इकाई 1 प्राकृतिक जीवw की अवvारणा,...

210
ाकृ तिक तितकसा N.S-01 mRrjk[k.M eqDr fo”ofo|ky; 1 इकाई 1 ाकृतिक जीवन की अवधारणा, ाकृतिक तितकसा का अथ, पररभाषाय एव इतिहास 1.1 तावना 1.2 उदेय 1.3 ाकृ ततक जीवन की अवधारणा 1.4 ाकृ ततक तितकसा का अथ 1.5 ाकृ ततक तितकसा की पररभाषाय 1.6 ाकृ ततक तितकसा का इततहास 1.7 सारा ि 1.8 शदावली 1.9 अयास के उर 1.10 सदभथ सूिी 1.11 तनब ि धाक 1.1 िावना- वतथान सय तभन-तभन कार के शारीरक एव ि ानतसक रोग बढ़ते जा रहे है। तजनकी तभन- तभन कार से तितकसा की जा रही है परतु तितकसा के उपरात भी इन रोग की स ि या ता इन रोग से पीत ि त रोतगय की स ि या बढ़ती जा रही है। इन रोग के परपेय ाकृततक तितकसा एक सरल, सुलभ, उपयोगी ता ाई साधान है। ाकृ ततक तितकसा वातव कोई तितकसा शा ना होकर हारे जीवन की एक शैली है तजसके अतथगत ह कृ त के सीप रहकर ाकृ तक तनय का पालन करते है। इसका सबध हारी सयता और स ि कृ तत से है हारे पूवथज इसके सा अपने जीवन को जोड़कर सौ वषो की व आयु को ा करते े परतु जब से हने इस जीवन शैली से द र होकर अाकृततक जीवन शैली को अपनाया तभी से तभन-2 कार के रोग ने हारे जीवन को घेर तलया।

Upload: others

Post on 01-Feb-2020

26 views

Category:

Documents


0 download

TRANSCRIPT

  • प्राकृतिक तितकत्सा N.S-01

    mRrjk[k.M eqDr fo”ofo|ky; 1

    इकाई 1 प्राकृतिक जीवन की अवधारणा, प्राकृतिक तितकत् सा का अथ ,

    पररभाषायें एवं इतिहास

    1.1 प्रस्तावना

    1.2 उद्दशे्य

    1.3 प्राकृततक जीवन की अवधारणा

    1.4 प्राकृततक तितकत्सा का अर्थ

    1.5 प्राकृततक तितकत्सा की पररभाषायें

    1.6 प्राकृततक तितकत्सा का इततहास

    1.7 साराांश

    1.8 शब्दावली

    1.9 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर

    1.10 सन्दभथ ग्रन्र् सिूी

    1.11 तनबांधात् ् क प्रश्न

    1.1 प्रस्िावना-

    वतथ्ान स्य ्ें तभन्न-तभन्न प्रकार के शारीररक एवां ्ानतसक रोग बढ़ते जा रह ेह।ै तजनकी तभन्न-

    तभन्न प्रकार से तितकत्सा की जा रही ह ैपरन्त ुतितकत्सा के उपरान्त भी इन रोगों की सांख्या तर्ा इन

    रोगों से पीत ांत रोतगयों की सांख्या बढ़ती जा रही ह।ै इन रोगों के पररपेक्ष्य ्ें प्राकृततक तितकत्सा एक

    सरल, सलुभ, उपयोगी तर्ा स्र्ाई स्ाधान ह।ै

    प्राकृततक तितकत्सा वास्तव ्ें कोई तितकत्सा शात्र न ना होकर ह्ारे जीवन की एक शैली ह ैतजसके

    अन्तथगत ह् प्रकृतत के स्ीप रहकर प्राकृततक तनय्ों का पालन करते ह।ै इसका सम्बन्ध ह्ारी

    सभ्यता और सांस्कृतत से ह ैह्ारे पवूथज इसके सार् अपने जीवन को जोड़कर सौ वषो की स्वस्र्

    आय ुको प्राप्त करते र्े परन्त ुजब से ह्ने इस जीवन शलैी से दरू होकर अप्राकृततक जीवन शलैी को

    अपनाया तभी से तभन्न-2 प्रकार के रोगों ने ह्ारे जीवन को घेर तलया।

  • प्राकृतिक तितकत्सा N.S-01

    mRrjk[k.M eqDr fo”ofo|ky; 2

    प्रस् ततु इकाई ्ें प्राकृततक जीवन की अवधारणा के सार्-सार् प्राक़ततक तितकत् सा के अर्थ,

    पररभाषाओ तर्ा इततहास का वणथन तकया जा रहा ह।ै

    1.2 उदे्दश्य-

    इस इकाई ्ें आप

    प्राकृततक जीवन की अवधारणा को जान सकोंग।े

    प्राकृततक तितकत्सा के अर्थ को स्झ सकोंग।े

    प्राकृततक तितकत्सा की पररभाषाओ ां का अध्ययन करोग।े

    प्राकृततक तितकत्सा के इततहास को जान पाओ ांग े।

    1.3 प्राकृतिक जीवन की अवधारणा-

    प्रकृतत के अनरुूप जीवन यापन करना प्राकृततक जीवन कहलाता ह।ै दसूरे शब्दों ्ें जीवन को प्रकृतत

    के अनसुार जीना ही प्राकृततक जीवन कहलाता ह।ै प्रािीन स्य ्ें व् यति प्राकृततक रूप से अपनी

    जीवन ियाथ िलता र्ा वह प्रकृतत के तबलकुल पास र्ा। पथृ्वी, जल, वाय,ु अतनन, आकाश (पांि-

    तत् वों) के तबलकुल स्ीप र्ा इसतलए व शारीररक रूप से बतलष् , तर्ा ्ानतसक रूप से स् वस् थ् य

    र्ा।

    प्रकृतत के तनय्ों का पालन करते हुए प्रकृतत के स्ीप वास करना ही प्राकृततक जीवन ह।ै यहाां पर

    आपके ्न ्ें प्राकृततक तनय् क्या होते ह ै तर्ा इनका पालन कैसे होता ह ैअर्वा ्नुष्य तकस

    प्रकार प्रकृतत के स्ीप वास कर सकता ह।ै यह प्रश्न उ,ने स्वाभातवक ह।ै इन प्रश्नों के उत्तर ्ें ह्ें

    सबसे पहले प्राकृततक तनय्ों को जानना आवश्यक होगा-तजनका वणथन इस प्रकार ह-ै

    प्राकृततक तदनियाथ-

    प्रातःकाल सयूोदय से पवूथ उ,ना प्रर्् प्राकृततक तनय् ह।ै सा्ान्यतया सांसार के सभी जीव जन्त ु

    इस प्रर्् तनय् का पालन स्वतः ही करते हैं। अत: व् यति को िातहए तक वह ्रहह््हुुतथ ्ें अवश् य

    तनद्रा त् याग कर द।े

    प्राकृततक आहार-

  • प्राकृतिक तितकत्सा N.S-01

    mRrjk[k.M eqDr fo”ofo|ky; 3

    वतथ्ान स्य ्ें व् यति का आहार असांततुलत ह ैत ब् बा बन् द, फास् फू के सेवन से उसे बी्ार कर

    तदया ह।ै प्रकृतत ने ह्ें जो आहार तजस रूप ्ें तदया ह ैह्ें उसी रूप ्ें इस आहार का सेवन करना

    िातहए। इसे ग्थ करने, तलने भनूने तर्ा त्िथ ्साले प्रयोग करने से इसकी प्रकृतत बदल जाता ह।ै

    प्राकृततक वातावरण-

    प्राकृततक वातावरण ्ें वास करना प्राकृततक तनय् ह।ै इसके तवपरीत अप्राकृततक वातावरण ्ें

    रहना प्राकृततक तनय्ों का उल्लांघन होता ह।ै

    प्राकृततक सोि-तविार-

    प्राकृततक सोि तविार से अर्थ सकारात््क भावों को अपनाने से ह।ै झ,ू, िोरी, तहांसा से अलग

    सतत सखु की का्ना करते हुए आसन-प्राणाया् तर्ा ध्यान का अभ्यास प्राकृततक तनय्ों के

    अन्तथगत आता ह।ै

    प्राकृततक सांसाधनों का प्रयोग-

    जीवन ्ें प्राकृततक सांसाधन (त्ट्टी-जल-अतनन-वाय ुतर्ा आकाश) तत्वों का प्रयोग करना प्राकृततक

    तनय् के अन्तथगत आता ह।ै ्नषु्य को आरोनय तर् सा्ान्य स्वास्थ्य बनाये रखने के तलये प्राकृततक

    जीवन के 5 तनय् बनाये गये ह ैजो तनम्नानसुार ह ै

    सप्ताह ्ें एक बार उपवास रखे.

    तदनभर ्ें 10-12 तगलास पानी पीयें.

    प्रातः व सांध्या प्रार्थना

    तनयत्त व्याया्

    तदन ् ेतसफथ दो बार भोजन करना

    1.4 प्राकृतिक तितकत्सा का अथ

    प्रकृतत प्रदत्त तितकत्सा को प्राकृततक तितकत्सा कहते हैं। शरीर से सांतित तवजातीय द्रव्यो को

    प्राकृततक साधनो द्वारा तनकालना एवां जीवनी शति को उन्नत करना ही प्राकृततक तितकत्सा

    कहलाती ह।ै प्राकृततक तितकत्सा एवां योग एक ही गाड़ी के दो पतहये ह।ै प्राकृततक जीवन एवां योग

    को छोड़कर और कोई भी तितकत्सा पद्धतत पणूथ स्वास्थ्य प्रदान नही कर सकती। उसका ज्ञान प्राप्त

    कर हर व्यति अपन े स्वास्थ्य के तलये आत्् तनभथर हो जाता ह।ै प्राकृततक तितकत्सा तसफथ एक

  • प्राकृतिक तितकत्सा N.S-01

    mRrjk[k.M eqDr fo”ofo|ky; 4

    तितकत्सा ही नही बतल्क जीवन पद्धतत ह।ै जब सभी अन्य इलाज असफल हो जाते ह ै तब भी

    प्राकृततक तितकत्सा ् ेइलाज सम्भव ह।ै प्राकृततक तितकत्सा सहज, सरल और सवथत्र ह ैजो एक बार

    इसका आश्रय लेता ह ैवह इसका सच्िा अनरुागी बन जाता ह।ै रोग जड़ से तनकल जाता ह,ै जल्दी

    आरा् होता ह।ै ्न ् ेशातन्त और शरीर ् ेस्फूततथ बढती ह।ै

    प्राकृततक तितकत्सा से सभी दबे रोग भी ,ीक हो जाते ह।ै दवाऐ ां नही खानी पड़ती एवां िीर फाड़ की

    आवश्यकता नही होती। रोगी इस तितकत्सा से आरा् होने पर शीघ्र ही अपन ेसारे कायथ करने लगता

    ह।ै ्न से रोग का भय िला ह।ै प्राकृततक तितकत्सा प्रणाली दोहरा कायथ करती ह।ै प्रर्् कायथ रोगी

    को शीघ्रत् रोग ्िु करना, तद्वतीय कायथ प्रतशतित करना वह प्राकृततक जीवन अपनाकर भतवष्य ् े

    अपने को रोग ्िु रख सके। तलां लार की प्राकृततक तितकत्सा ्ानव रोगो के उपिार की तवतवध

    पद्धततयों की अच्छाइयों को एकत्र करने का सवथप्रर्् प्रयास ह।ै सही अर्थ ् े यह अपन े ढांग की

    एक्ात्र तर्ा उदार पद्धतत ह ैइस् ेपरुानी पद्धततयों की अच्छाइयो को परूा ्हत्व तदया गया ह।ै र्ो े

    से आधारभतू प्राकृततक तनय्ो के बल पर यह अव्यवस्र्ा से व्यवस्र्ा, जत लता से सरलता तर्ा

    उलझन से स्पष्टता लाती ह।ै यह तवतवध प्रकार की औषधीय एवां औषतधतवतहन पद्धततयो ्े

    सा्ांजस्य स्र्ातपत कर उनको कततपय, तसद्धान्तो और प्रयोगो के रुप ् ेप्रस्ततु करती ह।ै यह ्ानव

    इततहास ् े व्यति गत एवां सा्ातजक सधुारो के स्ान पररणा् दनेे वाले अनेक आन्दोलनो का

    प्रतततनतधत्व करती ह।ै यह रोग के कारणो की खोज करती ह ै तर्ा शारीररक, ्ानतसक,

    आध्यातत््क, नैततक एवां ्नोवजै्ञातनक धरातलो पर व्यति का उपिार करती ह ैतर्ा अका ्य तकथ

    से यह तसद्ध करती ह ैकी रोगो का कारण तर्ा उनके प्राकृततक एवां अप्राकृततक उपिार का प्रभाव

    ्ानव जीवन के सभी धरातलो पर स्ान रुप से प्रभावकारी होता ह।ै

    1.5 प्राकृतिक तितकत्सा की पररभाषाए-ं

    प्राकृततक तितकत्सा का शातब्दक अर्थ करने पर यह दो शब्दों प्राकृततक+तितकत्सा से त्लकर बना

    ह ैतजसका अर्थ प्रकृतत द्वारा तितकत्सा से होता ह।ै प्राकृततक तितकत्सा से अर्थ प्राकृततक सांसाधनों

    से तितकत्सा करने से भी होता ह।ै पथृ्वी, जल, अतनन, वाय ुऔर आकाश ये पााँि ्हाभतू प्रकृतत

    द्वारा प्रदत्त हैं इन ्हाभतूों द्वारा जो तितकत्सा की जाती ह,ै प्राकृततक तितकत्सा कहलाती ह।ै

    ह्ारा यह शरीर पांितत्वों से त्लकर बना ह।ै पथृ्वी जल अतनन वाय ुआकाश इन पांितत्वों के

    स्योग से इस शरीर का तन्ाथण होता ह।ै शरीर ्ें इन तत्वों योग जब तक स्अवस्र्ा ्ें रहता ह ै

    तभी तक शरीर स्वस्र् रहता ह ैतकन्त ुजब भी इन तत्वों का योग तवष् हो जाता ह ैतभी यह शरीर

    रोगग्रस्त हो जाता ह।ै रोग की इस अवस्र्ा ्ें प्राकृततक साधनों का प्रयोग कर पांितत्वों के योग को

    पनुः स् बनाना ही प्राकृततक तितकत्सा ह।ै

  • प्राकृतिक तितकत्सा N.S-01

    mRrjk[k.M eqDr fo”ofo|ky; 5

    प्राकृततक तितकत् सा – प्रक़तत के तन्ाथणकारी तसद्धान् तों के अनसुार शारीररक,

    ्ानतसक, नैततक एवां आध् यातत् ् क धरातलों पर सा्न् जस् य के सार् ्ानव तन्ाथण

    की व् यवस् र्ा ह।ै

    प्राकृततक ढांग से जीवन यापन करना ही प्राकृततक तितकत् सा ह।ै

    आकाशतत् व, वाय ुतत् व, अतननतत् व, जल तत् व तर्ा पथृ् वी तत् व का प्रयोग कर रोग

    को ,ीक करने की पद्धतत को प्राकृततक तितकत् सा कहते ह।ै

    प्राकृततक जीवन – प्राकृततक आहार तवहार, तनत् य व् याया्, शारीररक आन् तररक

    व स् वच् छता व सफाई पर तनभथर तितकत् सा ही प्राकृततक तितकत् सा ह।ै

    शरीर ् ेपांि तत् वों के असांतुलन को तजस तितकत् सा पद्धतत के द्वारा पनू- सांततुलत

    तकया जाता ह ैवह प्राकृततक तितकत् सा कहलाती ह।ै

    प्रकृतत के गोद ्ें रहकर ही जीवन यापन करना प्राकृततक तितकत् सा ह।ै

    पणूथत: प्रकृतत पर तनभथर रहने वाली तितकत् सा ही प्राकृततक तितकत् सा ह।ै

    1.6 प्राकृतिक तितकत्सा का इतिहास-

    प्रकृतत प्रदत् त तितकत् सा प्राकृततक तितकत् सा कहलाती ह ैजब भी इस सांसार का उदय हु आ

    होगा (पांि तत् व) पथृ् वी, जल, अतनन, वाय ुव आकाश अवश् य ही इस सांसार ्ें व् याप् त होगें। अत: ह्

    कह सकते ह ैतक तजतनी परुानी प्रकृतत ह ैउतनी ही परुानी प्राकृततक तितकत् सा ह।ै इसतलए ह् कह

    सकते ह ैसांसार की स्स् त प्रितलत तितकत् सा पद्धततयों ्ें सबसे प्रािीन तितकत् सा पद्धतत प्राकृततक

    तितकत् सा ह।ै अगर प्रािीनत् आषथ ग्रन् र्ों का अवलोकन करे तो सबसे प्रािीनत् ग्रन् र् वदे कह े

    जाते ह ैवदेो ्ें प्राकृततक तितकत् सा से सम् बतन्धत कई बातो का वणथन त्लता ह।ै

    ऋन वदे ्ें अतननवदेव का आरवावाहन करते कहा ह।ै

    यदन ने स् य्हां त् वां त् वां वा धा स् या अह्

    स् यषु् े सत् या दहूातशष: (ऋ 0 8/44/23)

    अर्ाथत ह ेअतनन दवे यतद ्ैं तू अर्ाथत सवथ स्तृद्ध सम् पन् न हो सकू या त ू्ैं हो जाय तो ्रेे

    तलए तेरे सभी आशीवाथद सत् य तसद्ध हो जाय।

    पथृ् वी को वदेों ्ें ज्ञान व तवज्ञान का प्रतीक ्ाना है-

  • प्राकृतिक तितकत्सा N.S-01

    mRrjk[k.M eqDr fo”ofo|ky; 6

    श्रष् ,ात थितर्य या अह्न् तररि्ारूह ्न् तररक्ष् ताद तदव्ारूह् तदवों नाकस् य थिष् ,ात स् वजयो

    ततरगा्ह् इस ऋिा ्ें पथृ् वी अन् तररि ओर ्ो ्रम्श: अन् न, प्राण और ्न की

    भतू्काओ के प्रतीक ह।ै

    तप्रय पा,को स् ् रण रह ेभारतीय तिन् तन ् े ह्शेा इन पांि तत् वो को दवे स् वरूप ्ाना ह ै

    हवन, यज्ञ इत्यातद अनषु् ,ानो ्े इन तत् वो की पजूा की जाती ह।ै

    वदे काल के सार् – सार् परुाण काल ्ें भी प्राकृततक तितकत् सा सवथव् याप्त र्ी। राजा

    तदलीप की अगर कहानी आपने पढी होगी तो कहा जाता ह ैतक जांगल सेवन तर्ा दनु धपान

    उनकी तदनियाथ का एक अतभन् न अांग र्ा। राजा दशरर् ने यज्ञ के बाद फल कल् प कराकर

    सन् तान लाभ तलया र्ा। प्रािीन स्य पर आधतुनक तितकत् सा पद्धतत तकसी भी रूप ्ें नही

    र्ी परुाने वै् ो के पास जब व् यति जाता र्ा जो उन् ह ेउपवास कराया जाता र्। भगवान वदु्ध

    ने भी प्रकृततक तितकत् सा की उपयोतगता को ्ाना ह।ै वौद्ध दशथन की पसु् तक ्हाबन ग ्ें

    तलखा ह ै तक एक बार तवशलेे सपथ ने एक तभि ुको का तदया। जब इन बात की सिूना

    भगवान बदु्ध को त्ली तो उन् होनें कहा – ह ेतभिुओ ्ैं तमु् ह ेआज्ञा दतेा हक ाँ तक तवष नाश के

    तलए तिकनी त्ट्टी, गोबर, ्तू्र और राख का उपयोग करो। अत: हजारो साल परुानी यह

    घ ना बताती ह ैतक रोग नाश तवषनाश के तलए प्राकृततक तितकत् सा का उपयोग प्रािीनत्

    स्य से िला आ रहा ह।ै वतथ्ान ्ें प्राकृततक तितकत् सा के कई प्रयोग आधतुनकत् तरीके

    से हो रह ेह ैपर व ेसभी अपनी पवूाथवस् र्ा ्ें प्रािीन स्य से भारत ्ें तवघ्ान र्े। भलई

    आधतुनक ना् उनके तभन् न हो पर इनका आधार प्रािीन प्राकृततक तितकत् सा ही ह।ै

    उदाहरणार्थ वतथ्ान ्ें वा र-तसतपांग, तस जबार्, एतन्ा; तर्ा स् ाथ्वार् को प्रािीन स्य

    ्ें आि्न, जलस्पशथ, वतस्त तर्ा स् वदे स् नान कहत हो। भलई प्राकृततक तितकत् सा प्रणाली

    भारत की ह ैपर इस प्रणाली के पनुतनथ्ाथण का श्रेय पाश् िातय दशेो को भी जाता ह।ै ईसा स े

    कई वषथ पवूथ तहपो्ेरम ीज तजसको प्राकृततक तितकत् सा प्रणाली का जनक कहते ह ैअपन े

    रोतगयो को तनयत्त रूप से सयूथ स् नान करवाता र्ा। आधतुनक स्य ्ें कई प्राकृततक

    तितकत् सको ने प्राकृततक तितकत् सा के उत् र्ान के तलए कायथ तकया ह ै तजस्ें सर जान

    फ्लायर, तवनसेंज तप्रतस्नज, सीलास न लीसन, जोहान् र् फादर तनप, ररक् ली, लुई कुने, ा0

    राने, ए ोल् फ जस् , ्हात् ् ा गध ांधी, कुलरांजन ्खुजी, ्ोरारजी दसेाई, गांगा प्रसाद नाहर ,

    ा0 ्हावीर प्रसाद पोदार, ा0 तव ,लदास ्ोदी इत् यातद प्र्खु ह।ै

    अभ् यास प्रश् न

    (1) बहुतवकल् पीय प्रश् न

    (क) रोगों के उपिार ्ें प्राकृततक तितकत्सा द्वारा उपिार ह-ै

  • प्राकृतिक तितकत्सा N.S-01

    mRrjk[k.M eqDr fo”ofo|ky; 7

    (अ) सरल (ब) सलुभ (स) स्र्ाई लाभ (द) सभी

    (ख) प्राकृततक तितकत्सा का सम्बन्ध ह-ै

    (अ) तनयत्त दवाईयों के सेवन से

    (ब) भोजन त्यागने से

    (स) प्रकृतत प्रदत् त तनय्ों का पालन करने से

    (द) इन्ें से कोई नहीं

    (ग) शरीर ्ें तस्र्त ्हाभतूों की सांख्या ह-ै

    (अ) दो (ब) पााँि (स) आ, (द) दस

    (घ) एक गाड़ी के दो पतहए कह ेजाते ह-ै

    (अ) प्राकृततक तितकत्सा और एलोपैर्ी (ब) प्राकृततक तितकत्सा और एक्यूप्रेशर

    (स) प्राकृततक तितकत्सा और योग (द) प्राकृततक तितकत्सा और होम्योपैर्ी

    ( .) Return To Nature पसु्तक के लेखक हैं-

    (अ) ए ोल्फ जस् (ब) लईु कुने

    (स) आनथल् ररकली (द) जमे्स क्यरूी

    (2) सत्य/असत्य बताइए -

    (क) वतथ्ान स्य ्ें रोग एवां रोतगयों की सांख्या बढ़ रही ह।ै

    (ख) प्रकृतत के स्ीप जीवन यापन करने से ह् स्वस्र् रहते ह।ै

    (ग) शरीर ्ें तवजातीय पदार्ो के एकत्र होने से जीवनी शति बढ़ती ह।ै

    (घ) प्राकृततक तितकत्सा ्ें दवाइयों का सेवन तकया जाता ह।ै

    ( .) पांितत्वों के स्योग से स्वास्थ्य की प्रातप्त होती ह।ै

    1.7 सारांश-

    प्राकृततक तितकत्सा एक तितकत्सा प्रणाली ना होकर जीवन शलैी ह।ै तजसके अन्तथगत प्राकृततक

    जीवन एवां प्राकृततक आहार तवहार का स्ावशे होता ह।ै इसे अपनाने से ्नषु्य शारीररक ्ानतसक

    एवां आध्यातत््क स्तर पर स्वस्र् रहता ह।ै प्रस् ततु इकाई ्ें आपने प्राकृततक तितकत्सा की तवतभन्न

    पररभाषाओ ां को जाना इन पररभाषाओ ां को सार रूप ्ें यह कहा जा सकता ह ै तक प्रकृतत प्रदत् त

    साधनों द्वारा तितकत्सा प्राकृततक तितकत्सा ह।ै पथृ्वी जल, अतनन, वाय ुऔर आकाश इन पांितत्वों

    के द्वारा जो तितकत्सा की जाती ह ैवही प्राकृततक तितकत्सा कहलाती ह।ै प्राकृततक तितकत्सा का

    उद्ग् भारतवषथ परन्त ुदसूरे तवकास का श्रेय पति्ी दशेों के तितकत्सकों, तविारकों, तिन्तकों एवां

    दाशथतनक को जाता ह।ै भारत ्ें वतैदक सभ्यता ्ें पथृ्वी, सूयथ, अतनन रूप पांितत्वों की दवे के रूप ््ें

    पजूा अिथना का वणथन प्राप्त होता ह ैतर्ा रोग की अवस्र्ा ्ें उपवास एवां लांघन का वणथन त्लता ह।ै

    तकन्त ुआग ेिलकर जब औषध तितकत्सा का प्रयोग बहुत बढ़ा तर्ा प्राकृततक तितकत्सा का लोप

  • प्राकृतिक तितकत्सा N.S-01

    mRrjk[k.M eqDr fo”ofo|ky; 8

    हुआ उस स्य पति्ी दशेों के तितकत्सकों ने इसके प्रिार-प्रसार ्ें अपनी ्हत्वपणूथ भतू्का

    तनभाई।

    1.8 शब्दावली

    प्रकृतत प्रदत्त - प्रकृतत द्वारा प्रदान तकया गया

    तवजातीय द्रव्य - गन्दतगयाां

    अवधारणा - तकसी तवषय के प्रतत सोि

    स्ावशे - जो ना

    उद्ग् - शरुूवाद, उत् पतत्त

    1.9 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर

    (1) (क) – द (ख) – स (ग) – ब (घ) – स ( .) - ब

    (2) (क) – सत् य (ख) – सत् य (ग) असत् य (घ) असत् य ( .) सत् य

    1.10 संदभ ग्रन् थ सचिी

    ा. राकेश तजन्दल - प्राकृततक आयुथतवज्ञान (2006) – आरोन य सेवा प्रकाशन पांिव ी,

    उ्ेश पाकथ , ्ोदीनगर

    1.11 तनबंधात् क प्रश् न

    (1) प्राकृततक तितकत् सा से आप क् या स्झते हो तवस् तार पवूथक स्झाइये।

    (2) प्राकृततक तितकत् सा के इततहास की तवस् तार पवूथक ििाथ कीतजए।

  • प्राकृतिक तितकत्सा N.S-01

    mRrjk[k.M eqDr fo”ofo|ky; 9

    इकाई-2 प्राकृतिक तितकत्सा के चलभचि तसद्धान्ि

    2.1 प्रस्तावना

    2.2 उद्दशे्य

    2.3 प्राकृततक तितकत्सा के ्लूभतू तसद्धान्त

    2.3.1 प्रर्् तसद्धान्त

    2.3.2 तद्वतीय तसद्धान्त

    2.3.3 ततृीय तसद्धान्त

    2.3.4 ितरु्थ तसद्धान्त

    2.3.5 पांि् तसद्धान्त

    2.3.6 षष्ट तसद्धान्त

    2.3.7 सप्त् ्तसद्धान्त

    2.3.8 अष्ट् ्तसद्धान्त

    2.3.9 नव् ्तसद्धान्त

    2.3.10 दश् ्तसद्धान्त

    2.4 साराांश

    2.5 शब्दावली

    2.6 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर

    2.7 सांदभथ ग्रन्र् सिूी

    2.8 तनबांधात् ् क प्रश्न

  • प्राकृतिक तितकत्सा N.S-01

    mRrjk[k.M eqDr fo”ofo|ky; 10

    2.1 प्रस्िावना-

    तप्रय पा,कों तपछली इकाई ्ें आपने प्राकृततक जीवन की अवधारणा के तवषय ्ें जाना तर्ा

    प्राकृततक तितकत्सा के अर्थ का अध् ययन तकया। प्राकृततक तितकत्सा का सम्बन्ध प्राकृततक जीवन

    के सार् ह ै तजस्ें प्राकृततक सांसाधनों (पथृ्वी, जल, अतनन, वाय,ु आकाश) के द्वारा तितकत्सा की

    जाती ह।ै प्राकृततक तितकत्सा के तभन्न-2 अनपु्रयोग वतथ्ान स्य ्ें िल रह े ह ै परन्त ु इसके

    अनपु्रयोग से पवूथ इस तितकत्सा पद्धतत के तसद्धान्तों को जानना अत्यन्त आवश्यक ह।ै

    प्रस्ततु इकाई ्ें आप प्राकृततक तितकत्सा के ्लूभतू तसद्धान्तों का वणथन तकया जा रहा ह ै तजसे

    जानकर पा,क प्राकृततक तितकत्सा को भली-भााँतत स्झने तर्ा तितकत् सा करने ्ें सि् हो सकें ग-े

    2.2 उदे्दश्य-

    प्रस्ततु इकाई ्ें आप

    रोगों की एकरूपता का अध् ययन करोग।े

    तितकत्सा की एकरूपता को स्झ सकोग।े

    तवजातीय तवष के तसद्धान्त को जान सकोग।े

    तीव्र रोग एवां जीणथ रोगों का तवश् लेषण करोग।े

    उभार के तसद्धान्त को जान सकोग।े

    शरीर-्न-आत््ा तीनों की एक सार् तितकत्सा का अध्ययन करोग।े

    2.3 प्राकृतिक तितकत्सा के चलभचि तसद्धान्ि-

    प्राकृततक तितकत्सा के प्र्खु तसद्धान्त इस प्रकार हैं -

    इस तितकत्सा प्रणाली ्ें दवाईयों का प्रयोग नहीं तकया जाता ह।ै

    प्राकृततक तितकत्सा ्ें रोग एक, कारण एक तर्ा तितकत्सा भी एक ही होती ह।ै

    तीव्र रोग श़त्र ुनही त्त्र ह।ै

    रोगो के ्लू कारण की ाण ुनही होते ह।ै

    प्रकृतत स्वयां तितकत्सक ह।ै

  • प्राकृतिक तितकत्सा N.S-01

    mRrjk[k.M eqDr fo”ofo|ky; 11

    तितकत्सा रोग की नही शरीर की होती ह।ै

    रोग तनदान की तवशषे आवश्यकता नही ह।ै

    जीणथ रोगो के आरोनय ्ें कुछ स्य अतधक लगता ह।ै

    प्राकृततक तितकत्सा ्ें उभार की सम्भावना होती ह।ै

    शरीर, ्न, आत््ा का इलाज ह ैप्राकृततक तितकत्सा

    1.4.1 इस प्राकृततक तितकत्सा प्रणाली ्ें दवाईयों का प्रयोग नहीं तकया जाता - प्राकृततक

    तितकत्सा ्ें केवल 5 तत्व त्ट्टी, पानी धपू हवा, आकाश एवां छ,ा तत्व पर् तपता जगत तनयन्ता

    जगत का सजृनहार ईशतत्व ह,ै इस तितकत्सा ्ें फल, साग सब्जी अनाजों का आहार ्ें प्रयोग

    होता ह ैइन्ें भी भरपरू पाांि तत्व ह,ैसांसार का कोई प्राणी या पौधा जो सजीव ह ैबढ रहा ह ैउन सब् े

    यही पाांि तत्व तवघ्ान ह।ै इन पाांि तत्वो के तबना तकसी जीव का अतस्तत्व नही होगा, हााँ इन् े

    प्रत्येक आहार के तत्वो ् े तकस खा् पदार्थ ् े तकस तत्व की प्रधानता है, यह जानकारी होनी

    िातहये और तकस व्यति ् ेकौन सा तत्व तवशेष रुप से दनेे की आवश्यकता ह ैवह दनेा िातहये।

    प्रायः रोगी दवाईयो की पद्धतत का उपयोग करने के बाद आता ह,ैरोग तो वसेे भी तसद्धान्ततः स्वयां से

    ही तवकार ह,ै उपर से अज्ञानवश अनेक दवाईयध जो सभी रासायतनक असाध्य और तवजातीय होती

    ह,ै रोगी के शरीर ् ेउनका जहर होता ह,ै ऐसे ् ेह् उन्ह ेशोधन हते ुआहार दतेे ह,ै सांसोधन की

    त्रमया एक साधना ह,ै वसेै ह् प्राकृततक तितकत्सा ् ेआने वाले रोगो को त्त्र ही ्ानते ह।ै अपने

    आप का तबना दवा तनरोग रखने हते ुआकाश तत्व सबसे ्हत्वपणूथ ह ैजीवन ् ेइसकी आवश्यकता

    अन्य तत्वो की अपेिा अतधक ह,ै इससे शरीर ् ेस्वस्र्ता, सनु्दरता, आरोनय व दीघाथय ुप्राप्त होती ह,ै

    आकाश तत्व के सेवन का ्ागथ तनराहार रहना यातन उपवास करना होता ह।ै

    पध ांि तत् वो के ्ाध् य् से ही प्राकृततक तितकत् सा की जाती ह ैइसतलए इस पद्धतत ्ें तकसी

    भी प्रकार की औषतध तदये जाने का प्रश् न ही नही उ,ता। वतथ्ान ्ें व् यति की जीवनशलैी

    अतनयत्त होने के कारण वह कई शारीररक व ्ानतसक रोगो की िपे ्ें ह ैऔर इनके तनदान के

    तलए वह दवाइयों पर तनभथर रहता ह।ै

    दवाइयो से लाभ हो या न हो पर यह तन तित ह ैइसके दषु् प्रभाव शरीर ्ें अवश् य प ते ह।ै

    प्राकृततक तितकत् सा तवशदु्ध व तनदोष तितकत् सा पद्धतत ह ै इस्ें तितकत् सा के तलए

    दषु् प्रभावों से रतहत पांि तत् वो का सहारा तलया जाता ह।ै अत- तजज्ञास ु पा,को को िातहए तक

    प्राकृततक तितकत् सा के पहले तसद्धान् त का उपयोग उसे दतैनक जीवन ्ें करना िातहए।

  • प्राकृतिक तितकत्सा N.S-01

    mRrjk[k.M eqDr fo”ofo|ky; 12

    1.4.2 प्राकृततक तितकत्सा ्ें रोग एक, कारण एक, तर्ा तितकत्सा एक ही होती ह ै- शरीर ् ेरोग

    एक ह,ै शरीर ् ेसांतित ज्ा हुआ ्ल, तजसे तवजातीय द्रव्य कहते ह ैआयवुदे भी रोगो का कारण

    शरीर ्ें ्ल सांिय ्ानता ह।ै आयवुदे कहता ह ैसभी रोगो का कारण शरीर ्ें ्ल सांिय ह ैऔर

    ्ल के सांिय का कारण गलत खाना पीना गलत रहन सहन ह।ै शरीर ्ें ज्ा तवकार रोग ह ैऔर

    शरीर के तवतभन्न अांगो द्वारा उसको तनकालने की जो प्रतकया शरीर की जीवनी शति करती ह।ै तबना

    तकसी दवा के सभी रोग केवल आहार-तवहार रहन-सहन के सधुार से ,ीक होते ह ै यतद आहार-

    तवहार, रहन-सहन ,ीक नही तो सैक ो दवाए लाभ नही करती ह ैयही सच्िी प्राकृततक तितकत्सा ह।ै

    दतुनया के लोग रजस त्स प्रधान ह ैऔर रजस त्स प्रधान व्यति तवलासी होता ह।ै उसे पथ्य रहन

    सहन सधुारने को कहना ही व्यर्थ होता ह।ै तवलासी व्यति भाांग, गाांजा, अफी्, शराब, तम्बाकू,

    बी ी, तसगरे , स््कै, त्िथ, न्क, ग्थ ्साले आतद ना जाने तकतने असाध्य आहार लेता ह।ै उसे

    उपरोि सभी वस् तएुां िातहये, इस्ें से कुछ भी नही छो ेगा ्ाांस, ्छली, अां ा खाने वालो को य े

    सब खाते हुए और सदा खाते रहने के तलये शरीर को बनाये रखना ह ैतो भला व ेप्राकृततक तितकत्सा

    क्यों करेंगे? तफर तो व ेदवा ही खायेंग ेऔर दवा के भरोसे तजतनी तजन्दगी ह ैउतनी और िला लेते ह ै

    तकन्त ुपरहजे सांय् नही करते ह।ै प्राकृततक तितकत्सा ् ेइन्ही सब कुपथ्यो को रोग का कारण ्ानते

    ह।ै आयवुदे भी ्ानता ह,ै सभी रोगो का कारण सांतित ्ल और सांतित ्लो का कारण गलत

    जीवन ह,ै इसका एक ही इलाज ह ैकी गलत आदतो को छो ना तर्ा तजन गलती के कारण रोग

    हुआ ह,ै ्ल सांतित हुआ ह ैउनका सधुार करना तर्ा एतन्ा, भाप, उपवास, व्न, नेतत, ्ातलश,

    भोजन का सघुार करके रि शतुद्ध, शरीर शतुद्ध, ्ल शतुद्ध करके शरीर तनरोग तकया जाता ह।ै इसी से

    प्राकृततक तितकत्सा की जाती ह।ै

    1.4.3 तीव्र रोग शत्र ुनही त्त्र हैं- शरीर ्ें तवकार ज्ा होने पर उस तवकार को तनकालने की जो

    शरीर की जीवनी शति द्वारा िेष्टा की जाती ह ैउसे ही रोग की सांज्ञा दी जाती ह,ै शरीर के तकस भाग

    ्ें तकस तरह का तवकार तनकलता ह ैया क्या लिण तदखता ह ैवसैा ना् उस रोग को स्झने के

    तलये द ेदतेे है, जसैे तकसी को दस्त लग रह ेहो तो पे ् ेगन्दगी (्ल) ज्ा होने पर प्रकृतत उसे

    तनकालने का प्रयत्न दस्त के रुप ् ेकर रही होती ह,ै इसतलये दस्त होना एक रिनात््क िेष्टा ह।ै यह

    शरीर के तहत के तलये ही हो रहा ह।ै अतः एतन्ा दकेर उस दस्त को बार-बार होने के कष्ट से बिाया

    जा सकता ह।ै इसी प्रकार तकसी के नाक से बलग् आती ह ैउसे नजला कहते ह,ै तो शरीर ् ेबलग्

    बढ़ने पर ही प्रकृतत उसे नाक के जररये बाहर तनकाल रही होती ह।ै उसे ह्ने जकुा् का ना् द ेतदया,

    स्झने हते ुयह जकुा् शरीर के तहत ्ें प्रकृतत की िेष्टा ह,ै ह्ें जकुा् की सहायता करनी िातहये।

    जल नेतत न्क को पानी स ेकरने से लाभ होता ह ैतर्ा कफ रतहत भोजन (सब्जी, फल) लेने से भी

    जकुा् ,ीक हो जाता ह।ै शे्लष््ा यिु आहार, दधू और लेंसदार अन्न होते ह,ै उन्ह ेबन्द करके हरी

    सब्जी और फल लेने से शे्लष््ा को बढने से नाक से जो स्राव हो रहा ह ैवह बन्द हो जाता ह।ै यह

  • प्राकृतिक तितकत्सा N.S-01

    mRrjk[k.M eqDr fo”ofo|ky; 13

    प्राकृततक तितकत्सा की तवतध ह ैशरीर ् े रोग स्वयां उपिार करने की प्राकृततक तव्ा ह ैरोग ना्

    ह्ने अपनी सतुवधा के तलये तदया ह ैवसेै शरीर ् ेज्ा हुआ तवकार तनकालने की प्रत्रमया ही रोग ह,ै

    रोग का कायथ तवधेयात् ् क ह ैइसीतलये रोग श़त्र ुनही त्त्र ह।ै

    1.4.4 रोगो का ्लू कारण की ाण ुनही होते हैं- रोग की ाण,ु जीवाण ुया तवषाणओु से होते ह ैयह

    तसद्धान्त ऐलोपेर्ी तितकत्सा ्ें ्ानते ह।ै की ाण ुउसी शरीर ् ेपैदा होते ह ै तजसके शरीर ् ेउनके

    जीने हते ुवस्तुए होगी अर्ाथत स ा ्ल कू ा किरा होगा, वहीं की ाण ुहोगें, तजनके शरीर ् ेरि

    तवकार नही होगा वहाां की ाणओु को आहार प्राप्त नही होगा। वसेै आधतुनक तितकत्सा तवज्ञान वाले

    भी शरीर ् ेरोग की सरुिात््क शति की उपतस्र्तत से रोग नही होना ्ानते ही ह,ै वह सरुिात््क

    व्यवस्र्ा क्जोर होने पर ही तकसी बाह्य जगत का की ाण ुशरीर पर अपना प्रभाव उपतस्र्त कर

    सकता ह।ै यह शरीर अपने आप ् े एक सम्पणूथ व्यवस्र्ा यिु लोक ह।ै इस शरीर की तलुना

    ्रहह्ाय से की गई ह ै “यर्ा तपय े तर्ा ्रहह्ाय े” यह शरीर अपनी ू फू की ्रम््त स्वयां

    करता ह,ै इस् ेव ेत्ा् व्यवस्र्ायें, जो एक राष्र ्ें या परेू ्रहह्ाय ् े ह।ै आधतुनक तितकत्सा

    तवज्ञान ने ही कहा ह ैतक शरीर ्ें श्वेत रि कण ¼WBC½ की ाणओु ां की ऐसी सेना ह,ै जो तकसी भी

    रोगाण ुको शरीर ्ें प्रवशे करते ही उसे आत््सात कर जाती ह।ै हध इन श्वेत रि ाणओु की फौज

    अवश्य ही सबल रहनी िातहये, श्वेत रि ाणओु की फौज की सबलता रि ्ें पाये जाने वाले शदु्ध

    सभी रासायतनक तत्व तव््ान होना आवश्यक होता ह,ैजो सांततुलत आहार शदु्ध वायु, सयुथ की

    खलुी धपू खलुा आकाश, उतित व्याया्, तवश्रा् सांततुलत ्न होने से व ेशरीर की शति बढान े

    वाले तत्व बनते बढते काय् रहते ह,ै इसे सांिेप ् ेयही कह सकते ह ैकी प्राकृततक जीवन होने से

    शति प्रबल रहती ह,ैजो रोगो के की ाणओु से सरुिा प्रदान करती ह।ै इसीतलये रोगो के कारण

    की ाण ुपनपते ह।ै

    1.4.5 प्रकृतत स्वयां तितकत्सक ह ै - शरीर का स्वभातवक कायथ ह ैपािन, पोषण एवां तनष्कासन।

    शरीर की रिा हते ुशरीर की पुष्टता हते ुशरीर की तघसाव की पतूतथ हते ुआहार की आवश्यकता होती

    ह।ै आहार यतद फल, सब्जी, जसू प्राकृततक रुप ् ेह ैतो शरीर उसे पिाने ् ेक् प्राण शति तजसे

    जीवनी शति कहते ह,ै खिथ होती ह ै तबल्कुल ताजा फल और सतब्जयो ् े ना् का एक पदार्थ

    लाभकारी होता ह ै जो रि के कोषाणओु को सांगत,त करता एवां उनको सांपषु्ट करता ह ै यतद

    अपक्वाहार या उपवास तकया जाय तो जीवन शति ब ी तेजी से शरीर तक तबगाड़ को ,ीक कर

    लेती ह।ै इलाज के दो तरीके ह ैएक दवा दारु करना दसूरी प्राकृततक। एक ्ें रोग दरू करने के तलये

    तवष को दवाओ की भ ातत प्रयोग तकया जाता ह ै दसूरे ्ें प्राकृततक पदार्ो और शति यों को रोग

    तनवारण के तलये ,ीक उपायो की भधतत का् ्ें लाया जाता ह।ै यतद रोग होते ही केवल एतन्ा

  • प्राकृतिक तितकत्सा N.S-01

    mRrjk[k.M eqDr fo”ofo|ky; 14

    दकेर पे साफ कर तदया जाय पीने को सादा शदु्ध जल या फलों का रस अर्वा शहद पानी पर

    उपवास करा तदया जाय तो रोग शीघ्र ,ीक हो जाता ह।ै

    अभ्यास प्रश्न

    (1) ररि स्र्ानों की पतूतथ करें-

    (क) प्रकृतत स्वयां ........................ ह।ै

    (ख) सभी रोग ........................... होते ह।ै

    (ग) तीव्र रोग ............................ होते ह।ै

    (घ) सभी रोगों की तितकत्सा ........................... ही होती ह।ै

    ( .) दस्त होना एक ..................... िेष्टा ह।ै

    1.4.6 तितकत्सा रोग की नही शरीर की - प्राकृततक तितकत्सा की ्ान्यता जब शरीर ्ें तवकार

    रोग का कारण ह ैऔर तकसी भी एक अांग ् े से वह तवकार तनकलता ह,ै या एक स्र्ान पर ख ा

    होकर पी ा दकेर अपने अतस्तत्व का सांकेत दतेा ह ैगत,या को ही लें एक घ ुने ् ेसूजन के रुप ्ें

    सांकेत ह ैतक ये शरीर यरूरक एतस इत्यातद तवषयो से आच्छातदत ह ैऔर एक ध ुने ् ेज्यादा प्रभाव

    तदख रहा ह।ै धीरे-धीरे वह सभी जो ो पर िढ बढ कर प्रभाव तदखाने लगता ह ैतब आप ही बताइये

    की कहाां कहाां तकस जो या तकस भाग की सजून कैसे ,ीक कर लेंग ेजबतक तवकार परेू शरीर ् ेभरा

    हुआ ह।ै इसतलये एक अांग का इलाज ना करके परेू शरीर का इलाज करना होता ह।ै रि ् ेज्ा

    तेजाब अम्ल को सांततुलत करना गत,या का इलाज ह।ै तजसे कोई दवा सांततुलत नही कर सकती

    उसके तलये िारीय आहार दनेा तर्ा कब्ज ्लावरोध आतद के कारण आांतो ् ेज्ा ्ल को एतन्ा

    द्वारा रि ् ेज्ा यरूरक एतस को फलो का रस तपला कर क् करना अतधक पसीना तर्ा ्तू्राअम्ल

    को तनकालना ही गत,या से ्तुि तदलाना होगा। यह रोगी को इतना ब ा भलुावा ह ैतक पी ा शा्क

    दवा जो कुछ घय े ही रहकर पी ा का ज्ञान नही होने दतेी दकेर उसे दवा की सांज्ञा द ेदी जाती ह।ै

    दवा का अर्थ रोग तनवारक व्यवस्र्ा होती ह ैऔर रोग शरीर ्ें ज्ा हुए तवष जहर या ्लसांिय ह ै

    तजसे प्राकृततक तितकत्सा अपने सा्ान्य उपिारो तर्ा भोजन सधुार से ,ीक कर दतेा ह ै इसतलये

    तकसी एक अांग का इलाज ना करके परेू शरीर का उपिार तकया जाता ह ैबहुत बार ऐसा देखा गया ह ै

    तक रोगी ने अपना रोग गत,या, द्ा, उच्िरि िाप या ्धु् हे बताकर उपिार शरुु तकया परन्त ु

    उसको ि्थ रोग भी र्ा उसके पे ् ेददथ भी रहता र्ा, या कहीं पर गध, सजून र्ी और ्खु्य रोग

    बताकर उसी का इलाज हो रहा र्ा। परन्त ुतबना बताये रोग ब े रोग से पहले ,ीक हो गये इससे स्पष्ट

  • प्राकृतिक तितकत्सा N.S-01

    mRrjk[k.M eqDr fo”ofo|ky; 15

    हो गया की तितकत्सा शरीर की हुई और तबना तकसी तवतध से वह रोग भी ,ीक हुए तजनके उपिार

    की ििाथ भी नही की गयी र्ी। ऐसा बहुत बार हुआ ह,ै उससे साफ पता लगता ह ैतक तितकत्सा रोग

    की नही बतल्क परेू शरीर की होती ह।ै

    1.4.7 रोग तनदान की तवशेष आवश्यकता नही - वास्तव ्ें शरीर का इलाज करने से यातन शरीर

    शतुद्धकरण करने ्ात्र से ही रोग ,ीक होने लगते ह ैइसतलये तनदान होने से ही उपिार होगा ऐसी कोई

    अतनवायथ शतथ इस उपिार ् ेनही ह।ै पाकृततक तितकत् सा ्ें लिणो के आधार पर उपिार हो जाता

    ह।ै रोग का सही सही तनदान आज ऐलोपैतर्क तितकत्सा तवज्ञान की आधतुनकत् जधि प्रणाली को

    ना करना कौन स्वीकार करेगा। तजन लोगो को रोग हुआ ह ैउस बात की जानकारी नही ह ैजो रोग के

    कारणो से सवथर्ा अनतभज्ञ ह ै तर्ा स्वयां कुछ करने की फुरसत नही ह ै या करना नही िाहते वह

    धक् रों पर सब कुछ छो दतेे ह ैऔर धक् र की दवा के तलये उनके यहाां सही सही तनदान होना

    अतनवायथ ह।ै अलग-अलग रोग की अलग-अलग दवा होती ह ैजब तक रोग का ,ीक-,ीक तनवारण

    नही होता तब तक दवा दी ही कैसे जायेगी। इसीतलये उनके यहााँ तकसी भी रोगी के ायननोतसस

    अर्ाथत तनदान ् े्हीने लगाते ह।ै कभी-कभी तो उनका रि या ्धस का कोई ुक ा अर्वा शरीर

    का कोई स्राव पदार्थ अ्रेरका, ज्थनी, जापान तनदान हते ुभजेना प ता ह ैऔर ऐसे तनदान के िक्कर

    ्ें ही रोगी स्वगथ तसधार लेता ह।ै ाक् रों को भी ्शीन ही बतायेगी, यहध की ्शीन बताये या

    अ्रेरका की ्शीन बताये बात तो एक ही है। प्राकृततक तितकत्सा ् ेयह तववाद नही ह ैक्योतक

    उपिार तो शरीर का होता ह ैऔर रोग का कारण शरीर ्ें ज्ा तवकार ह ैतवकार त्लते ही रोगी को

    उपिार त्लना प्रारम्भ हो जाता ह।ै प्राकृततक तितकत्सा ् ेरोगी की ्न की सन्ततुष्ट हते ुतनदान कर

    तलया जाता ह ैपरन्त ुआवश्यक प्रतीत नही होता ह।ै ऐसे बहुत सारे उदाहरण तदये जा सकते ह ैतक

    रोग का नही ्ालू् और शरीर के शतुद्धकरण अर्ाथत एतन्ा से ्ल शतुद्ध, ऑत शतुद्ध आहार द्वारा

    रि की शतुद्ध, तविारो द्वारा ्न की शतुद्ध करन ेके उपरान्त शरीर के रि को वाय ुएवां तन्तएु स्वयां

    रिनात््क सजृन ्ें लग जाते ह।ै अतः रोगी को अनेक प्रकार की ्शीनो के स्ि ले जाकर रोग का

    तनदान करना रोग बढाना ही ह।ै

    1.4.8 जीणथ रोगो को आरोन य ्ें कुछ स्य अतधक लगता ह ै - प्राकृततक तितकत्सा के बारे ्ें

    लोगो ् े एक भारी भ्र् ह ै तक यह इलाज का स्य बहुत लेता ह।ै इसका अर्थ ह ै दसूरे इलाज ्े

    आरा् जल्दी त्लता ह ैयह बातें अनेक के ्ुांह से ह् भी सनुते ह।ै प्राकृततक तितकत्सा ् े रोगी

    प्रारम्भ ् ेनही आता ह ैप्रायः त्ा् इलाजो के तरीको से जब उसकी तनराशा की अवस्र्ा आती ह ै

    वह तब प्राकृततक तितकत् सा की शरण लेता ह ै तकसी तकसी रोग से वह 30-40 वषथ रोगी होता ह ै

    और लगातार वषो से दवा िलती ही रही तफर भी रोग नही गया बतल्क रोग का शरीर ् ेतवस्तार ही

    हुआ होता ह।ै उदाहरणार्थ तकसी एक उ गली या घ ुने ् ेददथ शरुु हुआ र्ा 40 वषथ पवूथ तबसे दवा

  • प्राकृतिक तितकत्सा N.S-01

    mRrjk[k.M eqDr fo”ofo|ky; 16

    िलती रही दवा से ददथ ् ेआरा् हो जाता ह ैक्योतक वह दवा पेनतकलर अर्ाथत ददथशा्क र्ी और

    सांवदेनशील नात यों को ददथ की सिूना न दनेे की तस्र्तत ्े पहुिाने की ि्ता उस्ें होती र्ी, इस

    प्रकार ददथ वही रहता और ददथ का कारण त्ा् शरीर ् ेतवजातीय द्रव के रुप ्ें वतथ्ान रहता र्ा।

    रोगी धक् रो अस्पतालो तर्ा अन्यत्र खाक छानता तफरता तक कोई ददथ त् ा द े दवा स ेितणक

    (1,2,4,6,8,10) घय ा आरा् त्ल जाता और वह ददथ वषो से िलता रहता ह ैऔर कैसे भी शरीर

    रुपी गा ी भी िलती रहती ह।ै यतद बीि ् ेकभी कोई प्राकृततक तितकत्सक त्ला तो भी उसके

    द्वारा बताया गया सांय् इतना कत,न लगा की उसे स्वीकार नही तकया गया। शरीर ् ेभले ही रोग का

    तवस्तार होता रहा तकन्त ुदवा के द्वारा ितणक आरा् के सहारे, ददथशा्क के सहारे की लम्बी अवतघ

    पार कर ली गयी। प्राकृततक तितकत्सा ् ेजब उपिार शरुु करते ह ैतो दवाईयों को घीरे-घीरे क्

    करके छु ाना ही होता ह,ै और कई वषो ्ें रोगी उतना अतधक आतद हो िकुा होता ह ै तक दवा

    छो ते ही ददथ वदेना असहाय होती ह।ै पा,कों ध् यान रह े- रोग का कारण तवजातीय दृव्य का शरीर ्ें

    ज्ा हो जाना ह,ै

    1.4.9 प्राकृततक तितकत्सा ्ें उभार की सम्भावना होती ह-ै प्राकृततक तितकत्सा ्ें रोग शरीर ् े

    ्ल भार ज्ा होने का प्रतीक ह ैऔर शरीर उसे जब बाहर तनकालता ह ैउसके ना् अलग-अलग

    तदये गये ह।ै तवकार भी अलग-अलग तकस्् के ह ैऔर शरीर के तवतभन्न अांगो द्वारा जहााँ भी अांगो

    की क्जोरी ह ैवही से तनकलते ह।ै इन तवकारो तनकलने से रोकना या इनके तनकलने से होने वाली

    वदेना श्न तकसी दवा के द्वारा की गयी होती ह।ै तवकार अन्दर ही दबा हुआ उसी रुप प ा रहता ह।ै

    दवाईयध शरीर को इतना बेद् करती ह ै तक वह तवकार शरीर ् े रुकने पर अन्य दसूरे रुप ्ें भी

    तनकलने का सांकेत करता ह ैपरन्त ुअज्ञानी ्ानव उसे नया रोग स्झ उसके तलये तफर और कोई दवा

    जहर दकेर दवा दतेे ह।ै यह ्रम् जीवन भर िलता ही रहता ह ैइसी ्रम् ्ें एक रोग दबाया, दसूरा

    पैदा हुआ, उसे दबाया तीसरा पैदा हुआ उसे दबाते-दबाते िौर्ा, पधिवा, छ,ा रोग ही रोग हो जात े

    ह।ै

    1.4.10 शरीर, ्न, आत््ा का इलाज ह ैप्राकृततक तितकत्सा - आ्तौर से रोगी अपनी शारीररक

    पीड़ा से दःुखी होकर ही िाह ेतकसी पद्धतत ्ें तितकत्सा के तलये भागता है, उसको ज्ञान ही नही ह ै

    तक स्वास्थ्य तकसे कहते ह?ै उसको तो इतना ही ्ालू् ह ैकी उसे भखू नही लगती ह ैतो भखू लग

    जाए बस और कुछ नही िातहये। खजुली हो रही ह ैतो खजुली त् जाय इसतलये कोई पािक खाता

    तफरता या ्लह् लगाकर खजुली ,ीक कर लेता र्ा। तकन्त ुबहुत दवा लगाने पर भी ,ीक नही

    हुआ तो आ गया प्राकृततक तितकत्सा ्ें और उसको भखू भी लग गयी और खजुली भी ,ीक हो

    गयी, शरीर स्तर पर अवश्य ही ,ीक हो गया लगता ह ैरोगी भी ्ानता ह ै् ै,ीक हकाँ तफर क्या िातहये,

    तितकत्सक को पैसा रोगी से त्ला और रोगी को पीढा श्न से सांतोष त्ला यह दोनो का्

  • प्राकृतिक तितकत्सा N.S-01

    mRrjk[k.M eqDr fo”ofo|ky; 17

    प्राकृततक तितकत्सा ्ें आने से पहले भी िल रह ेर्े। दसूरी पद्धतत दवा ् ेभी ये दोनो बातें िल रही

    र्ी तकन्त ु प्राकृततक तितकत्सा ्ें यह तवशषेता होनी िातहये वह रोगी का ्न और आत््ा दोनो

    बदलने का इलाज सार्-सार् दतेे रह,े अस्त ुसबुह शा् प्रार्थना और ्न की शदु्धता पतवत्रता के तलय

    दवैी गणुो को अपने भीतर धारण करने की ि्ता तन्ाथण करना रोगी को अवश्य बताया जाय, शरीर

    शदु्ध तो ्न भी शदु्ध शरीर स्वस्र् तो ्न भी स्वस्र् कहा भी गया ह।ै ”स्वस्र् शरीर ् ेही स्वस्र् ्न

    होता ह,ै कोई भी व्यति अगर ्ानतसक रुप से स्वस्र् ह ैतो वह कभी कोई भलू या तनम्न स्तर का

    कायथ नही करेगा स्वस्र् ्नषु्य को ह्शेा उन्नत ्ागथ पर या सन््ागथ की ओर ही ले जाने वाला ह ैऐसे

    सन््ागो ्ें िलकर की आत््ा भी पर् पतवत्र एवां ्हान हो जाती ह ैइसतलये प्राकृततक तितकत्सा

    कराने वाले रोगी को सच्िा प्राकृततक तितकत्सक रोगी से तनरोगी और तनरोगी से दवेात््ा भी बना

    दतेा ह,ै ऐसे अनेक उदाहरण सा्ने ह।ै अस्त ु प्राकृततक तितकत्सा शरीर ्न आत््ा तीनो की

    तितकत्सा करती ह।ै पा,कों प्रस् ततु ईकाई को पढने के बाद ह् सांिेप ्ें कह सकते ह।ै

    शरीर अपने आप ,ीक होता ह।ै

    रोग का कारण ना ी ्य ल की र्कान ह।ै

    तवजातीय द्रव्य का शरीर ्ें रुकना ही बी्ारी ह।ै

    तीव्र रोग उपिारीय प्रयास ह।ै

    रोग के की ाण ुरोग पैदा नही करते बतल्क व ेरोगावस्र्ा ् ेपाये जाते ह।ै

    बाह्य उपिार िाह ेतकसी भी पद्धतत के हो केवल आरा् दतेे ह ैन तक रोग तनवारण करते ह।ै

    भोजन शरीर बनाने वाला ह ैजीवन शति बढाने वाला नही।

    उपवास तकसी बी्ारी को ,ीक नही करता परन्त ुउससे सारा शरीर ,ीक होता ह।ै

    व्याया् शरीर के पोषण और सफाई ्ें सांतुलन रखता ह।ै

    प्राकृततक तितकत्सा ्ें रोगी की खदु की इच्छा ,ीक होने का तवश्वास और पक्का इरादा

    होना।

    (2) बहुतवकल् पीय प्रश्न-

    (क) प्राकृततक तितकत्सा ्ें शरीर ्ें सांतित ्ल कहलाता ह-ै

  • प्राकृतिक तितकत्सा N.S-01

    mRrjk[k.M eqDr fo”ofo|ky; 18

    (अ) शगुर

    (ब) वसा

    (स) तवजातीय द्रव्य

    (द) पोषक द्रव्य

    (ख) आयवुदे रोगों का कारण ्ानता ह-ै

    (अ) ्ल सांिय

    (ब) पररश्र्

    (स) र्कान

    (द) आहार

    (ग) शरीर ्ें रोग का आ्रम्ण होता ह-ै

    (अ) तवजातीय द्रव्य एकत्र होने से

    (ब) जीवनी शति क् होने से

    (स) सरुिात््क व्यवस्र्ा क्जोर होने से

    (द) सभी

    (घ) श्वेत रि कणों की सांख्या बढ़ती ह-ै

    (अ) सांततुलत आहार से

    (ब) शदु्ध वाय ुसे

    (स) उतित व्याया् से

    (द) सभी से

    ( .) शरीर ्ें तकस तत्व का रूकना बी्ारी ह-ै

    (अ) पोषक पदार्थ

  • प्राकृतिक तितकत्सा N.S-01

    mRrjk[k.M eqDr fo”ofo|ky; 19

    (ब) तवजातीय पदार्थ

    (स) आयो ीन

    (द) आयरन

    (ि) प्राकृततक तितकत्सा के अनसुार सम्पणूथ शरीर को ,ीक करने का साधन ह-ै

    (अ) उपवास

    (ब) आहार

    (स) जल

    (द) अतनन

    (छ) प्राकृततक तितकत्सा ्ें तकस तितकत्सा पर बल तदया जाता ह-ै

    (अ) शरीर की तितकत्सा

    (ब) ्न की तितकत्सा

    (स) आत््ा की तितकत्सा

    (द) तीनों की तितकत्सा

    (ज) जीणथ रोग का कारण ह-ै

    (अ) तवजातीय पदार्ो की अतधक ्ात्रा

    (ब) असांयत्त आहार तवहार

    (स) दवाईयों का अतधक सेवन

    (द) उपरोि सभी

    (झ) तनदान का अर्थ ह-ै

    (अ) रोग को ,ीक करना

    (ब) रोग की जााँि करना

  • प्राकृतिक तितकत्सा N.S-01

    mRrjk[k.M eqDr fo”ofo|ky; 20

    (स) रोग पर तनयांत्रण करना

    (द) रोग को दबाना

    (3) सत् य/असत् य बताइ्ए

    (क) प्राकृततक तितकत्सा बहुत धीरे-धीरे अपना कायथ करती ह।ै

    (ख) रोगी को रोग की जााँि (तनदान) अवश्य करानी िातहए।

    (ग) प्राकृततक तितकत्सा ्ें रोग तवशषे को ,ीक तकया जाता ह।ै

    (घ) प्राकृततक तितकत्सा के अनसुार रोग का ्लू कारण तवजातीय पदार्थ (गन्दतगयाां) ह।ै

    ( .) दवाई द्वारा रोग को दबाने के कारण दवा की सांज्ञा दी जाती ह।ै

    2.4 सारांश-

    तजज्ञास ुपा,कों प्रस्ततु इकाई ्ें आपने प्राकृततक तितकत्सा के ्लू तसद्धान्तों के तवषय ्ें अध् ययन

    तकया तर्ा जाना तक प्राकृततक तितकत्सा का सबसे ्लू तसद्धान्त तवजातीय तवष तसद्धान्त ह।ै

    तजस्ें सभी रोगों का ्लू कारण तवजातीय तवष को ्ाना गया ह।ै यह प्राकृततक तितकत्सा का ्लू

    तसद्धान्त भी रहा ह ै तक सभी रोग एक ह ै तजनका कारण तवजातीय तवष का शरीर ्ें एकत्र होना ह ै

    तर्ा इन सभी रोगों का उपिार शरीर ्ें तस्र्त इस तवजातीय तवष को बाहर तनकालना ह।ै यह तवष

    शरीर ्ें रहकर शरीर की तवतभन्न त्रमयाओ ां ्ें बाधा उत्पन्न करता ह ैतजससे शरीर के कायो ्ें बाधा

    उत्पन्न होती ह ैजबतक शरीर से इस तवजातीय तवष का बाहर तनकालना ही सभी रोगों का उपिार ह ै

    अर्ाथत इसको बाहर तनकलते ही शरीर के सभी कायथ एवां त्रमयाएां सा्ान्य रूप से ,ीक हो जाती ह ै

    तर्ा शरीर स्वस्र् हो जाता ह।ै पा,कों इस प्रकार आपने जाना तक सभी रोग एक, उनका कारण एक

    तर्ा उनका उपिार भी एक ही ह।ै इस पद्धतत ्ें तकसी प्रकार की दवाईयों का भी प्रयोग पणूथतया

    वतजथत तकया गया ह ैक्योंतक दवाईयों का कायथ रोग को दबाना होता ह ैजबतक यहाां पर रोग को दबाने

    के स्र्ान पर उसे शरीर से तनकालने पर बल तदया जाता ह।ै स् ् रण रह ेतक जो रोग जल्दी आते और

    जल्दी जाते (तीव्र रोग) ह ैवो शरीर की सफाई करते ह ैअतः ये ह्ारे तलए लाभदायक होते ह।ै रोगों

    का ्लू कारण की ाण ुऔर जीवाण ुना होकर तवजातीय तवष (गन्दतगयाां) होती ह ैक्योंतक इन तवषों

    पर ही य ेकी ाण ुजीतवत रह सकते ह।ै शरीर अपनी ति