आमुख · 2019-05-13 · आमुख भाषा कसी भी मानव समाज...

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  • लेखकः वी. रंगनाथनअनुवादः राधे याम गु ताडजाइन एवं व यासः दनेश मेहतासहयोगः मक द ता, आशीष सवडकरकाशकः भौ तक अनसुंधान योगशाला, अहमदाबाद

    मु तः

  • आमखुभाषा कसी भी मानव समाज के लए अ यंत वाभा वक और सहज

    यव था है। जैसे देह और ाण और अि न और काश का अ यो या तसंबंध है वैसे ह भाषा और समाज का संबंध अटूट और अ नवाय है।भाषा वह न समाज और समाज वह न भाषा क क पना भी नह ं क जासकती है। कोई भी समाज भाषा के मा यम से ह बनता है, बढ़ता है औरवक सत होता है।

    इसी वचारधारा का पोषण करते हुए सा ह य संरचना क एक अहमभू मका कसी भी सं था म एक ऊजा ोत क तरह होती है। वगत वषम तकनीक , ौ यो गक और वै ा नक सा ह य का हदं म लेखन औरकाशन म अभतूपवू वृ हुई है। इसी दशा म सं था के कसी सद यवारा उनके वचार को लेखनीब करना और उ ह सभी सद य के साथ

    साझा करना एक सराहनीय कदम है।

    ी वी. रंगनाथन से पी.आर.एल. के अ धकांश टॉफ सद य प र चतह। उ ह ने इस पु तक के मा यम से कायालय म अपने अनभुव तथाअपने नजी जीवन पर इसके भाव का बहुत सुंदर च ण कया है।

    ऐसे कई सद य ह िजनके वारा लखी गई पु तक या आ मकथा सेहम अपने कायालय से अवगत तथा लाभाि वत भी हो सकते ह। मेराऐसा मानना है क इस तरह के काशन को ह द म भी का शत कयाजाना चा हए। ऐसे ह एक यास को सहज सरल हदं मं आपके सम

    ततु कया जा रहा है। यह पु तक मूल प से अं ेजी म लखी गईहै और इसका अनुवाद पी.आर.एल. म ह कया गया है ता क वभाग

  • क राजभाषा नी त को बढ़ावा मले। अनुवाद म लेखक के मूल भावनाओंतथा पाठक के त इसे सरल प म पहंुचाने का वशषे यान रखा गया है।

    आशा है क अ भ यि त क इस सरलतम ोत को आगे बढ़ाने मभ व य म भी पाठक का साथ मलता रहेगा और अ य सद य भी इसतरह क पु तक लखने के लए े रत ह गे।

    अ नल भार वाजनदेशक

  • वषय सूची

    तावना 1

    कुछ श द.. 4

    आरं भक वष 8

    पीआरएल म मेरा पनुः वेश 16

    ो. व म साराभाई - एक महान यि त व के धनी! 27

    पीआरएल म म और सहकम 31

    पासपोट और वदेशी या ा 45

    ो. देव लाल, एफ.आर.एस 53

    पीआरएल म व ान 62

    शासन म घटनाएं 68

    खेल और पुर कार 81

    हदं समारोह 90

    पीआरएल म सां कृ तक काय म 93

    प रवार 95

    गुजरात और गुजराती 99

    आभार 104

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    तावना

    जैसे-जैसे जीवन आगे बढ़ता है, वैसे-वैसे समय बीतता रहता है, घटनाएंघटती रहती ह और अनभुव हा सल होते जाते ह। सब कुछ बेतरतीब ढंगसे चलता रहता है; िजसके साथ होते ह आन द के ण और नराशा कअव ध, सभी समान मा ा म रहते ह। नौकर म हमेशा कुछ काम करनाहोता है, ल य हा सल करना होता है, आपात ि थ तय से नपटना होताहै, हम चाहे वह कतना भी ेरणादायक हो या न हो, नरथक हो यासाथक, ासं गक हो या अ ासं गक। या ा के इस चरण के दौरान, हमअ त आव यक काम करते ह और मह वपणू चीज भ व य के लए छोड़देते ह। और, इनका सामना करते समय, हम पता ह नह ं चलता कसमय क ग त कतनी तेज होती है और हम पछले वष के युवाकाल सेहाल क प रप वता और व र ठ नाग रक क वतमान ि थ त तक पहंुचादेती है। इस भागदौड़ म, शायद ह हम चतंन और मनन करने के लएसमय मल पाता है।

    रंगनाथन के वारा यह “वृ तांत” अपने पीआरएल के दन को फर सेजीने और मनन करने का एक यास है। उ ह ने जो लखा और िजसतर के से लखा, उसने मेरे मन को छू लया है। उनके यि त व - एकसकारा मक ि टकोण, हंसमुख और खशुी, जीवन के लए उ साह क शैलम लखे पीआरएल म उनका यह या ा वृ तांत मझुे पीआरएल, इसककाय सं कृ त, एक समुदाय के लोकाचार, इसके भोलेपन, अपनी सादगी

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    और प रवार के अहसास के भतूकाल म ले गया। इसने मझुे यि तगतसंबंध, तालमेल और एकजटुता के दन क याद ताजा कर द जो तबअि त व म थे। पहले हम अपने सहयो गय से मलते रहते थे, और अबतभी मलते ह जब इंटरनेट काम नह ं कर रहा होता है। तब हम उनमअचानक अ छे लोग दखाई देते ह। रंगा ऐसे अ छे लोग क संगत केअपने दन को वषाद और आदर के साथ याद करते ह। उनके बारे मसोचना भी ताजगी देता है!

    कुछ समय पहले जब रंगा ने मुझे अपने आलेख क एक त पढ़नेऔर संपा दत करने के लए द थी, तो मुझे लगा था क मुझे इसकेलए काफ समय देना होगा (जैसा म अ सर यहां और अ य जगह परसहयो गय क वै ा नक पांडु ल पय के साथ करता हंू)। इस लए म इसकोटालता रहा और एक शाम मने इसे शु कया। ले कन जब मने इसे शुकया, तो म इसे लगातार पढ़ता रहा और मुझे समय का यान ह नह ंरहा। यह इतनी अ छ तरह से लखा गया था क मुझे एक भी श द कोसंपा दत नह ं करना पड़ा और उनक खूबसरूत यि तगत शैल के कारण,मझुे इसे पढ़ना बहुत अ छा लगा। म तब और अ धक भावकु हो गयाजब अपने सभी सहयो गय के बीच उ ह ने मझुे तावना लखने के लएकहकर आ चयच कत कर दया। उनके मेरे त इस व वास को म जीवनभर याद करता रहंूगा। मेरे लए, यह अपने सहयोगी को स मान देने काअवसर था, जो मेरे साथ प रप व हुए और मझुे 37 साल के सखुद औरत पर सौहादपूण ण दये। मझुे याद आया जब हम एक साथ सगरेटपीते थे और मझुे उनक अ छ सगरेट क कमजोर अभी भी याद है।वे उन कुछ ‘बु मान’ लोग म थे, जो सेल फोन नामक व तु से परेशाननह ं होना चाहते थे, भले ह वह हमारे लए कतना भी नराशाजनक था!

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    पीआरएल म, जैसा हर जगह होता है, सेवा व तार क कुछ छटपुटघटनाओं को छोड़कर, ज म त थ से ह सेवा नविृ त क तार ख तय कजाती है। ऐसी नि चत चीज के लए, हम अ सर पाते ह क हम इसि थ त के लए तैयार नह ं ह। रंगा ने दखाया क वे इसके लए तैयारह और यहां तक क नई चीज करने के लए भी उ सकु ह। वे “जीवनसेवा नविृ त से शु होता है” के तीक ह, ले कन म उ ह चेतावनी देतेहुए कहता हंू क सेवा नविृ त के साथ परेशानी यह है क आपको एकदन क भी छु ी नह ं मलती! मझुे यक न है क वे अपनी सेवा नविृ तके बारे म उसी तरह से सोच रहे ह जैसा कसी ने बहुत सुंदर ढंग से कहाथा, “और सेवा नविृ त मेरे लए स दय क खोज है। मेरे पास मेरे ब चके ब च , मेर प नी, बाहर लगे पेड़ और अपने खुद के सामने के दरवाजेक सुंदरता को नहारने के लए पहले कभी समय नह ं था।”

    म रंगनाथन को एक व थ कायकता, एक अ छे सहयोगी और जोकुछ भी हम चाहते थे, उसम हमार सहायता करने के लए ध यवाददेता हंू। म इस मौके पर रंगा और उनके प रवार को शुभकामना देता हंू,तदलुकर क शैल म अपनी पहल से चरु पूरा करने के बाद, नई अ तुनई पार के लए गाड लेते हुए, और उनके अ छे वा य, यि तगतशां त और सखुी जीवन क कामना करता हंू। तथा त!ु

    ए.के. सघंवी

    ोफेसर ए.के. सघंवी एक उ कृ ट वै ा नक, जे.सी. बोस नेशनल फेलो, अ य ,गुजरात साइंस अकादमी, और एफएनए, एफएएससी, एफ एनएएससी,

    एफट ड यएूएस, एफजीएस (लंदन) ह।

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    कुछ श द..ये पीआरएल म कुछ सहयो गय , दो त और व र ठ अ धका रयके साथ मेरे यि तगत अनभुव ह; मने उ ह अपने कुछ वचारसे भा वत कया है। ये भावनाएं और वचार हर कसी केलए या कई अ य लोग के लए एक से नह ं हो सकते।मेरा इरादा पीआरएल म मेरे सहयो गय और व र ठ लोगके त अपनी भावनाओं को य त करना है, जो यादातरआभारोि तयां ह; कसी को भी दरू-दरू तक चोट पहँुचाना नह ंहै।

    मेरे लखने के लए पहले यास को थोड़ा अ धक दलच पबनाने के लए मने बीच-बीच म कुछ दलच प उ रणसि म लत कए ह। पढ़ और लु फ उठाएं!

    वी. रंगनाथन

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    “हवाई जहाज क तरह जो भी हवा क तुलना मभार है, वह उड़ नह ं सकता - को शश करनापरू तरह से पागलपन है” - लॉड केि वन,रॉयल साइंस सोसाइट , लंदन, 1895

    मने न य याओं से नवृ त होकर सबुह अपनी प नी सेकहा, “ या कॉफ तैयार है?” मुझे उ तर मला क “म आ रहहंू, कृपया ती ा कर”। मने कुछ बड़बड़ाहट भी सुनी, ले कनमने इसे नजरअंदाज कर दया। मेरे नय मत योगासन अ यासके बाद और अखबार पढ़ने के बाद, म बाथ म म गया। मेरमां ने कहा, “म पहले नान क ं गी, फर तमु करना।” अजीबबात थी, ले कन म मान गया। नान और तैयार होने के बाद,म खाने क मेज पर ना ते के लए आ गया, जो असामा यप से, वहां नह ं था। “ना ता तैयार य नह ं है?” “ज दया है, थोड़ी देर ती ा कर, मेरे पास केवल दो हाथ ह” मेर

    प नी ने उ तर दया। फर से अजीब लगा, ले कन म चपु रहा।

    ना ते के बाद, मने कायालय जाने क तैयार शु कर द ,तब मेर प नी ने पूछा, “यह या है, आप कहां जा रहे ह?”“ य , अपने कायालय म रोजाना क तरह” मने जवाब दया।प नी ने कहा, “ या आपको याद नह ं है क कल ह आप

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    अपने कायालय से सेवा नवृ त हुए ह”? “ओह, म परू तरहसे भलू गया था” मने उ तर दया और अपने जतूे नकालनेके लए कुस पर बैठ गया। “अपना समय काटने के लए,आप इन सि जय को साफ क िजए और काट द िजए” मेरप नी ने कहा और वचारशील होने क को शश क ।

    “दे खए, पताजी, आप आज से वतं ह, है ना?” मेर बेटने मझुसे कहा। मझुे ज द ह पता चल गया क उसका यहकहना सामा य नह ं था। “ या आप मेर इस से को ेसकर दगे? मुझे अपने कायालय के लए देर हो रह है।” इससमय तक म अपनी नींद से जाग गया था। ओह, ये सबएक सपना था - ले कन कौन जानता है, वे आने वाले दनम सच हो सकते ह।

    म 31 अ टूबर, 2014 को पीआरएल से रटायर हो रहाहंू। म इस नबंध को सेवा नविृ त पर एक दलच प उ रणके साथ शु करना चाहता हंू िजसे मने पढ़ा था। “जब कोईयि त रटायर होता है, तो उसक प नी को उसका प तदगुुनी मा ा म मलता है ले कन आमदनी आधी हो जाती है!”सौभा य से, मुझे अपनी पशन मलेगी। पीआरएल म मेरे कईदो त के वपर त, िज ह ने दभुा य से कं यटुर ॉ वडट फंड

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    का वक प चनुा है और फर बाद म इसका उ ह बहुत दखुहुआ। ज द ह मझुे पीआरएल से रटायर कर दया जाएगा।ले कन अभी तक म थका नह ं हंू य क मझुे लगता है कम एक नए उ साह के उ साह के साथ अपनी िजंदगी फरसे शु क ं गा ...

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    ांसीसी सेना के रणनी तकार, माशल फ डनडफ़ॉच ने कहा था: “हवाई जहाज सबसे अ छेअमीर खबूसरूत खलौने ह। वे सै य उ े य केलए कभी भी उपयोगी नह ं हो सकत”े

    आरं भक वष

    मझुे आज भी ठ क से याद है उस दन 29 अ टूबर था( य क यह तार ख मेर शाद क तार ख भी है) जब मने1974 म पीआरएल म भत होने के लए टाइ पगं टे ट औरफर सा ा कार दया था जहां से पीआरएल के साथ मेरार ता बना। न केवल म पीआरएल म शा मल हुआ, बि कबाद म पीआरएल भी मेरे जीवन से जड़ु गया। हालां क वपर तम म! मझुे यक न है क आप वि मत हो रहे ह गे क

    रंगनाथन के साथ पीआरएल कैसे जड़ुा था? म समझाता हंू।जब मने शाद क , L मुझसे जड़ुी (ल लता, मेर प नी), जबम पता बना, मुझे R मला (बेटा, ऋ षकुमार), उसके बादP (बेट ी त)।

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    मझुे पीआरएल के बारे म कुछ भी पता नह ं था, न केवलपीआरएल के बारे म बि क मझुे कसी के बारे म भी कुछपता नह ं था। िजस रा य म म पैदा हुआ था, उस रा य मजहां प रि थ तय ने मुझे ला खड़ा कया था, वहां के लोग ,सं कृ त, भाषा, भोजन - इन सभी और जो कुछ भी आपमझुसे पछेू, मझुे कुछ पता नह ं था।

    जब म अहमदाबाद आया था, तो म घर पर केवल हाफपट पहनता था और मने नौकर ढंूढने के व श ट उ े य एकफुल पट (पतलनू) सलाई थी! म पीआरएल म पहल फुलपट पहनकर आया, जो वा तव म टखने तक लंबी थी औरम हवाई च पल पहने था जो हर कदम के साथ टप-टप कआवाज कर रह थी। म ऐसे रा य म पला-बढ़ा था जो हदंके खलाफ जोरदार आंदोलन करता रहा था, तो वाभा वकहै क म हमार राज भाषा - ह द नह ं जानता था। तो उससमय म यह कर सकता था क म बोलचाल क हदं सीखनाशु क ं ; प ट प से गुजराती रंग के साथ।

    हम चे नई, त काल न म ास म, कुलनाम का इ तेमालनह ं करते ह ले कन वं य पवतमाला के उ तर के लोग केवपर त हमारे पता के नाम का उपयोग करते ह। पीआरएल

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    और बक के लए, म सफ वी. रंगनाथन हंू जब क मेरपढ़ाई और पासपोट के लए मुझे अपने कुलनाम का उपयोगकरना पड़ा। गुजरात के लए नये नवागंतकु होने के कारणमझुे थानीय था के अनुसार अपना नाम इ तमेाल करनापड़ा और मेरा नाम मेरे पासपोट और नातक माणप मआयंगर रंगनाथन वीरराघवन हो गया। जैसे, रोम म एक रोमन!

    भारत म बहुत सारे रा य ह और व भ न रा य के लोगके नाम लखने के तर के अलग-अलग ह। अ धकांश केरलवासीअपने नाम म अपने घर के नाम को जोड़ते ह, त मलनाडुम हम अपने पता के नाम के पहले अ र को हमारे आ य रके प म इ तेमाल करते ह। फर भी, कुछ लोग अपने नामके साथ अपने गांव का नाम भी लगाते ह। यहां गुजरात म,पहले कुलनाम, फर अपना नाम उसके बाद पता का नामलखा जाता है।

    य या प नाम कुछ भी नह ं है बि क एक श द है, ले कनलोग आम तौर पर अपने नाम से यार करते ह जैसे वेखदु को यार करते ह। यहां तक क ‘कचराभाई’ भी इसकाअपवाद नह ं है। ले कन कभी-कभी रंगानाथन, नारायणन औररामाचं न जैसे नाम को रंगनाथन, नारायण और रामचं न भी

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    बोला और लखा जाता है। जब हम कसी यि त के नाम कोवकृत करते ह, तो हम जीवन क तरह उसक क मती चीज़पर हमला करते ह! कभी-कभी ऐसे कुछ नाम क वकृ तहा या पद भी हो सकती ह; देसाई को दोसाई म बदलना(त मल म दोसाई डोसा है)। य या प हमारे माता- पता (याचाची, प रवार क परंपराओं के अनुसार) हम हमारे नाम देतेह, ले कन कई बार, हम हमारे य नाम से बुलाया जाता है,वशषे प से कूल और कॉलेज म, जो हम नापसंद होता है।

    ारंभ म, मझुे पीआरएल म क यटूर सोसाइट ऑफ इं डया,अहमदाबाद चै टर म काम करने के लए चनुा गया था। ीअशोक गु ता मेरे बॉस थे, जो मेरे गु भी बन गए थे। वे एकमदृभुाषी स जन थे। िज ह ने मझुे एक लड़के से एक यि तके प म ढाला। उ ह ने न केवल मझुे टाइ पगं का काय स पा,िजसके लए मझुे काम पर रखा गया था, बि क मुझे धीरे-धीरेबाहर क दु नया से प र चत भी करवाया, िजसम लोग सेमलना, उनके नाम दज करना, फ़ॉम भरना, सोसाइट केआगामी वा षक स मेलन के लए पंजीकरण शु क लेना आ दशा मल था।

    1974 म पीआरएल कं यटूर क देश के सबसे उ नत

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    कं यटूर म से एक था। इस क के मु य हॉल म बा ओरचौथी पीढ़ का बहुत बड़ा आईबीएम कं यूटर था जो वशालअखंड संरचना क तरह खड़ा था। कं यूटर क के प व थानने मझुे म का के ‘काबा’ क याद दलायी। और कुछ ‘पंचऑपरेटर’ (एक पदनाम जो उ नत कं यूटर के आगमन केसाथ बाद म समा त हो गया) थे, जो हर समय मनीला काडको तजेी से पंच करते रहते थे। काड से काफ कचरा नकलतारहता था (पंच करने से नकल छोट -छोट ट कया), िज हकुछ कमचार एक करते थे िजनसे छोटे ब चे खेलते थे।

    पीआरएल म मेरे पहले दन ी पी. के. गोपी(अबसेवा नवृ त) ने पीआरएल म मेर मदद क , जैसे मझुे जनरलकट न म ले जाना और खाने के लए कूपन खर दना। पीआरएलके कई हा लया नए सद य कट न कूपन के बारे म नह ंजानते ह य क अब सब कुछ क यूटर कृत कर दया गयाहै, खाने के कूपन को सी रयल नंबर के साथ छापना, उनकाहसाब रखना, नकद और उधार म बेचना, वतरण करना औरकभी-कभी अ नवाय प से उसम नुकसान होना जैसी क ठन

    या इ तहास हो गई ह! सफ पीआरएल के अपे ाकृत नएसद य क जानकार के लए, 1976-77 के दौरान चाय केवल10 पैसे, ना ता या आमलेट 25 पैसे और भोजन क एक

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    परू थाल (यहां तक क एक गैर-शाकाहार आइटम के साथ)65 पैसे म मलती थी। कई दन तक, मने पीआरएल औरअंत र उपयोग के (सैक) दोन के कमचा रय के प रवारके सद य को पीआरएल कट न म रात का खाना खाने केलए एक बड़ी कतार लगाते देखा है।

    पीआरएल कट न के बारे म कुछ वणन करना ज र है।जब हॉ टल साइट पर छा का मैस शु नह ं हुआ था, तबतक पीआरएल मु य कट न म सभी शोधछा के लए भोजनमलता था। सबुह और रात के दौरान कट न क ग त व धयके कारण, पूरे कपस को देर रात म भी स यता के साथयोग कया जाता था य क कट न रात के 12 बजे चाय

    के बाद ह बंद होती थी! हालां क यह मु य प से वकशॉपटाफ (जो श ट म काम करते थे), और रात के दौरान शोध

    करने वाले वै ा नक और शोधकताओं क ज रत को पूराकरने के लए था, हालां क कई टॉफ सद य और यहां तकक बाहर लोग भी इसका लाभ लेते थे य क तब वेशनयं त करने के लए सीआईएसएफ कम नह ं थे। म कहंूगाक पीआरएल क कट न यहाँ अहमदाबाद म दरू-दरू तक अपनेअ भनव यंजन और सेवाओं के लए जानी जाती थी!

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    ऊपर व णत पीआरएल कायशाला एक बहुत य त जगह थीजहां व भ न कार के े समैन हर समय काम करते रहतेथे। गु बारा उड़ान और पेलोड के लए व भ न उपकरण कानमाण पूरे जोर पर था; वै ा नक और इंजी नयर कायशालाम आते थे और अपने अनुसंधान काय क आव यकताओंको समझाते रहते थे। वे कहते थे, पीआरएल े समैन औरतकनी शयन वमान को भी ठ क कर सकते ह!

    मझु म बसा लड़का वापस म ास लौट जाने के लए तरसताथा, जहां से वह आया था। यह जानने के बाद क के सरकारक नौकर म मेरा थानांतरण होता रहेगा, िजसका मेर इसनौकर म कोई मौका नह ं था, मने क सरकार क नौकरढंूढने क परू को शश क । मने वह पा भी ल थी। मझुे रा यउ पादकता प रषद – NPC (वा ण य एवं उ योग वभाग केतहत) के लए चनुा गया था, जहां मुझे कुछ नह ं करना था,सवाए रपोट और रपोट टाइप करने के। फर भी, म वहांम ास थानांतरण क य उ मीद म डढ़े साल तक कायकरता रहा। म कतना नौ स खया था! मुझे पता चला कटाफ संरचना म केवल व र ठ सद य को ह थानांत रत

    होने का मौका मलता है, वह भी अ धकांशतया अपने पसंदके थान पर नह ं होता। सबसे खराब बात, मुझे एनपीसी म

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    समय पर वेतन नह ं मला, और मुझे डढ़े साल क प रवी ाके बाद भी थाई नह ं कया गया।

    इसक तलुना म, पीआरएल बहुत बेहतर जगह थी -वै ा नक के बीच रहने, घर म सि सडी वाले भोजन, हमारेअनुसार काम करने क वतं ता, उ कृ ट च क सा लाभ औरया नह ं! मने पीआरएल म वापस आने का फैसला कया।

    कई बार, जब हम पी ड़त होते ह, तभी हम अतीत/वतमान मफक महससू करते ह।

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    “हम खशुी होगी य द अमे रका म कुल 5कं यटूर भी बक सक” - थॉमस वाटसन,अ य , आईबीएम, 1945

    पीआरएल म मेरा पनुः वेश

    मेरे पीआरएल म वापस आने पर फर से ी गोपी ने मेरमदद क । म 1976 म डढ़े साल बाद पीआरएल म वापसआया तो मने एक छोटा सा बदलाव देखा। जब मने 1975 केशु म पीआरएल छोड़ी थी, तो मु य भवन म केवल भतूलऔर तीन मंिजल थे। ले कन जब म सतंबर 1976 म फरसे वापस आया, तब आठ मंिजल क ऊंची इमारत बन चुकथी। यह वह समय था जब पीआरएल का वकास पूरे जोरपर था। दजन टाफ सद य भत कये गये थे। इस बार मजनसंपक वभाग म लगाया गया था और पीआरएल म मेरया ा थोड़े अंतराल के बाद जार हो गई थी।

    सामा य तौर पर, सभी मनु य दसूर के लए उपयोगी औरअ छे होने के लए ह बने होते ह। कई लोग दसूर के त

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    च 1: लेखक अपने कायालय म अपने सहयो गय के साथ

    अ छा बने रहने के लए समय, धन और ऊजा को खच करतेह, ले कन यहां जो हमारे पास आते थे उनके त अ छा होनेऔर अ य लोग क सहायता करने के लए मझुे भगुतानकया जाता था। वा तव म म एक ध य आ मा हँू! मेरे बॉसऔर त काल न पीआरओ सशुीलभाई शाह ने धीरे-धीरे मझु परनयं ण कर लया और आज जो म हंू वह उ ह ं क देन है।

    मने ीमती डी.सी. जोशी से भी बहुत कुछ सीखा है, िजनकेसाथ म जनसंपक वभाग म दो दशक से अ धक समय से

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    जड़ुा रहा था। या यह व ध का वधान था जो मुझे पीआरएलऔर जनसंपक वभाग म लेकर आया था?

    कायालय म काम करने के अलावा, म कुछ यादा नह ं कररहा था। सशुील भाई ने मझुे कॉलेज म भत होने और ड ीा त करने के लए ो सा हत कया। मुझे अपना समय बबाद

    करते देखते हुए, उ ह ने मझुे पीआरएल के नजद क सहजानंदकॉलेज म भत होने के लए एक आवेदन प मंगवाकर दया।दरअसल, इस ग त व ध के कारण ह , मेरा नाम मेरे ड ीमाण प म और उसके बाद मेरे पासपोट म वी. रंगनाथन

    से आयंगर रंगनाथन वीरराघवन हो गया। चे नई म, जहां मपला-बढ़ा था, जब हम नातक ड ी के लए कॉलेज म भतहोते ह, तो हम हर साल वेश लेने क ज रत नह ं होती;उदाहरण के लए, य द कोई पहले वष क पर ा पास करलेता है, तो उसका नाम दसूरे वष के पा य म म वतःदखाई देता है। ले कन अहमदाबाद म, जब मने पहले वष कपर ा पास कर ल तो बना यह जानते हुए क मुझे दसूरे वषम वेश लेना पड़गेा, म सीधे वतीय वष क क ा म चलागया और उपि थत हो गया। जब मेरा नाम उपि थ त के लएनह ं बोला गया, तो मने अ धका रय से संपक कया और मझुेपता चला क मने दसूरे वष के लए अ नवाय वेश नह ं लया

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    और यह क ा भर चुक थी। मने अपनी सम या के साथसशुीलभाई से संपक कया, िज ह ने कॉलेज के ाचाय से संपककया और मझुे दसूरे वष म वेश मल गया। इसके बाद,मने तीसरे साल म वेश के लए इस या का पालन कया।

    मेर दनचया कुछ इस तरह थी, सुबह ज द उठ जाओ,तैयार हो जाओ, कॉलेज म 6.30 से 9.30 तक रहो और उसकेबाद पीआरएल पहंुचो। उन दन पीआरएल का समय 9 बजेसे 5 बजे तक था िजसम दसूरे और चौथे श नवार को छु ीरहती थी। 9 बजे पीआरएल पहंुचने के लए, म क ा से 8.45बजे तक नकल पड़ता था और ठ क 9 बजे पीआरएल पहंुचजाता था। पीआरएल म उन दन पंच काड का बहुत कड़ाईसे और स ती से पालन कया जाता था। य द कोई भी 9बजकर 1 मनट पर भी पहंुचा/पंच कया, तो उसके खाते सेआधे दन क छु ी काट ल जाती थी। बाद म कई अनरुोधऔर मांग के बाद, हम हर रोज 5 मनट का अनु ह समयदया गया, िजसके साथ एक मह ने म 3 दन 20 मनट काअनु ह समय दया गया था। अब 70 और 80 के दशक कतलुना म कमचा रय को अपनी यूट पर आना-जाना कुछआसान हो गया है।

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    मने नातक तर क पढ़ाई समा त क और जन संपक मड लोमा कोस जार रखा। ले कन मझुे लगता है क पीआरएलम काम करने के मेरे अनभुव ने मझुे अपने नातक औरड लोमा से यादा जीवन म मदद क ।

    सबक तरह, मेरे प रवार को भी कुछ अ त र त पैसे कआव यकता रहती थी। तो इन कुछ वष के दौरान मेरा कायकॉलेज-पीआरएल-अंशका लक जॉब- टडीज और फर आधीरात तक पीआरएल म अ त र त जॉब टाइ पगं काय होता थाता क उस आव यकता को पूरा कया जा सके। आज के दनक तरह, कं यटूर के बना उन दन , शोधाथ हम अपने शोधबंध के ह त ल खत पांडु ल पयां देते थे, िज ह हम ट सल

    पर टं करते थे और आव यक तयां साइ लो टाइल करतेथे। ट सल पर टाइप के लए वशषे ता क आव यकताथी और पीआरएल म मेरे स हत कुछ लोग इसम नपुण थे।हम क बोड को न जोर से और न ह धीरे से दबा सकतेथे; य क जोर से दबाने पर, याह अ धक वा हत होतीहै और मु त शीट पर ध बा पड़ जाता था और धीरे सेदबाने पर, साइ लोि ट लगं करते समय याह ट सल म सेठ क से वा हत नह ं होती, िजससे उसको ठ क से नह ं पढ़सकते थे। इस तरह छा म हमार एक कार क मांग थी,

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    य क वाभा वक प से सभी लोग एक अ छ गुणव तावाल थी सस चाहते थे।

    इससे मझुे हमार टाइ पगं क ग त क याद आई है। हमसभी को अ छे टाइ प ट होने के लए यनूतम गल तय केसाथ 40 श द त मनट क ग त के साथ टाइप करना होताथा। उन दन , टाइ प स एसो सएशन था, िजसका थानीयचै टर पीड टाइ पगं तयो गताएं आयोिजत करता था िजनमपीआरएल और कुछ भारतीय बंधन सं थान और शहर मअ य सं थान से कुछ टाइ प ट भाग लेते थे। हम सभी कलगभग 55-60 श द त मनट क ग त थी। इलेि कऔर फर इले ॉ नक टाइपराइटर के आगमन के साथ यहग त 90-100 श द त मनट हो गई। मुझे एसो सएशन सेटाइ पगं म उ कृ टता का माण प भी दया गया था।

    लगभग 1977-78 के दौरान व भ न घटनाओं के कारणटाफ सद य म कुछ असंतुि ट और नाराजगी थी। टाफ

    क याण संघ ने अपने सद य क बैठक बलुाई, िजसम यहघोषणा क गई क शी ह पीआरएल कमचा रय क अपनीयू नयन होगी। अ धकांश सद य इस जानकार को पचा नह ंपा रहे थे य क हम सभी ने सोचा था क केवल उ योग म

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    ह कमचार यू नयन के पंजीकरण के लए आवेदन कया जासकता है और पीआरएल एक अनसुंधान सं थान है, अतः यहकेवल एक सपना ह हो सकता है। ले कन अंततः, कमचारयू नयन का गठन कया गया, पंजीकृत हो गयी और ऐसे-ऐसेकाय-कलाप कए गए िजनसे आगे चलकर कमचा रय औरबंधन को बहुत गंभीरता से भा वत कया। नारेबाजी करना,

    पीआरएल के अंदर और बाहर के पच/पो टर चपकाना कुछसमय तक चला। सीआईएसएफ के जवान इन ग त व धय कोसी मत करने क को शश म लगे रहते थे और कायकता अपनेि टकोण म बहुत क पनाशील थे ता क वे सीआईएसएफ

    जवान क पकड़ म न आ सक। बंधन म नणयकताओं केलए और िज ह अंततः नलं बत और/या नकाल दया गयाउनके लए यह बहुत गंभीर मामला था और अ य लोग केलए केवल मनोरंजन था।

    अचानक, पीआरएल म लॉक आउट घो षत कर दया गयाऔर कसी को भी इसके प रसर म वेश करने क अनमु तनह ं थी। हम म से यादातर लोग क बक पासबकु औरचैक बुक पीआरएल म हमारे ऑ फस म म थी। हमारे बकखात से पैसे नकालना भी मिु कल हो गया था। यू नयनने कमचा रय के 24 घंटे का मक उपवास ( रले फा ट)

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    आयोिजत कया; हर रोज दो यि त। मने पहले कभी भीधा मक आधार पर या कसी और वजह से एक दन के लएभी उपवास नह ं कया था, ले कन मुझे उस उपवास म बैठनेको कहा गया था और मने अपने जीवनकाल म इसी एक दनके लए उपवास कया था! हालां क, मने अपने जीवन म कईदन ‘मौन त’ कया है। यू नयन और बंधन दोन लगभगसभी मु पर अड़े हुए थे।

    अंत र वभाग के त काल न अपर स चव, ी ट .एन.शषेन, जो बाद म मु य नवाचन आयु त बने, उनसे पीआरएलबंधन और पीआरएल कमचार यू नयन के कुछ त न धय

    ने पीआरएल गे ट हाउस म इन सम याओं से नपटने केलए उनसे मलुाकात क । अंत म, एक मह ने से भी अ धकसमय के बाद, हम प रसर म वेश करने और हमारे कत यको परूा करने क अनमु त द गई। फर भी, लॉक-आउट केबाद पीआरएल म काम करना वैसा नह ं था। कोई बंधनसमथक है या कोई यू नयन समथक है, यह भावना पीआरएलप रसर म आने वाले कुछ समय तक बनी रह ।

    यहां म कुछ घटनाओं को बताना चाहता हंू। चूं क म एककामकाजी छा था, मने 6.30 से 9.30 बजे के बीच सुबह

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    क क ाएं चनुी, िजनम से म और कुछ अ य केवल 8.50बजे तक रहते थे और फर त काल अपने संबं धत कायालयम चले जाते थे। ऐसा करने के लए, हम आ खर बच परबैठते थे ता क हम कसी को परेशान कए बना क ा छोड़सक। हमारा महा व यालय खेल के लए व यात था और कईा फयां हमारे ं सपल ोफेसर शा ी के कमरे म द शत

    क गई थी। एक बार ं सपल ने मेरे लए संदेश भेजा क मउनके कमरे म आकर मलूं, िजसे मने तरंुत कया। उ ह नेकहा, “देखो, आयंगर, हमारे कॉलेज के छा सभी खेल कग त व धय म भाग लेते ह और हम काफ कुछ ा फयां भीमलती ह, ले कन इस साल म चाहता हंू क आप वा षकव त य तयो गता म भाग ल और म आप से ना नह ंसनुना चाहता”। उनके ताव पर सहम त देते हुए, मने उनसेअनुरोध कया क वे मुझे आयंगर ना कहकर रंगनाथन कह।मने भी बहुत ईमानदार से तयो गता के लए तैयार कऔर दसूरा पुर कार जीता।अपनी नातक तर क पढ़ाई और सावज नक संबंध मड लोमा परूा करने के बाद, मने लगभग पूरे देश म बेहतरपद के लए आवेदन करना शु कर दया। गहृनगर म जानेके वचार को भलू जाने के बाद, अब म तथाक थत पेशवेरसीढ़ पर चढ़ने के लए कह ं भी जाने के लए तैयार था। कुछ

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    च 2: लेखक कॉलेज म एक भाषण तयो गता म भाग लेते हुए

    थान पर मझुे बेहतर पद के लए नयुि त आदेश भी मले।ले कन व भ न यि तगत कारण के कारण, मने ऑफ़र कोअ वीकार कर दया। इस बीच, म ोफेसर धम पाल अ वाल,अ य धक व र ठ ोफेसर और पुरात व-जल व ान े केअ य के साथ यि तगत संपक म आया, िजनके लए मनेकुछ टाइ पगं और स चवीय काम कए थे। वे मेरे काम औरयवहार से बहुत भा वत थे, अतः उ ह ने मझुे उस सं थानम पयवे क पद के लए वचार करने क पेशकश क , जहां

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    वे नदेशक के प म जाने वाले थे। दभुा य से, कुछ कारणके कारण, वे उस पद को वीकार नह ं कर सके और एकअ छा मौका मेरे हाथ से नकल गया।

    दसूरा एक उदयपरु सौर वेधशाला (य.ूएस.ओ.) म था। तबय.ूएस.ओ. का बंध पीआरएल वारा कया जाता था; उनकेकमचार पीआरएल कमचार नह ं थे। यू.एस.ओ. के त काल ननदेशक और सं थापक ो. अर वदं भटनागर यूएसओ के लएएक शास नक पयवे क चाहते थे और उ ह ने पीआरएल मउन उ मीदवार के एक सा ा कार के लए यव था क ,िज ह ने पद के लए आवेदन कया था।

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    “ ो. गोडाड को बल और तबल के बीच कासंबंध पता नह ं है। उनके पास हाई कूल तकके व ान का ान भी नह ं है। रॉकेट काउनका वचार केवल एक दवा व न है” - यूयॉक टाइ स 1921 के संपादक य म

    ो. व म साराभाई - एक महानयि त व!

    मेरा मानना है क पीआरएल म अनसुंधान के लए वातावरणबहुत अनकूुल था, और उसे ोफेसर व म साराभाई ने बहुतसावधानी से यानपूवक पो षत कया था, जो एक महानदरूदश थे। मने एक बार हमार लाइ ेर म ोफेसर साराभाईका उ रण पढ़ा था - ‘रचना मक काम करने के लए आव यकहै क हम गलहर और प य को देख सक।’ हम सभीसवस म त से बहुत खशुी से वीकार करगे क पीआरएलएक ऐसा थान है जो रचना मकता को बढ़ावा देता है औरअ भनवता को बढ़ावा देता है। हम म से कतने भारतीय कोऐसी जगह पर काम करने का मौका मलता है जहां वशाल

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    लॉन ह, जहां कभी-कभी हम साँप दख जाते ह और जहां मोरआनं दत होकर अ सर नृ य करते ह? अ य जगह पर, कामक मांग हम प रवार के साथ समय बताने का अवसर कमदेती है या नह ं देती, िजससे अनाव यक तनाव और थकानहो जाती है। काय और प रवार दोन जीवन के मु य भाग ह,इनम से कसी को भी अनदेखा नह ं कया जा सकता है। यहकारण है क खुश और व थ जीवन जीने के लए हम कामऔर यि तगत जीवन के बीच एक सह संतलुन को बनाएरखने क ज रत होती है। अपने जीवन के दोन पहलुओं काअथ है क आपको समान प से मह व देना होगा ता ककसी को दसूरे क क मत पर कोई नकुसान न पहंुचे। लंबेसमय म, दोन से ा त आन द, खुशी और नवाह यास केलायक होते ह। पीआरएल म यह ब कुल संभव है, य कलगभग सभी टाफ सद य ऐसा करना चाहगे।

    यहां उ लेख करना अ य धक ासं गक और उपयु त है कपीआरएल न केवल वातावरण के कारण काम करने के लएएक बेहतर जगह है, बि क काम करने क वतं ता के मामलेम भी इसक व श टता है। अ धकांशतः लोकतां क यव थाहोने के कारण हम सं थान के वकास और वृ के लएवचार को य त और योगदान कर पाते ह। हमारे वचार

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    च 3: पीआरएल म अ व वसनीय प से अ तु वातावरण

    और सझुाव क भा वकता सं थापक क सोच के साथ मेलखाती है। यह, बदले म, हर कसी को सं थान के साथ बढ़नेका अवसर दान करता है।

    मझुे अपने व र ठ लोग से पता चला था क ोफेसरसाराभाई के पास पं डत जवाहरलाल नेह और ीमती इं दरागांधी के साथ सीधे हॉटलाइन फोन क सु वधा थी। तबअहमदाबाद हवाई अ डे पर सबुह और शाम को द ल और

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    बॉ बे के लए एक-एक उड़ान थी। जब भी वे हवाई या ाकरते थे, तब उनके पहंुचने तक वमान इंतजार करता था।ऐसा उनका भाव और यि त व था! उनका 52 वष कअ पायु म ह असाम यक नधन हो गया, जो पीआरएल केलए वशषे प से और आमतौर पर वै ा नक अनुसंधान केलए एक बहुत बड़ा नकुसान था। गु देव रबीं नाथ टैगोर कयह उ थी जब उ ह सा ह य के लए नोबेल परु कार मलाथा! अगर ोफेसर साराभाई कुछ और वष तक जीत,े तोउ ह ने महान गौरव व या त ा त क होती और शायदअंत र वभाग का मु यालय बगलू के बजाय अहमदाबादम होता!

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    “कं यटूर का इ तेमाल केवल बड़ी दकुान औरकायालय म ह कया जाएगा। घर म इसकाकोई उपयोग नह ं होगा?” − डिजटल कं यटूरकंपनी के मखु, ी केन ओ सन, 1977

    पीआरएल म म और सहकम

    1978-80 के आसपास, (अब ोफेसर और ति ठत वै ा नक)आर. रमेश और ए. जयरामन पीएचडी करने के लएपीआरएल वाइन क । मझुे पता चला क उन दन पीआरएलम अ य सं थान क तलुना म रसच कॉलस को हर मह नेकुछ यादा वजीफे का भगुतान कया जाता था, जो नि चतप से पीआरएल के लए कुछ मेधावी लोग को आक षत

    करता था।

    ज द ह म रमेश और जयरामन (अब ोफेसर और नदेशक,रा य वायुमंडल य अनसुंधान योगशाला, गादंक ) दोन काकर बी दो त बन गया य क हम सभी एक ह रा य के रहनेवाले थे और समान पसंद और नापसंद के कारण अब भी ह।

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    फर आर.वी. कृ णमू त (अब वे टन म शगन यू नव सट ,अमे रका म एक व र ठ ोफेसर) हमारे समहू म शा मल हुए।मने अपना खाल समय उनके साथ फ म देखने, साइ कलपर शहर घूमने और र ववार शाम को बाहर खाने म बताताथा य क छा के मैस म र ववार को शाम को भोजननह ं दया जाता था। हम सभी ने एक साथ मजेदार समयबताया था। मेरे नातक और ड लोमा पढ़ाई के बाद, मशाम को और छु य म छा ावास े म फरता रहता था;कोई बाहर आदमी सोचता होगी क म भी पीएच डी का छा हँू!

    सच कहँू तो, म लाभाथ था, य क अब मुझे बहुत स ,उस समय उभरते हुए वै ा नक के साहचय से बहुत कुछसीखने का अवसर मला। म अपने आपको, बु और यापकप से या ा करने वाले यि त व के बीच पीआरएल म काम

    करने के लए वा तव म सौभा यशाल मानता हंू। कतनेशास नक लोग यवुा वै ा नक पुर कार वजेताओं और ो.

    भटनागर परु कार वजेताओं के साथ दो त होने का दावा करसकते ह।

    ोफेसर व म साराभाई को ध यवाद िजनका यापारसमदुाय म पैदा होने के बावजूद, वै ा नक योगशाला शु

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    च 4: पीआरएल म अपने म ोफेसर आर.वी. कृ णमू त, ोफेसर रमेश और ोफेसर एस. रामच नके साथ लेखक

    करने के लए झुकाव था और संसाधन थे, िजसने अब भारतम अंत र अनुसंधान के लए काफ योगदान दया है। मने,एक शास नक टाफ सद य के प म, इसके लए कुछ नकुछ योगदान ज र कया है।

    म ोफेसर रमेश और ोफेसर जनादन के साथ सा न य से

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    भी बेहद लाभाि वत हुआ, िज ह ने मझुे कताब से प रचयकराया। ोफेसर रमेश के पास व भ न वषय पर पु तकका एक बड़ा सं ह है। उ ह ने मझुे पढ़ने और आनंद लेने केलए बहुत उदारता से बहुत सार कताब द ं। म उनके इसकाय के लए हमेशा उनका ऋणी रहंूगा। उ ह ने मझुे ॉसवडपहेल हल करना भी सखाया। ज द ह , ॉसवड को हलकरना मेरे लए समय बताने का साधन बन गया, िजसे आजभी स ताहांत के दौरान म करता हंू। य या प त मलनाडु केमलू नवासी होने के कारण, जहां हदं पूर तरह से उपे तथी (इसके काया वयन के खलाफ जोरदार ढंग से उ तेिजत),वह ं ो. रमेश हदं के व वान ह और उ ह ने हदं पाखवाड़म कई काय म म ह सा लया था।

    एक समय आया, जब हदं काय म म भाग लेने वालेलोग ने कहना शु कर दया ‘ओह, अगर ोफेसर रमेश भागले रहे ह, तो उनका पहला इनाम प का है’। इसे बार-बारसनुकर, उ ह ने अब और अ धक भाग नह ं लेने और दसूरको जीतने का मौका देने का फैसला कया। इसको संकेत पम लेते हुए मने भी खेल म भाग लेना बंद कर दया, िजससेयवुाओं को आगे आने के लए रा ता बन सके। हालां क, खेलके लए मेर दलच पी और यार मझुे इन ग त व धय म

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    भाग लेने वाले पीआरएल पो स ट म के कं ट जट मैनेजरके प म अंत र वभाग/इसरो क अलग-अलग इकाइय मजाने को मला।

    पढ़ने क आदत के बारे म लखते हुए, समय बीतने केसाथ, मझुे लगता है क मने जीवन को बेहतर समझना शुकर दया और एक तरह से इसके बारे म दाश नक हो गया।म जीवन के उतार-चढ़ाव को और आसानी से ले सकता हंू।पढ़ने से, मने मानव वभाव और लोग का िजन क ठनाइयसे वा ता पड़ता है उनके बारे म अ धक जानता हंू। पीआरएलम जनसंपक अनभुाग म मेर यटू का नवहन करने म लोगसे मलने और कसी तरह क परेशानी को हल करने म मेरवतमान ि थ त के साथ, मझुे अ य लोग क भावनाओं औरउनक आकां ाओं के त अ धक संवेदनशील बना दया।इससे मने अपने आप पर यान क त करना बंद कर दया,िजसने मझुे अपने, मेर वतमान ि थ त के बारे म बेहतरमहससू कराया।

    ोफेसर जनादन, वै ा नक होने के अलावा, एक बहुत हजानकार यि त ह और वे हम न सफ सयू के बारे म बि क

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    बहुत कुछ बता सकते ह। उ ह ने कई बार मझुे कुछ पु तकके बारे म बताया जो पीआरएल लाइ ेर म उपल ध ह औरमझुे उनको पढ़ने के लए कहा, जो मने कया और उस हदतक समझदार हो गया। इसके अलावा, वे मझुे कुछ वै ा नकअवलोकन और घटनाओं के बारे म प ट तर के से समझातेथे। मने उनसे बहुत कुछ सीखा। मने उ ह एक अ छा प ीव ानी भी पाया। वे व भ न प ी जा तय के अवलोकनके अपने अनभुव के बारे म मझुे ज़ोर देकर बताते थे। औरमझुे उन व भ न प य क त वीर दखाई, जो उसने खदुखींची थी – उ ह एक अ छा फोटो ाफर भी होना चा हए! मउ ह एक अ छा श क एवं वै ा नक मानता हंू। जो ानउ ह ने मेरे साथ साझा कया म उन सभी के लए उनकाआभार हंू।

    यहां पर ोफेसर के. आर. रामनाथन, पीआरएल केसं थापक नदेशक, और पी. आर. पशारोट , एक बहुतव र ठ और वभू षत वै ा नक के बारे म यहां उ लेख करनालए उ चत होगा। अफसोस, अब दोन जी वत नह ं ह। ोफेसररामनाथन, िजनके नाम पर हमारा वतमान मु य ऑ डटो रयमहै। वे बहुत परुानी ‘ टडड’ कार म, वयं ाइ वगं करकेपीआरएल म आते थे। दोन ोफेसर रामनाथन और पशारोट

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    बहुत सरल इंसान थे। उनक ज रत यनूतम थी; इतनाअ धक जो न न ल खत घटना से पता चलता है।

    1980 के दशक म, वदेश म वै ा नक उ े य के लएवदेश जाने के लए वदेशी मु ा ा त करना बहुत क ठनकाम था। म वदेश जाने वाले येक वै ा नक के लए10−12 पेज का आवेदन प भरता था। भारतीय रजव बकम आवेदन प जमा करने के बाद भी, हमेशा कुछ न कुछपछूताछ क जाती थी, िजसका उ तर भारतीय रज़व बक केसंबं धत अ धकार क संतिु ट वाला होना चा हए। एक बार,ोफेसर रामनाथन और पशारोट इं लड क या ा पर जाने

    वाले थे, िजसके लए लगभग 100 यकेू पाउंड क देने के लएआवेदन कया गया था।

    चूं क दोन वै ा नक पूरे व व म बहुत ति ठत औरस मा नत थे, इस लए उनके रहने और ठहरने का इंतजामआम तौर पर उनके मेजबान वारा कया जाता था औरउ ह दै नक भ ते क आव यकता नह ं थी, ले कन केवलआकि मक खच के लए मामलू रा श क ज रत होती थी।ले कन चूं क आरबीआई वारा वां छत द तावेज उपल ध नह ंथे, इस लए म उ ह आरबीआई के बारे म पूछताछ और

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    अपया त द तावेज के बारे म बताया। मझुे बहुत व मयहुआ, जब उन दोन ने बस मुझे सू चत कया ‘ चतंा न कर,अगर वे ए सचज जार नह ं करते ह, तो हम अपने दम परबंध करगे। हम अपने कपड़े धो लगे, और चूं क हम बहुत

    बढ़ेू ह, तो हमार मेजबान हमार अ धकांश आव यकताओं कायान रखगे।’ मझुे उस दन एहसास हुआ क ‘सादा जीवनऔर उ च वचार’ का अथ या होता है।

    ोफेसर पशारोट ने एक बार मुझसे कसी यि त का पतादेने को कहा, िजसे मने एक खाल कागज म लखा था औरउ ह दे दया। उ ह ने मझुे पता लखने के लए पूरा पेजबबाद करने के लए डांटा। उसने मझुे स ती से नदश दयाक मझुे एक तरफ इ तेमाल क गई शीट रखनी चा हए औरउनका इ तेमाल ऐसे काम के लए करना चा हए। उ ह नेमझुे कमरे से बाहर जाने से पहले लाइट और पंखे बंद करनेक सलाह भी द । म अभी भी ऐसा करता हंू और अपनेक न ठ लोग को नदश देता हंू जो मेरे साथ काम करते हऔर जो मेर बात सनुते ह। ले कन आजकल म देखता हंू कबहुत लोग कमरे से बाहर नकलते समय पंखे और लाइट बंदनह ं करत।े वे अनाव यक और अवां छत ई-मेल का टं लेनेया टेल फोन नंबर लखने के लए या कुछ ऐसी चीज लखने

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    के लए कागज क नई शीट बबाद करते ह। म यहां सभी सेअनुरोध करता हंू क कागज और बजल के उपयोग बहुतसोच-समझ कर कर। पहले से ध यवाद!

    ोफेसर रामनाथन, एक मौसम व ानी होने के कारण पेड़के भी शौक न थे। एक बार, पीआरएल म एक पा कग कानमाण करने के लए कुछ बड़े पेड़ को काटना था, जहां अबरामनाथन ऑ डटो रयम है। जब त काल न स वल इंजी नयरक देखरेख के तहत, यह काम आगे बढ़ना था। ोफेसररामनाथन ने चपको आंदोलन खड़ा कया - पेड़ से लपटतेहुए, िजससे मजदरू अपना काम आगे नह ं बढ़ा सके! पेड़और पयावरण के त उनक ऐसी न ठा थी और इसे लागूकरने म उनक ईमानदार थी। बाद म, ोफेसर रामनाथन कमृ यु के बाद, आ खरकार, उन सभी पेड़ को काट दया गयाऔर या वडबंना है क ऑ डटो रयम का नाम भी उनके नामपर ह रखा गया!

    रामनाथन ऑ डटो रयम क बात करते हुए, यह मुझे उनदन क याद दलाता है जब यह ऑ डटो रयम पीआरएलम नह ं बना था और हम सभी अंतररा य स मेलन औरवा षक व म जयंती - ोफेसर व म साराभाई का ज म दन

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    के स मान म वै ा नक समारोह के आयोजन के लए, येक12 अग त को बार-बार अहमदाबाद टै सटाइल इंड ज रसचएसो सयेशन (अट रा) म उनक जगह का उपयोग करते थे।जैसा क आप सभी जानते ह, अग त म मानसनू बहुतस य हो जाता है, नि चत प से बा रश होती है और सभीको अनकह असु वधाओं म डाल दया जाता है। ज द हपीआरएल बंधन को अंत र वभाग से पीआरएल प रसर मएक ऑ डटो रयम बनाने क इजाजत मल गई और जैसा कआप देख सकते ह हम सब समय-समय पर वहां आयोिजतकाय म का आनंद ले सकते ह।

    हालां क ये अ छ चीज हुई, ले कन पीआरएल और उसकेप रसर म कुछ आ मह या क घटनाओं और दल का दौरापड़ने जैसी कुछ अ य घटनाएं भी हु । एक ी रमेश शमा,पीआरएल के एक इंिज नयर, हमार मु य इमारत क 6ठमंिजल से कूद कर अपनी जान गंवा द । यह एक वीभ स यथा। पु लस वारा अपनी यूट नभाने के लए आने के बाद,उस े को कुछ समय के लए घेर दया गया था। पीआरएलके लोग को सामा य ि थ त म आने म कुछ समय लगा।दसूरा, कुल े ठ नामक एक शोध छा था, िजसने छा ावासके कमरे म पंखे से लटककर अपनी जान दे द थी। चूं क म

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    ए टेट वभाग के कामकाज म शा मल था। अतः हम पु लससे संपक करने, औपचा रकताएं पूर करने, छा के माता- पताको मलने म क ठन प रि थ त का सामना करना पड़ा था।

    एक इंिज नयर ी देवगन पीआरएल वाटर म रह रहे थे।वा तव म इस घटना से कुछ ह घंटे पहले का डयोलॉजीवशषे के पास गए थे। दवा देने के बाद उ ह घर भेजागया। कुछ घंट से भी कम समय म घर पहंुचने पर, नानकरने के लए बाथ म गए, वहां उ ह गंभीर दल का दौरापड़ा जो घातक स हुआ। यहां फर से, सामा य ि थ त मवापस आने से पहले हमारे मे डकल ऑ फसर और पु लस नेकुछ औपचा रकताओं नभाई थी। जब भी म पु लस का िजकरता हंू, ऐसा हुआ क मझुे चीज को परूा करने के लएपु लस बल से बातचीत करनी पड़ती थी। यहां तक क जबम अपने पासपोट ा त करने के लए पीआरएल के लोगक मदद कर रहा था, तब भी इसम व भ न े ीय पु लसटेशन और पु लस आयु त कायालय के कमचा रय से संपक

    करना शा मल था।

    1980 के दशक के दौरान, हम पीआरएल म फ म ए सयेशनुप (हम इसे एफएजी कहते थे) के नाम पर एक फ म

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    सोसाइट चलाते थे, िजसम लगभग 100 सद य शा मल थे।उनम से यादातर रसच कॉलस और वै ा नक थे। हम इसेफ म फेडरेशन ऑफ इं डया के साथ पंजीकृत कर चुके थे जोपरेू व व म न मत फ म को नय मत प से भेजते रहतेथे। एलायंस ै काइज, भारतीय बंध सं थान (आईआईएम),अंत र उपयोग के (सैक) और रा य डजाइन सं थान(एनआईडी) क स य भागीदार के साथ, हम एक दसूरेके साथ फ म का आदान- दान करते थे। मझुे फ़ेल नी,स यजीत रे, बगमैन और कई अ य स द गज क‘बाइ स कल थीफ’, ‘पाथेर पांचाल ’ और ‘सेवन एंड ए हाफ’जैसी शानदार फ म को देखने का उ कृ ट अवसर मला।

    लगभग 10 वष या उससे अ धक क अव ध म हमनेएक-एक करके िज़ मेदार ल और नजी उ साह पर लबचलाया। कई बार, हमने अपना पैसा भी खच कया और इनफ म को हा सल कया। फ म के बाद, हम म से कुछहॉल म कते थे और उस दन क फ म पर चचा करते थे।

    इस अव ध के दौरान पीआरएल म एक संगीत लब भी थाजो कुछ संगीत े मय वारा चलाया जाता था। उन दन जैसाआप जानते ह, सुनने के लए केवल रे डयो और टू-इन-वन

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    थे। उनके पास भतूल या यान क म एक यिूजक स टमलगाया हुआ था और संगीत ेमी लंच के दौरान वहां इक ाहोते थे और परुाने ला स स गाने सनुते थे। इससे बाद मउ ह हदं पखवाड़ा समारोह म आयोिजत अंता र तयो गताम भाग लेने म भी मदद मल ।

    रे डयो के बारे म उ लेख करते हुए यह कहना चाहता हंू कअ धकांश यवुाओं को पता नह ं होगा क उन दन रे डयो औरटेल वजन का उपयोग करने के लए लाइसस थे। लाइससा त करने और हर साल इसे नवीनीकृत करने म बहुत

    क ठनाई होती थी। सौभा य से, अब वह स टम बंद हो गया।

    1980 के दशक के दौरान और उसके बाद पैदा हुए उनलोग के लाभ के लए टेल वजन के वषय म एक बहुतदलच प घटना का ववरण नीचे दे रहा हंू। 1987-88 केदौरान, सव यापी दरू दशन को छोड़कर अ य कोई चैनल नह ंथा और इसम समाचार के अलावा केवल एकमा मनोरंजककाय म र ववार क फ म और ‘ च हार’ रहता था। हरर ववार को सुबह ‘रामायण’ का सारण कया जाता था;इसके सारण के दौरान शहर म वघो षत क यू लग जाताथा; शहर क सड़क और बाजार खाल हो जाते थे; व भ न

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    काय म को ‘रामायण’ सारण समय को यान म रखते हुएनधा रत कया जाता था। होटल , कारखान और अ पतालम इस समय के दौरान बड़े पैमाने पर अनुपि थ त रहती थी;यहां तक क कम उपि थ त से बचने के लए कुछ चच सेवाओंका समय भी बदल दया गया था। जब क अ य धा मक लोग‘रामायण’ को मनोरंजन क ि ट से देखते थे, वह ं अ धकांशहदंओुं ने इसे भि त और ा से देखते थे। जो लोग मं दरम नह ं जा सकते थे, वे ( वेत- याम) टेल वजन सेट केसामने दंडवत करते थे। उस समय ऐसी ि थ त थी; इसकतलुना आज से कर - हम सैकड़ चैनल के साथ बगड़ गएह!

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    “इस दु नया म आ व कार क जा सकने वालसभी चीज का आ व कार मानव जा त ने करलया है। आ व कार करने के लए अब कुछशषे नह ं है” - अमे रका के चा स यूएल,1899

    पासपोट और वदेशी या ा

    शास नक े के कई पहलओुं म, वै ा नक स मेलन मभाग लेने के लए वै ा नक और इंजी नयर को वदेश जानेम मदद करना एक बहुत ह रोचक और उ साह काय था।एनओसी जार करने से लेकर, आवेदन प ा त करने तक,पासपोट कायालय को वीकाय तर के से उ ह भरने, सभीआव यक द तावेज जमा करने, पु लस स यापन करवानाक ठन और समय लेने वाल या थी। ले कन मुझे धीरे-धीरेयह काय रास आने लगा और ज द ह पीआरएल टाफ हनह ं, बि क भारतीय बंध सं थान (आईआईएम) और अंत रउपयोग के (सैक) के भी लोग पासपोट ा त करने के लएमझुसे संपक करने लगे थे। पीआरएल म इन चार दशक कअव ध म, मने एक हजार से अ धक आवेदक (कुछ वै ा नक

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    और इंजी नयर को सफेद रंग के कायालयीन पासपोट स हत)को पासपोट ा त करने म मदद क होगी; प चीस पयेके शु क से लेकर जो धीरे-धीरे वतमान म एक हजार पांचसौ पये तक। इससे पहले, िजसने तैयार कया था उसकह त ल प के आधार पर पासपोट म लखा गया वणन खराबहो जाता था; कभी-कभी, लेखन फ का पड़ जाता था, अ यसमय अ प ट हो जाता था िजससे या य के लए प रहायसम याएं पैदा हो जाती थी। पासपोट के फोटो पेज क गुणव ताम भी सधुार करना वां छत था; फोटो पर चपक हुई सलोफ़नशीट भरू हो जाती थी और वदेश म जा रहे या य कोआ वासन अ धकार सं द ध नज�