chitra final 09102017 - wordpress.com · 01 कर म कटनी - लेखनी, सिहत...
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परमिपता ��हा के शरीर से उ�पन भगवान िच�गु� महाराज का कम��े� बना यमपुरी ।
धम�राज यम के यहाँ उ�ह � िज�मेदारी िमली सभी �ािणय� के पाप - पु�य का िहसाब �कताब
रखने क� । उनके वंशज आज भी अपने �तर पे यह परंपरा िनभा रह ेह ै, और मु�य तौर पे
लेखा जोखा म� गुणव�ा के िलए जाने जाते ह ै। लेखनी कटनी के छे� म� �े� वण� होने के
बावजूद भगवान िच�गु� पर कोई धम� पुि�तका नह� ह,ै यह बड़ ेआ�य� व असमंजस क�
बात ह ै।
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इस कमी के भरपाई हतुे, काय�त कवी �ी नरेश �शाद "नाहर" ने िच�गु� पचासा क�
रचना क� । क�वं नाहर ने पचास दोहो म� भगवन िच�गु� का वंदन तथा वण�न बड़ े ही
भि� व भावपूण� ढंग से �कया ह ै। यह पाठको को अनुपम आनंद �दान करने वाला ह ै।
�काशक का सुझाव था क� पु�तक का नाम िच�गु� चालीसा रखा जाये (अिपतु इसम�
पचास दोह ेह)ै, ता�क जन मानस इस का� का उ�े�य शीष�क मा� से ही समझ जाये ।
सम�त काय�त जाती के िलए यह पचासा �कसी धम���थ स े कम नह� ह ै। और इसका वंदन
िच�गु� पूजा के �दन अव�य ही करना चािहये ।
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कर म� कटनी - लेखनी, सिहत ह�आ अवतार ।
पढ़ना-िलखना जानता, िजनसे यह संसार ।
��ाजी के प� ये, मानस से स�भत ।ु ू
चार� वण� के ह�ए, सब िव�ा के दत ।।ू
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िच�ग� जय जय अिधराजे, यमपर म� िसंहासन साजे ।ु ु
�ाणी मा� के कम� िलखेता, धम� धाम के सहज �णेता ।।
�याय �ाण के तव रखवारे, �ान �दीप जलावनहरे ।ु
तम सम कोई नह� देवता, िनिशिदन िव�ामं� सेवता ।।ु
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जगतीतल म� अ�रदायक, तम ही म��� के उपनायक।ु
तम अितशय गण-�ान �वीणा, �याय नीित के धम� धरीना।।ु ु ु
तमसे जग म� �ान िवराजे, �यान ईश का तमसे गाजे।ु ु
तम ि�लोक का गिणत िलखयैा, पार �� का �ान िसखयैा।।ु
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�ान-च� के खोलनहारे, जप-तप, पजा-पाठ संवारे।ु ू
सर�वती �ी गणपित देवा, िमलते करते ��ा-सेवा।।
तम ि�देव क� सेवा करते, िमलकर उनसे पाप संहरते।ु
तम ही रखते लेखा-जोखा, कभी नह� होता ह ैधोखा।।ु
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तम ही रागी औ वरैागी, माया, मोह, वासना �यागी।ु
िविध आ�ा से बन संसारी प�रणय-�णय िकये उपकारी।।
दो िववाह संय� रचाए, धरती ने बारह सत पाए।ु ू
चार प� पहली से जाए, आठ, दसरी से सत आए।।ु ूू
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भान, िवमान िव�भान, ओ, वीय�वान चौथा ही थे जो।ु ु ु
�ीवा�तव और ह�ए मकर�वज, िनगम औ कल�े� सअ�ज ।।ु ु
चा� स-िच�चा� मितमना, चौथा, िफर सचा� मह�ाणा ।ु ु
चा��ता, िहमवान, िच� ये, सात अतीि��य अ�म सत थे ।।ू
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माथर, कण� तथा स�सेना, गौड़ और अ�ाना पनैा ।ु
अ�ब�ा, भटनागर उस पर, बा�मीक थे बड़े उजागर ।।
ये बारह सत धरती तल पर, िवचरण करते िव�ा-बल पर ।ू
एक-एक धीमान, अमानी, चतर बड़े संयत ि�यवाणी ।।ु
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अलग अलग पर ईश पजीता, इनसे जग का िहत ही होता ।ू
क�णा के सागर भंडारी, अितशय, �ेम �माण-पजारी ।।ु
�वाथ�हीनता पर-उपकारी, पर दःख कातर संशयहारी ।ु
मसी-कलम क� पजा करते, िनिशिदन �ेम िदल� म� भरते ।।ू
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श�ल �ीतीय काितक मासे, िच�ग� - मरत - उपवासे ।ु ु ू
आसन, वसन, �यान धारणा, िफर समािध तक कर उपासना ।।
दीन हीन को देते दाना, इनने सब जन को ि�या माना ।
भोजन चार� वण� िजमाते, मन म� अितशय ही सख पाते ।।ु
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सं�या - पजन - भोग लगाकर, गाते सब संगीत सधाकर ।ू ु
जग - क�याण - भावना सेते, िबना मांगे सबकछ दे देते ।।ु
िबना गे�वा के ये योगी, सभी िपता के ह � िविनयोगी ।
प�वी पर िच�ांश कहाकर, ये रहते अ�याय िवहा कर ।।ृ
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पजा ये काय�थ जाित क�, पर, जो भी कर ले स-भांित क� ।ू ु
िच�ग� उसपर खश होते, हँसने लगते ह � जो रोते ।।ु ु
अंचन-व�दन नह� �वग� को, या कोई अपवग� वग� को ।
जगिहत, जनिहत भाव उठावे, िच�ग� क� जो जय गावे ।।ु
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आवे िनत स�तोष िनयोगा, भाई-भव का होता जोगा ।
इससे बढ़कर सख ना दजा, यही देव क� ह ैयह पजा ।।ु ूू
िनयत िदवस जो पजा करते, असमय नह� म�य को वरते ।ू ृ ु
इनक� पजा से यम देवा, खश हो जाते देते मेवा ।।ू ु
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जो िमलता, होते संतोषी, होते नह� कभी पर-दोषी ।
िनजता क� म�ती छा जाती, पार �ेम-िक�ती आ जाती ।
सदा एक रस नर हो जाते, �ान-दीप खद से जल जाते ।ु
िच�ग� क� कर� आरती, खश होती जगद�ब भारती ।।ु ु
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इससे बढ़कर और कौन सख, ुदःख न भासे �िणक रोग मख ।ुु
जग िच�ांश अंश अित �यारा, इससे जगमग जग हो सारा ।।
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िच�ग� सख मल ह,� प�य� के आधार ।ु ु ू ु
भर जाता ह ै�ेम से, मन का यह भ�डार ।।
कोिट नमन करते इ�ह�, सदा झकाकर शीश ।ु
वरद ह�त दे माथ पर, िमले सदा आशीष ।।
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जीवन - वत - िव�द : नरेश �शाद "नाहर "ृ ु(१९४० - २०१०)
ज�म : भा�, क�ण प�, ततीया, िव�म संवत १९९७ृ ृ�थान : िसमरवार, बाराच�ी, गया (िबहार)
�थायी िनवास : शकन - सदन /नाहर - िनवास, नावाटोली, डालटनगंज (झारखंड)ू
िश�ा १.) �ाथिमक - अपने गाँव एवं निनहाल (हज़ारीबाग़, झारखंड)
२.) मिै�क - राम िवलास उ. िव., बेरमो (झारखंड)३.) बी. ए. (�ित�ा) - डी. ए. वी. कॉलेज , िसवान (िबहार)
४.) एम. ए. (�थम �ेणी) - िबहार िव�िव�ालय, मज�फरपरु ु५.) िडप इन एड - राँची (झारखंड़)
http://kavinahar.blogspot.in/2014/12/blog-post.html
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गौरव �ी पर�कार से स�मािनत किव �ी नरेश �साद "नाहर" क� का�यो व महाका�य� का सजन इ. सन १९६१ से २००९ ु ृतक ह�आ। पर�त उनके जीवन काल म� मा� दो प�तके "मांडवी " व "कछ िछपे फल उभरे काटे " ही �काश म� आ सके। इ. ु ु ु ूसन २०१० मे किव नाहर के �वग�वास के बाद उनक� प�नी शकंतला देवी व करन �काशन ने उनक� सम�त रचनाओ ुको �काश मे लाने क� िज�मेदारी उठाई।
सवेाएं - िश�क के �प म�, िछट फट, कछेक िव�ालो म� कम कम समय तक काय�रत रहने के उपरा�त -ु ु
१.) ८/२/१९६३ से �थायी िश�क के �प म � काय�रतक) रा. स. उ. िव., तरहसी (पलाम)ू
ख ) िग�रवर उ. मा. िव., डालटनगंज (पलाम)ूग ) रा. स. उ. िव., मेराल (पलाम)ू
२.) एन. सी. सी. पदािधकारी - १३ एवं ४४ िबहार बटािलयन, औरंगाबाद - डालटनगंज।
http://kavinahar.blogspot.in/2015/04/blog-post_28.html
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१. मांडवी (महाका�य) २. उिम�ला (महाका�य) ३. कोिशक� (का�य) ४. दान दि�णा (महाका�य) ५. रसखान (का�य) ६. आग ओ पानी (का�य) ७. सोये जागे सपने (किवता सं�ह) ८. कछ िछपे फल उभरे कटे (किवता सं�ह) ु ू९. गीता-यतन (महाका�य)
"नाहर" क� म�य कितयाँ ु ृ
संपादन१. रसवंती (वािष�क पि�का) - वष� १९७१ से
१०. जीवयन (महाका�य) ११. बब�रीक (महाका�य) १२. व�या (महाका�य) १३. ���वाला (महाका�य) १४. सय� प� (महाका�य) ू ु१५. अपनी (महाका�य) १६. िच�ग� चालीसा ु
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मषीभाजनसंय��रिस �वं ! महीतले ।ु
लेखनी - किटनीह�त िच�ग� नमोs�तते ।।ु ु
िच�ग� ! नम�त�यं लेखका�रदायकम ।ु ु ्
काय�थजाितमासा� िच�ग� ! नमो�त ते ।।ु ु
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करण �काशन
प�रक�पना :
email - [email protected]�p://kavinahar.blogspot.in/
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