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    पा य म अ भक प स म त अ य ो. (डॉ.) नरेश दाधीच

    कुलप त वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा (राज थान)

    संयोजक / सद य

    संयोजक डॉ. दामीना चौधर सहआचाय, श ा वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा (राज.)

    सद य 1. ो .सोहन वीर सहं चौधर

    इि दरा गाधंी रा य मु त व व व यालय नई द ल

    2. डॉ .अ नल शु ला लखनऊ व व व यालय, लखनऊ )उ.(.

    3. ो .मजंू लका ीवा तव दरू थ श ा प रषद इि दरा गाधंी रा य मु त व व व यालय नई द ल

    4. ो .डॉ. आर .गोयल एम .एस .व व व यालय बड़ौदा, गुजरात

    5. ो .एस.पी .म हो ा कु े व व व यालय, कु े

    संपादन तथा पाठ लेखन

    संपादक मडंल 1. वभा जोशी

    इि दरा गाधंी रा य मु त व व व यालय, नई द ल 3. डॉ .दामीना चौधर

    संयोजक, श ा वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

    [ 2. डॉ . ीमती आशा झगंरन

    सेवा नवृ त वभागा य , श ा गोकुलदास क या महा व यालय, मुरादाबाद )उ.(.

    लेखक 1. ो .रामकशल पा डे

    )सेवा नवृ त( इलाहाबाद व व व यालय, इलाहाबाद

    2. डॉ .दामीना चौधर सहआचाय, श ा वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

    3. डॉ .एम. पार क राज थान व व व यालय, जयपुर

    4. ो .एस.पी .हेला )सेवा नवृ त(

    जा मया म लया इसला मया, नई द ल 5. ो .र ता अरोड़ा राज थान व व व यालय, जयपुर

    6. डॉ .सरयू साद चौबे गोरखपुर व व व यालय, गोरखपुर

    7. डॉ .चन ◌्दा तवार )सेवा नवृ त(

    राज थान व व व यालय, जयपुर

    अकाद मक एवं शास नक यव था ो. नरेश दाधीच

    कुलप त वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

    ो. अनाम जैतल नदेशक

    संकाय वभाग

    ो. पी.के. शमा भार

    पा य साम ी उ पादन एव ं वतरण वभाग

    पा य म उ पादन योगे गोयल

    सहायक उ पादन अ धकार , वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    इस साम ी के कसी भी अंश को व. म. ख.ु व., कोटा क ल खत अनुम त के बना कसी भी प मे ‘ म मयो ाफ ’ (च मु ण) वारा या अ य पनुः ततु करने क अनुम त नह ंहै। व. म. ख.ु व., कोटा के लये कुलस चव व. म. ख.ु व., कोटा (राज.) वारा मु त एव ं का शत।

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    MAED-01 श ा के दाश नक एव ंसामािजक आधार

    वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा (राज.) अनु म णका

    इकाई पृ ठ सं या 1. भारतीय दशन और इसके शै क न हताथ 7 2. गीता के शै क न हताथ 21 3. जैन दशन तथा उसके शै क न हताथ 33 4. बौ दशन तथा उसके शै क न हताथ 43 5. इ लाम का श ा-दशन 63 6. अ वैत वदेा त दशन और उसके शै क न हताथ 73 7. श ा मे उ वाद च तन 85 8. गु देव रवी नाथ टैगोर के शै क वचार 108 9. ववकेान द के शै क वचार 119 10. डॉ. राधाकृ णन का श ा दशन 134 11. महा मा गाधंी का श ा दशन 142 12. आदशवाद 148 13. कृ तवाद 158 14. योजनवाद 171 15. यथाथवाद 185 16. मानवतावाद 205 17. अि त ववाद 215 18. श ा और सं कृ त 225 19. श ा के अ भकरण – प रवार, सम-समूह 237 20. व ान व ौ यो गक के यगु म श ा 246 21. श ा और आधु नक करण 251 22. श ा और सां कृ तक प रवतन 263 23. भारत मे श ा और आ थक वकास 282 24. भारतीय राजनी त तथा श ा 291 25. भारत मे श ा और जात 304 26. श ा और धा मक नरपे ता 321 27. समाजवाद और श ा 333 28. श ा और मानव अ धकार 345 29. भारत म श ा और मू य क सम या 358 30. श ा और सूचना ां त 367 31. भ व य व ान एवं श ा 381

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    इकाई-1 भारतीय दशन और इसके शै क न हताथ

    1.0 उ े य तथा ल य 1.1 भारतीय दशन का व प 1.2 भारतीय दाश नक णा लया ं1.3 चावाक दशन 1.4 बौ दशन 1.5 जैन दशन 1.6 याय-वशैे शक 1.7 मीमासंा (पवू एव ंउ तर) 1.8 मीमासंा 1.9 भारतीय दशन क मलूभूत वशेषताएं 1.10 वमू यांकन 1.11 स दभ

    1.0 उ े य तथा ल य इस इकाई क समाि त पर आपको इस यो य हो जाना चा हए क आप:

    दशन का अथ, दशन श द क उ पि त, इसका ार भ और भारतीय दशन के व प को बता सक।

    भारतीय दाश नक णा लय को गना सक । आि तक एवं नाि तक दशन का भेद बता सक । चावाक बौ एवं जैन दशन के मु य वचार बता सक । भारतीय दशन के व प एवं मु य भाव का वणन कर सक । भारतीय दशन के वषय मे न कष नकलते हु ए इनक मूलभूत वशेषताओं क

    ओर संकेत कर सक ।

    1.1 भारतीय दशन का व प 1.1.1 दशन या है? :- मानव जीवन वय ंएक दशन है। ससंार का येक मानव

    दाश नक ह य क वह ज म से मृ य ुतक घ टत होने वाल सभी घटनाओं को उ सकुता एव ंकौतूहल से देखता है। अपने नवीन अनभुव से नी त एव ं नयम का आ व कार करता है। येक नई बात तक पहु ँचना उसका वभाव है। नई प रि थ तय म न कष नकाले बना मनु य को शाि त नह ं मल सकती तभी तो वह ज मजात दाश नक है। उसका जीवन दशन क खुल पु तक

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    है। वह स य का ाहक है, त य का अ वेषक है। सुकरात ने स य ह कहा है जो पणू स चाई का अ भलाषी हो वा त वक दशन वह है|

    1.1.2 दशन श द का अथ :-कुछ दाश नक का वचार है क ाकृ तक या बौ क अथवा अ याि मक जगत के त व अ य त सू म है वे ने ि य क सीमा से परे है इस लए दशन श द का अथ ान ा त करने से लगाना उपयु त है। दशन श द का योग कस समय से ार भ हुआ यह कहना क ठन है। इशोप नश शु ल यजुवद-सं हता के चाल सव अ याय के

    अि तम लोक म ये श द आया है। डॉ. भगवान दास अपनी पु तक दशन का योजन म इसे ह दशन श द का थम योग

    देखने के अथ म वीकार करते है। दशन श द भारतीय सं कृ त म सदैव एक शा के प म हण कया गया है। जसेै - ष दशन, सवदशन सं ह आ द । स षडदशन म पतंज ल के योग

    सू पर यास वारा न मत भा य और सां य के व ता पचं शखचाय के एक सू का उ रण दया गया है। एकमेव दशन म ् या तरेव दशन म'् '। ट काकार के अनसुार इसका अथ है ान ह एक मा अं तम दशन है।

    1.1.3 दशन का ार भ:- येक यि त के जीवन का कोई न कोई दशन अव य होता है। चाहे यि त को उसके स ब ध म चेतना हो या न हो जसैा क ह सलो लखता है-

    सभी लोग अपने-दशन के अनु प अथात ्जगत के स ब ध म अपनी धारणा के अनसुार जीवन बताते है यह बात च तन शू य लोग के लये भी सह है। त व ान के जीवन अस भव है। त व च तन अथवा त व च तन शू यता के बीच हमारे पास कोई वक प नह है अ पतु वक प केवल सुत व च तन और कुत व च तन के बीच है। भारत के दशन का उ गम अस तोष या अतिृ त से माना जाता है। यि त वतमान से

    अस तु ट होकर े ठतर क खोज करना चाहता है। यह खोज दाश नक गवेषणा कहलाती है। इस कार उपयु त या यान से यह देखने म आता है क भारतीय दशन म नर तर कृ त यि तय , व तुओं एव ंउनके ल य और उ े य के स ब ध म वचार कया जाता है। ई वर जगत और आ मा के रह य ओर उनके स ब ध आ द पर भी काश डाला जाता है।

    1.1.4 भारतीय दशन क प रभाषा :- भारतीय दशन क प रभाषा हम इन श द म कर सकते है। दशन सु यवि थत ढंग से अनवरत च तन करने क एक कला ह। इसम मानव जीवन से स बि धत सम व तुओं पर ता कक ि ट से वचार कया जाता है। साथ ह पारलौ कक जगत और इहलौ कक जगत का स ब ध एव ंउनके रह य क या या आ द पर वचार कया जाता है। दसूरे श द म हम कह सकते है क शा वत सम याओं का च तन ह दशन है । और जो इन सम याओं पर गहनता पवूक वचार करते है वे दाश नक ह भारतीय दशन म च तन-मनन के साथ-साथ वेद को धान थान दया है। वेद क धानता का अथ यह है क ऋ षय क तकातीय सा ात ्अनभुू तय को माण मानना ।

    1.2 भारतीय दशन णा लयाँ भारतीय दशन को ाय: दो भाग म वभ त कया जाता है:

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    1. आि तक दशन 2. नाि तक दशन

    आि तक दशन का अथ ई वरवाद नह ं है। इनको आि तक इस लए कहा जाता है क य क ये वेद क स ता मानते है। नाि तक दशन क स ता नह मानते । नाि तक दशन तीन

    है- 1. चावाक 2. बौ तथा 3. जैन।आि तक दशन मु य प से छह है- 1. सां य 2. योग 3. याय 4. वशैे शक 5. पवू मीमासंा तथा 6.उ तर मीमासंा । इ ह ष दशन भी कहा जाता है।

    भारतीय दशन के इस वभाग को नीचे दशाया गया है:

    अब हम भारतीय दशन का सामा य प रचय ा त करगे-

    1.3 चावाक नाि तक दशन म चावाक दशन ाचीनतम कहा जा सकता है। चावाक चेतना को शर र

    से ह उ प न मानत े है। ये चतै य शर र को ह आ मा मानते है। ई वर के अि त व को ये नकारते ह अजर अमर आ मा को ये नह मानते ।

    जगत को ये वाय,ु अि न, जल तथा पृ वी से न मत मानते है। सकं प क वत ता को ये नह मानते । पु गल को ये परमत व मानते है तथा जगत को याि क मानत े है। इस कार यह दशन भौ तकवाद है।

    चावाक दशन के अनसुार केवल य ह माण है। कसी अ य कार के ान क मा णकता स नह क जा सकती । हम बहु त सा काम अनमुान से करते है क तु उसका यह

    ता पय नह क अनभुव ान ाि त का मा णक साधन है। अनमुान या त पर आधा रत होता है और याि त बनाना असभंव है य क सभी ि थ तय का नि चत ान नह ं होता । गलत याि त के आधार पर गलत अनमुान लगाया जाता है। अत: अनमुान स भव नह है। जगत का कोई कारण नह अत: अनमुान क वशेष आव यकता नह है। कुछ अनमुान स य नकल सकत ेहै क तु यह आकि मक संयोग है।

    जीवन का उ े य भौ तक सुख क ाि त है। यह दशन परलोक, पनुज म आ द म व वास नह करता और सांसा रक सुख को ह धानता देता है।

    1.4 बौ दशन गौतम बु के उपदेश से बौ दशन क उ पि त हु ई । स ाथ जरा, मरण तथा रोग के

    दयनीय य को देखकर वत हु ए थे ओर तप एव ं ान के वारा उ ह ने परम स य को जाना, बु बने और अपन धम तथा दशन का उपदेश दया ।

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    बौ दशन के अनसुार चार आयस य है- 1. दःुख अथात ्संसार दःुख से प रपणू है। 2. दखु समुदाय अथात ्दःुख के कारण है। 3. दःुख नरोध, अथात ्दःुख का नाश स भव है। 4. दःुख नरोध माग, अथात ्दःुख का नरोध करने के लए एक सु नि चत माग है।

    दःुख नरोध से नवाण ा त होता है। नमाण ाि त के लए अथवा दःुख नरोध के लए बु ने िजस माग का तपा दत कया है। उसको अ टमाग कहते है जो न न ल खत आठ त व से बना है।

    1. स यक् ि ट 2. स यक् संक प 3. स यक् वाक् 4. स यक् कमा त 5. स यक् आजीव 6. स यक् यायाम 7. स यक् मृ त 8. स यक् समा ध

    उपयु त आठ साधन अ वधा तथा तृ णा का नाश करत े है और पनुज म क संभावना नह ं रहती । ऐसी दशा को नवाण कहा गया है।

    भौ तक या आ याि मक िजतनी भी घटनाऐं होती उन सबका कारण होता है। बना कसी कारण के कोई घटना नह हो सकती । इसे ह बौ दशन म ती यसमु पा य कहा गया है। ाचीन बौ दशन म न य आ मा के अि त व को अ वीकार कया गया है । आ मा व ान

    के वाह का संघात मा है। नवाण से पनुज म से मुि त मल जाती है। काला तर म बौ दशन के न न ल खत चार स दाय बन गये-

    1. मा य मक मत का शू यवाद । संसार शू य है। 2. योगाचार या व ानवाद । जो व तु बाहर दखाई पड़ती है वह चत क तीत

    मा है। 3. सौ ां तक मत । बा य और आ य तर दोन स य है । मन से बा य चत क

    तीत मा है। 4. वैि वक मत । हम बा य व तु को ह पहले देखते है । यह बा य य वाद भी

    कहा जाता है। बौ दशन ने भारतीय वचारधारा को काला तर म बहु त भा वत कया ।

    1.5 जैन दशन जैन दशन के अनसुार व त ुके अन त धम होते है। केवल अपने ात धम के वषय म

    हठ करना म या है। काल के योग से व तु क अन तता म वृ हो जाती है। पणू ान मनु य के लए स भव नह है। केवल केवल सव ह सम त ान रख सकता है।

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    स य सदा सापे है। यह नरपे नह होता । हम व तुओं का आं शक ान होता है। इसे नये कहा गया है। हमारा ान सभी ि टय से सच नह हो सकता । अत: जैन दशन म स य को कहने के लए शायद । यात ्लगा दया जाता है। इसे यादवाद कहा गया है। सय को सात कार के नये से कहा जाता है। यह स तषगंी ने कहा गया है जो न न ल खत है-

    1. यादि ता शायद है। वधायक प 2. या !नाि त । शायद नह । तपेशा मक नये । 3. याि त च नाि त च । शायद है अथवा नह ं है। संयु त परामश 4. या अव त यम । शायद अ नवचनीय है। 5. यादि त च अव त यम च । शायद है और अव त य भी है। थम एव ंचतथु का

    संयोग । 6. या नाि त अव त ययम ्च । शायद नह है और अ नवचनीय भी है । दसूरे तथा चौथे

    का संयोग । 7. या अि त च या नाि त च वाद अव त यम ्च । शायद है, नह ं और अ नवचनीय

    भी है। तीसरे तथा चौथे का संयोग। इस कार हम देख रहे है क जैन दशन म परामश के सात प है। येक नये के साथ

    यात ्जोड़ दया गया है जो आं शकता को कट करता है। जैन दशन अ य धक उदार है। इसके अनसुार जीव सव यापी नह है। इसके भेद है। इसका गणु चेतना है। आ मा का व प चतै य ह। यह वय ं का शत है और दसूरे को भी का शत करता है। आ मा न य है। आ मा के अि त व को जैन दशन म वीकार कया गया है ।

    वमू यांकन नीचे लखे न के उ तर अ त सं ेप म द िजए - 1. भारतीय दशन का व प बताइये | 2. भारतीय दशन के वभाग ल खए | 3. शावाक दशन के अनुसार अनुमान को माण यो नह माना गया ? 4. शावाक के अनुसार जीवन का उ े य ल खए |

    1.6 याय-वैदे शक 1.6.1 याय दशन - भारतीय दशन म तक शा के लए याय-शा श द का योग

    कया जाता है। याय श द का एक अथ उ चत अथवा वांछनीय भी होता है। याय दशन म धानतः शु वचार के नयम तथा त व ान ा त करने के उपाय का वणन कया गया है। याय के अ ययन से यिु त-यिु त वचार करने तथा आलोचना मक ि ट से सोचने समझने क

    शि त बढ़ती है। याय दशन के वतक मह ष गौतम थे, जो अ पाद के नाम से भी स है। इसी

    कारण याय शा को अ पाद-दशन भी कहा जाता है।

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    अ य भारतीय दशन के सामने याय-दशन म भी दशन म भी दशन के व भ न प का सांगोपाग वणन मलता है, पर तु याय का मुख योगदान ान मीमांसा के े म है। याय दशन के मुख वषय ान ाि त के साधन तथा या है।

    याय-दशन के अनसुार बा य व तुओं का अि त व हमारे ान पर नभर नह रहता, अथात ्व तुओं का अि त व ाता से वतं रहता है। मान सक भाव का जसेै-हष, वषाद भय, ोध आ द भाव का अि त व मन पर नभर करता है। जब तक मन उसक अनभुू त नह ं कर

    लेता तब तक उनका कोई अि त व नह रहता, पर तु कुस , मेज कलम आ द बा य पदाथ हमारे मन पर नभर नह है। हम उनके बारे म कोई ान न हो तब भी उसका अि त व रहेगा ।

    याय-दशन कामत पवू ज म क ओर भी झुका हुआ है और उनका कहना है क बालक जब ज म के समय अपने मुख से हष व वषाद कट करता है तो वह भावना उसके पवू ज म क मृ त के फल व प ह है। वह व व म अलग-अलग तर पर सुख-दःुख आ द भोगता है।

    याय-दशन के अनसुार ान- ाि त क या म चार त व होते है - माता, मेय, माण तथा म त । माता ान ा त करने क साम य रखने वाले िज ासु अ व श ाथ को

    कहते है। मेय ेय- वशय अथवा िजस वषय का अ ययन करना है।, उसे कहते है। माण उस साधन को कहते है, िजसके मा यम से जान ा त कया जाता है म त उस यथाथ को कहते है, जो नि चत तथा ु ट र हत होता है । पदाथ का प ट कृ तकरण ह शान कहलाता है।

    माण-शा न केवल पदाथ का यथाथ- ान ा त कराने म सहायक होता है, बि क ान क वधैता का पर ण करने म भी सहायक होता है। याय-शा क मा यता है क हमारे

    मि त क म जगत का ान िजस प म कट होता है, वह अ धकाशं व वसनीय होता है। सभी कार का ान यथाथ को द शत करता है । हमारे शर र क ाकृ तक रचना इस कार क है क हम इि य वारा एक वशेष प रणाम पर पहु ँचत ेहै। िजस मनु य क इि या ं व थ तथा संवेदनशील है और िजसम सोचने क शि त है, वह उपयु त या स प न कर सकता है । जब कभी हमारे मन म पदाथ क यथाथता का ान ा त करने के लए आकां ा होती है, तो हम ता कक आलोचना के लए एक वषय मलता है। यथाथ के अ वेशणका काय तो मान काय-कलाप म पहले से ह व यमान रहता है, याय-शा उसे उ प न नह कर सकता, पर तु तक शा वह वै ा नक व ध है, िजसके मा यम से यथाथ का पता अ धक संगत तथा भावो पादक ढंग से लगाया जा सकता है।

    याय-शा ी यह मानता है क त य एव ं मू य पथृक-पथृक् नह ं है, तथा जो व ध त य का पता लगाने के लए यु त क जाती है, वह व ध मू य के अ वेषण के लए यु त क जाती है। याय शा के अनसुार मू य त य के साथ जुड़े हु ए है, और उनका अ ययन त य के साथ हो सकता है। याय दशन के अनसुार हमारे अपने नजी अनभुव, तथा सं कार एव ंपर पराओं के आधार पर ससंार के वषय म ान हमारे कोष म पहले से व यमान रहता है। याय नवीन ान दान नह करता, अ पतु उन भ न- भ न उपाय का वग करण करता है,

    िजनके वारा हम पदाथ स ब धी यथाथ ान ा त होता है। वे उपाय माण के प म है जो न न ल खत है-

    1. य , 2. अनमुान,

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    3. उपमान, 4. श द अथात ्आ त माण ।

    1.6.2 वशैे शक दशन:- वषेै शक दशन के वतक मह ष कणाद, है िजनका वा त वक नाम उलूक था । इसम वशेष क वशेष या या क गई है इसी लए इसे वषेै शक दशन कहा जाता है। कृ त के दशन का व लेषण इसम वशेष प से पाया जाता है। इसम सात को टया ंवीकार क गई है।

    1. य, 2. गणु, 3. कम, 4. सामा य, 5. वशेष, 6. समवाय, 7. नषेध ।

    वषेै शक च तन जगत क व तुओं के लए पदाथ श द का यवहार करता है। पदाथ दो कार के होत ेहै:

    1. भाव पदाथ 2. अभाव पदाथ

    भाव पदाथ के छह भेद माने जाते है िजनका उ लेख ऊपर को टय के अ तगत हुआ है। आ मा एक य है िजसका असाधारण गणु चैत य है। आ मा के दो भेद है-

    1. जीवा मा 2. परमा मा।

    जीवा मा के पाचँ सामा य और नौ वशेष गणु है। ये न न ल खत है- सामा य गणु

    1. सं या 2. प रणाम 3. पथृ क व 4. संयोग 5. वयोग

    वशेष गणु 1. बु 2. सुख 3. दःुख 4. इ छा 5. वेष 6. य न 7. भावना 8. धम ।

  • 14

    9. अधम जीवा मा के मु त हो जाने पर वशेष गणु वलु त हो जात ेहै क त ुसामा य गणु सदैव

    व यमान रहत ेहै। आ मा न य ह यह शर र से भ न है। वषेै शक दशन म परमा मा या ई वर क स ता वीकार क गई है। अ धकतर वषेै शक

    दाश नक का मत है क ई वर का शर र नह ं होता । कुछ के मत म संसार जीव के धम अधम से ई वर का शर र प म अवतार हेता है। कुछ के मत म परमाणु और कुछ के मत म आकां ा ह ई वर का शर र है।

    1.7 सां य-योग 1.7.1 सां य:- सां य का अथ है स यक् यथात ान । अपने चार ओर व यमान

    संघष व वभेद को यथाथ समझने वाले सामा य जन के संकु चत लौ कक ि टकोण से सवथा वपर त क पल क यह श ा है क सम त पदाथ का े व तुतः सात य का एक ऐसा य है जो अनेकतामय होने पर भी मलूतः समायोिजत एकता पर आधा रत है। कृ त एव ंपु ष के संयोग से ह सिृ ट का नमाण होता है। कृ त और मनु य दो वाधीन स ताय है पर तु उनम संयोग क मता है । इसी संयोग के कारण कृ त के गणु का सामंज य ढ़ता है और वकास का आर भ होता है ।

    यह कृ त एक कार का अ वक सत व अ य जग मलूक अ य त है। वा त वक प से वह मौ लक पदाथ तीन गणु सत, रजस, तमस क सम व ट से न मत एक जड़ त व है। कृ त के मलू म ि थत यह तीन गणु व तुतः अग णत स य त व के समुदाय है जो वय ं

    को आ त रक व बा य जगत के दःुख सखु, मोह, काश विृ त- नयमन तथा, उ साह, ग त और जड़ता के प म कट करत े है। इस कार सिृ ट के भौ तक व मान सक दोन ह व प इस कृ त त व के ह वक सत त व के य त प है । कृ त न चल और आ वभूत दो अव थाओं

    म रहती है। न चल दशा म तीन अंग भूत गणु क समाि ट यव था म रहती है पर त ुजगदा वशाव क ि थ त म यह तीन गणु वशै याव था को ा त करते है। इस कार यह तीन गणु से पर पर संघष करते है, सहयोग करते है तथा धानता क ाि त का य न करते है।

    सां य-दशन का पु ष- अतेनि य चेतन त व इस बा य जगत का सा ी होता है। यह पु ष मलू प म अमूत, चेतन, न य, सवगत, अक ती, नगुण, सू म आ द वशेषताओं से यु त है। सां य दशन का यह पु ष ह अ य दशन क आ मा है। सां य पु ष भी अनेकता म व वास करता है।

    सां य का पु ष वशु चेतन त व नि य एव ं कृ त । जड़ पु ष के संयोग से स य है। दोन के संयोग से तझ लत होता है। क पल के मत से येक जीव एक लघ ुत व समि ट है िजसका नय ता पु ष और नयि त परूक त व म कृ त, महत,् अहंकार, मन, 5 ानेि या,ं 5 त मा ाय और पचं महाभूत पृ वी, जल, तेज, वाय ुआंकाषा नाम त व प रग णत होते है। इस सबसे संब जाग त समि ट है। पर उस यि ट के समि ट के साथ अ यो या परता पर अ धक जोर नह ं दया गया है। सां य म 25 त व का वणन मलता है उसी कार योग दशन म ई वर त व और समा हत होता है। अत: योग दशन म 26 त व माने गये है।

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    सां य दशन म ान पाचँ कार का माना गया है- माण, वपयय, वक प, न ा, व मृ त । माण, य अनमुान और श द तीन ह। इसी को क पल भा अथात ्यथाथ ान के

    साधन भूत तीन माण कहत ेह िजसम दसूरे माण अनमुान के वारा कृ त क स ता स होती है।

    मानव व उसक नय त सां य वारा व णत ह जग शर र, मन, इि य आ द से ब होता है तभी वह जीव कहलाता है येक जीव का एक थूल शर र होता है जो मृ य ुके समय न ट हो जाता है मानव एक सू म शर र भी होता है िजसके साथ मानव शर र थलू शर र के साथ जीवा मा पनुज म लेती है। कसी भी जीवन म येक पु ष का जीवन च र उन मान सक व शार रक गणु के म त वकास से आर भ होता है िजनके कारण वह शर र धारण करता है।

    1.7.2 योग दशन :- सां य दशन सिृ ट के वकास हेतु तथा पु ष और कृ त के संयोग के लए ई वर क धारणा को आव यक नह मानता है। योग, यहां सां य से भ न हो जाता ह वह आि तक है। उसका व वास, पु ष एव ं कृ त से ऊपर उठकर ई वर जैसी परम शि त तक पहुचँ जाता है।

    शु एव ंअ वनाशी आ मा के प म वय ंका, आ याि मक अ त ि ट या ा, वारा बोध ा त लेना अथवा अपने शु अ वनाशी व प से आ म सा ा कार कर लेना ह मो का एक-मा उपाय है। आि मक स य क ती त अथवा अ त: अनभुू त तब तक नह हो सकती जब तक कोई यि त अशु एव ंअशुभ वचार से ल त है । शु ता के प चात ्ह मो के लए आ म सा ा कार क साधना स भव है। इस साधना अथवा योग-साधना के लए योग-दशन वारा आठ साधन बताये गये है िज हे योगा ग कहा गया ह इन योगा ग के पणू अ यास से मनु य योगी क ि थ त म आ जाता है और योगी शु ती अ त ि ट वाला यि त होता है। यह स य का अनभुव करता है, वह शु आ मा के व प को पहचान लेता ह इस कार, योगी मो का अ धकार होता है। वे आठ योगा ग जो योग-साधना म सहायक है, न न ल खत है -

    1. यम 2. नयम 3. आसन 4. ाणायाम 5. याहार 6. यान

    1.7.3:- इनका अ यास यि त को सांसा रक वासना तथा असत ् वचार से दरू एक शु योगी बना देती है, और तभी गत ् वचार स भव है। अत: मो के माग पर बढ़ने के लये अ टा -साधना अ नवाय है।

    1. यम- यम के अनसुार, कसी ाणी को कसी कार का आघात नह ं पहु ँचना चा हये, मन, और वचन से सच बोलना चा हये, कसी कार क चोर नह ं करनी चा हये, अपनी वासना मक विृ तय पर नय ण रखना चा हये तथा दसूर से अनाव यक व तुऐं दान प म भी नह लेनी चा हये । इस कार 1 अ हसंा, 2. स य, 3.आ तेय, 4. मचय और 5. अप र ह ये पाँच यम है। ये साधनाऐं योगी के लये परम आव यक है अ यथा वह शु होकर स य ान ा त नह

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    कर सकता और समा ध थ होकर आ म सा ा कार करना उसके लये कभी स भव नह ं हो सकता । आ म-शोध के लए इनका अ यास आव यक है।

    2. नयम- नयम के अनसुार 1 भ च 2. स तोष, 3.तपस ् 4. वा याय तथा 5. ई वर णधान क आदत ेडाल लेनी चा हये । शोध अथात ्शु ता बा य शार रक और अ यांतर अथवा

    मान सक होती है । जो कुछ ा त हो सके उसी से तृ त रहना, यह स तोष है । उ णता तथा शीत के सहन करने क मता उ प न करना तपसव ्कहलाता ह धम- थ के अ ययन म संल न रहना वा याय के अ तगत आता है । ई वर- णधापन के नयम के अनसुार ई वर-च तन और उसके त समपण योगा ग साधना के अ तगत आता है ।

    3. आसन- यानावि थत होने के लये शार रक बाधाओं से मिु त भी आव यक है । अत: योग-दशन, शर र का पु ट एव ं नरोगी रहने के लए कुछ आसन बताता है । ये योगासन कहलाते है,प ासन., भ ासन, वीरासन आ द कई आसन का नदश योग-म कया गया है ।

    4. ाणायाम- ाणायाम वास- या के उ चत नय ण से स ब ध रखता है । ाणायाम क परूक, कु भक, रेचक ये तीन अव थाय होती है । ाणायाम दय को शि त देने म लाभदायक होता है ।

    5. याहार-इि य- नय ण याहार कहलाता है । अपनी इि य को अनेक व तुओं से उ ी त न होने देना और उ ह अपने मन को वशीभतू कर लेने क दशा याहार क दशा है । साधना के ये पाचँ अंग ब हर ग-साधन कहलाते है, य क वे शर र और इि य नय ण से स ब ध रखते ह इनका अ यास शार रक साधना के अ तगत है ।

    6. धारणा- धारणा के अनसुार चत पर नय ण पाने का अ यास कया जाता है । चत को वांछनीय पदाथ पर ह केि त करना धारणा कहलाता है ।

    7. समा ध-योग क अि तम अव था है समा ध । समा ध म मनस ्एक पदाथ पर यान केि त कर उस पदाथ से अपने आप को एक कर देता है और अपना व व खो बठैता है ।

    धारणा यान और समा ध मनस ् के नय ण एव ंमान सक साधना से स ब ध है । अत: इन तीन को अ तर ग-साधन कहा जाता है । कसी एक पदाथ पर चत को एका कर उस पर नवाध यान कया जाता है और फर केवल उसी का ान रह जाने पर समा ध क अव था आ जाती है । इस कार ये तीन एक ह पदाथ के त होते है । इ ह संयम कहत ेहै ।

    योगः-साधना से योगी को दैवी-शि तयां ा त हो जाती है । अ णमा, ग णमा लघमुा, म हमा आ द स यां उसके वश म होती ह वह अनेक हसंक पशओंु को वश म कर सकता है, इि छत पदाथ ा त कर सकता है, देवी-देवताओं से सा ा कार कर सकता है, कालदश हो जाता है ता क वह अ त यान और कट हो सकता है । पर योग-दशन योग के साधन को, इन स य के लये साधन न करने क चेतावनी देता है । उसके अनसुार, योग-साधन का ल य मो और स य का लोभ-संवरण करके मो - ाि त तक अपनी साधना म रत रहना ह योगी का परम धम है ।

  • 17

    1.8 मीमांसा (पूव एवं उ तर) 1.8.1 पवू-मीमांसा:- जे मनी वारा तुत पवू मीमासंा दशन पणू प से वेद पर

    आधा रत है और ु त वा य म इसका अ र व वास है । पवू-मीमासंा आव यक प से धम एव ंनी त परायण अ धक है । और इसी कारण मानव जीवन से स बि धत धम और नै तकता व ध और नषेध उ चत और अनु चत आ द का वशद वणन इसम मलता है ।

    मीमासंा दाश नक ने वसेै तो परम शि त के प म ई वर क वीकार कया पर तु उनका वशेष आ ह बहु दव वाद क ओर है । अनेक देव क स ता के साथ साथ ह वग और नरक क स ताओं कम नयम, पनुज म आ मा क न यता आ द म इनका व वास है । इस दशन के अनसुार- य, गणु, कम, सामा य परत ता, भि त, सा य व सं या नामक आठ पदाथ है । इनके अनसुार य नौ है जो पृ वी , जल, अि न, वाय,ु आकाश, आ मा, मन, काल और थान सम त सिृ ट क रचना इ ह ं य से होती है । मानव जीवन का पनुज म अपवू स ा त के वारा नयि त होता है । यह अपवू याय वषेै शक के अ य स ांत के समान है ।

    1.8.2 उ तर मीमासंा:- उ तर मीमासंा को वेदा त भी कहा जाता है । वेदा त का श दाथ है-वेद का अ त ार भ म इस श द से उप नषद का बोध होता था । पहले उप नषद के आधार पर िजन वचार का वकास हुआ उनके लए भी इस श द का यवहार होने लगा । उप नषद को भ न- भ न अथ म वेद का अ त कहा जा सकता है-

    उप नषद वै दक यगु के अि तम सा ह य है । वै दक काल म तीन कार के सा ह य देखने को मलता है । सबसे पहले वै दक मं को भ न- भ न सं हताओं ऋ वेद, यजुवद, सामवेद म संक लत है । त प चात ् ा मण भाग िजसम वै दक कमका ड क ववेचना है । अंत म उप नषद िजसम दाश नक त य क आलोचना है ।

    वेदा त श द का योग सबसे पहले उप नषद म कया गया । उप नषद को ह वेद का अि तम भाग कहा जाता है । य क उप नषद म वेद के रह यमय स ा त का तपादन है । क तु उप नषद म वरोध का प रहार करने के लए वेदनारायण यास व ब मसू क रचना क । इसम 550 सू है और वेदा त दशन का यह आधार है । वेदा त सार णेता सदान द के अनसुार-वेदा त वह शा है िजसके लए उप नषद ह माण है । वेदा त म िजतनी बात कह गई है उन सबका आधार उप नषद है । वे सभी च तन धाराएं, िजनका उ गम वेद से हुआ है वेदा त के अ तगत आती है । भारतीय च तन का चरम उ कष वेदा त-दशन म मलता है । वेदा त शाखा के आ द वतक शंकराचाय थे । शंकराचाय का वेदा त दशन कहलाता है ।

    शंकराचाय के अनसुार हम सब मूलतः अन त भि त के ोत है, हम द य- ि ट स प न है, हम अन त ान से यु त है, पर तु अ व या के कारण इस अन त ान द य ि ट तथा अन त शि त को पहचान नह ं पाते तथा अपने को अ ानी, सी मत ि ट वाले तथा नबल पाते है । श ा अ व या से मुि त कराती है तथा स ान क ओर े रत करती है, उनम कोई वतैभाव नह ं है । इस ि ट म, जो अनेक आ माएं तीत होती है, वे सभी वा तव म सिृ ट के

    अ तराल म बठैकर हम म को न देखकर उसके वकृत प को देखते है । मुि त का ल य ा त करने क तैयार के प म वेदा त म चार सोपान का उ लेख कया गया है-

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    थम साधन-मुमु के लए थम आव यकता है न य और अ न य पदाथ के बीच ववेकपणू भेद कर सकना । इसके अ तगत जगत और मा के बीच भेद, शर र और आ मा का भेद, आ मा और परमा मा क एकता, साधन और सा य के बीच अ तर आ द ववेक का समावेश होता है ।

    वतीय साधन- ववेकपणू ान- ाि त के प चात ्तृ णा का याग आव यक है । अनेक लौ कक एव ंपारलौ कक भोग है, िजनक आकां ा मा यि त को असंय मत कर देती है और ल य क ओर बढ़ाना क ठन कर देती है । अत: वतीय साधन है लौ कक एव ंपारलौ कक भोग क ओर वृ त करते है ।

    चतथु साधन- उपयु त तीन साधन को ा त करने के बाद साधक को ल य ाि त के लए ढ़ संक प करना चा हए । बना संक प के अ यवसाय नह ं होता और अ यवसाय के अभाव म ल य ाि त नह ं हो सकती ।

    वेदा त म भी अ य भारतीय दशन के समान वदेह मुि त के साथ ह जीवन मुि त क क पना क गई है । मो ा त करने के बाद भी शर र तो रह सकता है, पर त ुमु ता मा अपने आपको शर र नह मानता । ान ा त हो जाने से यह ससंार न ट नह हो जाता, पर तु म या लगने लगता है । ससंार क तृ णाएं उसे मो हत नह ंकरती ।

    मु त आ मा सब ा णय म अपना व प देखती है । अत: वह कसी के साथ भेद-भाव नह ं कर सकता । जगत के लोभन उसे वं चत नह ं कर सकत,े य क उ ह वह म या समझ लेता है ।

    1.9 भारतीय दशन क मूलभूत वशषेताएं अब तक हम लोग ने भारतीय दशन के वषय म अनेक ि ट से वचार कया है ।

    सभी दशन का अवलोकन करने के प चात ्हम कुछ न कष नकाल सकते है और भारतीय दशन क मूलभूत वशेषताओं से प रचय ा त कर सकते है । भारतीय दशन म कुछ मलूभतू सम याओं पर वचार कया गया है । इन सम याओं का संकेत भी इसक मलू वशेषताओं म मलता है इन मूलभूत वशेषताओं के नीचे सं ेप म उ लेख कया जा रहा है ।

    1. आ मा का अि त व:- भारत के. सभी आि तक अथात ्आ मा के अि त व म व वास करते है य य प उसके व प के वषय म उनम मतभेद है ।

    2. जगत का अि त व:-सभी ने जगत के अि त व को वीकार कया ह जगत वा त वक है।शंकराचाय के अ वतै दशन के अनसुार ससंार नरपे ि टकोण से म या है क त ुयावहा रक प से उ ह ने भी इसक स ता वीकार क है । बौ के कुछ स दाय भी संसार क स ता यवहा रक ह मानते है ।

    3. संसार क दखुमयता-अ धकतर दाश नक संसार को दखुमय मानते है, इसी लए कुछ आलोचक भारतीय दशन को नराशावाद मानते है क तु यह उनक भूल है ।

    4. दःुख क नविृ त :-सभी दशन यह तो मानते है क संसार दःुखमय है क तु वे यह भी मानते है क इस दःुख का नवारण स भव है । इस ि ट से भारतीय दशन आशावाद हो जाते है ।

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    5. मो -लगभग सभी दशन का व वास मो म है । केवल चावाक इसे वीकार नह करत।े

    6. कम का स ा त:- चावाक दशन को छोड़कर भारत के सभी दशन कम से नयम को वीकार करत ेहै। शुभ कम का फलन अ नवायतः शभु होता ह और अशभुकम का फल अ नवायतः अशुभ होता है । यह कम- नयम है । यह नै तकता के े म काम करने वाला कारण-काय नयम है|

    7. पनुज म:-चावाक को छोड़कर सभी दाश नक मत आवागमन, ज मा तर एव ंपनुज म म व वास करते है । ज मा तर का कारण अ ान, अथवा म या ान है । जब ान से अ ान का नाश होते है तब ब धन से मुि त होती है और त प चात ्पनुज म नह ं होता ।

    8. वेद क मा णकता म व वास:-कुछ को छोड़कर सभी आि तक दशन वेद को माण मानते है क त ुइसका ता पय यह नह है क वे वेद के अ धानयुायी है । उनम तक-वतक एव ं व लेषण क धानता ह वेद को मा णक मानने का ता पय यह है क ान के सा ा कार एव ं य अनभुू त को मा णक मानना । आि तक दशन ने ऋ षय के सा ात ्अनभुव को मा णक मानते हु ए अपनी ता कक णाल का वकास कया है।

    1.10 वमू यांकन न न ल खत न के उ तर द िजए - 1. याय दशन के अनुसार चार माण कौन – से है ? 2. वैशे शक दशन म सात को टयाँ कौन - सी ह ? 3. जीवा मा के नौ वशेष गुण कौन - से ह ? 4. जीवा मा के पाँच सामा य गुण कौन - से है ? 5. सां य के अनुसार कृ त का या अथ है ? 6. योग के आठ अंग कौन - से है ? 7. बौ दशन के अनुसार आय स य कौन - से है ? 8. बौ दशन म अ टमगा या है ?उ लेख क िजए | 9. जैन दशन के अनुसार आ मा का व प बताइए | 10. भारतीय दशन के व प क ववेचना क िजए | 11. चावाक दशन का मू यांकन क िजए | 12. जैन दशन म या वाद का वणन क िजए | 13. बौ दशन के चार समुदाय का वणन क िजए | 14. सां य दशन म पु ष कृ त के संयोग को प ट क िजए। 15. योग दशन म ई वर के थान पर अपना मत ल खए | 16. पूव मीमांसा और वेदा त एक ह है ? प ट क िजए | 17. या उ तर मीमांसा और वेदा त एक ह है ? प ट क िजए | 18. वेदा त के मूल स ांत क समी ा क िजए |1दा त के अनुसार मु ि त के चार 19. सोपान कौन से ह | या या क िजए | 20. भारतीय दशन क मूलभूत वशेषताओं का वणन क िजए |

  • 20

    21. या भारतीय दशन नराशावाद है ? तक स हत उ तर द िजए |

    1.11 स दभ थ 1. चटोपा याय एव ंद त: भारतीय दशन, पु तक भ डार, पटना, 1956 2. म , उमेश: भारतीय दशन ह द स म त उ तर देश, लखनऊ, 1955 3. रामाकल पा डेय: श ा-दशन, वनोद पु तक मि दर, आगरा, 1990 4. ल मीका त ओड: श ा क -ंदाश नक पृ ठभू म, राज थान ह द थ अकादमी, जयपरु,

    1970 5. Dasgupta, S.N.A History of Indian Philosophy, Cambridge University Press

    Indian Education Moti Lal Banarasidass, 1975. 6. Pandey, R.S.: A Preface to Indian Philosophy of Education .Suk Publishers

    Dhiraj Place, Allahabad.1992. 7. Pandey, R.S. % A Survey of Educational Thought, Horizon Bublisheres

    Darbhanga Castele, Allahabad, 1992. 8. Radhakrishanan,S.:An Indian Philosophy,2 Vols.Mac Millan Co., New York,1992 9. Radhakrishanan, S.: An Idealist View of Life, George Allen & UNWIN Ltd

    London.1957. 10. Warder, A.k Outline of Indian Philosophy,Motilal Banarasidass,Delhi, 1971.

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    इकाई – 2 गीता के शै क न हताथ

    (Educational Implications of the Geeta) 2.0 उ े य तथा ल य 2.1 गीता क प रभाषा 2.2 गीता क मह ता 2.3 गीता क शै क पृ ठभू म 2.4 शै क उ े य 2.5 गीता के अनसुार पा य म 2.8 गीता म श क सकं पना 2.7 जनतं ा मक श ा 2.8 मनोवै ा नक स ा त के अनसुार श ा 2.9 छा क च एव ं मताओं के अनसुार श ा 2.10 आ था व आशा का सचंार 2.11 गीता श ा दशन क वतमान यगु म ासं गकता 2.12 वमू यांकन 2.13 स दभ

    2.0 उ े य तथा ल य इस इकाई क समाि त पर आपको इस यो य हो जाना चा हए क आप :

    यह बता सक क गीता या है । गीता के मह व को आँक सक । गीता िजस पृ ठभू म म व णत है उसका भौ क व लेषण तुत कर सक । गीता म व णत भौ क उ े य क या या कर सक । गीता के अनसुार पा य म का वणन कर सक । गीता म श क क संक पना क ववेचना कर सक । गीता म जनत ा मक श ा के त व पहचान कर उ ह बता सक । गीता म मनोवै ा नक के स ा त के अनसुार श ा क या या कर सके । छा क च, मता, आ था व आशा के स दभ म गीता के त व को बता

    सके। आधु नक युग म गीता के श ा-दशन क उपयो गता बता सके ।

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    2.1 गीता क प रभाषा ी वनाश भावे के श द म गीता परुाने शा ीय श द को नये अथ म यु त करने

    क आ द है| परुाने श द पर नये अथ क कलम लगाना वचार क अ हसंक या है यास देव इस या म स थ है इस लये गीता के श द को यापक अथ ा त हुआ और वह तरोताजा बनी रह एव ंअनेक वचारक अपनी-अपनी आव यकता ओर अनभुव के अनसुार अनेक अथ ले सके । अपनी-अपनी भू मका पर से एव ं अथ जो सह हो सकते है और उनके वरोध क आव यकता न पड़ने देकर हम वत अथ भी कर सकते है। ऐसी ि ट ह इस सल सले उप नषद म एक सु दर कथा है। एक बार देव, दानव और मानव तीन जाप त के पास उपदेश के लये पहु ँचे । जाप तय ने सबको एक ह अ र बताया ' 'द' '। देव ने कहा हम देवता लोग कामी है हम वषय, भोगो क चार लग गयी है । अत: हम मा ने ' 'द' ' अ र दयाह न हो गये है हम 'द' अ र के वारा जाप त ने यह श ा द है क दया करो' ' । मानव ने कहा- ' 'हम मानव बडे लोभी और धन संचय के पीछे बड़े है हम द' के वारा दान करने का उपदेश जाप त ने दया है। जाप त ने सभी के अथ को ठ क माना। य क सबने उनको अपने

    अनभुव से ा त कया था । गीता क प रभाषा का अथ करते समय उप नषद क यह कथा हम यान म रखनी चा हए ।

    वनोबा जी गीता क प रभाषा करते हु ए कहा है क जीवन के स ांत को यवहार मे लाने क कला या यिु त है उसी को योग कहते है। सां य का अथ है क स ातं अथवा शा और योग का अथ है कला ' । गीता, सां य और योग दोन से प रपणू ह और शा और शा कला दोन के योग से जीवन सौ दय खलता है। कोरा शा हवाई महल है। इस लये गीता उप नषद का भी उप नष है और अनभुवी पु ष ने यथाथ ह कहा है क गीता धम ान का एक कोष है।

    महा मा गाधँी ने गीता क प रभाषा करत े हु ए लखा है क गीता जीती-जागती जीवन देने वाल अमर माता है। और लोकमा य तलक ने गीता के वषय म कहा है क गीता हमारे धम थ का एक अ य त तजे वी और नमल ह रा है। अगर हम इन महापु ष क द हु ई प रभाषाओं पर वचार कर तो ऐसा लगता है क गीता धम दशन का कोष है। आ मा क उलझन को सलुझाने वाल शि त है, दन-दु खय का आधार है और सोते को जगाने वाल है य क यह हम क त य और क त य का ान कराती है।

    2.2 गीता क मह ता गीता महाभारत का `एक अंश है, िजसम जग गु ी कृ णा वारा श य तीक प म

    अजुन को श ा द गई ह श ा दशन क ि ट से गीता अमू य न ध ह य क उसम सभी च लत दाश नक मा यताओं तथा स ातं को समाहार मलता है। भारतीय श ा दशन का सार

    य द कह ं देखना हो तो वह है गीता म । गीता म ान क या या इस कार क गई है िजसके वारा सब ा णय म केवल एक

    न वकार भाव देखा जाता है, तथा व वधता म जहाँ एकता दखाई देती है, उसी को साि वक ान कहा जाता है। '' ान ाि त का ल य न केवल मनु य जगत क एकता को पहचानना है अ पतु स पणू जगत म दखाई देने वाल भ नताओं के अ तराल म छपे हु ए सवा मा क अनभुू त

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    करना है जो एक और केवल एकमा स ता है गीता के अनसुार श ा वह है जो येक यि त म न हत म अथवा परमा मा क अनभुू त करवाने म सहायक होती है आ मा क अनभुू त श ा वारा ह हो सकती है िजनके ानच ुखलु गये है, वे ह इस अ तरा मा के दशन कर सकते है, मोहा ध ाणी नह । गीता दशन के श ा उपागम देश काल क सीमा से परे सावका लक एव ं सावदे शक है िजनके आधार पर श ा यि त एव ं समाज दोन के लए क याणकार स हो सकती है । ह नयान के श द म भारतीय च तन के े म लोक यता क ि ट से गीता का थान अ य कसी थं से कम नह है। इसक अ य त अ भलांघा क गई है

    तथा आज भी इसक लोक यता नर तर बढ़ती जा रह है।

    2.3 गीता क भौ क पृ ठभू म उ तर वै दक काल म उप नषद के भाव से य य प वै दक य व कमका ड के

    तजन साधारण क च कम हो गयी थी तथा प मो ाि त हेतु नविृ त माग अथात ्स यास पर अ धक बल दया जाने लगा था इससे लोग म सामािजक दा य व एव ंकमशील जीवन के त वरि त उ प न होने लगी थी । विृ त माग को हेय ि ट से देखा जाने लगा था । नगुण म क उपासना एव ं ान माग को अपनाने क विृ त बढ़ती जा रह थी । यह वृ त

    सामािजक वघटन एव ंसंसार के त वरि त उ प न कर रह थी । इस अस तलुन को दरू करने व नविृ त एव ं विृ त माग म सामंज य एव ंसम वय लाने हेतु एक ऐसे च तन क आव यकता थी जो लोग का यान सामािजक दा य व क ओर आक षत कर उ ह कमशील बना सके ता क साथ ह विृ त माग से उ प न वाथ भावना को नयि त कर सामािजक क याण क भावना वक सत कर सके । यह स तु लत ि टकोण गीता तुत कर सक । गीता दशन से श ा के उ े य, श ण व ध पा य म व श ण श ाथ स ब ध भी भा वत हु ए ।

    गीता श ा- दशन सावका लक है। इसका स ब ध काल वशेष से नह है। सामािजक प रवतन सदैव होते रहते है और उस प रवतन के अनु प सामािजक या को नयि त करने के लए श क को सदा अवतार क भू मका नभानी पड़ती है। सामािजक प रवतन के प रणाम व प उ प न कंुठा को दरू करने के लए श क को यास करना पड़ता है गीता म कृ ण ने

    ता का लक धा मक एव ंसामािजक वकृ तय को दरू करके मानव को न काम कमयोग का पाठ पढ़ाने हेतु अवतार लेकर श क क भू मका नभाई थी । गीता का शै क दशन उप नषद के दाश नक एव ंसावदेशीय श ा-दशन करते हु ए डॉ. रामगोपाल शमा लखते है ''गीता एक व व दशन है उसक श ाएँ अजुन क तरह कंकत य वमूढ़' ' हु ए येक मानव के लए माग-दशन है। गीता वारा तपा दत न काम कमयोग का स देश आज मानव के लए अ य त उपयोगी है। फल क आसि त के याग वारा ह कम वाथ के धरातल से ऊपर उठकर क याण का साधन बन सकता है। गीता मनु य के सामािजक व प पर बल देती ह और नः वाथ कमशील जीवन का समथन करती है। आज मानवता के लए इस श ा का बहु त मह व है । ''

    2.4 शै क उ े य गीता के अनसुार श ा वह है जो येक यि त म न हत म अथवा परमा मा क

    अनभुू त करवाने म सहायक होती है। श ा का -उ े य मनु य को उस अ ान से मु त कराना है जो भेद उ प न करने वाला है।, तथा आ मानभुू त म बाधा है ता क उसे उस काश म ले जाना

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    है जो भेद म अभेद का दशन के समान ह गीता का आ ह भी मनु य को वह आ याि मक मुि त दलवाना है।, िजसके वारा समय यि त व का पा तरण हो जाता है। िजसके फल व प मानवीय कृ त देवी कृ त बन जाती है, नै तक आचरण सहज बन जाते है दैवी सकं प से कम करता है उसक शु कृ त का दैवी कृ त म समाहार हो जाता है। मुि त इस जगत से परे नह ं है। मुि त ा त करने के लए मानवीय जीवन के तनाव को न ट करने क आव यकता नह ं है, अ पतु उ ह पा त रत करने क आव यकता है। मु ता मनु य के शर र, मन, इि या ँआ द न ट न होकर इस कार शु हो जाते है क उनके मा यम से ई वर य यो त के दशन कये जा सकते है। श ा के वयैि तक एव ंसामािजक उ े य का सु दर ववेचन गीता म मलता है । रणभू म म दोन सेनाओं के म य खड़े हु ए अजन क मान सक ि थ त यि तगत वत ता एव ंसामािजक क त य के बीच झूलती है क यु करना चा हये । य क वह य है।

    ीकृ ण ने अजुन को उपदेश दया क उसे यथ का मान सक तक वतक छोड़ देना चा हए क उसके लए या करना उ चत है तथा या अनु चत है, पर तु अजुन इस कार क मान सक शाि त ा त करना नह चाहता । वह अपने आपको एकदम अकेला तथा अ वतीय पाता है। गीता के अनसुार मनु य को नणय लेने क वत ता के फल व प मनु य अकरणीय नह ं कर सकता । येक यि त के अ दर ई वर नवास करता है और जब यि त अ तःकरण क रेणा से कोई कम करता है तो उसके पीछे ई वर य ेरणा व यमान रहती है। चू क सभी ा णय म वह ं ई वर व यमान है इस लए ' वभाव ' अथवा ' व-धम क सहज वृ त से े रत

    मनु य का कम सामािजक अ हत का कारण बन ह नह ं सकता । सामािजक प रवतन के कारण उ प न कुसमायोजन से नबटने के लए श ा को

    अ यवसाय करना पड़ता है इसी को कम कहा जाता है। आज के यगु म कम क मह ता को नकारा नह ं जा सकता । मौ लक सजृन, वै ा नक वकास, औ यो गक ाि त अ धक उ पादन, कुछ कमा त है, पर त ुगीताकार मनु य को एक तरफ से कम के फल से उ प न-अहंकार से बचाता है तो दसूर ओर कम से वफल होने क कंुठा से भी उसक र ा करता है। सामािजक ग त के लए य द मनु य कम करता है और उससे समाज आगे बढ़ता है तो इसका ेय

    कमकार को नह है, बि क ई वर को है। इस कार कम करते हु ए भी य द सफलता नह मलती है तो इसके लए वह उ तरदायी नह है। ''कम येवा धकार ते मा फलेशु कदाचन' ' । अथात ्मनु य का अ धकार कम म है, फल म नह ं । मनु य को तो कम करने का अ धकार है, शुभाशीष कम का फल उसे भगवान पर छोड़ देना चा हये । श ा कम क या म है, उसके वारा ा त प म नह । येक व याथ को ान ा त करने के लए अपनी परू शि त से भरसक यास करना चा हए, सफलता या असफलता को भू पर छोड़ देना चा हए । यह अपे ा श क से भी क गई है क उसे अपना काय उ कृ ट प

    से परेू प र म के साथ करना चा हए और उसके प र म का फल भगवान पर छोड़ देना चा हए । गीता क कम न ठता श ा के कम प म उस प व ता का म त करती है, िजसम कम करत ेहु ए भी यि त म आसि त क भावना नह ंहोती ।

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    वमू यांकन अब तक आपने या समझा,इसका आप वयं मू यांकन न न ल खत अ यास

    न वारा कर ल िजए - न न ल खत न मे से येक के उ तर दो वा य मे द िजए - 1. वनोबा भावे के अनुसार गीता या है ? 2. महा मा गाँधी के अनुसार गीता क प रभाषा बताइए | 3. गीता को सावका लक कैसे कह सकते है ? 4. नकाम कमयोग या है ? 5. गीता अनुसार श ा का उ े य बताइए | 6. गीता अनुसार यथ का मान सक तक- वतक य छोड़ देना चा हए।

    2.5 गीता के अनुसार पा य म उप नषद के समान गीता म भी पा य म को दो भाग म वभ त कया गया है एक को

    ''अपरा वधा ' कहा गया है। तथा दसूरे को ' 'परा' ' सं ा द गई है। अपरा व या के अ तगत सभी कार के व ान का अ ययन तथा मन एव ंबु से ा त अनभुवा मक ान आता है।

    परा व या के अ तगत आ म ान आता है। यह ान, न य पणू तथा सनातन है। अपरा कृ त के येक पायदान के पीछे पर म ई वर क स ता व यमान है यह ‘परा’ व या का सार ह। श ा म शै क उ े य तक पहु ँचने का माग है। ' 'अपरा ' व या के मा यम से जगत के पीछे न हत चेतन-स ता क ु त करवाने के लए व ान, समाजशा सा ह य कला उ योग सभी सहायक होते है। केवल ि ट प ट होनी चा हए । जगत का अ ययन करत ेहु ए भी उसी को पणू न मानकर उसके पीछे न हत चतै य स ता को समझ े। शर र को ह सव व न मानकर इसम न हत उस दैवी स ता को पहचाने ।

    गीता वारा नद शत पा य म बालक को सामािजक उ े य क पू त हो सकेगी । इस कार गीता के अनसुार पा य म बालक को सामािजक दा य व का नवाह करना सखाता है,

    अ तरा मा क आवाज को सुनने समझने एव ंअनका अनसुरण करने क यो यता दान करता है। सामािजक दा य व तो काल एव ंदेश सापे होते है। पर त ुअ तरा मा उसे ववेक से परखने का यो यता दान करता है।

    गीता के अनसुार यवहार क कसौट समाज वारा मा य यवहार नह ं अ पत ुअ तरा मा क कृ त के अनु प यवहार है।

    2.6 गीता म श क संक पना गीता म श क सकं पना अपने मलूभतू एव ंआधा रत अथ म आदशवाद दशन के

    अ धक नकट है िजसके अनसुार गु को म, व ण ुमहेश तथा सा ात ्पर म क को ट म रखा गया है । इसी भावना को त व नत करता हुआ गीता तगत श ाथ अजुन श क कृ ण क अ यथना आ द देव के प म करता है ।

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    गीता के श ा दशन म श ा या के सचंालन म श क और श ाथ दोन क समान सहभा गता है । गीतो त श क सकं पना के स ब ध म अपने वचार को प ट करत ेहु ए ी अर व द कहते है-

    वा तव म गीता म तीन मु य बात मह वपणू है- वे तीन बाते है- श क कृ ण का द य यि त व कृ ण का अपने श य से वशेष स ब ध एव ं श क का वशेष अवसर । यह श क वय ंई वर है जो मानवी प म अवत रत हुआ है । इसे और श य जसैा क हम आधु नक भाषा

    म कह सकत ेहै अपने यगु के मानव का थम त न ध है जो कृ ण का घ न ठ म है और इस अवतार वारा चुना गया साधन है । वह अ य त महान काय और संघष म रत है िजसका मु य योजन इस काय म भाग लेने वालो को ात नह ं है । केवल अवतार कृ ण के अ त र त जो अपने अप र मत ान पद के पीछे से नदश दे रहे है और अवसर एक हसंा मक काय और संघष क वह सं ातं अव था है, उस ण उसक या म व यमान नै तक क ठनाई पीड़ा एव ंअ ध हसंा वयमेव इसके त न ध मानव के मन म एक प ट आघात को बरबस कट करती है।''

    श ा के स दभ म उपयु त तु त न केवल इस ि ट से मह वपणू है क कृ ण ई वर है वरन ्इस ि ट से भी मह वपणू है क मानव के प म यथाथ के धरातल पर टका हुआ यह महान गु अपने श ण के मा यम से सम त श ा शा जो मानव अि त व के लए स भा