हिंदी अध्य्यन हनष्पह्ति ः...

66

Upload: others

Post on 24-Feb-2020

30 views

Category:

Documents


0 download

TRANSCRIPT

  • हिंदी अध्य्यन हनष्पह्ति ः आठवीं कक्षा

    हवद् ्यषार्थी –08.15.01 विविधविषयोंपरआधाररतपाठ्यसामग्रीऔरअनयसावित्यपढ़करचचाचाकरतेहुएद्रुतिाचनकरतेिैंतथाआशय

    कोसमझतेहुएस्िच्छ,शुद्धएिंमानकलेखनतथाकेंद्रीयभािकोवलखतेिैं।08.15.02 विंदरीभाषामेंविवभननप्रकारकीसामग्रीकोपढ़करतथाविवभननस्ोतोंसेप्राप्तसूचनाओं,सिवेक्षण,विप्पणरीआवद

    कोप्रस्ततुकरउपलब्धजानकाररीकायोग्यसंकलन,संपादनकरतेहुएलेखनकरतेिैं।08.15.03 पढ़करअपररवचतपररसस्थवतयोंऔरघिनाओंकीकल्पनाकरतेहुएगिुचचाचामेंसिभागरीिोकरउसमेंआएविशेष

    उद्धरणों,िाक्योंकाअपनेबोलचालतथासंभाषणमें प्रयोगकरपररचचाचा,भाषणआवदमेंअपने विचारोंकोमौसखक/वलसखतढंगसेव्यक्तकरतेिैं।

    08.15.04 विविधसंिेदनशरीलमुद्ों/विषयोंजैसे-जावत,धमचा,रंग,वलंग,ररीवत-ररिाजोंकेबारेमेंअपनेवमत्ों,अधयापकोंयापररिारसेप्रश्नपूछतेिैंतथासंबंवधतविषयोंपरउवचतशब्दोंकाप्रयोगकरतेहुएधाराप्रिािसिंादस्थावपतकरतेिैंएिंलेखनकरतेिैं।

    08.15.05 वकसरीसुनरीहुईकिानरी,विचार,तक्क,प्रसंगआवदकेभािरीप्रसंगोंकाअथचासमझतेहुएआगामरीघिनाकाअनुमानकरतेिैं,विशेषवबंदरुओंकोखोजकरउनकासंकलनकरतेिैं।

    08.15.06 पढ़रीहुईसामग्रीपरवचंतनकरतेहुएबिेतरसमझकेवलएप्रश्नपूछतेिैंतथावकसरीपररवचत/अपररवचतकेसाक्षात्कारिेतुप्रश्नवनवमचातकरतेिैंतथावकसरीअनुच्छदेकाअनुिादएिंवलप्यंतरणकरतेिैं।

    08.15.07 विवभननपठनसामवग्योंमेंप्रयुक्तउपयोगरी/आलंकाररकशब्द,मिानविभूवतयोंकेकथन,मुिािरों/लोकाेसतियों-किाितों,पररभाषाओं,सूत्ोंआवदकोसमझतेहुएसूचरीबनातेिैंतथाविविधतकनरीकाेंकाप्रयोगकरकेअपनेलेखनकोअवधकप्रभािरीबनानेकाप्रयासकरतेिैं।

    08.15.08 वकसरीपाठ्यिस्तुकोपढ़नेकेदौरानसमझनेकेवलएअपनेवकसरीसिपाठरीयावशक्षककीमददलेकरआलेख,अनयसंदभचासावित्यकाद्विभावषकशब्दसगं्ि,ग्ाविक्स,िरचाआिचा,वपक्िोग्ािआवदकीसिायतासेशब्दकोशतैयारकरतेिैंऔरप्रसारमाधयमोंमेंप्रकावशतजानकाररीकीआलंकाररकशब्दािलरीकाप्रभािपूणचातथासिजिाचनकरतेिैं।

    08.15.09 अपनेपाठक,वलखनेएिंलेखनकेउद्ेश्यकोसमझकरअपनामतप्रभािरीतररीकेसेवलखतेिैं।08.15.10 सुनेहुएकायचाक्रमकेतथ्यों,मुख्यवबंदरुओं,वििरणोंएिंपठनरीयसामग्रीमेंिवणचातआशयकेिाक्योंएिंमुद्ोंका

    तावक्ककएिंसुसंगवतसेपुन:स्मरणकरिाचनकरतेिैंतथाउनपरअपनेमनमेंबननेिालरीछवबयोंऔरविचारोंकेबारेमेंवलसखतयाब्ेलवलवपमेंअवभव्यसतिकरतेिैं।

    08.15.11 भाषाकीबाररीवकयों/व्यिस्थाकायथाितिणचान,उवचतविराम,बलाघात,तान-अनुतानकेसाथशुद्धउच्चारण,आरोि-अिरोि,लय-तालकोएकाग्तासेसुनतेएिंसुनातेिैंतथापठनसामग्रीमेंअंतवनचावितआशय,केंद्रीयभािअपनेशब्दोंमेंव्यक्तकरतेिैं।

    08.15.12 विवभननअिसरों/संदभभोंमेंकिरीजारिरीदूसरोंकीबातों,सुनेहुएसिंाद,िक्तव्य,भाषणकेप्रमुखमुद्ोंकोपुन:प्रस्ततुकरतेिैंतथाउनकाउवचतप्रारूपमेंिृत्तातंलेखनकरतेिैं।

    08.15.13 रूपरेखातथाशब्दसंकेतोंकेआधारपरआलंकाररकलेखनतथापोस्िर,विज्ापनमेंविविधतररीकोंऔरशैवलयोंकाप्रयोगकरतेिैं।

    08.15.14 दैवनकजरीिनसेअलगवकसरीघिना/सस्थवतपरविवभननतररीकेसेसृजनात्मकढंगसेवलखतेिैंतथाप्रसारमाधयमसेराषिट्रीयप्रसंग/घिनासंबंधरीिणचानसुनतेऔरसुनातेिैंतथाभाषाकीवभननताकासमादरकरतेिैं।

    ्यि अपेक्षा िै हक दसवीं कक्षा के अतंि तिक हवद् ्यषाहर्थि्यों में भषाषषा हवष्यक हनम्नहिखिति अध्य्यन हनष्पह्ति हवकहसति िों ।

  • शासन ननर्णय क्रमांक : अभयास-२११६/(प्र.क्र.4३/१६) एसडी-4 निनांक २5.4.२०१६ के अनुसार समन्वय सनमनि का गठन नकया गया । नि. २९.१२.२०१७ को हुई इस सनमनि की बैठक में यह पाठ ्यपुसिक ननरा्णररि करने हेिु मानयिा प्रिान की गई ।

    नहंिी

    आठ्वीं कक्ासुलभभारिी

    महाराष्ट्र राजय पाठ् यपुसिक नननम्णिी ्व अभयासक्रम संशोरन मंडळ, पुरे

    मेरा नाम है &

    आपके स्मार्टफोन ्ें ‘DIKSHA App’ द् वमारमा, पुसतक के प्रथ् पृष्ठ पर Q.R.Code के ्माध्य् से डिडिरल पमाठ् ्यपुसतक एवं प्रत्येक पमाठ ्ें अंतडन्टडित Q.R.Code ्ंे अध्य्यन-अध्यमापन के डलए पमाठ से संबंडित उप्युक्त दृक-श्माव्य समा्ग्री उपलब्ि करमाई िमाएगरी ।

  • हिंदी भाषा सहिहि

    हिहिमिहि : श्री सच्चितानंद आफळे, मुख्य नननममिनत अनिकाररीश्री संदरीप अाजगॉवकर, नननममिनत अनिकाररी

    अक्षरांकि : भाषा नवभाग,पाठ् ्यपुसतक मंडळ, पुणेकागज : ७० जरीएसएम, क्रीमवोविुद्रणादेश :िुद्रक :

    िुख्य सिन्व्यकश्रीमतरी प्ाचरी रनवंद्र साठे

    प्रथिा्वृत्ि : २०१8पिला पुििुमिद्रण : २०१९

    ििाराष्ट्र राज्य पाठ ््यपुसिक हिहिमििी ्व अभ्यासक्रि संशोधि िंडळ, पुणे - 4११००4इस पुसतक का सवामिनिकार महाराष्ट्र राज्य पाठ् ्यपुसतक नननममितरी व अभ्यासक्म संशोिन मंडळ

    के अिरीन सुरनषित है। इस पुसतक का कोई भरी भाग महाराष्ट्र राज्य पाठ् ्यपुसतक नननममितरी व अभ्यासक्म संशोिन मंडळ के संचालक करी नलच्ित अनुमनत के निना प्कानशत नहीं नक्या जा सकता ।

    ©

    डॉ.हेमचंद्र वैद् ्य - अध्यषि डॉ.छा्या पाटरील - सदस्य प्ा.मैनोद् दरीन मुल्ा - सदस्यडॉ.द्यानंद नतवाररी - सदस्यश्री रामनहत ्यादव - सदस्यश्री संतोष िोत्े - सदस्य डॉ.सुननल कुलकणणी - सदस्य श्रीमतरी सरीमा कांिळे - सदस्य डॉ.अलका पोतदार - सदस्य - सनचव

    प्रकाशक :श्ी ह्व्ेवक उ्िि गोसा्वी

    नन्यंत्कपाठ् ्यपुसतक नननममितरी मंडळ

    प्भादेवरी, मुंिई-२5

    सं्योजि : डॉ.अलका पोतदार, नवशेषानिकाररी नहंदरी भाषा, पाठ् ्यपुसतक मंडळ, पुणे सौ. संध्या नवन्य उपासनरी, नवष्य सहा्यक नहंदरी भाषा, पाठ् ्यपुसतक मंडळ, पुणे

    हिंदी भाषा अभ्यासगट

    िुखपृष्ठ : सौ. पूनम ननच्िल पोटेहितांकि : श्री राजेश लवळेकर, म्यूरा डफळ

    हििंहति सदस्यश्री ता.का सू्यमिवंशरी सौ. संगरीता सावंत

    श्री संज्य भारद् वाजसौ. रंजना नपंगळे सौ. वृंदा कुलकणणी डॉ. प्मोद शुक्लश्रीमतरी पूनणमिमा पांडे्यडॉ. शुभदा मोघेश्री िन्यकुमार निराजदारश्रीमतरी मा्या कोथळरीकरश्रीमतरी शारदा नि्यानरीडॉ. रतना चौिररीश्री सुमंत दळवरीश्रीमतरी रजनरी महैसाळकरडॉ. वषामि पुनवटकर

    डॉ. आशा वरी. नमश्ाश्रीमतरी मरीना एस. अग्रवालश्रीमतरी भारतरी श्रीवासतवडॉ. शैला ललवाणरीडॉ. शोभा िेलिोडेडॉ. िंडोपंत पाटरीलश्री रामदास काटेश्री सुिाकर गावंडेश्रीमतरी गरीता जोशरीश्रीमतरी अचमिना भुसकुटे डॉ. ररीता नसंहसौ. शनशकला सरगर श्री एन. आर. जेवेश्रीमतरी ननशा िाहेकर

    N/PB/2019-20/Qty. 75,000

    M/s Dolphin Graphics, Hyderabad

  • प्रस्तावनता

    (डॉ. सुननल मगर)संचतालक

    महाराष्ट्र राज्य पाठ् ्यपुस्तक निनममि्ती व अभ्यासक्रम संशोधि मंडळ पुणे-०4

    नप्रय नवद् यतान्थियो,

    ्ुम सब पताँचवीं से सता्वीं कक्ता की निंदी सुलभभतार्ी पताठ् यपुस्क से अच्ी ्रि पररनच् िो और अब आठवीं निंदी सुलभभतार्ी पढ़ने के नलए उतसुक िोगे । रंग-नबरंगी, अन्आकरथिक यि पुस्क ्ुमितारे िता्ों में सौंप्े हुए िमें अ्ीव िरथि िो रिता िै ।

    िमें ज्ता् िै नक ्ुमिें कनव्ता, गी्, गजल सुननता-पढ़नता नप्रय लग्ता िै । किताननयों की दुननयता में नवचरण करनता मनोरंजक लग्ता िै । ्ुमितारी इन भतावनताओं को दृन्टिग् रख्े हुए इस पताठ् यपुस्क में कनव्ता, गी्, गजल, पद, दोिे, नई कनव्ता, वैनवधयपूणथि किताननयताँ, लघुक्ता, ननबंध, ितासय-वयंग्य, संसमरण, सताक्तातकतार, भतारण, संवताद, पत्र आनद सतानिनतयक नवधताओं कता समतावेश नकयता गयता िै । ये नवधताएँ मनोरंजक िोने के सता्-सता् ज्तानताजथिन, भतारताई कौशलों / क्म्ताओं के नवकतास, रता्टिट्ीय भतावनता को सुदृढ़ करने एवं चररत्र ननमताथिण में भी सितायक िोंगी । इन रचनताओं के चयन के समय आयु, रुनच, मनोवैज्ताननक एवं सतामतानजक स्र कता सजग्ता से धयतान रखता गयता िै ।

    अं्रजताल एवं नडनजटिल दुननयता के प्रभताव, नई शनैक्क सोच, वैज्ताननक दृन्टि को समक् रखकर ‘श्रवणीय’, ‘संभतारणीय’ ‘पठनीय’, ‘लेखनीय’, ‘मैंने समझता’, ‘कृन् पूणथि करो’, ‘भतारता नबंदु’ आनद के मताधयम से पताठ् यक्रम को पताठ ्यपसु्क में प्रस्ु् नकयता गयता िै । ्ुमितारी कल्पनताशन््, सृजनशील्ता को धयतान में रख्े हुए ‘सवयं अधययन’, ‘उपयोनज् लेखन’, ‘मौनलक सृजन’, ‘कल्पनता पल्लवन’ आनद कृन्यों को अनधक वयतापक एवं रोचक बनतायता गयता िै । इनकता स्् अभयतास एवं उपयोग अपेनक्् िै । मतागथिदशथिक कता सियोग लक्य ् क पहुँचताने के मतागथि को सिज और सुगम बनता दे्ता िै । अ्ः अधययन अनुभव की पून्थि िे्ु अनभभतावकों, नशक्कों कता सियोग और मतागथिदशथिन ्ुमितारे नलए ननश्च् िी सितायक नसद् ध िोंगे । आपकी निंदी भतारता और ज्तान में अनभवृद् नध के नलए ‘एेप’ एवं ‘्यू.आर.कोड,’ के मताधयम से अन्रर्् दृक-श्रतावय सतामग्ी उपलब्ध करताई जताएगी । अधययन अनुभव िे्ु इनकता ननश्च् िी उपयोग िो सकेगता ।

    आशता एवं पूणथि नव्वतास िै नक ्ुम सब पताठ् यपुस्क कता समुनच् उपयोग कर्े हुए निंदी नवरय के प्रन् नवशेर अनभरुनच नदखता्े हुए आतमीय्ता के सता् इसकता सवताग् करोगे ।

    पुणेनदनतंाक ः १8 अप्रैल २०१8, अक्ष्य्तृ्ती्याभार्ती्य सौर ः २8 चरैत्र १९4०

  • पहली इकाई

    िूसरी इकाई

    * अनुक्रमनरका *

    क्र. पाठ का नाम न्वरा रिनाकार पृ्ठ १. िे ्मातृभूड् ! कडवतमा रमा्प्रसमाद ‘डबडस्ल’ १-२

    २. वमाररस कौन ? संवमादमात्क किमानरी डवभमा रमानरी ३-5

    ३. नमािून क््यों बढ़ते िैं ? वैचमाररक डनबंि आचमा्य्ट ििमाररीप्रसमाद द ्डववेदरी ६-8

    4. गमाँव-शिर नवगरीत प्रदरीप शुक्ल ९-१०

    5. ्िुबन समाषिमातकमार अनुरमाग व्मा्ट ११-१३

    ६. िरमा प्यमार से बोलनमा सरीि लरीिे गिल र्ेश दतत श्मा्ट १4-१5

    ७. ्ेरे रिमा समािब संस्रण सुिमातमा बिमाि १६-१8

    8. पूण्ट डवश्मा् िमास्य-व्यंग््य किमानरी सत्यकमा् डवद ््यमालंकमार १९-२२

    ९. अन्ोल वमाणरी दोिे पद

    संत कबरीर भक्त सूरदमास

    २३-२4

    क्र. पाठ का नाम न्वरा रिनाकार पृ्ठ १. िरतरी कमा आँगन ्िके नई कडवतमा िॉ. प्रकमाश दरीडषित २5-२६

    २. दो लघुकथमाएँ लघुकथमा िरर िोशरी २७-२९

    ३. लकड़िमारमा और वन एकमांकी अरडवंद भरनमागर ३०-३३

    4. सौिमाद्ट-सौ्नस्य न्ये दोिे ििरीर कुरैशरी ३4-३5

    5. िेतरी से आई तब्दरीडल्यमाँ पत्र पं. िवमािरलमाल नेिरू ३६-३8

    ६. अंिमा्युग गरीडतनमार् ्य कमा अंश िॉ. ि््टवरीर भमारतरी ३९-4१

    ७. सवरमाज्य ्ेरमा िन्डसद् ि अडिकमार िै

    भमाषण लोक्मान्य बमाळ गंगमािर डरळक 4२-44

    8. ्ेरमा डवद्रोि ्नोवैज्माडनक किमानरी सू्य्टबमालमा 45-4९९. निीं कुछ इससे बढ़कर गरीत सुड्त्रमानंदन पंत 5०-5१

    वयाकरर, रिना न्वभाग ए्वं भा्वाथ्ण 5२-54

  • 1

    १. हे मातृभूमम !

    प्रस्त्ु कवि्ा में काांव्कारी एिां सि्ांत्र्ा सेनानी कवि रामप्रसाद ‘विवसमल’ जी ने मा्ृभूवम के प्रव् अपने प्रेम एिां भव््भाि को व्य्् वक्या है । ्यहाँ आपने मा्ृभूवम की सेिा करने और देशवह् में वनछािर हो जाने की लालसा व्य्् की है ।

    ‘मा्ृभवूम की सेिा में जीिन अप्पण करना प्रत्येक मनतुष््य का क््पव्य है,’ इस कथन पर अपने विचार वलखो ।

    जनम ः १8९७, शाहजहाँपतुर (उ.प्र.) मृत्यु ः१९२७, गोरखपतुर (उ.प्र.) परिच् ः रामप्रसाद ‘विवसमल’ भार् के महान सि्ांत्र्ा सेनानी ही नहीं िव्क उच्च कोवि के कवि, अनतुिादक, िहुभाषाविद ि सावहत्यकार भी थे । आपने देश की आजादी के वलए अपने प्राणों की आहुव् दे दी । ‘सरफरोशी की ्मन्ा...’ आपकी प्रवसद् ध रचना है । ‘विवसमल’ उपनाम के अव्रर्् आप ‘राम’ और ‘अज्ा्’ के नाम से भी लेख ि कवि्ाएँ वलख्े थे । प्रमयुख कृमत्ाँ ः ‘मन की लहर’, ‘आतमकथा’ आवद ।

    हे मा्ृभूवम ! ्ेरे चरणों में शीश निाऊँ ।मैं भव्् भेंि अपनी, ्ेरी शरण में लाऊँ ।।

    माथे पे ्ू हो चांदन, छा्ी पे ्ू हो माला;वजह् िा पे गी् ्ू हो मेरा, ्ेरा ही नाम गाऊँ ।।

    वजससे सपू् उपजें, श्ी राम-कृष्ण जैसे;उस धूल को मैं ्ेरी वनज शीश पे चढ़ाऊँ ।।

    माई ! समतुद्र वजसकी पद रज को वनत्य धोकर;कर्ा प्रणाम ्तुझको, मैं िे चरण दिाऊँ ।।

    सिेा में ्ेरी मा्ा ! मैं भेदभाि ्जकर;िह पतुण्य नाम ्ेरा, प्रव्वदन सतुनूँ-सतुनाऊँ ।।

    ्ेरे ही काम आऊँ, ्ेरा ही मांत्र गाऊँ ।मन और देह ्तुम पर िवलदान मैं जाऊँ ।।

    - रामप्रसाद ‘बिब्मल’

    परिच्

    पद् ् संबंधी

    कल्पना पल्लवन

    पहली इकाई

  • 2

    * सूचना के अनयुसाि कमृत्ाँ किो ः-(१) कमृत पूर्ण किो ः

    मनम्न मविाममचह् नाें के नाम मलखकि उनका वाक्् में प्र्ोग किो ः। ; ? - ? ! ‘ ’ ‘‘ ’’ -

    ‘विकास की ओर िढ़्ा हुआ भार् देश’ से सांिांवध् महततिपूण्प का्ययों की सूची िनाओ ।

    (२) कृमत पूर्ण किो ः

    (३) एक शब्द में उतति मलखो ः१. कवि की वजह् िा पर इसके गी् हों -२. मा्ृभूवम के चरण धोने िाला -३. मा्ृभूवम के सपू् -4. प्रव्वदन सतुनने/सतुनाने ्योग््य नाम -5. मा्ृभूवम के चरणों में इसे निाना है -

    कवि मा्ृभूवम के प्रव् अवप्प् करना चाह्ा है

    (4) कमवता की पमंक्त्ाँ पूर्ण किो ःसेिा में ्ेरी ------------------;------------------------ ।।------------------------ ।

    --------------- िवलदान मैं जाऊँ ।।

    मा्ृभूवम की विशेष्ाएँ

    १.

    २.

    ३.

    4.

    शब्द वामिकानवाना = झतुकानाशीश = वसरमजह् वा = जीभ

    िज = धूलबमलदान = प्राणाहुव्, वनछािरदेह = शरीर

    मैंने समझा------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

    उप्ोमजत लेखन

    भाषा मबंदु

    स्व्ं अध््न

    शब्दों के आधाि पि कहानी मलखो ः ग्ांथाल्य, सिपन, पहेली, काँच

  • 3

    एक राजा था । उसके चार िेवि्याँ थीं । राजा ने सोचा वक इन चारों में से जो सिसे ितुद ्वधम्ी होगी, उसे ही अपना राजपाि सौंपेगा । इसका फैसला कैसे हो? िह सोचने लगा । अां् में उसे एक उपा्य सूझ ग्या ।

    उसने एक वदन चारों िेवि्यों को अपने पास ितुला्या । सभी को गेहँू के सौ-सौ दाने वदए और कहा, ‘‘इसे ्तुम अपने पास रखो, पाँच साल िाद मैं जि इनहें माँगँूगा ्ि ्तुम सि मतुझे िापस कर देना ।’’

    गेहँू के दाने लेकर चारों िहनें अपने-अपने कमरे में लौि आईं । िड़ी िहन ने उन दानों को खखड़की के िाहर फेंक वद्या । उसने सोचा, ‘आज से पाँच साल िाद वप्ा जी को गेहँू के इन दानों की ्याद रहेगी ््या? और जो ्याद भी रहा ्ो ््या हुआ..., भांडार से लेकर दे दूँगी ।’

    दूसरी िहन ने दानों को चाँदी की एक वडबिी में डालकर उसे मखमल के थैले में िांद करके सतुरक्ा से अपनी सांदूकची में डाल वद्या । सोचा, ‘पाँच साल िाद जि वप्ा जी ्ये दाने माँगेंगे, ्ि उनहें िापस कर दूँगी ।’

    ्ीसरी िहन िस सोच्ी रही वक इसका ््या करँ । चौथी और छोिी िहन ्वनक िच्ची थी । शरार्ें करना उसे िहु् पसांद था । उसे गेहँू के भतुने दाने भी िहु् पसांद थे । उसने दानों को भतुनिाकर खा डाला और खेल में मग्न हो गई ।

    ्ीसरी राजकुमारी को इस िा् का ्यकीन था वक वप्ा जी ने उनहें ्यँू ही ्ये दाने नहीं वदए होंगे । जरर इसके पीछे कोई मकसद होगा । पहले ्ो उसने भी अपनी दूसरी िहनों की ्रह ही उनहें सहेजकर रख देने की सोची, लवेकन िह ऐसा न कर सकी । दो-्ीन वदनों ्क िह सोच्ी रही, वफर उसने अपने कमरे की खखड़की के पीछिेाली जमीन में िे दाने िो वदए । सम्य पर अांकुर फिूे । पौधे ् ै्यार हुए, दाने वनकले । राजकुमारी ने ्ै्यार फसल में से दाने वनकाले और वफर से िो वदए । इस ्रह पाँच िषयों में उसके पास ढेर सारा गेहँू ्ै्यार हो ग्या ।

    पाँच साल िाद राजा ने वफर चारों िहनों को ितुला्या और कहा- ‘‘आज से पाँच साल पहले मैंने ्तुम चारों को गेहँू के सौ-सौ दाने वदए थे और कहा था वक पाँच साल िाद मतुझे िापस करना । कहाँ हैं िे दाने?’’

    िड़ी राजकुमारी भांडार घर जाकर गेहँू के दाने ले आई और राजा को दे वदए । राजा ने पूछा, ‘‘््या ्ये िही दाने हैं जो मैंने ्तुमहें वदए थे ?’’

    - बिभा रानी

    २. वारिस कौन?

    प्रस्त्ु सांिादातमक कहानी के माध्यम से विभा रानी जी का कहना है वक हमें उत्म फल प्राप्त करने के वलए सम्य और साधनों का सदुप्योग करना चावहए । जो ऐसा कर्ा है, िही जीिन में सफल हो्ा है ।

    जनम ः १९5९, मधतुिनी (विहार)परिच् ः िहुआ्यामी प्रव्भा की धनी विभा रानी वहांदी ि मैवथली की राष्िट्ी्य स्र की लेखखका हैं । आपने कहानी, गी्, अनतुिाद, लोक सावहत्य एिां नाि् ्य लेखन में प्रखर्ा से अपनी कलम चलाई है । आप समकालीन वफ्म, मवहला ि िाल विष्यों पर लोकगी् और लोक सावहत्य के क्ेत्र में वनरां्र काम कर रही है । प्रमयुख कृमत्ाँ ः ‘चल खतुसरो घर अपने’, ‘वमवथला की लोककथाएँ’, ‘गोनू झा के वकससे’ (कहानी सांग्ह), ‘अगले-जनम मोहे विवि्या न कीजो’, (नािक)‘समरथ-CAN’ (द ्विभाषी वहांदी-अांग्ेजी का अनतुिाद), ‘विल िेलर की डा्यरी’ आवद ।

    परिच्

    गद् ् संबंधी

    मौमलक सृजन

    अपने आस-पास घवि् च्तुराई से सांिांवध् घिना वलखो ।

  • 4

    पहले ् ो राजकुमारी ने ‘हाँ’ कह वद्या । मगर राजा ने वफर कड़ककर पूछा, ्ि उसने सच्ची िा् ि्ा दी ।

    राजा ने दूसरी राजकुमारी से पूछा - ‘‘्तुमहारे दाने कहॉां हैं ?’’

    दूसरी राजकुमारी अपनी सांदूकची में से मखमल के खोलिाली वडबिी उठा लाई, वजसमें उसने गेहँू के दाने सहेजकर रखे थे । राजा ने उसे खोलकर देखा - दाने सड़ गए थे ।

    ्ीसरी राजकुमारी से पूछा - ‘‘्तुमने ््या वक्या उन दानों का ?’’्ीसरी ने कहा - ‘‘मैं इसका उत्र आपको अभी नहीं दँूगी, ््योंवक

    जिाि पाने के वलए आपको ्यहाँ से दूर जाना पड़ेगा और मैं िहाँ आपको कल ले चलँूगी ।’’

    राजा ने अि चौथी और सिसे छोिी राजकुमारी से पूछा । उसने उसी िेपरिाही से जिाि वद्या-‘‘उन दानों की कोई कीम् है वप्ा जी? िैसे ्ो ढेरों दाने भांडार में पड़े हैं । आप ्ो जान्े हैं न, मतुझे गेहँू के भतुने दाने िहु् अचछे लग्े हैं, सो मैं उनहें भतुनिाकर खा गई । आप भी वप्ा जी, वकन-वकन चक्करों में पड़ जा्े हैं ।’’

    सभी के उत्र से राजा को िड़ी वनराशा हुई । चारों में से अि उसे केिल ्ीसरी िेिी से ही थोड़ी उममीद थी ।

    दूसरे वदन ्ीसरी राजकुमारी राजा के पास आई । उसने कहा-‘‘चवलए वप्ा जी, आपको मैं वदखाऊँ वक गेहँू के िे दाने कहाँ हैं ?’’

    राजा रथ पर सिार हो ग्या । रथ महल, नगर पार करके खे् की ्रफ िढ़ चला । राजा ने पूछा, ‘‘आखखर कहाँ रख छोड़े हैं ्तुमने िे सौ दाने ? इन सौ दानों के वलए ् तुम मतुझे कहाँ-कहाँ के चक्कर लगिाओगी ?’’

    ्ि ्क रथ एक िड़े-से हरे-भरे खे् के सामने आकर रुक ग्या । राजा ने देखा - सामने िहु् िड़े खे् में गेहँू की फसल थी । उसकी िावल्याँ हिा में झूम रही थीं, जैसे राजा को कोई खतुशी भरा गी् सतुना रही हों । राजा ने हैरानी से राजकुमारी की ओर देखा । राजकुमारी ने कहा-‘‘वप्ा जी, ्ये हैं िे सौ दाने, जो आज लाखों-लाख दानों के रप में आपके सामने हैं । मैंने उन सौ दानों को िोकर इ्नी अवधक फसल ् ै्यार की है ।’’

    राजा ने उसे गले लगा वल्या और कहा- ‘‘अि मैं वनख्चां् हो ग्या । ्तुम ही मेरे राज्य की सच्ची उत्रावधकारी हो ।’’

    4

    भाषा की वभन््ा का आदर कर्े हुए कोई लोकगी् अपने सहपावठ्यों को सतुनाओ ।

    ‘उत्र भार् की नवद्यों में िारहों मास पानी रह्ा है’ इसके कारणों की जानकारी प्राप्त करके कक्ा में ि्ाओ ।

    अपने पररसर की वकसी शैवक्क सांसथा की रज् महोतसिी पवत्रका का िाचन करो ।

    मराठी समाचार पत्र ्या िालपवत्रका के वकसी पररचछेद का वहांदी में अनतुिाद करो ।

    संभाषरी्

    लेखनी्

    पठनी्

    श्रवरी्

  • 55

    तनिक = थोड़ामकसद = उद् देश्यखोल = आवरणउमममीद =आशाउत्तरानिकारमी = वाररस

    मुहावरेचक्कर में पड़ जािा =दुववधा में पड़नागले लगािा = प्यार से वमलना

    शब्द वानिका

    (२) उनचत घििाक्रम लगाकर वाक्य निर से नलखो ः१. सभी के उत्तर से राजा को बड़ी वनराशा हुई । २. रथ एक बड़े-से हरे-भरे खेत के सामने रुक ग्या । ३. राजा ने हैरानी से राजकुमारी की ओर देखा । 4. अंत में उसे एक उपा्य सूझ ग्या ।

    (4) पररणाम नलखो ः१. गेहूँ के दानों को बोने का पररणाम- २. सभी के उत्तर सुनकर राजा पर हुआ पररणाम-३. दूसरी राजकुमारी का संदूकची में दाने रखने का पररणाम- 4. पहली राजकुमारी को कड़ककर पूछने का पररणाम -

    (३) सहमी नवकल्प चुिकर वाक्य निर से नलखो ः१. जरूर इसके पीछे कोई ------- होगा । (उद् देश्य/हेतु/मकसद)२. सो मैं उनहें ------- खा गई । (वभगोकर/भुनवाकर/पकाकर)३. तुम ही मेरे राज््य की सच्ी ------- हो । (रानी/्युवराज्ी/उत्तरावधकारी)4. इसे तुम अपने पास रखो, ------- साल बाद मैं इनहें माूँगूूँगा । (चार/सात/पाूँच)

    * सूचिा के अिुसार कनृतयाँ करो ः-(१) उत्तर नलखो ः

    गेहूँ के दानों का चारों बहनों ने वक्या-

    रचना के आधार पर वववभन्न प्रकार के तीन-तीन वाक््य पाठों से ढूूँढ़कर वलखो ।

    अपने वमत्र/सहेली को दीपावली की छुट ्वट्यों में अपने घर वनमंवत्रत करने वाला पत्र वलखो ।

    बीरबल की बौद् वधक चतुराई की कहानी के मुद् दों का फोल्डर बनाकर कहानी प्रसतुत करो ।

    उपयोनजत लेखि

    भाषा निंदु

    स्वयं अधययि

    मैंिे समझा------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

  • 6

    िच्चे कभी-कभी च्कर में डाल देने िाले प्र्न कर िैठ्े हैं । अ्पज् वप्ा िड़ा द्यनी्य जीि हो्ा है । मेरी छोिी लड़की ने जि उस वदन पूछ वल्या वक आदमी के नाखून ््यों िढ़्े हैं, ्ो मैं कुछ सोच ही नहीं सका । हर ्ीसरे वदन नाखून िढ़ जा्े हैं । काि दीवजए, िे चतुपचाप दांड सिीकर कर लेंगे; पर वनल्पजज अपराधी की भावँ् छूि्े ही वफर जैसे के ्ैसे हो जा्े हैं । आखखर ्ये इ्ने िेह्या ््यों हैं ?

    कुछ लाख ही िषयों की िा् है, जि मनतुष््य जांगली था; िनमानतुष जैसा । उसे नाखून की जरर् थी । उसकी जीिन रक्ा के वलए नाखून िहु् जररी थे । असल में िही उसके असत्र थे । दाँ् भी थे, पर नाखून के िाद ही उनका सथान था । धीरे-धीरे िह अपने अांग से िाहर की िस्तुओं का सहारा लेने लगा । उसने हड् वड्यों के भी हवथ्यार िनाए । मनतुष््य धीरे-धीरे और आगे िढ़ा । उसने धा्तु के हवथ्यार िनाए । इव्हास आगे िढ़ा । कभी-कभी मैं हैरान होकर सोच्ा हँ वक मनतुष््य आज अपने िच्चों को नाखून न कािने पर डाँि्ा है । िे रोज िढ़्े हैं । मतुझे ऐसा लग्ा है वक मनतुष््य अि नाखून को नहीं चाह्ा । ्ये उसकी भ्यांकर पाशिी िृवत् के जीिां् प्र्ीक हैं । मनतुष््य की पशतु्ा को वज्नी िार भी काि दो, िह मरना नहीं जान्ी ।

    अगर आदमी अपने शरीर की, मन की और िाक की अना्यास घिने िाली िृवत््यों के विष्य में विचार करे ्ो उसे अपनी िास्विक प्रिृवत् पहचानने में िहु् सहा्य्ा वमले । मनतुष््य की नख िढ़ा लेने की जो सहजा् िृवत् है, िह उसके पशतुति का प्रमाण है । उनहें कािने की जो प्रिृवत् है, िह उसकी मनतुष््य्ा की वनशानी है ।

    मेरा मन पूछ्ा है- मनतुष््य वकस ओर िढ़ रहा है ? पशतु्ा की ओर ्या मनतुष््य्ा की ओर ? असत्र िढ़ाने की ओर ्या असत्र कािने की ओर ? मेरी वनिबोध िावलका ने मानो मनतुष््य जाव् से ही प्र्न वक्या है- जान्े हो, नाखून ््यों िढ़्े हैं ? ्यह हमारी पशतु्ा के अिशेष हैं । मैं भी पूछ्ा हँ-जान्े हो, ्ये असत्र-शसत्र ््यों िढ़ रहे हैं ? ्ये हमारी पशतु्ा की वनशानी हैं । सिराज होने के िाद सिभाि्ः ही हमारे ने्ा और विचारशील नागररक सोचने लगे हैं वक इस देश को सच्चे अथ्प मांे

    ३. नाखून क््ों बढ़ते हैं ?

    - आचार्य हजारीप्रसाद द ्बििेदी

    प्रस्तु् िैचाररक वनिांध में आचा्य्प हजारीप्रसाद ने नाखून िढ़ने को पशतु्ा का वचह ्न माना है । नाखून पशतु्ा, ितुराइ्यों का प्र्ीक है । आपका कहना है वक वजस ्रह नाखून िढ़ने पर हम उसे काि दे्े हैं, ठीक उसी ्रह ्यवद वकसी में ितुरी आद्ें आ जाएँ ्ो उनहें त्याग देना चावहए ।

    जनम ः १९०७, िवल्या (उ.प्र.)मृत्यु ः १९8९ (उ.प्र.)परिच् ः द ्वििेदी जी वहांदी सावहत्य के मौवलक वनिांधकार, उतकृष्ि समालोचक एिां साांसकृव्क विचारधारा के प्रमतुख उपन्यासकार हैं । आपका व्यव््ति िड़ा प्रभािशाली और आपका सिभाि िड़ा सरल और उदार था । आप वहांदी, अांग्ेजी, सांसकृ् और िाांग्ला भाषाओं के विद ्िान थे ।प्रमयुख कृमत्ाँ ः ‘अशोक के फूल’, ‘क्पल्ा’ (वनिांध), ‘िाणभि् ि की आतमकथा,’ ‘पतुनन्पिा’ (उपन्यास) आवद ।

    परिच्

    गद् ् संबंधी

    मौमलक सृजन

    सद् गतुणों और दुगतु्पणों में अां्र वलखो ।

  • 7

    सुखी कैसे बना्या जाए । हमारी परंपरा मवहमाम्यी और संसकार उज्ज्वल हैं क््योंवक अपने आप पर, अपने आप द ्वारा लगा्या हुआ बंधन हमारी संसककृवत की बहुत बड़ी ववशेषता है ।

    मनुष््य पशु से वकस बात में वभन्न है ! उसमें स्ंयम है, दूसरे के सुख-दुख के प्रवत समवेदना है, श्रद् धा है, तप है, त््याग है । इसीवलए मनुष््य झगड़े-टंटे को अपना आदश्श नहीं मानता, गुससे में आकर चढ़-दौड़ने वाले अवववेकी को बुरा समझता है । वचन, मन एवं शरीर से वकए गए असत््याचरण को गलत मानता है ।

    ऐसा कोई वदन आ सकता है जब मनुष््य के नाखूनों का बढ़ना बंद हो जाएगा । प्रावणशावसत्र्यों का ऐसा अनुमान है वक मनुष््य का अनावश्यक अंग उसी प्रकार झड़ जाएगा, वजस प्रकार उसकी पूूँछ झड़ गई है । उस वदन मनुष््य की पशुता भी लुप्त हो जाएगी । शा्यद उस वदन वह मरणासत्रों का प्र्योग भी बंद कर देगा । नाखून का बढ़ना मनुष््य के भीतर की पशुता की वनशानी है और उसे नहीं बढ़ने देना मनुष््य की अपनी इचछा है, अपना आदश्श है ।

    मनुष््य मंे जो घृणा है जो अना्यास वबना वसखाए आ जाती है, वह पशुत्व का द् ्योतक है । अपने को सं्यत रखना, दूसरे के मनोभावों का आदर करना मनुष््य का सवधम्श है । बचे् ्यह जानें तो अचछा हो वक अभ्यास और तप से प्राप्त वसतुएूँ मनुष््य की मवहमा को सवूचत करती हैं ।

    मनुष््य की चररताथ्शता प्रेम में है, मतै्री में है, त््याग में है, अपने को सबके मंगल के वलए वनःशेष भाव से दे देने में है । नाखूनों का बढ़ना मनुष््य की उस अंध सहजात वृवत्त का पररणाम है जो उसके जीवन में सफलता ले आना चाहती है । उसको काट देना उस सववनधा्शररत आत्मबंधन का फल है जो उसे चररताथ्शता की ओर ले जाती है ।

    नाखून बढ़ते हैं तो बढ़ें, मनुष््य उनहें बढ़ने नहीं देगा ।

    मानवी्य मूल््य वाले शब्दों का चाट्श बनाओ । इन शब्दों में से वकसी एक शब्द से संबंवधत कोई प्रसंग/घटना सुनो और सुनाओ ।

    ‘सुरक्ा हेुत शसत्रों की भरमार’ ववष्य के पक्-ववपक् में अपने ववचार वलखो ।

    ववववध संवेदनशील मुद ्दों/ववष्यों (जैसे-जावत, धम्श, रंग, वलंग, रीवत-ररवाज) के बारे में अपने वशक्क से प्रशन पूछो ।

    पाठ ््यसामग्ी और अन्य पठन सामग्ी का द्ुत वाचन करके उनमें आए ववचारों पर सहपावठ्यों से चचा्श करो ।

    संभाषणमीय

    लेखिमीय

    पठिमीय

    श्रवणमीय

  • 8

    (२) प्रतीक मलखो ः

    (३) उतति मलखो ः१. मनतुष््य की चरर्ाथ्प्ा इन दो िा्ों में है ः- (अ) ------------------------- (आ)-----------------------------२. मनतुष््य का सिधम्प ्यह है ः (अ) ------------------------- (आ)-----------------------------३. मनतुष््य को नाखूनों की जरर् ्ि थी ः (अ) ------------------------- (आ)-----------------------------

    नाखूनों काे बढ़ाना नाखूनों को कािना

    * सूचनानयुसाि कृमत्ाँ किो ः-(१) प्रवाह तामलका पूर्ण किो ः

    मनतुष््य में पशतुति से वभन््ा दशा्पने िाली िा्ें

    (१) मनम्न शब्दों के मलंग पहचानकि मलखो - आतमा, व्यव््, िादल, ्ार, नोि, नाखून, पतुस्क, ्वक्या, दही

    (२) अर्ण के अनयुसाि वाक््ों के प्रकाि ढूँढ़कि मलखो ।

    उप्ोमजत लेखन वकसी मौवलक मराठी विज्ापन का वहांदी में अनतुिाद करो ।

    शरीर के विवभन् अांगों से सांिांवध् मतुहािरों की अथ्प सवह् सूची िनाओ ।

    भाषा मबंदु

    स्व्ं अध््न

    मैंने समझा------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

    शब्द वामिकावनमानयुष = िांदर की एक प्रजाव् पाशवी = पशतुि्मनबबोध = अज्ानआचिर = ि्ा्पि, व्यिहार

    लयुप्त = गा्यि घृरा = नफर्द् ्ोतक = प्र्ीकचरितार्णता = साथ्पक्ा

    8

  • 9

    4. गाँव-शहि

    - प्रदीप शुक्ल

    जनम ः १९६७, लखनऊ (उ.प्र.) परिच् ः कवि प्रदीप शतु्ल जी को वहांदी कवि्ा के प्रव् विशेष श्द् धा है । आप कवि्ा को एक साधना के रप में देख्े हैं । वहांदी की विविध पत्र-पवत्रकाओं में आपकी रचनाएँ छप्ी रह्ी हैं ।प्रमयुख कृमत्ाँ ः ‘अममा रह्ी गाँि में’ (निगी् सांग्ह), ‘गतु्लू का गाँि’ (िालगी् सांग्ह) आवद ।

    प्रस्तु् निगी् में कवि प्रदीप शतु्ल जी ने गाँि और शहर के दद्प को दशा्प्या है । ्यहाँ शहरों की भीड़-भाड़, भागम-भाग, गाँि से शहरों की ्रफ पला्यन, गाँिों का शहरीकरण आवद का िड़े ही मावम्पक ढांग से िण्पन वक्या है ।

    परिच्

    पद् ् संबंधी

    िदला-िदला-सा मौसम हैिदले-से लग्े हैं सतुर ।दीदा फाड़े शहर देख्ागाँि देख्ा िुकुर-िुकुर । व्ल रखने की जगह नहीं है शहर ठसाठस भरे हुए । उधर गाँि में पीपल के हैं सारे पत्े झरे हुए ।मेिट्ो के खांभे के नीचेरा् गतुजारे परमेसतुर ।दीदा फाड़े शहर देख्ागाँि देख्ा िुकुर-िुकुर । इधर शहर में सारा आलम आँख खतुली िस दौड़ रहा ।

    िहाँ रेवड्यो पर सिेशन रामदीन है जोह रहा । उनकी िा् सतुनी है जिसे वदल कर्ा है धतुकुर-पतुकुर ।सतुरसव््या के दोनों लड़केसूर् गए कमाने ।गेहँ के खे्ों में लेवकनवग्ली लगीं घमाने । लँगड़ाकर चल्ी है गै्या सड़कों ने खा डाले खतुर । दीदा फाड़े शहर देख्ा गाँि देख्ा िुकुर-िुकुर ।

    ‘भार्ी्य सांसकृव् के दश्पन देहा्ों में हो्े हैं’ इस ्थ््य पर अपने विचार वलखो ।

    कल्पना पल्लवन

  • 10

    (१) तयुलना किो ः

    गाँव शहि------------------------

    ------------------------

    अ१. मिेट्ो२. पीपल

    उतति------------

    आगाँिकसिाशहर

    (२) उमचत जोमड़्ाँ ममलाओ ः* सूचना के अनयुसाि कृमत्ाँ किो ः-

    (३) कमृत पूर्ण किो ः (4) एक शब्द में उतति मलखो ः१. लँगड़ाकर चलने िाली -२. पत् ेझरा हुआ िृक् -३. िदले-से लग्े हैं -4. जहाँ व्ल रखने की जगह नहीं है ।

    िृक् और पांछी के िीच का सांिाद वलखो ।

    १. गाँि का देखना

    २. शहर का देखना

    शब्द वामिकादीदा = आँख, दृवष्ि, वनगाह पिमेसयुि = परमे्िर (एक नाम)आलम = दुवन्या, जग्, जहान

    मगल्ली = वगलहरीग्ैा = गा्यघमाना = धूप खाना

    ्या्ा्या् के वन्यम, साांकेव्क वचह् न एिां ह्ेमेि की आि््यक्ा आवद के चाि्पस िनाकर विद् ्याल्य की दीिारें सतुशोवभ् करो ।

    उप्ोमजत लेखन

    पाठ ््यपतुस्क के पाठों से विलोम और समानाथथी शबद ढूँढ़कर उनकी सूची िनाओ और उनका अलग-अलग िा््यों में प्र्योग करो ।भाषा मबंदु

    स्व्ं अध््न

    मैंने समझा------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

  • 11

    सतुिह का सम्य था । मैं डा्ॅिर रामकुमार िमा्प जी के प्र्याग सिेशन खसथ् वनिास ‘‘मधतुिन’’ की ओर पूरी रफ्ार से चला जा रहा था ््योंवक १० िजे उनसे वमलने का सम्य ््य था ।

    िैसे ्ो मैंने डाॅ्िर साहि को विवभन् उतसिों, सांगोवष्ठ्यों एिां सममेलनों में देखा था, परां्तु इ्ने वनकि से मतुलाका् करने का ्यह मेरा पहला अिसर था । मेरे वदमाग में विवभन् विचारों का जिार उठ रहा था- कैसे होंगे डाॅ्िर साहि, कैसा व्यिहार होगा उस सावहत्य मनीषी का, आवद । इन ्माम उठ्े और िैठ्े विचारों को वलए मैंने उनके वनिास सथान ‘मधतुिन’ में प्रिेश वक्या । काफी साहस करके दरिाजे पर लगी घांिी िजाई । नौकर वनकला और पूछ िैठा, ‘‘््या आप अनतुराग जी हैं ?’’ मैंने उत्र मेंां वसफ्फ ‘हाँ’ कहा । उसने मतुझे डट्ाइांग रम में विठा्या और ्यह कह्े हुए चला ग्या वक ‘‘डाॅ्िर साहि आ रहे हैं ।’’ इ्ने में डॉ्िर साहि आ गए । ‘‘अनतुराग जी, कैसे आना हुआ ?’’ आ्े ही उनहोंने पूछा ।

    मैंने कहा, ‘‘डा्ॅिर साहि, कुछ प्रसांग जो आपके जीिन से सांिांवध् हैं और उनसे आपको जो महत्िपणू्प प्रेरणाएँ वमली हों उनहीं की जानकारी हे्तु आ्या था ।’’

    डा्ॅिर साहि ने िड़ी सरल्ा से कहा, ‘अचछा, ्ो वफर पूवछए ।’प्रशन ः डाॅ्िर साहि, काव्य-रचना की प्रेरणा आपको कहाँ से

    और कैसे प्राप्त हुई ? इस सांदभ्प में कोई ऐसा प्रसांग ि्ाने का कष्ट करें वजसने आपके जीिन के अां्रांग पहलतुओं को महतिपूण्प मोड़ वद्या हो।

    उतति ः पहले ्ो मेरे जीिन में समाज की अांध व्यिसथा के प्रव्विद्रोह अपने आप ही उवद् हुआ । सन १९२१ मांे जि मैं केिल साढ़े पांद्रह िष्प का था, गाांधीजी के असह्योग आांदोलन में पाररिाररक एिां सामावजक व्यिधानों से सांघष्प कर्े हुए मैंने भाग वल्या । उस सम्य सकूल छोड़ने की िा् ्ो सोची भी नहीं जा सक्ी थी मगर मध्य प्रदेश के अां्ग्प् नरवसांहपतुर में मौलाना शौक् अली साहि आए और िोले, ‘‘गाांधीजी ने कहा है वक अांगे्जी की ्ालीम गतुलाम िनाने का एक नतुसखा है ।’’ ्तप्चा् आिाज ्ेज कर्े हुए कहने लगे, ‘‘है कोई माई का लाल जो कह दे वक मैं कल से सकूल नहीं जाऊँगा ।’’ मैंने अपनी माँ के आगे िड़ी ही श्द् धा से सकूल न जाने की घोषणा कर दी । सभी लोग सक्े में आ गए । िा् भी अजीि थी वक उन वदनों एक वडपिी कले्िर का लड़का विद्रोह कर जाए । लोगों ने िहु् समझा्या, वप्ा जी की

    - अनुराग िमा्य

    5. मधयुबन

    प्रस्त्ु पाठ में श्ी अनतुराग िमा्प ने प्रवसद् ध लेखक डॉ. रामकुमार िमा्प जी का साक्ातकार वल्या है । ्यहाँ अनतुराग जी ने डॉ. िमा्प जी से उनकी काव्य रचना की प्रेरणा, लौवकक-पारलौवकक प्रमे, देश की राजनीव्क खसथव् आवद पर प्र्न पूछें हैं । डॉ. िमा्प जी ने इन प्र्नों के िड़ी िेिाकी से उत्र वदए हैं ।

    परिच् ः अनतुराग िमा्प जी ने वहांदी में विपतुल लेखन वक्या है । आपकी भाषा धारा प्रिाह, सरल एिां आश्य सांपन् हो्ी है । आप वहांदी के जाने-माने लेखक हैं ।

    परिच्

    गद् ् संबंधी

    ‘कहावन्यों/कवि्ाओं द् िारा मनोरांजन ्था ज्ान प्राखप्त हो्ी है,’ इसपर अपने म् वलखो ।

    मौमलक सृजन

  • 12

    नौकरी की िा् कही परां्तु मैं घर से वनकल पड़ा ््योंवक गाांधीजी का आदेश मानना था । इस प्रकार सि्पप्रथम मैंने सत्य एिां देश के वलए विद्रोह वक्या । ्ि ्क मैं सोलह िष्प का हो चतुका था और राष्टट्ी्य धिज लेकर नगर में प्रभा् फेरी भी वक्या कर्ा था । ्यह िा् सन १९२१ की ही है और इसी सम्य मैंने देशप्रेम पर एक कवि्ा वलखी । ्यही मेरी कवि्ा का मांगलाचरण था ।

    प्रशन ः आप मध्य प्रदेश से उत्र प्रदेश कैसे आए ?उतति ः वहांदी प्रेम ने मतुझे मध्य प्रदेश से उत्र प्रदेश आने को प्रेरर्

    वक्या ््योंवक उन वदनाांे नागपतुर वि्िविद् ्याल्य में वहांदी नहीं थी । सन १९२5 मांे मैंने इांिर की परीक्ा उत्ीण्प की, ्तप्चा् उच्च वशक्ा हे्तु प्र्याग वि्िविद् ्याल्य में प्रिेश ले वल्या । मैंने इसी वि्िविद ््याल्य से एम.ए. की परीक्ा प्रथम शे्णी में उत्ीण्प की ।

    मैंने देखा वक डा्ॅिर साहि के चेहरे पर गांभीर्ा के भाि साफ प्रव्विांवि् हो रहे हैं। ऐसा प्र्ी् हो रहा था जैसे िे अपने अ्ी् मेेां खो-से गए हैं । मैंने पतुनः सिाल वक्या ।

    प्रशन ः डॉ्िर साहि, प्रा्यः ऐसा देखा ग्या है वक कवि्यों एिां लेखकों के जीिन में उनका लौवकक प्रमे, पारलौवकक प्रेम में िदल ग्या । ््या आपके साथ भी ऐसा हुआ है ?

    उतति ः अनतुराग जी, प्रेम मनतुष््य की एक प्राकृव्क प्रिृखत् है । सन १९२६ मांे मेरा वििाह हो ग्या और मैं गृहसथ जीिन में आ ग्या । अि मतुझे साखतिक्ा एिां नवै्क्ा से प्रेम हो ग्या । मैंने इसी सम्य, ्यानी सन १९३० में ‘‘किीर का रहस्यिाद’’ वलखा । इ्ना अि््य है वक मेरे जीिन के कुछ अनतुभि कवि्ा के माध्यम से प्रेवष् हुए। मतुझे िचपन से ही अवभन्य का शौक था और प्रा्यः उतसिों के अिसर पर नािकों में भाग भी वल्या कर्ा था ।

    मैंने िा् आगे िढ़ाई और पूछा ।प्रशन ः डॉ्िर साहि, देश की राजनीव्क खसथव् के िारे में आपकी

    ््या रा्य है ?उतति ः मैं राजनीव् से हमेशा दूर रहा ््योंवक आज की राजनीव् में

    खसथर्ा का अभाि है । ्यद ््यवप मैं नेहर जी, शासत्री जी, इांवदरा जी एिां मोरारजी भाई से वमल चतुका हँू और उनसे मेरा पररच्य भी है, परां्तु मैंने राजनीव् से अपने आपको सदा दूर रखा, मतुझे राजनीव् में कोई रुवच नहीं है । मैं सावहत्यकार हँू, और सावहत्य वचां्न में वि्िास रख्ा हँ ।

    इ्ना कह्े हुए डॉ्िर साहि ने घड़ी देखी और िोले, ‘‘अनतुराग जी, मतुझे साढ़े ग््यारह िजे एक का्य्प से जाना है ।’’ ्तप्चा् उनहोेांने मतुझे एक कुशल अवभभािक की भावँ् आशीिा्पद दे् े हुए विदा वक्या ।

    साक्ातकार लेने के वलए वकन-वकन प्र्निाचक शबदों का प्र्योग हो सक्ा है, सूची ्ै्यार करो । प्रत्येक शबद से एक-एक प्र्न िनाकर वलखो ।

    द् विभाषी शबदकोश पढ़कर उसके आधार पर वकसी एक पाठ का द ्विभाषी शबदकोश िनाओ ।

    लेखनी्

    पठनी्

    ्यू-ि् ्यूि पर सां् किीर के दोहे सतुनो और सतुनाओ ।

    ‘िेिी िचाओ-िेिी पढ़ाओ’ पर पथनाि् ्य प्रस्तु् करो ।

    संभाषरी्

    श्रवरी्

  • 13

    * सूचना के अनयुसाि कमृत्ाँ किो ः-(१) संजाल पूर्ण किो ः

    (4) कृमत पूर्ण किो ः

    (२) कािर मलखो ः१. डॉ्िर साहि का राजनीव् से दूर रहने का कारण-२. डॉ्िर साहि का मध्यप्रदेश से उत्र प्रदेश आने के वलए प्ररेर् होने का कारण -

    (३) कृमत किो ः

    ------------

    ---------------

    पाठ में प्र्यतु्् भू्पूि्प प्रधानमांवत्र्यों

    के नाम वलखो ।

    शब्द वामिकासंगोषठी = वकसी विष्य पर विशेषज्ों का चचा्पसत्र तालीम = वशक्ा, उपदेश

    मयुहावि ेजवाि उठना = विचारों की हलचलसकते में आना = घिराना, अव् भ्यभी् होना

    रामकुमार जी के जीिन की घिनाएँवििाह

    १९३०

    १९२5

    मनम्न शब्दों से कृदंत/तद ्मधत बनाओ ःवमलना, ठहरना, इनसान, शौक, देना, कहना, भाि, िैठना, घर, धन

    अां्रजाल से डॉ. रामकुमार िमा्प जी से सांिांवध् अन्य सावहवत्यक जानकारर्याँ प्राप्त करो ।

    भाषा मबंदु

    स्व्ं अध््न

    मैंने समझा------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

    अपने विद् ्याल्य में आ्योवज् विज्ान प्रदश्पनी के उद ्घािन समारोह का प्रमतुख मतुद ्दों सवह् िृत्ाां् लेखन करो । उप्ोमजत लेखन

    गाांधीजी के असह्योग आांदोलन में भाग

    गृहसथ जीिन में इनसे प्रेम हुआ

  • 14

    ६. जिा प्ाि से बोलना सीख लीजे

    - रमेश दत्त शमा्य

    जनम ः १९३९, जलेसर, एिा (उ.प्र)मृत्यु ः २०१२परिच् ः शमा्प जी पचास िषयों से पत्र-पवत्रकाओं, रवेड्यो और िी.िी. के माध्यम से िैज्ावनक दृवष्िकोण का प्रचार-प्रसार कर्े रहे । आपको विज्ान लेखन में दज्पन से अवधक पतुरसकार वमल चतुके हैं । आप कक्ा सा्िीं-आठिीं से ही सथानी्य मतुशा्यरों में ‘चचा जलेसरी’ के नाम से वशरक् करने लगे थे ।

    प्रस्तु् गजल के शेरों में शमा्प जी ने प्रेम से िोलना, सही सम्य पर िोलना, िोलने से पहले विचार करना, आतमवन्यांत्रण रखना, मधतुरभाषी होना आवद गतुणों को अपनाने के वलए प्रेरर् वक्या है । आपका मानना है वक हमेशा होंठ सीकर िैठना उवच् नहीं है । आि््यक्ानतुसार आकोश प्रकि करना भी जररी है ।

    परिच्

    पद ्् संबंधी

    ‘िाणी की मधतुर्ा सामने िाले का मन जी् ले्ी है ।’ इस ्थ््य पर अपने विचार वलखाे ।

    कल्पना पल्लवन

    १4

    िाणी में शहद घोलना सीख लीजे,जरा प्यार से िोलना सीख लीजे ।

    चतुप रहने के, ्यारों िड़े फा्यदे हैं,जतुिाँ ि्् पर खोलना सीख लीजे ।

    कुछ कहने से पहले जरा सोवचए,ख्यालों को खतुद ्ौलना सीख लीजे ।

    ्ू-्ड़ाक हो ्या वफर हो ्ू-्ू मैं-मैं,अपने आपको िोकना सीख लीजे ।

    पिाखे की ्रह फिने से पहले,रोशनी के रांग घोलना सीख लीजे ।

    किु िचन ्ो सदा िो्े हैं काँिे,मीठी िोली के गतुल रोपना सीख लीजे ।

    िा् िेिा् कोई चतुभने लगे ्ो,िदलकर उसे मोड़ना सीख लीजे ।

    ्ये वकसने कहा होंठ सीकर के िैठो, जरर् पे मतुँह खोलना सीख लीजे ।

  • 15१5

    * सूचनानयुसाि कमृत्ाँ किो ः-(१) प्रवाह तामलका पूर्ण किो ः

    (4) कमवता की अंमतम चाि पंमक्त्ों का अर्ण मलखो ।

    (5) कमवता में आए इस अर्ण के शब्द मलखो ः

    (२) उतति मलखो ः१. कािँे िोने िाले -२. चतुभने िाली -३. फिने िाले -

    (३) चयुप िहने के चाि िा्दे मलखो ः१. २. ३. 4.

    कवि ने इन िा्ों को सीख लेने को कहा है

    ‘्या्ा्या् की समस्याएँ एिां उपा्य’ विष्य पर वनिांध वलखो ।

    उपसग्ण/प्रत्् अलग किके मूल शब्द मलखो ः भार्ी्य, आसथािान, व्यव््ति, सनेवहल, िेिा्, वनरादर, प्रत्येक, सतु्योग

    अथ्प शबद(१)(२)(३)(4)

    मधतुकड़िेविचार

    आि््यक्ा

    ------------------------------------

    शब्द वामिकाबेबात = विना िा् सीकि = वसलकर

    जयुबा ँ= जीभ, मतुँह िोपना = िोना

    वहांदी साप्तावहक पवत्रकाएँ/समाचार पत्रों से प्रेरक कथाओं का सांकलन करो ।

    उप्ोमजत लेखन

    भाषा मबंदु

    स्व्ं अध््न

    मैंने समझा------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

  • 16

    २३ जुलाई सुबह-सुबह ही समाचार वमला, रजा साहब नहीं रहे, और ्यह सुनते ही मानस पटल पर ्यादों की एक कतार-सी लग गई ।

    वपछले फरवरी की ही बात है । मैं वदल्ली पहुूँची थी अपनी ‘गणपवत प्रदश्शनी’ के वलए । सोच रही थी वक रजा साहब शा्यद अपनी वहीलचेअर पर मेरी प्रदश्शनी के उद ्घाटन के अवसर पर आ जाएूँ पर उस रात कुछ अनहोनी-सी हुई । उस रात रजा साहब सपने में आए, मुझे उठा्या, हमने बातें की, शो के वलए मुझे उनहोंने शुभकामना दी और कहने लगे, सुजाता एक बार मुझसे वमलने आ जाओ । अब मैं जाने वाला हूँ । इसके बाद तो रुकना मुशशकल था । मैं पहुूँच गई उनसे वमलने । वे असपताल में शून्य की तरह लेटे हुए थे, मैंने उनके हाथों को छुआ । वसफ्फ सांॅस चल रही थी । अलववदा कहकर लौट आई ।

    रजा साहब अपने धम्श के साथ-साथ उतने ही वहंदू और ईसाई भी थे । उनके सटुवड्यो में गणपवत की मूवत्श, क्रॉस, बाइबल, गीता, कुरान, उनकी माूँ का एक फाेटो, गांधीजी की आत्मकथा व भारत से लाई हुई मोगरे की कुछ सूखी मालाएूँ, सब एक साथ रखा रहता था । वे गणेश को भी पूजते थे और हर रवववार को सुबह चच्श भी जाते थे ।

    एक वदन जहाूँगीर आट्श गैलरी में प्रदश्शनी देखते हुए वकसी ने कहा, अरे ्यह तो एस.एच. रजा हैं । मैं एकदम सावधान हो गई क््योंवक मेरी सूची में उनका भी नाम था । मैंने उनके पास जाकर कहा-‘‘रजा साहब, आपसे बात करनी है !’’ वे देखते ही रह गए ! उनहोंने मुझे इंटरव्यू वद्या, बहुत सारी बातें हुईं । अचानक मुझसे पूछने लगे वक आप और क््या-क््या करती हैं । मैंने कहा, ‘‘मैं कलाकार हूँ, पेंट करती हूँ ।’’ वे तुरंत खड़े हो गए और कहने लगे, ‘‘चलो तुमहारा काम देखते हैं ।’’

    मैं सोच में पड़ गई-मेरा काम तो पुणे में है । उनहें बता्या तो वे बोले, ‘‘चलो पुणे ।’’ ताज होटल के सामने से हमने टकै्सी ली और सीधे पुणे पहुूँचे । उनहोंने मेरा काम देखा और वफर कहा- ‘‘आपको पेररस आना है । आपका भववष््य बहुत उज्ज्वल है ।’’

    छोटी-से-छोटी बात भी उनके वलए महत्त्वपूण्श हुआ करती थी । बड़ी तनम्यता और लगन के साथ करते थे सब कुछ । पेंवटंग वबकने के बाद पवैकंग में भी उनकी रुवच हुआ करती थी । कोई इस काम में मदद करना चाहता तो मना कर देते थे । वकसी को हाथ नहीं लगाने देते थे । बड़े करीने से, धै्य्श के साथ वे पवैकंग करते । कहते थे- ‘‘लड़की ससुराल

    ७. मेरे रजा साहि - सुजाता बजाज

    प्रसतुत पाठ में प्रवसद् ध वचत्रकार स्ैयद हैदर रजा के बारे में लेशखका सुजाता बजाज ने अपने संस