shri guru har rai sahib ji sakhi - 074a

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Page 1: Shri Guru Har Rai Sahib Ji Sakhi - 074a
Page 2: Shri Guru Har Rai Sahib Ji Sakhi - 074a

करतारपुर में एक ब्राहमण का इकलौता लड़का मर गया| लड़के के माता-पिपता गुरु हरिर राय जी के पास आ गए और कहने लगे पिक हमारे पुत्र को जीपि त कर दो| नहीं तो हम भी आपके द्वार पर प्राण त्याग देंगे| तब गुरु जी ने कहा अगर कोई इस लड़के पिक जगह प्राण देगा तो यह जीपि त हो जाएगा| गुरु जी का यह चन सुनकर जब उसके माँ-बाप भी प्राण देने को तैयार ना हुए तो उनकी कुरलाहट पर तरस करके भाई जी न से सोचा एक दिदन तो मरना ही है तो पि2र क्यों ना गुरु के हुकम के अनुसार ही प्राण त्यागे जाए और जी न स2ल हो जाए|

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यह सोच कर भाई जी न ने डेरे जाकर कपड़ा पिबछाया और ऊपर लेटकर अपने प्राण त्याग दिदए| इधर जैसे ही भाई जी न न ेप्राण त्यागे उधर ब्राहमण का पुत्र जीपि त हो गया|

भाई का ऐसा बलिलदान देखकर सबने उन्हें धन्य कहा| गुरु जी न ेभाई जी न का संस्कार भाई भगतु की शमशान भूमिम के पास ही कराया और चन दिदया पिक जी न का पिन ास गुरु के चरणों में होगा| जब गुरु जी को यह पता लगा पिक भाई जी न की स्त्री गभB ती ह ैतो अपने चन दिदया पिक इसको लड़का होगा जिजसका ंश बहुत बडे़गा|

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इस तरह गुरु जी ने भाई जी न की प्रशंसा की और उसे रदान देकर सबको धैयB दिदया| इस प्रकार भाई जी न ने गुरु का हुकम मानकर अपना जी न स2ल पिकया और अपन े ंश के लिलए रदान प्राप्त पिकया|