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मन के हारे हार है , मन के जीते जीत नीरजा िवेदी ‘’Kदी! संया दीदी! आज कूल से घर आते समय मने आपकी सहेली को अपने ब के साथ साइकल पथ पर बैठे देखा है. ’’--- अत ने अपना बता गले से नकालकर एक कोने म रखते ए अपनी बड़ी बहन को बताया जो उस समय पड़ोस के ब को िा देने का कायय कर रही थी. उसने मुड़ कर अत से पूछा---- ‘’कौन सी सहेली?’’ ‘’अरे वही दुबली-पतली, सुंदर सी लड़कसंगीता--, जो आपके साथ का सात म पढ़ती थी, जसकी िादी म आप मुझे भी ले गई थ.‘’ संया के छोटे भाई ने बताया. ‘’या बात करते हो अत? िदी के बाद से संगीता मुझे तो कभी मली नह, तुह वह कहां से मल गई?संगीता नह कोई और लड़की होगी.’’—संया ने कुछ ऱखे वर म कहा तो अत रवासा होकबोला--- ‘’दीदी! म सच कह रहा हं वह संगीता दीदी ही है. उसका भाई मेरे साथ पढ़ता है. म कैसे नह पहचानूंगा?’’ ‘’यकद संगीता ही है तो बैठी होगी. अपने ब को घुमाने लाई होगी. इसम म या कऱं ?’’ संया ने युर कदया.

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  • मन के हारे हार ह,ै मन के जीत ेजीत

    नीरजा द्विवदेी

    ‘’Kदी! संध्या दीदी! आज स्कूल से घर आते समय मैंने

    आपकी सहलेी को अपने बच्चों के साथ साइककल पथ पर बैठे दखेा ह.ै’’---

    अक्षत ने अपना बस्ता गले से द्वनकालकर एक कोने में रखते हुए अपनी

    बड़ी बद्वहन को बताया जो उस समय पड़ोस के बच्चों को द्विक्षा दने े का

    कायय कर रही थी. उसने मुड़ कर अक्षत से पूछा---- ‘’कौन सी सहलेी?’’

    ‘’अरे वही दबुली-पतली, सुंदर सी लड़की—संगीता--, जो

    आपके साथ कक्षा सात में पढ़ती थी, द्वजसकी िादी में आप मुझे भी ले गई

    थीं.‘’ संध्या के छोटे भाई ने बताया.

    ‘’क्या बात करते हो अक्षत? िादी के बाद से संगीता मुझ े

    तो कभी द्वमली नहीं, तुम्हें वह कहां से द्वमल गई?संगीता नहीं कोई और

    लड़की होगी.’’—संध्या ने कुछ रूखे स्वर में कहा तो अक्षत रुवासा होकर

    बोला---

    ‘’दीदी! मैं सच कह रहा ह ंवह संगीता दीदी ही ह.ै उसका

    भाई मेरे साथ पढ़ता ह.ै मैं कैसे नहीं पहचानूंगा?’’

    ‘’यकद संगीता ही ह ैतो बैठी होगी. अपन ेबच्चों को घुमान े

    लाई होगी. इसमें मैं क्या करंू?’’ संध्या ने प्रत्युत्तर कदया.

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  • अक्षत दुुःखी स्वर में बोला—‘’दीदी! संगीता दीदी अपने

    बच्चे को गोद में द्वलये बैठी थीं. उनकी बडी बेटी पांखी को मैं पहचानता ह.ं

    मैंने दीदी स ेपूछा कक आप सड़क पर क्यों बैठी हैं तो वह चुप रहीं. वह

    बहुत दखुी लग रही थीं. पाखंी स ेमैंन ेपूछा तो उसने बताया कक मेरे घर में

    ताला बंद ह.ै’’

    अक्षत का सहपाठी द्वहमांिु अक्षत के साथ ही आया था.

    उसने भी समथयन करते हुए बताया कक—‘’ दीदी! संगीता दीदी को मैंन े

    कल रात को भी साइककल पथ पर बठेै दखेा था. पांखी भूखी थी अतुः मा ं

    ने रोटी कागज़ में लपेटकर उसे द ेदी थी. वह मेरे घर के पास ही रहती हैं.’’

    ‘’आज तो एक समाचार् पत्र पर दीदी के सामन े कुछ

    द्वबस्कुट रक्खे थे.”—अक्षत ने सूद्वचत ककया.

    संध्या को संगीता के द्ववषय में अक्षत और द्वहमांिु से और

    कोई जानकारी नहीं द्वमल सकी. अब संध्या संगीता के प्रद्वत सचमुच चचंद्वतत

    हो उठी. संगीता सधं्या के साथ कक्षा सात में पढ़ती थी. वह बहुत मेधावी

    और पररश्रमी लडकी थी. सधं्या और संगीता में प्रद्वतयोद्वगता रहती थी.

    कभी एक नम्बर स ेवह आगे तो कभी दो नम्बर स ेसंध्या. जब संगीता का

    द्वववाह तय हुआ तो संध्या ने उसकी मां को बहुत समझाया कक इतनी कम

    आयु में उसका द्वववाह न करे पर उसकी दाल नहीं गली. संध्या के कहने पर

    उसकी मम्मी भी संगीता की मां को समझाने गई थीं. वहां से वह द्वनराि

    होकर लौट आई थीं और संध्या को बताया था कक िादी करना उन लोगों

    की मजबूरी ह ैअतुः तुम अब बाधक न बनो.

    संध्या न ेसंगीता की मा ंको अपनी मां से धीरे-धीरे कहत े

    सुन द्वलया था, “मेरे पद्वत सुरेि को िराब और जुए की लत पड़ गई ह.ै

  • सारा पैसा िराब और जुए में उड़ा दतेे हैं. वह जीतत े कम और हारत े

    ज्यादा हैं. उनके िराबी दोस्तों का मझुे द्ववश्वास नहीं ह.ै जब भी मैं काम

    पर जाती ह ंऔर द्वबरटया अकेली होती ह ैतो मरेा कलेजा कााँपता रहता ह ै

    कक कहीं िराब के निे में मेरी बेटी के साथ कुछ अघट न घट जाये. उसके

    साथ कोई अनहोनी न हो जाये. पहले संगीता स्कूल जाती थी तो कुछ

    समय मुझे चैन रहता था परंतु फीस न द ेसकने के कारण उसका स्कूल स े

    नाम कट गया. अच्छा घर-पररवार द्वमल गया ह.ै ज्यादा मुाँह नहीं फैला रह े

    हैं, अतुः सोच-द्ववचार कर मैंन ेसंगीता के हाथ पील ेकरन ेका द्वनणयय ककया

    ह.ै मैं जानती ह ं कक बच्ची अभी छोटी ह ैपर मेरे सामन ेऔर कोई दसूरा

    रास्ता नहीं ह.ै’’---संगीता की मााँ न े फटी धोती के गंद े आाँचल से आाँसू

    पोंछते हुए कहा. सधं्या की मम्मी भारी हृदय स ेलौट आईं थीं. संध्या बेमन

    से अक्षत के साथ संगीता के द्वववाह में सद्वम्मद्वलत हुई थी. संगीता के

    द्वववाह के बाद संध्या का उससे कोई सम्पकय नहीं रहा था. आज अचानक

    अक्षत ने उसके बारे में सूचना दी.

    अक्षत की बात सुनकर संध्या द्ववचारमग्न हो गई.--इस

    घटना को छुः वषय होने वाले हैं. संध्या अपनी द्विक्षा में व्यस्त हो गई थी.

    बीच-बीच में उड़ती खबर सुनी थी कक संगीता के दो लडककयां हो गई हैं.

    एक कदन सीमा वाजपेयी आंटी जो द्वनधयन बच्चों को द्वनुःिुल्क द्विक्षा दतेी

    हैं, को ककसी बच्चे से ज्ञात हुआ कक एक स्त्री के कई बच्चे हैं और इसके कारण

    उसने अपनी अत्यतं मेधावी बच्ची की द्विक्षा रोक दी ह.ै यह सुनकर आंटी

    उसके घर गईं और उसे समझान ेका प्रयत्न ककया कक बच्ची की द्विक्षा रोकना

    नहीं चाद्वहये.’’ संध्या को अक्षत से ही मालूम हुआ था कक द्वजस स्त्री के यहां

    सीमा आंटी गई थीं वह संगीता थी. ---

    ‘’दीदी! आप क्या सोच रही हैं? मुझसे संगीता दीदी की

    हालत दखेी नहीं जा रही थी. बहुत कमज़ोर हो गई हैं. प्लीज़ चद्वलय ेकुछ

  • कररये न उनके द्वलये’’—अक्षत ने लगभग संध्या का हाथ खींचकर उस े

    चझंझोड़ते हुए कहा तो संध्या जैसे तंद्रा से जागी. उसने कुछ रुपये और

    द्वबस्कुट के पैककट अपन े पसय में रक्खे और अक्षत का हाथ पकड़ कर

    बोली—‘’चलो,कहााँ चलना ह?ै’’

    संध्या जब साइककल पथ के उस स्थान पर पहुचंी तो दखेा

    कक बेंच खाली ह ैऔर संगीता का कहीं कोई पता नहीं ह.ै पास के फलों और

    िबयत, जूस के ठेले वाले लोगों से जानकारी चाही तो यह ज्ञात हुआ कक एक

    स्त्री अपने बच्चों के साथ यहां बेंच पर दो कदन भूखी-प्यासी बैठी रही. कुछ

    लोगों ने कुछ खान-ेपीने को द ेकदया था. उससे ककतना पूाँछा गया पर वह

    कोई उत्तर नहीं दतेी थी केवल रोती रहती थी.

    संध्या ने कई कदन तक खोज-बीन की तो अत्यंत करठनाई

    के पश्चात एक सब्ज़ी बेचने वाली स्त्री ने बताया --’’एक स्त्री सामने की

    गली के कोने में बनी झोपड़ी मे अपने पद्वत के साथ रहती ह.ै परसों मैंन े

    दोनों द्वमया-ंबीबी को बुरी तरह झगड़ते दखेा था. कल सुबह ही उसके

    आदमी ने उसे बच्चों सद्वहत घर स ेद्वनकालकर ताला बंद कर कदया और न

    जाने कहााँ चला गया?’’ ’अब वह स्त्री कहााँ गई ह’ै’-- प्रश्न करन ेपर उसन े

    बताया कक—‘’ स्टेिन के पास ही कहीं उसकी मां रहती ह.ै वही उस ेआकर

    अपने साथ ले गई ह.ै’’ संध्या ने चैन की श्वााँस ली कक चलो संगीता अपन े

    मायके पहुाँच गई.

    आज समाचार पत्र में एक समाचार दखेकर संध्या का हृदय

    उदे्द्वद्वलत हो उठा. समाचार यह था कक गोमती नदी के बन्धे से कूदकर एक

    पच्चीस-छब्बीस वषय के युवक ने आत्महत्या का प्रयास ककया. सौभाग्य स े

    एक सुरक्षाकमी की ददृ्वि उसके ऊपर पड़ गई और उसन ेआनन-फानन में

  • नदी में छलााँग लगा दी और उसे बचा द्वलया. उसकी जेब में एक पत्र द्वमला

    ह ैद्वजसमें द्वलखा ह ै–

    ‘’मैं अपनी पत्नी सगंीता और पांच बच्चों का ही भरण-

    पोषण नहीं कर पा रहा ह.ं ऐसे में पत्नी पुनुः गभयवती हो गई ह.ै बच्चे को

    द्वगराने के द्वलय ेहम दोनों में बहुत कहासुनी हुई पर वह राज़ी नहीं होती.

    मेरा एक दोस्त द्वनुःसंतान हैं. वह द्वज़द कर रहा था कक एक बच्चा मुझे गोद

    द ेदो. इसके द्वलये भी संगीता सहमत नहीं ह.ै छोटी सी नौकरी से ककसी

    तरह हमारा गुज़ारा हो रहा था, ऐसे में मेरे माद्वलक का द्वनधन हो गया

    और मेरी नौकरी चली गई. घर आने पर जब पत्नी ने पनुुः पैर भारी होन े

    की सूचना दी तो मेरा पारा गरम हो गया. मरेा संगीता से जमकर झगड़ा

    हुआ. मैं अपने पर काबू न रख सका और मैंने संगीता और बच्चों को

    मारपीट कर घर से द्वनकाल कदया. मैं इतना दुुःखी हो गया हाँ कक मैंन े

    आत्महत्या का द्वनणयय ले द्वलया ह.ै’’

    संध्या ईश्वर स ेमनान ेलगी कक यह उसकी संगीता न हो.

    पांच बच्चों की खबर से वह आश्वस्त थी कक यह उसकी सहलेी नहीं

    होगी, परंतु कफर भी उसका मन बेचैन था. उसके नेत्रों के समक्ष संगीता की

    भोली-चंचल छद्वव नाचने लगी. कक्षा में वह सबस ेअद्वधक सुंदर थी. बहुत

    गोरी नहीं थी, गेहुाँआ रंग था. उसके घुाँघराले लम्बे-लम्बे केि भी दियनीय

    थे. संगीता के बड़-ेबड़े नेत्रों में न जाने ककतना आकषयण था कक जो भी

    उसकी ओर दखेता वह ददृ्वि हटाना भूल जाता. संध्या की वह अद्वभन्न

    सहलेी थी परंतु उसकी सुंदरता सधं्या के मन में ईर्षयाय का बीजारोपण भी

    कर दतेी थी. इसपर उसकी गजब की दहे्यद्वि दखेकर संध्या आह भरती कक

    काि मैं भी संगीता जैसी होती.. ग्यारह वषय की आयु में उसकी कमनीयता

    इतनी मोहक ह ैतो बड़े होने पर उसे काम लोलुपों से और द्विकाररयों स े

  • बचाना ककतना करठन होगा यह सोच कर उसकी मााँ चचंद्वतत रहती थी.

    उस पर सगंीता के द्वपता की मद्यपान और जुए की अद्वत ने संगीता की मााँ

    को उसके कम आयु में द्वववाह करन ेको द्वववि कर कदया था. द्वववाह के

    समय संगीता ककसी उवयिी या मेनका से कम नहीं लग रही थी. संगीता की

    स्मृद्वतयों न ेसंध्या को इतना भाव-द्ववह्वल कर कदया कक वह अपन ेको रोक

    न सकी और उसके मायके जाकर उससे द्वमलन ेको आतुर हो उठी. उसने मााँ

    से अनुमद्वत ली और अक्षत के साथ गोमतीनगर स्टेिन की ओर चल दी.

    वहीं एक छोटे से मकान में उसकी मां ककराये पर रहती थी.

    संध्या संगीता के द्वववाह के अवसर पर यहााँ आई थी

    और इतने वषय के पश्चात यहां आने पर उसे संगीता की मााँ का घर खोजन े

    में कोई करठनाई नहीं हुई. गली के मोड़ पर आते-जाते व्यद्वियों की भीड़

    इस बात की द्योतक थी कक यहां पर कुछ न कुछ घटना हुई ह.ै संध्या वहााँ

    पहुाँची तो दखेा कक संगीता के घरवाले अभी-अभी अस्पताल से प्रताप की

    मरहम-पट्टी कराकर घर लाये थे. संध्या यह सुनकर कााँप उठी कक समाचार

    पत्र में पढ़ी हुई घटना उसकी अपनी सहलेी से सम्बंद्वधत ह.ै उसने ईश्वर को

    धन्यवाद कदया कक उसके पद्वत की जान बच गई और आत्महत्या करन ेके

    प्रयास में उसे सुरक्षाकमी की सहृदयता के कारण जेल नहीं जाना पड़ा.

    प्रताप एक चारपाई पर द्वलटाया गया था. उसके माथे, हाथ और पैर में

    परट्टयााँ बंधी थीं. संध्या ने चारों ओर ददृ्वि घुमाकर दखेा—संगीता उस े

    कहीं कदखाई नहीं दी. संगीता के भाई को बुलाकर उसने प्रश्न ककया—

    ‘’भैया! संगीता कहीं नहीं कदखाई द ेरही ह’ै’ तो उसने दसूरे कमरे में जमीन

    पर बैठी एक अत्यतं क्षीणकाय स्त्री की ओर इंद्वगत ककया जो नन्ह ेबालक

    को दधू द्वपला रही थी. संध्या उसके समीप पहुाँची तो जैस ेआकाि से धरती

    पर द्वगर गई. उसके समक्ष बीस या इक्कीस वषीया युवती नहीं एक मानव

    कंकाल बैठा था. द्वववणय, सस्ते, फटे सलवार-कुताय पहने उस स्त्री की

  • सूनी, पथरीली आंखें जब उसकी ओर घूमीं तो वह द्ववश्वास न कर सकी कक

    यह वही संगीता ह ैद्वजसके सौंदयय से लड़ककयां ईर्षयाय करती थीं और लड़के

    उसके चारों ओर भ्रमर से डोलते थ.े संध्या भाव द्ववह्वल हो कर उससे

    द्वलपट गई—‘’संगीता! ये तूने अपनी क्या हालत बना ली है? ये सब क्या

    हो गया?’’ संगीता जैसे पत्थर बन गई थी—कोई भाव नहीं, कोई अनुभूद्वत

    नहीं. सनूी ददृ्वि से संध्या को दखेत ेहुए मौन रही जैस ेउसे ददु्वनयााँ से कोई

    वास्ता नहीं ह.ै सगंीता की मााँ न ेसधं्या को अपन ेपास बुलाकर कहा—

    ‘’बेटी संगीता सदमे में ह.ै उसे दीन- ददु्वनया का कोई होि नहीं. यहा ंतक

    कक उसे अपने बच्चों का भी ध्यान नहीं ह.ै केवल गोद के श्यामू को दधू

    द्वपला दतेी ह ै और गोद में द्वलये रहती ह.ै’’ ‘’सगीता के और बच्चे कहााँ

    हैं?’’—संध्या न ेप्रश्न ककया. दोनो बड़ी बेरटयााँ बाहर मौसी के पास हैं. छोटे

    दो बच्चों को दादी अपने साथ ले गई हैं. वह भी पास के मुहल्ले में रहती हैं.

    कुछ दरे पहल े अपने बेटे को दखेकर घर चली गई हैं.’’संध्या इतन े कम

    समय म ेइतन ेबच्चों की बात सुनकर सकते म ेआ गई. उसे समझ में नहीं

    आया कक वह क्या बात करे?संगीता की मााँ ने संध्या की ओर लालसा भरे

    नेत्रों से दखेते हुए पूछा—‘’संध्या बेटी तुम क्या कर रही हो?’’ ‘’चाची जी!

    मैने बी. कौम का तीसरे वषय की परीक्षा दी ह.ै’’ संगीता की मााँ न ेआंचल स े

    आाँसू पोाँछते हुए आह भरी—‘’बेटी यकद मैंने तुम्हारी मााँ की सलाह मानकर

    बचपन में अपनी संगीता का द्वववाह न ककया होता तो आज उसकी यह

    दिा न होती. अब तो सब भगवान भरोसे ह.ै’’ संध्या यह सब दखेकर

    कककतयव्यद्ववमूढ़ हो गई थी. उसने संगीता की मााँ स ेद्ववदा लेते हुए कहा—

    “ आंटी! मैं कल आऊंगी.’’

    ‘’संगीता कैसी ह?ै’’ घर पहुाँचने पर जब संध्या की मम्मी

    ने प्रश्न ककया तो संध्या के आाँसू छलक पड़े. भरे गले से उसने मम्मी को

    सारा द्वववरण बताया. संध्या की मम्मी एक सुद्विद्वक्षत, समझदार और

    अत्यंत दयालु मद्वहला हैं. वह हर ककसी की सहायता के द्वलये तत्पर रहती

  • हैं और यही संस्कार वह अपन ेबच्चों को भी दतेी हैं. उन्होंने संध्या स ेप्रश्न

    ककया—‘’संध्या तमु संगीता के द्वलय ेकुछ करना चाहती हो?’’ ‘’जी मम्मी

    मैं चाहती हाँ कक संगीता ठीक हो जाये. उसकी दिा दखेकर मैं अत्यंत

    द्ववचद्वलत हो गई हाँ. उसका ध्यान आने पर उसकी पहल ेकी छद्वव नेत्रों के

    समक्ष आ जाती ह ैऔर आाँसू छलकने लगते हैं. आप ही बताइये कक मैं क्या

    करूाँ ?’’—संध्या ने उत्तर कदया.

    ‘’तुम सुद्विद्वक्षत हो. समझ सकती हो कक यकद कोई व्यद्वि

    इस दिा में हो तो क्या करना चाद्वहये?’’ मम्मी ने कहा. ‘’मैं समझी नहीं

    कक आपका तात्पयय क्या ह?ै’’—संध्या ने सोचते हुए कहा.

    ‘’दखेो संध्या जब आदमी सदमे मे चला जाये या

    आत्महत्या का रास्ता अपनाये तो इसका एक ही कारण ह ैकक उसन ेअपन े

    जीवन में सघंषय करने की क्षमता खो दी ह.ै उसकी द्वहम्मत टूट गई ह.ै

    उसका आत्मद्ववश्वास समाप्त हो गया ह.ै तुम्हें पता ह ैन कक मन के हारे हार

    ह,ै मन के जीते जीत.’’ संध्या यह सुनते ही एकदम स े बोल पड़ी—‘’मैं

    समझ गई मम्मी. मुझे पहल े तो जाकर संगीता को मनोद्वचककत्सक को

    कदखाना ह.ै उसके उपचार के साथ-साथ उसके आत्मद्ववश्वास को बढ़ाने में

    सहायता करनी ह ैताकक वह अपनी समस्या से जूझ सके. संगीता के पद्वत

    को भी उपचार के साथ उसमें जीवन जीने की इच्छा और संघषय की क्षमता

    वृद्वि करना ह.ै’’

    अगले कदन संध्या पुनुः संगीता के घर पर गई और

    उसकी मााँ से अनमुद्वत लेकर संगीता को लोद्वहया अस्पताल के एक सौ

    बारह नम्बर कक्ष में मनोद्वचककत्सक स े परामिय के द्वलय े ल े गई.

    मनोद्वचककत्सक ने संगीता की हालत दखेकर और संध्या से संगीता के

    द्ववषय में जो जानकारी द्वमल सकी उसके आधार पर कुछ औषद्वधयााँ द्वलखीं

  • और एक सप्ताह बाद पुनुः कदखाने को कहा. उन्होंने बताया कक इलाज

    काफी कदनों तक द्वनयद्वमत रूप स े करना पड़ेगा. संध्या न े प्रताप की

    मनुःद्वस्थद्वत के द्ववषय में भी मनोद्वचककत्सक से बात की तो उन्होंने बताया

    कक प्रताप को मनोद्वचककत्सक के पास सलाह (काउंद्वसचलगं) के द्वलय ेआना

    पड़ेगा. कफलहाल उसकी मानद्वसक द्वस्थद्वत के संतुलन के द्वलये एक दवा मैं

    द्वलख रहा हाँ जो उसे रात को द्वखला दनेा. संगीता द्वनर्लयप्त भाव और सूनी

    ददृ्वि से सब दखेती रही. जब बच्चा रोया तब अवश्य उसमें चेतना का

    संचार हुआ. द्वचककत्सक ने यह दखेकर संध्या से कहा—

    ‘’यह स्त्री िारीररक रूप स ेभी बहुत दबुयल ह.ै इसकी

    मानद्वसक द्वस्थद्वत सुधारने के द्वलये इसके खान-पान पर भी ध्यान दनेा

    होगा. कुछ दवायें मैं अपन ेपास स ेद ेरहा ह,ं कुछ स्टोर स ेद्वमल जायेंगीं.

    द्वनयद्वमत लम्बा इलाज करना पड़ेगा. चचंता न करो ठीक हो

    जायेगी.’’ कुपोद्वषत मााँ के कुपोद्वषत बच्चे पर तरस खाकर उन्होंने अपनी

    मेज़ की दराज खोलकर कुछ औषद्वधयााँ एवं पोषण की सामग्री द्वनकालकर

    उसे दीं और पचाय बनाकर खाने का तरीका समझाया.

    संध्या के सामने करठन समस्या थी कक संगीता का

    उपचार कैसे हो? उसकी मां अद्विद्वक्षत थीं और उनके ऊपर प्रताप की

    सेवा-सुश्रूसा का भार भी था. एक समस्या और थी. संगीता के द्वपता

    ज़हरीली िराब कांड में काल-कवद्वलत हो चुके थे. उसकी मााँ ने जो

    मुआवज़ा द्वमला था उससे अपनी छोटी बेटी सुनीता की िादी कर दी थी

    और बचे धन से राजाजीपुरम में एक दो कमरे का घर खरीद द्वलया था, जो

    ककराये पर उठा था. अब वह एक स्कूल में आया की नौकरी करके अपना

    जीवन-यापन करती हैं. उनके अपने द्वलये तो धन पयायप्त था परंतु बेटी-

    दामाद के इतने बड़े पररवार के साथ उनकी द्वचककत्सा का भार उठाना

    उनके द्वलये सम्भव नहीं होगा. संध्या ने यह सोचकर चैन की सााँस ली

  • कक संगीता की मााँ का पररवार छोटा ह.ै उनकी संगीता और सुनीता दो

    पुत्री थीं. पद्वत के न रहने पर उन्होंने अपनी गृहस्थी सम्हाल ली. यकद पुत्र

    के मोह में बच्चों की लाइन लगाती रहती ाँ तो उनकी नैय्या कौन खेता? उसे

    संगीता और प्रताप पर क्रोध आने लगा. उन्होंने अपनी मा ंसे छोटे पररवार

    रखने की द्विक्षा नहीं ली. प्रताप संध्या की बड़ी बद्वहन मान्यता के साथ

    लखनऊ द्ववश्वद्ववद्यालय में पढ़ा था. उसे समझ में नहीं आया कक प्रताप

    अद्विद्वक्षतों की भााँद्वत कैसे छे वषय में पांच बच्चों का द्वपता बन गया? इस

    समय कालेज में गमी की छुरट्टयााँ होनवेाली थीं. घर लौटते-लौटते संध्या न े

    अपना कतयव्य द्वनद्वश्चत कर द्वलया. उसे अपनी सहलेी की जीवन नैया को

    रास्ते पर लाना ह.ै

    संध्या ने अपनी मम्मी से सहायता मांगी. संगीता को

    गोद के बच्चे के साथ वह अपन ेघर पर ले आई क्योंकक कुपोद्वषत संगीता

    गभयवती थी और उसका बच्चा छोटा था अतुः उसकी िाइयों और भोजन की

    उद्वचत व्यवस्था करने की आवश्यकता थी. संध्या का घर भी छोटा ही था

    पर इस समय उसके पापा व्यापार करने के द्वलय ेबम्बई गये हुए थ.े बड़ी

    बद्वहन ससुराल में थी अतुः उसकी मम्मी संगीता की दखेभाल करने को

    सहमत हो गईं.

    संध्या ने संगीता की दोनों बेरटयों को द्वहमांिु के सुपुदय

    ककया कक तुम जब अक्षत के साथ खेलने आते हो तो उन्हें भी हमारे घर ल े

    आया करो और लौटते समय वापस मौसी के घर पर छोड़ दनेा. अक्षत और

    द्वहमांिु के स्कूल बदं थे अतुः उसन ेउन्हें बताया कक संगीता की नानी के

    पास जाकर रोज पछू द्वलया करें और यकद कोई आवश्यकता हो तो उनकी

    सहायता कर कदया करें. संगीता के दो जुड़वां बच्च ेउनकी दादी अपन ेसाथ

    ले गईं. दोनों बड़ी लडककयों को संध्या ने उनकी मौसी को सौंप कदया. इस

  • तरह स ेसंगीता की मााँ को प्रताप की देखभाल के द्वलय ेआसानी हो गई.

    प्रताप की दवा अक्षत रोज उनके घर जाकर द्वखला दतेा था. संध्या की

    मम्मी प्रताप को दखेने जातीं तो उसे समझान े का प्रयत्न करतीं. ऐस े में

    वह कुछ कहता नहीं बस रोन ेलगता.

    महीने भर दवा खाने और समुद्वचत दखेभाल के बाद

    संगीता के िरीर में जान आने लगी. उसकी कसाई की गैय्या जैसी आकृद्वत

    में भी लुनाई आने लगी. अब अपने वातावरण के प्रद्वत भी वह जागरूक

    होने लगी. अभी तक तो वह अपने गोद के बच्चे के अद्वतररि अन्य बच्चों के

    प्रद्वत द्वनर्वयकार भाव रखती थी परंत ुअब जब संध्या उन्हें बुलाकर पढ़ाती

    तो उसके मुख पर संतोष का भाव ददृ्विगत होता. संध्या की मम्मी के

    आत्मीयतापूणय व्यवहार और जीवन स ेसंघषय करने के द्वलये समझात ेरहन े

    से संगीता में अंतर कदखाई कदया. संध्या संगीता को द्वनरंतर मनोद्वचककत्सक

    के सम्पकय में रखकर् उसकी औषद्वधयों को द्वनरंतर द ेरही थी. अब संगीता

    को यह भान होन ेलगा था कक वह सधं्या के घर पर रह रही ह ैऔर उस े

    अपने घर जाकर अपन े पद्वत व बच्चों को दखेना चाद्वहये. संध्या उस े

    समझाती कक चली जाना, अभी क्या जल्दी ह?ै पहले िरीर में ताकत तो

    आ जाने दो. उधर प्रताप जब दस कदन बाद अपन ेआप खड़ा होने लगा था

    तो संध्या की मम्मी उसे भी मनोद्वचककत्सक के पास कदखा लाईं थीं. उन्होंन े

    दवा दकेर कहा था कक तीन सप्ताह के बाद कदखाने आना. संगीता अब पूणय

    रूप से चैतन्य हो गई थी और अपनी मां के पास जाकर उनका हाथ बटान े

    लगी थी.

    तीन सप्ताह के बाद प्रताप डौक्टर साहब को कदखान े

    गया तो उन्होंने उससे उसके पररवार के द्ववषय में प्रश्न ककया. यह सुनते ही

    वह द्वबलख पडा.—- ‘’ डौक्टर साहब! मेरे पााँच बच्चे हैं और पत्नी कफर से

  • मााँ बनन ेवाली ह.ै ककसी तरह घर का खचय चल पाता था. बच्चों को मैं

    स्कूल भी नहीं भेज पाया. एक जगह पर दो बद्वच्चयााँ द्वनुःिुल्क पढ़ने जाती

    थीं पर तीन बच्चे और हो गये तो उनकी द्विक्षा बंद हो गई. अब मेरी नौकरी

    भी चली गई. मैं कैसे सबका पेट भरूाँ ?मरने गया तो मौत ने भी दगा द े

    दी’’-- कहते हुए प्रताप फफक कर रोने लगा. मनोद्वचककत्सक ने उसके पास

    आकर कंधे पर हाथ रखकर समझाया—

    ‘’प्रताप! क्या बच्चों की तरह रो रह ेहो? मदय बनो. मुझ े

    पता ह ै कक तुम एम0 एस0 सी0 पास हो. एक नौकरी छूट गई तो दसूरी

    द्वमलेगी. ‘’

    ‘’कहााँ द्वमलती ह ै नौकरी? यही ककतनी करठनाई स े

    द्वमली थी.’’—प्रताप आक्रोद्वित स्वर में बोला.

    ‘’अरे भाई तुम तो द्विद्वक्षत हो. बच्चों को ट्यूिन पढ़ान े

    लगो. द्विद्वक्षत न होते तो भी जीवन यापन के अनेक द्ववकल्प हैं. ड्राइवर

    बन सकते हो, ठेले पर खोमचा लगा सकते हो. श्रम करने में लज्जा या िमय

    कैसी? आत्महत्या तो ककसी समस्या का हल नहीं ह.ै तुम्हें तो मालूम होगा

    कक आत्महत्या एक संगीन अपराध ह.ै भगवान को धन्यवाद दो कक जेल

    जाने से बच गये हो. द्वहम्मत रक्खो और चल द्वनकलो. एक रास्ता बंद होगा

    तो दसूरा द्वमलेगा. जब जीवन में सघंषय के क्षण आते हैं तब द्ववचद्वलत न

    होकर द्वहम्मत से काम लें तो सफलता अवश्य द्वमलती ह.ै’’

    डौक्टर प्रदीप को प्रताप के ऊपर अपने ककये उपचार

    और दी गई औषद्वधयों का प्रभाव होता कदखाई द ेरहा था. बोले—‘’ मैंने

    जो दवाइयााँ दी हैं वे तुम्हें तीन माह तक द्वनयद्वमत रूप से खानी हैं. कफर

  • मुझे कदखान ेआना. हां यकद बीच में ज़रूरत पड़े तो कभी भी आ सकते हो.

    कोई सलाह लेनी हो तो मेरा मोबाइल नम्बर द्वलख लो.’’

    ‘’डौक्टर साहब आपने मेरी आंखें खोल दीं. मैं आज से ही

    कुछ न कुछ समाधान द्वनकालूाँगा और अपने पररवार का भार स्वयं

    उठाऊाँ गा.’’

    प्रताप के आत्मद्ववश्वास को दखे कर डौक्टर साहब को

    अत्यंत प्रसन्नता हुई कक उनका इलाज प्रताप के ऊपर प्रभाव कदखान ेलगा

    ह.ै उसकी पीठ पर थपकी दकेर उन्होंन ेकहा--

    ‘’प्रताप एक बात गांठ बांध लो—‘’ मन के हारे हार ह,ै मन

    के जीते जीत.’’

    "सच ह'ै'—कह कर प्रताप उनके चरण छू कर बाहर द्वनकल

    आया.

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