ऩाठ --- दुःख का अधधकार ऱेखक – यशऩाऱ...प रश...

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ऩाठ --- ख का अधधकार ऱेखक – यशऩाऱ न 1 मन य के जीवन म ऩोशाक का या महव है ? उर – मन य की पोशाक उह विभभन ेणिय म बाॉट देती है | ाय: पोशाक ही समाज म मन का अधिकार और दजाा ननचित करती है | िह हमारे भऱए अनेक बॊद दरिाजे खोऱ देती है | न 2 ऩोशाक हमारे लऱए कब बॊधन और अड़चन बन जाती है ? उर जब कभी ऐसी पररथिनत आ जाए कक हम जरा नीिे ककर समाज की ननिऱी ेणिय की अन नत को समझना िाहते ह | उस समय पोशाक हमारे भऱए यििान बन जाती है | ऱेखक अपनी अछी पोशाक के कारि ही ब ढ़ी महहऱा के द ख का कारि नहीॊ प छ पा रहे िे | न 3 ऱेखक उस री के रोने का कारण य नहॊ जान ऩाया ? उर उस थरी का रोना देखकर ऱेखक के मन म एक यिा – सी उठी | िह उस थरी के रोने का कारि जानना िाहता िा, पर उसकी पोशाक फ टपाि पर महहऱा के समीप बैठने म यििान बन रही ि| इसभऱए ऱेखक उस थरी के रोने का कारि नहीॊ जान पाया | न 4 भगवाना अऩने ऩररवार का ननवााह कैसे करता था ? उर भगिाना शहर के पास डेढ़ बीघा भर जमीन म कनछयारी करके अपने पररिार का ननिााह करति| खरब ज की डभऱया बाजार म पह िकर कभी ऱड़का सौदे पर बैठ जाता तो कभी माॉ बैठ जाती | इस कार जो आमदनी ात होती िी उससे भगिाना अपने पररिार का ननिााह करता िा | न 5 ऱड़के की म के द सरे ह ददन ब दिया खरब जे बेचने य चऱ ऩड़ी ? उर उस ि ि माॉ की बह को ब खार िढ़ा िा | घर म क छ भी खाने को नहीॊ िा | अब बेटे के बना उसे कोई भी उिार नहीॊ देता | इसभऱए मजब र माॉ द सरे ही हदन खरब जे बेिने िऱ पड़ी |

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  • ऩाठ --- द ुःख का अधधकार ऱेखक – यशऩाऱ

    प्रश्न 1 मन ष्य के जीवन में ऩोशाक का क्या महत्त्व है ? उत्तर – मनुष्यों की पोशाकें उन्हें विभभन्न शे्रणियों में बाॉट देती है | प्राय: पोशाक ही समाज में मनुष्य का अधिकार और दजाा ननश्चित करती है | िह हमारे भऱए अनेक बॊद दरिाजे खोऱ देती है |

    प्रश्न 2 ऩोशाक हमारे लऱए कब बॊधन और अड़चन बन जाती है ? उत्तर – जब कभी ऐसी पररश्थिनत आ जाए कक हम जरा नीि ेझुककर समाज की ननिऱी शे्रणियों की अनुभूनत को समझना िाहते हैं | उस समय पोशाक हमारे भऱए व्यििान बन जाती है | ऱेखक अपनी अच्छी पोशाक के कारि ही बूढ़ी महहऱा के दु् ख का कारि नहीॊ पूछ पा रहे िे |

    प्रश्न 3 ऱेखक उस स्त्री के रोने का कारण क्यों नह ॊ जान ऩाया ? उत्तर – उस थरी का रोना देखकर ऱेखक के मन में एक व्यिा – सी उठी | िह उस थरी के रोने का कारि जानना िाहता िा, पर उसकी पोशाक फुटपाि पर महहऱा के समीप बैठने में व्यििान बन रही िी | इसभऱए ऱेखक उस थरी के रोने का कारि नहीॊ जान पाया |

    प्रश्न 4 भगवाना अऩने ऩररवार का ननवााह कैसे करता था ? उत्तर – भगिाना शहर के पास डढ़े बीघा भर जमीन में कनछयारी करके अपने पररिार का ननिााह करता िा | खरबूजों की डभऱया बाजार में पहुॉिाकर कभी ऱड़का सौदे पर बैठ जाता तो कभी माॉ बैठ जाती | इस प्रकार जो आमदनी प्राप्त होती िी उससे भगिाना अपने पररिार का ननिााह करता िा |

    प्रश्न 5 ऱड़के की मतृ्य के दसूरे ह ददन ब दिया खरबूजे बेचने क्यों चऱ ऩड़ी ? उत्तर – उस िदृ्ि माॉ की बहु को बुखार िढ़ा िा | घर में कुछ भी खाने को नहीॊ िा | अब बेटे के बबना उसे कोई भी उिार नहीॊ देता | इसभऱए मजबूर माॉ दसूरे ही हदन खरबूजे बेिने िऱ पड़ी |

  • प्रश्न 6 ब दिया के द ुःख को देखकर ऱेखक को अऩने ऩड़ोस की सॊभ्ाॊत मदहऱा की याद क्यों आई ?

    अथवा प्रश्न 6 ऱेखक ने ब दिया के द ुःख का अॊदाजा कैसे ऱगाया ? उत्तर – उस पुर वियोधगनी के दु् ख का अॊदाजा ऱगाने के भऱए ऱेखक अपने पड़ोस की सॊभ्ाॊत महहऱा को याद करने ऱगा , श्जसका एक साऱ पहऱे पुर मर िा | िह अढ़ाई मास तक बबथतर पर ऱेटी रहती, मूछाा आने पर दो डाक्टर इऱाज करते और पूरे शहर में उसके शोक की ििाा िी , जबकक गरीब माॉ को एक हदन भी दु् ख मनाने का अधिकार नहीॊ िा |

    प्रश्न 7 बाजार के ऱोग खरबूजे बेचने वाऱ स्त्री के वषय में क्या कह रहे थे ? अऩने शब्दों में लऱखखए | उत्तर – बाजार के ऱोग खरबूजे बेिने िाऱी थरी के विषय में तरह – तरह की बातें कर रहे िे | कोई उसे ररचतों का महत्त्ि न देने िाऱी कह रहा िा तो कोई उसे ‘रोटी के भऱए जीने िाऱी’ तो अन्य ऱोग उसे बुरी नीयत, बुरे थिभाििाऱी , ऱोगों को पाप में डाऱने िाऱी बता रहे िे |

    प्रश्न 8 ऩास – ऩड़ोस की द कानों से ऩूछने ऩर ऱेखक को क्या ऩता चऱा ? उत्तर- पास – पडोस की दकुानों से पूछने पर ऱेखक को यह पता िऱा कक उस महहऱा का तेइस साऱ का ऱड़का िा, जो मुॉह अॉिेरे बेऱ से खरबूजे तोड़ रहा िा कक साॉप पर उसका पैर पड़ गया और साॉप ने उसे डॊस भऱया , श्जससे उसकी मतृ्यु हो गई | घर में दो बच्ि ेऔर बीमार बहू है, श्जनके भरि- पोषि हेतु दणुखयारी माॉ सौदा बेिने आई है |

    प्रश्न 9 ऱड़के को बचाने के लऱए ब दिया माॉ ने क्या – क्या उऩाय ककए ? उत्तर - माॉ बािऱी होकर ओझा को बुऱा ऱाई | झाड़ना – फूॉ कना हुआ , नागदेि की पूजा हुई | दान – दक्षऺिा दी पर माॉ ऱड़के को बिा न पाई |

    प्रश्न 10 इस ऩाठ का शीषाक ‘द ुःख का अधधकार’ कहाॉ तक साथाक है ? स्त्ऩष्ट कीजजए | उत्तर – इस पाठ का शीषाक सिािा उधित है क्योंकक इस कहानी में ऱेखक ने गरीबों की मजबूरी को पूरी गहराई के साि उजागर ककया है | यह सही है कक दु् ख सभी को तोड़ता है , दु् ख में मातम मनाना हर कोई िाहता है पर देश में कुछ ऐसे अभागे ऱोग भी हैं श्जन्हें न तो दु् ख मनाने का अधिकार है और न अिकाश | इस कहानी को पढ़ कर ऐसा ऱगता है कक गम मनाने के भऱए सहूभऱयत िाहहए |

  • रैदास के पद कवि – रैदास

    प्रश्न – 1 पहऱे पद में भगिान और भक्त की जजन – जजन चीजों से तऱुना की गई है , उनका उल्ऱेख कीजजए | उत्तर- ऩहऱे ऩद में भगवान और भक्त की अनेक चीजों से तुऱना की गई है, जो ननम्नलऱखित है :-

    भगिान भक्त चन्दन ऩानी घन मोर चदं चकोर दीऩक बाती मोती धागा सोना सुहागा

    प्रश्न २ पहऱे पद की प्रत्येक पंजक्त के अतं में तकुांत शब्दों के प्रयोग से नाद सौन्दयय आ गया है , जैसे पानी – समानी आदद | इस पद में से अन्य तुकांत शब्द छांट कर लऱखखए | उत्तर – इस ऩद के अन्य तुकांत शब्द हैं : – मोरा – चकोरा, बाती – राती, धागा – सुहागा, दासा – रैदासा आदद |

    प्रश्न 3 दसूरे पद में कवि ने ‘गरीब ननिाजू’ ककसे कहा है ? स्पष्ट कीजजये | उत्तर – ‘गरीब – ननवाजू’ शब्द का अथथ होता है गरीबों की देिभाऱ करने वाऱा | कवव ने अऩने आराध्य देव को गरीब – ननवाजू कहा है क्योंकक प्रभु के कारण ही दीन व्यक्क्त सामान्य रूऩ से अऩना जीवन - याऩन कर ऩाते हैं | ईश्वर की कृऩा के कारण ननम्न वगथ के ऱोग समाज में उच्च ्थान प्रा्त करते हैं |

  • प्रश्न 4 दसूरे पद में “जाकी छोनत जगत कउ ऱागै ता पर तुहीं ढरै” पंजक्त का आशय स्पष्ट कीजजए | उत्तर – इस ऩंक्क्त द्वारा कवव रैदास अऩने प्रभु की महानता दशाथते हैं, क्योंकक प्रभु की कृऩा दृक्टि से ननम्नजानत में जन्म ऱेने वाऱा साधारण व्यक्क्त भी राजा के समान प्रलसद्ध हो जाता है | उसका सम्मान समाज का हर वगथ करता है | अत: प्रभु करुणा और ममता की मूनत थ हैं , जो अऩने भक्तों का उद्धार करते हैं |

    प्रश्न 5 रैदास ने अपने स्िामी को ककन – ककन नामों से पुकारा है ? उत्तर – रैदास ने अऩने ्वामी को ऱाऱ , गरीब ननवाजू , गुसईया , गोबबदं ु, हररजीउ आदद नामों से ऩुकारा है |

    प्रश्न 6 रैदास के इन पदों का कें द्रीय भाि अपने शब्दों में लऱखखए | उत्तर – कवव रैदास ने ऩहऱे ऩद में अऩने आराध्य को याद करते हुए उनस ेअऩनी तुऱना की है | उनका प्रभु बाहर ककसी मक्न्दर – मक््जद में नहीं ववराजता अवऩतु उनके रृदय में सदैव ववद्यमान रहता है | कवव अऩने प्रभु के गुणों से अत्यधधक प्रभाववत हैं और उन जैसा बनना चाहते हैं | दसूरे ऩद में कवव ने भगवान की अऩार उदारता , कृऩा और समदशी ्वभाव का वणथन ककया है, क्जसकी कृऩादृक्टि से ननम्न जानत में जन्में व्यक्क्त भी सतं लशरोमखण बने जात ेहैं |

  • ऩाठ – गिल्ऱू ऱेखिका – महादेवी वमाा

    प्रश्न 1 सोनजुही में ऱिी ऩीऱी कऱी को देिकर ऱेखिका के मन में कौन - से ववचार उमड़ने ऱिे ? उत्तय - सोनजुही भें रगी ऩीरी करी को देख कय रेखखका को अऩने ऩारतू जीव गगल्रू की माद आई , जो इस रता की सघन हयीततभा भें तिऩकय फैठता था औय अकसय कूदकय उन्हें चौंका देता था | आज बी उसकी भतृ्मु उऩयाॊत उन्हें चौंकाने आमा है |

    प्रश्न 2 ऩाठ के आधार ऩर कौए को एक साथ समादररत और अनादररत प्राणी क्यों कहा िया है ? उत्तय – रेखखका ने ऩाठ भें कौए को आदय का ऩात्र तफ फतामा , जफ श्राद्ध - ऩऺ भें बायतीम सॊस्कृतत के अनुरूऩ हभ हभाये ऩूववजों को माद कयके उसे बोजन देते हैं औय जफ वह अऩनी आवाज से ककसी प्रिम के आने की सूचना देता है तफ वह सभादरयत िाणी फनता है | अन्म ददवसों भें उसकी ककव श ध्वतन औय खान – ऩान की गॊदी आदतों स े मह िाणी अनादरयत ही यहता है |

    प्रश्न 3 गिऱहरी के घायऱ बच्च ेका उऩचार ककस प्रकार ककया िया ? उत्तय – दो कौओॊ की चोंच के दो घाव से गगरहयी का फच्चा घामर हो गमा था | रेखखका उसे हौरे से उठाकय कभये भें राई कपय रुई से यक्त ऩौंि कय घावों ऩय ऩेंसससरन का भयहभ रगामा औय उसे रुई की फत्ती से दधू प्रऩराने का िमास ककमा ऩयन्तु मह सम्बव न हुआ | फड़ी भुश्ककर से वे उसके भुॊह भें ऩानी टऩकाने भें सपर हुईं | इस िकाय उऩचाय कयने ऩय तीन ददन भें गगरहयी का घामर फच्चा ठ क हो गमा |

    प्रश्न 4 ऱेखिका का ध्यान आकवषात करने के लऱए गिल्ऱू क्या करता था ? उत्तय – रेखखका का ध्मान आकप्रषवत कयने के सरए गगल्रू कबी उनके ऩैयों तक आकय सयव से ऩयदे ऩय चढ़ जाता औय कपय उसी तेजी से नीच ेउतय जाता | उसका मह दौड़ने का क्रभ तफ तक चरता यहता जफ तक रेखखका उसे ऩकड़ने के सरए न दौड़तीॊ |

    प्रश्न 5 गिल्ऱू को मुक्त करने की आवश्यकता क्यों समझी िई और उसके लऱए ऱेखिका ने क्या प्रयास ककया ?

  • उत्तय – जफ गगल्रू के जीवन भें िथभ वसॊत आमा औय कभये के फाहय से गगरहरयमाॉ उसको देखकय गचक – गचक कयने रगी | तफ रेखखका को रगा कक उसे भुक्त कयना आवकमक है अत: उन्होंने खखड़की की जारी का एक कौना खोरकय गगल्रू के आने – जाने की जगह फना दी | श्जससे गगल्रू िसन्न होकय अऩनी स्वजातत भें प्रवचयता औय शाभ होते ही ऩुन् वाऩस आ जाता था | प्रश्न 6 गिल्ऱू ककन अथों में ऩररचाररका की भूलमका ननभा रहा था ? उत्तय – जफ रेखखका अस्ऩतार से घय आई तफ गगल्रू उनके ससयहाने फैठकय अऩने नन्हें ऩॊजों से उसके फार सहराता जो रेखखका को फहुत अच्िा रगता था | गगल्रू का हटना ककसी ऩरयचारयका के हटने के सभान रगता था |

    प्रश्न 7 गिल्ऱू की ककन चषे्टाओं से यह आभास लमऱने ऱिा था कक उसका अतं समय समीऩ है ? उत्तय – गगरहरयमों के जीवन की अवगध दो वषव से अगधक नहीॊ होती अत: गगल्रू की जीवन – मात्रा का अॊत आ ही गमा | ददन-बय न उसने कुि खामा न फाहय गमा | यात भें अॊत की मातना भें वह रेखखका के बफस्तय ऩय आमा औय उसने वहीॊ ऊॉ गरी ऩकड़ री श्जसे फचऩन भें ऩकड़ा था | शयीय उसका ठॊडा होने रगा | रेखखका ने हीटय जराकय उसे गभी देने का िमास ककमा | इन सफ चषे्टाओॊ से मह आबास सभरने रगा कक गगल्रू का अॊत सभम आ गमा है |

    प्रश्न 8 ‘प्रभात की प्रथम ककरण के स्ऩर्ा के साथ ही वह ककसी और जीवन में जिाने के लऱए सो िया |’- का आर्य स्ऩष्ट कीजजए | उत्तय – िस्तुत ऩॊश्क्त द्वाया रेखखका जीवन के मथाथव को िस्तुत कयना चाहती हैं कक जो व्मश्क्त जन्भ रेता है उसकी भतृ्मु बी तनश्कचत है | अत: गगल्रू बी अऩना गगरहयी का जीवन त्माग कय नए जीवन की मात्रा ऩय नए जीवन के सरए चर ऩड़ा |

    प्रश्न 9 सोनजुही की ऱता के नीच ेबनी गिल्ऱू की समागध से ऱेखिका के मन में ककस ववश्वास का जन्म होता है ? उत्तय – सोनजुही की रता के नीच े गगल्रू को सभागध दी गई क्मोंकक मह रता उसे अत्मगधक प्रिम थी | रेखखका बायतीम गचय – ऩुयातन सॊस्कृतत से जुड़ी हैं | उन्हें मह प्रवकवास था कक वह ऩुन् जन्भ रेकय रेखखका को चौंकाने अवकम आएगा |

  • शब्द, ऩद औय ऩदफॊध

    यचनाकाय – प्रौमभरा अय्मय

  • शब्द

    एक मा अधधक अऺयों मा वर्णों से फनी स्वतॊत्र, सार्थक ध्वनन

    उदाहयर्ण – याभ स्कूर फुद्धिभान

  • शब्द के बेद

    अद्धवकायी द्धवकायी क्रिमा – द्धवशेषर्ण सॊऻा स्भुच्चमफोधक सवथनाभ सॊफॊधफोधक क्रिमा द्धवस्भमाददफोधक द्धवशेषर्ण

  • ऩद

    जफ शब्द वाक्म भें प्रमुक्त होते हैं, तफ मे स्वतॊत्र शब्द न यह कय मरॊग, वचन, क्रिमा, द्धवशषेर्ण, कायक आदद के ननमभों से अनुशामसत हो जाते हैं

    अर्ाथत व्माकयणर्णक ननमभों से फॊध जाते हैं उदाहयर्ण –

    याभ वनवास को गए। आज स्कूर की छुट्टी है। फुदिभान होने के सार्-सार् द्धववेक बी होना चादहए।

  • ऩद के बेद

    सॊऻा सवथनाभ क्रिमा द्धवशषेर्ण अव्मम (क्रिमा द्धवशेषर्ण)

  • ऩदफॊध जफ एक से अधधक ऩद जुड़कय एक ही व्माकयणर्णक इकाई का काभ कयते हैं, ऐसे ऩद-सभहू को ऩदफॊध कहते हैं

    बेद – सॊऻा ऩदफॊध सवथनाभ ऩदफॊध क्रिमा ऩदफॊध द्धवशषेर्ण ऩदफॊध क्रिमा द्धवशषेर्ण ऩदफॊध

  • सॊऻा ऩदफॊध

    ऩदफॊध का अॊनतभ ऩद मदद सॊऻा ऩद हो औय अन्म सबी ऩद उसी ऩय आधित हो, तो वह सॊऻा ऩदफॊध कहराते हैं

    मे कताथ, कभथ आदद के ऩूयक के स्र्ान ऩय प्रमोग होते हैं

    उदाहयर्ण- याभ ने रॊका के याजा यावर्ण को भाया। आसभान भें उड़ता गबु्फाया पट गमा।

  • सवथनाभ ऩदफॊध

    जफ एक से अधधक ऩद एक सार् जुड़कय सवथनाभ का कामथ कयें, अर्ाथत जहाॉ भुख्म ऩद सवथनाभ होता है, तो उसे सवथनाभ ऩदफॊध कहते हैं

    उदाहयर्ण- द्धवदेश से आए अनतधर्मों भें कुछ दहॊदी जानते हैं। कऺा भें सदा शोय भचाने वारे तुभ आज चुऩ क्मों हो?

  • द्धवशषेर्ण ऩदफॊध

    जफ एक से अधधक ऩद एक सार् जुड़कय द्धवशषेर्ण का कामथ कयते हैं, अर्ाथत जहाॉ शीषथ ऩद द्धवशषेर्ण हो, तो उसे द्धवशषेर्ण ऩदफॊध कहते हैं

    उदाहयर्ण- भोहन फहुत नेक, ईभानदाय तर्ा ऩरयिभी फारक है। भुझ ेदो क्रकरो द्धऩसी हुई रार मभचथ चादहए।

  • क्रिमा ऩदफॊध

    एक से अधधक क्रिमा-ऩदों से फनने वारे क्रिमा-रूऩों को क्रिमा ऩदफॊध कहते हैं

    उदाहयर्ण- आजकर के द्धवद्मार्ी गाना सुनते-सुनते ऩढ़ते हैं। वह ऩढ़कय, खाना खाकय सो गमा।

  • क्रिमा-द्धवशषेर्ण ऩदफॊध जफ कई ऩदों के मोग से ऐसा ऩदफॊध फने जो क्रिमा की द्धवशषेता फताए, अर्ाथत जहाॉ प्रभखु ऩद क्रिमा-द्धवशषेर्ण हो, तो वह क्रिमा-द्धवशषेर्ण कहराता है

    उदाहयर्ण- भाॉ कर सुफह तक आमेगी। वह रगबग साढ़े ऩाॉच फजे ऩहुॉचा। आरोचना दफी ज़फान से की जा यही र्ी। मह सूखा फारयश न होने से हुआ। महाॉ बुखभयी बूकॊ ऩ की वजह से हुई।

  • धन्मवाद

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