page | 1rahehaque.com/wp-content/uploads/2017/06/taqliatul-taliqat-hindi-version.pdf · के )द...

58
Page | 1

Upload: others

Post on 22-Mar-2020

14 views

Category:

Documents


0 download

TRANSCRIPT

  • Page | 1

  • Page | 2

    अल्लामा मौलवी इमाद-उद्दीन लाहिज़

    Rev. Mawlawi Dr.Imad-ud-din Lahiz 1830−1900

  • Page | 3

    िर एक ज़बान इक़रार करे कक यसूअ मसीि ख़ुदावंद िै (इंजील मुक़द्दस ख़त फिललप्पियों 2 बाब 11 आयत)

    Every tongue acknowledge that Jesus Christ is Lord! (Philippians 2:11)

    तक़्ललयाअ्त-उल-ताअ्लीक़ात ये मुख़्तसर जवाब है मुंशी चिराग़ अली साहब की ताअ्लीक़ात का जो

    अल्लामा मौलवी इमाद-उद्दीन लाहिज़ सािब ने िरवरी 1869 में दलमियान अमतृसर के ललखा और अब फायदा आम के ललए

    िंजाब ररलीप्जयस बुक सोसाइटी िंजाब के वास्ते छािी गई है।

    Taqliat-ul-Taliqat The Eradication of the Taliqat

    A reply to Taliqat (Suspensions), a controversial work by Munshi Chiragud Din of Awadh called forth by the author’s

    Tawrikh-i-Muhammadi.

  • Page | 4

    ताअ्लीक़ात-उल-ताअ्लीक़ात दीबाचा

    वाज़ेह हो फक मुंशी चिराग़ अली साहब न ेमुल्क ऊदा में ज़रा जोश-ओ-ख़रोश के

    साथ इस्लाम की हहमायत के ललए तवारीख़ मुहम्मदी के बरख़ख़लाफ एक ररसाला ललखा है प्जसका नाम ताअ्लीक़ात है। मैंने मुंशी साहब की बहुत तारीफ सुनी थी इसललए इस ररसाले को इन अय्याम में मंगवा कर देखा ताफक मुंशी साहब के ख़यालात से कुछ फायदा ऊठाऊँ मगर देखने से मालूम हुआ फक इस में कुछ भी नहीं है लसिि शोर ही था।

    मुंशी साहब वही िाल िले हैं जो सब अहले इस्लाम अिनी तहरीर व तक़रीर में िलते हैं। इरादा था फक उन के फफक़े्र फफक़े्र िर कुछ मुनालसब बातें ललखूँ मगर इस काम की ननस्बत ज़्यादा मुफीद काम में मसरूफ हँू िस मुफप्स्सल जवाब की फुसित ना िाकर ये मुख़्तसर जवाब ललखा प्जसका नाम तप्ललयाअ्त-उल-ताअ्लीक़ात है। ताफक नाज़रीन कम इप्स्तदाद (कम सलाहहयत रखने वाले नाज़रीन) मुंशी साहब की चिकनी िटरी बातों स ेधोका ना खाएं क्योंफक उन्होंने ख़बू ही मुग़ालते हदए हैं और उस ख़बर का मज़्मून कुछ-कुछ िूरा फकया है फक अगर म़ुक़्ककन िोता तो बगगज़ीदों (च़ुने ि़ुवो) को भी ग़ुमराि करत।े िर दनुनयावी हहक्मत की क्या ताक़त है फक ईलाही हहक्मत का मुक़ाबला करे नामुप्म्कन है फक दीन-ए-ईसाई के सामने कोई दनुनयावी मज़्हब ठहर सके क्योंफक ख़ुदा आि इस दीन का बानी और हहमायती है।

    पिली बात मुंशी साहब ने अिने ररसाले के शुरू ही में िदं अलवाल मग़ररबी मोअररिखों वग़ैरा

    के मुहम्मद साहब की ननस्बत नलल फकए हैं प्जनको वो मुहम्मद साहब की सेहत-ए-नबुव्वत की दलालत और मुख़ाललफों की शहादत बतलाते हैं।

    मेरे गुमान में ये बात महुमल (बेमाअ्नी) है क्योंफक क़त-ए-नज़र इस के फक मुंशी साहब ने उन की राय का सहीह तजुिमा फकया है या नहीं मैं यू ंकहता हँू। फक इन अलवाल में से ऐसी कोई भी राय नही ं है प्जसस ेमुहम्मद साहब की नबुव्वत साबबत हो। फकसी मुअररिख़ न ेनहीं कहा फक वो अिने दावा-ए-नुबूव्वत को अिनी प्ज़ंदगी के वाफक़यात में ज़रूर

  • Page | 5

    साबबत करते हैं। िर ये और बात है फक वो नेकी करना िाहते थे या अरब की बुत-िरस्ती के दफाअ (दरू करने में) में साईअ थे या एक बहादरु और उलुल-अज़्म (बुलंद इरादे वाले) शख़्स थे। इस में क्या शक है फक इन बातों में स ेबाअज़ राय दरुुस्त हैं मगर बंदे की राय ख़ास उन की नबुव्वत की ननस्बत है और उन मोअररिखों की राय प्जनका मुंशी साहब न ेप्ज़क्र फकया है आम तौर िर है ख़्वाह बाएतबार दनुनया के और लसिाह सालारों के या उन के अख़्लाक़ के िस उन की राय और मुआमले में है और मेरी राय और मआुमला में है।

    इस के लसवा ये बात है फक मैं इन मोअररिखों का मुक़प्ल्लद नहीं हँू मैंने मुहम्मद साहब के हालात िर ख़दु ग़ौर की है और कुछ मेरे ज़हन में आया और मुहम्महदया फकताबों स ेमुझ ेमालूम हुआ वो सब रास्ती और नेक नीयती के साथ मैंने ललख हदया है फक मुहम्मद साहब हरचगज़ ख़दुा के नबी ना थे। और कुछ हुआ करें, मुझ ेक्या हज़ार फज़ीलतें दनुनया की इन में हों या ना हों मेरी बह्स तो लसिि नबुव्वत के मुआमला में है।

    इलावा अज़ी ंएक और बात है फक अगें्रज़ी मोअररिखों की राय बेताम्मुल मैं हरचगज़ क़ुबूल नहीं कर सकता क्योंफक उन्होंने या तो अगें्रज़ी तवारीख़ें िढ़ कर राय ललखी है या फकसी फकसी न ेकुछ अरबी ज़बान भी िड़ी है और बाअज़ कुतुब सीरत भी देखी हैं और फकसी मौलवी-साहब की मदद से कुछ अगें्रज़ी में तजुिमा भी कर हदया है। लेफकन उन्होंने मुहम्मदी ताअलीम की तासीरात अिन ेअदंर कभी नहीं देखीं ना महुम्मदी मज़्हब के दक़ाइक़1 से कभी वाफक़फ हुए क्योंफक वो कभी मुसलमान ना थे मैंने तो 35 बरस तक उन की ताअलीमात के दक़ाइक़ की तासीर को अिन ेमें और अका ा़ररब में और बड़ ेबड़ ेमुहम्मदी मुअप्ल्लमों में मुहम्मद साहब का हल्क़ा-ब-गोश ग़लुाम बन कर आज़माया और जब मैं हलाकत के क़रीब था ख़ुदा के फज़्ल ने मुझ ेमसीह यसूअ में बिा ललया।

    अब ख़्वाह हज़ार मग़ररबी मोअररिखों के लेक्िरों या फकताबों के फुक़रे िनु िनु कर कोई मुझ ेसुनाए मैं क़ुबूल नही ंकर सकता क्योंफक मैं इस मुआमला में ख़दु बातजुबाि हँू मैं सच्ि कहता हँू फक इन की राय में बहुत गलतीयां हैं।

    नाज़रीन को सोिना िाहीए फक अब मुसलमानों के िास मुहम्मद साहब की नबुव्वत िर और कुछ तो बाक़ी नहीं रहा मगर अहले लंदन के लेक्िरों के दम बुरीदा फफक़े्र अब वो लाकर सुनाते हैं साबबक़ (पिछले) ज़माने में आयात क़ुरआन िेश फकया करत ेथे अब लेक्िरों के दरमयानी फफक़े्र लमस्ल ला तक़र्िब-ूसलात2 (ال تقربولصلوۃ) के िेश करके मुहम्मद साहब 1 यानी अच्छी बुरी बात के वह िहलु जो गौर करन ेसे समझ में आएं। 2 “नमाज़ के क़रीब भी ना जाओ” (क़ुरआन की आयत)

  • Page | 6

    िर ईमान क़ायम कराना िाहते हैं िहले इन लेक्िर वालों से तो कहें फक मुहम्मद साहब को क़ुबूल क्यों नहीं करते देखो वो क्या सुनात ेहैं और उन अिने फफक़्रों के क्या मअनी बतलाते हैं।

    िर मुंशी साहब न ेअिने फफक्राह िेश कदाि के आख़ख़र में ये क्या ख़बू फफक़्रह नलल फकया है फक (तुगहटया व कालेल और इस िर नीग्रो-अमारी व नोल्दीक व म्यूर साहहबान न ेतमाम जहान िर ये बात अच्छी तरह साबबत की है फक इस्लाम एक प्ज़ंदगी बख़्शने वाली िीज़ हज़ारों सूदमंद जौहरों से मशहून है और यह फक मुहम्मद साहब ने मुरव्वत की सुनहरी फकताब में अिने ललए जगह हालसल की है।)

    ये फफक़्रह मुंशी साहब न ेलंदन के फकसी क्वाटरली ररव्यू (Quarterly Reivew) के

    आटीकल से ननकाला है। अब मैं जनाब मुंशी साहब ही को मुंलसफ बना कर िूछता हँू फक क्या ये बात सहीह है और आि की तमीज़ इसे क़ुबूल करती है फक इस्लाम एक प्ज़ंदगी बख़्श िीज़ है? अहले इस्लाम में कुछ प्ज़ंदगी आिको नज़र आती है? ममाललक इस्लाम में कुछ प्ज़ंदगी है? अरब तुकि ईरान काबुल वग़ैरा ममाललक-ए-इस्लाम का क्या हाल है ख़दु हहन्दसु्तान में मशाइख़ व उलमा-ए-मुहम्महदया का क्या हाल है इन में कुछ प्ज़ंदगी है? इस का जवाब आि ही ख़दुा को दें साहब अहले इस्लाम ने तो कभी प्ज़ंदगी का मुंह भी नही ंदेखा हाँ अगर वह प्ज़ंदगी को िाहते हैं तो मसीह के कफ़्फारे को और मुदों में जी उठने को मानें ईमान के वसीले से इस के साथ तक़रुिब हालसल करें क्योंफक प्जसके साथ बेटा है उस के साथ प्ज़ंदगी है प्जसके साथ बेटा नहीं उस के साथ प्ज़ंदगी नहीं है। आदमी को इप्ख़्तयार है फक जो िाहे मुंह से बोल उठे मगर हर बात का ख़दुा को जवाब देना होगा।

    हाँ दनुनया में ऐसा तो कोई भी मज़्हब नही ंहै प्जसमें कुछ भी अच्छी बातें ना हों सब झूटे मुअप्ल्लम (आललम) अिनी बुरी ताअलीम िर उम्दा बातों का मुलम्माअ (सोने िांदी का िानी) िढ़ा कर लसखलाया करते हैं वनाि उन की बात मुतलक़ क़ुबूल नहीं हो सकती है िर सच्िा दीन वो है प्जसमें सब कुछ सच्ि है। हाँ इस्लाम में एक प्जस्मानी हरारत ज़रूर मौजूद है और इसललए उस की ननस्बत कोई कह सकता है फक वो जानदार िीज़ है िर रुहानी प्ज़ंदगी को इस स ेमतलब नहीं है अगर मुंशी साहब इस फफक़े्र को ललखने के एवज़ (बदले में) इस्लाम हज़ारों सोज़मंद जोहरों में से एक दो जोहरी ननकाल के हदखलाते तो बेहतर था।

    हालसल कलाम ये है फक लंदन के लेक्िरों और तवारीख़ के बाअज़ दमु बुरीदा फफक़्रों स ेनबुव्वत-ए-मुहम्मदी साबबत नहीं हो सकती है क्योंफक वो कुछ िीज़ नहीं हैं इस्लाम की

  • Page | 7

    ज़ाती ख़बूी हदखलाना िाहे, और मुहम्मद साहब की ख़शु िलनी प्जसका तवारीख़ ए मुहम्मदी इन्कार करती है ज़ाहहर करना िाहे, िर ये मुहाल (यानी मुप्म्कन नहीं) है अगर हो सकता तो अहले इस्लाम कभी दरगुज़र ना करते। इस के बाद मुंशी साहब ने 16 तअलीक़ीन ललखी हैं और अिनी सारी दनुनयावी हहक्मत का ज़ोर लगा कर दीने ईसाई िर हमला फकया है मैंने उन्हें भी देखा मगर एक तअ्लीक़ भी लायक़ ना िाई िनुान्ि ेजेा़ल में मुख़्तसरन हदखलाता हँू मगर िहले तीन बातें सनुाना मुनालसब है।

    (1) मुंशी साहब न ेअिनी हर तअ्लीक़ की इबारत में इस क़द्र जुमले मोअतररज़ी भरे हैं फक उन की इबारत एक जंजाल हो गई। ये दनुनयावी दानाई और इंशा (तहरीर की) िरदाज़ी की ख़बूी है िर मैं जुमले मोअतररज़ों का जवाब बहुत ही कम दूंगा लसफि तअ्लीक़ के मंशा िर मेरी तवज्जा होगी।

    (2) नाज़रीन को िाहीए फक अगर फकताब लमल सके तो उन की हर तअ्लीक़ को िहले देख लें फिर तक़लीअ की मुख़्तसर इबारत िर ग़ौर करें।

    (3) मुंशी साहब मेहरबानी करके बंदे से नाराज़ ना हों क्योंफक मैं ईज़ा देने की राह से नही ंमगर इन्साफ स ेरास्ती को ज़ाहहर करन ेके ललए ये बातें ललखता हँू और मैं ख़दु मुंशी साहब स ेबहुत ख़शु हँू फक उन्हों ने ताअ्लीक़ात ललखी प्जससे अवाम िर भी ज़ाहहर हो गया फक मुहम्मदी आललमों के िास तवारीख़-ए-मुहम्मदी के जवाब में यही कुछ था जो ताअ्लीक़ात में बयान हुआ इस का शुफक्रया सलाम के साथ मेरी तरफ से िहुिें।

    पिली तअ्लीक़

    इस तअ्लीक़ का नाम मुंशी साहब न ेइमाद-उद्दीन की तल्बीस (मक्कारी) रखा है यानी इमाद-उद्दीन की मक्कारी या इमाद-उद्दीन का शैतानिन। यहां से ज़ाहहर है ताअ्लीक़ात की तस्नीफ के वलत मुंशी साहब के हदल में ग़सु्सा है और ग़सु्से वाले हदल में से जो बातें ननकलती हैं अक्सर नारास्त होती हैं क्योंफक मुहप्लक़क़ और हक़ीक़त के दलमियान ये ग़सु्सा लमस्ल िदे के हाइल हो जाया करता है।

    तअ्लीक़ अव्वल का ख़ुलासा ये िै

  • Page | 8

    फक अहादीस के अलसाम (मुख्तललफ फक़स्में) और मुहहद्दसों के बयान इमाद-उद्दीन न ेमह्ज़ फरेब और तल्बीस (मक्कारी) के तौर िर फकए हैं क्योंफक इस न ेउसूल इल्म हदीस के ज़ाबता के मुवाफफक़ अहादीस के रापवयों िर बह्स नहीं की।

    तौज़ीि मुंशी साहब ने अहादीस और मुहहद्दसों का प्ज़क्र तवारीख़ के अव्वल में िढ़ा तो उन्हें

    ये तवलक़ो हुई फक तवारीख़ का ललखने वाला मुसलमान मुज्तहहहदन की माननदं हर हर हदीस को उसूल-ए-हदीस मुक़रिरा अहले इस्लाम के माननदं उस का दजाि हदखला के ललखेगा यानी उसे िुराने दस्तूर के मुवाफफक़ वही उलमा मुहम्महदया वाली िाल िलेगा।

    तललीअ मैं हैरान हँू फक मुंशी साहब को ऐसी तवलक़ो कहा ँसे िैदा हुई? प्जसके बरना आन े

    के सबब हदीसों के अलसाम (मुख्तललफ फक़स्में) सुना कर इमाद-उद्दीन मक्कार बन गया। देखो तवारीख़ के अव्वल में एक दीबािा है प्जसमें तीन सबब तालीफ और माख़ज़ तालीफ का प्ज़क्र है और तौर-ए-अख़ज़ का भी मुफप्स्सल बयान है। अब वो कौन आदमी है जो ये दीबािा िढ़ के ये तवलक़ो िैदा करेगा जो मुंशी साहब को िैदा हुई। दसूरी बात ये है फक जब हदीसों का बयान शरुू हुआ तो उसके अव्वल में क़रीब दो सफा तक जो ललखा है वो ये है फक अहादीस का लसललसला प्जसको मुसलमान सनद कहते हैं वो ख़दु सनद का मुहताज है। िस इस में बह्स करना वलत को ख़राब करना है। अब ये इबारत उस की तवलक़ो िैदा नहीं करती है या मुतलक़ दफाअ करती है िस तवारीख़ से तो ये तवलक़ो िैदा नही ंहोती है िर अिने ज़हन से मुंशी साहब ये तवलक़ो ननकाल के ब-ेमुनालसब इल्ज़ाम देत ेहैं। तीसरी बात सर-ए-वक़ि िर ललखा है फक ये तल्ख़ीस अल- अहादीस का िहला हहस्सा है दीबाि ेमें ललखा है फक ये फकताब ख़लुासा है रोज़तुल-अहबाब का जो अहले इस्लाम में मुसल्लम (तस्लीम-शुदा) फकताब है यहां स ेसाफ मालूम होता है फक अहादीस और मुहहद्दसीन का प्ज़क्र शायद दसूरे हहस्से में कार-आमद होगा क्योंफक वहां ताअलीम का प्ज़क्र आता है और िूँफक ताअलीम नाफक़स है इसललए ज़रूर है फक हदीस का दजाि भी साथ ही हदखलाया जाये और िहले हहस्से में अहादीस व मुहहद्दसीन का प्ज़क्र करके इतना कहना बस था फक मुहम्मदी तवारीख़ अहले इस्लाम ने इन सब फक़स्म की ररवायतों से तालीफ की है।

  • Page | 9

    मुंशी साहब तवारीख़ मुहम्मदी के ललए इसे इप्स्तख़्राज (ननकालन देने) की तवलक़ो क्यों करते हैं? ये तवलक़ो तो अब दनुनया में से उठ गई है। ना कोई अहले इस्लाम ऐसा कर सकता है ना ग़ैर। ठीक तवारीख़े मुहम्मदी वही है जो मुहम्मदी उलमा मशाहहर ललख के हाथ में दे गए हैं प्जसका ख़लुासा बंदे ने ननकाला है।

    2 तअ्लीक़

    मुअप्ल्लफ न ेप्जस झुफि (गहरी) ननगाही से इल्म हदीस िर नज़र डालना मुनालसब समझा था तो क्या उस की मुनालसब की ररआयत की है? यानी नहीं की।

    2 तललीअ

    इस तअ्लीक़ में जो कुछ मुंशी साहब ने ललखा है बेफाइदा है क्योंफक यही मतलब उन की तअ्लीक़ अव्वल का भी था हाँ लफ़्ज़ जुदा (अलग) बोले हैं और कुछ बातें और भी ललखी हैं जो तअ्लीक़ से इलाक़ा (ताल्लुक़) नहीं रखतीं सब बातों का मुख़्तसर जवाब ये है फक तवारीख़े मुहम्मद सफा 6 सतर 11 से 15 तक देखें फक ललखने का तज़ि क्या इप्ख़्तयार फकया गया है और इसी तज़ि की क्या ज़रूरत बतलाई गई है िस प्जस मतलब से वो तज़ि इप्ख़्तयार फकया गया है वो िूरा करना ज़रूर है मुंशी साहब को ये कहना जायज़ नहीं है फक मुख़ाललफ इस तरह से क्यों एतराज़ करता है और इस तरह से क्यों नहीं करता मुख़ाललफ को इप्ख़्तयार है प्जस तरह से िाहीए एतराज़ करे और मुजीब (जवाब देने वाले) को भी मुनालसब है फक एतराज़ के मुवाफफक़ जवाब दे प्जन बातों को मुंशी साहब बद-गुमाननयाँ और झूटे एतराज़ और बानतल शुब्हात बतलाते हैं इन में स ेएक बात का भी जवाब उन्हों ने नही ंहदया इन बातों का बतुलान (बानतल) साबबत करना मुनालसब था बे-दलील उन्हें बानतल (ग़लत) बतलाना जायज़ ना था ताज्जुब की बात है फक मुंशी साहब उन्हें बे-दलील बानतल बतलाते हैं हालाँफक प्जन बातों को वो बानतल शुब्हात कहते हैं उनके साथ दलाईल भी मज़्कूर हैं िर जवाब में लसिि दावा ही दावा है ब-ेदलील।

    ये कैसी बात है फक एतराज़ बादलील (दलील के साथ) के मुक़ाबला में जवाब बे-दलील (बगैर दलील) सुना कर मुंशी साहब इमाद-उद्दीन की बे-ज़ाबतगी और बे-राहरवी साबबत करते हैं। हाँ ख़बू याद आया फक मुंशी साहब ने दो दलीलें भी यहां िर सुनाई हैं िहली दलील उन की ये है फक ईसाई मोअप्ल्लफ बेइल्म और बेवक़ूफ होत ेहैं और दसूरी दलील ये है फक ईसाई ज़बान दराज़ लोग होते हैं।

  • Page | 10

    मगर ये उन की दोनों दलीलें इमाद-उद्दीन की बेराह-रवी साबबत नहीं कर सकतीं जब तक फक मताइन के िूरे जवाब मुंशी साहब ना सुनादें।

    भला साहब हमने फज़ि फकया फक ईसाई लोग नादान कम-अलल बेइल्म और हहसि व होस ्में मुब्तला हैं और इसललए मुहम्मद साहब िर क़ुरआन हदीस स ेननकाल के बेजा एतराज़ फकया करते हैं और आि की असल असील और माख़ज़ जलील फन व ररवायत के उसूल व क़वाइद के मुवाफफक़ इप्स्तदलाल नहीं करते और उन की तस्नीफात का मंशा बक़ौल आिकी अदम इप्ततला और फक़ल्लत मालूमात (कम इल्मी) है और इसी तरह स ेतवारीख़े मुहम्मदी भी एक नादान आदमी ने ललख मारी।

    तो क्या इस का जवाब यही है फक आि हमें मोटी मोटी अरबी के अल्फाज़ ही बोल कर सुना दें और हज़ार एतराज़ों में से एक का भी जवाब ना दें?

    अगर हम लोग क़वाइद व जवाबबता (उसूल) इस्लामीया के िाबंद हो के एतराज़ नही ंकरते तो आि ही हमें अिने क़वाइद के मुवाफफक़ इप्स्तदलाल कर के जवाब दे हदया करें। मैंने तवारीख़-ए-मुहम्मदी में जाबजा अिन ेगुमान में मुनालसब एतराज़ भी बहुत स ेफकए हैं इस उम्मीद से फक उनका कुछ जवाब आि लोगों से सुनूँ मगर जवाब में मैंने लसिि ये लफ़्ज़ आिसे सुने। झुफि ननगाही, ज़वाबबता व क़वाइद, मुस्तनदात मताइन, तशनआेत, बानतल शुब्हात, असल असील माख़ज़ जलील वग़ैरा। ऐसी बातों को हम लोग अरबी खवानों की दहमफकया ंजानते हैं। और प्जस इल्म हदीस को मुंशी साहब फन अज़ीमुश्शान बतलात ेहैं हम उसे बुड्ढों की कहाननयां जानते हैं और उस का िदंाँ एतबार भी नहीं करते बार-बार मुंशी साहब ने हमारी फकताबों में िढ़ा होगा फक हदीस कुछ नहीं है उसने हज़ारों रूहों को बबािद फकया है लसिि ख़दुा का कलाम इन्सान के ललए बस है और वो हदीस का मुहताज नही ंहै जैस ेक़ुरआन हदीस का मुहताज है।

    इसी हदीस की िाबंदी से यहूदी गुमराह हुए और इसी से रोमन कैथोललक लोग बुत-िरस्ती में िंस गए अगर मुंशी साहब इस फन को अज़ीमुश्शान और एक उम्दा िीज़ जानते हैं और इस में बेहतर का दावा रखते हैं तो िहले िाहीए फक तमाम कुतुब अहादीस में स ेइंनतखाब करके एक सहीह हदीसों की फकताब अिने ज़वाबत और क़वाइद (उसूल) के मुवाफफक़ तैयार करें और तमाम ज़मीन के उलमा इस्लाम से इस की तस्दीक़ करवाए ंऔर फिर इप्श्तहार दें फक अगले अहले इस्लाम कुतुब साबबक़ा की िाबंदी करके ग़लती में मर गए अब हम तेरहवी ंसदी में कालमल मुहप्लक़क़ और इस्लाम की मरम्मत करने वाले िैदा

  • Page | 11

    हुए हैं िाहीए फक क़ुरआन और हमारी ये नई फकताब इस्लाम और बानी इस्लाम के बारे में मोअतबर (भरोसे के लायक) समझी जाये और सब कुतुब साबबक़ा में रतब व याबस बहरे हैं।

    ये कैसी शमि की बात है फक मुंशी साहब अिना बोझ मुख़ाललफ िर डालते हैं उस की इस तअ्लीक़ का हाल यही है फक ख़बरदार कोई आदमी इस्लाम िर एतराज़ ना करे अगर करे तो इल्म हदीस का आललम व फाप्ज़ल हो के उन के क़वाइद व ज़वाबते (उसूल) के मुवाफफक़ करे वनाि इसे जवाब ना लमलेगा या जाहहल व ज़बान दराज़ कहा जायेगा और अरबी के मोटे मोटे लफ़्ज़ उसे सुनाए जाएंगे।

    3 तअ्लीक़

    मुअप्ल्लफ को ख़ास अिने एतराज़ वाली हदीसों के अस्नाद िर बाला नफराद नज़र िाही थी ना फक रोज़तुल-अहबाब और मदाररजु-न्नबुव्वत में ललखा है।

    3 तललीअ

    ये वही बात है फक मेरा वाप्जब तुझ ेअदा करना िाहीए था साहब अगरि ेमअुप्ल्लफ न ेएतराज़ वाली हदीसों की अस्नाद िर बाला-इप्न्फराद नज़र करके एतराज़ नहीं फकया बप्ल्क उन को आि की मोअतबर हदीसें जानकर एतराज़ कर हदया और ये उस की ग़लती हुई तो आि उनकी अस्नाद िर बाला-इप्न्फराद नज़र करके एतराज़ात को दफाअ करते प्जसस ेमोअप्ल्लफ की ग़लती साबबत होती इस न ेतो आि को जवाब का अच्छा मौक़ा हदया था मगर आि कुछ नही ंकर सकते क्योंफक वो हदीसें ज़रूर साबबत हैं।

    मैंने तो िहले ही कह हदया था फक अहले इस्लाम के अस्नाद का तरीक़ा ही नाकारा है देखो (तवारीख़ मुहम्मदी सफा 9 सतर 3 स े8) िर इस नाकारा क़ायदे का इप्स्तमाल ही आि मुझसे तलब करते हैं मेरा इतना बतलाना बस है फक अहले इस्लाम के उलमा अिन ेमुहम्मद साहब का अहवाल यूं सुनाते हैं और उस िर हम यूं एतराज़ करते हैं। ये हमारा काम हरचगज़ नही ंहै फक हम इन अहादीस के अस्नाद िर बाला नज़र अद नज़र करें उलमा इस्लाम जो आिके फन व ररवायत को ख़बू जानते हैं और इस्लाम में बड़ी एहनतयात के लोग चगने जाते हैं जब उन्हों ने बाद तन्क़ीह इन ररवायत को अिनी फकताबों में दजि कर ललया है तब उन की फकताबों में हदखलाना हमारी तरफ से काफी है ताज्जुब की बात है फक मुंशी साहब के नज़्दीक रोज़तुल-अहबाब और मदाररजु-न्नबुव्वत कुछ मोअतबर

  • Page | 12

    िीज़ नहीं हैं और मौलवी रहमत-उल्लाह साहब जो हक़ीक़त में इस वलत अहले इस्लाम के एक मस्तादाद और मोअतबर आललम हैं इन फकताबों को मोअतबर बतला के हमारे सामने िेश करते हैं।

    और रोज़तुल-अहबाब का मुअप्ल्लफ अिनी तालीफ का माख़ज़ यूं बतलाता है फक :- از کتب تفاسیر وسیر وحدیث وموالید وتواریخ انچہ ثبوت پیوستہ از سیرت

    حضرت ومقدمات وممتمات وماتیعلق بہاوازاحوال مشاہیر اہل البیت وصحابہ وتابعین وتبع تابعین وایئہ حدیث الخ۔

    फिर शाह अब्दलु हक़ मुहहद्दस देहलवी ने ननहायत एहनतयात के साथ अिन ेगुमान

    में सहीह इप्स्तख़्राज करके उस ेरोज़तुल-अहबाब वग़ैरा से अिने मदाररजु-न्नबुव्वत ललखी है। और यह दोनों मुअप्ल्लफ ऐसे मोअतबर मुहम्मदी आललम हैं फक मुंशी साहब और दीगर उलमा मुहम्महदयह जो इस वलत हहन्दसु्तान में हरचगज़ उन के हम-िाया नहीं हैं फिर मुंशी साहब क्योंकर इन फकताबों को हक़ीर बतलाते हैं।

    हम ये कहते फक तवारीख़ मुहम्मदी के ललखने में प्जस इप्स्तख़्राज की उम्मीद मुंशी साहब हमसे रखते थे उन की उम्मीद का मंशा उन मोअप्ल्लफों ने िूरा करके अिनी फकताबें ललखी हैं और इसललए मैंने उन की फकताबों को अिना माख़ज़ बनाया है। ये क्या बात है अिन ेबुज़ुगि आललमों के इप्स्तख़्राज को हक़ीर जानते हैं और ख़दु इप्स्तख़्राज की ताक़त नही ंरखते और ईसाईयों को तक्लीफ देते हैं फक वो उन के ललए इप्स्तख़्राज जदीद स ेदीन मुहम्मदी को साबबत करें।

    मैंने तवारीख़ ललखते वलत अगरि ेकई फकताबों िर नज़र रखी है ख़सुूसुन इस अरबी फकताब िर भी जो लशफा और उस के शुरू मोअतबरा से हशामी-ओ-शामी और हलबी वग़ैरा स ेसेहत के साथ इंनतखाब करके एक मशहूर आललम अहमद वहलान ने 1278 हहज्री में दलमियान मदीना शहर के ललखी है प्जसका नाम सीरत-उन्नबी है और 1285 हहज्री में दलमियान दो प्जल्द के शहर-ए-लमस्र में छािी गई है तो भी मैंने उस का हवाला इसललए नही ंहदया फक आम लोगों को वो फकताब हर कही ंहाथ नहीं आ सकती है िर ये फारसी फकताबें मोअतबर मुहम्मदी बुज़ुगों की हर कही ंलमल सकती हैं और यह दोनों फकताबें इत्र (ख़लुासा) हैं तमाम सैर की फकताबों का।

    क्या मुंशी साहब शाह अब्दलु हक़ मुहहद्दस देहलवी से भी बड़ ेमहुप्लक़क़ हैं? क्या उन की ननस्बत ज़्यादा एहनतयात के शख़्स हैं? या इल्म हदीस व सैर में उस स ेज़्यादा

  • Page | 13

    वाफक़फ हैं? फिर क्या उस से ज़्यादा इस्लाम के हहमायती हैं? इस का इन्साफ नाज़रीन की तमीज़ कर सकती है िस जबफक इस्लाम के मोअतबर हहमायती न ेजो ख़दु मुहहद्दस है और प्जसकी ख़लूशया िीनी सब उलमा हहदं करते हैं रोज़तुल-अहबाब को मोअतबर माख़ज़ जान के अिने मदाररज उस से ललखी है तो हमारे ललए बह्स के मुक़ाम िर और कोई भी फकताब ऐसी मोअतबर नहीं हो सकती जैसी रोज़तुल-अहबाब है।

    मुंशी साहब इतनी ददि लसरी नाहक़ करते हैं जबफक लसिि क़ुरआन से जो इस्लाम में सब फफक़ों की मुततफफक़ अलैह फकताब है ये बात ख़बू साबबत हो िकुी है फक मुहम्मद साहब ख़दुा की तरफ से रसूल ना थे और फक उनका िलन क़ुरआन से हरचगज़ अच्छा साबबत ना हुआ और उन की ताअलीम में नुलसान िाया गया िनुान्ि े हहदायत-उल-मुप्स्लमीन की आख़ख़री िसलों में बयान हो िकुा है प्जसका जवाब मुंशी साहब ने अब तक नही ंहदया तो फिर हमें हदीसों में जो िीछे कलमबंद हुई हैं इतनी बड़ी तहक़ीक़ात की क्या ज़रूरत है जो कुछ उन के बुज़ुगों की फकताबों में देखते हैं वही हम भी नेक नीयती स ेहदखलाते हैं जनाब मुंशी साहब अिना ही िैसा खोटा तो िरखन ेवाले का क्या दोश।

    बाक़ी इस िर नगे्र साहब का क़ौल जो आि न ेनलल फकया है अगर आिको िसंद है तो मानें मैं तो उसे नादरुुस्त जानता हँू क्योंफक ख़ख़लाफ अलल भी है शायद मुंशी साहब न ेदरुुस्त तजुिमा ना फकया होगा।

    क्या कोई मुंलसफ हाफकम फकसी मुक़द्दमे में मुतअहद्दद (बहुत से) गवाहों की गवाही को रद्द करके लसिि अिने ख़्याल िर या एक की गवाही िर जो सब के ख़ख़लाफ है फतवा दे सकता है? हरचगज़ नहीं।

    लतीफा ये है फक मुंशी साहब अिने उसूल-ए-हदीस िर बहुत ज़ोर देत ेहैं और फिर इस िर नेग्र साहब का क़ौल जो उसूल-ए-हदीस के ख़ख़लाफ है िेश करके उस की तामील भी करवाना िाहते हैं। तक़ि मुतअहद्ददह (बहुत से रास्ते) से जो हदीस आती है उसूल उसे मोअतबर हदीसों में शुमार करता है इस िर नेग्र साहब का क़ौल उस के ख़ख़लाफ है।

    मुंशी साहब की इस तअ्लीक़ सोम का मंशा ये है फक जो जो मुक़ाम मौररद एतराज़ थे उन की अस्नाद िर मुअप्ल्लफ को बाला-इप्न्फराद नज़र िाहीए थी और जो मुक़ाम मौररद एतराज़ ना थे उन्हें यूँही नलल करता िला जाता तो मज़ाइक़ा ना था यानी मेरी भलाइयों को बे तामुल क़ुबूल कर ले और मेरी बुराईयों िर फकसी तरह तावीलात का िदाि

  • Page | 14

    डाले िर ये मुंलसफ आदमी से कब हो सकता है ये एतराज़ मुंशी साहब का उन्हीं के बुज़ुगों िर आयद है ना उस िर जो उन के अलवाल नलल करता है।

    4 तअ्लीक़

    इस तअ्लीक़ में वही बात है जो ऊिर की तअ्लीक़ में मुंशी साहब न ेबयान की है फकताब बढ़ाने को वही बात फिर दसूरी इबारत में ललख दी है।

    4 तललीअ

    इस तअ्लीक़ का जवाब भी वही है जो ऊिर बयान हुआ हाँ एक बात इस में नई है फक रोज़तुल-अहबाब को मुंशी साहब ने एक फक़स्से की फकताब बतलाया है। मैं भी ऐसी ही समझता हँू फक सब मुहम्मदी फकताबें फक़स्सा हैं िर ताअ्लीक़ात फक़स्सा नहीं है वो फक़स्स ेिर झगड़ा है िर झगड़ ेका फैसला मैं यूं करता हँू फक मुहम्मदी आललमों ने मुहम्मद साहब के बहुत से फक़स्से सुनाए हलबी हशामी वाफक़दी वग़ैरा भी लेफकन इन सब फक़स्सों में से इंनतखाब फकया हुआ एक फक़स्सा रोज़तुल-अहबाब भी है और उस फक़स्स ेमें यूं यूं ललखा है और उस िर हमारे ये एतराज़ हैं उनका जवाब कोई मुसलमान देवे। मुंशी साहब यू ंजवाब देते हैं फक। रोज़तुल-अहबाब ग़ैर मोअतबर फक़स्सा है हम कहत ेहैं फक जो बातें रोज़तुल-अहबाब में ललखी हैं वही बातें अदना फक़ि के साथ सब कुतुब सैर (सीरत) में ललखी हैं अगर रोज़तुल-अहबाब की बातें ग़ैर-मोअतबर हैं तो कुल फकताबें इल्म सैर की भी ग़ैर-मोअतबर हैं क्योंफक सब का बयान यकसा ँहै।

    िहले तो मुंशी साहब इस फक़स्से को माने बैठे थे जब इस िर एतराज़ सुन ेतो मोअतररज़ (एतराज़ करने वाले) से झगड़ा करने को उठे और झगड़ा यूं करते हैं फक हमारे बुज़ुगि झूट सच्ि सब कुछ ललखते आए हैं तुम सुनने वालों को िाहीए फक जहां तक एतराज़ वाररद ना हो मान ललया करो और जहा ंएतराज़ की जगह आए उस की सेहत में फफक्र करो और तहक़ीक़ यूं करो फक ख़दु मुहहद्दस बनों और मुहम्मद साहब की ननस्बत नेक गुमान करके तावीलात करो क्योंफक वो फज़िन भले हैं।

    मुंशी साहब की तहरीर से एक अच्छा ख़्याल मरेे ज़हन में आया फक अगर ख़दुा फुसित बख़्श ेतो लसिि क़ुरआन से एक तवारीख़ मुहम्मदी ननकालना िाहीए िर वो भी तवारीख़ मुहम्मदी के ननस्बत अहले इस्लाम के ललए ज़्यादा मुप्ज़र होगी और वहां भी मुंशी

  • Page | 15

    साहब एक झगड़ा कर सकते हैं फक इस आयत की इस तफ़्सीर को ना मानो उस तफ़्सीर को मानो।

    5 तअ्लीक़ मुअप्ल्लफ न ेअबािब सैर का प्ज़क्र नहीं फकया मुहद्दीसीन का प्ज़क्र फकया है जो

    िुक़हा के तौर िर अहादीस की ततीब करने वाले हैं।

    5 तललीअ

    मुहहद्दसीन का प्ज़क्र जो दीबाि ेमें है वो दसूरे हहस्से की ररआयत से ललखा गया है जो िुक़हा या ताअलीम मुहम्मदी है और वह तस्नीफ तो हो िकुा है िर अब तक छिा नही,ं उम्मीद है फक अब छिेगा और अबािब सैर की फहररस्त इसललए नहीं ललखी गई फक तवारीख़ मुहम्मदी कोई नई फकताब नहीं है वो इंनतखाब और ख़लुासा है ख़ास एक मोअतबर मुहम्मदी फकताब का िस ये तअ्लीक़ भी मुंशी साहब की नाजायज़ है।

    6 तअ्लीक़

    हदीसों का मतिबा नहीं हदखलाया फक कौनसी मोअतबर और कौनसी कम मोअतबर हैं और अिनी फकताब के मज़ामीन हर फक़स्म के साथ मंसूब करके नहीं बतलाई।

    6 तललीअ

    हदीसों के मरानतब एतबार उन की तारीफात से जो मज़्कूर हैं ख़दु ज़ाहहर हैं फुज़ूल इबारत बढ़ाने से क्या फायदा था और प्जस मतलब से अहादीस का प्ज़क्र आया है जहा ंवो मतलब आएगा यानी हहस्सा दोम में तो वहां ताअलीमात को फकसी ना फकसी हदीस की तरफ आि मंसूब ही िाएंगे क्योंफक ताअलीम मुहम्मदी की बह्स इस बात की मुहताज है अहले इस्लाम के ललए। िर तवारीख़े मुहम्मदी के मज़्मून इस इंनतसाब (ताल्लुक़) के मुहताज ना थे क्योंफक वो ख़लुासा और इंनतखाब है एक अहले इस्लाम की उम्दा फकताब का।

    7 तअ्लीक़

  • Page | 16

    मुहम्मद साहब का अहवाल दयािफ़्त करने के ललए लसिि दो माख़ज़ हैं यानी क़ुरआन और हदीस।

    7 तललीअ

    इन्हीं दो माख़ज़ों से तवारीख़-ए-मुहम्मदी ललखी गई है िर मैंने आि जुआित करके उन माख़ज़ों में हाथ भी नही ंडाला इस ख़्याल से फक मुहम्मदी लोग यूं ना कहें फक तूने इनाद के तौर िर अख़ज़ फकया है िर मैंन ेएहनतयात की राह स ेअहले इस्लाम के बुज़ुगों के अख़ज़ से इंनतखाब फकया और ये हदखलाया फक मुहम्मद साहब के हालात की जो दो मोअतबर माख़ज़ हैं यानी क़ुरआन और हदीस उन स ेख़दु मुहम्मदी बुज़ुगों न ेये अख़ज़ फकया है और ख़दु मुहम्महदयों ने हमें ये अख़ज़ हदया है इस िर हमारे ये एतराज़ हैं प्जनके जवाब से वो लािार हैं।

    कोई तीसरा माख़ज़ मैंने नहीं बनाया मगर ख़दु मुंशी साहब न ेअिने ताअ्लीक़ात में एक तीसरा माख़ज़ भी हदखलाया है यानी अगें्रज़ों के क़ौल जो ना हदीस हैं ना क़ुरआन।

    8 तअ्लीक़

    जनाब सैर म्यूर साहब ललखते हैं फक मुहहद्दसीन अिने काम में दयानतदार थे लेफकन इमाद-उद्दीन उन्हें बेहदयानत बतलाता है और उन की बात का एतबार नही ंकरता।

    8 तललीअ

    साहब मैं उन्हें उन के काम में हरचगज़ बेहदयानत नहीं कहता और िोर या जालसाज़ भी हरचगज़ नहीं बतलाता।

    मगर ये कहता हँू फक ये फन ही नाकारा शै है प्जन क़वाइद उसूललया अिने स ेउन्हों ने बड़ी मेहनत और हदयानत के साथ तहक़ीक़ की है। वो क़वाइद ही ऐस ेनहीं हैं फक आदमी को ग़लती से बिाएं देखो तवारीख़े मुहम्मदी 9 सफा सतर 3 से 8

    9 तअ्लीक़

  • Page | 17

    (1) मुतवानतर3 और मोअतबर अख़बारात (ख़बरों) ही से तवारीख़ें जहा ँकी ललखी गई हैं। (2) अख़्बार अहाद4 भी कुछ मुफीद हैं। )3( तअदु्दद (बहुत से) तरीक़ अहादीस भी अस्नाद की बनावट को बानतल करता है। )4( ऐसा शुब्हा जुज़्व वाहहद िर हो सकता है ना सब फक़स्म की हदीसों िर।

    9 तललीअ बेशक मुतवानतर (यानी प्जन ख़बरों के बयान करने वाले बहुत ज़्यादा हो) व

    मोअतबर बप्ल्क हर फक़स्म के अख़बारात से तवारीख़ें दनुनया में ललखी जाती हैं और बादशाहों के हालात इसी तरह से क़लम-बंद होते हैं और यह भी सच्ि है फक अख़बारात अहाद (यानी बहुत की कम बयां करने वाले एक दो रावी) भी फकसी क़द्र मुफीद हैं। मगर ये सब इल्म जो इस तरीक़े से हालसल होता है। इस के यक़ीन का एक और ही आम दजाि है प्जसमें एहनतमाल लसदक़ व कज़ब (सि और झूठ) क़ायम रहता है अस्नाद में या वारदात के वक़ूअ में या नहज (अदंाज़) वक़ूअ में इम्कान ग़लती के सबब से। और इसी सबब से मुंशी साहब इल्म-ए-सीर में ख़दु रतब व याबस के क़ाइल हैं िस इसी तरह सब बादशाहों के तवारीख़ें भी जो उनका इल्म सैर है रतब याबस से बिा हुआ नहीं है।

    िर वो इल्म और वह अख़बारात (ख़बरें) या वो इल्म सैर प्जस िर इन्सान की रूह की प्ज़ंदगी का मदार है यानी दीनयात के वाफक़यात इस दनुनयावी तवारीख़ात के मतिबा की मालूमात नही ंहोती हैं तवारीख़ात के यक़ीननयात की ननस्बत ये यक़ीननयात दीननयाह ज़्यादा तर सबूत के मुहताज हैं क्योंफक रूह की आबादी या बबािदी के मौक़ूफ अलैह हैं।

    यहां मोअतबर गवाहों के दीद (देखने) और शनीद बबला-वास्ता और उन की अिनी तहरीर और ज़बरदस्त तहरीर दरकार है ना आम तवारीख़ों के मुवाफफक़। देखो मुंशी साहब

    3 मुतावाप्ततर- हदीस, ररवायत या ख़बर उसको कहत ेहै प्जसके बयान करन ेवाले बहुत ज़्यादा हो और इन सब बयान करने वालों का झूट िर मुततफफक़ (एकमत) हो जाना आदतन नामुप्म्कन हो और यह की बयान करने वाले रापवयों से इप्ततफाक़न भी झूठ ना ननकले इन खूबबयों वाली हदीस या खबर को “म़ुतावाक़्ततर” कहत ेहैं।

    4 अख़्बार अहाद- यानी वह हदीस या खबर प्जसके रावी यानी नलल करन ेवाले या बयान करने वाले बहुत ही कम तादाद में हो, यानी प्जनकी तादाद एक दो ही हों या प्जनकी तादाद दस (10) तक भी ना िहंुिती हो।

    https://ur.wikipedia.org/wiki/%D9%85%D8%AA%D9%88%D8%A7%D8%AA%D8%B1_(%D8%A7%D8%B5%D8%B7%D9%84%D8%A7%D8%AD_%D8%AD%D8%AF%DB%8C%D8%AB)https://ur.wikipedia.org/wiki/%D8%AE%D8%A8%D8%B1_%D9%88%D8%A7%D8%AD%D8%AF_(%D8%A7%D8%B5%D8%B7%D9%84%D8%A7%D8%AD_%D8%AD%D8%AF%DB%8C%D8%AB)

  • Page | 18

    मुहम्मदी दीन के उलूम या हालात को दनुनया के दीगर उलूम तवारीख़यह के माननदं बतलात ेहैं मैं उसे मानता हँू क्योंफक ऐसा ही है लेफकन दीन ेईसाई के उलूम इल्म तवारीख़ के आम दजे से ज़्यादा तर मुम्ताज़ यक़ीनात हैं और उन्ही की ननस्बत मुहम्मदी दीन के वाफक़यात के यक़ीनात को हम कमतर बतलाते हैं।

    ईसाई दीन के यक़ीनात मोअतबर गवाहों की दीद (देखने) और शनीद और उन की अिन ेतहरीरात से जो ननहायत ज़बरदस्त तहरीर है ये उलूम मसीहहयह इस आला दजे को िहंुि े हुए हैं फक कालमल यक़ीन रूह में िैदा करके एहनतमाल फकज़्ब (झूठ) का मुतलक़ दफाअ करते हैं और लसदक़ (सच्िाई) का ना लसिि एहनतमाल हदखलाते हैं मगर ऐनुल-यक़ीन बख़्शते हैं।

    फिर मुंशी साहब कहते हैं फक तअदु्दद (बहुत से) तकि भी अस्नाद की बनावट को बानतल करता है ये सच्ि बात है मगर मैंन ेनहीं कहा फक अस्नाद का तरीक़ा मुतलक़ बानतल है िर अहले हदीस के अस्नाद के तरीक़े िर मेरा एतराज़ है मैं जानता हँू फक वो शुनीद है बाल-वास्ता और एहनतमाल लसदक़ व कज़ब (यानी शक सि और झूट होने) का जाता नही ंरहता है।

    और तअदु्दद (बहुत से) तकि अगरि ेसनद में कुछ जान डालता है तो भी नफ़्स हदीस बामतन हदीस की सलम (खराबी) को दरू नहीं कर सकता और वह हदीसें जो तअदु्दद (बहुत से) तकि से साबबत हैं ननहायत कम हैं और यह कुछ बात भी नहीं है।

    फिर मुंशी साहब फरमाते हैं फक बनावट का शुब्हा जुज़-वाहहद िर हो सकता है ना हर फक़स्म की हदीस िर।

    जवाब ये है फक हर फक़स्म की हदीस हदीस है और हर हदीस अगर ज़्यादा से ज़्यादा फायदा बख़्श ेतो वही दजाि हदखला देगी जो इल्म तवारीख़ का दजाि है और आलम-ए-तवारीख़ के दजे िर तो हम अहादीस मुहम्महदया को मान सकते हैं और इसी वास्ते हमें यक़ीन भी कुछ है फक मुहम्मद साहब की तवारीख़ यही है जो बदें ने ललख दी है।

    िर फज़ीलत में मुबालग़ी और मोअजज़ात का बयान अगरि ेमुहहद्दसीन करते हैं िर वो दसूरी फक़स्म के दलाईल से रद्द फकए जाते हैं ना लसिि हदीस होने के सबब से अगरिे एक सबब ये भी है।

  • Page | 19

    10 तअ्लीक़

    मुहम्मद साहब के मोअजज़े तीन फक़स्म के हैं क़ुरआनी जो क़ुरआन स ेसाबबत हैं तवातरी जो अहादीस मुतवानतरह5 से साबबत हैं अहादी जो ररवायत अहाद6 से साबबत हैं हर अललमंद इस बात को मानेगा।

    िर मोअजज़ात के रद्द में इमाद-उद्दीन ने जो 6 दलीलें सुनाई हैं उन्हीं में स े(3,4,5) दलील अख़्बार अहाद िर वाक़ेअ है ना दसूरी फक़स्म की अहादीस िर।

    और (1,2,6) दलील तवारीख़ी वाफक़यात िर नाकारा है वो एनतक़ादी बातें हैं फक हर मुख़ाललफ अिने मुख़ाललफ के हक़ में कह सकता है।

    10 तललीअ

    इस तअ्लीक़ का सारा बयान नाकारा है यहा ंसे ख़बू साबबत हो गया फक इन छः (6) दलीलों के जवाब अहले इस्लाम के िास कुछ नहीं हैं नाज़रीन िहले ख़दु उन जुम्ला दलीलों को तवारीख़-ए-मुहम्मदी में ग़ौर से देख लें उस के बाद मुंशी साहब का बयान इस तअ्लीक़ में सुनें।

    (3,4,5) दलील का मुंशी साहब ने ये जवाब हदया फक ये दलीलें हमारे अख़्बार अहाद िर वाक़ेअ हैं ये क्या उम्दा जवाब है मुंशी साहब बहुत ही जल्दी इन दलीलों के जवाब की बाव्जाह से सबकबार हो गए।

    5 मुतावाप्ततर हदीस, ररवायत या ख़बर उसको कहत ेहै प्जसके बयान करन ेवाले बहुत ज़्यादा हो और इन सब बयान करने वालों का झूट िर मुततफफक़ (एकमत) हो जाना आदतन नामुप्म्कन हो और यह की बयान करने वाले रापवयों से इप्ततफाक़न भी झूठ ना ननकले इन खूबबयों वाली हदीस या खबर को “म़ुतावाक़्ततर” कहत ेहैं। 6 अख़्बार अहाद- यानी वह हदीस या खबर प्जसके रावी यानी नलल करन ेवाले या बयान करने वाले बहुत ही कम तादाद में हो, यानी प्जनकी तादाद एक दो ही हों या प्जनकी तादाद दस (10) तक भी ना िहंुिती हो।

    https://ur.wikipedia.org/wiki/%D9%85%D8%AA%D9%88%D8%A7%D8%AA%D8%B1_(%D8%A7%D8%B5%D8%B7%D9%84%D8%A7%D8%AD_%D8%AD%D8%AF%DB%8C%D8%AB)https://ur.wikipedia.org/wiki/%D8%AE%D8%A8%D8%B1_%D9%88%D8%A7%D8%AD%D8%AF_(%D8%A7%D8%B5%D8%B7%D9%84%D8%A7%D8%AD_%D8%AD%D8%AF%DB%8C%D8%AB)

  • Page | 20

    क्या हक़ीक़त में ये अख़्बार अहाद िर वाक़ेअ हैं नाज़रीन आि ही इन्साफ कर सकत ेहैं शायद मुंशी साहब ने ग़ौर नही ंकी या ग़सु्से के सबब उन दलीलों का मतलब ज़हन में ना आया।

    (1,2,6) दलील को मुंशी साहब ने अम्र एनतक़ादी बतला हदया और यूं उनकी बवजह के नीि ेसे ननकले। मुंशी साहब को अम्र एनतक़ादी और अम्र अलली में फक़ि करना िाहीए था िस अब मैं कहता हँू फक जनाब मुंशी साहब ये दलीलें उमूर अललीया में से हैं ना लसिि एनतक़ाहदयात हैं हाँ मुंशी साहब ने वहां लफ़्ज़ क़ुरआन या कलाम-उल्लाह का ललखा िाया तो फौरन ये ख़्याल फकया फक ये अम्र एनतक़ादी हैं मगर दलील के हालसल िर नहीं सोिा फक वो अलली हालसल है मुक़द्दमात दलाईल को उमूर एनतक़ादी जान ललया ना उमूर अलली िस ये समझ का िेर है क्योंफक अगर कलाम या क़ुरआन का हवाला वहां से ननकाल हदया जाये और वही बात उन्हीं दसूरी इबारत में कही जाये तब मुंशी साहब जानेंगे फक ये अलली दलीलें हैं।

    फिर कहा फक हर कोई अिने मुख़ाललफ को ये दलीलें सुना सकता है मैं कहता हँू फक भला आि ही इन दलीलों को हमारी मुख़ाललफत में िेश तो करें देखो हम क्या जवाब देते हैं साहब ये तो आि ही की जान खाने वाले हैं। एक और बड़ ेमज़े की बात है जो मुंशी साहब ने इस तअ्लीक़ में बयान की है फक मुहम्मद साहब के मोअजज़े तीन फक़स्म के हैं क़ुरआनी, तवातरी7, अहादी8 और इस अिने बयान को वो अम्र अलली जानते हैं ना अम्र एनतक़ादी क्योंफक वो कहते हैं फक इस को अलला (अललमंद) जहा ंक़ुबूल करेंगे और अलला (अललमंद) जहा ंउन के गुमान में वही मुसलमान हैं जो अरबी िढे़ हुए हैं और मुहम्मद साहब को ख़बू मानत ेहैं बेशक ये अक़ला (अललमंद) तो ज़रूर इस बयान को अलली और माक़ूल जानेंगे फक मुहम्मदी मोअजज़ात तीन फक़स्म के हैं।

    7 मुतावाप्ततर हदीस, ररवायत या ख़बर उसको कहत ेहै प्जसके बयान करन ेवाले बहुत ज़्यादा हो और इन सब बयान करने वालों का झूट िर मुततफफक़ (एकमत) हो जाना आदतन नामुप्म्कन हो और यह की बयान करने वाले रापवयों से इप्ततफाक़न भी झूठ ना ननकले इन खूबबयों वाली हदीस या खबर को “म़ुतावाक़्ततर” कहत ेहैं।

    8 अख़्बार अहाद- यानी वह हदीस या खबर प्जसके रावी यानी नलल करन ेवाले या बयान करने वाले बहुत ही कम तादाद में हो, यानी प्जनकी तादाद एक दो ही हों या प्जनकी तादाद दस (10) तक भी ना िहंुिती हो।

    https://ur.wikipedia.org/wiki/%D9%85%D8%AA%D9%88%D8%A7%D8%AA%D8%B1_(%D8%A7%D8%B5%D8%B7%D9%84%D8%A7%D8%AD_%D8%AD%D8%AF%DB%8C%D8%AB)https://ur.wikipedia.org/wiki/%D8%AE%D8%A8%D8%B1_%D9%88%D8%A7%D8%AD%D8%AF_(%D8%A7%D8%B5%D8%B7%D9%84%D8%A7%D8%AD_%D8%AD%D8%AF%DB%8C%D8%AB)

  • Page | 21

    मेरी उम्मीद थी फक इन तीन फक़स्म के मोअजज़ात की लमसालें भी मुंशी साहब कुछ देंगे िर कुछ भी लमसालें नही ंदी ंऔर अिने इस भारी दाव ेके नीि ेसे आि ही ननकल गए तो भी मैं उन के इन तीन फक़स्म के मोअजज़ात की कुछ तशरीह कर देता हँू।

    शायद उन की मुराद मोअजज़ात अहादी स ेवो मोअजज़ात होंगे जो शवाहहद-उन्नबी वग़ैरा में सदहा मोअजज़े ललखे हुए हैं प्जनके साथ रापवयों का लसललसला भी नहीं है। अच्छा साहब वो या उन की माननदं और मोअजज़े अहादही हैं और मेरी (3,4,5) दलील बाकरार आिकी उन िर वाक़ेअ है भला साहब ये तो आि मान गए फक इन दलीलों से आिकी तीसरी फक़स्म के मुहम्मदी मोअजज़ात बबािद हो गए हैं और ज़रूर है फक आिके हदल में स ेभी उनका एनतक़ाद ननकल गया होगा यहां मैं आिको शाबाश कहता हँू।

    मगर दसूरे फक़स्म के मोअजज़ात प्जनको आि तवातरी कहते हैं और मेरी छः (6)

    दलीलों के इल्ज़ाम से बि ेहुए बतलात ेहैं लाप्ज़म था फक उन को मअरज़ बयान में लात ेऔर उन का तवातर हदखलाते लेफकन मुंशी साहब ऐस ेमोअजज़े कहा ँसे लाएं एक भी ऐसा मोअप्जज़ा नहीं है जो तवातर से साबबत हो और इसी वास्ते मुंशी साहब लमसाल नहीं दे सके वो जान गए फक अगर कोई मोअप्जज़ा हदीस का तवातर के दाव ेस ेिेश भी करंूगा तो ईसाई तवानतर का सबूत तलब करेंगे जो देना मुहाल (ना-मुप्म्कन) है और इस बारह सौ बरस में फकसी मुहम्मदी की मजाल नहीं हुई फक तवानतर स ेकोई मोअप्जज़ा साबबत कर देवे इसललए मुंशी साहब लसिि तक़रीरी में दावा करके ििु रह गए और ििु रहना मुनालसब भी था।

    (ि) नाज़रीन को ख़बू मालूम हो जाए फक मुसलमानों के इल्म उसूल-ए-हदीस के

    मुवाफफक़ मुतवानतर हदीसें िदं हैं लमस्ल आमाल बबल-ननयात वग़ैरा के और वह जुदा करके बयान भी की गई हैं मगर उन में कोई भी हदीस मोअजज़ात के बारे में नहीं है ये मुल्लानी नाहक़ डराते हैं उनसे बे-ख़ौफ कहना िाहीए फक हदखलाओ या वह कौनसे मोअजज़े हैं जो तवातर से साबबत हैं? इन लोगों ने तवातर के मअनी तो अिने उसूल में देखे हैं मगर कभी मोअजज़ात के हदीसों के लसललसले में तवानतर िर फफक्र नहीं फकया तवानतर का साबबत करना आसान बात नहीं है अब देखो अहादी मोअजज़े मुंशी साहब के (3,4,5) दलील स ेबबािद हो गए और तवातरी का वजूद ही जहाँ में नहीं है अब दो फक़स्म के मोअजज़े तो उड़ गए। रहे क़ुरआनी मोअजज़े तो उन िर ग़ौर करना िाहीए।

  • Page | 22

    मुंशी साहब ने अिने क़ुरआनी मोअजज़ों में से 13 मोअजज़े बयान फकए मगर ननहायत दबे दबे अल्फाज़ में बारीक क़लम से हालशये के दलमियान ललखे हैं क्योंफक रक़ीक़ (बारीक़) बातों का जली (वाज़ेह) इबारत में ललखना ज़रा मुप्श्कल था मगर मैं तो उनके हालशये को भी मतन ही जान के िढ़हँूगा।

    )1( (अल-सफ्फात आयत 15)

    ِبینٌ َذا إاِلا ِسْحٌرمُّ َوَقالُوا إِْن َهَٰकित ेिैं कक ये तो साफ़ जाद ूिै।

    मुंशी साहब को ख़्याल गज़ुरा फक हज़रत ने कोई मोअप्जज़ा हदखलाया होगा प्जसे

    लोगों ने सहर (जाद)ू कहा है िस मोअप्जज़ा नामालूम िर ईमान लाए। शायद इस को भी उन्हों ने कोई भेद समझा जो इन्सान िर ज़ाहहर नहीं हो सकता है और मोअप्जज़े का ख़्याल लफ़्ज़ सहर (जाद)ू से आया िर प्जस इल्म उसूल-ए-हदीस िर नाज़ान हैं वहां लफ़्ज़ मुश्तकि अलमाअनी को मतलब वाहहद िर दलील क़तई बनाना नाजायज़ है और ये अलली क़ायदा है िर मोअप्जज़ा नामालूम हाथ से ना जाने िाए इसललए यहां कुछ िरवाह उसूल के नहीं की सहर (जाद)ू के मअनी हैं जादगूीरी और उम्दा हदलिस्ि बयान और शोब्दा बाज़ी, मक्कारी धोका वग़ैरा।

    )2( (सुरह यासीन आयत 46)

    ْن آَیاِت ْن آَیٍة مِّ ِهْم إاِلا َكاُنوا َعْنَها ُمْعِرِضینَ َوَما َتأِْتیِهم مِّ َربِّऔर जो ि़ुक्म उन्िें पि़ुंचता िै अपने रब के ि़ुक्मों में से वो उसे टला देत े

    िैं। िस आयात के मअनी यहां फफक्रात या अहकाम के हैं ना मोअजज़ात के।

    )3( (सुरह क़मर आयत 2) ْسَتِمر ِسْحٌرمُّ

    क़दीमी जाद ू

  • Page | 23

    यानी वो जाद ूजो हमेशा स ेिला आता है यानी कोई ख़रक़-ए-आदत नही ंहै उसी फक़स्म के काम में जो हम अरब के लोग हमेशा मक्कारों में देखते हैं यानी वो आम दग़ाबाज़ी की क़ुदरत जो हमेशा अरब में देखी गई यह आयत नस (इबारत) है इस बात िर फक जो काम उन्हों ने देखा था वो ख़रक़-ए-आदत ना थे बप्ल्क कोई शोबदे-बाज़ी थी प्जसके देखने से ना हैरत हुई मगर साफ कहा गया फक मामूली बात है आम शोबदा-बाज़ी है ना ख़रके आदत (िमतकार है) लफ़्ज़ मुस्तलमर ْسَتِمر न ेयहां भी सहर (जाद)ू की कैफीयत مُّउड़ा दी। अगर कहा जाये फक इस िर लफ़्ज़ शक़-उल-क़मर شق القمر का मौजूद है सो जानना िाहीए फक अशंक انشق बमाअनी सनेश्क़ سنیشق है यानी फक़यामत को िटेगा क्योंफक अललफ लाम افل الم अल-साअता ااسلعت ہ (यानी क़यामत के हदन) का बतलाता है फक ऐन हदन फक़यामत का मुराद है और दो िे

    ा़ अल माज़ी यानी इकतरब व अन्शक اقترب भी लमलकर इप्स्तक़बाल का प्ज़क्र करते हैं और वह ररवायत हदीस की फक िट وانشقगया था मुतवानतर नहीं है बप्ल्क क़ौल अहाद (यानी इक्का दकु्का की बयान करदा ख़बर) में है जो मुंशी साहब के नज़्दीक भी रद्द हैं और दलील इस की फक ररवायत मुतवानतर नही ंहै ये इबारत मदाररक की है फक الطباع جبلت علے لوظہر عندہم لنقلو امتواتر اً الن यानी कोई ना कहें फक अगर िांद िट نشراالعجائب النہ یجوزان یحجب الیہ عنہم بغہیمजाता तो अहले अलतार िर नछिा ना रहता और अगर उन्हें मालूम होता तो मुतवानतर नलल भी करते (हालाँफक मुतवानतर ररवायत इस की नहीं है क्योंफक इन्सान की प्जबबल्लत (िैदाईशी आदत) में ये बात दाख़ख़ल है फक वो अजाइब बातों को मशहूर कर देता है िस जवाब ये है :-

    मुप्म्कन है फक ख़दुा न ेबादल कर