कपास की खेती के लिए साप्ताहिक ...प रज सत,...

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  • कपास की खेती के लिए साप्ताहिक सिाि स ं1/2015

    भाकृअनुप-केद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान कपास की खेती के लिए 11 से 17 जून साप्ताहिक सिाि

    (30 मानक सप्ताि) "सिािकार संबंलधत राज्यों के राज्य कृषि षिश्वषिद्याियों से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर हकया जाता िै"

    राज्य/ जजिे जून माि में ििाा की जस्थलत (लमिी िी॰)

    साप्ताहिक सिाि

    हिनांक 9 10 11 12 13 14 15 पंजाब भट िंडा 3 कपास की बुआई अभी न करें। 31 मई के बाि बोया फसि में

    पर्ा कंुचन रोग (िीफ किा िायरस) से अत्यलधक खतरा िो सकता िै । चूसने कीट समस्याओं से बचने के लिए नाइट्रोजन के उपयोग से उपयोग न करें । हकसी भी कीटनाशक अत्यलधक स्पे्र न करें।

    टिरोजपुर 3 मुकतसर मानसा

    िररयार्ा ससरसा कपास की बुआई अभी न करें। 31 मई के बाि बोया फसि में

    पर्ा कंुचन रोग (िीफ किा िायरस) से अत्यलधक खतरा िो सकता िै । चूसने कीट समस्याओं से बचने के लिए नाइट्रोजन के उपयोग से उपयोग न करें । हकसी भी कीटनाशक अत्यलधक स्पे्र न करें।

    टिसार

    फ़तेिाबाद

    राजस्थान िनुमानगढ़ कपास की बुआई अभी न करें। 31 मई के बाि बोया फसि में

    पर्ा कंुचन रोग (िीफ किा िायरस) से अत्यलधक खतरा िो सकता िै । चूसने कीट समस्याओं से बचने के लिए नाइट्रोजन के उपयोग से उपयोग न करें । हकसी भी कीटनाशक अत्यलधक स्पे्र न करें।

    श्रीगिंगानगर बािंसवाड़ा

    उड़ीसा कोरापु 5 10 74 9 इस सप्ताि कपास की बुआई हकसी भी समय कर सकते िैं । कालािािंडी 9 13 68 12 बोलािंगीर 8 41 18 गुजरात अमरेली 26 15 4 12 यहि लसचाई की व्यिस्था िो तो, इस सप्ताि कपास की बुआई

    कर सकते िैं । भावनगर 26 15 4 12 जामनगर 26 16 4 12 अिमदाबाद 2 2 8 ििाा लसंलचत खेत्र के हकसान बुिाई के लिए खेत तैयार रखें।

    स्टाम्प (पेंडालमथाईिीन) शाकनाशी (िबीसाइड) के पूिा उद्भ्ि के लिए हकया जा सकता िै।

    सुरेन्द्रनगर 2 2 8

    वडोदरा 10 19 8 लसचाई व्यिस्था सुलनजित िो तो, बुिाई के लिए खेत तैयार रखें। स्टाम्प (पेंडालमथाईिीन) शाकनाशी (िबीसाइड) के पूिा उद्भ्ि के लिए हकया जा सकता िै।

    राजको 12 10 8 भरूच 10 4 8 स्टाम्प (पेंडालमथाईिीन) शाकनाशी (िबीसाइड) के पूिा उद्भ्ि के

    लिए हकया जा सकता िै।

  • पा न खेत तयैार रखें। सबरकािंठा मेिसाना मध्यप्रिेश खरगोन इस सप्ताि कपास की बुआई न करे। धार 8 3 4 खिंडवा मिाराष्ट्र नागपुर 3 3 8 5 स्टाम्प (पेंडालमथाईिीन) शाकनाशी (िबीसाइड) के पूिा उद्भ्ि के

    लिए हकया जा सकता िै। वधाा 4 2 3 3 12 5 चिंरपुर 4 2 4 5 15 2 यवतमाल 6 2 15 1 अमरावती 10 2 10 12 अकोला 14 7 बुलढाना 15 3 3 12 परभणी 6 11 6 3 नािंदेड़ 6 14 33 5 यहि लसचाई की व्यिस्था िो तो, इस सप्ताि कपास की बुआई

    कर सकते िैं । बीड़ 11 6 4 स्टाम्प (पेंडालमथाईिीन) शाकनाशी (िबीसाइड) के पूिा उद्भ्ि के

    लिए हकया जा सकता िै। वाससम 21 1 10 यहि लसचाई की व्यिस्था िो तो, इस सप्ताि कपास की बुआई

    कर सकते िैं । धुले 41 6 11 10 7 जलगािंव 34 6 11 10 7 जालना 4 4 3 औरिंगाबाद 14 3 6 8 4 स्टाम्प (पेंडालमथाईिीन) शाकनाशी (िबीसाइड) के पूिा उद्भ्ि के

    लिए हकया जा सकता िै। तेिंगाना आटदलाबाद 4 20 14 19 4 स्टाम्प (पेंडालमथाईिीन) शाकनाशी (िबीसाइड) के पूिा उद्भ्ि के

    लिए हकया जा सकता िै। वारिंगल 25 30 12 6 5 इस सप्ताि कपास की बुआई कर सकते िैं खम्मन 25 50 10 6 4 काररिंगर 15 20 10 12 3 स्टाम्प (पेंडालमथाईिीन) शाकनाशी (िबीसाइड) के पूिा उद्भ्ि के

    लिए हकया जा सकता िै। नालगोंडा 15 20 8 6 स्टाम्प (पेंडालमथाईिीन) शाकनाशी (िबीसाइड) के पूिा उद्भ्ि के

    लिए हकया जा सकता िै। आंध्रप्रिेश गुन्द् ूर 12 50 10 6 8 इस सप्ताि कपास की बआुई कर सकते िैं प्रकासम 10 15 12 5 12 स्टाम्प (पेंडालमथाईिीन) शाकनाशी (िबीसाइड) के पूिा उद्भ्ि के

    लिए हकया जा सकता िै। कनााटक धारवाड़ 2 2 7 5 3 स्टाम्प (पेंडालमथाईिीन) शाकनाशी (िबीसाइड) के पूिा उद्भ्ि के

    लिए हकया जा सकता िै। िवेरी 2 2 5 5 6 मैसूर 3 3 5 4 6 तलमिनाड़ू पेरिंबलुर 3 सलेम 5 2 4 3

  • त्रिची 2

    त्रवरडुनगर 1 4 4 आदर्ा वर्ाा वर्ाा सम.मी. 80

    उत्तर भारत: िसल अिंकुरण चरण (स् ेपसलिंग स् ेज) में िै | इस ऋतु वर्ा के सलए “सी आई सी आर और राज्य कृत्रर् त्रवश्वत्रवद्यालयों” द्वारा

    ससिाररर् की गई कपास की जल्दी पररपक्व िोन ेवाली बी ी सिंकर या अगती टकस्मे पणा कुिं चन रोग (लीि कला वायरस रोग) के सलए प्रसतरोधी थे इस वर्ा के सलए भी उन्द्िी टकस्मों की ससिाररस की जाती िै

    कपास की देसी टकस्मे पणा कुिं चन रोग के सलए प्रसतरोधी िैं अतः उत्तर भारत के सलए देसी उन्द्िीिं को टिस्मों की जोरदार ससिाररस की जाती िै।

    िसल के अवरे्र्ों और आकार में समान कपास के पौधों को नष्ट कर टदया जाना चाटिए।

    टकसान को खरपतवार एविं इतससत के प्रबिंधन करन ेकी सलाि दी जाती िै। सिप्स की ों का सिंक्रमन अिंकुर स्तर (सीडसलिंग स् ेज) पर िो सकता िै, लेटकन

    र्ायद िी व ेकभी आसथाक नकुसानदेय िोते िैं चसूक की (सिप्स) के सिंक्रामण की सनयसमत सनगरानी टकया जाना चाटिए।

    अनावर्क की नार्क स्पे्र करन ेसे बचें। मध्य और िजिर् भारत: गुजरात, मध्य प्रदेर्, मिाराष्ट्र और उड़ीसा के सलए 15 से 25 जून के

    बीच इस सीजन में बवुाई आदर्ा दक्षिण भारत में बवुाई 15 जुलाई से आगे निीिं बढ़ाया जाना चाटिए वर्ाा आधाररत )बोरानी (िेिों त्रवरे्र् रूप से में उच्च घनत्व रोपण प्रणासलयों में

    लकीरें पर बवुाई सबसे अच्छा माना गया िै। वर्ाा ससिंसचत िेिों में, बआुई 8 से 10 से. मी. वर्ाा के बाद टकया जाना चाटिए। बी ी कपास की सिंकर टिस्मों को या जल्दी पररपक्व वाली टिस्मों को

    प्राथसमकता देना चाटिए।

  • वर्ाा आधाररत िेिों में सिंकर बी ी कपास 90 x 10 से. मी. दरूी पर बोना चाटिए िै। इन टकस्मों को उच्च घनत्व रोपण प्रणाली में

    गैर -बी ी टकस्मों जसेै एके सरूज (सीईसीआर), एनएच 615 (वीएन-एमएय)ू परभणी, एकेएच 081 (डॉ. पीडीकेव्िी अकोला), िुले धन्द्वन्द्तरी (एमपीकेव्िी रािुरी) जल्दी पररपक्व िोते िैं। इसे जून 15 से पिले बोया जाता िै तो िसल बालीवमा एविं सखूा तनाव से बच जाएगा।

    कपास के गैर बी ी टकस्मों को उच्च घनत्व प्रणाली का उपयोग कर ब्राडयररजोत्रबयम जेपोसनकम से उपचररत करके सोयाबीन के बीज या लोत्रबया और काला चना के साथ 45 सेमी पिंत्रि से पिंत्रि दरूी तथा सेमी पौधे से दरूी।

    10पर एक के बाद एक पिंत्रि पर अिंतरिसल के रूप में भी लगाया जा सकता िै।

    कपास के बी ी टकस्मों को उच्च घनत्व प्रणाली का उपयोग कर ब्राडयररजोत्रबयम जेपोसनकम से उपचररत सोयाबीन के बीज या लोत्रबया और कालाचना की एक पिंत्रि और कपास दो पिंत्रि के साथ अिंतरिसल के रूप में भी लगाया जा सकता िै।

    कपास के खेतों की सीमा में या आसपास अरिर की 2-3 पिंत्रियााँ ररफ़्यकु्षजया के रूप में सेवा करते िैं।

    वीटडसाइड स् ोम्प 30 ईसी या बेसलीन 45 ईसी 2.5 i t / िेक् यर के उपयोग खरपतवार के पवूा उद्भव रोकने के सलए टकया गया िो तो तुरिंत िैरो करन ेसे यि सछढ़काव प्रभावी रिता िै।

    पिली बाररर् के बाद खेत खाद )िामा याडा मेन्द्योर ( या गोबर खाद 5 से 10 न प्रसत िेक् ेयर खेतो में डालना चाटिए।

    एजो ोबेक् र और पीएसबी दोनों का 25 ग्राम प्रसत टकलोग्राम बीज में इस्तेमाल पोर्कतत्वों के क्षस्थरीकरण के सलए टकया जाना चाटिए।

    इसमडाक्लोप्रीड (8 ग्रा.), त्रव ावेक्स या सथरम (3 ग्राम.) प्रसत टकलोग्राम बीज चसूक की एविं रोगों के क्षखलाि कपास की टकस्मों की रिा करेगा।

    भाकृअनपु-सीआईसीआर द्वारा लसफाररस की गयी प्रबंधन रर्नीलतयााँ: नाशीकीट प्रबंधन सामान्य लसफाररशें ये करें:

  • रसचसूक की ों के सलए प्रसतरोधी टिस्मों/सिंकरोंका चनुाव करें। रसचसूक की ों के सलए प्रसतरोधी बी ी सिंकरों पर की नार्कों के बिुत कम सछडकावों की अवश्यकता िोती िै।

    रसचसूक की ों के भिक की ों को बढ़ावा देन ेके सलए लोत्रबया या ज्वार या उड़द या सायाबीन की अिंतः िसल लें।

    इसमडेक्लोत्रप्रड @ 7 ग्राम प्रसत टकलोग्राम बीज से बीजोंपचार करें। त्रवरे्र्त: रसचसूक की ों के सलए सवेदन टिस्मों में नाइट्रोजन यकु्त्त उवारकों

    का न्द्यनूतम उपयोग। िसल को खरपतवारों से मिु रखें और समसलबग से ग्रस्त पौधों को धीरे- से

    उखाड़ कर नष्ट कर दें। बवुाई के 30-40 टदनों व 50-60 टदनों बाद िूलकी , समरीड बग और दसूरे रस

    चसूक की ों के पयाावरण टितैर्ी सनयिंिण के सलए इसमडेक्लोत्रप्रड, डाइमेठोए या एससिे का पौधों के तने पर या पौधों के तने पास समट् ी में अनपु्रयोग।

    ये ना करें: िसल के पिले दो मिीनों में समि की ों के सिंरिण के सलए रासायसनक

    की नार्कों के सछड़काव को यथा सिंभव ालें। नसैसगाक रूप से पाय ेजाने वाल ेलाभदायक की लेडी बडा बी ल, क्रायसोपलाा, जीकोररस बग, एटिसलनस उनके सर्र् ुव प्रौढ़, सरिीड मक्खी, समरीड बग, मकटढ़यों आटद का सिंरिण िोता िै। ये समि की चेंपा, जेससड, िूलकी , समरीड, सिेद मक्खी तथा समली बग का कारगर तरीके से सनयिंिण करते िैं।

    लेत्रपडोप् ेरा आडर के कम िासनकारक नासर्की ों जैसे पत्ती लपे क साइलेप् ा डेरोगे ा व अधाकुिं डलक एनोसमस फ्लेवा के सलए िसल पर सछड़काव न करें। इन की ों की इक्षल्लयािं कपास को बिुत कम नकुसान पिूिंचाती िै लेटकन ट्रायकोग्रामा प्रजासत, ससससरोपा िोरमोसा, एपें ेसलस प्रजासत जैसे परजीवयों के सलए परपोर्ी का कम करते िैं।

    भत्रवष्य में चयन दबाव से बचने के सलए बी ी कपास पर बी ी की नार्क का सछड़काव ना करें।

    एसस ामीत्रप्रड, इसमडेक्लोत्रप्रड, क्लोसथएसनटडन व थायोमेथोक्र्ाम जैसे सनओसनको ीनाइड समिू के की नार्कों का िसल पर सछड़काव करने स ेबचें।

  • डब्लएूचओ वगा-1 श्रणेी (असत िासनकारक श्रणेी) के की नार्कों जैसे िोसिेसमडान, समथाइल परैासथओन िोरे , मोनोक्रो ोिास, डाइक्लोरवास, काबोफ्यरूान, समथोसमल,टट्रजोिोस, तथा मे ाससस् ोक्स का अनपु्रयोग ना करें।

    सिेद मक्खी के मिाप्रकोप से बचन े के सलए टिप्रोसनल तथा पायरेिोइड जैसे की नार्कों के सछड़काव स ेबचें।

    रसचूसक की ों का प्रबिंधन: आलथका िालन सीमा (ईटीएि): यटद सिेद मक्खी तथा जेससड की िासन का स्तर आसथका िासन सीमा गे्रड अथाात सनचली पसतयों के मड़ुने और ससकुड़ने तथा टकनारों से पीले पड़ना आटद 25%या असधक पौधों मे टदखाई दे तो नीच ेटदये गए सनयिंिण उपाय अपनाए: अ) नीम तेल 1.0 % + नीबोलीसगरी 5.0% + 0.05-0.1 टड जें । आ) व ीसीसलयम लेकानी @ 10 ग्राम/ प्रसत ली र पानी; अच्छे सिूण त्रवश्वसनीय सनमााताओिं से िी खरीदें। इ) डाइिेक्षन्द्थयरूोन (50 W P 800 ग्राम /िे.) ई) फ्लोसनकोसमड 50 W G 200 a i / िे. या उ) बपु्रोिेजीन 25% S C 200 ग्राम a i / िे

    पयाावरण सरुिा, पाररक्षस्थसतकी प्रभावकाररता और प्रसतरोध से सिंबिंसधत कारकों को ध्यान में रखते िुए की नार्क जैसे डाइमेथोए या एससिे या इसथओन का भी इस्तेमाल ससिा त्रवकल्प के रूप में टकया जा सकता िै। यटद कसलयों (स्क्वेयर) को समरीड बग के प्रकोप का आसथाक नकुसान टदखाई दे तो एससिे 75 एसपी या डाएमेथोए @ एक ग्राम प्रसत ली र पसन की दर से सछड़काव करें। गूलर की सूिंटडयों का प्रबिंधन: गूलर की सूिंटडयों की सनयन्द्िण करन ेमेन बी ी कपास प्रभावी िै। गैर बीटी कपास के लिए लनम्न रर्नीलत की लसफाररस की जा रिी िै: अमेररकन सूाँडी (िेसलकोवपाा आसमाजेरा) द्वारा 50% पौधों पर कसलयााँ ग्रस्त िोन े पर इस आसथाक िासन स्तरपर सनम्न उपाय करें: 1) बी ी कपास के िसल पर एचएएनपीबी (H a N P B ) का सछड़काव करें, इसके एक

    सप्ताि बाद 5% सनबोली सगरी का सछड़काव करें या गूलर की सूिंटडयों स्पोडोप् ेरा

  • (तम्बाख ूकी इल्ली) या सफ़ेद मक्खी के सनयन्द्िण के सलए आसथाक िासन स्तर पर िोसलोन की नार्क का प्रयोग करें।

    2) बवुाई के 70-80 टदनों बाद बी ी रटित कपास पर उपलब्ध िोनने पर ट्रायकोग्रामा का प्रयोग करें।

    3) गूलर की सूिंटडयों, त्रवर्ेर् रूप से, िेसलकोवपाा आसमाजेरा सनयन्द्िण के सलए प्रभावी की नार्क सनम्न िै:

    क) क्लोरेनटे्रसनलीप्रोल (कोरजेन) ख) फ्लबुेनडाइमाइड (िेम) ग) स्पीनोसेड घ) इमामेक् ीन बेंजोए तथा ङ) इिंडोक्साकाबा

    ये की नार्क लक्षित नार्ीकी ों के सलए चयसनत असत त्रवर्लेै िै जबटक कपास पाररक्षस्थकीतिंि में लाभदायक की ों के सलए कम त्रवर्लेै िैं। य ेकी नार्क पयाावरण टितैर्ी की नार्क प्रसतरोसधता प्रबिंधन कायाक्रम के सलए उपयिु िै।

    4) गुलाबी सूाँडी और सचसतदार सूाँडी : इनके सलए आसथाक िासन सीमा िै – 10 िरे गुलरों में एक जीत्रवत सूाँडी समलने पर या लगातार तीन रातों में 8 पतिंग (टक ) प्रसत टे्रप प्रसत रात पकड़ में आन ेपर; क्षक्वनोलािास 25 इसी या का 2 समली प्रसत ली र पानी की दर से या थायोटडकाबा 75 डब्ल ूपी ( W P ) का या कोई पाइरेिोइड का िसल पर सछड़काव करें।

    5) स्पोडोप् ेरा सल ुरा: इस इल्ले के अाँड पुिंजों को िाथ से एकि करें या एसएनपीवी का 500 एल ई / िे. अथवा ररमोन 10 एल ई का 200 समली अथवा लात्रवान 75 डब्ल ू पी 250 ग्राम पाउडर 250 ली र पानी प्रसत एकड़ सछड़काव करें।

    6) प्ररोि घनु के नकुसान को कम करन ेके सलए प्रोफ़ेनोिास 50 ई सी का 2 समली प्रसत ली र पानी की दर एसआर िसल पर सछड़काव करें।

    7) असधक वर्ाा वाले िेिों में घोंघ े का प्रकोप: प्रलोभक मे ेल्डीिाइड 2% (स्नेल टकल) 12.5 टक. ग्रा. / िे. की दर से घोंघों के सछपने की जगि पर प्रयोग करें, मेढों िसल के चारों ओर उन जगिों पर डालें जिािं इनका नकुसान टदखायी दे।

  • रोग प्रबिंधन: नवीन मरुझान (परैात्रवल् ) मरुझान/ जड़ गलन: कुछ खेतों में सखूा के बाद वर्ाा िोने या ससचाई करने परइसके लिण िसल में टदखायी देते िैं। प्रभात्रवत पौधों पर मरुझान के लिण टदखायी देने के कुछ घिं ों में िी कोबाल् क्लोराइड 10 सम. ग्रा. प्रसत ली र पानी की दर (पीपीएम) से सछड़काव करे या प्रभात्रवत पौधों की जड़ों में कापर-आक्सी-क्लोराइड 25 ग्रा. तथा यरूरया 200 ग्राम या काबडेेक्षजम 1 ग्रा./ ली र की दर से 10 ली र पानी लेकर समट् ी को तर करें।

    गूलर सड़न: साधारणतः प्रारक्षम्भक त्रवकससत पौधे के सनचले टिस्से के गूलर बादलों के मौसम या लगातार ररमक्षझम बाररस िोते रिन ेकी क्षस्थसत में गूलर सड़ जाता िै। मकैोजेब 75 डब्लपूी + क्लोरो थेलोसनल 70 डब्लपूी प्रत्येक 2 ग्राम पाउडर प्रसत ली र पानी की दर से ले कर िसल पर सछड़काव करें। अच्छा पराभव लाने के सलए ससल्वे 99 के 10 ग्राम या 10 ग्राम ट्राइट्न 50 समली 100 ली र पानी की दर से समलाए।

    एल् रनेररया अिंगमारी : मेंकोजेब 25 ग्राम प्रसत ली र पानी की दर से िसल पर आवश्यकतानसुार सछड़काव के्रन।

    माइरोथेससयम पत्ती धब्बा रोग और जीवाण ु झलुसा: स् ेप् ोसाइक्लीन सल्िे (15-20 ग्रा. /िे.) + कापरआक्सीक्लोराइड (1500-2000 ग्रा./िे.) 200-250 ली र पानी की दर से िसल पर सछड़काव करें। खरपतवार प्रबिंधन: छो े खरप वारों पर खरपतवारनार्क असधक प्रभावी िोते िैं। खरपतिार उगने के बाि प्रयोग में आन े िािे खरपतिारनाशक (50 से 75 ग्रा. सहिय तत्ि प्रलत िै. की िर से) घांसें : क्वीजेलोपोि- इथाइल या िेनोक्साप्रोप-इथाइल या फ्लएूजीफ़ोप-ब्य ूाइल का सछड़काव। नरकर और घासें: प्रोपेक्षक्वजािोप-इथाइल का सछड़काव करें। चौड़ी पत्ती िािे खरपतिार: पाइरोसथयोबेक सोटडयम का सछड़काव करें। खरप वारों उगन ेपर खरपतवारनार्कों से उनका समयबद्ध एविं प्रभावी सनयिंिण िोता िै। खरपतवारनार्ी (िबीसाइड) नवजात खरपतवारों (10-15 टदनों आय ु से कम) पर असधक प्रभावी एविं कारगर िोते िैं। घााँसकुल के खरपतवारों के सनयिंिण के सलए क्लोजईलोिोप-इथाइल, िेनोक्सप्रोप सोटडयम, फ्लयुाजीिोप ब्य ूाइल,का

  • प्रयोग कर सकतें िैं। नरकर और घासों के सलए पायररथोबक ईथाइल िैं और चौड़ी पत्तीवाल ेखरपतवारों के सलए पायरीओसथबके सोटडयम कारगर िै। असधक जानकारी के टकए कृत्रर् त्रवश्वत्रवधालयों ए तकनीकी त्रवरे्र्ज्ञों से त्रवचार त्रवमर्ा कर सकते िैं। जलजमाव (वा र लासगिंग) प्रबिंधन: जिमग्नता प्रबंधन: कपास की िसल असधक पसन के सलए सिंवेदनर्ील िै असधक वर्ाा के कारण देर् के मध्य और दक्षिणी िेिों में जल मग्नता एक समस्या बन सकती िै। गिरी काली मदृाओिं और पसन की अच्छी सनकासी न िोन ेकी क्षस्थसत में कपास की िसल जेल जमाव से सबसे ज्यादा दषु्प्रभात्रवत िोती िै। असधक वर्ाा वाली पररक्षस्थसतयों में पसन की सनकासी के सलए त्रवर्ेर्तः काली समट् ी वाली खेत में ढलान के साथ साथ पयााप्त नासलयााँ बनाए। बेितर मदृा नमी सिंरिण के सलए त्रवरे्र्तः क्षजन िेिों में 700-900 सममी वर्ाा िोती िै उन िेिों मई मेढ़ बनान ेवाले यिंि या ररजर की सिायता से मेढ़ व नाली बनाए। इस तकनीक और मेढ़ों पर कपास की बवुाई करने से वर्ाा जल का सिंरिण िोगा और असतररि जल खेत से बािर सनकाल जाएगा। यि तकनीक भारी काली समट् ी में और असधक वर्ाा वाले िेि म ैउपयिु िै। खेत के टकनारों पर जल सनकासी के सलए नासलयािं बनाए। इससे असतररि पानी खेत से बािर सनकल सकेगा। नाली-मेढ़ पद्धसत (ररजेज़) में मेढ़ के ऊपर तरुिंत बवुाई करन ेकी ससिाररस की जाती िै। इस पद्धसत के उपयोग से भारी वर्ाा का िसल पर दषु्प्रभाव निीिं िोगा। जलमग्नता से यटद िसल पीली पड़ जाए तो उवारकों का अनपु्रयोग करें। यटद भारी वर्ाा की भत्रवष्यवाणी की गई िै तो उवारकों का अनपु्रयोग ाल दें क्षजससे सति पर से उवारक बि जाने वाले नकुसान स ेबचा जा सके।

    जलमग्नता के दषु्प्रभाव से िसल को जल्दी उबारने के सलए साप्ताटिक अिंतराल में िसल पर 0.5 से 1.0 % डीपीए अथवा 19:19:19: नाइट्रोजन का घलुनर्ील योग सछड़काव करें। सामान्य फसि स्िस््य प्रबंधन : 1) स्थलू व सकू्ष्मपोर्कतत्वों का प्रबिंधन बिेतर करें।

    मेग्नेसर्यम सल्िे 0.5 %, यरूरया 2 % का िसल पर सछड़काव करें। इसके बाद 2 % डीपीए का सछड़काव क्राय-1 एसी की उसचत असभव्यत्रि तथा

  • लालपत्ती रोग में कमी लाना ससुनसर्त करन े के सलए इनका िसल पर सछड़काव करें। मरुझान रोग की प्रारक्षम्भक अवस्था में तुरिंत 1 % कोबाल् क्लोराइड का सछड़काव तथा बात्रबस् ीन 1 % घोल से पौधों की जड़ के पास की जमीन को तर करने से िसत पसूता िो सकती िै।

    2) लालपत्ती की रोक थाम के सलए 2 % यरूरया, 0.5 % क्षजिंक सल्िे तथा 2% बोरान का 15 टदनों के अिंतराल में सछड़काव िसल के 90 टदनों के िोन ेपर करें।

    3) कली और िूलों के धारण के सलए: प्लानोटिक्स 4.5 एसएल (एनएए) िामोन @ 21 पीपीएम (7 एमएल प्रसत 15 ली र पानी की दर से िसल पर सछड़काव करें।

    साप्ताहिक सिािकार सयंोजक टीम:

    िजै्ञालनक पता डॉ. के.आर. क्रािंसत सनदेर्क, केकअनसुिं, नागपरु (मिाराष्ट्र) डॉ. ए. एच. प्रकार् प्रधान वजै्ञासनक,एविं प्रधान सीआईसीआर, िेिीय कें र, कोयिंब ूर (तसमलनाडु) डॉ. डी. मोंगा प्रधान सीआईसीआर, िेिीय कें र, ससरसा (िररयाणा) डॉ एस. बी. ससिंि प्रधान, िसल सधुार त्रवभाग, केकअनसुिं, नागपरु (मिाराष्ट्र) डॉ. सिंध्या क्रािंसत प्रधान, िसल सिंरिण त्रवभाग, केकअनसुिं, नागपरु (मिाराष्ट्र) डॉ. ब्लेज़ डीसजूा प्रधान, िसल उत्पादन त्रवभाग, केकअनसुिं, नागपरु (मिाराष्ट्र) डॉ. इसाबेला अग्रवाल वररष्ठ वजै्ञासनक, सीआईसीआर, िेिीय कें र, कोयिंब ूर (तसमलनाडु) श्री एम.सबसे वजै्ञासनक, सीआईसीआर, िेिीय कें र, कोयिंब ूर (तसमलनाडु) प्रभारी िजै्ञालनक, मौसम षिज्ञान षिभाग (एआइसीएसटीआइपी कें द्र)

    वजै्ञासनक मोबाइल निं. ईमेल डॉ. परमजीत लसंि

    पिंजाब कृत्रर् त्रवश्वत्रवद्यालय, (पिंजाब)

    9463628801

    rsmeenars@gmail.com

    डॉ. पंकज राठोर

    पिंजाब कृत्रर् त्रवश्वत्रवद्यालय, (पिंजाब)

    9464051995

    pankaj@pau.edu

    डॉ. जगिीश बेनीिाि

    सीसीएस-िररयाणा कृत्रर् त्रवश्वत्रवद्यालय, टिसार-124004 (िररयाणा)

    9416325420

    cotton@hau.ernet.in

    डॉ. एस. एि.आिूजा

    सीसीएस-िररयाणा कृत्रर् त्रवश्वत्रवद्यालय, ससरसा-124004 (िररयाणा)

    9255947380

    slahuja2002@yahoo.com

    डॉ. के. एन. भाहटया

    स्वामी केर्वानन्द्द राजस्थान, कृत्रर् त्रवश्वत्रवद्यालय, गिंगानगर (राजस्थान)

    9352700411

    bsmeena1969@rediffmail.com

    mailto:rsmeenars@gmail.commailto:pankaj@pau.edumailto:cotton@hau.ernet.inmailto:slahuja2002@yahoo.commailto:bsmeena1969@rediffmail.com

  • डॉ. िरफूि मीर्ा

    मिारणा प्रताप, कृत्रर् एविं तकनीकी त्रवश्वत्रवद्यालय, उदयपुर (राजस्थान) 9460246043

    hpagron@rediffmail.com

    डॉ. नरेंद्र कुमार

    सीएसए- कृत्रर् एविं तकनीकी त्रवश्वत्रवद्यालय, कानपुर (उ. प्र.) 9335699132

    jagdishk64@yahoo.com

    डॉ. गोफाल्डू

    नवासारी कृत्रर् त्रवश्वत्रवद्यालय, नवासारी-396450 (गुजरात) 9662532645

    girishfaldu@rediffmail.com

    डॉ. एम.डी. खानपारा

    जूनागढ़ कृत्रर् त्रवश्वत्रवद्यालय, जूनागढ़ -362001 (गुजरात) 9426990070

    cotton@jau.in

    डॉ. आर.डब्िू. भरूि

    मिात्मा िुले कृत्रर् त्रवद्यािपीठ, रीउरी-413722 (मिाराष्ट्र) 9850244087

    cotton_mpkv@rediffmail.com

    डॉ. आर.आर. पाहटि

    पिंजाब राव देर्मुख कृत्रर् त्रवद्यािपीठ, अकोला-440104 (मिाराष्ट्र) 9657725801

    srscottonpdkv1@yahoo.co.in

    डॉ.पी.आर.झााँिर

    मराठवाडा कृत्रर् त्रवश्वत्रवद्यालय, प्रभनी-431402 (मिाराष्ट्र) 7588151244

    crsned@indiatimes.com

    डॉ. सतीश परसाई

    आर.वी.एस. कृत्रर् त्रवश्वत्रवद्यालय, ग्वासलयर-472002 (म.प्र.) 9406677601

    aiccipkhandwa@gmail.com

    डॉ. बी.एस. नायक

    उड़ीसा-कृत्रर् एविं तकनीकी त्रवश्वत्रवद्यालय, भुवनेश्वर-751003 (उड़ीसा) 9437321675

    bsnayak2007@rediffmail.com

    डॉ. एस. भारती

    आचाया एन जी रिंगा कृत्रर् त्रवश्वत्रवद्यालय, एलएएम गुिं ूर (आिंध्रप्रदेर्) 949072341

    bharathi_says@yahoo.com

    डॉ. शमाा

    आचाया एन जी रिंगा कृत्रर् त्रवश्वत्रवद्यालय, नािंदयाल (आिंध्रप्रदेर्) 08514-242296

    sharmarars@gmail.com

    डॉ. अिाहिकट्टी

    धारवाड़ कृत्रर् त्रवश्वत्रवद्यालय, धारवाड़ (कनाा क) 9448861040

    yraladakatti@rediffmail.com

    डॉ. भीमना

    रायचूर कृत्रर् त्रवश्वत्रवद्यालय, रायचूर-584102 (कनाा क)

    9448633232

    bheemuent@rediffmail.com

    -- इसत --

    हिन्िी ससंकरर्:

    रजनीकान्त चतिुिेी, तकनीकी अलधकारी एि ंहिन्िी अलधकारी,

    केकअनसुिं, नागपरु (मिाराष्ट्र)

    mailto:hpagron@rediffmail.commailto:jagdishk64@yahoo.commailto:girishfaldu@rediffmail.commailto:cotton@jau.inmailto:cotton_mpkv@rediffmail.commailto:srscottonpdkv1@yahoo.co.inmailto:crsned@indiatimes.commailto:aiccipkhandwa@gmail.commailto:bsnayak2007@rediffmail.commailto:bharathi_says@yahoo.commailto:sharmarars@gmail.commailto:yraladakatti@rediffmail.commailto:bheemuent@rediffmail.com

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