कतववाद भारतद क सारन आया था उस सरय उनहोन इस बात का परतयाखयान दकया था दक

भरव की परकततरा अनाददकाि स वहाा ह भारतद न पराण आदद स साकषय दकर यह परराकतणत दकया दक

कषण ही एकरातर उपासय ह तिवार जी न इस घटना का उलिख करत हए कतिखा ह दक ldquoदकसी वयकति न

lsquoतहकीकातपरीrsquo दकताब दकखकर बताया दक वहाा पहि भरो की पजा होती थी वषणवो न उसकी ररतम

उखाड़ फ की थी बाद र पाडो न जगननाथजी (कतवषण) क साथ भरो को दफर स परकततकतषठत दकया यह रारिा

काशी धरमसभा क सारन १८७० र आया भारतद न धरम साबाधी पसतक र lsquoतहकीकातrsquo जस फारसी शबद

की आिोचना करत हए कतवकतभनन धरमगराथो स परराण जटाकर दो बातो पर जोर ददया एक इसका परराण

नही कतरिता ह दक वहाा जगननाथजी क साथ पहि भरो की भी ररतम थी कतजस वषणवो न उखाड़ फ का दो

अगर वह थी भी तो यह उकतचत था या नही- इसपर कतवचार होना चाकतहए भारतद न अपनी वयवसथा दत

हए कतिखा दक भरो कतवषण स बहत छोटा दवता ह इसकतिए यह कतवषण क साथ बठाया नही जा सकता

lsquoदसर भरव कापाकतिको क दवता ह उनका पजन वषणव-सरातम सबको कतनकतषदध हrsquo गौरतिब ह दक भारत

र कतवकतभनन सथानीय धरो क परकतत कतजतन असकतहषण और फा डारटकतिसट आयमसराजी थ उतन ही काशी क

सनातनी भी थrdquo25

सथानीय धरम-रतो क जागि को साफ़ करन र आयमसराकतजयो और काशी क सनातनी पाडो क इस

गठजोड़ स भारतद भी वादकफ थ िदकन आयमसराकतजयो क साथ उदयपर क एकहिाग जी का रोचाम कसा

था इस भी भारतद बखबी सरझ रह थ सथानीय रतो क साथ भारतद का समबनध कसा था इसका पता

उनक छोट-छोट यातरा सासररणो स भी चिता ह lsquoसरय पार की यातराrsquo26 र रहदावि का हाि बयान करत

हए lsquoपराणनाथrsquo क रिहब का भारतद आशचयम क साथ उलिख करत ह भारतद क ही शबदो र ldquoयहाा एक

पराणनाथ का रिहब ह और दस बीस िोग उसक रानन वाि ह य िोग एकादशी तीथम वगरह को नही

रानत और सन सनाय दो तीन शलोक जो याद कर कतिए ह बस उसी पर चर हो lsquoरदीनासया शारदाा शताrsquo

और lsquoगोकतवनदrsquo lsquoगोकिानाद रककशवरrsquo यह शलोक पढ़ क कहत ह दक वद र रकका रदीन का वणमन ह ऐस ही

बहत वाकतहयात बात करत ह और कोई दकतना भी कह कछ सनत नही कहत ह दक गोिोक का नाश ह

और गोिोक ऊपर एक lsquoअखाड रणडिाकारrsquo िोक ह उसर रर कषण ह इनका रिहब एक पराणनाथ नारक

एक कषतरी न पनना र करीब तीन सौ बरस हए चिाया थाrdquo भारतद इस अजीबो गरीब lsquoरिहबrsquo का कषण स

कया साबाध ह यह सोचकर ताजजब र थ इस lsquoरिहबrsquo क गरनथ र भारतद न एक शलोक बलिभाचायम का

दखा तो उनका राथा और घर गया ldquoकि रिहब का हाि हरन नीच कतिखा था उसका अचछी तरह स

25 वीरभारततिवार रससाकशी १९वी सदी का नवजागरण और पकतशचरोततर परानत पषठ- १५२ सारााश परकाशन ददलिी- २००६

26 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन पषठ- १३७-३८

23

हाि दरयाफत दकया तो रािर हआ दक हरार ही रिहब की शाखा ह इनक गराथो र हरन एक शलोक शरी

रहापरभजी की सबोकतधनी की काररका का दखा इसी स हरको सादह हआ दफर हरन बहत खोद खाद कर

पछा तो वह साफ़ रािर हआ दक इसी रत स यह रत कतनकिा ह कयोदक एक बात वह और बोि दक हरारा

रत शरी बलिभाचारज की टीका र कतिखा ह इन िोगो क उपासय शरीकषण ह और एकादशी शािगरार

ररतमपजा तीथम दकसी को नही रानत इनक पकतहि आचायम दवचाद जी थ जो जाकतत क कायथ थ और दसर

पराणनाथ जी जो कचछ क कषतरी (भारटया) थ हरार ही रत की शाखा सही पर कतवकतचतर रत ह वषणव होकर

ररतमपजा का खाडन करन वाि यही िोग सनrdquo वणमन स सपषट ह दक सात और कतनगमण पाथो क साथ वषणव

कतवचारधारा क आदान-परदान का साकतशलषट इकततहास भारतद क कतिए ताजजब की चीज थी पर इन सबक बीच

आकतखर उनहोन इसक वषणव रि का पता िगा कतिया और वषणवता की इस धाररमक कतवचारधारा र उनहोन

ररतमपजा का कतवरोधी होना भी शाकतरि रान कतिया भारतद न ररतमपजा क सरथमन र बड़ बड़ िख कतिख

थ इसकतिए असाभव नही दक कषण क परकतत परररिक भकति क कतिए ररतम की जररत पर उनहोन कछ पछा

जरर होगा िदकन lsquoकोई दकतना भी कछ कह सनत ही नहीrdquo आग चिकर lsquoवषणवता और भारतवषमrsquo र

वह बड़ कतवशवास क साथ घोकतषत करत ह दक ldquoपहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद कतजतन पाथ ह सब

वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और भारतवषम इन पाथो स छाया हआ हrdquo27 तब वह वषणवता और

िोकरतो और रधयकािीन पाथो क भीतर पहि स सदकय एक ऐकततहाकतसक परदकया का सारानयीकरण कर

उसका नार lsquoवषणवrsquo रख रह थ अकारण नही दक उसी िख र वषणव वयापकता को बतान क कतिए

परचकतित lsquoनारोrsquo का साकषय पश दकया गया ह वयकतियो स िकर वरत और उपवासो तक यह परभतवशािी

सारानय बोध की कतवचारधारा थी कतिवदी जी रधयकािीन वषणवता को िोकधरम कहत थ भारतद

उननीसवी सदी क िोकधरो को वषणव कहत ह

काजरवरटव दिो की तरफ स कशवचादर सन पर िगाय गए आरोप थ १ वद पराण सबको कतरटा

डािा २ दकसतान रसिरान सबको कतहनद बनाया ३ खान पीन का कतवचार कछ न बाकी रखा ४ रदय की

तो नदी बहा दी आयम सराकतजयो क ऊपर रखयतः आरोप lsquoआयामवतम को धरम बकतहरमखrsquo करन का ह धरम

बकतहरमख अथामत सनातन धरम स कतवरख उनहोन कवि धरम क भीतर कतवपिव दकया परनत िहमो सराज न तो

lsquoभारतवषम का सतयानाशrsquo कर डािा इनहोन तो पराणो क अिावा वदो को भी कतरटा डािा lsquoआयामवतमrsquo की

जातीय पकतवतरता नषट करक दकसतान रसिरान जस lsquoकतवदशी ततवोrsquo को घर र घसा कतिया कटररपाथी

करमकााकतडयो क कतिए इनक साथ रणनीकततक तौर पर भी रोचाम बनान वािा कोई एकहिाग जी तयार नही

था सनातकतनयो िारा दकया गया यह बारीक भद खद कतिबरि दिभिो क भीतर का भी अातरवमरोध था

27 भारतद वषणवता और भारतवषम वही पषठ-७६

24

कतिबरिो की सभा र भी दो दि हो गए थ एक सवारीजी क सरथमको का दि था और एक कशव

क सरथमको का कतहनद कतिबरिो की आताररक एकता कतिकतवभाकतजत थी दयानाद क सरथमको क अनसार सवारी

जी न कतहनदओ की आतरा को जगाया था उनह सफतम बनाया वरना तो आयामवतम क आिसी और रखम

रोहकतनदरा र ही कतनरगन थ इस तरह रखम और आिसी सारानयजनो को lsquoिाहमणो क फा द स छड़ायाrsquo िाहमणो

की तिना भारतद न lsquoपादररयोrsquo स की ह जो lsquoवयथम परजा का दरवय खान वाि हrsquo आयम सराज न सासथाकत

परोकतहतवाद पर हरिा दकया था जो भारतद क कतिए रितः जनता क पसो पर पिन वािा परजीवी वगम

िगता था और तो और आधकतनक कतवजञान क आग जो lsquoआयोrsquo की नाक कटी जा रही थी उस भी सवारी जी

न बचा कतिया उनहोन वदो र भी रि तार करटी कचहरी आदद ददखाकर कतहनदओ र आतरसमरान पदा

दकया दसरी ओर कशव क सरथमको का कहना था दक ldquoधनय कशव तर साकषात दसर कशव हो तरन बाग

दश की रनषय नदी क उस वग को जो कशचन सरदर र कतरि जान को उचछकतित हो रहा था जञान करम का

कतनरादर करक पररशवर का कतनरमि भकति रागम परचकतित दकयाrdquo lsquoजञान करम का कतनरादरrsquo करक भी lsquoकतनरमि

भकति रागमrsquo का जो परवतमन कशव न दकया उसस ही ईसाई lsquoअनयताrsquo का साथमक परकततरोध साभव हआ lsquoरनषय

नदी का आवगrsquo भावावग ह इसी बात को दसर शबदो र कह तो भाव जगत क सवाभाकतवक वग को भगवत

भकति की शदध lsquoअनयताrsquo की ओर रोड़कर उस कतवदशी ईसाई lsquoअनयताrsquo क रागम पर जान स रोक ददया इस

कायम क कतिए वद पराण समरत lsquoजञान-करमrsquo क रागो का कतनरादर अगर करना पड़ा तो भी वह उकतचत ही था

वषणव भकति क रधयकािीन सवरप की जो वयाखया आग चिकर की गयी उसक आराकतभक कतचनन हर यहाा

दख सकत ह कहना न होगा दक भारतद का अपना अनभव भी यहाा बोि रहा ह

शासतरीय काजरवरटव पाटी र दवताओ क अिावा यजञवलकय जस औपकतनषददक ऋकतष क साथ-साथ

नारायण भटर रघनाद भटराचायम राडन कतरशर जस कतनबाधकारो और टीकाकारो का जरघट भी था इसक साथ

साथ इसिारी सवगम स आय हए कटररपाथी कतशया िोगो का भी सरथमन उनह परापत था इस परकार कटररपाथ का

दवताओ (जरीदारो) िाहमणो (पादररयो) जञानरागी औपकतनषददक ऋकतष रधययगीन कतनबाधकारो और

कतवदशी कतशया िोगो का एक वकतशवक रोचाम बन रहा था दसरी ओर कतिबरि दि र चतनय परभकतत आचायम

दाद नानक कबीर परभकतत भि और जञानी िोग भी शाकतरि थ इसक अिावा काजरवरटव दि क

कतवदरोकतहयो को भी कतिबरिो न अपन यहाा जगह दी य कतवदरोही थ अितवादी (या नववदााती) भाषयकार

पाचदशीकार और कोई कतरसटर िडिा इन दोनो िोगो पर शर र का जरवरटव दि वािो न बहत हरि

दकय परनत अात र इनह कतिबरिो न अपन यहाा जगह द दी धयान रखना चाकतहए दक भारतद अपन सापरदाय

क अनरप अित वदाात या रायावाद क घोर आिोचक थ सन १८७३ र हररशचादर रगजीन क पहि ही अाक

र भारतद न शााकतडलय भकति सतरो का अनवाद lsquoभकति सतर वजयातीrsquo नार स परकाकतशत दकया भकतरका र

25

भारतद कतिखत ह ldquo दखो आज वसात पाचरी ह इसस बहत स िोग आर क रौर वा फिो क गचछ िकर

तरस कतरिन आवग तो र भी यह एक फिो की वजयाती रािा बना कर िाया हा अागीकार करो वजयाती

रािा बनान का यह हत ह दक वनरािा होगी तो होिी क खि र अरझगी और इसक कतसवाय इस वजयाती

स कतनशचय करक जञानाददक को जय करना ह पर पयार बहत साभि कर यह रािा पहरना टट न जाए

कयोदक सत कचचा ह और ककतियाा तािी और कोरि ह इस स कमहिान का भी भय ह जो हो इस वसात

पाचरी को तयोहारी रझ यही दो दक इस सतयानाशी lsquoअहरrsquo िहमवाद lsquo को पणमरप स नाश करक और भी

सब बातो र इस नव-वसात र भारतवषम की सब आपकतततयो का बस अात करो और अपन भिो क कतचतत र

नव पलिव दफर स िहिह करो जो सदा एक रस रहrdquo28 lsquoएकरसrsquo भकति क कतिए जररी ह दक जञानवाद

अहर िहमवाद को जड़ स उखाड़ फ का जाय कषण को अरपमत अपनी वजयाती रािा स भारतद जञानाददक

को जय करना चाहत ह एक ओर यह पकतषटरागी परापरा क lsquoवीर वषणवrsquo भारतद का परर कतनवदन ह दसरी

ओर lsquoनव-वसातrsquo र भारतवषम की सब आपकतततयो को नाश करन की सारथयम रपी lsquoउपहारीrsquo का साकलप भी

ह lsquoभारतद भारतवषम की सब आपकतततयोrsquo को दर करन की राह र एक बड़ी बाधा अित क जञानवाद को

रानत ह भकति का lsquoएकरसrsquo पहि भी इसक परभाव स ररझाता रहा ह भारतद का साकलप सापरदाय क

परान कतवरोधो क बावजद बन रहन वाि इस अितवाद का पणम सफाया करन का ह जबतक यह न कतरटगा

परररिा भकति क lsquoकमहिान का भयrsquo बना रहगा भकति सतरो र उपासना कााड को परर कतसकतदध का हत

बताया गया था पर भारतद दख रह थ दक उपासना कााड का परचार कतवरि हो गया ह इसी परचार क

कतनकतरतत उनहोन इन सतरो का भाषा र अथम परचार दकया था १८७३ र ही हररशचादर रगजीन का एक

समपादकीय कतनकिा कतजसका शीषमक था- lsquoभकति जञानाददक स कयो बड़ी हrsquo इस िख र भी उपासना रागम

की रहतता का परकततपादन दकया गया ह तकम और जञान को करम की शकतदध और उपासन की परर कतसकतदध क

रासत र कवि एक चरण बताया गया ह वसधा डािकतरया न भारतद क आराकतभक साापरदाकतयक परचार

परसार क कायो र कतनगमकतनयो को बाहर रखन का उपकर नोट दकया था29 यहाा कतनगमकतनए कबीर आदद lsquoभि

और जञानीrsquo कतिबरिो क सरथमक ददखाए गए ह वषणव भकति क राषटरीय चररतर र य बाहर नही थ उनकी

एकता का आधार उनक lsquoकतिबरि रिrsquo र ह सावमजकतनक उचच भाव का सापादन और भकति इन दोनो क साथ

अित वदााती या जञानाददक- सनातनी परापरा क कतवदरोकतहयो की जगह भी कतिबरि दि पाकतथयो र थी

कतिबरि वाि ही झगड़ क कतनपटार की अजी पररशवर को दन गए थ पर पररशवर अपनी

परतीकातरक हो गयी कतसथकतत स खजिाय हए थ यह सवोचच अदाित थी पर साथ ही साथ शकतिहीन

28 भारतद गराथाविी खाड- ५ पषठ ११३

29 वसधा डािकतरया पषठ ३४२

26

राषटराधयकष की कलपना भी कतजस कतहनद सवगम क य राषटराधयकष ह वहाा दकसी दकसर की सलफ गवनमरट चनन

की परणािी आ जान स ईशवर की एकाकतधकारी शकतियाा कतछन गयी ह िोग जनरत कतनरामण क िारा सही

और गित की पहचान करन िग थ इसकतिए थोड़ा खजिाय तो रहत ही होग lsquoअब कौन हरको पछता

ह तर जानो सवगम जानrsquo परनत साकट गहरा था यदयकतप कतिबरि िोगो की सभा भी धरधार स जर

रही थी पर काजरवरटव दि पाकतथयो की सरकार र पठ थी दवता सब भी उनक साथ थ इसकतिए पररशवर

क पास जररी नयाय का परशन उठाया गया था नयाय दक इन दो रहापरषो को सवगम र जगह कतरिनी

चाकतहए या नही सराज र इनक नकततक उचच आदशो क अवरलयन का परचार काजरवरटव कर रह ह इस

परचार क कारण जनता अपनी निरो स पहचानन र सकषर नही ह ऐसी कतसथकतत सवगम र पहि नही आई

थी नई कतसथकततयो क नए रानदाड कया होग िाकतहर ह नयाय और नकततकता को एक वकतशवक सवीककतत

चाकतहए इसकतिए पररशवर न इस कतवषय पर कतवचार क कतिए जो ककतरटी चनी वह गौर करन िायक ह इस

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo र ldquoराजा राररोहन राय वयास दव टोडररि कबीर परभकतत कतभनन-कतभनन रत क िोग चन

गए रसिरानी- सवगम स क lsquoइरारrsquo दकसतानी स िथर जनी स पारसनाथ बौदधो स नागाजमन और

अफीका स कतसटोवायो क बाप कोrdquo चना गया कतहनद सवगम स नवजागरण क अगरदत वयासदव जस

बौकतदधकिखक टोडररि जस राजनीकततजञ और धरम-ररमजञ कबीर जस जञानी-भि पराचीनो र कवि वयास

दव ह बाकी दो lsquoरधयकािrsquo क और एक lsquoआधकतनकrsquo काि क वयकति ह उधर यरोपीय नवजागरणधरमसधार

क परणता िथर को भी बिाया गया ह और बौदधो की तरफ स परर कतनषधवादी नागाजमन भी ह पर य

अफीका क कतसटोवायो धरो की अकतसरता क साथ-साथ यह अफ़ीकी सवगम कतनकतशचत रप स अफीका की छकतव

पराचीन आददवासी सासककतत वाि एक lsquoकािrsquo रहादश क रप र गढ़ी गयी थी यह अफ़ीकी सवगम साभवतः

आददवासी धाररमक रानयताओ की ओर इशारा करता ह यह भी धयान दन िायक ह दक राजा राररोहन

राय िथर और कबीर इन तीनो क साथ lsquoनवजागरणrsquo की कोई न कोई पररकलपना ठठ सरकािीन कतवरशो

क क दर र भी ह कई अथो र अकबर िारा आयोकतजत होन वािी lsquoसिह-ए-किrsquo जसी धरम सभाओ की एक

रोहक कलपना भी भारतद को रही होगी टोडररि की उपकतसथकतत अकारण नही ह

अकबर को िकर भारतद की इकततहासदकतषट कसी थी इसकी एक झिक हर १८८४ र छपी उनकी

lsquoबादशाह दपमणrsquo की भकतरका र ददखती ह इस गरनथ र उन िोगो का चररतर-कतचतरण दकया गया था ldquoकतजनहोन

हरिोगो को गिार बनाना आरमभ दकया इसर उन रसत हाकतथयो क छोट-छोट कतचतर ह कतजनहोन भारत क

िहिहात हए करिवन को उजाड़कर-पर स कचिकर कतछनन-कतभनन कर ददया रहमरद रहरद अिाउददीन

अकबर और औरागजब आदद इनर रखय ह पयार भोि कतहनद भाइयो अकबर का नार सनकर आपिोग

चौदकए रत यह ऐसा बकतदधरान शतर था दक उसक बकतदधबि स आजतक आपिोग उसको कतरतर सरझत ह

27

दकनत वह ऐसा ही नही उसकी नीकतत अागरजो की भााकतत गढ़ थी रखम औरागजब उसको सरझा नही नही तो

आज ददन हहादसतान रसिरान होता कतहनद-रसिरान र खाना-पीना बयाह-शादी कभी चि गयी होती

अागरजो को जो बात नही सझी वह इसको सझी थीrdquo30 कतनकतशचत रप lsquoबकतदधरानrsquo दशरन स सीखन को बहत

कछ कतरिता ह अकबर की दीन-ए-इिाही क परयोग स भारतद भी बहत कछ सीख रह थ रधयकािीन

इकततहास क बार र रकतसिर शतर की छकतव का कतनरामण पराचयकतवदयाकतवदो क िारा दकया जा रहा था इकतियट

आदद इकततहासकारो न जो दकतषट कतवककतसत की उसका परभाव बहत गहरा था पर इस इकततहासिखन क साथ

साथ भारतद क कछ दशी सरोत भी थ अिग-अिग रहापरषो की चररताविी कतिखन की पररणा भारतद न

कतजतना अपनी वषणव भकति की परापरा स पाया था उतना ही इसिारी इकततहास िखन की परापरा स भी

lsquoबादशाहदपमणrsquo की भकतरका र भारतद कतिखत ह ldquoरर पररातारह राय कतगरधरिाि साहब जो यवनी कतवदया

क बड़ भारी पाकतडत और काशीसथ ददलिी क शाहजादो क रखय दीवान थ उनकी इचछा स ददलिी क परकतसदध

कतविान सययद अहरद न एक ऐसा चक बनाया था कतजसर तरर स िकर शाह आिार तक सब बादशाहो क

नार आदद कतिख थ उस फारसी गरनथ स बहत सी बात इसर िी गयी ह इस कारण तरर पवम क बादशाहो

का वणमन इतना परा नही ह कतजतना तरर क पीछ ह दफर रर रातारह राय कतखरोधरिाि न बहादर शाह

क काि क आरमभ तक शष वतत सागरह दकयाrdquo31

अरणदव जी अपन एक िख र भारतद क आराकतभक अकबर परर का कतिक दकया ह १८७२-७४ क

आसपास भारतद अकबर को रहान शासक रानत थ जबदक औरागजब को कतहनदओ का दशरन नाबर एक

भारतद न औरागजब की तिना र अकबर की रहानता को परराकतणत करन क कतिए रारदास कछवाह क एक

शलोक को अपना आधार बनाया ह इस शलोक का भावाथम भारतद क शबदो र इस परकार ह ldquoजो सरदर स रर

तक पथवी को पािता ह जो रतय स गउओ की रकषा करता ह कतजसन तीथम और वयापार स कर छड़ा ददए

कतजसन पराण सन जो सयम का नार जपता जो योग धारण करता ह और गागाजि छोड़कर पानी नही

पीता उस जिािददीन की जय अाग वाग कहिाग कतसिहट कततपरा कारत (कारटी) काररप अाध कणामटक

िाट दरकतवड़ रहाराषटर िारका चोि पााडया भोट रारवाड़ उड़ीसा रलि खरासान का दहार जमब काशी ढाका

बिख बदखशाा और काबि को जो शासन करता ह ककतियग की रकतहरा स घटत हए वद गउ कतिज और

धरम की रकषा को सगन शरीर कतजसन धारण दकया ह उस अपररय परष अकबर शाह को हर नरसकार करत

हrdquo32 यही अकबर १८८४ र औरागजब स जयादा शाकततर और बकतदधरान शतर र बदि गया lsquoकािचकrsquo क

कतनकतहताथो र यह फरबदि भारतद पर रकतसिर कतवदशीपन और कतहनद शतरता क समपणम बिॉक बनान की

30 बादशाह दपमण भारतद गराथाविी खाड-६

31 वही

32 httpsamalochanblogspotin201209blog-post_9html

28

रणनीकतत क दबाव क कारण था और lsquoपरावकततrsquo की कतरथकीयता र भी कतहनदओ को lsquoरहारोहनासतरrsquo क सहार

पहि भी वश र दकया गया था यह एक बारीक चाि थी अकबर की इस चाि को अागरज भी नही सरझ

पा रह थ भारतद की यह परकततदकया औपकतनवकतशक इकततहासिखन क दबाव र थी १८७३ र जब भारतद

न कतशवपरसाद की दकताब lsquoइकततहासकततकतररनाशकrsquo क तीसर खाड की आिोचना की थी तो उनक सारन

रकतसिर शासन की बबमरता और अागरजी राज क सशासन का कतशवपरसाद िारा ककतलपत आखयान था १८८४

र समपणम रकतसिर काि अनधकार यग र बदि गया कततकतररनाशक क पहि खाड र बाब कतशवपरसाद न भी

अकबर की रजहबी उदारता और साराकतजक सधारो की बड़ाई की थी इस परकार हर दख सकत ह दक

ऐकततहाकतसक िखन र पकष और कतवपकष की पनरावकततत एक बाद घर र उिझी हई थी इनक सारन रकतसिर

कतवरोध और अागरजी शासन क कतवरोध का एक कतवसागत फर था और िखक उसर अपनी फौरी जररतो क

कतहसाब स कतरतर और दशरन वािा इकततहास कतिखता था इकततहास ठठ राजनीकततक ततकाि क वशीभत था

जो भी हो धाररमक उदारता और सिह-ए-कि का परयोग एक कतशकषापरद परयोग था यह कतवकतभनन

रतो या कतवशवासो क बीच lsquoजनरतrsquo बनान का एक रधयकािीन परयोग था भारतद lsquoजनरतrsquo क परयोग को

इस तरह दखत थ रानो यह lsquoचािrsquo अगर कारयाब हो जाती तो lsquoआज क ददन हहादसतान रसिरान होताrsquo

भारतद क सारन सरसया वही थी बस वह कवि यह चाहत थ दक कतहनदसतान lsquoकतहनदrsquo हो जाय कतहनद

अथामत वषणव हो जाय वषणवता भारतद क कतिए हहादसतान का नया lsquoसिह-ए-किrsquo था इसकतिए कछ

सावमजनीन रलयो की तिाश उनह भी थी कतसिकट ककतरटी क उपरोि रमबर lsquoएकसअफीकतशयोrsquo रमबर थ

रोर क परान हररकिस जस दवता कतजनहोन धरती स साबाध तोड़ ददया ह व िोग तथा उनही क जस

पारकतसयो क lsquoजरदशतजीrsquo को कोरसपोहडाग ऑनररी रमबर बनाया गया य धरम क रप र रतपराय रतो क

परकततकतनकतध थ ककतरटी न जो ररपोटम तयार की उसका ररम भारतद न ददया ह यह ररम उनक रकतडकि वषणव

पकष का रत था कतिबरि दि और काजरवरटव दि क अपन पकषो स इतर यह नरनायक तीसरा पकष वषणवो

की तरफ स सनाया गया था रकतडकि वषणवो की तरफ स भारतद इस धाररमक आनदोिन क भीतर अपना

ही पकष रखत हए इसका ररम कतिख रह थ ldquoहरिोगो की समरकतत र इन दोनो परषो न परभ की रागिरयी

सकतषट का कछ कतवघन नही दकया वराच उसर सख और सातकतत अकतधक हो इसी र पररशरर दकयाrdquo कतहनद सराज

सधार क परयासो का ररम बतात हए सबस पहि धयान सतरी सधारो पर ददया गया ह साराकतजक करीकततयो

की कतशकार रकतहिाओ क परकतत जो दकतषट उभरकर सारन आती ह उसक रि र धरम की रीकतत स यौन

रयामदाओ की अवयवसथा को दफर स रयामददत करन की चषटा ह कतसतरयो क करागम पर जान का पहिा कारण

ह रनराना परष धरमपवमक न पाना यह कतववाह सासथा की कतवककततयो की आिोचना थी जहाा बाि कतववाह

कतवधवा कतववाह आदद की तरफ इशारा ह धयान रखना चाकतहए दक यहाा बरि कतववाह क बदि कतसतरयो िारा

29

lsquoरनराना वरrsquo न चन पान का उलिख ह गभमनाश और बाि हतया क कतखिाफ सधार परयास दसरा

रहतवपणम योगदान ह कतववाह सासथा बीच र भी भाग की जा सकती ह इसकी सवीककतत ह कनया क कतहत र

अातरजातीय कतववाह की सवीककतत ह एक रहतवपणम बात गरओ और पाकतडतो क वयाकतभचार क साबाध र ह

भारतद क सारन पकतषटरागी रहातो और गरओ क वयाकतभचार का अनभव भी इसर शाकतरि ह

१८७४ र ककतववचन सधा र भारतद की एक रटपणणी छपी थी lsquoगर को कसा होना चाकतहएrsquo इसक अिावा

दो वषम पहि lsquoगर और रहातrsquo नार स भी एक रटपणणी कतिखकर वषणव पाडो-परोकतहतो की खिकर

आिोचना की गयी थी तिवार जी न कतिखा ह दक राददरो क भीतर कतसतरयो का यौन शोषण और वयाकतभचार

इतना भीषण था दक दयानाद भारतद क पकतषट सापरदाय को lsquoकषठी सापरदायrsquo कहत थ १८६० क आरमभ र ही

वषणव गोसाइयो क अनाचार और यौन शोषण क कतखिाफ बमबई र एक बड़ा आनदोिन पकतषटरागी

करसनदास रि जी क नततव र हो चका था वषणव बकतनया पषठभकतर स आय करसनदास जी उन नौजवानो

र थ कतजनहोन एकतिफ सटन कॉिज स आधकतनक कतशकषा परापत की थी गोसाइयो और रहाराजो िारा अपन

lsquoसमपरदाय की बह बरटयोrsquo क साथ होन वाि अतयाचार क कतखिाफ उनहोन िख कतिख और समपरदाय क

इकततहास को नए कतसर स सारन रखा पण स आए जदनाथ वजरतन जी रहाराज न करसनदास जी पर

रानहाकतन का रकदरा दायर कर ददया इसी रक़दर स वषणव रहातो की कई सारी बात जनता क सारन

परतयकष हई तिवार जी न इस lsquoरहाराज िाइबि कसrsquo को भारतीय नवजागरण र वषणव गोसाइयो क

दराचार और यौन शोषण क कतखिाफ हआ सबस बड़ा आनदोिन कहा ह भारतद पर इसका बहत परभाव

था यह कस १८६० र हआ था एक दशक बाद जब भारतद सापरदाय क कायो र रत थ उसी सरय कतिख

रह थ ldquoराददर कया होत ह रानो कतसतरयो की खान ह जसी चाकतहए िीकतजय- वराच अचछी सतरी भी वहाा जाकर

कतबगड़ जाती ह आशचयम यह ह दक कतजनको व िोग बटी कहत ह और जो उनक परिोक क रधयसथ ह और

कतजनको वो दीकषा दत ह उन कतसतरयो की ओर व आप ही बरी दकतषट स दखत ह ओर रर पयार कतहनदओ तर

इनक जाि र कब तक फा स रहोग और कया तरको यही सासार स बचावग और इनही क भरोस तरको

भगवान कतरिगाrdquo33

राददरो क धन-ऐशवयम और वयाकतभचार र डब जीवन क जीवात कतचतर हर बनारस क रखाकतचतर lsquoपरर

जोकतगनीrsquo क अिावा lsquoकाशी क छायाकतचतर क दो बर-भि फोटोगराफrsquo र भी कतरित ह यहाा भारतद का वयागय

अपन वषणव सापरदाय की आतरािोचना स सदकय ह lsquoपरर योकतगनीrsquo नाटक र आन वािा चररतर रारचादर

खद भारतद ही थ नाटक का सतरधार कहता ह दक भारतवषम की दीन हीन गकतत क कारण उसका तो

कतवशवास ही ईशवर स उठन िगा ह नाटक क पहि ही दशय र भारतद हर राददर क भीतर कतिए चित ह

33 वसधा डािकतरया िारा उदधत पषठ- ३३७

30

जहाा राददर र कार करन वािा साधारण टहिआ झपरटया हर ददखाई दता ह पजारी बाब अभी तक नीद

स नही जाग ह कयोदक आधी रात तक lsquoबठ क ही-ही-ठी-ठी करा चाह दफर सबर नीद कस खिrsquo कतनकतशचत

रप स यह टहिआ सबह सवर ही राददर र हाकतिर ह िदकन दवता अभी राददर र सोय ह रारचादर

परदशी ह काशी र बाहर स आय ह छकक जी और राखनदास इस रारचादर की आिोचना करत ह इनक

सावादो स पता चिता ह दक बाब रारचादर क यहाा ददन रात नाच गाना हआ करता ह और उनको अपनी

कतवदया का घराड ह दो चार ककतवतत भी बना ित ह पर lsquoककतवतत बनाव स का होव और ककतवतत बनावन कछ

अपन िोगन का कार थोर हय ई भााटन का कार हयrsquo छकक जी कहत ह दक अपन रागम का उनह कछ जञान

तो ह नही बस दो चार बात इधर उधर स सनकर कछ lsquoदकसतानी रतrsquo सीखकर पाकतडत बन दफरत ह

कतनकतशचत रप स य भारतद पर िगन वाि आरोप थ राददर र सवारी धनदास वकतनतादा बभकतकषत पाकतडत

आदद धरम क ठकदार ह इनकी पतनशीि सासककतत को दखकर रारचादर का दःख इन शबदो र वयि होता ह

lsquoहा कया इस नगर की यही दशा रहगी जहाा क िोग ऐस रखम ह वहाा आग दकस बात की वकतदध की

साभावना करrsquo lsquoवददकी हहासा हहासा न भवकततrsquo जस शरआती नाटको र भी करमकााडी परोकतहतवाद की

आिोचना की गयी ह राजा और परोकतहत कतरिकर वहाा जनता का शोषण करत ह जआ रददरा और

रथन की ऐययाश सासककतत क परतीक परोकतहतो का काजरवरटव दि इन परहसनो र रतम होता ह कतचतरगपत यर

स कहत ह ldquoरहाराज य गर िोग इनक चररतर का कछ न पकतछए कवि दमभाथम इनका कततिक रदरा और

ठगन क अथम इनकी पजा कभी भकति स ररतम को दाडवत न दकया होगा पर राददर र जो कतसतरयाा आयी उनको

सवमदा तकत रह रहाराज इनहोन अनको को कताथम दकया ह और इस सरय तो र lsquoशरीरारचनदर जी का

शरीकषण का दास हाrsquo पर जब सतरी सारन आव तो उसस कहग lsquoर रार तर जानकी र कषण तर गोपीrsquo और

कतसतरयाा भी ऐसी रखम दक दफर इन िोगो क पास जाती हrdquo34

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo की ररपोटम र सतरी सधारो क कायो की रहतता बतान क बाद जाकतत वयवसथा पर

इन सधारको का परहार कयो जररी था इस बताया गया ह कठोर जाकतत बनधनो क चित कस हर साि

जाकतत-बाहय होकर जाकतत र वापस आन क दकसी उपाय को न जान lsquoहजारो रनषय आयम पाकति स हर साि

छटत थ उसको इनहोन रोकाrsquo इस परकार इन सधारको न lsquoआयमधरमrsquo क भीतर जो पररवतमन करन चाह

उसस आयो की एकता दफर स बहाि हो गयी इसक अिावा अाधकतवशवासो को इनहोन दर दकया यही नही

बकतलक जहाा िोग lsquoरसिरानी पीर पगमबर औकतिया वीर ताकतजया गाजी कतरयाा कतजनहोन बड़ी ररतम तोड़कर

और तीथम पाटकर आयम धरम कतवधवास दकयाrsquo उनको भी पजन िग थ और lsquoकतवशवास तो रानो कतछनाि का अाग

हो रहा थाrsquo ऐसी िजजाजनक कतसथकतत स िोगो को बाहर कतनकािकर lsquoसार आयामवतम को शदध lsquoिायिrsquo कर

34 दख रारकतविास शराम पषठ १३१

31

ददयाrsquo lsquoिायिrsquo कर ददया गया इसका अथम आयम जाकतत को दफर स िायि करन र था आयम जाकतत क भीतर

कतबगाड़ क चित ही कतनमन जाकततयो का बड़ परान पर पिायन था इस इन िोगो न रोका और इनक परताप

स ही अनक छोट और सथानीय धरम-रतो क भीतर जो lsquoरसिरानीrsquo परभाव घस आय थ उनको दफर स lsquoबड़ी

ररतमrsquo की कतनषठा र िाया जा सका इस परकार कतहनद धरम और वणामशरर क परकतत दफर स िोगो को lsquoिायिrsquo

दकया यह lsquoिायकतिटीrsquo भारतद की रकतडकि वषणवता क जनरत क कतिए भी जररी था तिवार जी जब

आयमसराकतजयो की lsquoकााकततकारीrsquo भकतरका ददखात ह तब आयम सराज िारा आयामवतम को िायि बनान वािी

इस भकतरका की साकतशलषटता पर जयादा बात नही करत भारतद दयानाद क कााकततकारी परयासो र lsquoिायिrsquo

बनान की परदकया उसी वक़त दख रह थ और इसी कारण ररपोटम र दयानाद की आिोचना धयान दन िायक

ह सवारी जी न ldquoजाि को छरी स न काटकर दसर जाि ही स कतजसको काटना चाहा इसी स दोनो आपस

र उिझ गए और इसका पररणार गह कतवचछद उतपनन हआrdquo गह कतवचछद का रतिब कतहनद धरम र गह

कतवचछद जबदक कशवचादर सन क बार र कहा गया दक उनहोन जाि काटकर भकति की उचछकतित िहरो का

पररषकत पथ परकट दकया इस परकार रकतडकि वषणवता की lsquoअनयताrsquo और परररिक भकति क परशसत पथ क

सवीकार का कतनषकषम कतवचार सभा का भी कतनषकषम था धयान दन िायक ह दक कशवचादर की आिोचना उनक

कतचतत कतवकषप क कारण की गयी थी जहाा lsquoईसारसीह आदद उनस कतरित हrsquo य एक दकसर का इिहारी

अनभव था कतजस भारतद अपनी वषणवता स बाहर रखत ह ईशवर न इस ररपोटम पर अपना रत सरकतकषत

रख कतिया और भारतद कतिखत ह ldquoइसको दख कर इस पर कया आजञा हई और व िोग कहाा भज गए यह

जब कर भी वहाा जायग और दफर िौट कर आ सक ग तो पाठक िोगो को बतिावग या आप िोग कछ

ददन पीछ आप ही जानोगrdquo

३ जनरत और वषणवता

ककतववचन सधा ९ राचम १८७२ र भारतद न lsquoPublic Opinion In Indiarsquo नार स अागरजी र

एक िख परकाकतशत दकया िख र उनहोन कहा दक कई सददयो दक दासता क बाद भारतवषमहहादसतान अब

जाकर कतिरटश राषटर क सवोचच कतनयातरण र आया ह दश धीर-धीर सभयता और परबोधन की पकतशचरी दकरणो

क सहार दरन और कशासन क रतय-तलय कतनदरा स जाग रहा ह कतिरटश शासन की परगकततशीि नीकततयो का

परभाव यहाा की बहरपी आबादी पर पड़ रहा ह

ldquoBut in this progressive state national energy and zeal sympathy and

disintiredness are waiting to make both the conqueror and the conquered to act in

32

concert and in harmony and hence we have the broad distinction of white and

black still But in this country many are the blemishes that adhere to us to be

eradicated and many are the shortcomings that are hovering around us to be done

away with before we can have a public opinion here in its true senserdquo35

गोर और काि क बड़ भद को छोड़ कर कतवजता अागरजो और भारतीयो क बीच एक सराजन तो बन गया ह

पर अनदरनी ददककत अभी भी राह बाए खड़ी ह रौका ह दक इस परगकततशीि कतसथकतत का फायदा उठा कर हर

एक सचच जनरत का कतनरामण कर सचच िोकरत क कतनरामण र अादरनी बाधाएा कया थी भारतद न इस

आग सपषट करत हए कतिखा-

ldquoRace antagonism rivalry and mutual misunderstanding are the favourite

occupations of the aristocratic class Want of confidence among all classes of men

are the prevailing characteristic of the nation and above all multifarious castes and

creeds with there numerous forms of religion and local habits and customs which all

combined have kept the progressive policy at a stand still True it is that a

representative Government is a boon to this country and true it is that Sir Bartle

fregravere a man of vast experience and a good statesman has found out that in village

community we can have public opinion but with all his experience he has lost sight

of our national defects ndash defects which we ourselves know and which no foreigner

can catch at a glancerdquo36

भारतद इस बात को िकर कतनकतशचत ह दक िोकरत और परकततकतनकतधरिक सासथाओ क बहतर कतवकास क कतिए

सीध-सीध कतवदशी रॉडि कभी सफि नही हो पायगा ऐसा इसकतिए कयादक हरारी आपसी कतवकतभननताओ

और झगड़ो को कोई बाहरीकतवदशी सतता कभी भी परी तरह सरझ नही सकती lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo नार

35भारतद गराथाविी -6 361

36 वही

33

स भारतद का एक दसरा िख इस अागरजी वाि िख क दो साि बाद अपरि सन १८७४ र हररशचनदर

रगजीन र छपा पकतबिक ओकतपकतनयन कया बिा ह इस साफ़ करत हए भारतद िख क आरमभ र ही कहत

ह ldquoपकतबिक ओकतपकतनयन अथामत सब साधारण िोगो की राय कया वसत ह और इसर दकतना जोर ह और

इसक कतिए कया हो सकता ह यह परशन ठहरा तो इसका साधारण उततर यही ह दक यह वह वसत ह जो

सासार को एक कर सकती ह गागा की धरा दफर कतहरािय पर चढ़ा ि जा सकती ह सययम को पकतशचर उगा

सकती ह और चाह तो ईशवर को भी पकड़ क कठपतिी की भााकतत नचा सकती हrdquo37 यह पकतबिक

ओकतपकतनयन lsquoएक रतrsquo होना ह जस अिग अिग चार पतिी िककतड़यो को एक साथ बााध दन स उस

तोड़ना करठन हो जाता ह उसी तरह एक रत होन स बड़ स बड़ा बरी भी हरारा कछ कतबगाड़ नही सकता

बहत स िोगो का रत एक हो तो वह शकति बन जाती ह हिारो आदरी की बकतदध एक हो जाए तो ldquoऐसा

कौन कार ह जो न हो सक तो यह कतसदधाात हआ दक कतनशचय सब िोगो क रत र बड़ी सारथयम ह इसस यह

कतसदध हआ दक बिो स बड़ा बि एक रत ही हrdquo38

आग भारतद कहत ह दक यह जनरत और उसकी शकति हहादसतान क कतिए कोई नई बात नही ह

पराचीन काि र इसक उदाहरण कतरित ह lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo की इस धारणा को भारतद न इकततहास क

अिग-अिग दौर र बनत और कतबगड़त ददखाया सबस पहि चार वणो की िररत पड़ी सब कार को

सचार रप स चिन क कतिए दसर शबदो र कह तो शरर-कतवभाजन की िररत स इसका जनर हआ

lsquoकतहनदओ न अपन गर क कार र इस वणामशरर धमरम को इसी वासत बनाया कतजस र उन क दकसी कार र

कोई हजम न हो और उनिोगो न सासार क सब कारो र चार कार रखय सरझrsquo धरम कतवदया और किाओ का

कार िड़ाई और राजय परबाध का कार वयापार और धन और सब िोगो की सवा और रजदरी इन चार

कारो की सवयवसथा वािा वणामशरर दरअसि lsquoएक रतrsquo कतहनद वयवसथा या lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo थी पर

कािाातर र इस lsquoएकरतrsquo क भीतर जाकततवयवसथा कठोर हो गयी और िाहमण और शदर दोनो एक दसर क

कतखिाफ हो गए एकरत र कतवचछद पदा होन स कतहनद शकति करिोर हो गयी भारतद क अनसार आपस

का यह झगड़ा बड़ा कतवनाशकारी साकतबत हआ पकतबिक ओकतपकतनयन क कतबना वयाकतभचार और जयादकततयो का

अाधर था आग चि कर जनो क जरान र दफर lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo न जोर पकड़ा बकतलक भारतद जोर

दकर कहत ह दक जनो क रत की उततपकततत ही lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo स हई ldquoकतहनदओ क जब नाश क ददन

जब कतनकट आय तो आपस र परसपर बड़ा कतवरोध खड़ा हआ और उस काि र िाहमणो का बड़ा जोर था

वरन य और वणो पर जयादती करत थ तो वशय और कषकततरयो की रकतत इनस दफर गयी और बाब वािी बड़ी

37गराथाविी- 678

38वही

34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

36

कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

37

उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

38

ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 14: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

14

इनक सदसय थ हहादी आनदोिन क नताओ न इन दोनो धाराओ की आिोचना की ह इनहोन दयानाद क

रिवाद की आिोचना अपनी परापरावादी करमकााडी दकतषट स की इनक अनसार उपकतनषद या पराण आदद

अगर अपराराकतणक भी ह तब भी चादक िोक र सवीकत ह इसकतिए उनह एकदर ख़ाररज करक कोई धरम या

सराजसधार नही हो सकता तिवार जी का कहना ह दक अपनी िचर दिीिो की आड़ र य िोग वसततः

सतरी कतशकषा कतवधवा कतववाह या आधकतनक जीवनशिी आदद की परगकततशीिता का कतवरोध कर रह थ यह

कतवरोध आरतौर पर सरदाय की रानयताओ को ही सारन रखकर दकया जाता था एक दकसर क

कतबरादरीवाद क भीतर स सरझौता करत चिन क कारण हहादी आनदोिन क नता अपन पाररवाररक या

वयकतिगत जीवन क उथिपथि स बचन की कोकतशश करत ह धरम इनक कतिए सधार का नही वरन

राजनीकततक हथका डा रातर था धरम की आड़ र य रकतसिर भदरवगम को अपना परकततयोगी साकतबत कर कतहनद

एकता की अपीि करत तादक इनह सरकारी नौकररयो र कछ कतवशषाकतधकार कतरि सक तिवार जी क

अनसार रकतसिर भदरवगम इन हहादी आनदोिन क परसकततामओ स कही जयादा परगकततशीि था उनक यहाा

आधकतनकता क परकतत जयादा खिी और कतववकसापनन दकतषट थी और उनहोन जोर दकर कहा दक हहादी आनदोिन

को सर सयद अहरद खाा जस दकसी सकषर कतववकवादी वयकतितव का नततव नही कतरि पाया हहादी

आनदोिन और नताओ क अातरवमरोधो को ददखात हए तिवार जी न भारतद की छकतव एक पतनशीि कतहनद

रोररटक की गढ़ी ह यहाा भारतद एक परकततनायक क रप र नजर आत ह

कतववकवादी इस धारा न राषटरीयता की जो धारणा गढ़ी वह रितः साापरदाकतयक थी अागरजी राज क

कतखिाफ अगर इनका साघषम सराज और धरम सधार को साथ-साथ रखन क बजाय उसर अिगाव करता ह

बकतलक उनक कतखिाफ जाकर सागरठत होन का परयास करता ह तो उसक सारन रकतसिर भय पदा करन क

अिावा और कोई रासता साभव नही था lsquoहहादी नागरी और गोरकषाrsquo आनदोिन इसकी सवभाकतवक पररणकतत

थी आग चिकर उननीसवी सदी क आकतखरी दशक र आकार गरहण करन वािी कतहनद राषटरवाद की यह

पषठभकतर ह इसक वग र दयानाद न भी साथ ददया कयोदक उनर भी पनरतथानवाद क बीज थ पवी परदशो

की अपकषा आयम सराज पाजाब र कही जयादा रकतडकि था आयम सराकतजयो की सदसयता की साखया पाजाब

क रकाबि यि परानत र जयादा थी पर वहाा कोई गणातरक पररवतमन साभव नही हआ और यह रहज

साखयाबि क रप र ही बना रहा इसका कारण उनहोन पाजाब की कतभनन नतततवशासतरीय अवकतसथकतत र

बताया ह पाजाब र िाहमणो का परभाव कर था कतजसका एक कारण रसिरानो क साथ िमबा सासगम और

कतसख धरम आदद का परभाव भी था इस तरह का कोई कतवशलषण पवी परदशो क बार र नही दकया गया जसा

दक बहत पहि रदमरशरारी की ररपोटम स ही हजारीपरसाद कतिवदी न दकया था अथामत रधययगीन कतसख

धरम क परभावो की तरह कबीरपाथी आदद सरदायो क परभाव और वषणवता क अातसबाधो की पड़ताि नही

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की गयी ह काशी क बनकरो की एक हड़ताि का कतिक रारकतविास जी बार बार करत ह जो १८३३ ई र

ही हई थी और इकततहासकार बिी क अनसार यह वक़त आरथमक साकट का भी वक़त था

भदरवगम का जो कतहससा हहादी आनदोिन क साथ था उस जाकतत वयवसथा की परानी रानयता को

बनाय रखन या उस रजबत करन की जररत कया कवि नौकररयो र कतवशषाकतधकार परापत करन क कतिए थी

या जाकतत वयवसथा रातर र आय एक रिगारी साराकतजक साकट का वह परकततदकयावादी रपाातरण ह शहरो

र आरथमक-वयापाररक गकततकतवकतधयो क कारण और आसपास क इिाको स परवासी रजदरो का आगरन तथा

बढ़ती वशयावकततत आदद क चित शहरी साराकतजक साबाधो र भी उथि-पथि थी ऐस सरय र सारदाकतयक

या कतबरादरी बोध lsquoएकाrsquo की भावना पदा करती ह तिवार जी इस नव-भदरवगम का अपन ही भीतर अिग-

अिग खााचो र बाट होन की बात करत ह अिग-अिग खााचो र बाट होन क चित यह भदरवगम रधयवगम की

कतवचारधारा अथामत कतववकवाद या नवजागरण को परापत नही कर पायी थी वगम था िदकन वगम की

कतवचारधारा नही थी खद भारतद क जीवन स हर उस दौर की अकतसथरता का कछ अादािा कतरिता ह

अकतसथरता और खााचो र बाटा रधयवगम दरअसि सापणम सराज र होन वाि एक आधारभत पररवतमन की ओर

इशारा करता ह यह पररपरकषय १८५७ की तरासदी का भी ह ऐसी कतसथकतत र हपराट पाजी क साथ बनन वािा

यह साासककततक आनदोिन था जहाा सवतव रकषा रखयतः अपन परान कतवशषाकतधकार की रकषा थी साराकतजक

साबाधो र आय उथि पथि क कारण उनह अपन कतवशषाकतधकार कतछन जान का खतरा साफ़ ददखाई द रहा

था जहाा अागरजी कतशकषा थोड़ा पहि ही परसार पा चकी थी वहाा कशि कारीगरो स िकर अधयापको और

परशासकतनक अकतधकारीयो क एक बड़ सरह न अपना नया कतवशषाकतधकार पा कतिया था साराकतजक साबाधो र

उनकी शरषठता उनक कतववकवाद क कारण बन चकी थी भारतद क एक शरआती िख lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

क राधयर स खााचो और जनरत की राजनीकतत को सरझन की कोकतशश आग करग

तिवार जी क अनसार दयानाद क कतवचारो क कतिए पाजाब जयादा गरहणशीि था कयोदक वहाा

जाकतत वयवसथा क बाधन पहि ही ढीि हो गए थ यिपराात र जाकतत क बाधन जायदा कठोर थ कतजन अथो र

कतिवदी जी रधय दश की रकषणशीिता का कतजक करत ह कछ-कछ उनही अथो र पर सवया दयानाद क

कतवचारो र कतववकवाद-पनरतथानवाद का दोरखापन कतरिता ह तिवार जी कहत ह दक कतजन सथि तको स

वह वदो की ओर िौटन को कहत थ आयम भाषा आयम जाकतत और आयम धरम की बात करत थ उसक कारण

ही इनका झकाव आग चिकर राषटरीय सवयासवक साघ की ओर होता गया पर आयम सराज क साराकतजक

सधारो और धरम सधारो की एकता क कारण वहाा वह साभावना भी थी कतजसक परभाव स आग चिकर बहत

सार कमयकतनसट कायमकताम भी कतनकि पररचाद राहि साकतयायन या गणश शाकर कतवदयाथी जस साकतहतयकार

और आनदोिनकताम आयम सराज क परभाव र थ आयम सराज तिवार जी क अनसार वासतकतवक साराकतजक

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पररवतमनो का सावाहक और सराज र वयकति स िकर साराकतजक जीवन क हर कषतर र गणातरक पररवतमन

िान वािा इसकतिए हो पाया कयोदक वहाा धरमसधार और सराज सधार अिग-अिग नही था दसरी ओर

हहादी आादोिन साापरदाकतयक जाकततवादी और सतरीकतवरोधी रलयो को ही सराज र फ़िान र कारयाब हआ

यह धारा अागरजो को अरजमयाा दकर नौकरी पान वाि रधयवगम की धारा थी

तिवार जी न भारतद की तकमशीिता को बहत कतनमन कोरट का कहा ह भारतद क चररतर र शायद

वह एक lsquoिमपनrsquo की छकतव भी दखत ह पसा उड़ान की वकतत सतरी क साथ वयवहार और उनक साबाध

चाररतरय बि का अभाव आदद आदद क सनदभम र वह कहत ह दक भारतद क चररतर र वह सदढ़ता या

सदाचाररता नही ह जो सराजसधार क कतिए आवशयक होती ह घर र पतनी उनह कभी पसाद नही आई

और वह बाहर रहदफ़िो र वाहवाही िटत रह रदमवादी दकतषट भी उनर कट-कटकर भरी थी भारतद क

इस चररतर की तिना तिवार जी न दो अनय परमपरावादी सधारको स की ह एक बागाि क राधाकाात दव

और दसर पाजाब क शरदधारार फलिौरी यदयकतप य दोनो भी भारतद की तरह परापरा की रकषा र ही सधार

की ओर अगरसर हए थ िदकन इन िोगो का चररतर जयादा परगकततशीि था इन दोनो की तिना र भारतद

का खिनायकतव और भी अकतधक उभरकर सारन आता ह सापकतकषक परगकततशीिता क कतनधामरण क कर र

भारतद अपन सापणम जीवन वयवहार र एक एाटी हीरो की तरह उभरत ह ठीक परान खिनायको की तरह

नही एाटी हीरो क साथ दशमक या पाठक की एक आतरीयता भी जड़ी रहती ह उसका चररतर ददराग र बस

जाता ह िदकन इसक चित यथाथम क ओझि होन का खतरा भी ह तिवार जी इसकतिए कदर कदर पर

उनकी साकतहकततयक छकतव क बरकस उनक राजनकततक- साागठकतनक जीवन वयवहार स बनन वािी छकतव को

सारन ररतमरान करत जात ह

अपनी परी आिोचना र तिवार जी भारतद की रचनाओ र कतरिन वाि भाषायी िदधड़पन और

राद तकमशीिता की चचाम तो करत ह िदकन व भारतद क वयागयो पर चचाम नही करत कया यह रहज

सायोग ह दक भारतद क परहसन lsquoअाधर नगरीrsquo का राचन आज भी परगकततशीि रलयो की परकततषठा ही करता

हभारतद क वयागयो या परहसनो र ऐसा कया ह कतजसर दहराव क साथ नवीन होत चिन की कषरता भी ह

भारतद क िखो या परहसनो या रपको र जो कही-कही वणमन या सावाद िारा वयागय का तीखा बोध पदा

होता ह उसकी शकति उनह कहाा स कतरिती ह वयागय की कषरता सवया र उनकी सकषर कतनररकषण र सरथम

दकतषट का परराण ह परान साराकतजक साबाधो र पररवतमन और तीवर पररवतमन क साथ साथ जो एक परहसन

चि रहा था उसका बोध भारतद को था भदरवगम क भीतर की कतववकवादी धारा का कतवकास भी कतहनद

राषटरवाद की कतवचारधारा र ही हआ परनत lsquoअाधर नगरीrsquo कया कतहनद राषटरवादी कतवचारधारा वािा परहसन ह

या कया यह कवि राषटरवादी कतवचारधारा का वाहक ह lsquoउरराव जान अदाrsquo र उभरकर सारन आन वाि

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साराकतजक साासककततक साकषोभ या उस वयापक टरजडी क सनदभम र दख तो भारतद क वयागय और परहसनो का

अथम थोड़ा और उभरता ह रकतलिका या राधवी स भारतद क साबाधो र कया उस तरासदी का सराग भी नही

ह वशयावकततत और पतनशीि रइसो का साकट एक दसर स अिग नही था उस सरय की औपनयाकतसक

ककततयो र वशयावकततत का सनदभम अवशय आता ह आग चिकर पररचाद की सरन बनारस र ही lsquoसवासदनrsquo

का सराधान ढाढ रही थी

भारतद क वयागयो पर रारकतविास जी का धयान था यह बात अिग ह दक अकतधकााश रौको पर

इनर वह जातीय चतना खोज कतनकाित ह बीस साि की उमर र भारतद न एक िख lsquoिवी पराणिवीrsquo नार

स कतिखा था रारकतविास जी इसका उलिख करत हए कतिखत ह ldquoगवनमर जनरि कतहनद क कतजस दरबार का

भारतद न वणमन दकया ह वह काशीराज क घर पर हआ था इसकतिए भारतद की सतयकतपरयता और भी

सराहनीय ह वहाा जो सजजन िोगो क नार कतिख रह थ उनका वणमन या दकया ह lsquoनार कतिखन वाि राशी

बदरीनाथ फि-फाि अबा पकतहन पगड़ी सज परान दादर की भााकतत इधर-उधर उछित और शबद करत

दफरत थrsquo िोग दकस तरह एक आनररी रकतजसटरट क lsquoकतसट डौनrsquo lsquoसटड अपrsquo कहन स उठत और बठ जात थ

इसका उनहोन बहत ही नाटकीय वणमन दकया ह आनररी रकतजसटरट का वयवहार हविदार का सा था कतसफम

हाथ र एक िकड़ी की कसर थी िोग कीरती पोशाक पहनकर गए थ ldquoसबक अागो स पसीन की नदी

बहती थी रानो शरीयत को सब lsquoअरघय पादयाrsquo दत थrdquo िोगो की उठा बठी और बहदा कवायद को िकषय

करक कतिखा था ldquoवाह-वाह दबामर कया था lsquoकठपतिी का तराशाrsquo था या बलिरटरो की lsquoकबायदrsquo थी या

बादरो का नाच था या दकसी पाप का फि भगतना था या lsquoफौजदारी की सजाrsquo थीrdquordquo21 काशी की इस सभा

र खद भारतद भी बठ थ इस परकार यह भारतद क वगम का परहसन भी था पतनशीि सासककतत की

आतरािोचना क कतबना यह साभव नही था बात कवि उमर की नही ह ठठ वतमरान र हसतकषप और उस

बदिन का बोध कतजन पतनशीि कतसथकततयो का आतर साकषातकार कर रहा था यह उसक परकतत एक

सवाभाकतवक सवतःसफतम परकततदकया थी यह तारकम क की नही बकतलक किाकार की सवतः सफतमता थी यह बात

सही ह दक भारतद कतवचारो की तारकम कता क रारि र उननीस पड़त थ पर इस करी को उनकी तीकषण

वसतकतनरीकषण दकतषट भर दती थी जीवन कतसथकततयो की कतवडमबना का बोध कतजतना गहरा था बदिन का

परयास उतना ही ऊजामवान था भारतद सवया अपनी भी कहानी कतिख रह थ lsquoपयार हररचाद की कहानीrsquo

कतिख रह थ भारतद क परहसनो र दकसी न दकसी पातर की भकतरका र हर जगह सवया भारतद भी ददख

जात ह अपन वगीय अातरवमरोधो का सवबोध उनक यहाा एकतिगोररकि हो जाता ह इस एकतिगरी र lsquoकतहनद

21 रारकतविास शराम पषठ- ६६

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भारतrsquo की रधर कलपना थी इसस इनकार नही दकया जा सकता भाव जगत का वषणव परर lsquoकतहनद भारतrsquo

की कलपना स परर र बदिता गया

भारतद की रचनाओ र कतवशवदकतषट की एकता खोजन पर हर परभतवशािी कतवचारधाराओ की

वयवसथा ही कतरिगी जञान और वयावहाररक सारानय बोध क बीच एक सदकय साबाध बनान क कर र ही

उनका सवाभाकतवक आवग कतजन वयावहाररक धाररमक कतवचारधाराओ र आतरकतबकतमबत होता ह व

परभतवशािी कतवचारधाराएा ह इन कतवचारधाराओ का कतनरामण कही बाहर स नही हो रहा था बकतलक

पराचयकतवदयाकतवदो की कलपना क साथ परसपर भागीदारी र बन रहा था इन कलपनाओ को यथाथम रप द

रही थी हपराट पाजी क साथ कतवककतसत होती lsquoबजमआ पकतबिक सफीयरrsquo की दकयाएा भारतद की सवाभाकतवक

सफरतम ततकाि ही एक फ टसी र बदिन िगती ह और दकयातरक होना चाहती ह ऐस ही सरय

पराचयकतवदया क पाकतडतो क िारा जगाय गए कतरथकीय परत भी आकर सर पर सवार हो जात ह पराचयवाद

दकसी परत-कतवदया स कर न था दखना चाकतहए दक भारतद की रचनाओ र कहाा परतो की दकतनया र यथाथम

का हसतकषप होता ह उनकी एकतिगरी कहाा कतसथकततयो क अकततरक को अकतभवयि कर रही ह जस भारतद की

lsquoअाधर नगरीrsquo ऐन हरार वक़त र राजयसतता का रपक बन जाती ह यह रपक राजयसतता र अनतरनमकतहत

हहासा की अकतनवायमता और नयाय क भरर का परहसन भी ह

२ धरम सधार पर कतवचार सभा

िहमो सराज या दयानाद सरसवती को खद भारतद कस दख रह थ इसका पता हर lsquoसवगम र कतवचार

सभा का अकतधवशनrsquo22 नारक एक वयागय रपक स चिता ह सवारी दयानाद सरसवती और कशवचादर सन

जब ररन क बाद सवगम पहाच तो ldquoवहाा एक बर बड़ा आनदोिन हो गयाrdquo रतय क कछ ही सरय पहि कतिखा

गया यह वयागय रपक अपन सरय क धरम सधार आादोिनो क चररतर की वयाखया करता ह सबस पहि

इसका परकाशन किकतत स कतनकिन वािी परकततकतषठत हहादी पकततरका lsquoकतरतर कतविासrsquo (जन १८८५) र हआ था

िहमो सराज और आयम सराज क आनदोिनो को भारतद इस सरय तक आकर एक तटसथ आिोचकीय दकतषट

स दखन का परयास करन िग थ सवगम र एकबारगी पदा हए इस आनदोिन र रोट तौर पर दो खर बन

गए एक इनका परशासक था दसरा हनादक पहिा कतिबरि ह दसरा काजरवरटव इन दोनो खााचो र

अनदफट एक तीसरा दि ह जो वषणव आतराओ का ह इस दि क सासथापक तो कतिबरि थ पर अब य

lsquoरकतडकलस कया रहा रकतडकलस हो गए हrsquo कतनकतशचत रप स इन रहा रकतडकलस आतराओ र हर सवया भारतद

22 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन सा- करिा परसाद परसा- नारवर हसाह पषठ- ८२-८६ नशनि बक टरसट इाकतडया नई ददलिी- २००६

(आग इस िख क उदधरणो को कतबना पाद रटपणणी क ददया गया ह)

19

को भी कतगन सकत ह वयासदव एक ऐस बकतदधजीवी क रप र सारन आत ह जो दकसी का भी पकष िन स

बचत ह पर उनका रान दोनो खरो र ह ldquoकतबचार बढ़ वयासदव को दोनो दि क िोग पकड़-पकड़ कर ि

जात और अपनी अपनी सभा का lsquoचयररनrsquo बनात थ और बचार वयास जी अपन पराचीन अवयवकतसथत

सवभाव और शीि क कारण कतजसकी सभा र जात थ वसी ही विता कर दत थrdquo कतिबरिो की तिना र

का जरवरटव दि जयादा रजबत था कयोदक उनह सवगम क जरीदारो का सहयोग परापत था काजरवरटव दि की

आतराएा साकीणम कटररपाथी आतराएा थी य आतराएा उन परान िरान क ऋकतष रकतनयो की आतराएा ह जो

ldquoयजञ कर करक या तपसया करक अपन-अपन शरीर को सखा-सखाकर और पच-पच कर ररक सवगम गए हrdquo

करमकााड और वरत उपवास आदद को भारतद वही तक सही रानत थ जहाा तक व शरीर को कषट न पहाचाएा

कठोर दह साधना करन वाि इन ऋकतष रकतनयो की आतराएा सधारो क कतखिाफ थी और इनका साथ दन

वाि जरीदारो र lsquoउदार िोगो की बढ़तीrsquo स अपना रान-अकतभरान और बि कतछन जान का डर था

कतिबरि दि भिो की आतराएा या तो सावमजाकतनक जीवन क उचच रलयो या आदशो क सापादन क चित या

पररशवर की भकति स सवगम र गयी थी

सराज सधार और वयकतिक परर रिक भकति- कतिबरि कतवशवदकतषट को भारतद इसी पररपरकषय र दख

रह ह रकतडकि वषणव दि भिो क कतिए वषणव होन रातर स य चीज पहि स ही उपिबध थी भारतद क

कतिए वषणवता सवाभाकतवक रप स कतवशवदकतषट ह पर रकतडकि वषणव इस सवाभाकतवक उदारता को

राजनीकततक रप दन वाि ह वषणव उदारता का और उसक भावावग का राजनीकततकरण करन वाि रहा

रकतडकि इस तरह भारतद क कतिए वषणवता की आधकतनक वयाखया र सराज सधार वयकतिक परर रिक

भकति और राजनीकतत तीनो का lsquoएकाrsquo ह इस एका क रकतडकि परयास क कतिए जनरत या िोकरत का

कतनरामण आवशयक ह भारतद की रकतडकि वषणवता ही lsquoसब उननकतत का रिrsquo ह यह एक िोककतपरय

वयावहाररक कतवचारधारा क रप र आकर गरहण करन वािी वषणवता ह यह रकतडकि वषणवता धरम का

राजनीकततकरण ह

काजरवरटव दिभिो को दवताओ का सरथमन परापत था य दवता ही सवगम क जरीदार थ अपन

अपन तरीक स इन दवताओ न काजरवरटव दि की सथानीय शाखाएा भी खोि िी और वहाा इनक पकष र

lsquoपरकाश सभाएाrsquo होन िगी कतिबरि दि वािो क पकष र कवि इस lsquoकतहनद सवगमrsquo क िोग नही थ ldquoइधर

lsquoकतिबरिrsquo िोगो की सचना परचकतित होन पर रसिरानी-सवगम और जन सवगम तथा दकसतानी सवगम स पगमबर

कतसदध रसीह परभत कतहनद सवगम र उपकतसथत हए और lsquoकतिबरिrsquo सभा र योग दन िग बका ठ र चारो ओर

इसकी धर फि गयीrdquo अिग अिग सवगम कतवकतभनन धाररमक पहचानो की ओर इशारा करता ह बका ठ कतहनदओ

का सवगम ह और यह नया धरम आनदोिन रखयतः कतहनद धरम की एक बड़ी पहचान क भीतर ही पदा हआ ह

20

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग क तीन कतनकतहताथम वसधा डािकतरया न भारतद यग क सनदभम र नोट दकय ह23 पहिा

एक पराक औपकतनवकतशक lsquoकतहनद अथमrsquo जहाा हहादसतान का हर बाहशादा शाकतरि था दसरा परसपर कतभनन

धाररमक रतो और आसथाओ की कतनकट अातरकम या क अथम को वयि करता ह कतजसक आराकतभक साकषय सलतनत

कािीन ऐतहाकतसक वतताातो र कतरित ह यहाा यह शबद lsquoतकम rsquo क सरानाातर उपयोग र आया था और

सारानयतः रसिरानो क बरकतखिाफ उपयोग दकया जाता था आरमभ र यह धाररमक कर साराकतजक-

राजनीकततक अथो र जयादा परयि होता था अागरजी राज क साथ यह दसरा अथम धरम स अकतनवायमतः जड़कर

lsquoकतहनदवादrsquo की कतवचारधारा र बदि गया जमस कतरि आदद क इकततहासो र lsquoकतहनदकािrsquo और lsquoरसिरान

कािrsquo की ऐकततहाकतसक कलपना क साथ कतहनद शबद जड़ गया था भारतीय भी रसिरानो को सारन कर

lsquoकतहनद पीकतड़त गराकतथrsquo क कतिए इस शबद का इसतराि करन िग कतहनद शबद का तीसरा अथम राषटर की

अवधारणा स जड़कर बन रहा था आरथमक राषटरवाद और अागरजी राज की यातना की साझी सरकतत स बनन

वाि इस तीसर अथम का रतिब था- lsquoजो कतहनदसतान र रह वह कतहनदrsquo रारकतविास जी भारतद क यहाा

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग को इनही अथो र ित थ पर वसधा डािकतरया का कहना ह दक यह तीसरा अथम दसर क

वयापक परभाव र था तीनो अथो की अातरकम या क बार र डािकतरया न कतिखा ldquoतीसरा अथम या राषटरवादी

अथम कभी भी अपन धाररमक साकताथो स परी तरह छटकारा नही पा सका इस पद की परयकति उननीसवी

सदी र अकतसथर बनी रही और इसक रखतकतिफ रायनो र आपसी जड़ाव कायर रहा बावजद इसक दकसी

परदतत सनदभम र lsquoकतहनदrsquo क पराथकतरक अथम को कतनधामररत करना साभव ह यदद एक बार यह तय हो जाय दक

इिाकाई धाररमक राषटरीय र स दकस आधार पर यह पद परयोग र आ रहा ह और lsquoअनयrsquo की भकतरका र

दकस रखा जा रहा ह चाह वह अनय जसा दक परानी इिाकाई परयकति र ददखता ह फारसी या तकी हो

या रसिरान (कतजस इस िरान र भी कई बार सरह क हवाि स तकम ही कहा जाता ह) या दफर अाततः

औपकतनवकतशक सवारी िदकन यह बात ददराग र रखना जररी ह दक धाररमक सरदाय को कतनरदमषट करन

वािी दसरी परयकति अतयात परभावी सनदभम-हबाद बनी रहती हrdquo24

इस सनदभम र दख तो कतिबरि दिो क सरथमन र शाकतरि lsquoअनयrsquo कतहनद धरम क सधारवाद क सरथमक

ह और lsquoसधारोrsquo र छपी वकतशवक भावनाओ को सरथमन दन पहाच ह का जरवरटव दिो की lsquoअनयताrsquo यहाा नोट

करन िायक ह इस अनयता र साराती जरीदार और करमकााडी िाहमणवाद का बिाक ह जबदक कतिबरि

दकतषट क आसपास एक lsquoसायि रोचrsquo की कलपना की गयी ह धयान रखना चाकतहए दक भारतद क रकतडकि

वषणव इस lsquoसायि रोचrsquo क बाहर ह उनका lsquoएबसटकतनजरrsquo वषणव होन क चित नही बकतलक रकतडकि या

23 वसधा दिकतरया कतहनद परमपराओ का राषटरीयकरण भारतद हररशचादर और उननीसवी सदी का बनारस अन साजीव करार योगनदर दतत पषठ-

४०-४२ राजकरि पपरबकस नई ददलिी- २०१६

24 वही पषठ- ४२

21

रहा रकतडकि होन क चित था कतनकतशचत रप स सवगम सासद का रपक ह और सवगम का राजा ईशवर

कतनषपरभावी हो गया ह और जनता सवया जनरत क िारा कतनणमय कतसथर करन पर जोर दती ह जनरत क

िारा lsquoसलफ गवनमरटrsquo का परयास सबस पहि वषणव भिो न दकया था और आज क कतिबरलस उसी को

आग बढ़ा रह ह ईशवर क पास दोनो दिो क िोगो न जब अपन अपन ररोररयि तयार कर भज तो ईशवर

न दोनो दिो क डपयटशन को बिाकर कहा ldquoबाबा अब तो तरिोगो की lsquoसलफगवनमरटrsquo ह अब कौन

हरको पछता ह जो कतजसकी जी र आता ह करता ह अब चाह वद कया सासकत का अकषर भी सवपन र भी न

दखा हो पर धरम कतवषय पर वाद करन िगत ह हर तो कवि अदाित या वयवहार या कतसतरयो क शपथ

खान को ही कतरिाय जात ह दकसी को हरारा डर ह कोई भी हरारा सचचा lsquoिायकrsquo ह भत परत ताकतजया

क इतना भी तो हरारा दजाम नही बचा हरको कया कार चाह बका ठ र कोई आवहर जानत ह चारो

िड़को (सनक आदद) न पहि स ही चाि कतबगाड़ दी ह कया हर अपन कतबचार जयकतवजय को दफर राकषस

बनवाव दक दकसी का रोकटोक कर चाह सगन रानो चाह कतनगमन चाह ित रानो चाह अित हर अब न

बोिग तर जानो सवगम जानrdquo

काजरवरटव दिभिो न दयानाद और कशवचादर सन पर कया कया आरोप िगाय यह दख िना

चाकतहए दयानाद को सवगम र सथान नही कतरिना चाकतहए कयोदक १ इसन पराणो की हनादा की २ ररतमपजा

की हनादा की ३ वदो का अथम उलटा-पलटा कर डािा ४ दस कतनयोग करन की कतवकतध कतनकािी ५ दवताओ

का अकतसततव कतरटाना चाहा (दवताओ याकतन जरीदार) ६ इसन धरम कतवपिव दकया और आयामवतम को धरम

बकतहरमख दकया पकतशचरोततर परानत क परकततकतनकतध क रप र lsquoकाशी क कतवशवनाथ जीrsquo न lsquoउदयपर क एकहिाग

जीrsquo पर दयानाद क सरथमन का आरोप िगाया कतवशवनाथ जी काजरवरटव दिो की तरफ स यह आरोप िगा

रह थ परब की अपकषा पकतशचरी इिाको र आयम सराज क परभाव की चचाम क सनदभम र एकहिाग जी का

जवाब धयान दन िायक ह कतवशवनाथ जी न जब एकहिाग जी को कतधककारत हए कतिबरिो क साथ कतरि जान

को कहा तब एकहिाग जी न कहा ldquoभाई हरारा रतिब तरिोग नही सरझ हर उसकी बरी बातो को न

रानत न उसका परचार करत कवि अपन यहाा क जागि की सफाई का कछ ददन उसको ठका ददया बीच

र वह रर गया अब उसका राि रता रठकान रखवा ददया तो उसका बरा दकयाrdquo यह एकहिाग जी

दफ़िहाि सवारी जी क दि क सभापकतत बन ह आकतखर इनहोन अपन यहाा क दकस lsquoजागिrsquo की सफाई का

ठका सवारी जी को ददया था यह जागि छोट-रोट धाररमक समपरदायो और रतो का जागि था एकहिागी

जी और काशी क कतवशवनाथ जी दोनो ही िाहमणीकत शवरत क धाररमक परतीक ह पर जहाा काशी क

कतवशवनाथ शर स ही दयानाद क कतवरोधी थ वही एकहिाग जी रणनीकततक रप स दयानाद क पास गए थ यह

साकीणम कटररपाथ क भीतर का कतववाद था यह बात गौर करन िायक ह दक जगननाथपरी र जब भरव की

22

रौजदगी का कतववाद भारतद क सारन आया था उस सरय उनहोन इस बात का परतयाखयान दकया था दक

भरव की परकततरा अनाददकाि स वहाा ह भारतद न पराण आदद स साकषय दकर यह परराकतणत दकया दक

कषण ही एकरातर उपासय ह तिवार जी न इस घटना का उलिख करत हए कतिखा ह दक ldquoदकसी वयकति न

lsquoतहकीकातपरीrsquo दकताब दकखकर बताया दक वहाा पहि भरो की पजा होती थी वषणवो न उसकी ररतम

उखाड़ फ की थी बाद र पाडो न जगननाथजी (कतवषण) क साथ भरो को दफर स परकततकतषठत दकया यह रारिा

काशी धरमसभा क सारन १८७० र आया भारतद न धरम साबाधी पसतक र lsquoतहकीकातrsquo जस फारसी शबद

की आिोचना करत हए कतवकतभनन धरमगराथो स परराण जटाकर दो बातो पर जोर ददया एक इसका परराण

नही कतरिता ह दक वहाा जगननाथजी क साथ पहि भरो की भी ररतम थी कतजस वषणवो न उखाड़ फ का दो

अगर वह थी भी तो यह उकतचत था या नही- इसपर कतवचार होना चाकतहए भारतद न अपनी वयवसथा दत

हए कतिखा दक भरो कतवषण स बहत छोटा दवता ह इसकतिए यह कतवषण क साथ बठाया नही जा सकता

lsquoदसर भरव कापाकतिको क दवता ह उनका पजन वषणव-सरातम सबको कतनकतषदध हrsquo गौरतिब ह दक भारत

र कतवकतभनन सथानीय धरो क परकतत कतजतन असकतहषण और फा डारटकतिसट आयमसराजी थ उतन ही काशी क

सनातनी भी थrdquo25

सथानीय धरम-रतो क जागि को साफ़ करन र आयमसराकतजयो और काशी क सनातनी पाडो क इस

गठजोड़ स भारतद भी वादकफ थ िदकन आयमसराकतजयो क साथ उदयपर क एकहिाग जी का रोचाम कसा

था इस भी भारतद बखबी सरझ रह थ सथानीय रतो क साथ भारतद का समबनध कसा था इसका पता

उनक छोट-छोट यातरा सासररणो स भी चिता ह lsquoसरय पार की यातराrsquo26 र रहदावि का हाि बयान करत

हए lsquoपराणनाथrsquo क रिहब का भारतद आशचयम क साथ उलिख करत ह भारतद क ही शबदो र ldquoयहाा एक

पराणनाथ का रिहब ह और दस बीस िोग उसक रानन वाि ह य िोग एकादशी तीथम वगरह को नही

रानत और सन सनाय दो तीन शलोक जो याद कर कतिए ह बस उसी पर चर हो lsquoरदीनासया शारदाा शताrsquo

और lsquoगोकतवनदrsquo lsquoगोकिानाद रककशवरrsquo यह शलोक पढ़ क कहत ह दक वद र रकका रदीन का वणमन ह ऐस ही

बहत वाकतहयात बात करत ह और कोई दकतना भी कह कछ सनत नही कहत ह दक गोिोक का नाश ह

और गोिोक ऊपर एक lsquoअखाड रणडिाकारrsquo िोक ह उसर रर कषण ह इनका रिहब एक पराणनाथ नारक

एक कषतरी न पनना र करीब तीन सौ बरस हए चिाया थाrdquo भारतद इस अजीबो गरीब lsquoरिहबrsquo का कषण स

कया साबाध ह यह सोचकर ताजजब र थ इस lsquoरिहबrsquo क गरनथ र भारतद न एक शलोक बलिभाचायम का

दखा तो उनका राथा और घर गया ldquoकि रिहब का हाि हरन नीच कतिखा था उसका अचछी तरह स

25 वीरभारततिवार रससाकशी १९वी सदी का नवजागरण और पकतशचरोततर परानत पषठ- १५२ सारााश परकाशन ददलिी- २००६

26 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन पषठ- १३७-३८

23

हाि दरयाफत दकया तो रािर हआ दक हरार ही रिहब की शाखा ह इनक गराथो र हरन एक शलोक शरी

रहापरभजी की सबोकतधनी की काररका का दखा इसी स हरको सादह हआ दफर हरन बहत खोद खाद कर

पछा तो वह साफ़ रािर हआ दक इसी रत स यह रत कतनकिा ह कयोदक एक बात वह और बोि दक हरारा

रत शरी बलिभाचारज की टीका र कतिखा ह इन िोगो क उपासय शरीकषण ह और एकादशी शािगरार

ररतमपजा तीथम दकसी को नही रानत इनक पकतहि आचायम दवचाद जी थ जो जाकतत क कायथ थ और दसर

पराणनाथ जी जो कचछ क कषतरी (भारटया) थ हरार ही रत की शाखा सही पर कतवकतचतर रत ह वषणव होकर

ररतमपजा का खाडन करन वाि यही िोग सनrdquo वणमन स सपषट ह दक सात और कतनगमण पाथो क साथ वषणव

कतवचारधारा क आदान-परदान का साकतशलषट इकततहास भारतद क कतिए ताजजब की चीज थी पर इन सबक बीच

आकतखर उनहोन इसक वषणव रि का पता िगा कतिया और वषणवता की इस धाररमक कतवचारधारा र उनहोन

ररतमपजा का कतवरोधी होना भी शाकतरि रान कतिया भारतद न ररतमपजा क सरथमन र बड़ बड़ िख कतिख

थ इसकतिए असाभव नही दक कषण क परकतत परररिक भकति क कतिए ररतम की जररत पर उनहोन कछ पछा

जरर होगा िदकन lsquoकोई दकतना भी कछ कह सनत ही नहीrdquo आग चिकर lsquoवषणवता और भारतवषमrsquo र

वह बड़ कतवशवास क साथ घोकतषत करत ह दक ldquoपहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद कतजतन पाथ ह सब

वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और भारतवषम इन पाथो स छाया हआ हrdquo27 तब वह वषणवता और

िोकरतो और रधयकािीन पाथो क भीतर पहि स सदकय एक ऐकततहाकतसक परदकया का सारानयीकरण कर

उसका नार lsquoवषणवrsquo रख रह थ अकारण नही दक उसी िख र वषणव वयापकता को बतान क कतिए

परचकतित lsquoनारोrsquo का साकषय पश दकया गया ह वयकतियो स िकर वरत और उपवासो तक यह परभतवशािी

सारानय बोध की कतवचारधारा थी कतिवदी जी रधयकािीन वषणवता को िोकधरम कहत थ भारतद

उननीसवी सदी क िोकधरो को वषणव कहत ह

काजरवरटव दिो की तरफ स कशवचादर सन पर िगाय गए आरोप थ १ वद पराण सबको कतरटा

डािा २ दकसतान रसिरान सबको कतहनद बनाया ३ खान पीन का कतवचार कछ न बाकी रखा ४ रदय की

तो नदी बहा दी आयम सराकतजयो क ऊपर रखयतः आरोप lsquoआयामवतम को धरम बकतहरमखrsquo करन का ह धरम

बकतहरमख अथामत सनातन धरम स कतवरख उनहोन कवि धरम क भीतर कतवपिव दकया परनत िहमो सराज न तो

lsquoभारतवषम का सतयानाशrsquo कर डािा इनहोन तो पराणो क अिावा वदो को भी कतरटा डािा lsquoआयामवतमrsquo की

जातीय पकतवतरता नषट करक दकसतान रसिरान जस lsquoकतवदशी ततवोrsquo को घर र घसा कतिया कटररपाथी

करमकााकतडयो क कतिए इनक साथ रणनीकततक तौर पर भी रोचाम बनान वािा कोई एकहिाग जी तयार नही

था सनातकतनयो िारा दकया गया यह बारीक भद खद कतिबरि दिभिो क भीतर का भी अातरवमरोध था

27 भारतद वषणवता और भारतवषम वही पषठ-७६

24

कतिबरिो की सभा र भी दो दि हो गए थ एक सवारीजी क सरथमको का दि था और एक कशव

क सरथमको का कतहनद कतिबरिो की आताररक एकता कतिकतवभाकतजत थी दयानाद क सरथमको क अनसार सवारी

जी न कतहनदओ की आतरा को जगाया था उनह सफतम बनाया वरना तो आयामवतम क आिसी और रखम

रोहकतनदरा र ही कतनरगन थ इस तरह रखम और आिसी सारानयजनो को lsquoिाहमणो क फा द स छड़ायाrsquo िाहमणो

की तिना भारतद न lsquoपादररयोrsquo स की ह जो lsquoवयथम परजा का दरवय खान वाि हrsquo आयम सराज न सासथाकत

परोकतहतवाद पर हरिा दकया था जो भारतद क कतिए रितः जनता क पसो पर पिन वािा परजीवी वगम

िगता था और तो और आधकतनक कतवजञान क आग जो lsquoआयोrsquo की नाक कटी जा रही थी उस भी सवारी जी

न बचा कतिया उनहोन वदो र भी रि तार करटी कचहरी आदद ददखाकर कतहनदओ र आतरसमरान पदा

दकया दसरी ओर कशव क सरथमको का कहना था दक ldquoधनय कशव तर साकषात दसर कशव हो तरन बाग

दश की रनषय नदी क उस वग को जो कशचन सरदर र कतरि जान को उचछकतित हो रहा था जञान करम का

कतनरादर करक पररशवर का कतनरमि भकति रागम परचकतित दकयाrdquo lsquoजञान करम का कतनरादरrsquo करक भी lsquoकतनरमि

भकति रागमrsquo का जो परवतमन कशव न दकया उसस ही ईसाई lsquoअनयताrsquo का साथमक परकततरोध साभव हआ lsquoरनषय

नदी का आवगrsquo भावावग ह इसी बात को दसर शबदो र कह तो भाव जगत क सवाभाकतवक वग को भगवत

भकति की शदध lsquoअनयताrsquo की ओर रोड़कर उस कतवदशी ईसाई lsquoअनयताrsquo क रागम पर जान स रोक ददया इस

कायम क कतिए वद पराण समरत lsquoजञान-करमrsquo क रागो का कतनरादर अगर करना पड़ा तो भी वह उकतचत ही था

वषणव भकति क रधयकािीन सवरप की जो वयाखया आग चिकर की गयी उसक आराकतभक कतचनन हर यहाा

दख सकत ह कहना न होगा दक भारतद का अपना अनभव भी यहाा बोि रहा ह

शासतरीय काजरवरटव पाटी र दवताओ क अिावा यजञवलकय जस औपकतनषददक ऋकतष क साथ-साथ

नारायण भटर रघनाद भटराचायम राडन कतरशर जस कतनबाधकारो और टीकाकारो का जरघट भी था इसक साथ

साथ इसिारी सवगम स आय हए कटररपाथी कतशया िोगो का भी सरथमन उनह परापत था इस परकार कटररपाथ का

दवताओ (जरीदारो) िाहमणो (पादररयो) जञानरागी औपकतनषददक ऋकतष रधययगीन कतनबाधकारो और

कतवदशी कतशया िोगो का एक वकतशवक रोचाम बन रहा था दसरी ओर कतिबरि दि र चतनय परभकतत आचायम

दाद नानक कबीर परभकतत भि और जञानी िोग भी शाकतरि थ इसक अिावा काजरवरटव दि क

कतवदरोकतहयो को भी कतिबरिो न अपन यहाा जगह दी य कतवदरोही थ अितवादी (या नववदााती) भाषयकार

पाचदशीकार और कोई कतरसटर िडिा इन दोनो िोगो पर शर र का जरवरटव दि वािो न बहत हरि

दकय परनत अात र इनह कतिबरिो न अपन यहाा जगह द दी धयान रखना चाकतहए दक भारतद अपन सापरदाय

क अनरप अित वदाात या रायावाद क घोर आिोचक थ सन १८७३ र हररशचादर रगजीन क पहि ही अाक

र भारतद न शााकतडलय भकति सतरो का अनवाद lsquoभकति सतर वजयातीrsquo नार स परकाकतशत दकया भकतरका र

25

भारतद कतिखत ह ldquo दखो आज वसात पाचरी ह इसस बहत स िोग आर क रौर वा फिो क गचछ िकर

तरस कतरिन आवग तो र भी यह एक फिो की वजयाती रािा बना कर िाया हा अागीकार करो वजयाती

रािा बनान का यह हत ह दक वनरािा होगी तो होिी क खि र अरझगी और इसक कतसवाय इस वजयाती

स कतनशचय करक जञानाददक को जय करना ह पर पयार बहत साभि कर यह रािा पहरना टट न जाए

कयोदक सत कचचा ह और ककतियाा तािी और कोरि ह इस स कमहिान का भी भय ह जो हो इस वसात

पाचरी को तयोहारी रझ यही दो दक इस सतयानाशी lsquoअहरrsquo िहमवाद lsquo को पणमरप स नाश करक और भी

सब बातो र इस नव-वसात र भारतवषम की सब आपकतततयो का बस अात करो और अपन भिो क कतचतत र

नव पलिव दफर स िहिह करो जो सदा एक रस रहrdquo28 lsquoएकरसrsquo भकति क कतिए जररी ह दक जञानवाद

अहर िहमवाद को जड़ स उखाड़ फ का जाय कषण को अरपमत अपनी वजयाती रािा स भारतद जञानाददक

को जय करना चाहत ह एक ओर यह पकतषटरागी परापरा क lsquoवीर वषणवrsquo भारतद का परर कतनवदन ह दसरी

ओर lsquoनव-वसातrsquo र भारतवषम की सब आपकतततयो को नाश करन की सारथयम रपी lsquoउपहारीrsquo का साकलप भी

ह lsquoभारतद भारतवषम की सब आपकतततयोrsquo को दर करन की राह र एक बड़ी बाधा अित क जञानवाद को

रानत ह भकति का lsquoएकरसrsquo पहि भी इसक परभाव स ररझाता रहा ह भारतद का साकलप सापरदाय क

परान कतवरोधो क बावजद बन रहन वाि इस अितवाद का पणम सफाया करन का ह जबतक यह न कतरटगा

परररिा भकति क lsquoकमहिान का भयrsquo बना रहगा भकति सतरो र उपासना कााड को परर कतसकतदध का हत

बताया गया था पर भारतद दख रह थ दक उपासना कााड का परचार कतवरि हो गया ह इसी परचार क

कतनकतरतत उनहोन इन सतरो का भाषा र अथम परचार दकया था १८७३ र ही हररशचादर रगजीन का एक

समपादकीय कतनकिा कतजसका शीषमक था- lsquoभकति जञानाददक स कयो बड़ी हrsquo इस िख र भी उपासना रागम

की रहतता का परकततपादन दकया गया ह तकम और जञान को करम की शकतदध और उपासन की परर कतसकतदध क

रासत र कवि एक चरण बताया गया ह वसधा डािकतरया न भारतद क आराकतभक साापरदाकतयक परचार

परसार क कायो र कतनगमकतनयो को बाहर रखन का उपकर नोट दकया था29 यहाा कतनगमकतनए कबीर आदद lsquoभि

और जञानीrsquo कतिबरिो क सरथमक ददखाए गए ह वषणव भकति क राषटरीय चररतर र य बाहर नही थ उनकी

एकता का आधार उनक lsquoकतिबरि रिrsquo र ह सावमजकतनक उचच भाव का सापादन और भकति इन दोनो क साथ

अित वदााती या जञानाददक- सनातनी परापरा क कतवदरोकतहयो की जगह भी कतिबरि दि पाकतथयो र थी

कतिबरि वाि ही झगड़ क कतनपटार की अजी पररशवर को दन गए थ पर पररशवर अपनी

परतीकातरक हो गयी कतसथकतत स खजिाय हए थ यह सवोचच अदाित थी पर साथ ही साथ शकतिहीन

28 भारतद गराथाविी खाड- ५ पषठ ११३

29 वसधा डािकतरया पषठ ३४२

26

राषटराधयकष की कलपना भी कतजस कतहनद सवगम क य राषटराधयकष ह वहाा दकसी दकसर की सलफ गवनमरट चनन

की परणािी आ जान स ईशवर की एकाकतधकारी शकतियाा कतछन गयी ह िोग जनरत कतनरामण क िारा सही

और गित की पहचान करन िग थ इसकतिए थोड़ा खजिाय तो रहत ही होग lsquoअब कौन हरको पछता

ह तर जानो सवगम जानrsquo परनत साकट गहरा था यदयकतप कतिबरि िोगो की सभा भी धरधार स जर

रही थी पर काजरवरटव दि पाकतथयो की सरकार र पठ थी दवता सब भी उनक साथ थ इसकतिए पररशवर

क पास जररी नयाय का परशन उठाया गया था नयाय दक इन दो रहापरषो को सवगम र जगह कतरिनी

चाकतहए या नही सराज र इनक नकततक उचच आदशो क अवरलयन का परचार काजरवरटव कर रह ह इस

परचार क कारण जनता अपनी निरो स पहचानन र सकषर नही ह ऐसी कतसथकतत सवगम र पहि नही आई

थी नई कतसथकततयो क नए रानदाड कया होग िाकतहर ह नयाय और नकततकता को एक वकतशवक सवीककतत

चाकतहए इसकतिए पररशवर न इस कतवषय पर कतवचार क कतिए जो ककतरटी चनी वह गौर करन िायक ह इस

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo र ldquoराजा राररोहन राय वयास दव टोडररि कबीर परभकतत कतभनन-कतभनन रत क िोग चन

गए रसिरानी- सवगम स क lsquoइरारrsquo दकसतानी स िथर जनी स पारसनाथ बौदधो स नागाजमन और

अफीका स कतसटोवायो क बाप कोrdquo चना गया कतहनद सवगम स नवजागरण क अगरदत वयासदव जस

बौकतदधकिखक टोडररि जस राजनीकततजञ और धरम-ररमजञ कबीर जस जञानी-भि पराचीनो र कवि वयास

दव ह बाकी दो lsquoरधयकािrsquo क और एक lsquoआधकतनकrsquo काि क वयकति ह उधर यरोपीय नवजागरणधरमसधार

क परणता िथर को भी बिाया गया ह और बौदधो की तरफ स परर कतनषधवादी नागाजमन भी ह पर य

अफीका क कतसटोवायो धरो की अकतसरता क साथ-साथ यह अफ़ीकी सवगम कतनकतशचत रप स अफीका की छकतव

पराचीन आददवासी सासककतत वाि एक lsquoकािrsquo रहादश क रप र गढ़ी गयी थी यह अफ़ीकी सवगम साभवतः

आददवासी धाररमक रानयताओ की ओर इशारा करता ह यह भी धयान दन िायक ह दक राजा राररोहन

राय िथर और कबीर इन तीनो क साथ lsquoनवजागरणrsquo की कोई न कोई पररकलपना ठठ सरकािीन कतवरशो

क क दर र भी ह कई अथो र अकबर िारा आयोकतजत होन वािी lsquoसिह-ए-किrsquo जसी धरम सभाओ की एक

रोहक कलपना भी भारतद को रही होगी टोडररि की उपकतसथकतत अकारण नही ह

अकबर को िकर भारतद की इकततहासदकतषट कसी थी इसकी एक झिक हर १८८४ र छपी उनकी

lsquoबादशाह दपमणrsquo की भकतरका र ददखती ह इस गरनथ र उन िोगो का चररतर-कतचतरण दकया गया था ldquoकतजनहोन

हरिोगो को गिार बनाना आरमभ दकया इसर उन रसत हाकतथयो क छोट-छोट कतचतर ह कतजनहोन भारत क

िहिहात हए करिवन को उजाड़कर-पर स कचिकर कतछनन-कतभनन कर ददया रहमरद रहरद अिाउददीन

अकबर और औरागजब आदद इनर रखय ह पयार भोि कतहनद भाइयो अकबर का नार सनकर आपिोग

चौदकए रत यह ऐसा बकतदधरान शतर था दक उसक बकतदधबि स आजतक आपिोग उसको कतरतर सरझत ह

27

दकनत वह ऐसा ही नही उसकी नीकतत अागरजो की भााकतत गढ़ थी रखम औरागजब उसको सरझा नही नही तो

आज ददन हहादसतान रसिरान होता कतहनद-रसिरान र खाना-पीना बयाह-शादी कभी चि गयी होती

अागरजो को जो बात नही सझी वह इसको सझी थीrdquo30 कतनकतशचत रप lsquoबकतदधरानrsquo दशरन स सीखन को बहत

कछ कतरिता ह अकबर की दीन-ए-इिाही क परयोग स भारतद भी बहत कछ सीख रह थ रधयकािीन

इकततहास क बार र रकतसिर शतर की छकतव का कतनरामण पराचयकतवदयाकतवदो क िारा दकया जा रहा था इकतियट

आदद इकततहासकारो न जो दकतषट कतवककतसत की उसका परभाव बहत गहरा था पर इस इकततहासिखन क साथ

साथ भारतद क कछ दशी सरोत भी थ अिग-अिग रहापरषो की चररताविी कतिखन की पररणा भारतद न

कतजतना अपनी वषणव भकति की परापरा स पाया था उतना ही इसिारी इकततहास िखन की परापरा स भी

lsquoबादशाहदपमणrsquo की भकतरका र भारतद कतिखत ह ldquoरर पररातारह राय कतगरधरिाि साहब जो यवनी कतवदया

क बड़ भारी पाकतडत और काशीसथ ददलिी क शाहजादो क रखय दीवान थ उनकी इचछा स ददलिी क परकतसदध

कतविान सययद अहरद न एक ऐसा चक बनाया था कतजसर तरर स िकर शाह आिार तक सब बादशाहो क

नार आदद कतिख थ उस फारसी गरनथ स बहत सी बात इसर िी गयी ह इस कारण तरर पवम क बादशाहो

का वणमन इतना परा नही ह कतजतना तरर क पीछ ह दफर रर रातारह राय कतखरोधरिाि न बहादर शाह

क काि क आरमभ तक शष वतत सागरह दकयाrdquo31

अरणदव जी अपन एक िख र भारतद क आराकतभक अकबर परर का कतिक दकया ह १८७२-७४ क

आसपास भारतद अकबर को रहान शासक रानत थ जबदक औरागजब को कतहनदओ का दशरन नाबर एक

भारतद न औरागजब की तिना र अकबर की रहानता को परराकतणत करन क कतिए रारदास कछवाह क एक

शलोक को अपना आधार बनाया ह इस शलोक का भावाथम भारतद क शबदो र इस परकार ह ldquoजो सरदर स रर

तक पथवी को पािता ह जो रतय स गउओ की रकषा करता ह कतजसन तीथम और वयापार स कर छड़ा ददए

कतजसन पराण सन जो सयम का नार जपता जो योग धारण करता ह और गागाजि छोड़कर पानी नही

पीता उस जिािददीन की जय अाग वाग कहिाग कतसिहट कततपरा कारत (कारटी) काररप अाध कणामटक

िाट दरकतवड़ रहाराषटर िारका चोि पााडया भोट रारवाड़ उड़ीसा रलि खरासान का दहार जमब काशी ढाका

बिख बदखशाा और काबि को जो शासन करता ह ककतियग की रकतहरा स घटत हए वद गउ कतिज और

धरम की रकषा को सगन शरीर कतजसन धारण दकया ह उस अपररय परष अकबर शाह को हर नरसकार करत

हrdquo32 यही अकबर १८८४ र औरागजब स जयादा शाकततर और बकतदधरान शतर र बदि गया lsquoकािचकrsquo क

कतनकतहताथो र यह फरबदि भारतद पर रकतसिर कतवदशीपन और कतहनद शतरता क समपणम बिॉक बनान की

30 बादशाह दपमण भारतद गराथाविी खाड-६

31 वही

32 httpsamalochanblogspotin201209blog-post_9html

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रणनीकतत क दबाव क कारण था और lsquoपरावकततrsquo की कतरथकीयता र भी कतहनदओ को lsquoरहारोहनासतरrsquo क सहार

पहि भी वश र दकया गया था यह एक बारीक चाि थी अकबर की इस चाि को अागरज भी नही सरझ

पा रह थ भारतद की यह परकततदकया औपकतनवकतशक इकततहासिखन क दबाव र थी १८७३ र जब भारतद

न कतशवपरसाद की दकताब lsquoइकततहासकततकतररनाशकrsquo क तीसर खाड की आिोचना की थी तो उनक सारन

रकतसिर शासन की बबमरता और अागरजी राज क सशासन का कतशवपरसाद िारा ककतलपत आखयान था १८८४

र समपणम रकतसिर काि अनधकार यग र बदि गया कततकतररनाशक क पहि खाड र बाब कतशवपरसाद न भी

अकबर की रजहबी उदारता और साराकतजक सधारो की बड़ाई की थी इस परकार हर दख सकत ह दक

ऐकततहाकतसक िखन र पकष और कतवपकष की पनरावकततत एक बाद घर र उिझी हई थी इनक सारन रकतसिर

कतवरोध और अागरजी शासन क कतवरोध का एक कतवसागत फर था और िखक उसर अपनी फौरी जररतो क

कतहसाब स कतरतर और दशरन वािा इकततहास कतिखता था इकततहास ठठ राजनीकततक ततकाि क वशीभत था

जो भी हो धाररमक उदारता और सिह-ए-कि का परयोग एक कतशकषापरद परयोग था यह कतवकतभनन

रतो या कतवशवासो क बीच lsquoजनरतrsquo बनान का एक रधयकािीन परयोग था भारतद lsquoजनरतrsquo क परयोग को

इस तरह दखत थ रानो यह lsquoचािrsquo अगर कारयाब हो जाती तो lsquoआज क ददन हहादसतान रसिरान होताrsquo

भारतद क सारन सरसया वही थी बस वह कवि यह चाहत थ दक कतहनदसतान lsquoकतहनदrsquo हो जाय कतहनद

अथामत वषणव हो जाय वषणवता भारतद क कतिए हहादसतान का नया lsquoसिह-ए-किrsquo था इसकतिए कछ

सावमजनीन रलयो की तिाश उनह भी थी कतसिकट ककतरटी क उपरोि रमबर lsquoएकसअफीकतशयोrsquo रमबर थ

रोर क परान हररकिस जस दवता कतजनहोन धरती स साबाध तोड़ ददया ह व िोग तथा उनही क जस

पारकतसयो क lsquoजरदशतजीrsquo को कोरसपोहडाग ऑनररी रमबर बनाया गया य धरम क रप र रतपराय रतो क

परकततकतनकतध थ ककतरटी न जो ररपोटम तयार की उसका ररम भारतद न ददया ह यह ररम उनक रकतडकि वषणव

पकष का रत था कतिबरि दि और काजरवरटव दि क अपन पकषो स इतर यह नरनायक तीसरा पकष वषणवो

की तरफ स सनाया गया था रकतडकि वषणवो की तरफ स भारतद इस धाररमक आनदोिन क भीतर अपना

ही पकष रखत हए इसका ररम कतिख रह थ ldquoहरिोगो की समरकतत र इन दोनो परषो न परभ की रागिरयी

सकतषट का कछ कतवघन नही दकया वराच उसर सख और सातकतत अकतधक हो इसी र पररशरर दकयाrdquo कतहनद सराज

सधार क परयासो का ररम बतात हए सबस पहि धयान सतरी सधारो पर ददया गया ह साराकतजक करीकततयो

की कतशकार रकतहिाओ क परकतत जो दकतषट उभरकर सारन आती ह उसक रि र धरम की रीकतत स यौन

रयामदाओ की अवयवसथा को दफर स रयामददत करन की चषटा ह कतसतरयो क करागम पर जान का पहिा कारण

ह रनराना परष धरमपवमक न पाना यह कतववाह सासथा की कतवककततयो की आिोचना थी जहाा बाि कतववाह

कतवधवा कतववाह आदद की तरफ इशारा ह धयान रखना चाकतहए दक यहाा बरि कतववाह क बदि कतसतरयो िारा

29

lsquoरनराना वरrsquo न चन पान का उलिख ह गभमनाश और बाि हतया क कतखिाफ सधार परयास दसरा

रहतवपणम योगदान ह कतववाह सासथा बीच र भी भाग की जा सकती ह इसकी सवीककतत ह कनया क कतहत र

अातरजातीय कतववाह की सवीककतत ह एक रहतवपणम बात गरओ और पाकतडतो क वयाकतभचार क साबाध र ह

भारतद क सारन पकतषटरागी रहातो और गरओ क वयाकतभचार का अनभव भी इसर शाकतरि ह

१८७४ र ककतववचन सधा र भारतद की एक रटपणणी छपी थी lsquoगर को कसा होना चाकतहएrsquo इसक अिावा

दो वषम पहि lsquoगर और रहातrsquo नार स भी एक रटपणणी कतिखकर वषणव पाडो-परोकतहतो की खिकर

आिोचना की गयी थी तिवार जी न कतिखा ह दक राददरो क भीतर कतसतरयो का यौन शोषण और वयाकतभचार

इतना भीषण था दक दयानाद भारतद क पकतषट सापरदाय को lsquoकषठी सापरदायrsquo कहत थ १८६० क आरमभ र ही

वषणव गोसाइयो क अनाचार और यौन शोषण क कतखिाफ बमबई र एक बड़ा आनदोिन पकतषटरागी

करसनदास रि जी क नततव र हो चका था वषणव बकतनया पषठभकतर स आय करसनदास जी उन नौजवानो

र थ कतजनहोन एकतिफ सटन कॉिज स आधकतनक कतशकषा परापत की थी गोसाइयो और रहाराजो िारा अपन

lsquoसमपरदाय की बह बरटयोrsquo क साथ होन वाि अतयाचार क कतखिाफ उनहोन िख कतिख और समपरदाय क

इकततहास को नए कतसर स सारन रखा पण स आए जदनाथ वजरतन जी रहाराज न करसनदास जी पर

रानहाकतन का रकदरा दायर कर ददया इसी रक़दर स वषणव रहातो की कई सारी बात जनता क सारन

परतयकष हई तिवार जी न इस lsquoरहाराज िाइबि कसrsquo को भारतीय नवजागरण र वषणव गोसाइयो क

दराचार और यौन शोषण क कतखिाफ हआ सबस बड़ा आनदोिन कहा ह भारतद पर इसका बहत परभाव

था यह कस १८६० र हआ था एक दशक बाद जब भारतद सापरदाय क कायो र रत थ उसी सरय कतिख

रह थ ldquoराददर कया होत ह रानो कतसतरयो की खान ह जसी चाकतहए िीकतजय- वराच अचछी सतरी भी वहाा जाकर

कतबगड़ जाती ह आशचयम यह ह दक कतजनको व िोग बटी कहत ह और जो उनक परिोक क रधयसथ ह और

कतजनको वो दीकषा दत ह उन कतसतरयो की ओर व आप ही बरी दकतषट स दखत ह ओर रर पयार कतहनदओ तर

इनक जाि र कब तक फा स रहोग और कया तरको यही सासार स बचावग और इनही क भरोस तरको

भगवान कतरिगाrdquo33

राददरो क धन-ऐशवयम और वयाकतभचार र डब जीवन क जीवात कतचतर हर बनारस क रखाकतचतर lsquoपरर

जोकतगनीrsquo क अिावा lsquoकाशी क छायाकतचतर क दो बर-भि फोटोगराफrsquo र भी कतरित ह यहाा भारतद का वयागय

अपन वषणव सापरदाय की आतरािोचना स सदकय ह lsquoपरर योकतगनीrsquo नाटक र आन वािा चररतर रारचादर

खद भारतद ही थ नाटक का सतरधार कहता ह दक भारतवषम की दीन हीन गकतत क कारण उसका तो

कतवशवास ही ईशवर स उठन िगा ह नाटक क पहि ही दशय र भारतद हर राददर क भीतर कतिए चित ह

33 वसधा डािकतरया िारा उदधत पषठ- ३३७

30

जहाा राददर र कार करन वािा साधारण टहिआ झपरटया हर ददखाई दता ह पजारी बाब अभी तक नीद

स नही जाग ह कयोदक आधी रात तक lsquoबठ क ही-ही-ठी-ठी करा चाह दफर सबर नीद कस खिrsquo कतनकतशचत

रप स यह टहिआ सबह सवर ही राददर र हाकतिर ह िदकन दवता अभी राददर र सोय ह रारचादर

परदशी ह काशी र बाहर स आय ह छकक जी और राखनदास इस रारचादर की आिोचना करत ह इनक

सावादो स पता चिता ह दक बाब रारचादर क यहाा ददन रात नाच गाना हआ करता ह और उनको अपनी

कतवदया का घराड ह दो चार ककतवतत भी बना ित ह पर lsquoककतवतत बनाव स का होव और ककतवतत बनावन कछ

अपन िोगन का कार थोर हय ई भााटन का कार हयrsquo छकक जी कहत ह दक अपन रागम का उनह कछ जञान

तो ह नही बस दो चार बात इधर उधर स सनकर कछ lsquoदकसतानी रतrsquo सीखकर पाकतडत बन दफरत ह

कतनकतशचत रप स य भारतद पर िगन वाि आरोप थ राददर र सवारी धनदास वकतनतादा बभकतकषत पाकतडत

आदद धरम क ठकदार ह इनकी पतनशीि सासककतत को दखकर रारचादर का दःख इन शबदो र वयि होता ह

lsquoहा कया इस नगर की यही दशा रहगी जहाा क िोग ऐस रखम ह वहाा आग दकस बात की वकतदध की

साभावना करrsquo lsquoवददकी हहासा हहासा न भवकततrsquo जस शरआती नाटको र भी करमकााडी परोकतहतवाद की

आिोचना की गयी ह राजा और परोकतहत कतरिकर वहाा जनता का शोषण करत ह जआ रददरा और

रथन की ऐययाश सासककतत क परतीक परोकतहतो का काजरवरटव दि इन परहसनो र रतम होता ह कतचतरगपत यर

स कहत ह ldquoरहाराज य गर िोग इनक चररतर का कछ न पकतछए कवि दमभाथम इनका कततिक रदरा और

ठगन क अथम इनकी पजा कभी भकति स ररतम को दाडवत न दकया होगा पर राददर र जो कतसतरयाा आयी उनको

सवमदा तकत रह रहाराज इनहोन अनको को कताथम दकया ह और इस सरय तो र lsquoशरीरारचनदर जी का

शरीकषण का दास हाrsquo पर जब सतरी सारन आव तो उसस कहग lsquoर रार तर जानकी र कषण तर गोपीrsquo और

कतसतरयाा भी ऐसी रखम दक दफर इन िोगो क पास जाती हrdquo34

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo की ररपोटम र सतरी सधारो क कायो की रहतता बतान क बाद जाकतत वयवसथा पर

इन सधारको का परहार कयो जररी था इस बताया गया ह कठोर जाकतत बनधनो क चित कस हर साि

जाकतत-बाहय होकर जाकतत र वापस आन क दकसी उपाय को न जान lsquoहजारो रनषय आयम पाकति स हर साि

छटत थ उसको इनहोन रोकाrsquo इस परकार इन सधारको न lsquoआयमधरमrsquo क भीतर जो पररवतमन करन चाह

उसस आयो की एकता दफर स बहाि हो गयी इसक अिावा अाधकतवशवासो को इनहोन दर दकया यही नही

बकतलक जहाा िोग lsquoरसिरानी पीर पगमबर औकतिया वीर ताकतजया गाजी कतरयाा कतजनहोन बड़ी ररतम तोड़कर

और तीथम पाटकर आयम धरम कतवधवास दकयाrsquo उनको भी पजन िग थ और lsquoकतवशवास तो रानो कतछनाि का अाग

हो रहा थाrsquo ऐसी िजजाजनक कतसथकतत स िोगो को बाहर कतनकािकर lsquoसार आयामवतम को शदध lsquoिायिrsquo कर

34 दख रारकतविास शराम पषठ १३१

31

ददयाrsquo lsquoिायिrsquo कर ददया गया इसका अथम आयम जाकतत को दफर स िायि करन र था आयम जाकतत क भीतर

कतबगाड़ क चित ही कतनमन जाकततयो का बड़ परान पर पिायन था इस इन िोगो न रोका और इनक परताप

स ही अनक छोट और सथानीय धरम-रतो क भीतर जो lsquoरसिरानीrsquo परभाव घस आय थ उनको दफर स lsquoबड़ी

ररतमrsquo की कतनषठा र िाया जा सका इस परकार कतहनद धरम और वणामशरर क परकतत दफर स िोगो को lsquoिायिrsquo

दकया यह lsquoिायकतिटीrsquo भारतद की रकतडकि वषणवता क जनरत क कतिए भी जररी था तिवार जी जब

आयमसराकतजयो की lsquoकााकततकारीrsquo भकतरका ददखात ह तब आयम सराज िारा आयामवतम को िायि बनान वािी

इस भकतरका की साकतशलषटता पर जयादा बात नही करत भारतद दयानाद क कााकततकारी परयासो र lsquoिायिrsquo

बनान की परदकया उसी वक़त दख रह थ और इसी कारण ररपोटम र दयानाद की आिोचना धयान दन िायक

ह सवारी जी न ldquoजाि को छरी स न काटकर दसर जाि ही स कतजसको काटना चाहा इसी स दोनो आपस

र उिझ गए और इसका पररणार गह कतवचछद उतपनन हआrdquo गह कतवचछद का रतिब कतहनद धरम र गह

कतवचछद जबदक कशवचादर सन क बार र कहा गया दक उनहोन जाि काटकर भकति की उचछकतित िहरो का

पररषकत पथ परकट दकया इस परकार रकतडकि वषणवता की lsquoअनयताrsquo और परररिक भकति क परशसत पथ क

सवीकार का कतनषकषम कतवचार सभा का भी कतनषकषम था धयान दन िायक ह दक कशवचादर की आिोचना उनक

कतचतत कतवकषप क कारण की गयी थी जहाा lsquoईसारसीह आदद उनस कतरित हrsquo य एक दकसर का इिहारी

अनभव था कतजस भारतद अपनी वषणवता स बाहर रखत ह ईशवर न इस ररपोटम पर अपना रत सरकतकषत

रख कतिया और भारतद कतिखत ह ldquoइसको दख कर इस पर कया आजञा हई और व िोग कहाा भज गए यह

जब कर भी वहाा जायग और दफर िौट कर आ सक ग तो पाठक िोगो को बतिावग या आप िोग कछ

ददन पीछ आप ही जानोगrdquo

३ जनरत और वषणवता

ककतववचन सधा ९ राचम १८७२ र भारतद न lsquoPublic Opinion In Indiarsquo नार स अागरजी र

एक िख परकाकतशत दकया िख र उनहोन कहा दक कई सददयो दक दासता क बाद भारतवषमहहादसतान अब

जाकर कतिरटश राषटर क सवोचच कतनयातरण र आया ह दश धीर-धीर सभयता और परबोधन की पकतशचरी दकरणो

क सहार दरन और कशासन क रतय-तलय कतनदरा स जाग रहा ह कतिरटश शासन की परगकततशीि नीकततयो का

परभाव यहाा की बहरपी आबादी पर पड़ रहा ह

ldquoBut in this progressive state national energy and zeal sympathy and

disintiredness are waiting to make both the conqueror and the conquered to act in

32

concert and in harmony and hence we have the broad distinction of white and

black still But in this country many are the blemishes that adhere to us to be

eradicated and many are the shortcomings that are hovering around us to be done

away with before we can have a public opinion here in its true senserdquo35

गोर और काि क बड़ भद को छोड़ कर कतवजता अागरजो और भारतीयो क बीच एक सराजन तो बन गया ह

पर अनदरनी ददककत अभी भी राह बाए खड़ी ह रौका ह दक इस परगकततशीि कतसथकतत का फायदा उठा कर हर

एक सचच जनरत का कतनरामण कर सचच िोकरत क कतनरामण र अादरनी बाधाएा कया थी भारतद न इस

आग सपषट करत हए कतिखा-

ldquoRace antagonism rivalry and mutual misunderstanding are the favourite

occupations of the aristocratic class Want of confidence among all classes of men

are the prevailing characteristic of the nation and above all multifarious castes and

creeds with there numerous forms of religion and local habits and customs which all

combined have kept the progressive policy at a stand still True it is that a

representative Government is a boon to this country and true it is that Sir Bartle

fregravere a man of vast experience and a good statesman has found out that in village

community we can have public opinion but with all his experience he has lost sight

of our national defects ndash defects which we ourselves know and which no foreigner

can catch at a glancerdquo36

भारतद इस बात को िकर कतनकतशचत ह दक िोकरत और परकततकतनकतधरिक सासथाओ क बहतर कतवकास क कतिए

सीध-सीध कतवदशी रॉडि कभी सफि नही हो पायगा ऐसा इसकतिए कयादक हरारी आपसी कतवकतभननताओ

और झगड़ो को कोई बाहरीकतवदशी सतता कभी भी परी तरह सरझ नही सकती lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo नार

35भारतद गराथाविी -6 361

36 वही

33

स भारतद का एक दसरा िख इस अागरजी वाि िख क दो साि बाद अपरि सन १८७४ र हररशचनदर

रगजीन र छपा पकतबिक ओकतपकतनयन कया बिा ह इस साफ़ करत हए भारतद िख क आरमभ र ही कहत

ह ldquoपकतबिक ओकतपकतनयन अथामत सब साधारण िोगो की राय कया वसत ह और इसर दकतना जोर ह और

इसक कतिए कया हो सकता ह यह परशन ठहरा तो इसका साधारण उततर यही ह दक यह वह वसत ह जो

सासार को एक कर सकती ह गागा की धरा दफर कतहरािय पर चढ़ा ि जा सकती ह सययम को पकतशचर उगा

सकती ह और चाह तो ईशवर को भी पकड़ क कठपतिी की भााकतत नचा सकती हrdquo37 यह पकतबिक

ओकतपकतनयन lsquoएक रतrsquo होना ह जस अिग अिग चार पतिी िककतड़यो को एक साथ बााध दन स उस

तोड़ना करठन हो जाता ह उसी तरह एक रत होन स बड़ स बड़ा बरी भी हरारा कछ कतबगाड़ नही सकता

बहत स िोगो का रत एक हो तो वह शकति बन जाती ह हिारो आदरी की बकतदध एक हो जाए तो ldquoऐसा

कौन कार ह जो न हो सक तो यह कतसदधाात हआ दक कतनशचय सब िोगो क रत र बड़ी सारथयम ह इसस यह

कतसदध हआ दक बिो स बड़ा बि एक रत ही हrdquo38

आग भारतद कहत ह दक यह जनरत और उसकी शकति हहादसतान क कतिए कोई नई बात नही ह

पराचीन काि र इसक उदाहरण कतरित ह lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo की इस धारणा को भारतद न इकततहास क

अिग-अिग दौर र बनत और कतबगड़त ददखाया सबस पहि चार वणो की िररत पड़ी सब कार को

सचार रप स चिन क कतिए दसर शबदो र कह तो शरर-कतवभाजन की िररत स इसका जनर हआ

lsquoकतहनदओ न अपन गर क कार र इस वणामशरर धमरम को इसी वासत बनाया कतजस र उन क दकसी कार र

कोई हजम न हो और उनिोगो न सासार क सब कारो र चार कार रखय सरझrsquo धरम कतवदया और किाओ का

कार िड़ाई और राजय परबाध का कार वयापार और धन और सब िोगो की सवा और रजदरी इन चार

कारो की सवयवसथा वािा वणामशरर दरअसि lsquoएक रतrsquo कतहनद वयवसथा या lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo थी पर

कािाातर र इस lsquoएकरतrsquo क भीतर जाकततवयवसथा कठोर हो गयी और िाहमण और शदर दोनो एक दसर क

कतखिाफ हो गए एकरत र कतवचछद पदा होन स कतहनद शकति करिोर हो गयी भारतद क अनसार आपस

का यह झगड़ा बड़ा कतवनाशकारी साकतबत हआ पकतबिक ओकतपकतनयन क कतबना वयाकतभचार और जयादकततयो का

अाधर था आग चि कर जनो क जरान र दफर lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo न जोर पकड़ा बकतलक भारतद जोर

दकर कहत ह दक जनो क रत की उततपकततत ही lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo स हई ldquoकतहनदओ क जब नाश क ददन

जब कतनकट आय तो आपस र परसपर बड़ा कतवरोध खड़ा हआ और उस काि र िाहमणो का बड़ा जोर था

वरन य और वणो पर जयादती करत थ तो वशय और कषकततरयो की रकतत इनस दफर गयी और बाब वािी बड़ी

37गराथाविी- 678

38वही

34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

36

कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

37

उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

38

ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 15: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

15

की गयी ह काशी क बनकरो की एक हड़ताि का कतिक रारकतविास जी बार बार करत ह जो १८३३ ई र

ही हई थी और इकततहासकार बिी क अनसार यह वक़त आरथमक साकट का भी वक़त था

भदरवगम का जो कतहससा हहादी आनदोिन क साथ था उस जाकतत वयवसथा की परानी रानयता को

बनाय रखन या उस रजबत करन की जररत कया कवि नौकररयो र कतवशषाकतधकार परापत करन क कतिए थी

या जाकतत वयवसथा रातर र आय एक रिगारी साराकतजक साकट का वह परकततदकयावादी रपाातरण ह शहरो

र आरथमक-वयापाररक गकततकतवकतधयो क कारण और आसपास क इिाको स परवासी रजदरो का आगरन तथा

बढ़ती वशयावकततत आदद क चित शहरी साराकतजक साबाधो र भी उथि-पथि थी ऐस सरय र सारदाकतयक

या कतबरादरी बोध lsquoएकाrsquo की भावना पदा करती ह तिवार जी इस नव-भदरवगम का अपन ही भीतर अिग-

अिग खााचो र बाट होन की बात करत ह अिग-अिग खााचो र बाट होन क चित यह भदरवगम रधयवगम की

कतवचारधारा अथामत कतववकवाद या नवजागरण को परापत नही कर पायी थी वगम था िदकन वगम की

कतवचारधारा नही थी खद भारतद क जीवन स हर उस दौर की अकतसथरता का कछ अादािा कतरिता ह

अकतसथरता और खााचो र बाटा रधयवगम दरअसि सापणम सराज र होन वाि एक आधारभत पररवतमन की ओर

इशारा करता ह यह पररपरकषय १८५७ की तरासदी का भी ह ऐसी कतसथकतत र हपराट पाजी क साथ बनन वािा

यह साासककततक आनदोिन था जहाा सवतव रकषा रखयतः अपन परान कतवशषाकतधकार की रकषा थी साराकतजक

साबाधो र आय उथि पथि क कारण उनह अपन कतवशषाकतधकार कतछन जान का खतरा साफ़ ददखाई द रहा

था जहाा अागरजी कतशकषा थोड़ा पहि ही परसार पा चकी थी वहाा कशि कारीगरो स िकर अधयापको और

परशासकतनक अकतधकारीयो क एक बड़ सरह न अपना नया कतवशषाकतधकार पा कतिया था साराकतजक साबाधो र

उनकी शरषठता उनक कतववकवाद क कारण बन चकी थी भारतद क एक शरआती िख lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

क राधयर स खााचो और जनरत की राजनीकतत को सरझन की कोकतशश आग करग

तिवार जी क अनसार दयानाद क कतवचारो क कतिए पाजाब जयादा गरहणशीि था कयोदक वहाा

जाकतत वयवसथा क बाधन पहि ही ढीि हो गए थ यिपराात र जाकतत क बाधन जायदा कठोर थ कतजन अथो र

कतिवदी जी रधय दश की रकषणशीिता का कतजक करत ह कछ-कछ उनही अथो र पर सवया दयानाद क

कतवचारो र कतववकवाद-पनरतथानवाद का दोरखापन कतरिता ह तिवार जी कहत ह दक कतजन सथि तको स

वह वदो की ओर िौटन को कहत थ आयम भाषा आयम जाकतत और आयम धरम की बात करत थ उसक कारण

ही इनका झकाव आग चिकर राषटरीय सवयासवक साघ की ओर होता गया पर आयम सराज क साराकतजक

सधारो और धरम सधारो की एकता क कारण वहाा वह साभावना भी थी कतजसक परभाव स आग चिकर बहत

सार कमयकतनसट कायमकताम भी कतनकि पररचाद राहि साकतयायन या गणश शाकर कतवदयाथी जस साकतहतयकार

और आनदोिनकताम आयम सराज क परभाव र थ आयम सराज तिवार जी क अनसार वासतकतवक साराकतजक

16

पररवतमनो का सावाहक और सराज र वयकति स िकर साराकतजक जीवन क हर कषतर र गणातरक पररवतमन

िान वािा इसकतिए हो पाया कयोदक वहाा धरमसधार और सराज सधार अिग-अिग नही था दसरी ओर

हहादी आादोिन साापरदाकतयक जाकततवादी और सतरीकतवरोधी रलयो को ही सराज र फ़िान र कारयाब हआ

यह धारा अागरजो को अरजमयाा दकर नौकरी पान वाि रधयवगम की धारा थी

तिवार जी न भारतद की तकमशीिता को बहत कतनमन कोरट का कहा ह भारतद क चररतर र शायद

वह एक lsquoिमपनrsquo की छकतव भी दखत ह पसा उड़ान की वकतत सतरी क साथ वयवहार और उनक साबाध

चाररतरय बि का अभाव आदद आदद क सनदभम र वह कहत ह दक भारतद क चररतर र वह सदढ़ता या

सदाचाररता नही ह जो सराजसधार क कतिए आवशयक होती ह घर र पतनी उनह कभी पसाद नही आई

और वह बाहर रहदफ़िो र वाहवाही िटत रह रदमवादी दकतषट भी उनर कट-कटकर भरी थी भारतद क

इस चररतर की तिना तिवार जी न दो अनय परमपरावादी सधारको स की ह एक बागाि क राधाकाात दव

और दसर पाजाब क शरदधारार फलिौरी यदयकतप य दोनो भी भारतद की तरह परापरा की रकषा र ही सधार

की ओर अगरसर हए थ िदकन इन िोगो का चररतर जयादा परगकततशीि था इन दोनो की तिना र भारतद

का खिनायकतव और भी अकतधक उभरकर सारन आता ह सापकतकषक परगकततशीिता क कतनधामरण क कर र

भारतद अपन सापणम जीवन वयवहार र एक एाटी हीरो की तरह उभरत ह ठीक परान खिनायको की तरह

नही एाटी हीरो क साथ दशमक या पाठक की एक आतरीयता भी जड़ी रहती ह उसका चररतर ददराग र बस

जाता ह िदकन इसक चित यथाथम क ओझि होन का खतरा भी ह तिवार जी इसकतिए कदर कदर पर

उनकी साकतहकततयक छकतव क बरकस उनक राजनकततक- साागठकतनक जीवन वयवहार स बनन वािी छकतव को

सारन ररतमरान करत जात ह

अपनी परी आिोचना र तिवार जी भारतद की रचनाओ र कतरिन वाि भाषायी िदधड़पन और

राद तकमशीिता की चचाम तो करत ह िदकन व भारतद क वयागयो पर चचाम नही करत कया यह रहज

सायोग ह दक भारतद क परहसन lsquoअाधर नगरीrsquo का राचन आज भी परगकततशीि रलयो की परकततषठा ही करता

हभारतद क वयागयो या परहसनो र ऐसा कया ह कतजसर दहराव क साथ नवीन होत चिन की कषरता भी ह

भारतद क िखो या परहसनो या रपको र जो कही-कही वणमन या सावाद िारा वयागय का तीखा बोध पदा

होता ह उसकी शकति उनह कहाा स कतरिती ह वयागय की कषरता सवया र उनकी सकषर कतनररकषण र सरथम

दकतषट का परराण ह परान साराकतजक साबाधो र पररवतमन और तीवर पररवतमन क साथ साथ जो एक परहसन

चि रहा था उसका बोध भारतद को था भदरवगम क भीतर की कतववकवादी धारा का कतवकास भी कतहनद

राषटरवाद की कतवचारधारा र ही हआ परनत lsquoअाधर नगरीrsquo कया कतहनद राषटरवादी कतवचारधारा वािा परहसन ह

या कया यह कवि राषटरवादी कतवचारधारा का वाहक ह lsquoउरराव जान अदाrsquo र उभरकर सारन आन वाि

17

साराकतजक साासककततक साकषोभ या उस वयापक टरजडी क सनदभम र दख तो भारतद क वयागय और परहसनो का

अथम थोड़ा और उभरता ह रकतलिका या राधवी स भारतद क साबाधो र कया उस तरासदी का सराग भी नही

ह वशयावकततत और पतनशीि रइसो का साकट एक दसर स अिग नही था उस सरय की औपनयाकतसक

ककततयो र वशयावकततत का सनदभम अवशय आता ह आग चिकर पररचाद की सरन बनारस र ही lsquoसवासदनrsquo

का सराधान ढाढ रही थी

भारतद क वयागयो पर रारकतविास जी का धयान था यह बात अिग ह दक अकतधकााश रौको पर

इनर वह जातीय चतना खोज कतनकाित ह बीस साि की उमर र भारतद न एक िख lsquoिवी पराणिवीrsquo नार

स कतिखा था रारकतविास जी इसका उलिख करत हए कतिखत ह ldquoगवनमर जनरि कतहनद क कतजस दरबार का

भारतद न वणमन दकया ह वह काशीराज क घर पर हआ था इसकतिए भारतद की सतयकतपरयता और भी

सराहनीय ह वहाा जो सजजन िोगो क नार कतिख रह थ उनका वणमन या दकया ह lsquoनार कतिखन वाि राशी

बदरीनाथ फि-फाि अबा पकतहन पगड़ी सज परान दादर की भााकतत इधर-उधर उछित और शबद करत

दफरत थrsquo िोग दकस तरह एक आनररी रकतजसटरट क lsquoकतसट डौनrsquo lsquoसटड अपrsquo कहन स उठत और बठ जात थ

इसका उनहोन बहत ही नाटकीय वणमन दकया ह आनररी रकतजसटरट का वयवहार हविदार का सा था कतसफम

हाथ र एक िकड़ी की कसर थी िोग कीरती पोशाक पहनकर गए थ ldquoसबक अागो स पसीन की नदी

बहती थी रानो शरीयत को सब lsquoअरघय पादयाrsquo दत थrdquo िोगो की उठा बठी और बहदा कवायद को िकषय

करक कतिखा था ldquoवाह-वाह दबामर कया था lsquoकठपतिी का तराशाrsquo था या बलिरटरो की lsquoकबायदrsquo थी या

बादरो का नाच था या दकसी पाप का फि भगतना था या lsquoफौजदारी की सजाrsquo थीrdquordquo21 काशी की इस सभा

र खद भारतद भी बठ थ इस परकार यह भारतद क वगम का परहसन भी था पतनशीि सासककतत की

आतरािोचना क कतबना यह साभव नही था बात कवि उमर की नही ह ठठ वतमरान र हसतकषप और उस

बदिन का बोध कतजन पतनशीि कतसथकततयो का आतर साकषातकार कर रहा था यह उसक परकतत एक

सवाभाकतवक सवतःसफतम परकततदकया थी यह तारकम क की नही बकतलक किाकार की सवतः सफतमता थी यह बात

सही ह दक भारतद कतवचारो की तारकम कता क रारि र उननीस पड़त थ पर इस करी को उनकी तीकषण

वसतकतनरीकषण दकतषट भर दती थी जीवन कतसथकततयो की कतवडमबना का बोध कतजतना गहरा था बदिन का

परयास उतना ही ऊजामवान था भारतद सवया अपनी भी कहानी कतिख रह थ lsquoपयार हररचाद की कहानीrsquo

कतिख रह थ भारतद क परहसनो र दकसी न दकसी पातर की भकतरका र हर जगह सवया भारतद भी ददख

जात ह अपन वगीय अातरवमरोधो का सवबोध उनक यहाा एकतिगोररकि हो जाता ह इस एकतिगरी र lsquoकतहनद

21 रारकतविास शराम पषठ- ६६

18

भारतrsquo की रधर कलपना थी इसस इनकार नही दकया जा सकता भाव जगत का वषणव परर lsquoकतहनद भारतrsquo

की कलपना स परर र बदिता गया

भारतद की रचनाओ र कतवशवदकतषट की एकता खोजन पर हर परभतवशािी कतवचारधाराओ की

वयवसथा ही कतरिगी जञान और वयावहाररक सारानय बोध क बीच एक सदकय साबाध बनान क कर र ही

उनका सवाभाकतवक आवग कतजन वयावहाररक धाररमक कतवचारधाराओ र आतरकतबकतमबत होता ह व

परभतवशािी कतवचारधाराएा ह इन कतवचारधाराओ का कतनरामण कही बाहर स नही हो रहा था बकतलक

पराचयकतवदयाकतवदो की कलपना क साथ परसपर भागीदारी र बन रहा था इन कलपनाओ को यथाथम रप द

रही थी हपराट पाजी क साथ कतवककतसत होती lsquoबजमआ पकतबिक सफीयरrsquo की दकयाएा भारतद की सवाभाकतवक

सफरतम ततकाि ही एक फ टसी र बदिन िगती ह और दकयातरक होना चाहती ह ऐस ही सरय

पराचयकतवदया क पाकतडतो क िारा जगाय गए कतरथकीय परत भी आकर सर पर सवार हो जात ह पराचयवाद

दकसी परत-कतवदया स कर न था दखना चाकतहए दक भारतद की रचनाओ र कहाा परतो की दकतनया र यथाथम

का हसतकषप होता ह उनकी एकतिगरी कहाा कतसथकततयो क अकततरक को अकतभवयि कर रही ह जस भारतद की

lsquoअाधर नगरीrsquo ऐन हरार वक़त र राजयसतता का रपक बन जाती ह यह रपक राजयसतता र अनतरनमकतहत

हहासा की अकतनवायमता और नयाय क भरर का परहसन भी ह

२ धरम सधार पर कतवचार सभा

िहमो सराज या दयानाद सरसवती को खद भारतद कस दख रह थ इसका पता हर lsquoसवगम र कतवचार

सभा का अकतधवशनrsquo22 नारक एक वयागय रपक स चिता ह सवारी दयानाद सरसवती और कशवचादर सन

जब ररन क बाद सवगम पहाच तो ldquoवहाा एक बर बड़ा आनदोिन हो गयाrdquo रतय क कछ ही सरय पहि कतिखा

गया यह वयागय रपक अपन सरय क धरम सधार आादोिनो क चररतर की वयाखया करता ह सबस पहि

इसका परकाशन किकतत स कतनकिन वािी परकततकतषठत हहादी पकततरका lsquoकतरतर कतविासrsquo (जन १८८५) र हआ था

िहमो सराज और आयम सराज क आनदोिनो को भारतद इस सरय तक आकर एक तटसथ आिोचकीय दकतषट

स दखन का परयास करन िग थ सवगम र एकबारगी पदा हए इस आनदोिन र रोट तौर पर दो खर बन

गए एक इनका परशासक था दसरा हनादक पहिा कतिबरि ह दसरा काजरवरटव इन दोनो खााचो र

अनदफट एक तीसरा दि ह जो वषणव आतराओ का ह इस दि क सासथापक तो कतिबरि थ पर अब य

lsquoरकतडकलस कया रहा रकतडकलस हो गए हrsquo कतनकतशचत रप स इन रहा रकतडकलस आतराओ र हर सवया भारतद

22 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन सा- करिा परसाद परसा- नारवर हसाह पषठ- ८२-८६ नशनि बक टरसट इाकतडया नई ददलिी- २००६

(आग इस िख क उदधरणो को कतबना पाद रटपणणी क ददया गया ह)

19

को भी कतगन सकत ह वयासदव एक ऐस बकतदधजीवी क रप र सारन आत ह जो दकसी का भी पकष िन स

बचत ह पर उनका रान दोनो खरो र ह ldquoकतबचार बढ़ वयासदव को दोनो दि क िोग पकड़-पकड़ कर ि

जात और अपनी अपनी सभा का lsquoचयररनrsquo बनात थ और बचार वयास जी अपन पराचीन अवयवकतसथत

सवभाव और शीि क कारण कतजसकी सभा र जात थ वसी ही विता कर दत थrdquo कतिबरिो की तिना र

का जरवरटव दि जयादा रजबत था कयोदक उनह सवगम क जरीदारो का सहयोग परापत था काजरवरटव दि की

आतराएा साकीणम कटररपाथी आतराएा थी य आतराएा उन परान िरान क ऋकतष रकतनयो की आतराएा ह जो

ldquoयजञ कर करक या तपसया करक अपन-अपन शरीर को सखा-सखाकर और पच-पच कर ररक सवगम गए हrdquo

करमकााड और वरत उपवास आदद को भारतद वही तक सही रानत थ जहाा तक व शरीर को कषट न पहाचाएा

कठोर दह साधना करन वाि इन ऋकतष रकतनयो की आतराएा सधारो क कतखिाफ थी और इनका साथ दन

वाि जरीदारो र lsquoउदार िोगो की बढ़तीrsquo स अपना रान-अकतभरान और बि कतछन जान का डर था

कतिबरि दि भिो की आतराएा या तो सावमजाकतनक जीवन क उचच रलयो या आदशो क सापादन क चित या

पररशवर की भकति स सवगम र गयी थी

सराज सधार और वयकतिक परर रिक भकति- कतिबरि कतवशवदकतषट को भारतद इसी पररपरकषय र दख

रह ह रकतडकि वषणव दि भिो क कतिए वषणव होन रातर स य चीज पहि स ही उपिबध थी भारतद क

कतिए वषणवता सवाभाकतवक रप स कतवशवदकतषट ह पर रकतडकि वषणव इस सवाभाकतवक उदारता को

राजनीकततक रप दन वाि ह वषणव उदारता का और उसक भावावग का राजनीकततकरण करन वाि रहा

रकतडकि इस तरह भारतद क कतिए वषणवता की आधकतनक वयाखया र सराज सधार वयकतिक परर रिक

भकति और राजनीकतत तीनो का lsquoएकाrsquo ह इस एका क रकतडकि परयास क कतिए जनरत या िोकरत का

कतनरामण आवशयक ह भारतद की रकतडकि वषणवता ही lsquoसब उननकतत का रिrsquo ह यह एक िोककतपरय

वयावहाररक कतवचारधारा क रप र आकर गरहण करन वािी वषणवता ह यह रकतडकि वषणवता धरम का

राजनीकततकरण ह

काजरवरटव दिभिो को दवताओ का सरथमन परापत था य दवता ही सवगम क जरीदार थ अपन

अपन तरीक स इन दवताओ न काजरवरटव दि की सथानीय शाखाएा भी खोि िी और वहाा इनक पकष र

lsquoपरकाश सभाएाrsquo होन िगी कतिबरि दि वािो क पकष र कवि इस lsquoकतहनद सवगमrsquo क िोग नही थ ldquoइधर

lsquoकतिबरिrsquo िोगो की सचना परचकतित होन पर रसिरानी-सवगम और जन सवगम तथा दकसतानी सवगम स पगमबर

कतसदध रसीह परभत कतहनद सवगम र उपकतसथत हए और lsquoकतिबरिrsquo सभा र योग दन िग बका ठ र चारो ओर

इसकी धर फि गयीrdquo अिग अिग सवगम कतवकतभनन धाररमक पहचानो की ओर इशारा करता ह बका ठ कतहनदओ

का सवगम ह और यह नया धरम आनदोिन रखयतः कतहनद धरम की एक बड़ी पहचान क भीतर ही पदा हआ ह

20

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग क तीन कतनकतहताथम वसधा डािकतरया न भारतद यग क सनदभम र नोट दकय ह23 पहिा

एक पराक औपकतनवकतशक lsquoकतहनद अथमrsquo जहाा हहादसतान का हर बाहशादा शाकतरि था दसरा परसपर कतभनन

धाररमक रतो और आसथाओ की कतनकट अातरकम या क अथम को वयि करता ह कतजसक आराकतभक साकषय सलतनत

कािीन ऐतहाकतसक वतताातो र कतरित ह यहाा यह शबद lsquoतकम rsquo क सरानाातर उपयोग र आया था और

सारानयतः रसिरानो क बरकतखिाफ उपयोग दकया जाता था आरमभ र यह धाररमक कर साराकतजक-

राजनीकततक अथो र जयादा परयि होता था अागरजी राज क साथ यह दसरा अथम धरम स अकतनवायमतः जड़कर

lsquoकतहनदवादrsquo की कतवचारधारा र बदि गया जमस कतरि आदद क इकततहासो र lsquoकतहनदकािrsquo और lsquoरसिरान

कािrsquo की ऐकततहाकतसक कलपना क साथ कतहनद शबद जड़ गया था भारतीय भी रसिरानो को सारन कर

lsquoकतहनद पीकतड़त गराकतथrsquo क कतिए इस शबद का इसतराि करन िग कतहनद शबद का तीसरा अथम राषटर की

अवधारणा स जड़कर बन रहा था आरथमक राषटरवाद और अागरजी राज की यातना की साझी सरकतत स बनन

वाि इस तीसर अथम का रतिब था- lsquoजो कतहनदसतान र रह वह कतहनदrsquo रारकतविास जी भारतद क यहाा

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग को इनही अथो र ित थ पर वसधा डािकतरया का कहना ह दक यह तीसरा अथम दसर क

वयापक परभाव र था तीनो अथो की अातरकम या क बार र डािकतरया न कतिखा ldquoतीसरा अथम या राषटरवादी

अथम कभी भी अपन धाररमक साकताथो स परी तरह छटकारा नही पा सका इस पद की परयकति उननीसवी

सदी र अकतसथर बनी रही और इसक रखतकतिफ रायनो र आपसी जड़ाव कायर रहा बावजद इसक दकसी

परदतत सनदभम र lsquoकतहनदrsquo क पराथकतरक अथम को कतनधामररत करना साभव ह यदद एक बार यह तय हो जाय दक

इिाकाई धाररमक राषटरीय र स दकस आधार पर यह पद परयोग र आ रहा ह और lsquoअनयrsquo की भकतरका र

दकस रखा जा रहा ह चाह वह अनय जसा दक परानी इिाकाई परयकति र ददखता ह फारसी या तकी हो

या रसिरान (कतजस इस िरान र भी कई बार सरह क हवाि स तकम ही कहा जाता ह) या दफर अाततः

औपकतनवकतशक सवारी िदकन यह बात ददराग र रखना जररी ह दक धाररमक सरदाय को कतनरदमषट करन

वािी दसरी परयकति अतयात परभावी सनदभम-हबाद बनी रहती हrdquo24

इस सनदभम र दख तो कतिबरि दिो क सरथमन र शाकतरि lsquoअनयrsquo कतहनद धरम क सधारवाद क सरथमक

ह और lsquoसधारोrsquo र छपी वकतशवक भावनाओ को सरथमन दन पहाच ह का जरवरटव दिो की lsquoअनयताrsquo यहाा नोट

करन िायक ह इस अनयता र साराती जरीदार और करमकााडी िाहमणवाद का बिाक ह जबदक कतिबरि

दकतषट क आसपास एक lsquoसायि रोचrsquo की कलपना की गयी ह धयान रखना चाकतहए दक भारतद क रकतडकि

वषणव इस lsquoसायि रोचrsquo क बाहर ह उनका lsquoएबसटकतनजरrsquo वषणव होन क चित नही बकतलक रकतडकि या

23 वसधा दिकतरया कतहनद परमपराओ का राषटरीयकरण भारतद हररशचादर और उननीसवी सदी का बनारस अन साजीव करार योगनदर दतत पषठ-

४०-४२ राजकरि पपरबकस नई ददलिी- २०१६

24 वही पषठ- ४२

21

रहा रकतडकि होन क चित था कतनकतशचत रप स सवगम सासद का रपक ह और सवगम का राजा ईशवर

कतनषपरभावी हो गया ह और जनता सवया जनरत क िारा कतनणमय कतसथर करन पर जोर दती ह जनरत क

िारा lsquoसलफ गवनमरटrsquo का परयास सबस पहि वषणव भिो न दकया था और आज क कतिबरलस उसी को

आग बढ़ा रह ह ईशवर क पास दोनो दिो क िोगो न जब अपन अपन ररोररयि तयार कर भज तो ईशवर

न दोनो दिो क डपयटशन को बिाकर कहा ldquoबाबा अब तो तरिोगो की lsquoसलफगवनमरटrsquo ह अब कौन

हरको पछता ह जो कतजसकी जी र आता ह करता ह अब चाह वद कया सासकत का अकषर भी सवपन र भी न

दखा हो पर धरम कतवषय पर वाद करन िगत ह हर तो कवि अदाित या वयवहार या कतसतरयो क शपथ

खान को ही कतरिाय जात ह दकसी को हरारा डर ह कोई भी हरारा सचचा lsquoिायकrsquo ह भत परत ताकतजया

क इतना भी तो हरारा दजाम नही बचा हरको कया कार चाह बका ठ र कोई आवहर जानत ह चारो

िड़को (सनक आदद) न पहि स ही चाि कतबगाड़ दी ह कया हर अपन कतबचार जयकतवजय को दफर राकषस

बनवाव दक दकसी का रोकटोक कर चाह सगन रानो चाह कतनगमन चाह ित रानो चाह अित हर अब न

बोिग तर जानो सवगम जानrdquo

काजरवरटव दिभिो न दयानाद और कशवचादर सन पर कया कया आरोप िगाय यह दख िना

चाकतहए दयानाद को सवगम र सथान नही कतरिना चाकतहए कयोदक १ इसन पराणो की हनादा की २ ररतमपजा

की हनादा की ३ वदो का अथम उलटा-पलटा कर डािा ४ दस कतनयोग करन की कतवकतध कतनकािी ५ दवताओ

का अकतसततव कतरटाना चाहा (दवताओ याकतन जरीदार) ६ इसन धरम कतवपिव दकया और आयामवतम को धरम

बकतहरमख दकया पकतशचरोततर परानत क परकततकतनकतध क रप र lsquoकाशी क कतवशवनाथ जीrsquo न lsquoउदयपर क एकहिाग

जीrsquo पर दयानाद क सरथमन का आरोप िगाया कतवशवनाथ जी काजरवरटव दिो की तरफ स यह आरोप िगा

रह थ परब की अपकषा पकतशचरी इिाको र आयम सराज क परभाव की चचाम क सनदभम र एकहिाग जी का

जवाब धयान दन िायक ह कतवशवनाथ जी न जब एकहिाग जी को कतधककारत हए कतिबरिो क साथ कतरि जान

को कहा तब एकहिाग जी न कहा ldquoभाई हरारा रतिब तरिोग नही सरझ हर उसकी बरी बातो को न

रानत न उसका परचार करत कवि अपन यहाा क जागि की सफाई का कछ ददन उसको ठका ददया बीच

र वह रर गया अब उसका राि रता रठकान रखवा ददया तो उसका बरा दकयाrdquo यह एकहिाग जी

दफ़िहाि सवारी जी क दि क सभापकतत बन ह आकतखर इनहोन अपन यहाा क दकस lsquoजागिrsquo की सफाई का

ठका सवारी जी को ददया था यह जागि छोट-रोट धाररमक समपरदायो और रतो का जागि था एकहिागी

जी और काशी क कतवशवनाथ जी दोनो ही िाहमणीकत शवरत क धाररमक परतीक ह पर जहाा काशी क

कतवशवनाथ शर स ही दयानाद क कतवरोधी थ वही एकहिाग जी रणनीकततक रप स दयानाद क पास गए थ यह

साकीणम कटररपाथ क भीतर का कतववाद था यह बात गौर करन िायक ह दक जगननाथपरी र जब भरव की

22

रौजदगी का कतववाद भारतद क सारन आया था उस सरय उनहोन इस बात का परतयाखयान दकया था दक

भरव की परकततरा अनाददकाि स वहाा ह भारतद न पराण आदद स साकषय दकर यह परराकतणत दकया दक

कषण ही एकरातर उपासय ह तिवार जी न इस घटना का उलिख करत हए कतिखा ह दक ldquoदकसी वयकति न

lsquoतहकीकातपरीrsquo दकताब दकखकर बताया दक वहाा पहि भरो की पजा होती थी वषणवो न उसकी ररतम

उखाड़ फ की थी बाद र पाडो न जगननाथजी (कतवषण) क साथ भरो को दफर स परकततकतषठत दकया यह रारिा

काशी धरमसभा क सारन १८७० र आया भारतद न धरम साबाधी पसतक र lsquoतहकीकातrsquo जस फारसी शबद

की आिोचना करत हए कतवकतभनन धरमगराथो स परराण जटाकर दो बातो पर जोर ददया एक इसका परराण

नही कतरिता ह दक वहाा जगननाथजी क साथ पहि भरो की भी ररतम थी कतजस वषणवो न उखाड़ फ का दो

अगर वह थी भी तो यह उकतचत था या नही- इसपर कतवचार होना चाकतहए भारतद न अपनी वयवसथा दत

हए कतिखा दक भरो कतवषण स बहत छोटा दवता ह इसकतिए यह कतवषण क साथ बठाया नही जा सकता

lsquoदसर भरव कापाकतिको क दवता ह उनका पजन वषणव-सरातम सबको कतनकतषदध हrsquo गौरतिब ह दक भारत

र कतवकतभनन सथानीय धरो क परकतत कतजतन असकतहषण और फा डारटकतिसट आयमसराजी थ उतन ही काशी क

सनातनी भी थrdquo25

सथानीय धरम-रतो क जागि को साफ़ करन र आयमसराकतजयो और काशी क सनातनी पाडो क इस

गठजोड़ स भारतद भी वादकफ थ िदकन आयमसराकतजयो क साथ उदयपर क एकहिाग जी का रोचाम कसा

था इस भी भारतद बखबी सरझ रह थ सथानीय रतो क साथ भारतद का समबनध कसा था इसका पता

उनक छोट-छोट यातरा सासररणो स भी चिता ह lsquoसरय पार की यातराrsquo26 र रहदावि का हाि बयान करत

हए lsquoपराणनाथrsquo क रिहब का भारतद आशचयम क साथ उलिख करत ह भारतद क ही शबदो र ldquoयहाा एक

पराणनाथ का रिहब ह और दस बीस िोग उसक रानन वाि ह य िोग एकादशी तीथम वगरह को नही

रानत और सन सनाय दो तीन शलोक जो याद कर कतिए ह बस उसी पर चर हो lsquoरदीनासया शारदाा शताrsquo

और lsquoगोकतवनदrsquo lsquoगोकिानाद रककशवरrsquo यह शलोक पढ़ क कहत ह दक वद र रकका रदीन का वणमन ह ऐस ही

बहत वाकतहयात बात करत ह और कोई दकतना भी कह कछ सनत नही कहत ह दक गोिोक का नाश ह

और गोिोक ऊपर एक lsquoअखाड रणडिाकारrsquo िोक ह उसर रर कषण ह इनका रिहब एक पराणनाथ नारक

एक कषतरी न पनना र करीब तीन सौ बरस हए चिाया थाrdquo भारतद इस अजीबो गरीब lsquoरिहबrsquo का कषण स

कया साबाध ह यह सोचकर ताजजब र थ इस lsquoरिहबrsquo क गरनथ र भारतद न एक शलोक बलिभाचायम का

दखा तो उनका राथा और घर गया ldquoकि रिहब का हाि हरन नीच कतिखा था उसका अचछी तरह स

25 वीरभारततिवार रससाकशी १९वी सदी का नवजागरण और पकतशचरोततर परानत पषठ- १५२ सारााश परकाशन ददलिी- २००६

26 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन पषठ- १३७-३८

23

हाि दरयाफत दकया तो रािर हआ दक हरार ही रिहब की शाखा ह इनक गराथो र हरन एक शलोक शरी

रहापरभजी की सबोकतधनी की काररका का दखा इसी स हरको सादह हआ दफर हरन बहत खोद खाद कर

पछा तो वह साफ़ रािर हआ दक इसी रत स यह रत कतनकिा ह कयोदक एक बात वह और बोि दक हरारा

रत शरी बलिभाचारज की टीका र कतिखा ह इन िोगो क उपासय शरीकषण ह और एकादशी शािगरार

ररतमपजा तीथम दकसी को नही रानत इनक पकतहि आचायम दवचाद जी थ जो जाकतत क कायथ थ और दसर

पराणनाथ जी जो कचछ क कषतरी (भारटया) थ हरार ही रत की शाखा सही पर कतवकतचतर रत ह वषणव होकर

ररतमपजा का खाडन करन वाि यही िोग सनrdquo वणमन स सपषट ह दक सात और कतनगमण पाथो क साथ वषणव

कतवचारधारा क आदान-परदान का साकतशलषट इकततहास भारतद क कतिए ताजजब की चीज थी पर इन सबक बीच

आकतखर उनहोन इसक वषणव रि का पता िगा कतिया और वषणवता की इस धाररमक कतवचारधारा र उनहोन

ररतमपजा का कतवरोधी होना भी शाकतरि रान कतिया भारतद न ररतमपजा क सरथमन र बड़ बड़ िख कतिख

थ इसकतिए असाभव नही दक कषण क परकतत परररिक भकति क कतिए ररतम की जररत पर उनहोन कछ पछा

जरर होगा िदकन lsquoकोई दकतना भी कछ कह सनत ही नहीrdquo आग चिकर lsquoवषणवता और भारतवषमrsquo र

वह बड़ कतवशवास क साथ घोकतषत करत ह दक ldquoपहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद कतजतन पाथ ह सब

वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और भारतवषम इन पाथो स छाया हआ हrdquo27 तब वह वषणवता और

िोकरतो और रधयकािीन पाथो क भीतर पहि स सदकय एक ऐकततहाकतसक परदकया का सारानयीकरण कर

उसका नार lsquoवषणवrsquo रख रह थ अकारण नही दक उसी िख र वषणव वयापकता को बतान क कतिए

परचकतित lsquoनारोrsquo का साकषय पश दकया गया ह वयकतियो स िकर वरत और उपवासो तक यह परभतवशािी

सारानय बोध की कतवचारधारा थी कतिवदी जी रधयकािीन वषणवता को िोकधरम कहत थ भारतद

उननीसवी सदी क िोकधरो को वषणव कहत ह

काजरवरटव दिो की तरफ स कशवचादर सन पर िगाय गए आरोप थ १ वद पराण सबको कतरटा

डािा २ दकसतान रसिरान सबको कतहनद बनाया ३ खान पीन का कतवचार कछ न बाकी रखा ४ रदय की

तो नदी बहा दी आयम सराकतजयो क ऊपर रखयतः आरोप lsquoआयामवतम को धरम बकतहरमखrsquo करन का ह धरम

बकतहरमख अथामत सनातन धरम स कतवरख उनहोन कवि धरम क भीतर कतवपिव दकया परनत िहमो सराज न तो

lsquoभारतवषम का सतयानाशrsquo कर डािा इनहोन तो पराणो क अिावा वदो को भी कतरटा डािा lsquoआयामवतमrsquo की

जातीय पकतवतरता नषट करक दकसतान रसिरान जस lsquoकतवदशी ततवोrsquo को घर र घसा कतिया कटररपाथी

करमकााकतडयो क कतिए इनक साथ रणनीकततक तौर पर भी रोचाम बनान वािा कोई एकहिाग जी तयार नही

था सनातकतनयो िारा दकया गया यह बारीक भद खद कतिबरि दिभिो क भीतर का भी अातरवमरोध था

27 भारतद वषणवता और भारतवषम वही पषठ-७६

24

कतिबरिो की सभा र भी दो दि हो गए थ एक सवारीजी क सरथमको का दि था और एक कशव

क सरथमको का कतहनद कतिबरिो की आताररक एकता कतिकतवभाकतजत थी दयानाद क सरथमको क अनसार सवारी

जी न कतहनदओ की आतरा को जगाया था उनह सफतम बनाया वरना तो आयामवतम क आिसी और रखम

रोहकतनदरा र ही कतनरगन थ इस तरह रखम और आिसी सारानयजनो को lsquoिाहमणो क फा द स छड़ायाrsquo िाहमणो

की तिना भारतद न lsquoपादररयोrsquo स की ह जो lsquoवयथम परजा का दरवय खान वाि हrsquo आयम सराज न सासथाकत

परोकतहतवाद पर हरिा दकया था जो भारतद क कतिए रितः जनता क पसो पर पिन वािा परजीवी वगम

िगता था और तो और आधकतनक कतवजञान क आग जो lsquoआयोrsquo की नाक कटी जा रही थी उस भी सवारी जी

न बचा कतिया उनहोन वदो र भी रि तार करटी कचहरी आदद ददखाकर कतहनदओ र आतरसमरान पदा

दकया दसरी ओर कशव क सरथमको का कहना था दक ldquoधनय कशव तर साकषात दसर कशव हो तरन बाग

दश की रनषय नदी क उस वग को जो कशचन सरदर र कतरि जान को उचछकतित हो रहा था जञान करम का

कतनरादर करक पररशवर का कतनरमि भकति रागम परचकतित दकयाrdquo lsquoजञान करम का कतनरादरrsquo करक भी lsquoकतनरमि

भकति रागमrsquo का जो परवतमन कशव न दकया उसस ही ईसाई lsquoअनयताrsquo का साथमक परकततरोध साभव हआ lsquoरनषय

नदी का आवगrsquo भावावग ह इसी बात को दसर शबदो र कह तो भाव जगत क सवाभाकतवक वग को भगवत

भकति की शदध lsquoअनयताrsquo की ओर रोड़कर उस कतवदशी ईसाई lsquoअनयताrsquo क रागम पर जान स रोक ददया इस

कायम क कतिए वद पराण समरत lsquoजञान-करमrsquo क रागो का कतनरादर अगर करना पड़ा तो भी वह उकतचत ही था

वषणव भकति क रधयकािीन सवरप की जो वयाखया आग चिकर की गयी उसक आराकतभक कतचनन हर यहाा

दख सकत ह कहना न होगा दक भारतद का अपना अनभव भी यहाा बोि रहा ह

शासतरीय काजरवरटव पाटी र दवताओ क अिावा यजञवलकय जस औपकतनषददक ऋकतष क साथ-साथ

नारायण भटर रघनाद भटराचायम राडन कतरशर जस कतनबाधकारो और टीकाकारो का जरघट भी था इसक साथ

साथ इसिारी सवगम स आय हए कटररपाथी कतशया िोगो का भी सरथमन उनह परापत था इस परकार कटररपाथ का

दवताओ (जरीदारो) िाहमणो (पादररयो) जञानरागी औपकतनषददक ऋकतष रधययगीन कतनबाधकारो और

कतवदशी कतशया िोगो का एक वकतशवक रोचाम बन रहा था दसरी ओर कतिबरि दि र चतनय परभकतत आचायम

दाद नानक कबीर परभकतत भि और जञानी िोग भी शाकतरि थ इसक अिावा काजरवरटव दि क

कतवदरोकतहयो को भी कतिबरिो न अपन यहाा जगह दी य कतवदरोही थ अितवादी (या नववदााती) भाषयकार

पाचदशीकार और कोई कतरसटर िडिा इन दोनो िोगो पर शर र का जरवरटव दि वािो न बहत हरि

दकय परनत अात र इनह कतिबरिो न अपन यहाा जगह द दी धयान रखना चाकतहए दक भारतद अपन सापरदाय

क अनरप अित वदाात या रायावाद क घोर आिोचक थ सन १८७३ र हररशचादर रगजीन क पहि ही अाक

र भारतद न शााकतडलय भकति सतरो का अनवाद lsquoभकति सतर वजयातीrsquo नार स परकाकतशत दकया भकतरका र

25

भारतद कतिखत ह ldquo दखो आज वसात पाचरी ह इसस बहत स िोग आर क रौर वा फिो क गचछ िकर

तरस कतरिन आवग तो र भी यह एक फिो की वजयाती रािा बना कर िाया हा अागीकार करो वजयाती

रािा बनान का यह हत ह दक वनरािा होगी तो होिी क खि र अरझगी और इसक कतसवाय इस वजयाती

स कतनशचय करक जञानाददक को जय करना ह पर पयार बहत साभि कर यह रािा पहरना टट न जाए

कयोदक सत कचचा ह और ककतियाा तािी और कोरि ह इस स कमहिान का भी भय ह जो हो इस वसात

पाचरी को तयोहारी रझ यही दो दक इस सतयानाशी lsquoअहरrsquo िहमवाद lsquo को पणमरप स नाश करक और भी

सब बातो र इस नव-वसात र भारतवषम की सब आपकतततयो का बस अात करो और अपन भिो क कतचतत र

नव पलिव दफर स िहिह करो जो सदा एक रस रहrdquo28 lsquoएकरसrsquo भकति क कतिए जररी ह दक जञानवाद

अहर िहमवाद को जड़ स उखाड़ फ का जाय कषण को अरपमत अपनी वजयाती रािा स भारतद जञानाददक

को जय करना चाहत ह एक ओर यह पकतषटरागी परापरा क lsquoवीर वषणवrsquo भारतद का परर कतनवदन ह दसरी

ओर lsquoनव-वसातrsquo र भारतवषम की सब आपकतततयो को नाश करन की सारथयम रपी lsquoउपहारीrsquo का साकलप भी

ह lsquoभारतद भारतवषम की सब आपकतततयोrsquo को दर करन की राह र एक बड़ी बाधा अित क जञानवाद को

रानत ह भकति का lsquoएकरसrsquo पहि भी इसक परभाव स ररझाता रहा ह भारतद का साकलप सापरदाय क

परान कतवरोधो क बावजद बन रहन वाि इस अितवाद का पणम सफाया करन का ह जबतक यह न कतरटगा

परररिा भकति क lsquoकमहिान का भयrsquo बना रहगा भकति सतरो र उपासना कााड को परर कतसकतदध का हत

बताया गया था पर भारतद दख रह थ दक उपासना कााड का परचार कतवरि हो गया ह इसी परचार क

कतनकतरतत उनहोन इन सतरो का भाषा र अथम परचार दकया था १८७३ र ही हररशचादर रगजीन का एक

समपादकीय कतनकिा कतजसका शीषमक था- lsquoभकति जञानाददक स कयो बड़ी हrsquo इस िख र भी उपासना रागम

की रहतता का परकततपादन दकया गया ह तकम और जञान को करम की शकतदध और उपासन की परर कतसकतदध क

रासत र कवि एक चरण बताया गया ह वसधा डािकतरया न भारतद क आराकतभक साापरदाकतयक परचार

परसार क कायो र कतनगमकतनयो को बाहर रखन का उपकर नोट दकया था29 यहाा कतनगमकतनए कबीर आदद lsquoभि

और जञानीrsquo कतिबरिो क सरथमक ददखाए गए ह वषणव भकति क राषटरीय चररतर र य बाहर नही थ उनकी

एकता का आधार उनक lsquoकतिबरि रिrsquo र ह सावमजकतनक उचच भाव का सापादन और भकति इन दोनो क साथ

अित वदााती या जञानाददक- सनातनी परापरा क कतवदरोकतहयो की जगह भी कतिबरि दि पाकतथयो र थी

कतिबरि वाि ही झगड़ क कतनपटार की अजी पररशवर को दन गए थ पर पररशवर अपनी

परतीकातरक हो गयी कतसथकतत स खजिाय हए थ यह सवोचच अदाित थी पर साथ ही साथ शकतिहीन

28 भारतद गराथाविी खाड- ५ पषठ ११३

29 वसधा डािकतरया पषठ ३४२

26

राषटराधयकष की कलपना भी कतजस कतहनद सवगम क य राषटराधयकष ह वहाा दकसी दकसर की सलफ गवनमरट चनन

की परणािी आ जान स ईशवर की एकाकतधकारी शकतियाा कतछन गयी ह िोग जनरत कतनरामण क िारा सही

और गित की पहचान करन िग थ इसकतिए थोड़ा खजिाय तो रहत ही होग lsquoअब कौन हरको पछता

ह तर जानो सवगम जानrsquo परनत साकट गहरा था यदयकतप कतिबरि िोगो की सभा भी धरधार स जर

रही थी पर काजरवरटव दि पाकतथयो की सरकार र पठ थी दवता सब भी उनक साथ थ इसकतिए पररशवर

क पास जररी नयाय का परशन उठाया गया था नयाय दक इन दो रहापरषो को सवगम र जगह कतरिनी

चाकतहए या नही सराज र इनक नकततक उचच आदशो क अवरलयन का परचार काजरवरटव कर रह ह इस

परचार क कारण जनता अपनी निरो स पहचानन र सकषर नही ह ऐसी कतसथकतत सवगम र पहि नही आई

थी नई कतसथकततयो क नए रानदाड कया होग िाकतहर ह नयाय और नकततकता को एक वकतशवक सवीककतत

चाकतहए इसकतिए पररशवर न इस कतवषय पर कतवचार क कतिए जो ककतरटी चनी वह गौर करन िायक ह इस

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo र ldquoराजा राररोहन राय वयास दव टोडररि कबीर परभकतत कतभनन-कतभनन रत क िोग चन

गए रसिरानी- सवगम स क lsquoइरारrsquo दकसतानी स िथर जनी स पारसनाथ बौदधो स नागाजमन और

अफीका स कतसटोवायो क बाप कोrdquo चना गया कतहनद सवगम स नवजागरण क अगरदत वयासदव जस

बौकतदधकिखक टोडररि जस राजनीकततजञ और धरम-ररमजञ कबीर जस जञानी-भि पराचीनो र कवि वयास

दव ह बाकी दो lsquoरधयकािrsquo क और एक lsquoआधकतनकrsquo काि क वयकति ह उधर यरोपीय नवजागरणधरमसधार

क परणता िथर को भी बिाया गया ह और बौदधो की तरफ स परर कतनषधवादी नागाजमन भी ह पर य

अफीका क कतसटोवायो धरो की अकतसरता क साथ-साथ यह अफ़ीकी सवगम कतनकतशचत रप स अफीका की छकतव

पराचीन आददवासी सासककतत वाि एक lsquoकािrsquo रहादश क रप र गढ़ी गयी थी यह अफ़ीकी सवगम साभवतः

आददवासी धाररमक रानयताओ की ओर इशारा करता ह यह भी धयान दन िायक ह दक राजा राररोहन

राय िथर और कबीर इन तीनो क साथ lsquoनवजागरणrsquo की कोई न कोई पररकलपना ठठ सरकािीन कतवरशो

क क दर र भी ह कई अथो र अकबर िारा आयोकतजत होन वािी lsquoसिह-ए-किrsquo जसी धरम सभाओ की एक

रोहक कलपना भी भारतद को रही होगी टोडररि की उपकतसथकतत अकारण नही ह

अकबर को िकर भारतद की इकततहासदकतषट कसी थी इसकी एक झिक हर १८८४ र छपी उनकी

lsquoबादशाह दपमणrsquo की भकतरका र ददखती ह इस गरनथ र उन िोगो का चररतर-कतचतरण दकया गया था ldquoकतजनहोन

हरिोगो को गिार बनाना आरमभ दकया इसर उन रसत हाकतथयो क छोट-छोट कतचतर ह कतजनहोन भारत क

िहिहात हए करिवन को उजाड़कर-पर स कचिकर कतछनन-कतभनन कर ददया रहमरद रहरद अिाउददीन

अकबर और औरागजब आदद इनर रखय ह पयार भोि कतहनद भाइयो अकबर का नार सनकर आपिोग

चौदकए रत यह ऐसा बकतदधरान शतर था दक उसक बकतदधबि स आजतक आपिोग उसको कतरतर सरझत ह

27

दकनत वह ऐसा ही नही उसकी नीकतत अागरजो की भााकतत गढ़ थी रखम औरागजब उसको सरझा नही नही तो

आज ददन हहादसतान रसिरान होता कतहनद-रसिरान र खाना-पीना बयाह-शादी कभी चि गयी होती

अागरजो को जो बात नही सझी वह इसको सझी थीrdquo30 कतनकतशचत रप lsquoबकतदधरानrsquo दशरन स सीखन को बहत

कछ कतरिता ह अकबर की दीन-ए-इिाही क परयोग स भारतद भी बहत कछ सीख रह थ रधयकािीन

इकततहास क बार र रकतसिर शतर की छकतव का कतनरामण पराचयकतवदयाकतवदो क िारा दकया जा रहा था इकतियट

आदद इकततहासकारो न जो दकतषट कतवककतसत की उसका परभाव बहत गहरा था पर इस इकततहासिखन क साथ

साथ भारतद क कछ दशी सरोत भी थ अिग-अिग रहापरषो की चररताविी कतिखन की पररणा भारतद न

कतजतना अपनी वषणव भकति की परापरा स पाया था उतना ही इसिारी इकततहास िखन की परापरा स भी

lsquoबादशाहदपमणrsquo की भकतरका र भारतद कतिखत ह ldquoरर पररातारह राय कतगरधरिाि साहब जो यवनी कतवदया

क बड़ भारी पाकतडत और काशीसथ ददलिी क शाहजादो क रखय दीवान थ उनकी इचछा स ददलिी क परकतसदध

कतविान सययद अहरद न एक ऐसा चक बनाया था कतजसर तरर स िकर शाह आिार तक सब बादशाहो क

नार आदद कतिख थ उस फारसी गरनथ स बहत सी बात इसर िी गयी ह इस कारण तरर पवम क बादशाहो

का वणमन इतना परा नही ह कतजतना तरर क पीछ ह दफर रर रातारह राय कतखरोधरिाि न बहादर शाह

क काि क आरमभ तक शष वतत सागरह दकयाrdquo31

अरणदव जी अपन एक िख र भारतद क आराकतभक अकबर परर का कतिक दकया ह १८७२-७४ क

आसपास भारतद अकबर को रहान शासक रानत थ जबदक औरागजब को कतहनदओ का दशरन नाबर एक

भारतद न औरागजब की तिना र अकबर की रहानता को परराकतणत करन क कतिए रारदास कछवाह क एक

शलोक को अपना आधार बनाया ह इस शलोक का भावाथम भारतद क शबदो र इस परकार ह ldquoजो सरदर स रर

तक पथवी को पािता ह जो रतय स गउओ की रकषा करता ह कतजसन तीथम और वयापार स कर छड़ा ददए

कतजसन पराण सन जो सयम का नार जपता जो योग धारण करता ह और गागाजि छोड़कर पानी नही

पीता उस जिािददीन की जय अाग वाग कहिाग कतसिहट कततपरा कारत (कारटी) काररप अाध कणामटक

िाट दरकतवड़ रहाराषटर िारका चोि पााडया भोट रारवाड़ उड़ीसा रलि खरासान का दहार जमब काशी ढाका

बिख बदखशाा और काबि को जो शासन करता ह ककतियग की रकतहरा स घटत हए वद गउ कतिज और

धरम की रकषा को सगन शरीर कतजसन धारण दकया ह उस अपररय परष अकबर शाह को हर नरसकार करत

हrdquo32 यही अकबर १८८४ र औरागजब स जयादा शाकततर और बकतदधरान शतर र बदि गया lsquoकािचकrsquo क

कतनकतहताथो र यह फरबदि भारतद पर रकतसिर कतवदशीपन और कतहनद शतरता क समपणम बिॉक बनान की

30 बादशाह दपमण भारतद गराथाविी खाड-६

31 वही

32 httpsamalochanblogspotin201209blog-post_9html

28

रणनीकतत क दबाव क कारण था और lsquoपरावकततrsquo की कतरथकीयता र भी कतहनदओ को lsquoरहारोहनासतरrsquo क सहार

पहि भी वश र दकया गया था यह एक बारीक चाि थी अकबर की इस चाि को अागरज भी नही सरझ

पा रह थ भारतद की यह परकततदकया औपकतनवकतशक इकततहासिखन क दबाव र थी १८७३ र जब भारतद

न कतशवपरसाद की दकताब lsquoइकततहासकततकतररनाशकrsquo क तीसर खाड की आिोचना की थी तो उनक सारन

रकतसिर शासन की बबमरता और अागरजी राज क सशासन का कतशवपरसाद िारा ककतलपत आखयान था १८८४

र समपणम रकतसिर काि अनधकार यग र बदि गया कततकतररनाशक क पहि खाड र बाब कतशवपरसाद न भी

अकबर की रजहबी उदारता और साराकतजक सधारो की बड़ाई की थी इस परकार हर दख सकत ह दक

ऐकततहाकतसक िखन र पकष और कतवपकष की पनरावकततत एक बाद घर र उिझी हई थी इनक सारन रकतसिर

कतवरोध और अागरजी शासन क कतवरोध का एक कतवसागत फर था और िखक उसर अपनी फौरी जररतो क

कतहसाब स कतरतर और दशरन वािा इकततहास कतिखता था इकततहास ठठ राजनीकततक ततकाि क वशीभत था

जो भी हो धाररमक उदारता और सिह-ए-कि का परयोग एक कतशकषापरद परयोग था यह कतवकतभनन

रतो या कतवशवासो क बीच lsquoजनरतrsquo बनान का एक रधयकािीन परयोग था भारतद lsquoजनरतrsquo क परयोग को

इस तरह दखत थ रानो यह lsquoचािrsquo अगर कारयाब हो जाती तो lsquoआज क ददन हहादसतान रसिरान होताrsquo

भारतद क सारन सरसया वही थी बस वह कवि यह चाहत थ दक कतहनदसतान lsquoकतहनदrsquo हो जाय कतहनद

अथामत वषणव हो जाय वषणवता भारतद क कतिए हहादसतान का नया lsquoसिह-ए-किrsquo था इसकतिए कछ

सावमजनीन रलयो की तिाश उनह भी थी कतसिकट ककतरटी क उपरोि रमबर lsquoएकसअफीकतशयोrsquo रमबर थ

रोर क परान हररकिस जस दवता कतजनहोन धरती स साबाध तोड़ ददया ह व िोग तथा उनही क जस

पारकतसयो क lsquoजरदशतजीrsquo को कोरसपोहडाग ऑनररी रमबर बनाया गया य धरम क रप र रतपराय रतो क

परकततकतनकतध थ ककतरटी न जो ररपोटम तयार की उसका ररम भारतद न ददया ह यह ररम उनक रकतडकि वषणव

पकष का रत था कतिबरि दि और काजरवरटव दि क अपन पकषो स इतर यह नरनायक तीसरा पकष वषणवो

की तरफ स सनाया गया था रकतडकि वषणवो की तरफ स भारतद इस धाररमक आनदोिन क भीतर अपना

ही पकष रखत हए इसका ररम कतिख रह थ ldquoहरिोगो की समरकतत र इन दोनो परषो न परभ की रागिरयी

सकतषट का कछ कतवघन नही दकया वराच उसर सख और सातकतत अकतधक हो इसी र पररशरर दकयाrdquo कतहनद सराज

सधार क परयासो का ररम बतात हए सबस पहि धयान सतरी सधारो पर ददया गया ह साराकतजक करीकततयो

की कतशकार रकतहिाओ क परकतत जो दकतषट उभरकर सारन आती ह उसक रि र धरम की रीकतत स यौन

रयामदाओ की अवयवसथा को दफर स रयामददत करन की चषटा ह कतसतरयो क करागम पर जान का पहिा कारण

ह रनराना परष धरमपवमक न पाना यह कतववाह सासथा की कतवककततयो की आिोचना थी जहाा बाि कतववाह

कतवधवा कतववाह आदद की तरफ इशारा ह धयान रखना चाकतहए दक यहाा बरि कतववाह क बदि कतसतरयो िारा

29

lsquoरनराना वरrsquo न चन पान का उलिख ह गभमनाश और बाि हतया क कतखिाफ सधार परयास दसरा

रहतवपणम योगदान ह कतववाह सासथा बीच र भी भाग की जा सकती ह इसकी सवीककतत ह कनया क कतहत र

अातरजातीय कतववाह की सवीककतत ह एक रहतवपणम बात गरओ और पाकतडतो क वयाकतभचार क साबाध र ह

भारतद क सारन पकतषटरागी रहातो और गरओ क वयाकतभचार का अनभव भी इसर शाकतरि ह

१८७४ र ककतववचन सधा र भारतद की एक रटपणणी छपी थी lsquoगर को कसा होना चाकतहएrsquo इसक अिावा

दो वषम पहि lsquoगर और रहातrsquo नार स भी एक रटपणणी कतिखकर वषणव पाडो-परोकतहतो की खिकर

आिोचना की गयी थी तिवार जी न कतिखा ह दक राददरो क भीतर कतसतरयो का यौन शोषण और वयाकतभचार

इतना भीषण था दक दयानाद भारतद क पकतषट सापरदाय को lsquoकषठी सापरदायrsquo कहत थ १८६० क आरमभ र ही

वषणव गोसाइयो क अनाचार और यौन शोषण क कतखिाफ बमबई र एक बड़ा आनदोिन पकतषटरागी

करसनदास रि जी क नततव र हो चका था वषणव बकतनया पषठभकतर स आय करसनदास जी उन नौजवानो

र थ कतजनहोन एकतिफ सटन कॉिज स आधकतनक कतशकषा परापत की थी गोसाइयो और रहाराजो िारा अपन

lsquoसमपरदाय की बह बरटयोrsquo क साथ होन वाि अतयाचार क कतखिाफ उनहोन िख कतिख और समपरदाय क

इकततहास को नए कतसर स सारन रखा पण स आए जदनाथ वजरतन जी रहाराज न करसनदास जी पर

रानहाकतन का रकदरा दायर कर ददया इसी रक़दर स वषणव रहातो की कई सारी बात जनता क सारन

परतयकष हई तिवार जी न इस lsquoरहाराज िाइबि कसrsquo को भारतीय नवजागरण र वषणव गोसाइयो क

दराचार और यौन शोषण क कतखिाफ हआ सबस बड़ा आनदोिन कहा ह भारतद पर इसका बहत परभाव

था यह कस १८६० र हआ था एक दशक बाद जब भारतद सापरदाय क कायो र रत थ उसी सरय कतिख

रह थ ldquoराददर कया होत ह रानो कतसतरयो की खान ह जसी चाकतहए िीकतजय- वराच अचछी सतरी भी वहाा जाकर

कतबगड़ जाती ह आशचयम यह ह दक कतजनको व िोग बटी कहत ह और जो उनक परिोक क रधयसथ ह और

कतजनको वो दीकषा दत ह उन कतसतरयो की ओर व आप ही बरी दकतषट स दखत ह ओर रर पयार कतहनदओ तर

इनक जाि र कब तक फा स रहोग और कया तरको यही सासार स बचावग और इनही क भरोस तरको

भगवान कतरिगाrdquo33

राददरो क धन-ऐशवयम और वयाकतभचार र डब जीवन क जीवात कतचतर हर बनारस क रखाकतचतर lsquoपरर

जोकतगनीrsquo क अिावा lsquoकाशी क छायाकतचतर क दो बर-भि फोटोगराफrsquo र भी कतरित ह यहाा भारतद का वयागय

अपन वषणव सापरदाय की आतरािोचना स सदकय ह lsquoपरर योकतगनीrsquo नाटक र आन वािा चररतर रारचादर

खद भारतद ही थ नाटक का सतरधार कहता ह दक भारतवषम की दीन हीन गकतत क कारण उसका तो

कतवशवास ही ईशवर स उठन िगा ह नाटक क पहि ही दशय र भारतद हर राददर क भीतर कतिए चित ह

33 वसधा डािकतरया िारा उदधत पषठ- ३३७

30

जहाा राददर र कार करन वािा साधारण टहिआ झपरटया हर ददखाई दता ह पजारी बाब अभी तक नीद

स नही जाग ह कयोदक आधी रात तक lsquoबठ क ही-ही-ठी-ठी करा चाह दफर सबर नीद कस खिrsquo कतनकतशचत

रप स यह टहिआ सबह सवर ही राददर र हाकतिर ह िदकन दवता अभी राददर र सोय ह रारचादर

परदशी ह काशी र बाहर स आय ह छकक जी और राखनदास इस रारचादर की आिोचना करत ह इनक

सावादो स पता चिता ह दक बाब रारचादर क यहाा ददन रात नाच गाना हआ करता ह और उनको अपनी

कतवदया का घराड ह दो चार ककतवतत भी बना ित ह पर lsquoककतवतत बनाव स का होव और ककतवतत बनावन कछ

अपन िोगन का कार थोर हय ई भााटन का कार हयrsquo छकक जी कहत ह दक अपन रागम का उनह कछ जञान

तो ह नही बस दो चार बात इधर उधर स सनकर कछ lsquoदकसतानी रतrsquo सीखकर पाकतडत बन दफरत ह

कतनकतशचत रप स य भारतद पर िगन वाि आरोप थ राददर र सवारी धनदास वकतनतादा बभकतकषत पाकतडत

आदद धरम क ठकदार ह इनकी पतनशीि सासककतत को दखकर रारचादर का दःख इन शबदो र वयि होता ह

lsquoहा कया इस नगर की यही दशा रहगी जहाा क िोग ऐस रखम ह वहाा आग दकस बात की वकतदध की

साभावना करrsquo lsquoवददकी हहासा हहासा न भवकततrsquo जस शरआती नाटको र भी करमकााडी परोकतहतवाद की

आिोचना की गयी ह राजा और परोकतहत कतरिकर वहाा जनता का शोषण करत ह जआ रददरा और

रथन की ऐययाश सासककतत क परतीक परोकतहतो का काजरवरटव दि इन परहसनो र रतम होता ह कतचतरगपत यर

स कहत ह ldquoरहाराज य गर िोग इनक चररतर का कछ न पकतछए कवि दमभाथम इनका कततिक रदरा और

ठगन क अथम इनकी पजा कभी भकति स ररतम को दाडवत न दकया होगा पर राददर र जो कतसतरयाा आयी उनको

सवमदा तकत रह रहाराज इनहोन अनको को कताथम दकया ह और इस सरय तो र lsquoशरीरारचनदर जी का

शरीकषण का दास हाrsquo पर जब सतरी सारन आव तो उसस कहग lsquoर रार तर जानकी र कषण तर गोपीrsquo और

कतसतरयाा भी ऐसी रखम दक दफर इन िोगो क पास जाती हrdquo34

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo की ररपोटम र सतरी सधारो क कायो की रहतता बतान क बाद जाकतत वयवसथा पर

इन सधारको का परहार कयो जररी था इस बताया गया ह कठोर जाकतत बनधनो क चित कस हर साि

जाकतत-बाहय होकर जाकतत र वापस आन क दकसी उपाय को न जान lsquoहजारो रनषय आयम पाकति स हर साि

छटत थ उसको इनहोन रोकाrsquo इस परकार इन सधारको न lsquoआयमधरमrsquo क भीतर जो पररवतमन करन चाह

उसस आयो की एकता दफर स बहाि हो गयी इसक अिावा अाधकतवशवासो को इनहोन दर दकया यही नही

बकतलक जहाा िोग lsquoरसिरानी पीर पगमबर औकतिया वीर ताकतजया गाजी कतरयाा कतजनहोन बड़ी ररतम तोड़कर

और तीथम पाटकर आयम धरम कतवधवास दकयाrsquo उनको भी पजन िग थ और lsquoकतवशवास तो रानो कतछनाि का अाग

हो रहा थाrsquo ऐसी िजजाजनक कतसथकतत स िोगो को बाहर कतनकािकर lsquoसार आयामवतम को शदध lsquoिायिrsquo कर

34 दख रारकतविास शराम पषठ १३१

31

ददयाrsquo lsquoिायिrsquo कर ददया गया इसका अथम आयम जाकतत को दफर स िायि करन र था आयम जाकतत क भीतर

कतबगाड़ क चित ही कतनमन जाकततयो का बड़ परान पर पिायन था इस इन िोगो न रोका और इनक परताप

स ही अनक छोट और सथानीय धरम-रतो क भीतर जो lsquoरसिरानीrsquo परभाव घस आय थ उनको दफर स lsquoबड़ी

ररतमrsquo की कतनषठा र िाया जा सका इस परकार कतहनद धरम और वणामशरर क परकतत दफर स िोगो को lsquoिायिrsquo

दकया यह lsquoिायकतिटीrsquo भारतद की रकतडकि वषणवता क जनरत क कतिए भी जररी था तिवार जी जब

आयमसराकतजयो की lsquoकााकततकारीrsquo भकतरका ददखात ह तब आयम सराज िारा आयामवतम को िायि बनान वािी

इस भकतरका की साकतशलषटता पर जयादा बात नही करत भारतद दयानाद क कााकततकारी परयासो र lsquoिायिrsquo

बनान की परदकया उसी वक़त दख रह थ और इसी कारण ररपोटम र दयानाद की आिोचना धयान दन िायक

ह सवारी जी न ldquoजाि को छरी स न काटकर दसर जाि ही स कतजसको काटना चाहा इसी स दोनो आपस

र उिझ गए और इसका पररणार गह कतवचछद उतपनन हआrdquo गह कतवचछद का रतिब कतहनद धरम र गह

कतवचछद जबदक कशवचादर सन क बार र कहा गया दक उनहोन जाि काटकर भकति की उचछकतित िहरो का

पररषकत पथ परकट दकया इस परकार रकतडकि वषणवता की lsquoअनयताrsquo और परररिक भकति क परशसत पथ क

सवीकार का कतनषकषम कतवचार सभा का भी कतनषकषम था धयान दन िायक ह दक कशवचादर की आिोचना उनक

कतचतत कतवकषप क कारण की गयी थी जहाा lsquoईसारसीह आदद उनस कतरित हrsquo य एक दकसर का इिहारी

अनभव था कतजस भारतद अपनी वषणवता स बाहर रखत ह ईशवर न इस ररपोटम पर अपना रत सरकतकषत

रख कतिया और भारतद कतिखत ह ldquoइसको दख कर इस पर कया आजञा हई और व िोग कहाा भज गए यह

जब कर भी वहाा जायग और दफर िौट कर आ सक ग तो पाठक िोगो को बतिावग या आप िोग कछ

ददन पीछ आप ही जानोगrdquo

३ जनरत और वषणवता

ककतववचन सधा ९ राचम १८७२ र भारतद न lsquoPublic Opinion In Indiarsquo नार स अागरजी र

एक िख परकाकतशत दकया िख र उनहोन कहा दक कई सददयो दक दासता क बाद भारतवषमहहादसतान अब

जाकर कतिरटश राषटर क सवोचच कतनयातरण र आया ह दश धीर-धीर सभयता और परबोधन की पकतशचरी दकरणो

क सहार दरन और कशासन क रतय-तलय कतनदरा स जाग रहा ह कतिरटश शासन की परगकततशीि नीकततयो का

परभाव यहाा की बहरपी आबादी पर पड़ रहा ह

ldquoBut in this progressive state national energy and zeal sympathy and

disintiredness are waiting to make both the conqueror and the conquered to act in

32

concert and in harmony and hence we have the broad distinction of white and

black still But in this country many are the blemishes that adhere to us to be

eradicated and many are the shortcomings that are hovering around us to be done

away with before we can have a public opinion here in its true senserdquo35

गोर और काि क बड़ भद को छोड़ कर कतवजता अागरजो और भारतीयो क बीच एक सराजन तो बन गया ह

पर अनदरनी ददककत अभी भी राह बाए खड़ी ह रौका ह दक इस परगकततशीि कतसथकतत का फायदा उठा कर हर

एक सचच जनरत का कतनरामण कर सचच िोकरत क कतनरामण र अादरनी बाधाएा कया थी भारतद न इस

आग सपषट करत हए कतिखा-

ldquoRace antagonism rivalry and mutual misunderstanding are the favourite

occupations of the aristocratic class Want of confidence among all classes of men

are the prevailing characteristic of the nation and above all multifarious castes and

creeds with there numerous forms of religion and local habits and customs which all

combined have kept the progressive policy at a stand still True it is that a

representative Government is a boon to this country and true it is that Sir Bartle

fregravere a man of vast experience and a good statesman has found out that in village

community we can have public opinion but with all his experience he has lost sight

of our national defects ndash defects which we ourselves know and which no foreigner

can catch at a glancerdquo36

भारतद इस बात को िकर कतनकतशचत ह दक िोकरत और परकततकतनकतधरिक सासथाओ क बहतर कतवकास क कतिए

सीध-सीध कतवदशी रॉडि कभी सफि नही हो पायगा ऐसा इसकतिए कयादक हरारी आपसी कतवकतभननताओ

और झगड़ो को कोई बाहरीकतवदशी सतता कभी भी परी तरह सरझ नही सकती lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo नार

35भारतद गराथाविी -6 361

36 वही

33

स भारतद का एक दसरा िख इस अागरजी वाि िख क दो साि बाद अपरि सन १८७४ र हररशचनदर

रगजीन र छपा पकतबिक ओकतपकतनयन कया बिा ह इस साफ़ करत हए भारतद िख क आरमभ र ही कहत

ह ldquoपकतबिक ओकतपकतनयन अथामत सब साधारण िोगो की राय कया वसत ह और इसर दकतना जोर ह और

इसक कतिए कया हो सकता ह यह परशन ठहरा तो इसका साधारण उततर यही ह दक यह वह वसत ह जो

सासार को एक कर सकती ह गागा की धरा दफर कतहरािय पर चढ़ा ि जा सकती ह सययम को पकतशचर उगा

सकती ह और चाह तो ईशवर को भी पकड़ क कठपतिी की भााकतत नचा सकती हrdquo37 यह पकतबिक

ओकतपकतनयन lsquoएक रतrsquo होना ह जस अिग अिग चार पतिी िककतड़यो को एक साथ बााध दन स उस

तोड़ना करठन हो जाता ह उसी तरह एक रत होन स बड़ स बड़ा बरी भी हरारा कछ कतबगाड़ नही सकता

बहत स िोगो का रत एक हो तो वह शकति बन जाती ह हिारो आदरी की बकतदध एक हो जाए तो ldquoऐसा

कौन कार ह जो न हो सक तो यह कतसदधाात हआ दक कतनशचय सब िोगो क रत र बड़ी सारथयम ह इसस यह

कतसदध हआ दक बिो स बड़ा बि एक रत ही हrdquo38

आग भारतद कहत ह दक यह जनरत और उसकी शकति हहादसतान क कतिए कोई नई बात नही ह

पराचीन काि र इसक उदाहरण कतरित ह lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo की इस धारणा को भारतद न इकततहास क

अिग-अिग दौर र बनत और कतबगड़त ददखाया सबस पहि चार वणो की िररत पड़ी सब कार को

सचार रप स चिन क कतिए दसर शबदो र कह तो शरर-कतवभाजन की िररत स इसका जनर हआ

lsquoकतहनदओ न अपन गर क कार र इस वणामशरर धमरम को इसी वासत बनाया कतजस र उन क दकसी कार र

कोई हजम न हो और उनिोगो न सासार क सब कारो र चार कार रखय सरझrsquo धरम कतवदया और किाओ का

कार िड़ाई और राजय परबाध का कार वयापार और धन और सब िोगो की सवा और रजदरी इन चार

कारो की सवयवसथा वािा वणामशरर दरअसि lsquoएक रतrsquo कतहनद वयवसथा या lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo थी पर

कािाातर र इस lsquoएकरतrsquo क भीतर जाकततवयवसथा कठोर हो गयी और िाहमण और शदर दोनो एक दसर क

कतखिाफ हो गए एकरत र कतवचछद पदा होन स कतहनद शकति करिोर हो गयी भारतद क अनसार आपस

का यह झगड़ा बड़ा कतवनाशकारी साकतबत हआ पकतबिक ओकतपकतनयन क कतबना वयाकतभचार और जयादकततयो का

अाधर था आग चि कर जनो क जरान र दफर lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo न जोर पकड़ा बकतलक भारतद जोर

दकर कहत ह दक जनो क रत की उततपकततत ही lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo स हई ldquoकतहनदओ क जब नाश क ददन

जब कतनकट आय तो आपस र परसपर बड़ा कतवरोध खड़ा हआ और उस काि र िाहमणो का बड़ा जोर था

वरन य और वणो पर जयादती करत थ तो वशय और कषकततरयो की रकतत इनस दफर गयी और बाब वािी बड़ी

37गराथाविी- 678

38वही

34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

36

कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

37

उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

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ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 16: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

16

पररवतमनो का सावाहक और सराज र वयकति स िकर साराकतजक जीवन क हर कषतर र गणातरक पररवतमन

िान वािा इसकतिए हो पाया कयोदक वहाा धरमसधार और सराज सधार अिग-अिग नही था दसरी ओर

हहादी आादोिन साापरदाकतयक जाकततवादी और सतरीकतवरोधी रलयो को ही सराज र फ़िान र कारयाब हआ

यह धारा अागरजो को अरजमयाा दकर नौकरी पान वाि रधयवगम की धारा थी

तिवार जी न भारतद की तकमशीिता को बहत कतनमन कोरट का कहा ह भारतद क चररतर र शायद

वह एक lsquoिमपनrsquo की छकतव भी दखत ह पसा उड़ान की वकतत सतरी क साथ वयवहार और उनक साबाध

चाररतरय बि का अभाव आदद आदद क सनदभम र वह कहत ह दक भारतद क चररतर र वह सदढ़ता या

सदाचाररता नही ह जो सराजसधार क कतिए आवशयक होती ह घर र पतनी उनह कभी पसाद नही आई

और वह बाहर रहदफ़िो र वाहवाही िटत रह रदमवादी दकतषट भी उनर कट-कटकर भरी थी भारतद क

इस चररतर की तिना तिवार जी न दो अनय परमपरावादी सधारको स की ह एक बागाि क राधाकाात दव

और दसर पाजाब क शरदधारार फलिौरी यदयकतप य दोनो भी भारतद की तरह परापरा की रकषा र ही सधार

की ओर अगरसर हए थ िदकन इन िोगो का चररतर जयादा परगकततशीि था इन दोनो की तिना र भारतद

का खिनायकतव और भी अकतधक उभरकर सारन आता ह सापकतकषक परगकततशीिता क कतनधामरण क कर र

भारतद अपन सापणम जीवन वयवहार र एक एाटी हीरो की तरह उभरत ह ठीक परान खिनायको की तरह

नही एाटी हीरो क साथ दशमक या पाठक की एक आतरीयता भी जड़ी रहती ह उसका चररतर ददराग र बस

जाता ह िदकन इसक चित यथाथम क ओझि होन का खतरा भी ह तिवार जी इसकतिए कदर कदर पर

उनकी साकतहकततयक छकतव क बरकस उनक राजनकततक- साागठकतनक जीवन वयवहार स बनन वािी छकतव को

सारन ररतमरान करत जात ह

अपनी परी आिोचना र तिवार जी भारतद की रचनाओ र कतरिन वाि भाषायी िदधड़पन और

राद तकमशीिता की चचाम तो करत ह िदकन व भारतद क वयागयो पर चचाम नही करत कया यह रहज

सायोग ह दक भारतद क परहसन lsquoअाधर नगरीrsquo का राचन आज भी परगकततशीि रलयो की परकततषठा ही करता

हभारतद क वयागयो या परहसनो र ऐसा कया ह कतजसर दहराव क साथ नवीन होत चिन की कषरता भी ह

भारतद क िखो या परहसनो या रपको र जो कही-कही वणमन या सावाद िारा वयागय का तीखा बोध पदा

होता ह उसकी शकति उनह कहाा स कतरिती ह वयागय की कषरता सवया र उनकी सकषर कतनररकषण र सरथम

दकतषट का परराण ह परान साराकतजक साबाधो र पररवतमन और तीवर पररवतमन क साथ साथ जो एक परहसन

चि रहा था उसका बोध भारतद को था भदरवगम क भीतर की कतववकवादी धारा का कतवकास भी कतहनद

राषटरवाद की कतवचारधारा र ही हआ परनत lsquoअाधर नगरीrsquo कया कतहनद राषटरवादी कतवचारधारा वािा परहसन ह

या कया यह कवि राषटरवादी कतवचारधारा का वाहक ह lsquoउरराव जान अदाrsquo र उभरकर सारन आन वाि

17

साराकतजक साासककततक साकषोभ या उस वयापक टरजडी क सनदभम र दख तो भारतद क वयागय और परहसनो का

अथम थोड़ा और उभरता ह रकतलिका या राधवी स भारतद क साबाधो र कया उस तरासदी का सराग भी नही

ह वशयावकततत और पतनशीि रइसो का साकट एक दसर स अिग नही था उस सरय की औपनयाकतसक

ककततयो र वशयावकततत का सनदभम अवशय आता ह आग चिकर पररचाद की सरन बनारस र ही lsquoसवासदनrsquo

का सराधान ढाढ रही थी

भारतद क वयागयो पर रारकतविास जी का धयान था यह बात अिग ह दक अकतधकााश रौको पर

इनर वह जातीय चतना खोज कतनकाित ह बीस साि की उमर र भारतद न एक िख lsquoिवी पराणिवीrsquo नार

स कतिखा था रारकतविास जी इसका उलिख करत हए कतिखत ह ldquoगवनमर जनरि कतहनद क कतजस दरबार का

भारतद न वणमन दकया ह वह काशीराज क घर पर हआ था इसकतिए भारतद की सतयकतपरयता और भी

सराहनीय ह वहाा जो सजजन िोगो क नार कतिख रह थ उनका वणमन या दकया ह lsquoनार कतिखन वाि राशी

बदरीनाथ फि-फाि अबा पकतहन पगड़ी सज परान दादर की भााकतत इधर-उधर उछित और शबद करत

दफरत थrsquo िोग दकस तरह एक आनररी रकतजसटरट क lsquoकतसट डौनrsquo lsquoसटड अपrsquo कहन स उठत और बठ जात थ

इसका उनहोन बहत ही नाटकीय वणमन दकया ह आनररी रकतजसटरट का वयवहार हविदार का सा था कतसफम

हाथ र एक िकड़ी की कसर थी िोग कीरती पोशाक पहनकर गए थ ldquoसबक अागो स पसीन की नदी

बहती थी रानो शरीयत को सब lsquoअरघय पादयाrsquo दत थrdquo िोगो की उठा बठी और बहदा कवायद को िकषय

करक कतिखा था ldquoवाह-वाह दबामर कया था lsquoकठपतिी का तराशाrsquo था या बलिरटरो की lsquoकबायदrsquo थी या

बादरो का नाच था या दकसी पाप का फि भगतना था या lsquoफौजदारी की सजाrsquo थीrdquordquo21 काशी की इस सभा

र खद भारतद भी बठ थ इस परकार यह भारतद क वगम का परहसन भी था पतनशीि सासककतत की

आतरािोचना क कतबना यह साभव नही था बात कवि उमर की नही ह ठठ वतमरान र हसतकषप और उस

बदिन का बोध कतजन पतनशीि कतसथकततयो का आतर साकषातकार कर रहा था यह उसक परकतत एक

सवाभाकतवक सवतःसफतम परकततदकया थी यह तारकम क की नही बकतलक किाकार की सवतः सफतमता थी यह बात

सही ह दक भारतद कतवचारो की तारकम कता क रारि र उननीस पड़त थ पर इस करी को उनकी तीकषण

वसतकतनरीकषण दकतषट भर दती थी जीवन कतसथकततयो की कतवडमबना का बोध कतजतना गहरा था बदिन का

परयास उतना ही ऊजामवान था भारतद सवया अपनी भी कहानी कतिख रह थ lsquoपयार हररचाद की कहानीrsquo

कतिख रह थ भारतद क परहसनो र दकसी न दकसी पातर की भकतरका र हर जगह सवया भारतद भी ददख

जात ह अपन वगीय अातरवमरोधो का सवबोध उनक यहाा एकतिगोररकि हो जाता ह इस एकतिगरी र lsquoकतहनद

21 रारकतविास शराम पषठ- ६६

18

भारतrsquo की रधर कलपना थी इसस इनकार नही दकया जा सकता भाव जगत का वषणव परर lsquoकतहनद भारतrsquo

की कलपना स परर र बदिता गया

भारतद की रचनाओ र कतवशवदकतषट की एकता खोजन पर हर परभतवशािी कतवचारधाराओ की

वयवसथा ही कतरिगी जञान और वयावहाररक सारानय बोध क बीच एक सदकय साबाध बनान क कर र ही

उनका सवाभाकतवक आवग कतजन वयावहाररक धाररमक कतवचारधाराओ र आतरकतबकतमबत होता ह व

परभतवशािी कतवचारधाराएा ह इन कतवचारधाराओ का कतनरामण कही बाहर स नही हो रहा था बकतलक

पराचयकतवदयाकतवदो की कलपना क साथ परसपर भागीदारी र बन रहा था इन कलपनाओ को यथाथम रप द

रही थी हपराट पाजी क साथ कतवककतसत होती lsquoबजमआ पकतबिक सफीयरrsquo की दकयाएा भारतद की सवाभाकतवक

सफरतम ततकाि ही एक फ टसी र बदिन िगती ह और दकयातरक होना चाहती ह ऐस ही सरय

पराचयकतवदया क पाकतडतो क िारा जगाय गए कतरथकीय परत भी आकर सर पर सवार हो जात ह पराचयवाद

दकसी परत-कतवदया स कर न था दखना चाकतहए दक भारतद की रचनाओ र कहाा परतो की दकतनया र यथाथम

का हसतकषप होता ह उनकी एकतिगरी कहाा कतसथकततयो क अकततरक को अकतभवयि कर रही ह जस भारतद की

lsquoअाधर नगरीrsquo ऐन हरार वक़त र राजयसतता का रपक बन जाती ह यह रपक राजयसतता र अनतरनमकतहत

हहासा की अकतनवायमता और नयाय क भरर का परहसन भी ह

२ धरम सधार पर कतवचार सभा

िहमो सराज या दयानाद सरसवती को खद भारतद कस दख रह थ इसका पता हर lsquoसवगम र कतवचार

सभा का अकतधवशनrsquo22 नारक एक वयागय रपक स चिता ह सवारी दयानाद सरसवती और कशवचादर सन

जब ररन क बाद सवगम पहाच तो ldquoवहाा एक बर बड़ा आनदोिन हो गयाrdquo रतय क कछ ही सरय पहि कतिखा

गया यह वयागय रपक अपन सरय क धरम सधार आादोिनो क चररतर की वयाखया करता ह सबस पहि

इसका परकाशन किकतत स कतनकिन वािी परकततकतषठत हहादी पकततरका lsquoकतरतर कतविासrsquo (जन १८८५) र हआ था

िहमो सराज और आयम सराज क आनदोिनो को भारतद इस सरय तक आकर एक तटसथ आिोचकीय दकतषट

स दखन का परयास करन िग थ सवगम र एकबारगी पदा हए इस आनदोिन र रोट तौर पर दो खर बन

गए एक इनका परशासक था दसरा हनादक पहिा कतिबरि ह दसरा काजरवरटव इन दोनो खााचो र

अनदफट एक तीसरा दि ह जो वषणव आतराओ का ह इस दि क सासथापक तो कतिबरि थ पर अब य

lsquoरकतडकलस कया रहा रकतडकलस हो गए हrsquo कतनकतशचत रप स इन रहा रकतडकलस आतराओ र हर सवया भारतद

22 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन सा- करिा परसाद परसा- नारवर हसाह पषठ- ८२-८६ नशनि बक टरसट इाकतडया नई ददलिी- २००६

(आग इस िख क उदधरणो को कतबना पाद रटपणणी क ददया गया ह)

19

को भी कतगन सकत ह वयासदव एक ऐस बकतदधजीवी क रप र सारन आत ह जो दकसी का भी पकष िन स

बचत ह पर उनका रान दोनो खरो र ह ldquoकतबचार बढ़ वयासदव को दोनो दि क िोग पकड़-पकड़ कर ि

जात और अपनी अपनी सभा का lsquoचयररनrsquo बनात थ और बचार वयास जी अपन पराचीन अवयवकतसथत

सवभाव और शीि क कारण कतजसकी सभा र जात थ वसी ही विता कर दत थrdquo कतिबरिो की तिना र

का जरवरटव दि जयादा रजबत था कयोदक उनह सवगम क जरीदारो का सहयोग परापत था काजरवरटव दि की

आतराएा साकीणम कटररपाथी आतराएा थी य आतराएा उन परान िरान क ऋकतष रकतनयो की आतराएा ह जो

ldquoयजञ कर करक या तपसया करक अपन-अपन शरीर को सखा-सखाकर और पच-पच कर ररक सवगम गए हrdquo

करमकााड और वरत उपवास आदद को भारतद वही तक सही रानत थ जहाा तक व शरीर को कषट न पहाचाएा

कठोर दह साधना करन वाि इन ऋकतष रकतनयो की आतराएा सधारो क कतखिाफ थी और इनका साथ दन

वाि जरीदारो र lsquoउदार िोगो की बढ़तीrsquo स अपना रान-अकतभरान और बि कतछन जान का डर था

कतिबरि दि भिो की आतराएा या तो सावमजाकतनक जीवन क उचच रलयो या आदशो क सापादन क चित या

पररशवर की भकति स सवगम र गयी थी

सराज सधार और वयकतिक परर रिक भकति- कतिबरि कतवशवदकतषट को भारतद इसी पररपरकषय र दख

रह ह रकतडकि वषणव दि भिो क कतिए वषणव होन रातर स य चीज पहि स ही उपिबध थी भारतद क

कतिए वषणवता सवाभाकतवक रप स कतवशवदकतषट ह पर रकतडकि वषणव इस सवाभाकतवक उदारता को

राजनीकततक रप दन वाि ह वषणव उदारता का और उसक भावावग का राजनीकततकरण करन वाि रहा

रकतडकि इस तरह भारतद क कतिए वषणवता की आधकतनक वयाखया र सराज सधार वयकतिक परर रिक

भकति और राजनीकतत तीनो का lsquoएकाrsquo ह इस एका क रकतडकि परयास क कतिए जनरत या िोकरत का

कतनरामण आवशयक ह भारतद की रकतडकि वषणवता ही lsquoसब उननकतत का रिrsquo ह यह एक िोककतपरय

वयावहाररक कतवचारधारा क रप र आकर गरहण करन वािी वषणवता ह यह रकतडकि वषणवता धरम का

राजनीकततकरण ह

काजरवरटव दिभिो को दवताओ का सरथमन परापत था य दवता ही सवगम क जरीदार थ अपन

अपन तरीक स इन दवताओ न काजरवरटव दि की सथानीय शाखाएा भी खोि िी और वहाा इनक पकष र

lsquoपरकाश सभाएाrsquo होन िगी कतिबरि दि वािो क पकष र कवि इस lsquoकतहनद सवगमrsquo क िोग नही थ ldquoइधर

lsquoकतिबरिrsquo िोगो की सचना परचकतित होन पर रसिरानी-सवगम और जन सवगम तथा दकसतानी सवगम स पगमबर

कतसदध रसीह परभत कतहनद सवगम र उपकतसथत हए और lsquoकतिबरिrsquo सभा र योग दन िग बका ठ र चारो ओर

इसकी धर फि गयीrdquo अिग अिग सवगम कतवकतभनन धाररमक पहचानो की ओर इशारा करता ह बका ठ कतहनदओ

का सवगम ह और यह नया धरम आनदोिन रखयतः कतहनद धरम की एक बड़ी पहचान क भीतर ही पदा हआ ह

20

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग क तीन कतनकतहताथम वसधा डािकतरया न भारतद यग क सनदभम र नोट दकय ह23 पहिा

एक पराक औपकतनवकतशक lsquoकतहनद अथमrsquo जहाा हहादसतान का हर बाहशादा शाकतरि था दसरा परसपर कतभनन

धाररमक रतो और आसथाओ की कतनकट अातरकम या क अथम को वयि करता ह कतजसक आराकतभक साकषय सलतनत

कािीन ऐतहाकतसक वतताातो र कतरित ह यहाा यह शबद lsquoतकम rsquo क सरानाातर उपयोग र आया था और

सारानयतः रसिरानो क बरकतखिाफ उपयोग दकया जाता था आरमभ र यह धाररमक कर साराकतजक-

राजनीकततक अथो र जयादा परयि होता था अागरजी राज क साथ यह दसरा अथम धरम स अकतनवायमतः जड़कर

lsquoकतहनदवादrsquo की कतवचारधारा र बदि गया जमस कतरि आदद क इकततहासो र lsquoकतहनदकािrsquo और lsquoरसिरान

कािrsquo की ऐकततहाकतसक कलपना क साथ कतहनद शबद जड़ गया था भारतीय भी रसिरानो को सारन कर

lsquoकतहनद पीकतड़त गराकतथrsquo क कतिए इस शबद का इसतराि करन िग कतहनद शबद का तीसरा अथम राषटर की

अवधारणा स जड़कर बन रहा था आरथमक राषटरवाद और अागरजी राज की यातना की साझी सरकतत स बनन

वाि इस तीसर अथम का रतिब था- lsquoजो कतहनदसतान र रह वह कतहनदrsquo रारकतविास जी भारतद क यहाा

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग को इनही अथो र ित थ पर वसधा डािकतरया का कहना ह दक यह तीसरा अथम दसर क

वयापक परभाव र था तीनो अथो की अातरकम या क बार र डािकतरया न कतिखा ldquoतीसरा अथम या राषटरवादी

अथम कभी भी अपन धाररमक साकताथो स परी तरह छटकारा नही पा सका इस पद की परयकति उननीसवी

सदी र अकतसथर बनी रही और इसक रखतकतिफ रायनो र आपसी जड़ाव कायर रहा बावजद इसक दकसी

परदतत सनदभम र lsquoकतहनदrsquo क पराथकतरक अथम को कतनधामररत करना साभव ह यदद एक बार यह तय हो जाय दक

इिाकाई धाररमक राषटरीय र स दकस आधार पर यह पद परयोग र आ रहा ह और lsquoअनयrsquo की भकतरका र

दकस रखा जा रहा ह चाह वह अनय जसा दक परानी इिाकाई परयकति र ददखता ह फारसी या तकी हो

या रसिरान (कतजस इस िरान र भी कई बार सरह क हवाि स तकम ही कहा जाता ह) या दफर अाततः

औपकतनवकतशक सवारी िदकन यह बात ददराग र रखना जररी ह दक धाररमक सरदाय को कतनरदमषट करन

वािी दसरी परयकति अतयात परभावी सनदभम-हबाद बनी रहती हrdquo24

इस सनदभम र दख तो कतिबरि दिो क सरथमन र शाकतरि lsquoअनयrsquo कतहनद धरम क सधारवाद क सरथमक

ह और lsquoसधारोrsquo र छपी वकतशवक भावनाओ को सरथमन दन पहाच ह का जरवरटव दिो की lsquoअनयताrsquo यहाा नोट

करन िायक ह इस अनयता र साराती जरीदार और करमकााडी िाहमणवाद का बिाक ह जबदक कतिबरि

दकतषट क आसपास एक lsquoसायि रोचrsquo की कलपना की गयी ह धयान रखना चाकतहए दक भारतद क रकतडकि

वषणव इस lsquoसायि रोचrsquo क बाहर ह उनका lsquoएबसटकतनजरrsquo वषणव होन क चित नही बकतलक रकतडकि या

23 वसधा दिकतरया कतहनद परमपराओ का राषटरीयकरण भारतद हररशचादर और उननीसवी सदी का बनारस अन साजीव करार योगनदर दतत पषठ-

४०-४२ राजकरि पपरबकस नई ददलिी- २०१६

24 वही पषठ- ४२

21

रहा रकतडकि होन क चित था कतनकतशचत रप स सवगम सासद का रपक ह और सवगम का राजा ईशवर

कतनषपरभावी हो गया ह और जनता सवया जनरत क िारा कतनणमय कतसथर करन पर जोर दती ह जनरत क

िारा lsquoसलफ गवनमरटrsquo का परयास सबस पहि वषणव भिो न दकया था और आज क कतिबरलस उसी को

आग बढ़ा रह ह ईशवर क पास दोनो दिो क िोगो न जब अपन अपन ररोररयि तयार कर भज तो ईशवर

न दोनो दिो क डपयटशन को बिाकर कहा ldquoबाबा अब तो तरिोगो की lsquoसलफगवनमरटrsquo ह अब कौन

हरको पछता ह जो कतजसकी जी र आता ह करता ह अब चाह वद कया सासकत का अकषर भी सवपन र भी न

दखा हो पर धरम कतवषय पर वाद करन िगत ह हर तो कवि अदाित या वयवहार या कतसतरयो क शपथ

खान को ही कतरिाय जात ह दकसी को हरारा डर ह कोई भी हरारा सचचा lsquoिायकrsquo ह भत परत ताकतजया

क इतना भी तो हरारा दजाम नही बचा हरको कया कार चाह बका ठ र कोई आवहर जानत ह चारो

िड़को (सनक आदद) न पहि स ही चाि कतबगाड़ दी ह कया हर अपन कतबचार जयकतवजय को दफर राकषस

बनवाव दक दकसी का रोकटोक कर चाह सगन रानो चाह कतनगमन चाह ित रानो चाह अित हर अब न

बोिग तर जानो सवगम जानrdquo

काजरवरटव दिभिो न दयानाद और कशवचादर सन पर कया कया आरोप िगाय यह दख िना

चाकतहए दयानाद को सवगम र सथान नही कतरिना चाकतहए कयोदक १ इसन पराणो की हनादा की २ ररतमपजा

की हनादा की ३ वदो का अथम उलटा-पलटा कर डािा ४ दस कतनयोग करन की कतवकतध कतनकािी ५ दवताओ

का अकतसततव कतरटाना चाहा (दवताओ याकतन जरीदार) ६ इसन धरम कतवपिव दकया और आयामवतम को धरम

बकतहरमख दकया पकतशचरोततर परानत क परकततकतनकतध क रप र lsquoकाशी क कतवशवनाथ जीrsquo न lsquoउदयपर क एकहिाग

जीrsquo पर दयानाद क सरथमन का आरोप िगाया कतवशवनाथ जी काजरवरटव दिो की तरफ स यह आरोप िगा

रह थ परब की अपकषा पकतशचरी इिाको र आयम सराज क परभाव की चचाम क सनदभम र एकहिाग जी का

जवाब धयान दन िायक ह कतवशवनाथ जी न जब एकहिाग जी को कतधककारत हए कतिबरिो क साथ कतरि जान

को कहा तब एकहिाग जी न कहा ldquoभाई हरारा रतिब तरिोग नही सरझ हर उसकी बरी बातो को न

रानत न उसका परचार करत कवि अपन यहाा क जागि की सफाई का कछ ददन उसको ठका ददया बीच

र वह रर गया अब उसका राि रता रठकान रखवा ददया तो उसका बरा दकयाrdquo यह एकहिाग जी

दफ़िहाि सवारी जी क दि क सभापकतत बन ह आकतखर इनहोन अपन यहाा क दकस lsquoजागिrsquo की सफाई का

ठका सवारी जी को ददया था यह जागि छोट-रोट धाररमक समपरदायो और रतो का जागि था एकहिागी

जी और काशी क कतवशवनाथ जी दोनो ही िाहमणीकत शवरत क धाररमक परतीक ह पर जहाा काशी क

कतवशवनाथ शर स ही दयानाद क कतवरोधी थ वही एकहिाग जी रणनीकततक रप स दयानाद क पास गए थ यह

साकीणम कटररपाथ क भीतर का कतववाद था यह बात गौर करन िायक ह दक जगननाथपरी र जब भरव की

22

रौजदगी का कतववाद भारतद क सारन आया था उस सरय उनहोन इस बात का परतयाखयान दकया था दक

भरव की परकततरा अनाददकाि स वहाा ह भारतद न पराण आदद स साकषय दकर यह परराकतणत दकया दक

कषण ही एकरातर उपासय ह तिवार जी न इस घटना का उलिख करत हए कतिखा ह दक ldquoदकसी वयकति न

lsquoतहकीकातपरीrsquo दकताब दकखकर बताया दक वहाा पहि भरो की पजा होती थी वषणवो न उसकी ररतम

उखाड़ फ की थी बाद र पाडो न जगननाथजी (कतवषण) क साथ भरो को दफर स परकततकतषठत दकया यह रारिा

काशी धरमसभा क सारन १८७० र आया भारतद न धरम साबाधी पसतक र lsquoतहकीकातrsquo जस फारसी शबद

की आिोचना करत हए कतवकतभनन धरमगराथो स परराण जटाकर दो बातो पर जोर ददया एक इसका परराण

नही कतरिता ह दक वहाा जगननाथजी क साथ पहि भरो की भी ररतम थी कतजस वषणवो न उखाड़ फ का दो

अगर वह थी भी तो यह उकतचत था या नही- इसपर कतवचार होना चाकतहए भारतद न अपनी वयवसथा दत

हए कतिखा दक भरो कतवषण स बहत छोटा दवता ह इसकतिए यह कतवषण क साथ बठाया नही जा सकता

lsquoदसर भरव कापाकतिको क दवता ह उनका पजन वषणव-सरातम सबको कतनकतषदध हrsquo गौरतिब ह दक भारत

र कतवकतभनन सथानीय धरो क परकतत कतजतन असकतहषण और फा डारटकतिसट आयमसराजी थ उतन ही काशी क

सनातनी भी थrdquo25

सथानीय धरम-रतो क जागि को साफ़ करन र आयमसराकतजयो और काशी क सनातनी पाडो क इस

गठजोड़ स भारतद भी वादकफ थ िदकन आयमसराकतजयो क साथ उदयपर क एकहिाग जी का रोचाम कसा

था इस भी भारतद बखबी सरझ रह थ सथानीय रतो क साथ भारतद का समबनध कसा था इसका पता

उनक छोट-छोट यातरा सासररणो स भी चिता ह lsquoसरय पार की यातराrsquo26 र रहदावि का हाि बयान करत

हए lsquoपराणनाथrsquo क रिहब का भारतद आशचयम क साथ उलिख करत ह भारतद क ही शबदो र ldquoयहाा एक

पराणनाथ का रिहब ह और दस बीस िोग उसक रानन वाि ह य िोग एकादशी तीथम वगरह को नही

रानत और सन सनाय दो तीन शलोक जो याद कर कतिए ह बस उसी पर चर हो lsquoरदीनासया शारदाा शताrsquo

और lsquoगोकतवनदrsquo lsquoगोकिानाद रककशवरrsquo यह शलोक पढ़ क कहत ह दक वद र रकका रदीन का वणमन ह ऐस ही

बहत वाकतहयात बात करत ह और कोई दकतना भी कह कछ सनत नही कहत ह दक गोिोक का नाश ह

और गोिोक ऊपर एक lsquoअखाड रणडिाकारrsquo िोक ह उसर रर कषण ह इनका रिहब एक पराणनाथ नारक

एक कषतरी न पनना र करीब तीन सौ बरस हए चिाया थाrdquo भारतद इस अजीबो गरीब lsquoरिहबrsquo का कषण स

कया साबाध ह यह सोचकर ताजजब र थ इस lsquoरिहबrsquo क गरनथ र भारतद न एक शलोक बलिभाचायम का

दखा तो उनका राथा और घर गया ldquoकि रिहब का हाि हरन नीच कतिखा था उसका अचछी तरह स

25 वीरभारततिवार रससाकशी १९वी सदी का नवजागरण और पकतशचरोततर परानत पषठ- १५२ सारााश परकाशन ददलिी- २००६

26 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन पषठ- १३७-३८

23

हाि दरयाफत दकया तो रािर हआ दक हरार ही रिहब की शाखा ह इनक गराथो र हरन एक शलोक शरी

रहापरभजी की सबोकतधनी की काररका का दखा इसी स हरको सादह हआ दफर हरन बहत खोद खाद कर

पछा तो वह साफ़ रािर हआ दक इसी रत स यह रत कतनकिा ह कयोदक एक बात वह और बोि दक हरारा

रत शरी बलिभाचारज की टीका र कतिखा ह इन िोगो क उपासय शरीकषण ह और एकादशी शािगरार

ररतमपजा तीथम दकसी को नही रानत इनक पकतहि आचायम दवचाद जी थ जो जाकतत क कायथ थ और दसर

पराणनाथ जी जो कचछ क कषतरी (भारटया) थ हरार ही रत की शाखा सही पर कतवकतचतर रत ह वषणव होकर

ररतमपजा का खाडन करन वाि यही िोग सनrdquo वणमन स सपषट ह दक सात और कतनगमण पाथो क साथ वषणव

कतवचारधारा क आदान-परदान का साकतशलषट इकततहास भारतद क कतिए ताजजब की चीज थी पर इन सबक बीच

आकतखर उनहोन इसक वषणव रि का पता िगा कतिया और वषणवता की इस धाररमक कतवचारधारा र उनहोन

ररतमपजा का कतवरोधी होना भी शाकतरि रान कतिया भारतद न ररतमपजा क सरथमन र बड़ बड़ िख कतिख

थ इसकतिए असाभव नही दक कषण क परकतत परररिक भकति क कतिए ररतम की जररत पर उनहोन कछ पछा

जरर होगा िदकन lsquoकोई दकतना भी कछ कह सनत ही नहीrdquo आग चिकर lsquoवषणवता और भारतवषमrsquo र

वह बड़ कतवशवास क साथ घोकतषत करत ह दक ldquoपहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद कतजतन पाथ ह सब

वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और भारतवषम इन पाथो स छाया हआ हrdquo27 तब वह वषणवता और

िोकरतो और रधयकािीन पाथो क भीतर पहि स सदकय एक ऐकततहाकतसक परदकया का सारानयीकरण कर

उसका नार lsquoवषणवrsquo रख रह थ अकारण नही दक उसी िख र वषणव वयापकता को बतान क कतिए

परचकतित lsquoनारोrsquo का साकषय पश दकया गया ह वयकतियो स िकर वरत और उपवासो तक यह परभतवशािी

सारानय बोध की कतवचारधारा थी कतिवदी जी रधयकािीन वषणवता को िोकधरम कहत थ भारतद

उननीसवी सदी क िोकधरो को वषणव कहत ह

काजरवरटव दिो की तरफ स कशवचादर सन पर िगाय गए आरोप थ १ वद पराण सबको कतरटा

डािा २ दकसतान रसिरान सबको कतहनद बनाया ३ खान पीन का कतवचार कछ न बाकी रखा ४ रदय की

तो नदी बहा दी आयम सराकतजयो क ऊपर रखयतः आरोप lsquoआयामवतम को धरम बकतहरमखrsquo करन का ह धरम

बकतहरमख अथामत सनातन धरम स कतवरख उनहोन कवि धरम क भीतर कतवपिव दकया परनत िहमो सराज न तो

lsquoभारतवषम का सतयानाशrsquo कर डािा इनहोन तो पराणो क अिावा वदो को भी कतरटा डािा lsquoआयामवतमrsquo की

जातीय पकतवतरता नषट करक दकसतान रसिरान जस lsquoकतवदशी ततवोrsquo को घर र घसा कतिया कटररपाथी

करमकााकतडयो क कतिए इनक साथ रणनीकततक तौर पर भी रोचाम बनान वािा कोई एकहिाग जी तयार नही

था सनातकतनयो िारा दकया गया यह बारीक भद खद कतिबरि दिभिो क भीतर का भी अातरवमरोध था

27 भारतद वषणवता और भारतवषम वही पषठ-७६

24

कतिबरिो की सभा र भी दो दि हो गए थ एक सवारीजी क सरथमको का दि था और एक कशव

क सरथमको का कतहनद कतिबरिो की आताररक एकता कतिकतवभाकतजत थी दयानाद क सरथमको क अनसार सवारी

जी न कतहनदओ की आतरा को जगाया था उनह सफतम बनाया वरना तो आयामवतम क आिसी और रखम

रोहकतनदरा र ही कतनरगन थ इस तरह रखम और आिसी सारानयजनो को lsquoिाहमणो क फा द स छड़ायाrsquo िाहमणो

की तिना भारतद न lsquoपादररयोrsquo स की ह जो lsquoवयथम परजा का दरवय खान वाि हrsquo आयम सराज न सासथाकत

परोकतहतवाद पर हरिा दकया था जो भारतद क कतिए रितः जनता क पसो पर पिन वािा परजीवी वगम

िगता था और तो और आधकतनक कतवजञान क आग जो lsquoआयोrsquo की नाक कटी जा रही थी उस भी सवारी जी

न बचा कतिया उनहोन वदो र भी रि तार करटी कचहरी आदद ददखाकर कतहनदओ र आतरसमरान पदा

दकया दसरी ओर कशव क सरथमको का कहना था दक ldquoधनय कशव तर साकषात दसर कशव हो तरन बाग

दश की रनषय नदी क उस वग को जो कशचन सरदर र कतरि जान को उचछकतित हो रहा था जञान करम का

कतनरादर करक पररशवर का कतनरमि भकति रागम परचकतित दकयाrdquo lsquoजञान करम का कतनरादरrsquo करक भी lsquoकतनरमि

भकति रागमrsquo का जो परवतमन कशव न दकया उसस ही ईसाई lsquoअनयताrsquo का साथमक परकततरोध साभव हआ lsquoरनषय

नदी का आवगrsquo भावावग ह इसी बात को दसर शबदो र कह तो भाव जगत क सवाभाकतवक वग को भगवत

भकति की शदध lsquoअनयताrsquo की ओर रोड़कर उस कतवदशी ईसाई lsquoअनयताrsquo क रागम पर जान स रोक ददया इस

कायम क कतिए वद पराण समरत lsquoजञान-करमrsquo क रागो का कतनरादर अगर करना पड़ा तो भी वह उकतचत ही था

वषणव भकति क रधयकािीन सवरप की जो वयाखया आग चिकर की गयी उसक आराकतभक कतचनन हर यहाा

दख सकत ह कहना न होगा दक भारतद का अपना अनभव भी यहाा बोि रहा ह

शासतरीय काजरवरटव पाटी र दवताओ क अिावा यजञवलकय जस औपकतनषददक ऋकतष क साथ-साथ

नारायण भटर रघनाद भटराचायम राडन कतरशर जस कतनबाधकारो और टीकाकारो का जरघट भी था इसक साथ

साथ इसिारी सवगम स आय हए कटररपाथी कतशया िोगो का भी सरथमन उनह परापत था इस परकार कटररपाथ का

दवताओ (जरीदारो) िाहमणो (पादररयो) जञानरागी औपकतनषददक ऋकतष रधययगीन कतनबाधकारो और

कतवदशी कतशया िोगो का एक वकतशवक रोचाम बन रहा था दसरी ओर कतिबरि दि र चतनय परभकतत आचायम

दाद नानक कबीर परभकतत भि और जञानी िोग भी शाकतरि थ इसक अिावा काजरवरटव दि क

कतवदरोकतहयो को भी कतिबरिो न अपन यहाा जगह दी य कतवदरोही थ अितवादी (या नववदााती) भाषयकार

पाचदशीकार और कोई कतरसटर िडिा इन दोनो िोगो पर शर र का जरवरटव दि वािो न बहत हरि

दकय परनत अात र इनह कतिबरिो न अपन यहाा जगह द दी धयान रखना चाकतहए दक भारतद अपन सापरदाय

क अनरप अित वदाात या रायावाद क घोर आिोचक थ सन १८७३ र हररशचादर रगजीन क पहि ही अाक

र भारतद न शााकतडलय भकति सतरो का अनवाद lsquoभकति सतर वजयातीrsquo नार स परकाकतशत दकया भकतरका र

25

भारतद कतिखत ह ldquo दखो आज वसात पाचरी ह इसस बहत स िोग आर क रौर वा फिो क गचछ िकर

तरस कतरिन आवग तो र भी यह एक फिो की वजयाती रािा बना कर िाया हा अागीकार करो वजयाती

रािा बनान का यह हत ह दक वनरािा होगी तो होिी क खि र अरझगी और इसक कतसवाय इस वजयाती

स कतनशचय करक जञानाददक को जय करना ह पर पयार बहत साभि कर यह रािा पहरना टट न जाए

कयोदक सत कचचा ह और ककतियाा तािी और कोरि ह इस स कमहिान का भी भय ह जो हो इस वसात

पाचरी को तयोहारी रझ यही दो दक इस सतयानाशी lsquoअहरrsquo िहमवाद lsquo को पणमरप स नाश करक और भी

सब बातो र इस नव-वसात र भारतवषम की सब आपकतततयो का बस अात करो और अपन भिो क कतचतत र

नव पलिव दफर स िहिह करो जो सदा एक रस रहrdquo28 lsquoएकरसrsquo भकति क कतिए जररी ह दक जञानवाद

अहर िहमवाद को जड़ स उखाड़ फ का जाय कषण को अरपमत अपनी वजयाती रािा स भारतद जञानाददक

को जय करना चाहत ह एक ओर यह पकतषटरागी परापरा क lsquoवीर वषणवrsquo भारतद का परर कतनवदन ह दसरी

ओर lsquoनव-वसातrsquo र भारतवषम की सब आपकतततयो को नाश करन की सारथयम रपी lsquoउपहारीrsquo का साकलप भी

ह lsquoभारतद भारतवषम की सब आपकतततयोrsquo को दर करन की राह र एक बड़ी बाधा अित क जञानवाद को

रानत ह भकति का lsquoएकरसrsquo पहि भी इसक परभाव स ररझाता रहा ह भारतद का साकलप सापरदाय क

परान कतवरोधो क बावजद बन रहन वाि इस अितवाद का पणम सफाया करन का ह जबतक यह न कतरटगा

परररिा भकति क lsquoकमहिान का भयrsquo बना रहगा भकति सतरो र उपासना कााड को परर कतसकतदध का हत

बताया गया था पर भारतद दख रह थ दक उपासना कााड का परचार कतवरि हो गया ह इसी परचार क

कतनकतरतत उनहोन इन सतरो का भाषा र अथम परचार दकया था १८७३ र ही हररशचादर रगजीन का एक

समपादकीय कतनकिा कतजसका शीषमक था- lsquoभकति जञानाददक स कयो बड़ी हrsquo इस िख र भी उपासना रागम

की रहतता का परकततपादन दकया गया ह तकम और जञान को करम की शकतदध और उपासन की परर कतसकतदध क

रासत र कवि एक चरण बताया गया ह वसधा डािकतरया न भारतद क आराकतभक साापरदाकतयक परचार

परसार क कायो र कतनगमकतनयो को बाहर रखन का उपकर नोट दकया था29 यहाा कतनगमकतनए कबीर आदद lsquoभि

और जञानीrsquo कतिबरिो क सरथमक ददखाए गए ह वषणव भकति क राषटरीय चररतर र य बाहर नही थ उनकी

एकता का आधार उनक lsquoकतिबरि रिrsquo र ह सावमजकतनक उचच भाव का सापादन और भकति इन दोनो क साथ

अित वदााती या जञानाददक- सनातनी परापरा क कतवदरोकतहयो की जगह भी कतिबरि दि पाकतथयो र थी

कतिबरि वाि ही झगड़ क कतनपटार की अजी पररशवर को दन गए थ पर पररशवर अपनी

परतीकातरक हो गयी कतसथकतत स खजिाय हए थ यह सवोचच अदाित थी पर साथ ही साथ शकतिहीन

28 भारतद गराथाविी खाड- ५ पषठ ११३

29 वसधा डािकतरया पषठ ३४२

26

राषटराधयकष की कलपना भी कतजस कतहनद सवगम क य राषटराधयकष ह वहाा दकसी दकसर की सलफ गवनमरट चनन

की परणािी आ जान स ईशवर की एकाकतधकारी शकतियाा कतछन गयी ह िोग जनरत कतनरामण क िारा सही

और गित की पहचान करन िग थ इसकतिए थोड़ा खजिाय तो रहत ही होग lsquoअब कौन हरको पछता

ह तर जानो सवगम जानrsquo परनत साकट गहरा था यदयकतप कतिबरि िोगो की सभा भी धरधार स जर

रही थी पर काजरवरटव दि पाकतथयो की सरकार र पठ थी दवता सब भी उनक साथ थ इसकतिए पररशवर

क पास जररी नयाय का परशन उठाया गया था नयाय दक इन दो रहापरषो को सवगम र जगह कतरिनी

चाकतहए या नही सराज र इनक नकततक उचच आदशो क अवरलयन का परचार काजरवरटव कर रह ह इस

परचार क कारण जनता अपनी निरो स पहचानन र सकषर नही ह ऐसी कतसथकतत सवगम र पहि नही आई

थी नई कतसथकततयो क नए रानदाड कया होग िाकतहर ह नयाय और नकततकता को एक वकतशवक सवीककतत

चाकतहए इसकतिए पररशवर न इस कतवषय पर कतवचार क कतिए जो ककतरटी चनी वह गौर करन िायक ह इस

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo र ldquoराजा राररोहन राय वयास दव टोडररि कबीर परभकतत कतभनन-कतभनन रत क िोग चन

गए रसिरानी- सवगम स क lsquoइरारrsquo दकसतानी स िथर जनी स पारसनाथ बौदधो स नागाजमन और

अफीका स कतसटोवायो क बाप कोrdquo चना गया कतहनद सवगम स नवजागरण क अगरदत वयासदव जस

बौकतदधकिखक टोडररि जस राजनीकततजञ और धरम-ररमजञ कबीर जस जञानी-भि पराचीनो र कवि वयास

दव ह बाकी दो lsquoरधयकािrsquo क और एक lsquoआधकतनकrsquo काि क वयकति ह उधर यरोपीय नवजागरणधरमसधार

क परणता िथर को भी बिाया गया ह और बौदधो की तरफ स परर कतनषधवादी नागाजमन भी ह पर य

अफीका क कतसटोवायो धरो की अकतसरता क साथ-साथ यह अफ़ीकी सवगम कतनकतशचत रप स अफीका की छकतव

पराचीन आददवासी सासककतत वाि एक lsquoकािrsquo रहादश क रप र गढ़ी गयी थी यह अफ़ीकी सवगम साभवतः

आददवासी धाररमक रानयताओ की ओर इशारा करता ह यह भी धयान दन िायक ह दक राजा राररोहन

राय िथर और कबीर इन तीनो क साथ lsquoनवजागरणrsquo की कोई न कोई पररकलपना ठठ सरकािीन कतवरशो

क क दर र भी ह कई अथो र अकबर िारा आयोकतजत होन वािी lsquoसिह-ए-किrsquo जसी धरम सभाओ की एक

रोहक कलपना भी भारतद को रही होगी टोडररि की उपकतसथकतत अकारण नही ह

अकबर को िकर भारतद की इकततहासदकतषट कसी थी इसकी एक झिक हर १८८४ र छपी उनकी

lsquoबादशाह दपमणrsquo की भकतरका र ददखती ह इस गरनथ र उन िोगो का चररतर-कतचतरण दकया गया था ldquoकतजनहोन

हरिोगो को गिार बनाना आरमभ दकया इसर उन रसत हाकतथयो क छोट-छोट कतचतर ह कतजनहोन भारत क

िहिहात हए करिवन को उजाड़कर-पर स कचिकर कतछनन-कतभनन कर ददया रहमरद रहरद अिाउददीन

अकबर और औरागजब आदद इनर रखय ह पयार भोि कतहनद भाइयो अकबर का नार सनकर आपिोग

चौदकए रत यह ऐसा बकतदधरान शतर था दक उसक बकतदधबि स आजतक आपिोग उसको कतरतर सरझत ह

27

दकनत वह ऐसा ही नही उसकी नीकतत अागरजो की भााकतत गढ़ थी रखम औरागजब उसको सरझा नही नही तो

आज ददन हहादसतान रसिरान होता कतहनद-रसिरान र खाना-पीना बयाह-शादी कभी चि गयी होती

अागरजो को जो बात नही सझी वह इसको सझी थीrdquo30 कतनकतशचत रप lsquoबकतदधरानrsquo दशरन स सीखन को बहत

कछ कतरिता ह अकबर की दीन-ए-इिाही क परयोग स भारतद भी बहत कछ सीख रह थ रधयकािीन

इकततहास क बार र रकतसिर शतर की छकतव का कतनरामण पराचयकतवदयाकतवदो क िारा दकया जा रहा था इकतियट

आदद इकततहासकारो न जो दकतषट कतवककतसत की उसका परभाव बहत गहरा था पर इस इकततहासिखन क साथ

साथ भारतद क कछ दशी सरोत भी थ अिग-अिग रहापरषो की चररताविी कतिखन की पररणा भारतद न

कतजतना अपनी वषणव भकति की परापरा स पाया था उतना ही इसिारी इकततहास िखन की परापरा स भी

lsquoबादशाहदपमणrsquo की भकतरका र भारतद कतिखत ह ldquoरर पररातारह राय कतगरधरिाि साहब जो यवनी कतवदया

क बड़ भारी पाकतडत और काशीसथ ददलिी क शाहजादो क रखय दीवान थ उनकी इचछा स ददलिी क परकतसदध

कतविान सययद अहरद न एक ऐसा चक बनाया था कतजसर तरर स िकर शाह आिार तक सब बादशाहो क

नार आदद कतिख थ उस फारसी गरनथ स बहत सी बात इसर िी गयी ह इस कारण तरर पवम क बादशाहो

का वणमन इतना परा नही ह कतजतना तरर क पीछ ह दफर रर रातारह राय कतखरोधरिाि न बहादर शाह

क काि क आरमभ तक शष वतत सागरह दकयाrdquo31

अरणदव जी अपन एक िख र भारतद क आराकतभक अकबर परर का कतिक दकया ह १८७२-७४ क

आसपास भारतद अकबर को रहान शासक रानत थ जबदक औरागजब को कतहनदओ का दशरन नाबर एक

भारतद न औरागजब की तिना र अकबर की रहानता को परराकतणत करन क कतिए रारदास कछवाह क एक

शलोक को अपना आधार बनाया ह इस शलोक का भावाथम भारतद क शबदो र इस परकार ह ldquoजो सरदर स रर

तक पथवी को पािता ह जो रतय स गउओ की रकषा करता ह कतजसन तीथम और वयापार स कर छड़ा ददए

कतजसन पराण सन जो सयम का नार जपता जो योग धारण करता ह और गागाजि छोड़कर पानी नही

पीता उस जिािददीन की जय अाग वाग कहिाग कतसिहट कततपरा कारत (कारटी) काररप अाध कणामटक

िाट दरकतवड़ रहाराषटर िारका चोि पााडया भोट रारवाड़ उड़ीसा रलि खरासान का दहार जमब काशी ढाका

बिख बदखशाा और काबि को जो शासन करता ह ककतियग की रकतहरा स घटत हए वद गउ कतिज और

धरम की रकषा को सगन शरीर कतजसन धारण दकया ह उस अपररय परष अकबर शाह को हर नरसकार करत

हrdquo32 यही अकबर १८८४ र औरागजब स जयादा शाकततर और बकतदधरान शतर र बदि गया lsquoकािचकrsquo क

कतनकतहताथो र यह फरबदि भारतद पर रकतसिर कतवदशीपन और कतहनद शतरता क समपणम बिॉक बनान की

30 बादशाह दपमण भारतद गराथाविी खाड-६

31 वही

32 httpsamalochanblogspotin201209blog-post_9html

28

रणनीकतत क दबाव क कारण था और lsquoपरावकततrsquo की कतरथकीयता र भी कतहनदओ को lsquoरहारोहनासतरrsquo क सहार

पहि भी वश र दकया गया था यह एक बारीक चाि थी अकबर की इस चाि को अागरज भी नही सरझ

पा रह थ भारतद की यह परकततदकया औपकतनवकतशक इकततहासिखन क दबाव र थी १८७३ र जब भारतद

न कतशवपरसाद की दकताब lsquoइकततहासकततकतररनाशकrsquo क तीसर खाड की आिोचना की थी तो उनक सारन

रकतसिर शासन की बबमरता और अागरजी राज क सशासन का कतशवपरसाद िारा ककतलपत आखयान था १८८४

र समपणम रकतसिर काि अनधकार यग र बदि गया कततकतररनाशक क पहि खाड र बाब कतशवपरसाद न भी

अकबर की रजहबी उदारता और साराकतजक सधारो की बड़ाई की थी इस परकार हर दख सकत ह दक

ऐकततहाकतसक िखन र पकष और कतवपकष की पनरावकततत एक बाद घर र उिझी हई थी इनक सारन रकतसिर

कतवरोध और अागरजी शासन क कतवरोध का एक कतवसागत फर था और िखक उसर अपनी फौरी जररतो क

कतहसाब स कतरतर और दशरन वािा इकततहास कतिखता था इकततहास ठठ राजनीकततक ततकाि क वशीभत था

जो भी हो धाररमक उदारता और सिह-ए-कि का परयोग एक कतशकषापरद परयोग था यह कतवकतभनन

रतो या कतवशवासो क बीच lsquoजनरतrsquo बनान का एक रधयकािीन परयोग था भारतद lsquoजनरतrsquo क परयोग को

इस तरह दखत थ रानो यह lsquoचािrsquo अगर कारयाब हो जाती तो lsquoआज क ददन हहादसतान रसिरान होताrsquo

भारतद क सारन सरसया वही थी बस वह कवि यह चाहत थ दक कतहनदसतान lsquoकतहनदrsquo हो जाय कतहनद

अथामत वषणव हो जाय वषणवता भारतद क कतिए हहादसतान का नया lsquoसिह-ए-किrsquo था इसकतिए कछ

सावमजनीन रलयो की तिाश उनह भी थी कतसिकट ककतरटी क उपरोि रमबर lsquoएकसअफीकतशयोrsquo रमबर थ

रोर क परान हररकिस जस दवता कतजनहोन धरती स साबाध तोड़ ददया ह व िोग तथा उनही क जस

पारकतसयो क lsquoजरदशतजीrsquo को कोरसपोहडाग ऑनररी रमबर बनाया गया य धरम क रप र रतपराय रतो क

परकततकतनकतध थ ककतरटी न जो ररपोटम तयार की उसका ररम भारतद न ददया ह यह ररम उनक रकतडकि वषणव

पकष का रत था कतिबरि दि और काजरवरटव दि क अपन पकषो स इतर यह नरनायक तीसरा पकष वषणवो

की तरफ स सनाया गया था रकतडकि वषणवो की तरफ स भारतद इस धाररमक आनदोिन क भीतर अपना

ही पकष रखत हए इसका ररम कतिख रह थ ldquoहरिोगो की समरकतत र इन दोनो परषो न परभ की रागिरयी

सकतषट का कछ कतवघन नही दकया वराच उसर सख और सातकतत अकतधक हो इसी र पररशरर दकयाrdquo कतहनद सराज

सधार क परयासो का ररम बतात हए सबस पहि धयान सतरी सधारो पर ददया गया ह साराकतजक करीकततयो

की कतशकार रकतहिाओ क परकतत जो दकतषट उभरकर सारन आती ह उसक रि र धरम की रीकतत स यौन

रयामदाओ की अवयवसथा को दफर स रयामददत करन की चषटा ह कतसतरयो क करागम पर जान का पहिा कारण

ह रनराना परष धरमपवमक न पाना यह कतववाह सासथा की कतवककततयो की आिोचना थी जहाा बाि कतववाह

कतवधवा कतववाह आदद की तरफ इशारा ह धयान रखना चाकतहए दक यहाा बरि कतववाह क बदि कतसतरयो िारा

29

lsquoरनराना वरrsquo न चन पान का उलिख ह गभमनाश और बाि हतया क कतखिाफ सधार परयास दसरा

रहतवपणम योगदान ह कतववाह सासथा बीच र भी भाग की जा सकती ह इसकी सवीककतत ह कनया क कतहत र

अातरजातीय कतववाह की सवीककतत ह एक रहतवपणम बात गरओ और पाकतडतो क वयाकतभचार क साबाध र ह

भारतद क सारन पकतषटरागी रहातो और गरओ क वयाकतभचार का अनभव भी इसर शाकतरि ह

१८७४ र ककतववचन सधा र भारतद की एक रटपणणी छपी थी lsquoगर को कसा होना चाकतहएrsquo इसक अिावा

दो वषम पहि lsquoगर और रहातrsquo नार स भी एक रटपणणी कतिखकर वषणव पाडो-परोकतहतो की खिकर

आिोचना की गयी थी तिवार जी न कतिखा ह दक राददरो क भीतर कतसतरयो का यौन शोषण और वयाकतभचार

इतना भीषण था दक दयानाद भारतद क पकतषट सापरदाय को lsquoकषठी सापरदायrsquo कहत थ १८६० क आरमभ र ही

वषणव गोसाइयो क अनाचार और यौन शोषण क कतखिाफ बमबई र एक बड़ा आनदोिन पकतषटरागी

करसनदास रि जी क नततव र हो चका था वषणव बकतनया पषठभकतर स आय करसनदास जी उन नौजवानो

र थ कतजनहोन एकतिफ सटन कॉिज स आधकतनक कतशकषा परापत की थी गोसाइयो और रहाराजो िारा अपन

lsquoसमपरदाय की बह बरटयोrsquo क साथ होन वाि अतयाचार क कतखिाफ उनहोन िख कतिख और समपरदाय क

इकततहास को नए कतसर स सारन रखा पण स आए जदनाथ वजरतन जी रहाराज न करसनदास जी पर

रानहाकतन का रकदरा दायर कर ददया इसी रक़दर स वषणव रहातो की कई सारी बात जनता क सारन

परतयकष हई तिवार जी न इस lsquoरहाराज िाइबि कसrsquo को भारतीय नवजागरण र वषणव गोसाइयो क

दराचार और यौन शोषण क कतखिाफ हआ सबस बड़ा आनदोिन कहा ह भारतद पर इसका बहत परभाव

था यह कस १८६० र हआ था एक दशक बाद जब भारतद सापरदाय क कायो र रत थ उसी सरय कतिख

रह थ ldquoराददर कया होत ह रानो कतसतरयो की खान ह जसी चाकतहए िीकतजय- वराच अचछी सतरी भी वहाा जाकर

कतबगड़ जाती ह आशचयम यह ह दक कतजनको व िोग बटी कहत ह और जो उनक परिोक क रधयसथ ह और

कतजनको वो दीकषा दत ह उन कतसतरयो की ओर व आप ही बरी दकतषट स दखत ह ओर रर पयार कतहनदओ तर

इनक जाि र कब तक फा स रहोग और कया तरको यही सासार स बचावग और इनही क भरोस तरको

भगवान कतरिगाrdquo33

राददरो क धन-ऐशवयम और वयाकतभचार र डब जीवन क जीवात कतचतर हर बनारस क रखाकतचतर lsquoपरर

जोकतगनीrsquo क अिावा lsquoकाशी क छायाकतचतर क दो बर-भि फोटोगराफrsquo र भी कतरित ह यहाा भारतद का वयागय

अपन वषणव सापरदाय की आतरािोचना स सदकय ह lsquoपरर योकतगनीrsquo नाटक र आन वािा चररतर रारचादर

खद भारतद ही थ नाटक का सतरधार कहता ह दक भारतवषम की दीन हीन गकतत क कारण उसका तो

कतवशवास ही ईशवर स उठन िगा ह नाटक क पहि ही दशय र भारतद हर राददर क भीतर कतिए चित ह

33 वसधा डािकतरया िारा उदधत पषठ- ३३७

30

जहाा राददर र कार करन वािा साधारण टहिआ झपरटया हर ददखाई दता ह पजारी बाब अभी तक नीद

स नही जाग ह कयोदक आधी रात तक lsquoबठ क ही-ही-ठी-ठी करा चाह दफर सबर नीद कस खिrsquo कतनकतशचत

रप स यह टहिआ सबह सवर ही राददर र हाकतिर ह िदकन दवता अभी राददर र सोय ह रारचादर

परदशी ह काशी र बाहर स आय ह छकक जी और राखनदास इस रारचादर की आिोचना करत ह इनक

सावादो स पता चिता ह दक बाब रारचादर क यहाा ददन रात नाच गाना हआ करता ह और उनको अपनी

कतवदया का घराड ह दो चार ककतवतत भी बना ित ह पर lsquoककतवतत बनाव स का होव और ककतवतत बनावन कछ

अपन िोगन का कार थोर हय ई भााटन का कार हयrsquo छकक जी कहत ह दक अपन रागम का उनह कछ जञान

तो ह नही बस दो चार बात इधर उधर स सनकर कछ lsquoदकसतानी रतrsquo सीखकर पाकतडत बन दफरत ह

कतनकतशचत रप स य भारतद पर िगन वाि आरोप थ राददर र सवारी धनदास वकतनतादा बभकतकषत पाकतडत

आदद धरम क ठकदार ह इनकी पतनशीि सासककतत को दखकर रारचादर का दःख इन शबदो र वयि होता ह

lsquoहा कया इस नगर की यही दशा रहगी जहाा क िोग ऐस रखम ह वहाा आग दकस बात की वकतदध की

साभावना करrsquo lsquoवददकी हहासा हहासा न भवकततrsquo जस शरआती नाटको र भी करमकााडी परोकतहतवाद की

आिोचना की गयी ह राजा और परोकतहत कतरिकर वहाा जनता का शोषण करत ह जआ रददरा और

रथन की ऐययाश सासककतत क परतीक परोकतहतो का काजरवरटव दि इन परहसनो र रतम होता ह कतचतरगपत यर

स कहत ह ldquoरहाराज य गर िोग इनक चररतर का कछ न पकतछए कवि दमभाथम इनका कततिक रदरा और

ठगन क अथम इनकी पजा कभी भकति स ररतम को दाडवत न दकया होगा पर राददर र जो कतसतरयाा आयी उनको

सवमदा तकत रह रहाराज इनहोन अनको को कताथम दकया ह और इस सरय तो र lsquoशरीरारचनदर जी का

शरीकषण का दास हाrsquo पर जब सतरी सारन आव तो उसस कहग lsquoर रार तर जानकी र कषण तर गोपीrsquo और

कतसतरयाा भी ऐसी रखम दक दफर इन िोगो क पास जाती हrdquo34

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo की ररपोटम र सतरी सधारो क कायो की रहतता बतान क बाद जाकतत वयवसथा पर

इन सधारको का परहार कयो जररी था इस बताया गया ह कठोर जाकतत बनधनो क चित कस हर साि

जाकतत-बाहय होकर जाकतत र वापस आन क दकसी उपाय को न जान lsquoहजारो रनषय आयम पाकति स हर साि

छटत थ उसको इनहोन रोकाrsquo इस परकार इन सधारको न lsquoआयमधरमrsquo क भीतर जो पररवतमन करन चाह

उसस आयो की एकता दफर स बहाि हो गयी इसक अिावा अाधकतवशवासो को इनहोन दर दकया यही नही

बकतलक जहाा िोग lsquoरसिरानी पीर पगमबर औकतिया वीर ताकतजया गाजी कतरयाा कतजनहोन बड़ी ररतम तोड़कर

और तीथम पाटकर आयम धरम कतवधवास दकयाrsquo उनको भी पजन िग थ और lsquoकतवशवास तो रानो कतछनाि का अाग

हो रहा थाrsquo ऐसी िजजाजनक कतसथकतत स िोगो को बाहर कतनकािकर lsquoसार आयामवतम को शदध lsquoिायिrsquo कर

34 दख रारकतविास शराम पषठ १३१

31

ददयाrsquo lsquoिायिrsquo कर ददया गया इसका अथम आयम जाकतत को दफर स िायि करन र था आयम जाकतत क भीतर

कतबगाड़ क चित ही कतनमन जाकततयो का बड़ परान पर पिायन था इस इन िोगो न रोका और इनक परताप

स ही अनक छोट और सथानीय धरम-रतो क भीतर जो lsquoरसिरानीrsquo परभाव घस आय थ उनको दफर स lsquoबड़ी

ररतमrsquo की कतनषठा र िाया जा सका इस परकार कतहनद धरम और वणामशरर क परकतत दफर स िोगो को lsquoिायिrsquo

दकया यह lsquoिायकतिटीrsquo भारतद की रकतडकि वषणवता क जनरत क कतिए भी जररी था तिवार जी जब

आयमसराकतजयो की lsquoकााकततकारीrsquo भकतरका ददखात ह तब आयम सराज िारा आयामवतम को िायि बनान वािी

इस भकतरका की साकतशलषटता पर जयादा बात नही करत भारतद दयानाद क कााकततकारी परयासो र lsquoिायिrsquo

बनान की परदकया उसी वक़त दख रह थ और इसी कारण ररपोटम र दयानाद की आिोचना धयान दन िायक

ह सवारी जी न ldquoजाि को छरी स न काटकर दसर जाि ही स कतजसको काटना चाहा इसी स दोनो आपस

र उिझ गए और इसका पररणार गह कतवचछद उतपनन हआrdquo गह कतवचछद का रतिब कतहनद धरम र गह

कतवचछद जबदक कशवचादर सन क बार र कहा गया दक उनहोन जाि काटकर भकति की उचछकतित िहरो का

पररषकत पथ परकट दकया इस परकार रकतडकि वषणवता की lsquoअनयताrsquo और परररिक भकति क परशसत पथ क

सवीकार का कतनषकषम कतवचार सभा का भी कतनषकषम था धयान दन िायक ह दक कशवचादर की आिोचना उनक

कतचतत कतवकषप क कारण की गयी थी जहाा lsquoईसारसीह आदद उनस कतरित हrsquo य एक दकसर का इिहारी

अनभव था कतजस भारतद अपनी वषणवता स बाहर रखत ह ईशवर न इस ररपोटम पर अपना रत सरकतकषत

रख कतिया और भारतद कतिखत ह ldquoइसको दख कर इस पर कया आजञा हई और व िोग कहाा भज गए यह

जब कर भी वहाा जायग और दफर िौट कर आ सक ग तो पाठक िोगो को बतिावग या आप िोग कछ

ददन पीछ आप ही जानोगrdquo

३ जनरत और वषणवता

ककतववचन सधा ९ राचम १८७२ र भारतद न lsquoPublic Opinion In Indiarsquo नार स अागरजी र

एक िख परकाकतशत दकया िख र उनहोन कहा दक कई सददयो दक दासता क बाद भारतवषमहहादसतान अब

जाकर कतिरटश राषटर क सवोचच कतनयातरण र आया ह दश धीर-धीर सभयता और परबोधन की पकतशचरी दकरणो

क सहार दरन और कशासन क रतय-तलय कतनदरा स जाग रहा ह कतिरटश शासन की परगकततशीि नीकततयो का

परभाव यहाा की बहरपी आबादी पर पड़ रहा ह

ldquoBut in this progressive state national energy and zeal sympathy and

disintiredness are waiting to make both the conqueror and the conquered to act in

32

concert and in harmony and hence we have the broad distinction of white and

black still But in this country many are the blemishes that adhere to us to be

eradicated and many are the shortcomings that are hovering around us to be done

away with before we can have a public opinion here in its true senserdquo35

गोर और काि क बड़ भद को छोड़ कर कतवजता अागरजो और भारतीयो क बीच एक सराजन तो बन गया ह

पर अनदरनी ददककत अभी भी राह बाए खड़ी ह रौका ह दक इस परगकततशीि कतसथकतत का फायदा उठा कर हर

एक सचच जनरत का कतनरामण कर सचच िोकरत क कतनरामण र अादरनी बाधाएा कया थी भारतद न इस

आग सपषट करत हए कतिखा-

ldquoRace antagonism rivalry and mutual misunderstanding are the favourite

occupations of the aristocratic class Want of confidence among all classes of men

are the prevailing characteristic of the nation and above all multifarious castes and

creeds with there numerous forms of religion and local habits and customs which all

combined have kept the progressive policy at a stand still True it is that a

representative Government is a boon to this country and true it is that Sir Bartle

fregravere a man of vast experience and a good statesman has found out that in village

community we can have public opinion but with all his experience he has lost sight

of our national defects ndash defects which we ourselves know and which no foreigner

can catch at a glancerdquo36

भारतद इस बात को िकर कतनकतशचत ह दक िोकरत और परकततकतनकतधरिक सासथाओ क बहतर कतवकास क कतिए

सीध-सीध कतवदशी रॉडि कभी सफि नही हो पायगा ऐसा इसकतिए कयादक हरारी आपसी कतवकतभननताओ

और झगड़ो को कोई बाहरीकतवदशी सतता कभी भी परी तरह सरझ नही सकती lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo नार

35भारतद गराथाविी -6 361

36 वही

33

स भारतद का एक दसरा िख इस अागरजी वाि िख क दो साि बाद अपरि सन १८७४ र हररशचनदर

रगजीन र छपा पकतबिक ओकतपकतनयन कया बिा ह इस साफ़ करत हए भारतद िख क आरमभ र ही कहत

ह ldquoपकतबिक ओकतपकतनयन अथामत सब साधारण िोगो की राय कया वसत ह और इसर दकतना जोर ह और

इसक कतिए कया हो सकता ह यह परशन ठहरा तो इसका साधारण उततर यही ह दक यह वह वसत ह जो

सासार को एक कर सकती ह गागा की धरा दफर कतहरािय पर चढ़ा ि जा सकती ह सययम को पकतशचर उगा

सकती ह और चाह तो ईशवर को भी पकड़ क कठपतिी की भााकतत नचा सकती हrdquo37 यह पकतबिक

ओकतपकतनयन lsquoएक रतrsquo होना ह जस अिग अिग चार पतिी िककतड़यो को एक साथ बााध दन स उस

तोड़ना करठन हो जाता ह उसी तरह एक रत होन स बड़ स बड़ा बरी भी हरारा कछ कतबगाड़ नही सकता

बहत स िोगो का रत एक हो तो वह शकति बन जाती ह हिारो आदरी की बकतदध एक हो जाए तो ldquoऐसा

कौन कार ह जो न हो सक तो यह कतसदधाात हआ दक कतनशचय सब िोगो क रत र बड़ी सारथयम ह इसस यह

कतसदध हआ दक बिो स बड़ा बि एक रत ही हrdquo38

आग भारतद कहत ह दक यह जनरत और उसकी शकति हहादसतान क कतिए कोई नई बात नही ह

पराचीन काि र इसक उदाहरण कतरित ह lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo की इस धारणा को भारतद न इकततहास क

अिग-अिग दौर र बनत और कतबगड़त ददखाया सबस पहि चार वणो की िररत पड़ी सब कार को

सचार रप स चिन क कतिए दसर शबदो र कह तो शरर-कतवभाजन की िररत स इसका जनर हआ

lsquoकतहनदओ न अपन गर क कार र इस वणामशरर धमरम को इसी वासत बनाया कतजस र उन क दकसी कार र

कोई हजम न हो और उनिोगो न सासार क सब कारो र चार कार रखय सरझrsquo धरम कतवदया और किाओ का

कार िड़ाई और राजय परबाध का कार वयापार और धन और सब िोगो की सवा और रजदरी इन चार

कारो की सवयवसथा वािा वणामशरर दरअसि lsquoएक रतrsquo कतहनद वयवसथा या lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo थी पर

कािाातर र इस lsquoएकरतrsquo क भीतर जाकततवयवसथा कठोर हो गयी और िाहमण और शदर दोनो एक दसर क

कतखिाफ हो गए एकरत र कतवचछद पदा होन स कतहनद शकति करिोर हो गयी भारतद क अनसार आपस

का यह झगड़ा बड़ा कतवनाशकारी साकतबत हआ पकतबिक ओकतपकतनयन क कतबना वयाकतभचार और जयादकततयो का

अाधर था आग चि कर जनो क जरान र दफर lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo न जोर पकड़ा बकतलक भारतद जोर

दकर कहत ह दक जनो क रत की उततपकततत ही lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo स हई ldquoकतहनदओ क जब नाश क ददन

जब कतनकट आय तो आपस र परसपर बड़ा कतवरोध खड़ा हआ और उस काि र िाहमणो का बड़ा जोर था

वरन य और वणो पर जयादती करत थ तो वशय और कषकततरयो की रकतत इनस दफर गयी और बाब वािी बड़ी

37गराथाविी- 678

38वही

34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

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कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

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उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

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ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 17: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

17

साराकतजक साासककततक साकषोभ या उस वयापक टरजडी क सनदभम र दख तो भारतद क वयागय और परहसनो का

अथम थोड़ा और उभरता ह रकतलिका या राधवी स भारतद क साबाधो र कया उस तरासदी का सराग भी नही

ह वशयावकततत और पतनशीि रइसो का साकट एक दसर स अिग नही था उस सरय की औपनयाकतसक

ककततयो र वशयावकततत का सनदभम अवशय आता ह आग चिकर पररचाद की सरन बनारस र ही lsquoसवासदनrsquo

का सराधान ढाढ रही थी

भारतद क वयागयो पर रारकतविास जी का धयान था यह बात अिग ह दक अकतधकााश रौको पर

इनर वह जातीय चतना खोज कतनकाित ह बीस साि की उमर र भारतद न एक िख lsquoिवी पराणिवीrsquo नार

स कतिखा था रारकतविास जी इसका उलिख करत हए कतिखत ह ldquoगवनमर जनरि कतहनद क कतजस दरबार का

भारतद न वणमन दकया ह वह काशीराज क घर पर हआ था इसकतिए भारतद की सतयकतपरयता और भी

सराहनीय ह वहाा जो सजजन िोगो क नार कतिख रह थ उनका वणमन या दकया ह lsquoनार कतिखन वाि राशी

बदरीनाथ फि-फाि अबा पकतहन पगड़ी सज परान दादर की भााकतत इधर-उधर उछित और शबद करत

दफरत थrsquo िोग दकस तरह एक आनररी रकतजसटरट क lsquoकतसट डौनrsquo lsquoसटड अपrsquo कहन स उठत और बठ जात थ

इसका उनहोन बहत ही नाटकीय वणमन दकया ह आनररी रकतजसटरट का वयवहार हविदार का सा था कतसफम

हाथ र एक िकड़ी की कसर थी िोग कीरती पोशाक पहनकर गए थ ldquoसबक अागो स पसीन की नदी

बहती थी रानो शरीयत को सब lsquoअरघय पादयाrsquo दत थrdquo िोगो की उठा बठी और बहदा कवायद को िकषय

करक कतिखा था ldquoवाह-वाह दबामर कया था lsquoकठपतिी का तराशाrsquo था या बलिरटरो की lsquoकबायदrsquo थी या

बादरो का नाच था या दकसी पाप का फि भगतना था या lsquoफौजदारी की सजाrsquo थीrdquordquo21 काशी की इस सभा

र खद भारतद भी बठ थ इस परकार यह भारतद क वगम का परहसन भी था पतनशीि सासककतत की

आतरािोचना क कतबना यह साभव नही था बात कवि उमर की नही ह ठठ वतमरान र हसतकषप और उस

बदिन का बोध कतजन पतनशीि कतसथकततयो का आतर साकषातकार कर रहा था यह उसक परकतत एक

सवाभाकतवक सवतःसफतम परकततदकया थी यह तारकम क की नही बकतलक किाकार की सवतः सफतमता थी यह बात

सही ह दक भारतद कतवचारो की तारकम कता क रारि र उननीस पड़त थ पर इस करी को उनकी तीकषण

वसतकतनरीकषण दकतषट भर दती थी जीवन कतसथकततयो की कतवडमबना का बोध कतजतना गहरा था बदिन का

परयास उतना ही ऊजामवान था भारतद सवया अपनी भी कहानी कतिख रह थ lsquoपयार हररचाद की कहानीrsquo

कतिख रह थ भारतद क परहसनो र दकसी न दकसी पातर की भकतरका र हर जगह सवया भारतद भी ददख

जात ह अपन वगीय अातरवमरोधो का सवबोध उनक यहाा एकतिगोररकि हो जाता ह इस एकतिगरी र lsquoकतहनद

21 रारकतविास शराम पषठ- ६६

18

भारतrsquo की रधर कलपना थी इसस इनकार नही दकया जा सकता भाव जगत का वषणव परर lsquoकतहनद भारतrsquo

की कलपना स परर र बदिता गया

भारतद की रचनाओ र कतवशवदकतषट की एकता खोजन पर हर परभतवशािी कतवचारधाराओ की

वयवसथा ही कतरिगी जञान और वयावहाररक सारानय बोध क बीच एक सदकय साबाध बनान क कर र ही

उनका सवाभाकतवक आवग कतजन वयावहाररक धाररमक कतवचारधाराओ र आतरकतबकतमबत होता ह व

परभतवशािी कतवचारधाराएा ह इन कतवचारधाराओ का कतनरामण कही बाहर स नही हो रहा था बकतलक

पराचयकतवदयाकतवदो की कलपना क साथ परसपर भागीदारी र बन रहा था इन कलपनाओ को यथाथम रप द

रही थी हपराट पाजी क साथ कतवककतसत होती lsquoबजमआ पकतबिक सफीयरrsquo की दकयाएा भारतद की सवाभाकतवक

सफरतम ततकाि ही एक फ टसी र बदिन िगती ह और दकयातरक होना चाहती ह ऐस ही सरय

पराचयकतवदया क पाकतडतो क िारा जगाय गए कतरथकीय परत भी आकर सर पर सवार हो जात ह पराचयवाद

दकसी परत-कतवदया स कर न था दखना चाकतहए दक भारतद की रचनाओ र कहाा परतो की दकतनया र यथाथम

का हसतकषप होता ह उनकी एकतिगरी कहाा कतसथकततयो क अकततरक को अकतभवयि कर रही ह जस भारतद की

lsquoअाधर नगरीrsquo ऐन हरार वक़त र राजयसतता का रपक बन जाती ह यह रपक राजयसतता र अनतरनमकतहत

हहासा की अकतनवायमता और नयाय क भरर का परहसन भी ह

२ धरम सधार पर कतवचार सभा

िहमो सराज या दयानाद सरसवती को खद भारतद कस दख रह थ इसका पता हर lsquoसवगम र कतवचार

सभा का अकतधवशनrsquo22 नारक एक वयागय रपक स चिता ह सवारी दयानाद सरसवती और कशवचादर सन

जब ररन क बाद सवगम पहाच तो ldquoवहाा एक बर बड़ा आनदोिन हो गयाrdquo रतय क कछ ही सरय पहि कतिखा

गया यह वयागय रपक अपन सरय क धरम सधार आादोिनो क चररतर की वयाखया करता ह सबस पहि

इसका परकाशन किकतत स कतनकिन वािी परकततकतषठत हहादी पकततरका lsquoकतरतर कतविासrsquo (जन १८८५) र हआ था

िहमो सराज और आयम सराज क आनदोिनो को भारतद इस सरय तक आकर एक तटसथ आिोचकीय दकतषट

स दखन का परयास करन िग थ सवगम र एकबारगी पदा हए इस आनदोिन र रोट तौर पर दो खर बन

गए एक इनका परशासक था दसरा हनादक पहिा कतिबरि ह दसरा काजरवरटव इन दोनो खााचो र

अनदफट एक तीसरा दि ह जो वषणव आतराओ का ह इस दि क सासथापक तो कतिबरि थ पर अब य

lsquoरकतडकलस कया रहा रकतडकलस हो गए हrsquo कतनकतशचत रप स इन रहा रकतडकलस आतराओ र हर सवया भारतद

22 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन सा- करिा परसाद परसा- नारवर हसाह पषठ- ८२-८६ नशनि बक टरसट इाकतडया नई ददलिी- २००६

(आग इस िख क उदधरणो को कतबना पाद रटपणणी क ददया गया ह)

19

को भी कतगन सकत ह वयासदव एक ऐस बकतदधजीवी क रप र सारन आत ह जो दकसी का भी पकष िन स

बचत ह पर उनका रान दोनो खरो र ह ldquoकतबचार बढ़ वयासदव को दोनो दि क िोग पकड़-पकड़ कर ि

जात और अपनी अपनी सभा का lsquoचयररनrsquo बनात थ और बचार वयास जी अपन पराचीन अवयवकतसथत

सवभाव और शीि क कारण कतजसकी सभा र जात थ वसी ही विता कर दत थrdquo कतिबरिो की तिना र

का जरवरटव दि जयादा रजबत था कयोदक उनह सवगम क जरीदारो का सहयोग परापत था काजरवरटव दि की

आतराएा साकीणम कटररपाथी आतराएा थी य आतराएा उन परान िरान क ऋकतष रकतनयो की आतराएा ह जो

ldquoयजञ कर करक या तपसया करक अपन-अपन शरीर को सखा-सखाकर और पच-पच कर ररक सवगम गए हrdquo

करमकााड और वरत उपवास आदद को भारतद वही तक सही रानत थ जहाा तक व शरीर को कषट न पहाचाएा

कठोर दह साधना करन वाि इन ऋकतष रकतनयो की आतराएा सधारो क कतखिाफ थी और इनका साथ दन

वाि जरीदारो र lsquoउदार िोगो की बढ़तीrsquo स अपना रान-अकतभरान और बि कतछन जान का डर था

कतिबरि दि भिो की आतराएा या तो सावमजाकतनक जीवन क उचच रलयो या आदशो क सापादन क चित या

पररशवर की भकति स सवगम र गयी थी

सराज सधार और वयकतिक परर रिक भकति- कतिबरि कतवशवदकतषट को भारतद इसी पररपरकषय र दख

रह ह रकतडकि वषणव दि भिो क कतिए वषणव होन रातर स य चीज पहि स ही उपिबध थी भारतद क

कतिए वषणवता सवाभाकतवक रप स कतवशवदकतषट ह पर रकतडकि वषणव इस सवाभाकतवक उदारता को

राजनीकततक रप दन वाि ह वषणव उदारता का और उसक भावावग का राजनीकततकरण करन वाि रहा

रकतडकि इस तरह भारतद क कतिए वषणवता की आधकतनक वयाखया र सराज सधार वयकतिक परर रिक

भकति और राजनीकतत तीनो का lsquoएकाrsquo ह इस एका क रकतडकि परयास क कतिए जनरत या िोकरत का

कतनरामण आवशयक ह भारतद की रकतडकि वषणवता ही lsquoसब उननकतत का रिrsquo ह यह एक िोककतपरय

वयावहाररक कतवचारधारा क रप र आकर गरहण करन वािी वषणवता ह यह रकतडकि वषणवता धरम का

राजनीकततकरण ह

काजरवरटव दिभिो को दवताओ का सरथमन परापत था य दवता ही सवगम क जरीदार थ अपन

अपन तरीक स इन दवताओ न काजरवरटव दि की सथानीय शाखाएा भी खोि िी और वहाा इनक पकष र

lsquoपरकाश सभाएाrsquo होन िगी कतिबरि दि वािो क पकष र कवि इस lsquoकतहनद सवगमrsquo क िोग नही थ ldquoइधर

lsquoकतिबरिrsquo िोगो की सचना परचकतित होन पर रसिरानी-सवगम और जन सवगम तथा दकसतानी सवगम स पगमबर

कतसदध रसीह परभत कतहनद सवगम र उपकतसथत हए और lsquoकतिबरिrsquo सभा र योग दन िग बका ठ र चारो ओर

इसकी धर फि गयीrdquo अिग अिग सवगम कतवकतभनन धाररमक पहचानो की ओर इशारा करता ह बका ठ कतहनदओ

का सवगम ह और यह नया धरम आनदोिन रखयतः कतहनद धरम की एक बड़ी पहचान क भीतर ही पदा हआ ह

20

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग क तीन कतनकतहताथम वसधा डािकतरया न भारतद यग क सनदभम र नोट दकय ह23 पहिा

एक पराक औपकतनवकतशक lsquoकतहनद अथमrsquo जहाा हहादसतान का हर बाहशादा शाकतरि था दसरा परसपर कतभनन

धाररमक रतो और आसथाओ की कतनकट अातरकम या क अथम को वयि करता ह कतजसक आराकतभक साकषय सलतनत

कािीन ऐतहाकतसक वतताातो र कतरित ह यहाा यह शबद lsquoतकम rsquo क सरानाातर उपयोग र आया था और

सारानयतः रसिरानो क बरकतखिाफ उपयोग दकया जाता था आरमभ र यह धाररमक कर साराकतजक-

राजनीकततक अथो र जयादा परयि होता था अागरजी राज क साथ यह दसरा अथम धरम स अकतनवायमतः जड़कर

lsquoकतहनदवादrsquo की कतवचारधारा र बदि गया जमस कतरि आदद क इकततहासो र lsquoकतहनदकािrsquo और lsquoरसिरान

कािrsquo की ऐकततहाकतसक कलपना क साथ कतहनद शबद जड़ गया था भारतीय भी रसिरानो को सारन कर

lsquoकतहनद पीकतड़त गराकतथrsquo क कतिए इस शबद का इसतराि करन िग कतहनद शबद का तीसरा अथम राषटर की

अवधारणा स जड़कर बन रहा था आरथमक राषटरवाद और अागरजी राज की यातना की साझी सरकतत स बनन

वाि इस तीसर अथम का रतिब था- lsquoजो कतहनदसतान र रह वह कतहनदrsquo रारकतविास जी भारतद क यहाा

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग को इनही अथो र ित थ पर वसधा डािकतरया का कहना ह दक यह तीसरा अथम दसर क

वयापक परभाव र था तीनो अथो की अातरकम या क बार र डािकतरया न कतिखा ldquoतीसरा अथम या राषटरवादी

अथम कभी भी अपन धाररमक साकताथो स परी तरह छटकारा नही पा सका इस पद की परयकति उननीसवी

सदी र अकतसथर बनी रही और इसक रखतकतिफ रायनो र आपसी जड़ाव कायर रहा बावजद इसक दकसी

परदतत सनदभम र lsquoकतहनदrsquo क पराथकतरक अथम को कतनधामररत करना साभव ह यदद एक बार यह तय हो जाय दक

इिाकाई धाररमक राषटरीय र स दकस आधार पर यह पद परयोग र आ रहा ह और lsquoअनयrsquo की भकतरका र

दकस रखा जा रहा ह चाह वह अनय जसा दक परानी इिाकाई परयकति र ददखता ह फारसी या तकी हो

या रसिरान (कतजस इस िरान र भी कई बार सरह क हवाि स तकम ही कहा जाता ह) या दफर अाततः

औपकतनवकतशक सवारी िदकन यह बात ददराग र रखना जररी ह दक धाररमक सरदाय को कतनरदमषट करन

वािी दसरी परयकति अतयात परभावी सनदभम-हबाद बनी रहती हrdquo24

इस सनदभम र दख तो कतिबरि दिो क सरथमन र शाकतरि lsquoअनयrsquo कतहनद धरम क सधारवाद क सरथमक

ह और lsquoसधारोrsquo र छपी वकतशवक भावनाओ को सरथमन दन पहाच ह का जरवरटव दिो की lsquoअनयताrsquo यहाा नोट

करन िायक ह इस अनयता र साराती जरीदार और करमकााडी िाहमणवाद का बिाक ह जबदक कतिबरि

दकतषट क आसपास एक lsquoसायि रोचrsquo की कलपना की गयी ह धयान रखना चाकतहए दक भारतद क रकतडकि

वषणव इस lsquoसायि रोचrsquo क बाहर ह उनका lsquoएबसटकतनजरrsquo वषणव होन क चित नही बकतलक रकतडकि या

23 वसधा दिकतरया कतहनद परमपराओ का राषटरीयकरण भारतद हररशचादर और उननीसवी सदी का बनारस अन साजीव करार योगनदर दतत पषठ-

४०-४२ राजकरि पपरबकस नई ददलिी- २०१६

24 वही पषठ- ४२

21

रहा रकतडकि होन क चित था कतनकतशचत रप स सवगम सासद का रपक ह और सवगम का राजा ईशवर

कतनषपरभावी हो गया ह और जनता सवया जनरत क िारा कतनणमय कतसथर करन पर जोर दती ह जनरत क

िारा lsquoसलफ गवनमरटrsquo का परयास सबस पहि वषणव भिो न दकया था और आज क कतिबरलस उसी को

आग बढ़ा रह ह ईशवर क पास दोनो दिो क िोगो न जब अपन अपन ररोररयि तयार कर भज तो ईशवर

न दोनो दिो क डपयटशन को बिाकर कहा ldquoबाबा अब तो तरिोगो की lsquoसलफगवनमरटrsquo ह अब कौन

हरको पछता ह जो कतजसकी जी र आता ह करता ह अब चाह वद कया सासकत का अकषर भी सवपन र भी न

दखा हो पर धरम कतवषय पर वाद करन िगत ह हर तो कवि अदाित या वयवहार या कतसतरयो क शपथ

खान को ही कतरिाय जात ह दकसी को हरारा डर ह कोई भी हरारा सचचा lsquoिायकrsquo ह भत परत ताकतजया

क इतना भी तो हरारा दजाम नही बचा हरको कया कार चाह बका ठ र कोई आवहर जानत ह चारो

िड़को (सनक आदद) न पहि स ही चाि कतबगाड़ दी ह कया हर अपन कतबचार जयकतवजय को दफर राकषस

बनवाव दक दकसी का रोकटोक कर चाह सगन रानो चाह कतनगमन चाह ित रानो चाह अित हर अब न

बोिग तर जानो सवगम जानrdquo

काजरवरटव दिभिो न दयानाद और कशवचादर सन पर कया कया आरोप िगाय यह दख िना

चाकतहए दयानाद को सवगम र सथान नही कतरिना चाकतहए कयोदक १ इसन पराणो की हनादा की २ ररतमपजा

की हनादा की ३ वदो का अथम उलटा-पलटा कर डािा ४ दस कतनयोग करन की कतवकतध कतनकािी ५ दवताओ

का अकतसततव कतरटाना चाहा (दवताओ याकतन जरीदार) ६ इसन धरम कतवपिव दकया और आयामवतम को धरम

बकतहरमख दकया पकतशचरोततर परानत क परकततकतनकतध क रप र lsquoकाशी क कतवशवनाथ जीrsquo न lsquoउदयपर क एकहिाग

जीrsquo पर दयानाद क सरथमन का आरोप िगाया कतवशवनाथ जी काजरवरटव दिो की तरफ स यह आरोप िगा

रह थ परब की अपकषा पकतशचरी इिाको र आयम सराज क परभाव की चचाम क सनदभम र एकहिाग जी का

जवाब धयान दन िायक ह कतवशवनाथ जी न जब एकहिाग जी को कतधककारत हए कतिबरिो क साथ कतरि जान

को कहा तब एकहिाग जी न कहा ldquoभाई हरारा रतिब तरिोग नही सरझ हर उसकी बरी बातो को न

रानत न उसका परचार करत कवि अपन यहाा क जागि की सफाई का कछ ददन उसको ठका ददया बीच

र वह रर गया अब उसका राि रता रठकान रखवा ददया तो उसका बरा दकयाrdquo यह एकहिाग जी

दफ़िहाि सवारी जी क दि क सभापकतत बन ह आकतखर इनहोन अपन यहाा क दकस lsquoजागिrsquo की सफाई का

ठका सवारी जी को ददया था यह जागि छोट-रोट धाररमक समपरदायो और रतो का जागि था एकहिागी

जी और काशी क कतवशवनाथ जी दोनो ही िाहमणीकत शवरत क धाररमक परतीक ह पर जहाा काशी क

कतवशवनाथ शर स ही दयानाद क कतवरोधी थ वही एकहिाग जी रणनीकततक रप स दयानाद क पास गए थ यह

साकीणम कटररपाथ क भीतर का कतववाद था यह बात गौर करन िायक ह दक जगननाथपरी र जब भरव की

22

रौजदगी का कतववाद भारतद क सारन आया था उस सरय उनहोन इस बात का परतयाखयान दकया था दक

भरव की परकततरा अनाददकाि स वहाा ह भारतद न पराण आदद स साकषय दकर यह परराकतणत दकया दक

कषण ही एकरातर उपासय ह तिवार जी न इस घटना का उलिख करत हए कतिखा ह दक ldquoदकसी वयकति न

lsquoतहकीकातपरीrsquo दकताब दकखकर बताया दक वहाा पहि भरो की पजा होती थी वषणवो न उसकी ररतम

उखाड़ फ की थी बाद र पाडो न जगननाथजी (कतवषण) क साथ भरो को दफर स परकततकतषठत दकया यह रारिा

काशी धरमसभा क सारन १८७० र आया भारतद न धरम साबाधी पसतक र lsquoतहकीकातrsquo जस फारसी शबद

की आिोचना करत हए कतवकतभनन धरमगराथो स परराण जटाकर दो बातो पर जोर ददया एक इसका परराण

नही कतरिता ह दक वहाा जगननाथजी क साथ पहि भरो की भी ररतम थी कतजस वषणवो न उखाड़ फ का दो

अगर वह थी भी तो यह उकतचत था या नही- इसपर कतवचार होना चाकतहए भारतद न अपनी वयवसथा दत

हए कतिखा दक भरो कतवषण स बहत छोटा दवता ह इसकतिए यह कतवषण क साथ बठाया नही जा सकता

lsquoदसर भरव कापाकतिको क दवता ह उनका पजन वषणव-सरातम सबको कतनकतषदध हrsquo गौरतिब ह दक भारत

र कतवकतभनन सथानीय धरो क परकतत कतजतन असकतहषण और फा डारटकतिसट आयमसराजी थ उतन ही काशी क

सनातनी भी थrdquo25

सथानीय धरम-रतो क जागि को साफ़ करन र आयमसराकतजयो और काशी क सनातनी पाडो क इस

गठजोड़ स भारतद भी वादकफ थ िदकन आयमसराकतजयो क साथ उदयपर क एकहिाग जी का रोचाम कसा

था इस भी भारतद बखबी सरझ रह थ सथानीय रतो क साथ भारतद का समबनध कसा था इसका पता

उनक छोट-छोट यातरा सासररणो स भी चिता ह lsquoसरय पार की यातराrsquo26 र रहदावि का हाि बयान करत

हए lsquoपराणनाथrsquo क रिहब का भारतद आशचयम क साथ उलिख करत ह भारतद क ही शबदो र ldquoयहाा एक

पराणनाथ का रिहब ह और दस बीस िोग उसक रानन वाि ह य िोग एकादशी तीथम वगरह को नही

रानत और सन सनाय दो तीन शलोक जो याद कर कतिए ह बस उसी पर चर हो lsquoरदीनासया शारदाा शताrsquo

और lsquoगोकतवनदrsquo lsquoगोकिानाद रककशवरrsquo यह शलोक पढ़ क कहत ह दक वद र रकका रदीन का वणमन ह ऐस ही

बहत वाकतहयात बात करत ह और कोई दकतना भी कह कछ सनत नही कहत ह दक गोिोक का नाश ह

और गोिोक ऊपर एक lsquoअखाड रणडिाकारrsquo िोक ह उसर रर कषण ह इनका रिहब एक पराणनाथ नारक

एक कषतरी न पनना र करीब तीन सौ बरस हए चिाया थाrdquo भारतद इस अजीबो गरीब lsquoरिहबrsquo का कषण स

कया साबाध ह यह सोचकर ताजजब र थ इस lsquoरिहबrsquo क गरनथ र भारतद न एक शलोक बलिभाचायम का

दखा तो उनका राथा और घर गया ldquoकि रिहब का हाि हरन नीच कतिखा था उसका अचछी तरह स

25 वीरभारततिवार रससाकशी १९वी सदी का नवजागरण और पकतशचरोततर परानत पषठ- १५२ सारााश परकाशन ददलिी- २००६

26 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन पषठ- १३७-३८

23

हाि दरयाफत दकया तो रािर हआ दक हरार ही रिहब की शाखा ह इनक गराथो र हरन एक शलोक शरी

रहापरभजी की सबोकतधनी की काररका का दखा इसी स हरको सादह हआ दफर हरन बहत खोद खाद कर

पछा तो वह साफ़ रािर हआ दक इसी रत स यह रत कतनकिा ह कयोदक एक बात वह और बोि दक हरारा

रत शरी बलिभाचारज की टीका र कतिखा ह इन िोगो क उपासय शरीकषण ह और एकादशी शािगरार

ररतमपजा तीथम दकसी को नही रानत इनक पकतहि आचायम दवचाद जी थ जो जाकतत क कायथ थ और दसर

पराणनाथ जी जो कचछ क कषतरी (भारटया) थ हरार ही रत की शाखा सही पर कतवकतचतर रत ह वषणव होकर

ररतमपजा का खाडन करन वाि यही िोग सनrdquo वणमन स सपषट ह दक सात और कतनगमण पाथो क साथ वषणव

कतवचारधारा क आदान-परदान का साकतशलषट इकततहास भारतद क कतिए ताजजब की चीज थी पर इन सबक बीच

आकतखर उनहोन इसक वषणव रि का पता िगा कतिया और वषणवता की इस धाररमक कतवचारधारा र उनहोन

ररतमपजा का कतवरोधी होना भी शाकतरि रान कतिया भारतद न ररतमपजा क सरथमन र बड़ बड़ िख कतिख

थ इसकतिए असाभव नही दक कषण क परकतत परररिक भकति क कतिए ररतम की जररत पर उनहोन कछ पछा

जरर होगा िदकन lsquoकोई दकतना भी कछ कह सनत ही नहीrdquo आग चिकर lsquoवषणवता और भारतवषमrsquo र

वह बड़ कतवशवास क साथ घोकतषत करत ह दक ldquoपहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद कतजतन पाथ ह सब

वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और भारतवषम इन पाथो स छाया हआ हrdquo27 तब वह वषणवता और

िोकरतो और रधयकािीन पाथो क भीतर पहि स सदकय एक ऐकततहाकतसक परदकया का सारानयीकरण कर

उसका नार lsquoवषणवrsquo रख रह थ अकारण नही दक उसी िख र वषणव वयापकता को बतान क कतिए

परचकतित lsquoनारोrsquo का साकषय पश दकया गया ह वयकतियो स िकर वरत और उपवासो तक यह परभतवशािी

सारानय बोध की कतवचारधारा थी कतिवदी जी रधयकािीन वषणवता को िोकधरम कहत थ भारतद

उननीसवी सदी क िोकधरो को वषणव कहत ह

काजरवरटव दिो की तरफ स कशवचादर सन पर िगाय गए आरोप थ १ वद पराण सबको कतरटा

डािा २ दकसतान रसिरान सबको कतहनद बनाया ३ खान पीन का कतवचार कछ न बाकी रखा ४ रदय की

तो नदी बहा दी आयम सराकतजयो क ऊपर रखयतः आरोप lsquoआयामवतम को धरम बकतहरमखrsquo करन का ह धरम

बकतहरमख अथामत सनातन धरम स कतवरख उनहोन कवि धरम क भीतर कतवपिव दकया परनत िहमो सराज न तो

lsquoभारतवषम का सतयानाशrsquo कर डािा इनहोन तो पराणो क अिावा वदो को भी कतरटा डािा lsquoआयामवतमrsquo की

जातीय पकतवतरता नषट करक दकसतान रसिरान जस lsquoकतवदशी ततवोrsquo को घर र घसा कतिया कटररपाथी

करमकााकतडयो क कतिए इनक साथ रणनीकततक तौर पर भी रोचाम बनान वािा कोई एकहिाग जी तयार नही

था सनातकतनयो िारा दकया गया यह बारीक भद खद कतिबरि दिभिो क भीतर का भी अातरवमरोध था

27 भारतद वषणवता और भारतवषम वही पषठ-७६

24

कतिबरिो की सभा र भी दो दि हो गए थ एक सवारीजी क सरथमको का दि था और एक कशव

क सरथमको का कतहनद कतिबरिो की आताररक एकता कतिकतवभाकतजत थी दयानाद क सरथमको क अनसार सवारी

जी न कतहनदओ की आतरा को जगाया था उनह सफतम बनाया वरना तो आयामवतम क आिसी और रखम

रोहकतनदरा र ही कतनरगन थ इस तरह रखम और आिसी सारानयजनो को lsquoिाहमणो क फा द स छड़ायाrsquo िाहमणो

की तिना भारतद न lsquoपादररयोrsquo स की ह जो lsquoवयथम परजा का दरवय खान वाि हrsquo आयम सराज न सासथाकत

परोकतहतवाद पर हरिा दकया था जो भारतद क कतिए रितः जनता क पसो पर पिन वािा परजीवी वगम

िगता था और तो और आधकतनक कतवजञान क आग जो lsquoआयोrsquo की नाक कटी जा रही थी उस भी सवारी जी

न बचा कतिया उनहोन वदो र भी रि तार करटी कचहरी आदद ददखाकर कतहनदओ र आतरसमरान पदा

दकया दसरी ओर कशव क सरथमको का कहना था दक ldquoधनय कशव तर साकषात दसर कशव हो तरन बाग

दश की रनषय नदी क उस वग को जो कशचन सरदर र कतरि जान को उचछकतित हो रहा था जञान करम का

कतनरादर करक पररशवर का कतनरमि भकति रागम परचकतित दकयाrdquo lsquoजञान करम का कतनरादरrsquo करक भी lsquoकतनरमि

भकति रागमrsquo का जो परवतमन कशव न दकया उसस ही ईसाई lsquoअनयताrsquo का साथमक परकततरोध साभव हआ lsquoरनषय

नदी का आवगrsquo भावावग ह इसी बात को दसर शबदो र कह तो भाव जगत क सवाभाकतवक वग को भगवत

भकति की शदध lsquoअनयताrsquo की ओर रोड़कर उस कतवदशी ईसाई lsquoअनयताrsquo क रागम पर जान स रोक ददया इस

कायम क कतिए वद पराण समरत lsquoजञान-करमrsquo क रागो का कतनरादर अगर करना पड़ा तो भी वह उकतचत ही था

वषणव भकति क रधयकािीन सवरप की जो वयाखया आग चिकर की गयी उसक आराकतभक कतचनन हर यहाा

दख सकत ह कहना न होगा दक भारतद का अपना अनभव भी यहाा बोि रहा ह

शासतरीय काजरवरटव पाटी र दवताओ क अिावा यजञवलकय जस औपकतनषददक ऋकतष क साथ-साथ

नारायण भटर रघनाद भटराचायम राडन कतरशर जस कतनबाधकारो और टीकाकारो का जरघट भी था इसक साथ

साथ इसिारी सवगम स आय हए कटररपाथी कतशया िोगो का भी सरथमन उनह परापत था इस परकार कटररपाथ का

दवताओ (जरीदारो) िाहमणो (पादररयो) जञानरागी औपकतनषददक ऋकतष रधययगीन कतनबाधकारो और

कतवदशी कतशया िोगो का एक वकतशवक रोचाम बन रहा था दसरी ओर कतिबरि दि र चतनय परभकतत आचायम

दाद नानक कबीर परभकतत भि और जञानी िोग भी शाकतरि थ इसक अिावा काजरवरटव दि क

कतवदरोकतहयो को भी कतिबरिो न अपन यहाा जगह दी य कतवदरोही थ अितवादी (या नववदााती) भाषयकार

पाचदशीकार और कोई कतरसटर िडिा इन दोनो िोगो पर शर र का जरवरटव दि वािो न बहत हरि

दकय परनत अात र इनह कतिबरिो न अपन यहाा जगह द दी धयान रखना चाकतहए दक भारतद अपन सापरदाय

क अनरप अित वदाात या रायावाद क घोर आिोचक थ सन १८७३ र हररशचादर रगजीन क पहि ही अाक

र भारतद न शााकतडलय भकति सतरो का अनवाद lsquoभकति सतर वजयातीrsquo नार स परकाकतशत दकया भकतरका र

25

भारतद कतिखत ह ldquo दखो आज वसात पाचरी ह इसस बहत स िोग आर क रौर वा फिो क गचछ िकर

तरस कतरिन आवग तो र भी यह एक फिो की वजयाती रािा बना कर िाया हा अागीकार करो वजयाती

रािा बनान का यह हत ह दक वनरािा होगी तो होिी क खि र अरझगी और इसक कतसवाय इस वजयाती

स कतनशचय करक जञानाददक को जय करना ह पर पयार बहत साभि कर यह रािा पहरना टट न जाए

कयोदक सत कचचा ह और ककतियाा तािी और कोरि ह इस स कमहिान का भी भय ह जो हो इस वसात

पाचरी को तयोहारी रझ यही दो दक इस सतयानाशी lsquoअहरrsquo िहमवाद lsquo को पणमरप स नाश करक और भी

सब बातो र इस नव-वसात र भारतवषम की सब आपकतततयो का बस अात करो और अपन भिो क कतचतत र

नव पलिव दफर स िहिह करो जो सदा एक रस रहrdquo28 lsquoएकरसrsquo भकति क कतिए जररी ह दक जञानवाद

अहर िहमवाद को जड़ स उखाड़ फ का जाय कषण को अरपमत अपनी वजयाती रािा स भारतद जञानाददक

को जय करना चाहत ह एक ओर यह पकतषटरागी परापरा क lsquoवीर वषणवrsquo भारतद का परर कतनवदन ह दसरी

ओर lsquoनव-वसातrsquo र भारतवषम की सब आपकतततयो को नाश करन की सारथयम रपी lsquoउपहारीrsquo का साकलप भी

ह lsquoभारतद भारतवषम की सब आपकतततयोrsquo को दर करन की राह र एक बड़ी बाधा अित क जञानवाद को

रानत ह भकति का lsquoएकरसrsquo पहि भी इसक परभाव स ररझाता रहा ह भारतद का साकलप सापरदाय क

परान कतवरोधो क बावजद बन रहन वाि इस अितवाद का पणम सफाया करन का ह जबतक यह न कतरटगा

परररिा भकति क lsquoकमहिान का भयrsquo बना रहगा भकति सतरो र उपासना कााड को परर कतसकतदध का हत

बताया गया था पर भारतद दख रह थ दक उपासना कााड का परचार कतवरि हो गया ह इसी परचार क

कतनकतरतत उनहोन इन सतरो का भाषा र अथम परचार दकया था १८७३ र ही हररशचादर रगजीन का एक

समपादकीय कतनकिा कतजसका शीषमक था- lsquoभकति जञानाददक स कयो बड़ी हrsquo इस िख र भी उपासना रागम

की रहतता का परकततपादन दकया गया ह तकम और जञान को करम की शकतदध और उपासन की परर कतसकतदध क

रासत र कवि एक चरण बताया गया ह वसधा डािकतरया न भारतद क आराकतभक साापरदाकतयक परचार

परसार क कायो र कतनगमकतनयो को बाहर रखन का उपकर नोट दकया था29 यहाा कतनगमकतनए कबीर आदद lsquoभि

और जञानीrsquo कतिबरिो क सरथमक ददखाए गए ह वषणव भकति क राषटरीय चररतर र य बाहर नही थ उनकी

एकता का आधार उनक lsquoकतिबरि रिrsquo र ह सावमजकतनक उचच भाव का सापादन और भकति इन दोनो क साथ

अित वदााती या जञानाददक- सनातनी परापरा क कतवदरोकतहयो की जगह भी कतिबरि दि पाकतथयो र थी

कतिबरि वाि ही झगड़ क कतनपटार की अजी पररशवर को दन गए थ पर पररशवर अपनी

परतीकातरक हो गयी कतसथकतत स खजिाय हए थ यह सवोचच अदाित थी पर साथ ही साथ शकतिहीन

28 भारतद गराथाविी खाड- ५ पषठ ११३

29 वसधा डािकतरया पषठ ३४२

26

राषटराधयकष की कलपना भी कतजस कतहनद सवगम क य राषटराधयकष ह वहाा दकसी दकसर की सलफ गवनमरट चनन

की परणािी आ जान स ईशवर की एकाकतधकारी शकतियाा कतछन गयी ह िोग जनरत कतनरामण क िारा सही

और गित की पहचान करन िग थ इसकतिए थोड़ा खजिाय तो रहत ही होग lsquoअब कौन हरको पछता

ह तर जानो सवगम जानrsquo परनत साकट गहरा था यदयकतप कतिबरि िोगो की सभा भी धरधार स जर

रही थी पर काजरवरटव दि पाकतथयो की सरकार र पठ थी दवता सब भी उनक साथ थ इसकतिए पररशवर

क पास जररी नयाय का परशन उठाया गया था नयाय दक इन दो रहापरषो को सवगम र जगह कतरिनी

चाकतहए या नही सराज र इनक नकततक उचच आदशो क अवरलयन का परचार काजरवरटव कर रह ह इस

परचार क कारण जनता अपनी निरो स पहचानन र सकषर नही ह ऐसी कतसथकतत सवगम र पहि नही आई

थी नई कतसथकततयो क नए रानदाड कया होग िाकतहर ह नयाय और नकततकता को एक वकतशवक सवीककतत

चाकतहए इसकतिए पररशवर न इस कतवषय पर कतवचार क कतिए जो ककतरटी चनी वह गौर करन िायक ह इस

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo र ldquoराजा राररोहन राय वयास दव टोडररि कबीर परभकतत कतभनन-कतभनन रत क िोग चन

गए रसिरानी- सवगम स क lsquoइरारrsquo दकसतानी स िथर जनी स पारसनाथ बौदधो स नागाजमन और

अफीका स कतसटोवायो क बाप कोrdquo चना गया कतहनद सवगम स नवजागरण क अगरदत वयासदव जस

बौकतदधकिखक टोडररि जस राजनीकततजञ और धरम-ररमजञ कबीर जस जञानी-भि पराचीनो र कवि वयास

दव ह बाकी दो lsquoरधयकािrsquo क और एक lsquoआधकतनकrsquo काि क वयकति ह उधर यरोपीय नवजागरणधरमसधार

क परणता िथर को भी बिाया गया ह और बौदधो की तरफ स परर कतनषधवादी नागाजमन भी ह पर य

अफीका क कतसटोवायो धरो की अकतसरता क साथ-साथ यह अफ़ीकी सवगम कतनकतशचत रप स अफीका की छकतव

पराचीन आददवासी सासककतत वाि एक lsquoकािrsquo रहादश क रप र गढ़ी गयी थी यह अफ़ीकी सवगम साभवतः

आददवासी धाररमक रानयताओ की ओर इशारा करता ह यह भी धयान दन िायक ह दक राजा राररोहन

राय िथर और कबीर इन तीनो क साथ lsquoनवजागरणrsquo की कोई न कोई पररकलपना ठठ सरकािीन कतवरशो

क क दर र भी ह कई अथो र अकबर िारा आयोकतजत होन वािी lsquoसिह-ए-किrsquo जसी धरम सभाओ की एक

रोहक कलपना भी भारतद को रही होगी टोडररि की उपकतसथकतत अकारण नही ह

अकबर को िकर भारतद की इकततहासदकतषट कसी थी इसकी एक झिक हर १८८४ र छपी उनकी

lsquoबादशाह दपमणrsquo की भकतरका र ददखती ह इस गरनथ र उन िोगो का चररतर-कतचतरण दकया गया था ldquoकतजनहोन

हरिोगो को गिार बनाना आरमभ दकया इसर उन रसत हाकतथयो क छोट-छोट कतचतर ह कतजनहोन भारत क

िहिहात हए करिवन को उजाड़कर-पर स कचिकर कतछनन-कतभनन कर ददया रहमरद रहरद अिाउददीन

अकबर और औरागजब आदद इनर रखय ह पयार भोि कतहनद भाइयो अकबर का नार सनकर आपिोग

चौदकए रत यह ऐसा बकतदधरान शतर था दक उसक बकतदधबि स आजतक आपिोग उसको कतरतर सरझत ह

27

दकनत वह ऐसा ही नही उसकी नीकतत अागरजो की भााकतत गढ़ थी रखम औरागजब उसको सरझा नही नही तो

आज ददन हहादसतान रसिरान होता कतहनद-रसिरान र खाना-पीना बयाह-शादी कभी चि गयी होती

अागरजो को जो बात नही सझी वह इसको सझी थीrdquo30 कतनकतशचत रप lsquoबकतदधरानrsquo दशरन स सीखन को बहत

कछ कतरिता ह अकबर की दीन-ए-इिाही क परयोग स भारतद भी बहत कछ सीख रह थ रधयकािीन

इकततहास क बार र रकतसिर शतर की छकतव का कतनरामण पराचयकतवदयाकतवदो क िारा दकया जा रहा था इकतियट

आदद इकततहासकारो न जो दकतषट कतवककतसत की उसका परभाव बहत गहरा था पर इस इकततहासिखन क साथ

साथ भारतद क कछ दशी सरोत भी थ अिग-अिग रहापरषो की चररताविी कतिखन की पररणा भारतद न

कतजतना अपनी वषणव भकति की परापरा स पाया था उतना ही इसिारी इकततहास िखन की परापरा स भी

lsquoबादशाहदपमणrsquo की भकतरका र भारतद कतिखत ह ldquoरर पररातारह राय कतगरधरिाि साहब जो यवनी कतवदया

क बड़ भारी पाकतडत और काशीसथ ददलिी क शाहजादो क रखय दीवान थ उनकी इचछा स ददलिी क परकतसदध

कतविान सययद अहरद न एक ऐसा चक बनाया था कतजसर तरर स िकर शाह आिार तक सब बादशाहो क

नार आदद कतिख थ उस फारसी गरनथ स बहत सी बात इसर िी गयी ह इस कारण तरर पवम क बादशाहो

का वणमन इतना परा नही ह कतजतना तरर क पीछ ह दफर रर रातारह राय कतखरोधरिाि न बहादर शाह

क काि क आरमभ तक शष वतत सागरह दकयाrdquo31

अरणदव जी अपन एक िख र भारतद क आराकतभक अकबर परर का कतिक दकया ह १८७२-७४ क

आसपास भारतद अकबर को रहान शासक रानत थ जबदक औरागजब को कतहनदओ का दशरन नाबर एक

भारतद न औरागजब की तिना र अकबर की रहानता को परराकतणत करन क कतिए रारदास कछवाह क एक

शलोक को अपना आधार बनाया ह इस शलोक का भावाथम भारतद क शबदो र इस परकार ह ldquoजो सरदर स रर

तक पथवी को पािता ह जो रतय स गउओ की रकषा करता ह कतजसन तीथम और वयापार स कर छड़ा ददए

कतजसन पराण सन जो सयम का नार जपता जो योग धारण करता ह और गागाजि छोड़कर पानी नही

पीता उस जिािददीन की जय अाग वाग कहिाग कतसिहट कततपरा कारत (कारटी) काररप अाध कणामटक

िाट दरकतवड़ रहाराषटर िारका चोि पााडया भोट रारवाड़ उड़ीसा रलि खरासान का दहार जमब काशी ढाका

बिख बदखशाा और काबि को जो शासन करता ह ककतियग की रकतहरा स घटत हए वद गउ कतिज और

धरम की रकषा को सगन शरीर कतजसन धारण दकया ह उस अपररय परष अकबर शाह को हर नरसकार करत

हrdquo32 यही अकबर १८८४ र औरागजब स जयादा शाकततर और बकतदधरान शतर र बदि गया lsquoकािचकrsquo क

कतनकतहताथो र यह फरबदि भारतद पर रकतसिर कतवदशीपन और कतहनद शतरता क समपणम बिॉक बनान की

30 बादशाह दपमण भारतद गराथाविी खाड-६

31 वही

32 httpsamalochanblogspotin201209blog-post_9html

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रणनीकतत क दबाव क कारण था और lsquoपरावकततrsquo की कतरथकीयता र भी कतहनदओ को lsquoरहारोहनासतरrsquo क सहार

पहि भी वश र दकया गया था यह एक बारीक चाि थी अकबर की इस चाि को अागरज भी नही सरझ

पा रह थ भारतद की यह परकततदकया औपकतनवकतशक इकततहासिखन क दबाव र थी १८७३ र जब भारतद

न कतशवपरसाद की दकताब lsquoइकततहासकततकतररनाशकrsquo क तीसर खाड की आिोचना की थी तो उनक सारन

रकतसिर शासन की बबमरता और अागरजी राज क सशासन का कतशवपरसाद िारा ककतलपत आखयान था १८८४

र समपणम रकतसिर काि अनधकार यग र बदि गया कततकतररनाशक क पहि खाड र बाब कतशवपरसाद न भी

अकबर की रजहबी उदारता और साराकतजक सधारो की बड़ाई की थी इस परकार हर दख सकत ह दक

ऐकततहाकतसक िखन र पकष और कतवपकष की पनरावकततत एक बाद घर र उिझी हई थी इनक सारन रकतसिर

कतवरोध और अागरजी शासन क कतवरोध का एक कतवसागत फर था और िखक उसर अपनी फौरी जररतो क

कतहसाब स कतरतर और दशरन वािा इकततहास कतिखता था इकततहास ठठ राजनीकततक ततकाि क वशीभत था

जो भी हो धाररमक उदारता और सिह-ए-कि का परयोग एक कतशकषापरद परयोग था यह कतवकतभनन

रतो या कतवशवासो क बीच lsquoजनरतrsquo बनान का एक रधयकािीन परयोग था भारतद lsquoजनरतrsquo क परयोग को

इस तरह दखत थ रानो यह lsquoचािrsquo अगर कारयाब हो जाती तो lsquoआज क ददन हहादसतान रसिरान होताrsquo

भारतद क सारन सरसया वही थी बस वह कवि यह चाहत थ दक कतहनदसतान lsquoकतहनदrsquo हो जाय कतहनद

अथामत वषणव हो जाय वषणवता भारतद क कतिए हहादसतान का नया lsquoसिह-ए-किrsquo था इसकतिए कछ

सावमजनीन रलयो की तिाश उनह भी थी कतसिकट ककतरटी क उपरोि रमबर lsquoएकसअफीकतशयोrsquo रमबर थ

रोर क परान हररकिस जस दवता कतजनहोन धरती स साबाध तोड़ ददया ह व िोग तथा उनही क जस

पारकतसयो क lsquoजरदशतजीrsquo को कोरसपोहडाग ऑनररी रमबर बनाया गया य धरम क रप र रतपराय रतो क

परकततकतनकतध थ ककतरटी न जो ररपोटम तयार की उसका ररम भारतद न ददया ह यह ररम उनक रकतडकि वषणव

पकष का रत था कतिबरि दि और काजरवरटव दि क अपन पकषो स इतर यह नरनायक तीसरा पकष वषणवो

की तरफ स सनाया गया था रकतडकि वषणवो की तरफ स भारतद इस धाररमक आनदोिन क भीतर अपना

ही पकष रखत हए इसका ररम कतिख रह थ ldquoहरिोगो की समरकतत र इन दोनो परषो न परभ की रागिरयी

सकतषट का कछ कतवघन नही दकया वराच उसर सख और सातकतत अकतधक हो इसी र पररशरर दकयाrdquo कतहनद सराज

सधार क परयासो का ररम बतात हए सबस पहि धयान सतरी सधारो पर ददया गया ह साराकतजक करीकततयो

की कतशकार रकतहिाओ क परकतत जो दकतषट उभरकर सारन आती ह उसक रि र धरम की रीकतत स यौन

रयामदाओ की अवयवसथा को दफर स रयामददत करन की चषटा ह कतसतरयो क करागम पर जान का पहिा कारण

ह रनराना परष धरमपवमक न पाना यह कतववाह सासथा की कतवककततयो की आिोचना थी जहाा बाि कतववाह

कतवधवा कतववाह आदद की तरफ इशारा ह धयान रखना चाकतहए दक यहाा बरि कतववाह क बदि कतसतरयो िारा

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lsquoरनराना वरrsquo न चन पान का उलिख ह गभमनाश और बाि हतया क कतखिाफ सधार परयास दसरा

रहतवपणम योगदान ह कतववाह सासथा बीच र भी भाग की जा सकती ह इसकी सवीककतत ह कनया क कतहत र

अातरजातीय कतववाह की सवीककतत ह एक रहतवपणम बात गरओ और पाकतडतो क वयाकतभचार क साबाध र ह

भारतद क सारन पकतषटरागी रहातो और गरओ क वयाकतभचार का अनभव भी इसर शाकतरि ह

१८७४ र ककतववचन सधा र भारतद की एक रटपणणी छपी थी lsquoगर को कसा होना चाकतहएrsquo इसक अिावा

दो वषम पहि lsquoगर और रहातrsquo नार स भी एक रटपणणी कतिखकर वषणव पाडो-परोकतहतो की खिकर

आिोचना की गयी थी तिवार जी न कतिखा ह दक राददरो क भीतर कतसतरयो का यौन शोषण और वयाकतभचार

इतना भीषण था दक दयानाद भारतद क पकतषट सापरदाय को lsquoकषठी सापरदायrsquo कहत थ १८६० क आरमभ र ही

वषणव गोसाइयो क अनाचार और यौन शोषण क कतखिाफ बमबई र एक बड़ा आनदोिन पकतषटरागी

करसनदास रि जी क नततव र हो चका था वषणव बकतनया पषठभकतर स आय करसनदास जी उन नौजवानो

र थ कतजनहोन एकतिफ सटन कॉिज स आधकतनक कतशकषा परापत की थी गोसाइयो और रहाराजो िारा अपन

lsquoसमपरदाय की बह बरटयोrsquo क साथ होन वाि अतयाचार क कतखिाफ उनहोन िख कतिख और समपरदाय क

इकततहास को नए कतसर स सारन रखा पण स आए जदनाथ वजरतन जी रहाराज न करसनदास जी पर

रानहाकतन का रकदरा दायर कर ददया इसी रक़दर स वषणव रहातो की कई सारी बात जनता क सारन

परतयकष हई तिवार जी न इस lsquoरहाराज िाइबि कसrsquo को भारतीय नवजागरण र वषणव गोसाइयो क

दराचार और यौन शोषण क कतखिाफ हआ सबस बड़ा आनदोिन कहा ह भारतद पर इसका बहत परभाव

था यह कस १८६० र हआ था एक दशक बाद जब भारतद सापरदाय क कायो र रत थ उसी सरय कतिख

रह थ ldquoराददर कया होत ह रानो कतसतरयो की खान ह जसी चाकतहए िीकतजय- वराच अचछी सतरी भी वहाा जाकर

कतबगड़ जाती ह आशचयम यह ह दक कतजनको व िोग बटी कहत ह और जो उनक परिोक क रधयसथ ह और

कतजनको वो दीकषा दत ह उन कतसतरयो की ओर व आप ही बरी दकतषट स दखत ह ओर रर पयार कतहनदओ तर

इनक जाि र कब तक फा स रहोग और कया तरको यही सासार स बचावग और इनही क भरोस तरको

भगवान कतरिगाrdquo33

राददरो क धन-ऐशवयम और वयाकतभचार र डब जीवन क जीवात कतचतर हर बनारस क रखाकतचतर lsquoपरर

जोकतगनीrsquo क अिावा lsquoकाशी क छायाकतचतर क दो बर-भि फोटोगराफrsquo र भी कतरित ह यहाा भारतद का वयागय

अपन वषणव सापरदाय की आतरािोचना स सदकय ह lsquoपरर योकतगनीrsquo नाटक र आन वािा चररतर रारचादर

खद भारतद ही थ नाटक का सतरधार कहता ह दक भारतवषम की दीन हीन गकतत क कारण उसका तो

कतवशवास ही ईशवर स उठन िगा ह नाटक क पहि ही दशय र भारतद हर राददर क भीतर कतिए चित ह

33 वसधा डािकतरया िारा उदधत पषठ- ३३७

30

जहाा राददर र कार करन वािा साधारण टहिआ झपरटया हर ददखाई दता ह पजारी बाब अभी तक नीद

स नही जाग ह कयोदक आधी रात तक lsquoबठ क ही-ही-ठी-ठी करा चाह दफर सबर नीद कस खिrsquo कतनकतशचत

रप स यह टहिआ सबह सवर ही राददर र हाकतिर ह िदकन दवता अभी राददर र सोय ह रारचादर

परदशी ह काशी र बाहर स आय ह छकक जी और राखनदास इस रारचादर की आिोचना करत ह इनक

सावादो स पता चिता ह दक बाब रारचादर क यहाा ददन रात नाच गाना हआ करता ह और उनको अपनी

कतवदया का घराड ह दो चार ककतवतत भी बना ित ह पर lsquoककतवतत बनाव स का होव और ककतवतत बनावन कछ

अपन िोगन का कार थोर हय ई भााटन का कार हयrsquo छकक जी कहत ह दक अपन रागम का उनह कछ जञान

तो ह नही बस दो चार बात इधर उधर स सनकर कछ lsquoदकसतानी रतrsquo सीखकर पाकतडत बन दफरत ह

कतनकतशचत रप स य भारतद पर िगन वाि आरोप थ राददर र सवारी धनदास वकतनतादा बभकतकषत पाकतडत

आदद धरम क ठकदार ह इनकी पतनशीि सासककतत को दखकर रारचादर का दःख इन शबदो र वयि होता ह

lsquoहा कया इस नगर की यही दशा रहगी जहाा क िोग ऐस रखम ह वहाा आग दकस बात की वकतदध की

साभावना करrsquo lsquoवददकी हहासा हहासा न भवकततrsquo जस शरआती नाटको र भी करमकााडी परोकतहतवाद की

आिोचना की गयी ह राजा और परोकतहत कतरिकर वहाा जनता का शोषण करत ह जआ रददरा और

रथन की ऐययाश सासककतत क परतीक परोकतहतो का काजरवरटव दि इन परहसनो र रतम होता ह कतचतरगपत यर

स कहत ह ldquoरहाराज य गर िोग इनक चररतर का कछ न पकतछए कवि दमभाथम इनका कततिक रदरा और

ठगन क अथम इनकी पजा कभी भकति स ररतम को दाडवत न दकया होगा पर राददर र जो कतसतरयाा आयी उनको

सवमदा तकत रह रहाराज इनहोन अनको को कताथम दकया ह और इस सरय तो र lsquoशरीरारचनदर जी का

शरीकषण का दास हाrsquo पर जब सतरी सारन आव तो उसस कहग lsquoर रार तर जानकी र कषण तर गोपीrsquo और

कतसतरयाा भी ऐसी रखम दक दफर इन िोगो क पास जाती हrdquo34

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo की ररपोटम र सतरी सधारो क कायो की रहतता बतान क बाद जाकतत वयवसथा पर

इन सधारको का परहार कयो जररी था इस बताया गया ह कठोर जाकतत बनधनो क चित कस हर साि

जाकतत-बाहय होकर जाकतत र वापस आन क दकसी उपाय को न जान lsquoहजारो रनषय आयम पाकति स हर साि

छटत थ उसको इनहोन रोकाrsquo इस परकार इन सधारको न lsquoआयमधरमrsquo क भीतर जो पररवतमन करन चाह

उसस आयो की एकता दफर स बहाि हो गयी इसक अिावा अाधकतवशवासो को इनहोन दर दकया यही नही

बकतलक जहाा िोग lsquoरसिरानी पीर पगमबर औकतिया वीर ताकतजया गाजी कतरयाा कतजनहोन बड़ी ररतम तोड़कर

और तीथम पाटकर आयम धरम कतवधवास दकयाrsquo उनको भी पजन िग थ और lsquoकतवशवास तो रानो कतछनाि का अाग

हो रहा थाrsquo ऐसी िजजाजनक कतसथकतत स िोगो को बाहर कतनकािकर lsquoसार आयामवतम को शदध lsquoिायिrsquo कर

34 दख रारकतविास शराम पषठ १३१

31

ददयाrsquo lsquoिायिrsquo कर ददया गया इसका अथम आयम जाकतत को दफर स िायि करन र था आयम जाकतत क भीतर

कतबगाड़ क चित ही कतनमन जाकततयो का बड़ परान पर पिायन था इस इन िोगो न रोका और इनक परताप

स ही अनक छोट और सथानीय धरम-रतो क भीतर जो lsquoरसिरानीrsquo परभाव घस आय थ उनको दफर स lsquoबड़ी

ररतमrsquo की कतनषठा र िाया जा सका इस परकार कतहनद धरम और वणामशरर क परकतत दफर स िोगो को lsquoिायिrsquo

दकया यह lsquoिायकतिटीrsquo भारतद की रकतडकि वषणवता क जनरत क कतिए भी जररी था तिवार जी जब

आयमसराकतजयो की lsquoकााकततकारीrsquo भकतरका ददखात ह तब आयम सराज िारा आयामवतम को िायि बनान वािी

इस भकतरका की साकतशलषटता पर जयादा बात नही करत भारतद दयानाद क कााकततकारी परयासो र lsquoिायिrsquo

बनान की परदकया उसी वक़त दख रह थ और इसी कारण ररपोटम र दयानाद की आिोचना धयान दन िायक

ह सवारी जी न ldquoजाि को छरी स न काटकर दसर जाि ही स कतजसको काटना चाहा इसी स दोनो आपस

र उिझ गए और इसका पररणार गह कतवचछद उतपनन हआrdquo गह कतवचछद का रतिब कतहनद धरम र गह

कतवचछद जबदक कशवचादर सन क बार र कहा गया दक उनहोन जाि काटकर भकति की उचछकतित िहरो का

पररषकत पथ परकट दकया इस परकार रकतडकि वषणवता की lsquoअनयताrsquo और परररिक भकति क परशसत पथ क

सवीकार का कतनषकषम कतवचार सभा का भी कतनषकषम था धयान दन िायक ह दक कशवचादर की आिोचना उनक

कतचतत कतवकषप क कारण की गयी थी जहाा lsquoईसारसीह आदद उनस कतरित हrsquo य एक दकसर का इिहारी

अनभव था कतजस भारतद अपनी वषणवता स बाहर रखत ह ईशवर न इस ररपोटम पर अपना रत सरकतकषत

रख कतिया और भारतद कतिखत ह ldquoइसको दख कर इस पर कया आजञा हई और व िोग कहाा भज गए यह

जब कर भी वहाा जायग और दफर िौट कर आ सक ग तो पाठक िोगो को बतिावग या आप िोग कछ

ददन पीछ आप ही जानोगrdquo

३ जनरत और वषणवता

ककतववचन सधा ९ राचम १८७२ र भारतद न lsquoPublic Opinion In Indiarsquo नार स अागरजी र

एक िख परकाकतशत दकया िख र उनहोन कहा दक कई सददयो दक दासता क बाद भारतवषमहहादसतान अब

जाकर कतिरटश राषटर क सवोचच कतनयातरण र आया ह दश धीर-धीर सभयता और परबोधन की पकतशचरी दकरणो

क सहार दरन और कशासन क रतय-तलय कतनदरा स जाग रहा ह कतिरटश शासन की परगकततशीि नीकततयो का

परभाव यहाा की बहरपी आबादी पर पड़ रहा ह

ldquoBut in this progressive state national energy and zeal sympathy and

disintiredness are waiting to make both the conqueror and the conquered to act in

32

concert and in harmony and hence we have the broad distinction of white and

black still But in this country many are the blemishes that adhere to us to be

eradicated and many are the shortcomings that are hovering around us to be done

away with before we can have a public opinion here in its true senserdquo35

गोर और काि क बड़ भद को छोड़ कर कतवजता अागरजो और भारतीयो क बीच एक सराजन तो बन गया ह

पर अनदरनी ददककत अभी भी राह बाए खड़ी ह रौका ह दक इस परगकततशीि कतसथकतत का फायदा उठा कर हर

एक सचच जनरत का कतनरामण कर सचच िोकरत क कतनरामण र अादरनी बाधाएा कया थी भारतद न इस

आग सपषट करत हए कतिखा-

ldquoRace antagonism rivalry and mutual misunderstanding are the favourite

occupations of the aristocratic class Want of confidence among all classes of men

are the prevailing characteristic of the nation and above all multifarious castes and

creeds with there numerous forms of religion and local habits and customs which all

combined have kept the progressive policy at a stand still True it is that a

representative Government is a boon to this country and true it is that Sir Bartle

fregravere a man of vast experience and a good statesman has found out that in village

community we can have public opinion but with all his experience he has lost sight

of our national defects ndash defects which we ourselves know and which no foreigner

can catch at a glancerdquo36

भारतद इस बात को िकर कतनकतशचत ह दक िोकरत और परकततकतनकतधरिक सासथाओ क बहतर कतवकास क कतिए

सीध-सीध कतवदशी रॉडि कभी सफि नही हो पायगा ऐसा इसकतिए कयादक हरारी आपसी कतवकतभननताओ

और झगड़ो को कोई बाहरीकतवदशी सतता कभी भी परी तरह सरझ नही सकती lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo नार

35भारतद गराथाविी -6 361

36 वही

33

स भारतद का एक दसरा िख इस अागरजी वाि िख क दो साि बाद अपरि सन १८७४ र हररशचनदर

रगजीन र छपा पकतबिक ओकतपकतनयन कया बिा ह इस साफ़ करत हए भारतद िख क आरमभ र ही कहत

ह ldquoपकतबिक ओकतपकतनयन अथामत सब साधारण िोगो की राय कया वसत ह और इसर दकतना जोर ह और

इसक कतिए कया हो सकता ह यह परशन ठहरा तो इसका साधारण उततर यही ह दक यह वह वसत ह जो

सासार को एक कर सकती ह गागा की धरा दफर कतहरािय पर चढ़ा ि जा सकती ह सययम को पकतशचर उगा

सकती ह और चाह तो ईशवर को भी पकड़ क कठपतिी की भााकतत नचा सकती हrdquo37 यह पकतबिक

ओकतपकतनयन lsquoएक रतrsquo होना ह जस अिग अिग चार पतिी िककतड़यो को एक साथ बााध दन स उस

तोड़ना करठन हो जाता ह उसी तरह एक रत होन स बड़ स बड़ा बरी भी हरारा कछ कतबगाड़ नही सकता

बहत स िोगो का रत एक हो तो वह शकति बन जाती ह हिारो आदरी की बकतदध एक हो जाए तो ldquoऐसा

कौन कार ह जो न हो सक तो यह कतसदधाात हआ दक कतनशचय सब िोगो क रत र बड़ी सारथयम ह इसस यह

कतसदध हआ दक बिो स बड़ा बि एक रत ही हrdquo38

आग भारतद कहत ह दक यह जनरत और उसकी शकति हहादसतान क कतिए कोई नई बात नही ह

पराचीन काि र इसक उदाहरण कतरित ह lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo की इस धारणा को भारतद न इकततहास क

अिग-अिग दौर र बनत और कतबगड़त ददखाया सबस पहि चार वणो की िररत पड़ी सब कार को

सचार रप स चिन क कतिए दसर शबदो र कह तो शरर-कतवभाजन की िररत स इसका जनर हआ

lsquoकतहनदओ न अपन गर क कार र इस वणामशरर धमरम को इसी वासत बनाया कतजस र उन क दकसी कार र

कोई हजम न हो और उनिोगो न सासार क सब कारो र चार कार रखय सरझrsquo धरम कतवदया और किाओ का

कार िड़ाई और राजय परबाध का कार वयापार और धन और सब िोगो की सवा और रजदरी इन चार

कारो की सवयवसथा वािा वणामशरर दरअसि lsquoएक रतrsquo कतहनद वयवसथा या lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo थी पर

कािाातर र इस lsquoएकरतrsquo क भीतर जाकततवयवसथा कठोर हो गयी और िाहमण और शदर दोनो एक दसर क

कतखिाफ हो गए एकरत र कतवचछद पदा होन स कतहनद शकति करिोर हो गयी भारतद क अनसार आपस

का यह झगड़ा बड़ा कतवनाशकारी साकतबत हआ पकतबिक ओकतपकतनयन क कतबना वयाकतभचार और जयादकततयो का

अाधर था आग चि कर जनो क जरान र दफर lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo न जोर पकड़ा बकतलक भारतद जोर

दकर कहत ह दक जनो क रत की उततपकततत ही lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo स हई ldquoकतहनदओ क जब नाश क ददन

जब कतनकट आय तो आपस र परसपर बड़ा कतवरोध खड़ा हआ और उस काि र िाहमणो का बड़ा जोर था

वरन य और वणो पर जयादती करत थ तो वशय और कषकततरयो की रकतत इनस दफर गयी और बाब वािी बड़ी

37गराथाविी- 678

38वही

34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

36

कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

37

उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

38

ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 18: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

18

भारतrsquo की रधर कलपना थी इसस इनकार नही दकया जा सकता भाव जगत का वषणव परर lsquoकतहनद भारतrsquo

की कलपना स परर र बदिता गया

भारतद की रचनाओ र कतवशवदकतषट की एकता खोजन पर हर परभतवशािी कतवचारधाराओ की

वयवसथा ही कतरिगी जञान और वयावहाररक सारानय बोध क बीच एक सदकय साबाध बनान क कर र ही

उनका सवाभाकतवक आवग कतजन वयावहाररक धाररमक कतवचारधाराओ र आतरकतबकतमबत होता ह व

परभतवशािी कतवचारधाराएा ह इन कतवचारधाराओ का कतनरामण कही बाहर स नही हो रहा था बकतलक

पराचयकतवदयाकतवदो की कलपना क साथ परसपर भागीदारी र बन रहा था इन कलपनाओ को यथाथम रप द

रही थी हपराट पाजी क साथ कतवककतसत होती lsquoबजमआ पकतबिक सफीयरrsquo की दकयाएा भारतद की सवाभाकतवक

सफरतम ततकाि ही एक फ टसी र बदिन िगती ह और दकयातरक होना चाहती ह ऐस ही सरय

पराचयकतवदया क पाकतडतो क िारा जगाय गए कतरथकीय परत भी आकर सर पर सवार हो जात ह पराचयवाद

दकसी परत-कतवदया स कर न था दखना चाकतहए दक भारतद की रचनाओ र कहाा परतो की दकतनया र यथाथम

का हसतकषप होता ह उनकी एकतिगरी कहाा कतसथकततयो क अकततरक को अकतभवयि कर रही ह जस भारतद की

lsquoअाधर नगरीrsquo ऐन हरार वक़त र राजयसतता का रपक बन जाती ह यह रपक राजयसतता र अनतरनमकतहत

हहासा की अकतनवायमता और नयाय क भरर का परहसन भी ह

२ धरम सधार पर कतवचार सभा

िहमो सराज या दयानाद सरसवती को खद भारतद कस दख रह थ इसका पता हर lsquoसवगम र कतवचार

सभा का अकतधवशनrsquo22 नारक एक वयागय रपक स चिता ह सवारी दयानाद सरसवती और कशवचादर सन

जब ररन क बाद सवगम पहाच तो ldquoवहाा एक बर बड़ा आनदोिन हो गयाrdquo रतय क कछ ही सरय पहि कतिखा

गया यह वयागय रपक अपन सरय क धरम सधार आादोिनो क चररतर की वयाखया करता ह सबस पहि

इसका परकाशन किकतत स कतनकिन वािी परकततकतषठत हहादी पकततरका lsquoकतरतर कतविासrsquo (जन १८८५) र हआ था

िहमो सराज और आयम सराज क आनदोिनो को भारतद इस सरय तक आकर एक तटसथ आिोचकीय दकतषट

स दखन का परयास करन िग थ सवगम र एकबारगी पदा हए इस आनदोिन र रोट तौर पर दो खर बन

गए एक इनका परशासक था दसरा हनादक पहिा कतिबरि ह दसरा काजरवरटव इन दोनो खााचो र

अनदफट एक तीसरा दि ह जो वषणव आतराओ का ह इस दि क सासथापक तो कतिबरि थ पर अब य

lsquoरकतडकलस कया रहा रकतडकलस हो गए हrsquo कतनकतशचत रप स इन रहा रकतडकलस आतराओ र हर सवया भारतद

22 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन सा- करिा परसाद परसा- नारवर हसाह पषठ- ८२-८६ नशनि बक टरसट इाकतडया नई ददलिी- २००६

(आग इस िख क उदधरणो को कतबना पाद रटपणणी क ददया गया ह)

19

को भी कतगन सकत ह वयासदव एक ऐस बकतदधजीवी क रप र सारन आत ह जो दकसी का भी पकष िन स

बचत ह पर उनका रान दोनो खरो र ह ldquoकतबचार बढ़ वयासदव को दोनो दि क िोग पकड़-पकड़ कर ि

जात और अपनी अपनी सभा का lsquoचयररनrsquo बनात थ और बचार वयास जी अपन पराचीन अवयवकतसथत

सवभाव और शीि क कारण कतजसकी सभा र जात थ वसी ही विता कर दत थrdquo कतिबरिो की तिना र

का जरवरटव दि जयादा रजबत था कयोदक उनह सवगम क जरीदारो का सहयोग परापत था काजरवरटव दि की

आतराएा साकीणम कटररपाथी आतराएा थी य आतराएा उन परान िरान क ऋकतष रकतनयो की आतराएा ह जो

ldquoयजञ कर करक या तपसया करक अपन-अपन शरीर को सखा-सखाकर और पच-पच कर ररक सवगम गए हrdquo

करमकााड और वरत उपवास आदद को भारतद वही तक सही रानत थ जहाा तक व शरीर को कषट न पहाचाएा

कठोर दह साधना करन वाि इन ऋकतष रकतनयो की आतराएा सधारो क कतखिाफ थी और इनका साथ दन

वाि जरीदारो र lsquoउदार िोगो की बढ़तीrsquo स अपना रान-अकतभरान और बि कतछन जान का डर था

कतिबरि दि भिो की आतराएा या तो सावमजाकतनक जीवन क उचच रलयो या आदशो क सापादन क चित या

पररशवर की भकति स सवगम र गयी थी

सराज सधार और वयकतिक परर रिक भकति- कतिबरि कतवशवदकतषट को भारतद इसी पररपरकषय र दख

रह ह रकतडकि वषणव दि भिो क कतिए वषणव होन रातर स य चीज पहि स ही उपिबध थी भारतद क

कतिए वषणवता सवाभाकतवक रप स कतवशवदकतषट ह पर रकतडकि वषणव इस सवाभाकतवक उदारता को

राजनीकततक रप दन वाि ह वषणव उदारता का और उसक भावावग का राजनीकततकरण करन वाि रहा

रकतडकि इस तरह भारतद क कतिए वषणवता की आधकतनक वयाखया र सराज सधार वयकतिक परर रिक

भकति और राजनीकतत तीनो का lsquoएकाrsquo ह इस एका क रकतडकि परयास क कतिए जनरत या िोकरत का

कतनरामण आवशयक ह भारतद की रकतडकि वषणवता ही lsquoसब उननकतत का रिrsquo ह यह एक िोककतपरय

वयावहाररक कतवचारधारा क रप र आकर गरहण करन वािी वषणवता ह यह रकतडकि वषणवता धरम का

राजनीकततकरण ह

काजरवरटव दिभिो को दवताओ का सरथमन परापत था य दवता ही सवगम क जरीदार थ अपन

अपन तरीक स इन दवताओ न काजरवरटव दि की सथानीय शाखाएा भी खोि िी और वहाा इनक पकष र

lsquoपरकाश सभाएाrsquo होन िगी कतिबरि दि वािो क पकष र कवि इस lsquoकतहनद सवगमrsquo क िोग नही थ ldquoइधर

lsquoकतिबरिrsquo िोगो की सचना परचकतित होन पर रसिरानी-सवगम और जन सवगम तथा दकसतानी सवगम स पगमबर

कतसदध रसीह परभत कतहनद सवगम र उपकतसथत हए और lsquoकतिबरिrsquo सभा र योग दन िग बका ठ र चारो ओर

इसकी धर फि गयीrdquo अिग अिग सवगम कतवकतभनन धाररमक पहचानो की ओर इशारा करता ह बका ठ कतहनदओ

का सवगम ह और यह नया धरम आनदोिन रखयतः कतहनद धरम की एक बड़ी पहचान क भीतर ही पदा हआ ह

20

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग क तीन कतनकतहताथम वसधा डािकतरया न भारतद यग क सनदभम र नोट दकय ह23 पहिा

एक पराक औपकतनवकतशक lsquoकतहनद अथमrsquo जहाा हहादसतान का हर बाहशादा शाकतरि था दसरा परसपर कतभनन

धाररमक रतो और आसथाओ की कतनकट अातरकम या क अथम को वयि करता ह कतजसक आराकतभक साकषय सलतनत

कािीन ऐतहाकतसक वतताातो र कतरित ह यहाा यह शबद lsquoतकम rsquo क सरानाातर उपयोग र आया था और

सारानयतः रसिरानो क बरकतखिाफ उपयोग दकया जाता था आरमभ र यह धाररमक कर साराकतजक-

राजनीकततक अथो र जयादा परयि होता था अागरजी राज क साथ यह दसरा अथम धरम स अकतनवायमतः जड़कर

lsquoकतहनदवादrsquo की कतवचारधारा र बदि गया जमस कतरि आदद क इकततहासो र lsquoकतहनदकािrsquo और lsquoरसिरान

कािrsquo की ऐकततहाकतसक कलपना क साथ कतहनद शबद जड़ गया था भारतीय भी रसिरानो को सारन कर

lsquoकतहनद पीकतड़त गराकतथrsquo क कतिए इस शबद का इसतराि करन िग कतहनद शबद का तीसरा अथम राषटर की

अवधारणा स जड़कर बन रहा था आरथमक राषटरवाद और अागरजी राज की यातना की साझी सरकतत स बनन

वाि इस तीसर अथम का रतिब था- lsquoजो कतहनदसतान र रह वह कतहनदrsquo रारकतविास जी भारतद क यहाा

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग को इनही अथो र ित थ पर वसधा डािकतरया का कहना ह दक यह तीसरा अथम दसर क

वयापक परभाव र था तीनो अथो की अातरकम या क बार र डािकतरया न कतिखा ldquoतीसरा अथम या राषटरवादी

अथम कभी भी अपन धाररमक साकताथो स परी तरह छटकारा नही पा सका इस पद की परयकति उननीसवी

सदी र अकतसथर बनी रही और इसक रखतकतिफ रायनो र आपसी जड़ाव कायर रहा बावजद इसक दकसी

परदतत सनदभम र lsquoकतहनदrsquo क पराथकतरक अथम को कतनधामररत करना साभव ह यदद एक बार यह तय हो जाय दक

इिाकाई धाररमक राषटरीय र स दकस आधार पर यह पद परयोग र आ रहा ह और lsquoअनयrsquo की भकतरका र

दकस रखा जा रहा ह चाह वह अनय जसा दक परानी इिाकाई परयकति र ददखता ह फारसी या तकी हो

या रसिरान (कतजस इस िरान र भी कई बार सरह क हवाि स तकम ही कहा जाता ह) या दफर अाततः

औपकतनवकतशक सवारी िदकन यह बात ददराग र रखना जररी ह दक धाररमक सरदाय को कतनरदमषट करन

वािी दसरी परयकति अतयात परभावी सनदभम-हबाद बनी रहती हrdquo24

इस सनदभम र दख तो कतिबरि दिो क सरथमन र शाकतरि lsquoअनयrsquo कतहनद धरम क सधारवाद क सरथमक

ह और lsquoसधारोrsquo र छपी वकतशवक भावनाओ को सरथमन दन पहाच ह का जरवरटव दिो की lsquoअनयताrsquo यहाा नोट

करन िायक ह इस अनयता र साराती जरीदार और करमकााडी िाहमणवाद का बिाक ह जबदक कतिबरि

दकतषट क आसपास एक lsquoसायि रोचrsquo की कलपना की गयी ह धयान रखना चाकतहए दक भारतद क रकतडकि

वषणव इस lsquoसायि रोचrsquo क बाहर ह उनका lsquoएबसटकतनजरrsquo वषणव होन क चित नही बकतलक रकतडकि या

23 वसधा दिकतरया कतहनद परमपराओ का राषटरीयकरण भारतद हररशचादर और उननीसवी सदी का बनारस अन साजीव करार योगनदर दतत पषठ-

४०-४२ राजकरि पपरबकस नई ददलिी- २०१६

24 वही पषठ- ४२

21

रहा रकतडकि होन क चित था कतनकतशचत रप स सवगम सासद का रपक ह और सवगम का राजा ईशवर

कतनषपरभावी हो गया ह और जनता सवया जनरत क िारा कतनणमय कतसथर करन पर जोर दती ह जनरत क

िारा lsquoसलफ गवनमरटrsquo का परयास सबस पहि वषणव भिो न दकया था और आज क कतिबरलस उसी को

आग बढ़ा रह ह ईशवर क पास दोनो दिो क िोगो न जब अपन अपन ररोररयि तयार कर भज तो ईशवर

न दोनो दिो क डपयटशन को बिाकर कहा ldquoबाबा अब तो तरिोगो की lsquoसलफगवनमरटrsquo ह अब कौन

हरको पछता ह जो कतजसकी जी र आता ह करता ह अब चाह वद कया सासकत का अकषर भी सवपन र भी न

दखा हो पर धरम कतवषय पर वाद करन िगत ह हर तो कवि अदाित या वयवहार या कतसतरयो क शपथ

खान को ही कतरिाय जात ह दकसी को हरारा डर ह कोई भी हरारा सचचा lsquoिायकrsquo ह भत परत ताकतजया

क इतना भी तो हरारा दजाम नही बचा हरको कया कार चाह बका ठ र कोई आवहर जानत ह चारो

िड़को (सनक आदद) न पहि स ही चाि कतबगाड़ दी ह कया हर अपन कतबचार जयकतवजय को दफर राकषस

बनवाव दक दकसी का रोकटोक कर चाह सगन रानो चाह कतनगमन चाह ित रानो चाह अित हर अब न

बोिग तर जानो सवगम जानrdquo

काजरवरटव दिभिो न दयानाद और कशवचादर सन पर कया कया आरोप िगाय यह दख िना

चाकतहए दयानाद को सवगम र सथान नही कतरिना चाकतहए कयोदक १ इसन पराणो की हनादा की २ ररतमपजा

की हनादा की ३ वदो का अथम उलटा-पलटा कर डािा ४ दस कतनयोग करन की कतवकतध कतनकािी ५ दवताओ

का अकतसततव कतरटाना चाहा (दवताओ याकतन जरीदार) ६ इसन धरम कतवपिव दकया और आयामवतम को धरम

बकतहरमख दकया पकतशचरोततर परानत क परकततकतनकतध क रप र lsquoकाशी क कतवशवनाथ जीrsquo न lsquoउदयपर क एकहिाग

जीrsquo पर दयानाद क सरथमन का आरोप िगाया कतवशवनाथ जी काजरवरटव दिो की तरफ स यह आरोप िगा

रह थ परब की अपकषा पकतशचरी इिाको र आयम सराज क परभाव की चचाम क सनदभम र एकहिाग जी का

जवाब धयान दन िायक ह कतवशवनाथ जी न जब एकहिाग जी को कतधककारत हए कतिबरिो क साथ कतरि जान

को कहा तब एकहिाग जी न कहा ldquoभाई हरारा रतिब तरिोग नही सरझ हर उसकी बरी बातो को न

रानत न उसका परचार करत कवि अपन यहाा क जागि की सफाई का कछ ददन उसको ठका ददया बीच

र वह रर गया अब उसका राि रता रठकान रखवा ददया तो उसका बरा दकयाrdquo यह एकहिाग जी

दफ़िहाि सवारी जी क दि क सभापकतत बन ह आकतखर इनहोन अपन यहाा क दकस lsquoजागिrsquo की सफाई का

ठका सवारी जी को ददया था यह जागि छोट-रोट धाररमक समपरदायो और रतो का जागि था एकहिागी

जी और काशी क कतवशवनाथ जी दोनो ही िाहमणीकत शवरत क धाररमक परतीक ह पर जहाा काशी क

कतवशवनाथ शर स ही दयानाद क कतवरोधी थ वही एकहिाग जी रणनीकततक रप स दयानाद क पास गए थ यह

साकीणम कटररपाथ क भीतर का कतववाद था यह बात गौर करन िायक ह दक जगननाथपरी र जब भरव की

22

रौजदगी का कतववाद भारतद क सारन आया था उस सरय उनहोन इस बात का परतयाखयान दकया था दक

भरव की परकततरा अनाददकाि स वहाा ह भारतद न पराण आदद स साकषय दकर यह परराकतणत दकया दक

कषण ही एकरातर उपासय ह तिवार जी न इस घटना का उलिख करत हए कतिखा ह दक ldquoदकसी वयकति न

lsquoतहकीकातपरीrsquo दकताब दकखकर बताया दक वहाा पहि भरो की पजा होती थी वषणवो न उसकी ररतम

उखाड़ फ की थी बाद र पाडो न जगननाथजी (कतवषण) क साथ भरो को दफर स परकततकतषठत दकया यह रारिा

काशी धरमसभा क सारन १८७० र आया भारतद न धरम साबाधी पसतक र lsquoतहकीकातrsquo जस फारसी शबद

की आिोचना करत हए कतवकतभनन धरमगराथो स परराण जटाकर दो बातो पर जोर ददया एक इसका परराण

नही कतरिता ह दक वहाा जगननाथजी क साथ पहि भरो की भी ररतम थी कतजस वषणवो न उखाड़ फ का दो

अगर वह थी भी तो यह उकतचत था या नही- इसपर कतवचार होना चाकतहए भारतद न अपनी वयवसथा दत

हए कतिखा दक भरो कतवषण स बहत छोटा दवता ह इसकतिए यह कतवषण क साथ बठाया नही जा सकता

lsquoदसर भरव कापाकतिको क दवता ह उनका पजन वषणव-सरातम सबको कतनकतषदध हrsquo गौरतिब ह दक भारत

र कतवकतभनन सथानीय धरो क परकतत कतजतन असकतहषण और फा डारटकतिसट आयमसराजी थ उतन ही काशी क

सनातनी भी थrdquo25

सथानीय धरम-रतो क जागि को साफ़ करन र आयमसराकतजयो और काशी क सनातनी पाडो क इस

गठजोड़ स भारतद भी वादकफ थ िदकन आयमसराकतजयो क साथ उदयपर क एकहिाग जी का रोचाम कसा

था इस भी भारतद बखबी सरझ रह थ सथानीय रतो क साथ भारतद का समबनध कसा था इसका पता

उनक छोट-छोट यातरा सासररणो स भी चिता ह lsquoसरय पार की यातराrsquo26 र रहदावि का हाि बयान करत

हए lsquoपराणनाथrsquo क रिहब का भारतद आशचयम क साथ उलिख करत ह भारतद क ही शबदो र ldquoयहाा एक

पराणनाथ का रिहब ह और दस बीस िोग उसक रानन वाि ह य िोग एकादशी तीथम वगरह को नही

रानत और सन सनाय दो तीन शलोक जो याद कर कतिए ह बस उसी पर चर हो lsquoरदीनासया शारदाा शताrsquo

और lsquoगोकतवनदrsquo lsquoगोकिानाद रककशवरrsquo यह शलोक पढ़ क कहत ह दक वद र रकका रदीन का वणमन ह ऐस ही

बहत वाकतहयात बात करत ह और कोई दकतना भी कह कछ सनत नही कहत ह दक गोिोक का नाश ह

और गोिोक ऊपर एक lsquoअखाड रणडिाकारrsquo िोक ह उसर रर कषण ह इनका रिहब एक पराणनाथ नारक

एक कषतरी न पनना र करीब तीन सौ बरस हए चिाया थाrdquo भारतद इस अजीबो गरीब lsquoरिहबrsquo का कषण स

कया साबाध ह यह सोचकर ताजजब र थ इस lsquoरिहबrsquo क गरनथ र भारतद न एक शलोक बलिभाचायम का

दखा तो उनका राथा और घर गया ldquoकि रिहब का हाि हरन नीच कतिखा था उसका अचछी तरह स

25 वीरभारततिवार रससाकशी १९वी सदी का नवजागरण और पकतशचरोततर परानत पषठ- १५२ सारााश परकाशन ददलिी- २००६

26 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन पषठ- १३७-३८

23

हाि दरयाफत दकया तो रािर हआ दक हरार ही रिहब की शाखा ह इनक गराथो र हरन एक शलोक शरी

रहापरभजी की सबोकतधनी की काररका का दखा इसी स हरको सादह हआ दफर हरन बहत खोद खाद कर

पछा तो वह साफ़ रािर हआ दक इसी रत स यह रत कतनकिा ह कयोदक एक बात वह और बोि दक हरारा

रत शरी बलिभाचारज की टीका र कतिखा ह इन िोगो क उपासय शरीकषण ह और एकादशी शािगरार

ररतमपजा तीथम दकसी को नही रानत इनक पकतहि आचायम दवचाद जी थ जो जाकतत क कायथ थ और दसर

पराणनाथ जी जो कचछ क कषतरी (भारटया) थ हरार ही रत की शाखा सही पर कतवकतचतर रत ह वषणव होकर

ररतमपजा का खाडन करन वाि यही िोग सनrdquo वणमन स सपषट ह दक सात और कतनगमण पाथो क साथ वषणव

कतवचारधारा क आदान-परदान का साकतशलषट इकततहास भारतद क कतिए ताजजब की चीज थी पर इन सबक बीच

आकतखर उनहोन इसक वषणव रि का पता िगा कतिया और वषणवता की इस धाररमक कतवचारधारा र उनहोन

ररतमपजा का कतवरोधी होना भी शाकतरि रान कतिया भारतद न ररतमपजा क सरथमन र बड़ बड़ िख कतिख

थ इसकतिए असाभव नही दक कषण क परकतत परररिक भकति क कतिए ररतम की जररत पर उनहोन कछ पछा

जरर होगा िदकन lsquoकोई दकतना भी कछ कह सनत ही नहीrdquo आग चिकर lsquoवषणवता और भारतवषमrsquo र

वह बड़ कतवशवास क साथ घोकतषत करत ह दक ldquoपहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद कतजतन पाथ ह सब

वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और भारतवषम इन पाथो स छाया हआ हrdquo27 तब वह वषणवता और

िोकरतो और रधयकािीन पाथो क भीतर पहि स सदकय एक ऐकततहाकतसक परदकया का सारानयीकरण कर

उसका नार lsquoवषणवrsquo रख रह थ अकारण नही दक उसी िख र वषणव वयापकता को बतान क कतिए

परचकतित lsquoनारोrsquo का साकषय पश दकया गया ह वयकतियो स िकर वरत और उपवासो तक यह परभतवशािी

सारानय बोध की कतवचारधारा थी कतिवदी जी रधयकािीन वषणवता को िोकधरम कहत थ भारतद

उननीसवी सदी क िोकधरो को वषणव कहत ह

काजरवरटव दिो की तरफ स कशवचादर सन पर िगाय गए आरोप थ १ वद पराण सबको कतरटा

डािा २ दकसतान रसिरान सबको कतहनद बनाया ३ खान पीन का कतवचार कछ न बाकी रखा ४ रदय की

तो नदी बहा दी आयम सराकतजयो क ऊपर रखयतः आरोप lsquoआयामवतम को धरम बकतहरमखrsquo करन का ह धरम

बकतहरमख अथामत सनातन धरम स कतवरख उनहोन कवि धरम क भीतर कतवपिव दकया परनत िहमो सराज न तो

lsquoभारतवषम का सतयानाशrsquo कर डािा इनहोन तो पराणो क अिावा वदो को भी कतरटा डािा lsquoआयामवतमrsquo की

जातीय पकतवतरता नषट करक दकसतान रसिरान जस lsquoकतवदशी ततवोrsquo को घर र घसा कतिया कटररपाथी

करमकााकतडयो क कतिए इनक साथ रणनीकततक तौर पर भी रोचाम बनान वािा कोई एकहिाग जी तयार नही

था सनातकतनयो िारा दकया गया यह बारीक भद खद कतिबरि दिभिो क भीतर का भी अातरवमरोध था

27 भारतद वषणवता और भारतवषम वही पषठ-७६

24

कतिबरिो की सभा र भी दो दि हो गए थ एक सवारीजी क सरथमको का दि था और एक कशव

क सरथमको का कतहनद कतिबरिो की आताररक एकता कतिकतवभाकतजत थी दयानाद क सरथमको क अनसार सवारी

जी न कतहनदओ की आतरा को जगाया था उनह सफतम बनाया वरना तो आयामवतम क आिसी और रखम

रोहकतनदरा र ही कतनरगन थ इस तरह रखम और आिसी सारानयजनो को lsquoिाहमणो क फा द स छड़ायाrsquo िाहमणो

की तिना भारतद न lsquoपादररयोrsquo स की ह जो lsquoवयथम परजा का दरवय खान वाि हrsquo आयम सराज न सासथाकत

परोकतहतवाद पर हरिा दकया था जो भारतद क कतिए रितः जनता क पसो पर पिन वािा परजीवी वगम

िगता था और तो और आधकतनक कतवजञान क आग जो lsquoआयोrsquo की नाक कटी जा रही थी उस भी सवारी जी

न बचा कतिया उनहोन वदो र भी रि तार करटी कचहरी आदद ददखाकर कतहनदओ र आतरसमरान पदा

दकया दसरी ओर कशव क सरथमको का कहना था दक ldquoधनय कशव तर साकषात दसर कशव हो तरन बाग

दश की रनषय नदी क उस वग को जो कशचन सरदर र कतरि जान को उचछकतित हो रहा था जञान करम का

कतनरादर करक पररशवर का कतनरमि भकति रागम परचकतित दकयाrdquo lsquoजञान करम का कतनरादरrsquo करक भी lsquoकतनरमि

भकति रागमrsquo का जो परवतमन कशव न दकया उसस ही ईसाई lsquoअनयताrsquo का साथमक परकततरोध साभव हआ lsquoरनषय

नदी का आवगrsquo भावावग ह इसी बात को दसर शबदो र कह तो भाव जगत क सवाभाकतवक वग को भगवत

भकति की शदध lsquoअनयताrsquo की ओर रोड़कर उस कतवदशी ईसाई lsquoअनयताrsquo क रागम पर जान स रोक ददया इस

कायम क कतिए वद पराण समरत lsquoजञान-करमrsquo क रागो का कतनरादर अगर करना पड़ा तो भी वह उकतचत ही था

वषणव भकति क रधयकािीन सवरप की जो वयाखया आग चिकर की गयी उसक आराकतभक कतचनन हर यहाा

दख सकत ह कहना न होगा दक भारतद का अपना अनभव भी यहाा बोि रहा ह

शासतरीय काजरवरटव पाटी र दवताओ क अिावा यजञवलकय जस औपकतनषददक ऋकतष क साथ-साथ

नारायण भटर रघनाद भटराचायम राडन कतरशर जस कतनबाधकारो और टीकाकारो का जरघट भी था इसक साथ

साथ इसिारी सवगम स आय हए कटररपाथी कतशया िोगो का भी सरथमन उनह परापत था इस परकार कटररपाथ का

दवताओ (जरीदारो) िाहमणो (पादररयो) जञानरागी औपकतनषददक ऋकतष रधययगीन कतनबाधकारो और

कतवदशी कतशया िोगो का एक वकतशवक रोचाम बन रहा था दसरी ओर कतिबरि दि र चतनय परभकतत आचायम

दाद नानक कबीर परभकतत भि और जञानी िोग भी शाकतरि थ इसक अिावा काजरवरटव दि क

कतवदरोकतहयो को भी कतिबरिो न अपन यहाा जगह दी य कतवदरोही थ अितवादी (या नववदााती) भाषयकार

पाचदशीकार और कोई कतरसटर िडिा इन दोनो िोगो पर शर र का जरवरटव दि वािो न बहत हरि

दकय परनत अात र इनह कतिबरिो न अपन यहाा जगह द दी धयान रखना चाकतहए दक भारतद अपन सापरदाय

क अनरप अित वदाात या रायावाद क घोर आिोचक थ सन १८७३ र हररशचादर रगजीन क पहि ही अाक

र भारतद न शााकतडलय भकति सतरो का अनवाद lsquoभकति सतर वजयातीrsquo नार स परकाकतशत दकया भकतरका र

25

भारतद कतिखत ह ldquo दखो आज वसात पाचरी ह इसस बहत स िोग आर क रौर वा फिो क गचछ िकर

तरस कतरिन आवग तो र भी यह एक फिो की वजयाती रािा बना कर िाया हा अागीकार करो वजयाती

रािा बनान का यह हत ह दक वनरािा होगी तो होिी क खि र अरझगी और इसक कतसवाय इस वजयाती

स कतनशचय करक जञानाददक को जय करना ह पर पयार बहत साभि कर यह रािा पहरना टट न जाए

कयोदक सत कचचा ह और ककतियाा तािी और कोरि ह इस स कमहिान का भी भय ह जो हो इस वसात

पाचरी को तयोहारी रझ यही दो दक इस सतयानाशी lsquoअहरrsquo िहमवाद lsquo को पणमरप स नाश करक और भी

सब बातो र इस नव-वसात र भारतवषम की सब आपकतततयो का बस अात करो और अपन भिो क कतचतत र

नव पलिव दफर स िहिह करो जो सदा एक रस रहrdquo28 lsquoएकरसrsquo भकति क कतिए जररी ह दक जञानवाद

अहर िहमवाद को जड़ स उखाड़ फ का जाय कषण को अरपमत अपनी वजयाती रािा स भारतद जञानाददक

को जय करना चाहत ह एक ओर यह पकतषटरागी परापरा क lsquoवीर वषणवrsquo भारतद का परर कतनवदन ह दसरी

ओर lsquoनव-वसातrsquo र भारतवषम की सब आपकतततयो को नाश करन की सारथयम रपी lsquoउपहारीrsquo का साकलप भी

ह lsquoभारतद भारतवषम की सब आपकतततयोrsquo को दर करन की राह र एक बड़ी बाधा अित क जञानवाद को

रानत ह भकति का lsquoएकरसrsquo पहि भी इसक परभाव स ररझाता रहा ह भारतद का साकलप सापरदाय क

परान कतवरोधो क बावजद बन रहन वाि इस अितवाद का पणम सफाया करन का ह जबतक यह न कतरटगा

परररिा भकति क lsquoकमहिान का भयrsquo बना रहगा भकति सतरो र उपासना कााड को परर कतसकतदध का हत

बताया गया था पर भारतद दख रह थ दक उपासना कााड का परचार कतवरि हो गया ह इसी परचार क

कतनकतरतत उनहोन इन सतरो का भाषा र अथम परचार दकया था १८७३ र ही हररशचादर रगजीन का एक

समपादकीय कतनकिा कतजसका शीषमक था- lsquoभकति जञानाददक स कयो बड़ी हrsquo इस िख र भी उपासना रागम

की रहतता का परकततपादन दकया गया ह तकम और जञान को करम की शकतदध और उपासन की परर कतसकतदध क

रासत र कवि एक चरण बताया गया ह वसधा डािकतरया न भारतद क आराकतभक साापरदाकतयक परचार

परसार क कायो र कतनगमकतनयो को बाहर रखन का उपकर नोट दकया था29 यहाा कतनगमकतनए कबीर आदद lsquoभि

और जञानीrsquo कतिबरिो क सरथमक ददखाए गए ह वषणव भकति क राषटरीय चररतर र य बाहर नही थ उनकी

एकता का आधार उनक lsquoकतिबरि रिrsquo र ह सावमजकतनक उचच भाव का सापादन और भकति इन दोनो क साथ

अित वदााती या जञानाददक- सनातनी परापरा क कतवदरोकतहयो की जगह भी कतिबरि दि पाकतथयो र थी

कतिबरि वाि ही झगड़ क कतनपटार की अजी पररशवर को दन गए थ पर पररशवर अपनी

परतीकातरक हो गयी कतसथकतत स खजिाय हए थ यह सवोचच अदाित थी पर साथ ही साथ शकतिहीन

28 भारतद गराथाविी खाड- ५ पषठ ११३

29 वसधा डािकतरया पषठ ३४२

26

राषटराधयकष की कलपना भी कतजस कतहनद सवगम क य राषटराधयकष ह वहाा दकसी दकसर की सलफ गवनमरट चनन

की परणािी आ जान स ईशवर की एकाकतधकारी शकतियाा कतछन गयी ह िोग जनरत कतनरामण क िारा सही

और गित की पहचान करन िग थ इसकतिए थोड़ा खजिाय तो रहत ही होग lsquoअब कौन हरको पछता

ह तर जानो सवगम जानrsquo परनत साकट गहरा था यदयकतप कतिबरि िोगो की सभा भी धरधार स जर

रही थी पर काजरवरटव दि पाकतथयो की सरकार र पठ थी दवता सब भी उनक साथ थ इसकतिए पररशवर

क पास जररी नयाय का परशन उठाया गया था नयाय दक इन दो रहापरषो को सवगम र जगह कतरिनी

चाकतहए या नही सराज र इनक नकततक उचच आदशो क अवरलयन का परचार काजरवरटव कर रह ह इस

परचार क कारण जनता अपनी निरो स पहचानन र सकषर नही ह ऐसी कतसथकतत सवगम र पहि नही आई

थी नई कतसथकततयो क नए रानदाड कया होग िाकतहर ह नयाय और नकततकता को एक वकतशवक सवीककतत

चाकतहए इसकतिए पररशवर न इस कतवषय पर कतवचार क कतिए जो ककतरटी चनी वह गौर करन िायक ह इस

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo र ldquoराजा राररोहन राय वयास दव टोडररि कबीर परभकतत कतभनन-कतभनन रत क िोग चन

गए रसिरानी- सवगम स क lsquoइरारrsquo दकसतानी स िथर जनी स पारसनाथ बौदधो स नागाजमन और

अफीका स कतसटोवायो क बाप कोrdquo चना गया कतहनद सवगम स नवजागरण क अगरदत वयासदव जस

बौकतदधकिखक टोडररि जस राजनीकततजञ और धरम-ररमजञ कबीर जस जञानी-भि पराचीनो र कवि वयास

दव ह बाकी दो lsquoरधयकािrsquo क और एक lsquoआधकतनकrsquo काि क वयकति ह उधर यरोपीय नवजागरणधरमसधार

क परणता िथर को भी बिाया गया ह और बौदधो की तरफ स परर कतनषधवादी नागाजमन भी ह पर य

अफीका क कतसटोवायो धरो की अकतसरता क साथ-साथ यह अफ़ीकी सवगम कतनकतशचत रप स अफीका की छकतव

पराचीन आददवासी सासककतत वाि एक lsquoकािrsquo रहादश क रप र गढ़ी गयी थी यह अफ़ीकी सवगम साभवतः

आददवासी धाररमक रानयताओ की ओर इशारा करता ह यह भी धयान दन िायक ह दक राजा राररोहन

राय िथर और कबीर इन तीनो क साथ lsquoनवजागरणrsquo की कोई न कोई पररकलपना ठठ सरकािीन कतवरशो

क क दर र भी ह कई अथो र अकबर िारा आयोकतजत होन वािी lsquoसिह-ए-किrsquo जसी धरम सभाओ की एक

रोहक कलपना भी भारतद को रही होगी टोडररि की उपकतसथकतत अकारण नही ह

अकबर को िकर भारतद की इकततहासदकतषट कसी थी इसकी एक झिक हर १८८४ र छपी उनकी

lsquoबादशाह दपमणrsquo की भकतरका र ददखती ह इस गरनथ र उन िोगो का चररतर-कतचतरण दकया गया था ldquoकतजनहोन

हरिोगो को गिार बनाना आरमभ दकया इसर उन रसत हाकतथयो क छोट-छोट कतचतर ह कतजनहोन भारत क

िहिहात हए करिवन को उजाड़कर-पर स कचिकर कतछनन-कतभनन कर ददया रहमरद रहरद अिाउददीन

अकबर और औरागजब आदद इनर रखय ह पयार भोि कतहनद भाइयो अकबर का नार सनकर आपिोग

चौदकए रत यह ऐसा बकतदधरान शतर था दक उसक बकतदधबि स आजतक आपिोग उसको कतरतर सरझत ह

27

दकनत वह ऐसा ही नही उसकी नीकतत अागरजो की भााकतत गढ़ थी रखम औरागजब उसको सरझा नही नही तो

आज ददन हहादसतान रसिरान होता कतहनद-रसिरान र खाना-पीना बयाह-शादी कभी चि गयी होती

अागरजो को जो बात नही सझी वह इसको सझी थीrdquo30 कतनकतशचत रप lsquoबकतदधरानrsquo दशरन स सीखन को बहत

कछ कतरिता ह अकबर की दीन-ए-इिाही क परयोग स भारतद भी बहत कछ सीख रह थ रधयकािीन

इकततहास क बार र रकतसिर शतर की छकतव का कतनरामण पराचयकतवदयाकतवदो क िारा दकया जा रहा था इकतियट

आदद इकततहासकारो न जो दकतषट कतवककतसत की उसका परभाव बहत गहरा था पर इस इकततहासिखन क साथ

साथ भारतद क कछ दशी सरोत भी थ अिग-अिग रहापरषो की चररताविी कतिखन की पररणा भारतद न

कतजतना अपनी वषणव भकति की परापरा स पाया था उतना ही इसिारी इकततहास िखन की परापरा स भी

lsquoबादशाहदपमणrsquo की भकतरका र भारतद कतिखत ह ldquoरर पररातारह राय कतगरधरिाि साहब जो यवनी कतवदया

क बड़ भारी पाकतडत और काशीसथ ददलिी क शाहजादो क रखय दीवान थ उनकी इचछा स ददलिी क परकतसदध

कतविान सययद अहरद न एक ऐसा चक बनाया था कतजसर तरर स िकर शाह आिार तक सब बादशाहो क

नार आदद कतिख थ उस फारसी गरनथ स बहत सी बात इसर िी गयी ह इस कारण तरर पवम क बादशाहो

का वणमन इतना परा नही ह कतजतना तरर क पीछ ह दफर रर रातारह राय कतखरोधरिाि न बहादर शाह

क काि क आरमभ तक शष वतत सागरह दकयाrdquo31

अरणदव जी अपन एक िख र भारतद क आराकतभक अकबर परर का कतिक दकया ह १८७२-७४ क

आसपास भारतद अकबर को रहान शासक रानत थ जबदक औरागजब को कतहनदओ का दशरन नाबर एक

भारतद न औरागजब की तिना र अकबर की रहानता को परराकतणत करन क कतिए रारदास कछवाह क एक

शलोक को अपना आधार बनाया ह इस शलोक का भावाथम भारतद क शबदो र इस परकार ह ldquoजो सरदर स रर

तक पथवी को पािता ह जो रतय स गउओ की रकषा करता ह कतजसन तीथम और वयापार स कर छड़ा ददए

कतजसन पराण सन जो सयम का नार जपता जो योग धारण करता ह और गागाजि छोड़कर पानी नही

पीता उस जिािददीन की जय अाग वाग कहिाग कतसिहट कततपरा कारत (कारटी) काररप अाध कणामटक

िाट दरकतवड़ रहाराषटर िारका चोि पााडया भोट रारवाड़ उड़ीसा रलि खरासान का दहार जमब काशी ढाका

बिख बदखशाा और काबि को जो शासन करता ह ककतियग की रकतहरा स घटत हए वद गउ कतिज और

धरम की रकषा को सगन शरीर कतजसन धारण दकया ह उस अपररय परष अकबर शाह को हर नरसकार करत

हrdquo32 यही अकबर १८८४ र औरागजब स जयादा शाकततर और बकतदधरान शतर र बदि गया lsquoकािचकrsquo क

कतनकतहताथो र यह फरबदि भारतद पर रकतसिर कतवदशीपन और कतहनद शतरता क समपणम बिॉक बनान की

30 बादशाह दपमण भारतद गराथाविी खाड-६

31 वही

32 httpsamalochanblogspotin201209blog-post_9html

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रणनीकतत क दबाव क कारण था और lsquoपरावकततrsquo की कतरथकीयता र भी कतहनदओ को lsquoरहारोहनासतरrsquo क सहार

पहि भी वश र दकया गया था यह एक बारीक चाि थी अकबर की इस चाि को अागरज भी नही सरझ

पा रह थ भारतद की यह परकततदकया औपकतनवकतशक इकततहासिखन क दबाव र थी १८७३ र जब भारतद

न कतशवपरसाद की दकताब lsquoइकततहासकततकतररनाशकrsquo क तीसर खाड की आिोचना की थी तो उनक सारन

रकतसिर शासन की बबमरता और अागरजी राज क सशासन का कतशवपरसाद िारा ककतलपत आखयान था १८८४

र समपणम रकतसिर काि अनधकार यग र बदि गया कततकतररनाशक क पहि खाड र बाब कतशवपरसाद न भी

अकबर की रजहबी उदारता और साराकतजक सधारो की बड़ाई की थी इस परकार हर दख सकत ह दक

ऐकततहाकतसक िखन र पकष और कतवपकष की पनरावकततत एक बाद घर र उिझी हई थी इनक सारन रकतसिर

कतवरोध और अागरजी शासन क कतवरोध का एक कतवसागत फर था और िखक उसर अपनी फौरी जररतो क

कतहसाब स कतरतर और दशरन वािा इकततहास कतिखता था इकततहास ठठ राजनीकततक ततकाि क वशीभत था

जो भी हो धाररमक उदारता और सिह-ए-कि का परयोग एक कतशकषापरद परयोग था यह कतवकतभनन

रतो या कतवशवासो क बीच lsquoजनरतrsquo बनान का एक रधयकािीन परयोग था भारतद lsquoजनरतrsquo क परयोग को

इस तरह दखत थ रानो यह lsquoचािrsquo अगर कारयाब हो जाती तो lsquoआज क ददन हहादसतान रसिरान होताrsquo

भारतद क सारन सरसया वही थी बस वह कवि यह चाहत थ दक कतहनदसतान lsquoकतहनदrsquo हो जाय कतहनद

अथामत वषणव हो जाय वषणवता भारतद क कतिए हहादसतान का नया lsquoसिह-ए-किrsquo था इसकतिए कछ

सावमजनीन रलयो की तिाश उनह भी थी कतसिकट ककतरटी क उपरोि रमबर lsquoएकसअफीकतशयोrsquo रमबर थ

रोर क परान हररकिस जस दवता कतजनहोन धरती स साबाध तोड़ ददया ह व िोग तथा उनही क जस

पारकतसयो क lsquoजरदशतजीrsquo को कोरसपोहडाग ऑनररी रमबर बनाया गया य धरम क रप र रतपराय रतो क

परकततकतनकतध थ ककतरटी न जो ररपोटम तयार की उसका ररम भारतद न ददया ह यह ररम उनक रकतडकि वषणव

पकष का रत था कतिबरि दि और काजरवरटव दि क अपन पकषो स इतर यह नरनायक तीसरा पकष वषणवो

की तरफ स सनाया गया था रकतडकि वषणवो की तरफ स भारतद इस धाररमक आनदोिन क भीतर अपना

ही पकष रखत हए इसका ररम कतिख रह थ ldquoहरिोगो की समरकतत र इन दोनो परषो न परभ की रागिरयी

सकतषट का कछ कतवघन नही दकया वराच उसर सख और सातकतत अकतधक हो इसी र पररशरर दकयाrdquo कतहनद सराज

सधार क परयासो का ररम बतात हए सबस पहि धयान सतरी सधारो पर ददया गया ह साराकतजक करीकततयो

की कतशकार रकतहिाओ क परकतत जो दकतषट उभरकर सारन आती ह उसक रि र धरम की रीकतत स यौन

रयामदाओ की अवयवसथा को दफर स रयामददत करन की चषटा ह कतसतरयो क करागम पर जान का पहिा कारण

ह रनराना परष धरमपवमक न पाना यह कतववाह सासथा की कतवककततयो की आिोचना थी जहाा बाि कतववाह

कतवधवा कतववाह आदद की तरफ इशारा ह धयान रखना चाकतहए दक यहाा बरि कतववाह क बदि कतसतरयो िारा

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lsquoरनराना वरrsquo न चन पान का उलिख ह गभमनाश और बाि हतया क कतखिाफ सधार परयास दसरा

रहतवपणम योगदान ह कतववाह सासथा बीच र भी भाग की जा सकती ह इसकी सवीककतत ह कनया क कतहत र

अातरजातीय कतववाह की सवीककतत ह एक रहतवपणम बात गरओ और पाकतडतो क वयाकतभचार क साबाध र ह

भारतद क सारन पकतषटरागी रहातो और गरओ क वयाकतभचार का अनभव भी इसर शाकतरि ह

१८७४ र ककतववचन सधा र भारतद की एक रटपणणी छपी थी lsquoगर को कसा होना चाकतहएrsquo इसक अिावा

दो वषम पहि lsquoगर और रहातrsquo नार स भी एक रटपणणी कतिखकर वषणव पाडो-परोकतहतो की खिकर

आिोचना की गयी थी तिवार जी न कतिखा ह दक राददरो क भीतर कतसतरयो का यौन शोषण और वयाकतभचार

इतना भीषण था दक दयानाद भारतद क पकतषट सापरदाय को lsquoकषठी सापरदायrsquo कहत थ १८६० क आरमभ र ही

वषणव गोसाइयो क अनाचार और यौन शोषण क कतखिाफ बमबई र एक बड़ा आनदोिन पकतषटरागी

करसनदास रि जी क नततव र हो चका था वषणव बकतनया पषठभकतर स आय करसनदास जी उन नौजवानो

र थ कतजनहोन एकतिफ सटन कॉिज स आधकतनक कतशकषा परापत की थी गोसाइयो और रहाराजो िारा अपन

lsquoसमपरदाय की बह बरटयोrsquo क साथ होन वाि अतयाचार क कतखिाफ उनहोन िख कतिख और समपरदाय क

इकततहास को नए कतसर स सारन रखा पण स आए जदनाथ वजरतन जी रहाराज न करसनदास जी पर

रानहाकतन का रकदरा दायर कर ददया इसी रक़दर स वषणव रहातो की कई सारी बात जनता क सारन

परतयकष हई तिवार जी न इस lsquoरहाराज िाइबि कसrsquo को भारतीय नवजागरण र वषणव गोसाइयो क

दराचार और यौन शोषण क कतखिाफ हआ सबस बड़ा आनदोिन कहा ह भारतद पर इसका बहत परभाव

था यह कस १८६० र हआ था एक दशक बाद जब भारतद सापरदाय क कायो र रत थ उसी सरय कतिख

रह थ ldquoराददर कया होत ह रानो कतसतरयो की खान ह जसी चाकतहए िीकतजय- वराच अचछी सतरी भी वहाा जाकर

कतबगड़ जाती ह आशचयम यह ह दक कतजनको व िोग बटी कहत ह और जो उनक परिोक क रधयसथ ह और

कतजनको वो दीकषा दत ह उन कतसतरयो की ओर व आप ही बरी दकतषट स दखत ह ओर रर पयार कतहनदओ तर

इनक जाि र कब तक फा स रहोग और कया तरको यही सासार स बचावग और इनही क भरोस तरको

भगवान कतरिगाrdquo33

राददरो क धन-ऐशवयम और वयाकतभचार र डब जीवन क जीवात कतचतर हर बनारस क रखाकतचतर lsquoपरर

जोकतगनीrsquo क अिावा lsquoकाशी क छायाकतचतर क दो बर-भि फोटोगराफrsquo र भी कतरित ह यहाा भारतद का वयागय

अपन वषणव सापरदाय की आतरािोचना स सदकय ह lsquoपरर योकतगनीrsquo नाटक र आन वािा चररतर रारचादर

खद भारतद ही थ नाटक का सतरधार कहता ह दक भारतवषम की दीन हीन गकतत क कारण उसका तो

कतवशवास ही ईशवर स उठन िगा ह नाटक क पहि ही दशय र भारतद हर राददर क भीतर कतिए चित ह

33 वसधा डािकतरया िारा उदधत पषठ- ३३७

30

जहाा राददर र कार करन वािा साधारण टहिआ झपरटया हर ददखाई दता ह पजारी बाब अभी तक नीद

स नही जाग ह कयोदक आधी रात तक lsquoबठ क ही-ही-ठी-ठी करा चाह दफर सबर नीद कस खिrsquo कतनकतशचत

रप स यह टहिआ सबह सवर ही राददर र हाकतिर ह िदकन दवता अभी राददर र सोय ह रारचादर

परदशी ह काशी र बाहर स आय ह छकक जी और राखनदास इस रारचादर की आिोचना करत ह इनक

सावादो स पता चिता ह दक बाब रारचादर क यहाा ददन रात नाच गाना हआ करता ह और उनको अपनी

कतवदया का घराड ह दो चार ककतवतत भी बना ित ह पर lsquoककतवतत बनाव स का होव और ककतवतत बनावन कछ

अपन िोगन का कार थोर हय ई भााटन का कार हयrsquo छकक जी कहत ह दक अपन रागम का उनह कछ जञान

तो ह नही बस दो चार बात इधर उधर स सनकर कछ lsquoदकसतानी रतrsquo सीखकर पाकतडत बन दफरत ह

कतनकतशचत रप स य भारतद पर िगन वाि आरोप थ राददर र सवारी धनदास वकतनतादा बभकतकषत पाकतडत

आदद धरम क ठकदार ह इनकी पतनशीि सासककतत को दखकर रारचादर का दःख इन शबदो र वयि होता ह

lsquoहा कया इस नगर की यही दशा रहगी जहाा क िोग ऐस रखम ह वहाा आग दकस बात की वकतदध की

साभावना करrsquo lsquoवददकी हहासा हहासा न भवकततrsquo जस शरआती नाटको र भी करमकााडी परोकतहतवाद की

आिोचना की गयी ह राजा और परोकतहत कतरिकर वहाा जनता का शोषण करत ह जआ रददरा और

रथन की ऐययाश सासककतत क परतीक परोकतहतो का काजरवरटव दि इन परहसनो र रतम होता ह कतचतरगपत यर

स कहत ह ldquoरहाराज य गर िोग इनक चररतर का कछ न पकतछए कवि दमभाथम इनका कततिक रदरा और

ठगन क अथम इनकी पजा कभी भकति स ररतम को दाडवत न दकया होगा पर राददर र जो कतसतरयाा आयी उनको

सवमदा तकत रह रहाराज इनहोन अनको को कताथम दकया ह और इस सरय तो र lsquoशरीरारचनदर जी का

शरीकषण का दास हाrsquo पर जब सतरी सारन आव तो उसस कहग lsquoर रार तर जानकी र कषण तर गोपीrsquo और

कतसतरयाा भी ऐसी रखम दक दफर इन िोगो क पास जाती हrdquo34

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo की ररपोटम र सतरी सधारो क कायो की रहतता बतान क बाद जाकतत वयवसथा पर

इन सधारको का परहार कयो जररी था इस बताया गया ह कठोर जाकतत बनधनो क चित कस हर साि

जाकतत-बाहय होकर जाकतत र वापस आन क दकसी उपाय को न जान lsquoहजारो रनषय आयम पाकति स हर साि

छटत थ उसको इनहोन रोकाrsquo इस परकार इन सधारको न lsquoआयमधरमrsquo क भीतर जो पररवतमन करन चाह

उसस आयो की एकता दफर स बहाि हो गयी इसक अिावा अाधकतवशवासो को इनहोन दर दकया यही नही

बकतलक जहाा िोग lsquoरसिरानी पीर पगमबर औकतिया वीर ताकतजया गाजी कतरयाा कतजनहोन बड़ी ररतम तोड़कर

और तीथम पाटकर आयम धरम कतवधवास दकयाrsquo उनको भी पजन िग थ और lsquoकतवशवास तो रानो कतछनाि का अाग

हो रहा थाrsquo ऐसी िजजाजनक कतसथकतत स िोगो को बाहर कतनकािकर lsquoसार आयामवतम को शदध lsquoिायिrsquo कर

34 दख रारकतविास शराम पषठ १३१

31

ददयाrsquo lsquoिायिrsquo कर ददया गया इसका अथम आयम जाकतत को दफर स िायि करन र था आयम जाकतत क भीतर

कतबगाड़ क चित ही कतनमन जाकततयो का बड़ परान पर पिायन था इस इन िोगो न रोका और इनक परताप

स ही अनक छोट और सथानीय धरम-रतो क भीतर जो lsquoरसिरानीrsquo परभाव घस आय थ उनको दफर स lsquoबड़ी

ररतमrsquo की कतनषठा र िाया जा सका इस परकार कतहनद धरम और वणामशरर क परकतत दफर स िोगो को lsquoिायिrsquo

दकया यह lsquoिायकतिटीrsquo भारतद की रकतडकि वषणवता क जनरत क कतिए भी जररी था तिवार जी जब

आयमसराकतजयो की lsquoकााकततकारीrsquo भकतरका ददखात ह तब आयम सराज िारा आयामवतम को िायि बनान वािी

इस भकतरका की साकतशलषटता पर जयादा बात नही करत भारतद दयानाद क कााकततकारी परयासो र lsquoिायिrsquo

बनान की परदकया उसी वक़त दख रह थ और इसी कारण ररपोटम र दयानाद की आिोचना धयान दन िायक

ह सवारी जी न ldquoजाि को छरी स न काटकर दसर जाि ही स कतजसको काटना चाहा इसी स दोनो आपस

र उिझ गए और इसका पररणार गह कतवचछद उतपनन हआrdquo गह कतवचछद का रतिब कतहनद धरम र गह

कतवचछद जबदक कशवचादर सन क बार र कहा गया दक उनहोन जाि काटकर भकति की उचछकतित िहरो का

पररषकत पथ परकट दकया इस परकार रकतडकि वषणवता की lsquoअनयताrsquo और परररिक भकति क परशसत पथ क

सवीकार का कतनषकषम कतवचार सभा का भी कतनषकषम था धयान दन िायक ह दक कशवचादर की आिोचना उनक

कतचतत कतवकषप क कारण की गयी थी जहाा lsquoईसारसीह आदद उनस कतरित हrsquo य एक दकसर का इिहारी

अनभव था कतजस भारतद अपनी वषणवता स बाहर रखत ह ईशवर न इस ररपोटम पर अपना रत सरकतकषत

रख कतिया और भारतद कतिखत ह ldquoइसको दख कर इस पर कया आजञा हई और व िोग कहाा भज गए यह

जब कर भी वहाा जायग और दफर िौट कर आ सक ग तो पाठक िोगो को बतिावग या आप िोग कछ

ददन पीछ आप ही जानोगrdquo

३ जनरत और वषणवता

ककतववचन सधा ९ राचम १८७२ र भारतद न lsquoPublic Opinion In Indiarsquo नार स अागरजी र

एक िख परकाकतशत दकया िख र उनहोन कहा दक कई सददयो दक दासता क बाद भारतवषमहहादसतान अब

जाकर कतिरटश राषटर क सवोचच कतनयातरण र आया ह दश धीर-धीर सभयता और परबोधन की पकतशचरी दकरणो

क सहार दरन और कशासन क रतय-तलय कतनदरा स जाग रहा ह कतिरटश शासन की परगकततशीि नीकततयो का

परभाव यहाा की बहरपी आबादी पर पड़ रहा ह

ldquoBut in this progressive state national energy and zeal sympathy and

disintiredness are waiting to make both the conqueror and the conquered to act in

32

concert and in harmony and hence we have the broad distinction of white and

black still But in this country many are the blemishes that adhere to us to be

eradicated and many are the shortcomings that are hovering around us to be done

away with before we can have a public opinion here in its true senserdquo35

गोर और काि क बड़ भद को छोड़ कर कतवजता अागरजो और भारतीयो क बीच एक सराजन तो बन गया ह

पर अनदरनी ददककत अभी भी राह बाए खड़ी ह रौका ह दक इस परगकततशीि कतसथकतत का फायदा उठा कर हर

एक सचच जनरत का कतनरामण कर सचच िोकरत क कतनरामण र अादरनी बाधाएा कया थी भारतद न इस

आग सपषट करत हए कतिखा-

ldquoRace antagonism rivalry and mutual misunderstanding are the favourite

occupations of the aristocratic class Want of confidence among all classes of men

are the prevailing characteristic of the nation and above all multifarious castes and

creeds with there numerous forms of religion and local habits and customs which all

combined have kept the progressive policy at a stand still True it is that a

representative Government is a boon to this country and true it is that Sir Bartle

fregravere a man of vast experience and a good statesman has found out that in village

community we can have public opinion but with all his experience he has lost sight

of our national defects ndash defects which we ourselves know and which no foreigner

can catch at a glancerdquo36

भारतद इस बात को िकर कतनकतशचत ह दक िोकरत और परकततकतनकतधरिक सासथाओ क बहतर कतवकास क कतिए

सीध-सीध कतवदशी रॉडि कभी सफि नही हो पायगा ऐसा इसकतिए कयादक हरारी आपसी कतवकतभननताओ

और झगड़ो को कोई बाहरीकतवदशी सतता कभी भी परी तरह सरझ नही सकती lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo नार

35भारतद गराथाविी -6 361

36 वही

33

स भारतद का एक दसरा िख इस अागरजी वाि िख क दो साि बाद अपरि सन १८७४ र हररशचनदर

रगजीन र छपा पकतबिक ओकतपकतनयन कया बिा ह इस साफ़ करत हए भारतद िख क आरमभ र ही कहत

ह ldquoपकतबिक ओकतपकतनयन अथामत सब साधारण िोगो की राय कया वसत ह और इसर दकतना जोर ह और

इसक कतिए कया हो सकता ह यह परशन ठहरा तो इसका साधारण उततर यही ह दक यह वह वसत ह जो

सासार को एक कर सकती ह गागा की धरा दफर कतहरािय पर चढ़ा ि जा सकती ह सययम को पकतशचर उगा

सकती ह और चाह तो ईशवर को भी पकड़ क कठपतिी की भााकतत नचा सकती हrdquo37 यह पकतबिक

ओकतपकतनयन lsquoएक रतrsquo होना ह जस अिग अिग चार पतिी िककतड़यो को एक साथ बााध दन स उस

तोड़ना करठन हो जाता ह उसी तरह एक रत होन स बड़ स बड़ा बरी भी हरारा कछ कतबगाड़ नही सकता

बहत स िोगो का रत एक हो तो वह शकति बन जाती ह हिारो आदरी की बकतदध एक हो जाए तो ldquoऐसा

कौन कार ह जो न हो सक तो यह कतसदधाात हआ दक कतनशचय सब िोगो क रत र बड़ी सारथयम ह इसस यह

कतसदध हआ दक बिो स बड़ा बि एक रत ही हrdquo38

आग भारतद कहत ह दक यह जनरत और उसकी शकति हहादसतान क कतिए कोई नई बात नही ह

पराचीन काि र इसक उदाहरण कतरित ह lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo की इस धारणा को भारतद न इकततहास क

अिग-अिग दौर र बनत और कतबगड़त ददखाया सबस पहि चार वणो की िररत पड़ी सब कार को

सचार रप स चिन क कतिए दसर शबदो र कह तो शरर-कतवभाजन की िररत स इसका जनर हआ

lsquoकतहनदओ न अपन गर क कार र इस वणामशरर धमरम को इसी वासत बनाया कतजस र उन क दकसी कार र

कोई हजम न हो और उनिोगो न सासार क सब कारो र चार कार रखय सरझrsquo धरम कतवदया और किाओ का

कार िड़ाई और राजय परबाध का कार वयापार और धन और सब िोगो की सवा और रजदरी इन चार

कारो की सवयवसथा वािा वणामशरर दरअसि lsquoएक रतrsquo कतहनद वयवसथा या lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo थी पर

कािाातर र इस lsquoएकरतrsquo क भीतर जाकततवयवसथा कठोर हो गयी और िाहमण और शदर दोनो एक दसर क

कतखिाफ हो गए एकरत र कतवचछद पदा होन स कतहनद शकति करिोर हो गयी भारतद क अनसार आपस

का यह झगड़ा बड़ा कतवनाशकारी साकतबत हआ पकतबिक ओकतपकतनयन क कतबना वयाकतभचार और जयादकततयो का

अाधर था आग चि कर जनो क जरान र दफर lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo न जोर पकड़ा बकतलक भारतद जोर

दकर कहत ह दक जनो क रत की उततपकततत ही lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo स हई ldquoकतहनदओ क जब नाश क ददन

जब कतनकट आय तो आपस र परसपर बड़ा कतवरोध खड़ा हआ और उस काि र िाहमणो का बड़ा जोर था

वरन य और वणो पर जयादती करत थ तो वशय और कषकततरयो की रकतत इनस दफर गयी और बाब वािी बड़ी

37गराथाविी- 678

38वही

34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

36

कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

37

उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

38

ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 19: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

19

को भी कतगन सकत ह वयासदव एक ऐस बकतदधजीवी क रप र सारन आत ह जो दकसी का भी पकष िन स

बचत ह पर उनका रान दोनो खरो र ह ldquoकतबचार बढ़ वयासदव को दोनो दि क िोग पकड़-पकड़ कर ि

जात और अपनी अपनी सभा का lsquoचयररनrsquo बनात थ और बचार वयास जी अपन पराचीन अवयवकतसथत

सवभाव और शीि क कारण कतजसकी सभा र जात थ वसी ही विता कर दत थrdquo कतिबरिो की तिना र

का जरवरटव दि जयादा रजबत था कयोदक उनह सवगम क जरीदारो का सहयोग परापत था काजरवरटव दि की

आतराएा साकीणम कटररपाथी आतराएा थी य आतराएा उन परान िरान क ऋकतष रकतनयो की आतराएा ह जो

ldquoयजञ कर करक या तपसया करक अपन-अपन शरीर को सखा-सखाकर और पच-पच कर ररक सवगम गए हrdquo

करमकााड और वरत उपवास आदद को भारतद वही तक सही रानत थ जहाा तक व शरीर को कषट न पहाचाएा

कठोर दह साधना करन वाि इन ऋकतष रकतनयो की आतराएा सधारो क कतखिाफ थी और इनका साथ दन

वाि जरीदारो र lsquoउदार िोगो की बढ़तीrsquo स अपना रान-अकतभरान और बि कतछन जान का डर था

कतिबरि दि भिो की आतराएा या तो सावमजाकतनक जीवन क उचच रलयो या आदशो क सापादन क चित या

पररशवर की भकति स सवगम र गयी थी

सराज सधार और वयकतिक परर रिक भकति- कतिबरि कतवशवदकतषट को भारतद इसी पररपरकषय र दख

रह ह रकतडकि वषणव दि भिो क कतिए वषणव होन रातर स य चीज पहि स ही उपिबध थी भारतद क

कतिए वषणवता सवाभाकतवक रप स कतवशवदकतषट ह पर रकतडकि वषणव इस सवाभाकतवक उदारता को

राजनीकततक रप दन वाि ह वषणव उदारता का और उसक भावावग का राजनीकततकरण करन वाि रहा

रकतडकि इस तरह भारतद क कतिए वषणवता की आधकतनक वयाखया र सराज सधार वयकतिक परर रिक

भकति और राजनीकतत तीनो का lsquoएकाrsquo ह इस एका क रकतडकि परयास क कतिए जनरत या िोकरत का

कतनरामण आवशयक ह भारतद की रकतडकि वषणवता ही lsquoसब उननकतत का रिrsquo ह यह एक िोककतपरय

वयावहाररक कतवचारधारा क रप र आकर गरहण करन वािी वषणवता ह यह रकतडकि वषणवता धरम का

राजनीकततकरण ह

काजरवरटव दिभिो को दवताओ का सरथमन परापत था य दवता ही सवगम क जरीदार थ अपन

अपन तरीक स इन दवताओ न काजरवरटव दि की सथानीय शाखाएा भी खोि िी और वहाा इनक पकष र

lsquoपरकाश सभाएाrsquo होन िगी कतिबरि दि वािो क पकष र कवि इस lsquoकतहनद सवगमrsquo क िोग नही थ ldquoइधर

lsquoकतिबरिrsquo िोगो की सचना परचकतित होन पर रसिरानी-सवगम और जन सवगम तथा दकसतानी सवगम स पगमबर

कतसदध रसीह परभत कतहनद सवगम र उपकतसथत हए और lsquoकतिबरिrsquo सभा र योग दन िग बका ठ र चारो ओर

इसकी धर फि गयीrdquo अिग अिग सवगम कतवकतभनन धाररमक पहचानो की ओर इशारा करता ह बका ठ कतहनदओ

का सवगम ह और यह नया धरम आनदोिन रखयतः कतहनद धरम की एक बड़ी पहचान क भीतर ही पदा हआ ह

20

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग क तीन कतनकतहताथम वसधा डािकतरया न भारतद यग क सनदभम र नोट दकय ह23 पहिा

एक पराक औपकतनवकतशक lsquoकतहनद अथमrsquo जहाा हहादसतान का हर बाहशादा शाकतरि था दसरा परसपर कतभनन

धाररमक रतो और आसथाओ की कतनकट अातरकम या क अथम को वयि करता ह कतजसक आराकतभक साकषय सलतनत

कािीन ऐतहाकतसक वतताातो र कतरित ह यहाा यह शबद lsquoतकम rsquo क सरानाातर उपयोग र आया था और

सारानयतः रसिरानो क बरकतखिाफ उपयोग दकया जाता था आरमभ र यह धाररमक कर साराकतजक-

राजनीकततक अथो र जयादा परयि होता था अागरजी राज क साथ यह दसरा अथम धरम स अकतनवायमतः जड़कर

lsquoकतहनदवादrsquo की कतवचारधारा र बदि गया जमस कतरि आदद क इकततहासो र lsquoकतहनदकािrsquo और lsquoरसिरान

कािrsquo की ऐकततहाकतसक कलपना क साथ कतहनद शबद जड़ गया था भारतीय भी रसिरानो को सारन कर

lsquoकतहनद पीकतड़त गराकतथrsquo क कतिए इस शबद का इसतराि करन िग कतहनद शबद का तीसरा अथम राषटर की

अवधारणा स जड़कर बन रहा था आरथमक राषटरवाद और अागरजी राज की यातना की साझी सरकतत स बनन

वाि इस तीसर अथम का रतिब था- lsquoजो कतहनदसतान र रह वह कतहनदrsquo रारकतविास जी भारतद क यहाा

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग को इनही अथो र ित थ पर वसधा डािकतरया का कहना ह दक यह तीसरा अथम दसर क

वयापक परभाव र था तीनो अथो की अातरकम या क बार र डािकतरया न कतिखा ldquoतीसरा अथम या राषटरवादी

अथम कभी भी अपन धाररमक साकताथो स परी तरह छटकारा नही पा सका इस पद की परयकति उननीसवी

सदी र अकतसथर बनी रही और इसक रखतकतिफ रायनो र आपसी जड़ाव कायर रहा बावजद इसक दकसी

परदतत सनदभम र lsquoकतहनदrsquo क पराथकतरक अथम को कतनधामररत करना साभव ह यदद एक बार यह तय हो जाय दक

इिाकाई धाररमक राषटरीय र स दकस आधार पर यह पद परयोग र आ रहा ह और lsquoअनयrsquo की भकतरका र

दकस रखा जा रहा ह चाह वह अनय जसा दक परानी इिाकाई परयकति र ददखता ह फारसी या तकी हो

या रसिरान (कतजस इस िरान र भी कई बार सरह क हवाि स तकम ही कहा जाता ह) या दफर अाततः

औपकतनवकतशक सवारी िदकन यह बात ददराग र रखना जररी ह दक धाररमक सरदाय को कतनरदमषट करन

वािी दसरी परयकति अतयात परभावी सनदभम-हबाद बनी रहती हrdquo24

इस सनदभम र दख तो कतिबरि दिो क सरथमन र शाकतरि lsquoअनयrsquo कतहनद धरम क सधारवाद क सरथमक

ह और lsquoसधारोrsquo र छपी वकतशवक भावनाओ को सरथमन दन पहाच ह का जरवरटव दिो की lsquoअनयताrsquo यहाा नोट

करन िायक ह इस अनयता र साराती जरीदार और करमकााडी िाहमणवाद का बिाक ह जबदक कतिबरि

दकतषट क आसपास एक lsquoसायि रोचrsquo की कलपना की गयी ह धयान रखना चाकतहए दक भारतद क रकतडकि

वषणव इस lsquoसायि रोचrsquo क बाहर ह उनका lsquoएबसटकतनजरrsquo वषणव होन क चित नही बकतलक रकतडकि या

23 वसधा दिकतरया कतहनद परमपराओ का राषटरीयकरण भारतद हररशचादर और उननीसवी सदी का बनारस अन साजीव करार योगनदर दतत पषठ-

४०-४२ राजकरि पपरबकस नई ददलिी- २०१६

24 वही पषठ- ४२

21

रहा रकतडकि होन क चित था कतनकतशचत रप स सवगम सासद का रपक ह और सवगम का राजा ईशवर

कतनषपरभावी हो गया ह और जनता सवया जनरत क िारा कतनणमय कतसथर करन पर जोर दती ह जनरत क

िारा lsquoसलफ गवनमरटrsquo का परयास सबस पहि वषणव भिो न दकया था और आज क कतिबरलस उसी को

आग बढ़ा रह ह ईशवर क पास दोनो दिो क िोगो न जब अपन अपन ररोररयि तयार कर भज तो ईशवर

न दोनो दिो क डपयटशन को बिाकर कहा ldquoबाबा अब तो तरिोगो की lsquoसलफगवनमरटrsquo ह अब कौन

हरको पछता ह जो कतजसकी जी र आता ह करता ह अब चाह वद कया सासकत का अकषर भी सवपन र भी न

दखा हो पर धरम कतवषय पर वाद करन िगत ह हर तो कवि अदाित या वयवहार या कतसतरयो क शपथ

खान को ही कतरिाय जात ह दकसी को हरारा डर ह कोई भी हरारा सचचा lsquoिायकrsquo ह भत परत ताकतजया

क इतना भी तो हरारा दजाम नही बचा हरको कया कार चाह बका ठ र कोई आवहर जानत ह चारो

िड़को (सनक आदद) न पहि स ही चाि कतबगाड़ दी ह कया हर अपन कतबचार जयकतवजय को दफर राकषस

बनवाव दक दकसी का रोकटोक कर चाह सगन रानो चाह कतनगमन चाह ित रानो चाह अित हर अब न

बोिग तर जानो सवगम जानrdquo

काजरवरटव दिभिो न दयानाद और कशवचादर सन पर कया कया आरोप िगाय यह दख िना

चाकतहए दयानाद को सवगम र सथान नही कतरिना चाकतहए कयोदक १ इसन पराणो की हनादा की २ ररतमपजा

की हनादा की ३ वदो का अथम उलटा-पलटा कर डािा ४ दस कतनयोग करन की कतवकतध कतनकािी ५ दवताओ

का अकतसततव कतरटाना चाहा (दवताओ याकतन जरीदार) ६ इसन धरम कतवपिव दकया और आयामवतम को धरम

बकतहरमख दकया पकतशचरोततर परानत क परकततकतनकतध क रप र lsquoकाशी क कतवशवनाथ जीrsquo न lsquoउदयपर क एकहिाग

जीrsquo पर दयानाद क सरथमन का आरोप िगाया कतवशवनाथ जी काजरवरटव दिो की तरफ स यह आरोप िगा

रह थ परब की अपकषा पकतशचरी इिाको र आयम सराज क परभाव की चचाम क सनदभम र एकहिाग जी का

जवाब धयान दन िायक ह कतवशवनाथ जी न जब एकहिाग जी को कतधककारत हए कतिबरिो क साथ कतरि जान

को कहा तब एकहिाग जी न कहा ldquoभाई हरारा रतिब तरिोग नही सरझ हर उसकी बरी बातो को न

रानत न उसका परचार करत कवि अपन यहाा क जागि की सफाई का कछ ददन उसको ठका ददया बीच

र वह रर गया अब उसका राि रता रठकान रखवा ददया तो उसका बरा दकयाrdquo यह एकहिाग जी

दफ़िहाि सवारी जी क दि क सभापकतत बन ह आकतखर इनहोन अपन यहाा क दकस lsquoजागिrsquo की सफाई का

ठका सवारी जी को ददया था यह जागि छोट-रोट धाररमक समपरदायो और रतो का जागि था एकहिागी

जी और काशी क कतवशवनाथ जी दोनो ही िाहमणीकत शवरत क धाररमक परतीक ह पर जहाा काशी क

कतवशवनाथ शर स ही दयानाद क कतवरोधी थ वही एकहिाग जी रणनीकततक रप स दयानाद क पास गए थ यह

साकीणम कटररपाथ क भीतर का कतववाद था यह बात गौर करन िायक ह दक जगननाथपरी र जब भरव की

22

रौजदगी का कतववाद भारतद क सारन आया था उस सरय उनहोन इस बात का परतयाखयान दकया था दक

भरव की परकततरा अनाददकाि स वहाा ह भारतद न पराण आदद स साकषय दकर यह परराकतणत दकया दक

कषण ही एकरातर उपासय ह तिवार जी न इस घटना का उलिख करत हए कतिखा ह दक ldquoदकसी वयकति न

lsquoतहकीकातपरीrsquo दकताब दकखकर बताया दक वहाा पहि भरो की पजा होती थी वषणवो न उसकी ररतम

उखाड़ फ की थी बाद र पाडो न जगननाथजी (कतवषण) क साथ भरो को दफर स परकततकतषठत दकया यह रारिा

काशी धरमसभा क सारन १८७० र आया भारतद न धरम साबाधी पसतक र lsquoतहकीकातrsquo जस फारसी शबद

की आिोचना करत हए कतवकतभनन धरमगराथो स परराण जटाकर दो बातो पर जोर ददया एक इसका परराण

नही कतरिता ह दक वहाा जगननाथजी क साथ पहि भरो की भी ररतम थी कतजस वषणवो न उखाड़ फ का दो

अगर वह थी भी तो यह उकतचत था या नही- इसपर कतवचार होना चाकतहए भारतद न अपनी वयवसथा दत

हए कतिखा दक भरो कतवषण स बहत छोटा दवता ह इसकतिए यह कतवषण क साथ बठाया नही जा सकता

lsquoदसर भरव कापाकतिको क दवता ह उनका पजन वषणव-सरातम सबको कतनकतषदध हrsquo गौरतिब ह दक भारत

र कतवकतभनन सथानीय धरो क परकतत कतजतन असकतहषण और फा डारटकतिसट आयमसराजी थ उतन ही काशी क

सनातनी भी थrdquo25

सथानीय धरम-रतो क जागि को साफ़ करन र आयमसराकतजयो और काशी क सनातनी पाडो क इस

गठजोड़ स भारतद भी वादकफ थ िदकन आयमसराकतजयो क साथ उदयपर क एकहिाग जी का रोचाम कसा

था इस भी भारतद बखबी सरझ रह थ सथानीय रतो क साथ भारतद का समबनध कसा था इसका पता

उनक छोट-छोट यातरा सासररणो स भी चिता ह lsquoसरय पार की यातराrsquo26 र रहदावि का हाि बयान करत

हए lsquoपराणनाथrsquo क रिहब का भारतद आशचयम क साथ उलिख करत ह भारतद क ही शबदो र ldquoयहाा एक

पराणनाथ का रिहब ह और दस बीस िोग उसक रानन वाि ह य िोग एकादशी तीथम वगरह को नही

रानत और सन सनाय दो तीन शलोक जो याद कर कतिए ह बस उसी पर चर हो lsquoरदीनासया शारदाा शताrsquo

और lsquoगोकतवनदrsquo lsquoगोकिानाद रककशवरrsquo यह शलोक पढ़ क कहत ह दक वद र रकका रदीन का वणमन ह ऐस ही

बहत वाकतहयात बात करत ह और कोई दकतना भी कह कछ सनत नही कहत ह दक गोिोक का नाश ह

और गोिोक ऊपर एक lsquoअखाड रणडिाकारrsquo िोक ह उसर रर कषण ह इनका रिहब एक पराणनाथ नारक

एक कषतरी न पनना र करीब तीन सौ बरस हए चिाया थाrdquo भारतद इस अजीबो गरीब lsquoरिहबrsquo का कषण स

कया साबाध ह यह सोचकर ताजजब र थ इस lsquoरिहबrsquo क गरनथ र भारतद न एक शलोक बलिभाचायम का

दखा तो उनका राथा और घर गया ldquoकि रिहब का हाि हरन नीच कतिखा था उसका अचछी तरह स

25 वीरभारततिवार रससाकशी १९वी सदी का नवजागरण और पकतशचरोततर परानत पषठ- १५२ सारााश परकाशन ददलिी- २००६

26 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन पषठ- १३७-३८

23

हाि दरयाफत दकया तो रािर हआ दक हरार ही रिहब की शाखा ह इनक गराथो र हरन एक शलोक शरी

रहापरभजी की सबोकतधनी की काररका का दखा इसी स हरको सादह हआ दफर हरन बहत खोद खाद कर

पछा तो वह साफ़ रािर हआ दक इसी रत स यह रत कतनकिा ह कयोदक एक बात वह और बोि दक हरारा

रत शरी बलिभाचारज की टीका र कतिखा ह इन िोगो क उपासय शरीकषण ह और एकादशी शािगरार

ररतमपजा तीथम दकसी को नही रानत इनक पकतहि आचायम दवचाद जी थ जो जाकतत क कायथ थ और दसर

पराणनाथ जी जो कचछ क कषतरी (भारटया) थ हरार ही रत की शाखा सही पर कतवकतचतर रत ह वषणव होकर

ररतमपजा का खाडन करन वाि यही िोग सनrdquo वणमन स सपषट ह दक सात और कतनगमण पाथो क साथ वषणव

कतवचारधारा क आदान-परदान का साकतशलषट इकततहास भारतद क कतिए ताजजब की चीज थी पर इन सबक बीच

आकतखर उनहोन इसक वषणव रि का पता िगा कतिया और वषणवता की इस धाररमक कतवचारधारा र उनहोन

ररतमपजा का कतवरोधी होना भी शाकतरि रान कतिया भारतद न ररतमपजा क सरथमन र बड़ बड़ िख कतिख

थ इसकतिए असाभव नही दक कषण क परकतत परररिक भकति क कतिए ररतम की जररत पर उनहोन कछ पछा

जरर होगा िदकन lsquoकोई दकतना भी कछ कह सनत ही नहीrdquo आग चिकर lsquoवषणवता और भारतवषमrsquo र

वह बड़ कतवशवास क साथ घोकतषत करत ह दक ldquoपहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद कतजतन पाथ ह सब

वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और भारतवषम इन पाथो स छाया हआ हrdquo27 तब वह वषणवता और

िोकरतो और रधयकािीन पाथो क भीतर पहि स सदकय एक ऐकततहाकतसक परदकया का सारानयीकरण कर

उसका नार lsquoवषणवrsquo रख रह थ अकारण नही दक उसी िख र वषणव वयापकता को बतान क कतिए

परचकतित lsquoनारोrsquo का साकषय पश दकया गया ह वयकतियो स िकर वरत और उपवासो तक यह परभतवशािी

सारानय बोध की कतवचारधारा थी कतिवदी जी रधयकािीन वषणवता को िोकधरम कहत थ भारतद

उननीसवी सदी क िोकधरो को वषणव कहत ह

काजरवरटव दिो की तरफ स कशवचादर सन पर िगाय गए आरोप थ १ वद पराण सबको कतरटा

डािा २ दकसतान रसिरान सबको कतहनद बनाया ३ खान पीन का कतवचार कछ न बाकी रखा ४ रदय की

तो नदी बहा दी आयम सराकतजयो क ऊपर रखयतः आरोप lsquoआयामवतम को धरम बकतहरमखrsquo करन का ह धरम

बकतहरमख अथामत सनातन धरम स कतवरख उनहोन कवि धरम क भीतर कतवपिव दकया परनत िहमो सराज न तो

lsquoभारतवषम का सतयानाशrsquo कर डािा इनहोन तो पराणो क अिावा वदो को भी कतरटा डािा lsquoआयामवतमrsquo की

जातीय पकतवतरता नषट करक दकसतान रसिरान जस lsquoकतवदशी ततवोrsquo को घर र घसा कतिया कटररपाथी

करमकााकतडयो क कतिए इनक साथ रणनीकततक तौर पर भी रोचाम बनान वािा कोई एकहिाग जी तयार नही

था सनातकतनयो िारा दकया गया यह बारीक भद खद कतिबरि दिभिो क भीतर का भी अातरवमरोध था

27 भारतद वषणवता और भारतवषम वही पषठ-७६

24

कतिबरिो की सभा र भी दो दि हो गए थ एक सवारीजी क सरथमको का दि था और एक कशव

क सरथमको का कतहनद कतिबरिो की आताररक एकता कतिकतवभाकतजत थी दयानाद क सरथमको क अनसार सवारी

जी न कतहनदओ की आतरा को जगाया था उनह सफतम बनाया वरना तो आयामवतम क आिसी और रखम

रोहकतनदरा र ही कतनरगन थ इस तरह रखम और आिसी सारानयजनो को lsquoिाहमणो क फा द स छड़ायाrsquo िाहमणो

की तिना भारतद न lsquoपादररयोrsquo स की ह जो lsquoवयथम परजा का दरवय खान वाि हrsquo आयम सराज न सासथाकत

परोकतहतवाद पर हरिा दकया था जो भारतद क कतिए रितः जनता क पसो पर पिन वािा परजीवी वगम

िगता था और तो और आधकतनक कतवजञान क आग जो lsquoआयोrsquo की नाक कटी जा रही थी उस भी सवारी जी

न बचा कतिया उनहोन वदो र भी रि तार करटी कचहरी आदद ददखाकर कतहनदओ र आतरसमरान पदा

दकया दसरी ओर कशव क सरथमको का कहना था दक ldquoधनय कशव तर साकषात दसर कशव हो तरन बाग

दश की रनषय नदी क उस वग को जो कशचन सरदर र कतरि जान को उचछकतित हो रहा था जञान करम का

कतनरादर करक पररशवर का कतनरमि भकति रागम परचकतित दकयाrdquo lsquoजञान करम का कतनरादरrsquo करक भी lsquoकतनरमि

भकति रागमrsquo का जो परवतमन कशव न दकया उसस ही ईसाई lsquoअनयताrsquo का साथमक परकततरोध साभव हआ lsquoरनषय

नदी का आवगrsquo भावावग ह इसी बात को दसर शबदो र कह तो भाव जगत क सवाभाकतवक वग को भगवत

भकति की शदध lsquoअनयताrsquo की ओर रोड़कर उस कतवदशी ईसाई lsquoअनयताrsquo क रागम पर जान स रोक ददया इस

कायम क कतिए वद पराण समरत lsquoजञान-करमrsquo क रागो का कतनरादर अगर करना पड़ा तो भी वह उकतचत ही था

वषणव भकति क रधयकािीन सवरप की जो वयाखया आग चिकर की गयी उसक आराकतभक कतचनन हर यहाा

दख सकत ह कहना न होगा दक भारतद का अपना अनभव भी यहाा बोि रहा ह

शासतरीय काजरवरटव पाटी र दवताओ क अिावा यजञवलकय जस औपकतनषददक ऋकतष क साथ-साथ

नारायण भटर रघनाद भटराचायम राडन कतरशर जस कतनबाधकारो और टीकाकारो का जरघट भी था इसक साथ

साथ इसिारी सवगम स आय हए कटररपाथी कतशया िोगो का भी सरथमन उनह परापत था इस परकार कटररपाथ का

दवताओ (जरीदारो) िाहमणो (पादररयो) जञानरागी औपकतनषददक ऋकतष रधययगीन कतनबाधकारो और

कतवदशी कतशया िोगो का एक वकतशवक रोचाम बन रहा था दसरी ओर कतिबरि दि र चतनय परभकतत आचायम

दाद नानक कबीर परभकतत भि और जञानी िोग भी शाकतरि थ इसक अिावा काजरवरटव दि क

कतवदरोकतहयो को भी कतिबरिो न अपन यहाा जगह दी य कतवदरोही थ अितवादी (या नववदााती) भाषयकार

पाचदशीकार और कोई कतरसटर िडिा इन दोनो िोगो पर शर र का जरवरटव दि वािो न बहत हरि

दकय परनत अात र इनह कतिबरिो न अपन यहाा जगह द दी धयान रखना चाकतहए दक भारतद अपन सापरदाय

क अनरप अित वदाात या रायावाद क घोर आिोचक थ सन १८७३ र हररशचादर रगजीन क पहि ही अाक

र भारतद न शााकतडलय भकति सतरो का अनवाद lsquoभकति सतर वजयातीrsquo नार स परकाकतशत दकया भकतरका र

25

भारतद कतिखत ह ldquo दखो आज वसात पाचरी ह इसस बहत स िोग आर क रौर वा फिो क गचछ िकर

तरस कतरिन आवग तो र भी यह एक फिो की वजयाती रािा बना कर िाया हा अागीकार करो वजयाती

रािा बनान का यह हत ह दक वनरािा होगी तो होिी क खि र अरझगी और इसक कतसवाय इस वजयाती

स कतनशचय करक जञानाददक को जय करना ह पर पयार बहत साभि कर यह रािा पहरना टट न जाए

कयोदक सत कचचा ह और ककतियाा तािी और कोरि ह इस स कमहिान का भी भय ह जो हो इस वसात

पाचरी को तयोहारी रझ यही दो दक इस सतयानाशी lsquoअहरrsquo िहमवाद lsquo को पणमरप स नाश करक और भी

सब बातो र इस नव-वसात र भारतवषम की सब आपकतततयो का बस अात करो और अपन भिो क कतचतत र

नव पलिव दफर स िहिह करो जो सदा एक रस रहrdquo28 lsquoएकरसrsquo भकति क कतिए जररी ह दक जञानवाद

अहर िहमवाद को जड़ स उखाड़ फ का जाय कषण को अरपमत अपनी वजयाती रािा स भारतद जञानाददक

को जय करना चाहत ह एक ओर यह पकतषटरागी परापरा क lsquoवीर वषणवrsquo भारतद का परर कतनवदन ह दसरी

ओर lsquoनव-वसातrsquo र भारतवषम की सब आपकतततयो को नाश करन की सारथयम रपी lsquoउपहारीrsquo का साकलप भी

ह lsquoभारतद भारतवषम की सब आपकतततयोrsquo को दर करन की राह र एक बड़ी बाधा अित क जञानवाद को

रानत ह भकति का lsquoएकरसrsquo पहि भी इसक परभाव स ररझाता रहा ह भारतद का साकलप सापरदाय क

परान कतवरोधो क बावजद बन रहन वाि इस अितवाद का पणम सफाया करन का ह जबतक यह न कतरटगा

परररिा भकति क lsquoकमहिान का भयrsquo बना रहगा भकति सतरो र उपासना कााड को परर कतसकतदध का हत

बताया गया था पर भारतद दख रह थ दक उपासना कााड का परचार कतवरि हो गया ह इसी परचार क

कतनकतरतत उनहोन इन सतरो का भाषा र अथम परचार दकया था १८७३ र ही हररशचादर रगजीन का एक

समपादकीय कतनकिा कतजसका शीषमक था- lsquoभकति जञानाददक स कयो बड़ी हrsquo इस िख र भी उपासना रागम

की रहतता का परकततपादन दकया गया ह तकम और जञान को करम की शकतदध और उपासन की परर कतसकतदध क

रासत र कवि एक चरण बताया गया ह वसधा डािकतरया न भारतद क आराकतभक साापरदाकतयक परचार

परसार क कायो र कतनगमकतनयो को बाहर रखन का उपकर नोट दकया था29 यहाा कतनगमकतनए कबीर आदद lsquoभि

और जञानीrsquo कतिबरिो क सरथमक ददखाए गए ह वषणव भकति क राषटरीय चररतर र य बाहर नही थ उनकी

एकता का आधार उनक lsquoकतिबरि रिrsquo र ह सावमजकतनक उचच भाव का सापादन और भकति इन दोनो क साथ

अित वदााती या जञानाददक- सनातनी परापरा क कतवदरोकतहयो की जगह भी कतिबरि दि पाकतथयो र थी

कतिबरि वाि ही झगड़ क कतनपटार की अजी पररशवर को दन गए थ पर पररशवर अपनी

परतीकातरक हो गयी कतसथकतत स खजिाय हए थ यह सवोचच अदाित थी पर साथ ही साथ शकतिहीन

28 भारतद गराथाविी खाड- ५ पषठ ११३

29 वसधा डािकतरया पषठ ३४२

26

राषटराधयकष की कलपना भी कतजस कतहनद सवगम क य राषटराधयकष ह वहाा दकसी दकसर की सलफ गवनमरट चनन

की परणािी आ जान स ईशवर की एकाकतधकारी शकतियाा कतछन गयी ह िोग जनरत कतनरामण क िारा सही

और गित की पहचान करन िग थ इसकतिए थोड़ा खजिाय तो रहत ही होग lsquoअब कौन हरको पछता

ह तर जानो सवगम जानrsquo परनत साकट गहरा था यदयकतप कतिबरि िोगो की सभा भी धरधार स जर

रही थी पर काजरवरटव दि पाकतथयो की सरकार र पठ थी दवता सब भी उनक साथ थ इसकतिए पररशवर

क पास जररी नयाय का परशन उठाया गया था नयाय दक इन दो रहापरषो को सवगम र जगह कतरिनी

चाकतहए या नही सराज र इनक नकततक उचच आदशो क अवरलयन का परचार काजरवरटव कर रह ह इस

परचार क कारण जनता अपनी निरो स पहचानन र सकषर नही ह ऐसी कतसथकतत सवगम र पहि नही आई

थी नई कतसथकततयो क नए रानदाड कया होग िाकतहर ह नयाय और नकततकता को एक वकतशवक सवीककतत

चाकतहए इसकतिए पररशवर न इस कतवषय पर कतवचार क कतिए जो ककतरटी चनी वह गौर करन िायक ह इस

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo र ldquoराजा राररोहन राय वयास दव टोडररि कबीर परभकतत कतभनन-कतभनन रत क िोग चन

गए रसिरानी- सवगम स क lsquoइरारrsquo दकसतानी स िथर जनी स पारसनाथ बौदधो स नागाजमन और

अफीका स कतसटोवायो क बाप कोrdquo चना गया कतहनद सवगम स नवजागरण क अगरदत वयासदव जस

बौकतदधकिखक टोडररि जस राजनीकततजञ और धरम-ररमजञ कबीर जस जञानी-भि पराचीनो र कवि वयास

दव ह बाकी दो lsquoरधयकािrsquo क और एक lsquoआधकतनकrsquo काि क वयकति ह उधर यरोपीय नवजागरणधरमसधार

क परणता िथर को भी बिाया गया ह और बौदधो की तरफ स परर कतनषधवादी नागाजमन भी ह पर य

अफीका क कतसटोवायो धरो की अकतसरता क साथ-साथ यह अफ़ीकी सवगम कतनकतशचत रप स अफीका की छकतव

पराचीन आददवासी सासककतत वाि एक lsquoकािrsquo रहादश क रप र गढ़ी गयी थी यह अफ़ीकी सवगम साभवतः

आददवासी धाररमक रानयताओ की ओर इशारा करता ह यह भी धयान दन िायक ह दक राजा राररोहन

राय िथर और कबीर इन तीनो क साथ lsquoनवजागरणrsquo की कोई न कोई पररकलपना ठठ सरकािीन कतवरशो

क क दर र भी ह कई अथो र अकबर िारा आयोकतजत होन वािी lsquoसिह-ए-किrsquo जसी धरम सभाओ की एक

रोहक कलपना भी भारतद को रही होगी टोडररि की उपकतसथकतत अकारण नही ह

अकबर को िकर भारतद की इकततहासदकतषट कसी थी इसकी एक झिक हर १८८४ र छपी उनकी

lsquoबादशाह दपमणrsquo की भकतरका र ददखती ह इस गरनथ र उन िोगो का चररतर-कतचतरण दकया गया था ldquoकतजनहोन

हरिोगो को गिार बनाना आरमभ दकया इसर उन रसत हाकतथयो क छोट-छोट कतचतर ह कतजनहोन भारत क

िहिहात हए करिवन को उजाड़कर-पर स कचिकर कतछनन-कतभनन कर ददया रहमरद रहरद अिाउददीन

अकबर और औरागजब आदद इनर रखय ह पयार भोि कतहनद भाइयो अकबर का नार सनकर आपिोग

चौदकए रत यह ऐसा बकतदधरान शतर था दक उसक बकतदधबि स आजतक आपिोग उसको कतरतर सरझत ह

27

दकनत वह ऐसा ही नही उसकी नीकतत अागरजो की भााकतत गढ़ थी रखम औरागजब उसको सरझा नही नही तो

आज ददन हहादसतान रसिरान होता कतहनद-रसिरान र खाना-पीना बयाह-शादी कभी चि गयी होती

अागरजो को जो बात नही सझी वह इसको सझी थीrdquo30 कतनकतशचत रप lsquoबकतदधरानrsquo दशरन स सीखन को बहत

कछ कतरिता ह अकबर की दीन-ए-इिाही क परयोग स भारतद भी बहत कछ सीख रह थ रधयकािीन

इकततहास क बार र रकतसिर शतर की छकतव का कतनरामण पराचयकतवदयाकतवदो क िारा दकया जा रहा था इकतियट

आदद इकततहासकारो न जो दकतषट कतवककतसत की उसका परभाव बहत गहरा था पर इस इकततहासिखन क साथ

साथ भारतद क कछ दशी सरोत भी थ अिग-अिग रहापरषो की चररताविी कतिखन की पररणा भारतद न

कतजतना अपनी वषणव भकति की परापरा स पाया था उतना ही इसिारी इकततहास िखन की परापरा स भी

lsquoबादशाहदपमणrsquo की भकतरका र भारतद कतिखत ह ldquoरर पररातारह राय कतगरधरिाि साहब जो यवनी कतवदया

क बड़ भारी पाकतडत और काशीसथ ददलिी क शाहजादो क रखय दीवान थ उनकी इचछा स ददलिी क परकतसदध

कतविान सययद अहरद न एक ऐसा चक बनाया था कतजसर तरर स िकर शाह आिार तक सब बादशाहो क

नार आदद कतिख थ उस फारसी गरनथ स बहत सी बात इसर िी गयी ह इस कारण तरर पवम क बादशाहो

का वणमन इतना परा नही ह कतजतना तरर क पीछ ह दफर रर रातारह राय कतखरोधरिाि न बहादर शाह

क काि क आरमभ तक शष वतत सागरह दकयाrdquo31

अरणदव जी अपन एक िख र भारतद क आराकतभक अकबर परर का कतिक दकया ह १८७२-७४ क

आसपास भारतद अकबर को रहान शासक रानत थ जबदक औरागजब को कतहनदओ का दशरन नाबर एक

भारतद न औरागजब की तिना र अकबर की रहानता को परराकतणत करन क कतिए रारदास कछवाह क एक

शलोक को अपना आधार बनाया ह इस शलोक का भावाथम भारतद क शबदो र इस परकार ह ldquoजो सरदर स रर

तक पथवी को पािता ह जो रतय स गउओ की रकषा करता ह कतजसन तीथम और वयापार स कर छड़ा ददए

कतजसन पराण सन जो सयम का नार जपता जो योग धारण करता ह और गागाजि छोड़कर पानी नही

पीता उस जिािददीन की जय अाग वाग कहिाग कतसिहट कततपरा कारत (कारटी) काररप अाध कणामटक

िाट दरकतवड़ रहाराषटर िारका चोि पााडया भोट रारवाड़ उड़ीसा रलि खरासान का दहार जमब काशी ढाका

बिख बदखशाा और काबि को जो शासन करता ह ककतियग की रकतहरा स घटत हए वद गउ कतिज और

धरम की रकषा को सगन शरीर कतजसन धारण दकया ह उस अपररय परष अकबर शाह को हर नरसकार करत

हrdquo32 यही अकबर १८८४ र औरागजब स जयादा शाकततर और बकतदधरान शतर र बदि गया lsquoकािचकrsquo क

कतनकतहताथो र यह फरबदि भारतद पर रकतसिर कतवदशीपन और कतहनद शतरता क समपणम बिॉक बनान की

30 बादशाह दपमण भारतद गराथाविी खाड-६

31 वही

32 httpsamalochanblogspotin201209blog-post_9html

28

रणनीकतत क दबाव क कारण था और lsquoपरावकततrsquo की कतरथकीयता र भी कतहनदओ को lsquoरहारोहनासतरrsquo क सहार

पहि भी वश र दकया गया था यह एक बारीक चाि थी अकबर की इस चाि को अागरज भी नही सरझ

पा रह थ भारतद की यह परकततदकया औपकतनवकतशक इकततहासिखन क दबाव र थी १८७३ र जब भारतद

न कतशवपरसाद की दकताब lsquoइकततहासकततकतररनाशकrsquo क तीसर खाड की आिोचना की थी तो उनक सारन

रकतसिर शासन की बबमरता और अागरजी राज क सशासन का कतशवपरसाद िारा ककतलपत आखयान था १८८४

र समपणम रकतसिर काि अनधकार यग र बदि गया कततकतररनाशक क पहि खाड र बाब कतशवपरसाद न भी

अकबर की रजहबी उदारता और साराकतजक सधारो की बड़ाई की थी इस परकार हर दख सकत ह दक

ऐकततहाकतसक िखन र पकष और कतवपकष की पनरावकततत एक बाद घर र उिझी हई थी इनक सारन रकतसिर

कतवरोध और अागरजी शासन क कतवरोध का एक कतवसागत फर था और िखक उसर अपनी फौरी जररतो क

कतहसाब स कतरतर और दशरन वािा इकततहास कतिखता था इकततहास ठठ राजनीकततक ततकाि क वशीभत था

जो भी हो धाररमक उदारता और सिह-ए-कि का परयोग एक कतशकषापरद परयोग था यह कतवकतभनन

रतो या कतवशवासो क बीच lsquoजनरतrsquo बनान का एक रधयकािीन परयोग था भारतद lsquoजनरतrsquo क परयोग को

इस तरह दखत थ रानो यह lsquoचािrsquo अगर कारयाब हो जाती तो lsquoआज क ददन हहादसतान रसिरान होताrsquo

भारतद क सारन सरसया वही थी बस वह कवि यह चाहत थ दक कतहनदसतान lsquoकतहनदrsquo हो जाय कतहनद

अथामत वषणव हो जाय वषणवता भारतद क कतिए हहादसतान का नया lsquoसिह-ए-किrsquo था इसकतिए कछ

सावमजनीन रलयो की तिाश उनह भी थी कतसिकट ककतरटी क उपरोि रमबर lsquoएकसअफीकतशयोrsquo रमबर थ

रोर क परान हररकिस जस दवता कतजनहोन धरती स साबाध तोड़ ददया ह व िोग तथा उनही क जस

पारकतसयो क lsquoजरदशतजीrsquo को कोरसपोहडाग ऑनररी रमबर बनाया गया य धरम क रप र रतपराय रतो क

परकततकतनकतध थ ककतरटी न जो ररपोटम तयार की उसका ररम भारतद न ददया ह यह ररम उनक रकतडकि वषणव

पकष का रत था कतिबरि दि और काजरवरटव दि क अपन पकषो स इतर यह नरनायक तीसरा पकष वषणवो

की तरफ स सनाया गया था रकतडकि वषणवो की तरफ स भारतद इस धाररमक आनदोिन क भीतर अपना

ही पकष रखत हए इसका ररम कतिख रह थ ldquoहरिोगो की समरकतत र इन दोनो परषो न परभ की रागिरयी

सकतषट का कछ कतवघन नही दकया वराच उसर सख और सातकतत अकतधक हो इसी र पररशरर दकयाrdquo कतहनद सराज

सधार क परयासो का ररम बतात हए सबस पहि धयान सतरी सधारो पर ददया गया ह साराकतजक करीकततयो

की कतशकार रकतहिाओ क परकतत जो दकतषट उभरकर सारन आती ह उसक रि र धरम की रीकतत स यौन

रयामदाओ की अवयवसथा को दफर स रयामददत करन की चषटा ह कतसतरयो क करागम पर जान का पहिा कारण

ह रनराना परष धरमपवमक न पाना यह कतववाह सासथा की कतवककततयो की आिोचना थी जहाा बाि कतववाह

कतवधवा कतववाह आदद की तरफ इशारा ह धयान रखना चाकतहए दक यहाा बरि कतववाह क बदि कतसतरयो िारा

29

lsquoरनराना वरrsquo न चन पान का उलिख ह गभमनाश और बाि हतया क कतखिाफ सधार परयास दसरा

रहतवपणम योगदान ह कतववाह सासथा बीच र भी भाग की जा सकती ह इसकी सवीककतत ह कनया क कतहत र

अातरजातीय कतववाह की सवीककतत ह एक रहतवपणम बात गरओ और पाकतडतो क वयाकतभचार क साबाध र ह

भारतद क सारन पकतषटरागी रहातो और गरओ क वयाकतभचार का अनभव भी इसर शाकतरि ह

१८७४ र ककतववचन सधा र भारतद की एक रटपणणी छपी थी lsquoगर को कसा होना चाकतहएrsquo इसक अिावा

दो वषम पहि lsquoगर और रहातrsquo नार स भी एक रटपणणी कतिखकर वषणव पाडो-परोकतहतो की खिकर

आिोचना की गयी थी तिवार जी न कतिखा ह दक राददरो क भीतर कतसतरयो का यौन शोषण और वयाकतभचार

इतना भीषण था दक दयानाद भारतद क पकतषट सापरदाय को lsquoकषठी सापरदायrsquo कहत थ १८६० क आरमभ र ही

वषणव गोसाइयो क अनाचार और यौन शोषण क कतखिाफ बमबई र एक बड़ा आनदोिन पकतषटरागी

करसनदास रि जी क नततव र हो चका था वषणव बकतनया पषठभकतर स आय करसनदास जी उन नौजवानो

र थ कतजनहोन एकतिफ सटन कॉिज स आधकतनक कतशकषा परापत की थी गोसाइयो और रहाराजो िारा अपन

lsquoसमपरदाय की बह बरटयोrsquo क साथ होन वाि अतयाचार क कतखिाफ उनहोन िख कतिख और समपरदाय क

इकततहास को नए कतसर स सारन रखा पण स आए जदनाथ वजरतन जी रहाराज न करसनदास जी पर

रानहाकतन का रकदरा दायर कर ददया इसी रक़दर स वषणव रहातो की कई सारी बात जनता क सारन

परतयकष हई तिवार जी न इस lsquoरहाराज िाइबि कसrsquo को भारतीय नवजागरण र वषणव गोसाइयो क

दराचार और यौन शोषण क कतखिाफ हआ सबस बड़ा आनदोिन कहा ह भारतद पर इसका बहत परभाव

था यह कस १८६० र हआ था एक दशक बाद जब भारतद सापरदाय क कायो र रत थ उसी सरय कतिख

रह थ ldquoराददर कया होत ह रानो कतसतरयो की खान ह जसी चाकतहए िीकतजय- वराच अचछी सतरी भी वहाा जाकर

कतबगड़ जाती ह आशचयम यह ह दक कतजनको व िोग बटी कहत ह और जो उनक परिोक क रधयसथ ह और

कतजनको वो दीकषा दत ह उन कतसतरयो की ओर व आप ही बरी दकतषट स दखत ह ओर रर पयार कतहनदओ तर

इनक जाि र कब तक फा स रहोग और कया तरको यही सासार स बचावग और इनही क भरोस तरको

भगवान कतरिगाrdquo33

राददरो क धन-ऐशवयम और वयाकतभचार र डब जीवन क जीवात कतचतर हर बनारस क रखाकतचतर lsquoपरर

जोकतगनीrsquo क अिावा lsquoकाशी क छायाकतचतर क दो बर-भि फोटोगराफrsquo र भी कतरित ह यहाा भारतद का वयागय

अपन वषणव सापरदाय की आतरािोचना स सदकय ह lsquoपरर योकतगनीrsquo नाटक र आन वािा चररतर रारचादर

खद भारतद ही थ नाटक का सतरधार कहता ह दक भारतवषम की दीन हीन गकतत क कारण उसका तो

कतवशवास ही ईशवर स उठन िगा ह नाटक क पहि ही दशय र भारतद हर राददर क भीतर कतिए चित ह

33 वसधा डािकतरया िारा उदधत पषठ- ३३७

30

जहाा राददर र कार करन वािा साधारण टहिआ झपरटया हर ददखाई दता ह पजारी बाब अभी तक नीद

स नही जाग ह कयोदक आधी रात तक lsquoबठ क ही-ही-ठी-ठी करा चाह दफर सबर नीद कस खिrsquo कतनकतशचत

रप स यह टहिआ सबह सवर ही राददर र हाकतिर ह िदकन दवता अभी राददर र सोय ह रारचादर

परदशी ह काशी र बाहर स आय ह छकक जी और राखनदास इस रारचादर की आिोचना करत ह इनक

सावादो स पता चिता ह दक बाब रारचादर क यहाा ददन रात नाच गाना हआ करता ह और उनको अपनी

कतवदया का घराड ह दो चार ककतवतत भी बना ित ह पर lsquoककतवतत बनाव स का होव और ककतवतत बनावन कछ

अपन िोगन का कार थोर हय ई भााटन का कार हयrsquo छकक जी कहत ह दक अपन रागम का उनह कछ जञान

तो ह नही बस दो चार बात इधर उधर स सनकर कछ lsquoदकसतानी रतrsquo सीखकर पाकतडत बन दफरत ह

कतनकतशचत रप स य भारतद पर िगन वाि आरोप थ राददर र सवारी धनदास वकतनतादा बभकतकषत पाकतडत

आदद धरम क ठकदार ह इनकी पतनशीि सासककतत को दखकर रारचादर का दःख इन शबदो र वयि होता ह

lsquoहा कया इस नगर की यही दशा रहगी जहाा क िोग ऐस रखम ह वहाा आग दकस बात की वकतदध की

साभावना करrsquo lsquoवददकी हहासा हहासा न भवकततrsquo जस शरआती नाटको र भी करमकााडी परोकतहतवाद की

आिोचना की गयी ह राजा और परोकतहत कतरिकर वहाा जनता का शोषण करत ह जआ रददरा और

रथन की ऐययाश सासककतत क परतीक परोकतहतो का काजरवरटव दि इन परहसनो र रतम होता ह कतचतरगपत यर

स कहत ह ldquoरहाराज य गर िोग इनक चररतर का कछ न पकतछए कवि दमभाथम इनका कततिक रदरा और

ठगन क अथम इनकी पजा कभी भकति स ररतम को दाडवत न दकया होगा पर राददर र जो कतसतरयाा आयी उनको

सवमदा तकत रह रहाराज इनहोन अनको को कताथम दकया ह और इस सरय तो र lsquoशरीरारचनदर जी का

शरीकषण का दास हाrsquo पर जब सतरी सारन आव तो उसस कहग lsquoर रार तर जानकी र कषण तर गोपीrsquo और

कतसतरयाा भी ऐसी रखम दक दफर इन िोगो क पास जाती हrdquo34

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo की ररपोटम र सतरी सधारो क कायो की रहतता बतान क बाद जाकतत वयवसथा पर

इन सधारको का परहार कयो जररी था इस बताया गया ह कठोर जाकतत बनधनो क चित कस हर साि

जाकतत-बाहय होकर जाकतत र वापस आन क दकसी उपाय को न जान lsquoहजारो रनषय आयम पाकति स हर साि

छटत थ उसको इनहोन रोकाrsquo इस परकार इन सधारको न lsquoआयमधरमrsquo क भीतर जो पररवतमन करन चाह

उसस आयो की एकता दफर स बहाि हो गयी इसक अिावा अाधकतवशवासो को इनहोन दर दकया यही नही

बकतलक जहाा िोग lsquoरसिरानी पीर पगमबर औकतिया वीर ताकतजया गाजी कतरयाा कतजनहोन बड़ी ररतम तोड़कर

और तीथम पाटकर आयम धरम कतवधवास दकयाrsquo उनको भी पजन िग थ और lsquoकतवशवास तो रानो कतछनाि का अाग

हो रहा थाrsquo ऐसी िजजाजनक कतसथकतत स िोगो को बाहर कतनकािकर lsquoसार आयामवतम को शदध lsquoिायिrsquo कर

34 दख रारकतविास शराम पषठ १३१

31

ददयाrsquo lsquoिायिrsquo कर ददया गया इसका अथम आयम जाकतत को दफर स िायि करन र था आयम जाकतत क भीतर

कतबगाड़ क चित ही कतनमन जाकततयो का बड़ परान पर पिायन था इस इन िोगो न रोका और इनक परताप

स ही अनक छोट और सथानीय धरम-रतो क भीतर जो lsquoरसिरानीrsquo परभाव घस आय थ उनको दफर स lsquoबड़ी

ररतमrsquo की कतनषठा र िाया जा सका इस परकार कतहनद धरम और वणामशरर क परकतत दफर स िोगो को lsquoिायिrsquo

दकया यह lsquoिायकतिटीrsquo भारतद की रकतडकि वषणवता क जनरत क कतिए भी जररी था तिवार जी जब

आयमसराकतजयो की lsquoकााकततकारीrsquo भकतरका ददखात ह तब आयम सराज िारा आयामवतम को िायि बनान वािी

इस भकतरका की साकतशलषटता पर जयादा बात नही करत भारतद दयानाद क कााकततकारी परयासो र lsquoिायिrsquo

बनान की परदकया उसी वक़त दख रह थ और इसी कारण ररपोटम र दयानाद की आिोचना धयान दन िायक

ह सवारी जी न ldquoजाि को छरी स न काटकर दसर जाि ही स कतजसको काटना चाहा इसी स दोनो आपस

र उिझ गए और इसका पररणार गह कतवचछद उतपनन हआrdquo गह कतवचछद का रतिब कतहनद धरम र गह

कतवचछद जबदक कशवचादर सन क बार र कहा गया दक उनहोन जाि काटकर भकति की उचछकतित िहरो का

पररषकत पथ परकट दकया इस परकार रकतडकि वषणवता की lsquoअनयताrsquo और परररिक भकति क परशसत पथ क

सवीकार का कतनषकषम कतवचार सभा का भी कतनषकषम था धयान दन िायक ह दक कशवचादर की आिोचना उनक

कतचतत कतवकषप क कारण की गयी थी जहाा lsquoईसारसीह आदद उनस कतरित हrsquo य एक दकसर का इिहारी

अनभव था कतजस भारतद अपनी वषणवता स बाहर रखत ह ईशवर न इस ररपोटम पर अपना रत सरकतकषत

रख कतिया और भारतद कतिखत ह ldquoइसको दख कर इस पर कया आजञा हई और व िोग कहाा भज गए यह

जब कर भी वहाा जायग और दफर िौट कर आ सक ग तो पाठक िोगो को बतिावग या आप िोग कछ

ददन पीछ आप ही जानोगrdquo

३ जनरत और वषणवता

ककतववचन सधा ९ राचम १८७२ र भारतद न lsquoPublic Opinion In Indiarsquo नार स अागरजी र

एक िख परकाकतशत दकया िख र उनहोन कहा दक कई सददयो दक दासता क बाद भारतवषमहहादसतान अब

जाकर कतिरटश राषटर क सवोचच कतनयातरण र आया ह दश धीर-धीर सभयता और परबोधन की पकतशचरी दकरणो

क सहार दरन और कशासन क रतय-तलय कतनदरा स जाग रहा ह कतिरटश शासन की परगकततशीि नीकततयो का

परभाव यहाा की बहरपी आबादी पर पड़ रहा ह

ldquoBut in this progressive state national energy and zeal sympathy and

disintiredness are waiting to make both the conqueror and the conquered to act in

32

concert and in harmony and hence we have the broad distinction of white and

black still But in this country many are the blemishes that adhere to us to be

eradicated and many are the shortcomings that are hovering around us to be done

away with before we can have a public opinion here in its true senserdquo35

गोर और काि क बड़ भद को छोड़ कर कतवजता अागरजो और भारतीयो क बीच एक सराजन तो बन गया ह

पर अनदरनी ददककत अभी भी राह बाए खड़ी ह रौका ह दक इस परगकततशीि कतसथकतत का फायदा उठा कर हर

एक सचच जनरत का कतनरामण कर सचच िोकरत क कतनरामण र अादरनी बाधाएा कया थी भारतद न इस

आग सपषट करत हए कतिखा-

ldquoRace antagonism rivalry and mutual misunderstanding are the favourite

occupations of the aristocratic class Want of confidence among all classes of men

are the prevailing characteristic of the nation and above all multifarious castes and

creeds with there numerous forms of religion and local habits and customs which all

combined have kept the progressive policy at a stand still True it is that a

representative Government is a boon to this country and true it is that Sir Bartle

fregravere a man of vast experience and a good statesman has found out that in village

community we can have public opinion but with all his experience he has lost sight

of our national defects ndash defects which we ourselves know and which no foreigner

can catch at a glancerdquo36

भारतद इस बात को िकर कतनकतशचत ह दक िोकरत और परकततकतनकतधरिक सासथाओ क बहतर कतवकास क कतिए

सीध-सीध कतवदशी रॉडि कभी सफि नही हो पायगा ऐसा इसकतिए कयादक हरारी आपसी कतवकतभननताओ

और झगड़ो को कोई बाहरीकतवदशी सतता कभी भी परी तरह सरझ नही सकती lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo नार

35भारतद गराथाविी -6 361

36 वही

33

स भारतद का एक दसरा िख इस अागरजी वाि िख क दो साि बाद अपरि सन १८७४ र हररशचनदर

रगजीन र छपा पकतबिक ओकतपकतनयन कया बिा ह इस साफ़ करत हए भारतद िख क आरमभ र ही कहत

ह ldquoपकतबिक ओकतपकतनयन अथामत सब साधारण िोगो की राय कया वसत ह और इसर दकतना जोर ह और

इसक कतिए कया हो सकता ह यह परशन ठहरा तो इसका साधारण उततर यही ह दक यह वह वसत ह जो

सासार को एक कर सकती ह गागा की धरा दफर कतहरािय पर चढ़ा ि जा सकती ह सययम को पकतशचर उगा

सकती ह और चाह तो ईशवर को भी पकड़ क कठपतिी की भााकतत नचा सकती हrdquo37 यह पकतबिक

ओकतपकतनयन lsquoएक रतrsquo होना ह जस अिग अिग चार पतिी िककतड़यो को एक साथ बााध दन स उस

तोड़ना करठन हो जाता ह उसी तरह एक रत होन स बड़ स बड़ा बरी भी हरारा कछ कतबगाड़ नही सकता

बहत स िोगो का रत एक हो तो वह शकति बन जाती ह हिारो आदरी की बकतदध एक हो जाए तो ldquoऐसा

कौन कार ह जो न हो सक तो यह कतसदधाात हआ दक कतनशचय सब िोगो क रत र बड़ी सारथयम ह इसस यह

कतसदध हआ दक बिो स बड़ा बि एक रत ही हrdquo38

आग भारतद कहत ह दक यह जनरत और उसकी शकति हहादसतान क कतिए कोई नई बात नही ह

पराचीन काि र इसक उदाहरण कतरित ह lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo की इस धारणा को भारतद न इकततहास क

अिग-अिग दौर र बनत और कतबगड़त ददखाया सबस पहि चार वणो की िररत पड़ी सब कार को

सचार रप स चिन क कतिए दसर शबदो र कह तो शरर-कतवभाजन की िररत स इसका जनर हआ

lsquoकतहनदओ न अपन गर क कार र इस वणामशरर धमरम को इसी वासत बनाया कतजस र उन क दकसी कार र

कोई हजम न हो और उनिोगो न सासार क सब कारो र चार कार रखय सरझrsquo धरम कतवदया और किाओ का

कार िड़ाई और राजय परबाध का कार वयापार और धन और सब िोगो की सवा और रजदरी इन चार

कारो की सवयवसथा वािा वणामशरर दरअसि lsquoएक रतrsquo कतहनद वयवसथा या lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo थी पर

कािाातर र इस lsquoएकरतrsquo क भीतर जाकततवयवसथा कठोर हो गयी और िाहमण और शदर दोनो एक दसर क

कतखिाफ हो गए एकरत र कतवचछद पदा होन स कतहनद शकति करिोर हो गयी भारतद क अनसार आपस

का यह झगड़ा बड़ा कतवनाशकारी साकतबत हआ पकतबिक ओकतपकतनयन क कतबना वयाकतभचार और जयादकततयो का

अाधर था आग चि कर जनो क जरान र दफर lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo न जोर पकड़ा बकतलक भारतद जोर

दकर कहत ह दक जनो क रत की उततपकततत ही lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo स हई ldquoकतहनदओ क जब नाश क ददन

जब कतनकट आय तो आपस र परसपर बड़ा कतवरोध खड़ा हआ और उस काि र िाहमणो का बड़ा जोर था

वरन य और वणो पर जयादती करत थ तो वशय और कषकततरयो की रकतत इनस दफर गयी और बाब वािी बड़ी

37गराथाविी- 678

38वही

34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

36

कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

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उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

38

ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 20: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

20

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग क तीन कतनकतहताथम वसधा डािकतरया न भारतद यग क सनदभम र नोट दकय ह23 पहिा

एक पराक औपकतनवकतशक lsquoकतहनद अथमrsquo जहाा हहादसतान का हर बाहशादा शाकतरि था दसरा परसपर कतभनन

धाररमक रतो और आसथाओ की कतनकट अातरकम या क अथम को वयि करता ह कतजसक आराकतभक साकषय सलतनत

कािीन ऐतहाकतसक वतताातो र कतरित ह यहाा यह शबद lsquoतकम rsquo क सरानाातर उपयोग र आया था और

सारानयतः रसिरानो क बरकतखिाफ उपयोग दकया जाता था आरमभ र यह धाररमक कर साराकतजक-

राजनीकततक अथो र जयादा परयि होता था अागरजी राज क साथ यह दसरा अथम धरम स अकतनवायमतः जड़कर

lsquoकतहनदवादrsquo की कतवचारधारा र बदि गया जमस कतरि आदद क इकततहासो र lsquoकतहनदकािrsquo और lsquoरसिरान

कािrsquo की ऐकततहाकतसक कलपना क साथ कतहनद शबद जड़ गया था भारतीय भी रसिरानो को सारन कर

lsquoकतहनद पीकतड़त गराकतथrsquo क कतिए इस शबद का इसतराि करन िग कतहनद शबद का तीसरा अथम राषटर की

अवधारणा स जड़कर बन रहा था आरथमक राषटरवाद और अागरजी राज की यातना की साझी सरकतत स बनन

वाि इस तीसर अथम का रतिब था- lsquoजो कतहनदसतान र रह वह कतहनदrsquo रारकतविास जी भारतद क यहाा

lsquoकतहनदrsquo शबद परयोग को इनही अथो र ित थ पर वसधा डािकतरया का कहना ह दक यह तीसरा अथम दसर क

वयापक परभाव र था तीनो अथो की अातरकम या क बार र डािकतरया न कतिखा ldquoतीसरा अथम या राषटरवादी

अथम कभी भी अपन धाररमक साकताथो स परी तरह छटकारा नही पा सका इस पद की परयकति उननीसवी

सदी र अकतसथर बनी रही और इसक रखतकतिफ रायनो र आपसी जड़ाव कायर रहा बावजद इसक दकसी

परदतत सनदभम र lsquoकतहनदrsquo क पराथकतरक अथम को कतनधामररत करना साभव ह यदद एक बार यह तय हो जाय दक

इिाकाई धाररमक राषटरीय र स दकस आधार पर यह पद परयोग र आ रहा ह और lsquoअनयrsquo की भकतरका र

दकस रखा जा रहा ह चाह वह अनय जसा दक परानी इिाकाई परयकति र ददखता ह फारसी या तकी हो

या रसिरान (कतजस इस िरान र भी कई बार सरह क हवाि स तकम ही कहा जाता ह) या दफर अाततः

औपकतनवकतशक सवारी िदकन यह बात ददराग र रखना जररी ह दक धाररमक सरदाय को कतनरदमषट करन

वािी दसरी परयकति अतयात परभावी सनदभम-हबाद बनी रहती हrdquo24

इस सनदभम र दख तो कतिबरि दिो क सरथमन र शाकतरि lsquoअनयrsquo कतहनद धरम क सधारवाद क सरथमक

ह और lsquoसधारोrsquo र छपी वकतशवक भावनाओ को सरथमन दन पहाच ह का जरवरटव दिो की lsquoअनयताrsquo यहाा नोट

करन िायक ह इस अनयता र साराती जरीदार और करमकााडी िाहमणवाद का बिाक ह जबदक कतिबरि

दकतषट क आसपास एक lsquoसायि रोचrsquo की कलपना की गयी ह धयान रखना चाकतहए दक भारतद क रकतडकि

वषणव इस lsquoसायि रोचrsquo क बाहर ह उनका lsquoएबसटकतनजरrsquo वषणव होन क चित नही बकतलक रकतडकि या

23 वसधा दिकतरया कतहनद परमपराओ का राषटरीयकरण भारतद हररशचादर और उननीसवी सदी का बनारस अन साजीव करार योगनदर दतत पषठ-

४०-४२ राजकरि पपरबकस नई ददलिी- २०१६

24 वही पषठ- ४२

21

रहा रकतडकि होन क चित था कतनकतशचत रप स सवगम सासद का रपक ह और सवगम का राजा ईशवर

कतनषपरभावी हो गया ह और जनता सवया जनरत क िारा कतनणमय कतसथर करन पर जोर दती ह जनरत क

िारा lsquoसलफ गवनमरटrsquo का परयास सबस पहि वषणव भिो न दकया था और आज क कतिबरलस उसी को

आग बढ़ा रह ह ईशवर क पास दोनो दिो क िोगो न जब अपन अपन ररोररयि तयार कर भज तो ईशवर

न दोनो दिो क डपयटशन को बिाकर कहा ldquoबाबा अब तो तरिोगो की lsquoसलफगवनमरटrsquo ह अब कौन

हरको पछता ह जो कतजसकी जी र आता ह करता ह अब चाह वद कया सासकत का अकषर भी सवपन र भी न

दखा हो पर धरम कतवषय पर वाद करन िगत ह हर तो कवि अदाित या वयवहार या कतसतरयो क शपथ

खान को ही कतरिाय जात ह दकसी को हरारा डर ह कोई भी हरारा सचचा lsquoिायकrsquo ह भत परत ताकतजया

क इतना भी तो हरारा दजाम नही बचा हरको कया कार चाह बका ठ र कोई आवहर जानत ह चारो

िड़को (सनक आदद) न पहि स ही चाि कतबगाड़ दी ह कया हर अपन कतबचार जयकतवजय को दफर राकषस

बनवाव दक दकसी का रोकटोक कर चाह सगन रानो चाह कतनगमन चाह ित रानो चाह अित हर अब न

बोिग तर जानो सवगम जानrdquo

काजरवरटव दिभिो न दयानाद और कशवचादर सन पर कया कया आरोप िगाय यह दख िना

चाकतहए दयानाद को सवगम र सथान नही कतरिना चाकतहए कयोदक १ इसन पराणो की हनादा की २ ररतमपजा

की हनादा की ३ वदो का अथम उलटा-पलटा कर डािा ४ दस कतनयोग करन की कतवकतध कतनकािी ५ दवताओ

का अकतसततव कतरटाना चाहा (दवताओ याकतन जरीदार) ६ इसन धरम कतवपिव दकया और आयामवतम को धरम

बकतहरमख दकया पकतशचरोततर परानत क परकततकतनकतध क रप र lsquoकाशी क कतवशवनाथ जीrsquo न lsquoउदयपर क एकहिाग

जीrsquo पर दयानाद क सरथमन का आरोप िगाया कतवशवनाथ जी काजरवरटव दिो की तरफ स यह आरोप िगा

रह थ परब की अपकषा पकतशचरी इिाको र आयम सराज क परभाव की चचाम क सनदभम र एकहिाग जी का

जवाब धयान दन िायक ह कतवशवनाथ जी न जब एकहिाग जी को कतधककारत हए कतिबरिो क साथ कतरि जान

को कहा तब एकहिाग जी न कहा ldquoभाई हरारा रतिब तरिोग नही सरझ हर उसकी बरी बातो को न

रानत न उसका परचार करत कवि अपन यहाा क जागि की सफाई का कछ ददन उसको ठका ददया बीच

र वह रर गया अब उसका राि रता रठकान रखवा ददया तो उसका बरा दकयाrdquo यह एकहिाग जी

दफ़िहाि सवारी जी क दि क सभापकतत बन ह आकतखर इनहोन अपन यहाा क दकस lsquoजागिrsquo की सफाई का

ठका सवारी जी को ददया था यह जागि छोट-रोट धाररमक समपरदायो और रतो का जागि था एकहिागी

जी और काशी क कतवशवनाथ जी दोनो ही िाहमणीकत शवरत क धाररमक परतीक ह पर जहाा काशी क

कतवशवनाथ शर स ही दयानाद क कतवरोधी थ वही एकहिाग जी रणनीकततक रप स दयानाद क पास गए थ यह

साकीणम कटररपाथ क भीतर का कतववाद था यह बात गौर करन िायक ह दक जगननाथपरी र जब भरव की

22

रौजदगी का कतववाद भारतद क सारन आया था उस सरय उनहोन इस बात का परतयाखयान दकया था दक

भरव की परकततरा अनाददकाि स वहाा ह भारतद न पराण आदद स साकषय दकर यह परराकतणत दकया दक

कषण ही एकरातर उपासय ह तिवार जी न इस घटना का उलिख करत हए कतिखा ह दक ldquoदकसी वयकति न

lsquoतहकीकातपरीrsquo दकताब दकखकर बताया दक वहाा पहि भरो की पजा होती थी वषणवो न उसकी ररतम

उखाड़ फ की थी बाद र पाडो न जगननाथजी (कतवषण) क साथ भरो को दफर स परकततकतषठत दकया यह रारिा

काशी धरमसभा क सारन १८७० र आया भारतद न धरम साबाधी पसतक र lsquoतहकीकातrsquo जस फारसी शबद

की आिोचना करत हए कतवकतभनन धरमगराथो स परराण जटाकर दो बातो पर जोर ददया एक इसका परराण

नही कतरिता ह दक वहाा जगननाथजी क साथ पहि भरो की भी ररतम थी कतजस वषणवो न उखाड़ फ का दो

अगर वह थी भी तो यह उकतचत था या नही- इसपर कतवचार होना चाकतहए भारतद न अपनी वयवसथा दत

हए कतिखा दक भरो कतवषण स बहत छोटा दवता ह इसकतिए यह कतवषण क साथ बठाया नही जा सकता

lsquoदसर भरव कापाकतिको क दवता ह उनका पजन वषणव-सरातम सबको कतनकतषदध हrsquo गौरतिब ह दक भारत

र कतवकतभनन सथानीय धरो क परकतत कतजतन असकतहषण और फा डारटकतिसट आयमसराजी थ उतन ही काशी क

सनातनी भी थrdquo25

सथानीय धरम-रतो क जागि को साफ़ करन र आयमसराकतजयो और काशी क सनातनी पाडो क इस

गठजोड़ स भारतद भी वादकफ थ िदकन आयमसराकतजयो क साथ उदयपर क एकहिाग जी का रोचाम कसा

था इस भी भारतद बखबी सरझ रह थ सथानीय रतो क साथ भारतद का समबनध कसा था इसका पता

उनक छोट-छोट यातरा सासररणो स भी चिता ह lsquoसरय पार की यातराrsquo26 र रहदावि का हाि बयान करत

हए lsquoपराणनाथrsquo क रिहब का भारतद आशचयम क साथ उलिख करत ह भारतद क ही शबदो र ldquoयहाा एक

पराणनाथ का रिहब ह और दस बीस िोग उसक रानन वाि ह य िोग एकादशी तीथम वगरह को नही

रानत और सन सनाय दो तीन शलोक जो याद कर कतिए ह बस उसी पर चर हो lsquoरदीनासया शारदाा शताrsquo

और lsquoगोकतवनदrsquo lsquoगोकिानाद रककशवरrsquo यह शलोक पढ़ क कहत ह दक वद र रकका रदीन का वणमन ह ऐस ही

बहत वाकतहयात बात करत ह और कोई दकतना भी कह कछ सनत नही कहत ह दक गोिोक का नाश ह

और गोिोक ऊपर एक lsquoअखाड रणडिाकारrsquo िोक ह उसर रर कषण ह इनका रिहब एक पराणनाथ नारक

एक कषतरी न पनना र करीब तीन सौ बरस हए चिाया थाrdquo भारतद इस अजीबो गरीब lsquoरिहबrsquo का कषण स

कया साबाध ह यह सोचकर ताजजब र थ इस lsquoरिहबrsquo क गरनथ र भारतद न एक शलोक बलिभाचायम का

दखा तो उनका राथा और घर गया ldquoकि रिहब का हाि हरन नीच कतिखा था उसका अचछी तरह स

25 वीरभारततिवार रससाकशी १९वी सदी का नवजागरण और पकतशचरोततर परानत पषठ- १५२ सारााश परकाशन ददलिी- २००६

26 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन पषठ- १३७-३८

23

हाि दरयाफत दकया तो रािर हआ दक हरार ही रिहब की शाखा ह इनक गराथो र हरन एक शलोक शरी

रहापरभजी की सबोकतधनी की काररका का दखा इसी स हरको सादह हआ दफर हरन बहत खोद खाद कर

पछा तो वह साफ़ रािर हआ दक इसी रत स यह रत कतनकिा ह कयोदक एक बात वह और बोि दक हरारा

रत शरी बलिभाचारज की टीका र कतिखा ह इन िोगो क उपासय शरीकषण ह और एकादशी शािगरार

ररतमपजा तीथम दकसी को नही रानत इनक पकतहि आचायम दवचाद जी थ जो जाकतत क कायथ थ और दसर

पराणनाथ जी जो कचछ क कषतरी (भारटया) थ हरार ही रत की शाखा सही पर कतवकतचतर रत ह वषणव होकर

ररतमपजा का खाडन करन वाि यही िोग सनrdquo वणमन स सपषट ह दक सात और कतनगमण पाथो क साथ वषणव

कतवचारधारा क आदान-परदान का साकतशलषट इकततहास भारतद क कतिए ताजजब की चीज थी पर इन सबक बीच

आकतखर उनहोन इसक वषणव रि का पता िगा कतिया और वषणवता की इस धाररमक कतवचारधारा र उनहोन

ररतमपजा का कतवरोधी होना भी शाकतरि रान कतिया भारतद न ररतमपजा क सरथमन र बड़ बड़ िख कतिख

थ इसकतिए असाभव नही दक कषण क परकतत परररिक भकति क कतिए ररतम की जररत पर उनहोन कछ पछा

जरर होगा िदकन lsquoकोई दकतना भी कछ कह सनत ही नहीrdquo आग चिकर lsquoवषणवता और भारतवषमrsquo र

वह बड़ कतवशवास क साथ घोकतषत करत ह दक ldquoपहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद कतजतन पाथ ह सब

वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और भारतवषम इन पाथो स छाया हआ हrdquo27 तब वह वषणवता और

िोकरतो और रधयकािीन पाथो क भीतर पहि स सदकय एक ऐकततहाकतसक परदकया का सारानयीकरण कर

उसका नार lsquoवषणवrsquo रख रह थ अकारण नही दक उसी िख र वषणव वयापकता को बतान क कतिए

परचकतित lsquoनारोrsquo का साकषय पश दकया गया ह वयकतियो स िकर वरत और उपवासो तक यह परभतवशािी

सारानय बोध की कतवचारधारा थी कतिवदी जी रधयकािीन वषणवता को िोकधरम कहत थ भारतद

उननीसवी सदी क िोकधरो को वषणव कहत ह

काजरवरटव दिो की तरफ स कशवचादर सन पर िगाय गए आरोप थ १ वद पराण सबको कतरटा

डािा २ दकसतान रसिरान सबको कतहनद बनाया ३ खान पीन का कतवचार कछ न बाकी रखा ४ रदय की

तो नदी बहा दी आयम सराकतजयो क ऊपर रखयतः आरोप lsquoआयामवतम को धरम बकतहरमखrsquo करन का ह धरम

बकतहरमख अथामत सनातन धरम स कतवरख उनहोन कवि धरम क भीतर कतवपिव दकया परनत िहमो सराज न तो

lsquoभारतवषम का सतयानाशrsquo कर डािा इनहोन तो पराणो क अिावा वदो को भी कतरटा डािा lsquoआयामवतमrsquo की

जातीय पकतवतरता नषट करक दकसतान रसिरान जस lsquoकतवदशी ततवोrsquo को घर र घसा कतिया कटररपाथी

करमकााकतडयो क कतिए इनक साथ रणनीकततक तौर पर भी रोचाम बनान वािा कोई एकहिाग जी तयार नही

था सनातकतनयो िारा दकया गया यह बारीक भद खद कतिबरि दिभिो क भीतर का भी अातरवमरोध था

27 भारतद वषणवता और भारतवषम वही पषठ-७६

24

कतिबरिो की सभा र भी दो दि हो गए थ एक सवारीजी क सरथमको का दि था और एक कशव

क सरथमको का कतहनद कतिबरिो की आताररक एकता कतिकतवभाकतजत थी दयानाद क सरथमको क अनसार सवारी

जी न कतहनदओ की आतरा को जगाया था उनह सफतम बनाया वरना तो आयामवतम क आिसी और रखम

रोहकतनदरा र ही कतनरगन थ इस तरह रखम और आिसी सारानयजनो को lsquoिाहमणो क फा द स छड़ायाrsquo िाहमणो

की तिना भारतद न lsquoपादररयोrsquo स की ह जो lsquoवयथम परजा का दरवय खान वाि हrsquo आयम सराज न सासथाकत

परोकतहतवाद पर हरिा दकया था जो भारतद क कतिए रितः जनता क पसो पर पिन वािा परजीवी वगम

िगता था और तो और आधकतनक कतवजञान क आग जो lsquoआयोrsquo की नाक कटी जा रही थी उस भी सवारी जी

न बचा कतिया उनहोन वदो र भी रि तार करटी कचहरी आदद ददखाकर कतहनदओ र आतरसमरान पदा

दकया दसरी ओर कशव क सरथमको का कहना था दक ldquoधनय कशव तर साकषात दसर कशव हो तरन बाग

दश की रनषय नदी क उस वग को जो कशचन सरदर र कतरि जान को उचछकतित हो रहा था जञान करम का

कतनरादर करक पररशवर का कतनरमि भकति रागम परचकतित दकयाrdquo lsquoजञान करम का कतनरादरrsquo करक भी lsquoकतनरमि

भकति रागमrsquo का जो परवतमन कशव न दकया उसस ही ईसाई lsquoअनयताrsquo का साथमक परकततरोध साभव हआ lsquoरनषय

नदी का आवगrsquo भावावग ह इसी बात को दसर शबदो र कह तो भाव जगत क सवाभाकतवक वग को भगवत

भकति की शदध lsquoअनयताrsquo की ओर रोड़कर उस कतवदशी ईसाई lsquoअनयताrsquo क रागम पर जान स रोक ददया इस

कायम क कतिए वद पराण समरत lsquoजञान-करमrsquo क रागो का कतनरादर अगर करना पड़ा तो भी वह उकतचत ही था

वषणव भकति क रधयकािीन सवरप की जो वयाखया आग चिकर की गयी उसक आराकतभक कतचनन हर यहाा

दख सकत ह कहना न होगा दक भारतद का अपना अनभव भी यहाा बोि रहा ह

शासतरीय काजरवरटव पाटी र दवताओ क अिावा यजञवलकय जस औपकतनषददक ऋकतष क साथ-साथ

नारायण भटर रघनाद भटराचायम राडन कतरशर जस कतनबाधकारो और टीकाकारो का जरघट भी था इसक साथ

साथ इसिारी सवगम स आय हए कटररपाथी कतशया िोगो का भी सरथमन उनह परापत था इस परकार कटररपाथ का

दवताओ (जरीदारो) िाहमणो (पादररयो) जञानरागी औपकतनषददक ऋकतष रधययगीन कतनबाधकारो और

कतवदशी कतशया िोगो का एक वकतशवक रोचाम बन रहा था दसरी ओर कतिबरि दि र चतनय परभकतत आचायम

दाद नानक कबीर परभकतत भि और जञानी िोग भी शाकतरि थ इसक अिावा काजरवरटव दि क

कतवदरोकतहयो को भी कतिबरिो न अपन यहाा जगह दी य कतवदरोही थ अितवादी (या नववदााती) भाषयकार

पाचदशीकार और कोई कतरसटर िडिा इन दोनो िोगो पर शर र का जरवरटव दि वािो न बहत हरि

दकय परनत अात र इनह कतिबरिो न अपन यहाा जगह द दी धयान रखना चाकतहए दक भारतद अपन सापरदाय

क अनरप अित वदाात या रायावाद क घोर आिोचक थ सन १८७३ र हररशचादर रगजीन क पहि ही अाक

र भारतद न शााकतडलय भकति सतरो का अनवाद lsquoभकति सतर वजयातीrsquo नार स परकाकतशत दकया भकतरका र

25

भारतद कतिखत ह ldquo दखो आज वसात पाचरी ह इसस बहत स िोग आर क रौर वा फिो क गचछ िकर

तरस कतरिन आवग तो र भी यह एक फिो की वजयाती रािा बना कर िाया हा अागीकार करो वजयाती

रािा बनान का यह हत ह दक वनरािा होगी तो होिी क खि र अरझगी और इसक कतसवाय इस वजयाती

स कतनशचय करक जञानाददक को जय करना ह पर पयार बहत साभि कर यह रािा पहरना टट न जाए

कयोदक सत कचचा ह और ककतियाा तािी और कोरि ह इस स कमहिान का भी भय ह जो हो इस वसात

पाचरी को तयोहारी रझ यही दो दक इस सतयानाशी lsquoअहरrsquo िहमवाद lsquo को पणमरप स नाश करक और भी

सब बातो र इस नव-वसात र भारतवषम की सब आपकतततयो का बस अात करो और अपन भिो क कतचतत र

नव पलिव दफर स िहिह करो जो सदा एक रस रहrdquo28 lsquoएकरसrsquo भकति क कतिए जररी ह दक जञानवाद

अहर िहमवाद को जड़ स उखाड़ फ का जाय कषण को अरपमत अपनी वजयाती रािा स भारतद जञानाददक

को जय करना चाहत ह एक ओर यह पकतषटरागी परापरा क lsquoवीर वषणवrsquo भारतद का परर कतनवदन ह दसरी

ओर lsquoनव-वसातrsquo र भारतवषम की सब आपकतततयो को नाश करन की सारथयम रपी lsquoउपहारीrsquo का साकलप भी

ह lsquoभारतद भारतवषम की सब आपकतततयोrsquo को दर करन की राह र एक बड़ी बाधा अित क जञानवाद को

रानत ह भकति का lsquoएकरसrsquo पहि भी इसक परभाव स ररझाता रहा ह भारतद का साकलप सापरदाय क

परान कतवरोधो क बावजद बन रहन वाि इस अितवाद का पणम सफाया करन का ह जबतक यह न कतरटगा

परररिा भकति क lsquoकमहिान का भयrsquo बना रहगा भकति सतरो र उपासना कााड को परर कतसकतदध का हत

बताया गया था पर भारतद दख रह थ दक उपासना कााड का परचार कतवरि हो गया ह इसी परचार क

कतनकतरतत उनहोन इन सतरो का भाषा र अथम परचार दकया था १८७३ र ही हररशचादर रगजीन का एक

समपादकीय कतनकिा कतजसका शीषमक था- lsquoभकति जञानाददक स कयो बड़ी हrsquo इस िख र भी उपासना रागम

की रहतता का परकततपादन दकया गया ह तकम और जञान को करम की शकतदध और उपासन की परर कतसकतदध क

रासत र कवि एक चरण बताया गया ह वसधा डािकतरया न भारतद क आराकतभक साापरदाकतयक परचार

परसार क कायो र कतनगमकतनयो को बाहर रखन का उपकर नोट दकया था29 यहाा कतनगमकतनए कबीर आदद lsquoभि

और जञानीrsquo कतिबरिो क सरथमक ददखाए गए ह वषणव भकति क राषटरीय चररतर र य बाहर नही थ उनकी

एकता का आधार उनक lsquoकतिबरि रिrsquo र ह सावमजकतनक उचच भाव का सापादन और भकति इन दोनो क साथ

अित वदााती या जञानाददक- सनातनी परापरा क कतवदरोकतहयो की जगह भी कतिबरि दि पाकतथयो र थी

कतिबरि वाि ही झगड़ क कतनपटार की अजी पररशवर को दन गए थ पर पररशवर अपनी

परतीकातरक हो गयी कतसथकतत स खजिाय हए थ यह सवोचच अदाित थी पर साथ ही साथ शकतिहीन

28 भारतद गराथाविी खाड- ५ पषठ ११३

29 वसधा डािकतरया पषठ ३४२

26

राषटराधयकष की कलपना भी कतजस कतहनद सवगम क य राषटराधयकष ह वहाा दकसी दकसर की सलफ गवनमरट चनन

की परणािी आ जान स ईशवर की एकाकतधकारी शकतियाा कतछन गयी ह िोग जनरत कतनरामण क िारा सही

और गित की पहचान करन िग थ इसकतिए थोड़ा खजिाय तो रहत ही होग lsquoअब कौन हरको पछता

ह तर जानो सवगम जानrsquo परनत साकट गहरा था यदयकतप कतिबरि िोगो की सभा भी धरधार स जर

रही थी पर काजरवरटव दि पाकतथयो की सरकार र पठ थी दवता सब भी उनक साथ थ इसकतिए पररशवर

क पास जररी नयाय का परशन उठाया गया था नयाय दक इन दो रहापरषो को सवगम र जगह कतरिनी

चाकतहए या नही सराज र इनक नकततक उचच आदशो क अवरलयन का परचार काजरवरटव कर रह ह इस

परचार क कारण जनता अपनी निरो स पहचानन र सकषर नही ह ऐसी कतसथकतत सवगम र पहि नही आई

थी नई कतसथकततयो क नए रानदाड कया होग िाकतहर ह नयाय और नकततकता को एक वकतशवक सवीककतत

चाकतहए इसकतिए पररशवर न इस कतवषय पर कतवचार क कतिए जो ककतरटी चनी वह गौर करन िायक ह इस

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo र ldquoराजा राररोहन राय वयास दव टोडररि कबीर परभकतत कतभनन-कतभनन रत क िोग चन

गए रसिरानी- सवगम स क lsquoइरारrsquo दकसतानी स िथर जनी स पारसनाथ बौदधो स नागाजमन और

अफीका स कतसटोवायो क बाप कोrdquo चना गया कतहनद सवगम स नवजागरण क अगरदत वयासदव जस

बौकतदधकिखक टोडररि जस राजनीकततजञ और धरम-ररमजञ कबीर जस जञानी-भि पराचीनो र कवि वयास

दव ह बाकी दो lsquoरधयकािrsquo क और एक lsquoआधकतनकrsquo काि क वयकति ह उधर यरोपीय नवजागरणधरमसधार

क परणता िथर को भी बिाया गया ह और बौदधो की तरफ स परर कतनषधवादी नागाजमन भी ह पर य

अफीका क कतसटोवायो धरो की अकतसरता क साथ-साथ यह अफ़ीकी सवगम कतनकतशचत रप स अफीका की छकतव

पराचीन आददवासी सासककतत वाि एक lsquoकािrsquo रहादश क रप र गढ़ी गयी थी यह अफ़ीकी सवगम साभवतः

आददवासी धाररमक रानयताओ की ओर इशारा करता ह यह भी धयान दन िायक ह दक राजा राररोहन

राय िथर और कबीर इन तीनो क साथ lsquoनवजागरणrsquo की कोई न कोई पररकलपना ठठ सरकािीन कतवरशो

क क दर र भी ह कई अथो र अकबर िारा आयोकतजत होन वािी lsquoसिह-ए-किrsquo जसी धरम सभाओ की एक

रोहक कलपना भी भारतद को रही होगी टोडररि की उपकतसथकतत अकारण नही ह

अकबर को िकर भारतद की इकततहासदकतषट कसी थी इसकी एक झिक हर १८८४ र छपी उनकी

lsquoबादशाह दपमणrsquo की भकतरका र ददखती ह इस गरनथ र उन िोगो का चररतर-कतचतरण दकया गया था ldquoकतजनहोन

हरिोगो को गिार बनाना आरमभ दकया इसर उन रसत हाकतथयो क छोट-छोट कतचतर ह कतजनहोन भारत क

िहिहात हए करिवन को उजाड़कर-पर स कचिकर कतछनन-कतभनन कर ददया रहमरद रहरद अिाउददीन

अकबर और औरागजब आदद इनर रखय ह पयार भोि कतहनद भाइयो अकबर का नार सनकर आपिोग

चौदकए रत यह ऐसा बकतदधरान शतर था दक उसक बकतदधबि स आजतक आपिोग उसको कतरतर सरझत ह

27

दकनत वह ऐसा ही नही उसकी नीकतत अागरजो की भााकतत गढ़ थी रखम औरागजब उसको सरझा नही नही तो

आज ददन हहादसतान रसिरान होता कतहनद-रसिरान र खाना-पीना बयाह-शादी कभी चि गयी होती

अागरजो को जो बात नही सझी वह इसको सझी थीrdquo30 कतनकतशचत रप lsquoबकतदधरानrsquo दशरन स सीखन को बहत

कछ कतरिता ह अकबर की दीन-ए-इिाही क परयोग स भारतद भी बहत कछ सीख रह थ रधयकािीन

इकततहास क बार र रकतसिर शतर की छकतव का कतनरामण पराचयकतवदयाकतवदो क िारा दकया जा रहा था इकतियट

आदद इकततहासकारो न जो दकतषट कतवककतसत की उसका परभाव बहत गहरा था पर इस इकततहासिखन क साथ

साथ भारतद क कछ दशी सरोत भी थ अिग-अिग रहापरषो की चररताविी कतिखन की पररणा भारतद न

कतजतना अपनी वषणव भकति की परापरा स पाया था उतना ही इसिारी इकततहास िखन की परापरा स भी

lsquoबादशाहदपमणrsquo की भकतरका र भारतद कतिखत ह ldquoरर पररातारह राय कतगरधरिाि साहब जो यवनी कतवदया

क बड़ भारी पाकतडत और काशीसथ ददलिी क शाहजादो क रखय दीवान थ उनकी इचछा स ददलिी क परकतसदध

कतविान सययद अहरद न एक ऐसा चक बनाया था कतजसर तरर स िकर शाह आिार तक सब बादशाहो क

नार आदद कतिख थ उस फारसी गरनथ स बहत सी बात इसर िी गयी ह इस कारण तरर पवम क बादशाहो

का वणमन इतना परा नही ह कतजतना तरर क पीछ ह दफर रर रातारह राय कतखरोधरिाि न बहादर शाह

क काि क आरमभ तक शष वतत सागरह दकयाrdquo31

अरणदव जी अपन एक िख र भारतद क आराकतभक अकबर परर का कतिक दकया ह १८७२-७४ क

आसपास भारतद अकबर को रहान शासक रानत थ जबदक औरागजब को कतहनदओ का दशरन नाबर एक

भारतद न औरागजब की तिना र अकबर की रहानता को परराकतणत करन क कतिए रारदास कछवाह क एक

शलोक को अपना आधार बनाया ह इस शलोक का भावाथम भारतद क शबदो र इस परकार ह ldquoजो सरदर स रर

तक पथवी को पािता ह जो रतय स गउओ की रकषा करता ह कतजसन तीथम और वयापार स कर छड़ा ददए

कतजसन पराण सन जो सयम का नार जपता जो योग धारण करता ह और गागाजि छोड़कर पानी नही

पीता उस जिािददीन की जय अाग वाग कहिाग कतसिहट कततपरा कारत (कारटी) काररप अाध कणामटक

िाट दरकतवड़ रहाराषटर िारका चोि पााडया भोट रारवाड़ उड़ीसा रलि खरासान का दहार जमब काशी ढाका

बिख बदखशाा और काबि को जो शासन करता ह ककतियग की रकतहरा स घटत हए वद गउ कतिज और

धरम की रकषा को सगन शरीर कतजसन धारण दकया ह उस अपररय परष अकबर शाह को हर नरसकार करत

हrdquo32 यही अकबर १८८४ र औरागजब स जयादा शाकततर और बकतदधरान शतर र बदि गया lsquoकािचकrsquo क

कतनकतहताथो र यह फरबदि भारतद पर रकतसिर कतवदशीपन और कतहनद शतरता क समपणम बिॉक बनान की

30 बादशाह दपमण भारतद गराथाविी खाड-६

31 वही

32 httpsamalochanblogspotin201209blog-post_9html

28

रणनीकतत क दबाव क कारण था और lsquoपरावकततrsquo की कतरथकीयता र भी कतहनदओ को lsquoरहारोहनासतरrsquo क सहार

पहि भी वश र दकया गया था यह एक बारीक चाि थी अकबर की इस चाि को अागरज भी नही सरझ

पा रह थ भारतद की यह परकततदकया औपकतनवकतशक इकततहासिखन क दबाव र थी १८७३ र जब भारतद

न कतशवपरसाद की दकताब lsquoइकततहासकततकतररनाशकrsquo क तीसर खाड की आिोचना की थी तो उनक सारन

रकतसिर शासन की बबमरता और अागरजी राज क सशासन का कतशवपरसाद िारा ककतलपत आखयान था १८८४

र समपणम रकतसिर काि अनधकार यग र बदि गया कततकतररनाशक क पहि खाड र बाब कतशवपरसाद न भी

अकबर की रजहबी उदारता और साराकतजक सधारो की बड़ाई की थी इस परकार हर दख सकत ह दक

ऐकततहाकतसक िखन र पकष और कतवपकष की पनरावकततत एक बाद घर र उिझी हई थी इनक सारन रकतसिर

कतवरोध और अागरजी शासन क कतवरोध का एक कतवसागत फर था और िखक उसर अपनी फौरी जररतो क

कतहसाब स कतरतर और दशरन वािा इकततहास कतिखता था इकततहास ठठ राजनीकततक ततकाि क वशीभत था

जो भी हो धाररमक उदारता और सिह-ए-कि का परयोग एक कतशकषापरद परयोग था यह कतवकतभनन

रतो या कतवशवासो क बीच lsquoजनरतrsquo बनान का एक रधयकािीन परयोग था भारतद lsquoजनरतrsquo क परयोग को

इस तरह दखत थ रानो यह lsquoचािrsquo अगर कारयाब हो जाती तो lsquoआज क ददन हहादसतान रसिरान होताrsquo

भारतद क सारन सरसया वही थी बस वह कवि यह चाहत थ दक कतहनदसतान lsquoकतहनदrsquo हो जाय कतहनद

अथामत वषणव हो जाय वषणवता भारतद क कतिए हहादसतान का नया lsquoसिह-ए-किrsquo था इसकतिए कछ

सावमजनीन रलयो की तिाश उनह भी थी कतसिकट ककतरटी क उपरोि रमबर lsquoएकसअफीकतशयोrsquo रमबर थ

रोर क परान हररकिस जस दवता कतजनहोन धरती स साबाध तोड़ ददया ह व िोग तथा उनही क जस

पारकतसयो क lsquoजरदशतजीrsquo को कोरसपोहडाग ऑनररी रमबर बनाया गया य धरम क रप र रतपराय रतो क

परकततकतनकतध थ ककतरटी न जो ररपोटम तयार की उसका ररम भारतद न ददया ह यह ररम उनक रकतडकि वषणव

पकष का रत था कतिबरि दि और काजरवरटव दि क अपन पकषो स इतर यह नरनायक तीसरा पकष वषणवो

की तरफ स सनाया गया था रकतडकि वषणवो की तरफ स भारतद इस धाररमक आनदोिन क भीतर अपना

ही पकष रखत हए इसका ररम कतिख रह थ ldquoहरिोगो की समरकतत र इन दोनो परषो न परभ की रागिरयी

सकतषट का कछ कतवघन नही दकया वराच उसर सख और सातकतत अकतधक हो इसी र पररशरर दकयाrdquo कतहनद सराज

सधार क परयासो का ररम बतात हए सबस पहि धयान सतरी सधारो पर ददया गया ह साराकतजक करीकततयो

की कतशकार रकतहिाओ क परकतत जो दकतषट उभरकर सारन आती ह उसक रि र धरम की रीकतत स यौन

रयामदाओ की अवयवसथा को दफर स रयामददत करन की चषटा ह कतसतरयो क करागम पर जान का पहिा कारण

ह रनराना परष धरमपवमक न पाना यह कतववाह सासथा की कतवककततयो की आिोचना थी जहाा बाि कतववाह

कतवधवा कतववाह आदद की तरफ इशारा ह धयान रखना चाकतहए दक यहाा बरि कतववाह क बदि कतसतरयो िारा

29

lsquoरनराना वरrsquo न चन पान का उलिख ह गभमनाश और बाि हतया क कतखिाफ सधार परयास दसरा

रहतवपणम योगदान ह कतववाह सासथा बीच र भी भाग की जा सकती ह इसकी सवीककतत ह कनया क कतहत र

अातरजातीय कतववाह की सवीककतत ह एक रहतवपणम बात गरओ और पाकतडतो क वयाकतभचार क साबाध र ह

भारतद क सारन पकतषटरागी रहातो और गरओ क वयाकतभचार का अनभव भी इसर शाकतरि ह

१८७४ र ककतववचन सधा र भारतद की एक रटपणणी छपी थी lsquoगर को कसा होना चाकतहएrsquo इसक अिावा

दो वषम पहि lsquoगर और रहातrsquo नार स भी एक रटपणणी कतिखकर वषणव पाडो-परोकतहतो की खिकर

आिोचना की गयी थी तिवार जी न कतिखा ह दक राददरो क भीतर कतसतरयो का यौन शोषण और वयाकतभचार

इतना भीषण था दक दयानाद भारतद क पकतषट सापरदाय को lsquoकषठी सापरदायrsquo कहत थ १८६० क आरमभ र ही

वषणव गोसाइयो क अनाचार और यौन शोषण क कतखिाफ बमबई र एक बड़ा आनदोिन पकतषटरागी

करसनदास रि जी क नततव र हो चका था वषणव बकतनया पषठभकतर स आय करसनदास जी उन नौजवानो

र थ कतजनहोन एकतिफ सटन कॉिज स आधकतनक कतशकषा परापत की थी गोसाइयो और रहाराजो िारा अपन

lsquoसमपरदाय की बह बरटयोrsquo क साथ होन वाि अतयाचार क कतखिाफ उनहोन िख कतिख और समपरदाय क

इकततहास को नए कतसर स सारन रखा पण स आए जदनाथ वजरतन जी रहाराज न करसनदास जी पर

रानहाकतन का रकदरा दायर कर ददया इसी रक़दर स वषणव रहातो की कई सारी बात जनता क सारन

परतयकष हई तिवार जी न इस lsquoरहाराज िाइबि कसrsquo को भारतीय नवजागरण र वषणव गोसाइयो क

दराचार और यौन शोषण क कतखिाफ हआ सबस बड़ा आनदोिन कहा ह भारतद पर इसका बहत परभाव

था यह कस १८६० र हआ था एक दशक बाद जब भारतद सापरदाय क कायो र रत थ उसी सरय कतिख

रह थ ldquoराददर कया होत ह रानो कतसतरयो की खान ह जसी चाकतहए िीकतजय- वराच अचछी सतरी भी वहाा जाकर

कतबगड़ जाती ह आशचयम यह ह दक कतजनको व िोग बटी कहत ह और जो उनक परिोक क रधयसथ ह और

कतजनको वो दीकषा दत ह उन कतसतरयो की ओर व आप ही बरी दकतषट स दखत ह ओर रर पयार कतहनदओ तर

इनक जाि र कब तक फा स रहोग और कया तरको यही सासार स बचावग और इनही क भरोस तरको

भगवान कतरिगाrdquo33

राददरो क धन-ऐशवयम और वयाकतभचार र डब जीवन क जीवात कतचतर हर बनारस क रखाकतचतर lsquoपरर

जोकतगनीrsquo क अिावा lsquoकाशी क छायाकतचतर क दो बर-भि फोटोगराफrsquo र भी कतरित ह यहाा भारतद का वयागय

अपन वषणव सापरदाय की आतरािोचना स सदकय ह lsquoपरर योकतगनीrsquo नाटक र आन वािा चररतर रारचादर

खद भारतद ही थ नाटक का सतरधार कहता ह दक भारतवषम की दीन हीन गकतत क कारण उसका तो

कतवशवास ही ईशवर स उठन िगा ह नाटक क पहि ही दशय र भारतद हर राददर क भीतर कतिए चित ह

33 वसधा डािकतरया िारा उदधत पषठ- ३३७

30

जहाा राददर र कार करन वािा साधारण टहिआ झपरटया हर ददखाई दता ह पजारी बाब अभी तक नीद

स नही जाग ह कयोदक आधी रात तक lsquoबठ क ही-ही-ठी-ठी करा चाह दफर सबर नीद कस खिrsquo कतनकतशचत

रप स यह टहिआ सबह सवर ही राददर र हाकतिर ह िदकन दवता अभी राददर र सोय ह रारचादर

परदशी ह काशी र बाहर स आय ह छकक जी और राखनदास इस रारचादर की आिोचना करत ह इनक

सावादो स पता चिता ह दक बाब रारचादर क यहाा ददन रात नाच गाना हआ करता ह और उनको अपनी

कतवदया का घराड ह दो चार ककतवतत भी बना ित ह पर lsquoककतवतत बनाव स का होव और ककतवतत बनावन कछ

अपन िोगन का कार थोर हय ई भााटन का कार हयrsquo छकक जी कहत ह दक अपन रागम का उनह कछ जञान

तो ह नही बस दो चार बात इधर उधर स सनकर कछ lsquoदकसतानी रतrsquo सीखकर पाकतडत बन दफरत ह

कतनकतशचत रप स य भारतद पर िगन वाि आरोप थ राददर र सवारी धनदास वकतनतादा बभकतकषत पाकतडत

आदद धरम क ठकदार ह इनकी पतनशीि सासककतत को दखकर रारचादर का दःख इन शबदो र वयि होता ह

lsquoहा कया इस नगर की यही दशा रहगी जहाा क िोग ऐस रखम ह वहाा आग दकस बात की वकतदध की

साभावना करrsquo lsquoवददकी हहासा हहासा न भवकततrsquo जस शरआती नाटको र भी करमकााडी परोकतहतवाद की

आिोचना की गयी ह राजा और परोकतहत कतरिकर वहाा जनता का शोषण करत ह जआ रददरा और

रथन की ऐययाश सासककतत क परतीक परोकतहतो का काजरवरटव दि इन परहसनो र रतम होता ह कतचतरगपत यर

स कहत ह ldquoरहाराज य गर िोग इनक चररतर का कछ न पकतछए कवि दमभाथम इनका कततिक रदरा और

ठगन क अथम इनकी पजा कभी भकति स ररतम को दाडवत न दकया होगा पर राददर र जो कतसतरयाा आयी उनको

सवमदा तकत रह रहाराज इनहोन अनको को कताथम दकया ह और इस सरय तो र lsquoशरीरारचनदर जी का

शरीकषण का दास हाrsquo पर जब सतरी सारन आव तो उसस कहग lsquoर रार तर जानकी र कषण तर गोपीrsquo और

कतसतरयाा भी ऐसी रखम दक दफर इन िोगो क पास जाती हrdquo34

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo की ररपोटम र सतरी सधारो क कायो की रहतता बतान क बाद जाकतत वयवसथा पर

इन सधारको का परहार कयो जररी था इस बताया गया ह कठोर जाकतत बनधनो क चित कस हर साि

जाकतत-बाहय होकर जाकतत र वापस आन क दकसी उपाय को न जान lsquoहजारो रनषय आयम पाकति स हर साि

छटत थ उसको इनहोन रोकाrsquo इस परकार इन सधारको न lsquoआयमधरमrsquo क भीतर जो पररवतमन करन चाह

उसस आयो की एकता दफर स बहाि हो गयी इसक अिावा अाधकतवशवासो को इनहोन दर दकया यही नही

बकतलक जहाा िोग lsquoरसिरानी पीर पगमबर औकतिया वीर ताकतजया गाजी कतरयाा कतजनहोन बड़ी ररतम तोड़कर

और तीथम पाटकर आयम धरम कतवधवास दकयाrsquo उनको भी पजन िग थ और lsquoकतवशवास तो रानो कतछनाि का अाग

हो रहा थाrsquo ऐसी िजजाजनक कतसथकतत स िोगो को बाहर कतनकािकर lsquoसार आयामवतम को शदध lsquoिायिrsquo कर

34 दख रारकतविास शराम पषठ १३१

31

ददयाrsquo lsquoिायिrsquo कर ददया गया इसका अथम आयम जाकतत को दफर स िायि करन र था आयम जाकतत क भीतर

कतबगाड़ क चित ही कतनमन जाकततयो का बड़ परान पर पिायन था इस इन िोगो न रोका और इनक परताप

स ही अनक छोट और सथानीय धरम-रतो क भीतर जो lsquoरसिरानीrsquo परभाव घस आय थ उनको दफर स lsquoबड़ी

ररतमrsquo की कतनषठा र िाया जा सका इस परकार कतहनद धरम और वणामशरर क परकतत दफर स िोगो को lsquoिायिrsquo

दकया यह lsquoिायकतिटीrsquo भारतद की रकतडकि वषणवता क जनरत क कतिए भी जररी था तिवार जी जब

आयमसराकतजयो की lsquoकााकततकारीrsquo भकतरका ददखात ह तब आयम सराज िारा आयामवतम को िायि बनान वािी

इस भकतरका की साकतशलषटता पर जयादा बात नही करत भारतद दयानाद क कााकततकारी परयासो र lsquoिायिrsquo

बनान की परदकया उसी वक़त दख रह थ और इसी कारण ररपोटम र दयानाद की आिोचना धयान दन िायक

ह सवारी जी न ldquoजाि को छरी स न काटकर दसर जाि ही स कतजसको काटना चाहा इसी स दोनो आपस

र उिझ गए और इसका पररणार गह कतवचछद उतपनन हआrdquo गह कतवचछद का रतिब कतहनद धरम र गह

कतवचछद जबदक कशवचादर सन क बार र कहा गया दक उनहोन जाि काटकर भकति की उचछकतित िहरो का

पररषकत पथ परकट दकया इस परकार रकतडकि वषणवता की lsquoअनयताrsquo और परररिक भकति क परशसत पथ क

सवीकार का कतनषकषम कतवचार सभा का भी कतनषकषम था धयान दन िायक ह दक कशवचादर की आिोचना उनक

कतचतत कतवकषप क कारण की गयी थी जहाा lsquoईसारसीह आदद उनस कतरित हrsquo य एक दकसर का इिहारी

अनभव था कतजस भारतद अपनी वषणवता स बाहर रखत ह ईशवर न इस ररपोटम पर अपना रत सरकतकषत

रख कतिया और भारतद कतिखत ह ldquoइसको दख कर इस पर कया आजञा हई और व िोग कहाा भज गए यह

जब कर भी वहाा जायग और दफर िौट कर आ सक ग तो पाठक िोगो को बतिावग या आप िोग कछ

ददन पीछ आप ही जानोगrdquo

३ जनरत और वषणवता

ककतववचन सधा ९ राचम १८७२ र भारतद न lsquoPublic Opinion In Indiarsquo नार स अागरजी र

एक िख परकाकतशत दकया िख र उनहोन कहा दक कई सददयो दक दासता क बाद भारतवषमहहादसतान अब

जाकर कतिरटश राषटर क सवोचच कतनयातरण र आया ह दश धीर-धीर सभयता और परबोधन की पकतशचरी दकरणो

क सहार दरन और कशासन क रतय-तलय कतनदरा स जाग रहा ह कतिरटश शासन की परगकततशीि नीकततयो का

परभाव यहाा की बहरपी आबादी पर पड़ रहा ह

ldquoBut in this progressive state national energy and zeal sympathy and

disintiredness are waiting to make both the conqueror and the conquered to act in

32

concert and in harmony and hence we have the broad distinction of white and

black still But in this country many are the blemishes that adhere to us to be

eradicated and many are the shortcomings that are hovering around us to be done

away with before we can have a public opinion here in its true senserdquo35

गोर और काि क बड़ भद को छोड़ कर कतवजता अागरजो और भारतीयो क बीच एक सराजन तो बन गया ह

पर अनदरनी ददककत अभी भी राह बाए खड़ी ह रौका ह दक इस परगकततशीि कतसथकतत का फायदा उठा कर हर

एक सचच जनरत का कतनरामण कर सचच िोकरत क कतनरामण र अादरनी बाधाएा कया थी भारतद न इस

आग सपषट करत हए कतिखा-

ldquoRace antagonism rivalry and mutual misunderstanding are the favourite

occupations of the aristocratic class Want of confidence among all classes of men

are the prevailing characteristic of the nation and above all multifarious castes and

creeds with there numerous forms of religion and local habits and customs which all

combined have kept the progressive policy at a stand still True it is that a

representative Government is a boon to this country and true it is that Sir Bartle

fregravere a man of vast experience and a good statesman has found out that in village

community we can have public opinion but with all his experience he has lost sight

of our national defects ndash defects which we ourselves know and which no foreigner

can catch at a glancerdquo36

भारतद इस बात को िकर कतनकतशचत ह दक िोकरत और परकततकतनकतधरिक सासथाओ क बहतर कतवकास क कतिए

सीध-सीध कतवदशी रॉडि कभी सफि नही हो पायगा ऐसा इसकतिए कयादक हरारी आपसी कतवकतभननताओ

और झगड़ो को कोई बाहरीकतवदशी सतता कभी भी परी तरह सरझ नही सकती lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo नार

35भारतद गराथाविी -6 361

36 वही

33

स भारतद का एक दसरा िख इस अागरजी वाि िख क दो साि बाद अपरि सन १८७४ र हररशचनदर

रगजीन र छपा पकतबिक ओकतपकतनयन कया बिा ह इस साफ़ करत हए भारतद िख क आरमभ र ही कहत

ह ldquoपकतबिक ओकतपकतनयन अथामत सब साधारण िोगो की राय कया वसत ह और इसर दकतना जोर ह और

इसक कतिए कया हो सकता ह यह परशन ठहरा तो इसका साधारण उततर यही ह दक यह वह वसत ह जो

सासार को एक कर सकती ह गागा की धरा दफर कतहरािय पर चढ़ा ि जा सकती ह सययम को पकतशचर उगा

सकती ह और चाह तो ईशवर को भी पकड़ क कठपतिी की भााकतत नचा सकती हrdquo37 यह पकतबिक

ओकतपकतनयन lsquoएक रतrsquo होना ह जस अिग अिग चार पतिी िककतड़यो को एक साथ बााध दन स उस

तोड़ना करठन हो जाता ह उसी तरह एक रत होन स बड़ स बड़ा बरी भी हरारा कछ कतबगाड़ नही सकता

बहत स िोगो का रत एक हो तो वह शकति बन जाती ह हिारो आदरी की बकतदध एक हो जाए तो ldquoऐसा

कौन कार ह जो न हो सक तो यह कतसदधाात हआ दक कतनशचय सब िोगो क रत र बड़ी सारथयम ह इसस यह

कतसदध हआ दक बिो स बड़ा बि एक रत ही हrdquo38

आग भारतद कहत ह दक यह जनरत और उसकी शकति हहादसतान क कतिए कोई नई बात नही ह

पराचीन काि र इसक उदाहरण कतरित ह lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo की इस धारणा को भारतद न इकततहास क

अिग-अिग दौर र बनत और कतबगड़त ददखाया सबस पहि चार वणो की िररत पड़ी सब कार को

सचार रप स चिन क कतिए दसर शबदो र कह तो शरर-कतवभाजन की िररत स इसका जनर हआ

lsquoकतहनदओ न अपन गर क कार र इस वणामशरर धमरम को इसी वासत बनाया कतजस र उन क दकसी कार र

कोई हजम न हो और उनिोगो न सासार क सब कारो र चार कार रखय सरझrsquo धरम कतवदया और किाओ का

कार िड़ाई और राजय परबाध का कार वयापार और धन और सब िोगो की सवा और रजदरी इन चार

कारो की सवयवसथा वािा वणामशरर दरअसि lsquoएक रतrsquo कतहनद वयवसथा या lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo थी पर

कािाातर र इस lsquoएकरतrsquo क भीतर जाकततवयवसथा कठोर हो गयी और िाहमण और शदर दोनो एक दसर क

कतखिाफ हो गए एकरत र कतवचछद पदा होन स कतहनद शकति करिोर हो गयी भारतद क अनसार आपस

का यह झगड़ा बड़ा कतवनाशकारी साकतबत हआ पकतबिक ओकतपकतनयन क कतबना वयाकतभचार और जयादकततयो का

अाधर था आग चि कर जनो क जरान र दफर lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo न जोर पकड़ा बकतलक भारतद जोर

दकर कहत ह दक जनो क रत की उततपकततत ही lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo स हई ldquoकतहनदओ क जब नाश क ददन

जब कतनकट आय तो आपस र परसपर बड़ा कतवरोध खड़ा हआ और उस काि र िाहमणो का बड़ा जोर था

वरन य और वणो पर जयादती करत थ तो वशय और कषकततरयो की रकतत इनस दफर गयी और बाब वािी बड़ी

37गराथाविी- 678

38वही

34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

36

कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

37

उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

38

ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 21: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

21

रहा रकतडकि होन क चित था कतनकतशचत रप स सवगम सासद का रपक ह और सवगम का राजा ईशवर

कतनषपरभावी हो गया ह और जनता सवया जनरत क िारा कतनणमय कतसथर करन पर जोर दती ह जनरत क

िारा lsquoसलफ गवनमरटrsquo का परयास सबस पहि वषणव भिो न दकया था और आज क कतिबरलस उसी को

आग बढ़ा रह ह ईशवर क पास दोनो दिो क िोगो न जब अपन अपन ररोररयि तयार कर भज तो ईशवर

न दोनो दिो क डपयटशन को बिाकर कहा ldquoबाबा अब तो तरिोगो की lsquoसलफगवनमरटrsquo ह अब कौन

हरको पछता ह जो कतजसकी जी र आता ह करता ह अब चाह वद कया सासकत का अकषर भी सवपन र भी न

दखा हो पर धरम कतवषय पर वाद करन िगत ह हर तो कवि अदाित या वयवहार या कतसतरयो क शपथ

खान को ही कतरिाय जात ह दकसी को हरारा डर ह कोई भी हरारा सचचा lsquoिायकrsquo ह भत परत ताकतजया

क इतना भी तो हरारा दजाम नही बचा हरको कया कार चाह बका ठ र कोई आवहर जानत ह चारो

िड़को (सनक आदद) न पहि स ही चाि कतबगाड़ दी ह कया हर अपन कतबचार जयकतवजय को दफर राकषस

बनवाव दक दकसी का रोकटोक कर चाह सगन रानो चाह कतनगमन चाह ित रानो चाह अित हर अब न

बोिग तर जानो सवगम जानrdquo

काजरवरटव दिभिो न दयानाद और कशवचादर सन पर कया कया आरोप िगाय यह दख िना

चाकतहए दयानाद को सवगम र सथान नही कतरिना चाकतहए कयोदक १ इसन पराणो की हनादा की २ ररतमपजा

की हनादा की ३ वदो का अथम उलटा-पलटा कर डािा ४ दस कतनयोग करन की कतवकतध कतनकािी ५ दवताओ

का अकतसततव कतरटाना चाहा (दवताओ याकतन जरीदार) ६ इसन धरम कतवपिव दकया और आयामवतम को धरम

बकतहरमख दकया पकतशचरोततर परानत क परकततकतनकतध क रप र lsquoकाशी क कतवशवनाथ जीrsquo न lsquoउदयपर क एकहिाग

जीrsquo पर दयानाद क सरथमन का आरोप िगाया कतवशवनाथ जी काजरवरटव दिो की तरफ स यह आरोप िगा

रह थ परब की अपकषा पकतशचरी इिाको र आयम सराज क परभाव की चचाम क सनदभम र एकहिाग जी का

जवाब धयान दन िायक ह कतवशवनाथ जी न जब एकहिाग जी को कतधककारत हए कतिबरिो क साथ कतरि जान

को कहा तब एकहिाग जी न कहा ldquoभाई हरारा रतिब तरिोग नही सरझ हर उसकी बरी बातो को न

रानत न उसका परचार करत कवि अपन यहाा क जागि की सफाई का कछ ददन उसको ठका ददया बीच

र वह रर गया अब उसका राि रता रठकान रखवा ददया तो उसका बरा दकयाrdquo यह एकहिाग जी

दफ़िहाि सवारी जी क दि क सभापकतत बन ह आकतखर इनहोन अपन यहाा क दकस lsquoजागिrsquo की सफाई का

ठका सवारी जी को ददया था यह जागि छोट-रोट धाररमक समपरदायो और रतो का जागि था एकहिागी

जी और काशी क कतवशवनाथ जी दोनो ही िाहमणीकत शवरत क धाररमक परतीक ह पर जहाा काशी क

कतवशवनाथ शर स ही दयानाद क कतवरोधी थ वही एकहिाग जी रणनीकततक रप स दयानाद क पास गए थ यह

साकीणम कटररपाथ क भीतर का कतववाद था यह बात गौर करन िायक ह दक जगननाथपरी र जब भरव की

22

रौजदगी का कतववाद भारतद क सारन आया था उस सरय उनहोन इस बात का परतयाखयान दकया था दक

भरव की परकततरा अनाददकाि स वहाा ह भारतद न पराण आदद स साकषय दकर यह परराकतणत दकया दक

कषण ही एकरातर उपासय ह तिवार जी न इस घटना का उलिख करत हए कतिखा ह दक ldquoदकसी वयकति न

lsquoतहकीकातपरीrsquo दकताब दकखकर बताया दक वहाा पहि भरो की पजा होती थी वषणवो न उसकी ररतम

उखाड़ फ की थी बाद र पाडो न जगननाथजी (कतवषण) क साथ भरो को दफर स परकततकतषठत दकया यह रारिा

काशी धरमसभा क सारन १८७० र आया भारतद न धरम साबाधी पसतक र lsquoतहकीकातrsquo जस फारसी शबद

की आिोचना करत हए कतवकतभनन धरमगराथो स परराण जटाकर दो बातो पर जोर ददया एक इसका परराण

नही कतरिता ह दक वहाा जगननाथजी क साथ पहि भरो की भी ररतम थी कतजस वषणवो न उखाड़ फ का दो

अगर वह थी भी तो यह उकतचत था या नही- इसपर कतवचार होना चाकतहए भारतद न अपनी वयवसथा दत

हए कतिखा दक भरो कतवषण स बहत छोटा दवता ह इसकतिए यह कतवषण क साथ बठाया नही जा सकता

lsquoदसर भरव कापाकतिको क दवता ह उनका पजन वषणव-सरातम सबको कतनकतषदध हrsquo गौरतिब ह दक भारत

र कतवकतभनन सथानीय धरो क परकतत कतजतन असकतहषण और फा डारटकतिसट आयमसराजी थ उतन ही काशी क

सनातनी भी थrdquo25

सथानीय धरम-रतो क जागि को साफ़ करन र आयमसराकतजयो और काशी क सनातनी पाडो क इस

गठजोड़ स भारतद भी वादकफ थ िदकन आयमसराकतजयो क साथ उदयपर क एकहिाग जी का रोचाम कसा

था इस भी भारतद बखबी सरझ रह थ सथानीय रतो क साथ भारतद का समबनध कसा था इसका पता

उनक छोट-छोट यातरा सासररणो स भी चिता ह lsquoसरय पार की यातराrsquo26 र रहदावि का हाि बयान करत

हए lsquoपराणनाथrsquo क रिहब का भारतद आशचयम क साथ उलिख करत ह भारतद क ही शबदो र ldquoयहाा एक

पराणनाथ का रिहब ह और दस बीस िोग उसक रानन वाि ह य िोग एकादशी तीथम वगरह को नही

रानत और सन सनाय दो तीन शलोक जो याद कर कतिए ह बस उसी पर चर हो lsquoरदीनासया शारदाा शताrsquo

और lsquoगोकतवनदrsquo lsquoगोकिानाद रककशवरrsquo यह शलोक पढ़ क कहत ह दक वद र रकका रदीन का वणमन ह ऐस ही

बहत वाकतहयात बात करत ह और कोई दकतना भी कह कछ सनत नही कहत ह दक गोिोक का नाश ह

और गोिोक ऊपर एक lsquoअखाड रणडिाकारrsquo िोक ह उसर रर कषण ह इनका रिहब एक पराणनाथ नारक

एक कषतरी न पनना र करीब तीन सौ बरस हए चिाया थाrdquo भारतद इस अजीबो गरीब lsquoरिहबrsquo का कषण स

कया साबाध ह यह सोचकर ताजजब र थ इस lsquoरिहबrsquo क गरनथ र भारतद न एक शलोक बलिभाचायम का

दखा तो उनका राथा और घर गया ldquoकि रिहब का हाि हरन नीच कतिखा था उसका अचछी तरह स

25 वीरभारततिवार रससाकशी १९वी सदी का नवजागरण और पकतशचरोततर परानत पषठ- १५२ सारााश परकाशन ददलिी- २००६

26 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन पषठ- १३७-३८

23

हाि दरयाफत दकया तो रािर हआ दक हरार ही रिहब की शाखा ह इनक गराथो र हरन एक शलोक शरी

रहापरभजी की सबोकतधनी की काररका का दखा इसी स हरको सादह हआ दफर हरन बहत खोद खाद कर

पछा तो वह साफ़ रािर हआ दक इसी रत स यह रत कतनकिा ह कयोदक एक बात वह और बोि दक हरारा

रत शरी बलिभाचारज की टीका र कतिखा ह इन िोगो क उपासय शरीकषण ह और एकादशी शािगरार

ररतमपजा तीथम दकसी को नही रानत इनक पकतहि आचायम दवचाद जी थ जो जाकतत क कायथ थ और दसर

पराणनाथ जी जो कचछ क कषतरी (भारटया) थ हरार ही रत की शाखा सही पर कतवकतचतर रत ह वषणव होकर

ररतमपजा का खाडन करन वाि यही िोग सनrdquo वणमन स सपषट ह दक सात और कतनगमण पाथो क साथ वषणव

कतवचारधारा क आदान-परदान का साकतशलषट इकततहास भारतद क कतिए ताजजब की चीज थी पर इन सबक बीच

आकतखर उनहोन इसक वषणव रि का पता िगा कतिया और वषणवता की इस धाररमक कतवचारधारा र उनहोन

ररतमपजा का कतवरोधी होना भी शाकतरि रान कतिया भारतद न ररतमपजा क सरथमन र बड़ बड़ िख कतिख

थ इसकतिए असाभव नही दक कषण क परकतत परररिक भकति क कतिए ररतम की जररत पर उनहोन कछ पछा

जरर होगा िदकन lsquoकोई दकतना भी कछ कह सनत ही नहीrdquo आग चिकर lsquoवषणवता और भारतवषमrsquo र

वह बड़ कतवशवास क साथ घोकतषत करत ह दक ldquoपहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद कतजतन पाथ ह सब

वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और भारतवषम इन पाथो स छाया हआ हrdquo27 तब वह वषणवता और

िोकरतो और रधयकािीन पाथो क भीतर पहि स सदकय एक ऐकततहाकतसक परदकया का सारानयीकरण कर

उसका नार lsquoवषणवrsquo रख रह थ अकारण नही दक उसी िख र वषणव वयापकता को बतान क कतिए

परचकतित lsquoनारोrsquo का साकषय पश दकया गया ह वयकतियो स िकर वरत और उपवासो तक यह परभतवशािी

सारानय बोध की कतवचारधारा थी कतिवदी जी रधयकािीन वषणवता को िोकधरम कहत थ भारतद

उननीसवी सदी क िोकधरो को वषणव कहत ह

काजरवरटव दिो की तरफ स कशवचादर सन पर िगाय गए आरोप थ १ वद पराण सबको कतरटा

डािा २ दकसतान रसिरान सबको कतहनद बनाया ३ खान पीन का कतवचार कछ न बाकी रखा ४ रदय की

तो नदी बहा दी आयम सराकतजयो क ऊपर रखयतः आरोप lsquoआयामवतम को धरम बकतहरमखrsquo करन का ह धरम

बकतहरमख अथामत सनातन धरम स कतवरख उनहोन कवि धरम क भीतर कतवपिव दकया परनत िहमो सराज न तो

lsquoभारतवषम का सतयानाशrsquo कर डािा इनहोन तो पराणो क अिावा वदो को भी कतरटा डािा lsquoआयामवतमrsquo की

जातीय पकतवतरता नषट करक दकसतान रसिरान जस lsquoकतवदशी ततवोrsquo को घर र घसा कतिया कटररपाथी

करमकााकतडयो क कतिए इनक साथ रणनीकततक तौर पर भी रोचाम बनान वािा कोई एकहिाग जी तयार नही

था सनातकतनयो िारा दकया गया यह बारीक भद खद कतिबरि दिभिो क भीतर का भी अातरवमरोध था

27 भारतद वषणवता और भारतवषम वही पषठ-७६

24

कतिबरिो की सभा र भी दो दि हो गए थ एक सवारीजी क सरथमको का दि था और एक कशव

क सरथमको का कतहनद कतिबरिो की आताररक एकता कतिकतवभाकतजत थी दयानाद क सरथमको क अनसार सवारी

जी न कतहनदओ की आतरा को जगाया था उनह सफतम बनाया वरना तो आयामवतम क आिसी और रखम

रोहकतनदरा र ही कतनरगन थ इस तरह रखम और आिसी सारानयजनो को lsquoिाहमणो क फा द स छड़ायाrsquo िाहमणो

की तिना भारतद न lsquoपादररयोrsquo स की ह जो lsquoवयथम परजा का दरवय खान वाि हrsquo आयम सराज न सासथाकत

परोकतहतवाद पर हरिा दकया था जो भारतद क कतिए रितः जनता क पसो पर पिन वािा परजीवी वगम

िगता था और तो और आधकतनक कतवजञान क आग जो lsquoआयोrsquo की नाक कटी जा रही थी उस भी सवारी जी

न बचा कतिया उनहोन वदो र भी रि तार करटी कचहरी आदद ददखाकर कतहनदओ र आतरसमरान पदा

दकया दसरी ओर कशव क सरथमको का कहना था दक ldquoधनय कशव तर साकषात दसर कशव हो तरन बाग

दश की रनषय नदी क उस वग को जो कशचन सरदर र कतरि जान को उचछकतित हो रहा था जञान करम का

कतनरादर करक पररशवर का कतनरमि भकति रागम परचकतित दकयाrdquo lsquoजञान करम का कतनरादरrsquo करक भी lsquoकतनरमि

भकति रागमrsquo का जो परवतमन कशव न दकया उसस ही ईसाई lsquoअनयताrsquo का साथमक परकततरोध साभव हआ lsquoरनषय

नदी का आवगrsquo भावावग ह इसी बात को दसर शबदो र कह तो भाव जगत क सवाभाकतवक वग को भगवत

भकति की शदध lsquoअनयताrsquo की ओर रोड़कर उस कतवदशी ईसाई lsquoअनयताrsquo क रागम पर जान स रोक ददया इस

कायम क कतिए वद पराण समरत lsquoजञान-करमrsquo क रागो का कतनरादर अगर करना पड़ा तो भी वह उकतचत ही था

वषणव भकति क रधयकािीन सवरप की जो वयाखया आग चिकर की गयी उसक आराकतभक कतचनन हर यहाा

दख सकत ह कहना न होगा दक भारतद का अपना अनभव भी यहाा बोि रहा ह

शासतरीय काजरवरटव पाटी र दवताओ क अिावा यजञवलकय जस औपकतनषददक ऋकतष क साथ-साथ

नारायण भटर रघनाद भटराचायम राडन कतरशर जस कतनबाधकारो और टीकाकारो का जरघट भी था इसक साथ

साथ इसिारी सवगम स आय हए कटररपाथी कतशया िोगो का भी सरथमन उनह परापत था इस परकार कटररपाथ का

दवताओ (जरीदारो) िाहमणो (पादररयो) जञानरागी औपकतनषददक ऋकतष रधययगीन कतनबाधकारो और

कतवदशी कतशया िोगो का एक वकतशवक रोचाम बन रहा था दसरी ओर कतिबरि दि र चतनय परभकतत आचायम

दाद नानक कबीर परभकतत भि और जञानी िोग भी शाकतरि थ इसक अिावा काजरवरटव दि क

कतवदरोकतहयो को भी कतिबरिो न अपन यहाा जगह दी य कतवदरोही थ अितवादी (या नववदााती) भाषयकार

पाचदशीकार और कोई कतरसटर िडिा इन दोनो िोगो पर शर र का जरवरटव दि वािो न बहत हरि

दकय परनत अात र इनह कतिबरिो न अपन यहाा जगह द दी धयान रखना चाकतहए दक भारतद अपन सापरदाय

क अनरप अित वदाात या रायावाद क घोर आिोचक थ सन १८७३ र हररशचादर रगजीन क पहि ही अाक

र भारतद न शााकतडलय भकति सतरो का अनवाद lsquoभकति सतर वजयातीrsquo नार स परकाकतशत दकया भकतरका र

25

भारतद कतिखत ह ldquo दखो आज वसात पाचरी ह इसस बहत स िोग आर क रौर वा फिो क गचछ िकर

तरस कतरिन आवग तो र भी यह एक फिो की वजयाती रािा बना कर िाया हा अागीकार करो वजयाती

रािा बनान का यह हत ह दक वनरािा होगी तो होिी क खि र अरझगी और इसक कतसवाय इस वजयाती

स कतनशचय करक जञानाददक को जय करना ह पर पयार बहत साभि कर यह रािा पहरना टट न जाए

कयोदक सत कचचा ह और ककतियाा तािी और कोरि ह इस स कमहिान का भी भय ह जो हो इस वसात

पाचरी को तयोहारी रझ यही दो दक इस सतयानाशी lsquoअहरrsquo िहमवाद lsquo को पणमरप स नाश करक और भी

सब बातो र इस नव-वसात र भारतवषम की सब आपकतततयो का बस अात करो और अपन भिो क कतचतत र

नव पलिव दफर स िहिह करो जो सदा एक रस रहrdquo28 lsquoएकरसrsquo भकति क कतिए जररी ह दक जञानवाद

अहर िहमवाद को जड़ स उखाड़ फ का जाय कषण को अरपमत अपनी वजयाती रािा स भारतद जञानाददक

को जय करना चाहत ह एक ओर यह पकतषटरागी परापरा क lsquoवीर वषणवrsquo भारतद का परर कतनवदन ह दसरी

ओर lsquoनव-वसातrsquo र भारतवषम की सब आपकतततयो को नाश करन की सारथयम रपी lsquoउपहारीrsquo का साकलप भी

ह lsquoभारतद भारतवषम की सब आपकतततयोrsquo को दर करन की राह र एक बड़ी बाधा अित क जञानवाद को

रानत ह भकति का lsquoएकरसrsquo पहि भी इसक परभाव स ररझाता रहा ह भारतद का साकलप सापरदाय क

परान कतवरोधो क बावजद बन रहन वाि इस अितवाद का पणम सफाया करन का ह जबतक यह न कतरटगा

परररिा भकति क lsquoकमहिान का भयrsquo बना रहगा भकति सतरो र उपासना कााड को परर कतसकतदध का हत

बताया गया था पर भारतद दख रह थ दक उपासना कााड का परचार कतवरि हो गया ह इसी परचार क

कतनकतरतत उनहोन इन सतरो का भाषा र अथम परचार दकया था १८७३ र ही हररशचादर रगजीन का एक

समपादकीय कतनकिा कतजसका शीषमक था- lsquoभकति जञानाददक स कयो बड़ी हrsquo इस िख र भी उपासना रागम

की रहतता का परकततपादन दकया गया ह तकम और जञान को करम की शकतदध और उपासन की परर कतसकतदध क

रासत र कवि एक चरण बताया गया ह वसधा डािकतरया न भारतद क आराकतभक साापरदाकतयक परचार

परसार क कायो र कतनगमकतनयो को बाहर रखन का उपकर नोट दकया था29 यहाा कतनगमकतनए कबीर आदद lsquoभि

और जञानीrsquo कतिबरिो क सरथमक ददखाए गए ह वषणव भकति क राषटरीय चररतर र य बाहर नही थ उनकी

एकता का आधार उनक lsquoकतिबरि रिrsquo र ह सावमजकतनक उचच भाव का सापादन और भकति इन दोनो क साथ

अित वदााती या जञानाददक- सनातनी परापरा क कतवदरोकतहयो की जगह भी कतिबरि दि पाकतथयो र थी

कतिबरि वाि ही झगड़ क कतनपटार की अजी पररशवर को दन गए थ पर पररशवर अपनी

परतीकातरक हो गयी कतसथकतत स खजिाय हए थ यह सवोचच अदाित थी पर साथ ही साथ शकतिहीन

28 भारतद गराथाविी खाड- ५ पषठ ११३

29 वसधा डािकतरया पषठ ३४२

26

राषटराधयकष की कलपना भी कतजस कतहनद सवगम क य राषटराधयकष ह वहाा दकसी दकसर की सलफ गवनमरट चनन

की परणािी आ जान स ईशवर की एकाकतधकारी शकतियाा कतछन गयी ह िोग जनरत कतनरामण क िारा सही

और गित की पहचान करन िग थ इसकतिए थोड़ा खजिाय तो रहत ही होग lsquoअब कौन हरको पछता

ह तर जानो सवगम जानrsquo परनत साकट गहरा था यदयकतप कतिबरि िोगो की सभा भी धरधार स जर

रही थी पर काजरवरटव दि पाकतथयो की सरकार र पठ थी दवता सब भी उनक साथ थ इसकतिए पररशवर

क पास जररी नयाय का परशन उठाया गया था नयाय दक इन दो रहापरषो को सवगम र जगह कतरिनी

चाकतहए या नही सराज र इनक नकततक उचच आदशो क अवरलयन का परचार काजरवरटव कर रह ह इस

परचार क कारण जनता अपनी निरो स पहचानन र सकषर नही ह ऐसी कतसथकतत सवगम र पहि नही आई

थी नई कतसथकततयो क नए रानदाड कया होग िाकतहर ह नयाय और नकततकता को एक वकतशवक सवीककतत

चाकतहए इसकतिए पररशवर न इस कतवषय पर कतवचार क कतिए जो ककतरटी चनी वह गौर करन िायक ह इस

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo र ldquoराजा राररोहन राय वयास दव टोडररि कबीर परभकतत कतभनन-कतभनन रत क िोग चन

गए रसिरानी- सवगम स क lsquoइरारrsquo दकसतानी स िथर जनी स पारसनाथ बौदधो स नागाजमन और

अफीका स कतसटोवायो क बाप कोrdquo चना गया कतहनद सवगम स नवजागरण क अगरदत वयासदव जस

बौकतदधकिखक टोडररि जस राजनीकततजञ और धरम-ररमजञ कबीर जस जञानी-भि पराचीनो र कवि वयास

दव ह बाकी दो lsquoरधयकािrsquo क और एक lsquoआधकतनकrsquo काि क वयकति ह उधर यरोपीय नवजागरणधरमसधार

क परणता िथर को भी बिाया गया ह और बौदधो की तरफ स परर कतनषधवादी नागाजमन भी ह पर य

अफीका क कतसटोवायो धरो की अकतसरता क साथ-साथ यह अफ़ीकी सवगम कतनकतशचत रप स अफीका की छकतव

पराचीन आददवासी सासककतत वाि एक lsquoकािrsquo रहादश क रप र गढ़ी गयी थी यह अफ़ीकी सवगम साभवतः

आददवासी धाररमक रानयताओ की ओर इशारा करता ह यह भी धयान दन िायक ह दक राजा राररोहन

राय िथर और कबीर इन तीनो क साथ lsquoनवजागरणrsquo की कोई न कोई पररकलपना ठठ सरकािीन कतवरशो

क क दर र भी ह कई अथो र अकबर िारा आयोकतजत होन वािी lsquoसिह-ए-किrsquo जसी धरम सभाओ की एक

रोहक कलपना भी भारतद को रही होगी टोडररि की उपकतसथकतत अकारण नही ह

अकबर को िकर भारतद की इकततहासदकतषट कसी थी इसकी एक झिक हर १८८४ र छपी उनकी

lsquoबादशाह दपमणrsquo की भकतरका र ददखती ह इस गरनथ र उन िोगो का चररतर-कतचतरण दकया गया था ldquoकतजनहोन

हरिोगो को गिार बनाना आरमभ दकया इसर उन रसत हाकतथयो क छोट-छोट कतचतर ह कतजनहोन भारत क

िहिहात हए करिवन को उजाड़कर-पर स कचिकर कतछनन-कतभनन कर ददया रहमरद रहरद अिाउददीन

अकबर और औरागजब आदद इनर रखय ह पयार भोि कतहनद भाइयो अकबर का नार सनकर आपिोग

चौदकए रत यह ऐसा बकतदधरान शतर था दक उसक बकतदधबि स आजतक आपिोग उसको कतरतर सरझत ह

27

दकनत वह ऐसा ही नही उसकी नीकतत अागरजो की भााकतत गढ़ थी रखम औरागजब उसको सरझा नही नही तो

आज ददन हहादसतान रसिरान होता कतहनद-रसिरान र खाना-पीना बयाह-शादी कभी चि गयी होती

अागरजो को जो बात नही सझी वह इसको सझी थीrdquo30 कतनकतशचत रप lsquoबकतदधरानrsquo दशरन स सीखन को बहत

कछ कतरिता ह अकबर की दीन-ए-इिाही क परयोग स भारतद भी बहत कछ सीख रह थ रधयकािीन

इकततहास क बार र रकतसिर शतर की छकतव का कतनरामण पराचयकतवदयाकतवदो क िारा दकया जा रहा था इकतियट

आदद इकततहासकारो न जो दकतषट कतवककतसत की उसका परभाव बहत गहरा था पर इस इकततहासिखन क साथ

साथ भारतद क कछ दशी सरोत भी थ अिग-अिग रहापरषो की चररताविी कतिखन की पररणा भारतद न

कतजतना अपनी वषणव भकति की परापरा स पाया था उतना ही इसिारी इकततहास िखन की परापरा स भी

lsquoबादशाहदपमणrsquo की भकतरका र भारतद कतिखत ह ldquoरर पररातारह राय कतगरधरिाि साहब जो यवनी कतवदया

क बड़ भारी पाकतडत और काशीसथ ददलिी क शाहजादो क रखय दीवान थ उनकी इचछा स ददलिी क परकतसदध

कतविान सययद अहरद न एक ऐसा चक बनाया था कतजसर तरर स िकर शाह आिार तक सब बादशाहो क

नार आदद कतिख थ उस फारसी गरनथ स बहत सी बात इसर िी गयी ह इस कारण तरर पवम क बादशाहो

का वणमन इतना परा नही ह कतजतना तरर क पीछ ह दफर रर रातारह राय कतखरोधरिाि न बहादर शाह

क काि क आरमभ तक शष वतत सागरह दकयाrdquo31

अरणदव जी अपन एक िख र भारतद क आराकतभक अकबर परर का कतिक दकया ह १८७२-७४ क

आसपास भारतद अकबर को रहान शासक रानत थ जबदक औरागजब को कतहनदओ का दशरन नाबर एक

भारतद न औरागजब की तिना र अकबर की रहानता को परराकतणत करन क कतिए रारदास कछवाह क एक

शलोक को अपना आधार बनाया ह इस शलोक का भावाथम भारतद क शबदो र इस परकार ह ldquoजो सरदर स रर

तक पथवी को पािता ह जो रतय स गउओ की रकषा करता ह कतजसन तीथम और वयापार स कर छड़ा ददए

कतजसन पराण सन जो सयम का नार जपता जो योग धारण करता ह और गागाजि छोड़कर पानी नही

पीता उस जिािददीन की जय अाग वाग कहिाग कतसिहट कततपरा कारत (कारटी) काररप अाध कणामटक

िाट दरकतवड़ रहाराषटर िारका चोि पााडया भोट रारवाड़ उड़ीसा रलि खरासान का दहार जमब काशी ढाका

बिख बदखशाा और काबि को जो शासन करता ह ककतियग की रकतहरा स घटत हए वद गउ कतिज और

धरम की रकषा को सगन शरीर कतजसन धारण दकया ह उस अपररय परष अकबर शाह को हर नरसकार करत

हrdquo32 यही अकबर १८८४ र औरागजब स जयादा शाकततर और बकतदधरान शतर र बदि गया lsquoकािचकrsquo क

कतनकतहताथो र यह फरबदि भारतद पर रकतसिर कतवदशीपन और कतहनद शतरता क समपणम बिॉक बनान की

30 बादशाह दपमण भारतद गराथाविी खाड-६

31 वही

32 httpsamalochanblogspotin201209blog-post_9html

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रणनीकतत क दबाव क कारण था और lsquoपरावकततrsquo की कतरथकीयता र भी कतहनदओ को lsquoरहारोहनासतरrsquo क सहार

पहि भी वश र दकया गया था यह एक बारीक चाि थी अकबर की इस चाि को अागरज भी नही सरझ

पा रह थ भारतद की यह परकततदकया औपकतनवकतशक इकततहासिखन क दबाव र थी १८७३ र जब भारतद

न कतशवपरसाद की दकताब lsquoइकततहासकततकतररनाशकrsquo क तीसर खाड की आिोचना की थी तो उनक सारन

रकतसिर शासन की बबमरता और अागरजी राज क सशासन का कतशवपरसाद िारा ककतलपत आखयान था १८८४

र समपणम रकतसिर काि अनधकार यग र बदि गया कततकतररनाशक क पहि खाड र बाब कतशवपरसाद न भी

अकबर की रजहबी उदारता और साराकतजक सधारो की बड़ाई की थी इस परकार हर दख सकत ह दक

ऐकततहाकतसक िखन र पकष और कतवपकष की पनरावकततत एक बाद घर र उिझी हई थी इनक सारन रकतसिर

कतवरोध और अागरजी शासन क कतवरोध का एक कतवसागत फर था और िखक उसर अपनी फौरी जररतो क

कतहसाब स कतरतर और दशरन वािा इकततहास कतिखता था इकततहास ठठ राजनीकततक ततकाि क वशीभत था

जो भी हो धाररमक उदारता और सिह-ए-कि का परयोग एक कतशकषापरद परयोग था यह कतवकतभनन

रतो या कतवशवासो क बीच lsquoजनरतrsquo बनान का एक रधयकािीन परयोग था भारतद lsquoजनरतrsquo क परयोग को

इस तरह दखत थ रानो यह lsquoचािrsquo अगर कारयाब हो जाती तो lsquoआज क ददन हहादसतान रसिरान होताrsquo

भारतद क सारन सरसया वही थी बस वह कवि यह चाहत थ दक कतहनदसतान lsquoकतहनदrsquo हो जाय कतहनद

अथामत वषणव हो जाय वषणवता भारतद क कतिए हहादसतान का नया lsquoसिह-ए-किrsquo था इसकतिए कछ

सावमजनीन रलयो की तिाश उनह भी थी कतसिकट ककतरटी क उपरोि रमबर lsquoएकसअफीकतशयोrsquo रमबर थ

रोर क परान हररकिस जस दवता कतजनहोन धरती स साबाध तोड़ ददया ह व िोग तथा उनही क जस

पारकतसयो क lsquoजरदशतजीrsquo को कोरसपोहडाग ऑनररी रमबर बनाया गया य धरम क रप र रतपराय रतो क

परकततकतनकतध थ ककतरटी न जो ररपोटम तयार की उसका ररम भारतद न ददया ह यह ररम उनक रकतडकि वषणव

पकष का रत था कतिबरि दि और काजरवरटव दि क अपन पकषो स इतर यह नरनायक तीसरा पकष वषणवो

की तरफ स सनाया गया था रकतडकि वषणवो की तरफ स भारतद इस धाररमक आनदोिन क भीतर अपना

ही पकष रखत हए इसका ररम कतिख रह थ ldquoहरिोगो की समरकतत र इन दोनो परषो न परभ की रागिरयी

सकतषट का कछ कतवघन नही दकया वराच उसर सख और सातकतत अकतधक हो इसी र पररशरर दकयाrdquo कतहनद सराज

सधार क परयासो का ररम बतात हए सबस पहि धयान सतरी सधारो पर ददया गया ह साराकतजक करीकततयो

की कतशकार रकतहिाओ क परकतत जो दकतषट उभरकर सारन आती ह उसक रि र धरम की रीकतत स यौन

रयामदाओ की अवयवसथा को दफर स रयामददत करन की चषटा ह कतसतरयो क करागम पर जान का पहिा कारण

ह रनराना परष धरमपवमक न पाना यह कतववाह सासथा की कतवककततयो की आिोचना थी जहाा बाि कतववाह

कतवधवा कतववाह आदद की तरफ इशारा ह धयान रखना चाकतहए दक यहाा बरि कतववाह क बदि कतसतरयो िारा

29

lsquoरनराना वरrsquo न चन पान का उलिख ह गभमनाश और बाि हतया क कतखिाफ सधार परयास दसरा

रहतवपणम योगदान ह कतववाह सासथा बीच र भी भाग की जा सकती ह इसकी सवीककतत ह कनया क कतहत र

अातरजातीय कतववाह की सवीककतत ह एक रहतवपणम बात गरओ और पाकतडतो क वयाकतभचार क साबाध र ह

भारतद क सारन पकतषटरागी रहातो और गरओ क वयाकतभचार का अनभव भी इसर शाकतरि ह

१८७४ र ककतववचन सधा र भारतद की एक रटपणणी छपी थी lsquoगर को कसा होना चाकतहएrsquo इसक अिावा

दो वषम पहि lsquoगर और रहातrsquo नार स भी एक रटपणणी कतिखकर वषणव पाडो-परोकतहतो की खिकर

आिोचना की गयी थी तिवार जी न कतिखा ह दक राददरो क भीतर कतसतरयो का यौन शोषण और वयाकतभचार

इतना भीषण था दक दयानाद भारतद क पकतषट सापरदाय को lsquoकषठी सापरदायrsquo कहत थ १८६० क आरमभ र ही

वषणव गोसाइयो क अनाचार और यौन शोषण क कतखिाफ बमबई र एक बड़ा आनदोिन पकतषटरागी

करसनदास रि जी क नततव र हो चका था वषणव बकतनया पषठभकतर स आय करसनदास जी उन नौजवानो

र थ कतजनहोन एकतिफ सटन कॉिज स आधकतनक कतशकषा परापत की थी गोसाइयो और रहाराजो िारा अपन

lsquoसमपरदाय की बह बरटयोrsquo क साथ होन वाि अतयाचार क कतखिाफ उनहोन िख कतिख और समपरदाय क

इकततहास को नए कतसर स सारन रखा पण स आए जदनाथ वजरतन जी रहाराज न करसनदास जी पर

रानहाकतन का रकदरा दायर कर ददया इसी रक़दर स वषणव रहातो की कई सारी बात जनता क सारन

परतयकष हई तिवार जी न इस lsquoरहाराज िाइबि कसrsquo को भारतीय नवजागरण र वषणव गोसाइयो क

दराचार और यौन शोषण क कतखिाफ हआ सबस बड़ा आनदोिन कहा ह भारतद पर इसका बहत परभाव

था यह कस १८६० र हआ था एक दशक बाद जब भारतद सापरदाय क कायो र रत थ उसी सरय कतिख

रह थ ldquoराददर कया होत ह रानो कतसतरयो की खान ह जसी चाकतहए िीकतजय- वराच अचछी सतरी भी वहाा जाकर

कतबगड़ जाती ह आशचयम यह ह दक कतजनको व िोग बटी कहत ह और जो उनक परिोक क रधयसथ ह और

कतजनको वो दीकषा दत ह उन कतसतरयो की ओर व आप ही बरी दकतषट स दखत ह ओर रर पयार कतहनदओ तर

इनक जाि र कब तक फा स रहोग और कया तरको यही सासार स बचावग और इनही क भरोस तरको

भगवान कतरिगाrdquo33

राददरो क धन-ऐशवयम और वयाकतभचार र डब जीवन क जीवात कतचतर हर बनारस क रखाकतचतर lsquoपरर

जोकतगनीrsquo क अिावा lsquoकाशी क छायाकतचतर क दो बर-भि फोटोगराफrsquo र भी कतरित ह यहाा भारतद का वयागय

अपन वषणव सापरदाय की आतरािोचना स सदकय ह lsquoपरर योकतगनीrsquo नाटक र आन वािा चररतर रारचादर

खद भारतद ही थ नाटक का सतरधार कहता ह दक भारतवषम की दीन हीन गकतत क कारण उसका तो

कतवशवास ही ईशवर स उठन िगा ह नाटक क पहि ही दशय र भारतद हर राददर क भीतर कतिए चित ह

33 वसधा डािकतरया िारा उदधत पषठ- ३३७

30

जहाा राददर र कार करन वािा साधारण टहिआ झपरटया हर ददखाई दता ह पजारी बाब अभी तक नीद

स नही जाग ह कयोदक आधी रात तक lsquoबठ क ही-ही-ठी-ठी करा चाह दफर सबर नीद कस खिrsquo कतनकतशचत

रप स यह टहिआ सबह सवर ही राददर र हाकतिर ह िदकन दवता अभी राददर र सोय ह रारचादर

परदशी ह काशी र बाहर स आय ह छकक जी और राखनदास इस रारचादर की आिोचना करत ह इनक

सावादो स पता चिता ह दक बाब रारचादर क यहाा ददन रात नाच गाना हआ करता ह और उनको अपनी

कतवदया का घराड ह दो चार ककतवतत भी बना ित ह पर lsquoककतवतत बनाव स का होव और ककतवतत बनावन कछ

अपन िोगन का कार थोर हय ई भााटन का कार हयrsquo छकक जी कहत ह दक अपन रागम का उनह कछ जञान

तो ह नही बस दो चार बात इधर उधर स सनकर कछ lsquoदकसतानी रतrsquo सीखकर पाकतडत बन दफरत ह

कतनकतशचत रप स य भारतद पर िगन वाि आरोप थ राददर र सवारी धनदास वकतनतादा बभकतकषत पाकतडत

आदद धरम क ठकदार ह इनकी पतनशीि सासककतत को दखकर रारचादर का दःख इन शबदो र वयि होता ह

lsquoहा कया इस नगर की यही दशा रहगी जहाा क िोग ऐस रखम ह वहाा आग दकस बात की वकतदध की

साभावना करrsquo lsquoवददकी हहासा हहासा न भवकततrsquo जस शरआती नाटको र भी करमकााडी परोकतहतवाद की

आिोचना की गयी ह राजा और परोकतहत कतरिकर वहाा जनता का शोषण करत ह जआ रददरा और

रथन की ऐययाश सासककतत क परतीक परोकतहतो का काजरवरटव दि इन परहसनो र रतम होता ह कतचतरगपत यर

स कहत ह ldquoरहाराज य गर िोग इनक चररतर का कछ न पकतछए कवि दमभाथम इनका कततिक रदरा और

ठगन क अथम इनकी पजा कभी भकति स ररतम को दाडवत न दकया होगा पर राददर र जो कतसतरयाा आयी उनको

सवमदा तकत रह रहाराज इनहोन अनको को कताथम दकया ह और इस सरय तो र lsquoशरीरारचनदर जी का

शरीकषण का दास हाrsquo पर जब सतरी सारन आव तो उसस कहग lsquoर रार तर जानकी र कषण तर गोपीrsquo और

कतसतरयाा भी ऐसी रखम दक दफर इन िोगो क पास जाती हrdquo34

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo की ररपोटम र सतरी सधारो क कायो की रहतता बतान क बाद जाकतत वयवसथा पर

इन सधारको का परहार कयो जररी था इस बताया गया ह कठोर जाकतत बनधनो क चित कस हर साि

जाकतत-बाहय होकर जाकतत र वापस आन क दकसी उपाय को न जान lsquoहजारो रनषय आयम पाकति स हर साि

छटत थ उसको इनहोन रोकाrsquo इस परकार इन सधारको न lsquoआयमधरमrsquo क भीतर जो पररवतमन करन चाह

उसस आयो की एकता दफर स बहाि हो गयी इसक अिावा अाधकतवशवासो को इनहोन दर दकया यही नही

बकतलक जहाा िोग lsquoरसिरानी पीर पगमबर औकतिया वीर ताकतजया गाजी कतरयाा कतजनहोन बड़ी ररतम तोड़कर

और तीथम पाटकर आयम धरम कतवधवास दकयाrsquo उनको भी पजन िग थ और lsquoकतवशवास तो रानो कतछनाि का अाग

हो रहा थाrsquo ऐसी िजजाजनक कतसथकतत स िोगो को बाहर कतनकािकर lsquoसार आयामवतम को शदध lsquoिायिrsquo कर

34 दख रारकतविास शराम पषठ १३१

31

ददयाrsquo lsquoिायिrsquo कर ददया गया इसका अथम आयम जाकतत को दफर स िायि करन र था आयम जाकतत क भीतर

कतबगाड़ क चित ही कतनमन जाकततयो का बड़ परान पर पिायन था इस इन िोगो न रोका और इनक परताप

स ही अनक छोट और सथानीय धरम-रतो क भीतर जो lsquoरसिरानीrsquo परभाव घस आय थ उनको दफर स lsquoबड़ी

ररतमrsquo की कतनषठा र िाया जा सका इस परकार कतहनद धरम और वणामशरर क परकतत दफर स िोगो को lsquoिायिrsquo

दकया यह lsquoिायकतिटीrsquo भारतद की रकतडकि वषणवता क जनरत क कतिए भी जररी था तिवार जी जब

आयमसराकतजयो की lsquoकााकततकारीrsquo भकतरका ददखात ह तब आयम सराज िारा आयामवतम को िायि बनान वािी

इस भकतरका की साकतशलषटता पर जयादा बात नही करत भारतद दयानाद क कााकततकारी परयासो र lsquoिायिrsquo

बनान की परदकया उसी वक़त दख रह थ और इसी कारण ररपोटम र दयानाद की आिोचना धयान दन िायक

ह सवारी जी न ldquoजाि को छरी स न काटकर दसर जाि ही स कतजसको काटना चाहा इसी स दोनो आपस

र उिझ गए और इसका पररणार गह कतवचछद उतपनन हआrdquo गह कतवचछद का रतिब कतहनद धरम र गह

कतवचछद जबदक कशवचादर सन क बार र कहा गया दक उनहोन जाि काटकर भकति की उचछकतित िहरो का

पररषकत पथ परकट दकया इस परकार रकतडकि वषणवता की lsquoअनयताrsquo और परररिक भकति क परशसत पथ क

सवीकार का कतनषकषम कतवचार सभा का भी कतनषकषम था धयान दन िायक ह दक कशवचादर की आिोचना उनक

कतचतत कतवकषप क कारण की गयी थी जहाा lsquoईसारसीह आदद उनस कतरित हrsquo य एक दकसर का इिहारी

अनभव था कतजस भारतद अपनी वषणवता स बाहर रखत ह ईशवर न इस ररपोटम पर अपना रत सरकतकषत

रख कतिया और भारतद कतिखत ह ldquoइसको दख कर इस पर कया आजञा हई और व िोग कहाा भज गए यह

जब कर भी वहाा जायग और दफर िौट कर आ सक ग तो पाठक िोगो को बतिावग या आप िोग कछ

ददन पीछ आप ही जानोगrdquo

३ जनरत और वषणवता

ककतववचन सधा ९ राचम १८७२ र भारतद न lsquoPublic Opinion In Indiarsquo नार स अागरजी र

एक िख परकाकतशत दकया िख र उनहोन कहा दक कई सददयो दक दासता क बाद भारतवषमहहादसतान अब

जाकर कतिरटश राषटर क सवोचच कतनयातरण र आया ह दश धीर-धीर सभयता और परबोधन की पकतशचरी दकरणो

क सहार दरन और कशासन क रतय-तलय कतनदरा स जाग रहा ह कतिरटश शासन की परगकततशीि नीकततयो का

परभाव यहाा की बहरपी आबादी पर पड़ रहा ह

ldquoBut in this progressive state national energy and zeal sympathy and

disintiredness are waiting to make both the conqueror and the conquered to act in

32

concert and in harmony and hence we have the broad distinction of white and

black still But in this country many are the blemishes that adhere to us to be

eradicated and many are the shortcomings that are hovering around us to be done

away with before we can have a public opinion here in its true senserdquo35

गोर और काि क बड़ भद को छोड़ कर कतवजता अागरजो और भारतीयो क बीच एक सराजन तो बन गया ह

पर अनदरनी ददककत अभी भी राह बाए खड़ी ह रौका ह दक इस परगकततशीि कतसथकतत का फायदा उठा कर हर

एक सचच जनरत का कतनरामण कर सचच िोकरत क कतनरामण र अादरनी बाधाएा कया थी भारतद न इस

आग सपषट करत हए कतिखा-

ldquoRace antagonism rivalry and mutual misunderstanding are the favourite

occupations of the aristocratic class Want of confidence among all classes of men

are the prevailing characteristic of the nation and above all multifarious castes and

creeds with there numerous forms of religion and local habits and customs which all

combined have kept the progressive policy at a stand still True it is that a

representative Government is a boon to this country and true it is that Sir Bartle

fregravere a man of vast experience and a good statesman has found out that in village

community we can have public opinion but with all his experience he has lost sight

of our national defects ndash defects which we ourselves know and which no foreigner

can catch at a glancerdquo36

भारतद इस बात को िकर कतनकतशचत ह दक िोकरत और परकततकतनकतधरिक सासथाओ क बहतर कतवकास क कतिए

सीध-सीध कतवदशी रॉडि कभी सफि नही हो पायगा ऐसा इसकतिए कयादक हरारी आपसी कतवकतभननताओ

और झगड़ो को कोई बाहरीकतवदशी सतता कभी भी परी तरह सरझ नही सकती lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo नार

35भारतद गराथाविी -6 361

36 वही

33

स भारतद का एक दसरा िख इस अागरजी वाि िख क दो साि बाद अपरि सन १८७४ र हररशचनदर

रगजीन र छपा पकतबिक ओकतपकतनयन कया बिा ह इस साफ़ करत हए भारतद िख क आरमभ र ही कहत

ह ldquoपकतबिक ओकतपकतनयन अथामत सब साधारण िोगो की राय कया वसत ह और इसर दकतना जोर ह और

इसक कतिए कया हो सकता ह यह परशन ठहरा तो इसका साधारण उततर यही ह दक यह वह वसत ह जो

सासार को एक कर सकती ह गागा की धरा दफर कतहरािय पर चढ़ा ि जा सकती ह सययम को पकतशचर उगा

सकती ह और चाह तो ईशवर को भी पकड़ क कठपतिी की भााकतत नचा सकती हrdquo37 यह पकतबिक

ओकतपकतनयन lsquoएक रतrsquo होना ह जस अिग अिग चार पतिी िककतड़यो को एक साथ बााध दन स उस

तोड़ना करठन हो जाता ह उसी तरह एक रत होन स बड़ स बड़ा बरी भी हरारा कछ कतबगाड़ नही सकता

बहत स िोगो का रत एक हो तो वह शकति बन जाती ह हिारो आदरी की बकतदध एक हो जाए तो ldquoऐसा

कौन कार ह जो न हो सक तो यह कतसदधाात हआ दक कतनशचय सब िोगो क रत र बड़ी सारथयम ह इसस यह

कतसदध हआ दक बिो स बड़ा बि एक रत ही हrdquo38

आग भारतद कहत ह दक यह जनरत और उसकी शकति हहादसतान क कतिए कोई नई बात नही ह

पराचीन काि र इसक उदाहरण कतरित ह lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo की इस धारणा को भारतद न इकततहास क

अिग-अिग दौर र बनत और कतबगड़त ददखाया सबस पहि चार वणो की िररत पड़ी सब कार को

सचार रप स चिन क कतिए दसर शबदो र कह तो शरर-कतवभाजन की िररत स इसका जनर हआ

lsquoकतहनदओ न अपन गर क कार र इस वणामशरर धमरम को इसी वासत बनाया कतजस र उन क दकसी कार र

कोई हजम न हो और उनिोगो न सासार क सब कारो र चार कार रखय सरझrsquo धरम कतवदया और किाओ का

कार िड़ाई और राजय परबाध का कार वयापार और धन और सब िोगो की सवा और रजदरी इन चार

कारो की सवयवसथा वािा वणामशरर दरअसि lsquoएक रतrsquo कतहनद वयवसथा या lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo थी पर

कािाातर र इस lsquoएकरतrsquo क भीतर जाकततवयवसथा कठोर हो गयी और िाहमण और शदर दोनो एक दसर क

कतखिाफ हो गए एकरत र कतवचछद पदा होन स कतहनद शकति करिोर हो गयी भारतद क अनसार आपस

का यह झगड़ा बड़ा कतवनाशकारी साकतबत हआ पकतबिक ओकतपकतनयन क कतबना वयाकतभचार और जयादकततयो का

अाधर था आग चि कर जनो क जरान र दफर lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo न जोर पकड़ा बकतलक भारतद जोर

दकर कहत ह दक जनो क रत की उततपकततत ही lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo स हई ldquoकतहनदओ क जब नाश क ददन

जब कतनकट आय तो आपस र परसपर बड़ा कतवरोध खड़ा हआ और उस काि र िाहमणो का बड़ा जोर था

वरन य और वणो पर जयादती करत थ तो वशय और कषकततरयो की रकतत इनस दफर गयी और बाब वािी बड़ी

37गराथाविी- 678

38वही

34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

36

कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

37

उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

38

ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 22: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

22

रौजदगी का कतववाद भारतद क सारन आया था उस सरय उनहोन इस बात का परतयाखयान दकया था दक

भरव की परकततरा अनाददकाि स वहाा ह भारतद न पराण आदद स साकषय दकर यह परराकतणत दकया दक

कषण ही एकरातर उपासय ह तिवार जी न इस घटना का उलिख करत हए कतिखा ह दक ldquoदकसी वयकति न

lsquoतहकीकातपरीrsquo दकताब दकखकर बताया दक वहाा पहि भरो की पजा होती थी वषणवो न उसकी ररतम

उखाड़ फ की थी बाद र पाडो न जगननाथजी (कतवषण) क साथ भरो को दफर स परकततकतषठत दकया यह रारिा

काशी धरमसभा क सारन १८७० र आया भारतद न धरम साबाधी पसतक र lsquoतहकीकातrsquo जस फारसी शबद

की आिोचना करत हए कतवकतभनन धरमगराथो स परराण जटाकर दो बातो पर जोर ददया एक इसका परराण

नही कतरिता ह दक वहाा जगननाथजी क साथ पहि भरो की भी ररतम थी कतजस वषणवो न उखाड़ फ का दो

अगर वह थी भी तो यह उकतचत था या नही- इसपर कतवचार होना चाकतहए भारतद न अपनी वयवसथा दत

हए कतिखा दक भरो कतवषण स बहत छोटा दवता ह इसकतिए यह कतवषण क साथ बठाया नही जा सकता

lsquoदसर भरव कापाकतिको क दवता ह उनका पजन वषणव-सरातम सबको कतनकतषदध हrsquo गौरतिब ह दक भारत

र कतवकतभनन सथानीय धरो क परकतत कतजतन असकतहषण और फा डारटकतिसट आयमसराजी थ उतन ही काशी क

सनातनी भी थrdquo25

सथानीय धरम-रतो क जागि को साफ़ करन र आयमसराकतजयो और काशी क सनातनी पाडो क इस

गठजोड़ स भारतद भी वादकफ थ िदकन आयमसराकतजयो क साथ उदयपर क एकहिाग जी का रोचाम कसा

था इस भी भारतद बखबी सरझ रह थ सथानीय रतो क साथ भारतद का समबनध कसा था इसका पता

उनक छोट-छोट यातरा सासररणो स भी चिता ह lsquoसरय पार की यातराrsquo26 र रहदावि का हाि बयान करत

हए lsquoपराणनाथrsquo क रिहब का भारतद आशचयम क साथ उलिख करत ह भारतद क ही शबदो र ldquoयहाा एक

पराणनाथ का रिहब ह और दस बीस िोग उसक रानन वाि ह य िोग एकादशी तीथम वगरह को नही

रानत और सन सनाय दो तीन शलोक जो याद कर कतिए ह बस उसी पर चर हो lsquoरदीनासया शारदाा शताrsquo

और lsquoगोकतवनदrsquo lsquoगोकिानाद रककशवरrsquo यह शलोक पढ़ क कहत ह दक वद र रकका रदीन का वणमन ह ऐस ही

बहत वाकतहयात बात करत ह और कोई दकतना भी कह कछ सनत नही कहत ह दक गोिोक का नाश ह

और गोिोक ऊपर एक lsquoअखाड रणडिाकारrsquo िोक ह उसर रर कषण ह इनका रिहब एक पराणनाथ नारक

एक कषतरी न पनना र करीब तीन सौ बरस हए चिाया थाrdquo भारतद इस अजीबो गरीब lsquoरिहबrsquo का कषण स

कया साबाध ह यह सोचकर ताजजब र थ इस lsquoरिहबrsquo क गरनथ र भारतद न एक शलोक बलिभाचायम का

दखा तो उनका राथा और घर गया ldquoकि रिहब का हाि हरन नीच कतिखा था उसका अचछी तरह स

25 वीरभारततिवार रससाकशी १९वी सदी का नवजागरण और पकतशचरोततर परानत पषठ- १५२ सारााश परकाशन ददलिी- २००६

26 भारतद हररशचादर परकततकतनकतध साकिन पषठ- १३७-३८

23

हाि दरयाफत दकया तो रािर हआ दक हरार ही रिहब की शाखा ह इनक गराथो र हरन एक शलोक शरी

रहापरभजी की सबोकतधनी की काररका का दखा इसी स हरको सादह हआ दफर हरन बहत खोद खाद कर

पछा तो वह साफ़ रािर हआ दक इसी रत स यह रत कतनकिा ह कयोदक एक बात वह और बोि दक हरारा

रत शरी बलिभाचारज की टीका र कतिखा ह इन िोगो क उपासय शरीकषण ह और एकादशी शािगरार

ररतमपजा तीथम दकसी को नही रानत इनक पकतहि आचायम दवचाद जी थ जो जाकतत क कायथ थ और दसर

पराणनाथ जी जो कचछ क कषतरी (भारटया) थ हरार ही रत की शाखा सही पर कतवकतचतर रत ह वषणव होकर

ररतमपजा का खाडन करन वाि यही िोग सनrdquo वणमन स सपषट ह दक सात और कतनगमण पाथो क साथ वषणव

कतवचारधारा क आदान-परदान का साकतशलषट इकततहास भारतद क कतिए ताजजब की चीज थी पर इन सबक बीच

आकतखर उनहोन इसक वषणव रि का पता िगा कतिया और वषणवता की इस धाररमक कतवचारधारा र उनहोन

ररतमपजा का कतवरोधी होना भी शाकतरि रान कतिया भारतद न ररतमपजा क सरथमन र बड़ बड़ िख कतिख

थ इसकतिए असाभव नही दक कषण क परकतत परररिक भकति क कतिए ररतम की जररत पर उनहोन कछ पछा

जरर होगा िदकन lsquoकोई दकतना भी कछ कह सनत ही नहीrdquo आग चिकर lsquoवषणवता और भारतवषमrsquo र

वह बड़ कतवशवास क साथ घोकतषत करत ह दक ldquoपहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद कतजतन पाथ ह सब

वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और भारतवषम इन पाथो स छाया हआ हrdquo27 तब वह वषणवता और

िोकरतो और रधयकािीन पाथो क भीतर पहि स सदकय एक ऐकततहाकतसक परदकया का सारानयीकरण कर

उसका नार lsquoवषणवrsquo रख रह थ अकारण नही दक उसी िख र वषणव वयापकता को बतान क कतिए

परचकतित lsquoनारोrsquo का साकषय पश दकया गया ह वयकतियो स िकर वरत और उपवासो तक यह परभतवशािी

सारानय बोध की कतवचारधारा थी कतिवदी जी रधयकािीन वषणवता को िोकधरम कहत थ भारतद

उननीसवी सदी क िोकधरो को वषणव कहत ह

काजरवरटव दिो की तरफ स कशवचादर सन पर िगाय गए आरोप थ १ वद पराण सबको कतरटा

डािा २ दकसतान रसिरान सबको कतहनद बनाया ३ खान पीन का कतवचार कछ न बाकी रखा ४ रदय की

तो नदी बहा दी आयम सराकतजयो क ऊपर रखयतः आरोप lsquoआयामवतम को धरम बकतहरमखrsquo करन का ह धरम

बकतहरमख अथामत सनातन धरम स कतवरख उनहोन कवि धरम क भीतर कतवपिव दकया परनत िहमो सराज न तो

lsquoभारतवषम का सतयानाशrsquo कर डािा इनहोन तो पराणो क अिावा वदो को भी कतरटा डािा lsquoआयामवतमrsquo की

जातीय पकतवतरता नषट करक दकसतान रसिरान जस lsquoकतवदशी ततवोrsquo को घर र घसा कतिया कटररपाथी

करमकााकतडयो क कतिए इनक साथ रणनीकततक तौर पर भी रोचाम बनान वािा कोई एकहिाग जी तयार नही

था सनातकतनयो िारा दकया गया यह बारीक भद खद कतिबरि दिभिो क भीतर का भी अातरवमरोध था

27 भारतद वषणवता और भारतवषम वही पषठ-७६

24

कतिबरिो की सभा र भी दो दि हो गए थ एक सवारीजी क सरथमको का दि था और एक कशव

क सरथमको का कतहनद कतिबरिो की आताररक एकता कतिकतवभाकतजत थी दयानाद क सरथमको क अनसार सवारी

जी न कतहनदओ की आतरा को जगाया था उनह सफतम बनाया वरना तो आयामवतम क आिसी और रखम

रोहकतनदरा र ही कतनरगन थ इस तरह रखम और आिसी सारानयजनो को lsquoिाहमणो क फा द स छड़ायाrsquo िाहमणो

की तिना भारतद न lsquoपादररयोrsquo स की ह जो lsquoवयथम परजा का दरवय खान वाि हrsquo आयम सराज न सासथाकत

परोकतहतवाद पर हरिा दकया था जो भारतद क कतिए रितः जनता क पसो पर पिन वािा परजीवी वगम

िगता था और तो और आधकतनक कतवजञान क आग जो lsquoआयोrsquo की नाक कटी जा रही थी उस भी सवारी जी

न बचा कतिया उनहोन वदो र भी रि तार करटी कचहरी आदद ददखाकर कतहनदओ र आतरसमरान पदा

दकया दसरी ओर कशव क सरथमको का कहना था दक ldquoधनय कशव तर साकषात दसर कशव हो तरन बाग

दश की रनषय नदी क उस वग को जो कशचन सरदर र कतरि जान को उचछकतित हो रहा था जञान करम का

कतनरादर करक पररशवर का कतनरमि भकति रागम परचकतित दकयाrdquo lsquoजञान करम का कतनरादरrsquo करक भी lsquoकतनरमि

भकति रागमrsquo का जो परवतमन कशव न दकया उसस ही ईसाई lsquoअनयताrsquo का साथमक परकततरोध साभव हआ lsquoरनषय

नदी का आवगrsquo भावावग ह इसी बात को दसर शबदो र कह तो भाव जगत क सवाभाकतवक वग को भगवत

भकति की शदध lsquoअनयताrsquo की ओर रोड़कर उस कतवदशी ईसाई lsquoअनयताrsquo क रागम पर जान स रोक ददया इस

कायम क कतिए वद पराण समरत lsquoजञान-करमrsquo क रागो का कतनरादर अगर करना पड़ा तो भी वह उकतचत ही था

वषणव भकति क रधयकािीन सवरप की जो वयाखया आग चिकर की गयी उसक आराकतभक कतचनन हर यहाा

दख सकत ह कहना न होगा दक भारतद का अपना अनभव भी यहाा बोि रहा ह

शासतरीय काजरवरटव पाटी र दवताओ क अिावा यजञवलकय जस औपकतनषददक ऋकतष क साथ-साथ

नारायण भटर रघनाद भटराचायम राडन कतरशर जस कतनबाधकारो और टीकाकारो का जरघट भी था इसक साथ

साथ इसिारी सवगम स आय हए कटररपाथी कतशया िोगो का भी सरथमन उनह परापत था इस परकार कटररपाथ का

दवताओ (जरीदारो) िाहमणो (पादररयो) जञानरागी औपकतनषददक ऋकतष रधययगीन कतनबाधकारो और

कतवदशी कतशया िोगो का एक वकतशवक रोचाम बन रहा था दसरी ओर कतिबरि दि र चतनय परभकतत आचायम

दाद नानक कबीर परभकतत भि और जञानी िोग भी शाकतरि थ इसक अिावा काजरवरटव दि क

कतवदरोकतहयो को भी कतिबरिो न अपन यहाा जगह दी य कतवदरोही थ अितवादी (या नववदााती) भाषयकार

पाचदशीकार और कोई कतरसटर िडिा इन दोनो िोगो पर शर र का जरवरटव दि वािो न बहत हरि

दकय परनत अात र इनह कतिबरिो न अपन यहाा जगह द दी धयान रखना चाकतहए दक भारतद अपन सापरदाय

क अनरप अित वदाात या रायावाद क घोर आिोचक थ सन १८७३ र हररशचादर रगजीन क पहि ही अाक

र भारतद न शााकतडलय भकति सतरो का अनवाद lsquoभकति सतर वजयातीrsquo नार स परकाकतशत दकया भकतरका र

25

भारतद कतिखत ह ldquo दखो आज वसात पाचरी ह इसस बहत स िोग आर क रौर वा फिो क गचछ िकर

तरस कतरिन आवग तो र भी यह एक फिो की वजयाती रािा बना कर िाया हा अागीकार करो वजयाती

रािा बनान का यह हत ह दक वनरािा होगी तो होिी क खि र अरझगी और इसक कतसवाय इस वजयाती

स कतनशचय करक जञानाददक को जय करना ह पर पयार बहत साभि कर यह रािा पहरना टट न जाए

कयोदक सत कचचा ह और ककतियाा तािी और कोरि ह इस स कमहिान का भी भय ह जो हो इस वसात

पाचरी को तयोहारी रझ यही दो दक इस सतयानाशी lsquoअहरrsquo िहमवाद lsquo को पणमरप स नाश करक और भी

सब बातो र इस नव-वसात र भारतवषम की सब आपकतततयो का बस अात करो और अपन भिो क कतचतत र

नव पलिव दफर स िहिह करो जो सदा एक रस रहrdquo28 lsquoएकरसrsquo भकति क कतिए जररी ह दक जञानवाद

अहर िहमवाद को जड़ स उखाड़ फ का जाय कषण को अरपमत अपनी वजयाती रािा स भारतद जञानाददक

को जय करना चाहत ह एक ओर यह पकतषटरागी परापरा क lsquoवीर वषणवrsquo भारतद का परर कतनवदन ह दसरी

ओर lsquoनव-वसातrsquo र भारतवषम की सब आपकतततयो को नाश करन की सारथयम रपी lsquoउपहारीrsquo का साकलप भी

ह lsquoभारतद भारतवषम की सब आपकतततयोrsquo को दर करन की राह र एक बड़ी बाधा अित क जञानवाद को

रानत ह भकति का lsquoएकरसrsquo पहि भी इसक परभाव स ररझाता रहा ह भारतद का साकलप सापरदाय क

परान कतवरोधो क बावजद बन रहन वाि इस अितवाद का पणम सफाया करन का ह जबतक यह न कतरटगा

परररिा भकति क lsquoकमहिान का भयrsquo बना रहगा भकति सतरो र उपासना कााड को परर कतसकतदध का हत

बताया गया था पर भारतद दख रह थ दक उपासना कााड का परचार कतवरि हो गया ह इसी परचार क

कतनकतरतत उनहोन इन सतरो का भाषा र अथम परचार दकया था १८७३ र ही हररशचादर रगजीन का एक

समपादकीय कतनकिा कतजसका शीषमक था- lsquoभकति जञानाददक स कयो बड़ी हrsquo इस िख र भी उपासना रागम

की रहतता का परकततपादन दकया गया ह तकम और जञान को करम की शकतदध और उपासन की परर कतसकतदध क

रासत र कवि एक चरण बताया गया ह वसधा डािकतरया न भारतद क आराकतभक साापरदाकतयक परचार

परसार क कायो र कतनगमकतनयो को बाहर रखन का उपकर नोट दकया था29 यहाा कतनगमकतनए कबीर आदद lsquoभि

और जञानीrsquo कतिबरिो क सरथमक ददखाए गए ह वषणव भकति क राषटरीय चररतर र य बाहर नही थ उनकी

एकता का आधार उनक lsquoकतिबरि रिrsquo र ह सावमजकतनक उचच भाव का सापादन और भकति इन दोनो क साथ

अित वदााती या जञानाददक- सनातनी परापरा क कतवदरोकतहयो की जगह भी कतिबरि दि पाकतथयो र थी

कतिबरि वाि ही झगड़ क कतनपटार की अजी पररशवर को दन गए थ पर पररशवर अपनी

परतीकातरक हो गयी कतसथकतत स खजिाय हए थ यह सवोचच अदाित थी पर साथ ही साथ शकतिहीन

28 भारतद गराथाविी खाड- ५ पषठ ११३

29 वसधा डािकतरया पषठ ३४२

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राषटराधयकष की कलपना भी कतजस कतहनद सवगम क य राषटराधयकष ह वहाा दकसी दकसर की सलफ गवनमरट चनन

की परणािी आ जान स ईशवर की एकाकतधकारी शकतियाा कतछन गयी ह िोग जनरत कतनरामण क िारा सही

और गित की पहचान करन िग थ इसकतिए थोड़ा खजिाय तो रहत ही होग lsquoअब कौन हरको पछता

ह तर जानो सवगम जानrsquo परनत साकट गहरा था यदयकतप कतिबरि िोगो की सभा भी धरधार स जर

रही थी पर काजरवरटव दि पाकतथयो की सरकार र पठ थी दवता सब भी उनक साथ थ इसकतिए पररशवर

क पास जररी नयाय का परशन उठाया गया था नयाय दक इन दो रहापरषो को सवगम र जगह कतरिनी

चाकतहए या नही सराज र इनक नकततक उचच आदशो क अवरलयन का परचार काजरवरटव कर रह ह इस

परचार क कारण जनता अपनी निरो स पहचानन र सकषर नही ह ऐसी कतसथकतत सवगम र पहि नही आई

थी नई कतसथकततयो क नए रानदाड कया होग िाकतहर ह नयाय और नकततकता को एक वकतशवक सवीककतत

चाकतहए इसकतिए पररशवर न इस कतवषय पर कतवचार क कतिए जो ककतरटी चनी वह गौर करन िायक ह इस

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo र ldquoराजा राररोहन राय वयास दव टोडररि कबीर परभकतत कतभनन-कतभनन रत क िोग चन

गए रसिरानी- सवगम स क lsquoइरारrsquo दकसतानी स िथर जनी स पारसनाथ बौदधो स नागाजमन और

अफीका स कतसटोवायो क बाप कोrdquo चना गया कतहनद सवगम स नवजागरण क अगरदत वयासदव जस

बौकतदधकिखक टोडररि जस राजनीकततजञ और धरम-ररमजञ कबीर जस जञानी-भि पराचीनो र कवि वयास

दव ह बाकी दो lsquoरधयकािrsquo क और एक lsquoआधकतनकrsquo काि क वयकति ह उधर यरोपीय नवजागरणधरमसधार

क परणता िथर को भी बिाया गया ह और बौदधो की तरफ स परर कतनषधवादी नागाजमन भी ह पर य

अफीका क कतसटोवायो धरो की अकतसरता क साथ-साथ यह अफ़ीकी सवगम कतनकतशचत रप स अफीका की छकतव

पराचीन आददवासी सासककतत वाि एक lsquoकािrsquo रहादश क रप र गढ़ी गयी थी यह अफ़ीकी सवगम साभवतः

आददवासी धाररमक रानयताओ की ओर इशारा करता ह यह भी धयान दन िायक ह दक राजा राररोहन

राय िथर और कबीर इन तीनो क साथ lsquoनवजागरणrsquo की कोई न कोई पररकलपना ठठ सरकािीन कतवरशो

क क दर र भी ह कई अथो र अकबर िारा आयोकतजत होन वािी lsquoसिह-ए-किrsquo जसी धरम सभाओ की एक

रोहक कलपना भी भारतद को रही होगी टोडररि की उपकतसथकतत अकारण नही ह

अकबर को िकर भारतद की इकततहासदकतषट कसी थी इसकी एक झिक हर १८८४ र छपी उनकी

lsquoबादशाह दपमणrsquo की भकतरका र ददखती ह इस गरनथ र उन िोगो का चररतर-कतचतरण दकया गया था ldquoकतजनहोन

हरिोगो को गिार बनाना आरमभ दकया इसर उन रसत हाकतथयो क छोट-छोट कतचतर ह कतजनहोन भारत क

िहिहात हए करिवन को उजाड़कर-पर स कचिकर कतछनन-कतभनन कर ददया रहमरद रहरद अिाउददीन

अकबर और औरागजब आदद इनर रखय ह पयार भोि कतहनद भाइयो अकबर का नार सनकर आपिोग

चौदकए रत यह ऐसा बकतदधरान शतर था दक उसक बकतदधबि स आजतक आपिोग उसको कतरतर सरझत ह

27

दकनत वह ऐसा ही नही उसकी नीकतत अागरजो की भााकतत गढ़ थी रखम औरागजब उसको सरझा नही नही तो

आज ददन हहादसतान रसिरान होता कतहनद-रसिरान र खाना-पीना बयाह-शादी कभी चि गयी होती

अागरजो को जो बात नही सझी वह इसको सझी थीrdquo30 कतनकतशचत रप lsquoबकतदधरानrsquo दशरन स सीखन को बहत

कछ कतरिता ह अकबर की दीन-ए-इिाही क परयोग स भारतद भी बहत कछ सीख रह थ रधयकािीन

इकततहास क बार र रकतसिर शतर की छकतव का कतनरामण पराचयकतवदयाकतवदो क िारा दकया जा रहा था इकतियट

आदद इकततहासकारो न जो दकतषट कतवककतसत की उसका परभाव बहत गहरा था पर इस इकततहासिखन क साथ

साथ भारतद क कछ दशी सरोत भी थ अिग-अिग रहापरषो की चररताविी कतिखन की पररणा भारतद न

कतजतना अपनी वषणव भकति की परापरा स पाया था उतना ही इसिारी इकततहास िखन की परापरा स भी

lsquoबादशाहदपमणrsquo की भकतरका र भारतद कतिखत ह ldquoरर पररातारह राय कतगरधरिाि साहब जो यवनी कतवदया

क बड़ भारी पाकतडत और काशीसथ ददलिी क शाहजादो क रखय दीवान थ उनकी इचछा स ददलिी क परकतसदध

कतविान सययद अहरद न एक ऐसा चक बनाया था कतजसर तरर स िकर शाह आिार तक सब बादशाहो क

नार आदद कतिख थ उस फारसी गरनथ स बहत सी बात इसर िी गयी ह इस कारण तरर पवम क बादशाहो

का वणमन इतना परा नही ह कतजतना तरर क पीछ ह दफर रर रातारह राय कतखरोधरिाि न बहादर शाह

क काि क आरमभ तक शष वतत सागरह दकयाrdquo31

अरणदव जी अपन एक िख र भारतद क आराकतभक अकबर परर का कतिक दकया ह १८७२-७४ क

आसपास भारतद अकबर को रहान शासक रानत थ जबदक औरागजब को कतहनदओ का दशरन नाबर एक

भारतद न औरागजब की तिना र अकबर की रहानता को परराकतणत करन क कतिए रारदास कछवाह क एक

शलोक को अपना आधार बनाया ह इस शलोक का भावाथम भारतद क शबदो र इस परकार ह ldquoजो सरदर स रर

तक पथवी को पािता ह जो रतय स गउओ की रकषा करता ह कतजसन तीथम और वयापार स कर छड़ा ददए

कतजसन पराण सन जो सयम का नार जपता जो योग धारण करता ह और गागाजि छोड़कर पानी नही

पीता उस जिािददीन की जय अाग वाग कहिाग कतसिहट कततपरा कारत (कारटी) काररप अाध कणामटक

िाट दरकतवड़ रहाराषटर िारका चोि पााडया भोट रारवाड़ उड़ीसा रलि खरासान का दहार जमब काशी ढाका

बिख बदखशाा और काबि को जो शासन करता ह ककतियग की रकतहरा स घटत हए वद गउ कतिज और

धरम की रकषा को सगन शरीर कतजसन धारण दकया ह उस अपररय परष अकबर शाह को हर नरसकार करत

हrdquo32 यही अकबर १८८४ र औरागजब स जयादा शाकततर और बकतदधरान शतर र बदि गया lsquoकािचकrsquo क

कतनकतहताथो र यह फरबदि भारतद पर रकतसिर कतवदशीपन और कतहनद शतरता क समपणम बिॉक बनान की

30 बादशाह दपमण भारतद गराथाविी खाड-६

31 वही

32 httpsamalochanblogspotin201209blog-post_9html

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रणनीकतत क दबाव क कारण था और lsquoपरावकततrsquo की कतरथकीयता र भी कतहनदओ को lsquoरहारोहनासतरrsquo क सहार

पहि भी वश र दकया गया था यह एक बारीक चाि थी अकबर की इस चाि को अागरज भी नही सरझ

पा रह थ भारतद की यह परकततदकया औपकतनवकतशक इकततहासिखन क दबाव र थी १८७३ र जब भारतद

न कतशवपरसाद की दकताब lsquoइकततहासकततकतररनाशकrsquo क तीसर खाड की आिोचना की थी तो उनक सारन

रकतसिर शासन की बबमरता और अागरजी राज क सशासन का कतशवपरसाद िारा ककतलपत आखयान था १८८४

र समपणम रकतसिर काि अनधकार यग र बदि गया कततकतररनाशक क पहि खाड र बाब कतशवपरसाद न भी

अकबर की रजहबी उदारता और साराकतजक सधारो की बड़ाई की थी इस परकार हर दख सकत ह दक

ऐकततहाकतसक िखन र पकष और कतवपकष की पनरावकततत एक बाद घर र उिझी हई थी इनक सारन रकतसिर

कतवरोध और अागरजी शासन क कतवरोध का एक कतवसागत फर था और िखक उसर अपनी फौरी जररतो क

कतहसाब स कतरतर और दशरन वािा इकततहास कतिखता था इकततहास ठठ राजनीकततक ततकाि क वशीभत था

जो भी हो धाररमक उदारता और सिह-ए-कि का परयोग एक कतशकषापरद परयोग था यह कतवकतभनन

रतो या कतवशवासो क बीच lsquoजनरतrsquo बनान का एक रधयकािीन परयोग था भारतद lsquoजनरतrsquo क परयोग को

इस तरह दखत थ रानो यह lsquoचािrsquo अगर कारयाब हो जाती तो lsquoआज क ददन हहादसतान रसिरान होताrsquo

भारतद क सारन सरसया वही थी बस वह कवि यह चाहत थ दक कतहनदसतान lsquoकतहनदrsquo हो जाय कतहनद

अथामत वषणव हो जाय वषणवता भारतद क कतिए हहादसतान का नया lsquoसिह-ए-किrsquo था इसकतिए कछ

सावमजनीन रलयो की तिाश उनह भी थी कतसिकट ककतरटी क उपरोि रमबर lsquoएकसअफीकतशयोrsquo रमबर थ

रोर क परान हररकिस जस दवता कतजनहोन धरती स साबाध तोड़ ददया ह व िोग तथा उनही क जस

पारकतसयो क lsquoजरदशतजीrsquo को कोरसपोहडाग ऑनररी रमबर बनाया गया य धरम क रप र रतपराय रतो क

परकततकतनकतध थ ककतरटी न जो ररपोटम तयार की उसका ररम भारतद न ददया ह यह ररम उनक रकतडकि वषणव

पकष का रत था कतिबरि दि और काजरवरटव दि क अपन पकषो स इतर यह नरनायक तीसरा पकष वषणवो

की तरफ स सनाया गया था रकतडकि वषणवो की तरफ स भारतद इस धाररमक आनदोिन क भीतर अपना

ही पकष रखत हए इसका ररम कतिख रह थ ldquoहरिोगो की समरकतत र इन दोनो परषो न परभ की रागिरयी

सकतषट का कछ कतवघन नही दकया वराच उसर सख और सातकतत अकतधक हो इसी र पररशरर दकयाrdquo कतहनद सराज

सधार क परयासो का ररम बतात हए सबस पहि धयान सतरी सधारो पर ददया गया ह साराकतजक करीकततयो

की कतशकार रकतहिाओ क परकतत जो दकतषट उभरकर सारन आती ह उसक रि र धरम की रीकतत स यौन

रयामदाओ की अवयवसथा को दफर स रयामददत करन की चषटा ह कतसतरयो क करागम पर जान का पहिा कारण

ह रनराना परष धरमपवमक न पाना यह कतववाह सासथा की कतवककततयो की आिोचना थी जहाा बाि कतववाह

कतवधवा कतववाह आदद की तरफ इशारा ह धयान रखना चाकतहए दक यहाा बरि कतववाह क बदि कतसतरयो िारा

29

lsquoरनराना वरrsquo न चन पान का उलिख ह गभमनाश और बाि हतया क कतखिाफ सधार परयास दसरा

रहतवपणम योगदान ह कतववाह सासथा बीच र भी भाग की जा सकती ह इसकी सवीककतत ह कनया क कतहत र

अातरजातीय कतववाह की सवीककतत ह एक रहतवपणम बात गरओ और पाकतडतो क वयाकतभचार क साबाध र ह

भारतद क सारन पकतषटरागी रहातो और गरओ क वयाकतभचार का अनभव भी इसर शाकतरि ह

१८७४ र ककतववचन सधा र भारतद की एक रटपणणी छपी थी lsquoगर को कसा होना चाकतहएrsquo इसक अिावा

दो वषम पहि lsquoगर और रहातrsquo नार स भी एक रटपणणी कतिखकर वषणव पाडो-परोकतहतो की खिकर

आिोचना की गयी थी तिवार जी न कतिखा ह दक राददरो क भीतर कतसतरयो का यौन शोषण और वयाकतभचार

इतना भीषण था दक दयानाद भारतद क पकतषट सापरदाय को lsquoकषठी सापरदायrsquo कहत थ १८६० क आरमभ र ही

वषणव गोसाइयो क अनाचार और यौन शोषण क कतखिाफ बमबई र एक बड़ा आनदोिन पकतषटरागी

करसनदास रि जी क नततव र हो चका था वषणव बकतनया पषठभकतर स आय करसनदास जी उन नौजवानो

र थ कतजनहोन एकतिफ सटन कॉिज स आधकतनक कतशकषा परापत की थी गोसाइयो और रहाराजो िारा अपन

lsquoसमपरदाय की बह बरटयोrsquo क साथ होन वाि अतयाचार क कतखिाफ उनहोन िख कतिख और समपरदाय क

इकततहास को नए कतसर स सारन रखा पण स आए जदनाथ वजरतन जी रहाराज न करसनदास जी पर

रानहाकतन का रकदरा दायर कर ददया इसी रक़दर स वषणव रहातो की कई सारी बात जनता क सारन

परतयकष हई तिवार जी न इस lsquoरहाराज िाइबि कसrsquo को भारतीय नवजागरण र वषणव गोसाइयो क

दराचार और यौन शोषण क कतखिाफ हआ सबस बड़ा आनदोिन कहा ह भारतद पर इसका बहत परभाव

था यह कस १८६० र हआ था एक दशक बाद जब भारतद सापरदाय क कायो र रत थ उसी सरय कतिख

रह थ ldquoराददर कया होत ह रानो कतसतरयो की खान ह जसी चाकतहए िीकतजय- वराच अचछी सतरी भी वहाा जाकर

कतबगड़ जाती ह आशचयम यह ह दक कतजनको व िोग बटी कहत ह और जो उनक परिोक क रधयसथ ह और

कतजनको वो दीकषा दत ह उन कतसतरयो की ओर व आप ही बरी दकतषट स दखत ह ओर रर पयार कतहनदओ तर

इनक जाि र कब तक फा स रहोग और कया तरको यही सासार स बचावग और इनही क भरोस तरको

भगवान कतरिगाrdquo33

राददरो क धन-ऐशवयम और वयाकतभचार र डब जीवन क जीवात कतचतर हर बनारस क रखाकतचतर lsquoपरर

जोकतगनीrsquo क अिावा lsquoकाशी क छायाकतचतर क दो बर-भि फोटोगराफrsquo र भी कतरित ह यहाा भारतद का वयागय

अपन वषणव सापरदाय की आतरािोचना स सदकय ह lsquoपरर योकतगनीrsquo नाटक र आन वािा चररतर रारचादर

खद भारतद ही थ नाटक का सतरधार कहता ह दक भारतवषम की दीन हीन गकतत क कारण उसका तो

कतवशवास ही ईशवर स उठन िगा ह नाटक क पहि ही दशय र भारतद हर राददर क भीतर कतिए चित ह

33 वसधा डािकतरया िारा उदधत पषठ- ३३७

30

जहाा राददर र कार करन वािा साधारण टहिआ झपरटया हर ददखाई दता ह पजारी बाब अभी तक नीद

स नही जाग ह कयोदक आधी रात तक lsquoबठ क ही-ही-ठी-ठी करा चाह दफर सबर नीद कस खिrsquo कतनकतशचत

रप स यह टहिआ सबह सवर ही राददर र हाकतिर ह िदकन दवता अभी राददर र सोय ह रारचादर

परदशी ह काशी र बाहर स आय ह छकक जी और राखनदास इस रारचादर की आिोचना करत ह इनक

सावादो स पता चिता ह दक बाब रारचादर क यहाा ददन रात नाच गाना हआ करता ह और उनको अपनी

कतवदया का घराड ह दो चार ककतवतत भी बना ित ह पर lsquoककतवतत बनाव स का होव और ककतवतत बनावन कछ

अपन िोगन का कार थोर हय ई भााटन का कार हयrsquo छकक जी कहत ह दक अपन रागम का उनह कछ जञान

तो ह नही बस दो चार बात इधर उधर स सनकर कछ lsquoदकसतानी रतrsquo सीखकर पाकतडत बन दफरत ह

कतनकतशचत रप स य भारतद पर िगन वाि आरोप थ राददर र सवारी धनदास वकतनतादा बभकतकषत पाकतडत

आदद धरम क ठकदार ह इनकी पतनशीि सासककतत को दखकर रारचादर का दःख इन शबदो र वयि होता ह

lsquoहा कया इस नगर की यही दशा रहगी जहाा क िोग ऐस रखम ह वहाा आग दकस बात की वकतदध की

साभावना करrsquo lsquoवददकी हहासा हहासा न भवकततrsquo जस शरआती नाटको र भी करमकााडी परोकतहतवाद की

आिोचना की गयी ह राजा और परोकतहत कतरिकर वहाा जनता का शोषण करत ह जआ रददरा और

रथन की ऐययाश सासककतत क परतीक परोकतहतो का काजरवरटव दि इन परहसनो र रतम होता ह कतचतरगपत यर

स कहत ह ldquoरहाराज य गर िोग इनक चररतर का कछ न पकतछए कवि दमभाथम इनका कततिक रदरा और

ठगन क अथम इनकी पजा कभी भकति स ररतम को दाडवत न दकया होगा पर राददर र जो कतसतरयाा आयी उनको

सवमदा तकत रह रहाराज इनहोन अनको को कताथम दकया ह और इस सरय तो र lsquoशरीरारचनदर जी का

शरीकषण का दास हाrsquo पर जब सतरी सारन आव तो उसस कहग lsquoर रार तर जानकी र कषण तर गोपीrsquo और

कतसतरयाा भी ऐसी रखम दक दफर इन िोगो क पास जाती हrdquo34

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo की ररपोटम र सतरी सधारो क कायो की रहतता बतान क बाद जाकतत वयवसथा पर

इन सधारको का परहार कयो जररी था इस बताया गया ह कठोर जाकतत बनधनो क चित कस हर साि

जाकतत-बाहय होकर जाकतत र वापस आन क दकसी उपाय को न जान lsquoहजारो रनषय आयम पाकति स हर साि

छटत थ उसको इनहोन रोकाrsquo इस परकार इन सधारको न lsquoआयमधरमrsquo क भीतर जो पररवतमन करन चाह

उसस आयो की एकता दफर स बहाि हो गयी इसक अिावा अाधकतवशवासो को इनहोन दर दकया यही नही

बकतलक जहाा िोग lsquoरसिरानी पीर पगमबर औकतिया वीर ताकतजया गाजी कतरयाा कतजनहोन बड़ी ररतम तोड़कर

और तीथम पाटकर आयम धरम कतवधवास दकयाrsquo उनको भी पजन िग थ और lsquoकतवशवास तो रानो कतछनाि का अाग

हो रहा थाrsquo ऐसी िजजाजनक कतसथकतत स िोगो को बाहर कतनकािकर lsquoसार आयामवतम को शदध lsquoिायिrsquo कर

34 दख रारकतविास शराम पषठ १३१

31

ददयाrsquo lsquoिायिrsquo कर ददया गया इसका अथम आयम जाकतत को दफर स िायि करन र था आयम जाकतत क भीतर

कतबगाड़ क चित ही कतनमन जाकततयो का बड़ परान पर पिायन था इस इन िोगो न रोका और इनक परताप

स ही अनक छोट और सथानीय धरम-रतो क भीतर जो lsquoरसिरानीrsquo परभाव घस आय थ उनको दफर स lsquoबड़ी

ररतमrsquo की कतनषठा र िाया जा सका इस परकार कतहनद धरम और वणामशरर क परकतत दफर स िोगो को lsquoिायिrsquo

दकया यह lsquoिायकतिटीrsquo भारतद की रकतडकि वषणवता क जनरत क कतिए भी जररी था तिवार जी जब

आयमसराकतजयो की lsquoकााकततकारीrsquo भकतरका ददखात ह तब आयम सराज िारा आयामवतम को िायि बनान वािी

इस भकतरका की साकतशलषटता पर जयादा बात नही करत भारतद दयानाद क कााकततकारी परयासो र lsquoिायिrsquo

बनान की परदकया उसी वक़त दख रह थ और इसी कारण ररपोटम र दयानाद की आिोचना धयान दन िायक

ह सवारी जी न ldquoजाि को छरी स न काटकर दसर जाि ही स कतजसको काटना चाहा इसी स दोनो आपस

र उिझ गए और इसका पररणार गह कतवचछद उतपनन हआrdquo गह कतवचछद का रतिब कतहनद धरम र गह

कतवचछद जबदक कशवचादर सन क बार र कहा गया दक उनहोन जाि काटकर भकति की उचछकतित िहरो का

पररषकत पथ परकट दकया इस परकार रकतडकि वषणवता की lsquoअनयताrsquo और परररिक भकति क परशसत पथ क

सवीकार का कतनषकषम कतवचार सभा का भी कतनषकषम था धयान दन िायक ह दक कशवचादर की आिोचना उनक

कतचतत कतवकषप क कारण की गयी थी जहाा lsquoईसारसीह आदद उनस कतरित हrsquo य एक दकसर का इिहारी

अनभव था कतजस भारतद अपनी वषणवता स बाहर रखत ह ईशवर न इस ररपोटम पर अपना रत सरकतकषत

रख कतिया और भारतद कतिखत ह ldquoइसको दख कर इस पर कया आजञा हई और व िोग कहाा भज गए यह

जब कर भी वहाा जायग और दफर िौट कर आ सक ग तो पाठक िोगो को बतिावग या आप िोग कछ

ददन पीछ आप ही जानोगrdquo

३ जनरत और वषणवता

ककतववचन सधा ९ राचम १८७२ र भारतद न lsquoPublic Opinion In Indiarsquo नार स अागरजी र

एक िख परकाकतशत दकया िख र उनहोन कहा दक कई सददयो दक दासता क बाद भारतवषमहहादसतान अब

जाकर कतिरटश राषटर क सवोचच कतनयातरण र आया ह दश धीर-धीर सभयता और परबोधन की पकतशचरी दकरणो

क सहार दरन और कशासन क रतय-तलय कतनदरा स जाग रहा ह कतिरटश शासन की परगकततशीि नीकततयो का

परभाव यहाा की बहरपी आबादी पर पड़ रहा ह

ldquoBut in this progressive state national energy and zeal sympathy and

disintiredness are waiting to make both the conqueror and the conquered to act in

32

concert and in harmony and hence we have the broad distinction of white and

black still But in this country many are the blemishes that adhere to us to be

eradicated and many are the shortcomings that are hovering around us to be done

away with before we can have a public opinion here in its true senserdquo35

गोर और काि क बड़ भद को छोड़ कर कतवजता अागरजो और भारतीयो क बीच एक सराजन तो बन गया ह

पर अनदरनी ददककत अभी भी राह बाए खड़ी ह रौका ह दक इस परगकततशीि कतसथकतत का फायदा उठा कर हर

एक सचच जनरत का कतनरामण कर सचच िोकरत क कतनरामण र अादरनी बाधाएा कया थी भारतद न इस

आग सपषट करत हए कतिखा-

ldquoRace antagonism rivalry and mutual misunderstanding are the favourite

occupations of the aristocratic class Want of confidence among all classes of men

are the prevailing characteristic of the nation and above all multifarious castes and

creeds with there numerous forms of religion and local habits and customs which all

combined have kept the progressive policy at a stand still True it is that a

representative Government is a boon to this country and true it is that Sir Bartle

fregravere a man of vast experience and a good statesman has found out that in village

community we can have public opinion but with all his experience he has lost sight

of our national defects ndash defects which we ourselves know and which no foreigner

can catch at a glancerdquo36

भारतद इस बात को िकर कतनकतशचत ह दक िोकरत और परकततकतनकतधरिक सासथाओ क बहतर कतवकास क कतिए

सीध-सीध कतवदशी रॉडि कभी सफि नही हो पायगा ऐसा इसकतिए कयादक हरारी आपसी कतवकतभननताओ

और झगड़ो को कोई बाहरीकतवदशी सतता कभी भी परी तरह सरझ नही सकती lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo नार

35भारतद गराथाविी -6 361

36 वही

33

स भारतद का एक दसरा िख इस अागरजी वाि िख क दो साि बाद अपरि सन १८७४ र हररशचनदर

रगजीन र छपा पकतबिक ओकतपकतनयन कया बिा ह इस साफ़ करत हए भारतद िख क आरमभ र ही कहत

ह ldquoपकतबिक ओकतपकतनयन अथामत सब साधारण िोगो की राय कया वसत ह और इसर दकतना जोर ह और

इसक कतिए कया हो सकता ह यह परशन ठहरा तो इसका साधारण उततर यही ह दक यह वह वसत ह जो

सासार को एक कर सकती ह गागा की धरा दफर कतहरािय पर चढ़ा ि जा सकती ह सययम को पकतशचर उगा

सकती ह और चाह तो ईशवर को भी पकड़ क कठपतिी की भााकतत नचा सकती हrdquo37 यह पकतबिक

ओकतपकतनयन lsquoएक रतrsquo होना ह जस अिग अिग चार पतिी िककतड़यो को एक साथ बााध दन स उस

तोड़ना करठन हो जाता ह उसी तरह एक रत होन स बड़ स बड़ा बरी भी हरारा कछ कतबगाड़ नही सकता

बहत स िोगो का रत एक हो तो वह शकति बन जाती ह हिारो आदरी की बकतदध एक हो जाए तो ldquoऐसा

कौन कार ह जो न हो सक तो यह कतसदधाात हआ दक कतनशचय सब िोगो क रत र बड़ी सारथयम ह इसस यह

कतसदध हआ दक बिो स बड़ा बि एक रत ही हrdquo38

आग भारतद कहत ह दक यह जनरत और उसकी शकति हहादसतान क कतिए कोई नई बात नही ह

पराचीन काि र इसक उदाहरण कतरित ह lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo की इस धारणा को भारतद न इकततहास क

अिग-अिग दौर र बनत और कतबगड़त ददखाया सबस पहि चार वणो की िररत पड़ी सब कार को

सचार रप स चिन क कतिए दसर शबदो र कह तो शरर-कतवभाजन की िररत स इसका जनर हआ

lsquoकतहनदओ न अपन गर क कार र इस वणामशरर धमरम को इसी वासत बनाया कतजस र उन क दकसी कार र

कोई हजम न हो और उनिोगो न सासार क सब कारो र चार कार रखय सरझrsquo धरम कतवदया और किाओ का

कार िड़ाई और राजय परबाध का कार वयापार और धन और सब िोगो की सवा और रजदरी इन चार

कारो की सवयवसथा वािा वणामशरर दरअसि lsquoएक रतrsquo कतहनद वयवसथा या lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo थी पर

कािाातर र इस lsquoएकरतrsquo क भीतर जाकततवयवसथा कठोर हो गयी और िाहमण और शदर दोनो एक दसर क

कतखिाफ हो गए एकरत र कतवचछद पदा होन स कतहनद शकति करिोर हो गयी भारतद क अनसार आपस

का यह झगड़ा बड़ा कतवनाशकारी साकतबत हआ पकतबिक ओकतपकतनयन क कतबना वयाकतभचार और जयादकततयो का

अाधर था आग चि कर जनो क जरान र दफर lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo न जोर पकड़ा बकतलक भारतद जोर

दकर कहत ह दक जनो क रत की उततपकततत ही lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo स हई ldquoकतहनदओ क जब नाश क ददन

जब कतनकट आय तो आपस र परसपर बड़ा कतवरोध खड़ा हआ और उस काि र िाहमणो का बड़ा जोर था

वरन य और वणो पर जयादती करत थ तो वशय और कषकततरयो की रकतत इनस दफर गयी और बाब वािी बड़ी

37गराथाविी- 678

38वही

34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

36

कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

37

उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

38

ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 23: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

23

हाि दरयाफत दकया तो रािर हआ दक हरार ही रिहब की शाखा ह इनक गराथो र हरन एक शलोक शरी

रहापरभजी की सबोकतधनी की काररका का दखा इसी स हरको सादह हआ दफर हरन बहत खोद खाद कर

पछा तो वह साफ़ रािर हआ दक इसी रत स यह रत कतनकिा ह कयोदक एक बात वह और बोि दक हरारा

रत शरी बलिभाचारज की टीका र कतिखा ह इन िोगो क उपासय शरीकषण ह और एकादशी शािगरार

ररतमपजा तीथम दकसी को नही रानत इनक पकतहि आचायम दवचाद जी थ जो जाकतत क कायथ थ और दसर

पराणनाथ जी जो कचछ क कषतरी (भारटया) थ हरार ही रत की शाखा सही पर कतवकतचतर रत ह वषणव होकर

ररतमपजा का खाडन करन वाि यही िोग सनrdquo वणमन स सपषट ह दक सात और कतनगमण पाथो क साथ वषणव

कतवचारधारा क आदान-परदान का साकतशलषट इकततहास भारतद क कतिए ताजजब की चीज थी पर इन सबक बीच

आकतखर उनहोन इसक वषणव रि का पता िगा कतिया और वषणवता की इस धाररमक कतवचारधारा र उनहोन

ररतमपजा का कतवरोधी होना भी शाकतरि रान कतिया भारतद न ररतमपजा क सरथमन र बड़ बड़ िख कतिख

थ इसकतिए असाभव नही दक कषण क परकतत परररिक भकति क कतिए ररतम की जररत पर उनहोन कछ पछा

जरर होगा िदकन lsquoकोई दकतना भी कछ कह सनत ही नहीrdquo आग चिकर lsquoवषणवता और भारतवषमrsquo र

वह बड़ कतवशवास क साथ घोकतषत करत ह दक ldquoपहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद कतजतन पाथ ह सब

वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और भारतवषम इन पाथो स छाया हआ हrdquo27 तब वह वषणवता और

िोकरतो और रधयकािीन पाथो क भीतर पहि स सदकय एक ऐकततहाकतसक परदकया का सारानयीकरण कर

उसका नार lsquoवषणवrsquo रख रह थ अकारण नही दक उसी िख र वषणव वयापकता को बतान क कतिए

परचकतित lsquoनारोrsquo का साकषय पश दकया गया ह वयकतियो स िकर वरत और उपवासो तक यह परभतवशािी

सारानय बोध की कतवचारधारा थी कतिवदी जी रधयकािीन वषणवता को िोकधरम कहत थ भारतद

उननीसवी सदी क िोकधरो को वषणव कहत ह

काजरवरटव दिो की तरफ स कशवचादर सन पर िगाय गए आरोप थ १ वद पराण सबको कतरटा

डािा २ दकसतान रसिरान सबको कतहनद बनाया ३ खान पीन का कतवचार कछ न बाकी रखा ४ रदय की

तो नदी बहा दी आयम सराकतजयो क ऊपर रखयतः आरोप lsquoआयामवतम को धरम बकतहरमखrsquo करन का ह धरम

बकतहरमख अथामत सनातन धरम स कतवरख उनहोन कवि धरम क भीतर कतवपिव दकया परनत िहमो सराज न तो

lsquoभारतवषम का सतयानाशrsquo कर डािा इनहोन तो पराणो क अिावा वदो को भी कतरटा डािा lsquoआयामवतमrsquo की

जातीय पकतवतरता नषट करक दकसतान रसिरान जस lsquoकतवदशी ततवोrsquo को घर र घसा कतिया कटररपाथी

करमकााकतडयो क कतिए इनक साथ रणनीकततक तौर पर भी रोचाम बनान वािा कोई एकहिाग जी तयार नही

था सनातकतनयो िारा दकया गया यह बारीक भद खद कतिबरि दिभिो क भीतर का भी अातरवमरोध था

27 भारतद वषणवता और भारतवषम वही पषठ-७६

24

कतिबरिो की सभा र भी दो दि हो गए थ एक सवारीजी क सरथमको का दि था और एक कशव

क सरथमको का कतहनद कतिबरिो की आताररक एकता कतिकतवभाकतजत थी दयानाद क सरथमको क अनसार सवारी

जी न कतहनदओ की आतरा को जगाया था उनह सफतम बनाया वरना तो आयामवतम क आिसी और रखम

रोहकतनदरा र ही कतनरगन थ इस तरह रखम और आिसी सारानयजनो को lsquoिाहमणो क फा द स छड़ायाrsquo िाहमणो

की तिना भारतद न lsquoपादररयोrsquo स की ह जो lsquoवयथम परजा का दरवय खान वाि हrsquo आयम सराज न सासथाकत

परोकतहतवाद पर हरिा दकया था जो भारतद क कतिए रितः जनता क पसो पर पिन वािा परजीवी वगम

िगता था और तो और आधकतनक कतवजञान क आग जो lsquoआयोrsquo की नाक कटी जा रही थी उस भी सवारी जी

न बचा कतिया उनहोन वदो र भी रि तार करटी कचहरी आदद ददखाकर कतहनदओ र आतरसमरान पदा

दकया दसरी ओर कशव क सरथमको का कहना था दक ldquoधनय कशव तर साकषात दसर कशव हो तरन बाग

दश की रनषय नदी क उस वग को जो कशचन सरदर र कतरि जान को उचछकतित हो रहा था जञान करम का

कतनरादर करक पररशवर का कतनरमि भकति रागम परचकतित दकयाrdquo lsquoजञान करम का कतनरादरrsquo करक भी lsquoकतनरमि

भकति रागमrsquo का जो परवतमन कशव न दकया उसस ही ईसाई lsquoअनयताrsquo का साथमक परकततरोध साभव हआ lsquoरनषय

नदी का आवगrsquo भावावग ह इसी बात को दसर शबदो र कह तो भाव जगत क सवाभाकतवक वग को भगवत

भकति की शदध lsquoअनयताrsquo की ओर रोड़कर उस कतवदशी ईसाई lsquoअनयताrsquo क रागम पर जान स रोक ददया इस

कायम क कतिए वद पराण समरत lsquoजञान-करमrsquo क रागो का कतनरादर अगर करना पड़ा तो भी वह उकतचत ही था

वषणव भकति क रधयकािीन सवरप की जो वयाखया आग चिकर की गयी उसक आराकतभक कतचनन हर यहाा

दख सकत ह कहना न होगा दक भारतद का अपना अनभव भी यहाा बोि रहा ह

शासतरीय काजरवरटव पाटी र दवताओ क अिावा यजञवलकय जस औपकतनषददक ऋकतष क साथ-साथ

नारायण भटर रघनाद भटराचायम राडन कतरशर जस कतनबाधकारो और टीकाकारो का जरघट भी था इसक साथ

साथ इसिारी सवगम स आय हए कटररपाथी कतशया िोगो का भी सरथमन उनह परापत था इस परकार कटररपाथ का

दवताओ (जरीदारो) िाहमणो (पादररयो) जञानरागी औपकतनषददक ऋकतष रधययगीन कतनबाधकारो और

कतवदशी कतशया िोगो का एक वकतशवक रोचाम बन रहा था दसरी ओर कतिबरि दि र चतनय परभकतत आचायम

दाद नानक कबीर परभकतत भि और जञानी िोग भी शाकतरि थ इसक अिावा काजरवरटव दि क

कतवदरोकतहयो को भी कतिबरिो न अपन यहाा जगह दी य कतवदरोही थ अितवादी (या नववदााती) भाषयकार

पाचदशीकार और कोई कतरसटर िडिा इन दोनो िोगो पर शर र का जरवरटव दि वािो न बहत हरि

दकय परनत अात र इनह कतिबरिो न अपन यहाा जगह द दी धयान रखना चाकतहए दक भारतद अपन सापरदाय

क अनरप अित वदाात या रायावाद क घोर आिोचक थ सन १८७३ र हररशचादर रगजीन क पहि ही अाक

र भारतद न शााकतडलय भकति सतरो का अनवाद lsquoभकति सतर वजयातीrsquo नार स परकाकतशत दकया भकतरका र

25

भारतद कतिखत ह ldquo दखो आज वसात पाचरी ह इसस बहत स िोग आर क रौर वा फिो क गचछ िकर

तरस कतरिन आवग तो र भी यह एक फिो की वजयाती रािा बना कर िाया हा अागीकार करो वजयाती

रािा बनान का यह हत ह दक वनरािा होगी तो होिी क खि र अरझगी और इसक कतसवाय इस वजयाती

स कतनशचय करक जञानाददक को जय करना ह पर पयार बहत साभि कर यह रािा पहरना टट न जाए

कयोदक सत कचचा ह और ककतियाा तािी और कोरि ह इस स कमहिान का भी भय ह जो हो इस वसात

पाचरी को तयोहारी रझ यही दो दक इस सतयानाशी lsquoअहरrsquo िहमवाद lsquo को पणमरप स नाश करक और भी

सब बातो र इस नव-वसात र भारतवषम की सब आपकतततयो का बस अात करो और अपन भिो क कतचतत र

नव पलिव दफर स िहिह करो जो सदा एक रस रहrdquo28 lsquoएकरसrsquo भकति क कतिए जररी ह दक जञानवाद

अहर िहमवाद को जड़ स उखाड़ फ का जाय कषण को अरपमत अपनी वजयाती रािा स भारतद जञानाददक

को जय करना चाहत ह एक ओर यह पकतषटरागी परापरा क lsquoवीर वषणवrsquo भारतद का परर कतनवदन ह दसरी

ओर lsquoनव-वसातrsquo र भारतवषम की सब आपकतततयो को नाश करन की सारथयम रपी lsquoउपहारीrsquo का साकलप भी

ह lsquoभारतद भारतवषम की सब आपकतततयोrsquo को दर करन की राह र एक बड़ी बाधा अित क जञानवाद को

रानत ह भकति का lsquoएकरसrsquo पहि भी इसक परभाव स ररझाता रहा ह भारतद का साकलप सापरदाय क

परान कतवरोधो क बावजद बन रहन वाि इस अितवाद का पणम सफाया करन का ह जबतक यह न कतरटगा

परररिा भकति क lsquoकमहिान का भयrsquo बना रहगा भकति सतरो र उपासना कााड को परर कतसकतदध का हत

बताया गया था पर भारतद दख रह थ दक उपासना कााड का परचार कतवरि हो गया ह इसी परचार क

कतनकतरतत उनहोन इन सतरो का भाषा र अथम परचार दकया था १८७३ र ही हररशचादर रगजीन का एक

समपादकीय कतनकिा कतजसका शीषमक था- lsquoभकति जञानाददक स कयो बड़ी हrsquo इस िख र भी उपासना रागम

की रहतता का परकततपादन दकया गया ह तकम और जञान को करम की शकतदध और उपासन की परर कतसकतदध क

रासत र कवि एक चरण बताया गया ह वसधा डािकतरया न भारतद क आराकतभक साापरदाकतयक परचार

परसार क कायो र कतनगमकतनयो को बाहर रखन का उपकर नोट दकया था29 यहाा कतनगमकतनए कबीर आदद lsquoभि

और जञानीrsquo कतिबरिो क सरथमक ददखाए गए ह वषणव भकति क राषटरीय चररतर र य बाहर नही थ उनकी

एकता का आधार उनक lsquoकतिबरि रिrsquo र ह सावमजकतनक उचच भाव का सापादन और भकति इन दोनो क साथ

अित वदााती या जञानाददक- सनातनी परापरा क कतवदरोकतहयो की जगह भी कतिबरि दि पाकतथयो र थी

कतिबरि वाि ही झगड़ क कतनपटार की अजी पररशवर को दन गए थ पर पररशवर अपनी

परतीकातरक हो गयी कतसथकतत स खजिाय हए थ यह सवोचच अदाित थी पर साथ ही साथ शकतिहीन

28 भारतद गराथाविी खाड- ५ पषठ ११३

29 वसधा डािकतरया पषठ ३४२

26

राषटराधयकष की कलपना भी कतजस कतहनद सवगम क य राषटराधयकष ह वहाा दकसी दकसर की सलफ गवनमरट चनन

की परणािी आ जान स ईशवर की एकाकतधकारी शकतियाा कतछन गयी ह िोग जनरत कतनरामण क िारा सही

और गित की पहचान करन िग थ इसकतिए थोड़ा खजिाय तो रहत ही होग lsquoअब कौन हरको पछता

ह तर जानो सवगम जानrsquo परनत साकट गहरा था यदयकतप कतिबरि िोगो की सभा भी धरधार स जर

रही थी पर काजरवरटव दि पाकतथयो की सरकार र पठ थी दवता सब भी उनक साथ थ इसकतिए पररशवर

क पास जररी नयाय का परशन उठाया गया था नयाय दक इन दो रहापरषो को सवगम र जगह कतरिनी

चाकतहए या नही सराज र इनक नकततक उचच आदशो क अवरलयन का परचार काजरवरटव कर रह ह इस

परचार क कारण जनता अपनी निरो स पहचानन र सकषर नही ह ऐसी कतसथकतत सवगम र पहि नही आई

थी नई कतसथकततयो क नए रानदाड कया होग िाकतहर ह नयाय और नकततकता को एक वकतशवक सवीककतत

चाकतहए इसकतिए पररशवर न इस कतवषय पर कतवचार क कतिए जो ककतरटी चनी वह गौर करन िायक ह इस

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo र ldquoराजा राररोहन राय वयास दव टोडररि कबीर परभकतत कतभनन-कतभनन रत क िोग चन

गए रसिरानी- सवगम स क lsquoइरारrsquo दकसतानी स िथर जनी स पारसनाथ बौदधो स नागाजमन और

अफीका स कतसटोवायो क बाप कोrdquo चना गया कतहनद सवगम स नवजागरण क अगरदत वयासदव जस

बौकतदधकिखक टोडररि जस राजनीकततजञ और धरम-ररमजञ कबीर जस जञानी-भि पराचीनो र कवि वयास

दव ह बाकी दो lsquoरधयकािrsquo क और एक lsquoआधकतनकrsquo काि क वयकति ह उधर यरोपीय नवजागरणधरमसधार

क परणता िथर को भी बिाया गया ह और बौदधो की तरफ स परर कतनषधवादी नागाजमन भी ह पर य

अफीका क कतसटोवायो धरो की अकतसरता क साथ-साथ यह अफ़ीकी सवगम कतनकतशचत रप स अफीका की छकतव

पराचीन आददवासी सासककतत वाि एक lsquoकािrsquo रहादश क रप र गढ़ी गयी थी यह अफ़ीकी सवगम साभवतः

आददवासी धाररमक रानयताओ की ओर इशारा करता ह यह भी धयान दन िायक ह दक राजा राररोहन

राय िथर और कबीर इन तीनो क साथ lsquoनवजागरणrsquo की कोई न कोई पररकलपना ठठ सरकािीन कतवरशो

क क दर र भी ह कई अथो र अकबर िारा आयोकतजत होन वािी lsquoसिह-ए-किrsquo जसी धरम सभाओ की एक

रोहक कलपना भी भारतद को रही होगी टोडररि की उपकतसथकतत अकारण नही ह

अकबर को िकर भारतद की इकततहासदकतषट कसी थी इसकी एक झिक हर १८८४ र छपी उनकी

lsquoबादशाह दपमणrsquo की भकतरका र ददखती ह इस गरनथ र उन िोगो का चररतर-कतचतरण दकया गया था ldquoकतजनहोन

हरिोगो को गिार बनाना आरमभ दकया इसर उन रसत हाकतथयो क छोट-छोट कतचतर ह कतजनहोन भारत क

िहिहात हए करिवन को उजाड़कर-पर स कचिकर कतछनन-कतभनन कर ददया रहमरद रहरद अिाउददीन

अकबर और औरागजब आदद इनर रखय ह पयार भोि कतहनद भाइयो अकबर का नार सनकर आपिोग

चौदकए रत यह ऐसा बकतदधरान शतर था दक उसक बकतदधबि स आजतक आपिोग उसको कतरतर सरझत ह

27

दकनत वह ऐसा ही नही उसकी नीकतत अागरजो की भााकतत गढ़ थी रखम औरागजब उसको सरझा नही नही तो

आज ददन हहादसतान रसिरान होता कतहनद-रसिरान र खाना-पीना बयाह-शादी कभी चि गयी होती

अागरजो को जो बात नही सझी वह इसको सझी थीrdquo30 कतनकतशचत रप lsquoबकतदधरानrsquo दशरन स सीखन को बहत

कछ कतरिता ह अकबर की दीन-ए-इिाही क परयोग स भारतद भी बहत कछ सीख रह थ रधयकािीन

इकततहास क बार र रकतसिर शतर की छकतव का कतनरामण पराचयकतवदयाकतवदो क िारा दकया जा रहा था इकतियट

आदद इकततहासकारो न जो दकतषट कतवककतसत की उसका परभाव बहत गहरा था पर इस इकततहासिखन क साथ

साथ भारतद क कछ दशी सरोत भी थ अिग-अिग रहापरषो की चररताविी कतिखन की पररणा भारतद न

कतजतना अपनी वषणव भकति की परापरा स पाया था उतना ही इसिारी इकततहास िखन की परापरा स भी

lsquoबादशाहदपमणrsquo की भकतरका र भारतद कतिखत ह ldquoरर पररातारह राय कतगरधरिाि साहब जो यवनी कतवदया

क बड़ भारी पाकतडत और काशीसथ ददलिी क शाहजादो क रखय दीवान थ उनकी इचछा स ददलिी क परकतसदध

कतविान सययद अहरद न एक ऐसा चक बनाया था कतजसर तरर स िकर शाह आिार तक सब बादशाहो क

नार आदद कतिख थ उस फारसी गरनथ स बहत सी बात इसर िी गयी ह इस कारण तरर पवम क बादशाहो

का वणमन इतना परा नही ह कतजतना तरर क पीछ ह दफर रर रातारह राय कतखरोधरिाि न बहादर शाह

क काि क आरमभ तक शष वतत सागरह दकयाrdquo31

अरणदव जी अपन एक िख र भारतद क आराकतभक अकबर परर का कतिक दकया ह १८७२-७४ क

आसपास भारतद अकबर को रहान शासक रानत थ जबदक औरागजब को कतहनदओ का दशरन नाबर एक

भारतद न औरागजब की तिना र अकबर की रहानता को परराकतणत करन क कतिए रारदास कछवाह क एक

शलोक को अपना आधार बनाया ह इस शलोक का भावाथम भारतद क शबदो र इस परकार ह ldquoजो सरदर स रर

तक पथवी को पािता ह जो रतय स गउओ की रकषा करता ह कतजसन तीथम और वयापार स कर छड़ा ददए

कतजसन पराण सन जो सयम का नार जपता जो योग धारण करता ह और गागाजि छोड़कर पानी नही

पीता उस जिािददीन की जय अाग वाग कहिाग कतसिहट कततपरा कारत (कारटी) काररप अाध कणामटक

िाट दरकतवड़ रहाराषटर िारका चोि पााडया भोट रारवाड़ उड़ीसा रलि खरासान का दहार जमब काशी ढाका

बिख बदखशाा और काबि को जो शासन करता ह ककतियग की रकतहरा स घटत हए वद गउ कतिज और

धरम की रकषा को सगन शरीर कतजसन धारण दकया ह उस अपररय परष अकबर शाह को हर नरसकार करत

हrdquo32 यही अकबर १८८४ र औरागजब स जयादा शाकततर और बकतदधरान शतर र बदि गया lsquoकािचकrsquo क

कतनकतहताथो र यह फरबदि भारतद पर रकतसिर कतवदशीपन और कतहनद शतरता क समपणम बिॉक बनान की

30 बादशाह दपमण भारतद गराथाविी खाड-६

31 वही

32 httpsamalochanblogspotin201209blog-post_9html

28

रणनीकतत क दबाव क कारण था और lsquoपरावकततrsquo की कतरथकीयता र भी कतहनदओ को lsquoरहारोहनासतरrsquo क सहार

पहि भी वश र दकया गया था यह एक बारीक चाि थी अकबर की इस चाि को अागरज भी नही सरझ

पा रह थ भारतद की यह परकततदकया औपकतनवकतशक इकततहासिखन क दबाव र थी १८७३ र जब भारतद

न कतशवपरसाद की दकताब lsquoइकततहासकततकतररनाशकrsquo क तीसर खाड की आिोचना की थी तो उनक सारन

रकतसिर शासन की बबमरता और अागरजी राज क सशासन का कतशवपरसाद िारा ककतलपत आखयान था १८८४

र समपणम रकतसिर काि अनधकार यग र बदि गया कततकतररनाशक क पहि खाड र बाब कतशवपरसाद न भी

अकबर की रजहबी उदारता और साराकतजक सधारो की बड़ाई की थी इस परकार हर दख सकत ह दक

ऐकततहाकतसक िखन र पकष और कतवपकष की पनरावकततत एक बाद घर र उिझी हई थी इनक सारन रकतसिर

कतवरोध और अागरजी शासन क कतवरोध का एक कतवसागत फर था और िखक उसर अपनी फौरी जररतो क

कतहसाब स कतरतर और दशरन वािा इकततहास कतिखता था इकततहास ठठ राजनीकततक ततकाि क वशीभत था

जो भी हो धाररमक उदारता और सिह-ए-कि का परयोग एक कतशकषापरद परयोग था यह कतवकतभनन

रतो या कतवशवासो क बीच lsquoजनरतrsquo बनान का एक रधयकािीन परयोग था भारतद lsquoजनरतrsquo क परयोग को

इस तरह दखत थ रानो यह lsquoचािrsquo अगर कारयाब हो जाती तो lsquoआज क ददन हहादसतान रसिरान होताrsquo

भारतद क सारन सरसया वही थी बस वह कवि यह चाहत थ दक कतहनदसतान lsquoकतहनदrsquo हो जाय कतहनद

अथामत वषणव हो जाय वषणवता भारतद क कतिए हहादसतान का नया lsquoसिह-ए-किrsquo था इसकतिए कछ

सावमजनीन रलयो की तिाश उनह भी थी कतसिकट ककतरटी क उपरोि रमबर lsquoएकसअफीकतशयोrsquo रमबर थ

रोर क परान हररकिस जस दवता कतजनहोन धरती स साबाध तोड़ ददया ह व िोग तथा उनही क जस

पारकतसयो क lsquoजरदशतजीrsquo को कोरसपोहडाग ऑनररी रमबर बनाया गया य धरम क रप र रतपराय रतो क

परकततकतनकतध थ ककतरटी न जो ररपोटम तयार की उसका ररम भारतद न ददया ह यह ररम उनक रकतडकि वषणव

पकष का रत था कतिबरि दि और काजरवरटव दि क अपन पकषो स इतर यह नरनायक तीसरा पकष वषणवो

की तरफ स सनाया गया था रकतडकि वषणवो की तरफ स भारतद इस धाररमक आनदोिन क भीतर अपना

ही पकष रखत हए इसका ररम कतिख रह थ ldquoहरिोगो की समरकतत र इन दोनो परषो न परभ की रागिरयी

सकतषट का कछ कतवघन नही दकया वराच उसर सख और सातकतत अकतधक हो इसी र पररशरर दकयाrdquo कतहनद सराज

सधार क परयासो का ररम बतात हए सबस पहि धयान सतरी सधारो पर ददया गया ह साराकतजक करीकततयो

की कतशकार रकतहिाओ क परकतत जो दकतषट उभरकर सारन आती ह उसक रि र धरम की रीकतत स यौन

रयामदाओ की अवयवसथा को दफर स रयामददत करन की चषटा ह कतसतरयो क करागम पर जान का पहिा कारण

ह रनराना परष धरमपवमक न पाना यह कतववाह सासथा की कतवककततयो की आिोचना थी जहाा बाि कतववाह

कतवधवा कतववाह आदद की तरफ इशारा ह धयान रखना चाकतहए दक यहाा बरि कतववाह क बदि कतसतरयो िारा

29

lsquoरनराना वरrsquo न चन पान का उलिख ह गभमनाश और बाि हतया क कतखिाफ सधार परयास दसरा

रहतवपणम योगदान ह कतववाह सासथा बीच र भी भाग की जा सकती ह इसकी सवीककतत ह कनया क कतहत र

अातरजातीय कतववाह की सवीककतत ह एक रहतवपणम बात गरओ और पाकतडतो क वयाकतभचार क साबाध र ह

भारतद क सारन पकतषटरागी रहातो और गरओ क वयाकतभचार का अनभव भी इसर शाकतरि ह

१८७४ र ककतववचन सधा र भारतद की एक रटपणणी छपी थी lsquoगर को कसा होना चाकतहएrsquo इसक अिावा

दो वषम पहि lsquoगर और रहातrsquo नार स भी एक रटपणणी कतिखकर वषणव पाडो-परोकतहतो की खिकर

आिोचना की गयी थी तिवार जी न कतिखा ह दक राददरो क भीतर कतसतरयो का यौन शोषण और वयाकतभचार

इतना भीषण था दक दयानाद भारतद क पकतषट सापरदाय को lsquoकषठी सापरदायrsquo कहत थ १८६० क आरमभ र ही

वषणव गोसाइयो क अनाचार और यौन शोषण क कतखिाफ बमबई र एक बड़ा आनदोिन पकतषटरागी

करसनदास रि जी क नततव र हो चका था वषणव बकतनया पषठभकतर स आय करसनदास जी उन नौजवानो

र थ कतजनहोन एकतिफ सटन कॉिज स आधकतनक कतशकषा परापत की थी गोसाइयो और रहाराजो िारा अपन

lsquoसमपरदाय की बह बरटयोrsquo क साथ होन वाि अतयाचार क कतखिाफ उनहोन िख कतिख और समपरदाय क

इकततहास को नए कतसर स सारन रखा पण स आए जदनाथ वजरतन जी रहाराज न करसनदास जी पर

रानहाकतन का रकदरा दायर कर ददया इसी रक़दर स वषणव रहातो की कई सारी बात जनता क सारन

परतयकष हई तिवार जी न इस lsquoरहाराज िाइबि कसrsquo को भारतीय नवजागरण र वषणव गोसाइयो क

दराचार और यौन शोषण क कतखिाफ हआ सबस बड़ा आनदोिन कहा ह भारतद पर इसका बहत परभाव

था यह कस १८६० र हआ था एक दशक बाद जब भारतद सापरदाय क कायो र रत थ उसी सरय कतिख

रह थ ldquoराददर कया होत ह रानो कतसतरयो की खान ह जसी चाकतहए िीकतजय- वराच अचछी सतरी भी वहाा जाकर

कतबगड़ जाती ह आशचयम यह ह दक कतजनको व िोग बटी कहत ह और जो उनक परिोक क रधयसथ ह और

कतजनको वो दीकषा दत ह उन कतसतरयो की ओर व आप ही बरी दकतषट स दखत ह ओर रर पयार कतहनदओ तर

इनक जाि र कब तक फा स रहोग और कया तरको यही सासार स बचावग और इनही क भरोस तरको

भगवान कतरिगाrdquo33

राददरो क धन-ऐशवयम और वयाकतभचार र डब जीवन क जीवात कतचतर हर बनारस क रखाकतचतर lsquoपरर

जोकतगनीrsquo क अिावा lsquoकाशी क छायाकतचतर क दो बर-भि फोटोगराफrsquo र भी कतरित ह यहाा भारतद का वयागय

अपन वषणव सापरदाय की आतरािोचना स सदकय ह lsquoपरर योकतगनीrsquo नाटक र आन वािा चररतर रारचादर

खद भारतद ही थ नाटक का सतरधार कहता ह दक भारतवषम की दीन हीन गकतत क कारण उसका तो

कतवशवास ही ईशवर स उठन िगा ह नाटक क पहि ही दशय र भारतद हर राददर क भीतर कतिए चित ह

33 वसधा डािकतरया िारा उदधत पषठ- ३३७

30

जहाा राददर र कार करन वािा साधारण टहिआ झपरटया हर ददखाई दता ह पजारी बाब अभी तक नीद

स नही जाग ह कयोदक आधी रात तक lsquoबठ क ही-ही-ठी-ठी करा चाह दफर सबर नीद कस खिrsquo कतनकतशचत

रप स यह टहिआ सबह सवर ही राददर र हाकतिर ह िदकन दवता अभी राददर र सोय ह रारचादर

परदशी ह काशी र बाहर स आय ह छकक जी और राखनदास इस रारचादर की आिोचना करत ह इनक

सावादो स पता चिता ह दक बाब रारचादर क यहाा ददन रात नाच गाना हआ करता ह और उनको अपनी

कतवदया का घराड ह दो चार ककतवतत भी बना ित ह पर lsquoककतवतत बनाव स का होव और ककतवतत बनावन कछ

अपन िोगन का कार थोर हय ई भााटन का कार हयrsquo छकक जी कहत ह दक अपन रागम का उनह कछ जञान

तो ह नही बस दो चार बात इधर उधर स सनकर कछ lsquoदकसतानी रतrsquo सीखकर पाकतडत बन दफरत ह

कतनकतशचत रप स य भारतद पर िगन वाि आरोप थ राददर र सवारी धनदास वकतनतादा बभकतकषत पाकतडत

आदद धरम क ठकदार ह इनकी पतनशीि सासककतत को दखकर रारचादर का दःख इन शबदो र वयि होता ह

lsquoहा कया इस नगर की यही दशा रहगी जहाा क िोग ऐस रखम ह वहाा आग दकस बात की वकतदध की

साभावना करrsquo lsquoवददकी हहासा हहासा न भवकततrsquo जस शरआती नाटको र भी करमकााडी परोकतहतवाद की

आिोचना की गयी ह राजा और परोकतहत कतरिकर वहाा जनता का शोषण करत ह जआ रददरा और

रथन की ऐययाश सासककतत क परतीक परोकतहतो का काजरवरटव दि इन परहसनो र रतम होता ह कतचतरगपत यर

स कहत ह ldquoरहाराज य गर िोग इनक चररतर का कछ न पकतछए कवि दमभाथम इनका कततिक रदरा और

ठगन क अथम इनकी पजा कभी भकति स ररतम को दाडवत न दकया होगा पर राददर र जो कतसतरयाा आयी उनको

सवमदा तकत रह रहाराज इनहोन अनको को कताथम दकया ह और इस सरय तो र lsquoशरीरारचनदर जी का

शरीकषण का दास हाrsquo पर जब सतरी सारन आव तो उसस कहग lsquoर रार तर जानकी र कषण तर गोपीrsquo और

कतसतरयाा भी ऐसी रखम दक दफर इन िोगो क पास जाती हrdquo34

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo की ररपोटम र सतरी सधारो क कायो की रहतता बतान क बाद जाकतत वयवसथा पर

इन सधारको का परहार कयो जररी था इस बताया गया ह कठोर जाकतत बनधनो क चित कस हर साि

जाकतत-बाहय होकर जाकतत र वापस आन क दकसी उपाय को न जान lsquoहजारो रनषय आयम पाकति स हर साि

छटत थ उसको इनहोन रोकाrsquo इस परकार इन सधारको न lsquoआयमधरमrsquo क भीतर जो पररवतमन करन चाह

उसस आयो की एकता दफर स बहाि हो गयी इसक अिावा अाधकतवशवासो को इनहोन दर दकया यही नही

बकतलक जहाा िोग lsquoरसिरानी पीर पगमबर औकतिया वीर ताकतजया गाजी कतरयाा कतजनहोन बड़ी ररतम तोड़कर

और तीथम पाटकर आयम धरम कतवधवास दकयाrsquo उनको भी पजन िग थ और lsquoकतवशवास तो रानो कतछनाि का अाग

हो रहा थाrsquo ऐसी िजजाजनक कतसथकतत स िोगो को बाहर कतनकािकर lsquoसार आयामवतम को शदध lsquoिायिrsquo कर

34 दख रारकतविास शराम पषठ १३१

31

ददयाrsquo lsquoिायिrsquo कर ददया गया इसका अथम आयम जाकतत को दफर स िायि करन र था आयम जाकतत क भीतर

कतबगाड़ क चित ही कतनमन जाकततयो का बड़ परान पर पिायन था इस इन िोगो न रोका और इनक परताप

स ही अनक छोट और सथानीय धरम-रतो क भीतर जो lsquoरसिरानीrsquo परभाव घस आय थ उनको दफर स lsquoबड़ी

ररतमrsquo की कतनषठा र िाया जा सका इस परकार कतहनद धरम और वणामशरर क परकतत दफर स िोगो को lsquoिायिrsquo

दकया यह lsquoिायकतिटीrsquo भारतद की रकतडकि वषणवता क जनरत क कतिए भी जररी था तिवार जी जब

आयमसराकतजयो की lsquoकााकततकारीrsquo भकतरका ददखात ह तब आयम सराज िारा आयामवतम को िायि बनान वािी

इस भकतरका की साकतशलषटता पर जयादा बात नही करत भारतद दयानाद क कााकततकारी परयासो र lsquoिायिrsquo

बनान की परदकया उसी वक़त दख रह थ और इसी कारण ररपोटम र दयानाद की आिोचना धयान दन िायक

ह सवारी जी न ldquoजाि को छरी स न काटकर दसर जाि ही स कतजसको काटना चाहा इसी स दोनो आपस

र उिझ गए और इसका पररणार गह कतवचछद उतपनन हआrdquo गह कतवचछद का रतिब कतहनद धरम र गह

कतवचछद जबदक कशवचादर सन क बार र कहा गया दक उनहोन जाि काटकर भकति की उचछकतित िहरो का

पररषकत पथ परकट दकया इस परकार रकतडकि वषणवता की lsquoअनयताrsquo और परररिक भकति क परशसत पथ क

सवीकार का कतनषकषम कतवचार सभा का भी कतनषकषम था धयान दन िायक ह दक कशवचादर की आिोचना उनक

कतचतत कतवकषप क कारण की गयी थी जहाा lsquoईसारसीह आदद उनस कतरित हrsquo य एक दकसर का इिहारी

अनभव था कतजस भारतद अपनी वषणवता स बाहर रखत ह ईशवर न इस ररपोटम पर अपना रत सरकतकषत

रख कतिया और भारतद कतिखत ह ldquoइसको दख कर इस पर कया आजञा हई और व िोग कहाा भज गए यह

जब कर भी वहाा जायग और दफर िौट कर आ सक ग तो पाठक िोगो को बतिावग या आप िोग कछ

ददन पीछ आप ही जानोगrdquo

३ जनरत और वषणवता

ककतववचन सधा ९ राचम १८७२ र भारतद न lsquoPublic Opinion In Indiarsquo नार स अागरजी र

एक िख परकाकतशत दकया िख र उनहोन कहा दक कई सददयो दक दासता क बाद भारतवषमहहादसतान अब

जाकर कतिरटश राषटर क सवोचच कतनयातरण र आया ह दश धीर-धीर सभयता और परबोधन की पकतशचरी दकरणो

क सहार दरन और कशासन क रतय-तलय कतनदरा स जाग रहा ह कतिरटश शासन की परगकततशीि नीकततयो का

परभाव यहाा की बहरपी आबादी पर पड़ रहा ह

ldquoBut in this progressive state national energy and zeal sympathy and

disintiredness are waiting to make both the conqueror and the conquered to act in

32

concert and in harmony and hence we have the broad distinction of white and

black still But in this country many are the blemishes that adhere to us to be

eradicated and many are the shortcomings that are hovering around us to be done

away with before we can have a public opinion here in its true senserdquo35

गोर और काि क बड़ भद को छोड़ कर कतवजता अागरजो और भारतीयो क बीच एक सराजन तो बन गया ह

पर अनदरनी ददककत अभी भी राह बाए खड़ी ह रौका ह दक इस परगकततशीि कतसथकतत का फायदा उठा कर हर

एक सचच जनरत का कतनरामण कर सचच िोकरत क कतनरामण र अादरनी बाधाएा कया थी भारतद न इस

आग सपषट करत हए कतिखा-

ldquoRace antagonism rivalry and mutual misunderstanding are the favourite

occupations of the aristocratic class Want of confidence among all classes of men

are the prevailing characteristic of the nation and above all multifarious castes and

creeds with there numerous forms of religion and local habits and customs which all

combined have kept the progressive policy at a stand still True it is that a

representative Government is a boon to this country and true it is that Sir Bartle

fregravere a man of vast experience and a good statesman has found out that in village

community we can have public opinion but with all his experience he has lost sight

of our national defects ndash defects which we ourselves know and which no foreigner

can catch at a glancerdquo36

भारतद इस बात को िकर कतनकतशचत ह दक िोकरत और परकततकतनकतधरिक सासथाओ क बहतर कतवकास क कतिए

सीध-सीध कतवदशी रॉडि कभी सफि नही हो पायगा ऐसा इसकतिए कयादक हरारी आपसी कतवकतभननताओ

और झगड़ो को कोई बाहरीकतवदशी सतता कभी भी परी तरह सरझ नही सकती lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo नार

35भारतद गराथाविी -6 361

36 वही

33

स भारतद का एक दसरा िख इस अागरजी वाि िख क दो साि बाद अपरि सन १८७४ र हररशचनदर

रगजीन र छपा पकतबिक ओकतपकतनयन कया बिा ह इस साफ़ करत हए भारतद िख क आरमभ र ही कहत

ह ldquoपकतबिक ओकतपकतनयन अथामत सब साधारण िोगो की राय कया वसत ह और इसर दकतना जोर ह और

इसक कतिए कया हो सकता ह यह परशन ठहरा तो इसका साधारण उततर यही ह दक यह वह वसत ह जो

सासार को एक कर सकती ह गागा की धरा दफर कतहरािय पर चढ़ा ि जा सकती ह सययम को पकतशचर उगा

सकती ह और चाह तो ईशवर को भी पकड़ क कठपतिी की भााकतत नचा सकती हrdquo37 यह पकतबिक

ओकतपकतनयन lsquoएक रतrsquo होना ह जस अिग अिग चार पतिी िककतड़यो को एक साथ बााध दन स उस

तोड़ना करठन हो जाता ह उसी तरह एक रत होन स बड़ स बड़ा बरी भी हरारा कछ कतबगाड़ नही सकता

बहत स िोगो का रत एक हो तो वह शकति बन जाती ह हिारो आदरी की बकतदध एक हो जाए तो ldquoऐसा

कौन कार ह जो न हो सक तो यह कतसदधाात हआ दक कतनशचय सब िोगो क रत र बड़ी सारथयम ह इसस यह

कतसदध हआ दक बिो स बड़ा बि एक रत ही हrdquo38

आग भारतद कहत ह दक यह जनरत और उसकी शकति हहादसतान क कतिए कोई नई बात नही ह

पराचीन काि र इसक उदाहरण कतरित ह lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo की इस धारणा को भारतद न इकततहास क

अिग-अिग दौर र बनत और कतबगड़त ददखाया सबस पहि चार वणो की िररत पड़ी सब कार को

सचार रप स चिन क कतिए दसर शबदो र कह तो शरर-कतवभाजन की िररत स इसका जनर हआ

lsquoकतहनदओ न अपन गर क कार र इस वणामशरर धमरम को इसी वासत बनाया कतजस र उन क दकसी कार र

कोई हजम न हो और उनिोगो न सासार क सब कारो र चार कार रखय सरझrsquo धरम कतवदया और किाओ का

कार िड़ाई और राजय परबाध का कार वयापार और धन और सब िोगो की सवा और रजदरी इन चार

कारो की सवयवसथा वािा वणामशरर दरअसि lsquoएक रतrsquo कतहनद वयवसथा या lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo थी पर

कािाातर र इस lsquoएकरतrsquo क भीतर जाकततवयवसथा कठोर हो गयी और िाहमण और शदर दोनो एक दसर क

कतखिाफ हो गए एकरत र कतवचछद पदा होन स कतहनद शकति करिोर हो गयी भारतद क अनसार आपस

का यह झगड़ा बड़ा कतवनाशकारी साकतबत हआ पकतबिक ओकतपकतनयन क कतबना वयाकतभचार और जयादकततयो का

अाधर था आग चि कर जनो क जरान र दफर lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo न जोर पकड़ा बकतलक भारतद जोर

दकर कहत ह दक जनो क रत की उततपकततत ही lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo स हई ldquoकतहनदओ क जब नाश क ददन

जब कतनकट आय तो आपस र परसपर बड़ा कतवरोध खड़ा हआ और उस काि र िाहमणो का बड़ा जोर था

वरन य और वणो पर जयादती करत थ तो वशय और कषकततरयो की रकतत इनस दफर गयी और बाब वािी बड़ी

37गराथाविी- 678

38वही

34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

36

कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

37

उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

38

ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 24: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

24

कतिबरिो की सभा र भी दो दि हो गए थ एक सवारीजी क सरथमको का दि था और एक कशव

क सरथमको का कतहनद कतिबरिो की आताररक एकता कतिकतवभाकतजत थी दयानाद क सरथमको क अनसार सवारी

जी न कतहनदओ की आतरा को जगाया था उनह सफतम बनाया वरना तो आयामवतम क आिसी और रखम

रोहकतनदरा र ही कतनरगन थ इस तरह रखम और आिसी सारानयजनो को lsquoिाहमणो क फा द स छड़ायाrsquo िाहमणो

की तिना भारतद न lsquoपादररयोrsquo स की ह जो lsquoवयथम परजा का दरवय खान वाि हrsquo आयम सराज न सासथाकत

परोकतहतवाद पर हरिा दकया था जो भारतद क कतिए रितः जनता क पसो पर पिन वािा परजीवी वगम

िगता था और तो और आधकतनक कतवजञान क आग जो lsquoआयोrsquo की नाक कटी जा रही थी उस भी सवारी जी

न बचा कतिया उनहोन वदो र भी रि तार करटी कचहरी आदद ददखाकर कतहनदओ र आतरसमरान पदा

दकया दसरी ओर कशव क सरथमको का कहना था दक ldquoधनय कशव तर साकषात दसर कशव हो तरन बाग

दश की रनषय नदी क उस वग को जो कशचन सरदर र कतरि जान को उचछकतित हो रहा था जञान करम का

कतनरादर करक पररशवर का कतनरमि भकति रागम परचकतित दकयाrdquo lsquoजञान करम का कतनरादरrsquo करक भी lsquoकतनरमि

भकति रागमrsquo का जो परवतमन कशव न दकया उसस ही ईसाई lsquoअनयताrsquo का साथमक परकततरोध साभव हआ lsquoरनषय

नदी का आवगrsquo भावावग ह इसी बात को दसर शबदो र कह तो भाव जगत क सवाभाकतवक वग को भगवत

भकति की शदध lsquoअनयताrsquo की ओर रोड़कर उस कतवदशी ईसाई lsquoअनयताrsquo क रागम पर जान स रोक ददया इस

कायम क कतिए वद पराण समरत lsquoजञान-करमrsquo क रागो का कतनरादर अगर करना पड़ा तो भी वह उकतचत ही था

वषणव भकति क रधयकािीन सवरप की जो वयाखया आग चिकर की गयी उसक आराकतभक कतचनन हर यहाा

दख सकत ह कहना न होगा दक भारतद का अपना अनभव भी यहाा बोि रहा ह

शासतरीय काजरवरटव पाटी र दवताओ क अिावा यजञवलकय जस औपकतनषददक ऋकतष क साथ-साथ

नारायण भटर रघनाद भटराचायम राडन कतरशर जस कतनबाधकारो और टीकाकारो का जरघट भी था इसक साथ

साथ इसिारी सवगम स आय हए कटररपाथी कतशया िोगो का भी सरथमन उनह परापत था इस परकार कटररपाथ का

दवताओ (जरीदारो) िाहमणो (पादररयो) जञानरागी औपकतनषददक ऋकतष रधययगीन कतनबाधकारो और

कतवदशी कतशया िोगो का एक वकतशवक रोचाम बन रहा था दसरी ओर कतिबरि दि र चतनय परभकतत आचायम

दाद नानक कबीर परभकतत भि और जञानी िोग भी शाकतरि थ इसक अिावा काजरवरटव दि क

कतवदरोकतहयो को भी कतिबरिो न अपन यहाा जगह दी य कतवदरोही थ अितवादी (या नववदााती) भाषयकार

पाचदशीकार और कोई कतरसटर िडिा इन दोनो िोगो पर शर र का जरवरटव दि वािो न बहत हरि

दकय परनत अात र इनह कतिबरिो न अपन यहाा जगह द दी धयान रखना चाकतहए दक भारतद अपन सापरदाय

क अनरप अित वदाात या रायावाद क घोर आिोचक थ सन १८७३ र हररशचादर रगजीन क पहि ही अाक

र भारतद न शााकतडलय भकति सतरो का अनवाद lsquoभकति सतर वजयातीrsquo नार स परकाकतशत दकया भकतरका र

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भारतद कतिखत ह ldquo दखो आज वसात पाचरी ह इसस बहत स िोग आर क रौर वा फिो क गचछ िकर

तरस कतरिन आवग तो र भी यह एक फिो की वजयाती रािा बना कर िाया हा अागीकार करो वजयाती

रािा बनान का यह हत ह दक वनरािा होगी तो होिी क खि र अरझगी और इसक कतसवाय इस वजयाती

स कतनशचय करक जञानाददक को जय करना ह पर पयार बहत साभि कर यह रािा पहरना टट न जाए

कयोदक सत कचचा ह और ककतियाा तािी और कोरि ह इस स कमहिान का भी भय ह जो हो इस वसात

पाचरी को तयोहारी रझ यही दो दक इस सतयानाशी lsquoअहरrsquo िहमवाद lsquo को पणमरप स नाश करक और भी

सब बातो र इस नव-वसात र भारतवषम की सब आपकतततयो का बस अात करो और अपन भिो क कतचतत र

नव पलिव दफर स िहिह करो जो सदा एक रस रहrdquo28 lsquoएकरसrsquo भकति क कतिए जररी ह दक जञानवाद

अहर िहमवाद को जड़ स उखाड़ फ का जाय कषण को अरपमत अपनी वजयाती रािा स भारतद जञानाददक

को जय करना चाहत ह एक ओर यह पकतषटरागी परापरा क lsquoवीर वषणवrsquo भारतद का परर कतनवदन ह दसरी

ओर lsquoनव-वसातrsquo र भारतवषम की सब आपकतततयो को नाश करन की सारथयम रपी lsquoउपहारीrsquo का साकलप भी

ह lsquoभारतद भारतवषम की सब आपकतततयोrsquo को दर करन की राह र एक बड़ी बाधा अित क जञानवाद को

रानत ह भकति का lsquoएकरसrsquo पहि भी इसक परभाव स ररझाता रहा ह भारतद का साकलप सापरदाय क

परान कतवरोधो क बावजद बन रहन वाि इस अितवाद का पणम सफाया करन का ह जबतक यह न कतरटगा

परररिा भकति क lsquoकमहिान का भयrsquo बना रहगा भकति सतरो र उपासना कााड को परर कतसकतदध का हत

बताया गया था पर भारतद दख रह थ दक उपासना कााड का परचार कतवरि हो गया ह इसी परचार क

कतनकतरतत उनहोन इन सतरो का भाषा र अथम परचार दकया था १८७३ र ही हररशचादर रगजीन का एक

समपादकीय कतनकिा कतजसका शीषमक था- lsquoभकति जञानाददक स कयो बड़ी हrsquo इस िख र भी उपासना रागम

की रहतता का परकततपादन दकया गया ह तकम और जञान को करम की शकतदध और उपासन की परर कतसकतदध क

रासत र कवि एक चरण बताया गया ह वसधा डािकतरया न भारतद क आराकतभक साापरदाकतयक परचार

परसार क कायो र कतनगमकतनयो को बाहर रखन का उपकर नोट दकया था29 यहाा कतनगमकतनए कबीर आदद lsquoभि

और जञानीrsquo कतिबरिो क सरथमक ददखाए गए ह वषणव भकति क राषटरीय चररतर र य बाहर नही थ उनकी

एकता का आधार उनक lsquoकतिबरि रिrsquo र ह सावमजकतनक उचच भाव का सापादन और भकति इन दोनो क साथ

अित वदााती या जञानाददक- सनातनी परापरा क कतवदरोकतहयो की जगह भी कतिबरि दि पाकतथयो र थी

कतिबरि वाि ही झगड़ क कतनपटार की अजी पररशवर को दन गए थ पर पररशवर अपनी

परतीकातरक हो गयी कतसथकतत स खजिाय हए थ यह सवोचच अदाित थी पर साथ ही साथ शकतिहीन

28 भारतद गराथाविी खाड- ५ पषठ ११३

29 वसधा डािकतरया पषठ ३४२

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राषटराधयकष की कलपना भी कतजस कतहनद सवगम क य राषटराधयकष ह वहाा दकसी दकसर की सलफ गवनमरट चनन

की परणािी आ जान स ईशवर की एकाकतधकारी शकतियाा कतछन गयी ह िोग जनरत कतनरामण क िारा सही

और गित की पहचान करन िग थ इसकतिए थोड़ा खजिाय तो रहत ही होग lsquoअब कौन हरको पछता

ह तर जानो सवगम जानrsquo परनत साकट गहरा था यदयकतप कतिबरि िोगो की सभा भी धरधार स जर

रही थी पर काजरवरटव दि पाकतथयो की सरकार र पठ थी दवता सब भी उनक साथ थ इसकतिए पररशवर

क पास जररी नयाय का परशन उठाया गया था नयाय दक इन दो रहापरषो को सवगम र जगह कतरिनी

चाकतहए या नही सराज र इनक नकततक उचच आदशो क अवरलयन का परचार काजरवरटव कर रह ह इस

परचार क कारण जनता अपनी निरो स पहचानन र सकषर नही ह ऐसी कतसथकतत सवगम र पहि नही आई

थी नई कतसथकततयो क नए रानदाड कया होग िाकतहर ह नयाय और नकततकता को एक वकतशवक सवीककतत

चाकतहए इसकतिए पररशवर न इस कतवषय पर कतवचार क कतिए जो ककतरटी चनी वह गौर करन िायक ह इस

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo र ldquoराजा राररोहन राय वयास दव टोडररि कबीर परभकतत कतभनन-कतभनन रत क िोग चन

गए रसिरानी- सवगम स क lsquoइरारrsquo दकसतानी स िथर जनी स पारसनाथ बौदधो स नागाजमन और

अफीका स कतसटोवायो क बाप कोrdquo चना गया कतहनद सवगम स नवजागरण क अगरदत वयासदव जस

बौकतदधकिखक टोडररि जस राजनीकततजञ और धरम-ररमजञ कबीर जस जञानी-भि पराचीनो र कवि वयास

दव ह बाकी दो lsquoरधयकािrsquo क और एक lsquoआधकतनकrsquo काि क वयकति ह उधर यरोपीय नवजागरणधरमसधार

क परणता िथर को भी बिाया गया ह और बौदधो की तरफ स परर कतनषधवादी नागाजमन भी ह पर य

अफीका क कतसटोवायो धरो की अकतसरता क साथ-साथ यह अफ़ीकी सवगम कतनकतशचत रप स अफीका की छकतव

पराचीन आददवासी सासककतत वाि एक lsquoकािrsquo रहादश क रप र गढ़ी गयी थी यह अफ़ीकी सवगम साभवतः

आददवासी धाररमक रानयताओ की ओर इशारा करता ह यह भी धयान दन िायक ह दक राजा राररोहन

राय िथर और कबीर इन तीनो क साथ lsquoनवजागरणrsquo की कोई न कोई पररकलपना ठठ सरकािीन कतवरशो

क क दर र भी ह कई अथो र अकबर िारा आयोकतजत होन वािी lsquoसिह-ए-किrsquo जसी धरम सभाओ की एक

रोहक कलपना भी भारतद को रही होगी टोडररि की उपकतसथकतत अकारण नही ह

अकबर को िकर भारतद की इकततहासदकतषट कसी थी इसकी एक झिक हर १८८४ र छपी उनकी

lsquoबादशाह दपमणrsquo की भकतरका र ददखती ह इस गरनथ र उन िोगो का चररतर-कतचतरण दकया गया था ldquoकतजनहोन

हरिोगो को गिार बनाना आरमभ दकया इसर उन रसत हाकतथयो क छोट-छोट कतचतर ह कतजनहोन भारत क

िहिहात हए करिवन को उजाड़कर-पर स कचिकर कतछनन-कतभनन कर ददया रहमरद रहरद अिाउददीन

अकबर और औरागजब आदद इनर रखय ह पयार भोि कतहनद भाइयो अकबर का नार सनकर आपिोग

चौदकए रत यह ऐसा बकतदधरान शतर था दक उसक बकतदधबि स आजतक आपिोग उसको कतरतर सरझत ह

27

दकनत वह ऐसा ही नही उसकी नीकतत अागरजो की भााकतत गढ़ थी रखम औरागजब उसको सरझा नही नही तो

आज ददन हहादसतान रसिरान होता कतहनद-रसिरान र खाना-पीना बयाह-शादी कभी चि गयी होती

अागरजो को जो बात नही सझी वह इसको सझी थीrdquo30 कतनकतशचत रप lsquoबकतदधरानrsquo दशरन स सीखन को बहत

कछ कतरिता ह अकबर की दीन-ए-इिाही क परयोग स भारतद भी बहत कछ सीख रह थ रधयकािीन

इकततहास क बार र रकतसिर शतर की छकतव का कतनरामण पराचयकतवदयाकतवदो क िारा दकया जा रहा था इकतियट

आदद इकततहासकारो न जो दकतषट कतवककतसत की उसका परभाव बहत गहरा था पर इस इकततहासिखन क साथ

साथ भारतद क कछ दशी सरोत भी थ अिग-अिग रहापरषो की चररताविी कतिखन की पररणा भारतद न

कतजतना अपनी वषणव भकति की परापरा स पाया था उतना ही इसिारी इकततहास िखन की परापरा स भी

lsquoबादशाहदपमणrsquo की भकतरका र भारतद कतिखत ह ldquoरर पररातारह राय कतगरधरिाि साहब जो यवनी कतवदया

क बड़ भारी पाकतडत और काशीसथ ददलिी क शाहजादो क रखय दीवान थ उनकी इचछा स ददलिी क परकतसदध

कतविान सययद अहरद न एक ऐसा चक बनाया था कतजसर तरर स िकर शाह आिार तक सब बादशाहो क

नार आदद कतिख थ उस फारसी गरनथ स बहत सी बात इसर िी गयी ह इस कारण तरर पवम क बादशाहो

का वणमन इतना परा नही ह कतजतना तरर क पीछ ह दफर रर रातारह राय कतखरोधरिाि न बहादर शाह

क काि क आरमभ तक शष वतत सागरह दकयाrdquo31

अरणदव जी अपन एक िख र भारतद क आराकतभक अकबर परर का कतिक दकया ह १८७२-७४ क

आसपास भारतद अकबर को रहान शासक रानत थ जबदक औरागजब को कतहनदओ का दशरन नाबर एक

भारतद न औरागजब की तिना र अकबर की रहानता को परराकतणत करन क कतिए रारदास कछवाह क एक

शलोक को अपना आधार बनाया ह इस शलोक का भावाथम भारतद क शबदो र इस परकार ह ldquoजो सरदर स रर

तक पथवी को पािता ह जो रतय स गउओ की रकषा करता ह कतजसन तीथम और वयापार स कर छड़ा ददए

कतजसन पराण सन जो सयम का नार जपता जो योग धारण करता ह और गागाजि छोड़कर पानी नही

पीता उस जिािददीन की जय अाग वाग कहिाग कतसिहट कततपरा कारत (कारटी) काररप अाध कणामटक

िाट दरकतवड़ रहाराषटर िारका चोि पााडया भोट रारवाड़ उड़ीसा रलि खरासान का दहार जमब काशी ढाका

बिख बदखशाा और काबि को जो शासन करता ह ककतियग की रकतहरा स घटत हए वद गउ कतिज और

धरम की रकषा को सगन शरीर कतजसन धारण दकया ह उस अपररय परष अकबर शाह को हर नरसकार करत

हrdquo32 यही अकबर १८८४ र औरागजब स जयादा शाकततर और बकतदधरान शतर र बदि गया lsquoकािचकrsquo क

कतनकतहताथो र यह फरबदि भारतद पर रकतसिर कतवदशीपन और कतहनद शतरता क समपणम बिॉक बनान की

30 बादशाह दपमण भारतद गराथाविी खाड-६

31 वही

32 httpsamalochanblogspotin201209blog-post_9html

28

रणनीकतत क दबाव क कारण था और lsquoपरावकततrsquo की कतरथकीयता र भी कतहनदओ को lsquoरहारोहनासतरrsquo क सहार

पहि भी वश र दकया गया था यह एक बारीक चाि थी अकबर की इस चाि को अागरज भी नही सरझ

पा रह थ भारतद की यह परकततदकया औपकतनवकतशक इकततहासिखन क दबाव र थी १८७३ र जब भारतद

न कतशवपरसाद की दकताब lsquoइकततहासकततकतररनाशकrsquo क तीसर खाड की आिोचना की थी तो उनक सारन

रकतसिर शासन की बबमरता और अागरजी राज क सशासन का कतशवपरसाद िारा ककतलपत आखयान था १८८४

र समपणम रकतसिर काि अनधकार यग र बदि गया कततकतररनाशक क पहि खाड र बाब कतशवपरसाद न भी

अकबर की रजहबी उदारता और साराकतजक सधारो की बड़ाई की थी इस परकार हर दख सकत ह दक

ऐकततहाकतसक िखन र पकष और कतवपकष की पनरावकततत एक बाद घर र उिझी हई थी इनक सारन रकतसिर

कतवरोध और अागरजी शासन क कतवरोध का एक कतवसागत फर था और िखक उसर अपनी फौरी जररतो क

कतहसाब स कतरतर और दशरन वािा इकततहास कतिखता था इकततहास ठठ राजनीकततक ततकाि क वशीभत था

जो भी हो धाररमक उदारता और सिह-ए-कि का परयोग एक कतशकषापरद परयोग था यह कतवकतभनन

रतो या कतवशवासो क बीच lsquoजनरतrsquo बनान का एक रधयकािीन परयोग था भारतद lsquoजनरतrsquo क परयोग को

इस तरह दखत थ रानो यह lsquoचािrsquo अगर कारयाब हो जाती तो lsquoआज क ददन हहादसतान रसिरान होताrsquo

भारतद क सारन सरसया वही थी बस वह कवि यह चाहत थ दक कतहनदसतान lsquoकतहनदrsquo हो जाय कतहनद

अथामत वषणव हो जाय वषणवता भारतद क कतिए हहादसतान का नया lsquoसिह-ए-किrsquo था इसकतिए कछ

सावमजनीन रलयो की तिाश उनह भी थी कतसिकट ककतरटी क उपरोि रमबर lsquoएकसअफीकतशयोrsquo रमबर थ

रोर क परान हररकिस जस दवता कतजनहोन धरती स साबाध तोड़ ददया ह व िोग तथा उनही क जस

पारकतसयो क lsquoजरदशतजीrsquo को कोरसपोहडाग ऑनररी रमबर बनाया गया य धरम क रप र रतपराय रतो क

परकततकतनकतध थ ककतरटी न जो ररपोटम तयार की उसका ररम भारतद न ददया ह यह ररम उनक रकतडकि वषणव

पकष का रत था कतिबरि दि और काजरवरटव दि क अपन पकषो स इतर यह नरनायक तीसरा पकष वषणवो

की तरफ स सनाया गया था रकतडकि वषणवो की तरफ स भारतद इस धाररमक आनदोिन क भीतर अपना

ही पकष रखत हए इसका ररम कतिख रह थ ldquoहरिोगो की समरकतत र इन दोनो परषो न परभ की रागिरयी

सकतषट का कछ कतवघन नही दकया वराच उसर सख और सातकतत अकतधक हो इसी र पररशरर दकयाrdquo कतहनद सराज

सधार क परयासो का ररम बतात हए सबस पहि धयान सतरी सधारो पर ददया गया ह साराकतजक करीकततयो

की कतशकार रकतहिाओ क परकतत जो दकतषट उभरकर सारन आती ह उसक रि र धरम की रीकतत स यौन

रयामदाओ की अवयवसथा को दफर स रयामददत करन की चषटा ह कतसतरयो क करागम पर जान का पहिा कारण

ह रनराना परष धरमपवमक न पाना यह कतववाह सासथा की कतवककततयो की आिोचना थी जहाा बाि कतववाह

कतवधवा कतववाह आदद की तरफ इशारा ह धयान रखना चाकतहए दक यहाा बरि कतववाह क बदि कतसतरयो िारा

29

lsquoरनराना वरrsquo न चन पान का उलिख ह गभमनाश और बाि हतया क कतखिाफ सधार परयास दसरा

रहतवपणम योगदान ह कतववाह सासथा बीच र भी भाग की जा सकती ह इसकी सवीककतत ह कनया क कतहत र

अातरजातीय कतववाह की सवीककतत ह एक रहतवपणम बात गरओ और पाकतडतो क वयाकतभचार क साबाध र ह

भारतद क सारन पकतषटरागी रहातो और गरओ क वयाकतभचार का अनभव भी इसर शाकतरि ह

१८७४ र ककतववचन सधा र भारतद की एक रटपणणी छपी थी lsquoगर को कसा होना चाकतहएrsquo इसक अिावा

दो वषम पहि lsquoगर और रहातrsquo नार स भी एक रटपणणी कतिखकर वषणव पाडो-परोकतहतो की खिकर

आिोचना की गयी थी तिवार जी न कतिखा ह दक राददरो क भीतर कतसतरयो का यौन शोषण और वयाकतभचार

इतना भीषण था दक दयानाद भारतद क पकतषट सापरदाय को lsquoकषठी सापरदायrsquo कहत थ १८६० क आरमभ र ही

वषणव गोसाइयो क अनाचार और यौन शोषण क कतखिाफ बमबई र एक बड़ा आनदोिन पकतषटरागी

करसनदास रि जी क नततव र हो चका था वषणव बकतनया पषठभकतर स आय करसनदास जी उन नौजवानो

र थ कतजनहोन एकतिफ सटन कॉिज स आधकतनक कतशकषा परापत की थी गोसाइयो और रहाराजो िारा अपन

lsquoसमपरदाय की बह बरटयोrsquo क साथ होन वाि अतयाचार क कतखिाफ उनहोन िख कतिख और समपरदाय क

इकततहास को नए कतसर स सारन रखा पण स आए जदनाथ वजरतन जी रहाराज न करसनदास जी पर

रानहाकतन का रकदरा दायर कर ददया इसी रक़दर स वषणव रहातो की कई सारी बात जनता क सारन

परतयकष हई तिवार जी न इस lsquoरहाराज िाइबि कसrsquo को भारतीय नवजागरण र वषणव गोसाइयो क

दराचार और यौन शोषण क कतखिाफ हआ सबस बड़ा आनदोिन कहा ह भारतद पर इसका बहत परभाव

था यह कस १८६० र हआ था एक दशक बाद जब भारतद सापरदाय क कायो र रत थ उसी सरय कतिख

रह थ ldquoराददर कया होत ह रानो कतसतरयो की खान ह जसी चाकतहए िीकतजय- वराच अचछी सतरी भी वहाा जाकर

कतबगड़ जाती ह आशचयम यह ह दक कतजनको व िोग बटी कहत ह और जो उनक परिोक क रधयसथ ह और

कतजनको वो दीकषा दत ह उन कतसतरयो की ओर व आप ही बरी दकतषट स दखत ह ओर रर पयार कतहनदओ तर

इनक जाि र कब तक फा स रहोग और कया तरको यही सासार स बचावग और इनही क भरोस तरको

भगवान कतरिगाrdquo33

राददरो क धन-ऐशवयम और वयाकतभचार र डब जीवन क जीवात कतचतर हर बनारस क रखाकतचतर lsquoपरर

जोकतगनीrsquo क अिावा lsquoकाशी क छायाकतचतर क दो बर-भि फोटोगराफrsquo र भी कतरित ह यहाा भारतद का वयागय

अपन वषणव सापरदाय की आतरािोचना स सदकय ह lsquoपरर योकतगनीrsquo नाटक र आन वािा चररतर रारचादर

खद भारतद ही थ नाटक का सतरधार कहता ह दक भारतवषम की दीन हीन गकतत क कारण उसका तो

कतवशवास ही ईशवर स उठन िगा ह नाटक क पहि ही दशय र भारतद हर राददर क भीतर कतिए चित ह

33 वसधा डािकतरया िारा उदधत पषठ- ३३७

30

जहाा राददर र कार करन वािा साधारण टहिआ झपरटया हर ददखाई दता ह पजारी बाब अभी तक नीद

स नही जाग ह कयोदक आधी रात तक lsquoबठ क ही-ही-ठी-ठी करा चाह दफर सबर नीद कस खिrsquo कतनकतशचत

रप स यह टहिआ सबह सवर ही राददर र हाकतिर ह िदकन दवता अभी राददर र सोय ह रारचादर

परदशी ह काशी र बाहर स आय ह छकक जी और राखनदास इस रारचादर की आिोचना करत ह इनक

सावादो स पता चिता ह दक बाब रारचादर क यहाा ददन रात नाच गाना हआ करता ह और उनको अपनी

कतवदया का घराड ह दो चार ककतवतत भी बना ित ह पर lsquoककतवतत बनाव स का होव और ककतवतत बनावन कछ

अपन िोगन का कार थोर हय ई भााटन का कार हयrsquo छकक जी कहत ह दक अपन रागम का उनह कछ जञान

तो ह नही बस दो चार बात इधर उधर स सनकर कछ lsquoदकसतानी रतrsquo सीखकर पाकतडत बन दफरत ह

कतनकतशचत रप स य भारतद पर िगन वाि आरोप थ राददर र सवारी धनदास वकतनतादा बभकतकषत पाकतडत

आदद धरम क ठकदार ह इनकी पतनशीि सासककतत को दखकर रारचादर का दःख इन शबदो र वयि होता ह

lsquoहा कया इस नगर की यही दशा रहगी जहाा क िोग ऐस रखम ह वहाा आग दकस बात की वकतदध की

साभावना करrsquo lsquoवददकी हहासा हहासा न भवकततrsquo जस शरआती नाटको र भी करमकााडी परोकतहतवाद की

आिोचना की गयी ह राजा और परोकतहत कतरिकर वहाा जनता का शोषण करत ह जआ रददरा और

रथन की ऐययाश सासककतत क परतीक परोकतहतो का काजरवरटव दि इन परहसनो र रतम होता ह कतचतरगपत यर

स कहत ह ldquoरहाराज य गर िोग इनक चररतर का कछ न पकतछए कवि दमभाथम इनका कततिक रदरा और

ठगन क अथम इनकी पजा कभी भकति स ररतम को दाडवत न दकया होगा पर राददर र जो कतसतरयाा आयी उनको

सवमदा तकत रह रहाराज इनहोन अनको को कताथम दकया ह और इस सरय तो र lsquoशरीरारचनदर जी का

शरीकषण का दास हाrsquo पर जब सतरी सारन आव तो उसस कहग lsquoर रार तर जानकी र कषण तर गोपीrsquo और

कतसतरयाा भी ऐसी रखम दक दफर इन िोगो क पास जाती हrdquo34

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo की ररपोटम र सतरी सधारो क कायो की रहतता बतान क बाद जाकतत वयवसथा पर

इन सधारको का परहार कयो जररी था इस बताया गया ह कठोर जाकतत बनधनो क चित कस हर साि

जाकतत-बाहय होकर जाकतत र वापस आन क दकसी उपाय को न जान lsquoहजारो रनषय आयम पाकति स हर साि

छटत थ उसको इनहोन रोकाrsquo इस परकार इन सधारको न lsquoआयमधरमrsquo क भीतर जो पररवतमन करन चाह

उसस आयो की एकता दफर स बहाि हो गयी इसक अिावा अाधकतवशवासो को इनहोन दर दकया यही नही

बकतलक जहाा िोग lsquoरसिरानी पीर पगमबर औकतिया वीर ताकतजया गाजी कतरयाा कतजनहोन बड़ी ररतम तोड़कर

और तीथम पाटकर आयम धरम कतवधवास दकयाrsquo उनको भी पजन िग थ और lsquoकतवशवास तो रानो कतछनाि का अाग

हो रहा थाrsquo ऐसी िजजाजनक कतसथकतत स िोगो को बाहर कतनकािकर lsquoसार आयामवतम को शदध lsquoिायिrsquo कर

34 दख रारकतविास शराम पषठ १३१

31

ददयाrsquo lsquoिायिrsquo कर ददया गया इसका अथम आयम जाकतत को दफर स िायि करन र था आयम जाकतत क भीतर

कतबगाड़ क चित ही कतनमन जाकततयो का बड़ परान पर पिायन था इस इन िोगो न रोका और इनक परताप

स ही अनक छोट और सथानीय धरम-रतो क भीतर जो lsquoरसिरानीrsquo परभाव घस आय थ उनको दफर स lsquoबड़ी

ररतमrsquo की कतनषठा र िाया जा सका इस परकार कतहनद धरम और वणामशरर क परकतत दफर स िोगो को lsquoिायिrsquo

दकया यह lsquoिायकतिटीrsquo भारतद की रकतडकि वषणवता क जनरत क कतिए भी जररी था तिवार जी जब

आयमसराकतजयो की lsquoकााकततकारीrsquo भकतरका ददखात ह तब आयम सराज िारा आयामवतम को िायि बनान वािी

इस भकतरका की साकतशलषटता पर जयादा बात नही करत भारतद दयानाद क कााकततकारी परयासो र lsquoिायिrsquo

बनान की परदकया उसी वक़त दख रह थ और इसी कारण ररपोटम र दयानाद की आिोचना धयान दन िायक

ह सवारी जी न ldquoजाि को छरी स न काटकर दसर जाि ही स कतजसको काटना चाहा इसी स दोनो आपस

र उिझ गए और इसका पररणार गह कतवचछद उतपनन हआrdquo गह कतवचछद का रतिब कतहनद धरम र गह

कतवचछद जबदक कशवचादर सन क बार र कहा गया दक उनहोन जाि काटकर भकति की उचछकतित िहरो का

पररषकत पथ परकट दकया इस परकार रकतडकि वषणवता की lsquoअनयताrsquo और परररिक भकति क परशसत पथ क

सवीकार का कतनषकषम कतवचार सभा का भी कतनषकषम था धयान दन िायक ह दक कशवचादर की आिोचना उनक

कतचतत कतवकषप क कारण की गयी थी जहाा lsquoईसारसीह आदद उनस कतरित हrsquo य एक दकसर का इिहारी

अनभव था कतजस भारतद अपनी वषणवता स बाहर रखत ह ईशवर न इस ररपोटम पर अपना रत सरकतकषत

रख कतिया और भारतद कतिखत ह ldquoइसको दख कर इस पर कया आजञा हई और व िोग कहाा भज गए यह

जब कर भी वहाा जायग और दफर िौट कर आ सक ग तो पाठक िोगो को बतिावग या आप िोग कछ

ददन पीछ आप ही जानोगrdquo

३ जनरत और वषणवता

ककतववचन सधा ९ राचम १८७२ र भारतद न lsquoPublic Opinion In Indiarsquo नार स अागरजी र

एक िख परकाकतशत दकया िख र उनहोन कहा दक कई सददयो दक दासता क बाद भारतवषमहहादसतान अब

जाकर कतिरटश राषटर क सवोचच कतनयातरण र आया ह दश धीर-धीर सभयता और परबोधन की पकतशचरी दकरणो

क सहार दरन और कशासन क रतय-तलय कतनदरा स जाग रहा ह कतिरटश शासन की परगकततशीि नीकततयो का

परभाव यहाा की बहरपी आबादी पर पड़ रहा ह

ldquoBut in this progressive state national energy and zeal sympathy and

disintiredness are waiting to make both the conqueror and the conquered to act in

32

concert and in harmony and hence we have the broad distinction of white and

black still But in this country many are the blemishes that adhere to us to be

eradicated and many are the shortcomings that are hovering around us to be done

away with before we can have a public opinion here in its true senserdquo35

गोर और काि क बड़ भद को छोड़ कर कतवजता अागरजो और भारतीयो क बीच एक सराजन तो बन गया ह

पर अनदरनी ददककत अभी भी राह बाए खड़ी ह रौका ह दक इस परगकततशीि कतसथकतत का फायदा उठा कर हर

एक सचच जनरत का कतनरामण कर सचच िोकरत क कतनरामण र अादरनी बाधाएा कया थी भारतद न इस

आग सपषट करत हए कतिखा-

ldquoRace antagonism rivalry and mutual misunderstanding are the favourite

occupations of the aristocratic class Want of confidence among all classes of men

are the prevailing characteristic of the nation and above all multifarious castes and

creeds with there numerous forms of religion and local habits and customs which all

combined have kept the progressive policy at a stand still True it is that a

representative Government is a boon to this country and true it is that Sir Bartle

fregravere a man of vast experience and a good statesman has found out that in village

community we can have public opinion but with all his experience he has lost sight

of our national defects ndash defects which we ourselves know and which no foreigner

can catch at a glancerdquo36

भारतद इस बात को िकर कतनकतशचत ह दक िोकरत और परकततकतनकतधरिक सासथाओ क बहतर कतवकास क कतिए

सीध-सीध कतवदशी रॉडि कभी सफि नही हो पायगा ऐसा इसकतिए कयादक हरारी आपसी कतवकतभननताओ

और झगड़ो को कोई बाहरीकतवदशी सतता कभी भी परी तरह सरझ नही सकती lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo नार

35भारतद गराथाविी -6 361

36 वही

33

स भारतद का एक दसरा िख इस अागरजी वाि िख क दो साि बाद अपरि सन १८७४ र हररशचनदर

रगजीन र छपा पकतबिक ओकतपकतनयन कया बिा ह इस साफ़ करत हए भारतद िख क आरमभ र ही कहत

ह ldquoपकतबिक ओकतपकतनयन अथामत सब साधारण िोगो की राय कया वसत ह और इसर दकतना जोर ह और

इसक कतिए कया हो सकता ह यह परशन ठहरा तो इसका साधारण उततर यही ह दक यह वह वसत ह जो

सासार को एक कर सकती ह गागा की धरा दफर कतहरािय पर चढ़ा ि जा सकती ह सययम को पकतशचर उगा

सकती ह और चाह तो ईशवर को भी पकड़ क कठपतिी की भााकतत नचा सकती हrdquo37 यह पकतबिक

ओकतपकतनयन lsquoएक रतrsquo होना ह जस अिग अिग चार पतिी िककतड़यो को एक साथ बााध दन स उस

तोड़ना करठन हो जाता ह उसी तरह एक रत होन स बड़ स बड़ा बरी भी हरारा कछ कतबगाड़ नही सकता

बहत स िोगो का रत एक हो तो वह शकति बन जाती ह हिारो आदरी की बकतदध एक हो जाए तो ldquoऐसा

कौन कार ह जो न हो सक तो यह कतसदधाात हआ दक कतनशचय सब िोगो क रत र बड़ी सारथयम ह इसस यह

कतसदध हआ दक बिो स बड़ा बि एक रत ही हrdquo38

आग भारतद कहत ह दक यह जनरत और उसकी शकति हहादसतान क कतिए कोई नई बात नही ह

पराचीन काि र इसक उदाहरण कतरित ह lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo की इस धारणा को भारतद न इकततहास क

अिग-अिग दौर र बनत और कतबगड़त ददखाया सबस पहि चार वणो की िररत पड़ी सब कार को

सचार रप स चिन क कतिए दसर शबदो र कह तो शरर-कतवभाजन की िररत स इसका जनर हआ

lsquoकतहनदओ न अपन गर क कार र इस वणामशरर धमरम को इसी वासत बनाया कतजस र उन क दकसी कार र

कोई हजम न हो और उनिोगो न सासार क सब कारो र चार कार रखय सरझrsquo धरम कतवदया और किाओ का

कार िड़ाई और राजय परबाध का कार वयापार और धन और सब िोगो की सवा और रजदरी इन चार

कारो की सवयवसथा वािा वणामशरर दरअसि lsquoएक रतrsquo कतहनद वयवसथा या lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo थी पर

कािाातर र इस lsquoएकरतrsquo क भीतर जाकततवयवसथा कठोर हो गयी और िाहमण और शदर दोनो एक दसर क

कतखिाफ हो गए एकरत र कतवचछद पदा होन स कतहनद शकति करिोर हो गयी भारतद क अनसार आपस

का यह झगड़ा बड़ा कतवनाशकारी साकतबत हआ पकतबिक ओकतपकतनयन क कतबना वयाकतभचार और जयादकततयो का

अाधर था आग चि कर जनो क जरान र दफर lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo न जोर पकड़ा बकतलक भारतद जोर

दकर कहत ह दक जनो क रत की उततपकततत ही lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo स हई ldquoकतहनदओ क जब नाश क ददन

जब कतनकट आय तो आपस र परसपर बड़ा कतवरोध खड़ा हआ और उस काि र िाहमणो का बड़ा जोर था

वरन य और वणो पर जयादती करत थ तो वशय और कषकततरयो की रकतत इनस दफर गयी और बाब वािी बड़ी

37गराथाविी- 678

38वही

34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

36

कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

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उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

38

ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 25: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

25

भारतद कतिखत ह ldquo दखो आज वसात पाचरी ह इसस बहत स िोग आर क रौर वा फिो क गचछ िकर

तरस कतरिन आवग तो र भी यह एक फिो की वजयाती रािा बना कर िाया हा अागीकार करो वजयाती

रािा बनान का यह हत ह दक वनरािा होगी तो होिी क खि र अरझगी और इसक कतसवाय इस वजयाती

स कतनशचय करक जञानाददक को जय करना ह पर पयार बहत साभि कर यह रािा पहरना टट न जाए

कयोदक सत कचचा ह और ककतियाा तािी और कोरि ह इस स कमहिान का भी भय ह जो हो इस वसात

पाचरी को तयोहारी रझ यही दो दक इस सतयानाशी lsquoअहरrsquo िहमवाद lsquo को पणमरप स नाश करक और भी

सब बातो र इस नव-वसात र भारतवषम की सब आपकतततयो का बस अात करो और अपन भिो क कतचतत र

नव पलिव दफर स िहिह करो जो सदा एक रस रहrdquo28 lsquoएकरसrsquo भकति क कतिए जररी ह दक जञानवाद

अहर िहमवाद को जड़ स उखाड़ फ का जाय कषण को अरपमत अपनी वजयाती रािा स भारतद जञानाददक

को जय करना चाहत ह एक ओर यह पकतषटरागी परापरा क lsquoवीर वषणवrsquo भारतद का परर कतनवदन ह दसरी

ओर lsquoनव-वसातrsquo र भारतवषम की सब आपकतततयो को नाश करन की सारथयम रपी lsquoउपहारीrsquo का साकलप भी

ह lsquoभारतद भारतवषम की सब आपकतततयोrsquo को दर करन की राह र एक बड़ी बाधा अित क जञानवाद को

रानत ह भकति का lsquoएकरसrsquo पहि भी इसक परभाव स ररझाता रहा ह भारतद का साकलप सापरदाय क

परान कतवरोधो क बावजद बन रहन वाि इस अितवाद का पणम सफाया करन का ह जबतक यह न कतरटगा

परररिा भकति क lsquoकमहिान का भयrsquo बना रहगा भकति सतरो र उपासना कााड को परर कतसकतदध का हत

बताया गया था पर भारतद दख रह थ दक उपासना कााड का परचार कतवरि हो गया ह इसी परचार क

कतनकतरतत उनहोन इन सतरो का भाषा र अथम परचार दकया था १८७३ र ही हररशचादर रगजीन का एक

समपादकीय कतनकिा कतजसका शीषमक था- lsquoभकति जञानाददक स कयो बड़ी हrsquo इस िख र भी उपासना रागम

की रहतता का परकततपादन दकया गया ह तकम और जञान को करम की शकतदध और उपासन की परर कतसकतदध क

रासत र कवि एक चरण बताया गया ह वसधा डािकतरया न भारतद क आराकतभक साापरदाकतयक परचार

परसार क कायो र कतनगमकतनयो को बाहर रखन का उपकर नोट दकया था29 यहाा कतनगमकतनए कबीर आदद lsquoभि

और जञानीrsquo कतिबरिो क सरथमक ददखाए गए ह वषणव भकति क राषटरीय चररतर र य बाहर नही थ उनकी

एकता का आधार उनक lsquoकतिबरि रिrsquo र ह सावमजकतनक उचच भाव का सापादन और भकति इन दोनो क साथ

अित वदााती या जञानाददक- सनातनी परापरा क कतवदरोकतहयो की जगह भी कतिबरि दि पाकतथयो र थी

कतिबरि वाि ही झगड़ क कतनपटार की अजी पररशवर को दन गए थ पर पररशवर अपनी

परतीकातरक हो गयी कतसथकतत स खजिाय हए थ यह सवोचच अदाित थी पर साथ ही साथ शकतिहीन

28 भारतद गराथाविी खाड- ५ पषठ ११३

29 वसधा डािकतरया पषठ ३४२

26

राषटराधयकष की कलपना भी कतजस कतहनद सवगम क य राषटराधयकष ह वहाा दकसी दकसर की सलफ गवनमरट चनन

की परणािी आ जान स ईशवर की एकाकतधकारी शकतियाा कतछन गयी ह िोग जनरत कतनरामण क िारा सही

और गित की पहचान करन िग थ इसकतिए थोड़ा खजिाय तो रहत ही होग lsquoअब कौन हरको पछता

ह तर जानो सवगम जानrsquo परनत साकट गहरा था यदयकतप कतिबरि िोगो की सभा भी धरधार स जर

रही थी पर काजरवरटव दि पाकतथयो की सरकार र पठ थी दवता सब भी उनक साथ थ इसकतिए पररशवर

क पास जररी नयाय का परशन उठाया गया था नयाय दक इन दो रहापरषो को सवगम र जगह कतरिनी

चाकतहए या नही सराज र इनक नकततक उचच आदशो क अवरलयन का परचार काजरवरटव कर रह ह इस

परचार क कारण जनता अपनी निरो स पहचानन र सकषर नही ह ऐसी कतसथकतत सवगम र पहि नही आई

थी नई कतसथकततयो क नए रानदाड कया होग िाकतहर ह नयाय और नकततकता को एक वकतशवक सवीककतत

चाकतहए इसकतिए पररशवर न इस कतवषय पर कतवचार क कतिए जो ककतरटी चनी वह गौर करन िायक ह इस

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo र ldquoराजा राररोहन राय वयास दव टोडररि कबीर परभकतत कतभनन-कतभनन रत क िोग चन

गए रसिरानी- सवगम स क lsquoइरारrsquo दकसतानी स िथर जनी स पारसनाथ बौदधो स नागाजमन और

अफीका स कतसटोवायो क बाप कोrdquo चना गया कतहनद सवगम स नवजागरण क अगरदत वयासदव जस

बौकतदधकिखक टोडररि जस राजनीकततजञ और धरम-ररमजञ कबीर जस जञानी-भि पराचीनो र कवि वयास

दव ह बाकी दो lsquoरधयकािrsquo क और एक lsquoआधकतनकrsquo काि क वयकति ह उधर यरोपीय नवजागरणधरमसधार

क परणता िथर को भी बिाया गया ह और बौदधो की तरफ स परर कतनषधवादी नागाजमन भी ह पर य

अफीका क कतसटोवायो धरो की अकतसरता क साथ-साथ यह अफ़ीकी सवगम कतनकतशचत रप स अफीका की छकतव

पराचीन आददवासी सासककतत वाि एक lsquoकािrsquo रहादश क रप र गढ़ी गयी थी यह अफ़ीकी सवगम साभवतः

आददवासी धाररमक रानयताओ की ओर इशारा करता ह यह भी धयान दन िायक ह दक राजा राररोहन

राय िथर और कबीर इन तीनो क साथ lsquoनवजागरणrsquo की कोई न कोई पररकलपना ठठ सरकािीन कतवरशो

क क दर र भी ह कई अथो र अकबर िारा आयोकतजत होन वािी lsquoसिह-ए-किrsquo जसी धरम सभाओ की एक

रोहक कलपना भी भारतद को रही होगी टोडररि की उपकतसथकतत अकारण नही ह

अकबर को िकर भारतद की इकततहासदकतषट कसी थी इसकी एक झिक हर १८८४ र छपी उनकी

lsquoबादशाह दपमणrsquo की भकतरका र ददखती ह इस गरनथ र उन िोगो का चररतर-कतचतरण दकया गया था ldquoकतजनहोन

हरिोगो को गिार बनाना आरमभ दकया इसर उन रसत हाकतथयो क छोट-छोट कतचतर ह कतजनहोन भारत क

िहिहात हए करिवन को उजाड़कर-पर स कचिकर कतछनन-कतभनन कर ददया रहमरद रहरद अिाउददीन

अकबर और औरागजब आदद इनर रखय ह पयार भोि कतहनद भाइयो अकबर का नार सनकर आपिोग

चौदकए रत यह ऐसा बकतदधरान शतर था दक उसक बकतदधबि स आजतक आपिोग उसको कतरतर सरझत ह

27

दकनत वह ऐसा ही नही उसकी नीकतत अागरजो की भााकतत गढ़ थी रखम औरागजब उसको सरझा नही नही तो

आज ददन हहादसतान रसिरान होता कतहनद-रसिरान र खाना-पीना बयाह-शादी कभी चि गयी होती

अागरजो को जो बात नही सझी वह इसको सझी थीrdquo30 कतनकतशचत रप lsquoबकतदधरानrsquo दशरन स सीखन को बहत

कछ कतरिता ह अकबर की दीन-ए-इिाही क परयोग स भारतद भी बहत कछ सीख रह थ रधयकािीन

इकततहास क बार र रकतसिर शतर की छकतव का कतनरामण पराचयकतवदयाकतवदो क िारा दकया जा रहा था इकतियट

आदद इकततहासकारो न जो दकतषट कतवककतसत की उसका परभाव बहत गहरा था पर इस इकततहासिखन क साथ

साथ भारतद क कछ दशी सरोत भी थ अिग-अिग रहापरषो की चररताविी कतिखन की पररणा भारतद न

कतजतना अपनी वषणव भकति की परापरा स पाया था उतना ही इसिारी इकततहास िखन की परापरा स भी

lsquoबादशाहदपमणrsquo की भकतरका र भारतद कतिखत ह ldquoरर पररातारह राय कतगरधरिाि साहब जो यवनी कतवदया

क बड़ भारी पाकतडत और काशीसथ ददलिी क शाहजादो क रखय दीवान थ उनकी इचछा स ददलिी क परकतसदध

कतविान सययद अहरद न एक ऐसा चक बनाया था कतजसर तरर स िकर शाह आिार तक सब बादशाहो क

नार आदद कतिख थ उस फारसी गरनथ स बहत सी बात इसर िी गयी ह इस कारण तरर पवम क बादशाहो

का वणमन इतना परा नही ह कतजतना तरर क पीछ ह दफर रर रातारह राय कतखरोधरिाि न बहादर शाह

क काि क आरमभ तक शष वतत सागरह दकयाrdquo31

अरणदव जी अपन एक िख र भारतद क आराकतभक अकबर परर का कतिक दकया ह १८७२-७४ क

आसपास भारतद अकबर को रहान शासक रानत थ जबदक औरागजब को कतहनदओ का दशरन नाबर एक

भारतद न औरागजब की तिना र अकबर की रहानता को परराकतणत करन क कतिए रारदास कछवाह क एक

शलोक को अपना आधार बनाया ह इस शलोक का भावाथम भारतद क शबदो र इस परकार ह ldquoजो सरदर स रर

तक पथवी को पािता ह जो रतय स गउओ की रकषा करता ह कतजसन तीथम और वयापार स कर छड़ा ददए

कतजसन पराण सन जो सयम का नार जपता जो योग धारण करता ह और गागाजि छोड़कर पानी नही

पीता उस जिािददीन की जय अाग वाग कहिाग कतसिहट कततपरा कारत (कारटी) काररप अाध कणामटक

िाट दरकतवड़ रहाराषटर िारका चोि पााडया भोट रारवाड़ उड़ीसा रलि खरासान का दहार जमब काशी ढाका

बिख बदखशाा और काबि को जो शासन करता ह ककतियग की रकतहरा स घटत हए वद गउ कतिज और

धरम की रकषा को सगन शरीर कतजसन धारण दकया ह उस अपररय परष अकबर शाह को हर नरसकार करत

हrdquo32 यही अकबर १८८४ र औरागजब स जयादा शाकततर और बकतदधरान शतर र बदि गया lsquoकािचकrsquo क

कतनकतहताथो र यह फरबदि भारतद पर रकतसिर कतवदशीपन और कतहनद शतरता क समपणम बिॉक बनान की

30 बादशाह दपमण भारतद गराथाविी खाड-६

31 वही

32 httpsamalochanblogspotin201209blog-post_9html

28

रणनीकतत क दबाव क कारण था और lsquoपरावकततrsquo की कतरथकीयता र भी कतहनदओ को lsquoरहारोहनासतरrsquo क सहार

पहि भी वश र दकया गया था यह एक बारीक चाि थी अकबर की इस चाि को अागरज भी नही सरझ

पा रह थ भारतद की यह परकततदकया औपकतनवकतशक इकततहासिखन क दबाव र थी १८७३ र जब भारतद

न कतशवपरसाद की दकताब lsquoइकततहासकततकतररनाशकrsquo क तीसर खाड की आिोचना की थी तो उनक सारन

रकतसिर शासन की बबमरता और अागरजी राज क सशासन का कतशवपरसाद िारा ककतलपत आखयान था १८८४

र समपणम रकतसिर काि अनधकार यग र बदि गया कततकतररनाशक क पहि खाड र बाब कतशवपरसाद न भी

अकबर की रजहबी उदारता और साराकतजक सधारो की बड़ाई की थी इस परकार हर दख सकत ह दक

ऐकततहाकतसक िखन र पकष और कतवपकष की पनरावकततत एक बाद घर र उिझी हई थी इनक सारन रकतसिर

कतवरोध और अागरजी शासन क कतवरोध का एक कतवसागत फर था और िखक उसर अपनी फौरी जररतो क

कतहसाब स कतरतर और दशरन वािा इकततहास कतिखता था इकततहास ठठ राजनीकततक ततकाि क वशीभत था

जो भी हो धाररमक उदारता और सिह-ए-कि का परयोग एक कतशकषापरद परयोग था यह कतवकतभनन

रतो या कतवशवासो क बीच lsquoजनरतrsquo बनान का एक रधयकािीन परयोग था भारतद lsquoजनरतrsquo क परयोग को

इस तरह दखत थ रानो यह lsquoचािrsquo अगर कारयाब हो जाती तो lsquoआज क ददन हहादसतान रसिरान होताrsquo

भारतद क सारन सरसया वही थी बस वह कवि यह चाहत थ दक कतहनदसतान lsquoकतहनदrsquo हो जाय कतहनद

अथामत वषणव हो जाय वषणवता भारतद क कतिए हहादसतान का नया lsquoसिह-ए-किrsquo था इसकतिए कछ

सावमजनीन रलयो की तिाश उनह भी थी कतसिकट ककतरटी क उपरोि रमबर lsquoएकसअफीकतशयोrsquo रमबर थ

रोर क परान हररकिस जस दवता कतजनहोन धरती स साबाध तोड़ ददया ह व िोग तथा उनही क जस

पारकतसयो क lsquoजरदशतजीrsquo को कोरसपोहडाग ऑनररी रमबर बनाया गया य धरम क रप र रतपराय रतो क

परकततकतनकतध थ ककतरटी न जो ररपोटम तयार की उसका ररम भारतद न ददया ह यह ररम उनक रकतडकि वषणव

पकष का रत था कतिबरि दि और काजरवरटव दि क अपन पकषो स इतर यह नरनायक तीसरा पकष वषणवो

की तरफ स सनाया गया था रकतडकि वषणवो की तरफ स भारतद इस धाररमक आनदोिन क भीतर अपना

ही पकष रखत हए इसका ररम कतिख रह थ ldquoहरिोगो की समरकतत र इन दोनो परषो न परभ की रागिरयी

सकतषट का कछ कतवघन नही दकया वराच उसर सख और सातकतत अकतधक हो इसी र पररशरर दकयाrdquo कतहनद सराज

सधार क परयासो का ररम बतात हए सबस पहि धयान सतरी सधारो पर ददया गया ह साराकतजक करीकततयो

की कतशकार रकतहिाओ क परकतत जो दकतषट उभरकर सारन आती ह उसक रि र धरम की रीकतत स यौन

रयामदाओ की अवयवसथा को दफर स रयामददत करन की चषटा ह कतसतरयो क करागम पर जान का पहिा कारण

ह रनराना परष धरमपवमक न पाना यह कतववाह सासथा की कतवककततयो की आिोचना थी जहाा बाि कतववाह

कतवधवा कतववाह आदद की तरफ इशारा ह धयान रखना चाकतहए दक यहाा बरि कतववाह क बदि कतसतरयो िारा

29

lsquoरनराना वरrsquo न चन पान का उलिख ह गभमनाश और बाि हतया क कतखिाफ सधार परयास दसरा

रहतवपणम योगदान ह कतववाह सासथा बीच र भी भाग की जा सकती ह इसकी सवीककतत ह कनया क कतहत र

अातरजातीय कतववाह की सवीककतत ह एक रहतवपणम बात गरओ और पाकतडतो क वयाकतभचार क साबाध र ह

भारतद क सारन पकतषटरागी रहातो और गरओ क वयाकतभचार का अनभव भी इसर शाकतरि ह

१८७४ र ककतववचन सधा र भारतद की एक रटपणणी छपी थी lsquoगर को कसा होना चाकतहएrsquo इसक अिावा

दो वषम पहि lsquoगर और रहातrsquo नार स भी एक रटपणणी कतिखकर वषणव पाडो-परोकतहतो की खिकर

आिोचना की गयी थी तिवार जी न कतिखा ह दक राददरो क भीतर कतसतरयो का यौन शोषण और वयाकतभचार

इतना भीषण था दक दयानाद भारतद क पकतषट सापरदाय को lsquoकषठी सापरदायrsquo कहत थ १८६० क आरमभ र ही

वषणव गोसाइयो क अनाचार और यौन शोषण क कतखिाफ बमबई र एक बड़ा आनदोिन पकतषटरागी

करसनदास रि जी क नततव र हो चका था वषणव बकतनया पषठभकतर स आय करसनदास जी उन नौजवानो

र थ कतजनहोन एकतिफ सटन कॉिज स आधकतनक कतशकषा परापत की थी गोसाइयो और रहाराजो िारा अपन

lsquoसमपरदाय की बह बरटयोrsquo क साथ होन वाि अतयाचार क कतखिाफ उनहोन िख कतिख और समपरदाय क

इकततहास को नए कतसर स सारन रखा पण स आए जदनाथ वजरतन जी रहाराज न करसनदास जी पर

रानहाकतन का रकदरा दायर कर ददया इसी रक़दर स वषणव रहातो की कई सारी बात जनता क सारन

परतयकष हई तिवार जी न इस lsquoरहाराज िाइबि कसrsquo को भारतीय नवजागरण र वषणव गोसाइयो क

दराचार और यौन शोषण क कतखिाफ हआ सबस बड़ा आनदोिन कहा ह भारतद पर इसका बहत परभाव

था यह कस १८६० र हआ था एक दशक बाद जब भारतद सापरदाय क कायो र रत थ उसी सरय कतिख

रह थ ldquoराददर कया होत ह रानो कतसतरयो की खान ह जसी चाकतहए िीकतजय- वराच अचछी सतरी भी वहाा जाकर

कतबगड़ जाती ह आशचयम यह ह दक कतजनको व िोग बटी कहत ह और जो उनक परिोक क रधयसथ ह और

कतजनको वो दीकषा दत ह उन कतसतरयो की ओर व आप ही बरी दकतषट स दखत ह ओर रर पयार कतहनदओ तर

इनक जाि र कब तक फा स रहोग और कया तरको यही सासार स बचावग और इनही क भरोस तरको

भगवान कतरिगाrdquo33

राददरो क धन-ऐशवयम और वयाकतभचार र डब जीवन क जीवात कतचतर हर बनारस क रखाकतचतर lsquoपरर

जोकतगनीrsquo क अिावा lsquoकाशी क छायाकतचतर क दो बर-भि फोटोगराफrsquo र भी कतरित ह यहाा भारतद का वयागय

अपन वषणव सापरदाय की आतरािोचना स सदकय ह lsquoपरर योकतगनीrsquo नाटक र आन वािा चररतर रारचादर

खद भारतद ही थ नाटक का सतरधार कहता ह दक भारतवषम की दीन हीन गकतत क कारण उसका तो

कतवशवास ही ईशवर स उठन िगा ह नाटक क पहि ही दशय र भारतद हर राददर क भीतर कतिए चित ह

33 वसधा डािकतरया िारा उदधत पषठ- ३३७

30

जहाा राददर र कार करन वािा साधारण टहिआ झपरटया हर ददखाई दता ह पजारी बाब अभी तक नीद

स नही जाग ह कयोदक आधी रात तक lsquoबठ क ही-ही-ठी-ठी करा चाह दफर सबर नीद कस खिrsquo कतनकतशचत

रप स यह टहिआ सबह सवर ही राददर र हाकतिर ह िदकन दवता अभी राददर र सोय ह रारचादर

परदशी ह काशी र बाहर स आय ह छकक जी और राखनदास इस रारचादर की आिोचना करत ह इनक

सावादो स पता चिता ह दक बाब रारचादर क यहाा ददन रात नाच गाना हआ करता ह और उनको अपनी

कतवदया का घराड ह दो चार ककतवतत भी बना ित ह पर lsquoककतवतत बनाव स का होव और ककतवतत बनावन कछ

अपन िोगन का कार थोर हय ई भााटन का कार हयrsquo छकक जी कहत ह दक अपन रागम का उनह कछ जञान

तो ह नही बस दो चार बात इधर उधर स सनकर कछ lsquoदकसतानी रतrsquo सीखकर पाकतडत बन दफरत ह

कतनकतशचत रप स य भारतद पर िगन वाि आरोप थ राददर र सवारी धनदास वकतनतादा बभकतकषत पाकतडत

आदद धरम क ठकदार ह इनकी पतनशीि सासककतत को दखकर रारचादर का दःख इन शबदो र वयि होता ह

lsquoहा कया इस नगर की यही दशा रहगी जहाा क िोग ऐस रखम ह वहाा आग दकस बात की वकतदध की

साभावना करrsquo lsquoवददकी हहासा हहासा न भवकततrsquo जस शरआती नाटको र भी करमकााडी परोकतहतवाद की

आिोचना की गयी ह राजा और परोकतहत कतरिकर वहाा जनता का शोषण करत ह जआ रददरा और

रथन की ऐययाश सासककतत क परतीक परोकतहतो का काजरवरटव दि इन परहसनो र रतम होता ह कतचतरगपत यर

स कहत ह ldquoरहाराज य गर िोग इनक चररतर का कछ न पकतछए कवि दमभाथम इनका कततिक रदरा और

ठगन क अथम इनकी पजा कभी भकति स ररतम को दाडवत न दकया होगा पर राददर र जो कतसतरयाा आयी उनको

सवमदा तकत रह रहाराज इनहोन अनको को कताथम दकया ह और इस सरय तो र lsquoशरीरारचनदर जी का

शरीकषण का दास हाrsquo पर जब सतरी सारन आव तो उसस कहग lsquoर रार तर जानकी र कषण तर गोपीrsquo और

कतसतरयाा भी ऐसी रखम दक दफर इन िोगो क पास जाती हrdquo34

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo की ररपोटम र सतरी सधारो क कायो की रहतता बतान क बाद जाकतत वयवसथा पर

इन सधारको का परहार कयो जररी था इस बताया गया ह कठोर जाकतत बनधनो क चित कस हर साि

जाकतत-बाहय होकर जाकतत र वापस आन क दकसी उपाय को न जान lsquoहजारो रनषय आयम पाकति स हर साि

छटत थ उसको इनहोन रोकाrsquo इस परकार इन सधारको न lsquoआयमधरमrsquo क भीतर जो पररवतमन करन चाह

उसस आयो की एकता दफर स बहाि हो गयी इसक अिावा अाधकतवशवासो को इनहोन दर दकया यही नही

बकतलक जहाा िोग lsquoरसिरानी पीर पगमबर औकतिया वीर ताकतजया गाजी कतरयाा कतजनहोन बड़ी ररतम तोड़कर

और तीथम पाटकर आयम धरम कतवधवास दकयाrsquo उनको भी पजन िग थ और lsquoकतवशवास तो रानो कतछनाि का अाग

हो रहा थाrsquo ऐसी िजजाजनक कतसथकतत स िोगो को बाहर कतनकािकर lsquoसार आयामवतम को शदध lsquoिायिrsquo कर

34 दख रारकतविास शराम पषठ १३१

31

ददयाrsquo lsquoिायिrsquo कर ददया गया इसका अथम आयम जाकतत को दफर स िायि करन र था आयम जाकतत क भीतर

कतबगाड़ क चित ही कतनमन जाकततयो का बड़ परान पर पिायन था इस इन िोगो न रोका और इनक परताप

स ही अनक छोट और सथानीय धरम-रतो क भीतर जो lsquoरसिरानीrsquo परभाव घस आय थ उनको दफर स lsquoबड़ी

ररतमrsquo की कतनषठा र िाया जा सका इस परकार कतहनद धरम और वणामशरर क परकतत दफर स िोगो को lsquoिायिrsquo

दकया यह lsquoिायकतिटीrsquo भारतद की रकतडकि वषणवता क जनरत क कतिए भी जररी था तिवार जी जब

आयमसराकतजयो की lsquoकााकततकारीrsquo भकतरका ददखात ह तब आयम सराज िारा आयामवतम को िायि बनान वािी

इस भकतरका की साकतशलषटता पर जयादा बात नही करत भारतद दयानाद क कााकततकारी परयासो र lsquoिायिrsquo

बनान की परदकया उसी वक़त दख रह थ और इसी कारण ररपोटम र दयानाद की आिोचना धयान दन िायक

ह सवारी जी न ldquoजाि को छरी स न काटकर दसर जाि ही स कतजसको काटना चाहा इसी स दोनो आपस

र उिझ गए और इसका पररणार गह कतवचछद उतपनन हआrdquo गह कतवचछद का रतिब कतहनद धरम र गह

कतवचछद जबदक कशवचादर सन क बार र कहा गया दक उनहोन जाि काटकर भकति की उचछकतित िहरो का

पररषकत पथ परकट दकया इस परकार रकतडकि वषणवता की lsquoअनयताrsquo और परररिक भकति क परशसत पथ क

सवीकार का कतनषकषम कतवचार सभा का भी कतनषकषम था धयान दन िायक ह दक कशवचादर की आिोचना उनक

कतचतत कतवकषप क कारण की गयी थी जहाा lsquoईसारसीह आदद उनस कतरित हrsquo य एक दकसर का इिहारी

अनभव था कतजस भारतद अपनी वषणवता स बाहर रखत ह ईशवर न इस ररपोटम पर अपना रत सरकतकषत

रख कतिया और भारतद कतिखत ह ldquoइसको दख कर इस पर कया आजञा हई और व िोग कहाा भज गए यह

जब कर भी वहाा जायग और दफर िौट कर आ सक ग तो पाठक िोगो को बतिावग या आप िोग कछ

ददन पीछ आप ही जानोगrdquo

३ जनरत और वषणवता

ककतववचन सधा ९ राचम १८७२ र भारतद न lsquoPublic Opinion In Indiarsquo नार स अागरजी र

एक िख परकाकतशत दकया िख र उनहोन कहा दक कई सददयो दक दासता क बाद भारतवषमहहादसतान अब

जाकर कतिरटश राषटर क सवोचच कतनयातरण र आया ह दश धीर-धीर सभयता और परबोधन की पकतशचरी दकरणो

क सहार दरन और कशासन क रतय-तलय कतनदरा स जाग रहा ह कतिरटश शासन की परगकततशीि नीकततयो का

परभाव यहाा की बहरपी आबादी पर पड़ रहा ह

ldquoBut in this progressive state national energy and zeal sympathy and

disintiredness are waiting to make both the conqueror and the conquered to act in

32

concert and in harmony and hence we have the broad distinction of white and

black still But in this country many are the blemishes that adhere to us to be

eradicated and many are the shortcomings that are hovering around us to be done

away with before we can have a public opinion here in its true senserdquo35

गोर और काि क बड़ भद को छोड़ कर कतवजता अागरजो और भारतीयो क बीच एक सराजन तो बन गया ह

पर अनदरनी ददककत अभी भी राह बाए खड़ी ह रौका ह दक इस परगकततशीि कतसथकतत का फायदा उठा कर हर

एक सचच जनरत का कतनरामण कर सचच िोकरत क कतनरामण र अादरनी बाधाएा कया थी भारतद न इस

आग सपषट करत हए कतिखा-

ldquoRace antagonism rivalry and mutual misunderstanding are the favourite

occupations of the aristocratic class Want of confidence among all classes of men

are the prevailing characteristic of the nation and above all multifarious castes and

creeds with there numerous forms of religion and local habits and customs which all

combined have kept the progressive policy at a stand still True it is that a

representative Government is a boon to this country and true it is that Sir Bartle

fregravere a man of vast experience and a good statesman has found out that in village

community we can have public opinion but with all his experience he has lost sight

of our national defects ndash defects which we ourselves know and which no foreigner

can catch at a glancerdquo36

भारतद इस बात को िकर कतनकतशचत ह दक िोकरत और परकततकतनकतधरिक सासथाओ क बहतर कतवकास क कतिए

सीध-सीध कतवदशी रॉडि कभी सफि नही हो पायगा ऐसा इसकतिए कयादक हरारी आपसी कतवकतभननताओ

और झगड़ो को कोई बाहरीकतवदशी सतता कभी भी परी तरह सरझ नही सकती lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo नार

35भारतद गराथाविी -6 361

36 वही

33

स भारतद का एक दसरा िख इस अागरजी वाि िख क दो साि बाद अपरि सन १८७४ र हररशचनदर

रगजीन र छपा पकतबिक ओकतपकतनयन कया बिा ह इस साफ़ करत हए भारतद िख क आरमभ र ही कहत

ह ldquoपकतबिक ओकतपकतनयन अथामत सब साधारण िोगो की राय कया वसत ह और इसर दकतना जोर ह और

इसक कतिए कया हो सकता ह यह परशन ठहरा तो इसका साधारण उततर यही ह दक यह वह वसत ह जो

सासार को एक कर सकती ह गागा की धरा दफर कतहरािय पर चढ़ा ि जा सकती ह सययम को पकतशचर उगा

सकती ह और चाह तो ईशवर को भी पकड़ क कठपतिी की भााकतत नचा सकती हrdquo37 यह पकतबिक

ओकतपकतनयन lsquoएक रतrsquo होना ह जस अिग अिग चार पतिी िककतड़यो को एक साथ बााध दन स उस

तोड़ना करठन हो जाता ह उसी तरह एक रत होन स बड़ स बड़ा बरी भी हरारा कछ कतबगाड़ नही सकता

बहत स िोगो का रत एक हो तो वह शकति बन जाती ह हिारो आदरी की बकतदध एक हो जाए तो ldquoऐसा

कौन कार ह जो न हो सक तो यह कतसदधाात हआ दक कतनशचय सब िोगो क रत र बड़ी सारथयम ह इसस यह

कतसदध हआ दक बिो स बड़ा बि एक रत ही हrdquo38

आग भारतद कहत ह दक यह जनरत और उसकी शकति हहादसतान क कतिए कोई नई बात नही ह

पराचीन काि र इसक उदाहरण कतरित ह lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo की इस धारणा को भारतद न इकततहास क

अिग-अिग दौर र बनत और कतबगड़त ददखाया सबस पहि चार वणो की िररत पड़ी सब कार को

सचार रप स चिन क कतिए दसर शबदो र कह तो शरर-कतवभाजन की िररत स इसका जनर हआ

lsquoकतहनदओ न अपन गर क कार र इस वणामशरर धमरम को इसी वासत बनाया कतजस र उन क दकसी कार र

कोई हजम न हो और उनिोगो न सासार क सब कारो र चार कार रखय सरझrsquo धरम कतवदया और किाओ का

कार िड़ाई और राजय परबाध का कार वयापार और धन और सब िोगो की सवा और रजदरी इन चार

कारो की सवयवसथा वािा वणामशरर दरअसि lsquoएक रतrsquo कतहनद वयवसथा या lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo थी पर

कािाातर र इस lsquoएकरतrsquo क भीतर जाकततवयवसथा कठोर हो गयी और िाहमण और शदर दोनो एक दसर क

कतखिाफ हो गए एकरत र कतवचछद पदा होन स कतहनद शकति करिोर हो गयी भारतद क अनसार आपस

का यह झगड़ा बड़ा कतवनाशकारी साकतबत हआ पकतबिक ओकतपकतनयन क कतबना वयाकतभचार और जयादकततयो का

अाधर था आग चि कर जनो क जरान र दफर lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo न जोर पकड़ा बकतलक भारतद जोर

दकर कहत ह दक जनो क रत की उततपकततत ही lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo स हई ldquoकतहनदओ क जब नाश क ददन

जब कतनकट आय तो आपस र परसपर बड़ा कतवरोध खड़ा हआ और उस काि र िाहमणो का बड़ा जोर था

वरन य और वणो पर जयादती करत थ तो वशय और कषकततरयो की रकतत इनस दफर गयी और बाब वािी बड़ी

37गराथाविी- 678

38वही

34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

36

कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

37

उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

38

ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 26: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

26

राषटराधयकष की कलपना भी कतजस कतहनद सवगम क य राषटराधयकष ह वहाा दकसी दकसर की सलफ गवनमरट चनन

की परणािी आ जान स ईशवर की एकाकतधकारी शकतियाा कतछन गयी ह िोग जनरत कतनरामण क िारा सही

और गित की पहचान करन िग थ इसकतिए थोड़ा खजिाय तो रहत ही होग lsquoअब कौन हरको पछता

ह तर जानो सवगम जानrsquo परनत साकट गहरा था यदयकतप कतिबरि िोगो की सभा भी धरधार स जर

रही थी पर काजरवरटव दि पाकतथयो की सरकार र पठ थी दवता सब भी उनक साथ थ इसकतिए पररशवर

क पास जररी नयाय का परशन उठाया गया था नयाय दक इन दो रहापरषो को सवगम र जगह कतरिनी

चाकतहए या नही सराज र इनक नकततक उचच आदशो क अवरलयन का परचार काजरवरटव कर रह ह इस

परचार क कारण जनता अपनी निरो स पहचानन र सकषर नही ह ऐसी कतसथकतत सवगम र पहि नही आई

थी नई कतसथकततयो क नए रानदाड कया होग िाकतहर ह नयाय और नकततकता को एक वकतशवक सवीककतत

चाकतहए इसकतिए पररशवर न इस कतवषय पर कतवचार क कतिए जो ककतरटी चनी वह गौर करन िायक ह इस

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo र ldquoराजा राररोहन राय वयास दव टोडररि कबीर परभकतत कतभनन-कतभनन रत क िोग चन

गए रसिरानी- सवगम स क lsquoइरारrsquo दकसतानी स िथर जनी स पारसनाथ बौदधो स नागाजमन और

अफीका स कतसटोवायो क बाप कोrdquo चना गया कतहनद सवगम स नवजागरण क अगरदत वयासदव जस

बौकतदधकिखक टोडररि जस राजनीकततजञ और धरम-ररमजञ कबीर जस जञानी-भि पराचीनो र कवि वयास

दव ह बाकी दो lsquoरधयकािrsquo क और एक lsquoआधकतनकrsquo काि क वयकति ह उधर यरोपीय नवजागरणधरमसधार

क परणता िथर को भी बिाया गया ह और बौदधो की तरफ स परर कतनषधवादी नागाजमन भी ह पर य

अफीका क कतसटोवायो धरो की अकतसरता क साथ-साथ यह अफ़ीकी सवगम कतनकतशचत रप स अफीका की छकतव

पराचीन आददवासी सासककतत वाि एक lsquoकािrsquo रहादश क रप र गढ़ी गयी थी यह अफ़ीकी सवगम साभवतः

आददवासी धाररमक रानयताओ की ओर इशारा करता ह यह भी धयान दन िायक ह दक राजा राररोहन

राय िथर और कबीर इन तीनो क साथ lsquoनवजागरणrsquo की कोई न कोई पररकलपना ठठ सरकािीन कतवरशो

क क दर र भी ह कई अथो र अकबर िारा आयोकतजत होन वािी lsquoसिह-ए-किrsquo जसी धरम सभाओ की एक

रोहक कलपना भी भारतद को रही होगी टोडररि की उपकतसथकतत अकारण नही ह

अकबर को िकर भारतद की इकततहासदकतषट कसी थी इसकी एक झिक हर १८८४ र छपी उनकी

lsquoबादशाह दपमणrsquo की भकतरका र ददखती ह इस गरनथ र उन िोगो का चररतर-कतचतरण दकया गया था ldquoकतजनहोन

हरिोगो को गिार बनाना आरमभ दकया इसर उन रसत हाकतथयो क छोट-छोट कतचतर ह कतजनहोन भारत क

िहिहात हए करिवन को उजाड़कर-पर स कचिकर कतछनन-कतभनन कर ददया रहमरद रहरद अिाउददीन

अकबर और औरागजब आदद इनर रखय ह पयार भोि कतहनद भाइयो अकबर का नार सनकर आपिोग

चौदकए रत यह ऐसा बकतदधरान शतर था दक उसक बकतदधबि स आजतक आपिोग उसको कतरतर सरझत ह

27

दकनत वह ऐसा ही नही उसकी नीकतत अागरजो की भााकतत गढ़ थी रखम औरागजब उसको सरझा नही नही तो

आज ददन हहादसतान रसिरान होता कतहनद-रसिरान र खाना-पीना बयाह-शादी कभी चि गयी होती

अागरजो को जो बात नही सझी वह इसको सझी थीrdquo30 कतनकतशचत रप lsquoबकतदधरानrsquo दशरन स सीखन को बहत

कछ कतरिता ह अकबर की दीन-ए-इिाही क परयोग स भारतद भी बहत कछ सीख रह थ रधयकािीन

इकततहास क बार र रकतसिर शतर की छकतव का कतनरामण पराचयकतवदयाकतवदो क िारा दकया जा रहा था इकतियट

आदद इकततहासकारो न जो दकतषट कतवककतसत की उसका परभाव बहत गहरा था पर इस इकततहासिखन क साथ

साथ भारतद क कछ दशी सरोत भी थ अिग-अिग रहापरषो की चररताविी कतिखन की पररणा भारतद न

कतजतना अपनी वषणव भकति की परापरा स पाया था उतना ही इसिारी इकततहास िखन की परापरा स भी

lsquoबादशाहदपमणrsquo की भकतरका र भारतद कतिखत ह ldquoरर पररातारह राय कतगरधरिाि साहब जो यवनी कतवदया

क बड़ भारी पाकतडत और काशीसथ ददलिी क शाहजादो क रखय दीवान थ उनकी इचछा स ददलिी क परकतसदध

कतविान सययद अहरद न एक ऐसा चक बनाया था कतजसर तरर स िकर शाह आिार तक सब बादशाहो क

नार आदद कतिख थ उस फारसी गरनथ स बहत सी बात इसर िी गयी ह इस कारण तरर पवम क बादशाहो

का वणमन इतना परा नही ह कतजतना तरर क पीछ ह दफर रर रातारह राय कतखरोधरिाि न बहादर शाह

क काि क आरमभ तक शष वतत सागरह दकयाrdquo31

अरणदव जी अपन एक िख र भारतद क आराकतभक अकबर परर का कतिक दकया ह १८७२-७४ क

आसपास भारतद अकबर को रहान शासक रानत थ जबदक औरागजब को कतहनदओ का दशरन नाबर एक

भारतद न औरागजब की तिना र अकबर की रहानता को परराकतणत करन क कतिए रारदास कछवाह क एक

शलोक को अपना आधार बनाया ह इस शलोक का भावाथम भारतद क शबदो र इस परकार ह ldquoजो सरदर स रर

तक पथवी को पािता ह जो रतय स गउओ की रकषा करता ह कतजसन तीथम और वयापार स कर छड़ा ददए

कतजसन पराण सन जो सयम का नार जपता जो योग धारण करता ह और गागाजि छोड़कर पानी नही

पीता उस जिािददीन की जय अाग वाग कहिाग कतसिहट कततपरा कारत (कारटी) काररप अाध कणामटक

िाट दरकतवड़ रहाराषटर िारका चोि पााडया भोट रारवाड़ उड़ीसा रलि खरासान का दहार जमब काशी ढाका

बिख बदखशाा और काबि को जो शासन करता ह ककतियग की रकतहरा स घटत हए वद गउ कतिज और

धरम की रकषा को सगन शरीर कतजसन धारण दकया ह उस अपररय परष अकबर शाह को हर नरसकार करत

हrdquo32 यही अकबर १८८४ र औरागजब स जयादा शाकततर और बकतदधरान शतर र बदि गया lsquoकािचकrsquo क

कतनकतहताथो र यह फरबदि भारतद पर रकतसिर कतवदशीपन और कतहनद शतरता क समपणम बिॉक बनान की

30 बादशाह दपमण भारतद गराथाविी खाड-६

31 वही

32 httpsamalochanblogspotin201209blog-post_9html

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रणनीकतत क दबाव क कारण था और lsquoपरावकततrsquo की कतरथकीयता र भी कतहनदओ को lsquoरहारोहनासतरrsquo क सहार

पहि भी वश र दकया गया था यह एक बारीक चाि थी अकबर की इस चाि को अागरज भी नही सरझ

पा रह थ भारतद की यह परकततदकया औपकतनवकतशक इकततहासिखन क दबाव र थी १८७३ र जब भारतद

न कतशवपरसाद की दकताब lsquoइकततहासकततकतररनाशकrsquo क तीसर खाड की आिोचना की थी तो उनक सारन

रकतसिर शासन की बबमरता और अागरजी राज क सशासन का कतशवपरसाद िारा ककतलपत आखयान था १८८४

र समपणम रकतसिर काि अनधकार यग र बदि गया कततकतररनाशक क पहि खाड र बाब कतशवपरसाद न भी

अकबर की रजहबी उदारता और साराकतजक सधारो की बड़ाई की थी इस परकार हर दख सकत ह दक

ऐकततहाकतसक िखन र पकष और कतवपकष की पनरावकततत एक बाद घर र उिझी हई थी इनक सारन रकतसिर

कतवरोध और अागरजी शासन क कतवरोध का एक कतवसागत फर था और िखक उसर अपनी फौरी जररतो क

कतहसाब स कतरतर और दशरन वािा इकततहास कतिखता था इकततहास ठठ राजनीकततक ततकाि क वशीभत था

जो भी हो धाररमक उदारता और सिह-ए-कि का परयोग एक कतशकषापरद परयोग था यह कतवकतभनन

रतो या कतवशवासो क बीच lsquoजनरतrsquo बनान का एक रधयकािीन परयोग था भारतद lsquoजनरतrsquo क परयोग को

इस तरह दखत थ रानो यह lsquoचािrsquo अगर कारयाब हो जाती तो lsquoआज क ददन हहादसतान रसिरान होताrsquo

भारतद क सारन सरसया वही थी बस वह कवि यह चाहत थ दक कतहनदसतान lsquoकतहनदrsquo हो जाय कतहनद

अथामत वषणव हो जाय वषणवता भारतद क कतिए हहादसतान का नया lsquoसिह-ए-किrsquo था इसकतिए कछ

सावमजनीन रलयो की तिाश उनह भी थी कतसिकट ककतरटी क उपरोि रमबर lsquoएकसअफीकतशयोrsquo रमबर थ

रोर क परान हररकिस जस दवता कतजनहोन धरती स साबाध तोड़ ददया ह व िोग तथा उनही क जस

पारकतसयो क lsquoजरदशतजीrsquo को कोरसपोहडाग ऑनररी रमबर बनाया गया य धरम क रप र रतपराय रतो क

परकततकतनकतध थ ककतरटी न जो ररपोटम तयार की उसका ररम भारतद न ददया ह यह ररम उनक रकतडकि वषणव

पकष का रत था कतिबरि दि और काजरवरटव दि क अपन पकषो स इतर यह नरनायक तीसरा पकष वषणवो

की तरफ स सनाया गया था रकतडकि वषणवो की तरफ स भारतद इस धाररमक आनदोिन क भीतर अपना

ही पकष रखत हए इसका ररम कतिख रह थ ldquoहरिोगो की समरकतत र इन दोनो परषो न परभ की रागिरयी

सकतषट का कछ कतवघन नही दकया वराच उसर सख और सातकतत अकतधक हो इसी र पररशरर दकयाrdquo कतहनद सराज

सधार क परयासो का ररम बतात हए सबस पहि धयान सतरी सधारो पर ददया गया ह साराकतजक करीकततयो

की कतशकार रकतहिाओ क परकतत जो दकतषट उभरकर सारन आती ह उसक रि र धरम की रीकतत स यौन

रयामदाओ की अवयवसथा को दफर स रयामददत करन की चषटा ह कतसतरयो क करागम पर जान का पहिा कारण

ह रनराना परष धरमपवमक न पाना यह कतववाह सासथा की कतवककततयो की आिोचना थी जहाा बाि कतववाह

कतवधवा कतववाह आदद की तरफ इशारा ह धयान रखना चाकतहए दक यहाा बरि कतववाह क बदि कतसतरयो िारा

29

lsquoरनराना वरrsquo न चन पान का उलिख ह गभमनाश और बाि हतया क कतखिाफ सधार परयास दसरा

रहतवपणम योगदान ह कतववाह सासथा बीच र भी भाग की जा सकती ह इसकी सवीककतत ह कनया क कतहत र

अातरजातीय कतववाह की सवीककतत ह एक रहतवपणम बात गरओ और पाकतडतो क वयाकतभचार क साबाध र ह

भारतद क सारन पकतषटरागी रहातो और गरओ क वयाकतभचार का अनभव भी इसर शाकतरि ह

१८७४ र ककतववचन सधा र भारतद की एक रटपणणी छपी थी lsquoगर को कसा होना चाकतहएrsquo इसक अिावा

दो वषम पहि lsquoगर और रहातrsquo नार स भी एक रटपणणी कतिखकर वषणव पाडो-परोकतहतो की खिकर

आिोचना की गयी थी तिवार जी न कतिखा ह दक राददरो क भीतर कतसतरयो का यौन शोषण और वयाकतभचार

इतना भीषण था दक दयानाद भारतद क पकतषट सापरदाय को lsquoकषठी सापरदायrsquo कहत थ १८६० क आरमभ र ही

वषणव गोसाइयो क अनाचार और यौन शोषण क कतखिाफ बमबई र एक बड़ा आनदोिन पकतषटरागी

करसनदास रि जी क नततव र हो चका था वषणव बकतनया पषठभकतर स आय करसनदास जी उन नौजवानो

र थ कतजनहोन एकतिफ सटन कॉिज स आधकतनक कतशकषा परापत की थी गोसाइयो और रहाराजो िारा अपन

lsquoसमपरदाय की बह बरटयोrsquo क साथ होन वाि अतयाचार क कतखिाफ उनहोन िख कतिख और समपरदाय क

इकततहास को नए कतसर स सारन रखा पण स आए जदनाथ वजरतन जी रहाराज न करसनदास जी पर

रानहाकतन का रकदरा दायर कर ददया इसी रक़दर स वषणव रहातो की कई सारी बात जनता क सारन

परतयकष हई तिवार जी न इस lsquoरहाराज िाइबि कसrsquo को भारतीय नवजागरण र वषणव गोसाइयो क

दराचार और यौन शोषण क कतखिाफ हआ सबस बड़ा आनदोिन कहा ह भारतद पर इसका बहत परभाव

था यह कस १८६० र हआ था एक दशक बाद जब भारतद सापरदाय क कायो र रत थ उसी सरय कतिख

रह थ ldquoराददर कया होत ह रानो कतसतरयो की खान ह जसी चाकतहए िीकतजय- वराच अचछी सतरी भी वहाा जाकर

कतबगड़ जाती ह आशचयम यह ह दक कतजनको व िोग बटी कहत ह और जो उनक परिोक क रधयसथ ह और

कतजनको वो दीकषा दत ह उन कतसतरयो की ओर व आप ही बरी दकतषट स दखत ह ओर रर पयार कतहनदओ तर

इनक जाि र कब तक फा स रहोग और कया तरको यही सासार स बचावग और इनही क भरोस तरको

भगवान कतरिगाrdquo33

राददरो क धन-ऐशवयम और वयाकतभचार र डब जीवन क जीवात कतचतर हर बनारस क रखाकतचतर lsquoपरर

जोकतगनीrsquo क अिावा lsquoकाशी क छायाकतचतर क दो बर-भि फोटोगराफrsquo र भी कतरित ह यहाा भारतद का वयागय

अपन वषणव सापरदाय की आतरािोचना स सदकय ह lsquoपरर योकतगनीrsquo नाटक र आन वािा चररतर रारचादर

खद भारतद ही थ नाटक का सतरधार कहता ह दक भारतवषम की दीन हीन गकतत क कारण उसका तो

कतवशवास ही ईशवर स उठन िगा ह नाटक क पहि ही दशय र भारतद हर राददर क भीतर कतिए चित ह

33 वसधा डािकतरया िारा उदधत पषठ- ३३७

30

जहाा राददर र कार करन वािा साधारण टहिआ झपरटया हर ददखाई दता ह पजारी बाब अभी तक नीद

स नही जाग ह कयोदक आधी रात तक lsquoबठ क ही-ही-ठी-ठी करा चाह दफर सबर नीद कस खिrsquo कतनकतशचत

रप स यह टहिआ सबह सवर ही राददर र हाकतिर ह िदकन दवता अभी राददर र सोय ह रारचादर

परदशी ह काशी र बाहर स आय ह छकक जी और राखनदास इस रारचादर की आिोचना करत ह इनक

सावादो स पता चिता ह दक बाब रारचादर क यहाा ददन रात नाच गाना हआ करता ह और उनको अपनी

कतवदया का घराड ह दो चार ककतवतत भी बना ित ह पर lsquoककतवतत बनाव स का होव और ककतवतत बनावन कछ

अपन िोगन का कार थोर हय ई भााटन का कार हयrsquo छकक जी कहत ह दक अपन रागम का उनह कछ जञान

तो ह नही बस दो चार बात इधर उधर स सनकर कछ lsquoदकसतानी रतrsquo सीखकर पाकतडत बन दफरत ह

कतनकतशचत रप स य भारतद पर िगन वाि आरोप थ राददर र सवारी धनदास वकतनतादा बभकतकषत पाकतडत

आदद धरम क ठकदार ह इनकी पतनशीि सासककतत को दखकर रारचादर का दःख इन शबदो र वयि होता ह

lsquoहा कया इस नगर की यही दशा रहगी जहाा क िोग ऐस रखम ह वहाा आग दकस बात की वकतदध की

साभावना करrsquo lsquoवददकी हहासा हहासा न भवकततrsquo जस शरआती नाटको र भी करमकााडी परोकतहतवाद की

आिोचना की गयी ह राजा और परोकतहत कतरिकर वहाा जनता का शोषण करत ह जआ रददरा और

रथन की ऐययाश सासककतत क परतीक परोकतहतो का काजरवरटव दि इन परहसनो र रतम होता ह कतचतरगपत यर

स कहत ह ldquoरहाराज य गर िोग इनक चररतर का कछ न पकतछए कवि दमभाथम इनका कततिक रदरा और

ठगन क अथम इनकी पजा कभी भकति स ररतम को दाडवत न दकया होगा पर राददर र जो कतसतरयाा आयी उनको

सवमदा तकत रह रहाराज इनहोन अनको को कताथम दकया ह और इस सरय तो र lsquoशरीरारचनदर जी का

शरीकषण का दास हाrsquo पर जब सतरी सारन आव तो उसस कहग lsquoर रार तर जानकी र कषण तर गोपीrsquo और

कतसतरयाा भी ऐसी रखम दक दफर इन िोगो क पास जाती हrdquo34

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo की ररपोटम र सतरी सधारो क कायो की रहतता बतान क बाद जाकतत वयवसथा पर

इन सधारको का परहार कयो जररी था इस बताया गया ह कठोर जाकतत बनधनो क चित कस हर साि

जाकतत-बाहय होकर जाकतत र वापस आन क दकसी उपाय को न जान lsquoहजारो रनषय आयम पाकति स हर साि

छटत थ उसको इनहोन रोकाrsquo इस परकार इन सधारको न lsquoआयमधरमrsquo क भीतर जो पररवतमन करन चाह

उसस आयो की एकता दफर स बहाि हो गयी इसक अिावा अाधकतवशवासो को इनहोन दर दकया यही नही

बकतलक जहाा िोग lsquoरसिरानी पीर पगमबर औकतिया वीर ताकतजया गाजी कतरयाा कतजनहोन बड़ी ररतम तोड़कर

और तीथम पाटकर आयम धरम कतवधवास दकयाrsquo उनको भी पजन िग थ और lsquoकतवशवास तो रानो कतछनाि का अाग

हो रहा थाrsquo ऐसी िजजाजनक कतसथकतत स िोगो को बाहर कतनकािकर lsquoसार आयामवतम को शदध lsquoिायिrsquo कर

34 दख रारकतविास शराम पषठ १३१

31

ददयाrsquo lsquoिायिrsquo कर ददया गया इसका अथम आयम जाकतत को दफर स िायि करन र था आयम जाकतत क भीतर

कतबगाड़ क चित ही कतनमन जाकततयो का बड़ परान पर पिायन था इस इन िोगो न रोका और इनक परताप

स ही अनक छोट और सथानीय धरम-रतो क भीतर जो lsquoरसिरानीrsquo परभाव घस आय थ उनको दफर स lsquoबड़ी

ररतमrsquo की कतनषठा र िाया जा सका इस परकार कतहनद धरम और वणामशरर क परकतत दफर स िोगो को lsquoिायिrsquo

दकया यह lsquoिायकतिटीrsquo भारतद की रकतडकि वषणवता क जनरत क कतिए भी जररी था तिवार जी जब

आयमसराकतजयो की lsquoकााकततकारीrsquo भकतरका ददखात ह तब आयम सराज िारा आयामवतम को िायि बनान वािी

इस भकतरका की साकतशलषटता पर जयादा बात नही करत भारतद दयानाद क कााकततकारी परयासो र lsquoिायिrsquo

बनान की परदकया उसी वक़त दख रह थ और इसी कारण ररपोटम र दयानाद की आिोचना धयान दन िायक

ह सवारी जी न ldquoजाि को छरी स न काटकर दसर जाि ही स कतजसको काटना चाहा इसी स दोनो आपस

र उिझ गए और इसका पररणार गह कतवचछद उतपनन हआrdquo गह कतवचछद का रतिब कतहनद धरम र गह

कतवचछद जबदक कशवचादर सन क बार र कहा गया दक उनहोन जाि काटकर भकति की उचछकतित िहरो का

पररषकत पथ परकट दकया इस परकार रकतडकि वषणवता की lsquoअनयताrsquo और परररिक भकति क परशसत पथ क

सवीकार का कतनषकषम कतवचार सभा का भी कतनषकषम था धयान दन िायक ह दक कशवचादर की आिोचना उनक

कतचतत कतवकषप क कारण की गयी थी जहाा lsquoईसारसीह आदद उनस कतरित हrsquo य एक दकसर का इिहारी

अनभव था कतजस भारतद अपनी वषणवता स बाहर रखत ह ईशवर न इस ररपोटम पर अपना रत सरकतकषत

रख कतिया और भारतद कतिखत ह ldquoइसको दख कर इस पर कया आजञा हई और व िोग कहाा भज गए यह

जब कर भी वहाा जायग और दफर िौट कर आ सक ग तो पाठक िोगो को बतिावग या आप िोग कछ

ददन पीछ आप ही जानोगrdquo

३ जनरत और वषणवता

ककतववचन सधा ९ राचम १८७२ र भारतद न lsquoPublic Opinion In Indiarsquo नार स अागरजी र

एक िख परकाकतशत दकया िख र उनहोन कहा दक कई सददयो दक दासता क बाद भारतवषमहहादसतान अब

जाकर कतिरटश राषटर क सवोचच कतनयातरण र आया ह दश धीर-धीर सभयता और परबोधन की पकतशचरी दकरणो

क सहार दरन और कशासन क रतय-तलय कतनदरा स जाग रहा ह कतिरटश शासन की परगकततशीि नीकततयो का

परभाव यहाा की बहरपी आबादी पर पड़ रहा ह

ldquoBut in this progressive state national energy and zeal sympathy and

disintiredness are waiting to make both the conqueror and the conquered to act in

32

concert and in harmony and hence we have the broad distinction of white and

black still But in this country many are the blemishes that adhere to us to be

eradicated and many are the shortcomings that are hovering around us to be done

away with before we can have a public opinion here in its true senserdquo35

गोर और काि क बड़ भद को छोड़ कर कतवजता अागरजो और भारतीयो क बीच एक सराजन तो बन गया ह

पर अनदरनी ददककत अभी भी राह बाए खड़ी ह रौका ह दक इस परगकततशीि कतसथकतत का फायदा उठा कर हर

एक सचच जनरत का कतनरामण कर सचच िोकरत क कतनरामण र अादरनी बाधाएा कया थी भारतद न इस

आग सपषट करत हए कतिखा-

ldquoRace antagonism rivalry and mutual misunderstanding are the favourite

occupations of the aristocratic class Want of confidence among all classes of men

are the prevailing characteristic of the nation and above all multifarious castes and

creeds with there numerous forms of religion and local habits and customs which all

combined have kept the progressive policy at a stand still True it is that a

representative Government is a boon to this country and true it is that Sir Bartle

fregravere a man of vast experience and a good statesman has found out that in village

community we can have public opinion but with all his experience he has lost sight

of our national defects ndash defects which we ourselves know and which no foreigner

can catch at a glancerdquo36

भारतद इस बात को िकर कतनकतशचत ह दक िोकरत और परकततकतनकतधरिक सासथाओ क बहतर कतवकास क कतिए

सीध-सीध कतवदशी रॉडि कभी सफि नही हो पायगा ऐसा इसकतिए कयादक हरारी आपसी कतवकतभननताओ

और झगड़ो को कोई बाहरीकतवदशी सतता कभी भी परी तरह सरझ नही सकती lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo नार

35भारतद गराथाविी -6 361

36 वही

33

स भारतद का एक दसरा िख इस अागरजी वाि िख क दो साि बाद अपरि सन १८७४ र हररशचनदर

रगजीन र छपा पकतबिक ओकतपकतनयन कया बिा ह इस साफ़ करत हए भारतद िख क आरमभ र ही कहत

ह ldquoपकतबिक ओकतपकतनयन अथामत सब साधारण िोगो की राय कया वसत ह और इसर दकतना जोर ह और

इसक कतिए कया हो सकता ह यह परशन ठहरा तो इसका साधारण उततर यही ह दक यह वह वसत ह जो

सासार को एक कर सकती ह गागा की धरा दफर कतहरािय पर चढ़ा ि जा सकती ह सययम को पकतशचर उगा

सकती ह और चाह तो ईशवर को भी पकड़ क कठपतिी की भााकतत नचा सकती हrdquo37 यह पकतबिक

ओकतपकतनयन lsquoएक रतrsquo होना ह जस अिग अिग चार पतिी िककतड़यो को एक साथ बााध दन स उस

तोड़ना करठन हो जाता ह उसी तरह एक रत होन स बड़ स बड़ा बरी भी हरारा कछ कतबगाड़ नही सकता

बहत स िोगो का रत एक हो तो वह शकति बन जाती ह हिारो आदरी की बकतदध एक हो जाए तो ldquoऐसा

कौन कार ह जो न हो सक तो यह कतसदधाात हआ दक कतनशचय सब िोगो क रत र बड़ी सारथयम ह इसस यह

कतसदध हआ दक बिो स बड़ा बि एक रत ही हrdquo38

आग भारतद कहत ह दक यह जनरत और उसकी शकति हहादसतान क कतिए कोई नई बात नही ह

पराचीन काि र इसक उदाहरण कतरित ह lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo की इस धारणा को भारतद न इकततहास क

अिग-अिग दौर र बनत और कतबगड़त ददखाया सबस पहि चार वणो की िररत पड़ी सब कार को

सचार रप स चिन क कतिए दसर शबदो र कह तो शरर-कतवभाजन की िररत स इसका जनर हआ

lsquoकतहनदओ न अपन गर क कार र इस वणामशरर धमरम को इसी वासत बनाया कतजस र उन क दकसी कार र

कोई हजम न हो और उनिोगो न सासार क सब कारो र चार कार रखय सरझrsquo धरम कतवदया और किाओ का

कार िड़ाई और राजय परबाध का कार वयापार और धन और सब िोगो की सवा और रजदरी इन चार

कारो की सवयवसथा वािा वणामशरर दरअसि lsquoएक रतrsquo कतहनद वयवसथा या lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo थी पर

कािाातर र इस lsquoएकरतrsquo क भीतर जाकततवयवसथा कठोर हो गयी और िाहमण और शदर दोनो एक दसर क

कतखिाफ हो गए एकरत र कतवचछद पदा होन स कतहनद शकति करिोर हो गयी भारतद क अनसार आपस

का यह झगड़ा बड़ा कतवनाशकारी साकतबत हआ पकतबिक ओकतपकतनयन क कतबना वयाकतभचार और जयादकततयो का

अाधर था आग चि कर जनो क जरान र दफर lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo न जोर पकड़ा बकतलक भारतद जोर

दकर कहत ह दक जनो क रत की उततपकततत ही lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo स हई ldquoकतहनदओ क जब नाश क ददन

जब कतनकट आय तो आपस र परसपर बड़ा कतवरोध खड़ा हआ और उस काि र िाहमणो का बड़ा जोर था

वरन य और वणो पर जयादती करत थ तो वशय और कषकततरयो की रकतत इनस दफर गयी और बाब वािी बड़ी

37गराथाविी- 678

38वही

34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

36

कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

37

उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

38

ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 27: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

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दकनत वह ऐसा ही नही उसकी नीकतत अागरजो की भााकतत गढ़ थी रखम औरागजब उसको सरझा नही नही तो

आज ददन हहादसतान रसिरान होता कतहनद-रसिरान र खाना-पीना बयाह-शादी कभी चि गयी होती

अागरजो को जो बात नही सझी वह इसको सझी थीrdquo30 कतनकतशचत रप lsquoबकतदधरानrsquo दशरन स सीखन को बहत

कछ कतरिता ह अकबर की दीन-ए-इिाही क परयोग स भारतद भी बहत कछ सीख रह थ रधयकािीन

इकततहास क बार र रकतसिर शतर की छकतव का कतनरामण पराचयकतवदयाकतवदो क िारा दकया जा रहा था इकतियट

आदद इकततहासकारो न जो दकतषट कतवककतसत की उसका परभाव बहत गहरा था पर इस इकततहासिखन क साथ

साथ भारतद क कछ दशी सरोत भी थ अिग-अिग रहापरषो की चररताविी कतिखन की पररणा भारतद न

कतजतना अपनी वषणव भकति की परापरा स पाया था उतना ही इसिारी इकततहास िखन की परापरा स भी

lsquoबादशाहदपमणrsquo की भकतरका र भारतद कतिखत ह ldquoरर पररातारह राय कतगरधरिाि साहब जो यवनी कतवदया

क बड़ भारी पाकतडत और काशीसथ ददलिी क शाहजादो क रखय दीवान थ उनकी इचछा स ददलिी क परकतसदध

कतविान सययद अहरद न एक ऐसा चक बनाया था कतजसर तरर स िकर शाह आिार तक सब बादशाहो क

नार आदद कतिख थ उस फारसी गरनथ स बहत सी बात इसर िी गयी ह इस कारण तरर पवम क बादशाहो

का वणमन इतना परा नही ह कतजतना तरर क पीछ ह दफर रर रातारह राय कतखरोधरिाि न बहादर शाह

क काि क आरमभ तक शष वतत सागरह दकयाrdquo31

अरणदव जी अपन एक िख र भारतद क आराकतभक अकबर परर का कतिक दकया ह १८७२-७४ क

आसपास भारतद अकबर को रहान शासक रानत थ जबदक औरागजब को कतहनदओ का दशरन नाबर एक

भारतद न औरागजब की तिना र अकबर की रहानता को परराकतणत करन क कतिए रारदास कछवाह क एक

शलोक को अपना आधार बनाया ह इस शलोक का भावाथम भारतद क शबदो र इस परकार ह ldquoजो सरदर स रर

तक पथवी को पािता ह जो रतय स गउओ की रकषा करता ह कतजसन तीथम और वयापार स कर छड़ा ददए

कतजसन पराण सन जो सयम का नार जपता जो योग धारण करता ह और गागाजि छोड़कर पानी नही

पीता उस जिािददीन की जय अाग वाग कहिाग कतसिहट कततपरा कारत (कारटी) काररप अाध कणामटक

िाट दरकतवड़ रहाराषटर िारका चोि पााडया भोट रारवाड़ उड़ीसा रलि खरासान का दहार जमब काशी ढाका

बिख बदखशाा और काबि को जो शासन करता ह ककतियग की रकतहरा स घटत हए वद गउ कतिज और

धरम की रकषा को सगन शरीर कतजसन धारण दकया ह उस अपररय परष अकबर शाह को हर नरसकार करत

हrdquo32 यही अकबर १८८४ र औरागजब स जयादा शाकततर और बकतदधरान शतर र बदि गया lsquoकािचकrsquo क

कतनकतहताथो र यह फरबदि भारतद पर रकतसिर कतवदशीपन और कतहनद शतरता क समपणम बिॉक बनान की

30 बादशाह दपमण भारतद गराथाविी खाड-६

31 वही

32 httpsamalochanblogspotin201209blog-post_9html

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रणनीकतत क दबाव क कारण था और lsquoपरावकततrsquo की कतरथकीयता र भी कतहनदओ को lsquoरहारोहनासतरrsquo क सहार

पहि भी वश र दकया गया था यह एक बारीक चाि थी अकबर की इस चाि को अागरज भी नही सरझ

पा रह थ भारतद की यह परकततदकया औपकतनवकतशक इकततहासिखन क दबाव र थी १८७३ र जब भारतद

न कतशवपरसाद की दकताब lsquoइकततहासकततकतररनाशकrsquo क तीसर खाड की आिोचना की थी तो उनक सारन

रकतसिर शासन की बबमरता और अागरजी राज क सशासन का कतशवपरसाद िारा ककतलपत आखयान था १८८४

र समपणम रकतसिर काि अनधकार यग र बदि गया कततकतररनाशक क पहि खाड र बाब कतशवपरसाद न भी

अकबर की रजहबी उदारता और साराकतजक सधारो की बड़ाई की थी इस परकार हर दख सकत ह दक

ऐकततहाकतसक िखन र पकष और कतवपकष की पनरावकततत एक बाद घर र उिझी हई थी इनक सारन रकतसिर

कतवरोध और अागरजी शासन क कतवरोध का एक कतवसागत फर था और िखक उसर अपनी फौरी जररतो क

कतहसाब स कतरतर और दशरन वािा इकततहास कतिखता था इकततहास ठठ राजनीकततक ततकाि क वशीभत था

जो भी हो धाररमक उदारता और सिह-ए-कि का परयोग एक कतशकषापरद परयोग था यह कतवकतभनन

रतो या कतवशवासो क बीच lsquoजनरतrsquo बनान का एक रधयकािीन परयोग था भारतद lsquoजनरतrsquo क परयोग को

इस तरह दखत थ रानो यह lsquoचािrsquo अगर कारयाब हो जाती तो lsquoआज क ददन हहादसतान रसिरान होताrsquo

भारतद क सारन सरसया वही थी बस वह कवि यह चाहत थ दक कतहनदसतान lsquoकतहनदrsquo हो जाय कतहनद

अथामत वषणव हो जाय वषणवता भारतद क कतिए हहादसतान का नया lsquoसिह-ए-किrsquo था इसकतिए कछ

सावमजनीन रलयो की तिाश उनह भी थी कतसिकट ककतरटी क उपरोि रमबर lsquoएकसअफीकतशयोrsquo रमबर थ

रोर क परान हररकिस जस दवता कतजनहोन धरती स साबाध तोड़ ददया ह व िोग तथा उनही क जस

पारकतसयो क lsquoजरदशतजीrsquo को कोरसपोहडाग ऑनररी रमबर बनाया गया य धरम क रप र रतपराय रतो क

परकततकतनकतध थ ककतरटी न जो ररपोटम तयार की उसका ररम भारतद न ददया ह यह ररम उनक रकतडकि वषणव

पकष का रत था कतिबरि दि और काजरवरटव दि क अपन पकषो स इतर यह नरनायक तीसरा पकष वषणवो

की तरफ स सनाया गया था रकतडकि वषणवो की तरफ स भारतद इस धाररमक आनदोिन क भीतर अपना

ही पकष रखत हए इसका ररम कतिख रह थ ldquoहरिोगो की समरकतत र इन दोनो परषो न परभ की रागिरयी

सकतषट का कछ कतवघन नही दकया वराच उसर सख और सातकतत अकतधक हो इसी र पररशरर दकयाrdquo कतहनद सराज

सधार क परयासो का ररम बतात हए सबस पहि धयान सतरी सधारो पर ददया गया ह साराकतजक करीकततयो

की कतशकार रकतहिाओ क परकतत जो दकतषट उभरकर सारन आती ह उसक रि र धरम की रीकतत स यौन

रयामदाओ की अवयवसथा को दफर स रयामददत करन की चषटा ह कतसतरयो क करागम पर जान का पहिा कारण

ह रनराना परष धरमपवमक न पाना यह कतववाह सासथा की कतवककततयो की आिोचना थी जहाा बाि कतववाह

कतवधवा कतववाह आदद की तरफ इशारा ह धयान रखना चाकतहए दक यहाा बरि कतववाह क बदि कतसतरयो िारा

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lsquoरनराना वरrsquo न चन पान का उलिख ह गभमनाश और बाि हतया क कतखिाफ सधार परयास दसरा

रहतवपणम योगदान ह कतववाह सासथा बीच र भी भाग की जा सकती ह इसकी सवीककतत ह कनया क कतहत र

अातरजातीय कतववाह की सवीककतत ह एक रहतवपणम बात गरओ और पाकतडतो क वयाकतभचार क साबाध र ह

भारतद क सारन पकतषटरागी रहातो और गरओ क वयाकतभचार का अनभव भी इसर शाकतरि ह

१८७४ र ककतववचन सधा र भारतद की एक रटपणणी छपी थी lsquoगर को कसा होना चाकतहएrsquo इसक अिावा

दो वषम पहि lsquoगर और रहातrsquo नार स भी एक रटपणणी कतिखकर वषणव पाडो-परोकतहतो की खिकर

आिोचना की गयी थी तिवार जी न कतिखा ह दक राददरो क भीतर कतसतरयो का यौन शोषण और वयाकतभचार

इतना भीषण था दक दयानाद भारतद क पकतषट सापरदाय को lsquoकषठी सापरदायrsquo कहत थ १८६० क आरमभ र ही

वषणव गोसाइयो क अनाचार और यौन शोषण क कतखिाफ बमबई र एक बड़ा आनदोिन पकतषटरागी

करसनदास रि जी क नततव र हो चका था वषणव बकतनया पषठभकतर स आय करसनदास जी उन नौजवानो

र थ कतजनहोन एकतिफ सटन कॉिज स आधकतनक कतशकषा परापत की थी गोसाइयो और रहाराजो िारा अपन

lsquoसमपरदाय की बह बरटयोrsquo क साथ होन वाि अतयाचार क कतखिाफ उनहोन िख कतिख और समपरदाय क

इकततहास को नए कतसर स सारन रखा पण स आए जदनाथ वजरतन जी रहाराज न करसनदास जी पर

रानहाकतन का रकदरा दायर कर ददया इसी रक़दर स वषणव रहातो की कई सारी बात जनता क सारन

परतयकष हई तिवार जी न इस lsquoरहाराज िाइबि कसrsquo को भारतीय नवजागरण र वषणव गोसाइयो क

दराचार और यौन शोषण क कतखिाफ हआ सबस बड़ा आनदोिन कहा ह भारतद पर इसका बहत परभाव

था यह कस १८६० र हआ था एक दशक बाद जब भारतद सापरदाय क कायो र रत थ उसी सरय कतिख

रह थ ldquoराददर कया होत ह रानो कतसतरयो की खान ह जसी चाकतहए िीकतजय- वराच अचछी सतरी भी वहाा जाकर

कतबगड़ जाती ह आशचयम यह ह दक कतजनको व िोग बटी कहत ह और जो उनक परिोक क रधयसथ ह और

कतजनको वो दीकषा दत ह उन कतसतरयो की ओर व आप ही बरी दकतषट स दखत ह ओर रर पयार कतहनदओ तर

इनक जाि र कब तक फा स रहोग और कया तरको यही सासार स बचावग और इनही क भरोस तरको

भगवान कतरिगाrdquo33

राददरो क धन-ऐशवयम और वयाकतभचार र डब जीवन क जीवात कतचतर हर बनारस क रखाकतचतर lsquoपरर

जोकतगनीrsquo क अिावा lsquoकाशी क छायाकतचतर क दो बर-भि फोटोगराफrsquo र भी कतरित ह यहाा भारतद का वयागय

अपन वषणव सापरदाय की आतरािोचना स सदकय ह lsquoपरर योकतगनीrsquo नाटक र आन वािा चररतर रारचादर

खद भारतद ही थ नाटक का सतरधार कहता ह दक भारतवषम की दीन हीन गकतत क कारण उसका तो

कतवशवास ही ईशवर स उठन िगा ह नाटक क पहि ही दशय र भारतद हर राददर क भीतर कतिए चित ह

33 वसधा डािकतरया िारा उदधत पषठ- ३३७

30

जहाा राददर र कार करन वािा साधारण टहिआ झपरटया हर ददखाई दता ह पजारी बाब अभी तक नीद

स नही जाग ह कयोदक आधी रात तक lsquoबठ क ही-ही-ठी-ठी करा चाह दफर सबर नीद कस खिrsquo कतनकतशचत

रप स यह टहिआ सबह सवर ही राददर र हाकतिर ह िदकन दवता अभी राददर र सोय ह रारचादर

परदशी ह काशी र बाहर स आय ह छकक जी और राखनदास इस रारचादर की आिोचना करत ह इनक

सावादो स पता चिता ह दक बाब रारचादर क यहाा ददन रात नाच गाना हआ करता ह और उनको अपनी

कतवदया का घराड ह दो चार ककतवतत भी बना ित ह पर lsquoककतवतत बनाव स का होव और ककतवतत बनावन कछ

अपन िोगन का कार थोर हय ई भााटन का कार हयrsquo छकक जी कहत ह दक अपन रागम का उनह कछ जञान

तो ह नही बस दो चार बात इधर उधर स सनकर कछ lsquoदकसतानी रतrsquo सीखकर पाकतडत बन दफरत ह

कतनकतशचत रप स य भारतद पर िगन वाि आरोप थ राददर र सवारी धनदास वकतनतादा बभकतकषत पाकतडत

आदद धरम क ठकदार ह इनकी पतनशीि सासककतत को दखकर रारचादर का दःख इन शबदो र वयि होता ह

lsquoहा कया इस नगर की यही दशा रहगी जहाा क िोग ऐस रखम ह वहाा आग दकस बात की वकतदध की

साभावना करrsquo lsquoवददकी हहासा हहासा न भवकततrsquo जस शरआती नाटको र भी करमकााडी परोकतहतवाद की

आिोचना की गयी ह राजा और परोकतहत कतरिकर वहाा जनता का शोषण करत ह जआ रददरा और

रथन की ऐययाश सासककतत क परतीक परोकतहतो का काजरवरटव दि इन परहसनो र रतम होता ह कतचतरगपत यर

स कहत ह ldquoरहाराज य गर िोग इनक चररतर का कछ न पकतछए कवि दमभाथम इनका कततिक रदरा और

ठगन क अथम इनकी पजा कभी भकति स ररतम को दाडवत न दकया होगा पर राददर र जो कतसतरयाा आयी उनको

सवमदा तकत रह रहाराज इनहोन अनको को कताथम दकया ह और इस सरय तो र lsquoशरीरारचनदर जी का

शरीकषण का दास हाrsquo पर जब सतरी सारन आव तो उसस कहग lsquoर रार तर जानकी र कषण तर गोपीrsquo और

कतसतरयाा भी ऐसी रखम दक दफर इन िोगो क पास जाती हrdquo34

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo की ररपोटम र सतरी सधारो क कायो की रहतता बतान क बाद जाकतत वयवसथा पर

इन सधारको का परहार कयो जररी था इस बताया गया ह कठोर जाकतत बनधनो क चित कस हर साि

जाकतत-बाहय होकर जाकतत र वापस आन क दकसी उपाय को न जान lsquoहजारो रनषय आयम पाकति स हर साि

छटत थ उसको इनहोन रोकाrsquo इस परकार इन सधारको न lsquoआयमधरमrsquo क भीतर जो पररवतमन करन चाह

उसस आयो की एकता दफर स बहाि हो गयी इसक अिावा अाधकतवशवासो को इनहोन दर दकया यही नही

बकतलक जहाा िोग lsquoरसिरानी पीर पगमबर औकतिया वीर ताकतजया गाजी कतरयाा कतजनहोन बड़ी ररतम तोड़कर

और तीथम पाटकर आयम धरम कतवधवास दकयाrsquo उनको भी पजन िग थ और lsquoकतवशवास तो रानो कतछनाि का अाग

हो रहा थाrsquo ऐसी िजजाजनक कतसथकतत स िोगो को बाहर कतनकािकर lsquoसार आयामवतम को शदध lsquoिायिrsquo कर

34 दख रारकतविास शराम पषठ १३१

31

ददयाrsquo lsquoिायिrsquo कर ददया गया इसका अथम आयम जाकतत को दफर स िायि करन र था आयम जाकतत क भीतर

कतबगाड़ क चित ही कतनमन जाकततयो का बड़ परान पर पिायन था इस इन िोगो न रोका और इनक परताप

स ही अनक छोट और सथानीय धरम-रतो क भीतर जो lsquoरसिरानीrsquo परभाव घस आय थ उनको दफर स lsquoबड़ी

ररतमrsquo की कतनषठा र िाया जा सका इस परकार कतहनद धरम और वणामशरर क परकतत दफर स िोगो को lsquoिायिrsquo

दकया यह lsquoिायकतिटीrsquo भारतद की रकतडकि वषणवता क जनरत क कतिए भी जररी था तिवार जी जब

आयमसराकतजयो की lsquoकााकततकारीrsquo भकतरका ददखात ह तब आयम सराज िारा आयामवतम को िायि बनान वािी

इस भकतरका की साकतशलषटता पर जयादा बात नही करत भारतद दयानाद क कााकततकारी परयासो र lsquoिायिrsquo

बनान की परदकया उसी वक़त दख रह थ और इसी कारण ररपोटम र दयानाद की आिोचना धयान दन िायक

ह सवारी जी न ldquoजाि को छरी स न काटकर दसर जाि ही स कतजसको काटना चाहा इसी स दोनो आपस

र उिझ गए और इसका पररणार गह कतवचछद उतपनन हआrdquo गह कतवचछद का रतिब कतहनद धरम र गह

कतवचछद जबदक कशवचादर सन क बार र कहा गया दक उनहोन जाि काटकर भकति की उचछकतित िहरो का

पररषकत पथ परकट दकया इस परकार रकतडकि वषणवता की lsquoअनयताrsquo और परररिक भकति क परशसत पथ क

सवीकार का कतनषकषम कतवचार सभा का भी कतनषकषम था धयान दन िायक ह दक कशवचादर की आिोचना उनक

कतचतत कतवकषप क कारण की गयी थी जहाा lsquoईसारसीह आदद उनस कतरित हrsquo य एक दकसर का इिहारी

अनभव था कतजस भारतद अपनी वषणवता स बाहर रखत ह ईशवर न इस ररपोटम पर अपना रत सरकतकषत

रख कतिया और भारतद कतिखत ह ldquoइसको दख कर इस पर कया आजञा हई और व िोग कहाा भज गए यह

जब कर भी वहाा जायग और दफर िौट कर आ सक ग तो पाठक िोगो को बतिावग या आप िोग कछ

ददन पीछ आप ही जानोगrdquo

३ जनरत और वषणवता

ककतववचन सधा ९ राचम १८७२ र भारतद न lsquoPublic Opinion In Indiarsquo नार स अागरजी र

एक िख परकाकतशत दकया िख र उनहोन कहा दक कई सददयो दक दासता क बाद भारतवषमहहादसतान अब

जाकर कतिरटश राषटर क सवोचच कतनयातरण र आया ह दश धीर-धीर सभयता और परबोधन की पकतशचरी दकरणो

क सहार दरन और कशासन क रतय-तलय कतनदरा स जाग रहा ह कतिरटश शासन की परगकततशीि नीकततयो का

परभाव यहाा की बहरपी आबादी पर पड़ रहा ह

ldquoBut in this progressive state national energy and zeal sympathy and

disintiredness are waiting to make both the conqueror and the conquered to act in

32

concert and in harmony and hence we have the broad distinction of white and

black still But in this country many are the blemishes that adhere to us to be

eradicated and many are the shortcomings that are hovering around us to be done

away with before we can have a public opinion here in its true senserdquo35

गोर और काि क बड़ भद को छोड़ कर कतवजता अागरजो और भारतीयो क बीच एक सराजन तो बन गया ह

पर अनदरनी ददककत अभी भी राह बाए खड़ी ह रौका ह दक इस परगकततशीि कतसथकतत का फायदा उठा कर हर

एक सचच जनरत का कतनरामण कर सचच िोकरत क कतनरामण र अादरनी बाधाएा कया थी भारतद न इस

आग सपषट करत हए कतिखा-

ldquoRace antagonism rivalry and mutual misunderstanding are the favourite

occupations of the aristocratic class Want of confidence among all classes of men

are the prevailing characteristic of the nation and above all multifarious castes and

creeds with there numerous forms of religion and local habits and customs which all

combined have kept the progressive policy at a stand still True it is that a

representative Government is a boon to this country and true it is that Sir Bartle

fregravere a man of vast experience and a good statesman has found out that in village

community we can have public opinion but with all his experience he has lost sight

of our national defects ndash defects which we ourselves know and which no foreigner

can catch at a glancerdquo36

भारतद इस बात को िकर कतनकतशचत ह दक िोकरत और परकततकतनकतधरिक सासथाओ क बहतर कतवकास क कतिए

सीध-सीध कतवदशी रॉडि कभी सफि नही हो पायगा ऐसा इसकतिए कयादक हरारी आपसी कतवकतभननताओ

और झगड़ो को कोई बाहरीकतवदशी सतता कभी भी परी तरह सरझ नही सकती lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo नार

35भारतद गराथाविी -6 361

36 वही

33

स भारतद का एक दसरा िख इस अागरजी वाि िख क दो साि बाद अपरि सन १८७४ र हररशचनदर

रगजीन र छपा पकतबिक ओकतपकतनयन कया बिा ह इस साफ़ करत हए भारतद िख क आरमभ र ही कहत

ह ldquoपकतबिक ओकतपकतनयन अथामत सब साधारण िोगो की राय कया वसत ह और इसर दकतना जोर ह और

इसक कतिए कया हो सकता ह यह परशन ठहरा तो इसका साधारण उततर यही ह दक यह वह वसत ह जो

सासार को एक कर सकती ह गागा की धरा दफर कतहरािय पर चढ़ा ि जा सकती ह सययम को पकतशचर उगा

सकती ह और चाह तो ईशवर को भी पकड़ क कठपतिी की भााकतत नचा सकती हrdquo37 यह पकतबिक

ओकतपकतनयन lsquoएक रतrsquo होना ह जस अिग अिग चार पतिी िककतड़यो को एक साथ बााध दन स उस

तोड़ना करठन हो जाता ह उसी तरह एक रत होन स बड़ स बड़ा बरी भी हरारा कछ कतबगाड़ नही सकता

बहत स िोगो का रत एक हो तो वह शकति बन जाती ह हिारो आदरी की बकतदध एक हो जाए तो ldquoऐसा

कौन कार ह जो न हो सक तो यह कतसदधाात हआ दक कतनशचय सब िोगो क रत र बड़ी सारथयम ह इसस यह

कतसदध हआ दक बिो स बड़ा बि एक रत ही हrdquo38

आग भारतद कहत ह दक यह जनरत और उसकी शकति हहादसतान क कतिए कोई नई बात नही ह

पराचीन काि र इसक उदाहरण कतरित ह lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo की इस धारणा को भारतद न इकततहास क

अिग-अिग दौर र बनत और कतबगड़त ददखाया सबस पहि चार वणो की िररत पड़ी सब कार को

सचार रप स चिन क कतिए दसर शबदो र कह तो शरर-कतवभाजन की िररत स इसका जनर हआ

lsquoकतहनदओ न अपन गर क कार र इस वणामशरर धमरम को इसी वासत बनाया कतजस र उन क दकसी कार र

कोई हजम न हो और उनिोगो न सासार क सब कारो र चार कार रखय सरझrsquo धरम कतवदया और किाओ का

कार िड़ाई और राजय परबाध का कार वयापार और धन और सब िोगो की सवा और रजदरी इन चार

कारो की सवयवसथा वािा वणामशरर दरअसि lsquoएक रतrsquo कतहनद वयवसथा या lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo थी पर

कािाातर र इस lsquoएकरतrsquo क भीतर जाकततवयवसथा कठोर हो गयी और िाहमण और शदर दोनो एक दसर क

कतखिाफ हो गए एकरत र कतवचछद पदा होन स कतहनद शकति करिोर हो गयी भारतद क अनसार आपस

का यह झगड़ा बड़ा कतवनाशकारी साकतबत हआ पकतबिक ओकतपकतनयन क कतबना वयाकतभचार और जयादकततयो का

अाधर था आग चि कर जनो क जरान र दफर lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo न जोर पकड़ा बकतलक भारतद जोर

दकर कहत ह दक जनो क रत की उततपकततत ही lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo स हई ldquoकतहनदओ क जब नाश क ददन

जब कतनकट आय तो आपस र परसपर बड़ा कतवरोध खड़ा हआ और उस काि र िाहमणो का बड़ा जोर था

वरन य और वणो पर जयादती करत थ तो वशय और कषकततरयो की रकतत इनस दफर गयी और बाब वािी बड़ी

37गराथाविी- 678

38वही

34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

36

कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

37

उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

38

ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 28: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

28

रणनीकतत क दबाव क कारण था और lsquoपरावकततrsquo की कतरथकीयता र भी कतहनदओ को lsquoरहारोहनासतरrsquo क सहार

पहि भी वश र दकया गया था यह एक बारीक चाि थी अकबर की इस चाि को अागरज भी नही सरझ

पा रह थ भारतद की यह परकततदकया औपकतनवकतशक इकततहासिखन क दबाव र थी १८७३ र जब भारतद

न कतशवपरसाद की दकताब lsquoइकततहासकततकतररनाशकrsquo क तीसर खाड की आिोचना की थी तो उनक सारन

रकतसिर शासन की बबमरता और अागरजी राज क सशासन का कतशवपरसाद िारा ककतलपत आखयान था १८८४

र समपणम रकतसिर काि अनधकार यग र बदि गया कततकतररनाशक क पहि खाड र बाब कतशवपरसाद न भी

अकबर की रजहबी उदारता और साराकतजक सधारो की बड़ाई की थी इस परकार हर दख सकत ह दक

ऐकततहाकतसक िखन र पकष और कतवपकष की पनरावकततत एक बाद घर र उिझी हई थी इनक सारन रकतसिर

कतवरोध और अागरजी शासन क कतवरोध का एक कतवसागत फर था और िखक उसर अपनी फौरी जररतो क

कतहसाब स कतरतर और दशरन वािा इकततहास कतिखता था इकततहास ठठ राजनीकततक ततकाि क वशीभत था

जो भी हो धाररमक उदारता और सिह-ए-कि का परयोग एक कतशकषापरद परयोग था यह कतवकतभनन

रतो या कतवशवासो क बीच lsquoजनरतrsquo बनान का एक रधयकािीन परयोग था भारतद lsquoजनरतrsquo क परयोग को

इस तरह दखत थ रानो यह lsquoचािrsquo अगर कारयाब हो जाती तो lsquoआज क ददन हहादसतान रसिरान होताrsquo

भारतद क सारन सरसया वही थी बस वह कवि यह चाहत थ दक कतहनदसतान lsquoकतहनदrsquo हो जाय कतहनद

अथामत वषणव हो जाय वषणवता भारतद क कतिए हहादसतान का नया lsquoसिह-ए-किrsquo था इसकतिए कछ

सावमजनीन रलयो की तिाश उनह भी थी कतसिकट ककतरटी क उपरोि रमबर lsquoएकसअफीकतशयोrsquo रमबर थ

रोर क परान हररकिस जस दवता कतजनहोन धरती स साबाध तोड़ ददया ह व िोग तथा उनही क जस

पारकतसयो क lsquoजरदशतजीrsquo को कोरसपोहडाग ऑनररी रमबर बनाया गया य धरम क रप र रतपराय रतो क

परकततकतनकतध थ ककतरटी न जो ररपोटम तयार की उसका ररम भारतद न ददया ह यह ररम उनक रकतडकि वषणव

पकष का रत था कतिबरि दि और काजरवरटव दि क अपन पकषो स इतर यह नरनायक तीसरा पकष वषणवो

की तरफ स सनाया गया था रकतडकि वषणवो की तरफ स भारतद इस धाररमक आनदोिन क भीतर अपना

ही पकष रखत हए इसका ररम कतिख रह थ ldquoहरिोगो की समरकतत र इन दोनो परषो न परभ की रागिरयी

सकतषट का कछ कतवघन नही दकया वराच उसर सख और सातकतत अकतधक हो इसी र पररशरर दकयाrdquo कतहनद सराज

सधार क परयासो का ररम बतात हए सबस पहि धयान सतरी सधारो पर ददया गया ह साराकतजक करीकततयो

की कतशकार रकतहिाओ क परकतत जो दकतषट उभरकर सारन आती ह उसक रि र धरम की रीकतत स यौन

रयामदाओ की अवयवसथा को दफर स रयामददत करन की चषटा ह कतसतरयो क करागम पर जान का पहिा कारण

ह रनराना परष धरमपवमक न पाना यह कतववाह सासथा की कतवककततयो की आिोचना थी जहाा बाि कतववाह

कतवधवा कतववाह आदद की तरफ इशारा ह धयान रखना चाकतहए दक यहाा बरि कतववाह क बदि कतसतरयो िारा

29

lsquoरनराना वरrsquo न चन पान का उलिख ह गभमनाश और बाि हतया क कतखिाफ सधार परयास दसरा

रहतवपणम योगदान ह कतववाह सासथा बीच र भी भाग की जा सकती ह इसकी सवीककतत ह कनया क कतहत र

अातरजातीय कतववाह की सवीककतत ह एक रहतवपणम बात गरओ और पाकतडतो क वयाकतभचार क साबाध र ह

भारतद क सारन पकतषटरागी रहातो और गरओ क वयाकतभचार का अनभव भी इसर शाकतरि ह

१८७४ र ककतववचन सधा र भारतद की एक रटपणणी छपी थी lsquoगर को कसा होना चाकतहएrsquo इसक अिावा

दो वषम पहि lsquoगर और रहातrsquo नार स भी एक रटपणणी कतिखकर वषणव पाडो-परोकतहतो की खिकर

आिोचना की गयी थी तिवार जी न कतिखा ह दक राददरो क भीतर कतसतरयो का यौन शोषण और वयाकतभचार

इतना भीषण था दक दयानाद भारतद क पकतषट सापरदाय को lsquoकषठी सापरदायrsquo कहत थ १८६० क आरमभ र ही

वषणव गोसाइयो क अनाचार और यौन शोषण क कतखिाफ बमबई र एक बड़ा आनदोिन पकतषटरागी

करसनदास रि जी क नततव र हो चका था वषणव बकतनया पषठभकतर स आय करसनदास जी उन नौजवानो

र थ कतजनहोन एकतिफ सटन कॉिज स आधकतनक कतशकषा परापत की थी गोसाइयो और रहाराजो िारा अपन

lsquoसमपरदाय की बह बरटयोrsquo क साथ होन वाि अतयाचार क कतखिाफ उनहोन िख कतिख और समपरदाय क

इकततहास को नए कतसर स सारन रखा पण स आए जदनाथ वजरतन जी रहाराज न करसनदास जी पर

रानहाकतन का रकदरा दायर कर ददया इसी रक़दर स वषणव रहातो की कई सारी बात जनता क सारन

परतयकष हई तिवार जी न इस lsquoरहाराज िाइबि कसrsquo को भारतीय नवजागरण र वषणव गोसाइयो क

दराचार और यौन शोषण क कतखिाफ हआ सबस बड़ा आनदोिन कहा ह भारतद पर इसका बहत परभाव

था यह कस १८६० र हआ था एक दशक बाद जब भारतद सापरदाय क कायो र रत थ उसी सरय कतिख

रह थ ldquoराददर कया होत ह रानो कतसतरयो की खान ह जसी चाकतहए िीकतजय- वराच अचछी सतरी भी वहाा जाकर

कतबगड़ जाती ह आशचयम यह ह दक कतजनको व िोग बटी कहत ह और जो उनक परिोक क रधयसथ ह और

कतजनको वो दीकषा दत ह उन कतसतरयो की ओर व आप ही बरी दकतषट स दखत ह ओर रर पयार कतहनदओ तर

इनक जाि र कब तक फा स रहोग और कया तरको यही सासार स बचावग और इनही क भरोस तरको

भगवान कतरिगाrdquo33

राददरो क धन-ऐशवयम और वयाकतभचार र डब जीवन क जीवात कतचतर हर बनारस क रखाकतचतर lsquoपरर

जोकतगनीrsquo क अिावा lsquoकाशी क छायाकतचतर क दो बर-भि फोटोगराफrsquo र भी कतरित ह यहाा भारतद का वयागय

अपन वषणव सापरदाय की आतरािोचना स सदकय ह lsquoपरर योकतगनीrsquo नाटक र आन वािा चररतर रारचादर

खद भारतद ही थ नाटक का सतरधार कहता ह दक भारतवषम की दीन हीन गकतत क कारण उसका तो

कतवशवास ही ईशवर स उठन िगा ह नाटक क पहि ही दशय र भारतद हर राददर क भीतर कतिए चित ह

33 वसधा डािकतरया िारा उदधत पषठ- ३३७

30

जहाा राददर र कार करन वािा साधारण टहिआ झपरटया हर ददखाई दता ह पजारी बाब अभी तक नीद

स नही जाग ह कयोदक आधी रात तक lsquoबठ क ही-ही-ठी-ठी करा चाह दफर सबर नीद कस खिrsquo कतनकतशचत

रप स यह टहिआ सबह सवर ही राददर र हाकतिर ह िदकन दवता अभी राददर र सोय ह रारचादर

परदशी ह काशी र बाहर स आय ह छकक जी और राखनदास इस रारचादर की आिोचना करत ह इनक

सावादो स पता चिता ह दक बाब रारचादर क यहाा ददन रात नाच गाना हआ करता ह और उनको अपनी

कतवदया का घराड ह दो चार ककतवतत भी बना ित ह पर lsquoककतवतत बनाव स का होव और ककतवतत बनावन कछ

अपन िोगन का कार थोर हय ई भााटन का कार हयrsquo छकक जी कहत ह दक अपन रागम का उनह कछ जञान

तो ह नही बस दो चार बात इधर उधर स सनकर कछ lsquoदकसतानी रतrsquo सीखकर पाकतडत बन दफरत ह

कतनकतशचत रप स य भारतद पर िगन वाि आरोप थ राददर र सवारी धनदास वकतनतादा बभकतकषत पाकतडत

आदद धरम क ठकदार ह इनकी पतनशीि सासककतत को दखकर रारचादर का दःख इन शबदो र वयि होता ह

lsquoहा कया इस नगर की यही दशा रहगी जहाा क िोग ऐस रखम ह वहाा आग दकस बात की वकतदध की

साभावना करrsquo lsquoवददकी हहासा हहासा न भवकततrsquo जस शरआती नाटको र भी करमकााडी परोकतहतवाद की

आिोचना की गयी ह राजा और परोकतहत कतरिकर वहाा जनता का शोषण करत ह जआ रददरा और

रथन की ऐययाश सासककतत क परतीक परोकतहतो का काजरवरटव दि इन परहसनो र रतम होता ह कतचतरगपत यर

स कहत ह ldquoरहाराज य गर िोग इनक चररतर का कछ न पकतछए कवि दमभाथम इनका कततिक रदरा और

ठगन क अथम इनकी पजा कभी भकति स ररतम को दाडवत न दकया होगा पर राददर र जो कतसतरयाा आयी उनको

सवमदा तकत रह रहाराज इनहोन अनको को कताथम दकया ह और इस सरय तो र lsquoशरीरारचनदर जी का

शरीकषण का दास हाrsquo पर जब सतरी सारन आव तो उसस कहग lsquoर रार तर जानकी र कषण तर गोपीrsquo और

कतसतरयाा भी ऐसी रखम दक दफर इन िोगो क पास जाती हrdquo34

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo की ररपोटम र सतरी सधारो क कायो की रहतता बतान क बाद जाकतत वयवसथा पर

इन सधारको का परहार कयो जररी था इस बताया गया ह कठोर जाकतत बनधनो क चित कस हर साि

जाकतत-बाहय होकर जाकतत र वापस आन क दकसी उपाय को न जान lsquoहजारो रनषय आयम पाकति स हर साि

छटत थ उसको इनहोन रोकाrsquo इस परकार इन सधारको न lsquoआयमधरमrsquo क भीतर जो पररवतमन करन चाह

उसस आयो की एकता दफर स बहाि हो गयी इसक अिावा अाधकतवशवासो को इनहोन दर दकया यही नही

बकतलक जहाा िोग lsquoरसिरानी पीर पगमबर औकतिया वीर ताकतजया गाजी कतरयाा कतजनहोन बड़ी ररतम तोड़कर

और तीथम पाटकर आयम धरम कतवधवास दकयाrsquo उनको भी पजन िग थ और lsquoकतवशवास तो रानो कतछनाि का अाग

हो रहा थाrsquo ऐसी िजजाजनक कतसथकतत स िोगो को बाहर कतनकािकर lsquoसार आयामवतम को शदध lsquoिायिrsquo कर

34 दख रारकतविास शराम पषठ १३१

31

ददयाrsquo lsquoिायिrsquo कर ददया गया इसका अथम आयम जाकतत को दफर स िायि करन र था आयम जाकतत क भीतर

कतबगाड़ क चित ही कतनमन जाकततयो का बड़ परान पर पिायन था इस इन िोगो न रोका और इनक परताप

स ही अनक छोट और सथानीय धरम-रतो क भीतर जो lsquoरसिरानीrsquo परभाव घस आय थ उनको दफर स lsquoबड़ी

ररतमrsquo की कतनषठा र िाया जा सका इस परकार कतहनद धरम और वणामशरर क परकतत दफर स िोगो को lsquoिायिrsquo

दकया यह lsquoिायकतिटीrsquo भारतद की रकतडकि वषणवता क जनरत क कतिए भी जररी था तिवार जी जब

आयमसराकतजयो की lsquoकााकततकारीrsquo भकतरका ददखात ह तब आयम सराज िारा आयामवतम को िायि बनान वािी

इस भकतरका की साकतशलषटता पर जयादा बात नही करत भारतद दयानाद क कााकततकारी परयासो र lsquoिायिrsquo

बनान की परदकया उसी वक़त दख रह थ और इसी कारण ररपोटम र दयानाद की आिोचना धयान दन िायक

ह सवारी जी न ldquoजाि को छरी स न काटकर दसर जाि ही स कतजसको काटना चाहा इसी स दोनो आपस

र उिझ गए और इसका पररणार गह कतवचछद उतपनन हआrdquo गह कतवचछद का रतिब कतहनद धरम र गह

कतवचछद जबदक कशवचादर सन क बार र कहा गया दक उनहोन जाि काटकर भकति की उचछकतित िहरो का

पररषकत पथ परकट दकया इस परकार रकतडकि वषणवता की lsquoअनयताrsquo और परररिक भकति क परशसत पथ क

सवीकार का कतनषकषम कतवचार सभा का भी कतनषकषम था धयान दन िायक ह दक कशवचादर की आिोचना उनक

कतचतत कतवकषप क कारण की गयी थी जहाा lsquoईसारसीह आदद उनस कतरित हrsquo य एक दकसर का इिहारी

अनभव था कतजस भारतद अपनी वषणवता स बाहर रखत ह ईशवर न इस ररपोटम पर अपना रत सरकतकषत

रख कतिया और भारतद कतिखत ह ldquoइसको दख कर इस पर कया आजञा हई और व िोग कहाा भज गए यह

जब कर भी वहाा जायग और दफर िौट कर आ सक ग तो पाठक िोगो को बतिावग या आप िोग कछ

ददन पीछ आप ही जानोगrdquo

३ जनरत और वषणवता

ककतववचन सधा ९ राचम १८७२ र भारतद न lsquoPublic Opinion In Indiarsquo नार स अागरजी र

एक िख परकाकतशत दकया िख र उनहोन कहा दक कई सददयो दक दासता क बाद भारतवषमहहादसतान अब

जाकर कतिरटश राषटर क सवोचच कतनयातरण र आया ह दश धीर-धीर सभयता और परबोधन की पकतशचरी दकरणो

क सहार दरन और कशासन क रतय-तलय कतनदरा स जाग रहा ह कतिरटश शासन की परगकततशीि नीकततयो का

परभाव यहाा की बहरपी आबादी पर पड़ रहा ह

ldquoBut in this progressive state national energy and zeal sympathy and

disintiredness are waiting to make both the conqueror and the conquered to act in

32

concert and in harmony and hence we have the broad distinction of white and

black still But in this country many are the blemishes that adhere to us to be

eradicated and many are the shortcomings that are hovering around us to be done

away with before we can have a public opinion here in its true senserdquo35

गोर और काि क बड़ भद को छोड़ कर कतवजता अागरजो और भारतीयो क बीच एक सराजन तो बन गया ह

पर अनदरनी ददककत अभी भी राह बाए खड़ी ह रौका ह दक इस परगकततशीि कतसथकतत का फायदा उठा कर हर

एक सचच जनरत का कतनरामण कर सचच िोकरत क कतनरामण र अादरनी बाधाएा कया थी भारतद न इस

आग सपषट करत हए कतिखा-

ldquoRace antagonism rivalry and mutual misunderstanding are the favourite

occupations of the aristocratic class Want of confidence among all classes of men

are the prevailing characteristic of the nation and above all multifarious castes and

creeds with there numerous forms of religion and local habits and customs which all

combined have kept the progressive policy at a stand still True it is that a

representative Government is a boon to this country and true it is that Sir Bartle

fregravere a man of vast experience and a good statesman has found out that in village

community we can have public opinion but with all his experience he has lost sight

of our national defects ndash defects which we ourselves know and which no foreigner

can catch at a glancerdquo36

भारतद इस बात को िकर कतनकतशचत ह दक िोकरत और परकततकतनकतधरिक सासथाओ क बहतर कतवकास क कतिए

सीध-सीध कतवदशी रॉडि कभी सफि नही हो पायगा ऐसा इसकतिए कयादक हरारी आपसी कतवकतभननताओ

और झगड़ो को कोई बाहरीकतवदशी सतता कभी भी परी तरह सरझ नही सकती lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo नार

35भारतद गराथाविी -6 361

36 वही

33

स भारतद का एक दसरा िख इस अागरजी वाि िख क दो साि बाद अपरि सन १८७४ र हररशचनदर

रगजीन र छपा पकतबिक ओकतपकतनयन कया बिा ह इस साफ़ करत हए भारतद िख क आरमभ र ही कहत

ह ldquoपकतबिक ओकतपकतनयन अथामत सब साधारण िोगो की राय कया वसत ह और इसर दकतना जोर ह और

इसक कतिए कया हो सकता ह यह परशन ठहरा तो इसका साधारण उततर यही ह दक यह वह वसत ह जो

सासार को एक कर सकती ह गागा की धरा दफर कतहरािय पर चढ़ा ि जा सकती ह सययम को पकतशचर उगा

सकती ह और चाह तो ईशवर को भी पकड़ क कठपतिी की भााकतत नचा सकती हrdquo37 यह पकतबिक

ओकतपकतनयन lsquoएक रतrsquo होना ह जस अिग अिग चार पतिी िककतड़यो को एक साथ बााध दन स उस

तोड़ना करठन हो जाता ह उसी तरह एक रत होन स बड़ स बड़ा बरी भी हरारा कछ कतबगाड़ नही सकता

बहत स िोगो का रत एक हो तो वह शकति बन जाती ह हिारो आदरी की बकतदध एक हो जाए तो ldquoऐसा

कौन कार ह जो न हो सक तो यह कतसदधाात हआ दक कतनशचय सब िोगो क रत र बड़ी सारथयम ह इसस यह

कतसदध हआ दक बिो स बड़ा बि एक रत ही हrdquo38

आग भारतद कहत ह दक यह जनरत और उसकी शकति हहादसतान क कतिए कोई नई बात नही ह

पराचीन काि र इसक उदाहरण कतरित ह lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo की इस धारणा को भारतद न इकततहास क

अिग-अिग दौर र बनत और कतबगड़त ददखाया सबस पहि चार वणो की िररत पड़ी सब कार को

सचार रप स चिन क कतिए दसर शबदो र कह तो शरर-कतवभाजन की िररत स इसका जनर हआ

lsquoकतहनदओ न अपन गर क कार र इस वणामशरर धमरम को इसी वासत बनाया कतजस र उन क दकसी कार र

कोई हजम न हो और उनिोगो न सासार क सब कारो र चार कार रखय सरझrsquo धरम कतवदया और किाओ का

कार िड़ाई और राजय परबाध का कार वयापार और धन और सब िोगो की सवा और रजदरी इन चार

कारो की सवयवसथा वािा वणामशरर दरअसि lsquoएक रतrsquo कतहनद वयवसथा या lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo थी पर

कािाातर र इस lsquoएकरतrsquo क भीतर जाकततवयवसथा कठोर हो गयी और िाहमण और शदर दोनो एक दसर क

कतखिाफ हो गए एकरत र कतवचछद पदा होन स कतहनद शकति करिोर हो गयी भारतद क अनसार आपस

का यह झगड़ा बड़ा कतवनाशकारी साकतबत हआ पकतबिक ओकतपकतनयन क कतबना वयाकतभचार और जयादकततयो का

अाधर था आग चि कर जनो क जरान र दफर lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo न जोर पकड़ा बकतलक भारतद जोर

दकर कहत ह दक जनो क रत की उततपकततत ही lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo स हई ldquoकतहनदओ क जब नाश क ददन

जब कतनकट आय तो आपस र परसपर बड़ा कतवरोध खड़ा हआ और उस काि र िाहमणो का बड़ा जोर था

वरन य और वणो पर जयादती करत थ तो वशय और कषकततरयो की रकतत इनस दफर गयी और बाब वािी बड़ी

37गराथाविी- 678

38वही

34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

36

कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

37

उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

38

ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 29: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

29

lsquoरनराना वरrsquo न चन पान का उलिख ह गभमनाश और बाि हतया क कतखिाफ सधार परयास दसरा

रहतवपणम योगदान ह कतववाह सासथा बीच र भी भाग की जा सकती ह इसकी सवीककतत ह कनया क कतहत र

अातरजातीय कतववाह की सवीककतत ह एक रहतवपणम बात गरओ और पाकतडतो क वयाकतभचार क साबाध र ह

भारतद क सारन पकतषटरागी रहातो और गरओ क वयाकतभचार का अनभव भी इसर शाकतरि ह

१८७४ र ककतववचन सधा र भारतद की एक रटपणणी छपी थी lsquoगर को कसा होना चाकतहएrsquo इसक अिावा

दो वषम पहि lsquoगर और रहातrsquo नार स भी एक रटपणणी कतिखकर वषणव पाडो-परोकतहतो की खिकर

आिोचना की गयी थी तिवार जी न कतिखा ह दक राददरो क भीतर कतसतरयो का यौन शोषण और वयाकतभचार

इतना भीषण था दक दयानाद भारतद क पकतषट सापरदाय को lsquoकषठी सापरदायrsquo कहत थ १८६० क आरमभ र ही

वषणव गोसाइयो क अनाचार और यौन शोषण क कतखिाफ बमबई र एक बड़ा आनदोिन पकतषटरागी

करसनदास रि जी क नततव र हो चका था वषणव बकतनया पषठभकतर स आय करसनदास जी उन नौजवानो

र थ कतजनहोन एकतिफ सटन कॉिज स आधकतनक कतशकषा परापत की थी गोसाइयो और रहाराजो िारा अपन

lsquoसमपरदाय की बह बरटयोrsquo क साथ होन वाि अतयाचार क कतखिाफ उनहोन िख कतिख और समपरदाय क

इकततहास को नए कतसर स सारन रखा पण स आए जदनाथ वजरतन जी रहाराज न करसनदास जी पर

रानहाकतन का रकदरा दायर कर ददया इसी रक़दर स वषणव रहातो की कई सारी बात जनता क सारन

परतयकष हई तिवार जी न इस lsquoरहाराज िाइबि कसrsquo को भारतीय नवजागरण र वषणव गोसाइयो क

दराचार और यौन शोषण क कतखिाफ हआ सबस बड़ा आनदोिन कहा ह भारतद पर इसका बहत परभाव

था यह कस १८६० र हआ था एक दशक बाद जब भारतद सापरदाय क कायो र रत थ उसी सरय कतिख

रह थ ldquoराददर कया होत ह रानो कतसतरयो की खान ह जसी चाकतहए िीकतजय- वराच अचछी सतरी भी वहाा जाकर

कतबगड़ जाती ह आशचयम यह ह दक कतजनको व िोग बटी कहत ह और जो उनक परिोक क रधयसथ ह और

कतजनको वो दीकषा दत ह उन कतसतरयो की ओर व आप ही बरी दकतषट स दखत ह ओर रर पयार कतहनदओ तर

इनक जाि र कब तक फा स रहोग और कया तरको यही सासार स बचावग और इनही क भरोस तरको

भगवान कतरिगाrdquo33

राददरो क धन-ऐशवयम और वयाकतभचार र डब जीवन क जीवात कतचतर हर बनारस क रखाकतचतर lsquoपरर

जोकतगनीrsquo क अिावा lsquoकाशी क छायाकतचतर क दो बर-भि फोटोगराफrsquo र भी कतरित ह यहाा भारतद का वयागय

अपन वषणव सापरदाय की आतरािोचना स सदकय ह lsquoपरर योकतगनीrsquo नाटक र आन वािा चररतर रारचादर

खद भारतद ही थ नाटक का सतरधार कहता ह दक भारतवषम की दीन हीन गकतत क कारण उसका तो

कतवशवास ही ईशवर स उठन िगा ह नाटक क पहि ही दशय र भारतद हर राददर क भीतर कतिए चित ह

33 वसधा डािकतरया िारा उदधत पषठ- ३३७

30

जहाा राददर र कार करन वािा साधारण टहिआ झपरटया हर ददखाई दता ह पजारी बाब अभी तक नीद

स नही जाग ह कयोदक आधी रात तक lsquoबठ क ही-ही-ठी-ठी करा चाह दफर सबर नीद कस खिrsquo कतनकतशचत

रप स यह टहिआ सबह सवर ही राददर र हाकतिर ह िदकन दवता अभी राददर र सोय ह रारचादर

परदशी ह काशी र बाहर स आय ह छकक जी और राखनदास इस रारचादर की आिोचना करत ह इनक

सावादो स पता चिता ह दक बाब रारचादर क यहाा ददन रात नाच गाना हआ करता ह और उनको अपनी

कतवदया का घराड ह दो चार ककतवतत भी बना ित ह पर lsquoककतवतत बनाव स का होव और ककतवतत बनावन कछ

अपन िोगन का कार थोर हय ई भााटन का कार हयrsquo छकक जी कहत ह दक अपन रागम का उनह कछ जञान

तो ह नही बस दो चार बात इधर उधर स सनकर कछ lsquoदकसतानी रतrsquo सीखकर पाकतडत बन दफरत ह

कतनकतशचत रप स य भारतद पर िगन वाि आरोप थ राददर र सवारी धनदास वकतनतादा बभकतकषत पाकतडत

आदद धरम क ठकदार ह इनकी पतनशीि सासककतत को दखकर रारचादर का दःख इन शबदो र वयि होता ह

lsquoहा कया इस नगर की यही दशा रहगी जहाा क िोग ऐस रखम ह वहाा आग दकस बात की वकतदध की

साभावना करrsquo lsquoवददकी हहासा हहासा न भवकततrsquo जस शरआती नाटको र भी करमकााडी परोकतहतवाद की

आिोचना की गयी ह राजा और परोकतहत कतरिकर वहाा जनता का शोषण करत ह जआ रददरा और

रथन की ऐययाश सासककतत क परतीक परोकतहतो का काजरवरटव दि इन परहसनो र रतम होता ह कतचतरगपत यर

स कहत ह ldquoरहाराज य गर िोग इनक चररतर का कछ न पकतछए कवि दमभाथम इनका कततिक रदरा और

ठगन क अथम इनकी पजा कभी भकति स ररतम को दाडवत न दकया होगा पर राददर र जो कतसतरयाा आयी उनको

सवमदा तकत रह रहाराज इनहोन अनको को कताथम दकया ह और इस सरय तो र lsquoशरीरारचनदर जी का

शरीकषण का दास हाrsquo पर जब सतरी सारन आव तो उसस कहग lsquoर रार तर जानकी र कषण तर गोपीrsquo और

कतसतरयाा भी ऐसी रखम दक दफर इन िोगो क पास जाती हrdquo34

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo की ररपोटम र सतरी सधारो क कायो की रहतता बतान क बाद जाकतत वयवसथा पर

इन सधारको का परहार कयो जररी था इस बताया गया ह कठोर जाकतत बनधनो क चित कस हर साि

जाकतत-बाहय होकर जाकतत र वापस आन क दकसी उपाय को न जान lsquoहजारो रनषय आयम पाकति स हर साि

छटत थ उसको इनहोन रोकाrsquo इस परकार इन सधारको न lsquoआयमधरमrsquo क भीतर जो पररवतमन करन चाह

उसस आयो की एकता दफर स बहाि हो गयी इसक अिावा अाधकतवशवासो को इनहोन दर दकया यही नही

बकतलक जहाा िोग lsquoरसिरानी पीर पगमबर औकतिया वीर ताकतजया गाजी कतरयाा कतजनहोन बड़ी ररतम तोड़कर

और तीथम पाटकर आयम धरम कतवधवास दकयाrsquo उनको भी पजन िग थ और lsquoकतवशवास तो रानो कतछनाि का अाग

हो रहा थाrsquo ऐसी िजजाजनक कतसथकतत स िोगो को बाहर कतनकािकर lsquoसार आयामवतम को शदध lsquoिायिrsquo कर

34 दख रारकतविास शराम पषठ १३१

31

ददयाrsquo lsquoिायिrsquo कर ददया गया इसका अथम आयम जाकतत को दफर स िायि करन र था आयम जाकतत क भीतर

कतबगाड़ क चित ही कतनमन जाकततयो का बड़ परान पर पिायन था इस इन िोगो न रोका और इनक परताप

स ही अनक छोट और सथानीय धरम-रतो क भीतर जो lsquoरसिरानीrsquo परभाव घस आय थ उनको दफर स lsquoबड़ी

ररतमrsquo की कतनषठा र िाया जा सका इस परकार कतहनद धरम और वणामशरर क परकतत दफर स िोगो को lsquoिायिrsquo

दकया यह lsquoिायकतिटीrsquo भारतद की रकतडकि वषणवता क जनरत क कतिए भी जररी था तिवार जी जब

आयमसराकतजयो की lsquoकााकततकारीrsquo भकतरका ददखात ह तब आयम सराज िारा आयामवतम को िायि बनान वािी

इस भकतरका की साकतशलषटता पर जयादा बात नही करत भारतद दयानाद क कााकततकारी परयासो र lsquoिायिrsquo

बनान की परदकया उसी वक़त दख रह थ और इसी कारण ररपोटम र दयानाद की आिोचना धयान दन िायक

ह सवारी जी न ldquoजाि को छरी स न काटकर दसर जाि ही स कतजसको काटना चाहा इसी स दोनो आपस

र उिझ गए और इसका पररणार गह कतवचछद उतपनन हआrdquo गह कतवचछद का रतिब कतहनद धरम र गह

कतवचछद जबदक कशवचादर सन क बार र कहा गया दक उनहोन जाि काटकर भकति की उचछकतित िहरो का

पररषकत पथ परकट दकया इस परकार रकतडकि वषणवता की lsquoअनयताrsquo और परररिक भकति क परशसत पथ क

सवीकार का कतनषकषम कतवचार सभा का भी कतनषकषम था धयान दन िायक ह दक कशवचादर की आिोचना उनक

कतचतत कतवकषप क कारण की गयी थी जहाा lsquoईसारसीह आदद उनस कतरित हrsquo य एक दकसर का इिहारी

अनभव था कतजस भारतद अपनी वषणवता स बाहर रखत ह ईशवर न इस ररपोटम पर अपना रत सरकतकषत

रख कतिया और भारतद कतिखत ह ldquoइसको दख कर इस पर कया आजञा हई और व िोग कहाा भज गए यह

जब कर भी वहाा जायग और दफर िौट कर आ सक ग तो पाठक िोगो को बतिावग या आप िोग कछ

ददन पीछ आप ही जानोगrdquo

३ जनरत और वषणवता

ककतववचन सधा ९ राचम १८७२ र भारतद न lsquoPublic Opinion In Indiarsquo नार स अागरजी र

एक िख परकाकतशत दकया िख र उनहोन कहा दक कई सददयो दक दासता क बाद भारतवषमहहादसतान अब

जाकर कतिरटश राषटर क सवोचच कतनयातरण र आया ह दश धीर-धीर सभयता और परबोधन की पकतशचरी दकरणो

क सहार दरन और कशासन क रतय-तलय कतनदरा स जाग रहा ह कतिरटश शासन की परगकततशीि नीकततयो का

परभाव यहाा की बहरपी आबादी पर पड़ रहा ह

ldquoBut in this progressive state national energy and zeal sympathy and

disintiredness are waiting to make both the conqueror and the conquered to act in

32

concert and in harmony and hence we have the broad distinction of white and

black still But in this country many are the blemishes that adhere to us to be

eradicated and many are the shortcomings that are hovering around us to be done

away with before we can have a public opinion here in its true senserdquo35

गोर और काि क बड़ भद को छोड़ कर कतवजता अागरजो और भारतीयो क बीच एक सराजन तो बन गया ह

पर अनदरनी ददककत अभी भी राह बाए खड़ी ह रौका ह दक इस परगकततशीि कतसथकतत का फायदा उठा कर हर

एक सचच जनरत का कतनरामण कर सचच िोकरत क कतनरामण र अादरनी बाधाएा कया थी भारतद न इस

आग सपषट करत हए कतिखा-

ldquoRace antagonism rivalry and mutual misunderstanding are the favourite

occupations of the aristocratic class Want of confidence among all classes of men

are the prevailing characteristic of the nation and above all multifarious castes and

creeds with there numerous forms of religion and local habits and customs which all

combined have kept the progressive policy at a stand still True it is that a

representative Government is a boon to this country and true it is that Sir Bartle

fregravere a man of vast experience and a good statesman has found out that in village

community we can have public opinion but with all his experience he has lost sight

of our national defects ndash defects which we ourselves know and which no foreigner

can catch at a glancerdquo36

भारतद इस बात को िकर कतनकतशचत ह दक िोकरत और परकततकतनकतधरिक सासथाओ क बहतर कतवकास क कतिए

सीध-सीध कतवदशी रॉडि कभी सफि नही हो पायगा ऐसा इसकतिए कयादक हरारी आपसी कतवकतभननताओ

और झगड़ो को कोई बाहरीकतवदशी सतता कभी भी परी तरह सरझ नही सकती lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo नार

35भारतद गराथाविी -6 361

36 वही

33

स भारतद का एक दसरा िख इस अागरजी वाि िख क दो साि बाद अपरि सन १८७४ र हररशचनदर

रगजीन र छपा पकतबिक ओकतपकतनयन कया बिा ह इस साफ़ करत हए भारतद िख क आरमभ र ही कहत

ह ldquoपकतबिक ओकतपकतनयन अथामत सब साधारण िोगो की राय कया वसत ह और इसर दकतना जोर ह और

इसक कतिए कया हो सकता ह यह परशन ठहरा तो इसका साधारण उततर यही ह दक यह वह वसत ह जो

सासार को एक कर सकती ह गागा की धरा दफर कतहरािय पर चढ़ा ि जा सकती ह सययम को पकतशचर उगा

सकती ह और चाह तो ईशवर को भी पकड़ क कठपतिी की भााकतत नचा सकती हrdquo37 यह पकतबिक

ओकतपकतनयन lsquoएक रतrsquo होना ह जस अिग अिग चार पतिी िककतड़यो को एक साथ बााध दन स उस

तोड़ना करठन हो जाता ह उसी तरह एक रत होन स बड़ स बड़ा बरी भी हरारा कछ कतबगाड़ नही सकता

बहत स िोगो का रत एक हो तो वह शकति बन जाती ह हिारो आदरी की बकतदध एक हो जाए तो ldquoऐसा

कौन कार ह जो न हो सक तो यह कतसदधाात हआ दक कतनशचय सब िोगो क रत र बड़ी सारथयम ह इसस यह

कतसदध हआ दक बिो स बड़ा बि एक रत ही हrdquo38

आग भारतद कहत ह दक यह जनरत और उसकी शकति हहादसतान क कतिए कोई नई बात नही ह

पराचीन काि र इसक उदाहरण कतरित ह lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo की इस धारणा को भारतद न इकततहास क

अिग-अिग दौर र बनत और कतबगड़त ददखाया सबस पहि चार वणो की िररत पड़ी सब कार को

सचार रप स चिन क कतिए दसर शबदो र कह तो शरर-कतवभाजन की िररत स इसका जनर हआ

lsquoकतहनदओ न अपन गर क कार र इस वणामशरर धमरम को इसी वासत बनाया कतजस र उन क दकसी कार र

कोई हजम न हो और उनिोगो न सासार क सब कारो र चार कार रखय सरझrsquo धरम कतवदया और किाओ का

कार िड़ाई और राजय परबाध का कार वयापार और धन और सब िोगो की सवा और रजदरी इन चार

कारो की सवयवसथा वािा वणामशरर दरअसि lsquoएक रतrsquo कतहनद वयवसथा या lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo थी पर

कािाातर र इस lsquoएकरतrsquo क भीतर जाकततवयवसथा कठोर हो गयी और िाहमण और शदर दोनो एक दसर क

कतखिाफ हो गए एकरत र कतवचछद पदा होन स कतहनद शकति करिोर हो गयी भारतद क अनसार आपस

का यह झगड़ा बड़ा कतवनाशकारी साकतबत हआ पकतबिक ओकतपकतनयन क कतबना वयाकतभचार और जयादकततयो का

अाधर था आग चि कर जनो क जरान र दफर lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo न जोर पकड़ा बकतलक भारतद जोर

दकर कहत ह दक जनो क रत की उततपकततत ही lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo स हई ldquoकतहनदओ क जब नाश क ददन

जब कतनकट आय तो आपस र परसपर बड़ा कतवरोध खड़ा हआ और उस काि र िाहमणो का बड़ा जोर था

वरन य और वणो पर जयादती करत थ तो वशय और कषकततरयो की रकतत इनस दफर गयी और बाब वािी बड़ी

37गराथाविी- 678

38वही

34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

36

कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

37

उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

38

ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 30: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

30

जहाा राददर र कार करन वािा साधारण टहिआ झपरटया हर ददखाई दता ह पजारी बाब अभी तक नीद

स नही जाग ह कयोदक आधी रात तक lsquoबठ क ही-ही-ठी-ठी करा चाह दफर सबर नीद कस खिrsquo कतनकतशचत

रप स यह टहिआ सबह सवर ही राददर र हाकतिर ह िदकन दवता अभी राददर र सोय ह रारचादर

परदशी ह काशी र बाहर स आय ह छकक जी और राखनदास इस रारचादर की आिोचना करत ह इनक

सावादो स पता चिता ह दक बाब रारचादर क यहाा ददन रात नाच गाना हआ करता ह और उनको अपनी

कतवदया का घराड ह दो चार ककतवतत भी बना ित ह पर lsquoककतवतत बनाव स का होव और ककतवतत बनावन कछ

अपन िोगन का कार थोर हय ई भााटन का कार हयrsquo छकक जी कहत ह दक अपन रागम का उनह कछ जञान

तो ह नही बस दो चार बात इधर उधर स सनकर कछ lsquoदकसतानी रतrsquo सीखकर पाकतडत बन दफरत ह

कतनकतशचत रप स य भारतद पर िगन वाि आरोप थ राददर र सवारी धनदास वकतनतादा बभकतकषत पाकतडत

आदद धरम क ठकदार ह इनकी पतनशीि सासककतत को दखकर रारचादर का दःख इन शबदो र वयि होता ह

lsquoहा कया इस नगर की यही दशा रहगी जहाा क िोग ऐस रखम ह वहाा आग दकस बात की वकतदध की

साभावना करrsquo lsquoवददकी हहासा हहासा न भवकततrsquo जस शरआती नाटको र भी करमकााडी परोकतहतवाद की

आिोचना की गयी ह राजा और परोकतहत कतरिकर वहाा जनता का शोषण करत ह जआ रददरा और

रथन की ऐययाश सासककतत क परतीक परोकतहतो का काजरवरटव दि इन परहसनो र रतम होता ह कतचतरगपत यर

स कहत ह ldquoरहाराज य गर िोग इनक चररतर का कछ न पकतछए कवि दमभाथम इनका कततिक रदरा और

ठगन क अथम इनकी पजा कभी भकति स ररतम को दाडवत न दकया होगा पर राददर र जो कतसतरयाा आयी उनको

सवमदा तकत रह रहाराज इनहोन अनको को कताथम दकया ह और इस सरय तो र lsquoशरीरारचनदर जी का

शरीकषण का दास हाrsquo पर जब सतरी सारन आव तो उसस कहग lsquoर रार तर जानकी र कषण तर गोपीrsquo और

कतसतरयाा भी ऐसी रखम दक दफर इन िोगो क पास जाती हrdquo34

lsquoकतसिकट ककतरटीrsquo की ररपोटम र सतरी सधारो क कायो की रहतता बतान क बाद जाकतत वयवसथा पर

इन सधारको का परहार कयो जररी था इस बताया गया ह कठोर जाकतत बनधनो क चित कस हर साि

जाकतत-बाहय होकर जाकतत र वापस आन क दकसी उपाय को न जान lsquoहजारो रनषय आयम पाकति स हर साि

छटत थ उसको इनहोन रोकाrsquo इस परकार इन सधारको न lsquoआयमधरमrsquo क भीतर जो पररवतमन करन चाह

उसस आयो की एकता दफर स बहाि हो गयी इसक अिावा अाधकतवशवासो को इनहोन दर दकया यही नही

बकतलक जहाा िोग lsquoरसिरानी पीर पगमबर औकतिया वीर ताकतजया गाजी कतरयाा कतजनहोन बड़ी ररतम तोड़कर

और तीथम पाटकर आयम धरम कतवधवास दकयाrsquo उनको भी पजन िग थ और lsquoकतवशवास तो रानो कतछनाि का अाग

हो रहा थाrsquo ऐसी िजजाजनक कतसथकतत स िोगो को बाहर कतनकािकर lsquoसार आयामवतम को शदध lsquoिायिrsquo कर

34 दख रारकतविास शराम पषठ १३१

31

ददयाrsquo lsquoिायिrsquo कर ददया गया इसका अथम आयम जाकतत को दफर स िायि करन र था आयम जाकतत क भीतर

कतबगाड़ क चित ही कतनमन जाकततयो का बड़ परान पर पिायन था इस इन िोगो न रोका और इनक परताप

स ही अनक छोट और सथानीय धरम-रतो क भीतर जो lsquoरसिरानीrsquo परभाव घस आय थ उनको दफर स lsquoबड़ी

ररतमrsquo की कतनषठा र िाया जा सका इस परकार कतहनद धरम और वणामशरर क परकतत दफर स िोगो को lsquoिायिrsquo

दकया यह lsquoिायकतिटीrsquo भारतद की रकतडकि वषणवता क जनरत क कतिए भी जररी था तिवार जी जब

आयमसराकतजयो की lsquoकााकततकारीrsquo भकतरका ददखात ह तब आयम सराज िारा आयामवतम को िायि बनान वािी

इस भकतरका की साकतशलषटता पर जयादा बात नही करत भारतद दयानाद क कााकततकारी परयासो र lsquoिायिrsquo

बनान की परदकया उसी वक़त दख रह थ और इसी कारण ररपोटम र दयानाद की आिोचना धयान दन िायक

ह सवारी जी न ldquoजाि को छरी स न काटकर दसर जाि ही स कतजसको काटना चाहा इसी स दोनो आपस

र उिझ गए और इसका पररणार गह कतवचछद उतपनन हआrdquo गह कतवचछद का रतिब कतहनद धरम र गह

कतवचछद जबदक कशवचादर सन क बार र कहा गया दक उनहोन जाि काटकर भकति की उचछकतित िहरो का

पररषकत पथ परकट दकया इस परकार रकतडकि वषणवता की lsquoअनयताrsquo और परररिक भकति क परशसत पथ क

सवीकार का कतनषकषम कतवचार सभा का भी कतनषकषम था धयान दन िायक ह दक कशवचादर की आिोचना उनक

कतचतत कतवकषप क कारण की गयी थी जहाा lsquoईसारसीह आदद उनस कतरित हrsquo य एक दकसर का इिहारी

अनभव था कतजस भारतद अपनी वषणवता स बाहर रखत ह ईशवर न इस ररपोटम पर अपना रत सरकतकषत

रख कतिया और भारतद कतिखत ह ldquoइसको दख कर इस पर कया आजञा हई और व िोग कहाा भज गए यह

जब कर भी वहाा जायग और दफर िौट कर आ सक ग तो पाठक िोगो को बतिावग या आप िोग कछ

ददन पीछ आप ही जानोगrdquo

३ जनरत और वषणवता

ककतववचन सधा ९ राचम १८७२ र भारतद न lsquoPublic Opinion In Indiarsquo नार स अागरजी र

एक िख परकाकतशत दकया िख र उनहोन कहा दक कई सददयो दक दासता क बाद भारतवषमहहादसतान अब

जाकर कतिरटश राषटर क सवोचच कतनयातरण र आया ह दश धीर-धीर सभयता और परबोधन की पकतशचरी दकरणो

क सहार दरन और कशासन क रतय-तलय कतनदरा स जाग रहा ह कतिरटश शासन की परगकततशीि नीकततयो का

परभाव यहाा की बहरपी आबादी पर पड़ रहा ह

ldquoBut in this progressive state national energy and zeal sympathy and

disintiredness are waiting to make both the conqueror and the conquered to act in

32

concert and in harmony and hence we have the broad distinction of white and

black still But in this country many are the blemishes that adhere to us to be

eradicated and many are the shortcomings that are hovering around us to be done

away with before we can have a public opinion here in its true senserdquo35

गोर और काि क बड़ भद को छोड़ कर कतवजता अागरजो और भारतीयो क बीच एक सराजन तो बन गया ह

पर अनदरनी ददककत अभी भी राह बाए खड़ी ह रौका ह दक इस परगकततशीि कतसथकतत का फायदा उठा कर हर

एक सचच जनरत का कतनरामण कर सचच िोकरत क कतनरामण र अादरनी बाधाएा कया थी भारतद न इस

आग सपषट करत हए कतिखा-

ldquoRace antagonism rivalry and mutual misunderstanding are the favourite

occupations of the aristocratic class Want of confidence among all classes of men

are the prevailing characteristic of the nation and above all multifarious castes and

creeds with there numerous forms of religion and local habits and customs which all

combined have kept the progressive policy at a stand still True it is that a

representative Government is a boon to this country and true it is that Sir Bartle

fregravere a man of vast experience and a good statesman has found out that in village

community we can have public opinion but with all his experience he has lost sight

of our national defects ndash defects which we ourselves know and which no foreigner

can catch at a glancerdquo36

भारतद इस बात को िकर कतनकतशचत ह दक िोकरत और परकततकतनकतधरिक सासथाओ क बहतर कतवकास क कतिए

सीध-सीध कतवदशी रॉडि कभी सफि नही हो पायगा ऐसा इसकतिए कयादक हरारी आपसी कतवकतभननताओ

और झगड़ो को कोई बाहरीकतवदशी सतता कभी भी परी तरह सरझ नही सकती lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo नार

35भारतद गराथाविी -6 361

36 वही

33

स भारतद का एक दसरा िख इस अागरजी वाि िख क दो साि बाद अपरि सन १८७४ र हररशचनदर

रगजीन र छपा पकतबिक ओकतपकतनयन कया बिा ह इस साफ़ करत हए भारतद िख क आरमभ र ही कहत

ह ldquoपकतबिक ओकतपकतनयन अथामत सब साधारण िोगो की राय कया वसत ह और इसर दकतना जोर ह और

इसक कतिए कया हो सकता ह यह परशन ठहरा तो इसका साधारण उततर यही ह दक यह वह वसत ह जो

सासार को एक कर सकती ह गागा की धरा दफर कतहरािय पर चढ़ा ि जा सकती ह सययम को पकतशचर उगा

सकती ह और चाह तो ईशवर को भी पकड़ क कठपतिी की भााकतत नचा सकती हrdquo37 यह पकतबिक

ओकतपकतनयन lsquoएक रतrsquo होना ह जस अिग अिग चार पतिी िककतड़यो को एक साथ बााध दन स उस

तोड़ना करठन हो जाता ह उसी तरह एक रत होन स बड़ स बड़ा बरी भी हरारा कछ कतबगाड़ नही सकता

बहत स िोगो का रत एक हो तो वह शकति बन जाती ह हिारो आदरी की बकतदध एक हो जाए तो ldquoऐसा

कौन कार ह जो न हो सक तो यह कतसदधाात हआ दक कतनशचय सब िोगो क रत र बड़ी सारथयम ह इसस यह

कतसदध हआ दक बिो स बड़ा बि एक रत ही हrdquo38

आग भारतद कहत ह दक यह जनरत और उसकी शकति हहादसतान क कतिए कोई नई बात नही ह

पराचीन काि र इसक उदाहरण कतरित ह lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo की इस धारणा को भारतद न इकततहास क

अिग-अिग दौर र बनत और कतबगड़त ददखाया सबस पहि चार वणो की िररत पड़ी सब कार को

सचार रप स चिन क कतिए दसर शबदो र कह तो शरर-कतवभाजन की िररत स इसका जनर हआ

lsquoकतहनदओ न अपन गर क कार र इस वणामशरर धमरम को इसी वासत बनाया कतजस र उन क दकसी कार र

कोई हजम न हो और उनिोगो न सासार क सब कारो र चार कार रखय सरझrsquo धरम कतवदया और किाओ का

कार िड़ाई और राजय परबाध का कार वयापार और धन और सब िोगो की सवा और रजदरी इन चार

कारो की सवयवसथा वािा वणामशरर दरअसि lsquoएक रतrsquo कतहनद वयवसथा या lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo थी पर

कािाातर र इस lsquoएकरतrsquo क भीतर जाकततवयवसथा कठोर हो गयी और िाहमण और शदर दोनो एक दसर क

कतखिाफ हो गए एकरत र कतवचछद पदा होन स कतहनद शकति करिोर हो गयी भारतद क अनसार आपस

का यह झगड़ा बड़ा कतवनाशकारी साकतबत हआ पकतबिक ओकतपकतनयन क कतबना वयाकतभचार और जयादकततयो का

अाधर था आग चि कर जनो क जरान र दफर lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo न जोर पकड़ा बकतलक भारतद जोर

दकर कहत ह दक जनो क रत की उततपकततत ही lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo स हई ldquoकतहनदओ क जब नाश क ददन

जब कतनकट आय तो आपस र परसपर बड़ा कतवरोध खड़ा हआ और उस काि र िाहमणो का बड़ा जोर था

वरन य और वणो पर जयादती करत थ तो वशय और कषकततरयो की रकतत इनस दफर गयी और बाब वािी बड़ी

37गराथाविी- 678

38वही

34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

36

कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

37

उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

38

ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 31: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

31

ददयाrsquo lsquoिायिrsquo कर ददया गया इसका अथम आयम जाकतत को दफर स िायि करन र था आयम जाकतत क भीतर

कतबगाड़ क चित ही कतनमन जाकततयो का बड़ परान पर पिायन था इस इन िोगो न रोका और इनक परताप

स ही अनक छोट और सथानीय धरम-रतो क भीतर जो lsquoरसिरानीrsquo परभाव घस आय थ उनको दफर स lsquoबड़ी

ररतमrsquo की कतनषठा र िाया जा सका इस परकार कतहनद धरम और वणामशरर क परकतत दफर स िोगो को lsquoिायिrsquo

दकया यह lsquoिायकतिटीrsquo भारतद की रकतडकि वषणवता क जनरत क कतिए भी जररी था तिवार जी जब

आयमसराकतजयो की lsquoकााकततकारीrsquo भकतरका ददखात ह तब आयम सराज िारा आयामवतम को िायि बनान वािी

इस भकतरका की साकतशलषटता पर जयादा बात नही करत भारतद दयानाद क कााकततकारी परयासो र lsquoिायिrsquo

बनान की परदकया उसी वक़त दख रह थ और इसी कारण ररपोटम र दयानाद की आिोचना धयान दन िायक

ह सवारी जी न ldquoजाि को छरी स न काटकर दसर जाि ही स कतजसको काटना चाहा इसी स दोनो आपस

र उिझ गए और इसका पररणार गह कतवचछद उतपनन हआrdquo गह कतवचछद का रतिब कतहनद धरम र गह

कतवचछद जबदक कशवचादर सन क बार र कहा गया दक उनहोन जाि काटकर भकति की उचछकतित िहरो का

पररषकत पथ परकट दकया इस परकार रकतडकि वषणवता की lsquoअनयताrsquo और परररिक भकति क परशसत पथ क

सवीकार का कतनषकषम कतवचार सभा का भी कतनषकषम था धयान दन िायक ह दक कशवचादर की आिोचना उनक

कतचतत कतवकषप क कारण की गयी थी जहाा lsquoईसारसीह आदद उनस कतरित हrsquo य एक दकसर का इिहारी

अनभव था कतजस भारतद अपनी वषणवता स बाहर रखत ह ईशवर न इस ररपोटम पर अपना रत सरकतकषत

रख कतिया और भारतद कतिखत ह ldquoइसको दख कर इस पर कया आजञा हई और व िोग कहाा भज गए यह

जब कर भी वहाा जायग और दफर िौट कर आ सक ग तो पाठक िोगो को बतिावग या आप िोग कछ

ददन पीछ आप ही जानोगrdquo

३ जनरत और वषणवता

ककतववचन सधा ९ राचम १८७२ र भारतद न lsquoPublic Opinion In Indiarsquo नार स अागरजी र

एक िख परकाकतशत दकया िख र उनहोन कहा दक कई सददयो दक दासता क बाद भारतवषमहहादसतान अब

जाकर कतिरटश राषटर क सवोचच कतनयातरण र आया ह दश धीर-धीर सभयता और परबोधन की पकतशचरी दकरणो

क सहार दरन और कशासन क रतय-तलय कतनदरा स जाग रहा ह कतिरटश शासन की परगकततशीि नीकततयो का

परभाव यहाा की बहरपी आबादी पर पड़ रहा ह

ldquoBut in this progressive state national energy and zeal sympathy and

disintiredness are waiting to make both the conqueror and the conquered to act in

32

concert and in harmony and hence we have the broad distinction of white and

black still But in this country many are the blemishes that adhere to us to be

eradicated and many are the shortcomings that are hovering around us to be done

away with before we can have a public opinion here in its true senserdquo35

गोर और काि क बड़ भद को छोड़ कर कतवजता अागरजो और भारतीयो क बीच एक सराजन तो बन गया ह

पर अनदरनी ददककत अभी भी राह बाए खड़ी ह रौका ह दक इस परगकततशीि कतसथकतत का फायदा उठा कर हर

एक सचच जनरत का कतनरामण कर सचच िोकरत क कतनरामण र अादरनी बाधाएा कया थी भारतद न इस

आग सपषट करत हए कतिखा-

ldquoRace antagonism rivalry and mutual misunderstanding are the favourite

occupations of the aristocratic class Want of confidence among all classes of men

are the prevailing characteristic of the nation and above all multifarious castes and

creeds with there numerous forms of religion and local habits and customs which all

combined have kept the progressive policy at a stand still True it is that a

representative Government is a boon to this country and true it is that Sir Bartle

fregravere a man of vast experience and a good statesman has found out that in village

community we can have public opinion but with all his experience he has lost sight

of our national defects ndash defects which we ourselves know and which no foreigner

can catch at a glancerdquo36

भारतद इस बात को िकर कतनकतशचत ह दक िोकरत और परकततकतनकतधरिक सासथाओ क बहतर कतवकास क कतिए

सीध-सीध कतवदशी रॉडि कभी सफि नही हो पायगा ऐसा इसकतिए कयादक हरारी आपसी कतवकतभननताओ

और झगड़ो को कोई बाहरीकतवदशी सतता कभी भी परी तरह सरझ नही सकती lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo नार

35भारतद गराथाविी -6 361

36 वही

33

स भारतद का एक दसरा िख इस अागरजी वाि िख क दो साि बाद अपरि सन १८७४ र हररशचनदर

रगजीन र छपा पकतबिक ओकतपकतनयन कया बिा ह इस साफ़ करत हए भारतद िख क आरमभ र ही कहत

ह ldquoपकतबिक ओकतपकतनयन अथामत सब साधारण िोगो की राय कया वसत ह और इसर दकतना जोर ह और

इसक कतिए कया हो सकता ह यह परशन ठहरा तो इसका साधारण उततर यही ह दक यह वह वसत ह जो

सासार को एक कर सकती ह गागा की धरा दफर कतहरािय पर चढ़ा ि जा सकती ह सययम को पकतशचर उगा

सकती ह और चाह तो ईशवर को भी पकड़ क कठपतिी की भााकतत नचा सकती हrdquo37 यह पकतबिक

ओकतपकतनयन lsquoएक रतrsquo होना ह जस अिग अिग चार पतिी िककतड़यो को एक साथ बााध दन स उस

तोड़ना करठन हो जाता ह उसी तरह एक रत होन स बड़ स बड़ा बरी भी हरारा कछ कतबगाड़ नही सकता

बहत स िोगो का रत एक हो तो वह शकति बन जाती ह हिारो आदरी की बकतदध एक हो जाए तो ldquoऐसा

कौन कार ह जो न हो सक तो यह कतसदधाात हआ दक कतनशचय सब िोगो क रत र बड़ी सारथयम ह इसस यह

कतसदध हआ दक बिो स बड़ा बि एक रत ही हrdquo38

आग भारतद कहत ह दक यह जनरत और उसकी शकति हहादसतान क कतिए कोई नई बात नही ह

पराचीन काि र इसक उदाहरण कतरित ह lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo की इस धारणा को भारतद न इकततहास क

अिग-अिग दौर र बनत और कतबगड़त ददखाया सबस पहि चार वणो की िररत पड़ी सब कार को

सचार रप स चिन क कतिए दसर शबदो र कह तो शरर-कतवभाजन की िररत स इसका जनर हआ

lsquoकतहनदओ न अपन गर क कार र इस वणामशरर धमरम को इसी वासत बनाया कतजस र उन क दकसी कार र

कोई हजम न हो और उनिोगो न सासार क सब कारो र चार कार रखय सरझrsquo धरम कतवदया और किाओ का

कार िड़ाई और राजय परबाध का कार वयापार और धन और सब िोगो की सवा और रजदरी इन चार

कारो की सवयवसथा वािा वणामशरर दरअसि lsquoएक रतrsquo कतहनद वयवसथा या lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo थी पर

कािाातर र इस lsquoएकरतrsquo क भीतर जाकततवयवसथा कठोर हो गयी और िाहमण और शदर दोनो एक दसर क

कतखिाफ हो गए एकरत र कतवचछद पदा होन स कतहनद शकति करिोर हो गयी भारतद क अनसार आपस

का यह झगड़ा बड़ा कतवनाशकारी साकतबत हआ पकतबिक ओकतपकतनयन क कतबना वयाकतभचार और जयादकततयो का

अाधर था आग चि कर जनो क जरान र दफर lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo न जोर पकड़ा बकतलक भारतद जोर

दकर कहत ह दक जनो क रत की उततपकततत ही lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo स हई ldquoकतहनदओ क जब नाश क ददन

जब कतनकट आय तो आपस र परसपर बड़ा कतवरोध खड़ा हआ और उस काि र िाहमणो का बड़ा जोर था

वरन य और वणो पर जयादती करत थ तो वशय और कषकततरयो की रकतत इनस दफर गयी और बाब वािी बड़ी

37गराथाविी- 678

38वही

34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

36

कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

37

उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

38

ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 32: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

32

concert and in harmony and hence we have the broad distinction of white and

black still But in this country many are the blemishes that adhere to us to be

eradicated and many are the shortcomings that are hovering around us to be done

away with before we can have a public opinion here in its true senserdquo35

गोर और काि क बड़ भद को छोड़ कर कतवजता अागरजो और भारतीयो क बीच एक सराजन तो बन गया ह

पर अनदरनी ददककत अभी भी राह बाए खड़ी ह रौका ह दक इस परगकततशीि कतसथकतत का फायदा उठा कर हर

एक सचच जनरत का कतनरामण कर सचच िोकरत क कतनरामण र अादरनी बाधाएा कया थी भारतद न इस

आग सपषट करत हए कतिखा-

ldquoRace antagonism rivalry and mutual misunderstanding are the favourite

occupations of the aristocratic class Want of confidence among all classes of men

are the prevailing characteristic of the nation and above all multifarious castes and

creeds with there numerous forms of religion and local habits and customs which all

combined have kept the progressive policy at a stand still True it is that a

representative Government is a boon to this country and true it is that Sir Bartle

fregravere a man of vast experience and a good statesman has found out that in village

community we can have public opinion but with all his experience he has lost sight

of our national defects ndash defects which we ourselves know and which no foreigner

can catch at a glancerdquo36

भारतद इस बात को िकर कतनकतशचत ह दक िोकरत और परकततकतनकतधरिक सासथाओ क बहतर कतवकास क कतिए

सीध-सीध कतवदशी रॉडि कभी सफि नही हो पायगा ऐसा इसकतिए कयादक हरारी आपसी कतवकतभननताओ

और झगड़ो को कोई बाहरीकतवदशी सतता कभी भी परी तरह सरझ नही सकती lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo नार

35भारतद गराथाविी -6 361

36 वही

33

स भारतद का एक दसरा िख इस अागरजी वाि िख क दो साि बाद अपरि सन १८७४ र हररशचनदर

रगजीन र छपा पकतबिक ओकतपकतनयन कया बिा ह इस साफ़ करत हए भारतद िख क आरमभ र ही कहत

ह ldquoपकतबिक ओकतपकतनयन अथामत सब साधारण िोगो की राय कया वसत ह और इसर दकतना जोर ह और

इसक कतिए कया हो सकता ह यह परशन ठहरा तो इसका साधारण उततर यही ह दक यह वह वसत ह जो

सासार को एक कर सकती ह गागा की धरा दफर कतहरािय पर चढ़ा ि जा सकती ह सययम को पकतशचर उगा

सकती ह और चाह तो ईशवर को भी पकड़ क कठपतिी की भााकतत नचा सकती हrdquo37 यह पकतबिक

ओकतपकतनयन lsquoएक रतrsquo होना ह जस अिग अिग चार पतिी िककतड़यो को एक साथ बााध दन स उस

तोड़ना करठन हो जाता ह उसी तरह एक रत होन स बड़ स बड़ा बरी भी हरारा कछ कतबगाड़ नही सकता

बहत स िोगो का रत एक हो तो वह शकति बन जाती ह हिारो आदरी की बकतदध एक हो जाए तो ldquoऐसा

कौन कार ह जो न हो सक तो यह कतसदधाात हआ दक कतनशचय सब िोगो क रत र बड़ी सारथयम ह इसस यह

कतसदध हआ दक बिो स बड़ा बि एक रत ही हrdquo38

आग भारतद कहत ह दक यह जनरत और उसकी शकति हहादसतान क कतिए कोई नई बात नही ह

पराचीन काि र इसक उदाहरण कतरित ह lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo की इस धारणा को भारतद न इकततहास क

अिग-अिग दौर र बनत और कतबगड़त ददखाया सबस पहि चार वणो की िररत पड़ी सब कार को

सचार रप स चिन क कतिए दसर शबदो र कह तो शरर-कतवभाजन की िररत स इसका जनर हआ

lsquoकतहनदओ न अपन गर क कार र इस वणामशरर धमरम को इसी वासत बनाया कतजस र उन क दकसी कार र

कोई हजम न हो और उनिोगो न सासार क सब कारो र चार कार रखय सरझrsquo धरम कतवदया और किाओ का

कार िड़ाई और राजय परबाध का कार वयापार और धन और सब िोगो की सवा और रजदरी इन चार

कारो की सवयवसथा वािा वणामशरर दरअसि lsquoएक रतrsquo कतहनद वयवसथा या lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo थी पर

कािाातर र इस lsquoएकरतrsquo क भीतर जाकततवयवसथा कठोर हो गयी और िाहमण और शदर दोनो एक दसर क

कतखिाफ हो गए एकरत र कतवचछद पदा होन स कतहनद शकति करिोर हो गयी भारतद क अनसार आपस

का यह झगड़ा बड़ा कतवनाशकारी साकतबत हआ पकतबिक ओकतपकतनयन क कतबना वयाकतभचार और जयादकततयो का

अाधर था आग चि कर जनो क जरान र दफर lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo न जोर पकड़ा बकतलक भारतद जोर

दकर कहत ह दक जनो क रत की उततपकततत ही lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo स हई ldquoकतहनदओ क जब नाश क ददन

जब कतनकट आय तो आपस र परसपर बड़ा कतवरोध खड़ा हआ और उस काि र िाहमणो का बड़ा जोर था

वरन य और वणो पर जयादती करत थ तो वशय और कषकततरयो की रकतत इनस दफर गयी और बाब वािी बड़ी

37गराथाविी- 678

38वही

34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

36

कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

37

उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

38

ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 33: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

33

स भारतद का एक दसरा िख इस अागरजी वाि िख क दो साि बाद अपरि सन १८७४ र हररशचनदर

रगजीन र छपा पकतबिक ओकतपकतनयन कया बिा ह इस साफ़ करत हए भारतद िख क आरमभ र ही कहत

ह ldquoपकतबिक ओकतपकतनयन अथामत सब साधारण िोगो की राय कया वसत ह और इसर दकतना जोर ह और

इसक कतिए कया हो सकता ह यह परशन ठहरा तो इसका साधारण उततर यही ह दक यह वह वसत ह जो

सासार को एक कर सकती ह गागा की धरा दफर कतहरािय पर चढ़ा ि जा सकती ह सययम को पकतशचर उगा

सकती ह और चाह तो ईशवर को भी पकड़ क कठपतिी की भााकतत नचा सकती हrdquo37 यह पकतबिक

ओकतपकतनयन lsquoएक रतrsquo होना ह जस अिग अिग चार पतिी िककतड़यो को एक साथ बााध दन स उस

तोड़ना करठन हो जाता ह उसी तरह एक रत होन स बड़ स बड़ा बरी भी हरारा कछ कतबगाड़ नही सकता

बहत स िोगो का रत एक हो तो वह शकति बन जाती ह हिारो आदरी की बकतदध एक हो जाए तो ldquoऐसा

कौन कार ह जो न हो सक तो यह कतसदधाात हआ दक कतनशचय सब िोगो क रत र बड़ी सारथयम ह इसस यह

कतसदध हआ दक बिो स बड़ा बि एक रत ही हrdquo38

आग भारतद कहत ह दक यह जनरत और उसकी शकति हहादसतान क कतिए कोई नई बात नही ह

पराचीन काि र इसक उदाहरण कतरित ह lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo की इस धारणा को भारतद न इकततहास क

अिग-अिग दौर र बनत और कतबगड़त ददखाया सबस पहि चार वणो की िररत पड़ी सब कार को

सचार रप स चिन क कतिए दसर शबदो र कह तो शरर-कतवभाजन की िररत स इसका जनर हआ

lsquoकतहनदओ न अपन गर क कार र इस वणामशरर धमरम को इसी वासत बनाया कतजस र उन क दकसी कार र

कोई हजम न हो और उनिोगो न सासार क सब कारो र चार कार रखय सरझrsquo धरम कतवदया और किाओ का

कार िड़ाई और राजय परबाध का कार वयापार और धन और सब िोगो की सवा और रजदरी इन चार

कारो की सवयवसथा वािा वणामशरर दरअसि lsquoएक रतrsquo कतहनद वयवसथा या lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo थी पर

कािाातर र इस lsquoएकरतrsquo क भीतर जाकततवयवसथा कठोर हो गयी और िाहमण और शदर दोनो एक दसर क

कतखिाफ हो गए एकरत र कतवचछद पदा होन स कतहनद शकति करिोर हो गयी भारतद क अनसार आपस

का यह झगड़ा बड़ा कतवनाशकारी साकतबत हआ पकतबिक ओकतपकतनयन क कतबना वयाकतभचार और जयादकततयो का

अाधर था आग चि कर जनो क जरान र दफर lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo न जोर पकड़ा बकतलक भारतद जोर

दकर कहत ह दक जनो क रत की उततपकततत ही lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo स हई ldquoकतहनदओ क जब नाश क ददन

जब कतनकट आय तो आपस र परसपर बड़ा कतवरोध खड़ा हआ और उस काि र िाहमणो का बड़ा जोर था

वरन य और वणो पर जयादती करत थ तो वशय और कषकततरयो की रकतत इनस दफर गयी और बाब वािी बड़ी

37गराथाविी- 678

38वही

34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

36

कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

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उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

38

ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

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34

पाचायत र इन िोगो न वद धरम छोड़ ददया और इसी एक क पकक होन क वासत कि की कछ रखयता न

रखखी करम रखय रखखा और वासत साघ शरी साघ इतयादद बड़ बड़ साघ बनाय गए और उनका सब कार रानो

उस सरय पकतबिक ओकतपकतनयन ही पर होता रहा आग चि कर इन साघो र भी कमरम की वयवसथा र आन

वाि िोग भी धरम की आड़ और बहान स कतरित थइसस अात र इन सबो र कतवघन पड़ा और शवतामबर

ददगाबर बौदध इतयादद जन रत क अनक भद हो गएrdquo39 इस परकार भारतद क कतिए पकतबिक ओकतपकतनयन क

करिोर पड़न और साापरदाकतयक कतहतो क कारण कतहनदओ का एका दफर स एक बार जाता रहा उनक

अनसार जनो क काि क पीछ िमब सरय तक lsquoऐसा भारी एकाrsquo का सरय नही आया जब lsquoसार कतहनदसतान

क राह स एक आवािrsquo कतनकि उनह इस परकार क एका का परयास पनः शाकराचायम क परयतनो र ददखता ह

शाकराचायम क पीछ वषणव आचायो न वही ढाग चिाना चाहा पर वह न चिा न चिन का कारण भारतद

क अनसार वयवहार र भद का बना रहना ह यदयकतप वषणव रत र जाकतत पाकतत नही राना गया था पर

lsquoनागर और रहाराषटर वषणवrsquo अगर lsquoअहीर वषणवrsquo क घर परसाद ि िता तो उसी सरय जाकतत स बाहर कर

ददया जाता भारतद न आधकतनक सरय र ऐस ही lsquoएकाrsquo का परयास राजा राररोहनराय क यहाा िकतकषत

दकया उनका िाहम रत काफी जोर-शोर स िाखो रनषयो को एक रत करत जा रहा ह उनकी एकता का

फि यह ह दक lsquoिाहमो रररज कतबिrsquo पास हो गया40

भारतद कहत ह दक एकरत या जनरत का रतिब यह नही दक सब िोग एक ही रत को रानन

िग भारतद कतिखत ह ldquoऊपर की बोिचाि स बहत िोगो को यह सादह होगा दक ररा रत ह दक

कतहनदसतान र सब िोग एक रत क हो जाएा तभी इनक पकतबिक ओकतपकतनयन र जोर आवगा रगर ररा यह

रत नही ह कयोदक यह तो इशवर की इचछा क कतवरदध ह जो ईशवर की इचछा होती दक सब िोग एक रत

रान तो सासार र इतन रत कयो होत ररा कहना और ररा रत और ररी इचछा तथा ररा परा जोर इसी

पर ह दक रत और सासारी कारो स कया समबनध रत या धमरम कतवशवास का नार ह और वह ददि र रखन

और कतवशवास करन की चीि ह उसस वयवहार स कया समबनध पर शोच ह दक हरार धरमशासतर वाि वदयक

को भी धमरम बना गए तो अब हरिोगो को यही उकतचत ह दक धमरम और वयवहार दोनो को एक र न सान

ततीस करोड़ रनषय ततीस करोड़ दवी दवताओ को अिग अिग रनो पर जहाा वयौहार का कार पड़ सब

एक हो जाओ और जब अपन कतहत की बात आव तब एक सी आवाि दोrdquo41 अथामत lsquoपकतबिक ओकतपकतनयनrsquo

वयकतिगत कतवशवास और रत क बदि वयवहार की चीि ह यह वयवहार और कतहत राजनीकततक उददशय की

एकता की िररत स कतनधामररत ह राजय की कतवचारधारा और पकतबिक ओकतपकतनयन क अातसबाधो की

39 वही ८०-८१

40वही 81

41वही 81

35

पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

36

कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

37

उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

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ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

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पड़ताि र भारतद राजतातर की वधता या राजा की वधता या या कह की राजय की वधता क कतिए पकतबिक

ओकतपकतनयन की कनदरीय भकतरका को अतीत र ऐसी ही वयवसथा की सररपता स पहचानत ह यह पहचान

कतहनद सारानय बोध क सहार एक साधारण सारानय बोध क कतनरामण की परदकया क बतौर सारन आता ह

आदशम राजा की पहचान यह थी की वह परजा क पकतबिक ओकतपकतनयन क अनसार कार कर भारतद क कतिए

कतितानी शासन क सारन इस परान आदशम को सारन रखन स एक ओर तो lsquoजातीयताrsquo क कतनरामण की

रहती आवशयकता परी होती ददख रही थी तथा lsquoआपसी वर और फटrsquo को खतर करन र वयवहाररक

एकता क कतिए भी यह बहत आवशयक था दसरी ओर सरकार क बाहरी हसतकषप को कतनरातर कर करत हए

lsquoसवशासनrsquo की परदकया तज हो सकती थी एकरत होन स सरकार क साथ रोितोि करन की ताकत कतरि

सकती थी अागरजी वाि िख र भारतद न जब कहा दक हरार अपन साबाधो की जरटिता और खाकतरयो को

कतवदशी आाख नही पहचान सकती तो वह परकततकतनकतधरिक वयवसथा क वयावहाररक सफिता क कतिए

वासतकतवक बाधा को सारन रख रह थ गरामय सारदाकतयकता का आदशम और पकतबिक ओकतपकतनयन की आदशम

राजवयवसथा दोनो क वतमरान रपाातरण क कतिए या उसक सरकािीन रहावर क कतिए खद भारतद lsquoहहादी

बजमआ पकतबिक सफीयरrsquo र रत कतनरामण कर रह थ यह रत कतनरामण सारानय बोध की आिोचना सारानय

बोध क सहार करन स कतवककतसत हो सकती थी आपसी एका और एक रत का जोर कतहनदसतान र शर स ही

रहा ह- यह ददखाना पकतबिक ओकतपकतनयन क आधकतनक िोकताकतनतरक रहावर को अतीत र खोज कतनकािन

और इस परकार कतिरटश सबजकट क रप र िोगो क कतनज-पहचान क कतनरामण क कतिए आवशयक था

इन िखो र इकततहास और कतरथ का अदभत घाि-रि सपषट दखा जा सकता ह इस परकार का एका

अाकततर रप स कतरथकीय राषटर का कतनरामण करता ह यह कतरथकीय राषटर सामपरदाकतयक और अाकततर रप स

परकततदकयावादी राजनीकतत क कतिए खद आधार बनता जाता ह वषणवता का पनरनमरामण पकतबिक ओकतपकतनयन

का ही एक कतहससा था परबोधन और तारकम कता की अाकततर सीरा अकतसरता क कतसदधाात र पयमवकतसत होती ह

अकारण नही दक फाकतसजर सकिररजर कतहनद सामपरदाकतयकता जसी राजनीकततक परवकतततयाा परबोधन की

सीरा अथामत अकतसरता को ही अपनी धरी बनाती ह उननीसवी सदी क उततराधम की खोज क नार पर हए

वतमरान शोध इनर स दकसी एक परवकततत को दकसी एक अकतसरता को क दर र रखन क चित इन कतवचारधारो

की वासतकतवक जगह को निरो स ओझि कर दत ह परशन यहाा अकतसरता रातर क बरकस अनकतसरता को

सोचन का ह

धरम क वयावहाररक पकष पर कतिखना भारतद क कवि साापरदाकतयक उददशयो क चित न था पकतबिक

ओकतपकतनयन क समबनध र कतजस वयावहाररकता की बात वह बार बार सारन रखत ह उसी को धयान र

रखन स भारतद की उन रचनाओ को सरझा जा सकता ह जहाा वह कतवकतवध पजा कतवकतधयो पर सकतवसतार

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कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

37

उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

38

ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 36: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

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कतिखत ह lsquoपरषोततररास कतवधानrsquo lsquoकारततमक कमरमकतवकतधrsquo lsquoकारतततमक नकतरकतततककतयrsquo lsquoरागमशीषमरहराrsquo

lsquoराघसनान कतवकतधrsquo आदद करमकााडी पसतको क रि र धरम क िौदकक आचरण कतनयरो का कतनदश ह भाषा र

ऐसी रचनाएा पारापररक कतहनद उपासना क दहनादनी अचनम कतनयरो क कतसथर करन की आशा स ही भारतद न

कतिखा था इसक साथ-साथ भारतद न भकति कतवषयक सतरो की भाषा टीका भी कतिखी ह कतजन गराथो को

भाषा टीका क कतिए चना गया ह व भी न कवि साापरदाकतयक उददशय स ह बकतलक वषणव एकरत बनान की

परदकया का ही कतहससा ह भारतद वषणवता को भारतवषम का lsquoपरकत धरमrsquo कहत थ lsquoवषणवता और

भारतवषमrsquo नार स एक िख भारतद न १८८४ र कतिखा था धयान दन वािी बात ह दक इस िख र उनहोन

lsquoहहादसतानrsquo शबद का इसतराि नही दकया ह जबदक अकतधकााश िखो और साबोधनो र भारतद lsquoहहादसतानrsquo

कतिखत ह यह अातर उनक साभाकतवत शरोताओ को धयान र रखन स सपषट होता ह इस िख र उनका

साबोधन कतवशष रप स कतहनद जनता क परकतत ह जो आपसी रतरतानतरो और वर भाव क चित एक रत

नही हो पा रह ह आताररक उपासना और भकति का रहावरा ही वह कषतर ह जहाा एका की साभावना भारतद

को ददखती ह lsquoभारतवषमrsquo और lsquoकतहनदrsquo जनसरदाय को साबोकतधत करना बकतिया वाि वयाखयान क आकतखरी

कतहसस र भी दरषटवय ह

इस िख र भारतद न कई सार उदाहरण और एक ख़ास ऐकततहाकतसक वयाखया क सहार वषणवता

को भारत का सबस पराचीन और रि रत साकतबत दकया ह भकति और उपासना क कतवकास क साथ कतवषण

पजा की पराचीनता क समबनध-कतनरपण का यह उदयोग पवीकतवदया क कतविानो क साथ-साथ नरटव कतविानो न

भी खब दकया भारतद का िकषय यहाा वषणवता क सरनवयवादी इकततहास िखन का ह lsquoआयम-कतवषण की

कनदरीयताrsquo और lsquoभारतवषमrsquo इनक अकतनवायम और सारभत ररशतो क सहार कतजस lsquoभारतीय धरमrsquo की परसतावना

भारतद रखत ह हर दखग दक वही कतवरशम अकतधकााश र आग चि कर भी भकति कतवषयक हहादी चचामओ क

क दर र थोड़ बहत उिटफर क साथ बना रहता ह lsquoकरम जञान और भकतिrsquo धरम क इन तीन रपो और उनक

पवामपर साबाधो क सवाभाकतवक कतवकास का या उनका रनोवजञाकतनक इकततहास का उपासना या भकति क

उदय और कतवसतार का यह सबस रहतवपणम आखयान न कवि भारतद क यहाा कतरिता ह वरन आग चि

कर वषणव भकति और भकति रातर क पराचीन भारतीय रि रप की वयाखया का आधार बनता ह करम जञान

और उपासना र उपासना ही रखय धरम-रागम सरझा गया ह यह कतवकास रनषय रातर क सवाभाकतवक

कतवकास का कर ह जो सब दशो और धरो र दखा जा सकता ह- ऐसा भारतद का सपषट रत ह इसी कारण

ldquoवषणव रत की परवकततत भारतवषम र सवाभाकतवकी ह जगत र उपासना रागम ही रखय धमरमरागम सरझा

जाता ह दकसतान रसिरान िाहम बौदध उपासना सबक यहाा रखय ह दकनत बौदधो र अनक कतसदधो की

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उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

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ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

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उपासना और तप आदद शभ करो क पराधानय स वह रत हरिोगो क सरातम रत क सदशय ह और दकसतान

िाहम रसिरान आदद क धरम र भकति की परधानता स य सब वषणवो क सदशय हrdquo42

भारतवषम की हडडी िह र कतरिा हआ ह वषणव रत- इसक परराण क कतिए भारतद बहत सार

उदाहरण सारन रखत ह य उदाहरण अकतधकााश र सारानय बोध को तषट करन वाि ह या या कह दक

सारानय बोध को वषणवता क पकष र पनयोकतजत करत ह रसिन पहिा ही परराण उनक िख क कतपछि

कतहसस र सवीकायम अातरवमरोध को खतर कर घोषणा करता ह- पहि तो कबीर दाद कतसकख बाउि आदद

कतजतन पाथ ह सब वषणवो की शाखा परशाखाएा ह और सारा भारतवषम इन पाथो स छाया हआ ह दसरा

उदाहरण अवतार और कतवषण क शाशवत साबादध की घोषणा ह- ldquoअवतार और दकसी दव का नही कयोदक

इतना उपकार ही (दसय दिन आदद) और दकसी स नही साकतधत हआrdquo रानो कतवषण क य अवतार वासतव

ह तीसर उदहारण र भारतद नारो का सराजशासतर सारन रखत ह- ldquoनारो को िीकतजय तो कया सतरी कया

परष आध नार भारतवषम क कतवषण समबनधी ह और आध र जगत हrdquo यह सवकषण भारतद क अनसार

वजञाकतनक ह कयोदक ldquoकतवशवास न हो किकटरी क दफतर स रदमरशरारी क कागि कतनकाि क दख िीकतजय वा

एक ददन डाकघर र बठ कर कतचरटठयो क कतिफाफो की सर कीकतजयrdquo सासकत क गरनथ पराणो क कतवषय वरत

तयौहार बयाह क गीत तीथो का नार और रहातमय नददयो का रहातमय ररन क बाद का lsquoरार रार

सतयrsquo नाटक और तराशो क कतवषय- रारिीिा रासिीिा आदद साकलप कीकतजय तो कतवषण कतवषण आचरन

कीकतजय तो कतवषण कतवषण सगग को पढ़ना हो तो रार रार कतशषटाचार र रार रार िाहमणो क बाद वरागी

को ही हाथ जोड़ना नगर और गााव क नार औषकतधयो र भी रारबाण-नारायण चणम और इस परकार

दनाददन जीवन र धयान द तो सब ओर वषणवता

भारतद न रोिरराम क जीवन स इतन उदाहरण दकर यह साकतबत करना चाहत थ दक वषणवता

कोई lsquoनोररटवrsquo धरम नही कोई कतसदधाात कतनरपण नही कोई रठ- समपरदाय नही वरन भारत का lsquoपरकत-धरमrsquo

ह जो िोग lsquoएवरीड परकतकटसrsquo का शासतर रचना चाहत ह उसक खतरो को सरझन क कतिए भारतद एक

रफीद उदाहरण ह रोिरराम का सराजशासतर एकता और कटगरी कतनरामण र जब परवतत होता ह भि ही

उसका घोकतषत साकलप उनकी आिोचना हो तब भी वह अनयता और आतर क समबनध कतनरपण र ही परवतत

होता ह यह परवकततत परबोधन की आिोचना को भी अपन अिग-अिग रपो र अकतसरता कतनरपण र ही

पयमवकतसत होना ददखाता ह इस परवकततत का सरकािीन नारा बहिता और कतवभननता की सकतहषण-सवीकायमता

ह जो अाततः अकतसरता क कतनयर स ही चाकतित ह और lsquoपीड़ा का सराजशासतरrsquo रचती ह और कतजसक सारन

अनयतर बराई हहासा ह यह अकतसरता का कतनयर एक ओर अगर अतीत र भारत को खोजता ह तो दसरी

42वही 283

38

ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह

Page 38: भारतेंदु और भक्ति · 5 शक की क्तनगाह से देखते थे.. आदद आदद।”7 इसी तरह ‘हहंदी

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ओर परबोधन की दशज कतभननता की तिाश पर अकततशय जोर दता ह कहना न होगा दक lsquoजनरतrsquo और

lsquoवषणवताrsquo दोनो भारतद क कतिए सारानय कतहनद बोध की एकता क कतिए िररी रहावर थ कतजनक साथ

कतिरटश सराकारी सासथाओ क साथ तािरि बनाया जा सकता था और एक ऐस lsquoसवशासनrsquo की ओर बढ़ा

जा सकता था कतजसकी झिक आग lsquoहोररिrsquo की कतवचारधारा र कतरिता ह