गांधी की कहानी (louis fischer)...ग ध क कह न स स अमर...

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  • गांधी की कहानी सु�िस� अमरीकी पकार �ारा िल�खत

    लेखक

    लुई िफशर

    अनुवादक

    चं�गु� वा��य

    �काशक

    स�ा सािह� म�ल �काशन

    एन‐77, पहली मंिजल, कनॉट सक) स, नई िद+ ली‐ 110 001

    फोन / Phone : 011‐23310505, 011‐41523565

    Email : [email protected]

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  • गांधी की कहानी | www.mkgandhi.org

    �काशकीय

    गांधीजी के जीवन‐काल मP, उनके उRग) के बाद भी, भारतीय तथा िवदेशी भाषाओ ंमP

    उनका और उनसे संबंिधत बYत‐सा सािहZ �कािशत Yआ है। ऐसी पु_को ंमP, जो उनके

    िनधन के बाद �कािशत Yई ह̀, सु�िस� अमरीकी पकार लुई िफशर की िद लाइफ

    ऑफ़ महा�ा गांधी अपने ढंग की एक ही है | �_ुत पु_क उसी की िहbी‐cपांतर

    है।

    गांधीजी का जीवन अपने पdरवार या देश तक ही सीिमत नही ंथा। वह सारी मानवता के

    िलए था | इसिलए यह पु_क केवल गांधीजी की कहानी नही ंहै, ब�f भारत के gातंh‐

    संiाम और सारी मानवता के �ित उनकी भावनाओ ंऔर कायj का अपने ढंग का इितहास

    भी है।

    लुई िफशर िस�ह_ पकार थे | सारी सामiी को उkोनें इस तरह से �_ुत िकया है

    िक पु_क पढ़ने मP उपmास का‐सा आनंद आता है | कुछ �संग तो बड़े ही सजीव, मािम)क

    और नाटकीय ह̀ | एक िवदेशी की कलम से अंिकत राpq िपता की जीवनी होने के कारण

    यह हमारे िलए और भी अिधक िदलचsी की चीज़ बन गई है |

    हमP िवuास है िक यह पु_क अिधक‐से‐अिधक के हाथो ंमP पYँचेगी और इसके अwयन

    से पाठक पूरा लाभ उठायPगे।

    ‐ मं�ी

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    दो श!

    ( िवशेष cप से िहbी‐सं{रण के िलए )

    दूसरे देशो ं की अ}र याा करते Yए म̀ िजतना अिधक इस दुिनया को देखता

    ~ँ, उतना ही मेरा िवuास गहरा होता जाता है िक अमरीका, यूरोप, एिशया,

    ( िजसमP भारत भी शािमल है ) तथा अm देशो ंका माग)दश)न, आwा�क अवलंबन तथा

    साहसपूण) कायj की िमसालो ंके िलए गांधीजी की ओर मुड़ने की आवकता है | उनका

    जीवन मानवता की बYत‐सी समाओ ंका हल उप�थत करता है, बशत� िक हम केवल

    वही करP , जो उkोनें िकया था।

    ‐ लुई िफशर

    303, ले�}ंटन एवेmू

    mूयाक)

    15 अग_, 1954

  • गांधी की कहानी | www.mkgandhi.org

    अनु$म

    पहला भाग

    अंत और �ारंभ

    1. �ाथ)ना से पहले मृZु

    2. गांधीजी की जीवन‐झाँकी

    3. पु को प

    4. टाटाय और गाँघी

    5. भावी का पूवा)भास

    6. िवजय

    दूसरा भाग

    गांधीजी भारत म+

    1. घर वापस

    2. ‘गांधी, बैठ जाओ'

    3. हdरजन

    4. नील

    5. पहला उपवास

    6. बकरी का दूध

    7. गांधीजी राजनीित मP

    8. ऑपरेशन और उपवास

    9. धन और गहने

    10. मौन का वष)

    11. थककर चूर

    12. सZाiह की तैयारी

    13. समु�‐तट की रंगभूिम

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    14. िव�ोही के साथ मंणा

    15. वापसी

    16. अि‐परीा

    17. राजनीित से अलग

    18. महायु� का �ारंभ

    19. चिच)ल बनाम गांधी

    20. गांधीजी के साथ एक स�ाह

    21. अद इा‐श�

    22. िज ना और गांधी

    तीसरा भाग

    दो रा,- ो ंका उदय

    1. gाधीनता के �ार पर

    2. भारत दुिवधा मP

    3. गांधीजी से दुबारा भPट

    4. नोआखाली की महान याा

    5. �िम को एिशया का संदेश

    6. दुःखांत िवजय

    7. वेदना की पराकाा

    8. भारत का भिव

    9. आ�खरी उपवास

    10. अंितम अwाय

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    पहला भाग

    अंत और �ारंभ

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    1 / �ाथ2ना से पहले मृ�ु

    शाम को साढ़े चार बजे आभा भोजन लेकर आई। यही उनका अंितम भोजन होनेवाला था

    | इस भोजन मP बकरी का दूध, उबली Yई की भािजयाँ, नारंिगयाँ, ारपाठे का रस िमला

    Yआ अदरक, नीबू और घी का काढ़ा‐ये चीजP थी।ं नई िद+ ली मP िबड़ला भवन के

    िपछवाड़ेवाले भाग मP जमीन पर बैठे Yए गांधीजी खाते जाते थे और gतं भारत की नई

    सरकार के उप‐�धान‐मंी सरदार वभभाई पटेल से बातP करते जाते थे। सरदार पटेल

    की पुी और उनकी सिचव मिणबहन भी वहाँ मौजूद थी।ं बातचीत महपूण) थी | पटेल

    और �धानमंी नेहc के बीच मतभेद की अफवाहP थी।ं अm समाओ ंकी तरह यह

    सम या भी महााजी के प+ ले डाल दी गई थी।

    गांधीजी, सरदार पटेल और मिणबहन के पास अकेली बैठी आभा बीच मP बोलने मP सकुचा

    रही थी। परंतु समय‐पालन के बारे मP गांधीजी का आiह वह जानती थी । इसिलए उसने

    आ�खर महााजी की घड़ी उठा ली और उkP िदखाई | गांधीजी बोले‐“मुझे अब जाना

    होगा।” यह कहते Yए वह उठ, पास के गुसलखाने मP गए और िफर भवन के बाईं ओर

    बड़े पाक) मP �ाथ)ना‐थल की ओर चल पड़े | महााजी के चचेरे भाई के पोते कनु गांधी

    की पी आभा और दूसरे चचेरे भाई की पोती मनु उनके साथ चली ं| उkोनें इनके कंधो ं

    पर अपने बाजुओ ंको सहारा िदया | वह इkP अपनी 'टहलने की छिड़याँ' कहा करते थे।

    �ाथ)ना‐थान के रा_े मP लाल प र के खंभोवंाली लंबी गैलरी थी | इसमP से होकर �ितिदन

    दो िमनट का रा_ा पार करते समय गांधीजी सु_ाते और मज़ाक करते थे। इस समय

    उkोनें गाजर के रस की चचा) की, जो सुबह आभा ने उkP िपलाया था।

    उkोनें कहा‐“अा, तू मुझे जानवरो ंका खाना देती है!” और हँस पड़े।

    आभा बोली‐‐“बा इसे घोड़ो ंका चारा कहा करती थी ं|“

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    गांधीजी ने िवनोद करते Yए कहा‐“¢ा मेरे िलए यह शान की बात नही ंहै िक िजसे कोई

    नही ंचाहता, उसे म̀ पसंद करता ~ँ?”

    आभा कहने लगी‐“बापू, आपकी घड़ी अपने को बYत उपेित अनुभव कर रही होगी |

    आज तो आप उसकी तरफ िनगाह ही नही ंडालते थे |"

    गांधीजी ने तुरंत ताना िदया‐“जब तुम मेरी समय‐पािलका हो, तो मुझे वैसा करने की

    जcरत ही ¢ा है ?”

    मनु बोली‐“लेिकन आप तो समय‐पािलकाओ ंको भी नही ंदेखते |” गांधीजी िफर हँसने

    लगे।

    अब वह �ाथ)ना‐थान के पासवाली दूब पर चल रहे थे | िनZ की सायंकालीन �ाथ)ना के

    िलए करीब पाँच सौ की भीड़ जमा थी | गांधीजी ने बड़बड़ाते Yए कहा‐“मुझे दस िमनट

    की देर हो गई | देरी से मुझे नफरत है। मुझे यहाँ ठीक पाँच पर पYँच जाना चािहए था।”

    �ाथ)ना‐थान की भूिम पर पYँचनेवाली पाँच छोटी सीिढ़याँ उkोनें ज¥ी से पार कर ली।ं

    �ाथ)ना के समय िजस चौकी पर वह बैठते थे, वह अब कुछ ही गज दूर रह गई थी।

    अिधकतर लोग उठ खड़े Yए | जो नजदीक थे वे उनके चरणो ंमP झुक गए। गांधीजी ने

    आभा और मनु के कंधो ंसे अपने बाजू हटा िलए और दोनो ंहाथ जोड़ िलए।

    ठीक इसी समय एक ¦� भीड़ को चीरकर बीच के रा_े मP िनकल आया। ऐसा जान

    पड़ा िक वह झुककर भ की तरह �णाम करना चाहता है, परंतु चँूिक देर हो रही थी,

    इसिलए मनु ने उसे रोकना चाहा और उसका हाथ पकड़ िलया। उसने आभा को ऐसा

    ध§ा िदया िक वह िगर पड़ी और गांधीजी से करीब दो फुट के फासले पर खड़े होकर

    उसने छोटी‐सी िप_ौल से तीन गोिलयाँ दाग दी ं।

    ¨ोहंी पहली गोली लगी, गांधीजी का उठा Yआ पाँव नीचे िगर गया, परंतु वह खड़े रहे।

    दूसरी गोली लगी, गांधीजी के सफेद व©ो ंपर खून के धªे चमकने लगे। उनका चेहरा

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    सफेद पड़ गया | उनके जुड़े Yए हाथ धीरे‐धीरे नीचे �खसक गए और एक बाजू कुछ ण

    के िलए आभा की गरदन पर िटक गया।

    गांधीजी के मँुह से श« िनकले‐“हे राम !” तीसरी गोली की आवाज Yई। िशिथल शरीर

    धरती पर िगर गया | उनकी ऐनक जमीन पर जा पड़ी | च¬ल उनके पाँवो ंसे उतर गए।

    आभा और मनु ने गांधीजी का िसर हाथो ंपर उठा िलया। कोमल हाथो ंने उkP धरती से

    उठाया और िफर उkP िबड़ला भवन मP उनके कमरे मP ले गए। आँखP अधखुली थी ंऔर

    शरीर मP जीवन के िच िदखाई दे रहे थे | सरदार पटेल, जो अभी महााजी को छोड़कर

    गए थे, उनके पास लौट आए। उkोनें नाड़ी देखी और उkP लगा िक वह बYत मंद गित से

    चलती Yई मालूम दे रही है। िकसी ने हड़बड़ाहट के साथ दवाइयो ंकी पेटी मP ऐिडq नेलीन

    तलाश की, लेिकन वह िमली नही ं।

    एक त®र दश)क डा० �ारका�साद भाग)व को ले आए। वह गोली लगने के दस िमनट

    बाद ही आ गए | डा० भाग)व का कहना है‐“संसार की कोई भी व_ु उkP नही ंबचा सकती

    थी। उkP मरे दस िमनट हो चुके थे।"

    पहली गोली शरीर के बीच खीचंी गई रेखा से साढ़े तीन इंच दािहनी ओर, नािभ से ढाई इंच

    ऊपर, पेट मP घुस गई और पीठ मP होकर बाहर िनकल गई । दूसरी गोली इस मw‐रेखा

    के एक इंच दािहनी ओर पसिलयो ंके बीच मP होकर पार हो गई और पहली की तरह यह

    भी पीठ के पार िनकल गई। तीसरी गोली दािहने चुचुक से एक इंच ऊपर मw‐रेखा के

    चार इंच दािहनी ओर लगी और फेपड़े मP ही धँसी रह गई।

    डा० भाग)व का कहना था िक एक गोली शायद ±दय मP होकर िनकल गई और दूसरी ने

    शायद िकसी बड़ी नस को काट िदया। उkोनें बतलाया‐“आंतो ंमP भी चोट आई थी, ¢ोिंक

    दूसरे िदन म̀ने देखा िक पेट फूल गया था।“

    गांधीजी की िनरंतर देखभाल करनेवाले युवक और युवितयाँ शव के पास बैठ गए और

    िससिकयाँ भरने लगे। डा० जीवराज मेहता भी आ पYँचे और उkोनें पुिp की िक मृZु हो

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    चुकी। इसी समय उप�थत समुदाय मP सुरसुराहट फैली। जवाहरलाल नेहc द²र से

    दौड़े Yए आए। गांधीजी के पास घुटनो ंके बल बैठकर उkोनें अपना मँुह खून से सने

    कपड़ो ंमP िछपा िलया और रोने लगे। इसके बाद गांधीजी के सबसे छोटे पु देवदास और

    मौलाना आजाद आए | इनके पीछे बYत से �मुख ¦� थे।

    देवदास ने अपने िपता के शरीर को sश) िकया और उनके बाजू को धीरे‐से दबाया |

    शरीर मP अभी तक हरारत थी। िसर अभी तक आभा की गोद मP था। गांधीजी के चेहरे पर

    शांत मुसकराहट थी | वह सोए Yए‐से मालूम पड़ते थे। देवदास ने बाद मP िलखा था‐“उस

    िदन हमने रात‐भर जागरण िकया | चेहरा इतना सौ था और शरीर को चारो ंओर आवृ³

    करनेवाला दैवी �काश इतना कमनीय था िक शोक करना मानो उस पिवता को नp

    करना था।“

    िवदेशी कूटनीितक िवभागो ंके लोग शोक‐�दश)न करने के िलए आए, कुछ तो रो भी पड़े।

    बाहर भारी भीड़ जमा हो गई थी और लोग महााजी के अंितम दश)न की माँग कर रहे

    थे। इसिलए शव को सहारा लगाकर िबड़ला भवन की छत पर रख िदया गया और उस

    पर रोशनी डाली गई | हजारो ंलोग हाथ मलते Yए और रोते Yए खामोशी के साथ गुजारने

    लगे।

    आधी रात के लगभग शव नीचे उतार िलया गया। शोकi_ लोग रात‐भर कमरे मP बैठे

    रहे और िससिकयाँ भरते Yए गीता तथा अm मंो ंका पाठ करते रहे।

    देवदास के श«ो ंमP‐"पौ फटने के साथ ही हम सबके िलए सबसे अस´ दद)‐भरा ण आ

    पYँचा ।“ अब उस ऊनी दुशाले और सूती चादर को हटाना था, िजkP गोली लगते समय

    महााजी सदµ से बचने के िलए ओढ़े Yए थे। इन िनम)ल शु¶ व©ो ंपर खून के दाग और

    धªे िदखाई दे रहे थे। ¨ोहंी दुशाला हटाया गया, एक खाली कारतूस िनकलकर िगर

    पड़ा।

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    अब गांधीजी सबके सामने केवल घुटनो ंतक की सफेद धोती पहने Yए पड़े थे। सारी दुिनया

    उkP इसी तरह धोती पहने देखने की आदी थी। उप�थत लोगो ंमP बYतो ंका धीरज छूट

    गया और वे फूट‐फूटकर रोने लगे। इस · को देखकर लोगो ंने सुझाव िदया िक मसाला

    लगाकर शव को कुछ िदन रखा जाय, तािक नई िद+ ली से दूर के िम, साथी और संबंधी

    दाह से पहले उसके दश)न कर सकP । परंतु देवदास, गांधीजी के िनजी सिचव ¸ारेलाल

    नैयर तथा अm लोगो ंने इसका िवरोध िकया। यह चीज िहbू धािम)क भावना के �ितकूल

    थी और उसके िलए “बापू हमP कभी मा नही ंकरP गे ।” इसके अलावा वे गांधीजी के

    भौितक अवशेष को सुरित रखने के िकसी भी �_ाव को �ोRाहन नही ंदेना चाहते थे।

    इसिलए शव को दूसरे िदन जलाने का िनय िकया गया।

    सुबह होते ही गांधीजी के अनुयािययो ंने शव को ¹ान कराया और गले मP हाथ कते सूत

    की एक ली तथा एक माला पहना दी। िसर, बाजुओ ंऔर सीने को छोड़कर बाकी शरीर

    पर ढकी Yई ऊनी चादर के ऊपर गुलाब के फूल और पंखुिड़याँ िबखेर दी गईं। देवदास

    ने बतलाया‐“म̀ने कहा िक सीना उघड़ा रहने िदया जाय । बापू के सीने से संुदर सीना

    िकसी िसपाही का भी न होगा।” शव के पास धूप‐दान जल रहा था।

    जनता के दश)नो ंके िलए शव को सुबह छत पर रख िदया गया।

    गांधीजी के तीसरे पु रामदास 11 बजे हवाई जहाज �ारा नागपुर से आए। दाह‐सं{ार

    उनके ही िलए ºका Yआ था। शव नीचे उतार िलया गया और उसे बाहर के चबूतरे पर ले

    गए। गांधीजी के िसर पर सूत की एक ली लपेट दी गई थी | चेहरा शांत, िक»ु बड़ा ही

    िवषादपूण), िदखाई दे रहा था | अथµ पर gतं भारत का ितरंगा झंडा डाल िदया गया था।

    रात‐भर मP 15‐हंडरवेट सैिनक हिथयार‐गाड़ी के इंजनदार ¼ेम पर एक नया ऊँचा ढाँचा

    खंड़ा कर िदया गया था, तािक खुली अथµ पर रखा Yआ शव सब दश)को ंको नज़र आता

    रहे | भारतीय थल‐सेना, जल‐सेना और वायु‐सेना की दो सौ जवान चार मोटे र½ो ंसे

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    गाड़ी को खीचं रहे थे। एक छोटा सैिनक अफसर मोटर के च§े पर बैठा | नेहc, पटेल,

    कुछ अm नेता तथा गांधीजी के कुछ युवा साथी इस वाहन पर सवार थे।

    नई िद+ ली मP अलबुकक) रोड पर िबड़ला‐भवन से दो मील लंबा जुलूस पौने बारह बजे

    रवाना Yआ और मनुो ंकी अपार भीड़ के बीच एक‐एक इंच आगे बढ़ता Yआ चार

    बजकर बीस िमनट पर साढ़े पाँच मील दूर जमुना‐िकनारे पYँचा। पं�ह लाख जनता जुलूस

    के साथ थी और दस लाख दश)क थे। नई िद+ ली के आलीशान छायादार पेड़ो ंकी डािलयाँ

    उन लोगो ंके बोझ से झुक रही थी,ं जो जुलूस को अी तरह देखने के िलए उनपर चढ़

    गए थे। बादशाह जाज) पंचम की ऊँची uेत �ितमा की चौकी, जो एक बड़ी तलैया के बीच

    बनी Yई है, सैकड़ो ंलोगो ंसे ढक गई थी। ये लोग पानी मP होकर वहाँ जा पYँचे थे।

    कभी‐कभी िहbुओ,ं मुसलमानो,ं पारिसयो,ं िस¾ खो ं और ऐ¿ंो‐इंिडयनो ं की आवाजP

    िमलकर ‘महाा गांधी की जय' के नारे बुलंद करती थी।ं बीच‐बीच मP भीड़ मं‐उारण

    करने लगती थी। तीन डेकोटा वायुयान जुलूस के ऊपर उड़ रहे थे। ये सलामी देने के िलए

    झपकी खाते थे और गुलाब की असंÀ पंखुिड़याँ बरसा जाते थे |

    चार हजार सैिनक, एक हजार वायु सैिनक, एक हजार पुिलस के िसपाही और सैिनक

    भाँित‐भाँित की रंग‐िबरंगी विद)याँ और टोिपयाँ पहने Yए अथµ के आगे और पीछे फौजी

    ढंग से चल रहे थे। गवन)र‐जनरल लाड) माउंटबेटन के अंगरक भालेधारी सवार, जो लाल

    और सफेद झंिडयाँ ऊँची िकए Yए थे, इनमP उेखनीय थे। ¦वथा कायम रखने के िलए

    बÁरबंद गािड़याँ, पुिलस और सैिनक मौजूद थे। शव‐याा के संचालक मेजर जनरल

    राय बूचर थे। यह अंiेज थे, िजkP भारत सरकार ने अपनी सेना का �थम �धान सेनापित

    िनयु िकया था।

    जमुना की पिव धारा के िकनारे लगभग दस लाख नर‐नारी सुबह से ही खड़े और बैठे

    Yए Âशान मP अथµ के आने का इंतजार कर रहे थे। सफेद रंग ही सबसे ¨ादा झलक

    रहा था‐�©यो ंकी सफेद सािड़याँ और पुºषो ंके सफेद व©, टोिपयाँ और साफे |

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    नदी से कई सौ फुट की दूरी पर प र, ईंट और िमÃी की नव‐िनिम)त वेदी तैयार थी। यह

    करीब दो फुट ऊँची और आठ फुट लंबी व चौड़ी थी। इस पर धूप िछड़की Yई चंदन की

    पतली लकिड़याँ जमाई Yई थी।ं गांधीजी का शव उ³र की ओर िसर तथा दिण की ओर

    पाँव करके िचता पर िलटा िदया गया। ऐसी ही �थित मP बु� ने �ाण Zाग िकए थे।

    पौने पाँच बजे रामदास ने अपने िपता की िचता मP आग दी । लकिड़यो ंमP लपटP उठने लगी ं

    | अपार भीड़ मP से आह की Äिन िनकली | भीड़ बाढ़ की तरह िचता की ओर बढ़ी और

    उसने सेना के घेरे को तोड़ िदया। परंतु उसी ण लोगो ंको भान Yआ िक वे ¾ या कर रहे

    ह̀। वे अपने नंगे पाँवो ंकी उँगिलयाँ जमीन मP जमाकर खड़े हो गए और दुघ)टना होते‐होते

    बच गई।

    लकिड़याँ चटखने लगी ंऔर आग तेज होने लगी। लपटP िमलकर एक बड़ी लौ बन गई।

    अब खामोशी थी | गांधीजी का शरीर भÂीभूत होता जा रहा था।

    िचता चौदह घंटे तक जलती रही। सारे समय मP भजन गाए जाते रहे और पूरी गीता का

    पाठ िकया गया। स³ाईस घंटे बाद, जब आ�खरी अंगारे ठंडे पड़ गए, तब पंिडतो,ं सरकारी

    पदािधकाdरयो,ं िमो ंतथा पdरवार के लोगो ंने िचता के चारो ंओर पहरा लगे Yए तार के

    बाड़े के भीतर िवशेष �ाथ)ना की और भÂी तथा अ�थयो ंके वे टुकड़े, िजkP आग जला

    नही ंपाई थी, एक िकए | भÂी को ¹ेह के साथ पसो ंमP भर‐भरकर हाथ कते सूत के

    थैले मP डाल िदया गया। भÂी मP एक गोली िनकली | अ�थयो ंपर जमुना‐जल िछड़ककर

    उkP तांबे के घड़े मP बंद कर िदया गया | रामदास ने घड़े की गरदन मP सुगंिधत फूलो ंका

    हार पहनाया। उसे गुलाब की पंखुिड़यो ं से भरी टोकरी मP रखा और छाती से लगाकर

    िबड़ला‐भवन ले गए।

    गांधीजी के कई घिनp िमो ंने भÂी की चुटिकयाँ माँगी ंऔर दे दी गईं। एक ने भÂी के

    कुछ कण सोने की मुहरदार अंगूठी मP भरवा िलए। पdरजनो ंतथा अनुयािययो ं ने छहो ं

    महा�ीपो ंसे भÂी के िलए आई Yई �ाथ)नाओ ंको अgीकार करना तय िकया। गांधीजी

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    की कुछ भÂी ितªत, लंका और मलाया भेजी गई। परंतु अिधकांश भÂी िहbू dरवाज

    के अनुसार, मृZु के ठीक चौदह िदन बाद, भारत की निदयो ंमP िवसिज)त कर दी गई।

    भÂी, �देशो ं के मुÀ मंियो ं तथा अm उ पदािधकाdरयो ं को दी गई | �ादेिशक

    राजधािनयो ंने अपने िह½े की भÂी छोटे शहरी केÅो ंमP बाँट दी। भÂी का साव)जिनक

    �दश)न हर जगह भारी तीथ)याा बन गया और निदयो ंमP अथवा बंबई जैसी जगह समु�

    मP, भÂी का अंितम िवसज)न भी इसी �कार Yआ।

    अ�थ‐िवसज)न का मुÀ सं{ार इलाहाबाद मP गंगा, जमुना और सरgती के पुनीत संगम

    पर Yआ। 11 फरवरी को सुबह 4 बजे तीसरे दज� के पाँच िडªो ंकी एक sेशल टq ेन

    िदी से रवाना Yई । गांधीजी हमेशा तीसरे दज� मP याा िकया करते थे। टq ेन के बीच का

    िडªा, िजसमP भÂी और अ�थयो ंका घट रखा Yआ था, छत तक फूलो ंसे भरा था और

    आभा, मनु, ¸ारेलाल नैयर, डा० सुशीला नैयर, �भावती नारायण और गांधीजी के अm

    दैिनक साथी घट की िनगरानी पर थे। रा_े मP टq ेन Æारह नगरो ंपर ठहरी; हर जगह लाखो ं

    नर‐नाdरयो ंने È�ा से िसर झुकाए; �ाथ)नाएँ की ंऔर गाड़ी पर फूलो ंके हार व गुलद_े

    चढ़ाए।

    12 तारीख को इलाहाबाद मP यह घट लकड़ी की एक छोटी‐सी पालकी पर रखा गया और

    बाद मP मोटर‐टqक पर आसीन कराकर शहर और आसपास के गाँवो ंके पं�ह लाख जन‐

    समूह को चीरते Yए आगे ले जाया गया। सफेद व© धारण िकए Yए नर‐नारी टq क के

    आगे भजन गाते Yए चल रहे थे। एक गायक �ाचीन बाजा बजा रहा था। टqक गुलाब के

    चलते‐िफरते बगीचे जैसा नजर आ रहा था। उ³र‐�देश की रा¨पाल Èीमती सरोिजनी

    नायडू, आजाद, रामदास और पटेल आिद उस पर सवार थे | मुिÉयाँ भीचें Yए और सीने

    तक चेहरा झुकाए Yए नेहc पैदल चल रहे थे।

    धीरे‐धीरे टq क नदी के िकनारे पYँचा, जहाँ उसे सफेद रंगी Yई अमरीकन फौजी डक1 पर

    रख िदया गया। अm डकP और नावP नदी के बहाव की ओर उसके साथ चली ं| गांधीजी

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    की अ�थयो ंके नजदीक पYँचने के िलए लाखो ंआदमी घुटनो ंपानी मP दूर तक जा पYँचे।

    जब घट उलटा गया और उसमP भरी Yई भÂी और अ�थयाँ नदी मP िगरी, तब इलाहाबाद

    के िकले से तोपो ंने सलामी दी। भÂी पानी पर फैल गई | अ�थयो ंके टुकड़े तेजी के साथ

    समु� की ओर बह चले।

    गांधीजी की हZा से सारे भारत मP ¦ाकुलता तथा वेदना की लहर दौड़ गई। ऐसा जान

    पड़ता था िक जो तीन गोिलयाँ गांधीजी के शरीर मP लगी थी,ं उkोनें करोड़ो ंके मम) को बेध

    डाला था। इस आक�Âक समाचार ने िक इस शांितदूत को, जो अपने शुओ ंसे �ेम करता

    था और िकसी कीड़े को भी मारने का इरादा नही ंरखता था, उसीके एक देशवासी तथा

    सहधमµ ने गोली से मार डाला, राpq को चिकत, _ंिभत और ममा)हत कर िदया।

    आधुिनक इितहास मP िकसी ¦� के िलए इतना गहरा और इतना ¦ापक शोक आज

    तक नही ंमनाया गया |

    30 जनवरी 1948 को शुÊवार िजस िदन महााजी की मृZु Yई, उस िदन वह वही ंथे,

    जैसे सदा से रहे थे‐अथा)त् एक साधारण नागdरक, िजसके पास न धन था, न संपि³, न

    सरकारी उपािध, न सरकारी पद, न िवशेष �िशण‐योÆता, न वैÌािनक िस�� और न

    कलाक �ितभा | िफर भी, ऐसे लोगो ं ने, िजनके पीछे सरकारP और सेनाएँ थी,ं इस

    अठह³र वष) के लंगोटीधारी छोटे‐से आदमी को È�ांजिलयाँ भPट की ं | भारत के

    अिधकाdरयो ंको िवदेशो ंसे समावेदना के 3441 संदेश �ा� Yए, जो सब िबन माँगे आए

    थे, ¢ोिंक गांधीजी एक नीितिन ¦� थे, और जब गोिलयो ंने उनका �ाणांत कर िदया,

    तो उस सÍता ने िजसके पास नैितकता की अिधक संपि³ नही ंहै, अपने‐आपको और

    भी अिधक दीन महसूस िकया। अमरीकी संयु¾ त रा¨ो ं के रा¨‐सिचव जनरल जाज)

    माश)ल ने कहा था‐“महाा गांधी सारी मानव‐जाित की अंतराा के �वा थे |”

    पोप पायस, ितªत के दलाई लामा, क̀टरबरी के आक) िबशप, लंदन के मुÀ रªी, इं¿̀ड

    के बादशाह, राpq पित ÎÏ मैन, Ðाँगकाई शेक, ¼ांस के राpq पित और वा_व मP लगभग

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    सभी महपूण) देशो ंतथा अिधकतर छोटे देशो ंके राजनैितक नेताओ ंने गांधीजी की मृZु

    पर साव)जिनक cप से शोक �दश)न िकया |

    ¼ांस के समाजवादी िलयो Ñम ने वह बात िलखी, िजसे लाखो ंलोग महसूस करते थे।

    Ñम ने िलखा‐‐“म̀ने गांधी को कभी नही ंदेखा | म̀ उनकी भाषा नही ंजानता। म̀ने उनके

    देश मP कभी पाँव नही ंरखा; परंतु िफर भी मुझे ऐसा शोक महसूस हो रहा है, मानो म̀ने

    कोई अपना और ¸ारा खो िदया हो। इस असाधारण मनु की मृZु से सारा संसार शोक

    मP डूब गया है।“

    �ोफेसर अÒट) आइÓीन ने ·ढ़ता से कहा‐“गांधी ने िस� कर िदया िक केवल �चिलत

    राजनैितक चालबािज़यो ंऔर धोखाघिड़यो ंके म§ारी‐भरी खेल के �ारा ही नही,ं ब�f

    जीवन के नैितकतापूण) Èेतर आचरण के �बल उदाहरण �ारा भी मनुो ं का एक

    बलशाली अनुगामी दल एक िकया जा सकता है।”

    संयु राpq संघ की सुरा पdरषद् ने अपनी बैठक की कार)वाई रोक दी तािक उसके

    सद िदवंगत आा को È�ांजिल अिप)त कर सकP । िÔिटश �ितिनिध िफिलप नोएल‐

    बेकर ने गांधीजी की �शंसा करते Yए उkP “सबसे गरीब, सबसे अलग और पथÈp लोगो ं

    का िहतिचंतक” बतलाया ।" सुरा पdरषद् के अm सदो ंने गांधीजी के आwा�क

    गुणो ंकी बYत �शंसा की और शांित तथा अिहंसा के �ित उनकी िना को सराहा |”

    संयु राpq संघ ने अपना झंडा झुका िदया।

    मानवता ने अपनी Äजा नीची कर दी।

    गांधीजी की मृZु पर संसार‐¦ापी �ितिÊया gयं ही एक महपूण) तÕ थी। उसने एक

    ¦ापक मनः�थित और आवकता को �कट कर िदया । mूयाक) के ‘पीएमʼ नामक

    समाचार‐प मP एÒट) ×ूØश ने व¦ िदया‐“िजस संसार पर गांधी की मृZु की ऐसी

    È�ापूण) �ितिÊया Yई, उसके िलए अभी कुछ आशा बाकी है।”...

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    उपmास‐ले�खका पल) एस. बक ने गांधीजी की हZा को 'ईसा की सूली' के समान

    बतलाया।

    जापान मP िम‐राpq ो ंके सवÙ सेनापित जनरल डगलस मैकआथ)र ने कहा‐“सÍता के

    िवकास मP, यिद उसे जीिवत रहना है, तो सब लोगो ंको गांधी का यह िवuास अपनाना ही

    होगा िक िववादाsद मुÚो ंको हल करने मP बल के सामूिहक �योग की �िÊया बुिनयादी

    तौर पर न केवल गलत है, ब�f उसीके भीतर आ‐िवनाश के बीज िवÛमान ह̀।"...

    mूयाक) मP 12 साल की एक लड़की कलेवे के िलए रसोईघर मP गई Yई थी | रेिडयो बोल

    रहा था और उसने गांधीजी पर गोली चलाई जाने का समाचार सुनाय | लड़की, नौकरानी

    और माली ने वही ंरसोईघर मP स�Üिलत �ाथ)ना की और आँसू बहाए। इसी तरह सब देशो ं

    मP करोड़ो ंलोगो ंने गांधीजी की मृZु पर ऐसा शोक मनाया, मानो उनकी ¦�गत हािन

    Yई हो |...

    सर Ýैफड) िÊÞ ने िलखा था‐“म̀ िकसी काल के और वा_व मP आधुिनक इितहास के

    ऐसे िकसी दूसरे ¦� को नही ंजानता, िजसने भौितक व_ुओ ंपर आा की श� को

    इतने जोरदार और िवuासपूण) तरीके से िस� िकया हो।“

    गांधीजी के िलए शोक करनेवाले लोगो ंको यही महसूस Yआ। उनकी मृZु की आक�Âक

    कौधं ने अनंत अंधकार उ®ß कर िदया। उनके जमाने के िकसी भी जीिवत ¦� ने,

    महाबली �ितपियो ंके िवº� लंबे और किठन संघष) मP साई, दया, आZाग, िवनय,

    सेवा और अिहंसा का जीवन िबताने का इतना कठोर �य नही ंिकया और वह भी इतनी

    सफलता के साथ | वह अपने देश पर िÔिटश शासन के िवº� और अपने ही देशवािसयो ं

    की बुराइयो ंके िवº� तीà गित के साथ और लगातार लड़े, परंतु लड़ाई के बीच भी उkोनें

    अपने दामन को बेदाग रखा। वह िबना वैमन या कपट या �ेष के लड़े।

    1. नावनुमाँ मोटरगाड़ी, जो जमीन और पानी दोनो ंपर चलती है।

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    2 / गांधीजी की जीवन‐झाँकी

    गांधीजी का नाम मोहनदास तथा िपता का नाम करमचंद गांधी था।

    मोहनदास गांधी अपने िपता के चौथे और अंितम िववाह की चौथी और अंितम संतान थे।

    इनका जá 2 अूबर 1869 को पोरबंदर मP Yआ था | इसी साल gेज नहर खुली, टॉमस

    ए. एिडसन ने अपना पहला आिवâार पेटPट कराया, ¼ांस ने नेपोिलयन बोनापाट) के जá

    की शता«ी मनाई और चा) डãू इिलयट हारवड) िवuिवÛालय का अw बना। काल)

    मा}) की कैिपटल अभी �कािशत Yई थी। िबÂाक) ¼ांस‐जम)न यु� आरंभ करने ही

    वाला था और िवäोdरया इं¿̀ड तथा भारत पर राज कर रही थी।

    मोहनदास का जá नगर के िकनारे एक मामूली ितमंिजले मकान के 11 फुट चौड़े, 19

    ½ फुट लंबे और 10 फुट ऊँचे कमरे के अंधेरे, दािहनी ओर वाले, कोने मP Yआ था। यह

    मकान अभी तक मौजूद है।

    गांधीजी के बड़े भाई लæीदास राजकोट मP वकालत करते थे और बाद मP पोरबंदर

    सरकार के खजाने के एक हािकम बन गए | वह खूब खुलकर खच) करते थे और उkोनें

    अपनी पुियो ंके िववाह छोटे‐मोटे भारतीय रजवाड़ो ंजैसी शान‐शौकत के साथ िकए |

    दूसरे भाई करसनदास पोरबंदर मP पुिलस के सब‐इंsेäर रहे और अंत मP ठाकुर के

    रनवास के सब‐इंsेäर Yए।

    गांधीजी के जीवन‐काल मP ही दोनो ंभाइयो ंकी मृZु हो गई। बहन रिलयात बेन, जो इनसे

    चार वष) बड़ी थी,ं इनके बाद भी जीिवत रही ंऔर राजकोट मP ही िनवास करती रही।ं

    जब मोहनदास बारह वष) के थे और राजकोट के ए+¼ेड हाई {ूल मP दा�खल ही Yए थे,

    तब िम. जाइ+ स नामक एक अंiेज इंsेäर िवÛािथ)यो ंकी परीा लेने आए। िवÛािथ)यो ं

    से पाँच अंiेजी श«ो ंके िहçे िलखवाए गए। गांधीजी ने 'केटल' ( चायदानी ) श« ठीक

    नही ंिलखा। डे{ो ंके बीच इधर‐से‐उधर टहलते Yए अwापक ने गलती देख ली और

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    मोहनदास को इशारा िकया िक पासवाले लड़के की èेट से नकल कर लो | मोहनदास

    ने इéार कर िदया | बाद मP अwापक ने इस बेवकूफी के िलए डाँटा, ¢ोिंक इससे का

    का dरकॉड) िबगड़ गया, बाकी सबने सारे श« ठीक िलखे थे।

    जब मोहनदास का िववाह Yआ, तब वह हाई {ूल मP िवÛाथµ थे और उनकी आयु 13 वष)

    की थी। वधू का नाम क_ूरबाबाई था। वह पोरबंदर के गोकुलदास मकनजी नामक

    ¦ापारी की पुी थी।

    1885 मP करमचंद की मृZु होने पर मोहनदास की माता पुतलीबाई घc मामलो ं मP

    बेचरजी gामी नामक जैन‐साधु से सलाह‐मशिवरा िकया करती थी ं। इkी ंजैन साधु ने

    इं¿̀ड जाने मP गांधीजी की सहायता की | माता को संदेह था िक युवा पु इं¿̀ड मP सदाचारी

    न रह सकेगा। इस �थित मP बेचरजी gामी ने रा_ा िनकाल िदया। उkोनें मोहनदास को

    शपथ िदलवाई और मोहनदास ने तीन �ितÌाएँ की‐ंमिदरा, ©ी और मांस नही ंछुएँगे।

    इसपर पुतलीबाई राजी हो गईं |

    जून 1888 मP गांधीजी अपने भाई के साथ बंबई को रवाना हो गए। 4 िसतंबर को वह

    जहाज मP बैठ गए। अभी वह 18 वष) के भी न थे। कुछ ही महीने पहले क_ूरबाई ने एक

    बालक को जá िदया था और उसका नाम हdरलाल रखा गया था।

    6 नवंबर 1888 को गांधीजी इनर टPपल1 मP िवÛाथµ की तरह दा�खल कर िलए गए और

    जून 1890 मP उkोनें लंदन िवuिवÛालय की मैिटq क परीा पास की। उkोनें ¼P च तथा

    लैिटन भाषाएँ सीखी ंऔर भौितक िवÌान, साधारण कानून तथा रोमन कानून का अwयन

    िकया।

    अंितम परीाएँ पास करने मP उkP कोई किठनाई नही ंYई | 10 जून 1891 को उkP

    अदालत मP पैरवी करने की अनुमित िमली, 11 जून को उkोनें हाईकोट) मP दा�खला कराया

    और 12 जून को भारत के िलए रवाना हो गए। वह इं¿̀ड मP एक िदन भी अिधक नही ं

    िबताना चाहते थे।

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    शुc मP गांधीजी का खयाल था िक वह ‘अंiेज' बन सकते ह̀। इसिलए उkोनें अंiेज बनने

    के साधनो‐ंपोशाक, नाच, वृê‐कला के पाठ, आिद‐को बड़ी ¦iता से अपनाया। िफर

    उkP पता लगा िक बीच की दीवार िकतनी ऊँची थी। उkोनें समझ िलया िक वह भारतीय

    ही रहPगे और वह भारतीय हो गए।

    इं¿̀ड मP गांधीजी दो वष) और आठ महीने रहे। इससे उनके ¦�ê का िनमा)ण अव

    Yआ होगा, परंतु इसका �भाव शायद उतना नही ंपड़ा िजतना साधारणतया पड़ना चािहए

    था, ¢ोिंक गांधीजी िवÛाथµ की तरह नही ंथे। वह आवक बातP अwयन से नही ंसीखते

    थे। वह कमµ थे और कम) के �ारा िवकास तथा Ìान �ा� करते थे। पु_को,ं लोगो ंऔर

    पdर�थितयो ंका उन पर असर पड़ता था। लेिकन {ूली पढ़ाई तथा अwयन के वषj मP

    से गांधी का, इितहास के गांधी का, �ादुभा)व नही ंYआ, यहाँ तक िक उसके अ�_ê

    का भी संकेत नही ंिमला।

    गांधीजी कम) के �ारा महानता की ओर बढ़े। इसिलए गीता गांधीजी की धम)‐पु_क बन

    गई, ¢ोिंक उसमP कम) की मिहमा गाई गई है।

    यंग इंिडया के 6 अग_ 1925 के अंक मP गांधीजी ने िलखा था‐“जब शंकाएँ मुझे घेर लेती

    ह̀, जब िनराशाएँ मेरे सामने आकर खड़ी हो जाती ह̀ और मुझे आशा की एक भी िकरण

    नही ं िदखाई देती, तब म̀ भगवद् गीता का आÈय लेता ~ँ और िच³ की शांित देनेवाला

    ëोक पा जाता ~ँ, और म̀ अZिधक िवषाद के बीच भी तुरंत मुसकराने लगता ~ँ। मेरा

    जीवन बा´ दुःखद घटनाओ ंसे पdरपूण) रहा है और यिद इनका मुझपर कोई �कट या

    अ�कट �भाव बाकी नही ंरहा है, तो इसके िलए म̀ भगवद् गीता के उपदेशो ंका ऋणी ~ँ।”

    लंदन मP गांधीजी लेिविटकस और नंबस) ( बाइिबल के �करण ) से आगे नही ंबढ़ पाए,

    पुराना करार ( ओí टेÝामPट ) के पहले िह½ो ंसे तो वह ऊब गए। नया करार ( mू

    टेÝामPट ) उkP अिधक ºिचकर Yआ और ईसा का िगdर‐ �वचन तो 'सीधा ही ±दय मP

    पैठ गया'। इसमP तथा गीता मP उkP सा· िदखाई िदया | एक िम के सुझाव पर उkोनें

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    हजरत मुहÜद पर टॉमस कारलाइल का िनबंध पढ़ा। कुछ पु_कP िथयॉसफी पर पढ़ी।ं

    गांधीजी का धािम)क अwयन आक�Âक और असंब� था। िफर भी spत: उनकी एक

    बड़ी आवकता की पूित) Yई |

    1891 की गिम)यो ंमP गांधीजी भारत वापस लौटे | बंबई मP जहाज से उतरने पर भाई ने

    सूचना दी िक माता पुतलीबाई का देहांत हो गया। यह समाचार पहले उनसे िछपाया गया

    था, ¢ोिंक पdरवार के लोग माता के �ित उनकी भ� से पdरिचत थे। गांधीजी को भारी

    आघात पYँचा, परंतु उनका शोक, जो िपता की मृZु के समय से अिधक था, फूटने नही ं

    पाया।

    बड़े भाई लæीदास ने, अपने छोटे भाई पर बYतेरी आशाएँ बांध रखी थी,ं परंतु ¢ा

    राजकोट मP और ¢ा बंबई मP, मोहनदास वकालत मP िनतांत असफल िस� Yए, ¢ोिंक

    बंबई की अदालत मP वह एक छोटे‐से मामले मP भी एक श« तक नही ंबोल सके थे।

    इसी अस� मP पोरबंदर के एक मुसलमान ¦ापारी की फम) का संदेश िमला िक वह गांधीजी

    को अपना वकील बनाकर एक साल के िलए दिण अ¼ीका भेजना चाहती है। नया देश

    देखने और नए अनुभव �ा� करने के इस अवसर को गांधीजी ने जाने नही ंिदया। इस

    �कार अपने देश मP दो वष) से कुछ कम असफल रहने के बाद उसका भावी नेता जंजीबार,

    मोजंिबक और नेटाल के िलए जहाज पर सवार हो गया | पी और दो बो ंको उkोनें

    यही ंछोड़ िदया। 28 अूबर 1892 को मिणलाल नामक दूसरा पु जá ले चुका था।

    जब मई 1893 मP गांधीजी डरबन बंदर पर जहाज से उतरे, तो उनका उÚे केवल यह

    था िक मुकदमा जीतना, कुछ ºपया पैदा करना और शायद आ�खर मP अपनी जीिवका

    शुc करना | िजस समय वह अपने मािलक दादा अ«ुा सेठ िमलने के िलए नाव से

    उतरे, उस समय फैशनदार ¼ॉक कोट, इ_री की Yई पतलून, चमकदार जूते और पगड़ी

    पहने Yए थे।

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    मुकदमे के िलए गांधीजी का ि�टोdरया जाना जcरी था। डरबन मP उनके िलए पहले दज�

    का िटकट खरीदा गया और वह गाड़ी मP सवार Yए। टq ांसतल की राजधानी मेdरRबग) मP

    एक गोरा िडªे मP चढ़ा और काले आदमी को बैठे देखकर

    दो रेलवे कम)चाdरयो ंको बुला लाया। उkोनें गांधीजी से तीसरे दज� मP चले जाने को कहा।

    गांधीजी ने उतरने से इéार िकया | इस पर वे लोग पुिलस के िसपाही को ले आए, िजसने

    सामान सिहत उkP बाहर िनकाल िदया।

    गांधीजी चाहते तो तीसरे दज� मP बैठ सकते थे; परंतु उkोनें वेिटंग cम मP पड़े रहना पसंद

    िकया। उस पहाड़ी �देश मP सदµ थी। रात‐भर गांधीजी बैठे‐बैठे िठठुरते रहे और िच»न

    करते रहे।

    मेdरRबग) मP, कड़ाके की सदµ थी उस रात मP, गांधीजी के ±दय मP सामािजक �ितरोध का

    अंकुर पैदा Yआ, परंतु उkोनें कुछ िकया नही।ं वह अपने काम के िलए ि�टोdरया चले

    गए।

    ि�टोdरया पYँचने के एक स�ाह के भीतर गांधीजी ने वहाँ के सब भारतीयो ंकी एक सभा

    बुलाई | Èोता लोग मुसलमान ¦ापारी थे, िजनके बीच मP कही‐ंकही ंकुछ िहbू बैठे थे।

    गांधीजी ने चार बातो ंपर जोर िदया, ¦ापार मP भी सZ बोलो, अिधक सफाई से रहने की

    आदत डालो, जात‐पाँत और धम) के भेद भूल जाओ, अंiेजी सीखो।

    इसके बाद और सभाएँ भी Yईं और गांधीजी बYत ज¥ी ि�टोdरया के सब भारतीयो ंसे

    पdरिचत हो गए। ि�टोdरया के भारतीयो ंने अपना एक थायी संगठन बना िलया।

    मुकदमा तय होने के बाद गांधीजी डरबन लौट आए और भारत के िलए रवाना होने की

    तैयारी करने लगे। रवाना होने से पहले सािथयो ंने उkP िबदाई की एक पाटµ दी। समारोह

    के बीच िकसी ने उkP उस िदन का नेटाल मक) री प िदया, िजसमP उkोनें एक समाचार

    पढ़ा िक नेटाल सरकार िवधान मंडल मP सद चुनने के अिधकार से भारतीयो ंको वंिचत

    करने का एक िबल पेश करना चाहती है। गांधीजी ने इस कदम को रोकने की आवकता

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    पर जोर िदया | उनके िम इसके िलए तैयार तो हो गए, परंतु कहने लगे िक आपके िबना

    हम कुछ नही ंकर सकते | गांधीजी एक महीना ठहरने के िलए राजी हो गए | भारतीयो ंके

    अिधकारो ंकी लड़ाई लड़ते Yए वह वहाँ बीस वष) ठहरे। उkP िवजय �ा� Yई।

    दिण अ¼ीका मP तीन वष) मP गांधीजी एक संप न वकील और �मुख भारतीय राजनैितक

    नेता बन गए थे | वह िगरिमिटया मज़दूरो ंके िहमायती मश~र हो गए थे।

    दिण अ¼ीका मP गांधीजी के संघष) का उÚे यह नही ंथा िक वहाँ के भारतीयो ंके साथ

    गोरो ंके समान बता)व िकया जाय। वह तो एक िस�ांत थािपत करना चाहते थे‐भारतीय

    िÔिटश साîा¨ के नागdरक ह̀ और इसिलए उसके कानून के अधीन उkP उसी समानता

    का अिधकार है।

    हालाँिक अभी तक उनमP इितहास के महान गांधी का केवल जरा‐सा संकेत िदखाई पड़ता

    था, परंतु उkोनें अपने को एक �भावशाली नेता और सवÙ³म संगठनकता) िस� कर िदया

    था। उनके भारतीय सहयोगी काय)कता) तो तेजी के साथ यह महसूस करते ही थे, परंतु

    उनकी िनगाहो ंसे भी यह िछपा न था िक उनके िबना भारतीयो ंके अिधकारो ंका संघष)

    एकदम ख हो जाएगा या कम‐से‐कम ढीला पड़ जाएगा।

    इसिलए गांधीजी ने छः महीने की छुÃी ली और अपने पdरवार को िलवा लाने के िलए भारत

    गए।

    1896 के साल के मw मP अपनी जáभूिम पYँचकर स³ाईस वष) के इस आदमी ने, िजसने

    एक महान काय) पूरा करने का बीड़ा उठाया था, जबरद_ हलचल पैदा कर दी | राजकोट

    मP गांधीजी ने अपने पdरवार की गोद मP एक महीना दिण अ¼ीका मP भारतीयो ंकी

    िशकायतो ंपर एक पु�_का िलखने मP िबताया। इसकी दस हजार �ितयाँ छपवाई गईं और

    अखबारो ंतथा �मुख भारतीयो ंको भेजी गईं।

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    राजकोट से गांधीजी बंबई गए और वहाँ उkोनें दिण अ¼ीका पर एक साव)जिनक सभा

    का आयोजन िकया। सभा बुलानेवालो ंके नाम और चचा) के िवषय ऐसे थे िक इससे बंबई

    की इस सभा की सफलता जबरद_ रही।

    पूना मP गांधीजी ने भारत के दो महापुºषो ंसे मुलाकात की। भारत सेवक सिमित के अw

    गोपालकृ� गोखले और असाधारण मेधावी तथा उ राजनैितक नेता लोकमाm ितलक।

    गांधीजी कलक³ा मP भी‐बंबई, पूना और म�ास जैसी‐सभा करना चाहते थे, लेिकन एक

    संकट का मुकाबला करने के िलए उkP नेटाल जाने का तार से बुलावा आ गया। अतः वह

    बंबई दौड़े आए और पी, दो पुो ंतथा िवधवा बहन के इकलौते पु के साथ जहाज पर

    दिण अ¼ीका के िलए रवाना हो गए।

    डरबन मP गांधीजी और उनके सािथयो ंको जहाज से उतरने नही ं िदया गया। गोरो ंकी

    सभाओ ंमP माँग की गई िक इkP भारत वापस भेज िदया जाय।

    13 जनवरी 1897 को जहाजो ंको डॉक पर लगने िदया गया | लेिकन नेटाल सरकार के

    एटनµ जनरल िम. हैरी ए{ंब ने गांधीजी को संदेश भेजा िक झगड़ा बचाने के िलए वह

    िदन‐िछपे जहाज से उतरP । दादा अ«ुा के कानूनी सलाहकार िम. लाटन ने इसके

    िवº� सलाह दी और गांधीजी भी िछप‐िछपाकर शहर मP नही ंजाना चाहते थे | Èीमती

    गांधी और दोनो ंबे सामाm cप मP जहाज से उतरे और उkP º_मजी के घर पYँचा

    िदया गया। गांधीजी और लाटन पैदल चले। हा मचानेवाली भीड़ िबखर चुकी थी, लेिकन

    दो छोटे लड़को ंने गांधीजी को पहचान िलया और उनका नाम पुकारा । इसे सुनकर कई

    गोरे आ गए। ¨ो‐ं¨ो ंगांधीजी और लाटन आगे बढ़ते गए, भीड़ भी बढ़ती गई और हमला

    करने पर उताc हो गई। लोगो ंने उनपर प र, ईंट और अंडे फP के । िफर उkोनें गांधीजी

    की पगड़ी छीन ली और उनपर मार और ठोकरP लगाईं।

    एक भारतीय लड़का पुिलस को बुला लाया। गांधीजी ने पुिलस थाने मP शरण लेने से इéार

    कर िदया, लेिकन इस बात पर राजी हो गए िक पुिलस उkP º_मजी के घर तक पYँचा

    दे। ।

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    शहर के लोगो ंको अब गांधीजी का िठकाना मालूम हो गया था | गोरो ंके झंुडो ंने º_मजी

    के मकान को घेर िलया और िचाने लगे िक गांधी को उनके हवाले कर िदया जाय।

    रात को पुिलस सुपdरटPडPट अलेïPडर ने गांधीजी को गु� संदेश भेजा िक यह वेष

    बदलकर िनकल जाएँ | गांधीजी ने ऐसा ही िकया और पुिलस थाने मP पYँच गए | यहाँ वह

    तीन िदन रहे।

    ऑ}फोड) के �ोफेसर एडवड) टामसन ने िलखा है‐“गांधी को चािहए था िक जीवन‐भर

    हर एक गोरी शð से नफरत करते |” लेिकन गांधीजी ने डरबन के उन गोरो ंको मा

    कर िदया, जो उkP िजbा जला डालने के िलए जमा Yए थे और उनको भी मा कर िदया,

    िजkोनें उkP घायल िकया और मारा था।

    दिण अ¼ीका मP 1899 से 1902 तक जो बोअर यु�2 Yआ, उसमP गांधीजी की ¦�गत

    सहानुभूित पूरी तरह बोअरो ंके साथ थे | िफर भी उkोनें अपनी सेवाएँ अंiेजो ंको अप)ण

    की ं| गाँधीजी का खयाल था की बोअर‐यु� मP अंiेजो ंका समथ)न करके िÔिटश साîा¨

    मP भारतीयो ंकी �थित सुधारने का यह सुनहरी मौका है |

    गांधीजी ने घायलो ंकी सेवा के िलए एक टुकड़ी तैयार की, िजसमP 300 gतं भारतीय

    और 800 िगरिमिटए मजदूर थे। जनता ने और सेना ने गांधीजी की टुकड़ी की सहनशीलता

    और िहÜत की सराहना की।

    ि�टोdरया mूज़ के अंiेज संपादक िम. वीयर ÝPट ने जोहांसबग) इलÝq टेड Ýार के जुलाई

    1911 के अंक मP �sयाँ कोक की लड़ाई के मोच� का आँखो ंदेखा हाल िलखा था। इसने

    बतलाया‐“रात‐भर काम करने के बाद, िजसमP बड़े‐बड़े तगड़े आदिमयो ंके अंजर‐पंजर

    ढीले हो गए थे, म̀ने सुबह गांधी को सड़क के िकनारे बैठा देखा | बुलर के दल का हर एक

    आदमी सु_ और हतोRाह था और हर चीज पर लानत भेज रहा था। लेिकन गांधी अपने

    बता)व मP िवरागी जैसा और बातचीत मP हँसमुख और िनःशंक था और उसकी आँखो ंमP

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    दया थी |...नेटाल अिभयान के िकतने ही रणेो ंमP म̀ने इस आदमी को देखा और उसकी

    छोटी‐सी टुकड़ी को देखा। जहाँ सहायता की जcरत होती, ये लोग वही ंजा पYँचते |“

    सन् 1900 मP यह भारतीय टुकड़ी तोड़ दी गई। गांधीजी और उनके कई सािथयो ंको तमगे

    िमले और टुकड़ी का िजÊ खरीतो ंमP िकया गया।

    1901 मP गांधीजी ने भारत लौटने का इरादा िकया । पdरवार के साथ िबदा होने की पूव)

    संwा को भारतीय समुदाय ने कृतÌता के मू³) �दश)नो ंकी होड़ लगा दी।

    गांधीजी को सोने व चाँदी की चीजP और हीरे के जड़ाऊ आभूषण भPट िकए गए। क_ूरबाई

    के िलए सोने का एक कीमती हार था।

    1896 मP भी भारत जाते समय गांधीजी को उपहार िमले थे, परंतु वे इस �कार न थे। इनको

    न रखने की दुिवधा मP गांधीजी को रात‐भर नीदं नही ंआई। सुबह होते‐होते उkोनें उkP

    वापस करने का िनय कर िलया, परंतु इस बात के िलए वह क_ूरबा को बYत मु�ñल

    से राजी कर सके।

    अंत मP गांधीजी ने घोषणा की िक 1901 और 1896 के उपहार टq �Ýयो ंको सौपं िदए

    जाएँगे। ऐसा ही Yआ और इससे जो कोष बना, उससे दिण अ¼ीका के भारतीयो ंका

    बाद मP िकतने ही वष) काम चला।

    भारत लौटकर गांधीजी ने बंबई मP रहने का मकान और वकालत का कमरा िकराए पर

    िलए।

    गांधीजी बंबई मP बस चुके थे, लेिकन 1902 मP उkP दिण अ¼ीका से िफर बुलावा आया

    | उkोनें समझ िलया िक अब उkP दिण अ¼ीका मP बYत िदन रहना पड़ेगा, इसिलए

    उkोनें अपनी पी और तीन पुो ंको भी वही ंबुला िलया। सबसे बड़ा हdरलाल भारत मP

    ही रह गया। गांधीजी ने जोहांसबग) मP अपनी वकालत शुc कर दी, िजससे खूब आमदनी

    होने लगी।

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    एक शाम को गांधीजी अपने ि�य िनरािमष रेÝराँ की मालिकन के 'एट‐होम' मP गए | वहाँ

    उनकी मुलाकात हेनरी एस. एल. पोलक नामक एक नवयुवक से Yई।

    कुछ महीने पहले, 1903 मP, गांधीजी ने इंिडयन ओपीिनयन3 नामक सा�ािहक प शुc

    िकया था। पिका पर कुछ किठनाई आई और उसे वही ं िनबटाने के िलए गांधीजी को

    डरबन जाना पड़ा, जहाँ से पिका �कािशत होती थी। पोलक उkP Ýेशन पर पYँचाने

    आए और लंबे रा_े मP पढ़ने के िलए उkP एक पु_क दे गए। वह जॉन र�{न की अंटू

    िदस लाÝ थी।

    गांधीजी ने र�{न की कोई रचना अभी तक नही ंपढ़ी थी। उkोनें जोहांसबग) से गाड़ी

    छूटते ही इस पु_क को पढ़ना शुc िकया और रात‐भर पढ़ते रहे | अूबर 1946 मP

    गांधीजी ने कहा था‐“इस पु_क ने मेरे जीवन की धारा बदल दी ।” उनका कहना था िक

    यह पु_क र और आँसुओ ंसे िलखी गई है। उkोनें पु_क के आदशj के अनुसार

    अपना जीवन बनाने का िनय कर िलया। उkोनें सोच िलया िक अपने पdरवार तथा

    सहयोिगयो ंके साथ एक फाम) मP जाकर रहPगे।

    डरबन से चौदह मील दूर िफिन} नगर के पास गांधीजी ने एक फाम) खरीदा । बYत

    ज¥ी इंिडयन ओपीिनयन का छापाखाना और द²र फाम) मP पYँचा िदए गए। यह प

    इस थान से मिणलाल गांधी3 �ारा �कािशत हो रहा है।

    वासनाओ ंपर िवजय पाने के �यो ंमP 1906 का साल गांधीजी के जीवन मP पdरवत)न‐काल

    की भाँित उेखनीय है। अब उkोनें Ôòचय) का àत ले िलया। 1906 से लेकर, जब वह

    स̀तीस वष) के थे, 1948 तक मृZु‐पयóत, गांधीजी ने Ôòचय) का पालन िकया।

    11 िसतंबर 1906 | जोहांसबग) के इंपीdरयल िथयेटर मP करीब तीन हजार आदिमयो ंकी

    भीड़ थी। यह सभा गांधीजी ने बुलाई थी। 22 अग_ 1906 के टq ांसवाल गवन)मPट गजट मP

    एक अwादेश का मसिवदा छपा, जो िवधान मंडल मP पेश िकया जानेवाला था। गांधीजी ने

    सोचा िक यिद यह gीकृत हो गया, तो दिण अ¼ीका मP भारतीयो ं का सव)नाश हो

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    जायगा। इस �_ािवत अwादेश के अनुसार सब भारतीय पुºषो,ं �©यो ंऔर आठ साल

    से ऊपर के बो ंके िलए जcरी था िक वे अिधकाdरयो ंके रिजÝर मP अपने नाम दज)

    कराएँ, उँगिलयो ंकी िनशािनयाँ दP और एक �माण‐प �ा� करP , िजसे हर समय अपने

    साथ रखP ।

    सभापित �ारा कार)वाई शुc की जाने से पहले ही िथयेटर का आक� Ýq ा, बालकनी और

    गैलरी खचाखच भर गए थे। चार भाषाओ ंमP Êोध भरे भाषणो ंने भड़क उठनेवाले Èोताओ ं

    को आवेग के ऊँचे दज� तक थरा) िदया था। तब सेठ हाजीसाहब ने गांधीजी की सहायता

    से तैयार िकया Yआ �_ाव पढ़ा, िजसमP माँग की गई थी िक रिजÝर मP नाम दज)

    करवानेवाले कानून की अवÌा की जाय।

    इसके बाद गांधीजी बोले | पहले तो उkोनें लोगो ंको चेतावनी दी िफर उkP उ³ेिजत करने

    का �य िकया | उkोनें कहा‐“सरकार ने भलमनसाहत की सारी बु�� को ितलांजिल दे

    दी है ।“ लेिकन म̀ िहÜत और िनय के साथ घोिषत करता ~ँ िक जबतक अपनी �ितÌा

    पर सचाई के साथ डटे रहनेवाले मुÉीभर लोग भी रहPगे, तबतक संघष) का एक ही अंत हो

    सकता है‐वह है िवजय |”

    सभापित के संयत श«ो ंके बाद मत िलया गया। सब उप�थत लोगो ंने खड़े होकर हाथ

    उठाए और ईuर की शपथ ली िक यिद �_ािवत भारतीय िवरोधी अwादेश कानून बन

    गया तो उसे नही ंमानPगे।

    दूसरे िदन 12 िसतंबर को, इंपीdरयल िथयेटर आग मP जलकर भÂ हो गया। बYत से

    भारतीयो ंने इसे शकुन समझा िक अwादेश का भी यही हाल होगा। परंतु गांधीजी के िलए

    यह एक संयोग की बात थी। ऐसे शकुनो ंमP उनका िवuास नही ंथा। िनयित गांधीजी को

    ऐसे मूक संकेतो ंसे आôान नही ंकरती थी | उनकी अंतराा मP तो िनयित उस िहमालय