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ica~aguapta àcaalaIsaa

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  • ica~aguapta àcaalaIsaa

  • परमिपता ��हा के शरीर से उ�पन भगवान िच�गु� महाराज का कम��े� बना यमपुरी ।

    धम�राज यम के यहाँ उ�ह � िज�मेदारी िमली सभी �ािणय� के पाप - पु�य का िहसाब �कताब

    रखने क� । उनके वंशज आज भी अपने �तर पे यह परंपरा िनभा रह ेह ै, और मु�य तौर पे

    लेखा जोखा म� गुणव�ा के िलए जाने जाते ह ै। लेखनी कटनी के छे� म� �े� वण� होने के

    बावजूद भगवान िच�गु� पर कोई धम� पुि�तका नह� ह,ै यह बड़ ेआ�य� व असमंजस क�

    बात ह ै।

  • इस कमी के भरपाई हतुे, काय�त कवी �ी नरेश �शाद "नाहर" ने िच�गु� पचासा क�

    रचना क� । क�वं नाहर ने पचास दोहो म� भगवन िच�गु� का वंदन तथा वण�न बड़ े ही

    भि� व भावपूण� ढंग से �कया ह ै। यह पाठको को अनुपम आनंद �दान करने वाला ह ै।

    �काशक का सुझाव था क� पु�तक का नाम िच�गु� चालीसा रखा जाये (अिपतु इसम�

    पचास दोह ेह)ै, ता�क जन मानस इस का� का उ�े�य शीष�क मा� से ही समझ जाये ।

    सम�त काय�त जाती के िलए यह पचासा �कसी धम���थ स े कम नह� ह ै। और इसका वंदन

    िच�गु� पूजा के �दन अव�य ही करना चािहये ।

  • 01

    कर म� कटनी - लेखनी, सिहत ह�आ अवतार ।

    पढ़ना-िलखना जानता, िजनसे यह संसार ।

    ��ाजी के प� ये, मानस से स�भत ।ु ू

    चार� वण� के ह�ए, सब िव�ा के दत ।।ू

  • िच�ग� जय जय अिधराजे, यमपर म� िसंहासन साजे ।ु ु

    �ाणी मा� के कम� िलखेता, धम� धाम के सहज �णेता ।।

    �याय �ाण के तव रखवारे, �ान �दीप जलावनहरे ।ु

    तम सम कोई नह� देवता, िनिशिदन िव�ामं� सेवता ।।ु

    02

  • 03

    जगतीतल म� अ�रदायक, तम ही म��� के उपनायक।ु

    तम अितशय गण-�ान �वीणा, �याय नीित के धम� धरीना।।ु ु ु

    तमसे जग म� �ान िवराजे, �यान ईश का तमसे गाजे।ु ु

    तम ि�लोक का गिणत िलखयैा, पार �� का �ान िसखयैा।।ु

  • 04

    �ान-च� के खोलनहारे, जप-तप, पजा-पाठ संवारे।ु ू

    सर�वती �ी गणपित देवा, िमलते करते ��ा-सेवा।।

    तम ि�देव क� सेवा करते, िमलकर उनसे पाप संहरते।ु

    तम ही रखते लेखा-जोखा, कभी नह� होता ह ैधोखा।।ु

  • 05

    तम ही रागी औ वरैागी, माया, मोह, वासना �यागी।ु

    िविध आ�ा से बन संसारी प�रणय-�णय िकये उपकारी।।

    दो िववाह संय� रचाए, धरती ने बारह सत पाए।ु ू

    चार प� पहली से जाए, आठ, दसरी से सत आए।।ु ूू

  • भान, िवमान िव�भान, ओ, वीय�वान चौथा ही थे जो।ु ु ु

    �ीवा�तव और ह�ए मकर�वज, िनगम औ कल�े� सअ�ज ।।ु ु

    चा� स-िच�चा� मितमना, चौथा, िफर सचा� मह�ाणा ।ु ु

    चा��ता, िहमवान, िच� ये, सात अतीि��य अ�म सत थे ।।ू

    06

  • 07

    माथर, कण� तथा स�सेना, गौड़ और अ�ाना पनैा ।ु

    अ�ब�ा, भटनागर उस पर, बा�मीक थे बड़े उजागर ।।

    ये बारह सत धरती तल पर, िवचरण करते िव�ा-बल पर ।ू

    एक-एक धीमान, अमानी, चतर बड़े संयत ि�यवाणी ।।ु

  • अलग अलग पर ईश पजीता, इनसे जग का िहत ही होता ।ू

    क�णा के सागर भंडारी, अितशय, �ेम �माण-पजारी ।।ु

    �वाथ�हीनता पर-उपकारी, पर दःख कातर संशयहारी ।ु

    मसी-कलम क� पजा करते, िनिशिदन �ेम िदल� म� भरते ।।ू

    08

  • 09

    श�ल �ीतीय काितक मासे, िच�ग� - मरत - उपवासे ।ु ु ू

    आसन, वसन, �यान धारणा, िफर समािध तक कर उपासना ।।

    दीन हीन को देते दाना, इनने सब जन को ि�या माना ।

    भोजन चार� वण� िजमाते, मन म� अितशय ही सख पाते ।।ु

  • सं�या - पजन - भोग लगाकर, गाते सब संगीत सधाकर ।ू ु

    जग - क�याण - भावना सेते, िबना मांगे सबकछ दे देते ।।ु

    िबना गे�वा के ये योगी, सभी िपता के ह � िविनयोगी ।

    प�वी पर िच�ांश कहाकर, ये रहते अ�याय िवहा कर ।।ृ

    10

  • 11

    पजा ये काय�थ जाित क�, पर, जो भी कर ले स-भांित क� ।ू ु

    िच�ग� उसपर खश होते, हँसने लगते ह � जो रोते ।।ु ु

    अंचन-व�दन नह� �वग� को, या कोई अपवग� वग� को ।

    जगिहत, जनिहत भाव उठावे, िच�ग� क� जो जय गावे ।।ु

  • आवे िनत स�तोष िनयोगा, भाई-भव का होता जोगा ।

    इससे बढ़कर सख ना दजा, यही देव क� ह ैयह पजा ।।ु ूू

    िनयत िदवस जो पजा करते, असमय नह� म�य को वरते ।ू ृ ु

    इनक� पजा से यम देवा, खश हो जाते देते मेवा ।।ू ु

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  • 13

    जो िमलता, होते संतोषी, होते नह� कभी पर-दोषी ।

    िनजता क� म�ती छा जाती, पार �ेम-िक�ती आ जाती ।

    सदा एक रस नर हो जाते,  �ान-दीप खद से जल जाते ।ु

    िच�ग� क� कर� आरती, खश होती जगद�ब भारती ।।ु ु

  • 14

    इससे बढ़कर और कौन सख, ुदःख न भासे �िणक रोग मख ।ुु

    जग िच�ांश अंश अित �यारा, इससे जगमग जग हो सारा ।।

  • 15

    िच�ग� सख मल ह,� प�य� के आधार ।ु ु ू ु

    भर जाता ह ै�ेम से, मन का यह भ�डार ।।

    कोिट नमन करते इ�ह�, सदा झकाकर शीश ।ु

    वरद ह�त दे माथ पर, िमले सदा आशीष ।।

  • 16

    जीवन - वत - िव�द : नरेश �शाद "नाहर "ृ ु(१९४० - २०१०)

    ज�म : भा�, क�ण प�, ततीया, िव�म संवत १९९७ृ ृ�थान : िसमरवार, बाराच�ी, गया (िबहार)

    �थायी िनवास : शकन - सदन /नाहर - िनवास, नावाटोली, डालटनगंज (झारखंड)ू

    िश�ा १.) �ाथिमक - अपने गाँव एवं निनहाल (हज़ारीबाग़, झारखंड)

    २.) मिै�क - राम िवलास उ. िव., बेरमो (झारखंड)३.) बी. ए. (�ित�ा) - डी. ए. वी. कॉलेज , िसवान (िबहार)

    ४.) एम. ए. (�थम �ेणी) - िबहार िव�िव�ालय, मज�फरपरु ु५.) िडप इन एड - राँची (झारखंड़)

    http://kavinahar.blogspot.in/2014/12/blog-post.html

  • 17

    गौरव �ी पर�कार से स�मािनत किव �ी नरेश �साद "नाहर" क� का�यो व महाका�य� का सजन इ. सन १९६१ से २००९ ु ृतक ह�आ। पर�त उनके जीवन काल म� मा� दो प�तके "मांडवी " व "कछ िछपे फल उभरे काटे " ही �काश म� आ सके। इ. ु ु ु ूसन २०१० मे किव नाहर के �वग�वास के बाद उनक� प�नी शकंतला देवी व करन �काशन ने उनक� सम�त रचनाओ ुको �काश मे लाने क� िज�मेदारी उठाई।

    सवेाएं - िश�क के �प म�, िछट फट, कछेक िव�ालो म� कम कम समय तक काय�रत रहने के उपरा�त -ु ु

    १.) ८/२/१९६३ से �थायी िश�क के �प म � काय�रतक) रा. स. उ. िव., तरहसी (पलाम)ू

    ख ) िग�रवर उ. मा. िव., डालटनगंज (पलाम)ूग ) रा. स. उ. िव., मेराल (पलाम)ू

    २.) एन. सी. सी. पदािधकारी - १३ एवं ४४ िबहार बटािलयन, औरंगाबाद - डालटनगंज।

    http://kavinahar.blogspot.in/2015/04/blog-post_28.html

  • १. मांडवी (महाका�य) २. उिम�ला (महाका�य) ३. कोिशक� (का�य) ४. दान दि�णा (महाका�य) ५. रसखान (का�य) ६. आग ओ पानी (का�य) ७. सोये जागे सपने (किवता सं�ह) ८. कछ िछपे फल उभरे कटे (किवता सं�ह) ु ू९. गीता-यतन (महाका�य)

    "नाहर" क� म�य कितयाँ ु ृ

    संपादन१. रसवंती (वािष�क पि�का) - वष� १९७१ से

    १०. जीवयन (महाका�य) ११. बब�रीक (महाका�य) १२. व�या (महाका�य) १३. ���वाला (महाका�य) १४. सय� प� (महाका�य) ू ु१५. अपनी (महाका�य) १६. िच�ग� चालीसा ु

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  • 19

    मषीभाजनसंय��रिस �वं ! महीतले ।ु

    लेखनी - किटनीह�त िच�ग� नमोs�तते ।।ु ु

    िच�ग� ! नम�त�यं लेखका�रदायकम ।ु ु ्

    काय�थजाितमासा� िच�ग� ! नमो�त ते ।।ु ु

  • करण �काशन

    प�रक�पना :

    email - [email protected]�p://kavinahar.blogspot.in/

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