ूेमचद - h · pdf fileउसका लड़का ... म eदान और...

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ेमचÛद गोदान डाÈटर मेहता परȣ¢क से परȣ¢ाथȸ हो गये हɇ। मालती से दरू -दर रहकर उÛहɅ ऐसी शंका होने लगी है Ǒक उसे खो बैठɅ । कई महȣनɉ से मालती उनके पास आयी थी और जब वह ǒवकल होकर उसके घर गये , तो मुलाक़ात हई। ǔजन Ǒदनɉ ǽिपाल और सरोज का ेमकांड चलता रहा , तब तो मालती उनकȧ सलाह लेने ायः एक-दो बार रोज़ आती थी; पर जब से दोनɉ इंगलɇड चले गये थे , उनका आना-जाना बÛद हो गया था। घर पर भी मुǔकल से िमलती। ऐसा मालूम होता था, जैसे वह उनसे बचती है , जैसे बलपूव[क अपने मन को उनकȧ ओर से हटा लेना चाहती है। ǔजस पुःतक मɅ वह इन Ǒदनɉ लगे हए थे , वह आगे बढ़ने से इनकार कर रहȣ थी, जैसे उनका मनोयोग लुƯ हो गया हो। गृह-बÛध मɅ तो वह कभी बहत कु शल थे। सब िमलकर एक हज़ार ǽपए से अिधक महȣने मɅ कमा लेते थे ; मगर बचत एक धेले कȧ भी होती थी। रोटȣ-दाल खाने के िसवा और उनके हाथ कु छ था। तकãलुफ़ अगर कु छ था तो वह उनकȧ कार थी, ǔजसे वह ख़ुद साइव करते थे। कु छ ǽपए Ǒकताबɉ मɅ उड़ जाते थे , कु छ चÛदɉ मɅ , कु छ ग़रȣब छाऽɉ कȧ परवǐरश मɅ और अपने बाग़ कȧ सजावट मɅ ǔजससे उÛहɅ इक़-सा था। तरह-तरह के पौधे और वनःपितयाँ ǒवदेशɉ से महँगे दामɉ मँगाना और उनको पालना; यहȣ उनका मानिसक चटोरापन था या इसे Ǒदमाग़ी ऐयाशी कहɅ ; मगर इधर कई महȣनɉ से उस बग़ीचे कȧ ओर से भी वह कु छ ǒवरƠ-से हो रहे थे और घर का इÛतज़ाम और भी बदतर हो गया था। खाते दो फु लके और ख़च[ हो जाते सौ से ऊपर! अचकन पुरानी हो गयी थी; मगर इसी पर उÛहɉने कड़ाके का जाड़ा काट Ǒदया। नयी अचकन िसलवाने कȧ तौफ़ȧक़ हई थी। कभी कभी ǒबना घी कȧ दाल खाकर उठना पड़ता। कब घी का कनःतर मँगाया था, इसकȧ उÛहɅ याद हȣ थी, और महाराज से पूछɅ भी तो कै से। वह समझेगा नहȣं Ǒक उस पर अǒवƳास Ǒकया जा रहा है ? आǔख़र एक Ǒदन जब तीन िनराशाओं के बाद चौथी बार मालती से मुलाक़ात हई और उसने इनकȧ यह हालत देखी , तो उससे रहा गया। बोली -- तुम Èया अबकȧ जाड़ा यɉ हȣ काट दोगे ? वह अचकन पहनते तुàहɅ शम[ भी नहȣं आती? मालती उनकȧ पƤी होकर भी उनके इतने समीप थी Ǒक यह ư उसने उसी सहज भाव से Ǒकया, जैसे अपने Ǒकसी आ×मीय से करती। मेहता ने ǒबना झɅपे हए कहा -- Èया कǾँ मालती, पैसा तो बचता हȣ नहȣं। मालती को अचरज हआ -- तुम एक हज़ार से एयादा कमाते हो, और तुàहारे पास अपने कपड़े बनवाने को भी पैसे नहȣं ? मेरȣ आमदनी कभी चार सौ से एयादा थी; लेǑकन मɇ उसी मɅ सारȣ गृहःथी चलाती हँ और कु छ बचा लेती हँ। आǔख़र तुम Èया करते हो? ' मɇ एक पैसा भी फ़ालतू नहȣं ख़च[ करता। मुझे कोई ऐसा शौक़ भी नहȣं है। ' ' अÍछा, मुझसे ǽपए ले जाओ और एक जोड़ȣ अचकन बनवा लो। मेहता ने लǔÏजत होकर कहा -- अबकȧ बनवा लूँगा। सच कहता हँ। ' अब आप यहाँ आयɅ तो आदमी बनकर आयɅ। ' ' यह तो बड़ȣ कड़ȣ शत[ है। '

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