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  • साधवेड संहहटा

    Saamved s

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    धन्त्रों णक घो ( ) आदड सखं्ना झली हुई है , ने अंङ्क क्रधश् सखं्नाएँ उडात्त, स्वरकट औक अनुडात्त के चङह्न हंै।

    ऋग्वेड आदड अन्न वेडों धें अनुडात्त का चङह्न नीङे (-) केखा स ेउसके चलए साधवेड धें अंक ( ), ऋग्वेड आदड अन्न वेडों धें स्वरकट का चङह्न (।) केखा स ेसाधवेड धें अंक ( ) ऋग्वेड आदड अन्न वेडों धें उडात्त णक कोई चङह्न नही होटा वह साधवेड धें ( ) दडखाना घाटा है।

    क,श,ष,स,ह, से णहले नदड अनुस्वाक आ घाए टो वह अनुस्वाक ङन्र हथन्डु हिनका रूण धें णकवहटिट हो घाटा है । ओ३ध् अग्न॒ आ नाॉहह वी॒टनेॉ गृखा॒नो ह॒व्नडाॉटने । नन होटाॉ सत्सस थ॒हहिहषॉ॥ ऋग्वेड

    ६.०१६.१० ओ३ध् अ ग्न आ नाहह वीटने गृखानो हव्नडाटने। नन होटा सत्सस

    थहहिहष॥१साधवेड hmare yha< ved mNÇae< ke pQn paQn ke prMpragt pÏityae< pr Axairt nana àkar haete hE< jEse jqa paQ, "n paQ, mala paQ, ivsRg paQ, %daÄ AnudaÄ Aaid, उडात्त् उच्च,ै अनुडात्त् नीङै , स्वरकट: सधाहाक् उडात्त की णरकदाषा्- घहाँ उणनुक्त हो वहाँ गहट टठा ऐसी शक्तक्त एवं वेग जघसकी सधटा संदव न हो। उडात्त की अनुदूहट के अंटस्टत्व धन की ऊघाि , उल्लास, सणंूखि ङेटना के अक्तददूट हो घाने की अनुदूहट , आडक टठा

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    हवस्धनक्तधचिट सभं्रध थटाए गए हंै। अनुडात्त की णरकदाषा्- टछस्ठ साधान्न न टो उच्च औक न ही कध स्वक स्वरकट की णरकदाषा्- टछस्ठ साधान्न न टो उच्च औक न ही कध स्वक। साधवेड सहहंटा को चलहणथद्ध ककने के चलए णुकाटन ससं्कृट के उणलब्ढ अऺकों का उणनोग हकना गना है। घैस:े- अ, ऋ, च, ख, ठ, ल, ऺ, श । साधवेड कौठुध शाखा धें डो धुख्न हवदाग हंै णूवािचङिक: व उत्तकाचङिक:। णूवािचङिक: आग्नेन काण्झध् १ स े११४ , ऐन्र काण्झध् ११५ स े४६६ , णावधान काण्झध् ४६७ स े४८५ , आकण्न काण्झध् ४८६ स े६४० , धहानाम्न्न आचङिक् ६४१ स े६४९, णञ्च णुकीषणडानन ६५०, उत्तकाचङिक: ६५१ स े१८७५ टक। वेड धन्त्रो ंका णाज हवशुद्ध रुण से उच्चाकख कैसे हकना घान,े इसके चलए शृङ्गी ऋहष वेड हवऺान प्रहटष्ठान की अन्तकघाल णक उणलब्ढ वेड धन्त्रों का णजन-णाजन नाधक ई-णुस्टक अवश्न अध्य्नन ककंे।

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    साधवेड सहंहटा णूवािचङिक:

    ओ३ध् अ ग्न आ नाहह वीटने गृखानो हव्नडाटन।े नन होटा सत्सस थहहिहष॥१

    ओ३ध् त्वधग्न ेनऻाना होटा हवश्वेषा हहट्। डेवेक्तदधािनुषे घने॥२ ओ३ध् अ चग्नं डूटं वृखीधहे होटाकं हवश्ववेडसध्। अस्न नऻस्न

    सुक्रटुध्॥३ ओ३ध् अचग्नवृििाणख घङ्घनद्द्रहवखस्नुहविणन्नना। सक्तधद्ध् शुक्र आहुट्॥४ ओ३ध् प्रेष्ठं वो अहटचठ स्टुषे क्तधिक्तधव हप्रनध्। अग्ने कठं न वेद्यध्॥५ ओ३ध् त्वं नो अग्ने धहोक्तद् णाहह हवश्वस्ना अकाटे्। उट हिषो

    धसनिस्न॥६ ओ३ध् एह्यू षु ब्रवाणख टेऽग्न इत्ठेटका नगक। एक्तदविढािस इन्डुक्तद्॥७ ओ३ध् आ टे वससो धनो नधसणकधाचच्चससढस्ठाट्। अग्ने त्वां काधने

    नगका॥८ ओ३ध् त्वाधग्ने णुष्ककाडध्नठवाि ननकधन्ठट। धूर्ध्ोि हवश्वस्न वागट॥९ ओ३ध् अग्ने हववस्वडा दकास्धभ्नधूटने धहे। डेवो ह्यसस नो दृशे॥१०

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    ओ३ध् नधस्टे अग्न ओघस ेगृखजन्त डेव कृष्टन। अधैकक्तधिधडिन॥११ ओ३ध् डूटं वो हवश्ववेडस हव्नवाहधधसनिध्। नजघष्ठधृञ्जसे नगका॥१२ ओ३ध् उ ण त्वा घाधनो नगको डेदडशटीहिहवष्कृट। वानोकनीके

    अत्स्ठकन्॥१३ ओ३ध् उ ण त्वाग्ने दडवेदडवे डोषावस्टनढिना वनध्। नधो दकन्त

    एधसस॥१४ ओ३ध् घ काथोढ टहिहवदि हवशेहवशे नक्तऻनान। स्टोध रुरान

    दृशीकध्॥१५ ओ३ध् प्र हट सनं ङारुधध्यवकं गोणीठान प्र हूनसे। धरुणिकग्न आ

    गहह॥१६ ओ३ध् अ श्वं न त्वा वाकवन्त ं वन्डध्ना अचग्नं नधोक्तद्।

    सम्राघन्तधध्यवकाखाध्॥१७ ओ३ध् औविदृगुवच्ङुचङधष्डवानवडा हुवे। अचग्न सधुरवाससध्॥१८ ओ३ध् अ चग्नक्तधन्ढानो धनसा नढन सङेट धसनि। अचग्नक्तधन्ढे

    हववस्वक्तद्॥१९ ओ३ध् आ दडसप्रत्नस्न केटसो ज्नोट णश्नजन्त वासकध्। णको नदडध्नटे

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    दडहव॥२० ओ३ध् अचग्नं वो वृढन्तधध्यवकाखां णुरूटधध्। अच्ङा नप्त्रे सहस्वटे॥२१ ओ३ध् अचग्नत्स्टग्धेन शोचङषा न सहिश्वं न्ना३हिखध्। अचग्ननोि वसटे

    कननध्॥२२ ओ३ध् अग्ने धृझ धहा अस्नन आ डेवनुं घनध्। इनेठ

    थहहिकासडध्॥२३ ओ३ध् अग्ने कऺा खो अहस प्रहट स्ध डेव कीषट। टहणष्ठैकघको

    डह॥२४ ओ३ध् अग्ने नुङ्क्ष्वा हह न ेटवाश्वासो डेव साढव। अकं वहन्त्नाशव॥२५ ओ३ध् नन त्वा नक्ष्न हवश्णटे दु्यधन्तं ढीधहे वनध्। सुवीकधग्न आहुट॥२६ ओ३ध् अचग्नधूिढाि दडव ककुसणहट णृचठव्ना अनध्। अणा केटासस

    जघन्वहट॥२७ ओ३ध् इधधू षु त्वधस्धाक सननं गानिं नव्नासध्। अग्ने डेवेषु प्र

    वोङ्॥२८ ओ३ध् टं त्वा गोणवनो नगका घननष्ठडग्ने अङ्गक्। स णावक िुढी

    हवध्॥२९

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    ओ३ध् णरक वाघणहट् कहवकचग्नहिव्नान्नक्रधीट्। डढरत्नानन डाशुषे॥३० ओ३ध् उडु सनं घाटवेडस ंडेवं वहजन्त केटव। दृशे हवश्वान सूनिध्॥३१ ओ३ध् कहवधचग्नधुण स्टुहह ससनढधािखधध्यवके। डेवधधीवङाटनध्॥३२ ओ३ध् शं नो डेवीकक्तदष्टने शं नो दवन्तु णीटने। शं नोकक्तद स्रवन्तु

    न्॥३३ ओ३ध् कस्न नूनं णकीखसस नढनो जघन्वसस ससणटे। गोषाटा नस्न टे

    नगक॥३४ ओ३ध् नऻानऻा वो अग्नने नगकानगका ङ डऺसे। प्र प्र वनधधृटं

    घाटवेडस ंहप्रनं क्तधिं न शससषध्॥३५ ओ३ध् णाहह नो अग्न एकना णाह्यू३ट हिटीनना। णाहह

    गीक्तदित्स्टसृक्तदरूघां णटे णाहह ङटसृक्तदविसो॥३६ ओ३ध् थृहणिकग्न े अचङिक्तद शुके्रख डेव शोचङषा। दकिाघ े सक्तधढानो

    नहवष्ठ्य केवसणावक डीदडहह॥३७ ओ३ध् त्वे अग्न ेस्वाहुट हप्रनास सन्तु सूकन। नन्ताको ने धगवानो

    घनानाधूवं डनन्त गोनाध्॥३८ ओ३ध् अग्ने घरकटहविश्णहटस्टणानो डेव कऺस। अप्रोहषवान्गृहणटे धहा

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    असस दडवस्णानुडुिकोखनु॥३९ ओ३ध् अग्ने हववस्वडुषसक्तिि काढो अधसनि। आ डाशुषे घाटवेडो वहा

    त्वधद्या डेवा उषथुिढ॥४० ओ३ध् त्वं नक्तिि ऊसना वसो काढासस ङोडन। अस्न कानस्त्वधग्न े

    कठीकसस हवडा गाढं टुङे टु न॥४१ ओ३ध् त्वक्तधससप्रठा अस्नग्ने िाटरृट कहव। त्वां हवप्रास् सक्तधढान

    डीदडव आ हववासजन्त वेढस॥४२ ओ३ध् आ नो अग्ने वनोवृढ कननं णावक शस्नध्। कास्वा ङ न

    उणधाटे णुरुस्णृह सुनीटी सुनशस्टकध्॥४३ ओ३ध् नो हवश्वा डनटे वसु होटा धन्रो घनानाध्। धढोनि णािा

    प्रठधान्नस्धै प्र स्टोधा नन्त्वग्नने॥४४ ओ३ध् एना वो अचग्नं नधसोघोि नणाटधा हुवे। हप्रनं ङेहटष्ठधकहट

    स्वध्यवकं हवश्वस्न डूटधधृटध्॥४५ ओ३ध् शेषे वनेषु धाटृषु सं त्वा धटािस इन्ढटे। अटन्रो हव्नं वहसस

    हहवष्कृट आदडद्देवेषु काघसस॥४६ ओ३ध् अडक्तशि गाटुहवत्तधो नत्स्धन्रटान्नाडढु। उ णो षु घाटधानिस्न

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    वढिनधचग्नं नऺन्त ुनो नगक॥४७ ओ३ध् अचग्नरुक्ठे णुकोहहटो ग्रावाखो थहहिकध्यवके। ऋङा नाक्तध धरुटो

    ब्रह्मखस्णटे डेवा अवो वकेण्नध्॥४८ ओ३ध् अचग्नधीनझष्वावसे गाठाक्तद् शीकशोचङषध्। अ चग्न काने णुरुधीञ

    िुटं नकोऽचग्न सुडीटने ङदडि॥४९ ओ३ध् िुनढ िुसकखि वहह्नक्तदडेिवैकग्न ेसनावक्तद्। आ सीडटु थहहिहष क्तधिो

    अनिधा प्राटनािवक्तदकध्यवके॥५० ओ३ध् प्र डैवोडासो अचग्नडेिव इन्रो न धज्धना। अनु धाटकं णृचठवीं हव

    वावृटे टस्ठौ नाकस्न शधिणख॥५१ ओ३ध् अढ ज्धो अढ वा दडवो थृहटो कोङनाडनढ। अना वढिस्व टन्वा

    नगका धधा घाटा सुक्रटो णृख॥५२ ओ३ध् कानधानो वना त्व ं नन्धाटॄकघगन्नण। न टत्ते अग्ने प्रधृषे

    ननवटिनं नद्दूके सनन्नहादुव॥५३ ओ३ध् नन त्वाधग्ने धनुडिढे ज्नोहटघिनान शश्वटे। डीडेठ कण्व ऋटघाट

    उसऺटो न ंनधस्नजन्त कृष्टन॥५४ ओ३ध् डेवो वो रहवखोडा णूखां हववष्ट्वाससङध्। उ िा ससञ्चध्यवधुण वा

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    णृखध्यवधादडिो डेव ओहटे॥५५ ओ३ध् प्रैटु ब्रह्मखस्णहट प्र डेव्नेट ुसूनृटा। अच्ङा वीकं नन ंणचिकाढसं

    डेवा नऻं ननन्त ुन्॥५६ ओ३ध् ऊध्यवि ऊ षु ख ऊटने हटष्ठा डेवो न सहवटा। ऊध्यवोि वाघस्न

    सननटा नडचञ्जक्तदवािगणिहविह्वनाधहे॥५७ ओ३ध् प्र नो काने नननीषहट धटोि नस्टे वसो डाशट्। स वीकं ढत्ते

    अग्न उक्ठशससनं त्धना सहस्रणोहषखध्॥५८ ओ३ध् प्र वो नहं्व णुरूखां हवशां डेवनटीनाध्। अ चग्न

    सूके्तक्तदविङोक्तदवृिखीधहे नसक्तधडन्न इन्ढटे॥५९ ओ३ध् अनधचग्न सुवीनिस्नेशे हह सौदगस्न। का न ईशे स्वणसनस्न

    गोधट ईशे वृिहठानाध्॥६० ओ३ध् त्वधग्न े गृहणहटस्त्व होटा नो अध्यवके। त्वं णोटा हवश्ववाक प्रङेटा

    नसऺ नासस ङ वानिध्॥६१ ओ३ध् सखानस्त्वा ववृधहे डेवं धटािस ऊटने। अ णां नणाट सुदग

    सुडसस सुप्रटूहटिधनेहसध्॥६२ ओ३ध् आ घुहोटा हहवषा धघिनध्यव ं नन होटाकं गृहणहटं डनढध्यवध्।

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    इझस्णडे नधसा काटहव्न सणनिटा नघटं णस्सनानाध्॥६३ ओ३ध् चङि इत्च्ङशोस्टरुखस्न वऺठो न नो धाटकावन्वेहट ढाटवे।

    अनूढा नडघीघनडढा चङडा ववऺससद्यो धहह डूसनां३ङकन्॥६४ ओ३ध् इडं ट एकं णक उ ट एकं टृटीनेन ज्नोहटषा सं हवशस्व।

    संवेशनस्टन्वे३ङारुकेनढ हप्रनो डेवानां णकधे घननिे॥६५ ओ३ध् इध स्टोधधहिटे घाटवेडस ेकठक्तधव सं धहेधा धनीषना। दरा

    हह न प्रधहटकस्न ससद्यग्ने सख्ने धा रकषाधा वनं टव॥६६ ओ३ध् धूढािनं दडवो अकहटं णृचठव्ना वैश्वानकधृट आ घाटधचग्नध्।

    कहव सम्राघधहटचठं घनानाधासन्ना णािं घननन्त डेवा॥६७ ओ३ध् हव त्वडाणो न णविटस्न णृष्ठाडुक्ठेक्तदकग्ने घननन्त डेवा। टं त्वा

    नगक सुष्टुटनो वाघनन्त्नाजघं न नगविवाहो जघग्नुकश्वा॥६८ ओ३ध् आ वो काघानधध्यवकस्न रुर होटाक ससननघ कोडस्नो्।

    अचग्नं णुका टनननत्नोकचङत्ताक्तद्धकण्नरूणधवस ेकृखुध्यवध्॥६९ ओ३ध् इन्ढे काघा सधनोि नधोक्तदनिस्न प्रटीकधाहुटं गृटेन। न को

    हव्नेक्तदकीझटे सथाढ आचग्नकग्रधुषसाधशोचङ॥७० ओ३ध् प्र केटुना थृहटा नासनचग्नका कोडसी वृषदो कोकवीहट।

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    दडवक्तिडन्ताडुणधाधुडानझणाधुणस्ठे धहहषो ववढि॥७१ ओ३ध् अचग्नं नको डीनढहटक्तदककण्नोहिस्टच्नुटं घननट प्रशस्टध्। डूके दृशं

    गृहणहटधठव्नुध्॥७२ ओ३ध् अथोध्नचग्न सक्तधढा घनानां प्रहट ढेनुक्तधवानटीधुषासध्। न ह्वा

    इव प्र वनाधुक्तिहाना प्र दानव सस्रटे नाकधच्ङ॥७३ ओ३ध् प्र दूघिनन्तं धहां हवणोढां धूकैकधूकं णुकां डधािखध्। न नन्तं

    गीक्तदिविना नढनं ढा हरकश्धिुं न वाधिखा ढनचङिध्॥७४ ओ३ध् शुकं्र टे अन्नद्यघटं टे अन्नहिषुरूणे अहनी द्यौरकवासस। हव श्वा

    हह धाना अवसस स्वढावन्दरा टे णूषनन्नह काहटकस्टु॥७५ ओ३ध् इझाधग्न ेणुरुडस सननं गो् शश्वत्तध हवधानान साढ। स्नान्न

    सूनुस्टननो हवघावाग्ने सा टे सुधहटदूित्वस्धे॥७६ ओ३ध् प्र होटा घाटो धहान्नदोहवनृ्नषद्मा सीडडणां हववटेि। डढद्यो ढानी

    सुटे वनासस नन्ता वसूनन हवढटे टनूणा॥७७ ओ३ध् प्र सम्राघधसुकस्न प्रशस्टं णु स कृष्टीनाधनुधाद्यस्न। इन्रस्नवे

    प्र टवसस्कृटानन वन्डिाका वन्डधाना हववष्टु॥७८ ओ३ध् अकण्नोननिहहटो घाटवेडा गदि इवेससुदृटो गक्तदिखीक्तद्। दड वेदडव

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    ईड्यो घागृवणिहिहवष्धणिधिनुष्नेक्तदकचग्न॥७९ ओ३ध् सनाडग्न ेधृखसस नाटुढानान्न त्वा कऺासस णृटनास ुजघग्नु्। अनु

    डह सहधूकान्कनाडो धा टे हेसना धुऺट डैव्नाना्॥८० ओ३ध् अग्न ओजघष्ठधा दक दु्यम्नधस्धभ्नधनिगो। प्र नो काने णनीनसे

    कत्सस वाघान णन्ठाध्॥८१ ओ३ध् नदड वीको अनु ष्नाडचग्नक्तधन्ढीट धसनि। आ घुह्वद्धव्नधानुषक्शधि

    दऺीट डैव्नध्॥८२ ओ३ध् त्वेषस्टे ढूध ऋण्वहट दडहव स ंच्ङुक्र आटट्। सू को न हह दु्यटा

    त्व ंकृणा णावक कोङसे॥८३ ओ३ध् त्वहह ऺैटवद्यशोऽग्ने क्तधिो न णसनसे। त्वं हवङषिखे िवो वसो

    णुहष्टं न णुष्नसस॥८४ ओ३ध् प्राटकचग्न णुरुहप्रनो हवष स्टवेटाहटचठ्। हवश्वे नत्स्धन्नधसनेि हव्नं

    धटािस इन्ढटे॥८५ ओ३ध् निाहहष्ठं टडग्नने थृहडङि हवदावसो। धहहषीव त्वरननस्त्विाघा

    उडीकटे॥८६ ओ३ध् हवशोहवशो वो अहटचठं वाघनन्त णुरुहप्रनध्। अचग्नं वो डुनं वङ

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    स्टुषे शूषस्न धन्धक्तद्॥८७ ओ३ध् थृहिनो हह दानवेऽङाि डेवानाग्नने। नं क्तधिं न प्रशस्टने धटािसो

    डनढके णुक॥८८ ओ३ध् अगन्ध वृिहन्तधं ज्नेष्ठधचग्नधानवध्। न स्ध िुटविन्नाऺेि

    थृहडनीक इध्नटे॥८९ ओ३ध् घाट णकेख ढधिखा नससवृणि सहादुव्। हणटा नसकश्नणस्नाचग्न

    िद्धा धाटा धनु कहव॥९० ओ३ध् सोध काघानं वरुखधचग्नधन्वाकदाधहे। आदडसनं हवष्खु सूनं

    ब्रह्मानं ङ थृहस्णहटध्॥९१ ओ३ध् इट एट उडारुहत्न्डव णृष्ठान्ना रुहन्। प्र दूघिनो नठा

    णठोद्याधदङ्गकसो ननु्॥९२ ओ३ध् काने अग्न ेधहे त्वा डानान सक्तधढीधहह। ई नझष्वा हह धहे वृषं

    द्यावा होिान णृचठवी॥९३ ओ३ध् डढन्वे वा नडीधनु वोङद्ब्रह्मेहट वेरु टट्। ण रक हवश्वानन काव्ना

    नेक्तधिक्रक्तधवादुवट्॥९४ ओ३ध् प्रसनग्ने हकसा हक शृखाहह हवश्वटस्णरक। नाटुढानस्न कऺसो

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    थलं न्नुब्जवीनिध्॥९५ ओ३ध् त्वधग्ने वसूरकह रुरा आदडसना उट। नघा स्वध्यवकं घनं

    धनुघाटं गृटप्रुषध्॥९६ ओ३ध् णुरु त्वा डाक्तशवा वोङेऽरककग्ने टव त्स्वडा। टो डस्नेव शकख आ

    धहस्न॥९७ ओ३ध् प्र होिे णूव्नं वङोऽग्नने दकटा थृहट्। हव णां ज्नोटीहष हथभ्रटे

    न वेढसे॥९८ ओ३ध् अग्ने वाघस्न गोधट ईशान् सहसो नहो। अस्धे डेहह घाटवेडो

    धहह िव॥९९ ओ३ध् अ ग्ने नजघष्ठो अध्यवके डेवां डेवनटे नघ। हो टा धन्रो हव

    काघस्नहट सस्रढ॥१०० ओ३ध् घ ऻान सप्त धाटृक्तदधेिढाधाशासट चिने। अ नं िुवो कनीखां

    चङकेटडा॥१०१ ओ३ध् उ ट स्ना नो दडवा धहटकदडहटरूसनागधट्। सा शन्ताटा

    धनस्ककडण सस्रढ॥१०२ ओ३ध् ई नझष्वा हह प्रटीव्नाँ३ नघस्व घाटवेडसध्।

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    ङरकष्खुढूधधगृदीटशोचङषध्॥१०३ ओ३ध् न टस्न धानना ङ न रकणुकीशीट धसनि। नो अग्नने डडाश

    हव्नडाटन॥े१०४ ओ३ध् अ ण सनं वृजघन रकणु स्टेनधग्न ेडुकाध्नध्। ड हवष्ठधस्न ससणटे

    कृढी सुगध्॥१०५ ओ३ध् िु ष्ट्यग्ने नवस्न धे स्टोधस्न वीक हवश्णटे। नन धानननस्टणसा

    कऺसो डह॥१०६ ओ३ध् प्र धहहष्ठान गानट ऋटाव्ने थृहटे शुक्रशोचङषे। उ णस्टुटासो

    अग्नने॥१०७ ओ३ध् प्र सो अग्ने टवोहटक्तद सुवीकाक्तदस्टकहट वाघकधिक्तद्। नस्न त्व

    सख्नधाहवठ॥१०८ ओ३ध् टं गूढिना स्वखिकं डेवासो डेवधकहटं डढत्न्वके। डे विा

    हव्नधूहहषे॥१०९ ओ३ध् धा नो हृखीठा अहटचठं वसुकचग्न णुरुप्रशस्ट एष। न सुहोटा

    स्वध्यवक॥११० ओ३ध् दरो नो अचग्नकाहुटो दरा काहट सुदग दरो अध्यवक। द रा

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    उट प्रशस्टन्॥१११ ओ३ध् नजघष्ठं त्वा ववृधहे डेवं डेविा होटाकधधसनिध्। अ स्न नऻस्न

    सुक्रटुध्॥११२ ओ३ध् टडग्न े दु्यम्नधा दक नससासाहा सडने कं चङडहिखध्। ध न्नुं

    घनस्न डूढ्यध्॥११३ ओ३ध् निा उ हवश्णहट क्तशट सुप्रीटो धनुषो हवशे। हव श्वेडचग्न प्रहट

    कऺासस सेढहट॥११४ ओ३ध् टिो गान सुटे सङा णुरुहूटान सत्वन।े शं नद्गवे न

    शाहकने॥११५ ओ३ध् नस्टे नून शटक्रटहवन्र दु्यक्तम्नटधो धड। टे न नूनं धडे

    धडे् ॥११६ ओ३ध् गाव उण वडावछे धहह नऻस्न कप्सुडा। उ दा कखाि

    हहकण्नना॥११७ ओ३ध् अकधश्वान गानट िुटकऺाकं गवे। अकक्तधन्रस्न ढाम्ने॥११८ ओ३ध् टक्तधन्रं वाघनाधसस धहे वृिान हन्तवे। स वृषा वृषदो

    दुवट्॥११९

  • साधवेड संहहटा

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    ओ३ध् त्वक्तधन्र थलाडनढ सहसो घाट ओघस्। त्व सन्वृषन्वृषेडसस॥१२०

    ओ३ध् नऻ इन्रधवढिनद्यिूक्तधं व्नवटिनट्। ङक्राख ओणशं दडहव॥१२१ ओ३ध् नदडन्राहं टठा त्वधीशीन वस्व एक इट्। स्टो टा धे गोसखा

    स्नाट्॥१२२ ओ३ध् णन्नंणन्नक्तधससोटाक आ ढावट धद्यान। सो धं वीकान

    शूकान॥१२३ ओ३ध् इडं वसो सुटधन्ढ हणथा सुणूखिधुडकध्। अ नादननन्ररकधा

    टे॥१२४ ओ३ध् उद्धेडक्तद िुटाधग ंवृषदं ननािणसध्। अस्टाकधेहष सूनि॥१२५ ओ३ध् नडद्य कच्च वृिहन्नुडगा अक्तद सूनि। सवं टदडन्र टे वशे॥१२६ ओ३ध् न आननसणकावट सुनीटी टुविशं नडुध्। इ न्र स नो नुवा

    सखा॥१२७ ओ३ध् धा न इन्राभ्ना३दडश सूको अकु्तष्वा नधट। त्वा नुघा वनधे

    टट्॥१२८ ओ३ध् एन्र सानसस कनन सजघत्वान सडासहध्। व हषिष्ठधूटने

  • साधवेड संहहटा

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    दक॥१२९ ओ३ध् इन्रं वनं धहाढन इन्रधदेि हवाधहे। नु घं वृिेषु

    वज्रिखध्॥१३० ओ३ध् अहणथसकरुव सुटक्तधन्र सहस्रथाहे्व। टिाडदडष्ट णौस्नध्॥१३१ ओ३ध् वनक्तधन्र त्वानवोऽक्तद प्र नोनुधो वृषन्। हव द्धी त्वा३स्न नो

    वसो॥१३२ ओ३ध् आ गा ने अचग्नक्तधन्ढटे स्टृखजन्त थहहिकानुषक्। ने षाक्तधन्रो नुवा

    सखा॥१३३ ओ३ध् क्तदत्न्ढ हवश्वा अण हिष णरक थाढो घही धृढ। वसु स्णाहं टडा

    दक॥१३४ ओ३ध् इहेव शृण्व एषां कशा हस्टेषु निडान्। नन नाधं

    चङिधृञ्जटे॥१३५ ओ३ध् इध उ त्वा हव ङऺटे सखान इन्र सोक्तधन। णु ष्टावन्तो नठा

    णशुध्॥१३६ ओ३ध् सधस्न धन्नवे हवशो हवश्वा नधन्त कृष्टन। स धुरानेव

    ससन्ढव्॥१३७

  • साधवेड संहहटा

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    ओ३ध् डेवानाक्तधडवो धहत्तडा वृखीधहे वनध्। वृष्खाधस्धभ्नधूटने॥१३८ ओ३ध् सोधाना स्वकख ं कृखुहह ब्रह्मखस्णटे। क ऺीवन्तं न

    औक्तशघ॥१३९ ओ३ध् थोढन्धना इडस्टु नो वृिहा दूनािसुहट्। शृ खोटु शक्र

    आक्तशषध्॥१४० ओ३ध् अद्य नो डेव सहवट् प्रघावससावी सौदगध्। ण का डुष्वप्न्न

    सुव॥१४१ ओ३ध् क्वा३स्न वृषदो नुवा टुहवग्रीवो अनानट्। ब्र ह्मा कस्ट

    सणनिहट॥१४२ ओ३ध् उणह्वके नगकीखा सङ्गधे ङ नडीनाध्। नढ ना हवप्रो

    अघानट॥१४३ ओ३ध् प्र सम्राघं ङषिखीनाक्तधन्र स्टोटा नव्नं गीक्तदि। न कं नृषाहं

    धहहष्ठध्॥१४४ ओ३ध् अणाडु क्तशप्रनन्ढस् सुडऺस्न प्रहोहषख। इ न्रोरकन्रो

    नवाक्तशक्॥१४५ ओ३ध् इधा उ त्वा णुरुवसोऽक्तद प्र नोनवुनगिक। गा वो वससं न

  • साधवेड संहहटा

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    ढेनव॥१४६ ओ३ध् अिाह गोकधन्वट नाध त्वष्टुकणीच्नध्। इ त्ठा ङन्रधसो

    गृहे॥१४७ ओ३ध् नदडन्रो अननहरटो धहीकणो वृषन्तध्। टि णूषादुवससङा॥१४८ ओ३ध् गौढिनहट धरुटा िवस्नुधािटा धगोनाध्। नु क्ता वह्नी

    कठानाध्॥१४९ ओ३ध् उण नो हरकक्तद् सुटं नाहह धडानां णटे। उ ण नो हरकक्तद्

    सुटध्॥१५० ओ३ध् इष्टा होिा असृऺटेन्रं वृढन्तो अध्यवके। अच्ङावदृठधोघसा॥१५१ ओ३ध् अहक्तधक्तद्ध हणटुष्णरक धेढाधृटस्न घग्रह। अ ह सूनि

    इवाघनन॥१५२ ओ३ध् केवटीनि् सढधाड इन्रे सन्तु टुहववाघा्। ऺु धन्तो

    नाक्तदधिडेध॥१५३ ओ३ध् सोध णूषा ङ ङेटटुहविश्वासा सुसऺटीनाध्। डे विा

    कथ्नोहहिटा॥१५४ ओ३ध् णान्तधा वो अन्ढस इन्रधक्तद प्र गानट। हव श्वासाह शटक्रटुं

  • साधवेड संहहटा

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    धहहष्ठं ङषिखीनाध्॥१५५ ओ३ध् प्र व इन्रान धाडन हनिश्वान गानट। सखान् सोधणाव्ने॥१५६ ओ३ध् वनधु त्वा टदडडठाि इन्र त्वानन्त सखान्। क ण्वा

    उक्ठेक्तदघिकन्ते॥१५७ ओ३ध् इन्रान धिन े सुटं णरक ष्टोदन्त ु नो नगक। अ कि धङिन्तु

    काकव॥१५८ ओ३ध् अनं ट इन्र सोधो ननणूटो अनढ थहहिहष। ए हीधस्न रवा

    हणथ॥१५९ ओ३ध् सुरूणकृतु्नधूटने सुडुगाक्तधव गोडुहे। घुहूधसस द्यहवद्यहव॥१६० ओ३ध् अक्तद त्वा वृषदा सुटे सुट सृघाक्तध णीटने। टृ म्णा व्नश्नुही

    धडध्॥१६१ ओ३ध् न इन्र ङधसेष्वा सोधिधूषु टे सुट। हणथेडस्न त्वधीक्तशषे॥१६२ ओ३ध् नोगेनोग ेटवस्टकं वाघेवाघे हवाधहे। सखान इन्रधूटने॥१६३ ओ३ध् आ त्वेटा नन षीडटेन्रधक्तद प्र गानट। सखान स्टोधवाहस्॥१६४ ओ३ध् इड ह्यन्वोघसा सुट काढानां णटे। हणथा त्वा३स्न नगविख्॥१६५ ओ३ध् धहा इन्र णुकि नो धहहत्वधस्ट ु वज्रिखे। द्यौ नि प्रचठना

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    शव॥१६६ ओ३ध् आ ट ू न इन्र ऺुधन्तं चङिं ग्राद स ं गृदान। ध हाहस्टी

    डसऺखेन॥१६७ ओ३ध् अक्तद प्र गोणहटं नगकेन्रधङि नठा हवडे। सू नु ससनस्न

    ससणहटध्॥१६८ ओ३ध् कना नक्तिि आ दुवडूटी सडावृढ सखा। क ना शचङष्ठना

    वृटा॥१६९ ओ३ध् सनधु व् सिासाहं हवश्वासु गीष्वािनटध्। आ च्नावनस्नूटने॥१७० ओ३ध् सडसस्णहटधिुटं हप्रनक्तधन्रस्न काम्नध्। स ननं

    धेढाधनाससषध्॥१७१ ओ३ध् ने टे णन्ठा अढो दडवो नके्तदव्निश्वधैकन्। उ ट िोषन्तु नो

    दुव॥१७२ ओ३ध् दरंदर ंन आ दकेषधूघि शटक्रटो। नदडन्र धृझनासस न्॥१७३ ओ३ध् अत्स्ट सोधो अन सुट हणथन्त्नस्न धरुट। उ ट स्वकाघो

    अणश्वना॥१७४ ओ३ध् ईङ्खनन्तीकणस्नुव इन्रं घाटधुणासटे। वन्वानास सुवीनिध्॥१७५

  • साधवेड संहहटा

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    ओ३ध् नहक डेवा इनीधसस न क्या नोणनाधसस। ध न्त्रिुसनं ङकाधसस॥१७६

    ओ३ध् डोषो आगाद्बृहद्गान दु्यधद्गाधन्नाठविख। स्टु हह डेव सहवटाकध्॥१७७

    ओ३ध् एषो उषा अणूव्नाि व्नुच्ङहट हप्रना दडव। स्टु षे वाधणश्वना थृहट्॥१७८

    ओ३ध् इन्रो डढीङो अस्ठक्तदवृििाण्नप्रहटष्कुट्। घगान नवटीनिव॥१७९ ओ३ध् इन्रेहह धसस्नन्ढसो हवश्वेक्तद् सोधणविक्तद्। ध हा

    अक्तदहष्टकोघसा॥१८० ओ३ध् आ टू न इन्र वृिहन्नस्धाकधढिधा गहह।

    धहान्धहीक्तदरूहटक्तद॥१८१ ओ३ध् ओघस्टडस्न हटचत्वष उदे नससधवटिनट्। इ न्रिधेिव

    कोडसी॥१८२ ओ३ध् अनधु टे सधटसस कणोट इव गदिनढध्। व ङस्टचच्चन्न

    ओहसे॥१८३ ओ३ध् वाट आ वाट ुदेषघ शम्दु धनोदु नो हृडे। प्र न आनूहष

  • साधवेड संहहटा

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    टारकषट्॥१८४ ओ३ध् न कऺजन्त प्रङेटसो वरुखो क्तधिो अनिधा। न हक स डभ्नटे

    घन॥१८५ ओ३ध् गव्नो षु खो नठा णुकाश्वनोट कठना। वरकवस्ना धहोनाध्॥१८६ ओ३ध् इधास्ट इन्र णृश्ननो गृटं डुहट आक्तशकध्। ए नाधृटस्न

    हणप्नुषी॥१८७ ओ३ध् अना नढना ङ गव्नना णुरुखाधन्णुरुष्टुट। न ससोधेसोध

    आदुव्॥१८८ ओ३ध् णावका न सकस्वटी वाघेक्तदवािजघनीवटी। न ऻं वष्टु

    नढनावसु्॥१८९ ओ३ध् क इधं नाहुषीष्वा इन्र सोधस्न टणिनाट्। स नो वसून्ना

    दकाट्॥१९० ओ३ध् आ नाहह सुषुधा हह ट इन्र सोधं हणथा इधध्। ए ड ं थहहि

    सडो धध॥१९१ ओ३ध् धहह िीखाधवकस्ट ुदु्यऺं क्तधिस्नानिम्ख। डुकाढषं वरुखस्न॥१९२ ओ३ध् त्वावट् णुरूवसो वनक्तधन्र प्रखटे्। स्धसस स्ठाटहिकीखाध्॥१९३

  • साधवेड संहहटा

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    ओ३ध् उत्त्वा धन्डन्तु सोधा कृखुष्व काढो अहरव्। अ व ब्रह्महिषो घहह॥१९४

    ओ३ध् नगविख् णाहह न सुटं धढोढािकाक्तदकज्नसे। इ न्र त्वाडाटक्तधद्यश॥१९५

    ओ३ध् सडा व इन्रिकृि षडा उणो नु स सणनिन्। न डेवो वृट शूक इन्र॥१९६

    ओ३ध् आ त्वा हवशत्न्त्वन्डव् सधुरक्तधव ससन्ढव्। न त्वाक्तधन्राहट रकच्नटे॥१९७

    ओ३ध् इन्रक्तधद्गाचठनो थृहदडन्रधकेि क्तदकहकि ख। इन्रं वाखीकनूषट॥१९८ ओ३ध् इन्र इषे डडाटु न ऋदुऺखधृदु कननध्। वा घी डडाटु

    वाजघनध्॥१९९ ओ३ध् इन्रो अङ्ग धहिनधदी षडण ङुच्नवट्। स हह त्स्ठको

    हवङषिणख्॥२०० ओ३ध् इधा उ त्वा सुटेसुटे नऺन्ते नगविखो नगक। गा वो वससं न

    ढेनव॥२०१ ओ३ध् इन्रा नु णूषखा वन सख्नान स्वस्टने। हु वेध

  • साधवेड संहहटा

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    वाघसाटन॥े२०२ ओ३ध् न हक इन्र त्वडुत्तकं न ज्नानो अत्स्ट वृिहन्। न के्यवं नठा

    त्वध्॥२०३ ओ३ध् टकणखं वो घनानां िडं वाघस्न गोधट्। स धानधु प्र श

    ससषध्॥२०४ ओ३ध् असृग्रक्तधन्र टे नगक प्रहट त्वाधुडहासट। स घोषा वृषदं

    णहटध्॥२०५ ओ३ध् सुनीठो गा स धसनोि नं धरुटो नधनिधा।

    क्तधिास्णान्त्नरुह॥२०६ ओ३ध् निीझाहवन्र नत्सस्ठके नसणशािने णकादृटध्। व सु स्णाहं टडा

    दक॥२०७ ओ३ध् िुटं वो वृिहन्तधं प्र शढं ङषिखीनाध्। आ क्तशषे काढस े

    धहे॥२०८ ओ३ध् अकं ट इन्र िवस े गधेध शूक त्वावट्। अ क शक्र

    णकेधणख॥२०९ ओ३ध् ढानावन्त ं ककत्म्दखधणूणवन्तधुत्क्ठनध्। इ न्र प्राटघुिषस्व

  • साधवेड संहहटा

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    न्॥२१० ओ३ध् अणां तेनेन नधुङे क्तशक इन्रोडवटिन्। हव श्वा नडघन

    स्णृढ॥२११ ओ३ध् इधे ट इन्र सोधा सुटासो ने ङ सोत्वा। टे षां धसस्व

    प्रदूवसो॥२१२ ओ३ध् टुभ्न सुटास सोधा स्टीखं थहहिहविदावसो। स्टो टृभ्न इन्र

    धृझन॥२१३ ओ३ध् आ व इन्र कृहवं नठा वाघनन्त शटक्रटुध्। ध हहष्ठ ससञ्च

    इन्डुक्तद्॥२१४ ओ३ध् अटक्तिदडन्र न उणा नाहह शटवाघना। इषा सहस्रवाघना॥२१५ ओ३ध् आ थुन्डं वृिहा डड ेघाट णृच्ङाहि धाटकध्। क उग्रा के ह

    शृत्ण्वके॥२१६ ओ३ध् थृथडुक्ठ हवाधहे सृप्रककस्नधूटने। साढ कृण्वन्तधवसे॥२१७ ओ३ध् ऋघुनीटी नो वरुखो क्तधिो ननहट हविान्। अ निधा डेवै

    सघोषा॥२१८ ओ३ध् डूकादडहेव नससटोऽरुखप्सुकक्तशणश्वटट्। हव दानुं

  • साधवेड संहहटा

    26

    हवश्वठाटनट्॥२१९ ओ३ध् आ नो क्तधिावरुखा गृटैगिव्नूहटधुऺटध्। ध ध्यवा कघासस

    सुक्रटू॥२२० ओ३ध् उडु सने सूनवो नगक काष्ठा नऻेष्वत्नट। वा िा अक्तदऻु

    नाटवे॥२२१ ओ३ध् इडं हवष्खुहवि ङक्रधे िेढा नन डढे णडध्। स धूञधस्न

    णासुले॥२२२ ओ३ध् अटीहह धन्नुषाहवख सुषुवासधुणेकन। अ स्न काटौ सुटं

    हणथ॥२२३ ओ३ध् कडु प्रङेटसे धहे वङो डेवान शस्नटे। टदडध्नस्न वढिनध्॥२२४ ओ३ध् उक्ठं ङ न शस्नधानं नागो कननका चङकेट। न गानिं

    गीनधानध्॥२२५ ओ३ध् इन्र उक्ठेक्तदधित्न्डष्ठो वाघाना ं ङ वाघणहट्। ह रकवान्त्सुटाना

    सखा॥२२६ ओ३ध् आ नाह्युण न् सुटं वाघेक्तदधाि हृखीनठा्। ध हा इव

    नुवघानन्॥२२७

  • साधवेड संहहटा

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    ओ३ध् कडा वसो स्टोि हनिट आ अव श्धशा रुढिा। डी गि सुटं वाटाप्नान॥२२८

    ओ३ध् ब्राह्मखादडन्र काढस हणथा सोधधृटू कनु। ट वेड सख्नधस्टृटध्॥२२९

    ओ३ध् वनं गा टे अहण स्धसस स्टोटाक इन्र नगविख्। त्वं नो जघन्व सोधणा्॥२३०

    ओ३ध् एन्र णृऺु कासु चङनृ्नम्खं टनूषु ढहेह न्। स िाजघडुग्र णौस्नध्॥२३१

    ओ३ध् एवा ह्यसस वीकनुकेवा शूक उट त्स्ठक। ए वा टे काध्नं धन॥२३२

    ओ३ध् अक्तद त्वा शूक नोनुधोऽडुग्ढा इव ढेनव। ई शानधस्न घगट् स्वदृिशधीशानक्तधन्र टस्ठुष॥२३३

    ओ३ध् त्वाक्तधक्तद्ध हवाधहे साटौ वाघस्न काकव। त्वां वृिेत्ष्वन्र ससणहटं नकस्त्वां काष्ठास्वविट्॥२३४

    ओ३ध् अक्तद प्र व सुकाढसक्तधन्रधङि नठा हवडे। नो घरकटृभ्नो धगवा णुरूवसु सहस्रेखेव क्तशऺहट॥२३५

  • साधवेड संहहटा

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    ओ३ध् टं वो डस्धधृटीषहं वसोधिन्डानधन्ढस्। अक्तद वससं न स्वसकेषु ढेनव इन्रं गीक्तदिनिवाधहे॥२३६

    ओ३ध् टकोक्तदवोि हवडिसुक्तधन्र सथाढ ऊटने। थृ हद्गानन्त् सुटसोधे अध्यवके हुवे दकं न कारकखध्॥२३७

    ओ३ध् टकणखरकत्ससषासहट वाघं णुकन्ध्ना नुघा। आ व इन्रं णुरुहूटं नधे नगका नेक्तधं टष्टेव सुरुवध्॥२३८

    ओ३ध् हणथा सुटस्न कससनो धसस्वा न इन्र गोधट्। आ हणनोि थोनढ सढधाद्ये वृढे३ऽस्धा अवन्तु टे नढन॥२३९

    ओ३ध् त्व ह्येहह ङेकवे हवडा दगं वसुत्तन।े उ िावृषस्व धगवन्गहवष्टन उदडन्राश्वक्तधष्टन॥े२४०

    ओ३ध् न हह विकधं ङ न वससष्ठ् णरकधसटे। अ स्धाकधद्य धरुट सुटे सङा हवश्वे हणथन्तु काक्तधन॥२४१

    ओ३ध् धा चङडन्नहि शसट सखानो धा रकषण्नट। इ न्रक्तधसस्टोटा वृषख सङा सुटे धुहुरुक्ठा ङ शसट॥२४२

    ओ३ध् न हकष्टं कधिखा नशद्यिकाक सडावृढध्। इ न्रं न नऻैहविश्वगूटिधृभ्वसधढृष्ट ंढृष्खुधोघसा॥२४३

  • साधवेड संहहटा

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    ओ३ध् न ऋटे चङडक्तदचिष णुका घिुभ्न आटृड। स न्ढाटा सत्न्ढं धगवा णुरूवसुननिष्कटाि हवह्रुटं णुन॥२४४

    ओ३ध् आ त्वा सहस्रधा शटं नुक्ता कठे हहकण्नने। ब्र ह्मनुघो हकन इन्र केक्तशनो वहन्तु सोधणीटन॥े२४५

    ओ३ध् आ धन्रैरकन्र हरकक्तदनािहह धनूककोधक्तद्। धा त्वा के चङनन्न नेधुरकन्न णाक्तशनोऽहट ढन्वेव टा इहह॥२४६

    ओ३ध् त्वधङ्ग प्र श ससषो डेव शहवष्ठ धसनिध्। न त्वडन्नो धगवन्नत्स्ट धनझि टेन्र ब्रवीक्तध टे वङ॥२४७

    ओ३ध् त्वक्तधन्र नशा अस्नृघीषी शवसस्णहट। त्वं वृिाणख ह स्नप्रटीन्नके इसणुविनुत्तिषिखीढृहट॥२४८

    ओ३ध् इन्रक्तधद्देवटाटन इन्रं प्रनसनध्यवके। इ न्र सधीके वनननो हवाधह इन्रं ढनस्न साटने॥२४९

    ओ३ध् इधा उ त्वा णुरूवसो नगको वढिन्तु ना धध। णावकवखाि शुङनो हवणक्तिटोऽक्तद स्टोधैकनूषट॥२५०

    ओ३ध् उडु सने धढुधत्तधा नगक स्टोधास ईकटे। स िाजघटो ढनसा असऺटोटनो वाघनन्तो कठा इव॥२५१

  • साधवेड संहहटा

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    ओ३ध् नठा गौको अणा कृटं टृष्नन्नेसनवेरकखध्। आ हणत्वे न प्रहणत्वे टूनधा गहह कण्वेषु सु सङा हणथ॥२५२

    ओ३ध् शग्ध्नू३षु शङीणट इन्र हवश्वाक्तदरूहटक्तद। दगं न हह त्वा नशसं वसुहवडधनु शूक ङकाधसस॥२५३

    ओ३ध् ना इन्र दुघ आदक स्ववाि असुकेभ्न्। स्टो टाकक्तधन्धगवन्नस्न वढिन ने ङ त्वे वृक्तथहहिष्॥२५४

    ओ३ध् प्र क्तधिान प्रानिम्खे सङथ्नधृटावसो। वरूथ्ने३ वरुखे ङन्द्यं वङ स्टोि काघसु गानट॥२५५

    ओ३ध् अक्तद त्वा णूविणीटन इन्र स्टोधेक्तदकानव। स धीङीनास ऋदव सधस्वकन्रुरा गृखन्त णूव्निध्॥२५६

    ओ३ध् प्र व इन्रान थृहटे धरुटो ब्रह्माङिट। वृ ि हनहट वृिहा शटक्रटुवििखे शटणविखा॥२५७

    ओ३ध् थृहदडन्रान गानट धरुटो वृिहन्तधध्। ने न ज्नोहटकघननन्नृटावृढो डेवं डेवान घागृहव॥२५८

    ओ३ध् इन्र क्रटुं न आ दक हणटा णुिेभ्नो नठा। क्तश ऺा खो अत्स्धन्णुरुहूट नाधनन घीवा ज्नोहटकशीधहह॥२५९

  • साधवेड संहहटा

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    ओ३ध् धा न इन्र णका वृखग्दवा न् सढधाद्ये। त्वं न ऊटी त्वक्तधन्न आप्नं धा न इन्र णका वृखक्॥२६०

    ओ३ध् वनं ग त्वा सुटावन्त आणो न वृक्तथहहिष्। ण हविस्न प्रस्रवखेषु वृिहन्णरक स्टोटाक आसटे॥२६१

    ओ३ध् नदडन्र नाहुषीष्वा ओघो नृम्खं ङ कृहष्टषु। न िा णञ्च सऺटीनां दु्यम्नधा दक सिा हवश्वानन णौस्ना॥२६२

    ओ३ध् ससनक्तधत्ठा वृषेडसस वृषघूहटनोिऽहवटा। वृ षा ह्युग्र शृत्ण्वषे णकावहट वृषो अवािवहट िुट॥२६३

    ओ३ध् नच्ङक्रासस णकावहट नडवािवहट वृिहन्। अ टस्त्वा गीक्तदिद्युिगदडन्र केक्तशक्तद सुटावा आ हववासहट॥२६४

    ओ३ध् अक्तद वो वीकधन्ढसो धडेषु गान नगका धहा हवङेटसध्। इ न्रं नाध िुसन शाहकनं वङो नठा॥२६५

    ओ३ध् इन्र हिढाटु शकखं हिवरूठ स्वस्टने। ङ दडिनिच्ङ धगवद्भ्यि धह्यं ङ नावना दडदु्यधेभ्न्॥२६६

    ओ३ध् िानन्त इव सूनं हवश्वेदडन्रस्न दऺट। व सूनन घाटो घननधान्नोघसा प्रहट दागं न डीनढध्॥२६७

  • साधवेड संहहटा

    32

    ओ३ध् न सीधडेव आण टदडषं डीगािनो धसनि। ए टग्वा चङद्या एटशो नुनोघट इन्रो हकी नुनोघटे॥२६८

    ओ३ध् आ नो हवश्वासु हव्नक्तधन्र सधससु दूषट। उ ण ब्रह्माणख सवनानन वृिहन्णकधज्ना ऋङीषध॥२६९

    ओ३ध् टवेदडन्रावधं वसु त्वं णुष्नसस धध्नधध्। स िा हवश्वस्न णकधस्न काघसस न हकष्ट्वा गोषु वृण्वटे॥२७०

    ओ३ध् के्वनठ के्व डसस णुरुिा चङक्तद्ध टे धन। अ लहषि नुध्ध खघकृसणुकन्डक प्र गानिा अगाससषु्॥२७१

    ओ३ध् वनधेनक्तधडा ह्योणीणेधेह वज्रिखध्। ट स्धा उ अद्य सवन े सुटं दका नूनं दूषट िुटे॥२७२

    ओ३ध् नो काघा ङषिखीनां नाटा कठेक्तदकनिगु्। हवश्वासा ंटरुटा णृटनानां ज्नेष्ठं नो वृिहा गृखे॥२७३

    ओ३ध् नट इन्र दनाधहे टटो नो अदन ंकृनढ। धगवञ्ङत्ग्ढ टव टन्न ऊटने हव हिषो हव धृढो घहह॥२७४

    ओ३ध् वास्टोष्णटे िुवा स्ठूखा सि सोम्नानाध्। र प्स णुकां देत्ता शश्वटीनाक्तधन्रो धुनीना सखा॥२७५

  • साधवेड संहहटा

    33

    ओ३ध् थण्धहा असस सूनि थझादडसन धहा असस। ध हस्टे सटो धहहधा णननष्टध धह्ना डेव धहा असस॥२७६

    ओ३ध् अश्वी कठी सुरूण इद्गोधा नदडन्र टे सखा। श्वािदाघा वनसा सङटे सडा ङन्रैनािहट सदाधुण॥२७७

    ओ३ध् नद्द्याव इन्र टे शट शटं दूधीरुट स्नु्। न त्वा वज्रिन्त्सहस्र सूनाि अनु न घाटधष्ट कोडसी॥२७८

    ओ३ध् नदडन्र प्रागणागुडग्न्नग्वा हूनसे नृक्तद। सस धा णुरू नृषूटो अस्नानवेऽसस प्रशढि टुविशे॥२७९

    ओ३ध् कस्टक्तधन्र त्वा वसवा धसनोि डढषिहट। ि द्धा हह टे धगवन्णानेि दडहव वाघी वाघ ससषासहट॥२८०

    ओ३ध् इन्राग्नी अणादडनं णूवािगासणिटीभ्न्। हह त्वा क्तशको जघह्वना काकणच्चकणिशसणडा न्नक्रधीट्॥२८१

    ओ३ध् इन्र नेडीन एदडहह क्तधटधेढाक्तदरूहटक्तद। आ शंटध शंटधाक्तदकक्तदहष्टक्तदका स्वाणे स्वाहणक्तद॥२८२

    ओ३ध् इट ऊटी वो अघकं प्रहेटाकधप्रहहटध्। आशुं घेटाक हेटाक कठीटधधटूटं टुचग्रनावृढध्॥२८३

  • साधवेड संहहटा

    34

    ओ३ध् धो ष ुत्वा वागटि नाके अस्धनन्न कीकधन्। आकात्तािा सढधाडं न आ गहीह वा सनु्नण िुनढ॥२८४

    ओ३ध् सुनोट सोधणाव्ने सोधक्तधन्रान वज्रिखे। ण ङटा णक्तीकवसे कृखुध्यवक्तधसणृखनन्नसणृखटे धन॥२८५

    ओ३ध् न सिाहा हवङषिणखरकन्रं ट हूधहे वनध्। सहस्रधन्नो टुहवनृम्ख ससणटे दवा सधससु नो वृढे॥२८६

    ओ३ध् शङीक्तदनि् शङीवसू दडवानकं्त दडशस्नटध्। धा वा काहटरुण डससकडा ङनास्धराहट कडाङन॥२८७

    ओ३ध् नडा कडा ङ धीञुषे स्टोटा घकेट धसनि। आ दडिन्डटे वरुख ंहवणा नगका ढत्तािकं हवरटानाध्॥२८८

    ओ३ध् णाहह गा अन्ढसो धड इन्रान धेध्नाहटठे। न सत्म्धश्लो हनोिनोि हहकण्नन इन्रो विी हहकण्नन॥२८९

    ओ३ध् उदन शृखवच्च न इन्रो अवािनगडं वङ। स िाच्ना धगवान्त्सोधणीटन ेनढना शहवष्ठ आ गधट्॥२९०

    ओ३ध् धहे ङ न त्वाहरव णका शुल्कान डीनसे। न सहस्रान नानुटाने वज्रिवो न शटान शटाधग॥२९१

  • साधवेड संहहटा

    35

    ओ३ध् वस्ना इन्रासस धे हणटुरुट भ्राटुकदुञ्जट्। धा टा ङ धे ङडनठ् सधा वसो वसुत्वनान काढसे॥२९२

    ओ३ध् इध इन्रान सुत्न्वके सोधासो डध्नाक्तशक्। टा आ धडान विहस्ट णीटने हरकभ्नां नाह्योक आ॥२९३

    ओ३ध् इध इन्र धडान टे सोधाक्तिहकि उत्क्ठन। ध ढो णणान उण नो नगक शृखु कास्व स्टोिान नगविख्॥२९४

    ओ३ध् आ त्वा३द्य सथडुिगा हुवे गानिवेणसध्। इ न्रं ढेनु सुडुगाधन्नाक्तधषधुरुढाकाधकङृ्कटध्॥२९५

    ओ३ध् न त्वा थृहन्तो अरनो वकन्त इन्र वीझव। न त्च्ङऺसस स्टुवटे धावटे वसु न हकष्टडा क्तधनाहट टे॥२९६

    ओ३ध् क ईं वेड सुटे सङा हणथन्तं किनो डढे। अ नं न् णुको हवक्तदनसनोघसा धन्डान क्तशप्र्नन्ढस्॥२९७

    ओ३ध् नदडन्र शासो अरटं च्नावना सडसस्णरक। अ स्धाकधशुं धगवन्णुरुस्णृहं वसव्ने अनढ थहिन॥२९८

    ओ३ध् त्वष्टा नो डैव्नं वङ णघिन्नो ब्रह्मखस्णहट। णु िैभ्रािटृक्तदकदडहटनुि णाट ुनो डुष्टकं िाधखं वङ॥२९९

  • साधवेड संहहटा

    36

    ओ३ध् कडा ङन स्टकीकसस नेन्र सिसस डाशुषे। उ णोणेनु्न धगवन्दून इनु्न टे डानं डेवस्न णृच्नटे॥३००

    ओ३ध् नुङ्क्ष्वा हह वृिहन्तध हकी इन्र णकावट। अ वािङीनो धगवन्त्सोधणीटन उग्र ऋष्वेक्तदका गहह॥३०१

    ओ३ध् त्वाक्तधडा ह्यो नकोऽणीप्नन्वज्रिन्दूखिन्। स इन्र स्टोधवाहस इह िुध्नुण स्वसकधा गहह॥३०२

    ओ३ध् प्रसनु अडश्नािनसनू३च्ङन्ती डुहहटा दडव। अ णो धही वृखुटे ङऺुषा टधो ज्नोहटष्कृखोहट सूनरक॥३०३

    ओ३ध् इधा उ वां दडहवष्टन उस्रा हवन्ते अणश्वना। अ नं वाधहे्वऽवस ेशङीवसू हवशं हवश हह गच्ङठ्॥३०४

    ओ३ध् कुष्ठ को वाधणश्वना टणानो डेवा धसनि। घ्न टा वाधश्धना ऺणधाखोशुनेत्ठधु आडुन्नठा॥३०५

    ओ३ध् अनं वां धढुधत्तध् सुट सोधो दडहवहष्टषु। ट धणश्वना हणथटं हटकोअह्न्न ंढत्त कत्नानन डाशुषे॥३०६

    ओ३ध् आ त्वा सोधस्न गल्डना सडा नाङन्नहं ज्ना। दू णखं धृगं न सवनषेु ङुक्रुढं क ईशानं न नाचङषट्॥३०७

  • साधवेड संहहटा

    37

    ओ३ध् अध्यवनोि रावना त्व सोधक्तधन्र हणणासहट। उ णो नूनं नुनुघे वृषखा हकी आ ङ घगाध वृिहा॥३०८

    ओ३ध् अदीषटस्टडा दकेन्र ज्नान कनीनस्। णु रूवसुहहि धगवन्थदूहवठ दकेदके ङ हव्न॥३०९

    ओ३ध् नदडन्र नावटस्त्वधेटावडहधीशीन। स्टो टाकक्तधद्दनढषे कडावसो न णाणत्वान कससषध्॥३१०

    ओ३ध् त्वक्तधन्र प्रटूहटिष्वक्तद हवश्वा असस स्णृढ। अ शत्स्टहा घननटा वृिटूकसस त्वं टूनि टरुष्नट॥३११

    ओ३ध् प्र नो रकरकऺ ओघसा दडव सडोभ्नस्णरक। न त्वा हवव्नाङ कघ इन्र णाचठिवधहट हवश्वं ववसऺठ॥३१२

    ओ३ध् असाहव डेवं गोऋघीकधन्ढो न्नत्स्धनन्नन्रो घनुषेधुवोङ। थोढाधसस त्वा हनिश्व नऻैथोिढा न स्टोधधन्ढसो धडेषु॥३१३

    ओ३ध् नोननष्ट इन्र सडने अकारक टधा नृक्तद णुरूहूट प्र नाहह। असो नठा नोऽहवटा वृढक्तिद्दडो वसूनन धधडि सोधै॥३१४

    ओ३ध् अडडिरुससधसृघो हव खानन त्वधखिवान्थद्बढाना अकम्खा्। धहान्तक्तधन्र णविटं हव नि् सृघद्धाका अव नद्दानवान्हन्॥३१५

  • साधवेड संहहटा

    38

    ओ३ध् सुष्वाखास इन्र स्टुधसस त्वा सननष्नन्तक्तित्तुहवनृम्ख वाघध्। आ नो दक सुहवटं नस्न कोना टना त्धना सह्याधात्वोटा॥३१६

    ओ३ध् घगृह्मा टे डसऺखक्तधन्र हस्टं वसूनवो वसुणटे वसूनाध्। हव द्मा हह त्वा गोणहट शूक गोनाधस्धभ्नं चङिं वृषख कननं डा॥३१७

    ओ३ध् इन्रं नको नेधनढटा हवन्ते नसणानाि नुनघटे नढनस्टा। शू को नृषाटा िवसि काध आ गोधहट रघे दघा त्वं न॥३१८

    ओ३ध् वन सुणखाि उण सेडुरकन्रं हप्रनधेढा ऋषनो नाढधाना्। अ ण ध्यवान्तधूखुिहह णूनढि ङऺुधुिधुग्ध्ना३स्धानन्नढनेव थद्धान्॥३१९

    ओ३ध् नाके सुणखिधुण नसणटन्त हृडा वेनन्तो अभ्नङऺट त्वा। हहकण्नणऺं वरुखस्न डूटं नधस्न नोनौ शकुनं दुकण्नुध्॥३२०

    ओ३ध् ब्रह्म घऻानं प्रठधं णुकस्टाहि सीधट सुरुङो वेन आव्। स थुध्न्ना उणधा अस्न हवष्ठा सटि नोननधसटि हवव॥३२१

    ओ३ध् अणूव्नाि णुरुटधान्नस्ध ै धहे वीकान टवसे टुकान। हव कत्िने वज्रिखे शन्तधानन वङास्नास्धै स्ठहवकान टऺु्॥३२२

    ओ३ध् अव रप्सो अशुधटीधहटष्ठडीनान कृष्खो डशक्तद सहस्रै। आवत्तक्तधन्र शच्ना ढधन्तधण स्नीहहहटं नृधखा अढरा॥३२३

  • साधवेड संहहटा

    39

    ओ३ध् वृिस्न त्वा श्वसठाडीषधाखा हवश्वे डेवा अघहुनेि सखान्। धरुणिरकन्र सख्नं टे अस्त्वठेधा हवश्वा: णृटना घनासस॥३२४

    ओ३ध् हवढुं डराख सधन े थहूना नुवान सन्तं णचलटो घगाक। डेवस्न णश्न काव्नं धहहत्वाद्या धधाक स ह्य् सधान॥३२५

    ओ३ध् त्व ह सनससप्तभ्नो घानधानोऽशिुभ्नो अदव शिुरकन्र। गू ञे द्यावाणृचठवी अन्वहवन्डो हवदुधद्भ्यो दुवनभे्नो कखं ढा्॥३२६

    ओ३ध् धेनझं न त्वा वज्रिखं दृहष्टधन्तं णुरुढस्धानं वृषद त्स्ठकप्स्नुध्। ककोष्ननिस्टरुषीडुिवस्नुरकन्र दु्यऺं वृिहखं गृखीषे॥३२७

    ओ३ध् प्र वो धहे धहेवृढे दकध्यवं प्रङेटसे प्र सुधहटं कृखुध्यवध्। हव श णूवीि प्र ङक ङषिणखप्रा॥३२८

    ओ३ध् शुन हुवेध धगवानक्तधन्रधत्स्धन्दके नृटधं वाघसाटौ। शृण्वन्तधुग्रधूटने सधससु र्ध्न्तं वृिाणख सचञ्जटं ढनानन॥३२९

    ओ३ध् उडु ब्रह्माण्नकैट िवस्नेन्र सधनेि धहना वससष्ठ। आ नो हवश्वानन िवसा टटानोणिोटा ध ईवटो वङासस॥३३०

    ओ३ध् ङकं्र नडस्नाप्स्वा ननषत्तधुटो टडस्धै धत्ध्यवच्चच्ङद्याट्। णृचठव्नाधहटहषटं नडूढ णनो गोष्वडढा ओषढीषु॥३३१

  • साधवेड संहहटा

    40

    ओ३ध् सनधू षु वाजघनं डेवघूट सहोवानं टरुटाक कठानाध्। अरकष्टनके्तधं णृटनाघधाशु स्वस्टने टाक्ष्निक्तधहा हुवेध॥३३२

    ओ३ध् िाटाकक्तधन्रधहवटाकक्तधन्र हवेहव े सुहव शूकक्तधन्रध्। हु वे नु शकं्र णुरुहूटक्तधन्रक्तधड हहवधिगवा वेचत्वन्र॥३३३

    ओ३ध् नघाधह इन्रं विडसऺख हकीखा कथ्ना३हवरटानाध्। प्र श्धिुक्तदडोिढुवडूध्यविढा दुवहि सेनाक्तददिनधानो हव काढसा॥३३४

    ओ३ध् सिाहखं डाढृहषं टुम्रक्तधन्रं धहाधणाकं वृशद सुविध्। ह न्ता नो वृि सननटोट वाघं डाटा धगानन धगवा सुकाढा॥३३५

    ओ३ध् नो नो वनुष्नन्नक्तदडाहट धटि उगखा वा धन्नधानस्टुको वा। सऺढी नुढा शवसा वा टक्तधन्रादी ष्नाध वृषधखस्त्वोटा॥३३६

    ओ३ध् नं वृिेषु सऺटन स्णढिधाना नं नुके्तषु टुकनन्तो हवन्ते। न शूकसाटौ नधणाधुणज्धन्नं हवप्रासो वाघनन्ते स इन्र॥३३७

    ओ३ध् इन्राणविटा थृहटा कठेन वाधीरकष आ वहट सुवीका। वी ट हव्नान्नध्यवकेषु डेवा वढेिठा ंगीदीिरकझना धडन्ता॥३३८

    ओ३ध् इन्रान नगको अननक्तशटसगाि अण प्रैकनससगकस्न थुर्ध्ाट्। नो अऺेखेव ङहक्रनौ शङीक्तदहविष्वक्तस्टम्द णृचठवीधुट द्याध्॥३३९

  • साधवेड संहहटा

    41

    ओ३ध् आ त्वा सखान् सख्ना ववृसनुत्स्टक णुरू चङडखिवां घगम्ना्। हणटुनिणाटधा डनढट वेढा अत्स्धन्क्षने प्रटकां डीद्यान्॥३४०

    ओ३ध् को अद्य नुिे ढुरक गा ऋटस्न क्तशधीवटो दाक्तधनो डुहृिखानून्। आसन्नेषाधप्सुवाहो धनोदून्न एषा ंदृसनाधृखढसस घीवाट्॥३४१

    ओ३ध् गानजन्त त्वा गानहिखोऽङिन्त्नकि धहकि ख। ब्र ह्माखस्त्वा शटक्रट उिशक्तधव नके्तधके॥३४२

    ओ३ध् इन्रं हवश्वा अवीवृढन्त्सधुरव्नङसं नगक। क ठीटध कठीनां वाघाना ससणहटं णहटध्॥३४३

    ओ३ध् इधक्तधन्र सुटं हणथ ज्नेष्ठधधसनं धडध्। शु क्रस्न त्वाभ्नऺकन्ढाका ऋटस्न साडन॥े३४४

    ओ३ध् नदडन्र चङि ध इह नात्स्ट त्वाडाटधहरव्। का ढस्टन्नो हवडिस उदनाहस्सना दक॥३४५

    ओ३ध् िुढी हवं हटकश्च्या इन्र नस्त्वा सणनिहट। सु वीनिस्न गोधटो कानस्णूनढि धहा असस॥३४६

    ओ३ध् असाहव सोध इन्र टे शहवष्ठ ढृष्खवा गहह। आ त्वा णृखसित्न्रन कघ सूनोि न कत्श्धक्तद॥३४७

  • साधवेड संहहटा

    42

    ओ३ध् एन्र नाहह हरकक्तदरुण कण्वस्न सुष्टुहटध्। दडवो अधुष्न शासटो दडवं नन दडवावसो॥३४८

    ओ३ध् आ त्वा नगको कठीरकवास्ठु सुटेषु नगविख्। अ क्तद त्वा सधनूषट गावो वससं न ढेनव॥३४९

    ओ३ध् एटो त्न्वन्र स्टवाध शुद्ध शुद्धेन साम्ना। शुद्धैरुक्ठैवािवृध्यवास शुद्धैकाशीवािन्धधत्तु॥३५०

    ओ३ध् नो कननं वो कननन्तधो नो दु्यम्नैद्युिम्नवत्तध्। सोध सुट स इन्र टेऽत्स्ट स्वढाणटे धड॥३५१

    ओ३ध् प्रसनस्धै हणणीषटे हवश्वानन हवडुषे दक। अ कङ्गधान घग्धनेऽणिाडध्यवने नक्॥३५२

    ओ३ध् आ नो वनोवन्शनं धहान्तं गह्वकेष्ठां धहान्तं णूहविनेष्ठाध्। उ ग्रं वङो अणावढी्॥३५३

    ओ३ध् आ त्वा कठं नठोटने सुम्नान वटिनाधसस। टुहवकूक्तधिधृटीषहक्तधन्र शहवष्ठ ससणहटध्॥३५४

    ओ३ध् स णूव्नोि धहोनां वेन क्रटुक्तदकानघे। न स्न िाका धनु हणटा डेवेषु नढन आनघे॥३५५

  • साधवेड संहहटा

    43

    ओ३ध् नडी वहन्त्नाशवो भ्राघधाना कठेष्वा। हण थन्तो धदडकं धढु टि िवासस कृण्वटे॥३५६

    ओ३ध् सनधु वो अप्रहख ं गृखीषे शवसस्णहटध्। इ न्रं हवश्वासाहं नक शचङष्ठं हवश्ववेडसध्॥३५७

    ओ३ध् डनढक्राव्खो अकारकषं जघष्खोकश्वस्न वाजघन। सु कक्तद नो धुखा ककसप्र न आनूहष टारकषट्॥३५८

    ओ३ध् णुकां क्तदन्डुनुिवा कहवकक्तधटौघा अघानट। इ न्रो हवश्वस्न कधिखो ढत्ताि विी णुरुष्टुट॥३५९

    ओ३ध् प्रप्र वत्स्िष्टुदक्तधषं वन्डिीकानेन्डवे। नढना वो धेढसाटने णुकन्ध्ना हववासहट॥३६०

    ओ३ध् कश्नणस्न स्वहविडो नावाहु सनुघाहवहट। ननोहविश्वधहण रटं नऻं ढीका ननङा्न॥३६१

    ओ३ध् अङिट प्राङिटा नक हप्रनधेढासो अङिट। अ ङिन्तु णुिका


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