२१६ के अनुसाि समिनवय सषमिषत का...

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  • शासन षनण्णय क्रमिांक अ यास-२११६ (प्र.क्र.4३ १६) एस ी-4 षदनांक २5.4.२ १६ के अनुसाि समिनवय सषमिषत का गठन षकया गया षद. २ .१२.२ १७ को हुई इस सषमिषत की बैठक मिें यह पाठ् यपुस्तक षनधा्णरित किने हेतु मिानयता प्रदान की गई

    षहंदी

    आठवीं कक्ाबािभािती

    मिहािा िा य पाठ् यपुस्तक षनषमि्णती व अ यासक्रमि संशोधन मिं , पुणे

    मिेिा नामि है &

    आपके समाट्थफोन में ‘ ’ ि् वारा, पुसतक के प्थम पमृषठ पर . . के माधयम से दडदजटल पाठ् यपुसतक एवं प्तयेक पाठ में अंतदन्थदहत . . मंे अधययन- अधयापन के दलए पाठ से संबंदधत उपयुकत दृक-श्रावय सामग्ी उपलबध कराई जाएगी ।

  • प्रथमिावृखत्त २ १8nhbm nwZ_w©ÐU २ १9

    मिहािा िा य पाठ् यपुस्तक षनषमि्णती व अ यासक्रमि संशोधन मिं , पुणे - 4११ 4इस पुसतक का सवा्थदधकार महारा ट् रा य पाठ् यपुसतक दनदम्थती व अ यासक्रम संशोधन मंड के

    अधीन सुरदक्त है। इस पुसतक का कोई भी भाग महारा ट् रा य पाठ ्यपुसतक दनदम्थती व अ यासक्रम संशोधन मंड के संचालक की दललखत अनुमदत के दबना प्कादशत नहीं दकया जा सकता ।

    ©

    प्रकाशक श्री षववेक उत्तमि गोसावी

    दनयंत्रकपाठ् यपुसतक दनदम्थती मंड

    प्भािेवी, मुंबई-२5

    संयोजन डॉ.अलका पोतिार, दवशेषादधकारी दहंिी भाषा, पाठ् यपुसतक मंड , पुणे सौ. संधया दवनय उपासनी, दवषय सहायक दहंिी भाषा, पाठ् यपुसतक मंड , पुणे

    षनषमि्णषत श्री सलच्तानंि आफ े, मुखय दनदम्थदत अदधकारीश्री सदचन मेहता, दनदम्थदत अदधकारीश्री दनतीन वाणी, सहायक दनदम्थदत अदधकारी

    षनमिंषत्रत सदस्यश्री ता.का सूय्थवंशी श्रीमती मंजुला दत्रपाठी दमश्रा

    डॉ.हेमचंद्र वैि् य - अधयक् डॉ.छाया पाटील - सिसय प्ा.मैनोि् िीन मुल्ा - सिसयडॉ.ियानंि दतवारी - सिसयश्री रामदहत यािव - सिसयश्री संतोष धोत्रे - सिसय डॉ.सुदनल कुलकण - सिसय श्रीमती सीमा कांब े - सिसय डॉ.अलका पोतिार - सिसय - सदचव

    षहंदी भाषा अ यासग

    श्री संजय भारि् वाजडॉ. वषा्थ पुनवटकरसौ. वमृंिा कुलकणसौ. रंजना दपंग े डॉ. प्मोि शुकलश्रीमती पूदण्थमा पांडेयडॉ. शुभिा मोघेश्री धनयकुमार दबराजिारश्रीमती माया कोथ ीकरश्रीमती शारिा दबयानीडॉ. रतना चौधरीश्री सुमंत ि वीश्रीमती रजनी महैसा कर

    डॉ. आशा वी. दमश्राश्रीमती मीना एस. अग्वालश्रीमती भारती श्रीवासतवडॉ. शैला ललवाणीडॉ. शोभा बेलखोडेडॉ. बंडोपंत पाटीलश्री रामिास काटेश्री सुधाकर गावंडेश्रीमती गीता जोशीश्रीमती अच्थना भुसकुटे डॉ. रीता दसंहसौ. शदशकला सरगर श्री एन. आर. जेवेश्रीमती दनशा बाहेकर

    मिुखपृ श्री दववेकानंि पाटीलषचत्रांकन मयूरा डफ , श्री राजेश लव ेकर

    षहंदी भाषा सषमिषत

  • प्रस्तावना

    ( . सुषनि मिगि)संचािक

    महारा ट् रा य पाठ् यपुसतक दनदम्थती व अ यासक्रम संशोधन मंड , पुणे-०4

    षप्रय षवद् याषथ्णयो,

    तुमि सब पहिी से सातवीं कक्ा तक की षहंदी बािभािती पाठ् यपुस्तक से अ छी तिह से परिषचत ही हो ि अब आठवीं षहंदी बािभािती प ने के षिए उत्सुक होंगे िंग-षबिंगी, अषत आकष्णक यह पुस्तक तुम्हािे हाथों मिें सौपते हुए हमिें अत्यंत खुशी हो िही है

    हमिें ात है षक तुम्हें कषवता, गीत, गजि सुनना-प ना अषत षप्रय है मिनोिंजक कहाषनयों के संसाि मिें षवचिण किना अ छा िगता है तुम्हािी इन भावना का पाठ् यपुस्तक मिें सजगता से धयान िखा गया है इसीषिए बािभािती की इस पुस्तक मिें कषवता, गीत, नवगीत, गजि, पद, दोहे, नई कषवता, वैषवधयपूण्ण कहाषनयाँ, षनबंध, हास्य-वयं य एकांकी, संस्मििण, यात्रावण्णन, साक्ात्काि, आिेख, भाषण आषद साषहषत्यक षवधा का समिावेश षकया गया है ये सभी षवधाएँ मिनोिंजक होने के साथ-साथ ानाज्णन, भाषाई कौशिों-क्मिता के षवकास, िा् ीय भावना को सु किने एवं चरित्र षनमिा्णण मिें भी सहायक होंगी इन िचना के चयन के समिय आयु, षच, मिनोवै ाषनक एवं सामिाषजक स्ति का सजगता से धयान िखा गया है

    अंतिजाि एवं ष षज ि दुषनया के प्रभाव, नई शैषक्क सोच, वै ाषनक ष् कोण को समिक् िखकि ‘श्रवणीय’, ‘संभाषणीय’ ‘पठनीय’, ‘िेखनीय’, ‘मिने समिझा’, ‘कृषतयाँ पूण्ण किो’, ‘भाषा षबंदु’ आषद के मिाधयमि से पाठ् यक्रमि को पाठ् यपुस्तक मिें प्रस्तुत षकया गया है तुम्हािी कल्पनाशषक्त, सृजनशीिता को धयान मिें िखते हुए ‘स्वयं अधययन’, ‘उपयोषजत िेखन’, ‘मिौषिक सृजन’, ‘कल्पना पल्िवन’आषद कृषतयों को अषधक वयापक एवं िोचक बनाया गया है इनका सतत प्रयोग-उपयोग एवं अ यास अपेषक्त है मिाग्णदश्णक का सहयोग ि य तक पहुँचने के मिाग्ण को सहज ि सुगमि बना देता है अतः अधययन अनुभव की पूषत्ण हेतु अषभभावकों, षशक्कों का सहयोग ि मिाग्णदश्णन तुम्हािे षिए षनख चत ही सहायक षसद् ध होंगे तुम्हािी षहंदी भाषा ि ान मिें अषभवृद् षध के षिए ‘एेप’ एवं ‘क्यू.आि.को ,’ के मिाधयमि से अषतरिक्त क-श्रावय सामि ी उपिबध किाई जाएगी अधययन अनुभव हेतु इनका षनख चत ही उपयोग हो सकेगा

    आशा एवं पूण्ण षव वास है षक तुमि सब पाठ् यपुस्तक का समिुषचत उपयोग किते हुए षहंदी षवषय के प्रषत षवशेष षच षदखाते हुए आत्मिीयता के साथ इसका स्वागत किोगे

    पुणेषदनांक ः १8 अप्ैल २०१8, अक्यतमृतीयाभारतीय सौर ः २९ चैत्र १९4०

  • षशक्कों के षिए मिाग्णदश्णक बातें ........

    अधययन अनुभव प्रषक्रया प्रािंभ किने से पहिे पाठ् यपुस्तक मिें दी गई सूचना , षदशा षनदशों को भिी-भाँषत आत्मिसात कि िें भाषाई कौशि के षवकास के षिए पाठ् यवस्तु ‘श्रवणीय’, ‘संभाषणीय’, ‘पठनीय’, एवं ‘िेखनीय’ मिें दी गई है पाठों पि आधारित कृषतयाँ ‘सूचना के अनुसाि कृषतयाँ किो’ मिें आई ह पद् य मिें ‘कल्पना पल्िवन’, गद् य मिें ‘मिौषिक सृजन’ के अषतरिक्त ‘स्वयं अधययन’ एवं ‘उपयोषजत िेखन’ षवद् याषथ्णयों के भाव षवचाि षव व, कल्पना िोक एवं िचनात्मिकता के षवकास तथा स्वयंस् त्ण िेखन हेतु षदए गए ह ‘मिने समिझा’ मिें षवद् याथ ने पाठ प ने के बाद क्या आकिन षकया है, इसे षिखने के षिए षवद् याषथ्णयों को प्रोत्साषहत किना है

    ‘भाषा षबंदु’ वयाकिषणक ष् से मिहत्त्वपूण्ण है उपिोक्त सभी कृषतयों का सतत अ यास किाना अपेषक्त है वयाकिण पािंपरिक प से नहीं प ाना है सीधे परिभाषा न बताकि कृषतयों ि उदाहिणों द् वािा पाठ् यवस्तु की संकल्पना तक षवद् याषथ्णयों को पहुँचाने का उत्तिदाषयत्व आपके सबि कधों पि है ‘पूिक पठन’ सामि ी कहीं न कहीं पाठ को ही पोषषत किते हुए षवद् याषथ्णयों की षच एवं पठन संस्कृषत को ब ावा देती है अतः पूिक पठन का वाचन आव यक प से किवाएँ

    आव यकतानुसाि पाठ् येति कृषतयों, भाषषक खेिों, संदभ , प्रसंगों का समिावेश भी अपेषक्त है पाठों के मिाधयमि से नैषतक, सामिाषजक, संवैधाषनक मिूल्यों, जीवन कौशिों, क ीय तत्त्वों के षवकास के अवसि भी षवद् याषथ्णयों को प्रदान किें क्मिता षवधान एवं पाठ् यपुस्तक मिें अंतषन्णषहत सभी क्मिता कौशिों, संदभ एवं स्वाधयायों का सतत मिूल्यमिापन अपेषक्त है

    पूण्ण षव वास है षक आप सभी इस पुस्तक का सहष्ण स्वागत किेंगे

  • यह अपेक्ा है षक आठवीं कक्ा के अंत तक षवद् याषथ्णयों मिें भाषा षवषयक षनम्नषिखखत अधययन षन्पषत्त षवकषसत हों षहंदी अधययन षन्पषत्त आठवीं कक्ा

    षवद् याथ

    . . दवदवध दवषयों पर आधाररत दवदवध प्कार की रचनाओं का, पाठ् यसामग्ी और सादहतय की दृल से दवचार पढ़कर चचा्थ करते हुए दृत वाचन करते हैं तथा आशय को समझते हुए सवचछ, शु एवं मानक लेखन तथा कद्रीय भाव को दलखते हैं ।

    . . दहंिी भाषा में दवदभनन प्कार की सामग्ी को पढ़कर तथा दवदभनन स्ोतों से प्ापत सूचनाओं, सववेक्ण, दटपपणी आदि को प्सतुत कर उपलबध जानकारी/दववरण का यों का तयों उपयोग न करते हुए उसका योगय संकलन, संपािन करते हुए लेखन करते हैं ।

    . . पढ़ी गई सामग्ी पर दचंतन करते हुए समझ के दलए तथा दकसी नये दवचार, कलपना का आकलन करने के दलए सावधानी से वाचन करते हुए समानता, असमानता को समझकर एवं दवदवध स्ोतों, माधयमों से प्ापत सूचनाओं का सतयापन करने के दलए प्शन पूछते हैं ।

    . . अपने पररवेश में मौजूि लोककथाओं और लोकगीतों के बारे में सजगता से सुनते हैं, सुनाते हैं तथा उनकी बारीदकयों को समझते हुए शु उचचारण के साथ मुखर-मौन वाचन करते हैं ।

    . . पढ़कर अपररदचत पररलसथदतयों और घटनाओं की कलपना करते हुए गुट चचा्थ में सहभागी होकर उसमें आए दवशेष उ रणों, वाकयों का अपने बोलचाल तथा संभाषण में प्योग करते हैं तथा पररचचा्थ-भाषण आदि में अपने दवचारों को मौलखक/दललखत रूप में वयकत करते हैं ।

    . . दवदवध संवेिनशील मु ों / दवषयों जैसे- जादत, धम्थ, रंग, दलंग, रीदत-ररवाजों के बारे में अपने दमत्रों, अधयापकों या पररवार से प्शन करते हैं तथा संबंदधत दवषयों पर उदचत शबिों का प्योग करते हुए धाराप्वाह संवाि सथादपत कर लेखन करते हैं ।

    . . दकसी सुनी हुई कहानी, दवचार, तक्क, घटना आदि के भावी प्संगों का अथ्थ समझकर अनुमान लगाते हैं, दवशेष दबंिुओं को खोजकर उसका संकलन करते हैं ।

    . . पढ़ी गई सामग्ी पर दचंतन करते हुए बेहतर समझ के दलए प्शन पूछते हैं तथा दकसी पररदचत/अपररदचत के साक्ातकार हेतु प्शन दनदम्थदत करते हैं तथा दकसी अनुचछेि का अनुवाि एवं दलपयंतरण करते हैं ।

    . . दवदभनन पठन सामदग्यों में प्युकत उपयोगी/आलंकाररक शबि, महान दवभूदतयों के कथन, मुहावरों/लोकाेल यों-कहावतों, पररभाषाअों, सूत्रों आदि को समझते हुए सूची बनाते हैं तथा दवदवध तकनीकाें का प्योग करके अपने लेखन को अदधक प्भावी बनाने का प्यास करते हैं ।

    . . दकसी पा यवसतु को पढ़ने के िौरान समझने के दलए अपने दकसी सहपाठी या दशक्क की मिि लेकर आलेख, अनय संिभ्थ सादहतय का ि् दवभादषक शबि संग्ह, ग्ादफकस, वड्थआट्थ, दपकटोग्ाफ आदि की सहायता से शबिकोश तैयार करते हैं और प्सार माधयमों में प्कादशत जानकारी की अालंकाररक शबिावली का प्भावपूण्थ तथा सहज वाचन करते हैं ।

    . . अपने पाठक के दवचार और लेखन के, दललखत सामग्ी के उ ेशय का आलकन कर और अनय दृल कोण के मु ों को समझकर उसे प्भावी तरीके से दलखते हैं ।

    . . सुने हुए काय्थक्रम के त यों, मुखय दबंिुओं, दववरणों एवं पठनीय सामग्ी में वदण्थत आशय के वाकयों एवं मु ों का तादक्कक एवं सुसंगदत से पुन समरण कर वाचन करते हैं तथा उनपर अपने मन में बनने वाली छदबयों और दवचारों के बारे में दललखत या ेल दलदप में अदभवयल करते हैं ।

    . . भाषा की बारीदकयों/वयवसथा का वण्थन, उदचत दवराम, बलाघात, तान-अनुतान के साथ शु उचचारण आरोह-अवरोह, को एकाग्ता से सुनते एवं सुनाते हैं तथा पठन सामग्ी में अंतदन्थदहत आशय, कदद्रत भाव अपने शबिों में वयकत करते हैं ।

    . . दवदभनन अवसरों/संिभषों में कही जा रही िूसरों की बातों को, सुने हुए संवाि, वकतवय, भाषण के प्मुख मु ों को पुन प्सतुत करते हैं तथा उनका उदचत प्ारूप में वमृततांत लेखन करते हैं ।

    . . रूपरेखा तथा शबि संकेतों के आधार पर अालंकाररक लेखन तथा पोसटर-दवज्ापन में दवदवध तरीकों और शैदलयों का प्योग करते हैं ।

    . . िैदनक जीवन से अलग दकसी घटना/लसथदत पर दवदभनन तरीके से समृजनातमक ढंग से दलखते हैं तथा प्सार माधयम से राषटट्ीय प्संग/घटना संबंधी वण्थन सुनते और सुनाते हैं एवं भाषा की दभननता का समािर करते हैं ।

  • पहिी इकाई

    * अनुक्रमिषणका *

    दूसिी इकाई

    क्र. पाठ का नामि षवधा िचनाकाि पृ्ठ १. डुबा िो अहंकार गीत रवींद्रनाथ टैगोर १-२ २. गीत कहानी सलाम दबन रजाक ३-९ ३. सेलफी का शौक वैचाररक दनबंध अदनल कुमार जैन १०-१4 4. कया करेगा तू बता कदवता डॉ. सुधाकर दमश्रा १5-१६ 5. मन का रोगी एकांकी राम दनरंजन शमा्थ ‘दठमाऊ’ १७-२4 ६. िारागंज के वे दिन संसमरण पुषपा भारती २5-२8

    ७. धूप की उदषमत छुवन से गजल रामिरश दमश्र २९-३० 8. नरई यात्रा वण्थन डॉ. श्रीकांत उपाधयाय ३१-३4 ९. र जब चाचा कहानी वयदथत हृिय ३5-३९१०. बातें प्ेमचंि की चररत्रातमक वाता्थलाप अवधनारायण मुि् गल 4०-4६११. मयूर पंख पि जगन्नाथिास रतनाकर 4७-48

    क्र. पाठ का नामि षवधा िचनाकाि पृ्ठ १. इनसान नवगीत रमानाथ अवसथी 4९-5०

    २. चपपल मनोवैज्ादनक कहानी कमलेशवर 5१-5७

    ३. मान न मान मैं तेरा मेहमान हासय-वयंगय दनबंध संजीव दनगम 58-६२

    4. प्भात नई कदवता भारतभूषण अग्वाल ६३-६5

    5. हारना भी दहममत का काम है आलेख शरबानी बैनज ६६-६९

    ६. बंटी उपनयास का अंश मन्नू भंडारी ७०-७4

    ७. अनमोल वचन साखी िािू ियाल ७5-७६ 8. सादहतय की सच्ाई भाषण जैनेंद्र कुमार ७७-8२

    ९. शबिकोश बातचीत डॉ. सरोज प्काश 8३-8७

    १०. मेरे जेबकतरे के नाम पत्र हररशंकर परसाई 88 -९२

    ११. पररवत्थन गीदतनाट् य का अंश िुषयंत कुमार ९३-९६

    वयाकरण एवं रचना दवभाग तथा भावाथ्थ ९७-१०4

  • 1

    - र ा र

    जनमि ः १8६१, कोलकाता (प.बं.)मिृत्यु ः १९4१परिचय ः दवशव के महान सादहतयकार गुरुिेव रवींद्रनाथ टैगोर जी को ‘नोबल पुरसकार’ से सममादनत दकया गया है । आप केवल कदव ही नहीं बदलक कथाकार, उपनयासकार, नाटककार, दनबंधकार तथा दचत्रकार भी हैं । आप हमारे राषटट्गीत के रचदयता हैं । आपको १९१३ में ‘गीतांजदल’ के दलए ‘नोबल पुरसकार’ भी प्ाप्त हुआ है । प्रमिुख कृषतयाँ ः ‘बनफूल’, ‘कदव-कहानी’, ‘संधयासंगीत’, ‘प्भातसंगीत’, ‘छदव ओगान’, ‘गीतांजदल’, ‘वलाका’,‘पलातका’, ‘वनवाणी’ और ‘शेषलेखा’ आदि ।

    प्सतुत गीत में कवींद्र रवींद्रनाथ टैगोर जी ईशवर से प्ाथ्थना करते हुए कहते हैं दक हे िेव ! ऐसी शदकत िो दक हमें दकसी बात का अहंकार न हो । इस गीत में कदव हमें अहंकार, अतयाचार से बचने के दलए प्ेररत करते हैं ।

    पहिी इकाई

    परिचय

    पद् य संबंधी

    १. ुबा दो अहंकाि

    मेरा शीश नवा िो अपनी

    चरण धूल के तल में ।

    िेव ! डुबा िो अहंकार सब

    मेरे आँसू जल में ।

    अपने को गौरव िेने दहत

    अपमादनत करता अपने को,

    घेर सवयं को घूम-घूमकर

    मरता हँ पल-पल मंे ।

    िेव ! डुबा िो अहंकार सब

    मेरे आँसू जल में ।

    अपने कामों में न करूँ मैं

    आतमप्चार प्भो

    अपनी ही इचछा मेरे

    जीवन में पूण्थ करो ।

    मुझको अपनी चरम शांदत िो

    प्ाणों में वह परम कांदत हो

    आप खड़े हो मुझे ओट िें

    हृियकमल के िल में ।

    िेव ! डुबा िो अहंकार सब

    मेरे आँसू जल में । ०

    ‘खड़े रहो तुम अदवचल होकर सब संकट-तूफानों में’, इसपर अपने दवचार दलखो ।

    कल्पना पल्िवन

  • 2

    * सूचना के अनुसाि कृषतयाँ किो ः- (१) संजाि पूण्ण किो ः

    (२) से प्र न तैयाि किो षजनके उत्तिों मिें षनम्न शबद हों ः१. -----------------------उततर - हृिय कमल२. -----------------------उततर - परम कांदत३. -----------------------उततर - पल-पल4. -----------------------उततर - जीवन

    (4) प्रस्तुत गीत की षकनहीं चाि पंषक्तयों का सिि अथ्ण षिखो

    (३) जोष याँ षमििा ः अ उत्ति ब

    चरम ------- जलहृियकमल ------- शांदतपरम ------- िल आँसू ------- कांदत

    दनमनदललखत शबिों के आधार पर कहानी दलखो और उदचत शीष्थक िो ः बोतल, दकनारा, कंगन, कागज

    कदवता में आए दकनहीं िस शबिों के पया्थयवाची तथा दवलोमाथ शबि दलखो ।

    शबद वाष काआत्मिप्रचाि आतमसतुदतचिमि सव च्, पराकाषठादि पंखुड़ी

    मिुहाविाशीश नवाना नतमसतक होना, दवनम्र होना

    देना सहारा िेना, आड़ िेना

    उपयोषजत िेखन

    अपने दवि् यालय के िैदनक प्ाथ्थना गीत, प्दतज्ा, संदवधान की उि् िेदशका को चाट्थ पेपर पर दलखकर कक्ा में लगाओ ।

    दवनम्रता मानव का श्रेषठ आभूषण है ।

    भाषा षबंदु

    मिैंने समिझा------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

    स्वयं अधययन

    कदव माँगता है

    सदैव धयान मिें िखो

  • 3

    मेरे बेटे ने हमेशा की तरह उस रात भी कहानी सुनाने का अनुरोध दकया ।

    मैं काफी थका हुआ था इसपर िूरिश्थन से टेदलकासट होने वाली खबरों ने मन और मलसतषक और भी बोदझल कर दिया । लगता था पूरी िुदनया बारूि के ढेर पर बैठी है । एक जरा मादचस दिखाने की िेर है बस । कया इनसान पुनः आदिकाल की ओर लौट रहा है ?

    मन बेचैन और मलसतषक परागंिा था । मैंने बेटे को पुचकारते हुए कहा,

    ‘‘आज नहीं बेटा ! आज पापा बहुत थक गए हैं । हम तुमहें कल सुनाएँगे एक अचछी-सी कहानी ।’’

    बेटे की दजि के आगे मैंने थक-हारकर कहा, ‘‘ठीक है, हम कहानी सुनाएँगे मगर तुम बीच में कोई प्शन नहीं पूछोगे ।’’

    ‘‘नहीं पूछँूगा ।’’ उसने हामी भरी ।‘‘पुराने जमाने की बात है...’’ मैंने कहानी शुरू की ।‘‘दकतनी पुरानी ?’’ वह बीच में बोल पड़ा ।‘‘ऊँ... हँू... । मैंने कहा था ना, तुम कोई सवाल नहीं पूछाेगे ।’’‘‘ओ हो... सॉरी पापा !’’ उसने कसमसाते हुए क्मा माँगी ।‘‘वैसे बात बहुत पुरानी भी नहीं है ।’’ मैंने कहानी जारी रखते हुए

    कहा । यही कोई पचास बरस हुए होंगे ।... या हाे सकता है सौ-िो सौ बरस पुरानी हो ।... अदधक से अदधक हजार-बारह सौ बरस पुरानी भी हो सकती है या दफर इससे भी यािा...।

    कहते हैं उस ऊँची पहाड़ी के पीछे एक बसती थी । बसती, सचमुच बहुत पुरानी थी । बसती में ऊँचे-ऊँचे मकान थे । मकानों के आँगनों में फूलों की कयाररयाँ लगी थीं, दजनमें रंग-दबरंगे फूल लखलते थे और हवाओं में हर पल भीनी-भीनी खुशबू रची रहती थी । बसती के बाहर बागों का दसलदसला था, दजन में तरह-तरह के फलिार पेड़ थे । पेड़ों पर पररंिे सुबह-शाम चहचहाते रहते । बसती के पास से एक निी गुजरती थी दजससे आस-पास की धरती जल संपन्न होती रहती । मनुषय तो मनुषय ढोर-डंगर तक को िाने-चारे की कमी नहीं थी । गायें बहुत-सारा िूध िेतीं । बसती के लोग प्सन्नदचतत, दमलनसार और

    २. गीत

    - लाम म र ाक

    जनमि ः १९4१, पनवेल (महाराषटट्)परिचय ः सलाम साहब का अधयापन और लेखन काय्थ साथ-साथ चलता रहा है । आपके लेख, कहादनयाँ दवदवध पत्र-पदत्रकाओं की शोभा बढ़ाते रहे हैं । आपको दिलली, उ.प्., दबहार, महाराषटट् की सादहतय अकािदमयों ि् वारा दवदवध सममान एवं पुरसकार प्ाप्त हुए हैं । प्रमिुख कृषतयाँ ः ‘मादहम की खाड़ी’, ‘बािल की आपबीती’, ‘ननहा लखलाड़ी’, ‘दजंिगी अफसाना नहीं’, ‘नंगी िोपहर का सच’ आदि ।

    परिचय

    प्सतुत भावपूण्थ प्तीकातमक कहानी में लेखक सलाम दबन रजाक जी इशारा करते हैं दक जब लोगों की नीयत में खोट नहीं थी तो समाज में चारों तरफ सुख-शांदत, समरसता, संपन्नता फैली हुई थी । आज लोगों में लालच, सवाथ्थ असंतोष का दवष घुल गया है । पररणामसवरूप समाज में मनभेि, अशांदत फैल गई है । मेल-दमलाप, सुख, जीवन के संगीत अदृशय हो गए हैं ।

    शांदत एवं प्ेम के संिेश िेने वालों के तन-मन लह-लुहान हो रहे हैं । रजाक जी को भावी पीढ़ी से बहुत उममीिें हैं । आपका मानना है दक भावी पीढ़ी ऐसा संगीत रच सकेगी दजससे समाज में सुख-शांदत, सौहाि्थ का वातावरण बन सकेगा ।

    गद् य संबंधी

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    शांदतप्ेमी थे । पुरुष दिन भर खेत-खदलहानों और बागों में काम करते । पशु चराते, लकदड़याँ काटते और औरतें चूलहा-च ी सँभालतीं । उनमें जो शल वान थे कुलशतयाँ लड़ते, लाठी-बल्म खेलते । दचत्रकार दचत्र बनाते और कदव गीत गाते थे । खुदशयाँ रोज उस बसती की पररक्रमा करतीं और िुख भूले से भी कभी उधर का रुख न करते ।

    कहते हैं बसती के पास ही एक घने पेड़ पर एक परी रहती थी । ननही-मुन्नी, मोहनी मूरत और मासूम सूरतवाली । बड़ी-बड़ी आँखों, सुनहरे बालों और सुख्थ गालोंवाली । परी गाँववालों पर बहुत मेहरबान थी । वह अकसर अपने चमकिार परों के साथ उड़ती हुई आती और उनके रोते हुए बच्ों को गुिगुिाकर हँसा िेती । लड़दकयों के साथ सावन के झूले झूलती, आँखदमचौली खेलती । लड़कों के साथ पेड़ों पर चढ़ती, निी-नालों में तैरती । कभी दकसी के खदलहान को अनाजों से भर िेती, कभी दकसी के आँगन में रंग-दबरंगे फूल लखला िेती ।

    दिन गुजरते रहे । समय का पंछी काले-सफेि परों के साथ उड़ता रहा और मौसम का बहुरूदपया नये रूप बिलता रहा । दफर पता नहीं कया हुआ, कैसे हुआ दक एक दिन दकसी ने उनके खेतों में शरारत का हल चला दिया । बस, उस दिन से उनके खेत तो फैलते गए, मगर मन दसकुड़ने लगे । गोिाम अनाजों से भर गए मगर नीयतों में खोट पैिा हो गई । अब वे अपनी दनजी जमीनों के अदतरर िूसरों की जमीनांे पर भी नजर रखने लगे । नतीजे के तौर पर खेतों में म ारी की फसल उगने लगी और पेड़ छल-कपट के फल िेने लगे । लालच ने उनमें सवाथ्थ का दवष घोल दिया । पहले वह दमल-बाँटकर खाते थे, दमल-जुलकर रहते थे मगर अब उनकी हर चीज दवभादजत होने लगी । खेत-खदलहान, बाग-बगीचे, घर-आँगन यहाँ तक दक उनहोंने अपने पूजा घरों तक काे आपस में बाँट दलया और अपने-अपने खुिाओं काे उनमें कैि कर दिया । उनकी आँखों की कोमलता और दिलों की उिारता हथेली पर जमी सरसों की तरह उड़ गई । िावतों का दसलदसला दबखर गया और महदफलें उजड़ गईं । तसवीरों के रंग अंधे और गीतों के बोल बहरे हो गए । अब न कोई तसवीर बनाता था न कोई गीत गाता था । हर घड़ी, हर कोई एक-िूसरे को हादन पहॅुंचाने की दफक्र में रहता ।

    बसतीवालों के ये बिले हुए रंग-ढंग िेखकर वह ननही परी बहुत िुखी हुई । वह सोचने लगी, आलखर बसतीवालों को कया हो गया है? ये कयों एक-िूसरे के बैरी हो गए हैं ? मगर उसकी समझ में कुछ नहीं आया । वह अब भी बसती में जाती, बच्ों को गुिगुिाती और औरतों

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    मिौषिक सृजन

    ‘‘क्मा एक महान गुण है’’-इसपर अपने दवचार दलखो ।

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    संभाषणीय

    पररवहन के दनयमों का पालन करने से होने वाले लाभ बताओ ।

    के साथ गीत गाती, उनके खेत-खदलहानों के च र लगाती, आँगनों में घूमती-दफरती । मगर अब, वह सब उसकी तरफ बहुत कम धयान िेते । बसतीवालों की उपेक्ा के कारण ननही परी उिास रहने लगी । आलखर उसने बसती में आना-जाना कम कर दिया ।

    दफर एक दिन ऐसा आया दक उसने बसती में आना-जाना दबलकुल बंि कर दिया ।

    बसतीवाले आपस में झगड़े-टंटों में इतने उलझे हुए थे दक शुरू में उनहें उसकी अनुपलसथदत का आभास ही नहीं हुआ । मगर जब सुहागनों के गीत बेसुरे हो गए और कुँआररयों ने पेड़ों की टहदनयों से झूले उतार दलए और बच्े लखललखलाकर हँसना भूल गए तब उनहंे एहसास हुआ दक उनहोंने अपनी कोई अनमोल वसतु खो िी है । बसतीवाले दचंदतत हो गए । उसे कहाँ ढँूढ़ें, कहाँ तलाश करें?

    पहले तो उनहोंने उसे अपने घरों के आँगनों में तलाश दकया । मैिानों में भटके, पेड़ों पर और गुफाओं में िेखा, मगर वह कहीं नहीं थी । अब उनकी दचंता बढ़ने लगी । मगर बजाय इसके दक वे दमल-बैठकर, सर जोड़कर उसके बारे में सोचते । वे एक-िूसरे पर आरोप लगाने लगे दक परी उनके कारण रूठ गई है । अब तो उनके दिलों की नफरत और भी गहरी हो गई ।

    उनहोंने एक-िूसरे के खेत-खदलहानों काे न करना और पशुओं को चुराना शुरू कर दिया । धोखा, फरेब, लूटमार, हतया, दवनाश रोज का दनयम बन गया ।

    जब पानी सर से ऊँचा हो गया और बचाव का कोई उपाय न रहा तब बसतीवालों ने तय दकया दक इस प्दतदिन के उपद्रव से अचछा है इस दकससे को हमेशा के दलए खतम कर दिया जाए ।

    इस दनण्थय के बाि वे िो गुटों में बँट गए । सारे युवक हाथों में बल्म और तलवारें दलए मैिान में एक िूसरे के सममुख आकर खड़े हो गए । उनकी आँखों से क्रोध और नफरत की दचंगाररयाँ दनकल रही थीं और उनकी मुदट् ठयाँ बल्म और तलवारों की मूठों पर मजबूती से कसी हुई थीं । एक-िूसरे पर झपट पड़ने को तैयार खड़े थे ।

    तभी एक अनहोनी हो गई । दफजा में एक महीन-सा सुर बुलंि हुआ । जैसे दकसी पररंिे का कोमल पर हवा मंे काँप रहा हो । कोई गा रहा था ।

    उनहोंने आवाज की ओर िेखा । पहले तो उनहें कुछ दिखाई नहीं दिया मगर जब उनहोंने बहुत धयान से िेखा तो उनहें ननही परी एक पेड़ की डाल पर बैठी दिखाई िी । उसके बाल दबखरे हुए और गाल

    िेखनीय

    िैदनक जीवन से अलग दकसी-घटना/दसथदत पर संवाि, भाषण दलखो ।

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    आँसुओं से भीगे हुए थे । पर नुचे हुए और कपड़े फटे हुए थे, जैसे वह घनी काँटेिार झादड़यों के बीच से गुजरकर आ रही हो । उसके पाँव नंगे और तलवे जखमी थे । वह पेड़ से उतरकर मैिान के बीच मंे आकर खड़ी हो गई । उसने िोनों हाथ दफजा में बुलंि कर रखे थे जैसे उनहें एक िूसरे पर हमला करने से रोकना चाहती हो ।

    तलवारों की मूठों और बल्मों पर कसी हुई मुट् दठयाँ तदनक ढीली हुईं ।

    वह गा रही थी । उसकी आवाज में ऐसा िि्थ था दक उनके सीनों में दिल तड़प उठे । आवाज धीरे-धीरे बुलंि होती गई, इतनी बुलंि जैसे दसतारों को छूने लगी हो । उसकी आवाज चारों दिशाओं में फैलने लगी । फैलती गई । इतनी फैली दक चारों दिशाएँ उसकी आवाज की प्दतधवदन से गूँजने लगीं । लोग अचरज से आँखें फाड़े, मुँह खोले उसका गीत सुनते रहे, सुनते रहे ।

    यहाँ तक दक उनके हाथों में िबी तलवारें फूलों की छदड़यों में पररवदत्थत हो गईं और बल्म मोरछल बन गए ।

    गीत के बोल उनके कानांे में रस घोलते रहे और धीरे-धीरे वह सब एक-िूसरे से एक अनिेखी-अनजान डोर से बँधते चले गए । जैसे वह सब एक ही माला के मोती हों, जैसे वह एक ही माँ के जाये हों ।

    उधर गीत समाप्त हुआ और वह अपनी मैली आसतीनों से आँसू पोंछते हुए एक-िूसरे के गले लग गए ।

    जब आँसुओं का गुबार कम हुआ तो उनहोंने अपनी पयारी परी को तलाश करना चाहा मगर वह उनकी नजरों से ओझल हो चुकी थी । बसतीवालों ने उसे बहुत ढूँढ़ा, वािी-वािी, जंगल-जंगल आवाजें िीं, दमन्नतें क , मगर वह िोबारा जादहर नहीं हुई । तब बसतीवालों ने उसकी याि में एक मूदत्थ बनाई, उसे बसती के बीचोंबीच मैिान में सथादपत कर दिया ।

    कहते हैं आज भी बसती के लोगों में जब कोई दववाि होता है, सब मैिान में उस मूदत्थ के दगि्थ इकट् ठे हो जाते हैं और उस गीत काे िोहराने लगते हैं । इस तरह बसतीवाले आज भी उस गीत के कारण शांदत और चैन से दजंिगी दबता रहे हैं ।

    जैसे उनके दिन दफरे खुिा हम सब के भी दिन फेरे।’’मैंने कहानी खतम करके अपने बेटे की तरफ िेखा । चेहरा

    दबलकुल सपाट था । मैंने जमहाई लेते हुए कहा, ‘‘चलो, अब सो जाओ, कहानी खतम हो गई ।’’

    उसने कहा, ‘‘पापा, आपने कहा था, कहानी सुनाते समय कोई

    पठनीय

    अंतरजाल पर बाबा आमटे जी के समाजोपयोगी प्कलपों की जानकारी पढ़ो ।

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    प्शन नहीं पूछना ।’’‘‘हाँ... मैंने कहा था और तुमने कोई प्शन नहीं पूछा । तुम बड़े

    अचछे बच्े हो । अब सो जाओ ।’’‘‘मगर पापा कहानी तो खतम हो गई । मैं अब तो प्शन पूछ सकता

    हँू ना?’’मैं थोड़ी िेर चुप रहा । दफर बोला, ‘‘चलो पूछो, कया पूछना चाहते

    हो ।’’ ‘‘पापा! वह कौन-सा गीत था दजसे सुनकर गाँववाले िोबारा गले दमलने पर मजबूर हाे गए ।’’

    मैंने चौंककर उसकी ओर िेखा । थोड़ी िेर चुप रहा, दफर बोला ।‘‘मुझे वह गीत याि नहीं है बेटा !’’‘‘नहीं पापा’’ उसने मचलते हुए कहा, ‘‘मुझे वह गीत सुनाइए,

    वरना मैं समझूँगा दक आपकी कहानी एकिम झूठी थी ।’’मैं थोड़ी िेर चुप रहा, दफर िबे सवर मंे बोला, ‘‘हाँ, बेटा यह

    कहानी झूठी है । कहादनयाँ अकसर कालपदनक होती हैं ।’’वह मुझे उसी तरह अपलक िेख रहा था। मैंने उसकी आँखों में

    झाँकते हुए कहा, ‘‘मगर तुम इस झूठी कहानी को सच्ी बना सकते हो ।’’ ‘‘वह कैसे?’’ उसने हैरानी से पूछा ।

    ‘‘बड़े होकर तुम वैसा गीत दलख सकते हो जैसा उस परी ने गाया था ।’’ बेटे की आँखों में चमक पैिा हुई, ‘‘सच पापा !’’

    ‘‘एकिम सच ।’’उसने मेरे गले में बाँहें डाल िीं । ‘‘यू आर सो सवीट पापा ।’’ उसने आँखें बंि कर लीं । वह जलि ही सो गया । मगर मैं रात में

    बहुत िेर तक जागता रहा । बार-बार मेरे मन में एक ही दवचार कुलबुला रहा था दक कया मेरा बेटा वैसा गीत दलख सकेगा ?

    श्रवणीय

    ‘‘कर भला तो हो भला’’ इस कथन से संबंदधत कहानी सुनो और कक्ा में सुनाओ ।

    शबद वाष कापिागंदा असतवयसतमिोिछि मोरपंख का बना चँवरअनुिोध दवनतीबोषझि भारी, वजनिार अ यस्त दजसने अ यास दकया हो, दनपुणअपिक एकटक

    मिुहाविेषदि त पना बेचैन होनाआँखें ा कि देखना आशचय्थ से िेखनानजिों से झि होना गायब होनागिे िगाना पयार से दमलना

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    * सूचना के अनुसाि कृषतयाँ किो ः- (१) संजाि पूण्ण किो ः

    बसती की दवशेषताएँ

    (२) उत्ति षिखो ः

    (६) कहानी मिें उषल्िखखत पिी का वण्णन किो

    १. पाठ मंे प्युकत िो हदथयार

    २. बसतीवालों की उपेक्ा के बाि परी के मन के भाव

    िया, क्मा, दनःसवाथ्थ वमृदतत से संबंदधत सुवचनों का चाट्थ बनाकर कक्ा में लगाओ ।

    लोककथा एवं लोकगीत हमारी सादहदतयक पूँजी हैं ।

    स्वयं अधययन

    मिैंने समिझा------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

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    सदैव धयान मिें िखो

    (३) प्रवाह ताषिका पूण्ण किो ः

    (4) कािण षिखो ः१. बसती के आस-पास की जमीन उपजाऊ थी .........

    २. ननही परी िुखी हो गई ......... ३. बसतीवाले दचंदतत हो गए .........

    4. लेखक ने चौंककर अपने बेटे की ओर िेखा .........

    परी ऐसी थी

    (5) उषचत जोष याँ षमििा ः

    शदकतवानसावनमौसमिावत

    बहुरूदपयादसलदसलाझूलेकुलशतयाँ

    उत्ति

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    चौख मिें षदए गए मिुहाविे-कहावतों का वाक्यों मिंे प्रयोग किो ि षवकािी शबद षिखो ः

    षवकािी शबदों के भेद ः

    सं ा सव्णनामि षवशेषण षक्रया

    बहती गंगा में हाथ धोना खोिा पहाड़ दनकली चूदहयाघमंडी का दसर नीचाचाेरों की बारात में अपनी-अपनी होदशयारीिाल में काला होनाकभी तोला कभी मासाएक अनार सौ बीमारइस कान से सुनना उस कान से दनकालना

    भाषा षबंदु

    तू डाल-डाल, मैं पात-पातवह पानी मुलतान गयाछूछा कोई न पूछाजाके पाँव न फटी दबवाई वह कया जाने पीर पराईदजसकी लाठी उसकी भैंस अपने मुँह दमयाँ दमट् ठू होनाघाव पर नमक दछड़कनानाक पर मकखी न बैठने िेना

    दिनांक ःप्दत, ......................दवषय ः..............संिभ्थ ः ..............महोिय, दवषय दववेचन

    भविीय/भविीया,..........................नाम ः ....................पता ः .................... ....................ई-मेल आईडी ः ....................

    पत्र का प्रा प ( पचारिक पत्र)

    कोई साप्तादहक पदत्रका अदनयदमत रूप में प्ाप्त होने के कारण पदत्रका के संपािक को दशकायती पत्र दनमन प्ारूप में दलखो ःउपयोषजत िेखन

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    ३. सेल् ी का शौक

    पहले मोबाइल आया । दफर समाट्थ और एंडट्ायड फोन आए और अब उसी से जुड़ा एक और फीचर चला है-सेलफी । धीरे-धीरे इन चीजों ने पूरे तंत्र को जकड़ दलया है । आज ये चीजें लोगों की जरूरत बन गई हैं । मोबाइल फोटोग्ाफी का क्रेज इतना है दक चार-पाँच िोसत एकत्र हुए नहीं दक फोटोग्ाफी शुरू हो जाती है । यह शौक फोटोग्ाफी तक ही सीदमत नहीं रहता बदलक उसके बाि सोशल मीदडया पर इन फोटोज को शेयर करना भी एक आित हो गई है । इतना ही नहीं, यदि कहीं कोई घटना घटती है तो मीदडया बाि में पहुँचता है । तथाकदथत मोबाइल फोटोग्ाफर उसे कवर कर सोशल साइट् स-फेसबुक, दट् वटर, वॉट् सअप आदि पर तुरंत अपलोड कर िेते हैं । सामादजक चेतना का यह एक नया सवरूप है । मोबाइल आज पत्रकाररता का दहससा बन गया है । इसके बढ़ते उपयोग का सबसे बड़ा कारण सभी के पास मोबाइल सहज उपलबध होना है । इसके अलावा इसका उपयोग भी आसान है । कह सकते हैं दक मोबाइल फोटोग्ाफी ने कम समय में कई गुना तरककी की है ।

    आज मोबाइल फोटोग्ाफी क्ेत्र में ‘मोबाइल फोटोग्ाफी अवाड्थ’ भी दिए जा रहे हैं । इन पुरसकारों की शुरुआत डेदनयल बम्थन ने सन २०११ में की । इस प्दतयोदगता का दवशव की सबसे बड़ी प्दतयोदगताओं में शुमार है । मोबाइल कंपदनयाँ भी इस शौक को आगे बढ़ाने में पीछे नहीं हैं । रोज नये-नये मोबाइल लॉनच कर रही हैं । नये फीचर जोड़ रही हैं । मेगा दपकसल बढ़ा रही हैं । दवदभन्न प्कार के एपस दनकाल रही हैं ।

    सेलफी शबि की शुरुआत २००२ से हुई । मोबाइल फोन के ंट कैमरे से अपनी खुि की या अपने समूह की फोटो लेना ही सेलफी है । बीते दिनों मंे इसका क्रेज िीवानगी की हि तक आ गया है ।

    वष्थ २०१३ में तो इसने अपने कीदत्थमान के झंडे गाड़ दिए । इसे ‘ कसफोड्थ वड्थ फ ि ईयर’ के लखताब से नवाजा गया । इसे ‘ नलाइन कसफोड्थ दडकशनरी’ में भी शादमल कर दलया गया है । इसे च दडकशनरी ‘ले पेदटट लराउसे’ में भी शादमल दकया गया है । इसके अलावा अगसत २०१4 में इसे सक्रेबल खेल के दलए भी सवीकार कर दलया गया । एक दफलम में ‘सेलफी ले ले’ शबिों से एक गाना भी

    - म ल कमार

    प्सतुत दनबंध में लेखक अदनल कुमार जैन जी ने मोबाइल फोटोग्ाफी और सेलफी के चलन पर अपनी लेखनी चलाई है । सेलफी की िीवानगी में अनदगनत लोगों को अपनी जान भी गँवानी पड़ी है । आपका मानना है दक हमें सावधानी से वैज्ादनक साधनों का उपयोग करना चादहए ।

    परिचय ः आपके लेख, कदवताएँ, ररपाेट्थ आदि सथानीय व राषटट्ीय पत्र-पदत्रकाओं में प्कादशत हैं । आप संप्दत कद्रीय माधयदमक दशक्ा बोड्थ, अजमेर में अनुभाग अदधकारी हैं ।

    परिचय

    गद् य संबंधी

    मिौषिक सृजन

    ‘सवचछता अदभयान में हमारा योगिान’ पर अपने दवचार दलखो ।

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    बन गया है । ये सब दनशचय ही शबि की महतता और लोकदप्यता को जादहर करते हैं ।

    सेलफी के साथ ही एक और शबि चलन में आया है, वह है-ग्ुपी । जी हाँ, सेलफी की तरह ही जब समूह की फोटो ली जाती है तो उसे ‘ग्ुपी’ पुकारा गया । इसका भी क्रेज हिों के पार है ।

    सेलफी की िीवानगी िुदनया भर में है । नेता हो या अदभनेता या दफर कोई अनय, हर दकसी को सेलफी का चसका लग गया है । युवक-युवदतयों में तो यह िीवानगी की हिों के पार है । अलग-अलग सटाइल में अपनी सेलफी लेने के चककर में युवक-युवदतयाँ न जाने कया-कया कर रहे हैं ।

    सेलफी के इस जुनून में कई बार ऐसी घटनाएँ भी हुई हैं दक लोगों को अपनी जान तक गँवानी पड़ी । लंिन में रोमादनयाई दकशोरी अन्ना उसु्थ टट्ेन के ऊपर से जा रही २७ हजार वॉलट की टेंशन लाइन टच करते ही वहीं ढेर हो गई । एक लड़के ने तो अपने ममृत चाचा जी के साथ सेलफी ली ।

    बीते दिनों सेलफी पर एक चुटकी पढ़ने को दमली-‘यमिूत तुम मुझे अपने साथ ले जाओ, इससे पहले एक सेलफी प्ीज...!’, है न दकतना अजीब शौक ! द दटश वेबसाइट फीदलंग यूदनक डॉट कॉम के एक सववे की बात करें तो लड़दकयाँ एक सप्ताह में करीब पाँच घंटे सेलफी पूरी कर रही हैं और हर १० में से एक लड़की के पास कार या अपने आॅदफस की करीब १5० सेलफी रहती है । मैंने जब एक लड़की से पूछा दक ‘मज आए वहीं सेलफी कयों ?’ तो जवाब दमला, ‘‘कहीं पर भी जाओ, एक सेलफी तो बनती है ।’’

    इन बातों से अंिाजा लगा सकते हैं दक सेलफी का दकतना क्रेज है । लोगों के इस शौक को यदि सेलफी का कीड़ा कहें तो भी कोई अदतशयोदकत नहीं है ।

    सेलफी एक शौक तो है ही दकंतु लोग इसे कूटनीदत का एक माधयम मान रहे हैं । सेलफी के माधयम से ररशते को प्गाढ़ता िी जा रही है । एक-िूसरे से घदनषठता दिखाई जा रही है । हररयाणा के जींि की बीबीपुर ग्ाम पंचायत ने एक अनूठी पहल की है । उनहोंने बेदटयों के साथ ‘सेलफी लो और इनाम पाओ’ प्दतयोदगता आरंभ की है । बेदटयों की कमी से जूझ रहे समाज में बेदटयों के महततव को जताते हुए सेलफी का एक अदभनव प्योग दकया है ।

    यह चसका हर सेदल ेटी, नेता, वी.आई.पी आदि सभी को है । लोग सवयं अपनी गदतदवदधयों और आस-पास की घटनाओं का

    ‘भारत में सघन वन दकन सथानों पर बचे हैं’, इसपर आपस में चचा्थ करो ।

    संभाषणीय

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    कवरेज कर सोशल साइट् स पर अपलोड कर रहे हैं अथा्थत जाने-अनजाने मोबाइल फोटोग्ाफी से मीदडया का काम बरबस हो ही रहा है ।

    मोबाइल फोटोग्ाफी न दसफ्क फोटो पत्रकाररता का काम कर रही है अदपतु घटनाओं का कवरेज कर नयूज भी प्साररत कर रही है । इससे खबरें शी आने लगी हैं । लाइव कवरेज जैसा प्सारण हो गया है । कह सकते हैं दक यह मीदडया का एक सशकत माधयम है । मोबाइल ने हर आिमी को पत्रकार बना दिया है । उसकी सामादजक चेतना को जगा दिया है । घटना-घटते ही हर कोई फोटोग्ाफी और वीदडयाेग्ाफी कर िेश भर में खबर को फैला िेता है ।

    सेलफी का सबसे बड़ा फायिा इसकी बड़ी बहन ‘ग्ुपी’ से है । पहले एक आिमी को ग्ुप से बाहर रहकर फोटो खींचनी पड़ती थी । अब सेलफी की बड़ी बहन यानी ग्ुपी के आने से अब पूरे समूह की फोटो लेना आसान हो गया है । दकसी पर दनभ्थर नहीं रहना पड़ता । इसमें बैकग्ाउंड को कवर करना भी आसान हो गया है । एक-िूजे के साथ सेलफी लेकर लोग एक-िूजे के करीब आ रहे हैं । घदनषठता जादहर करने का यह तरीका बन गया है । दडदजटल एस.एल.आर कैमरों से भी मुदकत दमली है । सेलफी आने से दकशोर-दकशोररयों में सजने-सँवरने का शौक बढ़ा है । आईने से भी इनहें मुदकत दमली है कयोंदक अब वे सेलफी में ही अपने-आपको दनहार लेते हैं । इसके अलावा भी छोटे-बड़े कई फायिे हैं ।

    समाट्थ फोन का आज एक पूरा बाजार है । नये-नये फीचर से जुड़ी पूरी एक रेंज है । एपस, टूलस व एकसेसरीज की भी भरमार है । फोन में कैमरों की गुणवतता में सुधार हुआ है । ंट और बैक कैमरों में अचछे मेगा दपकसल के कैमरे आने लगे हैं । सेलफी के दलए छड़ी आने लगी है जो दक बड़े समूह को कवर करने के दलए एक अचछा साधन है । अमेररका में तो सेलफी यानी सेलफ पोटट्ेट के दलए पाठ् यक्रम भी चला दिया है । इसमें अलग-अलग कोणों से ली हुई तसवीरों व उनके हाव-भाव, बैकग्ाउंड आदि का दवशलेषण व तुलनातमक अधययन आदि शादमल है ।

    मोबाइल फोटोग्ाफी के कुछ फायिे हैं तो कुछ नुकसान भी हैं । कुछ फोटोग्ा स जो प्साररत नहीं होने चादहए, वे भी प्साररत हो जाते हैं । कुछ संपािन या काट-छाँट के पशचात प्साररत होने चादहए, वे भी दबना संपािन के प्साररत हो जाते हैं । अतः ऐसे तथाकदथत मोबाइल फोटो पत्रकारों को संवेिनशील मामलों के फोटो प्साररत करने में

    पठनीय

    महािेवी वमा्थ जी दललखत ‘मेरा पररवार’ से कोई एक रेखादचत्र पढ़ो ।

    श्रवणीय

    प्सार माधयमों से दकसी प्संग/घटना संबंधी राषटट्ीय समाचार सुनो और उसमें प्युकत भाषा की दवशेषताएँ समझने का प्यास करो ।

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    सावधानी बरतनी चादहए ।इसके अलावा मोबाइल फोटोग्ाफी करते समय धयान रखें दक

    दकसी की दनजता भंग न हो । दकसी का दिल न िुखे । संकट में आए वयदकत की फोटोग्ाफी करने से पहले उसकी मिि के दलए हाथ बढ़ाएँ । फोटोग्ाफी और सेलफी के चककर में यािा ररसक न लें अनयथा यह जान को भारी पड़ सकती है । एपस का उपयोग सकारातमक करें । दकसी की फोटो से छेड़छाड़ करने से बचें । फोटो का उपयोग अचछे काय्थ के दलए करें । इन बातों में यदि जरा भी लापरवाही की तो पररणाम घातक ही होंगे । अतः इन सावधादनयों का कड़ाई से पालन करना चादहए ।

    मोबाइल फोटोग्ाफी की इस चचा्थ से जादहर है दक यह िशक मोबाइल फोटोग्ाफी और सेलफी का है । मीदडया का यह सशकत माधयम है । इससे सामादजक चेतना में एक नया संचार हुआ है । शौक से शुरू हुआ यह सफर आज पत्रकाररता और दडप्ोमेसी का दहससा बन गया है । यह चसका बड़े शहरों से छोटे शहरों और छोटे शहरों से गाँव-ढाणी तक पहुँच गया है, जो दफलहाल रुकने वाला नहीं है ।

    शबद वाष कासीषमित मया्थदित, दनयंदत्रतशुमिाि शादमलनवाजना कृपा करना, सममादनत करनादीवानगी पागलपन, नशाक नीषत पारसपररक वयवहार में िाँव-पेंच की नीदत या दछपी हुई चाल ।

    अषतशयोख बहुत बढ़ा-चढ़ाकर कही हुई बात बिबस सहजप्रगा बहुत गहराअनूठी अनोखी, अ ुत

    मिुहाविाेि हो जाना ममृतयु हो जाना

    * सूचना के अनुसाि कृषतयाँ किो ः- (१) ताषिका पूण्ण किो ः

    मोबाइल पर फोटोग्ाफी करते समय बरतनी आवशयक सावधादनयाँ ः

    (२) कृषत पूण्ण किो ः

    १. सेलफी के चककर में हुई िुघ्थटनाएँ

    २. सेलफी से फायिे

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    िेखनीय

    ‘मोबाइल से लाभ-हादन’ दवषय पर अपने दवचार दलखो ।

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    (4) पाठ मिंे आए अं ेजी शबदों के अथ्ण षहंदी मिें षिखो ः

    पाठ में प्युकत सहायक दक्रया के वाकय ढूँढ़कर दलखो । मुखय और सहायक दक्रयाएँ अलग करके दलखो ।

    (३) एक वाक्य मिें उत्ति षिखो ः१. मोबाइल का उपयोग कयों बढ़ रहा है ? -----------------------------------

    २. ‘सेलफी’ को दकस लखताब से नवाजा गया है ? -----------------------------------

    ३. सेलफ पोटट्ेट के पाठ् यक्रम में कया दकया जाता है ?-----------------------------------

    4. लेखक ने कौन-सा अजीब शौक बताया है ? -----------------------------------

    भाषा षबंदु

    मिैंने समिझा------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

    स्वयं अधययन शालेय पय्थटन के दलए आवशयक सूचनापत्र बनाओ ।

    एकता का सबसे संुिर उिाहरण पेश करने वाले पक्ी हैं कौए । एक कौआ अगर दकसी कारणवश मर जाए तो अनेक कौए इकट् ठे होकर काँव-काँव करने लगते हैं, मानो ममृतयु के कारणों पर दवचार-दवदनमय कर रहे हैं । इसी प्कार यदि कोई कौआ अनय कौओं की दृदषट से कोई अनुदचत काम करता है, तो कौओं की सभा में सव्थसममदत से दनण्थय दलया जाता है और िोषी कौए को समुदचत िंड दिया जाता है । कौआ चालाक और चतुर तो है दकंतु कोयल से यािा नहीं । कौआ जब आहार की तलाश में बाहर दनकल जाता है तो कोयल चुपके से कौए के घोंसले में अपने अंडे रखकर उड़ जाती है । यदि उस समय कोयल को कौआ िेख ले तो दफर कोयल की खैर नहीं । कौआ चोंच मार-मारकर कोयल को घायल कर िेता है । ऐसे में कोयल की चतुराई काम नहीं आती और उसे प्ाणों से हाथ धाेना पड़ता है । वैसे तो कौआ पालने की हमारे यहाँ कोई प्था नहीं है दकंतु इस पक्ी की उपयोदगता है । फसलों को नषट करने वाले कीड़े-मकोड़ों को खाकर ये दकसानों की सेवा करते हैं । इतना ही नहीं, पया्थवरण संतुलन बनाए रखने में भी इन कीटभक्ी पदक्यों की अहम भूदमका होती है । (सीताराम दसंह ‘पंकज’)

    षनम्नषिखखत परि छेद प कि उसपि आधारित से पाँच प्र न तैयाि किके षिखो षजनके उत्ति एक-एक वाक्य मिें हों ः

    ‘दवज्ान मानव की सहायता के दलए है ।’सदैव धयान मिें िखो

    १.

    २.

    ३.

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    उपयोषजत िेखन

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    कया करेगा तू बता, सबसे बड़ा धनवान बन,है अगर बनना तुझे कुछ आिमी, इनसान बन ।चल दक चलता िेखकर तुझको, सहम जाए अचल,दसर झुकाना ही पड़े, ऐसी न कोई चाल चल ।।

    कम्थ का अपने, दढंढोरा पीटना बेकार है हाथ में लेकर तुला, इदतहास जब तैयार है । हैं बुलाते मुकत मन, संसार के सारे चमन, शूल बनकर कया करेगा, तू अमन का फूल बन ।।

    सारहीनों को गगन छूना, बहुत अासान है,सारवानों से धरा की गोि का सममान है । रतन का अदभमान, सागर में कभी पलता नहीं,आँदधयांे में जो उड़े, उनका पता चलता नहीं ।।

    बन अगर बनना तुझे है, पयार का दहमदगरर दवरल, या खुशी की गंध बन या बन िया-िररया तरल । हाथ बन वह, गव्थ से दजसको दनहारें रालखयाँ, या दक बन कमजोर के संघष्थ की बैसालखयाँ ।।

    सीख मत, बनना बड़ा तू खोखले आधार से, भागय से उपलबध वैभव या दकसी अदधकार से । पयार से जो जीत ले, सबका हृिय, दवशवास, मन,मूदत्थ वह सतकम्थ की, सि् धम्थ की साकार बन ।।

    4. क्या किेगा तू बता

    - डॉ. ाकर ममश्र

    जनमि ः १९३९, भिोही (उ.प्.)परिचय ः कदवतव का गुण आपको दवरासत में प्ाप्त हुआ । सुधाकर दमश्र जी का कदव मन गहरे तक पैठ बना चुकी सामादजक समसयाओं को लेकर सिा आंिोदलत होता रहा है । ये समसयाएँ आपकी रचनाओं में सथान पाती रहीं हैं । प्रमिुख कृषतयाँ ः ‘शांदत का सूरज’, ‘दहमादद्र गज्थन’, ‘दकरदणका’, ‘कावयत्रयी’ आदि।

    प्सतुत कदवता में डॉ. सुधाकर दमश्र जी ने खोखले जीवन जीने, भागय पर दनभ्थर रहने, छीनकर सुख प्ापत करने से हमें सचेत दकया है । आपने हमें इनसान बनने, शांदत फैलाने, पयार बाँटने आदि के दलए प्ेररत दकया है । आपका मानना है दक कमजोर का सहारा बनने, प्ेम से सबका हृिय जीतने में ही जीवन की साथ्थकता है ।

    परिचय

    पद् य संबंधी

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    ‘मैं तो इनसान बनूँगा/बनूँगी’ इसपर अपने दवचार सपषट करो ।

    कल्पना पल्िवन

    अचि दसथर, अटलष ं ोिा डुगगी बजाकर की गई घोषणा, सूचना िेनाशूि काँटा, दवकट पीड़ासािव