98cart.ebalbharati.in/balbooks/pdfs/1102040026.pdfश सन ननर णय क रम क :...

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  • 98.00

  • शासन ननर्णय क्रमांक : अभयास-२११६/(प्र.क्र.4३/१६) एसडी-4 निनांक २5.4.२०१९ के अनुसार समन्वय सनमनि का गठन नकया गया । नि. २०.६.२०१९ को हुई इस सनमनि की बैठक में यह पाठ ्यपुसिक ननरा्णररि करने हेिु मानयिा प्रिान की गई ।

    यु्वकभारिीगयारह्वीं कक्ा

    नहंिी

    महाराष्ट्र राजय पाठ ्यपुसिक नननम्णिी ्व अभयासक्रम संशोरन मंडळ, पुरे

    आपके स्मार्टफोन ्ें ‘DIKSHA APP’ द् वमारमा पमाठ् यपुसतक के प्रथ् पृष्ठ पर Q.R.Code के ्माधय् से संबंधित अधययन-अधयमापन के धिए दृक-श्मावय समा्ग्री भरी उपिब्ि होगरी ।

  • प्रथमा्ृवत्ि : २०१९ महाराष्ट्र राजय पाठ् यपुसिक नननम्णिी ्व अभयासक्रम संशोरन मंडळ, पुरे - 4११००4इस पुसतक कमा सवमा्टधिकमार ्हमारमाष्ट्र रमाजय पमाठ् यपुसतक धनध््टतरी व अभयमासक्र् संशोिन ्ंडळ के

    अिरीन सुरधषित है। इस पुसतक कमा कोई भरी भमाग ्हमारमाष्ट्र रमाजय पमाठ् यपुसतक धनध््टतरी व अभयमासक्र् संशोिन ्ंडळ के संचमािक की धिखित अनु्धत के धबनमा प्रकमाधशत नहीं धकयमा जमा सकतमा ।

    ©

    नहंिी भाषा सनमनि

    डॉ. छमायमा पमाररीि - अधयषि प्रमा. अनुयमा दळवरी - सदसयडॉ. धवजयकु्मार रोडे - सदसयडॉ. शिैमा ििवमानरी - सदसयडॉ. अिकमा पोतदमार - सदसय - सधचव

    प्रकाशकश्ी न्व्ेवक उ्िम गोसा्वी

    धनयंत्रकपमाठ् यपुसतक धनध््टतरी ्ंडळ

    प्रभमादेवरी, ्ंुबई-२5

    नहंिी भाषा अभयासगट

    डॉ. ््तमा पमारस ्ेहतमाश्री्तरी धदप्री धदधिप समावंतडॉ. वनश्री ्ुकुंद देशपमांडेडॉ. ््तमा शधश झमासौ. सवमातरी कमानहेगमावकरसौ. ्मायमा ए्. कोथळरीकरसुश्री ्धनषमा ्हमादेव गमावडश्री चंद्रशिेर ्ुरिरीिर धवंचूप्रमा. सुिमाकर नरहररी धशंदेडॉ. उ्ेश अशोक धशंदेडॉ. कधवतमा प्रधवण पवमारसौ. ्रीनमा धवनोद श्मा्टसौ. वधनतमा रमाजेंद्र िोणकरप्रमा. सो्नमाथ वमांजरवमाडे

    संयोजनडॉ.अिकमा पोतदमार, धवशेषमाधिकमाररी धहंदरी भमाषमा, पमाठ् यपुसतक ्ंडळ, पुणेसौ. संधयमा धवनय उपमासनरी, सहमायक धवशेषमाधिकमाररी धहंदरी भमाषमा, पमाठ् यपुसतक ्ंडळ, पुणे

    नननम्णनिश्री सखचितमानंद आफळे, ्ुखय धनध््टधत अधिकमाररीश्री रमाजेंद्र धचंदरकर, धनध््टधत अधिकमाररीश्री रमाजेंद्र पमांडिोसकर,सहमायक धनध््टधत अधिकमाररी

    अक्रांकन : भमाषमा धवभमाग,पमाठ् यपुसतक ्ंडळ, पुणेकागज : ७० जरीएसए्, क्री्वोवमुद्ररािेश :मुद्रक :

    नितांकन : ्युरमा डफळ, रमाजेश िवळेकरमुखपृष्ठ : धववेकमानंद धशवशंकर पमाररीि

    प्रमुख समन्वयकश्री्तरी प्रमाचरी रवींद्र समाठे

  • प्रसिा्वनानप्रय न्वि्् याथथी नमतो ! आप सभी का गयारह्वीं कक्ा में हृियपू्व्णक स्वागि ! य्ुवकभारिी नहंिी पाठ् यपुसिक आपके हाथों में िेिे हुए हमें बहुि हष्ण हो रहा है । भाषा और जी्वन का अटूट संबंर है । िेश की राजभाषा िथा संपक्क भाषा के रूप में नहंिी भाषा को हम अपने बहुि समीप महसूस करिे हैं । भाषा का वया्वहाररक उपयोग प्रभा्वी करने के निए आपको नहंिी न्वषय की ओर ‘भाषा’ की दृतष् से िेखना होगा । भानषक कौशिों को अ्वगिकर समृद्ध बनाने के निए यह पाठ् यपुसिक आपके निए महत््वपूर्ण नसद्ध होगी । मूलयमापन की दृतष् से मुखयि: पाँि न्वभाग नकए गए हैं । गि् य-पि् य, न्वशेष न्वरा, वया्वहाररक नहंिी और वयाकरर । अधययन अधयापन की दृतष् से यह रिना बहुि उपयुक्त होगी । जी्वन की िुनौनियों को स्वीकारने की शतक्त िेने की प्रेररा सानह्य में नननहि होिी है । इस पाठ् यपुसिक के माधयम से आप सानह्य की न्वनभन्न न्वराओं की जानकारी के साथ पुराने िथा नए रिनाकारों िथा उनकी िेखन शिैी से पररनिि होंगे । इनके ि् ्वारा आप नहंिी भाषा का समृद्ध सानह्य िथा उसकी वयापकिा को समझ पाएँगे । न्वशेष सानह्य न्वरा के रूप में ‘नुक्कड़ नाटक’ का समा्वेश नकया गया है । इस न्वरा का संनक्प्त पररिय िथा िो नुक्कड़ नाटकों का समा्वेश पाठ् यपुसिक की न्वशेषिा है । आप इस ‘दृक् -श्ावय’ सानह्य न्वरा का अधययन करेंगे । नुक्कड़ नाटक की न्वशेषिा है नक उसे रंगमिं की आ्वशयकिा नहीं होिी, िौराहे पर नकसी भी समसया को प्रभा्वी ढंग से नुक्कड़ नाटक ि् ्वारा प्रसिुि नकया जािा है । इसके निए न्वशेष ्वेशभूषा अथ्वा रंगभूषा की आ्वशयकिा नहीं होिी । इस न्वरा का उपयोग आप भन्वषय में आजीन्वका के निए भी कर सकिे हैं । नुक्कड़ नाटक आपकी समाज के प्रनि सं्वेिनशीििा को बढ़ािे हैं िथा नाट ्य वय्वसाय की ओर उनमुख भी करिे हैं । वया्वहाररक वयाकरर पाठ् यपुसिक का मूि उदे्शय है नजसके कारर आप वयाकरर बहुि ही सहजिा से समझ पाएँगे । वया्वहाररक नहंिी की इकाई में समसामनयक न्वषयों िथा उभरिे क्ेतों से संबंनरि पाठों को समान्वष् नकया गया है नजसके माधयम से आप इन क्ेतों में वय्वसाय के अ्वसरों को पाएँगे । आपकी न्विारशतक्त, कलपनाशतक्त िथा सृजना्मकिा का न्वकास हो इसे धयान में रखिे हुए अनेक प्रकार की कृनियों का समा्वेश पाठ् यपुसिक में नकया गया है, नजसमें आप भी अपनी ्वैिाररक क्मिाओं को न्वकनसि करिे हुए नई-नई कृनियाँ बना सकिे हैं । इन कनृियों की सहायिा से पाठ ए्वं उससे संबनंरि न्वषयों को समझने में आपको सहजिा होगी । आप सरििा से न्वषय ्वसिुओं को समझ पाएँगे िथा आपका भाषाकौशि न्वकनसि होगा । आपकी भाषा समृद्ध होगी और आप अपनी एक शिैी बनाएँगे । पाठ के मुद्ों से संबनंरि अनेक उपयुक्त संिभ्ण कयू. आर. कोड के माधयम से आपको पढ़ने के निए उपिबर होंगे । उच्च माधयनमक सिर पर गयारह्वीं कक्ा में कृनिपनतका के माधयम से आपके नहंिी न्वषय का मूलयमापन होगा, नजसके निए आपको आकिन, रसास्वािन िथा अनभवयतक्त आनि प्रशनों पर धयान केंनद्रि करना होगा । इसके निए प्र्यके पाठ के बाि न्वन्वर कृनियाँ िी गई हैं जो आपका माग्णिश्णन करने में सहायक नसद्ध होगी । ‘पढिे रहें, निखिे रहें, अनभवयक्त होिे रहें ।’ आप सभी को उज््वि भन्वषय िथा यश प्रातप्त के निए हानि्णक शुभकामनाएँ !

    डॉ. सुननि मगरसंिािक

    ्हमारमाष्ट्र रमाजय पमाठ ्यपुसतक धनध््टतरी व अभयमासक्र् संशोिन ्ंडळ, पुणे-०4

    पुरेनिनांक ः २० जून २०१९ भमारतरीय सौर धदनमांक ः ३० जयेष्ठ १९4१

  • यह अपेक्ा है नक गयारह्वीं कक्ा के अंि िक न्वि् यानथ्णयों में भाषा संबरंी ननम्ननितखि क्मिाएँ न्वकनसि हों ः

    भाषा न्वषयक क्मिा

    अ.क्र. क्मिा क्मिा न्वसिार

    १. श््वर ● गद् य, पद् य की रसमानुभूधत एवं भमाषमा सौंदय्ट को सुननमा, स्झनमा तथमा सुनमानमा ।

    ● जनसंचमार ्माधय्ों से प्रमाप् समा्ग्री कमा आकिन करते हुए सुननमा तथमा धवशिषेण करनमा ।

    ● प्रवमासरी समाधहतय को सुननमा तथमा सुनमानमा ।

    २. भाषर-संभाषर

    ● धवधभन्न धवषयों के पररसंवमादों ्ें सहभमागरी होकर धवचमार प्रकर करनमा ।

    ● धवधभन्न धवषयों को स्झकर रधेडयो जॉकी के रूप ्ें उनहें प्रसतुत करनमा ।

    ● प्रसंगमानुरूप धवधवि धवषयों के धिए स्माचमार ैतयमार करके प्रसतुत करनमा ।

    ३. ्वािन ● धवधभन्न समाधहखतयक धविमाओं कमा वमाचन करनमा ।

    ● पमाठों से संबंधित संदभ्ट ग्ंथों के वमाचन के धिए प्रेररत करनमा ।

    ● ई-समाधहतय (ब्िॉग आधद) कमा धनयध्त रूप से वमाचन करनमा ।

    4. िेखन ● रेधडयो जॉकी के रूप ्ें प्रसतुधत के धिए िेिन करनमा ।

    ● रोजगमार की संभमावनमाओं की दृखष् से धवज्मापन, संवमाद, आधद कमा िेिन करनमा ।

    ● संधहतमा आधद िेिन कौशि धवकधसत करनमा ।

    5. भाषा अधययन

    (वयाकरर)

    ● रस (वमातसलय, वरीर, करुण, हमासय, भयमानक)

    ● अिंकमार (शब्दमािंकमार)

    ● वमाकय शुद्रीकरण, कमाि पररवत्टन, ्ुहमावरे

    शब्दसंप्दा -

    शब्दसंप्दा में शब्दों के लिंग, वचन, लविोमार्थी, परायारवाची, अनेक शब्दों के लिए एक शब्द, लिन्ार्याक शब्द, उपसगया, प्रतरर, कृ्दंत और त्द् लित आल्द का समावेश ।

    ६. अधययन कौशि ● अंतरजमाि, कय.ूआर. कोड, धवधभन्न चनैलस स ेप्रमाप् जमानकमाररी कमा उपयोग करनमा ।

    ● पमाररभमाधषक शब्दमाविरी – बैंक, वमाधणजय, धवधि तथमा धवज्मान से सबंधंित पमाररभमाधषक शब्दमाविरी को जमाननमा, स्झनमा तथमा प्रयोग करनमा ।

    ● स्माचमार ििेन क ेसोपमानों को स्झनमा तथमा स्माचमार ििेन क ेन्नू ेतयैमार करनमा ।

  • नशक्कों के निए माग्णिश्णक बािें ........

    प्रसिुि पुसिक की पुनर्णिना राष्ट्रीय शैनक्क नीनि के अनुसार की गई है ।

    १० ्वीं कक्ा िक न्वि् याथथी नहंिी भाषा िथा सानह्य ि् ्वारा जो ज्ान प्राप्त कर िुके

    हैं, उनहें इसके अनिररक्त नई न्वराओं से पररनिि कराने का प्रयास नकया गया है ।

    इस प्रयास को न्वि् यानथ्णयों िक पहुँिाना आपका उ्िरिानयत््व है ।

    आपको अधययन-अधयापन का काय्ण आरंभ करन ेक ेप्ूव्ण पसुिक में सतम्मनिि

    समग्र पाठ ्याशं को सकू्मिा िथा गंभीरिा स ेपढ़कर उसका आकिन करना ह ै ।

    पररपरू्ण आकिन हिे ु आप मखुपषृ्ठ स े िकेर मिपषृ्ठ िक का गहरा अधययन

    करें । प्रसिा्वना, भाषा न्वषयक क्मिाए,ँ अनुक्रमनरका, पाठ, स्वाधयाय, कृनियाँ

    और पररनशष् आनि स ेपररनिि होना प्रभा्वी अधयापन क ेनिए आ्वशयक ह ै।

    नकशोरा्वसथा से य्ुवा्वसथा की ओर अग्रसर न्वि ्यानथ्णयों को नहिंी सानह्य का

    अनरक ज्ान होना िानहए, इस दृतष् से गि ्य और पि ्य की नई न्वराओं को समान्वष्

    नकया गया ह ै। पि ्य क ेअिंग्णि गीि, गजि, प्र्वासी नहिंी-कन्विा, मधययगुीन

    कावय से सिं िाि ूियाि की सातखया,ँ सिं सरूिास क ेपि िथा आरनुनक कावय में

    नई कन्विा क ेसाथ ही पहिी बार नई न्वरा ‘नत्वरेी’ का भी समा्वशे नकया गया

    ह ै। गि ्य क ेअिंग्णि िघकुथा, कहानी, ननबरं, उपनयास के अंश क ेसाथ वयगंय को

    भी अिंभू्णि नकया गया ह ै। रनेडयो रूपक न्वरा को भी पहिी बार निया गया ह ै।

    जी्वन में आग ेबढ़न ेके निए िथा रोजगार प्राप्त करन ेक ेनिए वया्वहाररक

    अथा्णि प्रयोजनमिूक नहिंी क ेअधययन की आ्वशयकिा ह ै। इसी उि ्िशेय को धयान

    में रखि ेहुए पाठ ्यपसुिक में रनेडयो जॉकी िथा ई-अधययन जैस ेअि् यिन पाठ निए

    गए हैं । नजनका आकिन करक े नशक्क उन पाठों का महत््व ए्व ं उपयोनगिा

    न्वि ्यानथ्णयों क ेसम्मखु प्रसििु करें ।

    इस पाठ ्यपसुिक में ‘नकु्कड़ नाटक’ इस न्वशषे न्वरा का पररिय कर्वाया

    गया ह ै। यह न्वरा सामानजक समसयाओं को प्रसिुि करने का सरि िरीका ह ै।

  • इस न्वरा का अधयापन रोिक िथा प्रभा्वी करने क े निए नशक्क अपने

    आस-पास की न्वन्वर समसयाओं स ेसबंनंरि छोट-ेछोट ेनुक्कड़ नाटक िैयारकर

    उनहें न्वि ्यानथ्णयों ि ््वारा प्रसििु करा सकि ेहैं ।

    पसुिक में समान्वष् गि ्य, पि ्य िथा वया्वहाररक नहिंी की सभी रिनाओं के

    आरभं में रिनाकार का पररिय, उनकी प्रमुख रिनाए ँिथा न्वन्वर जानकारी को

    अनिररक्त ज्ान क ेरूप में न्वि ्यानथ्णयों क ेसम्मुख प्रसिुि नकया है । प्र्यके पाठ के

    उपरािं पररपरू्ण िथा वयापक अधययन की दृतष् स ेस्वाधयाय क ेअंिग्णि शबिाथ्ण,

    अनभवयतक्त कौशि, िघू् िरी प्रशन, भाषाई कौशि आनि को किा्मक और

    रोिक ढगं स ेियैार नकया गया ह ै। आप अपने अनुभ्व िथा न्वीन संकलपनाओं का

    आरार िकेर पाठ क ेआशय को अनरक प्रभा्वी ढंग स ेन्वि ्यानथ्णयों िक पहुिँा

    सकि ेहैं ।

    वया्वहाररक वयाकरर क े अंिग्णि नौ्वीं, िस्वीं कक्ाओं में पढ़ाए जा िकुे

    वयाकरर क ेअनिररक्त ‘रस’ और ‘अिंकार’ का पररिय कराया गया ह ै। ‘रस’ के

    नौ भिेों क ेअिा्वा ्वा्सलय रस को िस्वें रस के रूप में पररनिि कराया ह ै। ‘रस’

    को ठीक ढगं स ेसमझन ेक ेबाि कन्विा में वयाप्त न्वनशष् रस क ेभेि ढँूढ़ने को

    न्वि ्यानथ्णयों स ेकहा गया ह ै। ‘अिकंार’ क ेअंिग्णि मखुयि: शबिािंकार क ेउपभेि

    निए गए हैं ।

    आप पाठ ्यपसुिक क ेमाधयम से नैनिक मूलयों, जी्वन कौशिों, केंद्रीय ित््वों,

    सं्वरैाननक मूलयों क े न्वकास के अ्वसर न्वि ्यानथ्णयों को अ्वशय प्रिान करें ।

    पाठ ्यपसुिक में अिंनन्णनहि प्र्यके सिंभ्ण का सिि मूलयमापन अपनेक्ि ह ै।

    आिश्ण नशक्क क े निए पररपरू्ण, प्रभा्वी िथा न्वसकंलपनाओं के साथ

    अधयापन काय्ण करना अपन ेआप में एक मौनिक काय्ण होिा ह ै। इस मौनिक काय्ण

    को इस पाठ ्यपसुिक क ेमाधयम स ेन्वि् यानथ्णयों िक पहुिँाने का दृढ़ संकलप ननष्ठा

    क ेसाथ सभी नशक्क करेंग ेऐसा न्वश्वास ह ै।

  • * अनुक्रमनरका *

    क्र. पाठ का नाम न्वरा रिनाकार पषृठ

    १. प्रेरणमा धत्रवेणरी धत्रपुरमारर १-4

    २. िघुकथमाएँ(अ) उषमा की दरीपमाविरी(आ) ्ुसकुरमातरी चोर

    िघुकथमा श्री्तरी संतोष श्रीवमासतव 5-8

    ३. पंद्रह अगसत गरीत धगररजमाकु्मार ्माथुर ९-१२

    4. ्ेरमा भिमा करने वमािों से बचमाएँ वयंगय डॉ. रमाजेंद्र सहगि १३-१8

    5. ्धययुगरीन कमावय(अ) भखति ्धह्मा ्धययुगरीन कमावय संत दमादू दयमाि १९-२२

    (आ) बमाि िरीिमा ्धययुगरीन कमावय संत सूरदमास २३-२६

    ६. कि् कमा धसपमाहरी रेधडयो रूपक डॉ. सुनरीि देविर २७-३३

    ७. सवमागत है ! प्रवमासरी समाधहतय-कधवतमा शमा् दमानरीशवर ३4-३8

    8. ततसत प्रतरीकमात्क कहमानरी जैनेंद्र क्ुमार ३९-45

    ९. गजिें(अ) दोसतरी(आ) ्ौजूद

    गजि डॉ. रमाहत इंदौररी 4६-4९

    १०. ्हत्वमाकमांषिमा और िोभ वैचमाररक धनबंि पदु्िमाि पुन्नमािमाि बखशरी 5०-54

    ११. भमारतरी कमा सपूत जरीवनरीपरक उपनयमास अंश रमांगेय रमाघव 55-६०

    १२. सहष्ट सवरीकमारमा है नई कधवतमा गजमानन ्मािव ‘्ुखतिबोि’ ६१-६4

  • विशेष अध्य्यन हेतु

    व्ययािहयारिक वहंदी

    परिवशष्ट

    क्र. पयाठ कया नयाम विधया िचनयाकयाि पृष्ठ

    १३. नुक्कड़ नाटक(अ) मौसम(आ) अनमोल जिंदगी

    नुक्कड़ नाटक अरजिंद गौड़ ६5-8३

    १4. जिंदी में उज्िल भजिष्य की संभािनाएँ

    भाषण डॉ. दामोदर खड़से 84-88

    १5. समाचार : िन से िनजित तक लेख डॉ. अमरनाथ ‘अमर’ 8९-९२

    १६. रेडियो जॉकी साक्ातकार अनुराग पांडे्य ९३-९७

    १७. ई-अध्य्यन : नई दृष्टि आलेख संकलन ९8-१०१

    ● मुिािरे १०२-१०३

    ●●

    भावार्थ : भक्ति मडिमा और बाल लीलारसासवादन

    १०4-१०5१०5

    ● रेजड्याे िॉकी और रेजड्यो संजिता १०६

    ●●

    पाररभाजषक शबदािलीज्ानपीठ पुरसकार प्ाप्त जिंदी साजित्यकार

    १०७-१०8१०8

    ● जिंदी साजित्यकारों के मूल नाम और उनके जिशेष नाम १०९

    ● मुजरित शोधन जचि् नदश्शक ताजलका ११०

  • 1

    १. प्रेरणा- त्रिपुरारर

    कवि पररचय ः त्रिपुरारर जी का जन्म 5 त्िसंबर १९88 को स्मस्ीपुर (त्बहार) ्में हुआ । आपकी प्ारतं्िक त्िक्ा पटना से, सना्क त्िक्ा त्िल्ी से ्था सना्कोत्र त्िक्ा त्हसार से हुई । त्िल्ी त्िशित्िि् यालय ्में अधयापन काय्य करने के पश्ा् ि््य्मान ्में आप त्िल्म, िूरिि्यन के त्लए लेखन काय्य कर रहे हैं । ‘त्रििेणी’ के र्त्य्ा के रूप ्में आपकी पह्ान है । कलपना की िाििूत््म पर यथाथ्य के बीज बो्े हुए उम्मीिों की िसल ्ैयार करना आपकी र्नाओं का उद्ेशय है ।प्मुख कवृियाँ ः ‘नींि की निी’ (कत्ि्ा संग्रह), नॉथ्य कैंपस (कहानी संग्रह), साँस के त्सक्े (त्रििेणी संग्रह) आत्ि ।कावय प्कार ः ‘त्रििेणी’ एक नए कावय प्कार के रूप ्में सात्हतय क्ेरि ्में ्ेजी से अपना सथान बना रही है । त्रििेणी ्ीन पंक्तियों का ्मुति छंि ह ै। ्मारि इन ्ीन पंक्तियों ्में कलपना ्था यथाथ्य की अत्िवयक्ति हो्ी ह ै। इसकी पहली और िूसरी पंक्ति ्में िाि और त्ि्ार सपष्ट रूप से झलक्े हैं और ्ीसरी पंक्ति पहली िो पंक्तियों ्में त्छपे िाि को नये आया्म के साथ अत्िवयति कर्ी ह ै। सा्मत्यक क्सथत््यों, ररश्ों ्था जीिन के प्त्् सकारात्मक्ा ‘त्रििेणी’ के प््मुख त्िषय हैं ।कावय पररचय ः प्स्ु् त्रििेत्णयों ्में कत्ि ने ्मनुषय के जीिन ्में ्माँ के ्म्मति और त्प्ा की गरर्मा को वयति करने के साथ ही ‘त्जंिगी की आपाधापी ्में जुटे ्मा्ा-त्प्ा से बच्ों को सनेह िी टुकड़ों ्में त््मल्ा है’, इस सच्ाई को िी उजागर त्कया ह ै। त्नरािा के बािलों के बी् आिा का सं्ार कर्े हुए कत्ि कह्े हैं त्क ठोकर खाकर जीने की कला जो सीख ले्ा है, िुत्नया ्में उसी की जय-जयकार हो्ी है । सुख-िुख की क्सथत्् ्में क्सथर रहना ही ्मनुषय की सही पह्ान ह ै।

    ्मॉं ्मेरी बे-िजह ही रो्ी हैिोन पर जब िी बा् हो्ी हैिोन रखने पर ्मैं िी रो्ा ह ँ।

    सख् ऊपर से ्मगर त्िल से बहु् नाजुक हैं्ोट लग्ी है ्मुझे और िह ्ड़प उठ्े हैं हर त्प्ा ्में ही कोई ्माँ िी छुपी हो्ी है ।

    ्मेरे ऑत्िस ्में ्महीनों से ्मेरी त्िन की त्िफट्ेरे ऑत्िस ्में ्महीनों से ्ेरी रा् की त्िफटननह ेबच्ों को ्ो टुकड़ों ्में त््मले हैं ्माँ-बाप

    उग्े सूरज को सला्मी ्ो सिी िे्े हैं डूब्े िति ्मगर उसको िुला ्म् िेनाडूबना-उगना ्ो नजरों का ्महज धोखा ह ै।

    ्ल्े-्ल्े जो किी त्गर जाओखुि को सँिालो और त्िर से ्लो्ोट खाकर ही सीख त््मल्ी ह ै।

  • 2

    ्ाहे त्क्ना िी हो घनघोर अंधेरा छायाआस रखना त्क त्कसी रोज उजाला होगारा् की कोख ही से सुबह जन्म ले्ी ह ै।

    कज्य लेकर उ्मर के लमहों सेबो त्िए ्मैंने बीज हसर् केपास थी कुछ ज्मीं खयालों की ।

    ये न सो्ो त्क जरा िूर त्िखाई िेगाएक ही िीप से आगाज-ए-सिर कर लेनारोिनी होगी जहाँ पर िी कि्म रखोगे ।

    अपनी आँखों ्में जब िी िेखा हैएक बच्ा-सा खुि को पाया हैकौन कह्ा है उम्र बढ़्ी है?

    आँसू-खतु्ियाँ एक ही िय हैं, ना्म अलग हैं इनकेपेड़ ्में जैसे बीज छुपा है, बीज ्में पेड़ है जैसेएक ्में त्जसने िूजा िेखा, िह ही सच्ा ज्ानी ।

    ्ाहे त्क्नी ही ्मुक्शकलें आएँछोड़ना ्म् उम्मीि का िा्मननाउम्मीिी ्ो ्मौ् है पयार े।

    (‘साँस के ससक्े’ सरिवेणी संग्रह से) ०

  • 3

    स्वाध्वा्

    आकलन

    १. सूचनाओं के अनुसार कृवियाँ कीविए :

    (अ) कारण वलखखए -

    (१) ्माँ, ्मेरी आिाज सुनकर रो्ी है -

    (२) बच्ों को ्मा्ा-त्प्ा का पयार टुकड़ों ्में त््मल्ा है -

    (३) कत्ि की उम्र बढ़्ी ही नहीं है -

    (आ) लिखिए -

    ्ोट खाने की ......................

    पररणत्् अंधेरा होने पर िी आस रखने की ......................

    एक ही िीप से सिर आरिं करने की ......................

    कवाव् सौंद ््य

    २. (अ) ममत् कवा भवा् प्रकट करने ्वािी कोई भी एक लरि्ेणी ढूँढ़कर उसकवा अर्य लिखिए ।

    (आ) वनमन पंखतियों में सरे प्िीकातमक पंखति छाँटकर उसरे सपष्ट कीविए -

    (१) ्ल्े-्ल्े जो किी त्गर जाओ

    (२) रा् की कोख ही से सुबह जन्म ले् ी है

    (३) अपनी आँखों ्में जब िी िेखा है

    अलभव्खति

    ३. (अ) पवािनवाघर की आ्श्कतवा पर अपने ल्चवार लिखिए ।

    (आ) नौकरीपेशवा अलभभवा्कों के बच्ों के पवािन की समस्वा पर प्रकवाश डवालिए ।

    शब्ार्थ ः घनघोर = घना आगाज-ए-सफर = यारिा का आरंि हसरत = ्ाह, इचछा शय = िस्ु, ्ीज

  • 4

    रसवास्वादन

    4. आधलुनक जी्न शैिी के कवारण लनलम्यत समस्वाओं से जूझने की प्रेरणवा इन लरि्ेलण्ों से लमिती है, सपष्ट कीलजए ।

    सावितय संबंधी सामानय ज्ान

    5. जवानकवारी दीलजए :

    (अ) ‘सरिवेणी’ कावय प्रकार की सवशेषताएँ -

    (१) ......................................................................

    (२) ......................................................................

    (अा) सरिपुरारर जी की अनय रचनाएँ -

    ............................................................................

    ............................................................................

    रस काव्यशास्त्रमेंआचा्ययोंनेरसकोकाव्यकीआतमामानाहै।विभाि,अनुभाि,व्यवभचारी(संचारी)भािऔरस््ा्यीभािरसकेअंगहैंऔरइनअंगोंअ्ाथाततत्िोंकेसं्योगसेरसकीवनष्पतततहोतीहै।

    सावहत्यशास्त्रमेंनौप्रकारकेरसमानेगएहैं।कालांतरमेंअन्यदोरसोंकोसत्मवलतवक्याग्याहै।

    रस - स्ायीभाव रस - स्ायीभाव (१) श्रंगार - प्े्म (७) ियानक - िय (२) िां् - िांत्् (8) बीितस - घ्रणा (३) करुण - िोक (९) अि् िु् - आश्य्य (4) हासय - हास (१०) िातसलय - ्म्मति (5) िीर - उतसाह (११) िक्ति - िक्ति (६) रौद्र - क्ोध

    करुणरस: वकसीवप्र्यजन्याइष्टकेकष्ट,शोक,दुख,मृत्युजवनतप्रसंगकेकारणअ्िावकसीप्रकारकीअवनष्टआशंकाकेफलस्िरू्पहृद्यमें्पीड़ा्याक्ोभकाभािउत्पन्नहोताहै,िहाँकरुणरसकीअवभव्यंजनाहोतीहै।

    उदा.-(१) िहआता- (२) अबलाजीिनहा्य!तु्हारी्यहीकहानी, दोटूककलेजेकेकरता्पछताता्प््परआता। आँचलमेंहैदूधऔरआँखोंमें्पानी। ्पेट-्पीठदोनोंवमलकरहैंएक, -मैथ्लीशरणगुप्त चलरहालकुवट्याटेक मुट्ठीभरदानेकोभूखवमटानेको, मुँहफटीझोलीफैलाता। -सयू्यकांतथरिपाठी‘थिराला’

    4

  • 5

    २. िघुकरवाएँ

    िािी ने नरक ्ौिस के त्िन आटे के िीप बनाकर ्ुमखय ि् िार से लेकर हर क्मरे की िेहरी जग्मगा िी थी । घर पकिान की खुिबू से ्रब्र था । गतु्झया, पपड़ी, ्कली आत्ि सब कुछ था । ्मगर िस िषषीय उषा को ्ो ्ॉकलेट और बंगाली त््मठाइयाँ ही पसंि थीं । िािी कह्ी हैं त्क - ‘‘्ेरे त्लए ्ेरी पसिं की त््मठाई ही आएगी । यह सब ्ो पड़ोत्सयों, ना्े-ररश्ेिारों, घर आए ्मेह्मानों के त्लए हैं ।’’

    आटे के िीपक कंपाउंड की ्मुंडेर पर जलकर सुबह ्क बुझ गए थे । उषा जॉत्गंग के त्लए फै्ट से नी्े उ्री ्ो उसने िेखा पूरा कंपाउंड पटाखों के क्रे से िरा हुआ था । उसने िेखा, सिाई करने िाला बबन उन िीपों को क्रे के त्डबबे ्में न डाल अपनी जेब ्में रख रहा था । किृकाय बबन कंपाउंड ्में झाडू लगा्े हुए हर रोज उसे सला्म कर्ा था । ‘‘्ु्मने िीपक जेब ्में कयों रख त्लए ?’’ उषा ने पूछा । ‘‘घर जाकर अचछे से सेंककर खा लेंगे, अन्न िेि्ा हैं न ।’’ बबन ने खीसे त्नपोर े।

    उषा की आँखें त्िस्मय से िर उठीं । ््मा्म िाि्ों ्में िरी प्ेटों ्में से जरा-सा टूँगने िाले ्मेह्मान और क्रे के

    लरेखक पररचय ः सं्ोष श्ीिास्ि जी का जन्म २३ निंबर १९5२ को ्मंडला (्मधय प्िेि) ्में हुआ । आपने ए्म.ए. (इत््हास, त्हंिी), बी.एड ्था परिकारर्ा की उपात्धयाँ प्ाप्त कीं । नारी जागरूक्ा और उसकी अक्स्म्ा की पह्ान आपकी लेखनी के त्िषय हैं । आपकी र्नाओं ्में एक ओर ि््य्मान क्सथत््यों ्था सा्मात्जक त्िसंगत््यों का त््रिण दृक्ष्टगो्र हो्ा है ्ो िहीं िूसरी ओर जीिन जीने की छटपटाहट और पररक्सथत््यों से लड़ने की साथ्यक सो् िी ह ै।प्मुख कवृियाँ ः ‘बहके बसं् ् ु्म’, ‘बह्े गलेत्ियर’ (कहानी संग्रह) ‘िबे पाँि पयार’, ‘टेमस की सरग्म’, ‘खिाबों के पैरहन’ (उपनयास), ‘िागुन का ्मन’ (लत्ल् त्नबंध संग्रह), ‘नीली पक्त्यों की िायराना हरार्’ (यारिा संस्मरण) आत्ि । विधा पररचय ः ‘लघुकथा’ त्हंिी सात्हतय ्में प््त्ल् त्िधा है । यह गि् य की ऐसी त्िधा है जो आकार ्में लघु है पर कथा के ्त्िों से पररपूण्य है । क्म िबिों ्में जीिन की संिेिना, पीड़ा, आनंि को सघन्ा ्था गहराई से प्स्ु् करने की क््म्ा इस्में हो्ी है । त्कसी पररक्सथत्् या घटना को लेखक अपनी कलपना का पुट िेकर र््ा है । त्हंिी सात्हतय ्में डॉ. क्मल त्किोर गोयनका, डॉ. स्ीि िुबे, सं्ोष सुपेकर और क्मल ्ोपड़ा आत्ि प््मुख लघुकथाकार हैं ।पाठ पररचय ः ‘उषा की िीपािली’ लघुकथा अनाज की बरबािी पर बाल्मन की संिेिनिील्ा और संसकारों को जाग्र् करा्ी ह ै। एक ओर थात्लयाँ िर-िरकर जूठन छोड़ने िाले लोग हैं ्ो िूसरी ओर अनाज के एक-एक कौर को ्रस्े और त्ित्िन्न ्रीकों से रोटी का जुगाड़ कर्े लोग हैं । ‘्मुसकुरा्ी ्ोट’ लघुकथा आत्थ्यक अिाि के कारण पढ़ाई न कर पाने की त्ििि्ा ्था ्मजिूरी करके अपनी पढ़ाई जारी रखने की अिमय इचछा को ििा्य्ी है । यह बाल ्मजिूरी जैसी स्मसया को इतं्ग् कर्े हुए हौसला िे्ी, आिािाि को बढ़ा्ी सकारात्मक और संिेिनिील लघुकथा ह ै।

    त्डबबे के हिाले प्ेटों का अंबार उसकी आँखों ्में सैलाब बनकर उ्मड़ आया । िह िौड़्ी हुई घर गई । जलिी-जलिी पकिानों से थैली िरी और िौड़्ी हुई एक सॉंस ्में सीत्ढ़यॉं उ्र गई........ अब िह थी और बबन की काँप्ी हथेत्लयों पर पकिान की थैली । उषा की आँखों ्में हजारों िीप जल उठे और पकिानों की थैली िेख बबन की आँखों ्में खुिी के आँसू छलक आए ।

    × × × ×

    (अ) उषवा की दीपवा्िी

    - श्रीमतरी संतोष श्रीवासतव

    5

  • 6

    घर ्में बाबा बी्मार थे । उनकी ििाई, रािन के त्लए पैसे ्ात्हए थे । ्माँ ्ार घर ्में ्ौका-ब््यन करके त्ज्ना ला्ी िह सब बाबा की ििाई और घर ्में ही लग जा्ा । बबलू की पढ़ाई बी् ्में ही छूट गई । ्माँ को सहारा िेने के त्लए बबलू ने घर-घर जाकर रि् िी इकट् ठा करना िुरू कर त्िया पर पढ़ाई के प्त्् लालसा बनी हुई थी । उस त्िन िी ्राजू पर रि् िी ्ौल्े हुए बबलू की नजर लगा्ार सककूल की उन त्क्ाबों पर थी त्जसे रद्ी ्में बे्ा जा रहा था । िह ्ाह रहा था त्क िे त्क्ाबें उसे त््मल जाएँ ।

    ‘‘सककूल नहीं जा्ा ्ू ? अजीब हैं ्ेरे ्माँ-बाप जो ्ुझसे का्म करा्े हैं ।’’ घर की ्मालत्कन ने ् राजू के काँटे पर नजर ज्माए कहा । ्िी उनकी कॉलेज के त्लए ्ैयार हो्ी लड़की ने कहा - ‘‘्माँ, बाल ्मजिूरी ्ो अपराध है न ?’’ ‘‘हाँ त्बलकुल, पर अनपढ़ ्माँ-बाप स्मझें ्ब न’’, बबलू को बुरा लगा । उससे अपिबि सहे नहीं गए ।

    ‘‘सककूल बपपा ने िेजा था ्मे्मसाब पर उनके पास त्क्ाबों के त्लए पैसे न थे इसत्लए पढ़ाई रुक गई ।’’

    ‘‘्माँ, इससे इन त्क्ाबों के पैसे ्म् लो । इसके का्म आएँगी । िह इनसे अपनी पढ़ाई कर लेगा ।’’

    ‘‘कुछ नहीं हो्ा इससे, ह्म फ्ी ्में िेंगे और यह रद्ी पेपर के ्मात्लक से त्क्ाबों के पैसे ले ्ाट-पकौड़ी ्में उड़ा िेगा । इनके बस का नहीं है पढ़ना ।’’

    बबलू ने रद्ी के पैसे ्ुकाए और बोरा उठा सीधा घर पहुँ्ा । उसने बोरे ्में से त्क्ाबें त्नकालकर अलग रख िीं । त्िर बोरा लेकर िह रद्ी पेपर के िुकानिार के पास पहुँ्ा । िुकानिार ने रद्ी ्ौल त्कनारे रखी ।

    ‘‘पैसे ्ो ब्े होंगे ्ेरे पास । जा, सा्मने के ठेले से िड़ा-पाि और ्ाय ले आ त्िर त्हसाब कर ।’’ बबलू त्सर झुकाए खड़ा रहा । िुकानिार बार-बार बोल्ा रहा पर बबलू टस-से-्मस न हुआ । अब िुकानिार से रहा नहीं गया । िह झल्ा उठा ।

    (आ) मुसककुरािी चोट

    ‘‘अरे कया हुआ ? जा्ा कयों नहीं ?’’

    ‘‘रुपये ख््य हो गए सेठ ।’’

    ‘‘कया ! ्ेरे पैसे थे जो ख््य कर त्िए !’’ िुकानिार ने उसको बुरी ्रह से डाँट त्िया । डाँट खाने के बािजूि िह ्मुसकुरा रहा था । अब िह सककूल जा सकेगा । उसके पास िी त्क्ाबें हैं । िह घर की ओर लौट पड़ा ।

    घर लौट्े हुए रास्े ्में िही सुबहिाली ्मालत्कन और उनकी लड़की त््मल गई । उसके हाथ ्में त्क्ाबें िेख ्मालत्कन के आश्य्य का त्ठकाना न रहा । उसे सुबह कहे हुए अपने ही अपिबि याि आ गए और अपने ही िबिों पर अपराध बोध हो आया । बबलू की पढ़ाई के प्त्् लालसा को िेखकर उसने त्नश्य त्कया त्क अब उसकी आगे की पढ़ाई का ख्ा्य िही उठाएगी । बबलू की खिुी का त्ठकाना न था ।

    (‘फैसला’ लघुकथा संग्रह से)

  • 7

    शब्ार्थ ःदेहरी = िहलीज कृशकाय = िुबला-प्ला िरीर तरबतर = गीला, िीगा बेरहमी = त्नि्यय्ा, ियाहीन्ा

    स्वाध्वा्

    आकलन

    १. लिखिए : (अ) दावतमेंहोिेवालीअन्नकीबरबादीपरउषाकीप्रथतथरिया-

    ............................................................................

    ............................................................................

    (आ) सं्वादों कवा उलचत घटनवाक्रम - (१) ‘‘रुपये खर्च हो गए मालिक’’ (२) ‘‘सककूि नहीं जाता तू? अजीब है...!’’

    (३) ‘‘अरे कया हुआ ! जाता कयों नहीं?’’ (4) ‘‘माँ, बाि मजदूरी अपराध है न?’’

    शब् संप्ा

    २. (अ) समूह में से ल्संगलत दशवा्यने्वािवा कृ्ंि/ि्् वधि शब् चुनकर वलखखए - (१)मानिता,वहंदुस्तानी,ईमानदारी,्पढ़ाई (२)्कान,वलखािट,सरकारी,मुस्कुराहट (३)बुढ़ा्पा,व्पतृति,हँसी,आवतथ्य (4)कमाई,अचछाई,वसलाई,चढ़ाई

    (आ) वनमनवलखखि िाकयों में आए हुए शब्ों के िचन परर्त्यन करके ्वाक् लिर से लिखिए - (१)्पेड़्परसुंदरफूलतखलाहै। (२)कलाकेबारेमेंउनकीभािनाउदातत्ी। (३)दीिारों्परटँगेहुएविशालवचत्रदेखे। (4)िेबहुतप्रसन्नहोजाते्े। (5)हमारी-तु्हारीतरहइनमेंजड़ेंनहींहोतीं। (६)्येआदमीवकसीभ्यानकिनकीबातकररहे्े। (७)िहकोईबनािटीसतहकीचीजहै।

  • 88

    (इ) लनमनलिखित शबदों कवा लिंग परर्त्यन करके प्रत्ेक कवा ्वाक् में प्र्ोग कीलजए - अध्या्पक,रानी,नाव्यका,देिर,्पंवित,्यक्,बुद्वधमान,श्ीमती,दुतख्यारा,विद्िान

    पररवथत्यत शबद ्वाक् में प्र्ोग

    (१) .................. (१) .........................................................................

    (२) .................. (२) .........................................................................

    (३) .................. (३) .........................................................................

    (4) .................. (4) .........................................................................

    (5) .................. (5) .........................................................................

    (६) .................. (६) .........................................................................

    (७) .................. (७) .........................................................................

    (8) .................. (8) .........................................................................

    (९) .................. (९) .........................................................................

    (१०) .................. (१०) .........................................................................

    अलभव्खति

    ३. (अ) ‘अन्नबैंककीआवशयकता’,इसपरअपिेथवचारथलखिए । (आ) ‘थशक्ासेवंथचतबालकोंकीसमसयाए ँ’,इसथवषयपरअपिामतथलखिए।

    पवाठ पर आधवाररत िघूततरी प्रशन

    4. (अ) ‘उषाकीदीपावली’लघुक्ाद्वाराप्राप्तसंदेशथलखिए । (आ) ‘मुसककुरातीचोट’शीष्यककीसा््यकतासपष्टकीथिए ।

    सावितय संबंधी सामानय ज्ान

    5. िािकारीदीथिए: (अ) संतोषश्ीवासतविीथलखितसाथहख्यकथवधाएँ- ..............................................................

    ..............................................................

    (अा) अनयलघुक्ाकारोंकेिाम- ..............................................................

    ..............................................................

  • 9

    कवि पररचय ः त्गररजाक्ुमार ्माथुर जी का जन्म २२ अगस् १९१९ को अिोक नगर (्मधय प्िेि) ्में हुआ । आपकी आरंत्िक त्िक्ा झाँसी ्में ्था सना्कोत्र त्िक्ा लखनऊ ्में हुई । आपने आॅल इंत्डया रेत्डयो, त्िल्ी ्था आकाििाणी लखनऊ ्में सेिा प्िान की । संयतुि राष्टट्र संघ, नयूयाक्क ्में सू्नात्धकारी का पििार िी सँिाला । आपके कावय ्में राष्टट्रीय ्े्ना के सिर ्मुखरर् होने के कारण प्तयेक िार्ीय के ्मन ्में जोि िर िे्े हैं । ्माथुर जी की ्म्रतयु १९९4 ्में हुई ।प्मुख कवृियाँ ः ‘्मंजीर’, ‘नाि और त्न्मा्यण’, ‘धूप क ेधान’, ‘त्िलापंख ् ्मकीले’, ‘जो बँध नहीं सका’, ‘साक्ी रहे ि््य्मान’, ‘्मैं िति के हँ सा्मने’ (कावय संग्रह) आत्ि । कावय प्कार ः यह ‘गी्’ त्िधा है त्जस्में एक ्मुखड़ा और िो या ्ीन अं्रे हो्े हैं । इस्में परंपराग् िािबोध ्था त्िलप प्स्ु् त्कया जा्ा है । कत्ि अपने कथय की अत्िवयक्ति हे्ु प््ीकों, त्बंबों ्था उप्मानों को लोक जीिन से लेकर उनका प्योग कर्ा है । ‘्ार सप्तक’ के कत्ियों ्में अजे्य, ्मुक्तिबोध, प्िाकर ्मा्िे, त्गररजाकु्मार ्माथुर, नेत््म्ंद्र जैन, िार्िूषण अग्रिाल, रा्मत्िलास ि्मा्य का ्महत्िपूण्य सथान ह ै। कावय पररचय ः प्स्ु् गी् ्में कत्ि ने सि्ंरि्ा के उतसाह को अत्िवयति त्कया ह ै। सि्ंरि्ा के पश्ा् त्ििेिी िासकों से ्ुमक्ति का उल्ास िेि ्में ्ारों ओर छलक रहा है । इस निउल्ास के साथ-साथ कत्ि िेििात्सयों ्था सैत्नकों को सजग और जागरूक रहने का आिाहन कर रहा है । स्मस् िार्िात्सयों का लक्य यही होना ्ात्हए त्क िार् की सि्ंरि्ा पर अब कोई आँ् न आने पाए कयोंत्क िुखों की काली छाया अिी पूण्य रूप से हटी नहीं ह ै। जब िोत्ष्, पीत्ड़् और ्म्र्प्ाय स्माज का पुनरुतथान होगा ्िी सही ्मायने ्में िार् आजाि कहलाएगा ।

    ३. पंद्रि अगसि

    आज जीत की रात पहरुए, सावधान रहना ! खुिे देश के द्ार अरि दीपक समान रहना ।

    - त्िररजाकुमार माथुर

  • 10

    लवषम श्रृंखिाएँ टूटी हैंखुिीं समसत लदशाएँ,आज प्रभृंजन बनकर रितीं युग बृंलदनी हवाएँ,प्रशनलरह् न बन खड़ी हो गईंये लसमटी सीमाएँ,आज पुराने लसृंहासन कीटूट रहीं प्रलतमाएँ,उठता है तूफान इृंदु, तुम दीप्तिमान रहना,पहरुए, सावधान रहना !

    प्रथम ररण है नये सवग्च काहै मृंलजि का छोर,इस जनमृंथन से उठ आईपहिी रतन लहिोर,अभी शेष है पूरी होनाजीवन मुक्ा डोर,कयोंलक नहीं लमट पाई दुख कीलवगत साँविी कोर,िे युग की पतवारबने अृंबुलध महान रहना,पहरुए, सावधान रहना !

    ऊँरी हुई मशाि हमारीआगे कलठन डगर है,शत्ु हट गया िेलकन उसकीछायाओं का डर है,शोषण से म्रत है समाजकमजोर हमारा घर है,लकंतु आ रही नई लजृंदगीयह लवशवास अमर है,जनगृंगा में जवारिहर तुम प्रवहमान रहना,पहरुए, सावधान रहना !

    (‘धूपकेधाि’कावयसंग्रहसे)

  • 11

    स्वाध्वा्

    आकलन

    १. (अ) संकलपनवा सपष्ट कीलजए -

    (१) नये सवग्च का प्रथम ररण

    (२) लवषम श्रृंखिाएँ

    (३) युग बृंलदनी हवाएँ

    (आ) वलखखए - (१) ...............................

    स्माज की ि््य्मान क्सथत््

    (२) ...............................

    कवाव् सौंद ््य

    २. आशय वलखखए :

    (अ) ‘‘ऊँचीहुईमशालहमारी......हमाराघरहै।’’

    (आ) ‘‘युगबंथदिीहवाएँ...टूटरहींप्रथतमाए ँ।’’

    अलभव्खति

    ३. (अ) ‘देशकीरक्ा-मेराकत्यवय’,इसपरअपिामतसपष्टकीथिए।

    (आ) ‘देशकेथवकासमेंयुवकोंकायोगदाि’,इसथवषयपरअपिेथवचारथलखिए ।

    रसवास्वादन

    4. स्तंरितवा कवा ्वासतल्क अर्य समझते हुए प्रसतुत गीत कवा रसवास्वादन कीलजए ।

    शब्ार्थ ः पहरुए = पहरेिार, प्हरी प्रभंजन = आँधी, ्ूिान पतवार = नाि खेने का साधन इंदु = ्ंद्र्मा अंबुसि = सागर, स्मुद्र दीप्तिमान = प्काि्मान, कांत्््मान, प्िायुति

  • 12

    सावितय संबंधी सामानय ज्ान

    5. िािकारीदीथिए:

    (अ) थगररिाककुमारमा्ुरिीकेकावयसंग्रह-

    ............................................................................

    ............................................................................

    (अा) ‘तारसप्तक’केदोकथवयोंकेिाम-

    ............................................................................

    ............................................................................

    रस वीररस- वकसी्पदमेंिवणथातप्रसंगहमारेहृद्यमेंओज,उमंग,उतसाहकाभािउत्पन्नकरतेहैं,तबिीररसकावनमाथाण होताहै।्येभािशत्रुओंकेप्रवतविद्ोह,अधमथा,अत्याचारकाविनाश,असहा्योंकोकष्टसेमुततिवदलाने मेंव्यंवजतहोतेहैं।

    उदा. - (१) सावजचतुरंगसैन,अंगमेंउमंगधरर। सरजावसिाजी,जंगजीतनचलतहै। भूषणभनतनाद,वबहदनगारनके नदी-नदमद,गैबरनकेरलतहै। -भूषण

    (२) दूरवफरंगीकोकरनेकीसबनेमनमेंठानी्ी। चमकउठीसनसततािनमेंिहतलिार्पुरानी्ी। बुंदेलेहरबोलोंकेमुँहहमनेसुनीकहानी्ी। खूबलड़ीमदाथानी,िहतोझाँसीिालीरानी्ी। -सुभद्ाककुमारीचौहाि

    भयािकरस-जबकाव्यमेंभ्यानकिस्तुओं्या दृश्योंके प्रत्यक्ीकरणकेफलस्िरू्पहृद्यमेंभ्यकाभािउत्पन्न होताहै,तबभ्यानकरसकीअवभव्यजंनाहोतीहै।

    उदा. - (१) प्र्मटंकाररझुवकझाररसंसार-मदचंिकोदंिरह््योमवंिनिखंिकों। चावलअचलाअचलघावलवदग्पालबल्पावलररवषराजकेिचन्परचंिकों। बांवधबरस्िगथाकोंसावधअ्पिगथाधनुभंगकोसबधग्योभेवदब्रहांिकों। -केशवदास

    (२) उधरगरजतीवसंधुलहरर्या,कुवटलकालकेजालों-सी। चलीआरहीहै,फेनउगलती,फनफैलाएव्यालों-सी।। -ियशंकरप्रसाद

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    4. मेरवा भिवा करने ्वािों से बचवाएँ

    इधर मैं कई लदनों से बड़ा परेशान रि रहा हँ । सब मेरा भिा करना राहते हैं । अखबार पढ़ने बैठता हँ तो समारार पढ़ने से पहिे ढेर सारे कागज साथ में आ जाते हैं । कोई कहता है आपके द्ार पर आकर बैठे हैं । सभी तरह के इिाज के लिए क्ीलनक खोि लदया है । आप मोटे हैं तो पतिा कर देंगे । पागि हैं तो ठीक कर देंगे । क्ीलनक से हर प्सिलमृंग सेंटरवािा कह रहा है, ‘बस ! आप आ जाएँ, बाकी सब हम पर छोड़ दें । हिवाई की दुकानवािा कह रहा है, ‘ऐसी लमठाई आपने कभी न खाई होगी । मीठा खाएँ पर मीठे का असर न हो’, ऐसी रीनी का इसतेमाि करते हैं वे ।

    के्लडट काड्चवािा फ्ी डलेबट काड्च दे रहा है । पैसे खर्च करने या नकद खर्च की कोई जरूरत पहिे नहीं है । आप बेवजह पैसे के पीछे दौड़ रहे हैं । हम सामान आपके घर िाना राहते हैं, आप बस माि खरीदें ! गाड़ीवािा नई गाड़ी के कागज लदए जा रहा है । साथ में िोन देने वािा बैंक के कागज भी लदए जा रहा है । अखबार के साथ पैंफिेट

    इतने जयादा हैं लक उनहें पढ़ने बैठ जाओ तो अखबार पढ़ने के लिए वक् नहीं बरेगा ।

    लजसे देखो, वही हमारी लरृंता कर रहा है । मुसककुराती, रहरहाती िड़लकयों के झुृंड के झुृंड आपके पास लकसी भी प्रदश्चनी को देखते वक् आ जाएँगे । आपको िगेगा, हमने ऐसी कया उपिप््ध पा िी है लक सभी हमारा आटोग्ाफ िेना राहते हैं । वे फाम्च भरवा रही हैं । इनाम के िािर में फाम्च के साथ ककुछ उममीदें बँधाकर जा रही हैं । घर में बैठा हँ, कोई साफ पानी पीने के लिए वॉटर लफलटर िगाना राह रहा है । पैसे की तो कोई बात ही नहीं करता, पैसे आते रहेंगे । आप बस, फाम्च भर दीलजए । सब ककुछ आसान लकसतों में है, पता ही नहीं रिेगा । क्ेलडट काड्चवािा लनयलमत रूप से लववरण भेज रहा है । आप बस पेटो्ि भरवाते रहें । साबुन माँगो तो कोई एक लटलकया देता ही नहीं । सीधे कम-से-कम रार लटलकयाँ पकड़ाएँगे लजसमें एक मुफत ।

    लरेखक पररचय ः राजेंद्र सहगल जी का जन्म २4 अगस् १९5३ को हुआ । आपने त्िल्ी त्िशित्िि् यालय से ए्म.ए., पीए्.डी की उपात्ध प्ाप्त की । आप बैंक ्में उपप्बंधक के रूप ्में काय्यर् रहें । आप आकाििाणी से त्ित्िन्न त्िषयों पर िा्ा्यओं का प्सारण कर्े हैं ्था सा्मत्यक ्महत्ि के त्िषयों पर िी्र लेखन िी कर्े हैं । स्रीय परि पत्रिकाओं ्में आपके लगिग प्ास वयंगय लेख प्कात्ि् हुए हैं ।प्मुख कृवियाँ ः ‘त्हंिी उपनयास’, ‘्ीन ििक’ (िोध प्बंध), ‘असतय की ्लाि’, ‘ध्म्य त्बका बाजार ्में’ (वयगंय-संग्रह) विधा पररचय ः त्हंिी गि् य की त्ित्िन्न त्िधाओं ्में ‘वयगंय’ का प््मुख सथान है । अत््ियोक्ति, त्िडंबना, त्िसंगत््याँ, अनयोक्ति ्था आक्ोि प्िि्यन वयंगय के प््मुख उपािान हैं । वयक्ति का िो्मुँहापन, िोगलापन, पाखंड, ्ालाकी, धू््य्ा, इ्ने परिों के पीछे त्छपी रह्ी है त्क केिल वयगंय र्नाकार ही अपनी पैनी नजर से उसे िेख पा्ा है । िह वयक्तिग् राग-दे्ष से ्मुति होकर वयक्ति के इस पाखंड को पकड़्ा है । त्कसी वयक्ति, स्माज, राष्टट्र, िग्य आत्ि का ्मजाक उड़ाना वयंगयकार का उद्ेशय नहीं हो्ा, बक्लक पाठकों को िह एक साि-सुथरा दृक्ष्टकोण िेना ्ाह्ा है । िािात््रेक के बजाय िािों की ्रल्ा ही वयंगय लेखक की िास्त्िक कुंजी हो सक्ी है । श्ीलाल िुक्ल, हररिंकर परसाई, के.पी. सकसेना, रिींद्रनाथ तयागी, िरि जोिी, िंकर पुण्ांबेकर आत्ि ने वयंगय सात्हतय को अपनी लेखनी से स्म्रद्ध त्कया ह ै।पाठ पररचय ः प्स्ु् वयंगय के ्माधय्म से वयंगयकार का ्मानना है त्क झूठ को स् ब्ाने ्में जो ्ाक् लग्ी है उसका सौंिा त्हससा िी स् को स् सात्ब् करने ्में नहीं लग्ा परं्ु झूठ को ही सही कहना आधतु्नक काल का िैिन है आज ‘एक ्ीज के ऊपर िूसरी ्ीज फ्ी’ इस लाल् ्में िँसे वयक्ति की परिेात्नयाँ ब्ा्े हुए ‘्मुफ्’ के ्क्र ्में अपना िला करने िाले ह्मारे आस-पास कई सारे लोग त्िखाई िे्े हैं, उनसे ‘्मुझे ब्ना है’ कहकर इस प्ि्रक्त् पर वयंगय कसा है ।

    - डॉ. राजेंद्र सहगल

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    हर जगह एक फ्ी का इतना रिन है लक िगता है सब जगह भाईरारा बढ़ गया है । कोई खाने की रीज छोटी नहीं रही । सीधे ‘िाज्चर दॅन िाइफ’ हो गई है । पहिे जयादा खाओ लफर पराने के लिए पारक गोलियाँ खाओ । इससे पहिे की है, लकसी ने लकसी की इतनी लरृंता ! िोग कोसते रहते हैं लक दुलनया से पयार-मुह्बत कम होती जा रही है । यह उनकी समझ की कमी है ? पयार तो दोगुना-रौगुना बढ़ा है ।

    पाक्क घूमने जाता हँ तो योग सृंसथानवािे घेर िेते हैं । कहते हैं, लसफ्क घूमने से और सैर करने से कया होगा । वे मुझे ‘योगा’ के फायदे समझाते हैं । मैं उनहें अपने वक् की समसया और थोड़ा बहुत घर के कामकाज की समसया बताता हँ । पर वे इसे दलुनयादारी मानकर मुझे सीख देने िगते हैं । वे हर जगह काँपीलटशन पैदा करना राहते हैं । मैंने अपना पक्ष रखते हुए उनहें बताया लक मैं इस सैर से ही लफट रहता हँ । पर वे इसे मेरी नासमझी मान मुझे ‘योगा’ के फायदे ही बताए जा रहे हैं । अगिे लदन सैर करने के लिए मुझे दूसरा पाक्क देखना पड़ता है ।

    मैं लपछिे ककुछ वक् पहिे इन ‘योगा’ वािों से प्रभालवत रहा पर अब मेरा मोह भृंग हो गया है । हुआ यूँ लक पाक्क में घूमते-घूमते मैं इनके ठहाके सुनकर बड़ा अरृंलभत हुआ, सोरता लक आज के इस वक् में ठहाके िगाने के लिए आप्खर इनके पास नुसखा कया है । मैं भी ककुछ सककुराते और घूमने का बहाना बना उनके दायरे में शालमि हो गया । वहाँ जाकर पता रिा लक उनका ठहाका िगाने का आधार था लक वे एक-दूसरे को रुटककुिे सुनाते, लजस पर सभी समवेत सवर में ठहाका िगाकर हँसते । मुझे ठहाका न िगाते देख और अपनी हँसी में योगदान न देते देख हैरान

    होते । बाद में मुझे इन रुटककुिों की समझ न रखने वािा मान माफ कर देते । मुझे जलदी ही इन ठहाकों का राज समझ में आ गया और मैं अपने रासते वापस आ गया ।

    एक लदन दो युवा आए । कहने िगे, अखबार के दफतर से आए हैं । लफलमें लदखाते हैं और आपकी राय के लिए आपको आमृंलत्त करेंगे । अचछा िगा । उनहोंने फौरन काम शुरू कर लदया । जैसे ही मुझे लकसी काम में वयसत देखा तो हसताक्षर के लिए कागज आगे कर लदया । पढ़ने को वक् की बबा्चदी समझ उनहोंने हसताक्षरवािी जगह बताकर मेरे हसताक्षर करवा लिए । वही हुआ था, जो होना था । थोड़े लदनों बाद एक रमरमाता क्ेलडट काड्च आ गया । सारे मामिे की छानबीन करने पर पता रिा लक वे देश के भावी कण्चधार बेशक अखबार के ऑलफस से आए थे पर उनका लकसी लवदेशी बैंक से काँट्ेकट था । इस काँट्ेकट के रिते उनहें के्लडट काड्च बनवाने का िक्य पूरा करना था ।

    लफलम देखने जाता हँ । लटकट के साथ खाने का सामान शालमि कर लिया जाता है । मैं खाने की मनाही करता हँ । मुझे ककुछ इस तरह से समझाया जाता है, ‘तीन घृंटे की लफलम में कोई भूखा-पयासा थोड़े ही बैठेगा लफर खाने-पीने की िाइन में आपका िगना हमें अचछा नहीं िगेगा ।’ उसे पता है भूख तो िगेगी । वह दूरदशशी है । उससे दूसरे की भूख बरदाशत नहीं होती । िाईन में िगने से कष्ट होगा । पहिे ही इृंतजाम कर देता है । मेरे द् वारा कोई तक्क करने से पहिे ही तुरुप का पतता फेंकते हुए मुझे बताया जाता है ‘श्ीमान लटकट के साथ तो हम आधे पैसे राज्च करते हैं । यह सकीम आपके फायदे को धयान में रखकर ही जन कलयाण के लिए ककुछ लदन पहिे ही िाई गई है ।’ मैं जन कलयाण का फायदा उठाने के लिए और बहस नहीं करता । १०/- के पॉपकॉन्च १००/- में खाकर उनका एहसान मानने िगता हँ ।

    ‘मॉि’ में कपड़ों की सेि िगी है । माि बेरनेवािा लरल्ा-लरल्ाकर कह रहा है । ‘१5००/- की साड़ी ३5०/- में, १०००/- का ककुता्च २००/- में ।’ मैं लजज्ासा वश पूछ बैठता हँ ‘‘आप इतना ससता माि देकर अपना दीवािा कयूँ लपटवा रहे हो ।’’ वह झट से कहता है ‘‘मैं भारत माँ का सपूत हँ । मुझे अपने देशवालसयों से पयार है ।

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    मैं इस धरती का कज्च उतारना राहता हँ ।’’ दरअसि वह सेकेंड का ससता माि बेरने के लिए अपने को धरती का िाि कहता है । वह अपने बलिदान के लिए उतारू है । वह वयापारी है । हर रीज बरे िेता है । अपना कज्च उतार रहा है । मैं लनरुततर हो जाता हँ । मैं उस महान आतमा के सामने नतमसतक हँ ।

    कोई दुकानवािा तयोहारों पर होने वािी छुट् लटयों की अलग्म सूरना दे रहा है । फिाँ-फिाँ तारीख को दुकान बृंद रहेगी । आज ही जरूरत का सामान जमा कर िो । हमें तो आपकी बड़ी लरृंता रहती है । हमें पता है, इसके लबना रह नहीं पाओगे । दोगुनी कीमत में पाने के लिए दर-दर भटकोगे । लफर िोग कहते हैं