ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन ... ·...

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यान की पुपा ी राजन वामी यान की पुपा ी राजन वामी काशकः ी ाणनाथ ानपीठ काशकः ी ाणनाथ ानपीठ , , सरसावा सरसावा 1 / 460 / 460

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  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    प्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठप्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, , सरसावा सरसावा 11 / 460/ 460

  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    ध्यान की पुष्पाञ्जलिप्रवचनकर्ताा%

    श्री राजन स्वामी

    प्रकाशक

    श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठनकुड़ रोड, सरसावा, सहारनपुर, उ.प्र.

    www.spjin.org

    सवा%धि-कार सुरधि.र्ता © २०१७, श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ ट्रस्टपी.डी.एफ. ससं्करण – २०१९

    प्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठप्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, , सरसावा सरसावा 22 / 460/ 460

    http://www.spjin.org/

  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    भूमिमका

    प्राणा-ार सुन्दरसाथ जी!

    प्रस्र्तारु्ता पुस्र्ताक श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, सरसावा में२०१२ में आयोजिजर्ता धिचर्तावमिन शिशमिवर में श्री राजनस्वामी जी द्वारा की गई चचा% का लिलिHर्ता रूप ह।ै श्रीराजन स्वामी जी ने उस काय%क्रम में वर्ता%मान समाज मेंप्रचलिर्ता सभी योग पद्धधिर्तायों के साथ-साथ अष्टांग योगव मिनजानन्द दश%न की पे्रममयी धिचर्तावमिन की पद्धधिर्ता परमिवस्र्ताार से चचा% की थी, जिजसको कई सुन्दरसाथ द्वारालिलिHर्ता रूप में प्रकाशिशर्ता करने की माँग की गई थी।

    चंूमिक बोने और लिHने की शैी में कुछ शिभन्नर्तााहोर्ताी ह,ै और यह पुस्र्ताक एक चचा% का लिलिHर्ता रूप ह,ैइसलिए इसकी शैी प्रवचन की ह।ै इस पुस्र्ताक कोपढ़ने पर ऐसा प्रर्ताीर्ता होगा, जसेै हम चचा% ही सुन रहे हों।

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  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    इस चचा% को लिHने की महान सेवा मिदल्ली केसुन्दरसाथ श्री अरुण मिमड्ढा जी के सुपुत्र श्री मिहरे्ताश मिमड्ढाने की ह।ै श्री सद्गरुु प्रसाद आय%, कुमारी बबी, वमिकरण बहन जी का संशो-न में मिवशेष सहयोग रहा ह।ैसंगणक पर टंकण र्ताथा संशो-न की सेवा ज्ञानपीठ केमिवद्याथc नीरज, कनेश्वर, गणेश, व शेैश ने मिकया ह।ै-ाम -नी से प्राथ%ना है मिक इन सब पर अपनी कृपाबनाये रHें और हमेशा सेवा काय% में आगे बढ़ने की शमिfप्रदान करें।

    आशा है यह पुस्र्ताक आपको रुधिचकर और मिहर्ताकर

    गेगी।

    श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ ट्रस्ट

    सरसावा (उ. प्र.)

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    अनुक्रमशिणका1 पाँच यमों की व्याख्या 62 पाँच मिनयमों की व्याख्या 106

    3 मिवभूधिर्तायों की व्याख्या 169

    4 प्रथम प्रश्नोत्तरी 2105 मिद्वर्ताीय प्रश्नोत्तरी 2666 र्ताृर्ताीय प्रश्नोत्तरी 3067 चर्ताुथ% प्रश्नोत्तरी 389

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    प्रथम पषु्प

    ध्यान की प्रमिक्रया से गुजरने से पहे हमें पाँचयम-मिनयमों के बारे में सुनने को मिमर्ताा ह।ै पाँच यम हैं,पाँच मिनयम हैं। इसी को बौद्ध मर्ता में पंचशी कहा गयाह।ै पाँच यम क्या हैं? अहिंहसा, सत्य, अस्रे्ताय, ब्रह्मचय%,और अपरिरग्रह। पाँच मिनयम क्या हैं? शौच, सन्र्ताोष, र्ताप,स्वाध्याय, और ईश्वर प्रशिण-ान।

    जसेै कोई मकान बनाना होर्ताा ह,ै र्ताो उसकी नींवजसैी होगी वैसा ही भवन बनेगा। यमिद नींव कमजोरहोगी, र्ताो यह आशा नहीं कर सकरे्ता मिक मिवशा भवनHड़ा हो सकेगा। ये पाँचों यम-मिनयम मिकसी भीआध्यात्मित्मक भवन की आ-ारशिशा हैं।

    यमिद हम रार्ता-मिदन आँHें बन्द करके ध्यान में बठैें

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    और इनकी मया%दाओं का उल्लंघन करें र्ताो याद रलिHये,हम कभी भी शिशHर र्ताक नहीं पहुँच सकरे्ता। ेमिकन यहभी याद रलिHये मिक जो भी सच्चे हृदय से उस मिप्रयर्ताम काध्यान करर्ताा ह,ै वह चाहे मिकर्ताना बड़ा पापी क्यों न हो,वह अवश्य पाँच यम-मिनयमों का पान कर ेगा।

    ेमिकन यमिद कोई चाहे मिक हम उस परमात्मा से पे्रम नकरें, राज जी की धिचर्तावमिन न करें, और पाँच यम-मिनयमोंका सरर्ताा से पान करें, र्ताो यह सम्भव नहीं होसकर्ताा।

    दोनों में चोी-दामन का साथ ह।ै इश्क (प्रेम) काप्राण इल्म (ज्ञान) है और इल्म का प्राण इश्क ह।ै जैसेइल्म के मिबना इश्क नहीं और इश्क के मिबना इल्म नहीं,वैसे ही पाँच यम-मिनयमों का पान मिकये मिबना आपध्यान में पारगंर्ता नहीं हो सकरे्ता और ध्यान मिकये मिबना

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  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    इन पाँचों का पान नहीं कर सकरे्ता।

    यमिद कोई यह सोचे मिक इन पाँचों का पान करनेके बाद ही हम धिचर्तावमिन (ध्यान) में गेंगे, र्ताो यह भ्रमह।ै क्योंमिक हमारे धिचत्त में जन्म-जन्मान्र्तारों की वासनायेंभरी हैं, जिजनको हम देH नहीं पारे्ता। कल्पना कीजिजये,यमिद इस जन्म में हम अच्छी शिश.ा-दी.ा े ें र्ताो हमारेअन्दर अच्छे संस्कार आ सकरे्ता हैं। हम चोरी नहीं कररे्ता,झूठ नहीं बोरे्ता, डकैर्ताी नहीं कररे्ता, कटु वचन नहींबोरे्ता, माँस नहीं Hारे्ता, शराब नहीं पीरे्ता, ेमिकन पूव%जन्मों में यमिद हमने ये सारे कम% कर रHे हैं, र्ताो जिजसर्तारह से हवा के झोंके से अमि की पटें रे्ताज हो जार्ताी हैं,उसी र्तारह से अवसर मिमरे्ता ही पुराने जन्मों के बुरेसंस्कार हमार ेऊपर कभी भी हावी हो सकरे्ता हैं।

    परब्रह्म का धिचन्र्तान बौधिद्धक दृमिष्ट से होर्ताा है और

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    परब्रह्म का ध्यान आत्मित्मक दृमिष्ट से होर्ताा ह।ै जब र्ताक हमपरब्रह्म का ध्यान नहीं कररे्ता, चाहे हम मिकर्ताने भी बडे़मिवद्वान क्यों न बन जायें, कुछ भी कर ें, मिकन्र्ताु हमारेअन्दर के जन्म-जन्मान्र्तारों की वासनाओं के मिवकार कोजाया नहीं जा सकर्ताा।

    अभी मैं प्रारम्भ कर रहा हूँ यम और मिनयमों कीसामान्य सी व्याख्या-

    अहिंहसा

    अहिंहसा मिकसको कहरे्ता हैं? बोचा में इसका अथ%

    गाया जार्ताा ह ैमिक मिकसी को मारना हिंहसा ह ैऔर मिकसीप्राणी की हिंहसा न करना अहिंहसा ह।ै ेमिकन केव शस्त्रसे और अस्त्र से मारना ही हिंहसा नहीं ह।ै अहिंहसा कार्ताात्पय% यह है मिक जो मन से भी हो, वाणी से भी हो,

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    और मिक्रयात्मक रूप से भी हो।

    कल्पना कीजिजये मिक आपको मिकसी व्यमिf ने कोई-ोHा दे मिदया। आप एकान्र्ता में सोचरे्ता रहरे्ता हैं मिक मैंउसे मरवा डाूँगा या उसके ऊपर मैं पत्थर फें क दूँ, यहभी एक प्रकार की हिंहसा ह।ै भे ही आप इस बार्ता कोवाणी से नहीं कह रहे हैं, ेमिकन आपके मन में र्ताो एकयदु्ध च रहा ह।ै मानजिसक हिंहसा भी हिंहसा ही ह।ै यमिदआपको मिकसी ने कटु वचन कह मिदया और जिजन्दगी भरआप उन कटु वचनों को याद रHरे्ता हैं, उसके प्रधिर्ता घृणाकी भावना भरे रहरे्ता हैं, र्ताो यह भी एक प्रकार कीमानजिसक हिंहसा ह।ै

    दसूरी वस्र्ताु है वाधिचक हिंहसा। वाधिचक हिंहसा मिकसेकहरे्ता हैं? -म%शास्त्रों का कथन ह,ै "र्तावारों के घाव र्ताोभर सकरे्ता हैं, ेमिकन कड़वे वचनों के घाव कभी भी कोई

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  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    भुा नहीं सकर्ताा।" द्रौपदी के एक कड़वे वचन नेमहाभारर्ता का यदु्ध कराया था। द्रौपदी ने यमिद नहीं कहाहोर्ताा मिक "अन्-ों के पुत्र अन्-े ही होरे्ता हैं", र्ताो शायदमहाभारर्ता के यदु्ध की भूमिमका नहीं रची जार्ताी। उसमहाभारर्ता के यदु्ध की मिवभीमिषका हमें झेनी पड़ी,जिजसमें ४७ ाH २६ हजार से ज्यादा सैमिनक मारे गए।अठारह अ.ौमिहणी की गणना करेंगे, र्ताो ४७ ाH २६हजार और कुछ सौ सैमिनक होरे्ता हैं। मिकसने मरवाया?एक द्रौपदी की जिजह्वा की चंचर्ताा ने।

    सबको माूम है मिक उस समय यधुि-मिर का सभाभवन ऐसा बना था मिक मिकसी को पर्ताा नहीं चर्ताा थामिक सामने दीवार है या नहीं। दीवार होर्ताी थी, ेमिकनदीवार मिदHाई नहीं पड़र्ताी थी। जहाँ सूHी जमीन होर्ताीथी, वहाँ गर्ताा था मिक पानी जमा है, और जहाँ पानी

    प्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठप्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, , सरसावा सरसावा 1111 / 460/ 460

  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    होर्ताा था, वहाँ गर्ताा ही नहीं था मिक पानी ह,ै इसलियेबेचारा दयु-न कई बार पानी में मिगर पड़ा। कई बारसामने दीवार होरे्ता हुये भी दीवार से टकरा गया। कई बारसामने दरवाजा होर्ताा था ेमिकन मिदHर्ताा नहीं था औरदयु-न दरवाजा Hोजरे्ता-Hोजरे्ता सबसे पूछा करर्ताा थामिक दरवाजा मिक-र ह?ै मह की अटारी पर बठैी हुईद्रौपदी ने हँसी कर दी मिक आलिHर अन्-े का पुत्र क्याकरगेा? अन्-े का पुत्र र्ताो अन्-ा ही होगा। यही बार्तादयु-न को चुभ गई और सबको माूम है मिक आगे क्याहुआ शकुमिन के षड्यन्त्रों से।

    यमिद सीर्ताा ने क्ष्मण जसेै ब्रह्मचारी को कटु वचननहीं बोे होरे्ता, र्ताो शायद राम-रावण यदु्ध की भूमिमकानहीं बन सकर्ताी थी। कहा जार्ताा है मिक रावण ने मारीचको स्वण% मृग बनाकर राम को वहाँ से हटाने के लिये

    प्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठप्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, , सरसावा सरसावा 1212 / 460/ 460

  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    षड्यन्त्र रचा और क्ष्मण ने वहाँ से जाने से मना करमिदया। जब राम ने मारीच को बाण मारा, र्ताो मारीच रामकी आवाज में हाय क्ष्मण-हाय क्ष्मण करके बोा।सीर्ताा को गा मिक राम संकट में हैं। क्ष्मण कहरे्ता हैं मिकमारे्ता! मया%दा पुरुषोत्तम राम पर र्ताो कोई संकट आ हीनहीं सकर्ताा। मैं नहीं जाऊँगा क्योंमिक भ्रार्तााश्री का आदेशहै मिक आपको छोड़कर कहीं न जाऊँ। मैं कैसे उनकेआदेश का उल्लंघन करँू?

    सीर्ताा ने क्रो- में अपशब्द कह मिदया। याद रलिHयेमिक जब आपको क्रो- आर्ताा ह,ै र्ताो उस समय अपनेआपको संयर्ता रलिHये। क्रो- की मदु्रा में न र्ताो मिकसी सेकोई बार्ता कीजिजये, न कुछ लिलिHये। यमिद आप क्रो- कोभड़कारे्ता रहेंगे, र्ताो इससे बहुर्ता अनथ% हो जायेगा। सीर्तााने यही मिकया। सीर्ताा ने सी-े आ.ेप गा मिदया मिक

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  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    क्ष्मण! र्ताू र्ताो इसलिये नहीं जाना चाहर्ताा मिक राम मरजायें और र्ताू मुझे अपनी पत्नी बनाकर रH े।

    जिजस क्ष्मण ने कभी सीर्ताा के चेहरे की र्तारफ नदेHा हो, हमेशा माँ का रूप माना हो, यमिद वही सीर्तााऐसे वचन बोे र्ताो क्ष्मण जसेै ब्रह्मचारी के ऊपर क्यागुजरी होगी? क्ष्मण ने रHेा Hींचकर आदेश का पानअवश्य मिकया मिक मारे्ता! आपके आदेश से मैं जा र्ताो रहाहँू, ेमिकन इस रHेा को ांघना नहीं। मिफर भी सीर्ताा ने

    क्ष्मण की बार्ता नहीं मानी।

    जब रावण अपहरण करके े जा रहा था, र्ताो सीर्तााकहर्ताी है मिक रा.स! यमिद मैंने क्ष्मण जसेै पुत्रर्ताुल्यब्रह्मचारी पर आ.ेप नहीं गाया होर्ताा, र्ताो मेरा अपहरणकरने की रे्तारी क्या शमिf थी? मेर ेकटु वचनों का ही पापहै मिक र्ताू मेरा अपहरण करने में समथ% हो गया। परिरणाम

    प्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठप्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, , सरसावा सरसावा 1414 / 460/ 460

  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    सबके सामने ह।ै वानर सेना और रा.सों की सेना मेें घोरयदु्ध हुआ, ाHों की जानें गई।ं

    यह मिवकृधिर्ता क्यों पदैा होर्ताी ह?ै वाधिचक हिंहसाअथा%र्ता् वाणी से फैने वाी कटुर्ताा मनुष्य के अन्दरइर्ताना मिवकार पदैा कर देर्ताी है मिक मानव मानव के रfका प्यासा हो जार्ताा ह।ै इसलिये यमिद हम अध्यात्म केपथ पर चना चाहरे्ता हैं, र्ताो अहिंहसा का दसूरा चरणअथा%र्ता् वाणी की हिंहसा से बचना चामिहये।

    वाणी की अहिंहसा क्या ह?ै "अनुद्वेगकरं सत्य मिप्रयंमिहर्तां च।" ऐसे शब्द बोें जिजससे मिकसी को उद्वेग न हो,मिकसी को कष्ट न हो। सत्य हो, मिप्रय हो, और मिहर्ताकारीहो। सत्य और मिप्रय का भाव क्या होर्ताा ह?ै "सत्यं बु्रयार्ता्मिप्रयं बु्रयार्ता्।" सत्य बोलिये, मिप्रय बोलिये। "न बु्रयार्ता्सत्यम् अमिप्रयम्।" सत्य हो और कटु गने वाा हो, र्ताो

    प्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठप्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, , सरसावा सरसावा 1515 / 460/ 460

  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    वह न बोलिये। "मिप्रयं च न अनृर्तां बु्रयार्ता्।" मिप्रय हो

    ेमिकन झूठा हो, वह भी न बोलिये। मिकसी की झूठीचापूसी भी न कीजिजये और मिकसी की झूठी मिनन्दा भीन कीजिजये। मिनन्दा और स्र्ताुधिर्ता से रमिहर्ता यथाथ% सत्यबोलिये। यही हमारी भारर्ताीय संस्कृधिर्ता का आदेश ह।ै

    पहे क्या होर्ताा था मिक जब राजा-महाराजा अपनेमहों से मिनकरे्ता थे, र्ताो र्ताोप के गोे छोडे़ जारे्ता थे।-ुँए से ढकने के कारण सूरज नहीं मिदHर्ताा था, र्ताो चारणऔर भाट कहरे्ता थे मिक आपके चेहरे में इर्ताना रे्ताज है मिकआपके रे्ताज से सूरज भी शर्मिमन्दा हो गया है और मिदHाईनहीं पड़ रहा ह।ै यह क्या है? झूठी बार्ता। मनुष्य केचमडे़ में इर्ताना रे्ताज कहाँ से आ सकर्ताा है मिक सूरज कारे्ताज भी फीका हो जाये। यह प्रवृलित्त हामिनकारक ह।ै

    मिबना मिकसी बार्ता के यमिद आप मिकसी की मिनन्दा

    प्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठप्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, , सरसावा सरसावा 1616 / 460/ 460

  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    कररे्ता रहरे्ता हैं, र्ताो आपके मुH से मिनके हुये कटु वचनकड़वाहट ही फैायेंगे, कोई साथ%क परिरणाम नहींमिनकेगा। इसलिये वाणी की हिंहसा को रोकना अमिनवाय%ह।ै

    मानजिसक हिंहसा और वाधिचक हिंहसा के बाद र्ताीसरीहिंहसा ह,ै जो हम काय% रूप में देHरे्ता हैं। यमिद मनुष्य हिंहसाका रास्र्ताा छोड़ दे, र्ताो सचमुच वह देवर्ताा बन जायेगा।आप देHरे्ता हैं मिक मनुष्य ने मनुष्य को मारने के लिये हीर्ताो अथाह पसैा गा रHा ह।ै इर्ताने परमाणु हशिथयार बनचुके हैं मिक इस दमुिनया को एक-दो बार नहीं, हजार बारआग के ढेर में बदा जा सकर्ताा ह।ै

    जिजर्ताना पसैा मनुष्य मनुष्य को मारने में गा रहाह,ै उर्ताना पसैा मनुष्य को सुHी बनाने में गा मिदयाजाये, र्ताो मैं समझर्ताा हँू मिक चाँदी की सर्ताह पूरी पृथ्वी

    प्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठप्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, , सरसावा सरसावा 1717 / 460/ 460

  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    पर डाी जा सकर्ताी है और इस पृथ्वी पर एक भीभूHा-नगंा नहीं रहेगा।

    पामिकस्र्ताान के पास मिन-%नर्ताा ह,ै ेमिकन अरबोंरुपयों का उसका र.ा बजट होर्ताा ह।ै सार ेसंसार में यहीहो रहा ह।ै भारर्ता में भी आप देHेंगे मिक मनुष्य प्राशिणयोंकी हिंहसा करर्ताा ह।ै मिकसके लिये? अपनी जिजह्वा की र्ताृमिके लिये। जिजस प्राणी को काटा जार्ताा ह,ै उस प्राणी काआर्ता%नाद उस माँस Hाने वाे के चेहरे पर लिHा रहर्तााह।ै मेरे कहने का र्ताात्पय% सारे मानव समाज से है, आपअपने ऊपर न े ीजिजयेगा।

    जसेै कोई व्यमिf मुगा% Hार्ताा ह,ै र्ताो मुग को काटाजार्ताा ह।ै बेचारा मिकर्ताना चीHर्ताा ह?ै हमारे परैों में जबकाँटा चुभर्ताा है र्ताो हम दद% से कराहरे्ता हैं, मुग की गद%नकाटी जार्ताी ह,ै बकरों की गद%न काटी जार्ताी है और

    प्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठप्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, , सरसावा सरसावा 1818 / 460/ 460

  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    परिरणाम! उन प्राशिणयों की हड्डी को, माँस को मनुष्यचूसर्ताा ह।ै जसेै कुत्ता हड्डी चूसर्ताा ह,ै उसी प्रकारमाँसाहारी व्यमिf भी र्ताो चूसर्ताा ह।ै मछी Hाने वाेमछलियों के काँटों को चूसरे्ता हैं, उनको उसी में स्वादआ रहा ह।ै इन प्राशिणयों की मूक हिंहसा इस सृमिष्ट को कहाँ

    े जायेगी?

    ोग कहरे्ता हैं मिक परमात्मा बहुर्ता कठोर ह।ै वहभूकम्प ा दरे्ताा ह,ै अनावृमिष्ट कर देर्ताा ह,ै बाढ़ ा देर्तााह।ै मिकन्र्ताु मनुष्य यह नहीं सोचर्ताा है मिक अपनी र्ताषृ्णाओंकी पूर्तिर्ता के लिये र्ताू मिकर्ताने पाप कर रहा ह?ै

    आप इर्तानी सी बार्ता समझ ीजिजये मिक जिजस मिदनयधुि-मिर झूठ बोरे्ता हैं, उस मिदन उनका रथ जमीन परचने गा, अन्यथा जमीन से दो अँगु ऊपर चाकरर्ताा था। उसी झूठ के परिरणाम स्वरूप, मिहमाय पर

    प्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठप्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, , सरसावा सरसावा 1919 / 460/ 460

  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    चरे्ता समय उनके पाँव का अँगूठा भी ग गया था। यमिदयधुि-मिर ने झूठ नहीं बोा होर्ताा, र्ताो मिहमाय के बफ% मेंवह शमिf नहीं थी जो -म%राज यधुि-मिर के परै के अँगूठेको गा सकर्ताी। शेष चारों भाई बफ% में ग गये, ेमिकनयधुि-मिर का शरीर इसलिये नहीं गा क्योंमिक उन्होंनेआजीवन -म% का पान मिकया था।

    इसलिये पाँच यमों में पही वस्र्ताु है अहिंहसा। एकऔर बार्ता आर्ताी है मिक क्या संसार से सारे अस्त्र-शस्त्रसमा कर मिदये जायें? उत्तर मिमेगा, नहीं। सबकीप्रवृलित्त एक समान नहीं होर्ताी। यमिद भारर्ता की सीमा परजिजर्ताने सैमिनक हैं, सबको हटा मिदया जाये, र्ताो पहे

    गेगा मिक हिंहसा रुक जायेगी, मिकन्र्ताु हिंहसा नहीं रुकेगी।सीमा के उस पार रहने वाे कू्रर व्यमिf हैं। वे इस देश मेंघुस आयेंगे और हमारे देश की सेना में जो ग्यारह ाH

    प्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठप्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, , सरसावा सरसावा 2020 / 460/ 460

  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    सैमिनक हैं, हो सकर्ताा ह ैमिक उनके साथ ग्यारह करोड़ कीभी हिंहसा कर दें। इसलिये हिंहसा को रोकने के लियेअस्त्र-शस्त्रों का मिव-ान बनाया गया ह।ै

    आप देHेंगे मिक भगवान शिशव के हाथ में भी मित्रशूह,ै योगेश्वर श्री कृष्ण के हाथ में सुदश%न चक्र है, मया%दापुरुषोत्तम राम के हाथ में भी -नुष ह,ै भगवान मिवष्णु केहाथ में गदा और चक्र है, सब कुछ ह।ै ऐसा कोई भीदेवी-देवर्ताा नहीं मिमेगा, जिजसके हाथों में अस्त्र-शस्त्र नहों। क्यों? इसलिये मिक ये हिंहसा को रोकना चाहरे्ता हैं।अस्त्र-शस्त्र -ारण करने का आशय हिंहसा करना नहींहोर्ताा। वह शमिf का प्रर्ताीक होर्ताा ह।ै शमिf द्वारा कू्ररशमिfयों का दमन मिकया जार्ताा ह।ै शात्मिन्र्ता का दीपक र्ताोर्ताभी जेगा, जब आसुरी हवा के झोंके उसको न गें।यमिद जोर की हवा बहे, र्ताो शात्मिन्र्ता का दीपक भी बुझ

    प्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठप्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, , सरसावा सरसावा 2121 / 460/ 460

  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    जायेगा। संसार में अहिंहसा की मया%दा हो, इसलियेमहापुरुषों ने शस्त्र -ारण मिकये हैं।

    मिकसी भी देवी-देवर्ताा को हिंहसक नहीं कहा जार्ताा,शकंर जी को हिंहसक नहीं कहा जा सकर्ताा, राम औरकृष्ण को हिंहसक नहीं कहा जा सकर्ताा। यद्यमिप इन्होंने

    ाHों रा.सों का संहार मिकया, मिकन्र्ताु मिकसी चींटी र्ताकको नहीं मारा। यह याद रलिHये, श्री राम और श्री कृष्ण नेकहीं वन में मिकसी शाकाहारी प्राणी का व- नहीं मिकयाह।ै राम के बारे में र्ताुसीदास जी ने मिवनय पमित्रका आमिदग्रन्थों में लिHा है मिक राम की कुमिटया में मिहरण आकरबठैा कररे्ता थे।

    यह भी ध्यान रलिHये मिक मारीच मिहरण के भेष मेंनहीं आया था। यह भ्रम ह।ै ोग यह मान बठेै हैं मिकमारीच मिहरण के भेष में आया था और राम ने उसको मार

    प्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठप्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, , सरसावा सरसावा 2222 / 460/ 460

  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    मिदया, इसलिये हमें भी शिशकार करने में कोई दोष नहीं ह।ैवात्मिल्मकी रामायण में लिHा ह-ै

    र्ता जिजह्वो महाद्रष्टो महाकायो महाबः।

    मिवचचारदण्डकारण्यं मांसभ.ो महामृगः।।

    वह मारीच पपार्ताी जिजह्वा वाा, भयंकर जबडे़वाा था। सिंसह का जबड़ा भयंकर होर्ताा है और मिहरणका जबड़ा बहुर्ता छोटा होर्ताा ह।ै अधि-कर्तार शाकाहारीप्राशिणयों का जबड़ा छोटा होर्ताा ह।ै महाकायो अथा%र्ता्भयानक शरीर वाा, माँस का भ.ण करने वाा। मिहरणकभी माँस नहीं Hार्ताा। गाय, मिहरण, Hरगोश आमिद मरसकरे्ता हैं, ेमिकन कभी माँस नहीं Hा सकरे्ता।

    मृग का अथ% सिंसह भी होर्ताा ह।ै मारीच सिंसह के भेषमें आया था, जिजसकी जिजह्वा पपा रही थी। मारीच

    प्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठप्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, , सरसावा सरसावा 2323 / 460/ 460

  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    सीर्ताा का अपहरण करना चाहर्ताा था, इसलिये राम नेउस पर बाण का प्रहार मिकया। यमिद मिहरण होर्ताा, र्ताो रामकभी भी उस पर अस्त्र नहीं उठा सकरे्ता थे। राजा केलिये मनुस्मृधिर्ता में यह आदेश है मिक जो प्राणी मनुष्यों कीहिंहसा कर सकरे्ता हों, उनको वह मार सकर्ताा ह।ै

    याद रलिHये, अहिंहसा की व्याख्या बहुर्ता जमिट ह।ैआपके सामने कसाई एक गाय को ेकर जा रहा ह।ैअहिंहसा का जिसद्धान्र्ता कहर्ताा है मिक गाय को बचानाचामिहये। सत्य का जिसद्धान्र्ता कहर्ताा है मिक सत्य बोनाचामिहये। गाय कसाई के हाथ से छूट चुकी ह।ै आप क्याबोेंगे?

    अहिंहसा के बाद सत्य की व्याख्या आयेगी। उसी केसाथ इसको जोड़कर देलिHये। यह बार्ता ध्यान में रHनेयोग्य है मिक अहिंहसा की व्याख्या हम मिकस प्रकार से

    प्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठप्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, , सरसावा सरसावा 2424 / 460/ 460

  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    करें? यमिद १०० चोर, डकैर्ता, या राष्ट्र मिवरो-ी व्यमिfयोंको आप माररे्ता हैं र्ताो उर्तानी बड़ी हिंहसा नहीं होर्ताी,जिजर्तानी एक योगी, र्तापस्वी, या परमहसं को एक चाँटामारने से होर्ताी ह।ै एक ऋमिष को यमिद कोई पत्थर मारर्तााह,ै र्ताो सारी दमुिनया उसे बुरा कहेगी। ेमिकन वही व्यमिf१० आर्ताकंवामिदयों को मारर्ताा ह,ै र्ताो दमुिनया उसकोबहुर्ता अच्छा कहर्ताी ह ैमिक मिकर्ताना बहादरु पुरुष ह।ै

    चींमिटयों का झणु्ड जा रहा है, आपके हाथ से भूसे पत्थर मिगर गया, सारी चींमिटयाँ मर गई,ं र्ताो वह भीहिंहसा हुई। ेमिकन आप समाज की दृमिष्ट में, -म% की दृमिष्टमें महापापी नहीं कहायेंगे। यमिद आपने र्तापस्या करनेवाे महात्मा की टांग र्ताोड़ दी, र्ताो कोई भी आपकोअच्छा नहीं कहेगा। चींटी के अन्दर भी वही जीव है,महात्मा के अन्दर भी वही जीव है, ेमिकन पीड़ा का स्र्तार

    प्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठप्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, , सरसावा सरसावा 2525 / 460/ 460

  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    देHा जार्ताा ह।ै

    आप मिकसी को जान-बूझकर काँटा चुभो देरे्ता हैं,र्ताो वह पाप ह।ै ेमिकन यमिद आप डाॅक्टर हैं, आप अपनेरोगी की सज%री कररे्ता हैं, आॅपरशेन कररे्ता हैं, उसके घावोंको काटरे्ता हैं, र्ताो उसको पाप नहीं माना जायेगा क्योंमिकआपने उसको सुन्न कर रHा है और आपके आॅपरशेनका उद्देश्य उसको कष्टों से मुमिf मिदाना ह।ै

    मान ीजिजये मिक एक बछड़ा ह,ै उसके शरीर मेंकीडे़ ही कीडे़ पड़ गये हैं। मिकसी भी औषधि- से उसकाईाज नहीं हो सकर्ताा। र्ताड़प रहा ह।ै उसके लिये क्याधिचमिकत्सा ह?ै हिंहसा क्या कहर्ताी ह?ै -म% का जिसद्धान्र्ताक्या कहर्ताा ह?ै उसको कोई ऐसा पदाथ% मिदया जाये,जिजससे वह शरीर छोड़ दे, यही उसके लिये अहिंहसा ह,ैक्योंमिक मरने से ज्यादा कष्ट उसको र्ताड़प-र्ताड़प कर

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  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    जीने में हो रहा ह।ै

    इसलिये देश, का, और परिरत्मिस्थधिर्ता के अनुसारअहिंहसा की व्याख्या होगी, सत्य की व्याख्या होगी,अस्रे्ताय की व्याख्या होगी, और धिचर्तावमिन की राह परचने वाे से यही अपे.ा की जार्ताी है मिक वे अपनीवाणी को सम्यक बनायें।

    सम्यक वाक् अथा%र्ता् सत्य बोें, मिप्रय बोें,मिहर्ताकारी बोें, कभी सपने में भी झूठ न बोें, मन में भीमिकसी के लिये ऐसा कटु वचन न बोें जिजससे उसकाहृदय ममा%मिहर्ता हो। यमिद आप बहुर्ता बडे़ ज्ञानी हैं, औरआपको अपनी वाणी पर संयम न हो, र्ताो क्या होगा?आपके कटु शब्द उसके हृदय को पीड़ा देंगे।

    अहिंहसा का ाभ क्या होर्ताा ह?ै "अहिंहसा

    प्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठप्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, , सरसावा सरसावा 2727 / 460/ 460

  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    प्रधिर्ताायाम् र्तात्सधिन्न-ौ वैरत्यागः।" अहिंहसा में त्मिस्थर्ता होजायेंगे, र्ताो आपका मिकसी भी प्राणी से वैर नहीं रहेगा।आप कीडे़-मकोड़ों को न मारिरये। आपके पास वह जिसधिद्धआ जायेगी मिक सिंसह भी आपके पास आयेगा, र्ताो आपपर हमा नहीं करगेा।

    एक सच्ची घटना आपको बर्ताार्ताा हँू। योगेश्वरानन्दजी मिहमाय पर सा-नारर्ता थे। एक बार मिकसी महात्माके पास पहुँचे। यह काल्पमिनक बार्ता नहीं ह,ै सच्ची घटनाह,ै जो मैं बर्ताा रहा हँू। मेरे साथ जो घटी है, मैं वह नहींबर्ताा रहा हूँ, औरों के साथ जो घमिटर्ता हुई है, वह बर्ताारहा हँू।

    महात्मा जी के पास एक बाघ पानी पी रहा था।जसेै ही योगेश्वरानन्द जी पानी भरने के लिये गये, वहगुरा% उठा। महात्मा जी कहरे्ता हैं, चुप हो जा बेटा, चुप हो

    प्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठप्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, , सरसावा सरसावा 2828 / 460/ 460

  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    जा। वह शान्र्ता हो गया और जिसर झुकाकर चा गया।

    योगेश्वरानन्द जी कहरे्ता हैं मिक स्वामी जी! मुझेदेHकर यह बाघ गुरा% उठा और आपके पास पार्ताू कुत्तेकी र्तारह बठैा हुआ पानी पी रहा था। आपने कहा मिक रू्ताचा जा यहाँ से, र्ताो दमु मिहाकर वह चा भी गया।इसका क्या कारण ह?ै महात्मा जी ने कहा,"योगेश्वरानन्द जी! आपमें अभी अहिंहसा की जिसधिद्ध नहींहुई ह।ै"

    बार्ता सच थी। योगेश्वरानन्द जी एक बार सा-ना केलिये जा रहे थे। रास्रे्ता में एक बाघ सामने आ गया।उनके साथ एक और महात्मा थे। दोनों आमने-सामनेकुछ फीट की दरूी पर Hडे़ थे। वह हमा करना चाहर्तााथा। इनके पास डण्डा था। उन्होंने डण्डा उसके मुँह मेंडा मिदया और बेचारा बाघ र्ताड़प-र्ताड़पकर मर गया।

    प्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठप्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, , सरसावा सरसावा 2929 / 460/ 460

  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    यद्यमिप इन्होंने बाघ मारा था, मिकन्र्ताु जान-बझूकर नहींमारा था, आत्मर.ा के लिये मारा था, इसलिये वह हिंहसाका दोष उनके ऊपर था, जिजसके कारण बाघ गुरा% उठाथा।

    आप अपने मन में मिकसी के प्रधिर्ता हिंहसा की भावनान रलिHये, वाणी में न रलिHये, और आपके आचरण में र्ताोकभी भी नहीं होनी चामिहये। मिकन्र्ताु मैं यह नहीं कह रहा हूँमिक आपके सामने कोई अबा की इज्जर्ता ूट रहा हो,कोई आर्ताकंवादी मिनहत्थों को गोलियों से भुन रहा हो,और आप हटे्ट-कटे्ट होकर भी चुपचाप देHरे्ता रहें, र्ताोइसको कायरर्ताा कहेंगे, इसको अहिंहसा नहीं कहेंगे।

    पापी के चरणों पर, झुक जाना भारी हिंहसा ह।ै

    पापी का शीश कुच देना, हिंहसा नहीं अहिंहसा ह।ै

    प्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठप्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, , सरसावा सरसावा 3030 / 460/ 460

  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    यह बार्ता र्ताो एक कमिव ने कही ह।ै कल्पना कीजिजये,आप ादेन के दोस्र्ता हो गये, आप उसको जिसज़दा बजारहे हैं। भे ही आप मिकसी भी प्राणी की हिंहसा नहीं कररहे हैं, ेमिकन आप अन्याय का समथ%न कर रहे हैं, र्ताोआप भी हिंहसा का समथ%न कर रहे हैं। कसाई मिदन-रार्तागाय को काट रहा है, और आप कुछ मिवरो- नहीं कर रहेहैं। द्रोणाचाय% और भीष्म मिपर्ताामह की र्तारह मौन -ारणमिकये हैं, र्ताो आप हिंहसा को बढ़ावा दे रहे हैं। उस पाप मेंआप भी शामिम हैं।

    यमिद आप अस्त्र-शस्त्र नहीं उठा सकरे्ता, र्ताो मिकसीन मिकसी रूप से मिवरो- र्ताो कर सकरे्ता हैं। हिंहसा औरअहिंहसा की बहुर्ता सूक्ष्म व्याख्या ह।ै मैं ज्यादा मिवस्र्ताार सेर्ताो नहीं कहूँगा क्योंमिक हमारा क्ष्य है धिचर्तावमिन। एकधिचर्तावमिन करने वाे सुन्दरसाथ को यम-मिनयमों का

    प्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठप्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, , सरसावा सरसावा 3131 / 460/ 460

  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    मिकस र्तारह से पान करना है, मुझे सं.ेप में प्रकाशडाना ह।ै अभी र्ताो २० मिमनट इसी में ग गये।

    सत्य

    दसूरी चीज है सत्य। सत्य का पान करने से क्या

    ाभ होगा?

    सत्य प्रधिर्ताायाम् मिक्रयाफ आश्रधियत्वम्।

    योगदश%न में लिHा है मिक यमिद आप मन, वाणी,और कम% से सत्य का पान कररे्ता हैं, र्ताो आप जोकहेंगे, वह अमोघ हो जायेगा। आपकी वाणी कभी मिमथ्यानहीं होगी। आप सोचरे्ता हैं मिक झूठ बोकर हम ाभकमा ेंगे। व्यापारी कहर्ताा है मिक मिबना झूठ बोे व्यापारनहीं हो सकर्ताा। नौकरी करने वाा कहेगा मिक मिबना झूठबोे हमें छुट्टी नहीं मिम सकर्ताी। मिकसान कहेगा मिक

    प्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठप्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, , सरसावा सरसावा 3232 / 460/ 460

  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    मिबना झूठ बोे हमें Hेर्ताी में रास नहीं आर्ताा। यह कोराभ्रम ह।ै जिजस मिदन हर व्यापारी झूठ बोने गेगा, उसमिदन पूरा व्यापार ठप्प हो जायेगा। व्यापार भी मिवश्वास परचा करर्ताा ह।ै

    सत्येन उत्तशिभत्ता भूमिमः।

    सारी पथृ्वी मिकस पर मिटकी है? सत्य पर। जिजसमिदन सत्य का ह्रास हो जायेगा, उस मिदन ब्रह्माण्ड काप्रय हो जायेगा। सत्य ने ही सृमिष्ट को -ारण मिकया ह।ैसत्य ही -म% है और सत्य ही परमात्मा ह।ै परमात्मा उसेकहरे्ता हैं जो सत्य हो, चेर्तान हो, और आनन्दमय हो।

    यमिद सत्य का परिरत्याग करके आपको अथ%संग्रहकरने को मिमर्ताा ह,ै र्ताो समजिझये मिक वह अथ% ज्यादासमय र्ताक आपके काम में आने वाा नहीं ह।ै ेमिकन जो

    प्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठप्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, , सरसावा सरसावा 3333 / 460/ 460

  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    अथ% -म% के अनुकू प्रा होर्ताा ह,ै वही अथ% आपकेपास सुरधि.र्ता रहेगा। इसलिये भारर्ताीय संस्कृधिर्ता में सबसेपहे -म% को प्राथमिमकर्ताा दी गई।

    -म% है र्ताो अथ% ह।ै अ-म% से अजिज%र्ता मिकया हुआअथ%, अथ% नहीं, अनथ% ह,ै और जसेै कहा जार्ताा है मिकपानी का पसैा पानी में ही चा जार्ताा ह,ै उसी र्तारह सेअ-म% से अजिज%र्ता मिकया हुआ अथ% यानी -न आपकेउपभोग में नहीं आ सकर्ताा।

    अभी मैंने कहा, जो आपके मन में ह ैयमिद वही वाणीमें ारे्ता हैं, और जो वाणी से कहरे्ता हैं वही आचरण में

    ारे्ता हैं, र्ताो उसको कहरे्ता हैं सत्य। वह सत्य नहीं है,जिजसमें छ भरा हो। जसेै, यधुि-मिर ने सच ही कहा थामिक भीम ने अश्वत्थामा को मारा है, मिकन्र्ताु हाथी भी कहाथा, क्योंमिक उस मिदन द्रोणाचाय% ने र्ताय कर लिया था मिक

    प्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठप्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, , सरसावा सरसावा 3434 / 460/ 460

  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    मुझे पाण्डवों की सेना को समा कर देना ह।ै

    श्री कृष्ण जी ने देHा मिक द्रोणाचाय% के वेग को र्ताोरोका नहीं जा सकर्ताा। शिशष्य होने के कारण अजु%न सच्चेमन से ड़ नहीं रहा ह।ै उन्होंने भीम से कहा मिकअश्वत्थामा को मारो और द्रोणाचाय% को मिकसी र्तारह यदु्धसे रोको, र्ताभी पाण्डव सेना की र.ा हो पाना सम्भव ह।ैयधुि-मिर को समझाया मिक देHो यधुि-मिर! आजद्रोणाचाय% ने ब्रह्मास्त्र छोड़ा ह।ै द्रपुद को मार डाा,मिवराट को मार डाा। यमिद ऐसे ही द्रोणाचाय% यदु्ध कररे्तारहे, र्ताो आज ही सारी पाण्डव सेना मारी जायेगी।

    र्ताुम्हे ड़ना है दयु-न के मिवरुद्ध, अन्याय केमिवरुद्ध। इन ाHों व्यमिfयों को मरने से बचाने के लियेएक -म% का आश्रय ो। एक द्रोणाचाय% मारे जारे्ता हैं र्ताोर्ताुम्हारी ाHों की सेना बच जायेगी, यही -म% ह।ै श्री

    प्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठप्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, , सरसावा सरसावा 3535 / 460/ 460

  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    कृष्ण जी की अपनी नीधिर्ता ह।ै उस नीधिर्ता का पान करनेके लिये द्रोणाचाय% जी के सामने यधुि-मिर ने कह मिदयामिक अश्वत्थामा मारा गया, मिकन्र्ताु नर नहीं हाथी। परिरणामक्या हुआ?

    द्रोणाचाय% ने उनकी बार्ता पर मिवश्वास कर लिया,क्योंमिक यधुि-मिर स्वप्न में भी झूठ नहीं बो सकरे्ता थे।सच र्ताो बोा था, ेमिकन उस सत्य में झूठ का आवरणथा, एक छ था। इसलिये वह पूण%र्ताया सच नहीं हुआ।राष्ट्र की र.ा के लिये भी आपको ऐसे काय% करने पड़सकरे्ता हैं। अपने स्वाथ% के लिये आप कभी झूठ नबोलिये, चाहे करोड़ों का नुकसान हो जाये, कुछ भी होजाये, बदनामी हो जाये। ेमिकन मिकसी के प्राण संकट मेंहैं, र्ताो आपको कुछ दसूरा मिनयम ागू करना पडे़गा।

    इधिर्ताहास सा.ी है मिक जब छत्रपधिर्ता शिशवाजी

    प्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठप्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, , सरसावा सरसावा 3636 / 460/ 460

  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    औरगंज़ेब की कैद में थे, र्ताो अपने पुत्र सम्भाजी के साथवह मिमठाई की टोकरी में शिछपकर भागे थे। दधि.ण भारर्ताके महाराष्ट्र ीय ब्राह्मण के घर पर उन्होंने अपने पुत्रसम्भाजी को रH मिदया और अकेे शिछपकर मिनक गये।औरगंजेब के गुचरों ने पर्ताा गा लिया मिक सम्भाजीउनका बेटा ह।ै

    अब ब्राह्मण के सामने प्रश्न यह था मिक शरणागर्ता कीर.ा करे या सत्य का पान कर?े अन्र्ता में जबऔरगंज़ेब के सैमिनक सम्भाजी का पर्ताा गारे्ता-गारे्ताउस ब्राह्मण देवर्ताा के घर गये मिक हमें पर्ताा चा है मिकआपके यहाँ शिशवाजी का पुत्र सम्भाजी ठहरा है, र्ताो उसब्राह्मण देवर्ताा ने बहुर्ता र्ताक% -मिवर्ताक% मिकया।

    एकान्र्ता में अपनी पत्नी से भी बार्ता की। पत्नीकहर्ताी ह,ै "एक सम्भाजी मर जायेगा, र्ताो मेरा क्या

    प्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठप्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, , सरसावा सरसावा 3737 / 460/ 460

  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    नुकसान हो जायेगा? आपने जो जीवन भर सत्य कापान मिकया ह,ै उसकी मया%दा को मर्ता र्ताोमिड़ये। यमिदसम्भाजी पकड़ा भी जार्ताा ह,ै र्ताो हमारी क्या हामिन है?औरगंज़ेब हमें करोड़ों रूपये दे सकर्ताा ह।ै हम माामाहो जायेंगे। हमारी गरीबी मिमट जायेगी।"

    उस ब्राह्मण देवर्ताा ने बहुर्ता मिवचार मिकया और अन्र्तामें यही मिनष्कष% मिनकाा मिक शरणागर्ता की र.ा करना हीसत्य ह,ै क्योंमिक सत्य -म% का अंग ह।ै केव वाणी कासत्य सत्य नहीं माना जार्ताा। यमिद हम -म% का पानकररे्ता हैं, र्ताो वही सत्य ह।ै

    सत्यं ज्ञान ंअनन्र्ता ंब्रह्म।

    जो प्रकृष्ट सत्य ह,ै वही ब्रह्म का स्वरूप ह।ै

    -म% का एक अंग होर्ताा ह,ै शरणागर्ता की र.ा

    प्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठप्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, , सरसावा सरसावा 3838 / 460/ 460

  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    करना। जसेै एक गाय जा रही ह।ै कसाई उसको पकड़नाचाहर्ताा ह।ै कसाई आपसे पूछर्ताा है मिक क्या उ-र गायगई? आप क्या उत्तर देंगे? या र्ताो आप चुप हो जाइयेया बो दीजिजये मिक हमें माूम नहीं। ेमिकन जिज-र गायगई ह,ै वह मर्ता कमिहये।

    आपको कसाई से मिमत्रर्ताा जोड़ने की कोईआवश्यकर्ताा नहीं ह,ै क्योंमिक वह अत्याचारी ह।ैअत्याचारी व्यमिf सारी पथृ्वी का सम्राट हो, र्ताो भी कभीउसको सहयोग नहीं देना चामिहये, और भे ही आपअकेे हैं र्ताथा संसार अ-म% की राह पर है, र्ताो संसार सेकभी डरने की आवश्यकर्ताा नहीं ह।ै

    डरर्ताा कौन ह?ै जो कायर ह।ै जो योगी होर्ताा ह,ैजिजसको परमात्मा पर आस्था होर्ताी ह,ै वह क्यों डर।े

    प्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठप्रकाशकः श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, , सरसावा सरसावा 3939 / 460/ 460

  • ध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामीध्यान की पुष्पाञ्जलि श्री राजन स्वामी

    जिसकन्दर सैमिनकों को मार सकर्ताा था, वह वीर था,मिकन्र्ताु उसके साथ कायरर्ताा भी जुड़ी हुई थी। नामिदरशाहकू्रर था, ेमिकन कायर भी था।

    एक बार, एक र्ताात्मिन्त्रक ने शकंराचाय% जी से कहा,"आप कहरे्ता हैं मिक ब्रह्म सत्यं जगर्ता् मिमथ्या, र्�