ूेमचद · सारेबधन तोड़ दो, धम[और समाज को...

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ेमचÛद गोदान यह अिभनय जब समाƯ हआ , तो उधर रंगशाला मɅ धनुष-य£ समाƯ हो चुका था और सामाǔजक हसन कȧ तैयारȣ हो रहȣ थी; मगर इन सÏजनɉ को उससे ǒवशेष Ǒदलचःपी थी। के वल िमःटर मेहता देखने गये और आǑद से अÛत तक जमे रहे। उÛहɅ बड़ा मज़ा रहा था। बीच-बीच मɅ तािलयाँ बजाते थे और ' Ǒफर कहो, Ǒफर कहो ' का आमह करके अिभनेताओं को ो×साहन भी देते जाते थे। राय साहब ने इस हसन मɅ एक मुक़दमेबाज़ देहाती ज़मींदार का ख़ाका उड़ाया था। कहने को तो हसन था; मगर कǽणा से भरा हआ। नायक का बात -बात मɅ क़ानून कȧ धाराओं का उãलेख करना, पƤी पर के वल इसिलए मुक़दमा दायर कर देना Ǒक उसने भोजन तैयार करने मɅ ज़रा-सी देर कर दȣ, Ǒफर वकȧलɉ के नख़रे और देहाती गवाहɉ कȧ चालाǑकयाँ और झाँसे , पहले गवाहȣ के िलए चट-पट तैयार हो जाना; मगर इजलास पर तलबी के समय ख़ूब मनावन कराना और नाना कार के फ़रमाइशɅ करके उãलू बनाना, ये सभी Ǻय देखकर लोग हँसी के मारे लोटे जाते थे। सबसे सुÛदर वह Ǻय था, ǔजसमɅ वकȧल गवाहɉ को उनके बयान रटा रहा था। गवाहɉ का बार-बार भूलɅ करना, वकȧल का ǒबगड़ना, Ǒफर नायक का देहाती बोली मɅ गवाहɉ को समझाना और अÛत मɅ इजलास पर गवाहɉ का बदल जाना, ऐसा सजीव और स×य था Ǒक िमःटर मेहता उछल पड़े और तमाशा समाƯ होने पर नायक को गले लगा िलया और सभी नटɉ को एक-एक मेडल देने कȧ घोषणा कȧ। राय साहब के ित उनके मन मɅ ƨा के भाव जाग उठे । राय साहब टेज के पीछे सामे का संचालन कर रहे थे। मेहता दौड़कर उनके गले िलपट गये और मुÊध होकर बोले -- आपकȧ Ǻǒƴ इतनी पैनी है , इसका मुझे अनुमान था। दसरे Ǒदन जलपान के बाद िशकार का ोमाथा। वहȣं Ǒकसी नदȣ के तट पर बाग़ मɅ भोजन बने , ख़ूब जल-Ơȧड़ा कȧ जाय और शाम को लोग घर आयँ। देहाती जीवन का आनÛद उठाया जाय। ǔजन मेहमानɉ को ǒवशेष काम था, वह तो ǒबदा हो गये , के वल वे हȣ लोग बच रहे ǔजनकȧ राय साहब से घिनƴता थी। िमसेज़ खÛना के िसर मɅ दद[ था, जा सकȧं , और सàपादकजी इस मंडली से जले हए थे और इनके ǒवǽƨ एक लेख -माला िनकालकर इनकȧ ख़बर लेने के ǒवचार मɅ मÊन थे। सब-के -सब छटे हए गुंडे हɇ। हराम के पैसे उड़ाते हɇ और मूछɉ पर ताव देते हɇ। दिनया मɅ Èया हो रहा है , इÛहɅ Èया ख़बर। इनके पड़ोस मɅ कौन मर रहा है , इÛहɅ Èया परवा। इÛहɅ तो अपने भोग-ǒवलास से काम है। यह मेहता, जो Ǒफ़लासफ़र बना Ǒफरता है , उसे यहȣ धुन है Ǒक जीवन को सàपूण[ बनाओ। महȣने मɅ एक हज़ार मार लेते हो, तुàहɅ अǔउतयार है , जीवन को सàपूण[ बनाओ या पǐरपूण[ बनाओ। ǔजसको यह Ǒफ़ब दबाये डालती है Ǒक लड़कɉ का Þयाह कै से हो, या बीमार Ƹी के िलए वैƭ कै से आयँ या अब कȧ घर का Ǒकराया Ǒकसके घर से आएगा, वह अपना जीवन कै से सàपूण[ बनाये ! छटे साँड़ बने दसरɉ के खेत मɅ मुँह मारते Ǒफरते हो और समझते हो संसार मɅ सब सुखी हɇ। तुàहारȣ आँखɅ तब खुलɅगी, जब बाǔÛत होगी और तुमसे कहा जायगा -- बचा, खेत मɅ चलकर हल जोतो। तब देखɅ , तुàहारा जीवन कै से सàपूण[ होता है। और वह जो है मालती, जो बहƣर घाटɉ का पानी पीकर भी िमस बनी

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  • ूेमच द गोदान

    यह अिभनय जब समा हआु , तो उधर रंगशाला म धनुष-य समा हो चुका था और सामा जक ूहसन क तैयार हो रह थी; मगर इन स जन को उससे वशेष दलचःपी न थी। केवल िमःटर मेहता देखने गये और आ द से अ त तक जमे रहे। उ ह बड़ा मज़ा आ रहा था। बीच-बीच म तािलयाँ बजाते थे और ' फर कहो, फर कहो ' का आमह करके अिभनेताओं को ूो साहन भी देते जाते थे। राय साहब ने इस ूहसन म एक मुक़दमेबाज़ देहाती ज़मींदार का ख़ाका उड़ाया था। कहने को तो ूहसन था; मगर क णा से भरा हआ। नायक का बातु -बात म क़ानून क धाराओं का उ लेख करना, प ी पर केवल इसिलए मुक़दमा दायर कर देना क उसने भोजन तैयार करने म ज़रा-सी देर कर द , फर वक ल के नख़रे और देहाती गवाह क चाला कयाँ और झाँसे, पहले गवाह के िलए चट-पट तैयार हो जाना; मगर इजलास पर तलबी के समय ख़ूब मनावन कराना और नाना ूकार के फ़रमाइश करके उ लू बनाना, ये सभी ँय देखकर लोग हँसी के मारे लोटे जाते थे। सबसे सु दर वह ँय था, जसम वक ल गवाह को उनके बयान रटा रहा था। गवाह का बार-बार भूल करना, वक ल का बगड़ना, फर नायक का देहाती बोली म गवाह को समझाना और अ त म इजलास पर गवाह का बदल जाना, ऐसा सजीव और स य था क िमःटर मेहता उछल पड़े और तमाशा समा होने पर नायक को गले लगा िलया और सभी नट को एक-एक मेडल देने क घोषणा क । राय साहब के ूित उनके मन म ौ ा के भाव जाग उठे। राय साहब ःटेज के पीछे सामे का संचालन कर रहे थे। मेहता दौड़कर उनके गले िलपट गये और मु ध होकर बोले -- आपक इतनी पैनी है, इसका मुझे अनुमान न था। दसरे दन जलपान के बाद िशकार का ूूोमाम था। वह ं कसी नद के तट पर बाग़ म भोजन बने, ख़ूब जल- ड़ा क जाय और शाम को लोग घर आयँ। देहाती जीवन का आन द उठाया जाय। जन मेहमान को वशेष काम था, वह तो बदा हो गये, केवल वे ह लोग बच रहे जनक राय साहब से घिन ता थी। िमसेज़ ख ना के िसर म दद था, न जा सक ं, और स पादकजी इस मंडली से जले हए थे और इनके व एक लेखु -माला िनकालकर इनक ख़बर लेने के वचार म म न थे। सब-के-सब छटे हए गंुडे ह। हराम के पैसे उड़ाते ह और मूछ पर ताव देते ह। ुदिनया म या हो रहा हैु , इ ह या ख़बर। इनके पड़ोस म कौन मर रहा है, इ ह या परवा। इ ह तो अपने भोग- वलास से काम है। यह मेहता, जो फ़लासफ़र बना फरता है, उसे यह धुन है क जीवन को स पूण बनाओ। मह ने म एक हज़ार मार लेते हो, तु ह अ उतयार है, जीवन को स पूण बनाओ या प रपूण बनाओ। जसको यह फ़ब दबाये डालती है क लड़क का याह कैसे हो, या बीमार ी के िलए वै कैसे आयँ या अब क घर का कराया कसके घर से आएगा, वह अपना जीवन कैसे स पूण बनाये! छटे साँड़ बने दसर के खेत म मुँह मारते फरते हो और समझते हो संसार म सब सुखी ह। तु हार आँख ू ूतब खुलगी, जब बा त होगी और तुमसे कहा जायगा -- बचा, खेत म चलकर हल जोतो। तब देख, तु हारा जीवन कैसे स पूण होता है। और वह जो है मालती, जो बह र घाट का पानी पीकर भी िमस बनी

  • फरती है! शाद नह ं करेगी, इससे जीवन ब धन म पड़ जाता है, और ब धन म जीवन का पूरा वकास नह ं होता। बस जीवन का पूरा वकास इसी म है क दिनया को लूटे जाओ और िन वलास कये ुजाओ! सारे ब धन तोड़ दो, धम और समाज को गोली मारो, जीवन के कत य को पास न फटकने दो, बस तु हारा जीवन स पूण हो गया। इससे एयादा आसान और या होगा। माँ-बाप से नह ं पटती, उ ह धता बताओ; शाद मत करो, यह ब धन है; ब चे ह गे, यह मोहपाश है; मगर टै स य देते हो? क़ानून भी तो ब धन है, उसे य नह ं तोड़ते? उससे य क नी काटते हो। जानते हो न क क़ानून क ज़रा भी अव ा क और बे ड़याँ पड़ जायँगी। बस वह ब धन तोड़ो, जसम अपनी भोग-िल सा म बाधा नह ं पड़ती। रःसी को साँप बनाकर पीटो और तीस मारखाँ बनो। जीते साँप के पास जाओ ह य वह फूकार भी मारेगा तो, लहर आने लगगी। उसे आते देखो, तो दम दबाकर भागो। यह तु हारा स पूण जीवन हैु ! आठ बजे िशकार-पाट चली। ख ना ने कभी िशकार न खेला था, ब दक़ क आवाज़ से काँपते थेू ; ले कन िमस मालती जा रह थीं, वह कैसे क सकते थे। िमःटर तंखा को अभी तक एले शन के वषय म बातचीत करने का अवसर न िमला था। शायद वहाँ वह अवसर िमल जाय। राय साहब अपने इस इलाक़े म बहत दन से नह ं गये थे। वहाँ का रंगु -ढंग देखना चाहते थे। कभी-कभी इलाक़े म आने-जाने से आदिमय से एक स ब ध भी हो जाता है और रोब भी रहता है। कारकून और यादे भी सचेत रहते ह। िमरज़ा खुशद को जीवन के नये अनुभव ूा करने का शौक़ था, वशेषकर ऐसे, जनम कुछ साहस दखाना पड़े। िमस मालती अकेले कैसे रहतीं। उ ह तो रिसक का जमघट चा हए। केवल िमःटर मेहता िशकार खेलने के स चे उ साह से जा रहे थे। राय साहब क इ छा तो थी क भोजन क साममी, रसोईया, कहार, ख़दमतगार, सब साथ चल, ले कन िमःटर मेहता ने उसका वरोध कया। ख ना ने कहा -- आ ख़र वहाँ भोजन करगे या भूख मरगे? मेहता ने जवाब दया -- भोजन य न करगे, ले कन आज हम लोग ख़ुद अपना सारा काम करगे। देखना तो चा हए क नौकर के बग़ैर हम ज़ दा रह सकते ह या नह ं। िमस मालती पकायँगी और हम लोग खायँगे। देहात म हाँ डयाँ और प ल िमल ह जाते ह, और ईधन क कोई कमी नह ं। िशकार हम करगे ह । मालती ने िगला कया -- मा क जए। आपने रात मेर क़लाई इतने ज़ोर से पकड़ क अभी तक दद हो रहा है। ' काम तो हम लोग करगे, आप केवल बताती जाइएगा। ' िमरज़ा खुशद बोले -- अजी आप लोग तमाशा देखते र हएगा, म सारा इ तज़ाम कर दँगा। बात ह कौनू -सी है। जंगल म हाँड और बतन ढँढ़ना हमाक़त ूहै। हरन का िशकार क जए, भूिनए, खाइए, और वह ं दरउत के साये म खराटे ली जए। यह ूःताव ःवीकित हआ। ुदो मोटर चलीं। एक िमस मालती साइव कर रह थीं, दसर ख़ुद राय साहब। कोई बीसू -पचीस मील पर पहाड़ ूा त शु हो गया। दोन तरफ़ ऊँची पवतमाला दौड़ चली आ रह थी। सड़क भी पचदार होती जाती थी। कुछ दर क चढ़ाई के बाद एकाएक ढाल आ गया और मोटर नीचे क ओर चली। दर से नद ू ूका पाट नज़र आया, कसी रोगी क भाँित दबलु , िनःप द कगार पर एक घने वटवृ क छाँह म कार रोक द गयीं और लोग उतरे। यह सलाह हई क दोु -दो क टोली बने और िशकार खेलकर बारह बजे तक यहाँ आ जाय। िमस मालती मेहता के साथ चलने को तैयार हो गयीं। ख ना मन म ऐंठकर रह गये। जस

  • वचार से आये थे, उसम जैसे पंचर हो गया; अगर जानते, मालती दग़ा देगी, तो घर लौट जाते; ले कन राय साहब का साथ उतना रोचक न होते हए भी बुरा न था। उनसे बहतु ु -सी मुआमले क बात करनी थीं। खुशद और तंखा बच रहो। उनक टोली बनी-बनायी थी। तीन टोिलयाँ एक-एक तरफ़ चल द ं। कुछ दर ूतक पथर ली पगडंड पर मेहता के साथ चलने के बाद मालती ने कहा -- तुम तो चले ह जाते हो। ज़रा दम ले लेने दो। मेहता मुःकराये -- अभी तो हम एक मील भी नह ं आये। अभी से थक गयीं? ' थक ं नह ं; ले कन य न ज़रा दम ले लो। ' ' जब तक कोई िशकार हाथ न आ जाय, हम आराम करने का अिधकार नह ं। ' ' म िशकार खेलने न आयी थी। ' मेहता ने अनजान बनकर कहा -- अ छा यह म न जानता था। फर या करने आयी थीं?

    ' अब तुमसे या बताऊँ। ' हरन का एक झुंड चरता हआ नज़र आया। दोन एक च टान क आड़ म िछप गये और िनशाना बाँधकर ुगोली चलायी। िनशाना ख़ाली गया। झुंड भाग िनकला। मालती ने पूछा -- अब? ' कुछ नह ं, चलो फर कोई िशकार िमलेगा। ' दोन कुछ देर तक चुपचाप चलते रहे। फर मालती ने ज़रा ककर कहा -- गम के मारे बुरा हाल हो रहा है। आओ, इस वृ के नीचे बैठ जायँ। ' अभी नह ं। तुम बैठना चाहती हो, तो बैठो। म तो नह ं बैठता। ' ' बड़े िनदयी हो तुम, सच कहती हँ। ू ' ' जब तक कोई िशकार न िमल जाय, म बैठ नह ं सकता। ' ' तब तो तुम मुझे मार ह डालोगे। अ छा बताओ; रात तुमने मुझे इतना य सताया? मुझे तु हारे ऊपर बड़ा बोध आ रहा था। याद है, तुमने मुझे या कहा था? तुम हमारे साथ चलेगा दलदार? म न जानती थी, तुम इतने शर र हो। अ छा, सच कहना, तुम उस वईत मुझे अपने साथ ले जाते? ' मेहता ने कोई जवाब न दया, मानो सुना ह नह ं। दोन कुछ दर चलते रहे। एक तो जेठ क धूपू , दसरे ूपथर ला राःता। मालती थककर बैठ गयी। मेहता खड़े-खड़े बोले -- अ छ बात है, तुम आराम कर लो। म यह ं आ जाऊँगा। ' मुझे अकेले छोड़कर चले जाओगे? ' ' म जानता हूँ, तुम अपनी र ा कर सकती हो। ' ' कैसे जानते हो? ' ' नये युग क दे वय क यह िसफ़त है। वह मद का आौय नह ं चाहतीं, उससे क धा िमलाकर चलना चाहती ह। ' मालती ने झपते हए कहा ु -- तुम कोरे फ़लासफ़र हो मेहता, सच। सामने वृ पर एक मोर बैठा हआ था। ुमेहता ने िनशाना साधा और ब दक़ चलायी। मोर उड़ गया। मालती ूस न होकर बोली ू -- बहत अ छा ुहआ। मेरा शाप पड़ा। मेहता ने ब दक़ क धे पर रखकर कहा ु ू -- तुमने मुझे नह ं, अपने आपको शाप दया। िशकार िमल जाता, तो म तु ह दस िमनट क मुहलत देता। अब तो तुमको फ़ौरन चलना पड़ेगा। मालती उठकर मेहता का हाथ पकड़ती हई बोली ु -- फ़लासफ़र के शायद दय नह ं होता। तुमने अ छा कया, ववाह नह ं कया। उस ग़र ब को मार ह डालते; मगर म य न छोड़ँगी। तुम मुझे छोड़कर नह ं जा ू

  • सकते। मेहता ने एक झटके से हाथ छड़ा िलया और आगे बढ़े। मालती सजलनेऽ होकर बोली ु -- म कहती हूँ, मत जाओ। नह ं म इसी च टान पर िसर पटक दँगी। मेहता ने तेज़ी से क़दम बढ़ाये। मालती ूउ हदेखती रह । जब वह बीस क़दम िनकल गये, तो झुँझलाकर उठ और उनके पीछे दौड़ । अकेले वौाम करने म कोई आन द न था। समीप आकर बोली -- म तु ह इतना पशु न समझती थी। ' म जो हरन मा ँ गा, उसक खाल तु ह भट क ँ गा। ' ' खाल जाय भाड़ म। म अब तुमसे बात न क ँ गी। ' ' कह ं हम लोग के हाथ कुछ न लगा और दसर ने अ छे िशकार मारे तो मुझे बड़ झप होगी। ू ' एक चौड़ा नाला मुँह फैलाये बीच म खड़ा था। बीच क च टान उसके दाँत से लगती थीं। धार म इतना वेग था क लहर उछली पड़ती थीं। सूय म या पर आ पहँचा था और उसक यासी करणजल म ब ड़ा ुकर रह थीं। मालती ने ूस न होकर कहा -- अब तो लौटना पड़ा। ' य ? उस पार चलगे। यह ं तो िशकार िमलगे। ' ' धारा म कतना वेग है। म तो बह जाऊँगी। ' ' अ छ बात है। तुम यह ं बैठो, म जाता हँ। ू ' ' हाँ आप जाइए। मुझे अपनी जान से बैर नह ं है। ' मेहता ने पानी म क़दम रखा और पाँव साधते हए चले। यु - य आगे जाते थे, पानी गहरा होता जाता था। यहाँ तक क छाती तक आ गया। मालती अधीर हो उठ । शंका से मन चंचल हो उठा। ऐसी वकलता तो उसे कभी न होती थी। ऊँचे ःवर म बोली -- पानी गहरा है। ठहर जाओ, म भी आती हँ। ू' नह ं-नह ं, तुम फसल जाओगी। धार तेज़ है। ' ' कोई हरज़ नह ं, म आ रह हँ। आगे न बढ़नाू , ख़बरदार। ' मालती साड़ ऊपर चढ़ाकर नाले म पैठ । मगर दस हाथ आते-आते पानी उसक कमर तक आ गया। मेहता घबड़ाये। दोन हाथ से उसे लौट जाने को कहते हए बोले ु -- तुम यहाँ मत आओ मालती! यहाँ तु हार गदन तक पानी है। मालती ने एक क़दम और आगे बढ़कर कहा -- होने दो। तु हार यह इ छा है क म मर जाऊँ, तो तु हारे पास ह म ँ गी। मालती पेट तक पानी म थी। धार इतनी तेज़ थी क मालूम होता था, क़दम उखड़ा। मेहता लौट पड़े और मालती को एक हाथ से पकड़ िलया। मालती ने नशीली आँख म रोष भरकर कहा -- मने तु हारे-जैसे बेदद आदमी कभी न देखा था। ब कुल प थर हो। ख़ैर, आज सता लो, जतना सताते बने; म भी कभी समझूँगी। मालती के पाँव उखड़ते हए मालूम हए। वह ब दक़ सँभालती हई उनसे िचमट गयी। मेहता ने ु ु ुूआ ासन देते हए कहा ु -- तुम यहाँ खड़ नह ं रह सकती। म तु ह अपने क धे पर बठाये लेता हँ। ूमालती ने भकुृट टेढ़ करके कहा -- तो उस पार जाना या इतना ज़ र है? मेहता ने कुछ उ र न दया। ब दक़ कनपट से क धे पर दबा ली और मालती को दोन हाथ से उठाकर क धे पर बैठा िलया। ूमालती अपनी पुलक को िछपाती हई बोली ु -- अगर कोई देख ले? ' भं◌ा तो लगता है। ' दो पग के बाद उसने क ण ःवर म कहा -- अ छा बताओ, म यह ं पानी म डब जाऊँू , तो तु ह रंज हो या न हो? म तो समझती हूँ, तु ह बलकुल रंज न होगा। मेहता ने आहत ःवर से कहा -- तुम समझती हो, म आदमी नह ं हूँ? ' म तो यह समझती हूँ, य िछपाऊँ। '

  • ' सच कहती हो मालती? ' ' तुम या समझते हो? ' ' म! कभी बतलाऊँगा। ' पानी मेहता के गदन तक आ गया। कह ं अगला क़दम उठाते ह िसर तक न आ जाय। मालती का दय धक-धक करने लगा। बोली, मेहता, ई र के िलए अब आगे मत जाओ, नह ं, म पानी म कूद पड़ँगी। उस संकट म मालती को ई र याद आयाू , जसका वह मज़ाक़ उड़ाया करती थी। जानती थी, ई र कह ं बैठा नह ं है जो आकर उ ह उबार लेगा; ले कन मन को जस अवल बन और श क ज़ रत थी, वह और कहाँ िमल सकती थी। पानी कम होने लगा था। मालती ने ूस न होकर कहा --अब तुम मुझे उतार दो। ' नह ं-नह ं, चुपचाप बैठ रहो। कह ं आगे कोई गढ़ा िमल जाय। ' ' तुम समझते होगे, यह कतनी ःवािथनी है। ' ' मुझे इसक मज़दर दे देना। ू ' मालती के मन म गुदगुद हई। ु ' या मज़दर लोगेू ? ' ' यह क जब तु ह जीवन म ऐसा ह कोई अवसर आय तो मुझे बुला लेना। '

    कनारे आ गये। मालती ने रेत पर अपनी साड़ का पानी िनचोड़ा, जूते का पानी िनकाला, मुँह-हाथ धोया; पर ये श द अपने रहःयमय आशय के साथ उसके सामने नाचते रहे। उसने इस अनुभव का आन द उठाते हए कहा ु -- यह दन याद रहेगा। मेहता ने पूछा -- तुम बहत डर रह थींु ? ' पहले तो डर ; ले कन फर मुझे व ास हो गया क तुम हम दोन क र ा कर सकते हो। ' मेहता ने गव से मालती को देखा -- इनके मुख पर प रौम क लाली के साथ तेज था। ' मुझे यह सुनकर कतना आन द आ रहा है, तुम यह समझ सकोगी मालती? ' ' तुमने समझाया कब। उलटे और जंगल म घसीटते फरते हो; और अभी फर लौटती बार यह नाला पार करना पड़ेगा। तुमने कैसी आफ़त म जान डाल द । मुझे तु हारे साथ रहना पड़े, तो एक दन न पटे। ' मेहता मुःकराये। इन श द का संकेत ख़ूब समझ रहे थे। ' तुम मुझे इतना द समझती होु ! और जो म कहँ क तुमसे ूेम करता हँ। मुझसे ववाह करोगीू ू ? ' ' ऐसे काठ-कठोर से कौन ववाह करेगा! रात- दन जलाकर मार डालोगे। ' और मधुर नेऽ से देखा, मानी कह रह हो -- इसका आशय तुम ख़ूब समझते हो। इतने बु नह ं हो। ूमेहता ने जैसे सचेत होकर कहा -- तुम सच कहती हो मालती। म कसी रमणी को ूस न नह ं रख सकता। मुझसे कोई ी ूेम का ःवाँग नह ं कर सकती। म इसके अ तःतल तक पहँच जाऊँगा। फर मुझे ुउससे अ िच हो जायगी। मालती काँप उठ । इन श द म कतना स य था। उसने पूछा -- बताओ, तुम कैसे ूेम से स तु होगे? ' बस यह क जो मन महो, वह मुख पर हो! मेरे िलए रंग--प और हाव-भाव और नाज़ो-अ दाज़ का मू य इतना ह है; जतना होना चा हए। म वह भोजन चाहता हूँ, जससे आ मा क तिृ हो। उ ेजक और शोषक पदाथ क मुझे ज़ रत नह ं। ' मालती ने ओठ िसकोड़कर ऊपर साँस खींचते हए कहा ु -- तुमसे कोई पेश न पायेगा। एक ह घाघ हो। अ छा बताओ, मेरे वषय मतु हारा या ख़याल है? मेहता ने नटखटपन से मुःकराकर कहा -- तुम सब कुछ कर सकती हो, बु मती हो, चतुर हो, ूितभावान हो, दयालु हो, चंचल हो, ःवािभमानी हो, याग कर

  • सकती हो; ले कन ूेम नह ं कर सकती। मालती ने पैनी से ताककर कहा -- झूठे हो तुम, बलकुल झूठे। मुझे तु हारा यह दावा िनःसार मालूम होता है क तुम नार - दय तक पहँच जाते हो। ुदोन नाले के कनारे- कनारे चले जा रहे थे। बारह बज चुके थे; पर अब मालती को न वौाम क इ छा थी, न लौटने क । आज के स भाषण म उसे एक ऐसा आन द आ रहा था, जो उसके िलए बलकुल नया था। उसने कतने ह व ान और नेताओं को एक मुःकान म, एक िचतवन म, एक रसीले वा य म उ लू बनाकर छोड़ दया था। ऐसी बालू क द वार पर वह जीवन का आधार नह ं रख सकती थी। आज उसे वह कठोर, ठोस, प थर-सी भूिम िमल गयी थी, जो फावड़ से िचनगा रयाँ िनकाल रह थी और उसक कठोरता उसे उ रो र मोह लेती थी। धायँ क आवाज़ हई। एक लालसर नाले पर उड़ा जा रहा था। मेहता ने ुिनशाना मारा। िच ड़या चोट खाकर भी कुछ दर उड़ू , फर बीच धार म िगर पड़ और लहर के साथ बहने लगी। ' अब? ' ' अभी जाकर लाता हँ। जाती कहाँ हैू ? ' यह कहने के साथ वह रेत म दौड़े और ब दक़ कनारे पर रख गड़ाप से पानी म कूद पड़े और बहाव क ूओर तैरने लगे; मगर आध मील तक पूरा ज़ोर लगाने पर भी िच ड़या न पा सके। िच ड़या मर कर भी जैसे उड़ जा रह थी। सहसा उ ह ने देखा, एक युवती कनारे क एक झोपड़ से िनकली, िच ड़या को बहते देखकर साड़ को जाँघ तक चढ़ाया और पानी म घुस पड़ । एक ण म उसने िच ड़या पकड़ ली और मेहता को दखाती हई बोली ु -- पानी से िनकल जाओ बाबूजी, तु हार िच ड़या यह है। मेहता युवती क चपलता और साहस देखकर मु ध हो गये। तुर त कनारे क ओर हाथ चलाये और दो िमनट म युवती के पास जा खड़े हए। युवती का रंग था तो काला और वह भी गहराु , कपड़े बहत ह मैले और फूहड़ आभूषण ुके नाम पर केवल हाथ म दो-दो मोट चू ड़याँ, िसर के बाल उलझे अलग-अलग। मुख-मंडल का कोई भाग ऐसा नह ं, जसे सु दर या सुघड़ कहा जा सके; ले कन उस ःव छ, िनमल जलवायु ने उसके कालेपन म ऐसा लाव य भर दया था और ूकृित क गोद म पलकर उसके अंग इतने सुडौल, सुग ठत और ःव छ द हो गये थे क यौवन का िचऽ खींचने के िलए उससे सु दर कोई प न िमलता। उसका सबल ःवाः य जैसे मेहता के मन म बल और तेज भर रहा था। मेहता ने उसे ध यवाद देते हए कहा ु -- तुम बड़े मौक़े से पहँच गयींु , नह ं मुझे न जाने कतनी दर तैरना पड़ता। युवती ने ूस नता से कहा ू -- मने तु ह तैरते आते देखा, तो दौड़ । िशकार खेलने आये ह गे? ' हाँ, आये तो थे िशकार ह खेलने; मगर दोपहर हो गया और यह िच ड़या िमली है। ' तदआ मारना चाहोु , तो म उसका ठौर दखा दँ। रात को यहाँ रोज़ पानी पीने आता है। कभीू -कभी दोपहर म भी आ जाता है। ' फर ज़रा सकुचाकर िसर झुकाये बोली -- उसक खाल हमदेनी पड़ेगी। चलो मेरे ार पर। वहाँ पीपल क छाया है। यहाँ धूप मकब तक खड़े रहोगे। कपड़े भी तो गीले हो गये ह। मेहता ने उसक देह म िचपक हई गीली साड़ क ओर देखकर कहा ु -- तु हारे कपड़े भी तो गीले ह। उसने लापरवाह से कहा -- ऊँह हमारा या, हम तो जंगल के ह। दन- दन भर धूप और पानी म खड़े रहते ह। तुम थोड़े ह रह सकते हो। लड़क कतनी समझदार है और बलकुल गँवार।

  • ' तुम खाल लेकर या करेगी? ' ' हमारे दादा बाज़ार म बेचते ह। यह तो हमारा काम है। ' ' ले कन दोपहर यहाँ काट, तो तुम खलाओगी या? ' युवती ने लजाते हए कहा ु -- तु हारे खाने लायक़ हमारे घर म या है। म के क रो टयाँ खाओ, जो धर ह। िच ड़ये का सालन पका दँगी। तुम बताते जाना ूजैसे बनाना हो। थोड़ा-सा दध भी है। हमार गैया को एक बार तदए ने घेरा था। उसे सींग से भगाकर ू ुभाग आयी, तब से तदआ उससे डरता है। ु' ले कन म अकेला नह ं हँ। मेरे साथ एक औरत भी है। ू ' ' तु हार घरवाली होगी? ' ' नह ं, घरवाली तो अभी नह ं है, जान-पहचान क है। ' ' तो म दौड़कर उनको बुला लाती हँ। तुम चलकर छाँह मबैठो। ू ' ' नह ं-नह ं, म बुला लाता हँ। ू ' ' तुम थक गये होगे। शहर का रहैया जंगल म काहे आते ह गे। हम तो जंगली आदमी ह। कनारे ह तो खड़ ह गी। ' जब तक मेहता कुछ बोल, वह हवा हो गयी। मेहता ऊपर चढ़कर पीपल क छाँह म बैठे। इस ःव छ द जीवन से उनके मन म अनुराग उ प न हआ। सामने क पवतमाला दशनु -त व क भाँित अग य और अ य त फै हईु , मानो ान का वःतार कर रह हो, मानो आ मा उस ान को, उस ूकाश को, उस अग यता को, उसके ू य वराट प म देख रह हो। दर के एक बहत ऊँचे िशखर पर एक ू ुछोटा-सा म दर था, जो उस अग यता म बु क भाँित ऊँचा, पर खोया हआु -सा खड़ा था, मानो वहाँ तक पर मारकर प ी वौाम लेना चाहता है और कह ं ःथान नह ं पाता। मेहता इ ह ं वचार म डबे हए ू ुथे क युवती िमस मालती को साथ िलये आ पहँचीु , एक वन-पुंप क भाँित धूप म खली हईु , दसर ूगमले के फूल क भाँित धूप ममुरझायी और िनजी व। मालती ने बे दली के साथ कहा -- पीपल क छाँह बहत अ छ लग रह है याु ? और यहाँ भूख के मारे ूाण िनकले जा रहे ह। युवती दो बड़े-बड़े मटके उठा लायी और बोली -- तुम जब तक यह ं बैठो, म अभी दौड़कर पानी लाती हूँ, फर चू हा जला दँगीू ; और मेरे हाथ का खाओ, तो म एक छन म बो टयाँ सक दँगीू , नह ं, अपने आप सक लेना। हाँ, गेहँ का आटा ूमेरे घर म नह ं है और यहाँ कह ं कोई दकान भी नह ं है क ला दँ। मालती को मेहता पर बोध आ रहा ू ूथा। बोली -- तुम यहाँ य आकर पड़ रहे? मेहता ने िचढ़ाते हए कहा ु -- एक दन ज़रा इस जीवन का आन द भी तो उठाओ। देखो, म के क रो टय म कतना ःवाद है। ' मुझसे म के क रो टयाँ खायी ह न जायँगी, और कसी तरह िनगल भी जाऊँ तो हज़म न ह गी। तु हारे साथ आकर म बहत पछता रह हँ। ु ूराःते-भर दौड़ा के मार डाला और अब यहाँ लाकर पटक दया! ' मेहता ने कपड़े उतार दये थे और केवल एक नीला जाँिघया पहने बैठे हए थे। युवती को मटके ले जाते देखाु , तो उसके हाथ से मटके छ न िलये और कुएँ पर पानी भरने चले। दशन के गहरे अ ययन म भी उ ह ने अपने ःवाः य क र ा क थी और दोन मटके लेकर चलते हए उनक मांसल भुजाएँ और चौड़ छाती और मछलीदार जाँघ कसी यूनानी ुूितमा के सुग ठत अंग क भाँित उनके पु षाथ का प रचय दे रह थीं। युवती उ ह पानी खींचते हए ुअनुराग भर आँख से देख रह थी। वह अब उसक दया के पाऽ नह ं, ौ ा के पाऽ हो गये थे। कुआँ बहत ुगहरा था, कोई साठ हाथ, मटके भार थे और मेहता कसरत का अ यास करते रहने पर भी एक मटका खींचते-खींचते िशिथल हो गये। युवती ने दौड़कर उनके हाथ से रःसी छ न ली और बोली -- तुमसे न

  • खंचेगा। तुम जाकर खाट पर बैठो, म खींचे लेती हँ। मेहता अपने पु ष व का यह अपमान न सह सके। ूरःसी उसके हाथ से फर ले ली और ज़ोर मारकर एक ण म दसरा मटका भी खींच िलया और दोन ूहाथ म दोन मटके िलए आकर झ पड़ के ार पर खड़े हो गये। युवती ने चटपट आग जलायी, लालसर के पंख झुलस डाले। छरे से उसक बो टयाँ बनायीं और चू हे मआग जलाकर मांस चढ़ा दया और चू हे के ुदसरे ऐले पर कढ़ाई मदध उबालने लगी। और मालती भ हचढ़ायेू ू , खाट पर ख न-मन पड़ इस तरह यह द ँय देख रह थी मानो उसके आपरेशन क तैयार हो रह हो। मेहता झोपड़ के ार पर खड़े होकर, युवती के ग ह-कौशल को अनुर नेऽ से देखते हए बोले ु -- मुझे भी तो कोई काम बताओ, म या क ँ ? युवती ने मीठ झड़क के साथ कहा -- तु हकुछ नह ं करना है, जाकर बाई के पास बैठो, बेचार बहत ुभूखी है। दध गरम हआ जाता हैू ु , उसे पला देना। उसने एक घड़े से आटा िनकाला और गँूधने लगी। मेहता उसके अंग का वलास देखते रहे। युवती भी रह-रहकर उ हकन खय से देखकर अपना काम करने लगती थी। मालती ने पुकारा -- तुम वहाँ या खड़े हो? मेरे िसर मज़ोर का दद हो रहा है। आधा िसर ऐसा फटा पड़ता है, जैसे िगर जायगा। मेहता ने आकर कहा -- मालूम होता है, धूप लग गयी है। ' म या जानती थी, तुम मुझे मार डालने के िलए यहाँ ला रहे हो। ' ' तु हारे साथ कोई दवा भी तो नह ं है? ' ' या म कसी मर ज़ को देखने आ रह थी, जो दवा लेकर चलती? मेरा एक दवाओं का ब स है, वह सेमर म है। उफ़! िसर फटा जाता है! ' मेहता ने उसके िसर क ओर ज़मीन पर बैठकर धीरे-धीरे उसका िसर सहलाना शु कया। मालती ने आँख ब द कर लीं। युवती हाथ म आटा भरे, िसर के बाल बखेरे, आँख धुएँ से लाल और सजल, सार देह पसीने म तर, जससे उसका उभरा हआ व साफ़ झलक रहा थाु , आकर खड़ हो गयी और मालती को आँख ब द कये पड़ देखकर बोली -- बाई को या हो गया है? मेहता बोले -- िसर म बड़ा दद है। ' पूरे िसर म है क आधे म? ' ' आधे म बतलाती ह। ' ' दा ओर है, क बा ओर? ' ' बा ओर। ' ' म अभी दौड़ के एक दवा लाती हँ। िघसकर लगाते ह अ छा हो जायगा। ू ' ' तुम इस धूप म कहाँ जाओगी? ' युवती ने सुना ह नह ं। वेग से एक ओर जाकर पहा ड़य म िछप गयी। कोई आधा घंटे बाद मेहता ने उसे ऊँची पहाड़ पर चढ़ते देखा। दर से बलकुल गु ड़याू -सी लग रह थी। मन म सोचा -- इस जंगली छोकर म सेवा का कतना भाव और कतना यावहा रक ान है। लू और धूप म आसमान पर चढ़ चली जा रह है। मालती ने आँख खोलकर देखा -- कहाँ गयी वह कलूट । ग़ज़ब क काली है, जैसे आबनूस का कु दा हो। इसे भेज दो, राय साहब से कह आये, कार यहाँ भेज द। इस त पश ममेरा दम िनकल जायगा। ' कोई दवा लेने गयी है। कहती है, उससे आधा-सीसी का दद बहत ज द आराम हो जाता हैु ! ' ' इनक दवाएँ इ ह ं को फ़ायदा करती ह, मुझे न करगी। तुम तो इस छोकर पर ल ट हो गये हो। कतने ूिछछोरे हो। जैसी ह वैसे फ़ रँते! ' मेहता को कट स य कहने म संकोच न होता था। ु ' कुछ बाततो उसम ऐसी ह क अगर तुमम होतीं, तो

  • तुम सचमुच देवी हो जातीं। ' ' उसक ख़ू बयाँ उसे मुबारक, मुझे देवी बनने क इ छा नह ं है। ' ' तु हार इ छा हो, तो म जाकर कार लाऊँ, य प कार यहाँ आ भी सकेगी, म नह ं कह सकता। ' ' उस कलूट को य नह ं भेज देते? ' ' वह तो दवा लेने गयी है, फर भोजन पकायेगी। ' ' तो आज आप उसके मेहमान ह। शायद रात को भी यह ं रहने का वचार होगा। रात को िशकार भी तो अ छा िमलते ह। ' मेहता ने इस आ ेप से िचढ़कर कहा -- इस युवती के ूित मेरे मन म जो ूेम और ौ ा है, वह ऐसी है क अगर म उसक ओर वासना से देखँू तो आँख फूट जायँ। म अपने कसी घिन िमऽ के िलए भी इस धूप और लू म उस ऊँची पहाड़ पर न जाता। और हम केवल घड़ -भर के मेहमान ह, यह वह जानती है। वह कसी ग़र ब औरत के िलए भी इसी त परता से दौड़ जायगी। म व -ब धु व और व -ूेम पर केवल लेख िलख सकता हूँ, केवल भाषण दे सकता हूँ; वह उस ूेम और याग का यवहार कर सकती है। कहने से करना कह ं क ठन है। इसे तुम भी जानती हो। मालती ने उपहास भाव से कहा -- बस-बस, वह देवी है। म मान गयी। उसके व म उभार है, िनत ब म भार पन है, देवी होने के िलए और या चा हए। मेहता ितलिमला उठे। तुर त उठे, और कपड़े पहने जो सूख गये थे, ब दक़ उठायी और चलने को तैयार ूहए। मालती ने फंुकार मार ु -- तुम नह ं जा सकते, मुझे अकेली छोड़कर। ' तब कौन जायगा? ' ' वह तु हार देवी। ' मेहता हतबु -से खड़े थे। नार पु ष पर कतनी आसानी से वजय पा सकती है, इसका आज उ ह जीवन म पहला अनुभव हआ। वह दौड़ हाँफती चली आ रह थी। वह कलूट युवतीु , हाथ म एक झाड़ िलये हए। ुसमीप जाकर मेहता को कह ं जाने को तैयार देखकर बोली -- म वह जड़ खोज लायी। अभी िघसकर लगाती हूँ; ले कन तुम कहाँ जा रहे हो। मांस तो पक गया होगा, म रो टयाँ सक देती हँ। दोू -एक खा लेना। बाई दध पी लेगी। ठंडा हो जायू , तो चले जाना। उसने िनःसंकोच भाव से मेहता के अचकन क बटन खोल द ं। मेहता अपने को बहत रोके हए थे। जी होता थाु ु , इस गँवा रन के चरण को चूम ल। मालती ने कहा -- अपनी दवाई रहने दो। नद के कनारे, बरगद के नीचे हमार मोटरकार खड़ है। वहाँ और लोग ह गे। उनसे कहना, कार यहाँ लाय। दौड़ हई जा। युवती ने द न नेऽ से मेहता को देखा। इतनी ुमेहनत से बूट लायी, उसका यह अनादर। इस गँवा रन क दवा इ ह नह ं जँची, तो न सह , उसका मन रखने को ह ज़रा-सी लगवा लेतीं, तो या होता। उसने बूट ज़मीन पर रखकर पूछा -- तब तक तो चू हा ठंडा हो जायगा बाईजी। कहो तो रोि◌टयाँ सककर रख दँ। बाबूजी खाना खा लू , तुम दध पी लो और दोन ूजने आराम करो। तब तक म मोटरवाले को बुला लाऊँगी। वह झोपड़ म गयी, बुझी हई आग फर ुजलायी। देखा तो मांस उबल गया था। कुछ जल भी गया था। ज द -ज द रो टयाँ सक , दध गम थाू , उसे ठंडा कया और एक कटोरे म मालती के पास लायी। मालती ने कटोरे के भपन पर मुँह बनाया; ले कन दध याग न सक । मेहता झोपड़ के ार पर बैठकर एक थाली म मांस और रो टयाँ खाने लगे। ूयुवती खड़ पंखा झल रह थी। मालती ने युवती से कहा -- उ ह खाने दे। कह ं भागे नह ं जाते ह। तू

  • जाकर गाड़ ला। युवती ने मालती क ओर एक बार सवाल क आँख से देखा, यह या चाहती ह। इनका आशय या है? उसे मालती के चेहरे पर रोिगय क -सी नॆता और कृित ता और याचना न दखायी द । उसक जगह अिभमान और ूमाद क झलक थी। गँवा रन मनोभाव के पहचानने म चतुर थी। बोली -- म कसी क ल ड नह ं हँ बाईजीू ! तुम बड़ हो, अपने घर क बड़ हो। म तुमसे कुछ माँगने तो नह ं जाती। म गाड़ लेने न जाऊँगी। मालती ने डाँटा -- अ छा, तूने गुःताख़ी पर कमर बाँधी! बता तू कसके इलाक़े म रहती है? ' यह राय साहब का इलाक़ा है। ' ' तो तुझे उ ह ं राय साहब के हाथ हंटर से पटवाऊँगी। ' ' मुझे पटवाने से तु ह सुख िमले तो पटवा लेना बाईजी! कोई रानी-महारानी थोड़ हँ क लःकर भेजनी पड़ेगी। ू ' मेहता ने दो-चार कौर िनगले थे क मालती क यह बातसुनीं। कौर कंठ म अटक गया। ज द से हाथ धोया और बोले -- वह नह ं जायगी। म जा रहा हँ। मालती भी खड़ हो गयी ू -- उसे जाना पड़ेगा। मेहता ने अँमेज़ी म कहा -- उसका अपमान करके तुम अपना स मान बढ़ा नह ं रह हो मालती! मालती ने फटकार बतायी -- ऐसी ह ल डयाँ मद को पस द आती ह, जनम और कोई गुण हो या न हो, उनक टहल दौड़-दौड़कर ूस न मन से कर और अपना भा य सराह क इस पु ष ने मुझसे यह काम करने को तो कहा। वह दे वयाँ ह, श याँ ह, वभिूतयाँ ह। म समझती थी, वह पु ष व तुमम कम-से-कम नह ं है; ले कन अ दर से, संःकार से, तुम भी वह बबर हो। मेहता मनो व ान के प डत थे। मालती के मनोरहःय को समझ रहे थे। ईंया का ऐसा अनोखा उदाहरण उ ह कभी न िमला था। उस रमणी म, जो इतनी मदृ-ुःवभाव, इतनी उदार, इतनी ूस नमुख थी, ईंया क ऐसी ूचंड वाला! बोले -- कुछ भी कहो, म उसे न जाने दँगा। उसक सेवाओं और क पओं का यह पुरःकार देकर म अपनी नज़र म नीच नह ं बन ूसकता। मेहता के ःवर म कुछ ऐसा तेज था क मालती धीरे से उठ और चलने को तैयार हो गयी। उसने जलकर कहा -- अ छा, तो म ह जाती हूँ, तुम उसके चरण क पूजा करके पीछे आना। मालती दो-तीन क़दम चली गयी, तो मेहता ने युवती से कहा -- अब मुझे आ ा दो बहन; तु हारा यह नेह, तु हार िनःःवाथ सेवा हमेशा याद रहेगी। युवती ने दोन हाथ से, सजलनेऽ होकर उ ह ूणाम कया और झोपड़ के अ दर चली गयी।

    दसर टोली राय साहब और ख ना क थी। राय साहब तो अपने उसी रेशमी कुरते और रेशमी चादर म थे। ूमगर ख ना ने िशकार सूट डाटा था, जो शायद आज ह के िलए बनवाया गया था; य क ख ना को असािमय के िशकार से इतनी फ़ुरसत कहाँ थी क जानवर का िशकार करते। ख ना ठंगने, इकहरे, पवान आदमी थे; गेहँआ रंगु , बड़ -बड़ आँख, मुँह पर चेचक के दाग़; बात-चीत म बड़े कुशल। कुछ दर ूचलने के बाद ख ना ने िमःटर मेहता का ज़कर छेड़ दया जो कल से ह उनके म ःतंक म राह क ुभाँित समाये हए थे। बोले ु -- यह मेहता भी कुछ अजीब आदमी है। मुझे तो कुछ बना हआ मालूम होता ुहै। राय साहब मेहता क इएज़त करते थे और उ ह स चा और िनंकपट आदमी समझते थे; पर ख ना से लेन-देन का यवहार था, कुछ ःवभाव से शा त- ूय भी थे, वरोध न कर सके। बोले -- म तो उ ह केवल मनोरंजन क वःतु समझता हँ। कभी उनसे बहस नह ं करता। और करना भी चाहँ तो उतनी व ा ू ू

  • कहाँ से लाऊँ। जसने जीवन के ेऽ म कभी क़दम ह नह ं रखा, वह अगर जीवन के वषय म कोई नया िस ा त अलापता ह तो मुझे उस पर हँसी आती है। मज़े से एक हज़ार माहवार फटकारते ह, न जो न जाँता, न कोई िच ता न बाधा, वह दशन न बघार, तो कौन बघारे? आप िन रहकर जीवन को स पूण बनाने का ःव न देखते ह। ऐसे आदमी से या बहस क जाय। ' मने सुना च रऽ का अ छा नह ं है। ' ' बे फ़ब म च रऽ अ छा रह ह कैसे सकता है। समाज म रहो और समाज के कत य और मयादाओं का पालन करो तब पता चले! ' ' मालती न जाने या देखकर उन पर ल ट हई जाती है। ू ु ' ' म समझता हूँ, वह केवल तु ह जला रह है। ' ' मुझे वह या जलायगी। बेचार । म उ ह खलौने से एयादा नह ं समझता। ' ' यह तो न कहो िमःटर ख ना, िमस मालती पर जान तो देते हो तुम। ' ' य तो म आपको भी यह इलज़ाम दे सकता हँ। ू ' ' म सचमुच खलौना समझता हँ। आप उ ह ूितमा बनाये हए ह। ू ु ' ख ना ने ज़ोर से क़हक़हा मारा, हालाँ क हँसी क कोई बात न थी! ' अगर एक लोटा जल चढ़ा देने से वरदान िमल जाय, तो या बुरा है। ' अबक राय साहब ने ज़ोर से क़हक़हा मारा, जसका कोई ूयोजन न था। ' तब आपने उस देवी को समझा ह नह ं। आप जतनी ह उसक पूजा करगे, उतना ह वह आप से दर भागेगी। जतना ह दर भािगयेगाू ू , उतना ह आपक ओर दौड़ेगी। ' ' तब तो उ ह आपक ओर दौड़ना चा हए था। ' ' मेर ओर! म उस रिसक-समाज से बलकुल बाहर हँ िमःटर ख नाू , सच कहता हँ। मुझम जतनी बुू , जतना बल ह वह इस इलाक़े के ूब ध म ह ख़च हो जाता है। घर के जतने ूाणी ह, सभी अपनी-अपनी धुन म मःत; कोई उपासना म, कोई वषय-वासना म। कोऊ काह म मगनू , कोऊ काह म मगन। ूऔर इन सब अजगर को भआय देना मेरा काम ह कत य है। मेरे बहत से ता लुक़ेदार भाई भोगु - वलास करते ह, यह सब म जानता हँ। मगर वह लोग घर फँूककर तमाशा देखते ह। क़रज़ का बोझ िसर पर लदा ूजा रहा ह रोज़ डिमयाँ हो रह ह। जससे लेते ह, उसे देना नह ं जानते, चार तरफ़ बदनाम। म तो ऐसी ज़ दगी से मर जाना अ छा समझता हँ। मालूम नह ंू , कस संःकार से मेर आ मा म ज़रा-सी जान बाक़ रह गयी, जो मुझे देश और समाज के ब धन म बाँधे हए है। स यामहु -आ दोलन िछड़ा। मेरे सारे भाई शराब-क़बाब म मःत थे। म अपने को न रोक सका। जेल गया और लाख पए क ज़ेरबार उठाई और अभी तक उसका तावान दे रहा हँ। मुझे उसका पछतावा नह ं है। बलकुल नह ं। मुझे उसका गव है। म ूउस आदमी को आदमी नह ं समझता, जो देश और समाज क भलाई के िलए उ ोग न करे और बिलदान न करे। मुझे या अ छा लगता है क िनज व कसान का र चूसूँ और अपने प रवारवाल क वासनाओं क तिृ के साधन जुटाऊँ; मगर क ँ या? जस यवःथा म पला और जया, उससे घ णा होने पर भी उसका मोह याग नह ं सकता और उसी चरखे म रात- दन पड़ा रहता हँ क कसी तरह इएज़तू -आब बची रहे, और आ मा क ह या न होने पाये। ए◌ेसा आदमी िमस मालती या, कसी भी िमस के पीछे नह ं पड़ सकता, और पड़े तो उसका सवनाश ह सम झये। हाँ, थोड़ा-सा मनोरंजन कर लेना दसर बात है। ूिमःटर ख ना भी साहसी आदमी थे, संमाम म आगे बढ़नेवाले। दो बार जेल हो आये थे। कसी से दबना

  • न जानते थे। ख र न पहनते थे और ६ांस क शराब पीते थे। अवसर पड़ने पर बड़ -बड़ तकलीफ़ झेल सकते थे। जेल म शराब छई तक नह ंु , और ए. लास म रहकर भी सी. लास क रो टयाँ खाते रहे, हालाँ क, उ ह हर तरह का आराम िमल सकता था; मगर रण- ेऽ म जानेवाला रथ भी तो बना तेल के नह ं चल सकता। उनके जीवन म थोड़ -सी रिसकता ला ज़मा थी। बोले -- आप सं यासी बन सकते ह, म तो नह ं बन सकता। म तो समझता हूँ, जो भोगी नह ं ह वह संमाम म भी पूरे उ साह से नह ं जा सकता। जो रमणी से ूेम नह ं कर सकता, उसके देश-ूेम म मुझे व ास नह ं। राय साहब मःुकराये -- आप मुझी पर आवाज़ कसने लगे। ' आवाज़ नह ं ह त व क बात है। ' ' शायद हो। ' ' आप अपने दल के अ दर पैठकर दे खए तो पता चले। ' ' मने तो पैठकर देखा ह और म आपको व ास दलाता हूँ, वहाँ और चाहे जतनी बुराइयाँ ह , वषय क लालसा नह ं है। ' ' तब मुझे आपके ऊपर दया आती है। आप जो इतने दखी और िनराश और िच तत हु , इसका एकमाऽ कारण आपका िनमह है। म तो यह नाटक खेलकर रहँगाू , चाहे दःखा त ह य न होु ! वह मुझसे मज़ाक़ करती ह दखाती है क मुझे तेर परवाह नह ं है; ले कन म ह मत हारनेवाला मनुंय नह ं हँ। म अब तक ूउसका िमज़ाज नह ं समझ पाया। कहाँ िनशाना ठ क बैठेगा, इसका िन य न कर सका। ' ' ले कन वह कंुजी आपको शायद ह िमले। मेहता शायद आपसे बाज़ी मार ले जायँ। ' एक हरन कई हरिनय के साथ चर रहा था, बड़े सींग वाला, बलकुल काला। राय साहब ने िनशाना बाँधा। ख ना ने रोका -- य ह या करते हो यार? बेचारा चर रहा ह चरने दो। धूप तेज़ हो गयी ह आइए कह ं बैठ जायँ। आप से कुछ बात करनी ह। राय साहब ने ब दक़ चलायीू ; मगर हरन भाग गया। बोले -- एक िशकार िमला भी तो िनशाना ख़ाली गया। ' एक ह या से बचे। ' ' आपके इलाक़े म ऊख होती है? ' ' बड़ कसरत से। ' ' तो फर य न हमारे शुगर िमल म शािमल हो जाइए। हःसे धड़ाधड़ बक रहे ह। आप एयादा नह ं एक हज़ार हःसे ख़र द ल? ' ' ग़ज़ब कया, म इतने पए कहाँ से लाऊँगा? ' ' इतने नामी इलाक़ेदार और आपको पय क कमी! कुछ पचास हज़ार ह तो होते ह। उनम भी अभी २५ फ़ सद ह देना है। ' ' नह ं भाई साहब, मेरे पास इस वईत बलकुल पए नह ं ह। ' ' पए जतने चाह, मुझसे ली जए। बक आपका है। हाँ, अभी आपने अपनी ज़ दगी इंँयोड न करायी होगी। मेर क पनी म एक अ छ -सी पािलसी ली जए। सौ-दो सौ पए तो आप बड़ आसानी से हर मह ने दे सकते ह और इक ठ रक़म िमल जायगी -- चालीस-पचास हज़ार। लड़क के िलए इससे अ छा ूब ध आप नह ं कर सकते। हमार िनयमावली दे खए। हम पूण सहका रता के िस ा त पर काम करते ह। दझतर और कमचा रय के ख़च के िसवा नफ़े क एक पाई भी कसी क जेब म नह ं जाती। आपको आ य होगा क इस नीित से क पनी चल कैसे रह है। और मेर सलाह से थोड़ा-सा ःपेकुलेशन का काम भी शु कर

  • द जए। यह जो आज सैकड़ करोड़पित बने हए हु , सब इसी ःपेकुलेशन से बने ह। ई, श कर, गेहूँ, रबर कसी जंस का स टा क जए। िमनट म लाख का वारा- यारा होता है। काम ज़रा अटपटा है। बहत से ुलोग ग चा खा जाते ह, ले कन वह , जो अनाड़ ह। आप जैसे अनुभवी, सुिश त और दर देश लोग के ूिलए इससे एयादा नफ़े का काम ह नह ं। बाज़ार का चढ़ाव-उतार कोई आ कःमक घटना नह ं। इसका भी व नान है। एक बार उसे ग़ौर से देख ली जए, फर या मजाल क धोखा हो जाय। ' राय साहब क पिनय पर अ व ास करते थे, दो-एक बार इसका उ ह कड़वा अनुभव हो भी चुका था, ले कन िमःटर ख ना को उ ह ने अपनी आँख से बढ़ते देखा था और उनक कायद ता के क़ायल हो गये थे। अभी दस साल पहले जो य बक म लक था, वह केवल अपने अ यवसाय, पु षाथ और ूितभा से शहर म पुजता है। उसक सलाह क उपे ा न क जा सकती थी। इस वषय म अगर ख ना उनके पथ-ूदशक हो जायँ, तो उ ह बहत कुछ कामयाबी हो सकती है। ए◌ेसा अवसर य छोड़ा जाय। तरहु -तरह के ू करते रहे। सहसा एक देहाती एक बड़ -सी टोकर म कुछ जड़, कुछ प याँ, कुछ फल िलये जाता नज़र आया। ख ना ने पूछा -- अरे, या बेचता है? देहाती सकपका गया। डरा, कह ं बेगार म न पकड़ जाय। बोला --कुछ तो नह ं मािलक! यह घास-पात है। ' या करेगा इनका? ' ' बेचँूगा मािलक! जड़ -बूट है। ' ' कौन-कौन सी जड़ बूट ह बता? ' देहाती ने अपना औषधालय खोलकर दखलाया। मामूली चीज़ थीं जो जंगल के आदमी उखाड़कर ले जाते ह और शहर म अ ार के हाथ दो-चार आने म बेच आते ह। जैसे मकोय, कंघी, सहदेईया, कुकर धे, धतूरे के बीज, मदार के फूल, करजे, घमची आ द। हर-एक चीज़ दखाता था और रटे हए श द म उसके गुण भी बयान करता जाता था। यह मकोय है सरकारु ! ताप हो, म दा न हो, ित ली हो, धड़कन हो, शूल हो, खाँसी हो, एक खोराक म आराम हो जाता है। यह धतूरे के बीज ह मािलक, ग ठया हो, बाई हो ...। ख ना ने दाम पूछा -- उसने आठ आने कहे। ख ना ने एक पया फक दया और उसे पड़ाव तक रख आने का ह म दया। ग़र ब ने मुँहु -माँगा दाम ह नह ं पाया, उसका दगुना ुपाया। आशीवाद देता चला गया। राय साहब ने पूछा -- आप यह घास-पात लेकर या करगे? ख ना ने मुःकराकर कहा -- इनक अश फ़याँ बनाऊँगा। म क िमयागर हँ। यह आपको शायद नह ं मालूम। ू' तो यार, वह म ऽ हम िसखा दो। ' ' हाँ-हाँ, शौक़ से। मेर शािगद क जए। पहले सवा सेर ल ड लाकर चढ़ाइएू , तब बताऊँगा। बात यह है क मेरा तरह-तरह के आदिमय से साबक़ा पड़ता है। कुछ ए◌ेसे लोग भी आते ह, जो जड़ -बूि◌टय पर जान देते ह। उनको इतना मालूम हो जाय क यह कसी फ़क र क द हई बूट ह फर आपक ख़ुशामद करगेु , नाक रगड़गे, और आप वह चीज़ उ ह दे द, तो हमेशा के िलए आपके ऋणी हो जायँगे। एक पए म अगर दस-बीस बु ओं पर एहसान का नमदा कसा जा सकेु , तो या बुरा है। ज़रा से एहसान से बड़े-बड़े काम िनकल जाते ह। राय साहब ने कुतूहल से पूछा -- मगर इन बू टय के गुण आपको याद कैसे रहगे? ख ना ने क़हक़हा मारा -- आप भी राय साहब! बड़े मज़े क बात करते ह। जस बूट म जो गुण चाहे बता द जए, वह आपक िलयाक़त पर मुनहसर है। सेहत तो पए म आठ आने व ास से होती है। आप जो इन बड़े-बड़े अफ़सर को देखते ह, और इन ल बी पँूछवाले व ान को, और इन रईस को, ये सब अ ध व ासी होते ह। म तो वनःपित-शा के ूोफ़ेसर को जानता हूँ, जो कुकर धे का नाम भी नह ं

  • जानते। इन व ान का मज़ाक़ तो हमारे ःवामीजी ख़ूब उड़ाते ह। आपको तो कभी उनके दशन न हए ुह गे। अबक आप आयगे, तो उनसे िमलाऊँगा। जब से मेरे बग़ीचे म ठहरे ह, रात- दन लोग का ताँता लगा रहता है। माया तो उ ह छ भी नह ं गयी। केवल एक बार दध पीते ह। ऐसा व ान महा मा मने ू ूआज तक नह ं देखा। न जाने कतने वष; हमालय पर तप करते रहे। पूरे िस पु ष ह। आप उनसे अवँय द ा ली जए। मुझे व ास ह आपक यह सार क ठनाइयाँ छम तर हो जायँगी। आपको देखते ह ूआपका भूत-भ वंय सब कह सुनायगे। ऐसे ूस नमुख ह क देखते ह मन खल उठता है। ता जुब तो यह है क ख़ुद इतने बड़े महा मा ह; मगर सं यास और याग िम दर और मठ, स ूदाय और प थ, इन सबको ढ ग कहते ह, पाखंड कहते ह, ढ़य के ब धन को तोड़ो और मनुंय बनो, देवता बनने का ख़याल छोड़ो। देवता बनकर तुम मनुंय न रहोगे। राय साहब के मन म शंका हई। महा माओं म उ ह भी वह ुव ास था, जो ूभुता-वाल म आम तौर पर होता है। दखी ूाणी को आ मिच तन म जो शा त िमलती ुहै। उसके िलए वह भी लालाियत रहते थे। जब आिथक क ठनाइय से िनराश हो जाते, मन म आता, संसार से मुँह मोड़कर एका त म जा बैठ और मो क िच ता कर। संसार के ब धन को वह भी साधारण मनुंय क भाँित आ मो नित के माग क बाधाएँ समझते थे और इनसे दर हो जाना ह उनके जीवन का ूभी आदश था; ले कन सं यास और याग के बना ब धन को तोड़ने का और या उपाय है? ' ले कन जब वह सं यास को ढ ग कहते ह, तो ख़ुद य सं यास िलया है? ' ' उ ह ने सं यास कब िलया है साहब, वह तो कहते ह -- आदमी को अ त तक काम करते रहना चा हए। वचार-ःवात य उनके उपदेश का त व है। ' ' मेर समझ म कुछ नह ं आ रहा है। वचार-ःवात य का आशय या है? ' ' समझ म तो मेरे भी कुछ नह ं आता, अबक आइए, तो उनसे बात ह । वह ूेम को जीवन का स य कहते ह। और इसक ऐसी सु दर या या करते ह क मन मु ध हो जाता है। ' ' िमस मालती को उनसे िमलाया या नह ं? ' ' आप भी द लगी करते ह। मालती को भला इनसे या िमलता । । । ' वा य पूरा न हआ था क वह ुसामने झाड़ म सरसराहट क आवाज़ सुनकर च क पड़े और ूाण-र ा क ूेरणा से राय साहब के पीछे आ गये। झाड़ म से एक तदआ िनकला और म द गित से सामने क ओर चला। राय साहब ने ब दक़ ु ूउठायी और िनशाना बाँधना चाहते थे क ख ना ने कहा -- यह या करते ह आप? उवाहमउवाह उसे छेड़ रहे ह। कह ं लौट पड़े तो? ' लौट या पड़ेगा, वह ं ढेर हो जायगा। ' ' तो मुझे उस ट ले पर चढ़ जाने द जए। म िशकार का ऐसा शौक़ न नह ं हँ। ू ' ' तब या िशकार खेलने चले थे? ' ' शामत और या। ' राय साहब ने ब दक़ नीचे कर ली। ू ' बड़ा अ छा िशकार िनकल गया। ए◌ेसे अवसर कम िमलते ह। ' ' म तो अब यहाँ नह ं ठहर सकता। ख़तरनाक जगह है। ' ' एकाध िशकार तो मार लेने द जए। ख़ाली हाथ लौटते शम आती है। ' ' आप मुझे कृपा करके कार के पास पहँचा द जएु , फर चाहे तदए का िशकार क जए या चीते का। ु ' ' आप बड़े डरपोक ह िमःटर ख ना, सच। '

  • ' यथ म अपनी जान ख़तरे म डालना बहादर नह ं है। ु ' ' अ छा तो आप ख़ुशी से लौट सकते ह। ' ' अकेला? ' ' राःता बलकुल साफ़ है। ' ' जी नह ं। आपको मेरे साथ चलना पड़ेगा। ' राय साहब ने बहत समझायाु ; मगर ख ना ने एक न मानी। मारे भय के उनका चेहरा पीला पड़ गया था। उस वईत अगर झाड़ म से एक िगलहर भी िनकल आती, तो वह चीख़ मारकर िगर पड़ते। बोट -बोट काँप रह थी। पसीने से तर हो गये थे! राय साहब को लाचार होकर उनके साथ लौटना पड़ा। जब दोन आदमी बड़ दर िनकल आयेू , तो ख ना के होश ठकाने आये। बोले -- ख़तरे से नह ं डरता; ले कन ख़तरे के मुँह म उँगली डालना हमाक़त है। ' अजी जाओ भी। ज़रा-सा तदआ देख िलयाु , तो जान िनकल गयी। ' ' म िशकार खेलना उस ज़माने का संःकार समझता हूँ, जब आदमी पशु था। तब से संःकृित बहत आगे ुबढ़ गयी है। ' ' म िमस मालती से आपक क़लई खोलूँगा। ' ' म अ हंसावाद होना ल जा क बात नह ं समझता। ' ' अ छा, तो यह आपका अ हंसावाद था। शाबाश! ' ख ना ने गव से कहा -- जी हाँ, यह मेरा अ हंसावाद था। आप बु और शंकर के नाम पर गव करते ह और पशुओं क ह या करते ह, ल जा आपको आनी चा हए, न क मुझे। कुछ दर दोन फर चुपचाप ूचलते रहे। तब ख ना बोले -- तो आप कब तक आयँगे? म चाहता हूँ, आप पािलसी का फ़ाम आज ह भर द और श कर के हःस का भी। मेरे पास दोन फ़ाम भी मौजूद ह। राय साहब ने िच तत ःवर म कहा -- ज़रा सोच लेने द जए। ' इसम सोचने क ज़ रत नह ं। ' तीसर टोली िमरज़ा खुशद और िमःटर तंखा क थी। िमरज़ा खुशद के िलए भूत और भ वंय सादे काग़ज़ क भाँित था। वह वतमान म रहते थे। न भूत का पछतावा था, न भ वंय क िच ता। जो कुछ सामने आ जाता था, उसम जी-जान से लग जाते थे। िमऽ क मंडली म वह वनोद के पुतले थे। क िसल म उनसे एयादा उ साह मे बर कोई न था। जस ू के पीछे पड़ जाते, िमिनःटर को ला देते। कसी के साथ -- रयायत करना नह ं जानते थे। बीच-बीच म प रहास भी करते जाते थे। उनके िलए आज जीवन था, कल का पता नह ं। ग़ुःसेवर भी ऐसे थे क ताल ठ ककर सामने आ जाते थे। नॆता के सामने दंडवत करते थे; ले कन जहाँ कसी ने शान दखायी और यह हाथ धोकर उसके पीछे पड़े। न अपना लेना याद रखते थे, न दसर का देना। शौक़ था ूशायर का और शराब का। औरत केवल मनोरंजन क वःतु थी। बहत दन हए दय का दवाला िनकाल ु ुचुके थे। िमःटर तंखा दाँव-पच के आदमी थे, सौदा पटाने म, मुआमला सुलझाने म, अड़ंगा लगाने म, बालू से तेल िनकालने म, गला दबाने म, दम झाड़कर िनकल जाने म बड़े िस हःत। क हये रेत म नाव चला ुद, प थर पर दब उगा द। ता लुक़ेदार को महाजन से क़रज़ दलानाू , नयी क पिनयाँ खोलना, चुनाव के अवसर पर उ मेदवार खड़े करना, यह उनका यवसाय था। ख़ासकर चुनाव के समय उनक तक़द र

  • चमकती थी। कसी पोढ़े उ मेद-वार को खड़ा करते, दलोज़ान से उसका काम करते और दस-बीस हज़ार बना लेते। जब काँमेस का ज़ोर था काँमेस के उ मेदवार के सहायक थे। जब सा ूदाियक दल का ज़ोर हआु , तो ह दसभा क ओर से काम करने लगेू ; मगर इस उलट-फेर के समथन के िलए उनके पास ऐसी दलील थीं क कोई उँगली न दखा सकता था। शहर के सभी रईस,