नवरािý साधना सý तृतीय िदवस िदनांक - 30 ,...

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नवरािý तृतीय िदवस रामघाट कì चचाª तुलसीदास जी कहते ह§ िक घाट जŁरी है ,घाट जहाँ नदी बहती है (िकनारा), तुलसीदास जी ने चार ÿकार के घाटŌ के बारे म¤ बताया है । रामघाट कì चचाª और रामघाट के माÅयम से सÂसंग कì Óया´या सÂसंग के िबना िववेक नहé आता । िबनु सÂसंग िववेक न होई आज कì देवी ह§ चंþघÁटा , साधक कì ि Öथित म¤ ÿथम अनुभव । साधक कì शिĉ का चढ़ते -चढ़ते Öवािधķान चø म¤ ÿवेश, अÅयािÂमक नाद कìअनुभूित , भगवान् नाद से जुड़े ह§ । ऐसा कहा जाता है िक सृिĶ का शुभारÌभ नाद से हòआ है । भगवान् िशव जी ने घंटा बजाये और सृिĶ कì उÂपि° का सÆदेश āÌहा जी के पास गया िफर उÆहŌने सृिĶ कì रचना कì । ÿणव नाद से सृिĶ का उĩव हòआ है । गीत हम¤ भिĉ दो माँ , हम¤ शिĉ दो माँ.... रामघाटिचýकू ट तीथª ±ेý का दू सरा महÂवपूणª Öथान है रामघाट। रामघाट वह जगह है जहाँ पर ®ीराम जी िचýकूट जाने पर दीघªकाल तक ठहरे थे सबसे पहला िनवास यहाँ पर बनाया था । सीता और लàमण के साथ रहे वह Öथान राम घाट है । कामदिगåर का मंिदर और मंदाकनी के बीच का Öथान रामघाट अयोÅयाकाÁड(132 व¤ दोहे के बाद) तुलसीदास जी कहते ह§ - रघुबर कहेउ लखन भल घाटू । करहò कतहòँ अब ठाहर ठाटू लखन दीख पय उतर करारा । चहòँ िदिस िफरेउ धनुष िजिम नारा 1भावाथª :- ®ी रामचÆþजी ने कहा- लàमण! बड़ा अ¸छा घाट है । अब यहé कहé ठहरने कì ÓयवÖथा करो तब लàमणजी ने पयिÖवनी नदी के उ°र के ऊँ चे िकनारे को देखा (और कहा िक-) इसके चारŌ ओर धनुष के जैसा एक नाला िफरा हòआ है 1नदी पनच सर सम दम दाना । सकल कलुष किल साउज नाना िचýकूट जनु अचल अहेरी । चुकइ न घात मार मुठभेरी 2भावाथª :- नदी (मंदािकनी ) उस धनुष कì ÿÂयंचा (डोरी) है और शम, दम, दान बाण ह§ । किलयुग के समÖत पाप उसके अनेक िहंसक पशु (łप िनशाने ) ह§ । िचýकू ट ही मानो अचल िशकारी है , िजसका िनशाना कभी चूकता नहé और जो सामने से मारता है 2नवरािý साधना सý - तृतीय िदवस िदनांक - 30 माचª , 2017

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  • नवराि तृतीय िदवस – रामघाट क चचा तलुसीदास जी कहते ह िक घाट ज री ह ै,घाट – जहाँ नदी बहती ह ै(िकनारा), तलुसीदास जी ने चार कार के घाट के बारे म

    बताया ह ै।

    रामघाट क चचा और रामघाट के मा यम से स संग क या या स सगं के िबना िववेक नह आता । िबनु स सगं िववेक न होई । आज क देवी ह – चं घ टा, साधक क ि थित म थम अनुभव । साधक क शि का चढ़ते-चढ़ते वािध ान

    च म वेश, अ याि मक नाद क अनुभू ित , भगवान ्नाद से जुड़े ह ।

    ऐसा कहा जाता है िक सृि का शुभार भ नाद से हआ है । भगवान ्िशव जी ने घंटा बजाये और सृि क उ पि का स देश हा जी के पास गया िफर उ ह ने सृि क रचना क । णव नाद से सृि का उ व हआ है ।

    गीत – हम भि दो माँ, हम शि दो मा.ँ...। रामघाट– िच कूट तीथ े का दू सरा मह वपूण थान है रामघाट । रामघाट वह जगह है जहाँ पर ीराम जी िच कूट जाने पर दीघकाल तक ठहरे थे । सबस ेपहला िनवास यहाँ पर बनाया था ।

    सीता और ल मण के साथ रह ेवह थान राम घाट है ।

    कामदिग र का मं िदर और मंदाकनी के बीच का थान रामघाट । अयो याका ड(132 व दोह ेके बाद) तलुसीदास जी कहते ह -

    रघबुर कहउे लखन भल घाटू । करह कतह ँअब ठाहर ठाटू ॥ लखन दीख पय उतर करारा । चह ँिदिस िफरेउ धनषु िजिम नारा ॥1॥ भावाथ:- ी रामच जी ने कहा- ल मण! बड़ा अ छा घाट है । अब यह कह ठहरने क यव था करो । तब

    ल मणजी ने पयि वनी नदी के उ र के ऊँचे िकनारे को देखा (और कहा िक-) इसके चार ओर धनषु के जैसा एक नाला िफरा हआ है ॥1॥

    नदी पनच सर सम दम दाना । सकल कलषु किल साउज नाना ॥ िच कूट जन ुअचल अहरेी । चकुइ न घात मार मठुभेरी ॥2॥ भावाथ:- नदी (मंदािकनी) उस धनषु क यंचा (डोरी) है और शम, दम, दान बाण ह । किलयगु के सम त पाप उसके

    अनेक िहसंक पशु ( प िनशाने) ह । िच कूट ही मानो अचल िशकारी ह,ै िजसका िनशाना कभी चकूता नह और जो सामने से मारता ह ै॥2॥

    नवराि साधना स - तृतीय िदवस िदनांक - 30 माच, 2017

  • अस किह लखन ठाउँ दखेरावा । थल ुिबलोिक रघबुर सखुु पावा ॥ रमेउ राम मन ुदवे ह जाना । चले सिहत सरु थपित धाना ॥3॥ भावाथ:- ऐसा कहकर ल मणजी ने थान िदखाया । थान को दखेकर ी रामच जी ने सखु पाया । जब दवेताओ ंने

    जाना िक ी रामच जी का मन यहाँ रम गया, तब वे दवेताओ ंके धान थवई (मकान बनाने वाले) िव कमा को साथ लेकर चले ॥3॥

    कोल िकरात बेष सब आए। रचे परन तनृ सदन सहुाए ॥ बरिन न जािहं मंज ुदइु साला। एक लिलत लघ ुएक िबसाला ॥4॥ भावाथ:- सब दवेता कोल-भील के वेष म आए और उ ह ने (िद य) प और घास के सुदंर घर बना िदए । दो ऐसी

    सुदंर कुिटया बनाई ं िजनका वणन नह हो सकता। उनम एक बड़ी सुदंर छोटी सी थी और दसूरी बड़ी थी ॥4॥

    लखन जानक सिहत भ ुराजत िचर िनकेत । सोह मदनु मिुन बेष जन ुरित रतरुाज समेत ॥133, अयो याका ड ॥ भावाथ:- ल मणजी और जानक जी सिहत भ ु ी रामच जी सुं दर घास-प के घर म शोभायमान ह । मानो कामदवे

    मिुन का वेष धारण करके प नी रित और वसतं ऋत ुके साथ सशुोिभत हो ॥133॥

    ऐसा कहा जाता है रामघाट के ऊपर जो टीला था वहां उनक कुटीया थी । वहाँ जो म दािकनी बहती ह ैउस ेगंगा का प िदया गया था । घाट–जहाँ पर नदी सरोवर म उतरने क , जल तक पहचँने क ि या हो । घाट जो ह ैनदी सरोवर म उतरने क जल तक पहचँने

    क सगुमता पवूक यव था ह ैजहां सीिढ़याँ बनी हो । सु दर थल हो जहाँ नान – यान िकया जा सके ।

    तलुसीदास जी ने घाट का बड़ा सु दर वणन िकया है- बालका ड के 36व दोहे म – सिुठ सुं दर संबाद बर िबरचे बिु िबचा र । तेइ एिह पावन सभुग सर घाट मनोहर चा र ॥36॥ भावाथ:- इस कथा म बिु से िवचारकर जो चार अ य त सुदंर और उ म सवंाद (भुशिु ड-ग ड़, िशव-पावती,

    या व य-भर ाज और तलुसीदास और सतं ) रचे ह, वही इस पिव और सुदंर सरोवर के चार मनोहर घाट ह॥36॥

    राम च रत मानस अपने आप म एक मानसरोवर के समान ह ै। मानसरोवर के सरोवर म और रामच रत मानस के ान म नान करना सामान ह ै।

    िनमल, शीतल, पिव करने वाली ये नदी है इसम चार सगं ह ैस सगं के - 1.पहला स सगं होता है भगवान ्िशव और माता पावती के बीच(िहमालय पवत पर), स सगं करते रहते ह भगवान् राम क ,

    भगवान ्िशव ने रामकथा कही और माता पावती ने कथा सनुी ।

    घाट वह होता है जहाँ सवंाद हो , जहा ंस सगं हो , जहाँ पर दो लोग का िमलन होता हो, िशव और पावती का िमलन । पहला घाट जहाँ िशव और पावती का िमलन ह ै, जहाँ राम क चचा चल रही ह ै।

    2. दसूरा घाट–काकभशुिु ड -ग ड़का संवाद (मे पवत पर) । काकभशुिु ड बहत परुाने ऋिष ह जोकौवे के शरीर म रह रह ेह । ा ककाकभशुिु ड के गु जी ने गया था अपने िश य के

    िलए , भगवान ्िशव को स न करने केिलए।

    िशव जी ने िफर मा िकया और अं ितम गित द ेदी और कहा जब राम आयगे तो उनके मा यम स ेतेरा क याण होगा । भगवान ्राम ने उनका क याण िकया ।

    जब ग ड़ को मोह हआ तो थान – थान पर गए । यु के दौरान जब ल मण को नाग पाश स ेबाँध िदया गया था मेघनाद ारा तब उस पाश को काटने के िलए ग ड़ को बुलाया जाता ह ै, ग ड़ ारा जब पाश काट िदया गया तो लड़ाई िफर चाल ूहो

    गयी । ग ड़ को अहकंार हो गया था ।

  • जब जीव के अ दर माया आ जाती ह ै, अहकंार आ जाता ह ैतब अ ान छा जाता ह ै। भगवान ्स सगं ेमी ह ै। आिद गु ह िशव । जब तक अहकंार रहता है तब तक ान नह िमलता ह ै। अहकंार अपने आप म अंधकार है । िजतना सघन अ धकार उतना ही

    अ ान। अहकंार का अँधरेा साधक को लपेटे हए ह।ै

    ग ड़ को काकभशुिु ड के पास भेजा गया । िफर उनके बीच ान का संवाद हआ । 3. या व क और भार ाज सवंाद , एकस सगं का घाट ये भी ह ै। 4. रामघाट – जहाँ स सगं (तलुसीदास और सतं ) होता ह ै। वय ंनारायण के साथ सतं - ऋिषय का स सगं । राम क कथा

    सनुने के िलए दवेी दवेता भी आते ह ।

    िच कूट अ ु त पवन थली ह ैइस ेई र ने भी पावन िकया और सतं ने भी पावन िकया । रामघाट म तलुसीदास जी ने रामकथा सतं को सनुाई । जहाँ स सगं हआ वहां सब कोई पहचं े। हर जाित पाित के लोग । जाित-पाित पछेू नह कोई , ह र को भजे सो ह र के होई । ान को तप का पूरक माना गया है । यहाँ से आर भ हआ रामघाट के स संग का । पहले हमने भरत कूप क चचा क जहाँ भरत जी ने सिंचत ससुं कार को समिपत कर िदया । जब कोई परेू मन स ेभगवान ्को अपने सब पु य समिपत कर दतेा है तो भगवान ्भी उसके िच को शु कर दतेे ह । िच शिु का दसूरा करण ह ैवह ह ैस सगं -स सगं के मा यम स ेिच शिु बहत अ छे स ेक जा सकती ह ै। स सगं जो है

    बड़ा दलुभ होता ह ै । िबन ुस सगं िववेक ना होई, िबना स सगं के िववेक नह िमलता । वा याय के अलावा स सगं ज री ह ै। स सगं का अपना मह व ह ै। वा याय म हम शा को पढ़ते ह ैलेिकन वैसा भाव नह िमल पाता जैसा स सगं म िमलता है ।

    शा हम श द दतेे ह , उसक गंभीरता, गभ म , अ दर म, उनके अथ म हमको वेश करना पड़ता ह ै। जब वेश करते ह तो हमारी मानिसक धारणा शि बढती ह ै।

    धारणास ुच यो यता मनसः। पतंजिल योग सू – 2/53 मन उतना ही धारण करता है िजतनी Capacity होती है इसी बात को आज के लोग Capacity Building के प म दे रह ेह

    । Building the Capacity ये पहला सू ह ै ितभा प र कार का ।

    स सगं म सतं हम अनभुिूत दतेे ह । सतं हम कािशत करते ह , ान को कािशत करते ह , मन को कािशत करते ह । हमारे मि त क म सु सं कार को भी जगाते ह ।

    स सगं हम भािवत करते ह ( काश को , तप को, ान को , अनभुिूत को) । अपनी उजा, ान, अनभुिूत ारा हमारे अ दर सं ेिषत होकर हमारा ान बढ़ाते ह ।

    बेचिह ंबेद ुधरम ुदिुह लेह । िपसनु पराय पाप किह देह ॥ कपटी कुिटल कलहि य ोधी। बेद िबदषूक िब व िबरोधी॥1॥ (167 दोह ेके बाद अयो याका ड) भावाथ :- जो लोग वेद को बेचते ह, धम को दहु लेते ह , चगुलखोर ह, दसूर के पाप को कह दतेे ह, जो कपटी, कुिटल, कलहि य और ोधी ह तथा जो वेद क िनंदा करने वाले और िव भर के िवरोधी ह॥1॥

    लोग आज धम को बेचकर ान ले रहे ह । धम के नाम पर आज लोग सबकुछ बेच रहे ह ।आज धम का वह स प नह है, सतं का वह प नह जो ाचीन काल म हआ करता था ।

    आज के यिद सतं बोल तो उनम रामसखुदास जी (गीता क िटका िलखी), हनमुान साद पो ार (क याण पि का के सपंादक, गोरखपरु), वामी दयानंद सर वती(वेदा तदशन क अनभुिूत को खड़ा िकया ), और परम पू य आचाय पं िडत ीराम शमा जी(गाय ी प रवार) आिद हए ।

    िस सतं क वाणी स य होती है ।

  • असली सतं वह है िजसके सगं स ेही स सगं होता ह ै। भगवान ्कृ ण गीता म कहते ह िक मेरे भ जब आपस म िमलते ह तो म उनको बिु योग दतेा ह ँ। म उ ह ा योग दतेा ह ँ।

    तेषां सततयु ानां भजतां ीितपवूकम ्। ददािम बिु योगं तं येन मामपुयाि त ते ॥10/10 - गीता॥ भावाथ :- उन िनर तर मेरे यान आिद म लगे हए और ेमपवूक भजने वाले भ को म वह त व ान प योग दतेा ह,ँ िजसस ेवे मझुको ही ा होते ह ॥10॥

    स सगं सबस े भावकारी उपाय ह ैिच शिु के िलए । इसिलए तलुसीदास जी ने कहा ह ै–

    िबनु सतसंग िबबेक न होई। राम कृपा िबन ुसलुभ न सोई॥ सतसंगत मुद मंगल मूला। सोई फल िसिध सब साधन फूला॥4॥ भावाथ: - स संग के िबना िववेक नह होता और ी रामजी क कृपा के िबना वह स सगं सहज म िमलता नह । स संगित आनंद और क याण क जड़ है। स सगं क िसि ( ाि ) ही फल है और सब साधन तो फूल है॥4॥

    सठ सुधरिहं सतसंगित पाई। पारस परस कुधात सुहाई॥

    िबिध बस सजुन कुसगंत परह । फिन मिन सम िनज गनु अनुसरह ॥5॥ भावाथ: - दु भी स संगित पाकर सुधर जाते ह, जैसे पारस के पश से लोहा सुहावना हो जाता है (सुंदर सोना बन जाता है), िक त ुदवैयोग से यिद कभी स जन कुसगंित म पड़ जाते ह , तो वे वहाँ भी साँप क मिण के

    समान अपने गणु का ही अनुसरण करते ह। (अथात ् िजस कार साँप का ससंग पाकर भी मिण उसके िवष को हण नह करती तथा अपने सहज गणु काश को नह छोड़ती, उसी कार साध ुपु ष द ु के सगं म रहकर भी दसूर को

    काश ही दतेे ह, दु का उन पर कोई भाव नह पड़ता।)॥5॥

    कबीरदास जी ने सतं का पश माँगा था । जब िश य क चाह होतो गु िमल जाते ह । कबीर एक िवशु आ मा थे । िववेक और याित ये स सगं( ान) क दो उपलि ध ह ै– पतंजिल योग सू (2/28, साधनपाद) पांतरण हो तो िच शु होता है । अर यका ड म नवधा भि का सगं आता है तलुसीदास जी कहते ह –

    (अर यका ड, 34व दोह ेके बाद) नवधा भगित कहउँ तोिह पाह । सावधान सनु ुध मन माह ॥

    थम भगित संत ह कर सगंा । दू स र रित मम कथा संगा॥4॥ भावाथ:- म तझुसे अब अपनी नवधा भि कहता हँ । त ूसावधान होकर सनु और मन म धारण कर। पहली भि है संत का स संग । दू सरी भि है मेरे कथा संग म ेम॥4॥

    थम भि – सतं का सगं , दसूरी भि – कथा सगं म िच लो । गीता म कृ ण जी कहते ह – मेरी भ मेरी चचा करते ह । चौथा घाट ह ैतुलसीदास जी का जहाँ राम क कथा का स सगं हो रहा है सतंो के साथ । जहाँ राम भि वािहत हो रही है घाट म (चार घाट)।राम भि जह ँसरुस र धारा । जहाँ भि क धारा बह रही ह ैवह म दािकनी ह ैवही गंगा प पिव है । गंगा क धारा । परेू दशे म जहाँ-जहाँ पावन जल के ोत ह वहां उनको गंगा नाम द ेिदया गया ह ै।यिद ये concept आजाये िक गंगा पिव है

    तो हम गंगा को ग दा नह करगे ।

    भगवान ी कृ ण गीता म कहते ह - ोतसामि म जा वी। सम त जल के ोत म , निदय म म गंगा ह ँ। (10/31- गीता)

  • भि तक पहचने म बड़े अवरोध है । (37व दोह ेके बाद) गहृ कारज नाना जंजाला। ते अित दगुम सैल िबसाला॥4॥ घर के कामकाज और गहृ थी के भाँित-भाँित के जंजाल ही अ यंत दगुम बड़े-बड़े पहाड़ ह ।

    स सगं िमल गया तो राम क भि िमल गयी । िबना स सगं के भि नह होती । स सगं स ेिच शु होता ह ै। िच क मिलनता दरू होती ह ै ।

    कुसगं का फल बरुा होता है , स सगं का अ छा फल होता ह ै । बरेु िवचार , बरुी विृ कुसगं स ेहोती ह ै। कुसगं सबसे बरुी चीज ह ै। घाट पारस क तरह होता है । स सगं का तीथ ह ैराम घाट । दगुा स सती म दवेी कहती ह िक – कथा सनुने वाले को म मो दतेी ह ँ। जहा ंस सगं हो रहा ह ैवहाँ बैकंुठ है ।जहा ंस सगं हो रहा ह ैवहाँ रामघाट ह ै। कम के साथ जैसी इ छाएं एवं भावना जड़ुी रहती ह ैवैस ेही हमारे कम बनते ह ै(शभु – अशभु कम) दःुख के अवसर को िमटाने के िलए है सबसे अ छा मा यम है भि , स सगं । िच म जो ार ध है वह िमट नह सकता पर िमटाया जा सकता ह ै।स सगं से , े कम करने स ेिमटाया जा सकता ह ै। जो काय साधना स ेसभंव नह वह स सगं स ेहो सकता है । स सगं – अ छी सगंत, सतं का सगं । प रि थितयाँ ख़राब नह होती हमारा िच उसके िलए िज मेदार होता ह।ै स सगं क चाहत मनु य को ही नह होती पशओु ंको भी होती ह ै । स सगं के कई प ह – परमा मा का सगं , उ म सगं ,अनभुवी सतं का सगं , सतं क वाणी िमल जाए (सतंवाणी का सगं) स सगं स ेकुसं कार िमट जाते ह ै। िच शु होगा तो भगवान ् वयं िवहारने आयगे । दजुन िसहं एक डाकू था िजसने बहत को मारा था , क िदया था , डाका डाला था , सब डरते थे उनस ेउनके े म । एक

    िदन बीमार पड़ गए तब लोग ने कहा अपने कम का फल भोग रह ेहो तमु , लोग ितर कार करने लगे, प थर मारने लगे । काल सबको फल दतेा ह ै। सतं क कृपा सब पर होती है अ छे पर भी बरेु पर भी । पापी स ेभी पापी को ान क नौका म बैठाकर पार करा दतेा ह ँ– कृ ण(गीता)

    अिप चेदिस पापे यः सव यः पापकृ मः। सव ान लवेनैव विृजनं स त र यिस ।। गीता 4/36 अथात: जो सब पािपय स े भी यादा पाप करने वाला है, वह भी पाप पी समु को ान पी नौका के ज रए िनि त ही पार कर जाएगा।

    एक साध ूथे गाँव के बाहर मं िदर म रहते थे उनको उठा लाये उनक सेवा िकया करते थे । सवेा उपचार , भगवत कृपा स ेकुल िमलाकर वह डाकू ठीक हो गया, अब उस ेअपने िकये पर पछतावा ह ै, साध ूको अपना गु मानता था उनस ेपछूा िक ऐसा या कर िजसस ेपाप धलेु , तब साध ूमहाराज बोले िक जो लोग मेरे पास आते ह उनके िलए बैठने क जगह को साफ़ कर

    िदया करो । उनको पानी िपला िदया करो, अ छे मन से । तब दजुन िसहं ने वैसा ही िकया जैस ेसाध ूने कहा । सवेा करना शु िकया सवेा से अहकंार और मन का मैल धलुने लगा , जो घृणा करते थे उ ह ने भी माफ़ कर िदया और अतंतः उसका क याण हआ , अंितम ण म साध ूमहाराज का िचंतन था अंततः उसको मिु िमल गयी ।

    हम अगला ज म वहाँ िमलता ह ैजहाँ अंितम िवचार होता ह।ै अ तकाले च मामेव मर मु वा कलेवरम ्। यः याित स म ावं याित ना य संशयः ॥8/5 -गीता ॥ जो पु ष अ तकालम मझुको ही मरण करता हआ शरीरको याग कर जाता है, वह मेरे सा ात ् व पको ा होता ह ै- इसम संशय नह ह ै।

  • स सगं का भाव गजब का होता ह ै सब कै ममता ताग बटोरी । मम पद मनिह बाँध ब र डोरी॥ समदरसी इ छा कछु नाह । हरष सोक भय निह ंमन माह ॥3॥ (सु दरका ड दोहा 47 के बाद) भावाथ: - इन सबके मम व पी ताग को बटोरकर और उन सबक एक डोरी बनाकर उसके ारा जो अपने मन को मेरे चरण म बाँध दतेा ह।ै (सारे सांसा रक संबंध का क मझुे बना लेता ह)ै, जो समदश ह,ै िजस ेकुछ इ छा नह है और िजसके मन म हष, शोक और भय नह ह॥ै3॥

    स सगं मन के िबखरे हए सू को, धाग को , मन के िबखरे हए चेतना को इक े करती ह ैऔरभगवान ्मिवलीन कर दतेी ह ै। स सगं वह घाट ह ैजहाँ राम भि म डुबक लगाने का , नान करने का अवसर िमलता है । ----------------------------------------- ॐ शाि त ------------------------------------------------------

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