ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई...

168
पेमच ंद ििमला

Upload: others

Post on 06-Sep-2019

14 views

Category:

Documents


0 download

TRANSCRIPT

Page 1: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

पेमच ंद

ििम मला

Page 2: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

ििममला

तो बाबू उदयभािुलाल के पििवाि मे बीसो ही पाणी थे, कोई ममेिा भाई था, कोई फुफेिा, कोई भांजा था, कोई भतीजा, लेिकि यहां हमे

उिसे कोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि थीं औि कुटुमब के दििद पािणयो को आशय देिा उिका कतवय ही था। हमािा समबनध तो केवल उिकी दोिो कनयाओं से है, िजिमे बडी का िाम ििमलम ा औि छोटी का कृषणा था। अभी कल दोिो साथ-साथ गिुडया खेलती थीं। ििमलम ा का पनदहवां साल था, कृषणा का दसवां, िफि भी उिके सवभाव मे कोई िवशेष अनति ि था। दोिो चचंल, िखलािडि औि सैि-तमाशे पि जाि देती थीं। दोिो गिुडया का धमूधाम से बयाह किती थीं, सदा काम से जी चुिाती थीं। मां पकुािती िहती थी, पि दोिो कोठे पि िछपी बैठी िहती थीं िक ि जािे िकस काम के िलए बुलाती है। दोिो अपिे भाइयो से लडती थीं, िौकिो को डांटती थीं औि बाजे की आवाज सुिते ही दाि पि आकि खडी हो जाती थीं पि आज एकाएक एक ऐसी बात हो गई है, िजसिे बडी को बडी औि छोटी को छोटी बिा िदया है। कृषणा यही है, पि ििमलम ा बडी गमभीि, एकानत-िपय औि लजजाशील हो गई है। इधि महीिो से बाबू उदयभािुलाल ििमलम ा के िववाह की बातचीत कि िहे थे। आज उिकी मेहित िठकािे लगी है। बाबू भालचनद िसनहा के जयेष पुत भुवि मोहि िसनहा से बात पककी हो गई है। वि के िपता िे कह िदया है िक आपकी खुशी ही दहेज दे, या ि दे, मुझे इसकी पिवाह िहीं; हां, बािात मे जो लोग जाये उिका आदि-सतकाि अचछी तिह होिा चिहए, िजसमे मेिी औि आपकी जग-हंसाई ि हो। बाबू उदयभािुलाल थे तो वकील, पि संचय कििा ि जािते थे। दहेज उिके सामिे किठि समसया थी। इसिलए जब वि के िपता िे सवयं कह िदया िक मुझे दहेज की पिवाह िहीं, तो मािो उनहे आंखे िमल गई। डिते थे, ि जािे िकस-िकस के सामिे हाथ फैलािा पडे, दो-तीि महाजिो को ठीक कि िखा था। उिका अिुमाि था िक हाथ िोकिे पि भी बीस हजाि से कम खच म ि होगे। यह आशासि पाकि वे खशुी के मािे फूले ि समाये।

यो

इसकी सूचिा िे अजाि बिलका को मुंह ढांप कि एक कोिे मे िबठा िखा है। उसके हदय मे एक िविचत शंका समा गई है, िो-िोम मे एक अजात भय का संचाि हो गया है, ि जािे कया होगा। उसके मि मे वे उमंगे िहीं

2

Page 3: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

है, जो युवितयो की आखंो मे ितिछी िचतवि बिकि, ओठंो पि मधुि हासय बिकि औि अगंो मे आलसय बिकि पकट होती है। िहीं वहां अिभलाषाएं िहीं है वहां केवल शकंाएं, िचनताएं औि भीर कलपिाएं है। यौवि का अभी तक पूण म पकाश िहीं हुआ है।

कृषणा कुछ-कुछ जािती है, कुछ-कुछ िहीं जािती। जािती है, बहि को अचछे-अचछे गहिे िमलेगे, दाि पि बाजे बजेगे, मेहमाि आयेगे, िाच होगा-यह जािकि पसनि है औि यह भी जािती है िक बहि सबके गले िमलकि िोयेगी, यहां से िो-धोकि िवदा हो जायेगी, मै अकेली िह जाऊंगी- यह जािकि दु:खी है, पि यह िहीं जािती िक यह इसिलए हो िहा है, माताजी औि िपताजी कयो बहि को इस घि से ििकालिे को इतिे उतसुक हो िहे है। बहि िे तो िकसी को कुछ िहीं कहा, िकसी से लडाई िहीं की, कया इसी तिह एक िदि मुझे भी ये लोग ििकाल देगे? मै भी इसी तिह कोिे मे बैठकि िोऊंगी औि िकसी को मुझ पि दया ि आयेगी? इसिलए वह भयभीत भी है।

संधया का समय था, ििमलम ा छत पि जािकि अकेली बैठी आकाश की औि तिृषत िेतो से ताक िही थी। ऐसा मि होता था पखं होते, तो वह उड जाती औि इि सािे झंझटो से छूट जाती। इस समय बहुधा दोिो बहिे कहीं सैि कििे जाया किती थीं। बगघी खाली ि होती, तो बगीचे मे ही टहला कितीं, इसिलए कृषणा उसे खोजती िफिती थी, जब कहीं ि पाया, तो छत पि आई औि उसे देखते ही हंसकि बोली-तुम यहां आकि िछपी बठैी हो औि मै तुमहे ढंूढती िफिती हंू। चलो, बगघी तैयाि किा आयी हंू।

ििमलम ा- िे उदासीि भाव से कहा-तू जा, मै ि जाऊंगी।कृषणा-िहीं मेिी अचछी दीदी, आज जरि चलो। देखो, कैसी ठणडी-ठणडी

हवा चल िही है।ििमलम ा-मेिा मि िहीं चाहता, तू चली जा।कृषणा की आंखे डबडबा आई। कांपती हुई आवाज से बोली- आज तुम

कयो िहीं चलतीं मुझसे कयो िहीं बोलतीं कयो इधि-उधि िछपी-िछपी िफिती हो? मेिा जी अकेले बैठे-बैठे घबडाता है। तुम ि चलोगी, तो मै भी ि जाऊगी। यहीं तुमहािे साथ बैठी िहंूगी।

ििमलम ा-औि जब मै चली जाऊंगी तब कया किेगी? तब िकसके साथ खेलेगी औि िकसके साथ घूमिे जायेगी, बता?

3

Page 4: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

कृषणा-मै भी तुमहािे साथ चलूंगी। अकेले मुझसे यहां ि िहा जायेगा।ििमलम ा मुसकिाकि बोली-तुझे अममा ि जािे देगी।

कृषणा-तो मै भी तुमहे ि जािे दंगूी। तुम अममा से कह कयो िहीं देती िक मै ि जाउंगी।

ििमलम ा- कह तो िही हंू, कोई सुिता है!

कृषणा-तो कया यह तुमहािा घि िहीं है?

ििमलम ा-िहीं, मेिा घि होता, तो कोई कयो जबदमसती ििकाल देता?कृषणा-इसी तिह िकसी िदि मै भी ििकाल दी जाऊंगी?ििमलम ा-औि िहीं कया तू बैठी िहेगी! हम लडिकयां है, हमािा घि कहीं

िहीं होता।कृषणा-चनदि भी ििकाल िदया जायेगा?ििमलम ा-चनदि तो लडका है, उसे कौि ििकालेगा?कृषणा-तो लडिकयां बहुत खिाब होती होगी?ििमलम ा-खिाब ि होतीं, तो घि से भगाई कयो जाती?कृषणा-चनदि इतिा बदमाश है, उसे कोई िहीं भगाता। हम-तुम तो

कोई बदमाशी भी िहीं कितीं।एकाएक चनदि धम-धम किता हुआ छत पि आ पहंुचा औि ििमलम ा

को देखकि बोला-अचछा आप यहां बैठी है। ओहो! अब तो बाजे बजेगे, दीदी दलुहि बिेगी, पालकी पि चढेगी, ओहो! ओहो!

चनदि का पूिा िाम चनदभािु िसनहा था। ििमलम ा से तीि साल छोटा औि कृषणा से दो साल बडा।

ििमलम ा-चनदि, मुझे िचढाओगे तो अभी जाकि अममा से कह दंगूी।चनद-तो िचढती कयो हो तुम भी बाजे सुििा। ओ हो-हो! अब आप

दलुहि बिेगी। कयो िकशिी, तू बाजे सुिेगी ि वैसे बाजे तूिे कभी ि सुिे होगे।

कृषणा-कया बैणड से भी अचछे होगे?

चनद-हां-हां, बैणड से भी अचछे, हजाि गिेु अचछे, लाख गुिे अचछे। तुम जािो कया एक बैणड सुि िलया, तो समझिे लगीं िक उससे अचछे बाजे िहीं होते। बाजे बजािेवाले लाल-लाल विदमयां औि काली-काली टोिपयां पहिे होगे। ऐसे खबूसूित मालूम होगे िक तुमसे कया कहंू आितशबािजयां भी होगी,

4

Page 5: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

हवाइयां आसमाि मे उड जायेगी औि वहां तािो मे लगेगी तो लाल, पीले, हिे,

िीले तािे टूट-टूटकि िगिेगे। बडा बजा आयेगा।कृषणा-औि कया-कया होगा चनदि, बता दे मेिे भैया?चनद-मेिे साथ घूमिे चल, तो िासते मे सािी बाते बता दं।ू ऐसे-ऐसे

तमाशे होगे िक देखकि तेिी आंखे खुल जायेगी। हवा मे उडती हुई पिियां होगी, सचमचु की पिियां।कृषणा-अचछा चलो, लेिकि ि बताओगे, तो मारंगी।

चनदभािू औि कृषणा चले गए, पि ििमलम ा अकेली बठैी िह गई। कृषणा के चले जािे से इस समय उसे बडा कोभ हुआ। कृषणा, िजसे वह पाणो से भी अिधक पयाि किती थी, आज इतिी ििठुि हो गई। अकेली छोडकि चली गई। बात कोई ि थी, लेिकि दु:खी हदय दखुती हुई आंख है,

िजसमे हवा से भी पीडा होती है। ििमलम ा बडी देि तक बैठी िोती िही। भाई-

बहि, माता-िपता, सभी इसी भांित मुझे भूल जायेगे, सबकी आंखे िफि जायेगी, िफि शायद इनहे देखिे को भी तिस जाऊं।

बाग मे फूल िखले हुए थे। मीठी-मीठी सुगनध आ िही थी। चैत की शीतल मनद समीि चल िही थी। आकाश मे तािे िछटके हुए थे। ििमलम ा इनहीं शोकमय िवचािो मे पडी-पडी सो गई औि आंख लगते ही उसका मि सवपि-देश मे, िवचििे लगा। कया देखती है िक सामिे एक िदी लहिे माि िही है औि वह िदी के िकिािे िाव की बाठ देख िही है। सनधया का समय है। अधेंिा िकसी भयकंि जनतु की भांित बढता चला आता है। वह घोि िचनता मे पडी हुई है िक कैसे यह िदी पाि होगी, कैसे पहंुचूगंी! िो िही है िक कहीं िात ि हो जाये, िहीं तो मै अकेली यहां कैसे िहंूगी। एकाएक उसे एक सुनदि िौका घाट की ओि आती िदखाई देती है। वह खशुी से उछल पडती है औि जयोही िाव घाट पि आती है, वह उस पि चढिे के िलए बढती है,

लेिकि जयोही िाव के पटिे पि पैि िखिा चाहती है, उसका मललाह बोल उठता है-तेिे िलए यहां जगह िहीं है! वह मललाह की खुशामद किती है,

उसके पैिो पडती है, िोती है, लेिकि वह यह कहे जाता है, तेिे िलए यहां जगह िहीं है। एक कण मे िाव खुल जाती है। वह िचलला-िचललाकि िोिे लगती है। िदी के ििजिम तट पि िात भि कैसे िहेगी, यह सोच वह िदी मे कूद कि उस िाव को पकडिा चाहती है िक इतिे मे कहीं से आवाज आती है-

ठहिो, ठहिो, िदी गहिी है, डूब जाओगी। वह िाव तुमहािे िलए िहीं है, म ै5

Page 6: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

आता हंू, मेिी िाव मे बठै जाओ। मै उस पाि पहंुचा दंगूा। वह भयभीत होकि इधि-उधि देखती है िक यह आवाज कहां से आई? थोडी देि के बाद एक छोटी-सी डोगी आती िदखाई देती है। उसमे ि पाल है, ि पतवाि औि ि मसतूल। पेदा फटा हुआ है, तखते टूटे हुए, िाव मे पािी भिा हुआ है औि एक आदमी उसमे से पािी उलीच िहा है। वह उससे कहती है, यह तो टूटी हुई है,

यह कैसे पाि लगेगी? मललाह कहता है- तुमहािे िलए यही भेजी गई है, आकि बैठ जाओ! वह एक कण सोचती है- इसमे बैठंू या ि बठंूै? अनत मे वह ििशय किती है- बैठ जाऊं। यहां अकेली पडी िहिे से िाव मे बठै जािा िफि भी अचछा है। िकसी भयंकि जनतु के पेट मे जािे से तो यही अचछा है िक िदी मे डूब जाऊं। कौि जािे, िाव पाि पहंुच ही जाये। यह सोचकि वह पाणो की मुटठी मे िलए हुए िाव पि बठै जाती है। कुछ देि तक िाव डगमगाती हुई चलती है, लेिकि पितकण उसमे पािी भिता जाता है। वह भी मललाह के साथ दोिो हाथो से पािी उलीचिे लगती है। यहां तक िक उिके हाथ िह जाते है, पि पािी बढता ही चला जाता है, आिखि िाव चककि खािे लगती है, मालूम होती है- अब डूबी, अब डूबी। तब वह िकसी अदशय सहािे के िलए दोिो हाथ फैलाती है, िाव िीचे जाती है औि उसके पिै उखड जाते है। वह जोि से िचललाई औि िचललाते ही उसकी आखें खुल गई। देखा, तो माता सामिे खडी उसका कनधा पकडकि िहला िही थी।

दो

बू उदयभािुलाल का मकाि बाजाि बिा हुआ है। बिामदे मे सुिाि के हथौडे औि कमिे मे दजी की सुईयां चल िही है। सामिे िीम

के िीचे बढई चािपाइयां बिा िहा है। खपिैल मे हलवाई के िलए भटठा खोदा गया है। मेहमािो के िलए अलग एक मकाि ठीक िकया गया है। यह पबनध िकया जा िहा है िक हिेक मेहमाि के िलए एक-एक चािपाई, एक-एक कुसी औि एक-एक मेज हो। हि तीि मेहमािो के िलए एक-एक कहाि िखिे की तजवीज हो िही है। अभी बािात आिे मे एक महीिे की देि है, लेिकि तैयािियां अभी से हो िही है। बािाितयो का ऐसा सतकाि िकया जाये िक िकसी को जबाि िहलािे का मौका ि िमले। वे लोग भी याद किे िक िकसी के यहां बािात मे गये थे। पूिा मकाि बतिम ो से भिा हुआ है। चाय के सेट

बा

6

Page 7: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

है, िाशते की तशतिियां, थाल, लोटे, िगलास। जो लोग िितय खाट पि पडे हुकका पीते िहते थे, बडी ततपिता से काम मे लगे हुए है। अपिी उपयोिगता िसद कििे का ऐसा अचछा अवसि उनहे िफि बहुत िदिो के बाद िमलेगा। जहां एक आदमी को जािा होता है, पांच दौडते है। काम कम होता है, हुललड अिधक। जिा-जिा सी बात पि घणटो तकम -िवतकम होता है औि अनत मे वकील साहब को आकि ििणयम कििा पडता है। एक कहता है, यह घी खिाब है, दसूिा कहता है, इससे अचछा बाजाि मे िमल जाये तो टांग की िाह से ििकल जाऊं। तीसिा कहता है, इसमे तो हीक आती है। चौथा कहता है,

तुमहािी िाक ही सड गई है, तुम कया जािो घी िकसे कहते है। जब से यहां आये हो, घी िमलिे लगा है, िहीं तो घी के दशिम भी ि होते थे! इस पि तकिाि बढ जाती है औि वकील साहब को झगडा चुकािा पडता है।

िात के िौ बजे थे। उदयभािुलाल अनदि बैठे हुए खच म का तखमीिा लगा िहे थे। वह पाय: िोज ही तखमीिा लगते थे पि िोज ही उसमे कुछ-ि-

कुछ पििवतिम औि पििवधिम कििा पडता था। सामिे कलयाणी भौहे िसकोडे हुए खडी थी। बाबू साहब िे बडी देि के बाद िसि उठाया औि बोले-दस हजाि से कम िहीं होता, बिलक शायद औि बढ जाये।

कलयाणी-दस िदि मे पांच से दस हजाि हुए। एक महीिे मे तो शायद एक लाख िौबत आ जाये।

उदयभािु-कया करं, जग हंसाई भी तो अचछी िहीं लगती। कोई िशकायत हुई तो लोग कहेगे, िाम बडे दशिम थोडे। िफि जब वह मुझसे दहेज एक पाई िहीं लेते तो मेिा भी कतवम य है िक मेहमािो के आदि-सतकाि मे कोई बात उठा ि िखूं।

कलयाणी- जब से बहा िे सिृि िची, तब से आज तक कभी बािाितयो को कोई पसनि िहीं िख सकता। उनहे दोष ििकालिे औि ििनदा कििे का कोई-ि-कोई अवसि िमल ही जाता है। िजसे अपिे घि सूखी िोिटयां भी मयससि िहीं वह भी बािात मे जाकि तािाशाह बि बैठता है। तेल खुशबूदाि िहीं, साबुि टके सेि का जािे कहां से बटोि लाये, कहाि बात िहीं सुिते,

लालटेिे धुआं देती है, कुिसयम ो मे खटमल है, चािपाइयां ढीली है, जिवासे की जगह हवादाि िहीं। ऐसी-ऐसी हजािो िशकायते होती िहती है। उनहे आप कहां तक िोिकयेगा? अगि यह मौका ि िमला, तो औि कोई ऐब ििकाल िलये जायेगे। भई, यह तेल तो िंिडयो के लगािे लायक है, हमे तो सादा तेल

7

Page 8: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

चािहए। जिाब िे यह साबुि िहीं भेजा है, अपिी अमीिी की शाि िदखाई है,

मािो हमिे साबुि देखा ही िहीं। ये कहाि िहीं यमदतू है, जब देिखये िसि पि सवाि! लालटेिे ऐसी भेजी है िक आंखे चमकिे लगती है, अगि दस-पांच िदि इस िोशिी मे बैठिा पडे तो आंखे फूट जाएं। जिवासा कया है, अभागे का भागय है, िजस पि चािो तिफ से झोके आते िहते है। मै तो िफि यही कहंूगी िक बािितयो के िखिो का िवचाि ही छोड दो।

उदयभािु- तो आिखि तुम मुझे कया कििे को कहती हो?

कलयाणी-कह तो िही हंू, पकका इिादा कि लो िक मै पांच हजाि से अिधक ि खच म करंगा। घि मे तो टका है िहीं, कज म ही का भिोसा ठहिा, तो इतिा कज म कयो ले िक िजनदगी मे अदा ि हो। आिखि मेिे औि बचचे भी तो है, उिके िलए भी तो कुछ चािहए।

उदयभािु- तो आज मै मिा जाता हंू?

कलयाणी- जीिे-मििे का हाल कोई िहीं जािता।कलयाणी- इसमे िबगडिे की तो कोई बात िहीं। मििा एक िदि सभी

को है। कोई यहां अमि होकि थोडे ही आया है। आंखे बनद कि लेिे से तो होिे-वाली बात ि टलेगी। िोज आखंो देखती हंू, बाप का देहानत हो जाता है,

उसके बचचे गली-गली ठोकिे खाते िफिते है। आदमी ऐसा काम ही कयो किे?

उदयभािु ि जलकि कहा- जो अब समझ लूं िक मेिे मििे के िदि ििकट आ गये, यही तुमहािी भिवषयवाणी है! सुहाग से िियो का जी ऊबते िहीं सुिा था, आज यह िई बात मालूम हुई। िंडापे मे भी कोई सुख होगा ही!

कलयाणी-तुमसे दिुिया की कोई भी बात कही जाती है, तो जहि उगलिे लगते हो। इसिलए ि िक जािते हो, इसे कहीं िटकिा िहीं है, मेिी ही िोिटयो पि पडी हुई है या औि कुछ! जहां कोई बात कही, बस िसि हो गये,

मािो मै घि की लौडी हंू, मेिा केवल िोटी औि कपडे का िाता है। िजतिा ही मै दबती हंू, तुम औि भी दबाते हो। मुफतखोि माल उडाये, कोई मुंह ि खोले,

शिाब-कबाब मे रपये लुटे, कोई जबाि ि िहलाये। वे सािे कांटे मेिे बचचो ही के िलए तो बोये जा िहे है।

उदयभािु लाल- तो मै कया तुमहािा गुलाम हंू?

कलयाणी- तो कया मै तुमहािी लौडी हंू?

उदयभािु लाल- ऐसे मदम औि होगे, जो औितो के इशािो पि िाचते है।8

Page 9: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

कलयाणी- तो ऐसी िियो भी होगी, जो मदो की जूितयां सहा किती है।उदयभािु लाल- मै कमाकि लाता हंू, जसेै चाहंू खच म कि सकता हंू।

िकसी को बोलिे का अिधकाि िहीं।कलयाणी- तो आप अपिा घि संभिलये! ऐसे घि को मेिा दिू ही से

सलाम है, जहां मेिी कोई पछू िहीं घि मे तुमहािा िजतिा अिधकाि है, उतिा ही मेिा भी। इससे जौ भि भी कम िहीं। अगि तुम अपिे मि के िाजा हो, तो मै भी अपिे मि को िािी हंू। तुमहािा घि तुमहे मुबािक िहे, मेिे िलए पेट की िोिटयो की कमी िहीं है। तुमहािे बचचे है, मािो या िजलाओ। ि आंखो से देखूगंी, ि पीडा होगी। आंखे फूटीं, पीि गई!

उदयभािु- कया तुम समझती हो िक तुम ि संभालेगी तो मेिा घि ही ि संभलेगा? मै अकेले ऐसे-ऐसे दस घि संभाल सकता हंू।

कलयाणी-कौि? अगि ‘आज के महीिे िदि िमटटी मे ि िमल जाये, तो कहिा कोई कहती थी!

यह कहते-कहते कलयाणी का चेहिा तमतमा उठा, वह झमककि उठी औि कमिे के दाि की ओि चली। वकील साहब मुकदमे मे तो खूब मीि-मेख ििकालते थे, लेिकि िियो के सवभाव का उनहे कुछ यो ही-सा जाि था। यही एक ऐसी िवदा है, िजसमे आदमी बढूा होिे पि भी कोिा िह जाता है। अगि वे अब भी ििम पड जाते औि कलयाणी का हाथ पकडकि िबठा लेते, तो शायद वह रक जाती, लेिकि आपसे यह तो हो ि सका, उलटे चलते-चलते एक औि चिका िदया।

बोल-मैके का घमणड होगा?

कलयाणी िे दािा पि रक कि पित की ओि लाल-लाल िेतो से देखा औि िबफिकि बोल- मैके वाले मेिे तकदीि के साथी िहीं है औि ि मै इतिी िीच हंू िक उिकी िोिटयो पि जा पडंू।

उदयभािु-तब कहां जा िही हो?कलयाणी-तुम यह पछूिे वाले कौि होते हो? ईशि की सिृि मे असंखय

पािपयो के िलए जगह है, कया मेिे ही िलए जगह िहीं है?

यह कहकि कलयाणी कमिे के बाहि ििकल गई। आगंि मे आकि उसिे एक बाि आकाश की ओि देखा, मािो तािागण को साकी दे िही है िक मै इस घि मे िकतिी ििदमयता से ििकाली जा िही हंू। िात के गयािह बज गये थे। घि मे सनिाटा छा गया था, दोिो बेटो की चािपाई उसी के कमिे मे

9

Page 10: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

िहती थी। वह अपिे कमिे मे आई, देखा चनदभािु सोया है, सबसे छोटा सूयभम ािु चािपाई पि उठ बैठा है। माता को देखते ही वह बोला-तुम तहां दई तीं अममां?

कलयाणी दिू ही से खडे-खडे बोली- कहीं तो िहीं बेटा, तुमहािे बाबूजी के पास गई थी।

सूयम-तुम तली दई, मुधे अतेले दि लदता था। तुम कयो तली दई तीं, बताओ?

यह कहकि बचचे िे गोद मे चढिे के िलए दोिो हाथ फैला िदये। कलयाणी अब अपिे को ि िोक सकी। मातृ-सिेह के सुधा-पवाह से उसका संतप हदय पििपलािवत हो गया। हदय के कोमल पौधे, जो कोध के ताप से मुिझा गये थे, िफि हिे हो गये। आखें सजल हो गई। उसिे बचचे को गोद मे उठा िलया औि छाती से लगाकि बोली-तुमिे पकुाि कयो ि िलया, बेटा?

सूयम-पुतालता तो ता, तुम थिुती ि तीं, बताओ अब तो कबी ि दाओगी। कलयाणी-िहीं भैया, अब िहीं जाऊंगी।

यह कहकि कलयाणी सूयभम ािु को लेकि चािपाई पि लेटी। मां के हदय से िलपटते ही बालक िि:शंक होकि सो गया, कलयाणी के मि मे सकंलप-

िवकलप होिे लगे, पित की बाते याद आतीं तो मि होता-घि को ितलांजिल देकि चली जाऊं, लेिकि बचचो का मुंह देखती, तो वासलय से िचत गदगद हो जाता। बचचो को िकस पि छोडकि जाऊं? मेिे इि लालो को कौि पालेगा, ये िकसके होकि िहेगे? कौि पात:काल इनहे दधू औि हलवा िखलायेगा, कौि इिकी िींद सोयेगा, इिकी िींद जागेगा? बेचािे कौडी के तीि हो जायेगे। िहीं पयािो, मै तुमहे छोडकि िहीं जाऊंगी। तुमहािे िलए सब कुछ सह लूंगी। िििादि-अपमाि, जली-कटी, खोटी-खिी, घडुकी-िझडकी सब तुमहािे िलए सहंूगी।

कलयाणी तो बचचे को लेकि लेटी, पि बाबू साहब को िींद ि आई उनहे चोट कििेवाली बाते बडी मुिशकल से भूलती थी। उफ, यह िमजाज!

मािो मै ही इिकी िी हंू। बात मुंह से ििकालिी मिुशकल है। अब मै इिका गुलाम होकि िहंू। घि मे अकेली यह िहे औि बाकी िजतिे अपिे बेगािे है,

सब ििकाल िदये जाये। जला किती है। मिाती है िक यह िकसी तिह मिे,

तो मै अकेली आिाम करं। िदल की बात मुंह से ििकल ही आती है, चाहे कोई िकतिा ही िछपाये। कई िदि से देख िहा हंू ऐसी ही जली-कटी सुिाया

10

Page 11: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

किती है। मैके का घमणड होगा, लेिकि वहां कोई भी ि पछेूगा, अभी सब आवभगत किते है। जब जाकि िसि पड जायेगी तो आटे-दाल का भाव मालूम हो जायेगा। िोती हुई जायेगी। वाह िे घमणड! सोचती है-मै ही यह गहृसथी चलाती हंू। अभी चाि िदि को कहीं चला जाऊं, तो मालूम हो जायेगा, सािी शेखी िकििकिी हो जायेगा। एक बाि इिका घमणड तोड ही दं।ू जिा वधैवय का मजा भी चखा दं।ू ि जािे इिकी िहममत कैसे पडती है िक मुझे यो कोसिे लगत है। मालूम होता है, पेम इनहे छू िहीं गया या समझती है, यह घि से इतिा िचमटा हुआ है िक इसे चाहे िजतिा कोसूं, टलिे का िाम ि लेगा। यही बात है, पि यहां संसाि से िचमटिेवाले जीव िहीं है!

जहनिुम मे जाये यह घि, जहां ऐसे पािणयो से पाला पडे। घि है या ििक?

आदमी बाहि से थका-मांदा आता है, तो उसे घि मे आिाम िमलता है। यहां आिाम के बदले कोसिे सुििे पडते है। मेिी मतृयु के िलए वत िखे जाते है। यह है पचीस वष म के दामपतय जीवि का अनत! बस, चल ही दं।ू जब देख लूंगा इिका सािा घमणड धूल मे िमल गया औि िमजाज ठणडा हो गया, तो लौट आऊंगा। चाि-पांच िदि काफी होगे। लो, तुम भी याद किोगी िकसी से पाला पडा था।

यही सोचते हुए बाबू साहब उठे, िेशमी चादि गले मे डाली, कुछ रपये िलये, अपिा काडम ििकालकि दसूिे कुत े की जेब मे िखा, छडी उठाई औि चुपके से बाहि ििकले। सब िौकि िींद मे मसत थे। कुता आहट पाकि चौक पडा औि उिके साथ हो िलया।

पि यह कौि जािता था िक यह सािी लीला िविध के हाथो िची जा िही है। जीवि-िंगशाला का वह ििदमय सूतधाि िकसी अगम गुप सथाि पि बैठा हुआ अपिी जिटल कूि कीडा िदखा िहा है। यह कौि जािता था िक िकल असल होिे जा िही है, अिभिय सतय का रप गहण कििे वाला है।

ििशा िे इनद ूको पिासत किके अपिा सामाजय सथािपत कि िलया था। उसकी पैशािचक सेिा िे पकृित पि आतकं जमा िखा था। सदविृतयां मुंह िछपाये पडी थीं औि कुविृतयां िवजय-गव म से इठलाती िफिती थीं। वि मे वनयजनतु िशकाि की खोज मे िवचाि िहे थे औि िगिो मे िि-िपशाच गिलयो मे मडंिाते िफिते थे।

बाबू उदयभािुलाल लपके हुए गगंा की ओि चले जा िहे थे। उनहोिे अपिा कुता म घाट के िकिािे िखकि पांच िदि के िलए िमजापम िु चले जािे का

11

Page 12: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

ििशय िकया था। उिके कपडे देखकि लोगो को डूब जािे का िवशास हो जायेगा, काडम कुत ेकी जेब मे था। पता लगािे मे कोई िदककत ि हो सकती थी। दम-के-दम मे सािे शहि मे खबि मशहूि हो जायेगी। आठ बजते-बजते तो मेिे दाि पि सािा शहि जमा हो जायेगा, तब देखूं, देवी जी कया किती है?

यही सोचते हुए बाबू साहब गिलयो मे चले जा िहे थे, सहसा उनहे अपिे पीछे िकसी दसूिे आदमी के आिे की आहट िमली, समझे कोई होगा। आगे बढे, लेिकि िजस गली मे वह मुडते उसी तिफ यह आदमी भी मुडता था। तब बाबू साहब को आशकंा हुई िक यह आदमी मेिा पीछा कि िहा है। ऐसा आभास हुआ िक इसकी िीयत साफ िहीं है। उनहोिे तिुनत जेबी लालटेि ििकाली औि उसके पकाश मे उस आदमी को देखा। एक बििषष मिुषय कनधे पि लाठी िखे चला आता था। बाबू साहब उसे देखते ही चौक पडे। यह शहि का छटा हुआ बदमाश था। तीि साल पहले उस पि डाके का अिभयोग चला था। उदयभािु िे उस मुकदमे मे सिकाि की ओि से पैिवी की थी औि इस बदमाश को तीि साल की सजा िदलाई थी। सभी से वह इिके खूि का पयासा हो िहा था। कल ही वह छूटकि आया था। आज दैवात ्साहब अकेले िात को िदखाई िदये, तो उसिे सोचा यह इिसे दाव चकुािे का अचछा मौका है। ऐसा मौका शायद ही िफि कभी िमले। तिुनत पीछे हो िलया औि वाि कििे की घात ही मे था िक बाबू साहब िे जेबी लालटेि जलाई। बदमाश जिा िठठककि बोला-कयो बाबूजी पहचािते हो? मै हंू मतई।

बाबू साहब िे डपटकि कहा- तुम मेिे िपछे-िपछे कयो आिहे हो?मतई- कयो, िकसी को िासता चलिे की मिाही है? यह गली तुमहािे बाप

की है?

बाबू साहब जवािी मे कुशती लडे थे, अब भी हि-पुि आदमी थे। िदल के भी कचचे ि थे। छडी संभालकि बोले-अभी शायद मि िहीं भिा। अबकी सात साल को जाओगे।

मतई-मै सात साल को जाऊंगा या चौदह साल को, पि तुमहे िजदा ि छोडंूगा। हां, अगि तुम मेिे पैिो पि िगिकि कसम खाओ िक अब िकसी को सजा ि किाऊंगा, तो छोड दं।ू बोलो मंजूि है?

उदयभािु-तेिी शामत तो िहीं आई?

मतई-शामत मेिी िहीं आई, तुमहािी आई है। बोलो खाते हो कसम-एक!

उदयभािु-तुम हटते हो िक मै पुिलसमैि को बुलाऊं।12

Page 13: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

मतई-दो!उदयभािु-(गिजकि) हट जा बादशाह, सामिे से!

मतई-तीि!

मुंह से ‘तीि’ शबद ििकालते ही बाबू साहब के िसि पि लाठी का ऐसा तुला हाथ पडा िक वह अचेत होकि जमीि पि िगि पडे। मुहं से केवल इतिा ही ििकला-हाय! माि डाला!

मतई िे समीप आकि देखा, तो िसि फट गया था औि खूि की घाि ििकल िही थी। िाडी का कहीं पता ि था। समझ गया िक काम तमाम हो गया। उसिे कलाई से सोिे की घडी खोल ली, कुत ेसे सोिे के बटि ििकाल िलये, उंगली से अगंठूी उतािी औि अपिी िाह चला गया, मािो कुछ हुआ ही िहीं। हां, इतिी दया की िक लाश िासते से घसीटकि िकिािे डाल दी। हाय,

बेचािे कया सोचकि चले थे, कया हो गया! जीवि, तुमसे जयादा असाि भी दिुिया मे कोई वसतु है? कया वह उस दीपक की भांित ही कणभंगिु िहीं है,

जो हवा के एक झोके से बुझ जाता है! पािी के एक बुलबुले को देखते हो, लेिकि उसे टूटते भी कुछ देि लगती है, जीवि मे उतिा साि भी िहीं। सांस का भिोसा ही कया औि इसी िशिता पि हम अिभलाषाओं के िकतिे िवशाल भवि बिाते है! िहीं जािते, िीचे जािेवाली सांस ऊपि आयेगी या िहीं, पि सोचते इतिी दिू की है, मािो हम अमि है।

तीि

वाह का िवलाप औि अिाथो का िोिा सुिाकि हम पाठको का िदल ि दखुायेगे। िजसके ऊपि पडती है, वह िोता है, िवलाप किता है,

पछाडे खाता है। यह कोई ियी बात िहीं। हां, अगि आप चाहे तो कलयाणी की उस घोि माििसक यातिा का अिुमाि कि सकते है, जो उसे इस िवचाि से हो िही थी िक मै ही अपिे पाणाधाि की घाितका हंू। वे वाकय जो कोध के आवेश मे उसके असंयत मुख से ििकले थे, अब उसके हदय को वाणो की भांित छेद िहे थे। अगि पित िे उसकी गोद मे किाह-किाहकि पाण-तयाग िदए होते, तो उसे संतोष होता िक मैिे उिके पित अपिे कतवम य का पालि िकया। शोकाकुल हदय को इससे जयादा सानतविा औि िकसी बात से िहीं होती। उसे इस िवचाि से िकतिा संतोष होता िक मेिे सवामी मुझसे पसनि

िव

13

Page 14: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

गये, अिनतम समय तक उिके हदय मे मेिा पेम बिा िहा। कलयाणी को यह सनतोष ि था। वह सोचती थी-हा! मेिी पचीस बिस की तपसया ििषफल हो गई। मै अनत समय अपिे पाणपित के पेम के वंिचत हो गयी। अगि मैिे उनहे ऐसे कठोि शबद ि कहे होते, तो वह कदािप िात को घि से ि जाते।ि जािे उिके मि मे कया-कया िवचाि आये हो? उिके मिोभावो की कलपिा किके औि अपिे अपिाध को बढा-बढाकि वह आठो पहि कुढती िहती थी। िजि बचचो पि वह पाण देती थी, अब उिकी सूित से िचढती। इनहीं के कािण मुझे अपिे सवामी से िाि मोल लेिी पडी। यही मेिे शतु है। जहां आठो पहि कचहिी-सी लगी िहती थी, वहां अब खाक उडती है। वह मेला ही उठ गया। जब िखलािेवाला ही ि िहा, तो खािेवाले कैसे पडे िहते। धीिे-धीिे एक महीिे के अनदि सभी भांजे-भतीजे िबदा हो गये। िजिका दावा था िक हम पािी की जगह खिू बहािेवालो मे है, वे ऐसा सिपट भागे िक पीछे िफिकि भी ि देखा। दिुिया ही दसूिी हो गयी। िजि बचचो को देखकि पयाि कििे को जी चाहता था उिके चेहिे पि अब मिकखयां िभििभिाती थीं। ि जािे वह कांित कहां चली गई?

शोक का आवेग कम हुआ, तो ििमलम ा के िववाह की समसया उपिसथत हुई। कुछ लोगो की सलाह हुई िक िववाह इस साल िोक िदया जाये, लेिकि कलयाणी िे कहा- इतिी तैयिियो के बाद िववाह को िोक देिे से सब िकया-धिा िमटटी मे िमल जायेगा औि दसूिे साल िफि यही तैयािियां कििी पडेगी, िजसकी कोई आशा िहीं। िववाह कि ही देिा अचछा है। कुछ लेिा-देिा तो है ही िहीं। बािाितयो के सेवा-सतकाि का काफी सामाि हो चकुा है,

िवलमब कििे मे हािि-ही-हािि है। अतएव महाशय भालचनद को शक-सूचिा के साथ यह सनदेश भी भेज िदया गया। कलयाणी िे अपिे पत मे िलखा-इस अिािथिी पि दया कीिजए औि डूबती हुई िाव को पाि लगाइये। सवामीजी के मि मे बडी-बडी कामिाएं थीं, िकंतु ईशि को कुछ औि ही मंजिू था। अब मेिी लाज आपके हाथ है। कनया आपकी हो चकुी। मै लोगो के सेवा-सतकाि कििे को अपिा सौभागय समझती हंू, लेिकि यिद इसमे कुछ कमी हो, कुछ तुिट पडे, तो मेिी दशा का िवचाि किके कमा कीिजयेगा। मुझे िवशास है िक आप इस अिािथिी की ििनदा ि होिे देगे, आिद।

कलयाणी िे यह पत डाक से ि भेजा, बिलक पिुोिहत से कहा-आपको कि तो होगा, पि आप सवयं जाकि यह पत दीिजए औि मेिी ओि से बहुत

14

Page 15: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

िविय के साथ किहयेगा िक िजतिे कम आदमी आये, उतिा ही अचछा। यहां कोई पबनध कििेवाला िहीं है।

पुिोिहत मोटेिाम यह सनदेश लेकि तीसिे िदि लखिऊ जा पहंुचे।संधया का समय था। बाबू भालचनद दीवािखािे के सामिे आिामकुसी

पि िंग-धडंग लेटे हुए हुकका पी िहे थे। बहुत ही सथूल, ऊंचे कद के आदमी थे। ऐसा मालूम होता था िक काला देव है या कोई हबशी अफीका से पकडकि आया है। िसि से पैि तक एक ही िंग था-काला। चेहिा इतिा सयाह था िक मालूम ि होता था िक माथे का अंत कहां है िसि का आिमभ कहां। बस, कोयले की एक सजीव मूित म थी। आपको गमी बहुत सताती थी। दो आदमी खडे पखंा झल िहे थे, उस पि भी पसीिे का ताि बधंा हुआ था। आप आबकािी के िवभाग मे एक ऊंचे ओहदे पि थे। पांच सौ रपये वेति िमलता था। ठेकेदािो से खूब ििशत लेते थे। ठेकेदाि शिाब के िाम पािी बेचे,

चौबीसो घटें दकुाि खुली िखे, आपको केवल खशु िखिा काफी था। सािा कािूि आपकी खुशी थी। इतिी भयंकि मूित म थी िक चांदिी िात मे लोग उनहे देख कि सहसा चौक पडते थे-बालक औि िियां ही िहीं, पुरष तक सहम जाते थे। चांदिी िात इसिलए कहा गया िक अंधेिी िात मे तो उनहे कोई देख ही ि सकता था-शयामलता अनधकाि मे िवलीि हो जाती थी। केवल आंखो का िंग लाल था। जसेै पकका मुसलमाि पांच बाि िमाज पढता है, वैसे ही आप भी पांच बाि शिाब पीते थे, मुफत की शिाब तो काजी को हलाल है, िफि आप तो शिाब के अफसि ही थे, िजतिी चाहे िपये, कोई हाथ पकडिे वाला ि था। जब पयास लगती शिाब पी लेते । जसेै कुछ िंगो मे पिसपि सहािुभूित है, उसी तिह कुछ िंगो मे पिसपि िविोध है। लािलमा के संयोग से कािलमा औि भी भयकंि हो जाती है।

बाबू साहब िे पंिडतजी को देखते ही कुसी से उठकि कहा-अखखाह!

आप है? आइए-आइए। धनय भाग! अिे कोई है। कहां चले गये सब-के-सब,

झगडू, गुिदीि, छकौडी, भवािी, िामगुलाम कोई है? कया सब-के-सब मि गये!

चलो िामगुलाम, भवािी, छकौडी, गुिदीि, झगडू। कोई िहीं बोलता, सब मि गये! दजिम -भि आदमी है, पि मौके पि एक की भी सूित िहीं िजि आती, ि जािे सब कहां गायब हो जाते है। आपके वासते कुसी लाओ।

बाबू साहब िे ये पांचो िाम कई बाि दहुिाये, लेिकि यह ि हुआ िक पंखा झलिेवाले दोिो आदिमयो मे से िकसी को कुसी लािे को भेज देते।

15

Page 16: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

तीि-चाि िमिट के बाद एक कािा आदमी खांसता हुआ आकि बोला-सिकाि,

ईतिा की िौकिी हमाि कीि ि होई ! कहां तक उधाि-बाढी ल-ैलै खाई मांगत-मांगत थेथि होय गयेिा।

भाल- बको मत, जाकि कुसी लाओ। जब कोई काम कििे की कहा गया, तो िोिे लगता है। किहए पिडतजी, वहां सब कुशल है?

मोटेिाम-कया कुशल कहंू बाबूजी, अब कुशल कहां? सािा घि िमटटी मे िमल गया।

इतिे मे कहाि िे एक टूटा हुआ चीड का सनदकू लाकि िख िदया औि बोला-कसी-मेज हमािे उठाये िाहीं उठत है।

पंिडतजी शमातम े हुए डिते-डिते उस पि बठेै िक कहीं टूट ि जाये औि कलयाणी का पत बाबू साहब के हाथ मे िख िदया।

भाल-अब औि कैसे िमटटी मे िमलेगा? इससे बडी औि कौि िवपित पडेगी? बाबू उदयभािु लाल से मेिी पुिािी दोसती थी। आदमी िहीं, हीिा था! कया िदल था, कया िहममत थी, (आखें पोछकि) मेिा तो जसेै दािहिा हाथ ही कट गया। िवशास माििए, जबसे यह खबि सुिी है, आंखो मे अधेंिा-सा छा गया है। खािे बैठता हंू, तो कौि मुंह मे िहीं जाता। उिकी सूित आंखो के सामिे खडी िहती है। मुंह जठूा किके उठ जाता हंू। िकसी काम मे िदल िहीं लगता। भाई के मििे का िंज भी इससे कम ही होता है। आदमी िहीं, हीिा था!

मोटे- सिकाि, िगि मे अब ऐसा कोई िईस िहीं िहा।भाल- मै खूब जािता हंू, पंिडतजी, आप मुझसे कया कहते है। ऐसा

आदमी लाख-दो-लाख मे एक होता है। िजतिा मै उिको जािता था, उतिा दसूिा िहीं जाि सकता। दो-ही-तीि बाि की मुलाकात मे उिका भक हो गया औि मििे दम तक िहंूगा। आप समिधि साहब से कह दीिजएगा, मुझे िदली िंज है।

मोटे-आपसे ऐसी ही आशा थी! आज-जैसे सजजिो के दशिम दलुभम है। िहीं तो आज कौि िबिा दहेज के पुत का िववाह किता है।

भाल-महािाज, देहज की बातचीत ऐसे सतयवादी पुरषो से िहीं की जाती। उिसे समबनध हो जािा ही लाख रपये के बिाबि है। मै इसी को अपिा अहोभागय समझता हंू। हा! िकतिी उदाि आमतमा थी। रपये को तो उनहोिे कुछ समझा ही िहीं, ितिके के बिाबि भी पिवाह िहीं की। बिुा

16

Page 17: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

ििवाज है, बेहद बुिा! मेिा बस चले, तो दहेज लेिेवालो औि दहेज देिेवालो दोिो ही को गोली माि दं ,ू हां साहब, साफ गोली माि दंू, िफि चाहे फांसी ही कयो ि हो जाय! पछूो, आप लडके का िववाह किते है िक उसे बेचते है? अगि आपको लडके के शादी मे िदल खोलकि खच म कििे का अिमाि है, तो शौक के खच म कीिजए, लेिकि जो कुछ कीिजए, अपिे बल पि। यह कया िक कनया के िपता का गला िेितए। िीचता है, घोि िीचता! मेिा बस चले, तो इि पािजयो को गोली माि दं।ू

मोटे- धनय हो सिकाि! भगवाि ् िे आपको बडी बिुद दी है। यह धमम का पताप है। मालिकि की इचछा है िक िववाह का मुहूत म वही िहे औि तो उनहोिे सािी बाते पत मे िलख दी है। बस, अब आप ही उबािे तो हम उबि सकते है। इस तिह तो बािात मे िजतिे सजजि आयेगे, उिकी सेवा-सतकाि हम किेगे ही, लेिकि पिििसथित अब बहुत बदल गयी है सिकाि, कोई कििे-

धििेवाला िहीं है। बस ऐसी बात कीिजए िक वकील साहब के िाम पि बटटा ि लगे।

भालचनद एक िमिट तक आखें बनद िकये बठेै िहे, िफि एक लमबी सांस खींच कि बोले-ईशि को मंजूि ही ि था िक वह लकमी मेिे घि आती, िहीं तो कया यह वज िगिता? सािे मिसूबे खाक मे िमल गये। फूला ि समाता था िक वह शुभ-अवसि ििकट आ िहा है, पि कया जािता था िक ईशि के दिबाि मे कुछ औि षडयनत िचा जा िहा है। मििेवाले की याद ही रलािे के िलए काफी है। उसे देखकि तो जखम औि भी हिा जो जायेगा। उस दशा मे ि जािे कया कि बैठंू। इसे गुण समिझए, चाहे दोष िक िजससे एक बाि मेिी घििषता हो गयी, िफि उसकी याद िचत से िहीं उतिती। अभी तो खैि इतिा ही है िक उिकी सूित आखंो के सामिे िाचती िहती है,

लेिकि यिद वह कनया घि मे आ गयी, तब मेिा िजनदा िहिा किठि हो जायेगा। सच माििए, िोते-िोते मेिी आंखे फूट जायेगी। जािता हंू, िोिा-धोिा वयथ म है। जो मि गया वह लौटकि िहीं आ सकता। सब कििे के िसवाय औि कोई उपाय िहीं है, लेिकि िदल से मजबूि हंू। उस अिाथ बािलका को देखकि मेिा कलेजा फट जायेगा।

मोटे- ऐसा ि किहए सिकाि! वकील साहब िहीं तो कया, आप तो है। अब आप ही उसके िपता-तुलय है। वह अब वकील साहब की कनया िहीं, आपकी कनया है। आपके हदय के भाव तो कोई जािता िहीं, लोग समझेगे,

17

Page 18: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

वकील साहब का देहानत हो जािे के कािण आप अपिे वचि से िफि गये। इसमे आपकी बदिामी है। िचत को समझाइए औि हंस-खुशी कनया का पािणगहण किा लीिजए। हाथी मिे तो िौ लाख का। लाख िवपित पडी है,

लेिकि मालिकि आप लोगो की सेवा-सतकाि कििे मे कोई बात ि उठा िखेगी।

बाबू साहब समझ गये िक पिंडत मोटेिाम कोिे पोथी के ही पिंडत िहीं, विि वयवहाि-िीित मे भी चतुि है। बोले-पंिडतजी, हलफ से कहता हंू,

मुझे उस लडकी से िजतिा पेम है, उतिा अपिी लडकी से भी िहीं है, लेिकि जब ईशि को मंजूि िहीं है, तो मेिा कया बस है? वह मतृयु एक पकाि की अमंगल सूचिा है, जो िवधाता की ओि से हमे िमली है। यह िकसी आिेवाली मुसीबत की आकाशवाणी है िवधाता सपि िीित से कह िहा है िक यह िववाह मंगलमय ि होगा। ऐसी दशा मे आप ही सोिचये, यह संयोग कहां तक उिचत है। आप तो िवदाि आदमी है। सोिचए, िजस काम का आिमभ ही अमंगल से हो, उसका अंत अमगंलमय हो सकता है? िहीं, जािबूझकि मकखी िहीं ििगली जाती। समिधि साहब को समझाकि कह दीिजएगा, मै उिकी आजापालि कििे को तैयाि हंू, लेिकि इसका पििणाम अचछा ि होगा। सवाथम के वंश मे होकि मै अपिे पिम िमत की सनताि के साथ यह अनयाय िहीं कि सकता।

इस तकम िे पिडतजी को ििरति कि िदया। वादी िे यह तीि छोडा था, िजसकी उिके पास कोई काट ि थी। शतु िे उनहीं के हिथयाि से उि पि वाि िकया था औि वह उसका पितकाि ि कि सकते थे। वह अभी कोई जवाब सोच ही िहे थे, िक बाबू साहब िे िफि िौकिो को पुकाििा शुर िकया- अिे, तुम सब िफि गायब हो गये- झगडू, छकौडी, भवािी, गरुदीि, िामगुलाम!

एक भी िहीं बोलता, सब-के-सब मि गये। पंिडतजी के वासते पािी-वािी की िफक है? िा जािे इि सबो को कोई कहां तक समझये। अकल छू तक िहीं गयी। देख िहे है िक एक महाशय दिू से थके-मांदे चले आ िहे है, पि िकसी को जिा भी पिवाह िहीं। लाओं, पािी-वािी िखो। पिडतजी, आपके िलए शबतम बिवाऊं या फलाहािी िमठाई मंगवा दं।ू

मोटेिामजी िमठाइयो के िवषय मे िकसी तिह का बनधि ि सवीकाि किते थे। उिका िसदानत था िक घतृ से सभी वसतुएं पिवत हो जाती है। िसगुलले औि बेसि के लडडू उनहे बहुत िपय थे, पि शबतम से उनहे रिच ि

18

Page 19: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

थी। पािी से पेट भििा उिके िियम के िवरद था। सकुचाते हुए बोले-शबतम पीिे की तो मुझे आदत िहीं, िमठाई खा लूंगा।

भाल- फलाहािी ि?

मोटे- इसका मुझे कोई िवचाि िहीं।भाल- है तो यही बात। छूत-छात सब ढकोसला है। मै सवयं िहीं

मािता। अिे, अभी तक कोई िहीं आया? छकौडी, भवािी, गुरदीि, िामगुलाम,

कोई तो बोले!

अबकी भी वही बढूा कहाि खांसता हुआ आकि खडा हो गया औि बोला-सिकाि, मोि तलब दै दीि जाय। ऐसी िौकिी मोसे ि होई। कहां लो दौिी दौित-दौित गोड िपिाय लागत है।

भाल-काम कुछ किो या ि किो, पि तलब पिहले चिहए! िदि भि पडे-

पडे खांसा किो, तलब तो तुमहािी चढ िही है। जाकि बाजाि से एक आिे की ताजी िमठाई ला। दौडता हुआ जा।

कहाि को यह हुकम देकि बाबू साहब घि मे गये औि िी से बोले-वहां से एक पिंडतजी आये है। यह खत लाये है, जिा पढो तो।

पती जी का िाम िंगीलीबाई था। गोिे िंग की पसनि-मुख मिहला थीं। रप औि यौवि उिसे िवदा हो िहे थे, पि िकसी पेमी िमत की भांित मचल-

मचल कि तीस साल तक िजसके गले से लगे िहे, उसे छोडते ि बिता था।िंगीलीबाई बैठी पाि लगा िही थीं। बोली-कह िदया ि िक हमे वहां

बयाह कििा मंजिू िहीं।भाल-हां, कह तो िदया, पि मािे संकोच के मुंह से शबद ि ििकलता

था। झूठ-मूठ का होला कििा पडता।िंगीली-साफ बात कििे मे संकोच कया? हमािी इचछा है, िहीं किते।

िकसी का कुछ िलया तो िहीं है? जब दसूिी जगह दस हजाि िगद िमल िहे है; तो वहां कयो ि करं? उिकी लडकी कोई सोिे की थोडे ही है। वकील साहब जीते होते तो शिमाते-शमाते पनदह-बीस हजाि दे मिते। अब वहां कया िखा है?

भाल- एक दफा जबाि देकि मकुि जािा अचछी बात िहीं। कोई मुख से कुछ ि कह, पि बदिामी हुए िबिा िहीं िहती। मगि तुमहािी िजद से मजबूि हंू।

19

Page 20: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

िंगीलीबाई िे पाि खाकि खत खोला औि पढिे लगीं। िहनदी का अभयास बाबू साहब को तो िबलकुल ि था औि यदिप िंगीलीबाई भी शायद ही कभी िकताब पढती हो, पि खत-वत पढ लेती थीं। पहली ही पांित पढकि उिकी आंखे सजल हो गयीं औि पत समाप िकया। तो उिकी आखंो से आंसू बह िहे थे-एक-एक शबद करणा के िस मे डूबा हुआ था। एक-एक अकि से दीिता टपक िही थी। िंगीलीबाई की कठोिता पतथि की िहीं, लाख की थी, जो एक ही आंच से िपघल जाती है। कलयाणी के करणोतपादक शबदो िे उिके सवाथम-मंिडत हदय को िपघला िदया। रंधे हुए कंठ से बोली-अभी बाहण बैठा है ि?

भालचनद पती के आसंुओं को देख-देखकि सूखे जाते थे। अपिे ऊपि झलला िहे थे िक िाहक मैिे यह खत इसे िदखाया। इसकी जरित कया थी?

इतिी बडी भूल उिसे कभी ि हुई थी। संिदगध भाव से बोले-शायद बैठा हो, मैिे तो जािे को कह िदया था। िंगीली िे िखडकी से झांककि देखा। पंिडत मोटेिाम जी बगुले की तिह धयाि लगाये बाजाि के िासते की ओि ताक िहे थे। लालसा मे वयग होकि कभी यह पहलू बदलते, कभी वह पहलू। ‘एक आिे की िमठाई’ िे तो आशा की कमि ही तोड दी थी, उसमे भी यह िवलमब, दारण दशा थी। उनहे बैठे देखकि िंगीलीबाई बोली-है-है अभी है,

जाकि कह दो, हम िववाह किेगे, जरि किेगे। बेचािी बडी मुसीबत मे है।भाल- तुम कभी-कभी बचचो की-सी बाते कििे लगती हो, अभी उससे

कह आया हंू िक मुझे िववाह कििा मजंूि िहीं। एक लमबी-चौडी भूिमका बांधिी पडी। अब जाकि यह संदेश कहंूगा, तो वह अपिे िदल मे कया कहेगा, जिा सोचो तो? यह शादी-िववाह का मामला है। लडको का खेल िहीं िक अभी एक बात तय की, अभी पलट गये। भले आदमी की बात ि हुई, िदललगी हुई।

िंगीली- अचछा, तुम अपिे मुंह से ि कहो, उस बाहण को मेिे पास भेज दो। मै इस तिह समझा दंगूी िक तुमहािी बात भी िह जाये औि मेिी भी। इसमे तो तुमहे कोई आपित िहीं है।

भाल-तुम अपिे िसवा सािी दिुिया को िादाि समझती हो। तुम कहो या मै कहंू, बात एक ही है। जो बात तय हो गयी, वह हो गई, अब मै उसे िफि िहीं उठािा चाहता। तुमहीं तो बाि-बाि कहती थीं िक मै वहां ि करंगी। तुमहािे ही कािण मुझे अपिी बात खोिी पडी। अब तुम िफि िंग बदलती

20

Page 21: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

हो। यह तो मेिी छाती पि मूगं दलिा है। आिखि तुमहे कुछ तो मेिे माि-

अपमाि का िवचाि कििा चािहए।िंगीली- तो मुझे कया मालूम था िक िवधवा की दशा इतिी हीि हो

गया है? तुमहीं िे तो कहा था िक उसिे पित की सािी समपित िछपा िखी है औि अपिी गिीबी का ढोग िचकि काम ििकालिा चाहती है। एक ही छंटी औित है। तुमिे जो कहा, वह मैिे माि िलया। भलाई किके बुिाई कििे मे तो लजजा औि संकोच है। बिुाई किके भलाई कििे मे कोई संकोच िहीं। अगि तुम ‘हां’ कि आये होते औि मै ‘िहीं’ कििे को कहती, तो तुमहािा संकोच उिचत था। ‘िहीं’ कििे के बाद ‘हां’ कििे मे तो अपिा बडपपि है।

भाल- तुमहे बडपपि मालूम होता हो, मुझे तो लुचचापि ही मालूम होता है। िफि तुमिे यह कैसे माि िलया िक मैिे वकीलाइि मे िवषय मे जो बात कही थी, वह झूठी थी! कया वह पत देखकि? तुम जसैी खुद सिल हो, वैसे ही दसूिे को भी सिल समझती हो।

िंगीली- इस पत मे बिावट िहीं मालूम होती। बिावट की बात िदल मे चुभती िहीं। उसमे बिावट की गनध अवशय िहती है।

भाल- बिावट की बात तो ऐसी चुभती है िक सचची बात उसके सामिे िबलकुल फीकी मालूम होती है। यह िकससे-कहािियां िलखिे वाले िजिकी िकताबे पढ-पढकि तुम घणटो िोती हो, कया सचची बाते िलखते है? सिासि झूठ का तूमाि बांधते है। यह भी एक कला है।

िंगीली- कयो जी, तुम मुझसे भी उडते हो! दाई से पेट िछपाते हो? मै तुमहािी बाते माि जाती हंू, तो तुम समझते हो, इसे चकमा िदया। मगि म ैतुमहािी एक-एक िस पहचािती हंू। तुम अपिा ऐब मेिे िसि मढकि खदु बेदाग बचिा चहाते हो। बोलो, कुछ झूठ कहती हंू, जब वकील साहब जीते थे,

जो तुमिे सोचा था िक ठहिाव की जरित ही कया है, वे खुद ही िजतिा उिचत समेझेगे देगे, बिलक िबिा ठहिाव के औि भी जयादा िमलिे की आशा होगी। अब जो वकील साहब का देहानत हो गया, तो तिह-तिह के हीले-हवाले कििे लगे। यह भलमिसी िहीं, छोटापि है, इसका इलजाम भी तुमहािे िसि है। मै। अब शादी-बयाह के िगीच ि जाऊंगी। तुमहािी जैसी इचछा हो, किो। ढोगी आदिमयो से मुझे िचढ है। जो बात किो, सफाई से किो, बिुा हो या अचछा। ‘हाथी के दांत खािे के औि िदखािे के औि’ वाली िीित पि चलिा तुमहे शोभा िहीं देता। बोला आब भी वहां शादी किते हो या िहीं?

21

Page 22: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

भाला- जब मै बेईमाि, दगाबाज औि झूठा ठहिा, तो मुझसे पूछिा ही कया! मगि खूब पहचािती हो आदिमयो को! कया कहिा है, तुमहािी इस सूझ-

बूझ की, बलैया ले ले!

िंगीली- हो बडे हयादाि, ब भी िहीं शिमाते। ईमाि से कहा, मैिे बात ताड ली िक िहीं?

भाल-अजी जाओ, वह दसूिी औिते होती है जो मदो को पहचािती है। अब तक मै यही समझता था िक औितो की दिि बडी सूकम होती है, पि आज यह िवशास उठ गया औि महातमाओं िे औितो के िवषय मे जो ततव की बाते कही है, उिको माििा पडा।

िंगीली- जिा आईिे मे अपिी सूित तो देख आओं, तुमहे मेिी कमस है। जिा देख लो, िकतिा झेपे हुए हो।

भाल- सच कहिा, िकतिा झेपा हुआ हंू?

िंगीली- इतिा ही, िजतिा कोई भलामािस चोि चोिी खुल जािे पि झेपता है।

भाल- खिै, मै झेपा ही सही, पि शादी वहां ि होगी।िंगीली- मेिी बला से, जहां चाहो किो। कयो, भुवि से एक बाि कयो िहीं

पूछ लेते?

भाल- अचछी बात है, उसी पि फैसला िहा।िंगीली- जिा भी इशािा ि कििा!भाल- अजी, मै उसकी तिफ ताकंूगा भी िहीं।संयोग से ठीक इसी वक भुविमोहि भी आ पहंुचा। ऐसे सुनदि, सुडौल,

बिलष यवुक कालेजो मे बहुत कम देखिे मे आते है। िबलकुल मां को पडा था, वही गोिा-िचटटा िंग, वही पतले-पतले गलुाब की पती के-से ओठं, वही चौडा, माथा, वही बडी-बडी आंखे, डील-डौल बाप का-सा था। ऊंचा कोट, बीचेज,

टाई, बूट, हैट उस पि खूब ल िहे थे। हाथ मे एक हाकी-िसटक थी। चाल मे जवािी का गरि था, आंखो मे आमतमगौिव।

िंगीली िे कहा-आज बडी देि लगाई तुमिे? यह देखो, तुमहािी ससुिाल से यह खत आया है। तुमहािी सास िे िलखा है। साफ-साफ बतला दो, अभी सबेिा है। तुमहे वहां शादी कििा मंजूि है या िहीं?

भुवि- शादी कििी तो चािहए अममां, पि मै करंगा िहीं।िंगीली- कयो?

22

Page 23: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

भुवि- कहीं ऐसी जगह शादी किवाइये िक खूब रपये िमले। औि ि सही एक लाख का तो डौल हो। वहां अब कया िखा है? वकील साहब िहे ही िहीं, बुिढया के पास अब कया होगा?

िंगीली- तुमहे ऐसी बाते मुंह से ििकालते शम म िहीं आती?भुवि- इसमे शम म की कौि-सी बात है? रपये िकसे काटते है? लाख

रपये तो लाख जनम मे भी ि जमा कि पाऊंगा। इस साल पास भी हो गया, तो कम-से-कम पांच साल तक रपये से सूित िजि ि आयेगी। िफि सौ-दो-सौ रपये महीिे कमािे लगूगंा। पांच-छ: तक पहंुचते-पहंुचते उम के तीि भाग बीत जायेगे। रपये जमा कििे की िौबत ही ि आयेगी। दिुिया का कुछ मजा ि उठा सकंूग। िकसी धिी की लडकी से शादी हो जाती , तो चैि से कटती। मै जयादा िहीं चाहता, बस एक लाख हो या िफि कोई ऐसी जायदादवाली बेवा िमले, िजसके एक ही लडकी हो।

िंगीली- चाहे औित कैसे ही िमले।भूवि- धि सािे ऐबो को िछपा देगा। मुझे वह गािलयां भी सुिाये, तो

भी चूं ि करं। दधुार गाय की लात िकसे बुिी मालूम होती है?

बाबू साहब िे पशंसा-सूचक भाव से कहा-हमे उि लोगो के साथ सहािुभित है औि दु:खी है िक ईशि िे उनहे िवपित मे डाला, लेिकि बुिद से काम लेकि ही कोई ििशय कििा चिहए। हम िकतिे ही फटे-हालो जाये, िफि भी अचछी-खासी बािात हो जायेगी। वहां भोजि का भी िठकािा िहीं। िसवा इसके िक लोग हंसे औि कोई ितीजा ि ििकलेगा।

िंगीली- तुम बाप-पूत दोिो एक ही थैली के चटटे-बटटे हो। दोिो उस गिीब लडकी के गले पि छुिी फेििा चाहते हो।

भुवि-जो गिीब है, उसे गिीबो ही के यहां समबनध कििा चिहए। अपिी हैिसयत से बढकि.....।

िंगीली- चपु भी िह, आया है वहां से हैिसयत लेकि। तुम कहां के धनिा-सेठ हो? कोई आदमी दािा पि आ जाये, तो एक लोटे पािी को तिस जाये। बडे हैिसयतवाले बिे हो!

यह कहकि िंगीली वहां से उठकि िसोई का पबनध कििे चली गयी। भुविमोहि मुसकिाता हुआ अपिे कमिे मे चला गया औि बाबू साहब

मूछो पि ताव देते हुए बाहि आये िक मोटेिाम को अिनतम ििशय सुिा दे। पि उिका कहीं पता ि था।

23

Page 24: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

मोटेिामजी कुछ देि तक तो कहाि की िाह देखते िहे, जब उसके आिे मे बहुत देि हुई, तो उिसे बठैा ि गया। सोचा यहां बैठे-बैठे काम ि चलेगा, कुछ उदोग कििा चािहए। भागय के भिोसे यहां अडी िकये बठेै िहे, तो भूखो मि जायेगे। यहां तुमहािी दाल िहीं गलिे की। चुपके से लकडी उठायी औि िजधि वह कहाि गया था, उसी तिफ चले। बाजाि थोडी ही दिू पि था, एक कण मे जा पहंुचे। देखा, तो बडुढा एक हलवाई की दकूाि पि बठैा िचलम पी िहा था। उसे देखते ही आपिे बडी बेतकललुफी से कहा-अभी कुछ तैयाि िहीं है कया महिा? सिकाि वहां बैठे िबगड िहे है िक जाकि सो गया या ताडी पीिे लगा। मैिे कहा-‘सिकाि यह बात िहीं, बुढडा आदमी है, आते ही आते तो आयेगा।’ बडे िविचत जीव है। ि जािे इिके यहां कैसे िौकि िटकते है।

कहाि-मुझे छोडकि आज तक दसूिा कोई िटका िहीं, औि ि िटकेगा। साल-भि से तलब िहीं िमली। िकसी को तलब िहीं देते। जहां िकसी िे तलब मांगी औि लगे डांटिे। बेचािा िौकिी छोडकि भाग जाता है। वे दोिो आदमी, जो पंखा झल िहे थे, सिकािी िौकि है। सिकाि से दो अदमली िमले है ि! इसी से पडे हुए है। मै भी सोचता हंू, जैसा तेिा तािा-बािा वैसे मेिी भििी! इस साल कट गये है, साल दो साल औि इसी तिह कट जायेगे।

मोटेिाम- तो तुमहीं अकेले हो? िाम तो कई कहािो का लेते है।कहाि- वह सब इि दो-तीि महीिो के अनदि आये औि छोड-छोड कि

चले गये। यह अपिा िोब जमािे को अभी तक उिका िाम जपा किते है। कहीं िौकिी िदलाइएगा, चलूं?

मोटेिाम- अजी, बहुत िौकिी है। कहाि तो आजकल ढंूढे िहीं िमलते। तुम तो पुिािे आदमी हो, तुमहािे िलए िौकिी की कया कमी है। यहां कोई ताजी चीज? मुझसे कहिे लगे, िखचडी बिाइएगा या बाटी लगाइएगा? मैिे कह िदया-सिकाि, बुढडा आदमी है, िात को उसे मेिा भोजि बिािे मे कि होगा, मै कुछ बाजाि ही से खा लूंगा। इसकी आप िचनता ि किे। बोले, अचछी बात है, कहाि आपको दकुाि पि िमलेगा। बोलो साहजी, कुछ ति माल तैयाि है?

लडडू तो ताजे मालूम होते है तौल दो एक सेि भि। आ जाऊं वहीं ऊपि ि?

यह कहकि मोटेिामजी हलवाई की दकूाि पि जा बठेै औि ति माल चखिे लगे। खबू छककि खाया। ढाई-तीि सेि चट कि गये। खाते जाते थे औि हलवाई की तािीफ किते जाते थे- शाहजी, तुमहािी दकूाि का जैसा िाम सुिा था, वैसा ही माल भी पाया। बिािसवाले ऐसे िसगुलले िहीं बिा पाते,

24

Page 25: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

कलाकनद अचछी बिाते है, पि तुमहािी उिसे बुिी िहीं, माल डालिे से अचछी चीज िहीं बि जाती, िवदा चिहए।

हलवाई-कुछ औि लीिजए महािाज! थोडी-सी िबडी मेिी तिफ से लीिजए।

मोटेिाम-इचछा तो िहीं है, लेिकि दे दो पाव-भि।हलवाई-पाव-भि कया लीिजएगा? चीज अचछी है, आध सेि तो लीिजए। खूब इचछापूण म भोजि किके पंिडतजी िे थोडी देि तक बाजाि की सैि

की औि िौ बजते-बजते मकाि पि आये। यहां सनिाटा-सा छाया हुआ था। एक लालटेि जल िही थी। अपिे चबूतिे पि िबसति जमाया औि सो गये।

सबेिे अपिे िियमािुसाि कोई आठ बजे उठे, तो देखा िक बाबूसाहब टहल िहे है। इनहे जगा देखकि वह पालागि कि बोले-महािाज, आज िात कहां चले गये? मै बडी िात तक आपकी िाह देखता िहा। भोजि का सब सामाि बडी देि तक िखा िहा। जब आज ि आये, तो िखवा िदया गया। आपिे कुछ भोजि िकया था। या िहीं?

मोटे- हलवाई की दकूाि मे कुछ खा आया था।भाल- अजी पूिी-िमठाई मे वह आिनद कहां, जो बाटी औि दाल मे है।

दस-बािह आिे खच म हो गये होगे, िफि भी पेट ि भिा होगा, आप मेिे मेहमाि है, िजतिे पैसे लगे हो ले लीिजएगा।

मोटे- आप ही के हलवाई की दकूाि पि खाया था, वह जो िुककड पि बैठता है।

भाल- िकतिे पैसे देिे पडे?

मोटे- आपके िहसाब मे िलखा िदये है। भाल- िजतिी िमठाइयां ली हो, मुझे बता दीिजए, िहीं तो पीछे से

बेईमािी कििे लगेगा। एक ही ठग है।मोटे- कोई ढाई सेि िमठाई थी औि आधा सेि िबडी।बाबू साहब िे िवसफिित िेतो से पिंडतजी को देखा, मािो कोई अचमभे

की बात सुिी हो। तीि सेि तो कभी यहां महीिे भि का टोटल भी ि होता था औि यह महाशय एक ही बाि मे कोई चाि रपये का माल उडा गये। अगि एक आध िदि औि िह गये, तो या बठै जायेगी। पेट है या शैताि की कब? तीि सेि! कुछ िठकािा है! उिदगि दशा मे दौडे हुए अनदि गये औि

25

Page 26: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

िंगीली से बोल-कुछ सुिती हो, यह महाशय कल तीि सेि िमठाई उडा गये। तीि सेि पककी तौल!

िंगीलीबाई िे िविसमत होकि कहा-अजी िहीं, तीि सेि भला कया खा जायेगा! आदमी है या बैल?

भाल- तीि सेि तो अपिे मुंह से कह िहा है। चाि सेि से कम ि होगा, पककी तौल!

िंगीली- पेट मे सिीचि है कया?भाल- आज औि िह गया तो छ: सेि पि हाथ फेिेगा।िंगीली- तो आज िहे ही कयो, खत का जवाब जो देिा देकि िवदा किो।

अगि िहे तो साफ कह देिा िक हमािे यहां िमठाई मुफत िहीं आती। िखचडी बिािा हो, बिावे, िहीं तो अपिी िाह ले। िजनहे ऐसे पेटुओं को िखलािे से मुिक िमलती हो, वे िखलाये हमे ऐसी मुिक ि चािहये!

मगि पिंडत िवदा होिे को तैयाि बैठे थे, इसिलए बाबूसाहब को कौशल से काम लेिे की जरित ि पडी।

पूछा- कया तैयािी कि दी महािाज?

मोटे- हां सिकाि, अब चलूंगा। िौ बजे की गाडी िमलेगी ि?

भाल- भला आज तो औि ििहए।यह कहते-कहते बाबूजी को भय हुआ िक कहीं यह महािाज सचमुच ि

िह जाये, इसिलये वाकय को यो पूिा िकया- हां, वहां भी लोग आपका इनतजाि कि िहे होगे।

मोटे- एक-दो िदि की तो कोई बात ि थी औि िवचाि भी यही था िक ितवेणी का सिाि करंगा, पि बुिा ि माििए तो कहंू, आप लोगो मे बाहाणो के पित लेशमात भी शदा िहीं है। हमािे जजमाि है, जो हमािा मुंह जोहते िहते है िक पिंडतजी कोई आजा दे, तो उसका पालि किे। हम उिके दािा पहंुच जाते है, तो वे अपिा धनय भागय समझते है औि सािा घि-छोटे से बडे तक हमािी सेवा-सतकाि मे मगि हो जाते है। जहां अपिा आदि िहीं, वहां एक कण भी ठहििा असहाय है। जहां बहाण का आदि िहीं, वहां कलयाण िहीं हो सकता।

भाल- महािाज, हमसे तो ऐसा अपिाध िहीं हुआ।मोटे- अपिाध िहीं हुआ! औि अपिाध कहते िकसे है? अभी आप ही िे

घि मे जाकि कहा िक यह महाशय तीि सेि िमठाई चट कि गये, पककी 26

Page 27: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

तौल। आपिे अभी खािेवाले देखे कहां? एक बाि िखलाइये तो आखें खुल जाये। ऐसे-ऐसे महाि पुरष पडे है, जो पसेिी भि िमठाई खा जाये औि डकाि तक ि ले। एक-एक िमठाई खािे के िलए हमािी िचिौिी की जाती है, रपये िदये जाते है। हम िभकुक बाहाण िहीं है, जो आपके दाि पि पडे िहे। आपका िाम सुिकि आये थे, यह ि जािते थे िक यहां मेिे भोजि के भी लाले पडेगे। जाइये, भगवाि ्आपका कलयाण किे!

बाबू साहब ऐसा झेपे िक मुंह से बात ि ििकली। िजनदगी भि मे उि पि कभी ऐसी फटकाि ि पडी थी। बहुत बाते बिायीं-आपकी चचा म ि थी, एक दसूिे ही महाशय की बात थी, लेिकि पंिडतजी का कोध शानत ि हुआ। वह सब कुछ सह सकते थे, पि अपिे पेट की ििनदा ि सह सकते थे। औितो को रप की ििनदा िजतिी िपय लगती है, उससे कहीं अिधक अिपय पुरषो को अपिे पेट की ििनदा लगती है। बाबू साहब मिाते तो थे; पि धडका भी समाया हुआ था िक यह िटक ि जाये। उिकी कृपणता का पिदा खुल गया था, अब इसमे सनदेह ि था। उस पदे को ढांकिा जरिी था। अपिी कृपणता को िछपािे के िलए उनहोिे कोई बात उठा ि िखी पि होिेवाली बात होकि िही। पछता िहे थे िक कहां से घि मे इसकी बात कहिे गया औि कहा भी तो उचच सवि मे। यह दिु भी काि लगाये सुिता िहा, िकनतु अब पछतािे से कया हो सकता था? ि जािे िकस मिहूस की सूित देखी थी यह िवपित गले पडी। अगि इस वक यहां से रि होकि चला गया; तो वहां जाकि बदिाम किेगा औि मेिा सािा कौशल खुल जायेगा। अब तो इसका मुंह बनद कि देिा ही पडेगा।

यह सोच-िवचाि किते हुए वह घि मे जाकि िंगीलीबाई से बोले-इस दिु िे हमािी-तुमहािी बाते सुि ली। रठकि चला जा िहा है।

िंगीली-जब तुम जािते थे िक दाि पि खडा है, तो धीिे से कयो ि बोले?

भाल-िवपित आती है; तो अकेले िहीं आती। यह कया जािता था िक वह दाि पि काि लगाये खडा है।

िंगीली- ि जािे िकसका मुंह देख था?

भाल-वही दिु सामिे लेटा हुआ था। जािता तो उधि ताकता ही िहीं। अब तो इसे कुछ दे-िदलाकि िाजी कििा पडेगा।

27

Page 28: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

िंगीली- ऊंह, जािे भी दो। जब तुमहे वहां िववाह ही िहीं कििा है, तो कया पिवाह है? जो चाहे समझे, जो चाहे कहे।

भाल-यो जाि ि बचेगी। आओं दस रपये िवदाई के बहािे दे दं।ू ईशि िफि इस मिहूस की सूित ि िदखाये।

िंगीली िे बहुत अछताते-पछताते दस रपये ििकाले औि बाबू साहब िे उनहे ले जाकि पिंडतजी के चिणो पि िख िदया। पंिडतजी िे िदल मे कहा-धतिेै मकखीचूस की! ऐसा िगडा िक याद किोगे। तुम समझते होगे िक दस रपये देकि इसे उललू बिा लूंगा। इस फेि मे ि िहिा। यहां तुमहािी िस-िस पहचािते है। रपये जेब मे िख िलये औि आशीवादम देकि अपिी िाह ली।

बाबू साहब बडी देकि तक खडे सोच िहे थे-मालूम िहीं, अब भी मुझे कृपण ही समझ िहा है या पिदा ढंक गया। कहीं ये रपये भी तो पािी मे िहीं िगि पडे।

चाि

लयाणी के सामिे अब एक िवषम समसया आ खडी हुई। पित के देहानत के बाद उसे अपिी दिुवसथा का यह पहला औि बहुत ही

कडवा अिुभव हुआ। दििद िवधवा के िलए इससे बडी औि कया िवपित हो सकती है िक जवाि बेटी िसि पि सवाि हो? लडके िंगे पांव पढिे जा सकते है, चौका-बतिम भी अपिे हाथ से िकया जा सकता है, रखा-सूखा खाकि ििवाहम िकया जा सकता है, झोपडे मे िदि काटे जा सकते है, लेिकि युवती कनया घि मे िहीं बठैाई जा सकती। कलयाणी को भालचनद पि ऐसा कोध आता था िक सवयं जाकि उसके मुंह मे कािलख लगाऊं, िसि के बाल िोच लूं, कहंू िक तू अपिी बात से िफि गया, तू अपिे बाप का बेटा िहीं। पिंडत मोटेिाम िे उिकी कपट-लीला का िगि वतृानत सुिा िदया था।

वह इसी कोध मे भिी बैठी थी िक कृषणा खेलती हुई आयी औि बोली-कै िदि मे बािात आयेगी अममां? पंिडत तो आ गये।

कलयाणी- बािात का सपिा देख िही है कया?

कृषणा-वही चनदि तो कह िहा है िक-दो-तीि िदि मे बािात आयेगी, कया ि जायेगी अममां?

कलयाणी-एक बाि तो कह िदया, िसि कयो खाती है?

28

Page 29: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

कृषणा-सबके घि तो बािात आ िही है, हमािे यहां कयो िहीं आती?कलयाणी-तेिे यहां जो बािात लािे वाला था, उसके घि मे आग लग

गई।कृषणा-सच, अममां! तब तो सािा घि जल गया होगा। कहां िहते होगे?

बहि कहां जाकि िहेगी?कलयाणी-अिे पगली! तू तो बात ही िहीं समझती। आग िहीं लगी।

वह हमािे यहां बयाह ि किेगा।कृषणा-यह कयो अममां? पहले तो वहीं ठीक हो गया था ि?

कलयाणी-बहुत से रपये मांगता है। मेिे पास उसे देिे को रपये िहीं है।

कृषणा-कया बडे लालची है, अममां?कलयाणी-लालची िहीं तो औि कया है। पूिा कसाई ििदमयी, दगाबाज।कृषणा-तब तो अममां, बहुत अचछा हुआ िक उसके घि बहि का बयाह

िहीं हुआ। बहि उसके साथ कैसे िहती? यह तो खुश होिे की बात है अममां, तुम िंज कयो किती हो?

कलयाणी िे पुती को सिेहमयी दिि से देखा। इिका कथि िकतिा सतय है? भोले शबदो मे समसया का िकतिा मािमकम ििरपण है? सचमुच यह ते पसनि होिे की बात है िक ऐसे कुपातो से समबनध िहीं हुआ, िंज की कोई बात िहीं। ऐसे कुमािुसो के बीच मे बेचािी ििमलम ा की ि जािे कया गित होती अपिे िसीबो को िोती। जिा सा घी दाल मे अिधक पड जाता, तो सािे घि मे शोि मच जाता, जिा खािा जयादा पक जाता, तो सास दििया िसि पि उठा लेती। लडका भी ऐसा लोभी है। बडी अचछी बात हुई, िहीं, बेचािी को उम भि िोिा पडता। कलयाणी यहां से उठी, तो उसका हदय हलका हो गया था।

लेिकि िववाह तो कििा ही था औि हो सके तो इसी साल, िहीं तो दसूिे साल िफि िये िसिे से तैयािियां कििी पडेगी। अब अचछे घि की जरित ि थी। अचछे वि की जरित ि थी। अभािगिी को अचछा घि-वि कहां िमलता! अब तो िकसी भांित िसि का बोझा उताििा था, िकसी भांित लडकी को पाि लगािा था, उसे कुएं मे झोकिा था। यह रपवती है, गणुशीला है, चतुि है, कुलीि है, तो हुआ किे, दहेज िहीं तो उसके सािे गुण दोष है,

29

Page 30: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

दहेज हो तो सािे दोष गुण है। पाणी का कोई मूलय िहीं, केवल देहज का मूलय है। िकतिी िवषम भगयलीला है!

कलयाणी का दोष कुछ कम ि था। अबला औि िवधवा होिा ही उसे दोषो से मुक िहीं कि सकता। उसे अपिे लडके अपिी लडिकयो से कहीं जयादा पयािे थे। लडके हल के बैल है, भूसे खली पि पहला हक उिका है,

उिके खािे से जो बचे वह गायो का! मकाि था, कुछ िकद था, कई हजाि के गहिे थे, लेिकि उसे अभी दो लडको का पालि-पोषण कििा था, उनहे पढािा-िलखािा था। एक कनया औि भी चाि-पांच साल मे िववाह कििे योगय हो जायेगी। इसिलए वह कोई बडी िकम दहेज मे ि दे सकती थी, आिखि लडको को भी तो कुछ चािहए। वे कया समझेगे िक हमािा भी कोई बाप था।

पंिडत मोटेिाम को लखिऊ से लौटे पनदह िदि बीत चकेु थे। लौटिे के बाद दसूिे ही िदि से वह वि की खोज मे ििकले थे। उनहोिे पण िकया था िक मै लखिऊ वालो को िदखा दंगूा िक संसाि मे तुमहीं अकेले िहीं हो , तुमहािे ऐसे औि भी िकतिे पडे हुए है। कलयाणी िोज िदि िगिा किती थी। आज उसिे उनहे पत िलखिे का ििशय िकया औि कलम-दवात लेकि बैठी ही थी िक पिंडत मोटेिाम िे पदापणम िकया।

कलयाणी-आइये पंिडतजी, मै तो आपको खत िलखिे जा िही थी, कब लौटे?

मोटेिाम-लौटा तो पात:काल ही था, पि इसी समय एक सेठ के यहां से ििमनतण आ गया। कई िदि से ति माल ि िमले थे। मैिे कहा िक लगे हाथ यह भी काम ििपटाता चलूं। अभी उधि ही से लौटा आ िहा हंू, कोई पांच सौ बहाणो को पंगत थी।

कलयाणी-कुछ काय म भी िसद हुआ या िासता ही िापिा पडा।मोटेिाम- काय म कयो ि िसद होगा? भला, यह भी कोई बात है? पांच

जगह बातचीत कि आया हंू। पांचो की िकल लाया हंू। उिमे से आप चाहे िजसे पसनद किे। यह देिखए इस लडके का बाप डाक के सीगे मे सौ रपये महीिे का िौकि है। लडका अभी कालेज मे पढ िहा है। मगि िौकिी का भिोसा है, घि मे कोई जायदाद िहीं। लडका होिहाि मालूम होता है। खािदाि भी अचछा है दो हजाि मे बात तय हो जायेगी। मांगते तो यह तीि हजाि है।

कलयाणी- लडके के कोई भाई है?

30

Page 31: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

मोटे-िहीं, मगि तीि बहिे है औि तीिो कवांिी। माता जीिवत है। अचछा अब दसूिी िकल िदये। यह लडका िेल के सीगे मे पचास रपये महीिा पाता है। मां-बाप िहीं है। बहुत ही रपवाि ्सुशील औि शिीि से खबू हि-पुि कसिती जवाि है। मगि खािदाि अचछा िहीं, कोई कहता है, मां िाइि थी, कोई कहता है, ठकुिाइि थी। बाप िकसी िियासत मे मुखताि थे। घि पि थोडी सी जमींदािी है, मगि उस पि कई हजाि का कज म है। वहां कुछ लेिा-देिा ि पडेगा। उम कोई बीस साल होगी।

कलयाणी-खािदाि मे दाग ि होता, तो मंजिू कि लेती। देखकि तो मकखी िहीं ििगली जाती।

मोटे-तीसिी िकल देिखए। एक जमींदाि का लडका है, कोई एक हजाि सालािा िफा है। कुछ खेती-बािी भी होती है। लडका पढ-िलखा तो थोडा ही है, कचहिी-अदालत के काम मे चतुि है। दहुाजू है, पहली िी को मिे दो साल हुए। उससे कोई संताि िहीं, लेिकि िहिा-सहि, मोटा है। पीसिा-कूटिा घि ही मे होता है।

कलयाणी- कुछ देहज मांगते है?

मोटे-इसकी कुछ ि पिूछए। चाि हजाि सुिाते है। अचछा यह चौथी िकल िदये। लडका वकील है, उम कोई पैतीस साल होगी। तीि-चाि सौ की आमदिी है। पहली िी मि चकुी है उससे तीि लडके भी है। अपिा घि बिवाया है। कुछ जायदाद भी खिीदी है। यहां भी लेि-देि का झगडा िहीं है।

कलयाणी- खािदाि कैसा है?

मोटे-बहुत ही उतम, पुिािे िईस है। अचछा, यह पांचवीं िकल िदए। बाप का छापाखािा है। लडका पढा तो बी. ए. तक है, पि उस छापेखािे मे काम किता है। उम अठािह साल की होगी। घि मे पेस के िसवाय कोई जायदाद िहीं है, मगि िकसी का कज म िसि पि िहीं। खािदाि ि बहुत अचछा है, ि बुिा। लडका बहुत सुनदि औि सचचिित है। मगि एक हजाि से कम मे मामला तय ि होगा, मांगते तो वह तीि हजाि है। अब बताइए, आप कौि-सा वि पसनद किती है?

कलयाणी-आपको सबो मे कौि पसनद है?

मोटे-मुझे तो दो वि पसनद है। एक वह जो िेलवई मे है औि दसूिा जो छापेखािे मे काम किता है।

31

Page 32: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

कलयाणी-मगि पहले के तो खािदाि मे आप दोष बताते है?

मोटे-हां, यह दोष तो है। छापेखािे वाले को ही िहिे दीिजये।कलयाणी-यहां एक हजाि देिे को कहां से आयेगा? एक हजाि तो

आपका अिमुाि है, शायद वह औि मुंह फैलाये। आप तो इस घि की दशा देख ही िहे है, भोजि िमलता जाये, यही गिीमत है। रपये कहां से आयेगे?

जमींदाि साहब चाि हजाि सुिाते है, डाक बाबू भी दो हजाि का सवाल किते है। इिको जािे दीिजए। बस, वकील साहब ही बच सकते है। पैतीस साल की उम भी कोई जयादा िहीं। इनहीं को कयो ि ििखए।

मोटेिाम-आप खूब सोच-िवचाि ले। मै यो आपकी मजी का ताबेदाि हंू। जहां किहएगा वहां जाकि टीका कि आऊंगा। मगि हजाि का मुंह ि देिखए,

छापेखािे वाला लडका ित है। उसके साथ कनया का जीवि सफल हो जाएगा। जसैी यह रप औि गुण की पूिी है, वैसा ही लडका भी सुनदि औि सुशील है।

कलयाणी-पसनद तो मुझे भी यही है महािाज, पि रपये िकसके घि से आये! कौि देिे वाला है! है कोई दािी? खािेवाले खा-पीकि चपंत हुए। अब िकसी की भी सिूत िहीं िदखाई देती, बिलक औि मुझसे बुिा मािते है िक हमे ििकाल िदया। जो बात अपिे बस के बाहि है, उसके िलए हाथ ही कयो फैलाऊं? सनताि िकसको पयािी िहीं होती? कौि उसे सुखी िहीं देखिा चाहता? पि जब अपिा काबू भी हो। आप ईशि का िाम लेकि वकील साहब को टीका कि आइये। आयु कुछ अिधक है, लेिकि मििा-जीिा िविध के हाथ है। पैतीस साल का आदमी बुढडा िहीं कहलाता। अगि लडकी के भागय मे सुख भोगिा बदा है, तो जहां जायेगी सुखी िहेगी, द :ुख भोगिा है, तो जहां जायेगी दु:ख झेलेगी। हमािी ििमलम ा को बचचो से पेम है। उिके बचचो को अपिा समझेगी। आप शुभ मुहूत म देखकि टीका कि आये।

पा ंच

मलम ा का िववाह हो गया। ससुिाल आ गयी। वकील साहब का िाम था मुंशी तोतािाम। सांवले िंग के मोटे-ताजे आदमी थे। उम तो अभी

चालीस से अिधक ि थी, पि वकालत के किठि पििशम िे िसि के बाल पका िदये थे। वयायाम कििे का उनहे अवकाश ि िमलता था। वहां तक िक

िि32

Page 33: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

कभी कहीं घूमिे भी ि जाते, इसिलए तोद ििकल आई थी। देह के सथूि होते हुए भी आये िदि कोई-ि-कोई िशकायत िहती थी। मंदिगि औि बवासीि से तो उिका िचिसथायी समबनध था। अतएव बहुत फंूक -फंूककि कदम िखते थे। उिके तीि लडके थे। बडा मंसािाम सोहल वष म का था, मंझला िजयािाम बािह औि िसयािाम सात वष म का। तीिो अगेंजी पढते थे। घि मे वकील साहब की िवधवा बिहि के िसवा औि कोई औित ि थी। वही घि की मालिकि थी। उिका िाम था रकिमणी औि अवसथा पचास के ऊपि थी। ससुिाल मे कोई ि था। सथायी िीित से यहीं िहती थीं।

तोतािाम दमपित-िवजाि मे कुशल थे। ििमलम ा के पसनि िखिे के िलए उिमे जो सवाभािवक कमी थी, उसे वह उपहािो से पूिी कििा चाहते थे। यदिप वह बहु ही िमतवययी पुरष थे, पि ििमलम ा के िलए कोई-ि-कोई तोहफा िोज लाया किते। मौके पि धि की पिवाइ ि किते थे। लडके के िलए थोडा दधू आता था, पि ििमलम ा के िलए मेवे, मुिबबे, िमठाइयां-िकसी चीज की कमी ि थी। अपिी िजनदगी मे कभी सैि-तमाशे देखिे ि गये थे,

पि अब छुिटटयो मे ििमलम ा को िसिेमा, सिकस, एटि, िदखािे ले जाते थे। अपिे बहुमूलय समय का थोडा-सा िहससा उसके साथ बैठकि गामोफोि बजािे मे वयतीत िकया किते थे।

लेिकि ििमलम ा को ि जािे कयो तोतािाम के पास बठैिे औि हंसिे-

बोलिे मे संकोच होता था। इसका कदािचत ्यह कािण था िक अब तक ऐसा ही एक आदमी उसका िपता था, िजसके सामिे वह िसि-झुकाकि, देह चिुाकि ििकलती थी, अब उिकी अवसथा का एक आदमी उसका पित था। वह उसे पेम की वसतु िहीं सममाि की वसतु समझती थी। उिसे भागती िफिती, उिको देखते ही उसकी पफुललता पलायि कि जाती थी।

वकील साहब को िके दमपित-िवजाि ि िसखाया था िक युवती के सामिे खूब पेम की बाते कििी चािहये। िदल ििकालकि िख देिा चिहये,

यही उसके वशीकिण का मुखय मंत है। इसिलए वकील साहब अपिे पेम-

पदशिम मे कोई कसि ि िखते थे, लेिकि ििमलम ा को इि बातो से घणृा होती थी। वही बाते, िजनहे िकसी युवक के मुख से सुिकि उिका हदय पेम से उनमत हो जाता, वकील साहब के मुंह से ििकलकि उसके हदय पि शि के समाि आघात किती थीं। उिमे िस ि था उललास ि था, उनमाद ि था, हदय ि था, केवल बिावट थी, घोखा था औि शुषक, िीिस शबदाडमबि। उसे

33

Page 34: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

इत औि तेल बिुा ि लगता, सैि-तमाशे बुिे ि लगते, बिाव-िसंगाि भी बिुा ि लगता था, बिुा लगता था, तो केवल तोतािाम के पास बैठिा। वह अपिा रप औि यौवि उनहे ि िदखािा चाहती थी, कयोिक वहां देखिे वाली आंखे ि थीं। वह उनहे इि िसो का आसवादि लेिे योगय ि समझती थी। कली पभात-

समीि ही के सपश म से िखलती है। दोिो मे समाि सािसय है। ििमलम ा के िलए वह पभात समीि कहां था?

पहला महीिा गुजिते ही तोतािाम िे ििमलम ा को अपिा खजांची बिा िलया। कचहिी से आकि िदि-भि की कमाई उसे दे देते। उिका खयाल था िक ििमलम ा इि रपयो को देखकि फूली ि समाएगी। ििमलम ा बडे शौक से इस पद का काम अजंाम देती। एक-एक पैसे का िहसाब िलखती, अगि कभी रपये कम िमलते, तो पूछती आज कम कयो है। गहृसथी के समबनध मे उिसे खबू बाते किती। इनहीं बातो के लायक वह उिको समझती थी। जयोही कोई िविोद की बात उिके मुंह से ििकल जाती, उसका मुख िलि हो जाता था।

ििमलम ा जब विाभूषणो से अलंकृत होकि आइिे के सामिे खडी होती औि उसमे अपिे सौनदय म की सुषमापूण म आभा देखती, तो उसका हदय एक सतषृण कामिा से तडप उठता था। उस वक उसके हदय मे एक जवाला-सी उठती। मि मे आता इस घि मे आग लगा दं।ू अपिी माता पि कोध आता , पि सबसे अिधक कोध बेचािे िििपिाध तोतािाम पि आता। वह सदैव इस ताप से जला किती। बांका सवाि लददू-टटटू पि सवाि होिा कब पसनद किेगा, चाहे उसे पैदल ही कयो ि चलिा पडे? ििमलम ा की दशा उसी बांके सवाि की-सी थी। वह उस पि सवाि होकि उडिा चाहती थी, उस उललासमयी िवदत ्गित का आिनद उठािा चाहती थी, टटटू के िहििहिािे औि किौितयां खडी कििे से कया आशा होती? संभव था िक बचचो के साथ हंसिे-खेलिे से वह अपिी दशा को थोडी देि के िलए भूल जाती, कुछ मि हिा हो जाता, लेिकि रकिमणी देवी लडको को उसके पास फटकिे तक ि देतीं, मािो वह कोई िपशािचिी है, जो उनहे ििगल जायेगी। रकिमणी देवी का सवभाव सािे संसाि से िििाला था, यह पता लगािा किठि था िक वह िकस बात से खशु होती थीं औि िकस बात से िािाज। एक बाि िजस बात से खुश हो जाती थीं, दसूिी बाि उसी बात से जल जाती थी। अगि ििमलम ा अपिे कमिे मे बैठी िहती, तो कहतीं िक ि जािे कहां की मिहूिसि है! अगि वह कोठे पि

34

Page 35: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

चढ जाती या महिियो से बाते किती, तो छाती पीटिे लगतीं-ि लाज है, ि शिम, ििगोडी िे हया भूि खाई! अब कया कुछ िदिो मे बाजाि मे िाचेगी! जब से वकील साहब िे ििमलम ा के हाथ मे रपये-पैसे देिे शुर िकये,

रकिमणी उसकी आलोचिा कििे पि आरढ हो गयी। उनहे मालूम होता था। िक अब पलय होिे मे बहुत थोडी कसि िह गयी है। लडको को बाि-बाि पैसो की जरित पडती। जब तक खुद सवािमिी थीं, उनहे बहला िदया किती थीं। अब सीधे ििमलम ा के पास भेज देतीं। ििमलम ा को लडको के चटोिापि अचछा ि लगता था। कभी-कभी पैसे देिे से इनकाि कि देती। रकिमणी को अपिे वागबाण सि कििे का अवसि िमल जाता-अब तो मालिकि हुई है, लडके काहे को िजयेगे। िबिा मां के बचचे को कौि पछेू? रपयो की िमठाइयां खा जाते थे, अब धेले-धेले को तिसते है। ििमलम ा अगि िचढकि िकसी िदि िबिा कुछ पूछे-ताछे पैसे दे देती, तो देवीजी उसकी दसूिी ही आलोचिा कितीं-इनहे कया, लडके मिे या िजये, इिकी बला से, मां के िबिा कौि समझाये िक बेटा, बहुत िमठाइयां मत खाओ। आयी-गयी तो मेिे िसि जायेगी, इनहे कया? यहीं तक होता, तो ििमलम ा शायद जबत कि जाती, पि देवीजी तो खुिफया पुिलस से िसपाही की भांित ििमलम ा का पीछा किती िहती थीं। अगि वह कोठे पि खडी है, तो अवशय ही िकसी पि ििगाह डाल िही होगी, महिी से बाते किती है, तो अवशय ही उिकी ििनदा किती होगी। बाजाि से कुछ मगंवाती है, तो अवशय कोई िवलास वसतु होगी। यह बिाबि उसके पत पढिे की चेिा िकया किती। िछप-िछपकि बाते सुिा किती। ििमलम ा उिकी दोधिी तलवाि से कांपती िहती थी। यहां तक िक उसिे एक िदि पित से कहा-आप जिा जीजी को समझा दीिजए, कयो मेिे पीछे पड िहती है?

तोतािाम िे तेज होकि कह- तुमहे कुछ कहा है, कया?‘िोज ही कहती है। बात मुंह से ििकालिा मुिशकल है। अगि उनहे इस

बात की जलि हो िक यह मालिकि कयो बिी हुई है, तो आप उनहीं को रपये-पैसे दीिजये, मुझे ि चािहये, यही मालिकि बिी िहे। मै तो केवल इतिा चाहती हंू िक कोई मुझे तािे-मेहिे ि िदया किे।’

यह कहते-कहते ििमलम ा की आखंो से आंसू बहिे लगे। तोतािाम को अपिा पेम िदखािे का यह बहुत ही अचछा मौका िमला। बोले-मै आज ही उिकी खबि लूंगा। साफ कह दंगूा, मुंह बनद किके िहिा है, तो िहो, िहीं तो अपिी िाह लो। इस घि की सवािमिी वह िहीं है, तुम हो। वह केवल तुमहािी

35

Page 36: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

सहायता के िलए है। अगि सहायता कििे के बदले तुमहे िदक किती है, तो उिके यहां िहिे की जरित िहीं। मैिे सोचा था िक िवधवा है, अिाथ है, पाव भि आटा खायेगी, पडी िहेगी। जब औि िौकि-चाकि खा िहे है, तो वह तो अपिी बिहि ही है। लडको की देखभाल के िलए एक औित की जरित भी थी, िख िलया, लेिकि इसके यह मािे िहीं िक वह तुमहािे ऊपि शासि किे।

ििमलम ा िे िफि कहा-लडको को िसखा देती है िक जाकि मां से पैसे मांगे, कभी कुछ-कभी कुछ। लडके आकि मेिी जाि खाते है। घडी भि लेटिा मुिशकल हो जाता है। डांटती हंू, तो वह आखे लाल-पीली किके दौडती है। मुझे समझती है िक लडको को देखकि जलती है। ईशि जािते होगे िक मै बचचो को िकतिा पयाि किती हंू। आिखि मेिे ही बचचे तो है। मुझे उिसे कयो जलि होिे लगी?

तोतािाम कोध से कांप उठे। बोल-तुमहे जो लडका िदक किे, उसे पीट िदया किो। मै भी देखता हंू िक लौडे शिीि हो गये है। मंसािाम को तो मे बोिडिग हाउस मे भेज दंगूा। बाकी दोिो को तो आज ही ठीक िकये देता हंू।

उस वक तोतािाम कचहिी जा िहे थे, डांट-डपट कििे का मौका ि था, लेिकि कचहिी से लौटते ही उनहोिे घि मे रिकमणी से कहा-कयो बिहि,

तुमहे इस घि मे िहिा है या िहीं? अगि िहिा है, शानत होकि िहो। यह कया िक दसूिो का िहिा मुिशकल कि दो।

रिकमणी समझ गयीं िक बहू िे अपिा वाि िकया, पि वह दबिे वाली औित ि थीं। एक तो उम मे बडी ितस पि इसी घि की सेवा मे िजनदगी काट दी थी। िकसकी मजाल थी िक उनहे बेदखल कि दे! उनहे भाई की इस कुदता पि आशय म हुआ। बोलीं-तो कया लौडी बिाकि िखेगे? लौडी बिकि िहिा है, तो इस घि की लौडी ि बिूगंी। अगि तुमहािी यह इचछा हो िक घि मे कोई आग लगा दे औि मै खडी देखा करं, िकसी को बेिाह चलते देखूं; तो चुप साध लू,ं जो िजसके मि मे आये किे, मै िमटटी की देवी बिी िहंू, तो यह मुझसे ि होगा। यह हुआ कया, जो तुम इतिा आपे से बाहि हो िहे हो?

ििकल गयी सािी बुिदमािी, कल की लौिडया चोटी पकडकि िचािे लगी?

कुछ पछूिा ि ताछिा, बस, उसिे ताि खींचा औि तुम काठ के िसपाही की तिह तलवाि ििकालकि खडे हो गये।

36

Page 37: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

तोता-सुिता हंू, िक तुम हमेशा खचुि ििकालती िहती हो, बात-बात पि तािे देती हो। अगि कुछ सीख देिी हो, तो उसे पयाि से, मीठे शबदो मे देिी चािहये। तािो से सीख िमलिे के बदले उलटा औि जी जलिे लगता है।

रिकमणी-तो तुमहािी यह मजी है िक िकसी बात मे ि बोलूं, यही सही, िकि िफि यह ि कहिा, िक तुम घि मे बठैी थीं, कयो िहीं सलाह दी। जब मेिी बाते जहि लगती है, तो मुझे कया कुते िे काटा है, जो बोलूं? मसल है-

‘िाटो खेती, बहुिियो घि।’ मै भी देखूं, बहुििया कैसे कि चलाती है!

इतिे मे िसयािाम औि िजयािाम सकूल से आ गये। आते ही आते दोिो बुआजी के पास जाकि खािे को मांगिे लगे।

रिकमणी िे कहा-जाकि अपिी ियी अममां से कयो िहीं मांगते, मुझे बोलिे का हुकम िहीं है।

तोता-अगि तुम लोगो िे उस घि मे कदम िखा, तो टांग तोड दंगूा। बदमाशी पि कमि बांधी है।

िजयािाम जिा शोख था। बोला-उिको तो आप कुछ िहीं कहते, हमीं को धमकाते है। कभी पसेै िहीं देतीं।

िसयािाम िे इस कथि का अिुमोदि िकया-कहती है, मुझे िदक किोगे तो काि काट लूंगी। कहती है िक िहीं िजया?

ििमलम ा अपिे कमिे से बोली-मैिे कब कहा था िक तुमहािे काि काट लूंगी अभी से झूठ बोलिे लगे?

इतिा सुििा था िक तोतािाम िे िसयािाम के दोिो काि पकडकि उठा िलया। लडका जोि से चीख मािकाि िोिे लगा।

रिकमणी िे दौडकि बचचे को मुंशीजी के हाथ से छुडा िलया औि बोलीं- बस, िहिे भी दो, कया बचचे को माि डालोगे? हाय-हाय! काि लाल हो गया। सच कहा है, ियी बीवी पाकि आदमी अनधा हो जाता है। अभी से यह हाल है, तो इस घि के भगवाि ही मािलक है।

ििमलम ा अपिी िवजय पि मि-ही-मि पसनि हो िही थी, लेिकि जब मुंशी जी िे बचचे का काि पकडकि उठा िलया, तो उससे ि िहा गया। छुडािे को दौडी, पि रिकमणी पहले ही पहंुच गयी थीं। बोलीं-पहले आग लगा दी, अब बुझािे दौडी हो। जब अपिे लडके होगे, तब आंखे खुलेगी। पिाई पीि कया जािो?

37

Page 38: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

ििमलम ा- खडे तो है, पूछ लो ि, मैिे कया आग लगा दी? मैिे इतिा ही कहा था िक लडके मुझे पैसो के िलए बाि-बाि िदक किते है, इसके िसवाय जो मेिे मुंह से कुछ ििकला हो, तो मेिे आखें फूट जाये।

तोता-मै खदु इि लौडो की शिाित देखा किता हंू, अनधा थोडे ही हंू। तीिो िजदी औि शिीि हो गये है। बडे िमयां को तो मै आज ही होसटल मे भेजता हंू।

रिकमणी-अब तक तुमहे इिकी कोई शिाित ि सूझी थी, आज आखें कयो इतिी तेज हो गयीं?

तोतािाम- तुमहीं ि इनहे इतिा शोख कि िखा है।रकिमणी- तो मै ही िवष की गांठ हंू। मेिे ही कािण तुमहािा घि चौपट

हो िहा है। लो मै जाती हंू, तुमहािे लडके है, मािो चाहे काटो, ि बोलूंगी। यह कहकि वह वहां से चली गयीं। ििमलम ा बचचे को िोते देखकि

िवहल हो उठी। उसिे उसे छाती से लगा िलया औि गोद मे िलए हुए अपिे कमिे मे लाकि उसे चुमकाििे लगी, लेिकि बालक औि भी िससक-िससक कि िोिे लगा। उसका अबोध हदय इस पयाि मे वह मातृ-सिेह ि पाता था, िजससे दैव िे उसे विंचत कि िदया था। यह वातसलय ि था, केवल दया थी। यह वह वसतु थी, िजस पि उसका कोई अिधकाि ि था, जो केवल िभका के रप मे उसे दी जा िही थी। िपता िे पहले भी दो-एक बाि मािा था, जब उसकी मां जीिवत थी, लेिकि तब उसकी मां उसे छाती से लगाकि िोती ि थी। वह अपसनि होकि उससे बोलिा छोड देती, यहां तक िक वह सवयं थोडी ही देि के बाद कुछ भूलकि िफि माता के पास दौडा जाता था। शिाित के िलए सजा पािा तो उसकी समझ मे आता था, लेिकि माि खािे पाि चुमकािा जािा उसकी समझ मे ि आता था। मातृ-पेम मे कठोिता होती थी, लेिकि मदृलुता से िमली हुई। इस पेम मे करणा थी, पि वह कठोिता ि थी, जो आतमीयता का गुप संदेश है। सवसथ अगं की पािवाह कौि किता है?

लेिकि वही अगं जब िकसी वेदिा से टपकिे लगता है, तो उसे ठेस औि घकके से बचािे का यत िकया जाता है। ििमलम ा का करण िोदि बालक को उसके अिाथ होिे की सूचिा दे िहा था। वह बडी देि तक ििमलम ा की गोद मे बैठा िोता िहा औि िोते-िोते सो गया। ििमलम ा िे उसे चािपाई पि सुलािा चाहा, तो बालक िे सुषुपावसथा मे अपिी दोिो कोमल बाहे उसकी गदमि मे डाल दीं औि ऐसा िचपट गया, मािो िीचे कोई गढा हो। शंका औि भय से

38

Page 39: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

उसका मुख िवकृत हो गया। ििमलम ा िे िफि बालक को गोद मे उठा िलया, चािपाई पि ि सुला सकी। इस समय बालक को गोद मे िलये हुए उसे वह तुिि हो िही थी, जो अब तक कभी ि हुई थी, आज पहली बाि उसे आतमवेदिा हुई, िजसके िा आंख िहीं खुलती, अपिा कतवम य-माग म िहीं समझता। वह माग म अब िदखायी देिे लगा।

छह

स िदि अपिे पगाढ पणय का सबल पमाण देिे के बाद मुंशी तोतािाम को आशा हुई थी िक ििमलम ा के ममम-सथल पि मेिा िसकका

जम जायेगा, लेिकि उिकी यह आशा लेशमात भी पूिी ि हुई बिलक पहले तो वह कभी-कभी उिसे हंसकि बोला भी किती थी, अब बचचो ही के लालि-

पालि मे वयसत िहिे लगी। जब घि आते, बचचो को उसके पास बैठे पाते। कभी देखते िक उनहे ला िही है, कभी कपडे पहिा िही है, कभी कोई खेल,

खेला िही है औि कभी कोई कहािी कह िही है। ििमलम ा का तिृषत हदय पणय की ओि से िििाश होकि इस अवलमब ही को गिीमत समझिे लगा, बचचो के साथ हंसिे-बोलिे मे उसकी मातृ-कलपिा तपृ होती थीं। पित के साथ हंसिे-बोलिे मे उसे जो सकंोच, जो अरिच तथा जो अििचछा होती थी, यहां तक िक वह उठकि भाग जािा चाहती, उसके बदले बालको के सचचे,

सिल सिेह से िचत पसनि हो जाता था। पहले मंसािाम उसके पास आते हुए िझझकता था, लेिकि माििसक िवकास मे पांच साल छोटा। हॉकी औि फुटबाल ही उसका संसाि, उसकी कलपिाओं का मुक-केत तथा उसकी कामिाओं का हिा-भिा बाग था। इकहिे बदि का छिहिा, सुनदि, हंसमुख,

लजजशील बालक था, िजसका घि से केवल भोजि का िाता था, बाकी सािे िदि ि जािे कहां घूमा किता। ििमलम ा उसके मुंह से खेल की बाते सुिकि थोडी देि के िलए अपिी िचनताओं को भूल जाती औि चाहती थी एक बाि िफि वही िदि आ जाते, जब वह गिुडया खेलती औि उसके बयाह िचाया किती थी औि िजसे अभी थोडे आह, बहुत ही थोडे िदि गुजिे थे।

मुंशी तोतािाम अनय एकानत-सेवी मिुषयो की भांित िवषयी जीव थे। कुछ िदिो तो वह ििमलम ा को सैि-तमाशे िदखाते िहे, लेिकि जब देखा िक इसका कुछ फल िहीं होता, तो िफि एकानत-सेवि कििे लगे। िदि-भि के

39

Page 40: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

किठि मािसक पििशम के बाद उिका िचत आमोद-पमोद के िलए लालियत हो जाता, लेिकि जब अपिी िविोद-वािटका मे पवेश किते औि उसके फूलो को मुिझाया, पौधो को सूखा औि कयािियो से धूल उडती हुई देखते, तो उिका जी चाहता-कयो ि इस वािटका को उजाड दंू? ििमलम ा उिसे कयो िविक िहती है, इसका िहसय उिकी समझ मे ि आता था। दमपित शाि के सािे मनतो की पिीका कि चकेु, पि मिोिथ पिूा ि हुआ। अब कया कििा चािहये, यह उिकी समझ मे ि आता था।

एक िदि वह इसी िचंता मे बैठे हुए थे िक उिके सहपाठी िमत ियिसुखिाम आकि बैठ गये औि सलाम-वलाम के बाद मुसकिाकि बोले-

आजकल तो खूब गहिी छिती होगी। ियी बीवी का आिलगंि किके जवािी का मजा आ जाता होगा? बडे भागयवाि हो! भई रठी हुई जवािी को मिािे का इससे अचछा कोई उपाय िहीं िक िया िववाह हो जाये। यहां तो िजनदगी बवाल हो िही है। पती जी इस बुिी तिह िचमटी है िक िकसी तिह िपणड ही िहीं छोडती। मै तो दसूिी शादी की िफक मे हंू। कहीं डौल हो, तो ठीक-ठाक कि दो। दसतूिी मे एक िदि तुमहे उसके हाथ के बिे हुए पाि िखला देगे।

तोतािाम िे गमभीि भाव से कहा-कहीं ऐसी िहमाकत ि कि बैठिा, िहीं तो पछताओगे। लौिडयां तो लौडो से ही खुश िहती है। हम तुम अब उस काम के िहीं िहे। सच कहता हंू मै तो शादी किके पछता िहा हंू, बुिी बला गले पडी! सोचा था, दो-चाि साल औि िजनदगी का मजा उठा लूं, पि उलटी आंते गले पडीं।

ियिसुख-तुम कया बाते किते हो। लौिडयो को पंजो मे लािा कया मुिशकल बात है, जिा सैि-तमाशे िदखा दो, उिके रप-िंग की तािीफ कि दो, बस, िंग जम गया।

तोता-यह सब कुछ कि-धिके हाि गया।ियि-अचछा, कुछ इत-तेल, फूल-पते, चाट-वाट का भी मजा चखाया?

तोता-अजी, यह सब कि चकुा। दमपित-शाि के सािे मनतो का इमतहाि ले चकुा, सब कोिी गपपे है।

ियि-अचछा, तो अब मेिी एक सलाह मािो, जिा अपिी सूित बिवा लो। आजकल यहां एक िबजली के डॉकटि आये हुए है, जो बुढापे के सािे ििशाि िमटा देते है। कया मजाल िक चेहिे पि एक झुिीया या िसि का बाल

40

Page 41: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

पका िह जाये। ि जािे कया जाद ूकि देते है िक आदमी का चोला ही बदल जाता है।

तोता-फीस कया लेते है?

ियि-फीस तो सुिा है, शायद पांच सौ रपये!

तोता-अजी, कोई पाखणडी होगा, बेवकूफो को लूट िहा होगा। कोई िोगि लगाकि दो-चाि िदि के िलए जिा चेहिा िचकिा कि देता होगा। इशतहािी डॉकटिो पि तो अपिा िवशास ही िहीं। दस-पांच की बात होती, तो कहता, जिा िदललगी ही सही। पांच सौ रपये बडी िकम है।

ियि-तुमहािे िलए पांच सौ रपये कौि बडी बात है। एक महीिे की आमदिी है। मेिे पास तो भाई पांच सौ रपये होते, तो सबसे पहला काम यही किता। जवािी के एक घणटे की कीमत पांच सौ रपये से कहीं जयादा है।

तोता-अजी, कोई ससता िुसखा बताओ, कोई फकीिी जडुी-बूटी जो िक िबिा हिम-िफटकिी के िंग चीखा हो जाये। िबजली औि िेिडयम बडे आदिमयो के िलए िहिे दो। उनहीं को मुबािक हो।

ियि-तो िफि िंगीलेपि का सवांग िचो। यह ढीला-ढाला कोट फेको, तंजेब की चसुत अचकि हो, चनुिटदाि पाजामा, गले मे सोिे की जजंीि पडी हुई, िसि पि जयपुिी साफा बांधा हुआ, आंखो मे सुिमा औि बालो मे िहिा का तेल पडा हुआ। तोद का िपचकिा भी जरिी है। दोहिा कमिबनद बांधे। जिा तकलीफ तो होगी, पाि अचकि सज उठेगी। िखजाब मै ला दंगूा। सौ-पचास गजले याद कि लो औि मौके-मौके से शेि पढी। बातो मे िस भिा हो। ऐसा मालूम हो िक तुमहे दीि औि दिुिया की कोई िफक िहीं है, बस, जो कुछ है, िपयतमा ही है। जवांमदी औि साहस के काम कििे का मौका ढंूढते िहो। िात को झूठ-मूठ शोि किो-चोि-चोि औि तलवाि लेकि अकेले िपल पडो। हां, जिा मौका देख लेिा, ऐसा ि हो िक सचमचु कोई चोि आ जाये औि तुम उसके पीछे दौडो, िहीं तो सािी कलई खुल जायेगी औि मुफत के उललू बिोगे। उस वक तो जवांमदी इसी मे है िक दम साधे खडे िहो, िजससे वह समझे िक तुमहे खबि ही िहीं हुई, लेिकि जयोही चोि भाग खडा हो, तुम भी उछलकि बाहि ििकलो औि तलवाि लेकि ‘कहां? कहां?’ कहते दौडो। जयादा िहीं, एक महीिा मेिी बातो का इमतहाि किके देखे। अगि वह तुमहािी दम ि भििे लगे, तो जो जुमािम ा कहो, वह दं।ू

41

Page 42: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

तोतािाम िे उस वक तो यह बाते हंसी मे उडा दीं, जसैा िक एक वयवहाि कुशल मिुषय को कििा चिहए था, लेिकि इसमे की कुछ बाते उसके मि मे बठै गयी। उिका असि पडिे मे कोई संदेह ि था। धीिे-धीिे िंग बदलिे लगे, िजसमे लोग खटक ि जाये। पहले बालो से शुर िकया, िफि सुिमे की बािी आयी, यहां तक िक एक-दो महीिे मे उिका कलेवि ही बदल गया। गजले याद कििे का पसताव तो हासयासपद था, लेिकि वीिता की डींग माििे मे कोई हािि ि थी।

उस िदि से वह िोज अपिी जवांमदी का कोई-ि-कोई पसंग अवशय छेड देते। ििमलम ा को सनदेह होिे लगा िक कहीं इनहे उनमाद का िोग तो िहीं हो िहा है। जो आदमी मूंग की दाल औि मोटे आटे के दो फुलके खाकि भी िमक सुलेमािी का मुहताज हो, उसके छैलेपि पि उनमाद का सनदेह हो, तो आशय म ही कया? ििमलम ा पि इस पागलपि का औि कया िंग जमता? हो उसे उि पाि दया आजे लगी। कोध औि घणृा का भाव जाता िहा। कोध औि घणृा उि पि होती है, जो अपिे होश मे हो, पागल आदमी तो दया ही का पात है। वह बात-बात मे उिकी चटुिकयां लेती, उिका मजाक उडाती, जैसे लोग पागलो के साथ िकया किते है। हां, इसका धयाि िखती थी िक वह समझ ि जाये। वह सोचती, बेचािा अपिे पाप का पायिशत कि िहा है। यह सािा सवांग केवल इसिलए तो है िक मै अपिा दु:ख भूल जाऊं। आिखि अब भागय तो बदल सकता िहीं, इस बेचािे को कयो जलाऊं?

एक िदि िात को िौ बजे तोतािाम बांके बिे हुए सैि किके लौटे औि ििमलम ा से बोले-आज तीि चोिो से सामिा हो गया। जिा िशवपिु की तिफ चला गया था। अधेंिा था ही। जयोही िेल की सडक के पास पहंुचा, तो तीि आदमी तलवाि िलए हुए ि जािे िकधि से ििकल पडे। यकीि मािो, तीिो काले देव थे। मै िबलकुल अकेला, पास मे िसफम यह छडी थी। उधि तीिो तलवाि बांधे हुए, होश उड गये। समझ गया िक िजनदगी का यहीं तक साथ था, मगि मैिे भी सोचा, मिता ही हंू, तो वीिो की मौत कयो ि मरं। इतिे मे एक आदमी िे ललकाि कि कहा-िख दे तेिे पास जो कुछ हो औि चुपके से चला जा।

मै छडी संभालकि खडा हो गया औि बोला-मेिे पास तो िसफम यह छडी है औि इसका मूलय एक आदमी का िसि है।

42

Page 43: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

मेिे मुंह से इतिा ििकलिा था िक तीिो तलवाि खींचकि मुझ पि झपट पडे औि मै उिके वािो को छडी पि िोकिे लगा। तीिो झलला-झललाकि वाि किते थे, खटाके की आवाज होती थी औि मै िबजली की तिह झपटकि उिके तािो को काट देता था। कोई दस िमिट तक तीिो िे खूब तलवाि के जौहि िदखाये, पि मुझ पि िेफ तक ि आयी। मजबूिी यही थी िक मेिे हाथ मे तलवाि ि थी। यिद कहीं तलवाि होती, तो एक को जीता ि छोडता। खैि, कहां तक बयाि करं। उस वक मेिे हाथो की सफाई देखिे कािबल थी। मुझे खुद आशय म हो िहा था िक यह चपलता मुझमे कहां से आ गयी। जब तीिो िे देखा िक यहां दाल िहीं गलिे की, तो तलवाि मयाि मे िख ली औि पीठ ठोककि बोले-जवाि, तुम-सा वीि आज तक िहीं देखा। हम तीिो तीि सौ पि भािी गांव-के-गांव ढोल बजाकि लूटते है, पि आज तुमिे हमे िीचा िदखा िदया। हम तुमहािा लोहा माि गए। यह कहकि तीिो िफि िजिो से गायब हो गए।

ििमलम ा िे गमभीि भाव से मुसकिाकि कहा-इस छडी पि तो तलवाि के बहुत से ििशाि बिे हुए होगे?

मुंशीजी इस शंका के िलए तैयाि ि थे, पि कोई जवाब देिा आवशयक था, बोले-मै वािो को बिाबि खाली कि देता। दो-चाि चोटे छडी पि पडीं भी, तो उचटती हुई, िजिसे कोई ििशाि िहीं पड सकता था।

अभी उिके मुंह से पूिी बात भी ि ििकली थी िक सहसा रिकमणी देवी बदहवास दौडती हुई आयीं औि हांफते हुए बोलीं-तोता है िक िहीं? मेिे कमिे मे सांप ििकल आया है। मेिी चािपाई के िीचे बैठा हुआ है। मै उठकि भागी। मुआ कोई दो गज का होगा। फि ििकाले फुफकाि िहा है, जिा चलो तो। डंडा लेते चलिा।

तोतािाम के चेहिे का िंग उड गया, मुंह पि हवाइयां छुटिे लगीं, मगि मि के भावो को िछपाकि बोले-सांप यहां कहां? तुमहे धोखा हुआ होगा। कोई िससी होगी।

रिकमणी-अिे, मैिे अपिी आखंो देखा है। जिा चलकि देख लो ि। है,

है। मदम होकि डिते हो?मुंशीजी घि से तो ििकले, लेिकि बिामदे मे िफि िठठक गये। उिके

पांव ही ि उठते थे कलेजा धड-धड कि िहा था। सांप बडा कोधी जािवि है। कहीं काट ले तो मुफत मे पाण से हाथ धोिा पडे। बोले-डिता िहीं हंू। सांप

43

Page 44: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

ही तो है, शेि तो िहीं, मगि सांप पि लाठी िहीं असि किती, जाकि िकसी को भेजूं, िकसी के घि से भाला लाये।

यह कहकि मुंशीजी लपके हुए बाहि चले गये। मंसािाम बठैा खािा खा िहा था। मुंशीजी तो बाहि चले गये, इधि वह खािा छोड, अपिी हॉकी का डंडा हाथ मे ले, कमिे मे घुस ही तो पडा औि तुिंत चािपाई खींच ली। सांप मसत था, भागिे के बदले फि ििकालकि खडा हो गया। मंसािाम िे चटपट चािपाई की चादि उठाकि सांप के ऊपि फेक दी औि ताबडतोड तीि-चाि डंडे कसकि जमाये। सांप चादि के अदंि तडप कि िह गया। तब उसे डंडे पि उठाये हुए बाहि चला। मुंशीजी कई आदिमयो को साथ िलये चले आ िहे थे। मंसािाम को सांप लटकाये आते देखा, तो सहसा उिके मुंह से चीख ििकल पडी, मगि िफि संभल गये औि बोले-मै तो आ ही िहा था, तुमिे कयो जलदी की? दे दो, कोई फेक आए।

यह कहकि बहादिुी के साथ रिकमणी के कमिे के दाि पि जाकि खडे हो गये औि कमिे को खूब देखभाल कि मूंछो पि ताव देते हुए ििमलम ा के पास जाकि बोले-मै जब तक आऊं-जाऊं, मंसािाम िे माि डाला। बेसमझ ् लडका डंडा लेकि दौड पडा। सांप हमेशा भाले से माििा चािहए। यही तो लडको मे ऐब है। मैिे ऐसे-ऐसे िकतिे सांप मािे है। सांप को िखला-िखलाकि मािता हंू। िकतिो ही को मुटठी से पकडकि मसल िदया है।

रिकमणी िे कहा-जाओ भी, देख ली तुमहािी मदािम गी।मुंशीजी झेपकि बोले-अचछा जाओ, मै डिपोक ही सही, तुमसे कुछ

इिाम तो िहीं मांग िहा हंू। जाकि महािाज से कहा, खािा ििकाले।मुंशीजी तो भोजि कििे गये औि ििमलम ा दाि की चौखट पि खडी

सोच िही थी-भगवाि।् कया इनहे सचमुच कोई भीषण िोग हो िहा है? कया मेिी दशा को औि भी दारण बिािा चाहते हो? मै इिकी सेवा कि सकती हंू,

सममाि कि सकी हंू, अपिा जीवि इिके चिणो पि अपणम कि सकती हंू,

लेिकि वह िहीं कि सकती, जो मेिे िकये िहीं हो सकता। अवसथा का भेद िमटािा मेिे वश की बात िहीं । आिखि यह मुझसे कया चाहते है-समझ ् गयी। आह यह बात पहले ही िहीं समझी थी, िहीं तो इिको कयो इतिी तपसया कििी पडती कयो इतिे सवांग भििे पडते।

सात

44

Page 45: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

स िदि से ििमलम ा का िंग-ढंग बदलिे लगा। उसिे अपिे को कतवम य पि िमटा देिे का ििशय कि िदया। अब तक िैिाशय के संताप मे

उसिे कतवम य पि धयाि ही ि िदया था उसके हदय मे िवपलव की जवाला-सी दहकती िहती थी, िजसकी असह वेदिा िे उसे संजाहीि-सा कि िखा था। अब उस वेदिा का वेग शांत होिे लगा। उसे जात हुआ िक मेिे िलए जीवि का कोई आंिद िहीं। उसका सवपि देखकि कयो इस जीवि को िि करं। संसाि मे सब-के-सब पाणी सुख-सेज ही पि तो िहीं सोते। मै भी उनहीं अभागो मे से हंू। मुझे भी िवधाता िे दखु की गठिी ढोिे के िलए चिुा है। वह बोझ िसि से उति िहीं सकता। उसे फेकिा भी चाहंू, तो िहीं फेक सकती। उस किठि भाि से चाहे आखंो मे अधेंिा छा जाये, चाहे गदमि टूटिे लगे, चाहे पैि उठािा दसुति हो जाये, लेिकि वह गठिी ढोिी ही पडेगी ? उम भि का कैदी कहां तक िोयेगा? िोये भी तो कौि देखता है? िकसे उस पि दया आती है? िोिे से काम मे हज म होिे के कािण उसे औि यातिाएं ही तो सहिी पडती है।

दसूिे िदि वकील साहब कचहिी से आये तो देखा-ििमलम ा की सहासय मूित म अपिे कमिे के दाि पि खडी है। वह अििनद छिव देखकि उिकी आखें तपृ हा गयीं। आज बहुत िदिो के बाद उनहे यह कमल िखला हुआ िदखलाई िदया। कमिे मे एक बडा-सा आईिा दीवाि मे लटका हुआ था। उस पि एक पिदा पडा िहता था। आज उसका पिदा उठा हुआ था। वकील साहब िे कमिे मे कदम िखा, तो शीशे पि ििगाह पडी। अपिी सिूत साफ-साफ िदखाई दी। उिके हदय मे चोट-सी लग गयी। िदि भि के पििशम से मुख की कांित मिलि हो गयी थी, भांित-भांित के पौििक पदाथ म खािे पि भी गालो की झुििमयां साफ िदखाई दे िही थीं। तोद कसी होिे पि भी िकसी मुंहजोि घोडे की भांित बाहि ििकली हुई थी। आईिे के ही सामिे िकनतू दसूिी ओि ताकती हुई ििमलम ा भी खडी हुई थी। दोिो सूितो मे िकतिा अतंि था। एक ित जिटत िवशाल भवि, दसूिा टूटा-फूटा खडंहि। वह उस आईिे की ओि ि देख सके। अपिी यह हीिावसथा उिके िलए असह थी। वह आईिे के सामिे से हट गये, उनहे अपिी ही सूित से घणृा होिे लगी। िफि इस रपवती

45

Page 46: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

कािमिी का उिसे घणृा कििा कोई आशय म की बात ि थी। ििमलम ा की ओि ताकिे का भी उनहे साहस ि हुआ। उसकी यह अिुपम छिव उिके हदय का शूल बि गयी।

ििमलम ा िे कहा-आज इतिी देि कहां लगायी? िदि भि िाह देखते-देखते आंखे फूट जाती है।

तोतािाम िे िखडकी की ओि ताकते हुए जवाब िदया-मुकदमो के मािे दम माििे की छुटटी िहीं िमलती। अभी एक मुकदमा औि था, लेिकि मै िसिददम का बहािा किके भाग खडा हुआ।

ििमलम ा-तो कयो इतिे मुकदमे लेते हो? काम उतिा ही कििा चािहए िजतिा आिाम से हो सके। पाण देकि थोडे ही काम िकया जाता है। मत िलया किो, बहुत मुकदमे। मुझे रपयो का लालच िहीं। तुम आिाम से िहोगे, तो रपये बहुत िमलेगे।

तोतािाम-भई, आती हुई लकमी भी तो िहीं ठुकिाई जाती।ििमलम ा-लकमी अगि िक औि मांस की भेट लेकि आती है, तो उसका

ि आिा ही अचछा। मै धि की भूखी िहीं हंू।इस वक मंसािाम भी सकूल से लौटा। धपू मे चलिे के कािण मुख

पि पसीिे की बूंदे आयी हुई थीं, गोिे मुखडे पि खिू की लाली दौड िही थी, आंखो से जयोित-सी ििकलती मालूम होती थी। दाि पि खडा होकि बोला-अममां जी, लाइए, कुछ खािे का ििकािलए, जिा खेलिे जािा है।

ििमलम ा जाकि िगलास मे पािी लाई औि एक तशतिी मे कुछ मेवे िखकि मंसािाम को िदए। मंसािाम जब खाकि चलिे लगा, तो ििमलम ा िे पूछा-कब तक आओगे?

मंसािाम-कह िहीं सकता, गोिो के साथ हॉकी का मचै है। बािक यहां से बहुत दिू है।

ििमलम ा-भई, जलद आिा। खािा ठणडा हो जायेगा, तो कहोगे मुझे भूख िहीं है।

मंसािाम िे ििमलम ा की ओि सिल सिेह भाव से देखकि कहा-मुझे देि हो जाये तो समझ लीिजएगा, वहीं खा िहा हंू। मेिे िलए बठैिे की जरित िहीं।

46

Page 47: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

वह चला गया, तो ििमलम ा बोली-पहले तो घि मे आते ही ि थे, मुझसे बोलते शमातम े थे। िकसी चीज की जरित होती, तो बाहि से ही मगंवा भेजते। जब से मैिे बुलाकि कहा, तब से आिे लगे है।

तोतािाम िे कुछ िचढकि कहा-यह तुमहािे पास खािे-पीिे की चीजे मांगिे कयो आता है? दीदी से कयो िही कहता?

ििमलम ा िे यह बात पशंसा पािे के लोभ से कही थी। वह यह िदखािा चाहती थी िक मै तुमहािे लडको को िकतिा चाहती हंू। यह कोई बिावटी पेम ि था। उसे लडको से सचमुच सिेह था। उसके चिित मे अभी तक बाल-भाव ही पधाि था, उसमे वही उतसुकता, वही चंचलता, वही िविोदिपयता िवदमाि थी औि बालको के साथ उसकी ये बालविृतयां पसफुिटत होती थीं। पती-सुलभ ईषया म अभी तक उसके मि मे उदय िहीं हुई थी, लेिकि पित के पसनि होिे के बदले िाक-भौ िसकोडिे का आशय ि समझकि बोली-मै कया जािूं, उिसे कयो िहीं मांगते? मेिे पास आते है, तो दतुकाि िहीं देती। अगि ऐसा करं, तो यही होगा िक यह लडको को देखकि जलती है।

मुंशीजी िे इसका कुछ जवाब ि िदया, लेिकि आज उनहोिे मुविककलो से बाते िहीं कीं, सीधे मंसािाम के पास गये औि उसका इमतहाि लेिे लगे। यह जीवि मे पहला ही अवसि था िक इनहोिे मंसािाम या िकसी लडके की िशकोनिित के िवषय मे इतिी िदलचसपी िदखायी हो। उनहे अपिे काम से िसि उठािे की फुिसत ही ि िमलती थी। उनहे इि िवषयो को पढे हुए चालीस वष म के लगभग हो गये थे। तब से उिकी ओि आखं तक ि उठायी थी। वह कािूिी पसुतको औि पतो के िसवा औि कुछ पडते ही ि थे। इसका समय ही ि िमलता, पि आज उनहीं िवषयो मे मंसािाम की पिीका लेिे लगे। मंसािाम जहीि था औि इसके साथ ही मेहिती भी था। खेल मे भी टीम का कैपटि होिे पि भी वह कलास मे पथम िहता था। िजस पाठ को एक बाि देख लेता, पतथि की लकीि हो जाती थी। मुंशीजी को उतावली मे ऐसे मािमकम पश तो सूझे िहीं, िजिके उति देिे मे चतुि लडके को भी कुछ सोचिा पडता औि ऊपिी पशो को मंसािाम से चुटिकयो मे उडा िदया। कोई िसपाही अपिे शतु पि वाि खाली जाते देखकि जैसे झलला-झललाकि औि भी तेजी से वाि किता है, उसी भांित मंसािाम के जवाबो को सुि-

सुिकि वकील साहब भी झललाते थे। वह कोई ऐसा पश कििा चाहते थे,

िजसका जवाब मंसािाम से ि बि पडे। देखिा चाहते थे िक इसका कमजोि 47

Page 48: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

पहलू कहां है। यह देखकि अब उनहे संतोष ि हो सकता था िक वह कया किता है। वह यह देखिा चाहते थे िक यह कया िहीं कि सकता। कोई अभयसत पिीकक मंसािाम की कमजोिियो को आसािी से िदखा देता, पि वकील साहब अपिी आधी शताबदी की भूली हुई िशका के आधाि पि इतिे सफल कैसे होते? अंत मे उनहे अपिा गसुसा उताििे के िलए कोई बहािा ि िमला तो बोले-मै देखता हंू, तुम सािे िदि इधि-उधि मटिगशती िकया किते हो, मै तुमहािे चिित को तुमहािी बुिद से बढकि समझता हंू औि तुमहािा यो आवािा घूमिा मुझे कभी गवािा िहीं हो सकता।

मंसािाम िे ििभीकता से कहा-मै शाम को एक घणटा खेलिे के िलए जािे के िसवा िदि भि कहीं िहीं जाता। आप अममां या बआुजी से पछू ले। मुझे खुद इस तिह घमूिा पसंद िहीं। हां, खेलिे के िलए हेड मासटि साहब से आगह किके बुलाते है, तो मजबूिि जािा पडता है। अगि आपको मेिा खेलिे जािा पसंद िहीं है, तो कल से ि जाऊंगा।

मुंशीजी िे देखा िक बाते दसूिी ही रख पि जा िही है, तो तीव सवि मे बोले-मुझे इस बात का इतमीिाि कयोकि हो िक खेलिे के िसवा कहीं िहीं घूमिे जाते? मै बिाबि िशकायते सुिता हंू।

मंसािाम िे उतेिजत होकि कहा-िकि महाशय िे आपसे यह िशकायत की है, जिा मै भी तो सुिूं?

वकील-कोई हो, इससे तुमसे कोई मतलब िहीं। तुमहे इतिा िवशास होिा चािहए िक मै झूठा आकेप िहीं किता।

मंसािाम-अगि मेिे सामिे कोई आकि कह दे िक मैिे इनहे कहीं घूमते देखा है, तो मुंह ि िदखाऊं।

वकील-िकसी को ऐसी कया गिज पडी है िक तुमहािी मुंह पि तुमहािी िशकायत किे औि तुमसे बैि मोल ले? तुम अपिे दो-चाि सािथयो को लेकि उसके घि की खपिैल फोडते िफिो। मुझसे इस िकसम की िशकायत एक आदमी िे िहीं, कई आदिमयो िे की है औि कोई वजह िहीं है िक मै अपिे दोसतो की बात पि िवशास ि करं। मै चाहता हंू िक तुम सकूल ही मे िहा किो।

मंसािाम िे मुंह िगिाकि कहा-मुझे वहां िहिे मे कोई आपित िहीं है,

जब से किहये, चला जाऊं।

48

Page 49: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

वकील- तुमिे मुंह कयो लटका िलया? कया वहां िहिा अचछा िहीं लगता? ऐसा मालूम होता है, मािो वहां जािे के भय से तुमहािी िािी मिी जा िही है। आिखि बात कया है, वहां तुमहे कया तकलीफ होगी?

मंसािाम छातालय मे िहिे के िलए उतसुक िहीं था, लेिकि जब मुंशीजी िे यही बात कह दी औि इसका कािण पछूा, सो वह अपिी झेप िमटािे के िलए पसनििचत होकि बोला-मुंह कयो लटकाऊं? मेिे िलए जैसे बोिडिग हाउस। तकलीफ भी कोई िहीं, औि हो भी तो उसे सह सकता हंू। मै कल से चला जाऊंगा। हां अगि जगह ि खाली हुई तो मजबूिी है।

मुंशीजी वकील थे। समझ गये िक यह लौडा कोई ऐसा बहािा ढंूढ िहा है, िजसमे मुझे वहां जािा भी ि पडे औि कोई इलजाम भी िसि पि ि आये। बोले-सब लडको के िलए जगह है, तुमहािे ही िलये जगह ि होगी?

मंसािाम- िकतिे ही लडको को जगह िहीं िमली औि वे बाहि िकिाये के मकािो मे पडे हुए है। अभी बोिडिग हाउस मे एक लडके का िाम कट गया था, तो पचास अिजयम ां उस जगह के िलए आयी थीं।

वकील साहब िे जयादा तकम -िवतकम कििा उिचत िहीं समझा। मंसािाम को कल तैयाि िहिे की आजा देकि अपिी बगघी तैयाि किायी औि सैि कििे चल गये। इधि कुछ िदिो से वह शाम को पाय: सैि कििे चले जाया किते थे। िकसी अिुभवी पाणी िे बतलाया था िक दीघ म जीवि के िलए इससे बढकि कोई मंत िहीं है। उिके जािे के बाद मंसािाम आकि रिकमणी से बोला बुआजी, बाबजूी िे मुझे कल से सकूल मे िहिे को कहा है।

रिकमणी िे िविसमत होकि पूछा-कयो?मंसािाम-मै कया जािू? कहिे लगे िक तुम यहां आवािो की तिह इधि-

उधि िफिा किते हो। रिकमणी-तूिे कहा िहीं िक मै कहीं िहीं जाता।मंसािाम-कहा कयो िहीं, मगि वह जब मािे भी।रिकमणी-तुमहािी ियी अममा जी की कृपा होगी औि कया?मंसािाम-िहीं, बुआजी, मुझे उि पि संदेह िहीं है, वह बेचािी भूल से

कभी कुछ िहीं कहतीं। कोई चीज मांगिे जाता हंू, तो तुिनत उठाकि दे देती है।

रिकमणी-तू यह ितया-चिित कया जािे, यह उनहीं की लगाई हुई आग है। देख, मै जाकि पूछती हंू।

49

Page 50: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

रिकमणी झललाई हुई ििमलम ा के पास जा पहंुची। उसे आडे हाथो लेिे का, कांटो मे घसीटिे का, तािो से छेदिे का, रलािे का सुअवसि वह हाथ से ि जािे देती थी। ििमलम ा उिका आदि किती थी, उिसे दबती थी, उिकी बातो का जवाब तक ि देती थी। वह चाहती थी िक यह िसखावि की बाते कहे, जहां मै भूलूं वहां सुधािे, सब कामो की देख-िेख किती िहे, पि रिकमणी उससे तिी ही िहती थी।

ििमलम ा चािपाई से उठकि बोली-आइए दीदी, बैिठए।रिकमणी िे खडे-खडे कहा-मै पछूती हंू कया तुम सबको घि से

ििकालकि अकेले ही िहिा चाहती हो?ििमलम ा िे काति भाव से कहा-कया हुआ दीदी जी? मैिे तो िकसी से

कुछ िहीं कहा।रिकमणी-मंसािाम को घि से ििकाले देती हो, ितस पि कहती हो, मैिे

तो िकसी से कुछ िहीं कहा। कया तुमसे इतिा भी देखा िहीं जाता?ििमलम ा-दीदी जी, तुमहािे चिणो को छूकि कहती हंू, मुझे कुछ िहीं

मालूम। मेिी आंखे फूट जाये, अगि उसके िवषय मे मुंह तक खोला हो।रिकमणी-कयो वयथ म कसमे खाती हो। अब तक तोतािाम कभी लडके से

िहीं बोलते थे। एक हफते के िलए मंसािाम िििहाल चला गया था, तो इतिे घबिाए िक खुद जाकि िलवा लाए। अब इसी मंसािाम को घि से ििकालकि सकूल मे िखे देते है। अगि लडके का बाल भी बांका हुआ, तो तुम जािोगी। वह कभी बाहि िहीं िहा, उसे ि खािे की सुध िहती है, ि पहििे की-जहां बैठता, वहीं सो जाता है। कहिे को तो जवाि हो गया, पि सवभाव बालको-सा है। सकूल मे उसकी मिि हो जायेगी। वहां िकसे िफक है िक इसिे खोया या िहीं, कहां कपडे उतािे, कहां सो िहा है। जब घि मे कोई पछूिे वाला िहीं, तो बाहि कौि पछेूगा मैिे तुमहे चेता िदया, आगे तुम जािो, तुमहािा काम जािे।

यह कहकि रिकमणी वहां से चली गयी। वकील साहब सैि किके लौटे, तो ििमलम ा ि तुिंत यह िवषय छेड

िदया-मंसािाम से वह आजकल थोडी अगेंजी पढती थी। उसके चले जािे पि िफि उसके पढिे का हिज ि होगा? दसूिा कौि पढायेगा? वकील साहब को अब तक यह बात ि मालूम थी। ििमलम ा िे सोचा था िक जब कुछ अभयास हो जायेगा, तो वकील साहब को एक िदि अगेंजी मे बाते किके चिकत कि दंगूी। कुछ थोडा-सा जाि तो उसे अपिे भाइयो से ही हो गया था। अब वह

50

Page 51: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

िियिमत रप से पढ िही थी। वकील साहब की छाती पि सांप-सा लोट गया, तयोिियां बदलकि बोले-वे कब से पढा िहा है, तुमहे। मुझसे तुमिे कभी िही कहा।

ििमलम ा िे उिका यह रप केवल एक बाि देखा था, जब उनहोिे िसयािाम को मािते-मािते बेदम कि िदया था। वही रप औि भी िवकिाल बिकि आज उसे िफि िदखाई िदया। सहमती हुई बोली-उिके पढिे मे तो इससे कोई हिज िहीं होता, मै उसी वक उिसे पढती हंू जब उनहे फुिसत िहती है। पूछ लेती हंू िक तुमहािा हिज होता हो, तो जाओ। बहुधा जब वह खेलिे जािे लगते है, तो दस िमिट के िलए िोक लेती हंू। मै खदु चाहती हंू िक उिका िुकसाि ि हो।

बात कुछ ि थी, मगि वकील साहब हताश से होकि चािपाई पि िगि पडे औि माथे पि हाथ िखकि िचंता मे मगि हो गये। उनहोिं िजतिा समझा था, बात उससे कहीं अिधक बढ गयी थी। उनहे अपिे ऊपि कोध आया िक मैिे पहले ही कयो ि इस लौडे को बाहि िखिे का पबंध िकया। आजकल जो यह महािािी इतिी खुश िदखाई देती है, इसका िहसय अब समझ मे आया। पहले कभी कमिा इतिा सजा-सजाया ि िहता था, बिाव-

चुिाव भी ि किती थीं, पि अब देखता हंू कायापलट-सी हो गयी है। जी मे तो आया िक इसी वक चलकि मंसािाम को ििकाल दे, लेिकि पौढ बुिद िे समझाया िक इस अवसि पि कोध की जरित िहीं। कहीं इसिे भांप िलया, तो गजब ही हो जायेगा। हां, जिा इसके मिोभावो को टटोलिा चािहए। बोले-

यह तो मै जािता हंू िक तुमहे दो-चाि िमिट पढािे से उसका हिज िहीं होता, लेिकि आवािा लडका है, अपिा काम ि कििे का उसे एक बहािा तो िमल जाता है। कल अगि फेल हो गया, तो साफ कह देगा-मै तो िदि भि पढाता िहता था। मै तुमहािे िलए कोई िमस िौकि िख दंगूा। कुछ जयादा खच म ि होगा। तुमिे मुझसे पहले कहा ही िहीं। यह तुमहे भला कया पढाता होगा, दो-चाि शबद बताकि भाग जाता होगा। इस तिह तो तुमहे कुछ भी ि आयेगा।

ििमलम ा िे तुिनत इस आकेप का खणडि िकया-िहीं, यह बात तो िहीं। वह मुझे िदल लगा कि पढाते है औि उिकी शैली भी कुछ ऐसी है िक पढिे मे मि लगता है। आप एक िदि जिा उिका समझािा देिखए। मै तो समझती हंू िक िमस इतिे धयाि से ि पढायेगी।

51

Page 52: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

मुंशीजी अपिी पश-कुशलता पि मूंछो पि ताव देते हुए बोले-िदि मे एक ही बाि पढाता है या कई बाि?

ििमलम ा अब भी इि पशो का आशय ि समझी। बोली-पहले तो शाम ही को पढा देते थे, अब कई िदिो से एक बाि आकि िलखिा भी देख लेते है। वह तो कहते है िक मै अपिे कलास मे सबसे अचछा हंू। अभी पिीका मे इनहीं को पथम सथाि िमला था, िफि आप कैसे समझते है िक उिका पढिे मे जी िहीं लगता? मै इसिलए औि भी कहती हंू िक दीदी समझेगी, इसी िे यह आग लगाई है। मुफत मे मुझे तािे सुििे पडेगे। अभी जिा ही देि हुई,

धमकाकि गयी है।मुंशीजी िे िदल मे कहा-खूब समझता हंू। तुम कल की छोकिी होकि

मुझे चिािे चलीं। दीदी का सहािा लेकि अपिा मतलब पूिा कििा चाहती है। बोले-मै िहीं समझता, बोिडिग का िाम सुिकि कयो लौडे की िािी मिती है। औि लडके खुश होते है िक अब अपिे दोसतो मे िहेगे, यह उलटे िो िहा है। अभी कुछ िदि पहले तक यह िदल लगाकि पढता था, यह उसी मेहित का ितीजा है िक अपिे कलास मे सबसे अचछा है, लेिकि इधि कुछ िदिो से इसे सैि-सपाटे का चसका पड चला है। अगि अभी से िोकथाम ि की गयी, तो पीछे किते-धिते ि बि पडेगा। तुमहािे िलए मै एक िमस िख दंगूा।

दसूिे िदि मुंशीजी पात:काल कपडे-लते पहिकि बाहि ििकले। दीवािखािे मे कई मुविककल बैठे हुए थे। इिमे एक िाजा साहब भी थे,

िजिसे मुंशीजी को कई हजाि सालािा मेहितािा िमलता था, मगि मुंशीजी उनहे वहीं बैठे छोड दस िमिट मे आिे का वादा किके बगघी पि बठैकि सकूल के हेडमासटि के यहां जा पहंुचे। हेडमासटि साहब बडे सजजि पुरष थे। वकील साहब का बहुत आदि-सतकाि िकया, पि उिके यहा एक लडके की भी जगह खाली ि थी। सभी कमिे भिे हुए थे। इंसपेकटि साहब की कडी ताकीद थी िक मफुिससल के लडको को जगह देकि तब शहि के लडको को िदया जाये। इसीिलए यिद कोई जगह खाली भी हुई, तो भी मंसािाम को जगह ि िमल सकेगी, कयोिक िकतिे ही बाहिी लडको के पाथिम ा-पत िखे हुए थे। मुंशीजी वकील थे, िात िदि ऐसे पािणयो से सािबका िहता था, जो लोभवश असंभव का भी संभव, असाधय को भी साधय बिा सकते है। समझे शायद कुछ दे-िदलाकि काम ििकल जाये, दफति कलकम से ढंग की कुछ बातचीत कििी चािहए, पि उसिे हंसकि कहा- मुंशीजी यह कचहिी िहीं, सकूल है,

52

Page 53: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

हैडमासटि साहब के कािो मे इसकी भिक भी पड गयी, तो जामे से बाहि हो जायेगे औि मंसािाम को खडे-खडे ििकाल देगे। संभव है, अफसिो से िशकायत कि दे। बेचािे मुंशीजी अपिा-सा मुंह लेकि िह गये। दस बजते-

बजते झुंझलाये हुए घि लौटे। मंसािाम उसी वक घि से सकूल जािे को ििकला मुंशीजी िे कठोि िेतो से उसे देखा, मािो वह उिका शतु हो औि घि मे चले गये।

इसके बाद दस-बािह िदिो तक वकील साहब का यही िियम िहा िक कभी सुबह कभी शाम, िकसी-ि-िकसी सकूल के हेडमासटि से िमलते औि मंसािाम को बोिडिग हाउस मे दािखल कििे कल चेिा किते, पि िकसी सकूल मे जगह ि थी। सभी जगहो से कोिा जवाब िमल गया। अब दो ही उपाय थे-या तो मंसािाम को अलग िकिाये के मकाि मे िख िदया जाये या िकसी दसूिे सकूल मे भती किा िदया जाये। ये दोिो बाते आसाि थीं। मुफिससल के सकूलो मे जगह अकसि खाली िहेती थी, लेिकि अब मुंशीजी का शंिकत हदय कुछ शांत हो गया था। उस िदि से उनहोिे मंसािाम को कभी घि मे जाते ि देखा। यहां तक िक अब वह खेलिे भी ि जाता था। सकूल जािे के पहले औि आिे के बाद, बिाबि अपिे कमिे मे बैठा िहता। गमी के िदि थे,

खुले हुए मैदाि मे भी देह से पसीिे की धािे ििकलती थीं, लेिकि मंसािाम अपिे कमिे से बाहि ि ििकलता। उसका आतमािभमाि आवािापि के आकेप से मुक होिे के िलए िवकल हो िहा था। वह अपिे आचिण से इस कलंक को िमटा देिा चाहता था।

एक िदि मुंशीजी बैठे भोजि कि िहे थे, िक मंसािाम भी िहाकि खािे आया, मुंशीजी िे इधि उसे महीिो से िंगे बदि ि देखा था। आज उस पि ििगाह पडी, तो होश उड गये। हिडडयो का ढांचा सामिे खडा था। मुख पि अब भी बहाचय म का तेज था, पि देह घुलकि कांटा हो गयी थी। पूछा-आजकल तुमहािी तबीयत अचछी िहीं है, कया? इतिे दबुलम कयो हो?

मंसािाम िे धोती ओढकि कहा-तबीयत तो िबलकुल अचछी है। मुंशीजी-िफि इतिे दबुलम कयो हो?मंसािाम- दबुलम तो िहीं हंू। मै इससे जयादा मोटा कब था?मुंशीजी-वाह, आधी देह भी िहीं िही औि कहते हो, मै दबुलम िहीं हंू?

कयो दीदी, यह ऐसा ही था?

53

Page 54: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

रिकमणी आंगि मे खडी तुलसी को जल चढा िही थी, बोली-दबुला कयो होगा, अब तो बहुत अचछी तिह लालि-पालि हो िहा है। मै गंवाििि थी, लडको को िखलािा-िपलािा िहीं जािती थी। खोमचा िखला-िखलाकि इिकी आदत िबगाड देते थी। अब तो एक पढी-िलखी, गहृसथी के कामो मे चतुि औित पाि की तिह फेि िही है ि। दबुला हो उसका दशुमि।

मुंशीजी-दीदी, तुम बडा अनयाय किती हो। तुमसे िकसिे कहा िक लडको को िबगाड िही हो। जो काम दसूिो के िकये ि हो सके, वह तुमहे खुद कििे चािहए। यह िहीं िक घि से कोई िाता ि िखो। जो अभी खुद लडकी है, वह लडको की देख-िेख कया किेगी? यह तुमहािा काम है।

रिकमणी-जब तक अपिा समझती थी, किती थी। जब तुमिे गिै समझ िलया, तो मुझे कया पडी है िक मै तुमहािे गले से िचपटंू? पूछो, कै िदि से दधू िहीं िपया? जाके कमिे मे देख आओ, िाशते के िलए जो िमठाई भेजी गयी थी, वह पडी सड िही है। मालिकि समझती है, मैिे तो खािे का सामाि िख िदया, कोई ि खाये तो कया मै मुंह मे डाल दंू? तो भैया, इस तिह वे लडके पलते होगे, िजनहोिे कभी लाड-पयाि का सुख िहीं देखा। तुमहािे लडके बिाबि पाि की तिह फेिे जाते िहे है, अब अिाथो की तिह िहकि सुखी िहीं िह सकते। मै तो बात साफ कहती हंू। बुिा मािकि ही कोई कया कि लेगा?

उस पि सुिती हंू िक लडके को सकूल मे िखिे का पबधं कि िहे हो। बेचािे को घि मे आिे तक की मिाही है। मेिे पास आते भी डिता है, औि िफि मेिे पास िखा ही कया िहता है, जो जाकि िखलाऊंगी।

इतिे मे मंसािाम दो फुलके खाकि उठ खडा हुआ। मुंशीजी िे पूछा-कया दो ही फुलके तो िलये थे। अभी बैठे एक िमिट से जयादा िहीं हुआ। तुमिे खाया कया, दो ही फुलके तो िलये थे।

मंसािाम िे सकुचाते हुए कहा-दाल औि तिकािी भी तो थी। जयादा खा जाता हंू, तो गला जलिे लगता है, खटटी डकािे आिे लगतीं है।

मुंशीजी भोजि किके उठे तो बहुत िचिंतत थे। अगि यो ही दबुला होता गया, तो उसे कोई भंयकि िोग पकड लेगा। उनहे रिकमणी पि इस समय बहुत कोध आ िहा था। उनहे यही जलि है िक मै घि की मालिकि िहीं हंू। यह िहीं समझतीं िक मुझे घि की मालिकि बििे का कया अिधकाि है? िजसे रपया का िहसाब तक िहीं अता, वह घि की सवािमिी कैसे हो सकती है? बिीं तो थीं साल भि तक मालिकि, एक पाई की बचत ि

54

Page 55: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

होती थी। इस आमदिी मे रपकला दो-ढाई सौ रपये बचा लेती थी। इिके िाज मे वही आमदिी खच म को भी पूिी ि पडती थी। कोई बात िहीं, लाड-

पयाि िे इि लडको को चौपट कि िदया। इतिे बडे-बडे लडको को इसकी कया जरित िक जब कोई िखलाये तो खाये। इनहे तो खदु अपिी िफक कििी चािहए। मुंशी जी िदिभि उसी उधेड-बुि मे पडे िहे। दो-चाि िमतो से भी िजक िकया। लोगो िे कहा-उसके खेल-कूद मे बाधा ि डािलए, अभी से उसे कैद ि कीिजए, खुली हवा मे चिित के भि होिे की उससे कम संभाविा है, िजतिा बनद कमिे मे। कुसंगत से जरि बचाइए, मगि यह िहीं िक उसे घि से ििकलिे ही ि दीिजए। युवावसथा मे एकानतवास चिित के िलए बहुत ही हाििकािक है। मुंशीजी को अब अपिी गलती मालूम हुई। घि लौटकि मंसािाम के पास गये। वह अभी सकूल से आया था औि िबिा कपडे उतािे,

एक िकताब सामिे खोलकि, सामिे िखडकी की ओि ताक िहा था। उसकी दिि एक िभखाििि पि लगी हुई थी, जो अपिे बालक को गोद मे िलए िभका मांग िही थी। बालक माता की गोद मे बैठा ऐसा पसनि था, मािो वह िकसी िाजिसंहासि पि बठैा हो। मंसािाम उस बालक को देखकि िो पडा। यह बालक कया मुझसे अिधक सुखी िहीं है? इस अनित िवश मे ऐसी कौि-सी वसतु है, िजसे वह इस गोद के बदले पाकि पसनि हो? ईशि भी ऐसी वसतु की सिृि िहीं कि सकते। ईशि ऐसे बालको को जनम ही कयो देते हो, िजिके भागय मे मात-ृिवयोग का दखु भोगिा बडा? आज मुझ-सा अभागा संसाि मे औि कौि है? िकसे मेिे खािे-पीिे की, मििे-जीिे की सुध है। अगि मै आज मि भी जाऊं, तो िकसके िदल को चोट लगेगी। िपता को अब मुझे रलािे मे मजा आता है, वह मेिी सूित भी िहीं देखिा चाहते, मुझे घि से ििकाल देिे की तैयािियां हो िही है। आह माता। तुमहािा लाडला बेटा आज आवािा कहां जा िहा है। वही िपताजी, िजिके हाथ मे तुमिे हम तीिो भाइयो के हाथ पकडाये थे, आज मुझे आवािा औि बदमाश कह िहे है। मै इस योगय भी िहीं िक इस घि मे िह सकंू। यह सोचते -सोचते मंसािाम अपाि वेदिा से फूट-फूटकि िोिे लगा।

उसी समय तोतािाम कमिे मे आकि खडे हो गये। मंसािाम िे चटपट आंसू पोछ डाले औि िसि झुकाकि खडा हो गया। मुंशीजी िे शायद यह पहली बाि उसके कमिे मे कदम िखा था। मंसािाम का िदल धडधड कििे लगा िक देखे आज कया आफत आती है। मुंशीजी िे उसे िोते देखा, तो एक

55

Page 56: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

कण के िलए उिका वातसलय घेि ििदा से चौक पडा घबिाकि बोले-कयो, िोते कयो हो बेटा। िकसी िे कुछ कहा है?

मंसािाम िे बडी मुिशकल से उमडते हुए आंसुओं को िोककि कहा- जी िहीं, िोता तो िहीं हंू।

मुंशीजी-तुमहािी अममां िे तो कुछ िहीं कहा?मंसािाम-जी िहीं, वह तो मुझसे बोलती ही िहीं। मुंशीजी-कया करं बेटा, शादी तो इसिलए की थी िक बचचो को मां िमल

जायेगी, लेिकि वह आशा पूिी िहीं हुई, तो कया िबलकुल िहीं बोलतीं?मंसािाम-जी िहीं, इधि महीिो से िहीं बोलीं।मुंशीजी-िविचत सवभाव की औित है, मालूम ही िहीं होता िक कया

चाहती है? मै जािता िक उसका ऐसा िमजाज होगा, तो कभी शादी ि किता िोज एक-ि-एक बात लेकि उठ खडी होती है। उसी िे मुझसे कहा था िक यह िदि भि ि जािे कहां गायब िहता है। मै उसके िदल की बात कया जािता था? समझा, तुम कुसंगत मे पडकि शायद िदिभि घमूा किते हो। कौि ऐसा िपता है, िजसे अपिे पयािे पुत को आवािा िफिते देखकि िंज ि हो? इसीिलए मैिे तुमहे बोिडिग हाउस मे िखिे का ििशय िकया था। बस,

औि कोई बात िहीं थी, बेटा। मै तुमहािा खेलि-कूदिा बंद िहीं कििा चाहता था। तुमहािी यह दशा देखकि मेिे िदल के टुकडे हुए जाते है। कल मुझे मालूम हुआ मै भम मे था। तुम शौक से खेलो, सुबह-शाम मैदाि मे ििकल जाया किो। ताजी हवा से तुमहे लाभ होगा। िजस चीज की जरित हो मुझसे कहो, उिसे कहिे की जरित िहीं। समझ लो िक वह घि मे है ही िहीं। तुमहािी माता छोडकि चली गयी तो मै तो हंू।

बालक का सिल ििषकपट हदय िपतृ-पेम से पुलिकत हो उठा। मालूम हुआ िक साकात ्भगवाि ्खडे है। ििैाशय औि कोभ से िवकल होकि उसिे मि मे अपिे िपता का ििषुि औि ि जािे कया-कया समझ िखा। िवमाता से उसे कोई िगला ि था। अब उसे जात हुआ िक मैिे अपिे देवतुलय िपता के साथ िकतिा अनयाय िकया है। िपतृ-भिक की एक तिंग-सी हदय मे उठी, औि वह िपता के चिणो पि िसि िखकि िोिे लगा। मुंशीजी करणा से िवहल हो गये। िजस पुत को कण भि आखंो से दिू देखकि उिका हदय वयग हो उठता था, िजसके शील, बिुद औि चिित का अपिे-पिाये सभी बखाि किते थे, उसी के पित उिका हदय इतिा कठोि कयो हो गया? वह अपिे ही िपय

56

Page 57: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

पुत को शतु समझिे लगे, उसको ििवासम ि देिे को तैयाि हो गये। ििमलम ा पुत औि िपता के बी मे दीवाि बिकि खडी थी। ििमलम ा को अपिी ओि खींचिे के िलए पीछे हटिा पडता था, औि िपता तथा पुत मे अतंि बढता जाता था। फलत: आज यह दशा हो गयी है िक अपिे अिभनि पुत उनहे इतिा छल कििा पड िहा है। आज बहुत सोचिे के बाद उनहे एक एक ऐसी युिक सूझी है, िजससे आशा हो िही है िक वह ििमलम ा को बीच से ििकालकि अपिे दसूिे बाजू को अपिी तिफ खींच लेगे। उनहोिे उस युिक का आिंभ भी कि िदया है, लेिकि इसमे अभीि िसद होगा या िहीं, इसे कौि जािता है।

िजस िदि से तोतोिाम िे ििमलम ा के बहुत िमनित-समाजत कििे पि भी मंसािाम को बोिडिग हाउस मे भेजिे का ििशय िकया था, उसी िदि से उसिे मंसािाम से पढिा छोड िदया। यहां तक िक बोलती भी ि थी। उसे सवामी की इस अिवशासपूण म ततपिता का कुछ-कुछ आभास हो गया था। ओफफोह। इतिा शककी िमजाज। ईशि ही इस घि की लाज िखे। इिके मि मे ऐसी-ऐसी दभुावम िाएं भिी हुई है। मुझे यह इतिी गयी-गजुिी समझते है। ये बाते सोच-सोचकि वह कई िदि िोती िही। तब उसिे सोचिा शूर िकया, इनहे कया ऐसा संदेह हो िहा है? मुझ मे ऐसी कौि-सी बात है, जो इिकी आंखो मे खटकती है। बहुत सोचिे पि भी उसे अपिे मे कोई ऐसी बात िजि ि आयी। तो कया उसका मंसािाम से पढिा, उससे हंसिा-बोलिा ही इिके संदेह का कािण है, तो िफि मै पढिा छोड दंगूी, भूलकि भी मंसािाम से ि बोलूगंी, उसकी सूित ि दखूंगी।

लेिकि यह तपसया उसे असाधय जाि पडती थी। मंसािाम से हंसिे-

बोलिे मे उसकी िवलािसिी कलपिा उतेिजत भी होती थी औि तपृ भी। उसे बाते किते हुए उसे अपाि सुख का अिुभव होता था, िजसे वह शबदो मे पकट ि कि सकती थी। कुवासिा की उसके मि मे छाया भी ि थी। वह सवपि मे भी मंसािाम से कलिुषत पेम कििे की बात ि सोच सकती थी। पतयेक पाणी को अपिे हमजोिलयो के साथ, हंसिे-बोलिे की जो एक िैसिगकम तषृणा होती है, उसी की तिृप का यह एक अजात साधि था। अब वह अतपृ तषृणा ििमलम ा के हदय मे दीपक की भांित जलिे लगी। िह-िहकि उसका मि िकसी अजात वेदिा से िवकल हो जाता। खोयी हुई िकसी अजात वसतु की खोज मे इधि-उधि घूमती-िफिती, जहां बैठती, वहां बठैी ही िह जाती, िकसी

57

Page 58: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

काम मे जी ि लगता। हां, जब मुंशीजी आ जाते, वह अपिी सािी तषृणाओं को िैिाशय मे डुबाकि, उिसे मुसकिाकि इधि-उधि की बाते कििे लगती।

कल जब मुंशीजी भोजि किके कचहिी चले गये, तो रिकमणी िे ििमलम ा को खुब तािो से छेदा-जािती तो थी िक यहां बचचो का पालि-

पोषण कििा पडेगा, तो कयो घिवालो से िहीं कह िदया िक वहां मेिा िववाह ि किो? वहां जाती जहां पुरष के िसवा औि कोई ि होता। वही यह बिाव-

चुिाव औि छिव देखकि खुश होता, अपिे भागय को सिाहता। यहां बडुढा आदमी तुमहािे िंग-रप, हाव-भाव पि कया लटटू होगा? इसिे इनहीं बालको की सेवा कििे के िलए तुमसे िववाह िकया है, भोग-िवलास के िलए िहीं वह बडी देि तक घाव पि िमक िछडकती िही, पि ििमलम ा िे चूं तक ि की। वह अपिी सफाई तो पेश कििा चाहती थी, पि ि कि सकती थी। अगि कहे िक मै वही कि िही हंू, जो मेिे सवामी की इचछा है तो घि का भणडा फूटता है। अगि वह अपिी भूल सवीकाि किके उसका सुधाि किती है, तो भय है िक उसका ि जािे कया पििणाम हो? वह यो बडी सपिवािदिी थी, सतय कहिे मे उसे संकोच या भय ि होता था, लेिकि इस िाजुक मौके पि उसे चपुपी साधिी पडी। इसके िसवा दसूिा उपाय ि था। वह देखती थी मंसािाम बहुत िविक औि उदास िहता है, यह भी देखती थी िक वह िदि-िदि दबुलम होता जाता है, लेिकि उसकी वाणी औि कम म दोिो ही पि मोहि लगी हुई थी। चोि के घि चोिी हो जािे से उसकी जो दशा होती है, वही दशा इस समय ििमलम ा की हो िही थी।

आठ

ब कोई बात हमािी आशा के िवरद होती है, तभी दखु होता है। मंसािाम को ििमलम ा से कभी इस बात की आशा ि थी िक वे

उसकी िशकायत किेगी। इसिलए उसे घोि वेदिा हो िही थी। वह कयो मेिी िशकायत किती है? कया चाहती है? यही ि िक वह मेिे पित की कमाई खाता है, इसके पढाि-िलखािे मे रपये खच म होते है, कपडा पहिता है। उिकी यही इचछा होगी िक यह घि मे ि िहे। मेिे ि िहिे से उिके रपये बच जायेगे। वह मुझसे बहुत पसनििचत िहती है। कभी मैिे उिके मुंह से कटु शबद िहीं सुिे। कया यह सब कौशल है? हो सकता है? िचिडया को जाल मे फंसािे के

58

Page 59: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

पहले िशकािी दािे िबखेिता है। आह। मै िहीं जािता था िक दािे के िीचे जाल है, यह मातृ-सिेह केवल मेिे ििवासम ि की भूिमका है।

अचछा, मेिा यहां िहिा कयो बुिा लगता है? जो उिका पित है, कया वह मेिा िपता िहीं है? कया िपता-पुत का संबंध िी-पुरष के संबंध से कुछ कम घििि है? अगि मुझे उिके संपूण म आिधपतय से ईषया म िहीं होती, वह जो चाहे किे, मै मुहं िहीं खोल सकता, तो वह मुझे एक अगुंल भि भूिम भी देिा िहीं चाहतीं। आप पकके महल मे िहकि कयो मुझे वकृ की छाया मे बठैा िहीं देख सकतीं।

हां, वह समझती होगी िक वह बडा होकि मेिे पित की समपित का सवामी हो जायेगा, इसिलए अभी से ििकाल देिा अचछा है। उिको कैसे िवशास िदलाऊं िक मेिी ओि से यह शंका ि किे। उनहे कयोकि बताऊं िक मंसािाम िवष खाकि पाण दे देगा, इसके पहले िक उिका अिहत कि। उसे चाहे िकतिी ही किठिाइयां सहिी पडे वह उिके हदय का शूल ि बिेगा। यो तो िपताजी िे मुझे जनम िदया है औि अब भी मुझ पि उिका सिेह कम िहीं है, लेिकि कया मै इतिा भी िहीं जािता िक िजस िदि िपताजी िे उिसे िववाह िकया, उसी िदि उनहोिे हमे अपिे हदय से बाहि ििकाल िदया?

अब हम अिाथो की भांित यहां पडे िह सकते है, इस घि पि हमािा कोई अिधकाि िहीं है। कदािचत ् पूव म संसकािो के कािण यहां अनय अिाथो से हमािी दशा कुछ अचछी है, पि है अिाथ ही। हम उसी िदि अिाथ हुए, िजस िदि अममां जी पिलोक िसधािीं। जो कुछ कसि िह गयी थी, वह इस िववाह िे पिूी कि दी। मै तो खदु पहले इिसे िवशेष संबंध ि िखता था। अगि,

उनहीं िदिो िपताजी से मेिी िशकायत की होती, तो शायद मुझे इतिा दखु ि होता। मै तो उसे आघात के िलए तैयाि बठैा था। संसाि मे कया मै मजदिूी भी िहीं कि सकता? लेिकि बुिे वक मे इनहोिे चोट की। िहंसक पशु भी आदमी को गािफल पाकि ही चोट किते है। इसीिलए मेिी आवभगत होती थी, खािा खािे के िलए उठिे मे जिा भी देि हो जाती थी, तो बुलावे पि बुलावे आते थे, जलपाि के िलए पात: हलुआ बिाया जाता था, बाि-बाि पछूा जाता था-रपयो की जरित तो िहीं है? इसीिलए वह सौ रपयो की घडी मंगवाई थी।

मगि कया इनहे कया दसूिी िशकायत ि सूझी, जो मुझे आवािा कहा?

आिखि उनहोिे मेिी कया आवािगी देखी? यह कह सकती थीं िक इसका मि 59

Page 60: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

पढिे-िलखिे मे िहीं लगता, एक-ि-एक चीज के िलए िितय रपये मांगता िहता है। यही एक बात उनहे कयो सूझी? शायद इसीिलए िक यही सबसे कठोि आघात है, जो वह मुझ पि कि सकती है। पहली ही बाि इनहोिे मुझे पि अिगि–बाण चला िदया, िजससे कहीं शिण िहीं। इसीिलए ि िक वह िपता की िजिो से िगि जाये? मुझे बोिडिग-हाउस मे िखिे का तो एक बहािा था। उदेशय यह था िक इसे दधू की मकखी की तिह ििकाल िदया जाये। दो-चाि महीिे के बाद खचम-वच म देिा बंद कि िदया जाये, िफि चाहे मिे या िजये। अगि मै जािता िक यह पेिणा इिकी ओि से हुई है, तो कहीं जगह ि िहिे पि भी जगह ििकाल लेता। िौकिो की कोठिियो मे तो जगह िमल जाती, बिामदे मे पडे िहिे के िलए बहुत जगह िमल जाती। खैि, अब सबेिा है। जब सिेह िहीं िहा, तो केवल पेट भििे के िलए यहां पडे िहिा बेहयाई है, यह अब मेिा घि िहीं। इसी घि मे पदैा हुआ हंू, यही खेला हंू, पि यह अब मेिा िहीं। िपताजी भी मेिे िपता िहीं है। मै उिका पुत हंू, पि वह मेिे िपता िहीं है। संसाि के सािे िाते सिेह के िाते है। जहां सिेह िहीं, वहां कुछ िहीं। हाय, अममांजी, तुम कहां हो?

यह सोचकि मंसािाम िोिे लगा। जयो-जयो मात ृसिेह की पूवम-समिृतयां जागतृ होती थीं, उसके आंसू उमडते आते थे। वह कई बाि अममां-अममां पुकाि उठा, मािो वह खडी सुि िही है। मातृ-हीिता के दु:ख का आज उसे पहली बाि अिुभव हुआ। वह आतमािभमािी था, साहसी था, पि अब तक सुख की गोद मे लालि-पालि होिे के कािण वह इस समय अपिे आप को िििाधाि समझ िहा था।

िात के दस बज गये थे। मुंशीजी आज कहीं दावत खािे गये हुए थे। दो बाि महिी मंसािाम को भोजि कििे के िलए बुलािे आ चकुी थी। मंसािाम िे िपछली बाि उससे झुंझलाकि कह िदया था-मुझे भूख िहीं है,

कुछ ि खाऊंगा। बाि-बाि आकि िसि पि सवाि हो जाती है। इसीिलए जब ििमलम ा िे उसे िफि उसी काम के िलए भेजिा चाहा, तो वह ि गयी।

बोली-बहूजी, वह मेिे बुलािे से ि आवेगे।ििमलम ा-आयेगे कयो िहीं? जाकि कह दे खािा ठणडा हुआ जाता है। दो

चाि कौि खा ले।महिी-मै यह सब कह के हाि गयी, िहीं आते।ििमलम ा-तूिे यह कहा था िक वह बैठी हुई है।

60

Page 61: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

महिी-िहीं बहूजी, यह तो मैिे िहीं कहा, झूठ कयो बोलूं।ििमलम ा-अचछा, तो जाकि यह कह देिा, वह बैठी तुमहािी िाह देख िही

है। तुम ि खाओगे तो वह िसोई उठाकि सो िहेगी। मेिी भूंगी, सुि, अबकी औि चली जा। (हंसकि) ि आवे, तो गोद मे उठा लािा।

भूंगी िाक-भौ िसकोडते गयी, पि एक ही कण मे आकि बोली-अिे बहूजी, वह तो िो िहे है। िकसी िे कुछ कहा है कया?

ििमलम ा इस तिह चौककि उठी औि दो-तीि पग आगे चली, मािो िकसी माता िे अपिे बेटे के कुएं मे िगि पडिे की खबि पायी हो, िफि वह िठठक गयी औि भूंगी से बोली-िो िहे है? तूिे पछूा िहीं कयो िो िहे है?

भूंगी- िहीं बहूजी, यह तो मैिे िहीं पूछा। झूठ कयो बोलूं?वह िो िहे है। इस ििसतबध िाित मे अकेले बठैै हुए वह िो िहे है।

माता की याद आयी होगी? कैसे जाकि उनहे समझाऊं? हाय, कैसे समझाऊं?

यहां तो छींकते िाक कटती है। ईशि, तुम साकी हो अगि मैिे उनहे भूल से भी कुछ कहा हो, तो वह मेिे गे आये। मै कया करं? वह िदल मे समझते होगे िक इसी िे िपताजी से मेिी िशकायत की होगी। कैसे िवशास िदलाऊं िक मैिे कभी तुमहािे िवरद एक शबद भी मुंह से िहीं ििकाला? अगि मै ऐसे देवकुमाि के-से चिित िखिे वाले युवक का बिुा चेतूं, तो मुझसे बढकि िाकसी संसाि मे ि होगी।

ििमलम ा देखती थी िक मंसािाम का सवासथय िदि-िदि िबगडता जाता है, वह िदि-िदि दबुलम होता जाता है, उसके मुख की ििमलम कांित िदि-िदि मिलि होती जाती है, उसका सहास बदि संकुिचत होता जाता है। इसका कािण भी उससे िछपा ि था, पि वह इस िवषय मे अपिे सवामी से कुछ ि कह सकती थी। यह सब देख-देखकि उसका हदय िवदीण म होता िहता था, पि उसकी जबाि ि खुल सकती थी। वह कभी-कभी मि मे झुंझलाती िक मंसािाम कयो जिा-सी बात पि इतिा कोभ किता है? कया इिके आवािा कहिे से वह आवािा हो गया? मेिी औि बात है, एक जिा-सा शक मेिा सविम ाश कि सकता है, पि उसे ऐसी बातो की इतिी कया पिवाह?

सके जी मे पबल इचछा हुई िक चलकि उनहे चपु किाऊं औि लाकि खािा िखला दं।ू बेचािे िात-भि भूखे पडे िहेगे। हाय। मै इस उपदव की

जड हंू। मेिे आिे के पहले इस घि मे शांित का िाजय था। िपता बालको पि उ

61

Page 62: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

जाि देता था, बालक िपता को पयाि किते थे। मेिे आते ही सािी बाधाएं आ खडी हुई। इिका अतं कया होगा? भगवाि ्ही जािे। भगवाि ्मुझे मौत भी िहीं देते। बेचािा अकेले भूखो पडा है। उस वक भी मुंह जठुा किके उठ गया था। औि उसका आहाि ही कया है, िजतिा वह खाता है, उतिा तो साल-दो-साल के बचचे खा जाते है।

ििमलम ा चली। पित की इचछा के िवरद चली। जो िाते मे उसका पुत होता था, उसी को मिािे जाते उसका हदय कांप िहा था। उसिे पहले रिकमणी के कमिे की ओि देखा, वह भोजि किके बेखबि सो िही थीं, िफि बाहि कमिे की ओि गयी। वहां सनिाटा था। मुंशी अभी ि आये थे। यह सब देख-भालकि वह मंसािाम के कमिे के सामिे जा पहंुची। कमिा खुला हुआ था, मंसािाम एक पुसतक सामिे िखे मेज पि िसि झुकाये बठैा हुआ था, मािो शोक औि िचनता की सजीव मूित म हो। ििमलम ा िे पकुाििा चाहा पि उसके कंठ से आवाज ि ििकली।

सहसा मंसािाम िे िसि उठाकि दाि की ओि देखा। ििमलम ा को देखकि अंधेिे मे पहचाि ि सका। चौककि बोला-कौि?

ििमलम ा िे कांपते हुए सवि मे कहा-मै तो हंू। भोजि कििे कयो िहीं चल िहे हो? िकतिी िात गयी।

मंसािाम िे मुंह फेिकि कहा-मुझे भूख िहीं है।ििमलम ा-यह तो मै तीि बाि भूंगी से सुि चकुी हंू।मंसािाम-तो चौथी बाि मेिे मुंह से सुि लीिजए।ििमलम ा-शाम को भी तो कुछ िहीं खाया था, भूख कयो िहीं लगी?मंसािाम िे वयगंय की हंसी हंसकि कहा-बहुत भूख लगेगी, तो आयेग

कहां से?

यह कहते-कहते मंसािाम िे कमिे का दाि बंद कििा चाहा, लेिकि ििमलम ा िकवाडो को हटाकि कमिे मे चली आयी औि मंसािाम का हाथ पकड सजल िेतो से िविय-मधुि सवि मे बोली-मेिे कहिे से चलकि थोडा-सा खा लो। तुम ि खाओगे, तो मै भी जाकि सो िहंूगी। दो ही कौि खा लेिा। कया मुझे िात-भि भूखो माििा चाहते हो?

मंसािाम सोच मे पड गया। अभी भोजि िहीं िकया, मेिे ही इंतजाि मे बैठी िहीं। यह सिेह, वातसलय औि िविय की देवी है या ईषया म औि अमगंल की मायािविी मूितम? उसे अपिी माता का समिण हो आया। जब वह रठ

62

Page 63: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

जाता था, तो वे भी इसी तिह मिािे आ किती थीं औि जब तक वह ि जाता था, वहां से ि उठती थीं। वह इस िविय को असवीकाि ि कि सका। बोला-मेिे िलए आपको इतिा कि हुआ, इसका मुझे खेद है। मै जािता िक आप मेिे इंतजाि मे भूखी बैठी है, तो तभी खा आया होता।

ििमलम ा िे ितिसकाि-भाव से कहा-यह तुम कैसे समझ सकते थे िक तुम भूखे िहोगे औि मै खाकि सो िहंूगी? कया िवमाता का िाता होिे से ही मै ऐसी सवािथिम ी हो जाऊंगी?

सहसा मदािम े कमिे मे मुंशीजी के खांसिे की आवाज आयी। ऐसा मालूम हुआ िक वह मंसािाम के कमिे की ओि आ िहे है। ििमलम ा के चेहिे का िंग उड गया। वह तुिंत कमिे से ििकल गयी औि भीति जािे का मौका ि पाकि कठोि सवि मे बोली-मै लौडी िहीं हंू िक इतिी िात तक िकसी के िलए िसोई के दाि पि बैठी िहंू। िजसे ि खािा हो, वह पहले ही कह िदया किे।

मुंशीजी िे ििमलम ा को वहां खडे देखा। यह अिथ।म यह यहां कया कििे आ गयी? बोले-यहां कया कि िही हो?

ििमलम ा िे ककम श सवि मे कहा-कि कया िही हंू, अपिे भागय को िो िही हंू। बस, सािी बुिाइयो की जड मै ही हंू। कोई इधि रठा है, कोई उधि मुंह फुलाये खडा है। िकस-िकस को मिाऊं औि कहां तक मिाऊं।

मुंशीजी कुछ चिकत होकि बोले-बात कया है?

ििमलम ा-भोजि कििे िहीं जाते औि कया बात है? दस दफे महिी को भे, आिखि आप दौडी आयी। इनहे तो इतिा कह देिा आसाि है, मुझे भूख िहीं है, यहां तो घि भि की लौडी हंू, सािी दिुिया मुंह मे कािलख पोतिे को तैयाि। िकसी को भूख ि हो, पि कहिे वालो को यह कहिे से कौि िोकेगा िक िपशािचिी िकसी को खािा िहीं देती।

मुंशीजी िे मंसािाम से कहा-खािा कयो िहीं खा लेते जी? जािते हो कया वक है?

मंसािाम िसतमभत-सा खडा था। उसके सामिे एक ऐसा िहसय हो िहा था, िजसका मम म वह कुछ भी ि समझ सकताथा। िजि िेतो मे एक कण पहले िविय के आसंू भिे हुए थे, उिमे अकसमात ्ईषया म की जवाला कहां से आ गयी? िजि अधिो से एक कण पहले सुधा-विृि हो िही थी, उिमे से िवष पवाह कयो होिे लगा? उसी अध म चेतिा की दशा मे बोला-मुझे भूख िहीं है।

63

Page 64: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

मुंशीजी िे घुडककि कहा-कयो भूख िहीं है? भूख िहीं थी, तो शाम को कयो ि कहला िदया? तुमहािी भूख के इंतजाि मे कौि सािी िात बैठा िहे?

तुममे पहले तो यह आदत ि थी। रठिा कब से सीख िलया? जाकि खा लो।मंसािाम-जी िहीं, मुझे जिा भी भूख िहीं है।तोतािाम-िे दांत पीसकि कहा-अचछी बात है, जब भूख लगे तब खािा।

यह कहते हुए एवह अंदि चले गये। ििमलम ा भी उिके पीछे ही चली गयी। मुंशीजी तो लेटिे चले गये, उसिे जाकि िसोई उठा दी औि कुललाकि, पाि खा मुसकिाती हुई आ पहंुची। मुंशीजी िे पछूा-खािा खा िलया ि?

ििमलम ा-कया किती, िकसी के िलए अनि-जल छोड दंगूी?मुंशीजी-इसे ि जािे कया हो गया है, कुछ समझ मे िहीं आता? िदि-

िदि घुलता चला जाता है, िदि भि उसी कमिे मे पडा िहता है। ििमलम ा कुछ ि बोली। वह िचंता के अपाि सागि मे डुबिकयां खा िही

थी। मंसािाम िे मेिे भाव-पििवतिम को देखकि िदल मे कया-कया समझा होगा? कया उसके मि मे यह पश उठा होगा िक िपताजी को देखते ही इसकी तयोिियं कयो बदल गयीं? इसका कािण भी कया उसकी समझ मे आ गया होगा? बेचािा खािे आ िहा था, तब तक यह महाशय ि जािे कहां से फट पडे? इस िहसय को उसे कैसे समझाऊं समझािा संभव भी है? मै िकस िवपित मे फंस गयी?

सवेिे वह उठकि घि के काम-धधें मे लगी। सहसा िौ बजे भूंगी िे आकि कहा-मंसा बाबू तो अपिे कागज-पति सब इकके पि लाद िहे है।

भूंगी-मैिे पूछा तो बोले, अब सकूल मे ही िहंूगा।मंसािाम पात:काल उठकि अपिे सकूल के हेडमासटि साहब के पास

गया था औि अपिे िहिे का पबंध कि आया था। हेडमासटि साहब िे पहले तो कहा-यहां जगह िहीं है, तुमसे पहले के िकतिे ही लडको के पाथिम ा-पत पडे हुए है, लेिकि जब मंसािाम िे कहा-मुझे जगह ि िमलेगी, तो कदािचत ्मेिा पढिा ि हो सके औि मै इमतहाि मे शिीक ि हो सकंू , तो हेडमासटि साहब को हाि माििी पडी। मंसािाम के पथम शणेी मे पास होिे की आशा थी। अधयापको को िवशास था िक वह उस शाला की कीित म को उजजवल किेगा। हेडमासटि साहब ऐसे लडको को कैसे छोड सकते थे? उनहोिे अपिे दफति का कमिा खाली किा िदया। इसीिलए मंसािाम वहां से आते ही अपिा सामाि इकके पि लादिे लगा।

64

Page 65: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

मुंशीजी िे कहा-अभी ऐसी कया जलदी है? दो-चाि िदि मे चले जािा। मै चाहता हंू, तुमहािे िलए कोई अचछा सा िसोइया ठीक कि दं।ू

मंसािाम-वहां का िसोइया बहुत अचछा भोजि पकाता है। मुंशीजी-अपिे सवासथय का धयाि िखिा। ऐसा ि हो िक पढिे के पीछे

सवासथय खो बैठो।मंसािाम-वहां िौ बजे के बाद कोई पढिे िहीं पाता औि सबको िियम

के साथ खेलिा पडता है।मुंशी जी-िबसति कयो छोड देते हो? सोओगे िकस पि?

मंसािाम-कंबल िलए जाता हंू। िबसति जरित िहीं। मुंशी जी-कहाि जब तक तुमहािा सामाि िख िहा है, जाकि कुछ खा

लो। िात भी तो कुछ िहीं खाया था।मंसािाम-वहीं खा लूगंा। िसोइये से भोजि बिािे को कह आया हंू यहां

खािे लगूंगा तो देि होगी। घि मे िजयािाम औि िसयािाम भी भाई के साथ जािे के िजद कि िहे

थे ििमलम ा उि दोिो के बहला िही थी-बेटा, वहां छोटे िहीं िहते, सब काम अपिे ही हाथ से कििा पडता है।

एकाएक रिकमणी िे आकि कहा-तुमहािा वज का हदय है, महािाि। लडके िे िात भी कुछ िहीं खाया, इस वक भी िबिा खाय-पीये चला जा िहा है औि तुम लडको के िलए बाते कि िही हो? उसको तुम जािती िहीं हो। यह समझ लो िक वह सकूल िहीं जा िहा है, बिवास ले िहा है, लौटकि िफि ि आयेगा। यह उि लडको मे िहीं है, जो खेल मे माि भूल जाते है। बात उसके िदल पि पतथि की लकीि हो जाती है।

ििमलम ा िे काति सवि मे कहा-कया करं, दीदीजी? वह िकसी की सुिते ही िहीं। आप जिा जाकि बुला ले। आपके बुलािे से आ जायेगे।

रिकमणी- आिखि हुआ कया, िजस पि भागा जाता है? घि से उसका जी कभ उचाट ि होता था। उसे तो अपिे घि के िसवा औि कहीं अचछा ही ि लगता था। तुमहीं िे उसे कुछ कहा होगा, या उसकी कुछ िशकायत की होगी। कयो अपिे िलए कांटे बो िही हो? िािी, घि को िमटटी मे िमलाकि चिै से ि बैठिे पाओगी।

65

Page 66: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

ििमलम ा िे िोकि कहा-मैिे उनहे कुछ कहा हो, तो मेिी जबाि कट जाये। हां, सौतेली मां होिे के कािण बदिाम तो हंू ही। आपके हाथ जोडती हंू जिा जाकि उनहे बुला लाइये।

रिकमणी िे तीव सवि मे कहा- तुम कयो िहीं बुला लातीं? कया छोटी हो जाओगी? अपिा होता, तो कया इसी तिह बैठी िहती?

ििमलम ा की दशा उस पंखहीि पकी की तिह हो िही थी, जो सप म को अपिी ओि आते देख कि उडिा चाहता है, पि उड िहीं सकता, उछलता है औि िगि पडता है, पखं फडफडाकि िह जाता है। उसका हदय अंदि ही अदंि तडप िहा था, पि बाहि ि जा सकती थी।

इतिे मे दोिो लडके आकि बोले-भैयाजी चले गये।ििमलम ा मूितवम त ्खडी िही, मािो संजाहीि हो गयी हो। चले गये? घि

मे आये तक िहीं, मुझसे िमले तक िहीं चले गये। मुझसे इतिी घणृा। मै उिकी कोई ि सही, उिकी बुआ तो थीं। उिसे तो िमलिे आिा चािहए था?

मै यहां थी ि। अंदि कैसे कदम िखते? मै देख लेती ि। इसीिलए चले गये।

िौ

सािाम के जािे से घि सूिा हो गया। दोिो छोटे लडके उसी सकूल मे पढते थे। ििमलम ा िोज उिसे मंसािाम का हाल पूछती। आशा थी िक

छुटटी के िदि वह आयेगा, लेिकि जब छुटटी के िदि गजुि गये औि वह ि आया, तो ििमलम ा की तबीयत घबिािे लगी। उसिे उसके िलए मूगं के लडडू बिा िखे थे। सोमवाि को पात: भूंगी का लडडू देकि मदिसे भेजा। िौ बजे भूंगी लौट आयी। मंसािाम िे लडडू जयो-के-तयो लौटा िदये थे।

मं

ििमलम ा िे पछूा-पहले से कुछ हिे हुए है, िे?

भूंगी-हिे-विे तो िहीं हुए, औि सूख गये है।ििमलम ा- कया जी अचछा िहीं है?

भूंगी-यह तो मैिे िहीं पछूा बहूजी, झूठ कयो बोलूं? हां, वहां का कहाि मेिा देवि लगता है । वह कहता था िक तुमहािे बाबजूी की खिुाक कुछ िहीं है। दो फुलिकयां खाकि उठ जाते है, िफि िदि भि कुछ िहीं खाते। हिदम पढते िहते है।

ििमलम ा-तूिे पूछा िहीं, लडडू कयो लौटाये देते हो?

66

Page 67: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

भूंगी- बहूजी, झूठ कयो बोलूं? यह पछूिे की तो मुझे सधु ही ि िही। हां, यह कहते थे िक अब तू यहां कभी ि आिा, ि मेिे िलए कोई चीज लािा औि अपिी बहूजी से कह देिा िक मेिे पास कोई िचटठी-पतिी ि भेजे। लडको से भी मेिे पास कोई संदेशा ि भेजे औि एक ऐसी बात कही िक मेिे मुंह से ििकल िहीं सकती, िफि िोिे लगे।

ििमलम ा-कौि बात थी कह तो?भूंगी-कया कहंू कहते थे मेिे जीिे को धीककाि है? यही कहकि िोिे

लगे।ििमलम ा के मुंह से एक ठंडी सांस ििकल गयी। ऐसा मालूम हुआ, मािो

कलेजा बठैा जाता है। उसका िोम-िोम आतिम ाद कििे लगा। वह वहां बैठी ि िह सकी। जाकि िबसति पि मुंह ढांपकि लेट िही औि फूट-फूटकि िोिे लगी। ‘वह भी जाि गये’। उसके अनत:किण मे बाि-बाि यही आवाज गूजंिे लगी-‘वह भी जाि गये’। भगवाि ्अब कया होगा? िजस संदेह की आग मे वह भसम हो िही थी, अब शतगुण वेग से धधकिे लगी। उसे अपिी कोई िचंता ि थी। जीवि मे अब सुख की कया आशा थी, िजसकी उसे लालसा होती? उसिे अपिे मि को इस िवचाि से समझाया था िक यह मेिे पवू म कमो का पायिशत है। कौि पाणी ऐसा ििलजम ज होगा, जो इस दशा मे बहुत िदि जी सके? कतवम य की वेदी पि उसिे अपिा जीवि औि उसकी सािी कामिाएं होम कि दी थीं। हदय िोता िहता था, पि मुख पि हंसी का िंग भििा पडता था। िजसका मुंह देखिे को जी ि चाहता था, उसके सामिे हंस-हंसकि बाते कििी पडती थीं। िजस देह का सपश म उसे सप म के शीतल सपश म के समाि लगता था, उससे आिलंिगत होकि उसे िजतिी घणृा, िजतिी ममवम ेदिा होती थी, उसे कौि जाि सकता है? उस समय उसकी यही इचछा थी िक धिती फट जाये औि मै उसमे समा जाऊं। लेिकि सािी िवडमबिा अब तक अपिे ही तक थी। अपिी िचंता उसि छोड दी थी, लेिकि वह समसया अब अतयंत भयंकि हो गयी थी। वह अपिी आखंो से मंसािाम की आतमपीडा िहीं देख सकती थी। मंसािाम जैसे मिसवी, साहसी युवक पि इस आकेप का जो असि पड सकता था, उसकी कलपिा ही से उसके पाण कांप उठते थे। अब चाहे उस पि िकतिे ही संदेह कयो ि हो, चाहे उसे आतमहतया ही कयो ि कििी पडे, पि वह चपु िहीं बठै सकती। मंसािाम की िका कििे के िलए वह

67

Page 68: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

िवकल हो गयी। उसिे सकंोच औि लजजा की चादि उतािकि फेक देिे का ििशय कि िलया।

वकील साहब भोजि किके कचहिी जािे के पहले एक बाि उससे अवशय िमल िलया किते थे। उिके आिे का समय हो गया था। आ ही िहे होगे, यह सोचकि ििमलम ा दाि पि खडी हो गयी औि उिका इंतजाि कििे लगी लेिकि यह कया? वह तो बाहि चले जा िहे है। गाडी जतुकि आ गयी, यह हुकम वह यहीं से िदया किते थे। तो कया आज वह ि आयेगे, बाहि-ही-बाहि चले जायेगे। िहीं, ऐसा िहीं होिे पायेगा। उसिे भूंगी से कहा-जाकि बाबजूी को बुला ला। कहिा, एक जरिी काम है, सुि लीिजए।

मुंशीजी जािे को तैयाि ही थे। यह संदेशा पाकि अदंि आये, पि कमिे मे ि आकि दिू से ही पछूा-कया बात है भाई? जलदी कह दो, मुझे एक जरिी काम से जािा है। अभी थोडी देि हुई, हेडमासटि साहब का एक पत आया है िक मंसािाम को जवि आ गया है, बेहति हो िक आप घि ही पि उसका इलाज किे। इसिलए उधि ही से हाता हुआ कचहिी जाऊंगा। तुमहे कोई खास बात तो िहीं कहिी है।

ििमलम ा पि मािो वज िगि पडा। आसंुओं के आवेग औि कंठ-सवि मे घोि संगाम होिे लगा। दोिो पहले ििकलिे पि तुले हुए थे। दो मे से कोई एक कदम भी पीछे हटिा िहीं चाहता था। कंठ-सवि की दबुलम ता औि आंसुओं की सबलता देखकि यह ििशय कििा किठि िहीं था िक एक कण यही संगाम होता िहा तो मैदाि िकसके हाथ िहेगा। अखीि दोिो साथ-साथ ििकले, लेिकि बाहि आते ही बलवाि िे ििबलम को दबा िलया। केवल इतिा मुंह से ििकला-कोई खास बात िहीं थी। आप तो उधि जा ही िहे है।

मुंशीजी- मैिे लडको पछूा था, तो वे कहते थे, कल बैठे पढ िहे थे, आज ि जािे कया हो गया।

ििमलम ा िे आवेश से कांपते हुए कहा-यह सब आप कि िहे है मुंशीजी िे तयोिियां बदलकि कहा-मै कि िहा हंू? मै कया कि िहा हंू?

ििमलम ा-अपिे िदल से पूिछए।मुंशीजी-मैिे तो यही सोचा था िक यहां उसका पढिे मे जी िहीं

लगता, वहां औि लडको के साथ खामाखवह पढेगा ही। यह तो बिुी बात ि थी औि मैिे कया िकया?

68

Page 69: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

ििमलम ा-खबू सोिचए, इसीिलए आपिे उनहे वहां भेजा था? आपके मि मे औि कोई बात ि थी।

मुंशीजी जिा िहचिकचाए औि अपिी दबुलम ता को िछपािे के िलए मुसकिािे की चेिा किके बोले-औि कया बात हो सकती थी? भला तुमहीं सोचो।

ििमलम ा-खैि, यही सही। अब आप कृपा किके उनहे आज ही लेते आइयेगा, वहां िहिे से उिकी बीमािी बढ जािे का भय है। यहां दीदीजी िजतिी तीमािदािी कि सकती है, दसूिा िहीं कि सकता।

एक कण के बाद उसिे िसि िीचा किके कहा-मेिे कािण ि लािा चाहते हो, तो मुझे घि भेज दीिजए। मै वहां आिाम से िहंूगी।

मुंशीजी िे इसका कुछ जवाब ि िदया। बाहि चले गये, औि एक कण मे गाडी सकूल की ओि चली।

मि। तेिी गित िकतिी िविचत है, िकतिी िहसय से भिी हुई, िकतिी दभुदे। तू िकतिी जलद िंग बदलता है? इस कला मे तू ििपुण है। आितशबाजी की चखी को भी िंग बदलते कुछ देिी लगती है, पि तुझे िंग बदलिे मे उसका लकांश समय भी िहीं लगता। जहां अभी वातसलय था, वहां िफि संदेह िे आसि जमा िलया।

वह सोचते थे-कहीं उसिे बहािा तो िहीं िकया है?

दस

सािाम दो िदि तक गहिी िचंता मे डूबा िहा। बाि-बाि अपिी माता की याद आती, ि खािा अचछा लगता, ि पढिे ही मे जी लगता। उसकी

कायापलट-सी हो गई। दो िदि गजुि गये औि छातालय मे िहते हुए भी उसिे वह काम ि िकया, जो सकूल के मासटिो िे घि से कि लािे को िदया था। पििणाम सवरप उसे बेच पि खडा िहिा पडा। जो बात कभी ि हुई थी, वह आज हो गई। यह असह अपमाि भी उसे सहिा पडा।

मं

तीसिे िदि वह इनहीं िचंताओं मे मगि हुआ अपिे मि को समझा िहा था-कहा संसाि मे अकेले मेिी ही माता मिी है? िवमाताएं तो सभी इसी पकाि की होती है। मेिे साथ कोई िई बात िहीं हो िही है। अब मुझे पुरषो की भांित िदगुण पििशम से अपिा म कििा चािहए, जसेै माता-िपता िाजी िहे,

69

Page 70: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

वैसे उनहे िाजी िखिा चािहए। इस साल अगि छातविृत िमल गई, तो मुझे घि से कुछ लेिे की जरित ही ि िहेगी। िकतिे ही लडके अपिे ही बल पि बडी-बडी उपािधयां पाप कि लेते है। भागय के िाम को िोिे-कोसिे से कया होगा।

इतिे मे िजयािाम आकि खडा हो गया। मंसािाम िे पछूा-घि का कया हाल है िजया? िई अममांजी तो बहुत

पसनि होगी?िजयािाम-उिके मि का हाल तो मै िहीं जािता, लेिकि जब से तुम

आये हो, उनहोिे एक जिू भी खािा िहीं खाया। जब देखो, तब िोया किती है। जब बाबूजी आते है, तब अलबता हंसिे लगती है। तुम चले आये तो मैिे भी शाम को अपिी िकताबे संभाली। यहीं तुमहािे साथ िहिा चाहता था। भूंगी चडैुल िे जाकि अममांजी से कह िदया। बाबजूी बैठे थे, उिके सामिे ही अममांजी िे आकि मेिी िकताबे छीि लीं औि िोकि बोलीं, तुम भी चले जाओगे, तो इस घि मे कौि िहेगा? अगि मेिे कािण तुम लोग घि छोड-

छोडकि भागे जा िहे तो लो, मै ही कहीं चली जाती हंू। मै तो झललाया हुआ था ही, वहां अब बाबजूी भी ि थे, िबगडकि बोला, आप कयो कहीं चली जायेगी? आपका तो घि है, आप आिाम से ििहए। गैि तो हमीं लोग है, हम ि िहेगे, तब तो आपको आिाम-आिाम ही होग।

मंसािाम-तुमिे खूब कहा, बहुत ही अचछा कहा। इस पि औि भी झललाई होगी औि जाकि बाबजूी से िशकायत की होगी।

िजयािाम-िहीं, यह कुछ िहीं हुआ। बेचािी जमीि पि बैठकि िोिे लगीं। मुझे भी करणा आ गयी। मै भी िो पडा। उनहोिे आंचल से मेिे आंसू पोछे औि बोलीं, िजया। मै ईशि को साकी देकि कहती हंू िक मैिे तुमहािे भैया केइिवषय मे तुमहािे बाबजूी से एक शबद भी िहीं कहा। मेिे भाग मे कलंक िलखा हुआ है, वही भाग िही हंू। िफि औि ि जािे कया-कया कहा, जा मेिी समझ मे िहीं आया। कुछ बाबुजी की बात थी।

मंसािाम िे उिदगिता से पूछा-बाबूजी के िवषय मे कया कहा? कुछ याद है?

िजयािाम-बाते तो भई, मुझे याद िहीं आती। मेिी ‘मेमोिी’ कौि बडी ते है, लेिकि उिकी बातो का मतलब कुछ ऐसा मालूम होता था िक उनहे बाबजूी को पसनि िखिे के िलए यह सवांग भििा पड िहा है। ि जािे धमम-

70

Page 71: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

अधम म की कैसी बाते किती थीं जो मै िबलकुल ि समझ सका। मुझे तो अब इसका िवशास आ गया है िक उिकी इचछा तुमहे यहां भेजि की ि थी।

मंसािाम- तुम इि चालो का मतलब िहीं समझ सकते। ये बडी गहिी चाले है।

िजयािाम- तुमहािी समझ मे होगी, मेिी समझ मे िहीं है।मंसािाम- जब तुम जयोमेटी िहीं समझ सकते, तो इि बातो को कया

समझ सकोगे? उस िात को जब मुझे खािा खािे के िलए बुलािे आयी थीं औिउिके आगह पि मै जािे को तैयाि भी हो गया था, उस वक बाबजूी को देखते ही उनहोिे जो कैडा बदला, वह कया मै कभी भी भूल सकता हंू?

िजयािाम-यही बात मेिी समझ मे िहीं आती। अभी कल ही मै यहां से गया, तो लगीं तुमहािा हाल पछूिे। मैिे कहा, वह तो कहते थे िक अब कभी इस घि मे कदम ि िखूगंा। मैिे कुछ झूठ तो कहा िहीं, तुमिे मुझसे कहा ही था। इतिा सुििा था िक फूट-फूटकि िोिे लगीं मै िदल मे बहुत पछताया िक कहां-से-कहां मैिे यह बात कह दी। बाि-बाि यही कहती थीं, कया वह मेिे कािण घि छोड देगे? मुझसे इतिे िािाज है।? चले गये औि मझसे िमले तक िहीं। खािा तैयाि था, खािे तक िहीं आये। हाय। मै कया बताऊं, िकस िवपित मे हंू। इतिे मे बाबजूी आ गये। बस तुिनत आंखे पोछकि मुसकुिाती हुई उिके पास चली गई। यह बात मेिी समझ मे िहीं आती। आज मुझे बडी िमनित की िक उिको साथ लेते आिा। आज मै तुमहे खींच ले चलूगंा। दो िदि मे वह िकतिी दबुली हो गयी है, तुमहे यह देखकि उि पि दया आयी। तो चलोगे ि?

मंसािाम िे कुछ जवाब ि िदया। उसके पैि कांप िहे थे। िजयािाम तो हािजिी की घंटी सुिकि भागा, पि वह बेच पि लेट गया औि इतिी लमबी सांस ली, मािो बहुत देि से उसिे सांस ही िहीं ली है। उसके मुख से दसुसह वेदिा मे डूबे हुए शबद ििकले-हाय ईशि। इस िाम के िसवा उसे अपिा जीवि िििाधाि मालूम होता था। इस एक उचछवास मे िकतिा ििैाशय था, िकतिी संवेदिा, िकतिी करणा, िकतिी दीि-पाथिम ा भिी हुई थी, इसका कौि अिुमाि कि सकता है। अब सािा िहसय उसकी समझ मे आ िहा था औि बाि-बाि उसका पीिडत हदय आतिम ाद कि िहा था-हाय ईशि। इतिा घोि कलंक।

71

Page 72: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

कया जीवि मे इससे बडी िवपित की कलपिा की जा सकती है? कया संसाि मे इससे घोितम िीचता की कलपिा हो सकती है? आज तक िकसी िपता िे अपिे पुत पि इतिा ििदमय कलंक ि लगाया होगा। िजसके चिित की सभी पशंसा किते थे, जो अनय युवको के िलए आदश म समझा जाता था, िजसिे कभी अपिवत िवचािो को अपिे पास िहीं फटकिे िदया, उसी पि यह घोितम कलंक। मंसािाम को ऐसा मालूम हुआ, मािो उसका िदल फटा जाता है।

दसूिी घंटी भी बज गई। लडके अपिे-अपिे कमिे मे गए, पि मंसािाम हथेली पि गाल िखे अििमेष िेतो से भूिम की ओि देख िहा था, मािो उसका सवसम व जलमगि हो गया हो, मािो वह िकसी को मुंह ि िदखा सकता हो। सकूल मे गैिहािजिी हो जायेगी, जमुािम ा हो जायेगा, इसकी उसे िचंता िहीं, जब उसका सवसम व लुट गया, तो अब इि छोटी-छोटी बातो का कया भय?

इतिा बडा कलंक लगिे पि भी अगि जीता िहंू, तो मेिे जीिे को िधककाि है।

उसी शोकाितिेक दशा मे वह िचलला पडा-माताजी। तुम कहां हो?

तुमहािा बेटा, िजस पि तुम पाण देती थी,ं िजसे तुम अपिे जीवि का आधाि समझती थीं, आज घोि संकट मे है। उसी का िपता उसकी गदमि पि छुिी फेि िहा है। हाय, तुम हो?

मंसािाम िफि शांतिचत से सोचिे लगा-मुझ पि यह संदेह कयो हो िहा है? इसका कया कािण है? मुझमे ऐसी कौि-सी बात उनहोिे देखी, िजससे उनहे यह संदेह हुआ? वह हमािे िपता है, मेिे शतु िहीं है, जो अिायास ही मझ पि यह अपिाध लगािे बठै जाये। जरि उनहोिे कोई-कोई बात देखी या सुिी है। उिका मुझ पि िकतिा सिेह था। मेिे बगैि भोजि ि किते थे, वही मेिे शतु हो जाये, यह बात अकािण िहीं हो सकती।

अचछा, इस संदेह का बीजािोपण िकस िदि हुआ? मुझे बोिडिग हाउस मे ठहिािे की बात तो पीछे की है। उस िदि िात को वह मेिे कमिे मे आकि मेिी पिीका लेिे लगे थे, उसी िदि उिकी तयोिियां बदली हुई थीं। उस िदि ऐसी कौि-सी बात हुई, जो अिपय लगी हो। मै िई अममां से कुछ खािे को मांगिे गया था। बाबूजी उस समय वहां बैठे थे। हां, अब याद आती है,

उसी वक उिका चेहिा तमतमा गया था। उसी िदि से िई अममां िे मुझसे पढिा छोड िदया। अगि मै जािता िक मेिा घि मे आिा-जािा, अममांजी से

72

Page 73: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

कुछ कहिा-सुििा औि उनहे पढािा-िलखािा िपताजी को बिुा लगता है, तो आज कयो यह िौबत आती? औि िई अममां। उि पि कया बीत िही होगी?

मंसािाम िे अब तक ििमलम ा की ओि धयाि िहीं िदया था। ििमलम ा का धयाि आते ही उसके िोये खडे हो गये। हाय उिका सिल सिेहशील हदय यह आघात कैसे सह सकेगा? आह। मै िकतिे भम मे था। मै उिके सिेह को कौशल समझता था। मुझे कया मालूम था िक उनहे िपताजी का भम शांत कििे के िलए मेिे पित इतिा कटु वयवहाि कििा पडता है। आह। मैिे उि पि िकतिा अनयाय िकया है। उिकी दशा तो मुझसे भी खिाब हो िही होगी। मै तो यहां चला आय, मगि वह कहां जायेगी? िजया कहता था, उनहोिे दो िदि से भोजि िहीं िकया। हिदम िोया किती है। कैसे जाकि समझाऊं। वह इस अभागे के पीछे कयो अपिे िसि यह िवपित ले िही है? वह बाि-बाि मेिा हाल पूछती है? कयो बाि-बाि मुझे बुलाती है? कैसे कह दं ूिक माता मुझे तुमसे जिा भी िशकायत िहीं, मेिा िदल तुमहािी तिफ से साफ है।

वह अब भी बठैी िो िही होगी। िकतिा बडा अिथ म है। बाबजूी को यह कया हो िहा है? कया इसीिलए िववाह िकया था? एक बािलका की हतया कििे के िलए ही उसे लाये थे? इस कोमल पुषप को मसल डालिे के िलए ही तोडा था।

उिका उदाि कैसे होगा। उस िििपिािधिी का मुख कैस उजजवल होगा? उनहे केवल मेिे साथ सिेह का वयवहाि कििे के िलए यह दंड िदया जा िहा है। उिकी सजजिता का उनहे यह उपहाि िमल िहा है। मै उनहे इस पकाि ििदमय आघात सहते देखकि बैठा िहंूगा? अपिी माि-िका के िलए ि सही, उिकी आतम-िका के िलए इि पाणो का बिलदाि कििा पडेगा। इसके िसवाय उदाि का काई उपाय िहीं। आह। िदल मे कैसे-कैसे अिमाि थे। वे सब खाक मे िमला देिे होगे। एक सती पि संदेह िकया जा िहा है औि मेिे कािण। मुझे अपिी पाणो से उिकी िका कििी होगी, यही मेिा कतवम य है। इसी मे सचची वीिता है। माता, मै अपिे िक से इस कािलमा को धो दंगूा। इसी मे मेिा औि तुमहािा दोिो का कलयाण है।

वह िदि भि इनहीं िवचािो मे डूबा िहा। शाम को उसके दोिो भाई आकि घि चलिे के िलए आगह कििे लगे।

िसयािाम-चलते कयां िही? मेिे भैयाजी, चले चलो ि।मंसािाम-मुझे फुिसत िहीं है िक तुमहािे कहिे से चला चलूं।

73

Page 74: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

िजयािाम-आिखि कल तो इतवाि है ही। मंसािाम-इतवाि को भी काम है। िजयािाम-अचछा, कल आआगे ि?

मंसािाम-िहीं, कल मुझे एक मैच मे जािा है। िसयािाम-अममांजी मूंग के लडडू बिा िही है। ि चलोगे तो एक भी

पाआगे। हम तुम िमल के खा जायेगे, िजया इनहे ि देगे।िजयािाम-भैया, अगि तुम कल ि गये तो शायद अममांजी यहीं चली

आये।मंसािाम-सच। िहीं ऐसा कयो किेगी। यहां आयीं, तो बडी पिेशािी

होगी। तुम कह देिा, वह कहीं मचै देखिे गये है।िजयािाम-मै झूठ कयो बोलिे लगा। मै कह दंगूा, वह मुंह फुलाये बैठे

थे। देख ले उनहे साथ लाता हंू िक िहीं।िसयािाम-हम कह देगे िक आज पढिे िहीं गये। पडे-पडे सोते िहे।

मंसािाम िे इि दतूो से कल आिे का वादा किके गला छुडाया। जब दोिो चले गये, तो िफि िचंता मे डूबा। िात-भि उसे किवटे बदलते गजुिी। छुटटी का िदि भी बैठे-बठेै कट गया, उसे िदि भि शंका होती िहती िक कहीं अममांजी सचमुच ि चली आये। िकसी गाडी की खडखडाहट सुिता, तो उसका कलेजा धकधक कििे लगता। कहीं आ तो िहीं गयीं?

छातालय मे एक छोटा-सा औषधालय था। एक डांकटि साहब संधया समय एक घणटे के िलए आ जाया किते थे। अगि कोई लडका बीमाि होता तो उसे दवा देते। आज वह आये तो मंसािाम कुछ सोचता हुआ उिके पास जाकि खडा हो गया। वह मंसािाम को अचछी तिह जािते थे। उसे देखकि आशय म से बोले-यह तुमहािी कया हालत है जी? तुम तो मािो गले जा िहे हो। कहीं बाजाि का का चसका तो िहीं पड गया? आिखि तुमहे हुआ कया? जिा यहां तो आओ।

मंसािाम िे मुसकिाकि कहा-मुझे िजनदगी का िोग है। आपके पास इसकी भी तो कोई दवा है?

डाकटि-मै तुमहािी पिीका कििा चाहता हंू। तुमहािी सूित ही बदल गयी है, पहचािे भी िहीं जाते।

74

Page 75: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

यह कहकि, उनहोिे मंसािाम का हाथ पकड िलया औि छाती, पीठ,

आंखे, जीभ सब बािी-बािी से देखीं। तब िचंितत होकि बोले-वकील साहब से मै आज ही िमलूंगा। तुमहे थाइिसस हो िहा है। सािे लकण उसी के है।

मंसािाम िे बडी उतसुकता से पूछा-िकतिे िदिो मे काम तमाम हो जायेगा, डकटि साहब?

डाकटि-कैसी बात किते हो जी। मै वकील साहब से िमलकि तुमहे िकसी पहाडी जगह भेजिे की सलाद दंगूा। ईशि िे चाहा, तो बहुत जलद अचछे हो जाओगे। बीमािी अभी पहले सटेज मे है।

मंसािाम-तब तो अभी साल दो साल की देि मालूम होती है। मै तो इतिा इंतजाि िहीं कि सकता। सुििए, मुझे थायिसस-वायिसस कुछ िहीं है,

ि कोई दसूिी िशकायत ही है, आप बाबूजी को िाहक तिदददु मे ि डािलएगा। इस वक मेिे िसि मे ददम है, कोई दवा दीिजए। कोई ऐसी दवा हो, िजससे िींद भी आ जाये। मुझे दो िात से िींद िहीं आती।

डॉकटि िे जहिीली दवाइयो की आलमािी खोली औि शीशी से थोडी सी दवा ििकालकि मंसािाम को दी। मंसािाम िे पूछा-यह तो कोई जहि है भला इस कोई पी ले तो मि जाये?

डॉकटि-िहीं, मि तो िहीं जाये, पि िसि मे चककि जरि आ जाये।मंसािाम-कोई ऐसी दवा भी इसमे है, िजसे पीते ही पाण ििकल जाये?

डॉकटि-ऐसी एक-दो िहीं िकतिी ही दवाएं है। यह जो शीशी देख िहे हो, इसकी एक बूंद भी पेट मे चली जाये, तो जाि ि बचे। आिि-फािि मे मौत हो जाये।

मंसािाम-कयो डॉकटि साहब, जो लोग जहि खा लेते है, उनहे बडी तकलीफ होती होगी?

डॉकटि-सभी जहिो मे तकलीफ िहीं होती। बाज तो ऐसे है िक पीते ही आदमी ठंडा हो जाता है। यह शीशी इसी िकसम की है, इस पीते ही आदमी बेहोश हो जाता है, िफि उसे होश िहीं आता।

मंसािाम िे सोचा-तब तो पाण देिा बहुत आसाि है, िफि कयो लोग इतिा डिते है? यह शीशी कैसे िमलेगी? अगि दवा का िाम पछूकि शहि के िकसी दवा-फिोश से लेिा चाहंू, तो वह कभी ि देगा। ऊंह, इसे िमलिे मे कोई िदककत िहीं। यह तो मालूम हो गया िक पाणो का अनत बडी आसािी से िकया जा सकता है। मंसािाम इतिा पसनि हुआ, मािो कोई इिाम पा गया

75

Page 76: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

हो। उसके िदल पि से बोझ-सा हट गया। िचंता की मेघ-िािश जो िसि पि मंडिा िही थी, िछनि-िभनि ् हो गयी। महीिो बाद आज उसे मि मे एक सफूित म का अिभुव हुआ। लडके िथयेटि देखिे जा िहे थे, िििीकक से आजा ले ली थी। मंसािाम भी उिके साथ िथयेटि देखिे चला गया। ऐसा खुश था, मािो उससे जयादा सुखी जीव संसाि मे कोई िहीं है। िथयेटि मे िकल देखकि तो वह हंसते-हंसते लोट गया। बाि-बाि तािलयां बजािे औि ‘वनस मोि’ की हांक लगािे मे पहला िमबि उसी का था। गािा सुिकि वह मसत हो जाता था, औि ‘ओहो हो। किके िचलला उठता था। दशकम ो की ििगाहे बाि-बाि उसकी तिफ उठ जाती थीं। िथयेटि के पात भी उसी की ओि ताकते थे औि यह जाििे को उतसुक थे िक कौि महाशय इतिे ििसक औि भावकु है। उसके िमतो को उसकी उचछंृखलता पि आशय म हो िहा था। वह बहुत ही शांतिचत, गमभीि सवभाव का युवक था। आज वह कयो इतिा हासयशील हो गया है, कयो उसके िविोद का पािावाि िहीं है।

दो बजे िात को िथयेटि से लौटिे पि भी उसका हासयोनमाद कम िहीं हुआ। उसिे एक लडके की चािपाई उलट दी, कई लडको के कमिे के दाि बाहि से बंद कि िदये औि उनहे भीति से खट-खट किते सुिकि हंसता िहा। यहां तक िक छातालय के अधयक महोदय किी िींद मे भी शोिगुल सुिकि खुल गयी औि उनहोिे मंसािाम की शिाित पि खेद पकट िकया। कौि जािता है िक उसके अनत:सथल मे िकतिी भीषण कांित हो िही है? संदेह के ििदमय आघात िे उसकी लजजा औि आतमसममाि को कुचल डाला है। उसे अपमाि औि ितिसकाि का लेशमात भी भय िहीं है। यह िविोद िहीं, उसकी आतमा का करण िवलाप है। जब औि सब लडके सो गये, तो वह भी चािपाई पि लेटा, लेिकि उसे िींद िहीं आयी। एक कण के बाद वह बठैा औि अपिी सािी पुसतके बांधकि संदकू मे िख दीं। जब मििा ही है, तो पढकि कया होगा? िजस जीवि मे ऐसी-एसी बाधाएं है, ऐसी-ऐसी यातिाएं है, उससे मतृयु कहीं अचछी।

यह सोचते-सोचते तडका हो गया। तीि िात से वह एक कण भी ि सोया था। इस वक वह उठा तो उसके पिै थि-थि कांप िहे थे औि िसि मे चककि सा आ िहा था। आंखे जल िही थीं औि शिीि के सािे अगं िशिथल हो िहे थे। िदि चढता जाता था औि उसमे इतिी शिक िदि चढता जाता था औि उसमे इतिी शिक भी ि थी िक उठकि मुंह हाथ धो डाले। एकाएक

76

Page 77: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

उसिे भूंगी को रमाल मे कुछ िलए हुए एक कहाि के साथ आते देखा। उसका कलेजा सनि िह गया। हाय। ईशि वे आ गयीं। अब कया होगा? भूंगी अकेले िहीं आयी होगी? बगघी जरि बाहि खडी होगी? कहां तो उससे उठा पश जाता था, कहां भूंगी को देखते ही दौडा औि घबिाई हुई आवाज मे बोला-अममांजी भी आयी है, कया िे? जब मालूम हुआ िक अममांजी िहीं आयी, तब उसका िचत शांत हुआ।

भूंगी िे कहा-भैया। तुम कल गये िही, बहूजी तुमहािी िाह देखती िह गयीं। उिसे कयो रठे हो भैया? कहती है, मैिे उिकी कुछ भी िशकायत िहीं की है। मुझसे आज िोकि कहिे लगीं-उिके पास यह िमठाई लेती जा औि कहिा, मेिे कािण कयो घि छोड िदया है? कहां िख दं ूयह थाली?

मंसािाम िे रखाई से कहा-यह थाली अपिे िसि पि पटक दे चडैुल। वहां से चली है िमठाई लेकि। खबिदाि, जो िफि कभी इधि आयी। सौगात लेकि चली है। जाकि कह देिा, मुझे उिकी िमठाई िहीं चािहए। जाकि कह देिा, तुमहािा घि है तुम िहो, वहां वे बडे आिाम से है। खूब खाते औि मौज किते है। सुिती है, बाबजूी की मुंह पि कहिा, समझ गयी? मुझे िकसी का डि िहीं है, औि जो कििा चाहे, कि डाले, िजससे िदल मे कोई अिमाि ि िह जाये। कहे तो इलाहाबाद, लखिऊ, कलकता चला जाऊं। मेिे िलए जसेै बिािस वैसे दसूिा शहि। यहां कया िखा है?

भूंगी-भैया, िमठाई िख लो, िहीं िो-िोकि मि जायेगी। सच मािो िो-िोकि मि जायेगी।

मंसािाम िे आसंुओं के उठते हुए वेग को दबाकि कहा-मि जायेगी, मेिी बला से। कौि मुझे बडा सुख दे िदया है, िजसके िलए पछताऊं। मेिा तो उनहोिे सविम ाश कि िदया। कह देिा, मेिे पास कोई संदेशा ि भेजे, कुछ जरित िहीं।

भूंगी- भैया, तुम तो कहते हो यहां खबू खाता हंू औि मौज किता हंू,

मगि देह तो आधी भी ि िही। जैसे आये थे, उससे आधे भी ि िहे।मंसािाम-यह तेिी आंखो का फेि है। देखिा, दो-चाि िदि मे मुटाकि

कोलहू हो जाता हंू िक िहीं। उिसे यह भी कह देिा िक िोिा-धोिा बंद किे। जो मैिे सुिा िक िोती है औि खािा िहीं खातीं, मुझसे बुिा कोई िहीं। मुझे घि से ििकाला है, तो आप ि से िहे। चली है, पेम िदखािे। मै ऐसे ितया-चिित बहुत पढे बठैा हंू।

77

Page 78: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

भूंगी चली गयी। मंसािाम को उससे बाते किते ही कुछ ठणड मालूम होिे लगी थी। यह अिभिय कििे के िलए उसे अपिे मिोभावो को िजतिा दबािा पडा था, वह उसके िलए असाधय था। उसका आतम-सममाि उसे इस कुिटल वयवहाि का जलद-से-जलद अंत कि देिे के िलए बाधय कि िहा था, पि इसका पििणाम कया होगा? ििमलम ा कया यह आघात सह सकेगी? अब तक वह मतृयु की कलपिा किते समय िकसी अनय पाणी का िवचाि ि किता था, पि आज एकाएक जाि हुआ िक मेिे जीवि के साथ एक औि पाणी का जीवि-सूत भी बंधा हुआ है। ििमलम ा यह समझेगी िक मेिी ििषुिता ही िे इिकी जाि ली। यह समझकि उसका कोमल हदय फट ि जायेगा?

उसका जीवि तो अब भी संकट मे है। संदेह के कठोि पजें मे फंसी हुई अबला कया अपिे का हतयाििणी समझकि बहुत िदि जीिवत िह सकती है?

मंसािाम िे चािपाई पि लेटकि िलहाफ ओढ िलया, िफि भी सदी से कलेजा कांप िहा था। थोडी ही देि मे उसे जोि से जवि चढ आया, वह बेहोश हो गया। इस अचेत दशा मे उसे भांित-भांित के सवपि िदखाई देिे लगे। थोडी-थोडी देि के बाद चौक पडता, आखें खुल जाती, िफि बेहोश हो जाता।

सहसा वकील साहब की आवाज सुिकि वह चौक पडा। हां, वकील साहब की आवाज थी। उसिे िलहाफ फेक िदया औि चािपाई से उतिकि िीचे खडा हो गया। उसके मि मे एक आवेग हुआ िक इस वक इिके सामिे पाण दे दं।ू उसे ऐसा मालूम हुआ िक मै मि जाऊं, तो इनहे सचची खुशी होगी। शायद इसीिलए वह देखिे आये है िक मेिे मििे मे िकतिी देि है। वकील साहब िे उसका हाथ पकड िलया, िजससे वह िगि ि पडे औि पूछा-कैसी तबीयत है लललू। लेटे कयो ि िहे? लेट ि जाओ, तुम खडे कयो हो गये?

मंसािाम-मेिी तबीयत तो बहुत अचछी है। आपको वयथ म ही कि हुआ। मुंशी जी िे कुछ जवाब ि िदया। लडके की दशा देखकि उिकी आखंो

से आंसू ििकल आये। वह हि-पुि बालक, िजसे देखकि िचत पसनि हो जाता था, अब सूखकि कांटा हो गया था। पांच-छ: िदि मे ही वह इतिा दबुला हो गया था िक उसे पहचाििा किठि था। मुंशीजी िे उसे आिहसता से चािपाई पि िलटा िदया औि िलहाफ अचछी तिह उसे उढाकि सोचिे लगे िक अब कया कििा चािहए। कहीं लडका हाथ से तो िहीं जाएगा। यह खयाल किके वह शोक िवहवल हो गये औि सटूल पि बठैकि फूट-फूटकि िोिे लगे।

78

Page 79: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

मंसािाम भी िलहाफ मे मुंह लपेटे िो िहा था। अभी थोडे ही िदिो पहले उसे देखकि िपता का हदय गव म से फूल उठता था, लेिकि आज उसे इस दारण दशा मे देखकि भी वह सोच िहे है िक इसे घि ले चलूं या िहीं। कया यहां दवा िहीं हो सकती? मै यहां चौबीसो घणटे बठैा िहंूगा। डॉकटि साहब यहां है ही। कोई िदककत ि होगी। घि ले चलिे से मे उनहे बाधाएं-ही-बाधाएं िदखाई देती थीं, सबसे बडा भय यह था िक वहां ििमलम ा इसके पास हिदम बठैी िहेगी औि मै मिा ि कि सकंूगा , यह उिके िलए असह था।

इतिे मे अधयक िे आकि कहा-मै तो समझता हंू िक आप इनहे अपिे साथ ले जाये। गाडी है ही, कोई तकलीफ ि होगी। यहां अचछी तिह देखभाल ि हो सकेगी।

मुंशीजी-हां, आया तो मै इसी खयाल से था, लेिकि इिकी हालत बहुत ही िाजुक मालूम होती है। जिा-सी असावधािी होिे से सिसाम हो जािे का भय है।

अधयक-यहां से इनहे ले जािे मे थोडी-सी िदककत जरि है, लेिकि यह तो आप खदु सोच सकते है िक घि पि जो आिाम िमल सकता है, वह यहां िकसी तिह िहीं िमल सकता। इसके अितििक िकसी बीमाि लडके को यहां िखिा िियम-िवरद भी है।

मुंशीजी- किहए तो मै हेडमासटि से आजा ले लूं। मुझे इिका यहां से इस हालत मे ले जािा िकसी तिह मुिािसब िहीं मालूम होता।

अधयक िे हेडमासटि का िाम सुिा, तो समझे िक यह महाशय धमकी दे िहे है। जिा ितिककि बोले-हेडमासटि िियम-िवरद कोई बात िहीं कि सकते। मै इतिी बडी िजममेदािी कैसे ले सकता हंू?

अब कया हो? कया घि ले जािा ही पडेगा? यहां िखिे का तो यह बहािा था िक ले जािे बीमािी बढ जािे की शंका है। यहां से ले जाकि हसपताल मे ठहिािे का कोई बहािा िहीं है। जो सुिेगा, वह यही कहेगा िक डाकटि की फीस बचािे के िलए लडके को असपताल फेक आये, पि अब ले जािे के िसवा औि कोई उपाय ि था। अगि अधयक महोदय इस वक ििशत लेिे पि तैयाि हो जाते, तो शायद दो-चाि साल का वेति ले लेते,

लेिकि कायदे के पाबंद लोगो मे इतिी बिुद, इतिी चतिुाई कहां। अगि इस वक मुंशीजी को कोई आदमी ऐसा उज सुझा देता, िजसमे उिहे मंसािाम को घि ि ले जािा पडे, तो वह आजीवि असका एहसाि मािते। सोचिे का

79

Page 80: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

समय भी ि था। अधयक महोदय शैताि की तिह िसि पि सवाि था। िववश होकि मुंशीजी िे दोिो साईसो को बुलाया औि मंसािाम को उठािे लगे। मंसािाम अधचम ेतिा की दशा मे था, चौककि बोला, कया है? कोि है?

मुंशीजी-कोई िहीं है बेटा, मै तुमहे घि ले चलिा चाहता हंू, आओ, गोद मे उठा लूं।

मंसािाम- मुझे कयो घि ले चलते है? मै वहां िहीं जाऊंगा।मुंशीजी- यहां तो िह िहीं सकत, िियम ही ऐसा है। मंसािाम- कुछ भी हो, वहां ि जाऊंगा। मुझे औि कहीं ले चिलए, िकसी

पेड के िीचे, िकसी झोपडे मे, जहां चाहे ििखए, पि घि पि ि ले चिलए।अधयक िे मुंशीजी से कहा-आप इि बातो का खयाल ि किे, यह तो

होश मे िहीं है। मंसािाम- कौि होश मे िहीं है? मै होश मे िहीं हंू? िकसी को गािलयां

देता हू? दांत काटता हंू? कयो होश मे िहीं हंू? मुझे यहीं पडा िहिे दीिजए, जो कुछ होिा होगा, अगिि ऐसा है, तो मुझे असपताल ले चिलए, मै वहां पडा िहंूगा। जीिा होगा, जीऊगा, मििा होगा मरंगा, लेिकि घि िकसी तिह भी ि जाऊंगा।

यह जोि पाकि मुंशीजी िफिा अधयक की िमनिते कििे लगे, लेिकि वह कायदे का पाबंदी आदमी कुछ सुिता ही ि था। अगि छूत की बीमािी हुई औि िकसी दसूिे लडके को छूत लग गयी, तो कौि उसका जवाबदेह होगा। इस तकम के सामिे मुंशीजी की कािूिी दलीले भी मात हो गयीं।

आिखि मुंशीजी िे मंसािाम से कहा-बेटा, तुमहे घि चलिे से कयो इंकाि हो िहा है? वहां तो सभी तिह का आिाम िहेगा। मुंशीजी िे कहिे को तो यह बात कह दी, लेिकि डि िहे थे िक कहीं सचमुच मंसािाम च लिे पि िाजी ि हो जाये। मंसािाम को असपताल मे िखिे का कोई बहािा खोज िहे थे औि उसकी िजममेदािी मंसािाम ही के िसि डालिा चाहते थे। यह अधयक के सामिे की बात थी, वह इस बात की साकी दे सकते थे िक मंसािाम अपिी िजद से असपताल जा िहा है। मुंशीजी का इसमे लेशमात भी दोष िहीं है।

मंसािाम िे झललाकि हा-िहीं, िहीं सौ बाि िहीं, मै घ िहीं जाऊंगा। मुझे असपताल ले चिलए औि घि के सब आदिमयो को मिा कि दीिजए िक मुझे देखिे ि आये। मुझे कुछ िहीं हुआ है, िबलकुल बीमाि िहीं हू। आप मुझे छोड दीिजए, मै अपिे पांव से चल सकता हंू।

80

Page 81: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

वह उठ खडा हुआ औि उनमत की भांित दाि की ओि चला, लेिकि पैि लडखडा गये। यिद मुंशीजी िे संभाल ि िलया होता, तो उसे बडी चोट आती। दोिो िौकिो की मदद से मुंशीजी उसे बगघी के पास लाये औि अदंि बठैा िदया।

गाडी असपताल की ओि चली। वही हुआ जो मुंशीजी चाहते थे। इस शोक मे भी उिका िचत संतुि था। लडका अपिी इचछा से असपताल जा िहा था कया यह इस बात का पमाण िहीं था िक घि मे इसे कोई सिेह िहीं है?

कया इससे यह िसद िहीं होता िक मंसािाम ििदोष है ? वह उसक पि अकािण ही भम कि िहे थे।

लेिकि जिा ही देि मे इस तुिि की जगह उिके मि मे गलािि का भाव जागत हुआ। वह अपिे पाण-िपय पुत को घि ि ले जाकि असपताल िलये जा िहे थे। उिके िवशाल भवि मे उिके पुत के िलए जगह ि थी, इस दशा मे भी जबिक उसकी जीवल सकंट मे पडा हुआ था। िकतिी िवडमबिा है!

एक कण के बाद एकाएक मुंशीजी के मि मे पश उठा-कहीं मंसािाम उिके भावो को ताड तो िहीं गया? इसीिलए तो उसे घि से घणृा िहीं हो गेयी है? अगि ऐसा है, तो गजब हो जायेगा।

उस अिथ म की कलपिा ही से मुंशीजी के िोए खडे हो गये औि कलेजा धकधक कििे लगा। हदय मे एक धकका-सा लगा। अगि इस जवि का यही कािण है, तो ईशि ही मािलक है। इस समय उिकी दशा अतयनत दयिीय थी। वह आग जो उनहोिे अपिे िठठुिे हुए हाथो को सेकिे के िलए जलाई थी, अब उिके घि मे लगी जा िही थी। इस करणा, शोक, पशाताप औि शंका से उिका िचत घबिा उठा। उिके गुप िोदि की धविि बाहि ििकल सकती, तो सुििे वाले िो पडते। उिके आसंू बाहि ििकल सकते, तो उिका ताि बंध जाता। उनहोिे पुत के वणम-हीि मुख की ओि एक वातसलयूपण म िेतो से देखा, वेदिा से िवकल होकि उसे छाती से लगा िलया औि इतिा िोये िक िहचकी बंच गयी।

सामिे असपताल का फाटक िदखाई दे िहा था।

गया िह

81

Page 82: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

शी तोतािाम संधया समय कचहिी से घि पहंुचे, तो ििमलम ा िे पूछा- उनहे देखा, कया हाल है? मुंशीजी िे देखा िक ििमलम ा के मुख पि िाममात को

भी शोक यािचिता का िचनह िहीं है। उसका बिाव-िसंगाि औि िदिो से भी कुछ गाढा हुआ है। मसलि वह गले का हाि ि पहिती थी, पि आजा वह भी गले मे शोभ दे िहा था। झूमि से भी उसे बहुत पेम था, वह आज वह भी महीि िेशमी साडी के िीचे, काले-काले केशो के ऊपि, फािुस के दीपक की भांित चमक िहा था।

मुं

मुंशीजी िे मुंह फेिकि कहा- बीमाि है औि कया हाल बताऊं?

ििमलम ा- तुम तो उनहे यहां लािे गये थे?

मुंशीजी िे झुंझलाकि कहा- वह िहीं आता, तो कया मै जबिदसती उठा लाता? िकतिा समझाया िक बेटा घि चलो, वहां तुमहे कोई तकलीफ ि होिे पावेगी, लेिकि घि का िाम सुिकि उसे जसेै दिूा जवि हो जाता था। कहिे लगा- मै यहां मि जाऊंगा, लेिकि घि ि जाऊंगा। आिखि मजबूि होकि असपताल पहंुचा आया औि कया किता?

रिकमणी भी आकि बिामदे मे खडी हो गई थी। बोलीं- वह जनम का हठी है, यहां िकसी तिह ि आयेगा औि यह भी देख लेिा, वहां अचछा भी ि होगा?

मुंशीजी िे काति सवि मे कहा- तुम दो-चाि िदि के िलए वहां चली जाओ, तो बडा अचछा हो बहि, तुमहािे िहिे से उसे तसकीि होती िहेगी। मेिी बहि, मेिी यह िविय माि लो। अकेले वह िो-िोकि पाण दे देगा। बस हाय अममां! हाय अममां! की िट लगाकि िोया किता है। मै वहीं जा िहा हंू, मेिे साथ ही चलो। उसकी दशा अचछी िहीं। बहि, वह सूित ही िहीं िही। देखे ईशि कया किते है?

यह कहते-कहते मुंशीजी की आंखो से आंसू बहिे लगे, लेिकि रिकमणी अिवचिलत भाव से बोली- मै जािे को तैयाि हंू। मेिे वहां िहिे से अगि मेिे लाल के पाण बच जाये, तो मै िसि के बल दौडी जाऊं, लेिकि मेिा कहिा िगिह मे बांध लो भैया, वहां वह अचछा ि होगा। मै उसे खूब पहचािती हंू। उसे कोई बीमािी िहीं है, केवल घि से ििकाले जािे का शोक है। यही दु:ख जवि के रप मे पकट हुआ है। तुम एक िहीं, लाख दवा किो, िसिवल सजिम को ही कयो ि िदखाओ, उसे कोई दवा असाि ि किेगी।

82

Page 83: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

मुंशीजी- बहि, उसे घि से ििकाला िकसिे है? मैिे तो केवल उसकी पढाई के खयाल से उसे वहां भेजा था।

रिकमणी- तुमिे चाहे िजस खयाल से भेजा हो, लेिकि यह बात उसे लग गयी। मै तो अब िकसी िगिती मे िहीं हंू, मुझे िकसी बात मे बोलिे का कोई अिधकाि िहीं। मािलक तुम, मालिकि तुमहािी िी। मै तो केवल तुमहािी िोिटयो पि पडी हुई अभिगिी िवधवा हंू। मेिी कौि सुिेगा औि कौि पिवाह किेगा? लेिकि िबिा बोले िही िहीं जाता। मंसा तभी अचछा होगा: जब घि आयेगा, जब तुमहािा हदय वही हो जायेगा, जो पहले था।

यह कहकि रिकमणी वहां से चली गयीं, उिकी जयोितहीि, पि अिुभवपूण म आखंो के सामिे जो चिित हो िहे थे, उिका िहसय वह खूब समझती थीं औि उिका सािा कोध िििपिािधिी ििमलम ा ही पि उतिता था। इस समय भी वह कहते-कहते रग गयीं, िक जब तक यह लकमी इस घि मे िहेगी, इस घि की दशा िबगडती हो जायेगी। उसको पगट रप से ि कहिे पि भी उसका आशय मुंशीजी से िछपा िहीं िहा। उिके चले जािे पि मुंशीजी िे िसि झुका िलया औि सोचिे लगे। उनहे अपिे ऊपि इस समय इतिा कोध आ िहा था िक दीवाि से िसि पटककि पाणो का अनत कि दे। उनहोिे कयो िववाह िकया था? िववाह किेि की कया जरित थी? ईशि िे उनहे एक िहीं, तीि-तीि पुत िदये थे? उिकी अवसथा भी पचास के लगभग पहंुच गेयी थी िफि उनहोिे कयो िववाह िकया? कया इसी बहािे ईशि को उिका सविम ाश कििा मजंूि था? उनहोिे िसि उठाकि एक बाि ििमलम ा को सहास,

पि ििशल मूित म देखी औि असपताल चले गये। ििमलम ा की सहास, छिव िे उिका िचत शानत कि िदया था। आज कई िदिो के बाद उनहे शािनत मयसि हुई थी। पेम-पीिडत हदय इस दशा मे कया इतिा शानत औि अिवचिलत िह सकता है? िहीं, कभी िहीं। हदय की चोट भाव-कौशल से िहीं िछपाई जा सकती। अपिे िचत की दबुिम जा पि इस समय उनहे अतयनत कोभ हुआ। उनहोिे अकािण ही सनदेह को हदय मे सथाि देकि इतिा अिथम िकया। मंसािाम की ओि से भी उिका मि िि:शंक हो गया। हां उसकी जगह अब एक ियी शंका उतपनि हो गयी। कया मंसािाम भांप तो िहीं गया? कया भांपकि ही तो घि आिे से इनकाि िहीं कि िहा है? अगि वह भांप गया है, तो महाि ्अिथ म हो जायेगा। उसकी कलपिा ही से उिका मि दहल उठा। उिकी देह की सािी हिडडयां मािो इस हाहाकाि पि पािी डालिे

83

Page 84: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

के िलए वयाकुल हो उठीं। उनहोिे कोचवाि से घोडे को तेज चलािे को कहा। आज कई िदिो के बाद उिके हदय मंडल पि छाया हुआ सघि फट गया था औि पकाश की लहिे अनदि से ििकलिे के िलए वयग हो िही थीं। उनहोिे बाहि िसि ििकाल कि देखा, कोचवाि सो तो िहीं िहा ह। घोडे की चाल उनहे इतिी मनद कभी ि मालूम हुई थी।

असपताल पहंुचकि वह लपके हुए मंसािाम के पास गये। देखा तो डॉकटि साहब उसके सामिे िचनता मे मगि खडे थे। मुंशीजी के हाथ-पांव फूल गये। मुंह से शबद ि ििकल सका। भिभिाई हुई आवाज मे बडी मुिशकल से बोले- कया हाल है, डॉकटि साहब? यह कहते-कहते वह िो पडे औि जब डॉकटि साहब को उिके पश का उति देिे मे एक कण का िवलमबा हुआ, तब तो उिके पाण िहो मे समा गये। उनहोिे पलंग पि बैठकि अचेत बालक को गोद मे उठा िलया औि बालक की भांित िससक-िससककि िोिे लगे। मंसािाम की देह तवे की तिह जल िही थी। मंसािाम िे एक बाि आंखे खोलीं। आह, िकतिी भयकंि औि उसके साथ ही िकतिी दी दिि थी। मुंशीजी िे बालक को कणठ से लगाकि डॉकटि से पूछा-कया हाल है, साहब! आप चुप कयो है?

डॉकटि िे संिदगध सवि से कहा- हाल जो कुछ है, वह आपे देख ही िहे है। 106 िडगी का जवि है औि मै कया बताऊं? अभी जवि का पकोप बढता ही जाता है। मेिे िकये जो कुद हो सकता है, कि िहा हंू। ईशि मािलक है। जबसे आप गये है, मै एक िमिट के िलए भी यहां से िहीं िहला। भोजि तक िहीं कि सका। हालत इतिी िाजुक है िक एक िमिट मे कया हो जायेगा, िहीं कहा जा सकता? यह महाजवि है, िबलकुल होश िहीं है। िह-िहकि ‘िडलीिियम’ का दौिा-सा हो जाता है। कया घि मे इनहे िकसी िे कुछ कहा है! बाि-बाि, अममांजी, तुम कहां हो! यही आवाज मुंह से ििकली है।

डॉकटि साहब यह कह ही िहे थे िक सहसा मंसािाम उठकि बैठ गया औि धकके से मुंशीज को चािपाई के िीचे ढकेलकि उनमत सवि से बोला- कयो धमकाते है, आप! माि डािलए, माि डािल, अभी माि डािलए। तलवाि िहीं िमलती! िससी का फनदा है या वह भी िहीं। मै अपिे गले मे लगा लूंगा। हाय अममांजी, तुम कहां हो! यह कहते-कहते वह िफि अचेते होकि िगि पडा।

मुंशीजी एक कण तक मंसािाम की िशिथल मुदा की ओि वयिथत िेतो से ताकते िहे, िफि सहस उनहोिे डॉकटि साहब का हाथ पकड िलया औि

84

Page 85: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

अतयनत दीितापूण म आगह से बोले-डॉकटि साहब, इस लडके को बचा लीिजए,

ईशि के िलए बचा लीिजए, िहीं मेिा सविम ाश हो जायेगा। मै अमीि िहीं हंू लेिकि आप जो कुछ कहेगे, वह हािजि करंगा, इसे बचा लीिजए। आप बडे-से-

बडे डॉकटि को बुलाइए औि उिकी िाय लीिजएक , मै सब खच म दंगूा। इसीक अब िहीं देखी जाती। हाय, मेिा होिहाि बेटा!

डॉकटि साहब िे करण सवि मे कहा- बाबू साहब, मै आपसे सतय कह िहा हंू िक मै इिके िलए अपिी तिफ से कोई बात उठा िहीं िख िहा हंू। अब आप दसूिे डॉकटिो से सलाह लेिे को कहते है। अभी डॉकटि लािहिी, डॉकटि भािटया औि डॉकटि माथुि को बुलाता हंू। िविायक शािी को भी बुलाये लेता हंू, लेिकि मै आपको वयथ म का आशासि िहीं देिा चाहता, हालत िाजुक है।

मंशीजी िे िोते हुए कहा- िहीं, डॉकटि साहब, यह शबद मुहं से ि ििकािलए। हाल इसके दशुमिो की िाजुक हो। ईशि मुझ पि इतिा कोप ि किेगे। आप कलकता औि बमबई के डॉकटिो को तािा दीिजए, मै िजनदगी भि आपकी गुलामी करंगा। यही मेिे कुल का दीपक है। यही मेिे जीवि का आधाि है। मेिा हदय फटा जा िहा है। कोई ऐसी दवा दीिजए, िजससे इसे होश आ जाये। मै जिा अपिे कािो से उसकी बाते सुिूं जािूं िक उसे कया कि हो िहा है? हाय, मेिा बचचा!

डॉकटि- आप जिा िदल को तसकीि दीिजए। आप बुजगु म आदमी है, यो हाय-हाय कििे औि डॉकटिो की फौज जमा कििे से कोई ितीजा ि ििकलेगा। शानत होकि बिैठए, मै शहि के लोगो को बुला िहा हंू, देिखए कया कहते है? आप तो खुद ही बदहवास हुए जाते है।

मुंशीजी- अचछा, डॉकटि साहब! मै अब ि बोलूंग, जबाि तब तक ि खोलूगंा, आप जो चाहे किे, बचचा अब हाथ मे है। आप ही उसकी िका कि सकते है। मै इतिा ही चाहता हंू िक जिा इसे होश आ जाये, मुझे पहचाि ले, मेिी बाते समझिे लगे। कया कोई ऐसी संजीविी बूटी िहीं? मै इससे दो-चाि बाते कि लेता।

यह कहते-कहते मुंशीजी आवेश मे आकि मंसािाम से बोले- बेटा, जिा आंखे खोलो, कैसा जी है? मै तुमहािे पास बठैा िो िहा हंू, मुझे तुमसे कोई िशकायत िहीं है, मेिा िदल तुमहािी ओि से साफ है।

85

Page 86: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

डॉकटि- िफि आपिे अिगलम ा बाते कििी शुर कीं। अिे साहब, आप बचचे िहीं है, बुजगु म है, जिा धैय म से काम लीिजए।

मुंशीजी- अचछा, डॉकटि साहब, अब ि बोलूंगा, खता हुई। आप जो चाहे कीिजए। मैिे सब कुछ आप पि छोड िदया। कोई ऐसा उपाय िहीं, िजससे म ैइसे इतिा समझा सकंू िक मेिा िदल साफ है ? आप ही कह दीिजए डॉकटि साहब, कह दीिजए, तुमहािा अभागा िपता बठैा िो िहा है। उसका िदल तुमहािी तिफ से िबलकुल साफ है। उसे कुछ भम हुआ था। वब अब दिू हो गया। बस, इतिा ही कि दीिजए। मै औि कुछ िहीं चाहता। मै चुपचाप बठैा हंू। जबाि को िहीं खोलता, लेिकि आप इतिा जरि कह दीिजए।

डॉकटि- ईशि के िलए बाबू साहब, जिा सब कीिजए, वििा मुझे मजबूि होकि आपसे कहिा पडेगा िक घि जाइए। मै जिा दफति मे जाकि डॉकटिो को खत िलख िहा हंू। आप चपुचाप बैठे ििहएगा।

ििदमयी डॉकटि! जवाि बेटे की यहा दशा देखकि कौि िपता है, जो धयैम से कामे लेगा? मुंशीजी बहुत गमभीि सवभाव के मिुषय थे। यह भी जािते थे िक इस वक हाय-हाय मचािे से कोई ितीजा िहीं, लेिकि िफिी भी इस समय शानत बैठिा उिके िलए असमभव था। अगि दैव-गित से यह बीमािी होती, तो वह शानत हो सकते थे, दसूिो को समझा सकते थे, खुद डॉकटिो का बुला सकते थे, लेिकि कयायह जािकि भी धैय म िख सकते थे िक यह सब आग मेिी ही लगाई हुई है? कोई िपता इतिा वज-हदय हो सकता है? उिका िोम-िोम इस समय उनहे िधककाि िहा था। उनहोिे सोचा, मुझे यह दभुावम िा उतपनि ही कयो हुई? मैिे कयां िबिा िकसी पतयक पमाण के ऐसी भीषण कलपिा कि डाली? अचदा मुझे उसक दशा मे कया कििा चािहए था। जो कुछ उनहोिे िकया उसके िसवा वह औि कया किते, इसका वह ििशय ि कि सके। वासतव मे िववाह के बनधि मे पडिा ही अपिे पैिो मे कुलहाडी मािािा था। हां, यही सािे उपदव की जड है।

मगि मैिे यह कोई अिोखी बात िहीं की। सभी िी-पुरष का िववाह किते है। उिका जीवि आिनद से कटता है। आिनद की अचदा से ही तो हम िववाह किते है। मुहलले मे सैकडो आदिमयो िे दसूिी, तीसिी, चौथी यहां तक िक सातवीं शिदयां की है औि मुझसे भी कहीं अिधक अवसथा मे। वह जब तक िजये आिाम ही से िजये। यह भी िहीं हआ िक सभी िी से पहले मि गये हो। दहुाज-ितहाज होिे पि भी िकतिे ही िफि िंडुए हो गये। अगि

86

Page 87: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

मेिी-जैसी दशा सबकी होती, तो िववाह का िाम ही कौि लेता? मेिे िपताजी िे पचपिवे वष म मे िववाह िकया था औि मेिे जनम के समय उिकी अवसथा साठ से कम ि थी। हां, इतिी बात जरि है िक तब औि अब मे कुछ अंति हो गया है। पहले िीयां पढी-िलखी ि होती थीं। पित चाहे कैसा ही हो, उसे पूजय समझती थी, यह बात हो िक पुरष सब कुछ देखकि भी बेहयाई से काम लेता हो, अवशय यही बात है। जब युवक वदृा के साथ पसनि िहीं िह सकता, तो युवती कयो िकसी वदृ के साथ पसनि िहिे लगी? लेिकि मै तो कुछ ऐसा बुडढा ि था। मुझे देखकि कोई चालीस से अिधक िहीं बता सकता। कुछ भी हो, जवािी ढल जािे पि जवाि औित से िववाह किके कुछ-ि-कुछ बेहयाई जरि कििी पडती है, इसमे सनदेह िहीं। िी सवभाव से लजजाशील होती है। कुलटाओं की बात तो दसूिी है, पि साधािणत: िी पुरष से कहीं जयादा संयमशील होती है। जोड का पित पाकि वह चाहे पि-पुरष से हंसी-िदललगी कि ले, पि उसका मि शुद िहता है। बेजोडे िववाह हो जािे से वह चाहे िकसी की ओि आंखे उठाकि ि देखे, पि उसका िचत दखुी िहता है। वह पककी दीवाि है, उसमे सबिी का असि िहीं होता, यह कचची दीवाि है औि उसी वक तक खडी िहती है, जब तक इस पि सबिी ि चलाई जाये।

इनहीं िवचािां मे पडे-पडे मुंशीजी का एक झपकी आ गयी। मिे के भावो िे ततकाल सवपि का रप धािण कि िलया। कया देखते है िक उिकी पहली िी मंसािाम के सामिे खडी कह िही है- ‘सवामी, यह तुमिे कया िकया? िजस बालक को मैिे अपिा िक िपला-िपलाकि पाला, उसको तुमिे इतिी ििदमयता से माि डाला। ऐसे आदश म चिित बालक पि तुमिे इतिा घोि कलंक लगा िदया? अब बठेै कया िबसूिते हो। तुमिे उससे हाथ धो िलया। मै तुमहािे ििदमया हाथो से छीिकि उसे अपिे साथ िलए जाती हंू। तुम तो इतिो शककी कभी ि थे। कया िववाह किते ही शक को भी गले बांध लाये?

इस कोमल हदय पि इतिा कठािे आघात! इतिा भीषण कलकं! इति बडा अपमाि सहकि जीिेवाले कोई बेहया होगे। मेिा बेटा िहीं सह सकता!’ यह कहते-कहते उसिे बालक को गोद मे उठा िलया औि चली। मुंशीजी िे िोते हुए उसकी गोद से मंसािाम को छीििे के िलए हाथ बढाया, तो आंखे खुल गयीं औि डॉकटि लािहिी, डॉकटि लािहिी, डॉकटि भािटया आिद आधे दजिम डॉकटि उिको सामिे खडे िदखायी िदये।

87

Page 88: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

बािह

ि िदि गजुि गये औि मुंशीजी घि ि आये। रिकमणी दोिो वक असपताल जातीं औि मंसािाम को देख आती थीं। दोिो लडके भी

जाते थे, पि ििमलम ा कैसे जाती? उिके पैिो मे तो बेिडयां पडी हुई थीं। वह मंसािाम की बीमािी का हाल-चाल जाििे क िलए वयग िहती थी, यिद रिकमणी से कुछ पछूती थीं, तो तािे िमलते थे औि लडको से पूछती तो बेिसि-पैि की बाते कििे लगते थे। एक बाि खुद जाकि देखिे के िलए उसका िचत वयाकुल हो िहा था। उसे यह भय होता था िक सनदेह िे कहीं मुंशीजी के पुत-पेम को िशिथल ि कि िदया हो, कहीं उिकी कृपणता ही तो मंसािाम क अचछे होिे मे बाधक िहीं हो िही है? डॉकटि िकसी के सगे िहीं होते, उनहे तो अपिे पैसो से काम है, मुदा म दोजख मे जाये या बिहशत मे। उसक मि मे पबल इचछा होती थी िक जाकि असपताल क डॉकटिो का एक हजाि की थलैी देकि कहे- इनहे बचा लीिजए, यह थैली आपकी भेट है, पि उसके पास ि तो इतिे रपये ही थे, ि इतिे साहस ही था। अब भी यिद वहां पहंुच सकती, तो मंसािाम अचछा हो जाता। उसकी जसैी सेवा-शुशषूा होिी चािहए, वैसी िहीं हो िही है। िहीं तो कया तीि िदि तक जवि ही ि उतिता? यह दैिहक जवि िहीं, माििसक जवि है औि िचत के शानत होिे ही से इसका पकोप उति सकता है। अगि वह वहां िात भि बठैी िह सकती औि मुंशीजी जिा भी मि मैला ि किते, तो कदािचत ्मंसािाम को िवशास हो जाता िक िपताजी का िदल साफ है औि िफि अचछे होिे मे देि ि लगती, लेिकि ऐसा होगा? मुंशीजी उसे वहां देखकि पसनििचत िह सकेगे?

कया अब भी उिका िदल साफ िहीं हुआ? यहां से जाते समय तो ऐसा जात हुआ था िक वह अपिे पमाद पि पछता िहे है। ऐसा तो ि होगा िक उसके वहां जाते ही मुंशीजी का सनदेह िफि भडक उठे औि वह बेटे की जाि लेकि ही छोडे?

ती

इस दिुवधा मे पडे-पडे तीि िदि गुजि गये औि ि घि मे चूलहा जला, ि िकसी िे कुछ खाया। लडको के िलए बाजाि से पिूियां ली जाती थीं, रिकमणी औि ििमलम ा भूखी ही सो जाती थीं। उनहे भोजि की इचछा ही ि होती।

88

Page 89: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

चौथे िदि िजयािाम सकूल से लौटा, तो असपताल होता हुआ घि आया। ििमलम ा िे पछूा-कयो भैया, असपताल भी गये थे? आज कया हाल है?

तुमहािे भैया उठे या िहीं?िजयािाम रआंसा होकि बोला- अममांजी, आज तो वह कुछ बोलते-

चालते ही ि थे। चपुचाप चािपाई पि पडे जोि-जोि से हाथ-पांव पटक िहे थे।

ििमलम ा के चेहिे का िंग उड गया। घबिाकि पूछा- तुमहािे बाबूजी वहां ि थे?

िजयािाम- थे कयो िहीं? आज वह बहुत िोते थे।ििमलम ा का कलेजा धक्-धक् कििे लगा। पूछा- डॉकटि लोग वहां ि थे?

िजयािाम- डॉकटि भी खडे थे औि आपस मे कुछ सलाह कि िहे थे। सबसे बडा िसिवल सजिम अगंिेजी मे कह िहा था िक मिीज की देह मे कुछ ताजा खूि डालिा चािहए। इस पि बाबूजीय िे कहा- मेिी देह से िजतिा खिू चाहे ले लीिजए। िसिवल सजिम िे हंसकि कहा- आपके बलड से काम िहीं चलेगा, िकसी जवाि आदमी का बलड चािहए। आिखि उसिे िपचकािी से कोई दवा भैया के बाजू मे डाल दी। चाि अगंुल से कम के सुई ि िही होगी, पि भैया िमिके तक िहीं। मैिे तो मािे डिके आंखे बनद कि लीं।

बडे-बडे महाि संकलप आवेश मे ही जनम लेते है। कहां तो ििमलम ा भय से सूखी जाती थी, कहां उसके मुंह पि दढ संकलप की आभा झलक पडी। उसिे अपिी देह का ताजा खिू देिे का ििशय िकया। आगि उसके िक से मंसािाम के पाण बच जाये, तो वह बडी खशुी से उसकी अिनतम बूंद तक दे डालेगी। अब िजसका जो जी चाहे समझे, वह कुछ पिवाह ि किेगी। उसिे िजयािाम से काह- तुम लपककि एक एकका बुला लो, मै असपताला जाऊंगी।

िजयािाम- वहां तो इस वक बहुत से आदमी होगे। जिा िात हो जािे दीिजए।

ििमलम ा- िहीं, तुम अभी एकका बुला लो।िजयािाम- कहीं बाबजूी िबगडे ि?

ििमलम ा- िबगडिे दो। तुमे अभी जाकि सवािी लाओ।िजयािाम- मै कह दंगूा, अममांजी ही िे मुझसे सवािी मंगाई थी।

ििमलम ा- कह देिा।89

Page 90: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

िजयािाम तो उधि तांगा लािे गया, इतिी देि मे ििमलम ा िे िसि मे कंघी की, जडूा बांधा, कपडे बदले, आभूषण पहिे, पाि खाया औि दाि पि आकि तांगे की िाह देखिे लगी।

रिकमणी अपिे कमिे मे बैठी हुई थीं उसे इस तैयािी से आते देखकि बोलीं- कहां जाती हो, बहू?

ििमलम ा- जिा असपताल तक जाती हंू।रिकमणी- वहां जाकि कया किोगी?ििमलम ा- कुछ िहीं, करंगी कया? कििे वाले तो भगवाि है। देखिे को

जी चाहता है।रिकमणी- मै कहतीं हंू, मत जाओ।ििमलम ा- िे िविीत भाव से कहा- अभी चली आऊंगी, दीदीजी। िजयािाम

कह िहे है िक इस वक उिकी हालत अचछी िहीं है। जी िहीं मािता, आप भी चिलए ि?

रिकमणी- मै देख आई हंू। इतिा ही समझ लो िक, अब बाहिी खूि पहंुचािे पि ही जीवि की आशा है। कौि अपिा ताजा खूि देगा औि कयो देगा? उसमे भी तो पाणो का भय है।

ििमलम ा- इसीिलए तो मै जाती हंू। मेिे खूि से कया काम ि चलेगा?रिकमणी- चलेगा कयो िहीं, जवाि ही का तो खूि चािहए, लेिकि

तुमहािे खूि से मंसािाम की जाि बचे, इससे यह कहीं अचछा है िक उसे पािी मे बहा िदया जाये।

तांगा आ गया। ििमलम ा औि िजयािाम दोिो जा बठेै। तांगा चला।रिकमणी दाि पि खडी देत तक िोती िही। आज पहली बाि उसे

ििमलम ा पि दया आई, उसका बस होता तो वह ििमलम ा को बांध िखती। करणा औि सहािुभूित का आवेश उसे कहां िलये जाता है, वह अपकट रप से देख िही थी। आह! यह दभुागम य की पेिणा है। यह सविम ाश का माग म है।

ििमलम ा असपताल पहंुची, तो दीपक जल चुके थे। डॉकटि लोग अपिी िाय देकि िवदा हो चकेु थे। मंसािाम का जवि कुछ कम हो गयाथा वह टकटकी लगाए हुद दाि की ओि देख िहा था। उसकी दिि उनमुक आकाश की ओि लगी हुई थी, मािे िकसी देवता की पतीका कि िहा हो! वह कहां है, िजस दशा मे है, इसका उसे कुछ जाि ि था।

90

Page 91: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

सहसा ििमलम ा को देखते ही वह चौककि उठ बैठा। उसका समािध टूट गई। उसकी िवलुप चेतिा पदीप हो गई। उसे अपिे िसथित का, अपिी दशा का जाि हो गया, मािो कोई भूली हुई बात याद हो गई हो। उसिे आंखे फाडकि ििमलम ा को देखा औि मुंह फेि िलया।

एकाएक मुंशीजी तीव सवि से बोले- तुम, यहां कया कििे आई?

ििमलम ा अवाक् िह गई। वह बतलाये िक कया कििे आई? इतिे सीधे से पश का भी वह कोई जवाब दे सकी? वह कया कििे आई थी? इतिा जिटल पश िकसिे सामिे आया होगा? घि का आदमी बीमाि है, उसे देखिे आई है, यह बात कया िबिा पूछे मालूम ि हो सकती थी? िफि पश कयो?

वह हतबदुी-सी खडी िही, मािो संजाहीि हो गई हो उसिे दोिो लडको से मुंशीजी के शोक औि संताप की बाते सुिकि यह अिुमाि िकया था िक अब उसिका िदल साफ हो गया है। अब उसे जात हुआ िक वह भम था। हां, वह महाभम था। मगि वह जािती थी आंसुओं की दिि िे भी संदेह की अिगि शांत िहीं की, तो वह कदािप ि आती। वह कुढ-कुढाकि मि जाती, घि से पांव ि ििकालती।

मुंशजी िे िफि वही पश िकया- तुम यहां कयो आई?

ििमलम ा िे िि:शकं भाव से उति िदया- आप यहां कया कििे आये है?

मुंशीजी के िथुिे फडकिे लगा। वह झललाकि चािपाई से उठे औि ििमलम ा का हाथ पकडकि बोले- तुमहािे यहां आिे की कोई जरित िहीं। जब मै बलुाऊं तब आिा। समझ गई?

अिे! यह कया अिथ म हुआ! मंसािाम जो चािपाई से िहल भी ि सकता था, उठकि खडा हो गया औग ििमलम ा के पैिो पि िगिकि िोते हुए बोला- अममांजी, इस अभागे के िलए आपको वयथ म इतिा कि हुआ। मै आपका सिेह कभी भी ि भूलंगा। ईशि से मेिी यही पाथिम ा है िक मेिा पुिजम िम आपके गभ म से हो, िजससे मै आपके ऋण से अऋण हो सकंू। ईशि जािता है , मैिे आपको िवमाता िहीं समझा। मै आपको अपिी माता समझता िहा । आपकी उम मुझसे बहुत जया ि हो, लेिकि आप, मेिी माता के सथाि पि थी औि मैिे आपको सदैव इसी दिि से देखा...अब िहीं बोला जाता अममांजी, कमा कीिजए! यह अंितम भेट है।

ििमलम ा िे अशु-पवाह को िोकते हुए कहा- तुम ऐसी बाते कयो किते हो? दो-चाि िदि मे अचछे हो जाओगे।

91

Page 92: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

मंसािाम िे कीण सवि मे कहा- अब जीिे की इचछा िहीं औि ि बोलिे की शिक ही है।

यह कहते-कहते मंसािाम अशक होकि वहीं जमीि पि लेट गया। ििमलम ा िे पित की ओि ििभयम िेतो से देखते हुए कहा- डॉकटि िे कया सलाह दी?

मुंशीजी- सब-के-सब भंग खा गए है, कहते है, ताजा खूि चािहए। ििमलम ा- ताजा खूि िमल जाये, तो पाण-िका हो सकती है?

मुंशीजी िे ििमलेा की ओि तीव िेतो से देखकि कहा- मै ईशि िहीं हंू औि ि डॉकटि ही को ईशि समझता हंू।

ििमलम ा- ताजा खूि तो ऐसी अलभय वसतु िहीं!मुंशीजी- आकाश के तािे भी तो अलभय िही! मुंह के सामिे खदंक

कया चीज है?

ििमलम ा- मै आपिा खूि देिे को तैयाि हंू। डॉकटि को बुलाइए। मुंशीजी िे िविसमत होकि कहा- तुम!

ििमलम ा- हां, कया मेिे खूि से काम ि चलेगा?मुंशीजी- तुम अपिा खूि दोगी? िहीं, तुमहािे खिू की जरित िहीं।

इसमे पाणो का भय है।ििमलम ा- मेिे पाण औि िकस िदि काम आयेगे?

मुंशीजी िे सजल-िेत होकि कहा- िहीं ििमलम ा, उसका मूलय अब मेिी ििगाहो मे बहुत बढ गया है। आज तक वह मेिे भोग की वसतु थी, आज से वह मेिी भिक की वसतु है। मैिे तुमहािे साथ बडा अनयाय िकया है, कमा किो।

तेि ह

कुछ होिा था हो गया, िकसी को कुछ ि चली। डॉकटि साहब ििमलम ा की देह से िक ििकालिे की चेिा कि ही िहे थे िक मंसािाम

अपिे उजजवल चिित की अिनतम झलक िदखाकि इस भम-लोक से िवदा हो गया। कदािचत ्इतिी देि तक उसके पाण ििमलम ा ही की िाह देख िहे थे। उसे ििषकलकं िसद िकये िबिा वे देह को कैसे तयाग देते? अब उिका उदेशय पूिा हो गया। मुंशीजी को ििमलम ा के ििदोष होिे का िवशास हो गया, पि

जो

92

Page 93: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

कब? जब हाथ से तीि ििकल चकुा था, जब मुसिफि िे िकाब मे पांव डाल िलया था।

पुत-शोक मे मुंशीजी का जीवि भाि-सवरप हो गया। उस िदि से िफि उिके ओठो पि हंसी ि आई। यह जीवि अब उनहे वयथम-सा जाि पडता था। कचहिी जाते, मगि मुकदमो की पैिवी कििे के िलए िहीं, केवल िदल बहलािे के िलए घंटे-दो-घंटे मे वहां से उकताकि चले आते। खािे बठैते तो कौि मुंह मे ि जाता। ििमलम ा अचछी से अचछी चीज पकाती पि मुंशीजी दो-चाि कौि से अिधक ि खा सकते। ऐसा जाि पडता िक कौि मुंह से ििकला आता है!

मंसािाम के कमिे की ओि जाते ही उिका हदय टूक-टूक हो जाता था। जहां उिकी आशाओं का दीपक जलता िहता था, वहां अब अधंकाि छाया हुआ था। उिके दो पुत अब भी थे, लेिकि दधू देती हुई गायमि गई, तो बिछया का कया भिोसा? जब फूलिे-फलिेवाला वकृ िगि पडा, िनहे-िनहे पौधो से कया आशा? यो ता जवाि-बूढे सभी मित है, लेिकि द :ुख इस बात का था िक उनहोिे सवयं लडके की जाि ली। िजस दम बात याद आ जाती, तो ऐसा मालूम होता था िक उिकी छाती फट जायेगी-मािो हदय बाहि ििकल पडेगा।

ििमलम ा को पित से सचची सहािुभूित थी। जहां तक हो सकता था, वह उिको पसनि िखिे का िफक िखती थी औि भूलकि भी िपछली बाते जबाि पि ि लाती थी। मुंशीजी उससे मंसािाम की कोई चचा म किते शिमाते थे। उिकी कभी-कभी ऐसी इचछा होती िक एक बाि ििमलम ा से अपिे मि के सािे भाव खोलकि कह दंू, लेिकि लजजा िोक लेती थी। इस भांित उनहे सानतविा भी ि िमलती थी, जो अपिी वयथा कह डालिे से, दसूिो को अपिे गम मे शिीक कि लेिे से, पाप होती है। मवाद बाहि ि ििकलकि अनदि-ही-अनदि अपिा िवष फैलाता जाता था, िदि-िदि देह घुलती जाती थी।

इधि कुछ िदिो से मुंशीजी औि उि डॉकटि साहब मे िजनहोिे मंसािाम की दवा की थी, यािािा हो गया था, बेचािे कभी-कभी आकि मुंशीजी को समझाया किते, कभी-कभी अपिे साथ हवा िखलािे के िलए खींच ले जाते। उिकी िी भी दो-चाि बाि ििमलम ा से िमलिे आई थीं। ििमलम ा भी कई बाि उिके घि गई थी, मगि वहां से जब लौटती, तो कई िदि तक उदास िहती। उस दमपित का सुखमय जीवि देखकि उसे अपिी दशा पि दु:ख हुए िबिा ि िहता था। डॉकटि साहब को कुल दो सौ रपये िमलते थे,

93

Page 94: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

पि इतिे मे ही दोिो आिनद से जीवि वयतीत किते थे। घि मं केवल एक महिी थी, गहृसथी का बहुत-सा काम िी को अपिे ही हाथो कििा पडता थ। गहिे भी उसकी देह पि बहुत कम थे, पि उि दोिो मे वह पेम था, जो धि की तणृ के बिाबि पिवाह िहीं किता। परुष को देखकि िी को चेहिा िखल उठता था। िी को देखकि पुरष ििहाल हो जाता था। ििमलम ा के घि मे धि इससे कहीं अिधक था, अभूषणो से उिकी देह फटी पडती थी, घि का कोई काम उसे अपिे हाथ से ि कििा पडता था। पि ििमलम ा समपनि होिे पि भी अिधक दखुी थी, औि सुधा िवपिि होिे पि भी सुखी। सुधा के पास कोई ऐसी वसतु थी, जो ििमलम ा के पास ि थी, िजसके सामिे उसे अपिा वैभव तुचछ जाि पडता था। यहां तक िक वह सुधा के घि गहिे पहिकि जाते शिमाती थी।

एक िदि ििमलम ा डॉकटि साहब से घि आई, तो उसे बहुत उदास देखकि सधुा िे पछूा-बिहि, आज बहुत उदास हो, वकील साहब की तबीयत तो अचछी है, ि?

ििमलम ा- कया कहंू, सुधा? उिकी दशा िदि-िदि खिाब होती जाती है,

कुछ कहते िहीं बिता। ि जािे ईशि को कया मंजूि है?

सुधा- हमािे बाबजूी तो कहते है िक उनहे कहीं जलवायु बदलिे के िलए जािा जरिी है, िहीं तो, कोई भंयकि िोग खडा हो जायेगा। कई बाि वकील साहब से कह भी चकेु है पि वह यही कह िदया किते है िक मै तो बहुत अचछी तिह हंू, मुझे कोई िशकायत िहीं। आज तुम कहिा।

ििमलम ा- जब डॉकटि साहब की िहीं सुिा, तो मेिी सुिेगे?

यह कहते-कहते ििमलम ा की आखें डबडबा गई औि जो शंका, इधि महीिो से उसके हदय को िवकल किती िहती थी, मुंह से ििकल पडी। अब तक उसिे उस शंका को िछपाया था, पि अब ि िछपा सकी। बोली-बिहि मुझे लकण कुद अचछे िहीं मालूम होते। देखे, भगवाि ्कया किते है?

साधु-तुम आज उिसे खूब जोि देकि कहिा िक कहीं जलवायु बदलिे चािहए। दो चाि महीिे बाहि िहिे से बहुत सी बाते भूल जायेगी। मै तो समझती हंू,शायद मकाि बदलिे से भी उिका शोक कुछ कम हो जायेगा। तुम कहीं बाहि जा भी ि सकोगी। यह कौि-सा महीिा है?

ििमलम ा- आठवां महीिा बीत िहा है। यह िचनता तो मुझे औि भी मािे डालती है। मैिे तो इसके िलए ईशि से कभी पाथिम ि की थी। यह बला मेिे

94

Page 95: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

िसि ि जािे कयो मढ दी? मै बडी अभािगिी हंू, बिहि, िववाह के एक महीिे पहले िपताजी का देहानता हो गया। उिके मिते ही मेिे िसि शिीचि सवाि हुए। जहां पहले िववाह की बातचीत पककी हुई थी, उि लोगो िे आखें फेि लीं। बेचािी अममां को हािकि मेिा िववाह यहां कििा पडा। अब छोटी बिहि का िववाह होिे वाला है। देखे, उसकी िाव िकस घाट जाती है!

सुधा- जहां पहले िववाह की बातचीत हुई थी, उि लोगो िे इनकाि कयो कि िदया?

ििमलम ा- यह तो वे ही जािे। िपताजी ि िहे, तो सोिे की गठिी कौि देता?

सुधा- यह ता िीचता है। कहां के िहिे वाले थे?

ििमलम ा- लखिऊ के। िाम तो याद िहीं, आबकािी के कोई बडे अफसि थे।

सुधा िे गमभीिा भाव से पूछा- औि उिका लडका कया किता था?ििमलम ा- कुछ िहीं, कहीं पढता था, पि बडा होिहाि था। सुधा िे िसि िीचा किके कहा- उसिे अपिे िपता से कुछ ि कहा था?

वह तो जवाि था, अपिे बाप को दबा ि सकता था?ििमलम ा- अब यह मै कया जािूं बिहि? सोिे की गठिी िकसे पयािी िहीं

होती? जो पिणडत मेिे यहां से सनदेश लेकि गया था, उसिे तो कहा था िक लडका ही इनकाि कि िहा है। लडके की मां अलबता देवी थी। उसिे पुत औि पित दोिो ही को समझाया, पि उसकी कुछ ि चली।

सुधा- मै तो उस लडके को पाती, तो खूब आडे हाथो लेती।ििमलम ा- मिे भागय मे जो िलखा था, वह हो चकुा। बेचािी कृषणा पि ि

जािे कया बीतेगी?संधया समय ििमलम ा िे जािे के बाद जब डॉकटि साहब बाहि से आये,

तो सुधा िे कहा-कयो जी, तुम उस आदमी का कया कहोगे, जो एक जगह िववाह ठीक कि लेिे बाद िफि लोभवश िकसी दसूिी जगह?

डॉकटि िसनहा िे िी की ओि कुतूहल से देखकि कहा- ऐसा िहीं कििा चािहए, औि कया?

सुधा- यह कयो िहीं कहते िक ये घोि िीचता है, पहले िसिे का कमीिापि है!

िसनहा- हां, यह कहिे मे भी मुझे इनकाि िहीं।95

Page 96: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

सुधा- िकसका अपिाध बडा है? वि का या वि के िपता का?िसनहा की समझ मे अभी तक िहीं आया िक सुधा के इि पशो का

आशय कया है? िवसमय से बोले- जैसी िसथित हो अगि वह िपता क अधीि हो, तो िपता का ही अपिाध समझो।

सुधा- अधीि होिे पि भी कया जवाि आदमी का अपिा कोई कतवम य िहीं है? अगि उसे अपिे िलए िये कोट की जरित हो, तो वह िपता के िविाध कििे पि भी उसे िो-धोकि बिवा लेता है। कया ऐसे महतव के िवषय मे वह अपिी आवाज िपता के कािो तक िहीं पहंुचा सकता? यह कहो िक वह औि उसका िपता दोिो अपिाधी है, पिनतु वि अिधक। बूढा आदमी सोचता है- मुझे तो सािा खच म संभालिा पडेगा, कनया पक से िजतिा ऐठं सकंू , उतिा ही अचछा। मगेि वि का धम म है िक यिद वह सवाथ म के हाथो िबलकुल िबक िहीं गया है, तो अपिे आतमबल का पििचय दे। अगि वह ऐसा िहीं किता, तो मै कहंूगी िक वह लोभी है औि कायि भी। दभुागम यवश ऐसा ही एक पाणी मेिा पित है औि मेिी समझ मे िहीं आता िक िकि शबदो मे उसका ितिसकाि करं!

िसनहा िे िहचिकचाते हुए कहा- वह...वह...वह...दसूिी बात थी। लेि-देि का कािण िहीं था, िबलकुल दसूिी बाता थी। कनया के िपता का देहानत हो गया था। ऐसी दशा मे हम लोग कयो किते? यह भी सुििे मे आया था िक कनया मे कोई ऐब है। वह िबलकुल दसूिी बाता थी, मगि तुमसे यह कथा िकसिे कही।

सुधा- कह दो िक वह कनया कािी थी, या कुबडी थी या िाइि के पेट की थी या भिा थी। इतिी कसि कयो छोड दी? भला सुिूं तो, उस कनया मे कया ऐब था?

िसनहा- मैिे देखा तो था िहीं, सुििे मे आया था िक उसमे कोई ऐब है।

सुधा- सबसे बडा ऐब यही था िक उसके िपता का सवगवम ास हो गया था औि वह कोई लंबी-चौडी िकम ि दे सकती थी। इतिा सवीकाि किते कयो झेपते हो? मै कुछ तुमहािे काि तो काट ि लूंगी! अगि दो-चाि िफकिे कहंू, तो इस काि से सुिकि उसक काि से उडा देिा। जयादा-चीं-चपड करं,

तो छडी से काम ले सकते हो। औित जात डणडे ही से ठीक िहती है। अगि

96

Page 97: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

उस कनया मे कोई ऐब था, तो मै कहंूगी, लकमी भी बे-ऐब िहीं। तुमहािी खोटी थी, बस! औि कया? तुमहे तो मेिे पाले पडिा था।

िसनहा- तुमसे िकसिे कहा िक वह ऐसी थी वैसी थी? जसेै तुमिे िकसी से सुिकि माि िलया।

सुधा- मैिे सुिकि िहीं माि िलया। अपिी आखंो देखा। जयादा बखाि कया करं, मैिे ऐसी सुनदी िी कभी िहीं देखी थी।

िसनहा िे वयग होकि पूछा-कया वह यहीं कहीं है? सच बताओ, उसे कहां देखा! कया तुमळािे घि आई थी?

सुधा-हा,ं मेिे घि मे आई थी औि एक बाि िहीं, कई बाि आ चकुी है। मै भी उसके यहां कई बाि जा चकुी हंू, वकील साहब के बीवी वही कनया है,

िजसे आपिे ऐबो के कािण तयाग िदया।िसनहा-सच!

सुधा-िबलकुल सच। आज अगि उसे मालूम हो जाये िक आप वही महापुरष है, तो शायद िफि इस घि मे कदम ि िखे। ऐसी सुशीला, घि के कामो मे ऐसी ििपुण औि ऐसी पिम सुनदािी िी इस शहि मे दो ही चाि होगी। तुम मेिा बखाि किते हो। मै। उसकी लौडी बििे के योगय भी िहीं हंू। घि मे ईशि का िदया हुआ सब कुछ है, मगि जब पाणी ही मेल केाा िहीं, तो औि सब िहकि कया किेगा? धनय है उसके धयै म को िक उस बुडढे खूसट वकील के साथ जीवि के िदि काट िही है। मैिे तो कब का जहि खा िलया होता। मगि मि की वयथा कहिे से ही थोडे पकट होती है। हंसती है,

बोलती है, गहिे-कपडे पहिती है, पि िोयां-िोयां िाया किता है।िसनहा-वकील साहब की खूब िशकायत किती होगी?सुधा-िशकायत कयो किेगी? कया वह उसके पित िहीं है? संसाि मे अब

उसके िलए जो कुछ है, वकील साहब। वह बुडढे हो या िोगी, पि है तो उसके सवामी ही। कुलवंती िीयां पित की ििनदा िहीं कितीं,यह कुलटाओं का काम है। वह उिकी दशा देखकि कुढती है, पि मुंह से कुछा िहीं कहती।

िसनहा- इि वकील साहब को कया सूझी थी, जो इस उम मे बयाह कििे चले?

सुधा- ऐसे आदमी ि हो, तो गिीब कवािियो की िाव कौि पाि लगाये?

तुम औि तुमहािे साथी िबिा भािी गठिी िलए बात िहीं किते, तो िफि ये बेचािि िकसके घि जायं? तुमिे यह बडा भािी अनयाय िकया है, औि तुमहे

97

Page 98: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

इसका पािशयचत कििा पडेगा। ईशि उसका सुहाग अमि किे, लेिकि वकील साहब को कहीं कुछ हो गया, तो बेचािी का जीवि ही िि हो जायेाेगा। आज तो वह बहुत िोती थी। तुम लोग सचमुच बडे ििदमयी हो। मै। तो अपिे सोहि का िववाह िकसी गिीब लडकी से करंगी।

डॉकटि साहब िे यह िपछला वाकया िहीं सुिा। वह घोि िचनता मं पड गये। उिके मि मे यह पश उठ-उठकि उनहे िवकल कििे लगा-कहीं वकील साहब को कुछ हो गया तो? आज उनहे अपिे सवाथ म का भंयकि सवरप िदखायी िदया। वासतव मे यह उनहीं का अपिाध था। अगि उनहोिे िपता से जोि देकि कहा होता िक मै। औि कहीं िववाह ि करंगा, तो कया वह उिकी इचछा के िवरद उिका िववाह कि देते?

सहसा सुधा िे कहा-कहो तो कल ििमलम ा से तुमहािी मुलाकात किा दंू? वह भी जिा तुमहािी सूित देख ले। वह कुछ बोलगी तो िहीं, पि कदािचत ् एक दिि से वह तुमहािा इतिा ितिसकाि कि देगी, िजसे तुम कभी ि भूल सकोगे। बोलो, कल िमला दँू? तुमहािा बहुत सिंकप पििचय भी किा दंगूीं

िसनहा िे कहा-िहीं सुधा, तुमहािे हाथ जोडता हंू, कहीं ऐसा गजब ि कििा! िहीं तो सच कहता हंू, घि छोडकि भाग जाऊंगा।

सुधा-जो कांटा बोया है, उसका फल खाते कयो इतिा डिते हो? िजसकी गदमि पि कटाि चलाई है, जिा उसे तडपते भी तो देखो। मेिे दादा जी िे पांच हजाि िदये ि! अभी छोटे भाई के िववाह मं पांच-छ: हजाि औि िमल जायेगे। िफि तो तुमहािे बिाबि धिी संसाि मे काई दसूिा ि होगा। गयािह हजाि बहुत होते है। बाप-िे-बाप! गयािह हजाि! उठा-उठाकि िखिे लगे, तो महीिो लग जाये अगि लडके उडािे लगे, तो पीिढयो तक चले। कहीं से बात हो िही है या िहीं?

इस पििहास से डॉकटि साहब इतिा झेपे िक िसि तक ि उठा सके। उिका सािा वाक्-चातुय म गायब हो गया। िनहा-सा मुंह ििकल आया, मािो माि पड गई हो। इसी वक िकसी डॉकटि साहब को बाहि से पकुािां बेचािे जाि लेकि भागे। िी िकतिी पििहास कुशल होती है, इसका आज पििचय िमल गया।

िात को डॉकटि साहब शयि किते हुए सुधा से बोले-ििमला की तो कोई बिहि है ि?

98

Page 99: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

सुधा- हा,ं आज उसकी चचा म तो किती थी। इसकी िचनता अभी से सवाि हो िही है। अपिे ऊपि तो जो कुछ बीतिा था, बीत चकुा, बिहि की िकफक मे पडी हुई थी।मां के पास तो अब ओि भी कुछ िहीं िहा, मजबूिि िकसी ऐसे ही बूढे बाबा क गले वह भी मढ दी जियेगी।

िसनहा- ििमलम ा तो अपिी मां की मदद कि सकती है।सुधा िे तीकण सवि मे कहा-तुम भी कभी-कभी िबलकुल बेिसि’ पैि

की बाते कििे लगते हो। ििमलम ा बहुत किेगी, तो दा-चाि सौ रपये दे देगी, औि कया कि सकती है? वकील साहब का यह हाल हो िहा है, उसे अभी पहाड-सी उम काटिी है। िफि कौि जािे उिके घि का कयश हाल है? इधि छ:महीिे से बेचािे घि बठेै है। रपये आकाश से थोडे ही बिसते है। दस-बीस हजाि होगे भी तो बकै मे होगे, कुछ ििमलम ा के पास तो िखे ि होगे। हमािा दो सौ रपया महीिे का खच म है, तो कया इिका चाि सौ रपये महीिे का भी ि होगा?

सुधा को तो िींद आ गई,पि डॉकटि साहब बहुत देि तक किवट बदलते िहे, िफि कुछ सोचकि उठे औि मेज पि बैठकि एक पत िलखिे लगे।

चौदह

िो बाते एक ही साथ हुई-ििमलम ा के कनया को जनम िदया, कृषणा का िववाह िििशत हुआ औि मुंशी तोतािाम का मकाि िीलाम हो गया।

कनया का जनम तो साधािण बात थी, यदिप ििमलम ा की दिि मे यह उसके जीवि की सबसे महाि घटिा थी, लेिकि शेष दोिो घटिाएं अयाधािण थीं। कृषणा का िववाह-ऐसे समपनि घिािे मे कयोकि ठीक हुआ? उसकी माता के पास तो दहेज के िाम को कौडी भी ि थी औि इधि बूढे िसनहा साहब जो अब पेशि लेकि घि आ गये थे, िबिादिी महालोभी मशहूि थे। वह अपिे पुत का िववाह ऐसे दििद घिािे मे कििे पि कैसे िाजी हुए। िकसी को सहसा िवशास ि आता था। इससे भी बड आशय म की बात मुंशीजी के मकाि का िीलाम होिा था। लोग मुंशीजी को अगि लखपती िहीं, तो बडा आदमी अवशय समझते थे। उिका मकाि कैसे िीलाम हुआ? बात यह थी िक मुंशीजी िे एक महाजि से कुछ रपये कज म लेकि एक गांव िहेि िखाथा।

दो

99

Page 100: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

उनहे आशा थी िक साल-आध-साल मे यह रपये पाट देगे, िफि दस-पांच साल मे उस गांव पि कबजा कि लेगे। वह जमींदािअसल औि सूद के कुल रपये अदा कििे मे असमथ म हो जायेगा। इसी भिोसे पि मुंशीजी िे यह मामला िकया था। गांव बेहुत बडा था, चाि-पांच सौ रपये िफा होता था, लेिकि मि की सोची मि ही मे िह गई। मुंशीज िदल को बहुत समझािे पि भी कचहिी ि जा सके। पुतशोक िे उिमं कोई काम कििे की शिक ही िहीं छोडी। कौि ऐसा हदय –शूनय िपता है, जो पुत की गदमि पि तलवाि चलाकि िचत को शानत कि ले?

महाजि के पास जब साल भि तक सूद ि पहंुचा औि ि उसके बाि-

बाि बुलािे पि मुंशीजी उसके पास गये। यहां तक िक िपछली बाि उनहोिे साफ-साफ कही िदया िक हम िकसी के गुलाम िहीं है, साहूजी जो चाहे किे तब साहूजी को गसुसा आ गया। उसिे िािलश कि दी। मुंशजी पिैवी कििे भी ि गये। एकाएक िडगी हो गई। यहां घि मे रपये कहां िखे थे? इतिे ही िदिो मे मुंशीजी की साख भी उठ गई थी। वह रपये का कोई पबनध ि कि सके। आिखि मकाि िीलाम पि चढ गया। ििमला सौि मे थी। यह खबि सुिी, तो कलेजा सनि-सा हो गया। जीवि मे कोई सुख ि होिे पि भी धिाभाव की िचनताओं से मुक थी। धि मािव जीवि मे अगि सवपम धाि वसतु िहीं, तो वह उसके बहुत ििकट की वसतु अवशय है। अब औि अभावो के साथ यह िचनता भी उसके िसि सवाि हुई। उसे दाई दािा कहला भेजा, मेिे सब गहिे बेचकि घि को बचा लीिजए, लेिकि मुंशीजी िे यह पसताव िकसी तिह सवीकाि ि िकया।

उस िदि से मुंशीजी औि भी िचनतागसत िहिे लगे। िजस धि का सुख भोगिे के िलए उनहोिे िववाह िकया था, वह अब अतीत की समिृत मात था। वह मािे गलािि क अब ििमलम ा को अपिा मुंह तक ि िदखा सकते। उनहे अब उसक अनयाय का अिुमाि हो िहा था, जो उनहोिे ििमलम ा के साथ िकया था औि कनया के जनम िे तो िही-सही कसि भी पिूी कि दी, सविम ाश ही कि डाला!

बािहवे िदि सौि से ििकलकि ििमलम ा िवजात िशशु को गोद िलये पित के पास गई। वह इस अभाव मे भी इतिी पसनि थी, मािो उसे कोई िचनता िहीं है। बािलका को हदय से लगाि वह अपिी सािी िचनताएसं भूल गई थी। िशशु के िवकिसत औि हष म पदीप िेतो को देखकि उसका हदय

100

Page 101: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

पफुिललत हो िहा था। माततृव के इस उदाि मे उसके सािे कलेश िवलीि हो गये थे। वह िशशु को पित की गोद मे देकि ििहाल हो जािा चाहती थी, लेिकि मुंशीजी कनया को देखकि सहम उठे। गोद लेिे के िलए उिका हदय हुलसा िहीं, पि उनहोिे एक बाि उसे करण िेतो से देखा औि िफि िसि झुका िलया, िशशु की सूित मंसािाम से िबलकुल िमलती थी।

ििमलम ा िे उसके मि का भाव औि ही समझा। उसिे शतगुण सिेह से लडकी को हदय से लगा िलया मािो उसिसे कह िही है-अगि तुम इसके बोझ से दबे जाते हो, तो आज से मै इस पि तुमहाि साया भी िहीं पडिे दंगूी। िजस िति को मैिे इतिी तपसया के बाद पाया है , उसका िििादि किते हुए तुमहाि हदय फट िहीं जाता? वह उसी कण िशशु को गोद से िचपकाते हुए अपिे कमिे मे चली आई औि देि तक िोती िही। उसिे पित की इस उदासीिता को समझिे की जिी भी चेिा ि की, िहीं तो शायद वह उनहे इतिा कठोि ि समझती। उसके िसि पि उतिदाियतव का इतिा बडा भाि कहां था,जो उसके पित पि आ पडा था? वह सोचिे की चेिा किती, तो कया इतिा भी उसकी समझ मे ि आता?

मुंशीजी को एक ही कण मे अपिी भूल मालूम हो गई। माता का हदय पेम मे इतिा अिुिक िहता है िक भिवषय की िचनतज औि बाधाएं उसे जिा भी भयभीत िहीं कितीं। उसे अपिे अतं:किण मे एक अलौिकक शिक का अिुभव होता है, जो बाधाओं को उिके सामिे पिासत कि देती है। मुंशीजी दौडे हुए घि मे आये औि िशशु को गोद मे लेकि बोले मुझे याद आती है, मंसा भी ऐसा ही था-िबलकुल ऐसा ही!

ििमलम ा-दीदीजी भी तो यही कहती है।मुंशीजी-िबलकुल वहीं बडी-बडी आखें औि लाल-लाल ओठं है। ईशि िे

मुझे मेिा मंसािाम इस रप मे दे िदया। वही माथा है, वही मुंह, वही हाथ-पांव!

ईशि तुमहािी लीला अपाि है।सहसा रिकमणी भी आ गई। मुंशीजी को देखते ही बोली-देखो बाबू,

मंसािाम है िक िहीं? वही आया है। कोई लाख कहे, मै ि मािूगंी। साफ मंसािाम है। साल भि के लगभग ही भी तो गया।

मुंशीजी-बिहि, एक-एक अगं तो िमलता है। बस, भगवाि ्िे मुझे मेिा मंसािाम दे िदया। (िशशु से) कयो िी, तू मंसािाम ही है? छौडकि जािे का िाम ि लेिा, िहीं िफि खींच लाऊंगा। कैसे ििषुि होकि भागे थे। आिखि

101

Page 102: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

पकड लाया िक िहीं? बस, कह िदया, अब मुझे छोडकि जािे का िाम ि लेिा। देखो बिहि, कैसी टुकुि-टुकुि ताक िही है?

उसी कण मुंशीजी िे िफि से अिभलाषाओं का भवि बिािा शुर कि िदया। मोह िे उनहे िफि संसाि की ओि खींचां मािव जीवि! तू इतिा कणभंगिु है, पि तेिी कलपिाएं िकतिी दीघालम ु! वही तोतािाम जो संसाि से िविक हो िह थे, जो िात-िदि मुतयु का आवाहि िकया किते थे, ितिके का सहािा पाकि तट पि पहंुचिे के िलए पूिी शिक से हाथ-पांव माि िहे है।

मगि ितिके का सहािा पाकि कोई तट पि पहंुचा है?

पनद ह

मलम ा को यदिप अपिे घि के झंझटो से अवकाश ि था, पि कृषणा के िववाह का संदेश पाकि वह िकसी तिह ि रक सकी। उसकी माता िे

बेहुत आगह किके बुलाया था। सबसे बडा आकषणम यह था िक कृषणा का िववाह उसी घि मे हो िहा था, जहां ििमलम ा का िववाह पहले तय हुआ था। आशय म यही था िक इस बाि ये लोग िबिा कुछ दहेज िलए कैसे िववाह कििे पि तैयाि हो गए! ििमलम ा को कृषणा के िवषय मे बडी िचनता हो िही थी। समझती थी- मेिी ही तिह वह भी िकसी के गले मढ दी जायेगी। बहुत चाहती थी िक माता की कुछ सहायता करं, िजससे कृषणा के िलए कोई योगय वह िमले, लेिकि इधि वकील साहब के घि बैठ जािे औि महाजि के िािलश कि देिे से उसका हाथ भी तंग था। ऐसी दशा मे यह खबि पाकि उसे बडी शिनत िमली। चलिे की तैयािी कि ली। वकील साहब सटेशि तक पहंुचािे आये। िनहीं बचची से उनहे बहुत पेम था। छोाडैते ही ि थे, यहां तक िक ििमलम ा के साथ चलिे को तैयाि हो गये, लेिकि िववाह से एक महीिे पहले उिका ससुिाल जा बैठिा ििमलम ा को उिचत ि मालूम हुआ। ििमलम ा िे अपिी माता से अब तक अपिी िवपित कथा ि कही थी। जो बात हो गई, उसका िोिा िोकि माता को कि देिे औि रलािे से कया फायदा? इसिलए उसकी माता समझती थी, ििमलम ा बडे आिनद से है। अब जो ििमलम ा की सूित देखी, तो मािो उसके हदय पि धकका-सा लग गया। लडिकयां सुसुिाल से घलुकि िहीं आतीं, िफि ििमलम ा जैसी लडकी, िजसको सुख की सभी सामिगयां पाप थीं। उसिे िकतिी लडिकयो को दजू की

िि

102

Page 103: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

चनदमा की भांित ससुिाल जाते औि पूण म चनद बिकि आते देखा था। मि मे कलपिा कि िही थी, ििमलम ा का िंग ििखि गया होगा, देह भिकि सुडौल हो गई होगी, अगं-पतयंग की शोभा कुछ औि ही हो गई होगी। अब जो देखा, तो वह आधी भी ि िही थीं ि यौवि की चंचलता थी सि वह िवहिसत छिव लो हदय को मोह लेती है। वह कमिीयता, सुकुमािता, जो िवलासमय जीवि से आ जाती है, यहां िाम को ि थी। मुख पीला, चेिा िगिी हुई, तो माता िे पछूा-कयो िी, तुझे वहां खािे को ि िमलता था? इससे कहीं अचछी तो तू यहीं थी। वहां तुझे कया तकलीफ थी?

कृषणा िे हंसकि कहा-वहां मालिकि थीं िक िहीं। मालिकि दिुिया भि की िचनताएं िहती है, भोजि कब किे?

ििमलम ा-िहीं अममां, वहां का पािी मुझे िास िही आया। तबीयत भािी िहती है।

माता-वकील साहब नयोते मे आयेगे ि? तब पछंूूगी िक आपिे फूल-सी लडकी ले जाकि उसकी यह गत बिा डाली। अचछा, अब यह बता िक तूिे यहां रपये कयो भेजे थे? मैिे तो तुमसे कभी ि मांगे थे। लाख गई-गलुिी हंू,

लेिकि बेटी का धि खािे की िीयत िहीं। ििमलम ा िे चिकत होकि पूछा- िकसिे रपये भेजे थे। अममां, मैिे तो

िहीं भेजे।माता-झूठ िे बोल! तूिे पांच सौ रपये के िोट िहीं भेजे थे?

कृषणा-भेजे िहीं थे, तो कया आसमाि से आ गये? तुमहािा िाम साफ िलखा था। मोहि भी वहीं की थी।

ििमलम ा-तुमहािे चिण छूकि कहती हंू, मैिे रपये िहीं भेजे। यह कब की बात है?

माता-अिे, दो-ढाई महीिे हुए होगे। अगि तूिे िहीं भेजे, तो आये कहां से?

ििमलम ा-यह मै कया जािू? मगि मैिे रपये िहीं भेजे। हमािे यहां तो जब से जवाि बेटा मिा है, कचहिी ही िहीं जाते। मेिा हाथ तो आप ही तंग था, रपये कहां से आते?

माता- यह तो बडे आशय म की बात है। वहां औि कोई तेिा सगा समबनधी तो िहीं है? वकील साहब िे तुमसे िछपाकि तो िहीं भेजे?

ििमलम ा- िहीं अममां, मुझे तो िवशास िहीं।103

Page 104: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

माता- इसका पता लगािा चािहए। मैिे सािे रपये कृषणा के गहिे-

कपडे मे खच म कि डाले। यही बडी मुिशकल हुई।दोिो लडको मे िकसी िवषय पि िववाद उठ खडा हुआ औि कृषणा

उधि फैसला कििे चली गई, तो ििमलम ा िे माता से कहा- इस िववाह की बात सुिकि मुझे बडा आशय म हुआ। यह कैसे हुआ अममां?

माता-यहां जो सुिता है, दांतो उंगली दबाता है। िजि लोगो िे पककी की किाई बात फेि दी औि केवल थोडे से रपये के लोभ से, वे अब िबिा कुछ िलए कैसे िववाह कििे पि तैयाि हो गये, समझ मे िहीं आता। उनहोिे खुद ही पत भेजा। मैिे साफ िलख िदया िक मेिे पास देिे-लेिे को कुछ िहीं है, कुश-कनया ही से आपकी सेवा कि सकती हंू।

ििमलम ा-इसका कुछ जवाब िहीं िदया?माता-शािीजी पत लेकि गये थे। वह तो यही कहते थे िक अब

मुंशीजी कुछ लेिे के इचछुक िहीं है। अपिी पहली वादा-िखलाफ पि कुछ लिजजत भी है। मुंशीजी से तो इतिी उदािता की आशा ि थी, मगि सुिती हंू, उिके बडे पुत बहुत सजजि आदमी है। उनहोिे कह सुिकि बाप को िाजी िकया है।

ििमलम ा- पहले तो वह महाशय भी थैली चाहते थे ि?

माता- हां, मगि अब तो शािीजी कहते थो िक दहेज के िाम से िचढते है। सुिा है यहां िववाह ि कििे पि पछताते भी थे। रपये के िलए बात छोडी थी औि रपये खूब पाये, िी पसंनद िहीं।

ििमलम ा के मि मे उस पुरष को देखिे की पबल उतकंठा हुई, जो उसकी अवहेलिा किके अब उसकी बिहि का उदाि कििा चाहता है पायिशत सही, लेिकि िकतिे ऐसे पाणी है, जो इस तिह पायिशत कििे को तैयाि है?

उिसे बाते कििे के िलए, िम शबदो से उिका ितिसकाि कििे के िलए,

अपिी अिुपम छिव िदखाकि उनहे औि भी जलािे के िलए ििमलम ा का हदय अधीि हो उठा। िात को दोिो बिहिे एक ही केमिे मे सोई। मुहलले मे िकि-िकि लडिकयो का िववाह हो गया, कौि-कौि लडकोिी हुई, िकस-िकस का िववाह धूम-धाम से हुआ। िकस-िकस के पित कि इचछािुकूल िमले, कौि िकतिे औि कैस गहिे चढावे मे लाया, इनहीं िवषयो मे दोिो मे बडी देि तक बाते होती िहीं। कृषणा बाि-बाि चाहती थी िक बिहि के घि का कुछ हाल पूछं, मगि ििमलम ा उसे पूछिे का अवसि ि देती थी। जािती थी िक यह जो

104

Page 105: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

बाते पछेूगी उसके बतािे मे मुझे सकंोच होगा। आिखि एक बाि कृषणा पछू ही बैठी-जीजाजी भी आयेगे ि?

ििमलाम- आिे को कहा तो है।कृषण- अब तो तुमसे पसनि िहते है ि या अब भी वही हाल है? मै तो

सुिा किती थी दहुाजू पित िी को पाणो से भी िपया समझते है, वहां िबलकुल उलटी बात देखी। आिखि िकस बात पि िबगडते िहते है?

ििमलम ा- अब मै िकसी के मि की बात कया जािू?कुषणा- मै तो समझती हंू, तुमहािी रखाई से वह िचढते होगे। तुम हो

यहीं से जली हुई गई थी। वहां भी उनहे कुछ कहा होगा।ििमलम ा- यह बात िहीं है, कृषणा, मै सौगनध खाकि कहती हंू, जो मेिे

मि मे उिकी ओि से जिा भी मैल हो। मुझसे जहां तक हो सकता है, उिकी सेवा किती हंू, अगि उिकी जगह कोई देवता भी होता, तो भी मै इससे जयादा औि कुछ ि कि सकती। उनहे भी मुझसे पेम है। बिाबि मेिा मुंख देखते िहते है, लेिकि जो बात उिक औि मेिे काबू के बाहि है, उसके िलए वह कया कि सकते है औि मै कया कि सकती हंू? ि वह जवाि हो सकते है, ि मै बुिढया हो सकती हंू। जवाि बििे के िलए वह ि जािे िकतिे िस औि भसम खाते िहते है, मै बिुढया बििे के िलए दधू-घी सब छोडे बैठी हंू। सोचती हंू, मेिे दबुलेपि ही से अवसथा का भेद कुछ कम हो जाय, लेिकि ि उनहे पौििक पदाथो से कुछ लाभ होता है, ि मुझे उपवसो से। जब से मंसािाम का देहानत हो गया है, तब से उिकी दशा औि खिाब हो गयी है।

कृषणा- मंसािाम को तुम भी बहुत पयाि किती थीं?ििमलम ा- वह लडका ही ऐसा था िक जो देखता था, पयाि किता था।

ऐसी बडी-बडी डोिेदाि आखें मैिे िकसी की िहीं देखीं। कमल की भांित मुख हिदम िखला िह था। ऐसा साहसी िक अगि अवसि आ पडता, तो आग मे फांद जाता। कृषणा, मै तुमसे कहती हंू, जब वह मेिे पास आकि बैठ जाता, तो मै अपिे को भूल जाती थी। जी चाहता था, वह हिदम सामिे बठैा िहे औि मै देखा करं। मेिे मि मे पाप का लेश भी ि था। अगि एक कण के िलए भी मैिे उसकी ओि िकसी औि भाव से देखा हो, तो मेिी आंखे फूट जाये, पि ि जािे कयो उसे अपिे पास देखकि मेिा हदय फूला ि समाता था। इसीिलए मैिे पढिे का सवांग िचा िहीं तो वह घि मे आता ही ि था। यह

105

Page 106: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

मै। जािती हंू िक अगि उसके मि मे पाप होता, तो मै उसके िलए सब कुछ कि सकती थी।

कृषणा- अिे बिहि, चुप िहो, कैसी बाते मुहं से ििकालती हो?ििमलम ा- हां, यह बात सुििे मे बिुी मालूम होती है औि है भी बिुी,

लेिकि मिुषय की पकृित को तो कोई बदल िहीं सकता। तू ही बता- एक पचास वष म के मदम से तेिा िववाह हो जाये, तो तू कया किेगी?

कृषणा-बिहि, मै तो जहि खाकि सो िहंू। मुझसे तो उसका मुंह भी ि देखते बिे।

ििमलम ा- तो बस यही समझ ले। उस लडके िे कभी मेिी ओि आखं उठाकि िहीं देखा, लेिकि बुडढे तो शककी होते ही है, तुमहािे जीजा उस लडके के दशुमि हो गए औि आिखि उसकी जाि लेकि ही छोडी। िजसे िदि उसे मालूम हो गया िक िपताजी के मि मे मेिी ओि से सनदेह है, उसी िदि के उसे जवि चढा, जो जाि लेकि ही उतिा। हाय! उस अिनतम समय का दशय आंखो से िहीं उतिता। मै असपताल गई थी, वह जवी मे बेहोश पडा था, उठिे की शिक ि थी, लेिकि जयो ही मेिी आवाज सुिी, चौककि उठ बैठा औि ‘माता-माता’ कहकि मेिे पैिो पि िगि पडा (िोकि) कृषणा, उस समय ऐसा जी चाहता था अपिे पाण ििकाल कि उसे दे दं।ू मेिे पैिां पि ही वह मूिछमत हो गया औि िफि आखें ि खोली। डॉकटि िे उसकी देह मे ताजा खूि डालिे का पसताव िकया था, यही सुिकि मै दौडी गई थी लेिकि जब तक डॉकटि लोग वह पिकया आिमभ किे, उसके पाण, ििकल गए। कृषणा- ताजा िक पड जािे से उसकी जाि बच जाती?

ििमलम ा- कौि जािता है? लेिकि मै तो अपिे रिधि की अिनतम बूंद तक देिे का तैयाि थी उस दशा मे भी उसका मुखमणडल दीपक की भांित चमकता था। अगि वह मुझे देखते ही दौडकि मेिे पिैो पि ि िगि पडता, पहले कुछ िक देह मे पहंुच जाता, तो शायद बच जाता।

कृषणा- तो तुमिे उनहे उसी वका िलटा कयो ि िदया?ििमलम ा- अिे पगली, तू अभी तक बात ि समझी। वह मेिे पिैो पि

िगिकि औि माता-पुत का समबनध िदखाकि अपिे बाप के िदल से वह सनदेह ििकाल देिा चाहता था। केवल इसीिलए वह उठा थ। मेिा कलेश िमटािे के िलए उसिे पाण िदये औि उसकी वह इचछा पूिी हो गई। तुमहािे जीजाजी उसी िदि से सीधे हो गये। अब तो उिकी दशा पि मुझे दया आती

106

Page 107: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

है। पुत-शाक उिक पाण लेकि छोडेगा। मुझ पि सनदेह किके मेिे साथ जो अनयाय िकया है, अब उसका पितशोध कि िहे है। अबकी उिकी सूित देखकि तू डि जायेगी। बूढे बाबा हो गये है, कमि भी कुछ झुक चली है।

कृषणा- बडुढे लोग इतिी शककी कयो होते है, बिहि?

ििमलम ा- यह जाकि बुडढो से पछूो।कृषणा- मै समझती हंू, उिके िदल मे हिदम एक चोि-सा बैठा िहता

होगा िक इस युवती को पसनि िहीं िख सकता। इसिलए जिा-जिा-सी बात पि उनहे शक होिे लगता है।

ििमलम ा- जािती तो है, िफि मुझसे कयो पूछती है?

कुषणा- इसीिलए बेचािा िी से दबता भी होगा। देखिे वाले समझते होगे िक यह बहुत पेम किता है।

ििमलम ा- तूिे इतिे ही िदिो मे इ तिी बाते कहां सीख लीं? इि बातो को जािे दे, बता, तुझे अपिा वि पसनद है? उसकी तसवीि ता देखी होगी?

कृषणा- हां, आई तो थी, लाऊं, देखोगी?एक कण मे कृषणा िे तसवीि लाकि ििमलम ा के हाथ मे िख दी।ििमलम ा िे मुसकिाकि कहा-तू बडी भागयवाि ्है।कृषणा- अममाजी िे भी बहुत पसनद िकया।ििमलम ा- तुझे पसनद है िक िहीं, सो कह, दसूिो की बात ि चला।कृषणा- (लजाती हुई) शकल-सूित तो बिुी िहीं है, सवभाव का हाल ईशि

जािे। शािीजी तो कहते थे, ऐसे सुशील औि चिितवाि ्युवक कम होगे।ििमलम ा- यहां से तेिी तसवीि भी गई थी?कृषणा- गई तो थी, शािीजी ही तो ले गए थे।ििमलम ा- उनहे पसनद आई?

कृषणा- अब िकसी के मि की बात मै कया जािूं? शािी जी कहते थे,

बहुत खुश हुए थे।ििमलम ा- अचछा, बता, तुझे कया उपहाि दंू? अभी से बता दे, िजससे

बिवा िखूं।कृषणा- जो तुमहािा जी चाहे, देिा। उनहे पुसतको से बहुत पेम है।

अचछी-अचछी पुसतके मंगवा देिा।ििमलम ा-उिके िलए िहीं पछूती तेिे िलए पछूती हंू।कृषणा- अपिे ही िलये तो मै कह िही हंू।

107

Page 108: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

ििमलम ा- (तसवीि की तिफ देखती हुई) कपडे सब खदि के मालूम होते है।

कृषणा- हां, खदि के बडे पेमी है। सुिती हंू िक पीठ पि खदि लाद कि देहातो मे बेचिे जाया किते है। वयाखयाि देिे मे भी चतिु है।

ििमलम ा- तब तो मुझे भी खद पहििा पडेगा। तुझे तो मोटे कपडो से िचढ है।

कृषणा- जब उनहे मोटे कपडे अचछे लगते है, तो मुझे कयो िचढ होगी, मैिे तो चखा म चलािा सीख िलया है।

ििमलम ा- सच! सूत ििकाल लेती है?

कृषणा- हां, बिहि, थोडा-थोडा ििकाल लेती हंू। जब वह खदि के इतिे पेमी है, जो चखा म भी जरि चलाते होगे। मै ि चला सकंूगी , तो मुझे िकतिा लिजजत होिा पडेगा।

इस तिह बात किते-किते दोिो बिहिो सोई। कोई दो बजे िात को बचची िोई तो ििमलम ा की िींद खुली। देखा तो कृषणा की चािपाई खाली पडी थी। ििमलम ा को आशय म हुआ िक इतिा िात गये कृषणा कहां चली गई। शायद पािी-वािी पीिे गई हो। मगिी पािी तो िसिहािे िखा हुआ है, िफि कहां गई है? उसे दो-तीि बाि उसका िाम लेकि आवाज दी, पि कृषणा का पता ि था। तब तो ििमलम ा घबिा उठी। उसके मि मे भांित-भांित की शंकाएं होिे लगी। सहसा उसे खयाल आया िक शायद अपिे कमिे मे ि चली गई हो। बचची सो गई, तो वह उठकि कृषणा के के कमिे के दाि पि आई। उसका अिुमाि ठीक था, कृषणा अपिे कमिे मे थी। सािा घि सो िहा था औि वह बैठी चखा म चला िही थी। इतिी तनमयता से शायद उसिे िथऐटि भी ि देखा होगा। ििमलम ा दंग िह गई। अनदि जाकि बोली- यह कया कि िही है िे! यह चखा म चलािे का समय है?

कृषणा चौककि उठ बैठी औि सकंोच से िसि झुकाकि बोली- तुमहािी िींद कैसे खुल गई? पािी-वािी तो मैिे िख िदया था।

ििमलम ा- मै कहती हंू, िदि को तुझे समय िहीं िमलता, जो िपछली िात को चखा म लेकि बैठी है?

कृषणा- िदि को फुिसत ही िहीं िमलती?ििमलम ा- (सूत देखकि) सूत तो बहुत महीि है।

108

Page 109: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

कृषणा- कहां-बिहि, यह सूत तो मोटा है। मै बािीक सूतकात कि उिके िलए साफा बिािा चाहती हंू। यही मेिा उपहाि होगा।

ििमलम ा- बात तो तूिे खूब सोची है। इससे अिधक मूलयवसाि वसतु उिकी दिि मे औि कया होगी? अचछा, उठ इस वक, कल कातिा! कहीं बीमाि पड जायेगी, तो सब धिा िह जायेगा।

कृषणा- िहीं मेिी बिहि, तुम चलकि सोओ, मै अभी आती हंू। ििमलम ा िे अिधक आगह ि िकया, लेटिे चली गई। मगि िकसी तिह

िींद ि आई। कृषणा की उतसुकता औि यह उमंग देखकि उसका हदय िकसी अलिकत आकांका से आनदोिलत हो उठां ओह! इस समय इसका हदय िकतिा पफुिललत हो िहा है। अिुिाग िे इसे िकतिा उनमत कि िखा है। तब उसे अपिे िववाह की याद आई। िजस िदि ितलक गया था, उसी िदि से उसकी सािी चचंलता, सािी सजीवता िवदा हो गेई थी। अपिी कोठिी मे बठैी वह अपिी िकसमत को िोती थी औि ईशि से िविय किती थी िक पाण ििकल जाये। अपिाधी जैसे दंड की पतीका किता है, उसी भांित वह िववाह की पतीका किती थी, उस िववाह की, िजसमे उसक जीवि की सािी अिभलाषाएं िवलीि हो जाएंगी, जब मणडप के िीचे बिे हुए हवि-कुणड मे उसकी आशाएं जलकि भसम हो जायेगी।

सोलह

हीिा कटते देि ि लगी। िववाह का शुभ मुहूत म आ पहंुचां मेहमािो से घाि भाि गया। मंशी तोतािाम एक िदि पहले आ गये औि उसिके

साथ ििमलम ा की सहेली भी आई। ििमलम ा िे बहुत आगह ि िकया था, वह खुद आिे को उतसुक थी। ििमलम ा की सबसे बडी उतकंठा यही थी िक वि के बडे भाई के दशिम करंगी औि हो सकता तो उसकी सुबुिद पि धनयवाद दंगूी।

मसुधा िे हंस कि कहा-तुम उिसे बोल सकोगी?ििमलम ा- कयो, बोलिे मे कया हािि है? अब तो दसूिा ही समबनध हो

गया औि मै ि बोल सकंूगी , तो तुम तो हो ही।सुधा-ि भाई, मुझसे यह ि होगा। मै पिाये मदम से िहीं बोल सकती।

ि जािे कैसे आदमी हो।

109

Page 110: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

ििमलम ा-आदमी तो बिेु िहीं है, औि िफि उिसे कुछ िववाह तो कििा िहीं, जिा-सा बोलिे मे कया हािि है? डॉकटि साहब यहां होते, तो मै तुमहे आजा िदला देती।

सुधा-जो लोग हुदय के उदाि होते है, कया चिित के भी अचछे होते है?

पिाई िी की घूििे मे तो िकसी मदम को संकोच िहीं होता।ििमलम ा-अचछा ि बोलिा, मै ही बाते कि लूंगी, घिू लेगे िजतिा उिसे

घूिते बिेगा, बस, अब तो िाजी हुई।इतिे मे कृषणा आकि बैठ गई। ििमलम ा िे मुसकिाकि कहा-सच बता

कृषणा, तेिा मि इस वक कयो उचाट हो िहा है?

कृषणा-जीजाजी बुला िहे है, पहले जाकि सुिा आआ, पीछे गपपे लडािा बहुत िबगड िहे है।

ििमलम ा- कया है, तूि कुछ पूछा िहीं?कृषणा- कुछ बीमाि से मालूम होते है। बहुत दबुले हो गए है।ििमलम ा- तो जिा बैठकि उिका मि बहला देती। यहां दौडी कयो चली

आई? यह कहो, ईशि िे कृपा की, िहीं तो ऐसा ही पुरषा तुझे भी िमलता। जिा बैठकि बाते किो। बुडढे बाते बडी लचछेदाि किते है। जवाि इतिे डींिगयल िहीं होते।

कृषणा- िहीं बिहि, तुम जाओ, मुझसे तो वहां बैठा िहीं जाता। ििमलम ा चली गई, तो सुधा िे कृषणा से कहा- अब तो बािात आ गई

होगी। दाि-पूजा कयो िही होती?कृषणा- कया जािे बिहि, शािीजी सामाि इकटठा कि िहे है?

सुधा- सुिा है, दलूहा का भावज बडे कडे सवाभाव की िी है।कृषणा- कैसे मालूम?

सुधा- मैिे सुिा है, इसीिलए चेताये देती हंू। चाि बाते गम खाकि िहिा होगा।

कृषणा- मेिी झगडिे की आदत िहीं। जब मेिी तिफ से कोई िशकायत ही ि पायेगी तो कया अिायास ही िबगडेगी!

सुधा- हा,ं सुिा तो ऐसा ही है। झूठ-मूठ लडा कािती है।कृषणा- मै तो सौबात की एक बात जािती हंू, िमता पतथि को भी

मोम कि देती है।

110

Page 111: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

सहसा शोि मचा- बािात आ िही है। दोिो िमिणयां िखडकी के सामिे आ बैठीं। एक कण मे ििमलम ा भी आ पहंुची।

वि के बडे भाई को देखिे की उसे बडी उतसुकता हो िही थी।सुधा िे कहा- कैसे पता चलेगा िक बडे भाई कौि है?

ििमलम ा- शािीजी से पूछंू, तो मालूम हो। हाथी पि तो कृषणा के ससुि महाशय है। अचछा डॉकटि साहब यहां कैसे आ पहंुचे! वह घोडे पि कयाहै, देखती िहीं हो?

सुधा- हा,ं है तो वही।ििमलम ा- उि लोगो से िमतता होगी। कोई समबनध तो िहीं है।सुधा- अब भेट हो तो पूछंू, मुझे तो कुछ िहीं मालूम।ििमलम ा- पालकी मे जो महाशय बठेै हुए है, वह तो दलूहा के भाई जसेै

िहीं दीखते।सुधा- िबलकुल िहीं। मालूम होता है, सािी देहे मे पेछ-ही-पेट है।ििमलम ा- दसूिे हाथी पि कौि बैठा है, समझ मे िही आता।सुधा- कोई हो, दलूहा का भाई िहीं हो सकता। उसकी उम िहीं देखती

हो, चालीस के ऊपि होगी।ििमलम ा- शािजी तो इस वक दाि-पजूा िक िफक मे है, िहीं तोाा उिसे

पूछती। संयोग से िाई आ गया। सनदकूो की कंुिलयां ििमलम ा के पास थीं। इस

वक दािचाि के िलए कुछ रपये की जरित थी, माता िे भेजा था, यह िाई भी पिणडत मोटेिाम जी के साथ ितलक लेकि गया था।

ििमलम ा िे कहा- कया अभी रपये चािहए?

िाई- हां बिहिजी, चलकि दे दीिजए।ििमलम ा- अचछा चलती हंू। पहले यह बता, तू दलूहा क बडे भाई को

पहचािता है?

िाई- पहचािता काहे िहीं, वह कया सामिे है।ििमलम ा- कहां, मै तो िहीं देखती?िाई- अिे वह कया घोडे पि सवाि है। वही तो है।ििमलम ा िे चिकत होकि कहा- कया कहता है, घोडे पि दलूहा के भाई है!

पहचािता है या अटकल से कह िहा है?

111

Page 112: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

िाई- अिे बिहिजी, कया इतिा भूल जाऊंगा अभी तो जलपाि का सामाि िदये चला आता हंू।

ििमलम - अिे, यह तो डॉकटि साहब है। मेिे पडोस मे िहते है।िाई- हां-हा,ं वही तो डॉकटि साहब है।ििमलम ा िे सुधा की ओि देखकि कहा- सुिती ही बिहि, इसकी बाते?

सुधा िे हंसी िोककि कहा-झूठ बोलता है।िाई- अचछा साहब, झूठ ही सही, अब बडो के मुंह कौि लगे! अभी

शािीजी से पूछवा दंगूा, तब तो माििएगा?िाई के आिे मे देि हुई, मोटेिाम खुद आगंि मे आकि शोि मचािे

लगे-इस घि की मयादम ा िखिा ईशि ही के हाथ है। िाई घणटे भि से आया हुआ है, औि अभी तक रपये िहीं िमले।

ििमलम ा- जिा यहां चले आइएगा शािीजी, िकतिे रपये दिकिाि है,

ििकाल दंू?शािीजी भुिभुिाते औि जोि-जािे से हांफते हुए ऊपि आये औि एक

लमबी सांस लेकि बोले-कया है? यह बातो का समय िहीं है, जलदी से रपये ििकाल दो।

ििमलम ा- लीिजए, ििकाल तो िहीं हंू। अब कया मुंह के बल िगि पडंू?

पहले यह बताइए िक दलूहा के बडे भाई कौि है?

शािीजी- िामे-िाम, इतिी-सी बात के िलए मुझे आकाश पि लटका िदया। िाई कया ि पहचािता था?

ििमलम ा- िाई तो कहता है िक वह जो घोडे पि सवाि है, वही है।शािीजी- तो िफि िकसे बता दे? वही तो है ही।िाई- घडी भि से कह िहा हंू, पि बिहिजी मािती ही िहीं।ििमलम ा िे सुधा की ओि सिेह, ममता, िविोद कृितम ितिसकाि की दिि

से देखकि कहा- अचछा, तो तुमही अब तक मेिे साथ यह ितया-चिित खेि िही थी! मै जािती, तो तुमहे यहां बुलाती ही िहीं। ओफफोह! बडा गहिा पेट है तुमहािा! तुम महीिो से मेिे साथ शिाित किती चली आती हो, औि कभी भूल से भी इस िवषय का एक शबद तुमहािे मुंह से िहीं ििकला। मै तो दो-चाि ही िदि मे उबल पडती।

सुधा- तुमहे मालूम हो जाता, तो तुम मेिे यहां आती ही कयो?

112

Page 113: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

ििमलम ा- गजब-िे-गजब, मै डॉकटि साहब से कई बाि बाते कि चुकी हंू। तुमहािो ऊपि यह सािा पाप पडेगा। देखा कृषणा, तूिे अपिी जेठािी की शिाित! यह ऐसी मायािविी है, इिसे डिती िहिा।

कृषणा- मै तो ऐसी देवी के चिण धो-धोकि माथे चढाऊंगी। धनय-भाग िक इिके दशिम हुए।

ििमलम ा- अब समझ गई। रपये भी तुमहे ि िभजवाये होगे। अब िसि िहलाया तो सच कहती हंू, माि बैठंूगी।

सुधा- अपिे घि बुलाकि के मेहमाि का अपमाि िहीं िकया जाता।ििमलम ा- देखो तो अभी कैसी-कैसी खबिे लेती हंू। मैिे तुमहािा माि

िखिे को जिा-सा िलख िदया था औि तुम सचमचु आ पहंुची। भला वहां वाले कया कहते होगे?

सुधा- सबसे कहकि आई हंू।ििमलम ा- अब तुमहािे पास कभी ि आऊंगी। इतिा तो इशािा कि देतीं

िक डॉकटि साहब से पदा म िखिा।सुधा- उिके देख लेिे ही से कौि बिुाई हो गई? ि देखते तो अपिी

िकसमत को िोते कैसे? जािते कैसे िक लोभ मे पडकि कैसी चीज खो दी?

अब तो तुमहे देखकि लालाजी हाथ मलकि िह जाते है। मुंह से तो कुछ िहीं सकहते, पि मि मे अपिी भूल पि पछताते है।

ििमलम ा- अब तुमहािे घि कभी ि आऊंगी।सुधा- अब िपणड िहीं छूट सकता। मैिे कौि तुमहािे घि की िाह िीं

देखी है।दाि-पूजा समाप हो चकुी थी। मेहमाि लोग बठै जलपाि कि िहे थे।

मुंशीजी की बेगल मे ही डॉकटि िसनहा बैठे हुए थे। ििमलम ा िे कोठे पि िचक की आड से उनहे देखा औि कलेजा थामकि िह गई। एक आिोगय, यौवि औि पितभा का देवता था, पि दसूिा...इस िवषय मे कुछ ि कहिा ही दिचत है।

ििमलम ा िे डॉकटि साहब को सकैडो ही बाि देखा था, पि आज उसके हदय मे जो िवचाि उठे, वे कभी ि उठे थे। बाि-बाि यह जी चाहता था िक बुलाकि खबू फटकारं, ऐसे-ऐसे तािे मारं िक वह भी याद किे, रला-रलाकि छोडंू, मेगि िहम किके िह जाती थी। बािात जिवासे चली गई थी। भोजि की तैयािी हो िही थी। ििमलम ा भोजि के थाल चिुिे मे वयसत थी। सहसा

113

Page 114: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

महिी िे आकि कहा- िबटटी, तुमहे सुधा िािी बुला िही है। तुमहािे कमिे मे बैठी है।

ििमलम ा िे थाल छोड िदये औि घबिाई हुई सुधा के पास आई, मगि अनदि कदम िखते ही िठठक गई, डॉकटि िसनहा खडे थे।

सुधा िे मुसकिाकि कहा- लो बिहि, बुला िदया। अब िजतिा चाहो, फटकािो। मै दिवाजा िोके खडी हंू, भाग िहीं सकते।

डॉकटि साहब िे गमभीि भाव से कहा- भागता कौि है? यहां तो िसि झुकाए खडा हंू।

ििमलम ा िे हाथ जोडकि कहा- इसी तिह सदा कृपा-दिि ििखएगा, भूल ि जाइएगा। यह मेिी िविय है।

सतह

षणा के िववाह के बाद सधुा चली गई, लेिकि ििमलम ा मैके ही मे िह गई। वकील साहब बाि-बाि िलखते थे, पि वह ि जाती थी। वहां जािे

को उसका जी ि चाहता था। वहां कोई ऐसी चीज ि थी, जो उसे खींच ले जाये। यहां माता की सेवा औि छोटे भाइयो की देखभाल मे उसका समय बडे आिनद के कट जाता था। वकील साहब खुद आते तो शायद वह जािे पि िाजी हो जाती, लेिकि इस िववाह मे, मुहलले की लडिकयो िे उिकी वह दगुतम की थी िक बेचािे आिे का िाम ही ि लेते थे। सुधा िे भी कई बाि पत िलखा, पि ििमलम ा िे उससे भी हीले-हवाले िकया। आिखि एक िदि सुधा िे िौकि को साथ िलया औि सवयं आ धमकी।

कृ

जब दोिो गले िमल चकुीं, तो सुधा िे कहा-तुमहे तो वहां जाते मािो डि लगता है।

ििमलम ा- हां बिहि, डि तो लगता है। बयाह की गई तीि साल मे आई,

अब की तो वहां उम ही खतम हो जायेगी, िफि कौि बुलाता है औि कौि आता है?

सुधा- आिे को कया हुआ, जब जी चाहे चली आिा। वहां वकील साहब बहुत बेचैि हो िहे है।

ििमलम ा- बहुत बेचैि, िात को शायद िींद ि आती हो।

114

Page 115: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

सुधा- बिहि, तुमहािा कलेजा पतथि का है। उिकी दशा देखकि तिस आता है। कहते थे, घि मे कोई पछूिे वाला िहीं, ि कोई लडका, ि बाला, िकससे जी बहलाये? जब से दसूिे मकाि मे उठ आए है, बहुत दखुी िहते है।

ििमलम ा- लडके तो ईशि के िदये दो-दो है।सुधा- उि दोिो की तो बडी िशकायत किते थे। िजयािाम तो अब बात

ही िहीं सुिता-तकुी-बतुकी जवाब देता है। िहा छोटा, वह भी उसी के कहिे मे है। बेचािे बडे लडके की याद किके िोया किते है।

ििमलम ा- िजयािाम तो शिीि ि था, वह बदमाशी कब से सीख गया?

मेिी तो कोई बात ि टालता था, इशािे पि काम किता था।सुधा- कया जािे बिहि, सुिा, कहता है, आप ही िे भैया को जहि देकि

माि डाला, आप हतयािे है। कई बाि तुमसे िववाह कििे के िलए तािे दे चकुा है। ऐसी-ऐसी बाते कहता है िक वकील साहब िो पडते है। अिे, औि तो कया कहंू, एक िदि पतथि उठाकि माििे दौडा था।

ििमलम ा िे गमभीि िचनता मे पडकि कहा- यह लडका तो बडा शैताि ििकला। उसे यह िकसिे कहा िक उसके भाई को उनहोिे जहि दे िदया है?

सुधा- वह तुमहीं से ठीक होगा।ििमलम ा को यह िई िचनता पदैा हुई। अगि िजया की यही िंग है,

अपिे बाप से लडिे पि तैयाि िहता है, तो मुझसे कयो दबिे लगा? वह िात को बडी देि तक इसी िफक मे डूबी िही। मंसािाम की आज उसे बहुत याद आई। उसके साथ िजनदगी आिाम से कट जाती। इस लडके का जब अपिे िपता के सामिे ही वह हाल है, तो उिके पीछे उसके साथ कैसे ििवाहम होगा! घि हाथ से ििकल ही गया। कुछ-ि-कुछ कज म अभी िसि पि होगा ही, आमदिी का यह हाल। ईशवि ही बेडा पाि लगायेगे। आज पहली बाि ििमलम ा को बचचो की िफक पैदा हुई। इस बेचािी का ि जािे कया हाल होगा? ईशि िे यह िवपित िसि डाल दी। मुझे तो इसकी जरित ि थी। जनम ही लेिा था, तो िकसी भागयवाि के घि जनम लेती। बचची उसकी छाती से िलपटी हुई सो िही थी। माता िे उसको औि भी िचपटा िलया, मािो कोई उसके हाथ से उसे छीिे िलये जाता है।

ििमलम ा के पास ही सुधा की चािपाई भी थी। ििमलेा तो िचनतज सागि मे गोता था िही थी औि सुधा मीठी िींद का आिनद उठा िही थी। कया उसे अपिे बालक की िफक सताती है? मतृयु तो बूढे औि जवाि का भेद

115

Page 116: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

िहीं किती, िफिि सुधा को कोई िचनता कयो िहीं सताती? उसे तो कभी भिवषय की िचनता से उदास िहीं देखा।

सहसा सुधा की िींद खुल गई। उसिे ििमलम ा को अभी तक जागते देखा, तो बोली- अिे अभी तुम सोई िहीं?

ििमलम ा- िींद ही िहीं आती।सुधा- आंखे बनद कि लो, आप ही िींद आ जायेगी। मै तो चािपाई पि

आते ही मि-सी जाती हंू। वह जागते भी है, तो खबि िहीं होती। ि जािे मुझे कयो इतिी िींद आती है। शायद कोई िोग है।

ििमलम ा- हां, बडा भािी िोग है। इसे िाज-िोग कहते है। डॉकटि साहब से कहो-दवा शुर कि दे।

सुधा- तो आिखि जागकि कया सोचूं? कभी-कभी मकेै की याद आ जाती है, तो उस िदि जिा देि मे आंख लगती है।

ििमलम ा- डॉकटि साहब की यादा िहीं आती?सुधा- कभी िहीं, उिकी याद कयो आये? जािती हंू िक टेििस खेलकि

आये होगे, खािा खाया होगा औि आिाम से लेटे होगे।ििमलम ा- लो, सोहि भी जाग गया। जब तुम जाग गई

तो भला यह कयो सोिे लगा?सुधा- हां बिहि, इसकी अजीब आदत है। मेिे साथ सोता औि मेिे ही

साथ जागता है। उस जनम का कोई तपसवी है। देखो, इसके माथे पि ितलक का कैसा ििशाि है। बांहो पि भी ऐसे ही ििशाि है। जरि कोई तपसवी है।

ििमलम ा- तपसवी लोग तो चनदि-ितलक िहीं लगाते। उस जनम का कोई धूत म पजुािी होगा। कयो िे, तू कहां का पजुािी था? बता?

सुधा- इसका बयाह मै बचची से करंगी।ििमलम ा- चलो बिहि, गाली देती हो। बिहि से भी भाई का बयाह होता

है?

सुधा- मै तो करंगी, चाहे कोई कुछ कहे। ऐसी सुनदि बहू औि कहां पाऊंगी? जिा देखो तो बहि, इसकी देह कुछ गम म है या मुझके ही मालूम होती है।

ििमलम ा िे सोहि का माथा छूकि कहा-िहीं-िहीं, देह गम म है। यह जवि कब आ गया! दधू तो पी िहा है ि?

116

Page 117: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

सुधा- अभी सोया था, तब तो देह ठंडी थी। शायद सदी लग गई, उढाकि सुलाये देती हंू। सबेिे तक ठीक हो जायेगा।

सबेिा हुआ तो सोहि की दशा औि भी खिाब हो गई। उसकी िाक बहिे लगी औि बखुाि औि भी तेज हो गया। आखें चढ गई औि िसि झुक गया। ि वह हाथ-पिै िहलाता था, ि हंसता-बोलता था, बस, चुपचाप पडा था। ऐसा मालूम होता था िक उसे इस वक िकसी का बोलिा अचछा िहीं लगता। कुछ-कुछ खांसी भी आिे लगी। अब तो सधुा घबिाई। ििमलम ा की भी िाय हुई िक डॉकटि साहब को बुलाया जाये, लेिकि उसकी बूढी माता िे कहा-डॉकटि-हकीम साहब का यहां कुछ काम िहीं। साफ तो देख िही हंू। िक बचचे को िजि लग गई है। भला डॉकटिआकि कया किेगे?

सुधा- अममांजी, भला यहां िजि कौि लगा देगा? अभी तक तो बाहि कहीं गया भी िहीं।

माता- िजि कोई लगाता िहीं बेटी, िकसी-िकसी आदमी की दीठ बिुी होती है, आप-ही-आप लग जाती है। कभी-कभी मां-बाप तक की िजि लग जाती है। जब से आया है, एक बाि भी िहीं िोया। चोचले बचचो को यही गित होती है। मै इसे हुमकते देखकि डिी थी िक कुछ-ि-कुछ अििि होिे वाला है। आखें िहीं देखती हो, िकतिी चढ गई है। यही िजि की सबसे बडी पहचाि है।

बुिढया महिी औि पडोस की पंिडताइि िे इस कथि का अिमुोदि कि िदया। बस महंगू िे आकि बचचे का मुंह देखा औि हंस कि बोला-मालिकि, यह दीठ है औि िहीं। जिा पतली-पतली तीिलयां मंगवा दीिजए। भगवाि िे चाहा तो संझा तक बचचा हंसिे लगेगा।

सिकणडे के पांच टुकडे लाये गये। महगूं िे उनहे बिाबि किके एक डोिे से बांध िदया औि कुछ बुदबुदाकि उसी पोले हाथो से पांच बाि सोहि का िसि सहलाया। अब जो देखा, तो पांचो तीिलयां छोटी-बडी हो गेई थी। सब िीयो यह कौतुक देखकि दंग िह गई। अब िजि मे िकसे सनदेह हो सकता था। महगूं िे िफि बचचे को तीिलयो से सहलािा शुर िकया। अब की तीिलयां बिाबि हो गई। केवल थोडा-सा अनति िह गया। यह सब इस बात का पमाण था िक िजि का असि अब थोडा-सा औि िह गया है। महगू सबको िदलासा देकि शाम को िफि आिे का वायदा किके चला गया। बालक

117

Page 118: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

की दशा िदि को औि खिाब हो गई। खांसी का जोि हो गया। शाम के समय महगूं िे आकिा िफि तीिलयो का तमाशा िकया। इस वक पांचो तीिलयो बिाबि ििकलीं। िीयां िििशत हो गई लेिकि सोहि को सािी िात खांसते गजुिी। यहां तक िक कई बाि उसकी आंखे उलट गई। सुधा औि ििमलम ा दोिो िे बठैकि सबेिा िकया। खैि, िात कुशल से कट गई। अब वदृा माताजी िया िंग लाई। महगूं िजि ि उताि सका, इसिलए अब िकसी मौलवी से फंूक डलवािा जरिी हो गया। सुधा िफि भी अपिे पित को सूचिा ि दे सकी। मेहिी सोहि को एक चादि से लपेट कि एक मिसजद मे ले गई औि फंूक डलवा लाई , शाम को भी फंूक छोडी , पि सोहि िे िसि ि उठाया। िात आ गई, सुधा िे मि मे ििशय िकया िक िात कुशल से बीतेगी, तो पात:काल पित को ताि दंगूी।

लेिकि िात कुशल से ि बीतिे पाई। आधी िात जाते-जाते बचचा हाथ से ििकल गया। सुधा की जीि- समपित देखते-देखते उसके हाथो से िछि गई।

वही िजसके िववाह का दो िदि पहले िविोद हो िहा था, आज सािे घि को रला िहा है। िजसकी भोली-भाली सूित देखकि माता की छाती फूल उठती थी, उसी को देखकि आज माता की छाती फटी जाती है। सािा घि सुधा को समझाता था, पि उसके आंसू ि थमते थे, सब ि होता था। सबसे बडा दु:ख इस बात का था का पित को कौि मुंह िदखलाऊंगी! उनहे खबि तक ि दी।

िात ही को ताि दे िदया गया औि दसूिे िदि डॉकटि िसनहा िौ बजते-

बजते मोटि पि आ पहंुचे। सधुा िे उिके आिे की खबि पाई, तो औि भी फूट-फूटकि िोिे लगी। बालक की जल-िकया हुई, डॉकटि साहब कई बाि अनदि आये, िकनतु सधुा उिके पास ि गई। उिके सामिे कैसे जाये? कौि मुंह िदखाये? उसिे अपिी िादािी से उिके जीवि का ित छीिकि दििया मे डाल िदया। अब उिके पास जाते उसकी छाती के टुकडे-टुकडे हुए जाते थे। बालक को उसकी गोद मे देखकि पित की आखें चमक उठती थीं। बालक हुमककि िपता की गोद मे चला जाता था। माता िफि बलुाती, तो िपता की छाती से िचपट जाता था औि लाख चुमिािे-दलुाििे पि भी बाप को गोद ि छोडता था। तब मां कहती थी- बडैा मतलबी है। आज वह िकसे गोद मे लेकि पित के पास जायेगी? उसकी सूिी गोद देखकि कहीं वह िचललाकि िो

118

Page 119: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

ि पडे। पित के सममुख जािे की अपेका उसे मि जािा कहीं आसाि जाि पडता था। वह एक कण के िलए भी ििमलम ा को ि छोडती थी िक कहीं पित से सामिा ि हो जाये।

ििमलम ा िे कहा- बिहि, जो होिा था वह हो चकुा, अब उिसे कब तक भागती िफिोगी। िात ही को चले जायेगे। अममां कहती थीं।

सुधा से सजल िेतो से ताकते हुए कहा- कौि मुंह लेकि उिके पास जाऊं? मुझे डि लग िहा है िक उिके सामिे जाते ही मेिा पिैा ि थिािम े लगे औि मै िगि पडंू।

ििमलम ा- चलो, मै तुमहािे साथ चलती हंू। तुमहे संभाले िहंूगी।सुधा- मुझे छोडकि भाग तो ि जाओगी?ििमलम ा- िहीं-िहीं, भागूंगी िहीं।सुधा- मेिा कलेजा तो अभी से उमडा आता है। मै इतिा घोि वजपाता

होिे पि भी बैठी हंू, मुझे यही आशय म हो िहा है। सोहि को वह बहुत पयाि किते थे बिहि। ि जािे उिके िचत की कया दशा होगी। मै उनहे ढाढस कया दंगूी, आप हो िोती िहंूगी। कया िात ही को चले जायेगे?

ििमलम ा- हां, अममांजी तो कहती थी छुटटी िहीं ली है।दोिो सहेिलयां मदािम े कमिे की ओि चलीं, लेिकि कमिे के दाि पि

पहंुचकि सुधा िे ििमलम ा से िवदा कि िदया। अकेली कमिे मे दािखल हुई।डॉकटि साहब घबिा िहे थे िक ि जािे सधुा की कया दशा हो िही है।

भांित-भांित की शंकाएं मि मे आ िही थीं। जािे को तैयाि बठेै थे, लेिकि जी ि चाहता था। जीवि शूनय-सा मालूम होता था। मि-ही-मि कुढ िहे थे,

अगि ईशि को इतिी जलदी यह पदाथ म देकि छीि लेिा था, तो िदया ही कयो था? उनहोिे तो कभी सनताि के िलए ईशि से पाथिम ा ि की थी। वह आजनम िि:सनताि िह सकते थे, पि सनताि पाकि उससे वंिचत हो जािा उनहं असहा जाि पडता था। कया सचमुच मिुषय ईशि का िखलौिा है? यही मािव जीवि का महतव है? यह केवल बालको का घिौदा है, िजसके बििे का ि कोई हेतु है ि िबगडिे का? िफि बालको को भी तो अपिे घिौदे से अपिी कागेज की िावो से, अपिी लकडी के घोडो से ममता होती है। अचछे िखलौिे का वह जाि के पीछे िछपाकि िखते है। अगि ईशि बालक ही है तो वह िविचत बालक है।

119

Page 120: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

िकनतु बुिद तो ईशि का यह रप सवीकाि िहीं किती। अिनत सिृि का कता म उदणड बालक िहीं हो सकता है। हम उसे उि सािे गुणो से िवभूिषत किते है, जो हमािी बुिद का पहंुच से बाहि है। िखलाडीपि तो साउि महाि ्गणुो मे िहीं! कया हंसते-खेलते बालको का पाण हि लेिा खेल है? कया ईशि ऐसा पैशािचक खेल खेलता है?

सहसा सुधा दबे-पांव कमिे मे दािखल हुई। डासॅकटि साहब उठ खडे हुए औि उसके समीप आकि बोले-तुम कहां थी, सुधा? मै तुमहािी िाह देख िहा था।

सुधा की आखंो से कमिा तैिता हुआ जाि पडा। पित की गदमि मे हाथ डालकि उसिे उिकी छाती पि िसि िख िदया औि िोिे लगी, लेिकि इस अशु-पवाह मे उसे असीम धैय म औि सांतविा का अिुभव हो िहा था। पित के वक-सथल से िलपटी हुई वह अपिे हदय मे एक िविचत सफूितम औि बल का संचाि होते हुए पाती थी, मािो पवि से थिथिाता हुआ दीपक अचंल की आड मे आ गया हो।

डॉकटि साहब िे िमणी के अश-ुिसिंचत कपोलो को दोिो हाथो मे लेकि कहा-सुधा, तुम इतिा छोटा िदल कयो किती हो? सोहि अपिे जीवि मे जो कुछ कििे आया था, वह कि चकुा था, िफि वह कयो बठैा िहता? जसेै कोई वकृ जल औि पकाश से बढता है, लेिकि पवि के पबल झोको ही से सुदढ होता है, उसी भांित पणय भी दु:ख के आघातो ही से िवकास पाता है। खुशी के साथ हंसिेवाले बहुतेिे िमल जाते है, िंज मे जो साथ िोये, वहि हमािा सचचा िमत है। िजि पेिमयो को साथ िोिा िहीं िसीब हुआ, वे मुहबबत के मजे कया जािे? सोहि की मतृयु िे आज हमािे दैत को िबलकुल िमटा िदया। आज ही हमिे एक दसूिे का सचचा सवरप देखा।;?!

सुधा िे िससकते हुए कहा- मै िजि के धोखे मे थी। हाय! तुम उसका मुंह भी ि देखिे पाये। ि जािे इि सिदिो उसे इतिी समझ कहां से आ गई थी। जब मुझे िोते देखता, तो अपिे केि भूलकि मुसकिा देता। तीसिे ही िदि मिे लाडले की आंख बनद हो गई। कुछ दवा-दपिम भी ि कििे पाई।

यह कहते-कहते सुधा के आंसू िफि उमड आये। डॉकटि िसनहा िे उसे सीिे से लगाकि करणा से कांपती हुई आवाज मे कहा-िपये, आज तक कोई ऐसा बालक या वदृ ि मिा होगा, िजससे घिवालो की दवा-दपिम की लालसा पूिी हो गई।

120

Page 121: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

सुधा- ििमलम ा िे मेिी बडी मदद की। मै तो एकाध झपकी ले भी लेती थी, पि उसकी आखें िहीं झपकी। िात-िात िलये बैठी या टहलती िहती थी। उसके अहसाि कभी ि भूलंगी। कया तुम आज ही जा िहे हो?

डॉकटि- हां, छुटटी लेिे का मौका ि था। िसिवल सजिम िशकाि खेलिे गया हुआ था।

सुधा- यह सब हमेशा िशकाि ही खेला किते है?

डॉकटि- िाजाओं को औि काम ही कया है?

सुधा- मै तो आज ि जािे दंगूी।डॉकटि- जी तो मेिा भी िहीं चाहता।सुधा- तो मत जाओ, ताि दे दो। मै भी तुमहािे साथ चलूंगी। ििमलम ा

को भी लेती चलूगंी।सुधा वहां से लौटी, तो उसके हदय का बोझ हलका हो गया था। पित

की पेमपूणा म कोमल वाणी िे उसके सािे शोक औि संताप का हिण कि िलया था। पेम मे असीम िवशास है, असीम धैय म है औि असीम बल है।

अठाि ह

ब हमािे ऊपि कोई बडी िवपित आ पडती है, तो उससे हमे केवल दु:ख ही िहीं होता, हमे दसूिो के तािे भी सहिे पडते है। जिता को

हमािे ऊपि िटपपिणयो कििे का वह सुअवसि िमल जाता है, िजसके िलए वह हमेशा बेचैि िहती है। मंसािाम कया मिा, मािो समाज को उि पि आवाजे कसिे का बहाि िमल गया। भीति की बाते कौि जािे, पतयक बात यह थी िक यह सब सौतेली मां की कितूत है चािो तिफ यही चचा म थी, ईशि िे किे लडको को सौतेली मां से पाला पडे। िजसे अपिा बिा-बिाया घि उजाडिा हो, अपिे पयािे बचचो की गदमि पि छुिी फेििी हो, वह बचचो के िहते हुए अपिा दसूिा बयाह किे। ऐसा कभी िहीं देखा िक सौत के आिे पि घि तबाह ि हो गया हो, वही बाप जो बचचो पि जाि देता था सौत के आते ही उनहीं बचचो का दशुमि हो जाता है, उसकी मित ही बदल जाती है। ऐसी देवी िे जैनम ही िहीं िलया, िजसिे सौत के बचचो का अपिा समझा हो।

मुिशकल यह थी िक लोग िटपपिणयो पि सनतुि ि होते थे। कुछ ऐसे सजजि भी थे, िजनहे अब िजयािाम औि िसयािाम से िवशेष सिेह हो गया

121

Page 122: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

था। वे दािो बालको से बडी सहािुभूित पकट किते, यहां तक िक दो-सएक मिहलाएं तो उसकी माता के शील औि सवभाव को याद किे आंसू बहािे लगती थीं। हाय-हाय! बेचािी कया जािती थी िक उसके मिते ही लाडलो की यह ददुमशा होगी! अब दधू-मकखि काहे को िमलता होगा!

िजयािाम कहता- िमलता कयो िहीं?मिहला कहती- िमलता है! अिे बेटा, िमलिा भी कई तिह का होता है।

पािीवाल दधू टके सेि का मगंाकि िख िदया, िपयो चाहे ि िपयो, कौि पछूता है? िहीं तो बेचािी िौकि से दधू दहुवा कि मंगवाती थी। वह तो चेहिा ही कहे देता है। दधू की सिूत िछपी िहीं िहती, वह सूित ही िहीं िहीं

िजया को अपिी मां के समय के दधू का सवाद तो याद था सिहीं, जो इस आकेप का उति देता औि ि उस समय की अपिी सूित ही याद थी, चुप िह जाता। इि शुभाकांकाओं का असि भी पडिा सवाभािवक था। िजयािाम को अपिे घिवालो से िचढ होती जाती थी। मुंशीजी मकाि िीलामी हो जोिे के बाद दसूिे घि मे उठ आये, तो िकिाये की िफक हुई। ििमलम ा िे मकखि बनद कि िदया। वह आमदिी हा िहीं िही, तो खच म कैसे िहता। दोिो कहाि अलगे कि िदये गये। िजयािाम को यह कति-बयोत बिुी लगती थी। जब ििमलम ा मैके चली गयी, तो मुंशीजी िे दधू भी बनद कि िदया। िवजात कनया की िचिता अभी से उिके िसि पि सवाि हा गयी थी।

िसयािाम िे िबगडकि कहा- दधू बनद िहिे से तो आपका महल बि िहा होगा, भोजि भी बंद कि दीिजए!

मुंशीजी- दधू पीिे का शौक है, तो जाकि दहुा कयो िही लाते? पािी के पैसे तो मुझसे ि िदये जायेगे।

िजयािाम- मै दधू दहुािे जाऊं, कोई सकूल का लडका देख ले तब?

मुंशीजी- तब कुछ िहीं। कह देिा अपिे िलए दधू िलए जाता हंू। दधू लािा कोई चोिी िहीं है।

िजयािाम- चोिी िहीं है! आप ही को कोई दधू लाते देख ले, तो आपको शम म ि आयेगी।

मुंशीजी- िबलकुल िहीं। मैिे तो इनहीं हाथो से पािी खींचा है, अिाज की गठिियां लाया हंू। मेिे बाप लखपित िहीं थे।

िजयािाम-मेिे बाप तो गिीब िहीं, मै कयो दधू दहुािे जाऊं? आिखि आपिे कहािो को कयो जवाब दे िदया?

122

Page 123: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

मंशीजी- कया तुमहे इतिा भी िहीं सूझता िक मेिी आमदिी अब पहली सी िहीं िही इतिे िादाि तो िहीं हो?

िजयािाम- आिखि आपकी आमदिी कयो कम हो गयी?मुंशीजी- जब तुमहे अकल ही िहीं है, तो कया समझाऊं। यहां िजनदगी

से तंगे आ गया हंू, मुकदमे कौि ले औि ले भी तो तैयाि कौि किे? वह िदल ही िहीं िहा। अब तो िजंदगी के िदि पूिे कि िहा हंू। सािे अिमाि लललू के साथ चले गये।

िजयािाम- अपिे ही हाथो ि।मुंशीजी िे चीखकि कहा- अिे अहमक! यह ईशि की मजी थी। अपिे

हाथो कोई अपिा गला काटता है।िजयािाम- ईशि तो आपका िववाह कििे ि आया था।मंशीजी अब जबत ि कि सके, लाल-लाल आखें ििकालक बोले-कया

तुम आज लडिे के िलए कमि बांधकि आये हो? आिखि िकस िबिते पि?

मेिी िोिटयां तो िहीं चलाते? जब इस कािबल हो जािा, मुझे उपदेश देिा। तब मै सुि लूंगा। अभी तुमको मुझे उपदेश देिे का अिधकाि िहीं है। कुछ िदिो अदब औि तमीज सीखो। तुम मेिे सलाहकाि िहीं हो िक मै जो काम करं,

उसमे तुमसे सलाह लूं। मेिी पैदा की हुई दौलत है, उसे जसेै चाहंू खच म कि सकता हंू। तुमको जबाि खोलिे का भी हक िहीं है। अगि िफि तुमिे मुझसे बेअदबी की, तो ितीजा बुिा होगा। जब मंसािाम ऐसा ित खोकि मिे पाण ि ििकले, तो तुमहािे बगिै मै मि ि जाऊंगा, समझ गये?

यह कडी फटकाि पाकि भी िजयािाम वहां से ि टला। िि:शकं भाव से बोला-तो आप कया चाहते है िक हमे चाहे िकतिी ही तकलीफ हो मुहं ि खोले? मुझसे तो यह ि होगा। भाई साहब को अदब औि तमीज का जो इिाम िमला, उसकी मुझे भूख िहीं। मुझमे जहि खाकि पाण देिे की िहममत िहीं। ऐसे अदब को दिू से दंडवत किता हंू।

मुंशीजी- तुमहे ऐसी बाते किते हुए शम म िहीं आती?िजयािाम- लडके अपिे बजुुगो ही की िकल किते है।मुंशीजी का कोध शानत हो गया। िजयािाम पि उसका कुछ भी असि

ि होगा, इसका उनहे यकीि हो गया। उठकि टहलिे चले गये। आज उनहे सूचिा िमल गयी के इस घि का शीघ ही सविम ाश होिे वाला है।

123

Page 124: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

उस िदि से िपता औि पुत मे िकसी ि िकसी बात पि िोज ही एक झपट हो जाती है। मुंशीजी जयो-तयो तिह देते थे, िजयािाम औि भी शेि होता जाता था। एक िदि िजयािाम िे रिकमणी से यहां तक कह डाला- बाप है, यह समझकि छोड देता हंू, िहीं तो मेिे ऐसे-ऐसे साथी है िक चाहंू तो भिे बाजाि मे िपटवा दं।ू रिकमणी िे मुंशीजी से कह िदया। मुंशीजी िे पकट रप से तो बेपिवाही ही िदखायी, पि उिके मि मे शंका समा गया। शाम को सैि कििा छोड िदया। यह ियी िचनता सवाि हो गयी। इसी भय से ििमलम ा को भी ि लाते थे िक शैताि उसके साथ भी यही बतावम किेगा। िजयािाम एक बाि दबी जबाि मे कह भी चकुा था- देखूं, अबकी कैसे इस घि मे आती है?

मुंशीजी भी खूब समझ गये थे िक मै इसका कुछ भी िहीं कि सकता। कोई बाहि का आदमी होता, तो उसे पुिलस औि काििू के िशजें मे कसते। अपिे लडके को कया किे? सच कहा है- आदमी हािता है, तो अपिे लडको ही से।

एक िदि डॉकटि िसनहा िे िजयािाम को बुलाकि समझािा शुर िकया। िजयािाम उिका अदब किता था। चपुचाप बैठा सुिता िहा। जब डॉकटि साहब िे अनत मे पूछा, आिखि तुम चाहते कया हो? तो वह बोला- साफ-साफ कह दंू? बूिा तो ि माििएगा?

िसनहा- िहीं, जो कुछ तुमहािे िदल मे हो साफ-साफ कह दो। िजयािाम- तो सुििए, जब से भैया मिे है, मुझे िपताजी की सूित

देखकि कोध आता है। मुझे ऐसा मालूम होता है िक इनहीं िे भैया की हतया की है औि एक िदि मौका पाकि हम दोिो भाइयो को भी हतया किेगे। अगि उिकी यह इचछा ि होती तो बयाह ही कयो किते?

डॉकटि साहब िे बडी मिुशकल से हंसी िोककि कहा- तुमहािी हतया कििे के िलए उनहे बयाह कििे की कया जरित थी, यह बात मेिी समझ मे िहीं आयी। िबिा िववाह िकये भी तो वह हतया कि सकते थे।

िजयािाम- कभी िहीं, उस वक तो उिका िदल ही कुछ औि था, हम लोगो पि जाि देते थे अब मुंह तके िहीं देखिा चाहते। उिकी यही इचछा है िक उि दोिो पािणयो के िसवा घि मे औि कोई ि िहे। अब जसे लडके होगे उिक िासते से हम लोगो का हटा देिा चाहते है। यही उि दोिो आदिमयो की िदली मंशा है। हमे तिह-तिह की तकलीफे देकि भगा देिा चाहते है। इसीिलए आजकल मकुदमे िहीं लेते। हम दोिो भाई आज मि जाये, तो िफि देिखए कैसी बहाि होती है।

124

Page 125: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

डॉकटि- अगि तुमहे भागिा ही होता, तो कोई इलजाम लगाकि घि से ििकल ि देते?

िजयािाम- इसके िलए पहले ही से तैयाि बैठा हंू।डॉकटि- सुिूं, कया तैयािी कही है?

िजयािाम- जब मौका आयेगा, देख लीिजएगा।यह कहकि िजयिाम चलता हुआ। डॉकटि िसनहा िे बहुत पकुािा, पि

उसिे िफि कि देखा भी िहीं।कई िदि के बाद डॉकटि साहब की िजयािाम से िफि मुलाकात हो

गयी। डॉकटि साहब िसिेमा के पेमी थे औि िजयािाम की तो जाि ही िसिेमा मे बसती थी। डॉकटि साहब िे िसिेमा पि आलोचिा किके िजयािाम को बातो मे लगा िलया औि अपिे घि लाये। भोजि का समय आ गया था,, दोिो आदमी साथ ही भोजि कििे बैठे। िजयािाम को वहां भोजि बहुत सवािदि लगा, बोल- मेिे यहां तो जब से महािाज अलग हुआ खािे का मजा ही जाता िहा। बआुजी पकका वैषणवी भोजि बिाती है। जबिदसती खा लेता हंू, पि खािे की तिफ ताकिे को जी िहीं चाहता।

डॉकटि- मेिे यहां तो जब घि मे खािा पकता है, तो इसे कहीं सवािदि होता है। तुमहािी बुआजी पयाज-लहसुि ि छूती होगी?

िजयािाम- हां साहब, उबालकि िख देती है। लालाली को इसकी पिवाह ही िहीं िक कोई खाता है या िहीं। इसीिलए तो महािाज को अलग िकया है। अगि रपये िहीं है, तो गहिे कहां से बिते है?

डॉकटि- यह बात िहीं है िजयािाम, उिकी आमदिी सचमुच बहुत कम हो गयी है। तुम उनहे बहुत िदक किते हो।

िजयािाम- (हंसकि) मै उनहे िदक किता हंू? मुझससे कसम ले लीिजए,

जो कभी उिसे बोलता भी हंू। मुझे बदिाम कििे का उनहोिे बीडा उठा िलया है। बेसबब, बेवजह पीछे पडे िहते है। यहां तक िक मेिे दोसतो से भी उनहे िचढ है। आप ही सोिचए, दोसतो के बगैि कोई िजनदा िह सकता है? मै कोई लुचचा िहीं हू िक लुचचो की सोहबत िखूं, मगि आप दोसतो ही के पीछे मुझे िोज सताया किते है। कल तो मैिे साफ कह िदया- मेिे दोसत घि आयेगे, िकसी को अचछा लगे या बुिा। जिाब, कोई हो, हि वक की धौस हीं सह सकता।

125

Page 126: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

डॉकटि- मुझे तो भाई, उि पि बडी दया आती है। यह जमािा उिके आिाम कििे का था। एक तो बुढापा, उस पि जवाि बेटे का शोक, सवासथय भी अचछा िहीं। ऐसा आदमी कया कि सकता है? वह जो कुछ थोडा-बहुत किते है, वही बहुत है। तुम अभी औि कुछ िहीं कि सकते, तो कम-से-कम अपिे आचिण से तो उनहे पसनि िख सकते हो। बुडढो को पसनि कििा बहुत किठि काम िहीं। यकीि मािो, तुमहािा हंसकि बोलिा ही उनहे खुश कििे को काफी है। इतिा पूछिे मे तुमहािा कया खच म होता है। बाबजूी, आपकी तबीयत कैसी है? वह तुमहािी यह उदणडता देखकि मि-ही-मि कुढते िहते है। मै तुमसे सच कहता हंू, कई बाि िो चकेु है। उनहोिे माि लो शादी कििे मे गलती की। इसे वह भी सवीकाि किते है, लेिकि तुम अपिे कतवम य से कयो मुंह मोडते हो? वह तुमहािे िपता है, तुमहे उिकी सेवा कििी चािहए। एक बात भी ऐसी मुंह से ि ििकालिी चािहए, िजससे उिका िदल दखेु। उनहे यह खयाल कििे का मौका ही कयो दे िक सब मेिी कमाई खािे वाले है, बात पूछिे वाला कोई िहीं। मेिी उम तुमसे कहीं जयादा है, िजयािाम, पि आज तक मैिे अपिे िपताजी की िकसी बात का जवाब िहीं िदया। वह आज भी मुझे डांटते है, िसि झुकाकि सुि लेता हंू। जािता हंू, वह जो कुछ कहते है,

मेिे भले ही को कहते है। माता-िपता से बढकि हमािा िहतैषी औि कौि हो सकता है? उसके ऋण से कौि मुक हो सकता है?

िजयािाम बठैा िोता िहा। अभी उसके सदावो का समपूणतम : लोप ि हुआ था, अपिी दजुिम ता उसे साफ िजि आ िही थी। इतिी गलािि उसे बहुत िदिो से ि आयी थी। िोकि डॉकटि साहब से कहा- मै बहुत लिजजत हंू। दसूिो के बहकािे मे आ गया। अब आप मेिी जिा भी िशकयत ि सुिेगे। आप िपताजी से मेिे अपिाध कमा कि दीिजए। मै सचमुच बडा अभागा हंू। उनहे मैिे बहुत सताया। उिसे किहए- मेिे अपिाध कमा कि दे, िहीं मै मुंह मे कािलख लगाकि कहीं ििकल जाऊंगा, डूब मरंगा।

डॉकटि साहब अपिी उपदेश-कुशलता पि फूले ि समाये। िजयािाम को गले लगाकि िवदा िकया।

िजयािाम घि पहंुचा, तो गयािह बज गये थे। मुंशीजी भोजि किे अभी बाहि आये थे। उसे देखते ही बोले- जािते हो कै बजे है? बािह का वक है।

126

Page 127: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

िजयािाम िे बडी िमता से कहा- डॉकटि िसनहा िमल गये। उिके साथ उिके घि तक चला गया। उनहोिे खािे के िलए िजद िक, मजबूिि खािा पडा। इसी से देि हो गयी।

मुंशीज- डॉकटि िसनहा से दखुडे िोिे गये होगे या औि कोई काम था।िजयािाम की िमता का चौथा भाग उड गय, बोला- दखुडे िोिे की मेिी

आदत िहीं है।मुंशीजी- जिा भी िहीं, तुमहािे मुंह मे तो जबाि ही िहीं। मुझसे जो

लोग तुमहािी बाते किते है, वह गढा किते होगे?

िजयािाम- औि िदिो की मै िहीं कहता, लेिकि आज डॉकटि िसनहा के यहां मैिे कोई बात ऐसी िहीं की, जो इस वक आपके सामिे ि कि सकंू।

मुंशीजी- बडी खुशी की बात है। बेहद खुशी हुई। आज से गुरदीका ले ली है कया?

िजयािाम की िमता का एक चतुथाशि औि गायब हो गया। िसि उठाकि बोला- आदमी िबिा गरुदीका िलए हुए भी अपिी बुिाइयो पि लिजजत हो सकता है। अपािा सुधाि कििे के िलए गुरपनत कोई जरिी चीज िहीं।

मुंशीजी- अब तो लुचचे ि जमा होगे?

िजयािाम- आप िकसी को लचुचा कयो कहते है, जब तक ऐसा कहिे के िलए आपके पास कोई पमाण िहीं?

मुंशीजी- तुमहािे दोसत सब लुचचे-लफंगे है। एक भी भला आदमी िही। मै तुमसे कई बाि कह चकुा िक उनहे यहां मत जमा िकया किोख ्पि तुमिे सुिा िहीं। आज मे आिखि बाि कहे देता हंू िक अगि तुमिे उि शोहदो को जमा िकया, तो मुझो पुिलस की सहायता लेिी पडेगी।

िजयािाम की िमता का एक चतथुाशि औि गायब हो गया। फडककाि बोला- अचछी बात है, पुिलस की सहायता लीिजए। देखे कया किती है? मेिे दोसतो मे आधे से जयादा पुिलस के अफसिो ही के बेटे है। जब आप ही मेिा सुधाि कििे पि तुले हुए है, तो मै वयथ म कयो कि उठाऊं?

यह कहता हुआ िजयािाम अपिे कमिे मे चला गया औि एक कण के बाद हािमोििया के मीठे सविो की आवाज बाहि आिे लगी।

127

Page 128: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

सहदयता का जलया हुआ दीपक ििदमय वयंगय के एक झोके से बुझ गया। अडा हुआ घोडा चुमकािािे से जोि माििे लगा था, पि हणटि पडते ही िफि अड गया औि गाडी की पीछे ढकेलिे लगा।

उनि ीस

बकी सुधा के साथ ििमलम ा को भी आिा पडा। वह तो मैके मे कुछ िदि औि िहिा चाहती थी, लेिकि शोकातुि सधुा अकेले कैसे िही!

उसको आिखि आिा ही पडा। रिकमणी िे भूंगी से कहा- देखती है, बहू मैके से कैसा ििखिकि आयी है!

अभूंगी िे कहा- दीदी, मां के हाथ की िोिटयां लडिकयो को बहुत अचछी

लगती है।रिकमणी- ठीक कहती है भूंगी, िखलािा तो बस मां ही जािती है।ििमलम ा को ऐसा मालूम हुआ िक घि का कोई आदमी उसके आिे से

खुश िहीं। मुंशीजी िे खशुी तो बहुत िदखाई, पि हदयगत िचिता को ि िछपा सके। बचची का िाम सुधा िे आशा िख िदया था। वह आशा की मूितम-सी थी भी। देखकि सािी िचनता भाग जाती थी। मुंशीजी िे उसे गोद मे लेिा चाहा, तो िोिे लगी, दौडकि मां से िलपट गयी, मािो िपता को पहचािती ही िहीं। मुंशीजी िे िमठाइयो से उसे पिचािा चाहा। घि मे कोई िौकि तो था िहीं, जाकि िसयािाम से दो आिे की िमठाइयां लािे को कहा।

िजयिाम भी बठैा हुआ था। बोल उठा- हम लोगो के िलए तो कभी िमठाइयां िहीं आतीं।

मंशीजी िे झुंझलाकि कहा- तुम लोग बचचे िहीं हो।िजयािाम- औि कया बूढे है? िमठाइयां मंगवाकि िख दीिजए, तो मालूम

हो िक बचचे है या बूढे। ििकािलए चाि आिा औि आशा के बदौलत हमािे िसीब भी जागे।

मुंशीजी- मेिे पास इस वक पैसे िहीं है। जाओ िसया, जलद जािा। िजयािाम- िसया िहीं जायेगा। िकसी का गलुाम िहीं है। आशा अपिे

बाप की बेटी है, तो वह भी अपिे बाप का बेटा है।मुंशीजी- कया फजजू की बाते किते हो। िनहीं-सी बचची की बिाबिी

किते तुमहे शम म िही आती? जाओ िसयािाम, ये पैसे लो।

128

Page 129: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

िजयािाम- मत जािा िसया! तुम िकसी के िौकि िहीं हो।िसया बडी दिुवधा मे पड गया। िकसका कहिा मािे? अनत मे उसिे

िजयािाम का कहिा माििे का ििशय िकया। बाप जयादा-से-जयादा घुडक देगे, िजया तो मािेगा, िफि वह िकसके पास फिियाद लेकि जायेगा। बोला- मै ि जाऊंगा।

मुंशीजी िे धमकाकि कहा- अचछा, तो मेिे पास िफि कोई चीज मांगिे मत आिा।

मुंशीजी खुद बाजाि चले गये औि एक रपये की िमठाई लेकि लौटे। दो आिे की िमठाई मांगते हुए उनहे शम म आयी। हलवाई उनहे पहचािता था। िदल मे कया कहेगा?

िमठाई िलए हुए मुंशीजी अनदि चले गये। िसयािाम िे िमठाई का बडा-सा दोिा देखा, तो बाप का कहिा ि माििे का उसे दखु हुआ। अब वह िकस मुंह से िमठाई लेिे अनद जायेगा। बडी भूल हुई। वह मि-ही-मि िजयािाम को चोटो की चोट औि िमठाई की िमठास मे तुलिा कििे लगा।

सहसा भूंगी िे दो तशतिियां दोिो के सामिे लाकि िख दीं। िजयािाम िे िबगडकि कहा- इसे उठा ले जा!

भूंगी- काहे को िबगडता हो बाबू कया िमठाई अचछी िहीं लगती?िजयािाम- िमठाई आशा के िलए आयी है, हमािे िलए िहीं आयी? ले

जा, िहीं तो सडक पि फेक दंगूा। हम तो पसेै-पैसे के िलए िटते िहते ह। औ यहां रपये की िमठाई आती है।

भूंगी- तुम ले लो िसया बाबू, यह ि लेगे ि सहीं।िसयािाम िे डिते-डिते हाथ बढाया था िक िजयािाम िे डांटकि कहा-

मत छूिा िमठाई, िहीं तो हाथ तोडकि िख दंगूा। लालची कहीं का!िसयािाम यह धडुकी सुिकि सहम उठा, िमठाई खािे की िहममत ि

पडी। ििमलम ा िे यह कथा सुिी, तो दोिो लडको को मिािे चली। मुंशजी िे कडी कसम िख दी।

ििमलम ा- आप समझते िहीं है। यह सािा गुससा मुझ पि है।मुंशीजी- गुसताख हो गया है। इस खयाल से कोई सखती िहीं किता

िक लोग कहेगे, िबिा मां के बचचो को सताते है, िहीं तो सािी शिाित घडी भि मे ििकाल दं।ू

ििमलम ा- इसी बदिामी का तो मुझे डि है।129

Page 130: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

मुंशीजी- अब ि डरंगा, िजसके जी मे जो आये कहे।ििमलम ा- पहले तो ये ऐसे ि थे।मुंशीजी- अजी, कहता है िक आपके लडके मौजूद थे, आपिे शादी कयो

की! यह कहते भी इसे संकोच िहीं हाता िक आप लोगो िे मंसािाम को िवष दे िदया। लडका िहीं है, शतु है।

िजयािाम दाि पि िछपकि खडा था। िी-पुरष मे िमठाई के िवषय मे कया बाते होती है, यही सुििे वह आया था। मुंशीजी का अिनतम वाकय सुिकि उससे ि िहा गया। बोल उठा- शतु ि होता, तो आप उसके पीछे कयो पडते? आप जो इस वक कि हिे है, वह मै बहुत पहले समझे बैठा हंू। भैया ि समझ थे, धोखा ख गये। हमािे साथ आपकी दाला ि गलेगी। सािा जमािा कह िहा है िक भाई साहब को जहि िदया गया है। मै कहता हंू तो आपको कयो गुससा आता है?

ििमलम ा तो सनिाटे मे आ गयी। मालूम हुआ, िकसी िे उसकी देह पि अगंािे डाल िदये। मंशजी िे डांटकि िजयािाम को चपु किािा चाहा, िजयािाम िि:शं खडा ईट का जवाब पतथि से देता िहा। यहां तक िक ििमलम ा को भी उस पि कोध आ गया। यह कल का छोकिा, िकसी काम का ि काज का, यो खडा टिा म िहा है, जैसे घि भि का पालि-पोषण यही किता हो। तयोिियां चढाकि बोली- बस, अब बहुत हुआ िजयािाम, मालूम हो गया, तुम बडे लायक हो, बाहि जाकि बैठो।

मुंशीजी अब तक तो कुछ दब-दबकि बोलते िहे, ििमलम ा की शह पाई तो िदल बढ गया। दांत पीसकि लपके औि इसके पहले िक ििमलम ा उिके हाथ पकड सके, एक थपपड चला ही िदया। थपपड ििमलम ा के मुंह पि पडा, वही सामिे पडी। माथा चकिा गया। मुंशीजी िे सूखे हाथो मे इतिी शिक है,

इसका वह अिुमाि ि कि सकती थी। िसि पकडकि बैठ गयी। मुंशीजी का कोध औि भी भडक उठा, िफि घूंसा चलाया पि अबकी िजयािाम िे उिका हाथ पकड िलया औि पीछे ढकेलकि बोला- दिू से बाते कीिजए, कयांाे िाहक अपिी बेइजजती किवाते है? अममांजी का िलहाज कि िहा हंू, िहीं तो िदखा देता।

यह कहता हुआ वह बाहि चला गया। मुंशीजी संजा-शूनय से खडे िहे। इस वक अगि िजयािाम पि दैवी वज िगि पडता, तो शायद उनहे हािदमक

130

Page 131: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

आिनद होता। िजस पुत का कभी गोद मे लेकि ििहाल हो जाते थे, उसी के पित आज भांित-भांित की दषुकलपिाएं मि मे आ िही थीं।

रिकमणी अब तक तो अपिी कोठिी मे थी। अब आकि बोली-बेटा आपिे बिाबि का हो जाये तो उस पि हाथ ि छोडिा चािहए।

मुंशीजी िे ओंठ चबाकि कहा- मै इसे घि से ििकालकि छोडंूगा। भीख मांगे या चोिी किे, मुझसे कोई मतलब िहीं।

रिकमणी- िाक िकसकी कटेगी?मुंशीजी- इसकी िचनता िहीं।ििमलम ा- मै जािती िक मेिे आिे से यह तफुाि खडा हो जायेगा, तो

भूलकि भी ि आती। अब भी भला है, मुझे भेज दीिजए। इस घि मे मुझसे ि िहा जायेगा।

रिकमणी- तुमहािा बहुत िलहाज किता है बहू, िहीं तो आज अिथ म ही हो जाता।

ििमलम ा- अब औि कया अिथ म होगा दीदीजी? मै तो फंूक -फंूककि पांव िखती हंू, िफि भी अपयश लग ही जाता है। अभी घि मे पांव िखते देि िहीं हुई औि यह हाल हो गेया। ईशि ही कुशल किे।

िात को भोजि कििे कोई ि उठा, अकेले मुंशीजी िे खाया। ििमलम ा को आज ियी िचनता हो गयी- जीवि कैसे पाि लगेगा? अपिा ही पेट होता तो िवशेष िचनता ि थी। अब तो एक ियी िवपित गले पड गयी थी। वह सोच िही थी- मेिी बचची के भागय मे कया िलखा है िाम?

बीस

नता मे िींद कब आती है? ििमलम ा चािपाई पि किवटे बदल िही थी। िकतिा चाहती थी िक िींद आ जाये, पि िींद िे ि आिे की कसम

सी खा ली थी। िचिाग बुझा िदया था, िखडकी के दिवाजे खोल िदये थे, िटक-

िटक कििे वाली घडी भी दसूिे कमिे मे िख आयीय थी, पि िींद का िाम था। िजतिी बाते सोचिी थीं, सब सोच चकुी, िचनताओं का भी अनत हो गया, पि पलके ि झपकीं। तब उसिे िफि लैमप जलाया औि एक पुसतक पढिे लगी। दो-चाि ही पषृ पढे होगे िक झपकी आ गयी। िकताब खुली िह गयी।

िच

131

Page 132: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

सहसा िजयािाम िे कमिे मे कदम िखा। उसके पांव थि-थि कांप िहे थे। उसिे कमिे मे ऊपि-िीचे देखा। ििमलम ा सोई हुई थी, उसके िसिहािे ताक पि, एक छोटा-सा पीतल का सनदकूचा िकखा हुआ था। िजयािाम दबे पांव गया, धीिे से सनदकूचा उतािा औि बडी तेजी से कमिे के बाहि ििकला। उसी वक ििमलम ा की आंखे खलु गयीं। चौककि उठ खडी हुई। दाि पि आकि देखा। कलेजा धक् से हो गया। कया यह िजयािाम है? मेिे केमिे मे कया कििे आया था। कहीं मुझे धोखा तो िहीं हुआ? शायद दीदीजी के कमिे से आया हो। यहां उसका काम ही कया था? शायद मुझसे कुछ कहिे आया हो, लेिकि इस वक कया कहिे आया होगा? इसकी िीयत कया है? उसका िदल कांप उठा।

मुंशीजी ऊपि छत पि सो िहे थे। मुंडेि ि होिे के कािण ििमलम ा ऊपि ि सो सकती थी। उसिे सोचा चलकि उनहे जगाऊं, पि जािे की िहममत ि पडी। शककी आदमी है, ि जािे कया समझ बठेै औि कया कििे पि तैयाि हो जाये? आकि िफि पुसतक पढिे लगी। सबेिे पूछिे पि आप ही मालूम हो जायेगा। कौि जािे मुझे धोखा ही हुआ हो। िींद मे कभी-कभी धोखा हो जाता है, लेिकि सबेिे पछूिे का ििशय कि भी उसे िफि िींद िहीं आयी।

सबेिे वह जलपाि लेकि सवयं िजयािाम के पास गयी, तो वह उसे देखकि चौक पडा। िोज तो भूंगी आती थी आज यह कयो आ िही है? ििमलम ा की ओि ताकिे की उसकी िहममत ि पडी।

ििमलम ा िे उसकी ओि िवशासपूण म िेतो से देखकि पूछा- िात को तुम मेिे कमिे मे गये थे?

िजयािाम िे िवसमय िदखाकि कहा- म?ै भला मै िात को कया कििे जाता? कया कोई गया था?

ििमलम ा िे इस भाव से कहा, मािो उसे उसकी बात का पूिी िवशास हो गया- हां, मुझे ऐसा मालूम हुआ िक कोई मेिे कमिे से ििकला। मैिे उसका मुंह तो ि देखा, पि उसकी पीठ देखकि अिुमाि िकया िक शयद तुम िकसी काम से आये हो। इसका पता कैसे चले कौि था? कोई था जरि इसमे कोई सनदेह िहीं।

िजयािाम अपिे को िििपिाध िसद कििे की चेिा कि कहिे लगा- मै। तो िात को िथयेटि देखिे चला गया था। वहां से लौटा तो एक िमत के घि लेट िहा। थोडी देि हुई लौटा हंू। मेिे साथ औि भी कई िमत थे। िजससे जी

132

Page 133: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

चाहे, पूछ ले। हां, भाई मै बहुत डिता हंू। ऐसा ि हो, कोई चीज गायब हो गयी, तो मेिा िामे लगे। चोि को तो कोई पकड िहीं सकता, मेिे मतथे जायेगी। बाबूजी को आप जािती है। मुझो माििे दौडेगे।

ििमलम ा- तुमहािा िाम कयो लगेगा? अगि तुमहीं होते तो भी तुमहे कोई चोिी िहीं लगा सकता। चोिी दसूिे की चीज की जाती है, अपिी चीज की चोिी कोई िहीं किता।

अभी तक ििमलम ा की ििगाह अपिे सनदकूचे पि ि पडी थी। भोजि बिािे लगी। जब वकील साहब कचहिी चले गये, तो वह सुधा से िमलिे चली। इधि कई िदिो से मुलाकात ि हुई थी, िफि िातवाली घटिा पि िवचाि पििवतिम भी कििा था। भूंगी से कहा- कमिे मे से गहिो का बकस उठा ला।

भूंगी िे लौटकि कहा- वहां तो कहीं सनदकू िहीं है। ककहां िखा था?ििमलम ा िे िचढकि कहा- एक बाि मे तो तेिा काम ही कभी िहीं होता।

वहां छोडकि औि जायेगा कहां। आलमािी मे देखा था?भूंगी- िहीं बहूजी, आलमािी मे तो िहीं देखा, झूठ कयो बोलूं?ििमलम ा मुसकिा पडी। बोली- जा देख, जलदी आ। एक कण मे भूंगी

िफि खाली हाथ लौट आयी- आलमािी मे भी तो िहीं है। अब जहां बताओ वहां देखूं।

ििमलम ा झुंझलाकि यह कहती हुई उठ खडी हुई- तुझे ईशि िे आखें ही ि जािे िकसिलए दी! देख, उसी कमिे मे से लाती हंू िक िहीं।

भूंगी भी पीछे-पीछे कमिे मे गयी। ििमलम ा िे ताक पि ििगाह डाली, अलमािी खोलकि देखी। चािपाई के िीचे झांककाि देखा, िफि कपडो का बडा संदकू खोलकि देखा। बकस का कहीं पता िहीं। आशय म हुआ, आिखि बकसा गया कहां?

सहसा िातवाली घटिा िबजली की भांित उसकी आंखो के सामिे चमक गयी। कलेजा उछल पडा। अब तक िििशनत होकि खोज िही थी। अब ताप-सा चढ आया। बडी उतावली से चािो ओि खोजिे लगी। कहीं पता िहीं। जहां खोजिा चािहए था, वहां भी खोजा औि जहां िहीं खोजिा चािहए था, वहां भी खोजा। इतिा बडा सनदकूचा िबछावि के िीचे कैसे िछप जाता? पि िबछावि भी झाडकि देखा। कण-कण मुख की कािनत मिलि होती जाती थी। पाण िहीं मे समाते जाते थे। अित मे िििाशा होकि उसिे छाती पि एक घूंसा मािा औि िोिे लगी।

133

Page 134: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

गहिे ही िी की समपित होते है। पित की औि िकसी समपित पि उसका अिधकाि िहीं होता। इनहीं का उसे बल औि गौिव होता है। ििमलम ा के पास पांच-छ: हजाि के गहिे थे। जब उनहे पहिकि वह ििकलती थी, तो उतिी देि के िलए उललास से उसका हदय िखला िहता था। एक-एक गहिा मािो िवपित औि बाधा से बचािे के िलए एक-एक िकाि था। अभी िात ही उसिे सोचा था, िजयािाम की लौडी बिकि वह ि िहेगी। ईशि ि किे िक वह िकसी के सामिे हाथ फैलाये। इसी खेवे से वह अपिी िाव को भी पाि लगा देगी औि अपिी बचची को भी िकसी-ि-िकसी घाट पहंुचा देगी। उसे िकस बात की िचनत है! उनहे तो कोई उससे ि छीि लेगा। आज ये मेिे िसंगाि है, कल को मेिे आधाि हो जायेगे। इस िवचाि से उसके हदय को िकतिी सानतविा िमली थी! वह समपित आज उसके हाथ से ििकल गयी। अब वह िििाधाि थी। संसाि उसे कोई अवलमब कोई सहािा ि था। उसकी आशाओं का आधाि जड से कट गया, वह फूट-फूटकि िोिे लगी। ईशि! तुमसे इतिा भी ि देखा गया? मुझ दिुखया को तुमिे यो ही अपगं बिा िदया थ,

अब आंखे भी फोड दीं। अब वह िकसके सामिे हाथ फैलायेगी, िकसके दाि पि भीख मांगेगी। पसीिे से उसकी देह भीग गयी, िोते-िोते आखें सूज गयीं। ििमलम ा िसि िीचा िकये िा िही थी। रिकमणी उसे धीिज िदला िही थीं, लेिकि उसके आंसू ि रकते थे, शोके की जवाल केम िे होती थी।

तीि बजे िजयािाम सकूल से लौटा। ििमलम ा उसिे आिे की खबि पाकि िविकप की भांित उठी औि उसके कमिे के दाि पि आकि बोली-भैया, िदललगी की हो तो दे दो। दिुखया को सताकि कया पाओगे?

िजयािाम एक कण के िलए काति हो उठा। चोि-कला मे उसका यह पहला ही पयास था। यह कठािेता, िजससे िहंसा मे मिोिंजि होता है अभी तक उसे पाप ि हुई थी। यिद उसके पास सनदकूचा होता औि िफि इतिा मौका िमलता िक उसे ताक पि िख आवे, तो कदािचत ्वह उसे मौके को ि छोडता, लेिकि सनदकू उसके हाथ से ििकल चकुा था। यािो िे उसे सिाफे मे पहंुचा िदया था औि औिे-पौिे बेच भी डाला थ। चोिो की झूठ के िसवा औि कौि िका कि सकता है। बोला-भला अममांजी, मै आपसे ऐसी िदललगी करंगा? आप अभी तक मुझ पि शक किती जा िही है। मै कह चुका िक मै िात को घि पि ि था, लेिकि आपको यकीि ही िहीं आता। बडे दु:ख की बात है िक मुझे आप इतिा िीच समझती है।

134

Page 135: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

ििमलम ा िे आंसू पोछते हुए कहा- मै तुमहािे पि शक िहीं किती भैया, तुमहे चोिी िहीं लगाती। मैिे समझा, शायद िदललगी की हो।

िजयािाम पि वह चोिी का संदेह कैसे कि सकती थी? दिुिया यही तो कहेगी िक लडके की मां मि गई है, तो उस पि चोिी का इलजाम लगाया जा िहा है। मेिे मुंह मे ही तो कािलख लगेगी!

िजयािाम िे आशासि देते हुए कहा- चिलए, मै देखूं, आिखि ले कौि गया? चोि आया िकस िासते से?

भूंगी- भैया, तुम चोिो के आिे को कहते हो। चहेू के िबल से तो ििकल ही आते है, यहां तो चािो ओि ही िखडिकयां है।

िजयािाम- खबू अचछी तिह तलाश कि िलया है?

ििमलम ा- सािा घि तो छाि मािा, अब कहां खोजिे को कहते हो?

िजयािाम- आप लोग सो भी तो जाती है मुदो से बाजी लगाकि।चाि बजे मुंशीजी घि आये, तो ििमलम ा की दशा देखकि पूछा- कैसी तबीयत है? कहीं ददम तो िहीं है? कह कहकि उनहोिे आशा को गोद मे उठा िलया।

ििमलम ा कोई जवाब ि दे सकी, िफि िोिे लगी।भूंगी िे कहा- ऐसा कभी िहीं हुआ था। मेिी सािी उम म इसी घि मं कट

गयी। आज तक एक पैसे की चोिी िहीं हुई। दिुिया यही कहेगी िक भूंगी का कोम है, अब तो भगेवाि ही पत-पािी िखे।

मुंशीजी अचकि के बटि खोल िहे थे, िफि बटि बनद किते हुए बोले-

कया हुआ? कोई चीज चोिी हो गयी?भूंगी- बहूजी के सािे गहिे उठ गये।मुंशीजी- िखे कहां थे?

ििमलम ा िे िससिकयां लेते हुए िात की सािी घटिा बयािा कि दी, पि िजयािाम की सूित के आदमी के अपिे कमिे से ििकलिे की बात ि कही। मुंशीजी िे ठंडी सांस भिकि कहा- ईशि भी बडा अनयायी है। जो मिे उनहीं को मािता है। मालूम होता है, अिदि आ गये है। मगि चोि आया तो िकधि से? कहीं सेध िहीं पडी औि िकसी तिफ से आिे का िासता िहीं। मैिे तो कोई ऐसा पाप िहीं िकया, िजसकी मुझे यह सजा िमल िही है। बाि-बाि कहता िहा, गहिे का सनदकूचा ताक पि मत िखो, मगेि कौि सुिता है।

ििमलम ा- मै कया जािती थी िक यह गजब टूट पडेगा!

135

Page 136: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

मुंशीजी- इतिा तो जािती थी िक सब िदि बिाबि िहीं जाते। आज बिवािे जाऊं, तो इस हजाि से कम ि लगेगे। आजकल अपिी जो दशा है,

वह तुमसे िछपी िहीं, खच म भि का मुिशकल से िमलता है, गहिे कहां से बिेगे। जाता हंू, पुिलस मे इितला कि आता हंू, पि िमलिे की उममीद ि समझो।

ििमलम ा िे आपित के भाव से कहा- जब जािते है िक पुिलस मे इितला कििे से कुद ि होगा, तो कयो जा िहे है?

मुंशीजी- िदल िहीं मािता औि कया? इतिा बडा िकुसाि उठाकि चुपचाप तो िहीं बैठ जाता।

ििमलम ा- िमलिेवाले होते, तो जाते ही कयो? तकदीि मे ि थे, तो कैसे िहते?

मुंशीजी- तकदीि मे होगे, तो िमल जायेगे, िहीं तो गये तो है ही।मुंशीजी कमिे से ििकले। ििमलम ा िे उिका हाथ पकडकि कहा- म ै

कहती हंू, मत जाओ, कहीं ऐसा ि हो, लेिे के देिे पड जाये।मुंशीजी िे हाथ छुडाकि कहा- तुम भी बचचो की-सी िजद कि िही हो।

दस हजाि का िकुसाि ऐसा िहीं है, िजसे मै यो ही उठा लूं। मै िो िहीं िहा हंू, पि मेिे हदय पि जो बीत िही है, वह मै ही जािता हंू। यह चोट मेिे कलेजे पि लगी है। मुंशीजी औि कुछ ि कह सके। गला फंस गया। वह तेजी से कमिे से ििकल आये औि थािे पि जा पहंुचे। थािेदाि उिका बहुत िलहाज किता था। उसे एक बाि ििशत के मुकदमे से बिी किा चकेु थे। उिके साथ ही तफतीश कििे आ पहंुचा। िाम था अलायाि खां।

शाम हो गयी थी। थािेदाि िे मकाि के अगवाडे-िपछवाडे घूम-घूमकि देखा। अनदि जाकि ििमलम ा के कमिे को गौि से देखा। ऊपि की मुंडेि की जांच की। मुहलले के दो-चाि आदिमयो से चुपके-चपुके कुछ बाते की औि तब मुंशीजी से बोले- जिाब, खुदा की कसम, यह िकसी बाहि के आदमी का काम िहीं। खुदा की कसम, अगि कोई बाहि की आमदी ििकले, तो आज से थािेदािी कििा छोड दं।ू आपके घि मे कोई मुलािजम ऐसा तो िहीं है, िजस पि आपको शुबहा हो।

मुंशीजी- घि मे तो आजकल िसफम एक महिी है।थािेदाि-अजी, वह पगली है। यह िकसी बडे शािति का काम है, खुदा

की कसम। 136

Page 137: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

मुंशीजी- तो घि मे औि कौि है? मेिे दोिे लडके है, िी है औि बहि है। इिमे से िकस पि शक करं?

थािेदाि- खुदा की कसम, घि ही के िकसी आदमी का काम है, चाहे, वह कोई हो, इनशाअललाह, दो-चाि िदि मे मै आपको इसकी खबि दंगूा। यह तो िहीं कह सकता िक माल भी सब िमल जायेगा, पि खुदा की कसम, चोि जरि पकड िदखाऊंगा।

थािेदाि चला गया, तो मुंशीजी िे आकि ििमलम ा से उसकी बाते कहीं। ििमलम ा सहम उठी- आप थािेदाि से कह दीिजए, तफतीश ि किे, आपके पिैो पडती हंू।

मुंशीजी- आिखि कयो?ििमलम ा- अब कयो बताऊं? वह कह िहा है िक घि ही के िकसी का काम

है। मुंशीजी- उसे बकिे दो।िजयािाम अपिे कमिे मे बैठा हुआ भगवाि ् को याद कि िहा था।

उसक मुंह पि हवाइयां उड िही थीं। सुि चकुा थािक पुिलसवाले चेहिे से भांप जाते है। बाहि ििकलिे की िहममत ि पडती थी। दोिो आदिमयो मे कया बाते हो िही है, यह जाििे के िलए छटपटा िहा था। जयोही थािेदाि चला गया औि भूंगी िकसी काम से बाहि ििकली, िजयािाम िे पूछा-थािेदाि कया कि िहा था भूंगी?

भूंगी िे पास आकि कहा- दाढीजाि कहता था, घि ही से िकसी आदमी का काम है, बाहि को कोई िहीं है।

िजयािाम- बाबूजी िे कुछ िहीं कहा?भूंगी- कुछ तो िहीं कहा, खडे ‘हंू-हंू’ किते िहे। घि मे एक भूगंी ही गिै

है ि! औि तो सब अपिे ही है।िजयािाम- मै भी तो गैि हंू, तू ही कयो?भूंगी- तुम गिै काहे हो भैया?िजयािाम- बाबजूी िे थािेदाि से कहा िहीं, घि मे िकसी पि उिका

शुबहा िहीं है।भूंगी- कुछ तो कहते िहीं सुिा। बेचािे थािेदाि िे भले ही कहा- भूंगी

तो पगली है, वह कया चोिी किेगी। बाबूजी तो मुझे फंसाये ही देते थे।

137

Page 138: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

िजयािाम- तब तो तू भी ििकल गयी। अकेला मै ही िह गया। तू ही बता, तूिे मुझे उस िदि घि मे देखा था?

भूंगी- िहीं भैया, तुम तो ठेठि देखिे गये थे।िजयािाम- गवाही देगी ि?

भूंगी- यह कया कहते हो भैया? बहूजी तफतीश बनद कि देगी।िजयिाम- सच?

भूंगी- हां भैया, बाि-बाि कहती है िक तफतीश ि किाओ। गहिे गये,

जािे दो, पि बाबूजी मािते ही िहीं। पांच-छ: िदि तक िजयािाम िे पेट भि भोजि िहीं िकया। कभी दो-

चाि कौि खा लेता, कभी कह देता, भूख िहीं है। उसके चेहिे का िंग उडा िहता था। िाते जागते कटतीं, पितकण थािेदाि की शकंा बिी िहती थी। यिद वह जािता िक मामला इतिा तूल खींचेगा, तो कभी ऐसा काम ि किता। उसिे तो समझा था- िकसी चोि पि शुबहा होगा। मेिी तिफ िकसी का धयाि भी ि जायेगा, पि अब भणडा फूटता हुआ मालूम होता था। अभागा थािेदाि िजस ढंगे से छाि-बीि कि िहा था, उससे िजयािाम को बडी शकंा हो िही थी।

सातवे िदि संधया समय घि लौटा तो बहुत िचिनतत था। आज तक उसे बचिे की कुछ-ि-कुछ आशा थी। माल अभी तक कहीं बिामद ि हुआ था, पि आज उसे माल के बिामद होिे की खबि िमल गयी थी। इसी दम थािेदाि कांसटेिबल के िलए आता होगा। बचिे को कोई उपाय िहीं। थािेदाि को ििशत देिे से समभव है मकुदमे को दबा दे, रपये हाथ मे थे, पि कया बात िछपी िहेगी? अभी माल बिामद िही हुआ, िफि भी सािे शहि मे अफवाह थी िक बेटे िे ही माल उडाया है। माल िमल जािे पि तो गली-गली बात फैल जायेगी। िफि वह िकसी को मुंह ि िदखा सकेगा।

मुंशीजी कचहिी से लौटे तो बहुत घबिाये हुए थे। िसि थामकि चािपाई पि बैठ गये।

ििमलम ा िे कहा- कपडे कयो िहीं उतािते? आज तो औि िदिो से देि हो गयी है।

मुंशीजी- कया कपडे ऊतारं? तुमिे कुछ सुिा?ििमलम ा- कय बात है? मैिे तो कुछ िहीं सुिा?मुंशीजी- माल बिामद हो गया। अब िजया का बचिा मुिशकल है।

138

Page 139: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

ििमलम ा को आशय म िहीं हुआ। उसके चेहिे से ऐसा जाि पडा, मािो उसे यह बात मालूम थी। बोली- मै तो पहले ही कि िही थी िक थािे मे इतला मत कीिजए।

मुंशीजी- तुमहे िजया पि शका था?ििमलम ा- शक कयो िहीं था, मैिे उनहे अपिे कमिे से ििकलते देखा

था। मुंशीजी- िफि तुमिे मुझसे कयो ि कह िदया?ििमलम ा- यह बात मेिे कहिे की ि थी। आपके िदल मे जरि खयाल

आता िक यह ईषयावम श आकेप लगा िही है। किहए, यह खयाल होता या िहीं? झूठ ि बोिलएगा।

मुंशीजी- समभव है, मै इनकाि िहीं कि सकता। िफि भी उसक दशा मे तुमहे मुझसे कह देिा चािहए था। ििपोटम की िौबत ि आती। तुमिे अपिी िेकिामी की तो- िफक की, पि यह ि सोचा िक पििणाम कया होगा? मै अभी थािे मे चला आता हंू। अलायाि खां आता ही होगा!

ििमलम ा िे हताश होकि पूछा- िफि अब?

मुंशीजी िे आकाश की ओि ताकते हुए कहा- िफि जैसी भगवाि ्की इचछा। हजाि-दो हजाि रपये ििशत देिे के िलए होते तो शायद मामेला दब जाता, पि मेिी हालत तो तुम जािती हो। तकदीि खोटी है औि कुछ िहीं। पाप तो मैिे िकया है, दणड कौि भोगेगा? एक लडका था, उसकी वह दशा हुई,

दसूिे की यह दशा हो िही है। िालायक था, गुसताख था, गसुताख था, कामचोि था, पि था ता अपिा ही लडका, कभी-ि-कभी चेत ही जाता। यह चोट अब ि सही जायेगी।

ििमलम ा- अगि कुछ दे-िदलाकि जाि बच सके, तो मै रपये का पबनध कि दं।ू

मुंशीजी- कि सकती हो? िकतिे रपये दे सकती हो?ििमलम ा- िकतिा दिकाि होगा?मुंशीजी- एक हजाि से कम तो शायद बातचीत ि हो सके। मैिे एक

मुकदमे मे उससे एक हजाि िलए थे। वह कसि आज ििकालेगा।ििमलम ा- हो जायेगा। अभी थािे जाइए।मुंशीजी को थािे मे बडी देि लगी। एकानत मे बातचीत कििे का बहुत

देि मे मौका िमला। अलायाि खां पुिािा घाघ थ। बडी मुिशकल से अणटी पि 139

Page 140: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

चढा। पांच सौ रवये लेकि भी अहसाि का बोझा िसि पि लाद ही िदया। काम हो गया। लौटकि ििमलम ा से बोला- लो भाई, बाजी माि ली, रपये तुमिे िदये, पि काम मेिी जबाि ही िे िकया। बडी-बडी मुिशकलो से िाजी हो गया। यह भी याद िहेगी। िजयािाम भोजि कि चकुा है?

ििमलम ा- कहां, वह तो अभी घूमकि लौटे ही िहीं।मुंशीजी- बािह तो बज िहे होगे।ििमलम ा- कई दफे जा-जाकि देख आयी। कमिे मे अंधेिा पडा हुआ है।मुंशीजी- औि िसयािाम?

ििमलम ा- वह तो खा-पीकि सोये है।मुंशीजी- उससे पछूा िहीं, िजया कहां गया?ििमलम ा- वह तो कहते है, मुझसे कुछ कहकि िहीं गये।मुंशीजी को कुछ शंका हुई। िसयािाम को जगाकि पछूा- तुमसे

िजयािाम िे कुछ कहा िहीं, कब तक लौटेगा? गया कहां है?

िसयािाम िे िसि खजुलाते औि आखंो मलते हुए कहा- मुझसे कुछ िहीं कहा।

मुंशीजी- कपडे सब पहिकि गया है?

िसयािाम- जी िहीं, कुता म औि धोती। मुंशीजी- जाते वक खुश था?िसयािाम- खुश तो िहीं मालूम होते थे। कई बाि अनदि आिे का

इिादा िकया, पि देहिी से ही लौट गये। कई िमिट तक सायबाि मे खडे िहे। चलिे लगे, तो आंखे पोछ िहे थे। इधि कई िदि से अकसा िोया किते थे।

मुंशीजी िे ऐसी ठंडी सांस ली, मािो जीवि मे अब कुछ िहीं िहा औि ििमलम ा से बोले- तुमिे िकया तो अपिी समझ मे भले ही के िलए, पि कोई शतु भी मुझ पि इससे कठािे आघात ि कि सकता था। िजयािाम की माता होती, तो कया वह यह संकोच किती? कदािप िहीं।

ििमलम ा बोली- जिा डॉकटि साहब के यहां कयो िहीं चले जाते? शायद वहां बठेै हो। कई लडके िोज आते है, उिसे पूिछए, शायद कुछ पता लग जाये। फंूक -फंूककि चलिे पि भी अपयश लग ही गया।

मुंशीजी िे मािो खुली हुई िखडकी से कहा- हां, जाता हंू औि कया करंगा।

140

Page 141: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

मुंशीज बाहि आये तो देखा, डॉकटि िसनहा खडे है। चौककि पूछा- कया आप देि से खडे है?

डॉकटि- जी िहीं, अभी आया हंू। आप इस वक कहां जा िहे है? साढे बािह हो गये है।

मुंशीजी- आप ही की तिफ आ िहा था। िजयािाम अभी तक घूमकि िहीं आया। आपकी तिफ तो िहीं गया था?

डॉकटि िसनहा िे मुंशीजी के दोिो हाथ पकड िलए औि इतिा कह पाये थे, ‘भाई साहब, अब धयै म से काम..’ िक मुंशीजी गोली खाये हुए मिुषय की भांित जमीि पि िगि पडे।

इककीस

िकमणी िे ििमलम ा से तयािियां बदलकि कहा- कया िगें पांव ही मदिसे जायेगा?रििमलम ा िे बचची के बाल गूथंते हुए कहा- मै कया करं? मेिे पास रपये

िहीं है।रिकमणी- गहिे बिवािे को रपये जुडते है, लडके के जतूो के िलए

रपयो मे आग लग जाती है। दो तो चले ही गये, कया तीसिे को भी रला-रलाकि माि डालिे का इिादा है?

ििमलम ा िे एक सांस खींचकि कहा- िजसको जीिा है, िजयेगा, िजसको मििा है, मिेगा। मै िकसी को माििे-िजलािे िहीं जाती।

आजकल एक-ि-एक बात पि ििमलम ा औि रिकमणी मे िोज ही झडप हो जाती थी। जब से गहिे चोिी गये है, ििमलम ा का सवभाव िबलकुल बदल गया है। वह एक-एक कौडी दांत से पकडिे लगी है। िसयािाम िोते-िोते चहे जाि दे दे, मगि उसे िमठाई के िलए पसेै िहीं िमलते औि यह बतावम कुछ िसयािाम ही के साथ िहीं है, ििमलम ा सवयं अपिी जरितो को टालती िहती है। धोती जब तक फटकिि ताि-ताि ि हो जाये, ियी धोती िहीं आती। महीिो िसि का तेल िहीं मंगाया जाता। पाि खािे का उसे शौक था, कई-कई िदि तक पािदाि खाली पडा िहता है, यहां तक िक बचची के िलए दधू भी िहीं आता। िनहे से िशशु का भिवषय िविाट रप धािण किके उसके िवचाि-

केत पि मंडिाता िहता ।141

Page 142: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

मुंशीजी िे अपिे को समपूणतम या ििमलम ा के हाथो मे सौप िदया है। उसके िकसी काम मे दखल िहीं देते। ि जािे कयो उससे कुछ दबे िहते है। वह अब िबिा िागा कचहिी जाते है। इतिी मेहित उनहोिे जवािी मे भी ि की थी। आखें खिाब हो गयी है, डॉकटि िसनहा िे िात को िलखिे-पढिे की मुमुिियत कि दी है, पाचिशिक पहले ही दबुलम थी, अब औि भी खिाब हो गयी है, दमे की िशकायत भी पैदा ही चली है, पि बेचािे सबेिे से आधी-आधी िात तक काम किते है। काम कििे को जी चाहे या ि चाहे, तबीयत अचछी हो या ि हो, काम कििा ही पडता है। ििमलम ा को उि पि जिा भी दया आती। वही भिवषय की भीषण िचनता उसके आनतििक सदावो को सविम ाश कि िही है। िकसी िभककु की आवाज सुिकि झलला पडती है। वह एक कोडी भी खच म कििा िहीं चाहती ।

एक िदि ििमलम ा िे िसयािाम को घी लािे के िलए बाजाि भेजा। भूंगी पि उिका िवशास ि था, उससे अब कोई सौदा ि मांगती थी। िसयािाम मे काट-कपट की आदत ि थी। औिे-पौिे कििा ि जािता था। पाय: बाजाि का सािा काम उसी को कििा पडता। ििमलम ा एक-एक चीज को तोलती, जिा भी कोई चीज तोल मे कम पडती, तो उसे लौटा देती। िसयािाम का बहुत-सा समय इसी लौट-फेिी मे बीत जाता था। बाजाि वाले उसे जलदी कोई सौदा ि देते। आज भी वही िौबत आयी। िसयािाम अपिे िवचाि से बहुत अचछा घी, कई दकूािि से देखकि लाया, लेिकि ििमलम ा िे उसे सूंघते ही कहा- घी खिाब है, लौटा आओ।

िसयािाम िे झुंझलाकि कहा- इससे अचछा घी बाजाि मे िहीं है, म ैसािी दकूािे देखकि लाया हंू?

ििमलम ा- तो मै झूठ कहती हंू?

िसयािाम- यह मै िहीं कहता, लेिकि बििया अब घी वािपस ि लेगा। उसिे मुझसे कहा था, िजस तिह देखिा चाहो, यहीं देखो, माल तुमहािे सामिे है। बोिहिी-बटटे के वक मे सौदा वापस ि लूंगा। मैिे सूंघकि, चखकि िलया। अब िकस मुंह से लौटिे जाऊ?

ििमलम ा िे दांत पीसकि कहा- घी मे साफ चिबी िमली हुई है औि तुम कहते हो, घी अचछा है। मै इसे िसोई मे ि ले जाऊंगी, तुमहािा जी चाहे लौटा दो, चाहे खा जाओ।

142

Page 143: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

घी की हांडी वहीं छोडकि ििमलम ा घि मे चली गयी। िसयािाम कोध औि कोभ से काति हो उठा। वह कौि मुंह लेकि लौटािे जाये? बििया साफ कह देगा- मै िहीं लौटाता। तब वह कया किेगा? आस-पास के दस-पांच बििये औि सडक पि चलिे वाले आदमी खाडे हो जायेगे। उि सबो के सामिे उसे लिजजत होिा पडेगा। बाजाि मे यो ही कोई बििया उसे जलदी सौदा िहीं देता, वह िकसी दकूाि पि खडा होिे िहीं पाता। चािो ओि से उसी पि लताड पडेगी। उसिे मि-ही-मि झुंझलाकि कहा- पडा िहे घी, मै लौटािे ि जाऊंगा।

मातृ-हीि बालक के समाि दखुी, दीि-पाणी संसाि मे दसूिा िहीं होता औि सािे दु:ख भूल जाते है। बालक को माता याद आयी, अममां होती, तो कया आज मुझे यह सब सहिा पडता? भैया चले गये, मै ही अकेला यह िवपित सहिे के िलए कयो बचा िहा? िसयािाम की आखंो मे आंसू की झडी लग गयी। उसके शोक काति कणठ से एक गहिे िि:शास के साथ िमले हुए ये शबद ििकल आये- अममां! तुम मुझे भूल कयो गयीं, कयो िहीं बुला लेतीं?

सहसा ििमलम ा िफि कमिे की तिफ आयी। उसिे समझा था, िसयािाम चला गया होगा। उसे बैठा देखा, तो गुससे से बोली- तुम अभी तक बैठे ही हो? आिखि खािा कब बिेगा?

िसयािाम िे आंखे पोड डालीं। बोला- मुझे सकूल जािे मे देि हो जायेगी।

ििमलम ा- एक िदि देि हो जायेगी तो कौि हिज है? यह भी तो घि ही का काम है?

िसयािाम- िोज तो यही धनधा लगा िहता है। कभी वक पि सकूल िहीं पहंुचता। घि पि भी पढिे का वक िहीं िमलता। कोई सौदा दो-चाि बाि लौटाये िबिा िहीं जाता। डांट तो मुझ पि पडती है, शिमदि ा तो मुझे होिा पडता है, आपको कया?

ििमलम ा- हां, मुझे कया? मै तो तुमहािी दशुमि ठहिी! अपिा होता, तब तो उसे दु:ख होता। मै तो ईशि से मािाया किती हंू िक तुम पढ-िलख ि सको। मुझमे सािी बुिाइयां-ही-बुिाइयां है, तुमहािा कोई कसिू िहीं। िवमाता का िाम ही बुिा होता है। अपिी मां िवष भी िखलाये, तो अमतृ है; मै अमतृ भी िपलाऊं, तो िवष हो जायेगा। तुम लोगो के कािण मे िमटटी मे िमल गयी, िोते-िोत उम काटी जाती है, मालूम ही ि हुआ िक भगवाि िे िकसिलए जनम िदया था औि तुमहािी समझ मे मै िवहाि कि िही हंू। तुमहे सतािे मे

143

Page 144: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

मुझे बडा मजा आता है। भगवाि ्भी िहीं पछूते िक सािी िवपित का अनत हो जाता।

यह कहते-कहते ििमलम ा की आखें भि आयी। अनदि चली गयी। िसयािाम उसको िोते देखकि सहम उठा। गलाििक तो िहीं आयी; पि शंका हुई िक िे जािे कौि-सा दणड िमले। चुपके से हांडी उठा ली औि घी लौटािे चला, इस तिह जसेै कोई कुता िकसी िये गांव मे जाता है। उसे देखकि साधािण बुिद का मिुषय भी आिुमाि कि सकता था िक वह अिाथ है।

िसयािाम जयो-जयो आगे बढता था, आिेवाले संगाम के भय से उसकी हदय-गित बढती जाती थी। उसिे ििशय िकया-बििये िे घी ि लौटाया, तो वह घी वहीं छोडकि चला आयेगा। झख मािकि बििया आप ही बुलायेगा। बििये को डांटिे के िलए भी उसिे शबद सोच िलए। वह कहेगा- कयो साहूजी, आंखो मे धलू झोकते हो? िदखाते हो चोखा माल औि औि देते ही िदी माल?

पि यह ििशय कििे पि भी उसके पैि आगे बहुत धीिे-धीिे उठते थे। वह यह ि चाहता था, बििया उसे आता हुआ देखे, वह अकसमात ्ही उसके सामिे पहंुच जािा चाहता था। इसिलए वह चककाि काटकि दसूिी गली से बििये की दकूाि पि गया।

बििये िे उसे देखते ही कहा- हमिे कह िदया था िक हमे सौदा वापस ि लेगे। बोलो, कहा था िक िहीं।

िसयािाम िे िबगडकि कहा- तुमिे वह घी कहां िदया, जो िदखाया था?

िदखाया एक माल, िदया दसूिा माल, लौटाओगे कैसे िहीं? कया कुछ िाहजिी है?

साह- इससे चोखा घी बाजाि मे ििकल आये तो जिीबािा दं।ू उठा लो हांडी औि दो-चाि दकूाि देख आओ।

िसयािाम- हमे इतिी फुसतम िहीं है। अपिा घी लौटा लो।साह- घी ि लौटेगा।बििये की दकुाि पि एक जटाधािी साधू बठैा हुआ यह तमाश देख

िहा था। उठकि िसयािाम के पास आया औि हांडी का घी सूंघकि बोला- बचचा, घी तो बहुत अचछा मालूम होता है।

साह सिे शह पाकि कहा- बाबाजी हम लोग तो आप ही इिको घिटया माल िहीं देते। खिाब माल कया जािे-सुिे गाहको को िदया जाता है?

साधु- घी ले जाव बचचा, बहुत अचछा है।144

Page 145: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

िसयािाम िो पडा। घी को बिुा िसदा कििे के िलए उसके पास अब कया पमाण था? बोला- वही तो कहती है, घी अचछा िहीं है, लौटा आओ। म ैतो कहता था िक घी अचछा है।

साधु- कौि कहता है?

साह- इसकी अममां कहती होगी। कोई सौदा उिके मि ही िहीं भाता।बेचािे लडके को बाि-बाि दौडाया किती है। सौतेली मां है ि! अपिी मां

हो तो कुछ खयाल भी किे।साधु िे िसयिाम को सदय िेतो से देखा, मािो उसे ताण देिे के िलए

उिका हदय िवकल हो िहा है। तब करण सवि से बोले- तुमहािी माता का सवगवम ास हुए िकतिे िदि हुए बचच?

िसयािाम- छठा साल है।साधु- ता तुम उस वक बहुत ही छोटे िहे होगे। भगेवाि ्तुमहािी लीला

िकतिी िविचत है। इस दधुमुंहे बालक को तुमिे मात ्-पेम से वंिचत कि िदया। बडा अिथ म किते हो भगवाि ्! छ: साल का बालक औि िाकसी िवमाता के पािले पडे! धनय हो दयािििध! साहजी, बालक पि दया किो, घी लौटा लो, िहीं तो इसकी मात इसे घि मे िहिे ि देगी। भगवाि की इचछा से तुमहािा घी जलद िबक जायेगा। मेिा आशीवादम तुमहािे साथ िहेगां

साहजी िे रपये वापस ि िकये। आिखि लडके को िफि घी लेिे आिा ही पडेगा। ि जािे िदि मे िकतिी बाि चककि लगािा पडे औि िकस जािलये से पाला पडे। उसकी दकुाि मे जो घी सबसे अचछा था, वह िसयािाम िदल से सोच िहा था, बाबाजी िकतिे दयालु है? इनहोिे िसफाििश ि की होती, तो साहजी कयो अचछा घी देते?

िसयािाम घी लेकि चला, तो बाबाजी भी उसके साथ ही िलये। िासते मेमीठी-मीठी बाते कििे लगे।

‘बचचा, मेिी माता भी मुझे तीि साल का छोडकि पिलोक िसधािी थीं। तभी से मात-ृिवहीि बालको को देखता हंू तो मेिा हदय फटिे लगता है।’

िसयािाम िे पछूा- आपके िपताजी िे भी तो दसूिा िववाह कि िलया था?

साधु- हां, बचचा, िहीं तो आज साधु कयो होता? पहले तो िपताजी िववाह ि किते थे। मुझे बहुत पयाि किते थे, िफि ि जािे कयो मि बदल गया, िववाह कि िलया। साधु हंू, कटु वचि मुंह से िहीं ििकालिा चािहए, पि मेिी

145

Page 146: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

िवमात िजतिी ही सुनदि थीं, उतिी ही कठोि थीं। मुझे िदि-िदि-भि खािे को ि देतीं, िोता तो माितीं। िपताजी की आंखे भी िफि गयीं। उनहे मेिी सूित से घणृा होिे लगी। मेिा िोिा सुिकि मुझे पीटिे लगते। अनत को मै एक िदि घि से ििकल खडा हुआ।

िसयािाम के मि मे भी घि से ििकल भागिे का िवचाि कई बाि हुआ था। इस समय भी उसके मि मे यही िवचाि उठ िहा था। बडी उतसुकता से बोला-घि से ििकलकि आप कहां गये?

बाबाजी िे हंसकि कहा- उसी िदि मेिे सािे किो का अनत हो गया िजस िदि घि के मोह-बनधि से छूटा औि भय मि से ििकला, उसी िदि मािो मेिा उदाि हो गया। िदि भि मै एक पुल के िीचे बठैा िहा। संधया समय मुझे एक महातमा िमल गये। उिका सवामी पिमािनदजी था। वे बाल-

बहचािी थे। मुझ पि उनहोिे दया की औि अपिे साथ िख िलया। उिके साथ िख िलया। उिके साथ मै देश-देशानतिो मे घूमिे लगा। वह बडे अचछे योगी थे। मुझे भी उनहोिे योग-िवदा िसखाई। अब तो मेिे को इतिा अभयास हो येगया है िक जब इचछा होती है, माताजी के दशिम कि लेता हंू, उिसे बात कि लेता हंू।

िसयािाम िे िवसफािित िेतो से देखकि पछूा- आपकी माता का तो देहानत हो चुका था?

साधु- तो कया हुआ बचच, योग-िवदा मे वह शिक है िक िजस मतृ-

आतम को चाहे, बुला ले।िसयािाम- मै योग-िवदा सीख ्लू,ं तो मुझे भी माताजी के दशिम होगे?

साधु- अवशय, अभयास से सब कुछ हो सकता है। हां, योगय गुर चािहए। योग से बडी-बडी िसिदयां पाप हो सकती है। िजतिा धि चाहो, पल-मात मे मंगा सकते हो। कैसी ही बीमािी हो, उसकी औषिध अता सकते हो।

िसयािाम- आपका सथाि कहां है?

साधु- बचचा, मेिे को सथाि कहीं िहीं है। देश-देशानतिो से िमता िफिता हंू। अचछा, बचचा अब तुम जाओ, मै। जिा सिाि-धययाि कििे जाऊंगा।

िसयिाम- चिलए मै भी उसी तिफ चलता हंू। आपके दशिम से जी िहीं भिा।

साधु- िहीं बचचा, तुमहे पाठशाला जािे की देिी हो िही है।146

Page 147: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

िसयिाम- िफि आपके दशिम कब होगे?

साधु- कभी आ जाऊंगा बचचा, तुमहािा घि कहां है?

िसयािाम पसनि होकि बोला- चिलएगा मेिे घि? बहुत िजदीक है। आपकी बडी कृपा होगी।

िसयािाम कदम बढाकि आगे-आगे चलिे लगा। इतिा पसनि था, मािो सोिे की गठिी िलए जाता हो। घि के सामिे पहंुचकि बोला- आइए,

बैिठए कुछ देि। साधु- िहीं बचचा, बठंूैगा िहीं। िफि कल-पिसो िकसी समय आ

जाऊंगा। यही तुमहािा घि है?

िसयािाम- कल िकस वक आइयेगा?साधु- ििशय िहीं कह सकता। िकसी समय आ जाऊंगा। साधु आगे बढे, तो थोडी ही दिू पि उनहे एक दसूिा साधु िमला। उसका

िाम था हििहिािनद।पिमािनद से पूछा- कहां-कहां की सैि की? कोई िशकाि फंसा?हििहिािनद- इधिा चािो तिफ घूम आया, कोई िशकाि ि िमलां एकाध

िमला भी, तो मेिी हंसी उडािे लगा।पिमािनद- मुझे तो एक िमलता हुआ जाि पडता है! फंस जाये तो

जािूं। हििहिािनद- तुम यो ही कहा किते हो। जो आता है, दो-एक िदि के

बाद ििकल भागता है।पिमािनद- अबकी ि भागेगा, देख लेिा। इसकी मां मि गयी है। बाप

िे दसूिा िववाह कि िलया है। मां भी सताया किती है। घि से ऊबा हुआ है।हििहिािनद- खूब अचछी तिह। यही तिकीब सबसे अचछी है। पहले

इसका पता लगा लेिा चािहए िक मुहलले मे िकि-िकि घिो मे िवमाताएं है?

उनहीं घिो मे फनदा डालिा चािहए।

बा ईस

ििमलम ा िे िबगडकि कहा- इतिी देि कहां लगायी?िसयािाम िे िढठाई से कहा- िासते मे एक जगह सो गया था।

147

Page 148: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

ििमलम ा- यह तो मै िहीं कहती, पि जािते हो कै बज गये है? दस कभी के बज गये। बाजाि कुद दिू भी तो िहीं है।

िसयािाम- कुछ दिू िहीं। दिवाजे ही पि तो है।ििमलम ा- सीधे से कयो िहीं बोलते? ऐसा िबगड िहे हो, जैसे मेिा ही कोई

कामे कििे गये हो?िसयािाम- तो आप वयथ म की बकवास कयो किती है? िलया सौदा

लौटािा कया आसाि काम है? बििये से घंटो हुजजत कििी पडी यह तो कहो, एक बाबाजी िे कह-सुिकि फेिवा िदया, िहीं तो िकसी तिह ि फेिता। िासते मे कहीं एक िमिट भी ि रका, सीधा चला आता हंू।

ििमलम ा- घी के िलए गये-गये, तो तुम गयािह बजे लौटे हो, लकडी के िलए जाओगे, तो सांझ ही कि दोगे। तुमहािे बाबजूी िबिा खाये ही चले गये। तुमहे इतिी देि लगािी था, तो पहले ही कयो ि कह िदया? जाते ही लकडी के िलए।

िसयािाम अब अपिे को संभाल ि सका। झललाकि बोला- लकडी िकसी औि से मंगाइए। मुझे सकूल जािे को देि हो िही है।

ििमलम ा- खािा ि खाओगे?िसयािाम- ि खाऊंगा।ििमलम ा- मै खािा बिािे को तैयाि हंू। हां, लकडी लािे िहीं जा सकती। िसयािाम- भूंगी को कयो िहीं भेजती?ििमलम ा- भूंगी का लाया सौदा तुमिे कभी देखा िहीं है?

िसयािाम- तो मै इस वक ि जाऊंगा।ििमलम ा- मुझे दोष ि देिा।िसयािाम कई िदिो से सकूल िहीं गया था। बाजाि-हाट के मािे उसे

िकताबे देखिे का समय ही ि िमलता था। सकूल जाकि िझडिकयां खाि, से बेच पि खडे होिे या ऊंची टोपी देिे के िसवा औि कया िमलता? वह घि से िकताबे लेकि चलता, पि शहि के बाहि जाकि िकसी वकृ की छांह मे बठैा िहता या पलटिो की कवायद देखता। तीि बजे घि से लौट आता। आज भी वह घि से चला, लेिकि बैठिे मे उसका जी ि लगा, उस पि आंते अल ग जल िही थीं। हा! अब उसे िोिटयो के भी लाले पड गये। दस बजे कया खािा ि बि सकता था? मािा िक बाबूजी चले गये थे। कया मेिे िलए घि मे दो-

148

Page 149: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

चाि पैसे भी ि थे? अममां होतीं, तो इस तिह िबिा कुछ खाये-िपये आिे देतीं? मेिा अब कोई िहीं िहा।

िसयािाम का मि बाबाजी के दशिम के िलए वयाकुल हो उठा। उसिे सोचा- इस वक वह कहां िमलेगे? कहां चलकि देखूं? उिकी मिोहि वाणी, उिकी उतसाहपद सानतविा, उसके मि को खींचिे लगी। उसिे आतुि होकि कहा- मै उिके साथ ही कयो ि चला गया? घि पि मेिे िलए कया िखा था?

वह आज यहां से चला तो घि ि जाकि सीधा घी वाले साहजी की दकुाि पि गया। शायद बाबाजी से वहां मुलाकात हो जाये, पि वहां बाबाजी ि थे। बडी देि तक खडा-खडा लौट आया।

घि आकि बठैा ही था िकस ििमलम ा िे आकि कहा- आज देि कहां लगाई? सवेिे खािा िहीं बिा, कया इस वक भी उपवास होगा? जाकि बाजाि से कोई तिकािी लाओ।

िसयािाम िे झललाकि कहा- िदिभि का भूखा चला आता हंू; कुछ पीिी पीिे तक को लाई िहीं, ऊपि से बाजाि जािे का हुकम दे िदया। मै िहीं जाता बाजाि, िकसी का िौकि िहीं हंू। आिखि िोिटयां ही तो िखलाती हो या औि कुछ? ऐसी िोिटयां जहां मेहित करंगा, वहीं िमल जायेगी। जब मजूिी ही कििी है, तो आपकी ि करंगा, जाइए मेिे िलए खािा मत बिाइएगा।

ििमलम ा अवाक् िह गयी। लडके को आज कया हो गया? औि िदि तो चुपके से जाकि काम कि लाता था, आज कयो तयोिियां बदल िहा है? अब भी उसको यह ि सूझी िक िसयािाम को दो-चाि पसेै कुछ खािे के दे दे। उसका सवभाव इतिा कृपण हो गया था, बोली- घि का काम कििा तो मजिूी िहीं कहलाती। इसी तिह मै भी कह दं ूिक मै खािा िहीं पकाती , तुमहािे बाबजूी कह दे िक कचहिी िहीं जाता, तो कया हो बताओ? िहीं जािा चाहते,

तो मत जाओ, भूंगी से मंगा लूंगी। मै कया जािती थी िक तुमहे बाजाि जािा बुिा लगता है, िहीं तो बला से धेले की चीज पैसे मे आती, तुमहे ि भेजती। लो, आज से काि पकडती हंू।

िसयािाम िदल मे कुछ लिजजत तो हुआ, पि बाजाि ि गया। उसका धयाि बाबाजी की ओि लगा हुआ था। अपिे सािे दखुो का अनत औि जीवि की सािी आशाएं उसे अब बाबाजी क आशीवादम मे मालूम होती थीं। उनहीं की शिण जाकि उसका यह आधािहीि जीवि साथकम होगा। सूयासम त के समय वह अधीि हो गया। सािा बाजाि छाि मािा, लेिकि बाबाजी का कहीं पता ि

149

Page 150: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

िमला। िदिभि का भूख-पयासा, वह अबोध बालक दखुते हुए िदल को हाथो से दबाये, आशा औि भय की मूित म बिा, दकुािो, गािलयो औि मिनदिो मे उस आशमे को खोजता िफिता था, िजसके िबिा उसे अपिा जीवि दसुसह हो िहा था। एक बाि मिनदि के सामिे उसे कोई साधु खडा िदखाई िदया। उसिे समझा वही है। हषोललास से वह फूल उठा। दौडा औि साधु के पास खडा हो गया। पि यह कोई औि ही महातमा थे। िििाश हो कि आगे बढ गया।

धािे-धीिे सडको पि सनिाटा दा गया, घिो के दािा बनद होिे लगे। सडक की पटिियो पि औि गिलयो मे बंसखटे या बोिे िबछा-िबछाकि भाित की पजा सुख-ििदा मे मगि होिे लगी, लेिकि िसयािाम घि ि लौटा। उस घि से उसक िदल फट गया था, जहां िकसी को उससे पेम ि था, जहां वह िकसी पिािशत की भांित पडा हुआ था, केवल इसीिलए िक उसे औि कहीं शिण ि थी। इस वक भी उसके घि ि जािे को िकसे िचनता होगी? बाबजूी भोजि किके लेटे होगे, अममांजी भी आिाम कििे जा िही होगी। िकसी िे मेिे कमिे की ओि झांककि देखा भी ि होगा। हां, बुआजी घबिा िही होगी, वह अभी तक मेिी िाह देखती होगी। जब तक मै ि जाऊंगा, भोजि ि किेगी।

रिकमणी की याद आते ही िसयािाम घि की ओि चल िदया। वह अगि औि कुछ ि कि सकती थी, तो कम-से-कम उसे गोद मे िचमटाकि िोती थी? उसके बाहि से आिे पि हाथ-मुंह धोिे के िलए पािी तो िख देती थीं। संसाि मे सभी बालक दधू की कुिललयो िहीं किते, सभी सोिे के कौि िहीं खाते। िकतिो के पेट भि भोजि भी िहीं िमलता; पि घि से िविक वही होते है, जो मात-ृसिेह से विंचत है।

िसयािाम घि की ओि चला ही िक सहसा बाबा पिमािनद एक गली से आते िदखायी िदये।

िसयािाम िे जाकि उिका हाथ पकड िलया। पिमािनद िे चौककि पूछा- बचचा, तुम यहां कहां?

िसयािाम िे बात बिाकि कहा- एक दोसत से िमलिे आया था। आपका सथाि यहां से िकतिी दिू है?

पिमािनद- हम लोग तो आज यहां से जा िहे है, बचचा, हििदाि की याता है।

िसयािाम िे हतोतसाह होकि कहा- कया आज ही चले जाइएगा?150

Page 151: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

पिमािनद- हां बचचा, अब लौटकि आऊंगा, तो दशिम दंगूा?िसयािाम िे कात कंठ से कहा- मै भी आपके साथ चलूंगा।पिमािनद- मेिे साथ! तुमहािे घि के लोग जािे देगे?

िसयािाम- घि के लोगो को मेिी कया पिवाह है? इसके आगे िसयािाम औि कुछ सि कह सका। उसके अशु-पिूित िेतो िे उसकी करणा-गाथा उससे कहीं िवसताि के साथ सुिा दी, िजतिी उसकी वाणी कि सकती थी।

पिमािनद िे बालक को कंठ से लगाकि कहा- अचछा बचच, तेिी इचछा हो तो चल। साधु-सनतो की संगित का आिनद उठा। भगवाि ् की इचछा होगी, तो तेिी इचछा पूिी होगी।

दािे पि मणडिाता हुआ पकी अनत मे दािे पि िगि पडा। उसके जीवि का अनत िपजंिे मे होगा या वयाध की छुिी के तले- यह कौि जािता है?

तेईस

शीजी पांच बजे कचहिी से लौटे औि अनदि आकि चािपाई पि िगि पडे। बुढापे की देह, उस पि आज सािे िदि भोजि ि िमला। मुंह सूख

गया। ििमलम ा समझ गयी, आज िदि खाली गयां ििमलम ा िे पछूा- आज कुछ ि िमला।

मुं

मुंशीजी- सािा िदि दौडते गुजिा, पि हाथ कुछ ि लगा।ििमलम ा- फौजदािी वाले मामले मे कया हुआ?

मुंशीजी- मेिे मुविककल को सजा हो गयी।ििमलम ा- पंिडत वाले मुकदमे मे?

मुंशीजी- पिंडत पि िडगी हो गयी।ििमलम ा- आप तो कहते थे, दावा खििज हो जायेगा।मुंशीजी- कहता तो था, औि जब भी कहता हंू िक दावा खाििज हो

जािा चािहए था, मगि उतिा िसि मगजि कौि किे?

ििमलम ा- औि सीिवाले दावे मे?

मुंशीजी- उसमे भी हाि हो गयी।ििमलम ा- तो आज आप िकसी अभागे का मुंह देखकि उठे थे।

151

Page 152: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

मुंशीजी से अब काम िबलकुल ि हो सकता थां एक तो उसके पास मुकदमे आते ही ि थे औि जो आते भी थे, वह िबगड जाते थे। मगि अपिी असफलताओं को वह ििमलम ा से िछपाते िहते थे। िजस िदि कुछ हाथ ि लगता, उस िदि िकसी से दो-चाि रपये उधाि लाकि ििमलम ा को देते, पाय:

सभी िमतो से कुछ-ि-कुछ ले चकेु थे। आज वह डौल भी ि लगा।ििमलम ा िे िचनतापूण म सवि मे कहा- आमदिी का यह हाल है, तो ईशशि

ही मािलक है, उसक पि बेटे का यह हाल है िक बाजाि जािा मुिशकल है। भूंगी ही से सब काम किािे को जी चाहता है। घी लेकि गयािह बजे लौटा। िकतिा कहकि हाि गयी िक लकडी लेते आओ, पि सुिा ही िहीं।

मुंशीजी- तो खािा िहीं पकाया?ििमलम ा- ऐसी ही बातो से तो आप मकुदमे हािते है। ईधि के िबिा

िकसी िे खािा बिाया है िक मै ही बिा लेती?मुंशीजी- तो िबिा कुछ खाये ही चला गया।ििमलम ा- घि मे औि कया िखा था जो िखला देती?मुंशीजी िे डिते-डिते कहका- कुछ पैसे-वैसे ि दे िदये?

ििमलम ा िे भौहे िसकोडकि कहा- घि मे पैसे फलते है ि?

मुंशीजी िे कुछ जवाब ि िदया। जिा देि तक तो पतीका किते िहे िक शायद जलपाि के िलए कुछ िमलेगा, लेिकि जब ििमलम ा िे पािी तक ि मंगवाय, तो बेचािे िििाश होकि चले गये। िसयािाम के कि का अिुमाि किके उिका िचत चचलं हो उठा। एक बाि भूंगी ही से लकडी मंगा ली जाती, तो ऐसा कया िुकसाि हो जाता? ऐसी िकफायत भी िकस काम की िक घि के आदमी भूखे िह जाये। अपिा संदकूचा खोलकि टटोलिे लगे िक शायद दो-चाि आिे पैसे िमल जाये। उसके अनदि के सािे कागज ििकाल डाले, एक-एक, खािा देखा, िीचे हाथ डालकि देखा पि कुछ ि िमला। अगि ििमलम ा के सनदकू मे पैसे ि फलते थे, तो इस सनदकूचे मे शायद इसके फूल भी ि लगते हो, लेिकि संयोग ही किहए िक कागजो को झाडकते हुए एक चवनिी िगि पडी। मािे हष म के मुंशीजी उछल पडे। बडी-बडी िकमे इसके पहले कमा चकेु थे, पि यह चवनिी पाकि इस समय उनहे िजतिा आहाद हुआ, उिका पहले कभी ि हुआ था। चवनिी हाथ मे िलए हुए िसयािाम के कमिे के सामिे आकि पुकािा। कोई जवाब ि िमला। तब कमिे मे जाकि देखा। िसयािाम का कहीं पता िहीं- कया अभी सकूल से िहीं लौटा? मि मे

152

Page 153: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

यह पश उठते ही मुंशीजी िे अनदि जाकि भूंगी से पछूा। मालूम हुआ सकूल से लौट आये।

मुंशीजी िे पूछा- कुछ पािी िपया है?

भूंगी िे कुछ जवाब ि िदया। िाक िसकोडकि मुंह फेिे हुए चली गयी।मुंशीजी अिहसता-आिहसता आकि अपिे कमिे मे बैठ गये। आज पहली

बाि उनहे ििमलेा पि कोध आया, लेिकि एक ही कण कोध का आघात अपिे ऊपि होिे लगा। उस अंधेिे कमेिे मे फश म पि लेटे हुए वह अपिे पुत की ओि से इतिा उदासीि हो जािे पि िधककाििे लगे। िदि भि के थके थे। थोडी ही देि मे उनहे िींद आ गयी।

भूंगी िे आकि पुकािा- बाबजूी, िसोई तैयाि है।मुंशीजी चौककि उठ बैठे। कमिे मे लैमप जल िहा था पछूा- कै बज

गये भूंगी? मुझे तो िींद आ गयी थी।भूंगी िे कहा- कोतवाली के घणटे मे िौ बज गये है औि हम िाहीं

जािित।मुंशीजी- िसया बाबू आये?

भूंगी- आये होगे, तो घि ही मे ि होगे।मुंशीजी िे झललाकि पछूा- मै पछूता हंू, आये िक िहीं? औि तू ि जािे

कया-कया जवाब देती है? आये िक िहीं?भूंगी- मैिे तो िहीं देखा, झूठ कैसे कह दं।ूमुंशीजी िफि लेट गये औि बोले- उिको आ जािे दे, तब चलता हंू।आध घंटे दाि की ओि आंख लगाए मुंशीजी लेटे िहे, तब वह उठकि

बाहि आये औि दािहिे हाथ कोई दो फलागि तक चले। तब लौटकि दाि पि आये औि पछूा- िसया बाबू आ गये?

अनदि से आवाज आयी- अभी िहीं।मुंशीजी िफि बायीं ओि चले औि गली के िकुकड तक गये। िसयािाम

कहीं िदखाई ि िदया। वहां से िफि घि आये औि दािा पि खडे होकि पूछा- िसया बाबू आ गये?

अनदि से जवाब िमला- िहीं।कोतवाली के घंटे मे दस बजिे लगे।मुंशीजी बडे वेग से कमपिी बाग की तिफ चले। सोचि लगे, शायद

वहां घूमिे गया हो औि घास पि लेटे-लेट िींद आ गयी हो। बाग मे 153

Page 154: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

पहंुचकि उनहोिे हिेक बेच को देखा, चािो तिफ घूमे, बहुते से आदमी घास पि पडे हुए थे, पि िसयािाम का ििशाि ि था। उनहोिे िसयािाम का िाम लेकि जोि से पकुािा, पि कहीं से आवाज ि आयी।

खयाल आया शायद सकूल मे तमाशा हो िहा हो। सकूल एक मील से कुछ जयादा ही था। सकूल की तिफ चले, पि आधे िासते से ही लौट पडे। बाजाि बनद हो गया था। सकूल मे इतिी िात तक तमाशा िहीं हो सकता। अब भी उनहे आशा हो िही थी िक िसयािाम लौट आया होगा। दाि पि आकि उनहोिे पकुािा- िसया बाबू आये? िकवाड बनद थे। कोई आवाज ि आयी। िफि जोि से पकुािा। भूंगी िकवाड खोलकि बोली- अभी तो िहीं आये। मुंशीजी िे धीिे से भूंगी को अपिे पास बुलाया औि करण सवि मे बोले- त ूता घि की सब बाते जािती है, बता आज कया हुआ था?

भूंगी- बाबजूी, झूठ ि बोलूंगी, मालिकि छुडा देगी औि कया? दसूिे का लडका इस तिह िहीं िखा जाता। जहां कोई काम हुआ, बस बाजाि भेज िदया। िदि भि बाजाि दौडते बीतता था। आज लकडी लािे ि गये, तो चूलहा ही िहीं जला। कहो तो मुंह फुलावे। जब आप ही िहीं देखते, तो दसूिा कौि देखेगा? चिलए, भोजि कि लीिजए, बहूजी कब से बैठी है।

मुंशीजी- कह दे, इस वक िहीं खायेगे।मुंशीजी िफि अपिे कमेिे मे चले गये औि एक लमबी सांस ली। वेदिा

से भिे हुए ये शबद उिके मुंह से ििकल पडे- ईशि, कया अभी दणड पिूा िहीं हुआ? कया इस अंधे की लकडी को हाथ से छीि लोगे?

ििमलम ा िे आकि कहा- आज िसयािाम अभी तक िहीं आये। कहती िही िक खािा बिाये देती हंू, खा लो मगि सि जािे कब उठकि चल िदये!

ि जािे कहां घूम िहे है। बात तो सुिते ही िहीं। कब तक उिकी िाह देखा कर! आप चलकि खा लीिजए, उिके िलए खािा उठाकि िख दंगूी।

मुंशीजी िे ििमलम ा की ओि कठािे िेतो से देखकि कहा- अभी कै बजे होगे?

ििमलम - कया जािे, दस बजे होगे।मुंशीजी- जी िहीं, बािह बजे है।ििमलम ा- बािह बज गये? इतिी देि तो कभी ि किते थे। तो कब तक

उिकी िाह देखोगे! दोपहि को भी कुछ िहीं खाया था। ऐसा सैलािी लडका मैिे िहीं देखा।

154

Page 155: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

मुंशीजी- जी तुमहे िदक किता है, कयो?ििमलम ा- देिखये ि, इतिा िात गयी औि घि की सुध ही िहीं।मुंशीजी- शायद यह आिखिी शिाित हो। ििमलम ा- कैसी बाते मुहं से ििकालते है? जायेगे कहां? िकसी याि-दोसत

के यहां पड िहे होगे।मुंशीजी- शायद ऐसी ही हो। ईशि किे ऐसा ही हो।ििमलम ा- सबेिे आवे, तो जिा तमबीह कीिजएगा।मुंशीजी- खबू अचछी तिह करंगा।ििमलम ा- चिलए, खा लीिजए, दिू बहुत हुई।मुंशीजी- सबेिे उसकी तमबीह किके खाऊंगा, कहीं ि आया, तो तुमहे

ऐसा ईमािदाि िौकि कहां िमलेगा?ििमलम ा िे ऐठंकि कहा- तो कया मैिे भागा िदया?मुंशीजी- िहीं, यह कौि कहता है? तुम उसे कयो भगािे लगीं। तुमहािा

तो काम किता था, शामत आ गयी होगी।ििमलम ा िे औि कुछ िहीं कहा। बात बढ जािे का भय था। भीति

चली आयीय। सोिे को भी ि कहा। जिा देि मे भूगंी िे अनदि से िकवाड भी बनद कि िदये।

कया मुंशीजी को िींद आ सकती थी? तीि लडको मे केवल एक बच िहा था। वह भी हाथ से ििकल गया, तो िफि जीवि मे अधंकाि के िसवाय औि है? कोई िाम लेिेवाल भी िहीं िहेगा। हा! कैसे-कैसे ित हाथ से ििकल गये? मुंशीजी की आखंो से अशधुािा बह िही थी, तो कोई आशय म है? उस वयापक पशाताप, उस सघि गलािि-ितिमि मे आशा की एक हलकी-सी िेखा उनहे संभाले हुए थी। िजस कण वह िेखा लुप हो जायेगी, कौि कह सकता है, उि पि कया बीतेगी? उिकी उस वेदिा की कलपिा कौि कि सकता है?

कई बाि मुंशीजी की आंखे झपकीं, लेिकि हि बाि िसयािाम की आहट के धोखे मे चौक पडे।

सबेिा होते ही मुंशीजी िफि िसयािाम को खोजिे ििकले। िकसी से पूछते शम म आती थी। िकस मुंह से पूछे? उनहे िकसी से सहािुभूित की आशा ि थी। पकट ि कहकि मि मे सब यही कहेगे, जैसा िकया, वैसा भोगो! सािे दिि वह सकूल के मैदािो, बाजािो औि बगीचो का चककि लगाते िहे, दो िदि िििाहाि िहिे पि भी उनहे इतिी शिक कैसे हुई, यह वही जािे।

155

Page 156: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

िात के बािह बजे मुंशीजी घि लौटे, दिवाजे पि लालटेि जल िही थी, ििमलम ा दाि पि खडी थी। देखते ही बोली- कहा भी िहीं, ि जािे कब चल िदये। कुछ पता चला?

मुंशीजी िे आगिेय िेतो से ताकते हुए कहा- हट जाओ सामिे से, िहीं तो बुिा होगा। मै आपे मे िहीं हंू। यह तुमहािी कििी है। तुमहािे ही कािण आज मेिी यह दशा हो िही है। आज से छ: साल पहले कया इस घि की यह दशा थी? तुमिे मेिा बिा-बिाया घि िबगाड िदया, तुमिे मेिे लहलहाते बाग को उजाड डाला। केवल एक ठंूठ िह गया है। उसका ििशाि िमटाकि तभी तुमहे सनतोष होगा। मै अपिा सविम ाश कििे के िलए तुमहे घि िहीं जाया था। सुखी जीवि को औि भी सुखमय बिािा चाहता था। यह उसी का पायिशत है। जो लडके पाि की तिह फेिे जाते थे, उनहे मेिे जीते-जी तुमिे चाकि समझ िलया औि मै आंखो से सब कुछ देखते हुए भी अधंा बिा बठैा िहा। जाओ, मेिे िलए थोडा-सा संिखया भेज दो। बस, यही कसि िह गयी है,

वह भी पूिी हो जाये।ििमलम ा िे िोते हुए कहा- मै तो अभािगि हंू ही, आप कहेगे तब

जािूंगी? िे जािे ईशि िे मुझे जनम कयो िदया था? मगि यह आपिे कैसे समझ िलया िक िसयािाम आवेगे ही िहीं?

मुंशीजी िे अपिे कमिे की ओि जाते हुए कहा- जलाओ मत जाकि खुिशयां मिाओ। तुमहािी मिोकामिा पूिी हो गयी।

ििमलम ा सािी िात िोती िही। इतिा कलंक! उसिे िजयािाम को गहिे ले जाते देखिे पि भी मुहं खोलिे का साहस िहीं िकया। कयो? इसीिलए तो िक लोग समझेगे िक यह िमथया दोषािोपण किके लडके से वैि साध िही है। आज उसके मौि िहिे पि उसे अपिािधिी ठहिाया जा िहा है। यिद वह िजयािाम को उसी कण िोक देती औि िजयािाम लजजावश कहीं भाग जाता, तो कया उसके िसि अपिाध ि मढा जाता?

िसयािाम ही के साथ उसिे कौि-सा दवुयवम हाि िकया था। वह कुछ बचत कििे के िलए ही िवचाि से तो िसयािाम से सौदा मंगवाया किती थी। कया वह बचत किके अपिे िलए गहिे गढवािा चाहती थी? जब आमदिी की यह हाल हो िहा था तो पैसे-पैसे पि ििगाह िखिे के िसवाय कुछ जमा कििे का उसके पास औि साधाि ही कया था? जवािो की िजनदगी का तो कोई भिोसा हीं िहीं, बूढो की िजनदगी का कया िठकािा? बचची के िववाह के

156

Page 157: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

िलए वह िकसके सामिे हाथ फैलती? बचची का भाि कुद उसी पि तो िहीं था। वह केवल पित की सुिवधा ही के िलए कुछ बटोििे का पयत कि िही थी। पित ही की कयो? िसयािाम ही तो िपता के बाद घि का सवामी होता। बिहि के िववाह कििे का भाि कया उसके िसि पि ि पडता? ििमलम ा सािी कति- वयोत पित औि पुत का संकट-मोचि कििे ही के िलए कि िही थी। बचची का िववाह इस पिििसथित मे सकंट के िसवा औि कया था? पि इसके िलए भी उसके भागय मे अपयश ही बदा था।

दोपहि हो गयी, पि आज भी चूलहा िहीं जला। खािा भी जीवि का काम है, इसकी िकसी को सुध ही िथी। मुंशीजी बाहि बेजाि-से पडे थे औि ििमलम ा भीति थी। बचची कभी भीति जाती, कभी बाहि। कोई उससे बोलिे वाला ि था। बाि-बाि िसयािाम के कमिे के दाि पि जाकि खडी होती औि ‘बैया-बैया’ पुकािती, पि ‘बैया’ कोई जवाब ि देता था।

संधया समय मुंशीजी आकि ििमलम ा से बोले- तुमहािे पास कुछ रपये है?

ििमलम ा िे चौककि पूछा- कया कीिजएगा।मुंशीजी- मै जो पछूता हंू, उसका जवाब दो।ििमलम ा- कया आपको िहीं मालूम है? देिेवाले तो आप ही है।मुंशीजी- तुमहािे पास कुछ रपये है या िहीं अगेि हो, तो मुझे दे दो, ि

हो तो साफ जवाब दो।ििमलम ा िे अब भी साफ जवाब ि िदया। बोली- होगे तो घि ही मे ि

होगे। मैिे कहीं औि िहीं भेज िदये।मुंशीजी बाहि चले गये। वह जािते थे िक ििमलम ा के पास रपये है,

वासतव मे थे भी। ििमलम ा िे यह भी िहीं कहा िक िही है या मै ि दंगूी , उि उसकी बातो से पकट हो यगया िक वह देिा िहीं चाहती।

िौ बजे िात तो मुंशीजी िे आकि रिकमणी से काह- बहि, मै जिा बाहि जा िहा हंू। मेिा िबसति भूंगी से बधंवा देिा औि टंक मे कुछ कपडे िखवाकि बनद कि देिा ।

रिकमणी भोजि बिा िही थीं। बोलीं- बहू तो कमेिे मे है, कह कयो िही देते? कहां जािे का इिादा है?

मुंशीजी- मै तुमसे कहता हंू, बहू से कहिा होता, तो तुमसे कयो कहाता?

आज तुमे कयो खािा पका िही हो?157

Page 158: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

रिकमणी- कौि पकावे? बहू के िसि मे ददम हो िहा है। आिखिइस वक कहां जा िहे हो? सबेिे ि चले जािा।

मुंशीजी- इसी तिह टालते-टालते तो आज तीि िदि हो गये। इधि-इधि घूम-घामकि देखूं, शायद कहीं िसयािाम का पता िमल जाये। कुछ लोग कहते है िक एक साधु के साथ बाते कि िहा था। शायद वह कहीं बहका ले गया हो।

रिकमणी- तो लौटोगे कब तक?

मुंशीजी- कह िहीं सकता। हफता भि लग जाये महीिा भि लग जाये। कया िठकािा है?

रिकमणी- आज कौि िदि है? िकसी पंिडत से पछू िलया है िक िहीं?मुंशीजी भोजि कििे बैठे। ििमलम ा को इस वक उि पि बडी दया

आयी। उसका सािा कोध शानत हो गया। खुद तो ि बोली, बचची को जगाकि चुमकािती हुई बोली- देख, तेिे बाबूजी कहां जो िहे है? पूछ तो?

बचची िे दाि से झांककि पूछा- बाबू दी, तहां दाते हो?मुंशीजी- बडी दिू जाता हंू बेटी, तुमहािे भैया को खोजिे जाता हंू। बचची िे वहीं से खडे-खडे कहा- अम बी तलेगे।मुंशीजी- बडी दिू जाते है बचची, तुमहािे वासते चीजे लायेगे। यहां कयो

िहीं आती?बचची मुसकिाकि िछप गयी औि एक कण मे िफि िकवाड से िसि

ििकालकि बोली- अम बी तलेगे।मुंशीजी िे उसी सवि मे कहा- तुमको िहम ले तलेगे।बचची- हमको कयो िई ले तलोगे?

मुंशीजी- तुम तो हमािे पास आती िहीं हो।लडकी ठुमकती हुई आकि िपता की गोद मे बठै गयी। थोडी देि के

िलए मुंशीजी उसकी बाल-कीडा मे अपिी अनतवदेिा भूल गये।भोजि किके मुंशीजी बाहि चले गये। ििमलम ा खडेकी ताकती िही।

कहिा चाहती थी- वयथ म जो िहे हो, पि कह ि सकती थी। कुछ रपये ििकाल कि देिे का िवचाि किती थी, पि दे ि सकती थी।

अंत को ि िहा गया, रिकमणी से बोली- दीदीजी जिा समझा दीिजए,

कहां जा िहे है! मेिी जबाि पकडी जायेगी, पि िबिा बोले िहा िहीं जाता। िबिा िठकािे कहां खोजेगे? वयथ म की हैिािी होगी।

158

Page 159: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

रिकमणी िे करणा-सूचक िेतो से देखा औि अपिे कमिे मे चली गई।ििमलम ा बचची को गोद मे िलए सोच िही थी िक शायद जािे के पहले

बचची को देखिे या मुझसे िमलिे के िलए आवे, पि उसकी आशा िवफल हो गई? मुंशीजी िे िबसति उठाया औि तांगे पि जा बठेै।

उसी वक ििमलम ा का कलेजा मसोसिे लगा। उसे ऐसा जाि पडा िक इिसे भेट ि होगी। वह अधीि होकि दाि पि आई िक मुंशीजी को िोक ले,

पि तांगा चल चकुा था।

पचचीस

ि ि गजुििे लगे। एक महीिा पिूा ििकल गया, लेिकि मुंशीजी ि लौटे। कोई खत भी ि भेजा। ििमलम ा को अब िितय यही िचनता बिी

िहती िक वह लौटकि ि आये तो कया होगा? उसे इसकी िचनता ि होती थी िक उि पि कया बीत िही होगी, वह कहां मािे-मािे िफिते होगे, सवासथय कैसा होगा? उसे केवल अपिी औिं उससे भी बढकि बचची की िचनता थी। गहृसथी का ििवाहम कैसे होगा? ईशि कैसे बेडा पाि लगायेगे? बचची का कया हाल होगा? उसिे कति-वयोत किके जो रपये जमा कि िखे थे, उसमे कुछ-ि-कुछ िोज ही कमी होती जाती थी। ििमलम ा को उसमे से एक-एक पैसा ििकालते इतिी अखि होती थी, मािो कोई उसकी देह से िक ििकाल िहा हो। झुंझलाकि मुंशीजी को कोसती। लडकी िकसी चीज के िलए िोती, तो उसे अभािगि, कलमुंही कहकि झललाती। यही िहीं, रिकमणी का घि मे िहिा उसे ऐसा जाि पडता था, मािो वह गदमि पि सवाि है। जब हदय जलता है, तो वाणी भी अिगिमय हो जाती है। ििमलम ा बडी मधुि-भािषणी िी थी, पि अब उसकी गणिा ककम शाओ मे की जा सकती थी। िदि भि उसके मुख से जली-कटी बाते ििकला किती थीं। उसके शबदो की कोमलता ि जािे कया हो गई! भावो मे माधयु म का कहीं िाम िहीं। भूंगी बहुत िदिो से इस घि मे िौकि थी। सवभाव की सहिशील थी, पि यह आठो पहहि की बकबक उससे भी ि सकी गई। एक िदि उसिे भी घि की िाह ली। यहां तक िक िजस बचची को पाणो से भी अिधक पयाि किती थी, उसकी सूित से भी घणृा हो गई। बात-बात पि घडुक पडती, कभी-कभी माि बैठती। रिकमणी िोई हुई

िद

159

Page 160: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

बािलका को गोद मे बैठा लेती औि चुमकाि-दलुाि कि चपु किातीं। उस अिाथ के िलए अब यही एक आशय िह गया था।

ििमलेा को अब अगि कुछ अचछा लगता था, तो वह सुधा से बात कििा था। वह वहां जािे का अवसि खोजती िहती थी। बचची को अब वह अपिे साथ ि ले जािा चाहती थी। पहले जब बचची को अपिे घि सभी चीजे खािे को िमलती थीं, तो वह वहां जाकि हंसती-खेलती थी। अब वहीं जाकि उसे भूख लगती थी। ििमलम ा उसे घूि-घिूकि देखती, मुिटठयां-बांधकि धमकाती, पि लडकी भूख की िट लगािा ि छोडती थी। इसिलए ििमलम ा उसे साथ ि ले जाती थी। सुधा के पास बैठकि उसे मालूम होता था िक मै आदमी हंू। उतिी देि के िलए वह िचंताआं से मुक हो जाती थी। जसेै शिाबी शिाब के िशे मे सािी िचनताएं भूल जाता है, उसी तिह ििमलम ा सुधा के घि जाकि सािी बाते भूल जाती थी। िजसिे उसे उसके घि पि देखा हो, वह उसे यहां देखकि चिकत िह जाता। वहीं ककम शा, कटु-भािषणी िी यहां आकि हासयिविोद औि माधुय म की पुतली बि जाती थी। यौवि-काल की सवाभािवक विृतयां अपिे घि पि िासता बनद पाकि यहां िकलोले कििे लगती थीं। यहां आते वक वह मांग-चोटी, कपडे-लते से लैस होकि आती औि यथासाधय अपिी िवपित कथा को मि ही मे िखती थी। वह यहां िोिे के िलए िहीं, हंसिे के िलए आती थी।

पि कदािचत ् उसके भागय मे यह सुख भी िहीं बदा था। ििमलम ा मामली तौि से दोपहि को या तीसिे पहि से सधुा के घि जाया किती थी। एक िदि उसका जी इतिा ऊबा िक सबेिे ही जा पहंुची। सुधा िदी सिाि कििे गई थी, डॉकटि साहब असपताल जािे के िलए कपडे पहि िहे थे। महिी अपिे काम-धधें मे लगी हुई थी। ििमलम ा अपिी सहेली के कमिे मे जाकि िििशनत बैठ गई। उसिे समझा-सुधा कोई काम कि िही होगी, अभी आती होगी। जब बैठे दो-िदि िमिट गजुि गये, तो उसिे अलमािी से तसवीिो की एक िकताब उताि ली औि केश खोल पलंग पि लेटकि िचत देखिे लगी। इसी बीच मे डॉकटि साहब को िकसी जरित से ििमलम ा के कमिे मे आिा पडा। अपिी ऐिक ढंूढते िफिते थे। बेधडक अनदि चले आये। ििमलम ा दाि की ओि केश खोले लेटी हुई थी। डॉकटि साहब को देखते ही चौककाि उठ बैठी औि िसि ढांकती हुई चािपाई से उतकि खडी हो गई। डॉकटि साहब िे लौटते हुए िचक के पास खडे होकि कहा- कमा कििा ििमलम ा, मुझे मालूम ि

160

Page 161: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

था िक यहां हो! मेिी ऐिक मेिे कमिे मे िहीं िमल िही है, ि जािे कहां उताि कि िख दी थी। मैिे समझा शायद यहां हो।

ििमलम ा सिे चािपाई के िसिहािे आले पि ििगाह डाली तो ऐिक की िडिबया िदखाई दी। उसिे आगे बढकि िडिबया उताि ली, औि िसि झुकाये,

देह समेटे, संकोच से डॉकटि साहब की ओि हाथ बढाया। डॉकटि साबह िे ििमलम ा को दो-एक बाि पहले भी देखा था, पि इस समय के-से भाव कभी उसके मि मे ि आये थे। िजस जवाजा को वह बिसो से हदय मे दवाये हुए थे, वह आज पवि का झोका पाकि दहक उठी। उनहोिे ऐिक लेिे के िलए हाथ बढाया, तो हाथ कांप िहा था। ऐिक लेकि भी वह बाहि ि गये, वहीं खोए हुए से खडे िहे। ििमलम ा िे इस एकानत से भयभीत होकि पछूा- सुधा कहीं गई है कया?

डॉकटि साहब िे िसि झुकाये हुए जवाब िदया- हां, जिा सिाि कििे चली गई है।

िफि भी डॉकटि साहब बाहि ि गये। वहीं खडे िहे। ििमलम ा िे िफश पूछा- कब तक आयेगी?

डॉकटि साहब िे िसि झुकाये हुए केहा- आती होगीं।िफि भी वह बाहि िहीं आये। उिके मि मे घािे दनद मचा हुआ था। औिचतय का बधंि िहीं, भीरता का कचचा तागा उिकी जबाि को िोके हुए था। ििमलम ा िे िफि कहा- कहीं घूमिे-घामिे लगी होगी। मै भी इस वक जाती हंू।

भीरता का कचचा तागा भी टूट गया। िदी के कगाि पि पहंुच कि भागती हुई सेिा मे अदतु शिक आ जाती है। डॉकटि साहब िे िसि उठाकि ििमलम ा को देखा औि अििुाग मे डूबे हुए सवि मे बोले- िहीं, ििमलम ा, अब आती हो होगी। अभी ि जाओ। िोज सुधा की खािति से बैठती हो, आज मेिी खािति से बैठो। बताओ, कम तक इस आग मे जला कर? सतय कहता हंू ििमलम ा...।

ििमलम ा िे कुछ औि िहीं सुिा। उसे ऐसा जाि पडा मािो सािी पथृवी चककि खा िही है। मािो उसके पाणो पि सहसो वजो का आघात हो िहा है। उसिे जलदी से अलगिी पि लटकी हुई चादि उताि ली औि िबिा मुंह से एक शबद ििकाले कमिे से ििकल गई। डॉकटि साहब िखिसयाये हुए-से िोिा मुंह बिाये खडे िहे! उसको िोकिे की या कुछ कहिे की िहममत ि पडी।

161

Page 162: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

ििमलम ा जयोही दाि पि पहंुची उसिे सुधा को तांगे से उतिते देखा। सुधा उसे ििमलम ा िे उसे अवसि ि िदया, तीि की तिह झपटकि चली। सुधा एक कण तक िवसमेय की दशा मे खडी िहीं। बात कया है, उसकी समझ मे कुछ ि आ सका। वह वयग हो उठी। जलदी से अनदि गई महिी से पूछिे िक कया बात हुई है। वह अपिाधी का पता लगायेगी औि अगि उसे मालूम हुआ िक महिी या औि िकसी िौकि से उसे कोई अपमाि-सूचक बात कह दी है, तो वह खडे-खडे ििकाल देगी। लपकी हुई वह अपिे कमिे मे गई। अनदि कदम िखते ही डॉकटि को मुंह लटकाये चािपाई पि बैठे देख। पूछा- ििमलम ा यहां आई थी?

डॉकटि साहब िे िसि खजुलाते हुए कहा- हां, आई तो थीं।सुधा- िकसी महिी-अहिी िे उनहे कुछ कहा तो िहीं? मुझसे बोली तक

िहीं, झपटकि ििकल गई।डॉकटी साहब की मुख-कािनत मिजि हो गई, कहा- यहां तो उनहे िकसी

िे भी कुछ िहीं कहा। सुधा- िकसी िे कुछ कहा है। देखो, मै पछूती हंू ि, ईशि जािता है, पता

पा जाऊंगी, तो खडे-खडे ििकाल दंगूी।डॉकटि साहब िसटिपटाते हुए बोले- मैिे तो िकसी को कुछ कहते िहीं

सुिा। तुमहे उनहोिे देखा ि होगा।सुधा-वाह, देखा ही ि होगा! उसिके सामिे तो मै तांगे से उतिी हंू।

उनहोिे मेिी ओि ताका भी, पि बोलीं कुद िहीं। इस कमिे मे आई थी?

डॉकटि साहब के पाण सूखे जा िहे थे। िहचिकचाते हुए बोले- आई कयो िहीं थी।

सुधा- तुमहे यहां बैठे देखकि चली गई होगी। बस, िकसी महिी िे कुछ कह िदया होगा। िीच जात है ि, िकसी को बात कििे की तमीज तो है िहीं। अिे, ओ सुनदििया, जिा यहां तो आ!

डॉकटि- उसे कयो बुलाती हो, वह यहां से सीधे दिवाजे की तिफ गई। महिियो से बात तक िहीं हुई।

सुधा- तो िफि तुमहीं िे कुछ कह िदया होगा।डॉकटि साहब का कलेजा धक्-धक् कििे लगा। बोले- मै भला कया कह

देता कया ऐसा गंवाह हंू?

सुधा- तुमिे उनहे आते देखा, तब भी बैठे िह गये?

162

Page 163: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

डॉकटि- मै यहां था ही िहीं। बाहि बठैक मे अपिी ऐिक ढंूढता िहा, जब वहां ि िमली, तो मैिे सोचा, शायद अनदि हो। यहां आया तो उनहे बैठे देखा। मै बाहि जािा चाहता था िक उनहोिे खुद पछूा- िकसी चीज की जरित है? मैिे कहा- जिा देखिा, यहां मेिी ऐिक तो िहीं है। ऐिक इसी िसिहािे वाले ताक पि थी। उनहोिे उठाकि दे दी। बस इतिी ही बात हुई।

सुधा- बस, तुमहे ऐिक देते ही वह झललाई बाहि चली गई? कयो?डॉकटि- झललाई हुई तो िहीं चली गई। जािे लगीं, तो मैिे कहा- बैिठए

वह आती होगी। ि बैठीं तो मै कया किता?सुधा िे कुछ सोचकि कहा- बात कुछ समझ मे िहीं आती, मै जिा

उसके पास जाती हंू। देखूं, कया बात है।डॉकटि-तो चली जािा ऐसी जलदी कया है। सािा िदि तो पडा हुआ है।सुधा िे चादि ओढते हुऐ कहा- मेिे पेट मे खलबली माची हुई है, कहते

हो जलदी है?

सुधा तेजी से कदम बढती हुई ििमलम ा के घि की ओि चली औि पांच िमिट मे जा पहंुची? देखा तो ििमलम ा अपिे कमिे मे चािपाई पि पडी िो िही थी औि बचची उसके पास खडी िही थी- अममां, कयो लोती हो?

सुधा िे लडकी को गोद मे उठा िलया औि ििमलम ा से बोली-बिहि, सच बताओ, कया बात है? मेिे यहां िकसी िे तुमहे कुछ कहा है? मै सबसे पूछ चकुी, कोई िहीं बतलाता।

ििमलम ा आंसू पोछती हुई बोली- िकसी िे कुछ कहा िहीं बिहि, भला वहां मुझे कौि कुछ कहता?

सुधा- तो िफि मुझसे बोली कयो िहीं ओि आते-ही-आते िोिे लगीं?ििमलम ा- अपिे िसीबो को िो िही हंू, औि कया।

सुधा- तुम यो ि बतलाओगी, तो मै कसम दंगूी।ििमलम ा- कसम-कसम ि िखािा भाई, मुझे िकसी िे कुछ िहीं कहा, झूठ

िकसे लगा दंू?सुधा- खाओ मेिी कसम।ििमलम ा- तुम तो िाहक ही िजद किती हो।सुधा- अगि तुमिे ि बताया ििमलम ा, तो मै समझूंगी, तुमहे जिा भी पेम

िहीं है। बस, सब जबािी जमा- खच म है। मै तुमसे िकसी बात का पदा म िहीं

163

Page 164: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

िखती औि तुम मुझे गिै समझती हो। तुमहािे ऊपि मुझे बडा भिोसा थ। अब जाि गई िक कोई िकसी का िहीं होता।

सुधा कीं आखें सजल हो गई। उसिे बचची को गोद से उताि िलया औि दाि की ओि चली। ििमलम ा िे उठाकि उसका हाथ पकड िलया औि िोती हुई बोली- सुधा, मै तुमहािे पिै पडती हंू, मत पूछो। सुिकि दखु होगा औि शायद मै िफि तुमहे अपिा मुंह ि िदखा सकंू। मै अभिगिी िे होती , तो यह िदि िह कयो देखती? अब तो ईशि से यही पाथिम ा है िक संसाि से मुझे उठा ले। अभी यह दगुिम त हो िही है, तो आगे ि जािे कया होगा?

इि शबदो मे जो संकेत था, वह बुिदमती सुधा से िछपा ि िह सका। वह समझ गई िक डॉकटि साहब िे कुछ छेड-छाड की है। उिका िहचक-

िहचककि बाते कििा औि उसके पशो को टालिा, उिकी वह गलाििमये, कांितहीि मुदा उसे याद आ गई। वह िसि से पांव तक कांप उठी औि िबिा कुछ कहे-सुिे िसंहिी की भांित कोध से भिी हुई दाि की ओि चली। ििमलम ा िे उसे िोकिा चाहा, पि ि पा सकी। देखते-देखते वह सडक पि आ गई औि घि की ओि चली। तब ििमलम ा वहीं भूिम पि बैठ गई औि फूट-फूटकि िोिे लगी।

छबबीस

ििमलम ा िदि भि चािपाई पि पडी िही। मालूम होता है, उसकी देह मे पाण िहीं है। ि सिाि िकया, ि भोजि कििे उठी। संधया समय उसे जवि हो आया। िात भि देह तवे की भांित तपती िही। दसूिे िदि जवि ि उतिा। हां, कुछ-कुछ कमे हो गया था। वह चािपाई पि लेटी हुई ििशल िेतो से दाि की ओि ताक िही थी। चािो ओि शूनय था, अनदि भी शूनय बाहि भी शूनय कोई िचनता ि थी, ि कोई समिृत, ि कोई द :ुख, मिसतषक मे सपनदि की शिक ही ि िही थी।

सहसा रिकमणी बचची को गोद मे िलये हुए आकि खडी हो गई। ििमलम ा िे पछूा- कया यह बहुत िोती थी?

रिकमणी- िहीं, यह तो िससकी तक िहीं। िात भि चपुचाप पडी िही, सुधा िे थोडा-सा दधू भेज िदया था।

ििमलम ा- अहीििि दधू ि दे गई थी?

164

Page 165: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

रिकमणी- कहती थी, िपछले पैसे दे दो, तो दं।ू तुमहािा जी अब कैसा है?

ििमलम ा- मुझे कुछ िहीं हुआ है? कल देह गिम हो गई थीं।रिकमणी- डॉकटि साहब का बिुा हाल है?

ििमलम ा िे घबिाकि पूछा- कया हुआ, कया? कुशल से है ि?

रिकमणी- कुशल से है िक लाश उठािे की तैयािी हो िही है! कोई कहता है, जहि खा िलया था, कोई कहता है, िदल का चलिा बनद हो गया था। भगवाि ्जािे कया हुआ था।

ििमलम ा िे एक ठणडी सांस ली औि रंधे हुए कंठ से बोली- हाया भगवाि ्! सुधा की कया गित होगी! कैसे िजयेगी?

यह कहते-कहते वह िो पडी औि बडी देि तक िससकती िही। तब बडी मुिशकल से उठकि सधुा के पास जािे को तैयाि हुई पांव थि-थि कांप िहे थे, दीवाि थामे खडी थी, पि जी ि मािता था। ि जािे सुधा िे यहां से जाकि पित से कया कहा? मैिे तो उससे कुछ कहा भी िहीं, ि जािे मेिी बातो का वह कया मतलब समझी? हाय! ऐसे रपवाि ्दयालु, ऐसे सुशील पाणी का यह अनत! अगि ििमलम ा को मालूम होत िक उसके कोध का यह भीषण पििणाम होगा, तो वह जहि का घूंट पीकि भी उस बात को हंसी मे उडा देती।

यह सोचकि िक मेिी ही ििषुिता के कािण डॉकटि साहब का यह हाल हुआ, ििमलम ा के हदय के टुकडे होिे लगे। ऐसी वेदिा होिे लगी, मािो हदय मे शूल उठ िहा हो। वह डॉकटि साहब के घि चली।

लाश उठ चकुी थी। बाहि सनिाटा छाया हुआ था। घि मे िीयां जमा थीं। सुधा जमीि पि बठैी िो िही थी। ििमलम ा को देखते ही वह जोि से िचललाकि िो पडी औि आकि उसकी छाती से िलपट गई। दोिो देि तके िोती िहीं।

जब औितो की भीड कम हुई औि एकानत हो गया, ििमलम ा िे पछूा- यह कया हो गया बिहि, तुमिे कया कह िदया?

सुधा अपिे मि को इसी पश का उति िकतिी ही बाि दे चकुी थी। उसकी मि िजस उति से शांत हो गया था, वही उति उसिे ििमलम ा को िदया। बोली- चपु भी तो ि िह सकती थी बिहि, कोध की बात पि कोध आती ही है।

ििमलम ा- मैिे तो तुमसे कोई ऐसी बात भी ि कही थी।165

Page 166: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

सुधा- तुम कैसे कहती, कह ही िहीं सकती थीं, लेिकि उनहोिे जो बात हुई थी, वह कह दी थी। उस पि मैिे जो कुद मुंह मे आया, कहा। जब एक बात िदल मे आ गई,तो उसे हुआ ही समझिा चािहये। अवसि औि घात िमले, तो वह अवशय ही पूिी हो। यह कहकि कोई िहीं ििकल सकता िक मैिे तो हंसी की थी। एकानत मे एसा शबद जबाि पि लािा ही कह देता है िक िीयत बुिी थी। मैिे तुमसे कभी कहा िहीं बिहि, लेिकि मैिे उनहे कई बात तुमहािी ओि झांकते देखा। उस वक मैिे भी यही समझा िक शायद मुझे धोखा हो िहा हो। अब मालूम हुआ िक उसक ताक-झांक का कया मतलब था! अगि मैिे दिुिया जयादा देखी होती, तो तुमहे अपिे घि ि आिे देती। कम-से-कम तुम पि उिकी ििगाह कभी िे पडिे देती, लेिकि यह कया जािती थी िक पुरषो के मुंह मे कुछ औि मि मे कुछ औि होता है। ईशि को जो मंजूि था, वह हुआ। ऐसे सौभागय से मै वैधवय को बिु िहीं समझती। दििद पाणी उस धिी से कहीं सुखी है, िजसे उसका धि सांप बिकि काटिे दौडे। उपवास कि लेिा आसाि है, िवषैला भोजि किि उससे कहीं मुंिशकल ।

इसी वक डॉकटि िसनहा के छोटे भाई औि कृषणा िे घि मे पवेश िकया। घि मे कोहिाम मच गया।

सत ाईस

क महीिा औि गजुि गया। सुधा अपिे देवि के साथ तीसिे ही िदि चली गई। अब ििमलम ा अकेली थी। पहले हंस-बोलकि जी बहला िलया

किती थी। अब िोिा ही एक काम िह गया। उसका सवासथय िदि-िदि िबगडेकता गया। पिुािे मकाि का िकिाया अिधक था। दसूिा मकाि थोडे िकिाये का िलया, यह तंग गली मे था। अनदि एक कमिा था औि छोटा-सा आंगि। ि पकाशा जाता, ि वायु। दगुनम ध उडा किती थी। भोजि का यह हाल िक पैसे िहते हुये भी कभी-कभी उपवास कििा पडता था। बाजाि से जाये कौि? िफि अपिा कोई मदम िहीं, कोई लडका िहीं, तो िोज भोजि बिािे का कि कौि उठाये? औितो के िलये िोज भोजि किेि की आवशयका ही कया? अगि एक वक खा िलया, तो दो िदि के िलये छुटटी हो गई। बचची के िलए ताजा हलुआ या िोिटयां बि जाती थी! ऐसी दशा मे सवासथय कयो ि िबगडता? िचनत, शोक, दिुवसथा, एक हो तो कोई कहे। यहां तो तयताप का

166

Page 167: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

धावा था। उस पि ििमलम ा िे दवा खािे की कसम खा ली थी। किती ही कया? उि थोडे-से रपयो मे दवा की गुजंाइश कहां थी? जहां भोजि का िठकािा ि था, वहां दवा का िजक ही कया? िदि-िदि सूखती चली जाती थी।

एक िदि रिकमणी िे कहा- बहु, इस तिक कब तक घुला किोगी, जी ही से तो जहाि है। चलो, िकसी वैद को िदखा लाऊं।

ििमलम ा िे िविक भाव से कहा- िजसे िोिे के िलए जीिा हो, उसका मि जािा ही अचछा।

रिकमणी- बुलािे से तो मौत िहीं आती?ििमलम ा- मौत तो िबि बुलाए आती है, बुलािे मे कयो ि आयेगी? उसके

आिे मे बहुत िदि लगेगे बिहि, जै िदि चलती हंू, उतिे साल समझ लीिजए।

रिकमणी- िदल ऐसा छोटा मत किो बहू, अभी संसाि का सुख ही कया देखा है?

ििमलम ा- अगि संसाि की यही सुख है, जो इतिे िदिो से देख िही हंू, तो उससे जी भि गया। सच कहती हंू बिहि, इस बचची का मोह मुझे बांधे हुए है, िहीं तो अब तक कभी की चली गई होती। ि जािे इस बेचािी के भागय मे कया िलखा है?

दोिो मिहलाएं िोिे लगीं। इधि जब से ििमलम ा िे चािपाई पकड ली है,

रिकमणी के हदय मे दया का सोता-सा खुल गया है। देष का लेश भी िहीं िहा। कोई काम किती हो, ििमलम ा की आवाज सुिते ही दौडती है। घणटो उसके पास कथा-पिुाण सुिाया किती है। कोई ऐसी चीज पकािा चाहती है,

िजसे ििमलम ा रिच से खाये। ििमलम ा को कभी हंसते देख लेती है, तो ििहाल हो जाती है औि बचची को तो अपिे गले का हाि बिाये िहती है। उसी की िींद सोती है, उसी की िींद जागती है। वही बािलका अब उसके जीवि का आधाि है।

रिकमणी िे जिा देि बाद कहा- बहू, तुम इतिी िििाश कयो होती हो?

भगवाि ्चाहेगे, तो तुम दो-चाि िदि मे अचछी हो जाओगी। मेिे साथ आज वैदजी के पास चला। बडे सजजि है।

ििमलम ा- दीदीजी, अब मुझे िकसी वैद, हकीम की दवा फायदा ि किेगी। आप मेिी िचनता ि किे। बचची को आपकी गोद मे छोडे जाती हंू। अगि जीती-जागती िहे, तो िकसी अचछे कुल मे िववाह कि दीिजयेगा। मै तो इसके

167

Page 168: ििममला - hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · उिसेकोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि

िलये अपिे जीवि मे कुछ ि कि सकी, केवल जनम देिे भि की अपिािधिी हंू। चाहे कवांिी ििखयेगा, चाहे िवष देकि माि डािलएग, पि कुपात के गले ि मिढएगा, इतिी ही आपसे मेिी िविय है। मैिे आपकी कुछ सेवा ि की, इसका बडा दु:ख हो िहा है। मुझ अभािगिी से िकसी को सुख िहीं िमला। िजस पि मेिी छाया भी पड गई, उसका सविम ाश हो गया अगि सवामीजी कभी घि आवे, तो उिसे किहएगा िक इस किम-जली के अपिाध कमा कि दे।

रिकमणी िोती हुई बोली- बहू, तुमहािा कोई अपिाध िहीं ईशि से कहती हंू, तुमहािी ओि से मेिे मि मे जिा भी मैल िहीं है। हां, मैिे सदैव तुमहािे साथ कपट िकया, इसका मुझे मिते दम तक द :ुख िहेगा।

ििमलम ा िे काति िेतो से देखते हुये केहा- दीदीजी, कहिे की बात िहीं, पि िबिा कहे िहा िहीं जात। सवामीजी िे हमेशा मुझे अिवशास की दिि से देखा, लेिकि मैिे कभी मि मे भी उिकी उपेका िहीं की। जो होिा था, वह तो हो ही चकुा था। अधम म किके अपिा पिलोक कयो िबगाडती? पूव म जनम मे ि जािे कौि-सा पाप िकया था, िजसका वह पायिशत कििा पडा। इस जनम मे कांटे बोती, तोत कौि गित होती?

ििमलम ा की सांस बडे वेग से चलिे लगी, िफि खाट पि लेट गई औि बचची की ओि एक ऐसी दिि से देखा, जो उसके चिित जीवि की संपूणम िवमतकथा की वहृद आलोचिा थी, वाणी मे इतिी सामथय म कहा?

तीि िदिो तक ििमलम ा की आंखो से आंसुओं की धािा बहती िही। वह ि िकसी से बोलती थी, ि िकसी की ओि देखती थी औि ि िकसी का कुछ सुिती थी। बस, िोये चली जाती थी। उस वेदिा का कौि अिुमाि कि सकता है?

चौथे िदि संधया समय वह िवपित कथा समाप हो गई। उसी समय जब पशु-पकी अपिे-अपिे बसेिे को लौट िहे थे, ििमलम ा का पाण-पकी भी िदि भि िशकािियो के ििशािो, िशकािी िचिडयो के पजंो औि वायु के पचंड झोको से आहत औि वयिथत अपिे बसेिे की ओि उड गया।

मुहलले के लोग जमा हो गये। लाश बाहि ििकाली गई। कौि दाह किेगा, यह पश उठा। लोग इसी िचनता मे थे िक सहसा एक बूढा पिथक एक बकुचा लटकाये आकि खडा हो गया। यह मुंशी तोतािाम थे।

168