shri guru arjan dev ji sakhi - 055a

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Page 1: Shri Guru Arjan Dev Ji Sakhi - 055a
Page 2: Shri Guru Arjan Dev Ji Sakhi - 055a

श्री गुर अर्जनर्जन दवे जनी ने अर्पने गुर िपता के वचन याद िकए िक हमारी सेवा इन तीथो की सेवा है| इस प्रकार अर्मृत सरोवर के बाद संतोखसर तीथर्ज की सेवा आरम्भ करने का िवचार बनाया| इस सरोवर को श्री गुर राम दास जनी द्वारा आरम्भ कराया गया था| खोदे हुए गड्ड ेमे वषार्ज का पानी एकित्रित हो गया तथा चारो और बेिरयो और वृक्षो के झुण्ड थे|

सेवा का ऐसा िवचार रखते हुए श्री गुर अर्जनर्जन देव जनी कुछ िसखो को साथ लेकर एक टाहली के नीच ेआ बैठे| बहुत से मजनदरूो और कुछ िसख सेवको को सरोवर खोदने के िलए लगा िदया गया| सभी जनोश व लगन के साथ सरोवर की खुदाई मे लगे हुए थे|

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एक िदिन िमिट्टी के नीचे से एक गोलाकार मिठ िनकला िजिसमिे योगी समिािध लगाय ेबैठा था| गुर जिी ने उसको मिखन, कस्तूरी व केसर की मिािलश उसके िसर व पैरो पर कराकर समिािध खुलवाई| जिब उस योगी ने बाबा बुड्डा जिी व गुर जिी को सामिने खड़ा पाया तो पूछने लगा िक यह कोनसा युग है और आप कौन ह|ै बाबा जिी ने बताया अब कलयुग है तथा जिो उनके पास खड़े है वह श्री गुर नानक दिवे जिी की गद्दी पर िवराजिमिान पाचँवे गुर अजिर्जन दिवे जिी है|

उस योगी ने जिैसे ही बाबा जिी की बात सुनी तो झट से कहा िक मिेरा तप पूरण हो गया है|

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मेरे गुर का वचन हुआ था िक जब किलियुग आएगा तो तुम गुर अवतार के दर्शनर्शन करोग ेऔर तभी तुम्हारा कल्याण होगा| आज वह समय आ गया है| मेरे मन को शनांतित िमलिी है| यह वचन करके योगी ने हाथ जोड िदर्ए और गरु जी को नमस्कार की| इसके पश्चात अपना शनरीर त्यागकर परमपदर् को प्राप हो गया|