ancient india (प्राचीन भारत)

Post on 08-Apr-2017

132 Views

Category:

Education

3 Downloads

Preview:

Click to see full reader

TRANSCRIPT

www.rrbportal.com

RRB PORTAL

Online Coaching For RRB Exam

Subject: सामान्य ज्ञानChapter: Ancient India (प्राचीन भारत)

www.rrbportal.com

पुराऐतितहासिसक संस्कृतितयां

अभिभलेखः अभि�लेख सर्वा�धि क महत्र्वापरू्ण� सक्ष्य मने जते हैं। सम्रट अशोक के अभि�लेख सर्वा�धि क प्रचीन मने जते हैं। अशोक के अधि कंश अभि�लेख ब्रह्मी लिलपिप में, पपिकस्तन तथ अफगपिनस्तन से प्रप्त अभि�लेख अरमइक एर्वां युननी लिलपिप में है। मस्की, गुज�र तथ पनगुडइय के अभि�लेख में अशोक के नम क उल्लेख है। अभि�लेखों में अशोक को पिप्रयदश9 तथ देर्वातओं क पिप्रय कह गय है। अशोक के स�ी अभि�लेखों क पिर्वाषय प्रशसपिनक है परंतु रूम्नदेई अभि�लेख क पिर्वाषय आर्थिथAक है। गुप्त शसकों क इपितहस अधि कतर उनके अभि�लेखों के आ र पर लिलख गय है।

www.rrbportal.com

प्रशस्तिस्त अभि�लेखों में प्रलिसद्ध है, रूद्रदमन क पिगरनर अभि�लेख, खरर्वाेल क हथी गुफ अभि�लेख, समुद्रगुप्त क प्रयग प्रशस्तिस्त, सतर्वाहन रज पुलुमर्वाी क नलिसक गुफलेख आदिद। यर्वान रजदूत हेलिलयोडोरस क बेसनगर से प्रप्त गरूड़ स्तं� अभि�लेख से पिIतीय सदी ई. पूर्वा� के मध्य �रत में �गर्वात म� के मौजूद होने क प्रमर्ण धिमलत है। मध्य प्रदेश के एरर्ण से प्रप्त अभि�लेख से गुप्तकल में सती प्रथ की जनकरी प्रप्त होती है। गुप्तकलीन उद्यपिगरिर स्थिPत र्वारह की मूर्तितA पर हूर्ण शसक तोरमर्ण क लेख अंपिकत है।

www.rrbportal.com

ति�देशी अभिभलेख : पिर्वादेशी अभि�लेखों में सबसे पुरन अभि�लेख 1400 ई.पू. क है तथ एलिशय मइनर में ‘बोगजकोई’ से प्रप्त हुआ है। इसमें र्वारूर्ण, धिमत्र, इन्द्र तथ नसत्य देर्वातओं क नमोल्लेख है। पर्थिसAपोलिलस तथ बेपिहस्तून अभि�लेखों से ज्ञत हुआ है पिक ईरनी सम्रट Iर प्रथम ने 516 ई.पू. में लिसनू्ध नदी घटी के के्षत्र पर अधि कर कर लिलय थ। धिमस्र में तेलुर्वाल अमनों में धिमट्टी की तस्थि त̂यं धिमली हैं जिजन पर बेबीलोपिनय के कुछ शसकों के नम उत्कीर्ण� हैं जो ईरनी एर्वां �रत के आय�शसकों के नम जैसे हैं।

www.rrbportal.com

मूर्तित$कलाः मौय�कल में पिनर्मिमAत पिर्वाभि�न्न मूर्तितAयं जैसे ग्र्वालिलयर की मभिर्ण�द्र की मूर्तितA, ौली क हथी, परखम क यक्ष तथ दीदरगंज की यक्षर्णी आदिद प्रलिसद्ध कलत्मक पुरतत्वित्र्वाक सक्ष्य है। गं र कल तथ मथुर कल के कपिनष्क की लिसर पिर्वाहीन मूर्तितA से तत्कलीन र्वाò पिर्वान्यस की जनकरी प्रप्त होती है।

www.rrbportal.com

मुद्रायें : सन् 206 ई. से 300 ई. तक क �रतीय इपितहस क ज्ञन मु^यतय मुद्रओं पर आ रिरत है प्रचीन �रत में सोन, चंदी, तंब, सीस तथ पोटीन के बने लिसक्के प्रचलिलत थे। यद्यपिप �रत में लिसक्कों की प्रचीनत क स्तर आठर्वाीं शती ई.पू. तक है परन्तु पिनयधिमत लिसक्के छठी सदी ई.पू. से ही प्रचलन में आये। प्रचीनतम लिसक्को को ‘आहत लिसक्के’ कह जत है। सपिहत्य में इन्हें ‘कष�पर्ण’ कह गय है। ये अधि कंशतः चंदी के हैं जिजन पर ठप्प लगकर पिर्वापिर्वा आकृपितयं उकेरी गई हैं। पिहन्द-बैस्थिक्टरीयई शसकों ने सर्वा�प्रथम लिसक्कों पर लेख अंपिकत करर्वाय। लेखों से संबंधि त रज के पिर्वाषय में महत्र्वापूर्ण� सूचन प्रप्त होती है।

www.rrbportal.com

सबसे अधि क तंबे, चंदी र्वा सोने के लिसक्के मोयmत्तर युग के है। मुद्रओं की सहयत से संबंधि त कल के र्मिमAक पिर्वाश्वस, कल, शसन पद्धपित तथ पिर्वाजय अभि�यन क ज्ञन प्रप्त होत है। कपिनष्क की मुद्रओं से उसके बौद्ध म� के अनुययी होने क पत चलत है। शक-पहलर्वा युग की मुद्रओं से उनकी शसन पद्धपित क ज्ञन होत है। स्कन्द्गपु्त की मुद्रओं में सम्मिम्मभिsत स्र्वार्ण� धिमलत है जिजससे तत्कलिलक आंतरिरक अशंपित तथ कमजोर आर्थिथAक स्थिPपित क ज्ञन होत है। कुषर्ण कल की स्र्वार्ण� मुद्रयें सर्वा�धि क शुद्ध स्र्वार्ण� मुद्रयें थीं। गुप्तकल में सर्वा�धि क सोन के लिसक्के जरी पिकये गये।

www.rrbportal.com

स्मारक ए�ं भ�नः तक्षलिशल से प्रप्त स्मरकों से कुषर्ण र्वांश के शसकों तथ गं रकलीन कल की जनकरी प्रप्त होती है। �रतीय इपितहस से संबंधि त कुछ पिर्वादेशी स्मरक �ी प्रकश में आये हैं। जैसे- कंबोपिडय के अंकोरर्वाट क मजिन्दर, जर्वा क बोरोबुदूर मजिन्दर आदिद।

भूमिमदान पत्राः ये प्रयः तंबे की चदरों पर उत्कीर्ण� हैं तथ शसकों अथर्वा समंतों Iर दिदये दन अथर्वा पिनदtश के लेखपत्र है। दभिक्षर्ण �रत के चोल, चलुक्य, रष्ट्रकूट, पण्ड्य तथ पल्लर्वा र्वांश क इपितहस लिलखने में ये उपयोगी हैं।

www.rrbportal.com

सिचत्राकलाः लिचत्रकल तत्कलीन समज की उन्नपित तथ अर्वानपित के द्योतक होते हैं।

सातिहत्यि+यक स्त्रोत

�ैदिदक सातिह+यः र्वाैदिदक सपिहत्य के अन्तग�त र्वाेद, र्वाेदंग, उपपिनषद,् पुरर्ण, स्मृपित, म�शस्त्र आदिद आते हैं। अथर्वा�र्वाेद में अंग एर्वां मग महजनपद क उल्लेख है। आयx Iर अनयx की संस्कृपितयों को अपनने क �ी उल्लेख है। मत्स्य पुरर्ण में सतर्वाहन र्वांश के पिर्वाषय में जनकरी धिमलती है तथ मत्स्य पुरर्ण सर्वा�धि क प्रचीन एर्वां प्रमभिर्णक पुरर्ण है। पिर्वाष्रु्ण पुरर्ण से मौय� र्वांश एर्वां गुप्त र्वांश की जनकरी प्रप्त होती है।

www.rrbportal.com

र्वायु पुरर्ण से शंुग एर्वां गुप्त र्वाशं की पिर्वाशेष जनकरी धिमलती है। संस्कृत में लिलखिखत बौद्ध ग्रन्थ महर्वास्तु तथ ललिलत पिर्वास्तर में महत्म बुद्ध के जीर्वान चरिरत क उल्लेख है। स्थि|र्वादन में परर्वात9 मौय� शसकों एर्वां शंगु रज पुष्यधिमत्र शंगु क उल्लेख धिमलत है। परिरलिशष्ट पर्वा�न नमक जैन ग्रंथ से ज्ञत होत है पिक मौय� शसक चन्द्रगुप्त अपने जीर्वान के अंपितम कल में जैन म� को अपन लिलय थ एर्वां sर्वार्णबेलगोल में रहकर उपर्वास Iर प्रर्ण त्यग दिदय थ। जैन गं्रथ �गर्वाती सूत्र से तत्कलीन 16 महजनपदों के अस्तिस्तत्र्वा क पत चलत है। �द्रबहुचरिरत् से चंद्रगुप्त मौय� के रज्य कल की घटनओं पर कुछ प्रकश पड़त है।आरंभि�क सैं र्वा सभ्यत के सक्ष्य 

www.rrbportal.com

Click Here to Join RRB Online Coaching:http://rrbportal.com/online-coaching

Click Here to Buy RRB Study Kit in Hard Copy:http://www.rrbportal.com/study-kit

top related